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❝ सुन्नते रसूलुल्लाह ﷺ ❞
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◢◤ सुन्नते रसूलुल्लाह ﷺ ◢◤
*❝ आओं सुन्नतों पर अमल करें! ❞*
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💬•• ➲ नबी -ए- करीम ﷺ ने फरमाया : कि *सबसे ज़्यादा हसरत कियामत के दिन उसको होगी जिसे दुनिया में इल्म हासिल करने का मौका मिला मगर उसने हासिल न किया और उस शख्स को होगी जिसने इल्म हासिल किया और दूसरों ने तो उस से सुन कर नफ़ा उठाया, लेकिन इसने न उठाया (यानी उस इल्म पर अमल न किया)।*
💬•• ➲ हज़रते सय्यिदुना अनस बिन मालिक रदिअल्लाहु त'आला अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के महबूब नबी -ए- करीम ﷺ ने फरमाया कि *जिसने मेरी सुन्नत से मुहब्बत की उसने मुझसे मुहब्बत की और जिसने मुझसे मुहब्बत की वो जन्नत में मेरे साथ होगा।*
💬•• ➲ हज़रते सय्यिदुना इब्ने अब्बास रदिअल्लाहु त'आला अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के महबूब नबी -ए- करीम ﷺ ने फरमाया कि *"फसादे उम्मत के वक़्त जो शख्स मेरी सुन्नत पर अमल करेगा, उसे सौ (100) शहीदों का सवाब अ़ता होगा"।*
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*❝ आओं सुन्नतों पर अमल करें! ❞*
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💬•• ➲ सलाम करना हज़रते सैय्यिदुना आदम अ़लैहिस्सलाम की भी सुन्नत है।
📒 मिरआतुल मनाजीह, जिल्द 6, सफहा 313
💬•• ➲ *हज़रते अबू हुरैरा रदिअल्लाहु त'आला अन्हु से रिवायत है कि हुजूर सैय्यिदे दो आलम ﷺ ने फरमाया :-* जब अल्लाह ने हज़रते सय्यिदुना आदम अ़लैहिस्सलाम को पैदा फरमाया तो उन्हें हुक्म दिया कि जाओ और फ़िरिश्तों की उस बैठी हुई जमाअत को सलाम करो। और गौर से सुनो! कि वह तुम्हें क्या जवाब देते हैं। क्यूंकि वही तुम्हारा और तुम्हारी औलाद का सलाम है। हज़रते सय्यिदुना आदम अ़लैहिस्सलाम ने फिरिश्तों से कहा :- अस्सलामु अलैकुम तो उन्होंने जवाब दिया :- अस्सलामु अलैकुम वा रहमतुल्लाह" और उन्होंने वा रहमतुल्लाह" के अल्फ़ाज़ ज़ाइद कहे।
📒 सहीहुल बुखारी, अल हदीस 62227, जिल्द 4, सफ़ा 164
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💬•• ➲ सलाम करने से आपस में मुहब्बत पैदा होती है। रदिअल्लाहु त'आला अन्हु से रिवायत है कि हुजूर सैय्यिदे दो आलम ﷺ ने फरमाया::- "तुम जन्नत में दाखिल नहीं होगे जब तक तुम ईमान न लाओ और तुम मोमिन नहीं हो सकते जब तक कि तुम एक दूसरे से महब्बत न करो। क्या मैं तुम को एक ऐसी चीज न बताऊं जिस पर तुम अमल करो तो एक दूसरे से मुहब्बत करने लगो। "अपने दरमियान सलाम को आम करो।"
📒 सुनन -ए- अबी दाऊद, किताबुल अदब, हदीस 5193, जिल्द 4, सफ़ा 448
💬•• ➲ *बातचीत शुरू करने से पहले ही सलाम करने की आदत बनानी चाहिये।* नबीय्ये करीम ﷺ ने फरमाया *""अस्सलामु-क़ब्लल-कलाम""* या'नी सलाम बातचीत से पहले है।"
📕 जाम-ए-तिर्मज़ी, जिल्द 4, सफ़ा 321
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💬•• ➲ छोटा बड़े को, चलने वाला बैठे हुए को, थोड़े ज़्यादा को और सुवार पैदल को सलाम करने में पहल करें।
💬•• ➲ सरकारे मदीना *ﷺ* ने फरमाया है : सुवार पैदल को सलाम करे, चलने वाला बैठे हुए को, और थोड़े लोग ज़ियादा को और छोटा बड़े को सलाम करे।
📓 सहीह मुस्लिम, हदीस नम्बर 2160, सफहा 1191
💬•• ➲ *पीछे से आने वाला आगे वाले को सलाम करे।*
📕 फ़तावा हिन्दिया, जिल्द 5, सफहा 225
💬•• ➲ जब कोई किसी का सलाम लाए तो इस तरह जवाब दें "अ़लैका वा अ़लैहिस्सलाम'' या'नी “तुझ पर भी और उस पर भी" सलाम हो।" हज़रते गालिब रदीअल्लाहू त'आला अन्हु फ़रमाते हैं कि हम हसन बसरी रदीअल्लाहू त'आला अन्हु के दरवाजे पर बैठे हुए थे, एक आदमी ने बताया कि मेरे वालिदे माजिद ने मुझे रसूलुल्लाह ﷺ के पास भेजा और फ़रमाया, आप ﷺ को मेरा सलाम अर्ज़ करना। उसने कहा, मैं आप (हुजूर ﷺ) की खिदमते बा ब-र-कत में हाज़िर हो गया और मैं ने अर्ज़ की, सरकार ﷺ ! मेरे वालिद साहिब आप ﷺ को सलाम अर्ज़ करते हैं। हुज़ूर सैय्यिदे आलम ﷺ ने फरमाया : "अ़लईका वा अ़ला अबीकस्सलाम" यानी तुझ पर और तेरे बाप पर सलाम हो।
📒 सुनन -ए- अबी दाऊद हदीस 5231, जिल्द 4, सफ़हा 457
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💬•• ➲ हर मुसलमान को सलाम करना चाहिये चाहे हम उसे जानते हों या न जानते हों। हज़रते अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन अल आस से मरवी है कि एक आदमी ने हुजूर ताजदारे मदीना ﷺ से अर्ज किया इस्लाम की कौन सी चीज़ सबसे बेहतर है ? तो आप ﷺ ने फरमाया ::- यह कि तुम खाना खिलाओ (मिस्कीनों को) और सलाम कहो हर शख्स को चाहे तुम उसको जानते हो या नहीं।
📒 *सहीह बुखारी, अल हदीस 6236, जिल्द 4, सफहा 168*
💬•• ➲ हो सके तो जब बस में सुवार हों, किसी अस्पताल में जाना पड़ जाए किसी होटल में दाखिल हों, जहां लोग फारिग बैठे हों, जहां जहां मुसल्मान इकट्ठ हों, सलाम कर दिया करें। यह दो अल्फ़ाज़ जबान पर बहुत ही हलके हैं मगर इन के वाइदो समरात बहुत ही ज़्यादा हैं।
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💬•• ➲ *बा'ज़ सहाबा -ए- किराम सिर्फ सलाम की गरज’ से बाज़ार में जाया करते थे। हज़रते तुफैल रदिअल्लाहु त'आला अन्हु* कहते हैं, एक दिन मैं *हज़रते अब्दुल्लाह रदिअल्लाहु त'आला अन्हु* के पास गया तो उन्होंने मुझे बाज़ार चलने को कहा। मैं ने अर्ज किया बाजार जाकर क्या करेंगे? वहां आप न तो खरीदारी के लिये रुकते हैं, न सामान के मु-तअल्लि पूछते, न भाव करते हैं और न बाज़ार की मजलिस में बैठते ,मेरी तो गुजारिश यह है कि यहीं हमारे पास तशरीफ़ रखें । हम बातें करेंगे । फरमाया : ‘ऐ बड़े पेट वाले ! (सय्यिदुना तुफैल का पेट बड़ा था) हम सिर्फ सलाम की गरज से जाते हैं। हम जिस से मिलते हैं उस को सलाम कहते हैं।
📒 *रियाज़ुस्सलिहीन, किताबुल इस्लाम, हदीस 850, सफ़ा 249*
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💬•• ➲ *सलाम में पहल करने वाला अल्लाह का मुक़र्रब है ::-* *हज़रते अबु उमामा सदी बिन इजलान अल बाहिली रदिअल्लाहु त'आला अन्हु* से रिवायत है ल कि *हुजूर ताजदारे मदीना ﷺ* ने फ़रमाया ::- *‘‘लोगों में अल्लाह त'आला के ज़्यादा करीब वोही शख्स है जो उन्हें पहले सलाम करे"।*
📕 *सुनन -ए- अबी दाऊद, जिल्द 4, हदीस 5197, सफ़हा 449*
💬•• ➲ *सलाम में पहल करने वाला तक़ब्बुर से बरी है। हजरते अब्दुल्लाह रदिअल्लाहु त'आला अन्हु नबिय्ये करीम ﷺ* से रिवायत करते हैं, फ़रमाया : *“पहले सलाम कहने वाला तकब्बुर से बरी है।''*
📒 *शुऐबुल ईमान, हदीस 8786, जिल्द 4, सफ़हा 433*
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💬•• ➲ जब घर में दाखिल हों तो घर वालों को सलाम किया करें इस से घर में बरकत होती है। और अगर खाली घर में दाखिल हों तो *"अस्सलामु अ़लइका अय्युहन नबीय्यू"* कहें या'नी “ऐ नबी आप पर सलाम हो।
💬•• ➲ *हज़रते मुल्ला अली कारी रहीमहुल्लाह त'आला* फ़रमाते हैं ::- हर मोमिन के घर में *सरकारे मदीना ﷺ* की रूहे मुबारक तशरीफ़ फ़रमा रहती है।
📕 शरह -ए- शिफा, जिल्द 2, सफहा 118
💬•• ➲ *हज़रते अनस रदिअल्लाहु त'आला अन्हु* से रिवायत है कि *रसूलुल्लाह ﷺ* ने फ़रमाया ::- ‘‘ऐ बेटे! जब तुम अपने घर में दाखिल हो तो सलाम कहो, यह तुम्हारे लिये और तुम्हारे घर वालों के लिये बरकत का बाइस होगा।'
*📒 तिर्मिज़ी, जिल्द 4, हदीस 2707, सफ़हा 320*
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💬•• ➲ घर में जब दाखिल हों उस वक्त भी सलाम करें और जब रुख्सत होने लगें, उस वक्त भी सलाम करें। *हज़रते कतादा रदिअल्लाहु त'आला अन्हु* से रिवायत है कि *नबीय्ये करीम ﷺ* ने फरमाया ::- "जिस वक़्त तुम घर में दाखिल हो अपने घर के लोगों को सलाम कहो। जब अपने घर से निकलो तो सलाम के साथ रुखसत हो।
📒 मिश्कातुल मसाबीह, जिल्द 4, हदीस 4651, सफहा 165
💬•• ➲ आज कल अगर कोई किसी महफ़िल, इज्तिमाअ या मजलिस वगैरा में आकर सलाम कर भी देता है तो जाते हुए “मैं चलता हूं”, “खुदा हाफ़िज़', “अच्छा", "बाय बाय'', वगैरा कलिमात कहता है।लिहाज़ा मजलिस के इख़्तिताम पर इन सब अल्फाज़ के बजाए सलाम किया करें। चुनान्चे *हज़रते अबू हुरैरा रदिअल्लाहु त'आला अन्हु हुजूर नबीय्ये करीम ﷺ* से रिवायत करते हैं ::- “जिस वक्त तुम में से कोई किसी मजलिस कीतरफ़ पहुंचे, सलाम कहे। अगर ज़रूरत महसूस करे, वहां बैठ जाए। फिर जब खड़ा हो सलाम कहे, इसलिये कि पहला सलाम दूसरे से ज़्यादा बेहतर नहीं है।
📕 तिर्मिज़ी, जिल्द 4, हदीस 2718, सफहा 324
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💬•• ➲ अगर कुछ लोग जम्अ हैं एक ने आकर *"अस्सलामु अलैकुम"* कहा । तो किसी एक का जवाब दे देना काफ़ी है। अगर एक ने भी न दिया तो सब गुनहगार होंगे। अगर सलाम करने वाले ने किसी एक का नाम ले कर सलाम किया या किसी को मुखातब कर के सलाम किया तो अब उसी को जवाब देना होगा। दूसरे का जवाब काफ़ी न होगा।
📒 *माखूज़ अज़ बहारे शरीअत, सलाम का बयान, हिस्सा : 16, सफह 89*
💬•• ➲ *अस्सलामु अलैकुम* कहने से दस नेकियां, *अस्सलामु अलैकुम वा रहमतुल्लाहि* कहने से बीस नेकियां जबकि *अस्सलामु अलैकुम वा रहमतुल्लाही वा बरकातुहू* कहने से तीस नेकियां मिलती हैं। चुनान्चे *हज़रते इमरान बिन हसीन रदिअल्लाहु त'आला अन्हु* से रिवायत है कि एक आदमी हुजूर ताजदारे मदीना ﷺ की खिदमत में हाज़िर हुआ, और उसने अर्ज़ किया ::- *अस्सलामु अलैकुम* आप ﷺ ने फ़रमाया::- दस नेकियां लिखी गई हैं। फिर दूसरा हाज़िर हुआ उसने अर्ज़ किया, *अस्सलामु अलैकुम वा रहमतुल्लाहि* आप ﷺ ने उस को जवाब दिया, वह भी बैठ गया। आप ﷺ ने फ़रमाया ::- बीस नेकियां लिखी गई हैं। फिर एक और आदमी हाज़िरे खिदमत हुआ, उसने अर्ज़ किया : *अस्सलामु अलैकुम वा रहमतुल्लाही वा बरकातुहू* आप ﷺ ने जवाब दिया और फ़रमाया ::- तीस नेकियां हैं।
📒 *جامع الترمذی، كتاب الاستزان والآداب، باب ما فى فضل السلام، الحدیث ٢٦٩٨،ج٤، ص٣١٥*
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💬•• ➲ *आला हज़रत, इमामे अहले सुन्नत, इमाम अहमद रज़ा खान* फ़तावा र-ज़विय्या जिल्द 22 सफ़हा 409 पर फ़रमाते हैं ::- कम अज़ कम *अस्सलामु अलैकुम* और इस से बेहतर *वा रहमतुल्लाह* मिलाना और सबसे बेहतर *वा बरकातुहू* शामिल करना और इस पर ज़ियादत नहीं। *फिर सलाम करने वाले ने जितने अल्फाज़ में सलाम किया है जवाब में उतने का इआदा तो ज़रूर है* और अफ्ज़ल यह है कि जवाब में ज़्यादा कहे।
💬•• ➲ *जो सो रहे हों उन को सलाम न किया जाए बल्कि सिर्फ जागने वालों को सलाम करें।* चुनान्चे *हज़रते मिक्दाद रदिअल्लाहु त'आला अन्हु* से मरवी है कि आप ﷺ रात को तशरीफ़ लाते तो सलाम कहते । आप ﷺ सोने वालों को न जगाते और जो जाग रहे होते उन को आप सलाम इरशाद फ़रमाते।
📒 *صحیح مسلم، کتاب الا شربۃ، باب اکرام الضیف و فضل ایثارہ، الحدیث ٢٠٥٥، ص ١١٣٦*
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💬•• ➲ उंगलियों या हथेली के इशारे से सलाम करने के बजाए ज़ुबान से सलाम किया जाए।
📒 *माखूज अज़ बहारे शरीअत, हिस्सा : 16, सफ़ह 92*
💬•• ➲ *हज़रते अम्र बिन शुऐब ब वासिता वालिद अपने दादा रदिअल्लाहु त'आला अन्हु* से रिवायत करते हैं, *नबीय्ये करीम ﷺ* ने फ़रमाया ::- “हमारे गैर से मुशाबहत पैदा करने वाला हम में से नहीं, यहूदो नसारा के मुशाबेह न बनो, यहदियों को सलाम उंग्लियों के इशारे से है और ईसाइयों का सलाम हथेलियों के इशारे से।
📕 *सहीह मुस्लिम, हदीस 2055*
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💬•• ➲ अगर किसी ने जुबान से सलाम के अल्फ़ाज़ कहे और साथ ही हाथ भी उठा दिया तो फिर मुजा-यका नहीं।
📒 *अहकामे शरीअत, सफ़ह 60*
💬•• ➲ सलाम इतनी ऊंची आवाज़ से करें कि जिसको किया हो वोह सुन ले।
📒 *बहारे शरीअत, सलाम का बयान, हिस्सा : 16, सफह 9*
💬•• ➲ सलाम का फ़ौरन जवाब देना *वाजिब* है। अगर 'बिला उज्र ताखीर की तो गुनाहगार होगा और सिर्फ जवाब देने से गुनाह मुआफ नहीं होगा, तौबा भी करना होगी।
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💬•• ➲ गैर मुस्लिम को सलाम न करें वोह अगर सलाम करे तो उस का जवाब वाजिब नहीं, जवाब में फ़कत *"वा अलैकुम"* कह दें।
📒 *बहारे शरीअत, सलाम का बयान, हिस्सा 16, सफ़ह 90*
💬•• ➲ सलाम करते वक्त हद्दे रुकूअ तक (इतना झुकना कि हाथ बढ़ाए तो घुटनों तक पहुंच जाएं) झुक जाना *हराम* है अगर इस से कम झुके तो *मकरूह*।
📕 *बहारे शरीअत, सलाम का बयान, हिस्सा 16, सफ़ह 92*
💬•• ➲ बद किस्मती से आज कल आम तौर पर सलाम करते वक्त लोग झुक जाते हैं।अलबत्ता किसी बुजुर्ग के हाथ चूमने में हरज नहीं बल्कि सवाब है और यह बिगैर झुके मुम्किन नहीं यहां ज़रूरत है। जब कि सलाम के वक्त झुकने की हाजत नहीं।
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࿐ बुढ़िया का जवाब आवाज़ से दें और जवान औरत के सलाम का जवाब इतना आहिस्ता दें कि वोह न सुने। अलबत्ता इतनी आवाज़ लाज़िमी है कि जवाब देने वाला खुद सुन ले।
📕 *बहारे शरीअत, सलाम का बयान, हिस्सा 16, सफह 90*
࿐ जब दो इस्लामी भाई मुलाकात करें तो सलाम करें और अगर दोनों के बीच में कोई सुतून, कोई दरख्त या दीवार वगैरा दरमियान में हाइल हो जाए फिर जैसे ही मिलें दोबारा सलाम करें।
࿐ *हज़रते अबू हुरैरा रदीअल्लाहु त'आला अन्हु से मरवी है कि हुजूर ताजदारे मदीना ﷺ ने फ़रमाया* “जब तुम में से कोई शख्स अपने इस्लामी भाई को मिले तो उस को सलाम करे और अगर इन के दरमियान दरख्त, दीवार या पथ्थर वगैरा हाइल हो जाए और वोह फिर उस से मिले तो दोबारा उस को सलाम करे।"
📒 *सुनने अबी दाऊद, जिल्द 4, सफहा 450, हदीस 5200*
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࿐ खत में सलाम लिखा होता है उस का भी जवाब देना वाजिब है इस की दो सूरतें हैं, एक तो यह कि जुबान से जवाब दे और दूसरा येह कि सलाम का जवाब लिख कर भेज दे लेकिन चूंकि जवाबे सलाम फ़ौरन देना वाजिब है और खत का जवाब देने में कुछ न कुछ ताखीर हो ही जाती है लिहाज़ा फ़ौरन जुबान से सलाम का जवाब दे दें।
࿐ *आ'ला हज़रत इमामे अहले सुन्नत* जब खत पढ़ा करते तो खत में जो *"अस्सलामु अलैकुम''* लिखा होता, उस का जवाब जुबान से देकर बाद का मज़मून पढ़ते।
📒 *बहारे शरीअत, जिल्द 2, हिस्सा 16, सलाम का बयान*
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࿐ *अगर किसी ने आप को कहा, “फुलां को मेरा सलाम कहना"* तो आप खुद उसी वक्त जवाब ना दें। आपका जवाब देना कोई मानी नहीं रखता बल्कि जिस के बारे में कहा है, उससे कहे कि फुलां ने आप को सलाम कहा है।
࿐ *अगर किसी ने आप से कहां कि फुलां ने आप को सलाम कहा है।* अगर सलाम लाने वाला और भेजने वाला दोनों मर्द हों तो यूं कहें *"अलइका व अलैहिस्सलाम"* अगर दोनों औरतें हों तो कहें *"अलइका व अलैहस्सलाम"*
࿐ अगर पहुंचाने वाला मर्द और भेजने वाली औरत हो *"अलइका व अलैहस्सलाम"* अगर पहुंचाने वाली औरत हो और भेजने वाला मर्द हो *"अलइका व अलैहिस्सलाम"* (इन सब का तर्जुमा यही है “तुझ पर भी सलाम हो और उस पर भी'')
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࿐ जब आप मस्जिद में दाखिल हों और कोई तिलावते कुरआन, ज़िक्रो दुरूद में मश्गूल हों या इन्तिज़ारे नमाज़ में बैठा हों उन को सलाम न करें। यह सलाम का मौकअ नहीं न उन पर जवाब वाजिब है।
📒 *अल फ़तावा हिन्दिया,जिल्द 5, सफहा 225*
࿐ *इमामे अहले सुन्नत, मुजद्दिदे दीनो मिल्लत शाह मौलाना अहमद रज़ा* खान फतावा रज़विय्या जिल्द 23 सफ़हा 399 पर लिखते हैं : ज़ाकिर पर सलाम करना मुत्लकन मन्अ है और अगर कोई करे तो ज़ाकिर को इख़्तियार है कि जवाब दे या न दे। हां अगर किसी के सलाम या जाइज़ कलाम का जवाब न देना उस की दिल शिकनी का मूजिब (सबब) हो तो जवाब दे कि मुसलमान की दिलदारी वजीफे में बात न करने से अहम व आज़म है।
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࿐ कोई शख्स दर्सो तदरीस या इल्मी गुफ्तगू या सबक की तकरार में है उस को सलाम न करें।
📕 *बहारे शरीअत, सलाम का बयान, हिस्सा : 16, सफह 91*
࿐ इज्तिमाअ में बयान हो रहा है, लोग उसे सुन रहे हैं आने वाला सलाम न करे।
࿐ जो पेशाब, पाखाना कर रहा है, या पेशाब करने के बाद ढेला लिये जा-ए पेशाब सुखाने के लिये टहल रहा है, गुस्ल खाने में बरहना नहा रहा है, गाना गा रहा है, कबूतर उड़ा रहा है या खाना खा रहा है इन सब को सलाम न करें।
📒 *बहारे शरीअत, सलाम का बयान, हिस्सा : 16, सफह 91*
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࿐ जिन सूरतों में सलाम करना मन्अ है अगर किसी ने कर भी दिया तो इन पर जवाब वाजिब नहीं।
📒 *बहारे शरीअत, सलाम का बयान, हिस्सा : 16, सफह 91*
࿐ खाना खाने वाले को सलाम कर दिया तो मुंह में उस वक्त लुक्मा नहीं तो जवाब दे दे।
࿐ साइल (भिकारी) के सलाम का जवाब वाजिब नहीं (जब कि भीक मांगने की गरज से आया हो)।
📕 *बहारे शरीअत, सलाम का बयान, हिस्सा : 16, सफह 90*
࿐ *ऐ हमारे प्यारे अल्लाह : हमें सलाम की ब-र-कतों से मालामाल फ़रमा।*
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࿐ *मुसा-फहा और मुआ-नका की सुन्नतें*
࿐ जब दो मुसलमान आपस में मिलें तो पहले सलाम करें और फिर दोनों हाथ मिलाएं कि ब वक्ते मुलाकात मुसा-फूहा करना सुन्नते सहाबा, बल्कि सुन्नते रसूल ﷺ है।
📕 *मिरातुल मनाजीह, ज़िल्द 6, सफह 355*
࿐ हज़रते अबुल खत्ताब रदीअल्लाहु त'आला अन्हु ने फ़रमाया कि मैं ने हज़रते अनस रदीअल्लाहु त'आला अन्हु से अर्ज़ किया, कि मुसा-फुहा (हाथ मिलाना) हुजूर नबिय्ये करीम ﷺ के सहाबए किराम में मुरव्वज था? आप रदीअल्लाहु त'आला अन्हु ने फ़रमाया, “हां”।
📒 *सहीह बुखारी, हदीस 6263, जिल्द 4, सफ़हा 177*
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࿐ आपस में हाथ मिलाने से कीना खत्म होता है और एक दूसरे को तोहफा देने से महब्बत बढ़ती और अदावत दूर होती है जैसा कि हज़रते अता खुरासानी रदीअल्लाहु त'आला अन्हु से रिवायत है।
࿐ कि हुजूर नबिय्ये करीम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : एक दूसरे के साथ मुसा-फहा करो, इस से कीना जाता रहता है और हदिय्या भेजो आपस में मुहब्बत होगी और दुश्मनी जाती रहेगी।
📒 *मिश्कातुल मशाबीह, हदीस 4693, जिल्द 2, सफ़हा 171*
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࿐ मुलाकात के वक्त मुसा-फहा करने वालों के लिये दुआ की कबूलिय्यत और हाथ जुदा होने से कब्ल ही मगफिरत की बिशारत है। चुनान्चे हज़रते अनस रदीअल्लाहु त'आला अन्हु से रिवायत है। कि सरकारे मदीना ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : “जब दो मुसलमानों ने मुलाकात की और एक दूसरे का हाथ पकड़ लिया (या'नी मुसा-फहा किया) तो अल्लाह त'आला के ज़िम्मए करम पर है कि उन की दुआ को हाज़िर कर दे (या'नी कबूल फ़रमा ले) और हाथ जुदा न होने पाएंगे कि इन की मग्फ़िरत हो जाएगी। और जो लोग जम्अ हो कर अल्लाह त'आला का ज़िक्र करते हैं और सिवाए रिज़ाए इलाही के उन का कोई मक्सद नहीं तो आसमान से मुनादी निदा देता है कि खड़े हो जाओ ! तुम्हारी मग्फ़िरत हो गई, तुम्हारे गुनाहों को नेकियों से बदल दिया गया।
📒 *मुस्नदे इमाम अहमद बिन हम्बल, हदीस 12454, जिल्द 4, 286*
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࿐ मुसलमान भाइयों के आपस में मुसा-फहा करने की ब-र-कत से दोनों के गुनाह बख्श दिये जाते हैं। ताजदारे मदीना ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : “मुसलमान जब अपने मुसलमान भाई से मिले और “हाथ पकड़े" (या'नी मुसा-फुहा करे) तो उन दोनों के गुनाह ऐसे गिरते हैं जैसे तेज़ आंधी के दिन में खुश्क दरख़्त के पत्ते और उन के गुनाह बख्श दिये जाते हैं अगरचे समुन्दर की झाग के बराबर हों।
📕 *शुएबुल ईमान, हदीस 8950, जिल्द 6, सफहा 473*
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࿐ रहमते आलम ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : “जब दो दोस्त आपस में मिलते हैं और मुसा-फुहा करते हैं और नबी ﷺ पर दुरूदे पाक पढ़ते हैं तो उन दोनों के जुदा होने से पहले पहले दोनों के अगले पिछले गुनाह बख्श दिये जाते हैं।
📒 *शुएबुल ईमान, हदीस 8944, जिल्द 6, सफहा 471*
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࿐ सलाम के साथ साथ मुसा-फुहा करने से सलाम की तक्मील होती है। हज़रते अबू उमामा रदीअल्लाहु त'आला अन्हु से रिवायत है, सरकारे मदीना ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया: “मरीज़ की पूरी इयादत यह है कि उस की पेशानी पर हाथ रख कर पूछे कि मिज़ाज कैसा है ? और पूरी तहिय्यत (सलाम करना) यह है कि मुसा-फूहा भी किया जाए।
📗 *तिर्मिज़ी शरीफ, 2740, जिल्द 4, सफहा 334*
࿐ खन्दा पेशानी से मुलाकात करना हुस्ने अख़्लाक में से है, सरकारे मदीना ﷺ फ़रमाते हैं, "लोगों को तुम अपने अम्वाल से खुश नहीं कर सकते लेकिन तुम्हारी खन्दा पेशानी और खुश अख़्लाकी उन्हें खुश कर सकती।
📒 *शुएबुल ईमान, हदीस 8054, जिल्द 6, सफहा 253*
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࿐ खुशी में किसी से गले मिलना सुन्नत है। *(मिरआतुल मनाजीह, ज़िल्द 6, सफह 359)* हज़रते आइशा सिद्दीका फ़रमाती हैं: जैद बिन हारिस रदीअल्लाहु त'आला अन्हु मदीना आए और हुजूर नबीय्ये करीम ﷺ मेरे घर में थे, जैद रदीअल्लाहु त'आला अन्हु वहां आए और दरवाजा खटखटाया । हुजूर ﷺ उठ कर कपड़ा खींचते हुए उन की तरफ़ तशरीफ़ ले गए। उन से मुआ-नका किया और उन को बोसा दिया।
📙 *तिर्मिज़ी शरीफ, हदीस 2741, जिल्द 4, सफहा 335*
࿐ हज़रते सय्यिदुना जाफ़र रदीअल्लाहु त'आला अन्हु सरकारे अबद करार ﷺ की खिदमते बा ब-र-कत में हाज़िर हुए तो उन को भी गले से लगाया चुनान्चे हज़रते शअबी रदीअल्लाहु त'आला अन्हु से रिवायत है कि नबीय्ये करीम, रऊफुर्रहीम ﷺ जाफर बिन अबी तालिब रदीअल्लाहु त'आला अन्हु को मिले तो गले से लगा लिया और उन की आंखों के दरमियान बोसा दिया।
📒 *सुनन अबी दाऊद, हदीस 5220, जिल्द 4, सफहा 455)*
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࿐ खुश नसीब सहाबए किराम रदीअल्लाहु त'आला अन्हुमा सरकारे जी वकार ﷺ के रहमत भरे हाथों को चूमने की सआदत भी हासिल करते थे।
࿐ हज़रते इब्ने उमर रदीअल्लाहु त'आला अन्हु से एक वाकिआ मरवी है जिस में आप रदीअल्लाहु त'आला अन्हु ने फ़रमाया : हम हुज़ूर ताजदारे मदीना ﷺ के करीब हुए और हम ने आप ﷺ के हाथों को बोसा दिया।
📒 *सुनन अबी दाऊद, हदीस 5223, जिल्द 4, सफहा 456*
*जिन को सूए आस्मां फैला के जल थल भर दिये*
*सदक़ा उन हाथों का प्यारे हम को भी दरकार है।*
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࿐ हज़रते जार رضی اللہ تعالی عنہ से रिवायत है कि जब कबीलए अ़ब्दिल क़ैस का वफ्द सरकारे मदीना ﷺ की खिदमते अक्दस में हाज़िर हुआ, यह भी उस वक्त वफ्द में शरीक थे। आप फ़रमाते हैं कि जब हम अपनी मन्ज़िलों से मदीना शरीफ़ पहुंचे तो जल्दी जल्दी सरकारे मदीना ﷺ की खिदमते अक्दस में हाजिर हुए और सरकारे मदीना ﷺ के दस्ते मुबारक और कदम शरीफ़ को बोसा दिया।
📗 *सुनन अबी दाऊद, हदीस 5225, जिल्द 4, सफ़हा 456*
࿐ जितनी बार मुलाकात हो हर बार मुसा-फुहा करना मुस्तहब है।
📒 *बहारे शरीअत, हिस्सा 16, सफ़ह 97*
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࿐ रुख्सत होते वक़्त भी मुसाफा करें।सदरुश्शरीअह, बदरुत्तरीकह मुफ्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी رحمہ اللہ تعالی लिखते हैं। इसके मस्नून होने की तस्-रीह नज़रे फक़ीर से नहीं गुजरी मगर अस्ल मुसा-फुहा का जवाज़ हदीस से साबित है तो इस को भी जाइज़ ही समझा जाएगा।
📓 *बहारे शरीअत, हिस्सा 16, सफ़ह 98*
࿐ फकत उंग्लियों के छूने का नाम मुसाफहा नहीं है सुन्नत यह है कि दोनों हाथों से मुसा-फ़हा किया जाए और दोनों के हाथों के माबैन कपड़ा वगैरा कोई चीज़ हाइल न हो।
📒 *बहारे शरीअत, हिस्सा 16, सफ़ह 98*
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࿐ मुसा-फहा करते वक़्त सुन्नत यह है कि हाथ में रुमाल वगैरा हाइल न हो, दोनों हथेलियां खाली हों और हथेली से हथेली मिलनी चाहिये।
📒 *बहारे शरीअत, सलाम का बयान, हिस्सा 16, सफ़ह 98*
࿐ मुस्कुरा कर गर्म जोशी से मुसा-फहा करें। दुरूद शरीफ़ पढे और हो सके तो येह दुआ भी पढ़ें " یغفر اللہ لنا ولكم
(या'नी अल्लाह हमारी और तुम्हारी मरिफ़रत फ़रमाए)।
࿐ हर नमाज़ के बाद लोग आपस में मुसा-फहा करते हैं यह जाइज़ है।
📕 *रद्दुल मुहतार, जिल्द 9, सफहा 682*
࿐ दोनों हाथों से मुसाफहा करें।
📗 *बहारे शरीअत, हिस्सा : 16, सफ़ह 98*
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࿐ सिल्सिलए आलिया चिश्तिया के अज़ीम पेशवा हज़रते सय्यिदुना बाबा फ़रीदुद्दीन गन्जे शकर رحمہ اللہ تعالی फ़रमाते हैं: मशाइख व बुजुर्गाने दीन की दस्त बोसी यकीनन दीनो दुनिया की खैरो ब-र-कत का बाइस बनती है।
࿐ एक दफ्आ किसी ने एक बुजुर्ग को इन्तिकाल के बाद ख्वाब में देखा तो उन से पूछा ::- अल्लाह तबा-र-क व त'आला ने आप के साथ क्या सुलूक किया ? कहा ::- दुनिया का हर मुआ-मला अच्छा और बुरा मेरे आगे रख दिया और बात यहां तक पहुंच गई कि हुक्म हुवा, इसे दोजख में ले जाओ ! इस हुक्म पर अमल होने ही वाला था कि फरमान हुवा, ठहरो! एक दफ्आ इस ने जामे दिमश्क में ख्वाजा शरीफ़ رحمہ اللہ تعالی के दस्ते मुबारक को चूमा था । उस दस्त बोसी की ब-रकत से हम ने इसे मुआफ किया।
📕 *असरार ए औलिया, 113*
࿐ या'नी अल्लाह ﷻ की रहमत बहा या'नी कीमत तलब नहीं करती, अल्लाह ﷻकी रहमत तो बहाना ढूंडती है।
࿐ मजीद शैखुल मशाइख बाबा फ़रीदुद्दीन رحمہ اللہ تعالی फ़रमाते हैं: क़ियामत के दिन बहुत सारे गुनाहगार, बुजुर्गाने दीन की दस्त बोसी की ब-र-कत से बख्शे जाएंगे और दोज़ख के अज़ाब से नजात हासिल करेंगे।
📒 *असरार ए औलिया, 113*
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࿐ गले मिलने को मुआ-नका कहते हैं और यह भी सरकारे मदीना ﷺ से साबित है।
࿐ सिर्फ तहबन्द बांध कर या पाजामा पहने हों उस वक्त मुआ-नका न करें बल्कि कुर्ता पहना हुआ हो या कम से कम चादर लिपटी हुई होनी चाहिये।
📗 *बहारे शरीअ़त, सलाम का बयान, हिस्सा 16, सफ़ह 98*
࿐ ईदैन में मुआनका करना जाइज़ है।
📕 *बहारे शरीअ़त, सलाम का बयान, हिस्सा 16, सफ़ह 90*
࿐ आलिमे दीन के हाथ पाउं चूमना जाइज़ है।
࿐ मुसा-फहे के बाद अपना ही हाथ चूम लेना मकरूह है।
📒 *बहारे शरीअ़त, सलाम का बयान, हिस्सा 16, सफ़ह 99*
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࿐ हाथ पाउं वगैरा चूमने में यह एहतियात ज़रूरी है कि फ़ितना न हो, अगर معاذ اللہ शहवत के लिये किसी से मुसा-फहा या मुआ-नका किया, हाथ पाउं चूमे या पेशानी का बोसा लिया तो यह ना जाइज़ है।
📕 *बहारे शरीअ़त, सलाम का बयान, हिस्सा 16, सफ़ह 98*
࿐ वालिदैन के हाथ पाउं भी चूम सकते हैं।
࿐ आलिमे बा अमल और नेक शख्स की आमद पर ताज़ीम के लिये खड़ा हो जाना जाइज़ बल्कि मुस्तहब है मगर वो आलिम या नेक शख्स बज़ाते खुद अपने आप को ताज़ीम का अहल तसव्वुर न करे और यह तमन्ना न करे कि लोग मेरे लिये खड़े हो जाया करें। और अगर कोई ताज़ीमन खड़ा न हो तो हरगिज़ हरगिज़ दिल में कदूरत (मैल) न लाएं।
📒 *फतावा र-ज़विया जिल्द 23)*
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࿐ इस ज़िन्दगी में हमें हर वक़्त बातचीत करने की ज़रूरत पड़ती रहती है। बल्कि हम लोग बिला ज़रूरत भी हर वक़्त बोलते रहते हैं। हालाँकि यह बिला ज़रूरत बोलना बहुत ही नुक्सान देह है। गैर ज़रूरी गुफ्तगू करने से खामोश रहना अफ्ज़ल है। लिहाज़ा हमारे प्यारे आक़ा ﷺ की बातचीत के सिल्सिले में सुन्नतें और खामोशी के फ़ज़ाइल यहां पर बयान किये जा रहे हैं।
࿐ सरकारे मदीना ﷺ गुफ्तगू इस तरह दिल नशीन अन्दाज़ में ठहर ठहर कर फ़रमाते कि सुनने वाला आसानी से याद कर लेता चुनान्चे उम्मुल मुअमिनीन हज़रते सैय्यिदा आइशा सिद्दीका رضی اللہ تعالی عنھا फ़रमाती हैं कि सरकारे दो आलम ﷺ साफ़ साफ़ और जुदा जुदा कलाम फ़रमाते थे, हर सुनने वाला उस को याद कर लेता था।
📒 *मुस्नद इमाम अहमद बिन हम्बल, जिल्द 10, सफहा 115, हदीस 24249*
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࿐ मुस्कुरा कर और खन्दा पेशानी से बातचीत कीजिये। छोटों के साथ मुश्फिकाना और बड़ों के साथ मुअद्दबाना लहजा रखिये। ان شاء اللہ दोनों के नज़दीक आप मुअज्ज़ज़ रहेंगे।
࿐ चिल्ला चिल्ला कर बात करना जैसा कि आज कल बे तकल्लुफ़ी में दोस्त आपस में करते हैं, मा 'यूब है।
࿐ दौराने गुफ्तगू एक दूसरे के हाथ पर ताली देना ठीक नहीं क्यूं कि ताली, सीटी बजाना महज़ खेलकूद, तमाशा और तरीक़ए कुफ्फ़ार है।
📒 *तफ्सीरे नईमी, जिल्द 9, सफहा 549*
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࿐ बातचीत करते वक़्त दूसरे के सामने बार बार नाक या कान में उंगली डालना, थूकते रहना अच्छी बात नहीं। इस से दूसरों को घिन आती है।
࿐ जब तक दूसरा बात कर रहा हो, इत्मिनान से सुनें। उस की बात काट कर अपनी बात शुरूअ न कर दें।
࿐ कोई हक्लाकर बात करता हो तो उस की नक़ल न उतारें कि इस से उस की दिल आज़ारी हो सकती है।
࿐ बातचीत करते हुए क़हक़हा न लगाएं कि सरकार ﷺ ने कभी क़हक़हा नहीं लगाया। (क़हक़हा यानी इतनी आवाज़ से हंसना कि दूसरों तक आवाज़ पहुंचे।)
📒 *मिरआतुल मनाजीह, जिल्द 6, सफहा 402*
࿐ ज़्यादा बातें करने और बार बार क़हक़हा लगाने से वक़ार भी मजरूह होता है।
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࿐ सरकारे मदीना ﷺ का फ़रमाने आलीशान है ::- “जब तुम किसी दुनिया से बे रग्बत शख्स को देखो और उसे कम गो पाओ तो उस के पास ज़रूर बैठो क्यूं कि उस पर हिक्मत का नुज़ूल होता है।
📗 *सुनन इब्ने माजा, जिल्द 4, सफहा 122, हदीस 4101*
࿐ हदीसे पाक में है “जो चुप रहा उस ने नजात पाई।
📒 *शुएबुल ईमान, जिल्द 4, 254*
📕 *जामए तिर्मिज़ी, जिल्द 4, 225*
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*❝ आओं सुन्नतों पर अमल करें! ❞*
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࿐ किसी से जब बातचीत की जाए तो उस का कोई सहीह मक़्सद भी होना चाहिये। और हमेशा मुखातब के ज़र्फ और उस की नफ्सिय्यात के मुताबिक बात की जाए। जैसा कि कहा जाता है::-
کلمو الناس علی قدر عقولهم
࿐ या'नी लोगों से उन की अक़्लों के मुताबिक कलाम करो।
࿐ या'नी इस तरह की बातें न की जाएं कि दूसरों की समझ में न आएं, अल्फ़ाज़ भी सादा साफ़ साफ़ हों, मुश्किल तरीन अल्फ़ाज़ भी इस्तिमाल न किये जाएं कि इस तरह अगले पर आप की इल्मिय्यत की धाक तो बैठ जाएगी मगर मुद्दआ खाक भी समझ न आएगा।
࿐ अपनी ज़ुबान को हमेशा बुरी बातों से रोके रखें। हज़रते उक़्बा बिन आमिर رضی اللہ تعالی عنہ फ़रमाते हैं::- मैंने अर्ज़ किया, या रसूलल्लाह ﷺ नजात क्या है? फ़रमाया ::- ‘अपनी ज़बान को बुरी बातों से रोक रखो।"
📒 *जामेए तिर्मिज़ी, जिल्द 4, सफहा 182, हदीस 2414*
*👨💻 मिजानिब :- टीम सुल्तान ए हिन्द ग्रुप..!*
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࿐ अगर हम ने ज़बान को सही इस्तिमाल किया तो इस का जो कुछ फाएदा होगा वोह सारा ही जिस्म पाएगा और अगर यह सीधी न चली किसी को गाली वगैरा दे दी तो ज़बान को कोई तक्लीफ़ हो या न हो पिटाई दीगर आ'ज़ा की होगी। हज़रते अबू सईद खुदरी رضی اللہ تعالی عنہ से रिवायत है कि सरकारे मदीना ﷺ ने फरमाया ::- जब इन्सान सुब्ह करता है तो उस के आज़ा झुक कर जुबान से कहते हैं, हमारे बारे में अल्लाह तआला से डर! क्यूं कि हम तुझ से मुतअल्लिक हैं। अगर तू सीधी रहेगी, हम भी सीधे रहेंगे और अगर तू टेढ़ी होगी हम भी टेढ़े हो जाएंगे।”
📒 *मुस्नद इमाम अहमद बिन हम्बल, जिल्द 4, सफहा 190, हदीस 11908*
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࿐ आपस में हंसी मज़ाक की आदत कभी महंगी पड़ जाती है। हज़रते उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ رضی اللہ تعالی عنہ ने फ़रमाया : “आपस में ठठ्ठा मज़ाक मत किया करो कि इस तरह (हंसी ही हंसी में) दिलों में नफ़रत बैठ जाती है। और बुरे अफ्आल की बुन्यादें दिलों में उस्तुवार हो जाती हैं।"
📘 *कीमिया ए स'आदत*
࿐ बद ज़ुबानी और बे हयाई की बातों से हर वक्त परहेज़ करें, गाली गलोच से इज्तिनाब करते रहें और याद रखें कि अपने भाई को गाली देना हराम है।
📒 *फतावा र-ज़विय्या, जिल्द 21, सफहा 127*
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࿐ बे हयाई की बात करने वाले पर जन्नत हराम है। हुज़ूर ताजदारे मदीना ﷺ ने फ़रमाया : “उस शख्स पर जन्नत हराम है जो फोह्श गोई (बे हयाई की बात) से काम लेता है।
📒 *कीमिया ए स'आदत*
࿐ *ऐ हमारे प्यारे अल्लाह ! हमें गुफ्तगू करने की सुन्नतों पर अमल करने की तौफीक मर्हमत फरमा।*
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࿐ *घर में आने जाने की सुन्नतें!*
࿐ हमें हर रोज़ अपने या किसी अज़ीज़ या दोस्त व अहबाब के घर में जाने की हाजत पड़ती रहती है तो हमें यह मालूम होना चाहिये कि घर में दाखिल होने का सुन्नत तरीका क्या है?
࿐ किसी के घर में जाएं तो दरवाजे के सामने खड़े हों या एक तरफ़ हटकर? और किस तरह इजाज़त तलब करें? अगर इजाज़त न मिले तो क्या करना चाहिये ? दुआ पढ़ कर घर से निकलने की क्या क्या बरकते हैं? अगर घर में कोई मौजूद न हो तो क्या पढ़ना चाहिये? घर में दाखिल होने और इजाज़त तलब करने वगैरा के हवाले से मु-तअद्दद सुन्नतें हैं।
࿐ अपने घर में आते हुए भी सलाम करें और जाते हुए भी सलाम करें।
࿐ हुज़ूर ताजदारे मदीना ﷺ का फ़रमाने आलीशान है कि जब तुम घर में आओ तो घर वालों को सलाम करो और जाओ तो सलाम कर के जाओ।
📒 *शुएबुल ईमान, जिल्द 6, हदीस 8845*
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࿐ हकीमुल उम्मत मुफ्ती अहमद यार खान नईमी मिरआतुल मनाजीह जिल्द 6 सफ़हा 9 पर तहरीर फ़रमाते हैं : ‘‘बाज़ बुजुर्गों को देखा गया है कि अव्वल दिन में जब पहली बार घर में दाखिल होते तो बिस्मिल्लाह और सूरह इखलास पढ़ लेते, कि इस से घर में इत्तिफ़ाक भी रहता है और रिज्क में ब-र-कत भी।
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࿐ अल्लाह ﷺ का नाम लिये बिगैर जो घर में दाखिल होता है, शैतान भी उस के साथ घर में दाखिल हो जाता है।जैसा कि हज़रते जाबिर رضی اللہ تعالی عنہ से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : “जब आदमी घर में दाखिल होते वक्त और खाना खाते वक्त अल्लाह का जिक्र करता है तो शैतान कहता है: “आज यहां न तुम्हारी रात गुज़र सकती है और न तुम्हें खाना मिल सकता है। और जब इन्सान घर में बिगैर अल्लाह का ज़िक्र किये दाखिल होता है तो शैतान कहता है, आज की रात यहीं गुज़रेगी। और जब खाने के वक्त अल्लाह का नाम नहीं लेता तो वोह कहता है : “तुम्हें ठिकाना भी मिल गया और खाना भी मिल गया।"
📒 *सहीह मुस्लिम, जिल्द 4, हदीस 2078*
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࿐ जब कोई खुश नसीब अपने घर से बाहर जाते वक़्त बाहर जाने की दुआ पढ़ लेता है तो वोह घर लौटने तक हर बला व आफ़त से महफूज़ हो जाता है। सरकारे मदीना ﷺ की सुन्नतों पर अमल करने में ब-र-कत ही ब-र-कत है।
࿐ हज़रते अबू हुरैरा رضی اللہ تعالی عنہ से रिवायत है कि हुज़ूर ताजदारे मदीना ﷺ ने इरशाद फरमाया ::- "आदमी अपने घर के दरवाजे से बाहर निकलता है तो उस के साथ दो फ़िरिश्ते मुक़र्रर होते हैं। जब वोह आदमी कहता है कि::-
"بِسۡمِ اللّٰہِ "
तो वोह फ़िरिश्ते कहते हैं तूने सीधी राह इख्तियार की।
और जब इन्सान कहता है::-
‘‘لا حول ولا قوۃ الا باللہ''
तो फ़िरिश्ते कहते हैं अब तू हर आफ़त से महफूज़ है।
जब बन्दा कहता है ::
توکلت علی اللہ
࿐ तो फ़िरिश्ते कहते हैं अब तुझे किसी और की मदद की हाजत नहीं, इस के बाद उस शख्स के दो शैतान जो उस पर मुसल्लत होते हैं वोह उस से मिलते हैं। फ़िरिश्ते कहते हैं अब तुम इस के साथ क्या करना चाहते हो ? इस ने तो सीधा रास्ता इख़्तियार किया। तमाम आफ़ात से महफूज़ हो गया और खुदा ﷻ की इमदाद के इलावा दूसरे की इमदाद से बे नियाज़ हो गया।
📒 *सुनन इब्ने माजा, जिल्द 4, हदीस 3886*
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࿐ जब किसी के घर जाना हो तो इस का तरीका यह है कि पहले अन्दर आने की इजाज़त हासिल कीजिये फिर जब अन्दर जाएं तो पहले सलाम करें फिर बातचीत शुरू कीजिये।
📕 *बहारे शरीअत, हिस्सा 16*
࿐ हज़रते अबू मूसा अश्अ़री رضی اللہ تعالی عنہ से मरवी है कि हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया ::- “तीन मर्तबा इजाज़त तलब करो अगर इजाज़त मिल जाए तो ठीक वरना वापस लौट जाओ।
📒 सहीह मुस्लिम, हदीस 2153*
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࿐ जो सलाम किये बिगैर घर में दाखिले की इजाज़त मांगे उसे दाखिले की इजाज़त न दी जाए । हज़रते जाबिर رضی اللہ تعالی عنہ से रिवायत है कि नबी ए करीम, रऊफुर्रहीम ﷺ ने फ़रमाया ::- “जो शख्स सलाम के साथ इब्तिदा न करे उस को इजाज़त न दो।”
📕 *शुएबुल ईमान, जिल्द 6, हदीस 8816*
࿐ घर में दाखिले की इजाज़त मांगने में एक हिक्मत यह भी है कि फ़ौरन घर में बाहर वाले की नज़र न पड़े। आने वाला बाहर से सलाम कर रहा हो, इजाज़त चाह रहा हो और साहिबे खाना पर्दै वगैरा का इन्तिज़ाम कर ले। हज़रते सहल बिन सा'द رضی اللہ تعالی عنہ से मरवी है, फ़रमाते हैं कि हुज़ूर ताजदारे मदीना ﷺ ने फ़रमाया : “इजाज़त तलब करने का हुक्म आंख की वजह से दिया गया है। (इस लिये कि अहले खाना की निजी ज़िन्दगी के असरार मुन्कशिफ़ न हो सकें।
📒 *सहीह मुस्लिम, हदीस 2156*
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࿐ जब किसी के घर जाना हो इजाज़त मांगना सुन्नत है । बेहतर यह है कि इस तरह इजाज़त मांगें ::- "السلام علیکم" क्या मैं अन्दर आ सकता हूं?''
📕 *मिरातुल मनाजीह, जिल्द 6, सफह 346*
࿐ हज़रते रिब्ई बिन हिराश رضی اللہ تعالی عنہ फ़रमाते हैं ::- हमें बनू आमिर के एक शख्स ने यह बात बताई कि उसने हुज़ूर नबी ए करीम ﷺ से इजाज़त तलब की। आप ﷺ घर में तशरीफ़ फ़रमा थे।
࿐ उस ने अर्ज़ किया ::- क्या मैं दाखिल हो जाऊँ?
࿐ हुज़ूर नबी ए करीम, रऊफुर्रहीम ﷺ ने अपने खादिम से फ़रमाया ::- बाहर उस आदमी के पास जाओ और उस को इजाज़त तलब करने का तरीका सिखाओ, उस से कहो कि इस तरह कहे, "السلام علیکم" क्या मैं दाखिल हो सकता हूं?" उस आदमी ने सरकारे मदीना ﷺ का इरशाद सुन लिया और अर्ज़ किया, "السلام علیکم" क्या मैं दाखिल हो सकता हूं?
࿐ तो सरकारे मदीना ﷺ ने उस को इजाज़त अता फरमाई और वोह अन्दर दाखिल हुआ।
📒 *सुनन अबी दाऊद, जिल्द 4, हदीस 5177*
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࿐ हज़रते कल्दा बिन हम्बल رضی اللہ تعالی عنہ फ़रमाते हैं, मैं हुज़ूर सैय्यिदे दो आलम ﷺ की खिदमते बा ब-र-कत में हाज़िर हुआ। मैं जब अन्दर दाखिल हुआ और सलाम अर्ज़ न किया तो हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया, “लौट जाओ और यह कहो, "السلام علیکم" क्या मैं दाखिल हो सकता हूं?"
📕 *सुनन अबी दाऊद, जिल्द 4, हदीस 5146*
࿐ अगर कोई शख्स आप को बुलाने के लिये भेजे और भेजा हुआ शख्स आप को साथ ले कर जाए तो अब इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं । साथ वाला शख्स ही खुद "इजाज़त है जैसा कि हज़रते अबू हुरैरा رضی اللہ تعالی عنہ से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : “जिस वक़्त तुम में से किसी को बुलाया जाए, और वोह एलची (या'नी कासिद) के साथ आए यह उस का इज़्न (इजाज़त) है' एक और रिवायत में है कि आदमी का किसी को बुलाने के लिये भेजना उस की तरफ से इजाज़त है।
📒 *सुनन अबी दाऊद, जिल्द 4, हदीस 9815*
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࿐ अपनी मौजूदगी का एहसास दिलाने के लिये खन्कारना चाहिये जैसा कि मौला ए काएनात हज़रते अली رضی اللہ تعالی عنہ फ़रमाते हैं कि “मैं रसूलुल्लाह ﷺ की खिदमते बा ब-र-कत में एक मर्तबा रात के वक़्त और एक मर्तबा दिन के वक़्त हाज़िर होता था। जब मैं रात के वक़्त आप ﷺ के पास हाज़िरी देता आप ﷺ मेरे लिये खन्कारते।
📒 *सुनन इब्ने माजा, जिल्द 4, हदीस 3708*
࿐ भाइयों! जब किसी के घर जाएं तो दरवाजे से गुज़रते वक़्त, ज़रूरतन दूसरे कमरे की तरफ जाते हुए खन्कार लेना चाहिये ताकि घर के दीगर अफराद को हमारी मौजूदगी का एहसास हो जाए और वोह आगे पीछे हो सके।
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࿐ अगर दरवाज़े पर पर्दा न हो तो एक तरफ़ हट कर खड़े हों। हज़रते अब्दुल्लाह बिन बुसर رضی اللہ تعالی عنہ से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ जब किसी के दरवाज़े पर तशरीफ़ लाते तो दरवाज़े के सामने खड़े न होते बल्कि दाई या बाई जानिब खड़े होते फिर फ़रमाते "السلام علیکم" और येह इस लिये कि उन दिनों दरवाज़ों पर पर्दे नहीं होते थे।
📒 *सुनन अबी दाऊद, जिल्द 4, हदीस 5186*
࿐ जब कोई किसी के घर जाए तो अन्दर से जब कोई दरवाज़े पर आए तो पूछे कौन है? बाहर वाला “मैं'' न कहे जैसा कि आज कल भी यही रिवाज है। बल्कि अपना नाम बताए। जवाबन ‘‘मैं'' कहना सरकार ﷺ को पसन्द नहीं।
📘 *बहारे शरीअत, हिस्सा 16, सफ़ह 83*
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࿐ हज़रते जाबिर رضی اللہ تعالی عنہ से मरवी है फ़रमाया, मैं म-दनी आका ﷺ की खिदमत में हाज़िर हुआ। और दरवाज़ा खट-खटाया। आप ﷺ फ़रमाया कौन है? मैं ने अर्ज़ की ‘‘मैं।'' आप ﷺ ने फ़रमाया : मैं, मैं क्या ? गोया आप ﷺ ने इस को ना पसन्द फ़रमाया।
📕 *सहीह बुखारी, जिल्द 4, हदीस 6250*
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࿐ किसी के घर में झांकना नहीं चाहिये, जैसा कि हज़रते अनस رضی اللہ تعالی عنہ से रिवायत है, रसूले अकरम, शफ़ीए रोजे महशर ﷺ खानए अक्दस में तशरीफ फरमा थे कि एक शख्स ने आप ﷺ को झांका तो आप ﷺ ने नेज़े की नोक उस की तरफ़ की चुनान्चे वोह पीछे हट गया।
📒 *जामए तिर्मिज़ी, जिल्द 4, हदीस 2717*
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࿐ इसी तरह किसी मौके पर सरकारे मदीना ﷺ दरे दौलत पर जल्वा फ़रमा थे और किसी ने जब सुराख से झांक कर देखा तो सरकार ﷺ ने इज़्हारे नाराज़गी फ़रमाया । जैसा कि हज़रते सहल बिन साइदी رضی اللہ تعالی عنہ से रिवायत है कि नबी ए अकरम, नूरे मुजस्सम ﷺ को एक शख्स ने हुजरा ए मुबारक के सूराख से झांका। आप ﷺ लोहे की कंघी से सरे मुबारक खुजा रहे थे फ़रमाया : अगर मेरी तवज्जोह इस तरफ़ होती कि तू देख रहा है तो इस लोहे की कंघी को तेरी आंख में चुभो देता। नज़र से बचाव के लिये ही तो इजाज़त तलब करने का हुक्म है।
📒 *जामए तिर्मिज़ी, जिल्द 4, हदीस 2717*
࿐ भाइयो! दूसरों के घरों में झांकने से बचने के साथ साथ हमें अपने घरों के दरवाज़े या खिड़कियां बन्द रखनी चाहिएं या उन पर कोई सादा सा पर्दा वगैरा डाल देना चाहिये जिस की वजह से बे पर्दगी न हो।
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࿐ *सुरमा लगाने की सुन्नतें* सुरमा लगाना हमारे प्यारे आक़ा, मदीने वाले मुस्तफा ﷺ की सुन्नत है। सरकारे नामदार, मदीने के ताजदार ﷺ जब सोने लगते तो अपनी मुबारक आंखों में सुरमा लगाया करते। लिहाज़ा, हमें भी सोने से पहले इत्तिबाए सुन्नत की निय्यत से अपनी आंखों में सुरमा लगाना चाहिये। इस से हमें सुरमा लगाने की सुन्नत का भी सवाब हासिल होगा और साथ ही साथ इस के दुन्यावी फवाइद भी हासिल होंगे।
࿐ *सोते वक़्त सुरमा डालना सुन्नत है ::-* सरकारे मदीना ﷺ सुरमा सोते वक़्त इस्तिमाल फ़रमाते थे चुनान्चे हज़रते सैय्यिदुना अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास رضی اللہ تعالی عنہ फ़रमाते हैं कि ताजदारे मदीना, ﷺ सोने से पहले हर आंख में सुरमए इस्मिद की तीन सलाइयां लगाया करते थे।
📒 *جامع الترمذی، الحدیث 1763، ج3، ص294*
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࿐ हदीसे पाक से मालूम हुआ कि सुरमा सोते वक़्त इस्तिमाल करना सुन्नत है। लिहाज़ा हम रात को जब भी सोया करें हमें सुरमा लगाना न भूलना चाहिये । सोते वक़्त सुरमा लगाने में येह मस्लहत है कि सुरमा ज़्यादा देर तक आंखों में रहता है और आंखों के मसामात में सरायत कर के आंखों को फाएदा पहुंचाता है।
࿐ इब्ने माजह की रिवायत में है “तमाम सुरमों में बेहतर सुरमा “इस्मिद” है कि येह निगाह को रोशन करता और पलकें उगाता है।"
📒 *سنن ابن ماخہ، ج۶، ص۳۲۷*
࿐ सुरमए इस्मिद की फजीलत के लिये येही काफी है कि यह सुरमा नबी ए करीम ﷺ को पसन्द है। आप ﷺ ने इसे खुद भी इस्तिमाल फ़रमाया और अपने गुलामों को इस के इस्तिमाल की तरगीब भी दिलाई और इस के फवाइद भी इर्शाद फ़रमाए। लिहाज़ा हो सके तो सुरमए इस्मिद ही इस्तिमाल करना चाहिये।
࿐ अहादीसे बाला से येह भी मालूम हुआ कि सुरमए इस्मिद बीनाई को तेज करने के साथ साथ पलकों के बाल भी उगाता है।कहा जाता है कि इस्मिद इस्फ़हान में पाया जाता है। उ-लमाए किराम फरमाते हैं कि इस का रंग सियाह होता है और मशरिकी ममालिक में पैदा होता है। बहर हाल इस्मिद का सुरमा मुयस्सर आ जाए तो यही अफ्ज़ल है वरना किसी क़िस्म का भी सुरमा डाला जाए सुन्नत अदा हो जाएगी।
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*❝ आओं सुन्नतों पर अमल करें! ❞*
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࿐ हमारे प्यारे सरकार, मदनी ताजदार ﷺ सफ़ाई को बेहद पसन्द फ़रमाते हैं। आप ﷺ का फ़रमाने आलीशान है ::-
*الطھور نصف الایمان*
࿐ या'नी सफ़ाई आधा ईमान है।"
📒 *جامع الترمزی، الحدیث 3530، ج5، ص308*
࿐ चुनान्चे हर मुसलमान को चाहिये कि अपने ज़ाहिरो बातिन दोनों की सफ़ाई का खयाल रखे। ज़ाहिर सफाई का जहां तक तअल्लुक है तो वोह येह है कि अपना जिस्म और लिबास वगैरा नजासत से पाक रखने के साथ साथ मैल कुचैल वगैरा से भी साफ़ रखना चाहिये। नीज़ अपने सर और दाढ़ी के बालों को भी दुरुस्त रखें।नाखुन भी ज़ियादा न बढ़ने दें कि इन में मैल कुचैल भर जाता है और वोह खाना वगैरा खाने में पेट के अन्दर पहुंचता है जिस के सबब तरह तरह की बीमारियां पैदा होने का अन्देशा रहता है। नीज़ बगल व जेरे नाफ़ के बाल भी साफ़ करते रहना चाहिये। रहा बातिन की सफ़ाई का मुआ-मला तो अपने बातिन को भी कीनए मुस्लिम, गुरूर व तक़ब्बुर, बुग्ज व हसद, वगैरा वगैरा रज़ाइल से पाक व साफ़ रखना ज़रूरी है। बातिन की सफाई के लिये अच्छी सोहबत बेहद जरूरी है।
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࿐ हज़रते सैय्यिदुना अनस رضی اللہ تعالی عنہ फ़रमाते हैं: मूंछे और नाखुन तरश्वाने और बगल के बाल उखाड़ने और मूए ज़ेरे नाफ़ मुंडने में हमारे लिये यह वक़्त मुकर्रर किया गया है कि चालीस दिन से ज़्यादा न छोड़ें।
📕 *صحیح المسلم، الحدیث 257، ص153*
࿐ हाथों के नाखुन तराशने का तरीका ::- हाथों के नाखुन तराशने के दो तरीके यहां बयान किये जाते हैं इन दोनों में से आप जिस तरीके पर भी अ़मल करेंगे सुन्नत का सवाब पाएंगे। यह भी हो सकता है कभी एक पर अ़मल कर लें कभी दूसरे पर।
࿐ इस तरह दोनों हदीसों पर अ़मल हो जाएगा। चुनान्चे ज़ेल में दोनों तरीके पेश किये जाते हैं : (1) मौलाए काएनात हज़रते सय्यदुना अलिय्युल मुर्तजा शेरे खुदा رضی اللہ تعالی عنہ से नाखुन काटने की यह सुन्नत मन्कूल है कि सब से पहले सीधे हाथ की छुन्ग्लियाँ, फिर बीच वाली, फिर अंगूठा, फिर मंझली (या'नी छुन्ग्लियों के बराबर वाली) फिर शहादत की उंगली। अब बाएं हाथ में पहले अंगूठा, फिर बीच वाली, फिर छुन्ग्लियाँ, फिर शहादत की उंगली, फिर मंझली या'नी सीधे हाथ के नाखुन छुन्ग्लियों से काटना शुरू करें और उल्टे हाथ के नाखुन अंगूठे से।
📒 *بہار شریعت، ج2، ح16، ص 195*
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࿐ (2) दूसरा तरीका आसान है और यह भी हमारे प्यारे आक़ा ﷺ से साबित है और वो यह है कि सीधे हाथ की शहादत की उंगली से शुरू कर के तरतीब वार छुन्ग्लियाँ समेत नाखुन तराशें मगर अंगूठा छोड़ दें। अब उल्टे हाथ की छुन्ग्लियाँ से शुरू कर के तरतीब वार अंगूठे समेत नाखुन तराश लें। अब आखिर में सीधे हाथ का अंगूठा जो बाकी था उस का नाखुन भी काट लें। इस तरह सीधे ही हाथ से शुरू हुवा और सीधे ही हाथ पर खत्म।
📕 *بہار شریعت، ج2، ح16، ص 196*
࿐ पाउं के नाखून काटने का तरीका : बहारे शरीअ़त में “दुर्रे मुख्तार' के हवाले से लिखा है कि पाउं के नाखुन तराशने की कोई तरतीब मन्कूल नहीं। बेहतर यह है कि वुज़ू में पाउं की उंग्लियों में खिलाल करने की जो तरतीब है उसी तरतीब के मुताबिक पाऊँ के नाखून काट लें। यानी सीधे पाऊँ की छुँगली से शुरू करके तरतीब वार अंगूठे समेत नाखून तराश ले फिर उल्टे पाऊँ के अंगूठे से शुरू करके छुँगली समेत नाखून काट ले।
📒 *بہار شریعت، ج2، ح16، ص 196*
*👨💻 मिजानिब :- टीम सुल्तान ए हिन्द ग्रुप..!*
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࿐ नबी ए करीम ﷺ की सुन्नते करीमा है कि आप ﷺ ने हमेशा अपने सरे मुबारक के बाल शरीफ़ पूरे रखे। कभी निस्फ कान मुबारक तक तो कभी कान मुबारक की लौ तक और बा'ज़ अवकात आप ﷺ के गेसू शरीफ़ बढ़ जाते तो मुबारक शानों को झूम झूम कर चूमने लगते।
࿐ हज़रते सैय्यिदुना अनस बिन मालिक رضی اللہ تعالی عنہ फ़रमाते हैं ::- कि नबी ए करीम ﷺ के बाल मुबारक आधे मुबारक कानों तक थे।
*📓 جامع ترمزی، الحدیث 24، ص 507*
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࿐ चूंकि बाल बढ़ने वाली चीज़ है। इस लिये जिस सहाबी ने जैसा देखा वोही रिवायत कर दिया। चुनान्चे हज़रते सैय्यिदुना अनस رضی اللہ تعالی عنہ ने निस्फ़ कानों तक देखा तो इसी को रिवायत किया और जिस ने इस से ज़्यादा बड़े देखे उस ने उसी मिक़्दार को रिवायत किया।
࿐ चाहें तो पूरे कानों तक गेसू रखिये कि हज़रते सैय्यिदुना बराअ बिन आज़िब رضی اللہ تعالی عنہ फ़रमाते हैं कि सुल्ताने मदीना, ﷺ का क़दे मुबारक दरमियान था, दोनों मुबारक शानों के दरमियान फ़ासिला था और आप ﷺ के गेसू मुबारक मुक़द्दस कानों को चूमते थे।
*📕 شما ءل ترمزی، الحدیث 3، ص 17*
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࿐ चाहें तो शानों तक गेसू बढ़ाइये कि उम्मुल मु'अमिनीन हज़रते सैय्यि-दतुना आइशा सिद्दीका رضی اللہ تعالی عنہا फ़रमाती हैं कि मेरे आक़ा ﷺ के सरे अक़्दस पर जो बाल मुबारक होते वोह कान मुबारक की लौ से जरा नीचे होते और मुबारक शानों को चूमते।
*📒 شما ءل ترمزی، الحدیث 25، ص 35*
࿐ सर के बीच में से मांग निकालिये कि सुन्नत है। जैसा कि सदरुश्शरीअ़ह बदरुत्तरीक़ह मुफ्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी رحمہ اللہ बहारे शरीअ़त में लिखते हैं “बाज़ लोग दाहने और बाई जानिब मांग निकालते हैं, यह सुन्नत के खिलाफ़ है। सुन्नत यह है कि अगर सर पर बाल हों तो बीच में मांग निकाली जाए। और बाज़ लोग मांग नहीं निकालते बल्कि बालों को सीधे रखते हैं यह भी सुन्नते मन्सूखा और यहूदो नसारा का तरीका है।
*📕 بہار شریعت، ح16، ص199*
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࿐ इन अहादीसे मुबा-रका से हमें बखूबी मालूम हो गया कि हमारे प्यारे आक़ा ﷺ ने हमेशा अपने सरे अक़्दस पर पूरे ही बाल रखे। आजकल जो छोटे छोटे बाल रखे जाते हैं, इस तरह के बाल रखना सुन्नत नहीं है।
࿐ तरह तरह की तराश खराश वाले बाल रखने की बजाए हमें चाहिये कि प्यारे आक़ा ﷺ की महब्बत में अपने सर पर कानों तक, कानों की लौ तक या इतनी बड़ी ज़ुल्फें रखें कि शानों को छू लें।
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࿐ *तेल लगाने की सुन्नतें* ::- हमारे प्यारे आक़ा ﷺ अपने सरे अक़्दस और दाढ़ी मुबारक में तेल डालते, कंघा करते, बीच सर में मांग निकालते। हज़रते सैय्यिदुना अबू हुरैरा رضی اللہ تعالی عنہ से मरवी है कि हुज़ूरे पाक ﷺ ने फ़रमाया : “जिस के बाल हों तो वोह उन का इक्राम करे।'' (यानी उन को धोए, तेल लगाए, कंघा करे)
࿐ मांग सर के बीच में निकाली जाए कि सुन्नत है। सर में तेल डालने से क़ब्ल *ﺑِﺴْﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ* पढ़ लेना चाहिये। सर में तेल लगाने का तरीका यह है कि
*ﺑِﺴْﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
࿐ पढ़ कर उल्टे हाथ की हथेली में थोड़ा सा तेल डालें फिर पहले सीधी आंख के अब्रू पर तेल लगायें फिर उल्टी के इस के बाद सीधी आंख क पलक पर, फिर उल्टी पर अब (फिर " *ﺑِﺴْﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ* पढ़ कर) सर में तेल डालें।
࿐ जिन इस्लामी भाइयों के सर पर बाल हों उनको चाहिये कि इन में कंघा किया करें।हज़रते सैय्यिदुना अबू क़तादा رضی اللہ تعالی عنہ से रिवायत है कि सरकारे मदीना, ﷺ से मैं ने अर्ज की, कि मेरे सर पर पूरे बाल हैं, मैं इन को कंघा किया करूं? तो आक़ा ए मदीना, ﷺ ने फ़रमाया : “हां और इन का इक्राम करो।" लिहाज़ा हज़रते सैय्यिदुना अबू क़तादा رضی اللہ تعالی عنہ प्यारे आक़ा ﷺ के फ़रमाने की वज्ह से कभी कभी तो दिन में दो दो मर्तबा भी तेल लगाया करते।
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࿐ बाल बिखरे हुए न रखें। हज़रते सैय्यिदुना अता बिन यसार رضی اللہ تعالی عنہ से रिवायत है कि ताजदारे दो आलम, रसूले अकरम, नूरे मुजस्सम ﷺ मस्जिद में तशरीफ़ फ़रमा थे। इतने में एक शख्स आया जिस के सर और दाढ़ी के बाल बिखरे हुए थे । हमारे आक़ा ﷺ ने उस की तरफ़ इस अन्दाज़ पर इशारा किया जिस से साफ जाहिर होता था कि आप ﷺ उस को बाल दुरुस्त करने का हुक्म फरमा रहे हैं। वोह शख्स बाल दुरुस्त कर के वापस आया, सरकारे मदीना ﷺ ने फ़रमाया "क्या येह इस से बेहतर नहीं है कि कोई शख्स बालों को इस तरह बिखेर कर आता है गोया वोह शैतान है।"
࿐ कंघा करते वक़्त सीधी तरफ से इब्तिदा कीजिये कि हमारे प्यारे आक़ा, मदीने वाले मुस्तफ़ा, ﷺ हर तकरीम वाला काम सीधी तरफ़ से शुरूअ फ़रमाते। जैसा कि “तिरमिजी शरीफ़' में है कि हज़रते सैय्यि-दतुना आइशा सिद्दीका رضی اللہ تعالی عننا फ़रमाती हैं कि सरकारे मदीना, ﷺ दाई जानिब से वुज़ू करना पसन्द फ़रमाते और इसी तरह कंघा भी सीधी तरफ से ही करते, नीज़ ना'लैने शरीफैन भी जब पहनने का इरादा फ़रमाते तो पहले सीधा क़-दमे मोहतरम ना'ले शरीफ़ में दाखिल फ़रमाते।
📕 *جامع ترمزی، الحدیث 34، ج 5، ص 509*
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࿐ *खुशबू लगाने की सुन्नतें ::-* सरकार ए मदीना ﷺ को खुश्बू बेहद पसन्द है। लिहाज़ा आप ﷺ हर वक़्त मुअत्तर मुअत्तर रहते। आप ﷺ खुश्बू का बहुत इस्तिमाल फ़रमाया करते थे ताकि गुलाम भी अदाए सुन्नत की निय्यत से खुश्बू लगाया करें वरना इस बात में किस को शक व शुबा हो सकता है कि आप ﷺ का वुजूदे मस्ऊद तो क़ुदरती तौर पर खुद ही महकता रहता और ताजदारे मदीना ﷺ का मुबारक पसीना बज़ाते खुद काइनात की सब से बेहतरीन खुश्बू है।
࿐ *उम्दा क़िस्म की खुश्बू लगाना सुन्नत है :* “शमाइले रसूल में है कि हमारे मदीने वाले आक़ा, महकने और महकाने वाले मुस्तफा ﷺ को उम्दा और बेहतरीन क़िस्म की खुशबू बहुत पसन्द थी और नाखुश गवार बू या'नी बदबू आप ﷺ ना पसन्द फ़रमाते। आप ﷺ हमेशा उमदा खुश्बू इस्तिमाल करते और इसी की दूसरे लोगों को भी तल्कीन फ़रमाते । हज़रते सैय्यिदुना अनस बिन मालिक رضی اللہ تعالی عنہ फ़रमाते हैं कि “ हुज़ूरे अन्वर ﷺ के पास एक खास क़िस्म की खुश्बू थी जिसे आप ﷺ इस्तिमाल फ़रमाते।''
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࿐ *सर में खुश्बू लगाना सुन्नत है :* सरकारे मदीना, राहते क़ल्बो सीना ﷺ की आदते करीमा थी कि आप ﷺ “मुश्क' सरे अक़्दस के मुक़द्दस बालों और दाढ़ी मुबारक में लगाते।
࿐ हज़रते सैय्यिदतुना आइशा सिद्दीका رضی اللہ تعالی عنھا से मरवी है, फ़रमाती हैं : मैं अपने सरताज, ताजदारे रिसालत ﷺ को निहायत उम्दा से उम्दा खुश्बू लगाती थी। यहां तक कि उस की चमक हुज़ूर ताजदारे मदीना ﷺ के सरे मुबारक और दाढ़ी शरीफ़ में पाती।
📓 *صحیح البخاری، الحدیث 5923، ج4، ص81*
࿐ *खुश्बू का तोहफा :* “शमाइले तिरमिज़ी' में है कि हज़रते सैय्यिदुना अनस बिन मालिक رضی اللہ تعالی عنہ खुश्बू का तोहफा रद नहीं फ़रमाते थे। आप फ़रमाते हैं कि नबियों के सरदार, हमारे मुअत्तर मुअत्तर सरकार ﷺ की खिदमते बा ब-र-कत में जब खुश्बू तोहफ़तन पेश की जाती तो आप ﷺ रद्द न फ़रमाते।
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࿐ “शमाइले तिरमिजी'' में हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर से रिवायत है कि सरकारे मदीना, ﷺ का फ़रमाने आलीशान है कि तीन चीजें वापस नहीं लौटानी चाहिए।
(1) तकिया
(2) खुश्बू व तेल और
(3) दूध।
࿐ कौन कैसी खुश्बू इस्ति 'माल करे ? : हज़रते सैय्यिदुना अबू हुरैरा رضی اللہ تعالی عنہ से रिवायत है कि मक्की म-दनी सरकार ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया कि : मर्दाना खुश्बू वोह है कि उस की खुश्बू तो ज़ाहिर हो मगर रंग ज़ाहिर न हो और ज़नाना खुश्बू वोह है कि उस का रंग तो ज़ाहिर हो मगर खुश्बू ज़ाहिर न हो।
📒 *جامع الترمزی، الحدیث 2796، ج 4، ص 361*
࿐ औरतों के लिये महक की मुमा-न-अत इस सूरत में है जब कि वोह खुश्बू अज्नबी मर्दो तक पहुंचे, अगर वोह घर में इत्र लगाएं जिस की खुश्बू खावन्द या औलाद या मां बाप तक ही पहुंचे तो हरज नहीं।
࿐ *चुनान्चे :* हज़रते सैय्यिदुना अबू मूसा अश्अरी رضی اللہ تعالی عنہ से रिवायत है कि नबिय्ये करीम ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : “औरत जब खुश्बू लगा कर किसी मजलिस के पास से गुज़रती है तो वोह ऐसी और ऐसी है या'नी ज़ानिया है।"
📓 *جامع الترمزی، الحدیث 2795، ج 4، ص 361*
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࿐ *खाना खाने की सुन्नतें* ::- खाना अल्लाह त'आला की बहुत लज़ीज़ नेमत है। अगर सुन्नते अहमदे मुज्तबा ﷺ के मुताबिक खाना खाया जाए तो हमें पेट भरने के साथ साथ सवाब भी हासिल होगा। इस लिये हमें चाहिये कि सुन्नत के मुताबिक खाना खाने की आदत डालें।
࿐ हर खाने से पहले अपने हाथ पहुंचों तक धो लें। हज़रते सैय्यिदुना अनस बिन मालिक رضی اللہ تعالی عنہ रिवायत करते हैं कि नूर के पैकर, ﷺ ने फ़रमाया : “जो येह पसन्द करे कि अल्लाह त'आला उस के घर में ब-र-कत ज़ियादा करे तो उसे चाहिये कि जब खाना हाज़िर किया जाए तो वुज़ू करे और जब उठाया जाए तब भी वुज़ू करे।
*📒 سنن ابن ماجہ، ج۴، ص۹*
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࿐ हकीमुल उम्मत मुफ्ती अहमद यार खान नईमी رحمہ اللہ लिखते हैं : इस (या'नी खाने के वुज़ू) के माना हैं हाथ व मुंह की सफाई करना कि हाथ धोना कुल्ली कर लेना।
࿐ जब भी खाना खाएं तो उल्टा पाउं बिछा दें और सीधा खड़ा रखें या सुरीन पर बैठ जाएं और दोनों घुटने खड़े रखें।
📕 *بہار شریعت، ح۱۶، ص ۱۹*
࿐ खाने से पहले जूते उतार लें। हज़रते सैय्यिदुना अनस बिन मालिक رضی اللہ تعالی عنہ से रिवायत है कि सरकारे मदीना, ﷺ ने फ़रमाया ‘‘खाना खाने बैठो तो जूते उतार लो, इस में तुम्हारे लिये राहत है।
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࿐ खाने से पहले ﺑِﺴْﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ पढ़ लें। हज़रते सैय्यिदुना हुजैफा رضی اللہ تعالی عنہ से मरवी है कि हुज़ूरे पाक, साहिबे ﷺ ने फ़रमाया : "जिस खाने पर बिस्मिल्लाह न पढ़ी जाए उस खाने को शैतान अपने लिये हलाल समझता है।
📙 *صحیح مسلم، الحدیث ۲۰۱۸، ص۱۱۶*
࿐ अगर खाने के शुरू में बिस्मिल्लाह पढ़ना भूल जाएं तो याद आने पर بسم اللہ اوله و آخرہ पढ़ लें। हज़रते सैय्यि-दतुना आइशा सिद्दीका رضی اللہ تعالی عنھا से मरवी है कि नूर के पैकर, तमाम नबियों के सरवर, ﷺ ने फ़रमाया : “जब तुम में से कोई खाना खाए तो उसे चाहिये कि पहले बिस्मिल्लाह पढ़े। अगर शुरू में बिस्मिल्लाह पढ़ना भूल जाए तो यह कहे "بسم اللہ اوله و آخرہ"
࿐ हुज़ूरे पाक, ﷺ का फरमाने अ-ज़मत निशान है : “जब तुम में से कोई खाना खाए तो सीधे हाथ से खाए और जब पिये तो सीधे हाथ से पिये कि शैतान उल्टे हाथ से खाता पीता है।"
࿐ हज़रते सैय्यिदुना अनस बिन मालिक رضی اللہ تعالی عنہ से रिवायत है कि नूर के पैकर, तमाम नबियों के सरवर, ﷺ ने फ़रमाया : ‘‘हर शख्स बरतन की उसी जानिब से खाए जो उस के सामने हो।
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࿐ *पानी पीने की सुन्नतें :* पानी बैठ कर, उजाले में देख कर, सीधे हाथ से ﺑِﺴْﻢِﷲ पढ़ कर इस तरह पियें कि हर मर्तबा गिलास को मुंह से हटा कर सांस लें, पहली और दूसरी बार एक एक घूट पियें और तीसरी सांस में जितना चाहें पियें।
࿐ हज़रते सैय्यिदुना इब्ने अब्बास رضی اللہ تعالی عنہ से रिवायत है कि नूर के पैकर, तमाम नबियों के सरवर, दो जहां के ताजवर, ﷺ ने फ़रमाया : “ऊंट की तरह एक ही घूट में न पी जाया करो बल्कि दो या तीन बार पिया करो और जब पीने लगो तो ﺑِﺴْﻢِﷲ पढ़ा करो और जब पी चुको तो الحمداللہ कहा करो।
📕 *سنن الترمزی، الحدیث 1892، ج 3، ص 352*
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࿐ हज़रते सैय्यिदुना अनस رضی اللہ تعالی عنہ से रिवायत है कि सरकारे मदीना, ﷺ पीने में तीन बार सांस लेते थे और फ़रमाते थे : “इस तरह पीने में ज़ियादा सैराबी होती है और सिहत के लिये मुफीद व खुश गवार है।
📗 *صحیح مسلم، الحدیث 2028، ج 3، ص 1120*
࿐ हज़रते सैय्यिदुना इब्ने अब्बास رضی اللہ تعالی عنہ से रिवायत है कि अल्लाह के प्यारे महबूब, दानाए गुयूब ﷺ ने बरतन में सांस लेने और फूंकने से मन्अ फ़रमाया है।
📕 *سنن ابوداود،الحدیث 3728، ج 3، ص 475*
࿐ हुज़रते सैय्यिदुना अनस رضی اللہ تعالی عنہ से रिवायत है कि सरकारे मदीना, ﷺ ने खड़े हो कर पानी पीने से मन्अ फ़रमाया है।
📒 *صحیح مسلم، الحدیث 2024، ج 3، ص 1119*
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◢◤ सुन्नते रसूलुल्लाह ﷺ ◢◤
*❝ आओं सुन्नतों पर अमल करें! ❞*
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࿐ *बैठने की सुन्नतें और आदाब :*
हमारा उठना बैठना भी सुन्नत के मुताबिक होना चाहिये। हमारे प्यारे आक़ा ﷺ अक्सर क़िब्ला शरीफ़ की तरफ़ रूए अन्वर कर के बैठा करते थे। ज़हे नसीब हम भी कभी कभी क़िब्ला रू हो कर बैठें तो कभी मदीनए मुनव्वरह की तरफ़ मुंह कर के बैठे कि यह भी बहुत बड़ी सआदत है।
࿐ सुरीन ज़मीन पर रखें और दोनों घुटनों को खड़ा कर के दोनों हाथों से घेर लें और एक हाथ से दूसरे को पकड़ लें, इस तरह बैठना सुन्नत है। (लेकिन इस दौरान घुटनों पर कोई चादर वगैरा ओढ़ लेना बेहतर है।)
📕 *مرآۃ المناجیح، ج6، ص378*
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࿐ चार ज़ानू (या'नी पालती मार कर) बैठना भी नबी -ए- करीम ﷺ से साबित है।
࿐ हज़रते सैय्यिदुना अबू हुरैरा رضی اللہ تعالی عنہ से रिवायत है कि अल्लाह के महबूब, दानाए गुयूब, ﷺ ने फ़रमाया : “जब तुम में से कोई साए में हो और उस पर से साया रुख्सत हो जाए और वोह कुछ धूप कुछ छाउं में रह जाए तो उसे चाहिये कि वहां से उठ जाए।"
📒 *سنن ابی داؤد، کتاب الادب، الحدیث4821، ج4، ص344*
࿐ बुज़ुर्गों की नशिस्त पर बैठना अदब के ख़िलाफ़ है। इमामे अहले सुन्नत मुजद्दिदे दीनो मिल्लत शाह इमाम अहमद रज़ा खान رضی اللہ تعالی عنہ लिखते हैं : पीर व उस्ताज़ की नशिस्त पर उन की गैबत (या'नी गैर मौजू-दगी) में भी न बैठे।
📙 *فتاوی رضویہ، ج24، ص369/424*
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࿐ मजलिस से फ़ारिग हो कर यह दुआ तीन बार पढ़ लें तो गुनाह मुआफ़ हो जाएंगे। और जो लोग मजलिसे खैर व मजलिसे ज़िक्र में पढ़े तो उस के लिये उस खैर पर मोहर लगा दी जाएगी। वोह दुआ यह है :
" *سبحنک اللھم و بحمدک لا الہ الا انت استغفرک واتوب الیک* "
(तेरी ज़ात पाक है और ऐ अल्लाह ! तेरे ही लिये तमाम खूबियां हैं, तेरे सिवा कोई मा'बूद नहीं, तुझ से बख्शिश चाहता हूं और तेरी तरफ़ तौबा करता हूं।)
📕 *سنن ابی داؤد، کتاب الادب، الحدیث4857، ج4، ص347*
࿐ जब कोई आलिमे बा अमल या मुत्तक़ी शख़्स या सैय्यिद साहिब या वालिदैन आयें तो ता'ज़ीमन खड़े हो जाना सवाब है। हकीमुल उम्मत मुफ्ती अहमद यार खान नईमी लिखते हैं : बुजुर्गों की आमद पर यह दोनों काम या'नी ता'ज़ीमी क़ियाम और इस्तिकबाल जाइज़ बल्कि सुन्नते सहाबा है बल्कि हुज़ूर ﷺ की सुन्नते क़ौली है।
📔 *مرآۃ المناجیح، ج6، ص370*
࿐ ऐ हमारे प्यारे अल्लाह ! हमें उठने बैठने की सुन्नतों पर अमल पैरा होने की तौफीके रफ़ीक़ मर्हमत फ़रमा
*👨💻 मिजानिब :- टीम सुल्तान ए हिन्द ग्रुप..!*
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*📮 पोस्ट मुक़म्मल हुआ अल्हम्दुलिल्लाह 🔃*
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