कुदमाए मुहद्दिषीन व फुकहा "मग़ाज़ी व सियर" के उन्वान के तहत में फ़क़त ग़ज़वात और इस के मुतअल्लिक़ात को बयान करते थे मगर सीरते नबविय्या के मुसन्निफ़ीन ने इस उन्वान को इस क़दर वस्त दे दी कि हुज़ूर रहमते आलम ﷺ की विलादते बा सआदत से वफ़ाते अक्दस तक के तमाम मराहिले हयात, आप की जात व सिफ़ात, आप के दिन रात और तमाम वोह चीजें जिन को आप की ज़ाते वाला सिफ़ात से तअल्लुकात हो ख़्वाह वोह इन्सानी ज़िन्दगी के मुआमलात हों या नुबुव्वत के मोजिज़ात हों उन सब को "किताबे सीरत" ही के अब्वाब व फुसूल और मसाइल शुमार करने लगे।
चुनान्चे एलाने नुबुव्वत से पहले और बाद तमाम वाकिआत काशानए नुबुव्वत से जबले हिरा के गार तक और जबले हिरा के गार से जबले सौर के गार तक और हरमे काबा से ताइफ़ के बाज़ार तक और मक्का की चरागाहों से मुल्के शाम की तिजारत गाहों तक और अज़्वाजे मुतहहरात رضى الله تعالیٰ عنهن के हुजरों की खल्वत गाहों से ले कर इस्लामी ग़ज़वात की रज़्म गाहों तक आप की हयाते मुक़द्दसा के हर हर लम्हा में आप की मुक़द्दस सीरत का आफ्ताबे आलम ताब जल्वा गर है।
इसी तरह खुलफ़ाए राशिदीन हों या दूसरे सहाबए किराम, अज़्वाजे मुतहहरात हों या आप की औलादे इज़ाम, इन सब की किताबे ज़िन्दगी के अवराक़ पर सीरते नुबुव्वत के नक्शो निगार फूलों की तरह महक्ते, मोतियों की तरह चमक्ते और सितारों की तरह जग मगाते हैं। और येह तमाम मज़ामीन सीरते न बविय्या के "शजरतुल ख़ुल्द" ही की शाखें, पत्तियां, फूल और फल हैं। والله تعالیٰ اعلم
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 22)
खानदानी हालात :
*हुज़ूर ﷺ के वालिदैन का ईमान #04 :-* साहिबुल इक्लील हज़रते अल्लामा शैख अब्दुल हक़ मुहाजिर मदनी ने तहरीर फ़रमाया कि अल्लामा इब्ने हजर हैतमी ने मिश्कात की शर्ह में फ़रमाया है कि "हुज़ूर ﷺ के वालिदैन رضى الله تعالیٰ عنهما को अल्लाह तआला ने ज़िन्दा फ़रमाया, यहां तक कि वोह दोनों ईमान लाए और फिर वफ़ात पा गए।" येह हदीष सही है और जिन मुहद्दिषीन ने इस हदीष को सहीह बताया है उन में से इमाम कुरतुबी और शाम के हाफ़िजुल हदीष इब्ने नासिरुद्दीन भी हैं और इस में तान करना बे महल और बे जा है, क्यूं कि करामात और खुसूसिय्यात की शान ही येह है कि वोह कवाइद और आदात के ख़िलाफ़ हुवा करती हैं।
चुनान्चे हुज़ूर ﷺ के वालिदैन رضى الله تعالیٰ عنهما का मौत के बाद उठ कर ईमान लाना, येह ईमान उन के लिये नाफेअ है हालां कि दूसरों के लिये येह ईमान मुफ़ीद नहीं है, इस की वजह यह है कि हुज़ूर ﷺ के वालिदैन رضى الله تعالیٰ عنهما को निस्बते रसूल की वजह से जो कमाल हासिल है वोह दूसरों के लिये नहीं है और हुज़ूर ﷺ की हदीष (काश ! मुझे ख़बर होती कि मेरे वालिदैन के साथ क्या मुआमला किया गया) के बारे में इमाम सुयूती ने "दुर्रे मन्सूर में फ़रमाया है कि येह हदीष मुरसल और ज़ईफुल अस्नाद है।
बहर कैफ़ मुन्दरिजए बाला इक्तिबासात जो मोतबर किताबों से लिये गए हैं इन को पढ़ लेने के बाद हुज़ूरे अक्दस ﷺ के साथ वालिहाना अकीदत और ईमानी महब्बत का येही तकाजा है कि हुज़ूर ﷺ के वालिदैन رضى الله تعالیٰ عنهما और तमाम आबाओ अज्दाद बल्कि तमाम रिश्तेदारों के साथ अदबो एहतिराम का इल्तिज़ाम रखा जाए बजुज़ उन रिश्तेदारों के जिन का काफिर और जहन्नमी होना कुरआन व हदीष से यक़ीनी तौर पर षाबित है जैसे "अबू लहब" और उस की बीवी "حمالة الحطب" बाक़ी तमाम कराबत वालों का अदब मल्हूजे खातिर रखना लाज़िम है क्यूं कि जिन लोगों को हुज़ूर ﷺ से निस्बते कराबत हासिल है उन की बे अदबी व गुस्ताखी यक़ीनन हुज़ूर ﷺ की ईज़ा रसानी का बाइष होगा और आप क़ुरआन का फ़रमान पढ़ चुके कि जो लोग अल्लाह عزوجل और उस के रसूल ﷺ को ईजा देते हैं, वोह दुन्या व आखिरत में मलऊन हैं।
इस मस्अले में आ'ला हज़रत मौलाना शाह अहमद रज़ा खां साहिब क़िब्ला बरेल्वी علیہ الرحمہ का एक मुहक्किक़ाना रिसाला भी है जिस का नाम “शुमूलिल इस्लाम लि आबाइल किराम" है। जिस में आप ने निहायत ही मुफ़स्सल व मुदल्लल तौर पर येह तहरीर फ़रमाया है कि हुज़ूर ﷺ के आबाओ अज्दाद मुवहहीद व मुस्लिम हैं।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 65*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 23)
खानदानी हालात :
*बरकाते नुबुव्वत का इज़हार #01 :-* जिस तरह सूरज निकलने से पहले सितारों की रूपोशी, सुब्हे सादिक की सफ़ेदी, शफ़क़ की सुर्खी सूरज निकलने की खुश खबरी देने लगती हैं इसी तरह जब आफ्ताबे रिसालत के तुलूअ का ज़माना क़रीब आ गया तो अतराफ़े आलम में बहुत से ऐसे अजीब अजीब वाकिआत और खवारिके़ आदात बतौरे अलामात के ज़ाहिर होने लगे जो सारी काएनात को झंझोड़ झंझोड़ कर येह बिशारत देने लगे कि अब रिसालत का आफ्ताब अपनी पूरी आबो ताब के साथ तुलूअ होने वाला है।
चुनान्चे असहाबे फ़ील की हलाकत का वाकिआ, ना गहां बाराने रहमत से सर ज़मीने अरब का सर सब्ज़ो शादाब हो जाना, और बरसों की खुश्क साली दफ्अ हो कर पूरे मुल्क में खुशहाली का दौर दौरा हो जाना, बुतों का मुंह के बल गिर पड़ना, फारस के मजूसियों की एक हज़ार साल से जलाई हुई आग का एक लम्हे में बुझ जाना, किस्रा के महल का जल्ज़ला, और इस के चौदह कंगूरों का मुन्हदिम हो जाना, "हमदान" और "कुम" के दरमियान छे मील लम्बे छे मील चौड़े "बहरए सावह" का यकायक बिल्कुल खुश्क हो जाना, शाम और कूफा के दरमियान वादिये “समावह" की खुश्क नदी का अचानक जारी हो जाना, हुज़ूर ﷺ की वालिदा के बदन से एक ऐसे नूर का निकलना जिस से "बसरा" के महल रोशन हो गए। येह सब वाक़िआत इसी सिल्सिले की कड़ियां हैं जो हुज़ूर ﷺ की तशरीफ़ आवरी से पहले ही "मुबश्शरात" बन कर आलमे काएनात को येह खुश खबरी देने लगे कि
*मुबारक हो वोह शह पर्दे से बाहर आने वाला है*
*गदाई को ज़माना जिस के दर पर आने वाला है*
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 67*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 24)
खानदानी हालात :
*बरकाते नुबुव्वत का इज़हार #02 :-* हज़राते अम्बियाए किराम عليه السلام से कब्ले एलाने नुबुव्वत जो ख़िलाफ़े आदात और अक्ल को हैरत में डालने वाले वाकआत सादिर होते हैं उन को शरीअत की इस्तिलाह में "इरहास" कहते हैं और एलाने नुबुव्वत के बाद इन्ही को "मोजिज़ा" कहा जाता है। इस मज्कूरा बाला तमाम वाकिआत "इरहास" हैं जो हुज़ूरे अकरम ﷺ के ए'लाने नुबुव्वत करने से क़ब्ल जाहिर हुए जिन को हम ने "बरकाते नुबुव्वत" बयान किया है। इस किस्म के वाकिआत जो "इरहास" कहलाते हैं उन की तादाद बहुत जियादा है, इन में से चन्द का ज़िक्र हो चुका है चन्द दूसरे वाक़िआत भी पढ़ लीजिये।
मुहद्दिष अबू नुऐम ने अपनी किताब "दलाइलुन्नुबुव्वह" में हज़रते अब्दुल्लाह बिन अब्बास رضى الله تعالیٰ عنهما की रिवायत से यह हदीष बयान की है कि जिस रात हुज़ूर ﷺ का नूरे नुबुव्वत हज़रते अब्दुल्लाह رضى الله تعالیٰ عنه की पुश्त से हज़रते आमिना رضى الله تعالیٰ عنها के बत्ने मुक़द्दस में मुन्तकिल हुवा, रूए ज़मीन के तमाम चौपायों, खुसूसन कुरैश के जानवरों को अल्लाह तआला ने गोयाई अता फ़रमाई और उन्हों ने ब ज़बाने फ़सीह ए'लान किया कि आज अल्लाह عزوجل का वोह मुक़द्दस रसूल शिकमे मादर में जल्वा गर हो गया जिस के सर पर तमाम दुन्या की इमामत का ताज है और जो सारे आलम को रोशन करने वाला चराग है मशरिक के जानवरों ने मगरिब के जानवरों को बशारत दी इसी तरह समुन्दरों और दरियाओं के जानवरों ने एक दूसरे को येह खुश खबरी सुनाई कि हज़रते अबुल कासिम ﷺ की विलादते बा सआदत का वक़्त क़रीब आ गया।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 68*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 25)
खानदानी हालात :
*बरकाते नुबुव्वत का इज़हार #03 :-* खतीब बगदादी ने अपनी सनद के साथ येह हदीष रिवायत की है कि हुज़ूर ﷺ की वालिदए माजिदा हज़रते बीबी आमिना رضى الله تعالیٰ عنها ने फ़रमाया कि जब हुज़ूरे अक्दस ﷺ पैदा हुए तो मैं ने देखा कि एक बहुत बड़ी बदली आई जिस में रोशनी के साथ घोड़ों के हुनहुनाने और परन्दों के उड़ने की आवाज़ थी और कुछ इन्सानों की बोलियां भी सुनाई देती थीं। फिर एक दम हुज़ूर ﷺ मेरे सामने से गैब हो गए और मैं ने सुना कि एक ए'लान करने वाला ए'लान कर रहा है कि मुहम्मद (ﷺ) को मशरिक व मग़रिब में गश्त कराओ और इन को समुन्दरों की भी सैर कराओ ताकि तमाम काएनात को इन का नाम, इन का हुल्या, इन की सिफ़त मालूम हो जाए और इन को तमाम जानदार मख़्लूक या'नी जिन्नो इन्स, मलाएका और चरिन्दों व परन्दों के सामने पेश करो!
और इन्हें हज़रते आदम عليه السلام की सूरत, हज़रते शीष عليه السلام की मारिफ़त, हज़रते नूह عليه السلام की शुजाअत, हज़रते इब्राहीम عليه السلام की खिल्लत, हज़रते इस्माईल عليه السلام की ज़बान, हज़रते इस्हाक़ عليه السلام की रिज़ा, हज़रते सालेह عليه السلام की फ़साहत, हज़रते लूत عليه السلام की हिकमत, हज़रते याकूब عليه السلام की बिशारत, हज़रते मूसा عليه السلام की शिद्दत, हज़रते अय्यूब عليه السلام का सब्र, हजरते यूनुस عليه السلام की ताअत, हजरते यूशुअ عليه السلام का जिहाद, हज़रते दाऊद عليه السلام की आवाज़, हज़रते दान्याल عليه السلام की महब्बत, हज़रते इल्यास عليه السلام का वकार, हज़रते यहया عليه السلام की इस्मत, हज़रते ईसा عليه السلام का जोहद अता कर के इन को तमाम पैग़म्बरों के कमालात और अख़्लाक़े हसना से मुजय्यन कर दो। इस के बाद वो बादल छट गया।
फिर मैंने देखा कि आप रेशम के सब्ज कपड़े में लिपटे हुए हैं और उस कपड़े से पानी टपक रहा है और कोई मुनादी ए'लान कर रहा है कि वाह वा ! क्या खूब मुहम्मद (ﷺ) को तमाम दुन्या पर क़ब्ज़ा दे दिया गया और काएनाते आलम की कोई चीज़ बाक़ी न रही जो इन के कब्ज़ए इक्तिदार व ग़लबए इताअत में न हो अब मैं ने चेहरए अन्वर को देखा तो चौदहवीं के चांद की तरह चमक रहा था और बदन से पाकीज़ा मुश्क की खुश्बू आ रही थी फिर तीन शख़्स नज़र आए, एक के हाथ में चांदी का लोटा, दूसरे के हाथ में सब्ज़ जुमर्रद का तश्त, तीसरे के हाथ में एक चमकदार अंगूठी थी अंगूठी को सात मरतबा धो कर उस ने हुज़ूर ﷺ के दोनों शानों के दरमियान मोहरे नुबुव्वत लगा दी, फिर हुज़ूर ﷺ को रेशमी कपड़े में लपेट कर उठाया और एक लम्हे के बाद मुझे सिपुर्द कर दिया।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 69*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 26)
*बचपन :*
*विलादते बा सआदत :-* हुज़ूरे अक्दस ﷺ की तारीखे पैदाइश में इख़्तिलाफ़ है। मगर क़ौले मशहूर येही है कि वाकिअए "असहाबे फ़ील" से पचपन दिन के बाद 12 रबीउल अव्वल ब मुताबिक 20 एप्रिल सि. 571 ई. विलादते बा सआदत की तारीख है अहले मक्का का भी इसी पर अमल दर आमद है कि वोह लोग बारहवीं रबीउल अव्वल ही को काशानए नुबुव्वत की जियारत के लिये जाते हैं और वहां मीलाद शरीफ़ की महफ़िलें मुन्अकिद करते हैं।
तारीख़े आलम में येह वोह निराला और अज़मत वाला दिन है कि इसी रोज़ आलमे हस्ती के ईजाद का बाइष, गर्दिशे लैलो नहार का मतलूब, खल्के आदम का रम्ज, किश्तिये नूहु की हिफाज़त का राज़, बानिये काबा की दुआ, इब्ने मरयम की बिशारत का जुहूर हुवा, काएनाते वुजूद के उलझे हुए गेसुओं को सवारने वाला, तमाम जहान के बिगड़े निज़ामों को सुधारने वाला यानी
*वोह नबियों में रहमत लक़ब पाने वाला*
*मुरादें गरीबों की बर लाने वाला*
*मुसीबत में गैरों के काम आने वाला*
*वोह अपने पराए का ग़म खाने वाला*
*फ़क़ीरों का मावा, ज़ईफ़ों का मल्जा*
*यतीमों का वाली, गुलामों का मौला*
सन्दुल अस्फिया अशरफुल अम्बिया अहमदे मुज्तबा मुहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ आलमे वुजूद में रौनक़ अफ़रोज़ हुए और पाकीज़ा बदन, नाफ़ बरीदा, खतना किये हुए खुशबू में बसे हुए ब हालते सजदा, मक्कए मुकर्रमा की मुक़द्दस सर ज़मीन में अपने वालिदे माजिद के मकान के अंदर पैदा हुए, बाप कहाँ थे जो बुलाए जाते और अपने नौ निहाल को देख कर निहाल होते, वोह तो पहले ही वफात पा चुके थे दादा बुलाए गए जो उस वक़्त तवाफे काबा में मशगूल थे, ये खुश खबरी सुन कर दादा "अब्दुल मुत्तलिब" खुश खुश हरमे काबा से अपने घर आए और वालिहाना जोशे महब्बत में अपने पोते को कलेजे से लगा लिया फिर का'बे में ले जा कर खैरो बरकत की दुआ मांगी और “मुहम्मद" नाम रखा।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 71*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 27)
*बचपन :*
*विलादते बा सआदत #02 :* आप ﷺ के चचा अबू लहब की लौंडी “षुवैबा" खुशी में दौड़ती हुई गई और “अबू लहब" को भतीजा पैदा होने की खुश खबरी दी तो उस ने इस खुशी में शहादत की उंगली के इशारे से "षुवैबा" को आज़ाद कर दिया जिस का षमरा अबू लहब को येह मिला कि उस की मौत के बाद उस के घर वालों ने उस को ख़्वाब में देखा और हाल पूछा, तो उस ने अपनी उंगली उठा कर यह कहा कि तुम लोगों से जुदा होने के बाद मुझे कुछ (खाने पीने) को नहीं मिला बजुज़ इस के कि "षुवैबा" को आज़ाद करने के सबब से इस उंगली के जरीए कुछ पानी पिला दिया जाता हूं।
इस मौक़अ पर हज़रते शैख अब्दुल हक़ मुहद्दिष देहलवी رحمتہ الله علیہ ने एक बहुत ही फ़िक्र अंगेज़ और बसीरत अफरोज बात तहरीर फ़रमाई है जो अहले महब्बत के लिये निहायत ही लज्ज़त बख़्श है, वोह लिखते हैं कि : इस जगह मीलाद करने वालों के लिये एक सनद है कि येह आं हज़रत ﷺ की शबे विलादत में खुशी मनाते हैं और अपना माल खर्च करते हैं मतलब यह है कि जब अबू लहब को जो काफ़िर था और उस की मज़म्मत में कुरआन नाजिल हुवा, आं हज़रत ﷺ की विलादत पर खुशी मनाने, और बांदी का दूध खर्च करने पर जज़ा दी गई तो उस मुसलमान का क्या हाल होगा जो आं हज़रत ﷺ की महब्बत में सरशार हो कर खुशी मनाता है और अपना माल खर्च करता है।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 72*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 28)
*बचपन :*
*मौलूदुन्नबी ﷺ :* जिस मुक़द्दस मकान में हुज़ूरे अक्दस ﷺ की विलादत हुई, तारीखे इस्लाम में उस मकाम का नाम "मौलूदुन्नबी ﷺ" (नबी की पैदाइश की जगह) है, येह बहुत ही मुतबर्रिक मकाम है सलातीने इस्लाम ने इस मुबारक यादगार पर बहुत ही शानदार इमारत बना दी थी, जहां अहले हरमैने शरीफैन और तमाम दुन्या से आने वाले मुसलमान दिन रात महफ़िले मीलाद शरीफ़ मुन्अक़िद करते और सलातो सलाम पढ़ते रहते थे!
चुनान्चे हज़रते शाह वलिय्युल्लाह साहिब मुहद्दिष देहलवी رحمتہ اللہ تعالیٰ علیہ ने अपनी किताब "फुयूजुल हरमैन" में तहरीर फ़रमाया है कि मैं एक मरतबा उस महफिले मीलाद में हाज़िर हुवा, जो मक्कए मुकर्रमा में बारहवीं रबीउल अव्वल को "मौलूदुन्नबी ﷺ" में मुन्अकिद हुई थी जिस वक़्त विलादत का ज़िक्र पढ़ा जा रहा था तो मैं ने देखा कि यक बारगी उस मजलिस से कुछ अन्वार बुलन्द हुए, मैं ने उन अन्वार पर गौर किया तो मालूम हुवा कि वोह रहमते इलाही और उन फ़िरिश्तों के अन्वार थे जो ऐसी महफ़िलों में हाज़िर हुवा करते हैं।
जब हिजाज़ पर नज्दी हुकूमत का तसल्लुत हुवा तो मक़ाबिरे जन्नतुल मअला व जन्नतुल बक़ीअ के गुम्बदों के साथ साथ नज्दी हुकूमत ने इस मुक़द्दस यादगार को भी तोड़ फोड़ कर मिस्मार कर दिया और बरसों येह मुबारक मक़ाम वीरान पड़ा रहा, मगर मैं जब जून सि 1959 ई. में इस मर्कज़े खैरो बरकत की ज़ियारत के लिये हाज़िर हुवा तो मैं ने उस जगह एक छोटी सी बिल्डिंग देखी जो मुक़फ्फ़ल थी, बा'ज़ अरबों ने बताया कि अब इस बिल्डिंग में एक मुख़्तसर सी लाएब्रेरी और एक छोटा सा मक्तब है, अब इस जगह न मीलाद शरीफ़ हो सकता है न सलातो सलाम पढ़ने की इजाजत है मैं ने अपने साथियों के साथ बिल्डिंग से कुछ दूर खड़े हो कर चुपके चुपके सलातो सलाम पढ़ा, और मुझ पर ऐसी रिक्क़त तारी हुई कि मैं कुछ देर तक रोता रहा।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 72*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 29)
*बचपन :*
*दूध पीने का ज़माना #01 :* सब से पहले हुज़ूर ﷺ ने अबू लहब की लौंडी "हज़रते षुवैबा" का दूध नोश फ़रमाया फिर अपनी वालिदए माजिदा हज़रते आमिना رضى الله تعالیٰ عنها के दूध से सैराब होते रहे, फिर हज़रते हलीमा सादिया رضى الله تعالیٰ عنها आप को अपने साथ ले गई और अपने क़बीले में रख कर आप को दूध पिलाती रहीं और इन्हीं के पास आप ﷺ के दूध पीने का ज़माना गुज़रा।
शुरफ़ाए अरब की आदत थी कि वोह अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिये गिर्दो नवाह देहातों में भेज देते थे देहात की साफ़ सुथरी आबो हवा में बच्चों की तन्दुरुस्ती और जिस्मानी सिह्हत भी अच्छी हो जाती थी और वोह ख़ालिस और फ़सीह अरबी ज़बान भी सीख जाते थे क्यूं कि शहर की ज़बान बाहर के आदमियों के मेलजोल से ख़ालिस और फ़सीह व बलीग ज़बान नहीं रहा करती।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 73*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 30)
*बचपन :*
*दूध पीने का ज़माना #02 :* हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها का बयान है कि मैं "बनी सा'द" की औरतों के हमराह दूध पीने वाले बच्चों की तलाश में मक्का को चली। इस साल अरब में बहुत सख्त काल पड़ा हुवा था, मेरी गोद में एक बच्चा था, मगर फ़क्रो फ़ाक़ा की वजह से मेरी छातियों में इतना दूध न था जो उस को काफ़ी हो सके। रात भर वोह बच्चा भूक से तड़पता और रोता बिलबिलाता रहता था और हम उस की दिलजूई और दिलदारी के लिये तमाम रात बैठ कर गुज़ारते थे। एक ऊंटनी भी हमारे पास थी। मगर उस के भी दूध न था। मक्कए मुकर्रमा के सफ़र में जिस खच्चर पर मैं सुवार थी वोह भी इस क़दर लागर था कि क़ाफ़िले वालों के साथ न चल सकता था मेरे हमराही भी इस से तंग आ चुके थे।
बड़ी बड़ी मुश्किलों से येह सफ़र तै हुवा जब येह क़ाफ़िला मक्कए मुकर्रमा पहुंचा तो जो औरत रसूलुल्लाह ﷺ को देखती और येह सुनती कि येह यतीम हैं तो कोई औरत आप को लेने के लिये तय्यार नहीं होती थी, क्यूं कि बच्चे के यतीम होने के सबब से ज़ियादा इन्आमो इक्राम मिलने की उम्मीद नहीं थी। इधर हज़रते हलीमा सा'दिया رضى الله تعالیٰ عنها की किस्मत का सितारा सुरय्या से ज़ियादा बुलन्द और चांद से ज़ियादा रौशन था, इन के दूध की कमी इन के लिये रहमत की ज़ियादती का बाइस बन गई, क्यूं कि दूध कम देख कर किसी ने इन को अपना बच्चा देना गवारा न किया।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 74*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 31)
*बचपन :*
*दूध पीने का ज़माना #03 :* हज़रते हलीमा सा'दिया رضى الله تعالیٰ عنها ने अपने शोहर "हारिस बिन अब्दुल उज़्ज़ा" से कहा कि येह तो अच्छा नहीं मा'लूम होता कि मैं खाली हाथ वापस जाऊं इस से तो बेहतर येही है कि मैं इस यतीम ही को ले चलूं, शोहर ने इस को मंजूर कर लिया और हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها उस दुर्रे यतीम को ले कर आई जिस से सिर्फ हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها और हज़रते आमिना رضى الله تعالیٰ عنها ही के घर में नहीं बल्कि काएनाते आलम के मशरिक व मग़रिब में उजाला होने वाला था, येह खुदा वन्दे कुद्दूस का फ़ज़्ले अज़ीम ही था कि हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها की सोई हुई क़िस्मत बेदार हो गई और सरवरे काएनात ﷺ इन की आगोश में आ गए,
अपने खैमे में ला कर जब दूध पिलाने बैठीं तो बाराने रहमत की तरह बरकाते नुबुव्वत का ज़ुहूर शुरू हो गया, खुदा की शान देखिये कि हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها के मुबारक पिस्तान में इस क़दर दूध उतरा कि रहमते आलम ﷺ ने भी और उनके रज़ाई भाई ने भी ख़ूब शिकम सैर हो कर दूध पिया, और दोनों आराम से सो गए, उधर उंटनी को देखा तो उस के थन दूध से भर गए थे हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها के शोहर ने उस का दूध दोहा, और मियां बीवी दोनों ने ख़ूब सैर हो कर दूध पिया और दोनों शिकम सैर हो कर रात भर सुख और चैन की नींद सोए।
हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها का शोहर हुज़ूर रहमते आलम ﷺ की येह बरकतें देख कर हैरान रह गया, और कहने लगा कि हलीमा ! तुम बड़ा ही मुबारक बच्चा लाई हो। हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها ने कहा कि वाकेई मुझे भी येही उम्मीद है कि येह निहायत ही बा बरकत बच्चा है और खुदा की रहमत बन कर हम को मिला है और मुझे येही तवक्कोअ है कि अब हमारा घर खैरो बरकत से भर जाएगा।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 75*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 32)
*बचपन :*
*दूध पीने का ज़माना #04 :* हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها फरमाती है कि इस के बाद हम आप ﷺ को अपनी गोद में ले कर मक्कए मुकर्रमा से अपने गाउं की तरफ रवाना हुए तो मेरा वोही खच्चर अब इस क़दर तेज़ चलने लगा कि किसी की सुवारी उस की गर्द को नहीं पहुंचती थी, क़ाफ़िले की औरतें हैरान हो कर मुझ से कहने लगीं कि ऐ हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها ! क्या येह वोही खच्चर है जिस पर तुम सुवार हो कर आई थीं या कोई दूसरा तेज़ रफ्तार खच्चर तुम ने खरीद लिया है? अल गरज हम अपने घर पहुंचे वहां सख्त कहत पड़ा हुवा था।
तमाम जानवरों के थन में दूध खुश्क हो चुके थे, लेकिन मेरे घर में क़दम रखते ही मेरी बकरियों के थन दूध से भर गए, अब रोज़ाना मेरी बकरियां जब चरागाह से घर वापस आतीं तो उन के थन दूध से भरे होते हालां कि पूरी बस्ती में और किसी को अपने जानवरों का एक क़तरा दूध नहीं मिलता था मेरे क़बीले वालों ने अपने चरवाहों से कहा कि तुम लोग भी अपने जानवरों को उसी जगह चराओ जहां हलीमा के जानवर चरते हैं। चुनान्चे सब लोग उसी चरागाह में अपने मवेशी चराने लगे जहां मेरी बकरियां चरती थीं, मगर यहां तो चरागाह और जंगल का कोई अमल दख़ल ही नहीं था येह तो रहमते आलम ﷺ के बरकाते नुबुव्वत का फ़ैज़ था जिस को मैं और मेरे शोहर के सिवा मेरी क़ौम का कोई शख़्स नहीं समझ सकता था।
अल ग़रज़ इसी तरह हर दम हर कदम पर हम बराबर आप ﷺ की बरकतों का मुशाहदा करते रहे यहां तक कि दो साल पूरे हो गए और मैं ने आप का दूध छुड़ा दिया, आप ﷺ की तन्दुरुस्ती और नश्वो नुमा का हाल दूसरे बच्चों से इतना अच्छा था कि दो साल में आप खूब अच्छे बड़े मालूम होने लगे, अब हम दस्तूर के मुताबिक रहमते आलम ﷺ को उनकी वालिदा के पास लाए और उन्हों ने हस्बे तौफ़ीक़ हम को इन्आमो इक्राम से नवाज़ा।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 76*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 33)
*बचपन :*
*दूध पीने का ज़माना #05 :* गो काइदे के मुताबिक अब हमें रहमते आलम ﷺ को अपने पास रखने का कोई हक़ नहीं था, मगर आप ﷺ की बरकाते नुबुव्वत की वजह से एक लम्हा के लिये भी हम को आप ﷺ की जुदाई गवारा नहीं थी। अजीब इत्तिफ़ाक़ कि उस साल मक्कए मुअज्ज़मा में वबाई बीमारी फैली हुई थी चुनान्चे हम ने उस वबाई बीमारी का बहाना कर के हज़रते बीबी आमिना رضى الله تعالیٰ عنها को रिजा मन्द कर लिया और फिर हम आप ﷺ को वापस अपने घर लाए और फिर हमारा मकान रहमतों और बरकतों की कान बन गया और आप हमारे पास निहायत खुश व खुर्रम हो कर रहने लगे। जब आप कुछ बड़े हुए तो घर से बाहर निकलते और दूसरे लड़कों को खेलते हुए देखते मगर खुद हमेशा हर क़िस्म के खेलकूद से अलाहिदा रहते।
एक रोज़ मुझ से कहने लगे कि अम्माजान ! मेरे दूसरे भाई बहन दिन भर नज़र नहीं आते येह लोग हमेशा सुब्ह को उठ कर रोजाना कहां चले जाते हैं ? मैं ने कहा कि येह लोग बकरियां चराने चले जाते हैं, येह सुन कर आप ने फ़रमाया : मादरे मेहरबान ! आप मुझे भी मेरे भाई बहनों के साथ भेजा कीजिये। चुनान्चे आप ﷺ के इस्रार से मजबूर हो कर आप को हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها ने अपने बच्चों के साथ चरागाह जाने की इजाज़त दे दी। और आप ﷺ रोज़ाना जहां हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها की बकरियां चरती थीं तशरीफ़ ले जाते रहे और बकरियां चरागाहों में ले जा कर उन की देखभाल करना जो तमाम अम्बिया और रसूलों عَلَیْھِمُ الصَّلٰوةُ وَالسَّلَام की सुन्नत है आप ने अपने अमल से बचपन ही में अपनी एक ख़स्लते नुबुव्वत का इज़हार फ़रमा दिया।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 77*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 34)
*बचपन :*
*शक्के सद्र :* एक दिन आप ﷺ चरागाह में थे कि एक दम हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها के एक फ़रज़न्द “ज़मरह" दौड़ते और हांपते कांपते हुए अपने घर पर आए और अपनी मां हज़रते बीबी हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها से कहा कि अम्माजान ! बड़ा ग़ज़ब हो गया, मुहम्मद (ﷺ) को तीन आदमियों ने जो बहुत ही सफ़ेद लिबास पहने हुए थे, चित लिटा कर उन का शिकम फाड़ डाला है और मैं इसी हाल में उन को छोड़ कर भागा हुवा आया हूं। येह सुन कर हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها और उन के शोहर दोनों बद हवास हो कर घबराए हुए दौड़ कर जंगल में पहुंचे तो येह देखा कि आप ﷺ बैठे हुए है। मगर ख़ौफ़ो हिरास से चेहरा ज़र्द और उदास है, हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها के शोहर ने इन्तिहाई मुश्फिक़ाना लहजे में प्यार से चुमकार कर पूछा कि बेटा ! क्या बात है? आप ﷺ ने फ़रमाया कि तीन शख़्स जिन के कपड़े बहुत ही सफ़ेद और साफ़ सुथरे थे मेरे पास आए और मुझ को चित लिटा कर मेरा शिकम चाक कर के उस में से कोई चीज़ निकाल कर बाहर फेंक दी और फिर कोई चीज़ मेरे शिकम में डाल कर शिगाफ़ को सी दिया लेकिन मुझे ज़र्रा बराबर भी कोई तकलीफ़ नहीं हुई।
येह वाकिआ सुन कर हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها और उन के शोहर दोनों बेहद घबराए और शोहर ने कहा कि हलीमा मुझे डर है कि इन के ऊपर शायद कुछ आसेब का अषर है लिहाजा बहुत जल्द तुम इन को इन के घर वालों के पास छोड़ आओ, इसके बाद हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها आप को ले कर मक्कए मुकर्रमा आई क्यूं कि उन्हें इस वाकिए से येह ख़ौफ़ पैदा हो गया था कि शायद अब हम कमा हक्कुहू इन की हिफ़ाज़त न कर सकेंगे, हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها ने जब मक्कए मुअज्ज़मा पहुंच कर आप ﷺ की वालिदए माजिदा رضى الله تعالیٰ عنها के सिपुर्द किया तो उन्हों ने दरयाफ्त फ़रमाया की हलीमा तुम तो बड़ी ख़्वाहिश और चाह के साथ मेरे बच्चे को अपने घर ले गई थीं फिर इस क़दर जल्द वापस ले आने की वजह क्या है?
जब हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها ने शिकम चाक करने का वाक़िआ बयान किया और आसेब का शुबा जाहिर किया तो हज़रते बीबी आमिना رضى الله تعالیٰ عنها ने फ़रमाया कि हरगिज़ नहीं, खुदा की क़सम ! मेरे नूरे नज़र पर हरगिज़ हरगिज़ कभी भी किसी जिन्न या शैतान का अमल दख़ल नहीं हो सकता, मेरे बेटे की बड़ी शान है फिर अय्यामे हम्ल और वक्ते विलादत के हैरत अंगेज़ वाकिआत सुना कर हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها को मुत्मइन कर दिया और हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها आप ﷺ को आप की वालिदए माजिदा رضى الله تعالیٰ عنها के सिपुर्द कर के अपने गाऊं वापस चली आई और आप ﷺ अपनी वालिदा की आगोशे तरबियत में परवरिश पाने लगे।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 78*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 35)
*बचपन :*
*शक्के सद्र कितनी बार हुवा.?*
हज़रते मौलाना शाह अब्दुल अजीज़ साहिब मुहद्दिषे देहलवी رحمتہ اللہ تعالیٰ علیہ ने सूरए "अलम नश्रह" की तफ्सीर में फ़रमाया है कि चार मर्तबा आप ﷺ का मुक़द्दस सीना चाक किया गया और उस में नूर व हिक्मत का खजीना भरा गया।
पहली मरतबा जब आप ﷺ हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها के घर थे जिस का ज़िक्र हो चुका, इस की हिक्मत येह थी कि हुज़ूर ﷺ उन वस्वसों और ख़यालात से महफूज़ रहें जिन में बच्चे मुब्तला हो कर खेलकूद और शरारतों की तरफ़ माइल हो जाते हैं।
दूसरी बार दस बरस की उम्र में हुवा ताकि जवानी की पुर आशोब शह्वतों के ख़तरात से आप बे ख़ौफ़ हो जाएं, तीसरी बार गारे हिरा में शक्के सद्र हुवा और आप ﷺ के कल्ब में नूरे सकीना भर दिया गया ताकि आप वहये इलाही के अज़ीम और गिरांबार बोझ को बरदाश्त कर सकें, चौथी मरतबा शबे मेराज में आप ﷺ का मुबारक सीना चाक कर के नूर व हिक्मत के ख़ज़ानों से मा'मूर किया गया, ताकि आप ﷺ के कल्बे मुबारक में इतनी वुस्अत और सलाहिय्यत पैदा हो जाए कि आप दीदारे इलाही عزوجل की तजल्लियों, और कलामे रब्बानी की हैबतों और अज़मतों के मुतहम्मिल हो सकें।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 80*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 36)
*बचपन :*
*उम्मे ऐमन :* जब हुज़ूरे अक्दस ﷺ हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها के घर से मक्कए मुकर्रमा पहुंच गए और अपनी वालिदए मोहतरमा के पास रहने लगे तो हज़रते "उम्मे ऐमन" जो आप के वालिदे माजिद की बांदी थीं आप ﷺ की खातिर दारी और ख़िदमत गुज़ारी में दिन रात जी जान से मसरूफ रहने लगीं। उम्मे ऐमन का नाम "बरकह" है येह आप ﷺ को आप ﷺ के वालिद رضى الله تعالیٰ عنه से मीराष में मिली थीं, येही आप को खाना खिलाती थीं कपड़े पहनाती थीं आप के कपड़े धोया करती थीं, आप ﷺ ने अपने आज़ाद करदा गुलाम हज़रते ज़ैद बिन हारिषा رضى الله تعالیٰ عنه से उनका निकाह कर दिया था जिन से हज़रते उसामा बिन जैद رضى الله تعالیٰ عنه पैदा हुए।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 80*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 37)
*बचपन :*
*बचपन की अदाएं :* हज़रते हलीमा رضى الله تعالیٰ عنها का बयान है कि आप ﷺ का गहवारा या'नी झूला फ़िरिश्तों के हिलाने से हिलता था और आप बचपन में चांद की तरफ उंगली उठा कर इशारा फ़रमाते थे तो चांद आप ﷺ की उंगली के इशारों पर हरकत करता था। जब आप ﷺ की ज़बान खुली तो सब से अव्वल जो कलाम आप की ज़बाने मुबारक से निकला वोह येह था :
اللہ اکبر اللہ اکبر الحمدللہ رب العالمین و سبحان اللہ بکرۃ واصيلا
बच्चों की आदत के मुताबिक कभी भी आप ﷺ ने कपड़ों में बोल व बराज़ नहीं फ़रमाया बल्कि हमेशा एक मुअय्यन वक़्त पर रफ्ए हाजत फ़रमाते, अगर कभी आप ﷺ की शर्मगाह खुल जाती तो आप रो रो कर फ़रियाद करते और जब तक शर्मगाह न छुप जाती आप को चैन और करार नहीं आता था और अगर शर्मगाह छुपाने में मुझ से कुछ ताख़ीर हो जाती तो गैब से कोई आप की शर्मगाह छुपा देता, जब आप अपने पाउं पर चलने के काबिल हुए तो बाहर निकल कर बच्चों को खेलते हुए देखते मगर खुद खेलकूद में शरीक नहीं होते थे लड़के आप को खेलने के लिये बुलाते तो आप फ़रमाते कि मैं खेलने के लिये नहीं पैदा किया गया हूं।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 81*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 38)
*बचपन :*
*हज़रते आमिना رضى الله تعالیٰ عنها की वफात :* हुज़ूरे अक्दस ﷺ की उम्र शरीफ़ जब छे बरस की हो गई तो आप की वालिदए माजिदा رضى الله تعالیٰ عنها आप ﷺ को साथ ले कर मदीनए मुनव्वरह आप के दादा के नन्हियाल बनू अदी बिन नज्जार में रिश्तेदारों की मुलाक़ात या आपने शोहर की क़ब्र की ज़ियारत के लिये तशरीफ़ ले गई। हुज़ूर ﷺ के वालिदे माजिद की बांदी उम्मे ऐमन भी इस सफ़र में आप के साथ थीं वहां से वापसी पर "अब्वाअ" नामी गाउं में हज़रते बीबी आमिना رضى الله تعالیٰ عنها की वफ़ात हो गई और वोह वहीं मदफून हुई। वालिदे माजिद का साया तो विलादत से पहले ही उठ चुका था अब वालिदए माजिदा की आगोशे शफ्कत का ख़ातिमा भी हो गया। लेकिन हज़रते बीबी आमिना رضى الله تعالیٰ عنها का येह दुर्रे यतीम जिस आगोशे रहमत में परवरिश पा कर परवान चढ़ने वाला है वोह इन सब जाहिरी अस्बाबे तरबिय्यत से बे नियाज़ है।
हज़रते बीबी आमिना رضى الله تعالیٰ عنها की वफात के बाद हज़रते उम्मे ऐमन رضى الله تعالیٰ عنها आप ﷺ को मक्कए मुकर्रमा लाई और आप के दादा अब्दुल मुत्तलिब के सिपुर्द किया और दादा ने आप को अपनी आगोशे तरबिय्यत में इन्तिहाई शफ़क़त व महब्बत के साथ परवरिश किया और हज़रते उम्मे ऐमन رضى الله تعالیٰ عنها आप की ख़िदमत करती रहीं जब आप ﷺ की उम्र शरीफ़ आठ बरस की हो गई तो आप के दादा अब्दुल मुत्तलिब का भी इन्तिकाल हो गया।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 82*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 39)
*बचपन :*
*अबू तालिब के पास :* अब्दुल मुत्तलिब की वफ़ात के बाद आप ﷺ के चचा अबू तालिब ने आप को अपनी आगोशे तरबिय्यत में ले लिया और हुज़ूर ﷺ की नेक ख़स्लतों और दिल लुभा देने वाली बचपन की प्यारी प्यारी अदाओं ने अबू तालिब को आप ﷺ का ऐसा गिरवीदा बना दिया कि मकान के अन्दर और बाहर हर वक़्त आप को अपने साथ ही रखते, अपने साथ खिलाते पिलाते, अपने पास ही आप का बिस्तर बिछाते और एक लम्हे के लिये भी कभी अपनी नज़रों से ओझल नहीं होने देते थे।
अबू तालिब का बयान है कि मैं ने कभी भी नहीं देखा कि हुज़ूर ﷺ किसी वक़्त भी कोई झूट बोले हो या कभी किसी को धोका दिया हो, या कभी किसी को कोई इज़ा पोहचाई हो, या बेहूदा लड़कों के साथ खेलने गए हो या कभी कोई ख़िलाफ़े तहज़ीब बात की हो। हमेशा इन्तिहाई खुश अख़लाक़, नेक अतवार, नर्म गुफ्तार, बुलन्द किरदार और आला दर्जे के पारसा और परहेज़ गार रहे।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 83*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 40)
*बचपन :*
*आप ﷺ की दुआ से बारिश :* एक मरतबा मुल्के अरब में इन्तिहाई ख़ौफ़नाक कहत पड़ गया अहले मक्का ने बुतों से फरियाद करने का इरादा किया मगर एक हसीनो जमील बूढ़े ने मक्का वालों से कहा कि ऐ अहले मक्का ! हमारे अन्दर अबू तालिब मौजूद हैं जो बानिये काबा हज़रते इब्राहीम खलीलुल्लाह علیہ السلام की नस्ल से हैं और काबे के मुतवल्ली और सज्जादा नशीन भी हैं हमें उन के पास चल कर दुआ की दर ख्वास्त करनी चाहिये।
चुनान्चे सरदाराने अरब अबू तालिब की खिदमत में हाज़िर हुए और फ़रियाद करने लगे कि ऐ अबू तालिब ! कहत की आग ने सारे अरब को झुलसा कर रख दिया है। जानवर घास, पानी के लिये तरस रहे हैं और इन्सान दाना पानी न मिलने से तड़प तड़प कर दम तोड़ रहे हैं। काफ़िलों की आमदो रफ्त बन्द हो चुकी है और हर तरफ़ बरबादी व वीरानी का दौर दौरा है। आप बारिश के लिये दुआ कीजिये।
अहले अरब की फ़रियाद सुन कर अबू तालिब का दिल भर आया और हुज़ूर ﷺ को अपने साथ ले कर हरमे का'बा में गए और हुज़ूर ﷺ को दीवारे काबा से टेक लगा कर बिठा दिया और दुआ मांगने में मश्गूल हो गए, दरमियाने दुआ में हुज़ूर ﷺ ने अपनी अंगुश्ते मुबारक को आस्मान की तरफ़ उठा दिया एक दम चारों तरफ़ से बदलियां नमूदार हुई और फ़ौरन ही इस ज़ोर का बाराने रहमत बरसा कि अरब की ज़मीन सैराब हो गईं जंगलों और मैदानों में हर तरफ़ पानी ही पानी नज़र आने लगा चटियल मैदानों की ज़मीनें सर सब्जो शादाब हो गई। कहत दफ्अ हो गया और काल कट गया और सारा अरब खुशहाल और निहाल हो गया।
चुनान्चे अबू तालिब ने अपने उस तवील क़सीदे में जिस को उन्हों ने हुज़ूरे अक्दस ﷺ की मदह में नज़्म किया है इस वाकिए को एक शे'र में इस तरह ज़िक्र किया है कि.. *तर्जमा :* वो हुज़ूर ﷺ ऐसे गोरे रंग वाले है कि इनके रूखे अनवर के ज़रिए बदली से बारिश तलब की जाती है वो यतीमों का ठिकाना और बेवाओं के निगहबान है।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 83*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 41)
*बचपन :*
*उम्मी लक़ब :* हुज़ूरे अक्दस ﷺ का लकब "उम्मी" इस लफ्ज़ के दो मा'ना हैं या तो येह "उम्मुल कुरा" की तरफ़ निस्बत है। "उम्मुल कुरा" मक्कए मुकर्रमा का लक़ब है। लिहाज़ा "उम्मी" के माना मक्कए मुकर्रमा के रहने वाले या "उम्मी" के येह माना हैं कि आप ने दुन्या में किसी इन्सान से लिखना पढ़ना नहीं सीखा। येह हुज़ूरे अक्दस ﷺ का बहुत ही अजीमुश्शान मोजिज़ा है कि दुन्या में किसी ने भी आप को नहीं पढ़ाया या लिखाया। मगर खुदा वन्दे कुद्दूस ने आप को इस क़दर इल्म अता फ़रमाया कि आप का सीना अव्वलीन व आख़िरीन के उलूम व मआरिफ का खज़ीना बन गया। और आप पर ऐसी किताब नाज़िल हुई जिस की शान हर हर चीज़ का रोशन बयान है।
हज़रते मौलाना जामी ने क्या खूब फ़रमाया है कि "मेरे महबूब न कभी मक्तब में गए, न लिखना सीखा मगर अपने चश्म व अब्रू के इशारे से सेकड़ों मुदर्रिसों को सबक़ पढ़ा दिया।"
ज़ाहिर है कि जिस का उस्ताद और तालीम देने वाला खल्लाक़े आलम جَلَّ جَلَالُهٗ हो भला उस को किसी और उस्ताद से तालीम हासिल करने की क्या ज़रूरत होगी ? आ'ला हज़रत फ़ाज़िले बरेल्वी علیہ الرحمہ ने इर्शाद फ़रमाया कि :
*ऐसा उम्मी किस लिये मिन्नत कुशे उस्ताज़ हो*
*क्या किफ़ायत इस को اقرء ربک الاکرم नहीं*
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 85*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 42)
*बचपन :*
*उम्मी लक़ब :* आप ﷺ के उम्मी लकब होने का हकीकी राज़ क्या है? इस को तो खुदा वन्दे अल्लामुल गुयूब के सिवा और कौन बता सकता है ? लेकिन ब ज़ाहिर इस में चन्द हिक्मतें और फ़वाइद मा'लूम होते हैं।
*अव्वल :-* येह कि तमाम दुन्या को इल्म व हिक्मत सिखाने वाले हुज़ूरे अक्दस ﷺ हों और आप का उस्ताद सिर्फ खुदा वन्दे आलम ही हो, कोई इन्सान आप का उस्ताद न हो ताकि कभी कोई येह न कह सके कि पैग़म्बर तो मेरा पढ़ाया हुवा शागिर्द है।
*दुवुम :-* येह कि कोई शख़्स कभी येह ख़याल न कर सके कि फुलां आदमी हुज़ूर ﷺ का उस्ताद था तो शायद वोह हुज़ूर ﷺ से ज़ियादा इल्म वाला होगा।
*सिवुम :-* हुज़ूर ﷺ के बारे में कोई येह वहम भी न कर सके कि हुज़ूर ﷺ चूंकि पढ़े लिखे आदमी थे इस लिये उन्हों ने खुद ही क़ुरआन की आयतों को अपनी तरफ से बना कर पेश किया है और क़ुरआन उन्हीं का बनाया हुवा कलाम है।
*चहारुम :-* जब हुजूर ﷺ सारी दुन्या को किताब व हिक्मत की ता'लीम दें तो कोई येह न कह सके कि पहली और पुरानी किताबों को देख देख कर इस किस्म की अनमोल और इन्क़िलाब आफ़रीं ता'लीमात दुन्या के सामने पेश कर रहे हैं।
*पन्जुम :-* अगर हुजूर ﷺ का कोई उस्ताद होता तो आप को उस की ता'ज़ीम करनी पड़ती, हालां कि हुज़ूर ﷺ को ख़ालिक़े काएनात ने इस लिये पैदा फ़रमाया था कि सारा आलम आप ﷺ की ताज़ीम करे, इस लिये हज़रते हक़ جل شانه ने इस को गवारा नहीं फ़रमाया कि मेरा महबूब किसी के आगे जानूए तलम्मुज़ तह करे और कोई इस का उस्ताद हो।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 85*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 43)
*बचपन :*
*सफ़रे शाम और बुहैरा :* जब हुज़ूर ﷺ की उम्र शरीफ़ बारह बरस की हुई तो उस वक़्त अबू तालिब ने तिजारत की गरज से मुल्के शाम का सफ़र किया। अबू तालिब को चूंकि हुज़ूर ﷺ से बहुत ही वालिहाना महब्बत थी इस लिये वोह आप को भी इस सफ़र में अपने हमराह ले गए, हुज़ूरे अक्दस ﷺ ने ए'लाने नुबुव्वत से क़ब्ल तीन बार तिजारती सफ़र फ़रमाया, दो मरतबा मुल्के शाम गए और एक बार यमन तशरीफ़ ले गए। येह मुल्के शाम का पहला सफ़र है इस सफ़र के दौरान "बुसरा" में “बुहैरा” राहिब (ईसाई साधू) के पास आप का क़ियाम हुवा उस ने तौरात व इन्जील में बयान की हुई नबिय्ये आखिरुज्जमां की निशानियों से आप ﷺ को देखते ही पहचान लिया और बहुत अकीदत और एहतिराम के साथ उस ने आप के काफिले वालों की दावत की और अबू तालिब से कहा कि येह सारे जहान के सरदार और रब्बुल आलमीन के रसूल हैं,
जिन को खुदा عزوجل ने रहमतुल्लिल आलमीन बना कर भेजा है। मैं ने देखा है कि शजरो हजर इन को सज्दा करते हैं और अब्र इन पर साया करता है और इन के दोनों शानों के दरमियाने मोहरे नुबुव्वत है। इस लिये तुम्हारे हक़ में येही बेहतर होगा कि अब तुम इन को ले कर आगे न जाओ और अपना माले तिजारत यहीं फरोख्त कर के बहुत जल्द मक्का चले जाओ। क्यूं कि मुल्के शाम में यहूदी लोग इन के बहुत बड़े दुश्मन हैं। वहां पहुंचते ही वोह लोग इन को शहीद कर डालेंगे। बुहैरा राहिब के कहने पर अबू तालिब को ख़तरा महसूस होने लगा, चुनान्चे उन्हों ने वहीं अपनी तिजारत का माल फरोख्त कर दिया और बहुत जल्द हुज़ूर ﷺ को अपने साथ ले कर मक्कए मुकर्रमा वापस आ गए, बुहैरा राहिब ने चलते वक़्त इन्तिहाई अकीदत के साथ आप को सफ़र का कुछ तोशा भी दिया।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 87*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 44)
*एलने नुबुव्वत से पहले के कारनामे :*
*जंगे फ़ुज्जार :* इस्लाम से पहले अरबों में लड़ाइयों का एक तवील सिल्सिला जारी था, इन्ही लड़ाइयों में से एक मशहूर लड़ाई "जंगे फ़ुज्जार" के नाम से मशहूर है। अरब के लोग ज़ुल कादह, ज़ुल हिज्जा, मुहर्रम और रजब, इन चार महीनों का बेहद एहतराम करते थे और इन महीनों में लड़ाई करने को गुनाह जानते थे, यहां तक कि आम तौर पर इन महीनों में लोग तलवारों को नियाम में रख देते, और नेज़ों की बरछियां उतार लेते थे मगर इस के बावजूद कभी कभी कुछ ऐसे हंगामी हालात दरपेश हो गए कि मजबूरन इन महीनों में भी लड़ाइयां करनी पड़ीं तो इन लड़ाइयों को अहले अरब "हुरूबे फ़ुज्जार" (गुनाह की लड़ाइयां) कहते थे।
सब से आखिरी जंगे फ़ुज्जार जो "कुरैश" और "कैस" के क़बीलों के दरमियान हुई उस वक़्त हुजूर ﷺ की उम्र शरीफ़ बीस बरस की थी चूंकि कुरैश इस जंग में हक़ पर थे, इस लिये अबू तालिब वगैरा अपने चचाओं के साथ आप ने भी इस जंग में शिर्कत फ़रमाई मगर किसी पर हथियार नहीं उठाया सिर्फ इतना ही किया कि अपने चचाओं को तीर उठा उठा कर देते रहे इस लड़ाई में पहले कैस फिर कुरैश ग़ालिब आए और आखिरे कार सुल्ह पर इस लड़ाई का ख़ातिमा हो गया।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 87*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 45)
*एलने नुबुव्वत से पहले के कारनामे :*
*हल्फ़ुल फ़ुज़ूल :-* रोज़ रोज़ की लड़ाइयों से अरब के सेकड़ों घराने बरबाद हो गए थे, हर तरफ़ बद अम्नी और आए दिन की लूटमार से मुल्क का अम्नो अमान गारत हो चुका था कोई शख़्स अपनी जान व माल को महफूज़ नहीं समझता था न दिन को चैन, न रात को आराम, इस वहशत के सूरते हाल से तंग आ कर कुछ सुल्ह पसन्द लोगों ने जंगे फुज्जार के खातिमे के बाद एक इस्लाही तहरीक चलाई चुनान्चे बनू हाशिम, बनू ज़हरा, बनू असद वगैरा क़बाइले क़ुरैश के बड़े बड़े सरदारान अब्दुल्लाह बिन जदआन के मकान पर जम्अ हुए और हुज़ूर ﷺ के चचा जुबैर बिन अब्दुल मुत्तलिब ने येह तज्वीज़ पेश की, कि मौजूदा हालात को सुधारने के लिये कोई मुआहदा करना चाहिये!
चुनान्चे ख़ानदाने कुरैश के सरदारों ने "बक़ाए बाहम" के उसूल पर "जियो और जीने दो" के क़िस्म का एक मुआहदा किया और हलफ़ उठा कर अहद किया कि हम लोग : (1) मुल्क से बे अम्नी दूर करेंगे, (2) मुसाफिरों की हिफाज़त करेंगे, (3) गरीबों की इमदाद करते रहेंगे, (4) मज़लूम की हिमायत करेंगे। (5) किसी जालिम या ग़ासिब को मक्का में नहीं रहने देंगे।
इस मुआहदे में हुज़ूरे अक्दस ﷺ भी शरीक हुए और आप को येह मुआहदा इस क़दर अजीज़ था कि ए'लाने नुबुव्वत के बाद आप ﷺ फ़रमाया करते थे कि इस मुआहदे से मुझे इतनी खुशी हुई कि अगर इस मुआहदे के बदले में कोई मुझे सुर्ख रंग के ऊंट भी देता तो मुझे इतनी खुशी नहीं होती। और आज इस्लाम में भी अगर कोई मज़लूम "یاآل حلف الفضول" कह कर मुझे मदद के लिये पुकारे तो मैं उस की मदद के लिये तय्यार हूं।
इस तारीखी मुआहदे को "हल्फुल फुज़ूल" इस लिये कहते हैं कि कुरैश के इस मुआहदे से बहुत पहले मक्का में क़बीलए “जरहम" के सरदारों के दरमियान भी बिल्कुल ऐसा ही एक मुआहदा हुवा था। और चूंकि क़बीलए जरहम के वोह लोग जो इस मुआहदे के मुहर्रिक थे उन सब लोगों का नाम "फ़ज़्ल” था या'नी फ़ज़्ल बिन हारिष और फ़ज़्ल बिन वदाआ और फ़ज़्ल बिन फुज़ाला इस लिये इस मुआहदे का नाम "हल्फुल फुज़ूल" रख दिया गया, या'नी उन चन्द आदमियों का मुआहदा जिन के नाम "फ़ज़्ल' थे।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 89*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 46)
*एलने नुबुव्वत से पहले के कारनामे :*
*मुल्के शाम का दूसरा सफ़र #1 :* जब आप ﷺ की उम्र शरीफ़ तकरीबन पच्चीस' साल की हुई तो आप ﷺ की अमानत व सदाकत का चरचा दूर दूर तक पहुंच चुका था। हज़रते खदीजा رضی اللّٰه تعالیٰ عنہا मक्का की एक बहुत ही मालदार औरत थीं इन के शोहर का इनतिकाल हो चुका था, इन को ज़रूरत थी कि कोई अमानत दार आदमी मिल जाए तो उस के साथ अपनी तिजारत का माल व सामान मुल्के शाम भेजें, चुनान्चे इन की नज़रे इनतिखाब ने इस काम के लिये हुज़ूर ﷺ को मुन्तखुब किया और कहला भेजा कि आप ﷺ मेरा माले तिजारत ले कर मुल्के शाम जाएं जो मुआवज़ा मैं दूसरों को देती हूं आप ﷺ की अमानत व दियानत दारी की बिना पर मैं आप को उस का दुगना दूंगी। हुज़ूर ﷺ ने उन की दरख्वास्त मन्जूर फ़रमा ली और तिजारत का माल व सामान ले कर मुल्के शाम को रवाना हो गए। इस सफ़र में हज़रते ख़दीजा رضی اللّٰه تعالیٰ عنہا ने अपने एक मोतमद गुलाम "मैसरह" को भी आप ﷺ के साथ रवाना कर दिया ताकि वोह आप की खिदमत करता रहे।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 90*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 47)
*एलने नुबुव्वत से पहले के कारनामे :*
*मुल्के शाम का दूसरा सफ़र #2 :* जब आप ﷺ मुल्के शाम के मशहूर शहर "बुसरा" के बाज़ार में पहुंचे तो वहां "नस्तूरा" राहिब की खानकाह के करीब में ठहरे। "नस्तूरा" मैसरह को बहुत पहले से जानता पहचानता था हुज़ूर ﷺ की सूरत देखते ही "नस्तूरा" मैसरह के पास आया और दरयाप्त किया कि ऐ मैसरह येह कौन शख्स हैं जो इस दरख्त के नीचे उतर पड़े हैं मैसरह ने जवाब दिया कि यह मक्का के रहने वाले हैं और खानदाने बनू हाशिम के चश्मो चराग हैं इन का नामे नामी “मुहम्मद" और लकब "अमीन" है नस्तूरा ने कहा कि सिवाए नबी के इस दरख़्त के नीचे आज तक कभी कोई नहीं उतरा। इस लिये मुझे यक़ीने कामिल है कि "नबिय्ये आखिरुज़्ज़मां' येही हैं। क्यूं कि आखिरी नबी की तमाम निशानियां जो मैं ने तौरैत व इन्जील में पढ़ी हैं वोह सब मैं इन में देख रहा हूं।
*काश ! मैं* उस वक़्त ज़िन्दा रहता जब येह अपनी नुबुव्वत का एलान करेंगे तो मैं इन की भरपूर मदद करता और पूरी जां निसारी के साथ इन की खिदमत गुज़ारी में अपनी तमाम उम्र गुज़ार देता ऐ मैसरह ! मैं तुम को नसीहत और वसिय्यत करता हूं कि ख़बरदार ! एक लम्हें के लिये भी तुम इन से जुदा न होना और इनतिहाई खुलूस व अकीदत के साथ इन की खिदमत करते रहना क्यूं कि अल्लाह तआला ने इन को "खातमुन्नबिय्यीन" होने का शरफ़ अता फरमाया है।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 90*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 48)
*एलने नुबुव्वत से पहले के कारनामे :*
*मुल्के शाम का दूसरा सफ़र #3 :* हुज़ूरे अक्दस ﷺ बुसरा के बाज़ार में बहुत जल्द तिजारत का माल फ़रोख्त कर के मक्कए मुकर्रमा वापस आ गए वापसी में जब आप का क़ाफ़िला शहरे मक्का में दाखिल होने लगा तो हज़रते बीबी ख़दीजा رضی اللّٰه تعالیٰ عنہا एक बालाखाने पर बैठी हुई क़ाफ़िले की आमद का मन्ज़र देख रही थीं, जब उन की नज़र हुज़ूर ﷺ पर पड़ी तो उन्हें ऐसा नज़र आया कि दो फ़िरिश्ते आप ﷺ के सर पर धूप से साया किये हुए हैं। हज़रते ख़दीजा رضی اللّٰه تعالیٰ عنہا के क़ल्ब पर इस नूरानी मन्ज़र का एक खास असर हुवा और वोह फर्ते अकीदत से इनतिहाई वालिहाना महब्बत के साथ येह हसीन जल्वा देखती रहीं फिर अपने गुलाम मैसरह से उन्हों ने कई दिन के बा'द इस का ज़िक्र किया तो मैसरह ने बताया कि मैं तो पूरे सफ़र में येही मन्ज़र देखता रहा हूं, और इस के इलावा मैं ने बहुत सी अजीबो गरीब बातों का मुशाहदा किया है। फिर मैसरह ने नस्तूरा राहिब की गुफ़्तगू और उस की अक़ीदत व महब्बत का तज़किरा भी किया येह सुन कर हज़रते बीबी खदीजा رضی اللّٰه تعالیٰ عنہا को आप ﷺ से बे पनाह क़ल्बी तअल्लुक़ और बेहद अक़ीदत व महब्बत हो गई और यहां तक इनका दिल झुक गया कि इन्हें आप ﷺ से निकाह की रग़्बत हो गई।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 91*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 49)
*एलने नुबुव्वत से पहले के कारनामे :*
*निकाह #01 :-* हज़रते बीबी ख़दीजा رضى الله تعالیٰ عنها माल व दौलत के साथ इन्तिहाई शरीफ़ और इफ्फ़त मआब खातून थीं। अहले मक्का इन की पाक दामनी और पारसाई की वजह से इन को ताहिरा (पाकबाज़) कहा करते थे। इन की उम्र चालीस साल की हो चुकी थी पहले इन का निकाह अबू हाला बिन ज़रारह तमीमी से हुवा था और उन से दो लड़के "हिन्द बिन अबू हाला" और "हाला बिन अबू हाला" पैदा हो चुके थे। फिर अबू हाला के इन्तिकाल के बाद हज़रते ख़दीजा رضى الله تعالیٰ عنها ने दूसरा निकाह "अतीक बिन आबिद मख़्ज़ूमी" से किया। इन से भी दो औलाद हुई, एक लड़का "अब्दुल्लाह बिन अतीक़" और एक लड़की "हिन्द बिन्ते अतीक"। हज़रते ख़दीजा رضى الله تعالیٰ عنها के दूसरे शोहर "अतीक" का भी इन्तिकाल हो चुका था, बड़े बड़े सरदाराने कुरैश इन के साथ अक्दे निकाह के ख़्वाहिश मन्द थे लेकिन उन्हों ने सब पैग़ामों को ठुकरा दिया।
मगर हुज़ूरे अक्दस ﷺ के पैगम्बराना अख़लाक़ व आदात को देख कर और आप ﷺ के हैरत अंगेज़ हालात को सुन कर यहां तक इन का दिल आप की तरफ़ माइल हो गया कि खुद बखुद इन के क़ल्ब में आप से निकाह की रगबत पैदा हो गई, कहां तो बड़े बड़े मालदारों और शहरे मक्का के सरदारों के पैग़ामों को रद कर चुकी थीं और येह तै कर चुकी थीं कि अब चालीस बरस की उम्र तीसरा निकाह नहीं करूंगी और कहां खुद ही हुज़ूर ﷺ की फूफी हज़रते सफ़िय्या رضى الله تعالیٰ عنها को बुलाया जो उन के भाई अवाम बिन खुवैलद की बीवी थीं, उन से हुज़ूर ﷺ के कुछ जाती हालात के बारे में मजीद मालूमात हासिल कीं फिर "नफ़ीसा" बिन्ते उमय्या के जरीए खुद ही हुज़ूर ﷺ के पास निकाह का पैगाम भेजा।
मशहूर इमामे सीरत मुहम्मद बिन इस्हाक़ ने लिखा है कि इस रिश्ते को पसन्द करने की जो वजह हज़रते ख़दीजा رضى الله تعالیٰ عنها ने खुद हुज़ूर ﷺ से बयान की है वोह खुद उन के अल्फ़ाज़ में येह है : मैं ने आप ﷺ के अच्छे अख़लाक़ और आप ﷺ की सच्चाई की वजह से आप को पसन्द किया। سبحان الله🥰
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 93*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 50)
*एलने नुबुव्वत से पहले के कारनामे :*
*निकाह #02 :-* हुज़ूर ﷺ ने इस रिश्ते को अपने चचा अबू तालिब और ख़ानदान के दूसरे बड़े बूढ़ों के सामने पेश फ़रमाया, भला हज़रते ख़दीजा رضى الله تعالى عنها जैसी पाक दामन, शरीफ़, अक्ल मन्द और मालदार औरत से शादी करने को कौन न कहता? सारे खानदान वालों ने निहायत खुशी के साथ इस रिश्ते को मन्जूर कर लिया, और निकाह की तारीख मुक़र्रर हुई और हुज़ूर ﷺ हज़रते हम्ज़ा رضى الله تعالى عنه और अबू तालिब वगैरा अपने चचाओं और ख़ानदान के दूसरे अफराद और शुरफ़ाए बनी हाशिम व मुज़िर को अपनी बरात में ले कर हज़रते बीबी ख़दीजा رضى الله تعالى عنها के मकान पर तशरीफ़ ले गए और निकाह हुवा।
इस निकाह के वक्त अबू तालिब ने निहायत ही फ़सीह व बलीग खुत्बा पढ़ा, इस खुत्बे से बहुत अच्छी तरह इस बात का अन्दाजा हो जाता है कि एलाने नुबुव्वत से पहले आप के खानदानी बड़े बूढ़ों का आप ﷺ के मुतअल्लिक कैसा ख्याल था और आप के अख़्लाक़ व आदात ने इन लोगों पर कैसा अषर डाला था।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 93*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 51)
*एलने नुबुव्वत से पहले के कारनामे :*
*निकाह #03 :* अबू तालिब के उस खुत्बे का तर्जमा येह है : तमाम तारीफें उस खुदा के लिये हैं जिस ने हम लोगों को हज़रते इब्राहीम علیہ السلام की नस्ल और हज़रते इस्माईल علیہ السلام की औलाद में बनाया और हम को मअद और मुज़िर खानदान में पैदा फ़रमाया और अपने घर (का'बे) का निगहबान और अपने हरम का मुन्तज़िम बनाया और हम को इल्म व हिक्मत वाला घर और अम्न वाला हरम अता फरमाया और हम को लोगों पर हाकिम बनाया।
येह मेरे भाई का फ़रज़न्द मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह है येह एक ऐसा जवान है कि कुरैश के जिस शख्स का भी इस के साथ मुवाजना किया जाए येह उस से हर शान में बढ़ा हुवा ही रहेगा, हां माल इस के पास कम है लेकिन माल तो एक ढलती हुई छाउं और अदल बदल होने वाली चीज़ है, अम्मा बा'द ! मेरा भतीजा मुहम्मद (ﷺ) वोह शख़्स है जिस के साथ मेरी कराबत और कुरबत व महब्बत को तुम लोग अच्छी तरह जानते हो, वोह ख़दीजा बिन्ते खुवैलद رضى الله تعالى عنها से निकाह करता है और मेरे माल में से बीस ऊंट महर मुक़र्रर करता है और इस का मुस्तक्बिल बहुत ही ताबनाक, अजीमुश्शान और जलीलुल क़द्र है।
जब अबू तालिब अपना येह वल्वला अंगेज़ खुत्बा ख़त्म कर चुके तो हज़रते बीबी ख़दीजा رضى الله تعالى عنها के चचाजा़ाद भाई वरका बिन नोफ़िल ने भी खड़े हो कर एक शानदार खुत्बा पढ़ा, जिस का मज़मून येह है : खुदा ही के लिये हम्द है जिस ने हम को ऐसा ही बनाया जैसा कि ऐ अबू तालिब ! आप ने ज़िक्र किया और हमें वोह तमाम फ़ज़ीलतें अता फ़रमाई हैं जिन को आप ने शुमार किया। बिला शुबा हम लोग अरब के पेशवा और सरदार हैं और आप लोग भी तमाम फ़ज़ाइल के अहल हैं, कोई क़बीला आप लोगों के फ़ज़ाइल का इन्कार नहीं कर सकता और कोई शख़्स आप लोगों के फ़ख्रो शरफ़ को रद नहीं कर सकता और बेशक हम लोगों ने निहायत ही रग़बत के साथ आप लोगों के साथ मिलने और रिश्ते में शामिल होने को पसन्द किया, लिहाजा ऐ कुरैश ! तुम गवाह रहो कि खदीजा बिन्ते खुवैलद رضى الله تعالى عنها को मैं ने मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह (ﷺ) की ज़ौजिय्यत में दिया चार सो मिस्काल महर के बदले।
गरज हज़रते बीबी ख़दीजा رضى الله تعالى عنها के साथ हुज़ूर ﷺ का निकाह हो गया और हुज़ूर महबूबे खुदा ﷺ का खानए मईशत अज़्दवाजी ज़िन्दगी के साथ आबाद तकरीबन 25 बरस तक हो गया। हज़रते बीबी ख़दीजा رضى الله تعالى عنها हुजूर ﷺ की ख़िदमत में रहीं और इन की ज़िन्दगी में हुजूर ﷺ ने कोई दूसरा निकाह नहीं फ़रमाया और हुज़ूर ﷺ के एक फ़रज़न्द हज़रते इब्राहीम رضى الله تعالى عنه के सिवा बाक़ी आप की तमाम औलाद हज़रते ख़दीजा ही के बतन से पैदा हुई, जिन का तफ्सीली बयान आगे आएगा, हज़रते ख़दीजा رضى الله تعالى عنها ने अपनी सारी दौलत हुज़ूर ﷺ के क़दमो पर क़ुर्बान कर दी और अपनी तमाम उम्र हुज़ूर ﷺ की ग़म गुसारी और खिदमत में निशार कर दी जिन की तफ्सील आगे आएगी।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह 94- 95*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 52)
*एलने नुबुव्वत से पहले के कारनामे :*
*काबे की तामीर #01:* आप ﷺ की रास्त बाज़ी और अमानत व दियानत की बदौलत खुदा वन्दे عزوجل आलम ने आप ﷺ को इस क़दर मक्बूले खलाइक बना दिया और अक्ले सलीम और बे मिषाल दानाई का ऐसा अजीम जौहर अता फरमा दिया कि कम उम्री में आप ने अरब के बड़े बड़े सरदारों के झगड़ों का ऐसा ला जवाब फैसला फ़रमा दिया कि बड़े बड़े दानिश्वरों और सरदारों ने इस फैसले की अज़मत के आगे सर झुका दिया, और सब ने बिल इत्तिफ़ाक़ आप ﷺ को अपना हुकम और सरदारे अज़ीम तस्लीम कर लिया।
चुनान्चे इस किस्म का एक वाकिआ तामीरे काबा के वक़्त पेश आया जिस की तफ्सील येह है कि जब आप ﷺ की उम्र पेंतीस (35) बरस की हुई तो ज़ोरदार बारिश से हरमे काबा में ऐसा अज़ीम सैलाब आ गया कि का'बे की इमारत बिल्कुल ही मुन्हदिम हो गई, हज़रते इब्राहीम व हज़रते इस्माईल عَلَيْهِمَا السَّلَام का बनाया हुवा का'बा बहुता पुराना हो चुका था, इमालका, क़बीलए जरहम और कसी वगैरा अपने अपने वक्तों में इस काबे की तामीर व मरम्मत करते रहते थे मगर चूंकि इमारत नशीब में थी इस लिये पहाड़ों से बरसाती पानी के बहाव का ज़ोरदार धारा वादिये मक्का में हो कर गुज़रता था और अकषर हरमे का'बा में सैलाब आ जाता था। का'बे की हिफाजत के लिये बालाई हिस्से में कुरैश ने कई बन्द भी बनाए थे मगर वोह बन्द बार बार टूट जाते थे। इस लिये कुरैश ने येह तै किया कि इमारत को ढा कर फिर से काबे की एक मज़बूत इमारत बनाई जाए जिस का दरवाज़ा बुलन्द हो और छत भी हो।
चुनान्चे कुरैश ने मिलजुल कर तामीर का काम शुरू कर दिया, इस ता'मीर में हुज़ूर ﷺ भी शरीक हुए और सरदाराने कुरैश के दोश बदोश पथ्थर उठा उठा कर लाते रहे, मुख़्तलिफ़ क़बीलों ने ता'मीर के लिये मुख़्तलिफ़ हिस्से आपस में तक़सीम कर लिये जब इमारत "हजरे अस्वद" तक पहुंच गई तो क़बाइल में सख्त झगड़ा खड़ा हो गया। हर क़बीला येही चाहता था कि हम ही "हजरे अस्वद" को उठा कर दीवार में नस्ब करें। ताकि हमारे क़बीले के लिये येह फख्र व एजाज का बाईष बन जाए, इस कशमकश में चार दिन गुज़र गए यहां तक नौबत पहुची की तलवारें निकल आईं।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 96*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 53)
*एलने नुबुव्वत से पहले के कारनामे :*
*काबे की तामीर #02 :* जब इमारत "हजरे अस्वद" तक पहुंच गई तो क़बाइल में सख्त झगड़ा खड़ा हो गया। हर क़बीला येही चाहता था कि हम ही "हजरे अस्वद" को उठा कर दीवार में नस्ब करें, ताकि हमारे क़बीले के लिये येह फख्र व ए'ज़ाज़ का बाइष बन जाए, इस कश्मकश में चार दिन गुज़र गए यहां तक नौबत पहुंची कि तलवारें निकल आईं बनू अब्दुद्दार और बनू अदी के क़बीलों ने तो इस पर जान की बाज़ी लगा दी और ज़मानए जाहिलिय्यत के दस्तूर के मुताबिक़ अपनी कस्मों को मजबूत करने के लिये एक पियाले में ख़ून भर कर अपनी उंग्लियां उस में डबो कर चाट लीं।
पांचवें दिन हरमे काबा में तमाम क़बाइले अरब जम्अ हुए और इस झगड़े को तै करने के लिये एक बड़े बूढ़े शख्स ने येह तज्वीज़ पेश की, कि कल जो शख्स सुबह सवेरे सब से पहले हरमे काबा में दाखिल हो उस को पन्च मान लिया जाए, वोह जो फैसला कर दे सब उस को तस्लीम कर लें, चुनान्चे सब ने येह बात मान ली खुदा की शान कि सुब्ह को जो शख़्स हरमे काबा में दाखिल हुवा वोह हुज़ूर रहमते आलम ﷺ ही थे, आप को देखते ही सब पुकार उठे कि वल्लाह येह “अमीन" हैं लिहाज़ा हम सब इन के फैसले पर राज़ी हैं। आप ﷺ ने उस झगड़े का इस तरह तस्फिया फ़रमाया कि पहले आप ने येह हुक्म दिया कि जिस जिस क़बीले के लोग हजरे अस्वद को उस के मक़ाम पर रखने के मुद्दई हैं उन का एक एक सरदार चुन लिया जाए। चुनान्चे हर क़बीले वालों ने अपना अपना सरदार चुन लिया। फिर हुज़ूर ﷺ ने अपनी चादरे मुबारक को बिछा कर हजरे अस्वद को उस पर रखा और सरदारों को हुक्म दिया कि सब लोग इस चादर को थाम कर मुक़द्दस पथ्थर को उठाएं चुनान्चे सब सरदारों ने चादर को उठाया और जब हजरे अस्वद अपने मक़ाम तक पहुंच गया तो हुजूर ﷺ ने अपने मुतबर्रक हाथों से इस मुक़द्दस पथ्थर को उठा कर उस की जगह रख दिया इस तरह एक ऐसी खूंरेज लड़ाई टल गई जिस के नतीजे में न मा'लूम कितना ख़ून खराबा होता।
खानए काबा की इमारत बन गई लेकिन तामीर के लिये जो सामान जम्अ किया गया था वोह कम पड़ गया इस लिये एक तरफ़ का कुछ हिस्सा बाहर छोड़ कर नई बुन्याद काइम कर के छोटा सा काबा बना लिया गया काबए मुअज़्ज़मा का येही हिस्सा जिस को कुरैश ने इमारत से बाहर छोड़ दिया "हतीम" कहलाता है जिस में काबए मुअज़्ज़मा की छत का परनाला गिरता है।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 97*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 54)
*एलने नुबुव्वत से पहले के कारनामे :*
*काबा कितनी बार तामीर किया गया.!?* हज़रते अल्लामा जलालुद्दीन सुयूती رحمته الله عليه ने तारीखे "मक्का" में तहरीर फ़रमाया है कि "ख़ानए काबा" दस मरतबा तामीर किया गया :
(1) सब से पहले फ़िरिश्तों ने ठीक "बैतुल मामूर" के सामने ज़मीन पर ख़ानए का'बा को बनाया। (2) फिर हज़रते आदम عليه السلام ने इस की तामीर फ़रमाई। (3) इस के बाद हज़रते आदम عليه السلام के फ़रज़न्दों ने इस इमारत को बनाया।(4) इस के बाद हज़रते इब्राहीम खुलीलुल्लाह और उन के फ़रज़न्दे अरजुमन्द हज़रते इस्माईल عليھما الصلٰوة والسلام ने इस मुक़द्दस घर को तामीर किया। जिस का तज़करा कुरआने मजीद में है। (5) कौमे इमालका की इमारत।
(6) इस के बाद क़बीलए जरहम ने इस की इमारत बनाई। (7) कुरैश के मूरिषे आ'ला “क़सी बिन किलाब" की तामीर। (8) कुरैश की तामीर जिस में खुद हुजूर ﷺ ने भी शिर्कत फ़रमाई और कुरैश के साथ खुद भी अपने दोशे मुबारक पर पथ्थर उठा उठा कर लाते रहे। (9) हज़रते अब्दुल्लाह बिन जुबैर رضى الله تعالى عنه ने अपने दौरे ख़िलाफ़त में हुजूर ﷺ के तज्वीज़ कर्दा नक्शे के मुताबिक़ तामीर किया। या'नी हतीम की जमीन को का'बे में दाखिल कर दिया। और दरवाजा सत्हे ज़मीन के बराबर नीचा रखा और एक दरवाज़ा मशरिक की जानिब और एक दरवाजा़ा मगरिब की सम्त बना दिया। (10) अब्दुल मलिक बिन मरवान उमवी के जालिम गवर्नर हज्जाज बिन यूसुफ़ सक़फ़ी ने हज़रते अब्दुल्लाह बिन जुबैर رضى الله تعالى عنه को शहीद कर दिया। और इन के बनाए हुए का'बे को ढा दिया। और फिर ज़मानए जाहिलिय्यत के नक्शे के मुताबिक़ काबा बना दिया। जो आज तक मौजूद है।
लेकिन हज़रते अल्लामा हलबी رحمته الله عليه ने अपनी सीरत में लिखा है कि नए सिरे से का'बे की तामीरे जदीद सिर्फ तीन ही मरतबा है : (1) हज़रते इब्राहीम खलीलुल्लाह की ता'मीर (2) ज़मानए जाहिलिय्यत में कुरैश की इमारत और इन दोनों तामीरों में दो हजार सात सो पेंतीस (2735) बरस का फ़ासिला है (3) हज़रते अब्दुल्लाह बिन जुबैर की तामीर जो कुरैश की तामीर के बयासी साल बा'द हुई।
हज़राते मलाएका और हज़रते आदम عليه السلام के फ़रज़न्दों की तामीरात के बारे में अल्लामा हलबी رحمته الله عليه ने फ़रमाया कि येह सहीह रिवायतों से षाबित ही नहीं है। बाक़ी तामीरों के बारे में उन्हों ने लिखा कि येह इमारत में मामूली तरमीम या टूट फूट की मरम्मत थी, तामीरे जदीद नहीं थी।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 98*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 55)
*एलने नुबुव्वत से पहले के कारनामे :*
*मख़्सूस अहबाब :* ए'लाने नुबुव्वत से क़ब्ल जो लोग हुज़ूर ﷺ के मख़्सूस अहबाब व रु-फ़क़ा थे वोह सब निहायत ही बुलन्द अख़्लाक़, आली मर्तबा, होश मन्द और बा वक़ार लोग थे। इन में सब से ज़ियादा मुकर्रब हज़रते अबू बक्र رضي الله عنه थे जो बरसों आप के साथ वतन और सफ़र में रहे। और तिजारत नीज़ दूसरे कारोबारी मुआमलात में हमेशा आप के शरीके कार व राज़दार रहे। इसी तरह हज़रते ख़दीजा رضي الله عنها के चचाज़ाद भाई हज़रते हकीम बिन हिज़ाम رضي الله عنه जो क़ुरैश के निहायत ही मुअज्ज़ज़ रईस थे और जिन का एक खुसूसी शरफ़ येह है कि उन की विलादत ख़ानए काबा के अन्दर हुई थी, येह भी हुज़ूर ﷺ के मख़्सूस अहबाब में खुसूसी इम्तियाज़ रखते थे!
हज़रते ज़माद बिन सालबा رضي الله عنه जो ज़मानए जाहिलिय्यत में तिबाबत और जराही का पेशा करते थे येह भी अहबाबे ख़ास में से थे। हुज़ूर ﷺ के ए'लाने नुबुव्वत के बा'द येह अपने गाउं से मक्का आए तो कुफ्फ़ारे कुरैश की ज़बानी येह प्रोपेगन्डा सुना कि मुहम्मद (ﷺ) मजनून हो गए हैं। फिर येह देखा कि हुज़ूर ﷺ रास्ते में तशरीफ़ ले जा रहे हैं और आपके पीछे लड़कों का एक ग़ौल है जो शोर मचा रहा है येह देख कर हज़रते ज़माद बिन सालबा رضي الله عنه को कुछ शुबा पैदा हुवा और पुरानी दोस्ती की बिना इन को इन्तिहाई रन्जो क़लक़ हुवा। चुनान्चे येह हुज़ूर ﷺ के पास आए और कहने लगे कि ऐ मुहम्मद (ﷺ)! मैं तबीब हूं और जुनून का इलाज कर सकता हूं। येह सुन कर हुज़ूर ﷺ ने खुदा की हम्दो षना के बाद चन्द जुम्ले इर्शाद फ़रमाए जिन का हज़रते ज़माद बिन सालबा رضي الله عنه के कल्ब पर इतना गहरा अषर पड़ा कि वोह फ़ौरन ही मुशर्रफ़ ब इस्लाम हो गए।
हज़रते कैस बिन साइब मख़्ज़ूमी رضي الله عنه तिजारत के कारोबार में आप ﷺ के शरीके कार रहा करते और आप ﷺ के गहरे दोस्तों में से थे कहा करते थे कि हुज़ूरे अकरम ﷺ का मुआमला अपने तिजारती शुरका के साथ हमेशा निहायत ही साफ़ सुथरा रहता था और कभी कोई झगड़ा पेश नहीं आता था।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 99*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 56)
*मुवहि्हदीने अरब से तअल्लुकात # 1:* अरब में अगर्चे हर तरफ़ शिर्क फैल गया था और घर घर में बुत परस्ती का चरचा था। मगर इस माहोल में भी कुछ ऐसे लोग थे जो तौहीद के परस्तार और शिर्क व बुत परस्ती से बेज़ार थे, इन्ही खुश नसीबों में जैद बिन अम्र बिन नुफैल हैं, येह अलल ए'लान शिर्क व बुत परस्ती से इन्कार और जाहिलिय्यत की मुशरिकाना रस्मों से नफ़रत का इज़हार करते थे, येह हज़रते उमर رضي الله عنه के चचाज़ाद भाई हैं। शिर्क व बुत परस्ती के ख़िलाफ़ एलाने मज़म्मत की बिना पर इन का चचा “ख़त्ताब बिन नुफैल" इन को बहुत ज़्यादा तक्लीफें दिया करता था यहां तक कि इन को मक्के से शहर बदर कर दिया था और इन को मक्का में दाखिल नहीं होने देता था मगर येह हज़ारों ईजाओं के बावजूद अकीदए तौहीद पर पहाड़ की तरह डटे हुए थे।
चुनान्चे आप के दो शे'र बहुत मशहूर हैं जिन को येह मुशरिकीन के मेलों और मज्मओं में बा आवाज़े बुलन्द सुनाया करते थे, तर्जमा : "क्या मैं एक रब की इताअत करूं या एक हज़ार रब की ? जब कि लोगों के दीनी मुआमलात तक्सीम हो चुके हैं मैं ने तो लात व उज्ज़ा को छोड़ दिया है और हर बसीरत वाला ऐसा ही करेगा।
येह मुशरिकीन के दीन से मुतनफ्फ़िर हो कर दीने बरहक़ की तलाश में मुल्के शाम चले गए थे वहां एक यहूदी आलिम से मिले फिर एक नसरानी पादरी से मुलाकात की और जब आप ने यहूदी व नसरानी दीन को क़बूल नहीं किया तो इन दोनों ने “दीने हनीफ़" की तरफ़ आप की रहनुमाई की जो हज़रते इब्राहीम ख़लीलुल्लाह عليه السلام का दीन था और उन दोनों ने यह भी बताया कि हज़रते इब्राहीम عليه السلام न यहूदी थे न नसरानी, और वोह एक खुदाए वाहिद के सिवा किसी की इबादत नहीं करते थे। येह सुन कर जैद बिन अम्र बिन नुफैल मुल्के शाम से मक्का वापस आ गए। और हाथ उठा उठा कर मक्का में ब आवाज़े बुलन्द येह कहा करते थे कि ऐ लोगो ! गवाह रहो कि मैं हज़रते इब्राहीम عليه السلام के दीन पर हूं।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 101*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 57)
*मुवहि्हदीने अरब से तअल्लुकात #2 :* एलाने नुबुव्वत से पहले हुज़ूर ﷺ के साथ जैद बिन अम्र बिन नुफ़ैल को बड़ा खास तअल्लुक था और कभी कभी मुलाक़ातें भी होती रहती थीं चुनान्चे हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर رضي الله عنهما रावी हैं कि एक मरतबा वहय नाज़िल होने से पहले हुजूर ﷺ की मक़ामे "बलदह" की तराई में जैद बिन अम्र बिन नुफैल से मुलाक़ात हुई तो उन्हों ने हुज़ूर ﷺ के सामने ने दस्तर ख़्वान पर खाना पेश किया। जब हुजूर ﷺ ने खाने से इन्कार कर दिया, तो ज़ैद बिन अम्र बिन नुफैल कहने लगे कि मैं बुतों के नाम पर जब्ह किये हुए जानवरों का गोश्त नहीं खाता। मैं सिर्फ वोही ज़बीहा खाता हूं जो अल्लाह तआला के नाम पर ज़ब्ह किया गया हो। फिर कुरैश के ज़बीड़ों की बुराई बयान करने लगे और कुरैश को मुखातब कर के कहने लगे कि बकरी को अल्लाह तआला ने पैदा फ़रमाया और अल्लाह तआला ने इस के लिये आस्मान से पानी बरसाया और ज़मीन से घास उगाई फिर ऐ कुरैश ! तुम बकरी को अल्लाह के गैर (बुतों) के नाम पर जब्ह करते हो ?
हज़रते अस्मा बिन्ते अबू बक्र رضي الله عنهما कहती हैं कि मैं ने जैद बिन अम्र बिन नुफ़ैल को देखा कि वोह ख़ानए काबा से टेक लगाए हुए कहते थे कि ऐ जमाअते कुरैश ! खुदा की क़सम ! मेरे सिवा तुम में से कोई भी हज़रते इब्राहीम عليه السلام के दीन पर नहीं है।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 102*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 58)
*कारोबारी मशागिल :* हुज़ूरे अक्दस ﷺ का अस्ल खानदानी पेशा तिजारत था और चूंकि आप बचपन ही में अबू तालिब के साथ कई बार तिजारती सफ़र फ़रमा चुके थे। जिस से आप ﷺ को तिजारती लैन दैन का काफ़ी तजरिबा भी हासिल हो चुका था, इस लिये ज़रीअए मआश के लिये आपने तिजारत का पेशा इख़्तियार फ़रमाया, और तिजारत की ग़रज़ से शाम व बुसरा और यमन का सफ़र फ़रमाया, और ऐसी रास्त बाज़ी और अमानत व दियानत के साथ आपने तिजारती कारोबार किया कि आप के शुरकाए कार और तमाम अहले बाज़ार आप ﷺ को "अमीन" के लक़ब से पुकारने लगे।
एक काम्याब ताजिर के लिये अमानत, सच्चाई, वादे की पाबन्दी, खुश अख़्लाकी तिजारत की जान हैं इन खुसूसिय्यात में मक्का के ताजिर अमीन ﷺ ने जो तारीख़ी शाहकार पेश किया है उस की मिषाल तारीखे आलम में नादिरे रोज़गार है।
हज़रते अब्दुल्लाह बिन अबिल हम्साअ सहाबी رضي الله عنه का बयान है कि नुज़ूले वहय और एलाने नुबुव्वत से पहले मैं ने आप ﷺ से कुछ खरीदो फरोख्त का मुआमला किया, कुछ रक़म मैं ने अदा कर दी, कुछ बाक़ी रह गई थी मैं ने वादा किया कि मैं अभी अभी आ कर बाक़ी रक़म भी अदा कर दूंगा इत्तिफ़ाक़ से तीन दिन तक मुझे अपना वादा याद नहीं आया तीसरे दिन जब मैं उस जगह पहुंचा जहां मैं ने आने का वादा किया था तो हुज़ूर ﷺ को उसी जगह मुन्तज़िर पाया मगर मेरी इस वादा खिलाफ़ी से हुज़ूर ﷺ के माथे पर इक ज़रा बल नहीं आया बस सिर्फ इतना ही फ़रमाया कि तुम कहां थे? मैं इस मक़ाम पर तीन दिन से तुम्हारा इन्तिज़ार कर रहा हूं।
इसी तरह एक सहाबी हज़रते साइब رضي الله عنه जब मुसलमान हो कर बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए तो लोग उन की तारीफ़ करने लगे तो रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि मैं इन्हें तुम्हारी निस्बत जियादा जानता हूं हज़रते साइब رضي الله عنه कहते हैं मैं अर्ज़ गुज़ार हुवा मेरे मां बाप आप पर फ़िदा हों आप ने सच फ़रमाया, ए'लाने नुबुव्वत से पहले आप ﷺ मेरे शरीके तिजारत थे और क्या ही अच्छे शरीक थे, आप ने कभी लड़ाई झगड़ा नहीं किया था।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 103*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 59)
*गैर मामूली किरदार #01 :* हुज़ूरे अक्दस ﷺ का ज़मानए तुफूलियत ख़त्म हुवा और जवानी का ज़माना आया तो बचपन की तरह आप की जवानी भी आम लोगों से निराली थी आप ﷺ का शबाब मुजस्समे हया और चाल चलन इस्मत व वकार का कामिल नुमूना था, ए'लाने नुबुव्वत से क़ब्ल हुजूर ﷺ की तमाम ज़िन्दगी बेहतरीन अख़्लाक़ व आदात का खजाना थी सच्चाई, दियानत दारी, वफ़ादारी, अह्द की पाबन्दी, बुजुर्गों की अज़मत, छोटों पर शफ्कत, रिश्तेदारों से महब्बत, रहम व सखावत, कौम की ख़िदमत, दोस्तों से हमदर्दी, अज़ीजों की ग़म ख़्वारी, गरीबों और मुफ्लिसों की खबर गीरी, दुश्मनों के साथ नेक बरताव, मख़्लूके खुदा की खैर ख़्वाही, गरज़ तमाम नेक ख़स्लतों और अच्छी अच्छी बातों में आप ﷺ इतनी बुलन्द मन्ज़िल पर पहुंचे हुए थे कि दुन्या के बड़े से बड़े इन्सानों के लिये वहां तक रसाई तो क्या, इस का तसव्वुर भी मुमकिन नहीं है।
कम बोलना, फुज़ूल बातों से नफ़रत करना, खन्दा पेशानी और खुशरूई के साथ दोस्तों और दुश्मनों से मिलना, हर मुआमले में सादगी और सफाई के साथ बात करना हुज़ूर ﷺ का खास शेवा था।
हिर्स, तम्अ, दगा, फ़रेब, झूट, शराब खोरी, बदकारी, नाच गाना, लूटमार, चोरी, फोहश गोई, इश्क़ बाज़ी, येह तमाम बुरी आदतें और मज़मूम खस्लतें जो जमानए जाहिलिय्यत में गोया हर बच्चे के ख़मीर में होती थीं हुज़ूर ﷺ की जाते गिरामी इन तमाम उयूब व नकाइस से पाक साफ़ रही। आप ﷺ की रास्त बाज़ी और अमानत व दियानत का पूरे अरब में शोहरा था और मक्का के हर छोटे बड़े के दिलों में आप ﷺ के बरगुज़ीदा अख़्लाक़ का एतिबार और सब की नज़रों में आप ﷺ का एक ख़ास वक़ार था।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 105*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 60)
*गैर मा'मूली किरदार #02 :* बचपन से तकरीबन चालीस बरस की उम्र शरीफ़ हो गई लेकिन ज़मानए जाहिलिय्यत के माहोल में रहने के बा वुजूद तमाम मुशरिकाना रुसूम, और जाहिलाना अत्वार से हमेशा आप ﷺ का दामने इस्मत पाक ही रहा, मक्का शिर्क व बुत परस्ती का सब से बड़ा मर्कज़ था खुद खानए काबा में तीन सो साठ बुतों की पूजा होती थी, आप ﷺ के ख़ानदान वाले ही काबे के मुतवल्ली और सज्जादा नशीन थे लेकिन इस के बा वुजूद आप ﷺ ने कभी भी बुतों के आगे सर नहीं झुकाया।
गरज नुज़ूले वहय और एलाने नुबुव्वत से पहले भी आप ﷺ की मुक़द्दस ज़िन्दगी अख़्लाक़े हसना और महासिन अफ्आल का मुजस्समा और तमाम उयूब व नकाइस से पाक व साफ़ रही, चुनान्चे एलाने नुबुव्वत के बाद आप ﷺ के दुश्मनों ने इन्तिहाई कोशिश की, कि कोई अदना सा ऐब या ज़रा सी ख़िलाफ़े तहज़ीब कोई बात आप की ज़िन्दगी के किसी दौर में भी मिल जाए तो उस को उछाल कर आप के वक़ार पर हम्ला कर के लोगों की निगाहों में आप को ज़लीलो ख़्वार कर दें मगर तारीख़ गवाह है कि हज़ारों दुश्मन सोचते सोचते थक गए लेकिन कोई एक वाक़आ भी ऐसा नहीं मिल सका जिस से वोह आप ﷺ पर अंगुश्त नुमाई कर सकें!
लिहाज़ा हर इन्सान इस हक़ीक़त के ए'तिराफ़ पर मजबूर है कि बिला शुबा हुज़ूर ﷺ का किरदार इन्सानिय्यत का एक ऐसा मुहय्यिरुल उकूल और गैर मामूली किरदार है जो नबी ﷺ के सिवा किसी दूसरे के लिये मुमकिन ही नहीं है यही वजह है कि एलाने नुबुव्वत के बाद सईद रूहें आप ﷺ का कलिमा पढ़ कर तन मन धन के साथ इस तरह आप पर कुरबान होने लगीं कि उन की जां निषारियों को देख कर शम्अ के परवानों ने जां निषारी का सबक सीखा और हक़ीक़त शनास लोग फ़र्ते अकीदत से आपके हुस्ने सदाक़त पर अपनी अक्लों को कुरबान कर के आप के बताए हुए इस्लामी रास्ते पर आशिकाना अदाओं के साथ ज़बाने हाल से यह कहते हुए चल पड़े कि
*चलो वादिये इश्क़ में पा बरहना !*
*येह जंगल वोह है जिस में कांटा नहीं है*
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 106*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 61)
(चौथा बाब) *एलाने नुबुव्वत से बैअते अकबा तक :*
जब हुज़ूरे अन्वर ﷺ की मुक़द्दस ज़िन्दगी का चालीसवां साल शुरूअ हुवा तो ना गहां आप ﷺ की ज़ाते मुक़द्दस में एक नया इनक़िलाब रूनुमा हो गया कि एक दम आप ﷺ खल्वत पसन्द हो गए और अकेले तन्हाई में बैठ कर खुदा की इबादत करने का जौक व शौक पैदा हो गया। आप अकषर अवकात गौरो फ़िक्र में पाए जाते थे और आप का बेशतर वक्त मनाज़िरे कुदरत के मुशाहदे और काएनाते फ़ितरत के मुतालए में सर्फ होता था। दिन रात खालिके काएनात की ज़ात व सिफ़ात के तसव्वुर में मुस्तग्रक और अपनी क़ौम के बिगड़े हुए हालात के सुधार और इस की तदबीरों के सोच बिचार में मसरूफ़ रहने लगे और उन दिनों एक नई बात यह भी हो गई कि हुज़ूर ﷺ को अच्छे अच्छे ख़्वाब नज़र आने लगे और आप का हर ख़्वाब इतना सच्चा होता कि ख़्वाब में जो कुछ देखते उस की तबीर सुब्हे सादिक की तरह रोशन हो कर जाहिर हो जाया करती थी।
*गरे हिरा :* मक्कए मुकर्रमा से तकरीबन तीन मील की दूरी पर "जबले हिरा" नामी पहाड़ के ऊपर एक गार (खोह) है जिस को "गारे हिरा" कहते हैं आप अकषर कई कई दिनों का खाना पानी साथ ले कर इस गार के पुर सुकून माहोल के अन्दर खुदा की इबादत में मसरूफ़ रहा करते थे। जब खाना पानी ख़त्म हो जाता तो कभी खुद घर पर आ कर ले जाते और कभी हज़रत बीबी ख़दीजा رضي الله عنها खाना पानी गार में पहुंचा दिया करती थीं, आज भी येह नूरानी गार अपनी अस्ली हालत में मौजूद और ज़ियारत गाहे खलाइक़ है।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 107*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 62)
*पहली वही #01 :* एक दिन आप ﷺ "गारे हिरा" के अन्दर इबादत में मश्गुल थे कि बिल्कुल अचानक गार में आप के पास एक फ़िरिश्ता जाहिर हुवा। (येह हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम थे जो हमेशा खुदा عزوجل का पैगाम उस के रसूलों तक पहुंचाते रहे हैं) फ़िरिश्ते ने एक दम कहा कि "पढिये" आप ﷺ ने फ़रमाया कि "मैं पढ़ने वाला नहीं हूं।" फ़रिश्ते ने आप ﷺ को पकड़ा और निहायत गर्म जोशी के साथ आप ﷺ से जोरदार मुआनका किया फिर छोड़ कर कहा कि "पढिये" आप ﷺ ने फिर फ़रमाया कि “मैं पढ़ने वाला नहीं हूं।" फ़िरिश्ते ने दूसरी मरतबा फिर आप को अपने सीने से चिमटाया और छोड़ कर कहा कि “पढ़िये" आपने फिर वोही फ़रमाया कि "मैं पढ़ने वाला नहीं हूं।" तीसरी मरतबा फिर फ़िरिश्ते ने आप ﷺ को बहुत ज़ोर के साथ अपने सीने से लगा कर छोड़ा और कहा कि...
اِقْرَاْ بِاسْمِ رَبِّكَ الَّذِیْ خَلَقَۚ (1)خَلَقَ الْاِنْسَانَ مِنْ عَلَقٍۚ (2) اِقْرَاْ وَ رَبُّكَ الْاَكْرَمُۙ (3) الَّذِیْ عَلَّمَ بِالْقَلَمِۙ (4)عَلَّمَ الْاِنْسَانَ مَا لَمْ یَعْلَمْﭤ(5)
तर्जमा : पढो अपने रब के नाम से जिस ने पैदा किया आदमी को खून की फटक से बनाया पढो और तुम्हारा रब ही सब से बड़ा करीम जिस ने क़लम से लिखना सिखाया आदमी को सिखाया जो न जानता था। (पा. 30)
येही सब से पहली वहय थी जो आप ﷺ पर नाज़िल हुई, इन आयतों को याद कर के हुज़ूरे अक्दस ﷺ अपने घर तशरीफ़ लाए मगर इस वाक़िए से जो बिल्कुल ना गहानी तौर पर आप ﷺ को पेश आया इस से आप के क़ल्बे मुबारक पर लरज़ा तारी था आप ने घर वालों से फ़रमाया कि मुझे कमली उढ़ाओ, मुझे कमली उढ़ाओ जब आप ﷺ का ख़ौफ़ दूर हुवा और कुछ सुकून हुवा तो आप ने हज़रते बीबी ख़दीजा رضي الله عنها से गैर में पेश आने वाला वाक़िआ बयान किया और फ़रमाया कि "मुझे अपनी जान का डर है।"
येह सुन कर हज़रते बीबी ख़दीजा رضي الله عنها ने कहा कि नहीं, हरगिज़ नहीं आपकी जान को कोई खतरा नहीं है खुदा की क़सम ! अल्लाह तआला कभी भी आप ﷺ को रुस्वा नहीं करेगा आप तो रिश्तेदारों के साथ बेहतरीन सुलूक करते हैं! दूसरों का बार खुद उठाते हैं खुद कमा कमा कर मुफ़्लिसों और मोहताजों को अता फरमाते हैं मुसाफिरों की मेहमान नवाज़ी करते हैं और हक़ व इन्साफ़ की खातिर सब की मुसीबतों मुश्किलात में काम आते हैं।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 108*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 63)
*पहली वही #02 :* हज़रते खदीजा رضي الله عنها ने आप ﷺ को तसल्ली दी और इस के बाद हज़रते ख़दीजा رضى الله تعالیٰ عنها आप ﷺ को अपने चचाज़ाद भाई "वरका बिन नौफ़िल" के पास ले गईं। वरका उन लोगों में से थे जो "मुवहिहद" थे और अहले मक्का के शिर्क व बुत परस्ती से बेज़ार हो कर "नसरानी" हो गए थे और इन्जील का इबरानी ज़बान से अरबी में तर्जमा किया करते थे, बहुत बूढ़े और नाबीना हो चुके थे, हज़रते बीबी ख़दीजा رضي الله عنها ने उन से कहा कि भाईजान ! आप अपने भतीजे की बात सुनिये वरका बिन नौफ़िल ने कहा कि बताइये आप ने क्या देखा है? हुज़ूर ﷺ ने गारे हिरा का पूरा वाकिआ बयान फ़रमाया।
येह सुन कर वरका बिन नौफ़िल ने कहा कि येह तो वोही फ़िरिश्ता है जिस को अल्लाह तआला ने हज़रते मूसा عليه السلام के पास भेजा था, फिर वरका बिन नौफ़िल कहने लगे कि काश ! मैं आपके एलाने नुबुव्वत के ज़माने में तन्दुरुस्त जवान होता, काश ! मैं उस वक़्त तक ज़िन्दा रहता जब आप की क़ौम आप को मक्का से बाहर निकालेगी येह सुन कर हुज़ूर ﷺ ने (तअज्जुब से) फ़रमाया कि क्या मक्का वाले मुझे मक्का से निकाल देंगे ? तो वरका ने कहा : जी हां ! जो शख्स भी आप की तरह नुबुव्वत ले कर आया लोग उस के साथ दुश्मनी पर कमर बस्ता हो गए।
इस के बाद कुछ दिनों तक वहय उतरने का सिल्सिला बन्द हो गया और हुज़ूर ﷺ वहय के इन्तिज़ार में मुज़तरिब और बे क़रार रहने लगे, यहां तक कि एक दिन हुज़ूर ﷺ कहीं घर से बाहर तशरीफ ले जा रहे थे कि किसी ने “या मुहम्मद" (ﷺ) कह कर पुकारा। आप ﷺ ने आस्मान की तरफ सर उठा कर देखा तो येह नज़र आया कि वोही फ़िरिश्ता (हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम) जो गार में आया था आस्मान व ज़मीन के दरमियान एक कुरसी पर बैठा हुवा हैं। येह मन्ज़र देख कर आप के कल्बे मुबारक में एक ख़ौफ़ की कैफ़िय्यत पैदा हो गई और आप मकान पर आ कर लेट गए और घर वालों से फ़रमाया कि मुझे कम्बल उढ़ाओ मुझे कम्बल उढ़ाओ। चुनान्चे आप कम्बल ओढ़ कर लेटे हुए थे कि ना गहां आप पर सूरए "मुद्दष्षिर" की इब्तिदाई आयात नाज़िल हुई और रब तआला का फरमान उतर पड़ा कि :
یٰۤاَیُّهَا الْمُدَّثِّرُۙ (1)قُمْ فَاَنْذِرْﭪ (2) وَ رَبَّكَ فَكَبِّرْﭪ (3)وَ ثِیَابَكَ فَطَهِّرْﭪ (4) وَ الرُّجْزَ فَاهْجُرْﭪ (5)
*तर्जमा :-* ऐ बाला पोश ओढ़ने वाले खड़े हो जाओ फिर डर सुनाओ और अपने रब ही की बड़ाई बोलो और अपने कपड़े पाक रखो और बुतों से दूर रहो।
इन आयात के नुज़ूल के बाद हुज़ूर ﷺ को खुदा वन्दे कुद्दूस ने दा’वते इस्लाम के मन्सब पर मामूर फ़रमा दिया और आप खुदा वन्दे तआला के हुक्म के मुताबिक दा'वते हक़ और तब्लीगे इस्लाम के लिये कमर बस्ता हो गए।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 109*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 64)
दावते इस्लाम के लिये तीन दौर #01 *पहला दौर :* तीन बरस तक हुज़ूरे अक्दस ﷺ इन्तिहाई पोशीदा तौर पर निहायत राज़दारी के साथ तब्लीगे इस्लाम का फ़र्ज़ अदा फ़रमाते रहे और इस दरमियान में औरतों में सब से पहले हज़रते बीबी ख़दीजा رضي الله عنها और आज़ाद मर्दों में सब से पहले हज़रते अबु बक्र सिद्दीक़ رضي الله عنه और लड़कों में सब से पहले हजरते अली رضي الله عنه और गुलामों में सब पहले जैद बिन हारिषा رضي الله عنه ईमान लाए। फिर हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه की दा'वत व तब्लीग से हज़रते उषमान, हज़रते जुबैर बिन अल अव्वाम, हज़रते अब्दुर्रहमान बिन औफ़, हज़रते सा'द बिन अबी वक्कास, हज़रते तल्हा बिन उबैदुल्लाह رضى الله تعالیٰ عنهم भी जल्द ही दामने इस्लाम में आ गए।
फिर चन्द दिनों के बाद हज़रते अबू उबैदा बिन अल जर्राह, हज़रते अबू सलमा अब्दुल्लाह बिन अब्दुल असद, हज़रते अरक़म बिन अबू अरकम, हज़रते उषमान बिन मज़ऊन और उनके दोनों भाई हज़रते क़िदामा और हज़रते अब्दुल्लाह رضى الله تعالیٰ عنهم भी इस्लाम में दाखिल हो गए। फिर कुछ मुद्दत के बाद हज़रते अबू जर गिफ़ारी व हज़रते सुहैब रूमी, हज़रते उबैदा बिन अल हारिष बिन अब्दुल मुत्तलिब, सईद बिन जैद बिन अम्र बिन नुफैल और इन की बीवी फ़ातिमा बिन्ते अल ख़त्ताब, हज़रते उमर की बहन رضى الله تعالیٰ عنهم ने भी इस्लाम क़बूल कर लिया। और हुज़ूर ﷺ की चची हज़रते उम्मुल फ़ज़्ल, हज़रते अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब की बीवी और हज़रते अस्मा बिन्ते अबू बक्र رضى الله تعالیٰ عنهم भी मुसलमान हो गईं इन के इलावा दूसरे बहुत से मर्दों और औरतों ने भी इस्लाम लाने का शरफ़ हासिल कर लिया।
वाज़ेह रहे कि सब से पहले इस्लाम लाने वाले जो "साबिक़ीने अव्वलीन" के लक़ब से सरफ़राज़ हैं उन खुश नसीबों की फेहरिस्त पर नज़र डालने से पता चलता है कि सब से पहले दामने इस्लाम में आने वाले वोही लोग हैं जो फितरतन नेक तब्अ और पहले ही से दीने हक़ की तलाश में सरगर्दी थे और कुफ्फ़ारे मक्का के शिर्क व बुत परस्ती और मुशरिकाना रुसूमे जाहिलिय्यत से मुतनफ्फिर और बेज़ार थे। चुनान्चे नबीय्ये बरहक़ के दामन में दिने हक़ की तजल्ली देखते ही ये नेक बख्त लोग परवानों की तरह शमए नुबुव्वत पर निषार होने लगे और मुशर्रफ ब इस्लाम हो गए। سبحان الله
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 65)
दावते इस्लाम के लिये तीन दौर #02 *दूसरा दौर :-* तीन बरस की इस खुफ़या दा'वते इस्लाम में मुसलमानों की एक जमाअत तय्यार हो गई इस के बाद अल्लाह तआला ने अपने हबीब ﷺ पर सूरए "शु-अराअ" की आयत,
وَ اَنْذِرْ عَشِیْرَتَكَ الْاَقْرَبِیْنَۙ (214)
(पा.19) नाज़िल फ़रमाई और खुदा वन्दे तआला का हुक्म हुवा कि ऐ महबूब ! आप अपने करीबी खानदान वालों को खुदा से डराइये तो हुज़ूर ﷺ ने एक दिन कोहे सफ़ा की चोटी पर चढ़ कर "या माशरे कुरैश" कह कर क़बीलए कुरैश को पुकारा। जब सब कुरैश जम्अ हो गए तो आप ﷺ ने फ़रमाया कि ऐ मेरी क़ौम ! अगर मैं तुम लोगों से येह कह दूं कि इस पहाड़ के पीछे एक लश्कर छुपा हुवा है जो तुम पर हम्ला करने वाला है तो क्या तुम लोग मेरी बात का यक़ीन कर लोगे? तो सब ने एक ज़बान हो कर कहा कि हां ! हां ! हम यक़ीनन आप ﷺ की बात का यकीन कर लेंगे क्यूं कि हम ने आप ﷺ को हमेशा सच्चा और अमीन ही पाया है। आप ﷺ ने फ़रमाया कि अच्छा तो फिर मैं येह कहता हूं कि मैं तुम लोगों को अज़ाबे इलाही से डरा रहा हूं और अगर तुम लोग ईमान न लाओगे तो तुम पर अज़ाबे इलाही उतर पड़ेगा। ये सुन कर तमाम कुरैश जिन में आपका चचा अबू लहब भी था, सख्त नाराज़ हो कर सब के सब चले गए और हुज़ूर ﷺ की शान में ऊल फूल बकने लगे।
*तीसरा दौर :-* अब वोह वक़्त आ गया कि एलाने नुबुव्वत के चौथे साल सूरए हिजर की आयत (94) *فَاصْدَعْ بِمَا تُؤْمَرُ* नाज़िल फ़रमाई और हज़रते हक़ جل شانه ने येह हुक्म फ़रमाया कि ऐ महबूब ! आप को जो हुक्म दिया गया है उस को अलल ए'लान बयान फ़रमाइये। चुनान्चे इस के बाद अलानिया तौर पर दीने इस्लाम की तब्लीग फ़रमाने लगे, और शिर्क व बूत परस्ती की खुल्लम खुल्ला बुराई बयान फरमाने लगे और तमाम क़ुरैश बल्कि तमाम अहले मक्का बल्कि पूरा अरब आप की मुखालफत पर कमर बस्ता हो गया और हुज़ूर ﷺ और मुसलमानों की इज़ा रसानियों का एक तूलानी सिलसिला शुरू हो गया!
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 66)
*रहमते आलम ﷺ पर ज़ुल्मो सितम #01:* कुफ़्फ़ारे मक्का खानदाने बनू हाशिम के इन्तिकाम और लड़ाई भड़क उठने के खौफ से हुज़ूर ﷺ को क़त्ल तो नहीं कर सके लेकिन तरह तरह की तकलीफों और ईजा रसानियों से आप पर जुल्मो सितम का पहाड़ तोड़ने लगे। चुनान्चे सब से पहले तो हुज़ूर ﷺ के काहिन, साहिर, शाइर, मजनून होने का हर कूचा व बाज़ार में जोरदार प्रोपेगन्डा करने लगे, आप ﷺ के पीछे शरीर लड़कों का गौल लगा दिया जो रास्तों में आप पर फब्तियां कसते, गालियां देते और दीवाना है, येह दीवाना है, का शोर मचा मचा कर आप ﷺ के ऊपर पथ्थर फेंकते। कभी कुफ्फ़ारे मक्का आप ﷺ के रास्तों में कांटे बिछाते, कभी आप ﷺ के जिस्म मुबारक पर नजासत डाल देते, कभी आपको धक्का देते कभी आपकी मुक़द्दस और नाजुक गरदन में चादर का फन्दा डाल कर गला घोंटने की कोशिश करते।
रिवायत है कि एक मरतबा आप ﷺ हरमे काबा में नमाज़ पढ़ रहे थे कि एक दम संगदिल काफिर उक्बा बिन अबी मुईत ने आप के गले में चादर का फन्दा डाल कर इस ज़ोर से खींचा कि आपका दम घुटने लगा, चुनान्चे येह मन्ज़र देख कर हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضى الله تعالیٰ عنه बे करार हो कर दौड़ पड़े और उक्बा बिन अबी मुईत को धक्का दे कर दफ्अ किया और येह कहा कि क्या तुम लोग ऐसे आदमी को क़त्ल करते हो जो येह कहता है कि "मेरा रब अल्लाह है।" इस धक्कम धक्का में हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضى الله تعالیٰ عنه कुफ्फ़ार को मारा भी और कुफ्फार की मार भी खाई।
कुफ्फार आप ﷺ के मोजिजात और रूहानी ताषीरात व तसर्रुफ़ात को देख कर आप को सब से बड़ा जादूगर कहते, जब हुज़ूर ﷺ क़ुरआन शरीफ़ की तिलावत फ़रमाते तो येह कुफ्फ़ार क़ुरआन और कुरआन को लाने वाले (जिब्रील) और क़ुरआन को नाज़िल फ़रमाने वाले (अल्लाह तआला) को और आप ﷺ को गालियां देते, और गली कूचों में पहरा बिठा देते कि क़ुरआन की आवाज़ किसी के कान में न पड़ने पाए और तालियां पीट पीट कर और सीटियां बजा बजा कर इस क़दर शोर मचाते कि क़ुरआन की आवाज़ किसी को सुनाई नहीं देती थी, हुजूर ﷺ जब कहीं किसी आम मज्मअ में या कुफ्फ़ार के मेलों में क़ुरआन पढ़ कर सुनाते या दा'वते ईमान का वाअज़ फ़रमाते तो आप ﷺ का चचा अबू लहब आप के पीछे चिल्ला चिल्ला कर कहता जाता था कि ऐ लोगों ! येह मेरा भतीजा झूठा है, येह दीवाना हो गया है, तुम लोग इस की कोई बात न सुनो।
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 67)
*रहमते आलम ﷺ पर ज़ुल्मो सितम #02:* एक मरतबा हुज़ूर ﷺ "जुल मजाज़" के बाज़ार में दा'वते इस्लाम का वाअज़ फ़रमाने के लिये तशरीफ़ ले गए और लोगों को कलिमए हक़ की दावत दी तो अबू जहल आप पर धूल उड़ाता जाता था और कहता था कि ऐ लोगों इस के फ़रेब में मत आना, ये चाहता है कि तुम लोग लात व उज्ज़ा की इबादत छोड़ दो।
सी तरह एक मरतबा जब कि हुज़ूर ﷺ हरमे काबा में नमाज़ पढ़ रहे थे ऐन हालते नमाज़ में अबू जहल ने कहा कि कोई है? जो आले फुलां के जब्ह किये हुए ऊंट की ओझड़ी ला कर सज्दे की हालत में इन के कन्धों पर रख दे। येह सुन कर उकबा बिन अबी मुईत काफ़िर उठा और उस ओझड़ी को ला कर हुज़ूर ﷺ के दोश मुबारक पर रख दिया। हुज़ूर ﷺ सज्दे में थे देर तक ओझड़ी कन्धे और गरदन पर पड़ी रही और कुफ़्फ़ार ठठ्ठा मार मार कर हंसते रहे और मारे हंसी के एक दूसरे पर गिर गिर पड़ते रहे आखिर हज़रते बीबी फातिमा رضي الله عنها जो उन दिनों अभी कमसिन लड़की थी आई और उन काफ़िरों को बुरा भला कहते हुए उस ओझड़ी को आप के दोश मुबारक से हटा दिया। हुज़ूर ﷺ के कल्बे मुबारक पर कुरैश की इस शरारत से इन्तिहाई सदमा गुज़रा और नमाज़ से फ़ारिग हो कर तीन मरतबा येह दुआ मांगी कि "ऐ अल्लाह ! तू कुरैश को अपनी गरिफ्त में पकड़ ले", फिर अबू जहल, उत्बा बिन रबीआ, शैबा बिन रबीआ, वलीद बिन उत्बा, उमय्या बिन खलफ़, अम्मारा बिन वलीद का नाम ले कर दुआ मांगी कि इलाही ! तू इन लोगों को अपनी गरिफ्त में ले ले।
हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद رضي الله عنه फ़रमाते हैं कि खुदा की क़सम ! मैं ने इन सब काफ़िरों को जंगे बद्र के दिन देखा कि इन की लाशें ज़मीन पर पड़ी हुई है फिर इन सब कुफ़्फ़ार की लाशों को निहायत जिल्लत के साथ घसीट कर बद्र के एक गढ़े में डाल दिया गया और हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि इन गढ़े वालों पर खुदा की लानत है।
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 68)
*चन्द शरीर कुफ्फार :-* जो कुफ्फ़ारे मक्का हुजुर ﷺ की दुश्मनी और ईजा रसानी में बहुत ज्यादा सरगर्म थे उन में से चन्द शरीरों के नाम येह हैं : (1) अबू लहब (2) अबू जहल (3) अस्वद बिन अब्दे यगूष (4) हारिष बिन कैस बिन अदी (5) वलीद बिन मुगीरा (6) उमय्या बिन ख़लफ़ (7) उबय्य बिन खलफ (8) अबू कैस बिन फ़ाकिहा (9) आस बिन वाइल (10) नज़र बिन हारिष (11) मुनब्बेह बिन अल हज्जाज (12) जुहैर बिन अबी उमय्या (13) साइब बिन सैफी (14) अदी बिन हमरा (15) अस्वद बिन अब्दुल असद (16) आस बिन सईद बिन अल आस (17) आस बिन हाशिम (18) उक्बा बिन अबी मुईत (19) हकम बिन अबिल आस।
येह सब के सब हुज़ूर ﷺ के पड़ोसी थे और इन में से अकषर बहुत मालदार और साहिबे इक्तिदार थे और दिन रात हुज़ूर ﷺ की ईज़ा रसानी में मसरूफ़े कार रहते थे।
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 69)
*मुसलमानों पर मज़ालिम #01:* हुज़ूर रहमते आलम ﷺ के साथ साथ गरीब मुसलमानों पर भी कुफ़्फ़ारे मक्का ने ऐसे ऐसे जुल्मो सितम के पहाड़ तोड़े कि मक्का की ज़मीन बिलबिला उठी, येह आसान था कि कुफ़्फ़ारे मक्का इन मुसलमानों को दम ज़दन में क़त्ल कर डालते मगर इस से उन काफ़िरों का जोशे इन्तिकाम का नशा नहीं उतर सकता था क्यूं कि कुफ्फार इस बात में अपनी शान समझते थे कि इन मुसलमानों को इतना सताओ कि वोह इस्लाम को छोड़ कर फिर शिर्क व बुत परस्ती करने लगें, इस लिये क़त्ल कर देने की बजाए कुफ्फ़ारे मक्का मुसलमानों को तरह तरह की सज़ाओं और ईज़ा रसानियों के साथ सताते थे।
मगर खुदा की क़सम ! शराबे तौहीद के इन मस्तों ने अपने इस्तिक्लाल व इस्तिकामत का वोह मन्ज़र पेश कर दिया कि पहाड़ों की चोटियां सर उठा उठा कर हैरत के साथ इन बला कुशाने इस्लाम के जज्बए इस्तिकामत का नज़ारा करती रहीं संगदिल, बे रहम और दरिन्दा सिफ़त काफ़िरों ने इन ग़रीब व बेकस मुसलमानों पर जब्रो इकराह और जुल्मो सितम का कोई दक़ीका बाकी नहीं छोड़ा मगर एक मुसलमान के पाए इस्तिकामत में भी ज़र्रा बराबर तज़ल्जुल नहीं पैदा हुवा और एक मुसलमान का बच्चा भी इस्लाम से मुंह फैर कर काफ़िर व मुरतद नहीं हुवा।
कुफ्फ़ारे मक्का ने इन गुरबा मुस्लिमीन पर जोरो जफ़ाकारी के बे पनाह अन्दौह नाक मज़ालिम ढाए और ऐसे ऐसे रूह फ़रसा और जां सोज़ अज़ाबों में मुब्तला किया कि अगर इन मुसलमानों की जगह पहाड़ भी होता तो शायद डग मगाने लगता, सहराए अरब की तेज़ धूप में जब कि वहां की रैत के ज़र्रात तन्नूर की तरह गर्म हो जाते इन मुसलमानों की पुश्त को कोड़ों की मार से जख्मी कर के उस जलती हुई रैत पर पीठ के बल लिटाते और सीनों पर इतना भारी पथ्थर रख देते कि वोह करवट न बदलने पाएं लोहे को आग में गर्म कर के इन से उन मुसलमानों के जिस्मों को दागते, पानी में इस क़दर डुब्कियां देते कि उन का दम घुटने लगता, चटाइयों में इन मुसलमानों को लपेट कर उन की नाकों में धूआं देते जिस से सांस लेना मुश्किल हो जाता और वोह कर्ब व बेचैनी से बद हवास हो जाते।
الله اکبر الله اکبر 😭😭
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 70)
*मुसलमानों पर मज़ालिम #02:* हज़रते खब्बाब बिन अल अरत رضى الله تعالیٰ عنه येह उस ज़माने में इस्लाम लाए जब हुज़ूर ﷺ हज़रते अरक़म बिन अबू अरकम رضى الله تعالیٰ عنه के घर में मुकीम थे और सिर्फ चन्द ही आदमी मुसलमान हुए थे, कुरैश ने इन को बेहद सताया, यहां तक कि कोएले के अंगारों पर इन को चित लिटाया और एक शख़्स इन के सीने पर पाउं रख कर खड़ा रहा, यहां तक कि इन की पीठ की चरबी और रुतूबत से कोएले बुझ गए, बरसों के बाद जब हज़रते खब्बाब رضى الله تعالیٰ عنه ने येह वाकिआ हज़रते अमीरुल मुअमिनीन हज़रते उमर رضى الله تعالیٰ عنه के सामने बयान किया तो अपनी पीठ खोल कर दिखाई पूरी पीठ पर सफ़ेद सफ़ेद दाग धब्बे पड़े हुए थे इस इब्रत नाक मन्ज़र को देख कर हज़रते उमर رضى الله تعالیٰ عنه का दिल भर आया और वोह रो पड़े। الله اکبر
हज़रते बिलाल رضى الله تعالیٰ عنه को जो उमय्या बिन खलफ़ काफ़िर के गुलाम थे इन की गरदन में रस्सी बांध कर कूचा व बाज़ार में इन को घसीटा जाता था इन की पीठ पर लाठियां बरसाई जाती थीं और ठीक दो पहर के वक़्त तेज़ धूप में गर्म गर्म रैत पर इन को लिटा कर इतना भारी पथ्थर इन की छाती पर रख दिया जाता था कि इन की ज़बान बाहर निकल आती थी, उमय्या काफ़िर कहता था कि इस्लाम से बाज़ आ जाओ वरना इसी तरह घुट घुट कर मर जाओगे, मगर इस हाल में भी हज़रते बिलाल رضى الله تعالیٰ عنه की पेशानी पर बल नहीं आता था बल्कि ज़ोर ज़ोर से “अहद, अहद" का नारा लगाते थे और बुलन्द आवाज़ से कहते थे कि खुदा एक है। खुदा एक है।
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 71)
*मुसलमानों पर मज़ालिम #03 :* हज़रते अम्मार बिन यासिर رضى الله تعالیٰ عنه को गर्म गर्म बालू पर चित लिटा कर कुफ़्फ़ारे कुरैश इस क़दर मारते थे कि येह बेहोश हो जाते थे, इन की वालिदा हज़रते बीबी सुमय्या رضى الله تعالیٰ عنها इस्लाम लाने की बिना पर अबू जहल ने इन की नाफ़ के नीचे ऐसा नेजा मारा कि येह शहीद हो गई, हज़रते अम्मार رضى الله تعالیٰ عنه के वालिद हज़रते यासिर رضى الله تعالیٰ عنه भी कुफ्फ़ार की मार खाते खाते शहीद हो गए। हज़रते सुहैब रूमी رضى الله تعالیٰ عنه को कुफ्फ़ारे मक्का इस क़दर तरह तरह की अज़िय्यत देते और ऐसी ऐसी मारधाड़ करते कि येह घन्टों बेहोश रहते। जब येह हिजरत करने लगे तो कुफ्फ़ारे मक्का ने कहा कि तुम अपना सारा माल व सामान यहां छोड़ कर मदीना जा सकते हो। आप खुशी खुशी दुन्या की दौलत पर लात मार कर अपनी मताए ईमान को साथ ले कर मदीना चले गए।
हज़रते अबू फ़कीहा رضى الله تعالیٰ عنه सफ्वान बिन उमय्या काफ़िर के गुलाम थे और हज़रते बिलाल رضى الله تعالیٰ عنه के साथ ही मुसलमान हुए थे। जब सफ्वान को इन के इस्लाम का पता चला तो उस ने इन के गले में रस्सी का फन्दा डाल कर इन को घसीटा और गर्म जलती हुई ज़मीन पर इन को चित लिटा कर सीने पर वज़्नी पथ्थर रख दिया जब इन को कुफ्फ़ार घसीट कर ले जा रहे थे रास्ते में इत्तिफ़ाक़ से एक गुबरीला नज़र पड़ा। उमय्या काफ़िर ने ताना मारते हुए कहा कि "देख तेरा खुदा येही तो नहीं है।" हज़रते अबू फ़कीहा رضى الله تعالیٰ عنه ने फ़रमाया कि “ऐ काफ़िर के बच्चे ! खामोश, मेरा और तेरा खुदा अल्लाह है।" येह सुन कर उमय्या काफ़िर ग़ज़बनाक हो गया और ज़ोर से उन का गला घोंटा कि वोह बेहोश हो गए और लोगों ने समझा कि इन का दम निकल गया।
इसी तरह हज़रते आमिर बिन फुहैरा رضى الله تعالیٰ عنه को भी इस क़दर मारा जाता था कि इन के जिस्म की बोटी बोटी दर्द मन्द हो जाती थी। الله اکبر
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 72)
*मुसलमानों पर मज़ालिम #04 :* हज़रते बीबी लुबैना رضى الله تعالیٰ عنها जो लौंडी थीं, हज़रते उमर رضى الله تعالیٰ عنه जब कुफ्र की हालत में थे इस गरीब लौंडी को इस क़दर मारते थे कि मारते मारते थक जाते थे मगर हज़रते लुबैना رضى الله تعالیٰ عنها उफ़ तक नहीं करती थीं बल्कि निहायत जुरअत व इस्तिक्लाल के साथ कहती थीं कि ऐ उमर ! अगर तुम खुदा के सच्चे रसूल पर ईमान नही लाओगे तो खुदा तुम से ज़रूर इन्तिकाम लेगा।
हज़रते ज़नीरा رضى الله تعالیٰ عنها हज़रते उमर رضى الله تعالیٰ عنه के घराने की बांदी थीं, येह मुसलमान हो गई तो इन को इस क़दर काफ़िरों ने मारा कि इन की आंखें जाती रहीं, मगर खुदा वन्दे तआला ने हुज़ूरे अक्दस ﷺ की दुआ से फिर इन की आंखों में रोशनी अता फरमा दी तो मुशरिकीन कहने लगे कि येह मुहम्मद (ﷺ) के जादू का अषर है।
इसी तरह हज़रते बीबी "नहदिया" और हज़रते बीबी उम्मे उबैस رضى الله تعالیٰ عنهما भी बांदियां थीं, इस्लाम लाने के बाद कुफ़्फ़ारे मक्का ने इन दोनों को तरह तरह की तक्लीफें दे कर बे पनाह अज़िय्यतें दीं मगर येह अल्लाह वालियां सब्रो शुक्र के साथ इन बड़ी बड़ी मुसीबतों को झेलती रहीं और इस्लाम से इन के क़दम नहीं डग मगाए।
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 73)
*मुसलमानों पर मज़ालिम #05 :* हज़रते यारे ग़ारे मुस्तफा अबू बक्र सिद्दीके बा सफ़ा رضى الله تعالیٰ عنه ने किस किस तरह इस्लाम पर अपनी दौलत निषार की इस की एक झलक येह है कि आप ने इन गरीब व बेकस मुसलमानों में से अकषर की जान बचाई, आप ने हज़रते बिलाल व आमिर बिन फुहैरा व अबू फ़कीहा व लुबैना व ज़नीरा व नहदिया व उम्मे उनैस رضى الله تعالیٰ عنهم इन तमाम गुलामों को बड़ी बड़ी रक़में दे कर खरीदा और सब को आज़ाद कर दिया और इन मज़लूमों को काफ़िरों की ईजाओं से बचा लिया।
हज़रते अबू जर गिफ़ारी رضي الله عنه जब दामने इस्लाम में आए तो मक्का में एक मुसाफिर की हैषिय्यत से कई दिन तक हरमे का'बा में रहे येह रोज़ाना ज़ोर ज़ोर से चिल्ला चिल्ला कर अपने इस्लाम का ए'लान करते थे और रोजाना कुफ्फ़ारे कुरैश इन को इस क़दर मारते थे कि येह लहूलुहान हो जाते थे और उन दिनों में आबे ज़मज़म के सिवा इन को कुछ भी खाने पीने को नहीं मिला।
वाज़ेह रहे कि कुफ्फ़ारे मक्का का येह सुलूक सिर्फ गरीबों और गुलामों ही तक महदूद नहीं था बल्कि इस्लाम लाने के जुर्म में बड़े बड़े मालदारों और रईसों को भी इन ज़ालिमों ने नहीं बख़्शा, हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ رضى الله تعالیٰ عنه जो शहरे मक्का के एक मतमूल और मुमताज़ मुअज्जिज़ीन में से थे मगर इन को भी हरमे काबा में कुफ़्फ़ारे कुरैश ने इस क़दर मारा कि इन का सर खून से लतपत हो गया, इसी तरह हज़रते उषमाने गनी رضى الله تعالیٰ عنه जो निहायत मालदार और साहिबे इक्तिदार थे जब येह मुसलमान हुए तो गैरों ने नहीं बल्कि खुद चचा ने इन को रस्सियों में जकड़ कर खूब मारा, हज़रते जुबैर बिन अल अव्वाम رضى الله تعالیٰ عنه बड़े रोब और दबदबे के आदमी थे मगर इन्हों ने जब इस्लाम क़बूल किया तो इन के चचा इन को चटाई में लपेट कर इन की नाक में धूआं देते थे जिस से इन का दम घुटने लगता था, हज़रते उमर رضى الله تعالیٰ عنه के चचाज़ाद भाई और बहनोई हज़रते सईद बिन जैद رضى الله تعالیٰ عنه ए'जा़ाज़ वाले रईस थे मगर जब इन के इस्लाम का हज़रते उमर को पता चला तो इन को रस्सी में बांध कर मारा और अपनी बहन हज़रते बीबी फ़ातिमा बिन्ते अल ख़त्ताब رضى الله تعالیٰ عنها को भी इस ज़ोर से थप्पड़ मारा कि उन के कान के आवेज़े गिर पड़े और चेहरे पर खून बह निकला।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 122*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 74)
*कुफ़्फ़ार का वफद बारगाहे रिसालत में :* एक मरतबा सरदाराने कुरैश हरमे काबा में बैठे हुए येह सोचने लगे कि आखिर इतनी तकालीफ़ और सख़्तियां बरदाश्त करने के बा वजूद मुहम्मद (ﷺ) अपनी तब्लीग क्यूं बन्द नहीं करते? आख़िर इन का मक्सद क्या है? मुमकिन है येह इज्ज़त व जाह या सरदारी व दौलत के ख़्वाहां हों, चुनान्चे सभों ने उत्बा बिन रबीआ को हुज़ूर ﷺ के पास भेजा कि तुम किसी तरह उन का दिली मक्सद मा'लूम करो।
चुनान्चे उत्बा तन्हाई में आप ﷺ से मिला और कहने लगा कि ऐ मुहम्मद (ﷺ) आखिर इस दावते इस्लाम से आप का मक्सद क्या है ? क्या आप मक्का की सरदारी चाहते हैं ? या इज़्ज़त व दौलत के ख़्वाहां हैं ? या किसी बड़े घराने में शादी के ख़्वाहिश मन्द हैं ? आप के दिल में जो तमन्ना हो खुले दिल के साथ कह दीजिये। मैं इस की ज़मानत लेता हूं कि अगर आप दा'वते इस्लाम से बाज़ आ जाएं तो पूरा मक्का आप के ज़ेरे फ़रमान हो जाएगा और आप की हर ख़्वाहिश और तमन्ना पूरी कर दी जाएगी। उत्बा की येह साहिराना तक़रीर सुन कर हुज़ूर रहमते आलम ﷺ ने जवाब में क़ुरआने मजीद की चन्द आयतें तिलावत फ़रमाई। जिन को सुन कर उतबा इस क़दर मुतअष्षिर हुवा कि उस के जिस्म का रोंगटा रोंगटा और बदन का बाल बाल ख़ौफ़े जुल जलाल से लरज़ने और कांपने लगा और हुजूर ﷺ के मुंह पर हाथ रख कर कहा कि मैं आप को रिश्तेदारी का वासिता दे कर दर ख्वास्त करता हूं कि बस कीजिये, मेरा दिल इस कलाम की अजमत से फटा जा रहा है।
उत्बा बारगाहे रिसालत से वापस हुवा मगर उस के दिल की दुन्या में एक नया इनक़लाब रूनुमा हो चुका था, उत्बा एक बड़ा ही साहिरुल बयान खतीब और इनतिहाई फ़सीहो बलीग आदमी था उस ने वापस लौट कर सरदाराने कुरैश से कह दिया कि मुहम्मद (ﷺ) जो कलाम पेश करते हैं वोह न जादू है न कहानत न शाईरी बल्कि वोह कोई और ही चीज़ है लिहाजा मेरी राय है कि तुम लोग उन को उन के हाल पर छोड़ दो अगर वोह काम्याब हो कर सारे अरब पर ग़ालिब हो गए तो इस में हम कुरैशियों ही की इज्ज़त बढ़ेगी, वरना सारा अरब उन को खुद ही फ़ना कर देगा मगर कुरैश के सरकश काफ़िरों ने उत्बा का येह मुख़िलसाना और मुदब्बिराना मश्वरा नहीं माना बल्कि अपनी मुखालफत और इज़ा रसानियों में और ज़्यादा इज़ाफ़ा कर दिया।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 123*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 75)
*कुरैश का वफ़द अबू तालिब के पास :* कुफ़्फ़ारे कुरैश में कुछ लोग सुल्ह पसन्द भी थे वोह चाहते थे कि बातचीत के जरीए सुल्हो सफ़ाई के साथ मुआमला तै हो जाए, चुनान्चे कुरैश के चन्द मुअज्ज़ज़ रूअसा अबू तालिब के पास आए और हुज़ूर ﷺ की दा'वते इस्लाम और बुत परस्ती के ख़िलाफ़ तक़रीरों की शिकायत की अबू तालिब ने निहायत नर्मी के साथ उन लोगों को समझा बुझा कर रुख़सत कर दिया लेकिन हुज़ूर ﷺ ख़ुदा के फरमान *فَاصْدَعْ بِمَا تُؤْمَرُ* "तो एलानिया कह दो जिस बात का तुम्हे हुक्म है।" की तामील करते हुए अलल एलान शिर्क व बुत परस्ती की मज़म्मत और दा'वते तौहीद का वाअज़ फ़रमाते ही रहे। इस लिये कुरैश का गुस्सा फिर भड़क उठा चुनान्चे तमाम सरदाराने कुरैश या'नी उ़त्वा व शैबा व अबू सुफ्यान व आस बिन हश्शाम व अबू जहल व वलीद बिन मुग़ीरा व आस बिन वाइल वगैरा वगैरा सब एक साथ मिल कर अबू तालिब के पास आए और येह कहा कि आप का भतीजा हमारे मा'बूदों की तौहीन करता है इस लिये या तो आप दरमियान में से हट जाएं और अपने भतीजे को हमारे सिपुर्द कर दें या फिर आप भी खुल कर उन के साथ मैदान में निकल पड़ें ताकि हम दोनों में से एक का फैसला हो जाए।
अबू तालिब ने कुरैश का तेवर देख कर समझ लिया कि अब बहुत ही ख़तरनाक और नाजुक घड़ी सर पर आन पड़ी है जाहिर है कि अब कुरैश बरदाश्त नहीं कर सकते और मैं अकेला तमाम कुरैश का मुक़ाबला नहीं कर सकता। अबू तालिब ने हुज़ूर ﷺ को इन्तिहाई मुख़्लिसाना और मुश्फिकाना लहजे में समझाया भतीजे ! अपने बूढ़े चचा की सफ़ेद दाढ़ी पर रहम करो और बुढ़ापे में मुझ पर इतना बोझ मत डालो कि मैं उठा न सकूं। अब तक तो कुरैश का बच्चा बच्चा मेरा एहतिराम करता था मगर आज कुरैश के सरदारों का लबो लहजा और उन का तेवर इस क़दर बिगड़ा हुवा था कि अब वोह मुझ पर और तुम पर तलवार उठाने से भी दरेग नहीं करेंगे लिहाजा मेरी राय येह है कि तुम कुछ दिनों के लिये दा'वते इस्लाम मौकूफ़ कर दो।
अब तक हुज़ूर ﷺ के ज़ाहिरी मुईन व मददगार जो कुछ भी थे वोह सिर्फ अकेले अबू तालिब ही थे, हुज़ूर ﷺ ने देखा कि अब इन के क़दम भी उखड़ रहे हैं चचा की गुफ्तगू सुन कर हुज़ूरे अक्दस ﷺ ने भर्राई हुई मगर जज़्बात से भरी हुई आवाज़ में फ़रमाया कि चचाजान ! खुदा की क़सम ! अगर कुरैश मेरे एक हाथ में सूरज और दूसरे हाथ में चांद ला कर दे दें तब भी मैं अपने इस फ़र्ज़ से बाज़ न आऊंगा, या तो खुदा इस काम को पूरा फ़रमा देगा या मैं खुद दीने इस्लाम पर निषार हो जाऊंगा, हुज़ूर ﷺ की येह जज़्बाती तक़रीर सुन कर अबू तालिब का दिल पसीज गया और वोह इस क़दर मुतअष्षिर हुए कि उन की हाशिमी रगों के खून का क़तरा क़तरा भतीजे की महब्बत में गर्म हो कर खौलने लगा और इन्तिहाई जोश में आ कर कह दिया कि जाने अम ! जाओ मैं तुम्हारे साथ हूं जब तक मैं ज़िन्दा हूं कोई तुम्हारा बाल बीका नहीं कर सकता।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 125*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 76)
*हिजरते हबशा सि. 5 न-बवी :*
कुफ्फ़ारे मक्का ने जब अपने जुल्मो सितम से मुसलमानों पर अर्सए हयात तंग कर दिया तो हुज़ूर रहमते आलम ﷺ ने मुसलमानों को "हबशा" जा कर पनाह लेने का हुक्म दिया।
*नज्जाशी :-* हबशा के बादशाह का नाम "अस्हमा" और लक़ब "नज्जाशी" था, ईसाई दीन का पाबन्द था मगर बहुत ही इन्साफ़ पसन्द और रहम दिल था और तौरात व इन्जील वगैरा आस्मानी किताबों का बहुत ही माहिर आलिम था।
एलाने नुबुव्वत के पांचवें साल रजब के महीने में ग्यारह मर्द और चार औरतों ने हबशा की जानिब हिजरत की, इन मुहाजिरिने किराम के मुक़द्दस नाम ये है। (1,2) हजरते उषमाने गनी رضى الله تعالیٰ عنه अपनी बीवी हज़रत बीबी रुकय्या رضى الله تعالیٰ عنها के साथ जो हुज़ूर ﷺ की साहब जादी हैं। (3,4) हज़रते अबू हुजैफा رضى الله تعالیٰ عنه अपनी बीवी हज़रते सहला बिन्ते सुहैल رضى الله تعالیٰ عنها के साथ (5,6) हज़रते अबू सलमह رضى الله تعالیٰ عنه अपनी अहलिया हज़रते उम्मे सलमह رضى الله تعالیٰ عنها के साथ। (7,8) हज़रते आमिर बिन रबीआ رضى الله تعالیٰ عنه अपनी ज़ौजा हज़रते लैला बिन्ते अबी हश्मा رضى الله تعالیٰ عنها के साथ। (9) हज़रते जुबैर बिन अल अव्वाम رضى الله تعالیٰ عنه। (10) हज़रते मुस्अब बिन उमैर رضى الله تعالیٰ عنه। (11) हज़रते अब्दुर्रहमान बिन औफ رضى الله تعالیٰ عنه। (12) हज़रते उषमान बिन मजऊन رضى الله تعالیٰ عنه । (13) हज़रते अबू सबरा बिन अबी रहम या हातिब बिन अम्र رضى الله تعالیٰ عنهما। (14) हज़रते सुहैल बिन बैजा رضى الله تعالیٰ عنه। (15) हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद رضى الله تعالیٰ عنه!
कुफ्फ़ारे मक्का को जब इन लोगों की हिजरत का पता चला तो उन ज़ालिमों ने इन लोगों की गरिफ्तारी के लिये इन का तआकुब किया लेकिन येह लोग किश्ती पर सुवार हो कर रवाना हो चुके थे इस लिये कुफ्फ़ार नाकाम वापस लौटे, येह मुहाजिरीन का काफिला हबशा की सर ज़मीन में उतर कर अम्नो अमान के साथ खुदा की इबादत में मसरूफ़ हो गया। चन्द दिनों के बा'द ना गहां येह ख़बर फैल गई कि कुफ्फ़ारे मक्का मुसलमान हो गए, येह ख़बर सुन कर चन्द लोग हबशा से मक्का लौट आए मगर यहां आ कर पता चला कि येह ख़बर ग़लत थी। चुनान्चे बा'ज़ लोग तो फिर हबशा चले गए मगर कुछ लोग मक्का रूपोश हो कर रहने लगे लेकिन कुफ़्फ़ारे मक्का ने उन लोगों को ढूंड निकाला और उन लोगों पर पहले से भी जियादा जुल्म ढाने लगे तो हुज़ूर ﷺ ने लोगों को हबशा चले जाने का हुक्म दिया। चुनांचे हबशा से वापस आने वाले और इन के साथ दूसरे मज़्लूम मुसलमान कुल तिरासी (83) मर्द और 18 औरतों ने हबशा की जानिब हिजरत की।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह 126-127*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 77)
*कुफ़्फ़ार का सफीर नज्ज़ाशी के दरबार में #01:* तमाम मुहाजिरिन निहायत अम्नो सुकून के साथ हबशा में रहने लगे मगर कुफ़्फ़ारे मक्का को कब गवारा हो सकता था कि फ़रज़न्दाने तौहीद कहीं अम्नो चैन के साथ रह सकें, इन जालिमों ने कुछ तहाइफ के साथ "अम्र बिन अल आस" और "अम्मारा बिन वलीद" को बादशाहे हबशा के दरबार में अपना सफ़ीर बना कर भेजा। इन दोनों ने नज्जाशी के दरबार में पहुंच कर तोहफों का नज़राना पेश किया और बादशाह को सज्दा कर के येह फ़रियाद करने लगे कि ऐ बादशाह ! हमारे कुछ मुजरिम मक्का से भाग कर आप के मुल्क में पनाह गुज़ीन हो गए हैं आप हमारे उन मुजरिमों को हमारे हवाले कर दीजिये येह सुन कर नज्जाशी बादशाह ने मुसलमानों को दरबार में तलब किया और हज़रते अली رضى الله تعالیٰ عنه के भाई हज़रते जाफर رضى الله تعالیٰ عنه मुसलमानों के नुमाइन्दा बन कर गुफ्तगू के लिये आगे बढ़े और दरबार के आदाब के मुताबिक बादशाह को सज्दा नहीं किया बल्कि सिर्फ सलाम कर के खड़े हो गए दरबारियों ने टोका तो हज़रते जाफ़र رضى الله تعالیٰ عنه ने फ़रमाया कि हमारे रसूल ﷺ ने खुदा के सिवा किसी को सज्दा करने से मन्अ फरमाया है इस लिये मैं बादशाह को सज्दा नहीं कर सकता।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 127*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 78)
*कुफ़्फ़ार का सफीर नज्ज़ाशी के दरबार में #02 :* हज़रते जाफर बिन अबी तालिब رضى الله تعالیٰ عنه ने दरबारे शाही में इस तरह तकरीर शुरूअ फ़रमाई कि... “ऐ बादशाह ! हम लोग एक जाहिल क़ौम थे शिर्क व बुत परस्ती करते थे लूटमार, चोरी, डकैती, जुल्मो सितम और तरह तरह की बदकारियों और बद आमालियों में मुब्तला थे। अल्लाह तआला ने हमारी क़ौम में एक शख्स को अपना रसूल बना कर भेजा जिस के हसब व नसब और सिद्को दियानत को हम पहले से जानते थे, उस रसूल ने हम को शिर्क व बुत परस्ती से रोक दिया और सिर्फ एक खुदाए वाहिद की इबादत का हुक्म दिया और हर किस्म के जुल्मो सितम और तमाम बुराइयों और बदकारियों से हम को मन्अ किया, हम उस रसूल पर ईमान लाए और शिर्क व बुत परस्ती छोड़ कर तमाम बुरे कामों से ताइब हो गए। बस येही हमारा गुनाह है जिस पर हमारी क़ौम हमारी जान की दुश्मन हो गई और उन लोगों ने हमें इतना सताया कि हम अपने वतन को खैरबाद कह कर आप की सल्तनत के ज़ेरे साया पुर अम्न ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं अब येह लोग हमें मजबूर कर रहे हैं कि हम फिर उसी पुरानी गुमराही में वापस लौट जाएं।"
हज़रते जाफर رضى الله تعالیٰ عنه की तक़रीर से नज्जाशी बादशाह बेहद मुतअष्षिर हुवा येह देख कर कुफ्फ़ारे मक्का के सफ़ीर अम्र बिन अल आस ने अपने तरकश का आखिरी तीर भी फेंक दिया और कहा कि ऐ बादशाह ! येह मुसलमान लोग आप के नबी हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में कुछ दूसरा ही एतिक़ाद रखते हैं जो आप के अकीदे के बिल्कुल ही ख़िलाफ़ है येह सुन कर नज्जाशी बादशाह ने हज़रते जाफर رضى الله تعالیٰ عنه से इस बारे में सुवाल किया तो आप ने सूरए मरयम की तिलावत फ़रमाई कलामे रब्बानी की ताषीर से नज्जाशी बादशाह के कल्ब पर इतना गहरा अषर पड़ा कि उस पर रिक़्क़त तारी हो गई और उस की आंखों से आंसू जारी हो गए।
हज़रते जाफ़र رضى الله تعالیٰ عنه ने फ़रमाया कि हमारे रसूल ﷺ ने हम को येही बताया है कि हज़रते ईसा عليه السلام खुदा के बन्दे और उस के रसूल है जो कंवारी मरयम رضى الله تعالیٰ عنها के शिकमे मुबारक से बिगैर बाप के खुदा की क़ुदरत का निशान बन कर पैदा हुए। नज्जाशी बादशाह ने बड़े गौर से हज़रते जाफ़र رضى الله تعالیٰ عنه की तक़रीर को सुना और येह कहा कि बिला शुबा इन्जील और क़ुरआन दोनों एक ही आफ्ताबे हिदायत के दो नूर हैं और यक़ीनन हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम खुदा के बन्दे और उस के रसूल हैं और मैं गवाही देता हूं कि बेशक हज़रत मुहम्मद ﷺ खुदा के वोही रसूल हैं जिन की बिशारत हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम ने इन्जील में दी है और अगर मैं दस्तूरे सल्तनत के मुताबिक तख़्ते शाही पर रहने का पाबन्द न होता तो मैं खुद मक्का जा कर रसूले अकरम ﷺ की जूतियां सीधी करता और उन के क़दम धोता।
बादशाह की तक़रीर सुन कर उस के दरबारी जो कट्टर क़िस्म के ईसाई थे नाराज़ व बरहम हो गए मगर नज्जाशी बादशाह ने जोशे ईमानी में सब को डांट फटकार कर ख़ामोश कर दिया, और कुफ़्फ़ारे मक्का के तोहफ़ों को वापस लौटा कर अम्र बिन अल आस और अम्मारा बिन वलीद को दरबार से निकलवा दिया और मुसलमानों से कह दिया कि तुम लोग मेरी सल्तनत में जहां चाहो अम्नो सुकून के साथ आराम व चैन की ज़िन्दगी बसर करो कोई तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता।
वाज़ेह रहे कि नज्जाशी बादशाह मुसलमान हो गया था, चुनान्चे उस के इन्तिकाल पर हुज़ूर ﷺ ने मदीनए मुनव्वरह में उस की नमाज़े जनाजा पढ़ी हालां कि नज्जाशी बादशाह का इन्तिकाल हबशा में हुवा था और वोह हबशा ही में मदफून भी हुए मगर हुजूर ﷺ ने गाइबाना उन की नमाज़े जनाज़ा पढ़ कर उन के लिये दुआए मग़फ़िरत फ़रमाई।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 129*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 79)
*हज़रते अबू बक्र और इब्ने दुगन्ना :* हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضى الله تعالیٰ عنه ने भी हबशा की तरफ हिज़रत की मगर जब आप मकाम "बर्कुल ग़म्माद" में पहुंचे तो क़बीलए कारा का सरदार "मालिक बिन दुगुन्ना" रास्ते में मिला और दरयाफ्त किया कि क्यूं ? ऐ अबू बक्र ! कहां चले ? आप رضى الله تعالیٰ عنه ने अहले मक्का के मज़ालिम का तज़किरा फ़रमाते हुए कहा कि अब मैं अपने वतन मक्का को छोड़ कर खुदा की लम्बी चौड़ी ज़मीन में फिरता रहूंगा और खुदा की इबादत करता रहूंगा इब्ने दुगन्ना ने कहा कि ऐ अबू बक्र ! आप जैसा आदमी न शहर से निकल सकता है न निकाला जा सकता है आप दूसरों का बार उठाते हैं, मेहमानाने हरम की मेहमान नवाज़ी करते हैं, खुद कमा कमा कर मुफ्लिसों और मोहताजों की माली इमदाद करते हैं, हक़ के कामों में सब की इमदाद व इआनत करते हैं आप मेरे साथ मक्का वापस चलिये मैं आप को अपनी पनाह में लेता हूं, इब्ने दुगन्ना आप को जबर दस्ती मक्का वापस लाया और तमाम कफ्फारे मक्का से कह दिया कि मैं ने अबु बक्र رضى الله تعالیٰ عنه को अपनी पनाह में ले लिया है लिहाज़ा ख़बरदार ! कोई इन को न सताए कुफ्फ़ारे मक्का ने कहा कि हम को इस शर्त पर मन्जूर है कि अबू बक्र رضى الله تعالیٰ عنه अपने घर के अन्दर छुप कर क़ुरआन पढ़ें ताकि हमारी औरतों और बच्चों के कान में क़ुरआन की आवाज़ न पहुंचे।
इब्ने दुगुन्ना ने कुफ्फार की शर्त को मन्जूर कर लिया, और हज़रते अबू बक्र رضى الله تعالیٰ عنه चन्द दिनों तक अपने घर के अन्दर क़ुरआन पढ़ते रहे मगर हज़रते अबू बक्र رضى الله تعالیٰ عنه के जज़्बए इस्लामी और जोशे ईमानी ने येह गवारा नहीं किया कि माबूदाने बातिल लात व उज्ज़ा की इबादत तो अलल एलान हो और माबूदे बरहक़ अल्लाह तआला की इबादत घर के अन्दर छुप कर की जाए चुनान्चे आप رضى الله تعالیٰ عنه ने घर के बाहर अपने सहन में एक मस्जिद बना ली और इस मस्जिद में अलल ए'लान नमाज़ों में बुलन्द आवाज से क़ुरआन पढ़ने लगे और कुफ़्फ़ारे मक्का की औरतें और बच्चे भीड़ लगा कर क़ुरआन सुनने लगे।
येह मन्ज़र देख कर कुफ्फ़ारे मक्का ने इब्ने दुगुन्ना को मक्का बुलाया और शिकायत की, कि अबू बक्र رضى الله تعالیٰ عنه घर के बाहर क़ुरआन पढ़ते हैं जिस को सुनने के लिये उन के गिर्द हमारी औरतों और बच्चों का मेला लग जाता है इस से हम को बड़ी तक्लीफ़ होती है लिहाजा तुम उन से कह दो कि या तो वोह घर में क़ुरआन पढ़ें वरना तुम अपनी पनाह की ज़िम्मादारी से दस्त बरदार हो जाओ चुनान्चे इब्ने दुगुन्ना ने हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضى الله تعالیٰ عنه से कहा कि ऐ अबू बक्र ! आप घर के अन्दर छुप कर क़ुरआन पढ़ें वरना मैं अपनी पनाह से कनारा कश हो जाऊंगा इस के बा'द कुफ्फ़ारे मक्का आप को सताएंगे तो मैं इस का ज़िम्मादार नहीं होउंगा, येह सुन कर हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضى الله تعالیٰ عنه ने फ़रमाया कि ऐ इब्ने दुगन्ना ! तुम अपनी पनाह की ज़िम्मादारी से अलग हो जाओ मुझे अल्लाह तआला की पनाह काफी है और मैं उस की मरज़ी पर राजी ब रिज़ा हूं।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 130*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 80)
*हज़रते हम्ज़ा मुसलमान हो गए :* एलाने नुबुव्वत के छटे साल हज़रते हम्ज़ा رضى الله تعالیٰ عنه और हज़रते उमर رضى الله تعالیٰ عنه दो ऐसी हस्तियां दामने इस्लाम में आ गई जिन से इस्लाम और मुसलमानों के जाहो जलाल और इन के इज्ज़तो इक़बाल का परचम बहुत ही सर बुलन्द हो गया, हुज़ूर ﷺ के चचाओं में हज़रते हम्ज़ा को आप ﷺ से बड़ी वालिहाना महब्बत थी और वोह सिर्फ दो तीन साल हुज़ूर ﷺ से उम्र में जियादा थे और चूंकि इन्हों ने भी हज़रते सुवैबा का दूध पिया था इस लिये हुज़ूर ﷺ के रज़ाई भाई भी थे, हज़रते हम्ज़ा رضى الله تعالیٰ عنه बहुत ही ताकत वर और बहादुर थे और शिकार के बहुत ही शौक़ीन थे रोजाना सुब्ह सवेरे तीर कमान ले कर घर से निकल जाते और शाम को शिकार से वापस लौट कर हरम में जाते, खानए काबा का तवाफ़ करते और कुरैश के सरदारों की मजलिस में कुछ देर बैठा करते थे।
एक दिन हस्बे मामूल शिकार से वापस लौटे तो इब्ने जदआन की लौंडी और खुद इन की बहन हज़रते बीबी सफ़िय्या رضى الله تعالیٰ عنها ने इन को बताया कि आज अबू जहल ने किस किस तरह तुम्हारे भतीजे हजरहज़रतहम्मद (ﷺ) के साथ बेअदबी और गुस्ताखी की है येह माजरा सुन कर मारे गुस्से के हज़रते हम्ज़ा رضى الله تعالیٰ عنه का खून खौलने लगा एक दम तीर कमान लिये हुए मस्जिदे हराम में पहुंच गए और अपनी कमान अबू जहल के सर पर इस ज़ोर से मारा कि उस का सर फट गया और कहा कि तू मेरे भतीजे को गालियां देता है? तुझे खबर नहीं कि मैं भी उसी के दीन पर हूं येह देख कर क़बीलए बनी मख़्ज़ूम के लोग अबू जहल की मदद के लिये खड़े हो गए तो अबू जहल ने येह सोच कर कि कहीं बनू हाशिम से जंग न छिड़ जाए येह कहा कि ऐ बनी मख़्ज़ूम ! आप लोग हम्ज़ा को छोड़ दीजिये। वाक़ेई आज मैं ने इन के भतीजे को बहुत ही खराब ख़राब क़िस्म की गालियां दी थीं।
हज़रते हम्ज़ा رضى الله تعالیٰ عنه ने मुसलमान हो जाने के बाद ज़ोर ज़ोर से इन अशआर को पढ़ना शुरू कर दिया :
मैं अल्लाह तआला की हम्द करता हूं जिस वक़्त कि उस ने मेरे दिल को इस्लाम और दीने हनीफ़ की तरफ़ हिदायत दी।
जब अहकामे इस्लाम की हमारे सामने तिलावत की जाती है तो बा कमाल अक्ल वालों के आंसू जारी हो जाते हैं।
और खुदा के बरगुज़ीदा अहमद ﷺ हमारे मुक्तदा हैं तो (ऐ काफ़िरो) अपनी बातिल बक्वास से इन पर गलबा मत हासिल करो।
तो खुदा की क़सम ! हम इन्हें क़ौमे कुफ्फ़ार के सिपुर्द नहीं करेंगे, हालां कि अभी तक हम ने उन काफ़िरों के साथ तलवारों से फ़ैसला नहीं किया है।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 132*
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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 81)
*हज़रते उमर का इस्लाम #01 :* हज़रते हम्जा رضى الله تعالیٰ عنه के इस्लाम लाने के बाद तीसरे ही दिन हज़रते उमर رضى الله تعالیٰ عنه भी दौलते इस्लाम से मालामाल हो गए, आप के मुशर्रफ़ ब इस्लाम होने के वाक़िआत में बहुत सी रिवायात हैं।
एक रिवायत येह है कि आप एक दिन गुस्से में भरे हुए नंगी तलवार ले कर इस इरादे से चले कि आज मैं इसी तलवार से पैग़म्बरे इस्लाम का खातिमा कर दूंगा इत्तिफ़ाक़ से रास्ते में हज़रते नुऐम बिन अब्दुल्लाह कुरैशी رضى الله تعالیٰ عنه से मुलाक़ात हो गई, येह मुसलमान हो चुके थे मगर हज़रते उमर को इनके इस्लाम की खबर नहीं थी, हज़रते नुऐम बिन अब्दुल्लाह رضى الله تعالیٰ عنه ने पूछा कि क्यूं ? ऐ उमर ! इस दो पहर की गर्मी में नंगी तलवार ले कर कहां चले? कहने लगे कि आज बानिये इस्लाम का फैसला करने के लिये घर से निकल पड़ा हूं। इन्हों ने कहा कि पहले अपने घर की ख़बर लो। तुम्हारी बहन “फातिमा बिन्ते अल ख़त्ताब" और तुम्हारे बहनोई "सईद बिन जैद" भी तो मुसलमान हो गए हैं ! येह सुन कर आप बहन के घर पहुंचे और दरवाजा खट खटाया घर के अन्दर चन्द मुसलमान छुप कर क़ुरआन पढ़ रहे थे।
हज़रते उमर رضى الله تعالیٰ عنه की आवाज़ सुन कर सब लोग डर गए और क़ुरआन के अवराक़ छोड़ कर इधर उधर छुप गए बहन ने उठ कर दरवाजा खोला तो हज़रते उमर رضى الله تعالیٰ عنه चिल्ला कर बोले कि ऐ अपनी जान की दुश्मन ! क्या तू भी मुसलमान हो गई है ? फिर अपने बहनोई हज़रते सईद बिन जैद رضى الله تعالیٰ عنه पर झपटे और उन की दाढ़ी पकड़ कर उन को ज़मीन पर पटख दिया और सीने पर सुवार हो कर मारने लगे इन की बहन हज़रते फ़ातिमा رضى الله تعالیٰ عنها अपने शोहर को बचाने के लिये दौड़ पड़ीं तो हज़रते उमर رضى الله تعالیٰ عنه ने उन को ऐसा तमांचा मारा कि उन के कानों के झूमर टूट कर गिर पड़े और उन का चेहरा खून से लहू लुहान हो गया बहन ने साफ़ साफ़ कह दिया कि उमर ! सुन लो, तुम से जो हो सके कर लो मगर अब इस्लाम दिल से नहीं निकल सकता हज़रते उमर رضى الله تعالیٰ عنه ने बहन का ख़ून आलूदा चेहरा देखा और उन का अज़मो इस्तिकामत से भरा हुवा येह जुम्ला सुना उन पर रिक्क़त तारी हो गई और एक दम दिल नरम पड़ गया थोड़ी देर तक खामोश खड़े रहे फिर कहा कि अच्छा तुम लोग जो पढ़ रहे थे मुझे भी दिखाओ बहन ने क़ुरआन के अवराक़ को सामने रख दिया।
*📙 किताब : सीरते मुस्तफ़ा ﷺ सफ़ह - 134*
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