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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 पाऊँ पर खड़े होने के बाद शादी करेंगे..❓*
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•••➲ यही कहते हैं हम कि पहले पाऊँ पर खड़े हो जायें फिर शादी करेंगे। अब पाऊँ पर खड़े कब होंगे ये हमें भी पता नहीं होता पढ़ने के लिये जा रहे कुछ लड़कों को देख कर लगता है कि ये कम से कम दो तीन बच्चों के बाप होंगे लेकिन मालूम करने पर कुँवारे निकलते हैं। फिर पूछने पर कहते हैं कि अपने पाऊँ पर खड़े हो जायें फिर.....
•••➲ नर्सरी से मेट्रिक, फिर इंटर, बेचलर, मास्टर, डॉक्टर, इंजीनियर वग़ैरह के मक़ाम तक पहुँचते-पहुँचते एक तिहाई उम्र मुकम्मल हो जाती है फिर बारी आती है नौकरी की जिस में आज कल अच्छा खासा वक़्त लग जाता है। अगर नौकरी ना कर के अपना बिज़निस करे तो उसे जमाने के लिये काफ़ी वक़्त देना पड़ता है। इस तरह तक़रीबन आधी ज़िंदगी पार हो जाती है उस के बाद जब लगता है कि एक पाऊँ पर तो खड़े हो ही गये हैं फिर शादी की निय्यत की जाती है। शादी के वक़्त ऐसा भी देखा गया है कि लड़का, लड़के का वालिद नज़र आता है।
•••➲ क्या शादी के बाद पाऊँ पर खड़े नहीं हो सकते? बिल्कुल हो सकते हैं। शादी को रुकावट समझना सही नहीं है बल्कि शादी के बाद कामियाबी के इम्कानात ज़्यादा होते हैं। घर में ऐसा होता ही है कि कई लोगों का आना जाना, खाना पीना लगा रहता है फिर एक औरत के आने से क्या भूका रहने की हालत हो जायेगी। अब बात आती है कि खर्चे की तो फिज़ूल खर्चे को ज़रूरी समझना आप की गलती है।
•••➲ जिस उम्र में आज कल अक्सर लड़के शादी करते हैं, इतनी उम्र में तो चार शादियाँ हो जानी चाहियें जितना पैसा जमा कर के शादी करते हैं उतने में चार बीवियों का नहीं तो कम से कम दो बीवियों का खर्च ज़रूर उठाया जा सकता है।
•••➲ एक वो लोग हुआ करते थे जो इक्कीस साल की उम्र में क़ुस्तुंतुनिया की दीवारें गिरा कर आगे बढ़ जाते थे और एक हम हैं कि इस उम्र को खेलने कूदने, अंग्रेज़ी पढ़ने और मौज़ मस्ती करने की उम्र समझते हैं।..✍️
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*👨💻मिजानिब :- अ़ब्दे मुस्तफ़ा ऑफ़िशियल.!*
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*📝 कुँवारा नहीं मरना..❓*
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•••➲ कुँवारा मरना अच्छी बात नहीं है। हमारे बुज़ुर्गों ने ये नहीं सिखाया।
•••➲ हज़रते इब्ने मसऊद रदिअल्लाहु त'आला अन्हु फ़रमाते थे अगर मेरी उम्र में से सिर्फ़ दस दिन बाक़ी रह गये हों और उन के बाद मेरी मौत हो तो मे चाहूँगा कि निकाह कर लूँ और अल्लाह त'आला से इस हालत में मुलाक़ात ना हो कि मै कुँवारा रहूँ।
*📕 قوت القلوب، ج2، ص827*
•••➲ इमाम अहमद बिन हम्बल रहमतुल्लाह अ़लैह के मुतल्लिक़ बयान किया जाता है कि आप की बीवी का इंतिक़ाल हुआ तो अगले ही दिन आप ने निकाह कर लिया।
•••➲ हज़रते बिश्र रहमतुल्लाह अ़लैह का इंतिक़ाल हुआ तो किसी ने आप को ख्वाब में देखा। आप ने फ़रमाया कि मुझे ये मक़ाम अ़ता किया गया लेकिन शादी शुदा लोगों के मक़ाम तक ना पहुँच सका। (उन को अहलो अयाल पर सब्र करने की वजह से एक खास मक़ाम हासिल हुआ।)
•••➲ हज़रते म'आज़ बिन जबल रदिअल्लाहु त'आला अन्हु की बीवी (ताऊन की वजह से) इंतिक़ाल फ़रमा गई तो आप ने फ़रमाया कि मेरा निकाह कर दो, मै नहीं चाहता कि अल्लाह त'आला से इस हालत में मिलूँ कि मै कुँवारा रहूँ। (ایضاً)
•••➲ कुँवारे समाज को चाहिये कि इस समाज को छोड़ कर शादी शुदा समाज में दाखिला ले लें। कुँवारे से ज़्यादा शादी शुदा की फज़ीलत हैं। मुख्तसर ये कि जल्दी-जल्दी शादी कीजिये। कब तक कुँवारों की तंज़ीम के मेम्बर बने रहेंगे?..✍️
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*📝 काली गोरी हर लड़की के पास वही चीज़ है..❓*
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•••➲ इन अलफाज़ को गलत ना समझें। ये बात बिल्कुल दुरुस्त है कि लड़की चाहे काली हो या गोरी सब के पास एक जैसी चीज़ है। ये हमारी समझ का फेर है कि हम गोरी को अच्छा समझते, पसंद करते हैं और काली को बुरा समझते हैं, नापसंद करते हैं।
•••➲ अगर मेरे अलफाज़ गलत लगते हैं तो ये हदीस पढ़ लें :
•••➲ नबी -ए- करीम ने इरशाद फरमाया कि जो मर्द किसी औरत को देख ले और वो उसे भली मालूम हो तो वो अपनी बीवी के पास आ जाये (अपनी हाजत पूरी कर ले) और उस (की बीवी) के पास भी वही है जो उस औरत के पास है।
*📕 مشکوٰۃ:3108، دارمی:2252، اسی طرح کی حدیث ابو داؤد، ترمذی، ابن حبان، نسائی کبری، سنن بہیقی، مسند عبد بن حمید میں بھی ہے*
•••➲ मिरकात में है कि जब किसी औरत पर नज़र पढ़ जाये (और वो अच्छी लगे) तो फौरन घर वाली के पास आयें और उस से जिमा करें ताकि जिन्सी तस्कीन हो जाये और खयालात खतम हो जायें। इस लिये कि उस के पास भी उसी तरह की शर्मगाह है जो इस के पास है।
*📔 مرقاۃ المفاتیح، ج6، ص45*
•••➲ अल्लामा मुफ्ती अहमद यार खान नईमी रहीमहुल्लाह लिखते हैं :
•••➲ सुब्हान अल्लाह! कैसे नफ़ीस तरीक़े से समझाया कि लज़्ज़ते जिमा तो अपनी क़ुव्वत पर मब्नी है। जिस तरह मनी गलीज़ होगी और मर्द में ताक़त ज़्यादा होगी उसी क़द्र लज़्ज़त महसूस होगी। जो लज़्ज़त उस देखी हुई औरत से सोहबत करने में होती हो वो अपनी बीवी से सोहबत करने में है फिर हरामकारी से मुँह काला क्यों करते हो?
*📘 مرآۃ المناجیح، ج5، ص29*
•••➲ कितने वाज़ेह अलफाज़ में समझाया गया है मगर गोरे रंग के दीवानों को समझ में नहीं आती।
•••➲ कई बार निकाह के लिये लड़का या लड़के वाले इसलिये इन्कार कर देते हैं कि लड़की का रंग गोरा नहीं है। क्या हम उस दीन के मानने वाले नहीं जिस में गोरे को काले पर कोई फज़ीलत हासिल नहीं फिर हम ऐसा क्यों करते हैं।
•••➲ ये सोचना गलत है कि काली लड़की से जिमा करने पर लज़्ज़त नहीं मिलेगी। ये हमने सोच बना रखी है। लज़्ज़त का ताल्लुक़ तो अपने जिस्म से है। अगर खुद में कमी है तो चाहे गोरी हो या काली, लज़्ज़त में फर्क़ नहीं पड़ने वाला। हमें बस सोच बदलने की ज़रूरत है। काश ये बात हर लड़के की समझ में आ जाये और किसी लड़की को अपने रंग की वजह से मायूस ना होना पड़े।..✍️
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*📝 पतली दुबली लड़कियाँ..❓*
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•••➲ आज कल के लड़कों को पतली दुबली लड़की ज़्यादा पसंद है। लड़कियाँ भी खुद को पतला करने के चक्कर में और स्लिम फिट (Slim Fit) दिखने के लिये खाने वग़ैरह में परहेज़ करती हैं। कुछ अमीर घरों की लड़कियाँ इस के लिये जिम (Gym) का सहारा लेती हैं।
•••➲ आप अगर हिन्दी जानते हैं तो आप ने एक लफ्ज़ सुना होगा "बुद्धि भ्रष्ट" यानी जिस की मत मारी गई हो। हमारे नौजवानों के साथ यही हुआ है कि फिल्मों, ड्रामों ने उन का दिमाग खराब कर दिया है। पतली दुबली लड़कियाँ पसंद करना और उन से शादी करना हमें नहीं लगता कि अच्छा है और हमें ऐसा इसलिये लगता है कि इस में फाइदा तो नहीं लेकिन नुक़सान ज़रूर है।
•••➲ अल्लाह के रसूल, हमारे आक़ा ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि ऐसी औरतों से शादी करो जो ज़्यादा बच्चे पैदा कर सके (यानी सिह्हत मन्द हो) और क़ियामत के दिन मै तुम्हारी तादाद की कसरत देख कर दीगर उम्मतों पर फख्र करूँगा। (ये हदीस का मफ़हूम है)
*📕 دیکھیں مشکوٰۃ: 3019، ابو داؤد: 2050، نسائی: 3229*
•••➲ अब हमें चाहिये पतली कमर (माज़रत लेकिन यही हक़ीक़त है) फिर होता क्या है?
(1) बच्चे कम पैदा होते हैं और हम भी शायद "हम दो हमारे दो" चाहते हैं।
(2) लड़की कमज़ोर होने की वजह से शौहर की ख्वाहिशात और घर वालों की ज़रूरिय्यात को पूरा करने में परेशान हो जाती है फिर दूसरे निकाह का सिस्टम भी तो नहीं है।
(3) पहले बच्चे की पैदाइश में ही सी सेक्शन (Cesarean) का मुआमला पेश आ जाता है जिसे आप बड़ा ऑप्रेशन कहते हैं। इस में माँ पर तो असर पड़ता ही है साथ में बच्चे की सिह्हत और दिमाग पर भी असर पड़ता है। आज हर चार औरतों में एक की डिलेवरी में सी सेक्शन का इस्तिमाल होता है तो इस की एक वजह ये "पतली कमर" और "स्लिम फिट" का भूत भी है।
उस ऑप्रेशन के बाद तक़रीबन छह हफ्ते तक औरत का जिस्म अपनी पहली हालत में आने के लिये कोशिश करता है मगर फिर शौहर की ख्वाहिशात, घर के काम और अब तो माशा अल्लाह एक बच्चा भी आ चुका होता है जो अम्मी अम्मी करने के चक्कर में मार भी खा जाता है, खैर उस बच्चे के लिए हम हमदर्दी का इज़हार करते हैं।
(4) लड़की के चेहरे की खूबसूरती पर इस दबाव का असर पड़ता है और बजाये शादी के बाद फूल की तरह खिलने के वो पैरों तले दब जाने वाली कली की तरह हो जाती है।
(5) सी सेक्शन के बाद संभलने से पहले उस की सिह्हत उसे ऐसी कमज़ोरी की तरफ ले जाती है जहाँ कई तरह की बीमारियाँ इसे जकड़ लेती हैं, जो मौत के साथ ही जाती हैं।
•••➲ औरत सिह्हतमन्द होनी चाहिये। लगना चाहिये कि खाते पीते घराने से है। यहाँ तो लगता है कि पोलियो वाला मुआमला है। अच्छे घर की लड़कियाँ भी ऐसी लगती हैं जैसे भुकमरी का शिकार हैं। एक वो औरतें होती थी जी मैदाने जिहाद में मर्दों को उल्टे क़दम भागने पर मजबूर कर देती थी। औरतों का एक हाथ पड़ जाने पर ऐसा होना चाहिये कि कुछ सुनाई ना दे पर यहाँ हाल ये है कि औरत को मार दो तो मारने से पहले हॉस्पिटल में बिस्तर लगवा कर रखना होगा। अल्लाह रहम करे।
•••➲ आप भी शादी करें तो सिह्हतमन्द औरतों से करें। अगर पतली दुबली से कर ली है तो उसे सिह्हत मन्द बनाये। ये "स्लिम फिट" का नाटक बन्द करें।...✍🏻
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*📝 एक लड़की चाहिये..❓*
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•••➲ एक लड़का है, जिसे आप "मौलवी टाईप" कह सकते हैं क्योंकि वो दाढ़ी नहीं मुंडाता, कोट पेंट नहीं पहनता, सिनेमा घरोंं में फिल्म देखने नहीं जाता, गाने नहीं सुनता, लड़कियों के साथ छेड़ छाड़ नहीं करता, सिगरेट, तम्बाकू वगैरह को हाथ तक नहीं लगाता, गालियाँ भी देनी नहीं आती और इस के इलावा भी बहुत सी बातें हैं जो उस में नहीं पायी जाती।
•••➲ अब उस लड़के को अपनी इस लुत्फो लज़्ज़त (इंटरटेनमेंट) से खाली ज़िन्दगी में एक लड़की चाहिये जिस से वो निकाह कर के उसे "बोर" कर सके और अपनी तरह उसे भी "ब्लेक एन्ड वाइट" बना सके।
•••➲ एक तो ऐसे लड़के से निकाह करना ही बहुत बड़ी बात है ऊपर से जनाब के नखरे तो देखिये कि शराइत और फ़रमाइशों की एक लम्बी चौड़ी फेहरिस्त (लिस्ट) भी तैयार कर रखी है जिसे हम यहाँ नक़ल कर रहे हैं। *क़ारईन (पढ़ने वाले) बतायें कि ऐसे लड़के से कौन निकाह करेगी?*
•••➲ *एक लड़की चाहिये जो :* (1) अहले सुन्नत के अक़ाइद से पूरी तरह वाक़िफ़ हो और अपनी ज़रूरत के मसाइल को बिना किसी की मदद के अज़ खुद किताबों से निकाल सके, उस के पास सनद (डिग्री) हो या ना हो, इस से कोई गर्ज़ नहीं बस इल्म होना चाहिये। *अगर मदरसे में पढ़ाई ना भी की हो तब भी कोई बात नहीं।*
(2) सिह्हत मन्द हो और उम्र बीस से तीस के दरमियान हो और रही बात खूब सूरत होने की तो असल खूब सूरती इन्सान का अख्लाक़ हैं। *लड़की के घर वालों से मुतालबात (डिमांड्स)*
(3) किसी भी तरह की लेन देन नही होगी, अब चाहे वो नक़दी हो, जहेज़ हो, मुँह दिखायी हो या कोई और नज़राना वगैरा हो।
(4) जहेज़ में क़ीमती समान मसलन, गाड़ी, फ्रिज, कूलर, ए सी, पंखा, टीवी, पलंग, सोफ़ा, गद्दे, कुर्सी, टेबल, ज़ेवरात, बर्तन, मिक्सर मशीन, ग्रिन्डर मशीन, वॉशिंग मशीन और मोबाइल हरगिज़ क़ुबूल नहीं किये जायेंगे और इन के इलावा कुछ देने के बजाये लड़की को कुछ दीनी किताबें दे सकते हैं।
(5) गाना बजाना बिल्कुल नहीं होना चाहिये, ना तो महफिल -ए- निकाह में, ना बारात में और ना किसी और हवाले से। इस के साथ साथ औरतों के गीत वगैरा गाने पर भी पाबंदी होनी चाहिये।
(6) गैर शरई और गैर ज़रूरी रस्मो रिवाज की सख्त मनाही है हल्दी की रस्म, गाने और ढोल बजाने की रस्म, लगन लगाने और संदल उतारने चढ़ाने की रस्म, सिन्दूर लगाने की रस्म, गालियाँ देने की रस्म, मुँह दिखाई और जेब भरायी की रस्म, रात को जागने और सुबह में शादी की रस्म, कपडों की टोकरी बदलने की रस्म, किसी को गोद में उठाने की तो किसी को धागे से नापने की रस्म, किसी को मीठा खिलाने तो किसी को जूता चुराने की रस्म, दूध में अँगूठी ढूँढने की रस्म और विदाई के वक़्त की छत्तीस क़िस्म की रस्में, सब पर सख्ती से पाबंदी आईद होनी चाहिये, दूसरे अल्फाज़ में यूँ समझ लें कि सिर्फ निकाह होगा।
(7) औरतों और लड़कियों की भीड़ बिल्कुल नहीं होनी चाहिये अगर आप ने दावत दी है तो उन के लिये बिल्कुल अलग इन्तिज़ाम होना चाहिये ताकि मर्द वा औरत एक महफिल में बे पर्दा जमा ना हो। *बेहतर होगा कि औरतों को दावत ना दें और रही बात बारात की तो उस में दो या तीन से ज़्यादा औरतें नहीं होंगी।*
(8) कुल (टोटल) बरातियों की तादाद बीस से भी कम होगी जिन के लिये खाना तैयार करने की इजाज़त नहीं है।
(9) बारात दिन में आयेगी और (चंद घंटों बाद) दिन में ही वापसी होगी।
(10) लड़के के उस्ताज़ -ए- गिरामी निकाह पढ़ायेंगे और बताने का मक़सद ये है कि वक़्ते निकाह किसी तरह की बात ना हो आप के इलाक़े में अगर कोई अन्जुमन, कमिटी या तन्जीम है जो लड़के वालों से मख्सूस रक़म (मस्जिद, मदरसा और क़ब्रिस्तान के लिये) लेती है तो वो पहले ही अदा कर दी जायेगी लेकिन निकाह में उन की किसी भी क़िस्म की कोई दखल अन्दाज़ी नहीं होनी चाहिये। *अब बतायें कि निकाह के लिये कौन तैय्यार होगा? लड़के का कहना है कि इस में इज़ाफा भी करना है, ये क्या कम था जो इज़ाफे की ज़रूरत आन पड़ी? दोस्तों ने समझाया कि इन शराइत को देख कर कोई तैय्यार नहीं होगा लेकिन लड़का है कि ज़िद्द पर क़ाइम है और कहता है कि हर लड़के की सोच ऐसी ही होनी चाहिये।* अब आप ही समझाइये कि ये दौर डी जे, पार्टी, मस्ती और फुल इंटरटेनमेंट का है, ऐसे रंगीन ज़माने में कौन आप की ब्लेक एण्ड वाइट पर तवज्जोह देगा।
*अगर हर लड़के की सोच ऐसी हो गयी तो....✍🏻*
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*📝 निकाह हो तो ऐसा..❓*
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•••➲ हज़रते सलमान फारसी रदिअल्लाहु त'आला अन्हु का निकाह है.......,
•••➲ बारात में आपके दोस्त अहबाब भी दुल्हन के घर चले.......,
•••➲ घर पहुँचे तो आप रदिअल्लाहु त'आला अन्हु ने इनसे फरमाया : "अल्लाह त'आला आप लोगों को जज़ा -ए- खैर अता फरमाए, अब आप लोग लौट जायें" और घर के अंदर ना जाने दिया जिस तरह के बेवकूफ लोग अपने दोस्तों को ज़ौजा के घर दाखिल कर लेते हैं।
•••➲ जब आप रदिअल्लाहु त'आला अन्हु ने घर खूब सजा धजा देखा तो फरमाने लगे कि तुम्हारे घर को बुखार आ गया है या काबा शरीफ यहाँ मुन्तक़िल हो गया है?
•••➲ अहले खाना कहा कि ऐसा नहीं है, फिर आप रदिअल्लाहु त'आला अन्हु ने दरवाज़े पर लटके पर्दे के सिवा सारे पर्दे उतरवा दिये फिर अंदर दाखिल हुये और वहाँ बहुत सारा सामान देखा तो पूछा कि इतना समान किस लिये है? घर में मौजूद लोगों ने कहा कि ये आपके और आपकी ज़ौजा के लिये है।
•••➲ आपने फरमाया : मुझे मेरे खलील मुहम्मद ﷺ ने ज़्यादा मालो दौलत जमा करने की नहीं बल्कि इस बात की नसीहत फरमायी थी कि तुम्हारे पास दुनियावी माल सिर्फ इतना हो जितना मुसाफिर का ज़ादे राह होता है।
•••➲ फिर आप ने वहाँ एक खादिम को देखा तो पूछा कि ये किस के लिये है? घर वालों ने कहा कि ये आप की और आप की अहलिया की खिदमत के लिये है।
•••➲ आप ने फरमाया : मुझे मेरे खलील ﷺ ने खादिम रखने की नसीहत नहीं फरमायी बल्कि सिर्फ उसे रोकने का फरमाया जिस से मैं निकाह करूँ और फरमाया कि अगर तुम ने (अपने सुसराल वालों से) मज़ीद कुछ लिया तो तुम्हारी औरतें तुम्हारी ना फरमान हो जायेंगी और इसका गुनाह खाविन्द (हसबेण्ड) पर होगा और औरतों के गुनाह में भी कोई कमी नहीं होगी!
•••➲ फिर आप रदिअल्लाहु त'आला अन्हु ने वहाँ मौजूद औरतों से फरमाया कि तुम सब यहाँ से जाओगी या यूँ ही मेरे और मेरी बीवी के दरमियान आड़ बनी रहोगी? वो बोलीं कि हम चली जायेंगी।
•••➲ जब आप अपनी बीवी के पास गये तो फरमाया : जो मैं कहूँगा मानोगी? बीवी बोली : जी हाँ! मै आप की इता'अत करूँगी। फिर आप ने फरमाया : मुझे मेरे खलील ﷺ ने नसीहत फरमायी है कि जब अपनी बीवी के पास जाओ तो उसके साथ मिल कर अल्लाह त'आला की इबादत करो। फिर दोनो मियाँ बीवी उठे और जब तक हो सका अल्लाह त'आला की इबादत में मसरूफ रहे, उसके बाद हक़ -ए- ज़ौजियत अदा किया।
*📕 ملخصاً و ملتقطاً: حلیة الاولیاء و طبقات الاصفیاء، اردو ترجمہ بہ نام اللہ والوں کی باتیں، ج1، ص348، 349، ط مکتبة المدینة کراچی، س1434ھ*
•••➲ काश कि हम भी अपने निकाह कें दुनिया की रंगीनियों को छोड़कर सुन्नत -ए- मुस्तफ़ा की सादगी को अपनायें, *अल्लाह त'आला हमें इस की तौफ़ीक़ अता फरमाये।..✍🏻*
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*📝 जोरू का गुलाम बनने में फाइदा है..❓*
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•••➲ जोरू यानी बीवी का गुलाम किसे कहते हैं?
•••➲ अगर बीवी की इज़्ज़त करना, उस के साथ घर का काम करना, उस से अच्छी तरह पेश आना, उस की डाँट या कड़वी बातों को खामोशी से सुन लेने का नाम गुलामी है तो यक़ीन करें बीवी का गुलाम बनने में ही फाइदा है। मेरी बातों से हो सकता है कि आप की मर्दानगी को तकलीफ़ पहुँचे लेकिन हक़ीक़त यही है।
•••➲ बीवी की इज़्ज़त करेंगे तो वो आप को भी इज़्ज़त देगी, अगर साथ में घर का काम करते हैं तो उस में कोई बुराई नहीं क्योंकि नबी -ए- करीम ﷺ भी घर के कामों में मदद फ़रमाते थे, अब रहा बीवी की चार बातें सुनना तो इस में भी हर्ज क्या है?
हज़रते शैख अबुल हसन खिरक़ानी रहमतुल्लाह अ़लैह की बीवी उन के लिये सख्त अल्फाज़ इस्तिमाल किया करती थी पर आप सब्र करते थे। एक शख्स आप के घर गया और आप की बीवी से पूछा कि शैख साहिब कहाँ हैं तो बीवी ने कहा कि तुम उसे शैख कहते हो, वो जाहिल और झूटा है! शैख का तो नहीं पता लेकिन मेरा शौहर जंगल की तरफ़ गया है। वो शख्स जब जंगल की तरफ़ गया तो देखा कि आप रहमतुल्लाह अ़लैह शेर पर लकड़ियाँ लादे तशरीफ़ ला रहे हैं। उस शख्स ने बीवी के सख्त रवय्ये के बारे में पूछा तो आप ने फ़रमाया कि अगर मै बीवी का बोझ बरदाश्त ना करता तो ये शेर मेरा बोझ कैसे उठाता (यानी मै अल्लाह की रज़ा के लिये बीवी की ज़ुबान दराज़ी पर सब्र करता हूँ तो अल्लाह त'आला ने इस शेर को मेरा इताअ़त गुज़ार बना दिया है।)
*📕 تذکرۃ الاولیاء، جز2، ص174*
•••➲ एक शख्स हज़रते उमर रदिअल्लाहु त'आला अ़न्हु के पास अपनी बीवी की शिकायत करने के लिये आया लेकिन जब दरवाज़े पर पहुँचा तो हज़रते उमर फारूक़ की बीवी हज़रते उम्मे कुलसुम की बुलंद आवाज़ सुनाई दी, वो हज़रते उमर फारूक़ पर (गुस्से की हालत में) बरस रही थीं। उस शख्स ने सोचा कि मै क्या शिकायत करूँ यहाँ तो हज़रते उमर फारूक़ भी इसी मसअले से दो चार हैं और वो वापस हो लिया।
•••➲ हज़रते उमर फारूक़ ने उस शख्स को बाद में बुलाया और पूछा तो उस ने बताया कि बीवी की शिकायत ले कर आया था मगर आप की मुहतरमा.....
•••➲ हज़रते उमर फारूक़ ने फ़रमाया: मुझ पर मेरी बीवी के कुछ हुक़ूक़ हैं जिन की वजह से मै दरगुज़र करता हूँ। वो मझे जहन्नम की आग से बचाने का ज़रिया है, उस की वजह से मेरा दिल हराम की ख्वाहिश से बचा रहता है, जब मै घर से बाहर होता हूँ तो वो मेरे माल की हिफाज़त करती है। मेरे कपड़े धोती है, मेरे बच्चों की परवरिश करती है, मेरे लिये खाना पकाती है।
•••➲ ये सुन कर उस शख्स को अहसास हुआ कि ये फाइदे तो मुझे भी अपनी बीवी से हासिल होते हैं लेकिन अफ़सोस कि मैने इन बातों को मद्दे नज़र रखते हुये उस की कोताहियों और कमियों को नज़र अन्दाज़ नहीं किया। फिर उस शख्स ने भी उस दिन से दरगुज़र से काम लेने की निय्यत कर ली।
*📔 تنبیہ الغافلین، ص280، بہ حوالہ اسلامی شادی*
•••➲ बीवी अगर चार बातें गुस्से में कह दे तो थोड़ा बरदाश्त कर लें, आप का क्या जायेगा? फिर जब उसे अहसास होगा तो हो सकता है आप से मुआफ़ी माँग ले। आप दरगुज़र से काम लें और अगर ये गुलामी कहलाती है तो यही सहीह, बीवी का गुलाम बन के रहने में फाइदा है। उस की गलती, उस की कोताही को देख कर फौरन गुस्सा हो जाना और अपनी मर्दानगी दिखाने के चक्कर में अपनी जिहालत दिखाना सहीह नहीं है। ये देखें कि उस ने आप के लिये कितनी क़ुरबानियाँ दी हैं। वो आप से कितना प्यार करती है। क्या ऐसा मुमकिन है कि बे-ऐब बीवी मिल जाये? अगर नहीं तो फिर दरगुज़र से काम लेने में ही फाइदा है यानी जोरू का गुलाम बनने में ही फाइदा है।...✍🏻
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 हमारे नौजवान और सोशल मीडिया..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ इस ज़माने में अब बहुत कम लोग ऐसे बचे हैं जो सोशल मीडिया से दूर हैं।
•••➲ टीवी, मोबाइल फोन और इन्टरनेट के ज़रिये हर शख्स पूरी दुनिया से ऐसा जुड़ा हुआ है जैसे दो उंगलियाँ।
•••➲ दुनिया के एक कोने में कुछ होता है तो हज़ारों मील दूर दूसरे कोने में फौरन खबर पहुँच जाती है।
•••➲ सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट्स के ज़रिये मुख्तलिफ शहरों के रहने वाले एक दूसरे को दोस्त बना रहे हैं, इन वेबसाइट्स में फेसबुक, वॉट्सएप्प, ट्विटर, इंस्टाग्राम, टेलीग्राम और वीडियो कॉलिंग एप्प्स बहुत मशहूर हैं।
•••➲ नौजवानों की अक्सरियत सोशल मीडिया पर मौजूद है, शहर क्या और देहात क्या हर जगह सोशल मीडिया का जाल बिछा हुआ है।
•••➲ *फायदा भी नुक्सान भी :-* जहाँ एक तरफ लोगों को सोशल मीडिया से बहुत बड़ा फायदा हुआ है वहीं दूसरी तरफ बहुत बड़ा नुक़्सान भी हुआ है फायदे और नुक़्सान का दारोमदार इसके इस्तिमाल पर है, अगर आप इसका सहीह इस्तिमाल करते हैं तो ये मुफीद है वर्ना मुदर।
•••➲ *नौजवानों के हालात :-* कई नौजवानों की टाईम लाईन, स्टेटस और तस्वीर ऐसी होती हैं कि अगर उनके वलिदैन या घर वाले देख लें तो शर्म से पानी पानी हो जायें!
•••➲ टाईम लाईन पर बेहूदा लतीफे, गंदी गंदी तस्वीरें और गैर अख्लाक़ी तहरीरें मौजूद होती हैं।
अगर कभी कभार दीनी जज़्बा पैदा हो भी गया तो ये तहरीरें शेयर करते हैं कि "ये मेसेज 11 लोगों को भेजो तो खुशखबरी मिलेगी", "इस महीने की मुबारकबाद दो तो जन्नत में जाने से कोई नहीं रोक सकता", "आज सैय्यदा फातिमा का यौम -ए- विलादत है" (जो कि सोशल मीडिया पर रोज़ होता है) वगैरा।
•••➲ अगर दीन के लिये जज़्बात ज़्यादा बढ़ गये तो फिर ये मेसेज शेयर करते हैं "एक फिल्म रिलीस हो रही है अल्लाह के बन्दे......." बाकी तो आप जानते ही हैं।
•••➲ *सहीह इस्तिमाल :-* अगर आप फेसबुक, वॉट्सएप्प, ट्विटर, और इंस्टाग्राम वगैरा के इस्तिमाल करते हैं तो उन्हीं लोगों को फोलोव करें या फ्रेंड (दोस्त) बनायें जिनकी तहरीरें (पोस्टस्), ट्वीट्स, फोटोज़, और वीडियोज़ वगैरा से आपके इल्म में इज़ाफ़ा हो या कोई अच्छी चीज़ सीखने को मिले, मिसाल के तौर पर उलमा -ए- अहले सुन्नत को फॉलो करें, इस्लामिक पेजेस को लाइक करें, अपने दोस्त और रिश्तेदारों जो इन वेबसाइटस पर मौजूद हों, उन्हें लिस्ट में शामिल करें।
•••➲ जहां कहीं कोई गैर मुनासिब चीज़ देखें तो फौरन उसके भेजने वाले को ब्लॉक करें।
•••➲ *गलत इस्तिमाल :-* सोशल मीडिया का गलत इस्तिमाल आपके गुनाहों में इज़ाफ़ा कर सकता है और ये भी हो सकता है कि आपको जेल की हवा खानी पड़े लिहाज़ा सियासी मामलात में बहस करने, किसी को गालियों भरा मेसेज करने और गैर अख्लाक़ी तहरीरों या तस्वीरों पर तब्सिरा करने से इज्तिनाब करें।...✍🏻
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 अपना काम बनता .... में जाये जनता..❓*
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•••➲ हज़रते सिर्री सक़्ती रहीमहुल्लाहु त'आला ने एक बार अल्हम्दु लिल्लाह कहा तो 30 साल तक अस्तगफार करते रहे!
•••➲ किसी ने पूछा कि ऐसा क्यों? आप ने फरमाया कि एक मर्तबा एक शख्स मेरे पास आया और कहा कि बगदाद में आग लग गयी है जिस से मकानात वग़ैरह जल गये हैं लेकिन आप की दुकान बच गयी है तो मैने इस पर अल्हम्दु लिल्लाह कह दिया और इस पर नादिम हूँ कि मैने मुसलमानों के नुक़सान को नज़र अंदाज़ कर के अपने फाइदे को देख कर अल्हम्दु लिल्लाह कहा।
•••➲ इसी वजह से मैं 30 साल से अस्तगफार कर रहा हूँ!
(رسالہ قشیریہ، اردو، ص74)
•••➲ आज कल हम इतने खुदगर्ज़ हो चुके हैं कि अपने मुसलमान भाइयों को पहुँचने वाले नुक़सान से हमें कोई फर्क़ ही नहीं पड़ता और ये तक कह देते हैं कि अपना काम बनता ...... में जाये जनता!
•••➲ हमेशा अपना फाइदा देखना अच्छी बात नहीं है।
•••➲ दूसरों को भी देख कर चलना चाहिये चाहे वो इल्म का मामला हो, माल का मामला हो या तिजारत हो।...✍🏻
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*📝 मै उसे सुन्नी बना दूँगा..❓*
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•••➲ इमरान बिन हित्तान रक़ाशी अकाबिर उलमा -ए- मुहद्दिसीन में से थे, उन की एक चचा ज़ाद बहन खारजीया (एक गुमराह फिरके से) थी, उस से निकाह कर लिया!
•••➲ उलमा -ए- किराम ने सुनकर ताना ज़नी की तो उन्होने कहा : मैने तो इसलिये निकाह किया है कि इसको अपने मज़हब पर ले आऊँगा।
•••➲ एक साल ना गुज़रा था कि खुद खारजी हो गये!!!
*📔 الإصابة فی تمیز الصحابة، ج5، ص233 بہ حوالہ ملفوظات اعلی حضرت*
•••➲ शिकार करने चले थे खुद शिकार हो बैठे!
•••➲ इसी तरह आज भी कुछ सुन्नी लड़के बद मज़हबों के घर से लड़की लाते हैं और कहते हैं कि मै इसे सुन्नी बना दूंगा लेकिन होता कुछ और है!
•••➲ निकाह करते वक़्त सबसे पहले हमें एक दूसरे के दीन को मल्हूज़ रखना चाहिये, अगर लड़की या लड़का बद-मज़हब है तो हरगिज़ उनसे रिश्ता ना जोड़ें।..✍
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*📝 रिमिक्स नात - इश्क़ या तौहीन..❓*
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•••➲ ये बयान करते हुए भी तकलीफ़ होती है के कुछ लोगो ने नात - ए- रसूल ﷺ जैसी मुक़द्दस शै को भी खेल कूद और नाचने गाने का ज़रिया बना लिया है!
•••➲ एक ऐसी बला हमारे मुआ'शरे में उतरी है जिस की जितनी मज़म्मत की जाए कम है।
•••➲ हम बात कर रहे है "रिमिक्स नात" की, इस मे होता ये है के असल नात को कुछ सॉफ्टवेअर्स के ज़रिए रीमिक्स किया जाता है यानी इस मे जदीद मज़ामीर (म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट) की आवाज़ को मिलाया जाता है जिस तरह फिल्मी गानों में मज़ामीर की आवाज़े होती है।
•••➲ ये आवाज़े (साउंड) कई तरह की होती है जिन्हें निकालने के लिए किसी ढोल को बजाने या बाँसुरी में फूँकने की ज़रूरत नही होती बल्कि ये सॉफ्टवेयर्स के ज़रिए बनाई जाती है।
•••➲ धमक की आवाज़ जिसे "बीट" कहा जाता है उस के साथ कई तरह की आवाज़े मिला कर नात को ऐसी शक़्ल दी जाती है के सुनने से फिल्मी गाना मालूम होता है।
•••➲ वो मुक़द्दस अश'आर जिन में अल्लाह के प्यारे रसूल ﷺ की तारीफ -ओ- तौसीफ बयान की जाती है उन को गाने की तरह रीमिक्स बनाना और फिर उसे बुलंद आवाज़ से जुलूस व महाफ़िल में बजाना इश्क़ -ए- रसूल है या तौहीन?
•••➲ एक आम इंसान भी गौर करे तो उसे मालूम हो जायेगा के ये कितनी घटिया हरकत है, इस बला में एक अच्छी खासी तादाद मुब्तला है!
•••➲ पहेले से ही फिल्मी गानों का भूत बचपन से पचपन के सरो पर सवार है, ये क्या कम था जो नात -ए- रसूल ﷺ की इज़्ज़त को पामाल करने पर उतर आए!
•••➲ हम आप से गुजारिश करते है के लिल्लाह इस से तौबा करे और रीमिक्स नात का बॉयकॉट करे।...✍
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*📝 टिक टोक..❓*
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•••➲ शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा जो अपने स्मार्ट फोन से सोशल मीडिया का इस्तिमाल करता हो और "टिक टोक" से बे खबर हो।
•••➲ अगर आप नहीं जानते तो हम बता दें कि ये एक सॉफ़्टवेयर है, जिसमें आप छोटी वीडियो (शॉर्ट क्लिप) बना सकते हैं और आम (शेयर) कर सकते हैं।
•••➲ इसमें मुख्तलिफ़ ढंग से वीडियो बनायी जाती हैं मसलन कोई नाच रहा है, कोई गा रहा है, कोई उछल कूद कर रहा है, तो कोई करतब दिखा रहा है।
•••➲ इस ऐप्लिकेशन ने हर शख्स को ये मौक़ा दिया है कि बिना फिल्मों में काम किये आप अपने करतब, अपने हुनर और अपनी कला (आर्ट) को दुनिया के सामने पेश कर सकते हैं। छोटे हों या बड़े, लड़के हों या लड़कियाँ सब मदारी बने हुये हैं।
•••➲ इसमें बे-हयाई, बे अदबी और बे शर्मी की हदें पार की जा रही हैं, ये सिर्फ एक ऐप्लिकेशन नहीं बल्कि ऐसा आला (टूल) है जो लोगों के अन्दर शर्मो हया नाम की चीज़ को खत्म कर रहा है।
•••➲ हो गयी महफिल तेरी क्या बे अदब बे क़ाइदा जो खड़े रहते थे वो अब हैं बराबर बैठे
•••➲ इस टिक टोक ने सिर्फ दो से तीन सालों में पाँच करोड़ से ज़्यादा लोगों को अपने जाल में फँसा लिया है!
•••➲ उन करोड़ों लोगों में ना जाने कितने मुस्लिम नौजवान और लड़कियाँ शामिल हैं जो दिन रात अपनी नुमाईश के नशे में चूर हैं।
•••➲ वो नौजवान जिन्हें अपने दीन के लिये खून पसीना एक करना चाहिये था वो अपना ढेर सारा वक़्त इस बेहूदा चीज़ में बरबाद कर रहे हैं, वो लड़कियाँ जिन्हें अपनी आखिरत की फिक्र में डूबे रहना चाहिये था वो दुनिया को अपने पीछे खड़ा करने की धुन में हैं।
•••➲ आपके पास अक़्ल है, सोचने समझने की सलाहियत है और वक़्त भी है लिहाज़ा गौर करें और पहचाने कि आपका फायदा कहाँ है।
•••➲ इस ऐप्लिकेशन की नुहूसत से बचें और अपना वक़्त अच्छे कामों में लगायें, क्योंकि ये वक़्त दुबारा नहीं मिलने वाला।
•••➲ हज़रते सैफ यमानी अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि अल्लाह त'आला का किसी बन्दे से अपनी नज़रे रहमत को हटा लेना ये है कि बन्दा बेकार बातों में मशगूल हो जाये और जो अपने मक़्सद -ए- हयात को फरामोश करके अपनी उम्र का एक लम्हा भी गुज़रे तो उसे ज़रूर हसरतों और नदामतों का सामना करना पड़ेगा।...✍
(وقت ہزار نعمت، ص114)
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*📝 पबजी..❓*
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•••➲ जवानों की महफ़िल में हमेशा कुछ ना कुछ चर्चे में रहता है, अभी एक मोबाइल गेम है "पबजी" जिस के पीछे घंटो बर्बाद किये जा रहे है, इस क़दर दीवाने हैं इस गेम के, के घर मे पबजी, बाहर पबजी, दिन में पबजी, रात में पबजी! खेलते तो हैं ही और जब दोस्तो से मुलाकात करते है तो बस इसी की बाते करते है।
•••➲ जितनी मेहनत, वक़्त और दिमाग इस खेल में खर्च किया जाता है, अगर उस का आधा भी पढ़ाई में लगाया जाए तो बहुत फायदा होगा, जितनी मुहब्बत इस खेल से है अगर उतनी मुहब्बत किताबो से की जाए तो जिंदगी सवर जाए।
•••➲ कई ऐसे है के पबजी मे बन्दूक में गोली भरने का तरीका, हथियार बदलने का तरीका और फालतू के फर्ज़ी दुश्मनो को मारने का तरीका तो मालूम है लेकिन अफसोस के इस्लाम के बुनियादी अक़ाइद नही मालूम!
•••➲ पबजी गेम तो आज आया है, इस से पहेले कैंडी क्रश, मारियो, कॉण्ट्रा, लूडो, कैरम बोर्ड वगैरा के मजनू पाए जाते थे और आज भी है यानी हमेशा कोई ना कोई फ़ुज़ूल काम मिल ही जाता है।
•••➲ नौजवान नस्ल को इन चीज़ों में मुब्तला करने के पीछे कई लोगो का हाथ है, अब किसी लड़के के वालिद को ही देख लीजिए, वो खुद बेनमाज़ी, बेइल्म और गाफिल है तो बेटे को "जुनैद व शिब्ली" कैसे बनायेगा।
•••➲ बाप माँ को लगता है के बेटा नौकरी करने लगा है और हज़ारो रुपये कमा रहा है बस तरक़्क़ी काफी हो गयी, अब शादी कर दो ताकि इस के बच्चे भी यही तरक़्क़ी का मंजन खरीदने के लिए निकल पड़े!
•••➲ ये नही देखा जाता है के बेटे के मोबाइल, उस के कम्प्युटर, उस के फेसबुक प्रोफ़ाइल, उस के व्हाट्सएप्प मैसेंजर पर कौन से फूल खिल रहे है, अब हो सकता है के आप सोचे के माँ बाप तो भोले होते है, उन्हें क्या मालूम बेटा क्या कर रहा है?
•••➲ हम कहेंगे के माँ बाप भोले नही बल्कि गैरज़िम्मेदार है और बच्चो की तरबियत के इस्लामी तरीके से बेखबर है।
•••➲ बच्चो को स्कूल का रास्ता दिखाया, कॉलेजेस के चक्कर कटवाए हत्ता के एक आधार कार्ड के लिए लाइन में घंटो खड़े रहेना सिखाया लेकिन मदरसे में तालीम हासिल करने के नाम पर खामोशी इख़्तेयार की, उलमा की खिदमत में हाज़िर हो कर फ़ैज़ हासिल करने की बात आयी तो कान पर जू तक ना रेंगी।
•••➲ लापरवाही की ही वजह है के औलाद कभी पबजी मे चिकन डिनर कर रही है तो कभी फेसबुक पर एक हज़ार फ़ॉलोवेर्स जमा करने की खुशी मना रही है,
•••➲ अल्लाह त'आला हमारे नौजवानों को इन फ़ुज़ूल चीज़ों से बचाये और आने वाली नस्लो की तरबियत पर काम करने की सलाहियत अता फरमाए।...✍
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 आप क्या पढ़ते हैं?..❓*
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•••➲ जिस तरह खाने से पहले ये देखना ज़रूरी है कि खाना तबीअ़त के मवाफिक़ है या नहीं, इसी तरह कुछ पढ़ने से पहले ये देखना भी ज़रूरी है कि उसको लिखने वाला अक़ीदे के मवाफिक़ है या नहीं।
•••➲ अगर आप किसी गुमराह शख्स की लिखी हुई बातों को पढ़ते हैं तो ये आपके अक़ीदे के लिये काफी खतरनाक साबित हो सकता है!
•••➲ ऐसे कई लोगों की मिसालें पेश की जा सकती हैं जिन्होने खुद पर भरोसे के सहारे बद मज़हबों की किताबों के समुन्दर में कश्ती चलाने की कोशिश की लेकिन दुनिया ने देखा कि उनकी कश्ती ऐसी डूबी कि उन्हें खबर तक ना हुई।
•••➲ लोगों के लिये ये बिल्कुल जाइज़ नहीं कि बद मज़हबों की किताबें या तहरीरें पढें क्योंकि मुम्किन है उनकी कोई बात आपके दिल में जगह बना ले फिर धीरे धीरे पूरे दिलो दिमाग पर क़ब्ज़ा कर बैठे।
•••➲ शैख मुहीयुद्दीन इब्ने अरबी (मुतवफ्फ़ा 638 हिजरी) लिखते हैं कि हज़रते सैय्यिदुना अबू अब्दुल्लाह याबूरी इश्बीली का शुमार औलिया में होता है, एक रात आप ऐसी किताब पढ़ रहे थे जो इमाम गज़ाली अलैहिर्रहमा के रद्द पर लिखी गई थी कि बीनाई (आँखों की रौशनी) चली गई!
•••➲ आपने फौरन बारगाह -ए- खुदावन्दी में सजदा रेज़ होकर गिरया वज़ारी की और क़सम खाई कि आइन्दा कभी भी इस किताब को ना पढूंगा, इसे अपने आप से दूर रखूँगा तो उसी वक़्त बीनाई वापस लौट आयी।
(روح القدس فی مناصحة النفس بہ حوالہ کشف النور عن الاصحاب القبور مع الحدیقة الندیة، ج2، ص8،
و تقدیم احیاء العلوم، ج1، ص75، ط مکتبة المدینة کراچی)
•••➲ बद मज़हबों की किताबें हरगिज़ ना पढें और ना तो उनकी तक़रीरें सुने।
•••➲ आज कल कुछ लोग जिन्हें अपने अक़ाइद का सहीह से इल्म नहीं वो भी बद मज़हबों का रद्द करने के लिये उनकी किताबें पढ़ते हैं! जान लीजिये कि ये बिल्कुल जाइज़ नहीं!..✍
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 224
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 मुझे पापड़ नहीं मिला ?..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ बारातियों को अच्छा खाना खिलाने के चक्कर में लड़की वाले क़र्ज़े में डूब गये लेकिन कुछ बारातियों को अभी भी शिकायत है कि उन्हें पापड़ नहीं मिला!
•••➲ कुछ लोगों का कहना है कि उन्हें सलाद और मछली की ज़ियारत नसीब नहीं हुई।
•••➲ वलीमा की दावत में लाखों रुपये खर्च हो गये मगर अफ़सोस कि पापड़, सलाद औए मछली वगैरा का मस'अला हल नहीं हो पाया!
•••➲ अभी अगर आप दो तीन सौ लोगों को खाने की दावत देते हैं तो ये भूल जाइये कि आप सबको अच्छी तरह खिला पायेंगे!
•••➲ अच्छी तरह का मतलब ये नहीं कि जो आप को अच्छा लगता है बल्कि इसका मतलब वो बतायेंगे जिन्हें पापड़ नहीं मिलेगा! मेज़बान अगर अपना कलेजा निकालकर मेहमानों को तक़सीम कर दे तो हाल ये है कि कुछ लोग खाने के बाद कहेंगे कि : कलेजा तो दे दिया लेकिन सहीह से पका नहीं था!
•••➲ क्या आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ऐसा होने की वजह क्या है? आइये हम अपको बताते हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है :
•••➲ इसकी बुनियादी वजह है खाने में तकल्लुफ़ यानी लोगों को वो खिलाना जो आप खुद नहीं खाते, आप जो खाते हैं उससे ज़्यादा क़ीमती खाने का इन्तिज़ाम करना।
•••➲ हमारे अस्लाफ का तर्ज़े अमल ये था कि वो खाने में तकल्लुफ़ को पसन्द नहीं करते थे!..✍
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 225
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मुझे पापड़ नहीं मिला ?..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 224 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *चुनान्चे :* एक बुज़ुर्ग फरमाते हैं कि मुझे इसकी कोई परवाह नहीं कि मेरे भाइयों में से मेरे पास कौन आता है क्योंकि मैं उनके लिये तकल्लुफ़ नहीं करता, खाने को जो कुछ होता है पेश कर देता हूँ।
•••➲ अगर मैं उनके लिये तकल्लुफ़ से काम लूँ तो उनका आना मुझे बुरा लगेगा।
(احیاء العلوم)
•••➲ ये जुमला क़ाबिल -ए- गौर है कि "अगर मैं उनके लिये तकल्लुफ़ से काम लूँ तो उनका आना मुझे बुरा लगेगा।"
•••➲ आज अगर कुछ लोग मेहमान को बोझ समझते हैं तो उसकी वजह भी तकल्लुफ़ है।
•••➲ एक बुज़ुर्ग ने तो जब अपने दोस्त को तकल्लुफ़ करता देखा तो कहने लगे कि आम हालात में ना तो तुम ऐसा खाना खाते हो और ना मैं, तो फिर इकट्ठा ऐसा खाना क्यूँ खायें? या तो तुम ये तकल्लुफ़ छोड़ दो या मै तुमसे मिलना छोड़ दूँ।
(احیاء العلوم)
•••➲ हज़रते सलमान फारसी रदिअल्लाहु त'आला अन्हु फरमाते हैं कि नबी -ए- करीम ﷺ ने हमें हुक्म दिया कि जो चीज़ हमारे पास नहीं उसके बारे में हम मेहमान के लिये तकल्लुफ़ ना करें और जो कुछ मौजूद हो पेश कर दें।
(التاریخ الکبیر للبخاری)
•••➲ हज़रते फुज़ैल बिन अयाज़ फरमाते हैं कि लोगों ने तकल्लुफ़ की वजह से मिलना छोड़ दिया है कि उनमें से एक अपने एक भाई की दावत करता है और तकल्लुफ़ से काम लेता है जिसकी वजह से वो दोबारा इसके पास ना आता।
(احیاء العلوم)
•••➲ इमाम गज़ाली अलैहिर्रहमा ने हज़रते अली रदिअल्लाहु त'आला अन्हु के मुतल्लिक़ लिखा है कि जब आपको दावत दी जाती तो आप फरमाते की मैं तीन शराइत के साथ तुम्हारी दावत क़बूल करूँगा।
(1) तुम बाज़ार से कोई नयी चीज़ नहीं लाओगे।
(2) घर में जो कुछ हो वो सारा पेश नहीं करोगे।
(3) अपने अहलो अयाल को भूखा नहीं रखोगे।
(ایضاً)
•••➲ हम तकल्लुफ़ में इतना बढ़ चुके हैं कि अब इसे ज़रूरी समझने लगे हैं।
•••➲ इसी वजह से हम लाखों रूपये लुटाने के बाद भी शिकायतें सुनते हैं, अगर हम सादगी अपनायें तो नताइज कुछ और होंगे।...✍
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*📝 हसीनों को आते हैं क्या क्या बहाने खुदा भी ना जाने तो हम कैसे जाने (माज़ अल्लाह) ?..❓*
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•••➲ ये एक फिल्मी गाने का शेर है जिसे कई लोग सिर्फ़ शौक़ से सुनते ही नहीं बल्कि खुद गुनगुनाते (पढ़ते) भी हैं।
•••➲ इस शेर में अल्लाह त'आला के इल्म का सरीह इंकार किया गया है कि "खुदा भी ना जाने!" और ये खुला कुफ्र है।
•••➲ जो लोग ऐसे अश'आर पर मुश्तमिल गाने गुनगुनाते हैं वो सब के सब इस्लाम से खारिज होकर काफिरो मुर्तद हो गये! उनके तमाम नेक आमाल अकारत हो गये! अगर वो शादी शुदा थे तो उनकी बीवियाँ निकाह से निकल गयी! अगर किसी से मुरीद थे तो बै'अत भी खतम!!!
•••➲ ऐसे लोगों पर फ़र्ज़ है कि फौरन बिला ताखीर तौबा करें और कलिमा पढ़कर फिर से मुसलमान हों और तजदीद -ए- निकाह वा तजदीद -ए- बै'अत करें।
•••➲ ऐसे गानों को बजाना सख्त हराम है और जो इन्हें पसन्द करेगा वो भी काफिर हो जायेगा क्योंकि कुफ्र पर राज़ी होना भी कुफ्र है।
•••➲ जिन लोगों को इस बात का इल्म नहीं था कि ये गाने कुफ्रिया हैं और इसे गाते थे, वो भी इस्लाम से खारिज हो गये! उन पर भी तौबा फर्ज़ है। इस शेर में सरीह कुफ्र है लिहाज़ा जहल और ला इल्मी का उज़्र पेश करना बे सूद है।
(ملخصاً: فتاوی شارح بخاری و فتاوی مرکز تربیت افتا)
•••➲ अल्लाह त'आला मुसलमानों को और बिल खुसूस हमारे नौजवानों को हिदायत दे।..✍
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 ख़ुदा भी जब ज़मीं पर आसमाँ से देखता होगा मेरे महबूब को किस ने बनाया सोचता होगा (मआज़ अल्लाह) ..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ ये एक फिल्मी गाने का शेर है जिसे कई लोग सिर्फ सुनते ही नही बल्कि खुद गुनगुनाते (पढ़ते) भी है।
•••➲ इस शेर में कहा गया है के "अल्लाह त'आला भी सोचता होगा के मेरे महबूब को किस ने बनाया!" इस मे तीन कुफ्र है! पहला ये के महबूब को अल्लाह ने नही बनाया, दूसरा ये की किसी दूसरे ने बनाया और तीसरा ये के वो सोचता होगा।
•••➲ इस के पहले मिसरे में भी कुफ्र है के "जब देखता होगा", इस का मतलब ये के ज़मीन उस की क़ूवत -ए- बसर के इहाते में नही बल्कि जब ज़मीन पर देखता है तब ही उसे ज़मीन के अहवाल मालूम होते है।
•••➲ जो लोग ऐसे अश'आर पर मुश्तमिल गाने गुनगुनाते हैं वो सब के सब इस्लाम से खारिज होकर काफिरो मुर्तद हो गये!
•••➲ उनके तमाम नेक आमाल अकारत हो गये! अगर वो शादी शुदा थे तो उनकी बीवियाँ निकाह से निकल गयी! अगर किसी से मुरीद थे तो बै'अत भी खतम!!!
•••➲ ऐसे लोगों पर फ़र्ज़ है कि फौरन बिला ताखीर तौबा करें और कलिमा पढ़कर फिर से मुसलमान हों और तजदीद -ए- निकाह वा तजदीद -ए- बै'अत करें।
•••➲ ऐसे गानों को बजाना सख्त हराम है और जो इन्हें पसन्द करेगा वो भी काफिर हो जायेगा क्योंकि कुफ्र पर राज़ी होना भी कुफ्र है।
•••➲ जिन लोगों को इस बात का इल्म नहीं था कि ये गाने कुफ्रिया हैं और वो उसे गाते थे, वो भी इस्लाम से खारिज हो गये! उन पर भी तौबा फर्ज़ है।
•••➲ इस शेर में सरीह कुफ्र है लिहाज़ा जहल और ला इल्मी का उज़्र पेश करना बे सूद है।
(ملخصاً: فتاوی شارح بخاری و فتاوی مرکز تربیت افتا)
•••➲ अल्लाह त'आला मुसलमानों को और बिल खुसूस हमारे नौजवानों को हिदायत दे।
•••➲ रब ने मुझ पे बड़ा सितम किया है
सारे जहाँ का गम मुझ को दे दिया है
(म'आज़ अल्लाह)
ये एक फिल्मी गाने का शेर है जिसे कई लोग सिर्फ सुनते ही नही बल्कि खुद गुनगुनाते (पढ़ते) भी है।
इस शेर में कहा गया है के "रब ने भी मुझपे सितम किया है" ये अल्लाह त'आला को ज़ालिम बनाना है, जो खुला कुफ्र है।
जो लोग ऐसे अश'आर पर मुश्तमिल गाने गुनगुनाते हैं वो सब के सब इस्लाम से खारिज होकर काफिरो मुर्तद हो गये! उनके तमाम नेक आमाल अकारत हो गये! अगर वो शादी शुदा थे तो उनकी बीवियाँ निकाह से निकल गयी! अगर किसी से मुरीद थे तो बै'अत भी खतम!!!
ऐसे लोगों पर फ़र्ज़ है कि फौरन बिला ताखीर तौबा करें और कलिमा पढ़कर फिर से मुसलमान हों और तजदीद -ए- निकाह व तजदीद -ए- बै'अत करें।
ऐसे गानों को बजाना सख्त हराम है और जो इन्हें पसन्द करेगा वो भी काफिर हो जायेगा क्योंकि कुफ्र पर राज़ी होना भी कुफ्र है।
जिन लोगों को इस बात का इल्म नहीं था कि ये गाने कुफ्रिया हैं और वो उसे गाते थे, वो भी इस्लाम से खारिज हो गये! उन पर भी तौबा फर्ज़ है। इस शेर में सरीह कुफ्र है लिहाज़ा जहल और ला इल्मी का उज़्र पेश करना बे सूद है।
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अल्लाह त'आला मुसलमानों को और बिल खुसूस हमारे नौजवानों को हिदायत दें!..✍
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*📝 रब ने मुझ पे बड़ा सितम किया है सारे जहाँ का गम मुझ को दे दिया है (म'आज़ अल्लाह)..❓*
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•••➲ ये एक फिल्मी गाने का शेर है जिसे कई लोग सिर्फ सुनते ही नही बल्कि खुद गुनगुनाते (पढ़ते) भी है।
•••➲ इस शेर में कहा गया है के "रब ने भी मुझपे सितम किया है" ये अल्लाह त'आला को ज़ालिम बनाना है, जो खुला कुफ्र है।
•••➲ जो लोग ऐसे अश'आर पर मुश्तमिल गाने गुनगुनाते हैं वो सब के सब इस्लाम से खारिज होकर काफिरो मुर्तद हो गये!
•••➲ उनके तमाम नेक आमाल अकारत हो गये! अगर वो शादी शुदा थे तो उनकी बीवियाँ निकाह से निकल गयी! अगर किसी से मुरीद थे तो बै'अत भी खतम!!!
•••➲ ऐसे लोगों पर फ़र्ज़ है कि फौरन बिला ताखीर तौबा करें और कलिमा पढ़कर फिर से मुसलमान हों और तजदीद -ए- निकाह व तजदीद -ए- बै'अत करें।
•••➲ ऐसे गानों को बजाना सख्त हराम है और जो इन्हें पसन्द करेगा वो भी काफिर हो जायेगा क्योंकि कुफ्र पर राज़ी होना भी कुफ्र है।
•••➲ जिन लोगों को इस बात का इल्म नहीं था कि ये गाने कुफ्रिया हैं और वो उसे गाते थे, वो भी इस्लाम से खारिज हो गये!उन पर भी तौबा फर्ज़ है। इस शेर में सरीह कुफ्र है लिहाज़ा जहल और ला इल्मी का उज़्र पेश करना बे सूद है।
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*📝 यू ट्यूब या गुमराही ट्यूब..❓*
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•••➲ स्मार्ट फोन का इस्तिमाल करने वाले बेश्तर लोग जानते हैं कि यू ट्यूब क्या है लिहाज़ा इस बारे में ज़्यादा लिखने की ज़रूरत नहीं है।
•••➲ शॉर्टकट में इतना जान लीजिये कि ये एक वेबसाईट है जो वीडियोज़ के लिये बनायी गई है।
•••➲ इसमें कोई भी कहीं से भी वीडियोज़ रिकॉर्ड करके अपलोड कर सकता है और फिर शेयरींग के ज़रिये कई लोगों तक पहुँचा सकता है।
•••➲ यू ट्यूब ने कई लोगों को काफी फाइदा दिया है, जिन लोगों को मुश्किल से उनके मुहल्ले वाले भी नहीं जान पाते आज यू ट्यूब की वजह से वो लाखों लोगों में मशहूर हैं, ये अलग सी बात है कि उन्होंने किस तरह की वीडियोज़ से शोहरत हासिल की।
•••➲ देहात में एक तक़रीर करने वाले को ज़्यादा से ज़्यादा कितने लोग जान पाते लेकिन ये यू ट्यूब ही है कि उन्हें "इन्टरनेशनल" लेवल पर मशहूर कर दिया।
•••➲ इससे आप हज़ारों किलोमीटर दूर रहने वाले किसी आलिम की तक़रीर को फ़्री में सुन सकते हैं!
•••➲ ये तो हुयी एक फायदे की बात लेकिन इसके साइड इफेक्ट्स को देखकर ऐसा लगता है कि ये यू ट्यूब नहीं बल्कि "गुमराही ट्यूब" है। एक शख्स ने यू ट्यूब खोला और तक़रीर सुननी शुरू कर दी, उसे पता ही नहीं कि तक़रीर करने वाला किस ग्रुप से ताल्लुक़ रखता है और उसके नज़रियात कैसे हैं।
•••➲ फिर धीरे धीरे उसकी बातें अच्छी लगने लगी, अब वो जो भी कहता है इसके लिये हर्फ -ए- आखिर होता है और वो शख्स इस तरह गुमराही के कुएँ में जा गिरता है!
•••➲ मेरे एक दोस्त जो लोगों को नेकी की दावत भी दिया करते हैं और बड़े अच्छे अखलाक़ के मालिक हैं, एक दिन इसी यू ट्यूब के ऊपर गुफ्तगू चल रही थी तो उन्होंने एक मुक़र्रिर का नाम लेते हुये कहा कि फुलाँ साहिब भी बहुत अच्छा बयान करते हैं.........,
•••➲ मैं तो फुलाँ साहिब का नाम सुनकर बिल्कुल हैरान हो गया क्योंकि उनका ताल्लुक़ एक गुमराह फिरक़े से है! पाकिस्तान के रहने वाले हैं और अपनी इमोशनल एक्टिंग के लिये जाने जाते हैं।
•••➲ जब मैने अपने दोस्त को ये बताया तो थोड़ी देर के लिये उनकी आंखें बड़ी हो गयी फिर उन्होंने आयिन्दा से फुलाँ साहिब के बयानात ना सुनने का अहद किया।
•••➲ ना जाने कितने लोग इस यू ट्यूब की वजह से गुमराह हुये हैं।
•••➲ नौजवानों का एक बहुत बड़ा तबक़ा इस दलदल में फँस चुका है जिनके निकलने की कोई राह नज़र नहीं आती!
•••➲ अगर आप यू ट्यूब का इस्तिमाल करते हैं तो बहुत ही एहतियात के साथ करें, उलमा -ए- अहले सुन्नत के इलावा किसी का बयान ना सुनें।
•••➲ कहीं ऐसा ना हो कि ये यू ट्यूब आपके लिये गुमारही ट्यूब बन जाये।...✍🏻
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*📝 यूट्यूब और इस्लामी चैनल्स ..❓*
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•••➲ यूट्यूब पर इस्लामी चैनल्स चलाना अच्छा काम है लेकिन इस का यह मतलब हरगिज़ नहीं कि जाइज़ और नाजायज़ की तमीज़ किये बगैर जो चाहे किया जाये।
•••➲ अक्सर चैनल्स चलाने वाले पैसों के लिये चैनल को मॉनीटाइज़ (Monetize) कर देते हैं यानी गूगल (Google) को इस बात की इजाज़त दे देते हैं कि वो देखे जाने वाले वीडियोज़ के साथ इश्तिहारात (Ads) भी दिखा सके। इस के बाद गूगल गंदे और फहस इश्तिहारात दिखाना शुरू कर देता है। इन्हीं इश्तिहारात के पैसे चैनल चलाने वालों को दिये जाते हैं।
•••➲ अब अगर गौर किया जाये तो एक कम इल्म रखने वाला मुसलमान भी इसे जाइज़ नहीं कहेगा क्योंकि यहाँ बिल्कुल वाज़ेह हो गया कि पैसे किस चीज़ के दिये जा रहे हैं।
•••➲ अगर आप यू ट्यूब का इस्तिमाल कर के लोगों की इस्लाह करना चाहते हैं तो कीजिये लेकिन पहले अपनी इस्लाह कर लीजिये और ये डॉलर का लालच छोढ़कर फक़त दीन के लिये काम करें।
•••➲ अल्लाह त'आला इस्लामी चैनल्स वालों को इस "नाजाइज़ कमाई" से बचने की तौफीक़ अता फरमाये।...✍
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*📝 न्यूज़ चेनल्ज़ से दूर रहें ..❓*
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•••➲ सिर्फ़ आवाम ही नहीं बल्कि वो लोग भी न्यूज़ चेनल्ज़ से दूर रहें जो डिबेट्स में झन्डा ले कर तो जाते हैं लेकिन उल्टा डंडा खाकर आते हैं और अपने साथ साथ दीन का भी मज़ाक़ बनवाते हैं। नौजवानों से खास गुज़ारिश है कि न्यूज़ चेनल्ज़ ना देखें क्योंकि इस से उन का फाइदा है हमारा नहीं।
•••➲ अपना क़ीमती वक़्त उन्हें देने के बजाये अपनी तारीख को पढ़ें ताकि आप ये जान सकें कि वो क्या चीज़ थी जिस की वजह से मुसलमानों के हाथों में दीनो दुनिया की डोर थी और वो क्या बातें थी जो हमें मज़्लूमों की उम्मीद बनाती थीं और वो क्या राज़ था कि हमने किसी के सामने घुटने नहीं टेके और वो क्या गलतियाँ हैं जिन्होंने हमें इस हालत पर पहुँचा दिया।
•••➲ पढ़िये ताकि आप जान सकें कि कैसे मायें अपने बच्चों को शहीद होने के लिये पालती थीं। पढ़िये ताकि आप जान लें कि मुसलमानों की कामयाबी किस रास्ते पर है। पन्नों को पलटिये ताकि आप एक नई तारीख लिख सकें। ज़हन को बदलिये ताकि आप दुनिया को बदल सकेंं। कुछ कीजिये जिसे ज़माना याद रखे।
•••➲ न्यूज़ चेनल्ज़ आप के दिमाग का तवाज़ुन आसानी से बिगाड़ सकते हैं और अगर आप ना संभल सके तो आप अपने नफ्स के गुलाम बन जायेंगे जबकि आपको अल्लाह की रज़ा के लिये लड़ना है, अपने गुस्से पर क़ाबू रख कर आपको अपनी नफरत और अपने ज़ाती मामलात को एक तरफ़ करना होगा और फिर किसी से मुहब्बत या नफरत सिर्फ़ अल्लाह और उसके रसूल के लिये करनी होगी।
•••➲ न्यूज़ चेनल्ज़ के असारात बड़े ही खतरनाक साबित हो रहे हैं लिहाज़ा इन्हें देखने से परहेज़ लाज़मी है।..✍
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*📝 तकनीक ने हमें क्या बना दिया ..❓*
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•••➲ ये दौर तकनीक का दौर है। मुश्किल से मुश्किल काम को तकनीक के ज़रिये आसानी से अंजाम दिया जा रहा है। इस का इंकार नहीं किया जा सकता कि तकनीक से लोगों को काफ़ी फाइदा हुआ है और इन्तिहाई दर्जे की सहूलतें फराहम हुई हैं लेकिन इस से जो नुक़सान हुआ है वो भी बहुत बड़ा है।
•••➲ सब से बड़ा नुक़सान ये हुआ है कि लोगों के ज़हनों में शॉर्ट-कट का एक कीड़ा पैदा हो चुका है। जो हर जगह, हर काम में शॉर्ट-कट तलाश करते हैं।
•••➲ एक वो ज़माना था कि लोग एक हदीस सुनने के लिये महीनों सफ़र करते थे, एक किताब को लिखने में सालों गुज़ार देते थे, सफ़रे हज में महीनों लगा देते थे और भी कई मिसालें पेश की जा सकती हैं जिन से मालूम होता है कि उन के अंदर जिद्दो जहद का जज़बा कामिल दर्जे का था। एक आज का दौर है कि लोग ज़्यादा वक़्त लगा कर लिखने के बजाये कॉपी पेस्ट करने को पसंद करते हैं, यू ट्यूब पर किसी की तक़रीर सुनते वक़्त अगर लगता है कि वो ठहर ठहर कर बोल रहा है तो उसे स्पीड कर के सुनते हैं, अगर नेटवर्क की वजह से एक मेसेज जाने में देर करे तो हम मोबाइल के सिस्टम को हिला देते हैं, अगर लाइट चली जाये तो हमारा दम घुटने लगता है और मुख्तसर ये कि तकनीक के भरोसे हमारी आधे से ज़्यादा ज़िन्दगी है।
•••➲ पहले लोगों के पास मोबाइल, कम्प्यूटर, इन्टरनेट, टी वी और फेसबुक, वॉट्सएप्प वगैरा नहीं था तो वो अपनी अक़्ल को मुस्तक़्बिल के लिये खर्च करते थे। उन की ज़िन्दगियों को पढ़ने के बाद जब हम अपनी ज़िन्दगी को देखते हैं तो मालूम होता है कि उन का काम अपनी आने वाली नस्लों के लिये होता था और हमारा सिर्फ़ अपना टाईम पास करने के लिये होता है, वो जिद्दो जहद करने वाले थे और हम शॉर्ट-कट चाहते हैं, वो आसमान से तारे तोड़ लाने का जज़बा रखते थे और हम चाहते हैं कि होम डिलीवरी का कोई ऑप्शन हो, वो जंग के लिये तैय्यार रहते थे, हम अमन-अमन का गीत गाते हैं, उन का नाम सुन कर बड़े बड़े बादशाह कांपते थे और हमें एक कुत्ता भी डरा कर चला जाता है, वो अपने शहीदों का इंतकाम लेते थे और हम उन की लाश पर खड़े हो कर दुश्मनों से गले मिलते हैं, वो दुश्मनों पर घात लगाकर हमला करते थे और हम ट्वीट करके दिखाते हैं कि ये तकनीक का ज़माना है, वो ज़्यादा शादियाँ करते, ज़्यादा बच्चे पैदा करते ताकि मुजाहिदीन की तादाद में इज़ाफा हो और हम चूँकि तकनीक के मारे हैं लिहाज़ा दो बच्चों को डॉक्टर इन्जीनियर बनाने को ही कामयाबी समझते हैं।
•••➲ अभी बस नहीं हुआ, अभी बहुत कुछ कहने को है।
•••➲ वो मैदाने जंग में दुश्मनों के मुक़ाबले के लिये उतर कर अल्लाह त'आला से दुआ करते थे और आज हम घर में भी दुआ कर के फेसबुक पर दोस्तों से आमीन कहलवा लेते हैं,
•••➲ वो अपने बच्चों को घुड़ सवारी, तलवार बाज़ी, तीरन्दाज़ी वगैरह की तालीम देते थे और हम बच्चे को गाँधी बना कर ये बताते हैं कि कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल भी......कोई हद भी होती है।
•••➲ पहले दुश्मन आते थे अमन का मुआहिदा करने और अब हम जाते हैं
शान्ति का प्रपोजल ले कर, पहले दुश्मनों को हम से पनाह माँगनी पड़ती थी और आज हम उन से अपने हुक़ूक़ माँगते हैं वो भी धरना दे कर और जुलूस निकाल कर, क्या मज़ाक़ है?
•••➲ कहने को तो और भी बहुत कुछ है लेकिन चूँकि ये तकनीक का ज़माना है और लोग ज़्यादा लम्बी पोस्ट पढ़ते नहीं तो कहीं आप स्क्रोल कर के आगे ना निकल जायें इसलिये यहीं करते हैं। बस.......✍
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 कितने भोले हैं वो मुसलमान जो ये उम्मीद रखते हैं कि काफ़िर उन्हें उनके हुक़ूक़ (Rights) देंगे। ..❓*
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•••➲ इसे भोलापन कहें, बुज़दिली कहें या बेवकूफ़ी, समझ नहीं आता।
•••➲ मुसलमानों को मालूम होना चाहिये कि उनके पास ईमान की दौलत है और जब तक ये आपके पास है आपको जंग लड़नी होगी। ये हक़ और बातिल की जंग है जो क़ियामत तक जारी रहेगी, अमन के लिये आखिरत है दुनिया नहीं, लिहाज़ा ये भूल जायें कि काफ़िर आप के दोस्त हैं।
•••➲ आप से अगर कोई काफ़िर प्यार की दो बातें कर लेता है या आप के लिए आवाज़ उठाता है तो ये मत समझियेगा कि वो आप का दोस्त बन चुका है, कुफ्र और इस्लाम के बीच दोस्ती का कोई इम्कान ही नहीं है।
•••➲ अगर आप बगावत करने की हिम्मत और ताक़त नहीं रखते तो कम से कम ये मत कहिये कि ये हुकूमत, ये काफ़िर और ये मुशरिकीन हमें सुकून से रहने देंगे, आप चाहे जो कर लें लेकिन आप को सताया जायेगा, ज़ुल्म किया जायेगा, आपके ईमान को खरीदने की कोशिश की जायेगी और अगर खरीद ना सके तो लूटने की साज़िश की जायेगी।
•••➲ कुफ्र एक मिल्लत है, ये याद रखिये, अपनी सफ़ें सीधी कर लीजिये, और खुद को मज़बूत कीजिये अब कुत्ते कुत्तों की तरफ हो गये हैं।
•••➲ अपने दरमियान मौजूद गद्दारों को मुहरा बनाइये और उन्हें इस्तिमाल कर के ज़ाहिरी दुश्मनों से लड़िये। फिर इन गद्दारों का भी काम तमाम कीजिये।
•••➲ मुख्तसर ये कि उम्मीद छोड़ कर उम्मीद बनिये, जिस तरह भी हो सके कोशिश जारी रखिये।
•••➲ जिद्दो जहद हमारी तरफ़ से है और फतह अल्लाह की तरफ़ से।..✍
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 माल और वक़्त बरबाद, स्कूल और कॉलेज आबाद ..❓*
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•••➲ आप को अच्छा लगे या ना लगे लेकिन माल और वक़्त की बरबादी का दूसरा नाम स्कूल और कॉलेज है। अगर आप ये समझते है के हम इल्म हासिल करने के ख़िलाफ़ है तो आप को हमारी बातें समझ नहीं आएगी। आप अगर ये समझते है के इल्म हासिल करने के लिए हम स्कूल और कॉलेज के मोहताज है तो भी आप को हमारी बातें समझ नहीं आएगी।
•••➲ हम एक ऐसी हकीकत पर से पर्दा उठाने की कोशिश कर रहे हैं जिस पर कई पर्दे है। हमारे मुआश्रे में अब एक अजीब माहोल बन चुका है के जिस काम को लोग कसरत से करते है या करने को जरूरी समझते है, हमें भी वही करना है और वही जरूरी है।
•••➲ स्कूल और कॉलेज में बच्चो की आधी ज़िन्दगी बीत जाती है लेकिन हासिल क्या होता है? ये आप खुद देखे तो मालूम हो जाएगा।
•••➲ हमने कई पढ़ाकू देखे है जिन्होंने स्कूल और कॉलेज के हजारों चक्कर लगाए है लेकिन उन्होंने इल्म हासिल नहीं किया। ये आप समझते है के स्कूल और कॉलेज ही इल्म हासिल करने का जरिया है लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ नहीं है। जब स्कूल और कॉलेज का नामो निशान नहीं था, उस वक़्त ऐसे ऐसे लोग मौजूद थे जिनके बारे में पढ़ कर ये कहना बिल्कुल सही होगा के सैंकड़ों स्कूल और कॉलेज के मुकाबले में वह अकेले काफी थे। दरअसल वह इल्म हासिल करते थे और हम बस रसम (formality) अदा कर रहे है और इसे जरूरी भी समझ रहे है।
•••➲ इल्म हासिल करने के लिए उम्र क्या होनी चाहिए? वक़्त कितना लगना चाहिए? माल कितना खर्च होना चाहिए? अगर वक़्त और पैसे ज्यादा लग रहे है तो इल्म कोन सा और कितना हासिल होना चाहिए? इन बातो का अंदाज़ा लगा सकते है तो लगाए और देखे के आप स्कूल और कॉलेज में तालीम हासिल कर रहे है या अपना और अपने बच्चो का वक़्त बर्बाद कर रहे है।...✍
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 बच्चे पर ज़ुल्म ..❓*
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•••➲ जिस बच्चे ने सहीह से बोलना भी नहीं सीखा, जिस का ज़हन अभी तैय्यारी के मरहले में है। जिस की समझ ने अभी उड़ने के लिये पंख ही फैलायें हैं उसे स्कूल जैसे क़ैद खाने में भेजना, उस पर ज़ुल्म नहीं तो और क्या है?
दर्जन भर किताबें और कॉपियाँ,
ऊपर से कई मौज़ूआत को एक साथ पढ़ना,
ऊपर से तमाम असातिज़ा का खौफ़,
ऊपर से माँ बाप, भाई बहन के ताने,
फैल होने का डर,
मार खाने का डर.....
•••➲ और भी बहुत सी बातें हैं जिन के बोझ तले दब कर बच्चे की ख्वाहिश, उस की क़ाबिलियत, उस का ज़हन और बिल आखिर उस की ज़िन्दगी दम तोड़ देती है।
•••➲ हर घन्टे एक तालिबे इल्म (Student) खुद खुशी करता है, इस से आप अंदाजा लगायें कि ये कितना बड़ा अल्मिया है जिस की तरफ़ हम तवज्जो नहीं दे रहे हैं।
•••➲ हो सकता है कि खुद खुशी करने वालों में अगला नाम आप के बच्चे का हो लिहाज़ा इस पर तवज्जो दें।
•••➲ बच्चों को स्कूल और कॉलेज से दूर रखें। बच्चों को क़ाबिल बनायें। उन्हें इल्म दें लेकिन इस रस्मी पढ़ाई से दूर रखें। चार लोग ज़रूर चालीस क़िस्म की बातें कहेंगे लेकिन आप को उन के हिसाब से नहीं बल्कि अपनी राह खुद बनानी है।..✍
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*📝 ये बच्चों को क्यों नहीं पढ़ाते? ..❓*
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•••➲ हज़रते ज़ैनुल आबिदीन रदिअल्लाहु त'आला अ़न्हु फ़रमाते हैं कि हुज़ूर ﷺ के गज़वात (यानी जो जंगे आप ने लड़ीं, वो) हमें इस तरह पढ़ाई जाती थी जैसे क़ुरआन पाक की सूरतें याद करवाई जाती हैं!
•••➲ इस्माईल बिन मुहम्मद बिन साद बिन अबी वक़ास मदनी से रिवायत है उन्होंने कहा है: "हमें वालदे गिरामी हुज़ूरे अकरम ﷺ के गज़वात याद कराते थे और बार-बार सुनाते थे। वो फ़रमाते थे कि मेरे नूरे नज़र ये तुम्हारे आबा-ओ- अज्दाद का शर्फ है, इस के ज़िक्र को ज़ाया ना करो।
•••➲ इमाम ज़हरी से रिवायत है, उन्होंने फ़रमाया : "गज़वात के इल्म में दुनिया और आखिरत की भलाई है।"
(سبل الھدی والرشاد، ج4، ص493 و ضیاء النبی، ج3، ص259)
•••➲ आज इस उम्मत के नौजवान खूब पढ़ने लिखने के बाद इस क़ाबिल बनते हैं कि किसी के यहाँ नौकरी कर सकें! ये क्या ही बुरी पढ़ाई है।
•••➲ पढ़ाई तो ये है कि आयात के साथ साथ गज़वात पढ़ाये जायें। एक तरफ़ आखिरत में कामियाबी हासिल होगी और दूसरी तरफ़ दुनिया भी क़दमों में होगी।
•••➲ आज जिस तरह की पढ़ाई राइज है ये हमें बस नौकर बना सकती है और दूसरों के क़दमों तक पहुँचा सकती है लेकिन जिस पढ़ाई की बात हम कर रहे हैं वो बिल्कुल मुख्तलिफ़ है।
•••➲ कसरत से जलसे होते हैं, तक़रीरें बहुत होती हैं, अशआर खूब पढ़े जाते हैं, नारेबाज़ी भी जम कर होती है, माहनामे दर्जनों के हिसाब से छपते हैं लेकिन फिर भी तरक़्क़ी हमें दिखाई नहीं देती बल्कि ऐसा लगता है कि सब एक रस्म अदा की जा रही है।
•••➲ अब ज़रूरत है कि तालीम में आयात के साथ गज़वात को रटाया जाये। उम्मते मुस्लिमा के खून में गर्मी पैदा की जाये। गफलत में सोये लोगों को मुजाहिद की अज़ान से उठाया जाये।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 गर्ल फ्रेंड और बॉय फ्रेंड क़ियामत में एक दूसरे के दुश्मन होंगे ..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ अल्लामा इब्ने जौज़ी लिखते हैं कि एक इबादत गुज़ार शख्स को एक लड़की से इश्क़ हो गया। उन के इश्क़ का पूरे शहर में चर्चा हो गया। एक दिन लड़की ने कहा कि अल्लाह की क़सम मै आप से मुहब्बत करती हूँ। लड़के ने कहा कि अल्लाह की क़सम मै भी तुम से मुहब्बत करता हूँ। लड़की ने कहा कि मै चाहती हूँ कि अपना मुँह तुम्हारे मुँह पर रखूँ। उस ने कहा कि मै भी यही चाहता हूँ लड़की ने कहा कि मै चाहती हूँ कि अपना सीना तुम्हारे सीने से लगाऊँ और अपना पेट तुम्हारे पेट से लगाऊँ। उस ने कहा कि मै भी यही चाहता हूँ।
•••➲ लड़की ने कहा कि फिर तुम्हें किस ने रोका है? अल्लाह की क़सम यही तो मुहब्बत का मौक़ा है तो उस ने जवाब दिया कि अल्लाह त'आला का फरमान है।
اَلْاَخِلَّآءُ یَوْمَىٕذٍۭ بَعْضُهُمْ لِبَعْضٍ عَدُوٌّ اِلَّا الْمُتَّقِیْنَؕ۠ (67:43)
اس (قیامت کے) دن گہرے دوست ایک دوسرے کے دشمن ہوجائیں گے سوائے پرہیزگاروں کے۔
•••➲ "उस (क़यामत के) दिन गहरे दोस्त एक दूसरे के दुश्मन हो जाएंगे सिवाए परहेज़गारों के"
•••➲ फिर वो कहने लगा कि मै इस को पसंद नहीं करता कि तुम्हारी और मेरी दोस्ती क़ियामत के दिन दुश्मनी में बदल जाये।
•••➲ लड़की ने कहा कि हमारा रब हमारी तौबा क़ुबूल कर लेगा लिहाज़ा हम तौबा कर लेंगे। उस ने कहा कि क्यों नहीं लेकिन मुझे इस का इत्मिनान नहीं है कि मुझे अचानक मौत ना आ जाये। फिर वो उठा और उस की आँखों में आँसू थे और फिर दोबारा कभी उस लड़की के पास ना गया और अपनी इबादत में मसरूफ हो गया।
(ذم الھوی لابن جوزی ملخصاً)
•••➲ नौजवानों अगर तुम्हें किसी से प्यार हो गया है और तुम्हारा प्यार सच्चा है तो क्या तुम ये पसन्द करोगे कि चंद दिनों की दुनिया के बाद क़ियामत में तुम्हारा महबूब तुम्हारा दुश्मन हो जाये?
•••➲ क्या ये अच्छा होगा कि आज तुम इसे हासिल कर लो लेकिन हमेशा के लिये खो दो? नहीं हरगिज़ नहीं!
•••➲ एक सच्चा आशिक तो ये चाहेगा कि मै अपने महबूब को हमेशा के लिये हासिल कर लूँ और उस का एक ही तरीक़ा है कि तक़वा को ना छोड़ा जाये और गुनाहों से बचा जाये।
•••➲ आप को जिस से मुहब्बत हुई उस से निकाह कर लीजिये। यही सब से बेहतरीन हल है। इस से आप को यहाँ भी फाइदा होगा कि आप का महबूब आप की नज़रों के सामने होगा और आप का तक़वा भी सलमात रहेगा और वहाँ भी आप अपने महबूब को महबूब ही पायेंगे ना कि दुश्मन।
•••➲ अगर निकाह ना हो पाये तो कोई ऐसा काम ना करें जो आप के महबूब को आप से हमेशा के लिये दूर कर दे अगर आप ने अपना दामन गुनाहों से खाली रखा तो यक़ीन जानिये कि अल्लाह त'आला हर शय पर क़ादिर है, वो आप के दामन को आप की मुरादों से भर देगा..✍
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*📝 जन्नती हूर के बारे में भी सोचें ..❓*
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•••➲ हज़रते जुन्नून मिस्री रहमतुल्लाही त'आला अलैह एक जवान लड़के को कुछ लिखवा रहे थे कि एक हुस्नो जमाल की मलिका सामने से गुज़री, वो जवान लड़का नज़रें चुरा चुरा कर उस लड़की की तरफ़ देखने लगा।
•••➲ हज़रते जुन्नून मिस्री ने देख लिया और उस लड़के की गर्दन फेर कर ये शेर कहा :
دع المصوغات من ماء وطین
واشغل ھواک بحور خرد عین
•••➲ "पानी और मिट्टी से बनी औरतों को छोड़ और अपने इश्क़ और ख्वाहिश को उस हूर का मतवाला बना जो कुँवारी है और मोटी आँखों वाली है।"
(ذم الھوی لابن جوزی)
•••➲ प्यार प्यार का जाप जपने वालों को कभी जन्नती हूरों के बारे में भी सोचना चाहिये जो इस दुनिया की औरतों की तरह नहीं कि आप को धोका दे, आप को परेशान करे या आप से आप के माल की वजह से मुहब्बत करे।
•••➲ इस चार दिन की ज़िन्दगी में प्यार मुहब्बत के इलावा और भी बहुत से काम हैं जिन्हें कर के आप अपनी दाईमी दुनिया यानी आखिरत को सँवार सकते हैं वरना ये "दो दिन वाला प्यार" आप को दाईमी मुसीबत में डाल देगा।...✍
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*📝 मेरी बेटी की शादी है..❓*
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•••➲ आए दिन मस्जिदों में, सड़कों पर और गली कूचों में ऐसे लोग देखने को मिलते हैं जो अपनी बेटी या अपनी बहन की शादी के लिये पैसे माँग रहे होते हैं। ये क्या ड्रामा है? मतलब हद हो गयी है। लड़के वाले तो बेशर्म हैं ही कि जहेज़ के लिये मजबूर करते हैं लेकिन लड़की वालों को भी शर्म नहीं आती।
•••➲ अब ये मत पूछियेगा कि लड़की वाले बेशर्म कैसे हुये?
•••➲ अगर कोई अच्छा पढ़ा लिखा, समझदार और दीनदार लड़का मिलता है जो जहेज़ नहीं माँगता तो इन लड़की वालों को और लड़की को पसंद ही नहीं आता ऊपर से अजीब अजीब बातें निकालते हैं कि लगता है लड़के में कुछ कमी है?
•••➲ अगर कोई शादी शुदा लड़का दूसरी शादी के लिये इन गरीब लड़की वालों से "सिर्फ लड़की" माँगता है तो ऐसा करते हैं जैसे लड़की क़त्ल करने के लिये माँगी हो!
•••➲ भीक माँग कर ऐसे लड़के से शादी करेंगे जो दाढ़ी मुंडाता हो, फिल्में देखता हो, पेंट-शर्ट पहनता हो और एक लाख, साथ में गाड़ी का मुतालिबा भी करे लेकिन ऐसे लड़के को नहीं देंगे जो दाढ़ी रखता हो और दीनदार हो क्योंकि उस का क़सूर ये है कि उस ने एक शादी कर रखी है। दूसरी शादी को एक जुर्म समझा जाता है और फिर धूम धाम की तो बात ही मत पूछिये, चाहे घर में खाने को ना हो लेकिन धूम धाम से शादी ज़रूर करेंगे ताकि नाक ना कट जाये।
•••➲ क़र्ज़ ले कर और भीक माँग कर सैकड़ों लोगों को खाना खिलाना कहाँ लिखा है? क्या बिना दावत के शादी नहीं हो सकती? क्या बगैर बाजे, बगैर लाईट, बगैर टेंट और बगैर महँगे कपड़ों के निकाह नही हो सकता? फिर क्यों ये ड्रामा बना रखा है?
•••➲ शादी को आसान कीजिये, दूसरी शादी को आम कीजिये ताकि ये भीक माँगने का ड्रामा बन्द हो। लड़की वालों को आगे बढ़ना होगा और अगर कोई ऐसा लड़का मिले जो दीनदार हो अगर्चे शादी शुदा हो तो उसे अपनी लड़की देने में सोचें मत क्योंकि ये कोई जुर्म नहीं है या कोई गलत बात नहीं है। अगर चार शादियाँ आम हो जायें तो शादियाँ खुद-ब-खुद आसान हो जायेंगी।
•••➲ लड़कों को भी चाहिये कि अपनी सोच को बदलें और लड़की वालों से पैसे, गाढ़ी वगैरा का मुतालिबा करने के बजाए ये डिमांड रखें कि आप को और आप की लड़की को मेरी दूसरी, तीसरी बल्कि चौथी शादी से कोई एतराज़ नहीं होना चाहिये तब ही ये शादी होगी। इस से आप के लिये दूसरी शादी का रास्ता आसान होगा और शादियाँ आसान हो जायेंगी। किसी बाप को अपनी बेटी के लिये भीक नहीं मांगनी पड़ेगी, किसी भाई को चंदा इकट्ठा नहीं करना पड़ेगा बल्कि एक मर्द चार औरतों का शौहर होगा और वो किसी चार गरीब बाप की बेटी या चार गरीब भाइयों की बहन होंगी।..✍
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*📝 मेहमान नवाज़ी..❓*
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•••➲ मेहमान कभी भी आ सकते हैं, आज कल तो फोन कर के आते हैं लेकिन हम उन मेहमानों की बात कर रहे हैं जो अचानक टपक आते हैं।
•••➲ मेहमान नवाज़ी के लिये सामान की ज़रूरत पड़ती है और मेहमान नवाज़ी में देर ना हो इसलिये हम सामान तैय्यार रखते हैं।
•••➲ अगर मेहमान जल्दी में हो तो पकवान नहीं बनाते बल्कि किसी तैय्यार शुदा चीज़ से काम चलाते हैं और वो भी ना हो तो ज़िल्लत का सामना करना पड़ सकता है।
•••➲ इस से मालूम होता है कि तैयारी का होना बहुत ज़रूरी है। आप महेमानों के लिये सामान जमा कर के रखें ताकि वो खाली पेट ना जा सके।
•••➲ इतना सामान रखें कि खाने के बाद मेहमान जाने के लाइक़ भी ना बचे! मेहमान नवाज़ी बहुत ज़रूरी है।
•••➲ मुसलमानों ने मेहमान नवाज़ी पर ध्यान देना छोड़ दिया है और इसी वजह से हमें ज़िल्लत व रुस्वाई का सामना करना पड़ता है। मेहमान आते हैं और हमारे पास सामान नहीं होता और वो इतनी जल्दी में होते हैं कि तैय्यारी का वक़्त तक नहीं मिलता। हम तमाम मुसलमानों को चाहिये कि मेहमान नवाज़ी के लिये हर वक़्त तैय्यार रहें।
•••➲ अगर आप को हमारी बातें समझ में नहीं आयीं तो जल्दी से समझने की कोशिश करें वरना जब मेहमान आ जायेगा तो समझने और समझाने का मौक़ा नहीं मिलेगा।...✍
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*📝 अर्तग्रल और दीगर तुर्की ड्रामे..❓*
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•••➲ तुर्की ड्रामों को आवाम में काफ़ी पसंद किया जा रहा है।
•••➲ अर्तग्रल, उस्मान, सुल्तान अब्दुल हमीद, कुतुल अम्मारा और यूनुस इमरे इन में काफ़ी मशहूर हैं।
•••➲ इन ड्रामों में अक्सर का ताल्लुक़ खिलाफते उस्मानिया की तारीख से है और बाज़ का तसव्वुफ़ से है।
•••➲ इन ड्रामों को तुर्की से उर्दू ज़ुबान में डब भी किया गया है और सब-टाइटल के ज़रिये दूसरी कुछ ज़बानों में भी मौजूद हैं।
•••➲ इन ड्रामों को देखने वालों में सिर्फ़ आवाम ही शामिल नहीं बल्कि ये दायरा बढ़ कर उलमा की जमा'अत तक पहुँच चुका है। देखा गया है कि उलमा ना सिर्फ़ इन ड्रामों को देखते हैं बल्कि लोगों को देखने की तरगीब भी देते हैं!
•••➲ अगर जाइज़ और नाजाइज़ की बात की जाये तो इन ड्रामों को किसी तरह जाइज़ नहीं कहा जा सकता क्यों कि जिस तरह फिल्मों में म्युज़िक, औरतें और इश्क़े मजाज़ी की कहानियाँ होती हैं वो इन में भी मौजूद हैं लेकिन ये बातें भी क़ाबिले ज़िक्र हैं कि इन ड्रामों में :
(1) इस्लामी रिवायात को फिल्माया गया है।
(2) इस्लामी रियासत की अहमियत को उजागर किया गया है।
(3) जिहाद की ज़रूरत और अहमियत दिखाई गई है।
(4) मज़लूमों के लिये उठ खड़ा होने और जालिमों के सामने ना झुकने का दर्स दिया गया है।
(5) शौक़े शहादत के वाक़ियात दिखाये गये हैंबहएहिदीन की बहादुरी दिखाई गयी है।
•••➲ ये भी सच है कि इन ड्रामों को देखने वालों में काफ़ी तब्दीलियाँ आई हैं। जो अमन की बात करते थे वी भी अब खून बहाने की बात करते हैं। जिन की ज़ुबान से बुजदिली भरे कलिमात निकलते थे वो भी अब मरने मारने की बात करते हैं।
•••➲ ये फाइदे अपनी जगह हैं लेकिन फिर भी इन्हें देखना जाइज़ नहीं कहा जा सकता है।
•••➲ हाँ! ये ज़रूर कहा जा सकता है कि जो लोग फिल्मों, फहश ड्रामों, न्यूज़ चेनलों और गंदे वीडियोज़ से बिल्कुल नहीं बचते तो उन्हें चाहिये कि इन ड्रामों को देखें ताकि कुछ फाइदा हो।
•••➲ ये तो बिल्कुल वाज़ेह है कि ये सब देखना नाजाइज़ है लेकिन ये जानने के बाद भी जो लोग इन से नहीं रुकते तो बेहतर है कि इन ड्रामों को देखें।...✍
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*📝 दफ़ा या दिफ़ा..❓*
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•••➲ मुसलमानों के दरमियान इत्तिफाक़ व इत्तिहाद को क़ाइम रखने के लिये ये भी ज़रूरी है कि अपने भाइयों को दफ़ा करने के बजाये उन की दिफ़ा की जाये। दूसरे अलफाज़ में ये कि मसाइल की मुकम्मल छान बीन किये बगैर अपने भाइयों पर दीनो सुन्नियत से गद्दारी का इल्ज़ाम लगाना हरगिज़ सही नहीं है। मस'अ़आ अगर फुरूयी है तो फिर उस लिहाज़ से बात करें। अगर कोई आपको शिद्दत की तरफ़ ले जाने की कोशिश करता है तो आप उस का हाथ पकड़ कर चल देने से परहेज़ करें और अपने भाई का दिफ़ा करें।
•••➲ आज कल देखा जाता है कि कई लोग बात-बात पर अपने ही सुन्नी भाइयों पर मस्लक की गद्दारी का इल्ज़ाम लगा कर उसे दफ़ा करने की खूब कोशिश करते हैं। ये एक बड़ी गलती है जिस का असर मुसलमानों के इत्तिहाद पर पड़ता है। इत्तिहाद की सख्त ज़रूरत है वरना टुकड़ों में तक़सीम हो जाने वाले अक्सर बरबाद होते हैं।
•••➲ कई मसाइल इल्मी होते हैं जो आवाम की समझ से बाहर होते हैं तो मुक़र्रिरीन और वाइज़ीन को भी इस बात का लिहाज़ करना चाहिये कि ऐसे मसाइल को मुकम्मल वज़ाहत के साथ बयान करें। इख्तिलाफ़ी मसाइल की आग आवाम में भड़का कर घर में सो जाने वाले नहीं जानते कि ये आग इत्तिहाद को जला कर राख कर देती है। एक मुसलमान दूसरे का दुश्मन बन जाता है। लोग उलमा की गुस्ताखी पर उतर आते हैं। जो मुअ़तबर उलमा हैं उन पर भी एतबार डगमगाने लगता है।
•••➲ अस्लाफ को पढ़ें तो मालूम होता है कि वो इस मुआमले में हद-दर्जा मुहतात थे। वो किसी पर भी हुक्म लगाने से पहले भरपूर तहक़ीक़ करते। अगर किसी के दिफ़ा की गुंजाइश मौजूद हो तो उस का दिफ़ा करते थे। हमें भी इस तरीक़े को अपनाने की ज़रूरत है। ये क़ौल भी आप ने सुना होगा कि किसी के क़ौल में निन्नयानवे जहतों से कुफ्र साबित होता हो और एक पहलू ईमान का होता हो तो हमें मुम्किन तावील करनी चाहिये जब तक सरीह कुफ्र ना मिले। ये भी मुसलमानों को मुत्तहिद रखने में मुआवन साबित होता है वरना दफ़ा करना आसान है पर दुरुस्त नहीं।
•••➲ इमाम गज़ाली लिखते हैं कि दोस्त की मुहब्बत बढ़ाने में ये बात सबसे अहम है कि उसकी अदम मौजूदगी में जब कोई उसकी बुराई बयान करे या उस की इज़्ज़त के दरपै हो तो उस का दिफ़ा किया जाये, अपने दोस्त की मदद व हिमायत के लिये कमर बस्ता हो जायें, उस बद-गो को खामोश करवाया जाये और उस से सख्त कलाम किया जाये। ऐसे वक़्त में खामोश रहना सीने में कीना और दिल में नफरत पैदा करता है और भाई-चारे के हक़ में कोताही है कि अल्लाह के रसूल ﷺ ने दो मुसलमानों को दो हाथों के साथ इस वजह से तशबीह दी कि उन में से एक दूसरे को धोता है, लिहाज़ा मुसलमान को चाहिये कि अपने मुसलमान, भाई की मदद करे और उस का क़ाइम मक़ाम बने। احیاء العلوم، جلد دوم)..✍
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*📝 इस्लामी रियासत..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ इस्लामी रियासत की ज़रूरत माँ-बाप की तरह है। जिस तरह बगैर माँ-बाप के बच्चों को दुनिया की ठोकरें खानी पड़ती हैं बिल्कुल इसी तरह बगैर इस्लामी रियासत के मुसलमानों की ज़िन्दगी यतीमों की तरह हो जाती है। ये बताने की ज़रूरत नहीं कि मुसलमानों के साथ कहाँ-कहाँ क्या हो रहा है और ये किस तरह बताया जा सकता है कि अपने बच्चों को तड़प तड़प कर मरता देख, किसी मर्द पर क्या गुज़रती होगी। आखिर किस तरह उस बच्ची के चेहरे का नक़्शा बयान किया जा सकता है जिस ने एक ही दिन में अपने माँ-बाप और भाई सब को खो दिया हो और लाशों के ढेर पर बैठ कर वो अपने चारों तरफ़ देख रही हो।
•••➲ एक ऐसा मंज़र जिस में औरतों और मर्दों की तमीज़ किये बगैर उन पर ज़ुल्म के पहाड़ तोड़े जा रहे हों, इसे अलफाज़ के ज़रिये कैसे बयान किया जा सकता है। उन बेगुनाह बच्चों की वक़ालत किन लफ्ज़ों से की जाये जिन्होने अभी देखना शुरू किया तो अपनों की मौत देखी और खेलने के लिये बस गम उनके हाथ आया। वो औरत जिस का शौहर, भाई और बाप सिर्फ़ मुसलमान होने की वजह से मारा गया। वो अपने बच्चों को अपने दामन में छिपा कर उम्मीद भरी नज़रों से इधर-उधर देखती है लेकिन कोई उम्मीद नज़र नहीं आती, इसे किस तरह लिखा जा सकता है। ये दर्द भरी दास्तान एक ऐसी हक़ीक़त है जो हर मुसलमान जानता है।
•••➲ अगर मुसलमानों की अपनी रियासत होती तो इन मजलूमों के दिफ़ा के लिये खड़ी होती। उस रियासत के साये में हमारे बच्चों का मुस्तक़्बिल जवान होता। वो रियासत हमारे माँ-बाप के क़ाइम मक़ाम होती जो किसी भी मुसीबत को हम तक पहुँचाने से पहले अपने ऊपर ले लेती पर अफसोस सद अफसोस हमारा ऐसा कोई हाथ नहीं जिस की तरफ़ हम रुज़ू करें।
•••➲ काश कि अब माँयें फिर से मुजाहिद पैदा करें, काश कि वो दौर फिर लौट आये, काश कि हमारी मुक़द्दस ज़मीनों को हम तहफ्फुज़ फराहम करने के क़ाबिल हो जायें, काश कि अपनी रियासत के क़याम के लिये ये क़ौम उठ खड़ी हो जाये।...✍
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*📝 पीर का काम अलग है।..❓*
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•••➲ जब कहा जाता है कि पीर साहिबान को आगे आ कर उम्मत की क़यादत करनी चाहिये और दीनी वा सियासी मसाइल में रहनुमाई करनी चाहिये तो जवाब आता है कि पीर साहिब का काम अलग है।
•••➲ हुज़ूर ﷺ ने सहाबा के साथ मस्जिद की तामीर में काम किया।
•••➲ मैदाने जिहाद में ज़ख्म खाये, तलवार लेकर दुश्मन पर वार किया और जब ज़रूरत हुई आप की ज़ाते अक़दस सबसे आगे नज़र आयी लेकिन हमारे पीर साहिबान का काम अलग है, इनका काम सिर्फ़ मुरीद करना है।
•••➲ हम ये नहीं कहते कि आप तलवार ले कर मैदान में आयें लेकिन कम से कम आपकी बात सुनने वालों को हक़ सुनायें जो जलसों में आपको देखने के लिये रात भर जागते हैं उन्हें हक़ दिखायें।
•••➲ सिर्फ़ नज़राना ले कर उम्मत का खून चूसने वाले अब जब इसी उम्मत का खून बह रहा है तो कहाँ चले गये।
•••➲ एक कागज़ पर बुज़दिली भरा पैगाम आम कर देने से क्या होगा?
उम्मते मुस्लिमा को यूनिवर्सिटी चाहिये,
अच्छे मदारिस चाहिये,
आप तो अपने बच्चों को मिस्र, बगदाद, शाम और दूसरे ममालिक में पढ़ने के लिये भेज देते हैं पर यहाँ पढ़ाई के नाम पर जो टाईम पास चल रहा है उसे ठीक करने की कोशिश नहीं करते,
उम्मत को जिहाद की तरफ लाना ज़रूरी है लेकिन आप इस के बारे में एक लफ्ज़ नहीं कहते।
कब तक गुलामी की फज़ीलत को किनाया अल्फाज़ में बयान करते रहेंगे?
उम्मत टेक्नोलॉजी, इन्वेंशन और कई फुनून से दूर है, इस पर काम कौन करेगा जब फण्ड और फेन फॉलोविंग आप के पास है?
•••➲ उलमा की ऐसे भी कमी है, ऊपर से मुक़र्रिरीन का ज़ुल्म अलग जारी है। आवाम इन नज़राना खोर पीर और मुक़र्रिरीन के दरमियान फँस कर रह गयी है! उलमा की कोशिशों को नाकाम भी यही लोग बनाते हैं।
•••➲ अब बहुत ज़रूरी है कि आवाम खुद को बेदार करे और ऐसे पीरों और मुक़र्रिरीन और नातख्वानों को बुलाना बन्द करे, फ्री में आना चाहें तो भी ना बुलायें, उलमा की क़द्र करें, उन्हें माली तौर पर सपोर्ट करें।
•••➲ इल्मी तहक़ीक़ी और इस्लाही कुतुब रसाइल और बयानात को मीडिया और टेक्नोलॉजी के ज़रिये ज़्यादा से ज़्यादा आम करें, इस से जहालत, बुराई और दूसरी मुआशरे की खराबियाँ खुद-ब-खुद दूर होती नज़र आयेंगी।..✍
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मेरा हाथ कट कर लटक गया...❓*
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•••➲ जंगे बद्र में हज़रते म'आज़ ने कुछ लोगों को ये कहते हुये सुना कि अबू जहल तक कोई नहीं पहुँच सकता तो आप ने ठान ली कि इस दुश्मने इस्लाम को जहन्नम पहुँचा कर ही रहूँगा। आप जंग में मौक़ा तलाश कर रहे थे और मिलते ही अबू जहल पर टूट पड़े। आप ने अपनी लहराती हुई तलवार से जब वार किया तो उसका एक पैर पिन्डली से कट कर दूर जा गिरा!
•••➲ अबू जहल के बेटे इकरमा जो बाद में ईमान ले आये थे उन्होंने आप की गर्दन पर तलवार से वार किया तो आपने बचना चाहा लेकिन बाज़ू कट गया और लटकने लगा। बाज़ू तक़रीबन कट गया चुका था और चमड़े से लटका हुआ था। आप इसी बाज़ू के साथ लड़ते रहे लेकिन वो परेशानी का सबब बना हुआ था।
वो कटा हुआ हाथ पीठ पर लटक रहा था और आप काफ़ी वक़्त तक इस से परेशान रहे फिर आप ने अपने पाऊँ के नीचे दबा कर खींचा तो वो अलग हो गया और फ़िर आप काफिरों से लड़ने में मशगूल हो गये। अल्लाहु अकबर
•••➲ ये था सहाबा -ए- किराम का काफिरों से लड़ने का जज़बा जो एक हाथ कट जाने पर भी ठण्डा नहीं होता था। आज हमें भाई चारे का बुखार चढ़ा हुआ है कि इस से आगे कुछ दिखता ही नहीं। हमारे साथ मजबूरियाँ हैं लेकिन ये हमारी अक़्ल में ज़्यादा हैं अस्ल में ज़यादा नहीं।
•••➲ अगर अक़्ल सही हो तो फिर हालात वग़ैरह नहीं देखे जाते, बस अल्लाह की मदद पर यक़ीन रखते हुये मैदान में उतर जाते हैं पर यहाँ अक़्ल ही गुलाम बनी हुई है तो हाथ पाऊँ सलामत होते हुये भी हम लड़ नहीं सकते।..✍🏻
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*📝 मुसलमानों में बुज़दिली क्यों ...❓*
•••➲ सवाल है कि मुसलमानों में बुज़दिली क्यों है?
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•••➲ इस का जवाब अगर मुख्तसर अलफाज़ में दिया जाये तो यही है कि "मुसलमानों के अंदर शौक़े शहादत और राहे खुदा में क़ुरबान होने का जज़बा बाक़ी नहीं रहा और मौत का खौफ़ इस क़दर हो चुका है कि ज़िन्दगी बचाने और ज़्यादा जीने की तमन्ना लिये किसी भी हद तक जाने को तैय्यार हैं।" और अगर इस की तफ़सील में जायें तो बहुत कुछ कहा जा सकता है।
•••➲ अबू दाऊद में एक रिवायत है :
حَدَّثَنَا عَبْدُ الرَّحْمَنِ بْنُ إِبْرَاهِيمَ الدِّمَشْقِيُّ، حَدَّثَنَا بِشْرُ بْنُ بَكْرٍ، حَدَّثَنَا ابْنُ جَابِرٍ، حَدَّثَنِي أَبُو عَبْدِ السَّلَامِ، عَنْثَوْبَانَ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: يُوشِكُ الْأُمَمُ أَنْ تَدَاعَى عَلَيْكُمْ كَمَا تَدَاعَى الْأَكَلَةُ إِلَى قَصْعَتِهَا، فَقَالَ قَائِلٌ: وَمِنْ قِلَّةٍ نَحْنُ يَوْمَئِذٍ ؟ قَالَ: بَلْ أَنْتُمْ يَوْمَئِذٍ كَثِيرٌ وَلَكِنَّكُمْ غُثَاءٌ كَغُثَاءِ السَّيْلِ وَلَيَنْزَعَنَّ اللَّهُ مِنْ صُدُورِ عَدُوِّكُمُ الْمَهَابَةَ مِنْكُمْ وَلَيَقْذِفَنَّ اللَّهُ فِي قُلُوبِكُمُ الْوَهْنَ، فَقَالَ قَائِلٌ: يَا رَسُولَ اللَّهِ وَمَا الْوَهْنُ ؟ قَالَ: حُبُّ الدُّنْيَا وَكَرَاهِيَةُ الْمَوْتِ (رقم:4297)
•••➲ रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : क़रीब है कि दीगर क़ौमें तुम पर ऐसे ही टूट पड़ें जैसे खाने वाले प्यालों पर टूट पड़ते हैं!
•••➲ हुज़ूर -ए- अकरम ﷺ से सवाल किया गया : क्या हम उस वक़्त तादाद में कम होंगे?
•••➲ आप ﷺ ने फ़रमाया : नहीं, बल्कि तादाद बहुत होगी लेकिन तुम सैलाब के झाग के मानिन्द होगे, अल्लाह त'आला तुम्हारे दुश्मन के सीनों से तुम्हारा खौफ़ निकाल देगा और तुम्हारे दिलों में "वहन" डाल देगा।
•••➲ तो अर्ज़ की गई : या रसूलल्लाह ﷺ! वहन क्या चीज़ है?
•••➲ आप ﷺ ने फ़रमाया : ये दुनिया की मुहब्बत और मौत का डर है।..✍🏻
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*📝 मुसलमानों में बुज़दिली क्यों ...❓*
•••➲ सवाल है कि मुसलमानों में बुज़दिली क्यों है?
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 246 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ आज हमारी तादाद तक़रीबन दुनिया की एक चौथाई है और तक़रीबन 50 ममालिक में हमारी अक्सरियत है और मुल्के हिन्द को ले लें तो तक़रीबन 25 करोड़ मुसलमान इस मुल्क में रहते हैं लेकिन फिर भी जो हालात हैं वो किसी से पोशीदा नहीं हैं। तारीख के अवराक़ पर उन मुसलमानों का भी ज़िक्र है जो अगरचे तादाद में हम से बहुत कम थे और वसाइल की कमी थी लेकिन बड़े-बड़े ज़ालिमों के सामने मुक़ाबिले के लिये खड़े हो जाते थे और अल्लाह त'आला की तरफ़ से फतहयाब होते थे लेकिन आज हमारी तादाद सिर्फ़ सुनने देखने की है।
•••➲ बुज़दिली इस क़द्र हमारे अन्दर सरायत कर चुकी है कि शियारे इस्लाम पर खुले आम हमला होता देख कर भी हम बस अफसोस कर के रह जाते हैं। किसी ने कहा था कि "जब काबे में शैतान घुस जायेगा तब जागोगे?" आज बाबरी मस्जिद का मुआमला हमारे सामने हैं, मस्जिदे अक़्सा पर दुश्मन ने नज़रें गाढ़ रखी हैं, कश्मीर और फिलिस्तीन के मुसलमानों की तस्वीरें भी नज़रों से गुज़रती हैं और दुनिया भर में ऐसी कई जमीनें हैं जहाँ मुसलमानों का खून बहाया जाता है, कई इलाक़े ऐसे हैं जिन के फिज़ाओं में मज़्लूमों की फरियाद गूँजती है लेकिन हमारी करोड़ों की तादाद सिर्फ़ तमाशाई है। मुसलमानों की ऐसी कोई रियासत नहीं जो मज़्लूमों का दिफ़ा करे, कोई ऐसी सल्तनत नहीं जिस के साये तले हमारे बच्चों का मुस्तक़्बिल फ़ल फूल सके और कोई ऐसी ताक़त नज़र नहीं आती जो मुसलमानों को उन का वतन वापस कर सके।
•••➲ मुल्के हिन्दुस्तान में मुसलमान जिहाद का नाम लेने से पहले सोचते हैं। यहाँ होने वाले इज्लास वग़ैरह में तक़रीबन तमाम मौज़ूआत पर तक़ारीर होती हैं लेकिन जिहाद की ज़रूरत व फज़ीलत पर "जिहाद कॉन्फ्रेंस" शायद ही कहीं देखने को मिल जाये। इस के अलावा सैकड़ों की तादाद में माहनामे, रसाइल और किताबें छपते हैं लेकिन सब ज़िक्रे जिहाद से तक़रीबन खाली हैं। जुम्आ में होने वाली तक़रीर, महाफिले मीलाद में होने वाला बयान और मुख्तलिफ़ मक़ामात पर होने वाले खिताब में ज़िक्रे मुजाहिदीन के अलावा हर क़िस्म का ज़िक्र मिलता है और यही वजह है कि नई नस्ल को भी विरासत में बुज़दिली मिल रही है।..✍🏻
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•••➲ सवाल है कि मुसलमानों में बुज़दिली क्यों है?
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 247 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ बुज़दिली पैदा होने की एक बड़ी वजह ये भी है कि जिहाद पर खुल कर बात नहीं होती और ऐसा तास्सुर दिया जाता है कि अब जिहाद की ज़रूरत नहीं रही। मुजाहिदीने इस्लाम की सीरत बयान नहीं की जाती, जिस की वजह से नई नस्ल भी इसी बीमारी का शिकार हो जाती है। नौजवानों से पूछ लिया जाये कि मुहम्मद बिन क़ासिम कौन थे तो चेहरे पर इल्म ना होने का वाज़ेह सुबूत दिखने लगता है, अगर सवाल करें कि सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी कौन थे और उन के कारनामे बतायें तो ऐसा लगता है कि किसी नामुम्किन बात का मुतालिबा कर लिया हो और फिर गाज़ी एर्तग्रुल, गाज़ी उस्मान, सुल्तान अल्प अर्सलान, सुल्तान मुहम्मद फातेह, सुल्तान अब्दुल हमीद, शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी, औरंगज़ेब आलमगीर और जुमला मुजाहिदीने इस्लाम के बारे में पूछा जाये तो ऐसा लगता है कि किसी दूसरी दुनिया के लोगों की बात हो रही है। जब हमें अपनी तारीख, अपने मुजाहिदीन और उन के कारनामे, उन की शुजाअत और अफ्कार का इल्म ही नहीं तो ज़ाहिर है कि हम वैसे ही बनेंगे जैसा बनाने की कोशिश दुश्मनों की तरफ़ से जारी है।
•••➲ दुश्मनों ने क्या अच्छा मन्सूबा बनाया है कि मुसलमानों को गुलाम बनाने से पहले ज़हनी गुलामी के कुएँ में ढकेलना चाहिये और वो जानते हैं कि बगैर इस के मुसलमानों को उन के घुटनों पर लाना मुम्किन नहीं। आज मुसलमान खुद इस कुएँ की तरफ़ जा रहे हैं और वो इस तरह कि हमारे कपड़े, हमारी ज़ुबान, हमारा खाना खाने का तरीक़ा और हमारे अफ्कार सब उन के इशारों पर चलने वाले गुलामों की तरह हैं। वो चाहें तो फैशन के नाम पर हमें जो चाहे पहना सकते हैं, इंसानियत के नाम पर ज़ालिम और ज़ुल्म का साथ देने वाला बना सकते हैं और अगर चाहें तो हमें अपने ही दीन व शरीअ़त के मुक़ाबिल में खड़ा कर सकते हैं।..✍🏻
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*📝 मुसलमानों में बुज़दिली क्यों ...❓*
•••➲ सवाल है कि मुसलमानों में बुज़दिली क्यों है?
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 248 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ दुनिया में जो भी हो रहा है उस के पीछे सदियों की साज़िशें हैं लेकिन मुसलमानों के ज़हन को इस क़दर गुलाम बना लिया गया है कि वो इसे देखने से क़ासिर हैं। हम जिस बुज़दिली की बात कर रहे हैं इसे मुसलमान बुजदिली नहीं बल्की हिक्मत, मस्लिहत, दूर अंदेशी, इंसानियत और अमन वग़ैरह का नाम देते हैं और यही ज़हनी गुलामी है जिसे हम ने बयान किया है। कितनी अजीब बात है कि बुज़दिली भी है लेकिन शऊर नहीं रहा और इसे अच्छा भी समझा जाता है।
•••➲ मुस्लिम ममालिक को देख कर मुस्लिम ममालिक कहते हुये शर्म आती है क्योंकि बुज़दिली और साथ में ज़हनी गुलामी के आसार साफ नज़र आते हैं। इस्लामी हुकूमत के तहत फिल्में बनाई जा रही हैं लेकिन कोई पाबंदी नहीं है, ये भी एक बुज़दिली है जिसे हुक़ूक़ और आज़ादी का नाम दिया जाता है। सिनेमा घरों की कसरत, बे-पर्दगी की इजाज़त और जुआ, शराब, ज़िना वग़ैरह का आम तौर पर नज़र आना, ये सब भी बुज़दिली की एक क़िस्म है। इस्लामी हुक्मरानों के अंदर ताक़त नहीं कि इन चीज़ों पर पाबन्दी आइद कर सकें। नाम तो इस्लामी रियासत है लेकिन मुसलमानों पर ज़ुल्म होता देख ये रियासतें भी बुज़दिली दिखाना शुरू कर देती हैं।..✍🏻
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*📝 मुसलमानों में बुज़दिली क्यों ...❓*
•••➲ सवाल है कि मुसलमानों में बुज़दिली क्यों है?
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 249 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ अगर हम ये कहें कि छोटे से लेकर बड़ों तक सब बुज़दिली की लपेट में हैं तो कोई गलत बात नहीं क्योंकि जिन मुसलमानों के पास हथियार इक़्तिदार और ताक़त नहीं वो तो ज़ाहिर है लेकिन जिन के पास ये सब है वो भी ज़हनी तौर पर गुलाम होने की वजह से बुज़दिल हैं। सब को मौत का डर है हालाँकि मर जाने और मार देने दोनों में मुसलमानों का फाइदा है। ये बात समझ में आ जाये तो बुजदिली दूर हो सकती है।
•••➲ हुज़ूर -ए- अकरम ﷺ की तलवार मुबारक पर लिखा हुआ था :
فِی الْجُبنِ عَارٌ ، فِی الْاِقْبَال مَکْرُمَۃٌ
وَالْمَرْءُ بِالْجُبنِ لاَ یَنْجُوْ مِنَ الْقَدرٖ
•••➲ बुज़दिली बाइसे शर्म है, इज़्ज़त आगे बढ़ने और दुश्मनों पर हमला करने में है, बन्दा बुज़दिली कर के तक़्दीर से कभी नहीं बच सकता।
•••➲ (मौत डरपोक को भी आती है और बहादुर भी चला जाता है, क्या ही अच्छा हो कि बहादुरों की तरह जान क़ुरबान की जाये!)
(مدارج النبوة ، ج2، ص116)
•••➲ अल्लामा लुक़्मान शाहिद हाफिज़हुल्लाह लिखते हैं कि अभी अपने बेटे को मदारिजुन नबुव्वह से ये शेर पढ़ाया है : ये रसूलुल्लाह ﷺ की तलवार मुबारक पर लिखा हुआ था। उसे तल्क़ीन की है कि बेटा! कभी डरपोक नहीं बनना।
इज़्ज़त, बहादुरी में है, बुज़दिली में नहीं,
मुसलमान जुर्रातमन्द होता है, बुज़दिल नहीं!!
•••➲ अल्लाह पाक हमें और हमारी नस्लों को जुर्रात अता फरमाये।
हम अल्लाह के सिवा किसी से ना डरें। *(आमीन)..✍🏻*
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*📝 जिहाद का मफ़हूम और काफिर की समझ..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 250 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ जिहाद का मफ़हूम काफिरों की समझ से बाहर है। उन्हें किसी तरह भी समझाया जाये, उन की समझ में आने वाला नहीं है। चाहे अंग्रेजी में समझाया जाये या हिन्दी में, ये जिहाद के पाक मफ़हूम को कभी नहीं समझेंगे। जो काफ़िर मुसलमानों के खून के प्यासे हैं, वो भी जिहाद को गलत ही कहते हैं। कोई कहता है जिहाद में लोगों को क़त्ल किया जाता है लिहाज़ा ये सही नहीं है हालाँकि खुद चाहते हैं कि मुसलमानों का क़त्ले आम हो। दरअस्ल ये क़त्लो जदाल के खिलाफ़ नहीं हैं बल्कि उन को परेशानी इस्लाम और अहले ईमान से है।
•••➲ दुनिया में कौन सी ऐसी जगह है, जहाँ लड़ाई नहीं हुई हों? मुल्क के लिये जंग, मालो दौलत के लिये झगड़ा, औरत के लिये लड़ाई, खानदानी दुश्मनी में खूँ रेज़ी के वाक़ियात से तारीख भरी पड़ी है लेकिन इस्लामी जिहाद इन सब से जुदा है। जिहाद नाम है अल्लाह की ज़मीन पर उस के कलिमे के लिये लड़ाई का, कुफ्रो शिर्क और फ़ितनों को खत्म करने का, मजलूमों पर रहम करने का और जालिमों को खून के आँसू रुलाने का नाम जिहाद है। लेकिन ये बात काफ़िरों के समझ में आने वाली नहीं है क्योंकि वो खुद कुफ्रो शिर्क जैसे अज़ीम फितने को गले से लगाये बैठे हैं।
•••➲ तारीख में ऐसी कई हुकूमतों का ज़िक्र मिलता है जिन्होंने इन्सान के साथ जानवरों जैसा सुलूक किया है और उन का खून चूसा है मगर इस्लाम ही वो फक़त निज़ाम है जिसने सब को उन के हुक़ूक़ दिये वरना आज ना जाने कितनी क़ौमों का नामो निशान तक ना होता। दुनिया ने इस्लाम से ही इंसानियत सीखी है लेकिन ये बात काफिरों के समझ से बाहर है।...✍🏻
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 आँखें नम कर देने वाली यादें..⁉️*
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•••➲ नबी -ए- करीम ﷺ की लाडली बेटी हज़रते सय्यिदा ज़ैनब रदिअल्लाहु त'आला अ़न्हु का निकाह हज़रते अबुल आस रदिअल्लाहु त'आला अ़न्हु से हुआ था। हज़रते अबुल आस जंगे बद्र में मुशरिकीन तरफ़ से थे और जंग के बाद क़ैद किये गये।
•••➲ मक्का वाले अपने लोगों को रिहा कराने के लिये फिदया भेज रहे थे तो हज़रते सय्यिदा आइशा रदिअल्लाहु त'आला अ़न्हा फ़रमाती हैं कि हज़रते ज़ैनब ने भी अपने शौहर के फिदये में कुछ माल भिजवाया और उस में वो हार भी था जो हज़रते खदीजा ने उन्हें शादी के मौक़े पर दिया था।
•••➲ हज़रते आइशा कहती हैं कि जब हुज़ूर ﷺ ने वो हार देखा तो आप पर रिक़्क़त तारी हो गई।
•••➲ आप ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि अगर तुम सब मुनासिब समझो तो इस क़ैदी को रिहा कर दो और ये हार भी इसे वापस कर दो (अल्लाह, अल्लाह ज़रा तसव्वुर करें कि क्या मंज़र होगा)
•••➲ लोगों ने अ़र्ज़ की कि या रसूलल्लाह! क्यों नहीं, आप का हुक्म सर आँखों पर!
•••➲ फिर उन्हें रिहा कर दिया गया और हुज़ूर ﷺ ने उन से अहद लिया कि हज़रते ज़ैनब को मदीना आने देंगे और फिर कुछ अर्से बाद हुज़ूर ने अपनी प्यारी बेटी को मदीना बुलवा लिया।
(ملخصاً: ابو داؤد، کتاب الجہاد، حدیث2692)
•••➲ ज़रा गौर करें कि हक़ की राह में कैसे-कैसे हालात सामने आते हैं।
•••➲ आज का अगर कोई अमन परस्त शख्स कहता है कि हमें लड़ने झगड़ने की ज़रूरत नहीं बल्कि मिल कर रहना है और सब को अपने दीन पर छोड़ देना है तो वो बिल्कुल गलत कहता है।
•••➲ ये हक़ की राह है, इस में सिर्फ खुद को नहीं बल्कि अपनो को भी तकलीफ़ उठानी पड़ती है जो इस राह पर चलते हैं उन्हें बहुत कुछ देखना पड़ता है।...✍🏻
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 रैप सौंग्स और नात..⁉️*
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•••➲ नात सुनने से इश्के रसूल में इजाफ़ा होता और ये एक इबादत भी है पर इसे भी कुछ लोगों ने खेल कूद का सामान बना लिया है!
•••➲ कुछ नात पढ़ने वाले गानों की तर्ज़ को अपनाते हैं और कुछ रैप स्टाइल में नात पढ़ते हैं इनसे परहेज करना जरूरी है।
•••➲ बहरुल उलूम अल्लामा मुफ्ती अब्दुल मन्नान आज़मी रहिमहुल्लाहु त्आला लिखते है के अशआर और गीतों के मुख्तलफ वजन और बहरें होती है जिनमें हर किस्म के मज़मून को नज़्म किया जा सकता है और मुखतलफ लहजे और धुन में गाया जा सकता है इसलिए कोई कायदा ए कुल्लिया नहीं बताया जा सकता के फुला फुला तर्ज़ पर नात पढ़नी चाहिए और फुला पर नहीं।
•••➲ हर नात शरीफ के लिए पुर वक़ार और संजीदा लबो लेहजा होना चाहिए और गैर मुहज्जब लबो लहजे से परहेज़ करना चाहिए।
📕 فتاوی بحر العلوم، ج5، ص329
•••➲ मुफ्ती मुहम्मद क़ासिम जियाउल क़ादरी लिखते है के मशहूर गानों की तर्ज़ पर नात पढ़ना मना है लिहाजा इससे एहतिराज किया जाए।
•••➲ हां अगर किसी ने नात पर कोई तर्ज़ लगाई और बाद में किसी ने उसी तर्ज पर गाना गाया तो अब उस तर्ज़ पर नात पढ़ने में हरज नहीं।...✍🏻
📒 فتاوی یورپ و برطانیہ، ص 385
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 नबी की तरफ बद्दुआ की निस्बत..⁉️*
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•••➲ हुज़ूर -ए- अकरम सल्लल्लाहु त'आला अलैही वसल्लम की तरफ बद्दुआ की निस्बत करना सही नहीं है।
•••➲ अगर आप ने किसी के खिलाफ दुआ की है तो भी उसे बद्दुआ कहना बेअदबी है।
•••➲ आपका कोई फेल बद नहीं है।
•••➲ बुखारी शरीफ की एक रिवायत की शरह में देवबंदीयों ने सराहत के साथ बद्दुआ की निस्बत हुज़ूर सल्लल्लाहु त'आला अलैहि वसल्लम की तरफ की है यह हरगिज़ दुरुस्त नहीं।
•••➲ अल्लामा गुलाम रसूल सईदी रहिमहुल्लाहू त'आला ने बुखारी शरीफ की शरह करते हुए कई जगह इस पर बहस की है
पहेली जिल्द सफाह 705 पर और इससे पहले भी फिर जिल्द 13 सफाह 806 और चंद मकामात पर लिखते हैं की हुज़ूर सल्लल्लाहु त'आला अलैही वसल्लम का कोई अमल बद नहीं बल्कि हर अमल हसन है लिहाज़ा हुज़ूर ने जो दुआ -ए- ज़रर फरमाई उसे बद्दुआ कहना नाजायज़ है।
(انظر: نعم الباری)
•••➲ इससे मालूम हुआ के अगर ऐसी रिवायात मिलती हैं जिन में आक़ा -ए- करीम ने गुस्ताखों के लिए दुआ -ए- ज़रर फरमाई तो उसे बद्दुआ नहीं कहेंगे बल्कि इस तरह कहेंगे कि उनके खिलाफ दुआ की या दुआ -ए- ज़रर फरमाई।..✍🏻
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 तुम घर बैठो, तलवार हमें दे दो..⁉️*
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•••➲ हज़रत उम्मे ऐमन, जिनके बारे में हुज़ूरे अकरम (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने इरशाद फ़रमाया कि: "मेरी ह़क़ीक़ी मां के बाद, उम्मे ऐमन मेरी माँ हैं." आप रद़ियल्लाहु अ़न्हा जज़्ब-ए-जिहाद से सरशार थीं, आपने ग़ज़्व-ए-उह़ुद में अहम किरदार अदा किया!
•••➲ जब ये अफवाह फैली कि नबी-ए-करीम (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) को शहीद कर दिया गया है, तो लोग मैदान छोड़ कर वापस होने लगे, और कुछ तो मदीने में अपने घर तक पहुंच गए. इनकी बीवियों ने कहा कि अफ़सोस है कि आप मैदान छोड़कर भाग निकले!
•••➲ हज़रत उम्मे ऐमन ने जब ये देखा तो बहुत ग़ुस्सा हुईं, और मैदान से जाने वालों के चेहरे पर मिट्टी डालने लगीं, और कहती कि ये तुम क्या कर रहे हो? मैदान छोड़कर भागना मर्दों का काम नहीं. तुम घरों में बैठो और चरख़ा कातो, और तलवारें हमें दे दो. हम मैदान में दुश्मनों का मुक़ाबला करेंगी! *(देखें 'दलाइलुन् नुबुव्वह' व दीगर कुतुबे सीरत)*
•••➲ ये थीं वो औरतें कि जब तक ज़िंदा रहीं तब तक इस्लाम के नाम से आ़लमे कुफ़्र कांपता रहा।
•••➲ बड़े बड़े बादशाह सिर्फ गिनती के मुसलमानों का नाम सुनकर ख़ौफ़ खाते थे! क्यूंकि उनमें मर्द तो थे ही, साथ में ऐसी औरतें मौजूद थीं।
•••➲ आज मर्दों का हाल तो अपनी जगह है, और औरतें बजाय इस्लाम को तक़्वियत पहुंचाने के इसे बदनाम करने पर तुली हुई हैं।
•••➲ आज़ादी के नाम पर दीन व शरीअ़त के खिलाफ़ ज़ुबान चलाती हैं।
•••➲ अल्लाह तआ़ला हमें अपने घर की औरतों को इस्लाम का सही मफ़्हूम समझाने और तअ़लीमाते नबवी को आम करने की तौफ़ीक़ अ़त़ा फरमाए!..✍🏻
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 बुरी सोहबत का बुरा नतीजा..⁉️*
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•••➲ हज़रत अ़ल्लामा मुहम्मद बिन अहमद ज़हबी रहमतुल्लाह अ़लैह फरमाते हैं : एक शख्स शराबियो की सोहबत में बैठा था। जब उसकी मौत का वक़्त क़रीब आया तो किसी ने कलिमा शरीफ पढ़ने की तलकीन की तो कहने लगा : "तुम पियो और मुझे भी पिलाओ।"
*मआज़ अल्लाह बगैर कलमा पढ़े मर गया।*
(کتاب الکبائر،ص١٠٣، فیضانِ سنت،ص۴۳۵)
•••➲ बुरी सोहबत वाक़ई दुनिया व आखिरत में नुक़्सान का बाइस है और अच्छी सोहबत दुनिया व आखिरत दोनों के लिए फाइदेमंद।
•••➲ जो लोग ये कहते हैं कि हम थोड़ी ये बुराई कर रहे हैं हम तो बस उनके साथ बैठ रहे, वो बड़े धोके में है कि आज ना सही मगर एक दिन वो भी इस बुराई में मुलव्विस हो ही जायेगा जिस बुराई करने वालों के साथ वो बैठे उठे हैं।
•••➲ इंसान कोइले की भट्टी के क़रीब से भी गुज़रे तो कपड़े ख़राब हो जाते है। ऐसे ही बुरी सोहबतें है जो आप पर अपना बुरा रंग चढ़ा देती है और आप को अंदाज़ा भी नहीं होता।
•••➲ इसीलिये इंसान अगर दुनिया व आखिरत की भलाई चाहता है तो अच्छों की मजलिस में बैठे और बुरी सोहबतों से परहेज़ करे!..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 एक बीवी संभलती नहीं, तो चार कैसे ..⁉️*
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•••➲ ये जुमला बिल्कुल ऐसा है कि एक चक्के से गाड़ी चलती नहीं, तो चार से कैसे चलेगी? चलिए, जब एक नहीं संभलती तो एक शादी भी क्यूँ करते हैं? होना तो ये चाहिए कि आप भी उन औलिया की सीरत पर अ़मल करें, जिन्होंने औरतों के ह़ुक़ूक़ के ख़ौफ़ से निकाह़ न किया, जैसा कि हज़रत बिश्-र बिन ह़ारिस़ (रह़िमहुल्लाहु तआ़ला) फरमाते हैं कि मुझे किताबुल्लाह की एक आयत ने निकाह़ से रोक रखा है, कि 'औरतों के ह़ुक़ूक़ हैं', और शायद मैं इसे अदा न कर सकूं!
(देखें: "क़ूतुल् क़ुलूब़", जिल्द: 2, सफ़ा: 816)
•••➲ अगर एक नहीं संभलती, जिसका मतलब है ह़ुक़ूक़ अदा नहीं हो पाते, तो फिर क्यूँ आप अपने लिए अ़ज़ाब का सामान तैयार कर रहे हैं? आपको तो चाहिए कि इन सूफ़िया की सीरत पर अ़मल करें. अब आप कहेंगे कि हम उन जैसे नहीं हैं, और जब चार शादियों की बात आती है तो भी यही कहा जाता है कि हम पहले वालों जैसे नहीं हैं।
•••➲ आपको तय कर लेना चाहिए कि आप हैं क्या? और अगर आप बिल्कुल अलग हैं तो क्या आपने अपना दीन भी अलग कर लिया है?
•••➲ अस्ल में बात ह़ुक़ूक़ की नहीं, क्यूंकि कसरत से ऐसे लोग मौजूद हैं जो 4 बीवियों के ह़ुक़ूक़ आसानी से अदा कर सकते हैं, यहां बात है मुआ़शरे के बनाए हुए बेबुनियाद उसूलों की।
•••➲ आज अगर हिंदो पाक के अक्सर इलाक़ों में दूसरी शादी की जाए, तो लोग उसे अ़जीब नज़र से देखते हैं, और तरह तरह की बातें करते हैं, आख़िर ऐसा क्यूँ?इसे ख़त्म करना होगा, ताकि एक मर्द फ़ितरत के मुत़ाबिक़ जाइज़ तरीक़े से फ़ायदा उठा सके, और निकाह़ को आ़म और आसान किया जा सके।
•••➲ अगर ये न हुआ, तो औरतों की तादाद वैसे भी ज़्यादा है और आगे मज़ीद ज़्यादा हो जाएगी, फिर ज़िना की कसरत होगी, और हम कुछ न कर सकेंगे!..✍🏻
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*📝 चार शादी के नुक़्सानात ..⁉️*
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•••➲ ऐसा हो सकता है कि किसी काम के आगाज़ में हमें कुछ मनफ़ी अ़सरात (Side Effects) नज़र आयें पर ये भी देखना चाहिये कि आगे उस से फाइदा कितना बड़ा है।
•••➲ जिहाद को ले लीजिये तो इस में लोगों को क़त्ल किया जाता है, खून बहता है और घर बल्कि इलाक़े बरबाद हो जाते हैं लेकिन यही आगे चल कर अमन का सबब बनता है और फितने खत्म होते हैं।
•••➲ चार शादी का मामला भी ऐसा ही है। एक तरह से हम अभी सिर्फ आगाज़ करने की ही बात कर रहे हैं क्योंकि तक़रीबन इसका नामो निशान मिट चुका है और ऐसा ही चलता रहा तो ना जाने क्या होगा।
•••➲ अब चूँकि हालात ऐसे हैं तो ये अजीब क्या बड़ा अजीब लगेगा पर यही हल (Solution) है शादी ब्याह के सिस्टम को सुधारने का वरना लोगों ने सब कुछ कर के देख लिया कुछ खास फ़र्क़ नहीं पड़ा।
•••➲ इस में पहले उलमा, हुफ्फाज़, मुबल्लिगीन वग़ैरह अहले इल्म हज़रात को आगे आना होगा ताकि वो दूसरों के लिये मिसाल और नमूना बन सकें।
आगे आने का मतलब खुद भी एक से ज़्यादा शादियाँ कीजिये और अपने बच्चों को भी तरगीब दीजिये।
•••➲ गुर्बत, अद्ल, हुक़ूक़, मुआशरे वग़ैरह की बात जिस तरह की जाती है तो उस हिसाब से एक निकाह भी करने से बचना चाहिये!..✍🏻
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 औरत चाहे तो ..⁉️*
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•••➲ हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदीअल्लाहु त'आला अन्हु की साहिबज़ादी हज़रते असमा रदिअल्लाहु त'आला अन्हा का ये वाकिया तमाम औरतों के लिए सबक है।
•••➲ जब मदीने की तरफ हिजरत के लिए हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के साथ हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदीअल्लाहु त'आला अन्हु रवाना होने लगे तो अपना सारा माल ले लिए जो हज़ारों दिरहम पर मुश्तमिल था।
जब आपने सारा माल ले लिया तो हज़रते अस्मा फरमाती है कि मेरे दादा हज़रत अबू कुहाफ़ा तशरीफ लाए आप उस वक्त देख नहीं पाते थे और मुझसे कहने लगे कि मेरा ख्याल है कि अबू बकर ने तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं छोड़ा है और सब कुछ ले लिया है।
•••➲ हज़रते असमा उन्हें घर के अंदर ले गई और कहा ऐसा नहीं है दादा जान! उन्होंने काफी माल छोड़ा है और फिर आपने पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े जमा कर के उस पर कपड़ा रख दिया और जहां हज़रत अबू बकर माल रखते थे वहां रख कर अपने दादा को ले गई और उनका हाथ उस पर रखवा कर कहा की देखीए हमारे लिए काफी माल छोड़कर गए हैं! (अल्लाहु अकबर)
•••➲ दादा ने कहा कि कोई बात नहीं, जब इतना माल है तो आराम से तुम्हारा गुज़ारा हो सकता है। आप फरमाती है के अल्लाह की कसम मेरे वालिद ने कुछ भी नहीं छोड़ा था लेकिन मैंने ये हिला सिर्फ दादा को तसल्ली देने के लिए किया था
(حلیۃ الاولیاء و طبقات الاصفیاء، ج2، ص97 و مسند احمد بن حنبل)
•••➲ अगर औरत चाहे तो अपने शौहर, अपने बाप और अपनी भाई की इज़्ज़त की मुहाफिज़ बन सकती है अगर वह शिकायतें करना शुरू कर दें तो ईज़्ज़त का जनाजा भी निकाल सकती हैं।
•••➲ सही कहते हैं की कामयाब मर्द के पीछे कहीं ना कहीं औरत का भी हाथ होता है!..✍🏻
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 सूफी के लिये भी शरीअत है ..⁉️*
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•••➲ इमाम शारानी रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है के ऐक ऐसा शख्स मेरे पास आया जिसके साथ इसके मुअतक़ीदीन की एक जमाअत थी, वो शख्स बे इल्म था उस को फना व बका मे कोई ज़ौक़ हासिल ना था, मेरे पास चंद रोज़ ठहरा, मेने उससे एक दीन पुछा के वुज़ू और नमाज की शर्ते बताओ क्या है? कहने लगा के मेने इल्म हासिल नहीं किया!
•••➲ मेने कहा : भाई, क़ुरानो सुन्नत के जाहिर पर इबादत का सही करना लाजिम है। जो शख्स वाजिब और मुस्तहब, हराम और मकरुह मे फर्क़ नही जानता वो तो जाहिल है और जाहिल की इक़्तेदा ना जाहिर मे दुरुस्त है ना बातिन मे, उस ने इसका कोई जवाब ना दिया और चला गया; अल्लाह तआला ने मुझे उसके शर से बचाया।
(تنبيه المغترین، الباب الاول، شروعہ فی المقصود، ص19)
•••➲ मालुम हुआ की लोग तसव्वुफ को क़ुरानो सुन्नत के खिलाफ समझते है, वो शख्स गलती पर है बल्के तसव्वुफ में इत्तेबा ए क़ुरानो सुन्नत निहायत ही जरुरी अम्र है!..✍🏻
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 जिहाद का मफ़हूम और काफिर की समझ ..⁉️*
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•••➲ जिहाद का मफ़हूम काफिरों की समझ से बाहर है। उन्हें किसी तरह भी समझाया जाये, उन की समझ में आने वाला नहीं है। चाहे अंग्रेजी में समझाया जाये या हिन्दी में, ये जिहाद के पाक मफ़हूम को कभी नहीं समझेंगे। जो काफ़िर मुसलमानों के खून के प्यासे हैं, वो भी जिहाद को गलत ही कहते हैं। कोई कहता है जिहाद में लोगों को क़त्ल किया जाता है लिहाज़ा ये सही नहीं है हालाँकि खुद चाहते हैं कि मुसलमानों का क़त्ले आम हो। दरअस्ल ये क़त्लो जदाल के खिलाफ़ नहीं हैं बल्कि उन को परेशानी इस्लाम और अहले ईमान से है।
•••➲ दुनिया में कौन सी ऐसी जगह है, जहाँ लड़ाई नहीं हुई हों? मुल्क के लिये जंग, मालो दौलत के लिये झगड़ा, औरत के लिये लड़ाई, खानदानी दुश्मनी में खूँ रेज़ी के वाक़ियात से तारीख भरी पड़ी है लेकिन इस्लामी जिहाद इन सब से जुदा है। जिहाद नाम है अल्लाह की ज़मीन पर उस के कलिमे के लिये लड़ाई का, कुफ्रो शिर्क और फ़ितनों को खत्म करने का, मजलूमों पर रहम करने का और जालिमों को खून के आँसू रुलाने का नाम जिहाद है। लेकिन ये बात काफ़िरों के समझ में आने वाली नहीं है क्योंकि वो खुद कुफ्रो शिर्क जैसे अज़ीम फितने को गले से लगाये बैठे हैं।
•••➲ तारीख में ऐसी कई हुकूमतों का ज़िक्र मिलता है जिन्होंने इन्सान के साथ जानवरों जैसा सुलूक किया है और उन का खून चूसा है मगर इस्लाम ही वो फक़त निज़ाम है जिसने सब को उन के हुक़ूक़ दिये वरना आज ना जाने कितनी क़ौमों का नामो निशान तक ना होता। दुनिया ने इस्लाम से ही इंसानियत सीखी है लेकिन ये बात काफिरों के समझ से बाहर हैं!...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 बेवा औरतों के निकाह को बुरा समझना..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ बेवा औरतों के लिए इस्लाम में निकाह जायज है और लोगों की बदनियती, बदनिगाही और फ़ासिद इरादों और बदकारी से बचने के की नीयत से हो तो बिला शुबहा बाइसे अज्र व सवाब हैं और निकाह करने पर बिला वजह किसी औरत पर लअन-तअन करना उसको बुरा भला कहना या बेवा औरत को मनहूस ख्याल करना सब गुनाह है।
•••➲ आजकल के माहौल में बदकारो ,ज़िनाकारों ,अय्याशों, होटलों, क्लब घरों और रन्डी खानों में अय्याशी व ज़िनाकारी करने वाले मर्दोंऔर औरतों की कसरत के बावजूद उन्हें कोई कुछ नहीं कहता बल्कि वह नेता काइद और बड़े आदमी कहलाए जा रहे हैं और कोई बेवा औरत निकाह करे या अधेड़ उम्र का मर्द या कोई मर्द एक से ज़्यादा निकाह करे तो उसको लोग बुरा जानते हैं और मलामत करते हैं यह सब जहालत और इस्लाम से दूरी के नतीजे हैं ।
•••➲ निकाह शरई जितने ज्यादा हो उतना बेहतर क्योंकि निकाह बदकारी को मिटाता है ज़िनाकारी और ज़िनाकारों के रास्ते बंद करता है। आजकल लेने देने ,लम्बी बारातो ,जहेज़ की ज़्यादती और रुसूम व रिवाज़ की कसरतों से निकाह शादियां मुश्किल हो गई है इसीलिए बदकारी व ज़िनाकारी बढ़ रही है निकाह को आसान करो ताकि बदकारी मिट जाए।..✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 85-86 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 263
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 कुतुब सितारे की तरफ़ पैर करके न सोना..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ यह मसअला अवाम में काफी मशहूर हो गया है और हिन्दुस्तान में काफ़ी लोग यह ख्याल करते हैं कि उत्तर की सम्त पैर फैलाना मना है क्यूंकि उधर कुतुब है यहाँ तक कि अगर कोई उत्तर की जानिब पाँव करके लेटे या सोए तो उसको निहायत बुरा जानते हैं और मकानों में चारपाईयां डालने में इस बात का ख़ास ख्याल रखते हैं कि सरहाना या तो पच्छिम की तरफ़ हो या उत्तर की जानिब।
•••➲ शरअन किब्ले की जानिब पाँव फैलाना तो यकीनन बेअदबी व महरूमी है इसके अलावा बाकी तमाम सम्ते इस्लाम में बराबर हैं किसी को किसी पर कोई बरतरी व फ़जीलत नहीं।
•••➲ आला हजरत मौलाना शाह अहमद रज़ा खाँ साहब रहमतुल्लाहि तआला अलैह इरशाद फरमाते हैं।
•••➲ यह मसअला जोहला (जाहिलों) में बहुत मशहूर है, कुतुब अवाम में एक सितारे का नाम है तो तारे तो चारों तरफ हैं किसी तरफ पैर न करे।"..✍️
📗 *फतावा रजविया, जिल्द 10, किस्त 2 मतबूआ बीसलपुर, सफ़हा 158 - अलमलफूज जिल्द 2, सफ़हा 57)*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 86 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 264
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 कुतुब सितारे की तरफ़ पैर करके न सोना..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 263 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ यानी अगर कुतुब सितारे की वजह से उत्तर की तरफ पैर करके सोना मना हो जाए तो सितारे चारों तरफ़ हैं किसी जानिब पैर फैलाना जाइज नहीं होगा।
•••➲ आजकल अगर लोग इस रिवाज को मिटाने और ग़लतफ़हमी को दूर करने के लिए चारपाईयों की पाइती उत्तर की जानिब रखें तो वह अज्र के मुसतहिक़ होंगे और उन्हें एक ग़लत रिवाज को मिटाने का सवाब मिलेगा।
•••➲ कुछ लोग कहते हैं कि मय्यत को कब्र में लिटाते वक्त उसका सर कुतुब यानी उत्तर की जानिब क्यूं किया जाता है। तो बात यह है कि मय्यत का सर उत्तर की तरफ करने या कब्र में उसे दाहिनी करवट लिटाने का मामूल इसलिए है ताकि उसका चेहरा किब्ले की तरफ़ हो जाए। और सोने या लेटने में किब्ले की तरफ़ मुँह रखने का कोई हुक्म नहीं और सोने और लेटने वाला एक करवट नहीं रह सकता। लिहाज़ा उसका चेहरा क़िब्ले की तरफ़ नहीं रह पाता वह करवटें बदलता है मुर्दे में यह सब नहीं और सोते वक्त भी अगर कोई किब्ले की तरफ चेहरा कर ले तो अच्छी नियत की वजह से यह अमल भी अच्छा ही है लेकिन शरअन जरूरी नहीं। और जो लोग उत्तर की तरफ पैर करके सोने को मना करते हैं उनका मकसद तो कुतुब की तालीम करना होता है न कि चेहरे को क़िब्ले की तरफ़ करना और कुतुब सितारे की तालीम का हुक्म अगर इस्लाम में कहीं आया हो तो हमें भी बतायें या लिख कर भेजें।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 87 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 265
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मुरीद होना कितना ज़रूरी..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ आजकल जो बैअत राइज है उसे बैअते तबर्रुक कहते हैं। जो न फर्ज है न वाजिब और न ऐसा कोई हुक्मे शरई कि जिसको न करने पर गुनाह या आख़िरत में मुदाख़िज़ा हो।
•••➲ *हाँ अगर कोई सही पीर मिल जाए तो उसके हाथ में हाथ। देकर उसका मुरीद होना यकीनन एक अच्छा काम और बाइसे खैर व बरकत है और इसमें बेशुमार दीनी व दुनियावी फ़ाइदे हैं।*
•••➲ लेकिन इसके बावुजूद अगर कोई शख्स अकाइद दुरुस्त रखता हो, बुजुर्गाने दीन और उलामए किराम से महब्बत रखता हो और किसी खास पीर का मुरीद न हो तो उसके लिए यह अकाइद ईमान की दुरुस्तगी, औलियाए किराम व उलमाए ज़विल एहतिराम से मुहब्बत ही काफी है। और किसी खास पीर का मुरीद न होकर हरगिज वह कोई शरई मुजरिम या गुनाहगार नहीं है। मगर आजकल गाँव, देहातों में कुछ जाहिल वे शर पीर यह प्रोपेगंडा करते हैं कि जो मुरीद न होगा उसे जन्नत नहीं मिलेगी। यहाँ तक कि कुछ नाख्वान्दा पेशेवर मुकर्रिर जिनको तकरीर करने की फुरसत है मगर किताबें देखने का वक्त उनके पास नहीं। जलसों में उन जाहिल पीरों को खुश करने के लिए यह तक कह देते हैं।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 88 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 266
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मुरीद होना कितना ज़रूरी..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 265 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ कि जिसका कोई पीर नहीं उसका पीर शैतान है और कुछ नाख्वान्दे इसको हुजूर ﷺ का फरमान बताते हैं। और इससे आज की पीरी मुरीदी मुराद लेते हैं। अव्वलन तो यह कोई हदीस नहीं। हाँ कुछ बुजुगों से जरूरी मनकूल है कि जिसका कोई शैख नहीं उसका शैख शैतान है। तो उस शैख से मुराद मुरशिदे आम है न कि मुरशिदे ख़ास। और मुरशिदे आम कलामुल्लाह व कलामे अइम्मा शरीअत व तरीकत व कलामे उलमाए ज़ाहिर व बातिन है। इस सिलसिलए सहीहा पर कि अवाम का हादी कलामे उलमा और उलमा का रहनुमा अइम्मा और अइम्मा का मुरशिद कलाम रसूल और रसूल का पेशवा कलामुल्लाह
•••➲ *सय्यिदी व सनदी आलाहजरत अलैहिर्रहमतु वर्रिदवान फ़रमाते*
•••➲ सुन्नी सहीहुल अकीदा कि अइम्मए हुदा को मानता, तकलीदे अइम्मा को ज़रूरी जानता, औलियाए किराम का सच्चा मुअतकिद, तमाम अकाइद में राहें हक पर मुस्तकीम वह हरगिज वे पीर नहीं, वह चारों मुरशिदाने पाक यानी *कलामे खुदा और रसूल ﷺ* व अइम्मा व उलमाए जाहिर व बातिन उसके पीर हैं अगरचे व-जाहिर किसी ख़ास बन्दए खुदा के दस्ते मुबारक पर शरफ़े बैअत से मुशर्रफ़ न हुआ हो!
📗 *निकाउस्सलाफ़ह फिल अहकामिल बैअते वल ख़िलाफ़ह सफ़हा 40*
•••➲ *और फरमाते हैं।* रस्तगारी (जहन्नम से नजात और छुटकारे) के लिए नबी को मुरशिद जानना काफ़ी है।..✍🏻
📙 *फ़तावा अफ्रीका, सफहा 136*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 88 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 267
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 मुरीद होना कितना ज़रूरी..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 266 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ इस सिलसिले में मजीद तहकीक व तफ़सील के लिए *आलाहजरत अलैहिर्रहमह* की तसनीफ़ात में *फ़तावा अफ्रीका,* बैअत क्या है और *निकाउस्सलाफ़ह* वगैरा किताबों का मुतालआ। करना चाहिए
•••➲ खुलासा यह कि अगर जाअ शराइत मुत्तबेअ श पीर मिले मुरीद हो जाए कि बाइसे दंर व बरकत और दरजात की बलदी का सबब है। और ऐसा लाइक व अहल पीर न मिले तो ख्याही न ख्वाही गाँव गाँव फेरी करने वाले जाहिल वे शर, उलमा की बुराई करने वाले नाम निहाद पीरों के हाथ में हाथ हरगिज न दे। ऐसे लोगों से मुरीद होना ईमान की मौत है।...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 89 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 268
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 क्या पीर के लिए सय्यिद होना ज़रूरी..❓*
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•••➲ आजकल यह प्रोपेगंडा भी क्या जाता है कि मुरीद करने का हक सिर्फ सय्यिदों को है। ऐसा प्रोपेगन्डा करने वालों में ज़्यादातर वह लोग हैं जो सय्यिद न होकर खुद को आले रसूल और सय्यिद कहलाते हैं। सादाते किराम से मुहब्बत और उनकी ताज़ीम अहले ईमान की पहचान है। निहायत बदबख़्त व बदनसीब है जिसको आले रसूल से महब्बत न हो। लेकिन पीर के लिए सय्यिद होना जरूरी नहीं *कुर्आंने करीम* में है।
•••➲ *तर्जमा :-* तुम में अल्लाह के हुजूर शराफत व इज़्ज़त वाले तकवा व परहेज़गारी वाले हैं।
•••➲ *हज़रत सय्यिदना गौसे समदानी शेख अब्दुल कादिर जीलानी रदीअल्लाहो तआला अन्हुमा* खुद नजीबुत्तरफ़ैन हसनी हुसैनी सय्यिद हैं लेकिन हुजूर के पीर व *मुरिशद शेख़ अबू सईद मख़ज़ूमी रहमतुल्लाह अलैह* और उनके *शैख़ अबुल हसन हक्कारी रहमतुल्लाह अलैह* और उनके *मुरशिद शेख़ अबुल फ़रह तरतूसी रहमतुल्लाह अलैह* यूँही सिलसिला ब सिलसिला *शेख अब्दुल वाहिद तमीमी, रहमतुल्लाह अलैह शेख़ अबूबक्र शिबली रहमतुल्लाह अलैह ज़ुनैद बग़दादी, रहमतुल्लाह अलैह शैख सिर्रीं सक़ती रहमतुल्लाह अलैह शैख मअरूफ़ करख़ी रदियलाहु तआला अन्हुमा* में से कोई भी सय्यिद व आले रसूल नहीं।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 90 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 269
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 क्या पीर के लिए सय्यिद होना ज़रूरी..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 268 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *सुल्तानुल हिन्द ख्वाजा मुईनुद्दीन अलैहिर्रहमतु वर्रिद़वान* के पीर व *मुरशिद हज़रत शैख़ ख़्वाजा उस्माने हारूनी रहमतुल्लाह अलैह* भी सय्यिद नहीं थे। फिर भी यह कहना कि पीर के लिए सय्यिद होना ज़रूरी है। यह बहुत बड़ी जहालत व हिमाकत है।
•••➲ आला हज़रत अलहिर्रहमा फ़रमाते हैं पीर के लिए सय्यिद होने की शर्त ठहराना तमाम सलासिल को बातिल करना है सिलसिलए आलिया कादिरिया में सय्यिदना इमाम अली रज़ा और हुजूर गौसे आजम रदीअल्लाहो तआला अन्हुमा के दरमियान जितने हज़रात हैं सादाते किराम से नहीं और सिलसिलए आलिया चिश्तिया में तो सय्यिदना मौला अली के बाद ही इमामे हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह हैं जो न सय्यिद हैं न कुरैशी और न अरबी और सिलसिलए आलिया नक़्शबन्दिया का ख़ास आग़ाज़ ही सय्यिदना सिद्दीके अकबर रदियल्लाह तआला अन्हु से है।
📗 *फ़तावा रजविया, जिल्द 9,सफ़हा 114 मतबूआ बीसलपुर*
•••➲ और *हुजूर ﷺ के सहाबा رضي الله عنه* जिनकी तादाद एक लाख से भी ज़्यादा है उन में चन्द को छोड़ कर कोई सय्यिद और आले रसूल नहीं। लेकिन उनके मरतबे को क़ियामत तक कोई नहीं पहुँच सकता चाहे सय्यिद हो या गैरे सय्यिद।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 91 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या पीर के लिए सय्यिद होना ज़रूरी..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 269 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ अल्लाह अल्लाह क्या मरतबा हैं। सहाबा رضي الله عنه का जिसके मर्तबे को त क़ियामत तक कोई नहीं पहुँच सकता मेंरे अजीजो आले रसूल से मुहब्बत करों मे भी सैय्यद हूँ मुझ पर भी आले रसूल की ताजीम लाजिम है। लेकिन उनका अदबो अहितराम भी हम पर लाजिम है। जो अल्लाह तआला की और उसके रसूल ﷺ की बारगाह मे मक़बूल है। चाहें बह ग़ैर सैय्यद क्यूँ न हों अपनी नफ्सी ख्वाहिसात के लिए उनको बुरा कहना उनसे बुग्ज रखना उनकीं आल पर तोहमत लगाना कहाँ तक दुरूस्त है। इस पुर फतन दौर मे हमारे ईमान को बचाय रखना सबके बस की बात नहीं है। जब भी हमारे शरीअत पे आँच आई या गैरो ने उँगली उठाई सब जानते है। जबाब बरेली ने दिय़ा अल्हमदो लिल्लाह इश्के नबी ﷺ मे यह घराना इस क़दर डूबा हुआ है।
•••➲ इन्के नाम से दुश्माने इस्लाम के कलेजे जल ज़ाया करते है। और बाज़ लोग़ बरेली पर ताना कसते है। खुदाया अपनी हरकतों से बाज अ जाओ तुम्हारी यह ज़बान दराजी तुम्हे अल्लाह तआला की बारगाह मे रूस्वा न करदे प्यारे आका ﷺ की बारगाह मे रूस्वा न करदे फिर किस मुँह से कहोगे हम आले रसूल है। मेरे सैय्यद जादो बरेली और बरेली के इमाम अहमद रज़ा ख़ान अलहिर्रहमा के अहसान को न भूलों आज जो हमारी ताजीम हो रहीं है। बरेली के इमाम सरकार आला हजरत अलहिर्रहमा की मुहब्बत है। मत भूलों बरेली के अहसान को अगर सच्चे हसनी हुसैनी सैय्यद हो रज़ा से मुहब्बत करों रज़ा की आल से मुहब्बत करो।
•••➲ कसम ख़ुदा की यही निज़ात का रास्ता बन जाएंगा अरे जब रज़ा से मुहब्बत करोगे तभी तो ख्वाज़ा गरीब नमाज़ रहमतुल्लाह अलैह से मुहब्बत करोगे तभी तो गौस ए आज़म रदीअल्लाहो तआला अन्हुमा से मोहब्बत करना सीखोगे जब इनकी मुहब्बत दिल मे बस जाइगी तभी प्यारे आका ﷺ की सफाअत मिलेंगी तुमने अल्लाह तआला के किसी वल़ी से बुग्ज रखा तो यक़ीन जानो तुम खसारे मे हो हदीश मुबारका है अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है। जिसने मेरे एक वल़ी से दुश्मनी की मे उससे जंग का एलान करता हूँ। अल्लाह हुअकबर अल्लाह हुअकबर बाज़ आ जाओ मेरे सुन्नी मुसलमानों सब ख़ानक़ाह के बुजुर्ग हमारे है। हमे सबसे निस्बत है। कहने बाले ने क्या खूब कहा है।..✍🏻
*_मिली जो इश्क की रोटी हमे बरेली से_*
*_फिर क्यूँ न मुँह का निवाला बोलें रज़ा रज़ा_*
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*📝 काफिरों को मुरीद करना..❓*
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•••➲ कुछ जाहिल नाम निहाद पीर काफ़िरों को मुरीद कर लेते है जब की काफ़िरों को जब तक वो कुफ़्र और उसके लवाज़िमात से तौबा करके और कलमा पढ़ कर मुसलमान न बने उनको मुरीद करना उनके लिए मुरीद का लफ़्ज़ बोलना जहालत है। अजब बात है महादेव की पूजा कर रात दिन ,बूतों के सामने दंडवत करें और मुरीद आप का कहलाए। जो खुदा और रसूल का नहीं वो आपका कैसे हो गया?
•••➲ सही बात यह है कि वह आपका मुरीद न हुआ बल्कि उसकी मालदारी देख कर आप उसके मुरीद हो गए हैं।
•••➲ *सय्यिदी आला हज़रत रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं :* कोई काफ़िर ख्वाह मुशरिक हो या मुवहहिद हरगिज़ न दाख़िले सिलसिला हो सकता है और न बे इस्लाम उसकी बैअत मुअतबर न कल्बे इस्लाम उसकी बैअत मुअतबर अगरचे बाद को मुसलमान हो जाए कि बैअत हो या कोई और अमल सब के लिए पहली शर्त इस्लाम है।..✍🏻
📗 फतावा रज़विया ,जिल्द 9, सफहा 157
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*📝 काफिरों को मुरीद करना..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 271 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ काफ़िरों को मुरीद करने वाले कुछ पीर कहते है की हम ने उसे इसलिए मुरीद कर लिया है की वो हमारी मुहब्बत में मुसलमान हो जाए। ठीक है आपकी ये नियत है तो उसके साथ अच्छे अख़लाक़ और किरदार से पेश आइये लेकिन जब तक मुसलमान न हो उसे मुरीद न कहिये। और ज़रा यह भी बताइए कि अब तक आपने मुरीद करके कितने काफिर मुसलमान बनाए हैं आज तो वह ज़माना है कि ग़ैर मुस्लिमों से वही दोस्ती और यारी रखने वाले मुसलमान ही काफ़िर या उनकी तरह हो रहे हैं । और मिसाल में उन बुजुर्गों के अखलाख व किरदार को पेश करते हैं जिन्होंने एक एक सफर में 90 90 हज़ार काफिरों को कलमा पढ़ाया ख्याल रहे कि तुममें और उनमें बड़ा फर्क है वह काफिरों को मुसलमान करते थे और तुम ताल्लुकात रखकर खुद उनकी तरह होते जा रहे हो पहले के बुजुर्गों के बारे में तारीख में ऐसी कोई मिसाल नहीं कि उन्होंने पहले मुरीद कर लिया हो और बाद में वह मुसलमान हुआ हो बल्कि पहले मुसलमान करते फिर मुरीद तुम में हिम्मत हो तो ऐसा ही करो!..✍
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*📝 अगर सही पीर न मिले तो क्या करना चाहिए?..❓*
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•••➲ अकाइदे सहीहा पर काइम रहे अहकमे शरीअत पर अमल करे और तमाम औलिया किराम और उलमाए ज़विल एहतिराम से मुहब्बत करे। *हुजूर पुरनूर सय्यिदना गौसे आजम रदियल्लाहु तआला अन्हु* से अर्ज की गई कि अगर कोई शख्स हुजूर का नाम लेवा हो और उसने न हुजूर के दस्ते मुबारक पर बैअत की हो न हुजूर का ख़िरक़ा पहना हो क्या वह हुजूर के मुरीदों में है तो फ़रमाया : ‘‘जो अपने आप को मेरी तरफ़ मनसूब करे और अपना नाम मेरे गुलामों में शामिल करे अल्लाह उसे कबूल फरमाएगा और वह मेरे मुरीदों के जुमरे में है।”
📕 बा- हवाला फतावा अफ्रीका, सफ़हा 140
•••➲ इसके अलावा *सय्यिदना शेख अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी अलैहिर्रहमह* ने फरमाया कि जिसको पीरे कामिल जामेअ शराइत न मिले वह हुजूर पर कसरत से दुरूद शरीफ़ पढ़े!..✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 93 📚*
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*📝 पीर से पर्दा?..❓*
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•••➲ यह बात काफी मशहूर है कि पीर से पर्दा नहीं है हालांकि असलियत यह है कि पर्दे के मामले में पीरों या आलिमों, इमामों का अलाहिदा से कोई हुक्म नहीं।
•••➲ *सय्यिदी आलाहज़रत रदियल्लाहु तआला अन्हु* फरमाते हैं : ‘'पर्दे के मामले में पीर व गैरे पीर हर अजनबी का हुक्म यकसाँ है जवान औरत को चेहरा खोल कर भी सामने आना मना और बुढ़िया के लिए जिससे एहतिमाल फितना न हो मुज़ाइका *(हरज)* नहीं!..✍
📗 फ़तावा रज़विया जिल्द 10 सफ़हा 102
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
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*📝 मालदार होने के लिए मुरीद होना?..❓*
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•••➲ आजकल ज्यादातर लोग इसलिए मुरीद होते हैं कि हम मालदार हो जायेंगे या दुनयवी नुक़सानात से महफूज़ रहेंगे। कितने लोग यह कहते सुने जाते हैं कि हम फलां पीर साहब से मुरीद हो कर खुशहाल और मालदार हो गए अफ़सोस का मक़ाम है कि जो पीरी मुरीदी कभी रुश्द व हिदायत ईमान की हिफ़ाज़त और शफाअत और जन्नत हासिल करने का ज़रिआ ख्याल की जाती थी आज वह हुसूले दौलत व इमारत या सिर्फ नक्श व तावीज़ पढ़ना और फ़ूकना बन कर रह गई। अब शायद ही कोई होगा जो अहले इल्म व फ़ज़्ल उलमा, सुलहा या मज़ाराते मुकद्दसा पर इस नियत से हाजिरी देता हो कि उनसे गुनाहों की मगफिरत और ख़ात्मा अलल ईमान की दुआ करायेंगे।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 93 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 276
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 मालदार होने के लिए मुरीद होना?..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 275 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ इस्लाम में दुनिया को महज एक खेल तमाशा कहा गया और आख़िरत को बाकी रहने वाली, लेकिन जिसका पता नहीं कब साथ छोड़ जाए उसको संवारने, बनाने में लग गए और जहाँ सब दिन रहना है उसको भुला बैठे। हदीसे पाक में अल्लाह के *रसूल ﷺ* ने इरशाद फ़रमाया : ‘‘जब तुम किसी बन्दे को देखो कि अल्लाह उसको गुनाहों के बावुजूद दुनिया दे रहा है जो भी वह बन्दा चाहता है तो यह ढील है यानी अगर कोई बन्दा गुनाह करता रहे मगर हक तआला की तरफ से बजाए पकड़ के नेमतें मिल रही हैं तो यह नेमतें नहीं बल्कि अज़ाब है। रात दिन दौलत कमाने में लगे रहने वाले अब मस्जिदों खानकाहों में भी कभी आते हैं तो सिर्फ दौलते दुनिया और ऐश व आराम की फिक्र लेकर किस कद्र महरूमी है। खुदाए तआला आख़िरत की फिक्र करने की तौफ़ीक अता फरमाए।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 93 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 277
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 बुजुर्गों की तसवीरें घरों मे रखना?..❓*
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•••➲ आजकल बुजुर्गाने दीन की तसवीरें और उनके फोटो घरों दुकानों में रखने का भी रिवाज हो गया है। यहाँ तक कि कुछ लोग पीरों वलियों की तसवीरें फ्रेम में लगा कर घरों में सजा लेते हैं और उन पर मालायें डालते अगरबत्तियां सुलगाते यहाँ तक कि कुछ जाहिल अनपढ़ उनके सामने मुशरिकों, काफ़िरों बुतपरस्तों की तरह हाथ बांध कर खड़े हो जाते हैं। ये बातें सख्त तरीन हराम, यहाँ तक कि कुफ्र अन्जाम हैं बल्कि यह हाथ बांध कर सामने खड़ा होना उन पर फूल मालायें डालना यह काफ़िरों का काम है।
•••➲ *सय्यिदी आला हज़रत मौलाना शाह अहमद रज़ा खाँ साहब अलैहिर्रहमाह* इरशाद फरमाते हैं : ‘‘अल्लाह अज़्ज़वजल इबलीस के मक्र से पनाह दे। दुनिया में बुत परस्ती की इब्तिदा यूंही हुई कि अच्छे और नेक लोगों की मुहब्बत में उनकी तसवीरें बना कर घरों और मस्जिदों में तबर्रुकन रख ली। धीरे धीरे वही मअबूद हो गई।...✍
📗 *फ़तावा रजविया, जिल्द 10, किस्त 2, मतबूआ बीसलपुर सफ़हा 47*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 94 📚*
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*📝 बुजुर्गों की तसवीरें घरों मे रखना?..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 277 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *बुखारी शरीफ़* और *मुस्लिम शरीफ़* की हदीस में है कि , सुवा, यगूस, यऊक और नसर जो मुशरिकीन के मअबूद और उनके बुत थे जिनकी वह परसतिश करते थे जिनका जिक्र *कुर्आने करीम* में भी आया है। यह सब कौमे नूह के नेक लोग थे उनके विसाल हो जाने के बाद कौम ने उनके मुजसमे बना कर अपने घरों में रख लिये उस वक्त सिर्फ मुहब्बत में ऐसा किया गया था। लेकिन बाद के लोगों ने उनकी इबादत और परसतिश शुरू कर दी। इस किस्म की हदीसें कसरत से हदीस की किताबों में आई हैं।
•••➲ खुलासा यह कि तसवीर फोटो इस्लाम में हराम हैं। और पीरों वलियों, अल्लाह वालों के फोटो और उनकी तसवीरें और ज़्यादा हराम हैं। काफ़िरों इस्लाम दुश्मन ताकतों की साज़िशें चल रही हैं वह चाहते हैं कि तुमको अपनी तरह बनायें और तुम से कुफ्र करायें खुद भी जहन्नम में जायें और तुमको भी जहन्नम में ले जायें।..✍🏻
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 95 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 279
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 शरीअत की मुखालिफत करने वाले पीर?..❓*
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•••➲ आजकल ऐसे पीरों की तादाद भी काफी है जो नमाज़ रोज़ा व दीगर अहकामे शरअ पर न खुद अमल करते हैं और न अपने मुरीदों से अमल कराते हैं बल्कि इस्लाम व कुरआन की बातों को यह कह कर टाल देते हैं कि यह मौलवी लाइन की बातें हैं हम तो फ़क़ीरी लाइन के हैं यह खुले आम शरीअत इस्लामिया का इन्कार और नमाज़ रोज़े की मुखालिफ़त करने वाले पीर तो पीर, मुसलमान तक नहीं हैं। उनका मुरीद होना ऐसा ही है जैसे किसी गैर मुस्लिम को अपना पेशवा बनाना , क्योंकि शरीअते इस्लामिया का इन्कार *(इस्लाम)* ही का इन्कार है और यह कुफ्र है।
•••➲ सय्यिदी आला हज़रत मौलाना शाह अहमद रज़ा खां साहब अलैहिर्रहमह इरशाद फरमाते हैं ।सराहतन शरीअते मुतह्हरह को मआज़अल्लाह मुअत्तल व मुहमल लग्व व बातिल कर देना यह सरीह कुफ्र व इरतिदाद व ज़िन्दका व इलहाद व मोजिबे लअनत व इबआद है।..✍🏻
*📕 मकाले उरफा , सफहा 9*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 95 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 280
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 शरीअत की मुखालिफत करने वाले पीर?..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 279 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ हक़ यह है कि अल्लाह तआला का वली और अल्लाह तआला वाला वही है जो रसूले अकरम हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम ने बताया और खुद उस पर चल कर दिखाया। उसका मुखालिफ़ हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का मुखालिफ है और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का मुखालिफ अल्लाह तआला का मुखालिफ है और शैतान लईन का मुरीद है।
•••➲ *क़ुरआने करीम में खुदाए तआला का फरमान है।*
•••➲ *तर्जमा :-* ऐ महबूब तुम फरमाओ कि अगर तुम अगर अल्लाह तआला से महब्बत करते हो तो मेरा कहना मानो तुम अल्लाह तआला के प्यारे हो जाओगे और वह तुम्हारे गुनाहों को माफ फरमा देगा और अल्लाह तआला बहुत बख्शने वाला मेहरबान है।
📗 *पारा 3, रूकू 12)*
•••➲ इस आयते करीमा से खूब मालूम हुआ कि अल्लाह तआला तक पहुंचने के सारे रास्ते हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम ही के कदमों से गुज़रते हैं वह आलिमों मौलवियों के हो या फकीरों दुरवेशों के हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम का रास्ता छोड़कर हरगिज़ कोई खुदाए तआला तक नहीं पहुंच सकता। और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का रास्ता ही शरीअते इस्लामिया है और तरीकत भी इसी का एक टुकड़ा है इसको शरीअत से जुदा मानना गुमराही है।...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 96 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 281
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 शरीअत की मुखालिफत करने वाले पीर?..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 280 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ कुछ गुमराह पीरों के गुमराह मुरीदों को यह कहते भी सुना गया है कि हमने अपने पीर का दीदार कर लिया यही हमारी नमाज़ व इबादत है उनका यह कौल सख्त बद दीनी है। नमाज़ इस्लाम में इतनी अहम है इसको अगर मुरीद छोड़ेंगे तो वह कब्र व हश्र में अज़ाबे इलाही का मज़ा चखेंगे और पीर छोड़ेंगे तो वह भी आख़िरत में खूब ठोंके जाएंगे और वह पीर ही नहीं। जो ना खुद अल्लाह तआला की इबादत करें ना दूसरों को करने दें।
•••➲ नमाज का तो इस्लाम में इतना बुलंद मकाम है कि हुज़ूर सय्यिदे आलम अहमदे मुजतबा मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब मक्कए मुअज़्ज़मा से हिजरत फरमा कर मदीना तैय्यिबा तशरीफ़ लाए थे तो आपने अपने घर वालों के रहने के लिए हुजरे और मकानात बाद में तामीर फरमाए थे पहले खुदाए तआला की इबादत यानी नमाज़ के लिए मस्जिद शरीफ की तामीर फ़रमाई थी जो आज भी है उसका एक एक हिस्सा अहले ईमान के लिए दिल व जान से बढ़ कर है।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 96 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 282
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 शरीअत की मुखालिफत करने वाले पीर?..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 281 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि नमाज़ मेरी आंखो की ठंडक है और नमाज़ जन्नत की कुंजी है पहले जमाने के बुज़ुर्गाने मुरशिदाने किराम सूफी और दुरवेश सब के सब नमाज़ी दीनदार और निहायत दरजा हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शरीअत पर चलने वाले परहेज़गार होते थे। वह यह नहीं कहते कि हम फकीरी लाइन के हैं हम पर नमाज़ माफ है बल्कि वह औरों से ज्यादा सारी सारी रात नमाज़ पढ़ते थे। आजकल के कुछ जाहिल नाम निहाद सूफियों और पीरों ने सोचा कि पीरी भी चलती रहे और आजादी व आराम ने भी कोई कमी ना आए इसलिए वह अहकामे शरअ नमाज़ व रोज़े वगैरा की मुखालिफत करते हैं।
•••➲ गौर करने की बात है कि पहले के बुजुर्गों के आस्ताने और मज़ार जहां मिलेंगे वहीं मस्जिदे भी जरूर मिलेंगी। अजमेर शरीफ मैं ख्वाजा गरीब नवाज़ मोइनुद्दीन चिश्ती का आस्ताना दिल्ली में हज़रत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी, हज़रत निज़ामुद्दीन महबूब ए इलाही, हज़रत नसीरुद्दीन चिराग देहलवी ,हजरत शैख अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी वगैरा की खानकाहे लाहौर में हजरत शैख दातागंज बख्श का आस्ताना , नागौर शरीफ में हजरत सूफी हमीदुद्दीन नागौरी, कछौछा में हज़रत शैख मखदूम अशरफ समनानी, पाक पटन में हज़रत फरीदुद्दीन गंज शकर, कलियर शरीफ में हज़रत शैख अलाउद्दीन साबिर कलियरी वगैरा इन सबके आस्तानों पर आपको जहां मज़ारात मिलेंगे वहाँ मस्जिदे भी मुत्तसिल बनी हुई नजर आयेगी।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 97 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 283
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 शरीअत की मुखालिफत करने वाले पीर?..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 282 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ इस मे राज़ यह है कि यह हज़रात जहां क़ियाम फरमाते ठहरते और बिस्तर लगाते वहाँ ख़ुदा तआला का घर यानी मस्जिद बनाकर अज़ान और नमाज़ से उसको आबाद फरमाते और जब उन्होंने खुद खुदाए तआला की इबादत करके उसके घरों को आबाद किया तू खुदाए तआला ने उनके दर आबाद कर दिये।
•••➲ और इस्लाम इन्हीं दो चीज़ों का नाम है कि खुदाए तआला की इबादत इताअत भी होती रहे और उसके महबूब बन्दों, खासाने खुदा हज़राते अम्बिया व औलिया की ताज़ीम और उनसे महब्बत भी होती रहे। जो खुदाए तआला के अलावा किसी और की इबादत पूजा और परसतिश करें वह मुसलमान नहीं और जो खुदा वालों से महब्बत का मुतलकन इनकार करें उनकी बारगाहों में बेअदबी से पेश आए गुस्ताखी करे वह भी इस्लाम से ख़ारिज है।..✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 98 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 284
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 मामूली इख़्तिलाफात को झगड़ों का सबब बनना?..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ बाज़ फुरुई और नौपैद मसाइल जिनका ज़िक्र सराहतन खुले अलफ़ाज़ में कुरआन व हदीस और फ़िक़्ह की मुस्तनद क़िताबों में नहीं मिलता, उनके मुताल्लिक कभी कभी आलिमों की राय अलग अलग हो जाती है। खास कर आज साइंस के दौर में नई नई ईजादात की बुनियाद पर ऐसे मसाइल कसरत से सामने आ रहे हैं तो कुछ लोग उलेमा के दरमियान इख्तिलाफात को लड़ाई,झगड़े, गाली गलौच ,लअन व तअन का सबब बना लेते हैं और आपस में गिरोह बन्दी कर लेते हैं, यह उनकी सख्त गलतफहमी है।
•••➲ फरुई मसाइल में इख़्तिलाफ़ की बुनियाद पर पार्टीबन्दी कभी नहीं करना चाहिए। एक दूसरे को बुरा भला कहना चाहिए बल्कि जो बात आपके नज़दीक हक़ व दुरुस्त है वह दूसरों को समझा देना काफी अगर मान जाये तो ठीक वरना उन्हें उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए और उन्हें अपना मुसलमान भाई ही ख्याल करना चाहिए। मगर आजकल छोटी छोटी बातों पर आपस में लड़ाई, झगड़े, दंगे करना और पार्टियां बनाने की मुसलमान में बीमारी पैदा हो गई है। यह इसलिए भी हुआ कि आजकल लोग नमाज़ व इबादत व कुरआन की तिलावत और दीनी किताबों के पढ़ने में मशगूल नहीं रहते। खाली रहते हैं, इसलिए उन्हें खुराफात सूझती है और ख्वामखाह की बातों में लड़ते और झगड़ते है कुछ लोग इस फुरुई इख़्तिलाफ़ को उलेमाए दीन की शान में गुस्ताखी करने और उन्हें बुरा भला कहने का बहाना बना लेते हैं। ऐसे लोग गुमराह व बद्दिन हैं। इनसे दूरी बहुत जरूरी है और इनकी सुहबत ईमान की मौत है। क्योंकि उलेमा ए दीन की शान मे गुस्ताखी और मौलवियों को बुरा भला कहना बद मज़हबी है गुमराहओ की गुमराही की शुरुआत यहीं से होती है।..✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 98 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 285
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मामूली इख़्तिलाफात को झगड़ों का सबब बनना?..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 284 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ अहले इल्म व फ़ज़्ल असहाबे दयानत व अमानत में अगर किसी बात पर इख़्तिलाफ़ हो जाये ,उस बात पर अमल करना चाहिए और खुदाए तआला से रो रो कर तौफीक खैर और सीधे रास्ते पर काइम रहने की दुआ करते रहना चाहिए।
•••➲ *हदीस शरीफ* में है की रसूले पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब जंगे खंदक से वापस मदीने में तशरीफ़ लाएं और फौरन यहूदियों के कबीले बनू क़ुरैज़ा पर हमले का इरादा फरमाया और सहाबा को हुक्म दिया की असर की नमाज बनू क़ुरैज़ा में चलकर पढ़ी जाए लेकिन रास्ते में वक्त हो गया यानी नमाज असर का वक्त खत्म हो जाने का अंदेशा हो गया तो कुछ सहाबा ने नमाज का वक्त जाने के खौफ से रास्ते में ही नमाज अता फरमाई और उन्होंने ख्याल किया कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का मकसद यह नहीं था कि चाहे वक़्त जाता है लेकिन नमाज़ बनू क़ुरैज़ा ही में नहीं पढ़ी जाए और कुछ लोगों ने वक़्त की परवाह न की और नमाज़ असर बनू क़ुरैज़ा ही में जाकर पढ़ी। हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सामने जब यह जिक्र आया तो आपने दोनों ही को सही व दुरुस्त फरमाया दोनों में से किसी को बुरा नहीं कहा।..✍
📕 *सही बुखारी, जिल्द 1, सलातुल तालिब वलमतलूब, सफहा 129*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 99 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 286
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 मामूली इख़्तिलाफात को झगड़ों का सबब बनना?..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 285 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ एक और हदीस शरीफ में है एक मर्तबा हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के दो सहाबा सफर को गए रास्ते में पानी ना मिलने की वजह से दोनों ने मिट्टी से तयम्मुम करके नमाज़ अदा फरमाई फिर आगे बढ़े पानी मिल गया और नमाज़ का वक़्त बाकी था। एक साहब ने वुज़ू करके नमाज़ दोहराई लेकिन दूसरे ने नहीं दोहराई । वापसी में हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाजिर होकर किस्सा बयान किया तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उन साहब से जिन्होंने नमाज़ नहीं दोहराई थी और तयम्मुम की नमाज़ को काफी समझा था उनसे फरमाया तुमने सुन्नत के मुताबिक काम किया और दोहराने वालों से फरमाया तुम्हारे लिए दो गुना सवाब है (निसाई ,अबूदाऊद ,मिश्क़ात बाबे तयम्मुम, सफहा 55) यानी हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने दोनों को हक व दुरुस्त फरमाया इन हदीसों से पता चलता है कि इख़्तिलाफ़ के बाद भी दो गिरोह हक पर हो सकते हैं जब कि दोनों की नीयत सही हो । इन हदीसों से तक़लीदे अइम्मा का इन्कार करने वाली नाम निहाद जमाअत अहले हदीस (गैर मुकल्लिद) को सबक लेना है जो कहते हैं कि इख़्तिलाफ़ के बावजूद चारों मसलक यानी हनफ़ी, शाफ़ई, मलिकी,हम्बली कैसे हक़ पर हो गए।...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 100 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 287
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 मामूली इख़्तिलाफात को झगड़ों का सबब बनना?..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 286 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ हज़रत मौलाए कायनात सय्यिदिना व मौलाना अली मुर्तज़ा रदियल्लाहु तआला अन्हु और सय्यिदिना अमीरे मुआविया रदियल्लाहु तआला अन्हु में जंग हुई मगर दोनों का ही एहतिराम किया जाता है और दोनों में से किसी को बुरा भला कहना सख्त गुमराही और जहन्नम का रास्ता है।
•••➲ इसकी मिसाल यू समझना चाहिए कि जैसे मां और बाप में अगर झगड़ा हो जाए तो औलाद अगर मां को मारे पिटे या गालियां दें तब भी बदनसीब व महरूम और अगर बाप के साथ ऐसा बर्ताव करे तब भी यानी औलाद को उस झगड़े ने इजाजत ना होगी कि एक ही तरफ होकर दूसरे की शान में बेअदबी करें बल्कि दोनों का एहतेराम जरूरी होगा या किसी शागिर्द के दो उस्तादों में लड़ाई हो जाए तो शागिर्द के लिए दोनों में से किसी के साथ बेहूदगी और बदतमीजी की इजाजत ना होगी।
•••➲ मकसद यह है कि बड़ों के झगड़ों में छोटों को बहुत एहतियात व होशियारी की जरूरत है।..✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 101 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 288
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 मामूली इख़्तिलाफात को झगड़ों का सबब बनना?..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 287 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ इस उनवान के तहत हमने जो कुछ लिखा है उसका हासिल यह है कि जब कोई शख्स दीन की जरूरी बातों का मुनकिर और अक़ीदे में खराबी की वजह से इस मंजिल को ना पहुंच जाए कि उसको खारिजे इस्लाम और काफिर कह सकें तब तक उसके साथ नरमी का ही बर्ताव करना चाहिए और समझाने की कोशिश करते रहना चाहिए और खुदाए तआला से उसकी हिदायत की दुआ करते रहना चाहिए।
•••➲ हां वह लोग जो दिन की जरूरी बातों के मुन्किर हो, कुरआन व हदीस से साबित सरीह उमूर के काइल न हो,या या अल्लाह तआला और उसके महबूब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और दीगर अम्बिया किराम व औलियाए किराम व औलिया इज़ाम व उलेमाए ज़विल एहतिराम की शान में तौहीन और गुस्ताखी करते, या गुस्ताखाने रसूल (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) की तहरीकों और जमाआतों से कसदन जुड़े हुए हो, उनकी तारीफ करते हो, वह यकीनन इस लाइक नहीं बल्कि उनसे जितनी नफरत की जाये कम है क्यूंकि अल्लाह और अल्लाह वालों की शान में गुस्ताख़ी व बेअदबी इस्लाम में सबसे बड़ा जुर्म है, और ऐसे शख्स की सुहबत ईमान के लिए ज़हरीला नाग है।...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 102 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 289
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 मामूली इख़्तिलाफात को झगड़ों का सबब बनना?..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 288 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ उलेमाए अहले हक़ के दरमियान फुरुई इख़्तिलाफात क़ी सूरत में दोनों जानिब का इहतिराम व अदब मलहूज़ रखने का मशविरा जो हमने दिया है यह वाकई आलिम हो फकीह व मुहद्दिस हो। वरना आजकल के अनपढ़ जो दो चार उर्दू की किताबें पढ़ कर आलिम बनते या सिर्फ तकरीरे करके स्टेजों पर अल्लामा कहलाते,कुरआन व हदीस में अटकलें लगाते हैं, मसाइल में उलेमा से टकराते है,अपनी दुकान अलग सजाते हैं ये इसमें दाखिल नहीं बल्कि ये तो उम्मते मुस्लिमा में रखना अंदाज़ी करने वाले और फितना परवर हैं।
•••➲ सय्यिदि आला हज़रत फरमाते हैं जहां इख़्तिलाफाते फुरुईया हो जैसे हनफ़ी और शाफ़ई फिरके अहले सुन्नत में वहाँ हरगिज़ एक दूसरे को बुरा कहना जाइज़ नही।...✍
*📕 अलमलफूज़ हिस्सा अव्वल सफहा 51*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 102 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 290
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 ख़ानक़ाही इख़्तिलाफ़ात और इस सिलसिले में सही बात?..❓*
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•••➲ आजकल ख़ानकाही इख्तिलाफ़ात का भी ज़ोर है और एक पीर के मुरीद दूसरे के मुरीदों को और एक सिलसिले वाले दूसरे सिलसिले वालों को एक आँख नहीं भाते और उन्हें अपना दुश्मन जानते हैं। और यह इसलिए कि उन्हें इस्लाम व *कुर्आन-पाक* और *अल्लाह तआला व रसूल सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* से मुहब्बत नहीं वरना यह हर मुसलमान और *अल्लाह तआला व रसूल सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* पर ईमान रखने वाले से मुहब्बत करते।
•••➲ आजकल कुछ पीर भी ऐसे हैं कि उन्हें अपने ही मुरीद भाते हैं। और अच्छे लगते हैं और दूसरों के मुरीदों को देख कर उनका खून खौलता है जबकि पीरी उस्तादी के आदाब व उसूल से है कि वह अपने शागिदों मुरीदों को जहाँ अपनी ज़ात से अकीदत व मुहब्बत सिखाये वहीं दूसरे अहले इल्म व फज़्ल मशाइख़ और सुलहा की बेअदबी व गुस्ताख़ी से बचाये। बल्कि मुरीद करने का मकसद ही उसे बेअदबी से बचाना है क्यूंकि इसमें ईमान की हिफ़ाज़त है और ईमान बचाने के लिए ही तो मुरीद किया जाता है, और ईमान अदब का ही दूसरा नाम है।..✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 103 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 291
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 ख़ानक़ाही इख़्तिलाफ़ात और इस सिलसिले में सही बात?..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 291 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ जो पीर मुसलमानों को नफ़रत की तालीम दे रहे हैं और क़ौमे मुस्लिम को टुकड़ों में बाँट रहे हैं, मुरीदों को मशाइख व उलेमा का बेअदब बना रहे हैं, वो हरगिज़ पीर नहीं हैं बल्कि वो शैतान का काम कर रहे हैं और इब्लीस का लश्कर बढ़ा रहे हैं।
•••➲ इस बारे में हक व दुरुस्त बात यह है कि जो मुसलमान किसी भी सिलसिलए सहीहा में मुत्तसिलुस्सिलसिला पाबन्दे शरअ पीर का मुरीद है और उसके अकाइद दुरुस्त हैं, वह हमारा भाई है और मुरीद न भी हुआ हो वह भी यक़ीनन मुसलमान है। और उसकी नजात के लिए यह काफी है। मुरीद होना जरूरी नहीं, मुसलमान होना ज़रूरी है। मुरीद होना सिर्फ एक अच्छी बात है, वह भी उस वक़्त जबकि पीर सही हो।
•••➲ दरअरल पीरी व मुरीदी लड़ाई झगड़े और गिरोहबन्दी का सबब तब से बनी जब से यह ज़रीयए मआश और सिर्फ खाने कमाने और लम्बे लम्बे नज़रानों के हासिल करने का धन्धा बनी है। आज ज़्यादातर पीरों को इस बात की फिक्र नहीं कि मुरीद नमाज़ पढ़ता है कि नहीं, जकात निकालता है कि नहीं, सुन्नी है। कि बदअक़ीदा, मुसलमान है कि गैर मुस्लिमउ न्हें तो बस नज़राना चाहिए। जो ज़्यादा लम्बी नज़्र दे वही मियाँ के क़रीब है। वरना वह मियाँ के नज़दीक बदनसीब है।..✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 104 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 292
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 क्या हर दीवाना मजज़ूब वली है..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ अल्लाह तआला के नेक बन्दों और औलियाए किराम में एक ख़ास किस्म मजज़ूबों की भी है। ये वो लोग हैं जो खुदाए तआला की मुहब्बत और उसकी याद में इतने ग़र्क हो जाते हैं कि उन्हें अपने तन बदन का होश नहीं रहता और दुनिया वालों को पागल और दीवाने से नज़र आते हैं। लेकिन हर पागल और दीवाने को मजज़ूब नहीं ख़्याल करना चाहिए। आजकल आम लोगों में यह मर्ज पैदा हो गया है कि जिस पागल को देखते हैं, उस पर विलायत और मजज़ूबियत का हुक्म लगा देते हैं और उसके पीछे घूमने लगते हैं। और अगर कोई है भी तो उसको उसके हाल पर छोड़ दीजिए, वह जाने और उसका रब।
•••➲ बेहतर तरीक़ा यह है कि अगर किसी शख्स के बारे में आपको ऐसा शक हो जाये तो उसकी बुराई भी मत कीजिए और उसके पीछे भी मत घूमिए। आप तो वह करो जिसका आपको। खुदाए तआला ने हुक्म दिया है- अहकामे शरअ की पाबन्दी करें और बुरे कामों से बचें। इस्लाम में ऐसा कोई हुक्म नहीं है कि दीवानों में तलाश करो कि उनमें कौन मजज़ूब है और कौन नहीं।
•••➲ बाज़ जगह ऐसी सुनी सुनाई बातों पर यकीन करके कुछ लोगों को मजज़ूब करार दे दिया जाता है और फिर लाखों लाख रुपया खर्च करके उनके मरने के बाद मज़ार बना देते हैं और उर्सों के नाम पर मेले ठेले और तमाशे शुरू कर देते हैं। और उर्सों के नाम पर ये मेले और तमाशे अब दिन ब दिन बढ़ते जा रहे हैं और इस्लाम और इस्लामियत के हक में यह अच्छा नहीं हो रहा है।...✍🏻
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 104 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 293
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*📝 क्या हर दीवाना मजज़ूब वली है..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 292 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ खुलासा यह कि अगर कोई मजज़ूब है और वह खुदाए तआला की याद में बेहोश हुआ है तो उसका सिला और बदला उसको अल्लाह तआला देने वाला है। आपके लिए तो दूरी ही बेहतर है और ये जो अहले इल्म व फज्ल औलिया व उलेमा की सुहबत इख्तियार करने की फजीलतें आई हैं, ये मजज़ूबों के लिए नहीं। मजज़ूब की सुहबत से कोई फ़ाइदा नहीं है।
•••➲ हुजूर मुफ्ती आजम हिन्द मौलाना मुस्तफ़ा रजा खाँ अलैहिर्रहमह* _फरमाते हैं हर कस व नाकस को मजज़ूब नहीं समझ लेना चाहिए और जो मजज़ूब हो उससे भी दूर ही रहना चाहिए कि इससे नफ़ा कम और ज़रर (नुकसान) जाइद पहुँचने का अन्देशा है!
📗 *फ़तावा मुस्तफ़विया हिस्सा 3 सफ़हा 175*
•••➲ कुछ दीवाने सत्र खोले नंगे पड़े रहते हैं और लोग उनके पास जाकर उनकी खिदमत करते हैं। यह गुनाह है क्यूंकि वह अगर मजज़ूब भी है तब भी ऐसी हालत देखना नाजाइज़ है क्यूंकि वह मजज़ूब है आप तो होश में हैं। मजज़ूब होने की बिना पर अगरचे उस पर गुनाह नहीं लेकिन आप उसके बदन के दो हिस्से देखेंगे जिनका छुपाना फ़र्ज है, तो आप ज़रूर गुनाहगार होंगे।...✍🏻
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 105 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 294
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 बिल्ली रास्ता काट जाये तो क्या होता है..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ कुछ जगहों पर पर देखा गया है कि कोई शख्स गली और रास्ते में जा रहा है और सामने से बिल्ली गुजर गई जिसे रास्ता काटना कहते हैं तो वह कुछ देर के लिए ठहर जाता है और फिर बाद में चलने लगता है और वह समझता है कि बिल्ली ने रास्ता काट दिया शगुन खराब हो गए अब कोई नुकसान हो सकता है हालांकि ये सब बेकार की बातें हैं और इस्लाम में ऐसा कुछ नहीं और एक मुसलमान को इस किस्म के ख्यालात कभी नहीं रखना चाहिए और यह नहीं समझना चाहिए कि बिल्ली के रास्ता काटने से कुछ होता है।...✍🏻
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 106 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 295
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 कुछ तारीखों को शादी ब्याह के लिए मनहूस जानना..❓*
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•••➲ बाज़ लोग कुछ तारीखों में शादी ब्याह और खुशी का काम करने को मना करते हैं और खुद भी नहीं करते हैं मसलन 3, 13, 23, और 8, 18, 28 .. इन तारीखों को शादी व खुशी के लिए बुरा जाना जाता है हालाँकि ये सब बेकार बातें हैं और काफ़िरों और गैर मुस्लिमों की सी वहमपरस्तियाँ हैं। इस्लाम में ऐसा कुछ नहीं हैं।
•••➲ निकाह व शादी हर दिन और हर तारीख़ में जाइज है। माहे मुहर्रम में निकाह को बुरा जानना राफ़ज़ियों, शीओं का तरीका है जो बाज़ जगह अहले सुन्नत में भी फैल गया है। मुसलमानो! इस्लाम को अपनाओ और सच्चे पक्के मुसलमान बनो, वहमपरस्तियाँ छोड़ो, खुदा व रसूल की पैरवी करो मुहर्रम और सफ़र (चेहल्लम में निकाह को बुरा मत जानो।)...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 106 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 296
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 टाई बाँधना और बच्चों को बँधवाना..❓*
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•••➲ टाई बांधना इस्लाम में सख्त मना है। यह ईसाईयों का मजहबी शिआर (पहचान) है। उनके अक़ीदे के मुताबिक हजरत ईसा अलैहिस्सलाम को यहूदियों ने फांसी दी थी। ईसाई इस फांसी के फंदे को गले में आज तक गले मे डाले हुए हैं ,जिसे टाई कहा जाता है।
•••➲ लेकिन कुरआन करीम में फरमाया गया है कि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को खुदाए तआला ने जिंदा उठा लिया और काफी हदीसों में यह बात साबित है कि अब भी हयाते ज़ाहिरी के साथ आसमानों पर तशरीफ़ फरमा है, क़ियामत के करीब ,ज़मीन पर तशरीफ़ लायेंगे और इस्लाम फैलायेंगें।लिहाज़ा इस्लामी नुक़्तए नज़र से फाँसी का वाकिया मन गढ़न्त है और गलत है जो यह अक़ीदा रखे कि ईसा अलैहिस्सलाम को फांसी दे दी गई वह मुसलमान नहीं बल्कि काफिर है क्योंकि वह क़ुरआन व हदीस का मुन्किर है।...✍🏻
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 107 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 297
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
••──────────────────────••►
*📝 टाई बाँधना और बच्चों को बँधवाना..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 296 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ मुसलमानों! अब तो आँखें खोलो । तुमने काफिरों की नकल कि उसके अंदाज अपनाएं लेकिन मौजूदा दौर के हालात से यह खूब जाहिर हो गया है कि वह भी तुम्हारे दुश्मन ही रहे और तुम्हें मिटाने और कत्ल करने में कोई कमी नहीं कर रहे हैं।
•••➲ लिहाज़ा अब खुदारा अपने इस्लामी तरीके अपनाओ सच्चे पक्के मुसलमान बनो। फिर देखना खुदाए तआला व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम भी राज़ी होंगे और दुनिया में भी इज़्ज़त व अज़मत नसीब होगी। इस मौके पर यह भी जान ले कि जो लोग छोटे बच्चों में लड़कों को लड़कियों की तरह और लड़कियों को लड़कों की तरह लिबास पहनाते हैं। इसका अज़ाब का गुनाह भी उन्हीं पहनाने वालों पर है।...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 108 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 महफ़िले मीलाद मे जिक़्रे शहादत?..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ कुछ लोग महफिले मीलाद में *हज़रत सय्यिदेना इमामे हुसैन रदिअल्लाह तआला अन्हु* और आपके भाईयों, भतीजों और भांजों की शहादत के वाकिआत बयान कर देते हैं। हालाँकि यह मुनासिब नहीं है।
•••➲ महफिले मीलाद *रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम* की विलादत की खुशी की महफ़िल है। इसमें ऐसे वाक़िआात बयान नहीं करना चाहिए जिनको सुनकर रंज व मलाल, ग़म और दुख हो।
•••➲ *आलाहजरत इमाम अहले सुन्नत फरमाते हैं।* उलेमाए किराम ने मजलिसे मीलाद शरीफ़ में ज़िक्रे शहादत से मना फ़रमाया है कि वह मजलिसे सुरूर है, ज़िक्रे हुज़्न मुनासिब नहीं।...✍🏻
*📕 अहकामे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ा 145*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 अमानत में तसर्रूफ़..❓*
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•••➲ आजकल अमानत में तसर्रूफ़ आम हो गया है। उमूमन ऐसा होता है कि एक शख्स ने दूसरे के पास कोई रकम ,रुपया, पैसा बतौरे अमानत रख दिया और वह उसकी इज़ाज़त के वगैर उसमें से यह सोचकर ख़र्च कर देता है या तिजारत में लगा देता है कि देने वाले को मैं अपने पास से दे दूँगा या अभी निकाल लूँ फिर बाद में पूरे कर दूँगा, यह सब गुनाह है और ऐसा करने वाले सब गुनाहगार हैं ख्वाह वह बाद में वह रकम उसे पूरी वापस कर दें क्योंकि अमानत में तसर्रुफ़ की इजाज़त नही।
•••➲ मस्जिदों के मुतवल्लियों और मदरसों के मुहतमिमों में देखा गया है कि वह चंदे के पैसों को इधर से उधर करते रहते हैं । कभी खुद अपनी ज़रूरतों में खर्च कर डालते हैं और ख्याल करते हैं हैं कि बाद में पूरा कर देंगे , यह सब खुदा के यहां पकड़े जायेंगे।..✍🏻
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 अमानत में तसर्रूफ़..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 299 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ कुछ मुत्तक़ी , परहेज़गार व दीनदार बनने वाले तक इन बातों का ख्याल नहीं रखते और हराम को हलाल की तरह खाते हैं और अमानत में तसर्रूफ़ ही आदमी को एक दिन नियत ख़राब और खयानत करने वाला बना देता है । यह सोचकर खर्च कर लेता है कि बाद में अपने पास से पूरा कर दूंगा और फिर नियत खराब हो जाती है और फिर बड़े-बड़े परहेज़गार हरामखोर हो जाते हैं और खुदा के अज़ाब की फिक्र किये बगैर पराए माल को अपने की तरह खाने लगते हैं।
•••➲ *फ़तावा आलमगीरी में है* एक शख्स ने मस्जिद बनवाने के लिए चंदा किया उसमें से कुछ रकम अपने लिए खर्च कर ली फिर इतनी ही रकम अपने पास से मस्जिद में खर्च कर दी तो ऐसा करना उसके लिए जाइज़ नहीं।..✍🏻
*📔 फतावा रज़विया, जिल्द 8,सफहा 29*
*📕 फतावा आलमगीरी, जिल्द 2, किताबुल वक़्फ़, बाब 13, सफहा 480*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 109 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 अमानत में तसर्रूफ़..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 300 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत फरमाते है* ज़रे अमानत में तसर्रुफ़ हराम है,यह उन मवाज़ेअ में है जिनमे दराहिम व दनानीर मुतअय्यिन होते हैं।उसको जाइज़ नहीं कि उस रुपये के बदले दूसरे रुपये रख दे अगरचे बेऐनेही वैसा ही हो। अगर करेगा, अमीन न रहेगा।
•••➲ फिर आगे खास मदरसों के मुहतमिम हज़रात के बारे में फरमाते है मोहतमिमाने अंजुमन ने अगर सराहतन भी इजाज़त दे दी हो कि तुम जब चाहना ख़र्च कर लेना फिर उसका इवज़ दे देना, जब भी न उसको तसर्रुफ़ जाइज़ न मुहतमिमों को इजाज़त देने की इजाज़त कि मुहतमिम मालिक नहीं और क़र्ज़ तबर्रुअ है और gaire मालिक को तबर्रुअ का इख्तियार नहीं। हाँ चंदा देने वाले इजाज़त दे जायें तो हर्ज नहीं!
*📕 फतावा रज़विया, जिल्द 8, सफहा 31*
•••➲ पहले अमानत रखने वाले मुसलमानों का तरीका था कि वह थैलियां रखते और हर अमानत अलग-अलग एक थैली में महफूज रखते और फिर जो लिया था, खास उसी को लौटा देते।
•••➲ भाइयों! ऐसे ही तरीके अपनाओ अगर कुछ आख़िरत की भी फिक्र है , वरना आज तसर्रूफ़ करने वाले होंगे और कल खाइन व नियत खराब क्योंकि हर नफ़्स के साथ शैतान लगा हुआ है!...✍🏻
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 302
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 रात को देर तक जागना और सुबह को देर से उठना!..❓*
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•••➲ आजकल रातों को जागने और दिन को सोने का माहौल बनता जा रहा है ।हालांकि क़ुरआने करीम की बाज़ आयात का मफ़हूम यह है कि हमने रात आराम के लिए बनाई और दिन काम करने के लिए। इस्लामी मिजाज़ यह है कि रात को ईशा की नमाज पढ़कर जल्दी सो जाओ और सुबह को जल्द उठ जाओ। ईशा की नमाज के बाद गैर ज़रूरी फालतू दुनियवी बातें करना मकरूह व ममनूअ है।
•••➲ *हदीस शरीफ में है :* रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ईशा की नमाज से पहले सोने और ईशा की नमाज के बाद बातचीत करने को नापसंद फरमाते थे यह हदीस बुखारी में भी है और मुस्लिम में भी।....✍🏻
📗 मिश्क़ात बावे तअजीलूस्सलात, फ़स्ले अव्वल, सफहा 60
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 110 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 303
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 रात को देर तक जागना और सुबह को देर से उठना!..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 302 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ बाज़ मुदर्रिसीन और तलबा को देखा गया है कि वह रात को किताबें देखते हैं और काफी काफी रात तक किताबों और उनके हाशिये में लगे रहते हैं और सुबह की फजर की नमाज कजा कर देते हैं या नमाज पढ़ते भी हैं तो इस तरह की घड़ी देखते रहते हैं जब देखा कि दो-चार मिनट रह गए हैं और पानी सर से ऊंचा हो गया तो उठे हैं और जल्दी-जल्दी वुज़ू करके नमाज़ में परिंदों की तरह चार चोंचें मारकर मुसल्ले से अलग हो जाते हैं ऐसी नमाज़ को हदीसे पाक में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मुनाफ़िक़ की नमाज फरमाया और उनमें के वह लोग जो नमाज़े छोड़ने या बेजमाअत के तंग वक़्त में मुनाफ़िक़ की सी नमाज़ पढ़ने के आदी हो गए हैं, उनके रात रात भर के मुतालेअ और किताबें देखना ,उन्हें नमाज़ की काहिली और सुस्ती के अज़ाब से बचा न सकेंगे!
•••➲ दरअसल ये वह लोग हैं जो किताबें पढ़ते हैं मगर नहीं जानते कि इल्म क्या है। ये तलबीसे इब्लीस के शिकार है और शैतान ने इन्हें धोके में ले रखा है कुछ का कुछ सुझा रखा है। ऐसे ही वो वाएज़ीन व मुकररेरीन,जलसे करवाने वाले और जलसे करने वाले, तकरीरें करने वाले और सुनने और सुनाने वाले ,इस ख़याल में ना रहे हैं कि उनके जलसे उन्हें नमाज़े छोड़ने के अज़ाब से निजात दिलायेंगे होश उड़ जायेंगे बरोज़े क़ियामत नमाजों में लापरवाही करने वालों के, और जल्दी-जल्दी मुनाफ़िक़ों की सी नमाज़ पढ़ने वालों के चाहे यह अवाम हो या खवास , मुकर्रीर हो या शाइर, मुदर्रिस हो या मुफ्ती, सज्जादा नशीन हो या किसी बड़े बाप के बेटे या बड़ी से बड़ी खानकाह के मुजाविर और बरोज़े क़ियामत जब नमाज़ों का हिसाब लिया जाएगा तो पता चलेगा कि कौन कौन कितना बड़ा खादिमे दीन और इस्लाम का ठेकेदार था!
•••➲ खुलासा यह कि रात को देर तक जागने और सुबह को देर से उठने की आदत अच्छी नहीं । हाँ अगर कोई शख्स इल्मे दीन के सीखने या सिखाने या इबादत व रियाज़त में रात को जागे और फज्र की नमाज़ भी एहतिमाम के साथ अदा कर ले तो वह मर्दे मुजाहिद है।...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 112 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 304
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 क्या नक़द और उधार की अलग अलग कीमत रखना मना है!..❓*
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•••➲ अगर कोई शख्स अपना माल किसी के हाथ बेचे और यह कहे कि अगर अभी कीमत अदा कर दोगे तो इतने में और उधार खरीदोगे तो इतने पैसे होंगे। मसलन अभी 300 रुपया है और उधर खरीदोगे पैसे बाद में अदा करोगे तो 350 रुपये देना होंगे, तो यह जायज है इसको कुछ लोग नाजायज ख्याल करते हैं और सूद समझते हैं यह उनकी गलतफहमी है यह सूद नहीं है!
•••➲ हाँ अगर खरीदारी के वक्त इस बात को खोला नहीं और माल 300 रुपये में फरोख्त कर दिया और रकम अदा करने में उसने देर की तो उससे पैसे बड़ा कर वसूल किये मसलन 350 रुपये लिये तो यह सूद हो जायेगा। मतलब यह है कि उधार और नकद का भाव अगर अलग अलग हो तो खरीदारी के वक़्त ही इसकी वजाहत कर दे बाद में उधार की वजह से रकम बड़ा कर लेना सूद और हराम है।..✍🏻
📕 *फतावा रज़विया ,जिल्द 17, सफ़हा 97,मतबूआ रज़ा फाउन्डेशन, लाहौर*
📔 *फतावा फैज़ुर्रसूल, जिल्द 2 सफ़हा 380*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 112 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 305
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 चापलूसी पसन्द मुतवल्ली और मुहतमिम!..❓*
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•••➲ बाज़ जगह कुछ मस्जिदों के मुतावल्ली और और मदरसों के मुहतमिम का यह मिजाज़ बन गया है की उन्हें अच्छे भले पढ़े लिखे बासलाहियत और दीनदार इमाम और मुदर्रिस अच्छे नहीं लगते,उनसे उनकी नहीं पटती।वह अच्छे लगते हैं, जो उनकी चापलूसी करते हैं, उनकी हाँ में हाँ मिलाते हैं, जब वह तशरीफ़ लाये तो उन्हें अपनी मसनद पर बिठायें, खुद एक तरफ को खिसक जाये और कभी कभी बे ज़रूरत उनकी डाँट और फटकार भी सुन लें। ऐसे मुदर्रिस और इमाम आज के बाज़ मुतावल्लियों और मुहतमिमों को बहुत अच्छे लगते हैं ख्वाह वह कुछ जानते हों या न बच्चों को पढ़ाते हों, उन्हें इससे कोई मतलब नहीं, बस उनकी खुशआमद करते रहें।
•••➲ दरअसल ऐसे मुतावल्ली और मुहतमिम इस्लाम की बरबादी का सबब हैं और उन्होंने मस्जिदों को वीरान कर रखा है और मदरसों का तालीमी मेयार बिल्कुल खत्म कर दिया है और इस बरबादी की पूछ गछ उनसे क़ियामत के रोज़ बड़ी सख्ती के साथ होगी।
•••➲ दुआ है कि खुदाए तआला उन्हें होश अता फरमाये और ज़ात और नफ़्स से ज़्यादा उन्हें दीन और उसकी तरक्की से प्यार हो जाये, ख़्याल रहे कि इमामों, आलिमों, मौलवियों को परेशान करने वाले दुनिया व आख़िरत में ज़लीलव रूसवा होंगे।...✍🏻
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 306
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 चापलूसी पसन्द मुतवल्ली और मुहतमिम!..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 305 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ यह भी बैठकर रोने की बात है कि आज बाज़ मदरसों में चन्दा कर लेना मकबूलियत का मेयार बन गया है । जो घूम फिर कर ज्यादा से ज्यादा चन्दा लाकर जमा कर दें वह महबूब व मक़बूल हैं और भले सच्चे, पढ़े लिखे, काबिल, बासलाहियत आलिम साहब बेचारे गिरी नज़रों से देखे जा रहे हैं।
•••➲ हदीसें पाक में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने क़ियामत की निशानियों में से एक बात यह भी फरमाई थी कि "जब मुआमलात नाअहलों के सुपुर्द किये जाने लगें। "
•••➲ यह आज खूब हो रहा है।अहले इल्म व फ़ज़्ल को कोई पूछने वाला नहीं और नाअहल बेइल्म चापलूस खुशामदी बातें बनाने वाले मसाजिद व मदारिस, मराकिज़ व दफातिर पर कब्ज़ा जमाये बैठे हैं।...✍🏻
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 307
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 चन्दों की ज़्यादती!..❓*
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•••➲ आजकल चन्दे बहुत बढ़ते जा रहे हैं। इन पर रोक लगाना बहुत जरूरी हो गया है जहाँ तक मदरसों और मस्जिदों का मुआमला है तो ये कौम की ऐसी जरूरतों में से है कि जिनके बगैर दीन बाकी नहीं रह सकता लिहाजा उनके लिए अगर चन्दा लिया जाये तो कुछ हर्ज नहीं।
•••➲ अलबत्ता गाँव गाँव मौलवियत की पढ़ाई के मदारिस खोलना मुनासिब नहीं है एक जिला में आलिम व फाज़िल बनाने वाले दो चार मदारिस काफी हैं। हाँ । बासलाहियत इमाम मसाजिद में रखे जायें और वह बगैर लम्बी पूरी चन्दे की तहरीक चलाये, इमामत के साथ साथ दो तीन जमाअत तक बच्चों को मौलवियत की इब्तिदाई तालीम दें और फिर बड़े मदरसों में दाख़िल करा दें तो यह निहायत मुनासिब बात है और खाली हाफ़िज़ बनाना और उन्हें इल्मे दीन और लिखने पढ़ने से महरूम रखना और इसी में उनकी उम्र गुजार देना उनके और कौम के हक में अच्छा नहीं है।
•••➲ हाँ गाँव गाँव इस्लामी मकतब यअनी इस्लामी अन्दाज के प्राइमरी स्कूल काइम करना बहुत ज़रूरी है जिसमें दीन की जरूरी तालीम के साथ साथ दुनिया की भी तालीम हो।...✍🏻
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 308
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 चन्दों की ज़्यादती!..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 307 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ मस्जिद की जहाँ जरूरत हो वहाँ अगर कोई सेठ साहब यूँ ही बगैर दूसरों की मदद के बनवा दें तो वह यकीनन बहुत बड़े सवाब के मुस्तहिक होंगे और ऐसा न हो सके तो मस्जिद के लिए चन्दा करना और मस्जिद बनवाना निहायत बेहतर और उम्दा काम है । लेकिन मस्जिद की तज़ईन और उसकी सजावट और खूबसूरती के लिए गरीब, मजदूर और नादार मुसलमानों पर चन्दे डालना और उन पर गॉव बसती का दबाव बना कर वसूलयाबी करना हरगिज़ मुनासिब नहीं है। दुनिया भर में रसीद बुके लेकर घूमने और गरीब मजदूरों पर दबाव बना कर चन्दा वसूल करने से सादा सी मरिजद में नमाज पढ़ना बेहतर है। इस्लाम में मस्जिद का खूबसूरत होना कुछ भी जरूरी नहीं है। बल्कि पहले के उलेमा ने तो मस्जिदों को सजाने और संवारने से मना फरमाया है, बाद के उलेमा ने भी सिर्फ इजाजत दी है, लाजिम व जरूरी करार नहीं दिया है कि जिसके लिए गाँव गाँव फिरा जाये और दूर दूर के सफर किये जायें या ग़रीबों और मजदूरों को सताया जाये।
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 309
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 चन्दों की ज़्यादती!..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 308 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ यह तो रहा मस्जिदों और मदरसों का मुआमला इसके अलावा भारी भारी उर्स करने और खानकाहें और मजारात तामीर कराने के लिए चन्दे की कोई जरूरत नहीं है। आपसे जो हो सके अकीदत व महब्बत में हलाल कमाई से कीजिए। दूसरों के ज़िम्मेदार आप नहीं हैं अगर दो चार आदमी भी यौमे विसाल किसी बुजुर्ग की खानकाह में जाकर कुरआने करीम की तिलावत कर दें और थोड़ा बहुत जो मयस्सर हो वह उनके नाम पर उनकी रूह के ईसाले सवाब के खिलायें, पिलायें तो यह मुकम्मल उर्स है, जिसमें कोई कमी नहीं है!
•••➲ और बखुशी बुज़ुर्गाने दीन के नाम पर जो कोई कुछ करे वह यकीनन इन्हदल्लाह माज़ूर है और सवाब का मुस्तहिक़ है।..✍🏻
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 114 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 310
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 चन्दों की ज़्यादती!..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 309 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ जलसे और जुलूस और कान्फ्रेन्सों के नाम पर भी चन्दों को एक मखसूस व महदूद तरीका होना चाहिए क्यूंकि आज हिन्दुस्तान में कौमे मुस्लिम बदहाली और बेरोजगारी का शिकार है। गरीबों,मजदूरों और छोटे छोटे किसानों से चन्दे के नाम पर जबरन रकम वसूल करके 10,-10, 20-20 और 50-50 लाख की हती रखने वाले पेशावर मुकर्रिरों और शाइरों को नज़राने के नाम पर लम्बी लम्बी रकमें भेंट चढ़ाना कौम के हक में कुछ बेहतर नहीं है।
•••➲ टैन्ट और डेकोरेशन वालों को भरने के लिए घर घर चन्दा करते घूमना अक्लमन्दी नहीं है। हॉ कीजिए और मखसूस व महदूद तरीके से एक दाइरे में रह कर कीजिए और जब जरूरत हो तब कीजिए।...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 114 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 311
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 चन्दों की ज़्यादती!..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 310 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ और आजकल तो जलसे मुशाइरे बन कर रह गये और जो मुक़र्रेरीन हैं उनमें भी अकसर वाज़ व नसीहत वाले नहीं रंग व रोगन भरने वाले ज़्यादा हैं। और यह लम्बे लम्बे नज़राने पहले से तय करने वाले मुक़र्रेरीन व शाइरों को दूर दूर से बुलाना और उनके नखरे और ठस्से उठाना, बड़े पैमाने पर लाइट व डेकोरेशन सजाना ज्यादातर नाम व नमूद के लिए हो रहा है जो रियाकारी और दिखावा मालूम होता है और रियाकारी का कोई सवाब नहीं मिलता बल्कि अज़ाब होता है।
•••➲ खुब पब्लिक जुटाने और मजमा बढ़ाने, मुकर्रीरो शाइरों से तारीफ़ व तौसीफ सुनने के लिए हो रहा है। और जहाँ नाम व नमूद हो, रियाकारी और दिखावा हो, वहाँ चन्दे देने और दिलाने कुछ भी सवाब नहीं है। कमेटी वालों का मकसद सिर्फ यही है कि पब्लिक खूब आ जाये ख़्वाह उन्हें कुछ हासिल हो न हो । बल्कि बाज़ बाज़ जगह तो ये जलसे कराने वाले कमेटियों सदर, सेक्रटरी खजांची ऐसे तक हैं कि कौम से चन्द करके जलसे कराते हुए उन्हें मुद्दत हो गई मगर खुद भी नमाज़ी और दीनदार नहीं बन सके हैं।...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 115 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 312
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 चन्दों की ज़्यादती!..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 311 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ शराब, जुआ, लाटरी और सिनेमा के शौक तक उनसे नहीं छूट सके बल्कि अब तो बाज जगह जलसों के नाम पर चन्दा करके और थोड़ा खर्च करके लम्बी लम्बी रकम बचाने की रिपोर्ट भी मिल रही हैं।
•••➲ इस सबको लिखने से हमारा मतलब यह नहीं है कि जलसे बन्द कर दिये जाये। बल्कि जलसे किये जायें मुख्लिस वाएज़ीन व मुक़र्रेरीन से तकरीरें कराई जायें। नातख्वानी के लिए कुर्ब व जवार के किसी खुशगुलू से एक दो नाते पटवाई जायें। पेशावर शाइरों और मुकर्रिरों को चन्दे करके लम्बी लम्बी रकमें न दी जायें और ये सब न हो सके तो जलसे करना कोई फर्ज वाजिब नहीं हैं। मस्जिदों में बासलाहियत इमाम रखे जायें और वह नामाज़े जुमा वगैरह में वअज़ व तकरीर करें और लोगों को उलेमाए अहले सुन्नत की किताबें पढ़ने की तरगीब दिलायें।...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 116 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 313
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 चन्दों की ज़्यादती!..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 312 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ लड़कियों की शादी के लिए भी चन्द करने की बीमारी आम हो गई है। हालांकि यह चन्दा गैर जरूरी इखराजात (ख़र्च) और शादी में नामवरी कमाने के लिए होता है।
•••➲ इस्लाम में न जहेज़ (दहेज़) वाजिब है, न बारात को खाना खिलाना। इसमें दखल लड़के वालों की ज़्यादती का भी है!
•••➲ खुलासा यह है कि बिल्कुल सादा निकाह भी कर दिया जाये तो यह बिला शुबह जाइज़ बल्कि आज के हालात के मुनासिब है।
•••➲ लड़कियों की शादी के लिए भीक मांगने वाले अगर भीक माँगने के बजाय किसी ऐसे के साथ बेटी का निकाह कर दें, जो दूसरी शादी का ख्वाहिशमन्द हो और दो औरतों का कफ़ील हो सके या तलाक दे चुका हो या उसकी बीवी मर गई हो या वह गरीब हो या उम्रसीदा हो।...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 117 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 314
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 चन्दों की ज़्यादती!..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 313 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ और अपनी इन कमज़ोरियों की वजह से शादी में इखराजात का तालिब न हो, जैसा कि आजकल माहौल है तो यह उनके लिए भीक माँगने से हजारों दर्जे बेहतर है!
•••➲ क्यूंकि लड़की की शादी के लिए भीक माँगना गुनाह व नाजाइज़ है और जिन लोगों का अभी हमने जिक्र किया है, उनके साथ निकाह बिला शुबह जाइज़ है। हॉ बगैर सुवाल करे कोई खुद ही से किसी की मदद करे तो इसमें कोई रोक टोक नहीं। लेकिन सुवाल करना और भीक मॉगना, इस्लाम में सिवाय चन्द मखसूस सूरतों के जो अहादीस व फ़िक़्ह की किताबों में मजकूर हैं, हराम है। और जो सूरतें मजकूर हुई, उनमें शादी ब्याह के गैर ज़रूरी मरासिम अदा करना हरगिज शामिल नहीं।...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 118 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 315
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 हराम तरीके से कमाकर राहे खुदा में ख़र्च करना!..❓*
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•••➲ यह बीमारी भी काफी आम हो गई है। लोग कमाते वक़्त यह नहीं सोचते कि यह हराम है या हलाल झूठ ,फरेब,मक्कारी, धोकेबाजी, बेईमानी, रिश्वटखोरी सूद व व्याज और मजदूरों की मजदूरी रोक रोक कर कमाते हैं और माल जमा कर लेते हैं और फिर राहे खुदा में खर्च करने वाले सखी बनते हैं, खूब मजे से खाते हैं और यारों दोस्तों को खिलाते हैं, मस्जिद मदरसों और खानकाहों को भी देते हैं, माँगने वालों को भी दे देते हैं। यह हराम कमा कर राहे खुदा में खर्च करने वाले न हरगिज़ सखी है, न दीनदार। बल्कि बड़े बेवकूफ और निरे अहमक हैं। हदीस पाक में है, '‘हराम कमाई से सदका और खैरात कबूल नहीं।...✍🏻
📕 *मिश्कात बाबुलकस्ब सफ़ा 242*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 118 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 316
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 हराम तरीके से कमाकर राहे खुदा में ख़र्च करना!..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 315 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ यह ऐसा ही है जैसे कोई बेवजह जान बूझ कर किसी की आंख फोड़ दे और फिर पट्टी बांध कर उसे खुश करना चाहे। भाईयो! खूब याद रखो अस्ल नेकी और पहली दीनदारी नेक कामों में खर्च करना नहीं है बल्कि ईमानदारी के साथ कमाना है। जो हलाल तरीके और दयानतदारी से कमाता है और ज़्यादा राहे खुदा में खर्च नहीं कर पाता है वह उससे लाखों दर्जा बेहतर है जो बेरहमी के साथ हराम कमा कर इधर उधर बॉटता फिरता है।
•••➲ इन हराम कमाने वालों,रिश्वतखोरों, बेईमानों, अमानत में ख्यानत करने वालों में यह भी देखा गया है कि कोई मदीना शरीफ जा रहा है और कोई अजमेर शरीफ और कलियर शरीफ़ के चक्कर लगा रहा है, हालाँकि हदीस शरीफ में है।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 119 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 317
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 हराम तरीके से कमाकर राहे खुदा में ख़र्च करना!..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 316 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ हजरत सय्यिदेना मआज़ इब्ने जबल रदियल्लाहु तआला अन्हु को जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने यमन का हाकिम व गवर्नर बना कर भेजा तो आप उनको रुखसत करने के लिए नसीहत फरमाते हुए उनकी सवारी के साथ साथ मदीना तय्यिबा से बाहर तक तशरीफ लाये। जब हुजूर वापस होने लगे तो फ़रमाया कि ऐ मआज़ रदियल्लाहु तआला अन्हु इस साल के बाद जब तुम वापस आओगे तो मुझको नहीं पाओगे बल्कि मेरी क़ब्र और मस्जिद को देखोगे। हज़रत मआज़ रदियल्लाहु तआला अन्हु यह सुनकर शिद्दते फिराक की वजह से रोने लगे तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया : ‘‘लोगों में मेरे सबसे ज़्यादा क़रीब परहेज़गार लोग हैं, चाहें वो कोई हों और कही भी हों।"।..✍🏻
📗 *मिश्कात सफ़ा - 445*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 119 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 318
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 हराम तरीके से कमाकर राहे खुदा में ख़र्च करना!..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 317 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ यअनी हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने साफ तौर पर फरमा दिया कि अस्ल नेकी और दीनदारी और महब्बत,नज़दीकी और पास रहना और हाज़िरी नहीं है बल्कि परहेजगारी यअनी बुरे कामों से बचना, अच्छे काम करना है ख्वाह वो कहीं रह कर हों।
•••➲ हज़रते उवैस करनी रदियल्लाहु तआला अन्हु हुज़ूर के ज़माने में थे लेकिन कभी मुलाकात के लिए हाज़िर न हुए मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को इतने पसन्द थे कि उनसे मिलने और दुआए मगफिरत कराने की वसीयत सहाबए किराम को फ़रमाई थी।...✍🏻
📗 *सहीह मुस्लिम जिल्द 2 सफा 311*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 119 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 319
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 हराम तरीके से कमाकर राहे खुदा में ख़र्च करना!..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 318 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ एक हदीस शरीफ में तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उनके बारे में तो यहाँ तक फ़रमा दिया कि मेरी उम्मत के एक शख्स की शफाअत से इतने लोग जन्नत में जायेंगे कि जितनी तादाद कबीलए बनू तमीम के अफ़राद से भी ज्यादा होगी।
📙 *मिश्कात बाबुलहौज़ वश्शफाअह सफ़ा 494*
•••➲ इस हदीस की शरह में उलेमा ने फरमाया कि *’'उस शख्स"* से मुराद हजरत सय्यिदेना उवैस करनी रदियल्लाहु तआला अन्हु है।
📘 *मिरकात जिल्द 5 सफ़ा 278*
•••➲ इन अहादीस से खूब वाज़ेह हो गया कि अस्ल महब्बत पास रहना नहीं, हाज़िरी व चक्कर लगाना नहीं, बल्कि वह काम करना है, जिससे महबूब राज़ी हो।...✍🏻
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 119 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 320
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 हराम तरीके से कमाकर राहे खुदा में ख़र्च करना!..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 319 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ खुलासा यह कि जो लोग नमाज़ और रोज़े व दीगर अहकामे शरअ के पाबन्द हैं, हरामकारियों और हराम कामों से बचते हैं, वो ख़्वाह बुजुर्गों के मज़ारात पर बार बार हाजिरी न देते हों, वो उनसे बदरजहा बेहतर और महब्बत करने वाले हैं जो खुदाए तआला व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की नाफरमानी करते, हराम खाते और हराम खिलाते रात दिन गानों, तमाशों, जुए ,शराब और लाटरी सिनेमों में लगे रहते है!
•••➲ ख़्वाह हर वक़्त मज़ार पर ही पड़े रहते हों। अलबत्ता वो लोग जो हज़राते अम्बियाएकिराम और औलियाए इज़ाम की शान में गुस्ताखियाँ करते हैं, बेअदबी से बोलते हैं और उनकी बारगाहों में हाज़िरी को शिर्क व बिदअत करार देते हैं उनके अक़ीदे इस्लामी नहीं, उनकी नमाज़ नमाज़ नहीं ,रोज़े रोज़े नहीं ,उनकी तिलावत कुआन नहीं, उनकी दीनदारी इत्तिबाए रसूले अनाम नहीं,क्यूंकि अदब ईमान की जान है और बेअदब नाम का मुसलमान है।...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 120 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 321
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 हलाल कमाने और दीनदार बनकर रहने की तरकीब!..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ जो शख्स हलाल कमा कर और दीनदार बन कर अल्लाह तआला व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को राज़ी करना चाहे उसको चाहिए कि फुज़ूलखर्ची से बचे आजकल लोगों ने अपने इखराजात (ख़र्चे) बढ़ा लिये हैं और बेजा शौक और अरमान पूरे करने में लग गये हैं, ये कभी दीनदार नहीं बन सकते।
•••➲ अगर आप सच्चे पक्के मुसलमान बनना चाहें तो आमदनी बढ़ाने से ज़्यादा फिक्र इख़राजात घटाने की रखिये क्यूंकि इखराजात की ज़्यादाती से आमदनी करने की हवस पैदा होती है और आमदनी करने की हवस इन्सान को बेरहम ज़ालिम और हरामखोर बनाती है - और जिनकी आदत आमदनी से ज्यादा खर्च करने की पड़ गई है, वो कभी चैन व सुकून से नहीं रह पाते, ज़िन्दगी भर परेशान रहते हैं और आमदनी से कम खर्च करने वालों की ज़िन्दगी बड़ी पुरसुकून और बाइज़्ज़त रहती है। और यही लोग वक़्त वे वक़्त दूसरों के भी काम आ जाते हैं।...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 121 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 322
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 हलाल कमाने और दीनदार बनकर रहने की तरकीब!..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 321 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ इन्हीं वुजूहात की बिना पर कुरआने करीम में खुदाए तआला ने फुजूलख़र्च करने वालों को शैतान का भाई फ़रमाया और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि सादगी आधा ईमान है। आज साइंस की जदीद ईजादात ने भी इन्सान के इखराजात और उसकी ज़रूरतों को बढ़ा दिया है। इस पर कन्ट्रोल करने की ज़रूरत है। घर गृहस्थी की ज़रूरतों में एक दरमियानी रवय्या अपनाया जाये।
•••➲ अफसोस कि आज हम दो चार जोड़ी कपड़ों में जिन्दगी नहीं गुज़ार सकते बल्कि जोडों पर जोड़ें बनाये चले जा रहे हैं। अफसोस कि आज मजबूत और पक्का मकान बनाकर भी चैन से नहीं रहते बल्कि उनको सजाने और सँवारने में लाखों लाख रूपया उड़ाये चले जा रहे हैं।
•••➲ कुछ लोग शेख़ीख़ोरी की वजह से परेशान रहते हैं, उनकी यह आदत उन्हें ज़हनी सुकून हासिल नहीं होने देती। उन्हें हर वक़्त यह फिक्र रहती है कि अगर हम ऐसा कपड़ा पहन कर जायेंगे या ऐसा मकान नहीं बनायेंगे या ऐसा खाना नहीं खायेंगे और खिलायेंगे तो लोग क्या कहेंगे?...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 121 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 323
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 हलाल कमाने और दीनदार बनकर रहने की तरकीब!..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 322 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ भाईयो! लोगों के कहने को मत देखो बल्कि अपने हाल और आमदनी को देखो। अगर आप पर अभी कोई वक़्त पड़ जाये तो यही मुंह बजाने वाले पास तक नहीं आयेंगे ,क़र्ज़ तक देने को तय्यार नहीं होंगे। हदीस पाक में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया : *"दुनिया में ज़िन्दगी मुसाफिर परदेसी की तरह गुज़ारो और खुद को कब्र वालों में समझो।’’*
📗 *मिश्कात सफ़ा 450*
•••➲ यअनी मुसाफिर और परदेसी जिस तरह कम से कम सामाने ज़िन्दगी के साथ सफर करता है यूं ही तुम भी दुनिया में एक मुसाफिर की तरह हो।
•••➲ इस बयान से हमारा मतलब यह नहीं है कि खुदाए तआला हलाल कमाई से दे तो अच्छा खाना और पहनना नाजाइज़ है। बल्कि हमारा मकसद गैर ज़रूरी और फ़ालतू इखराजात से बाज़ रखना है ताकि कहीं आप कमाने की ज़्यादा फिक्र में बेईमान, ख़ाइन और हरामखोर न बन जायें और दीनदारी की ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए इखराजात पर काबू रखना और फुज़ूलखर्चियों से बचना ज़रूरी है।...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 121 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 324
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 हलाल कमाने और दीनदार बनकर रहने की तरकीब!..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 323 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ और इस बारे में जाइज़ व नाजाइज़ की हुदूद जानने के लिए फिक्ह व तसव्वुफ की किताबों का मुतालआ करना चाहिए।खासकर सदरुश्शरीआ हज़रत मौलाना अमजद अली साहब अलैहिर्रहमतु वर्रिदवान की किताब ‘बहारे शरीअत का सोलहवाँ हिस्सा पढ़ लेना एक मुसलमान के लिए फ़ी ज़माना निहायत ज़रूरी है।
•••➲ हिन्दी पढ़ने वालों की आसानी के लिए बहारे शरीअत का सोलहवाँ हिस्सा ‘इस्लामी अख़लाक व आदाब’ के नाम से हिन्दी मे भी आ चुका है।
•••➲ आजकल जो बेईमानों, बेरहमी और ज़ुल्म करके कमाने वालों और पराये माल को अपना समझने वाले रिश्वतखोरों की तादाद ज़्यादा बढ़ गई है, यहाँ तक कि वो लोग जो मुआमलात के साफ सुथरे हों, उनकी गिनती अब न होने के बराबर है, इस सबकी ख़ास वजह आजकल बेजा इखराजात और फुज़ूलखर्चियाँ हैं।
•••➲ खुलासा यह कि हरामखोरी से बचने और दीनदार बनकर जो शख्स ज़िन्दगी गुज़ारना चाहे, उसके लिए फुज़ूलख़र्च से बचना और सादा ज़िन्दगी गुजारना आजकल ज़रूरी है।...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 123 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 325
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*📝 अज़ीम शख्सियतों को मनवाने का तरीका!..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ कुछ लोग जो शख्सियत परस्ती में हद से आगे बढ़े हुए हैं,वो अपनी महबूब और पसन्दीदा शख्सियतों को दूसरों से मनवाने के लिए लड़ाई झगड़ा करते हैं। और जो महब्बत उन्हें है, वो अगर दूसरा न करे तो बुरा मानते और उसे गुमराह और बद्दीन तक ख्याल कर बैठते हैं, और जबरदस्ती उससे मनवाना चाहते हैं। हालांकि महब्बत कभी भी ज़बरदस्ती नहीं पैदा की जा सकती और न सिर्फ़ फ़तवे लगाकर और न उन महबूब बन्दों और बुजुर्गों के नाम के नारे लगा कर और न जोशीली और जज्बाती तकरीरें करके।
•••➲ बल्कि तरीका यह है कि जो वाकई बुज़ुर्ग साहिबे किरदार अल्लाह वाले लोग हैं यअनी हकीकत में वह इस्लामी नुक़्तए नज़र से अज़ीम शख्सियत के मालिक हैं तो उनका वह किरदार और तरीकए जिन्दगी, कारनामे और दीनी ख़िदमात, खुदातरसी और नफ़्सकुशी संजीदा अन्दाज़ में समझाने के तौर पर तकरीर या तहरीर के ज़रीए लोगों के सामने लाइये और जिन बातों की बुनियाद पर आपको उस साहिबे इल्म व फ़ज़ल से महब्बत है, वो बातें दूसरों को बताइये। अगर वह भी उनका आशिक़ व दीवाना हो जाये तो ठीक और न हो तो कोशिश आपका काम, अब आप जबरदस्ती मनवाने की कोशिश न कीजिए। हाँ जो लोग आमतौर पर बुज़ुर्गों की शान में गुस्ताख़ी करते हैं या ऐसे आलिम व बुज़ुर्ग कि जिनकी बुज़ुर्ग व बरतरी पर पूरी उम्मते मुस्लिमा इत्तिफाक कर चुकी हो उनकी शान में बकवास करते हैं, वो यक़ीनन गुमराह व बददीन हैं। वो अगर समझाने से न समझे तो उनसे दूरी और बेज़ारी ज़रूरी है। और जो गुस्ताखी व बेअदबी न करता हो। लेकिन आपकी तरह अक़ीदत व महब्बत भी न रखता हो तो उसके मुआमले में खामोशी बेहतर है। और उसके ख्यालात बेहतर हैं, इस्लामी हैं तो उसको मुसलमान ही ख्याल किया जाये,और अपना इस्लामी भाई समझा जाये।...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 124 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 326
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 अज़ीम शख्सियतों को मनवाने का तरीका!..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 325 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ इस्लामी शख्सियतों और अपने बुज़ुर्गोंपीरों या मशाइख को दूसरों से मनवाने के लिए सबसे ज़्यादा उम्दा तरीका और बेहतर ढंग आपका किरदार है। आज ऐसे लोग बहुत हैं जो हराम व हलाल में तमीज़ नहीं रखते, नमाजें छोड़ते, गाने , बजाने और तमाशों में लगे रहते हैं, उनकी नियतें ख़राब हो चुकी हैं, उनमें इस्लामी अख़लाक़ नाम की कोई चीज़ नहीं है और फिर ये बुज़ुर्गो के नाम के ठेकेदार बनते हैं, उर्स कराते, मज़ार बनवाते और उनके नाम की लम्बी लम्बी नियाज़े दिलवाते है, उनके नाम पर जलसे, जुलूस और महफ़िलों का इनइकाद करते हैं तो ये लोग कौम को बुज़ुर्गों से करीब करने के बजाय दूर कर रहे हैं और उनके ये ढंग लोगों के दिलों में अल्लाह वालों की महब्बत कभी भी पैदा न कर सकेंगे।
•••➲ भाईयो! अल्लाह वालों से महब्बत करने वाले और उनकी महब्बत का बीज दूसरों के दिलों में बोने वाले वो हैं जिन्हें देखकर अल्लाह वालों की याद आ जाये। और अल्लाह वाले वो हैं जिन्हें देखकर अल्लाह की याद आ जाये। वरना ये पराये माल पर नज़र रखने वाले हरामखोर बेईमान, नियतख़राब लोग खुदाए तआला के उन बन्दों की अज़मत व इज़्ज़त लोगों के दिलों में नहीं बिठा सकेंगे कि जिन्होंने सब कुछ राहे खुदा में लुटा दिया।...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 124 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 327
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
••──────────────────────••►
*📝 अज़ीम शख्सियतों को मनवाने का तरीका!..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 326 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ और अपना लालच के पिटारे, करोड़पति बनने की तमन्ना रखने वाले मुकर्रेरीन ,शाइरों कव्वालों, नामनिहाद पीरों फकीरों के ज़रीए से अल्लाह वालों की अज़मत व इज़्ज़त के झन्डे नहीं गाड़े जा सकते।
•••➲ ज़रूरी है कि मुरीद अपने पीर का, शागिर्द अपने उस्ताद का और हर मुअतकिद अपने महबूब का नमूना हो तो तभी उससे अपने शेख और उस्ताद के कारनामे उजागर होंगे और उससे उनकी अज़मत लोगों के दिलों में बैठेगी। और जो लोग किसी बुज़ुर्ग के कारनामे और उसकी इस्लामी खिदमात अपने चाल व चलन किरदार व गुफ्तार के ज़रीए बताये बगैर ज़बरदस्ती उस बुज़ुर्ग शख्सियत को लोगों से मनवाने में लगे हैं, वो कौम में गिरोहबन्दी, तिफ़रक़ाबाजी कर रहे हैं और कौमे मुस्लिम को बिखेर रहे हैं, मुसलमानों को बांट रहे हैं।...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 125 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 328
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 फ़िल्मी गानों की तर्ज़ पर नातें और मनक़बतें पढ़ना!..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ आजकल जलसों और मुशाइरों में शाइर व नातख्वाँ लोग फ़िल्मी गानों की तर्ज़ पर उनकी लय और सुर में हम्द, नात व मनकबत पढ़ने लगे हैं हालाँकि यह मना है। उन्हें इन हरकात से बाज़ रहना चाहिए और मुसलमानों को चाहिए कि ऐसे लोगों से हरगिज़ नज़्में न सुनें।
•••➲ आलाहज़रत इमामे अहले सुन्नत फरमाते हैं : अगर गाने की तर्ज़ पर रागिनी की रिआयत हो तो नापसन्द है कि यह अम्र ज़िक्र शरीफ़ के मुनासिब नहीं।...✍🏻
*📗 फतावा रजविया जिल्द 10 किस्त 2 सफ़ा 185*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 126 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 329
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 बे औलाद मर्दों और औरतों के लिए ज़रूरी हिदायात!..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ औलाद दुनिया में अल्लाह तआला की बहुत बड़ी नेमत है। लिहाज़ा जिसको अल्लाह तआला यह नेमत अता फरमाये, उसको चाहिए कि वह खुदाए तआला का शुक्र अदा करे और अगर न दे तो सब्र करे। मगर आजकल कुछ मर्द और औरतें औलाद न होने की वजह से परेशान रहते हैं और इस कमी को ज़्यादा महसूस करते हैं। हालाँकि यह अहले ईमान की शान नहीं। मोमिन को दुनिया और उसकी नेमतों के हासिल होने की ज़्यादा फिक्र नहीं करना चाहिए, ज़्यादा फिक्र व ग़म आख़िरत का होना चाहिए। अगर आपने अपनी आख़िरत सुधार ली तो दुनिया की किसी नेमत के न पाने का ज़्यादा गम नहीं करना चाहिए। औलाद अल्लाह तआला की नेमत ज़रूर है लेकिन समझ वालों के लिए यह बात भी काबिले गौर है कि माल और औलाद को अल्लाह जल्ला शानुहु ने अपने क़ुरआनमें दुनिया की रौनक फ़रमाया, आख़िरत की नहीं।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 127 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 बे औलाद मर्दों और औरतों के लिए ज़रूरी हिदायात!..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 329 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *अल्लाह तआला क़ुरआन करीम में इरशाद फ़रमाता है* *तर्जमा :-* माल और बेटे दुनियवी ज़िन्दगी का सिंगार हैं और बाकी रहने वाली अच्छी बातें हैं, उनका सवाब तुम्हारे रब के यहां बेहतर और वो उम्मीद में सबसे भली।
📔 *सूरह कहफ़ पारा 16 रुकूअ 18*
•••➲ कुरआने करीम में माल और औलाद को फितना यअनी आज़माइश भी कहा गया है, जिसका मतलब यह है कि इन चीजों को हासिल करके अगर खुदा व रसूल का हक भी अदा करता रहा तब तो ठीक, और माल व औलाद की महब्बत में अल्लाह तआला व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को भूल गया ,हराम व हलाल का फर्क खो बैठा तो यह निहायत बुरी चीजें हैं। अलबत्ता नेक औलाद आख़िरत का भी सरमाया है लेकिन आने वाले जमाने में औलाद के नेक होने की उम्मीदें काफी कम हो गई हैं।..✍🏻
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 127 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 331
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 बे औलाद मर्दों और औरतों के लिए ज़रूरी हिदायात!..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 330 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ खुदाए तआला के महबूब बन्दों यअनी अल्लाह वालों में भी ऐसे बहुत से लोग हुए हैं जिनके औलाद न थी। सरकारे दो आलम हज़रत रसूले पाक मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सबसे प्यारी बीवी सय्यिदा आइशा सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा के भी कोई औलाद न थी। बल्कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ग्यारह बीवियाँ थीं, जिनमें से आपकी औलाद सिर्फ दो से हुई। सहाबा किराम में हज़रते सय्यिदेना बिलाल हबशी रदियल्लाहु अन्हु भी बेऔलाद थे।
•••➲ हमारे कुछ भाई और बहनें बेऔलाद होने की वजह से हर वक़्त कुढ़ते रहते हैं और ज़िन्दगी भर दवा दारू और दुआ तावीज़ कराते रहते हैं और लूट खसोट मचाने वाले कुछ डाक्टर व हकीम और करने धरने वाले कठमुल्ले और मियाँ फ़कीर ,उनकी कमज़ोरी से खूब फाइदे उठाते,चक्कर लगवाते यहाँ तक की उन्हें बरबाद कर देते हैं।..✍🏻
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 128 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 332
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 बे औलाद मर्दों और औरतों के लिए ज़रूरी हिदायात!..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 331 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ और डाक्टर व हकीमों और करने धरने वालों में आजकल मक्कारों, फरेबकारों की तादाद बहुत बढ़ गई है। कुछ टोका टाकी करने वाली और मशविरे देने वाली बूढ़ी औरतें, उन बेचारों को चैन से नहीं बैठने देतीं। और नये नये हकीमों, डाक्टरों और करने धरने वालों के पते बताती रहती हैं। यहाँ से छूटे तो वहाँ पहुँचे और यहाँ से निकले तो वहाँ फंसे। बेचारों की इसी में कट जाती है।
•••➲ भाईयो! सब्र से बड़ी कोई दवा नहीं और शुक्र से बड़ा कोई तावीज़ नहीं। इससे हमारा मतलब यह नहीं है कि बेऔलाद दुआ और तावीज़ न करें। बल्कि हमारा मकसद यह बताना है कि थोड़ा बहुत इलाज भी करा लें। और अच्छे भले मौलवी, आलिमोंपीरों फकीरों से दुआ तावीज़ भी करा लें, अगर कामयाबी हो जाये तो ठीक, सुब्हानल्लाह! खुदाए तआला मुबारक फ़रमाये। और न हो तो सब्र से काम लें, खुदाए तआला की इबादत, उसका ज़िक्र और कुरआन की तिलावत में ध्यान लगायें। ज़्यादा हकीमों डाक्टरों और करने वालों के दरवाजों के चक्कर न लगायें और इसमें ज़िन्दगी की कीमती घड़ियों को न गंवायें, आखिर होना वही है, जो खुदाए तआला की मर्ज़ी है।..✍🏻
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 128 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 333
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 बे औलाद मर्दों और औरतों के लिए ज़रूरी हिदायात!..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 332 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ और एक जरूरी बात यह भी है कि अब करीबे कियामत जो ज़माना आ रहा है, उसमें ज़्यादातर औलाद नअहल निकल रही है और तजुर्बा शाहिद है कि अब औलाद से लोगों को सुकून कम ही हासिल होगा ।और अब बुढ़ापे में माँ बाप को कमा कर खिलाने वाले बहुत कम ,न होने के बराबर और नोच नोच कर खाने वाले ज़्यादा पैदा होंगे। आज लाखों की तादाद में साहिबे औलाद बूढ़े और बुढ़ियें सिर्फ इसलिए भीक मांगते घूम रहे हैं कि उनकी औलाद ने जो कुछ उनके पास था, वह या तो ख़त्म कर दिया या अपने कब्ज़े में कर लिया और मां बाप को भीक मांगने के लिए छोड़ दिया। बल्कि बाज़ तो माँ बाप से भीक मंगवा कर खुद खा रहे हैं और अपने बच्चों को खिला रहे हैं। गोया कि अब माँ बाप इसलिए नहीं हैं कि बुढ़ापे में औलाद की कमाई खायें बल्कि इसलिए हैं कि मरते दम तक उन्हें कमा कर खिलायें ख्वाह इसके लिए उन्हें भीक ही क्यूं न मांगना पड़े।...✍🏻
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 128 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 334
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 बे औलाद मर्दों और औरतों के लिए ज़रूरी हिदायात!..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 333 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ आज कितने लोग हैं कि उनकी ज़िन्दगी चैन व सुकून और शान के साथ कटी। लेकिन औलाद की वजह से बुरे दिन देखने को मिले। किसी को लड़के की वजह से जेल और थाने जाना पड़ा और पुलिस की खरी खोटी सुनना पड़ीं और किसी की जवान लड़की ने नाक कटवा दी और पूरे घर की इज़्ज़त खाक में मिला दी, चार आदमियों में बैठने के लाइक नहीं छोड़ा।
•••➲ इस सबसे हमारा मकसद यह नहीं है कि औलाद मुतलकन कोई बुरी चीज़ है या बेऔलाद औलाद हासिल करने के लिए बिल्कुल कोशिश न करें। बल्कि बात वही है जो हम लिख चुके कि खुदाए तआला नेक औलाद दे तो, मुबारक! उसका शुक्र अदा करें और न दे तब भी परेशान न हों। मामूली दवा व तदबीर के साथ साथ सब्र व शुक्र ही से काम लें।
•••➲ और यह बता देना भी जरूरी है कि बदमज़हब व बददीन या अल्लाह तआला व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और माँ बाप की नाफरमान, बिगड़ी हुई, चोर,डकैत, शराबी, ज़िनाकार, हरामकार,अय्याश व बदमआश औलाद वाला होने से वो लोग बहुत अच्छे हैं, जिनके औलाद नही।...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 128 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 335
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 ग़ैर मुस्लिमों से गोश्त मँगाने का मसअला!..❓*
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•••➲ ग़ैर मुस्लिम की दुकान से गोश्त ख़रीद कर खाना या किसी ग़ैर मुस्लिम से हदिया और तोहफे में कच्चा या पका हुआ गोश्त लेकर खाना हराम है ख़्वाह वह यह कहे कि मैंने जानवर मुसलमान से जुबह कराया था। यअनी मुसलमान का ज़बीहा बताये तब भी उससे गोश्त लेना, ख़रीदना और खाना सब हराम है। हाँ अगर जुबह होने से लेकर जब तक मुसलमान के पास आया हर वक़्त मुसलमान की नज़र में रहा तो यह जाइज़ है।
📕 *फतावा रजविया ज़िल्द 10 निस्फ अव्वल सफ़हा 94*
•••➲ हाँ अगर गोश्त किसी मुसलमान की दुकान से लाया गया लेकिन खरीद कर लाने वाला नौकर, मजदूर वगैरह कोई ग़ैर मुस्लिम हो और वह कहे कि मैंने यह गोश्त मुसलमान की दुकान से खरीदा है और आप भी जानते हैं कि यह मुसलमान की दुकान से ख़रीदकर लाया है तो उस गोश्त को खाना जाइज़ है। *जामे सगीर में है!*
*📔 हिदाया जिल्द 4 सफ़ा 437 बहारे शरीअत हिस्सा 16 सफ़ा 36 पर भी इसकी वजाहत मौजूद है।*
•••➲ खुलासा यह कि मुसलमान की दुकान का गोश्त जाइज़ है ख्वाह खरीद कर लाने वाला नौकर या मज़दूर ग़ैर मुस्लिम हो और ग़ैर मुस्लिम की दुकान का गोश्त हराम है ख्वाह ख़रीद कर लाने वाला मुसलमान ही क्यूं न हो और अगर जुबह शरई से लेकर किसी वक़्त मुसलमान की नज़र से गाइब न हुआ तो यह भी जाइज़ है।...✍🏻
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 130 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 336
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मुहर्रम व सफ़र में ब्याह शादी न करना और सोग मनाना!..❓*
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•••➲ माहे मुहर्रम में कितनी रसमें बिदअतें और खुराफ़ातें आजकल मुसलमानों में राइज हो गई हैं उनका शुमार करना भी मुश्किल है। उन्हीं में से एक यह भी कि यह महीना सोग और गमी का महीना है। इस माह में ब्याह शादी न की जायें। हालांकि इस्लाम में किसी भी मय्यत का तीन दिन से ज्यादा गम मनाना नाजाइज़ है और इन अय्याम में ब्याह शादी को बुरा समझना गुनाह है। निकाह साल के किसी दिन में मना नहीं चाहे मुहर्रम हो या सफर या और कोई महीना या दिन।
•••➲ आलाहजरत अलैहिर्रहमतु वर्रिदवान से पूछा गया।
(1) बाज़ अहलेसुन्नत व जमाअत अशरए मुहर्रम में न तो दिन भर रोटी पकाते हैं और न झाडू देते हैं कहते हैं बाद दफ़न ताजिया रोटी पकाई जाएगी।
(2) दस दिन में कपड़े नहीं उतारते।
(3) माहे मुहर्रम में व्याह शादी नहीं करते।
(4) इन अय्याम में सिवाए इमाम हसन और इमाम हुसैन रयिलाहु तआला अन्हुमा के किसी और की नियाज व फातिहा नहीं दिलाते यह जाइज है या नाजाइज़? तो आप ने जवाब में फ़रमाया पहली तीनों बातें सोग हैं और सोग हराम और चौथी बात जहालत। हर महीने में हर तारीख में हर वली की नियाज़ हर मुसलमान की फातिहा हो सकती है।
📗 *अहकामे शरीअत, हिस्सा अव्वल सफहा 127*
•••➲ दर अस्ल मुहर्रम में गम मनाना सोंग करना फ़िरकए मलऊना शीओं और राफ़िज़ियों का काम है और खुशी मनाना मरदूद ख़ारिजियों काम का शेवा और नियाज़ व फातिहा दिलाना, नफ़्ल पढ़ना, रोजे रखना मुसलमानों का काम है।
•••➲ यूंही मुहर्रम में ताजियादारी करना, मसनूई करबलायें बनाना, उनमें मेले लगाना भी नाजाइज़ व गुनाह है।✍🏻
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 132 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 337
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मर्दों का एक से ज़्यादा अंगूठी पहनना!..❓*
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•••➲ इस्लामी नुकतए नज़र से मर्द को चांदी की सिर्फ एक अंगूठी एक नग की पहनना जाइज़ है जिसका वजन साढ़े चार माशे (4.357 ग्राम) से कम हो। इसके अलावा मर्द के लिए कोई ज़ेवर हलाल नहीं। एक से ज़्यादा अंगूठी या कोई ज़ेवर किसी भी धात का हो सब गुनाह व नाजाइज़ है।
•••➲ मगर आजकल अवाम तो अवाम बाज़ जाहिल नाम निहाद सूफ़ियों और मुख़ालिफ़के इस्लाम पीरों ने ज़्यादा से ज़्यादा अंगूठी पहनने को अपने ख्याल में फ़कीरी व तसव्वुफ समझ रखा है यह एक चांदी की शरई अंगूठी से ज़्यादा अंगूठिया पहनने वाले ख्वाह वह सोने की हों या चांदी की या और किसी धात की सब के सब गुनाहगार हैं और इस लाइक नहीं कि उन्हें पीर बनाया जाए। हमारे कुछ भाई तांबे, पीतल और लोहे के छल्ले पहनते हैं और उन्हें दर्द और बीमारी की शिफा ख्याल करते हैं यह भी गलत है।और इलाज के तौर पर भी नाजाइज़ जेवरात छल्ले वगैरा पहनना जाइज़ नहीं है।...✍🏻
*📕 फ़तावा रज़विया, जिल्द 10 , निस्फे अव्वल,सफ़हा 14*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 338
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मर्दों का एक से ज़्यादा अंगूठी पहनना!..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 337 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ कुछ लोग यह कहते हैं कि यह छल्ला या अंगूठी हम मक्का शरीफ,मदीना शरीफ या अजमेर शरीफ से लाए हैं। अगर वह खिलाफ शरअ है तो मक्के शरीफ, मदीने शरीफ, अजमेर शरीफ के बाज़ार में बिकने से हलाल नहीं हो जाएगी।
•••➲ भाईयो! आप तो आज वहाँ के बाज़ारों से लाए हैं और यह नाजाइज़ होने का हुक्म चौदा सौ साल कल्ब वहीं से आ चुका है।
•••➲ खुलासा यह कि मुक़द्दस शहरों में बिकने से हराम चीज़ हलाल नहीं हो जाती।
•••➲ भाईयों! अल्लाह तआला से डरो और नाजाइज़ अँगूठीयां, ज़ेवरात, कड़े, छल्ले पहन कर अल्लाह तआला की नाफरमानी न करो।...✍🏻
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 133 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 339
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 ओझड़ी खाना!..❓*
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•••➲ *ओझड़ी और आतें खाना जाइज़ नहीं।*
•••➲ कुरआन करीम में है। *तर्जमा :* और वह नबी गन्दी चीजें हराम फरमायेंगे।
📓 *कंजूल ईमान ,पारा 9, सुरह अराफ,आयत 157*
•••➲ और "खबाइस" से मुराद वह चीजें हैं जिनसे सलीमुत्तबअ लोग घिन करें और ओझड़ी और आंतें खाने से भी सलीमुत्तबअ लोग घिन करते है और यह गन्दी चीजें हैं लिहाजा इनका खाना जाइज़ नहीं है।
•••➲ आलाहज़रत अलैहिर्रहमा ने अपने रिसाले "अलमहुल मलीहा" में इस सब को तसरीह व तफ़सील से बयान फरमाया है।...✍🏻
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 134 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 340
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 औलाद को आक़ करने का मसअला!..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ बाज़ लोग अपनी औलाद के बारे में यह कह देते हैं कि मैंने इसको आक़ कर दिया और उसका मतलब यह ख्याल किया जाता है कि अब वह आक़ की हुई औलाद बाप के मरने के बाद इसकी मीरास से हिस्सा नहीं पाएगी हालांकि यह एक बेकार बात है और आक़ कर देना शरअन कोई चीज़ नहीं है और न बाप के यह लफ्ज़ बोलने से उसकी औलाद जाएदाद में हिस्से से महरूम होगी बल्कि वह बदस्तूर बाप की मौत के बाद उसके तरके में शरई हिस्से की हक़दार है।
•••➲ हाँ माँ बाप की नाफरमानी और उनको ईजा देना बड़ा गुनाह है और जिसके वालिदैन उससे नाखुश हों वह दोनों जहाँ में इताब व अज़ाबे इलाही का हक़दार है और सख़्त महरूम है।
•••➲ सय्यिदी आलाहजरत रदियल्लाहु तआला अन्हु इरशाद फरमाते हैं : "आक कर देना शरअन कोई चीज़ नहीं न उससे विलायत ज़ाइल हो।...✍🏻
*📕 फतावा रज़विया,जिल्द 5,सफहा 412*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 341
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 साली और भावज से मज़ाक़ करना!..❓*
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•••➲ बाज़ लोग साली और भावज से मजाक करते बल्कि उसे अपना हक़ ख्याल करते हैं और उन्हें इस किस्म की बातों से रोका टोका जाए तो कहते हैं कि हमारा रिश्ता ही ऐसा है हालांकि इस्लाम में यह मज़ाक हराम बल्कि सख्त हराम जहन्नम का सामान है। औरतों और मर्दों के दरमियान मखसूस मामलात से मुतअल्लिक गन्दी और बेहूदा बातें ख़्वाह खुले अल्फ़ाज़ में कही जायें या इशारों किनायों में सब मज़ाक हैं और हराम है। हदीस शरीफ़ में जेठ देवर और बहनोई से पर्दा करने की सख्त ताकीद आई है। और जिस तरह मर्दों के लिए साली और भावज से मज़ाक हराम है ऐसे ही औरतों को भी देवर और बहनोई से मज़ाक़ हराम है।...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 135 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 342
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 हमल रोकने न वाली दवाओं और लूप , कन्डोम वगैरा का इस्तेमाल!..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ इस्लाम में नसबन्दी हराम है। नसबन्दी का मतलब यह है कि किसी अमल यानी आपरेशन वगैरा के जरिए मर्द या औरत में कुव्वत तौलीद यानी बच्चा पैदा करने की सलाहियत हमेशा के लिए ख़त्म कर देना जैसा कि हदीस शरीफ में है कि जब हज़रते अबूहुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु ने हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से बर ज़िना से बचने के लिए ख़स्सी होने की इजाज़त चाही तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इस सवाल पर पर उन से रू-गिरदानी फरमाई और नाराज़गी का इज़हार किया।
लेकिन हमल रोकने के ख्याल से आरिज़ी ज़राए व वसाइल इख्तियार करना मसलन , लूप,निरोध वगैरा का किसी ज़रूरत से इस्तेमाल करना हराम नहीं है। दरअस्ल मज़हबे इस्लाम बड़ी हिकमतों वाला मज़हब और क़ानूने फ़ितरत है जो नसबन्दी को हराम फरमाता है क्यूंकि उसमें इन्सान के बच्चा पैदा करने की कुदरती सलाहियत व कुव्वत को ख़त्म कर दिया जाता है। कभी यह भी हो सकता है कि माँ,बाप नसबन्दी करा बैठते हैं। और जो बच्चे थे वह मर गए ऐसा हो भी जाता है तो सब दिन के लिए औलाद से महरूमी हाथ आती है। कभी ऐसा भी होता है कि औरत ने नसबन्दी कराई और उसके शौहर का इन्तिकाल हो गया या तलाक हो गई अब उस औरत ने दूसरी शादी की और दूसरा शौहर अपनी औलाद का ख्वाहिशमन्द हो। यह भी हो सकता है मर्द ने नसबन्दी कराई अब उसकी औरत फ़ौत हो गई या तलाक हो गई वह दूसरी शादी करता है अब नई बीवी औलाद की ख्वाहिशमन्द हो।...✍🏻
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 हमल रोकने न वाली दवाओं और लूप , कन्डोम वगैरा का इस्तेमाल!..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 342 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ खुलासा यह कि बच्चा पैदा करने की सिरे से सलाहियत खत्म कर देना किसी तरह समझ नहीं आता और इस्लाम का क़ानून बेशुमार हिक़मतों का खज़ाना है। अलबत्ता आरिज़ी तौर से बच्चों की विलादत रोकने के ज़राए व वसाइल को इस्लाम मुतलक़न हराम फ़रमाता । इस में भी बड़ी हिक़मत है क्योंकि कभी ऐसा हो जाता है कि औरत की सेहत इतनी खराब है कि बच्चा पैदा करना उसके बस की नहीं बल्कि कभी कुछ औरतों के बच्चे सिर्फ ऑपरेशन से ही हो पाते हैं और दो या तीन बच्चों की विलायत के बाद डॉक्टरों ने कह दिया कि आइन्दा ऑपरेशन में सख्त खतरा है तो आरिज़ी तौर पर हमल को रोकने के ज़राए का इस्तेमाल गुनाह नहीं है
•••➲ *हदीस शरीफ में है :-* हज़रत जाबिर रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि हम लोग नुज़ूले कुरआन के ज़माने में "अज़्ल"करते थे यानी इन्जाल के वक़्त औरत से अलाहिदा हो जाते थे। यह हदीस बुख़ारी शरीफ व मुस्लिम शरीफ दोनों में है। मुस्लिम शरीफ में इतना और है :-* यह बात हुजूर नबीए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम तक पहुँची तो आपने मना नहीं फरमाया।
•••➲ अज़्ल से मुतअल्लिक और भी हदीसे हैं जिन से इसकी इज़ाजत का पता चलता है जिनकी तौज़ीह व तशरीह में उलमा का फ़तवा है कि बीवी से इसकी इज़ाजत के बगैर उसकी मर्ज़ी के खिलाफ ऐसा न करे क्यूंकि इसमें उसकी हकतल्फी है।
•••➲ हज़रत मौलाना मुफ्ती जलालुद्दीन अहमद अमजदी फरमाते है : "किसी जाइज़ मकसद के पेशे नज़र वक़्ती तौर पर ज़्बते तौलीद के लिए कोई दवा या रबड़ की थैली का इस्तेमाल करना जाइज़ है लेकिन किसी अमल से हमेशा के लिए बच्चा पैदा करने की सलाहियत को ख़त्म कर देना किसी तरह जाइज नहीं।"
*📓 फतावा फैज़ुर्रसूल, जिल्द दोम, सफ़हा 580*
•••➲ इस से यह भी ज़ाहिर है कि वे मकसद ख्वाहम ख़्वाह ऐसा करना भी जाइज़ नहीं।...✍🏻
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 ग़ैर ज़रूरी सवालात!..❓*
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•••➲ आजकल अवाम में सवालात मालूम करने का रिवाज़ भी आम हो गया है वह भी अमल व इस्लाह की गरज़ से नहीं बल्कि उलमा को आज़िज़ करने या किसी फ़ासिद मक़सद से।
•••➲ एक साहब को मैंने देखा कि वह मालदार हो कर कभी कुर्बानी नहीं करते थे और मौलवी साहब से मालूम कर रहे थे हज़रते इस्माईल अलैहिस्सलाम की जगह जिबह करने के लिए जो दुम्बा लाया गया था वह नर था या मादा और उसका गोश्त किसने खाया था वहीं उन्हीं के जैसे दूसरे साहब बोले कि वह दुम्बा अन्डुआ था या खस्सी?
•••➲ एक साहब को नमाज़ याद नहीं थी और कुछ भी ठीक से करना नहीं जानते थे और उन्हें जो मौलाना साहब मिलते उनसे यह ज़रूर पूछते थे कि मूसा अलैहिस्सलाम की मां का क्या नाम था? और हज़रते खदीजा रदियल्लाह तआला अन्हा का निकाह किस ने पढ़ाया था?
•••➲ ग़रज़ कि इस किस्म के ग़ैर ज़रूरी सवालात करने का माहौल बन गया है। अवाम को चाहिए कि तारीख़ी बातों में न पड़ कर नमाज़, रोज़ा वगैरा अहकामे शरअ सीखें और इस्लामी अक़ीदे मालूम करें यही चीज़ें अस्ल इल्म हैं।
•••➲ और जो बात क़ुरआन व हदीस फ़िक़्ह से मालूम हो जाए तो ज़्यादा कुरेद और बारीकी में न पड़ें न बहस करें अगर अक्ल में न आए तो अक्ल का कुसूर जाने न कि मआज़ल्लाह क़ुरआन व हदीस का या फुक़हाए मुजतहिदीन का और ख़्वाहम ख़्वाह ज़्यादा सवालात करने की आदत अच्छी नहीं है। फ़ी ज़माना अमल करने का रिवाज़ बहुत कम है पूछने का ज़्यादा और अन्धा होकर बारीक राहों पर चलने में सख्त ख़तरा हैं।...✍🏻
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 क्या क़व्वाली सुनना जाइज़ है?..❓*
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•••➲ इस्लामी भाईयो ! आज कल बुज़ुर्गाने दीन के मज़ारात पर उनके उर्सों का नाम लेकर खूब मौज मस्तियां हो रही हैं और अपनी रंग रंगेलियों, बाजों, तमाशों, औरतों की छेड़छाड़ के मजे उठाने के लिए अल्लाह वालों के मज़ारों को इस्तेमाल किया जा रहा है और ऐसे लोगों को न खुदा का ख़ौफ़ है, न मौत की फिक्र और न जहन्नम का डर।
•••➲ आज कुफ्फार व मुशरिकीन यह कहने लगे हैं कि इस्लाम भी दूसरे मजहबों की तरह नाच, गानों, तमाशों, बाजों और बेपर्दा औरतों को स्टेजों पर लाकर बे हाई का मुज़ाहिरा करने वाला मज़हब है लिहाज़ा अहले कुफ़्र के इस्लाम कबूल करने की जो रफ्तार थी उसमें बहुत बड़ी कमी आ गई है।
•••➲ *मज़हबे इस्लाम में बतौर लहव व लइब ढोल, बाजे और मज़ामीर हमेशा से हराम रहे हैं। बुखारी शरीफ की हदीस है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहुतआलाअलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया :*"जरूर मेरी उम्मत में ऐसे लोग होने वाले हैं जो ज़िना रेशमी कपड़ों, शराब और बाजों ताशों को हलाल ठहरायेंगे।...✍🏻
📗 *सही बुख़ारी, जिल्द 2, किताबुल अशरिबह, सफहा 837*
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या क़व्वाली सुनना जाइज़ है?..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 345 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ दूसरी हदीस में हुज़ूर नबीए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने कियामत की निशानियां बयान करते हुए फ़रमाया : "कियामत के करीब नाचने गाने वालियों और बाजे ताशों की कसरत हो जाएगी।"
📘 *तिर्मिजी, मिश्कातबाबे अशरातुस्साअह सफ़हा 470*
•••➲ फतावा आलमगीरी जो अब से साढ़े तीन सौ साल पहले बादशाहे हिन्दुस्तान मुहीयुद्दीन औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह तआला अलैह के हुक्म से उस दौर के तकरीबन सभी मुसतनद व मोतबर उलमाए किराम ने जमा होकर मुरतब फरमाई जो अरबी जबान (भाषा) में तकरीबन तीन हज़ार सफ़हात और छह जिल्दों पर फैला हुआ एक अज़ीम इस्लामी इन्साइक्लोपीडिया है। उस में लिखा है। "सिमा, कव्वाली और रक्स (नाच कूद)जो आज कल के नाम निहाद सूफियों में राइज है यह हराम है इस में शिरकत जाइज़ नही।"..✍🏻
📙 *फतावा आलमगीरी ,जिल्द 5, किताबुल कराहियह ,बाब 17 ,सफहा 352*
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या क़व्वाली सुनना जाइज़ है?..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 346 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ आलाहज़रत मौलाना शाह अहमद रज़ा खां साहब अलैहिर्रहमा का फतवा अरब व अजम में माना जा रहा है उन्होंने मज़ामीर के साथ कव्वालियों को अपनी किताबों में कई जगह हराम लिखा है। कुछ लोग कहते हैं मज़ामीर के साथ कव्वाली चिश्तिया सिलसिले में राइज और जाइज़ है। यह बुज़ुर्गाने चिश्तिया पर उनका खुला बोहतान है बल्कि उन बुजुर्गों ने भी मज़ामीर के साथ कव्वाली सुनने को हराम फरमाया है। सय्यिदना महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन देहलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैह ने अपने ख़ास ख़लीफ़ा सय्यिदना फ़ख़रुद्दीन ज़रदारी से मसअलए कव्वाली के मुतअल्लिक एक रिसाला लिखवाया जिसका नाम ‘कश्फुल किनान अन उसूलिस्सिमा’ है। इसमें साफ लिखा है : हमारे बुज़ुर्गों का सिमा इस मज़ामीर के बोहतान से बरी है (उनका सिमा तो है) सिर्फ कव्वाल की आवाज़ अशआर के साथ हो जो कमाल सनअते इलाही की ख़बर देते हैं।...✍🏻
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 135 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 348
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 क्या क़व्वाली सुनना जाइज़ है?..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 347 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ कुतबुल अकताब सय्यिदना फरीदुद्दीन गंज शकर रहमतुल्लाह तआला अलैह के मुरीद और सय्यिदना महबूब इलाही निज़ामुद्दीन देहलवी रहमतुल्लाह तआला अलैह के ख़लीफ़ा सय्यिदना मुहम्मद बिन मुबारक अलवी किरमानी रहमतुल्लाहि तआला अलैह अपनी मशहूर किरताब ‘सैरुल औलिया’ में तहरीर फरमाते हैं : “महबूब इलाही ख्वाजा निज़ामुद्दीन देहलवी अलैहिर्रहमतु वर्रिदवान ने फरमाया कि चन्द शराइत के साथ सिमा हलाल है!
(1) सुनाने वाला मर्द कामिल हो छोटा लड़का और औरत न हो।
(2) सुनने वाला यादे खुदा से ग़ाफ़िल न हो।
(3) जो कलाम पढ़ा जाएफ़हश, बेहयाई और मसखरगी न हो।
(4) आलए सिमाअ यानी सारंगी मज़ामीर व रुबाब से पाक हो।...✍🏻
📕 *सैरुल औलियाबाब 9, दर सिमा, वज्द व रक्स, सफ़हा 501*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 142 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 349
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या क़व्वाली सुनना जाइज़ है?..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 348 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ इसके अलावा ‘सैरुल औलियाशरीफ़' में एक और मकाम पर है कि एक शख्स ने हजरते महबूब इलाही ख्वाजा निज़ामुद्दीन रहमतुल्लाहि तआला अलैह से अर्ज किया कि इन अय्याम में बाज़ आस्तानादार दुरवेशों ने ऐसे मजमे में जहाँ चंग व रुबाब व मज़ामीर था, रक्स किया तो हज़रत ने फरमाया कि उन्होंने अच्छा काम नहीं किया जो चीज़ शरअ में नाजाइज़ है वह नापसन्दीदा है। उसके बाद किसी ने बताया कि जब यह जमाअत बाहर आई तो लोगों ने उन से पूछा कि तुम ने यह क्या किया वहीं तो मज़ामीर थे तुम ने सिमा किस तरह सुना और रक्स किया? उन्होंने कहा हम इस तरह सिमा में डूबे हुए थे कि हमें यह मालूम ही नहीं हुआ कि यहाँ मज़ामी हैं या नहीं। हज़रत सुल्तानुल मशाइख ने फरमाया यह कोई जवाब नहीं इस तरह तो हर गुनाहगार हरामकार कह सकता है!
📗 *सैरुल औलिया, बाब 9 , सफ़हा 530*
•••➲ यानी कि आदमी ज़िना करेगा और कह देगा कि मैं बेहोश था मुझको पता नहीं कि मेरी बीवी है या गैर औरत, शराबी कहेगा कि मुझे होश नहीं कि शराब पी या शरबत।...✍🏻
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 142 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 350
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या क़व्वाली सुनना जाइज़ है?..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 349 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ इसके अलावा उन्हीं हज़रते सय्यिदना महबूब इलाही निज़ामुद्दीन हक़ वालिदैन अलैहिर्रहमतु वर्रिदवान के मलफूज़ात पर मुशतमिल उन्हीं के मुरीद व खलीफा हज़रत ख्वाजा अमीर हसन अलाई सन्जरी की तसनीफ़ ‘वाइदुल फवाद शरीफ़' में है।
•••➲ हज़रते महबूब इलाही की खिदमत में एक शख्स आया और बताया कि फलां जगह आपके मुरीदों ने महफ़िल की है और वहाँ मज़ामीर भी थे हज़रत महबूब इलाही ने इस बात को पसन्द नहीं फ़रमाया। और फ़रमाया कि मैंने मना किया है मज़ामीर (बाजे) हराम चीज़े वहाँ नहीं होना चाहिए इन लोगों ने जो कुछ किया अच्छा नहीं किया इस बारे में काफ़ी ज़िक्र फरमाते रहे। इसके बाद हज़रत ने फरमाया कि अगर कोई किसी मकाम से गिरे तो शरअ में गिरेगा और अगर कोई शरअ से गिरा तो कहाँ गिरेगा।...✍🏻
📕 *फवाइदुल फवाद,जिल्द 3, मजलिस पन्जुम,सफ़हा 512, मतबूआ उर्दू अकादमी ,देहली,तर्जमा ख्वाजा हसन निज़ामी*
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या क़व्वाली सुनना जाइज़ है?..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 350 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ मुसलमानो! जरा सोचो यह हजरत ख्वाजा निज़ामुद्दीन देहलवी रदियल्लाहु तआला अन्हु का फतावा है जो तुमने ऊपर पढ़ा। इन अक़वाल के होते हुए क्या कोई कह सकता है कि खानदाने चिश्तिया में मज़ामीर के साथ कव्वाली जाइज़ है? हाँ यह बात वही लोग कहेंगे जो चिश्ती हैं, न कादरी उन्हें तो मज़ेदारियां और लुत्फ़ अन्दोज़ियां चाहिए।
•••➲ और अब जबकि सारे के सारे कव्वाल बे नमाज़ी और फ़ासिक व फाजिर हैं। यहाँ तक कि बाज़ शराबी तक सुनने में आए हैं। यहाँ तक कि औरतों और अमरद लड़के भी चल पड़े हैं। ऐसे माहौल में इन कव्वालियों को सिर्फ वही जाइज़ कहेगा जिसको इस्लाम व कुरआन ,दीन व ईमान से कोई महब्बत न हो और हरामकारी, बहायाई, बदकारी उसके रग व पय में सराहत कर गई हो। और कुरआन व हदीस के फ़रामीन की उसे कोई परवाह न हो।...✍🏻
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 क्या क़व्वाली सुनना जाइज़ है?..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 351 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ क्या इसी का नाम इस्लाम है कि मुसलमान औरतों को लाखों के मजमे में लाकर उनके गाने बजाने कराए जायें फिर उन तमाशों का नाम बुज़ुर्गों का उर्स रखा जाए। काफ़िरों के सामने मुसलमानों और मजहबे इस्लाम को जलील व बदनाम किया जाए?
•••➲ कुछ लोग कहते हैं कि कव्वाली अहल के लिए जाइज़ और नाअहल के लिए नाजाइज़ है। ऐसा कहने वालों से हम पूछते हैं। कि आजकल जो कव्वालियों की मजलिसों में जो लाखों लाख के मजमे होते हैं क्या यह सब अल्लाह वाले और असहाबे इसतगराक हैं? जिन्हें दुनिया व मताए दुनिया का कतअन होश नहीं? जिन्हें यादे खुदा और ज़िक्र इलाही से एक आन की फुरसत नहीं?...✍🏻
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*📝 क्या क़व्वाली सुनना जाइज़ है?..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 352 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ ख़र्राटे की नीदों और गप्पों, शप्पों में नमाज़ों को गंवा देने वाले, रात दिन नंगी फ़िल्मोंगन्दे गानों में मस्त रहने वाले, मां बाप की नाफरमानी करने और उनको सताने वाले, चोर लकोर, झूटे फ़रेबी, गिरेहकाट वगैरा क्या सब के सब थोड़ी देर के लिए कव्वालियों की मजलिस में शरीक हो कर अल्लाह वाले हो जाते और उसकी याद में महव हो जाते हैं? या पीर साहब ने अहल का बहाना तलाश करके अपनी मौज मस्तियों का सामान कर रखा है? कि पीरी भी हाथ से न जाए और दुनिया की मौज मस्तियों में भी कोई कमी न आए। याद रखो कब्र की अँधरी कोठरी में कोई हीला व बहाना न चलेगा।...✍🏻
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या क़व्वाली सुनना जाइज़ है?..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 353 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ कुछ लोगों को यह कहते सुना गया है मज़ामीर के साथ कव्वाली नाजाइज़ होती तो दरगाहों और ख़ानकाहों में क्यूं होती?
•••➲ काश यह लोग जानते कि रसूले पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की हदीसों बुज़ुगाने दीन के मुकाबले में आजकल के फ़ासिक दाढ़ी मुन्डाने वाले नमाज़ों को कसदन छोड़ने वाले बाज़ ख़ानकाहियों का अमल पेश करना दीन से दूरी और सख्त नादानी है जो हदीसें हमने ऊपर लिखीं और बुज़ुर्गाने दीन के अक़वाल नक़ल किये गए उनके मुकाबिल न किसी का कौल मोतबर होगा न अमल। आजकल खानकाहों में किसी काम का होना उसके जाइज़ होने की शरई दलील नहीं है।...✍🏻
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 354 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ बाज़ खानकाहों की जबानी यह भी सुना कि हम कव्वालियां इसलिए कराते हैं कि ज़्यादा लोग जमा हो जायें और उर्स भारी हो जाए। यह भी सख्त नादानी है गोया आपको अपनी नामवरी की फिक्र है आख़िरत की फिक्र नहीं। आपको कोई जानता न हो,आपके पास कोई बैठता न हो, आप गुमनाम हों और हरामकारियों से बचते हो। नमाजों के पाबन्द हों, बीवी बच्चों के लिए हलाल रोज़ी कमाने में लगे हों और आपका परवरदिगार आप से राज़ी हो यह हज़ार दर्जे बेहतर है इससे कि आप मशहूरे जमाना शख्सियत हों। आपके हज़ारों मुरीद हों, हर वक़्त हज़ारों मोअतकिदीन का झमगटटा लगा रहता हो या लाखों मजमे में बोलने वाले ख़तीब और मुकर्रिर हों। बड़े अल्लामा व मौलाना शुमार किये जाते हों लेकिन हरामकारियों में इनहिमाक, नमाज़ों से गफलत ,शोहरत व जाह तलबी,दौलत की नाजाइज़ हवस की वजह से।।मैदाने महशर में खुदाए तआला के सामने शर्मिन्दगी हो। कियामत के दिन ख़िफ़्फत उठानी पड़े। वलइयाजु बिल्लाहि तआला कहीं जहन्नम का रास्ता न देखना पड़े।...✍🏻
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 355 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ मेरे भाईयो! दिल में यह तमन्ना रखे यही खुदाए कदीर से दुआ किया करो कि ख्वाह हम मशहूरे ज़माना पीर और दिलों में जगह बनाने वाले ख़तीब हों या न हों लेकिन हमारा रब हम से राज़ी हो जाए ईमान पे मौत हो जाए और जन्नत नसीब हो जाए। और खुदाए तआला हमें चाहे थोड़ों में रखे लेकिन अच्छों और सच्चों में रखे। फ़कीरी और दुरवेशी भीड़ और मजमा जुटाने का नाम नहीं है। फ़कीर तो तन्हाई पसन्द होते हैं और भीड़ से भागते हैं अकेले में यादे खुदा करते हैं।
उनकी याद उनका तसव्वुर है उन्हीं की बातें
कितना आबाद मेरा गोशए तन्हाई है।
•••➲ आख़ीर में एक बात यह भी बता देना ज़रूरी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि *‘‘जो कोई ख़िलाफ़ शरअ काम की बुनियाद डालते है तो उस पर अपना और सारे करने वालों को गुनाह होता है।’’* लिहाजा जो मज़ामीर के कव्वालियां कराते हैं और दूसरों को भी इसका मौका देते हैं उन पर अपना,कव्वालों और लाखों तमाशाइयों का गुनाह है मरते ही उन्हें अपनी करतूतों का अन्जाम देखने को मिल जाएगा।
•••➲ हमारी इस तहरीर को पढ़ कर हमारे इस्लामी भाई बुरा न मानें बल्कि ठन्डे दिल से सोचें अपनी और अपने भाईयों में इस्लाह की कोशिश करें।
•••➲ अल्लाह तआला प्यारे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सदके व तुफ़ैल तौफीक बख्शे।...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 146 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 357
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 क्या दरख्तों और ताकों में शहीद मर्द रहते हैं..?❓*
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•••➲ कुछ लोग कहते हैं कि फलां दरख्त पर शहीद मर्द रहते हैं। या फलां ताक में शहीद मर्द रहते हैं और उस दरख्त और उस ताक के पास जाकर फातिहा दिलाते हैं हार फूल खुशबू वगैरा डालते हैं लोबान अगरबत्ती सुलगाते हैं और वहाँ मुरादें मांगते हैं। यह सब खिलाफ शरअ और गलत बातें है। जो बर बिनाए जहालत अवाम मे राइज हो गई हैं इनको दूर करना निहायत ज़रूरी है। हक यह है कि ताकों, महराबों, दरख्तों वगैरा पर महबूबाने खुदा का क्रियाम करार देकर वहाँ हाज़िरी नियाज़, फातिहा, अगरबत्ती, मोमबत्ती जलाना, हार फूल डालना खुशबूयें मलना, घूमना, चाटना हरगिज़ जाइज़ नहीं।
•••➲ आलाहज़रत रदियल्लाहु तआला अन्हु इन बातों के मुतअल्लिक फरमाते हैं : यह सब वाहियात व खुराफात और जाहिलाना हिमाक़ात व व बतलात हैं इनका इज़ाला लाज़िम है।"
📕 *अहकामे शरीअत, हिस्सा अव्वल, सफहा 32*
•••➲ आजकल कुछ लोग इन हरकतों से रोकने वालों को वहाबी कह देते हैं हालांकि किसी मुसलमान को वहाबी कहने में जल्दी नहीं करना चाहिए जब तक कि उसके अकाइद की खूब तहकीक न हो जाए और ख़िलाफ़ शरअ हरकतों और बिदअतों से रोकना तो अहले सुन्नत का ही काम है वहाबी तो उसको कहते हैं जो अल्लाह तआला और उसके महबूब हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम के और बुज़ुर्गाने दीन की शान में गुस्ताख़ी व बेअदबी करता हो या जानकर गुस्ताख़ों की तहरीक में शामिल हो उनको अच्छा जानता हो। वहाबी किसे कहते हैं इसको तफ़सील के साथ मैंने अपनी किताब"दरमियानी उम्मत’ में लिख दिया है यह किताब उर्दू और हिन्दी में अलग अलग छप चुकी है हासिल करके मुतालआ कर लिया जाए।...✍🏻
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 147 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 कुछ गलत नामों की निशानदेही.?❓*
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•••➲ कुछ लोग अपने बच्चों के नाम, अहमद नबी, मुहम्मद नबी, रसूल अहमद,नबी अहमद रख देते हैं, यह ग़लत है इसके बजाय गुलाम मुहम्मद या गुलाम रसूल या गुलाम नबी कर लें या मुहम्मद नबी और अहमद नबी में नबी के आगे ‘ह’ बढ़ा कर मुहम्मद नबीह या अहमद नबीह कर लें।
•••➲ गफूरुद्दीन नाम रखना भी गलत है क्यूंकि गफूर के मअना मिटा देने वाले के हैं लिहाज़ा गफूरुद्दीन के माअना हुए ‘दीन को मिटाने वाला’। लाहौला वला .कुव्वता इल्ला बिल्लाह। अल्लाह जल्ला शानुहू का नाम गफूर इसलिए है कि वह गुनाहों को मिटाता है, नाम रखने से मुताल्लिक क्या जाइज़ है और क्या नाजाइज़ इसको तफसील से जानने के लिए आलाहजरत मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खां अलैहिर्रहमतो वर्रिदवान की तसनीफ मुबारक अहकामे शरीअत में सफा 72 से सफा 98 तक का मुतालआ करना चाहिए।
•••➲ *⚠️ नोट* कुछ लोगों के नाम इस किस्म के होते हैं जिनमें अल्लाह तआला के मखसूस नामों के साथ ‘अब्द' लगा होता है जैसे अब्दुल्लाह, अब्दुर्रहमान,अब्दुर्रज्जाक, अब्दुल खालिक वगैरहा तो इन नाम वालों को बगैर ‘अब्द’ लगाये खाली रहमान, रज्जाक या ख़ालिक हरगिज़ नहीं कहना चाहिए और यह इस्लाम में बहुत बुरी बात है जिसका ध्यान करना निहायत ज़रूरी है। *वलइयाज़ुबिल्लाहि तआला।...✍🏻*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 147 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 359
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मख़लूके खुदा को सताना और दुआ तावीज़ कराना.?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 359 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ खुलासा यह कि कोई भी ज़ालिम अत्याचारी वे रहम हो जो अपने ऐश व आराम और मालदारी की खातिर दूसरों को सताता और उनका खून पीता है उसकी न खुद अपनी दुआ कबूल होती है न उसके हक में दूसरों की। यह मर्द हों या औरतें, यह शौहर हों या बीवियां, यह सासें और नन्दें हों या बहुएं और भावजें, यह मालदार और ज़मीदार हों या हुक्काम व अधिकारी। अगर यह ज़ालिम व बेरहम और अत्याचारी हैं तो उन्हें चाहिए कि यह लम्बी लम्बी दुआयें मांगने, पीरों फकीरों और मज़ारात पर चक्कर लगाने और दुआ तावीज़ कराने से पहले जिसको सताया है उससे माफ़ी मांग लें जिसका हक दबाया है। वह उसे लौटा दें और ज़ुल्म व ज़्यादती व बेरहमी की आदत छोड़ दें फिर आयें ये मस्जिदों में दुआओं के लिए और खानकाहों में मुरादें मांगने और मियां और मौलवियों के पास गन्डे तावीज़ कराने के लिए। जिसने किसी गरीब, कमज़ोर को सताया है और जिसके पीछे किसी मज़लूम की बददुआ लगी है उसके लिए न कोई दुआ है न तावीज़।
•••➲ हदीस में है कि फ़रमाया रसुलुल्लाह (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) ने "अल्लाह तआला" उस पर रहम नहीं फरमाता जो लोगों पर रहम नहीं करता। *''और फरमाते हैं।* मज़लूम की बददुआ से बचों वह अल्लाह तआला से अपना हक़ मांगता है और खुदाए तआला हक़ वाले को उसका हक़ अता फरमाता है।..✍🏻
📕 *मिश्कात सफहा 435*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 149 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 360
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 पढ़ने पढ़ाने से मुतअल्लिक़ कुछ गलतफ़हमियाँ ?❓*
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•••➲ आजकल कसरत से मुसलमान अपने बच्चों को ईसाईयों और बुत परस्तों मुश्रिकों के स्कूलों ,पाठशालाओं में पढ़ने भेज रहे हैं जबकि मुसलमानों को चाहिए कि वह हिन्दी,अंग्रेज़ी,हिसाब व साइंस वगैरा की अदना (छोटी) व आला।(बड़ी) तालीम के लिए भी अपने स्कूल खोलें जिनमें दुनियवी तालीम के साथ साथ ज़रूरत के लाइक दीनी।तालीम भी हो या दीनी इस्लामी उलूम के साथ साथ ज़रूरत के लाइक दुनियवी उलूम भी पढ़ाये जायें और तालीम अगरचे दुनियवी भी हो लेकिन माहौल व तहज़ीब इस्लामी हो और गवर्नमेंट से मन्ज़ूरशुदा निसाब की किताबें भी पढ़ाई जायें लेकिन उनमें अगर कहीं कोई बात ऐसी हो जो इस्लामी नज़रियात के ख़िलाफ़ हों तो पढ़ाने वाले उस पर तम्बीह करके बच्चों के ईमान व अक़ीदे को बचायें क्यूंकि ईमान हर दौलत से बड़ी दौलत है।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 150 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 361
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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•••➲ आजकल कसरत से मुसलमान अपने बच्चों को ईसाईयों और बुत परस्तों मुश्रिकों के स्कूलों ,पाठशालाओं में पढ़ने भेज रहे हैं जबकि मुसलमानों को चाहिए कि वह हिन्दी,अंग्रेज़ी,हिसाब व साइंस वगैरा की अदना (छोटी) व आला।(बड़ी) तालीम के लिए भी अपने स्कूल खोलें जिनमें दुनियवी तालीम के साथ साथ ज़रूरत के लाइक दीनी।तालीम भी हो या दीनी इस्लामी उलूम के साथ साथ ज़रूरत के लाइक दुनियवी उलूम भी पढ़ाये जायें और तालीम अगरचे दुनियवी भी हो लेकिन माहौल व तहज़ीब इस्लामी हो और गवर्नमेंट से मन्ज़ूरशुदा निसाब की किताबें भी पढ़ाई जायें लेकिन उनमें अगर कहीं कोई बात ऐसी हो जो इस्लामी नज़रियात के ख़िलाफ़ हों तो पढ़ाने वाले उस पर तम्बीह करके बच्चों के ईमान व अक़ीदे को बचायें क्यूंकि ईमान हर दौलत से बड़ी दौलत है।..✍🏻
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 150 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 362
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 पढ़ने पढ़ाने से मुतअल्लिक़ कुछ गलतफ़हमियाँ❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 361 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ मगर अफ़सोस कि मुसलमानों में भी हर किस्म के लोग।मौजूद हैं, दौलतमन्दों और अमीरों की तादाद भी काफी है, अगर चाहते तो आसानी से दुनियवी तालीम के लिए भी अपने स्कूल खोल देते मगर वहाँ तो ईसाईयत और मुशरिकाना तहज़ीब का नशा सवार है। ख्याल रहे कि वक़्त अब करीब आता मालूम हो रहा है और यह नशे जल्दी ही उतर जायेंगे। अस्ल बात यह कि जिस कौम के दिन पूरे हो चुके हों, उसे कोई समझा नहीं सकता। अभी जल्दी ही एक इस्लामी मुल्क इराक में अमरीकी ईसाईयों ने कब्ज़ा कर लिया और यह इसलिए हुआ कि वहाँ के लोगों ने ईसाई तहज़ीब और कल्चर को अपना लिया था और मुसलमान जिस कौम की तहज़ीब अपनाता है, उस कौम को उस पर हाकिम बना दिया जाता है।
•••➲ इराकी मुसलमान गले में टाई बांधने लगे थे, इनके मर्दों औरतों ने इस्लामी लिबास छोड़कर ईसाइयों और अंग्रेजों का लिबास पहनना शुरू कर दिया था, शराब आम हो गई थी, नमाज़ रोज़ा बराए नाम रह गया था। आज लोग चीख रहे हैं कि इराक से इस्लामी हुकूमत चली गई लेकिन भाईयों चीखने से क्या फ़ायदा सही बात यह है कि पहले इस्लाम गया है, हुकूमत बाद में। अमरीकी फ़ौजें बहुत बाद में आई हैं, अमरीकी तहज़ीब पहले आ गई है।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 150 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 363
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क़ुरआने करीम हिफ़्ज़ करने से मुतअल्लिक़ कुछ ज़रूरी बातें❓*
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•••➲ बगैर मआनी व मतलब समझे हुए सिर्फ कुरआने करीम को ज़बानी याद कर लेना यह एक फज़ीलत व बरतरी की बात है। लेकिन सिर्फ इसे ही इल्म नहीं कहा जा सकता। लिहाज़ा बच्चों को पूरा कुरआने करीम हिफ्ज़ कराने के बजाय उनको दीनी उलूम अक़ाइदे इस्लामिया और फ़िक़्ह के मसाइल सिखाये जायें तो ये ज़्यादा बेहतर है।
•••➲ हज़रत सदरुश्शरीअत मौलाना अमजद अली साहब अलैहिर्रहमा फरमाते हैं- "कुछ कुरआन मजीद याद कर चुका है और उसे फुरसत है तो अफ़ज़ल यह है कि इल्मे फ़िक़्ह सीखे कि कुरआन मजीद हिफ्ज़ करना फ़र्ज़े किफ़ाया है और फ़िक्ह की ज़रूरी बातों का जानना फ़र्ज़े ऐन है।"
📗 *बहारे शरीअत ,हिस्सा 16, सफ़ा 233*
•••➲ *नोट :* फ़र्ज़े किफ़ाया वह फर्ज़ है कि शहर का एक भी मुसलमान कर ले तो सब पर से फर्ज़ उतर गया और अगर सबने छोड़ दिया तो सब गुनहगार हुए।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 150 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 364
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 क़ुरआने करीम हिफ़्ज़ करने से मुतअल्लिक़ कुछ ज़रूरी बातें❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 363 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ खुलासा यह कि हर शहर और इलाके में कुछ न कुछ हाफिज़ होना भी ज़रूरी है क्यूंकि इसके ज़रिये कुरआन के अल्फ़ाज़ की हिफाज़त है लेकिन इसके साथ साथ हमारी राय यह है कि जो बच्चे ज़हीन और याददाश्त के पक्के हों उन्हें अगर कम उम्री में हिफ्ज़ कराया जा सकता है तो करा दिया जाये वरना 15 , 15 और 20 , 20 साल की उम्र तक का सारा वक़्त कुरआने करीम हिफ्ज़ कराने में खर्च करा देना ज़्यादा बेहतर नहीं है।
•••➲ क्यूंकि आजकल उमूमन गरीबों और मुफ्लिसों के बच्चे दीनी मदारिस में आते हैं। उन्हें इस लाइक कर देना भी ज़रूरी है कि रोज़ी कमाने पर क़ादिर हों और दीनी और ज़रूरत के लाइक दुनियवी उलूम भी हासिल किये हुए हों जिन्हें पढ़ा लिखा कहा जा सके।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 153 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 365
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 क्या मछली और अरहर की दाल पर फ़ातिहा नहीं होगी❓*
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•••➲ हमारे कुछ अवाम भाई अपनी नावाकिफ़ी की वजह से यह ख्याल करते हैं कि मछली और अरहर की दाल पर फातिहा नहीं पढ़ना चाहिए हालांकि यह उनकी गलतफहमी है । इस्लाम में जिस चीज़ को खाना हलाल और जाइज़ है तो उस पर फ़ातिहा भी पढ़ी जा सकती है। लिहाज़ा अरहर की दाल और मछली चूंकि इनका खाना हलाल व जाइज़ है तो उन पर फातिहा पढ़ने में हरगिज़ कोई बुराई नहीं हैं, बल्कि मछली तो निहायत उम्दा और महबूब गिज़ा है।
•••➲ जैसा कि हदीस में आया है कि जन्नत में अहले जन्नत को पहली गिज़ा मछली ही मिलेगी और जो खाना जितना उम्दा और लज़ीज़ होगा फातिहा में भी उसकी फज़ीलत ज़्यादा होगी।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 153 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 366
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 सुअर के नाम लेने को बुरा जानना❓*
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•••➲ मज़हबे इस्लाम में सुअर खाना हराम है और उसका गोश्त पोस्त, खूनहड्डी, बाल, पसीना, थूक वगैरा पूरा बदन और उससे ख़ारिज होने वाली हर चीज नापाक है और इस मअना कर सुअर से नफरत करना ईमान की पहचान और मोमिन की शान है, लेकिन कुछ लोग जिहालत की वजह से इसका नाम भी जबान से निकालने को बुरा जानते हैं। यहाँ तक कि बाज़ निरे अनपढ़ गंवार यह तक कह देते हैं कि जिसने अपने मुंह से सुअर का नाम लिया चालीस दिन तक उसकी जबान नापाक रहती है। जहालत यहाँ तक बढ़ चुकी है कि एक मरतबा एक गाँव में इमाम साहब ने मस्जिद में तकरीर के वक़्त यह कह दिया कि शराब पीना ऐसा है जैसे सुअर खाना, तो लोगों ने इस पर खूब हंगामा किया कि इन्होंने मस्जिद में सुअर का नाम क्यूँ लिया यहाँ तक कि इस जुर्म में बेचारे इमाम साहब का हिसाब कर दिया गया।..✍🏻
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 153 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 367
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 सुअर के नाम लेने को बुरा जानना❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 366 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ भाईयो! किसी बुरी से बुरी चीज़ का भी बुराई के साथ नाम लेना बुरा नहीं है। हाँ अगर कोई किसी बुरी चीज़ को अच्छा कहे हराम को हलाल कहे तो यह यकीनन गलत है बल्कि बुरी चीज़ की बुराई बगैर नाम लिए हो भी नहीं सकती। *शैतान, इबलीस ,फ़िरऔन,हामान, अबूलहब और अबूजहल का नाम भी तो लिया जाता है।* ये हों या और दूसरे खुदाए तआला व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के दुश्मन वह सबके सब सुअर से बदरजहा बदतर हैं, बल्कि।इब्लीस,फिरऔन,हामान और अबूलहब का नाम तो कुरआन में भी है और हर कुरआन पढ़ने वाला नाम लेता।
•••➲ खुदाए तआला और उसके महबूब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के जितने दुश्मन हैं और उनकी बारगाहों में गुस्ताख़ी और बेअदबी करने वाले हैं, ये सब सुअर से कहीं ज़्यादा बुरे हैं।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 154 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 368
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 सुअर के नाम लेने को बुरा जानना❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 367 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ ये सब जहन्नम में जायेंगे और जानवर कोई भी हो हराम हो हलाल हो वह हरगिज़ जहन्नम में नहीं जायेगा बल्कि हिसाब व किताब के बाद फ़ना कर दिये जायेंगे।
•••➲ खुलासा यह है कि सुअर का नाम लेकर उसके बारे में हुक्मे शरअ से आगाह करना हरगिज़ कोई बुरा काम नहीं, ख्वाह मस्जिद में हो या गैरे मस्जिद में, वाज़ व तकरीर में हो या गुफ्तगू में। आख़िर कुरआन में भी तो उसका नाम कई जगह आया है,क्यूंकि अरबी में जिसको खिन्ज़ीर कहते हैं उसी को हिन्दुस्तान वाले सुअर कहते हैं, तो अगर नमाज़ में वही आयतें तिलावत की गई जिनमें सुअर के हराम फरमाने का ज़िक्र है तो उसका नाम नमाज़ में आयेगा और मस्जिद में भी।..✍🏻
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 369
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 क्या जो इस्लामी बातों की जानकरी न होने की वजह से अमल नही करते उनकी पकड़ न होगी?❓*
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•••➲ आजकल काफी लोग ऐसे हैं जो दीनी बातों, इस्लामी अकीदों, पाकी, नापाकी, नमाज़ व रोज़ा और ज़कात वगैरहा के मसाइल नहीं जानते और सीखने की कोशिश भी नहीं करते और खुदा तआला व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने किस बात को हराम फरमाया और किसे हलाल किसे जाइज़ और किसे नाजाइज़ उन्हें इसका इल्म नहीं और न इल्म सीखने की परवाह ,और खिलाफ़े शरअ हरकतें करते हैं। गलत सलत नमाज़ अदा करते हैं, लेन देन ख़रीद व फरोख्त और रहन सहन में मज़हबे इस्लाम के ख़िलाफ़ चलते हैं और उनसे कोई कुछ कहे या उन्हें गलत बात से रोके ख़िलाफ़ शरअ पर टोके तो वो कहते हैं, हम जानते ही नहीं हैं लिहाज़ा हम से कोई मुआखज़ा और सुवाल न होगा और हम बरोज़े कियामत दिये जायेंगे।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 155 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 370
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 क्या जो इस्लामी बातों की जानकरी न होने की वजह से अमल नही करते उनकी पकड़ न होगी?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 369 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ यह उन लोगों की सख्त गलतफहमी है, सही बात यह है कि अन्जान गलतकारों की डबल सजा होगी, एक इल्म हासिल न करने की और उलमा से न पूछने की और दूसरे गलत काम करने की। और जो जानते हैं लेकिन अमल नहीं करते उन्हें एक ही अजाब होगा यअनी अमल न करने का , इल्म न सीखने का गुनाह उन पर न होगा।
•••➲ आजकल आदमी अगर कोई सामान गाड़ियाँ, कपड़े ज़ेवरात खाने पीने की चीज़ खरीदे और उसको उस चीज़ के गलत व ख़राब या उसमें धोखेबाज़ी का शुबह हो जाये तो जॉच परख करायेगा, लोगों से मशवरा करेगा, जानकारों को लाकर दिखायेगा, खूब छान फटक करेगा लेकिन इस्लाम के मुआमले में मनमानी करता रहेगा, उल्टी सीधी नमाज़ पढ़ता रहेगा। वुज़ू व , नहाने धोने में इस्लामी तरीके का ख्याल नहीं रखेगा, लेन देन और मुआमलात में हराम को हलाल और हलाल को हराम समझाता रहेगा लेकिन आलिम मौलवियों से मालूम नहीं करेगा कि मैं जो करता हूँ यह गलत है या सही?..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 371
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 क्या जो इस्लामी बातों की जानकरी न होने की वजह से अमल नही करते उनकी पकड़ न होगी?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 370 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ दुनियवी हुकूमतों और सल्तनतों की ही मिसाल ले लीजिए अगर कोई शख्स किसी हुकूमत के किसी कानून के खिलाफ वर्ज़ी करे और फिर कह दे कि मैं जानता ही नहीं हैं तो हुक्काम और पुलिस उसकी बात नहीं सुनेंगे और उसे सज़ा दी जायेगी। मिसाल के तौर पर कोई शख्स बगैर लाइसेंस के ड्राइवरी करे या बगैर रोड टैक्स जमा करे गाड़ियाँ और मोटर चलाये और जब पकड़ा जाये तो कहे मुझको पता नहीं था कि गाड़ी चलाने के लिए ये काम करना पड़ते हैं, तो हरगिज़ उसकी बात नहीं सुनी जायेगी। ऐसे ही कोई शख्स बगैर टिकट के रेल में सफर करने लगे या पैसेन्जर का टिकट ले और एक्सप्रेस में सफर करने लगे, सेकेन्ड क्लास का टिकट लेकर फर्स्ट क्लास में बैठ जाये और जब पकड़ा जाये तो कह दे कि मैं जानता ही नहीं रेल में सफर के लिए टिकट लेना पड़ता है या यह एक्सप्रेस है!..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 155 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 372
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 क्या जो इस्लामी बातों की जानकरी न होने की वजह से अमल नही करते उनकी पकड़ न होगी?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 371 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ मैं नहीं पहचान सका और यह फर्स्ट क्लास है मुझको नहीं मालूम तो क्या चेक करने वाले उसको छोड़ देंगे? हरगिज़ नहीं। ऐसे ही दीन के मामले में जो लोग ग़लत सलत करते हैं वो भी यह कहने से नहीं छूटेंगे कि हम जानते ही न थे और कियामत के दिन उन्हें दुहरी सज़ा होगी, एक न जानने की और दूसरी न करने की। इन सबकी तफसील व तहकीक के लिए देखिए आलाहज़रत अलैहिर्रहमा के फरमूदात अलमलफूज़ हिस्सा अव्वल सफ़ा 27 पर। इस सिलसिले में जो लोग कोई दीनी इस्लामी मालूमात हासिल करना चाहें वह हमसे खत व किताबत के ज़रिये राब्ता कर सकते हैं हमें जो मालूमात होगी, हम उन्हें बता देंगे। हमारा पता किताब के टाइटिल पर है!..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 155 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 373
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 घर वालों को तंगी और परेशानी में छोड़ कर नफ़्ल इबादत करना!.*❓
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ कुछ लोगों को देखा गया है कि वह इबादत व रियाज़त में लगे रहते हैं। इशराक,चाश्त,अव्वाबीन तहज्जुद की नमाज़ों को अदा करते, तस्बीह व वज़ीफे पढ़ते हैं और उनके बीवी बच्चे या बूढ़े और मुफलिस माँ बाप रोटी के टुकड़ों के लिए मुहताज और तेरा मेरा मुँह देखते नज़र आते हैं। यह ऐसे लोगों की भूल है और वह नहीं जानते बन्दगाने खुदा में से हक वालों के हक अदा करना भी खुदाए तआला की इबादत और उसकी खुशनूदी हासिल करने का ज़रीया है। नफ्ल इबादत में मशगूलियत अगर बीवी बच्चों और मुफलिस माँ बाप के ज़रूरी इख़राजात से रोकती हो तो पहले बीवी बच्चों की किफ़ालत करे फिर वक़्त पाये तो नवाफिल में मशगूल हो। अलबत्ता पाँचों वक़्त की फ़र्ज़ नमाज़ हरगिज़ किसी सूरत माफ नहीं, उसकी अदाएगी हर हाल हर एक पर निहायत लाज़िम व ज़रूरी है, ख़्वाह कैसे भी करे और कुछ भी करे।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 155 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 374
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 घर वालों को तंगी और परेशानी में छोड़ कर नफ़्ल इबादत करना!.*❓
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 373 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ और आजकल इस दौर में अगर कोई शख्स सिर्फ फ़र्ज़ नमाजों को पाबन्दी के साथ बाजमाअत अदा करता हो, रमज़ान के रोज़े रखता हो अगर ज़कात फ़र्ज़ हो तो ज़कात निकालता हो, हज फर्ज़ हुआ हो तो ज़िन्दगी में सिर्फ एक बार हज कर चुका हो, और हराम काम मसलन शराब, जुआ, चोरी, ज़िनाकारी ,सूदखोरी, गीबत व बदकारी खयानत व बदअहदी, सिनेमा, गाने बाजे और तमाशों वगैरह से बचता हो और हत्तल इमकान यानी जहाँ तक हो सके सुन्नतों का पाबन्द हो और इसके साथ साथ जाइज़ पेशे के ज़रीए बीवी बच्चों की किफालत करता हो और ईमान व अकीदा दुरुस्त रहे तो यकीनन वह अल्लाह वाला है,अल्लाह तआला का प्यारा है और वह अल्लाह तआला का मुकद्दस नेक बन्दा है। ख्वाह वह नफ्ल नमाज़े और नफ़ली इबादत अदा न कर पाता हो, वज़ीफ़े और तस्वीह, इशराक व चाश्त व अवाबीन वगैरह में मशगूल न रहता हो।
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 157 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 375
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 घर वालों को तंगी और परेशानी में छोड़ कर नफ़्ल इबादत करना!.*❓
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 374 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ हदीस पाक में है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया- :" *फ़र्ज़ इबादत के बाद हलाल रोज़ी की तलाश फ़र्ज़ है।
📕 मिश्कात शरीफ़ सफ़ा 242
•••➲ और फरमाते हैं :-"सबसे ज्यादा उम्दा व अफज़ल वह माल है जो तुम अपने घर वालों पर खर्च करो।"
📘 मिश्कात सफा 170
•••➲ सदरुश्शरिया हज़रत मौलाना अमजद अली अलैहिर्रहमह फरमाते हैं, 'इतना कमाना फर्ज़ है जो अपने लिए और अहल व अयाल के लिए और जिन का नफ़का उसके ज़िम्मे वाजिब है, उनके नफ़के के लिए और कर्ज़ अदा करने के लिए किफायत कर सके।"
📗 बहारे शरीअत हिस्सा 16 सफ़ा 218
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 157 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 376
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 घर वालों को तंगी और परेशानी में छोड़ कर नफ़्ल इबादत करना!.*❓
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 375 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ और फरमाते हैं, "क़दरे किफायत से ज़्यादा इसलिए कमाता है कि फुकरा व मसाकीन की ख़बरगीरी कर सके या करीबी रिश्तेदारों की मदद करे तो यह मुसतहब है और यह नपल इबादत से अफ़ज़ल है।”
📗 बहारे शरीअत हिस्सा 16 सफ़ा 218
•••➲ फिर फरमाते हैं जो लोग मसाजिद और खानकाहों में बैठ जाते हैं और बसर औकात (गुज़ारे) के लिए कुछ काम नहीं करते और खुद को मुतवक्किल बताते हैं हालांकि उनकी निगाहें इसकी।मुन्तज़िर रहती हैं कि कोई हमें कुछ दे जाये,वह मुतवक्किल नहीं। इससे बेहतर यह था कि वह कुछ काम करते और उससे बसर औकात यअनी गुजारा करते।
•••➲ इसी तरह आजकल बहुत से लोगों ने पीरी, मुरीदी को पेशा बना लिया है। सालाना मुरीदों में दौरा करते हैं और मुरीदों से तरह तरह की रकमें खसोटते हैं और उनमें कुछ ऐसे हैं कि झूट फ़रेब से भी काम लेते हैं, यह नाजइज़ है।
📗 बहारे शरीअत हिस्सा 16 सफ़ा 218
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 159 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 377
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 क्या औरतों को जानवर ज़ुबह करना नाजाइज़ है!.*❓
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ औरत भी जानवर ज़ुबह(ज़िबह) कर सकती है और उसके हाथ का ज़ुबह किया हुआ जानवर हलाल है। मर्द और औरत सब उसे खा सकते हैं। *मिश्कात शरीफ़ किताबुस्सैद वलज़िबाह सफ़ा 357 पर बुख़ारी शरीफ के हवाले से इसके जाइज़ होने की साफ़ हदीस मौजूद है* जिसमें यह है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने एक लड़की के हाथ की जुबह की हुई बकरी का गोश्त खाने की इजाज़त दी।
•••➲ मजीद तफसील के लिए देखिए सय्यिदी मुफ्ती आज़म हिन्द अलैहिर्रहमह का फतावा मस्तफ़विया जिल्द सोम सफ़ा 153 और फतावा रज़विया जिल्द 8 सफ़ा 328 और सफ़ा 332, खुलासा यह कि औरतों के लिए भी मर्दों की तरह हलाल जानवरों और परिन्दों को ज़ुबह करना जाइज़ है जो इसे ग़लत कहे वह खुद गलत और निरा जाहिल बल्कि शरीअत पर इफ्त्तिरा करने वाला है!
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 159 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 378
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 क्या औरतों को जानवर ज़ुबह करना नाजाइज़ है!.*❓
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 377 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ समझदार बच्चे का जुबह किया हुआ जानवर भी हलाल है। और मुसलमान अगर बदकार और हरामकार हो तो ज़बीहा उसका भी जाइज़ है, नमाज़, रोज़े का पाबन्द न हो, उसके हाथ का भी ज़ुबह किया हुआ जानवर हलाल है। हाँ नमाज़ छोड़ना और हराम काम करना इस्लाम में बहुत बुरा है।
•••➲ दुर्रेमुख्तार में है:-ज़िबह करने वाले के लिए मुसलमान और आसमानी किताबों पर ईमान रखने वाला होना काफी है अगरचे औरत ही हो!
📕 दुर्रेमुख्तार, किताबुज़्ज़बाएह , जिल्द 2,सफहा,228,मतबअ मुजतबाई
•••➲ आलाहज़रत मौलाना शाह अहमद रजा खाँ अलैहिर्रहमह।फरमाते हैं।:-जुबह के लिए दीने समावी (आसमानी दीन) शर्त है, आमाल शर्त नहीं।
📗 फतावा रज़विया, जिल्द 8 सफ़ा 333
•••➲ हाँ जो लोग काफ़िर गैर मुस्लिम हों या उनके अक़ीदे की ख़राबी या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी की वजह से उन्हें इस्लाम से ख़ारिज व मुरतद क़रार दिया गया है उनके का ज़बीहा हराम व मुरदार है।
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 161 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 379
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 औरत का नामहरम मनिहारों के हाथ से चूड़ियाँ पहनना!.*❓
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ यह हरामकारी काफी राइज है। औरतों को मनिहारों के हाथों में हाथ देकर चूड़ियाँ पहनना सख्त हराम है। बल्कि इसमें दो हराम हैं, एक गैर मर्द को हाथ दिखाना और दूसरा उसके हाथ में हाथ देना।
•••➲ हमारी इस्लामी माँ बहनों को चाहिए कि अल्लाह तआला से डरें, उसके अज़ाब से बचें और इस फ़ेले हराम को फौरन छोड़ दें। बाज़ार से चूड़ियाँ ख़रीद लिया करें और घर में या तो औरतें एक दूसरे को पहना दें या घर वालों में से किसी महरम से पहन लें या शौहर अपनी बीवी को पहना दें तो गुनाह से बच जायेंगी।
•••➲ जो मर्द अपनी औरतों को मनिहारों से चूड़ियाँ पहनवाते हैं। या उससे मना नहीं करते वह बहुत बड़े बेगैरत और दयूस हैं।
•••➲ सय्यिदी आलाहज़रत अलैहिर्रहमह इस मसअले के मुताल्लिक फरमाते हैं : हराम हराम हराम हाथ दिखाना गैर मर्द को हराम, उसके हाथ में हाथ देना हराम ,जो मर्द अपनी औरतों के साथ उसे रवा रखते हैं दय्यूस हैं।
📔 फतावा रज़विया जिल्द 10 निस्फ़ आख़िर सफ़ा 208
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 161 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 380
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 मर्द और औरतों का एक दूसरे की मुशाबहत करना!.*❓
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ आजकल मर्दों में औरतों की और औरतों में मर्दों की मुशाबहत इख्तियार करने और उनके अन्दा व लिबास व चाल ढाल अपनाने का मर्ज़ पैदा हो गया है हालाँकि हदीसे पाक में ऐसे लोगों पर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने लानत फ़रमाई है जो मर्द होकर औरतों की और औरत होकर मर्दों की वज़अ क़तअ अपनायें।
•••➲ एक हदीस में है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि हमारे गिरोह से नहीं वह औरत जो मर्दाना रखरखाव अपनाये और वह मर्द जो जनाना ढंग इख्तियार करे।
•••➲ अबू दाऊद की हदीस में है कि एक औरत के बारे में सय्यिदा आइशा सिद्दीक़ा रदियल्लाहु तआला अन्हा को बताया गया कि वह मर्दाना जूता पहनती है तो उन्होंने फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मर्दानी औरतों पर लानत फ़रमाई है!
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 381
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
••──────────────────────••►
*📝 मर्द और औरतों का एक दूसरे की मुशाबहत करना!.*❓
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 380 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ खुलासा यह है कि जो वज़अ क़तअ रखरखाव लिबास वगैरह मर्दों के साथ खास हों उनको औरतें न अपनायें और जो औरतों के साथ ख़ास हो उसको मर्द न अपनायें।
•••➲ आजकल कुछ औरतें मर्दों की तरह बाल कटवाने लगी हैं यह उनके लिए हराम है और यह मरने के बाद सख़्त अजाब पायेंगी।
•••➲ ऐसे ही कुछ मर्द औरतों की तरह बाल बढ़ाते हैं सूफी बनने के लिए लम्बी लम्बी लटें रखते हैं, चोटियाँ गूँधते और जूड़े बना लेते हैं, ये सब नाजाइज़ व ख़िलाफ़ शरअ है। तसव्वुफ और फकीरी बाल बढ़ाने और रंगे कपड़े पहनने का नाम नहीं बल्कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सच्ची पैरवी करना और ख्वाहिशाते नफ़्सानी को मारने का नाम है।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 16 सफ़ा 198
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 382
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 अक़ीके का गोश्त दादा दादी और नाना नानी के लिए नाजाइज़ समझना!.*❓
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ कुछ लोग अकीके का गोश्त दादा दादी और नाना नानी के लिए खाने को नाजाइज़ ख्याल करते हैं यह बहुत बड़ी जहालत नादानी और गलतफहमी है। अकीके का गोश्त दादा दादी और नाना नानी के लिए खाना बिला शुबा जाइज़ है बल्कि जहाँ इस खाने को बुरा जानते हों वहाँ उनके लिए खाना ज़रूरी है। और वह खायेंगे तो रिवाज़ मिटाने का सवाब पायेंगे।
•••➲ आलाहजरत इमामे अहले सुन्नत मौलाना अहमद रजा खाँ साहब अलैहिर्रहमतु वर्रिदवान से इस बारे पूछा गया तो फ़रमाया:-सब खा सकते हैं, उकूदुददरिया में है :
احكامها احكام الا ضحية
📗 अलमलफूज़ हिस्सा अव्वल सफ़ा 46
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 नस्ब और बिरादरी बदलना!.*❓
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•••➲ यह बीमारी भी काफ़ी आम हो गई है कि हैं किसी कौम और बिरादरी के और खुद को दूसरी कौम व बिरादरी का ज़ाहिर कर रहे हैं और चाहते हैं कि इस जरीए से बरतरीफज़ीलत और इज़्ज़त हासिल होगी हालांकि ऐसा करने से न इज़्ज़त मिलती है न फ़ज़ीलत। इज़्ज़त व जिल्लत तो अल्लाह तआला के दस्ते कुदरत में है जिसे जो चाहता है अता फरमाता है। ये अपना नस्ब बदलने वाले बहुत बड़े बेवकूफ, अहमक, जाहिल, बेगैरत व बेशर्म हैं।
•••➲ हदीस शरीफ में हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो जानते हुए अपने बाप के सिवा दूसरे को अपना बाप बताये, उस पर जन्नत हराम है।
📗 सहीह बुख़ारी जिल्द 2 सफ़ा 1001, सहीह मुस्लिम ,जिल्द 1 सफा 442
•••➲ और एक दूसरी हदीस में अपना नस्ब बदलने वाले और अपने बाप के अलावा किसी दूसरे को बाप बताने वालों के बारे में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि उन पर अल्लाह तआला और फ़िरिश्तों और सारे लोगों की लानत है।
📕 सहीह मुस्लिम, जिल्द 1, सफ़ा 495
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 384
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 बैआना (एडवान्स) ज़ब्त करना!.*❓
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•••➲ आजकल अक्सर ऐसा होता है कि एक शख्स किसी से कोई माल खरीदता है और बेचने वाले को कुछ रक़म पेशगी देता है। जिसको बैआना कहते हैं। फिर किसी वजह से वह माल लेने से इन्कार कर देता है तो बेचने वाला बैचने की रकम ख़रीदार को वापस नहीं करता बल्कि ज़ब्त कर लेता है और पहले से यह तय किया जाता है कि अगर सौदा न ख़रीदी तो बैआना जब्त कर लेंगे। यह बैआना ज़ब्त करना शरअ के मुताबिक मना है और यह बैआने की रकम इस तरह उसके लिए हलाल नहीं बल्कि हराम है।
•••➲ आलाहज़रत अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं:- बैआना आजकल तो यूँ होता है कि अगर खरीदार बाद बैआना देने के, न ले तो बैआना ज़ब्त, और यह कतअन हराम है।
📗 अलमलफूज़ हिस्सा 3, सफ़ा 27
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 385
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 बैआना (एडवान्स) ज़ब्त करना!.*❓
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 384 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ हाँ अगर बैअ तमाम हो ली थी और बिला किसी शरई वजह के ख़रीदार ख्वामख्वाह ख़रीदने से फिरता है तो बेचने वाले को हक हासिल है कि वह बैअ को लाज़िम जाने और माल उसके हवाले करे और कीमत उससे हासिल करे ख्वाह काज़ी व हाकिम या पंचायत वगैरह की मदद से लेकिन उसको माल न देना फिर उसकी रकम वापस न करना हराम है।
•••➲ आलाहज़रत अलैहिर्रहमा फरमाते हैं :-बैअ न होने की हालत में बैआना ज़ब्त कर लेना जैसा कि जाहिलों में रिवाज है ज़ुल्मे सरीह है (खुला हुआ ज़ुल्म है।)
•••➲ *मजीद फरमाते हैं :-* यह कभी न होगा कि बैअ को फस्ख (रद्द) हो जाना मानकर मबीअ (सौदा) ज़ैद को न दे और उसके रुपये इस जुर्म में कि तू क्यूं फिर गया, ज़ब्त कर ले।
📕 फ़तावा रज़विया, जिल्द 7, सफ़ा 7
•••➲ भाईयो! हराम खाने से बचो सुकून व चैन जिसे अल्लाह तआला देता है उसे मिलता है दौलत और पैसे से नहीं। आपने बहुत से मालदारों को बेचैन व परेशान देखा होगा।और बहुत से गरीबों को चैन व सुकून में आराम से सोते देखा होगा और असली चैन की जगह तो जन्नत है।
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 166 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 386
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 क़ुरआने करीम गिर जाये तो उसके बराबर तोल कर अनाज ख़ैरात करना!.*❓
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ क़ुरआने करीम अगर हाथ या अलमारी से गिर जाये तो कुछ लोग उसको तोल कर बराबर वज़न का आटा,चावल वगैरा खैरात करते हैं, और उस खैरात को उसका कफ्फारा ख्याल करते हैं, यह उनकी गलतफहमी है।
•••➲ क़ुरआने करीम जानबूझ कर गिरा देना या फेंक देना तो।बहुत ही ज़्यादा बुरा काम है। किसी भी मुसलमान से इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह ऐसा करेगा और जो।तौहीन व तहकीर के लिए ऐसा करेगा वह तो खुला काफ़िर है। तौबा करे फिर से कलिमा पढ़े, निकाह हो गया हो तो फिर से निकाह करे।
•••➲ लेकिन अगर धोके से भूल में कुरआन शरीफ़ हाथ से छूट गया या अलमारी वगैरह से गिर गया तो उस पर कोई गुनाह नहीं है। भूल चूक माफ है। लेकिन फिर भी अगर बतौरे।खैरात कुछ राहे खुदा में खर्च कर दे तो अच्छी बात है और निहायत मुनासिब व बेहतर है। लेकिन क़ुरआन शरीफ़ को तोलना और उसके वज़न के बराबर कोई चीज़ खैरात करना और उस ख़ैरात को कफ्फारा समझना नासमझी और।बेइल्मी है। कुरआने करीम को तोलने और वज़न के बराबर सदका करने का इस्लाम में कोई हुक्म नहीं है।कुरआन व हदीस और फ़िक़्ह की किताबों में कहीं ऐसा हुक्म नहीं आया है। हाँ सदका व खैरात एक उम्दा काम है। लिहाज़ा जो कुछ आप से हो सके थोड़ा या ज़्यादा राहे खुदा में खर्च कर दें, सवाब मिलेगा और नहीं किया तब भी गुनाह व अज़ाब नही।
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 168 📚*
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 जानवरों को लड़ाना!.*❓
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•••➲ कुछ लोग तफरीह व तमाशे के लिए मुर्ग,बटेर, तीतर,हाथी, मेंढे और रीछों वगैरह को लड़ाते हैं। यह जानवरों को लड़ाना इस्लाम में हराम है। हदीस में है "रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जानवरों को लड़ाने से मना फ़रमाया।"
📙 जामेअ तिर्मिज़ी ,जिल्द 1, सफ़ा 204, सुनन अबू दाऊद जिल्द 1,सफा 346
•••➲ और यह जानवरों को लड़ाना, उन पर जुल्म है। आपकी तो तफ़रीह हो रही है, और उनका लड़ते लड़ते काम हुआ जा रहा है। मज़हबे इस्लाम इसका रवादार नहीं। बेज़बानों पर ज़ुल्म व ज़्यादती से इस्लाम मना फ़रमाता है। कबूतरबाज़ी भी नाजाइज़ है।
•••➲ आलाहजरत फरमाते हैं। "तमाशे के लिए कबूतरों को भूका उड़ाना, जब उतरना चाहें, उतरने न देना और दिन भर उड़ाना, ऐसा कबूतर पालना हराम है।
📕 फतावा रज़विया, जिल्द 10 ,किस्त 1, सफ़ा 195
•••➲ और येतमाशे देखना, इनमें शिरकत करना भी नाजाइज़ है।
📚 बहारे शरीअत ,हिस्सा 16,सफा 131
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*📝 जानवरों से उनकी ताक़त से ज़्यादा काम लेना!.*❓
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•••➲ आजकल आमतौर से लोग इस बात का ख्याल नहीं रखते। जानवरों पर उनकी ताकत से ज्यादा बोझ लाद देना और मार मार कर उन्हें चलाना, ज़ुल्म है। यूँ ही उन बेज़ुबानों के चारा पानी और गर्मी व जाड़े की फिक्र न करना भी ज़ुल्म है। दूध देने वाले जानवरों का सारा दूध खींच लेना और फिर उसके बच्चे को दिन दिन भर के लिए भूका प्यासा रखना ज़ुल्म है। ऐसा करने वाले ज़ालिम हैं और ये ज़्यादा कमाई और आमदनी के लिए ये सब करते हैं। लेकिन कमाई के बाद भी ऐसे लोग परेशान रहते हैं और उन्हें ज़िन्दगी में सुकून मयस्सर नहीं आता और हमेशा बेचैन व परेशान रहते हैं।
•••➲ सदरुश्शरीआ हज़रत मौलाना अमजद अली साहब अलैहिर्रहमह फरमाते हैं:- जानवर से काम लेने में ज़रूरी है कि उसकी ताकत से ज़्यादा काम न लिया जाये। बाज़ यक्का और तांगे वाले इतनी ज़्यादा सवारियाँ बिठाते हैं कि घोड़ा मुसीबत में पड़ जाता है, यह नाजाइज़ है।
•••➲ जानवर पर जुल्म करना, ज़िम्मी काफ़िर पर जुल्म से ज़्यादा बुरा है और ज़िम्मी काफिर पर ज़ुल्म मुसलमान पर ज़ुल्म करने से भी ज़्यादा बुरा है। क्यूंकि जानवर का कोई मुईन व मददगार अल्लाह तआला के सिवा नहीं। इस गरीब को इस ज़ुल्म से कौन बचाये।
📗 *बहारे शरीअत ,हिस्सा 16 सफ़ा 285*
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*📝 क्या उल्लू कोई मनहूस परिन्दा है!.*❓
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•••➲ उल्लू एक परिन्दा है जिसको लोग मनहूस ख्याल करते हैं। हालाँकि इस्लामी नुक्तए नज़र से यह एक गलत बात है। उल्लू को मनहूस ख्याल करना एक जाहिलाना अकीदा है।
•••➲ *सहीह बुख़ारी की हदीस में है :* "रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया :- छुआछूत कोई चीज नहीं, उल्लू में कोई नहूसत नहीं और सफ़र (चेहलम) का महीना भी मनहूस नहीं।"
📗 मिश्कात बाब उल फाल वत्तैर सफा 391
•••➲ सदरुश्शरीआ हज़रत मौलाना अमजद अली साहब फरमाते हैं : हाम्मह' से मुराद उल्लू है। जमानए जाहिलियत में अहले अरब इसके मुतअल्लिक किस्म किस्म के ख्यालात रखते थे और अब भी लोग इसको मनहूस समझते हैं। जो कुछ भी हो हदीस ने इसके मुतअल्लिक हिदायत की कि इसका एतिबार न किया जाये। माहे सफ़र को लोग मनहूस जानते हैं, हदीस में फ़रमाया, यह कोई चीज़ नहीं।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 16 सफा 124
•••➲ खुलासा यह है कि उल्लू को मनहूस समझना गलत है। नफा नुकसान का मालिक सिर्फ अल्लाह तबारक व तआला है। जो वह चाहता है, वही होता है।
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*📝 धोबी के यहाँ खाना खाना जाइज़ है।*
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•••➲ कुछ लोग धोबी के यहाँ खाना खाने को बुरा जानते हैं, यह।बहुत बुरी बात है। धोबी हो या कोई मुसलमान उसके यहाँ खाना खाने में कोई हर्ज नहीं और बिला शुबह जाइज़ है। जो लोग धोबियों के यहाँ खाने को बुरा जानते हैं और उनके यहाँ के खाने को नापाक बताते हैं, वो निरे जाहिल हैं।
•••➲ आलाहज़रत अलैहिर्रहमह फरमाते है :- धोबी के यहाँ खाना खाने में कुछ हर्ज नहीं, यह जो जाहिलों में मशहूर है कि धोबी के यहाँ का खाना नापाक है, महज़ बातिल (झूठ) हैं!
📕 अलमलफूज़ ,हिस्सा अव्वल,सफ़हा 13
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 क्या बुराई और भलाई का तअल्लुक सितारों से भी है।❓*
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•••➲ कुछ लोग समझते हैं कि बुराई भलाई और नफा नुकसान का तअल्लुक सितारों से है हालाँकि ऐसा कुछ नहीं है।
•••➲ आलाहज़रत फ़रमाते हैं :- मुसलमान मुतीअ पर कोई चीज़ नहस (मनहूस) नहीं और काफिरों के लिए कुछ सअद (भलाई) नहीं। बाकी कवाकिब (सितारों) में कोई सआदत व नहूसत नहीं अगर उनको खुद मुअस्सिर जाने मुश्रिक (काफिर) है और उनसे मदद माँगे तो हराम है और उनकी रिआयत जरूर ख़िलाफे तवक्कुल है।
📗 फतावा रज़विया, जिल्द 10, किस्त 2 ,सफा 265
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*📝 क्या बुराई और भलाई का तअल्लुक सितारों से भी है।❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 391 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ बाज़ नुकूश व तावीजात के बारे में सितारों का हिसाब लगा कर कुछ औकात को खास किया जाता है तो उसके बारे में मुसलमान को यह अक़ीदा खना चाहिए कि खुदाए तआला ने बाज़ औकात को बाज़ कामों के लिए बाज़ दूसरे औकात के मुकाबले में पसन्द फरमाया है और किसी साअत और घड़ी को किसी दूसरे से किसी खास काम के लिए अफ़ज़ल व बेहतर बनाया है। लेकिन मनहूस किसी वक़्त को नहीं समझना चाहिए और होता वही है जो अल्लाह तआला चाहता है और खुदाए तआला व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर ईमान और उनकी इताअत से बढ़कर कोई सआदत व बरकत, नफा और भलाई नहीं और उनकी नाफरमानी और कुफ़ से बढकर कोई नहूसत नहीं और ऐसे ही बाज़ कामों के लिए बाज़ दिनों की फजीलत आई है जैसे सफर के लिए जुमेरात या पीर का दिन और नाखुन तरशवाने और बाल कटवाने के लिए जुमे का दिन। इसका मतलब यह नहीं कि और दिन मनहूस हैं या उनमें वह काम नाजाइज़ व गुनाह है बल्कि किसी दिन भी सफ़र करना और किसी दिन नाखून और बाल कटवाना नाजाइज़ व गुनाह नहीं है, हर दिन जाइज़ है। हाँ मखसूस और वो दिन जो ऊपर जिक्र हुए उनमें ये काम दूसरे दिनों से ज्यादा बेहतर व अफज़ल व पसन्दीदा हैं।
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
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*📝 क्या बुराई और भलाई का तअल्लुक सितारों से भी है।❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 392 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ बाज़ जगह औरतें बुध के दिन घर से निकलने और सफ़र करने को मना करती हैं। यह उनकी जहालत है। बुध के दिन की तो खास तौर पर हदीस में फजीलत आई है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशाद है :- "जो काम बुध के दिन शुरू किया जाता है, पूरा होता है।" यह हदीस आलाहज़रत इमामे अहले सुन्नत ने फतावा रज़विया जिल्द 12 सफा 160 पर नकल फ़रमाई है।
•••➲ सदरुश्शरी हज़रत मौलाना अमजद अली साहब अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं :- नजूम की इस किस्म की बातें जिनमें सितारों की तासीरात बताई जाती हैं कि फलाँ सितारा तुलू होगा तो फलॉ बात होगी, यह भी बेशरअ है। इसी तरह नक्षत्रों का हिसाब कि फलाँ नक्षत्र से बारिश होगी, यह भी गलत है। हदीस में इस पर सख्ती से इन्कार फरमाया है।
📗 बहारे शरीअत ,हिस्सा 16 सफा 257
•••➲ बहुत से लोग मंगल के दिन कोई नया काम शुरू करने को बुरा जानते हैं और औरतें इस दिन नहाने को बुरा जानती हैं,ये सब भी उनकी गैर इस्लामी और जाहिलाना बातें हैं।
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 170 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 394
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*📝 हाथों के डोरे और कड़े?❓*
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•••➲ बाज़ मजारात के मुजाविर और सज्जादानशीन लोग ज़ाइरीन के हाथों में सुर्ख या पीले रंग के डोरे बाँध देते हैं। ऐसे काम हिन्दुओं के बाबा और साधू लोग करते थे, वह तीरथ यात्रियों के हाथों में लाल पीले डोरे बॉध देते हैं अब मज़ारात के मुजाविर और सज्जादों में भी इसका रिवाज़ हो गया है। यह बात मुनासिब नहीं है और मुसलमानों को गैर मुस्लिमों की नकल और उनकी मुशाबहत से बचना चाहिए और हाथों में डोरे और कड़े न डालना चाहिए और न डलवाना चाहिए।
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 172 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 395
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 मुस्तहब्बत को फर्ज़ व वाजिब समझना और फराइज़ को अहमियत न देना?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ आजकल अवाम अहले सुन्नत में एक बड़ी तादाद उन लोगों की है जिन्होंने नमाज़, रोज़ा, ज़कात वगैरह इस्लाम में ज़रूरी बातों को छोड़ कर नियाज़, नज़्र, फातिहा वगैरह बिदआते हसना को लाज़िम व ज़रूरी समझ लिया है, यह एक गलतफहमी है। इसमें कोई शक नहीं कि नियाज़,फ़ातिहा, मीलाद शरीफ़ मुरव्वजा सलात व सलाम यअनी जैसे आजकल पढ़ा जाता है, बारह रबीउलअव्वल को जुलूस निकालना, ग्यारहवीं शरीफ, 22 रजब और 14 शाबान और 10 मुहर्रम वगैरह को खाने, खिचड़े, पूड़ी, हलवे, पुलाव और मालीदे पर फ़ातिहा दिलाना, उर्स करना, बुज़ुर्गों के मज़ारात पर हाज़िरी देना, कब्र पर अज़ान देना, हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के नाम को सुनकर अँगूठे चूमना, मुर्दो के तीजे, दसवें और चालीसवें करना, ये सब अच्छे काम हैं, इन्हें करने में कोई हर्ज और गुनाह नहीं। जो इन्हें गलत कहते हैं, वो खुद गलत हैं। लेकिन जो इन्हें फर्ज़ और वाजिब (शरअन लाज़िम व ज़रुरी)।ख्याल करते हैं, वो भी भूल में हैं। इस मज़मून से हमारा मकसद सिर्फ उनकी इस्लाह करना है।
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 172 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 396
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 मुस्तहब्बत को फर्ज़ व वाजिब समझना और फराइज़ को अहमियत न देना?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 395 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ सुन्नी भाईयों! नियाज़, फातिहा, उर्स, मीलाद वगैरह ऊपर ज़िक्र की हुई बातों में मुन्किरीन वहाबियों से इख्तिलाफ सिर्फ यह है कि वो इनको बुरा कहते हैं और उलेमाए अहले सुन्नत इन सब कामों को अच्छा काम बताते हैं। लेकिन फर्ज़ व वाजिब (शरअन लाज़िम व ज़रूरी) ये भी नहीं कहते। फर्ज़ और वाजिब तो इस्लाम में ये काम हैं :- पाँचों वक़्त नमाज़ बाजमाअत की सख्ती के साथ पाबन्दी करना। रमज़ान के महीने के रोज़े रखना। साहिबे निसाब को साल में एक बार ज़कात निकालना। जिसके बस की बात हो उसके लिए पूरी ज़िन्दगी में एक बार हज करना। ज़िना, शराब, जुए, सूद, झूट, गीबत, ज़ुल्म, पिक्चर, गाने, तमाशे वगैरह से।बचना। माँ बाप की फरमाबरदारी करना। जिसका आप पर जो हक है उसको अदा करना। कर्ज़ लेकर जल्द से जल्द देने की कोशिश करना। मज़दूर की मज़दूरी देने में देर न करना वगैरह। हक यह है अगरचे हक कड़वा होता है कि नियाज़ व नज़्र ,मीलाद व फातिहा, उर्स व मज़ारात की हाज़िरी का फैज़ और फाइदा सही मअनों में उन्हीं को हासिल होता है जो उन कामों पर अमल करते हैं जिनका हमने अभी ऊपर ज़िक्र किया है। जो लोग नमाज़ रोज़े को छोड़ कर हराम कमाते, हराम खाते, हराम करते और फिर बुज़ुर्गों की नियाज़ दिलाते, उनके नाम पर बड़ी बड़ी देगें पकाते, मज़ारात पर हाज़िरी देते हैं उनकी वजह से मजहब ए अहले सुन्नत बदनाम हो रहा है।
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 मुस्तहब्बत को फर्ज़ व वाजिब समझना और फराइज़ को अहमियत न देना?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 396 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ यह जान लेना भी ज़रूरी है कि दूसरे फिरकों में जिन लोगों को इस्लाम से ख़ारिज और काफ़िर कहा गया है वह नियाज़ व फातिहा न दिलाने की वजह से नहीं बल्कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और दीगर अम्बियाए इज़ाम की शान में गुस्ताखी करने की वजह से उन्हें गुमराह व बदमज़हब या काफिर वगैरहा करार दिया गया है।
•••➲ अलबत्ता इसमें भी कोई शक नहीं कि नियाज़ व फातिहा, उर्स व मीलाद वगैरा आजकल अहले हक की अलामत निशान और पहचान बन गई हैं लिहाज़ा इन कामों को आम तौर से छोड़ा न जाये और फर्ज़ व वाजिब भी न समझा जाये । बस अच्छे काम समझ कर शरीअते इस्लामिया के दाइरे में रह कर करते रहें। और किसी के ईसाले सवाब के लिए उसकी फातिहा को किसी ख़ास दिन के साथ लाज़िम व ज़रूरी समझना भी गलतफहमी है। बल्कि हर एक की फातिहा हर दिन और हर वक़्त हो सकती है। और किसी।निसबत से किसी दिन को खास कर लेने में भी कोई हर्ज नहीं जबकि उसको लाज़िम और ज़रूरी न समझे।
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 398
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❝⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 मुस्तहब्बत को फर्ज़ व वाजिब समझना और फराइज़ को अहमियत न देना?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 397 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *आलाहज़रत फरमाते हैं :-* यह तअय्युनात (दिनों को फ़ातिहा के लिए खास करना) उर्फी है इनमें असलन हर्ज नहीं जबकि इन्हें शरअन लाज़िम न जाने। यह न समझे कि इन्हीं दिनों में सवाब पहुँचेगा,आगे पीछे नहीं।
📔 फतावा रज़विया, जिल्द 4,सफा 219
•••➲ खुलासा यह कि दिनों को तय कर लेना अपनी सुहूलत और रिवाज के तौर पर है और इसमें हर्ज नहीं मगर इसे लाज़िम न जाने कि हम दिन तय कर लेंगे तभी सवाब पहुँचेगा और दिन आगे पीछे हो जाने से सवाब न पहुँचेगा यह गलत है।
*और दूसरी जगह फरमाते हैं :* ईसाले सवाब हर दिन मुमकिन है और खुसूसियत के साथ।किसी एक तारीख का इल्तिज़ाम (पाबन्दी) जबकि उसे शरअन लाज़िम न जाने मुज़ाइका (हरज) नहीं।
📕 फतावा रज़विया, जिल्द 4,सफा 224
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 174 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 399
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❝⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 छींक आ जाये तो बदशगुन मानना ?❓*
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•••➲ कुछ जगहों पर बाज़ हमारे अनपढ़ मुसलमान भाई छींक आने को बुरा जानते हैं और उससे बदशगुनी लेते हैं हालांकि छींक आना इस्लाम में अच्छी बात है और छींक अल्लाह तअाला को पसन्द है। लिहाज़ा जिसको छींक आये, वह अल्लाह तआला का शुक्र करे। हदीस शरीफ में है, *हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं!*
बेशक अल्लाह तआला छींक को पसन्द और जमाही का नापसन्द फ़रमाता है तो जिसको छींक आये वह "अल्हम्दु लिल्लाह" कहे और जो दूसरा शख्स उसको सुने वह जवाब दे (यानी ‘यरहमुकल्लाह' कहे) और जमाही शैतान की तरफ से है इसका जहाँ तक बस चले न आने दे और जमाही में जो मुंह से आवाज़ निकलती है, उसको सुन कर शैतान हँसता है।
📒 बुखारी जिल्द 1, सफा 919
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❝⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 बोहनी के मुतअल्लिक गलत ख्यालात ?❓*
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•••➲ खरीद व फरोख्त के मुआमले में सवेरे को जो सबसे पहली रकम हासिल होती है, उसको ‘बोहनी' कहते हैं। आमतौर से लोग पहली सौदा न पटे और पहला ग्राहक वापस चला जाये तो इस बात को बुरा मानते हैं और कहते हैं कि बोहनी खराब हो गई और इससे सारे दिन की दुकानदारी के लिए बदशगुन लेते हैं। ये सब काफिरों और गैर मुस्लिमों की बातें और वहमपरस्तियाँ हैं, जो मुसलमानों में भी पैदा हो गई हैं। एक मुसलमान के लिए ज़रूरी है कि वह इन ख्यालात को दिल में जगह न दे और यह अकीदा रखे कि नफा नुकसान का मालिक अल्लाह तआला है जब जिसको जो चाहे अता फरमाये और बोहनी खराब होने से कुछ नहीं होता!
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 401
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*📝 बेवुज़ू अजान पढ़ने का मसअला?❓*
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•••➲ बेवुज़ू अज़ान नहीं पढ़ना चाहिए। लेकिन अगर कोई पढ़ दे तो अज़ान दुरूस्त हो जाती है और उस अज़ान के बाद जो नमाज़ पढ़ी जायेगी वह भी दुरूस्त है। लेकिन बेवुज़ू अज़ान पढ़ने की आदत डाल लेना मुनासिब नहीं है।
•••➲ *आला हज़रत फरमाते हैं।*“बेवज़ू अज़ान पढ़ना जाइज़ है,बई माना कि अज़ान हो जायेगी लेकिन चाहिए नहीं।
📗 फतावा रज़विया, ज़िल्द 5, सफ़ह 373
•••➲ खुलासा यह कि कभी बे वुज़ू भी अज़ान पढ़ी जा सकती है। लेकिन बेहतर और अच्छा तरीका यही है कि अज़ान बावुज़ू पढ़ी जाये।
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 179 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 402
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 इस ज़माने की एक बड़ी नेकी?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ अगर आप अपनी,अपने बेटे या भाई की शादी करना हैं। और आप के अजीजों,करीबों,रिशते दारों या अहले ना में कोई गरीब लड़की है। जिस से आपका रिशता शअन दुरूस्त है,तो उस से बगैर खर्चा कराये बगैर बारात वगैरा चढ़ाये हुये और बगैर जहेज लिए हुये और दम सादा निकाह कीजिए जैसे कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने किए थे। और उस को साथ इज़्ज़त के अपने घर में बीवी बना कर रखिये। यह ज़माने की बहुत बड़ी हमदर्दी और नेकी है। और ऐसा करने वालों को जिहाद का सवाब मिलेगा। आज लोग ख्वाम ख्वाह की हमदर्दियाँ तो दिखाते हैं। अज़ीज़ों, रिशते दारों और खान्दान वालों की तरफ से लड़ने मरने को तैयार जाते हैं।
•••➲ लेकिन जवान लड़कियां घरों में पल रही हैं। उनकी वजह से लोग परेशान हैं और यह उनके रिशते मन्ज़ूर नहीं करते। हमदर्दी इस का नाम है कि आप के अज़ीज़ को जो परेशानी हो वह दूर की जाये। जब्कि वह आप के बस की बात है। यह कहाँ की हमदर्दी,रिशतेदारी और कराबत है कि आप दौलत और मालदारी की वजह से इधर उधर रिशते तलाश कर रहे हैं। और आप के अज़ीज़ अपनी लड़की के लिए परेशान और दुखी हैं।
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 180 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 403
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❝⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 सब से बेहतर मुसलमान?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ आजकल कुछ लोग तो वह हैं कि दुनिया के काम धंधों में लग कर दीन को बिलकुल भुला बैठे हैं। जैसे कि उन्हें सब दिन दुनिया में रहना है। और कुछ वह हैं कि दीनदार बने तो काम धंदा छोड़ बैठे काहिल,सुस्त और आराम तल्ब हो गये या इस चक्कर में हैं कि इसी दीनदारी की नाम पर लोग हमें कुछ दे जायें। इन दोनों किस्म के लोग से इस्लाम की सही तरजुमानी नहीं होती। सब से बेहतर मुसलमान वह है जो अपना कुछ काम धंधा करता हो । साथ ही साथ नमाज़ रोज़े का पाबन्द, दीनदार मुसलमान हो,हलाल व हराम में फ़र्क रखता हो।
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 180 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 404
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 सब से बेहतर मुसलमान?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ इस्लाम में सब से अच्छा काम पाँचों वक़्त की नमाज़ की पाबन्दी है और मस्जिदों को बनाना और उन्हें नमाज़ व अज़ान से आबाद करना और आबाद रखने के लिए कोशिश करना है मस्जिद के साज व सामान लौटे चटाई वज़ू का इन्तिज़ाम इस की देख भाल सफाई करने वाले अज़ान देने वाले मुअज़्ज़िनों और नमाज़ पढ़ाने वाले इमामों का ख्याल करना और उन्हें हर तरह खुश रखना,बेहतरीन काम है और इस सिलसिले में जो खर्चा हो वह बेहतरीन खर्चा है।
•••➲ आला हज़रत मौलाना अहमद रज़ा खाँ बरेलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि फ़रमाते हैं "ईमान के बाद पहली शरीअत नमाज़ है।"
📗 फतावा रज़विया जदीद ज़िल्द 5 सफ़ह 83
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 180 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 405
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 गमी का चाँद गमी की ईद?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ इस्लाम में तीन(3) दिन से ज़्यादा किसी मैयत का गम मनाना यानी जान बूझ कर ऐसे काम करना जिस से गम ज़ाहिर हो नाजाइज़ है ऐसे ही किसी के गम में चाँद को गम का चाँद या किसी महीने का गम को महीना कहना मना है।
•••➲ जिस घर में किसी का इन्तिकाल हो गया हो उस के बाद जब पहली ईद आती है तो इस ईद को इस घर वालों के लिए कुछ औरतें गमी की ईद कहती हैं ईद के दिन मैयत के घर की औरतों से मिल जुल कर खूब रोती हैं यह सब गैर इस्लामी बातें हैं।
•••➲ ईद का दिन इस्लामी त्यौहार और खशी का दिन है। न कि रोने और पीटने का दिन। उस दिन कोई गम हो भी तो इस को ज़ाहिर न करे दिल में रहने दे चेहरे पर गम व रंज के आसार ज़ाहिर न होने दे चेहरे से खुशी और हंस मुख रहे।
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 180 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 406
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 गमी का चाँद गमी की ईद?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 405 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ हदीस पाक में है! हुज़ूर पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब मदीने तशरीफ लाये तो मदीने के लोग साल में दो मर्तबा खुशी मनाते थे। (महरगान और नीरोज़) हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने पूछा यह कौन से दिन हैं? लोगों ने कहाःज़माना-ए-जाहिलियत में हम इन दिनों में खुशी मनाते थे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया अल्लाह तआला ने उनसे बेहतर दो (2) दिन अता फरमाये है ईदुल फित्र और ईदुज़्ज़हा।
📗 अबूदाऊद बाब सलातुल ईदैन हदीस 1134 स,161
•••➲ इस हदीस से खूब ज़ाहिर हो गया कि ईद का दिन खुशी मनाने का दिन है गम मनाने रोने पीटने का दिन नहीं।
•••➲ सदरुश्शरीआ मौलाना अमजद अली साहब आज़मी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि फ़रमाते हैं : ईद के दिन खुशी जाहिर करना मुस्तहब है।
📗 बहारे शरीअत,4/781 मतबूआ मकतबतुलमदीना देहली)l
•••➲ कुछ जगहों पर शबे बरात और मुहर्रम के चाँद को औरतें गमी का चाँद कहती हैं और नई दुल्हन के लिए ज़रूरी ख्याल किया जाता है कि वह यह चाँद सुसराल में न देखे बल्कि मैके में आकर देखे तो यह सब जाहिल औरतों की मन गढंत वहम परस्ती की बातें हैं उन से बचना ज़रूरी है।कोई भी औरत कोई सा चाँद कही भी देख सकती है हाँ जवान लड़कियों और औरतों को खुली छतों पर चाँद देखने के लिए चढना मना है ताकि बे पर्दा न हो।
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 182 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 407
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❝⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 जूते चप्पल पर खड़े हो कर जनाज़े की नमाज़ पढ़ने का मअसला?❓*
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•••➲ जनाज़े की नमाज़ आम तौर पर खाली पडे रास्तों और खेतों मैदानों वगैरा में पढ़ी जातीहै। कुछ लोग इन ज़मीनों को नापाक ख्याल करते हुये जूते चप्पल उतार उन पर खड़े हो कर नमाज़ अदा कर लेते हैं तो ऐसा करना जाइज़ बल्कि बेहतर है और नमाज़ दुरूस्त हो जायेगी किसी चीज़ मिटटी,कपड़े,बदन ज़मीन वगैरा के पाक और नापाक होने की तीन सूरतें हैं।
•••➲ 1 - यकीन से पता है कि वह पाक है।
•••➲ 2 - यकीन से पता है कि वह नापाक है।
•••➲ 3 - इस के पाक और नापाक होने में शक है। पता नहीं कि पाक है या नापाक है।
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 182 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 408
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❝⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 जूते चप्पल पर खड़े हो कर जनाज़े की नमाज़ पढ़ने का मअसला?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 407 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ पहली सूरत में तो वह पाक है ही लेकिन तीसरी सूरत में भी जब कि उसके पाक और नापाक होने में शक हो तब भी इस को पाक माना जायेगा नापाक नहीं,नापाक तभी कहेंगे जब नापाकी का यकीन हो या गालिबे गुमान।
•••➲ कोई भी ज़मीन जब तक इस के नापाक होने का पता न हो वह पाक कहलायेगी आप इस पर खड़े हो कर बगैर कुछ बिछाये भी नमाज़ पढ़ सकते हैं।
•••➲ जूते का तला भी जब खूब पता हो कि इस पर कोई नापाक चीज़ लगी है तभी उस को नापाक कहा जायेगा। सिर्फ शक व शुब्ह की बिना पर नापाक नहीं कहा जा।सकता जूते के तला पाक हो सकता है!
•••➲ उलमा-ए-किराम ने फरमाया कि जूते की तले पर अगर कोई नापाक चीज़ लगी भी हो, उस को पहन कर चला। घास या मिटटी पर कुछ देर चलने से जो रगढ़ पैदा हुई उस से भी जूते का तला पाक हो सकता है। अब इस सिलसिले में मसाइल की तफ़सील हस्बे ज़ैल है।
•••➲ ज़मीन अगर नापाक है यानी उस के नापाक होने का यकीन है उस केऊपर नंगे पैर खड़े हो कर बगैर कुछ बिछाये नमाज़ पढ़ी नमाज़ नहीं होगी। ज़मीन अगर पाक है या उसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता कि पाक है या नापाक तो उस पर बगैर कुछ बिछाये नंगे पैर खड़े हो कर नमाज़ पढ़ी जा सकती है।
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 182 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 409
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 जूते चप्पल पर खड़े हो कर जनाज़े की नमाज़ पढ़ने का मअसला?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 408 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ ज़मीन नापाक है लेकिन जूते पहन कर नमाज़ पढी और जूते का तला पाक है नमाज़ सही हो जायेगी। ज़मीन भी नापाक है जूते का तला भी नापाक है। लेकिन जूते उतार कर उन पर खड़े हो कर नमाज़ पढ़ी नमाज़ हो जायेगी क्योंकि अब उस नापाकी का बदन जिस्म से कोई तअल्लुक नहीं और अगर पहने हो तो वह नापाकी जिस्म का हिस्सा मानी जायेगी।
•••➲ खुलासा यह है कि ज्यादा एहतियात उसी में है कि जूते उतार कर उन पर खड़े हो कर नमाज अदा करे यह सब से बेहतर और मुहतात तरीका है। आला हज़रत फरमाते हैं : अगर वह जगह पेशाब वगैरा से नापाक थी या जिस के जूतों के तले नापाक थे और उस हालत में जूता पहने हुये नमाज़ पढ़ी उन की नमाज़ न हई। एहतियात यही है।
•••➲ कि जूता उतार कर उस पर पाव रख कर नमाज़ पढ़ी जाये। कि ज़मीन या तला अगर नापाक हो तो नमाज़ में खलल न आये।
📗 फतावा रज़विया जदीद 9/188
•••➲ और एक मकाम पर लिखते हैं : अगर कोई शख्स बहालते नमाज निजासत पर खड़ा हुआ और उसके दोनों पैरों में जूते या जुराबे हैं तो उसकी नमाज़ सही न होगी और अगर यह चीज़ें जुदा है तो हो जाएगी।
📕 फ़तावा रज़विया जदीद 962
•••➲ एक जगह लिखते हैं :- शुबह से कोई चीज़ नापाक नहीं होती कि असल तहारत है।
📙 फतावा रज़विया जदीद ज़िल्द 4, सफ़ह 394
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 184 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 410
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 हिजड़े की नमाज़े जनाज़ा?❓*
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•••➲ कुछ लोग हिजड़े की नमाज़े जनाज़ा पढ़ने न पढ़ने के बारे शक करते हैं कि पढ़ना जाइज़ है या नहीं तो मसअला यह है कि हिजड़ा अगर मुसलमान है तो उस की नमाज़े जनाज़ा पढी जायेगी और उस को मुसलमानों के कब्ररिस्तान में दफ़न किया जायेगा। कुछ लोग पूछते हैं।
•••➲ कि हिजड़े की नमाज़ की नियत और उस में जो दुआ पढ़ी जायेगी वह मरदों वाली हो या औरतों वाली शायद उन लोगों को यह मालूम नहीं कि मरदों और औरतों की नमाज़े जनाज़ा और उस की नियत में कोई फर्क नहीं दोनों का तरीका एक ही है और वहीं तरीका हिजड़े के लिए भी रहेगा। हाँ नाबालिग बच्चे और बच्ची की दुआ में फर्क है और वह बहुत मामूली ज़मीरों का फर्क है तो अगर हिजड़ा नाबालिग बच्चा हो तो उस के लिए लड़के वाली दुआ पढ़ दें या लड़की वाली हर तरह नमाज दुरूस्त हो जायेगी।
📘 फतावा रज़विया जदीद ज़िल्द 9 ,सफ़ह 74*
📔 फतावा बहरुल उलूम ज़िल्द 5 ,सफ़ह 174
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 184 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 411
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❝⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 हज़रत बिलाल के अज़ान न देने का वाकिआ?❓*
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•••➲ हजरत बिलाल रदियल्लाहु तआला अन्हु के मुतअल्लिक एक वाकिआ बयान किया जाता है कि एक मर्तबा कुछ हज़रात ने उन की अज़ान पर एतराज़ किया वह शीन को सीन कहते हैं हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उन को माजूल कर दिया और किसी दूसरे साहब ने अज़ान दी तो सुबह न हुई जब अज़ान हज़रत बिलाल ने दी तब सुबह हुई।
•••➲ यह वाकिआ बे असल है मुस्तनद व मोअतबर हदीस व तारीख की किताबों में कही नहीं जो साहब बयान करें। उन से मालूम करना चाहिए कि उन्होंने यह वाकिआ कहाँ देखा। और यह हदीस कि हज़रत रसूल पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
*سين بلال عند الله شين*
•••➲ बिलाल की सीन भी अल्लाह के नज़दीक शीन है। इस हदीस को हज़रत मौलाना अली कारी मक़्क़ी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने गढ़ी हुई फ़रमाया है।
📓 मौज़ूआत कबीर सफ़ह 43,फतावा बहरूल उलूम ज़िल्द 5, सफ़ह 380
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 184 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 412
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 क्या औरत पीर हो सकती है?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ औरत का पीर बनना मुरीद करना जाइज़ नहीं न मर्दों को न औरतों को। आज कल तो यह तक सुनने में आया है कि औरतें पीर बन कर मुरीदों में दौरे तक करने लगी हैं।
•••➲ यह सब गलत बातें और औरतों का पीरी मुरीदी करना सही नहीं।
•••➲ इमाम अब्दुलवहाब शोअरानी अपनी मशहूर किताब मीज़ानुश्शरीअतुल कुबरा में तहरीर फरमाते हैं :
*قد اجمع اهل الكشف على اشتراط الذكورة فى كل داع الى الله*
•••➲ बुज़ुर्गों का इस बाबत पर इत्तिफ़ाक है कि दाई इलल्लाह होने के लिए मर्द होना शर्त है।
📙 मीज़ानुश्शरीअतुल कुबरा बाबुल अक़्ज़िया ज़िल्द 2,सफ़ह 189
•••➲ आज कल औरतों के जलसे हो रहे हैं और औरतों को मुबल्लेगा और मुकर्रिरा बना कर जगह जगह घुमाया जा रहा है यह भी सब मेरी समझ में नहीं आता और इमाम अब्दुलवहाब शोअरानी का जो कौल हमने नकल किया उससे भी हमारे ख्याल की ताईद होती है।
*वल्लाहु तआला अअलमु*
•••➲ आला हज़रत फरमाते हैं : सलफ़ सालेहीन से ले कर आज तक कोई औरत न पीर बनी न बैअत किया!
📗 फतावा रज़विया जदीद,ज़िल्द 21,सफ़ह 494
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 184 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 413
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 क्या कब्र पर तख्ते रखने में मर्द व औरत में फर्क है?❓*
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•••➲ कुछ लोग पूछते हैं कि मय्यत को कब्र में रखने के बाद अगर मर्द हो तो तख़्ते लगाना किधर से शुरू करना चाहिए सिरहाने या पाइंती से और औरत के लिए किधर से मसअला यह है कि मर्द हो या औरत तख़्ते सिरहाने से लगाना शुरू करें और दोनों में फर्क समझना गलती है।
•••➲ (फतावा मुस्तफविया सफ़ह 271 मतबूआ रज़ा एकेडमी मम्बई) यानी दोनों के तख्ते सिरहाने से शुरू किये जायें।
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 187 📚*••──────────────────────••►
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 414
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❝⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 नूर नामा और शहादत नामे?❓*
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•••➲ "नूर नामा'नाम से एक किताब उर्दू नज़्म में खूब पढ़ी जाती है उस में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की पैदाइश का वाकिआ और आप के नूर का किस्सा जिस तरह बयान किया गया है वह बे असल और गलत है किसी मुस्तनद व मोअतबर हदीस व तारीख की किताब में उस का ज़िक्र नहीं।
•••➲ ऐसे ही शहादत नामा नाम से जो किताबें हज़रत सय्यदिना इमाम हसन और सय्यदिना इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हुमा के वाकिआत व हालात से मुतअल्लिक राइज हैं वह भी अकसर गलत बे सरोपा वाकिआत व हिकायत पर मुश्तमिल हैं।
•••➲ आला हज़रत फरमाते हैं : नूर नामे के नाम से जो रिसाला मशहूर है उस की रिवायत बे असल है उसको पढ़ना जाइज़ नहीं।
📒 फतावा रज़विया जदीद, जि.26,स.610
•••➲ *और फ़रमाते हैं :* शहादत नामे नज़्म या नसर जो आजकल अवाम में राइज हैं अकसर रिवायते बातिला व बे सरोपा से ममल और अकाज़ीब मोज़ूआ (गढ़ी हुई झूटी हिकायतें) पर मुश्तमिल हैं ऐसे बयान का पढ़ना सुनना मुतलकन हराम व नाजाइज़ है।
📕 फतावा रज़विया, जदीद ज़िल्द 24 ,सफह 513
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 188 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 415
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 तीजे के चनों का मसअला?❓*
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•••➲ न्याज व फातिहा तीजे दसवीं,चालीसवीं,और तबारक वगैरा यह सब सिर्फ जाइज़ अच्छे और मुस्तहब काम हैं न शरअन फ़र्ज़ हैं न वाजिब न सुन्नत कोई न करे तब भी कोई हर्ज व गुनाह नहीं लेकिन आज कल उन कामों को इतना ज़रूरी समझ लिया गया है कि गरीब से गरीब आदमी के लिए भी उन का करना इतना ज़रूरी हो गया है कि ख्वाह कही से करे कैसे ही करे उधार कर्ज़ लेकर मगर करे ज़रूर यह सुन्नियत के नाम पर ज़्यादती हो रही है।
•••➲ हक यह है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और आप के सहाबा व ताबेईन के ज़माने में मय्यत को सवाब पहुँचाते और उसकी मगफिरत की दुआ के लिए सिर्फ जनाज़े की नमाज़ होती थी और किसी चीज़ का रिवाज़ न था यह सब काम बहुत बाद में राइज हुये कुछ मौलवियों ने उन्हें एक दम नाजाइज़ व हराम कह दिया सिर्फ इसलिए कि यह सब नये काम है। लेकिन उलमा-ए-अहले हक अहले सुन्नत वलजमाअत ने फरमाया कि यह सब काम अगचें नये हैं मगर अच्छे हैं बुरे नहीं लिहाज़ा जाइज़ हैं मुस्तहब हैं लेकिन उन्होने भी फर्ज़ या वाजिब या शरअन लाज़िम व ज़रूरी नहीं कहा मैंने इस बयान को तफ़सील व तहकीक के साथ अपनी किताब “बारहवीं शरीफ़ जलसे जुलूस"और दरमियान उम्मत में भी लिख दिया है।
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 188 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 416
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 तीजे के चनों का मसअला?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 415 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ आज कल बाज़ जगह तो गरीब से गरीब आदमी के लिए भी इस न्याज़ व फातिहा के रिवाज़ो को जो ज़रूरी खियाल किया जा रहा है यह बड़ी ज़्यादती है।
•••➲ तीजे के मौके पर जो चनों पर कलमा पढने का मुआमला है इसकी हकीकत सिर्फ इतनी है कि एक हदीस में यह आया है कि जो सत्तर हजार 70000/मर्तबा कलमा पढ़े या किसी दूसरे को पढ़ कर बख्शे तो इस की मगफिरत हो जाती है।
•••➲ *आला हज़रत फरमाते हैं :* कलमा तय्यबा सत्तर हज़ार(70000) मर्तबा मअ दुरूद शरीफ पढ़ कर बख्श दिया जाये इन्शाअल्लाह पढ़ने वाले और जिस को बख्शा है दोनों के लिए ज़रीआ निजात होगा।
📙 अलमलफूज, ज़िल्द 1 ,सफ़ह 103/मतबूआ रज़वी किताब घर देहली
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*📝 तीजे के चनों का मसअला?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 416 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ हजरत मौलाना अली कारी मक्की रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने भी *मिरकात शरह मिश्कात किताबुस्सलात बाब मा अललमामूमे मिनलमुताबअत फस्ले सानी, स.102 में इस हदीस को नकल किया है अन्वारे सातिआ स.232/पर भी मिरकात शरह मिश्कात के हवाले से यह सत्तर हजार की हदीस मन्कूल है।* बुज़ुर्गों ने इस गिन्ती को पूरा करने के लिए साढ़े बारा सेर दरमियानी किस्म के चनों का अन्दाजा लगाया था।
•••➲ आज कल की नई तोल के मुताबिक चुंकि “किलो इस सेर से कुछ छोटा होता है लिहाजा साढ़े चौदह किलो या फिर ज्यादा से ज्यादा पन्द्रह किलो चनों में पूरा सोयम् यानी सत्तर हजार बार कलमा मुकम्मल हो जायेगा।
•••➲ बरेली शरीफ से शाइअ फतावा मरकज़ी दारूलइफता में है। चने की मिक़दार शरअन मुतअय्यन नहीं हाँ हदीस पाक में यह आया है कि "जिस ने या जिस के लिए सत्तर हज़ार कलमा शरीफ पढ़ा गया अल्लाह तआला अपने फज़ल व करम से उसे बख्श देता है। लोगों ने अपनी आसानी के लिए चने इख्तियार कर लिए कि उस में शुमारे कलमा है और बाद में सदका भी और मशहूर है कि साढ़े बारह सेर चने में यह तादाद पूरी हो जाती है।
📒 फ़तावा मरकज़ी, दारूलइफता सफ़ह 302
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*📝 तीजे के चनों का मसअला?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 417 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ कुछ मुल्लाजी लोग 32 बत्तीस किलो चने ख़रीदवाते है यह उन की ज़्यादती है खास कर गरीबों मजदूरों पर तो एक तरह का ज़ुल्म है और वह सोयम के चने पढ़ने की मज्लिस हो या कोई और आम लोगों को जमा कर के बहुत देर तक बैठाना भी इस्लामी मिजाज़ के खिलाफ है।
•••➲ आला हज़रत फरमाते हैं : शरीअत मुत्तहरा रिफक व तन्सीर (नर्मी और आसानी)को पसन्द फ़रमाती है न कि मआज़ल्लाह तदीक व तशदीद (तंगी और सख्ती)
📒 फतावा रजविया जदीद11/151
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*📝 गुर्दे खाने का मसअला?❓*
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•••➲ गुर्दे खाना जाइज़ है लेकिन हुज़ूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने पसन्द न फरमाया इस वजह से कि पेशाब इसमें हो कर मसाने में जाता है।
📗 अलमलफूज़ सफ़ह 341 रज़वी किताब घर देहली
•••➲ इस का खुलासा यह है कि हलाल जानवर के गुर्दे खाये जा सकते हैं उन्हें खाना हराम नहीं लेकिन हजुर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को ना पसन्द थे इसलिए न खाना बेहतर है।
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*📝 छोटी तकतीअ में कुरआन?❓*
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•••➲ कुछ लोग बहुत ज़्यादा बारीक ख़त में लिखे हुये और बहुत छोटे साइज़ में कुरआन छापते हैं जिन्हें हमाइल शरीफ कहा जाता है बच्चों के गले में डालने के लिए तावीज़ की तरह पूरे कुरआन को बहुत बारीक और छोटा कर देते हैं यह नाजाइज़ है। दुर्रे मुख्तार में है :
*يكره تصغير مصحف*
•••➲ यानी कुरआने करीम को छोटा बनाना मकरूह है।
📗 दुर्रे मुख्तार ,किताब हजर वल इबाहत फस्ल फिलबैअ,ज़िल्द 2 ,सफ़ह 245
•••➲ आला हज़रत फरमाते हैं : हजरत उमर फारूके आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु ने एक शख्स के पास कुरआन मजीद लिखा हुआ देखा है। इसको मकरूह रखा और उस शख्स को मारा।
📕 फतावा रज़विया,ज़िल्द 4, सफ़ह 610
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*📝 नमाज़ में अत्तहियात वगैरा से पहले बिस्मिल्लाह पढ़ना?❓*
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•••➲ नमाज में अलहम्दु शरीफ से पहले बिस्मिल्लाह पढना सुन्नत है और उस के बाद जब कोई सूरत शुरू करे तब भी बिस्मिल्लाह पढ़ना मुस्तहब है। उस के अलावा रुक सजदे,कादा वगैरा में बिस्मिल्लाह पढ़ने की इजाजत नहीं।
•••➲ अत्तहियात से पहले या दुआये कुनूत या दुरूद शरीफ और उस के बाद की दुआ से पहले बिस्मिल्लाह पढ़ना मना है।
•••➲ क्योंकि बिस्मिल्लाह कुरआन की आयत है और नमाज में कियाम की हालत में अलहम्दु शरीफ और उसके बाद किरअत कुरआन मशरुअ है उसके अलावा किरअत मम्नूअ है।
📒 फतावा रजविया जदीद ज़िल्द 6,सफ़ह 350
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*📝 होली,दीवाली की फातिहा?❓*
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•••➲ होली,दीवाली यह खालिस गैर मुस्लिमों के त्यौहार है। इस्लाम और मुसलमानों का उन से कोई तअल्लुक नहीं। मुसलमानों को उन दिनों में ऐसे रहना चाहिए जैसे आज कुछ है ही नहीं और इन दिनों को किसी किस्म की कोई खुसूसियत नहीं देना चाहिए।
•••➲ कही कही कुछ लोग होली के मौका पर होलिका नाम की औरत की फातिहा दिलाते हैं कुछ लोगों ने होलीका का नाम मुराद बीवी रख लिया है और उस नाम से फ़ातिहा दिलाते हैं और कहते हैं कि होलीका हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर आशिक हो गई थी और उन पर ईमान लाई थी तो यह सब गढ़ी हुई हिकायते और झूटी कहानियाँ हैं जिनका हकीकत से किसी किस्म को कोई तअल्लुक नहीं और हरगिज़ होली को कोई हैसियत देते हुये इससे मुतअल्लिक किसी किस्म की कोई फातिहा नहीं करना चाहिए।
📒 फतावा बहरुलउलूम ज़िल्द 1,सफह 162
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*📝 होली,दीवाली की फातिहा?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 422 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ दीवाली के मौके पर कुछ लोग मछली पका कर फातिहा पढ़वाते हैं यह भी गलत हैं कहते हैं कि दीवाली के मौके पर करने धरने और टूटके बहुत होते हैं और मछली पर फातिहा पढ़ने से वह बे असर हो जाते हैं तो यह सब जाहिलाना ख्यालात और वहम परस्ती की बातें और एक मुसलमान को उन सब से बचना ज़रूरी है।
•••➲ अगर दीवाली के मौका पर मछली पर फातिहा का रिवाज़ पड़ गया तो कभी यह भी हो सकता है कि घरों को सजाना और रोशनिया करना हिन्दूओं की दीवाली होगी और मछली पर फातिहा मुसलमानों की दीवाली लिहाज़ा इन दिनों में किसी किस्म का कोई नया काम नहीं करना चाहिए और आम हालात में जैसे रहते हैं वैसे ही रहना चाहिए।
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*📝 खाने के शुरू में नमक या नमकीन?❓*
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•••➲ बाज़ रिवायात में है कि जब खाना खाओ तो नमक से शुरू करो और नमक पर ख़त्म करो यह सत्तर बीमारियों का एलाज है। कुछ हज़रात इस सुन्न्त की अदायेगी के लिए खाने से पहले और बाद में नमक चाटना ज़रूरी ख्याल करते हैं। हांलाकि इस सुन्नत की अदायेगी के लिए नमक चाटना जरूरी नहीं बल्कि नमकीन खाना पहले और बाद में खाया।
•••➲ जाये तब भी यह सुन्नत अदा हो जायेगी क्योंकि खाने में भी नमक ज़रूर होता है और नमक जिसे अरबी में (मिल्ह) ملح कहते हैं इसके मअना नमकीन और खारी चीज़ के भी आते हैं कुरआन करीम में समन्दर के पानी के लिए फ़रमाया गया।
*{هذا ملح اجاج} [ الفرقان 53]*
•••➲ यह खारी है निहायत तल्ख
📕 कन्ज़ूल ईमान,सूरह फुरकान,आयत 53
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*📝 खाने के शुरू में नमक या नमकीन?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 424 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ मौलवी मुहम्मद हुसैन साहब मेरेठी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि फ़रमाते हैं कि आला हज़रत के लिए सेहरी में फिरीनी और चटनी लाई गई, मैंने पूछा हुज़ूर चटनी फिरीनी का किया जोड़ | फरमाया नमक से खाना शुरू करना और नमक पर ही ख़त्म करना सुन्नत है इसलिए यह चटनी आई है।
📕 हयाते आला हज़रत, ज़िल्द 1, सफ़ह 151 ,मतबूआ बरकात रज़ा पूरबन्दर
•••➲ तो आला हज़रत के नज़दीक भी इस सुन्नत की अदायेगी के लिए नमकीन खाना पहले और बाद में खाना काफी है नमक चाटना ज़रूरी नहीं वरना वह चटनी के बजाये नमक मंगवाते अल्लामा आलम फकरी लिखते हैं,हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि तीन लुकमे नमकीन खाने से पहले और तीन लुक्मे खाने के बाद बनी आदम को बहत्तर बलाओ से महफूज रखते हैं।
📗 आदाब सुन्नत 94
•••➲ खुलासा यह कि जब दसतर ख्वान पर नमकीन मीठा सब तरह का खाना मौजूद हो तो सुन्नत है नम्कीन खाये फिर मीठा और बाद में फिर नम्कीन और इस सुन्नत की अदायेगी के लिए यही काफी है दसतर ख्वान पर नमक रखने या उसको मंगा कर चाटने की ज़रूरत नही।
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 193 📚*
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❝⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 क्या हज़रत फातमा रदियल्लाहु तआला अन्हा की रूह मलकुलमौत ने नहीं क़ब्ज़ की?❓*
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•••➲ कुछ लोग कहते हैं कि ख़ातूने जन्नत हज़रत सय्यदा फ़ातमा ज़हरा रदियल्लाहु तआला अन्हुमा की रूहे मुबारक अल्लाह तआला ने बज़ाते खुद कब्ज़ फ़रमाई मलकुलमौत ने आप की रूह कब्ज़ नहीं की यह बात शायद इसलिए कही जाती है कि हज़रत सय्यदा फातमा रदियल्लाहु तआला अन्हा बहुत बा हया और पर्दे वाली थीं तो मालूम होना चाहिए कि फिरिशते बे नफ्स बे गुनाह और मासूम हैं उन से पर्दा नहीं फिरिश्ते तो उनके घर में उनकी खिदमत के लिए आते रहते थे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के काशाना-ए-नबूवत में बे शुमार फिरिश्ते ख़ास कर हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम अकसर आते जाते रहते थे।
•••➲ कभी हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने किसी अपनी ज़ोजए मोहतरमा से नहीं फरमाया कि यह फलाँ फिरिश्ता इस वक़्त मेरे पास है तुम उस से पर्दा करो एक मर्तबा हुज़ूर पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की पहली रफ़ीकाए मोहतरमा सय्यदा ख़दीजातुल कुबरा रदियल्लाहु तआला अन्हा सय्यदा फातमा की वालिदा मोहतरमा भी हैं।
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 194 📚*••──────────────────────••►
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 427
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 क्या हज़रत फातमा रदियल्लाहु तआला अन्हा की रूह मलकुलमौत ने नहीं क़ब्ज़ की?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 426 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ वह हाज़िरे ख़िदमत थीं हजरत जिब्राईल अमीन हाज़िर हुये तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने सय्यदा ख़दीजातुल कुबरा से यह तो फ़रमाया यह जिब्राईल (अलैहिस्सलाम) मेरे पास हैं यह तुम्हें अल्लाह तआला का सलाम पहुँचाने आये हैं, लेकिन यह न फ़रमाया कि तुम उन से पर्दा करो। यह सब बातें अहादीस की किताबों में आसानी से देखी जा सकती हैं और इल्म वालों से छुपी हुई नहीं हैं।
•••➲ खुलासा यह है कि यह बात बे सनद और रिवयतन सही नहीं कि हज़रत फातमा रदियल्लाहु तआला अन्हा की रूह अल्लाह तबारक व तआला ने बगैर मलकुल मौत खुद कब्ज़ फ़रमाई।
•••➲ *मलकुलमौत फिरिश्ते के ज़रीये नहीं* हज़रत बहरुल उलूम से एक मर्तबा यह सवाल किया गया तो उन्होंने जवाब में फ़रमाया तमाम इंसानों की रुह कब्ज़ करने वाले मलकुलमौत हैं कुरआन शरीफ में है।
*قل يتوفاكم مالك الموت الذى و كل بكم ثم إلى ربكم ترجعون (السجده-١١)*
•••➲ *तर्जमा :-* तुम सब लोगों की रूह कब्ज करने के लिए मलकुलमौत मुकर्रर हैं।
📕 फतावा बहरुल उलूम 2/76
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 195 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 428
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*📝 माथे या मांग में सिन्दूर?❓*
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•••➲ मुसलमान औरतों को माथे पर सिन्दूर लगाना और सर की मांग में सिन्दूर भरना जाइज़ नहीं क्योंकि यह गैर मुस्लिमों की औरतों में राइज है लिहाज़ा ऐसा करने में उनकी मुशाबहत है और हदीस पाक में है जो जिस कौम की मुशाबहत करे वह उन्हीं में है।
📕 फतावा अजमलिया,ज़िल्द 4 सफ़ह 101
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 429
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*📝 बुज़ुर्गों के नाम के चिराग जलाना?❓*
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•••➲ आज कल इस का काफी रिवाज़ हो गया,किसी बुज़ुर्ग के नाम का चिराग जला कर उस के सामने बैठते हैं। यह गलत है हाँ अगर इस चिराग जलाने का कोई मकसद हो इस से किसी राह गीर वगैरा को फाइदा पहुँचे या दीनी तालीम हासिल करने पढ़ने पढ़ाने वालो को राहत मिले या किसी जगह ज़िक्र व शुक्र इबादत व तिलावत करने वालों को इस से नफ़अ पहुँचे तो ऐसी रोशनियाँ करना बिलाशुबह जाइज़ बल्कि कारे सवाब है और जब इस में सवाब है तो उस से किसी बुज़ुर्ग की रूहे पाक को सवाब पहुँचाने की नियत भी की जा सकती है आमाल और वजाइफ की किताबों में जो आसेब वगैरा के इलाज़ के लिए छोटा चिराग और बड़ा चिराग रोशन करने के लिए लिखा है वह अलग चीज़ है वह किसी बुज़ुर्ग के नाम से नहीं रोशन किया जाता।
•••➲ खुलासा यह है कि यह जो हुज़ूर गौसे पाक रदियल्लाहु तआला अन्हु वगैरा किसी बुज़ुर्ग के नाम के चिराग जला कर उस के सामने बैठने का मामूल है यह बे सनद बे सुबूत बे मकसद है और बे असल है।
•••➲ हदीस पाक में है हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया : जो हमारे दीन में कोई ऐसी बात निकाले जिस की उस में असल न हो तो वह कबूल नहीं है।
📕 इब्ने माजा 3 हदीस 171
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 430
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❝ ⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩❞
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*📝 दलाली का पेशा?❓*
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•••➲ बेचने और खरीदने वाले के दरमियान सौदा कराने वाले को दलाल कहते हैं इस मुआमले में उस को कुछ मेहनत और दौड़ धूप भी करना पड़ती है वक़्त भी खर्च होता है लिहाज़ा वह उसकी उजरत ले सकता है बेचने वाले से या खरीद ने वाले से या दोनों से जैसा भी वहाँ रिवाज़ हो हर तरह जाइज़ है लेकिन यह पेशा कोई अच्छा काम नहीं अगचे हराम व नाजाइज़ भी नहीं।
📕 शामी ज़िल्द 7 सफ़ह 93 बहारे शरीअत ,ज़िल्द 11 सफ़ह 639 मकतबतुल मदीना
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 197 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 431
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*📝 रिशवत लेने और देने का मसअला ?❓*
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•••➲ *हदीस पाक में है :-* रसलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने रिशवत देने और लेने वाले पर लअनत फ़रमाई।
📗 मिश्कात,बाब रिज़्क़ुलवला,सफहा 326
•••➲ लेकिन यह रिशवत लेने देने की चार सूरतें हैं।
•••➲ (1) कोई मनसब या ओहदा कबूल करने के लिए रिशवत देना और लेना दोनों हराम हैं।
•••➲ (2) अपने हक में फैसला कराने के लिए हाकिम को रिशवत दे यह भी दोनों के लिए हराम है ख्याह वह फैसला हक़ पर हो या न हो क्योंकि फैसला करना हाकिम की ज़िम्मेदारी है इसके लिए इसको कुछ लेना या किसी का उस को कुछ देना हराम है। अफसरों को कोई काम करने के लिए कुछ माल देना और उनका लेना दोनों हराम हैं।
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 432
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❝⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 रिशवत लेने और देने का मसअला ?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 431 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ (3) अपने जान व माल इज़्ज़त व आबरू की हिफाज़त के लिए किसी ज़ालिम को कुछ देना पड़ जाये तो यह देना जाइज़ है लेकिन लेने वाले के लिए यह भी हराम है। मैं समझता हूँ कि इस का मतलब यह है कि अगर कोई शख्स आप को गाली गलोज करता हो,लूटने मारने की धम्की देता हो,उस वक़्त उसको कुछ देकर आप अपने जान व माल की हिफाज़त कर लें तो यह जाइज़ है हाकिमों अफसरों को जो कुछ दिया जाता है यह तो बहरहाल सब रिशवत है और हराम है ख्वाह अपना हक़ हासिल करने या अपने हक़ में सही फैसला कराने के लिए दे क्योकि हक़ फैसला करना इस की डियूटी है।
•••➲ (4) किसी शख्स को इसलिए रिशयत दी कि वह उसको बादशाह या हाकिम तक पहुँचा दे तो यह देना जाइज़ है लेकिन लेने वाले के लिए हराम है।
📕 फतावा रज़विया जदीद ज़िल्द 18 सफ़ह 496
📒 शरह सही मुस्लिम मौलाना गुलाम रसूल सईदी ज़िल्द 5 सफ़ह 70
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 198 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 433
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❝⇩ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ⇩ ❞
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*📝 दो बे सनद हदीसे ?❓*
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•••➲ वतन की मोहब्बत ईमान से है।जाबेह बकर और कातेअ शजर वाली हदीस यानी जिस हदीस में गायेज़िबह करने वाले या पेड़ काटने वाले की बख्शिश नहीं बयान किया जाता है।
•••➲ *आला हजरत फरमाते है :* वतन की मोहब्बत ईमान का हिस्सा है न हदीस से साबित है न हर गिज़ उस के यह मअना
📒 फतावा रज़विया जदीद ज़िल्द 15 सफ़ह 292
•••➲ *और फरमाते हैं :* जिबह का पेशा शरअन मम्नूअ नहीं न उस पर कुछ मुवाखिज़ा है वह जो हदीस लोगों ने दरबार-ए-जाबेह बकर व कातिअए शजर बना रखी है महज़ बातिल व मोज़ूअ है।
📕 फतावा रज़विया जदीद ज़िल्द 20 सफ़ह 250
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 198 📚*••──────────────────────••►
*📬 अल्हम्दुलिल्लाह पोस्ट मुकम्मल हुई 🔃*
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