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◢◤ परेशान मुसलमान ◢◤
*❝ आओं हक़ीक़त को समझें! ❞*
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••• ➲ *अब्दुल्लाह आज बहुत परेशान है और वह परेशानी यह है कि* मुसलमानों में बहुत से फिरके हो गए हैं और हर फ़िरका अपने आपको हक पर बताता है और एक दूसरे को बुरा भला कहता है। आखिर यह माजरा क्या है। अब्दुल्लाह सोच रहा है कि क्या सब हक पर हैं, क्या यह मौलवियों के आपस के झगड़े हैं क्या हमें इसमें नहीं पड़ना चाहिए या सब खाने चाटने के धंधे हैं, आखिर जायें तो कहाँ जायें। यही सब सोचते सोचते उसे ख्याल आया कि क्यूँ न मुफ्ती साहब से इस बारे में दरयाफ्त किया जाए और यही सोचते हुए वह मुफ़्ती साहब के घर की तरफ चल दिया। मुफ्ती साहब बहुत नेक आदमी हैं। लोगों को मसाइल बताना फ़तवे देना उनका शौक है, बड़ी दूर दूर से लोग उनके पास फतवा लेने आते हैं, लोग उनसे दुआयें कराने भी आते हैं और उनकी दुआओं में असर भी देखा गया है। जब अब्दुल्लाह मुफ्ती साहब के घर पहुँचा तो कई लोग अपने अपने काम से आए बैठे थे। मुफ्ती साहब उनसे दीनी गुफ़्तगू कर रहे थे। अब्दुल्लाह भी सलाम व मुसाफ़ा करके बैठ गया।
*••• ➲ मुफ्ती साहब ने बड़े प्यार से पूछा कि कैसे आना हुआ।* तो उसने कहा आप फ़ारिग हो जायें तो बातचीत करें। लोग आते रहे जाते रहे।
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*❝ आओं हक़ीक़त को समझें! ❞*
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••• ➲ कुछ देर बात मुफ्ती साहब अब्दुल्लाह की तरफ़ मुखातिब हुए और कहा साहबजादे फ़रमाइये। उसने कहा मैंने सोचा कि कुछ फुरसत हो जाए तो पूछू तो ज़्यादा बेहतर है मगर उन्होंने जोर दिया कि नहीं सबके सामने ही पूछूँ और साथ ही एक ख़ादिम को चाय वगैरह लाने को कहा।
••• ➲ *🤔 अब्दुल्लाह जो सोच रहा था!* वही बात मुफ्ती साहब के सामने दोहराना शुरू किया।
••• ➲ *मुफ्ती साहब जैसे सब समझ गए फरमाने लगे* आज इल्म की कमी ने हमें यहाँ लाकर खड़ा कर दिया है कि हमें हक को पहचानना मुश्किल हो गया है। आज हम दुनियावी तालीम पर तो हज़ारों रूपये खर्च करते है मगर दीनी तालीम जो ज़रूरी है और मुफ्त मिलती है उसे हासिल नहीं करना चाहते।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* जी हाँ आप बिल्कुल ठीक फरमा रहे हैं, हज़ारों नहीं बल्कि लाखों रूपये तो कुछ लोग सिर्फ दाखिले के लिए रिशवत देते हैं और दीनी तालीम मुफ्त मिले तो दूर भाग रहे हैं।
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••• ➲ *मुफ्ती साहब :* अल्लाह व रसूल ने दुनियावी तालीम को मना नहीं फरमाया मगर वह इल्मे दीन जो तुम पर फ़र्ज़ है उसे छोड़ कर सालों मेहनत करके ज़रूरत से ज्यादा डिग्री इकट्ठीं करना जो कि सब डिग्रीयाँ हमारे काम भी न आयें, कुछ दिनों बाद भूल जायें कि क्या पढ़ा उन्हें इकट्ठा करना अक्लमन्दी नहीं।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* नहीं साहब पढ़ाई बहुत ज़रूरी है आजकल बेपढ़े की कहीं गुज़र नहीं। हम देखते हैं कि अंगूठाटेक बेचारे कितना परेशान रहते हैं।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* आप गलत समझ रहे हैं मैं दुनियावी तालीम का मुखालिफ (विरोधी) नहीं बल्कि मैं तो कहता हूँ कि मौलवीयों को भी इलाकाई ज़बान और इन्टरनेशनल जुबान शायद इंगलिश ज़रूर सीखना चाहिए लेकिन पहले वह सीखें जो हम पर फर्ज है।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* क्या मौलवी बनना फर्ज है।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* मेरा मतलब यह नहीं है बल्कि मैं यह कहना चाहता हूँ कि ज़रूरत के मुताबिक इल्मे दीन सीखना हम पर फर्ज है।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* मैं समझ नहीं पा रहा ज़रा वजाहत करें।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* बहुत तफ़सील में न जाकर मेरा कहने का मतलब यह है कि हम पर अल्लाह व रसूल के बारे में बुनियादी अकाइद जानना, कब्र का अज़ाब सवाब, जन्नत दोज़ख कियामत के बारे में जानना, वुजू, गुस्ल, पाकी नापाकी, नमाज़, रोजा के मसाइल सीखना फर्ज है। जब हम पर हज व ज़कात फर्ज हो तो उसके मसाइल सीखना हम पर फर्ज है।
••• ➲ मुख़्तसर यूँ समझें कि शरीअत पर चलने के लिए जिन जिन मसाइल की ज़रूरत पड़ती जाए उन मसाइल का सीखना हम पर फर्ज़ वगैरह।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* जैसे।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* जैसे सलाम करना, खाने पीने लिबास के मसाइल। कारोबार करने चलें तो कारोबार के मसाइल! निकाह करने के चलें तो निकाह व तलाक के ज़रूरी मसाइल वगैरह।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* फिरकों के बारे में जानना क्या फर्ज है।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* इस दौर में यह बहुत ज़रूरी है, हाँ बल्कि फर्ज़ ही कहिए वह इस लिए कि अगर इस बारे में न जानेगा और अपनी कमइल्मी की वजह से किसी बदमजहब फिरके को मानने लगा तो एक वक्त ऐसा आएगा कि ईमान से हाथ धो बैठेगा और अगर ईमान चला गया तो सब अमल बेकार हैं। यह जानना फर्ज है कि अहले सुन्नत के अलावा बाकी सभी फ़िरके झूटे बातिल गुमराह जहन्नमी हैं।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* हज़रत वो सब कलिमा “लाइलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह" के पढ़ने वाले हैं मेरी समझ में नहीं आ रहा कि सब जहन्नमी कैसे हैं।
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••• ➲ *मुफ्ती साहब :* हिन्दुस्तान पाकिस्तान के आस पास तीन बदमज़हब फिरकें ज़्यादा पाए जाते हैं।
••• ➲ 1.राफ़ज़ी 2. कादयानी 3. वहाबी (देवबन्दी और तबलीगी जमाअत वाले, अहले हदीस, जमाते इसलामी यानी मौदूदी जमात सब वहाबियों की शाखें हैं।
••• ➲ राफ़ज़ी तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सहाबा की तौहीन करके काफ़िर हुए मिर्जा गुलाम अहमद कादयानी को नबी मानकर कादयानी काफ़िर व मुरतद हुए वहाबी अल्लाह व रसूल की तौहीन करके और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के बारे में बुनियादी जैसे इल्मे व हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शफाअत और हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इख़्तेयारात को न मान कर काफ़िर व मुरतद हो गए।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* मुरतद किसे कहते हैं ?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* जो सब कुछ जान कर कुफ्र करे और दावा मुसलमान होने का करे मुरतद कहलाता है।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* कुछ लोग कहते हैं कि किसी को काफिर नहीं कहना चाहिए कि क्या मालूम वह कब ईमान ले आए।
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••• ➲ *मुफ्ती साहब :* कुर्आन ने काफ़िर को काफ़िर बुरे को बुरा कहा है। चोर को चोर, डाकू को डाकू और शैतान को शैतान ही कहा जाता है। यूँ तो मुसलामान को मुसलमान भी न कहो कि क्या पता कब काफ़िर हो जाए। मुसलमान को मुसलमान काफ़िर को काफिर जानना जरूरयाते दीन में से है। यानी किसी मुसलमान को काफ़िर या काफ़िर को मुसलमान जानना खुद कुफ्र है। किसी मुसलमान को काफ़िर कहा और वह वाकई मुसलमान है तो कहने वाले पर कुफ्र का हुक्म लगाया जाएगा। इसी तरह किसी काफ़िर को मुसलमान कहा और वह काफ़िर है तो कहने वाले पर कुफ्र का हुक्म लगेगा। इसलिए किसी खास शख्स का नाम लेकर काफ़िर कहने से बचना चाहिए चूंकि अगर वह काफिर नहीं तो. यह फतवा कहने वाले पर उल्टा पड़ता है अगर किसी खास शख्स को काफिर कहे तो सुबूत पेश करना पड़ेगा। हाँ अगर किसी के बारे में शक है तो ख़ामोश रहना बेहतर है। गर्ज़ यह कि इस मसअले में बहुत एहतियात की ज़रूरत है मगर वो सारे फ़िरके जो अल्लाह व रसूल की शान में तौहीन करते हैं वो सारे के सारे मुरतद व काफिर हैं. साथ ही सब कुछ जानने के बाद भी जो उन्हें मुसलमान समझे काफिर ना समझे वह भी काफिर है।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* कहीं यह गीबत तो नहीं ?
••• ➲ *मुफ़्ती साहब :* हरगिज़ नहीं यह गीबत नहीं बल्कि ऐसी ग़ीबत भी जाइज़ बल्कि सवाब है। उसकी गीबत करना सही है जिससे किसी मुसलमान को नुकसान का अन्देशा हो और यहाँ मुसलमान के ईमान जाने का अन्देशा है। ऐसे लोगों से मुसलमानों को होशयार करना बड़े सवाब का काम है।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* शायद मैं बीच बीच में सवाल करके मौजू से हट जाता हूँ मैं जिस बात को लेकर परेशान हूँ उसका जवाब दें।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* देखिए सहबज़ादे सबसे पहले तो यह बात दिमाग में बैठा लीजिए कि ईमान से बढ़ कर कोई चीज़ नहीं, ईमान गया तो समझिए कि सब कुछ लुट गया बरबाद हो गया हमेशा के लिए जहन्नमी हो गया आग में जलेगा थूहड़, खून व पीप और खौलता पानी उसकी खुराक।
••• ➲ *तुम्हारा रब फरमाता है :* बेशक जिन्होंने कुफ़्र किया और अल्लाह की राह से रोका फिर काफ़िर ही मर गए तो अल्लाह हर्गिज़ उन्हें न बख्शेगा।
*📙 सूरए मुहम्मद*
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••• ➲ अल्लाह और उसके हबीब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के रहम - ओ - करम से जिसे ईमान की दौलत नसीब हुई वह दुनिया के उन खुश नसीबों में से है जिसे अशरफुल मखलूकात यानी अल्लाह तआला की मखलूक में सबसे अफजल कहा गया है और यह सदक़ा है, मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का।
••• ➲ ईमान शर्त है नेक आमाल के कबूल होने की, ईमान शर्त है नमाज़ों के कबूल होने की, रोज़े के मकबूल होने की हज व ज़कात कबूल होने की। जिनके पास ईमान नहीं उनके नेक अमल बेकार हैं वह सारी ज़िन्दगी भी सजदे में रहें तो उनके कुछ काम न आएगा। ईमान वाला गुनाहगार भी सय्यदे आलम (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) की शफ़ाअत और करम से और उनके सदके में एक न एक दिन जन्नत में ज़रूर जाएगा। ईमान वालों के लिए ही हमेशगी है जन्नत में। ईमान वालों के लिए कुरआन है ईमान वालों को *अल्लाह पाक ने कुरआन में जगह - जगह "ऐ ईमान वालो"* कहकर नेक अमल करने के लिये इर्शाद फरमाया है। ईमान वालों ही के लिये जन्नत की खुशखबरी है दोज़ख़ से नजात है बिना ईमान के नेक अमल मकबूल नहीं हैं। ईमान वाला अशरफुल्मखलूकात है तो बेईमान सबसे बदतरीन मखलूक है, बेईमान जानवरों से भी बदतर है।
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••• ➲ बेईमान हमेशा जहन्नम में रहेंगे ख्याह कैसे भी नेक अमल किये हो। ईमान जन्नत में जाने की पहली और जरूरी सीढ़ी है। बईमान जन्नत की खुशबू भी न पा सकेगा। ईमान वालों के लिये सबसे बड़ी नेमत अपने प्यारे रब का दीदार है। यहाँ एक बात बहुत ज्यादा ध्यान देने की है कि अगर इन्सान से एक बात भी कुफ्र की हो जाती है तो उसके हाथ से ईमान निकल जाता है ऐसी हालत में फौरन उस बात से तौबा करके कलिमा - ए - तय्यबा "लाइलाहा इल्लल्लाहु मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह" कहकर फिर ईमान में दाखिल हो जाना चाहिये।
••• ➲ आम मुसलमान यह जानता है, नहीं जानता तो जान ले कि अल्लाह तआला ने इन्सान को अपनी इबादत के लिये पैदा फ़रमाया है और वह उसका इम्तहान भी लेगा और इम्तहान में बड़े से बड़े गुनाह को अगर चाहेगा तो माफ फरमा देगा मगर कुफ्र व शिर्क को न बख़्शेगा और काफ़िर हमेशा जहन्नम में रहेगें। लिहाज़ा ईमान पर रहना उसे बचाये रखना सारी जरूरतों में सबसे अहम है। इबादतें ईमान वालों ही की कुबूल हैं ना कि बेईमान की।
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••• ➲ याद रखिये दुनिया में दो किस्म के लोग हैं मुसलमान (यानी ईमान वाले) और काफ़िर, बीच वाले कोई नहीं सिर्फ एक कुफ्र इन्सान को काफिर बना देता है कोई शख्स हज़ारों काम नेकी के करता है और किसी एक कुफ्र पर कायम रहता है और यूहीं बिना तौबा के मर जाता है तो वह कयामत में काफिर उठेगा और हमेशा हमेशा के लिये दोज़ख़ में रहेगा।
••• ➲ यहाँ कहना यह है कि सब कुछ चला जाय मगर किसी भी कीमत पर ईमान हर्गिज़ - हर्गिज़ न जाय, कोई भी बात ऐसी न हो कि आदमी इसलाम के दायरे से बाहर हो जाए, अगर कोई भी बात ऐसी मुँह से निकल जाए या हो जाय तो फौरन जल्द से जल्द तौबा करके कलिमा पढ़कर फिर से दायरए इसलाम में दाखिल हो जाना चाहिए।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* आपने बहुत ही अच्छी तरह समझा दिया कि ईमान नहीं तो कुछ नहीं हमे अपने अमल से ज़्यादा ईमान की फिक्र रखना चाहिए। अब तो मेरी फ़िक्र और ज्यादा बढ़ गई कि कहीं ऐसी बातें करके मेरा ईमान तो नहीं चला गया।
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••• ➲ *मुफ्ती साहब :* नहीं, यह फ़िक्र आपके ईमान की दलील है अब आप पर यह सब जानना और ज़्यादा ज़रूरी हो गया।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* राफ़ज़ी कादयानी तो नहीं हाँ वहाबी फिरके के बारे में बताइये।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* बहुत सी हदीसों में इस फ़िरके के बारे में हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लमल ने पहले ही बता दिया था और यह भी बताया था कि मेरी उम्मत 73 फ़िरकों में बट जाएगी जिसमें एक फ़िरका हक़ पर होगा ।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* क्या यह हदीस में है कि 73 फ़िरके हो जायेंगे।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* इस हदीस को सभी फिरके मानते हैं।
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 13
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* अच्छा अब यह बताइये कि इस वहाबी फ़िरके की शुरूआत कहाँ से है।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* इस बेदीन वहाबी फिरके की इब्तिदा इबलीस लईन से है कि अल्लाह तआला ने सय्येदिना आदम अलैहिस्सलाम की ताज़ीम का हुक्म दिया और मलऊन ने न माना और जमानए इसलाम में इसका हादी जुलखवेसरा तमीमी हुआ जिसने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में तौहीनी कलमा कहा और उसके बाद पूरा गिरोह ख़वारिज़ का उस तरीके पर चला जिनको अमीरुल मोमनीन मौला अली ने कत्ल फ़रमाया। लोगों ने कहा हम्द अल्लाह को जिसने उन की नजासतों से जमीन को पाक किया। अमीरुल मोमनीन ने फरमाया यह मुनकता नहीं हुए अभी उनमें के माओं के पेटों में हैं, बापों की पीठों में हैं जब इनमें की एक संगत काट दी जाएगी दूसरी सर उठाएगी, यहाँ तक कि इनका पिछला गिरोह दज्जाल के साथ निकलेगा। बारहवीं सदी के आखिर में इब्ने अब्दुल वहाब नजदी इस गिरोह का सरगना हुआ।
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••• ➲ यह फ़ितना बारह सौ नौ हिजरी (1209) में शुरु हुआ इस मज़हब का गुरु घंटाल अब्दुल वहाब नजदी का बेटा मोहम्मद था। उसने तमाम अरब और ख़ास कर हरमैन शरीफ़न में बहुत ज्यादा फितने फैलाए। आलिमों को कत्ल किया। सहाबा, इमामों, आलिमों और शहीदों की कब्रें खोद डाली। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के रौज़े का नाम सनमे अकबर (बड़ा बुत) रखा था। अल्लामा शामी रहमतुल्लाहि तआला अलैह ने उसे खारजी बताया।
••• ➲ *उस अब्दुल वहाब के बेटे ने एक किताब लिखी जिसका नाम "किताबुत्तौहीद" रखा उसका तर्जमा हिन्दुस्तान, में मौ. इसमाईल देहलवी ने किया जिसका नाम “तकवीयतुल ईमान" रखा और हिन्दुस्तान में वहाबियत इसी ने फैलाई।*
••• ➲ इन वहाबीयों का एक बहुत बड़ा अकीदा यह है कि जो उनके मज़हब पर न हो वह काफ़िर है, मुशरिक है। यही वजह है कि बात -2 पर बिला वजह मुसलमानों पर कुफ़्र और शिर्क का हुक्म लगाते और तमाम दुनिया को मुशरिक बताते हैं। आजकल तरह तरह के नाम से वहाबियों की शाखें पैदा हो चुकी हैं जैसे तबलीगी जमात, मौदूदी जमात (जमाते इसलामी), अहले हदीस और देवबन्दी वगैरह।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* क्या वाकई इन्होने कुफ्री बातें लिखी हैं।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* नामालूम इन लोगों ने क्या क्या लिखा है मैं इनकी चन्द इबारतें आपको दिखाता हूँ और चैलेन्ज के साथ कहता हूँ कि यह किताबें देवबन्द से आज भी छपती हैं आप यहाँ पर सिर्फ देख लीजिए और देवबन्द जाकर या डाक से मंगा कर इसकी तसदीक कीजिए हालांकि सुनने में आया है कि इनमें से कुछ इबारतें अब नए एडीशन में निकाल दी गई हैं मगर इनके अकाइद वही हैं। बात बात पर शिर्क लगाना, वसीले का इन्कार करना, हुजूर सल्लल्लाहु . तआला अलैहि वसल्लम के इल्मे गैब को न मानना, अल्लाह ने उन्हें जो इख्तेयार दिए उनका इन्कार करना, हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शफाअत का इन्कार करना, हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को माज़ल्लाह मुर्दा जानना, उनसे मदद मांगने को शिर्क बताना वगैरह वगैरह आज भी इनके मदरसों में पढ़ाया जाता है।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* हमने तो सुना है कि सुन्नी वहाबी झगड़ा न्याज़ नज़र, फातिहा, तीजा, चालीसवाँ, उर्स, मज़ारात पर जाना, ताजियादारी वगैरह का है आप तो कुछ और ही बता रहे हैं।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* हाँ इन फुरूई मसाइल में हमारा उनसे इख्तेलाफ है मगर हमारा अस्ल झगड़ा इसी बात का है कि यह अपनी किताबों में अल्लाह व रसूल की तौहीन करके काफ़िर व मुरतद है इसका सबुत मैं आपको दिखा चुका।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* सुबूत तो है मगर जब उनकी बातें सुनों तो लगता है कि हम सुन्नी गलत है और कहीं कहीं शिर्क में मुबतला हैं और शिर्क कभी न बख्शा जाएगा।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* बेशक कुफ्र व शिर्क कभी न बख्शा जाएगा। काफ़िर व मुशरिक हमेशा जहन्नम में रहेंगे... वो हमें ज़बरदस्ती मुशरिक बनाने पर उतारू हैं जो बातें वह शिर्क बताते हैं उनमें से सभी शिर्क नहीं और जो वाकई शिर्क हैं वह हम कभी नहीं करते न करेंगे हमारे ऊपर झूटा इलज़ाम है।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* नज़र तो यही आता है जैसे हम शिर्क कर रहे हैं। कुछ लोग यह कहते हैं कि यह मौलवियों की लड़ाई है इन चक्करों में नहीं पड़ना चाहिए ?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* हाँ कुछ लोग आपको ऐसे मिलेंगे जो कहेगें कि मियाँ क्यूँ इन झगड़ों में पड़ते हो यह सब तो मौलवियों की लड़ाई है। बाज़ कहेंगे चार इमामों के इख्तलाफ़ात हैं। याद रखिए ऐसा हरगिज़ हरगिज़ नहीं है चारों इमाम (हज़रत इमामे आज़म इमाम अबू हनीफ़ा, हजरत इमाम शाफ़ई, हज़रत इमाम हम्बल और हज़रत इमाम मालिक रहमतुल्लाहि तआला अलैहिम) हक पर हैं और इनके आपसी इख्तिलाफ़ अकाइद पर हरगिज़ नहीं इन चारों की नज़र में अल्लाह रसूल की तौहीन करने वाला काफ़िर व मुरतद है यह लोग बेवजह किसी पर कुफ़्र और शिर्क नहीं लगाते। इन्होंने हमेशा हक फरमाया। यह चारों अहले सुन्नत व जमात के इमाम हैं। कुछ लोग यह कहते हैं कि मियाँ अपनी दुकानें चमकाने को मौलवियों ने यह झगड़े पैदा कर दिए हैं इनमें मत पड़ा करो। कुछ लोग आपको इस तरह बहकायेंगे कि देखो मज़ारात पर चन्दा शीरीनी वगैरा या नियाज़ के हलवे मांडे का झगड़ा है या यह कहेंगे कि मौलवियों ने आपस में लड़वाने को ये तरह तरह की बातें पैदा कर दी हैं।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* आखिर झगड़ा है किस बात का ?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* याद रखिए अस्ल इख्तेलाफ है मुसलमान और मुरतद में फर्क का। अहले सुन्नत वल जमाअत ही सही रास्ते पर यानी अल्लाह व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के रास्ते पर है। हम कहते हैं कि वहाबी देवबन्दीयों ने अल्लाह और उसके रसूल की शान में गुस्ताखियाँ की और कर रहे हैं जिसका सुबूत उनकी किताबें हैं। वह शख्स मुसलमान है जो अल्लाह और रसूल की. शान में गुस्ताखी को कुफ़्र और गुस्ताखी करने वाले को काफिर जानता है। बहुत से लोग ऐसे मिलेंगे जो कहेगें कि हम ऐसा नहीं करते और हमारे ऊपर इलज़ाम है तो उनको आप इनकी किताबें या हवालों की फोटोस्टेट कापी दिखा सकते हैं और फिर उनसे पूछिए कि अब क्या कहते हो। अब अगर वह हीले बहाने बनाए तो समझ लीजिए कि उसके दिल में ख़लिश है और फिर भी वह इन इबारतों को कुफ्र न बताए या ऐसा लिखने वाले को काफिर न जाने तो वह मुरतद है और वही है जिसके बारे में सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पहले ही फ़रमा चुके हैं।
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••• ➲ यहाँ एक बात मैं और कहना चाहूँगा उन लोगों से जो यह कहते हैं कि यह सब झूठ है और ऐसा कुछ भी नहीं लिखा गया, वह बात यह है कि दो बातें हो सकती है या तो यह सच है या झूट है यानी या तो ऐसा लिखा गया या नहीं। अगर सच है तो इन बातों से तौबा करो कि यह हुजूर की शान में खुली तौहीन हैं और अगर यह बातें झूट हैं यानी सुन्नियों ने अपनी तरफ से यह बातें गढ़ दी है और देवबन्दियों का नाम लेकर छापं दी हैं तो फिर तो यह बहुत ही जलील काम किया जिसने भी किया लेकिन अफ़सोस तो यह है कि आज भी ये किताबें छप रहीं हैं और बिक रही हैं और बिल फ़र्ज़ ऐसा है भी तो सुन्नी मुसलमान कहाँ रहे ऐसा करने से तो फिर देवबन्दी वहाबी लोग हम सुन्नियों के पीछे नमाज़ क्यूँ पढ़ते हैं उनसे निकाह वगैरा क्यूँ करते हैं। मैं आपको वह किताबें दिखाता हूँ जहाँ इन्होंने बकवास की है। मैं आपको सुबूत के लिए सिर्फ चन्द ही किताबें दिखाऊँगा अगर आपको शक लगे तो खुद बाज़ार से ख़रीद कर देखिएगा कि मैं झूट तो नहीं कह रहा।
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••• ➲ 1️⃣ देखिए यह इनकी किताब 'यक रोज़ा' जो मौ इस्माईल देहलवी की है इसमे अल्लाह तआला के झूट बोलने को मुमकिन कहा जा रहा है।
••• ➲ 2️⃣ दूसरी किताब 'बराहीने कातेआ' है जिसमें शैतान के इल्म को तो नस्स से माना जा रहा है और हुजूर के इल्म को शिर्क कहा गया है।
••• ➲ 3️⃣ तीसरी किताब सिराते मुस्तकीम है जो उर्दू और फारसी में अलग अलग है जिसमें यह कहा गया है कि नमाज़ में हुजुर का ख्याल आ जाए तो नमाज़ न होगी भले ही गधे घोड़े और बीवी से हमबिस्तरी का ख्याल हो जाए तो नमाज़ हो जाएगी।
••• ➲ 4️⃣ चौथी किताब हिफजुल ईमान है जिसमें हुजूर के इल्म को पागलो बच्चों और मजनूनों का सा बताया गया है।
••• ➲ 5️⃣ पांचवी किताब तहज़ीरुन्नास है इसमें हुजूर के आखरी नबी होने का इन्कार है।
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••• ➲ *6️⃣ छठी किताब तक़वीयतुल ईमान है इसमें नीचे लिखी बातें हैं!*
1. हर मखलूक अल्लाह के आगे चमार से ज्यादा जलील।
2. जिसका नाम मुहम्मद या अली हो वह किसी चीज़ का मुख़्तार नहीं।
3. हुजूर गंवार की बात सुनकर मारे दहशत के बदहवास हो गए।
4. बुजुर्गों की ताज़ीम ऐसी करो जैसे बड़े भाई की।
5. हुजूर के लिए मर कर मिट्टी में मिलना लिखा गया है।
••• ➲ 7️⃣ सातवीं किताब फतावा रशीदिया में है कि होली दिवाली की पूरियाँ खाना और हिन्दू के प्याऊ से पानी पीना जाइज़ और नियाज़ नज़र का खाना हराम और सबील का पानी और दूध पीना हराम। और यह भी लिखा है कि इस उर्स तक में जाना हराम है जिसमें कुरआनख्वानी हो और मिठाई बटे।
••• ➲ 8️⃣ किताबें तो बहुत हैं मगर और यह आठवीं और आखरी देख लें जिसमें मो अश्रफ अली थानवी अपने एक मुरीद से अपने लिए कलिमा पढ्वा रहे हैं। अस्ल लड़ाई हमारी यह है।
⚠️ *नोट :* इन कुफ्री इबारतों की फ़ोटोकापी कोई देखना चाहे तो एडमिन को मैसेज करें।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह : -* कियामत के करीब जो निशानियाँ जाहिर होंगी उसके बारे में बताये और क्या हुजूर ने हमें इन फिरकों की भी कुछ निशानदेही की है ?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* हाँ ! बुख़ारी शरीफ़, मुस्लिम शरीफ़ और मिशकात शरीफ़ की कुछ हदीसों का खुलासा इस तरह है कि कुर्बे कियामत तीस दज्जाल पैदा होगें जो नुबुव्वत का दावा करेंगे... दीन में फितने बरपा होगें... मेरी उम्मत तेहत्तर (73) फ़िरकों में बट जाएगी... कुरआन व हदीस की मनमानी तफ़सीरें होंगी... लोग अच्छों को बुरा कहेंगे... पिछलों पर लानत करेंगे... सुन्नत को बिदअत समझा जाएगा... हलाल को हराम कहा जाएगा... अच्छे बुरे की हलाल व हराम की तमीज़ ख़त्म हो जाएगी... लोग सुबह इसलाम पर करेंगे और कुफ्र पर शाम... चटाई के तिनके और तस्बीह के दोनों की तरह पै दर पै फितनों की बारिश होगी... कोई इसमें नहाएगा कोई भीगेगा किसी को सीलन पहुँचेगी ग़र्ज़ कोई भी इन फ़ितनों से न बचेगा... लोग नमाज़ को जाए करने लग जायेंगे... नफ़सानी ख्वाहिशात गालिब होंगी... मालदारों की ताज़ीम उनके माल की वजह से की जाएगी... झूटे को सच्चा और सच्चे को झूटा समझा जाएगा... ख़ाएन अमीन मशहूर होंगे अमीन को ख़ाएन समझा जाएगा... जिनको बोलने का सलीका न होगा वह वाज़ कहेंगे... इस्लाम नाम का रह जाएगा... कुआन के सिर्फ हरूफ रह जायेंगे कुआन को सुनहरी जुज़दान में सजाया जाएगा हालांकि वह अमल करने के लिए आया है न कि सजाने के लिए... मिम्बरों पर कम उम्र के लड़के ख़ुतबा देंगे... मस्जिदें खूबसूरत बनाई जायेंगी और गिरजों की तरह सजाई जायेंगी उनके मीनार बलन्द किए जायेंगे नमाज़ियों की सफें ज़्यादा होंगी लेकिन उनके दिल और ज़बाने अलग अलग होंगी... मोमिन उस वक़्त लौंडियों की तरह समझे जायेंगे मोमिन बुराईयाँ और नाफरमानियाँ देख कर कुढ़ेगा क्यूँकि वह लोगों की इस्लाह पर कादिर न होगा... मर्द मर्द के साथ औरत औरत के साथ मशगूल होंगे... फ़ासिक इमाम बन बैठेंगे... हुकमराँ के वज़ीर बदकिरदार होंगे... नमाज़ दुनिया के धंधों में फंस कर बरबाद की जाएगी... ऐसा वक्त आएगा कि लोग मशरिक व मग़रिब से तुम्हें गुमराह करने के लिए तुम्हारे पास आयेंगे उनकी शक्लें इन्सानों की सी होंगी मगर दिल में शैतानीयत भरी होगी... हज तो उस वक्त भी होगा मगर बादशाहों का हज सैर व तफरीह के लिए होगा... कुछ लोग तिजारत के लिए हज करेंगे... मिस्कीन सवाल करने के लिए हज को जायेंगे... आलिमों का हज रियाकारी और दिखावे के लिए होगा... झूट दुनिया पर छा जाएगा... दुमदार सितारा नज़र आयेगा... औरतें मर्दो के साथ तिजारत और मुलाज़मत में शरीक होंगी... बाज़ार बहुत होंगे और करीब करीब होंगे... ऐसी आंधी चलेगी जिसमें सांप होगें वह सांप उस वक़्त सरदार उल्मा को चिमट जायेगे जिन्होंने बुराईया देखीं और उनसे मना न किया।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह : -* कियामत के करीब जो निशानियाँ जाहिर होंगी उसके बारे में बताये और क्या हुजूर ने हमें इन फिरकों की भी कुछ निशानदेही की है ?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* अब कुछ ख़ास इन नजदियों के बारे में हदीस व पेशगोई सुने।
••• ➲ *हदीस :* हज़रत अबदुल्लाह इब्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से हज़रत इमाम बुखारी ने यह हदीस नकल की है कि एक दिन हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने शाम और यमन के लिए दुआ फ़रमाई *जिसके अलफ़ाज़ यह हैं :* "खुदावन्दा हमारे शाम और यमन में बरकत नाजिल फरमा (दुआ करते वक्त नज्द के कुछ लोग बैठे हुये थे) उन्होने अर्ज़ किया और हमारे नज्द में या रसूलल्लाह!
••• ➲ इस पर हुजूर ने इर्शाद फ़रमाया "खूदावन्दा हमारे शाम और यमन में बरकत नाज़िल फ़रमा" फिर दुबारा नज्द के लोगों ने अर्ज़ किया और हमारे नज्द में या रसूलल्लाह! रावी (रिवायत बयान करने वाला) का बयान है कि तीसरी मरतबा में हुजूर ने फ़रमाया वह ज़लज़लों और फितनों की जगह है और वहाँ से शैतान की सींध निकलेगी।"
📕 *बुख़ारी शरीफ़*
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••• ➲ *अब्दुल्लाह : -* कियामत के करीब जो निशानियाँ जाहिर होंगी उसके बारे में बताये और क्या हुजूर ने हमें इन फिरकों की भी कुछ निशानदेही की है ?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* *हदीस* अल्लामा दहलान रहमतुल्लाहि तआला अलैह अपनी किताब अदुररुस्सुन्नीय्या में फ़रमाते हैं कि हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्ल्म ने इरशाद फरमाया : "कुछ लोग मशरिक की सम्त से जाहिर होंगे जो कुरआन पढ़ेंगे, लेकिन कुरआन उनके हलक के नीचे नहीं उतरेगा। जब उनका एक गिरोह ख़त्म हो जाएगा तो वहीं से दूसरा जन्म लेगा यहाँ तक कि उनका आखरी दस्ता दज्जाल के साथ उठेगा।"
••• ➲ *हदीस मिशकात शरीफ़ में* हज़रते अबू सईद ख़ुदरी रदियल्लाहु तआला अन्हु से मनकूल है वह कहते कि हम लोग हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर थे और हुजूर माले गनीमत तकसीम फरमा रहे थे कि • “जुल्खवेसिरा" नाम का एक शख्स जो कबीला बनी तमीम का रहने वाला था आया और कहा ऐ अल्लाह के रसूल इन्साफ़ से काम लो। हुजूर ने फ़रमाया “अफ़सोस तेरी जसारत (जुर्रत, हिम्मत) पर मैं ही इन्साफ नहीं करूँगा तो और कौन इन्साफ़ करने वाला है। अगर मैं इन्साफ़ नहीं करता तो तू ख़ाएब व ख़ासिर (तहस - नहस) हो चुका होता।" हज़रते उमर से जब नहीं रहा गया तो उन्होंने अर्ज़ किया कि हुजूर मुझे इजाजत दीजिए मैं इसकी गर्दन मार दूं। हुजूर ने फरमाया इसे छोड़ दो यह अकेला नहीं है इसके बहुत से साथी हैं जिनकी नमाजों और रोज़ों को देखकर तुम अपनी नमाज़ों और रोज़ों को हकीर समझोगे, वह .कुरआन पढ़ेंगें लेकिन कुरआन उनके हलक से नीचे नहीं उतरेगा। यानी इन सारी ज़ाहिरी खूबियों के बावजूद वह दीन से ऐसे निकल जाएगें जैसे तीर से शिकार निकल जाता है।
📕 *मिशकात शरीफ़ व बुख़ारी शरीफ*
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••• ➲ *अब्दुल्लाह : -* कियामत के करीब जो निशानियाँ जाहिर होंगी उसके बारे में बताये और क्या हुजूर ने हमें इन फिरकों की भी कुछ निशानदेही की है ?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* *हदीस* हज़रत अबू सईद खुदरी और हज़रत अनस इब्ने मालिक रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से मिशकात शरीफ में यह हदीस नकल है हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि मेरी उम्मत में इख्तेलाफ़ व तफरीक का वाकेए होना मुकदर हो चुका है पस इस सिलसिले में एक गिरोह निकलेगा जिसकी बातें बज़ाहिर दिलफरेब ख़ुशनुमा होगी लेकिन किरदार गुमराहकुन और खराब होगा वह कुरआन पढ़ेंगे लेकिन कुरआन उनके हलक से नीचे नहीं उतरेगा वह दीन से ऐसे निकल जाएगें जैसे तीर शिकार से निकल जाता है फिर दीन की तरफ लौटना उन्हें नसीब न होगा यहाँ तक कि तीर अपने कमान की तरफ़ लौट आए।
••• ➲ हदीस की मुराद यह है कि उनका दीन की तरफ लौटना मुहाल है जैसे तीर का लौटना मुहाल है वह अपनी तबीयत व सरिश्त के लिहाज़ से बदतरीन मखलूक होगें। वह लोगों को .कुरआन और दीन की तरफ़ बुलाएगें हांलाकि दीन से उनका कोई तअल्लुक न होगा जो उनसे जंग करेगा वह ख़ुदा का मुकर्रबतरीन बन्दा होगा। सहाबा ने फ़रमाया उनकी ख़ास पहचान क्या होगी या रसूलल्लाह ! फ़रमाया सर मुंडाना।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह : -* कियामत के करीब जो निशानियाँ जाहिर होंगी उसके बारे में बताये और क्या हुजूर ने हमें इन फिरकों की भी कुछ निशानदेही की है ?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* *हदीस* 'इस हदीस की ख़ुसूसियत यह है कि अस्ल हदीस बयान करने से पहले हदीस के रावी हज़रते अली रदियल्लाहु तआला अन्हु ने फ़रमाया कि कसम ख़ुदा की आसमान से ज़मीन पर गिर पड़ना मेरे लिए आसान हैं लेकिन हुजूर की तरफ़ कोई झूठी बात मनसूब करना बहुत मुश्किल है। इसके बाद अस्ल हदीस का सिलसिला यूँ शुरु होता है फ़रमाते "मैंने हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को यह फ़रमाते सुना कि आख़िर ज़माने में नौ उम्र और कम समझ लोगों की एक जमाअत निकलेगी, बातें वह बज़ाहिर अच्छी करेगें लेकिन ईमान उनके हलक के नीचे नहीं उतरेगा वह दीन से ऐसे निकल जाएंगे जैसे तीर से शिकार निकल जाता है।
••• ➲ "इस हदीस में उम्मत से उम्मते दावत मुराद है यानी वो लोग मुराद हैं जिनको ईमान और अहकामे इस्लाम की दावत देने के लिए हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को भेजा गया। इस मअना में काफ़िर भी दाखिल हैं।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह : -* कियामत के करीब जो निशानियाँ जाहिर होंगी उसके बारे में बताये और क्या हुजूर ने हमें इन फिरकों की भी कुछ निशानदेही की है ?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* दूसरा मअना उम्मते इजाबत यानी जो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर ईमान लाए और उनकी बात दिल से कबूल की इसमें गैर मुस्लिम दाखिल नहीं।
••• ➲ *हदीस* हज़रत अबू नुऐम ने हिलया में अबू उमामा बाहली रदियल्लाहु तआला अन्हु से नक़ल किया है कि हुजुर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया : "आख़िर ज़माने में कीड़े - मकोड़े की तरह हर तरफ, 'मुल्लाने फूट पड़ेगें। बस तुममें से जो शख्स वह जमाना पाए वह उनसे ख़ुदा की पनाह मागें।
••• ➲ गैब की खबरें देने वाले हमारे नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की इन मुबारक हदीसों से साफ तौर पर यह ख़बरें पहले ही दे दी गई कि इस उम्मत का 73 फ़िरका बंटना मुकद्दर हो चुका है। (जिसमें सिर्फ एक फ़िरका हक पर होगा)
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••• ➲ *अब्दुल्लाह : -* कियामत के करीब जो निशानियाँ जाहिर होंगी उसके बारे में बताये और क्या हुजूर ने हमें इन फिरकों की भी कुछ निशानदेही की है ?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* सुन्नत को बिदअत कहा जाएगा... हलाल को हराम कहा जाएगा... लोग सुबह इसलाम पर कुफ्र पर शाम करेंगे... बे - पनाह फ़ितने बरसेंगे कोई फ़ितनों से बच न पाएगा... नज्द से फ़ितना उठेगा... ऐसे लोग जाहिर होगें जो बज़ाहिर नमाजी, रोज़ा रखने वाले, कुरआन पढ़ने वाले दीन की तरफ बुलाने वाले होगें मगर उनके पास ईमान न होगा और यह भी कि ऐसे लोगों की इबादत के आगे तुम अपनी इबादत को हकीर जानोगे... आख़िर ज़माने में मुल्लानं कीड़े - मकोड़े की तरह निकलेंगे और इनका आख़री दस्त दज्जाल के साथ निकलेगा।
••• ➲ खूब गौर करके देखो इन हदीसों की रोशनी में कि वह जन्नती फिरका कौन सा है, जिस पर हमें और आपको कायम रहना है और वह 72 फ़िरके कौन हैं जिनसे दूर रहना है चुंकि ईमान की सलामती के लिये यह जुरूरी और बहुत ज्यादा जरूरी क्योंकि अगर तुम किसी ऐसे के बहकावे में आ गए जो बातिलों में से है तो तुम्हारा नमाज़, रोज़ा, हज, ज़कात और तमाम नेक अमाल बेकार हो जाएगें चूंकि आमाल को मकबूलियत ईमान पर मुनहसिर है। होशयार इन दिखावे की इबादत वालों के बहकावे में न आना यह ईमान के दुश्मन तुम्हारा ईमान लेने की फिक्र में हैं एक यही वह दौलत है जिस पर तुम जितना नाज़ करो कम है, तुम्हारा यह ख़ज़ाना ये फिरके बहरूपये बन कर छिनने आयें हैं। यह तुम्हे अपना दोस्त जाहिर करके नेकी की तरफ़ बुलायेंगे, इसलिए इनको पहचानना बहुत ज़रूरी है क्यूँकि तुम इनके बहकावे में आ सकते हो क्यूंकि भोले मुसलमान को हमेशा धोके और मक्कारी से हराया गया!
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••• ➲ *अब्दुल्लाह : -* कियामत के करीब जो निशानियाँ जाहिर होंगी उसके बारे में बताये और क्या हुजूर ने हमें इन फिरकों की भी कुछ निशानदेही की है ?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* जैसा कि सय्यदे आलम गैब की खबर देने वाले नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया था कि उसके मुताबिक़ होता गया और होता रहा है और सब आगे होगा क्यूँकि हमारा नबी सच्चा उसका फरमान सच्चा। इन बातिल फिरकों में कुछ हिन्दुस्तान से बाहर पैदा हुए और वहीं खत्म हो गए, कुछ हिन्दुस्तान और उसके बाहर पाए जाते हैं जैसे : राफजी, वहाबी, गैर मुकल्लदीन (जो अपने आपको अहले हदीस कहते हैं) नैचरी, चिकड़ालवी, जमाअते इसलामी मौदूदी जमात वाले), कादयानी वगैरह वगैरह।
••• ➲ और इन सब में सबसे ज़्यादा/ख़तरनाक, ख़बीस, मक्कार और फरेबी फ़िरका फितना - ए - वहाबीयत है और ज्यादातर फिरकों की शाखें इसी से जाकर मिलती है और इनकी सबसे बड़ी पहचान यह है कि ये अपनी किताबों में अल्लाह और उसके हबीब की शान में गालियाँ बकते हैं तौहीन करते हैं और पेश की गई हदीसों के मुताबिक एकदम फिट बैठते हैं। इस छोटी सी किताब के ज़रिए मैं आपको इसी फ़िरके से होशियार करना चाहता हूँ।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह : -* मेरा तो दिमाग़ ख़राब हो रहा हैं!?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* बेहतर यह होगा आप इन सारे टाॅपिक पर सवाल करते जायें और मैं जवाब देता जाऊँ ताकि हमारी बात साफ़ हो जाए।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* मैं भी यही चाहता हूँ। यह तो आप बता ही चुके कि वहाबी फ़िरका कहाँ से शुरू हुआ और हदीसों में भी हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने पहले ही हमें बता दिया था कि ऐसे लोग ज़ाहिर होंगे और इनकी यह कुफ्री इबारतों को देखकर तो एक देहाती भी यह बता देगा कि ऐसा बकने वाला मुसलमान नहीं... अब मैं आपसे बुनियादी अकाइद पर एक एक करके सवाब पूछूगा और फिर फुरूई मसाइल पर पूछूगाँ मेहरबानी करके एक एक करके जवाब देते जायें। बताइये सबसे पहले कौन सा टाॅपिक लें।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* सबसे पहले इल्मे गैब पर बात करते हैं।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* जी बेहतर सबसे पहले हमें यह बताइये कि अहले सुन्नत का इस बारे में क्या अक़ीदा है। आसान जबान में समझायें।
••• ➲ *मुफ़्ती साहब :* गैब वह छुपी हुई चीज़ है जिसको इन्सान न तो आँख नाक कान वगैरह महसूस कर सके और न बिला दलील बदाहतन (बगैर गौर व फ़िक्र के) अक्ल में आ सके।
••• ➲ *मसलन :* मलाइका, जन्नत, दोज़ख, कियामत का इल्म गैब का इल्म है इन्सान कब मरेगा, औरत के पेट में क्या है और वह नेक है या बद गैब का इल्म है रंग पहचाना ज़बान व कान के लिए गैब है, बू आँख के लिए गैब है अगर कोई बू व मज़े को आँख से शक्लों में देख ले तो गैब है।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* यह तो इल्मे गैब की तारीफ हुई। हमें यह बताइये कि हमारे आका के इल्मे गैब के बारे में या नबियों के इल्मे गैब के बारे में अहले सुन्नत का अकीदा क्या है।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* अहले सुन्नत का मसलक यह है कि अल्लाह तआला ने नबियों को अपने गैबों पर इत्तिला दी। यहाँ तक कि ज़मीन और आसमान का हर ज़र्रा हर नबी के सामने है। और हमारे आका हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम तमाम नबियों में सबसे अफजल व सबके सरदार हैं लिहाज़ा सबसे ज़्यादा इल्म या इल्मे गैब आप ही को है।
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••• ➲ *अहले सुन्नत का यह अक़ीदा है* कि सारी कायनात का इल्म अल्लाह तआला के किसी भी नबी के इल्म के सामने ऐसा है जैसे समन्दर के सामने कतरा होता है और तमाम नबियों का इल्म मिल कर हुजूर अलैहिस्सलाम के इल्म के सामने ऐसा ही जैसे समन्दर के सामने कतरा हो और हुजूर अलैहिस्सलाम का इल्म ख़ुदा के इल्म के सामने ऐसा भी नहीं जैसे करोड़ों समन्दरो के सामने कतरे के करोड़वें हिस्से का। वह इसलिए कि अल्लाह के इल्म की हद् ही नहीं और हुजूर या किसी भी नबी या मखलूक के इल्म की कोई न कोई हद ज़रूर है क्या है कितनी है अल्लाह ही जाने।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* कुरआन में जो आया कि गैब का इल्म सिर्फ अल्लाह ही को है तो इसका क्या मतलब है। कुरआन पहले है हदीस बाद में।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* बेशक कुरआन पहले हैं और कुरआन में ही है कि अल्लाह जिसे चाहता है गैब का इल्म अता फरमाता है। और जो यह आया कि गैब का इल्म सिर्फ अल्लाह ही को हैं तो इससे मुराद जाती इल्म है जो सिर्फ अल्लाह के लिए है जो कोई जाती इल्म किसी और के लिए माने वह काफिर है।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* ज़रा और साफ़ साफ़ बतायें।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* इल्मे गैब दो तरह का है एक इल्मे गैब जाती और दूसरा इल्मे गैब अताई। इल्मे गैब जाती सिर्फ अल्लाह ही को है और इल्मे गैब अताई नबियों और वलियों को अल्लाह तआला के देने से हासिल होता। मखलूक का इल्म हर हाल में अताई चाहे आम इल्म हो या इल्म गैब।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* ज़ाहिर है अल्लाह का इल्म अताई तो हो ही नहीं सकता और ऐसा मानना तो कुफ्र हुआ। अच्छा जिस इल्म को अल्लाह ने सिर्फ अपने लिए बताया वह जाती है और जो अपने ख़ास बन्दों के लिए बताया वह अल्लाह की अता से है... वहाबियों का अकीदा भी बयान करें ताकि फ़र्क मालूम हो।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* बेहतर तो यही होता कि उनका अकीदा उन्हीं से पूछते फिर भी मैं बताता -वैसे इनके यहाँ नबियों के लिए इल्मे गैब मानना शिर्क है इनका तो वहः हिसाब है कि कुरआन में आया कि कुरआन की कुछ बातें मानते हैं कुछ का इन्कार करते हैं। अगर आप इनसे पूछे कि तो यही कहेंगे कि कुरआन में आया कि अल्लाह अपने गैब पर किसी को इत्तेला नहीं देता और इस आयत को नहीं सुनायेंगे अल्लाहू तआला अपने मुकर्रब बन्दों से जिसे चाहता है चुन लेता है और गैब का इल्म अता फरमाता है। जबकि दोनों बातें हक़ हैं जहाँ इल्म को अल्लाह ने सिर्फ अपने लिए कहा वहाँ अपने जाती इल्म के लिए कहा और जहाँ इल्मे गैब के देने के लिए बात की वह अताई इल्म के लिए कही।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* क्या वहाबी अताई इल्म को नहीं मानते।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* इन्होंने अपनी किताबों में नबी के लिए अताई इल्म को शिर्क लिखा है हवाला मैं आपको दिखा चुका। बल्कि मैंने आपको मौ. अश्रफ़ अली थानवी की वह कुफ्री इबारत दिखाई जिसमें नबी के इल्म को पागल और मजनून जैसा दूसरी इबारत वह भी दिखाई कि इन्होंने शैतान के इल्म के सुबूत को तो कुरआन व हदीस से माना और हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इल्म का सुबूत मांगा जबकि कुरआन में भी आया और कितनी ही हदीसों से साबित कि हुजूर को इल्मे गैब अता हुआ बल्कि तमाम मखलूक से ज़्यादा अता हुआ। जब आप हर खूबी में सबसे अफ़ज़ल हैं तो इल्म या इल्मे गैब में क्यूँ न अफ़ज़ल होंगे बहुत मोटी सी बात है।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* कुछ लोग कहते हैं कि अल्लाह व रसूल दोनों के लिए इल्मे गैब मानने से हमने दोनों को बराबर माना और अल्लाह कि बराबर तो कोई हो नहीं सकता न जात में न सिफ़ात में न इल्म में। ज़रा अल्लाह व रसूल के इल्म के फ़र्क को समझाइये।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* अल्लाह तआला के इल्म से हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इल्म की तुलना मोटे तौर पर इस तरह की जा सकती है।
*1.* अल्लाह तआला का इल्म जाती है हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इल्म अल्लाह की अता से है।
*2.* अल्लाह तआला का इल्म कदीम है हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इल्म हादिस यानी अल्लाह का पैदा किया हुआ।
*3.* अल्लाह तआला का इल्म लामुतनाही (जिसकी हद न हो), हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इल्म मुतनाही (जिसकी कोई हद ज़रूर हो) है।
*4.* अल्लाह तआला के लिए अताई इल्म मानना कुफ़्र व शिर्क है हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के लिए अताई इल्म मानना ऐन ईमान है।
*5.* अल्लाह तआला के इल्म की मखलूक के इल्म से वह निसबत भी नहीं जो करोड़ों समन्दरों को पानी की एक बूंद के कराडवें हिस्से से है।
*यह हैं अहले सुन्नत के अकाइद।*
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* कुछ लोग कहते हैं कि अल्लाह व रसूल दोनों के लिए इल्मे गैब मानने से हमने दोनों को बराबर माना और अल्लाह कि बराबर तो कोई हो नहीं सकता न जात में न सिफ़ात में न इल्म में। ज़रा अल्लाह व रसूल के इल्म के फ़र्क को समझाइये।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* अल्लाह तआला के इल्म से हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इल्म की तुलना मोटे तौर पर इस तरह की जा सकती है।
*1.* अल्लाह तआला का इल्म जाती है हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इल्म अल्लाह की अता से है।
*2.* अल्लाह तआला का इल्म कदीम है हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इल्म हादिस यानी अल्लाह का पैदा किया हुआ।
*3.* अल्लाह तआला का इल्म लामुतनाही (जिसकी हद न हो), हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इल्म मुतनाही (जिसकी कोई हद ज़रूर हो) है।
*4.* अल्लाह तआला के लिए अताई इल्म मानना कुफ़्र व शिर्क है हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के लिए अताई इल्म मानना ऐन ईमान है।
*5.* अल्लाह तआला के इल्म की मखलूक के इल्म से वह निसबत भी नहीं जो करोड़ों समन्दरों को पानी की एक बूंद के कराडवें हिस्से से है।
*यह हैं अहले सुन्नत के अकाइद।*
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* वाह वाह सुब्हानल्लाह क्या बात कह दी जब अल्लाह पाक ने अपने आप को आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से न छुपाया तो और क्या छुपा होगा।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* हमारा आपका अक़ीदा है कि कुरआन पाक में हर चीज़ का बयान है और कुरआन को सबसे ज्यादा कौन समझता है जिब्रील अलैहिस्सलाम या हमारे हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* बेशक हमारे हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से ज़्यादा कुरआन को कौन जाने इसमें क्या शुबा।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* सूरह रहमान की पहली आयत का तर्जमा है कि रहमान ने अपने महबूब को कुरआन सिखाया यह सिखाना हम जैसों सा तो नहीं होगा कि कभी कुछ तिलावत पढ़ सीख ली कभी कुछ तर्जमा व तफ़सीर अरे सिखाने वाले और सीखने वाले पर नजर रखो सब समझ आ जाएगा अब और बेकार की अड़ लगा लो कि वह हम जैसे ही बशर थे तो क्या ईमान बचा पाओगे अभी वक्त है उनके इल्म का इन्कार करके उनकी तौहीन न करो।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* हज़रत बोलते रहिए ईमान ताज़ा हो रहा है।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* डाक्टर से दवा लो फायदा भी हो और उससे कहो कि तुम्हें इल्म नहीं है यह कहाँ की शराफ़त है। जरा एक मामूली पुलिस वाले से कहो कि तुम्हारा इल्म जाती तो हो नहीं सकता अताई है और ऐसा अताई इल्म तो पागलों और बच्चों को भी होता है तो शायद ज़बान से नहीं अपने बेंत से समझाएगा।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* और हदीसों से हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का कितना इल्म साबित है।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को तमाम अव्वलीन व आख़रीन का इल्म अता फरमाया गया मशरिक से मग़रिब तक, अर्श से फर्श तक सब उन्हें दिखाया, आसमानों व ज़मीन का गवाह बनाया रोज़े अव्वल से रोजे आखिर तक सब माकान व मायाकून (जो कुछ हो चुका और जो होने वाला है) सब उन्हें बताया।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* कुछ मरदूद कहते हैं कि उन्हें दीवार पीछे का इल्म नहीं।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* ऐसा मानने वाले वाक़ई मरदूद व काफ़िर व मुरतद है।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* इल्मे गैब के बारे में बहुत कुछ मालूम हो गया अब किसी दूसरे टापिक पर आते हैं लेकिन एक बात और बतायें यह जो कुरआन में आया कि पानी कब बरसेगा, माँ के पेट में क्या है, कल क्या होगा, कौन कब मरेगा, कियामत कब आएगी इसका इल्म सिर्फ अल्लाह ही को है।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* वही जवाब है कि जब अल्लाह पाक ऐसा फ़रमाए तो समझो कि यह जाती इल्म की बात है।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* मौसम विभाग तो पहले ही बता देता है कि पानी कब बरसेगा तूफ़ान कब आएगा, माँ के पेट में लड़का है या लड़की यह अल्ट्रासाउन्ड से पता चल जाता है क्या यह शिर्क होगा।
••• ➲ *मुफ्ती साहब ::* हांलाकि मौसम विभाग का अनुमान गलत भी हो सकता है मगर मौसम विभाग जो पेशीनगोई करता है वह किसी उपकरण के वसीले होता है और यह अताई इल्म से है और अल्लाह ही की अता है जो इसे अल्लाह की अता न मान कर सिर्फ साइंसी ईजाद माने वह अपने लिए खुद ही समझ ले कि क्या हुक्म है। अरे जिनको मुबारक उंगलियों से पानी के चश्मे जारी हो जायें जिनकी दुआ से लगातार हफ्ते भर पानी बरसे उनसे पानी बरसने जैसा इल्म छुपाया जाएगा हाँ छुपाने का हुक्म दिया जा सकता है और ऐसा ही। बिल्कुल यही बात अल्ट्रासाउन्डा से माँ के पेट या पेट के दूसरे हाल बताना सब अल्लाह की अता से है।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* क्या कभी हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने पेट का हाल बताया।
••• ➲ *मुफ़्ती साहब :* हाँ बल्कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के ख़ास यार हज़रते अबूबक्र सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हु ने अपनी बेटी हज़रते आइशा सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा से फ़रमाया ऐ बेटी जो बाग तेरे पास है उसमें तेरी बहनों का भी हिस्सा है जबकि वह बहन अभी माँ के पेट में थीं। यहाँ तो कोई अल्ट्रासाउन्ड भी नहीं अल्लाह के अता किए हुए इल्म से ही था।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* मरने के बारे में।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जंगे बदर में एक दिन पहले ही बता दिया था कि कौन कहाँ मरेगा और वह वहीं मरा। इसके अलावा आप तो यह भी जानते हैं कि कौन जन्नत में जाएगा कौन जहन्नम में।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* कियामत के इल्म के बारे में वज़ाहत करें।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को कियामत का इल्म भी है मगर उसे छुपाने का हुक्म था।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* मशहूर है कि कियामत तो अशरे को जुमा के दिन आयेगी।
••• ➲ *मुफ़्ती साहब :* हाँ बेशक इसी बात से साबित कि हमारे हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को कियामत का इल्म है तभी तो उन्होंने दिन व महीना व तारीख़ बता और सन् कर बात भी छुपा दी यानी अल्लाह ने उन्हें यही हुक्म दिया कि बस इतना ही बताना है। अब अगर हम उसी बात पर अड़े रहें कि तो ख़ुद ही फंस गए कि कहाँ जायें और जाती व अताई का फर्क समझा लें तो सब बात हल अक़ीदा दुरुस्त।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* काश हम इतनी सी बात को साफ़ कर लें कि जाती व अताई का फ़र्क समझ ले।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* अरे उन्हें तो यह भी मालूम है कि कियामत में क्या क्या होगा, कौन जन्नत में जाएगा और कौन जहन्नम में और कब किस किस को आप जहन्नम से निकाल कर लायेंगे। लोग किस किस के पास मदद को जायेंगे। अब जरा अक्ल से सोचो कि क्या अल्लाह ने उनसे सन् छुपाई या छुपाने का हुक्म दिया और बिलफर्ज यह मान भी लिया जाए कि उन्हें सन् नहीं मालूम तो हमने कब यह दावा किया कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इल्म अल्लाह के बराबर है या कुल इल्म आपको है कुल इल्म तो सिर्फ अल्लाह ही को है। मखलूक में जितना भी इल्म किसी को मिलता है तो क्या वह सबका सब दूसरों को बता देता कुछ बताता है कुछ भूलता है कुछ जानबूझ कर नहीं बताता। हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भूले नहीं जहाँ दिन तारीख़ महीना बताया वहाँ सन् भी बता सकते थे बल्कि छुपाने का हुक्म था।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* एक बात और यह बतायें कि जहाँ हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने खुद यह कहा कि मुझे नहीं मालूम यानी इससे ज़ाहिर हुआ कि हुजूर सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम को नहीं मालूम आपने किसी से पूछा कि यह क्या है या वह क्या है तो इससे भी यही मालूम होता है कि उन्हें मालूम नहीं या इल्म नहीं।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* अब जो ऐब ही निकालना चाहे और उसके नफ़्स की शामत जब अबू जहल जैसे के हाथ में कंकरियों ने कलिमा पढ़ा और वह न माना। फिर भी इसका वही जवाब कि हमारा दावा कुल इल्म का नहीं दूसरे हुजूर के ऐसा फ़रमाने का मतलब अपने लिए जाती इल्म का इन्कार है रहा सवाल पूछने की बात तो पूछने से हर बार यह साबित नहीं होता कि इल्म नहीं। कुरआन में आया कि अल्लाह पाक ने हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम से पूछा कि ऐ मूसा तुम्हारे हाथ में क्या है तो आपने जवाब दिया कि मेरे हाथ में असा है मैं इससे टेक लगाता हूँ दरख्त से पत्ते तोड़ लेता हूँ जानवर को भगा देता हूँ। अब जरा सोचिए कि क्या अल्लाह तआला को नहीं मालूम कि हुज़रते मूसा अलैहिस्सलाम के हाथ में क्या है। हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम ने यह क्यूँ न कहा कि ऐ अल्लाह तू जानता है फिर क्यूँ पूछ रहा है बल्कि असा के काम गिना दिए जबकि अल्लाह तो सब जानता है। अल्लाह ने शैतान से पूछा कि तूने सजदा क्यूँ नहीं किया क्या अल्लाह को नहीं मालूम था। मतलब यह कि हर बार ऐसा नहीं है कि पूछने वाला अन्जान हो।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* एक एतराज़ कुछ लोग करते हैं कि मुनाफ़क़ीन ने जब हज़रते आइशा सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा पर तोहमत लगाई तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम क्यूँ कई दिन तक परेशान रहे अगर आपको इल्मे गैब होता तो क्यूँ अपनी बीवी के बारे में ख़ामोश रहते ?
••• ➲ *मुफ़्ती साहब :* बुख़ारी शरीफ़ में है हज़रते आइशा सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा के हक में आपकी पाकी की आयत के नाज़िल होने से पहले आपने इरशाद फ़रमाया कि ख़ुदा की कसम मैं अपनी बीवी के मुताल्लिक सिवाए अच्छाई और पाक दामनी के और कुछ नहीं जानता। परेशान होने की वजह यह घिनौना झूटा इल्जाम था और जब इल्जाम झूटा हो तो कौन न परेशान होगा। और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की खामोशी में राज़ यह भी था कि गवाही अल्लाह की आना थी और मुनाफेकीन का निफाक खुलना था। अगर आपको इल्म न होता तो आप कसम न खाते।
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*❝ आओं हक़ीक़त को समझें! ❞*
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* फ़िरिश्ते अल्लाह तआला का लश्कर हैं और अल्लाह तआला फ़रमाता है कि अल्लाह तआला के सिवा उनके लश्कर को कोई नहीं जानता।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* तमाम फ़िरिश्ते नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर दुरूद भेजते हैं और नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम सुनते हैं तो क्या उनको तादाद न मालूम होगी। और मशहूर हदीस है कि 70000 फ़िरिश्ते रोज़ अल्लाह तआला पैदा फरमाता है जो आपकी बारगाह में हाजरी देते और दुरूद पढ़ते हैं और दोबारा नहीं आते। काश जाती व अताई का फर्क समझ लेते तो यह न कहते।
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*❝ आओं हक़ीक़त को समझें! ❞*
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* जंगे खैबर की फ़तह के बाद यहूदियों ने एक औरत को ज़हर आलूदा गोश्त लेकर नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पास भेजा और आपने उसे खाया अगर आपको इल्मे गैब होता तो क्यूँ खाते ?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* काश बुख़ारी शरीफ़ की पुरी हदीस पढ़ी होती कि इसमें यह भी है कि उन यहूदियों के बापों के नाम आपने सही बता दिए जो कि वो छुपा रहे थे। और आपने उस औरत को बता दिया कि इस गोश्त ने मुझे बताया है कि तूने ज़हर मिलाया है। वह औरत आपके नबी होने का इम्तहान लेने आई थी कि अगर आप नबी होंगे तो गोश्त नुकसान न करेगा। लिहाज़ा आपने खाया और नुकसान न हुआ और आप सच्चे साबित हुए। इस हदीस से तो आपका सच्चा होना और इल्मे गैब दोनों साबित होते हैं।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* एक एतराज़ यह भी है कि मिश्कात शरीफ़ में है कि नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने एक मरतबा फ़रमाया कि कियामत के दिन कुछ लोग मेरे सहाबा में पकड़े जायेंगे और फ़िरिश्ते उनको पकड़ कर जहन्नम की तरफ़ ले जा रहे होंगे तो मैं कहूंगा कि ऐ मेरे रब ये तो मेरे सहाबी हैं तो अल्लाह तआला फरमाएगा कि ऐ मेरे महबूब आप नहीं जानते कि आपके बाद ये लोग क्या करते रहे ? इस हदीस से साबित हुआ कि हुजूर को मुनाफेकीन का इल्म नहीं था।
••• ➲ *मुफ़्ती साहब :* काश ऐसे एतराज़ करने से पहले ज़रा गौर कर लेते कि यह होगा अभी हुआ नहीं और हुजूर ने पहले ही ख़बर दे दी तो यह गैब नहीं तो और क्या है।
••• ➲ *📕 तफसीर ख़ाज़िन जिल्द अव्वल में है कि* अल्लाह ने आपको मुनाफेकीन के मक्र व फरेब का भी इल्म दिया था। रहा बख्श्शि का सवाल तो यह सभी मानते हैं कि मुनाफेकीन और बेईमान न बख़्शे जायेंगे।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* मेरे ख्याल से काफ़ी हो गया अब टापिकं चेंज करा जाए। बात साफ़ हो चुकी। और फिर जिस पर कुरआन उतरा उसे क्या क्या न अता होगा।
••• ➲ *मुफ़्ती साहब :* जी बिल्कुल सही फ़रमाया। आख़िर में यह भी सुन लीजिए कि कुछ हदीसों का मफ़हूम है कि एक बार हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने कियामत तक जो होने वाला है, जन्नितयों के जन्नत में जाने और दोज़खियों के दोज़ख़ में जाने तक की बातें बताई जिसे जो याद रहा उसने याद रखा।
••• ➲ 📕 *हवाले भी सुन लीजिए*
👉🏻 *1.* सहीहैन बुख़ारी व मुस्लिम में हज़रते हुजैफा रयिल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है।
*👉🏻 2.* अहमद 'ने मुसनद में, बुख़ारी ने तारीख़ में, तबरानी ने कबीर में हज़रते मुगीरा इब्ने शैबा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत किया
*👉🏻 3.* सही बुख़ारी व मुस्लिम में हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत किया।
••• ➲ मेरे ख्याल से कुरआन हदीस अक्ली दलाइल से साबित हो गया हमारे आका हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को अल्लाह ने इल्मे गैब तमाम मखलूक से ज़्यादा अता फरमाया। नबी के मअना ही गैब की ख़बर देने वाला है और फिर जिसके जरिए इतना बड़ा काम होना है तो क्यूँ न उसे इल्म ताक़त और इख़्तेयार दिया जाएगा।
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🌟 *हाज़िर ओ नाज़िर* 🌟
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* हाज़िर ओ नाज़िर के शरई माअना क्या हैं ?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* आसान लफ़्ज़ों में हाज़िर को यूँ कहें कि हाजिर वह है जो एक जगह बैठे हुए ही उस जगह पहुँच सके या मौजूद हो और उस जगह पर तसर्राफ कर सके (यानी काम या मदद कर सके) जहाँ के लिए उसे हाज़िर कहा गया और नाज़िर वह जो अपनी आँख से उसे वह देख रहा हो जहाँ के लिए उसे नाज़िर कहा गया है।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* एक जगह से बैठे हुए देखे वह कैसे ?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* बल्कि एक जगह से बैठे हुए तमाम आलम को ऐसे देखे जैसे अपने हाथ की हथेली को देखता है।
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🌟 *हाज़िर ओ नाज़िर* 🌟
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* अच्छा! देखे भी और पहुँच भी जाए और कोई काम या मदद भी कर सके।
••• ➲ *मुफ़्ती साहब :* जी हाँ ! देखे ही नहीं बल्कि एक ही आन (चन्द सेकेण्ड) में तमाम आलम की सैर करे और मीलों दूर के हाजतमन्दों की हाजत पूरी करे और रफ़तार सिर्फ रूहानी हो या जिस्मे मिसाली के साथ हो या उसी जिस्म से जो कब्र में दफ़्न है या किसी जगह मौजूद हो।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* क्या यह ऐसा बुनियादी अकीदा है कि इसका इन्कार करने वाला काफ़िर हो जाएगा ?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* नहीं हाज़िर ओ नाज़िर के अक़ीदे का इन्कार करने वाले को काफ़िर नहीं कहा जएगा।
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🌟 *हाज़िर ओ नाज़िर* 🌟
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* क्या कुआन से हाज़िर ओ नाज़िर के अकीदे का सुबूत मिलता है ?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* हाज़िर ओ नाज़िर के सुबूत में कुछ आयते कुआनी का तर्जमा पेश है!
••• ➲ *{1}* ऐ गैब की ख़बरें बताने वाले बेशक हमने तुमको भेजा हाज़िर नाज़िर और खुशखबरी देता और डर सुनाता और अल्लाह की तरफ़ उसके हुक्म से बुलाता और चमका देने वाला आफ़ताब।
••• ➲ *{2}* और अगर ज़ब वह अपनी जानों पर जुल्म करें तो ऐ महबूब तुम्हारे हुजूर हाज़िर हों फिर अल्लाह से माफ़ी चाहें और रसूल उनकी शफाअत फ़रमा दें तो ज़रूर अल्लाह को बहुत तौबा कबूल करने वाला मेहरबान पायें।
••• ➲ *{3}* और हमने तुमको न भेजा मगर रहमत सारे जहाँ के लिए और दूसरी जगह फ़रमाया मेरी रहमत हर चीज़ को घेरे
••• ➲ *{4}* नबी मुसलमानों से उनकी जानों से ज़्यादा करीब हैं। इन आयात से साबित हुआ हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम गैब की ख़बर देने वाले, हमें अल्लाह का डर सुनाने वाले अल्लाह की तरफ़ बुलाने वाले, शफाअत करने वाले, हमारी जान से ज़्यादा करीब, हमें हर आन देखने वाले, हमारी हर आन बातें सुनने वाले, हमारी मदद करने वाले जब चाहें, हमारे लिए ही नहीं तमाम आलम के लिए रहमत और हाज़िर ओ नाज़िर हैं।
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🌟 *हाज़िर ओ नाज़िर* 🌟
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* कुछ हदीसें जिनसे हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इल्मे गैब और हाज़िर ओ नाज़िर का सुबूत मिलता है सुनाईये!
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* चन्द हदीसें हाज़िरे खिदमत है!
*1.* हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया मैं तमाम आलम को अपनी हथेली की तरह देख रहा हूँ। हम पर हमारी उम्मत अपनी सूरतों में पेश हुई और हम उनके नाम हुए है। उनके बाप दादाओं के नाम उनके घोड़ों के रंग जानते हैं वगैरह वगैरह।
*2.* कब्र में फ़िरिश्ते पूछते हैं कि तुम उनके बारे (मुहम्मदुरसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) में क्या कहते थे।
*3.* एक शब हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम घबराए हुए बेदार हुए फरमाते थे कि सुब्हानल्लाह इस रात में किस कद्र खज़ाने और किस कद्र फ़ितने उतारे गए हैं।
*4.* हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया तुम्हारी मुलाकात की जगह हौज़े कौसर है उसको इसी जगह से देख रहा हूँ।
*5.* हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मदीने पाक की एक पहाड़ी पर खड़े हो कर सहाबए किराम से पूछा कि जो मैं देख रहा हूँ क्या तुम भी देखते हो ? अर्ज़ किया कि नहीं। फ़रमाया मैं तुम्हारे घरों में बारिश की तरह फ़ितने गिरते हुए देखता हूँ।
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🌟 *हाज़िर ओ नाज़िर* 🌟
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* वहाबी लोग इस बारे में क्या कहते हैं!?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* उनके यहाँ हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को हाज़िर ओ नाज़िर मानना कुफ्र व शिर्क है।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को हाज़िर ओ नाज़िर कहने अल्लाह तआला से बराबरी नहीं हो रही है क्या ?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* नहीं ! वह इस लिए कि अल्लाह तआला को हाज़िर ओ नाज़िर कहना जाइज़ नहीं। वह इसलिए कि अल्लाह तआला जगह व मकान से पाक है और अल्लाह नाजिर है मगर अल्लाह आँख से नहीं देखता लिहाज़ा अल्लाह के लिए आँख से देखना नहीं। (अल्लाह की शान इससे कहीं ज़्यादा अरफ़ा व आला है यह हमारी समझ से बाहर है अल्लाह व रसूल ही जाने)
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* कुछ लोग घर में जाते हैं तो नबी पर सलाम अर्ज करते हैं क्या इसी लिए कि आप हाज़िर ओ नाज़िर हैं?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* शिफ़ा शरीफ़ में है जब घर में कोई न हो तो तुम कहो कि ऐ नबी तुम पर सलाम और अल्लाह की रहमतें और बरकतें हों।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* क्या हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जिन्दा हैं और हमें देख रहे हैं?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* हर नबी जिन्दा हैं उन्हें सिर्फ एक आन के लिए मौत आती है। इमाम कुस्तंलानी माहिब में फ़रमाते हैं हमारे उल्मा ने फ़रमाया हुजूर अलैहिस्सलाम की जिन्दगी और वफ़ात में कोई फर्क नहीं अपनी उम्मत को देखते हैं और उनके हालात नियतों, इरादों और दिल की बातों को जानते हैं यह आपको बिल्कुल ज़ाहिर हैं इसमें पोशीदगी नहीं।
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••• ➲ *अब्दुल्लाह :* क्या मस्जिद में जाने पर भी हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को सलाम करना चाहिए और दुरूद भी पढ़ना चाहिए ?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* इमाम गजाली रयिल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं कि जब तुम मस्जिदों में जाओ तो हुजूर अलैहिस्सलाम को सलाम अर्ज करो क्यूँकि आप मस्जिदों में मौजूद हैं।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* आपने बताया था कि नमाज़ में हुजूर के ख्याल आने को वहाबी बुरा जानते हैं। मैंने सुना है कि नमाज़ चूंकि अल्लाह ही के लिए ख़ास इबादत है इसलिए वहाबियों का कहना है कि किसी और का ख्याल लाना शिर्क होता है हमारे बुजुर्गों में भी इस बारे में कुछ लिखा है।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* नमाज़ में हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का ख्याल आने के कुछ कौल ये हैं जिनसे हुजूर के हाज़िर ओ नाज़िर होने का सुबूत भी मिलता है।
*1.* मदारिजुन्नुबुव्वत में है बाज़ आरफीन ने कहा है कि अत्तहिय्यात में यह खिताब इसलिए है कि हकीकते मुहम्मदिया मौजूदात के जर्रा ज़र्रा में और मुमकिनात के हर फ़र्द में सरायत किए हुए है बस हुजूर अलैहिस्सलाम नमाजियों की ज़ात में आगाह रहे और इस से गाफिल न रहे ताकि कुर्ब के नूर और मारिफ़त के भेदों से कामयाब हो जाए।
*2.* इहयाउल उलूम में इमाम गजाली फरमाते हैं नमाज़ के कादा में 'अत्तहियात' में जब नबी को सलाम करने का वक्त आए तो अपने दिल में नबी अलैहिस्सलम को और आपकी ज़ाते पाक को हाज़िर जानो और कहो "अस्सलामुअलैका अय्युहन्नबीय्यु व रहमतुल्लाहि व बराकातुह"
*3.* हजूर अलैहिस्सलाम को नमाज़ में खिताब किया गया गोया कि यह इस तरफ इशारा है कि अल्लाह तआला आपको उम्मत में नमाजियों का हाल आप पर जाहिर फरमा देता है हत्ताकि आप मिस्ल हाज़िर के होते हैं उसके आमाल हो समझने में और इसलिए कि आप की हाज़री का खुशूअ व खुजूअ की ज़्यादती का सबब हो जाए।
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🌟 *हाज़िर ओ नाज़िर* 🌟
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के अलावा भी किसी और को हाजिर ओ नाज़िर कह सकते हैं ?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* हाज़िर ओ नाजिर की परिभाषा के तहत अगर देखें तो मखलूक में कुछ और भी हस्तियों हाजिर ओ नाजिर है तीन मिसाल में पेश करता हूँ समझने के लिए काफ़ी हैं *जैसे :*
*1.* मलिकुल मौत के लिए सारी ज़मीन तश्त की तरह कर दी गई है कि जहाँ से चाहें लें उन्हें रूहें कब्ज़ करने में कोई दुश्वारी नहीं अगरचे रूहें ज़्यादा हों और अलग अलग जगहों पर हों।
*2.* जब हम सोते हैं तो हमारी रूह जिस्म से निकल कर आलम में सैर करती है, अचानक जब कोई हिलाता है तो एक आन में रूह वापस आ जाती है।
*3.* हज़रते जिबील का एक आन में हाज़िर व नाज़िर होना।
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* इस तरह क्या शैतान को भी हाज़िर व नाज़िर कह सकते हैं ?
••• ➲ *मुफ़्ती साहब :* शैतान मखलूक को बहकाने के लिए सबको देख रहा है और हर जगह पहुँच जाता है यहाँ तक कि दिलों में वसवसे डालता है और अल्लाह ने उसे बहुत ताक़त दी है मगर इसको हाज़िर व नाज़िर कहना मना है।
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🌟 *हाज़िर ओ नाज़िर* 🌟
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और नबियों के ज़िन्दा होने के सुजूत में कोई ऐसा हवाला दें जिन्हें वहाबी भी मानतें हों ?
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सीरत पर शाह मुहदिस अब्दुल हक़ देहलवी की लिखी किताब मदारिजुन्नुबुव्वत के हिस्सा अब्बल के सफा 576 पर लिखा है *"अल्लाह के नबी दुनियावी ज़िन्दगी की हयात के साथ जिन्दा हैं"*
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* अगर कोई यह कहे कि जब हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जिन्दा हैं हाजिर ओ नाज़िर है तो दिखाई क्यूँ नहीं देते।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* जिस तरह जिन्नं व फ़िरिश्ते और कुछ और अल्लाह की मखलूक जैसे हवा, ख़ुशबू, बदबू, मज़ा, सोचना, महसूस-करना, आवाज़, बिजली का करन्ट, तस्वीरों का आना जाना, इन्टरनेट वगैरह हमें दिखाई नहीं देते। इसी तरह अम्बिया व औलिया भी मरने के बाद जिन्दा हो जाते हैं और हमें दिखाई नहीं देते और अल्लाह की दी हुई ताकत व अपने मरतबे के मुताबिक हाज़िर वा नाज़िर हैं।
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🌟 *हाज़िर ओ नाज़िर* 🌟
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* हाज़िर व नाज़िर के सुबूत में कुछ और अक्ली दलाइल पेश करें!
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* लिजिए बहुत से दलाइल सुनिये!
*1.* हदीस में है कि दुनिया काफ़िर के लिए जन्नत है और मोमिन के लिए कैदखाना। मरने के बाद मोमिन बे रोक टोक जहाँ तक अल्लाह चाहे जाता आता है सैर करता है यानी अपनी हदों में हाज़िर व नाज़िर है।
*2.* अल्लाह की राह में जो लोग शहीद होते हैं उनका मरने के बाद जिन्दा रहना कुरआन से साबित है।
*3.* अल्लाह की राह शहीद को मरने के बाद एक बहुत बड़ी जगह में हाजिर व नाजिर कहा जा सकता है।
*4.* हदीस में नफ्स से जिहाद करने को शहीदे अकबर बताया गया है क्या इस बड़े जिहाद में कामयाब होने वाले भी जिन्दा हैं मसलन औलिया अल्लाह।
*5.* जब शहीदे असगर व शरीदे अकबर जिन्दा हैं तो क्या अम्बिया भी जिन्दा और उनसे भी ज़्यादा दूर जाने आने वाले और सैर करने वाले है।
*6.* कसरत से दुरूद पढ़ने वाले को मिट्टी नहीं खाती यानी वह जिन्दा रहता है और उसकी रूह फिर जिस्म में लौट आती है और घूमता फिरता आता जाता सैर करता है जैसा अल्लाह चाहे लिहाजा वह अपनी हदों में हाज़िर वा नाज़िर है।
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🌟 *हाज़िर ओ नाज़िर* 🌟
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* हाज़िर व नाज़िर के सुबूत में कुछ और अक्ली दलाइल पेश करें!
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* लिजिए बहुत से दलाइल सुनिये!
*7.* किसी ने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को ख्वाब में देखा और अपना कोई पेचीदा मसअला उनसे पूछा और उन्होंने उसे जवाब दिया ज़ाहिर है जवाब सही है और एक ही वक्त में हज़ारों लोगों के साथ ऐसा हुआ क्या इससे साबित होता है कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हाज़िर व नाज़िर हैं।
*8.* मरने के बाद नई ज़िन्दगी आलमे बरज़ज़ में शुरू होती है जहाँ अज़ाब व सवाब होता है यह बात सभी के लिए कुरआन व हदीस से साबित है और हर ख़ास व आम के लिए है और अज़ाब व सवाब जिस्म व रूह दोनों पर होता है। मरने के बाद शहीद आम लोगों से अफ़ज़ल हैं और तमाम नबी शहीदों से अफ़ज़ल हैं।
*9.* शिफा शरीफ़ में है कि जब तुम किसी ख़ाली मकान में दाखिल हो नबी (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) पर सलाम अर्ज़ करो क्यूँकि नबी की मुबारक रूह मकान अन्दर तशरीफ़ फ़रमा है। क्या यह सही है।
*10.* जब मुसलमानों के घरों में हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की रूह तशरीफ़ फ़रमा है तो क्या महफ़िले मीलाद में आप (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) की रूह नहीं आ सकती ? बेशक आ सकती है और मुसलमानों के करोड़ों घर है लिहाज़ा आप हाजिर व नाज़िर है।
*11.* हदीस में है कि जो मेरा जिक्र करता है मैं उसका हमनशीन होता हूँ हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हर जिक्र करने वाले के पास हाजिर वा नाज़िर हैं।
*12.* शबे मेराज तमाम नबियों ने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की इमामत में नमाज़ पढ़ी। क्या इससे साबित होता है कि तमाम नबी अपने जिस्म के साथ जिन्दा हैं।
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🌟 *बशरियत* 🌟
••• ➲ *अब्दुल्लाह :* कुछ लोग कहते हैं कि हम भी इन्सान हैं हुजूर भी इन्सान लिहाजा वह हम जेसे बशर हुए। हालांकि मैं समझता हूँ कि यह बेअदबी है वह तो सरापा नूर हैं, सबसे आला बशर अल्लाह के नूर हैं। उनकी बेमिस्ल बशरियत पर जो बशर तो हैं मगर हम जैसे बशर नहीं ऐसी रोशनी डालें कि ईमान ताज़ा हो जाए।
••• ➲ *मुफ्ती साहब :* हालांकि आपके सवाल में ही आपका जवाब है मगर आपका तकाज़ा कुछ और है। जिस तरह अल्लाह तबारक व तआला अपनी ज़ात में अकेला है उसका कोई शरीक और साझी नहीं एक ही उसने अपने महबूब को भी बेमिस्ल बनाया है। अल्लाह ने आपको अपने नूर से पैदा फ़रमाया और आपके नूर से तमाम मखलूक को पैदा फ़रमाया। मखलूक में अपकी मिस्ल आपकी तरह और आप के बराबर कोई न है न हुआ है और न होगा। आप सारे औसाफ़ में सबसे जुदा हैं आपकी शान निराली है आपकी जात अनोखी है आपकी हर अदा बेमिसाल है आपको अपने जैसा बशर कहना या समझना कुफ्र है क्यूँकि यह कुरआन हदीस की मुखलिफ़त है। अब मैं आपको सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की चन्द् खुसूसियात बताता हूँ जो कि कुरआन और हदीसों से साबित हैं जिसमे जवाब भी हो जाए और ईमान को ताज़गी भी मिले।
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🌟 *बशरियत* 🌟
••• ➲ *अल्लाह तआला का फरमान है* कि ऐ महबूब अगर आपको पैदा न करना होता तो कुछ पैदा न करता यहाँ तक कि अपना रब व इलाह (माबूद, पूजा के काबिल) होना भी जाहिर न करता।
••• ➲ आप पैदाइश के एतबार से 'अव्वलुल अम्बिया' यानी सबसे पहले नबी हैं जैसा कि हदीस शरीफ़ में है कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को उस वक्त नुबुव्वत मिल चुकी थी जबकि हज़रते आदम अलैहिस्सलाम जिस्म व रूह की मन्ज़िलों से गुजर रहे थे।
••• ➲ अल्लाह तआला ने सबसे पहले आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के नूर को पैदा फ़रमाया और आपके नूर से तमाम मखलूकात को पैदा फ़रमाया : जिसको भी जो मिलता है हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के वसीले से ही मिलता है। हर नबी व वली आप ही से फैज़ पाकर किसी मरतबे पर पहुँचता है।
••• ➲ अल्लाह तआला हर चीज़ का हक़ीक़ी मालिक है और हुजूर अल्लाह की अता से हर चीज़ के मालिक व मुख्तार हैं. बल्कि मुख्तारे कुल हैं। अल्लाह तआला ने अपनी शरीअत का आपको मुख़्तार बना दिया है। आप जिसके लिए जो चाहें हलाल फ़रमा दें और जिसके लिए जो चाहें हराम फरमा दें मसलन हज़रते सुराका रदियल्लाहु तआला अन्हु के लिए आपने सोने के कंगन पहनना हलाल कर दिए, एक आराबी के लिए तीन ही वक्त की नमाज़ फ़र्ज़ फ़रमा दी, मौला अली रदियल्लाहु तआला अन्हु के लिए हज़रते फ़ातिमा रदियल्लाहु तआला अन्हा के होते दूसरा निकाह हराम फ़रमा दिया।
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🌟 *बशरियत* 🌟
••• ➲ आप बादे विसाल भी जिन्दा हैं, नबियों को वादए इलाही के मुताबिक़ एक आन को मौत आती है। आप मदद फ़रमाते हैं, बलाओं व वबाओं को दूर फ़रमाते हैं। हुजूर से डाइरेक्ट मांगना भी जाइज़ है। आप जिसे जो चाहें अल्लाह के हुकूम से अता फरमाते हैं। आप मुर्दों तक को जिंदा फरमाते हैं।
••• ➲ नबी के मअना ही हैं गैब की ख़बर देने वाला। तमाम नबियों को गैब का इल्म दिया जाता है जैसा कि अल्लाह का फ़रमान है कि अल्लाह किसी को गैब का इल्म नहीं अता करता मगर चुन लेता है जिसे चाहे और उन्हें गैब दिया जाता है। और बेशक चुनने में सबसे ज़्यादा हक़दार अम्बिया ही होते हैं और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम तो तमाम नबियों के इमाम हैं। आपको तमाम मखलूक में सबसे ज्यादा इल्म और इल्मे गैब अता हुआ यहाँ तक कि खुद अल्लाह पाक ने अपने आपको भी आपसे नहीं छुपाया। आप क़ियामत तक की हर छुपी हुई बात जानते हैं बल्कि आपने कियामत, जन्नत व दोज़ख़ तक की बातें आने से पहले ही हमें बता दी। यह सब कुछ अल्लाह की अता ही से है।
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🌟 *बशरियत* 🌟
••• ➲ हमारे हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हाजिर व नाज़िर है। इसका मतलब यह है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब चाहें अपने जिस्म के साथ हर जगह हाजिर हो सकते हैं और आप अपनी आंखों से सब कुछ देख रहे हैं यानी नाजिर है। अर्श से फर्श तक आप हर जगह हाज़िर व नाज़िर हैं। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शफाअत कुरआन व हदीस से पूरी तरह साबित है । शफाअत सिर्फ उनके लिए नहीं जो शफाअत का इन्कार करें।
आप आख़िरी नबी हैं।
••• ➲ आपका मुकद्दस नाम अर्श और जन्नत की पेशानियों पर तहरीर किया गया। तमाम आसमानी किताबों में आपकी बशारत दी गई।
••• ➲ आपकी विलादत के वक़्त तमाम बुत औंधे होकर गिर पड़े। आपका शक्के सदर हुआ यानी जिब्रीले अमीन ने आपका सीनए मुबारक चीर दिया और दिल निकाल कर उसको ज़मज़म शरीफ़ से धोकर फिर दुरुस्त कर दिया।
••• ➲ आपको मेराज का शरफ़ अता किया गया और आपकी सवारी के लिए बुराक पैदा किया गया।
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🌟 *बशरियत* 🌟
••• ➲ आप पर नाज़िल होने वाली किताब तब्दील व तहरीफ़ से महफूज़ कर दी गई यानी कुरआने पाक में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। क़ियामत तक कुरआन की बका व हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी अल्लाह तआला ने अपने ज़िम्मे करम पर ली।
••• ➲ अपको आयतुल कुर्सी अता की गई।
••• ➲ आपको तमाम ज़मीनी ख़ज़ानों की कुंजियाँ अता कर के अल्लाह तआला आपको मालिक बना दिया।
••• ➲ आपको जामेउल कलिम के मोजिज़े से सरफ़राज़ किया गया यानी आप छोटे जुमलों में वह बात कह देते जो कोई दूसरा नहीं कह सकता और अक्ल की समझ से यह बात बाहर होती कि ऐसी बात कैसे कह दी।
••• ➲ आपको रिसालते आम्मा के शरफ से मुमताज़ किया गया यानी आप नबियों, फ़िरिश्तों, इन्सानों और जिन्नों सभी के रसूल हैं।
••• ➲ आपकी सच्चाई को साबित करने के लिए, आपको चाँद के दो टुकड़े करने का मोजिज़ा अल्लाह तआला ने अता फ़रमाया।
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🌟 *बशरियत* 🌟
••• ➲ आपके लिए माले गनीमत को अल्लाह तआला ने हलाल कर दिया।
••• ➲ आपके लिए अल्लाह तआला ने तमाम ज़मीन को मस्जिद बना दिया यानी हर पाक जगह पर आदमी नमाज़ पढ़ सकता है और उससे पाकी हासिल कर सकता है यानी तयम्मुम करना मिट्टी से जाइज़ किया गया।
••• ➲ आपके बाज़ मोजिज़ात मसलन कुरआन मजीद कियामत तक बाकी रहेंगे। अल्लाह पाक ने तमाम अम्बिया को उनका नाम लेकर पुकारा भगर आपको अच्छे -2 अल्काब से पुकारा।
••• ➲ अल्लाह तआला ने आपका सर 'हबीबुल्लाह' के लकब से बलन्दः फरमाया।
••• ➲ अल्लाह तआला ने कुरआन पाक में आपकी रिसालत, आपकी हयात, आपके शहर आपके ज़माने की कसम याद फ़रमाई।
••• ➲ आप तमाम औलाद आदम के सरदार हैं। आप अल्लाह पाक के दरबार में अकरमुल - ख़ल्क हैं यानी तमाम मखलूक में सबसे ज्यादा इज्जत वाले हैं।
••• ➲ कब में आपकी ज़ात के बारे में मुन्कर नकीर सवाल करेंगे।
••• ➲ आपके बाद आपकी बीवियों के साथ निकाह करना हराम ठहराया गया।
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🌟 *बशरियत* 🌟
••• ➲ दील व तहरीफ़ से महफूज़ कर दी गई यानी कुरआने पाक में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। क़ियामत तक कुरआन की बका व हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी अल्लाह तआला ने अपने ज़िम्मे करम पर ली।
अपको आयतुल कुर्सी अता की गई।
••• ➲ आपको तमाम ज़मीनी ख़ज़ानों की कुंजियाँ अता कर के अल्लाह तआला आपको मालिक बना दिया।
••• ➲ आपको जामेउल कलिम के मोजिज़े से सरफ़राज़ किया गया यानी आप छोटे जुमलों में वह बात कह देते जो कोई दूसरा नहीं कह सकता और अक्ल की समझ से यह बात बाहर होती कि ऐसी बात कैसे कह दी।
••• ➲ आपको रिसालते आम्मा के शरफ से मुमताज़ किया गया यानी आप नबियों, फ़िरिश्तों, इन्सानों और जिन्नों सभी के रसूल हैं।
••• ➲ आपकी सच्चाई को साबित करने के लिए, आपको चाँद के दो टुकड़े करने का मोजिज़ा अल्लाह तआला ने अता फ़रमाया।
••• ➲ हर नमाज़ी पर वाजिब कर दिया गया कि नमाज़ की हालत में 'अस्सलामुअलैका या अय्युहन्नबिय्यु" कह कर आपको सलाम करे। अगर किसी नमाज़ी को नमाज़ की हालत में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पुकारें तो वह नमाज़ छोड़ कर आपकी पुकार पर दौड़ पड़े। यह उस पर वाजिब है और ऐसा करने से उसकी नमाज़ टूटेगी भी नहीं यानी जब हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बात कर ले तो फिर वहीं से नमाज़ पढ़े जहाँ से छोड़ी थी।
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🌟 *बशरियत* 🌟
••• ➲ आपके मिम्बर और क़ब्रे अनवर के दरमियान की ज़मीन जन्नत के बागों में से एक बाग़ है।
सूर फूंकने पर सबसे पहले आप अपनी कब्रे मुनव्वर से बाहर तशरीफ़ लायेंगे।
आपको मक़ामे महमूद अता किया गया।
आपको शफाअते कुबरा जैसी इज़्ज़त से नवाज़ा गया।
आपको कियामत के दिन लिवाउल हम्द अता किया गया। लिवाउल हम्द एक झंडा जो रोज़े कियामत आपको अता होगा।
आप सबसे पहले जन्नत में दाखिल होंगे।
आपको हौज़े कौसर अता किया गया।
क़ियामत के दिन हर शख्स का नसब व तअल्लुक मुन्कता हो जाएगा मगर आपका नसब व तअल्लुक़ मुन्कता न होगा।
आपके सिवा किसी नबी के पास हज़रते इस्राफ़ील अलैहिस्सलाम नहीं उतरे।
आपके दरबार में बलन्द आवाज़ से बोलने वाले के नेक आमाल बरबाद कर दिए जाते हैं।
आपको हुजरों के बाहर से पुकराना हराम कर दिया गया।
आपकी अदना सी गुस्ताखी करने वाले की सज़ा क़त्ल हैं।
आपको तमाम अम्बिया अलैहिमुस्सलाम से ज़्यादा मोजिज़ात अता किए गए।
*आखिर में बस यही कहना है!*
*जमीनो ज़माँ तुम्हारे लिये मकीनो मकाँ तुम्हारे लिए*
*चुनीनो चुनाँ तुम्हारे लिए बने दो जहाँ तुम्हारे लिए।*
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