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❐ सवाल ❐ ➻ जमादिउल आखिर को कुछ लोग माहे अबू बक़र सिद्दीक़ कहते हैं तो ये क्यूं कहते हैं क्या वजह है!?
❐ जवाब ❐ ➻ ह़ज़रत अबू बक़र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्ह की वफात की तारीख़ 22 जमादिउल आखिर शबे मंगल 13 हिज्री में मगरिब व इशा के दरमियान मदीना मुनव्वरा में हुई है, और हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पहलू में मदफून हुए!
📚तारीख़े करबला सफह 84,
❐ ➻ लिहाज़ा इसीलिए बाज़ लोग इस माह को माहे अबू बक़र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु, कहते हैं!
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❐ सवाल ❐ ➻ एक सवाल ये है के रास्ता चलते हुए क़ुरआन पाक पढ़ सकते हैं या नहीं खुलासा फरमायें,??
❐ जवाब ❐ ➻ क़ुरआने पाक की तिलावत में अगर दिल न बटे तो जाइज़ है वरना नहीं जैसा के हुज़ूर सदरुश्शरियह तह़रीर फरमाते हैं के, लेट कर क़ुरआने पाक पढ़ने में हरज नहीं जबके पांव सिमटे हों और मुंह खुला हो यूंही चलने और काम करने की ह़ालत में भी तिलावत जाइज़ है जबकि दिल न बटे वरना मकरुह!
📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 551
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❐ सवाल ❐ ➻ एक सवाल ये है के अज़ान के एक कलिमे का जवाब देने पर कितना सवाब मिलता है यूंही मुकम्मल अज़ान का जवाब देने पर कितना सवाब मिलता है,!?
❐ जवाब ❐ ➻ ह़दीस शरीफ़-- हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया ऐ गिरोह ज़नान औरतों ) जब तुम बिलाल को अज़ान व इक़ामत कहते सुनों तो जिस तरह़ वोह कहता तुम भी कहो अल्लाह तआला तुम्हारे लिए हर कलिमा के बदले एक लाख नेकी लिखेगा और हज़ार दरजे बुलंद फरमायेगा और हज़ार गुनाह माफ करेगा औरतों ने अरज़ की ये औरतों के लिए है मर्दों के लिए क्या है फरमाया मर्दों के लिए दूना यानि डबल है!
❐ ➻ ह़दीस शरीफ़-- तिबरानी की रिवायत मैमूना रज़ियल्लाहु तआला अन्हा से है के औरतों के लिए हर कलिमा के मुक़ाबिल दस लाख दरजे किए जायेंगे फारुक़े आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने अरज़ की ये औरतों के लिए मर्दों के लिए क्या है फरमाया मर्दों के लिए दूना यानि डबल!
📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 462,
📚कंज़ुल उम्माल जिल्द 7 सफह 287 ह़दीस नं. 21005,
❐ ➻ इन अह़ादीस से साबित होता है के अज़ान के जवाब में एक कलिमा पर जब इतना सवाब है तो पूरी अज़ान व इक़ामत का जवाब देने पर कितना सवाब होगा!
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❐ सवाल ❐ ➻ उलमा ए किराम की बारगाह में एक सवाल है के मर्द और औरत की क़ब्र के तख़्ते लगाने का तरीक़ा बता दें एक शख़्स का इंतिक़ाल हो गया है जल्दी बताना ह़ज़रत अभी ज़ुहर में मिट्टी है!?
❐ जवाब ❐ ➻ मर्द व औरत दोनों के तख़्ते सरहाने की तरफ से लगाया जायेगा जैसा के मौलाना ताज मुह़म्मद ह़न्फी क़ादरी वाह़िदी उतरौलवी फतावा मुस्तफविया के हवाले से तह़रीर फरमाते हैं के अवाम में जो ये मशहूर है के मर्द का तख्ता आगे से लगायें और औरत का पीछे से ये जिहालत है बल्के मर्द व औरत दोनों का तख्ता सर की जानिब से लगाना चाहिए!
*📗अज़, बिस्तर अलालत से क़ब्र तक सफह 72*
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❐ सवाल ❐ ➻ एक सवाल है के अगर किसी का इंतिक़ाल हो जाए तो मय्यत के पास क़ुरआन शरीफ पढ़ने में कोई हरज तो नहीं रहनुमाई फरमायें!?
❐ जवाब ❐ ➻ जाइज़ है जबके मय्यत का तमाम बदन कपड़े से छुपा हो हुज़ूर सदरुश्शरिअह बहारे शरीयत में तह़रीर फरमाते हैं के मय्यत के पास तिलावते क़ुरआन मजीद जाइज़ है जबके तमाम बदन कपड़े से छुपा हो और तस्बीह़ दीगर ज़िक्रो अज़कार पढ़ने में कोई ह़रज नहीं!
📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 809,
📚रद्दुल मह़तार जिल्द 3 सफह 98/100
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❐ सवाल ❐ ➻ क़ब्र के अन्दर ईंट से पक्की दिवार उठाना कैसा है!?
❐ जवाब ❐ ➻ क़ब्र में पक्की ईंट लगाना मकरुह है जैसा के हुज़ूर सदरुश्शरिअह तह़रीर फरमाते हैं के क़ब्र के उस ह़िस्से में मय्यत के जिस्म से क़रीब है पक्की ईंट लगाना मकरुह है इसलिए के ईंट आग से पकी है अल्लाह तआला मुसलमानों को आग के असर से बचाए!
📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 843,
📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 166,
کتاب الصلوۃ،الباب الحادی والعشرون فی الجنائز،الفصل السادس
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❐ सवाल ❐ ➻ वुज़ू में एक हाथ से मुंह धोना कैसा- मैं वुज़ू कर रही थी मैंने एक हाथ से मुंह धोया तो मेरी नानी ने मुझे डांटा और कहा के एक हाथ से मुंह धोने से वुज़ू नहीं होता तो क्या ये बात सही है!?
❐ जवाब ❐ ➻ एक हाथ से मुंह धोया तो भी वुज़ू हो जायेगा लेकिन दोनों हाथों से मुंह धोना चाहिए के ये सुन्नत है अगर एक हाथ से धोया तो मकरुह कियोंके सुन्नत का तर्क मकरुह है यूंही हर मकरुह का तर्क सुन्नत है!
📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा,2 सफह 301,
📚दुर्रे मुख्तार व रद्दुल मह़तार जिल्द 1 सफह 269/280/283,
📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 4/9,
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❐ सवाल ❐ ➻ ह़ज़रत मैं आपके ग्रुप में हूँ एक सवाल पूछना चाहता हूँ के जल्दी जल्दी वुज़ू करना कैसा अगर कोई जल्दी जल्दी वुज़ू करता है तो वुज़ू हो जायेगा या नहीं,!!
❐ जवाब ❐ ➻ अगर किसी ने जल्दी जल्दी वुज़ू किया और तमाम आज़ा वुज़ू पर पानी बह गया तो वुज़ू हो जायेगा मगर इत्मिनान से वुज़ू करना चाहिए के मुस्तहब है अवाम में जो मशहूर है के वुज़ू जवान का सा,नमाज़ बूढ़ों की सी, यानि वुज़ू जल्द करें ऐसी जल्दी नहीं करना चाहिए के जिस से कोई सुन्नत या मुस्तहब छूट जाए!
📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 297,
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❐ सवाल ❐ ➻ मेरी छोटी बहन नाबालिगा है क्या उसको नमाज़ के लिए वुज़ू करना ज़रुरी है!?
❐ जवाब ❐ ➻ नाबालिग पर वुज़ू फर्ज़ नहीं मगर उससे वुज़ू कराना चाहिए ताके आदत हो और वुज़ू करना आजाये और मसाइले वुज़ू से आगाह हो जाए!
📚बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 302,
📚रद्दुल मह़तार जिल्द 1 सफह 202,
کتاب الطہارۃ،مطلب فی اعتبارات المرکب التام,
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❐ सवाल ❐ ➻ मैं जब भी सो कर उठता हूँ तो आंखों में कीचड़ जम जाता है तो क्या वुज़ू में सुबह सुबह उसे छुड़ाना ज़रूरी है!?
❐ जवाब ❐ ➻ बिलकुल ज़रुरी है पलक का हर बाल पूरा धोना फर्ज़ है अगर उस में कीचड़ वगैरह कोई सख्त चीज़ जम गई हो तो छुड़ाना फर्ज़ है!
📚 बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 290,
📚फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 1 सफह 444,
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❐ सवाल ❐ ➻ अगर कोई पाक साफ है तो जुमां के दिन गुस्ल करना क्या है फर्ज़ वाज़िब सुन्नत या मुस्तह़ब रहनुमाई फरमायें!?
❐ जवाब ❐ ➻ जुमां के दिन गुस्ल करना सुन्नत है!
📚हमारा इस्लाम हिस्सा 5 सफह 340,
❐ सवाल ❐ ➻ अगर बाल में गिरह पड़ जाए तो क्या गुस्ल में उस गिरह को खोल कर पानी बहाना फर्ज़ है,
❐ जवाब ❐ ➻ बाल में गिरह पड़ जाए तो अगर खोल सकते हैं तो खोलकर पानी बहाना ज़रूरी है वरना ऐसे ही गुसल करें!
📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 318,
📚फतावा रज़विया शरीफ जिल्द 1 सफह 452,
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❐ सवाल ❐ ➻ मेंरा पांव जल गया था जिस की वजह से उस पर पट्टी बंधी हुई है अगर पट्टी खोलता हूँ तो ज़ख्म खराब होगा और पानी बहेगा तो अब क्या गुस्ल में उस जगह का धोना फर्ज़ है क्या मैं पट्टी खोल कर पानी बहाऊं तभी गुस्ल होगा!?
❐ जवाब ❐ ➻ अगर ज़ख्म पर पट्टी वगैरह बंधी है और उसको खोलने में नुक़सान है तो उस पूरे अज़ू का मसह़ करें और न हो सके तो पट्टी पर मसह़ करे, और पट्टी मोज़अ हाजत से ज़्यादा न रखी जाये वरना मसह काफी ना होगा और अगर पट्टी मोज़अ हाजत पर ही बंधी है मसलन बाज़ू पर एक तरफ ज़ख्म है और पट्टी बांधने के लिए बाज़ू की इतनी सारी गोलाई पर होना उसका ज़रूर है तो उसके नीचे बदन का वो हिस्सा भी आयेगा जिसे पानी ज़रर (नुकसान) नहीं करता तो अगर खोलना मुमकिन हो खोलकर उस हिस्सा का धोना फ़र्ज़ है और अगर नामुमकिन हो अगरचे यूंही के खोलकर फिर वैसी ना बांध सकेगा और उसमें ज़रर का अंदेशा है तो सारी पट्टी पर मसह करले काफ़ी है बदन का वो अच्छा हिस्सा भी धोने से माफ़ हो जाएगा!
📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 318
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❐ सवाल ❐ ➻ फजर का वक़्त खत्म होने के कितनी देर बाद क़ज़ा पढ़ी जाए!?
❐ जवाब ❐ ➻ सरकारे आला ह़ज़रत फरमाते हैं के तुलू आफ़ताब के बाद कम से कम 20 मिनट का इंतिज़ार वाजिब है, यानि 20, मिनट के बाद कज़ा पढ़ें!
📚फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 5 सफह 325,
❐ सवाल ❐ ➻ रात में हम किताब वगैरह पढ़ने में या किसी और काम में मशगूल रहते हैं रात के 1 या 2 बज जाता है तो इतनी देर कर के इशा की नमाज़ पढ़ना कैसा जवाब इनायत करें!?
❐ जवाब ❐ ➻ नमाज़े इशा की निस्फ शब से ज़्यादा ताखीर मकरुह है!
📚फतावा रज़विया शरीफ जिल्द 5 सफह 325,
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❐ सवाल ❐ ➻ मेरी दादी नमाज़े असर के बाद क़ुरआन पाक की तिलावत करती रहती हैं नमाज़े असर के बाद क़ुरआने पाक की तिलावत करना जाइज़ है के नहीं!?
❐ जवाब ❐ ➻ बाद नमाज़े असर क़ुरआने पाक पढ़ना जाइज़ है मगर जब आफताब क़रीब गुरुब को पहुंचे और मकरुह वक़्त (गुरूबे आफ़ताब से 20 मिनट पहले मकरुह वक़्त शुरू हो जाता है) आऐ उस वक़्त तिलावत मौक़ूफ़ कर दें और ज़िक्र अज़कार किऐ जायें आफताब निकलते और डूबते और ठीक दोपहर के वक़्त नमाज़ पढ़ना नजाइज़ है और तिलावत मकरुह!
📚फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 4 सफह 330
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❐ सवाल ❐ ➻ अगर हम मस्जिद में जमाअत के इंतिज़ार में बैठे हैं और नींद की झपकी आई तो वुज़ू रहेगा या टूट जायेगा इसका खुलासा तफसील से बतायें आपकी महरबानी होगी!?
❐ जवाब ❐ ➻ अक्सर देखा गया है के मस्जिद के अन्दर नमाज़ के इन्तिज़ार में लोग बैठे हैं और उन्हें नींद की झपकी आ गई या ऊंघने लगे तो वह समझते हैं के हमारा वुज़ू टूट गया और वह अज़ खुद (यानि खुद से) या किसी के टोकने से वुज़ू करने लगते हैं यह गलत है!-मस्अला यह है के, ऊँघने या बैठे बैठे झोंके लेने से वुज़ू नहीं जाता है,
📚बहारे शरीयत हिस्सा 2 सफह 27,
📚गलत फहमियां और उनकी इस्लाह़ सफह 27,
➻ तिर्मिज़ी और अबू दाऊद की ह़दीस में है के हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सहाबा ए किराम मस्जिद शरीफ में नमाज़े इशा के इंतिज़ार में बैठे बैठे सोने लगते थे यहाँ तक के उनके सर नींद की वजह से झुक झुक जाते थे फिर वह दुबारा बगैर वुज़ू किये नमाज़ पढ़ लेते थे!
📚मिशकात मायूजिबुल वुज़ू सफह 41,
➻ नींद से वुज़ू तब टूटता है जब के ये दोनों शर्तें पाई जायें👇
1. दोनों सुरीन उस वक़्त खूब जमें न हों,
2. सोने की ह़ालत गाफिल हो कर सोने से मानेअ न हो,
📚फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 1 सफह 71,
📚गलत फहमियां और उनकी इस्लाह़ सफह 28,
➻ चित या पट या करवट से लेट कर सोने से वुज़ू टूट जाता है-उखडूँ बैठा हो और टेक लगा कर सो गया तो भी वुज़ू टूट जाएगा-पांव फैला कर बैठे बैठे सोने से वुज़ू नहीं टूटता चाहे टेक लगाए हुए हो खड़े खड़े या चलते हुए या नमाज़ की ह़ालत में क़याम में या रुकू में या दो ज़ानू सीधे बैठ कर या सज्दे में जो तरीक़ा मर्दों के लिए सुन्नत है उस पर सो गया तो वुज़ू नहीं जायेगा, हाँ अगर नमाज़ में नींद की वजह से ज़मीन पर गिर पड़ा अगर फौरन आंख खुल गई तो ठीक वरना वुज़ू जाता रहा, बैठे हुए ऊँघने और झपकी लेने से वुज़ू नहीं जाता है!
*📚 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह़ सफह 28*
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❐ सवाल ❐ ➻ गरम पानी से वुज़ू या गुस्ल करना कैसा है!?
❐ जवाब ❐ ➻ धूप के गरम पानी से वुज़ू या गुस्ल तो हो जायेगा लेकिन तिब्बी नुक़ता ए नज़र से नहीं करना चाहिए कियोंके धूप के गर्म पानी से सफेद दाग होने का खतरा है हुज़ूर सदरुश्शरिअह बहारे शरीयत में तह़रीर फरमाते हैं के, जो पानी गरम मुल्क में गरम मौसम में सोने चांदी के सिवा किसी और धात के बरतन में धूप में गरम हो गया तो जब तक गरम है उस से वुज़ू और गुस्ल न चाहिए न उसको पीना चाहिए बल्के बदन को किसी तरह़ पहुंचना न चाहिए यहाँ तक के अगर उस से कपड़ा भीग जाए तो जब तक ठंडा न हो ले उसके पहनने से बचें के इस पानी के इस्तेमाल में अंदेशा ए बरस है यानि सफेद दाग होने का खतरा है फिर भी अगर किसी ने वुज़ू या गुस्ल कर लिया तो हो जायेगा!
📚बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 334,
📚फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 2 सफह 464,
➻ लिहाज़ा धूप के गरम पानी से वुज़ू या गुस्ल हो जायेगा पर तिब्बी नुक़तये नज़र से बेहतर नहीं है और अगर किसी आला से गरम किया हुआ है मसलन ठन्ढ़क वगैरह में एक राड आता है जिस से पानी गरम करते हैं या गीज़र वगैरह से या आग से इसके इसतेमाल से कोई हरज नहीं!
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❐ सवाल ❐ ➻ अगर हम सफर में हैं यानि कहीं जा रहे हैं और पेशाब किया और पानी नहीं है तो मिट्टी के ढेले से इस्तिन्जा कर लिया तो हम पाक हैं या नहीं और नमाज़ पढ़ सकते हैं के नहाना होगा?
❐ जवाब ❐ ➻ कुछ लोग समझते हैं के ढीले से इस्तिन्जा करने के बाद अगर पानी से भी इस्तिन्जा नहीं किया और यूँही वुज़ू कर के नमाज़ पढ़ ली तो नमाज़ नहीं होगी हलांके ढेले से इस्तिन्जा करने के बाद पानी से धोना ज़रुरी नहीं, हाँ दोनों को जमां करना अफज़ल है,अगर सिर्फ ढेले से इस्तिन्जा कर ले काफी है और सिर्फ पानी से कर ले तब भी काफी है और दोनों को जमा करना यानि ढेले और पानी दोनों से इस्तिन्जा करना बेहतर व अफज़ल- और यह हुक्म दोनों सूरतों के लिए है चाहे पाखाना किया हो या पेशाब!
➻ ह़दीस में है के एक मरतबा रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने पेशाब फरमाया ह़ज़रत उमर फारुक़े आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु एक बरतन में पानी लेकर पीछे खड़े हो गये हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने पूछा यह क्या है? अर्ज़ किया इस्तिन्जा के लिए पानी है आपने इरशाद फरमाया मुझ पर यह वाजिब नहीं किया गया के हर पेशाब के बाद पानी से पाकी ह़ासिल करुं!
📚मिशकात सफह 44,
📚सुनने अबू दाऊद जिल्द 1 सफह 7,
📚गलत फहमियां और उनकी इस्लाह़ सफह 30,
➻ खुलासा यह है के पाखाना या पेशाब करने के बाद सिर्फ मिट्टी के ढेलों या पत्थरों वगैरह किसी भी नजासत को दूर या खुश्क करने वाली चीज़ से इस्तिन्जा कर लेना तहारत के लिए काफ़ी है, पानी से धोना ज़रुरी नहीं, हाँ अफज़ल व बेहतर है या अगर नजासत इस्तिन्जा की जगह से एक रुपया भर बदन के हिस्से पर फैल गई हो तो पानी से धोना ज़रुरी है!
➻ इस मस्अले को तफ़सील से जानने के लिए देखिये, 📚 फ़तावा रज़वियह शरीफ जिल्द 2 सफह 165,
*नोट:- ⚠️* जो लोग सफर में रहते हैं वह अपने साथ इस मक़सद के लिए कोई पुराना कपड़ा रख लिया करें! यह पानी न मिलने की सूरत में तह़ारत के लिए बहुत काम आता है!
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 318
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❐ सवाल ❐ ➻ कुछ लोग कहते हैं के नमाज़ में अगर दाहिने पैर का अँगूठा सरक जाए तो नमाज़ नहीं होगी तो क्या ये बात सही है?
❐ जवाब ❐ ➻ आमतौर से देहातों में इस को बहुत बुरा जानते हैं- यहाँ तक के नमाज़ में दाहिने पैर का अँगूठा अगर थोड़ा बहुत सरक जाए तो नमाज़ न होने का फतवा लगा देते हैं-कुछ लोग इस अँगूठे को नमाज़ की किलया या खूंटा कहते भी सुने गए हैं, यह सब जाहिलाना बातें हैं किसी भी पैर का अँगूठा सरक जाने से नमाज़ में कोई ख़राबी नहीं आती, हाँ बिला वजह नमाज़ में जानबूझकर कोई ह़रकत करना ख्वाह जिस्म के किसी हिस्से से हो गलत व मकरुह है, ह़ज़रत अल्लामा मुफ्ती जलालुद्दीन अहमद अमजदी अलैहिर्रहमा तह़रीर फरमाते हैं के, दाहिने पैर का अँगूठा अपनी जगह से हट गया तो कोई ह़रज नहीं, हाँ मुक़तदी का अँगूठा दाहिने या बायें या पीछे इतना हटा कि जिस से सफ़ में कुशादगी पैदा हो या सीना सफ़ से बाहर निकले तो मकरुह है!
📚 फतावा फैज़ुर्रसूल जिल्द 1 सफह 370,
📗 ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह़ सफह 31,
➻ खुलासा ये है के अवाम में जो मशहूर है के नमाज़ में दाहिने पैर का अँगूठा अगर अपनी जगह से थोड़ा सा भी सरक जाए तो नमाज़ नहीं होती यह उनकी जहालत और ग़लतफ़हमी है!
📗ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह़ सफह 31
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 319
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❐ सवाल ❐ ➻ ह़ज़रत क्या सजदे की ह़ालत में पैर की उंगलियों का पेट ज़मीन पर लगना ज़रुरी है बहुत सारे लोग सजदे की ह़ालत में पैर का पंजा उठाए रहते हैं उनकी नमाज़ का क्या हुक्म है रहनुमाई फरमायें?
❐ जवाब ❐ ➻ इस मस्अले से काफी लोग ग़ाफ़िल हैं और पैर की उंगलियों के सिर्फ सिरे ज़मीन से लग जाने को सजदा समझते हैं और कुछ का तो सिर्फ अंगूठे का सिरा ही ज़मीन से लगता है और बाकी उंगलियाँ ज़मीन को छूती भी नहीं इस सूरत में न सज्दा होता है न नमाज़, सजदे में पैर की उंगलियों के सिर्फ सिरे नहीं बल्के उंगलियों पर ज़ोर दे कर क़िब्ले की तरफ़ उंगलियों का पेट ज़मीन से लगाना चाहिए!
📗 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 31,
➻ पांव की एक उंगली का पेट ज़मीन से लगना शर्त़ यानि फर्ज़ है अगर किसी ने इस तरह सजदा किया के दोनों पांव ज़मीन से उठे रहे तो नमाज़ न होगी बल्के अगर सिर्फ उंगलियों की नोक ज़मीन से लगी तो भी नमाज़ नहीं होगी सजदे में दोनों पांव की दसों उंगलियों के पेट ज़मीन पर लगना सुन्नत है और दोनों पांव की तीन तीन उंगलियाँ ज़मीन पर लगना वाजिब है और सजदे में दसों उंगलियों का क़िब्ला रु होना भी सुन्नत है!
📚 बह़वाला मोमिन की नमाज़ सफह 77,
📚फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 1 सफह 556
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 320
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❐ सवाल ❐ ➻ अज़ान के वक़्त बात चीत करना कैसा है बहुत सारे लोग जब अज़ान होती है तो रुक जाते हैं यानि किसी से भी बात नहीं करते और बहुत सारे लोग बात चीत करते रहते हैं इसके बारे में कुछ वज़ाहत कर दें!?
❐ जवाब ❐ ➻ अज़ान के वक़्त बातों में मशगूल रहना एक आम बात हो गई है अवाम तो अवाम बाज़ ख़्वास अहले इल्म तक इसका ख़्याल नहीं रखते जब के ह़दीस शरीफ में है के जो अज़ान के वक़्त बातों में मशगूल रहे उस पर ख़ात्मा बुरा होने का खौफ है!
➻ मस्अला ये है के जब अज़ान हो तो उतनी देर के लिए न सलाम करे न सलाम का जवाब दे न कोई और बात करे यहाँ तक के क़ुरआन मजीद की तिलावत में अगर अज़ान की अवाज़ आए तो तिलावत रोक दे और अज़ान गौर से सुने और जवाब दे, रास्ता चलने में अज़ान की अवाज़ आ जाए तो उतनी देर खड़ा हो जाए, सुने और जवाब दे अगर चंद अज़ानें सुनें तो सिर्फ पहली का जवाब देना सुन्नत है और सबका देना भी बेहतर है!
📗 ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह़ सफह 32
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❐ सवाल ❐ ➻ एक सवाल है के तकबीर खड़े हो कर सुनना चाहिए या बैठ कर और तकबीर में कब खड़ा होना चाहिए कुछ मस्जिदों में तकबीर के वक़्त सब लोग खड़े हो जाते हैं और कुछ मस्जिदों में ह़य्या अलस्सलाह पर खड़े होते हैं, दोनों में सही कौन है?
❐ जवाब ❐ ➻ जब तकबीर कहने वाला '' ह़य्या अलस्सलाह और- ह़य्या अललफलाह़ कहे इमाम और मुक़तदी जो वहाँ मौजूद हैं उनको उसी वक़्त खड़ा होना चाहिए, मगर कुछ जगह शुरू तकबीर से खड़े होने का रिवाज पड़ गया है और वो लोग इस रिवाज पर इतने अड़ जाते हैं के ह़दीसों और फिक़्ही किताबों की परवाह नहीं करते और मनमानी ज़िद और हठधर्मी से काम लेते हैं- फतावा आलमगीरी जो बादशाह औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाहि तआला अलैह के हुक्म से तक़रीबन साढ़े तीन सौ साल पहले उस दौर के तक़रीबन सभी बडे़ उलमा ने मशवरे के साथ लिखी, उस में है के मुअज़्ज़िन जिस वक़्त ह़य्या अललफ़लाह़ कहे तब इमाम और मुक़तदियों को खड़ा होना चाहिए!
📚फतावा आलमगीरी जिल्द 1 सफह 58-
کتاب الصلوۃ،باب الاذان،فصل2,
📗 बह़वाला ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह़ सफह 33,
📚शामी जिल्द 1 सफह 368,
📚राहे निजात सफह 14
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❐ सवाल ❐ ➻ हमारे एक दोस्त आज कहने लगे के असर की सुन्नतों में या इसी तरह जो 4 रकअत वाली गैर मुअक्किदा सुन्नतें है जैसे इशा की फर्ज़ से पहले वाली 4 रकअत सुन्नत उस में क़अदा ए उला में जो 2 रकअत पर बैठते हैं उस में अत्तहिय्यात और दुरुद शरीफ भी पढ़ना चाहिए और जब तीसरी रकअत के लिए उठें तो सना और अउज़ु बिल्लाह पूरी पढ़नी चाहिए क्या ये सही है जवाब इनायत करें?
❐ जवाब ❐ ➻ असर की नमाज़ के फर्ज़ के पहले जो 4 रकअत हैं वो सुन्नते गैरे मुअक्किदा हैं- उन चारों रकअत को एक सलाम से पढ़ना चाहिए- और 2 रकअत के बाद क़अदा ए उला करना चाहिए और क़अदा ए उला में अत्तहिय्यात के बाद दुरुद शरीफ भी पढ़ना चाहिए और तीसरी रकअत के लिए खड़ा हो तो सना यानि सुब्ह़ाना कल्लाहुम्मा पूरी और तअव्वुज़ यानि अऊज़ु बिल्लाह पूरा पढ़ना चाहिए- कियोंके सुन्नते गैर मुअक्किदा मिस्ल नफ्ल है और नफ्ल नमाज़ का हर क़अदा मिस्ले क़अदा ए आखिरा है लिहाज़ा हर क़अदा में अत्तहिय्यात और दुरुद शरीफ पढ़ना चाहिए और पहले क़अदा के बाद वाली तीसरी रकात के शुरू में सना और अउज़ु बिल्लाह पूरा पढ़ना चाहिए और हर रकअत में सूरह फातिहा के बाद सूरत भी मिलाना चाहिए!
📚मोमिन की नमाज़ सफह 123,
📚बहारे शरीयत जिल्द 4 सफह 15,
📚फतावा रज़विया शरीफ जिल्द 3 सफह 469,
📚दुर्रे मुख़्तार
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❐ सवाल ❐ ➻ एक सवाल ये है के तालाबों में मछली पालना फिर उस का खरीद फरोख्त करना कैसा है कियोंके कुछ लोग कहते हैं के ये जाइज़ नहीं है क्या ये बात सही है!?
❐ जवाब ❐ ➻ मछली पालना और उसका खरीद फरोख्त करने को फुक़्हा ने जाइज़ क़रार दिया है ब-शर्त ये के उनकी ज़रुरियात यानि चारा वगैरह और सफाई व सुथराई की खूब निगरानी रखी जाए जैसा के फतावा शामी में है के👇
(📝فی المجتبی رامزًا:لا بأس بحبس الطیور والداج في بیته ولکن یعلفها وهوخیر من إرسالها في السکك " اھ وفی فتاوی العلامة قاري الهدایه : سئل هل یجوز حبس الطیور المغردة وهل یجوز عتقها وهل في ذلک ثواب․․․ فأجاب یجوز حبسها للاستئناس بها الخ 📖"اھ)
📚फतावा शामी जिल्द 9 सफह 575,
کتاب الحظر و الاباحۃ،دار الکتب العلمیہ بیروت,
➻ जो लोग कहते हैं के जाइज़ नहीं उन पर लाज़िम है के तौबा करें और बगैर इल्म के हुक्मे शरा मस्अला ब्यान न करें!
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❐ सवाल ❐ ➻ मस्जिद के अन्दर अगरबत्ती जलाना कैसा है जवाब इनायत करें?
❐ जवाब ❐ ➻ मस्जिद में अगरबत्ती जलाने में कोई ह़रज नहीं है इसलिए के उसके जलाने से मक़सद खुश्बू का लेना होता है ये दुरुस्त है हां मगर जैसा के कुछ ऐसी अगरबत्ती होती हैं जिन की खुश्बू अजीब क़िस्म की होती है जिस की खुश्बू इंसान को भी नागवार गुज़रती है तो उसका जलाना जाइज़ नहीं इसलिए के हर वो चीज़ जिस में ऐसी बू हो जो लोगों को नागवार गुज़रे उसे मस्जिद में ले जाना या खा कर उस में जाना हरगिज़ जाइज़ नहीं और चूंके मस्जिद के अन्दर माचिस जलाने से उस की भी बू आयेगी इस सूरत में मस्जिद के बाहर अगरबत्ती जला कर मस्जिद में लगा सकता है!
➻ ह़दीस शरीफ में है के, हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो उस बदबूदार दरख़्त लहसुन,प्याज़ से खाए वो हमारी मस्जिद के क़रीब हरगिज़ न आए के मलाइका को उस चीज़ से तकलीफ होती है, जिस से आदमी को तकलीफ होती है!
📚सही बुखारी शरीफ ह़दीस 853/7359)
📚सुनन अबी दाऊद जिल्द 3 ह़दीस 3822,
📚मिशकात शरीफ जिल्द 1 ह़दीस 736
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❐ सवाल ❐ ➻ माशाअल्लाह आपके ग्रुप से बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है कल जो आपने लिखा के 4 रकअत वाली सुन्नतें गैर मुअक्किदा में 2 रकअत पर अत्तहिय्यात के बाद दुरुद शरीफ भी पढ़ना है ये बात मुझे नहीं मालूम थी अब मैं कोशिश करुंगा पढ़ने के लिए- एक बात और है के क्या जो सुन्नते मुअक्किदा नमाज़ है जैसे ज़ुहर में फर्ज़ से पहले 4 रकअत उस में भी अगर 2 रकअत पर अत्तहिय्यात के बाद दुरुद शरीफ पढ़ लिया तो क्या हुक्म है और कभी कभी भूल कर दुरुद शरीफ भी पढ़ने लगता हूँ बाद में याद आता है के अभी दो रकअत ही हुई है तो फिर खड़ा हो जाता हूँ इसके बारे में भी बता दें महरबानी होगी?
❐ जवाब ❐ ➻ जो सुन्नतें मुअक्किदा हैं जैसे ज़ुहर की फर्ज़ से पहले 4 रकअत सुन्नत - उस में क़अदा ए ऊला में सिर्फ अत्तहिय्यात पढ़ें अगर भूल कर दुरुद शरीफ पढ़ लिया तो फिर सजदा सहू करे वरना नमाज़ नहीं होगी- और जब तीसरी रकअत के लिए खड़ा हो तो सना और अऊज़ू भी न पढ़े -लिहाज़ा सुन्नते मुअक्किदा के क़अदा ए ऊला में अत्तहिय्यात के बाद दुरुद शरीफ अल्लाहुम्मा सल्ली अला सय्यदिना मुह़म्मदिन तक पढ़ लिया तो सजदा ए सहू वाजिब हो गया लिहाज़ा अत्तहिय्यात के बाद फौरन खड़ा हो जाए!
📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4/3 सफह 667/520,
📚दुर्रे मुख्तार जिल्द 2 सफह 269
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❐ सवाल ❐ ➻ क्या दाहिनी जानिब से इक़ामत कहना ज़रुरी है?
❐ जवाब ❐ ➻ आजकल यह ज़रुरी ख़्याल क्या जाता है के इकामत या तकबीर जो जमाअत क़ाइम करने से पहले मुअज़्ज़िन लोग पढ़ते हैं उस में पढ़ने वाला इमाम के पीछे या दाहिनी तरफ हो और बायें जानिब खड़े हो कर तकबीर पढ़ने को ममनूअ ख्याल करते हैं हालांके तकबीर बायीं तरफ़ से पढ़ना भी मना नहीं है सय्यिदी आला हज़रत फरमाते हैं के,👇
और इक़ामत की निसबत भी तअय्युने जेहत के दाहिनी तरफ़ हो या बाईं तरफ फक़ीर की नज़र से न गुज़री ----- हां इस क़दर कह सकते हैं के मुहाज़ात इमाम फिर जानिबे रास्त मुनासिब तर है!
📚फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 2 सफह 465,
📗ब-ह़वाला गलत फहमियां और उनकी इस्लाह़ सफह 34,
➻ खुलासा यह के इमाम के पीछे या दाहिनी तरफ़ से पढ़ना ज़्यादा बेहतर है लेकिन बाईं तरफ से पढ़ना भी जायज़ है, और इस से नमाज़ में कोई कमी नहीं आती और दाहिनी तरफ़ को ज़रुरी ख़्याल करना गलतफहमी है!
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❐ सवाल ❐ ➻ नमाज़ी के सामने से गुज़रना कैसा है!?
❐ जवाब ❐ ➻ नमाज़ी के सामने से गुज़ना मना है हटना गुनाह नहीं, आम तौर से मसाजिद में देखा गया है के दो शख़्स आगे पीछे नमाज़ पढ़ते हैं यानि एक पिछली सफ़ में और दूसरा उसके सामने अगली सफ़ में, अगली सफ़ में नमाज़ पढ़ने वाला पीछे वाले से पहले फारिग हो जाता है और फिर उसकी नमाज़ ख़त्म होने का इन्तिज़ार करता रहता है के वो सलाम फेरे तब यह वहाँ से हटे और उस से पहले हटने को नमाज़ी के सामने से गुज़रना ख़्याल किया जाता है, हालांकि ऐसा नहीं है, आगे नमाज़ पढ़ने वाला अपनी नमाज़ पढ़ कर हट जाए तो उस पर गुज़रने का गुनाह नहीं है!
➻ खुलासा ये है के नमाज़ी के सामने से गुज़रना मना है हटना मना नहीं है, फ़क़ीहे आज़म हुज़ूर सदरुश्शरिया ह़ज़रत मौलाना अमजद अली साह़ब आज़मी अलैहिर्रह़मा तह़रीर फरमाते हैं के, अगर दो शख़्स नमाज़ी के आगे से गुज़रना चाहते हों और सुतरह को कोई चीज़ नहीं तो उन में से एक नमाज़ी के सामने उसकी तरफ पीठ कर के खड़ा हो जाए, और दूसरा उसकी आड़ पकड़ के गुज़र जाए, फिर वो दूसरा उसकी पीठ के पीछे नमाज़ी की तरफ पुश्त कर के खड़ा हो जाए और ये गुज़र जाए वो दूसरा जिधर से आया उसी तरफ़ हट जाए!
📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 617,
📚फतावा हिन्दिया जिल्द-1 सफह 104,
📚रद्दुल मुह़तार जिल्द 2 सफह 483,
➻ इस से ज़ाहिर है के गुज़रने और हटने में फरक़ है और गुज़रने का मतलब ये है के नमाज़ी के सामने एक तरफ से आये और दूसरी तरफ निकल जाए, ये यक़ीनन नाजाइज़ व गुनाह है, और अगर नमाज़ी के सामने बैठा है और किसी तरफ़ हट जाए तो ये गुज़रना नहीं है और इस में कोई गुनाह नहीं है!
📗 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह़ सफह 35
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❐ सवाल ❐ ➻ मग़रिब और इशा की नमाज़ कब तक पढ़ी जा सकती है!?
❐ जवाब ❐ ➻ काफी लोग थोड़ा सा अँधेरा होते ही यह ख़्याल करते हैं के मग़रिब की नमाज़ का वक़्त निकल गया, अब नमाज़ क़ज़ा हो गई और बे वजह नमाज़ छोड़ देते हैं या क़ज़ा की नियत से पढ़ते हैं मग़रिब की नमाज़ का वक़्त सूरज डूबने के बाद से लेकर शफ़क़ तक है और शफ़क़ उस सफेदी का नाम है जो पच्छिम की तरफ़ सुर्खी डूबने के बाद उत्तर दक्खिन सुब्हे सादिक़ की तरफ़ फैलती है,
➻ हाँ मग़रिब की नमाज़ जल्दी पढ़ना मुस्तहब है और बिला उज़्र दो रकअतों की मिक़दार देर लगाना मकरुहे तऩज़ीही यानि खिलाफ़े ऊला है-और बिला उज़्र इतनी देर लगाना जिस में कसरत से सितारे ज़ाहिर हो जायें मकरुहे तह़रीमी और गुनाह है!
📚अहकामे शरीयत सफह 137,
📗ब- ह़वाला गलत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 36,
➻ हाँ अगर न पढ़ी हो तो पढ़े और जब तक इशा का वक़्त शुरू नहीं हुआ है अदा ही होगी, क़ज़ा नहीं, और ये वक़्त सूरज डूबने के बाद कम से कम एक घन्टा अट्ठारह मिनट और ज़्यादा से ज़्यादा एक घन्टा पैंतीस मिनट है जो मौसम के लिहाज़ से घटता बढ़ता रहता है, यानि एक घन्टे के ऊपर 18 से 35 मिनट के दरमियान घूमता रहता है, इशा की नमाज़ के बारे में भी कुछ लोग समझते हैं कि उसका वक़्त रात 12 बजे तक रहता है ये भी ग़लत है, इशा की नमाज़ का वक़्त फज्रे सादिक़ तुलू होने यानि सहरी का वक़्त ख़त्म होने तक रहता है, हाँ बिला वजह तिहाई रात से ज़्यादा देर करना मकरुह है!
📗 ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 37
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❐ सवाल ❐ ➻ आजकल कुछ लोग मस्जिद में भीख़ मांगते हैं तो मस्जिद में भीख मांगना कैसा है,!?
❐ जवाब ❐ ➻ आजकल मस्जिदों में सवाल करने और भीक मांगने का रिवाज बहुत बढ़ता जा रहा है, अमूमन देखा जाता है के इधर इमाम साहब ने सलाम फेरा उधर किसी न किसी ने और बाज़ औक़ात कई कई लोगों ने अपनी अपनी आप-बीती सुनाना और मदद करो भाईयों की पुकार लगाना शुरू कर दिया, हालांके ये निहायत ग़लत तरीक़ा है, ऐसे लोगों को इस ह़रकत से बाज़ रखा जाए और मस्जिदों में भीक मांगने से सख़्ती से रोका जाए!
➻ हुज़ूर सदरुश्शरीआ ह़ज़रत मौलाना अमजद अली आज़मी साहब अलैहिर्रह़मा तह़रीर फरमाते हैं के, मस्जिद में सवाल करना ह़राम है और उस साइल यानि भीक मांगने वाले को देना भी मना है!
📚बहारे शरीयत हिस्सा 3 सफह 184,
➻ इसका तरीक़ा ये होना चाहिए के ऐसे लोग या तो बाहर दरवाज़े पर सवाल करें या मस्जिद के इमाम वगैरह से कह दें के वो उनकी ज़रुरत से लोगों को आगाह कर दें!
📗ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 56
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 330
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❐ सवाल ❐ ➻ बैंक में जो अकाउंट होता है उसमें बैंक कुछ न कुछ इंट्रेस्ट (ब्याज) देती है जो अकाउंट में जमा हो जाता है।हम अपनी हलाल कमाई भी उसी अकाउंट में रखते हैं इसका क्या हुक्म है।
❐ जवाब ❐ ➻ अस्ल जवाब से पहले चन्द बातें समझ लें तो अस्ल मस्अला आसानी से समझ में आएगा।काफ़िरों की तीन क़िस्में हैं
👇
(1)"ज़िम्मी" यह वह काफ़िर है जो दारुल इस्लाम में रहता हो और बादशाहे इस्लाम ने उसकी जानो माल की हिफ़ाज़त अपने ज़िम्मे लेली हो।
👇
(2)"मुस्तामिन" यह वह काफ़िर है,जो कुछ दिनों के लिये अमान लेकर दारूल इस्लाम में आगया हो।
👇
(3)"हरबी" जो न ज़िम्मी हो और न मुस्तामिन
➻ हिन्दुस्तान के काफ़िर न तो ज़िम्मी हैं और न मुस्तामिन तो ज़ाहिर हो गया के वह "हरबी" हैं, जैसा के सैय्यिदुल फ़ुक़हा अल्लामा शैख़ अहमद यानी मुल्ला जीवन रहमतुल्लाहि तआला अलैह फ़रमाते हैं
यानी "यहां के काफ़िर तो हरबी ही हैं इस बात को पढ़े लिखे लोग ही समझते हैं!
📚 तफ़्सीराते अहमदिय्यह सफह 300)
➻ और हरबी काफ़िर और मुसलमान के दरमियान जो लेन दैन हो वह सूद नहीं होता!
➻ जैसा के हदीसे पाक में है, यानी "काफ़िर और मुसलमान के दरमियान (लेन दैन)सूद नहीं होता!
📗 हिदायह अख़ीरैन सफह.70)
➻ अब मस्अला बख़ूबी वाज़ेह होगया के हिन्दुस्तान की वह बैंकें जो सिर्फ़ ग़ैर मुस्लिमों की हों उनमें रूपया जमा करने पर बनाम इंट्रेस्ट जो ज़्यादा रक़म मिलती है वह "सूद" नहीं है, बल्के एक जाइज़ माल है जो किसी ग़ैर मुस्लिम ने आपको अपनी मरज़ी से दिया है।
➻ अब यह ज़्यादा दी गई रक़म किसी के सूद (ब्याज)कहने से सूद नहीं हो जाएगी।और लेने वाले को यह रक़म सूद की नियत से नहीं लेना चाहिये।
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 331
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❐ सवाल ❐ ➻ कुछ लोग नमाज़े जनाज़ा में तकबीर के वक़्त आसमान की तरफ मुँह उठाते हैं तो क्या ये सही है,
❐ जवाब ❐ ➻ आजकल काफी लोग ऐसा करते हुए देखे गए हैं के जब नमाज़े जनाज़ा में तकबीर कही जाती है तो हर तकबीर के वक़्त ऊपर की जानिब मुँह उठाते हैं हालांके इसकी कोई अस्ल नही बल्के नमाज में आसमान की तरफ़ मुंह उठाना मकरूहे तहरीमी है l
📚बहार ए शरीअत,
➻ और हदीस शरीफ में है रसूलुल्लाह *ﷺ* ने इरशाद फ़रमाया.
क्या हाल है उन लोगों का जो नमाज़ में आसमान की तरफ आँखे उठाते हैं इससे बाज़ रहें या उनकी आँखें उचक ली जाएगी।
📚 सहीह मुस्लिम शरीफ, बा हवाला मिशक़ात शरीफ, सफ़ह 90,
➻ खुलासा ये के नमाज़े जनाज़ा हो या कोई और नमाज़ कसदन आसमान की तरफ नज़र उठाना मकरुह है और नमाज़े जनाज़ा में तकबीर के वक़्त ऊपर को नज़र उठाने का जो रिवाज़ पड़ गया है ये ग़लत है, बे अस्ल है।
📗आवामी ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह, सफ़ह 42-43
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 332
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❐ सवाल ❐ ➻ क्या जिस से ज़ाती रन्जिश हो उसके पीछे नमाज़ नहीं होगी!?
❐ जवाब ❐ ➻ अक्सर ऐसा होता है के इमाम और मुक़तदी के दरमियान कोई दुनियावी इख़्तिलाफ़ हो जाता है, जैसे आजकल के सियासी-समाजी- ख़ानदानों और बिरादरियों के इख़्तिलाफ़ और झगड़े-तो इन वुज़ूहात पर लोग उस इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ना छोड़ देते हैं और कहते हैं के जिस से दिल मिला हुआ न हो उसके पीछे नमाज़ नहीं होगी, ये उनकी ग़लत फहमी है, और वो लोग धोके में हैं, सही बात ये है के जो इमाम शरई तौर पर सही हो उसके पीछे नमाज़ दुरुस्त है चाहे उससे आपका दुनियावी झगड़ा ही क्यूँ न चलता हो, बातचीत दुआ सलाम सब बंद हो फिर भी आप उसके पीछे नमाज़ पढ़ सकते हैं, नमाज़ की दुरुस्तगी के लिए ज़रुरी नहीं है के दुनियावी एतबार से मुक़तदी का दिल इमाम से मिला हुआ हो! हां तीन दिन से ज़्यादा एक मुसलमान के लिए दूसरे मुसलमान से बुराई रखना और मेल जोल न करना, शरीयत में सख़्त नापसन्दीदा है!
➻ ह़दीस शरीफ में है के हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया के मुसलमान के लिए ह़लाल नहीं कि अपने भाई को तीन दिन से ज़्यादा छोड़ रखे, जब उस से मुलाक़ात हो तो तीन मरतबा सलाम कर ले अगर उसने जवाब नहीं दिया तो इसका ग़ुनाह भी उसके ज़िम्मे है!
📚अबू दाऊद शरीफ किताबुल अदब जिल्द 2 सफह 673,
➻ लेकिन इसका नमाज़ व इमामत से कोई तअल्लुक़ नहीं रन्जिश और बुराई में भी इमाम के पीछे नमाज़ हो जायेगी, और जो लोग ज़ाती रन्जिशों के बिना पर अपने नफ़्स और ज़ात की ख़ातिर इमामों के पीछे नमाज़ पढ़ना छोड़ देते हैं ये खुदा के घरों को वीरान करने वाले और दीने इस्लाम को नुकसान पहुंचाने वाले हैं, इन्हें ख़ुदा ए तआला से डरना चाहिए, मरने के बाद की फिक्र करना चाहिए, कब्र की एक एक घड़ी और क़यामत का एक एक लम्हा बड़ा भारी पडेगा!
➻ सरकारे आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं के जो लोग बराहे नफ़्सानियत इमाम के पीछे नमाज़ न पढ़ें और जमाअ़त होती रहे और शामिल न हों वो सख़्त गुनहगार हैं!
📚फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 3 सफह 221,
📗 आवामी ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 41
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 333
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❐ सवाल ❐ ➻ एक सवाल है के एक शख्स ने अपनी बीवी से कहा के शाम में तुम को तलाक़ दे दूंगा और वो शख्स शाम होने से पहले ही इंतिक़ाल कर गया तो तलाक़ होगी या नहीं जवाब इनायत करें महरबानी होगी?
❐ जवाब ❐ ➻ तलाक़ नहीं होगी जैसा के शौहर ने कहा अपनी जौज़ा से के शाम में तुमको तलाक़ दे दूंगा, इस अल्फाज़ से क़तई तलाक़ वाके नहीं होगी चाहे शौहर का इंतिक़ाल हो या न हो क्योंके जब तक शौहर तलाक़ नहीं देगा तब तक तलाक़ वाक़े नहीं होगी क्योंके इरादा ए तलाक़ से तलाक़ नहीं पड़ती इसलिए वह दोनों शरअन मियां बीवी हैं!
📚 दुर्रे मुख़्तार,
📚 फतावा रज़वियह शरीफ़,
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 334
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❐ सवाल ❐ ➻ औरत नमाज़ में अल्लाहु अकबर पर अपने हाथ कान से छुएगी या नहीं जवाब इनायत करें!?
❐ जवाब ❐ ➻ औरतों को नमाज़ में तकबीरे तह़रीमा के वक़्त अपने हाथों को मूंढों (कंधों) तक उठाना चाहिए जैसा के ह़ुज़ूर फ़क़ीहे मिल्लत अलैहिर्रह़मा तह़रीर फरमाते हैं के, औरतें तकबीरे तह़रीमा के वक़्त कानों तक हाथ न उठायें बल्के मूंढ़े (कंधे) तक उठायें हाथ नाफ के नीचे न बांधे बल्के बायें हथेली सीना पर छाती के नीचे रख कर उसकी पीठ पर दाहिनी हथेली रखें!
📚अनवारे शरीयत सफह 39
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 335
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❐ सवाल ❐ ➻ एक सवाल है के जुमे के ख़ुतबे में उर्दू अशआ़र पढ़ना कैसा है जवाब इनायत करें!?
❐ जवाब ❐ ➻ जुमे का ख़ुतबा सिर्फ अरबी ज़बान में पढ़ना सुन्नत है किसी और ज़बान में ख़िलाफ़े सुन्नत है यानि सुन्नत के ख़िलाफ़ है, उर्दू अशआ़र अगर पढ़ना हों तो वो ख़ुतबे की अज़ान से पहले पढ़ लिये जायें, दूसरी अज़ान के बाद जो ख़ुतबा पढ़ा जाता है ये अरबी के अलावा और किसी ज़बान में पढ़ना सुन्नत के ख़िलाफ़ है!
📚फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 3 सफह 751,
📗 ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह़ सफह 39
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❐ सवाल ❐ ➻ एक सवाल है के शौहर अपनी बीवी की मय्यत को गुसल दे सकता है या नहीं और मरने के बाद शौहर अपनी बीवी के जनाज़ा को हाथ लगा सकता है या नहीं जवाब इनायत करें!?
❐ जवाब ❐ ➻ मर्द अपनी बीवी के जनाज़ा को हाथ लगा सकता है कब्र में उतार भी सकता है, हां उसके बदन को हाथ नहीं लगा सकता इसी वास्ते गुस्ल नहीं दे सकता!
📗 इरफ़ाने शरीयत सफह 1
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❐ सवाल ❐ ➻ मस्जिद के छत पर नमाज़ पढ़ना कैसा है जवाब इनायत करें?
❐ जवाब ❐ ➻ मस्जिद की छत पर नमाज़ पढ़ना बल्के उस पर चढ़ना मकरुह है यूंही गर्मी की वजह से मस्जिद की छत पर जमाअत करना मकरुह है- हां अगर मस्जिद में जगह नहीं है तंगी हो और नमाज़ियों की कसरत, (यानी नमाज़ी ज़्यादा हों) तो छत पर नमाज़ पढ़ सकते हैं कोई ह़रज नहीं, जैसा के बडे़ बड़े शहरों में तंगी की वजह से छत पर भी जमाअत होती है और मस्जिद में तो होती ही है!
📚हमारा इस्लाम हिस्सा 4 बाब 2 सफह 245
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❐ सवाल ❐ ➻ एक सवाल है के हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की उस बीमारी का आगाज़ कब हुआ जिस में आप का विसाल हुआ?
❐ जवाब ❐ ➻ हुज़ूर सरवरे कायनात फ़ख़रे मौजूदात सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के मर्ज़े विसाल की इब्तिदा सफ़र के आखिर में हुई थी, सफ़र दो दिन बाक़ी रह गया था- और एक रिवायत में है के चहार (4) शम्बा से हुई थी, इस दूसरी रिवायत का ह़ासिल ये निकला के सफ़र के आखिरी चहार (4) शम्बा से मर्ज़ की इब्तिदा हुई थी और वफात 12 रबीउल अव्वल शरीफ सन् 11 हिज्री 12 जून सन् 632 इस्वी में मदीना मुनव्वरा में हुआ- आपका मज़ार शरीफ मदीना मुनव्वरा में है जो मक्का शरीफ से तक़रीबन दो सो मील यानि 320,km उत्तर की जानिब है हुज़ूर के विसाल की तारीख़ अनवारे शरीयत से लिया गया है!
📚 फतावा शारेह़ बुख़ारी जिल्द 1 सफह 385,
📚मदारिजुन्नुबुवह जिल्द 2 सफह 417
📗 अनवारे शरीयत सफह 11
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❐ सवाल ❐ ➻ इमाम का मेहराब में या दो सुतूनों के दरमियान खड़ा होना कैसा है?
❐ जवाब ❐ ➻ कहीं कहीं देखने में आता है के इमाम साहब मेहराब में अन्दर हैं और मुक़तदी बाहर ये ख़िलाफ़े सुन्नत है- हुज़ूर सदरुश्शरीआ फ़क़ीहे आज़म ह़ज़रत अल्लामा मौलाना अमजद अली साहब तह़रीर फरमाते हैं के, इमाम का तन्हा मेहराब में खड़ा होना मकरुह है और अगर बाहर खड़ा हो सिर्फ सज्दा मेहराब में किया या वो तन्हा न हो बल्के उसके साथ कुछ मुक़तदी भी मेहराब में हों तो कुछ ह़रज नहीं,यूँ ही अगर मुक़तदियों पर मस्जिद तंग हो तो भी मेहराब में खड़ा होना मकरुह नहीं है- इमाम को दरों में खड़ा होना भी मकरुह है!
📚 बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 635-- मकरुहात का बयान,
📚 दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 499,
📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 108,
📚 फ़तावा आलमगीरी,
➻ इसका तरीक़ा यह है के इमाम का मुसल्ला थोड़ा पीछे हटा दिया जाये और वो थोड़ा पीछे हट कर इस तरह खड़ा हो के देखने में मह़सूस हो के वो मेहराब या दरों में अन्दर नहीं है बल्के बाहर खड़ा है फिर चाहे सज्दा अन्दर हो नमाज़ दुरुस्त हो जायेगी!
📗 ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 39
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❐ सवाल ❐ ➻ एक सवाल ये है के अगर कोई इमाम नसबंदी करा ले और फिर बाद में ऐलानिया तौबा कर ले तो उसके पीछे नमाज़ पढ़ना कैसा है जवाब इनायत करें महरबानी होगी?
❐ जवाब ❐ ➻ नसबंदी कराना इस्लाम में ह़राम है लेकिन कुछ लोग ख़्याल करते हैं के जिसने नसबंदी करा ली अब वो ज़िन्दगी भर नमाज़ नहीं पढ़ा सकता, हालांके ऐसा नहीं है बल्के इस्लाम में जिस तरह और गुनाहों की तौबा है उसी तरह इस गुनाह की भी तौबा है यानि जिस की नसबंदी हो चुकी है अगर वो सच्चे दिल से एलानिया तौबा करे और ह़राम कारियों से रुके तो उसके पीछे नमाज़ पढ़ी जा सकती है!
📚 फतावा फैज़ुर्रसूल जिल्द 1 सफह 277,
📗 ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 40
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❐ सवाल ❐ ➻ एक सवाल है कि नमाज़ में आसतीन अगर उलटी हो तो नमाज़ हुई या नहीं अगर हुई तो कैसी जवाब इनायत करें?
❐ जवाब ❐ ➻ अगर आसतीन को आधी कलाई से ज़्यादा मोड़ा था तो ऐसे में नमाज़ मकरुहे तह़रीमी हुई इस का दुबारा अदा करना वाजिब है- जैसा के हुज़ूर सदरुश्शरीह ह़ज़रत मौलाना अमजद अली आज़मी साहब रहमतुल्लाहि तआला अलैह फरमाते हैं के कोई आसतीन आधी कलाई से ज़्यादा चढ़ी हुई या दामन समेटे नमाज़ पढ़ना मकरुहे तह़रीमी है ख़्वाह पेशतर से चढ़ी हो या नमाज़ में चढ़ाई इन सूरतों में नमाज़ मकरुहे तह़रीमी होगी!
📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 मकरुहात का बयान सफह 624,
📚फतावा रज़वियह शरीफ किताबुस्सलात जिल्द 7 सफह 380
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❐ सवाल ❐ ➻ एक सवाल है के क्या रात में नाखून काट सकते हैं या नहीं कुछ लोग कहते हैं के रात में नाखून नहीं काटना चाहिए क्या ये बात सही है जवाब इनायत करें,!?
❐ जवाब ❐ ➻ हां बिलकुल काट सकते हैं इस में तो कोई ह़रज नहीं ह़ज़रत अल्लामा मुफ्ती मुनीबुर्रह़मान साहब क़िब्ला तह़रीर फरमाते है के रात के वक़्त नाखून काटने की शरअन कोई मुमानियत नहीं है!
*📗 तफ़हीमुल मसाइल सफह 399*
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❐ सवाल ❐ ➻ कुछ लोग कहते हैं के जरसी गाय खिन्ज़ीर की नसल से है इसको नहीं पालना चाहिए और इसका गोश्त व दूध वगैरह भी नहीं खाना चाहिए क्या ये बात सही है जवाब इनायत करें!?
❐ जवाब ❐ ➻ जरसी गाय का पालना उसका दूध इस्तेमाल करना उसका गोश्त खाना जायज़ व दुरुस्त है ह़ज़रत मौलाना तत़हीर अह़मद साहब क़िब्ला अपनी किताब ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह में तह़रीर फरमाते है के, अमेरीकन गाय के बारे में काफी लोग शुकूक व शुबहात में मुबतिला हैं जबके इस में कोई शक नहीं के अमरीकन गाय भी बिला शुबा गाय है उसका गोश्त खाना ह़लाल और उसका दूध और घी भी खाना पीना जाइज़ है!
📚 फतावा बह़रुल उलूम जिल्द 4 सफह 524,
📗 ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 134
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❐ सवाल ❐ ➻ किसी के मरने के बाद जो 3 दिन के बाद या जुमां वगैरह में जो चना पढ़े जाते हैं वो कितना वज़न होना चाहिए!?
❐ जवाब ❐ ➻ कोई वज़न शरअन मुक़र्रर नहीं, इतने हों के जिस में सत्तर हज़ार अदद पूरा हो जाये!
📗 इरफाने शरीयत सफह 1
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❐ सवाल ❐ ➻ जो लोग दीन की बातों की जानकारी ना होने की वजह से अमल नहीं करते क्या क़ियामत के दिन उनकी पकड़ ना होगी!?
❐ जवाब ❐ ➻ आज-कल काफ़ी लोग ऐसे हैं दीनी बातों, इस्लामी अक़ीदों पाकी ना पाकी, नमाज़ व रोज़ा और ज़कात वग़ैरहा मसाइल नहीं जानते और सीखने की कोशिश भी नहीं करते, और ख़ुदा व रसूल ने किस बात को हराम फ़रमाया और किसे हलाल, किसे जाइज़ और किसे नाजाइज़ उन्हें इसका इल्म नहीं और ना इल्म सीखने की परवाह, और ख़िलाफ़े शराअ हरकात करते हैं गलत सलत नमाज़ अदा करते हैं, लैन दैन ख़रीद फ़रोख़्त और रहन सहन में मज़हबे इस्लाम के ख़िलाफ़ चलते हैं, और उनसे कोई कुछ कहे या उन्हें गलत बात से रोके, ख़िलाफ़े शराअ पर टोके तो वो कहते हैं हम जानते ही नहीं हैं लिहाज़ा हमसे कोई मुआख़िज़ा और सुवाल ना होगा और हम बरोज़े क़ियामत छोड़ दिए जाएंगे!
❐ ➻ ये उन लोगों की सख़्त ग़लत फ़हमी है, सही बात ये है के अंजान ग़लत कारों की डबल सज़ा होगी,
एक इल्म हासिल ना करने की और उल्मा से ना पूछने की और दूसरे ग़लत काम करने की, और जो जानते हैं लेकिन अमल नहीं करते उन्हें एक ही अज़ाब होगा यानी अमल ना करने का, इल्म ना सीखने का गुनाह उन-पर ना होगा, (क्योंके उन्होंने इल्म ए दीन सीख लिया था)
❐ ➻ आजकल आदमी अगर कोई सामान गाड़ियां, कपड़े, ज़ेवरात खाने पीने की चीज़ ख़रीदे और उसको इस चीज़ के ग़लत व ख़राब या उसमें धोके बाज़ी का शक व शुबा हो जाए तो जांच परख कराएगा लोगों से मशवरा करेगा जानकारों को लाके दिखाएगा, खूब छान फटक करेगा, लेकिन इस्लाम के मआमले में मनमानी करता रहेगा उल्टी सीधी नमाज़ पढ़ता रहेगा, वुज़ू व ग़ुसल नहाने धोने में इस्लामी तरीक़े का ख़याल नहीं रखेगा, लेकिन लैन दैन और मुआमलात में हराम को हलाल और हलाल को हराम समझता रहेगा लेकिन आलिमों मौलवियों से मालूम नहीं करेगा के में जो करता हूं ये ग़लत है या सही!
❐ ➻ ये इसलिए हुआ के अब इंसान को दुनियां के नुक़सान की तो फ़िक्र है लेकिन आख़िरत के घाटे की कोई फ़िक्र नहीं हालांके वो मौत से किसी सूरत बच ना सकेगा और क़ब्र व हश्र व जहन्नम के अज़ाब से भाग निकलना उसके बस की बात ना होगी,
दुनियावी हुकूमतों और सल्तनतों की ही मिसाल ले लीजिए अगर कोई शख़्स किसी हुकूमत के किसी क़ानून की ख़िलाफ़ वर्ज़ी करे और फिर कहदे के में जानता ही नहीं हूं तो हुकाम(औफ़िसर) और पुलिस उसकी बात नहीं सुनेंगे और उसे सज़ा दी जाएगी मिसाल के तौर पर कोई शख़्स बग़ैर लाइसेंस के ड्राइवरी करे या बग़ैर रोड टैक्स जमा किए गाड़ियां और मोटरसाइकिल चलाए और जब पकड़ा जाए तो कहे मुझको पता नहीं था के गाड़ी चलाने के लिए ये काम करना पड़ते हैं तो हरगिज़ उसकी बात नहीं सुनी जाएगी,?
❐ ➻ ऐसे ही कोई शख़्स बग़ैर टिकट के रेल में सफ़र करने लगे या पैसेंजर का टिकट ले और एक्सप्रेस में सफ़र करने लगे सैकेंड क्लास का टिकट ले और फ़स्ट क्लास में बैठ जाए और जब पकड़ा जाए तो कहदे के में जानता ही नहीं रेल में सफ़र के लिए टिकट लेना पड़ता है या ये एक्सप्रेस है मैं नहीं पहचान सका और ये फ़स्ट क्लास है मुझको नहीं मालूम तो क्या चैक करने वाले औफ़िसर उसको छोड़ दैंगे ,
हरगिज़ नहीं,?
❐ ➻ ऐसे ही दीन के मुआमले में जो लोग ग़लत सलत करते हैं वो भी ये कहने से नहीं छूटैंगे के हम जानते ही ना थे और क़ियामत के दिन उन्हें दोहरी सज़ा होगी, एक इल्म ए दीन ना जानने की और दूसरी अच्छे अमल ना करने और गुनाह करने की!
इस सब की तफ़्सील व तहक़ीक़ के लिए देखिए मुजद्दिद ए आज़म सरकार आलाहज़रत के फ़रमूदात👇
📗अलमलफ़ूज़ हिस्सा 1. सफ़ह 27.पर,
📗आवामी ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह, सफ़ह 159--160
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❐ सवाल ❐ ➻ एक सवाल है के अगर इमाम के सर पर साफ़ा न हो और मुक़तदी के सर पर साफ़ा है तो क्या मुक़तदी की नमाज़ दुरुस्त होगी या नहीं!?
❐ जवाब ❐ ➻ अगर मुक़तदी सर पर इमामा जिसे साफ़ा और पगड़ी भी कहते हैं, बांध कर नमाज़ पढ़े और इमाम के सर पर पगड़ी न हो तो इसको कुछ लोग बुरा जानते हैं बल्के कुछ यह समझते हैं के इस सूरत में मुक़तदी की नमाज़ दुरुस्त नहीं हुई, यह ग़लत बात है, अगर इमाम के सर पर पगड़ी न हो और मुक़तदी के सर पर हो तो मुक़तदी की नमाज़ दुरुस्त और सही हो जायेगी, आला ह़ज़रत से ये मस्अला मालूम किया गया तो फरमाया बिला तकल्लुफ़ दुरुस्त है!
📚 फतावा रज़वियह जिल्द 3 सफह 273,
📗 इरफ़ाने शरीयत सफह 4,
📗 ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 41
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❐ सवाल ❐ ➻ क्या किसी मरहूम जो इंतिक़ाल कर गए हों उनके नाम से अक़ीक़ा हो सकता है के नहीं जवाब इनायत करें?
❐ जवाब ❐ ➻ मुर्दे की त़रफ़ से अक़ीक़ा नहीं हो सकता, कियोंके अक़ीक़ा बच्चे की पैदाइश की खुशी में शुकराने के तौर पर किया जाता है मुजद्दिदे आज़म सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी अलैहिर्रहमतू वर्रिज़वान तह़रीर फरमाते हैं के मुर्दे का अक़ीक़ा नहीं, के वो शुक्रे विलादत है अगर सात दिन से पहले मर गया तो अभी अक़ीक़ा का वक़्त ही न आया था और अगर बाद को मरा तो अक़ीक़ा गया, उसी में दूसरे सफह पर है के जो मर जाये किसी उम्र का हो उसका अक़ीक़ा नहीं हो सकता!
📚 फतावा रज़वियह शरीफ़ जिल्द 8 सफह 547/546,
📚 फतावा अम्जदिया जिल्द 3 सफह 336,
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 348
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❐ सवाल ❐ ➻ अगर किसी औरत को तलाक़ दी जाए तो वो औरत तलाक़ देने के कितने दिन के बाद दूसरा निकाह़ कर सकती है रहनुमाई फरमायें?
❐ जवाब ❐ ➻ तलाक़ के बाद तीन हैज़ M.c,(माहवारी-) शुरू हो कर ख़तम हो जाये और अगर हैज़ m.c वाली न हो तो तीन महीने और अगर ह़ामिला हो तो जब बच्चा पैदा हो जाये, चाहे बच्चा साल भर बाद पैदा हो या तलाक़ से एक ही मिनट बाद, इद्दत पूरी हो जायेगी!
📗 इरफ़ाने शरीअत सफह 01
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 349
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❐ सवाल ❐ ➻ कुछ लोग को मार कर फेंक देते हैं तो उनसे कैसे सवाल जवाब कैसे होगा, और उन लोगों से सवाल जवाब होगा या नहीं जवाब इनायत करें?
❐ जवाब ❐ ➻ अगर किसी को क़ब्र में दफ़न न किया गया तो जहाँ पड़ा रह गया वहीं उससे सवाल जवाब होगा, और वहीं सवाब या अज़ाब पहूंचेगा हुज़ूर सदरुश्शरिअह बहारे शरीयत में तह़रीर फरमाते हैं के मुर्दा अगर क़ब्र में दफ़न न किया जाये तो जहाँ पड़ा रह गया या फेंक दिया गया गर्ज़ कहीं हो उस से वहीं सवालात होंगे और वहीं सवाब या अज़ाब पहूंचेगा यहाँ तक के जिसे शेर खा गया तो शेर के पेट में सवाल व सवाब व अज़ाब जो कुछ हो पहूंचेगा!
📚 बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 1 सफह 113--- ,عالم برزخ کا بیان
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 350
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❐ सवाल ❐ ➻ एक सवाल है के अगर लुंगी (तहबंद) के नीचे लंगोट बंधा हो तो नमाज़ हो जायेगी या नहीं जवाब इनायत करें?
❐ जवाब ❐ ➻ नमाज़ हो जायेगी आला ह़ज़रत से जब ये मस्अला मालूम किया गया तो आप ने इरशाद फरमाया के नमाज़ दुरुस्त होगी!
📗 इरफ़ाने शरीयत सफह 1,
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 351
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❐ सवाल ❐ ➻ मेरा एक सवाल है के फिरिश्तों को जासूस कहना कैसा है, और अगर कोई आलिम ऐसा कहे तो उसके लिए क्या हुक्म है?
❐ जवाब ❐ ➻ फिरिश्तों को जासूस कहना तौहीन है, फतावा शारेह़ बुख़ारी में है के अम्बिया ए किराम को जासूस कहना कुफ्र है इसी तरह फिरिश्तों को गार्ड या टीटी कहना भी तौहीन है लिहाज़ा आलिम हो या गैरे आलिम फिरिश्तों की शान में ऐसा कहने की वजह से तौबा व अस्तग़फ़ार करे, और अगर कोई मुक़द्दस फरिश्तों की तौहीन की नियत से जासूस कहे तो कुफ्र है तजदीदे इमान व तजदीदे निकाह़ लाज़िम है!
📚फ़तावा शारेह़ बुखारी जिल्द 1 सफह 575
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 352
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❐ सवाल ❐ ➻ आजकल जलसों दीनी मेह़फिलों में नात ख़्वां शायरों पर पैसा लुटाने का रिवाज है ये पैसा लुटाना कैसा है?
❐ जवाब ❐ ➻ जलसों दीनी मह़फिलों वगैरह में नात ख्वानों और शायरों पर पैसा या नोटों को लुटाना या फेंकना जाइज़ नहीं बल्के उनके हाथ या गोद में रख़ दें जैसा के इमामे अहले सुन्नत सय्यदी सरकार आलाह़ज़रत इमाम अह़मद रज़ा खान बरेलवी अलैहिर्रहमा तह़रीर फरमाते है के पैसे फेंकना या हवा में उड़ाना मना है क्योंके पैसा रिज़्क़ है और रिज़्क़ की बे ह़ुरमती जाइज़ नहीं है, इससे साबित हुआ के नात ख्वानों या शायरों या आलिमे दीन के सर या गोद में पैसे डालना जिसमें बे अदबी का पहलू न हो तो जाइज़ है!
📚फतावा रज़वियह शरीफ़ जिल्द 24 सफह 520
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 353
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❐ सवाल ❐ ➻ हमारे यहाँ एक बच्ची का इंतिक़ाल हो गया बगैर नमाज़े जनाज़ा पढ़े उसको दफ़न कर दिए तो क्या दफन के बाद नमाज़े जनाज़ा पढ़ सकते हैं जवाब इनायत करें?
❐ जवाब ❐ ➻ जब-तक लाश फट जाने का गुमान गालिब न हो उस वक़्त तक उसकी क़ब्र पर नमाज़ अदा करने का हुक्म है जैसा के हुज़ूर सदरुश्शरिअह तह़रीर फरमाते हैं के उमूमन अमवात की लाशें तीन दिन या दस दिन या कमो बेश में फट जाती हैं इसी वजह से अगर मय्यत बगैर नमाज़े जनाज़ा पढ़े दफन कर दी गई हो तो जब-तक उसके फट जाने का गालिब गुमान न हो कब्र पर नमाज़ पढ़ने का फुक़्हा हुक्म देते हैं!
📚फतावा अम्जदिया जिल्द 1 सफह 326,
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 354
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❐ सवाल ❐ ➻ एक सवाल है के जैसे कोई औरत नापाकी की ह़ालत में मर गई तो क्या उसको डबल गुस्ल दिया जायेगा, एक नापाकी का फिर दूसरा मरने के बाद वाला?
❐ जवाब ❐ ➻ एक ही गुस्ल काफी है, चाहे जितनी नापाकी जमां हो जाए, मसलन औरत को हैज़ आया अभी न नहाई थी के सोहबत किया, अभी गुस्ल करने न पाई थी के मर गई एक ही गुस्ल दिया हो तो गुसल हो जायेगा खुलासा ये के हर नापाकी का गुस्ल अलग अलग देने की कोई ज़रुरत नहीं, बस एक ही गुस्ल काफी है!
📚इरफ़ाने शरीयत सफह 10
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 355
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❐ सवाल ❐ ➻ एक सवाल ये है के एक शख्स ने अपनी बीवी को ह़मल में तलाक़ दे दी और वो कहता है के ह़मल में तलाक़ नहीं होती है क्या ये सही है,और तलाक़ पड़ गई या नहीं जवाब इनायत करें महरबानी होगी?
❐ जवाब ❐ ➻ ह़मल के दौरान में अगर किसी ने तलाक़ दी तो भी तलाक़ हो जायेगी, जैसा के हुज़ूर आला हज़रत इमाम अह़मद रज़ा ख़ान फाज़िले बरेलवी अलैहिर्रह़मतु वर्रिज़वान तह़रीर फरमाते हैं के
ह़मल में तलाक़ न दी जाए अगर देगा हो जायेगी इद्दत बच्चा पैदा होना होगा!
📚अह़कामे शरीयत जिल्द 2 सफह 185,
➻ ख़ुलासा ये है के उस शख्स का कहना के ह़मल में तलाक़ नहीं होती सरासर जिहालत है उसको मस्अला मालूम नहीं तलाक़ देने वाले को चाहिए के फौरन बीवी से अलग हो जाए!
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 356
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❐ सवाल ❐ ➻ क्या तहज्जुद की नमाज़ बगैर सोये पढ़ सकते हैं जवाब इनायत करें!?
❐ जवाब ❐ ➻ तहज्जुद के लिए रात में सोना शर्त़ है सो कर उठने के बाद इंसान जो नमाज़ पढ़ता है उसे ही तहज्जुद कहते हैं, इसी तरह फ़क़ीहे आज़म हुज़ूर सदरुश्शरिअह मुफ्ती अमजद अली साहब आज़मी अलैहिर्रह़मा तह़रीर फरमाते हैं के
सलातुल लैल की एक क़िस्म तहज्जुद है इशा के बाद रात में सो कर उठें और नवाफ़िल पढ़ें सोने से पहले जो कुछ पढ़ें वह तहज्जुद नहीं!
📚बहारे शरीयत जिल्द 1 सफह 677
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 357
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❐ सवाल ❐ ➻ तहज्जुद की नमाज़ में कितनी रकअत है और उसका वक़्त कब से कब तक है जवाब इनायत करें!?
❐ जवाब ❐ ➻ तहज्जुद की नमाज़ का वक़्त इशा की नमाज़ के बाद सो कर उठें उस वक़्त से तुलू ए सुबह सादिक़ तक है यानि ख़त्मे सहरी के वक़्त तक तहज्जुद का वक़्त है, तहज्जुद की नमाज़ कम से कम 2 रकअत है और हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से 8 तक साबित है (यानि आप 2 रकअत से 8 रकात तक पढ़ सकते हैं जो सही हदीस से साबित है) हदीस शरीफ में इस नमाज़ की बड़ी फज़ीलत आई है निसाई और इब्ने माजा ने अपने सुनन में रिवायत की के रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो शख्स रात में बेदार हो और अपने अहल को जगाये और फिर दोनों दो-दो रकात पढ़ें तो कसरत से याद करने वालों में लिखे जायेंगे!
📚अनवारे शरीयत सफह 70
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❐ सवाल ❐ ➻ एक सवाल अर्ज़ है के औरत को जिसे माहवारी M.c, का खून आता है कपड़े धोने के बाद भी दाग़ कपड़ों पर रह जाए तो क्या हुक्म है जवाब इनायत करें,!?
❐ जवाब ❐ ➻ क़दीम फ़तावा रज़विया शरीफ़ में है नजास़त तीन बार ख़ूब धो ली और कपड़ा हर बार पूरा निचोड़ लिया मगर नजास़त का धब्बा या बू या नजिस शुदा तेल की चिकनाई नहीं जाती तो ये माफ़ है कपड़ा पाक हो गया, लिहाज़ा आपका कपड़ा पाक है!
📚फ़तावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 1 सफह 632
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❐ सवाल ❐ ➻ मोज़ा पहनने में जो टख़ना बंद हो जाता है उस से नमाज़ में कोई कमी तो नहीं होती!?
❐ जवाब ❐ ➻ नमाज़ में इस से असलन कोई ह़रज या कराहत नहीं!
📚इरफ़ाने शरीयत सफह 10
❐ सवाल ❐ ➻ फ़ातिहा में खाने के साथ साथ पानी भी रख सकते हैं फ़ातिहा के लिए या नहीं?
❐ जवाब ❐ ➻ बिलकुल रख़ सकते हैं इसी तरह के एक सवाल के जवाब में आला हज़रत इमाम अह़मद रज़ा ख़ान क़ादरी बरकाती बरेलवी अलैहिर्रह़मा इरफ़ाने शरीयत में इरशाद फरमाते हैं के ख़ाने के साथ पानी फ़ातिहा के लिए रख़ना दुरुस्त है!
📗 इरफ़ाने शरीयत सफह 10
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❐ सवाल ❐ ➻ एक सवाल है के अगर ह़ज़रते फातिमा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा के नाम से फातिहा नज़रो नियाज़ की जाये, तो क्या उस खाने को मर्द हज़रात नहीं खा सकते हैं क्योंकि हमारे यहाँ मर्द को नहीं दी जाती ये बात कहाँ तक दुरुस्त है!?
❐ जवाब ❐ ➻ हज़रते फातिमा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा के नाम से की हुई फातिहा नज़रो नियाज़ मर्द व औरत सब खा सकते हैं इस में कोई हरज नहीं, जो कहता है नहीं खाना चाहिए या जहाँ पर नहीं खाते ये उनकी जिहालत है, आला हज़रत इमाम अह़मद रज़ा ख़ान क़ादरी बरकाती बरेलवी अलैहिर्रह़मा इरफ़ाने शरीयत में इसी तरह के एक सवाल के जवाब में आप इरशाद फरमाते हैं के मर्द को भी खाना चाहिए कोई मुमानियत नहीं!
📗इरफ़ाने शरीयत सफह 10
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❐ सवाल ❐ ➻ अगर कोई फांसी लगा कर मर जाए तो क्या उसकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ी जायेगी या नहीं, कुछ लोग कहते हैं के जो फांसी लगाकर या ज़हर खा कर या अपने हाथों से अपना गला काट कर मर जाए तो उसकी नमाज़े जनाज़ा नहीं पढ़ी जायेगी क्या ये सही है जवाब इनायत करें!?
❐ जवाब ❐ ➻ जो फांसी लगाकर या ज़हर खा कर या अपना गला काट कर मर गया उसकी भी नमाज़े जनाज़ा पढ़ी जायेगी, और मुसलमान के ही क़ब्रिस्तान में दफ़न किया जायेगा, जो कहता है के इनकी नमाज़े जनाज़ा नहीं पढ़ी जायेगी उसको मस्अला मालूम नहीं है, उसको चाहिए के बगैर इल्म के कोई मस्अला न बताये, और आइंदा ख़याल रखे तौबा करे!
📚 फतावा अफ़्रीका सफह 40
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❐ सवाल ❐ ➻ एक सवाल है के जो आस्तानों पर क़व्वाली होती है क्या ये जाइज़ है!?
❐ जवाब ❐ ➻ अगर मज़ामीर यानि,Music,का इस्तेमाल होता है तो यक़ीनन ह़राम, है और ऐसा करने वाला सुनने वाला और हाज़रीन सब फासिक़ हैं अगर किसी पीर की इजाज़त, से ऐसा होता है तो वह भी फासिक़ है,ना वह पीर कहलाने के लायक़ है और ना उस से बैयत होना जाइज़ है, हाँ यूंही अगर लोग बग़ैर मज़ामीर के कोई ऐसा शेर पढ़ें जिस में कराहत ना हो तो बिलकुल जाइज़ है!
📚 अलमलफूज़,हिस्सा 2 सफह 106
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❐ सवाल ❐ ➻ अगर मरते वक़्त किसी के मुंह से कलमा ए कुफ्र निकल गया तो क्या हुक्म लगेगा!?
❐ जवाब ❐ ➻ उल्मा बिलकुल नज़ां की ह़ालात में कलमा ए कुफ्र को कुफ्र नहीं मानते कियोंके हो सकता है की उसकी ह़ालत बेहोशी की हो या अक़्ल काम ना कर रही हो इस लिए नज़ां के वक़्त मरने वाले को कलिमा पढने को कहने से भी माना किया गया है के माज़ अल्लाह अगर ह़ालते नज़ां में इन्कार कर दिया तो वल्लाहु आलम के उसका हश्र किया होगा बस यूँ करे के कुछ लोग खुद बा आवाज़े बुलन्द कलिमा पढते रहें के सुनकर वो खुद भी पढ़ ले!
📚 बहारे शरीअत हिस्सा,4 सफह 131
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❐ सवाल ❐ ➻ अगर कोई काफिर कलिमा पढ़े तो क्या उसको उसका मतलब बताना ज़रूरी है या सिर्फ कलिमा पढ़ते ही मुसलमान हो जायेगा!?
❐ जवाब ❐ ➻ सरकार आला हज़रत फरमाते है के किसी काफिर का इतना कह लेना ही मुसलमान होने के लिए काफी है के में मुसलमान होता हुं या अपना मज़हब छोड़ कर दीने मुहम्मदी क़ुबूल करता हूँ अगरचे कलिमा भी ना पढ़े फिर भी मुसलमान होगा!
📚 फतावा अफरीक़ा सफह 143
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❐ सवाल ❐ ➻ मेरे दोस्त की 4 औलादें हैं मगर 4.रों लडकियां ही हैं अगर लड़का के लिए कोई वज़ीफा हो तो बरा ए महरबानी ज़रुर बताऐं!?
❐ जवाब ❐ ➻ लड़कियां होना बाइसे रह़मत व बरकत है अल्लाह उनके सदक़े में बहुत सी मुसीबत, बलायें परेशानी माँ बाप के उपर से टाल देता है बल्के उनका रिज़्क़ भी बहुत कुशादा कर देता है, खैर आपका जवाब हाज़िर है, इमामुल अइम्मा सय्यदिना इमामे आज़म रज़िअल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं के जो ये चाहता है के उसके यहाँ लड़का हो तो औरत के पेट पर उंगली रख कर ऐ कहे कि अगर लड़का है तो मैंने उसका नाम मुहम्मद रखा इंशाअल्लाह लड़का ही होगा फिर अगर लड़का ही हो तो उसका वही नाम रखे!
📚 अहकामें शरीअत हिस्सा,1 सफह 83
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❐ सवाल ❐ ➻ मुस्तफा जाने रह़मत पे लाखों सलाम के टोटल कितने शेर हैं!?
❐ जवाब ❐ ➻ इसमें इख्तिलाफ है लेकिन 168 कहीं 171 और मेरे पास जो हदाऐक़े बख्शीश है उसमें 172 शेर हैं!
📗 हदाइक़े बख्शिश हिस्सा 2 सफह 36,
❐ सवाल ❐ ➻ क्या नमाज़ में हर सूरह से पहले بسم اللہ पढ़ना चाहिए!?
❐ जवाब ❐ ➻ हर रकअत में सूरह फातिहा से पहले بسم اللہ शरीफ पढ़ना सुन्नत है और उसके बाद सूरह पढ़ने के लिए मुस्तहब यानि पढ़े तो अच्छा और ना पढ़े तो कोई हरज नहीं!
📚 फतावा रज़वियह जिल्द 3 सफह 67
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❐ सवाल ❐ ➻ एक सवाल ये है के क्या कोई अपनी बीवी से खड़े हो कर सोहबत कर सकता है या नहीं और अगर नहीं तो फिर क्यों इस से क्या क्या नुकसान है जवाब इनायत करें!?
❐ जवाब ❐ ➻ हुक्मा (हकीमों) के मुताबिक़ खड़े खड़े मुबाशिरत करने से अगर औरत को ह़मल क़रार पा जाए तो औलाद बद दिमाग़ और बेवकूफ़ या पैदाइशी तौर पर नीम पागल होगी, और खड़े खड़े मुबाशिरत करने से हुक्मा (हकीमों) के क़ौल के मुताबिक़ कपकपी की बीमारी हो जाती है और बाज़ मरतबा कमर के सख़्त दर्द में मुब्तिला हो जाता है!
📚 इरफ़ानुल ह़िकमत सफह 235,
📗 क़रीना ए ज़िन्दगी, सफ़ह 113)
➻ ख़ुलासा ये है कि जानवरों का तरीक़ा एख़्तियार करने के बजाए शरई तरीक़ा एख़्तियार करें, और दर्द व मर्ज़ और बद दिमाग़ी औलाद से निजात पायें, पल दो पल की लज़्ज़त के लिए बीमारियों में मुब्तिला होने और बद दिमाग़ी और नीम पाग़ल औलाद का हुसूल अक़्ल मंदी नहीं बल्के अपने जिस्म व जान और औलाद को दाइमी (हमेशा) मुसीबत में मुब्तिला करना है और उसकी मुसीबत कोई और नहीं बल्के खुद भुगतना पड़ेगा लिहाज़ा इस्लामी तरीके से सोहबत करें जानवरों की तरह़ खड़े खड़े न करें!
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❐ सवाल ❐ ➻ औरत को लिपस्टिक लगाना कैसा है जायज़ है या नहीं और इसको लगा कर गुस्ल व वुज़ू हो जायेगा या नहीं ख़ुलासा फ़रमायें?
❐ जवाब ❐ ➻ लिपिस्टिक लगाने के तअल्लुक़ से हज़रत मुफ्ती साहब फ़रमाते हैं के जाइज़ है आगे तह़रीर फरमाते हैं के सुना है के इस में अलकोहल की मिलावट होती है इसलिए बचना बेहतर है और तहक़ीक़ से ये मिलावट साबित हो जाए तो इसका इस्तेमाल ह़राम व गुनाह है, होंटों पर लिपिस्टिक लगने की सूरत में ये फर्ज़ है कि वुज़ू गुस्ल के वक़्त उसे अच्छी तरह छुड़ा कर होंठ साफ़ कर ले वरना वुज़ू गुस्ल न होगा कियोंके लिपिस्टिक होंठ पर जम जाती है जिसके वजह से वहाँ पानी नहीं पहुंचेगा तो वो पाक भी न होगा!
📚 सिराजुल फुक़्हा की दीनी मजालिस सफह 144
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❐ सवाल ❐ ➻ अगर क़ाज़ी के सामने काफिर नें कलिमां पढ़ा मगर अपने मुसलमान होने का इज़हार नहीं किया तो क्या उसको मुसलमान माना जाएगा!?
❐ जवाब ❐ ➻ अगर दो मुसलमानों के सामने कलिमा पढ़ा तो वो मुसलमान है अगर चे किसी पर ज़ाहिर ना करे हां मगर अपने कुफ्रिया अक़ाइद व आमाल से बेज़ार रहे वरना इस्लाम से फिरा तो मआज़ अल्लाह मुर्तद के हुक्म में होगा!
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❐ सवाल ❐ ➻ हज़रत एक सवाल है के नमाज़ की ह़ालत में पैंट या पाजामा की मोरी मोड़ना कैसा है, कुछ लोग कहते हैं के टख़ना बंद होना चाहिए, इसके बारे में कुछ तफ़सील से बतायें!?
❐ जवाब ❐ ➻ कुछ लोग टख़नों से नीचा लटका हुआ पाजामा और पैंट पहनते हैं अगर उन्होंने इसकी आदत डाल रखी है और तकब्बुर व घमंड के तौर पर वो ऐसा करते हैं तो ये नाजाइज़ व गुनाह है, और इस तरह़ नमाज़ मकरुह है, लेकिन अगर इत्तिफ़ाक़ से हो या बे ख़्याली और बे तवज्जोही से हो तो हर्ज नहीं, और जो लोग इस से बचने के लिए और टख़नें खोलने के लिए मोरी पायेंचे को चढ़ाते हैं वो गुनाह को घटाते नहीं बल्के बढ़ाते हैं और नमाज़ में ख़राबी को कम नहीं करते बल्के ज़्यादा करते हैं, ये पैंट और पाजामे की मोरी पायेंचे को लपेट कर चढ़ाना नमाज़ में मकरुहे तह़रीमी है,
ह़दीस में है के, रसूलल्लाह ﷺ सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया के मुझे हुक्म दिया गया के मैं सात हड्डियों पर सजदा करूँ, पेशानी दोनों हाथ, दोनों घुटने, और दोनों पंजे और ये हुक्म दिया गया के मैं नमाज़ में कपड़े और बाल न समेंटूं!
📚 मिशकात शरीफ़, सफ़ह 83,
📚बुख़ारी शरीफ़,
📚मुस्लिम शरीफ़,
➻ इस ह़दीस की रू से कपड़ा समेटना और चढ़ाना नमाज़ में मना है, लिहाज़ा पैंट और पाजामे की मोरी लपेटने और चढ़ाने वालों को इस ह़दीस से इबरत हासिल करना चाहिए!
➻ लेकिन इस्लाह करने वालों से भी गुज़ारिश है के नमाज़ में इस किस्म की कोताहियां बरतने वालों को नरमी और प्यार व मुहब्बत से समझायें, मान जायें तो ठीक है वरना उन्हें उनके हाल पर रहने दें और मुनासिब तरीक़े से इस्लाह करें, उनको डांटना झिड़कना और उनसे लड़ाई झगड़ा करना बहुत बुरा है, जिसका नतीजा ये भी हो सकता है के वो मस्जिद में आना और नमाज़ पढ़ना छोड़ दें जिसका वबाल उन झिड़कने डांटने वालों पर है, क्यूंके इस में भी कोई शक नहीं के बाज़ इस किस्म की खामियों के साथ नमाज़ पढ़ने वाले बेनमाज़ियों से हज़ारों दर्जा बेहतर हैं, और नमाज़ में कोताहियां करने वालों को भी चाहिए अगर कोई उनकी इस्लाह करे तो बुरा मानने के बजाए उसकी बात पर अमल करें, उस पर गुस्सा न करें, कियोंके वो जो कुछ कह रहा है आप की भलाई के लिए कह रहा है अगर वो तुर्शी और सख़्ती से भी कह रहा है तो उसका फ़ेएल है आपका काम तो हक़ को सुनकर अमल करना है झगड़ा करना नहीं!
📚ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह़ सफह 46---48
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 371
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❐ सवाल ❐ ➻ बहुत सारे लोग क़ुरआने पाक पढ़ते हैं तो दिल में पढ़ते हैं उनके होंट देखें जायें तो होंट भी नहीं हिलते इस तरह़ नमाज़ में क़ुरआन पढ़ना कैसा, नमाज़ हो जायेगी या नहीं!?
❐ जवाब ❐ ➻ कुछ लोग क़ुरआन पाक की तिलावत और नमाज़ में या नमाज़ के बाहर कुछ पढ़ते हैं तो सिर्फ होंट हिलाते हैं और आवाज़ बिलकुल नहीं निकालते, उनका ये पढ़ना, पढ़ना नहीं है और इस तरह़ पढ़ने से नमाज़ नहीं होगी और इस तरह़ क़ुरआने पाक की तिलावत की तो तिलावत का सवाब भी नहीं पायेंगे, आहिस्ता पढ़ने का मतलब ये है के कम अज़ कम इतनी आवाज़ ज़रूर निकले के अगर कोई रुकावट यानि (बेहरा या शोर वगैरह) न हो तो खुद सुन ले, सिर्फ होंट हिलना और आवाज़ का बिलकुल न निकलना पढ़ना नहीं है और इस मस्अले का ख़ास ध्यान रखना चाहिए, वरना नमाज़ नहीं होगी!
📚फतावा आलमगीरी मिस्री जिल्द 1 सफह 65,
📚बहारे शरीअत जिल्द 3 सफह 69"
📚ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह़ सफह 48
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 372
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❐ सवाल ❐ ➻ मुर्गा या मुर्गी ज़िबह़ कर रहे थे और ग़लती से उसका सर अलग ही हो गया तो अब क्या करें, उसका गोश्त ख़ाना जाइज़ है या नहीं!?
❐ जवाब ❐ ➻ अगर मुर्गा मुर्गी ज़िबह़ के वक़्त जानबूझकर सर अलग कर दिया तो ये मकरुह है मगर गोश्त ख़ाना ह़लाल है,और अगर भूलकर ग़लती से सर अलग हो गया तो कोई कराहत नहीं!
फ़तावा हिन्दिया में है👇
ویستحب الاکتفاء بقطع الاوداج ولا یباین الرأس ولو فعل یکرہ'اھ,
📚फ़तावा हिन्दिया जिल्द 5 सफह 287, کتاب الذبائح
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 373
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❐ सवाल ❐ ➻ ह़ज़रत मैं नमाज़ पढ़ रहा था ग़लती से दो के बजाए तीन सजदे कर लिए बाद में याद आया अब मैं क्या करूँ, मेरी नमाज़ होगी या नहीं और मुझे क्या करना चाहिए हवाले के साथ जवाब इनायत करें,!?
❐ जवाब ❐ ➻ अगर किसी ने दो के बजाए तीन सजदे कर लिए तो अगर सलाम फेरने से पहले याद आजाये तो सजदा सहू करे कियोंके वाजिब तर्क हुआ, सजदा सहू लाज़िम है, और अगर सलाम फ़ेरने के बाद याद आया तो फ़िर से दोबारा नमाज़ पढ़ ले!
📚 फ़तावा रज़वियह शरीफ़ जिल्द 3 सफह 646,
📚 मोमिन की नमाज़ सफह 73,PDF file
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 374
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❐ सवाल ❐ ➻ एक सवाल है के सजदे में जाते वक़्त किस जानिब ज़्यादा ज़ोर देना चाहिए, और देना चाहिए या नहीं, इसका ख़ुलासा करें, आपकी महरबानी होगी!?
❐ जवाब ❐ ➻ सजदे में जाते वक़्त दाहिनी जानिब, ज़ोर देना और सजदा से उठते वक़्त बायें बाज़ू पर ज़ोर देना मुस्तहब है!
📚 बहारे शरीअत जिल्द 3 सफह 173,
📚 मोमिन की नमाज़ सफह 73,
❐ सवाल ❐ ➻ क्या जमाअत से नमाज़ पढ़ने वाले को इमाम के साथ दुआ मांगना ज़रुरी है, अगर कोई इमाम के सलाम फेरने के बाद दुआ न मांगे तो उसकी नमाज़ होगी या नहीं जवाब इनायत करें!?
❐ जवाब ❐ ➻ हर नमाज़ सलाम फेरने पर मुकम्मल हो जाती है उसके बाद जो दुआ मांगी जाती है ये नमाज़ में दाख़िल नहीं, अगर कोई शख्स नमाज़ पढ़ने के बाद बिलकुल दुआ न मांगे तब भी उसकी नमाज़ अदा हो जाएगी, अलबत्ता एक फ़ज़ीलत से महरूमी और सुन्नत की ख़िलाफ़ वर्ज़ी है, कुछ जगह देखा गया के इमाम लोग बहुत लम्बी लम्बी दुआयें पढ़ते हैं और मुक़तदी कुछ ख़ुशी के साथ और कुछ बे रग़बती से मजबूरन उनका साथ निभाते हैं, और कोई बग़ैर दुआ मांगे या थोड़ी दुआ मांग कर इमाम साहब का पूरा साथ दिये बग़ैर चला जाए तो उस पर एतराज़ करते हैं और बुरा जानते हैं, ये सब उनकी ग़लतफ़हमियाँ हैं, इमाम के साथ दुआ मांगना मुक़तदी पर हरगिज़ लाज़िम व ज़रुरी नहीं वो नमाज़ पूरी होने के बाद फ़ौरन मुख़्तसर दुआ मांग कर भी जा सकता है, और कभी किसी मजबूरी की बिना पर बग़ैर दुआ मांगे चला जाए तब भी नमाज़ सही और पूरी हो जाती है!
📚 फ़तावा रज़वियह शरीफ़ जिल्द 3 सफह 278,
📗 ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह 48,
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 375
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❐ सवाल ❐ ➻ हज़रत ये बतायें के खड़े हो कर पेशाब करना कैसा, और अगर किसी को कोई तकलीफ हो पैर वगैरह में जो बैठ न सके तो क्या वो खड़े हो कर पेशाब कर सकता है या नहीं जवाब इनायत करें!?
❐ जवाब ❐ ➻ खड़े हो कर पेशाब करना बद तहज़ीबी व बेअदबी व नसरानियों का तरीक़ा है, खड़े हो कर पेशाब करना मकरुह व मना है, हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मना फ़रमाया है, थोड़ी सी मजबूरीयों की बिना पर खड़े हो कर पेशाब नहीं करना चाहिए हां अगर बहुत ज़्यादा तकलीफ हो और हर मुम्किन कोशिश करने के बाद भी अगर वो बैठ नहीं सकता तो खड़े हो कर पेशाब कर सकता है!
📚 फ़तावा रज़वियह शरीफ़ जिल्द 24 सफह 548
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 376
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❐ सवाल ❐ ➻ बहुत सारे लोग बालों को काला करने के लिए काला ख़िज़ाब लगाते हैं तो क्या बालों को काला करना सही है और अगर काला खिज़ाब लगाने वाला कोई इमाम हो तो उसके लिए क्या हुक्म है जवाब इनायत करें!?
❐ जवाब ❐ ➻ काला खिज़ाब या ऐसी मेंहदी जिस से बाल काले हों लगाना नाजाइज़ व ह़राम है इस लिए के जो चीज़ बालों को काला करे ख़्वाह नील हो या मेंहदी का मैल या कोई तेल सब नाजाइज़ व हराम है, ऐसी दवा पीना जिससे बाल काले निकलें जाइज़ है, मेंहदी या कतम लगाया जाए के ये जाइज़ है और हदीस शरीफ़ से साबित है, और अगर इमाम काली (डाई) मेंहदी इस्तेमाल करता है तो उसके पीछे नमाज़ मकरुहे तह़रीमी वाजिबुल इयादा यानि दोहरानी होगी!
📚 फ़तावा बरेली शरीफ़ सफह 68,
📚 अलमलफ़ूज़ शरीफ़, हिस्सा 2, सफ़ह 103,
📗 अनवारुल हदीस, सफ़ह 327
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 377
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❐ सवाल ❐ ➻ अगर जानवर या मुर्ग़ा वग़ैरह बिस्मिल्लाह...... कहे बग़ैर ज़िबह कर दिया तो क्या उसका ग़ोश्त खाना हलाल है!?
❐ जवाब ❐ ➻ ज़िबह करने में क़सदन (जानबूझकर) बिस्मिल्लाह..... न कही तो जानवर (या मुर्ग़ा का गोश्त खाना) हराम है, और अगर भूलकर ऐसा हुआ जैसा के बअज़ मरतबा शिकार के ज़िबह में जल्दी होती है और जल्दी में बिस्मिल्लाह...... कहना भूल जाता है इस सूरत में जानवर हलाल है!
📚 हिदायह,
📚 बहारे शरीअत हिस्सा 15, सफ़ह 119
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❐ सवाल ❐ ➻ क्या वहाबी देवबंदी अहले हदीस शिआ वग़ैरह का ज़बीहा यानी काटा हुआ जानवर हलाल है या नहीं!?
❐ जवाब ❐ ➻ वहाबी देवबंदी अहले हदीस शिआ वग़ैरह का ज़बीहा हराम है क्योके ये ईमान वाले नहीं, और ज़िबह करने वाले का ईमान वाला होना शर्त है जैसा के फ़तावा दुर्रे मुख़्तार में है ज़िबह करने वाले के लिए मुसलमान और आसमानी किताबों पर ईमान रखने वाला होना काफ़ी है अगरचे औरत ही हो!
📚 फ़तावा दुर्रे मुख़्तार किताबुज़्ज़िबाएह, जिल्द 2, सफ़ह 218, मतबूआ मुज्तबाई,
❐ ➻ वहाबी देवबंदी अहले हदीस शिआ वग़ैरह फ़िर्क़ाहाए बातिला इसलिए ईमान वाले नहीं क्योंके ये अल्लाह व रसूल, अज़्ज़ा व जल्ल व सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम के ग़ुस्ताख़ हैं, और गुस्ताख़ी करने से ईमान ख़त्म हो जाता है, इसलिए इनका ज़बीहा हराम है!
तफ़्सीली मालूमात के लिए देखिए
📗 फ़तावा हुस्सामुल हरामैन,
📗 अनवारुल हदीस, सफ़ह 302)
📚 बहारे शरीअत हिस्सा 15, सफ़ह 116)
📚 फ़तावा बरकातियह,
❐ ➻ मुसलमान अगर बदकार और हराम कार हो तो भी उसका ज़बीहा जाइज़ है, नमाज़ रोज़े का पाबंद न हो कितना ही बड़ा गुनाहगार हो मगर उसका ज़िबह किया हुआ जानवर हलाल है,
❐ ➻ हां नमाज़ रोज़ा छोड़ना और हराम काम करना दीने इस्लाम में बहुत बुरा काम है और ऐसे गुनाह करने वाले सज़ा के मुस्तहिक़ हैं, गुनाहगार मुसलामानों को तौबा करना चाहिए!
❐ ➻ आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा ख़ान फ़ाजिले बरेलवी अलैहिर्रहमतू वर्रिज़वान फ़रमाते हैं ज़िबह के लिए दीन समावी शर्त है आमाल शर्त नहीं!
📚 फ़तावा रज़वियह शरीफ़, जिल्द 8, सफ़ह 333)
📚 फ़तावा बरकातियह
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❐ सवाल ❐ ➻ अगर नमाज़ के दौरान मोबाइल बज उठता है तो पाकेट में या जहां मोबाइल रखा हो उसे बंद कर सकते हैं, जैसा के आजकल रिंग टोन उमूमन मोसिक़ी ( Music) की शक्ल में होते हैं तो नमाज़ के दौरान बजने पर नमाज़ का क्या हुक्म है!?
❐ जवाब ❐ ➻ इस मसअले में हुज़ूर ताजुश्शरिअह अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं, नमाज़ पर इसका कोई असर नहीं होगा अलबत्ता खुशूअ् व खुज़ूअ् में ये ख़लल अंदाज है लिहाज़ा नमाज़ के दौरान पॉकेट में या जहां नमाज पढ़ रहे हैं मोबाइल को ऑन करके ना रखें बल्के मोबाइल को साइलेंट करदें या उसको ऑफ करदें और अगर इत्तेफ़ाक़िया तौर पर जेब में मोबाइल बज गया तो इशारा ए ख़फ़ीफ़ा से इशारे के ज़रिए से अमले ख़फ़ीफ़ के ज़रिए से अगर उसको ऑफ कर सकता है तो उसको ऑफ कर ले वरना रहने दे अगर अमले कसीर का ये मुतक़ाज़ी है तो रहने दे और अगर उसको बंद करने के पीछे चलेगा तो इस सूरत में अमले कसीर की वजह से उसकी नमाज़ भी फ़ासिद होगी!
📗 फ़िक़्ही मजालिस, हिस्सा 1, सफ़ह 116---117
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❐ सवाल ❐ ➻ कुछ बुजुर्ग हज़रात मस्जिद में कुर्सी पर बैठकर नमाज़ पढ़ते हैं जबके वो चल सकते हैं मगर ज्यादा देर खड़े नहीं रह सकते तो क्या वो बैठकर नमाज पढ़ सकते हैं,!?
❐ जवाब ❐ ➻ हुज़ूर ताजुश्शरिअह अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं, चलकर अगर खड़े होने पर कादिर है तो उस पर फ़र्ज़ है के खड़े होकर वो तकबीरे तहरीमा कहे और जब तक खड़ा रह सकता है वो खड़ा रहे फिर उसको बैठने की इजाज़त है जिस तौर पर आसानी से वो ज़मीन पर बैठ सकता है बैठकर वो नमाज़ पढ़े कुर्सी पर बैठना ये सख्त महले नज़र है कुर्सी का इस्तेमाल इस ग़रज़ के लिए नाजाइज़ है और ये चंद वजूह से, एक तो ये जमाअत की जगह घेरना है और जमाअत की जगह इस तौर पर घेरना उससे तक़रीज़े जमाअत है ये नाजाइज़ है और फिर इसमें क़तअ सफ़ भी है यानी एक तो कुर्सी है जो सफ़ को मुनक़ते करती है फिर उस पर साहिब नमाज़ पढ़ रहे हैं वो अगरचे बज़ाहिर नमाज़ी हैं लेकिन दरअसल वो हक़ीक़तन नमाज़ी नहीं हैं उनकी नमाज़, नमाज़ नहीं है इसलिए के जब वो चल सकते हैं अब कुर्सी पर बैठकर नमाज़ पढ़ रहे हैं तो एक तो क़याम छोड़ा यूं नमाज़ गई और अगर क़याम कर भी लिया और कुर्सी पर बैठकर अब सजदा किया इशारे से तो जो ज़मीन पर पेशानी रखकर सजदा कर सकता है उसका इशारे से सजदा करना सही नहीं इन दोनों सूरतों मैं कुर्सी पर बैठने वालों की नमाज़ सही नहीं होती कुर्सी का इस्तेमाल सख्त महले नज़र है अल्लाह तबारक व तआला लोगों को तौफ़ीक़ दे के वो अपनी इबादतों को रायग़ां न करें और इबादतों के अहकाम जानें और सही तौर पर अल्लाह तबारक व तआला की इबादत करें!
📗 फ़िक़्ही मजालिस हिस्सा 1, सफ़ह 109)
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❐ सवाल ❐ ➻ क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम व मुफ्तियांने इज़ाम इस मसअले में कि,ताज़िये के सामने खाना व मिठाई वगैरह रखकर फ़ातिहा देंने वाले इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ना कैसा है और उस नमाज़ पर क्या हुक्म हैं!?
❐ जवाब ❐ ➻ ताजिय़े के चौक पर खाना रखकर फ़ातिहा कर के अम़र नाजाइज़ है जुलूस की हौसला अफ़ज़ाई करता है इस लिए इसके पीछे नमाज़ पढ़ना मकरूहे तहरीमी है इसे चाहे के एलानिया तौबा व इस्तगफा़र करें ताके दुसरे लोग भी इससे इबरत हासिल करे? ताजिया मना है शरअ में कुछ असल नहीं और जो कुछ बिदअत इनके साथ की जाती हैं सख्त नाजाइज़ है मुसलमान इतबाअ अहकाम शरअ से होते हैं ना अम़र नाजाइज़ से ताजिये पर जो मिठाई चडाई जाती हैं अगरचे हराम नहीं होती मगर इसके खाने में जुलूस की नजर में एक अम़र नाजाइज़ शरई की वकाअत बढाने और इसके तऱक में नफ़रत डालनी हैं लिहाज़ा ना खाई जाए इन इबा़रात से वाज़अ होता है के ताजिये के सामने फ़ातिहा करना जाइज़ नहीं और ऐसे के पीछे नमाज़ पढ़ना भी जाइज़ नहीं!
📙 फ़तावा फ़किह मिल्लत जिल्द 1 सफ़ह 53 // फ़तावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 9 सफ़ह 189
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❐ सवाल ❐ ➻ जो शख़्स महर कबूल करते वक़्त यह ख्याल करके कि कौन अदा करता है इस वक़्त तो कबूल कर लो फिर देखा जायेगा, ऐसे लोगों के बारे में हदीस शरीफ में क्या हुक्म है!?
❐ जवाब ❐ ➻ एक हदीसे पाक का मफ़हूम है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया ऐसे मर्द व औरत कयामत के रोज़ ज़ानी और ज़ानिया उठेंगे!
*(📚ईरशादाते आला हज़रत सफ़ह, 42)*
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❐ सवाल ❐ ➻ रक्षा बंधन की राखी बेचना कैसा है!?
❐ जवाब ❐ ➻ *राखी कि तिजारत करना नजाइज़ व गुनाह है :* वजह यह है कि राखी का इस्तेमाल सिर्फ रक्षा बंधन के लिए होता है, जो यहाँ के गैर मुस्लिमों का मज़हबी शीआर है तो राखी कि तिजारत गुनाह पर मदद है जो न जाइज़ व गुनाह है।
❐ ➻ अल्लाह करीम इरशाद फ़रमाता है :
*وَلَا تَعَاوَنُوا۟ عَلَى ٱلْإِثْمِ وَٱلْعُدْوَٰنِ ۚ*
यानी गुनाह और ज़ियादती पर बाहम मदद न दो।
📙 सुरह माइदह आयत 2 का हिस्सा
❐ ➻ हुज़ूर फ़क़ीह ए आज़म हिन्द नाइबे हुज़ूर मुफ़्ती ए आज़म हिन्द शरह बुखारी हज़रत अल्लामा मुफ़्ती शरीफुल हक़ अम्जदी علیہ الرحمہ तेहरीर फ़रमाते हैं कि गैर मुस्लिमों के किसी मज़हबी मेले में जाना जाइज़ नहीं, ख़रीद व फरोख्त करना अपने कारोबार का प्रोपेगंडा करना नजाइज़ है करने वाले गुनहगार है।
*📬 जिया ए शरीअत जिल्द अव्वल सफह - 85 📚*
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❐ सवाल ❐ ➻ राखी बांधना व बंधवाना कैसा है!?
❐ जवाब ❐ ➻ *राखी बांधना व बंधवाना हराम व गुनाह है :* राखी बांधने वाला, बंधवाने वाला दोनों फ़ासिक़ फ़ाज़ीर व मुस्तहिक़ ए अज़ाब ए नार है ! क्योंकि ये काफिरों का कौमी त्यौहार है, और कौमी शेआर है ! और किसी भी काफ़िर के कौमी शेआर को इख़्तियार करना हराम व गुनाह है ! ऐसा ही फ़तवा शरह बुख़ारी, ज़िल्द 2, सफ़ा 565 पर है!
*📚 जिया ए शरीअत, जिल्द 1, सफ़ा 84*
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❐ सवाल ❐ ➻ दुनिया का सबसे पहला इंसान कौन है ?
❐ जवाब ❐ ➻ हज़रत आदम अलैहिस्सलाम दुनिया के पहले इंसान हैं, जो तमाम इंसानों के बाप हैं और यही सबसे पहले नबी व रसूल भी हैं जो दुनिया में तशरीफ लाये! आप साहबे शरीयत और साहबे किताब हैं! इस एतेबार से दुनिया का सबसे पहला इंसान मोहिद मुसलमान है!
*(📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,10)*
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❐ सवाल ❐ ➻ इस्लाम और ईमान में क्या फर्क है?
❐ जवाब ❐ ➻ कलिमा पढ़ना, नमाज़ पढ़ना, रोज़ा रखना, ज़कात देना, और साहबे इस्तेताअत हो तो हज करना यह इस्लाम है और अल्लाह तआला पर, उसके रसूलों पर, उसकी किताबों पर और आख़िरत पर अच्छी बुरी तकदीर पर मुकम्मल यकीन रखना यह ईमान है! हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ताज़ीम व अदब और आपसे इश्क व मुहब्बत ही ईमान है! ईमान असल है आमाले उसकी फरअ । ईमान जड़ है आमाल इसकी शाखें! जिस तरह किसी दरख्त की जड़ को काट देने से उसकी शाखें खुद बखुद मुरझा जाती हैं बिल्कुल इसी तरह हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शाने अक़दस में अदना सी गुस्ताखी आमाल की खेती को तबाह व बरबाद कर देती है !
❐ ➻ ईमान की बुनियाद खुश अकीदगी पर हैं अगर अकीदा बिगड़ गया तो तमाम आमाल बरबाद व बेकार है! इसलिये आमाल से ज़्यादा अकीदा की इस्लाह व दुरुस्तगी ज़रूरी है और मदारे नजात भी ईमान ही पर है , अमल पे नहीं! लोग ईमान की वजह से जन्नत में जायेंगे और दर्जे उनके आमाल के मुताबिक बुलंद किये जायेंगे!
*(📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,11)*
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❐ सवाल ❐ ➻ वह कौन सा पानी है जो आबे कौसर और आबे जमजम से भी अफज़ल है ?
❐ जवाब ❐ ➻ सुलह हुदयबिया के मौके पर हमारे आका व मौला सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नुबूवत वाली उंगली मुबारक से जो पानी निकला था और जिससे चौदह सौ सहाबा सैराब हुए थे वह पानी तमाम पानियों से ज़्यादा अफज़ल है!
*(📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,12)*
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❐ सवाल ❐ ➻ वही क्या है, और हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम को किस तरह मिलता था?
❐ जवाब ❐ ➻ अल्लाह तआला का जो पैगाम हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम हमारे हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पास लाये वह वही है और जो कुरआन की शक्ल में है अल्लाह तआला कलम को हुक्म देता था तो ये लोहे महफूज़ पर लिख देता था और यह लोह (तख्ती) हज़रत इसराफील अलैहिस्सलाम पर नाज़िल होता था! हज़रत इसराफील हज़रत मिकाईल अलैहिस्सलाम को देते थे और हज़रत मिकाईल हज़रत जिब्राईल अमीन अलैहिस्सलाम को दे देते थे और हजरत जिब्राईल अल्लाह का पैगाम मेरे हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को पहुंचाते थे!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,12*
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❐ सवाल ❐ ➻ अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को एक तरह की मिट्टी से बनाया या मुख्तलिफ किस्म की मिट्टी से बनाया?
❐ जवाब ❐ ➻ मुख्तलिफ किस्म की मिट्टी से बनाया इसी लिए हर इंसान का चेहरा मोहरा एक दूसरे से मुख्तलिफ है ताकि एक दूसरे की पहचान हो जाये! नीज़ हज़रत आदम का मुजस्समा बनाने के बाद जो मिट्टी बची अल्लाह तआला ने उस मिट्टी से ख़जूर का दरख़्त बनाया इस लिए ख़जूर इंसानी सेहत के लिए बहुत ही फ़ायदे मंद है!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,12' 13*
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❐ सवाल ❐ ➻ इंसान की ज़िन्दगी में खुशी कम और ग़म ज़्यादा क्यों हैं ?
❐ जवाब ❐ ➻ तफासीर की किताबों में हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की पैदाईश के किस्से में आया है कि अल्लाह तआला ने जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का पुतला अपने दस्ते कुदरत से बनाया और उसे मैदाने अरफात में रखा तो उस पर चालीस रोज तक मुसलसल बारिश हुई! उनतालीस दिन तक रंज व गम की बारिश हुई और एक दिन खुशी की! इसलिये इंसान को रंज व गम ज़्यादा रहता है और खुशी कम होती है।
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,13*
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❐ सवाल ❐ ➻ रूह डालने के बाद आदम अलैहिस्सलाम की जुबान से सब से पहला लफ्ज़ क्या निकला था ?
❐ जवाब ❐ ➻ जब रूह डाली गयी तो आपको छींक आ गयी और आपकी जुबान से अलहम्दोलिल्लाह निकला! इसलिये कुरआन की इब्तेदा अलहम्दोलिल्लाह से की गयी क्योंकि यह इंसानी जुबान से निकला हुआ पहला लफ्ज़ है!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,13*
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❐ सवाल ❐ ➻ छींक क्या है और यह क्यों आती है और इस पर अलहम्दोलिल्लाह क्यों पढ़ा जाता है ?
❐ जवाब ❐ ➻ इंसान हो कि जानवर , छोटा हो या बड़ा सभी के दिल में खून गर्दिश करता है और साफ होकर दिल से तमाम रगों में पहुंचता है! जब खून में कोई कारबन यानी कि कचरा आ जाता है तो दिल में खून पहुंचने में रुकावट आ जाती है! जिसकी वजह से पल भर के लिये दिल की धड़कन में भी रुकावट आ जाती है और फिर छींक आने पर झटके के साथ खून वापस चल देता है कारबन दूर हो जाता है! और फिर से एक लम्हे के बाद दिल की धड़कन शुरू हो जाती है! अगर छींक न आये तो आदमी की दिल की धड़कन रुक जाये और इंसान की मौत वाकेय हो जाये!
❐ ➻ यह छींक आना धड़कन लम्हा भर को रोककर वापस शुरू होना कुदरत के हाथ की बात हैं इंसान के बस की बात नहीं! इसलिये छींक आने पर अल्लाह तआला का यह लफ्ज़ बोलकर शुक्र व एहसान अदा किया जाता है! एक जर्मन साइंस दां रोडलफ ने इस पर रिसर्च किया तो उसने भी यही कहा जो मैंने लिखा! दुनिया के बहुत से साइंस दानों ने सुन्नते नबवी पर रिसर्च किया तो उन्होंने बर मला एतेराफ किया कि पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हर बात में कोई न कोई साइंसी पहलू छुपा हुआ है मैं दावे के साथ कहता हूं कि दुनिया अगर सुन्नते नबवी और आपकी तालीमात पर रिसर्च करे तो साइंस की हर नई तहकीक और रिसर्च में इस्लाम और पैग़म्बरे इस्लाम की तालीमात सबके लिये रहबर व रहनुमा साबित होगा!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,14,15*
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❐ सवाल ❐ ➻ मर्द के कफन में तीन कपड़े और औरत के कफन में पांच कपड़े क्यों दिया जाता है!?
❐ जवाब ❐ ➻ हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने जब गंदुम का दाना खा लिया तो उनके बदन से जन्नती लिबास जाता रहा! आपने इंजीर के तीन पत्तों से दो पीछे और एक आगे के शर्मगाह को छिपाया इसलिये मर्द के कफन में तीन कपड़े दिया जाता है ! और हज़रत हव्वा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा ने पांच पत्तों से अपने बदन को छिपाया जिनमें से दो सीने के हिस्से को छुपाया इसलिये औरत को कफन में पांच कपड़े दिया जाते हैं!
❐ सवाल ❐ ➻ गंदुम का दाना कितना खाया था और वह कितने बड़े बड़े थे ?
❐ जवाब ❐ ➻ सिर्फ दो दाना खाया था, मुफस्सेरीन के कौल के मुताबिक वह दाना मुर्गी के अंडा जितना बड़ा था!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,15*
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❐ सवाल ❐ ➻ हज़रत आदम अलैहिस्सलाम गंदुम का दाना खाने के बाद जन्नत से कहां पर उतारे गये और किस लिबास में उतारे गये ?
❐ जवाब ❐ ➻ तफसीर के हवालों से सरअंदीप नाम के पहाड़ पर उतारे गये जो श्रीलंका में है, उस वक़्त लंका हिंदुस्तान का एक हिस्सा था, आप जब जन्नत से दुनिया में आये, तो जन्नत के दरख़्त के तीन पत्ते पहने हुए!
❐ सवाल ❐ ➻ हज़रत आदम हज़रत हव्वा से हैं या हज़रत हव्वा हज़रत आदम से हैं ?
❐ जवाब ❐ ➻ हज़रत हव्वा हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से हैं यानी आपको हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की बायीं पसली से पैदा किया गया है इसीलिये तलाक का मुकम्मल हक मर्द को दिया गया है!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,15*
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❐ सवाल ❐ ➻ जुमुआ का दिन क्या है, और इसको जुमुआ क्यों कहते हैं!?
❐ जवाब ❐ ➻ जुमा हफ्ते का छटा दिन है, इस दिन दुनिया मुकम्मल हुई, कयामत तक पैदा होने वाले तमाम इंसानों की रूहों को अल्लाह तआला ने इस दिन इकट्ठा जमा किया था इसलिये इसको जुमा कहते हैं, और एक रिवायत के मुताबिक यह भी है कि इस दिन तमाम मुसलमान एक जगह जमा होकर अल्लाह की इबादत करते हैं, इसलिये इस दिन को जुमा कहा गया है, और भी बहुत सी वजहें हैं!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,16*
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❐ सवाल ❐ ➻ जो फरिश्ते इंसानों की नेकी और बदी लिखते हैं , तो उनकी कलम स्याही और लिखने के लिये तख्ती क्या है!?
❐ जवाब ❐ ➻ बन्दे की जुबान उनकी कलम है, थूक स्याही है और दिल उनकी तख्ती है जिस पर फरिश्ते नेकी और बुराई लिखते हैं, कल बरोज़ कयामत उसे आमाल नामा की शक्ल में पेश किया जायेगा!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,16*
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❐ सवाल ❐ ➻ सूरज कहां से निकलता है और कहां जाकर डूबता है ?
❐ जवाब ❐ ➻ सूरज एक पानी के झरने में से निकलता है और वापस झरने में डूब जाता है और पानी का यह झरना काफ नाम के एक पहाड़ में है!
❐ सवाल ❐ ➻ वह कौन सी कब्र थी जो दुनिया में चारों तरफ फिरती थी और उसमें रहने वाला इंसान अल्लाह की इबादत में मसरूफ था ?
❐ जवाब ❐ ➻ वह कब्र मछली का पेट है जिसनें हज़रत नबी यूनुस अलैहिस्सलाम को निगल लिया था और वह मछली पूरी दुनिया में चारों तरफ फिरती थी! मगर अल्लाह तआला के नबी हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम मछली के पेट में रह कर अल्लाह की इबादत और ज़िक्र में मसरूफ थे!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,16*
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❐ सवाल ❐ ➻ हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के कश्ती की लंबाई, चौड़ाई, और ऊंचाई कितनी थी ?
❐ जवाब ❐ ➻ मुफस्सिरेकिराम अपनी अपनी तफासीर में लिखते हैं कि तीन सौ हाथ लंबा, पचास हाथ चौड़ा और तीस हाथ ऊंची कश्ती थी और इसमें जो तख्ते लगे थे तमाम नबियों के तादाद के मुताबिक थे! सब से आगे तमाम नबियों के सरदार अहमदे मुख़्तार मुहम्मद अरबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नाम पाक की तख्ती लगी थी।
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,16*
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❐ सवाल ❐ ➻ जन्नत को जन्नत जहन्नम को जहन्नम क्यों कहते हैं ?
❐ जवाब ❐ ➻ जन्नत के मायने होते हैं छुपा हुआ बाग, चूंकि वह बाग इसकी बहारें, उसके महल्लात दुनिया वालों के निगाहों से छुपा हुआ है इसलिये उसे जन्नत कहते हैं, और जहन्नम का लफ्ज़ यह गैर अरबी है असल में जहन्नम का लफ्ज़ चाह नम था यानी गहरा कुंआ चूंकि वह निहायत ही गहरा मकाम है और गोया आग का कुंआ है इसलिये इसको जहन्नम कहा गया है!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,16*
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❐ सवाल ❐ ➻ जन्नत या जहन्नम पैदा हो चुके या कयामत के बाद पैदा होंगें?
❐ जवाब ❐ ➻ यह दोनों पैदा हो चुके हैं, वहीं पहले हज़रत आदम अलैहिस्सलाम रहे वहां ही की खिड़की मोमिन की कब्र में खुलती है वहां ही की सैर हुजूर ने मेराज में फरमाई जहन्नम में लोगों को अज़ाब में मुबतला देखा वगैरह वगैरह!
❐ सवाल ❐ ➻ जन्नत जहन्नुम को इतने पहले इन्हें क्यों पैदा फ़रमाया? इनमें दाखिला तो कयामत के बाद होगा तब पैदा फरमा दिया जाता!
❐ जवाब ❐ ➻ हुकूमत के दफातिर, कोठियां, जेलखाने, फांसी के घर पहले से ही तैयार किये जाते हैं, इसका इंतज़ार नहीं किया जाता कि कोई चोर पकड़ कर आए तो जेल बनायी जाये!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह - 16*
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❐ सवाल ❐ ➻ यह दुनिया की आग जिससे हम अपनी बहुत सी ज़रूरियात पूरी करते हैं यह कहां से आयी?
❐ जवाब ❐ ➻ यह आग जहन्नम ही से दुनिया में आयी है मगर सात समुंद्र पानी से इसे ठंडा किया गया है! फिर भी इतनी शिद्दत है इससे जहन्नम की असल आग की शिद्दत का अंदाजा लगाईये!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,16*
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❐ सवाल ❐ ➻ जब जन्नत लाखों साल पुरानी है तो वहां की नहरें और नहरों की चीजें, दूध, पानी, शहद, फल, फ्रुट, मेवे वगैरह सब खराब हो चुका होगा!
❐ जवाब ❐ ➻ बिगड़ना और ख़राब होना उन चीजों में होता है जो मखलूक की हिफाज़त में हो, मगर जिसका मुहाफिज़ अल्लाह तआला हो उसका बिगड़ना और ख़राब होना गैर मुमकिन है समुद्र में पानी लाखों बरस का है लेकिन न ही वह बिगड़ा ना ही वह खराब हुआ!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,16*
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❐ सवाल ❐ ➻ कयामत को कयामत क्यों कहते हैं?
❐ जवाब ❐ ➻ क़यामत के मायने हैं खड़ा होना , चूंकि उस दिन सारे इंसान मर्द व औरत अपनी अपनी कब्रों से खड़े होकर मैदाने महशर में जायेंगे और वहां सब हिसाब के इंतज़ार में खड़े ही होंगे लिहाज़ा उसका नाम क्यामत है!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,18*
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❐ सवाल ❐ ➻ कयामत क्यों होगी और इस से फायदा क्या है?
❐ जवाब ❐ ➻ इस दुनिया में मोमिन और काफिर एक ही ज़मीन पर आबाद हैं कयामत में उनकी छांट होगी! छांट के बाद मोमिन को जन्नत में और काफिर व मुश्रिक को दौज़ख में भेजा जायेगा! कयामत छांट का दिन है देखिये मुलज़िम को पहले हवालात में रखते हैं , फिर उसे अदालत में हाकिम के सामने पेश करके फैसला हासिल करके जेल पहुंचाते हैं कयामत मुकद्देमात की पेशी का दिन है इसलिये इसे यौमुल हिसाब भी कहते हैं ! उस दिन सब को इंसाफ मिलेगा' किसी के साथ ज़र्रा भर नाइंसाफी नहीं होग!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,19*
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❐ सवाल ❐ ➻ कयामत में हिसाब क्यों होगा? क्या अल्लाह तआला को अपने बंदों के आमाल की खबर नहीं कि कौन जन्नती है कौन जहन्नमी ?
❐ जवाब ❐ ➻ अल्लाह तआला को ज़रे ज़र्रे, कतरे कतरे की खबर है, ये हिसाब रब के इल्म के लिये नहीं बल्कि इंसानों का मुंह बंद करने के लिये होगा ताकि जहन्नमी यह न कह सके कि मुझे दौज़ख क्यों दी' फलां को जन्नत क्यों मिली' या मुझे जहन्नम में सख्त जगह क्यों मिली" दूसरों को हल्की क्यों दी गयी!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,19*
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❐ सवाल ❐ ➻ कयामत के दिन लोग पहले तमाम अंबिया अलैहिमुस्सलाम के पास क्यों जायेंगे? बाद में हमारे हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास क्यों आयेंगे?
❐ जवाब ❐ ➻ ताकि सबको मालूम हो जाये कि हुजूर रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सिवा कोई शफाअत या मदद व दस्तगीरी करने वाला नहीं! अगर तमाम महशर वाले पहले हुजूर के पास चले जाते तो शायद कोई कह देता कि शफाअत तो और जगह भी हो जाती हम और जगह गये नहीं गोया शाने इज़हारे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के लिए मैदाने महशर क़ायम होगी!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,19*
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❐ सवाल ❐ ➻ तौरेत, ज़बूर, इंजील, और दूसरे सहीफे जो नबियों पर नाज़िल हुई हैं वह भी तो कलामे इलाही है इन पर अमल कर सकते हैं कि नहीं अगर नहीं तो क्यों ?
❐ जवाब ❐ ➻ कुरआन, इस्लाम और दीने मुहम्मदी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के बाद अल्लाह तआला ने तमाम दीन और मज़ाहिब को मंसूख कर दिया! अब नजात सिर्फ और सिर्फ इस्लाम में है कुरआनी अहकाम पर अमल करने में है, लालटेन और गेस रात में रौशनी देंगे दिन में नहीं, आफताब ने उन सबको बेकार कर दिया हर एक के इस्तेमाल का एक वक्त होता है ऐसे ही उन दीनों के इस्तेमाल का वक़्त अब निकल चुका! डाक्टर और हकीम मरीज़ के नुस्खों में मरीज़ के हालत के मुताबिक तबदीलियां करता रहता है अगर उन दीनों में अब भी नजात होती तो यहूद व नसारा को इस्लाम और कुरआन मानने और कबूल करने की दावत क्यों दी जाती!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,20*
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❐ सवाल ❐ ➻ नमाज़ों की रकाअतों की तादाद मुख्तलिफ (अलग-अलग) क्यों है ?
❐ जवाब ❐ ➻ इसलिये कि यह नमाजें मुख़्तलिफ पैग़म्बरों की यादगार हैं! हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने सुबह फज्र की दो रकअत पढ़ी! हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने दोपहर जुहर की चार रकअत पढ़ीं हज़रत उज़यर अलैहिस्सलाम ने अस्र की चार रकअत पढ़ीं! हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम ने मग़रिब में तीन रक़ाअत पढ़ी और हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ईशा की चार रकाअत अदा की ! इस लिए नमाज़ को जामेउल इबादात कहते हैं! जिसने इन्हें क़ायम रखा आबाद मखलूक के दरबार उसके नामा ए आमाल में सवाब लिखा जाएगा!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,20-21*
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❐ सवाल ❐ ➻ सफर में चार रकअत को क़सर करके दो क्यों पढ़ते हैं ? तीन रकआत में क़स्र क्यों नहीं!?
❐ जवाब ❐ ➻ इसलिये कि सफरे मेराज में दो - दो रकअतें ही फ़र्ज़ हुई थीं लिहाजा तुम भी सफर में जाओ तो सफर मेराज की याद ताज़ा करो! और चूंकि तीन का आधा सही नहीं बन सकता इसलिये इस में क़सर नहीं!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,20-21*
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❐ सवाल ❐ ➻ जुहर व असर में आहिस्ता किरअत क्यों किया जाता है बाकी तीन नमाजों में ज़ोर से क्यों!?
❐ जवाब ❐ ➻ इब्तिदाये इस्लाम में कुफ्फार व मुशरेकीन का गल्बा था वह किरअत सुनकर अल्लाह और हज़रत जिब्राईल की शान में बकवास बकते थे और इन दोनों वक़्तों में वह बाजारों में आवारा घूमते रहते थे, मग़रिब में खाने में मशगूल हो जाते थे ईशा में सो जाते थे! फज्र में जागते न थे! इसलिये इन दोनों नमाज़ों में आहिस्ता किरअत का हुक्म हुआ! और दूसरी वजह यह बयान की गयी है कि चूंकि दोपहर में कारोबार शबाब पर होता है, अस्र दिन का आखिरी निचोड़ होता है वक़्त कम होता है और हर शख्स अपने फैले हुए कारोबार को समेटने की फिक्र में होता है ताकि वह अपनी मंजिल पर दिन के उजाले में पहुंच जाये और चूंकि आवाज साथ पढ़ना बा नसबत आहिस्ता पढ़ने में वक़्त कम लगता है इसलिये आहिस्ता का हुक्म दिया गया है!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,20-21*
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❐ सवाल ❐ ➻ नमाज़ के लिये वुजू क्यों जरूरी है?
❐ जवाब ❐ ➻ इसलिये कि वुजू नमाज की कुंजी है जब कुंजी नहीं तो ताला कैसे खुलेगा और नमाज़ जन्नत की कुंजी है मगर वोह नमाज़ जो ख्याले नबी में डूब कर पढ़ी जाये वरना बगैर दनदाने की कुंजी है!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,20-21*
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❐ सवाल ❐ ➻ वुजू में चार आज़ा का धोना क्यों जरूरी है?
❐ जवाब ❐ ➻ इसलिये कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने जब गंदुम खा लिया तो उसमें इन्हें चार आजा ने काम किया था! दिमाग में खाने का ख्याल आया, पांव से चल कर गए हाथ से गंदुम पकड़ा और मूंह से खाया गोया लग्जिस में यह चारों आजा शामिल थे इस लिए बतौर सज़ा नमाज़ के लिए उन्ही चारों आजा को धोया जाए क्योंकि वुजू के पानी से गुनाह धूल जाते हैं!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,20-21*
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❐ सवाल ❐ ➻ इस्लाम में जुमा को ईदुल मोमिनीन क्यों माना गया, जुमा में कौन सी खूबी है और ईसाई इतवार की क्यों ताजीम करते हैं ?
❐ जवाब ❐ ➻ ईसाई इतवार को सिर्फ इसलिये मानते हैं कि इस दिन हज़रत ईसा अलैहिस्लसलाम पर आसमान से दस्तरख्वान उतरा था लिहाजा यह उनकी ईद का दिन है! इसलिये वह इस दिन तातील ( छुट्टी )रखते हैं!
❐ ➻ लेकिन जुमा मुसलमानों का ईद इसलिये बना कि वह इंसानी दुनिया का पहला और आखिरी दिन है क्योंकि जुमा के दिन हज़रत आदम अलैहिस्सलाम पैदा हुए और कयामत भी जुमा ही के दिन आयेगी! नीज़ अंबियाए किराम पर बड़े बड़े इनामात इसी दिन में हुए और हफते के सात दिन हैं जिनमें पहला दिन जुमा है लिहाज़ा जुमा को इबादत के लिये खास किया गया है ताकि हफते की शुरूआत इबादत और बरकत पर हो!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,22*
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❐ सवाल ❐ ➻ नमाज़ जमाअत से क्यों पढ़ी जाती है' इसमें क्या हिकमत है ?
❐ जवाब ❐ ➻ जमाअत से नमाज़ अदा करने में बहुत सी दीनी हिकमतें हैं दीनी फायदे यह हैं कि अगर जमाअत में एक की नमाज़ कबूल हो गयी तो सबकी कबूल और बा जमाअत नमाज़ पढ़ने से 27 गुना सवाब ज़्यादा मिलता हैं जमाअत के लिये आने जाने में हर कदम पर दस नेकियां मिलती हैं!
❐ ➻ और दुनियावी हिकमतें यह हैं कि जमाअत के बरकत से कौम में तंजीम रहती है आपसी इत्तेफाक बढ़ता है! रोज़ाना पांच बार की मुलाकात से दुआ सलाम , दिल की अदावत , नफरत , कीना , रंजिश गिले शिकवे को दूर करता है! जमाअत से मुतकब्बेरीन का गुरूर टूटता ह! मसावात निज़ाम कायम होता है, जिसमें न कोई अमीर होता है और न कोई गरीब! न कोई गुलाम होता है न आका बल्कि यहां बादशाह को भी गरीब फकीर के साथ खड़ा होना पड़ता है!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,22*
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❐ सवाल ❐ ➻ रोजा दिन में फर्ज है रात में क्यों नहीं ?
❐ जवाब ❐ ➻ इसलिये कि फितरी तौर पर रात में इंसान के खाने की आदत नहीं होती और दिन में इंसान कुछ न कुछ खाता पीता रहता है, यह इंसानी आदत है! अगर रात में रोज़ा फर्ज होता तो आदत व इबादत , तबीयत व शरीयत में फर्क मालूम न होता ! इसलिये रात के बजाए दिन में फर्ज हुआ ताकि आदत और इबादत का पता चल जाये!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,23*
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❐ सवाल ❐ ➻ रोज़ा के लिये शमसी महीना (यानी अंग्रेज़ी महीना) मुर्करर क्यों न हुआ, कमरी महीना (यानी इस्लामी महीना) क्यों मुकर्रर किया गया?
❐ जवाब ❐ ➻ क्योंकि चांद के महीने मौसमों में गर्दिश करते रहते हैं लिहाज़ा मुसलमान हर मौसम में रोज़ा रखेंगे, कभी सर्दी की आसानी से फायदा उठायेंगे और कभी गर्मी की मशक्कत से ज़्यादा सवाब पायेंगे! नीज़ शमसी महीनों में मौसम परस्ती का वहम है सारे इस्लामी काम कमरी महीने (यानी इस्लामी महीना) से हैं ताकि मालूम हो कि मुसलमान खालिके मौसम के परस्तार हैं!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह 23*
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❐ सवाल ❐ ➻ रोज़ों के लिये रमज़ान ही का महीना क्यों मुन्तखब हुआ?
❐ जवाब ❐ ➻ इसलिये कि रमज़ान में कुरआन नाज़िल हुआ यानी लोहे महफूज़ से मुन्तकिल होकर आसमान पर आया, फिर वहां से २३ साल में जैसे जैसे ज़रूरत पड़ी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाज़िल हुआ !कुरआन रब की बहुत बड़ी नेमत है नेमत मिलने पर शुकराने के तौर पर रोज़ा रखवाये गये!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,23*
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❐ सवाल ❐ ➻ जब रमज़ानुल मुबारक ऐसा अज़मत वाला महीना है तो इसके जाने पर ईद (खुशी) क्यों मनायी जाती है? मुबारक चीज़ जाने पर गम मनाना चाहिये न कि खुशी?
❐ जवाब ❐ ➻ यह खुशी दो वजह से है एक तो माहे मुबारक में इबादत की तौफीक मिलने का शुक्रिया कि खुदाया तेरा शुक्र है कि तूने खैर से रोज़ा "तरावीह' 'एतेकाफ, अदा करा दिये! दूसरे यह कि मुसलमानों को रमज़ान के जाने का बहुत सदमा होता है इसलिये जुमातुल विदा ( रमज़ान का आख़िरी जुमा ) को लोग ज़ार व कतार रोते हैं! इस गम को हल्का करने के लिये ईद रख दी गयी ताकि रंज व गम का एहसास कम हो!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,24*
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❐ सवाल ❐ ➻ इस्लाम ने ज़कात क्यों फ़र्ज़ की? अपना कमाया हुआ माल दूसरों को मुफ्त क्यों दिलवाया ?
❐ जवाब ❐ ➻ इस सवाल के बहुत से जवाब हैं! मुख्तसर तौर पर अर्ज करता हूं ज़कात फर्ज होने की सही वजह यह कि सखावत इंसान का कमाल है और बखालत, कंजूसी , ऐब व नक्स है ! ज़कात देने से ये ऐब दूर हो जाता है और वह कमाल हासिल होता है! ज़कात से इमदाद बाहमी का जज़्बा पैदा होता है !खर्च करने से नेमत बढ़ती है , रोकने से घटती है अंगूर और बेरी की शाखें काट देने से फल ज्यादा आते हैं! चलती फिरती चीज़ बेहतर रहती है और रुकी हुई चीज़ बिगड़ जाती है! कुंए का पानी निकलता रहे तो ठीक रहता है वरना बिगड़ जाता है!
❐ ➻ लिहाज़ा दौलत बंद न करो , इसे चलता फिरता रखो! जैसे हमारी कमाई में हुकूमत का हिस्सा होता है जिसे टेक्स कहते हैं! फिर वह टेक्स हमारी ही मफाद यानी मुल्की इंतज़ाम पर खर्च होता है! ऐसे ही हमारी कमाईयों में रब तआला का हक है जो हमारे ही गरीब भाईयों पर खर्च होता है यह मिसाल सिर्फ समझाने के लिये है वरना ज़कात टेक्स नहीं!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,25*
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❐ सवाल ❐ ➻ जब अल्लाह तआला ने हमें माल दिया तो वह हमारा ही हिस्सा है, हम ही इस्तेमाल करें, ज़कात सदक़ा क्यों दें?
❐ जवाब ❐ ➻ अल्लाह तआला जो चीज़ किसी को ज़रूरत से ज़्यादा दे तो उसमें दूसरों का भी हिस्सा होता है! भेंस के थन में दस सैर दूध होता है क्योंकि वह सिर्फ उसके बच्चे ही के लिये नहीं दूसरों का भी इसमें हिस्सा है कुतिया के थन में थोड़ा सा ही दूध है क्योंकि वह सिर्फ उसके बच्चों ही के लिये है बिल्कुल इसी तरह अमीरों के दौलत में गरीबों और मजबूरों का भी हिस्सा है!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,25*
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❐ सवाल ❐ ➻ ज़कात से कौम में और भीक मांगने की रस्म व आदत बढ़ती है इसलिये आज जितने भिकारी मुसलमानों में हैं इतने दूसरी कौमों में नहीं! लोग सोचते हैं कि जब मुफ्त मिले तो मेहनत कौन करे ? (बाज़ जाहिल मुसलमान का ये सवाल है)
❐ जवाब ❐ ➻ ज़कात से मुस्लिम कौम दूसरों की मोहताज न होगी, अपनी ज़रूरतें अपनी ही कौम से पूरी होगी, बोहरा कौम को देखिये कि उनमें कोई ज़कात की वजह से ग़रीब नहीं मुसलमानो में गुरबत व अफलास की असल वजह मुसलमानों की अय्याशी, बेकारी, मुकद्दमा बाज़ी शादी ब्याह में फिजूल ख़र्ची और हराम रस्मों का रिवाज है इस्लाम ने जहां ज़कात का हुक्म मालदारों को दिया है वहां ग़रीबों को भीक मांगने से सख्त मना भी किया है जितना इस्लाम ने भीक मांगने की मज़म्मत की है इतना किसी और मज़हब ने नहीं की क़सूर भिकारियों का है इस्लाम का नहीं!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,25*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 422
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❐ सवाल ❐ ➻ ज़कात ग़रीब रिश्तेदारों को देना क्यों जायज़ है, होना तो ये चाहिए कि ये बिल्कुल अजनबी को दी जाये जिससे कोई दुनियावी ताल्लुक़ न हो!
❐ जवाब ❐ ➻ ग़रीब रिश्तेदारों को ज़कात देने में दो फायदा हैं एक तो इबादत और दूसरा अपने रिश्तेदार की ख़िदमत! रिश्तेदार की ख़िदमत और मदद वैसे भी लाज़िम व ज़रूरी है, रब का यह करम है कि उसने इस ज़मन में इबादत भी अदा करा दी और ज़रूरतमंद की मदद भी हो गयी!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,26*
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❐ सवाल ❐ ➻ ज़कात को ज़कात क्यों कहते हैं?
❐ जवाब ❐ ➻ ज़कात के लुग़वी मायने पाकी के हैं, चूंकि ज़कात निकालने के बाद माल पाक हो जाता है इसलिये इसे ज़कात कहते हैं!
*📚 क़िताब हमसे पूछिये सफ़ह,26*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 424
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❐ सवाल ❐ ➻ जो शख़्स महर कबूल करते वक़्त यह ख्याल करके कि कौन अदा करता है इस वक़्त तो कबूल कर लो फिर देखा जायेगा, ऐसे लोगों के बारे में हदीस शरीफ में क्या हुक्म है!?
❐ जवाब ❐ ➻ एक हदीसे पाक का मफ़हूम है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया ऐसे मर्द व औरत कयामत के रोज़ ज़ानी और ज़ानिया उठेंगे!
*(📚ईरशादाते आला हज़रत सफ़ह, 42)*
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❐ सवाल ❐ ➻ अमुमन घर के वॉशरूम यानी (बाथरूम व टॉयलेट) में मर्दाना जूता या चप्पल रख दिया जाता है जिसे पहनकर वॉशरूम में जाते हैं, तो औरत को वॉशरूम में जाने के लिए मर्दाना जूता या चप्पल पहनकर जाना कैसा है!?
❐ जवाब ❐ ➻ नाजाइज़ व गुनाह है ✅
❐ ➻ अमुमन घर के वॉशरूम यानी (बाथरूम व टॉयलेट) में मर्दाना जूता या चप्पल रख दिया जाता है जिसे पहनकर मर्द व औरत वॉशरूम में जाते हैं हालांकि औरत के लिए मर्दाना जूता व चप्पल पहनना नाजाइज़ व गुनाह है चाहे घर से बाहर पहने या घर के अन्दर पहने वैसे पहने या वॉशरूम यानी (बाथरूम व टॉयलेट) में जाने के लिए पहने, और ऐसी औरत पर नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने लाऩत फरमाई है!
❐ ➻ अबू दाऊद ने इब्ने अबी मुलैक से रिवायत की कि किसी ने हज़रते आइशा रदियल्लाहु तआला अन्हा से कहा कि एक औरत ( मर्दों की तरह) जूता पहनती है। उन्होंने फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मर्दानी औरतों पर लानत फ़रमाई!
*📗आप़के मसाइल का शऱई हल, सवाल न. 4 सफ़ह 6*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 426
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❐ सवाल ❐ ➻ आला हज़रत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के फतवे के मुताबिक देवबन्दी वहाबियों के वअज़ तकरीर सुन्ना कैसा है!?
❐ जवाब ❐ ➻ *देवबन्दी वहाबियों की तकरीर सुन्ना हराम है :* देवबन्दी वहाबियों की अख़बस शाख है उनकी तकरीर वअज़ सुन्ना हराम है उस से फ़तावा लेना हराम है उस से मेल झोल सख्त हराम बल्कि उसे मुसलमान जान कर हो तो कुफ्र है उलमा-ए-किराम इन लोगों के बारे में फरमाते है जो इन वहाबियों देवबन्दी के क़ाफ़िर होने मे और इनके अ़ज़ाब में शक करे वोह खुद भी क़ाफ़िर है!
*📚 फ़तावा रजविया जिल्द, 9 सफ़ह 533*
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❐ सवाल ❐ ➻ कुफ्फार से दोस्ती व मुहब्बत करना क्या है!?
❐ जवाब ❐ ➻ *तर्जम ए कन्ज़ुल ईमान :* मुसलमान काफ़िरों को अपना दोस्त न बना लें मुसलमानों के सिवा और जो ऐसा करेगा उसे अल्लाह से कुछ इलाक़ा न रहा, मगर यह कि तुम उनसे कुछ डरो और अल्लाह तुम्हें अपने ग़ज़ब से डराता है और अल्लाह ही की तरफ़ फिरना है।
*📙 आले-इमरान 3 : 28*
❐ ➻ *शान ए नुज़ूल :* हज़रते सय्यिदना उबेदा बिन सामित رضی اللہ تعالی عنہ ने जंग ए अहज़ाब के मौके पर हुज़ूर सैयदे आलम नूरे मुजस्सम ﷺ से अर्ज़ किया की मेरे पास 500 यहूदी हैं जो मेरे हालीफ़ हैं मेरी राय है की मैं दुश्मन के मुक़बले में इन से मदद हासिल करू इस पर ये आयेते करीमा नाज़िल हुवी और काफिरो को दोस्त और मददगार बनाने की मुमानीअत फ़रमाई गयी।
❐ ➻ कुफ़्फ़ार से दोस्ती व मुहब्बत हराम व ममनुअ है, और उन्हें राज'दार बनाना इन से क़ल्बी तअल्लुक़ रखना न जायज है अल बत्ता अगर जान या माल का ख़ौफ़ हो तो ऐसे वक़्त में सिर्फ ज़ाहिरी बरताव जाइज़ है।
❐ ➻ यहाँ सिर्फ ज़ाहिरी मेल बरताव की इजाज़त दी गयी है, ये नहीं की ईमान छुपाने या झूठ बोलने को अपना ईमान और अक़ीदा बना लिया जाए बल्कि बातिल के मुक़बले में डट जाना और अपनी जान तक की परवाह न करना अफ़्ज़ल व बेहतर होता है जैसे की सय्यिदना इमाम इ हुसैन رضی اللہ تعالی عنہ ने जान दे दी लेकिन हक़ को न छुपाया।
❐ ➻ इस आयएत में कुफ्फार को दोस्त बनाने से मना किया गया है, इसी से ये बात का हुक्म भी समझा जा सकता है की मुस्लमानो के मुक़बले में काफिरो से इत्तेहाद करना किस क़दर बुरा है।
🤲🏻 ⚘ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हम सबको सही समझ अता फरमाए, और अपने मेहबूब बंदों की पक्की सच्ची मुहब्बत अता फरमाए।...✍🏻 *आमीन*
*[📚सिरातुल जिनान ]*
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❐ सवाल ❐ ➻ इब्ने आदम बूढ़ा हो जाता है मगर उसकी कितनी चीजें जवान रहती है!?
❐ जवाब ❐ ➻ एक हदीस में है कि इब्ने आदम बूढ़ा हो जाता है मगर उस की दो चीजें जवान रहती हैं एक उम्मीद और दूसरी *माल की महब्ब!*
❐ ➻ लालच और हिर्स का जज्बा खुराक, लिबास, मकान, सामान, दौलत, इज्जत, शोहरत गरज हर नेमत में हुवा करता है, अगर लालच का जज्बा किसी इन्सान में बढ़ जाता है तो वोह इन्सान तरह तरह की बद अख्लाकियों और बे मुरव्वती के कामों में पड़ जाता है और बड़े से बड़े गुनाहों से भी नहीं चूकता बल्कि सच पूछिये तो हिर्स व तमअ और लालच दर हकीकत हज़ारों गुनाहों का सर चश्मा है इस से खुदा की पनाह मांगनी चाहिये!
📙 जन्नती जेवर सफह - 111
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❐ सवाल ❐ ➻ इब्लीस शैतान ने आदम अलैहिस्सलाम को सजदा ना करके कितने कुफ्र किये थे!?
❐ जवाब ❐ ➻ मुअल्लमुल मलाकूत होने और लाखों बरस इबादत करने के बावजूद सिर्फ एक सज्दा हज़रते आदम अलैहिस्सलाम को ना करने की बिना पर उसको रांदये बरगाह कर दिया गया,उसके एक सजदा ना करने में 4 कुफ्र थे मुलाहज़ा फरमाएं :
1. ❐ ➻ उसने कहा कि तूने मुझे आग से बनाया और इसको मिटटी से मैं इससे बेहतर हूं, इसमें मलऊन का मक़सद ये था कि तू बेहतर को अदना के आगे झुकने का हुक्म दे रहा है जो कि ज़ुल्म है,और उसने ये ज़ुल्म की निस्बत खुदा की तरफ की जो कि कुफ्र है!
2. ❐ ➻ एक नबी को हिकारत से देखा,और नबी को बनज़रे हिक़ारत देखना कुफ्र है!
3. ❐ ➻ नस के होते हुए भी अपना फलसफा झाड़ा,मतलब ये कि जब हुक्मे खुदा हो गया कि सज्दा कर तो उस पर अपना क़ौल लाना कि मैं आग से हूं ये मिटटी से है ये भी कुफ्र है!
4. ❐ ➻ इज्माअ की मुखालिफत की,यानि जब सारे के सारे फरिश्ते झुक गए तो इसको भी झुक जाना चाहिए था चाहे बात समझ में आये या नहीं क्योंकि इज्माअ की मुखालिफत भी कुफ्र है!
*📕 नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 2,सफह 34*
❐ ➻ सोचिये कि जब लाखों बरस इबादत करने वाला एक नबी यानि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की तौहीन करने की बनिस्बत लाअनती हो गया तो जो लोग नबियों के सरदार हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की तौहीन कर रहे हैं उनका क्या होगा,उलमाये इकराम फरमाते हैं कि जिसने हुज़ूर की नालैन शरीफ की तौहीन कर दी वो भी काफिर है और आपके नालें पाक के नक्श के लिए आलाहज़रत फरमाते हैं कि उलमाये इकराम ने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की नालैन मुबारक की तस्वीर को अस्ल की तरह बताया और उसकी वही इज़्ज़त और एहतेराम है जो असल की है!
*📕 अहकामे तस्वीर,सफह 20*
❐ ➻ तो जब नालैन मुबारक की या सिर्फ उसकी नक्ल यानि तस्वीर की तौहीन करने वाला काफिर है तो जो आपकी ज़ात व औसाफ व हाल व अक़वाल की तौहीन करेगा वो कैसे ना काफिर होगा बल्कि वो काफिर नहीं काफिर से बदतर है!
❐ ➻ रिवायत में आता है कि एक दिन ये हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की बारगाह में हाज़िर हुआ और कहा कि रब से मेरी शिफारिश कर दीजिए मैं तौबा करना चाहता हूं,आपने उसके लिए दुआ फरमाई तो मौला फरमाता है कि ऐ मूसा इससे कह दो कि जाकर आदम की क़ब्र को सज्दा करले मैं इसे माफ कर दूंगा,ये बात जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने मलऊन को बताई तो खबीस कहने लगा कि जब मैंने उनको उनकी ज़िन्दगी में सज्दा नहीं किया तो अब उनकी क़ब्र को सज्दा करूंगा ये कहकर चला गया,यहां तक कि मौला उसको जहन्नम में 1 लाख साल जलाने के बाद निकालेगा और कहेगा कि अब भी आदम को सज्दा करले तो मैं तुझे माफ कर दूंगा इस पर वो इंकार करेगा और हमेशा के लिए जहन्नम में डाला जायेगा!
*📕 तफसीर रूहुल बयान,जिल्द 1,सफह 72*
*📕 तफसीरे अज़ीज़ी,जिल्द 1,सफह 158*
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❐ सवाल ❐ ➻ बिला मजबूरी कुहनियां खोल कर जैसे आज कल आधी आस्तीन की शर्ट पहन कर कुछ लोग नमाज़ अदा करते है यह कैसा है!?
❐ जवाब ❐ ➻ बिला मजबूरी (यानी उसके पास दूसरे कपड़े हो फिर भी) आधी आस्तीन वाले कपड़े में नमाज़ पढ़ना मकरूहे तंजीही है और अगर कोई मजबूरी नहीं (यानी उसके पास दूसरे कपड़े मौजूद नहीं है) तो अब कराहत भी नहीं और अगर आस्तीन चढ़ा कर नमाज़ पढ़ता है तो मकरूहे तहरीमी है!
❐ ➻ और लोग इसी पर कयास कर के कहते है कि हाफ आस्तीन में नमाज़ पढ़ना मकरूहे तहरीमी है जोकि बिल्कुल ग़लत है बल्कि अगर वह जान बूझ कर भी हाफ आस्तीन में नमाज़ पढ़ता है तब भी मकरूहे तज़ीही है!
❐ ➻ हिदायत : इस से लोगों को यह सबक हासिल करना चाहिए कि बाज़ अवकात कोई शख़्स हाफ आस्तीन में नमाज़ पढ़ते है तो हम फौरन कह देते है कि नमाज़ नहीं हुई या मकरूहे तहरीमी हुई या यह कि इस तरह नमाज़ नहीं होगी आप दूसरा कपड़ा पहन कर आए वगैरा... और इस तरह उनकी जमअत भी चली जाती है और हम यह भी नहीं देखते की सामने वाला किस सूरत में पढ़ रहा है, मजबूरी है भी की नहीं और अगर मजबूरी न हो तो भी उसकी नमाज़ हो जाएगी दोहराना वाजिब नहीं, और मजबूरी है तो कोई हर्ज भी नहीं!
❐ ➻ अफसोस है ऐसे जाहिलों पर जो बिना सोचे समझे बगैर इल्म के गलत फतवे लगाते है, हुज़ूर {ﷺ} फरमाते है जो बगैर इल्म का फतवा दे उस पर तमाम ज़मीन व आसमान के फरिश्ते लानत करते है!
*📚 फतावा अमजदिया अव्वल सफा 193*
*📚फतावा फक़ीहे मिल्लत जिल्द अव्वल सफा 174*
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❐ सवाल ❐ ➻ नमाज़ के लिये तहारत ज़रूरी है अगर कोई शख्स जानबूझ कर बे तहारत नमाज अदा करता है तो ऐसे करना कैसा है!?
❐ जवाब ❐ ➻ हुज़ूर पुरनूर ﷺ फ़रमाते है जन्नत की कुंजी नमाज़ है और नमाज़ की कुंजी तहारत, एक और हदीस शरीफ़ मे फ़रमाया तहारत निस्फ ईमान है। नमाज़ के लिये तहारत ऐसी ज़रूरी चीज़ है के बे इसके नमाज़ होती ही नही बल्की जानबूझ कर बे तहारत नमाज़ अदा करने को औलमा कुफ्र लिखते है,
और क्यूं ना हो के इस बे वुज़ू, बे गुस्ल नमाज़ पढ़ने वाले ने इबादत की बेअदबी और तौहीन की।
❐ ➻ तहारत की 2 क़िस्में है,
*(1) सुग़रा,*
*(2) कुबरा,*
❐ ➻ तहारते सुग़रा वुज़ू है और तहारते कुबरा गुस्ल है, जिन चीज़ों से सिर्फ वुज़ू लाज़िम होता है उनको हद्से असग़र कहते है, और जिन से गुस्ल फ़र्ज़ हो उनको हद्से अकबर कहते है।
*📚बहार-ए-शरीअत, जिल्द 1, हिस्सा 2, सफ़ह 285)*
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❐ सवाल ❐ ➻ औरत का गैर मर्द से मेहंदी लगवाना और चूड़ी पहनना कैसा है!?
❐ जवाब ❐ ➻ औरत का नामहरम मनिहारों के हाथ से चूड़ियाँ पहनना, मेहंदी लगवाना यह हरामकारी काफी राइज है। औरतों को मनिहारों के हाथों में हाथ देकर चूड़ियाँ पहनना और मेहंदी लगवाना सख्त हराम है बल्कि इसमें दो हराम हैं, एक गैर मर्द को हाथ दिखाना और दूसरा उसके हाथ में हाथ देना।
❐ ➻ हमारी इस्लामी माँ बहनों को चाहिए कि अल्लाह तआला से डरें, उसके अज़ाब से बचें और इस फ़ेले हराम को फौरन छोड़ दें। बाज़ार से चूड़ियाँ ख़रीद लिया करें और घर में या तो औरतें एक दूसरे को पहना दें या घर वालों में से किसी महरम से पहन लें या शौहर अपनी बीवी को पहना दें तो गुनाह से बच जायेंगी।
❐ ➻ जो मर्द अपनी औरतों को मनिहारों से चूड़ियाँ पहनवाते हैं या उससे मना नहीं करते वह बहुत बड़े बेगैरत और दयूस हैं।
❐ ➻ सय्यिदी आलाहज़रत अलैहिर्रहमह इस मसअले के मुताल्लिक फरमाते हैं : हराम हराम हराम हाथ दिखाना गैर मर्द को हराम, उसके हाथ में हाथ देना हराम ,जो मर्द अपनी औरतों के साथ उसे रवा रखते हैं दय्यूस हैं।
📙 फतावा रज़विया जिल्द 10 निस्फ़ आख़िर सफ़ा 208
📚 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 161
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❐ सवाल ❐ ➻ आजकल लड़कियां बतौरे फ़ैशन और ज़ीनत व आराइश के लिए नाख़ून को बड़ा रखती हैं, तो क्या हुक्म है!?
❐ जवाब ❐ ➻ *नाख़ून बड़ा रखना मना है* क्योंकि नाखूनों का बड़ा होना तंगी ए रिज़्क़ का सबब है और हफ्ता यानी जुमा के दिन तराशना बेहतर है, हफ्ते में ना हो सके तो 15.वें दिन और ज्यादा से ज्यादा 40.वें दिन उसके बाद ना तरशवाना सख्त मना है,
हदीसे पाक में है कि, जुमा के दिन नाखून तरशवाए अल्लाह तआला उसको दूसरे जुमा तक बलाओं से महफूज़ रखेगा बल्के और तीन दिन ज़ाइद यानी 10 दिन तक आफ़ात व बलइय्यात से महफूज़ व मामून होगा!
📗 मिर्क़ातुल मुफ़ातेह, किताबुल्लिबास, बाबुत्तरज्जुल, जिल्द 8, सफ़ह 212)
❐ ➻ और सहीह् मुस्लिम में हज़रत अनस रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी है फरमाते हैं कि, नाखून तरशवाने और मूंछ काटने और बग़ल के बाल लेने में हमारे लिए यह मियाद मुक़र्रर की गई थी के 40 दिन से ज़्यादा ना छोड़ रखें यानी 40 दिन के अंदर इन कामों को ज़रूर कर लें!
📔 मुस्लिम, किताबुत्तहारत, बाब ख़िसालुल फ़ितरत, सफ़ह 153)
❐ ➻ और आक़ा सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं कि जो मुए ज़ेरे नाफ़ को ना मूंडे और नाखून ना तराशे और मूंछ ना काटे वह हम में से नहीं!
📚 अल मुसनदुल इमाम अहमद बिन हम्बल, जिल्द 9, सफ़ह 153)
हदीस रजुल मिन बिन ग़फ़्फ़ार रज़िअल्लाहू तआला अन्ह)
❐ ➻ *अल इन्तिबाह :* आजकल अक्सर औरत व मर्द और खासकर नौजवान लड़के और लड़कियां बतौरे फ़ैशन अपने हाथ की छंगुलियां यानी छोटी उंगली और ज्यादातर लड़कियां तो पूरी उंगलियों के नाखून को बग़ैर तराशे ही छोड़े रखती हैं, जो काफी बड़े हो जाते हैं,
वह हज़रात ध्यान दें कि उससे कितनी ख़तरनाक बीमारी पैदा होती है, क्योंकि नाखून में गर्द व ग़ुबार, मैल कुचैल और बसा औक़ात (कभी कभी) पाखाना वगैरह भी चला जाता है, और वहां जाकर इस तरह जम जाता है के बग़ैर नाखून तराशे या किसी बारीक शै (चीज़) से जो उसके अंदर जा सके उसके बग़ैर दूर ही नहीं हो सकता है, इस तरह नाखून के अंदर मैल व नजासत काफ़ी दिन तक रहकर बहुत सी मोहलिक बीमारियां और जराशीम पैदा करती हैं, जो बहुत ही ख़तरनाक मिसले ज़हर हिला हिल होते हैं,
और दूसरी बात यह है कि नाखून में एक ज़हरीला माद्दा होता है, जैसा के हकीमुल उम्मत मुफ्ती अहमद यार ख़ान नईमी अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं,
नाख़ून में एक ज़हरीला माद्दा होता है, अगर नाखून खाने या पानी में डुबोए जाएं तो वह खाना बीमारी पैदा करता है, इसलिए अंग्रेज वगैरह छुरी कांटे से खाना खाते हैं, क्योंकि ईसाईयों के यहां नाखून बहुत कम कटवाते हैं, और पुराने ज़माना के लोग वह पानी नहीं पीते थे, जिसमें नाखून डूब जाए मगर इस्लाम ने उसका यह इंतज़ाम फ़रमाया के नाखून कटवाने का हुक्म दिया और छुरी, कांटे की मुसीबत से बचा लिया!
📘 इस्लामी ज़िंदगी सफ़ह 74)
📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 61--62
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❐ सवाल ❐ ➻ किसी मुसलमान को काफिर कहना कैसा है, और जो कहे उसके लिए क्या हुक्म है!?
❐ जवाब ❐ ➻ अगर कोई ऐसेे शख्स को काफिर कहे जो हक़ीक़त में मुसलमान है, तो कुफ्र उसी पर पलट आता है और उसे काफिर कहने वाला खुद काफिर हो जाता है *ह़दीस शरीफ में है के जिसने अपने भाई को काफिर कहा तो वो कुफ्र खुद उस पर पलट आया* धियान दे आज बात बात पे लड़ाई झगडे पे एक दूसरे मुस्लिम को लोग काफिर कह देते है अगर वो काफिर नहीं है तो आप खुद काफिर हो गए आप इस्लाम से ख़ारिज अगर सादी सुदा है तो आप का निकाह भी टूट गया अगर आप किसी से बैत है तो बैत भी टूट गया इस लिए किसी को काफिर कहने से पहले सोच ले के आप किया कह रहे है!
❐ ➻ हाँ जो नाम का मुसलमान हो मगर हकीकत में मुरतद मुनाफिक़ हो, यानि के कलिमा ला इलाहा इल्लल्लाह पढ़ता हो मगर खुदा व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में या किसी भी नबी की तौह़ीन करता हो या ज़रुरियाते दीन में से किसी बात का इंकार करता हो तो वो काफिर है और उसे काफिर कहने में कोई हरज नहीं, क्योके क़ुरआन मजीद की सूरह काफ़िरून, में काफ़िरों को काफ़िर कहा गया है!
📚फतावा फ़क़ीहे मिल्लत जिल्द 1 सफह 7,
📚फतावा अम्जदिया जिल्द 4 सफह 408,
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❐ सवाल ❐ ➻ गुसल में कितने फर्ज हैं और कौन-कौन से हैं पूरी तफसील के साथ बताइए!?
❐ जवाब ❐ ➻ *ग़ुस्ल मे 3 फ़र्ज़ है :*
❐ ➻ *1. कुल्ली करना :* कुल्ली इस तरह से की जाये कि मुँह के अन्दर के हर एक हिस्से जैसे दाँत, उनके बीच की झिर्रियाँ, जड़, ज़बान और उसकी करवटें, मसूढ़े और हलक़ की जड़ तक पानी बह जाये अगर थोड़ा सा पानी मुँह में लेकर कुल्ली कर दी और होठों से लेकर हलक़ की जड़ तक बाल बराबर भी कोई हिस्सा सूखा रह गया तो ग़ुस्ल नहीं होगा और न ही उस से नमाज़ जाइज़ है।
❐ ➻ *2. नाक में पानी डालना :* नाक के दोनों नथनों में जहाँ तक नर्म जगह है वहाँ तक पानी को साँस के साथ ऊपर चढ़ायें, बाल बराबर भी धुलने से रह गया तो ग़ुस्ल नहीं होगा अगर नाक के अन्दर रेंठ सूख गई है तो उसका छुड़ाना फ़र्ज़ है।
❐ ➻ *3. पूरे बदन पर पानी बहाना :* सिर के बालों से पाँवों के तलवों तक जिस्म के हर हिस्से, हर रोंगटे पर पानी बह जाना फ़र्ज़ है!
*इन तीनो में से कुछ भी छूटा तो हरगिज़ ग़ुस्ल नहीं होगा और जब गुस्ल नहीं हुआ तो वुज़ु नहीं होगा और जब वुज़ु नहीं होगा तो नमाज़ कहां से होगी*
❐ ➻ *ग़ुस्ल की सुन्नते :*
! नियत करना
! दोनों हाथ गट्टो तक धोना
! इस्तिन्जा की जगह या कहीं नजासत लगी हो तो पहले उसे धोना
! वुज़ू करना
! बदन पे पानी मलना
! 3 बार दाए कंधों पर 3 बार बाएं कंधों पर फिर सर से पानी डालना
! किबला रुख न होना
! ऐसी जगह नहांये की कोई ना देखे
! नहाते हुए बात या कोई दुआ न पढ़े
*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 2,सफ़ह 30----43*
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❐ सवाल ❐ ➻ नाखूनों को दांतों से कुतरने पर कौनसी बीमारी का ख़तरा रहता है बडे नाख़ून किस चीज़ का सबब है!?
❐ जवाब ❐ ➻ *नाख़ून बढ़ाने के नुक़सानात :-* नाख़ून को दांत से कुतरने पर बरस यानी कोढ़ हो जाने का खतरा है, मआज़ अल्लाह....नाखूनों का बड़ा होना तंगीये रिज़्क़ का सबब है... साइंसी तहक़ीक़ के मुताबिक़ एक सेहत मंद आदमी का नाख़ून हर महीने में 3 मिलीमीटर तक बढ़ता हैं इस तरह एक नार्मल आदमी की उंगलियां 50 सालों में तक़रीबन 1.8 मीटर नाख़ून पैदा करती है!
❐ ➻ सोशल मेडिसिन की रिपोर्ट के मुताबिक़ बढ़े हुए नाख़ून से टाईफाइड, इसहाल, पेचिस, हैज़ा आंतों में कीड़े और सूजन का मर्ज़ हो जाता है तिब्बी उसूल के मुताबिक़ पेट के कीड़ों के अंडे अक्सर नाख़ून की जड़ में ही पोशीदा होते हैं अगर नाख़ून साफ़ न किये जायें तो खाने के साथ ये जरासीम पेट के अंदर चले जाते हैं जिससे पेट में कीड़े पैदा होने का पूरा अमक़ान रहता है! जो औरतें नाख़ून बड़ा रखने की शौकीन होती हैं उनमें अक्सर खून की कमी पायी जाती है...अफ़्सोस हमारी माँ-बहने इस काम मे मुवल्लीस है दुनिया मे मुसलमानो की इज़्ज़त तार-तार हो रही है और ये पता नही कब जागेगी ??
*📙बहारे शरीअत,हिस्सा-16,सफह 195,196 / इबादात और जदीद साइन्स, सफह 31*
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❐ सवाल ❐ ➻ कब्र पर फुल डालना कैसा है!?
❐ जवाब ❐ ➻ कब्र पर फुल रखने से मुतअल्लिक एक मकाम पर आला हजरत इमाम अहमद रज़ा खान फाज़ले बरेलवी अलैहिर्रहमा फरमाते है, कब्र मुसलमान पर फुल रखना मुस्तहब है अइम्म-ए-दीन फरमाते है वह जब तक तर है तस्बीहे इलाही करेगा उस मुर्दे का दिल बहलेगा।
*📚 फतावा रजविया जिल्द 11 सफा 97*
❐ ➻ हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का गुज़र दो क़ब्रो पर हुआ तो आपने फरमाया कि इन दोनों पर अज़ाब हो रहा है और किसी बड़े गुनाह की वजह से नहीं बल्कि मामूली गुनाह की वजह से, एक तो पेशाब की छींटों से नहीं बचता था और दूसरा चुगली करता था, फिर आपने एक तार शाख तोड़ी और आधी आधी करके दोनो क़ब्रों पर रख दी और फरमाया कि जब तक ये शाख तर रहेगी तस्बीह करती रहेगी जिससे कि मय्यत के अज़ाब में कमी होगी।
*📚 बुखारी,जिल्द 1,हदीस 15*
*⚘इस 👆हदीस शरीफ से ये 👇 बातें मालूम हुई:-*
1. हुजूर ﷺ की निगाह के लिए कोई चीज आड नही बन सकती है यहाँ तक कि जमीन के अन्दर जो अजाब हो रहा है उसे भी आप ﷺ देख रहे है।
2. हुज़ूर ﷺ मखलूकात के हर खुले और छूपे काम देख रहे कि इस वक़्त कौन क्या कर रहा है और पहले क्या करता था इसीलिए आप ने फरमा दिया कि एक चुगली करता था और दूसरा पेशाब से नही बचता था।
3. हुज़ूर ﷺ हर गुनाह का इलाज भी जानते हैं कि कब्र फरमाया डालें रख दी ताकि अजाब हल्का हो।
4. कब्रों पर हरी पत्तियाँ और फूल वगैरह सुन्नत से साबित है कि उस की तस्बीह से मुर्दा को आराम मिलता है
5. कब्र पर कुरआन पाक की तिलावत के लिए हाफिज बिठाना बेहतर है कि जब हरी डालियों के जिक्र से अजाब हल्का होता है तो इन्सान के जिक्र से जरूर हल्का होगा।
6. अगर्चे हर सूखी और गीली चीज तस्बीह पढती है मगर हरी डालियों की तस्बीह से मुर्दा को आराम मिलता है ऐसे ही बेदीन के कुरआन पढने का कोई फायदा नही है कि उसमे कुफ्र का सुखापन है और मोमिन का पढना फायदेमंद है कि उस में ईमान की तरी है।
7. हरी डालियाँ गुनाहगारों की कब्र पर अजाब हल्का करेगी और बुजुर्गो की कब्रो पर सवाब व दर्जा बढायेगी!
*📚 अनवारुल हदीस सफह 273-273*
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❐ सवाल ❐ ➻ रसुलुल्लाह सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ये किसके लिए फ़रमाया था की अपने पाऊं हटाने नहीं पता अल्लाह ता'आला उसके लिए जहन्नम वाजिब कर देता है।!?
❐ जवाब ❐ ➻ *झुटी गवाही की कबाहत :* आजकल के हालात यह हैं कि अगर किसी दो आदमीयों के दरम्यान नज़अ और झगड़ा हो तो वह तरह - तरह के हीले बहाने तराश कर कानून का सहारा लेता है और मुकद्दमा दायर कर देता है फिर अपनी बात को मजबूत करने के लिए उस पर गवाही गुज़ार देता है , मुकद्दमात चूंकि ज़्यादा तर झूठ और किज़्ब पर चलाए जाते हैं , जिसके लिए बाज़ लोग झूठी गवाही दे देते हैं उसमें ज़रा भी अफसोस नहीं करते , हालांकि झूठी गवाही के लिए वईद आई है और उसे गुनाहे कबीरा कहा गया है।
❐ ➻ हदीस में हैं रसुलुल्लाह सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं झुटी गवाही देने वाला अपने पाऊं हटाने नहीं पता अल्लाह ता'आला उसके लिए जहन्नम वाजिब कर देता है।
*📙 अबू दाऊद इब्ने माजा तिरमिजी फतावा रजविया जिल्द 5 सफह 134*
📙 फैजाने आला हजरत
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❐ सवाल ❐ ➻ एक कलमा ऐसा है जब मरने वाला इसे पढले तो उसकी रूह उसके जिस्म से निहायत सकून से जुदा/अलग होती है और कल क़यामत मे उसके लिए नूर होगा और वो कौन सा कलिमा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ हज़रते तलाह और हज़रते उमर फ़ारूक़ रदियल्लाहो तआला अन्हो बयान करते है मुस्तफ़ा जाने रहमत हुज़ूर मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया में एक ऐसा कलिमा जानता हूं कि जब मरने वाला इसे पढले तो उसकी रूह जिस्म से निहायत सकून से जुदा/अलग होती है और कल क़यामत में उसके लिए नूर होगा और वह कलिमा है "लाइलाहा इल्लल्लाह" لا اله الا الله .
❐ ➻ एक रवायत के अल्फ़ाज़ यू है कि अल्लाह तआला उसे ख़ुश हाल कर देगा और उसके रंग को रौशन फ़रमा देगा! लिहाज़ा मुसलमानों अपने बच्चों को भी इसकी ताकीद कीजिये उठते-बैठते पढ़े, कसरत से ज़िक्र करें ताकि मौत के वक़्त भी हमे ये कलिमा अल्लाह नसीब फ़रमाये आमीन!
📙 शर्हुस्सुदूर सफ़ह - 99
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❐ सवाल ❐ ➻ अल्लाह तआला “क़दीम” और “अज़ली” है इसका माना क्या हुआ!?
❐ जवाब ❐ ➻ *अल्लाह तआला की ज़ात और उसकी सिफ़तों के बारे में अक़ीदे :-* अल्लाह एक है कोई उसका शरीक़ नही न जात में न सिफ़ात में न अफ़आल (कामों) में न अहकाम (हुक़्म देने) में न नामों में वह “वाजिबुल वजूद” है यानी (जिसका हर हाल में मौजूद रहना जरूरी हो) उसका अदम मुहाल है यानी किसी ज़माने में उसकी जात मौजूद न हो नामुमकिन है ! *अल्लाह “क़दीम” और “अज़ली” है यानी हमेशा से है* और “अबदी” भी है यानी वह हमेशा रहेगा उसे कभी मौत न आएगी अल्लाह तआला ही इस लायक है कि उसकी बन्दगी और इबादत की जाए!
❐ ➻ *अक़ीदा :* अल्लाह तआला बेपरवाह है किसी का मोहताज नही और सारी दुनिया उसी की मोहताज है!
*📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 6*
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❐ सवाल ❐ ➻ हादिस का मतलब क्या है!?
❐ जवाब ❐ ➻ *अक़ीदा -* अल्लाह की जात और सिफ़ात के अलावा सब चीजें हादिस यानी पहले न थीं अब मौजूद हैं !
❐ ➻ *अक़ीदा :-* जो अल्लाह की सिफ़तों को मख़लूक़ कहे या हादिस बताये व ग़ुमराह और बद्दीन है !
❐ ➻ *अक़ीदा :-* जो आलम में से कोई चीज़ को ख़ुद से मौजूद माने या उसके हादिस होने में शक़ करे वह क़ाफ़िर है !
❐ ➻ *अक़ीदा :-* अल्लाह तआला न किसी का बाप है न किसी का बेटा और न उसके लिए कोई बीवी ! यदि कोई अल्लाह पाक के लिये बाप, बेटा, या जोरू(बीवी) बताये वह भी क़ाफ़िर है ! बल्कि जो मुमकिन भी बताए वह गुमराह बद्दीन है !
📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 6-7
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❐ सवाल ❐ ➻ क्या नबीयो की तादाद मुकर्रर करना जायज है!?
❐ जवाब ❐ ➻ नबियों की तादाद मुकरर्र करना जाइज नहीं क्यों कि तादाद मुकरर्र करने और उसी तादाद पर ईमान रखने से यह खराबी लाजिम आयेगी कि अगर जितने नबी आये उन से हमारी गिनती कम हुई तो जो नबी थे उनको हमने नुबुवत से खारिज कर दिया और अगर जितने नबी आए उन से हमारी गिनती ज्यादा हुई तो जो नबी नहीं थे उन को हमने नबी मान लिया यह दोनों बातें इस लिए ठीक नहीं कि पहली सूरत में नबी नुबुब्बत से खारिज हो जाएंगे और दूसरी सूरत में जो नबी नहीं वह नबी माने जाएंगे और अहले सुन्नत का मजहब यह है कि नबी का नबी न मानना या ऐसे को नबी मान लेना जो नबी न हो कुफ्र है।
❐ ➻ इसलिए एअ्तिकाद यह रखना चाहिए की हर नबी पर हमारा ईमान है।
*📚बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 17/18*
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❐ सवाल ❐ ➻ सब में पहले नबी हजरते आदम अलैहिस्सलाम हुए और सब मे पहले रसूल जो काफिर पर भेजे गए वो कौन है!?
❐ जवाब ❐ ➻ सब में पहले नबी हज़रते आदम अलैहिस्सलाम हुए और सब में पहले रसूल जो काफिरों पर भेजे गए हज़रते नूह अलैहिस्सलाम हैं।
❐ ➻ उन्होंने साढे नौ सौ बरस तबलीग की, उनके जमाने के काफिर बहुत सख़्त थे वह हज़रते नूह अलैहिस्सलाम को दुख पहुँचाते और उनका मजाक उड़ाते यहाँ तक कि इतनी लम्बी मुद्दत में गिनती के लोग मुसलमान हुए बाकी लोगों को जब उन्होंने देखा कि वह हरगिज़ राहे रास्त पर नहीं आयेंगे और अपनी हठधर्मी और कुफ्र से बाज नहीं आयेंगे तो मजबूर होकर उन्होंने अपने रब से काफिरों की हलाकी और तबाही के लिए दुआ की।
❐ ➻ नतीजा यह हुआ कि तूफान आया और सारी जमीन डूब गई और सिर्फ वह गिनती के मुसलमान और हर जानवर का एक एक जोड़ा जो कश्ती में ले लिया गया था बच गया।
*📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 17*
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❐ सवाल ❐ ➻ क्या अम्बिया अलैहिस्सलाम अपनी अपनी कब्रो मे उसी तरह हकीकी जिन्दगी के साथ जिन्दा हैं!?
❐ जवाब ❐ ➻ अम्बिया अलैहिमुस्सलान अपनी अपनी कब्रों में उसी तरह हक़ीकी जिन्दगी के साथ जिन्दा हैं जैसे दनिया में थे खाते पीते हैं जहाँ चाहे आते जाते है अलबत्ता अल्लाह तआला के वादे कि “हर नफ्स को मौत का मजा चखना है' के मुताबिक नबियों पर एक आन के लिए मौत आई और फिर उसी तरह जिन्दा हो गए जैसे पहले थे।
❐ ➻ उनकी हयात शहीदों की हयात से कहीं ज्यादा बलन्द व बाला है इसीलिए शरीअत का कानून यह है कि शहादत के बाद शहीद का तर्का (बचा हुआ माल) तकसीम होगा। उसकी बीवी इद्दत गुजार कर दूसरा निकाह कर सकती है लेकिन नबियों के यहां यह जाइज नहीं अब तक नुबुव्वत के बारे में जो अक़ीदे बताए गए इनमें तमाम नबी शरीक है।
*📙 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 18/19*
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❐ सवाल ❐ ➻ ऐसा अकिदा रखना कि हुजूर ﷺ के जमाने में या उनके बाद कोई नबी हो सकता ऐसे अकिदा रखने वालो पर क्या हुक्म होगा!?
❐ जवाब ❐ ➻ *अक़ीदा :-* हुजूर खातमुन्नबीय्यीन हैं अल्लाह तआला ने नुबुव्वत का सिलसिला हुजूर पर खत्म कर दिया, हुजूर के जमाने में या उनके बाद कोई नबी नहीं हो सकता जो कोई हुजूर के जमाने में या उनके बाद किसी को नुबुवत मिलना माने या जाइज समझे वह काफिर है।
❐ ➻ *अक़ीदा :-* अल्लाह तआला की तमाम मखलूकात से, हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) अफजल हैं। कि औरों को अलग अलग जो कमालात दिए गए हुजूर में वह सब इकट्टा कर दिए गए और उनके अलावा हुजूर को वह कमालात मिले जिन में किसी का हिस्सा नहीं बल्कि औरों को जो कुछ मिला हुजूर के तुफैल में बल्कि हुजूर के मुबारक हाथों से मिला और 'कमाल' इसलिए कमाल हुआ कि कमाल हुजूर की सिफत है और हुजूर अपने रब के करम से अपने नफ्से जात में कामिल और अकमल हैं । हुजूर का कमाल किसी वस्फ से नहीं बल्कि उस वस्फ का कमाल है कि कामिल (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) की सिफत बनकर खुद कमाल, कामिल और मुकम्मल हो गया कि जिसमें पाया जाए उसको कामल बना दे।
📙 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 19
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❐ सवाल ❐ ➻ हुजूर ﷺ किस सहाबा के असर् की नमाज कजा होने की वजह से सुरज को हुक्म दिये पलटने को तो सुरज पलट आया!?
❐ जवाब ❐ ➻ *नबी से महब्बत :* *अक़ीदा :-* हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ताजीम व अजमत का एअतिकाद रखना ईमान का हिस्सा और ईमान का रूक्न है और ईमान के बाद ताजीम का काम हर फ़र्ज़ से पहले है।
❐ ➻ हुजूर की महब्बत भरी इताअत के बहुत से वाकिआत मिलते हैं यहाँ समझाने के लिए नीचे दो वाकिआत लिखे जाते हैं जो कि हदीसे पाक में गुजरे।
❐ ➻ हदीस शरीफ में है कि गजवये खैबर' से वापसी में हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ‘सहबा' नाम की जगह पर अस्र की नमाज पढकर मौला अली मुश्किल कुशा रदियल्लाहु तआला अन्हु के जानू पर अपना मुबारक सर रख कर आराम फरमाने लगे, मौला अली ने अस्र की नमाज़ नहीं पढ़ी थी, देखते-देखते सूरज डूब गया और अस्र की नमाज़ का वक़्त चला गया लेकिन हज़रते अली ने अपना जानू इस ख्याल से नहीं सरकाया कि शायद हुजूर के आराम में खलल आये, जब हुजूर ने अपनी आंखें खोलीं तो हज़रत अली ने अपनी अस्र की नमाज़ के जाने का हाल बताया हुजूर ने सूरज को हुक्म दिया डुबा हुआ सूरज पलट आया मौला अली ने अपनी अस्र की नमाज अदा की और जब हजरत अली ने नमाज़ अदा कर ली तो सूरज फिर डूब गया इससे साबित हुआ कि मौला अली ने हुजूर की इताअत और महब्बत में इबादतों में सबसे अफजल नमाज़ और वह भी बीच वाली (अस्र) की नमाज हुजूर के आराम पर कुर्बान कर दी क्यूंकि हकिकत में बात यह है कि इबादतें भी हमे हुज़ूर ही के सदक़े में मिली है।
*📚बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 21/22*
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❐ सवाल ❐ ➻ दुनिया की ज़िन्दगी में अल्लाह तआला का दीदार किस नबी के लिए खास है!?
❐ जवाब ❐ ➻ दुनिया की ज़िन्दगी में अल्लाह तआला का दीदार नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए खास है और आख़िरत में हर मोमिन मुसलमान अल्लाह का दीदार करेगा।
❐ ➻ अब रही दिल में देखने, ख्वाब में अल्लाह तआला के दीदार की बात तो यह दूसरे नबीयों और वलीयों,के लिए भी हासिल है जैसा कि इमामे आज़म अबू हनीफ़ा रदिअल्लाहु तआला अन्हु को सौ बार ख्वाब में अल्लाह तआला की ज़्यारत हुई।
*और कोई ग़ैब क्या तुम से निहा हो भला*
*जब ना खुदा ही छुपा ,तुम पर करोडो दुरूद*
📚 *बहारे शरीअत, हिस्सा 01, सफ़ा 10 -11*
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❐ सवाल ❐ ➻ क्या अल्लाह तआला ने फिरिश्ते को यह ताकत दी है कि जो शक्ल चाहे बन जाये!?
❐ जवाब ❐ ➻ फिरिश्ते नूरी हैं अल्लाह तआला ने उन को यह ताकत दी है कि जो शक्ल चाहे बन जाये फिरिश्ते कभी इन्सान की शक्ल बना लेते हैं और कभी दूसरी शक्ल में।
❐ ➻ *अक़ीदा :-* फिरिश्ते वही करते हैं जो अल्लाह का हुक्म होता है फिरिश्ते अल्लाह के हुक्म के खिलाफ कुछ नहीं करते न जान बूझ कर न भूले से और न गलती से क्यूंकि वह अल्लाह के मासूम बन्दे हैं और हर तरह के सगीरा और कबीरा (छोटे-बडे) गुनाहों से पाक हैं।
*📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 25*
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❐ सवाल ❐ ➻ कितने फिरिश्ते बहुत मशहूर हैं और कौन कौन!??
❐ जवाब ❐ ➻ फ़िरिश्ते अनगिनत हैं उनकी गिनती वही जाने जिसने उन्हें पैदा किया है और अल्लाह के बताये से उसके प्यारे महबूब जानते हैं वैसे चार फिरिश्ते बहुत मशहूर हैं :
➻ 1- हज़रते जिब्रईल अलैहिस्सलाम!
➻ 2- हज़रते मीकाईल अलैहिस्सलाम
➻ 3- हज़रते इसराफ़ील अलैहिस्सलाम
➻ 4- हज़रते इजराईल अलैहिस्सलाम
❐ ➻ यह फ़िरिश्ते दूसरे सारे फ़िरिश्तों से अफ़जल हैं किसी फिरिश्ते के साथ कोई हल्की सी गुस्ताखी भी कुफ़्र है जाहिल लोग अपने किसी दुश्मन या ऐसे को देखकर जिस पर गुस्सा आये उसे देखते ही कहते है कि 'मलकुल मौत या इज़राईल' आ गया लेकिन उन जाहिलों को खबर नहीं कि यह कलिमा कुफ़्र के करीब है।
*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 25*
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❐ सवाल ❐ ➻ हुजूर ﷺ ने फ़रमाया है कि यह उम्मत तिहत्तर फिरके़ हो जायेगी एक फिरका जन्नती होगा बाकी सब जहन्नमी होंगे तो हुजूर ﷺ के सहाबा ने पूछा कि रसूलल्लाह ﷺ वह कौन लोग हैं जो जन्नती हैं, हुजूर ﷺ ने जवाब क्या इरशाद फरमाया!?
❐ जवाब ❐ ➻ *कुछ फ़िरकों के बारे में :-* हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि यह उम्मत तिहत्तर फिर के हो जायेगी एक फिरका जन्नती होगा बाकी सब जहन्नमी होंगे, तो हुजूर के सहाबा ने पूछा कि, या रसूलल्लाह वह कौन लोग हैं जो जन्नती हैं? हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जवाब इरशाद फरमाया कि वह जिस पर मैं और मेरे सहाबा हैं, यानी सुन्नत की पैरवी करने वाले हैं!
❐ ➻ एक दूसरी रिवायत में यह भी है कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि वह जमाअत है यानी मुसलमानों का बड़ा गिरोह जिसे 'सवादे आजम' कहा गया है। और हुजूर ने यह भी फ़रमाया कि जो इस जमाअत से अलग हुआ वह जहन्नम में अलग हुआ, इसीलिए इस जन्नती और नजात पाने वाले फ़िरके का नाम अहले सुन्नत व जमाअत हुआ और गुमराह फिरकों में से बहुत से फ़िरके हुए कुछ ऐसे भी थे जिनका अब नाम निशान भी नहीं और कुछ ऐसे हैं जो हिन्दुस्तान से बाहर के हैं हम इस वक़्त सिर्फ हिन्दुस्तान के कुछ बातिल फिरकों के बारे में बतायेंगे ताकि हमारे मुसलमान भाई उन बदमज़हबों के चक्कर में पड़ कर धोखा न खायें : हदीस शरीफ़ में यह भी आया है कि, तुम अपने को उनसे (बद मज़हबों से) दूर रखो और उन्हें अपने से दूर करो कहीं वह तुम्हें गुमराह न कर दें और वह फ़ितने में डाल दें।
*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 51*
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❐ सवाल ❐ ➻ कौन नबी होने का दावा किया!?
❐ जवाब ❐ ➻ *कादयानी फिरका :-* मिर्जा गुलाम अहमद कादियानी के मानने वालों को कादियानी कहते हैं मिर्जी गुलाम अहमद ने अपनी नुबुब्बत का दावा किया नबियों की शान में गुस्ताखियाँ कीं, हज़रते ईसा अलैहिस्लाम और उनकी माँ तय्यबा ताहिरा सिद्दीका हज़रते मरयम की शान में वह बेहूदा अल्फाज इस्तेमाल किए जिनसे मुसलमानों की जाने दहल जाती हैं यही नहीं बल्कि हजरते मूसा अलैहिस्सलाम और हमारे सरकार नबियों के सरदार हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की तौहीन की कुर्आन शरीफ का इन्कार किया और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के खातमुन्नबीय्यीन (यानी आखिरी नबी) होने को उसने तसलीम नहीं किया और नबियों को झुटलाया इनके अलावा और भी उसने सैकड़ों कुफ्र किये हैं कि अगर उन्हें लिखा जाये तो एक दफ्तर चाहिए!
❐ ➻ शरीअत का कानून है अगर किसी ने किसी एक नबी को झुठलाया तो सबको झुटलाया कुर्आन शरीफ में आया है कि_ *तर्जमा : - हजरते नूह अलैहिस्सलाम की कौम ने पैगम्बरों को झुटलाया ।*
❐ ➻ मिर्जा ने तो बहुतों की झुटलाया और अपने को नबी से बेहतर बताया इसीलिए ऐसे आदमी ओर उसके मानने वालों काफिर होने के बारे में किसी मुसलमान को शक हो ही नहीं सकता और अगर कोई मुसलमान उसकी कही या लिखी बातों को जान के उसके काफिर होने में शक करे वह खुद काफिर है मिर्जी गुलाम अहमद कादियानी की कुछ लिखी हुई बातें और किताबों के नाम पेज न. के साथ इसलिए लिखी जा रही हैं कि जो देखना चाहे उसकी खबासतों को देख ले, मिर्जा गुलाम अहम कादियानी ने जो खबीस हरकतें की वह उस की इन इबारतों से साबित हैं 👇🏻
1. ❐ खुदाए तआला ने बराहीने अहमदीया में इस आजिज़ का नाम उम्मती भी रखा और नबी भी!
*📕( इजालए औहाम स न 533 )*
2. ❐ ऐ अहमद ! तेरा नाम पूरा हो जायेगा कब्ल इसके जो मेरा नाम पूरा हो
*📕( अनजाम आथम स न 52 )*
3. ❐ तुझे खुश खबरी हो ऐ अहमद ! तू मेरी मुराद है और मेरे साथ है!
*📕( अनजाम आथम स. न. 56)*
4. ❐ तुझको तमाम जहान की रहमत के वास्ते रवाना किया!
*📕( अनजाम आधम स न 78 )*
⚠️ नोट : - हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की फजीलत के बारे में कुर्आन शरीफ में अल्लाह तआला ने यह फरमाया है कि : *तर्जमा :-* और हमने तुम्हें न भेजा मगर रहमत सारे जहान के लिए।
👆🏻 इस आयत को मिर्जा ने अपने ऊपर जमाने की कोशिश की है। से अपनी ज़ात मुराद लेता है दाबलाफेउल सफा छ : में है
5. ❐ मुझको अल्लाह तआला फरमाता है *तर्जमा :-* ऐ गुलाम अहमद तू मेरी औलाद की जगह है तू मुझ से और मैं तुझ से हूँ।
*📕( दाफिउ बला पैज न 5 )*
6. ❐ हज़रत रसूले खुदा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इलहाम व वही गलत निकली थी।
*📕( इज़लाए औहाम पेज न . 688 )*
7. ❐ हजरते मूसा की पेशगोईयाँ भी उस सूरत पर जुहूरपज़ीर (जाहिर) नहीं हुई जिस सूरत पर हजरते मूसा ने अपने दिल में उम्मीद बाँधी थी।
*📕( औहाम पेज न . 8 )*
8. ❐ सूरए बकरह में जो एक कत्ल का जिक्र है कि गाय की बोटियाँ लाश पर मारने से वह मकतूल जिन्दा हो गया था और अपने कातिल का पता दे दिया था यह महज़ मूसा अलैहिस्सलाम धमकी थी और इल्मे मिसमरेज़म था।
*📕( इजालए औहाम पेज न 775 )*
معاذ الله ثم معاذ الله
*📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 51/52*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 452
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❐ सवाल ❐ ➻ खुदा ने इस उम्मत में से मसीहे मौऊद भेजा जो उस पहले मसीह से अपनी तमाम शान में बहुत बढ़ कर है और उस ने दूसरे मसीह का नाम गुलाम अहमद रखा तो यह इशारा है कि ईसाईयों का मसीह कैसा खुदा है जो अहमद के अदना गुलाम से भी मुकाबला नहीं कर सकता यानी वह कैसा मसीह है जो अपने कुर्ब और शफाअत के मरतबे में अहमद के गुलाम से भी कमतर है।
*ये 👆 इबारत किस का लिखा हुआ है??*
❐ जवाब ❐ ➻ *कादयानी फिरका :* (इसका पहला हिस्सा पोस्ट 451में पढ़ें) मिर्जा गुलाम अहम कादियानी ने जो खबीस हरकतें की वह उस की इन इबारतों से साबित हैं 👇🏻
9. ❐ हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का चार परिन्दे के मोजिज़े का ज़िक्र जो कुर्आन में है वह भी उनका मिसमरेज़म का अमल था। ( इजालए औहाम पेज नं . 553)
10. ❐ एक बादशाह के वक़्त में चार सौ नबियों ने उसके फतह के बारे में पेशीनगोई की और वह झूटे निकले और बादशाह की शिकस्त हुई बल्कि वह उसी मैदान में मर गया। ( इजालये औहाम पेज नं . 629 )
11. ❐ कुरआन शरीफ़ में गन्दी गालियाँ भरी हैं और कुरआन अज़ीम सख्त ज़बानी के तरीके को इस्तेमाल कर रहा है। ( इजालए औहाम पेज न . 26 , 28 )
12. ❐ अपनी किताब ' बराहीने अहमदीया के बारे में लिखता है : - बराहीने अहमदीया खुदा का कलाम है। (इजालए औहाम पेज नं . 533 )
13. ❐ कामिल महदी न मूसा था न ईसा। ( अरबईन पेज न 2 , 13 ) इन उलूल अज़्म मुरसलीन का हादी होना तो दर किनार पूरे राह याफ्ता भी न माना अब ख़ास हज़रत ईसा अलैहिस्सलातु वस्सलाम की शान में जो गुस्तखियाँ की उन में से चन्द यह हैं *तर्जमा : -* हमारा रब मसीह है मत कहो और देखो ऐ ईसाई मिशनरयो !
अब कि आज तुम में एक है जो उस मसीह से बढ़ कर है। (मेआर पेज नं . 13 )
15. ❐ खुदा ने इस उम्मत में से मसीहे मौऊद भेजा जो उस पहले मसीह से अपनी तमाम शान में बहुत बढ़ कर है और उस ने दूसरे मसीह का नाम गुलाम अहमद रखा तो यह इशारा है कि ईसाईयों का मसीह कैसा खुदा है जो अहमद के अदना गुलाम से भी मुकाबला नहीं कर सकता यानी वह कैसा मसीह है जो अपने कुर्ब और शफाअत के मरतबे में अहमद के गुलाम से भी कमतर है। ( कशती पेज न 13 )
*[📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 53*
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❐ सवाल ❐ ➻ कौन फिरके के लोग कुछ सहाबियों को छोड़ कर ज्यादा तर सहाबए किराम रदियल्लाहु तआला अन्हुम की शान में गुस्ताखियाँ करते और गालियों की बकवास करते हैं!?
❐ जवाब ❐ ➻ *⚘ राफिज़ी फिरका :* राफिजी मज़हब के बारे में शाह अब्दुल अजीज़ मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने अपनी किताब 'तुहफए इसना अशरीया में बहुत तफसील से लिखा है इस वक़्त राफिजियों के बारे में कुछ थोड़ी सी बातें लिखी जाती हैं :
1. ❐ राफिज़ी फिरके के लोग कुछ सहाबियों को छोड़ कर ज्यादा तर सहाबए किराम रदियल्लाहु तआला अन्हुम की शान में गुस्ताखियाँ करते और गालियों की बकवास करते हैं बल्कि कुछ को छोड़ कर सबको काफिर और मुनाफिक कहते हैं।
2. ❐ यह लोग हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पहले खलीफा हज़रते अबूबक्र सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हु, दूसरे खलीफा हजरते उमर फारूक रदियल्लाहु तआला अन्हु और तीसरे खलीफा हज़रते उसमाने गनी रदियल्लाहु तआला अन्हु के बारे में यह कहते हैं कि उन लोगों ने गसब कर के खिलाफत हासिल की है यह लोग खिलाफत का हकदार हजरते अली रदियल्लाह तआला अन्हु को मानते हैं हजरते अली ने उन तीनों खुलफा की तारीफें और बड़ाईयाँ की उनको राफिजी लोग तकिय्या और बुजदिली कहते हैं यह हजरते अली पर एक बहुत बड़ा इलजाम है क्यूंकि यह कैसे मुमकिन है कि एक तरफ तो हज़रते अली शेरे खुदा उन सहाबियों को गासिब काफिर और मुनाफिक समझें और दूसरी तरफ उनकी तारीफ करें और उन्हें खलीफा मानकर उनके हाथों पर बैअत करें फिर यह कि कुर्आन उन सहाबियों को अच्छे और ऊँचे खिताब से याद करता है और उनकी पैरवी करने वालों के बारे में यह फरमाया है कि अल्लाह उनसे राजी वह अल्लाह से राजी क्या काफिरों और मुनाफिकों के लिये अल्लाह तआला के ऐसे फरमान हो सकते हैं? हरगिज़ नहीं!
❐ ➻ अब उन सहाबियों के बारे में कुछ खास बातें बगौर मुलाहज़ा फरमायें : एक यह कि हजरते अली शेरे खुदा ने अपनी चहीती बेटी हज़रते उमर फारूक के निकाह में दी, राफिजी फिरका यह कह कर उन पर इल्जाम लगाता है कि उन्होंने तकिय्या किया था, सोचने की बात यह है कि क्या कोई मुसलमान किसी काफिर को अपनी बेटी दे सकता है? कभी नहीं फिर ऐसे पाक लोग जिन्होंने इस्लाम के लिये अपनी जानें दी हों और जिनके बारे में
*तर्जमा -* "किसी मलामत करने वाले की मलामत का अन्देशा न करेंगे।
कहा गया हो, और हक बात कहने में हमेशा निडर रहे हों वह कैसे तकिय्या कर सकते हैं? यह कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की दो शहजादियाँ यके बाद दीगरे हजरत उसमान जुन्नूरैन के निकाह में आई, यह कि हजरते अबू बक्र सिद्दीक और हज़रते उमर फारूक रदियल्लाहु तआला अन्हुमा की साहिबजादियाँ हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के निकाह में आई, पहले दूसरे और तीसरे खुलफा को हुजूर से ऐसे रिश्ते और हुजूर के इन सहाबियों से ऐसे रिश्ते के होते हुए अगर कोई उन सहाबियों की तौहीन करे तो आप खुद फैसला करें कि वह क्या होगा?
❐ इस फिरके का एक अकीदा यह है कि अल्लाह तआला पर असलह 'वाजिब है यानी जो काम बन्दे के हक में नफा देने वाला हो अल्लाह पर वही करना वाजिब है और उसे वही करना पड़ेगा इस फिरके का एक अकीदा यह भी है कि इमाम नबियों से अफज़ल है। (जबकि यह मानना कुफ्र है) राफिजियों का एक अकीदा यह कि कुर्आन मजीद महफूज नहीं बल्कि उसमें से कुछ पारे या सुरते या आयतें या कुछ , लफ्ज़ हज़रते उसमाने गनी या दूसरे सहाबा ने निकाल दिये। (मगर तअज्जुब है कि मौला अली रदियल्लाहु तआला अन्हु ने भी उसे नाकिस ही छोड़ा और यह अकीदा भी कुफ्र है कि कुर्आन मजीद का इन्कार है।) राफिजीमों का एक अकीदा यह भी है कि अल्लाह तआला कोई हुक्म देता है फिर यह मालूम कर के कि यह मसलेहत उसके खिलाफ या उसके गैर में है पछताता है और यह भी यकीनी कुफ्र है कि खुदा को जाहिल बताना है।) राफ़िज़ियों का एक अकीदा यह है कि नेकियों का खालिक (पैदा कर ने वाला) अल्लाह है और बुराईयों के खालिक यह खुद हैं। (मजूसियों ने तो दो ही खलिक माने थे 'यज़दान' को अच्छाई का और बुराई का ख़ालिक 'अहरमन' को। इस तरह से तो मजूसियों के दो ही खालिक हुए लेकिन राफिजियों के तो इस अकीदे से अरबों और संखों ख़ालिक हुए।
⚠️ इस तरह हम देखते हैं कि राफिज़ी अपने इन बुनियादी अकीदों की बिना पर काफ़िर व मुरतद हैं व गुमराह व बद्दीन हैं, इनके दीन की बुनियाद ऐसे गन्दे अकीदे और सहाबा की तौहीन है।
*[📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 55-57*
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❐ सवाल ❐ ➻ सन् 1209 हिजरी में कौन सा फिरका पैदा हुआ!?
❐ जवाब ❐ ➻ *वहाबी फ़िरका :-* यह एक नया फिरका है जो सन बारह सौ नौ हिजरी (1209) मे पैदा हुआ, इस मज़हब का बानी अब्दुल वहाब नजदी का बेटा मुहम्मद था उसने तमाम अरब और खास कर हरमैन शरीफैन में बहुत ज्यादा फितने फैलाये, आलिमों को कत्ल किया सहाबा, इमामों, अलिमों और शहीदों की कब्रें खोद डाली, हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के रौज़े का नाम सनमे अकबर (बड़ा बुत) रखा था और तरह तरह के जुल्म किये, जैसा कि सही हदीस मे हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने खबर दी थी कि नज्द से फितने उठेंगे और शैतान का गिरोह निकलेगा वह गिरोह बारह सौ बरस बाद ज़ाहिर हुआ !
❐ ➻ अल्लामा शामी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने इसे खारिजी बताया इस अब्दुल वहाब के बेटे ने एक किताब लिखी जिसका नाम "किताबुत्तौहीद" रखा, उसका तर्जमा हिन्दुस्तान में इसमाईल देहलवी ने किया जिसका नाम 'तकवीयतुल ईमान' रखा। और हिन्दुस्तान में वहाबियत उसी ने फैलाई, उन वहाबियों का एक बहुत बड़ा अकीदा यह है जो उनके मज़हब पर न हो वह काफिर मुशरिक है, यही वजह है कि बात बात पर बिला वजह मुसलमानों पर कुफ्र और शिर्क का हुक्म लगाते और तमाम दुनिया को मुशरिक बताते हैं चुनाँचे तकवीयतुल ईमान पेज न . 45 में वह हदीस लिखकर कि आख़िर ज़माने में अल्लाह तआला एक हवा भेजेगा जो सारी दुनिया से मुसलमानों को उठा लेगी उसके बाद साफ़ लिख दिया सो पैग़म्बरे खुदा के फरमाने के मुताबिक हुआ यानी वह हवा चल गई और कोई मुसलमान रूए ज़मीन पर न रहा मगर यह न समझा कि इस सरत में खुद भी काफिर हो गया इस मज़हब की बुनियाद अल्लाह तआला और उसके महबूबों की तौहीन और तज़लील पर है यह लोग हर चीज़ में वही पहलू इख्तियार करेंगे जिससे शान घटती हो इस मजहब के सरगिरोहों के कुछ कौल नक्ल किये जाते हैं ताकि हमारे अवाम भाई उनके दिलों की खबासतों को जान कर उनके फरेब और धोके से बचते रहें और उनके जुब्बा और दस्तार पर न जायें ।
❐ ➻ *बरादराने इस्लाम !* गौर से सुनें और ईमान की तराजू में तौलें कि ईमान से अज़ीज़ मुसलमान के नज़दीक कोई चीज़ नहीं और ईमान अल्लाह और रसूल की ताज़ीम ही का नाम है, ईमान के साथ जिसमें जितने फ़ज़ाइल पाये जायें वह उसी कद्र ज्यादा फजीलत रखता है और ईमान नहीं तो मुसलमानों के नजदीक वह कुछ वकअत (हैसियत) नहीं रखता अगरचे कितना ही बड़ा आलिम, जाहिद और तारिकुद्दुनिया बनता हो मतलब यह है कि उनके मोलवी, आलिम, फाज़िल होने की वजह से तुम उन्हें अपना पेशवा न समझो जब कि वह अल्लाह और उसके रसूलों के दुश्मन हैं।
*[ 📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 57]*
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❐ सवाल ❐ ➻ गैर मुकल्लिदीन 'तकलीद' और 'कियास' का इन्कार करते है, मुतलक तकलीद और कियास का इन्कार क्या है!?
❐ जवाब ❐ ➻ *गैर मुकल्लिदीन फिरका :-* यह भी वहाबियत की एक शाख़ है वह चन्द बातें जो हाल में वहाबियों ने अल्लाह तआला और नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी के तौर पर बकी हैं वह गैर मुकल्लिदीन से साबित नहीं बाकी दूसरे तमाम अकीदों में दोनों शरीक हैं और हाल के देवबन्दियों की इबारतों को देख भाल और जान बूझ कर उन्हें काफिर तसलीम नहीं करते और शरीअत का हुक्म है कि जो अल्लाह और रसूल की शान में गुस्ताखी करने वालों के काफिर होने में शक करे वह भी काफ़िर है!
❐ ➻ गैर मुकल्लिदों का एक बुरा अकीदा यह है कि वह चारों मज़हबों : *[ (1) हनफी, (2) शफिई, (3) मालिकी (4) हम्बली ]* से अलग और तमाम मुसलमानों से अलग थलग एक रास्ता निकाल कर तकलीद को हराम और बिदअ़त कहते हैं और दीन के इमामों जैसे *इमामे आज़म अबू हनीफा, इमामे शाफिई, इमामे मालिक, इमामे अहमद इब्ने हम्बल को बुरा भला कहते हैं यह लोग इमामों की तकलीद (पैरवी नहीं करते बल्कि शैतान की करते हैं। गैर मुकल्लिदीन 'तकलीद' और 'कियास' का इन्कार करते है जब कि मुतलक तकलीद और कियास का इन्कार कुफ्र है इसलिये गैर मुकल्लिदीन का मजहब बातिल है।
*नोट : -* फरअ् में अस्ल की तरह हुक्म को साबित करने को कियास कहते हैं कियास कुर्आन और हदीस से साबित है।
*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 63*
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*• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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❐ सवाल ❐ ➻ जो हज़रत अली शेरे खुदा रदिअल्लाहु तआला अन्हु को किसी नबी से अफ़जल या बराबर कहे उसके बारे में शरई हुक्म क्या है!??
❐ जवाब ❐ ➻ आला हज़रत फरमाते हैं जो किसी गैर नबी को किसी नबी से अफज़ल बताऐ वो काफिर है।
📕 फतावह रजविया शरीफ जिल्द 11 सफा 245
❐ ➻ मुफ्ती मुहम्मद कासिम साहब कादरी मद्दजिल्लहु फरमाते हैं जो (किसी भी) गैरे नबी को नबी से अफ्ज़ल या उसके बराबर माने वह काफिर है। लिहाजा जो हजरत अली को नबियों से अफज़ल माने या बराबर मानने वाला हो काफिर है।
*📕 किताब ईमान की हिफाजत सफा 56,57*
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*• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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❐ सवाल ❐ ➻ जो यह अकीदह रखे कि कुरआन जिस तरह नाजिल हुआ था अब वैसा नही है इस में कमी बेशी तब्दीली हो चुकी है उसके बारे में शरीअत का क्या हुक्म है!??
❐ जवाब ❐ ➻ आला हज़रत रादियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं जो कुरआने अज़ीम के एक लफ्ज़ एक हर्फ एक नुक्ते की निस्बत गुमान करे कि معاذ الله सहाबए किराम या अहले सुन्नत ने घटा या बढ़ा दिया बदल दिया वह कतअन काफिर है।
*📕 माखुज अज फत्तावा रजविया शरीफ जिल्द 1 सफा 691*
❐ ➻ मुफ्ती कासिम कादरी बरकाती दामत बरकातहुमुल आलिया किताब ईमान की हिफाजत में तहरीर फरमाते हैं अगर कोई यह दावा करे कि जो कुरआने पाक नबीए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाजिल किया गया है वह हजरत अली रदियल्लाहु अन्हो और उन की औलाद होने वाले इमामों के पास महफूज है और यह कुरआन जो हमारे पास है तहरीफ शुदह है जिस को अनकरीब इमाम मुन्तज़िर आ कर जला देगा तो वह काफिर है कुरआने मजीद में जो एक लफ्ज़, एक हर्फ और एक नुक्ते की कमी बेशी का काएल है यकीनन वह काफिर व मुर्तद है।
*📕 ईमान की हिफाजत 73- 74*
❐ ➻ मुफ्ती अमजद अली फरमाते हैं जो शख्स कुरआन मजीद को नाकिस कहे वह काफिर है।
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❐ सवाल ❐ ➻ अल्लाह तआला ने जिन्नों को किस चिज से पैदा किया है!?
❐ जवाब ❐ ➻ *जिन्न का बयान :* अल्लाह तआला ने जिन्नों को आग से पैदा किया, इनमें बाज को यह ताकत दी है कि जो शक्ल चाहे बन जायें इनकी उम्रे बहुत ज्यादा होती हैं इनके शरीरों को शैतान कहते हैं यह सब इन्सान की तरह अक्ल वाले रूह और जिस्म वाले हैं इनकी औलादें भी होती है खाते पीते हैं जीते मरते हैं।
❐ ➻ *अक़ीदा :* इनमें मुसलमान भी हैं और काफिर भी मगर इनके कुफ़्फ़ार इन्सानों का बनिस्बत बहुत ज्यादा हैं और इनमें नेक मुसलमान भी हैं और फासिक भी है, बदमजहब भी इनमें फ़ासिकों की तादाद इन्सानों से ज्यादा है।
❐ ➻ *अक़ीदा :* जिन्नों के वुजूद का इन्कार करना या उनको बदी की कुव्वत का नाम देना कुफ़्र है।
*📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 25/26*
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❐ सवाल ❐ ➻ जब इंसान की मौत का वक्त होता है मुसलमान के आस पास रहमत के फिरिश्ते होते हैं और काफिर के दाहिने बाएं अजाब के फ़िरिश्ते होते हैं उस वक्त हर एक पर इस्लाम की हक्कानियत किस से ज्यादा रौशन हो जाती है!?
❐ जवाब ❐ ➻ हर एक के लिए मौत का दिन और वक़्त मुकर्रर है जिस की जितनी जिन्दगी है उसमें कमी बेशी नहीं हो सकती जब जिन्दगी के दिन पूरे हो जाते हैं उस वक्त हज़रते इज़राईल अलैहिस्सलाम रूह कब्ज करने के लिए आते हैं उस वक्त उस आदमी को उसके दाएं बाएं हर तरफ और जहाँ तक निगाह काम करती है फिरिश्ते दिखाई देते हैं मुसलमान के आस पास रहमत के फिरिश्ते होते हैं और काफिर के दाहिने बाएं अजाब के फ़िरिश्ते होते हैं। *उस वक्त हर एक पर इस्लाम की हक्कानियत सूरज से ज़्यादा रौशन हो जाती है।* उस वक्त अगर कोई काफिर ईमान लाना चाहे तो उसका ईमान नहीं माना जायेगा क्यों कि वह इस्लाम की हक्कानियत देख कर ईमान लाना चाहता है और हुक्म ईमान बिल गैब का है यानी बे देखे ईमान लाने का और अब गैब यानी बिना देखे न रहा लिहाजा ईमान कुबूल नहीं।
*📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 26*
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❐ सवाल ❐ ➻ मरने के बाद मुसलमान की रुह अपने अपने दर्जों के मुताबिक अलग अलग रहती है या एक जगह!?
❐ जवाब ❐ ➻ मरने के बाद मुसलमान की रुह अपने अपने दर्जों के मुताबिक अलग अलग जगहों में रहती है कुछ की कब्र पर कुछ की चाहेज़मज़म शरीफ में कुछ की आसमान और जमीन के बीच कुछ की पहले आसमान से सातवें आसमान तक कुछ की आसमान से भी आला इल्लीन में रहती हैं मगर यह रुहें जहां कहीं भी रहें उनका अपने जिस्म से रिश्ता उसी तरह बराबर काइम रहता है जो लोग उनकी कब्रों पर जाते हैं उनको वह पहचान लेते है और उनकी बाते सुनते हैं और रूह के देखने के लिए यही जरूरी नहीं कि रूहें अपनी कब्रों से ही देखे बल्कि हदीस शरीफ में रूह की मिसाल इस तरह है कि एक चिड़िया पहले पिंजरे में बन्द थी और अब उसे छोड़ दिया गया और इमामों ने यह लिखा है कि :
*📝तर्जमा :-* "बेशक पाक जानें जब बदन की गिरफ्त से अलग होती है तो आलमे बाला से मिल जाती हैं और सब कुछ ऐसा देखती सुनती है जैसे यही मौजूद है।
*📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 27*
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❐ सवाल ❐ ➻ आदमी तक सूद का जो एक दिरहम पहुँचता है वह अल्लाह तआ़ला के नज़दीक कितनी मरतबा ज़िना करने से भी बड़ा गुनाह है!??
❐ जवाब ❐ ➻ सूद से भी बड़ा गुनाह मुसलमान की इज़्ज़त पर हाथ डालना है!
❐ ➻ *आलिमे रब्बानी :-* हज़रत इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली रज़ियल्लाहु तआ़ला अन्हु गी़बत के ब्यान के दरमियान सूद का गुनाह और मुसलमान की इज़्ज़त पर हाथ डालने के गुनाह को भी ब्यान फ़रमाते है। *हदीस शरीफ़ :-* हज़रत अनस रज़ियल्लाहु तआ़ला अन्हु से रिवायत है कि महबूबे खु़दा मुहम्मद मुस्तफा ﷺ ने फ़रमाया आदमी तक सूद का जो एक दिरहम पहुँचता है वह अल्लाह तआ़ला के नज़दीक छत्तीस³⁶ मरतबा ज़िना करने से भी बड़ा गुनाह है। और सबसे बड़ा सूद (यानी सूद से भी बड़ा गुनाह) मुसलमान की इज़्ज़त पर हाथ डालना है।
*📕 अल कामिल लि इब्ने आदी ज़िल्द 4 सफ़ा नं 1548*
❐ ➻ *हज़रात:-* इस हदीस शरीफ़ से कोई ग़ीबत के अज़ाब व गुनाह को न समझे तो उस से बड़ा नादान कौन? कि सूद का एक रूपया का गुनाह छत्तीस³⁶ बार ज़िना करने के गुनाह से ज़्यादा है और उस से भी बड़ा गुनाह ग़ीबत करना है।
*( अल अमान वल ह़फ़ीज़*
*📙 अनबारूल बयान सफ़ा नं 237-238*
*📙 इहयाउल उलूम शरीफ ज़िल्द 3 सफ़ा 316*
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❐ सवाल ❐ ➻ जो शख़्स अपनी शरई जुरूरतो के लाइक माल रखता है या उसके कमाने पर कुदरत रखता है उसे भीक माँगना कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ जो शख़्स अपनी शरई जुरूरतो के लाइक माल रखता है या उसके कमाने पर कुदरत रखता है उसे भीक माँगना हराम है और जो शख़्स उस के माल को जानता हो उस पर देना हराम है लेने वाला और देने वाला दोनों गुनहगार। भीक माँगने वाले तीन³ तरह के होते है एक¹ उन्हें भीक माँगना हराम है और देना भी ऐसे लोगों की देने से ज़कात नहीं अदा हो सकती।
❐ ➻ दूसरा² वह जो हकीक़त में फ़कीर है यानी निसाब के मालिक नहीं है मगर मज़बूत और तन्दोरूस्त है कमाने की कूवत रखते है और भीक माँगना किसी ऐसे जरूरत के लिए नहीं जो उन की ताकत से बाहर हो मजदूरी वगैरह कोई काम नहीं करना चाहते मुफ़्त खाना खाने की आदत पड़ी है जिनके सबब भीक माँगते फिरते है ऐसे लोगों को भीक माँगना हराम है और जो उन्हें माँगने से मिले वह उन के लिए खबीस है हदीस शरीफ़ में है कि न किसी मालदार के लिए सदक़ा हलाल है न किसी तन्दोरूस्त और ताक़त वाले के लिए उन्हें भीक देना मना है कि गुनाह पर मदद करना है लोग अगर नहीं देंगे तो वह मेहनत मजदूरी करने पर मजबूर होंगे अल्लाह तआ़ला ने फ़रमाया गुनाह और ज़्यादती पर मदद न करो *( पारा 6 रूको 5 )* मगर ऐसे लोगों को देने से ज़कात अदा हो जायेगी जब कि और कोई शरई रूकावट न हो इसलिए कि वह निसाब के मालिक नहीं है।
तीसरे³ वह जो न माल रखते है और न कमान कि ताक़त रखते है या जातने की हाजत पूरी करने भर की भी माँगना जाइज़ है और माँगने से कुछ मिले वह उन के लिए हलाल और तयिब है और यह लोग ज़कात के बेहतरीन मसरफ है उन्हें देना बहुत बड़ा सबाब है और यही वह लोग है जिन्हें झिड़कना हराम है।
*📙 अनवारूल हदीस सफ़ा नं 144 - 145*
*📙 फतावा रज़विया ज़िल्द 4 सफ़ा नं 468 - 501*
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❐ सवाल ❐ ➻ आलमे बरजख क्या है!?
❐ जवाब ❐ ➻ *आलमे बरज़ख का बयान :-* दुनिया और आखिरत के बीच एक और आलम है जिसको बरज़ख़ कहते हैं मरने के बाद और कियामत से पहले तमाम इन्सानों और जिनों को अपने अपने मरतबे के लिहाज से बरजख में रहना होता है और यह आलम इस दनिया से बहुत बड़ा है दुनिया बरज़ख़ के मुकाबले में ऐसी है जैसे माँ के पेट में बच्चा बरज़ख में कोई आराम से है और कोई तकलीफ से।
*📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 26*
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❐ सवाल ❐ ➻ घर की औरतें अपने छोटे बच्चों को किसी काजल या सुरमे वगैराह से उनके गाल पर काला टिका या छोटा नुकता लगाती है ताकि किसी की बुरी नज़र न लगे, इसकी क्या हक़ीक़त है.!?
❐ जवाब ❐ ➻ हमारा और आपका येह मुशाहेदा है की घर की औरतें अपने छोटे बच्चों को किसी कालिक, काजल या सुरमें वगैराह से उनके रुख़सार ( गाल ) पर काला टीका या छोटा नुकत लगाती है ताकि किसी की बुरी नज़र न लगे, ये बेअस्ल बात नहीं है *नजर का लगना हदीसों से साबित है* यानि बुरी नजर लगती है चुनान्चे हदीसे पाक में है की, रसुलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की नजर का लगना हक़ है अगर कोई चीज़ तकदीर पर गालिब होती है तो नज़र गालिब होती है ।
*📚 तिर्मीज़ी शरीफ़, जिल्द-1, हदीस- 2137, सफ़ा- 949*
*📚 अल-कौलुल जमील, सफा- 150*
❐ ➻ और एक रिवायत में है की हज़रत उस्मान गनी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने एक खूबसूरत बच्चे को देखा तो फ़रमाया इसकी ठुड्ड़ी में काला टीका लगा दो की इसको नजर न लगे।
*📚 [ अल-कौलुल जमील, सफा- 153 ]*
❐ ➻ तिर्मीज़ी शरीफ की एक रिवायत से साबित है की काला टीका बच्चे को बुरी नज़र से बचाता है, वल्लाहो आलम।
*📚 क़रीना-ए-जिन्दगी, सफा-190*
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❐ सवाल ❐ ➻ पुनर्जन्म को सच जानना क्या है!?
❐ जवाब ❐ ➻ यह अकीदा रखना कि रूह किसी दूसरे आदमी या किसी जानवर के बदन में चली जाती है बातिल और कुफ़्री अकीदा है इस अकीदे को 'तनासुख और 'आवा गवन' का अकीदा कहते हैं या पुनर्जन्म भी कहते हैं पुनर्जन्म को सच जानना कुफ़्र है।
❐ ➻ मौत का मतलब यह है कि रूह जिस्म से अलग हो जाए, इसका मतलब यह हरगिज़ नही कि रूह को मौत आ जाती है या रूह फना हो जाती है अगर कोई रूह के लिए फना होना माने तो वह बदमजहब है।
*📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 27*
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*• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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❐ सवाल ❐ ➻ जब मुर्दे को कब्र में दफन करते हैं उस वक्त कब्र उसको दबाती है। अगर वह मुसलमान है तो कब्र उसे किस तरह दबाती है!??
❐ जवाब ❐ ➻ मुर्दे कलाम भी करते हैं और उनकी बातों को आम लोग जिन और इन्सान नहीं सुन सकते लेकिन तमाम किस्म के जानवर वगैरा सुनते हैं।
❐ ➻ जब मुर्दे को कब्र में दफन करते हैं उस वक्त कब्र उसको दबाती है अगर वह मुसलमान है तो कब्र उसे इस तरह दबाती है जैसे माँ प्यार में अपने बच्चे को चिपटा लेती है और अगर काफिर है तो उसको इस जोर से दबाती है कि इघर की पसलिया उधर हो जाती है।
*📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 27/28*
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*• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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❐ सवाल ❐ ➻ उम्र में एक मरतबा दुरूद शरीफ़ पढ़ना फर्ज है और जल्सए ज़िक्र में दुरूद शरीफ़ पढ़ना क्या है!?
❐ जवाब ❐ ➻ बदरुत्तरीका हज़रते अल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه फरमाते हैं उम्र में एक मरतबा दुरूद शरीफ़ पढ़ना फर्ज है *और जल्सए ज़िक्र में दुरूद शरीफ़ पढ़ना वाजिब, ख़्वाह खुद नामे अक्दस ले या दूसरे से सुने।* अगर एक मजलिस में सो बार ज़िक्र आए तो हर बार दुरूद शरीफ़ पढ़ना चाहिये, अगर नामे अक़दस लिया या सुना और दुरूद शरीफ़ उस वक्त न पढ़ा तो किसी दूसरे वक्त में इस के बदले का पढ़ ले!
*📙 बहारे शरीअत, जिल्द 1 हिस्सा 3 सफ़ह 533, आसान नेकियां सफ़ह 38*
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❐ सवाल ❐ ➻ हर मुसलमान मर्द व औरत *(आकिल बालिग़)* को *सूरह फातिहा* का हिफ्ज़ *(जबानी याद )* करना क्या है!??
❐ जवाब ❐ ➻ एक आयत का हिफ्ज करना *हर मुसलमान मुकल्लफ पर फर्जे ऐन है* और पुरे कुरआन मजीद का हिफ्ज करना फर्जे किफाया है और *सूरह फातिहा और एक दूसरी छोटी सूरह या तीन छोटी आयतों के बराबर एक बड़ी आयत का हिफ्ज करना वाज़िबे ऐन है*
❐ ➻ बकदरे जरूरत मसाइले फ़िक़्ह जानना फर्जे ऐन है और हाजत से जाईद सीखना हिफ्जे जमीअ कुरआन से अफजल है!
*📚 निजामे शरीअत, सफा- 154*
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*• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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❐ सवाल ❐ ➻ किन सहाबीए रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बारे में हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया था कि आज ये शहीद नही हुवे बल्कि मेरी क़मर टूट गई है!?
❐ जवाब ❐ ➻ सय्यदुश शोहदा का लक़ब सहाबीए रसूल, हुज़ूर ﷺ के चचा हज़रते अमीर हमज़ा रदियल्लाहो अन्हो का हैं जिसका मअना होता है शहीदों का सरदार आपकी शहादत इतनी दर्दनाक थी कि हिन्दा नामक औरत जो बाद में मुसलमान हो गई थी उसने आपका सीना चाक करके आपका कलेजा चबाया था, जिनके शहीद होने पर हुज़ूर अलैहिस्लाम ने फ़रमाया था कि आज ये शहीद नही हुवे बल्कि मेरी क़मर टूट गई है!
*📚 किताब सिरतुल मुस्तफ़ा 262*
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❐ सवाल ❐ ➻ जो मोमिन हालते सफ़र में इन्तिकाल कर जाये जहां उस पर रोने वाले न हों तो इन पर कौन रोता है!?
❐ जवाब ❐ ➻ हज़रते सय्यिदुना शुरैह बिन उबैद हजमी رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْہ रिवायत करते हैं कि हुजूर नबी ए अकरम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया जो मोमिन हालते सफ़र में इन्तिकाल कर जाये जहां उस पर रोने वाले न हों तो उस पर जमीनो आस्मान रोते हैं फिर आप ﷺ ने येह आयते मुकद्दसा तिलावत फ़रमाई : *तर्जमए कन्जुल ईमान :* तो उन पर आस्मान व जमीन न रोए!
फिर इरशाद फरमाया : ज़मीनो आस्मान काफ़िर पर नहीं रोते!
📚 *शर्हुस्सुदुर, सफहा - 193, 194*
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❐ सवाल ❐ ➻ कब्र में मुनाफिक मुर्दा हर सवाल के जवाब में क्या कहेगा!?
❐ जवाब ❐ ➻ *मुनाफिक मुर्दा हर सवाल के जवाब में कहेगा :-*
*📝तर्जमा :-* "अफ़सोस मुझे तो कुछ पता नहीं और यह भी कहेगा कि :
*📝तर्जमा :-* "मैं लोगों को कुछ कहते सुनता था तो मैं भी कहता था।
❐ ➻ उस वक़्त गैब से एक आवाज़ आयेगी कि यह झूटा है, इसके लिए आग का बिछौना बिछाओ, आग का लिबास पहनाओं और जहन्नम की तरफ दरवाजा खोल दो फिरिश्ते खिड़की खोल देंगे, उसकी गर्मी और लपट पहुँचेगी और उस पर अज़ाब देने के लिए दो फरिश्ते मुकर्र होंगे जो अंधे और बहरे होंगे, उन के साथ लोहे का ऐसा गुर्ज होगा कि अगर उसे पहाड़ पर भी मारा जाये तो पहाड़ टुकड़े टुकड़े हो जाये, उस गुर्ज से मुनाफिक को वह फरिश्ते मारते रहेंगे, सांप और बिच्छू उसे डसते रहेंगे और उसके गुनाह कुत्ते या भेड़िये की शक्ल में जाहिर हो कर उसे तकलीफ पहुँचायेंगे, नेक लोगों के अच्छे अमल महबूब और अच्छी अच्छी सूरतों में ढलकर उनके दिल बहलायेंगे।
*📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 29*
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❐ सवाल ❐ ➻ कब्र के अज़ाब और कब्र की नेमतें हक़ हैं क्या यह दोनों चीजें जिस्म और रूह दोनों पर हैं!?
❐ जवाब ❐ ➻ कब्र के अज़ाब और कब्र की नेमतें हक़ हैं यह दोनों चीजें जिस्म और रूह दोनों पर हैं जैसा कि ऊपर बताया गया अगरचे जिस्म गल जाये जल जाये या खाक हो जाये मगर उसके असली टुकड़े क़ियामत तक बाकी रहेंगे और उन्हीं पर अ़ज़ाब या सवाब होगा और क़ियामत के दिन दोबारा इन्हीं पर जिस्म की बनावट होगी यह अजज़ा टुकड़े ‘ अ़जबुज़्ज़नब ' कहलाते हैं यह इतने बारीक होते है कि न किसी दुर्बीन से नज़र आ सकते हैं न उन्हें आग जला सकती है न ज़मीन उन्हें गला सकती है यही जिस्म के बीज हैं इसीलए क़ियामत के दिन रूहें अपने उसी जिस्म ही में लौटेंगी किसी दूसरे बदन में नहीं जिस्म के ऊपरी हिस़्सों के बढ़ने घटने से जिस़्म नहीं बदलता जैसे कि बच्चा पैदा होता है तो छोटा होता है फिर बड़ा और हट्टा कट्ट्टा जवान होता है फिर वही बीमारी में दुबला पतला हो जाता है और उस पर जब नया गोश्त पोस्त आता है तो वह फिर अपनी असली हालत में आ जाता है इन तबदीलियों से यह नहीं कहा जा सकता कि शख़्स बदल गया ऐसे ही क़ियामत के दिन का लौटना है कि जिस्म के गोश्त और हड्डियाँ जो ख़ाक या राख हो गई हों और उनके ज़र्रे जहाँ कहीं भी फैले हुए हों अल्लाह तबारक व तआ़ला उन्हें जमा कर के उसको पहली हालत पर लायेगा और वह असली अजज़ा जो पहले से महफूज हैं उनसे जिस्म को मुरक्कब करेगा यानी बनायेगा और हर रूह को उसी पुराने जिस्म में भेजेगा इसका नाम `हश्र' है कब्र के अ़ज़ाब और सवाब का इन्कार गुमराही है।
*[📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 29 30]*
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❐ सवाल ❐ ➻ जिस शख्स की पाँच नमाजे या उस से कम कजा हो उस को साहबे-तर्तीब कहते है अगर वक़्त मे गुंजाईश होते हुए और कजा नमाज को याद रखे हुए वक़्ती नमाज पढ ले तो क्या नमाज़ अदा हो जाएगी!?
❐ जवाब ❐ ➻ *नमाज़ों की कज़ा का बयान :* किसी इबादत को उस के वक्त मुकर्ररह पर बजा लाने को अदा कहते है और वक़्त गुजर जाने के बाद अम्ल करने को कजा कहते है।
❐ ➻ फर्ज नमाज़ की कज़ा फर्ज है और वित्र की कजा वाजिब है और फजर् की सुन्नत अगर फर्ज के साथ कजा हुआ और जवाल से पहले पढे तो फर्ज के साथ सुन्नत भी पढे। और अगर जवाल के बाद पढे तो सुन्नत की कजा नही। जुमुआ और जूहर की सुन्नते की कजा हो गयी और फर्ज पढ लिया अगर वक़्त खत्म हो गया तो सुन्नतों की कजा नही और वक़्त बाकी है तो सुन्नतों को पढे और अफजल ये है कि पहले फर्ज के बाद वाली सुन्नतों को पढे फिर उन छुटी हुई सुन्नतों को पढे।
❐ ➻ जिस शख्स की पाँच नमाजे या उस से कम कजा हो उस को साहबे-तर्तीब कहते है उस पर लाज़िम है कि वक़्ती नमाज से पहले कजा नमाजो को पढे ले अगर वक़्त मे गुंजाईश होते हुए और कजा नमाज को याद रखे हुए वक़्ती नमाज़ पढ ले तो ये नमाज़ नही होगी।
❐ ➻ छ: नमाजे या उससे ज्यादा नमाजे जिस की कजा हो गई हो वह साहबे-तर्तीब नही अब ये शख्स वक़्त के गुंजाइश और याद होने के बावजूद अगर वक़्ती नमाज़ पढ़ लेगा तो उस की नमाज होने जाएगी और छुटी हुई नमाजो को पढने के लिए वक़्त मुकर्रर नही है उम्र में जब भी पढ लेगा बरि-उल-जिम्मा हो जाएगा।
❐ ➻ जिस रोज और जिस वक़्त की नमाज कजा हो जब उस की कजा पढे तो जरूरी है कि उस रोज और उस वक़्त की कजा की नियत करेंगे मसलन जुमुआ के दिन की फजर् की कजा नमाज हो गयी तो उस तरह नियत करेंगे कि नियत की मैने दो रकाअत जुमुआ के दीन की नमाज़े फजर् की अल्लाह तआला के लिए मुहँ मेरा काबा शरीफ के तरफ अल्लाहु अकबर।
❐ ➻ अगर महीने दो महीने या चन्द वर्षों की कजा नमाजो को पढे तो नियत करने मे जो नमाज पढनी है उसका नाम ले और उस तरह नियत करें मसलन नियत की मैंने दो रक्अत नमाज फजर् की जो मेरे जिम्मा बाकी है। उन मे से पहली फजर् की अल्लाह तआला के मुहँ मेरा तरफ काबा शरीफ के अल्लाहु अकबर!
❐ ➻ जो रकाअते अदा में सुरह मिलाकर पढी जाती है वह कजा मे भी मिलाकर पढी जाएगी, और जो रकाअते अदा मे बगैर सुरह मिलाए पढी जाती है कजा मे भी बगैर सुरह की पढी जाऐगें।
*📚 जन्नती ज़ेवर सफह 233-234*
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❐ सवाल ❐ ➻ अल्लाह के वह खास बन्दे जिनके बदन को मिट्टी नहीं खा सकती, कौन है!?
❐ जवाब ❐ ➻ अल्लाह के वह खास बन्दे जिनके बदन को मिट्टी नहीं खा सकती वह अम्बिया अ़लैहिमुस्सलाम औलियाए किराम दीन के आलिम कुर्आन शरीफ के हाफिज़ जो कुर्आन पर अमल करते हों जिनको अल्लाह और उसके रसूल से महब्बत हो वह जो अल्लाह के महबूब हों वह जिस्म जिसने कभी अल्लाह की नाफरमानी न की हो और वह लोग जो ज़्यादा से ज़्यादा दुरूद शरीफ पढ़ते हैं उनके बदन सलामत रहते हैं अगर कोई किसी नबी की शान में गुस्ताखी और बेअदबी की यह बात कहे कि मर के मिट्टी में मिल गये तो वह गुमराह और बद्दीन है!
*📚बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 30*
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*• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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❐ सवाल ❐ ➻ दुनिया के फना होने से पहले कुछ निशानियाँ जाहिर होंगी जिसमें दज्जाल का जाहिर होना भी, बडे दज्जाल के साथ कितने और दज्जाल जाहिर होगे!?
❐ जवाब ❐ ➻ *आखिरत और हश्र का बयान :* जिहालत बहुत बढ़ जायेगी मतलब दीन का इल्म रखने वाले बहुत कम हो जायेंगे!
❐ ➻ ज़िना की ज़्यादती होगी और बेहयाई और बेशर्मी इतनी बढ़ जायेंगी बड़े छोटे का अदब लिहाज खत्म हो जायेगा!
❐ ➻ मर्द कम होंगे और औरतें इतनी ज्यादा होंगी कि एक मर्द की मातहूती में पचास पचास औरतें होंगी!
❐ ➻ उस बड़े दज्जाल के अलावा तीस और दज्जाल होंगे और यह सब नुबुव्वत का दावा करेंगे जबकि नुबुव्वत खत्म हो चुकी है!
❐ ➻ उन नुबुव्वत के दावा करने वालों में से कुछ गुजर चुके हैं जैसे मुसलमा कज़्ज़ाब तलीहा इने खुवैलद असवद अंसी , सज्जाह (एक औरत जो बाद में इस्लाम ले आई) और गुलाम अहमद क़ादियानी के अलावा ज़ाहिर हेंगे!
*📙 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 30*
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❐ सवाल ❐ ➻ जो शख्स नमाज़ को हक़ीर समझेगा अल्लाह तआला उसको कितनी सजायें देगा!??
❐ जवाब ❐ ➻ हज़रत हारिस ने हजरत अली बिन अबु तालिब का कौल नक़ल किया है की रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो शख्स नमाज़ को हक़ीर समझेगा *अल्लाह तआला उसको.15सजायें देगा*
❐ ➻ *6 दुनियावी*
❐ (1) गाफ़िल नमाज़ी को सालेहीन की फेहरिस्त से खारिज कर दिया जायेगा!
❐ (2) उसके जिन्दगी की बरकत दूर कर दी जायेगी!
❐ (3) उसके रिज्क से बरकत दूर हो जायेगी!
❐ (4) उसका कोइ नेक आमाल कबूल नहीं किया जाता!
❐ (5) उसकी दुआ कबूल नहीं होती!
❐ (6) वह नेकों की दुआओं से महरूम कर दिया जाता है ।
❐ ➻ *मौत के वक़्त 3*
❐ (1) वो प्यासा मरता है अगरचे उसके मुंह मे सात दरिया उलट दिये जाये।
❐ (2) उसकी मौत अचानक होगी (तौबा की मोहलत ही नहीं मिलेगी)
❐ (3) उसके काधों पर दुनियावी लोहे लकड़ी और पत्थरों का बोझ डाला जाएगा जिस से वह बोझल हो जाएगा।
❐ ➻ *कब्र के 3 अजाब*
❐ (1) कब्र उस पर तंग कर दी जाएगी!
❐ (2)कब्र मे जबरदस्त अंधेरा होगा!
❐ (3) मुनकर नकीर के सवालों का जवाब नहीं दे सकेगा ।
❐ ➻ *कब्र से निकलने पर 3 अजाब*
❐ (1) अल्लाह तआला उस पर गजबनाक होगा!
❐ (2)उससे हिसाब बहुत सख्त होगा।
❐ (3) अल्लाह तआला के दरबार से उसकी वापसी दोजख की तरफ होगी (अगर अल्लाह माफ़ फरमा दे तो खैर)
*📙 गुनियतुत्तालिबीन सफ़ा 570*
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❐ सवाल ❐ ➻ हज़रते उस्मान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर मुहम्मद मुस्तफा ﷺ ने फ़रमाया जो बहतरीन तरीक़े से वुज़ू करे तो उसके बदन से उसके तमाम गुनाह निकल जाते है यहां तक कि उसके!?
❐ जवाब ❐ ➻ हज़रते उस्मान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर मुहम्मद ﷺ ने फ़रमाया जो बहतरीन तरीक़े से वुज़ू करे, तो उसके बदन से उसके तमाम गुनाह निकल जाते है यहां तक कि उसके नाखूनों के नीचे के गुनाह भी निकल जाते है!
❐ ➻ अफ़्सोस की आज के दौर में बड़े-बूढ़े मर्द और औरत को वुज़ू का मुकम्मल तरीक़ा तक नही मअलूम बल्कि फ़राइज़ नही मअलूम जबकि दुनिया भर की चीज़ें उन्हें पता है लिहाज़ा अपने दिल पर हाथ रख कर सोचें कि हम इतनी अज़ीम नेअमत का सही फ़ायदा उठा पा रहे है या नही।
*📚 मिश्कात शरीफ़, जिल्द-1, सफह- 38*
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❐ सवाल ❐ ➻ जहन्नम की आग कितने बरस तक धैंकाई गई यहाँ तक कि बिल्कुल लाल हो गई!?
❐ जवाब ❐ ➻ *दोज़ख का बयान :-* जहन्नम की आग हजार बरस तक धैंकाई गई यहाँ तक कि बिल्कुल लाल हो गई फिर हज़ार बरस और जलाई गई यहाँ तक कि सफेद हो गई उस के बाद फिर हज़ार साल जलाई गई यहाँ तक कि बिल्कुल काली हो गई और अब वह बिल्कुल काली है और उस में रौशनी का नामो निशान नहीं।
❐ ➻ जहन्नम का हाल बताते हुए हज़रते जिबील अ़लैहिस्सलाम ने हुजूर सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैहि वसल्लम से कसम खा कर कहा कि अगर जहन्नम से एक सुई के नाके के बराबर खोल दिया जाये तो जमीन के सारे बसने वाले उसकी गर्मी से मर जायें।
❐ ➻ और इसी तरह यह भी कहा कि अगर जहन्नम का कोई दारोगा दुनिया वालों के सामने आ जाये तो उसकी डरावनी सूरत के डर से सब के सब मर जायें, और उन्हों ने यह भी बताया कि अगर जहन्नमियों के जंजीर की एक कड़ी दुनिया के पहाड़ पर रख दी जाये तो थरथर कांपने लगे और यह पहाड़ जमीन तक धंस जायें।
❐ ➻ दुनिया की यह आग जिसकी गर्मी और तेज़ी को सब जानते हैं कि कुछ मौसमों में उसके पास जाना भी दूभर होता है फिर भी यह आग खुदा से दुआ करती है कि या अल्लाह ! हमें जहन्नम में फिर न भेज देना लेकिन तअज्जुब की बात यह है कि इन्सान जहन्नम में जाने का काम करता है और उस आग से नहीं डरता जिससे आग भी पनाह माँगती है।
*📙 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 44 - 45*
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❐ सवाल ❐ ➻ जहन्नमी को सब से कम दर्जे का अज़ाब क्या होगा!?
❐ जवाब ❐ ➻ *दोज़ख का बयान :*; दोज़ख एक ऐसा मकान है जो अल्लाह तआ़ला की शाने जब्बारी और जलाल की मज़हर (जा़हिर करने वाली) है। जिस तरह अल्लाह की रहमत और नेमत की कोई हद नहीं कि इन्सान शुमार नहीं कर सकता और जो कुछ इन्सान सोचता है वह शुम्मह (ज़र्रा) बराबर भी नहीं, उसी तरह उसके गज़ब और जलाल की कोई हद नहीं। इन्सान जिस कद्र भी दोज़ख की आफ़तों मुसीबतों और तकलीफों को सोच सकता है वह अल्लाह के अज़ाब का एक बहुत छोटा सा हिस्सा होगा, कुर्आन व अहादीस में जो दोज़ख के अज़ाब का बयान है उसमें से कुछ बातें ज़िक्र क की जाती हैं मुसलमान देखें और दोज़ख से पनाह माँगें।
❐ ➻ हदीस शरीफ में है कि जो बन्दा जहन्नम से पनाह माँगता है जहन्नम कहता है कि ऐ रब ! यह मुझ से पनाह माँगता है तू इसको पनाह दे कुर्आन शरीफ में कई जगहों पर आया है कि जहन्नम से बचो और दोज़ख से डरो! हमारे सरकार हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैहि वसल्लम हमें सिखाने के लिए ज़्यादा तर जहन्नम से पनाह माँगा करते थे, जहन्नम का हाल यह होगा कि उसकी चिंगारियाँ ऊँचे ऊँचे महलों के बराबर इस तरह उड़ेंगी कि जैसे ज़र्द ऊँटों की कतारें लगातार आ रही हों, पत्थर , आदमी जहन्नम के ईधन हैं। दुनिया की आग जहन्नम की आग के सत्तर हिस्सों में उसे एक हिस्सा है।
❐ ➻ *जिस जिस जहन्नमी को सब से कम दर्जे का अज़ाब होगा उसे आग की जूतियाँ पहनाई जायेंगी* जिससे उसके सर का भेजा ऐसा खौलेगा जैसे तांबे की पतीली खौलती है और वह यह समझेगा कि सब से ज़्यादा अज़ाब उसी पर हो रहा है जबकि यह हल्का अज़ाब है जिस पर सब से हल्के दर्जे का अज़ाब होगा उस से अल्लाह तआ़ला पूछेगा कि अगर सारी ज़मीन तेरी हो जाये तो क्या तू इस अज़ाब से बचने के लिए सारी ज़मीन फ़िदये में दे देगा? वह जवाब देगा कि हाँ हाँ मैं दे दूँगा। फिर अल्लाह तआ़ला इरशाद फरमायेगा कि ऐ बन्दे मैंने तेरे लिये बहुत आसान चीज़ का हुक्म उस वक़्त दिया था जब कि तू आदम की पीठ में था लेकिन तू न माना।
*📙 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 44*
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*• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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❐ सवाल ❐ ➻ बुलन्द आवाज से कुरआने मजीद की तिलावत करना कब मन्अ है?
❐ जवाब ❐ ➻ कुरआने पाक की तिलावत करना और सुनना बिला शुबा बड़े अज्रो सवाब का काम है, तिलावते कुरआन करने वाले को हर हर हर्फ़ के बदले एक एक नेकी अता की जाती है जो दस नेकियों के बराबर होती है मगर चन्द ऐसी सूरते हैं जिन में बुलन्द आवाज़ से तिलावत करने की फुकहा ए किराम ने मुमान अत बयान फ़रमाई: मज्मअ में सब लोग बुलन्द आवाज़ से पढ़ें ये *हराम है,* अक्सर तीजों में सब बुलन्द आवाज़ से पढ़ते हैं ये हराम है, अगर चन्द शख़्स पढ़ने वाले हों तो हुक्म है कि आहिस्ता पढ़ें।
❐ ➻ जहां कोई शख्स इल्मे दीन पढ़ रहा है या तालिबे इल्म इल्मे दीन की तक्रार करते या मुता-लआ करते हुए देखें, वहां भी बुलन्द आवाज से कुरआने पाक पढ़ना मन्अ है, इसी तरह बाज़ारों में और जहां लोग काम में मश्गुल हों बुलन्द आवाज़ से पढ़ना नाजाइज़ है, लोग अगर न सुनेंगे तो गुनाह पढ़ने वाले पर है अगर काम में मश्गूल होने से पहले इसने पढ़ना शुरू कर दिया हो और अगर वो जगह काम करने के लिये मुक़र्रर न हो तो अगर पहले पढ़ना इस ने शुरू किया और लोग नहीं सुनते तो लोगों पर गुनाह और अगर काम शुरू करने के बाद इस ने पढ़ना शुरू किया तो सब पर गुनाह।
*📙 बहारे शरीअत, हिस्सा- 3, सफा- 87*
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*• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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❐ सवाल ❐ ➻ काफ़िर जब जहन्नम की मुसीबतों और तकलीफ़ों से अपनी जान से अजिज़ आजायेंगे तो आपस में राय करके किस को पुकारते हुए फरयाद करेंगे!?
❐ जवाब ❐ ➻ *दोज़ख का बयान :* काफ़िर जब जहन्नम की मुसीबतों और तकलीफ़ों से अपनी जान से अजिज़ आजायेंगे तो आपस में राय करके हज़रत मालिक (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) को पुकारते हुए फरयाद करेंगे कि ऐ का मालिक तेरा रब हमारा किस्सा तमाम कर दे।लेकिन वह हजार बरस तक कोई जवाब न देंगे, हज़ार साल के बाद कहेंगे कि तुम मुझ से क्या कहते हो उससे कहो जिसकी तुमने नाफरमानी की है।
❐ ➻ फिर वह अल्लाह को उसके रह़मत भरे नामों से हज़ार साल तक पुकारेंगे वह भी हजार साल तक जवाब न देगा उसके बाद फरमायेगा कि दूर हो जाओ जहन्नम में पड़े रहो मुझ से बात न करो, फिर यह काफिर हर तरह की भलाईयों से नाउम्मीद हो कर गधों की तरह रोना और चिल्लाना शुरू करेंगे पहले आँसू निकलेंगे और जब आँसू खत्म हो जायेंगे तो खून के आँसू रोयेंगे रोते रोते उन के गालों में खन्दकों की तरह गढे पड़ जायेंगे।
*📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 45-46*
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❐ सवाल ❐ ➻ जब सब जन्नती जन्नत में दाखिल हो जायेंगे और जहन्नम में सिर्फ वही रह जायेंगे जिन को हमेशा के लिए उस में रहना है उस वक़्त जन्नत और दोज़ख के बीच 'मौत' को किस की शक्ल में ला कर खडा किया जायेगा!?
❐ जवाब ❐ ➻ *दोज़ख का बयान :-* जब सब जन्नती जन्नत में दाखिल हो जायेंगे और जहन्नम में सिर्फ वही रह जायेंगे जिन को हमेशा के लिए उस में रहना है उस वक़्त जन्नत और दोज़ख के बीच 'मौत' को मेंढे की शक्ल में लाकर खडा किया जायेगा, फिर जन्नत वालों को पुकारा जायेगा वह डरते हुए झाँकेंगे कि कहीं ऐसा न हो कि यहाँ से निकलना पड़े फिर जहन्नमियों को आवाज़ दी जायेगी वह खुश होते हुए झाँकेंगे कि शायद उन्हें इस मुसीबत से छुटकारा मिल जाये फिर जन्नतियों और जहन्नमियों को वह मेढा दिखाकर पूछा जायेगा कि क्या तुम लोग इसे पहचानते हो? तो जवाब में सब कहेंगे कि हाँ यह मौत है तो फिर वह मौत ज़िबह कर दी जायेगी और कहा जायेगा कि ऐ जन्नत वालों हमेशगी है अब मौत नहीं आयेगी और ऐ दोज़ख वालों तुम्हें अब हमेशा जहन्नम ही में रहना है और अब तुम्हें भी मरना नहीं है उस वक़्त जन्नतियों के लिए बेहद खुशी होगी और जहन्नमियों को बेइन्तिहा गम।
❐ ➻ *तर्जमा : -* दीन दुनिया और आख़िरत में हम अल्लाह से माफ़ी और आफियत का सवाल करते है।
*📙 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 46/47*
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❐ सवाल ❐ ➻ जन्नत मे कितने दर्जे है!??
❐ जवाब ❐ ➻ *जन्नत का बयान :-* जन्नत की कोई औरत अगर जमीन की तरफ देख ले तो जमीन से आसमान तक रौशन हो जाये , चाँद सूरज की रौशनी मंद पड़ जाये और पूरी दुनिया उसकी खुश्बू से भर जाये, एक रिवायत में यह भी है कि अगर हूर अपनी हथेली ज़मीन और आसमान के बीच निकाले तो सिर्फ हथेली की खुबसूरती को देख कर लोग फितने में पड़ जायेंगे अगर जन्नत की कोई ज़री बराबर भी चीज़ दुनिया में आ जाये तो आसमान ज़मीन सब में सजावट पैदा हो जाये, जन्नती का कंगन चाँद सूरज और तारों को मांद कर दे जन्नत की थोड़ी सी जगह जिस में कूड़ा रख सकें वह पूरी दुनिया से बेहतर है जन्नत की लम्बाई चौड़ाई के बारे में किसी को कुछ पता नहीं अल्लाह और उसके रसूल ज़्यादा अच्छा जानते हैं!
❐ ➻ मुख्तसर यह है कि जन्नत में सौ दर्जे हैं, एक दर्जे से दूसरे दर्जे में इतनी दूरी है कि जैसे जमीन से आसमान तक, तिर्मिज़ी शरीफ की एक हदीस का मतलब यह है कि जन्नत के एक दर्जे में अगर सारा आलम समा जाये तो फिर भी जगह बाकी रहेगी जन्नत में एक इतना बड़ा पेड़ है कि अगर उसके साये में कोई सौ बरस तक तेज़ घोड़े से चलता रहे फिर भी वह साया खत्म न होगा, जन्नत के दरवाज़ों की चौड़ाई इतनी होगी कि उसके एक सिरे से दूसरे सिरे तक तेज़ धोड़े से सत्तर साल का रास्ता होगा, फिर भी जन्नत में जाने वाले इतने ज़्यादा होंगे कि मोंढे से मोंढा छिलता होगा बल्कि भीड़ से दरवाज़ा चरचराने लगेगा, जन्नत में तरह तरह के साफ सुथरे ऐसे महल होंगे कि अन्दर की चीजें बाहर से और बाहर की चीजें अन्दर से दिखाई देंगी।
*📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 40-41*
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❐ सवाल ❐ ➻ जन्नत में हर आदमी की खुराक कितने आदमियों की होगी (यानी कितने आदमियों के बराबर खुराक होगी)!??
❐ जवाब ❐ ➻ *जन्नत का बयान :-* हर आदमी की खुराक सौ आदमियों की होगी और हर एक को सौ बीवियों के रखने की ताकत दी जायेगी, हर वक़्त जुबान से तस्बीह व तकबीर वगैरा बिना इरादे के बिना मेहनत के जैसे साँस चलती है उसी तरह आदमी की जुबान से अल्लाह की तस्बीह और तकबीर जारी रहेगी, हर जन्नती के सिरहाने दस हज़ार खादिम खड़े होंगे, इन खादिमों के एक हाथ में चाँदी का प्याला और दूसरे हाथ में सोने का प्याला होगा और हर प्याले में नई नई नेमतें होंगी, जन्नती जितना खाता जायेगा उन चीज़ों की लज्जत बढ़ती जायेगी हर लुकमे और निवाले में सत्तर मज़े होंगे हर एक मज़ा अलग अलग होगा और जन्नती सब को एक साथ महसूस करेंगे न तो जन्नतियों के कपड़े मैले होंगे और न उनकी जवानी ढलेगी, जन्नत में जो पहला गिरोह जायेगा उनके चेहरे चौदहवीं रात के चाँद की तरह चमकते होंगे, दूसरा गिरोह वह जैसे कोई निहायत रौशन सितारा जन्नतियों के दिल में कोई भेद भाव न होगा आपस में सब एक दिल होंगे जन्नतियों में से हर एक को खास हूरों में से कम से कम दो बीविया ऐसी मिलेंगी कि सत्तर सत्तर जोड़े पहने होंगी फिर भी उन जोड़ों और गोश्त के बाहर से उनकी पिंडलियों का गूदा दिखाई देगा जैसे सफेद गिलास में सुर्ख शराब दिखाई देती है। यह इसलिए कि अल्लाह ने उन हूरों को याकूत की तरह कहा है और याकूत में अगर छेद कर के धागा डाला जाये तो ज़रूर बाहर से दिखाई देगा ।
*📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 42*
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❐ सवाल ❐ ➻ जन्नतियों को कितने दिन के बाद इजाज़त दी जायेगी कि वह अपने परवरदिगार की जियारत करें!??
❐ जवाब ❐ ➻ *जन्नत का बयान :-* अगर कोई यह चाहे कि उसके औलाद हो तो औलाद होगी लेकिन आन की आन में बच्चा तीस साल का हो जायेगा, जन्नत ' में न तो नींद आयेगी और न कोई मरेगा क्यूँकि जन्नत में मौत नहीं, हर जन्नती जब जन्नत में जायेगा तो उसको उसके नेक कामों के मुताबिक मर्तबा मिलेगा और अल्लाह के करम की कोई थाह नहीं फिर जन्नतियों को एक हफ्ते के बाद इजाज़त दी जायेगी कि वह अपने परवरदिगार की जियारत करें, फिर अल्लाह का अर्श ज़ाहिर होगा और अल्लाह तआला जन्नत के बागों में से एक बाग में तजल्ली फरमायेगा, जन्नतियों के लिये नूर के, मोती के याकूत के , जबरजद के , सोने के और चाँदी के मिम्बर होंगे और कम से कम दर्जे के जन्न्ती मुश्क और काफूर के टीले पर बैठेंगे, और उनमें आपस में अदना और आला कोई नहीं होगा।
*📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 43*
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❐ सवाल ❐ ➻ जन्नत में बाज़ जन्नती आपस में एक दूसरे से मिलना चाहेंगे तो इसके कितने तरीके होंगे(यानी कितने तरिको से मिलेगे)!?
❐ जवाब ❐ ➻ *जन्नत का बयान :-* फिर वहाँ से अपने अपने मकानों को वापस आयेंगे उनकी बीवियाँ उनका इस्तिकबाल करेंगी और मुबारक बाद देकर कहेंगी कि आपका जमाल यानी खुबसूरती पहले से भी कहीं ज़्यादा बढ़ गई है, वह जवाब देंगे चुंकि हमें अल्लाह के दरबार में हाज़िरी नसीब हुई इसलिए हमें ऐसा ही होना चाहिए, जन्नती बाज़ आपस में एक दूसरे से मिलना चाहेंगे तो इसके दो तरीके होंगे, एक यह कि एक का तख्त दूसरे के पास चला जायेगा, दूसरी सूरत यह होगी कि जन्नतियों को बहुत अच्छे किस्म की सवारियाँ जैसे घोड़े वगैरा दिये जायेंगे कि उन पर सवार होकर जब चाहें और जहाँ चाहें चले जायेंगे।
❐ ➻ सबसे कम दर्जे का वह जन्नती है कि उसके बाग बीवियाँ , खादिम और तख्त इन्नने ज़्यादा होंगे कि हज़ार बरस के सफर की दूरी तक यह तमाम चीजें फैली हुई होंगी, उन जन्नतियों में अल्लाह के नज़दीक सबसे , इज्जत वाला वह है जो उसका दीदार हर सुबह और शाम करेगा जन्नती जब जन्नत में पहुँच जायेंगे और जन्नत की नेमतें उनके सामने होंगी और जन्नत में चैन आराम को जान जायेंगे तो अल्लाह तबारक व तआ़ला उनसे पूछेगा कि क्या कुछ और चाहते हो ? तो - वह कहेंगे कि या अल्लाह तुने हमारे चेहरे रौशन किये जन्नत में दाखिल किया और जहन्नम नजात दी उस वक्त़ मखलूक पर पड़ा हुआ पर्दा उठ जायेगा और उन्हें अल्लाह का दीदार नसीब होगा। दीदारे इलाही से बढ़ कर कोई चीज़ नहीं : *तर्जमा : -* " या अल्लाह ! हमको अपने महबूब सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैहि वसल्लम जो रऊफ ओ रहीम हैं उनके वसीले से अपना दीदार नसीब फरमा। आमीन🤲🏻
*📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 43-44*
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❐ सवाल ❐ ➻ विलायत क्या है!??
❐ जवाब ❐ ➻ *विलायत का बयान :-* विलायत अल्लाह तबारक व तआला से बन्दे के एक खास कुर्ब का नाम है, जो अल्लाह तआला अपने बर्गुज़ीदा बन्दों को अपने फज्ल और करम से अता करता है इस सिलसिले में मसले बताये जाते हैं।
❐ ➻ *मसअला :-* विलायत ऐसी चीज़ नहीं कि आदमी बहुत ज्यादा मेहनत करके खुद हासिल कर ले बल्कि विलायत मौला की देन है, अलबत्ता आमाले हसना यानी अच्छे अमल अल्लाह तआला की इस देन के ज़रिये होते हैं और कुछ लोगों को विलायत पहले ही मिल जाती है।
❐ ➻ *मसअला :-* विलायत बे-इल्म को नहीं मिलती इल्म दो तरह के होते हैं एक वह जो ज़ाहिरी तौर पर हासिल किया जाये दूसरे वह उलूम जो विलायत के मरतबे पर पहुँचने से पहले ही अल्लाह तआला उस पर उलूम के दरवाजे खोल दे।
❐ ➻ *अकीदा : -* तमाम अगले पिछले वलियों में से हुजूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम की उम्मत के औलिया सारे वलियों से अफजल हैं और सरकार की उम्मत के सारे वलियों में अल्लाह की मारिफत और उससे कुरबत चारों खुलफा की सब से ज़्यादा है। और उनमें अफ़ज़लीयत की वही तरतीब है जिस तरतीब से वे खलीफा हैं यानी सब से ज्यादा कुरबत हज़रते अबू बक्र रदियल्लाहु तआला अन्हु को फ़िर हज़रते फारुके आजम रदियल्लाहु तआला अन्हु को फिर हज़रते उसमान गनी रदियल्लाह तआला अन्हु को और फ़िर मौला अली मुशकिल कुशा रदियल्लाहु तआला अन्हु को है। हज़रते अली की विलायत के कमालात मुसल्लम हैं इसीलिए उनके बाद सारे वलियों ने उन्हीं के घर से नेमत पाई उन्हीं के मुहताज थे, हैं और रहेंगे ।
❐ ➻ *अक़ीदा : -* तरीक़त शरीअत के मनाफ़ी नहीं है बल्कि तरीकत शरीअत का बातिनी हिस्सा है कुछ जाहिल और बने हुए सूफी, जो यह कह दिया करते हैं कि तरीकत और है शरीअत और है यह महज़ गुमराही है और इस बातिल ख्याल की वजह से अपने आप को शरीअत से ज़्यादा समझना खुला हुआ कुफ्र और इलहाद है।
*📚बहारे शरिअत हिस्सा 1, सफा 70*
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❐ सवाल ❐ ➻ हुज़ूर सय्यिदुना सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान फाजिले बरेलवी रदियल्लाहु तआला अन्हु ने अपने वालिद ए बुज़ुर्गवार हज़रत अल्लामा मौलाना नकी अली खान रहिमहुल्लाह से कितने उलूम व फुनून हासिल किए!??
❐ जवाब ❐ ➻ हुज़ूर सय्यिदुना सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान फाजिले बरेलवी रदियल्लाहु तआला अन्हु ने अपने वालिद ए बुज़ुर्गवार हज़रत अल्लामा मौलाना नकी अली खान रहिमहुल्लाह से 21 उलूम व फुनून हासिल किए, 1) इल्मे क़ुरआन, 2) इल्मे तफसीर, 3) इल्मे हदीस, 4) उसूले हदीस, 5) कुतुबे फिक़्हे हनफ़ी, 6) कुतुबे फिक़्हे शाफ़ई, मालिकी, हंबली, 7) उसूले फ़िक़्ह, 8) जदले मुहज़्ज़ब, 9) इल्मुल अकाईद वल कलाम (जो बातिल मज़हब की तरदीद के लिए ईजाद हुआ), 10) इल्मे नह्व, 11) इल्मे सर्फ, 12) इल्मे मआनी, 13) इल्मे बयान, 14) इल्मे बदीअ़, 15) इल्मे फलसफा, 16) इब्तेदाई इल्मे तकसीर, 17) इब्तेदाई इल्मे हैअत, 18) इल्मे हिसाब ता जमा, तफ़रीक़, ज़र्ब, तक़सीम, 19) इब्तेदाई इल्मे हिंदसह, 20) इल्मे मंतिक़, 21) इल्मे मुनाज़रा!
*📚 सवानेह आला हज़रत सफ़ह 90-91*
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❐ सवाल ❐ ➻ हुज़ूर आला हज़रत علیہ الرحمہ का एक बड़ा कारनामा तर्जमा ए क़ुरआन है। कंज़ुल ईमान फ़ी तर्जमा तूल क़ुरआन किस सन् हिजरी मे मुकम्मल हुआ!??
❐ जवाब ❐ ➻ इमाम ए अहले सुन्नत सय्यदी आला हज़रत علیہ الرحمتہ و الرضوان का मुख़्तसर ताअरुफ़ *कंज़ुल ईमान फ़ी तर्जमा तूल क़ुरआन (1330 हीजरी)*
❐ ➻ हुज़ूर आला हज़रत علیہ الرحمہ का एक बड़ा कारनामा तर्जमा ए क़ुरआन है मुतर्जम ए क़ुरआन में कंज़ुल ईमान इम्तियाज़ी शान रखता है आप ने इश्क़ व मोहब्बत की ज़बान में क़ुरआने हकीम का एक फ़क़ीदुल मिसाल तर्जमा किया है जो इल्मी व अदबी और एतेक़ादि हर हैसियत से मेअयारी है और क़ुरआन मजीद की हक़ीक़ी झलक का आईनादार है।
❐ ➻ ये तर्जमा : 1330 हिजरी / 1911 ई० में मुकम्मल हुआ। जिसका नाम “कंज़ुल ईमान फ़ी तर्जमा तूल क़ुरआन”* रखा गया है ये फ़िल बदीह तर्जमा तफ़ासीर मोअतबरह के बिल्कुल मुताबिक़ और उनका तर्जुमान है आज तक इस शान का कोई तर्जमा मनसा ए शहवद पर जलवगर नहीं हुआ, ये तमाम उर्दू तराजीम में आफ़दीयत व अहमियत का एतेबार से एक मुनफ़रीद और मुम्ताज़ हैसियत का हामिल है इस के मुताअला से हुब्बे इलाही और इश्क़े रसूल “ﷺ” के जज़्बात उजागर होते हैं।
❐ ➻ इस अज़ीमुश्शान व माएनाज़ तर्जमा ए क़ुरआन यानी कंज़ुल ईमान की इन्फिरादी ख़ुसूसियत के हवाले से एक एक़तेबास मुलाहिजा फ़रमाएं : ताजदारे अशरफ़ियत सय्यद मुहम्मद अशरफ़ मुहद्दिस ए आज़म علیہ الرحمہ ने शुरू से आख़िर तक बानज़र व फ़ीक़ व बक़ल्ब अमीक़ मुताअला करने के बाद फ़रमाया “इस कि कोई मिसाल अरबी ज़बान में ना है फ़ारसी ज़बान में और ना ही उर्दू ज़बान में, इसका एक एक लफ्ज़ अपने मक़ाम पर ऐसा है कि दूसरा अल्फ़ाज़ उस जगह पर लाया ही नहीं जा सकता। बज़ाहिर तो एक तर्जमा है मगर दर हक़ीक़त क़ुरआन की सही तफ़सीर, बल्कि सच तो ये है कि उर्दू ज़बान में क़ुरआन है।
📙अलमिजान का इमाम अहमद रज़ा, सफ़ा 245
*📚 तज़किरा खानदान ए आला हज़रत, सफ़ा 73 - 74*
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❐ सवाल ❐ ➻ इमाम अहमद रज़ा खां फ़ाज़िले बरैलवी علیہ الرحمہ कितने बार हज व ज़ियारत की सआदत से मुशर्रफ़ हुए!??
❐ जवाब ❐ ➻ इमाम ए अहले सुन्नत सय्यदी आला हज़रत علیہ الرحمتہ و الرضوان का मुख़्तसर ताअरुफ़, तजल्लियाते हरमैन शरीफ़ैन : इमाम अहमद रज़ा खां फ़ाज़िले बरैलवी علیہ الرحمہ दो बार हज व ज़ियारत की सआदत से मुशर्रफ़ हुए, पहली बार की हाज़री 1295 हिजरी मुताबिक़ 1878 इसवी में हज़रात वालिदैन माजिदैन رحمتہ اللہ تعالیٰ علیہما के हमरकाब थें। दुसरी बार 1323 हिजरी मुताबिक़ 1905 / 1906 इसवी में आप हज ए बैतुल्ला और ज़ियारते हरमैन शरीफ़ैन के लिए गए, इस सफ़र में आप के बिरादरे ख़ुर्द हज़रत मौलाना मुहम्मद रज़ा उर्फ़ नन्हें मियां और ख़ुलफ़े अकबर हुज्जत उल इस्लाम अल्लामा हामिद रज़ा खां साहब رحمتہ اللہ علیہ भी शरीके सफ़र थें।
*📚 सवानेह आला हज़रत, सफ़ा 291*
*📚 तज़किरा ख़ानदान ए आला हज़रत, सफ़ा 68-69]*
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❐ सवाल ❐ ➻ सरकार आला हज़रत रदी अल्लाहु अन्हु ने किस कलाम को मदीना शरीफ में पढ़ा जिससे मेरे सरकार ﷺ की ज़ियारत हुई!?
❐ जवाब ❐ ➻ वो सुये लाला ज़ार फिरते हैं
❐ ➻ *तफ्सील :-* सरकार आला हज़रत रदी अल्लाहु अन्हु दूसरी बार हज के लिये हाज़िर हुए तो मदीना शरीफ में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत की आरज़ू लिये रौज़े अतहर के सामने देर तक सलातो सलाम पड़ते रहे मगर पहली रात क़िस्मत में ये सआदत न थी इस मौक़ा पर वो मारूफ नातिया शेर लिखें जिसके मतला में दामने रहमत से वाबस्तगी की उम्मीद दिखाई है वो सुये लाला ज़ार फिरते है तेरे दिन अये बहार फिरते है कोई क्यों पूछे तेरी बात रज़ा तुझ से शैदा हज़ार फिरते है ये ग़ज़ल अर्ज़ करके दीदार के इन्तिज़ार में मोअद्दब बैठे हुए थे के क़िस्मत अंगड़ाई लेकर जाग उठी और चश्माने सर (यानी सर की खूली आँखों से बेदारी में ज़ियारते हुज़ूर ﷺ से मुशर्रफ हुए! الله اکبر سبحان الله
*📙 तज़किराये इमाम अहमद रज़ा सफा न 11-12*
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❐ सवाल ❐ ➻ इमाम अहमद रज़ा ख़ां علیہ الرحمتہ و الرضوان की शादी के वक़्त आप की उम्र क्या थी!?
❐ जवाब ❐ ➻ इमाम ए अहले सुन्नत सय्यदी आला हज़रत علیہ الرحمتہ و الرضوان का मुख़्तसर ताअरुफ़, *शादी ख़ाना आबादी :-* फ़ाज़िले बरैलवी का अक़्दे मसनुन शेख़ फ़ज़्ल हुसैन साहब उस्मानी (रामपुर) की साहबज़ादी "इरशाद बेग़म" बिन्त याक़ुती बेग़म बिन्त ग़ुलाम फ़रीद ख़ां बिन ग़ुलाम दस्तगीर ख़ां बिन मुकर्रम ख़ां बिन सआदत यार ख़ां से 1291 हिजरी में सुन्नत ए नबवी “ﷺ” के पेयराए में हुआ। उस वक़्त इमाम अहमद रज़ा ख़ां علیہ الرحمتہ و الرضوان की उम्र 20 साल थी। शेख़ फ़ज़्ल हुसैन साहब (फुफा) रियासत रामपुर में गोरमेंन्ट की तरफ़ से डाकख़ाना में मुलाजिम थे।
❐ ➻ ये शादी मुसलमानों के लिए शरअ पर अमल का एक बेहतरीन नमूना थी, जिस में शरयी एहकाम और सुन्नत ए नबी ए करीम “ﷺ” को पूरी तरह मद्दे नज़र रखा गया था, अपना घर तो अपना घर आप ने लड़की वालों के यहां भी ख़बर भेजवा दी कि कोई बात शरीअत ए मुतहरा के ख़िलाफ़ ना हो चुनांचा उन हज़रात ने भी ग़लत रस्म व रिवाज से इतना इजतनाब कीया कि लोग उनकी दीनदार और पास शरअ के क़ाइल हो गए, और बड़ी ताअरीफ़ की।
*📚 तज़किरा ख़ानदान ए आला हज़रत, सफ़ा 64 - 65*
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*• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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❐ सवाल ❐ ➻ रिश्तेदार को सदक़ा देने में कितना सवाब हैं.!?
❐ जवाब ❐ ➻ *तर्जम ए कन्ज़ुल ईमान :* और अल्लाह की मुहब्बत में अपना अज़ीज़ माल दे।
*📙 अल बक़रा 2 - 177*
❐ ➻ इस आयत के हिस्से में नेकी का दूसरा तरीक़ा बयान किया गया है की अल्लाह त'आला की मुहब्बत में मुस्तहिक़ अफ़राद को अपना पसंदीदा माल दिया जाए।
❐ ➻ हज़रते सय्यिदना सलमान बिन आमिर رضی اللہ تعالی عنہ से मरवी है की ताजदारे मदीना रहते क़ल्ब व सीना ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया की रिश्तेदार को सदक़ा देने में 2 सवाब हैं एक सदक़ा करने का और एक सिला रेहमी करने का।
❐ ➻ हज़रते सय्यिदना अबू अय्युब अंसारी رضی اللہ تعالی عنہ से रिवायत है की हुज़ूर रहमते आलम ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया की सबसे अफ़ज़ल सदक़ा किनारा कशी इख़्तियार करने वाले मुख़्तलिफ़ रिश्तेदार पर सदक़ा करना है।...✍
*📙 सिरातुल जिनान जिल्द 1 सफ़ह 319*
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*• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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❐ सवाल ❐ ➻ ताअजियत का वक़्त मौत से कितने दिन तक है!??
❐ जवाब ❐ ➻ *ताअजियत का बयान :* किसी के घर मौत हो जाने पर लोग उसके घर उसे तसल्ली और दिलासा देने जाते है उसे ताअजियत कहते है, ताअजियत मसनून है हदीस में है *जो अपने मुसलमान भाई की मुसीबत मे ताअजियत करे क्यामत के दिन अल्लाह तआला उसे करामत(इज्जत ) का जोडा पहनायेगा।* इसको इब्ने माजा ने रिवायत किया दूसरी हदीस तिर्मिज़ी व इब्ने माजा मे है जो किसी मुसीबतजदा की ताअजियत करे उसे उसी की मिस्ल सवाब मिलेगा।
❐ ➻ *मसअला:-* ताअजियत का वक़्त मौत से तीन दिन तक है इसके बाद मकरूह है कि गम ताजा होगा।
❐ ➻ *मसअला:-* दफन से पहले भी ताअजियत जाइज है मगर अफजल यह है कि दफन के बाद हो। यह उस वक़्त है कि औलियाए मय्यत जजाअ व फजाअ (यानी रोना धोना, चिखना चिल्लाना) न करते हो वरना उनकी तसल्ली के लिए दफन से पहले करे।
❐ ➻ *मसअला:-* मुस्तहब यह है कि मय्यत के तमाम अकारिब को ताअजियत करें छोटे-बड़े मर्द व औरत सबको मगर औरत को कि उसके महारिम ही ताअजियत करे। ताअजियत में यह कहे अल्लाह तआला मय्यत की मग्फिरत और उसको अपनी रहमत मे ढाँके और तुमको सब्र रोजी करे और इस मुसीबत पर सवाब अता फरमाए।
*📚बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफा 136*
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❐ सवाल ❐ ➻ माँ को कुछ देकर उसे खुश कर के उसका दूध बख़्शवाते हैं ऐसा करना दुरुस्त है क्या हमारे शरीयत में ऐसा है!?
❐ जवाब ❐ ➻ *दूध बख़्शवाना :*
दूध बख़्शवाना शरअन बे-अस्ल चीज़ है इसकी क़तई कोई हाजत नहीं माँ पर ये बच्चे का हक़ है कि वो बच्चे को दूध पिलाये तो माँ ने अपना हक़ अदा किया है ना कि बच्चे के जि़म्मे क़र्ज़ का बोझ डाला है।
❐ ➻ हाँ! माँ के अहसानात औलाद पर कसीर हैं उनसे औलाद माँ की बहुत कुछ ख़िदमत कर के भी सबक दोश नहीं हो सकती बल्कि वालिदैन के साथ हुस्ने सुलूक और उनकी इताअत ता-उम्र हर शख़्स पर लाज़िम है।
जहाँ तक हो सके हर शख़्स अपने वालिदैन की खुशनूदी हासिल करे इसलिये कि रब की रज़ा वालिदैन की रज़ा में है।
❐ ➻ *हदीस शरीफ़ है :*
رضا الرب فى رضا الوالدين
यानी रब की रज़ा वालिदैन की रज़ा में है।
*(ترغیب و ترہیب، ج3، صفحہ221)*
*(فتاوى مركزتربيت افتا ،ج2، ص396)*
❐ ➻ अल्लामा मुफ्ती मुहम्मद फज़ल करीम रज़वी हामिदी एक सवाल जो कुछ इस तरह है कि माँ से दूध बख्शवाना क्यों, कैसे और किस वक़्त ज़रूरी है? के जवाब में लिखते हैं कि : माँ जब चाहे दूध बख्श सकती है मगर इस से जो माँ के हुक़ूक़ औलाद पर हैं वो खत्म नहीं होंगे।
*हदीस शरीफ है:*
الجنت تحت اقدام امهاتكم
जन्नत तुम्हारी माँ के क़दमो के नीचे है।
*(فتاوی سرعیہ، ج2، ص506)*
❐ ➻ शरीअत में दूध बख्शवाने की कोई अस्ल नहीं है जैसा कि आज कल बाज़ लोगों में रिवाज है, ये ग़ैरों से हमारे दरमियान आया है कि जिसे वो दूध का क़र्ज़ वग़ैरह से ताबीर करते हैं, हमारे दीन में ऐसा कुछ नहीं है।
❐ ➻ माँ और औलाद दोनों के एक दूसरे पर हुक़ूक़ हैं और उन्हें अदा करने पर वो अल्लाह त'आला की बारगाह से इनाम पायेंगे और नवाज़े जायेंगे उन चीज़ो से जिन का वादा किया गया है बाक़ी इसे क़र्ज़ जानना और फिर बख्शवाने का ये तरिक़ा बे अस्ल है।
*वल्लाहु तआला आलम*
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❐ सवाल ❐ ➻ आलिम की एक आबिद पर क्या फजीलत है!?
❐ जवाब ❐ ➻ कसीर बिन कैस का बयान है कि हजरत अबू दरदा सहाबी रदियल्लाहु तआला अन्हु के पास दमिश्क की मस्जिद में बैठा हुआ था तो उनके पास एक आदमी आया और कहा कि ऐ अबू दरदा ! मै आपके पास मदीनतुर्रसूल से एक हदीस सुनने के लिए आया हूँ! जिसके मुताल्लिक मुझे खबर मिली है कि आप इस को रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से रिवायत करते हैं मैं इसके सिवा किसी और जरूरत से नहीं आया हूँ यह सुनकर हजरत अबू दरदा ने फरमाया कि मैंने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह फ़रमाते सुना कि जो शख्स इल्म तलब करने के लिए किसी रास्ते में चलेगा तो अल्लाह तआला उसको जन्नत के रास्तों में से एक रास्ते पर चलायेगा!
❐ ➻ और यकीनन फ़रिश्ते तालिबे इल्म की खुशनूदी के लिए अपने परों को बिछा देते हैं और बेशक आसमान व जमीन की तमाम मखलूकात और पानी के अन्दर की मछलियाँ यह सब उसके लिए दुआऐ मगफिरत करती हैं और यकीन रखो कि आलिम की एक आबिद पर वही फजीलत है जो चौदहवीं रात के चाँद को तमाम सितारों पर फजीलत हासिल है, और बिला शुबा उल्मा अम्बिया के वारिस हैं और हज़रात अम्बिया अलैहिमुस्सलाम ने किसी को दिरहम व दीनार का वारिस नहीं बनाया है बल्कि उनकी मीरास तो इल्म ही है तो जिसने इल्म हासिल किया उसने बहुत बड़ा हिस्सा पा लिया! इस हदीस को तिर्मिज़ी व अबू दाऊद व इब्ने माजा व दारमी ने रिवायत किया है!
*📚 मिशकात जिल्द 1सफह 24*
*📚जवाहिरुल हदीस सफह 11*
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❐ सवाल ❐ ➻ ज़्यादा हंसने के कितने नुकसान है!?
❐ जवाब ❐ ➻ ज्यादा हंसने के दो नुकसान इस हदीस में हुज़ुरे अक़रम ﷺ ने बयान फरमाये हैं एक यह कि ज्यादा हंसने से दिल मुर्दा हो जाता है और दूसरा यह कि चेहरे का नूर बर्बाद व गारत हो जाता है ज़ाहिर है कि हंसी की कसरत उसी वक़्त होगी जब दिल खौफे इलाही और यादे खुदावन्दी से गाफिल हो और यही दिल की मौत है और जब दिल में इबादतों की वजह से नूरानियत पैदा होती है तो चेहरे पर भी नूर का जुहूर होता है यही वजह है कि नेक बन्दों के चेहरों पर एक ख़ास किस्म की रौनक और एक तरह का नूरानी जमाल महसूस होता है और जब दिल मुर्दा और बे नूर हो जायेगा तो यकीनन बिला शुबाह चेहरे की नूरानी रौनक और नूरानियत बरबाद व गारत हो जायेगी। इस लिए इस हदीस में इरशाद फरमाया गया कि तर्जुमा :-" ज्यादा हंसना दिल को मुर्दा कर देता है और चेहरे के नूर को गारत कर देता है।
*📚जवाहिरुल हदीस सफह - 95*
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❐ सवाल ❐ ➻ अल - क़ुरआन : और एक दूसरे की ग़ीबत न करो क्या तुम में कोई पसन्द रखेगा कि अपने मरे भाई का गोश्त खाए तो येह तुम्हें गवारा न होगा!
*सुरह हुजरत में 👆🏻यह आयत किस नम्बर पर है.?*
❐ जवाब ❐ ➻ हासिद अपनी मन्फ़ी सोच की वजह से महसूद के हर काम और कलाम में बुरे पहलु तलाश करता है और बद-गुमानी में मुबतला हो कर वादिये हलाकत में जा पडता है क्यूंकि इस एक गुनाह की वजह से दीगर कई गुनाह सर ज़द हो जाते हैं मसलन
❶ ❐ ➻ अगर सामने वाले पर इस का इज़हार किया तो उसकी दिल आज़ारी का क़वी अन्देशा है और बग़ैर इजाज़ते शरई मुसलमान की दिल आज़ारी हराम है हुज़ूर नबी ए करीम ﷺ ने फ़रमाया जिस ने किसी मुसलमान को अज़िय्यत दी उस ने मुझे अज़िय्यत दी और जिस ने मुझे अज़िय्यत दी पस उस ने अल्लाह तआला को अज़िय्यत दी!
❷ ❐ ➻ अगर उस की ग़ैर मौजूदगी में किसी दूसरे पर इज़हार किया तो ग़ीबत हो जाएगी और मुसलमान की ग़ीबत हराम है क़ुरआने पाक में इर्शाद होता है *तर्जम ए कन्ज़ुल ईमान* : और एक दूसरे की ग़ीबत न करो क्या तुम में कोई पसन्द रखेगा कि अपने मरे भाई का गोश्त खाए तो येह तुम्हें गवारा न होगा !
*📙 परा 26 सुरह हुजरात आयत नम्बर 12*
❐ ➻ हुज्जतुल इस्लाम इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली रहमतुल्लाहि तआला अलैह इर्शाद फ़रमाते हैं मुसलमानों से बद-गुमानी रखना शैतान के मक्रो फ़रेब की वजह से होता है बेशक बाज़ गुमान गुनाह होते हैं और जब कोई शख़्स किसी के बारे में बद-गुमानी को दिल पर जमा लेता है तो शैतान उस को उभारता है कि वोह ज़बान से इस का इज़हार करे इस तरह वोह शख़्स ग़ीबत का मुर्तकीब हो कर हलाकत का सामान कर लेता है या फिर वोह इस के हुक़ूक़ पूरे करने में कोताही करता है या फिर उसे हक़ीर और ख़ुद को उस से बेहतर समझता है और येह तमाम चीज़ें हलाक करने वाली हैं !
❐ ➻ बद-गुमानी के नतीजे में तजस्सुम पैदा होता है क्यूंकि दिल महज़ गुमान पर सब्र नहीं करता बल्कि तहक़ीक़ तलब करता है जिस की वजह से इन्सान तजस्सुम में जा पड़ता है और येह भी मम्नूअ है ! अल्लाह तआला ने इर्शाद फ़रमाया *तर्जम ए कन्ज़ुल ईमान* : और ऐब न ढूंढो !
*📙 परा 26 सुरह हुजरत आयत नम्बर 12*
❐ ➻ सदरुल अफ़ाज़िल हज़रत मौलाना सय्यिद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि (अल मुतवफ़्फ़ॎा 1367 हि.) इस आयत के तहत तफ़सीरे ख़ज़ाइनुल इरफान सफ़हा 950 पर लिखते हैं यानी मुसलमानों की ऐब जूई न करो और इन के छुपे हाल की जुस्तजू में न रहो जिसे अल्लाह तआला ने अपनी सत्तारी से छुपाया !...
*किसी की ख़ामियां देखें न मेरी आंखे और*
*सुनें न कान भी ऐबों का तज़किरा या रब*
*📙 हसद सफ़ह 36 - 38*
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❐ सवाल ❐ ➻ सेहरा पहनना कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ मुबाह है यानी पहने तो न कोई सवाब और अगर न पहने तो न कोई गुनाह, यह जो लोगो मे मशहूर है कि सेहरा पहनना हुजूर ﷺ की सुन्नत है गलत है और सरासर झूठ!
❐ ➻ *कौल:-* मुजद्दिदे आजम सैयदना आला हजरत इमाम अहमद रजा खाँ रदिअल्लाहु तआला अन्हु इरशाद फरमाते है....."सेहरा न शरीअत मे मना है न शरीअत मे जरूरी या मुस्तहब(अच्छा काम) बल्कि एक दुनियावी रस्म है, की तो क्या! न की तो क्या। इसके सिवा जो कोई इसे हराम गुनाह व बिदअत व जलालत बताए वह सख्त झूठा सरासर मक्कार है और जो उसे जरूरी लाज़िम समझे और तर्क की सेहरा न पहनने को बुरा जाने और सेहरा न पहनने वालो का मजाक उडाए वह निरा जाहिल है।
❐ ➻ दुल्हे का सेहरा खालिस असली फूलो का होना चाहिए गुलाब के फूल हो तो बहुत बेहतर है कि गुलाब के फूल सरकार ﷺ को बहुत पसंद थे, सेहरे मे चमक वाली पन्नियाँ न हो कि ये जीनत है और मर्द को जीनत(यानी ऐसा लिबास जो चमकदार हो उसका) इस्तेमाल हराम है। दुल्हन के सहरे मे अगर यह चमक वाली पन्नियाँ हो तो कोई हर्ज नही।
❐ ➻ इसी तरह आज कल सेहरा मे रूपये(नोट) वगैरा लगाते है यह फिजूल खर्ची और गुरूर व तक्कबुर की निशानी है। शरीअत मे जाइज नही, लिहाजा अगर सेहरा पहेनना ही हो तो खुशबूदार फूलो का ही हो। वर्ना एक गुलाब के फूलो का हार भी काफी है। (वल्लाहो आलम)
*📚 करीन-ए-जिन्दगी सफह 60-61*
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❐ सवाल ❐ ➻ जिसने कुरआन पढा और उस को याद कर लिया उसके हलाल को हलाल समझा, और हराम को हराम जाना, उसके घर वालों में से कितने शख्सों के बारे मे अल्लाह तआला उसकी शफ़ाअत कबूल फरमायेगा जिन पर जहन्नम वाजिब हो चुका था!??
❐ जवाब ❐ ➻ इमाम अहमद व तिर्मिज़ी व इब्ने माजा व दरामी ने हजरत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि रसूलल्लाह ﷺ ने फरमाया जिसने कुरआन पढा और उस को याद कर लिया उसके हलाल को हलाल समझा, और हराम को हराम जाना उसके घर वालो मे से दस शख्सों के बारे मे अल्लाह तआला उसकी की शफ़ाअत कबूल फरमायेगा जिन पर जहन्नम वाजिब हो चुका था।
❐ ➻ तिर्मिज़ी व दारमी ने अब्दुल्लाह बिन मसउद रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि रसूलल्लाह ﷺ ने फरमाया जो शख्स किताब अल्लाह का एक हर्फ पढेगा उस को एक नेकी मिलेगी जो दस के बराबर होगी मैं ये नही कहता الم एक हर्फ है बल्कि अलिफ एक हर्फ लाम दुसरा हर्फ है मीम तिसरा हर्फ।
❐ ➻ सहीह बुखारी व मुस्लिम मे जन्दुब बिन अब्दुल्लाह रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि रसूलल्लाह ﷺ ने फरमाया कुरआन को उस वक़्त तक पढो जब तक तुम्हारे दिल को उल्फत और लगाव हो और जब दिल उचाट हो जाए खडे हो जाओ यानी तिलावत बन्द करदो।
*📚 इस्लामी अख्लाक-व-आदाब सफह 134-135*
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❐ सवाल ❐ ➻ सवाल मौत पर ये कहा या अल्लाह इसके भरी जवानी पर ही रहम किया होता! अगर लेना ही था तो फुलां बूढे या बुढ़िया को ले लेता ऐसा कहना क्या है!?
❐ जवाब ❐ ➻ *फ़ौतगी (मय्यत) के मौक़े पर बके जाने वाले कुफ़्रियात की कुछ आम मिसालें :👇🏻👇🏻*
❐ ➻ 1- किसी की मौत हो गई इस पर दूसरे शख़्स ने कहा "अल्लाह तआला को ऐसा नहीं करना चाहिए था"।
❐ ➻ 2- किसी का बेटा फौत हो गया, उसने कहा अल्लाह तआला को ये चाहिए होगा! "ये कौल कुफ़्र है क्योंकि कहने वाले ने अल्लाह तआला को मोहताज़ क़रार दिया"।
*📚 फ़तावा बजाजिया, जिल्द 6, सफ़ा 349*
❐ ➻ 3- किसी की मौत पर आमतौर पर लोग बक देते हैं, "अल्लाह तआला को न जाने इसकी क्या ज़रूरत पड़ गई जो जल्दी बुला लिया" कहते हैं, अल्लाह तआला को भी नेक लोगों की ज़रूरत पड़ती है इसलिए जल्द उठा लेता है। (ये सुन कर माना समझने के बावजुद अमूमन लोग हाँ में हाँ मिलाते हैं या ताईद में सर हिलाते हैं उन सब पर हुक्मे कुफ़्र है!)
❐ ➻ 4- किसी की मौत पर कहा या अल्लाहﷻ इसके छोटे छोटे बच्चों पर भी तुझे तरस न आया!
❐ ➻ 5- जवान मौत पर कहा या अल्लाहﷻ इसके भरी जवानी पर ही रहम किया होता! अगर लेना ही था तो फुलां बूढ़े या बुढ़िया को ले लेता।
❐ ➻ 6- या अल्लाहﷻ आख़िर इसकी क्या ज़रूरत पड़ गई कि अभी से वापस बुला लिया।
*📙 28 कलिमाते कुफ़्र, जिल्द 6-7*
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❐ सवाल ❐ ➻ जिस शख्स ने अपनी बीवी की बद-खुलकी पर सब्र किया अल्लाह तआला उसे किन के सब्र के बराबर अज़र अता करेगा???
❐ जवाब ❐ ➻ *बीवी और खाविंद की एक दूसरे पर बद-खुलक़ी पर सब्र करने का अज़्र :* हुजूर ﷺ ने इन तीनों बातों की उस वक़्त वसियत फरमाई जबकि आपकी ज़बाने अकदस विसाल शरीफ़ के वक़्त लड़खड़ा रही थी और कलामे अनवर में हल्कापन पैदा हो चला था !
❐ ➻ आपने फरमाया नमाज़, नमाज़ और वह तुम्हारे हाथ जिनके मालिक हुए उन्हें वह तकलीफ़ न दो जिसके बरदाश्त करने की वह ताकत नहीं रखते ! औरतों के मुताल्लिक अल्लाह तआला से डरो, वह तुम्हारे हाथों में कैद हैं, यानी वह ऐसी कैदी हैं जिन्हें तुमने अल्लाह तआला की अमानत के तौर पर लिया है और अल्लाह के कलाम से उनकी शर्मगाहें तुम पर हलाल कर दी गई हैं !
❐ ➻ हदीस::- हुजूर का इरशाद है कि जिस शख्स ने अपनी बीवी की बद-खुल्की पर सब्र किया अल्लाह तआला उसे मसाइब पर हज़रते अय्यूब अलैहिस्सलाम के सब्र के अज़्र के बराबर अज़्र देगा और जिस औरत ने ख़ाविन्द की बद-खुल्की पर सब्र किया अल्लाह तआला उसे फ़िरऔन की बीवी आसिया के सवाब के मिस्ल सवाब अता फरमाएगा !
❐ ➻ बीवी से हुस्ने सुलूक यह नहीं कि उसकी तकालीफ़ को दूर किया जाए बल्कि हर ऐसी चीज़ को उससे दूर करना भी शामिल है जिससे तकलीफ पहुंचने का ख़दशा हो और उसके गुस्सा और नाराज़गी के वक़्त हिल्म का मुज़ाहिरा करना और इस मुआमले में हुजूर अलैहिस्सलाम के उसवए हसना को मद्दे नज़र रखना ! हुजूर अलैहिस्सलाम की बाज़ अज़वाजे मुतहरात आपकी बात को(ब-तकाज़ाए कुदरत) (सूरतन) न भी मानतीं और उनमें से कोई एक, रात तक गुफ्तगू न किया करती थी मगर आप उनसे हुस्ने सुलूक ही से पेश आया करते थे!
*📚 मुकाशिफ़्तुल कुलूब, सफ़ा 488*
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❐ सवाल ❐ ➻ नमाज़ी के सामने से गुज़रना और हटना कैसा ?
❐ जवाब ❐ ➻ नमाज़ी के आगे से गुजरना बहुत सख्त गुनाह है नमाज़ी के आगे से गुजरने वाला गुनहगार होता है, लेकिन नमाज़ी की नमाज़ में कोई ख़लल नुकसान नही आता, नमाज़ी के आगे से गुजरने की सख्त मुमानेअ़त है हदीसो में इस पर सख्त वईदे वारिद है मस्लन
❐ ➻ हदीस इमाम अहमद हज़रत अबी जहीम रदि अल्लाहु तआ़ला अ़न्हु से रिवायात करते है कि हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैहि वसल्लम इरशाद फरमाते है अगर नमाज़ी के आगे से गुजरने वाला जानता कि उस पर कितना गुनाह है तो चालीस बरस खड़ा रहेना उस गूजर जाने से उसके हक़ में बेहतर था!
❐ ➻ हदीस इब्ने माजा की रिवायत में हज़रत अबू हुरैरह रदि अल्लाहु तआ़ला अ़न्हु से है कि हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैहि वसल्लम इरशाद फरमाते है : कि अगर कोई जानता कि अपने भाई के सामने नमाज़ में आड़े होकर आगे से गुजरने में कितना गुनाह है तो सो *100* बरस खड़ा रहना उस एक क़दम चलने से बेहतर समझता!
❐ ➻ हदीस अबू बकर इब्ने अबी शयबा अपनी मुसन्नफ में हज़रत अब्दुल हमीद बिन अब्दुर्रहमान रदि अल्लाहु तआ़ला अ़न्हु से रावी कि हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैहि वसल्लम इरशाद फरमाते है : कि अगर नमाज़ी के आगे से गुजरने वाला जानता कि इस तरह गुजरना कितना बड़ा गुनाह है तो चाहता कि उस की रान टूट जाए मगर नमाज़ी के सामने से न गुजरे!
❐ ➻ आम तौर से मसाजिद में देखा गया है कि दो शख़्स आगे पीछे नमाज़ पढ़ते हैं यानि एक पीछली सफ़ में और दूसरा उसके सामने अगली सफ़ में, अगली सफ़ में नमाज़ पढ़ने वाला पीछे वाले से पहले फारिग हो जाता है और फिर उसकी नमाज़ ख़त्म होने का इन्तिज़ार करता रहता है कि वह सलाम फेरे तब यह वहाँ से हटे और उस से पहले हटने को नमाज़ी के सामने से गुज़रना ख़्याल किया जाता है, हालांकि ऐसा नहीं है,आगे नमाज़ पढ़ने वाला अपनी नमाज़ पढ़ कर हट जाए तो उस पर गुज़रने का गुनाह नहीं है!
❐ ➻ खुलासा यह है कि नमाज़ी के सामने से गुज़रना मना है हटना मना नहीं है, सदरुश्शरिया ह़ज़रत मौलाना अमजद अली आज़मी अलैहिर्रह़मा तह़रीर फरमाते हैं कि, अगर दो शख़्स नमाज़ी के आगे से गुज़रना चाहते हों और सुतरह को कोई चीज़ नहीं तो उन में से एक नमाज़ी के सामने उसकी तरफ पीठ कर के खड़ा हो जाए, और दूसरा उसकी आड़ पकड़ के गुज़र जाए,फिर वह दूसरा उसकी पीठ के पीछे नमाज़ी की तरफ पुश्त कर के खड़ा हो जाए और ये गुज़र जाए वह दूसरा जिधर से आया उसी तरफ़ हट जाए!
❐ ➻ इस से ज़ाहिर है कि गुज़रने और हटने में फरक़ है और गुज़रने का मतलब ये है कि नमाज़ी के सामने एक तरफ से आये और दूसरी तरफ निकल जाए,ये यक़ीनन नाजाइज़ व गुनाह है, और अगर नमाज़ी के सामने बैठा है और किसी तरफ़ हट जाए तो ये गुज़रना नहीं है और इस में कोई गुनाह नहीं है!
❐ ➻ हिदायत : हटने और गुजरने में फ़र्क होता है, बहुत कम ही लोग इस तरह के मसअले को ज़ेहन नशी रखते है!
📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 157+ 617
📚फतावा हिन्दिया जिल्द-1 सफह 104
📚रद्दुल मुह़तार जिल्द 2 सफह 483
📚 तीनो हदीसे ब: हवाला : फतावा रजविया जिल्द 3 सफहा 316 / 317
📚गलत फहमियां और उनकी इस्लाह़ सफह 35
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❐ सवाल ❐ ➻ कौन सा अमल खुदा के गज़ब को बुझा देता है और बुरी मौत को रफ्अ कर देता है!??
❐ जवाब ❐ ➻ सदका इस तरह गुनाहों को बुझा देता है जिस तरह पानी आग को बुझा देता है।
❐ ➻ हर मुसलमान को सदका करना चाहिये तो लोगों ने कहा या रसूलल्लाह ﷺ जो शख्स सदका करने के लिये कोई चीज़ न पाए तो क्या करे ? तो इरशाद फरमाया कि उस को चाहिये कि वोह अपने हाथ से कोई काम कर के कुछ कमाए फिर खुद भी उस से नफ्अ उठाए और सदका भी दे तो लोगों ने अर्ज़ किया कि अगर वोह कमाने की ताकत न रखता हो ? तो आप ﷺ ने फ़रमाया कि वोह किसी हाजत मन्द की किसी तरह मदद कर दे इस पर लोगों ने कहा कि अगर वोह येह भी न करे ? तो आपﷺ ने फ़रमाया कि उस को चाहिये कि वोह लोगों को अच्छी बातों का हुक्म देता रहे येह सुन कर लोगों ने कहा कि अगर वोह येह भी न करे तो आप ﷺ ने इरशाद फरमाया कि वोह खुद बुराई करने से रुक जाए येह उस के लिये सदक़ा है।
*صحيح البخاری، کتاب الادب، باب مثال معروف صدقة برقم ۰۲۲:- ج 4 ، ۱۰۵)*
❐ ➻ हदीस :- हज़रते अनस रदियल्लाहो अन्हो रावी हैं कि रसूलुल्लाहﷺ ने फ़रमाया कि सदक़ा खुदा के गज़ब को बुझा देता है और बुरी मौत को रफ्अ कर देता है।
*مشكاة المصابیح، کاس امر کافه باب فضل لعنقاء الفصلي مدني رقم، ۱۹، ج ۱، ص ۲۷)*
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❐ सवाल ❐ ➻ लोहे की अंगूठी पर चांदी का खोल चढ़ा दिया के लोहा बिल्कुल दिखाई ना दे तो इस तरह उसका इस्तेमाल करना कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ जाइज़ है मसलन लोहे की अंगूठी पर चांदी का खोल चढ़ा दिया के लोहा बिल्कुल दिखाई ना दे तो इस तरह उसका इस्तेमाल जाइज़ है!
📚 आलमगीरी जिल्द 5, सफ़ह 335
❐ ➻ और हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं, लोहे की अंगूठी पर चांदी का खोल चढ़ा दिया के लोहा बिल्कुल ना दिखाई देता हो, उस अंगूठी के पहनने की मुमानअत नहीं, इससे मालूम हुआ के सोने के जेवरों में जो बहुत लोग अंदर तांबे या लोहे की सलाख रखते हैं और ऊपर से सोने का पत्तर चढ़ा देते हैं उसका पहनना जाइज़ है!
*📚 बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफ़ह 427*
*📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल, सफ़ह 25--26*
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❐ सवाल ❐ ➻ औरत का मिलाद शरीफ में नात व मनक़बत (सलातो वस्सलाम) और तक़रीर वगैरा इस क़दर बुलंद आवाज़ से पढ़ना कि उसकी आवाज़ गैर महरम तक जाए तो यह पढ़ना कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ औरत का मिलाद शरीफ में नात व मनक़बत (सलातो वस्सलाम) और तक़रीर वगैरा इस क़दर बुलंद आवाज़ से पढ़ना कि उसकी आवाज़ गैर महरम तक पहुंचे हराम हराम हराम है। लिहाज़ा औरतों पर लाज़िम है कि नात शरीफ, तक़रीर, सलाम वगैरा इतना आहिस्ता पढ़े की घर के बाहर आवाज़ न जाए, वरना ऐसा मीलाद अल्लाह व रसूल की ख़ुशनूदी के बजाए उन की नाराज़गी और आख़िरत की बर्बादी का सबब बनेगा!
*📚 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफा 100 -101*
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❐ सवाल ❐ ➻ गुलाब (फूल) क्या किसी नबी अलैहिस्सलाम के ज़रिए से बना है ?
❐ जवाब ❐ ➻ बाज़ मौज़ू मन्घड़त हदीस क़दीम ज़माने से चली आ रही है और हज़रत मुहद्दिसीन व ऊलमाए दीन बराबर एलान करते रहे हैं, किताबों में लिखते रहे हैं की ये रिवायत झूट है और मौज़ू है और गढ़ी हुई है, इसको बयान करना नबी ए करीम {ﷺ} पर झूठ बांधना है, उनका सुनना सुनाना नाजाइज़ है। लेकिन अफसोस एक तबक़ा ऐसी झूटी रिवायत बयान करने का दिल फेक आशिक़ है, इन्हें झूटी मन्घड़त रिवायत में से एक रिवायत ये भी है के गुलाब को नबी ए करीम {ﷺ} के पसीने से पैदा किया गया है।
❐ ➻ और एक रिवायत ये भी बयान की जाती है जो कि फक़ीर हनफी (मुसन्निफ़) ने भी सुनी है हुज़ूर {ﷺ} ने फरमाया की शबे मेराज की रात मेरा कुछ पसीना ज़मीन पर गिरा तो उससे गुलाब निकला है, जो मेरी खुशबू सूंघना चाहे वो गुलाब को सूंघ ले, एक रिवायत ये भी है कि सफेद गुलाब मेरे पसीने से और लाल गुलाब जिबरील अलैहिस्सलाम के पसीने से और पीला गुलाब को बुराक़ के पसीने से बनाया गया, इन रिवायत की सनदों में ऐसी रावी हैं जो कज़्ज़ाब मुहत्तम मतरूक हैं इसलिए ये रिवायत मौज़ू और मन्घड़त क़रार दी गई है।
❐ ➻ इमाम इब्ने जूज़ी ने अलमौज़ूआत में, इमाम इब्ने हज्र ने, अल्लामा अली क़ारी रहमतुल्लाह अलैह ने और इमाम नूरी ने कहा कि ये मौज़ू और मन्घडत रिवायत है!
*📚 मौज़ूआते कबीर हदीस नम्बर 298*
*📚 मक़ासिद अल हसन हदीस नम्बर 260*
*📚 कशफ अलखुफ़ा हदीस नम्बर 798*
*📚 मशहूर मौज़ू रिवायत का तहकीकी जायज़ा सफा 72 - 73*
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❐ सवाल ❐ ➻ मामूली जन्नती के लिए कितने हज़ार ख़ादिम और कितने हज़ार बीवियाँ होंगी.!!?
❐ जवाब ❐ ➻ *जन्नत का बयान :-* आदमी अपने चेहरे को उनके रुख्सार में आईने से भी ज़्यादा साफ देखेगा उसके रूख़्सार पर एक मामूली मोती होगा लेकिन उस मोती में इतनी चमक होगी कि उससे पूरब से पश्चिम तक रौशन हो जायेगा जन्नत का कपड़ा दुनिया में पहना जाये तो उसे देखने वाला बेहोश हो जाये, मर्द जब जन्नत की औरतों के पास जाएगा तो उन्हें हर बार कुँवारी पाएगा मगर इसकी वजह से मर्द व औरत किसी को कोई तकलीफ न होगी, हूरों की थूक में इतनी मिठास होगी कि अगर कोई हूर समुन्दर में या सात समुन्दरों में थूक दे तो सारे समुन्दर शहद से ज़्यादा मीठे हो जायेंगे।
❐ ➻ जब कोई आदमी जन्नत में जायेगा तो उस के सरहाने पैताने दो हूरें बहुत अच्छी आवाज़ से गाना गायेंगी मगर उनका गाना ढोल बाजों के साथ नहीं होगा बल्कि वह अपने गानों में अल्लाह की तारीफ करेंगी। उन की आवाज़ में इतनी मिठास होगी कि किसी ने वैसी आवाज़ न सुनी होगी और वह यह भी गायेंगी कि हम हमेशा रहने वालिया हैं कभी न मरेंगे हम चैन वालियाँ हैं कभी तकलीफ में न पड़ेंगे और हम राज़ी हैं नाराज़ न होंगे और यह भी कहेंगी कि उस के लिए मुबारक बाद जो हमारा और हम उस के हों जन्नतियों के सर पलकों और भवों के अलावा कहीं बाल न होंगे, सब बे बाल के होंगे उनकी आँखें सुर्मगी होंगी तीस बरस से ज़्यादा कोई मालूम न होगा मामूली जन्नती के लिए अस्सी हज़ार ख़ादिम और बहत्तर हज़ार बीवियाँ होंगी, और उनको ऐसे ताज दिये जायेंगे कि उसमें के कम दर्जे के मोती से भी पूरब से पश्चिम तक चमक हो जायेगी!
*📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 42*
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❐ सवाल ❐ ➻ तहारत की कितने किस्म है और कौन कौन!??
❐ जवाब ❐ ➻ *तहारत यानी पाकी का बयान :-* नमाज़ के लिये पाकी ऐसी जरूरी चीज़ है कि बिना पाकी के नमाज़ होती ही नहीं बल्कि जान बूझ कर बगैर तहारत नमाज अदा करने को हमारे उलमा कुफ्र लिखते हैं, और क्यों न हो कि उस बेवुजू या बेगुस्ल नमाज़ पढ़ने वाले ने इबादत की बे अदबी और तौहीन की नबी ﷺ ने फ़रमाया है कि जन्नत की कुंजी नमाज़ है और नमाज़ की कुंजी तहारत है। इस हदीस को इमाम अहमद ने जाबिर रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत किया कि एक रोज नबी ﷺ सुबह की नमाज़ में सूरए रूम पढ़ रहे थे, बीच में शुबह हुआ नमाज़ के बाद इरशाद फरमाया कि उन लोगों का क्या हाल है जो हमारे साथ नमाज़ पढ़ते हैं और अच्छी तरह तहारत नहीं करते उन्हीं की वजह से इमाम को किरअत में शुबह पड़ता है इस हदीस को नसई ने शबीब इब्ने अबी रूह से उन्होंने एक सहाबी से रिवायत किया कि बगैर कामिल तहारत के नमाज़ पढ़ने की यह नहूसत है तो बे तहारत नमाज़ पढ़ने की नहूसत की क्या पूछना तिर्मिज़ी में है कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि तहारत निस्फ (आधा) ईमान है यह हदीस हसन है।
❐ ➻ तहारत की दो किस्में है : - 1. सुगरा 2 . कुबरा, तहारते सुगरा वुजू है और तहारते कुबरा गुस्ल। जिन चीजों में सिर्फ वुजू लाज़िम होता है उन को हदसे असगर और जिन चीजों से नहाना फर्ज उन को हदसे अकबर कहा जाता है।
*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 7/8*
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❐ सवाल ❐ ➻ क्या फरमाते हैं उलमाए दीन व मुफ़्तीयाने शरह इस मसअले में कि लोग जो धागा या पत्थर चाहे कही का हो, बगदाद शरीफ, अजमेर शरीफ या बरेली शरीफ, तो उस धागे या पत्थर को गले मे लटकाना या हाथ मे बांधना कैसा है!?
❐ जवाब ❐ ➻ ये फैल *जाइज़ नही* क्योंकि इसमें गैर मुस्लिमों से मुशाबहत है, और इस तरह करने वाले लोगों को देख कर उमूमन उनके गैर मुस्लिम होने का शुबा होने लगता है। और हदीस शरीफ में है कि "जो किसी क़ौम से मुशाबहत इख़्तेयार करे वो उन्ही में से है"! मज़ीद ये के ये धागे वगैरा बिज़्ज़ात खुद कोई फायदा नही रखते और न ही शरीअ़त में इनकी कोई क़ाबिले क़द्र हैसियत है।
❐ ➻ बल्कि ये सिर्फ अपना गंदा धंधा चलाने का ढोंग है जो बुज़ुरगाने दीन का सहारा ले कर भोले भाले लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए इन चीज़ों को खुद साख्ता करामातें और फ़ज़ीलतें बयान करते हैं, लिहाज़ा हर मुसलमान पर लाज़िम है कि इस तरह के धागे वगैरा का इस्तेमाल हरगिज़ न करे और उनसे दूर रह कर अपने आप को उस बुरी निस्बत व मुशाबहत से बचाए।
*सबक ⚠️* आजकल ये बहुत ज़्यादा देखा जाता है, जो कोई भी वहां जाता है, इसको तबर्रुक (बरकत वाला) समझ कर ले आते हैं और अपने कलाई पर और पूरे खानदान के कलाई पर बंधवा देते हैं जबके इसके जाइज़ होने की कोई दलील नही, और उल्टा ये गैरों से मुशाबहत रखती है, इसलिए अगर किसी चीज़ के बारे में नही मालूम है, तो बस देखा देखी न किया करें, बल्कि अपने क़रीबी आलिम से उसके मुताल्लिक पूछ लिया करे, कि इस काम को करने से कहीं हम गुनहगार तो नही हो रहे। और फिर अमल में लाएं कुरआन ए मजीद में अल्लाह {ﷻ} ने इरशाद फरमा " तो ऐ लोगों इल्म वालो से पूछो अगर तुम्हे इल्म नही"
{पारा 14 सूरह 16 अन नहल आयत 43}
*📚 फतावा रज़ा दारुल यतामा सफा 456 / फतावा मरकजे़ तरतीब इफ़्ता सफा 436*
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❐ सवाल ❐ ➻ जो अपने बिस्तर पर लेटते वक़्त क्या पढ़ लेगा तो अल्लाह तआला उसके घर और उसके पड़ोसी के घर और उसके गिर्द के चन्द घरों को अमनों अमान अता फरमायेगा!??
❐ जवाब ❐ ➻ हजरते अली रादिअल्लाहु तआला अन्हु कहते है की मैनें मिम्बर पर रसूल अल्लाह ﷺ को यह फरमाते हुए सुना है कि जो शख्स हर नमाज़ के बाद आयतलकुर्सी पढ़ेगा वह मरते ही जन्नत में दाखिल हो जायेगा और जो अपने बिस्तर पर लेटते वक़्त आयतलकुर्सी पढ़ लेगा तो अल्लाह तआला उसके घर और उसके पड़ोसी के घर और उसके गिर्द के चन्द घरों को अमनों अमान अता फरमायेगा।
*📚 मिश्कात, जिल्द-01, सफह 89*
*📚 जवाहिरूल हदीस, सफह 51*
*📚 इस्लामी अख्लाक-व-आदाब सफह 137]*
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*• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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❐ सवाल ❐ ➻ एक शख्स ने दूसरे के पास कोई रकम ,रुपया, पैसा बतौरे अमानत रख दिया और वह उसकी इज़ाज़त के वगैर उसमें से यह सोचकर ख़र्च कर देता है या तिजारत में लगा देता है कि देने वाले को मैं अपने पास से दे दूँगा या अभी निकाल लूँ फिर बाद में पूरे कर दूँगा ऐसा करना कैसा है!?
❐ जवाब ❐ ➻ आजकल अमानत में तसर्रूफ़ आम हो गया है। उमूमन ऐसा होता है कि *एक शख्स ने दूसरे के पास कोई रकम ,रुपया, पैसा बतौरे अमानत रख दिया और वह उसकी इज़ाज़त के वगैर उसमें से यह सोचकर ख़र्च कर देता है या तिजारत में लगा देता है कि देने वाले को मैं अपने पास से दे दूँगा या अभी निकाल लूँ फिर बाद में पूरे कर दूँगा, यह सब गुनाह है* और ऐसा करने वाले सब गुनाहगार हैं ख्वाह वह बाद में वह रकम उसे पूरी वापस कर दें क्योंकि अमानत में तसर्रुफ़ की इजाज़त नही।
❐ ➻ मस्जिदों के मुतवल्लियों और मदरसों के मुहतमिमों में देखा गया है कि वह चंदे के पैसों को इधर से उधर करते रहते हैं, कभी खुद अपनी ज़रूरतों में खर्च कर डालते हैं और ख्याल करते हैं हैं कि बाद में पूरा कर देंगे, यह सब खुदा के यहां पकड़े जायेंगे।
❐ ➻ कुछ मुत्तक़ी , परहेज़गार व दीनदार बनने वाले तक इन बातों का ख्याल नहीं रखते और हराम को हलाल की तरह खाते हैं और अमानत में तसर्रूफ़ ही आदमी को एक दिन नियत ख़राब और खयानत करने वाला बना देता है यह सोचकर खर्च कर लेता है कि बाद में अपने पास से पूरा कर दूंगा और फिर नियत खराब हो जाती है और फिर बड़े-बड़े परहेज़गार हरामखोर हो जाते हैं और खुदा के अज़ाब की फिक्र किये बगैर पराए माल को अपने की तरह खाने लगते हैं।
❐ ➻ *आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत फरमाते है :* ज़रे अमानत में तसर्रुफ़ हराम है, यह उन मवाज़ेअ में है जिनमे दराहिम व दनानीर मुतअय्यिन होते हैं उसको जाइज़ नहीं कि उस रुपये के बदले दूसरे रुपये रख दे अगरचे बेऐनेही वैसा ही हो अगर करेगा, अमीन न रहेगा।
❐ ➻ फिर आगे खास मदरसों के मुहतमिम हज़रात के बारे में फरमाते है मोहतमिमाने अंजुमन ने अगर सराहतन भी इजाज़त दे दी हो कि तुम जब चाहना ख़र्च कर लेना फिर उसका इवज़ दे देना, जब भी न उसको तसर्रुफ़ जाइज़ न मुहतमिमों को इजाज़त देने की इजाज़त कि मुहतमिम मालिक नहीं और क़र्ज़ तबर्रुअ है और gaire मालिक को तबर्रुअ का इख्तियार नहीं। हाँ चंदा देने वाले इजाज़त दे जायें तो हर्ज नहीं!
*📙 फतावा रज़विया, जिल्द 8, सफहा 31*
*📙 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 108-110*
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❐ सवाल ❐ ➻ सूरए फातिहा शरीफ के बाद सूरत पढ़ी उसके बाद फिर सूरए फातिहा पढ़ी तो क्या सजदए सहव वाजिब हो जायेगा!?
❐ जवाब ❐ ➻ *मसअ्ला :-* सूरए फातिहा शरीफ के बाद सूरत पढ़ी उसके बाद फिर सूरए फातिहा पढ़ी तो सजदए सहव वाजिब नहीं यूहीं फर्ज़ की पिछली रकअतों में फ़ातिहा की तकरार से मुतलकन सजदए सहव वाजिब नहीं और अगर पहली रकअतों में सूरए फातिहा का ज्यादा हिस्सा पढ़ लिया था फिर इआ़दा किया तो सजदए सहव वाजिब है।
❐ ➻ *मसअ्ला :-* सूरए फ़ातिहा पढ़ना भूल गया और सूरत शुरू कर दी और एक आयत के बराबर पढ़ली अब याद आया तो सूरए फातिहा पढ़ कर सूरत पढ़े और सजदा सहव वाजिब है। यूँही अगर सूरत पढ़ने के बाद या रुकू में या रुकूअ् से खड़े होने के बाद याद आया तो फिर सूरए फातिहा पढ़कर सूरत पढ़े और रुकूअ् का इआ़दा करे और सजदए सहव करे।
❐ ➻ *मसअ्ला :-* फर्ज़ की पिछली रकअतों में सूरत मिलाई तो सजदए सहव नहीं और कस्दन मिलाई जब भी हरज नहीं मगर इमाम को न चाहिए। यूँही अगर पिछली में सूरए फातिहा न पढ़ी जब भी सजदए सहव नहीं और रुकूअ् व सुजूद व कअ्दा में कर्आन पढ़ा तो सजदा-सहव वाजिब है।
*📚 बहारे शरिअत, हिस्सा 4, सफा 43*
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*• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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❐ सवाल ❐ ➻ अगर कोई शख्स अपना माल किसी के हाथ बेचे और यह कहे कि अगर अभी कीमत अदा कर दोगे तो इतने में और उधार खरीदोगे तो इतने पैसे होंगे। मसलन अभी 300 रुपया है और उधर खरीदोगे पैसे बाद में अदा करोगे तो 350 रुपये देना होंगे, तो क्या ऐसा करना जायज है!?
❐ जवाब ❐ ➻ अगर कोई शख्स अपना माल किसी के हाथ बेचे और यह कहे कि अगर अभी कीमत अदा कर दोगे तो इतने में और उधार खरीदोगे तो इतने पैसे होंगे, मसलन अभी 300 रुपया है और उधर खरीदोगे पैसे बाद में अदा करोगे तो 350 रुपये देना होंगे, तो यह जायज है इसको कुछ लोग नाजायज ख्याल करते हैं और सूद समझते हैं यह उनकी गलतफहमी है यह सूद नहीं है!
❐ ➻ हाँ अगर खरीदारी के वक्त इस बात को खोला नहीं और माल 300 रुपये में फरोख्त कर दिया और रकम अदा करने में उसने देर की तो उससे पैसे बड़ा कर वसूल किये मसलन 350 रुपये लिये तो यह सूद हो जायेगा। मतलब यह है कि उधार और नकद का भाव अगर अलग अलग हो तो खरीदारी के वक़्त ही इसकी वजाहत कर दे बाद में उधार की वजह से रकम बढ़ा कर लेना सूद और हराम है।
*📚 फतावा रज़विया ,जिल्द 17, सफ़हा 97,मतबूआ रज़ा फाउन्डेशन, लाहौर]*
*📚 फतावा फैज़ुर्रसूल, जिल्द 2 सफ़हा 380*
*📚 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 112*
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❐ सवाल ❐ ➻ जो शख्स अल्लाह तआला की हराम की हुई चीजो से सब्र करता है तो कयामत के दिन उसे कितने दरजात अता होगे!?
❐ जवाब ❐ ➻ *सब्र व मरज :-* जो शख्स चाहता हो कि वोह अज़ाबे इलाही से छुट जाए, सवाब व रहमत को पानी ले और जन्नती हो जाए उसे चाहिए कि वह अपने आप को दुन्यवी ख्वाहिशात से रोके और दुन्या के आलाम व मसाइब पर सब्र करे चुनान्चे फरमाने इलाही है:- *अल्लाह सब्र करने वालो को महबूब रखता है।*
❐ ➻ *सब्र की किस्में:-* सब्र की कई किस्मे है: अल्लाह की इताअत पर सब्र करना, हराम चीजो से रूक जाना, तक़ालीफ पर सब्र करना और पहले सदमे पर सब्र करना वगैरह।
❐ ➻ जो शख्स इबादते इलाही पर सब्र करता है और हर वक्त इबादत मे मह्व रहता है उसे कयामत के दिन अल्लाह तआला तीन सौ ऐसे दरजात अता करेगा जिन में हर दर्जे का फासिला जमीनो आस्मान के फासिले के बराबर होगा। *जो अल्लाह तआला की हराम की हुई चीजो से सब्र करता है उसे छे सौ दरजात अता होगे जिन में हर दर्जे का सातवें आसमान से सातवें जमीन के फासिले के बराबर होगा।* जो मसाइब पर सब्र करता है उस को सात सौ दरजात अता होगे, हर दर्जे का फासिला तहतुस्सरा से अर्शे उला के बराबर होगा।
*📚 मुकाशफतुल क़ुलूब बाब 3 सफह 41*
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❐ सवाल ❐ ➻ जिसने कुरआन पढा और उस को याद कर लिया उसके हलाल को हलाल समझा, और हराम को हराम जाना, उसके घर वालो मे से कितने शख्सों के बारे मे अल्लाह तआला उसकी शफ़ाअत कबूल फरमायेगा जिन पर जहन्नम वाजिब हो चुका था!?
❐ जवाब ❐ ➻ इमाम अहमद व तिर्मिज़ी व इब्ने माजा व दरामी ने हजरत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि रसूलल्लाह ﷺ ने फरमाया जिसने कुरआन पढा और उस को याद कर लिया उसके हलाल को हलाल समझा, और हराम को हराम जाना उसके घर वालो मे से *दस शख्सों के बारे मे अल्लाह तआला उसकी की शफ़ाअत कबूल फरमायेगा जिन पर जहन्नम वाजिब हो चुका था।*
❐ ➻ *हदीस :-* तिर्मिज़ी व दारमी ने अब्दुल्लाह बिन मसउद रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि रसूलल्लाह ﷺ ने फरमाया जो शख्स किताब अल्लाह का एक हर्फ पढेगा उस को एक नेकी मिलेगी जो दस के बराबर होगी मै ये नही कहता अलिफ-लाम-मीम एक हर्फ है बल्कि अलिफ एक हर्फ लाम दुसरा हर्फ है मीम तिसरा हर्फ।
❐ ➻ *हदीस :-* सहीह बुखारी व मुस्लिम मे जन्दुब बिन अब्दुल्लाह रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि रसूलल्लाह ﷺ ने फरमाया कुरआन को उस वक़्त तक पढो जब तक तुम्हारे दिल को उल्फत और लगाव हो और जब दिल उचाट हो जाए खडे हो जाओ यानी तिलावत बन्द करदो।
*📚 इस्लामी अख्लाक-व-आदाब सफह 134-135*
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❐ सवाल ❐ ➻ हैज़ और निफास वाली औरत को कुर्आन मजीद देखकर या ज़बानी पढ़ना और उसका छूना अगर्चे उसकी जिल्द या चोली या हाशिये को हाथ या उंगली की नोक या बदन का कोई हिस्सा लगे यह सब कैसा है!???
❐ जवाब ❐ ➻ *मसअला : -* हैज़ और निफास वाली औरत को कुर्आन मजीद देखकर या ज़बानी पढ़ना और उसका छूना अगर्चे उसकी जिल्द या चोली या हाशिये को हाथ या उंगली की नोक या बदन का कोई हिस्सा लगे यह सब हराम हैं।
❐ ➻ *मसअला : -* कागज़ के पर्चे पर कोई सूरह या आयत लिखी हो तो उसका भी छूना हराम है।
❐ ➻ *मसअला : -* जुजदान में कुर्आन मजीद हो तो उस जुजदान के छूने में हर्ज नहीं।
❐ ➻ *मसअला : -* इस हालत में कुर्ते के दामन या दुपट्टे के आँचल से या किसी ऐसे कपड़े से जिसको पहने या ओढ़े हुये हो उस्से कुर्आन मजीद छूना हराम है।
*📙 बहारे शरीअत, हिस्सा 2 सफा 73*
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❐ सवाल ❐ ➻ मन्नत की नमाज़ में किसी खास वक़्त या दिन की कैद लगाई तो उसी वक़्त या दिन में पढ़नी क्या है!??
❐ जवाब ❐ ➻ *मसअ्ला :-* जिसके जिम्मे कज़ा नमाज़ें हों अगर्चे उनका पढ़ना जल्द से जल्द वाजिब है मगर बाल बच्चों की परवरिश वगैरा और अपनी जरूरियात की फराहमी के सबब ताखीर (देर) जाइज़ है तो कारोबार भी करे और जो वक़्त फुर्सत का मिले उसमें कज़ा पढ़ता रहे यहाँ तक कि पूरी हो जाये।
❐ ➻ *मसअ्ला :-* क़ज़ा नमाजें नवाफिल से अहम हैं यानी जिस वक़्त नफ्ल पढ़ता है उन्हें छोड़ कर उनके बदले कजायें पढ़े कि बरीउज़्ज़िम्मा हो जाये अलबत्ता तरावीह और बारह रकअतें सुन्नते मुअक्कदा की न छोड़े।
❐ ➻ *मसअ्ला :-* मन्नत की नमाज़ में किसी खास वक़्त या दिन की कैद लगाई तो उसी वक़्त या दिन में पढ़नी वाजिब है वर्ना कज़ा हो जायेगी और वक़्त या दिन मोअय्यन नहीं तो गुन्जाइश है।
*📚 बहारे शरिअत, हिस्सा 4, सफा 40*
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❐ सवाल ❐ ➻ जो शख़्स अल्लाह और रोज़े आख़िरत पर ईमान रखता है, उसे चाहिए के खूब अच्छी तरह!?
❐ जवाब ❐ ➻ *मेहमान नवाज़ी :-* हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है आप बग़ैर मेहमान के कभी खाना तनावुल नहीं फरमाते थे यहां तक कि अगर कभी कोई ना मिलता तो आप किसी की तलाश में एक दो मील तक सफर कर आते थे कि कोई मिल जाए जिसके साथ आप खाना खायें, मेहमान का आना रहमते खुदावन्दी का आना है और वो अपना रिज़्क़ खुद लेकर आता है इसलिए मेहमान के आने पर खुशी का इज़हार करना चाहिये मेहमान के आने पर नाखुश होना या उसको हिकारत से देखना तंगी और मुफलिसी का बाइस है,चंद हदीसे पाक मुलाहज़ा फरमायें!
❐ ➻ जो शख़्स अल्लाह और रोज़े आख़िरत पर ईमान रखता है, उसे चाहिए कि खूब अच्छी तरह अपने मेहमान की इज़्ज़त व तकरीम करे।
*📙 सही बुखारी, 18/437, हदीस नं 5559*
❐ ➻ जिस घर में लोगों को खाना खिलाया जाता है भलाई उसकी तरफ कोहान की तरफ जाने वाली छुरी से भी तेज़ दौड़ती है!
📙 इब्ने माजा,सफह 204
❐ ➻ अपने मेहमान की ताज़ीम करो!
📙 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 50
❐ ➻ लोगों ने अर्ज़ किया कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम हम खाते हैं मगर हमारा पेट नहीं भरता तो आप सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि शायद तुम लोग अलग अलग खाते हो अर्ज़ की हां तो फरमाया कि इकठ्ठा खाया करो और बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़कर शुरू करो!
📙 इब्ने माजा,सफह 236
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❐ सवाल ❐ ➻ अल्लाह तआ़ला को अपनी मख़लूक में सब से ज़ियादा ना पसन्द क्या है!??
❐ जवाब ❐ ➻ हज़रते मूसा बिन यसार रदियल्लाहु तआ़ला अन्हु से मरवी है हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि अल्लाह तआ़ला को अपनी मख़लूक में सब से ज़ियादा ना पसन्द येही दुन्या है, अल्लाह ने इसे जब से पैदा फ़रमाया है कभी नज़रे रहमत से नहीं देखा।_
❐ ➻ रिवायत है कि हज़रते सुलैमान बिन दावूद *अलैहिस्सलाम* एक मर्तबा अपने तख़्त पर कहीं जा रहे थे परन्दे आप पर साया कर रहे थे, इन्सान और जिन्नात आप के दाएं बाएं बैठे थे बनी इस्राईल के एक आबिद ने देख कर कहा: ऐ सुलैमान ! ब खुदा ! अल्लाह ने आप को मुल्के अजीम दिया है, आप ने येह सुन कर फ़रमाया कि बन्दए मोमिन के नामए आ'माल में दर्ज़ सिर्फ एक तस्वीह मेरी तमाम सल्तनत से बेहतर है क्यूंकि येह सब फ़ानी है मगर तस्वीह बाकी रहने वाली है।
❐ ➻ *फ़रमाने नबवी ﷺ है :-* तुम्हें माल की कसरत ने मश्गुल रखा है, इन्सान कहता है मेरा माल, मेरा माल, मगर अपने माल में, जो तू ने खाया वोह ख़त्म हो गया, जो पहना वोह पुराना हो गया, जो राहे ख़ुदा में ख़र्च किया वोही बाकी रहेगा।
❐ ➻ *फ़रमाने नबवी ﷺ है:* दुन्या उस का घर है जिस का कोई घर न हो, उस का माल है जिस का कोई माल न हो, बे वुकूफ ही इसे जम्अ करता है बे इल्म ही इस के लिये झगड़ता है ना समझ ही इस के लिये दुश्मनी और हसद करता है और ये यकीन ही इस के हुसूल की कोशिश करता है।
❐ ➻ *फ़रमाने नबवी ﷺ है:* जिस की सब से बड़ी तमन्ना हुसुले दुन्या है, अल्लाह तआ़ला के यहां उस का कोई हिस्सा नहीं है अल्लाह तआ़ला ऐसे के दिल पर चार चीजों को मुसल्लत कर देता है, दाइमी गम, दाइमी मश्गुलिय्यत, दाइमी फ़क्र और कभी न पूरी होने वाली आरजुएं।
❐ ➻ *हज़रते अबू हुरैरा रादिअल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है :* मुझ से हुज़र ﷺ ने फ़रमाया तुझे दुन्या की हक़ीक़त दिखलाऊँ ? मैं ने अर्ज़ की हाँ या रसूलल्लाह ! आप ﷺ मेरा हाथ पकड़ कर मुझे मदीने की एक वादी में ले गए जहाँ कूड़ा पड़ा था और उस में गन्दगी, चीथड़े और इन्सान के सर की बोसीदा हड्डियां थीं, आप ﷺ ने फ़रमाया ऐ अबू हुरैरा येह सर भी तुम्हारे सरों की तरह़ हरीस थे और इन में तुम्हारी तरह़ बहुत आरजूएं थी मगर आज येह खाली हड्डियां बन चुकी हैं जिन पर खाल भी नहीं रही और अन करीब येह मिट्टी हो जाएंगे, येह गन्दगी इन के खानों के रंग हैं जिन्हें इन्हों ने कमा कमा कर खाया, आज लोग इन से मुंह फेर कर गुजरते हैं, येह पुराने चीथड़े जो कभी इन के मल्बूसात थे आज हवा इन्हें उड़ाए फिरती है और येह इन की सुवारियों की हड्डियां हैं जिन पर सुवार हो कर येह शहर शहर घूमा करते थे जो इस दर्दनाक अन्जाम पर रोना पसन्द करता हो उसे रोना चाहिये, हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआ़ला अन्हु फ़रमाते हैं फिर मैं और हुज़र ﷺ बहुत रोए।
*📗 मुकाशफ़तुल कुलूब सफ़ह 213 , 214*
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❐ सवाल ❐ ➻ सब से पहले गाना किसने गाया!???
❐ जवाब ❐ ➻ *🔊 गाना सुन्ना हराम है :* नबी-ए-करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया सब से पहले गाना *इब्लीस [ शैतान, मरदूद ] ने गाया"!*
❐ ➻ हज़रत इमाम मुजाहिद रदिअल्लाहु तआला अन्हु फरमाते है गाने बाजे शैतान की आवाजें है "जिसने इन्हें सुना गोया उस ने शैतान की आवाज सुनी!
❐ ➻ नबी करीम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया की ज़रूर मेरी उम्मत में ऐसे लोग होने वाले है जो जिना, रेशमी कपड़े, शराब और बाजो ताशों को हलाल ठहराएंगे।
❐ ➻ प्यारे आक़ा करीम ﷺ ने फरमाया- जो गाना बाजा सुनता है, अल्लाह तआला क़यामत के दिन इस के *कानों में पिघला हुआ शीशा डालेगा।*
*📚 कंज़ूल अमल, जिल्द- 5, सफ़ह- 234*
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❐ सवाल ❐ ➻ (मैदाने मेहशर में) जब तमाम बन्दे (हिसाब के लिए) खड़े किए जाएंगे तो एक मुनादी येह एलान करेगा कि जिस का अज्र अल्लाह अज़्ज़वजल के जिम्मे है उस को चाहिए कि वोह खड़ा हो जाए और जन्नत में दाखिल हो जाए तो कोई कहने वाला कहेगा कि वोह कौन है जिस का अज्र अल्लाह अज़्ज़वजल के जिम्मे है? तो मुनादी कहेगा कि!??
❐ जवाब ❐ ➻ *लोगों की खताओं को मुआफ करना :-* हज़रते अनस रादिअल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि (मैदाने मेहशर में) जब तमाम बन्दे (हिसाब के लिए) खड़े किए जाएंगे तो एक मुनादी येह एलान करेगा कि जिस का अज्र अल्लाह के जिम्मे है उस को चाहिए कि वोह खड़ा हो जाए और जन्नत में दाखिल हो जाए तो कोई कहने वाला कहेगा कि वोह कौन है जिस का अज्र अल्लाह के जिम्मे है? तो मुनादी कहेगा कि जो लोगों की खताओं को मुआफ़ करने वाले हैं येह सुन कर इतने इतने हज़ार आदमी खड़े हो जाएंगे और बिला हिसाब के जन्नत में दाखिल हो जाएंगे।
❐ ➻ *तशरीहात व फ़वाइद :* मुसलमानों से अगर कोई गलती और खता हो जाए और वोह मुआफ़ी के तलबगार हों या न हों बहर हाल उन की ख़ताओं को मुआफ़ कर देना येह बहुत बड़ा जन्नती अमल है। कुरआने मजीद में भी (तर्जमए कन्जुल ईमान : और लोगों से दरगुज़र करने वाले।) फ़रमा कर अल्लाह ने उन लोगों की मदह फ़रमाई और उन लोगों को नेकोकार बताया है। और हदीस शरीफ़ में आप ने पढ़ लिया कि उन लोगों के बारे में मैदाने मेहशर के अन्दर अल्लाह तआला का मुनादी इन लफ़्ज़ों में एलान फ़रमाएगा कि वोह लोग जिन का अज्र अल्लाह तआला ने अपने ज़िम्मए करम पर ले लिया है वोह उठें और बिला हिसाब जन्नत में दाखिल हो जाएं اللہ اکبر ! येह कितना बड़ा एज़ाज़ और किस क़दर अजीम शरफ़ है। *سبحان اللہ سبحان اللہ*
*📚 बिहिश्त की कुन्जियां सफ़ह 211-212*
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❐ सवाल ❐ ➻ औरतों को अपना सर के बाल इस क़दर छोटे करवाना कि जिस से मर्दों से मुशाहबत हो तो ऐसा करना कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ औरतों को अपना सर के बाल इस क़दर छोटे करवाना कि जिस से मर्दों से मुशाहबत हो नजाइज व हराम है है इसी तरह फासिका औरतों की तरह बतौर फैशन बाल कटवाना भी माना है हां बाल बहुत लंबे हो जाने की सूरत में इतने काट लेना जाइज है कि मर्दों से मुशाबहत न हो जैसा की आम तौर से किनारे काट कर बराबर किए जाते है यह जाइज है।
*📚 इब्ने माजा हदीस न 2782*
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❐ सवाल ❐ ➻ बअ्ज़ मर्द व औरत अपने लड़कों को सोने चांदी का ज़ेवर ब्रेसलेट (कंगन) वगैरह पहनाते हैं, तो क्या हुक्म है,!?
❐ जवाब ❐ ➻ लड़कों को ज़ेवर पहनाना हराम है, ख़्वाह वह सोने चांदी का हो या किसी और चीज़ का, और जिसने पहनाया वह गुनहगार भी होगा,
📙 तनवीरुल अबसार मअ् शामी जिल्द 9 सफ़ह 522
❐ ➻ और इस तरह बिला ज़रूरत बच्चों के हाथ में मेंहदी लगाना भी हराम व नाजाइज़ है!
📘 रद्दुल मोहतार जिल्द 9 सफ़ह 522)
❐ ➻ और शहज़ादा ए आलाहज़रत इमामुल फ़ुक़हा हुज़ूर मुफ़्ती ए आज़म हिंद अलैहिर्रहमा तहरीर फ़रमाते हैं, मर्द को हाथ पांव में मेंहदी लगाना नाजाइज़ है, ज़ेवर पहनना गुनाह है, कंगना हिन्दुओं का रस्म है!
📗 फ़तावा मुस्तफ़वियह सफ़ह 452)
❐ ➻ और हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं, लड़कों को सोने चांदी के ज़ेवर पहनाना हराम है, और जिसने पहनाया वह गुनाहगार होगा, इसी तरह बच्चों के हाथ पांव में बिला ज़रूरत मेहंदी लगाना नाजाइज़ है!
📚 बहारे शरिअत जिल्द 3 सफ़ह 428
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❐ सवाल ❐ ➻ एक शख़्स ने वुज़ू बनाई और अपने हाथ और मूँह से पानी पोंछकर मस्जिद में झाड़ा, यानी हाथ वग़ैरा में पोंछने के बाद जो पानी के क़तरात रह जाते है उसे मस्जिद में दाख़िल होने के बाद झाड़ता है, उस शख़्स का ऐसा करना शरीअतन कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ *मसअला :-* मस्जिद में कोई जगह वुज़ू के लिए शुरू ही से बानि ए मस्जिद ( मस्जिद बनाने वाल) ने मस्जिद पूरी होने से पहले बनाई है जिसमें नमाज़ नहीं होती तो वहाँ वुज़ू कर सकता है, यूँही तश्त वग़ैरा किसी बर्तन में भी वुज़ू कर सकता है मगर इन्तिहाई एहतियात के साथ कि कोई छींट मस्जिद में न पड़े (आलमगिरी जि 1, स 103) बल्कि मस्जिद को हर घिन की चीज़ से बचाना ज़रूरी है। *आजकल अक्सर देखा जाता है कि वुज़ू के बाद मुँह और हाथ से पानी पोंछकर मस्जिद में झाड़ते है यह ना जायज़ है!*
📙 फतावा रज़विया जि 1, स 733)
📚 *बहारे शरीअत हिस्सा 03 सफ्हा 317*
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❐ सवाल ❐ ➻ महज़ ख्याल ही ख्याल बीमारी बढ़ने का अंदेशा है, और अगर ठन्डा पानी नुकसान करता है और गर्म पानी नुकसान न करे तो ऐसे हालत मे वजू और ग़ुस्ल के लिए तयम्मुम करना कैसा जबकि गर्म पानी उसके पास मौजूद है.!?
❐ जवाब ❐ ➻ *तयम्मुम का बयान :-* जिसका वजू न हो या नहाने की जरुरत हो और पानी पर कुदरत न होतो वजू और गुस्ल की जगह तयम्मुम करे, पानी पर कुदरत न होने की चन्द सुरतें हैं पहली सूरत यह कि ऐसी बीमारी हो कि वजू या गुस्ल से उसके बढ़ने या देर में अच्छा होने का सही अन्देशा हो, चाहे उसने खुद आजमाया हो कि जब वजू या गुस्ल करता है तो बीमारी बढ़ती है या किसी मुसलमान परहेजगार काबिल हकीम ने कह दिया हो कि पानी नुकसान करेगा तो तयम्मुम जाएज़ है।
❐ ➻ *मसअला :-* महज़ ख्याल ही ख्याल बीमारी बढ़ने का हो तो तयम्मुम जाएज़ नहीं यूंही काफ़िर या फ़ासिक या मामूली तबीब के कहने का ऐतबार नहीं!
❐ ➻ *मसअला :-* बीमारी में अगर ठन्डा पानी नुकसान करता है और गर्म नुकसान न करे तो गर्म पानी से वजू और गुस्ल ज़रूरी है तयम्मुम जाएज नहीं हाँ अगर ऐसी जगह हो , कि गर्म पानी न मिल सके तो तयम्मुम करे यूंही अगर ठन्डे वक़्त में वजू या गुस्ल नुकसान करता है और गर्म वक़्त में नुकसान नहीं करता तो ठंडे वक़्त में तयम्मुम करे फिर जब गर्म वक़्त आये तो आइन्दा के लिये वजू कर लेना चाहिये जो नमाज़ उस तयम्मुम से पढ़ ली उसके एआदह की हाजत नहीं।
*📚 कानून-ए-शरीअत, सफह- 57*
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❐ सवाल ❐ ➻ पाँव या कपड़े में रास्ते का कीचड़ लग गया हो और अगर बे-धोये नमाज़ पढ़ लिया तो नमाज़ हो जाएगी या नहीं!???
❐ जवाब ❐ ➻ *मसअला :-* नापाक चीज़ों का धुआं अगर कपड़े या बदन पर लगे तो कपड़ा और बदन नजिस न होगा।
❐ ➻ *मसअला :-* रास्ते का कीचड़ पाक है जब तक उसका नजिस होना मालूम न हो तो अगर पॉव या कपड़े में लगी और बे धोये नमाज पढ़ ली नमाज हो गई मगर धो लेना बेहतर है।
❐ ➻ *मसअला :-* सड़क पर पानी छिड़का जा रहा था जमीन से छीटें उड़ कर कपड़े पर पड़ी कपड़ा नजिस न हुआ लेकिन धो लेना बेहतर है।
*📚 कानून-ए-शरीअत, सफह- 54*
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❐ सवाल ❐ ➻ बैतूल ख़ला में जाते वक़्त अपने साथ कोई ऐसी चीज़ ले जाना जिस पर कोई दुआं या अल्लाह व रसूल या किसी बुजुर्ग का नाम लिखा हो, शरअन कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ *मसअला :-* पाखाना पेशाब करते वक़्तं सूरज और चाँद की तरफ न मुंह न पाठ यूंही हवा के रूख पेशाब करना मना है और हर ऐसी जगह पेशाब करना मना है जिससे छीटें ऊपर आये!
❐ ➻ *मसअला :-* नंगे सर पेशाब , पाखाना को जाना मना है और यूंही अपने साथ ऐसी चीज़ ले जाना जिस पर कोई दुआं या अल्लाह व रसूल या किसी बुजुर्ग का नाम लिखा हो मना है!
*📚 कानून-ए-शरीअत, सफह- 78*
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❐ सवाल ❐ ➻ कुछ लोग कहते हैं क़व्वाली माअ मज़ामीर (यानी Music/म्यूज़िक ) के साथ चिश्तीयह सिलसिले में राइज और जाइज़ हैं, तो ऐसे अशआर का सुनना शरीअत में कैसा है..!?
❐ जवाब ❐ ➻ मज़हबे इस्लाम में बतौर ए लहव व लइब ढोल बाजे और मज़ामीर (Music) हमेशा से हराम रहे हैं, बुखारी शरीफ की हदीस शरीफ़ है के रसूलल्लाह ﷺ ने इरशाद फ़रमाया, ज़रूर मेरी उम्मत में ऐसे लोग होने वाले हैं जो ज़िना रेशमी कपड़ों शराब और बाजों ताशों को हलाल ठहराएंगे।
📕 [ सहीह बुखारी, जिल्द- 2, किताबुल अशरबा, सफा- 837
❐ ➻ दूसरी हदीस शरीफ मैं हुज़ूर नबी ए करीम अलैहिस्सलातु व तस्लीम ने क़ियामत की निशानियां बयान करते हुए इरशाद फ़रमाया : क़ियामत के क़रीब नाचनें गानें वालियों और बाजे ताशों की कसरत हो जायेगी।
📕 [ तिरमिज़ी शरीफ़ ]
📕 [ मिश्कात शरीफ़, बाब अशरातुस्सअह, सफा- 470 ]
❐ ➻ फतावा आलम गीरी में है सिमाअ क़व्वाली रक़्स (नाच) जो आज कल के नाम निहाद सूफीयों में राइज है ये हराम है इसमें शिरकत जाइज़ नहीं।
📕 फतावा आलमगीरी, जिल्द- 5, किताबुल कराहियह, सफा- 352
❐ ➻ मुजद्दिद ए आज़म सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान फाज़िल ए बरेलवी रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह ने अपनी किताबों में कई जगह मज़ामीर (Music) के साथ क़व्वाली गाना सुनना हराम लिखा है, देखिए फतावा रज़वीयाह और मलफूज़ात ए आला हज़रत।
❐ ➻ कुछ लोग कहते हैं क़व्वाली माअ मज़ामीर (यानी म्यूज़िक) के साथ चिश्तीयह सिलसिले में राइज और जाइज़ हैं, ये बुज़ुर्गान ए दीन चिश्तीयह पर उनका सरीह बोहतान है उन बुजुर्गों ने भी मज़ामीर (यानी म्यूज़िक) के साथ क़व्वाली सुनने को हराम फ़रमाया है!
❐ ➻ सय्यदना महबूब ए इलाही हज़रत निज़ाम उद्दीन औलिया देहेलवी रहमातुल्लाहि तआला अलैह ने अपने ख़ास ख़लीफा़ सय्यदना फ़ख़रुद्दीन ज़रदारी रहमातुल्लाहि तआला अलैह से मसअला ए सिमाअ के मुताल्लिक़ एक रिसाला लिखवाया जिसका नाम क़शफुल क़नाअ अन उसूलिस्सिमाअ है, इस मैं साफ़ लिख़ा है : हमारे बुजुर्गों का सिमाअ इस मज़ामीर (Music) के बोहतान से बरी है उनका सिमाअ तो ये है के सिर्फ क़व्वाल की आवाज़ उन अशआर के साथ हो जो कमाल ए सिनअत ए इलाही की खबर देते हैं।
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❐ सवाल ❐ ➻ कीचड़ से पांव सना हुआ है उसको मस्जिद की दीवार या सुतून से पोंछना कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ कीचड़ से पांव सना हुआ है उसको मस्जिद की दीवार या सुतून से पोंछना *मना है* यूं ही फैले हुए गुबार से पोंछना भी नाजायज है और कूड़ा जमा है तो उससे पोंछ सकते हैं यूं ही मस्जिद में कोई लकड़ी पड़ी हुई है कि मस्जिद की इमारत में दाखिल नहीं उससे भी पोंछ सकते हैं चटाई के बेकार टुकड़े जिस पर नमाज ना पढ़ते हो पोंछ सकते हैं मगर बचना अफज़ल है।
*📚 बहारें शरीअ़त हिस्सा 3 सफ़ह 149*
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❐ सवाल ❐ ➻ जिस कपड़े पर जानदार की तस्वीर हो उसे पहनकर नमाज़ पढ़ना मक़रुहे तहरीमी है और नमाज़ अलावा भी ऐसा कपड़ा पहनना कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ जिस कपड़े पर जानदार की तस्वीर हो उसे पहनकर नमाज़ पढ़ना मक़रुहे तहरीमी है नमाज़ के अलावा भी ऐसा कपड़ा पहनना *ना जाइज़ है* यूं ही मुसल्ली के सर पर यानी छत में हो या लटकी हुई हो या सजदों की जगह मे हो कि उस पर सजदा करता हो तो नमाज़ *मक़रुहे तहरीमी होगी* मुसल्ली के आगे या दाहिने या बांए तस्वीर होना *मक़रुहे तहरीमी है* और इन चारों सूरतो मे कराहत उस वक़्त है की तस्वीर आगे पीछे दाहिने बाएं लटकी हो या नसब हो या दीवार वगैरह में बनी हुई हो अगर फर्श में है और उस पर सज़दा नहीं तो कराहत नही अगर तस्वीर गैर जानदार की है जैसे पहाड़ दरिया वगैरा की तो उसमें कुछ हर्ज नहीं!
*📗 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफ़ह 137*
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❐ सवाल ❐ ➻ नमाजे़ जनाजा में तकबीर के वक़्त आसमान की तरफ मुंह उठाना कैसा है..❓
❐ जवाब ❐ ➻ आजकल काफी लोग ऐसा करते हुए देखे गए हैं जब नमाजे जनाजा में तकबीर कहीं जाती है तो हर तकबीर के वक़्त ऊपर की जानिब मुंह उठाते हैं हालांकि इसकी कोई अस्ल नहीं है बल्कि नमाज़ में आसमान की तरफ मुंह उठाना *मक़रुहे तहरीमी है!*
❐ ➻ और हदीस शरीफ में है रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया क्या हाल है उन लोगों का जो नमाज़ में आसमान की तरफ आंखें उठाते हैं इससे बाज रहे या उनकी आंखें उचक ली जाएगी *📚मिश्कात बहवा़ला सही मुस्लिम*
❐ ➻ खुलासा यह है की नमाजे जनाजा हो या कोई और नमाज़ क़सदन आसमान की तरफ नजर उठाना *मक़रुह है* और नमाजे जनाजा में तकबीर के वक़्त ऊपर को नजर उठाने का जो रिवाज पड़ गया है यह गलत है बे अस्ल है!
*📗 ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह सफ़ह 54*
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❐ सवाल ❐ ➻ इतना बारीक कपड़ा की जिससे बदन चमकता हो (यानी बदन नजर आता हो) सतर के लिए काफी नहीं है इससे अगर नमाज़ पढ़ी तो नमाज़ का क्या हुक्म होगा!??
❐ जवाब ❐ ➻ सतरे औरत हर हाल में वाजिब है चाहे नमाज़ में हो या ना हो या तन्हा हो किसी के सामने बिला उ़ज़्र शरई (कारण) के बल्कि तनहाई में भी अपना हिस्सा सतर खोलना जाइज़ नहीं लोगों के सामने या नमाज़ में सतरे औरत बिल इज़माअ *फ़र्ज़ है*!
❐ ➻ इतना बारीक कपड़ा की जिससे बदन चमकता हो यानी बदन नज़र आता हो सतर के लिए का़फी नहीं इससे अगर नमाज़ पढ़ी तो नमाज़ ना होगी
❐ ➻ मर्द के लिए 'नाफ' (डुंटी Nevel) के नीचे से घुटने के नीचे तक का बदन औरत है यानी उसका छुपाना लाज़मी है *बल्कि फ़र्ज़ है* 'नाफ' उसमे में दाखिल (गिनती में) नहीं और घुटने उसमें दाखिल है!
❐ ➻ औरत के लिए पूरा बदन औरत है यानी उसको छुपाना *फ़र्ज़ है* लेकिन मुंह की टकली यानी चेहरा दोनों हाथ की हथेलियां और दोनों पांव के तल्वे औरत नहीं यानी *हालत ए नमाज़ में औरत का चेहरा दोनों हथेलियां और दोनों तल्वे खुले होंगे तो नमाज़ हो जाएगी!
*📗 मोमिन की नमाज़ सफ़ह 67,68*
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❐ सवाल ❐ ➻ गैर मुस्लिम की दुकान से गोश्त खरीदकर खाना या किसी गैर मुस्लिम से हदिया और तोहफे में कच्चा या पक्का हुआ गोश्त लेकर खाना और वह कहे कि मैंने जानवर मुसलमान से ज़बह करवाया था यानी मुसलमान का ज़बीहा बताएं तो उस गोश्त का लेना खरीदना और खाना कैसा है!???
❐ जवाब ❐ ➻ गैर मुस्लिम की दुकान से गोश्त खरीद कर खाना या किसी गैर मुस्लिम से हदिया और तोहफे में कच्चा या पक्का हुआ गोश्त लेकर खाना *हराम है* ख्वाह वह कहे कि मैंने जानवर मुसलमान से ज़बह करवाया था यानी मुसलमान का जबीहा बताएं तब भी उससे *गोश्त लेना खरीदना खाना सब हराम है* हां अगर जुब़ह होने से लेकर जब तक मुसलमान के पास आया हर वक़्त मुसलमान की नजर में रहा तो यह जाइज़ है। *📚 फ़तावा रज़वीया*
हां अगर गोश्त किसी मुसलमान की दुकान से लाया गया लेकिन खरीद कर लाने वाला नौकर मजदूर वगैरह कोई गैर मुस्लिम हो और वह कहे कि मैंने यह गोश्त मुसलमान की दुकान से खरीदा है और आप भी जानते हैं कि यह मुसलमान की दुकान से खरीद कर लाया है तो उस गोश्त का खाना जाइज़ है!
❐ ➻ खुलासा यह है कि मुसलमान की दुकान का गोश्त जाइज़ है ख्वाह खरीद कर लाने वाला नौकर मजदूर या गैर मुस्लिम हो और गैर मुस्लिम की दुकान का गोश्त हराम है ख्वाह खरीद कर लाने वाला मुसलमान ही क्यों ना हो और अगर जुबह शरई से लेकर किसी वक़्त मुसलमान की नजर से गायब ना हुआ तो यह भी जाइज़ है!
*📗 ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह सफ़ह 130*
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❐ सवाल ❐ ➻ वाट्स एप फेसबुक पर चैट के जरिये जो सलाम किया जाता हैं उसका जवाब देना क्या है!??
❐ जवाब ❐ ➻ व्हाट्सएप या फेसबुक पर जो चैट(Chait) की शक्ल में सलाम किया जाता है उसका जवाब देना *वाजिब है!*
❐ ➻ फेसबुक पर चैट की शक्ल में जो सलाम किया जाता है खत और मैसेज की तरह इसके सलाम का जवाब देना भी वाजिब है फेसबुक और व्हाट्सएप का एक ही हुक्म है!
*📗 मोबाइल फोन के जरूरी मसाइल*
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❐ सवाल ❐ ➻ औरतों को कंघा करने के बाद अपने सर के बाल यूंही नाखून वगैरह ऐसे ही छोड़ देना और मर्द अजनबी को उसकी तरफ नजर करना कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ जिस तरह मर्द, मर्द के सतर और शर्मगाह को नहीं देख सकता, इसी तरह औरत भी औरत की सतर यानी नाफ़ के नीचे से घुटने तक नहीं देख सकती, *हदीसे पाक में है,*
हज़रत अबू सईद ख़ुदरी रज़िअल्लाहू तआला अन्ह रिवायत करते हैं कि रसूलल्लाह ﷺ ने फ़रमाया,*तर्जमा* एक मर्द दूसरे मर्द की सतर की जगह ना देखे और ना औरत दूसरी औरत की सतर की जगह देखे, और ना मर्द दूसरे मर्द के साथ एक लिहाफ़ में बरहना यानी बिल्कुल नंगा सोए और ना औरत दूसरी औरत के साथ एक कपड़े में बरहना सोए!
*📗 मुस्लिम किताबुल हैज़ बाबुत्तहरीम अन्नज़र इललओरात, सफ़ह 186,*
*📗 मिश्कात बाबुन्नज़र इलल मख़तूबह, सफ़ह 268*
❐ ➻ और हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रमह फरमाते हैं, औरत का औरत को देखना इसका वही हुक्म में है, जो मर्द का मर्द की तरफ़ नज़र करने का है, यानी नाफ़ के नीचे से घुटने तक नहीं देख सकती, बाक़ी आज़ा की तरफ़ नज़र कर सकती है, बशर्त यह के शोहवत का अंदेशा ना हो!
*📗 बहारे शरिअत जिल्द 3, सफ़ह 443*
❐ ➻ जब और आज़ा की तरफ़ ख्वाहिश व शहवत पैदा होने की वजह से देखने की मुमानअ्त है तो शर्मगाह की तरफ़ देखना जिससे ख्वाहिश व शहवत का ग़ालिब गुमान बल्के यक़ीन है क्यों कर दुरुस्त होगा!
❐ ➻ औरतों को अपने सर के बाल और नाखून वगैरह को इधर-उधर ऐसे ही छोड़ देना दुरुस्त नहीं बल्कि कहीं दफन कर देना चाहिए, ताकि अजनबी मर्द की निगाह ना पड़े, क्योंकि मर्द अजनबी का उसकी तरफ़ नज़र करना हराम है, इसलिए कि जिस उज़ू की तरफ़ नज़र करना नाजाइज़ व हराम है, बदन से जुदा हो जाने के बाद भी उसको देखना हराम व नजाइज़ है जैसे नाफ़ के नीचे का बाल, औरत के सर के बाल और नाखून वगैरह, हां मगर हाथ के नाखून को देख सकता है!
*तन्वीरुल अबसार मअ् दुर्रे मुख़्तार में है,*
*📚अरबी इबारत असल किताब में मुलाहिजा फ़रमाएं जिल्द 9, सफ़ह 536*
❐ ➻ हुज़ूर सदरुश्शरिअह अल्लामा अमज़द अली आज़मी अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, जिन उज़ू की तरफ़ नज़र करना नाजाइज़ है, अगर वह बदन से जुदा हो जाए तो अब भी उसकी तरफ़ नज़र करना नाजाइज़ ही रहेगा, मसलन पेड़ू के बाल के उनको जुदा करने के बाद भी दूसरा शख़्स नहीं देख सकता, औरत के सर के बाल या उसके पांव या कलाई की हड्डी के उसके मरने के बाद भी अजनबी शख़्स उसको नहीं देख सकता, औरतों को के पांव के नाखून के उनको भी अजनबी शख़्स नहीं देख सकता, और हाथ के नाखून को देख सकता है, अक्सर देखा गया है कि ग़ुसलखाना या पाखाना में मुऐ ज़ेरे नाफ़ (नाफ़ के नीचे के बाल) मूंडकर बाज़ लोग छोड़ देते हैं, ऐसा करना दुरुस्त नहीं, बल्कि उनको ऐसी जगह डाल दें कि किसी की नज़र न पड़े या ज़मीन में दफ़न कर दें, औरतों को भी लाज़िम है कि कंघा करने में या सर धोने में जो बाल निकले उन्हें कहीं छुपा दें कि उन पर अजनबी की नज़र ना पड़े!
*📗 बहारे शरिअत जिल्द 3 सफ़ह 448*
*📗औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 91,92,93*
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❐ सवाल ❐ ➻ चोरी का माल जान बूझ कर खरीदना हराम है बल्कि अगर मालूम नहीं बल्कि सिर्फ(शक)हो तब भी खरीदना कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ चोरी का माल जान बूझ कर खरीदना हराम है बल्कि अगर मालूम नहीं बल्कि सिर्फ(शक)हो तब भी खरीदना *हराम है*!
❐ ➻ और अगर मालूम ना हो ना कोई वाजेह करे तो खरीदना जायज है फिर अगर यह साबित हो जाए कि यह चोरी का माल है तो उसका इस्तेमाल भी हराम है!
*📗 फतवा रजविया जिल्द ७ सफ़ह ३८*
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❐ सवाल ❐ ➻ शिद्दत का पखा़ना पेशाब मालूम होते वक़्त या गैस की परेशानी के वक़्त नमाज़ पढ़ना कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ कोई आस्तीन आधी कलाई से ज्यादा चढ़ी हुई या दामन समेटे नमाज पढ़ना भी *मक़रुहे तहरीमी है* ख्वाह वह पहले से चढ़ी हुई हो या नमाज़ में चढा़ई हो *शिद्दत का पखा़ना पेशाब मालूम होते वक्त या गैस की परेशानी के वक़्त नमाज़ पढ़ना मक़रुहे तहरीमी है* हदीस में है कि जब नमाज़ काइम की जाए और किसी को बैतुलखला को जाना हो तो पहले बैतूल खला को जाए इस हदीस को तर्मिजी ने अब्दुल्लाह इब्ने अक़रम रदिय़ल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत किया और अबू दाऊद व नसई व मालिक ने भी इसी की मिस्ल रिवायत की।
❐ ➻ नमाज़ शुरू करने से पहले अगर इन चीजों का गल़्बा हो तो वक़्त में वुसअ़त होते हुए शुरू करना ही मना और गुनाह है क़जाए हाज़त यानी पेशाब पखाना जोर का लगा हो तो पहले उससे फारिग हो ले अगरचे जमाअत जाति रहने का अंदेशा हो और अगर देखते हैं की क़जाए हाज़त और वुजू के बाद वक़्त जाता रहेगा तो वक़्त की रिआ़यत मुक़द्दम है यानी पहले नमाज़ पढ़ ले और अगर नमाज़ के बीच में यह हालात पैदा हो जाए और वक़्त में गुंजाइश हो तो तोड़ देना वाजिब है अगर उसी तरह पढ़ ली तो गुनहगार हुआ!
*📗 बहारे शरीअ़त हिस्सा 3 सफ़ह 135*
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❐ सवाल ❐ ➻ सर्दी में अपने घर व़ुजू के लिए मस्जिद से गर्म पानी ले जाना कैसा है!?
❐ जवाब ❐ ➻ अपने घर व़ुजू के लिए मस्जिद से गर्म पानी ले जाना *हराम है* !
*📗अल मल्फ़ूज़ (हिस्सा चहारूम) सफ़ह 342*
❐ सवाल ❐ ➻ शैव (दाढ़ी मुंडवाना) से तो चेहरा नूरानी हो जाता है और दाढ़ी से बे रौनक ऐसा बोलना कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ शैव (दाढ़ी मुंडवाना) से तो चेहरा नूरानी हो जाता है और दाढ़ी से बे रौनक यह कलमा कुफ्रिया है।
📗 ख़्वाजा गरीब नवाज़ कुफ्रिया अक़्वाल का बयान सफ़ह 4
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❐ सवाल ❐ ➻ काफ़िर को त़ोहफ़ा(ग़िफ्ट) देना कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ काफ़िर से कलब़ी मोहब्बत करना और इन्हें तोहफा(ग़िफ्ट) देना *नाजाइज़ ओ हराम है!*
*📗 फ़तावा मसाईले शरियह़ जिल्द अव्वल सफ़ह न 403*
❐ सवाल ❐ ➻ नमाज़ पढ़ते वक़्त एक रूक्न में दो बार जेब के ऊपर से मोबाइल की घंटी बंद करने से नमाज़ पर क्या हुक़्म है!?
❐ जवाब ❐ ➻ नमाज़ हो जाएगी!
*📗 मोबाइल फोन के जरूरी मसाईल सफ़ह न 113*
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❐ सवाल ❐ ➻ स़य्यद अगर फ़ासिक वो फ़ाज़िर और ज़ानी व श़राबी और सिनेमा देखने वाला हो तो उसकी त़ाअज़ीम करना कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ स़य्यद अगर फ़ासिक वो फ़ाज़िर और ज़ानी व श़राबी और सिनेमा देखने वाला हो तो भी उसकी त़ाअज़ीम करना हम पर *वाज़िब है*!
*📗 फ़तावा मसाईले शरियह़ जिल्द अव्वल*
❐ सवाल ❐ ➻ अग़र कोई औरत अपने बालों में लोहे का क्लिप लगाकर नमाज़ पढ़े तो उसकी नमाज़ पर क्या हुक्म़ होगा!?
❐ जवाब ❐ ➻ औरत को अपने बालों में लोहे का क्लिप लगाना जाइज़ है और उसको लगाकर नमाज़ पढ़े तो उसकी *नमाज़ हो जाएगी*!
*📗 ज़ियाए शऱीअत जिल्द अव्वल सफ़ा 42*
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❐ सवाल ❐ ➻ मुसलमान को राख़ी ब़ैचना कैसा है !?
❐ जवाब ❐ ➻ राखी की तिजारत करना नाजाइज़ व गुनाह है!
*📗 ज़ियाए शऱीअत जिल्द अव्वल सफ़ा 85*
❐ सवाल ❐ ➻ अपनी जरूरतों से बहुत ज्यादा माल व दौलत कमाना इस नियत से की माल की अधिकता गर्व व घमंड से हो तो कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ अपनी जरूरतों से बहुत ज्यादा माल व दौलत कमाना यदि इस नियत से हो कि फ़कीरों व मिसकिनो और अपने रिश्तेदारों की मदद करेंगे तो यह मुस्तहब बल्कि नफ़ली इबादतो से भी अफ़ज़ल है और यदि इस नियत से हो कि मेरे मान सम्मान में वृद्धि होगी तो यह भी मुबाह है लेकिन यदि माल की अधिकता गर्व व घमंड की नियत से हो तो यह मना है!
*📗 जन्नती ज़ेवर सफ़ह 297*
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❐ सवाल ❐ ➻ जो इमाम कव्वाली सुनता हो उसके पीछे नमाज पढ़ने पर क्या हुक्म होगा!??
❐ जवाब ❐ ➻ आवाम में जो जाहिलाना बात मशहूर है की दाढ़ी रखना सुन्नत है और ना रखेगा तो कोई गुनाह नहीं हालांकि ज्यादा हदीसो में इसकी ताकीत आई है और इमामे आज़म अबू हनीफा अलैहिरहमां के नजदीक दाढ़ी रखना वाजिब है मुंडाना या एक मुश्त (मुट्ठी) से कम रखना हराम है।
❐ ➻ इसी तरह यह भी मशहूर है कि बुजुर्गों ने चिश्त भी ढ़ौल सारंगी वगैरह हराम बाजों के साथ कव्वाली सुनते थे *معاذ الله* यह बात उन पाक बुजुर्ग पर बिल्कुल झूठी तोहमत है, इन बुजुर्गों की कव्वाली मजामीर (ढोल सारंगी वगैरह हराम गाजों बाजों से) पाक थी यहां तक कि कव्वाल को तालियां बजाने की भी इजाजत नहीं थी,(जो तफ़सील देखना चाहे वह हजरत निजामुद्दीन औलिया के खलीफा की लिखी हुई किताब 📗फवाई दुल फवाद शरीफ़ और आला हजरत के फ़तावा रज़वीया को पढ़ें)
❐ ➻ लिहाजा जो शख्स चाहे कैसा ही पीर फकीर हो जो कव्वाली सुनता हो उसके पीछे नमाज़ पढ़ना हराम है और पढ़ी हो तो दोहराना वाजिब है और फिर भी बगैर तोबा किए छुटकारा नहीं, और खुदा का गजब यह है कि ऐसे लोग (पीर) इस हराम को कव्वाली को हलाल कहते हैं और जो शख्स हराम को हलाल ठहराए है वह काफिर हो जाता है काश हराम को हराम ही कहते तो ईमान तो ना जाता।
❐ ➻ हदीस शरीफ में है की फरमाया हुजूर ﷺ ने ऐसा जमाना आने वाला है कि लोग हलाल ठहरा लेंगे जीना को और बाजों को हराम कार को इमाम या पीर बनाना ही हराम है ऐसी जहालत से बचो उन्हें छोड़कर किसी अच्छे पाबंद शरीअत साहीबे सिलसिला अकाइद का अच्छा आलिम गैर फा़सिक पीर से बैअत करनी चाहिए, किसी शख्स की इमामत से लोग किसी शरई वजह से नाराज हो तो उसका इनाम बनाना ही हराम है।
*📗 अताए रसूल ﷺ या नमाज़े रसूल ﷺ सफ़ह 174,175*
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❐ सवाल ❐ ➻ किसी मिस्कीन ने अपनी मोहताजी व परेशान हाली को देखकर यह कहा कि ए खुदा फ़ला भी तेरा बंदा है उसको तूने कितनी नेअमतें दे रखी है और मैं भी तेरा बंदा हूं मुझे किस कदर रंज व तकलीफ देता है ऐसा कहना कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ किसी मिस्कीन ने अपनी मुहताजी वह परेशान हाली को देखकर यह कहा की ए खुदा फ़ला भी तेरा बंदा है उसको तूने कितनी नेअमतें दे रखी है और मैं भी तेरा बंदा हूं मुझको किस कदर रंज व तकलीफ देता है आखिर यह इंसाफ है ऐसा कहना कुफ्र है!
❐ ➻ किसी से कहा की इंशा अल्लाह तुम इस काम को करोगे उसने कह दिया अजी मैं बगैर इंशाल्लाह करूंगा काफिर हो गया।
❐ ➻ कोई शख्स बीमार नहीं होता या बहुत बुढ़ा है मरता नहीं इसके लिए यह कहना कि इसे अल्लाह मियां भूल गए या किसी जुबान दराज आदमी से यह कहना की खुदा तुम्हारी जुबान का मुकाबला कर ही नहीं सकता फिर मैं किस तरह मुकाबला कर सकता हूं अल्लाह तआला के लिए दोनों अल्फाज बोलने कुफ्र है!
*📗 खाने पीने की सुन्नतें सफ़ह 278,279*
*📗 जन्नती ज़ेवर सफ़ह 124,125*
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*• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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❐ सवाल ❐ ➻ आम़ त़ौर पर क़ाला ज़ुता और और क़ाली पेन्ट पहनना कैसा है!?
❐ जवाब ❐ ➻ आम तौर पर काला जूता और काले कपड़े पहनने में कोई हर्ज नहीं है!
*📗फतावा फख़रे अज़हर ज़िल्द 2 सफ़ह 356*
❐ सवाल ❐ ➻ सफेद बालों को उखाड़ना कैंची से चुनकर निकलवाना कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ सफेद बालों को उखाड़ना कैंची से चुनकर निकलवाना मक़रुह है!
❐ ➻ हां अगर मुजाहिद इस नियत से ऐसा करे कि कुफ़्फार पर उसका रोअ़ब तारी हो तो जाइज़ है!
*📗 बहारें शरीअत हिस्सा 16 सफ़ह 647*
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❐ सवाल ❐ ➻ यह कैहना कैसा है के अल्लाह तआ़ला सोचता होगा या सोचता है या समझता है या समझेंगा!?
❐ जवाब ❐ ➻ यह कैहना के अल्लाह तआ़ला सोचता होगा या सोचता है या समझता है या समझेंगा *कुफ़्र है*!
*📗 फतावा शारह ब़ुखारी ज़िल्द 1सफ़ह 162 / फतावा मसाइले शरियह़ जिल्द 1सफ़ह 84*
❐ सवाल ❐ ➻ एक मुश्त दाढ़ी रखना कैसा है!?
❐ जवाब ❐ ➻ एक मुश्त़ दाढ़ी रखना वाजिब है!
*📗 फतावा बरकात़े रज़ा सफ़ह 234*
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❐ सवाल ❐ ➻ दुनिया की बातों के लिए मस्जिद में जा कर बैठना कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ दुनिया की बातों के लिए मस्जिद में जाकर बैठना हराम है!
*📗 फ़तावा बरकाते रजा़ सफ़ह 281,282*
❐ सवाल ❐ ➻ बंदर नचाना और उसका तमाशा देखना कैसा है??
❐ जवाब ❐ ➻ बंदर नचाना हराम है और उसका तमाशा देखना भी हराम है आज-कल लोग इनसे गाफिल है मुत्तकी लोग जिनको शरीअत की एहतियात है नावाकफी से रीछ या बंदर का तमाशा या मुर्गे की पाली देखते हैं और नहीं जानते कि इससे गुनहगार होते हैं।
❐ ➻ हदीस में इरशाद है कि अगर कोई मजमा खैर का हो और वह ना जाने पाया और खबर मिलने पर उसने अफसोस किया तो उतना ही सवाब मिलेगा जितना हाजिरीन को।, और अगर मजमा शर का हो उसने अपने न जाने पर अफसोस किया तो जो गुनाह उन हाजिरीन पर होगा वह उस पर भी होगा!
*📗 फै़जाने आला हज़रत सफ़ह 159*
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❐ सवाल ❐ ➻ बाज नौजवान जो आपस में कीचड़ से खेलते हैं एक दूसरे के मुंह पर कीचड़ मलते हैं हंसी से किसी के सोते में उसके मुंह पर कालक या स्याही लगाते हैं इस पर क्या हुक्म है!?
❐ जवाब ❐ ➻ बिला जरूरत दवा मुंह पर कोई ऐसी चीज मलना जिससे सूरत बिगड़ जाए ना जाइज है, बाज नौजवान जो आपस में कीचड़ से खेलते हैं एक दूसरे के मुंह पर कीचड़ मलते हैं हंसी से किसी के सोते में उसके मुंह पर कालक या स्याही लगाते हैं यह सब हराम है और उस से परहेज फ़र्ज़ है!
*📗 फै़जाने आला हज़रत सफ़ह 148*
❐ सवाल ❐ ➻ बाज लोग खुदा का वास्ता देकर मांगते हैं यानी वह कहते हैं कि खुदा के वास्ते कुछ दे दो व बाज़ फ़कीर भी इसी तरह सवाल करते हैं हालांकि इस तरह मांगना जाइज़ नहीं लेकिन अगर कोई इस तरह मांगे तो उसको देना कैसा है!?
❐ जवाब ❐ ➻ बाज लोग खुदा का वास्ता देकर मांगते हैं यानी वह कहते हैं कि खुदा के वास्ते कुछ दे दो व बाज फकीर भी इसी तरह सवाल करते हैं हालांकि इस तरह मांगना जायज नहीं लेकिन अगर इस तरह मांग ही ले तो जरूर देना चाहिए, हदीस में ऐसे शख्स को मलऊन कहा गया है जो खुदा का वास्ता देकर मांगे और उसे भी मलऊन कहा गया है जिससे खुदा का वास्ता देकर मांगा जाए और वह ना दे
रसूलल्लाह ﷺ फरमाते हैं मलऊन है जो अल्लाह का वास्ता देकर कुछ मांगे और मलऊन है जिससे खुदा का वास्ता देकर मांगा जाए फिर वह उस साइल को ना दें जबकि उसने कोई बेजा सवाल ना किया हो।
*📗 फै़जाने आला हज़रत सफ़ह 223,224*
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❐ सवाल ❐ ➻ मुर्गी या मुर्गें का चमड़ा यानि (ख़ाल) खाना कैसा है!?
❐ जवाब ❐ ➻ मुर्गे या मुर्गी का चमड़ा यानी (खाल) खाना जाइज़ है आला हजरत इमाम अहमद रजा खान रजि अल्लाहु तआला अन्हु ऐसे ही एक सवाल के जवाब में इरशाद फरमाते हैं वह हलाल जानवर की खाल हलाल है खाना ममनूअ़ नही है हां भैंस बकरी की खाल खाने के काबिल नहीं होती!
*📗 फ़ता़वा मरक़जे़ तरती़ब इफ़्ता सफ़ह 309*
❐ सवाल ❐ ➻ जो शख्स की पागल ना हो और बालिग हो और जमाअत से नमाज पढ़ने की कुदरत रखता हो तो उस पर जमाअत का क्या हुक्म है!??
❐ जवाब ❐ ➻ जो शख्स की पागल ना हो और बालिग हो और जमाअत से नमाज़ पढ़ने की कुदरत रखता हो तो उस पर जमाअत *वाजिब है* एक भी बार छोड़ने वाला गुनाहगार सजा के लाइक है और कई बार छोड़े तो फासिक है उसकी गवाही नहीं मानी जाएगी और उस को कड़ी सजा दी जाएगी अगर पड़ोसी चुप रहे यानी जमाअत में शरीक होने की ताकीद नहीं की तो वह भी गुनहगार होंगे!
*📗 अनवारूल हदीस सफ़ह 104*
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❐ सवाल ❐ ➻ अजमेर शरीफ दरगाह का या किसी भी दरगाह व मज़ार का धांगा(डोरा) हाथ में बांधना कैसा है!?
❐ जवाब ❐ ➻ अजमेर शरीफ या किसी भी दरगाह या मज़ार का धागा हाथ में बांधना जाइज़ नहीं की इसमें मुशरीकिन ( काफ़िरों) से मुशाबत है वह भी अपने तीर्थ स्थानों से इसी किस्म के धागे लाकर बांधते हैं नीज़ उनका एक त्योहार रक्षाबंधन है जिसमें इसी किस्म के धागे बांधे जाते हैं हाथ में धागा डोरा बाँधना ना जाइज़ व गुनाह है चाहे किसी भी दरगाह या मजार का हो!
*📗 फ़तावा मरक़जे़ तरती़ब इफ़्ता जिल्द 2 सफ़ह 436*
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❐ सवाल ❐ ➻ एक मुसलमान दूसरे मुसलमान से कर्ज़ लेता है कुछ वक्त के लिए और वक्त पूरा होने के बाद पैसो को लौटाने पर का़दिर भी है मगर टालमटोल करता है देरी करता है और दूसरी जगह फि़जूल खर्ची करता है तो अब दूसरे मुसलमान को इसे बुरा भला या इस पर ताना तशनी बेज्ज़ती करना कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ एक मुसलमान दूसरे मुसलमान से क़र्ज़ लेता है कुछ वक़्त के लिए, और वक़्त पूरा होने के बाद, पैसों को लौटाने पर क़ादिर भी है, मगर टालमटोल करता है, देरी करता है, और दूसरी जगह फ़िज़ूल खर्ची करता है, तो अब दूसरे मुसलमान को इसे बुरा भला या इस पर ताना तशनी, बेज़्ज़ती करना जाइज है!
❐ ➻ इमाम अहमद रज़ा खान अलैहिर्रहमा इरशाद फरमाते है : क़र्ज़ उतारने पर क़ादिर शख्स का, क़र्ज़ उतारने में कोताही करना, उसकी आबरू को हलाल कर देता है यानी उसे बुरा कहना उस पर तान व तशनीह (बे इज़ज़्ती) करना जाइज़ हो जाता है, और गनी का देर लगाना ज़ुल्म है।
❐ ➻ हदीस में है : मुनाफिक़ की तीन निशानियां हैं, जब बात करे तो झूट बोले, जब वादा करे तो उसका खिलाफ करे, और जब उसके पास अमानत रखवाई जाए तो उसमें खयानत करे। पूछी गई सूरत में ज़ैद फसीको फाजिर, गुनाहे कबीरा का मुरतक़िब और अज़ाब का हक़दार है।अगर ये इसी हालत में मर गया और लोगों का क़र्ज़ इस पर बाक़ी रहा तो उसकी नेकियां इनके मुतालबे में दी जाएंगी, और मालूम है किस तरह दी जाएंगी, तकरीबन 3 पैसे क़र्ज़ के बदले में 700 नमाज़े बजमाअत जो उसने पढ़ी हैं वो देनी पड़ेगी। और जब इसके पास नेकी खत्म हो जाएगी तो कर्ज़ख़्वाह के गुनाह इसके सर पर डाल दिये जाएंगे और आग में फेंक दिया जाएगा।
❐ ➻ अल्लाहु अकबर, कितनी सख्त वईद आई है ऐसे लोगों पर, सद अफसोस की बात है किसी का हम क़र्ज़ ले कर बे फिक्र हो जाते है ज़रा भी नहीं सोचते कि हमे उस शख्स ने किस मौक़े पर पैसे दिए थे, बस लेते वक़्त गिड़गिड़ाते है कि क़र्ज़ दे दो, और जब मिल गया अपना काम बन गया तो फिर ऐसे भूल जाते है जैसे कि सामने वाले नहीं बल्कि मैने एहसान किया (استغفرالله) और लेने के बाद वापस करना गोया सामने वाले पर एहसान करना समझते है, और जब सामने वाले कभी हमारी किसी के सामने बे इज़्ज़ती करता है तो हमे अच्छा नहीं लगता शर्मिंदगी महसूस होती है, मेरे भाइयों ऐसा करना ही क्यों?? जब हमारे पास वापस करने का पैसा हो जाए तो हमे चाहिए कि पहले सामने वाले का क़र्ज़ अदा करें, और इस से हम पर सामने वाले का विश्वास भी रहेगा, और कभी आइंदा ज़रूरत पड़े तो फिर मांग भी सके, वरना जब पैसा होते हुए भी लेट करेंगे और वह बे इज़्ज़ती करेंगे, तो बताए क्या वह दुबारा हमे देगा ? (हरगिज़ नहीं)!
*📗 फ़तावा रज़विया जिल्द 23 सफ़ह 586*
*📗 क्या आपको मालूम है जिल्द 2 सफ़ह 295*
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❐ सवाल ❐ ➻ क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मस्अले में के कीसी को नमस्ते या नमस्कार करना व बोलना कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ नमस्ते या नमस्कार करना हराम व गुनाह है!
*📗 फ़तावा फ़ख़रे अजहर जिल्द 1 सफ़ह 100*
❐ सवाल ❐ ➻ रास्ते की कीचड़ जबकि उसका नजिस होना मालूम ना हो तो अगर पांव या कपड़े पर पड़ी हो और बे धोए नमाज पढ़ ली तो नमाज पर क्या हुक्म होगा!?
❐ जवाब ❐ ➻ रास्ते की कीचड़ पाक है जबकि उसका नजिस हो ना मालूम ना हो तो अगर पांव या कपड़े में लगी और बे धोए नमाज़ पढ़ ली तो हो गई मगर धो लेना बेहतर है!
*📗 बहारें शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 83*
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❐ सवाल ❐ ➻ मोबाइल में स्टेटस(Status) पर कव्वाली लगाना या मोबाइल पर कव्वाली सुनना कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ मोबाइल में स्टेटस(Status) पर कव्वाली लगाना या मोबाइल पर कव्वाली सुनना ना जाइज़ ओ हराम है!
❐ ➻ गाना बजाने व फिल्में देखने के साथ-साथ अब मोबाइल पर कव्वाली सुनना भी बहुत आम हो गया है इस सिलसिले में शरीयत मुतहरा हुकुम, मजामीर और ढोल व तबलों के साथ कव्वाली सुनना सरासर नाजाइज है लिहाजा मोबाइल पर कव्वाली सुनना और देखना नाजाइज है आजकल कव्वाली मजामीर और ढोल व तबलों से खाली नहीं होती इसी तरह कव्वाली सुनना मोबाइल पर और मोबाइल के अलावा दूसरे तरीके से बहर सूरत नाजाइज़ है! फ़तावा आलमगीरी में है : समआ कव्वाली और रक्श़ जो आज कल शुफ़ी बनने वाले करते हैं यह सब हराम है
*📗 मोबाईल फोन के जरूरी मसाईल सफ़ह 106 व 107*
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❐ सवाल ❐ ➻ ख़ुत्बा मे हुजूरे अक़दस ﷺ का नामे पाक सुनकर दिल मे दुरूद पढ़े ज़बान से सुकूत या'नी खामोश रहना क्या है!??
❐ जवाब ❐ ➻ ख़ुत्बा मे हुजूरे अक़दस ﷺ का नामे पाक सुनकर दिल मे दुरूद पढ़े ज़बान से सुकूत या'नी खामोश रहना फ़र्ज़ है!
❐ ➻ जब इमाम (ख़तीब) ख़ुत्बा पढ़ रहा हो उस वक़्त वजीफा़ पढ़ना मुत्लकन ना जाइज़ है और नफ़्ल नमाज़ पढ़ना भी गुनाह है, ख़तीब ने खु़त्बा के दौरान (दरमियान) मुसलमानों के लिए दुआ की तो (सामेईन) सुनने वाले को हाथ उठाकर आमीन कहना मना है करेंगे तो गुनहगार होंगे!
*📗 मोमिन की नमाज़ सफ़ह 219*
*📗फ़तावा रज़वीया जिल्द ३, सफ़ह ७०४*
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❐ सवाल ❐ ➻ बुजुर्गाने दीन की कदम बोसी (पांव चूमना) करना कैसा है?
❐ जवाब ❐ ➻ उलमा और सुलहा और अपने पीर के हाथ पाँव अक़ीदत व मुहब्बत में चूमना जाइज़ है मगर औरतों को उलमा या अपने पीर के हाथ पाँव चूमना मना है हाँ अगर औरत जईफ है जिस से अंदेशा फसाद नहीं हो तो वह चूम सकती है, लेकिन बेहिजाबाना नहीं बल्कि पर्दा के साथ हो, आजकल जुह्हाल में बाज़ जुह्हाल पीर बने फिरते है अजनबी औरत से खिदमत लेते, उन से बेहिजाब बातचीत करते और औरतों को ख़्वाह वह जवान हो या ज़ईफ़ा मुसाफहा और दस्त बोसी वगैरह का मौका देते है, यह सख्त हराम व नाजाइज़ है,और बाज़ पीर ऐसे भी है जिनको उनके मुरीदीन सजदा करते हैं हालांकि शरीअते मुहम्मदी अली साहिबहा अत्तहियतु वस्सना में गैरुल्लाह को सज्दा हराम है,अगर ताज़ीम व तक़रीम और तहियत के लिए सज्दा किया जाए तो यह हराम है और अगर इबादत के तौर पर सज्दा हो तो यह कुफ्र है!
❐ ➻ बुजुर्गाने दीन की कदम बोसी और सज्दा ए तहियत से मुतअल्लिक एक सवाल के जवाब में आला हजरत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी कुद्देसा सिर्रहू तहरीर फरमाते है : बुजुर्गाने दीन की कदम बोसी बिला शुबह जाइज़ बल्कि सुन्नत है बकसरत अहादीस से साबित है कि सहाब ए किराम رضی اللہ تعالٰی عنہم ने हुजूर ﷺ के पाए मुबारक चूमे और हुजूर ﷺ ने मना न फरमाया।
*📙 फ़ैज़ाने आला हजरत सफा 306*
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❐ सवाल ❐ ➻ जुमुआ के दिन अगर किसी का इन्तेकाल हो जाये, जुमुआ से पहले अगर तजहीज़ व तकफीन कर सख्ता है लेकिन जनाज़े को इस बिना पर रोके रखना कि जुमुआ के बाद मज़मा ( भीड़ ) ज़्यादा होगा तो ऐसा करना शरअन कैसा है.!?
❐ जवाब ❐ ➻ *भीड़ की वजह से जनाजा देर तक रोकना :-* अगर जुमुआ के दिन किसी का इंतकाल हुआ तो अगर जुमुआ से पहले तजहीज़ व तकफीन हो सके तो पहले ही कर लें! इस को रोके रखना कि जुमुआ के बाद मजमा भीड़ ज़्यादा होगा! ऐसा करना *मकरूह* हैं।
*📚 बहारे शरीअत, हिस्सा- 3- मैय्यत का बयान*
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❐ सवाल ❐ ➻ हुज़ूर अलैहिस्सलाम के फरमान के मुताबिक़ अल्लाह के नज़दीक सबसे ज़ायादा क़ाबिले नफरत कौन से लोग है?
❐ जवाब ❐ ➻ हुज़ूर नबी ए करीम ﷺ ने फरमाया: अल्लाह के नज़दीक सबसे ज़्यादा क़ाबिले नफरत वह लोग है जो झगड़ने में सबसे बढ़ चढ़ करें।
*📙 तिर्मिज़ी शरीफ़ व नसाई शरीफ*
*सबक़ ❐ ➻* ग़ौर करने की बात है कि अल्लाह उन लोगों से ज़्यादा नफरत करता है जो झगड़े में सबसे बढ़ चढ़ कर हो। इस हदीस से हमें यही सबक़ मिलता है कि हमें झगड़े में नहीं पड़ना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि आपस में झगड़े न हो और अगर कोई वजह हो तो उस वजहे को दूर करें न कि झगड़ा शुरू करदे क्योंकि इससे किसी को किसी क़िस्म का कोई फाइदा नहीं सिवाए नुक़्सान के और वो नुक़्सान क्या है हमने उसके ताल्लुक़ से एक हदीस पढ़ ही ली, जहाँ तक हो सके झगड़े को सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए।
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❐ सवाल ❐ ➻ शौहर अगर बीवी को तलाक़ दे तो तलाक़ के अलफ़ाज़ का औरत के लिए सुनना और औरत को तलाक के वक़्त सामने होना ज़रूरी है क्या!!??
❐ जवाब ❐ ➻ कुछ लोग समझते हैं कि शौहर अगर बीवी को तलाक़ दे तो तलाक़ के अलफ़ाज़ का औरत के लिए सुनना और औरत को तलाक के वक्त सामने होना ज़रूरी है, यह ग़लतफहमी है। औरत अगर न सुने और वहाँ मौजूद भी न हो तब भी शौहर के तलाक़ देने से तलाक़ हो जायेगी चाहे शौहर और बीवी में हज़ारों मील का फ़ासिला हो
❐ ➻ आलाहज़रत इमामे अहले सुन्नत सय्यिदी शाह अहमद रज़ा ख़ाँ साहब रदियल्लाहु तआला अन्हु इरशाद फरमाते हैं : "तलाक़ के लिए औरत का वहाँ हाज़िर होना कोई शर्त नहीं!
📙फ़तावा रज़विया जिल्द ५ सफा ६१८
*📙 ग़लत_फहमियां_और_उनकी_ इस्लाह.सफ़ा 77*
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*• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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❐ सवाल ❐ ➻ ज़ैद पर गुस्ल फर्ज़ है और वो पाक कपड़ा पहना हुआ है मगर उसके पसीने से वो कपड़ा मस हो गया अब ज़ैद गुस्ल करके दोबारा वो कपड़ा पहनकर नमाज़ पढ़ा शरअन उसके नमाज़ का क्या हुक्म है?
❐ जवाब ❐ ➻ *मसअला :-* पाक कपड़े पहनने से महज़ हालते जनाबत में पहनने से नापाक नहीं होता, वोह बाद में गुस्ल करके पाक होकर और दोबारा वही लिबास पहनकर नमाज़ पढ़ सकता है। इन्सान का पसीना भी नापाक नहीं होता लिहाज़ा हालते जनाबात में किसी को पसीना आ गया और पाक कपड़ा बदन से मस हो गया तो नापाक नहीं होगा, इसी तरह बीवी या शौहर में से कोई एक नापाक है और दूसरे का बदन उससे मस हो गया तो वह उससे नापाक नहीं होगा अलबत्ता अगर बदन पर मनी ता खून का धब्बा है और पाक कपड़ा पहन लिया है और पसीना आने से वह नापाकी कपड़े पर लग गई तो कपड़े के उस हिस्से को धो कर पाक कर लें, बाक़ी लिबास पाक रहेगा।
*📙 तफ्हीमे मसाईल जिल्द 02 सफ्हा 65*
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*• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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❐ सवाल ❐ ➻ एक मस्जिद में कोई सामान हाजत से ज़्यादा हो (मसलन दरिया या वुजू करने के लुटे या कोई और चीज़) तो क्या उसे दूसरी मस्जिद में दे सकते हैं!??
❐ जवाब ❐ ➻ एक मस्जिद की जायदाद और वक्फ की आमदनी दूसरी मस्जिद के मूसारीफ में खर्च करना हरगिज जायज नहीं यहां तक अगर एक मस्जिद में लौटे हाजत से ज़्यादा हो और दूसरी में लौटे नहीं तो भी एक मस्जिद के लोटे दूसरी मस्जिद में भेजने की इजाजत नहीं।
*📚 मोमिन की नमाज़, सफ़ा- 272*
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❐ सवाल ❐ ➻ क्या फरमाते है उलमाए किराम इस मसअले के बारे में कि : बिला (बिना) इजाज़त किसी का फोन (Mobile) लेना, और उसके व्हाट्स ऐप का मैसेज देखना, पढ़ना, या छुपके से उसके गैलरी में से फोटो देखना या अपने फोन में बिना उसकी इजाज़त से कॉपी करना (ले लेना) कैसा है ???
❐ जवाब ❐ ➻ देखने के लिए फोन लेने में हर्ज नहीं, मगर फोन हाथ में आते ही उसके मैसेज देखना, व्हाट्स ऐप का मैसेज देखना और पढ़ना या उसके पर्सनल फोटो गैलरी में चोरी (छुपके) से फोटो वगैरा चेक करना हराम है, हदीस में इसकी मुमानिअ़त आई (है) कि बिना इजाज़त किसी का खत़ पढ़ना मना है, और मैसेज इलेक्ट्रॉनिक खत़ के ही हुक्म में है, इसी तरह किसी का मैसेज या कोई भी किताब तहरीर चोरी से पढ़ना हराम है, और ऐसा करने वाले ने गुनाहे कबीरा किया जहन्नम का हक़्दार बना और इस काम से आइंदा तौबा करना लाज़िम है!
❐ ➻ हदीस में फरमाया : जो अपने भाई (मुसल्मान) का खत बे उसकी इजाज़त के देखे, वह बिला शुबा आग देख रहा है, आला हज़रत अलैहिर्रहमा तहरीर फरमाते हैं : बे उसकी इजाज़त के लिफाफा चाक (खत खोलना) गैर की मिल्क में तसर्रुफ है, नाजाइज़ हुआ कि शरअन हराम है!²
❐ ➻ इस से पता चला कि बिला इजाज़त किसी के फोन में मैसेज का पढ़ना गुनाह है, और इसी तरह किसी की पर्सनल डायरी कॉपी वगैरा का हुक्म है¹!
*सबक :-* एक ज़माना था जब लोग अपने ऐबों पर नज़र रखते और अपने ऐबों से खौफ़ खाते थे, और एक आज का ज़माना है, मुझे तो ये समझ में नहीं आता कि आखिर लोगों को क्या मिलता है दूसरों की ज़िंदगी मे ताँका झांकी करने से, सामने वाला जो कर रहा है वो उसके और उसके रब के बीच का मुआमला है तुम्हें क्या पड़ी हुई है उसके बातिनी ऐबों या (नफ्ली) आ'माल को देखने का ?
और तुम्हें यह हक़ किसने दिया कि बिना इजाज़त के सामने वाले का फोन के अंदर चेक करो, तुम उसके वाट्सएप्प के मैसेजेस देख रहे हो, क्या तुम्हे नहीं मालूम कि बिना इजाज़त दूसरे का खत पढ़ना बहुत बड़ा गुनाह है, ये एक क़िस्म की बीमारी हो गई है लोगों में, इसी तरह किसी का भी फोन मिला तो फौरन उसकी गैलरी में घूसेंगे, अरे भाई उसके गैलरी में उसकी पर्सनल डाटा होगा, या हो सके उसके घर वालों की तस्वीर होगी, या कुछ खास वीडियो वगैरा होगी जो तुम्हें देखने जैसा न हो, और तुम देखो तो उसे नागवार गुज़रे, तुम कौन होते हो उसके पर्सनली चीज़ को देखने वाले ?
क्या तुम्हें नहीं पता कि हमारी शरीअ़त में दूसरे के घर मे झांकना मना है, तो ये गैलरी में झांकना क्योंकर जाइज़ होगा, एक बुज़ुर्ग ने धोके से किसी के घर मे नज़र डाल दी थी तो उन्होंने इसकी सज़ा के खौफ में अपनी आंखें निकाल दी, और एक आज के लोग हैं जो दूसरे के घर में या फोन में देखने से ज़रा भी बुरा नहीं समझते, और अपनी आंखे घुसा के बैठे हैं, खुदा का खौफ खाए और इस गुनाह से बाहर आए
अगर आज से पहले कभी किसी के मैसेज बिना इजाज़त पढ़े हो (जिस से उसे नागवार गुज़रे) या कोई उसकी पर्सनली मैसेज या इमेज वगैरा कॉपी किए हो तो यह हुक़ूक़ुल अ़ब्द है यानी बगैर बंदे के मुआ़फ किए मुआ़फ नहीं हो सकता लिहाज़ा पहले ऐसी गलती हो चुकी है तो तौबा करें और सामने वाले से भी मुआफी मांग कर मुआ़फ करवा लें, ताकि आखिरत के दिन बेहतरी हो, और दुबारा कभी किसी के फोन के अंदर उसके मैसेज देखने पढ़ने और गैलरी में घुसने से पहले आख़िरत की सज़ा एक मर्तबा ज़रूर ज़ेहन में याद कर ले! (वल्लाहु आ'लम व रसूलुहू आ'लम ﷺﷻ)
*📚 मसाइले शरीअ़त जिल्द 2 सफा 60 (Roman)*
*📚 फतावा रज़विय्या जिल्द 24 सफा 712*
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❐ सवाल ❐ ➻ बकर ने वुज़ू बनाकर मस्जिद के अन्दर हाथ व मुंह को पोंछा उस दरमिया कुछ पानी के कतरात मस्जिद में टपक रहे थे। बकर के इस फेल का शरअन क्या हुक्म है??
❐ जवाब ❐ ➻ मस्जिद को हर घिन की चीज़ से बचाना ज़रूरी है आज कल अक्सर देखा जाता है के वुज़ू के बाद मुँह और हाथ से पानी पोंछ कर मस्जिद में झाड़ते हैं ये नाजायज़ है।
*📙 बहारे शरीअत हिस्सा 03 सफ्हा 647*
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❐ सवाल ❐ ➻ ज़ैद ने जानबूझ कर एक वहाबी का निकाह पढ़ाया शरअन इसका क्या हुक्म है??
❐ जवाब ❐ ➻ *जानबूझ कर किसी वहाबी का निकाह पढ़ाने का हुक्म ⤵*
❐ ➻ फतावा बरेली शरीफ़ में है के देवबन्दी वहाबी का निकाह जानबूझ कर जिस इमाम ने पढ़ाया वह ज़रूर सख़्त गुनाहगार हराम कार है और जो लोग जानते हुए उस निकाह में शरीक व मुआवन हुए वह सब भी सख़्त गुनाहगार ठहरे सब पर तौबा लाज़िम है तौबा करें, और इमाम जब तक तौबा न करे उसके पीछे नमाज़ मकरूहे तहरीमी वाजिबुल एआदा होगी यानी पढ़नी गुनाह और फेरनी वाजिब है बाद तौबा सहीह उसके पीछे नमाज़ जायज़ है जब के और कोई वजह शरअई मानेअ इमामत न हो और येह निकाह न हुआ जब तक सब लोग तौबा न करे मुसलमान उनसे तर्के तआल्लुक़ करे और जो लोग ला इल्मी में शरीक व मुआवन हुए उन पर लाज़िम नहीं।
❐ ➻ फतावा फक़ीहे मिल्लत में है के देव बन्दी जानते हुए निकाह पढ़ाने के सबब इमाम मज़कूरह सख़्त गुनाहगार और फासिक़ है और ज़िना का दरवाज़ा खोलने वाला है उस पर लाज़िम है के ऐलानिया तौबा व इस्तिग़्फार करले निकाह मज़कूरह के बातिल होने का ऐलान आम करे और निकाहना पैसा भी वापिस करे, अगर वह वापिस न करे तो सब मुसलमान उसका बाइकॉट करें इमाम मज़कूरह के पीछे नमाज़ पढ़ना जायज़ नहीं के पढ़नी गुनाह और जो पढ़ली उसका दोहराना वाजिब है।
*📙 फतावा बरेली शरीफ सफ्हा 108 व 110*
*📙 फतावा फक़ीहे मिल्लत जिल्द 01 सफ्हा 441*
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❐ सवाल ❐ ➻ इसाले सवाब सिर्फ मुर्दों के लिए खास है या ज़िन्दों को भी किया जा सकता है!??
❐ जवाब ❐ ➻ बिल यक़ीन कुरआन व हदीस से ये साबित है कि अम्बिया किराम, शोहदा किराम और औलिया ए किराम ज़िन्दा है और ज़िन्दों के नाम ईसाले सवाब करना हदीसे पाक से साबित है। मिश्कात शरीफ सफ्हा 468 पर है के हज़रत सालेह बिन दरहम रद़िअल्लाहु अन्हु से हदीस मरवी है वह फरमाते है के हम हज के वासते मक्का मे पहुँचे तो हमें हज़रत अबू हुरैरा रद़िअल्लाहु ताअला अन्हु मिले और फरमाया के तुम्हारे शहर बस़रा के क़रीब एक बस्ती है जिसका नाम अब्लाह उस में एक मस्जिद इशार है लिहाज़ा तुम में से कौन मेरे साथ वादा करता है के उस मस्जिद में मेरे लिए 2 या 4 रकअत पढ़े और कहे के ये रकअतें अबू हुरैरा के वास्ते है। इस हदीस शरीफ से साबित हुआ के ज़िन्दों के नाम भी ईसाले सवाब किया जा सकता है।
❐ ➻ यक़ीनन अम्बिया, औलिया और शोहदा ज़िन्दा है उनके नाम ईसाले सवाब करना जायज़ और दुरुस्त है, क्योंकि फातिहा, नज़रो नियाज़ ईसाले सवाब सिर्फ मुर्दों के लिए खास नहीं है बल्के ज़िन्दों के लिए भी ये जायज़ है चुनान्चे फतावा फक़ीहे मिल्लत में है के, हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम के नाम फातिहा दिलाना जायज़ व दुरुस्त है।
*📙 मिश्कात शरीफ सफ्हा 468*
📙 *फतावा फक़ीहे मिल्लत जिल्द 01 सफ्हा 22 व 259*
*खुलासा:—* तो जो ये कहे कि फातिहा मुर्दों को के लिए खास है और आप लोग अम्बिया, शोहदा और औलिया के नाम से इसाल करते है तो गोया के वो मुर्दा है और उन्हें इसकी हाजत है माअज़अल्लाह! तो इस हदीस के तहत यही कहना है के हमारे फातिहा दिलाने से वो मुर्दा नहीं हुए क्योंकि फातिहा ज़िन्दों के लिए भी है और हमारे अम्बिया शोहदा और औलिया ब हयात है और उनके दरजात अल्लाह बलन्द फरमाता है। अल्लाह हमें सीधी राह पे गामज़न रखे आमीन 🤲🏻✨
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❐ सवाल ❐ ➻ ग़ैर मुस्लिमों को अक़ीक़ा की दावत देना कैसा है??
❐ जवाब ❐ ➻ ग़ैर मुस्लिमों के साथ दोस्ती और महब्बत के ताअल्लुक़ात क़ाइम करना ना जायज़ हैं ग़ैर मुस्लिमों की दावत करना या ग़ैर मुस्लिम की दावत क़ुबूल करना जायज़ नहीं।
*📙 वक़ारुल फतावा जिल्द 03 सफ्हा 238*
❐ ➻ मुसलमानों को मुतलक़न काफिरों से इजतिनाब चाहिए न के उन कुफ्फार से इतना ख़ल्त के उन की दावत में शिरकत हो। दूसरी जगह तहरीर फरमाते है के, उससे इतना मेल जोल के खाने पीने में शिरकत हो ना जायज़!
*📙 फतावा अम्जदिया जिल्द 04 सफ्हा 34 व 148*
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❐ सवाल ❐ ➻ एक बार जहन्नम ने अल्लाह तआला से शिकायत की के मेरे बाअज़ हिस्से बाअज़ हिस्सों की तपिश से फ़ना हो रहे हैं तो अल्लाह तआला ने उसे क्या जवाब दिया!??
❐ जवाब ❐ ➻ अल्लाह तआला ने जहन्नम को दो सांसों की इजाज़त अता कि एक गर्मी में और एक सर्दी में!
❐ सवाल ❐ ➻ दुनिया में जो आग इस्तेमाल करते है किया ये भी जहन्नम से आई है?
❐ जवाब ❐ ➻ जी जहन्नम की आग को सत्तर(70) मर्तबा रहमत के पानी से धो कर भेजा गया है!
*📚 मुस्तन्द इस्लामी मालूमात 111-112*
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❐ सवाल ❐ ➻ क्या देव बन्दी की नमाज़े जनाज़ा पढ़ने से तज्दीद ईमान व निकाह ज़रूरी है ??
❐ जवाब ❐ ➻ जो शख़्स किसी के दबाव, लिहाज़ या चापलोसी में देव बन्दी के जनाज़ा की सफ में खड़ा हो जाए लेकिन नमाज़ की निय्यत न करे तो उस का तौबा करना ज़रूरी है। और जो मुसलमान समझ कर उस की नमाज़ जनाज़ा पढ़े उस पर तज्दीदे ईमान व निकाह ज़रूरी है।
❐ सवाल ❐ ➻ क्या तब्लीगी जमाअत को मस्जिद में ठहरने और तकरीर करने की इजाज़त दी जा सकती है??
❐ जवाब ❐ ➻ तब्लीगी जमाअत वाले कलमा व नमाज़ के नाम पर मुसलमानों को गुमराह करते हैं, और उन को अल्लाह व रसूल की बारगाह का गुस्ताख़ बनाते हैं इस लिए कि उन का भी अक़ीदा वही है जो देवबन्दी का है लिहाजा तब्लीगी जमाअत को मस्जिदों में ठहरे और तक़रीर करने की इजाज़त हरगिज़ नहीं दी जा सकती है।
*📚 ईमान अफरोज फतावा सफा 10)*
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❐ सवाल ❐ ➻ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त शबो रोज़ कितनी रहमतें उलमा और तलबा पर नाज़िल फ़रमाता है!??
❐ जवाब ❐ ➻ हुज़ूर नबी ए करीम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि शबो रोज़ 999 रहमते अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त उलमा और तलबा पर नाज़िल फ़रमाता है और बाक़ी लोगों पर एक रहमत, उलूम ए दीनीयह के हुसूल में जिसे मौत ने आ लिया इस के और अम्बिया-ए-किराम علیہم الصلوۃ والسلام के दरमियान दर्जा ए नुबुव्वत के अलावा कोई चीज़ हाइल नहीं होगी। سبحان اللہ
❐ ➻ मेरे प्यारे आक़ा ﷺ के प्यारे दीवानों ! तालिबान ए उलूम ए दीनीयह और उलमा पर अल्लाह عزوجل कि करम नवाज़ी कि बारिशें तो देखो कि सब पर एक रहमत और तालिब ए इल्म और उलमा पर 999 रहमतें नाज़िल फ़रमाता है।
❐ ➻ लिहाज़ा उलमा कि सोहबत इख़्तियार करो ان شآء اللہ تعالی इनके तुफ़ैल कुछ रहमते हम पर भी बरस जाऐगी।
🤲🏻 परवरदिगार ए आलम हम सब को उलमा ए बा अमल कि सोहबत से इस्तेफादह कि तौफ़ीक़ अता फरमाए।
آمین ثم آمین
*📚 बरकाते शरीअत सफह 729*
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❐ सवाल ❐ ➻ जो शख्स मय्यत के खाने के इन्तिज़ार में रहता है और उस खाने के न मिलने पर न खुश होता है तो ऐसा खाना उसके दिल को क्या कर देता है !?
❐ जवाब ❐ ➻ कोई शख्स मय्यत के खाने के इन्तिज़ार में रहता है इस के न मिलने पर न खुश होता है तो बेशक ऐसा खाना उस के दिल को मुर्दा कर देता है।
❐ ➻ हुज़ूर अला हज़रात मुहद्दिस ए बरेलवी رحمۃ اللہ تعالی علیہ तेहरीर फ़रमाते हैं कि ये तजुरबे कि बात है और इस के मअना ये हैं कि जो मय्यत के खाने के इन्तिज़ार में रेहते हैं उन का दिल मर जाता है, ज़िक्र व इताअत ए इलाही के लिए हयात व चुस्ती इस में नहीं रेहती कि वह अपने पेट के लुक़मे के लिए मौत मुस्लिमीन के मुन्तज़िर रेहते हैं और खाना खाते वक़्त मौत से ग़ाफ़िल और इस कि लज़्ज़त में शगुल।
*📙 फतवा ए फख्रे अज़हर जिल्द 1 सफह 400*
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❐ सवाल ❐ ➻ घर की औरतें अपने छोटे बच्चों को किसी काजल या सुरमे वगैराह से उनके गाल पर काला टिका या छोटा नुकता लगाती है ताकि किसी की बुरी नज़र न लगे, इसकी क्या हक़ीक़त है_!??
❐ जवाब ❐ ➻ हमारा और आपका येह मुशाहेदा है की घर की औरतें अपने छोटे बच्चों को किसी कालिक, काजल या सुरमें वगैराह से उनके रुख़सार ( गाल ) पर काला टीका या छोटा नुकत लगाती है ताकि किसी की बुरी नज़र न लगे । ये बेअस्ल बात नहीं है *नजर का लगना हदीसों से साबित है* यानि बुरी नजर लगती है चुनान्चे हदीसे पाक में है की, रसुलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की नजर का लगना हक़ है अगर कोई चीज़ तकदीर पर गालिब होती है तो नज़र गालिब होती है।
*📚 तिर्मीज़ी शरीफ़, जिल्द-1, हदीस- 2137, सफ़ा- 949*
*📚 अल-कौलुल जमील, सफा- 150*
❐ ➻ और एक रिवायत में है की हजरत उस्मान गनी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने एक खूबसूरत बच्चे को देखा तो फ़रमाया इसकी ठुड्ड़ी में काला टीका लगा दो की इसको नजर न लगे।
*📚 अल-कौलुल जमील, सफा- 153 ]*
❐ ➻ तिर्मीज़ी शरीफ की एक रिवायत से साबित है की काला टीका बच्चे को बुरी नज़र से बचाता है, वल्लाहो आलम।
*📚 क़रीना-ए-जिन्दगी, सफा-190*
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❐ सवाल ❐ ➻ मस्जिद में अकसर परिन्दे अपना घोंसला बना देते है तो क्या मस्जिद की सफाई करते वक़्त उस घोंसले को हटा देना शरअन जायज़ है या नहीं!??
❐ जवाब ❐ ➻ कबूतर और चमगादड़ वग़ैरा के घोसले मस्जिद की सफाई के लिए नोचने में हर्ज नहीं। दुर्रे मुख़्तार जिल्द अव्वल सफ्हा 94 में है जिसका मफहूम है के और जो हदीस शरीफ में मरवी है के परिन्दों को उनके आशियाने में रहने दो भगाओ नहीं ये हुक्म "ग़ैर मसाजिद" के साथ खास है।
❐ ➻ *एहतियात:—* अगर मस्जिद या नमाज़ियों को कबूतर और उसके मिस्ल दीगर परिन्दे से कोई खलल या हर्ज शरई न हो तो निकालना बेहतर नहीं।
❐ ➻ *सूरते जवाज़:—* मस्जिद की सफाई के लिए परिन्दों का घोंसला निकाल देना जायज़ है। वल्लाहु ताअला आलम।
*📙 फतावा कादरिया सफ्हा 34*
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❐ सवाल ❐ ➻ रियाकारी किसे कहते हैं!??
❐ जवाब ❐ ➻ *रियाकारी की तारीफ़ :* अल्लाह पाक की रिज़ा के इलावा किसी और इरादे से इबादत करना रियाकारी है।
➦ *"रियाकारी" की चन्द मिसालें :* इल्मे दीन इस लिए हासिल करना कि इस के जरीए दुन्या का माल कमाए या लोगों में उस की वाह वाह हो। नमाज़ इस लिए पढ़ना कि लोग उसे नेक नमाज़ी समझें। हज इस लिए करना कि लोग उसे हाजी साहिब केह कर पुकारें। सखी मशहूर होने के लिए सदक़ा ओ खैरात करना वगैरा।
➦ *रियाकारी के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहम :* रियाकारी हराम और जहन्नम में ले जाने वाला काम है।, रिया की वजह से इबादत का सवाब नहीं मिलता बल्कि गुनाह होता है और येह शख़्स (यानी रियाकारी करने वाला) मुस्तहिके अज़ाब होता है। रिया से इबादत नाजाइज़ नहीं हो जाती (यानी ऐसा नहीं कि रियाकारी से नमाज़ पढ़ी तो उसे तर्के नमाज़ समझा जाए) बल्कि ना मक़बूल होने का अन्देशा होता है अगर रियाकार आखिर में रिया से (सच्ची) तौबा करे तो उस पर रिया की इबादत की क़ज़ा वाजिब नहीं बल्कि उस पर तौबा की बरकत से गुज़श्ता ना मक़बूल रिया की इबादात भी कबूल हो जाएंगी।
➦ *तर्जमए कन्जुल ईमान :*
*तो जिसे अपने रब से मिलने की उम्मीद हो उसे चाहिए कि नेक काम करे और अपने रब की बन्दगी में किसी को शरीक न करे।*
*📙 पारा 16 सूरह कहफ 110*
➦ यानी शिर्के अक्बर से भी बचे और रिया से भी जिस को शिर्के असगर केहते फ़रमाने मुस्तफा ﷺ बेशक जहन्नम में एक वादी है जिस से जहन्नम रोजाना 400 मरतबा पनाह मांगता है, येह वादी उम्मते मुहम्मदिय्या के उन रियाकारों के लिए तैयार की गई है जो कुरआने पाक के हाफ़िज़, गैरुल्लाह के लिए सदक़ा करने वाले, अल्लाह पाक के घर के हाजी और राहे खुदा में निकलने वाले होंगे।
➦ *रियाकारी के गुनाह में मुब्तला होने के बाज़ अस्बाब :* शोहरत की ख़्वाहिश, मज़म्मत (यानी लोगों के बुरा केहने) का खौफ, मालो दौलत की हिर्स, रियाकारी से बचने के लिए तन्हाई हो या हुजूम यक्सां अमल कीजिए मसलन जिस तरह खुशूअ व खुज़ू के साथ लोगों के सामने नमाज़ पढ़ते हैं तन्हाई में भी उस अन्दाज को काइम रखिए। अपनी नेकियों को भी इस तरह छुपाइए जिस तरह अपने गुनाहों को छुपाते हैं बिल खुसूस पोशीदा नेकी करने के बाद नफ़्स की खूब निगरानी कीजिए क्यूंकि हो सकता है नफ़्स में इस इबादत को ज़ाहिर करने की हिर्स जोश मारे और यूं रियाकारी में मुब्तला कर दे। रियाकारी के ख़ौफ़नाक अज़ाबात का मुतालआ कीजिए कि किसी भी मरज़ से बचने और उस का इलाज करने के लिए उस के मोहलिकात यानी तबाहकारियों का जानना मुफ़ीद होता है। अपनी निय्यत की हिफ़ाज़त कीजिए और हर जाइज़ व नेक अमल करने से पेहले अच्छी अच्छी निय्यतें करने की आदत बनाइए।
➦ *वज़ीफ़ा :* रोज़ाना येह दुआ तीन बार पढ़ लीजिए अल्लाह पाक छोटी बड़ी हर तरह की रिया से दूर रखेगा। दुआ येह है :
اللّٰهُمَّ اِنِّىْ اَعُوْذُبِكَ مِنْ اَنْ اُشْرِكَ بِكَ وَاَنَا اَعْلَمُ وَ اَسْتَغْفِرُكَ لِمَا لَااَعْلَمُ
*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह 81-82 📚*
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*• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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❐ सवाल ❐ ➻ क्या फरमाते़ है उल़मा ए किराम व मुफ्तियांने इजा़म इस मसअले मे कि, आजकल कुछ नौजवान लड़कें घुटनों से ऊपर वाली (नेकर या चड्डा) पहनकर घूमते हैं जिसमें रानें नज़र आती हो कैसा हैं!??
❐ जवाब ❐ ➻ मर्द के लिए नाफ़ से लेकर घुटने तक बदन का हिस्सा औरत (यानी शर्मगाह) है और इसका हमेशा पर्दे में रखना वाजिब है लिहाजा नौजवान लड़के ऐसा शॉर्टकट नेकर या चड्डा पहनते हैं जिनसें रानें या नाफ़ से नीचे बदन का हिस्सा बरहना रह जाता हो तो यह मकरूहे तहरीमी व नाजाइज़ हैं!
❐ ➻ ऐसे नौजवानों को समझाना चाहिए के वोह ऐसा लिबास पहनें जो सतरे शरई के लिए काफ़ी हो!
*📗 तफ़हीमुल मसाइल जिल्द 2 सफ़ह 389*
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❐ सवाल ❐ ➻ रब की रिज़ामन्दी किसकी रिज़ामन्दी में है और रब की नाराज़गी किसकी नाराज़गी में है!??
❐ जवाब ❐ ➻ हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर رضی الله تعالی عنه से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया अल्लाह की रिज़ामन्दी माँ बाप की रिज़ामन्दी में है और अल्लाह की नाराज़गी माँ बाप की नाराज़गी में है।
*📚 तिर्मिज़ी ज़िल्द 2 सफ़ह 12*
❐ ➻ मेरे प्यारे आक़ा ﷺ के प्यारे दीवानों हुज़ूर रहमते आलम ﷺ ने अल्लाह को राज़ी करनें का तरीक़ा बता दिया के अगर तुम चाहते हो के अल्लाह तुमसे खुश हो जाये तो आसान तरीक़ा ये है के तुम अपने माँ बाप को खुश रखो, माँ बाप को खुश रखना, उनको राज़ी रखना कोई मुस्क़िल बात नहीं है, बहुत सारे लोग सारी दुनिया को खुश रखने की फिक़्र में तो लगे रहते हैं लेकिन वालीदैन के मामले में निहायत ही लापरवाह होते हैं इसी तरहा दोस्तों की नाराज़गी पर फिक़्रमन्द होते हैं और वालिदैन की नाराज़गी पर कोई अफ़सोस नहीं करते, उन्हें हुज़ूर ﷺ के मज़्कुरह फरमान से सबक़ हासिल करना चाहिए कि वालिदैन की नाराज़गी दर हक़ीक़त अल्लाह अज्वज़ल की नाराज़गी है और उनको खुश करना दर असल अल्लाह को खुस करना है और जिससे अल्लाह राज़ी हो जाये उस को दोनों जहां की खुसियां हासिल हो गई, 🤲🏻 अल्लाह तबारक़ व तआला हुज़ूर ﷺ सद्क़े व तुफैल हम सबको अपने वलिदैन को खुश रखने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए! *आमीन*
*📚 बरकत ए शरीयत सफ़ह 397और 398*
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❐ सवाल ❐ ➻ इनमें से कौन वोह दरख्त है जिसकी ज़ड़ इन्सान के दिल में है और इसकी शाख दोज़ख में!??
❐ जवाब ❐ ➻ *दिल की सख़्ती का अन्जाम* अल्लाहु रहमान हम पर रहम फ़रमाए और हमारी ज़बान को लगाम नसीब करे कि येह ज़िक्रुल्लाह से गाफ़िल रह कर फुजूल बोल बोल कर दिल को भी सख्त कर देती है। अल्लाहु ग़नी के प्यारे नबी मक्की मदनी ﷺ का फ़रमाने इब्रत निशान है : फोहश गोई सख़्त दिली से है और सख़्त दिली आग में है।
❐ ➻ *बक बक की आदत कुफ्र में डाल सकती है!* मशहूर मुफस्सिरे कुरआन हकीमुल उम्मत हज़रते मुफ्ती अहमद यार खान रहमतुल्लाहि तआला अलैह इस हदीसे पाक के तहत फ़रमाते हैं : या'नी जो शख्स जबान का बेबाक हो कि हर बुरी भली बात बे धड़क मुंह से निकाल दे तो समझ लो कि उस का दिल सख्त है उस में हया नहीं। *सख्ती वोह दरख्त है जिस की जड़ इन्सान के दिल में है और इस की शाख़ दोज़ख में* ऐसे बे धड़क इन्सान का अन्जाम येह होता है कि वोह अल्लाह रसूल की बारगाह में भी बे अदब हो कर काफ़िर हो जाता है।
*📕 मिरआतुल मनाजीह , 6/641*
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❐ सवाल ❐ ➻ क्या यह बात दुरुस्त है कि अगर कोई शख्स सूरज निकलने तक सोता रहता है और नमाज़ नहीं पढ़ता तो शैतान उस के कान में पेशाब कर देता है ??
❐ जवाब ❐ ➻ जो बगैर फजर की नमाज़ पढ़े सूरज तुलूअ होने तक सोता रहता है शैतान उस के कानों में पेशाब कर देता है! सही बुखारी शरीफ हदीस नंबर 1144 : अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदिअल्लाहु तआ़ला अ़न्हु से मरवी है कि नबी ए करीम ﷺ के पास एक शख्स का ज़िक्र हुआ कि वह सुब्ह तक पड़ा सोता रहता है और फ़र्ज़ नमाज़ के लिए भी नहीं उठता, इस पर आप ﷺ ने फरमाया कि शैतान ने उस के कान में पेशाब कर दिया!
*📚 फतावा शर्फे मिल्लत सफा 29 ता 31*
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❐ सवाल ❐ ➻ मोमीन का गहरा दोस्त कौन है!??
❐ जवाब ❐ ➻ हज़रत इब्ने अब्बास रादिअल्लाह तआला अन्हुमा से रिवायत है कि रसूले अकरम ﷺ
इरशाद फ़रमाया इल्म को लाजिम पकडो इस लिए कि *इल्म* मोमीन का गहरा दोस्त है।
❐ ➻ मेरे प्यारे आक़ा ﷺ के प्यारे दिवानो। आप ने देखा होगा कि मुसीबत के वक़्त अच्छे अच्छे दोस्त साथ छोड़ देते हैं यहां तक की जिस माल को हासिल करने में हम रात दिन एक कर देते हैं वो भी साथ छोड़ देता है। लेकिन मेरे आक़ा ﷺ फ़रमाते हैं के इल्म मोमीन का गहरा दोस्त है ये कभी साथ नहीं छोड़ता, जमीन के ऊपर भी साथ देता है और क़ब्र में भी साथ देगा, लिहाजा आज़ ही से इल्म को दोस्त बनाओ ताके इसकी दोस्ती क़ब्र व हश्र हर जगह हमे काम आए।
🤲🏻 अल्लाह अज़्वज़ल हम सब को इल्म हासिल करने की तौफीक़ अता फरमाए। آمین
*📚बरकत ए शरीयत सफ़ह 714 , 715*
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❐ सवाल ❐ ➻ इन्सान के बालों को औरत चोटी बनाकर अपने बालों में गून्धे ताकि इसके बाल ज़ियादा और खूब सूरत मालूम हों शरअन येह कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ इन्सान के बालों को औरत चोटी बनाकर अपने बालों में गून्धे ताकि इसके बाल ज़ियादा और खूब सूरत मालूम हों येह *हराम है* और अगर ऊन या काले धागों की चोटी बनाकर बालों में गूंधे तो येह जाइज़ है।
❐ ➻ दांतों को रेती से रेत कर खूब सूरत बनाने वाली या मोचने से भौवें के बालों को नोच कर भौवें (eyebrow) को बारीक और खूब सूरत बनाने वाली इन सब औरतों पर हदीष शरीफ़ में ला'नत आई है।
*📚जन्नती ज़ेवर सफ़ह 406*
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❐ सवाल ❐ ➻ सजदा ए सहव किसे कहते हैं और उसका तरीक़ा क्या है!??
❐ जवाब ❐ ➻ सहव का मा'ना है भूलने के, कभी नमाज़ में भूल से कोई खास खराबी पैदा हो जाती है, उस खराबी को दूर करने के लिए का'दा ए अखीरा में दो सजदे इस तरह की जाती है, कि पूरा तशह्हुद (अत्तह़िय्यात मुकम्मल रसूलुह तक) पढ़ लीजिए फिर दाहिनी तरफ सलाम फेर कर दो सजदे करे फिर तशह्हुद और दुरूदे इब्राहिम दुआ ए मासूरा पढ़ कर दोनो तरफ सलाम फेर दे!
❐ सवाल ❐ ➻ किन किन बातों से सजदा ए सहव वाजिब होता है..??
❐ जवाब ❐ ➻ वाजिबाते नमाज़ में से अगर कोई वाजिब भूले से छूट जाए या फर्ज़ या वाजिब में भूले से ताखीर हो जाए, तो सजदा ए सहव वाजिब होता है। (मालूम हुआ कि सुन्नत या मुस्तहब का तर्क होने से सजदा ए सहव वाजिब नही)!
❐ ➻ (वाजिब भूलने की सूरत) जैसे कोई शख्स फर्ज़ की पहली और दूसरी रकअत में या सुन्नत और नफ्ल की किसी रकअत में भूले से सूरह फातिहा नही पढ़ा या पहले दूसरी सूरत पढ़ी फिर सूरह फातिहा पढ़ा, तो सजदा ए सहव करना वाजिब होगा!
❐ ➻ (वाजिब में ताखीर की सूरत) जैसे किराअत वगैरा किसी मौक़े पर सोचने में इतनी देर लगा दी कि तीन मरतबा سبحان الله कह लिया जाए तो फिर सजदा ए सहव वाजिब होगा!
❐ ➻ (फर्ज़ में ताखीर की सूरत) जैसे फर्ज़ वित्र और सुन्नत ए मुअक्किदा नमाज़ के का'दा ए ऊला में तशह्हुद के बाद इतनी देर तक खामोश रहा जितनी देर में ‘‘اللھم صلی علی محمد’’ पढ़ लिया जाए तो यह तीसरी राकअत क़्याम जो फ़र्ज़ है उस में ताखीर हुई और इस वजह से सजदा ए सहव वाजिब होगा!
❐ ➻ मालूम हुआ कि वाजिब को जानबूझ कर तर्क करने से सजदा ए सहव से नमाज़ नहीं होगी बल्कि दुबारा नमाज़ पढ़ना वाजिब होगा, यूहीं फ़र्ज़ को गलती से या जान बूझ कर तर्क करने से उसकी तलाफ़ी सजदा ए सहव से नही होगी, बल्कि नमाज़ ही नही होगी, अलबत्ता अगर कोई ऐसा वाजिब तर्क हो जो वाजिबाते नमाज़ से नही जैसे खिलाफ़े तरतीब कुरआन पढ़ना तर्के वाजिब और गुनाह है लेकिन इसका ताल्लुक वाजिबाते नमाज़ से नही बल्कि तिलावत से है इस पर सजदा ए सहव वाजिब नही, लेकिन इस से तौबा करे, अगर सजदा ए सहव वाजिब होने के बा वुजूद न किया तो नमाज़ दुबारा पढ़ना वाजिब है
❐ सवाल ❐ ➻ चार रकअत वाली फ़र्ज़ नमाज़ के अंदर दो रकअत पर का'दा उला में तशह्हुद पढ़ लिया फिर गलती से दुरूद ए इब्राहिम आधा पढ़ लिया, तो इस पर सजदा ए सहव क्यो वाजिब हुआ ?
❐ ➻ पहले एक *हिकायत* पढ़े : हजरत ए इमाम आज़म अबू हनीफा {رَحۡمَةُ اللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیۡهِ} को खवाब में हुज़ूर {ﷺ} का दीदार हुआ तो हुज़ूर {ﷺ} ने इस्तिफ़्सार फरमाया : दुरूद शरीफ पढ़ने वाले पर तुमने सजदा क्यूं वाजिब बताया ? अर्ज़ की इसलिए कि उसने भूल कर यानी गफलत से पढ़ा तो आप {ﷺ} ने यह जवाब पसंद फरमाए!
❐ जवाब ❐ ➻ उस में दो वाजिब भूले से तर्क हुआ और फर्ज़ में ताखीर हुआ, इस वजह से सजदा ए सहव वाजिब हुआ, फर्ज़ वित्र और सुन्नत ए मुअक्किदा के का'दा ए ऊला में तशह्हुद के बाद कुछ न पढ़ना वाजिब है, इसका भी तर्क हुआ, दो फ़र्ज़ या दो वाजिब अथवा किसी फ़र्ज़ या वाजिब के दरमियान तीन तस्बीह ‘سبحان الله’ कहने के मिक़दार न ठहरना वाजिब है, लिहाज़ा उसने ठहर गया इस से भी सजदा ए सहव वाजिब हुआ, (तीसरा) यह कि फर्ज़ वित्र और सुन्नत ए मुअक्किदा के का'दा ए ऊला में तशह्हुद के बाद उसने भूले से दुरूदे इब्राहिम आधा पढ़ा वजह यह नहीं कि दुरूद पढ़ा बल्कि इतना देर खामोश रहता तो भी इस से फर्ज़ में ताखीर हुई, लिहाज़ा सजदा ए सहव वाजिब हुआ।
*📚 हवाला : अनवारे शरीअत सफा 86 + मोमिन की नमाज़ + नमाज़ के अहकाम*
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❐ सवाल ❐ ➻ दोनों जहान में मुसलमान की नेक नामी का बेहतरीन सामान क्या है!??
❐ जवाब ❐ ➻ *अच्छे अख़लाक :* दोनों जहान में मुसलमान की नेक नामी का बेहतरीन सामान उस के अच्छे अख़लाक़ हैं अच्छे अख़लाक वाला दुन्या में जिस तरह हर दिल अज़ीज़ और सब का प्यारा होता है इसी तरह आखि़रत में भी वोह बड़े बड़े दरजात व मरातिब से सरफ़राज़ हो कर जन्नत का मेहमान बनता है। इस उनवान पर चन्द हदीसों से हम रौशनी डाल रहे हैं।
❐ ➻ हज़रते नवास बिन समआन रादिअल्लाहु तआला अन्हु केहते हैं कि मैं ने रसूलुल्लाह ﷺ से पूछा कि नेकी क्या है? और गुनाह क्या है? तो इरशाद फरमाया कि नेकी “अच्छे अख़लाक़" हैं और गुनाह वोह है जो तेरे दिल में खटके और तू उस को बुरा समझे कि लोग उस पर मुत्तलअ हों।
❐ ➻ हज़रते अब्दुल्लाह बिन अम्र रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने कहा कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया है कि तुम लोगों में सब से ज़्यादा मेरा मेहबूब वोह है जिस के अख़लाक़ सब से अच्छे हों।
❐ ➻ क़बीला मुज़ैना के एक आदमी से मरवी है इन्हों ने कहा कि लोगों ने हुज़ूर से कहा कि या रसूलल्लाह ﷺ सब से बेहतरीन चीज़ जो इन्सान को दी गई है वोह क्या है ? तो हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि "अच्छे अख़लाक"।
❐ ➻ हज़रते अबुद्दरदा रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने रिवायत किया है कि हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि कियामत के दिन मोमिन के मीजाने अमल में सब से ज़्यादा भारी अमल “अच्छे अख़लाक़" होंगे और अल्लाह तआला फोहश कलामी करने वाले बे हया आदमी को बहुत ना पसन्द फरमाता है।
*📚 बिहिश्त की कुन्जियां सफ़ह 202-204*
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❐ सवाल ❐ ➻ मर्द व औरतों को बालों को काला करने के लिए डाई या कैश किंग या कैश परी तेल का इस्तेमाल करना कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ मर्द व औरतों को बालों को काला करने के लिए डाई या कैश किंग या कैश परी तेल का इस्तेमाल करना ना जाइज़ व हराम है!
❐ ➻ औरतों व मर्दों को अपने बाल काला करने के लिए काला खिजाब काली मेहंदी या इसी तरह का कोई तेल वगैरह इस्तेमाल करना जिससे बाल काले हो जाए ना जाइज़ व हराम है आज कल तरह-तरह के बालों को काला करने वाले तेल और डाई वगैरह निकल रहे हैं जैसे के कैश परी (Kash pary) और कैश किंग (kash king) इन सब का इस्तेमाल हराम है!
❐ ➻ वहां अगर कैश परी और कैश किंग बालों को काला करने के लिए ना हो बल्कि सिर्फ बालों को बढ़ाने और मजबूत करने के लिए हो तो इन के इस्तेमाल में हर्ज़ नहीं!
*📗औरतों के जदीद और अहम मसाईल सफ़ह 49 और 66*
*📗 फ़तावा सरावसती जिल्द 2 सफ़ह 183*
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❐ सवाल ❐ ➻ अगर बिल्ली या मुर्गी या इतना ही जानवर कुंवे में गिर कर मर जाए और फूलने फटने से पहले निकाल लिया जाए तो कितने डोल पानी निकालना वाजिब है!??
❐ जवाब ❐ ➻ *मसअला:-* अगर बिल्ली या मुर्गी या इतना ही जानवर कुंवे में गिर कर मर जाए और फूलने फटने से पहले निकाल लिया जाए तो चालीस डोल पानी निकालना *वाजिब है* और साठ डोल पानी निकाल देना मुस्तहब है इत्ना पानी निकाल देने से कुंवा पाक हो जाएगा।
❐ ➻ *मसअला:-* अगर चूहा, छिपकली, गिर-गिट या इनके बराबर या इनसे छोटा जानवर कुंवे में गिरकर मर जाए और फूलने फटने से पहले निकाल लिया जाए तो बीस डोल पानी निकालना वाजिब और तीस डोल पानी निकाल देना मुसतहब है इसके बा'द कुंवा पाक हो जाएगा।
❐ ➻ *मसअला:-* येह जो हुक्म दिया गया है कि फुलां फुलां सूरत में इतना इतना पानी निकाला जाए तो इसका येह मतलब है कि जो चीज कुंवे में गिरि है पहले उसको कुंवे से निकाल ले फिर इतना पानी निकालें, अगर वोह चीज कुंवे ही में पड़ी रही तो कितना ही पानी निकालें बेकार है।
*📚 जन्नती ज़ेवर सफ़ह 241-242*
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❐ सवाल ❐ ➻ अगर कोई भी जानवर छोटा हो या बड़ा हो कुंवे में गिर कर मर जाए और फूल फ़ट जाए या ऐसा जानवर जिस का झूटा नापाक है कुंवे में गिर पड़े अगर्चे ज़िन्दा निकल आए तो इन सब सूरतों में कुंवे का कितना पानी निकाला जाए!??
❐ जवाब ❐ ➻ *कुंवे के मसाईल :-* कुंवे में किसी आदमी या जानवर का पाखाना, पेशाब या मुर्गी या बतख की बीट या खून या ताड़ी शराब वगैरा किसी नजासत का एक क़तरा भी गिर पड़े या कोई भी नापाक चीज कुंवे में पड़ जाए तो कुंवा नापाक हो जाएगा उसका कुल पानी निकाला जाएगा।
❐ ➻ *मस्अला:-* अगर कुंवे में आदमी, गाय, भैंस, बकरी या इतना ही बड़ा कोई जानवर गिर कर मर जाए या छोटे से छोटा बहने वाले खून वाला जानवर कुंवे में मर कर फूल फ़ट जाए या ऐसा जानवर जिसका झूटा नापाक़ है कुंवे में गिर पड़े अगर्चे ज़िन्दा निकल आए जैसे सुवर, कुत्ता तो इन सब सूरतों में कुंवा नापाक हो जाएगा और कुंवे का कुल पानी निकाला जाएगा।
❐ ➻ *मस्अला:-* हलाल परन्दे जैसे कबूतर और गोरिया, मैना, मुर्गाबी वगैरा ऊंचे उड़ने वाले परन्दो की बीट कुंवे में गिर जाए तो कुंवा नापाक नहीं होगा यूं ही चमगादड़ के पेशाब से भी कुंवा नापाक न होगा।
*📚 जन्नती जेवर सफ़ह 241, 242*
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❐ सवाल ❐ ➻ हर मर्द व औरत पर अपने मां बाप के हुक़ूक को अदा करना क्या है!??
❐ जवाब ❐ ➻ *हर मर्द व औरत पर अपने मां-बाप के हुक़ूक़ को भी अदा करना फ़र्ज़ है!* खास कर नीचे लिखे हुए चन्द हुक़ूक़ का खयाल तो खास तौर पर रखना बेहद ज़रुरी है।
1) ➻ खबरदार खबरदार हरगिज़ हरगिज़ अपने किसी क़ौल व फ़े'ल से मां-बाप को किसी क़िस्म की कोई तक़लीफ़ न दें।अगर्चे मां-बाप अवलाद पर कुछ ज़ियादती भी करें मगर फिर भी अवलाद पर फ़र्ज़ है कि वोह हरगिज़ हरगिज़ कभी भी और किसी हाल में भी मां-बाप का दिल न दुखाएं।
2) ➻ अपनी हर बात और हर अमल से मां-बाप की ता'ज़ीम व तकरीम करे और हमेशा उनकी इज़्ज़त और हुर्मत का खयाल रखे।
3) ➻ हर जाइज़ काम में मां-बाप के हुक्मों की फ़रमां बरदरी करे।
4) ➻ अगर मां-बाप को कोई भी हाजत हो तो जानो माल से उनकी खिदमत करे।
5) ➻ अगर मां-बाप अपनी ज़रुरत से अवलाद के मालो सामान में से कोई चीज़ ले लें तो खबरदार खबरदार हरगिज़ हरगिज़ बुरा न मानें न इज़हारे नाराज़ी करें। बल्कि येह समझें की मैं और मेरा माल सब मां-बाप का ही है हदीष शरीफ़ में है कि हुज़ूरे अक़्दस ﷺ ने एक शख्स से येह फ़रमाया कि या'नी तू और तेरा माल सब तेरे बाप का है ।
6) ➻ मां-बाप के दोस्तों और उनके मिलने जुलने वालों के साथ एहसान और अच्छा बरताव करते रहें ।
7) ➻ जिन कामों से जिन्दगी में मां-बाप को तकलीफ़ हुवा करती थी उनकी वफ़ात के बाद भी उं कामों को न करें कि इस से उनकी रुहों को तकलीफ़ पहुंचेगी ।
*📚 जन्नती ज़ेवर सफ़ह 92, 93, 94*
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❐ सवाल ❐ ➻ अल्लाह अज़्ज़वजल ने अपनी याद के लिए क्या करने को कहा है!?
❐ जवाब ❐ ➻ *नमाज़ अल्लाह अज़्ज़वजल की याद का जरिया :* अल्लाह अज़्ज़वजल ने कुरआन मुक़द्दस में इरशाद फ़रमाया पारा -16, रुकूअ -10 *तर्जुमा :* बेशक ! मैं ही हूं अल्लाह के मेरे सिवा कोई माबूद नहीं तो मेरी बंदगी और मेरी याद के लिये नमाज़ कायम रख। (कन्जुल इमान)
❐ ➻ मेरे प्यारे आका ﷺ के प्यारे दीवानों ! अल्लाह अज़्ज़वजल की याद का ज़रिया तो कायनात का ज़र्रा ज़र्रा है। बंदा जिस तरफ निगाह डाले उसी की जल्वागरी है, गर्ज़ यह है कि इसकी बेशुमार नेअमतें हैं जिनको देखकर बंदा खुदा को याद कर सकता है। लेकिन गौर फरमाइये कि मजकूरा आयते करीमा में अल्लाह अज़्ज़वजल ने अपनी याद बंदो के दिल में कायम रखने के लिये नमाज़ का हुक्म दिया।
❐ ➻ चुनांचे वह फ़रमाता है ''और मेरी याद के लिये नमाज़ कायम रख।” इससे पता चला कि नमाज़ अल्लाह अज़्ज़वजल की याद का बेहतरीन ज़रिया हैं क्योंकि बंदे का पूरा वजूद हालते नमाज़ में ख़ालिके कायनात के सामने झुका होता है इसकी ज़बान ज़िक्रे इलाही से तर होती है, इसके कान कुरआने मुक़द्दस सुन रहे होते हैं, इसकी निगाह सज्दे की जगह होती है और दिल अनवारे तजल्लियाते रब्बानी का मर्कज़ बन जाता है। गर्ज़ यह कि एक बंदा जब नमाज़ में होता है तो गोया वह अल्लाह अज़्ज़वजल की याद में मसरूफ़ होता है सारी दुन्या से बे नियाज़ होकर बंदा अपने ख़ालिक़ का नियाज़ मंद बन जाता है।
🤲🏻✨ अल्लाह अज़्ज़वजल नमाज़ के ज़रिये अपनी याद करने की तौफीक अता फरमाये।...✍🏻 *आमीन🌹*
*📙 बरकाते शरीअत हिस्सा 1 सफ़ह 115*
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*• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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❐ सवाल ❐ ➻ तौबा की उम्मीद पर जान भुझ कर गुनाह करना कैसा? मस्लन यार अभी तो मेरे मतलब का गाना (song) या मूवी वगैरह आ रही है इसको सुनने या देखने के बाद या इसके अलावा कोई भी गुनाह कर लूं और फिर तौबा कर लूँगा। ऐसा करना या सोचना कैसा..?
❐ जवाब ❐ ➻ *तौबा की 4 शराइत होती है:-*
*(1)* पिछले गुनाह पर शर्मिन्दगी।
*(2)* हाल में छोड़ देना।
*(3)* मुस्तकिब्ल में कभी इस कि तरफ ना लौटना।
*(4)* गुनाह की तलफ़ी हो (हक बगैरह के मामले में ,तो उसे दो) अगर कोई शख्स फिलहाल तो गुनाह छोड़ दे मगर ये की फिर कर लूंगा और तौबा कर लूँगा तो सच्ची तौबा करने वालो में शुमार नही। और इस तरह का इरादा करने वालो के लिये एक हदीस शुअबूल ईमान में नक़्ल है जिसके रावी इब्ने अब्बास है, फरमाते है गुनाह पर काइम रह कर तौबा करने वाला *अपने रब का मज़ाक उड़ाने वाले की तरह है!*
*📚 मसाइले शरीअत, सफ़ह- 51*
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❐ सवाल ❐ ➻ रुह डालने के बाद आदम अलैहिस्सलाम की ज़बान से सबसे पहला लफ्ज़ क्या निकला था!??
❐ जवाब ❐ ➻ जब रुह डाली गई तो आप को छींक आ गई और आप की ज़बान से الحمد لله निकला, इसी लिए क़ुरआन की इब्तिदा الحمد لله से की गई क्यूं के ये इंसानी ज़बान से निकला हुवा पहला लफ्ज़ है।
*📚 हमसे पूछिये सफ़ह - 14*
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❐ सवाल ❐ ➻ शादी के मोके पर कुछ ज्यादा पढ़े लिखे लोग यह करते हैं की दुल्हन और दूल्हे को खुलेआम सबके सामने एक बड़े हॉल में दो बड़ी कुर्सियां मंगवा कर बिठा देते है इस पर क्या शरई हुक्म है!??
❐ जवाब ❐ ➻ शादी करके जब कोई नई दुल्हन घर लाता है तो एक भीड़ उसे देखने के लिए पहुंच जाती है चलो देखते हैं दुल्हन कैसी है अरे जनाब जिसकी दुल्हन वो देखें आपको क्या पड़ी है और देखने वालों के साथ साथ दिखाने वालों को भी खूब शौक है ताकि उनकी तारीफ हो, दुल्हन एक कमरे में हैं वहां मोहल्ले के लोग हैं दूल्हे के दोस्त फिर अगर दूल्हे के भाई हैं तो उसके दोस्त सब भाभी भाभी करते हुए तोहफा और लिफाफा लिए अपना चेहरा शरीफ उठाए चले आते हैं और फिर बातें होती हैं हत्ता के हंसी मजाक भी आम बात हो गई!
❐ ➻ कुछ ज्यादा पढ़े लिखे लोग यह करते हैं के दुल्हन और दूल्हे को खुलेआम सबके सामने एक बड़े हॉल में दो बड़ी कुर्सियां मंगवा कर बिठा देते हैं ताकि देखने वाले जी भर कर दीदार करें सेल्फी ले और वीडियोस बनाएं ऐसे लोगों के अंदर या तो गैरत सो गई है या यह सब रोकने की हिम्मत नहीं रखते!
❐ ➻ जरूरी है कि हम इस (ना जाइज़) तरीके पर रोक लगाएं और लोगों को चाहे बुरा लगे या भला अपनी दुल्हन को अपनी दुल्हन की तरह ही रखें ना कि बाजार में बिकने वाली किसी चीज की तरह जो आता देख कर चला जाता है!
*📚 बहारें तहरीर हिस्सा,11 सफ़ह 37*
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❐ सवाल ❐ ➻ नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम* ने मेराज़ की रात दोज़ख में ऐसे लोगों को देखा जो *आग की शाखों से लटके हुए थे,* वो कौन लोग थे!??
❐ जवाब ❐ ➻ अज़ाबे इलाही के मुतअल्लिक़ आग की शाखों से लटके हुए लोग : मेराज की शब नबीयों के सरदार, रसूलों के सालार ﷺ ने दोज़ख में कुछ ऐसे लोग भी देखे जो आग की शाखों से लटके हुए थे आप ﷺ ने जिब्राइल अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया ए जिब्रील ! ये कौन लोग है ? अर्ज़ किया ये वो लोग है जो दुनिया में अपने वालिदैन को गलियां देते थे।
❐ ➻ याद रखिये ! वालिदैन को सताना और उन्हें इज़ा पहुंचाना हराम और जहन्नम में ले जाने वाला काम है, अल्लाह तआला ने क़ुरआन मजीद में वालिदैन को झिड़कने और उन्हें उफ़ तक कहने से मना फ़रमाया है।
*तर्जुम ए कन्ज़ुल ईमान :-* "तो उनसे हूँ (उफ़ तक) न कहना और उन्हें न झिड़कना और उनसे ताज़ीम की बात कहना! *بنى اسراىٔيل، ٢٣*
❐ ➻ वालिदैन की नाफ़रमानी व इज़ा रसानी की उखरवी सज़ा तो है ही, दुनिया में भी इब्रतनाक सज़ा भुगतनी पड़ती है, बारहा देखा गया है कि जो अपने वालिदैन को सताते और उन्हें तकलीफ पहुंचाते है खुद अपनी ही अवलाद के हाथो ज़लिलो रुस्वा हो कर ज़िन्दगी गुज़ारते है।
❐ ➻ फरमाने मुस्तफा ﷺ है, हर गुनाह को अल्लाह जिस के लिये चाहता है बख्श देता है मगर वालिदैन की नाफ़रमानी व इज़ा रसानी को नहीं बख्शता बल्कि ऐसा करने वाले को उस के मरने से पहले दुनिया की ज़िन्दगी में जल्द ही सज़ा दे देता है!
*📚 फ़ैज़ाने मेराज़, सफह- 92*
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❐ सवाल ❐ ➻ सब लोग मज़मा में ज़ोर से कुरआन शरीफ़ पढ़ें येह कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ सब लोग मज़मा में ज़ोर से कुरआन शरीफ़ पढ़ें येह नाज़ाइज़ है अकषर उर्स व फ़ातिहा के मौकओं पर सब लोग ज़ोर ज़ोर से तिलावत करते हैं येह नाज़ाइज़ है अगर चंद आदमी पढ़ने वाले हों तो सब लोग अहिस्ता पढ़ें।
❐ ➻ बाज़ारों और कारखानों में जहां लोग काम में लगे हों ज़ोर से कुरआन शरीफ़ पढ़ना नाज़ाइज़ है क्यूंकि लोग अगर न सुनें तो गुनाह पढ़ने वाले पर होगा।
*📚 जन्नती जे़वर सफ़ह न 300- 301*
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❐ सवाल ❐ ➻ किसी काफिर को शहीद या मरहूम कहना कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ *मसअला :-* काफिर को शहीद या मरहूम कहना कुफ्र है शहीद या मरहूम कहने का मतलब ये है के वह मुसलमान है, इस लिए के शहीद वह मुसलमान है जो राहे खुदा में दीन की हीमायत करते हुए मारा जाए और मरहूम के मानी हैं रहम किया हुआ। कुफ्फार मग़दूब हैं, मरहूम नहीं। अल्लाह की रहमत में काफिरों का कोई हिस्सा नहीं। वल्लाहु तआला आलम
*📙 फतावा शारेह बुख़ारी जिल्द 02 सफ्हा 445*
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❐ सवाल ❐ ➻ ज़्यादा हंसने के कितने नुकसान है!??
❐ जवाब ❐ ➻ ज्यादा हंसने के दो नुकसान इस हदीस में हुज़ुरे अक़रम ﷺ ने बयान फरमाये हैं एक यह कि ज्यादा हंसने से दिल मुर्दा हो जाता है और दूसरा यह कि चेहरे का नूर बर्बाद व गारत हो जाता है ज़ाहिर है कि हंसी की कसरत उसी वक़्त होगी जब दिल खौफे इलाही और यादे खुदावन्दी से गाफिल हो और यही दिल की मौत है और जब दिल में इबादतों की वजह से नूरानियत पैदा होती है तो चेहरे पर भी नूर का जुहूर होता है यही वजह है कि नेक बन्दों के चेहरों पर एक ख़ास किस्म की रौनक और एक तरह का नूरानी जमाल महसूस होता है और जब दिल मुर्दा और बे नूर हो जायेगा तो यकीनन बिला शुबाह चेहरे की नूरानी रौनक और नूरानियत बरबाद व गारत हो जायेगी। इस लिए इस हदीस में इरशाद फरमाया गया कि तर्जुमा :-" ज्यादा हंसना दिल को मुर्दा कर देता है और चेहरे के नूर को गारत कर देता है।
*📚 जवाहिरुल हदीस सफह - 95*
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❐ सवाल ❐ ➻ तहारत की कितनी क़िस्में हैं!??
❐ जवाब ❐ ➻ तहारत की दो क़िस्में हैं :- 1) सुगरा , 2) कुबरा, तहारते सुगरा वुज़ू है और तहारते कुबरा गुस्ल है।
❐ ➻ जिन चीजों में सिर्फ वुज़ू लाज़िम होता है उन को हसदे असगर कहते हैं और जिन चीज़ों से नहाना फ़र्ज़ हो उन को हसदे अक़बर कहा जाता है।
*📙 बहारे शरीयत जी. 1 हि. 2 स. 8*
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❐ सवाल ❐ ➻ गुस्ल में कितने फ़र्ज़ हैं..?
❐ जवाब ❐ ➻ *गुस्ल में तीन फर्ज़ हैं :*
*1) कुल्ली करना :-* ❐ ➻ मुँह के हर पुर्ज़े गोशे होंट से हल्क की जड़ तक हर जगह पानी बह जाए अक्सर लोग यह जानते है कि थोड़ा सा पानी मुँह में लेकर उगल देने को कुल्ली कहते है अगर्चे ज़ुबान की जड़ और हल्क के किनारे तक न पहुँचे। ऐसे गुस्ल न होगा न इस तरह नहाने के बाद नमाज़ जायज़ बल्कि फर्ज़ है कि दाढ़ों के पीछे गालों की तह में दाँत की जड़ और खिड़कियों में ज़ुबान की हर करवट में हल्क के किनारे तक पानी बहे।
*2) नाक में पानी डालना :-* ❐ ➻ यानी दोनो नथनों में जहाँ तक नर्म जगह है धुलना कि पानी को सूँघ कर ऊपर चढ़ाए बाल बराबर भी धुलने से न रह जाए नहीं तो गुस्ल नहीं होगा अगर नाक के अन्दर रेंठ सूख गई है तो उसका छुड़ाना फर्ज़ है।
*3) तमाम बदन पर पानी बहाना :-* ❐ ➻ यानी सर के बालों से पाँवों के तलवों तक जिस्म के हर पुर्ज़ हर रोंगटे पर पानी बह जाना फर्ज़ है। अक्सर लोग बल्कि कुछ पढ़े लिखे लोग यह करते है और समझते है कि गुस्ल हो गया हालाँकी कुछ उज़्व ऐसे है कि जब तक उनकी खास तौर पर एहतियात न की जाए तो नहीं धुलेंगे और गुस्ल न होगा लिहाज़ा!
*📚 बहारे शरीअत ज़ि. 1 हिस्सा 2 सफ़ह 102*
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❐ सवाल ❐ ➻ वुज़ू में कितनी चीजें फ़र्ज़ हैं!??
❐ जवाब ❐ ➻ वुज़ू में चार चीज़ें फ़र्ज़ हैं :- (1) पूरे चेहरे का क़म अज़ क़म एक बार धोना। यानी सुरु पेशानी (जहाँ से बाल जमनें इन्तहा हो)से थोड़ी तक तोल में और अर्ज़ में एक कान की लो से दूसरे कान तक ज़िल्द के हर हिस्से में क़म अज़ क़म एक मर्तबा पानी पहुंचाना। (2) एक एक बार दोनों हाथों का कोहनियों समेत धोना। इस हुक़्म में कोहनियां भी दाखिल है,अगर कोहनियों से नाखून तक कोई जगह ज़रह भर भी धुलने से रह जाएगी तो वुज़ू न होगा। (3)एक एक बार चौथाई सर का मसह् करना या'नी गीला हाथ सर पर फेर लेना। और (4) टखनों समेत दोनों पेरों को धोना।
❐ ➻ *मस्अला*-वुज़ू या गुस्ल में किसी उज़्व को धोने का मतलब ये है कि जिस उज़्व को धोओ उस के हर हिस्से पर कम से कम दो बूंद पानी बह जाए अगर कोई हिस्सा भीग तो गया मगर उस पर पानी नहीं बहा तो वुज़ू या गुस्ल नहीं होगा।
❐ ➻ *मस्अला:-* दाढ़ी के बाल अगर घने ना हों तो जिल्द का धोना फ़र्ज़ है। और अगर बाल घने हों तो सिर्फ़ बालों का धोना फ़र्ज़ है जड़ का धोना फ़र्ज़ नहीं।
*📚 बरकत ए शरीयत सफ़ह 95, 96*
*📚 जन्नती ज़ेवर सफ़ह 217*
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❐ सवाल ❐ ➻ वुज़ू में कितनी चीज़ें सुन्नत हैं!??
❐ जवाब ❐ ➻ *वुज़ू की सुन्नतें :-* *वुज़ू में सोलह चीज़ें सुन्नत हैं :
(1) ➻ वुज़ू की निय्यत करना।
(2) ❐ बिस्मिल्लाह पढ़ना।
(3) ➻ पहले दोनों हाथों को तीन द्फ़हा धोना।
(4) ❐ मिस्वाक करना।
(5) ➻ दाहिने हाथ से तीन मर्तबा कुल्ली करना।
(6) ❐ दाहिने हाथ से तीन मर्तबा नाक में पानी चढ़ाना।
(7) ➻ बाएं हाथ से नाक साफ करना।
(8) ❐ दाढ़ी का उंगलियों से खिलाल करना।
(9) ➻ हाथ पाऊं की उंगलियों का खिलाल करना।
(10) ❐ हर उज़्व को तीन तीन बार धोना।
(11) ➻ पूरे सर का एक बार मस्ह करना।
(12) ❐ तरतीब से वुज़ू करना।
(13) ➻ दाढ़ी के जो बाल मुंह के दाइरे के नीचे हैं इन पर गीला हाथ फिरा लेना।
(14) ❐ आ'ज़ा को लगातार धोना कि एक उज़्व सूखने से पहले ही दूसरे उज़्व को ले!
(15) ➻ कानों का मस्ह करना।
(16) ❐ हर मकरुह बात से बचना।
*📚 जन्नती ज़ेवर सफ़ह 217, 218*
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❐ सवाल ❐ ➻ मर्दों को जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ना क्या है.??
❐ जवाब ❐ ➻ *जमाअत व इमामत का बयान :-* जमाअत की बहुत ताकीद है और इसका षवाब बहुत ज़ियादा है यहां तक कि बे जमाअत की नमाज़ से जमाअत वाली नमाज़ का षवाब सत्ताईस गुना है
❐ ➻ *मस्अला:-* मर्दों को जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ना *वाजिब है* बिला उज्र एक बार भी जमाअत छोड़ने वाला गुनाहगार और सज़ा के लाइक़ है और जमाअत छोड़ने की आदत डालने वाला फ़ासिक़ है जिस की गवाही क़बूल नहीं की जाएगी और बादशाहे इस्लाम उस को सख्त सज़ा देगा और अगर पड़ोसियों ने सुकूत किया तो वोह भी गुनाहगार होंगे।
*📚 जन्नती ज़ेवर सफ़ह 284*
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❐ सवाल ❐ ➻ अगर निय्यत के अल्फाज़ भूल कर कुछ के कुछ ज़बान से निकल गए तो नमाज़ होगी या नहीं!??
❐ जवाब ❐ ➻ निय्यत दिल के पक्के इरादे को कहते हैं या'नी निय्यत में ज़बान का ए'तिबार नहीं तो अगर दिल में मषलन ज़ोहर का पक्का इरादा किया और ज़बान से ज़ोहर की जगह अस्र का लफ्ज़ निकल गया, तो ज़ोहर की नमाज़ हो जाएगी।
*📚 जन्नती ज़ेवर सफ़ह 273*
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❐ सवाल ❐ ➻ जुमुआ के दिन गुस्ल करना कैसा है..!??
❐ जवाब ❐ ➻ *मस्अला:-* जुमुआ, ईद, बक़र ईद, अरफ़े के दिन और एहराम बांधते वक़्त गुस्ल कर लेना सुन्नत है।
*📚 जन्नती ज़ेवर सफ़ह 228*
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❐ सवाल ❐ ➻ कुछ लोग अल्लाह तआला का नाम लेने की बजाय उसको ऊपर वाला बोलते हैं बल्कि अगर यह अकीदा रखकर यह लफ्ज़ बोले कि अल्लाह तआला ऊपर है तो यह बोलना कैसा है!??
❐ जवाब ❐ ➻ कुछ लोग अल्लाह तआ़ला का नाम लेने की बजाए उसको ऊपर वाला बोलते हैं यह निहायत गलत बात है बल्कि अगर यह अकी़दा रखकर यह लफ्ज़ बोले कि अल्लाह तआ़ला ऊपर है *तो यह कुफ्र है* क्योंकि अल्लाह की जात ऊपर नीचे आगे पीछे दाहिने बाएं तमाम सम्तो हर मकान और हर ज़मान से पाक है बरतर व बाला है इन सभी दिशाओं पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण ऊपर नीचे दाहिने आगे पीछे ज़मान व मकान को उसी ने पैदा किया तो अल्लाह तआ़ला के लिए यह नहीं बोला जा सकता कि वह ऊपर है या नीचे है पूरब में है या पश्चिम मे है क्योंकि जब उसने इन चीजों को पैदा नहीं किया था वह तब भी था कहां था और क्या था इसकी हकीकत को उसके अलावा कोई नहीं जानता अगर कोई कहे कि अल्लाह तआला अर्श पर है तो उससे पूछा जाए कि जब उसने अर्श को पैदा नहीं किया था तब वह कहा था यूं ही अगर कोई कहे कि अल्लाह तआला को ऊपर है तो उससे पूछा जाए कि ऊपर को पैदा करने से पहले वह कहां था, हां अगर कोई शख्स अल्लाह तआ़ला को ऊपर वाला इस ख़्याल से कहे कि वह सबसे बुलंद व बाला है और उनका मर्तबा सबसे ऊपर है तो यह कुफ्र नही है *लेकिन फिर भी अल्लाह तआ़ला को ऐसे अल्फ़ाज़ बोलना सही नहीं जिन से कुफ्र का शुब़हा हो और अल्लाह तआ़ला को ऊपर वाला कहना बहर हाल मना है जिससे बचना जरूरी है!*
❐ ➻ कुछ लोग अल्लाह तआ़ला को मालिक कहते हैं कि मालिक ने चाहा तो ऐसा हो जाएगा या मालिक जो करेगा वह होगा वगैरा-वगैरा यह भी अच्छा तरीका नहीं है सबसे ज्यादा सीधी सच्ची और अच्छी बात यह है अल्लाह को अल्लाह ही कहा जाए उसका नाम लेना सबसे अच्छी इबादत है और उसका ज़िक्र करना ही इंसान का सबसे बड़ा मक़सद है और मुसलमान की पहचान ही यह है कि उसको अल्लाह का नाम लेने और सुनने में मजा आने लगे!
*📗 ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह सफ़ह 12*
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