🅿🄾🅂🅃 ➪ 01
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या किसी महीनें की मुबारक़ बाद देने से जहन्नम हराम औऱ ज़न्नत वाज़िब हो जाती है।..❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ किसी भी इस्लामिक महीने की खुश खबरी देने से जन्नत और दोज़ख का फैसला नहीं होता।
•••➲ अल्हम्दुलिल्लाह सभी इस्लामिक महीने बा-बरकत व अज़ीम ही होते है। लेकिन जो ये बोलता है के ऐसा रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया के जो सबसे पहले इसकी खबर देगा उस पे जहन्नम हराम या जन्नत वाज़िब हो जाएगी। इस तरह की कोई बात हदीसे मुबारका में मौजूद नहीं है।
•••➲ बल्कि ऐसे बे बुनियादी मैसेज भेजने वाला अल्लाह के रसूल पर झुठ बांध रहा है। और अपने आप को जहन्नम की तरफ धकेल रहा हैं। और जो शख्स हर सुनी सुनाई बात को आगे बढा देता है वो झुठा है और जहन्नम का हक़दार हैं।
•••➲ रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : “मत झूट बाँधो मेरे ऊपर, जो कोई मुझ पे झूट बाँधेगा वो जहन्नम में जाएगा।..✍🏻
*📬 सही बुखारी ,किताबुल इल्म हदीस नं 106*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 02
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या किसी महीनें की मुबारक़ बाद देने से जहन्नम हराम औऱ ज़न्नत वाज़िब हो जाती है।..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (01) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया किसी शख्स के झुठा होने के लिए यही बात काफी है की वो हर सुनी सुनाई (बगैर तहक़ीक़ किये) बात को आगे बयांन करें।
*📕 मुक़द्दमा सही मुस्लिम हदीस नं 9*
*⇩ याद रखने वाली बातें ⇩*
•••➲ कोई भी खुश खबरी अल्लाह पाक ही दे सकता है। 10 लोगो को मैसेज सेंड करने से खुश खबरी नहीं मिलती।
•••➲ प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की क़सम दे कर मैसेज फॉरवर्ड करने को कहना हराम है। क्योंकि क़सम सिर्फ अल्लाह की खाई जा सकती है।
•••➲ प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और बीबी फातिमा और बीबी जैनब (रदिअल्लहु अन्हुम) के ख्वाब में आने वाले मैसेज को फॉरवर्ड न करे।
•••➲ कोई भी क़ुरआन की आयत या हदीस या किसी सहाबा का क़ौल तहक़ीक़ किये बग़ैर फॉरवर्ड न करे।..✍🏻
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 03
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मैंने अपने दोस्त को बताया के ताज़िया बनाना और इसको घुमाना जाइज़ नहीं है।*
तो मेरे दोस्त ने पलट कर सवाल किया के 12 रबी'उल अव्वल को जो मक्का शरीफ और मदीना शरीफ का मोडल निकाला जाता है वो भी जाइज़ नहीं होना चाहिए..?❓
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ अव्वलन तो गुम्बदे खज़रा का भी इस तरह से ढांचा बना कर घुमना जिसमें औरतो और मर्दो का मेला हो या किसी तरह की खुराफ़ात हो वो जाइज़ नही। उन खुराफ़ात को रोक कर इन दिनों को शरीयत की रौशनी में मनाया जाए।
•••➲ मगर जिस तरह मुहर्रमुल हराम में ताज़िया के सामने खुराफ़ातें होती हैं, जैसे फ़ातिहा पढ़ना, मन्नतें मंगना, ताज़िया को हाजत रवा समझना, ताज़िया पे फूल अगरबत्ती करना, मातम व ढोल बज़ाना, वग़ैरह खुराफ़ातें होती हैं जो रबी उल अव्वल में तो हरगिज़ नहीं होती। इस लिए मुहर्रमुल हराम में होने वाली जाहिलाना व बे बुनयादी खुराफातो का भी रोकना ज़रूरी हैं। ताज़िया और इसमें ये भी फ़र्क़ होता हैं कि गुम्बदे खज़रा हू बहू रोज़े की तरह बनाया जाता हैं मगर ताज़िया किसी भी तरह का गुम्बद बना कर उसे इमामे आली मक़ाम का रोज़ा कहते हैं और कई सारी खुराफातें करते हैं।...✍🏻
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 04
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मैंने अपने दोस्त को बताया के ताज़िया बनाना और इसको घुमाना जाइज़ नहीं है।*
तो मेरे दोस्त ने पलट कर सवाल किया के 12 रबी'उल अव्वल को जो मक्का शरीफ और मदीना शरीफ का मोडल निकाला जाता है वो भी जाइज़ नहीं होना चाहिए..?❓
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (03) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ फतावा रजविया की एक इबारत का खुलासा ये हैं की,
•••➲ शे की 2 क़िस्मे होती है, एक तो ये की शे अपने वुजूदे उर्फी के लिहाज़ से ही गलत हो।
•••➲ औऱ एक ये की शे अपने वुजूद के लिहाज़ से तो सहीह हो, कभी गलत तरीके से पाइ जा रही हो या कभी सहीह तरिके से पाइ जा रही हो तो ऐसी सूरत में दोनों के अहकाम अलग अलग होते हैं।
•••➲ अब अगर वो चीज़ सहीह तरीके से पाइ जाये तो सहीह और अगर गलत तरीके से पाइ जाये तो गलत।
•••➲ जैसे मजलिसे मिलादे नबी ﷺ, इमामे हुसैन के शहादत नामे, बुज़ुर्गो के उर्स, तो ये सहीह तरीक़े पर भी होते हैं और गलत तरीक़े पर भी होते हे। उसमे जो सहीह तरीके पर हो वो सहीह और जो गलत तरीके पर हो वो गलत उसको मुतलक़न गलत नहीं कहा जा सकता लिहाज़ा जहा मजलिसें मिलाद में रिवायत सहीह पढ़ी जाये इसी तरह मजलिसे शाहदत में रिवायत सहीह पढ़ी जाए, या जुलुस मिलाद सहीह तरीके से निकाला जाये तो हम उसे सहीह ही कहेंगे और अगर उसमे कुछ बाते गलत होती है तो उस गलत बातो को या उस अमल को गलत कहेगे उस वजह से उस शे या वो चीज़ ग़लत नहीं हो जाएगी।
•••➲ औऱ एक चीज़ होती हैं की शे अपनी हक़ीक़ते उर्फ़िया ही के लिहाज़ से गलत हो, तो ऐसी सूरत में ये चीज़ मुतलक़न गलत होगी। अब ये नहीं कह सके की ये अगर सहीह के साथ पाइ जाये तो सहीह और गलत चीज़ो के साथ पाई जाये तो गलत, इस लिए की वो चीज़ उर्फ़ में या समाज में ग़लत तरीक़े पर ही मशहूर हैं की उसकी हक़ीक़त ही उन गलत चीज़ो का मजमूआ है, वो चीज़ मुतलक़न गलत होगी।...✍🏻
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 05
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मैंने अपने दोस्त को बताया के ताज़िया बनाना और इसको घुमाना जाइज़ नहीं है।*
तो मेरे दोस्त ने पलट कर सवाल किया के 12 रबी'उल अव्वल को जो मक्का शरीफ और मदीना शरीफ का मोडल निकाला जाता है वो भी जाइज़ नहीं होना चाहिए..?❓
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*बाक़ी हिस्सा पिछले पोस्ट (3-4) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ जिसकी मिसाल आला हज़रत ने इस तरह से दी हैं कि, वाद, व साव, व यग़ूस, व य'आक, व नस्र ये पाँच लोग बानी इसराइल के नेक लोग थे, कि पहले लोगो ने सिर्फ उनकी याद मानाने के लिये, की उनको देख कर हमें उनकी नेकिया याद आये उनकी तसवीरे रखी, उनको देख कर उनको खुदा की याद आती खुदा का ज़िक्र याद आता, लेकिन बाद वालो ने उनकी पूजा शुरू कर दी, तो जब बाद वालो ने उनकी पूजा शुरू कर दी तो उनकी तस्वीर बूत ही के तौर पर मश'हूरो मै'वरूफ हो गई। अब ये कोई नहीं कह सकता की इस्से अगर ज़िक्रे इलाही मक़सूद हो, खुदा की याद मक़सूद ही, तो जाइज़ हे वरना जाइज़ नही।
•••➲ इसी तरह ताज़िया.... की ताज़िया अगरचे सुन्ने में ये आया हैं की तैमुर लोग ने सिर्फ इमामे आली मक़ाम के रोज़े की नक़्ल और शबि अपने साथ इस लिए बना कर रखी की उसको जंगो में जाने की वजह से और सलतनत में मष्गुलियत की वजह से हर साल इमामे आली मक़ाम के रौज़े पर हाज़री दुशवार थी, तो आप की याद के लिए रखा, मगर बाद वालो ने इसको बिगाड़ तरश करके इतना फ़र्ज़ी बना दिया के आज ताज़ियादारी उन्ही गलत और फ़र्ज़ी चीज़ो का नाम हैं जो आम तौर पर राइज हैं। कोई अगर अपने घर में इमामे आली मक़ाम के रोज़े की सहीह नक्स बना कर रखे तो कोई उसको ताज़िया नहीं कहेगा बल्कि कहेंगे की ये दरगह की फोटो हैं। मगर ताज़िया नाम है उसी का जो गलत और फ़र्ज़ी और बिद्दत और नाजाइज़ चीज़ो का मजमूआ हैं, और ताज़िये की हक़ीक़ते उर्फ़िया ही बिद्दतो नाजाइज़ चीज़ो का मजमूआ हैं इस लिए ये मुतलक़न नजाइज़ो गुनाह है।
•••➲ तफ्सील के लिए *📚फतावा रजविया शरीफ, जिल्द-9, निस्फी अव्वाल, सफह-64* की तरफ रुज़ू करे।...✍🏻
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 06
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मैंने अपने दोस्त को बताया के ताज़िया बनाना और इसको घुमाना जाइज़ नहीं है।*
तो मेरे दोस्त ने पलट कर सवाल किया के 12 रबी'उल अव्वल को जो मक्का शरीफ और मदीना शरीफ का मोडल निकाला जाता है वो भी जाइज़ नहीं होना चाहिए..?❓
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*बाक़ी हिस्सा पिछले पोस्ट (3-4-5) में है।*
•••➲ इसमें हुज़ुर आला हज़रत ने इस मस्ले की मुक़म्मल तहक़ीक़ की हैं जिसका खुलासा ज़िक्र किया गया।
•••➲ और जैसा की फ़तावा फ़क़ीहै मिल्लत में हैं
•••➲ रबी उल अव्वल शरीफ के मौक़े पर जुलुस निकालना ज़रूर करे सवाब ही उस में रसूलल्लाह ﷺ की त'अज़ीमों तक्रीम हैं और उस से आप ﷺ की अज़मत व बढ़ाई ज़ाहिर होती हैं लेकिन जिस तरह नव्वी मुहर्रमुल हराम को त'जिया बना कर रात भर औरतो, मर्दो का मेला लगना हरम हैं उसी तरह गुम्बदे खज़रा वग़ैरह बना कर मर्दों, औरतो का रात भर मेला लगाना फिर उस ढांचे को ले कर मर्दो के साथ जुलुस निकालना भी नजाइज़ो हराम हैं। अलावा अज़ीन आगे चल कर ये भी मुरवाज्जा ताजिया दारी की तरह बहुत बड़ा फितना हो जायेगा और ये मुबारक दिन बेहूदा रश्मो और जाहिलाना व फासिकाना मेलो का ज़माना हो जायेगा इस लिए इसे बंद किया जाये आला हज़रत अलैहिर रहमतो रिज़वान अपने रिसाला ए मुबारका *'हादियूं नास फी रुसुमुल उरास' सफह 7* में तहरीर फ़रमाते हैं "सरे से फितना का दरवाज़ा बंद कर दिया जाये न ऊँगली निकालने की जगह पाएंगे न आगे पांव फैला पाएंग़े
•••➲ लिहाज़ा तमाम मुसलमामो पर लाज़िम हैं की वो गुम्बदे खज़रा का ढांचा हरगिज़ न बनाए बल्कि सिर्फ कागज, कपडे या तीन पर उसका नक़्श तैयार करे और सिर्फ दिन में जुलुस निकाले और रात में जलसा ईद मिलाद नबी मुनाक़िद करे जिस में औरतो को बैठने के लिए पर्दा में जलसा गाह से हट कर इन्तेज़ाम करे ताकि औरतो और मर्दो की निगाहे एक दूसरे की तरफ न उठे और दिन के जुलुस में भी औरतो को हरगिज़ न शरीक होने दे उलेमा व खवास अगर उन्हें जुलुस में शिरकत से न रोकेगे तो वो सख्त गुनहगार व मुब्तलाये अज़ाबे नार होगे।...✍🏻
*📬 फ़तवा फ़क़ीहै मिल्लत, ज़िल्द 2 सफ़ह 296 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 07
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 आला हज़रत पर ऐतराज़ तारीखे विलादते नबी अलैहिस्सलाम*
आला हज़रत पर इलज़ाम लगाने वाले वहाबी कहते हैं की आला हज़रत ने फ़तावा रजविया में नबी अलैहिस्सलाम की विलादत 8 रबि उल अव्वल ही लिखी है, और 12 रबि उल अव्वल को विशाल ..?❓
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ ये एक झूठा इल्ज़ाम है, और वहाबियो की मक्करी है।
•••➲ आला हज़रत ने तमाम अक़वाल को शुमार किया, की विलादत पर 2, 8, 10, 12,17, 22 तारीख़ के अक़वाल भी मौजूद है, फ़िर इसके बाद मवाहिबुल लदनिया और मदारीजन नबुव्वा के हवाले से 12 रबिउल अव्वल को ही मशहूर और ज़्यादा सही क़रार दिया है।
*📔 फ़तावा रज़विया, ज़िल्द - 26, पेज 411*
•••➲ अंधे वहबियो, देखो फ़तावा रजविया में क्या लिखा है??
•••➲ आईये कुछ और अइम्मा-इ-मुज्तहदिन के अक़वाल पर भी नज़र डालते हैं की 12 रबीउल अव्वल ही विलादत का दिन हैं,
•••➲ इमाम इब्न-इ-इश्क़ (85-151 H): अल्लाह के नबी (صلى الله عليه وآله وسلم) 12 रबी-उल-अव्वल को आम-उल -फील में पैदा हुए।
*📘 इब्न-ए-जोजी इन अल-आफ़, पेज 87*
•••➲ अल्लामा इब्न-ए-हिशाम (213 H): अल्लाह के नबी (صلى الله عليه وآله وسلم) पीर के दिन 12 रबी-उल-अव्वल में आम-उल-फील में पैदा हुए।...✍
*📕 इब्न-ए-हाशम इन अस-सीरत-उन-नबविया, ज़िल्द 1 पेज 158*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 08
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 तुझ से कुत्ते हज़ार फ़िरते हैं, आला हज़रत शेर की तश्रीह*
आला हज़रत का एक कलाम है जिसमे कहते है कि, *कोई क्यों पूछे तेरी बात रजा* तुझसे कुत्ते हज़ार फिरते है इसमें कुत्ते है या कित्ते..?❓
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ ये वही कलाम हैं जो सरकार आला हज़रत ने सरकारे दो जहां हुज़ुर ﷺ की ज़ियारते जमाल से सरफ़राज़ होने की उम्मीद से लिखा था और इसके बाद आप को हालते बेदारी में आक़ा ए कौनैन हुज़ुर ﷺ का दीदार नसीब हुआ। ये आक़ा ए कौनैंन ﷺ की तरफ से वो एजाज हैं जो बड़े नाज़ के पालों को ही मयस्सर आता हैं।
कोई क्यों पूछे तेरी बात रजा
तूझसे कुत्ते हज़ार फ़िरते हैं।
•••➲ जिस की शरह फ़रमाते हुये अल्लामा फैज़ अहमद ओवैसी अलैहिर रहमतो रिज़वान फ़रमाते हैं, आला हज़रत अलैहिर रह्मा ने खुद को और अपने जैसे दूसरे उश्शाक़े रसूल ﷺ को कुत्ता कहा हैं।
•••➲ ये सहीह और हक़ हैं फकीर ने(अल्लामा फैज़ अहमद ओवैसी ने) इसी शरह में इस पर तवील बहस लिखी हैं लेकिन आशिकाने रजा यहाँ झिझकते हैं, बाज़ तो "शायदा हज़ार फ़िरते हैं" से तब्दिल करके पढते हैं ये ना-मुनासिब हैं इस लिए की आशिक़ उसी लफ्ज़ से ज़्यादा खुश होता हैं जो वो अपने महबूब के लिए खुद इंतेखाब करे सैय्यदना अली उल मुर्तुज़ा रदिअल्लहु अन्हु को अबू तुराब से मसर्रत होती न की अबुल हसन से।
•••➲ इसी लिए मेरा ख़याल हैं की लफ्ज़ को जो का तूँ रहने दीजिए ऐसे ही ख्वाजा सैयद माहेर अली शाह रहमतुल्लाह अलैही का शे'अर "गुस्ताख़ अख्खियान किथ्थे जा लऱयान" वहां भी बाज़ लोग "मुश्ताक़ अखियान" पढते हैं में ये समझता हु के इस तबदीली से उन आशिक़ों की रूह राज़ी नहीं होगी।
•••➲ औऱ फ़रमाते हैं, एक साहब ने फ़रमाया की यहाँ कित्ते बकसरा काफ होगा। इस लिए की कित्ते बा मा'यना कितने। मैंने कहा आप की त'अभीर बसरो चश्म लेकिन मेरा इमाम अहमद रजा इस त'अभीर से खुश न होगा।..✍
*📬 माखूज़: ( शारह हादिके बख्शीश, ज़िल्द 4 सफ़ह 338 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 तुझ से कुत्ते हज़ार फ़िरते हैं, आला हज़रत शेर की तश्रीह*
आला हज़रत का एक कलाम है जिसमे कहते है कि, *कोई क्यों पूछे तेरी बात रजा* तुझसे कुत्ते हज़ार फिरते है इसमें कुत्ते है या कित्ते..?❓
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ इमामे इश्क़ो मुहब्बत सरकार आला हज़रत सरकारे मुस्तफ़ा सरवरे क़ायनात हुज़ुर ﷺ की बरगाह का अपने आप को "कुत्ता" कहलाने में कोई आर नहीं बल्कि फख्र महसूस फ़रमाते हैं।
•••➲ सकरार आला हज़रत ही क्या ! हर आशिक़ ए रसूल का यही तरीका रहा हैं की वो मदीना मुनव्वरा के बा कमाल कुत्तो का भी अदब और उनसे प्यार रखते हैं।
•••➲ औऱ यही एक आशिक़े सादिक़ की अलामत हैं।
•••➲ जैसा के हज़रत हाफिज शीराज़ी अलैहिर रह्मा हुज़ुर ﷺ के सगान कुए (गली के कुत्तो) का इज़हारे आरज़ू इस तरह करते हैं,
شنیدہ ام کہ سگانرا قلادہ می بندید,
چرا بگردن قاضی حافظ نیگفتی رسنے,
•••➲ *तर्जुमा :* मैंने सुना हैं की कुत्तो के गले में पट्टा ड़ालते है, फिर अये यारो ! हाफिज की गर्दन में रस्सी क्यों नहीं बांधते ?
•••➲ हज़रत शैख़ सा'दी अलैहिर रह्मा बारगाहे रिसालते म'आब ﷺ में यु अर्ज़ करते हैं:
چہ کند سعدی مسکین کہ صد جان،
سازیم فدائے سگ دربان محمدﷺ
•••➲ *तर्जुमा :* सा'दी (रादिअल्लाहु अन्हु) की एक जान क्या हैं? सो जान हो तो हुज़ुर ﷺ के दरबान के कुत्तो पर वार दू।
•••➲ हज़रत नूरुद्दीन अल्लामा अब्दुर रहमान आरिफ जामि रहमतुल्लाह अलैही जो दरसी किताब "शारह जामि" के अलावा बेसो किताबो के मुसन्निफ़ है फ़रमाते हैं:
سگ تو دوش بجامی فغاں کناں می گفت,
خموش باش کہ از نالئہ است بدردسریم,
•••➲ *तर्जुमा :* अये महबूबे मदीना ﷺ गुज़िश्ता शब् को जामि आप के हुज़ुर में आन्ह व फागा कर रहा था की आप के दरे अक़दस का कुत्ता कहता था की खामोश हो जाओ, इस लिए के तेरे शोरो फाग और आह व नाला से मेरे सर में दर्द होता हैं।..✍
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*📝 तुझ से कुत्ते हज़ार फ़िरते हैं, आला हज़रत शेर की तश्रीह*
आला हज़रत का एक कलाम है जिसमे कहते है कि, *कोई क्यों पूछे तेरी बात रजा* तुझसे कुत्ते हज़ार फिरते है इसमें कुत्ते है या कित्ते..?❓
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•••➲ शेर की ज़रा नज़ाकत तो देखिये ! की आशिक़ कहता हैं कि जब में अपनी दर्द भरी फ़रियाद अपने महबूबे करीम ﷺ के हुज़ुर पेश करता हु तो आओ के दरवाज़े के कुत्ते ऐसे नाज़ुक मिज़ाज हैं की वो मेरी आह को सुन कर मुझ से फ़रमाते हे की जामि ! खामोश रह ! तेरी आह व फर्याद से हमारे आराम में ख़लल वाक़े'अ होता हैं।
•••➲ औऱ अर्ज़ करते हैं कि या रसूलुल्लाह ﷺ
می کیستم دمےدوستی زنم,
کمین سگان کوئے تو یک کمترین منم
•••➲ तर्जुमा : मैं कोन हूँ ? जो आप से दोस्ती का दम भरूँ ! मैं आप के दरवाज़ा के कुत्तो में से एक अदना सग हु।
•••➲ औऱ अर्ज़ करते हैं,
سگت را کاش جامی نام بودے,
کہ گاہے بر زبانت رفتہ بود ے।
•••➲ तर्जुमा : काश !! आप के कुत्ते का नाम जामि होता !! कभी तो ये नाम आप की ज़ुबान मुबारक पर जारी हो जाता।
•••➲ कब हम हक़ बजानिब हैं की मेरे इमाम ने भी वो किया और कहा जो अस्लाफ सलिहीन अलैहिर रह्मा ने कहा और किया। सरकार आला हज़रत ने दर्जनो मक़ामात पर अपने आप के लिए 'सग' जैसे अल्फ़ाज़ इस्तेमाल किये हैं।
•••➲ अहले सुन्नत बुज़ुर्गो की तरफ अपने आप को सग (कुत्ते) की निस्बत क्यों करते ?
•••➲ इसके चंद वजूहात हैं। इन में से मुख़्तसर नक़्ल करता हूँ।
•••➲ अल्लामा कमालुद्दीन मुहम्मद बिन मूसा अल-दमीरी (808हिज्री) रहमतुल्लाह अलैही फ़रमाते हैं,
"الکلب حیوان شدید الریاضتہ کثیر الوفاء"
•••➲ यानी क्लब(कुत्ता) एक हैवान हैं जो रियाज़त बसयात की आदत के अलावा वफ़ा का मुजस्समा हैं।
*📔 हायतुल हैवान, ज़िल्द-2, सफ़ह-22र, व अजैबुल मख़लूक़ात*
•••➲ क्योंकि हम अहले सुन्नत बुज़ुर्गो के आदाबो मुहब्बत व उल्फत में बड़े मोहतात हैं और फ़ी उनसे वफ़ादारी का क्या कहना !!! की जान जाये तो जाए मगर उनकी आन में आंच न आये।
•••➲ चुनाँचे अल्लामा मौसूफ़ इसकव आगे फ़रमाते हैं: मालिक को खुश करने और उस के हर मुआमला में रजा मन्दी पे उससे मुहब्बत व उल्फ़त पर ऐसा खुश व खुर्रम हैं की उस से सख्त पिटाई के बावजूद जब उसे मालिक बुलाये तो मालिक के क़दमो पर गिर जाता हैं। और उसके क़दम चूमने लगता हैं। और उस चुमने को बाइसे फख्र समझता है। अगर मालिक उसे अपने दर से लाख बार हटाये तो भी उसका दर छोडना गवारा नहीं करता। सुन्नी अल्लाह वालो से मुहब्बत करता हैं। और उनका अदब करता हैं। ये अजैबे आलम में से हे की 'कुत्ता अगरचे अजनबी लोगो का दुश्मन हैं लेकिन वाली अल्लाह का मुहिब और आशिक़ हैं। इसी वजह से अस'हाबे कहफ़ का कुत्ता औलिया अल्लाह की मुहब्बत और सोहबत से क्या से क्या हो गया। की उसके बैठने का अंदाज़ अल्लाह ﷻ ने क़ुरआने पाक में बयाँ फ़रमाया, औलिया अल्लाह की अक़ीदत व मुहब्बत अदब करने की वजह से वो भी अल्लाह ﷻ का प्यारा हो गया, ऐसा प्यारा के उसके बैठने का अंदाज़ भी अल्लाह त'आला को प्यारा हो गया।
•••➲ अल-गरज़ ये शेर पढ़ने में कोई हर्ज नहीं और जिस तरह से हैं उसी तरह पढ़ा जाए। उसमे कित्ते या शैदा नहीं हैं असल में कुत्ते हैं।..✍
क्यों पूछे तेरी बात रज़ा,
तूझसे कुत्ते हज़ार फ़िरते हैं।
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 11
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 ग़ुस्ल के वक़्त कलमा न पढ़ने से पाक नही होते ?❓*
आवाम में मशहूर हैं कि जब तक (ग़ुस्ल करते हुए) कलमा शरीफ़ न पढ़ा जाएं तो वो पाक नही होता ना-पाक ही रहता है!
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•••➲ ये आवाम की गलत फ़हमी और फ़िज़ूल बात है सही मसला ये हैं कि ग़ुस्ल करते वक़्त न कलमा शरीफ़ पढ़ें न किसी किस्म की गुफ़्तुगू करें बल्कि फ़राइज़ सुन्नत व मुस्ताहबात को अदा करें!
•••➲ हज़रत मुफ़्ती अमजद अली आज़मी फ़रमाते हैं ग़ुस्ल करते वक़्त किसी किस्म का कलाम न करें औऱ न ही दुआ पढ़ें!..✍🏻
*📬 फ़तावा आलमगीरी - बहारे शरीअत ज़िल्द 2 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 बच्चों को बदमज़हबों से तालीम दिलाना कैसा ?❓*
•••➲ कुछ लोग अपने बच्चो को तालीम के लिए वहाबी देवबंदी आलिम के पास भेज देते हैं और मना किया तो कहते हैं हम अपने बच्चो’ को दीनी तालीम के लिए भेजते हैं तालीम लेना तो वहाबी देवबंदी आलिम से भी जाइज़ है!
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ हालांकि उनका ये कहना बिल्कुल ग़लत है सही बात ये है के अपने बच्चो को वहाबी देवबंदी आलिम के पास पढ़ाना जाइज़ नहीं क्योंकि वो तालीम ही ऐसी देंगे जो उनका अक़ीदा होगा!
•••➲ आला हज़रत इमाम ए अहले सुन्नत मुजद्दिद ए आज़म से किसी ने पूछा : वहाबी के यहाँ’ बच्चो को पढ़ाना कैसा है?
•••➲ तो आपने इरशाद फ़रमाया हराम हराम हराम
•••➲ आला हज़रत ने वहाबी आलिम से बच्चों’ को तालीम दिलाने वालो’ को सख्ती से रोका और 3 मर्तबा फ़रमाया हराम हराम हराम
•••➲ इसलिए अपने बच्चो” को किसी सुन्नी सहीहुल अक़ीदा आलिम से तालीम दिलाये!..✍
*📬 अहकाम ए शरीअत, हिस्सा 3, सफह 237 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 13
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 आज़ान के वक़्त बातें करना कैसा ?❓*
•••➲ आज कल अवाम तो अवाम कुछ अहले इल्म हजरात भी अज़ान के वक़्त बातो’ में मशगूल रहते हैं!
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ मसअला ये है के जब अज़ान हो तो इतनी देर के लिए सलाम व कलाम और जवाब ए सलाम तमाम काम बंद कर दे यहा तक के क़ुरआन मजीद की तिलावत में अज़ान की आवाज़ आये तो तिलावत रोक दे’ आज़ान को ग़ौर से सुने’ और जवाब दे (जो अज़ान के वक़्त बातो’ में मशगूल रहे उस पर मआज़ अल्लाह खतीमा बुरा होने का अंदेशा है!
•••➲ *मफ़हूम हदीस* औऱ अगर रास्ता चलने में अज़ान की आवाज़ आये तो रुक कर अज़ान सुने’ और जवाब दे’ औऱ अगर कई जगह से अज़ान की आवाज़ आये तो उनमें से पहली अज़ान का जवाब देना ज़रूरी है और सबका जवाब देना बेहतर है!..✍
*📬 फतावा रजविया , बहारे शरीअत, हिस्सा 3, सफह 36 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 इक़ामत (तक्बीर) खड़े होकर सुनना कैसा ?❓*
•••➲ आज कल कुछ जगह देखा जाता है के जब मुकब्बिर तकबीर कहते है तो सब लोग खड़े हो जाते हैं और खड़े हो कर तक्बीर सुनते हैं हालांकि ये बिल्कुल बे-अस्ल और खिलाफ ए सुन्नत है।
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ मसअला ये है के तक्बीर के वक़्त बैठने का हुक्म है खड़ा रहना मकरूह मना है। औऱ जब मुकब्बिर (इक़ामत कहने वाला) हय्या’अलल’ फ़लाह पर पहुचे तो उठने चहिये।
•••➲ जैसा के फ़तावा आलमगीरी जिल्द 1 में है। यानी अगर कोई शख्स तक्बीर के वक़्त आया तो उसे खड़े होकर इंतज़ार करना मकरूह है।
•••➲ लिहाज़ा बैठ जाये और जब तक्बीर कहने वाला हय्या’अलल’ फ़लाह पर पहुचे उसी वक़्त खड़ा हो।
•••➲ फ़िक़ह ए हनफ़ी की तमाम किताबो’ में ये बात मौजुद है के मुक़्तदी को इक़ामत के वक़्त खड़ा रहना मकरूह है!
•••➲ औऱ यही हुक्म इमाम के लिए भी है!..✍
*📬 फ़तावा आलमगीरी जिल्द 1 फ़तावा फैजुर्रसूल जिल्द 1 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या खाना खाते वक़्त चुप रहना जरूरी हैं?❓*
•••➲ बाज़ लोगो में ये मश’हूर है के खाना खाते वक़्त बोलना जाइज़ नही, चाहे वो दीनी बात ही क्यों न हो बल्कि ख़ामोशी से खाना खाना चाहिए!
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ ये लोगो की ग़लत फेहमी और बे-अस्ल बात है मस’अला ये है के खाना खाते वक़्त ज़िक्र ए खैर करना चहिये, बिलकुल खामोश रहना मजूसियो’ की अलामत है इस लिए खाना खाते वक़्त बिलकुल चुप नहीं रहना चहिये, बल्कि कुछ इस्लाम की नसीहत आमेज़ बाते’ करना चहिये।
•••➲ आला हज़रत मुजद्दिद ए आज़म से किसी ने सुवाल किया तो आपने इरशाद फ़रमाया, के खाना खाते वक़्त इतज़ाम कर लेना न बोलने की ये आदत है मजुस की और मकरूह है, और लागु बाते ’न करना हर वक्र मकरूह है और ज़िक्र ए खैर करना जाइज़।...,✍
*📬 अल’मलफ़ूज़ हिस्सा 4 सफह 13 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 हमबिस्तरी से पहले बिस्मिल्लाह पढ़ना कैसा है!?❓*
•••➲ आवाम में ये भी मश’हूर है के बीवी से हमबिस्तरी करने से पहले बिस्मिल्लाह शरीफ नहीं पढनी चाहिये। औऱ हमबिस्तरी से पहले बिस्मिल्लाह पढ़ना गुनाह समझते है।
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ ये आवाम की ग़लत सोंच और खिलाफ ए शरा बात है सही मस’अला ये है के बीवी से हमबिस्तरी करने से पहले बिस्मिल्लाह पढ़ना जाइज़ औऱ मुस्तहसन है बिस्मिल्लाह पढने का शरीअत ए मुतह्हरा में हुक्म आया है।
•••➲ आला हज़रत इमाम ए अहले सुन्नत अश्शाह इमाम अहमद रज़ा कादरी रहमतुल्लाह फ़रमाते हैं जो बगैर बिस्मिल्लाह औरत के पास जाये उसकी औलाद में शैतान का साझा होता है।
•••➲ हदीस में ऐसो को मुग़ऱाबीन फ़रमाया है। यानी जो इंसान और शैतान के मजमूई नुत्फे से बनता है!..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 अल’मलफ़ूज़ शरीफ हिस्सा 2 सफह 92 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 नमाज़ में सीने का बटन खुला रखना कैसा?❓*
•••➲ आज कल ये भी देखा गया है के बहुत से लोग नमाज़ पढ़ते वक़्त सीने का बटन नहीं लगाते हैं सीना साफ़ दिखता है और नमाज़ पढ़ लेते हैं!
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ सही मसअला इस सुरत में नमाज़ मकरूह ए तहरीमी होती है अग़र कुर्ते वगैरह का बटन न लगा हो और नींचे बनियान या कुरता वगैरह दूसरा कपडा न हो तो नमाज़ मकरूह ए तहरीमी होगी हा’ अगर नीचे कुर्ता वगैरह कोई दूसरा कपडा हो और सीना नज़र न आता हो तो नमाज़ मकरूह ए तंज़ीही है मकरूह ए तहरीमी की बिना पर नमाज़ को दोबारा पढ़ना वाजिब (ज़रूरी) है औऱ तंज़ीही की बिना पर मुस्तहब (अच्छा) है!..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 फतावा फैज़ुर्रसूल हिस्सा 1 सफह 374 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 18
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या दाहिने पैर का अँगूठा सरकने से नमाज़ नही होंगी?❓*
•••➲ अवाम में ये बात बहुत मश’हूर है के अगर नमाज़ में दाहिने पैर का अँगूठा सरक जाये तो नमाज़ नहीं होती है।
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ ये बात बिलकुल ग़लत और बेअस्ल हैं!
•••➲ सही मास’अला ये है के अग़र नमाज़ में दाहिने पैर का अँगूठा सरक जाये तो नमाज़ में कोई खराबी नहीं आती बिला कराहट नमाज़ मुकम्मल हो जाती है!
•••➲ हा’ बिला वजह नमाज़ में क़सदन कोई हरकत करना जिस्म के किसी भी हिस्से से मकरूह है।
•••➲ फ़ाकिह ए मिल्लत फ़रमाते हैं दाहिने पैर का अँगूठा नमाज़ में अपनी जगह से हट गया तो कोई हरज नहीं लेकिन मुक़्तदी का दाहिने बाए’ या आगे पीछे इतना हटना के जिस से सफ में कुशादगी पैदा हो या सीना सफ से बाहर निकले मकरूह है!...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
📭 बहारे शरीअत हिस्सा 3 📔
*📬 फतावा फैज़ुर्रसूल हिस्सा 1 सफह 371 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 अग़र बच्चें मर्दों की सफ़ में खड़े हो तो क्या हुक़्म हैं?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ अगर बच्चे मर्दो की सफ में खड़े हो’ तो नमाज़ में कोई ख़लल (ख़राबी) नहीं आएगा नमाज़ हो जाएगी।
•••➲ लेकिन बेहतर ये है के बच्चों को इस से रोका जाये और पीछे खड़े होने की तलक़ीन की जाये औऱ सिर्फ एक बच्चा हो तो उलमा ने उसे सफ में दाखिल होने और मर्दो के दरमियान खड़े होने की इजाज़त दी है।
•••➲ मुराकिउल’फ़लाह में है!
ان لکم یکن جمع من الصبیان یقوم الصبی بین الرجال اھ،
•••➲ हा’ अगर बच्चे नमाज़ से खूब वाकिफ हो’ तो उन्हें सफ से नहीं हटाना चाहिए औऱ कुछ बे’इल्म ये ज़ुल्म करते हैं के लड़का पहले से नमाज़ में शामिल है अब ये आये तो उसे नियत बंधा हुआ हटा कर किनारे कर देते हैं और खुद बीच में खड़े हो जाते हैं ये महज जहालत है औऱ कुछ लोगो का ये ख्याल के लड़का बराबर में खड़ा हो तो मर्द की नमाज़ न होगी ग़लत है जिसकी कुछ अस्ल नही!...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
📭 फ़तावा रज़विया जिल्द 3 सफह 1318 📔
*📬 फतावा मुस्तफ़वीय जिल्द 2 सफह 73 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या ग़ुस्ल के वुज़ू से नमाज़ नही होती?❓*
•••➲ लोगो में मश’हूर है के गुस्ल करते वक़्त जो वुज़ू किया जाता है उस से नमाज़ नहीं होती नमाज़ के लिए दोबारा वुज़ू करना ज़रूरी है!
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ सही मसअला ये है के दोबारा वुज़ू करने की ज़रूरत नहीं ग़ुस्ल के साथ किये गए वुज़ू से नमाज़ हो जाती है!
•••➲ बहारे ए शरीअत हिस्सा 2 सफह 31 पर सुनन ए अरबा के हवाले से हदीस नक़्ल की गयी है के उम्मुल मोमिनीन हज़रत ए आईशा सिद्दिक़ा रादिअल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं के नबी ए पाक ﷺ ग़ुस्ल के बाद वुज़ू नहीं फ़रमाते!
•••➲ औऱ फ़िक़ह की मुस्तनद किताब दुर्र ए मुख़्तार में है!..✍
لو تؤضـٔـااولا لایاتی بہ ثانیاًلانه لایستجب وضوء ان للغسل اتفاقاً
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 बहारे ए शरीअत हिस्सा 2 सफह 31 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 21
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 सोते हुए आदमी को नमाज़ के लिए उठाना कैसा है?❓*
•••➲ अवाम में ये भी मश’हूर है के नमाज़ के लिए सोते हुए आदमी को जगाना जाइज़ नहीं!
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ ये अवाम की ग़लत फेहमी हैं!
•••➲ सही मसअला ये है के नमाज़ के लिए सोते हुए आदमी को जगाना जायज़ है औऱ जाइज़ ही नहीं बल्कि ज़रूर जगाना चहिये।
•••➲ मुजद्दिद ए आज़म सय्यिदिना आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह से किसी ने सुवाल किया के नमाज़ के वास्ते सोते हुए आदमी को जगाना जाइज़ है या नहीं?
•••➲ मुजद्दिद ए आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया जगाना ज़रूरी है।..✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 अहकाम ए शरीअत हिस्सा 2 सफह 171 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 22
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या नमाज़ ए जुमुआ की क़ज़ा हैं?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ नमाजे जुमुआ फ़र्ज़ ए ऐन (बहुत ज़रूरी फ़र्ज़) है इसकी फ़र्ज़ियत का हुक्म सूरः ए जुमुआ की आयत नं 9 में नाज़िल हुआ है!
•••➲ नमाज़ ए जुमुआ के छोड़ने पर अहादीस ए मुबारका में बड़ी वाईद (सजा देने का वादा) आई है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया के जिस शख्स ने गैर ज़रूरी और मामूली बात समझते हुए 3 जुमुआ छोड़ दिए अल्लाह तआला उसके दिल पर मोहर लगा देगा!
📕 अबुदाऊद, तिर्मिज़ी, नसाई
•••➲ फिर भी अगर किसी शख्स की नमाज़ ए जुमुआ उज़्र की बिना पर (जैसे सफर, बीमारी, मज़ूबूरी) या बदक़िस्मती से बिला उज़्र छुट गयी तो उस पर जुमुआ की क़ज़ा नहीं बल्कि वो ज़ुहर की नमाज़ पढ़ें!..✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 बहार ए शरीअत 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 23
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 ताँबे पीतल और लोहे के जेवर पहनकर नमाज़ पढ़ना कैसा है?❓*
•••➲ आज कल औरते ताँबे और लोहे के ज़ेवरात पहनती हैं और उन्ही ज़ेवरात को पहनकर नमाज़ पढ़ लेती है। और ख्याल करती हैं के नमाज़ हो गयी!
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ ये औरतो’ की ग़लत फेहमी है।
•••➲ सही मस’अला ये है के लोहा पीतल ताँबे के ज़ेवरात पहनकर नमाज़ पढने से नमाज़ मकरूह ए तहरीमी होती है।
•••➲ और *फतावा रज़विया में है* हर वो नमाज़ जो मकरूह ए तहरीमी हो उसका दोबारा पढ़ना वाजिब है।..✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 फ़तावा फैजुर्रसूल जिल्द 1 सफह 375 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 24
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या कलमा ए तय्यिबा का ज़िक्र क़ुरआन में है?❓*
•••➲ बाज़ लोग ये एतराज़ करते हैं के कलमा ए तैय्यबा जिसे कलमा ए इस्लाम भी कहते हैं इसका ज़िक्र क़ुरआन में नहीं है।
•••➲ क्या इतनी बुनयादी छीज क़ुरआन में नज़रअंदाज़ की जा सकती है?
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ क़ुरआन किसी एक आयत किसी एक सुरत या किसी एक जुज़ *( हिस्सा )* का नाम नहीं है।
•••➲ बल्कि पूरा क़ुरआन अल्लाह का कलाम है सारे क़ुरआन पर लफ़्ज़न व मनन *( लफ्ज़ और मतलब पर )* इमांन फ़र्ज़ ए ऐन है किसी एक आयत का इन्कार पुरे कुर’आन के इन्कार की तरह है।
•••➲ क़ुरआन मजीद एक बार में नाज़िल नहीं हुआ बल्कि वक़्तन फ वक़्तन *( ज़रूरत के वक़्त )* अल्लाह त’आला की हिकमत से नाज़िल किया जाता रहा।
•••➲ इस लिए क़ुरआन मजीद में अक़ाइद, मसाइल व अहकाम, क़सस ओ वाक़ेयात, मुतफ़र्रिक़ *( अलग अलग )* तौर पर बयांन किये गये।
*ला इलाहा इल्लल्लाहु मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह*
•••➲ को कलमा ए तय्यिबा भी कहते हैं और कलमा ए इस्लाम भी कहते है।
•••➲ *ला इलाहा इल्लल्लाह* क़ुरआन मजीद की 37 वी सुरत अस’सफ्फत की आयत नं 35 में मज़कूर है।
•••➲ और *मुहम्मदुर रसूलुल्लाह* क़ुरआन ए पाक की 47 वी सुरत अल’फ़तह की आख़री आयत आयत नं 29 की इब्तेदा में मज़कूर है।
•••➲ इन दोनों को यकजा *( एक जगह )* करने से कलमा ए तय्यिबा बनता है।..✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 तफ़हीमुल मसाइल 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 25
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 चप्पल उल्टा रखने से?❓*
•••➲ बाज़ लोग कहते हैं के घर में चप्पल या शू छोड़े और वो उल्टे हो जाये या गिर जाने से घर की बरकत खत्म हो जाएगी तो ये बात शरई एतबार से कहा तक सही है?
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ चप्पल का इस्तेमाल पैरो को गन्दगी और तकलीफ देने वाली चीज़ से हिफाज़त के लिए होता है, और जब चप्पल उल्टे हो जाये तो उसके नीचे का हिस्सा ऊपर हो जाता है जो मिट्टी, गन्दगी एट्स का मक़ाम होता है ,उसको देखने या उस पैर अचानक भी नज़र पढ़ने से तबियत में *“कराहट”* महसूस होती है, जिस से दिल को तकलीफ होती है, लिहाज़ा इस कराहट और दिली तकलीफ से हिफाज़त के लिए चप्पल को सीधा रखना है,उलटा रखना इसी लिए मना है,क्योंकि रास्ते से तकलीफ वाली चीज़ को हटाना इस्लामी तालीमात में से है,औऱ उस अमल से गुनाहों की बख्शीश भी होती है।
عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ: ((بَيْنَمَا رَجُلٌ يَمْشِي فِي طَرِيقٍ إِذْ وَجَدَ غُصْنَ شَوْكٍ فَأَخَّرَهُ فَشَكَرَ اللَّهُ لَهُ فَغَفَرَ لَهُ
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📭 तिर्मिज़ी शरीफ़ ज़िल्द 2 हदीस नं 2085 📚*
*⚠नोट* जहा तक चप्पल या शू उल्टे होने से घर से बरकत का खत्म होना किसी हदीस से साबित नहीं है ये फ़क़त आवाम की ग़लत फ़ेहमी है!...✍
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 26
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 नैलपोलिश लगाकर नहाने से पाक होंगे या नही ?❓*
•••➲ आज कल अक्सर औरते’ नाखुनो’ पर नैलपोलिश लगा लेती हैं ये रिवाज बहुत आम हो चुका है और इसी तरह नहा लेती हैं और समझती हैं के हम जनाबत (नापाकी) से पाक हो गई।
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ *हालांकि ये उनकी गलत फेहमी और भूल हैं!*
•••➲ सही मास’अला ये हैं कि अगर नाखुनो’ पर नैलपोलिश लगी हो तो ऐसी सुरत में ग़ुस्ल करने के बाद भी पाकी हासिल नहीं होगी!
•••➲ क्योंकि नाख़ून पर नैलपोलिश की तेह जम जाती है और ग़ुस्ल करते वक़्त नाख़ून पर पानी नहीं पडता।
•••➲ *शरीअत के मुताबिक़* ग़ुस्ल ए जनाबत में अगर एक बाल के बराबर भी जिस्म का कोई हिस्सा खुश्क (सूखा) रह जाये तो ग़ुस्ल नहीं होता।
•••➲ और इसमें उलमा ए किराम का मुत्तफ़िक़ा (एक राय) फैसला है के ग़ुस्ल के फ़राइज़ में से एक ये भी है के तमाम ज़ाहिरी बदन या'नी सर के बालो’ से पाओ’ के तलवे जिस्म के हर पुर्ज़े हर रोंगटे पर पानी बह जाए लेहाज़ा औरतो’ को नैलपोलिश लगने से सच्चे दिल से तौबा करना चहिये!..✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📭 बहारे शरीअत हिस्सा 2, व दिगर कुतुबे फ़िक़ह 📚*
•••➲ *जनाबत* ना-पाकी। निजासत। खास कर वो नापाकी जो मर्द और औरत के मिलने से या सोते हुए मनी निकल जाने से हो…✍
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 27
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या माईक, टेलीफोन, इंटरनेट, और खत के ज़रिये बैअत जाइज़ है ?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ माईक, टेलीफोन, इंटरनेट, और खत के ज़रिये मुरीद होना और इस तरह की दूसरी चीज़े’ जैसे ईमेल, पोस्टमैन (क़ासिद) वगैरह के ज़रिये भी मुरीद हो सकते है!,
•••➲ मुरीद होते वक़्त (टाइम) ज़रूरी नहीं के पीर के सामने हो बल्कि अगर पीर से दूर किसी और जगह हो तब भी बैअत जाइज़ है!
•••➲ और ऐसी बैअत तो खुद हदीसो से साबित है जैसे के सही बुख़ारी शरीफ में हदीस ए मुबारक है।
•••➲ हजरत ए अब्दुल्लाह बिन उमर रादिअल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत है के जब बैअत ए रिज़वान हुई तो अमीरुल मोमिनीन हज़रत ए उस्मान ए गनी रादिअल्लाहु तआला अन्हु ग़ायब (मौजूद नहीं) थे बैअत हुदैबिया में हुई और वो मक्का मुकर्रमा गए हुए थे।
•••➲ रसूलुल्लाह सल्लाल्ल्हू तआला अलैहि वसल्लम ने अपने दाहिने हाथ (हैंड) को फ़रमाया ये उसमें का हाथ है फिर उसे अपने दूसरे हाथ पर मार् कर उनकी तरफ से बैअत फ़रमाई और फ़रमाया ये उसमान की बैअत है!
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📭 सही बुख़ारी जिल्द 3, हदीस 4066, पेज 39, दारुल किताब अल’इल्मिया बैरुत 📚*
•••➲ सय्यिदी आला हज़रत मुजद्दिद ए दीन ओ मिल्लत अश्शाह इमाम अहमद रज़ा अलैहिर रेहमांन फ़रमाते हैं बैअत बज़रिये खत ओ किताबत भी मुमकिन है ये (मुरीद) दरख्वास्त लिखे और वो (पीर) क़ुबूल करे!
•••➲ आगे लिखते हैं मुरीद हो गया के असल इरादत फैले क़ल्ब (असल अक़ीदत दिल का काम) है वलकालामु अहदललीसांनींन यानि क़लम भी ज़ुबान की तरह ही है।..✍
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 28
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 ग़ौस ए आज़म के धोबी का क़ब्र वाला वाक़्या मोतबर है या नहीं ?❓*
•••➲ हुज़ूर फ़क़ीह ए मिल्लत से इस वाक़्या के मुताल्लिक़ सुवाल किया गया हुज़ूर फ़क़ीह ए मिल्लत का जवाब मुलाहिज़ा फरमाए’
•••➲ जमात ए अहले सुन्नत के स्टेज से ये रिवायात बयां की गयी के हज़रत सय्यदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलनी रादिअल्लाहु तआला अन्हु का एक धोबी था जब उसका इंतेक़ाल हो गया और सवाल व जवाब के लिए मुनकर नकीर फरिश्ते क़ब्र में तशरीफ़ लाये और पहला सुवाल من ربك (मन रब्बुका) किया तो उसने जवाब में ग़ौस पाक (या) मैं गौस पाक का धोबी हो’ कहा इस तरह बाक़ी दोनों सवालो’ के जवाब में भी उसका वही जवाब रहा के मैं गौस पाक का धोबी हो’ (या) गौस पाक,
•••➲ दरयाफ्त तालब अम्र ये है के ऐसा बयां करना शरन कहा’ तक दुरुस्त और जाइज़ है?
और इस तरह की रिवायात बयां करने वाले पर शरन क्या हुक्म आयद होता है?
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ रिवायात ए मज़कूरा (जो रिवायात बयां हुई) बेअस्ल है इसका बयां करना दुरुस्त (सही) नही।
•••➲ लेहाज़ा (इस लिए) जिसने इसे बयां किया वो इस से रुजू (तौबा) करे और आईन्दा इस रिवायात के बयां न करने का अहेद (वादा) करे।
•••➲ अगर वो एसा न करे तो किसी मोतमद (मुस्तनद) किताब से इस रिवायत को साबित करे!..✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 फतावा फ़क़ीह ए मिळत जिल्द 2 सफह 411 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 29
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या हुज़ूर गौस ए पाक और सरकार गरीब नवाज़ की मुलाक़ात हुई?❓*
•••➲ कुछ गैर मोतबर किताबो में इस तरह के वाक़्यात मौजुद हैं जिन से ये ज़ाहिर होता है के हुज़ूर गौस ए पाक और हुज़ूर गरीब नवाज़ रादिअल्लाहु तआला अन्हु की मुलाक़ात हुई थी।
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ लेकिन सही यही है के इन दोनों बुज़ुर्गो की मुलाक़ात नहीं हुई।
•••➲ जब ये सुवाल शरह ए बुख़ारी, हज़रत अल्लामा शरीफुल हक़ अमजदी रहमतुल्लाह की बारगाह में पहुचा तो हज़रत ने बहुत ही मुदल्लल व मुफ़स्सल जवाब मारहमत फ़रमाया :
•••➲ शरह ए बुख़ारी रहमतुल्लाह फ़रमाते हैं इस पर सारे मुअर्रिख़ीन (तारीख/हिस्ट्री बयांन करने वालो) का इत्तिफ़ाक़ है के सरकार गौस ए आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु का विसाल 561/हिजरी में हुआ है इस पर भी क़रीब क़रीब इत्तिफ़ाक़ है के सरकार गरीब नवाज़ की विलादत 537/हिजरी में हुई और इस पर भी इत्तिफ़ाक़ है के सरकार गरीब नवाज़ रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने 15 साल की उम्र से इल्म ए ज़ाहिरी के हुसूल के लिए सफ़र किया एक मुद्दत तक आप समरक़ंद व बुख़ारा में इल्म हासिल करते रहे!
•••➲ उलूम ए ज़ाहिरी की तकमील के बाद मुर्शिद की तलाश में निकलें, फिर 20 साल तक मुर्शिद की ख़िदमत में हाज़िर रहे, 20 साल के बाद ख़िलाफ़त से सरफ़राज़ फरमाये गए फिर मदीना मुनव्वरह में हाज़िर हुए और सरकार ए आज़म सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हिन्दोस्तान की विलायत अता फ़रमाई!..✍ *जारी हैं!*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 फ़तावा शरह ए बुख़ारी, जिल्द 2, सफह 128/131 दैरातुलबरकात घोसी, 1443/हिजरी 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 30
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या हुज़ूर गौस ए पाक और सरकार गरीब नवाज़ की मुलाक़ात हुई?❓*
•••➲ कुछ गैर मोतबर किताबो में इस तरह के वाक़्यात मौजुद हैं जिन से ये ज़ाहिर होता है के हुज़ूर गौस ए पाक और हुज़ूर गरीब नवाज़ रादिअल्लाहु तआला अन्हु की मुलाक़ात हुई थी।
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (29) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ अब हिसाब लगाये के 15 साल की उम्र तक सरकार गरीब नवाज़ रादिअल्लाहु तआला अन्हु अपने वतन में रहे औऱ 20 साल तक इल्म ए ज़ाहिर तालब फ़रमाते रहे तो ये (15+20) 35 साल हो गये।
•••➲ 537/हिजरी 35 साल तक इल्म ए ज़ाहिर की तालब में रहे (35 यानि 537) में आपने 572/हिजरी का इराक किया जब के सरकार गौस ए आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु का विसाल 561/हिजरी में हो चुका था।
•••➲ यानी सरकार गरीब नवाज़ रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने जब के ख्वाजा का इराक किया उस से 11 साल पहले हुज़ूर गौस ए आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु का विसाल हो चूका था, फिर मुलाक़ात कैसे हुई?
•••➲ इस मुकम्मल तफ़सील से ये बात साफ़ हो जाती है के हुज़ूर गौस ए आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु और हुज़ूर गरीब नवाज़ की मुलाक़ात साबित नहीं है और जो भी वाक़्यात मुलाक़ात के गैर मोतबर किताबो में मौजुद हैं बे-असल है।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 फ़तावा शरह ए बुख़ारी, जिल्द 2, सफह 128/131 दैरातुलबरकात घोसी, 1443/हिजरी 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 31
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 आवाम में आज कल मुसलमान औरतों या लड़कियों का आइब्रो बनवाना यानी अपनी भँवो के बाल नुचवाना एक फैशन बन गया हैं औऱ इसे जाइज़ समझ कर करवाया जा रहा हैं?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ हुज़ूर रहमतें आलम मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने भवें बनवाने वाली औरतों पर लअनत फ़रमाई है और इसे क़यामत की निशानियों में शुमार फ़रमाया है कि आख़री ज़माने में औरतें अपने भँवो के बाल नुचवायेगी और ये आज हो रहा हैं! *अल्लाहु अकबर*
•••➲ *ये वबाल तेज़ी से मुसलमानों में बढ़ रहा है औरत तो औरत नाबालिग़ बच्चियां इस हराम फ़ेल में मुब्तिला है और उनके बाप-भाई दययुस बन कर ख़ामोशी अख्तियार किये हुवे हैं उसका वबाल इनके सर भी पड़ेगा!*
•••➲ बढ़ी माज़रत के साथ कहना पड़ रहा है कि बहुत सारी बहने ऐसे जुमले सुनकर नाराज़ हो जाती है उन्हें सोचना चाहिए कि किस पर ग़ुस्सा कर रही है अगर हम पर तो हमारा फ़रीज़ा है अल्लाह और उसके रसूल का फरमान आप तक पहुंचाने का..?✍ *जारी हैं.....*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 किताब बुख़ारी शरीफ़/अहकामे शरीअत,मुफ़्ती मुहम्मद अकमल साहब 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 32
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 आवाम में आज कल मुसलमान औरतों या लड़कियों का आइब्रो बनवाना यानी अपनी भँवो के बाल नुचवाना एक फैशन बन गया हैं औऱ इसे जाइज़ समझ कर करवाया जा रहा हैं?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (31) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ यहां ये याद रखे कि कोई बहन की भवें ऐसी हो कि अगर न बनवाई जाए तो चहरा बदनुमा महसूस हो और उसकी बिना पर रिश्तों पर फ़र्क़ पढ़े की रिश्ते नही हो पा रहे है या शोहर की बेरहमती का सबब बन जाये तो ऐसी सूरत में बक़दरे ज़ुरूरत वो भवे की तराश कर सकती है ताकि चहरा कुछ बहतर हो सके जैसा कि कुछ बहनों के होंट के ऊपर या दाढ़ी में बाल निकल आते है तो सिर्फ़ उन्हें इजाज़त है वो भी कुछ -कुछ...
•••➲ कुछ बहने कहती है कि जी हमारे शौहर ने इजाज़त दे रखी है तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फ़रमान याद रखे कि :- अल्लाह तआला के अहकाम के मुआमले में मख़लूक़ की इताअत नही की जाएगी यानी उनका कहा नही माना जायेगया बात वाज़ेह है लिहाज़ा शौहर का इस मुआमले में कहना नही माना जायेगा और न शौहर हज़रात अपनी जौज़ा को ऐसी आज़माइश में डालें की सिर्फ़ चहरा खूबसूरत देखने के लिए एक गुनाह कर वाले तो मैदाने महशर में अल्लाह अज़्ज़वज़ल की बरगाह में जवाब देना बढ़ा मुश्किल हो जाएगा!
•••➲ ये हदीस बुख़ारी शरीफ़ की है और इसकी शरह अल्लामा बदरुद्दीन अयनी रहमतुल्लाहि अलैह ने अपनी किताब उम्मदतुल क़ारी में बयान फ़रमाई है!..✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 किताब बुख़ारी शरीफ़/अहकामे शरीअत,मुफ़्ती मुहम्मद अकमल साहब 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 घटिया चीज़ को देकर बदले के उम्दा लेना ?❓*
•••➲ आज आवाम में पुराना सामना देकर उसकी जगह पर उससे कम क़ीमत का नया समान लिया जाता हैं!
•••➲ आइये इस्लाम मे ऐसा करना कैसा औऱ इसमें मसअला भी समझें!
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ एक ही जिन्स की खराब चीज़ देकर अच्छी चीज को जाईद लेना सूद है मसलन एक मन खराब गेहूँ के बदले आधा मन उम्दा गेहूँ लेना नाजाईज़ और सूद है हदीस में उसकी भी मुमानेअत आई है!
•••➲ रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने एक साहब को खैबर पर आमील बना कर भेजा वह उम्दा खुर्मे वहाँ से लाए फ़रमाया क्या खैबर के सब खुर्मे ऐसे ही हैं अर्ज़ की नही या रसूलल्लाह वल्लाह कि हम छे: सैर खुर्मो के बदले यह खुर्मे तीन सैर और नौ सेर देकर उसके छे: सेर खरीदते हैं फ़रमाया ऐसा न कर बल्कि नाकिस या ख़राब खुर्मो पहले रूपए एवज बेचो फिर उन रुपयों से यह उम्दा खुर्मे खरीदो, और हर मौजुनी चीज़ के बारे में यही हुकुम है!
•••➲ एक औऱ रिबायत में है बिलाल रज़ियल्लाहु तआला अन्हु बरनी छोहारे कि उम्दा किस्म है खिदमते अक़दस हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम में हाज़िर लाए फ़रमाया यह कहाँ से आए अर्ज़ की हमारे पास नासिक छोहारे थे उनके छे: सेर देकर यह तीन सेर लिए फ़रमाया उफ खास सूद है, ऐसा न करो वहाँ जब बदलना चाहो तो अपने छोहारे और हर चीज़ से पहले बेच कर फिर उस से अच्छे छोहारे मोल ले लो।..✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 फैजाने आला हज़रत सफ़ह,621 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 34
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 बुग्ज व हसद की बुराइयाँ ?❓*
•••➲ आवाम में आज कल ये बुराई इस क़दर आम हो चुकी हैं कि हर शख़्स इस बुराई में मुब्तला हैं आइये आज इस बुराई के बारे में हम पर क्या वाईद (अज़ाब) हैं जानें औऱ अल्लाह अज़्ज़वज़ल के ख़ौफ़ से अमल में लायें!
•••➲ क्योंकि इंसान इस अमल को बुरा औऱ ग़लत जानता औऱ समझता हैं फ़िर भी ख़ुद को इस बुराई से नही रोकता तो इससे बढ़कर ग़लत फ़ेहमी क्या होंगी कि इंसान इल्म के बाउजूद खुद को हलाकत में डालें!
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ बुग्ज व हसद इंसान के अन्दर ऐसा बुरा वस्फ है जिस से दोनों जहान की भलाईयाँ रुक जाती हैं, और वह दुनिया व आखिरत में जलील व ख्वार हो जाता है, मोमिन आपस में एक दूसरे के भाई हैं इसलिए आपस में मिल जुल कर रहना चाहिए। बुग्ज व हसद से दूसरे का नुक्सान तो कुछ न होगा अल्बत्ता वह खुद नुक्सान व गुनाह में मुब्तला होगा।
•••➲ हसद जहन्नम में ले जाता है रब्बुल-इज़्जत तबारक व तआला ने हज़रत आदम अला नबीयेना अलैहिस्सलातु वस्सलाम को यह रुतबा दिया कि तमाम मलाइका से सज्दा कराया शैतान ने हसद किया वह जहन्नम में गया, दुनिया में अगर किसी को अपने से ज्यादा देखे शुक्र बजा लाए कि मुझे इतना मुब्तला न किया और दीन में देखे तो उसकी दस्त बोसी करे, उसे माने, किसी पर हसद करना रब्बुल-इज़्ज़त पर एतराज़ है कि उसे क्यों ज़्यादा दिया और मुझे क्यों कम रखा।
•••➲ *ईमान और हसद* नेकियों से ईमान मज्बूत व कवी होता है और हसद ईमान को कमजोर व तबाह कर देता है यह दोनों मुतजाद वस्फ हैं इसलिए यह दोनों एक साथ बन्द-ए-मोमिन में जमा नहीं होते।
•••➲ हदीस में है *मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते* हैं बन्द-ए-मोमिन के दिल में ईमान व हसद दोनों एक साथ जमा नहीं होंगे...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
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*📬 फैजाने आला हज़रत सफ़ह 189 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 35
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 बुग्ज व हसद की बुराइयाँ ?❓*
•••➲ आवाम में आज कल ये बुराई इस क़दर आम हो चुकी हैं कि हर शख़्स इस बुराई में मुब्तला हैं आइये आज इस बुराई के बारे में हम पर क्या वाईद (अज़ाब) हैं जानें औऱ अल्लाह अज़्ज़वज़ल के ख़ौफ़ से अमल में लायें!
•••➲ क्योंकि इंसान इस अमल को बुरा औऱ ग़लत जानता औऱ समझता हैं फ़िर भी ख़ुद को इस बुराई से नही रोकता तो इससे बढ़कर ग़लत फ़ेहमी क्या होंगी कि इंसान इल्म के बाउजूद खुद को हलाकत में डालें!
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (34) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *हसद की आग में नेकियों का जलना*
•••➲ हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम फरमाते हैं : हसद से बचो क्यों कि हसद नेकियों को इस तरह खाता है जिस तरह आग लकड़ी को या घास को खाती है।
•••➲ *एक रिवायत में है कि हसद नेकियों को खा जाता है जैसे आग लकड़ी को।*
•••➲ एक और हदीस में है कि हसद ईमान को तबाह व बरबाद कर देता है जिस तरह इल्वा शहद को। इल्वा एक दरख़्त का रस है जो सख्त कड़वा होता है।
•••➲ हसद यह है कि आदमी दूसरे की नेमत के जवाल का ख्वाहां हो कि यह नेमत उस से छिन जाए और मुझे मिल जाए।
•••➲ रश्क यह है कि आदमी दूसरे की नेमत व तरक्की देख कर यह ख्वाहिश करे कि यह नेमत उसके पास भी रहे और मुझे भी मिले।
•••➲ उलमा फरमाते हैं कि रश्क करना जाइज है और हसद करन हराम है बल्कि हसद करने मे अपना ही नुक्सान है।..✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 फैजाने आला हज़रत सफ़ह 190 📚**⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 36
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 बुग्ज व हसद की बुराइयाँ ?❓*
•••➲ आवाम में आज कल ये बुराई इस क़दर आम हो चुकी हैं कि हर शख़्स इस बुराई में मुब्तला हैं आइये आज इस बुराई के बारे में हम पर क्या वाईद (अज़ाब) हैं जानें औऱ अल्लाह अज़्ज़वज़ल के ख़ौफ़ से अमल में लायें!
•••➲ क्योंकि इंसान इस अमल को बुरा औऱ ग़लत जानता औऱ समझता हैं फ़िर भी ख़ुद को इस बुराई से नही रोकता तो इससे बढ़कर ग़लत फ़ेहमी क्या होंगी कि इंसान इल्म के बाउजूद खुद को हलाकत में डालें!
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (35) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *मुसलमान से बुग्ज रखना हराम हैं।*
•••➲ मुसलमान से बिला वजहे शरई कीना व बुग्ज रखना हराम है और बिला मस्लेहते शरईया तीन दिन से ज़्यादा सलाम व कलाम का तर्क भी हराम है।
•••➲ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम फरमाते हैं आपस में बग्ज व हसद न करो, एक दूसरे को पीठ न दो तुम तो अल्लाह के बन्दे हो भाई भाई हो जाओ।
•••➲ दूसरी हदीस में है मुसलमान का अपने भाई को तीन दिन से ज्यादा तक छोड़े रहना, उन से सलाम व कलाम न करना हलाल नहीं है।..✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 फैजाने आला हज़रत सफ़ह 191 📚**⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 37
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 बुग्ज व हसद की बुराइयाँ ?❓*
•••➲ आवाम में आज कल ये बुराई इस क़दर आम हो चुकी हैं कि हर शख़्स इस बुराई में मुब्तला हैं आइये आज इस बुराई के बारे में हम पर क्या वाईद (अज़ाब) हैं जानें औऱ अल्लाह अज़्ज़वज़ल के ख़ौफ़ से अमल में लायें!
•••➲ क्योंकि इंसान इस अमल को बुरा औऱ ग़लत जानता औऱ समझता हैं फ़िर भी ख़ुद को इस बुराई से नही रोकता तो इससे बढ़कर ग़लत फ़ेहमी क्या होंगी कि इंसान इल्म के बाउजूद खुद को हलाकत में डालें!
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (36) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *आला हज़रत का हसद से गुरेज़*
•••➲ मोमिन की शान यह है कि किसी दूसरे मोमिन को उसकी ज़बान और हाथ से कोई तकलीफ व ईजा न पहुँचे बल्कि उसकी ज़िन्दगी अच्छाईयों का मजमूआ और दूसरों के लिए एक पाकीज़ा नमूना न मुआशरा का हर फर्द अगर इन बातों का आमिल व पाबन्द हो जाए तो वह मुआशरा इस्लामी और अस्लाफ की यादगार हो जाए।
•••➲ आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरैलवी कुदेसा सिर्रहू खुद अपने मुतअल्लिक एक मकाम पर बतौर तशक्कुर व तहदीसे नेमत के तहरीर फरमाते हैं!
•••➲ फकीर में लाखों उयूब हैं मगर बिहम्दिलिल्लाह तआला मेरे रब ने मुझे हसद से बिल्कुल पाक रखा है। अपने से जिसे ज़्यादा पाया अगर दुनिया के माल व मनाल में ज्यादा है, कल्ब ने उसे अन्दर से हकीर जाना, फिर हसद किया हिकारत पर? और अगर दीनी शरफ व अफ्जाल में ज्यादा है, उसकी दस्त बोसी व कदमबोसी को अपना फख्र जाना, फिर हसद किया अपने मुअज्जम बा बरकत पर? अपने में जिसे हिमायते दीन में देखा उसके नथ फज़ाइल और खुल्क को उसकी तरफ माइल करने में तहरीर व तीर से कोशां रहा उसके लिए उम्दा अल्काब वज़ करके शाए किए, जिस पर मेरी किताब 'अल-मोअतमद अल-मुस्तनद" वगैरह शाहिद हैं। हसद शोहरत तलबी से पैदा होता है और मेरे रब्बे करीम के वज्हे करीम के लिए हम्द है कि मैंने कभी उसके लिए ख्वाहिश न की बल्कि हमेशा उस से नफूर व गोशा नशीनी का दिल्दादा रहा।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 फैजाने आला हज़रत सफ़ह 191 📚**⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 38
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 💊💉 बीमारी आफ़त या राहत❓*
•••➲ आज इंसान दूसरों को तो उसकी तक़लीफ़ व परेशानियों में सब्र व हौसला रखने की बात बोल देता हैं लेक़िन जब ख़ुद की बात आती हैं तो ज़ुबान पर काबू नही रखता औऱ रब अज़्ज़वज़ल की ना-फ़रमानी करता हैं!
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ बीमारी एक बहुत बड़ी नेअमत। है इसके फायदे बेशुमार है अगरचे आदमी को ज़ाहिर में इससे तकलीफ पहुँचती है मगर हकीकत में उसकी वजह से राहत व आराम का एक बड़ा खजाना हाथ आता है।
•••➲ बहुत मोटी सी बात जिसे हर आदमी समझ सकता है बल्कि जानता है कि कोई कितना ही खुदा अज़्ज़वज़ल व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से ग़ाफ़िल हो मगर जब बीमार पड़ जाता है तो खुदा और रसूल का नाम लेता और तौबा व इस्तिगफार करता है। और यह तो बड़े रुतबे वालों की शान है कि तकलीफ का भी उसी तरह इस्तेकबाल करते है जैसे राहत व आराम का। मगर हम जैसे कम से कम इतना तो करें कि सब्र व इत्मिनान से काम लें और गिरिया व ज़ारी करके रो पीट कर आते हुए सवाब को हाथ से जाने न दे।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 बहारे शरीयत हिस्सा 4 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 39
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 💊💉 बीमारी आफ़त या राहत❓*
•••➲ आज इंसान दूसरों को तो उसकी तक़लीफ़ व परेशानियों में सब्र व हौसला रखने की बात बोल देता हैं लेक़िन जब ख़ुद की बात आती हैं तो ज़ुबान पर काबू नही रखता औऱ रब अज़्ज़वज़ल की ना-फ़रमानी करता हैं!
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (38) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ बीमारी एक बहुत बड़ी नेअमत है। बहुत से नादान जिनमे मर्द भी औरतें भी, बीमारी या किसी जिस्मानी तकलीफ में बहुत बेजा बातें बोल उठते हैं और बेढंगी हरकत करने लगते हैं बल्कि कभी कभी जबान से ऐसी बात निकाल देते हैं जिनसे ईमान ही ख़तरे में पड़ जाता है बल्कि (अल्लाह अपनी पनाह में रखे) अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल की तरफ जुल्म की निस्बत कर देते है।
•••➲ *हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम फरमाते हैं।*
01 •••➲ मुसलमान को जो तकलीफ व मलाल और मुसीबत व गम पहुँचती है यहाँ तक कि कांटा जो उसको चुभा था अल्लाह तआला उनके सबब उसके गुनाह मिटा देता है।
02 •••➲ मुसलमान को जो तकलीफ पहुँचती है मर्ज़ हो या उसके सिवा कुछ और, अल्लाह तआला उसके सबब उसकी बुराइयाँ गिरा देता है। जैसे दरख्त से पत्ते झड़ते हैं।
03 •••➲ बुखार को बुरा न कहो कि वह आदमी के गुनाहों को इस तरह दूर करता है जैसे आग की भट्टी लोहे के मैल को।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 बुख़ारी व मुस्लिम शरीफ़ 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 40
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 💊💉 बीमारी आफ़त या राहत❓*
•••➲ आज इंसान दूसरों को तो उसकी तक़लीफ़ व परेशानियों में सब्र व हौसला रखने की बात बोल देता हैं लेक़िन जब ख़ुद की बात आती हैं तो ज़ुबान पर काबू नही रखता औऱ रब अज़्ज़वज़ल की ना-फ़रमानी करता हैं!
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (39) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम फरमाते हैं।
•••➲ बंदे के लिये इल्मे इलाही में कोई मर्तबा मुकर्रर होता है और वह अपने आमाल के सबब उस रूतबा को पहुंच नहीं पाता तो अल्लाह उसके बदन या माल या औलाद को बला व मुसीबत में डाल देता है। फिर उसे सब्र अता फरमाता है। यहाँ तक कि उसे उस मर्तबा तक पहुंचा देता है जो उसके लिए इल्मे इलाही में है।
*📔 अहमइ व अबुदाऊद*
•••➲ *मसअला* दुख व मुसीबत से घबरा कर दुनिया की तकलीफों और परेशानियों से बचने के लिए मौत की चाहत नाजाइज़ है।
•••➲ ऐ अजीज़/अजीज़ा! वहां के लिए क्या जमा की यहाँ से भागता है। अगर मौत की सख्ती से वाकिफ हो तो आरजु करे। काश तमाम दुनिया की तकलीफ मुझ पर हो और कुछ दिन मौत से मोहलत मिले।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 दुर्र मुख़्तार वग़ैरह 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 41
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 💊💉 बीमारी आफ़त या राहत❓*
•••➲ आज इंसान दूसरों को तो उसकी तक़लीफ़ व परेशानियों में सब्र व हौसला रखने की बात बोल देता हैं लेक़िन जब ख़ुद की बात आती हैं तो ज़ुबान पर काबू नही रखता औऱ रब अज़्ज़वज़ल की ना-फ़रमानी करता हैं!
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (40) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम फरमाते हैं।
•••➲ दुख के सबब से मौत की आरजू न करो।अगर नाचार हो जाओ तो कहो "खुदाया मुझे जिन्दा रख जब तक जिंदगी मेरे हक़ में बेहतर है। और मुझे वफात दे जिस वक़्त मौत मेरे हक में बेहतर हो।
•••➲ हां जब दीन में फितना देखे और दीनी नुक़सानात का ख़ौफ हो तो अपने मरने की दुआ जाएज़ है। हदीस में है "तुम मे से कोई मौत की आरज़ू न करे मगर जबकि भरोसा नेकी करने पर न रखता हो।
•••➲ मरीज की इयादत (बीमार की खबर पूछना) को जाना सुन्नत है। इसकी भी बड़ी फ़ज़ीलत है। कुछ हदीसें दर्ज की जाती है!
•••➲ जो मुसलमान किसी मुसलमान की इयादत के लिये सुबह को जाए तो शाम तक उसके लिए सत्तर हजार फरिश्ते इस्तिगफार करते हैं। और उसके लिए जन्नत में एक बाग होगा।
•••➲ जब तू मरीज के पास जाए तो उससे कह की वह तेरे दुआ करे क्योंकि उस बीमार की दुआ फ़रिश्तों की दुआ के समान है।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 दुर्र मुख़्तार, तिर्मिज़ी व इब्ने माजा 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 💊💉 बीमारी आफ़त या राहत❓*
•••➲ आज इंसान दूसरों को तो उसकी तक़लीफ़ व परेशानियों में सब्र व हौसला रखने की बात बोल देता हैं लेक़िन जब ख़ुद की बात आती हैं तो ज़ुबान पर काबू नही रखता औऱ रब अज़्ज़वज़ल की ना-फ़रमानी करता हैं!
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (41) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ मरीज की इयादत (बीमार की खबर पूछना) को जाना सुन्नत है। इसकी भी बड़ी फ़ज़ीलत है।
•••➲ *मसअला* मरीज़ की अयादत को जाए और मर्ज़ की सख्ती को देखे तो मरीज़ के सामने यह जाहिर न करे कि तुम्हारी हालत खराब है और न इस तरह सिर हिलाये जिससे हालत खराब होना समझा जाता है। मरीज़ के सामने तो ऐसी बात करनी चाहिए जो उसके दिल को भली मालूम हो। उसका मिजाज़ पूछे और तसल्ली दे।
•••➲ *फायदा* किसी शख्स को बीमारी या ऐसी हालत में देखे जिसे पसन्द नही किया जाता तो यह दुआ पढ़े। इंशा-अल्लाह उससे महफूज रहेगा।..✍
*اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ الّذِىْ عَافَانِىِ مِمَّنْ ابْتَلَاكَ بِهٖ*
*وَفَضَّلَنِىْ عَلٰى كَثِيْرٌ مِمَّنْ خَلَقَ تَفْصِيْلًا*
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*📬 बहारे शरीअत 4,हिस्सा सफह 106 📚*
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*📝 हुज़ूर गौसे पाक का ख्वाब.!?*
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•••➲ ईमाम -ए- अहले सुन्नत, आला हज़रत रदिअल्लाहु त्आला अन्हु से सवाल किया गया कि क्या ये रिवायत सहीह है कि हुज़ूर गौसे पाक रदिअल्लाहु त्आला अन्हु ने ख्वाब देखा कि इमाम अहमद बिन हम्बल रदिअल्लाहु त्आला अन्हु फरमाते हैं कि मेरा मज़हब ज़यीफ हुआ जाता है लिहाज़ा (ए अब्दुल क़ादिर) तुम मेरे मज़हब मे आ जाओ, मेरे मज़हब मे आने से मेरे मज़हब को तक़वियत हो जायेगी, इसलिये गौसे पाक हनफी से हम्बली हो गये?
•••➲ आला हज़रत रदिअल्लाहु त्आला अन्हु ने जवाब में फरमाया कि ये रिवायत सहीह नहीं, हुज़ूर गौसे पाक हमेशा से हम्बली थे और बाद को जब मन्सबे इजतिहादे मुतलक हासिल हुआ तो मज़हबे हम्बल को कमज़ोर होता हुआ देखा तो इसके मुताबिक़ फ़तवा दिया कि हुज़ूर मुहियुद्दीन और दीन -ए- मतीन के ये चारों सुतून हैं, लोगों की तरफ से जिस सुतून मे ज़'अफ आता देखा उसकी तक़्वियत फरमायी।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📕 फतावा रजविया ज़िल्द 26 सफ़ह 433*
*📔 रज़ा फ़ाउंडेन्स लाहौर सफ़ह 1425 हिज़री*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 बारह साल पहले डूबी हुई बारात 🎊*
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•••➲ चन्द किताबो में हुज़ूर सय्यिदुना गौसे आज़म रदिअल्लाहु त'आला अन्हु की एक करामात का ज़िक्र मिलता है के आपने 12 साल पहले डूबी हुई बारात को वापस निकाल दिया। ये रिवायात अवाम -ओ- खवास में बहुत मशहूर है लिहाज़ा मुकम्मल वाकिया लिखने की ज़रुरत नहीं।
•••➲ इस रिवायात पर गुफ़्तगू करते हुए खलीफा -ए- आलाहज़रत, हज़रत अल्लामा सय्यद दीदार अली शाह अलैहिर्रहमा फरमाते है के हुज़ूर गौसे आज़म की करामात दर्जा -ए- तवातुर को पहुची हुई है जैसा के इमाम याफई ने लिखा है के "आपकी करामात मुतवातिर या तवातुर के करीब है और उलमा के इत्तेफ़ाक़ से ये अम्र मालूम है के आपकी मानिन्द करामात का ज़ुहुर आपके बगैर आफाक के मशाइख में से किसी से ना हुआ मगर ये बारात वाली रिवायात किसी मोतबर ने नहीं लिखी लेकिन इससे ये लाज़िम नहीं आता के हज़रते गौसे पाक इस दर्जे के ना थे
•••➲ अक्सर मिलाद ख्वां (मुकर्रिरीन) वाकिफ ना होने की वजह से मुहमल रिवायात औलिया व अम्बिया की तरफ मंसूब कर देते है और समझते है के अगर ये यहाँ ग़लत है तो भी उनकी तारीफ हमने पूरी कर दी, ये सवाब की तवक़्क़ो भी करते है, खैर ख़ुदा इन पर रहम करे।
•••➲ हज़ारो करामात औलियाउल्लाह और असहाब -ए- रसूल अलैहिस्सलाम से ज़ाहिर ना हुई तो क्या झूटी रिवायात कह देने से उनका रुतबा बढ़ जायेगा? हरगिज़ नहीं..✍
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 बारह साल पहले डूबी हुई बारात 🎊*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (44) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ असहाब -ए- रसूल तमाम गौसो क़ुतुब -ओ- औलिया से अफ़ज़ल है और तहक़ीक़ से साबित है के औलियाउल्लाह की करामात अक्सर असहाब से ज़्यादा है, बहरहाल ये रिवायात किसी मोतबर ने नहीं लिखी और इमकान -ए- अक़्ली से कोई अम्र यक़ीनी नहीं हो सकती
📔 ملخصاً: فتاوی دیداریہ، ص45
•••➲ इमाम -ए- अहले सुन्नत, आलाहज़रत रहिमहुल्लाह से जब इस रिवायात के मुताल्लिक़ सवाल किया गया तो आपने फ़रमाया के अगरचे ये रिवायात नज़र से किसी किताब में न गुज़री लेकिन ज़ुबान पर मशहूर है और इस में कोई अम्र खिलाफ -ए- शरह नहीं लिहाज़ा इस का इन्कार ना किया जाये।
📕 انظر: فتاوی رضویہ، ج29،
ص630، ط رضا فاؤنڈیشن لاہور، س1426ھ
•••➲ मालूम हुआ के इस रिवायात का कोई मोतबर व मुस्तनद माखज़ मौजूद नहीं है और एक पहलु ये है के बक़ौल इमाम -ए- अहले सुन्नत इस रिवायात का इन्कार भी न किया जाये लेकिन फिर भी हम कहते है के ज़्यादा मुनासिब यही है के ऐसी रिवायात को बयान करने से परहेज़ किया जाये। हज़रते गौसे आज़म रदिअल्लाहु त'आला अन्हु के फ़ज़ाईल बयान करने के लिए दीगर सहीह रिवायात को शामिल -ए- बयान किया जाये।...✍
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 दीन में दाढ़ी है, दाढ़ी में दीन नहीं*
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•••➲ कहते हैं कि जब किसी का भला ना कर सको तो बुरा भी ना करो। अगर आप किसी को नेकियों की दावत नहीं दे सकते तो कम से कम ऐसी बातें कर के नेकियों से दूर भी ना करें कि दीन में दाढ़ी है, दाढ़ी में दीन नहीं।
•••➲ फिर ये भी कहा जा सकता है कि दीन में नमाज़ है, नमाज़ में दीन नहीं, दीन में रोज़ा है, रोज़े में दीन नहींं, दीन में हलाल व हराम है, हलाल व हराम में दीन नहीं फिर दीन में बचेगा क्या?
•••➲ ये तो फिर नाम का दीन बचेगा जिस में हर शख्स यही कह कर अमल से जान छुड़ायेगा कि दीन में अमल है, अमल में दीन नहीं।
•••➲ एक तो ऐसे ही दाढ़ी वालों की ज़ियारत बहुत कम होती है ऊपर से ऐसी बातें करना दाढ़ी मुंडाने वालों का साथ देने के बराबर है।
•••➲ यह बातें जिस ने भी कहीं है वोह शायद लोगों को "दीन में" मौजूद चीज़ों से दूर कर के लोगों को "दीन से" दूर करना चाहता है और फिर किसी "नये दीन" की तरफ़ ले जाना चाहता है जिस में सब जाइज़ हो।
•••➲ दीन सिखाने वाले आप को इस दौर में बहुत मिलेंगे। जिसे खुद कुछ नहीं पता वो भी दीन सिखाने की कोशिश कर रहा है लिहाज़ा होशियार रहें और समझ बूझ लें कि आप दीन किस से सीख रहे हैं, कहीं ऐसा तो नहीं कि वो दीन के नाम पर आप को कुछ और सिखा रहा है।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*••──────────────────────••►
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 47
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 अल्लाह तआला को ऊपर वाला कहना?*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ कुछ लोग अल्लाह तआला को नाम लेने के बजाऐ उसको ऊपर वाला बोलते हैं। यह निहायत गलत बात है। बल्कि अगर यह अकीदा रख कर यह लफ्ज बोले कि अल्लाह तआला ऊपर है। तो यह कुफ्र है। क्योंकि अल्लाह की जात ऊपर नीचे आगे पीछे दाहिने बायें तमाम सम्तों हर मकान और हर जमान से पाक है। बरतर व बाला हैं। इन सब दिशाऔ पूरब पच्छिम उत्तर दक्खिन ऊपर नीचे दाहिने आगे पीछे ज़मान व मकान को उसी ने पैदा किया है। तो अल्लाह तआला के लिऐ यह नही बोला जा सकता कि वह ऊपर है। या नीचे है। पूरब मे है। या पच्छिम मे है। क्यूंकि जब उसने इन चीजो को पैदा नही किया था बह तब भी था कहाँ था और क्या था इसकी हकीक़त को उसके अलावा कोई नही जानता अगर कोई कहे अल्लाह तआला अर्श पर है। तो उससे पूछा जाऐ जब उसने अर्श को पैदा नही किया था तब वह कहा था यूँही अगर कोई कहे कि अल्लाह तआला ऊपर है तो उससे पूछा जाऐ ऊपर को पैदा करने से पहले बह कहा था ?...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 12 13 📚*••──────────────────────••►
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 48
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 अल्लाह तआला को ऊपर वाला कहना?*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (47) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *हाँ अगर कोई अल्लाह तआला को ऊपर बाला इस ख्याल से कहे कि वह सबसे बुलन्द व बाला है और उसका मर्तबा सबसे ऊपर है तो यह कुफ्र नही है। लेकिन फिर भी अल्लाह तको ऐशे अल्फाज से बोलना सही नही जिन से कुफ्र का शुबहा हो और अल्लाह तआला को ऊपर बाला कहना बहर हाल मना है। जिससे बचना जरूरी है।*
•••➲ कुछ लोग अल्लाह तआला को *मालिक* कहते हैं। कि *मालिक* ने चाहा तो ऐसा हो जाएगा या *मालिक* जो करेगा वह होगा वगैरा वगैरा। यह भी अच्छा तरीका नही है। सब से ज्यादा सीधी सच्ची और अच्छी बात यह है कि अल्लाह को अल्लाह ही कहा जाऐ क्यूकि उसका नाम लेना सबसे अच्छी इबादत है। और उसका जिक्र करना ही इन्सान का सबसे बड़ा मकसद और मुसलमान की पहचान ही यह है। कि उसको अल्लाह का नाम लेने और सुनने मे मजा आने लगे।..✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 12 13 📚*••──────────────────────••►
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 बोल चाल मे कुफ्री अल्फाज?*
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•••➲ *आम लोग बातचीत मे कुफ्र के शब्द बोल कर इस्लाम से खारिज हो जाते है। और ईमान से हाथ धो बैठते है इसका ख्याल रखना निहायत जरूरी है क्यूकि हर गुनाह की बख्शिश है लेकिन अगर कुफ्र बक कर ईमान खो दिया तो बख्शिश और जन्नत मे जाने की कोई सूरत नही बल्कि सब दिन जहन्नम मे जलना लाजिमी है।*
•••➲ हदीश शरीफ मे है कि हुजूर सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने फरमाया कि शाम को आदमी मोमिन होगा तो सबेरे को काफिर और सुबह को मोमिन होगा तो शाम को काफिर।
•••➲ *कालिमात कुफ्र कितने है और किस किस बात से कुफ्र लाजिम आता है इसकी तफसील बयान करना दुश्वार है लेकिन हम अवाम भाईयो के लिऐ चन्द हिदायते लिखे देते है। इन्शा अल्लाह ईमान सलामत रहेगा।*...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 13 📚*••──────────────────────••►
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 50
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 बोल चाल मे कुफ्री अल्फाज?*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (49) में जरुर पढ़ें।*
❶ •••➲ आप बा-अदब हो जाइये अल्लाह तआला उसके रसूल फरिश्ते खानऐ काबा मसाजिद कुर्आने करीम दीनी किताबे बुजुर्गाने दीन उलमाऐ किराम वालिदैन इन सब का अदब ताजीम और मुहब्बत दिल मे बिठा लीजिए बा-अदब इन्सान का दिल एक खरे खोटे को परखने की तराजू हो जाता है कि न खुद उसके मुंह से गलत बात निकलती हैं और कोई बके तो उसको नागवार गुजरती है। इसीलिऐ अनपढ़ बा-अदब अच्छा है। पढे लिखे बे अदब से। खुदाए तआला फरमाता है।
*📝 तर्जमा : जो अल्लाह की निशानियो की ताजीम करे तो यह दिलो की परेहजगारी है।*
❷ •••➲ हंसी मजाक तफरीह व दिललगी की आदत मत बनाईये और कभी हो तो उसमे दीनी मजहबी बातो को मत लाइये। खुदा तआला उसकी जात व शिफात अम्बियाए किराम फरिश्ते जन्नत दोजख अजाब सबाब नमाज रोजा वगैरह अहकामे शरअ का जिक्र हंसी तफरीह मे कभी न लाइये वरना ईमान के लिऐ खतरा पैदा हो सकता है। शआइरे इलाहिय्यह (अल्लाह की निशानियो) के साथ मजाक कुफ्र है।..✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 14 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 बोल चाल मे कुफ्री अल्फाज?*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (50) में जरुर पढ़ें।*
❸ •••➲ *बाज लोग इस किस्म की बातें सब को खुश खुश करने के लिऐ बोल देते है। जिनका बोलना और खुशी के साथ सुनना कुफ्र है। उन लोगो और ऐसी बातें करने बालो से दूर रहना जरूरी है।*
•••➲ मसलन सब धरम समान है,खिदमते खल्क ही धर्म है,देश पहले है धर्म बाद मे है,हम पहले फला मुल्क के वासी हैं और मुसलमान बाद मे,राम रहीम दोनो एक है,वेद व कुर्आन मे कोई फर्क नही,मस्जिद व मन्दिर दोनो खुदा के घर है या दोनो जगह खुदा मिलता है, नमाज पढ़ना बेकार आदमियो का काम है, रोजा वह रखे जिसको खाना न मिले, नभाज पढ़ना या न पढ़ना सब बराबर है, हम ने बहुत पढली कुछ नही होता है, यह सब कलिमात खालिश कुफ्र गैर इस्लामी है काफिरो की बोलियाँ हैं जिनको बोलने से आदमी काफिर इस्लाम से खारिज हो जाता हो जाता है।....✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 14 📚*••──────────────────────••►
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 52
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 बोल चाल मे कुफ्री अल्फाज?*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (51) में जरुर पढ़ें।*
❸ •••➲ सियासी लोग इस किस्म की बाते गैर मुस्लिमों को खुश करने करने उनके वोट लेने के लिऐ बकते है हालाकि देखा यह गया है कि वह उनसे खुश भी नही होते और गैर मुस्लिम अपने ही धर्म वालो को आमतौर से वोट देते है। इस तरह इन नेताओ को न दुनिया मिलती है न दीन और जिन गैर मुस्लिमों के वोट आपको मिलना हैं वह अपना दीन इमान बचा कर भी मिल सकते है। फिर चन्द रोज दुनियाके इक्तिदार नोटो और वोटो की खातिर क्या अपना इमान बेचा जाएगा?
❹ •••➲ मुसलमानो मे जो नए फिरके राइज हुए हैं उन से दूर रहना निहायत जरूरी है यह ईमान व अकीदे के लिऐ सब से बड़ा खतरा है। मजहबे अहलेसुन्नत बुजुर्गों की रविश पर काइम रहना ईमान व अकीदे की हिफाज़त के लिए निहायत लाजिम हैं और मजहबे अहले सुन्नत की सही तर्जुमानी इस दौर मे *आला हजरत मौलाना अहमद रजा खाँ बरेलवी अलैहिर्रहमतु वर्रिदवान ने फरमाई है। उनकी तालीमात ऐन इस्लाम है।*
•••➲ जिसको आज तन्हा हमारे हुजूर ताजुश्शरीया मजबूती से थामे हुए है।....✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 15 📚*••──────────────────────••►
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 53
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 फिल्मी गानो मे कुफ्रियात?*
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•••➲ आज कल हिन्दुस्तान मे फिल्मी मनाजिर और उनके गानो के जरिए भी मुसलमानो को काफिर बनाने और उनके इमान व अकीदे को तबाह करने की मुनज्जम साजिश चल रही है फिल्म की मजेदारियो और उसकी लज़्ज़त और गानो की लुत्फ़ अन्दोजी के सहारे ऐसे कड़वे घूंट मुस्लिम नस्लो की घाटी उतारे जा रहे हैं।जिनसे कभी बह बहुत दूर भागते थे और मुसलमान उन्हे बड़ी आसानी से अब हजम करते चले जा रहे हैं। बल्की सही बात यह है।कि आजकल फिल्मों टेलीवीजनो के जरिए काफिर अपने धर्मो का प्रचार कर रहे है। आगे हम चन्द गानो के वह शेर लिख रहे है। जिन का कुफ्र होना इतना जाहिर है। कि उसके लिए किसी आलिम मोलाना से पूछने की कतई जरूरत नही है बल्कि हर आदमी जान सकता है। कि यह खालिस काफिराना बकवासे है।
*खुदा भी आसमां से जब जमीन पर देखता होगा।*
मेरे महबूब को किसने बनाया सोचता होगा।
मेरे महबूब को किसने बनाया सोचता होगा।
*अब आगे जो भी हो अन्जाम देखा जाएगा*
खुदा तराश लिया और बन्दगी करली
खुदा तराश लिया और बन्दगी करली
*रब ने मुझ पर सितम किया है।*
सारे जहा का गम मुझे दे दिया है।
*(अस्तगफिरूल्लाह)* ...✍
सारे जहा का गम मुझे दे दिया है।
*(अस्तगफिरूल्लाह)* ...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 54
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 फिल्मी गानो मे कुफ्रियात?*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (53) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ ऐसे बहुत से गाने है। जिसमे कुफ्र के अलावा कुछ बया नही होता है। इन गानो का जायजा लिजिए और देखिए अल्लाह तआला के बारे मे यह अकीदा रखना कि वह आसमान से जब देखता होंगा हालांकि मुसलमानो का अकीदा यह है की अल्लाह रब्बुल इज्जत हर चीज को हमेशा से देखता है।और हमेशा देखेगा खुदाए तआला के बारे मे यह बकवास या मेरे महबूब को बनाने वाले के बारे वह सोचता होगा हालाकि हर चीज का बनाने बाला सिर्फ खुदाए तआला ही है। और उस परबर दिगारे आलम के बारें मे यह बकना कि बह सोचता होगा हालाकि उसका इल्म सोचने से पाक है। यह सब खुले कुफ्र है। इसी तरह दूसरे गाने खुदा तराश लिया और बन्दगी करली कितना बड़ा कुफ्र है। इस्लाम से मजाक और क़ुरआन करीम से ठट्ठा किया गया है। जिसके खुले कुफ्र होने मे जाहिल को भी शक नही है।
•••➲ *तीसरे गाने परबरदिगार आलम को सितम गर बताना उससे सिकवा करना उसकी ना शुक्री करना कि उसने सारे जहान का गम मुझे दे दिया है। यह सब वह कुफ्रियात हैं। जो कितने मूसलमानो से बुलवा कर कहला कर गानो के जरिए उनके ईमान खराब कर दिये हैं और इसलामी हदो से बाहर लाकर खड़ा कर दिया गया है।*
•••➲ अल्लाह के रसूल ने जिसका देखना और सुनना दोनो हराम कर दिया हो उसको ता कयामत कोई अदना जायज नही कर सकता है। चाहे वो किसी भी ख़ानक़ाह से क्यूँ न हो लेकिन आजके *टी वी* बाले बाबा कहते है। आज के दौर के हिसाब से टी वी देखना जायज है। और बायसे बरकत भी है। जिससे जन्नत मिलेगी *अस्तगफिरूल्लाह* ऐसे अकीदा रखने बालो पर अल्लाह की लानत होगी जो नबी की सुन्नत को तर्क करके उसे जायज करदे अरे जो नबी की सुन्नत पर अमल नही कर सकता वो हमे जन्नत कहा से दिलायगा जन्नत जिसको दिलानी है। वो मदीने के ताजदार हे। कोई बप्पा बहरूपिया नही है। जो खुद अपनी बात पर अचल न रह पाए वो हमे क्या जन्नत दिलाएगा जन्नत अगर खरीदनी है। तो गौस पाक के सच्चे दिवाने हो जाओ सरकार अजमेरी के सच्चे दिवाने हो जाओ इनके दिवाने तब होगे जब सरकार आला हजरत के सच्चे वफादार हो जाओ तभी जन्नत के हकदार हो जाओगे! *इंशाअल्लाह अज़्ज़वज़ल* ..✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 15-16 📚*••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 55
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 इमान व अकीदे से ज्यादा अमल को अहमियत देना?*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹⇩
•••➲ हमारे काफी अवाम भाई किसी की जाहिर दारी नेकी और कोई अच्छा काम देखकर उसकी तारीफ करने लगते हैं और उससे मुतासिर (प्रभावित) हो जाते जबकी इस्लामी नुक्ताए नजर से कोई नेकी उस वक्त तक कार आमद नही है। जब तक कि उसका ईमान व अकीदा दुरूस्त न हो।
•••➲ *रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने जब ऐलाने नबुव्वत फरमाया था तो पहले नमाज, जकात, रोजा, हज और अहकामव अमाल का हुक्म नही दिया था बल्की यह फरमाया था कि अल्लाह को एक मानो बुतो की पूजा व परस्तिस से बाज आओ और मुझको अल्लाह का रसूल मानो। आज जब किसी गैर मुस्लिम को मुसलमान करते है। तो सबसे पहले उसे नमाज रोजे अदा करने अच्छाइयाँ करने और बुराईयां छोड़ने का हुक्म नही दिया जाता है बल्की पहले कलमा पढ़ाकर मुसलमान किया जाता है फिर बाद मे अच्छाई बुराई और अहकाम ए इस्लाम से उसको आगाह किया जाता है।*
•••➲ हदीश शरीफ मे है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने फरमाया कि अगर कोई शख्स उहद पहाड़ के बराबर भी सोना राहे खुदा मे खर्च करे खुदाए तआला कबूल नही फरमाएगा जब तक कि वह तकदीर पर ईमान न लाये।
📗 *मिश्कात शरीफ सफह 23*
•••➲ *इस हदीश से खूब वाजेह हो गया कि जो इस्लाम के लिऐ जरूरी अकाइद न रखता हो उसकी कोई नेकी, नेकी नही।* ..✍
📗 *मिश्कात शरीफ सफह 23*
•••➲ *इस हदीश से खूब वाजेह हो गया कि जो इस्लाम के लिऐ जरूरी अकाइद न रखता हो उसकी कोई नेकी, नेकी नही।* ..✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 16-17 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 इमान व अकीदे से ज्यादा अमल को अहमियत देना?*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (55) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ कुर्आन करीम मे भी फरमाने खुदावन्दी है यह कुर्आन हिदायत है मुत्तकीन (तकवे वालो) के लिऐ जो बगैर देखे ईमान लाये है और नमाज अदा करते और हमारे दिये हुए माल मे से (हमारी राह में) खर्च करते है।
*📗 पारा 9 रूकूअ 9*
*📗 पारा 9 रूकूअ 9*
•••➲ इस आयते करीमा मे भी अल्लाह तआला ने नमाज और राहे खुदा मे खर्च से पहले ईमान का ज़िक्र फरमाया है।
•••➲ खुलासा यह है। कि जिस शख्स का ईमान व अकीदा दुरूस्त न हो या वह गैर इस्लामी ख्यालात व अकाइद रखता हो उससे कभी मुतास्सिर (प्रभावित) नही होना चाहिए न उसकी तारीफ करना चाहिए चाहे वह कितने ही अच्छे काम करे।
•••➲ कुर्आन करीम मे गैर इस्लामी अकाइद रखने वालो कि नेकियो और उनके कारनामो को बेकार व फूजूल फरमाया गया है और इसकी मिसाल उस गुबार से दी गई है जो किसी चट्टान पर लग जाती हैं फिर उसे बारिश धोकर बहा देती है और उसका नाम व निशान तक बाकी नही रहता।..✍
•••➲ खुलासा यह है। कि जिस शख्स का ईमान व अकीदा दुरूस्त न हो या वह गैर इस्लामी ख्यालात व अकाइद रखता हो उससे कभी मुतास्सिर (प्रभावित) नही होना चाहिए न उसकी तारीफ करना चाहिए चाहे वह कितने ही अच्छे काम करे।
•••➲ कुर्आन करीम मे गैर इस्लामी अकाइद रखने वालो कि नेकियो और उनके कारनामो को बेकार व फूजूल फरमाया गया है और इसकी मिसाल उस गुबार से दी गई है जो किसी चट्टान पर लग जाती हैं फिर उसे बारिश धोकर बहा देती है और उसका नाम व निशान तक बाकी नही रहता।..✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 17-18 📚*••──────────────────────••►
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 लैटरीन में किब्ले की तरफ मुँह या पीठ करना?*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ *हदीश शरीफ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने इरशाद फरमाया, जब तुम मे से कोई रफए हाजत करे तो किब्ले की तरफ न मुँह करे और न पीठ*
📔 *मिश्कात सफह 42*
📔 *मिश्कात सफह 42*
•••➲ इसके बरखिलाफ अवाम तो अवाम बाज खवास अहले इल्म तक मे इस बात का ख्याल नही रखा जाता है और पखाना पैशाब के वक्त आम तौर से लोग किब्ले की जानिब मुँह या पीठ कर लेते है। घरो मे लैटरीन बनाते वक्त मुसलमानो को ख़ास तौर से इस बात ख्याल रखना चाहिए कि बैठने की सीट इस तरह लगाई जाऐ कि इस्तिन्जा करने वाले का न मुँह काबे की तरफ हो और न पीठ। हिन्दुस्तान मे लेटरीन की सीटे उत्तर-दक्खिन रखी जाये, पूरब और पश्चिम न रखी जाये। अखर किसी के यहा गलती से लैटरीन की सीट पूरब पश्चिम लगी हो तो हजार या पांच सौ रुपयों के खर्च की फिक्र न करे। फौरन उसे उखडवा कर उत्तर-दक्खिन कराऐ। हो सकता है अल्लाह को उसकी यह नेकी पसंद आ जाए और उसकी बख्शिश हो जाऐ। दर असल अदब बेहद जरूरी है।बे अदबी से महरूमी आती है। खैर व बरकत उठ जाती हैं नहूसत इन्सान को घेर लेती हैं। और अदब से खैर व बरकत आती हैं रहमत बरसती हैं जिन्दगी पुर सूकून और बा रौनक हो जाती है।
📝 *नोट :- लिहाजा जब भी अपने घर मे लैटरीन बनबाऐ सबसे पहले अपने नजदीक के उल्माऔ या मस्जिद के इमाम के पास जाऐ और उनहे घर लाकर लेटरीन की सीट को सही जगह लगाने की इस्लाह कर वाऐ एसी सूरत मे आप भी गुनाह से बचेगे और आप के परिवार बाले भी गुनाह से बचेगे अल्लाह हम सबको कहने सुनने से पहले अमल की तौपीक दे।* *आमीन सुम्मा आमीन_*..✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 18 📚*••──────────────────────••►
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 नमाज़े जनाजा के बाद उसी वुज़ू से दूसरी नमाज पढ़ना कैसा है?*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ *कुछ जगहो पर लोग समझते है। कि जिस वुज़ू से नमाज जनाजा पढ़ी हो उससे दूसरी नमाज नही पढ़ी जा सकती हालाकि यह गलत और बे अस्ल बात है। बल्कि इसी वुज़ू से फर्ज हो या सुन्नत व नफ्ल हर नमाज पढ़ना ठीक है।*
•••➲ ऐसी ही मसले है। जिसको हर मुसलमान का जानना जरूरी है। जिस की बजह से होने बाली गलतियो से बचते रहना बहुत जरूरी है। आज के दौर मे हर कोई अपने आपको बहतर समझने की सोचता है। लेकिन अशल बात से महरूम रह जाता है। अल्लाह और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम और नाएबे रसूल यानी हमारे उल्माऔ से बहतर हमारी इस्लाह कोई जाहिल या आम इन्सान नही कर सकता है। कुछ जाहिलो की बात मे आकर हमारे भोले भाले मुसलमान सही व गलत का फर्क नही समझ पाते है। और गलतियो पे गलतियाँ करते चले जाते है। जिसका नुकसान उनहे अपने घर से देना पड़ता है। लेकिन समझ नही पाते है। के यह सब तकलीफ हमे किस बजह से मिल रही है। अल्लाह तआला से दुआ है। हमे अशल मायनो मे सही गलत का फर्क करने की तौफीक अता फरमाए और मसलके आला हजरत पर रहने की तोफीक अता फरमाऐ।..✍ *आमीन सुम्मा आमीन*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 19 📚*••──────────────────────••►
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मय्यत को गुस्ल देने के बाद गुस्ल करना जरूरी है या नही*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ मय्यत को गुस्ल देने के बाद गुस्ल करना अच्छा है लेकिन जरूरी नही कि जिस ने मय्यत को गुस्ल दिया हो वह बाद मे खुद गुस्ल करे इसको जरूरी ख्याल करना या समझना गलत है।
•••➲ *आम तौर पर कई जगह खास कर छोटे कस्बो मे देखा गया है। जहा इल्म की कमी होने की बजह से लोग गुमराही का रास्ता पकड़ लेते है। और कहते है। किसी रस्म रिवाज का इस्लाम मे मना होने के बाद भी वह लोग उसे ब खूबी मनाते है। अगर उनको मना किया जाए यह सब गलत है। तो जबाब मे सुनने को मिलता है। हमारे बाप दादाओ ने यह किया तो हम भी करेगे बाप दादाओ की तो जल्दी सुनने को तैयार रहते है। पर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम के बताए रास्ते को छोड़ देते है। लेकिन जिस रिवाज को मनाते है। उसकी जड़ तक नही जाते है। अगर उस जड़ तक जाएगे तो सही है गलत का फर्क भी पता हो जाएगा इसकी एक बजह यह भी है। उल्माऔ से मस्जिद के इमामो से दूर होना अगर किसी गाँव मे एक मस्जिद है। और उसमे इमाम साहब नमाज पड़ाते है। वह इमाम साहब उनकी जाहिलयत के चलते उनही मे ढल जाते है। मिसाल के तोर पर एक कहानी बताता हू।* ..✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 19 📚*••──────────────────────••►
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 60
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मय्यत को गुस्ल देने के बाद गुस्ल करना जरूरी है या नही*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (59) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ किसी गाँव मे सादी थी एक बड़े जमीदार के यहा बड़ी जोरो से शादी की तैयारी चल रही थी शादी के दिन नजदीक थे सब लोग अपने अपने काम मे मसगूल थे अब किसी ने कहा हाफिज साहब को फातहा के लिए बुला के लाऔ हाफिज साहब फौरन बुलाने पर आ गये घर मे एक बूढ़ी दादी थी उनको एक कमरे को देखने की जिम्मेदारी दी गई थी देखा होगा आपने भी हम अपने बडो को देखने बाला काम बता देते है। अराम से बेठे रहे। इसी तरह बह दादी अम्मा को एक कमरा तकने के लिए कहा था जिसमे खाने पीने का सामान रखा हुआ था साथ ही साथ दूध और मिठाई भी रखी थी एक बिल्ली परेशान कर रही थी दादी उससे परेशान हो गई इतने मे उनहे भोले भाले हाफिज साहब दिखाई दिए तेज अवाज मे बुलाते हुए हाफिज साहड फातहा बाद मे होगी पहले इस बिल्ली को टुकनिया के नीचे बन्द करदो हाफिज साहब बिचारे बिल्ली को बड़ी मुस्किल से पकड़ा और बन्द किया फिर फातहा दिए और चले गए।...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 19 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 61
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मय्यत को गुस्ल देने के बाद गुस्ल करना जरूरी है या नही*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (60) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ इसी तरह कुछ महीनो बाद उस घर मे एक और शादी हुई हाफिज साहब को फिर फातहा के लिए बुलाया गया फिर वही दादी अम्मा बहा मौजूद थी और बह बिल्ली भी मौजूद थी दादी अम्मा फिर तेज अवाज मे फातहा बाद मे होगी पहले बिल्ली बंद हाफिज साहब बिल्ली को पकड़े और बंद किए बंद करने के बाद दादी से कहे फातहा कहा से देनी है। दादी अम्मा तब तक खिसकली यानी इन्तकाल हो गया जेसे तेसे शादी तो हो गई अब इसके बाद कुछ ही साल मे उस घर मे फिर से शादी हुई हाफिज साहब को फातहा के लिए बुलाया वेसे ही एक नई दादी अम्मा यानी उस घर की बहु बोली हाफिज साहब फातहा बाद मे होगी पहले बिल्ली बन्द होगी मेरी दादी अम्मा कराती थी अब हाफिज साहब का दिमाग खराब बिल्ली कहा से लाए बडी उलझन मे डाल दिया।
•••➲ *इस कहानी से हमे क्या नसीहत मिली इसका जबाब आप हजरात पर्सनल में बतायें।* ...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 19 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 62
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या सतर खुल जाने से वुज़ू टूट जाता है*
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•••➲ अवाम मे जो मशहूर है कि घुटना और सतर अपना या पराया देखने से वुज़ू जाता रहता है। यह एक बे-अस्ल बात है। घुटनाया रान वगैरा सतर खुलने से वुज़ू नही टूटता। हाँ बग़ैर जरूरत सतर खुला रहना मना है। और दूसरो के सामने सतर खोलना हराम है।
*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 2 सफह 28*
•••➲ *आज कल आम तोर पर देखा जाता है। मर्द जब घर पर रहते है। तो बगैर परदा किए अपने घर बालो के सामने बेठे रहते है। या अराम करने लगते है। उनका पूरा बदन दिखाई देता है। घुटनो से ऊपर का हिस्सा दिखाना इस्लाम मे हराम बताया है। लेकिन इस्लाम के बताने के बाद भी हम अमल करते नजर नही आते है। और घर मे हमारी जवान बहन बेटियो के सामने अपना नंगा बदन दिखाते है। यही बो अस्ल बजह है।जिसका सिला हमे मिलता है। हमारी माँ बहिनो बेटियो से जो आय दिन बजारो मे अपने आपको बे पर्दा दिखाने मे मसगूल रहती है।*...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 19 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 63
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या सतर खुल जाने से वुज़ू टूट जाता है*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (62) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ आपको एक मसला बताता चलू इस्लाम मे खत्ना कराना सुन्नते इब्राहीम अलहिस्सलाम है। जिसको हम आप अदा भी करते है। लेकिन कब कराना बहतर है। जब 4 साल से लेकर 7 या 8 साल तक बहतर तरीका यही है। लेकिन बच्चे को तकलीफ का अहसास उसके होस रहते न हो तो उसकी खत्ना माँ बाप 1 या 2 साल की उम्र मे करा देते है बहर हाल यह भी सही है। लेकिन जब बच्चा बालिग हो जाता है। और इस सुन्नत से महरूम रहता है। तो उसकी खत्ना कोई दूसरा मर्द नही कर सकता है। क्यूँ कि किसी दूसरे मर्द को अपनी सतल दिखाना इस्लाम मे नजायज व हराम है।
•••➲ *इस हाल मे उस बच्चे को या तो अपने हाथ से खत्ना करनी होगी या उसकी शादी होने के बाद उसकी बीबी उसकी खत्ना कर सकती है। या फिर यू कहले किसी गेर मुस्लिम ने कलमा पढ़कर इस्लाम कुबूल किया अब उसकी खत्ना नही है। तो क्या वह मुसलमान नही कहलाए गा या उसकी नमाज रोजे कबूल नही होगे अल्लाह नमाज रोजे कूबूल होगे या नही बह बहतर जानने बाला है। लेकिन इस्लाम के मुताबिक उसकी नमाज भी जायज है। और रोजे भी क्यूँ कि खत्ना कराना सुन्नत है। और नमाज रोजा इस्लाम मे फर्ज है। हा अगर वो चाहे है। तो अपने हाथ से अपनी खतना कर सकता है। या बह शादी सुदा है। तो अपनी बीबी से करवा सकता है। अगर कोई परेशानी न हो तो कराना भी जरूरी है।*..✍
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 64
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या सतर खुल जाने से वुज़ू टूट जाता है*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (63) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ अब सोचने बाली बात यह है। इस्लाम मे खत्ना कराना मुसलमान का अहिम हिस्सा है। लेकिन बालिग होने के बाद इसपे भी पबन्दी लगाई है। किसी दूसरे को अपनी सतर दिखाना हराम है। और बगैर जरूरत खुद देखना भी सही नही है। इसलिए आप तमामी हजरात इस गुनाह से बचे और अपने घरवालो को भी बचाए अपनी माँ बहनो बेटियो को परदे मे रहने की नसीहत दे जिसकी बजह से हम सर उठाकर दचल सके।
•••➲ *अल्लाह रब्बुल इज्जत अपने हबीब सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम के सदके मे हमे इस्लाम का सही मायनो मे पाबन्द बनाए* आमीन सुम्मा आमीन।..✍
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 65
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 लोटे या गिलाश को पाँच उँगलियो से पकड़ने का मसला*
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•••➲ *पानी से भरे लोटे या बरतन को पाँच उँगलियो से पकड़ने को बुरा जाना जाता है। और मकरूह ख्याल किया जाता है। हालांकि यह एक जाहिलाना ख्याल है। पाँच उँगलियो से अगर लोटे को पकड़ लिया जाए तो उससे पानी मे कोई खराबी नही आती।*
•••➲ आज कल कम इल्म रखने बाले लोग इसको गलत समझते है। और पानी को बे बजह बरबाद कर देते है। ऐसा करना मना है। बे बजह पानी बरबाद करना इस्लाम मे मना किया गया है। और हमे इससे बचना भी चाहिए हमारा इस्लाम तो हमे वुज़ू के लिए कम पानी इस्तमाल करने के लिए कहता है। लेकिन हम आज कल पानी को इतना ज्यादा फ्जूल खर्च कर रहे है। जिसका अन्दाजा लगाना मुश्किल है। जिसका सिला हमे खुद भुगतना पड़ता है। इसका नतीजा कई जगह सामने भी अ गया है। और कई जगह आने बाला है। कोशो दूर जब पानी लेने जाना पड़ता है। तब वह दिन याद आते है।
•••➲ *काश हमने इतना पानी बरबाद न किया होता तो आज यह दिन नही देखते अरे भाई यह सब कोन सिखा रहा है। हमारा इस्लाम हमे इसकी तालीम दे रहा कोई और मजहब नही कुरबान जाओ प्यारे आका सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम पर जिसकी उम्मत मे हमे रबने पैदा किया इस्लाम ने हमे हर बात की तालीम दी है। इन्शा अल्लाह आगे हर बात आप तक पहुँचाई जाइगी आप हजरात से गुजारिश है। पानी की कीमत को समझे बे बजह पानी बरबाद न करे बे बजह पानी न बहाऐ क्योंकि इस्लाम हमे इसकी इजाजत नही देता है।*..✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 20 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 66
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 दूध पीते बच्चे का पेशाब पाक है या नापाक*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ *कुछ लोग समझते है। कि दूध पीते बच्चो का पेशाब पाक है। हालांकि ऐसा नही। इन्सान का पेशाब मुतलकन नापाक है। चाहे वह दूध पीते बच्चो का हो या बड़ो का*
*📔 फतावा रजविया जिल्द 2 सफह 146*
•••➲ आज कल आम तौर पर देखा जाता है। हम सुन्नी सहीउल अकीदा मुसलमान ज्यातर नापाक रहते है। इतना ही नही बलके खड़े होकर ही पेशाब करते नजर आते है। खड़े होकर पेशाब करने से जो पेरो पर छींटे आते है। बह छींटे जहन्नम मे जाने का रास्ता बनाते है। जिससे हम बचते नही है। नबी करीम सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने इरसाद फरमाये पेशाब के छींटो से बचो उची जगह बेठकर पेशाब किया करो क्यो कि यह गैर मुस्लिम का तरीका है। और जो छींटे हमारे पेरो पर आते है। उन छींटो की बजह से हमे तरह तरह की बीमारिया होती है। बह बीमारी जल्द ठीक भी नही होती है।..✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 20 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 67
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 दूध पीते बच्चे का पेशाब पाक है या नापाक*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (66) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *दूसरी बात हम एसा करने से नापाक ही रहेगे अल्लाह न करे हमे इसी हालत मे मौत आ जाए। अब बताए क्या ऐसा किसी मुसलमान को गवारा होगा उसकी मौत नापाकी की हालत मे हुई है। उस इन्सान को अल्लाह भी न पसन्द करता है। जो हमेशा नापाक रहता है। और खड़े खड़े पैशाब करता है। मुसलमान नाम रख लेने से हम मुसलमान नही होगे हमे अपने मुसलमान होने की असल जिन्दगी को पहचान ना होगा तभी हम इस दुनिया मे और बाद मरने के कामयाब होगे।*
•••➲ अगर हम मुसलमान पाक रहने की 24 घंटे आदत बना तो इसका फायदा भी हमे होगा हमेशा अगर पाक रहेगे तो अल्लाह के घर से जो हय्याअलशसलाह की आवाज आती है। एक दिन हमे हमारी पाकी की बजह से मस्जिद तक जरूर खीचके ले जाएगी इन्शा अल्लाह। हर मेरे मोमिन भाई से मेरी गुजारिश है। साफ रहे पाक रहे और अपने रब को अपनी पाकी से राजी करे क्यूकि हर मोमिन मुसलमान की सबसे बड़ी ताकत उसकी पाकी है।..✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 20 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 68
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 हलाल जानवरो के पेशाब की छींटो का मसला*
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•••➲ बहुत लोग हलाल जानवरो के पेशाब की छींटे अगर बदन या कपड़े पर लग जायें तो वह खुद को नापाक ख्याल कर लेते हैं। यहाँ तक कि धोने या कपड़े बदलने का मौका न मिले तो नमाज छोड़ देते है।
•••➲ *आला हजरत रादिअल्लाहु ताला अनहु फरमाते है।*
•••➲ "बैलों का गोबर पेशाब नजासत खफीफा है। जब तक चहारूम (चौथाई) कपड़ा न भर जाए या कुल मिला कर इतनी पड़ी हो कि जमा करने से चहारूम कपड़े की मिकदार हो जाए, कपड़े नजासत का हुक्म न देंगे और उससे नमाज जाइज होगी और बिलफर्ज उससे से ज्यादा भी धब्बे हो और धोने से सच्ची मजबूरी यानी हरजे शदीद हो तो नमाज जाइज है।
*📒 फतावा रजविया जिल्द 2 सफह 169*
•••➲ *हदीश शरीफ मे है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने फरमाया*
•••➲ "जिसका गोश्त खाया जाता है। उसके पेशाब मे जायादा हरज नही। यानी उसका पेशाब ज्यादा सख़्त नापाक नही।..✍
*📘 मिश्कात बाब तत्हीरिन्नजासत, सफह 53*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 20-21 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 हलाल जानवरो के पेशाब की छींटो का मसला*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (68) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ खुलासा यह कि हलाल जानवरो मसलन गाय भैंस बैल घोड़ा ऊँट बकरी का पेशाब नजासते खफीफा (हल्की नापाकी) है। कपड़े या बदन के किसी उज्व *(Part)* का जब तक चौथाई हिस्सा उसमें मुलव्विस न हो नमाज पढ़ी जा सकती है। और मामूली छींटे जो आम तौर पर किसानो के कपड़ो और बदन पर आ जाती है। जिन से बचना निहायत मुश्किल है उनके साथ तो बिला कराहत नमाज जाइज है और नमाज छोड़ने का हुक्म तो किसी सूरत मे नही चाहे ब-हालते मजबूरी गन्दगी कैसी ही और कितनी ही हो और धोने और बदलने की कोई सूरत न हो तो यूँही नमाज पढ़ी जाएगी नापाकी बहुत ज्यादा हो या कपड़े न हो तो नंगे बदन नमाज पढ़ी जाएगी यह जो जाहिल लोग मामूली मामूली बातो पर कह देते है कि ऐसी नमाज पढ़ने से तो न पढ़ना अच्छा। यह उनकी जहालत व गुमराही है। सही बात यह है। कि मजबूरी के वक़्त नमाज छोड़ने से हर हाल मे और हर तरफ नमाज पढ़ना अच्छा है।
•••➲ *आपको फिर बता दू नमाज किसी भी हाल मे माफ नही है। कोई भी मजबूरी नमाज से बढ़कर नही हो सकती है। नमाज कायम करो इससे पहले हमारी और आपकी नमाज हो जाए अल्लाह तआला कहने सुनने से ज्यादा अमल की तोफीक अता फरमाए*...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 20-21 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 परिन्दो की बीट (पाखाने) का मसला*
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•••➲ *जो परिन्दे ऊँचे नही उड़ते जमीन पर रहते हैं जैसे मुर्गी और बतख उनकी बीट या पाखाना इन्सान के पाखाने और पेशाब की तरह नजासते गलीजा यानी सख्त किस्म की नापाकी है। और जो परिन्दे ऊपर उड़ते हैं उनमे जो हलाल हैं उनकी बीट पाक है जैसे कबूतर फाख्ता मुर्गाबी मैना घरेलू चिड़िया गुलगुचिया वगैरा। जो परिन्दे हराम है। जैसे कौआ चील शिकरा बाज उनकी बीट खफीफा यानी (हल्की नापाकी) है। उसका वही हुक्म है जो हलाल जानवरो के पेशाब का है!*
•••➲ हमे इस बात से यह समझना बहूत अहिम है। के हम थोड़ी सी नजासत लगने से कहने लगते है। कपड़े नपाक है नमाज नही पड पाएगे ऐसा कहना भी मुतलन गलत है। और गुनाह भी है हम आम तौर पर देखते है। हमने या हमसे किसी ने नमाज के लिए कहा तो हम साफ जबाब देते है। हम नही जा पाएगे तुम पड़ आऔ ऐसा कहना गुनाह है। शक्त मना है। हा अगर आपका इरादा नही है नमाज मे जाने का तो सामने बाले से ऐसा मत बोलो बल्की इस तरह से कह दो जिससे गुनाह भी न हो और सामने बाला आपके जबाब से मुतमइन हो जाए!..✍
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 परिन्दो की बीट (पाखाने) का मसला*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (70) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ जैसे किसी ने हमसे नमाज को कहा तो उससे कहिए आप चले हम आते है। इन्शा अल्लाह अगर आपने इन्शा अल्लाह लगा दिया तो इतने समझदार आप भी इन्शा अल्लाह का मायना क्या होता है। लेकिन आपको यह बात बता दी तो इसका मतलब यह नही है। के अब ऐसा ही करा करेगे और गुनाह से भी बचेगे तो ऐसा सोचना भी गलत है। नमाज हर सूरत मे पड़ना ही पड़ेगी नमाज किसी भी सूरत मे माफ नही है। अल्लाह से मेरी दुआ है। हर मेरे मुसलमान भाई को सच्चा पक्का पंच वक्ता नमाजी बनाए और अपने रब को राजी करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए!...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 72
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 हैज व निफास वाली औरतो को मनहूस समझना*
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•••➲ *ज़च्चा पन और महावारी मे औरतो के साथ खाने पीने और उनका झूटा खाने मे हरज नही। हिन्दुस्तान मे जो बाज़ जगह उनके बरतन अलग कर दिये जाते है। उनके साथ खाने पीने को बुरा जाना जाता है या उनके बरतनो को नापाक ख्याल किया जाता है। यह हिन्दुओं की रस्मे है ऐसी बेहूदा रस्मो से बचना जरूरी है। अलबत्ता इस हालत मे मर्द का अपनी बीबी से हम बिस्तरी करना हराम है जिससे बचना हमे बहुत जरूरी है।*
•••➲ करीना ए जिन्दगी की लगभग 40 से ऊपर पोस्ट किया है। जिसमे शोहर बीबी की शोहबत करने के तरीके बयान किए है। अपनी बीबी के साथ इस्लामी कानून के तहित शोहबत करना इबादत मे सुमार होता है। यह लज्जत जन्नत की लज्जतो मे सुमार हे कुछ मुसलमान ऐसे होते है। जिन्हे दीन का इल्म नही होता है। यहा तक के बह शराब जेसी हराम चीज को पीकर अपनी बीबी के साथ शौहबत करते है। उनहे इससे कुछ मतलब नही रहता बीबी हैज से या नही उनहे अपनी ख्वाहिश हफस पूरी करने के लिए बीबी के साथ शोहबत करना है!...✍
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 73
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 हैज व निफास वाली औरतो को मनहूस समझना*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (72) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ चाहे बीबी इसके लिए तैयार हो या न हो उन लोगो को बता दू इस तरीके से शोहबत करना गुनाह मे सुमार होता है और इसका असर हमारी औलाद पर पड़ता है जिससे अक्सर देखा जाता है। कही किसी का बच्चा कुपोसित पैदा हुआ किसी का पेर से अपाहिज हाथ से लूला आंख से अन्धा या शरीर मे कोई न कोई कमी जरूर होती है। या दिमागी संतुलन खराब रहता है। इस लिए हमे इस चीज से बचना चाहिए जब तक बीबी अपने हैज के दिन पार न करले तब तक शोहबत नही करनी चाहिऐ अल्लाह हमे इस गुनाह से बचने की तोफीक अता फरमाऐ ज्यादा बारीकी से जानने के लिए जो मेने करीना ए जिन्दगी की पोस्ट की है उन्हे पडिऐ इन्शा अल्लाह हर बात आपके समझ मे आ जाइगी।...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 22 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 74
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 निफास की मुद्दत*
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•••➲ अक्सर औरतो मे यह रिवाज है। कि बच्चा पैदा होने के बाद जब तक चिल्ला पूरा न हो। चाहे खून आना बन्द हो गया हो न नमाज पढ़े न रोज़ा रखें और न अपने को नमाज के लायक जाने यह महज जहालत है। जब निफास यानी खून आना बन्द हो जाए उसी वक़्त से नहा कर नमाज शुरू करदे। और अगर नहाना नुकसान करे तो तयम्मुम करके नमाज पढ़े। यानी निफास की मुद्दत चालीस दिन जरूरी ख़्याल करना गलतफहमी है। जब तक ख़ून आए तभी तक औरत निफास मे मानी जाएगी ख्वाह चन्द दिन ही हुए हो। हां अगर चालीस दिन गुजरने के बाद भी ख़ून आना बन्द न हो तो चालीस दिन के बाद नहा कर नमाज पढ़ेगी और जिन दिनो मे उस पर नमाज रोजा फ़र्ज है उन दिनों मे शौहर और बीवी का हमबिस्तर होना भी जाइज है।...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 22-23 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 75
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 निफास की मुद्दत*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (74) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ खुलाशा यह है। खास कर कम इल्म बाले लोग ऐसी हरकत करने से बाज नही आते है। आज के दौर भे बेसे भी देखा जाता है। मर्द हो चाहे औरत सबने नमाज को तर्क कर दिया है। जेसे तेसे हमारी कुछ बहिने नमाज को पढ़ना फर्जेएन समझती है। तो कुछ कम इल्म वाले उनको इस मुद्दत मे नमाजे तर्क करवाने मे नही चूकते नजर आते है। आपको बता दू नमाज किसी भी हाल मे माफ नही है। अगर खुद नमाज की अहिमयत नही समझती तो कम से कम अपनी बेटी और बहू को तो मत रोको हो सके तो उनको देख कर खुद भी अल्लाह की बारगाह मे हाथ फैलाना चालू करदो इससे पहले की तुम्हारी या हमारी नमाज पढ़ी जाए!
•••➲ *दुआ है। रब तबारक तआला से हम सबको दीन की सही समझ अता फरमा और हम सबको हमारी माँ बहनो को सच्चा पक्का नमाजी बनाए*..✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 22-23 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 76
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या बच्चे को दूध पिलानेसे औरत का वुज़ू टूट जाता है!*
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•••➲ बाज जगह जाहिलो मे यह मशहूर हो गया है। कि औरत अगर बच्चे को दूध पिलाए और बावुज़ू हो तो उसका वुज़ू टूट जाता है। यह महज़ गलत है। बच्चे को दूध पिलाना हरगिज़ वुज़ू नही तोड़ता और उसके बाद वुज़ू फिर से किये बगैर नमाज़ पढ़ सकती है। दोबारा वुज़ू करने कि हाजत नहीं।
•••➲ बहुत सी छोटी बाते है। जो हमारी माँ बहनो को मालूम नही रहती जिसके चलते वो नमाज़ो को तर्क कर दिया करती है। और उसका गुनाह अपने सर पर लाद लेती है।...✍
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 77
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या बच्चे को दूध पिलानेसे औरत का वुज़ू टूट जाता है!*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (76) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *आज कल हमारी माँ बहनो को ज्यादा तर देखी जाती है। जो फ़र्ज नमाजो को ज्यादा तवज्जो न देकर कई ऐसे कामो मे अपने आपको मशरूफ कर लेती है। जिससे उन्हें लगता है। इस काम को करने के बाद मेरी हर मुराद पूरी हो जाएगी जेसे सोलह सैय्यदो के रोजे कहानी यह और नूर नामा दस बीबियो की कहानी यह सब करना नजायज व हराम है। पर हमारी माँ बहने इनको करने मे इतना सबाब समझती है। अगर इनके नजदीक अजान भी हो रही हो तो इन्हे नमाज़ से फिर कोई वास्ता नही रहता इतनी मसगूल हो जाती है।*
•••➲ इन किताबो को पढ़ने मे के फ़र्ज को भी तर्क करने मे इन्हे देर नही लगती मेरी बहनो अल्लाह रब्बुल इज्जत इसकी भी पकड़ करेगा फिर किस मुँह से अल्लाह के सामने जबाब दोगी के *खातूने जन्नत* की कनीज हूँ कह पाओगी अपने आपको नही कह पाओगी बल्की सर्म से अपनी नजरो को झुका लोगी अभी वक़्त है। मेरी बहनो इस्लाम की सच्चाई को सही तरीके से पहचानो इस्लाम हमे फर्ज नमाज़ो को अदा करने के बाद नफ्ल नमाजो का हुक्म देता है।
•••➲ *दुआ है। रब तबारक तआला से हमे और हमारी माँ बहनो को अमल की तौफीक अता फरमाए और मसलके आला हजरत का पाबंद बनाए*
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन* ...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 23 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 78
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 हर नापाकी पर गुस्ल करना...❓*
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•••➲ *अक्सर देखा गया है। कि लोगों से पूँछा आपने नमाज क्यू नही पढ़ी तो वह जबाब मे कहते है। हम नहाऐ हुऐ नही हैं।और होता यह है कि उन्होंने या तो पेशाब करने के बाद ढेले या पानी से इस्तिन्जा नही किया है। या कीचड़ वगैरा या कोई गन्दगी लग गई है और वह यह ख्याल ख्याल करते है इन सूरतो मे गुस्ल करना है।और नहाना जरूरी है। और बिला बजह नमाज छोड़ कर बड़े गुनहगार होते है।*
•••➲ हालांकि इन सब सूरतो मे नहाने की जरूरत नही बल्कि बदन या कपड़े के जिस हिस्से पर नापाकी लगी हो उसको धोना या किसी तरह उस नापाकी को दूर कर देना काफ़ी है। या जिस कपड़े पर नापाकी है उस कपड़े को बदल दिया जाए। यह भी उस सूरत मे है। जब कि नापाकी दूर करने या उसको धोने पर कादिर हो वरना ऐसे ही नापाक कपड़ों मे पढ़ी जाऐ और अगर तीन चौथाई से ज्यादा कपड़ा नापाक हो तो नंगे बदन नमाज पढ़े और अगर एक चौथाई पाक है बाकी नापाक तो वाजिब है। कि उसी कपड़े से नमाज पढ़े।...✍
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*📬 बहारे शरीअत,हिस्सा 3 सफहा 46 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 79
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 हर नापाकी पर गुस्ल करना...❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (78) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *मगर यह सब उसी वक्त है जब कि नापाकी को दूर करने या धोने की कोई सूरत न हो और बदन छुपाने को कोई और कपड़ा न हो*
•••➲ इन मसाइल की तफसील जानने के लिए फतावा आलमगिरी,फतावा रजविया,बहारे शरीअत,कानूने शरीअत,निजामे शरीअत,वगैरा किताबें पढ़ना चाहिऐ।
•••➲ *खुलासा यह है। कि नमाज किसी भी सूरत मे छोड़ने की इजाजत नहीं है और हर नापाकी पर नहाना फर्ज नही। गुस्ल फर्ज होने कि तो चन्द सूरते है। जैसे मर्द औरत के साथ हमबिस्तर होना दोनो मे से किसी एक को एहतिलाम होना या जोश और झटको के साथ मनी का खारिज होना औरतो को हैज व निफास आना तफसील के लिए दीनी किताबे पढ़े।*
•••➲ नमाज किसी भी सूरत मे माफ नही है। नमाज पढ़ो नमाज कायम करो इससे पहले कि हमारी नमाज न पढ़ जाए!..✍
*लगालो अपने माथो पर नमाजो की वह निशानी क्योंकि*
*अन्धेरी कब्र मे हम सबको उजाले की जरूरत है।*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 23-24 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 80
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 नींद से वुज़ू कब टूटता है...❓*
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•••➲ अक्सर देखा गया है कि मस्जिद के अन्दर नमाज के इन्तजार मे लोग बैठे हैं और उन्हें नींद की झपकी आ गई या ऊँघने लगे तो वह समझते हैं हमारा वुज़ू टूट गया और वह अज खुद या किसी के टोकने से वुज़ू करने लगते हैं यह ग़लत है।
•••➲ *मसअला यह है कि ऊँघने या बैठे बैठे झोंक लेने से वुज़ू नही जाता!*
📗 *बहारे शरीअत हिस्सा दोम सफह 27*
•••➲ तिर्मिजी और अबू दाऊद की हदीस मे है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम के सहाबए किराम मस्जिद शरीफ मे नमाजे इशा के इन्तजार मे बैठे बैठे सोने लगते थे यहाँ तक कि उनके सर नींद की बजह से झुक झुक जाते थे फिर वह दोबाराबगैरवुज़ूकिये नमाज पढ़ लेते थे।...✍
📕 *मिश्कात मायूजिबुल वुज़ू सफह 41*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 24 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 81
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 नींद से वुज़ू कब टूटता है...❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (80) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ नींद से वुज़ू तब टूटता है जब ये दोनो शर्ते पाई जाये।
*(1) दोनो सुरीन उस वक्त खूब जमे न हो।*
*(2) सोने की हालत गाफिल होकर सोने से मानेअ न हो।*
📗 *फतावा रजविया जिल्द 1 सफह 71*
•••➲ चित या पट या करवट से लेट कर सोने से वुज़ूटूट जाता है। उकङू बैठा हो और टेक लगा कर सो गया तो वुज़ू टूट जाएगा। पाँव फैला कर बैठे बैठे सोने से वुज़ू नही टूटता चाहे टेक लगाए हुए हो खड़े खड़े या चलते हुए या नमाज की हालत मे कयाम मे या रूकू मे या दो जानू सीधे बैठ कर या सज्दे मे जो तरीका मर्दो के लिए सुन्नत है उस पर सो गया तो वुज़ू नही जाएगा हाँ अगर नमाज मे नींद की वजह से गिर पड़ा अगर फौरन आंख खुल गईतो ठीक वरना वुज़ू जाता रहा बैठे हुए ऊँघने और झपकी लेने से वुज़ू नही जाता हैं।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 25 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 82
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या बीबी से हमबिस्तरी करने से सारे कपड़े नापाक हो जाते हैं!❓*
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•••➲ *काफी लोग यह समझते है। कि शौहर बीबी के हमबिस्तर होने से उनके कपड़े नापाक हो जाते हैं यह गलत है। बल्कि जिस कपड़े के जिस कपड़े के जिस हिस्से पर नापाकी लगी हो सिर्फ वही नापाक है। बाकी पाक है। कपड़े के नापाक हिस्से को तीन बार धो दिया जाए और हर बार धोकर खूब निचोड़ लिया जाए तो फिर उस कपड़े से नमाज पड सकते है। और जिस कपड़े पर नापाकी मसलन मर्द या औरत की मनी न लगी हो वह बगैर धोए पाक है।*
•••➲ आपको पहले भी बताया गया बीबी के साथ जायज तरीके से शोहबत करना इबादत है। लेकिन न जायज तरीका अपनाने से गुनाह होगा है। जेसे खुले मे शोहबत करना यह तरीका जानवरो का है। अगर इस्लामिक कानून की तहित आपने अगर शोहबत की तो आपकी आने बाली नस्ल भी नेक शौहले पैदा होगी अल्लाह तबारक तआला से दुआ है। हम गुनहगारो को सही मायनो मे इस्लाम का पाबंद बना दे!..✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 25-26 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 83
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 कुत्ते का बदन या कपड़े से छू जाने का मसअला❓*
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•••➲ *कुछ लोग समझते है। कि कुत्ते का जिस्म अगर इन्सान के जिस्म या कपड़े से लग जाये तो वह नापाक हो जाता है। यह उनकी गलतफहमी है। कुत्ते का सिर्फ छू जाना नापाकी नही लाता हाँ अगर कुत्ते के जिस्म पर कोई नापाकी लगी हो और आप जानते है। कि वह नापाक चीज है। और वह उसके जिस्म से आपके लग गई तो जहाँ लगी वह जगह नापाक है। यूँही कुत्ते का पसीना और उसके मुँह की राल और थूक भी नापाक है। ये चीजें जहा लगी होगी उसे भी नापाक कर देगी। और ऐसी कोई सूरत न हो तो सिर्फ़ छू जाना और बदन से लग जाना नापाकी के लिए काफी नही है। और इस तरह सिर्फ छू जाने से कपड़ा और बदन नापाक नही होगा।*
•••➲ अलबत्ता कुत्ता पालना इस्लाम मे मना है। अगर शिकार या हिफाजत के लिए वाकई जरूरत हो शौकिया और बगैर ख़ास जरूरत के न हो तो इजाजत है। तफसील के लिऐ देखिये!...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
📗 *फतावा रजविया जिल्द 10 किस्त 1 सफह 196*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 26 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 84
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या मिट्टी के ढीले से इस्तिन्जा करने के बाद पानी से धोना जरूरी है?❓*
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•••➲ *कुछ लोग समझते हैं कि ढीले से इस्तिन्जा करने के बाद अगर पानी से भी इस्तिन्जा नही किया और यू ही वुज़ू करके नमाज पढ़ ली तो नमाज नहीं होगी । हालाँकि ढीले से इस्तिन्जा करने बाद पानी से धोना जरूरी नही हाँ दोनो को जमा करना अफजल है। अगर सिर्फ ढीले से इस्तिन्जा करले काफी है। और सिर्फ पानी से करले तब भी काफी और दोनो को जमा करना बहतर व अफजल और यह हुक्म दोनो सूरतो के लिऐ है। चाहे पाखाना किया हो या पेशाब।*
•••➲ हदीस मे है। एक मरतबा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने पेशाब फरमाया हजरत उमर फारूके आजम रदीअल्लाहो ताला अनहो एक बरतन मे पानी लेकर पीछे खड़े हो गये हूजूर ने पूँछा यह क्या है? अर्ज किया इस्तिन्जे के लिए पानी है। आपने इरशाद फरमाया मुझ पर यह वाजिब नही किया गया कि हर पेशाब के बाद पानी से पाकी हासिल करूँ।...✍
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📗 *मिश्कात सफ़ह 44 सुनने अबू दाऊद जिल्द 1 सफ़ह 7*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 27 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 85
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या मिट्टी के ढीले से इस्तिन्जा करने के बाद पानी से धोना जरूरी है?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (84) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ खुलाशा यह है। कि पाखाना या पेशाब करने के बाद सिर्फ मिट्टी के ढेलों या पत्थरों वगैरह किसी भी नजासत को दूर या खुश्क करने वाली चीज से इस्तिन्जा कर लेना तहारत के लिए काफी है। पानी से धोना जरूरी नही हाँ अफजल व बेहतर है या अगर नजासत इस्तिन्जे की जगह से एक रूपया भर बदन के हिस्से पर फैल गई हो तो पानी से धोना जरूरी है।
•••➲ *इस मसअले को तफसील से जानने के लिए देखिए*
📗 *फतावा रजविया जिल्द 2 सफ़ह 165*
⚠ *नोट :- जो लोग सफर मे रहते है। वह अपने साथ इस मकसद के लिए कोई पुराना कपड़ा रख लिया करे। यह पानी न मिलने की सूरत में तहारत के लिए बहुत काम आता है।*..✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 28 📚*
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*📝 नमाज मे दाहिने पैर का अंगूठा सरकने का मसअला ?❓*
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•••➲ आम तौर से देहातों मे या छोटे कस्बो मे जहा कम इल्मी पायी जाती हो इस को बहुत बुरा जानते है। यहाँ तक कि नमाज मे दाहिने पैर का अंगूठा अगर थोड़ा सरक जाए तो नमाज न होने का फतवा लगा देते हैं।
•••➲ *कुछ लोग इस अँगूठे को नमाज की किलिया या खूंटा कहते भी सुने गए है। यह सब जाहिलाना बातें है। किसी भी पैर का अँगूठा सरक जाने से नमाज मे कोई खराबी नही आती। हां बिला बजहा जानबूझ कर कोई हरकत करना ख्वाह जिस्म के किसी हिस्से से हो गलत व मकरूह है।*
•••➲ हजरत अल्लामा मुफ्ती जलालुद्दीन साहब किब्ला अमजदी फरमाते है।
•••➲ *दाहिने पैर का अँगूठा अपनी जगह से हट गया तो कोई हरज नही। हां मुकतदी का अँगूठा दाहिने या बाये या आगे या पीछे इतना हटा कि जिस से सफ मे कुशादगी पैदा हो या सीना सफ से बाहर निकले तो मकरूह है।*
•••➲ *दाहिने पैर का अँगूठा अपनी जगह से हट गया तो कोई हरज नही। हां मुकतदी का अँगूठा दाहिने या बाये या आगे या पीछे इतना हटा कि जिस से सफ मे कुशादगी पैदा हो या सीना सफ से बाहर निकले तो मकरूह है।*
📗 *फतावा फैजुर्रसूल ज़िल्द 1 सफह 370*
•••➲ खुलासा यह कि अवाम मे जो मशहूर है। कि नमाज़ में दाहिने पैर का अंगूठा अगर अपनी जगह से थोड़ा सा भी सरक जाए तो नमाज़ नही होती यह उनकी जहालत और गलत फहमी है।
⚠ *नोट :-* इस गुनहगार ने अभी तक जितनी पोस्ट की है। सारी पोस्टो को पड़ने के बाद एक ही सबक मिलता है। नमाज कायम करो नमाज़ किसी भी हाल में माफ नही है।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 28 📚*
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*📝 सज्दे में पैर की उंगलियों का पेट ज़मीन पर न लगना ❓*
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•••➲ इस मसअले से काफ़ी लोग ग़ाफ़िल है। और पैर की उंगलियों के सिर्फ़ सिरे जमीन से लग जाने को सज्दा समझते है। और कुछ का तो सिर्फ़ अंगूठे का सिरा ही जमीन से लगता है। और बाकी उंगलियाँ ज़मीन को छूती भी नही इस सूरत मे न सज्दा होता है। न नमाज़।
•••➲ *सज्दे मे पैर की उंगलियों के सिर्फ़ सिरे नहीं बल्कि उंगलियों पर जोर दे कर किंब्ले की तरफ़ उंगलियों का पेट जमीन से लगाना चाहिए।*
*📕 फ़तावा रजविया शरीफ़ जिल्द 1 सफ़ह 556 पर है।*
•••➲ सज्दे मे कम अज़ कम एक उँगली का पेट ज़मीन से लगा होना फ़र्ज है। और पाँव की अक्सर उंगलियों का पेट ज़मीन जमा होना वाजिब।...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 29 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 सज्दे में पैर की उंगलियों का पेट ज़मीन पर न लगना ❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (87) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *ख़ुलासा :-* यही है। नमाज़ एक अहिम इबादत है। जिसका करना हर मुसलमान मर्द औरत पर फ़र्ज है। लेकिन हम अपने कामो मे मसरूफ रहने के चक्कर मे इतनी जल्दबाजी से नमाज़ अदा करते है । के सुन्नत तो ठीक फ़र्ज को भी सही तरीके से अदा नही करते है। ऐसे नमाज़ियो के चाहिए नमाज़ अहिस्ता अदा करे यानी जल्दबाजी न करे और नमाज़ मे जितने फ़र्ज है। उनके साथ नमाज़ अदा करे अगर एक भी फ़र्ज छूट गया तो आपकी नमाज़ न हुई। और नमाज़ को फिरसे दोहराना होंगा अगर हम यह सोचे के हमने पीछे इस इमाम के कह दिया तो अब चाहें जेसी पढ़े इमाम जाने तो यह उन लोगों की ग़लतफहमी है।
•••➲ इमाम के आमाल इमाम के साथ होगे और तुम्हारे आमाल तुम्हारे साथ होगे फिर इमाम नही आएगा तुम्हारी मग्फिरत करवाने तुम्हे खुद अपना हिसाब देना होंगा अभी भी वक़्त है। मुसलमानों सभल जाओ और अपनी पहचान को पहचानो औल सच्चे दिल से तौबा करलो और नमाज़ को सही मायनो मे सीखो क्यूँ कि पहला सबाल सिर्फ नमाज़ का ही होंगा अगर नमाज़ सही है। तो फिर आमाल नामा देखा जाएगा। अपने उल्माओ के पास जाकर थोड़ा वक़्त बिताया करों वह तुमसे कुछ मांग ते नही पर वह अपनी बातो से तुम्हारी जिन्दगींयो को जरूर सबारते है। इमामो का अदब करो और उनकी सोहबत मे भी रहा करो।
•••➲ अल्लाह रब्बुल इज्जत हम सब मुसलमानो को सही मायनो मे नमाज़े पंच वक़्ता सही मायनो मे अदा करने की तौफीक अता फरमाए।...✍
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 29 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 89
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*📝 अजान के वक़्त बातें करना ❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ अज़ान के वक़्त बातों मे मशगूल रहना एक आम बात हो गई है। अवाम तो अवाम बाज़ खवास अहले इल्म तक इसका ख़्याल नही रखते जब कि हदीस शरीफ मे है।
•••➲ जो अज़ान के वक़्त बातों मे मशगूल रहे उस पर खात्मा बुरा होने का खौफ है।
•••➲ मसअला यह है। कि जब अज़ान हो तो उतनी देर के लिए न सलाम करे न सलाम का जबाब दे न कोई और बात करे यहाँ तक की कुर्आन मजीद की तिलावत मे अगर अज़ान कि आवाज़ आए तो तिलावत रोक दे और अज़ान गौर से सुने और जबाब दे रास्ता चलने अगर अज़ान की आवाज़ आए तो उतनी देर खड़ा हो जाए सुने और जबाब दे अगर चन्द अजाने सुने तो सिर्फ़ पहली का जबाब देना सुन्नत है। और सबका देना भी बहतर है।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 29 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 90
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 अज़ान के वक़्त बातें करना ❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (89) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ खुलासा यही है। अगर अज़ान हो तो बहतर यही है। खमोसी से उसका जबाब दिया जाए अगर अजान के वक़्त बन्दा बातो मे मसगूल रहता है। तो अल्लाह उसको अजाब देता है। यहा तक हदीसो मे आया है। जो अज़ान को जान बूझकर न सुनता होगा उसको मरते वक्त कलमा नसीब नही होगा जब अल्लाह तआला अज़ान के वक़्त कुर्आन की तिलावत बन्द करने का हुक्म देता है।
•••➲ तो अए इन्सान तुम्हारी बाते कुर्आन कि तिलावत से भी बड़ी हो गई क्या अरे अज़ान कि अहमियत तो वह है। जब अज़ान सुरू हो जाए तो तवाफे काबा भी रूक जाए अए इन्सान तू अपने दो कदम रक कर अल्लाह के कलाम को नही सुन सकता अज़ान का मकाम क्या है। यह हमे मालूम होना चाहिऐ बहतर यही है। जब भी अज़ान सुनो अपने हर काम को रोक दो चाहे कितना भी बड़ा काम हो अज़ान से बढ़कर नही हो सकता है। ब गौर सुनकर जबाब भी दिजिए। और सबाब के मुस्तहब बने।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 90 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 91
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 तकबीर खड़े होकर सुनना ❓*
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•••➲ जब तकबीर कहने बाला *हय्या अलस्साह* और *हय्या अललफलाह* कहे इमाम और मुकतदी जो वहाँ मौजूद है। उनको उसी वक़्त खड़ा होना चाहिए। मगर कुछ जगह शुरू तकबीर से खड़े होने का रिवाज पड़ गया है। और वह लोग इस रिवाज पर इतने अड़ जाते है। कि हदीसो और फिक्ही किताबो की परवाह नही करते और मनमानी ज़िद और हटधर्मी से काम लेते है।
•••➲ फतावा आलमगीरी जो बादशाह औरंगजेब आलमगीर रहमतुल्लाह तआला अलैह के हुक्म से तकरीबन साढ़े तीन सौ साल पहले उस दौर के तकरीबन सभी बड़े बड़े उलमा ने मसवरे के साथ लिखीं उसमे है।
•••➲ *मोअज्जिन जिस वक़्त हय्या अललफलाह कहे तब इमाम और मुकतदियो को खड़ा होना चाहिए यही सही तरीका है।*
📗 *फतावा आलमगिरी ज़िल्द 1 सफह 58*
•••➲ जहा शरीअत हो वहा तरीकत नही काम आती यही कानून है। इस्लाम का जो कानून बना है। उसे त कयामत तक कोई भी पोस्ट नहीं मिटा सकता और जो मिटाने कि नमुमकिन कोसिस करेगा वह खुद तवाह हो जाएगा इसलिए इस्लाम मे इल्म सीखना फर्ज है। जब तक दीन की सही जानकारी नही होगी तब तक हम गुमराही और गुनाह करते नजर आते रहेगे।...✍
*अल्लाह हमे सही मायनो में दीन की समझ अता फरमाए*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 30 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 92
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 ज़ुमुआ की दूसरी अज़ान मस्जिद के अन्दर देना ❓*
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•••➲ फिक्हे हनफी की तकरीबन सारी किताबों मे यह बात साफ़ लिखी हुई है। कि अज़ान मस्जिद मे न दी जाए। खुद हदीस शरीफ से भी यह साबित है। और किसी हदीस और किसी इस्लामी मीतबर व मुसतनद किताब मे यह नही है। कि कोई अज़ान मस्जिद के अन्दर दि जाए। मगर फिर भी कुछ जगह कुछ लोग जुमे कि दूसरी अज़ान मस्जिद के अन्दर इमाम के सामने खड़े होकर पढ़ते हैं। और सुन्नत पर अमल करने से महरूम रहते है।और महज़ ज़िद और हटधर्मी की बुनियाद पर रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम की प्यारी सुन्नत छोड़ देते है।
•••➲ और कुछ मक़ामात पर पर तो लाउडस्पीकर मस्जिद के अन्दर रख कर पाँचों वक़्त अज़ान पढ़ते है। इस तरह अजान देने वाले और दिलवाने बाले सब गुनहगार है।
•••➲ *फतावा आलमगीरी मे है।*"मस्जिद मे कोई अज़ान न दी जाए"।
📗 *आलमगीरी बाबुल अज़ान फस्ल 2 सफह 55*
•••➲ खुलासा यही है। मस्जिद के अन्दर कोई भी अज़ान न दी जाए जो ऐसा करता है। या करवाता है। वह दोनो गुनहगार होगे अल्लाह से दुआ है। कहने सुनने से ज्यादा हम सबको अमल की तौफीक अता फरमाए।..✍
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 30-31 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 93
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या दाहिनी जानिब से इकामत कहना जरूरी है।.. ❓*
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•••➲ आज कल यह जरूरी ख़्याल किया जाता है। कि इकामत या तकबीर जो जमाअत क़ाइम करने से पहले मुअज्जिन लोग पढ़ते है उस मे पढ़ने वाला इमाम के पीछे या दाहिनी ओर हो और बायें जानिब खड़े होकर तकबीर पढ़ने को ममनूअ ख़्याल करते है। हालाकि तकबीर बायी तरफ से पढ़ना भी मना नही है।
•••➲ *सय्यिदी आला हजरत फरमाते है।*"और इकामत की निसबत भी तअय्युने जेहत कि दाहिनी तरफ हो या बाई तरफ़ फ़कीर की नजर से न गुजरी-------- हाँ इस कदर कह सकते हैं। कि मुहाजात इमाम फिर जानिबे रास्त मुनासिब तर है।..✍
📗 *फतावा रजविया जिल्द 2 सफह 465*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 31 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 94
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या दाहिनी जानिब से इकामत कहना जरूरी है।.. ❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (93) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ खुलासा यह कि इमाम के पीछे या दाहिनी तरफ़ से पढ़ना ज्यादा बहतर है। लेकिन बाई तरफ़ से पढ़ना भी जाइज़ है। और इससे नमाज मे कोई कमी नही आती और दाहिनी तरफ़ को जरूरी ख़्याल करना गलतफहमी है।
📍 *नोट :- आप हजरात के पास अभी तक जितनी भी पोस्ट पेश कि गई है। सब पोस्टो मे तकरीबन नमाज* से जुड़ी हुई है। आप तमामी हजरात से मेरी मोअदबाना गुजारिस है। नमाज किसी भी हाल मे माफ नही है। नमाज पढ़ो नमाज पढ़ो इससे पहले हमारी नमाज़ पढ़ी जाए अल्लाह हम सबको कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक अता फरमाए।..✍
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 31 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 95
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 नमाजी के सामने से गुजरना मना है हटना गुनाह नहीं ❓*
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•••➲ आमतौर से मस्जिदों में देखा गया है। कि दो शख्स आगे पीछे नमाज पढ़ते हैं यानी एक पिछली सफ मे और दूसरा उसके सामने अगली सफ में नमाज़ पढ़ने वाला पीछे वाले से पहले फारिग हो जाता है। और फिर उसकी नमाज़ ख़त्म होने का इन्तजार करता रहता है। कि वह सलाम फेरे तब यह वहाँ से हटे और इससे पहले हटने को नमाजी के सामने से गुजरना ख़्याल किया जाता है। हालांकि ऐसा नही है।आगे नमाज़ पढ़ने वाला अपनी नमाज़ पढ़ कर हट जाए तो उस पर गुजरने का गुनाह नही है।
•••➲ *खुलासा यह कि नमाजी के सामने से गुजरना मना है। हटना मना नही है। सदरूश्शरीआं हजरत मौलाना अमजद अली साहब आज़मी अलैहिर्रहमह फरमाते है।*
•••➲ अगर दो शख्स नमाजी के सामने से गुजरना गुजरना चाहते हों और सुतरह को कोई चीज़ नही तो उन मे से एक नमाजी के सामने उसकी तरफ़ पीठ करके खड़ा हो जाए और दूसरा उसकी आड़ पकड़ के गुजर जाए। फिर वह दूसरा उसकी पीठ के पीछे नमाजी की तरफ पुश्त करके खड़ा हो जाए और गुजर जाए वह दूसरा जिधर से आया उसी तरफ हट जाए।...✍
📗 *आलमगीरी, रद्दुलमुहतार, बहारे शरीअत, हिस्सा सोम सफह 159*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 32 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 96
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 नमाजी के सामने से गुजरना मना है हटना गुनाह नहीं ❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (95) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *इससे जाहिर है। कि गुजरने और हटने मे फर्क है। और गुजरने का मतलब यह है। कि नमाजी के सामने एक तरफ से आए और दूसरी तरफ़ निकल जाए यह यकीनन नाजाइज व गुनाह है। और आखर नमाज़ी के सामने बैठा है। और किसी तरफ़ हट जाए तो यह गुजरना नही है। और इससे कोई गुनाह नही।*
•••➲ अगर नमाजी के सामने से गुजरने का गुनाह इन्सान को पता चल जाए तो उसकी रूह काप जाए अक्सर जुमआ कि नमाज के लिए मस्जिदों मे देखा जाते है। लोग आते है। और पीछे की शफ मे बैठ जाते है। जिनकी बजह से आगे बाली सफे खाली रहती है। फिर बाद मे आने बाले लोग उन्हें नाक कर आगे की तरफ जाते है। यह भी गुनाह है। बल्कि मस्जिद मे जो शख्स सबसे पहले आता है। अल्लाह के फरिश्ते उसकी सबसे पहले आने की बात को लिख लिया करते है। और उसका सबाब उसे अता किया जाता है। जो दूसरे तीसरे चौथे बारी-बारी आते जाते है। अल्लाह के फरिश्ते लिखते जाते है। फलाह शख्स इतने नम्बर पर फला शख्स इतने नम्बर पर इसका सबाब अल्लाह उन्हें अता करता है। जो शख्स सबसे पहली सफ मे आकर बैठता है। अल्लाह उसे एक ऊँट करबानी करने ह का सबाब अता करता है। और जो दूसरी सफ मे बैठ ता है। उसे एक भैंस का सबाब और जो तीसरी शफ मे बैठता है। उसे एक बकरे का सबाब इसी तरह बारी बारी सबाब कमता जाता है। जेसे ही खुतवा यानी दूसरी अजान का टाइम हो जाता है। बेसे ही फरिश्ते लिखना बन्द कर देते है। और ब अदब खुतबा सुनते है। क्यूँ कि खुतवा सुनना वाजिब है। आपने देखा खुतवा को फरिश्ते भी अदब के साथ बैठ कर सुनते है। लेकिन हम लोग खुतवे के दौरान बातो मे मसगूल रहते है। जो शख्स खुतवा नही सुनता है। वह अल्लाह की रहमत से महरूम रहता है। और गुनहगार होता है।..✍
*अल्लाह रब्बुल इज्जत अपने हबीब सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम के सदके कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक अता फरमाए*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 97
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 नमाज मे इमाम के लिए लाउडस्पीकर का इस्तमाल ❓*
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•••➲ नमाज़े बाजमाअत मे इमाम के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल का रिवाज आम होता जा रहा है। और लोगो ने नमाज़े बाजमाअत मे इमाम लिए जबाब के पहलू भी तैयार कर लिये और बहस व मुबाहिसे के जरिए अपने आराम का रास्ता ढूंढ लिया। और यह भी न सोचा कि नमाज़ का इस्लाम मे क्या मकाम है। बेशक नमाज़ इस्लाम की पहचान है। बेशक नमाज़ जाने इस्लाम रूहे इस्लाम अलामते अहले इमान है। बेशक नमाज़ पैगम्बरे। इस्लाम की आँखो की ठन्डक है और उनके मुबारक दिल का आराम है। तो कम से कम इस अहम इस्लामी फरीजे और ऐसी इबादत को जिसमे बन्दा हर हाल से ज्यादा अपने रब से करीब होता है। साइन्सी ईजादात और जदीद टेक्नालॉजी के हवाले न करके उस अन्दाज़ पर रहने दीजिये जैसा कि जमानए पाके रसूले गिरामी वकार अलैहिस्सलातु वस्सलाम मे होती थी मगर अफसोस सद अफसोस नमाज़ मे लोगो ने लाउडस्पीकर का इस्तमाल करके जमानए नबवी की यादो को भुला दिया। लम्बी लम्बी कतारों मे मुकब्बिरो की गूंजती हुई अल्लाहु अकबर की सदाओ को ख्वाबे देरीना बना दिया।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 33 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 98
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 नमाज मे इमाम के लिए लाउडस्पीकर का इस्तमाल ❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (97) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ जदीद तहकीकात सै भी यह बात खूब जाहिर हो चुकी है। लाउडस्पीकर से निकलने वाली आवाज़ इमाम की अस्ल आवाज़ नही होती। तो जाहिर है। कि जो लोग उस ख़ारिजी आवाज़ पर इक्तिदा करते हैं। उन सब की नमाज़ ख़राब हो जाती है। कभी कभी दरमियान मे लाउडस्पीकर बन्द हो जाता है। और उसी पर भरोसा करके उसके आशिकों ने मुकब्बिरो का इन्तजाम भी किया होता है। तो नमाज के साथ खिलवाड़ हो कर रह जाता है। मगर माइक्रोफोन के दीवानों को इस सबसे क्या मतलब उनके नजदीक ज्यादा लोगो को नमाज़ पढ़ाने के लिए सेवाएं लाउडस्पीकर के और कोई ज़रिया ही नही रह गया है।
•••➲ सही बात यह है कि जिन उलमा ने नमाज़ मे लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को नाजाइज करार दिया उन्होने नमाज़ की शान को बाक़ी रखा उसके मकाम को समझा और जिन्होंने छूट दे दी उन्होंने नमाज़ की अहमियत को ही नही समझा और वह मौलवी होकर भी नमाज़ की लज्जत से नाआशना और उसकी बरकतो हिकमतो से महरूम रहे।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 34 📚*
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मगरिब और इशा की नमाज़ कब तक पढ़ी जा सकती है?❓*
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•••➲ काफी लोग थोड़ा सा अंधेरा होते ही यह ख़्याल करते हैं की मग़रिब की नमाज का वक़्त निकल गया अब नमाज कज़ा हो गई और बे बजह नमाज़ छोड़ देते है। या कज़ा की नियत से पढ़ते है मग़रिब की नमाज़ का वक़्त सूरज डूबने के बाद से लेकर शफ़क़ तक है और शफ़क़़ उस सफेदी का नाम है जो पश्चिम की तरफ़ सुर्खी डूबने के बाद उत्तर दक्खिन सुब्हे सादिक की तरह फैलती है।
•••➲ हाँ मग़रिब की नमाज़ जल्दी पढ़ना मुस्तहब है और बिला उज्र दो रकअतो की मिकदार देर लगाना मकरूहे तनजीही यानी खिलाफे औला है। और बिला उज्र इतनी देर लगाना जिस में कसरत से सितारे जाहिर हो जायें मकरूहे तहरीमी और गुनाह है।...✍
📗 *अहकामे शरीअत सफह 137*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 34 📚*
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मगरिब और इशा की नमाज़ कब तक पढ़ी जा सकती है?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट (99) में जरुर पढ़ें।*
•••➲ हाँ अगर न पढ़ी हो तो पढ़े और जब तक इशा का वक़्त शुरू नही हुआ है। अदा ही होगी कज़ा नही और यह वक़्त सूरज डूबने के बाद कम से कम एक घंटा अट्ठारह मिनट और ज्यादा से ज्यादा एक घंटा पैतीश मिनिट है। जो मौसम के लिहाज से घटता बढ़ता रहता है। यानी एक घंटे के ऊपर 18 से 35 मिनट के दरमियान घूमता रहता है। इशा कि नमाज़ के बारे भे भी कुछ लोग समझते हैं कि उसका वक़्त 12 बजे तक रहता है। यह भी गलत है। इशा की नमाज का वक़्त फज्रे सादिक तुलूअ होने यानी सहरी का वक़्त खत्म होने तक रहता है। हाँ बिला बजह तिहाई रात से ज़्यादा देर करना मकरूह है।
•••➲ खुलासा यही है। नमाज किसी भी सूरत मे माफ नही है। नमाज पढ़ो नमाज़ कायम करो इससे पहले हमारी तुम्हारी नमाज़ पढ़ी जाए अल्लाह हम सबको कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक अता फरमाए।...✍
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 35 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 101
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मस्जिद मे भीख मांगना ?❓*
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•••➲ आज कल मस्जिदों में सबाल करने और भीख मांगने का रिवाज बहुत बढ़ता जा रहा है। अमूमन देखा जाता है कि इधर इमाम साहब ने सलाम फेरा उधर किसी न किसी ने और बाज़ औकात कई-कई लोगों ने अपनी अपनी आपबीती सुनाना और मदद करो भाईयो कि पुकार लगाना चालू कर दिया हालांकि यह निहायत गलत तरीका है। ऐसे लोगो को इस हरकत से बाज़ रखा जाए और मस्जिदों मे भीख मांगने को सख्ती से रोका जाए।
•••➲ *सदरूश्शरीआं हजरत मौलाना अमजद अली साहब अलैहिर्रहमह फरमाते है।*
•••➲ "मस्जिद मे सबाल करना हराम है। और उस साइल को देना भी मना है।
📗 *बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफह 184*
•••➲ इसका तरीका यह होना चाहिए कि ऐसे लोग या तो बाहर दरवाज़े पर सबाल करे या इमामे मस्जिद वगैरह किसी से कह दे कि वह उनकी जरूरत से लोगो को आगाह कर दें।..✍️
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 35 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 102
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मस्जिद मे भीख मांगना ?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 101 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ यह हकीकत है। जो हर मस्जिदों मे आम तौर पर देखने को मिलती है। और मस्जिद के जिम्मेदार लोग इनको मना भी नबी करते है। मदद करो मदद करना अच्छा और नेक काम है। पर अल्लाह के घर मे अल्लाह से मांगो जो मालिके कुन है। कोई इन्सान या आम आमदी किसी की चाहते हुए भी परेशानी को दूर नही कर सकता इसका इख्तियार केवल अल्लाह रब्बुल इज्जत के हाथ मे तो क्यूँ न हम अपनी परेशानी अल्लाह से रोकर करे क्यूँ न हम अल्लाह के प्यारे महबूब सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम के सदके मे मागे जिनके सदके मे अल्लाह ने हमे पैदा किया है। जिनके सदके मे दुनिया को बनाया है। अरे नदान इन्सान अल्लाह रब्बुल इज्जत अपने बन्दो से सत्तर माँऔ के बराबर प्यार करता है। उसकी रहमत से कभी महरूम नही रहता कोई बस शुक्र करना सीख जाऔ इसका अज्र मिलना भी पता हो जाएगा।...✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 35 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 103
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 पंज वक़्ता नमाज मे सुस्ती और वजीफे पढ़ना ?❓*
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•••➲ काफी लोग देखे गए वह नमाजो का ख्याल नहीं रखते और पढ़ते भी है। तो वक़्त निकाल कर जल्दी जल्दी या बे जमाअत के। और वजीफा और तस्बीहो मे लगे रहते है। उनके वजीफे उनके मुँह पर मार दिये जाएगे क्यूंकि जिसकी फर्ज पूरी न हो उसका कोई नफ्ल कबूल नही। इस्लाम मे सबसे बड़ा वजीफा और अमल नमाज़े बाजमाअत की अदाएगी है।
•••➲ *आला हजरत फरमाते है।* "जब तक फर्ज जिम्मे बाक़ी रहता है। कोई नफ्ल कबूल नही किया जाता।...✍️
📕 *अलमलफूज, हिस्सा अव्वल, सफह 77*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 36 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 104
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 पंज वक़्ता नमाज मे सुस्ती और वजीफे पढ़ना ?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 103 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ हदीश शरीफ मे है। कि *हजरते उमर रदीअल्लाहो ताला अनहु* एक दिन फज्र की जमाअत मे *हजरते सुलेमान बिन अबी हसमा रदीअल्लाहो ताला अनहु* को नही पाया दिन मे बाज़ार जाते वक़्त उनके घर के पास से गुजरे तो उनकी माँ से पूँछा कि आज *सुलेमान* जमाअत मे क्यूँ नही थे। उनकी वालिदा हजरते शिफा ने अर्ज किया कि रात भर जाग कर इबादत करते रहे फज्र की जमाअत के वक़्त नींद आ गई और जमाअत मे शरीक होने से रह गए। *अमीरूल मोमनीन हजरत उमर फ़ारूखे आजम रदीअल्लाहो ताला अनहु* ने फरमाया कि मेरे नजदीक सारी रात जाग कर इबादत करने से फज्र की जमाअत मे शरीक होना ज्यादा अच्छा है।..✍️
📗 *मिश्कात बाबुल जमाअत सफहा 97*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 36 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 105
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 पंज वक़्ता नमाज मे सुस्ती और वजीफे पढ़ना ?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 104 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *खुलासा :-* यही है। आज कल कुछ लोग फ़र्ज से ज़्यादा नफ़्ल को अहिमयत देते है। और वजीफात कलमात मे ज़्यादा रूज़ू देते है। उन अपने इस्लामी भाईयो से कहना चाहूँगा पहले अपने फ़र्ज के अरकान को पूरा करे फिल नफ़्ल नमाज़ो और कलिमात और वजीफात पढ़ा करे लेकिन बहतर यही है। नफ़्ल नमाज़ अपने घर मे पढ़ी जाए तो अफजल है। मस्जिद मे नफ़्ल ईबादत न ही करे तो बहतर है। हा अगर एतिकाफ़ पर है। तो मस्जिद मे ही करे। लेकिन फ़र्ज नमाज़ो से ज़्यादा नफ़्ल नमाज़ो को अहिमयत देना उनकी सबसे बड़ी ग़लतफ़हमी है। क्यूँ कि जब तक फ़र्ज नमाज़ आपकी मुकम्मल न होंगी तब तक नफ़्ल नमाजे आपकी कोई काम न आएगी।...✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 36 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 106
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 ज़ुमुआ के खुतबे मे उर्दू अशआर पढ़ना ?❓*
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•••➲ ज़ुमुआ का खुतबा सिर्फ अरबी ज़बान मे पढ़ना सुन्नत है। किसी और ज़बान मे खिलाफे सुन्नत। उर्दू अशआर अगर पढ़ना हो तो वह अजाने खुतबा से पहले पढ़ लिये जायें। दूसरी अज़ान के बाद जो खुतबा पढ़ा जाता है। यह अरबी के अलावा और किसी जबान मे पढ़ना सुन्नत के खिलाफ है।
📗 *फ़तावा रजविया जिल्द 3 सफहा 751*
•••➲ आप सभी हजरात बखूबी जानते है। खुतवा को सुनना बाजिब है। जो खुतवे के दौरान बातो मे मसगूल रहता है। अल्लाह तआला की बारगाह मे ऐसे शख्स की शख्त पकड़ होगी बाज़ धो तो यहा तक देखे जाते है। अगर खुत्बे की अज़ान हो जाती है। और इमाम खुतबा पढ़ना सुरू कर देता है। इसके बाद भी लोग सुन्नतो को पढ़ने मे मसगूल रहते है। जो मना फरमाया है। खुतबे का अदब करना खुतबे को ब गौर सुनना दो जानू बैठना यह खुतबा सुनने के आदाब है। जिससे हम जेसे कम इल्म बाले लोग महरूम रह जाते है। और गुनाह मे मुबतला हो जाते है।...✍️
*अल्लाह तआला से दुआ है। हमे सही मायनो में शरीअत का पाबंद बनाए आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 37 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 107
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 इमाम का मेहराब में या दो सुतूनों के दरमियांन खड़ा होना?❓*
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•••➲ कहीं कहीं देखने मे आता है। कि इमाम मेहराब मे अन्दर है। और मुक़तदी बाहर यह खिलाफे सुन्नत और मकरूह है।
•••➲ *सदरूश्शरीआं हजरत मौलाना अमजद अली साहब अलैहिर्रहमह* फरमाते है।
•••➲ इमाम को तन्हा मेहराब मे खड़ा होना मकरूह है। और अगर बाहर खड़ा हो सिर्फ सज्दा मेहराब मे किया या वह तन्हा न हो बल्कि उसके साथ कुछ मुक़तदी भी मेहराब मे साथ हों तो कुछ हर्ज नही, यूँ ही अगर मुक़तदीयो पर मस्जिद तंग हो तो भी मेहराब मे खड़ा होना भी मकरूह है।
📗 *बहारे शरीअत हिस्सा सोम सफ़ा 174 बहवाला दुर्रे मुख़्तार व आलमगीरी*
•••➲ इसका तरीका यह है। कि इमाम का मुसल्ला थोड़ा पीछे हटा दिया जाये और बह थोड़ा पीछे हट कर इस तरह खड़ा हो कि देखने मे महसूस हो कि वह मेहराब या दरो में अन्दर नही है। बल्कि बाहर खड़ा है। फिर चाहे सज्दा अन्दर हो, नमाज़ दुरूस्त हो जायेगी।...✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 37 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 108
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 नसबन्दी कराने वाले की इमामत का हुक्म ?❓*
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•••➲ नसबन्दी कराना इस्लाम मे हराम है। लेकिन कुछ लोग ख़्याल करते है। कि जिसने नसबन्दी करा ली अब वह जिन्दगी भर नमाज़ नही पढ़ा सकता। हालांकि ऐसा नही है। बल्कि इस्लाम मे जिस तरह और गुनाहों की तौबा है। उसी तरह इस गुनाह की भी तौबा है।
•••➲ यानी जिस की नसबन्दी हो चुकी है अगर वह सच्चे दिल से एलानिया तौबा करे और हराम कारियों से रूके तो उसके पीछे नमाज़ पढ़ी जा सकती है।
📕 *फतावा फैजुर्रसूल जिल्द 1 सफहा 277*
•••➲ खुलासा यही है। चाहे मस्जिद के इमाम हो या हमारे इस्लामी भाई इस्लाम मे नसबन्दी को हराम कहा तो हराम है।...✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 38 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 109
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 नसबन्दी कराने वाले की इमामत का हुक्म ?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 108 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ एक वक़्त हम मुसलमानो पर ऐसा आया जब सरकार ने नसबन्दी करने का ओर्डर दे दिया मर्दो की नसबन्दी का ऐलान शियासते हाजरा ने कर दिया जिसमे उस टाइम के हमारे बड़े बड़े उल्माऔ की कलम रूक गई लेकिन कुर्बान जाऔ हमारे *मुफ्ती ए आजम हिन्द सैय्यदी सरकार मुस्तफा रजा खान अलहिर्रहमा* जिन कलम उढी तो अच्छे अच्छो की कलमे छूटती नजर आई और एलान कर दिया अए शियासते हाजरा नसबन्दी इस्लाम मे हराम हराम है। जिसको तु तो क्या त कयामत तक कोई नही बदल सकता यह बरेली है बरेली यहा सरकारे तो बदल दी जाती है। पर शरीअत का कानून नही बदलता आप हजरात ने सुना भी होगा और जो उस टाइम मे हयात थे उन्होने देखा भी होगा यह सान थी हमारे *मुफ्ती ए आजम हिन्द* की।...✍️
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 110
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या जिससे जाती रन्जिश हो उसके पीछे नमाज़ नही होंगी ?❓*
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•••➲ अकसर ऐसा होता है। कि इमाम और मुक़तदी के दरमियां कोई दुनियावी इख्तिलाफ हो जाता है। जैसे आज कल के सियासी समाजी खानदानों और बिरादरियों के इख्तिलाफात और झगड़े तो इन वुजूहात पर लोग उस इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ना छोड़ देते है। कि जिससे दिल मिला हुआ न हो उसके पीछे नमाज़ नही होगी यह उनकी ग़लतफहमी है। और वो लोग धोके मे है।
•••➲ सही बात यह है। कि जो इमाम शरई तौर पर सही हो उसके पीछे नमाज़ दुरूस्त है। चाहे उससे आपका दुनियाबी झगड़ा ही क्यूँ न चलता हो बातचीत दुआ सलाम सब हो फिर भी आप उसके पीछे नमाज़ पढ़ सकते है। नमाज़ की दुरूस्तगी के लिए जरूरी नही है। कि दुनियाबी एतवार से मुक़तदी का दिल इमाम से मिला हुआ हो हां तीन दिन से ज़्यादा एक मुसलमान के लिए दूसरे मुसलमान से बुराई रखना और मेलजोल न करना शरीअत मे सख़्त नापसन्दीदा है।...✍️
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 38 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 111
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 क्या जिससे जाती रन्जिश हो उसके पीछे नमाज़ नही होंगी ?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 110 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ हदीस मे है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने फरमाया :
•••➲ मुसलमान के लिए हलाल नही कि अपने भाई को तीन दिन से ज़्यादा छोड़ रखे। जब उससे मुलाक़ात हो तो तीन मरतबा सलाम करले अगर उसने जबाब नही दिया तो इसका गुनाह भी उसके जिम्मे है।
📕 *अबू दाऊद किताबुल अदब जिल्द 2 सफ़ा 673*
•••➲ लेकिन इसका नमाज़ व इमामत से कोई तअल्लुक नही रन्जिश और बुराई मे भी इमाम के पीछे नमाज़ हो जायेगी और जो लोग जायी रन्जिशों के बिना पर अपने नफ्स और जात की खातिर इमामो के पीछे नमाज़ पढ़ना छोड़ देते हैं ये खुदा के घरो को वीरान करने वाले और दीने इसालाम को नुकसान पहुंचाने वाले है। इन्हें खुदाए तआला से डरना चाहिए। मरने के बाद की फिक्र करना चाहिए। कब्र की एक एक घड़ी और कियामत का एक एक लम्हाबड़ा भारी पड़ेगा।
•••➲ *आला हजरत इमामे अहले सुन्नत रदीअल्लाहो ताला अनहु फरमाते है।*
•••➲ जो लोग बराहे नफ्सानियत इमाम के पीछे नमाज़ न पढ़े और जमाअत होती रहे और शामिल न हों वो सख़्त गुनहगार है।...✍️
📗 *फ़तावा रजविया जिल्द 3 सफ़ा 221*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 39 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 112
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मुक़तदी के सर पर इमामा और इमाम के सर पर न हो ?❓*
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•••➲ अगर मुक़तदी सर पर इमामा जिसे साफ़ा और पगड़ी भी कहते हैं। बाँध कर नमाज़ पढें और इमाम के सर पर पगड़ी न हो तो इसको कुछ लोग बहुत बुरा जानते हैं। बल्कि कुछ यह समझते है कि इस सूरत मे मुक़तदी की नमाज दुरूस्त नही हुई यह ग़लत बात है।
•••➲ अगर इमाम के सर पर पगड़ी न हो और मुक़तदी के सर पर हो तो मुक़तदी की नमाज़ दुरूस्त और सही हो जायेगी *आला हजरत इमाम अहमद रजा खांन रदीअल्लाहो ताला अनहु* से यह मसअला मालूम किया गया तो आपने फरमाया बिला तकल्लुफ दुरूस्त है।...✍️
📗 *फ़तावा रज़विया जिल्द 3 सफ़ा 273 इरफ़ाने शरीअत सफ़ह 4*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 40 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 113
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 इमाम के लिए मुक़र्रिर होना कितना जरूरी है ?❓*
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•••➲ आज कल काफ़ी जगह अवाम मस्जिद मे किसी को इमामत के लिए रखते है। तो उस से तकरीर कराते हें अगर वह धूम धड़ाके से ख़ूब कूद फांद कर हाथ पांव फेंक कर जोशीले अन्दाज़ मे जज़्बाती तकरीर कर दे तो बड़े खुश होते है। और उसको इमामत के लिए पसन्द करते हैं।यहां तक कि बाज़ जगह तो खुश इलहानी और अच्छी आवाज़ से नाते और नज्में पढ़ दे तो उसको बहुत बढ़िया इमाम ख़्याल करते है। इस बात की तरफ़ तवज्जोंह नसी देते कि उसका कुर्आन शरीफ गलत या सही । उसको मसाइल दीनिया से बकद्रे जरूरत वाक़फियत है या नही। और उसका किरदार व अमल मनसबे इमामत के लिए मुनासिब है या नही।...✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 40 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 114
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 इमाम के लिए मुक़र्रिर होना कितना जरूरी है ?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 113 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ अगरचे तकरीर व बयान व ख़िताबत अगर उसूल व शराइत के साथ हो तो उससे दीन को तक़वियतहासिल होती है। और हुई है। लेकिन इसमे भी कोई शक नही कि दीनदारी तक़वा शिआरी और खौफे खुदा अमूमन कम सुखन और सन्जीदा मिजाज लोगो मे ज़्यादा मिलता है। ज़बान जोर और मुँह के मज़बूत लोग सब काम मुँह और ज़बान से ही चलाना चाहते है। और इस्लाम गुफ्तार से ज़्यादा किरदार से फैला है। और आजकल के ज़्यादातर मौलवियो और इमामो के लिए बजाए तकरीर व खितावत के जिम्मेदार उलमाए अहलेसुन्नत की आम फहम अन्दाज़ मे लिखीं हुई किताबें पढ़ कर अवाम को सुनाना ज़्यादा मुनासिब और बेहतर है। खुलासा यह कि आज कल बाज़ जगह लोग जो इमाम के लिए मुक़र्रिर होना जरूरी ख़्याल करते है यह लोग गलती पर है।..✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 41 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 115
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह❞
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*📝 इमाम का मुक़तदियो से ऊंची जगह खड़ा होना ?❓*
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•••➲ कई जगह देखा गया है। कि नमाज़ मे इमाम मुक़तदियो से ऊंची जगह खड़ा होता है। मसलन मस्जिद मे अन्दर की कुर्सी ऊँची है। और बाहर के हिस्से कि नीची है। और इमाम का मुसल्ला अन्दर के फर्श पर है। मुक़तदी बाहर या दोनो अन्दर है। लेकिन इमाम के मुसल्ले के लिए फर्श ऊँचा कर दिया गया है। तो यह मकरूह है। और इस तरह नमाज़ पढ़ने मे नमाज़ मे कमी आती है।
•••➲ मसअला यह है कि इमाम का अकेले बुलन्द और ऊँची जगह खड़ा होना मकरूह है। और ऊँचाई का मतलब यह है। कि देखने से अन्दाज़ा हो जाये कि इमाम ऊँचा है। और मुक़तदी नीचे और यह फर्क मामूली हो तो मकरूहे तनजीही और अगर ज़्यादा हो तो तहरीमी है।...✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 41 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 116
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 इमाम का मुक़तदियो से ऊंची जगह खड़ा होना ?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 115 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ हाँ अगर पहली सफ़ इमाम के साथ और बराबर मे हो बाक़ी सफ़े नीची हो तो कुछ हर्ज नही यह जाईज है। इस मसअले की तफसील जानने के लिए फ़तावा रज़विया जिल्द 3 सफ़ा 415 देखना चाहिए। इस मसअले का ख़ास ध्यान रखना चाहिए क्यूंकि खुद हदीस शरीफ मे भी इससे मुताल्लिक मरवी है।
•••➲ हदीस :- *हजरते हुजैफा रदियल्लाहु तआला अन्हु* से मरवी है कि *रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* ने फरमाया कि जब इमाम नमाज़ पढ़ाये तो मुक़तदियो से ऊँची जगह खड़ा न हो।..✍️
📘 *अबू दाऊद जिल्द 1 सफ़ह 88*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 42 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 117
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 नमाज़ में नफ़्लो को फ़र्ज़ व वाजिब समझना ?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ नमाज़े ज़ुहर नमाज़े मगरिब और नमाज़े इशा के आखिर मे और इशा में वित्रों से पहले दो रकअत नफ्ल पढने का रिवाज़ है और उनको पढने में हिकमत व सवाब है । लिहाजा पढ लेना ही मुनासिब है लेकिन इन नफ्लो को फर्ज व वाजिब व जरूरी ख्याल करना न पढने वालों को टोकना और उन पर मलामत करना और बुरा भला कहना गलत है, इस्लाम में ज्यादती और शरई हदों से आगे बढना है । इस्लाम में नफ़्ल व मुस्तहब उसे कहते हैं जिस के करने पर सवाब हो और न करने पर कोई गुनाह व अज़ाब न हो तो आपको भी इस पर मलामत करने और बुरा भला कहने का कोई हक़ नहीं और जब खुदाए तआला नफ़्ल छोड़ने पर नाराज़ नहीं तो आप टोकने वाले कौन हुए ?..✍️
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 42 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 118
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 नमाज़ में नफ़्लो को फ़र्ज़ व वाजिब समझना ?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 117 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ इस्लाम मे अल्लाह तआला ने अपने बन्दो को जो रिआयते और आसानियां दी है लोगों तक पहुँचाना जरूरी है। अगर आप ऐसा नहीं कर रहे हैं। तो आप इस्लाम को बजाए नफा के नुकसान पहुंचा रहे हैं और लोग यह खयाल कर बैठेंगे कि हम इस्लाम पर ही चल ही नहीं सकते क्योंकि वह एक मुश्किल मज़हब है लिहाज़ा उसकी इशाअत में कमी आएगी । आज कितने ऐसे लोग हैं जो सिर्फ इसलिए नमाज़ नहीं पढ़ते कि वह समझते हैं हम नमाज़ पढ़ ही नहीं सकते और मसाइल नमाज़ व तहारत पाकी व नापाकी से पूरी तरह वाकफियत न होने और खुदा व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की अता फरमाई हुई बाज़ रिआयतों और आसानियों पर आगाह न होने की बिना पर वह नमाज़ छोड़ना गवारा कर लेते हैं और इन रिआयतों से नफा नहीं उठाते हालांकि एक वक़्त की नमाज़ भी क़सदन छोड़ देना इस्लाम में कुफ्र व शिर्क के बाद सब से बड़ा गुनाह है।...✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 42 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 119
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 नमाज़ में नफ़्लो को फ़र्ज़ व वाजिब समझना ?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 118 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ उलमा व मस्जिदों के इमामो से मेरी गुज़ारिश है कि वह अवाम का ख़ौफ़ न करके उन्हें इस्लामी अहकाम पर अमल करने में मौका ब मौका छूट दी गई तो जो आसानियां है उन्हें ज़रूर बताये ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इस्लाम और इस्लामियत को अपनायें। उन्हें नफ़्लो के बारे में देखा गया है कि अगर कोई शख्स उन्हें न पढ़े तो कुछ अनपढ़ उस पर इल्ज़ाम लगाते हुए यह तक कह देते हैं कि नमाज़ पढ़े तो पूरी इस से न पढ़ना अच्छा । यह एक बडी जहालत की बात है जो वह कहते हैं हालांकि सही बात यह है कि नफ़्ल तो नफ़्ल अगर कोई शख्स सुन्नते भी छोड़ दे सिर्फ फ़र्ज़ पढ़ ले तो वह नमाज़ को जान बुझ कर बिल्कुल छोड़ देने वालों से बहुत बेहतर है और उसे बे नमाज़ी नहीं कहा जा सकता। हाँ सुन्नतें छोड़ने की वजह से गुनाहगार ज़रूर है क्योंकि सुन्नतों को छोड़ने की इजाज़त नहीं और उन्हें जानबूझकर छोड़ने की आदत डालना गुनाह है।..✍️
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 43 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 120
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 नमाज़ में नफ़्लो को फ़र्ज़ व वाजिब समझना ?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 119 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ हाँ अगर उलझन व परेशानी और जल्दी में कोई मौका है कि आप सुन्नतों के साथ मुकम्मल नमाज़ नहीं पढ़ सकते तो सिर्फ फ़र्ज़ और वित्र पढ लेने में कोई हरज व गुनाह नही है मसलन वक़्त तंग है पूरी नमाज नही पढी जा सकती तो सिर्फ फ़र्ज़ पढ़ लेना काफी है l खुलासा यह कि जुहर व मगरिब व इशा में जो नफ़्ल अदा किये जाते हैं उन्हे अदा करना बहुत अच्छा हैं मुनासिब व बेहतर है और पढना चाहिए लेकिन उन्हें फ़र्ज़ व वाजिब व जरूरी समझना और न अदा करने वालो को टोकना उन्हें छोडने पर भला बुरा कहना गलत है जिसकी इस्लाह जरूरी है।...✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 44 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 121
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 नमाज़ में नफ़्लो को फ़र्ज़ व वाजिब समझना ?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 120 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *नोट :-* अगर कोई भी नफ़्ल न पढे नमाज़ हो जाएगी लेकिन हमारी राय यह है कि वैसे भी हम लोग दिन भर में कितने गुनाह करते हैं और अगर नफ़्ल पढ़ ले तो हमारी नेकिया बढ़ेगी कम न होगी हमकों पूरी नमाज़ ही पढ़ना चाहिए फ़र्ज़ ,वाजिब सुन्नत व नफ़्ल। और रमज़ान जैसे मुबारक महीने में नफ़्ल का सवाब फ़र्ज़ के बराबर होता है। इसलिए पूरी ही नमाज़ पढ़े और ज़्यादा जानने के लिए अपने इलाके के सुन्नी सही उल अक़ीदा आलिम से राब्ता करियेगा।...✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 44 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 122
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 बगैर रूमाली के पाजामे या जांघिये को पहन कर नमाज़ पढ़ना?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ यह भी कुछ लोगो मे एक आम ख़्याल है। जिसकी कोई हकीक़त नही। पाजामे या जांघिये मे रूमाली होना नमाज़ की दुरूस्तगी के लिए बिल्कुल ज़रूरी नही है। बगैर रूमाली के पाजामे और जांघिये से नमाज़ बिला कराहत जाएज़ है। हां जो लिबास और कपड़े गैर मुस्लिमों के लिए मखसूस है। उनको पहनना गुनाह है। और उनमें नमाज़ मकरूह है। अंग्रेजी पैन्ट और शर्ट मे इस ज़माने मे उलमाए किराम ने नमाज़ मकरूहे तनजीही होने का फतवा दिया है। जैसे की बरेली शरीफ से छपी हुई फ़तावा मरकजी दारूल इफ्ता सफ़ा 207 पर इसकी तफसील मौजूद है। यह इसलिए नही कि पैन्ट मे रूमाली नही होती बल्कि इसलिए है। कि अंग्रेजों का ख़ास कौमी लिबास रह चुका है। और अब भी दीनदार मुसलमान इस लिबास को अच्छा नही समझते।
•••➲ लिहाजा अब भी अंग्रेजी पैन्ट और शर्ट में नमाज़ अदा करना मुनासिब और बहतर नही और इस लिबास से बचना ही बहतर है। लेकिन अगर पढ़ ली तो हो जाएगी।...✍
*🌹🤲🏻 अल्लाह रब्बुल इज्जत हम गुनहगारो को इस्लाम का सही मायनो मे जानने मानने बाला बना दे रिया कारी से बचने बाला बना दे गुनाहो से तोबा करने बाला बना दे अल्लाह की राह मे कामजन रहने बाला बना दे हर मुसीबत पे अल्लाह का शक्र करने बाला बना दें!..✍*
*🌹 आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल 🌹*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 44 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 123
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 नमाज़ मे लंगोट बांधने का मसअला?❓*
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•••➲ *कुछ लोग समझते है कि पाजामा या तहबन्द के अन्दर लंगोट बाँध कर नमाज़ नही होती है। हालाँकि यह उनकी ग़लतफहमी है। लंगोट बाँध कर नमाज़ पढ़ने मे कोई कमी नही आती। अलबत्ता यह ध्यान रखें कि वह इतना कसा हुआ टाइट न हो कि नमाज़ मे रूकूअ और सज्दे और बैठने मे दिक्कत हो।*
📗 *फ़तावा फ़ैजुर्रसूल जिल्द 1 सफ़ा 252 इरफ़ाने शरीअत सफ़ा 4*
•••➲ *आज आप हजरात को एक जरूरी नसीहत करना चाह रहा हू। अगर अच्छी लगे तो इस नाचीज को अपनी हर दुआओं मे साथ रखना और मेरे हक मे भी दुआ करना।*
•••➲ रमजान मुबारक का महीना आने बाला है। हमारी जिन्दगी से कई रमजान गुजर गए है। पर हमने कभी भी रमजान की सही अहिमयत नही जानी और अपने मन मुताबिक कामो को अन्जाम देते है। अल्लाह रब्बुल इज्जत ने यह महीना अपने *प्यारे महबूब सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* के सदके मे हम गुनहगार उम्मतीयो को अता किया है। और इस महीनो को *उम्मते रसूल सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* का कहा है। क़ुर्बान जाओ उस लब पर जिसने हमे इतना नएमत भरा महीना हम गुनहगारो को दिया है।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 45 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 124
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 नमाज़ मे लंगोट बांधने का मसअला?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 123 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ बस हमे उसका अदब व अहितराम करना है। आज कल कुछ विडियो और ओडियो चल रही है। जिसमे अफ्तार और शहरी का मजाक बनाया जा रहा ऐसा करने बालो सुनलो अल्लाह अज्जबल के सामने इसकी भी पकड़ होगी जो तूने अपने नफ्श़ की थोड़ी सी ख़ुशी के खातिर इस पाक महीना का मजाक बनाया है। अगर अदब नही कर सकते तो तो मजाक न बनाओ रमजान मुबारक मे अल्लाह ने हर नेक काम का बदला कई नेकियो मे बदल दिया है। रोजे दार को चाहिए अपने रोजे की हिफाज़त करे नेक काम मे मुब्बतला रहें। नमाज़ पड़े तिलाबते कुर्आन करे तसबीहात पढ़े कलिमात पढ़े रोजे की हालत मे अल्लाह के जिक्र मे मसगूल रहे। न ही रोज़े की हालत मे गन्दे कामो मे मसगूल रहो अपनी निगाहों कि हिफाजत करो रोज़े की हालत मे सब्र से काम लो अल्लाह की रजा मे राज़ी हो जाओ अपनें रोजे कि ख़ुद ही हिफाजत करनी होगी बरना तुम्हारा रोजा रोजा नही फांका है। ऐसे रोजे तुम्हारे मुँह पर मार दिए जाएगे। और बे रोज़ेदार को चाहिए रोज़दारो का अहितराम करे उनके सामने न ही कुछ खाए न ही पिए ऐसा करने बालो तुम्हारी भी अल्लाह अज्जबल की बारगाह में पकड़ होगी इसलिए रोजेदार का अदब करो।
•••➲ *दुआ है। रब्बुल आलमीन से हम सबको इस माहे मुबारक का अदब और सदका नसीब फरमाऐ और हर गुनाह से बचने की तोफीक अता फरमाए*...✍
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 45 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 125
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 पैन्ट और पाजामे की मोरी चढ़ा कर नमाज़ पढ़ना?❓*
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•••➲ *कुछ लोग टखनो से नीचा हुआ पाजामा और पैन्ट पहिनते है। अगर उन्होने इसकी आदत डाल रखी है।। और तकब्बुर व घमंड के तौर पर ऐसा करते है। तो यह नाजायज गुनाह है। और इस तरह नमाज़ मकरूह लेकिन अगर इत्तेफाक से हो या बेख़्याली और बेतबज्जोही से हो तो हर्ज नही और जो लोग इससे बचने के लिए और टखने खोलने के लिए मोरी पाजामे को चढ़ाते है। वह गुनाह को घटाते नही बल्कि बढ़ाते है। और नमाज़ मे खराबी को कम नही करते बल्कि ज़्यादा करते है। यह पैन्ट और पाजामे की मोरी पायेंचे को लपेट कर चढ़ाना नमाज़ मे मकरूहे तहरीमी है।*
•••➲ हदीस मे है *रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* ने फरमाया कि मुझे हुक्म दिया गया कि मे साँत हड्डियो पर सज्दा करूँ पेशानी दोनो हाथ दोनो घुटने दोनो पन्जे और यह हुक्म दिया गया नमाज़ मे कपड़े और बाल न समेटू।
📔 *बुखारी, मुस्लिम, मिश्कात सफ़ह 93*
•••➲ *इस हदीस की रोशनी मे कपड़ा समेटना चढ़ाना नमाज़ मे मना है। लिहाजा पैन्ट और पाजामे की मोरी लपेटने और चढ़ाने बालो को इस हदीस से इबरत हासिल करनी चाहिए।*...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 45 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 126
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 पैन्ट और पाजामे की मोरी चढ़ा कर नमाज़ पढ़ना?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 125 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ लेकिन इस्लाह करने वालो से भी गुजारिश है। कि नमाज़ मे इस किस्म की कोताहियाँ बरतने वालो को नरमी और मोहब्बत से समझायें मान जाए तो ठीक वरना उन्हे उनके हाल पर रहनें दे। यह और मुनासिब तरीके से इस्लाह करे। उनको डांटना झिड़कना और उनसे लड़ाई झगड़ा करना बहुत बुरा है। जिस का नतीजा यह भी हो सकता है। कि वह मस्जिद मे आना नमाज़ पड़ना ही छोड़ दे जिसका वबाल उन झिड़कने बालो पर है। क्यूंकि इसमे कोई सक नही कि बाज़ इस किस्म की खामियों के साथ नमाज़ पढ़ने बाले बेनमाजियो से हजारो दर्जा बेहतर है। और नमाज़ मे कोताहियाँ करने वालो को चाहिए अगर कोई उनकी इस्लाह करे तो बुरा मानने की बजाय उसकी बात पर अमल करे उस पर गुस्सा न करे क्यूंकि वह जो कुछ कह रहा है। आपकी भलाई के लिए कह रहा है। अगर वह तुर्शी और सख़्ती से भी कह रहा है। तो वह फेल है। आपका काम तो हक़ को सुनकर अमल करना है। झगड़ा करना नही।
•••➲ जो भी हो पर खुलासा यही है। नमाज़ किस भी हाल मे माफ नही है नमाज़ पढ़ना *नबी करीम सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* की आंखो की ठंडक है। *अल्लाह अज्जबल* के सबसे नजदीक नमाज़ है। जब बंदा सज्दे की हालत मे होता है। *अल्लाह अज्जबल* के सबसे ज़्यादा करीब होता है। नमाज़ पढ़ो इससे पहले हमारी नमाज़ पढ़ी जाए।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 46 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 127
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 कुर्आन पढ़ने मे सिर्फ होंट हिलाना और आवाज़ न निकालना ?❓*
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•••➲ *कुछ लोग़ कुर्आन की तिलावत और नमाज़ या नमाज़ के बाहर कुछ पढ़ते है। तो सिर्फ़ होंट हिलाते है। और आवाज़ बिल्कुल नही निकालते है। उनका यह पढ़ना, पढ़ना नही है। और इस तरह पढ़ने से नमाज़ नही होगी और इस तरह कुर्आन तिलावत की तो तिलावत का सबाब नही पायगे। अहिस्ता पढ़ने का मतलब यह है कि कम से कम इतनी आवाज़ जरूर निकले कि कोई रूकावट न हो तो खुद सुनले सिर्फ़ होंट होंट हिलना आवाज का बिल्कुल न निकलना पढ़ना नही है। और इस मसअले का ख़ास ध्यान रखना चाहिए।*
📘 *फ़तावा आलमगिरी मिस्री जिल्द अव्वल सफ़ा 65 बहारे शरीअत जिल्द 3 सफ़ह 69*
•••➲ कुछ जगह या कहले तकरीबन तकरीबन सभी जगह कुर्आन खानी हो या किसी मरहूम के लिए इसाले सबाब करने के लिए लोग कुर्आन की तिलावत करते है। कुछ हजरात किरत करके पढ़ते है। कुछ खामोशी इख्तयार करके पढ़ते है। किरत करने बाले हजरात को चाहिए के बह भी खामोशी इख्तयार करके पढ़े जितने मे खुद के कानो तक आवाज़ पहुच सके हा अगर पढ़ने बाला तन्हा है। तो बहतर है। किरत करके ही पढ़े अगर एक साथ कई लोग कुर्आन की तिलावत कर रहे है। तो उन्हे खामोशी यानी इतनी आवाज़ हो के अपने खुद के कानो तक पहुंच सके जिससे दूसरे पढ़ने बालो को भी खलल न हो।...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 46-47 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 128
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या जमाअत से नमाज़ पढ़ने वाले को इमाम के साथ दुआ मांगना भी जरूरी है ?❓*
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•••➲ *हर नमाज़ सलाम फेर ने पर मुकम्मल हो जाती है। उसके बाद जो दुआ माँगी जाती है। यह नमाज़ मे दाखिल नही। अगर कोई शख़्स नमाज़ पढ़ने यानी सलाम फेरने के बाद बिल्कुल दुआ न मांगे तब भी उसकी नमाज़ मे कमी नही। अलबत्ता एक फजीलत हे मेहरूमी और सुन्नत के खिलाफ वर्जी है। कुछ जगह देखा गया इमाम लोग बहुत लम्बी लम्बी दुआऐ पढ़ते है। और मुकतदी कुछ ख़ुशी के साथ और कुछ बे रगबती से मजबूरन उनका साथ निभाते है। और कोई बग़ैर दुआ मागे या थोड़ी दुआ मांग कर इमाम साहब का पूरा साथ दिये बग़ैर चला जाए तो उसपर ऐतराज करते है। और बुरा जानते है। यह सब उनकी ग़लतफ़मियाँ हैं। इमाम के साथ दुआ मांगना मुक़तदी के ऊपर हरगिज़ लाजिम व जरूरी नही वह नमाज़ पूरी होने के बाद फौरन मुखतसर दुआ मांग कर भी जा सकता है। और कभी किसी मजबूरी और उज्र की बिना पर बग़ैर दुआ मांगे चला जाए तब भी नमाज़ मे कमी नही आती हवाले के* फ़तावा रज़विया जिल्द सोम सफ़हा 278 देखे।...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 47 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 129
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 नमाज़ मे कुहनियाँ खुलीं रखना ?❓*
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•••➲ बिला मज़बूरी कुहनियाँ खोल कर जैसे आजकल आधी आस्तीन की शर्ट पहिन कर कुछ लोग नमाज़ अदा करते है। यह मकरूह है और ऐसी नमाज़ को लौटाने का हुक्म है।
📕 *फ़तावा रजविया जिल्द 3 सफ़ह 416*
•••➲ और जो लोग आस्तीन चढ़ाकर और कुहनियाँ खोल कर नमाज़ अदा करते है। उन पर दो गुनाह होते है। एक कपड़ा समेटने चढ़ाने का और दूसरा कुहनियाँ खुली रखने का क्यूंकि नमाज़ मे कपड़ा चढ़ाना मना है। जैसे कुछ लोग सज्दे मे जाते वक़्त दोनो हाथो से पाजामे के पायेंचे को पकड़ कर चढ़ाते है। यह भी नाजाइज व गुनाह है। इस किस्म के नमाज़ियो को प्यार मोहब्बत से समझाते रहना चाहिए या बजाय एक एक को टोकने और रोकने के सबको इकट्ठा करके मसअला बता दिया जाये ताकि कोई अपनी तौहीन महसूस नशकरे क्यूकि आजकल दीनी बातों पर टोका जाये तो लोगो मे तौहीन महसूस करने की बीमारी पैदा हो गई है।...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 48 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 नमाज़ मे कुहनियाँ खुलीं रखना ?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 129 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ आज कल हर जगह ऐसे बाज़ लोग पाये जाते है। उन्हें कितना ही समझाओ पर उनको इससे कुछ मतलब नही रहता अपनी हट धर्मी मे रहते है। ऐसे लोग शिवाए गुनाह के और कुछ हासिल नही करते है। लेकिन हमारे कुछ भाई जो थोड़ा इल्म रखते है। उनके समझाने का तरीका भी बहुत तकव्वर भरा रहता है। उन्हे भी चाहिए इस्लाह करने बालो को प्यार मोहब्बत से समझायें न की उनके सामने अपने आपको सबसे बहतर होने का सबूत दे यह रिया कारी है। यह गुनाह भी है। जो अल्लाह तआला को बिल्कुल भी पसन्द नही है। इसलिए बहतर तरीका यही है। समझाने बाले को सरमिन्दगी महसूस भी न हो और उसकी इस्लाह हो जाए ऐसा रास्ता निकाले।..✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 48 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 कमसिन बच्चों को मस्जिद मे लाना ?❓*
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•••➲ ज़्यादा छोटे ना समझ कमसिन बच्चों का मस्जिद मे आना या उन्हें लाना शरअन नापसन्दीदा नाजाइज व मकरूह है। कुछ लौग औलाद से बे जा मुहब्बत करने वाले नमाज़ के लिए। मस्जिद मे आते है। तो अपने साथ कमसिन नासमझ बच्चों को भी लाये है। यहाँ तक कि बाज़ लोग उन्हें आगली सफो मे अपने बराबर नमाज़ मे खड़ा कर लेते है। यह तो निहायत ग़लत बात है। और इससे पिछली सफो के सारे नमाज़ियों की नमाज़ मकरूह होती है। और उसका गुनाह उस लाने और बराबर मे खड़ा करने वाले पर है। और उन पर जो उससे हत्तल मक़दूर मना न करें हाँ जो समझदार होशियार बच्चे हो नमाज़ के आदाब से वाकिफ़ पाकी और नापाकी को जानते हो उनको आना चाहिए और उनकी सफ़ मस्जिद मे बालिग मर्दों से पीछे होना चाहिए। और ज़्यादा छोटे जो नमाज़ को भी एक तरह काखेल समझते और मस्जिद मे शोर मचाते ख़ुद भी नहीं पढ़ते अंर दूसरों की नमाज़ भी खराब करते है। एसे बच्चों को सख़्ती के साथ मस्जिद में आने से रोकना ज़रूरी है।...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 48 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 कमसिन बच्चों को मस्जिद मे लाना ?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 131 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ हदीस मे है। फरमाया रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने "अपनी मस्जिदों को बचाओ बच्चों से पागलों से खरीदने और बेचने से और झगड़े करने से और ज़ोर ज़ोर से बोलने से।
📘 *इब्ने माजा,बाबा मा यकरहु फ़िल मस्जिद सफ़ह 55*
•••➲ यानी यह सब बाते मस्जिद मे नाजाइज व गुनाह है *सदरूश्शरीआं हजरत मौलाना अमजद अली साहब आज़मी अलैहिर्रहमह लिखते है।* "बच्चे और पागल को जिन से नजासत का गुमान हो मस्जिद मे ले जाना हराम है। वरना मकरूह।
📗 *बहारे शरीअत हिस्सा सोम सफ़ह 182*
•••➲ कुछ लोग कहते हॅ। कि बच्चे मस्जिद मे नही आयेंगे तो नमाज़ सीखेगे केसे तो भाईयों समझदार बच्चों के सीखने के लिए मस्जिद है। और नासमझ ज़्यादा छोटे बच्चों के लिए घर और मदरसे है। और हदीसे रसूल के आगे अपनी नहीं चलाना चाहिए।...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 49 📚*
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*📝 मस्जिदों को सजाना इमामों को सताना?❓*
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•••➲ आजकल काफ़ी देखा गया है कि लोग मस्जिदों को सजाने सँवारने में खूब पैसा खर्च करते हैं और इमामों, मौलवियों को सताते, उन्हें तंग और परेशान रखते हैं, और कम से कम पैसों में काम चलाना चाहते हैं। जिसकी वजह से वह सजीसँवरी खूबसूरत मस्जिदें कभी कभी वीरान सी हो जाती हैं और उनमें वक्त पर अज़ान व नमाज़ नहीं हो पाती।
•••➲ इस बयान से हमारा मकसद यह नहीं है कि मस्जिदों को सजाना और खूबसूरत बनाना मना है। बल्कि यह बताना है कि किसी भी मस्जिद की असली खूबसूरती यह है कि उसमें दीनदार, खुदाए तआला का ख़ौफ़ रखने वाला, लोगों को हुस्न व खूबी और हिकमत व दानाई के साथ दीन की बातें बताने वाला आलिमे दीन इमामत करता हो चाहे वह मस्जिद कच्ची और सादा सी इमारत हो। किसी मस्जिद के लिए अगर नेक और सही इमाम मिल जाये तो लोगों को चाहिए कि उसको हर तरह खुश रखेंउसका खूब ख्याल रखें।...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 50-51 📚*
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*📝 मस्जिदों को सजाना इमामों को सताना?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 133 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ बल्कि पीरों से भी ज़्यादा आलिमों, मौलवियों, इमामों और मुदर्रेसीन का ख्याल रखा जाये क्यूंकि दीन की बका और इस्लाम की हिफ़ाज़त इल्म वालों से है। अगर इमामों और मौलवियों को परेशान रखा गया तो वो दिन दूर नहीं कि मस्जिदें और मदरसे या तो वीरान हो जायेंगे या उनमें सबसे घटिया किस्म के लोग इमामतें करेंगे और बच्चों को पढ़ायेंगे। अच्छे घरानों और अच्छे ज़हन व फिक्र रखने वाले लोग इस लाइन से दूर हो जायेंगे।
•••➲ खुलासा यह कि आलिमों और मौलवियों को चाहिए वो पैसे और माल व दौलत का लालच किये बगैर दीन की खिदमत करें और कौम को चाहिए कि वह अपने आलिमों, मौलवियों और दीन की ख़िदमत करने वालों को खुशहाल रखे। उन्हें तंगदस्त और परेशान न होने दे और हमारी राय में आजकल शादीशुदा बैरूनी (बाहर के) इमामों के लिए रिहाइशी मकानों का बन्दोबरत कर देना निहायत जरूरी है ताकि उन्हें बार बार घर न भागना पड़े और वो नमाजों को पढ़ाने में पाबन्दी कर सकें और अंगुश्तनुमाईयों, बदरगुमानियों से महफूज रहें।
*⚠️ NOTE :-* जब भी मस्जिद जाए और मस्जिद के अन्दर क़दम रखे पहले दाखिले मस्जिद होने की दुआ पढ़े और एतकाफ की नियत करे।..✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 50-51 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 ईदगाह में नमाज़े जनाजा पढ़ने का मसअला ?❓*
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•••➲ मस्जिद में जनाजे की नमाज़ पढ़ना मकरूह व नाजाइज़ है। *हदीस शरीफ़ में है*
•••➲ *हज़रत अबू हुरैरह रदियल्लाह तआला अन्हो* से मरवी है कि *रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* ने फरमाया जो मस्जिद में नमाज़े जनाज़ा पढ़े उसके लिए कुछ सवाब नहीं
📘 *अबूदाऊदकिताबुल जनाइज़ बाबुस्सलात अलल जनाज़ा फ़िल मस्जिदसफ़हा 454*
•••➲ हाँ सख़्त बारिश आंधी तूफ़ान वगैरा किसी मजबूरी के वक्त मस्जिद में भी पढ़ना जाइज़ है जब कि ईदगाह मदरसा, मुसाफिर खाना वगैरा कोई और जगह न हो। *हज़रत अल्लामा सय्यिद अहमद तहतावी रहमतुल्लाह तआला अलैह* फरमाते हैं।..✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 51 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 ईदगाह में नमाज़े जनाजा पढ़ने का मसअला ?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 135 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ जो मस्जिद सिर्फ नमाजे जनाज़ा ही पढ़ने को लिए बनाई गई हो वहाँ यह नमाज मकरूह नही यानी जाइज़ है। यूही मदरसे और ईदगाह में नमाजे जनाज़ा पढ़ना जाइज है।
*📕 तहतावी अला मराक़िल फ्लाह मतबूआ कुतुन्तिया, सफ़ह 326)*
•••➲ और *मौलाना मुफ्ती जलालुद्दीन साहब अमजदी* फरमाते हैं। ‘नमाजे जनाज़ा ईदगाह के इहाते और मदरसे में भी पढ़ी जा सकती है।
📗 *फतावा फैजुर्रसूल, जिल्द 1, सफ़ह 446*
•••➲ लिहाज़ा जो लोग ईदगाह में नमाजे जनाज़ा पढ़ते हुए झिझक महसूस करते हैं वह बिला ख़ौफ़ बे झिझक वहाँ नमाजे जनाजा पढ़ा करें।
*⚠️ NOTE :- आप हजरात जब भी किसी की मैय्यत की खबर सुने उसके जनाज़े मे शिर्कत जरूर करे* ...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 51 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 137
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मस्जिदों में आवाज़ करने वाले पंखो कूलरों का मसअला ?❓*
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•••➲ आजकल कितने लोग हैं जो मस्जिदों में आते हैं तो उन्हें नमाज से ज्यादा अपने आराम, चैन व सुकून गर्मी और ठन्डक की फ़िक्र रहती है अपनी दुकानों, मकानों खेतों और खलिहानों, कामधन्धों में बड़ी बड़ी परेशानियाँ उठा लेने वाले मशक्कतें झेलने वाले जब मस्जिदों में दस पन्द्रह मिनट के लिए नमाज़ पढ़ने आते हैं। और जरा सी परेशानी हो जाए, थोड़ी सी गर्मी या ठन्डक लग जाए। तो बौखला जाते हैं, गोया कि आज लोगों ने मस्जिदों को आरामगाह और मकामे ऐश व इशरत समझ लिया है। जहाँ तक शरीअते इस्लामिया ने इजाजत दी है वहाँ तक आराम उठाने से रोका तो नहीं जा सकता लेकिन कुछ जगह यह देख कर सख्त तकलीफ़ होती है!
•••➲ कि मस्जिदों को आवाज़ करने वाले बिजली के पंखोंशोर मचाने वाले कूलरों से सजा देते हैं और जब वह सारे पंखे और कूलर चलते हैं तो मस्जिद में एक शोर व हंगामा होता है। और कभी कभी इमाम की किर्अत व तकबीरात तक साफ़ सुनाई नहीं देती या इमाम को उन पंखों और कूलरों की वजह से चीख़ कर किर्अत व तकबीर की आवाज निकालना पड़ती है। बाज जगह तो यह भी देखा गया है कि मस्जिदों में अपने ऐश व आराम की खातिर भारी आवाज वाले जनरेटर तक रख दिये जाते हैं जो सरासर आदावे मस्जिद के खिलाफ है। जहाँ तक बिजली के पंखों और कूलरों का सवाल है तो शुरू में अकाबिर उलमा ने इनको मस्जिद में लगाने को मुतलकन ममनू व मकरूह फरभाया था।...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 52 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 138
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मस्जिदों में आवाज़ करने वाले पंखो कूलरों का मसअला ?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 137 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ जैसा कि *फतावा रजविया जिल्द 6 सय्हा 384*
•••➲ पर खुद *आला हजरत इमामे अहलेसुन्नत मौलाना शाह अहमद रज़ा खाँ साहब अलैहिर्रहमतु वर्रिदवान* के कलम से इसकी तसरीह मौजूद है। अब बाद में जदीद तहकीकात और इब्तिलाए आम की बिना पर अगरचे इनकी इजाजत दे दी गई लेकिन आवाज़ करने वाले, शोर मचा कर मस्जिदों में एक हंगामा खड़ा कर देने वाले कूलरों और पंखों को लगाना आदावे मस्जिद और खुजू व खुशू के यकीनन ख़िलाफ़ है। उनकी इजाज़त हरगिज नहीं दी जा सकती। निहायत हल्की आवाज वाले हाथ के पंखों ही से काम चलाया जाए। कूलरों से मस्जिदों को बचा लेना ही अच्छा है क्यूंकि उसमें आमतौर से आवाज ज्यादा होती है न कि दर्जनों पंखे और कूलर लगा कर मस्जिदों में शोर मचाया जाए।
•••➲ भाईयो खुदाए तआला का ख़ौफ़ रखो। ख़ानए खुदा को ऐश व इशरत का मकाम न बनाओ वह नमाज़ व इबादत और तिलावते कुर्आन के लिए है जिस्म परवरी के लिए नहीं। नफ्स को मारने के लिए है नफ्स को पालने के लिए नहीं।...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 52 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 139
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मस्जिदों में आवाज़ करने वाले पंखो कूलरों का मसअला ?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 138 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ मस्जिदों में आवाज करने वाले बिजली के पंखों का हुक्म बयान फ़रमाते हुए *आला हजरत रदीअल्लाहो तआला अन्हु* फरमाते हैं।
•••➲ "बेशक मस्जिदों में ऐसी चीज का एहदास ममनू बल्कि ऐसी जगह नमाज़ पढ़ना मकरूह है।
📗 *फतावा रजविया जिल्द 6, सऊहा 386*
•••➲ इस जगह आला हजरत ने दुर्रेमुख्तार की यह इबारत भी नकल फ़रमाई है अगर खाना मौजूद हो और उसकी तरफ़ रगवत व ख्वाहिश हो तो ऐसे वक़्त में नमाज पढ़ना मकरूह है ऐसे ही हर वह चीज जो नमाज की तरफ से दिल को फेरे और खुशू में खलल डाले।
•••➲ मजीद फरमाते हैं ‘‘चक्की के पास नमाज मकरूह है। *रद्दुलमुख्तार में है शायद इसकी वजह यह है कि चक्की की आवाज दिल को नमाज़ से हटाती है।"*
•••➲ वह पंखे जो खराब और पुराने हो जाने की वजह से आवाज करने लगते हैं उनको दुरुस्त करा लेना चाहिए या मस्जिद से हटा देना चाहिए!..✍
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 52 53*
*Note- हमे अपने कल्बी सुकून की खातिर मस्जिद के अहितराम को न भूलना चाहिए बल्की अपनी नफ्स को फना कर देने मे ही सहूलियत और अल्लाह तआला की खुशनूदगी है।...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 52 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 140
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 नमाज़े जनाज़ा मे तकबीर के वक़्त आसमान की तरफ मुँह उठाना ?❓*
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•••➲ आजकल काफ़ी लोग ऐसा करते हुए देखे गए हैं कि जब *नमाजे जनाज़ा में तकबीर कही जाती है तो हर तकबीर के वक़्त ऊपर की जानिब मुंह उठाते हैं हालांकि इसकी कोई अस्ल नहीं।*
•••➲ बल्कि नमाज में आसमान की तरफ मुंह उठाना मकरूहे तहरीमी है। *बहारे शरीअत* और हदीस शरीफ में है।
•••➲ *रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* ने फ़रमाया ‘‘क्या हाल है उन लोगों का जो नमाज़ में आसमान कीतरफ़ आखे उठाते है इससे बाज़ रहें या उनकी आंखें उचक ली जायेंगी।
📘 *मिश्कात बहवाला सहीह मुस्लिम सफह 90*
•••➲ खुलासा यह कि नमाजे जनाज़ा हो या कोई और नमाज़ कसदन आसमान की तरफ़ नज़र उठाना मकरूह है और नमाजे जनाज़ा में तकवीर के वक्त ऊपर को नजर उठाने का जो रिवाज पड़ गया है यह ग़लत है, वे अस्ल है।...✍
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 54 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 नमाज़े जनाज़ा मे तकबीर के वक़्त आसमान की तरफ मुँह उठाना ?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 140 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *⚠️NOTE* इमाम अहमद बिन हम्बल रदीअल्लाहो ताला अनहो ने फरमाया हमारे जनाज़े फैसला करेगे हक पर कौन है। जेसा की आप हजरात ने देखा तकरीबन कुछ दिन पहले बरेली की मुकद्दश ज़मी पर चारो तरफ लाखो नहीँ करोडों की तादात मे कई अफराद वहा पहुँचे और सरकार ताजोहश्शरिया अलहिर्रहमा की नमाज़े जनाज़े मे शिर्कत की यह फकीर कादरी भी मोजूद था वहा पर मेने अपनी आँखो से देखा इतनी तादात मे हाजरीन। हजरत की तदफीन मे पहुँचे और किसी को खरोंच भी न आई यह बरेली के ताज़े शरीअत की करामत ही तो है। बरना आप लोगो ने कई मर्तबा सुना होगा जहाँ लाखों अफराद एक साथ मोजूद होते है कोई न कोई हादसा ज़रूर होता है लेकिन देखने बालो ने देखा सुनने बालो ने सुना इतनी तादात होने के बाद भी किसी को कुछ न हुआ ऐसी सोच रखने बाले उन पिलपिले सुलहकुल्लियो से कहूँगा अरे यह तो कुछ भी नही अगर इससे 10 गुना तादात और होती तब भी कुछ न होता किसी का।
•••➲ एक और बात शरीअत की जहाँ इतनी तादात होने के बाद भी माइक पर नमाज़ न हुई और शरीअत का हक अदा किया इसको बरेली कहते है बरेली जहाँ तबीयत परस्ती के लिए शरीयत से खिलवाड़ नही किया जाता!..✍
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 142
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मय्यत का खाना ?❓*
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•••➲ मय्यत के तीजे, दसवें या चालीसवें वगैरहा के मौके पर दावत करके खाना खिलाने का जो रिवाज है यह भी महज़ ग़लत है। और ख़िलाफ़ शरअ है। हाँ ग़रीबों और फ़क़ीरों को बुला कर खिलाने में हरज नहीं।
•••➲ *आला हज़रत* फ़रमाते हैं मुर्दे का खाना सिर्फ फ़क़ीरों के लिए है आम दावत के तौर पर जो करते हैं यह मना है, ग़नी न खाए।
📘 *अहकामे शरीअत हिस्सा दोम, सफह 16*
•••➲ और फरमाते हैं मौत में दावत बे मअना है, फ़तहुल कदीर में इसे बिदअते मुसतकुबहा फ़रमाया।
📙 *फ़तावा रजविया, जिल्द 4, सफ़ह 221*
*⚠️ NOTE :-* आज कल देखा जाता है अगर किसी के यहा कोई मर जाता है। तो इस तरह से 10वा 20वा 40वा कराते है। जेसे कोई शादी का फन्शन करा रहे हो अगर कोई गरीब इन्शान अपनी गरीबी की खातिर न करा सके तो उस पर पडोशी और आवाम के लोग तंज कसते है। और कई किस्म की बाते भी सुनाते है। यह तरीका सरासर गलत है। जब शरीअत ने इस खाने से गनी को रोक रखा है तो क्यूँ हम यह रस्म शादी की तरह करते है। गलती हमारी है हमे ही इन सब का बायकाट करना चाहिए और आगे आकर आवाम को आगाह करना चाहिएं अगर आपको अपने घर बालो के लिए इसाले सबाब के लिए इतना ख़र्च करना ही है तो किसी गरीब लड़की का घर बसाने मे करो कसम खुदा की यह काम आपका दुनिया व आखरत दोनो शवार देगा। मेरे प्यारे भाईयो अगर आप मेरी बात से सहमत है। तो आज से ही अपने जहिन को बदले और अल्लाह तआला और उसके रसूल सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम की रज़ा पर अमल जरूर करे।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 54 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 143
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 शौहर का बीबी के जनाज़े को उठाना ?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ अवाम में यह ग़लत मशहूर है कि शौहर बीवी के मरने के बाद न देख सकता है न उसके जनाज़े को हाँथ लगा सकता है। और न कान्धा दे सकता है।
•••➲ सही बात यह है कि शौहर के लिए अपनी बीवी को मरने के बाद देखना भी जाइज़ है और उसके जनाज़े को उठाना और कान्धा देनां, क़ब्र में उतारना भी जाइज़ है!
📘 *फतावा रजविया, जिल्द 4, सफ़हा 91*
*⚠️ NOTE* आजकल आवाम मे नयी नयी रश्मे ईजाद हो रही है। जो शरीअतन गलत और महज़ गुमराही है। जिनका रोकना और मना करना दुरूस्त व सही है। कुछ नाम निहाद लोग ऐसे होते है। जिनको कितना ही समझाओ उनको समझ नही आता और अपनी हट धर्मी पर अड़े रहते है। ऐसो लोगो को बड़े प्यार से समझाना चाहिए अपनी बात सीधी उनके दिल मे घर कर जाए। न की उनको चिल्लाकर डाटकर समजाओ ऐसा करना भी गलत है। मोहब्बत से जो काम हो जाएगा वह गुस्से मे न होंगा लिहाजा हम सभी को चाहिए अपने मोमिन भाई की इस्लाह बड़े प्यार से करनी चाहिए। अल्लाह तआला हम सबको अमल की तौफीक अता फरमाए।...✍️
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 55 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 144
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 फ़ातिहा में खाना पानीं सामने रखने का मसअला ?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ इस बारे में दो किस्म के लोग पाए जाते हैं कुछ तो वह हैं। कि अगर खाना सामने रख कर सूरए फातिहा वगैरा आयाते कुर्आनिया पढ़ दी जायें तो उन्हें उस खाने से चिढ़ हो जाती है और यह उस खाने के दुश्मन हो जाते हैं और उसे हराम ख्याल करते हैं। यह वह लोग हैं जिनके दिलों में बीमारी है। तो खुदाए तआला ने उनकी बीमारी को और बढ़ा दिया। कसीर अहादीस और अक़वाले अइम्मा और मामूलाते बुजुर्गाने दीन से मुंह मोड़ कर अपनी चलाते और ख़्वाहम ख़्वाह मुसलमनो को मुशरिक और बिदअती बताते हैं।
•••➲ दूसरे हमारे कुछ वह मुसलमान भाई हैं जो अपनी जिहालत और वहम परस्ती की बुनियाद पर यह समझते हैं कि जब खाना सामने न हो कुर्आन की तिलावत व ईसाले सवाब मना है!...✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 55 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 145
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 फ़ातिहा में खाना पानीं सामने रखने का मसअला ?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 144 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ कुछ जगह देखा गया है मीलाद शरीफ़ पढ़ने के बाद इन्तिज़ार करते हैं कि मिठाई आ जाए तब तिलावत शुरू करें यहाँ तक कि मिठाई आने में अगर देर हो तो गिलास में पानी ला कर रखा जाता है कि उनके लिए उनके जाहिलाना ख्याल में फातिहा पढ़ना जाइज हो जाए कभी ऐसा होता है कि इमाम साहब आकर बैठ गए हैं और मुसल्ले पर बैठे इन्तज़ार कर रहे हैं अगर खाना आए तो कुर्आन पढ़ें यह सब वहम परस्तियां हैं। हकीकत यह है कि फातिहा में खाना सामने होना जरूरी नहीं अगर आयतें और सूरतें पढ़ कर खाना या शीरीनी बगैर सामने लाए यूही तकसीम कर दी जाए तब भी ईसाले सवाब हो जाएगा और फातिहा में कोई कमी नहीं आएगी।
•••➲ *(सय्यिदी आलाहजरत मौलाना अहमद रजा खाँ बरेलवी)* फ़रमाते हैं "फातिहा व ईसाले सवाब के लिए खाने का सामने होना ज़रूरी नहीं।
📕 *फ़तावा रजविया, जिल्द 4, सफ़हा 225*
•••➲ और दूसरी जगह फरमाते हैं "अगर किसी शख्स का यह एतिकाद हो कि जब तक खाना सामने न किया जाए सवाब न पहुँचेगा तो यह गुमान उसका महज गलत है।"...✍️
📗 *फतावा रजविया,जिल्द 4, सफ़हा 195*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 56 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 146
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 फ़ातिहा में खाना पानीं सामने रखने का मसअला ?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 145 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ खुलासा यह कि खाने पीने की चीजें सामने रख कर फातिहा। पढ़ने में कोई हरज नहीं बल्कि हदीसों से उसकी असल साबित है और फातिहा में खाना सामने रखने को जरूरी ख्याल करना कि उसके बगैर फातिहा नहीं होगी यह भी इस्लाम में ज्यादती, वहमपरस्ती और ख़्याले ख़ाम है। जिसको मिटाना मुसलमानों पर जरूरी है!
•••➲ *हजरत मौलाना मुफ्ती मुहम्मद खलील खाँ साहब मारहरवी फरमाते हैं।*
•••➲ "तुम ने नियाज़, दुरूद व फातिहा में दिन या तारीख़ मुकर्ररा के बारे में यह समझ रखा है कि उन्हीं दिनों में सवाब मिलेगा आगे पीछे नहीं तो यह समझना हुक्मे शरई के ख़िलाफ़ है।
•••➲ यूंही फातिहा व ईसाले सवाब के लिए खाने का सामने होना कुछ जरूरी नहीं या *हजरते फ़ातिमा खातूने जन्नत रदीअल्लाहो ताला अनहा* की नियाज का खाना पर्दे में रखना और मर्दो को न खाने देना औरतों की जिहालते हैं वे सबूत और गढ़ी हुई बातें हैं मर्दो को चाहिए कि इन ख्यालात को मिटायें और औरतों को सही रास्ते और हुक्मे शरई पर चलायें।...✍️
📙 *तौजीह व तशरीह फैसला हफ़्त मसअला, सफहा 142*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 57 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 147
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 बच्चा पैदा होने की वज़ह से जो औरत मर जाये उसको बदनसीब समझना ?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ कुछ जगहों पर कुछ लोग ऐसी औरत को जो बच्चा पैदा होने की वजह से मर जाये उसको बुरा ख़्याल करते हैं और कहते हैं कि वह नापाकी में मरी है, लिहाज़ा बदनसीब और मनहूस है। यहाँ तक सुना गया है कि कुछ लोग कहते हैं कि वह मर कर चुडैल बनेगी। यह सब जाहिलाना बकवासे और निरी खुराफातें हैं। हदीस शरीफ़ में इस हाल में मरने वाली औरत को शहादत का मरतबा पाने वाली फ़रमाया गया और यह इस्लाम में बहुत बड़ा मरतबा है। रही उसकी नापाकी तो वह उसकी मजबूरी है। जिसका उस पर कोई गुनाह नहीं और मोमिन का बातिन कभी नापाक नहीं, और यह नापाकी भी खून आने से होती है खून न आया हो तो ज़ाहिर से भी वह पाक है।
*⚠️ NOTE* कई जगह देखां जाता है। बाज़ लोग़ बाज़ औरते इनको बदनसीब और मनहूस कहती है। यह सरारसर गलत है। ऐसी औरत को अल्लाह रब्बुल इज्जत ने शहीद के दर्जे से नवाज़ा है। और बाज़ लोग इन्हे मनहूस और बदनसीब कहते है। अल्लाह अल्लाह ऐसो लोगों और औरतो को अल्लाह के खोंफ से रोना चाहिए। हर आशिके रसूल यही चाहेगा अल्लाह तआला मुझे शहीदो मे मरने बाला बनाए। पर अफसोस है। जो ऐसी सोंच मे मुब्तिला रहते है।...✍️
*अल्लाह तआला अपनें हबीब सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम के सदके हमारी हर परेशानियों को दूर फरमाए*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 57 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 148
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 फ़र्ज़ी क़ब़्रें और मज़ार बनाना ?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ आजकल ऐसा काफी हो रहा है कि पहले वहाँ कुछ नहीं था, अब बगैर किसी मुर्दे को दफ़न किये कब्र व मज़ार बना दिया गया। और पूछो तो कहते हैं कि ख्वाब में बशारत हुई है। फलाँ मियाँ ने ख्वाब में आकर बताया है कि यहाँ हम दफ्न हैं, हमारा मजार बनाओ। सही बात यह है कि इस तरह कब्र व मजार बनाना, उन पर हाजिरी देना, फातिहा पढ़ना, उर्स करना और चादर चढ़ाना। सब हराम है। मुसलामनों को धोका देना और इस्लाम को बदनाम करना और ख़्वाब में मज़ार बनाने की बशारत शरअन कोई चीज नहीं और जिन लोगों ने ऐसे मज़ारात बना लिये हैं उनको उखाड़ देना और नाम व निशान ख़त्म कर देना बहुत जरूरी है।
•••➲ कुछ जगह देखा गया है कि किसी बुजुर्ग की छड़ी, पगड़ी वगैरा कोई उनसे मनसूब चीज दफ्न करके मज़ार बनाते हैं और कहीं किसी बुजुर्ग के मज़ार की मिट्टी दूसरी जगह ले जाकर दफन करके मज़ार बनाते हैं। यह सब नाजाइज व गुनाह है। *सय्यिदी आला हज़रत* फरमाते हैं। फ़र्जी मजार बनाना और उसके साथ। अस्ल का सा मुआमला करना नाजाइज व बिदअत है और ख़्वाब की बात खिलाफ़े शरअ उमूर में मसमूअ मकबूल नहीं हो सकती।...✍️
📗 *फतावा रजविया जिल्द 4 सफहा 115*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 58 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 149
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 फ़र्ज़ी क़ब़्रें और मज़ार बनाना ?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 148 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ और जिस जगह किसी बुजुर्ग का मज़ार होने न होने में शक हो वहाँ भी नहीं जाना चाहिए और शक की जगह फातिहा भी नहीं पढ़ना चाहिए। कुछ जगह मज़ारात के नाम लोगों ने पतंग शाह बाबा, कुत्तेशाह बाबा, कुल्हाड़ापीर बाबा, झाड़झूड़ा शाह वगैरह रख लिए हैं। अगर वाकई वो अल्लाह वालों के मजार हैं।
•••➲ तो उनको इन बेढंगे नामों से याद करना, उनकी शान में बेअदबी और गुस्ताखी है, जिससे बचना जरूरी है। और हमारी राय में इस्लामी बुजुर्गों को ‘बाबा' कहना भी अच्छा नहीं है क्यूंकि इसमें हिन्दुओं की बोलियों से मुशावहत है कभी यह भी हो सकता है कि वो इन मज़ारों पर कब्ज़ा कर लें और कहें कि ये हमारे पूर्वज हैं। क्यूंकि बाबा तो हिन्दू धर्मात्माओं को कहा जाता है।
*⚠️NOTE : -* कमी हमारे अंदर ही है। जो सब जानते हुऐ भी छुप रहते याद रखना मुसलमानो अगर सच्चाई मालूम होने के बाद भी चुप रहने बाले की अल्लाह तआला की बारगाह मे शक्त पकड़ होंगी!...✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 59 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 150
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 औरत का कफ़न मैके वालों के जिम्मे लाजिम समझना ?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ यह एक गलत रिवाज है। यहाँ तक कि कुछ जगह मैके वाले अगर नादार व ग़रीब हों तब भी औरत का कफ़न उनको देना ज़रूरी ख़्याल किया जाता है और उनसे जबरदस्ती लिया जाता है और उन्हें ख्वामख्वाह सताया जाता है हालाँकि इस्लाम में ऐसा कुछ नहीं है।
•••➲ मसअला यह है कि मय्यत का कफ़न अगर मय्यत ने माल न छोड़ा हो तो ज़िन्दगी में जिसके जिम्मे उसका नान व नफ़का था वह कफ़न दे और औरत के बारे में ख़ास तौर से यह है कि उसने अगरचे माल छोड़ा भी हो तो तब भी उसका कफ़न शौहर के जिम्मे है।
📗 *बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफ़ह 139*
•••➲ खुलासा यह है कि औरत का कफन या दूसरे खर्चे मैके वालों के जिम्मे ही लाज़िम ख़्याल करना और बहरहाल उनसे दिलवाना, एक गलत रिवाज है, जिसको मिटाना ज़रूरी है।...✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 59 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 151
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 औरत का कफ़न मैके वालों के जिम्मे लाजिम समझना ?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 150 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *⚠️ NOTE : -* अक्सर देखा जाता है। बाज़ लोग़ हट धर्मी की हद पार करते है। वो थोड़ा सा भी नही सोंच ते यह मरी हुई औरत हमारी शरीके हयात थी जब से निकाह मे आई तब से उसकी छोटी से लेकर बड़ी जरूरतों को पूरा किया आज वह इस मकाम पर है जहाँ से वह कुछ बोल भी नही सकती है। मे उन लोगों से कहना चाहूँगा जो ऐसी हट धर्मी मे लगें रहते है। कभी अपनी बीबी षे हयात ए जिन्दगी मे एक मर्तबा पूँछ कर देखना तुम्हारे मरने के बाद तुम्हारा कफन मैके बाले ही लायगे फिर उस वक़्त का मंजर देखना जो तुम्हे बरदास्त न होंगा उस औरत के पैर तले से जमीन खिसक जाएगी जब तुम उससे ऐसे अल्फाज बोलोंगे। मेरे भाईयों जिन्दगी भर इतना किया बाद मरने के भी अपनी बीबी के लिए उसके कफन से महरूम न रखना बरना बाद मरने के अल्लाह तआला की बारगाह मे सर को उठा न पओगे अगर ऐसी सोंच रखोगे।..✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 59 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 152
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मय्यत के बाद और बच्चे की पैदाइश के बाद पूरे घर की पुताई सफ़ाई को ज़रूरी समझना ?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ कुछ लोग घर में मय्यत हो जाने या बच्चा पैदा होने के बाद घर की पुताई कराते हैं और समझते हैं कि घर नापाक हो गया उसकी धुलाई सफ़ाई और पुताई कराना जरूरी है। हालांकि यह उनकी ग़लतफ़हमी है और इस्लाम में ज्यादती है। पुताई सफ़ाई अच्छी चीज़ है, जब ज़रूरत समझे करायें लेकिन बच्चा पैदा होने या मय्यत हो जाने की वजह से उसको कराना और लाजिम जानना जाहिलों वाली बातें हैं, जिन्हें समाज से दूर करना ज़रूरी है।
•••➲ *⚠️ NOTE* हम हर जगह नई-नई बाते ईजाद हुए सुनते और देखते पर उनकी जाहिलयत की वजह से उनको रोक नही पाते अगर रोके भी तो मुँह की खानी पढ़ती है। इसलिए अपनी बेइज्जती के डर से खमोश रहते है। लेकिन मे अपने भाईयो-बहनो से कहूँगा गैर शरअ काम होते हुए देखो तो उसको रोको ज़रूर बरना इसकी सज़ा और अल्लाह तआला की बारगाह मे इसकी शक्त पकड़ तुम्हारी भी होंगी।
•••➲ अल्लाह तआला से दुआ है अपने हबीब सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम के सदके हमे दीन दुनिया की समझ अता फरमाए।...✍️
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 60 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 153
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 फ़ातिहा में खाना पानीं सामने रखने का मसअला ?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ इस बारे में दो किस्म के लोग पाए जाते हैं कुछ तो वह हैं। कि अगर खाना सामने रख कर सूरए फातिहा वगैरा आयाते कुर्आनिया पढ़ दी जायें तो उन्हें उस खाने से चिढ़ हो जाती है और यह उस खाने के दुश्मन हो जाते हैं और उसे हराम ख्याल करते हैं। यह वह लोग हैं जिनके दिलों में बीमारी है। तो खुदाए तआला ने उनकी बीमारी को और बढ़ा दिया। कसीर अहादीस और अक़वाले अइम्मा और मामूलाते बुजुर्गाने दीन से मुंह मोड़ कर अपनी चलाते और ख़्वाहम ख़्वाह मुसलमनो को मुशरिक और बिदअती बताते हैं।
•••➲ दूसरे हमारे कुछ वह मुसलमान भाई हैं जो अपनी जिहालत और वहम परस्ती की बुनियाद पर यह समझते हैं कि जब खाना सामने न हो कुर्आन की तिलावत व ईसाले सवाब मना है।...✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 60 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 154
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 फ़ातिहा में खाना पानीं सामने रखने का मसअला ?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 153 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ कुछ जगह देखा गया है मीलाद शरीफ़ पढ़ने के बाद इन्तिज़ार करते हैं कि मिठाई आ जाए तब तिलावत शुरू करें यहाँ तक कि मिठाई आने में अगर देर हो तो गिलास में पानी ला कर रखा जाता है कि उनके लिए उनके जाहिलाना ख्याल में फातिहा पढ़ना जाइज हो जाए कभी ऐसा होता है कि इमाम साहब आकर बैठ गए हैं और मुसल्ले पर बैठे इन्तज़ार कर रहे हैं अगर खाना आए तो कुर्आन पढ़ें यह सब वहम परस्तियां हैं। हकीकत यह है कि फातिहा में खाना सामने होना जरूरी नहीं अगर आयतें और सूरतें पढ़ कर खाना या शीरीनी बगैर सामने लाए यूही तकसीम कर दी जाए तब भी ईसाले सवाब हो जाएगा और फातिहा में कोई कमी नहीं आएगी।
•••➲ *(सय्यिदी आला हजरत मौलाना अहमद रजा खाँ बरेलवी)* फ़रमाते हैं "फातिहा व ईसाले सवाब के लिए खाने का सामने होना ज़रूरी नहीं।
📕 *फ़तावा रजविया, जिल्द 4, सफ़हा 225*
•••➲ और दूसरी जगह फरमाते हैं "अगर किसी शख्स का यह एतिकाद हो कि जब तक खाना सामने न किया जाए सवाब न पहुँचेगा तो यह गुमान उसका महज गलत है।"..✍️
📗 *फतावा रजविया,जिल्द 4, सफ़हा 195*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 60 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 155
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 फ़ातिहा में खाना पानीं सामने रखने का मसअला ?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 154 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ खुलासा यह कि खाने पीने की चीजें सामने रख कर फातिहा। पढ़ने में कोई हरज नहीं बल्कि हदीसों से उसकी असल साबित है और फातिहा में खाना सामने रखने को जरूरी ख्याल करना कि उसके बगैर फातिहा नहीं होगी यह भी इस्लाम में ज्यादती, वहमपरस्ती और ख़्याले ख़ाम है। जिसको मिटाना मुसलमानों पर जरूरी है!
•••➲ *हजरत मौलाना मुफ्ती मुहम्मद खलील खाँ साहब मारहरवी फरमाते हैं।*
•••➲ "तुम ने नियाज़, दुरूद व फातिहा में दिन या तारीख़ मुकर्ररा के बारे में यह समझ रखा है कि उन्हीं दिनों में सवाब मिलेगा आगे पीछे नहीं तो यह समझना हुक्मे शरई के ख़िलाफ़ है।
•••➲ यूंही फातिहा व ईसाले सवाब के लिए खाने का सामने होना कुछ जरूरी नहीं या *हजरते फ़ातिमा खातूने जन्नत रदीअल्लाहो ताला अनहा* की नियाज का खाना पर्दे में रखना और मर्दो को न खाने देना औरतों की जिहालते हैं वे सबूत और गढ़ी हुई बातें हैं मर्दो को चाहिए कि इन ख्यालात को मिटायें और औरतों को सही रास्ते और हुक्मे शरई पर चलायें।...✍️
📙 *तौजीह व तशरीह फैसला हफ़्त मसअला, सफह 142*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 60 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 156
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मय्यत के सर में कंघी करना ?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 155 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ कुछ जगह मय्यत को गुस्ल देने के बाद तजहीज़ व तकफ़ीन के वक़्त उसके बालों में कंघी करने लगते हैं, यह मना है। हदीस में है कि *हज़रते सय्यदना आइशा सिद्दीक़ा रदीअल्लाहु तआला अन्हा* से मय्यत के सर में कंघी करने के बारे में सवाल किया गया तो आपने मना फ़रमाया कि क्यूँ अपनी मय्यत को तकलीफ पहुंचाते हो।
📗 *फतावा रजविया जिल्द 4 सफ़ा 33, बहवाला किताब उल आसार इमाम मुहम्मद*
*⚠️ NOTE* बिला बज़ा कोई ऐसा काम न करे जो शरीअत मे मना हो अक्सर कुछ जगह बाज़ औरते जब कोई औरत सुहागन मरती है। उनको कंघी भी करती है माँग भी भरती है। यह शरीअत गलत है। और ऐसा करना गुनाह है।..✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 60 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 157
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या औरत फ़ातिहा नही पढ़ सकती ?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ फातिहा व ईसाले सवाब जिस तरह मर्दो के लिए जाइज़ है उसी तरह बिला शक औरतों के लिए भी जाइज़ है। लेकिन बाज़ औरतें बिला वजह परेशान होती हैं और फातिहा के लिए बच्चों को इधर उधर दौड़ाती हैं। हालांकि वह खुद भी फातिहा पढ़ सकती हैं। कम अज़ कम अल्हम्दो शरीफ़ और कुल हुवल्लाह शरीफ़ अक्सर औरतों को याद होती हैं। इसको पढ़कर खुदाए तआला से दुआ करें कि या अल्लाह इसका सवाब और जो कुछ खाना या शीरीनी है उसको खिलाने और बाँटने का सवाब फलां फलां और फलाँ जिसको सवाब पहुँचाना हो, उसका नाम लेकर कहें उसकी रूह को अता फ़रमा दे। यह फातिहा हो गई और बिल्कुल दुरुस्त और सही होगी।
•••➲ बाज़ औरतें और लड़कियाँ कुछ जाहिल मर्दों और कठमुल्लाओं से ज़्यादा पढ़ी लिखी और नेक पारसा होती हैं। ये अगर उन जाहिलों के बजाय खुद ही कुर्आन पढ़कर ईसाले सवाब करें तो बेहतर है।
•••➲ *कुछ औरतें किसी बुजुर्ग की फातिहा दिलाने के लिए खाना वगैरह कोने में रखकर थोड़ी देर में उठा लेती हैं और कहती हैं । कि उन्होंने अपनी फातिहा खुद ही पढ़ ली। ये सब बेकार की बातें हैं जो जहालत की पैदावार हैं। इन ख्वाम ख्वाह की बातों की बजाय उन्हें कुर्आन की जो भी आयत याद हो, उसको पढ़कर ईसाले सवाब कर दें तो यही बेहतर है और यह बाक़ाइदे फातिहा है।*
•••➲ हाँ इस बात का ख्याल रखें कि मर्द हो या औरत उतना ही कुर्आन पढ़े जितना सही याद हो और सही मख़ारिज से पढ़ें ग़लत पढ़ना हराम है और ग़लत पढ़ने का सवाब न मिलेगा और जब सवाब मिला ही नहीं तो फिर बख़्शा क्या जाएगा। आजकल इस मसअले से अवाम तो अवाम बाज़ ख़वास भी लापरवाही बरतते हैं।...✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 60-61 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 158
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मज़ार पर चादर चढ़ाना कब जाइज़ है ?❓*
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•••➲ अल्लाह तआला के नेक और खास बन्दे जिन्हें औलियाए किराम कहा जाता है। उनके इन्तिकाल के बाद उनकी मुकद्दस कब्रों पर चादर डाल देना जाएज है। इस चादर चढ़ाने में एक मसलिहत यह है कि इस तरह उनकी मुबारक कब्रों की पहचान हो जाती है कि यह किसी अल्लाह वाले की कब्र है और अल्लाह के। नेक बन्दों की इज्जत करना जिस तरह उनकी दुनयवी जिन्दगी में जरूरी है उनके विसाल के बाद भी उनका अदब व इहतिराम जरूरी है और मज़ारात पर चादर चढ़ाना भी अदब व इहतिराम है
•••➲ और दूसरों से अलग उनकी पहचान बनाना है जो लोग औलियाए किराम के मजारात पर चादर चढ़ाने को नाजाइज व गुनाह कहते हैं वह गलती पर हैं। लेकिन इस बारे में मसअला यह है कि एक चादर जो मजार पर पड़ी हो जब तक वह पुरानी और ख़राब न हो जाए दूसरी चादर न डाली जाए मगर आजकल अकसर जगह मजारों पर इसके ख़िलाफ़ हो रहा है। फटी पुरानी और ख़राब तो दूर की बात है मैली तक नहीं होने देते और दूसरी चादर डाल देते हैं। कुछ जगह तो दो चार मिनट भी चादर मज़ार पर नहीं रह पाती। इधर डाली और उधर उतरी यह गलत है और अहले सुन्नत के मजहब के ख़िलाफ़ है।...✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 65 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 159
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मज़ार पर चादर चढ़ाना कब जाइज़ है ?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 158 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ इस तरह चादर चढ़ाने के बजाए उस चादर की कीमत से मुहताजों व मिस्कीनों को खाना खिला दे या कपड़ा पहना दे या किसी गरीब मरीज का इलाज करा दे किसी जरूरतमन्द का काम चला दे किसी मस्जिद या मदरसे की जरूरत में खर्च कर दे, कहीं मस्जिद न हो तो वहाँ मस्जिद बनवा दे और इन सब कामों में उन्हीं बुर्जुग के ईसाले सवाब की नियत कर ले जिनके मजार पर चादर चढ़ाना थी तो यह उस चादर चढ़ाने से बेहतर है। हाँ अगर यह मालूम हो कि मजार पर चढ़ाई हुई। चादर उतरने के बाद गरीबों मिस्कीनों और मुहताजों के काम में आती है तो मजार पर चादर चढ़ाने में भी कुछ हर्ज नहीं क्यूंकि यह भी एक तरह का सदका और खैरात है। लेकिन आजकल शायद ही कोई ऐसा मजार होगा जिसकी चादरें गरीबों और मिस्कीनों के काम में आती हों बल्कि मुजावरीन और सज्जादगान उन पर कब्ज़ा कर लेते हैं और यह सब अकसर मालदार होते हैं!
•••➲ खुलासा यह है कि आजकल मज़ारात पर जब एक चादर पड़ी हो तो वहाँ दूसरी चादर चढ़ाने से बुजुर्गों के ईसाले सबाब के लिए सदका व खैरात करना गरीबों मिस्कीनों और मुहताजा के काम चलाना अच्छा है और यही मजहबे अहले सुन्नत और उलामाए अहले सुन्नत का फतवा है।..✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 65 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मज़ार पर चादर चढ़ाना कब जाइज़ है ?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 159 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *आला हजरत इमाम अहले सुन्नत मौलाना अहमद रजा खाँ बरेलवी अलैहिर्रहमा फरमाते हैं* और जब चादर मौजूद हो और वह अभी पुरानी या खराब न हुई कि बदलने की हाजत हो तो चादर चढ़ाना फुजूल है। बल्कि जो दाम इसमें खर्च करें वली अल्लाह की रूहे मुबारक को ईसाले सवाब के लिए मोहताज को दें। हाँ जहाँ मअमूल हो कि चढ़ाई हुई चादर जब हाजत से जाएद हो खुद्दाम मसाकीन हाजतमन्द ले लेते हैं और इस नियत से डाले तो कोई बात नहीं कि यह भी सदका हो गया।
📘 *अहकामे शरीअत हिस्सा अव्वल सफ़ह 72*
•••➲ *NOTE* और अगर ऐसी जगह जहाँ पहले से चादर मौजूद हो और वह बोसीदा और ख़राब न हुई हो चादर चढ़ाने की मन्नत मानी हो तो उस मन्नत को पूरा करना जरूरी नहीं। और ऐसी मन्नत मानना भी नहीं चाहिए!..✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 67 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 161
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 जिन्दगी में कब्र व मज़ार बनवाना ?❓*
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•••➲ कुछ लोग अपनी जिन्दगी में कब्र तय्यार कराते हैं, यह मुनासिब नहीं। अल्लाह तआला फरमाता है :
•••➲ *तर्जमा :* कोई नहीं जानता कि वह कहीं मरेगा।
•••➲ कब्र तय्यार रखने का शरअन हुक्म नहीं अलबत्ता कफन सिलवा कर रख सकता है कि जहाँ कहीं जाये अपने साथ ले जाये। और तब हमराह (साथ) नहीं जा सकती।
📘 *अलमलफूज़ हिस्सा अव्वल सफह 69*
•••➲ कुछ खानकाहियों को देखा कि वह जिन्दगी में पक्का मज़ार बनवा लेते हैं। यह रियाकारी है गोया कि उनको यह यकीन है कि वह अल्लाह के वली और बुजुर्ग व बेहतर बन्दे हैं और इस मरतबे को पहुंचे हुए हैं कि आम लोगों की तरह कच्ची कहें नहीं बल्कि उन्हें खूबसूरत मजार में दफन होना चाहिए। हालाँकि सच्चे वलियों का तरीका यह रहा है कि वह खुद को गुनाहगार ख्याल करते थे, जो खुद को वली ख्याल करते और अपनी विलायत के ऐलान करते फिरते हैं, ये लोग औलियाए किराम की रविश पर नहीं हैं!..✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 67 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 162
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 जिन्दगी में कब्र व मज़ार बनवाना ?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 161 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *पीराने पीर सय्यिदिना गौसे आजम शेख अब्दुल कादिर जीलानी रदिल्लाहु तआला अन्हु* से बड़ा बुजुर्ग व वली हजार साल में न कोई हुआ और न कियामत तक होगा। उनके बारे में हजरते सूफी जमाँ शैख मुसलेहुद्दीन सअदी शीराज़ी नक़ल करते हैं कि उनको हरमे कअबा में लोगों ने देखा कि कंकरियों पर सर रख कर खुदाए तआला की बारगाह में अर्ज कर रहे थे।
•••➲ *"ऐ परवरदिगार अगर मैं सजा का मुस्तहक हूँ तो तु मुझको कियामत के रोज अन्धा करके उठाना ताकि नेक आदमियों के सामने मुझको शर्मिन्दगी न हो।”*
📗 *गुलिस्ताँ बाब 2 सफ़ह 67*
•••➲ बाज सहाबए किराम के बारे में आया है कि वह यह दुआ करते थे ‘‘ऐ अल्लाह मुझे जब मौत आये तो या जगल का कोई दरिन्दा मुझे फाड़ कर खा जाये या कहीं समुद्र में डूब कर मर जाऊँ और मछलियों की गिज़ा हो जाऊँ।"
•••➲ यआनी वह शोहरत से बचना चाहते थे और नाम व नमूद के बिल्कुल रवादार न थे और यही अस्ल फकीरी व दुरवेशी है, और आजकल के फकीरों को अपने मज़ारों की फिक्र पड़ी है!...✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 163
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 जिन्दगी में कब्र व मज़ार बनवाना ?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 162 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ _साहिबो! चाहने मानने वाले मुरीदीन व मोअतक़दीन (अकीदत रखने वाले) बनाने और बढ़ाने और मज़ार व कर्मी को उम्दा व खूबसूरत बनाने या बनवाने से ज्यादा आख़िरत की फिक्र करो। खुदा व रसूल को राज़ी करो। मुरीदीन व मुअतक़दीन की कसरत और मज़ार की उम्दगी और संगेमरमर की टुकड़ियाँ अजाबे इलाही और कब्र की पिटाई से बचा नहीं सकेंगी अगर आप केकारनामों और दंगों से खुदा व *रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* नाराज़ हैं।_
•••➲ *ऐसी फ़क़ीरी व सज्जादगी से भी क्या फ़ाइदा कि कब्र के अन्दर आपकी बदअमलियों या बदएतकादियों और रियाकारियों की वजह से पिटाई होती हो और मज़ार पर मुरीदीन चादरें चढ़ाते फूल बरसाते और धूम धाम से उर्स मनाते हों।*
•••➲ कोशिश इस बात की करो कि मुरीद हों या न हों, मज़ार बने या न बने चादरें चढ़े या न चढ़े उर्स हो या न हो लेकिन कब्र में आपको राहत मिलती हो और जन्नत की खिड़की खुलती हो ख्वाह ऊपर से कर कच्ची हो और यह नेमत हासिल होगी, खुदा व रसूल के हुक्म पर चलने से!...✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 63 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 164
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मज़ारात पर हाज़िरी का तरीक़ा ?❓*
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•••➲ *औरतों को तो मज़ारात पर जाने की इजाज़त नहीं मर्दो के लिए इजाजत है मगर वह भी चन्द उसूल के साथ :*
•••➲ (1) पेशानी ज़मीन पर रखने को सज्दा कहते हैं यह अल्लाह तआला के अलावा किसी के लिए हलाल नहीं किसी बुजुर्ग को उसकी ज़िन्दगी में या मौत के बाद सज्दा करना हराम है। कुछ लोग मज़ारात पर नाक और पेशानी रगड़ते हैं यह बिल्कुल हराम है।
•••➲ (2) मज़ारात का तवाफ़ करना यानी उसके गिर्द ख़ानाए काबा की तरह चक्कर लगाना भी नाजाइज़ है।
•••➲ (3) अज़ रूए अदब कम से कम चार हाथ के फासले पर खड़ा होकर फातिहा पढ़े चूमना और छूना भी मुनासिब नहीं।
📙 *अहकामे शरीअत सफ़हा 234*
•••➲ (4) मज़ामीर के साथ कव्वाली सुनना हराम है तफ़सील के लिए देखिये।...✍️
📗 *फ़तावा रजविया, जिल्द 10, सफह 54 से 56*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 63 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 165
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मज़ारात पर हाज़िरी का तरीक़ा ?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 164 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ कुछ लोग समझते हैं कि सज्दा बगैर नियत और काबे की तरफ़ मुतवज्जेह हुए नहीं होता। यह भी जाहिलाना ख्याल है सज्दे में जिसकी ताज़ीम या इबादत की नियत होगी उसको सज्दा माना जाएगा। और जो सज्दा अल्लाह की इबादत की नियत से किया जाएगा वह अल्लाह तआला के लिए होगा और जो मज़ारात पर या किसी भी गैरे खुदा के सामने किया जाए वह उसी के लिए होगा। खुलासा यह कि ज़मीन पर किसी बन्दे के सामने सर रखना हराम है। यूंही बक़दरे रूकूअ झुकना भी मना है हाँ हाथ बाँध कर खड़ा होना जाइज़ है।
*⚠️ NOTE* : - आज कल देखा जाता है हमारे कुछ बाज़ लोग कम इल्मी के बजह से मजारात पर सज्दा करते है तवाफ़ करते नज़र आते जिनकी बजह से गैरो को हम पर तोहमत लगाने का मौक़ा मिल जाता है। इसलिए इस्लाम मे इल्म दीन शीखने को फ़र्ज कहा है। हमारे भोले भाले मुसलमान कम इल्म की वजह से खिलाफे शरअ काम करते नज़र आते है। मे उनसे यही कहूँगा इल्म हासिल करो इसके लिए चाहें तुम्हे कही भी जाना पढ़े।...✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 64 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 166
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क़ब्रिस्तानों मे चिराग़ व मोमबत्ती जलाने और अगरबत्ती या लोबान सुलगाने का मसअला ?❓*
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•••➲ शबे बरात वगैरा के मौके पर कब्रिस्तानों में चिराग बत्तियां की जाती हैं। इस बारे में यह जान लेना जरूरी है कि बिल्कुल ख़ास कब्र के ऊपर चिराग व मोमबत्ती जलाना लोबान व अगरबत्ती सुलगाना मना है। कब्र से अलाहिदा किसी जगह एसा करना जाइज़ है जबकि इन चीजों से वहाँ आने जाने और कुर्आन शरीफ़ और फातिहा वगैरा पढ़ने वालों को या राहगीरों को नफ़ा पहुँचने की उम्मीद हो। यह ख्याल करना कि इस की रोशनी और खुशबू कब्र में जो दफ़न हैं उनको पहुंचेगी जहालत नादानी, नावाकिफ़ी और गलतफहमी है दुनिया की रोशनि यां सजावटें और डेकोरेशन वरा जो कब्रिस्तानों में करते हैं और यह खुशबूएं मुर्दो को नहीं पहुँचती, मुर्दों को सिर्फ सवाब ही पहुँचता है। मुर्दा अगर जन्नती है तो उसके लिए जन्नत की खुशबू और रौशनी काफी है। और जहन्नमी के लिए कोई रोशनी है न ख़ुशबू..✍️
*📗 सहीह मुस्लिम जिल्द 1, सफ़ह 76, फतावा रजविया, जिल्द 4, सफ़ह 141*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 65 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 167
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 एतिकाफ़ मे चुप रहना ?❓*
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•••➲ कुछ लो एतिकाफ़ मे चुपचाप बैठे रहने को ज़रूरी समझते हैं हालाँकि एतिकाफ़ मे चुप रहना न ज़रूरी न महज ख़ामोशी कोई इबादत बल्कि चुप रहने को सबाब की बात समझना मकरूहे तहरीमी है।
📗 *बहारे शरीअत हिस्सा 5 सफ़हा 153*
•••➲ अल्बत्ता बुरी बातों से चुप रहना ज़रूरी है। खुलासा यह कि एतिकाफ़ की हालत मे कुर्आन मजीद की तिलावत करे तसवीह व दुरूद का विर्द करे नफ़्ल पढ़े दीनी किताबों का मुताअला करें दीन की बाते सीखने और सिखाने मे कोई हरज नही बल्कि इबादत है। ज़रूरत के वक़्त कोई दुनिया की जाइज़ बात भी की जा सकती है। इससे एतिकाफ़ फ़ासिद नही होगा । हाँ ज़्यादा दुनियावी बातचीत से एतिकाफ़ बेनूर हो जाता है। और सबैब कम होता है।..✍️
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 67 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 168
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 रेडियो, तार, टेलीफोन, की ख़बर पर बगैर शरई सबूत के चाँद मान लेना ?❓*
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•••➲ काफी लोग सिर्फ रेडियो, तार, टेलीफोन की ख़बर पर बगैर चाँद देखे या बगैर शरई सुबूत के ईद मना लेते हैं या रमज़ान शरीफ का चाँद हो तो रोज़ा रख लेते हैं, यह गलत है। अगर आसमान पर धुन्ध गुबार या बादल हो तो रमज़ान के चाँद के लिए एक और ईद के चाँद के लिए दो बा शरअ दीनदार भले मर्दों की गवाही ज़रूरी है। आसमान साफ हो तो बहुत से लोगों का चांद देखना जरूरी है एक दो की गवाही काफी नहीं महज रेडियो, तार व टेलीफोन की ख़बर पर न रोजा रखें न ईद मनायें जब तक कि आप की बस्ती में शरई तौर पर चाँद का। सबूत न हो या दूसरी बस्ती में चाँद देखा गया हो और शरई तौर पर इस की इत्तिला आप तक न आ गई हो। रेडियो, टेलीफोन पर ईद मनाई जाए तो आजकल पूरी दुनिया में एक ही दिन ईद होना चाहिए और हमेशा ईद का चाँद 29 दिन का ही होना चाहिए। क्यूंकि दुनिया में ईद का चाँद कहीं न कहीं 29 का जरूरी हर साल मान लिया जाता है और आजकल पूरी दुनिया में इसकी खबर हो जाना बज़रिए रेडियो, टेलीफोन एक आम व आसान सी बात है तो रोजे कभी 39 हो ही नहीं सकते।..✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 67 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 169
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 रेडियो, तार, टेलीफोन, की ख़बर पर बगैर शरई सबूत के चाँद मान लेना ?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 168 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *सऊदी अरब मे भी अमूमन हिन्दुस्तान से हमेशा एक दिन पहले ईद मनाई जाती है तो रेडियो, टेलीफ़ोन पर अकीदा रखने वाले वहाँ के ऐलान पर ईद क्यूं नहीं मनाते? देहली के ऐलान पर क्यूं मनाते हैं? इस्लामाबाद, कराची, लाहौर, ढाका और रंगून की इत्तिलाआत क्यूं नजर अन्दाज कर दी जाती हैं?*
•••➲ अगर कोई यह कहे वह दूसरे मुल्क हैं तो हम पूछते हैं यह। मुल्कों के तक्सीम और बटवारे क्या कुरआन व हदीस की रू से हैं? क्या खुदा व रसूल ने कर दिये हैं या आजकल की मौजूदा सियासत और अक़वामे मुत्तहिदा की तरफ़ से हैं? और अकवाने मुत्तहिदा की तकसीम की शरीअते इस्लामिया में क्या कोई हैसियत है? यह भी तो हो सकता है कि कोई कौमी हुकमरा खुदाए तआला पैदा फ़रमाये और वह इन सब मुल्कों को फतेह करके सब को एक ही मुल्क बना डाले और ऐसा हुआ भी है।..✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 68 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 170
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 रेडियो, तार, टेलीफोन, की ख़बर पर बगैर शरई सबूत के चाँद मान लेना ?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 169 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ *और अगर जवाबन कोई कहे कि मुल्क दूसरा और दूरी ज्यादा होने की बिना पर मतलअन अलग अलग है तो ख्याल रहे। कि इख्तिलाफे मताअले मोतबर नहीं और अगर बिल फर्ज मान भी लीजिये तो हिन्दुस्तान के वह शहर और इलाके जो अपने मुल्क के शहरों देहली मुम्बई और कलकत्ता वोरा से दूर हैं और दूसरे मुल्कों पाकिस्तान, बंगलादेश, बर्मा, चीन, तिब्बत, लंका, नेपाल के बाज शहरों से करीब हैं तो उन्हें आप चाँद के मामले में कहाँ की पैरवी करने का मशवरा देंगे अपने मुल्क की या जिन मुल्कों और शहरों से वह करीब हैं वहाँ की? और वह मतलअ के बारे में देहली, मुम्बई और कलकत्ता की मुवाफिक़त करेंगे या दूसरे मुल्कों के अपने से करीब इलाकों की?*
•••➲ खुलासा यह कि बगैर शरई सुबूत के महज रेडियो, तार व टेलीफोन की खबरों पर चाँद के मामले में एतिबार करना इस्लाम व कुरआन व हदीस के मुतलक़न ख़िलाफ़ है *फतावा आलम गीरी मिसरी जिल्द 3 सफह 357 में है।*..✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 69 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 171
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या 💉 इन्जेक्शन लगवाने से रोज़ा टूट जाता है ?❓*
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•••➲ *इन्जेक्शन चाहे गोश्त मे लगवाया जाये या रग मे इससे रोज़ा नही टूटता है। अलबत्ता उलेमाए किराम ने रोज़े मे इन्जेक्शन लगवाने को मकरूह फ़रमाता।*
•••➲ लिहाज़ा जब तक खास ज़रूरत न हो न लगवायें इस मसअले की तफ़सील व तहक़ीक जानने के लिए देखिऐ :-
📗 *फ़तावा फ़ैजुर्रसूल जिल्द 1 सफ़ह 517*
📘 *फ़तावा मरकज़ी दारूल इफ्ता सफ़ह 359*
•••➲ आम तोर पर देखा जाता है। एक तो हमारे भाई रोजे से नही रहते अगर रहते भी है। तो जेसे बो किसी पर अहसान करते हो ऐसे ज़ोरदारों का रोज़ा उनके मुँह पर मार दिया जाएगा जो रोजे की हालत मे अपने किसी भाई को तकलीफ पहुँचाए या उसके साथ बुरा बरताव करे अए मेरे रोजेदार भाईयों रोजा तो सब्र का नाम है। रोज़ा अल्लाह की इबादत का नाम है। जो हम जेसे गुनहगारो को *अल्लाह ने अपने हबीब सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* के सदके मे हमे अता किए है!..✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 71 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 172
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या 💉 इन्जेक्शन लगवाने से रोज़ा टूट जाता है ?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 171 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ हमारे कुछ भाई रोजे से तो रहते है। पर रोज़े की हालत मे गलत कामो मे मसगूल रहते है। चोराहो पर आकर बद्निगाही करते है। अपने मुँह से कहते है। अगर हमारा रोजा न होता तो हम फलां काम ऐसा कर देते बेसा कर देते जो अपने रोज़े की सरे आम नुमाइस करे उनका रोज़ा उनके मुँह पर मार दिया जाएगा नेक अमाल तो ऐसे है। जो अल्लाह और उसका करने बाला बन्दा बहतर जाने उसको कहते नेक काम करना रियाकारी करके तुम्हारा कोई नेक अमाल अल्लाह की बारगाह मे कुबूल न होंगा अए रोजेदारों अगर आख रत सुधारनी है। तो सच्चे दिल से अल्लाह की बारगाह मे ऱूज़ू करना सीख जाओ मे दावे के साथ कहता हू। अगर तुम्हारे किसी नेक काम मे दिखावा न होगा तो दुनिया भी सबर जाएगी आखिरत भी सबर जाएगी।
•••➲ दुआ है पाक परबरदिगार से हम सब मुसलमानो को सही मायनो मे नमाज़ रोज़े का पाबंद बना दे इस माहे मुबारक का सदका अता फरमाऐ!..✍️
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 173
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या रमज़ान की रातों में शौहर और बीवी का हमबिस्तर होना गुनाह हैं।*❓
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ अवाम मे कुछ लोग ऐसा ख़्याल करते है। हालाँकि यह उनकी ग़लतफहमी है। माहे रमज़ान मे इफ़्तार के वक़्त से ख़त्मे शहरी तक रात मे जिस तरह खाना पीना जाइज़ है। उसी तरह बीवी और शौहर का हमबिस्तर होना और सुबहत व मुजामअत बिला शक जाइज़ है। और और बकसरत अहादीस से साबित है। बल्कि कुर्आन शरीफ़ मे ख़ास इसकी इजाज़त के लिए आयते करीमा नाजिल़ फरमाई गई।
•••➲ *इरशादे बारी तआला है :-* *तर्जमा :-* तुम्हारे लिऐ रोजे की रातों मे औरतो से सुबहत हलाल की गई वो तुम्हारे लिए लिबास हैं तुम उनके लिए लिबास। 📖 *पारा 2 रूकूअ 7*
•••➲ खुलाशा यही है। कुछ जाहिलाना लोग इसको गलत समझते है। लेकिन ऐसा कुछ नही अल्लाह ने जेसे आम रातो मे बीवी के साथ सुबहत जाइज़ की है। इसी तरह रमज़ान की रातो मे बिला शक जाइज़ है। ख़्याल रहे रातो मे रोज़े की हालत मे दिन में नहीं खासकर रोज़दार को अपने रोज़े की हिफाजत ख़ुद करनी होती हैं!...✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 174
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या रमज़ान की रातों में शौहर और बीवी का हमबिस्तर होना गुनाह हैं।*❓
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 173 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ वो इसलिए रोज़ेदार का रोज़ा अल्लाह और उसके बन्दे के दरमियांन का होतां जिसको अल्लाह और अल्लाह के बन्दो के शिवा तीसरा कोई नही जानता है। अब जरा सोचो मुसलमानो रोज़दार अपने रब के कितने करीब न होंगा कुर्आन बान जाओ *प्यारे आका सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* जिनके सदके मे अल्लाह तआला ने यह महीना हम गुनहगारो को अता किया है। रोज़ा भूख प्यास नमाज़े पढ़ने का नाम नहीं रोज़ा तो वह है। जिससे रखनें के बाद अल्लाह और अल्लाह के *महबूब सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* के शिवा कोई दुनियाँवी खराबी मे मसगूल न हो ऐसा रोज़ेदार का रोज़ा बिला शक अल्लाह तआला की बारगाह मे मक़बूल है।
•••➲ कुछ रोज़ेदार रोज़े की हालत मे रहकर इतना थूखते है। जिसकी कोई हद नही है। और दूसरे को अहसास कराते है। हम रोज़े से है। यह रिया कारी होंगी रिया कारी करने बालो का रोज़ा अल्लाह पसन्द नही करता है। और दूसरी बात अगर बह हद से ज्यादा थूकेगा तो जल्द ही उसे प्यास की सिद्दत महसूश होने लगेगी जिससे रोज़ेदार की हालत कमजोर होतीं है। मे अपने उन भाई बहनो माँ से कहना चाहता हू। थूक को गुटकने से रोज़ा नही जाता है। यह भी गलतफहमी आवाम मे मशहूर है। हा मुँह भरकर थूक को अन्दर निगलने से रोज़ा मकरूह होता है। पर टूटता नही है। मुँह भर के थूक गुटकना आम दिनो मे भी मकरूह है। लेकिन थोड़ा थूक अगर आप अन्दर निगलते है। तो उससे रोज़ा नही जाता है। इस बात का खास ख़्याल रखे।...✍️
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 175
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या नापाक रहनें से रोज़ा टूट जाता है।..*❓
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•••➲ अगर कोई शख़्स रोज़ा रखकर दिन मे नापाक रहें और इस नापाकी की वजह से उसकी नमाज़ छूटती है। तो उसके ऊपर नमाज़ छोड़ने का गुनाहे अज़ीम होगा क्यूँकी फ़र्ज नमाज़ छोड़कर इस्लाम मे बड़ा गुनाह है। अंर जहन्नम का रास्ता है।
•••➲ लेकिन इस नापाकी का उसके रोज़े पर कोई असर नहीं पड़ेगा यअनी रोज़ा हो जायेगा। यह ख़्याल करना कि नापाकी की हालत मे रोज़ा नही होंगा, ग़लतफहमी है। पाक रहना नमाज़ के लिए शर्त है। रोज़े के लिए नही चाहे दिन भर नापाक रहे तब भी रोज़ा बाक़ी रहेंगा लेकिन यह नापाक रहना मोमिन की शान नहीं क्यूँकी इस तरह नमाज़े क़ज़ा होंगी।
•••➲ अहादीश करीमा की रोशनी मे इस मसअले की तहक़ीक व तफ़सील जिसे देखना हो वह *फ़तावा रज़विया जिल्द 4 सफ़हा 615 को देखे!*...✍️
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 72 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 176
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या नापाक रहनें से रोज़ा टूट जाता है।..*❓
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 175 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ खुलासा यही है। नापाक रहने से भी रोज़ा मे कोई फर्क नही होंगा लेकिन मोमिन की यह शान नही के वह नापाक रह कर रोज़े रखे मुसलमान थो और इस्लाम तो पाकी का नाम है। जिसको देख कर गैर क़ौम भी हमसे इबरत हासिल करती है। हमारी पाकी का डंका तो पूले जहान मे बजता है। फिर क्यूँ हम इतने पाक मुकद्दश महीने के रोज़ो को नापाक रहकर रखें।
•••➲ रोजे रखना हर मुसलमान मर्द औरत बालिग बच्चों पर फ़र्ज है। लेकिन कुछ हमारे भाई माँ बहिने मज़बूरी के चलते रोज़ा छोड़ देते है। उनकों यह मालूम होना चाहिएं यह रोज़े अल्लाह ने हम पर फ़र्ज किए है। अगर मज़बूरी मे हमने रोज़े को छोड़ा है। तो इसका कफ्फारा भी करना होगा रमज़ान के बाद इसके रोज़ो का कफ्फारा करने के लिए अपने पास के उलमा से ऱूज़ू करे और सही तरीके रोज़े का कफ्फारा अदा करे।...✍️
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 177
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या नापाक रहनें से रोज़ा टूट जाता है।..*❓
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 176 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ मोमनो शहरी खाया करो चाहे एक लुक्मा क्यूँ ना खाओ यह *प्यारे आक़ा सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* की सुन्नत मुबारका है। इससे महरूम मत रहा करों कुछ हमारे भाई है। जो बगैर शहरी का रोज़ा रहकर चारो तरफ सुनाते है। आज हम बगैर शहरी का रोज़ा है। ऐसा करनें बालो इबरत हासिल करना चाहिए एक तो *अल्लाह* अपने *प्यारे महबूब सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* की अज़ीम सुन्नत से महरूम किया उनको सोचना चाहिएं *अल्लाह* हमने ऐसी कोंन सी खता या ग़लती हुई जिसकी बजह से *परबरदिगार* ने हमे इतनी अनमोल और कीमती सुन्नत से महरूम रखा उस ग़लती के लिए *अल्लाह तआला* से सिद्के दिल से तौबा करे और माफ़ी तलब करे *अल्लाह तआला* को तौबा करने बाला बहुत पसंद है। दूसरी ग़लती जो सुनाता फिरता है। मेने शहरी नही की बह अपने रोज़े की नुमाइस करता है। और रिंया कारी करता है। जो *अल्लाह तआला* को सबसे ज्यादा न पसन्द है। फेसला आपके हाथ मे *अल्लाह तआला* रजा मे राज़ी होना है। या अपने दिखाबे मे खुश होना है। करलो तौबा अभी रहमत बरसती है। माँग लो रों कर ख़ुदा से अपनी निज़ात मग़फिरत अल्लाह आपने बन्दो को महरूम न करेगा।
•••➲ आप सभी हजरात इस गुनाहगार को अपनी ख़ास दुआओं मे याद रखें अल्लाह तआला आपकी हर नेक दुआओं को आपके रोज़ा नमाज़ो को अपनी बारगाह मे कुबूल करें।...✍️
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 72 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 178
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या 12 मई को सुरैय्या तारे से कोरोना वायरस खत्म हो जाएगा..!?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ *सुरैय्या* सितारे के बारे मैं क्या फरमाते हैं उलेमा ए अहले सुन्नत एक तक़रीर में बताया गया है कि जिस सुबह ये सितारा निकलता है उस वक़्त अल्लाह अज़्ज़वज़ल पूरी ज़मीन से हर वबा बीमारी को दूर फरमा देता है उसी तक़रीर में बताया गया है कि जो इल्मे नुजूम के माहिरीन हैं उन्होंने 12 मई की तारीख बताई है इस सितारे के तुलुए होने की हकीकत को आइये समझते है।
•••➲ सुरैय्या सितारे के तुळु'ए होने से जो बीमारी खत्म या कम होने का अहादीस में आया हैं वो खास फुलो की बीमारी के त'अल्लुक़ से इंसानी या आम बीमारी के त'अल्लुक़ से नही।
•••➲ सुरैय्या सितारे के त'अल्लुक़ से जो अहादीस वाईद हैं उनमे से ब'एज़ मुतलक़ हैं यानी इस बात की वज़ाहत करती हैं कि कोई भी बीमारी सुरैय्या सितारे के तुलु'ए होने से खत्म हो जाएगी या कम हो जाएगी, और ब'एज़ अहादीस मुक़ीद हैं यानी इस बात को बयां करती हैं कि सुरैय्या सितारा तुलु'ए होने से फुलो की बीमारी खत्म हो जाएगी।
•••➲ मगर इन अहादीस के तहेत मा'ना में उलेमा ए किराम में इख़्तेलाफ़ हैं, लिहाज़ा इन अहादीस की बिना पर यकीनी तौर पर ये नहीं कहा जा सकता की इसे इंसानी बीमारी यानि 12 मई के बाद कोरोना वायरस भी खत्म हो जाएगा, या कम हो जाएगा!
•••➲ अलबत्ता ब'एज़ अहादीस के ज़ाहिरी मा'ना को ले कर और उलेमा के ब'एज़ अक़वाल के पेशे नज़र अल्लाह त'आला से उम्मीद की जा सकती हैं कि वो सुरैय्या के तुलु'ए से ये कोरोना वायरस या और कोई इंसानी वबा कम या खत्म कर दें।
•••➲ मगर इसका मतलब ये नहीं की ये तहेत मा'ना के इख़्तेलाफ़ के बावजूद हम ये कहे की हुज़ुर ﷺ ने फरमा दिया 12 मई को ये हो कर रहेगा, और नजात मिल कर रहेंगी, नहीं ऐसा नहीं कह सकते क्यों की इन अहादीस के तहेत मा'ना में इख़्तेलाफ़ हैं।...✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अबरार अहमद अमज़दी साहब क़िबला, मरकज़ी तरबीयत इफ्ता 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 179
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या 12 मई को सुरैय्या तारे से कोरोना वायरस खत्म हो जाएगा..!?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 178 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ सुरैय्या सितारा 12 मई को तुलु'ए होगा जैसा की हदीस पाक और उलेमा ए किराम के क़ौल से ज़ाहिर हैं।
•••➲ इमाम तहावी रहमतुल्लाह अलैहि मज़ीद वज़ाहत कर रहे हैं की सुरैय्या सितारा मई महीने की 12 तारीख को तुलु'ए होगा।
•••➲ इमाम क़ुर्तुबी ने फ़रमाया की हो अज़ बे'अ में में समर पकने की शर्त उसी पर बे की वो फल पूरा पुख्ता हो जाये की फिर खामे के लाइक समझा जाये और आसमानी आफत के नुज़ूल से महफ़ूज़ हो जाए। आसमानी आफत से कहकशा के तुलु'ए से पहले का वक़्त मुराद हैं इस लिए की आईएम सितारो के तुलु'ए से पहले कच्चे क़िस्म के फल तोड़े जाये तो वो फल ख़राब हो जाते हैं, अल्लाह त'आला ने अपनी क़ुदरत का निज़ाम फलो के लिए ऐसे ही बनाया हैं।
•••➲ हदीस शरीफ में हैं हजरत अबू हुरैरा रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने रिवायत किया की हुज़ुर ﷺ ने फ़रमाया की जब सुबह के वक़्त कहकशा तुलु'ए होता हैं तो आसमानी आफत दफ़ा हो जाती हैं।
•••➲ फ़सल रबी'ए कस तीन आख़री महीनों के पहले माह की 12 वी तारीख के बाद कहकशा का सुबह के तुलु'ए का आगाज़ होता हैं और वो तीन माह ये हैं 1 मार्च 2 अप्रैल 3 मई गोया माह की 12 तारीख के बाद कहकशा के सुबह के वक़्त तुलु'ए के वक़्त आगाज़ होता हैं।..✍️
*📕 तफ़्सीरे रुहुल बयान, जिल्द - 8*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अबरार अहमद अमज़दी साहब क़िबला, मरकज़ी तरबीयत इफ्ता 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 180
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या 12 मई को सुरैय्या तारे से कोरोना वायरस खत्म हो जाएगा..!?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 179 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ सुरैय्या सितारे के मुताल्लिक़ अहादीस में हैं!
عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ، قَالَ: إِذَا طَلَعَ النَّجْمُ ذَا صَبَاحٍ، رُفِعَتِ الْعَاهَةُ
•••➲ *तर्जमा* हज़रत अबु हुरैरा रादिअल्लाहु तआला अन्हु से मरवी हैं रसूलल्लाह ﷺ ने फ़रमाया जब सुबह नजाम यानि सिरैय्या सितारे निकले तो वबा दूर हो जाएगी।
*📔 मुसनद अहमद, ज़िल्द 14 सफ़ह 192 हदीस 8495*
عَنْ أَبِي سَعِيدٍ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: ((مَا طَلَعَ النَّجْمُ ذَا صَبَاحٍ إِلا رُفْعِتْ كُلُّ آَفَةٍ وَعَاهَةٍ فِي الأَرْضِ أَوْ مِنَ الأَرْضِ))
•••➲ हज़रत अबू सईद खुदरी की रिवायत में हैं रसूलल्लाह ﷺ ने फ़रमाया जब भी नजाम यानि सुरैय्या सितारा तुलु'ए होगा तो उस वक़्त ज़मीं की हर आफत को खत्म कर देंगा!..✍️
*📕 तारीखे जारजान, सफह - 292*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अबरार अहमद अमज़दी साहब क़िबला, मरकज़ी तरबीयत इफ्ता 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 181
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या 12 मई को सुरैय्या तारे से कोरोना वायरस खत्म हो जाएगा..!?❓*
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 180 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ इन रिवायत से मालूम होता है कि कोई बीमारी ख्वा फल से मुताल्लिक़ हो या उसका त'अल्लुक़ इंसान से हो, अगर वबा पाई जाती हैं तो सुरैय्या सितारे के तुलु'ए होने से खत्म या कम हो जाएगी।
•••➲ मगर ब'एज़ अहादीस मुक़ीद हैं यानि इस बात की वज़ाहत करती हैं कि सुरैय्या तुलु'ए होने से जो वबा दूए होती हे वो फल के त'अल्लुक़ से हैं।
•••➲ हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रादिअल्लाहु तआला अन्हुमा की रिवायत
عَنْ عُثْمَانَ بْنِ عَبْدِ اللهِ بْنِ سُرَاقَةَ قَالَ: كُنَّا فِي سَفَرٍ وَمَعَنَا ابْنُ عُمَرَ فَسَأَلْتُهُ، فَقَالَ: ((رَأَيْتُ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ لَا يُسَبِّحُ فِي السَّفَرِ قَبْلَ الصَّلَاةِ وَلَا بَعْدَهَا))
قَالَ: وَسَأَلْتُ ابْنَ عُمَرَ عَنْ بَيْعِ الثِّمَارِ، فَقَالَ: ((نَهَى رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ عَنْ بَيْعِ الثِّمَارِ حَتَّى تَذْهَبَ الْعَاهَةُ)) قُلْتُ: أَبَا عَبْدِ الرَّحْمَنِ وَمَا تَذْهَبُ الْعَاهَةُ، مَا الْعَاهَةُ؟ قَالَ: ((طُلُوعُ الثُّرَيَّا))
•••➲ *तर्जुमा :* रसूलल्लाह ﷺ ने वबा के जाने से पहले फल बेचने से मन'अ फ़रमाया, रवि कहते हैं मैंने अर्ज़ किया : अये अबू अब्दुर रहमान : वबा का जाना क्या हैं, वबा क्या हैं ? अबू अब्दुर रहमान रादिअल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया, सुरैय्या सितारा का तुलु'ए होना।...✍️
*📕 मुसनद अहमद, ज़िल्द 9 सफ़ह 56 हदीस 5012*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 182
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या 12 मई को सुरैय्या तारे से कोरोना वायरस खत्म हो जाएगा..!?❓*
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•••➲ और हज़रत अबू हुरैरा रादिअल्लाहु तआला अन्हु की रिवायत में हैं
((إِذَا طَلعت الثُريِّا أمِنَ الزَّرْعُ مِنَ العاهَةِ)) طص عن أبي هريرة - رضي الله عنه
•••➲ जब सुरैया सितारा तुलु'ए हो जाये तो खेती वबा से महफ़ूज़ हो जाती हैं!
*📔 जामे उल सग़ीर लील इमाम सुयूति, हदीस-15587*
•••➲ इन मुक़ीद रिवायत और अहादीस से पता चलता हैं की सुरैय्या तुलु'ए होने से जो वबा दूर होती हैं इसका तअल्लुक़ फलो की बीमारी से हैं।
•••➲ दोनो तरह की अहादीस के बाद उलेमा की तरफ़ जु'ए करते हैं कि वाज़ेह हो जाता हैं की इस मुआमला में अक्सर उलेमा भी इसी बात के क़ाइल हस की सुरैय्या से जो वबा खत्म होती हैं उससे मुराद फलो की वबा हैं।
•••➲ लिहाज़ा वाज़ेह हैं कि,
एक हदीस दुसरी हदीस की वज़ाहत करती हैं, इस लिए यहाँ सुरैय्या की वजह से दूर होने वाली वबा आम नहीं बल्कि फलो वाली वबा हैं।
•••➲ अक्सर उलेमा ए किराम सुरैय्या के जरिया फलो की वबा दूर होने के क़ाइल हैं, इस लिए हमें इन अहादीस को इंसानी वबा या आम वबा पर महमूल नहीं करना चहिये।
•••➲ सुरैय्या के तुलु'ए होने से बीमारी का दूर होना अग्लानी या लाज़मी नहीं।
•••➲ नतीजा ये हैं की सुरैया सितारा में बज़ात खुद कोई तासीर नहीं की वो वबा दूर करे, बल्कि अल्लाह त'आला ने उसको सिर्फ वबा दूर होने की अलामत बनाया हैं, यानि ये अक़ीदा होना ज़रूरी हैं की जब अल्लाह त'आला चाहेगा तभी सुरैया के तुलु'ए होने से वबा दूर होगी वरना नही। और हमारा यही अक़ीदा होता हैं की अल्लाह त'आला जब चाहे तो ही शिफ़ा हासिल होगी वरना नही।
•••➲ मगर अल्लाह त'आला से शिफ़ा याबी की उम्मीद क़वी रखे।
*🌹वल्लाहु आ'लम बिस-सवाब*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अबरार अहमद अमज़दी साहब क़िबला, मरकज़ी तरबीयत इफ्ता 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 183
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 ब्रेथ कैंसर वाली औरत को रोज़ा और नमाज़ का हुक्म !?❓*
•••➲ ब्रेथ कैंसर का ज़ख़्म है उसमे से गन्दा पानी निकलता है रुक रुक के और बदबू भी आती है ऐसे में रोज़ा या नमाज कैसे होगी।
⇩ 🕹 शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह 🕹 ⇩
•••➲ हुज़ुर सदृरुशशरियह अलैहिर रहमतो रिद्वान फरमाते हैं!
•••➲ हर वो शख्स जिसको ऐसी कोई बीमारी हैं की एक वक़्त पूरा ऐसा गुज़ार गया की वुज़ू के साथ नमाज़ फ़र्ज़ अदा न कर सका वो मजुर हैं उसका भी यही हुक्म हैं की वक़्त में वुज़ू करले और आखिर वक़्त तक जितनी नमाज़े चाहे उस वुज़ू से पढ़ें। उस बीमारी से उसका वुज़ू नहीं जाता जैसे क़तरे का मर्ज़ या दस्त आना या हवा ख़ारिज होना या दुखती आँख से पानी गिरना या फोड़े या नासूर से हर वक़्त रतूबत बहना या कान नाक या छाती से पानी निकलना की ये सब बीमारिया वुज़ू तोड़ने वाली हैं उनमे जब पूरा एक वक़्त गुज़र गया की हर चाँद कोशिश की मगर तहारत के साथ नमाज़ न पढ़ सका तो ये मजबूरी होगी औऱ माज़ूर समझा जाएगा।
•••➲ जब उज़्र साबित हो गया तो जब तक हर वक़्त में एक बार भी ये चीज़ पाई जाए माज़ूर ही रहेगा, जैसे औरत को एक वक़्त तो इस्तेहाज़ा ने तहारत की मोहलत दी अब इतना मौका मिलता हैं की वुज़ू करके नमाज़ पढ़ले मगर अब भी एक आध बार हर वक़्त में खून आ जाता हैं तो अब भी माज़ूर हैं, यु ही तमाम बिमारियों मे और जब पूरा वक़्त गुज़ार गया और खुन नहीं आया तो अब माज़ूर न रही जब फिर कभी पहली हालत पैदा हो किये फिर माज़ूर हैं उसके बाद फिर अगर पूरा वक़्त खाली गया तो उज़्र जाता रहा।
*📕 बहारे शरीयत, ज़िल्द -2, इस्तेहाज़ा का बयान*
•••➲ लिहाज़ा सूरते मस'अला में औरत को ब्रेथ कैंसर की बीमारी में अगर गन्दा पानी या खुन इस तरह आता हैं की फ़र्ज़ नमाज़ के पुरे वक़्त को इस तरह घेर ले की इतना भी वक़्त नहीं मिलता की उसमे वुज़ू करके एक वक़्त की नमाज़ पढ़ सके तो वो माज़ूर हैं। और माज़ूर का हुक्म ये हैं की हर नमाज़ के वक़्त के लिए ताज़ा वुज़ू करले और उस वक़्त में जितनी नमाज़ चाहे पढ़ें।
•••➲ रहा रोज़े का हुक्म तो इस मर्ज़ में रोज़ा रख सकती हैं कोई खास दिक़्क़त न होनी चाहिए वरना रुख्सत होगी, और इतने की क़ज़ा करेंगी।..✍️
*वल्लाहु आलम बिस-सवाब*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 184
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 रोज़े में नहा सकते हैं या नही !?❓*
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•••➲ रोज़े की हालत में ठण्डक हासिल करने के लिए नहाना जाइज़ हैं और इससे रोज़े पर कोई असर नहीं होगा और न ही रोज़ा टूटेगा।
•••➲ अलबत्ता अगर परेशानी ज़ाहिर करने के लिए बार बार नहाये तो ये ना-पसंदीदा हैं।
•••➲ जैसा की हुज़ुर सदृशशरिया अलैहिर रहमतो रिद्वान फरमाते हैं ठण्डक के लिए नहाना बल्कि बदन पर भीगा कपड़ा लपेटना मकरूह नहीं हां अगर परेशानी ज़ाहिर करने के लिए भीगा कपड़ा लपेटे तो मकरूह हैं कि इबादत में दिल तंग होना अच्छी बात नहीं।..✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 बहारे शरीयत ज़िल्द 5 सफ़ह 133 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 185
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 इफ़्तार की दुआ कब पढ़ें !?❓*
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•••➲ हुज़ुर फ़क़ीहै मिल्लत अलैहिर रहमतो रिद्वान फरमाते हैं रोज़ा इफ्तार करने की दुआ इफ्तार के बाद पढी जाए!
हदीस शरीफ में हैं कि :
عن معاذ بن زھرۃ قال النبی صلی اللہ تعالی علیہ و سلم کان اذا افطرقال الھم لک صمت وعلی رزقک افطرت
*📕 मिश्कत शरीफ, सफह - 175*
•••➲ हज़रत मौला अली कारी रहमतुल्लाह अलैहि मिरकात शरह मिश्कात में इस हदीस शरीफ की शरह करते हुवे तहरीर फरमाते हैं कि :
کان اذا افطر قال ای دعاو قال ابن المللک ای قرأ بعد الا فطار ھذا ماعندی
*📔 फ़तवा फैजुर रसूल, ज़िल्द 1 सफ़ह 516*
•••➲ और हुज़ुर फैज़ अहमद ओवैसी अलैहिर रह्मा फरमाते हैं :
اللَّهُمَّ اِنِّى لَكَ صُمْتُ وَبِكَ امنْتُ وَعَلَيْكَ تَوَكَّلْتُ وَعَلَى رِزْقِكَ اَفْطَرْتُ
•••➲ *तर्जुमा :* ए अल्लाह मैंने तेरे लिए ही रोज़ा रखा और तुझी पर इमांन लाया और तेरे ही दिए हुये रिज़्क़ से रोज़ा खोला।
•••➲ *मसअला :* ये हैं की ये दुआ रोज़ा खोलने के बाद पढी जानी चाहिए, यानि रोज़ा इफ्तार करने के बाद रोज़ा दार खा पी ले फिर मज़कूरा बला दुआ पढ़ें!
•••➲ ये दलील हैं इस बात की के काम रोज़ा रखना और इमान लाना पहले हैं यूँ ही وَعَلَى رِزْقِكَ اَفْطَرْتُ तेरे ही रिज़्क़ पर इफ्तार किया भी माज़ी हैं, जो की ये दलील हैं इस बात की के दुआ रोज़ाए व इफ्तार या'नि खाने पीने के बाद हो!
•••➲ *माखूज़ : (इफ्तार रोज़ा की दुआ की तहक़ीक़)*
माज़ीद तफ़सील के लिए *फतावा रजविया* का भू मुता'अला फरमाए।..✍️
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 इर्तुरगल ड्रामा देखना कैसा.. !?❓*
•••➲ अल्लाह के वली गाज़ी इर्तुरगल के नाम पर आज जो सीरियल फिल्म या ड्रामा बनाया जा रहा हैं क्या तारीख़े इस्लाम की मालूमात के लिए इसे देखना जाइज़ हैं?
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•••➲ गैर मुस्लिम और दीगर मज़हब वाले अपने झूठे खुदाओ के नाम पर फिल्म और ड्रामे बनाते आ रहे है अफ़सोस आज इस्लाम और दीगर बुज़ुर्गाने दींन और खास इस्लाम की अज़ीम हस्ती अल्लाह के वली गाज़ी इर्तुरगल रहमतुल्लाह अलैहि के नाम पर भी ड्रामे और फिल्मे बनाई जा रही हैं।
•••➲ इसी तरह इस्लाम के नाम पर फिल्म बनाना हक़ीक़त में ये इस्लाम का तमाशा बनाना हैं और जो लोग इस्लाम का तमाशा बनाते है उनके तअल्लुक़ से क़ुरआन करीम में वाज़ेह फरमान मौजूद हैं!
•••➲ अल्लाह त'आला क़ुरआन अज़ीम में इरशाद फरमाता हैं!
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَا تَتَّخِذُوا الَّذِیْنَ اتَّخَذُوْا دِیْنَكُمْ هُزُوًا وَّ لَعِبًا مِّنَ الَّذِیْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ مِنْ قَبْلِكُمْ وَ الْكُفَّارَ اَوْلِیَآءَۚ-وَ اتَّقُوا اللّٰهَ اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِیْن
*📔 सूरः माएदा आयत - 57*
•••➲ ऐ इमान वालो ! जो लोगो को तुम से पहले किताब दी गई उनमे से वो लोग जिन्होंने तुम्हारे दींन को मज़ाक़ और खेल बना लिया हैं उन्हें और काफिरो को अपना दोस्त न बनाओ और अगर इमान रखते हो तो अल्लाह से डरते रहो।..✍️
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❝हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 इर्तुरगल ड्रामा देखना कैसा.. !?❓*
•••➲ अल्लाह के वली गाज़ी इर्तुरगल के नाम पर आज जो सीरियल फिल्म या ड्रामा बनाया जा रहा हैं क्या तारीख़े इस्लाम की मालूमात के लिए इसे देखना जाइज़ हैं?
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 186 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ लिहाज़ा ये फिल्म और ड्रामा देखना और उसे आगे शेयर करना नाजायज व हराम हैं क्योंकि की ये फिल्म भी और फिल्मो की तरह हैं यानि इसमें बहुत से ख़िलाफ़े शरह काम पाये जाते हैं!
•••➲ *मसलन* मुसिक्, औरते, इश्क़े मिजाज़ी वग़ैरह जो बिला शुबा क़तअ'न हराम है।
•••➲ औऱ इस तरह की फ़िल्में अगर देखी जाएगी तो जब भी हमारे बुज़ुर्गो का तज़किरा होगा हमारा ज़हन इन फ़ासीको की तरफ जाएगा और ये बुज़ुर्गान ए दींन की तौहीन बे अदबी हैं।
•••➲ लेकिन क्योंकि इसमें इस्लाम की तारीख बताई गई हैं इस बिना पर लोग समझते है की इसके देखने में हर्ज नहीं और इसमें कुछ सीखने को भी मिलता हैं।
•••➲ लेकिन ये हक़ीक़त में शैतान का बहुत बड़ा धोखा हैं।
•••➲ अल्लाह त'आला क़ुरआन मजीद में इरशाद फरमाता हैं।
زَیَّنَ لَهُمُ الشَّیْطٰنُ مَا كَانُوْا یَعْمَلُوْنَ
*📕 सूरः अनाम आयत - 43*
•••➲ शैतान ने उनके आमाल उनके लिए आरास्ता कर दिए हैं।
•••➲ यानी काम तो गुनाह वाला हैं लेकिन शैतान से बहकाने से ये काम लोगो को बहुत अच्छा लगता है!...✍️
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 इर्तुरगल ड्रामा देखना कैसा.. !?❓*
•••➲ अल्लाह के वली गाज़ी इर्तुरगल के नाम पर आज जो सीरियल फिल्म या ड्रामा बनाया जा रहा हैं क्या तारीख़े इस्लाम की मालूमात के लिए इसे देखना जाइज़ हैं?
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 187 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ खुदारा तारीख़े इस्लाम का मज़ाक़ ना उडाओ आज जो मुस्लमान इस ड्रामे को शौक से देख रहे है कल म'आज अल्लाह हमारे नबी की सीरत पर भी फिल्मे बनाई जाएगी तो क्या लोग ये कह कर फिल्मे देखेंगे की इस से कुछ सीखने मिलता हैं! *अस्तग़्फ़िरूल्लाह*
•••➲ जिसे तारीख़ी इस्लाम का शोक हो तो वो किताबो का मुता'अला क्यों नहीं करता लेकिन चूंकि लोगो को फिल्मे देखना पसन्द हैं और ये इस्लाम के नाम पर एक ड्रामा बनाया गया हैं इस लिए लोग अपनी हवश पूरी करने के लिए इस्लाम की आड़ में ये ड्रामे देखते है।
•••➲ लेकिन याद रखना गलत कामों को देखना भी गलत कामो पर मदद करना हैं क्योंकि यूट्यूब पर उसकी वीडियो पर जितने यूज़र ज़्यादा होंगे उतनी ही उस फिल्म बनाने वाला को मदद मिलेगी और उसे माली नफ'ए भी होंगी।
•••➲ अल्लाह त'आला क़ुरआन मजीद में इरशाद फरमाता हैं!
وَلَا تَعَاوَنُوا عَلَى الْإِثْمِ وَالْعُدْوَانِ ۚ
*📕 सूरः माइदा आयत - 2*
•••➲ गुनाह और ज़्यादती पर एक दूसरे की मदद न करो।
•••➲ लिहाज़ा ये फिल्म और ड्रामा और इसी तरह और फिल्मे और ड्रामे भी देखना नजाइज़ो हराम हैं।..✍️
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 हज़रत अली मुश्किल कुशा और सोलह सय्यिदों का रोज़ा !?❓*
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•••➲ कुछ जगह औरतें *अली मुश्किल कुशा रदिअलाहो तआला अन्हुमा* का रोज़ा रखती हैं। तो रोज़ा हो या कोई इबादत सब अल्लाह तआला के लिए ही होती है। हाँ अगर यह नियत कर ली जाए कि इस का सवाब *हज़रते अली रदीअल्लाहो तआला अन्हुमा* की रूहें पाक को पहुँचे तो यह अच्छी बात है। लेकिन इस रोज़े में इफ़्तार आधी रात में करतीं हैं और घर का दरवाज़ा खोल कर दुआ मांगती हैं। यह सब खुराफात और वाहियात और वहमपरस्ती की बातें हैं।
📙 *फ़तावा रजविया, जिल्द 4, सफ़ह 660*
•••➲ यूं ही 16 रजब को सोलह सय्यिदों को रोज़ा रखा जाता है। उसमें जो कहानी पढ़ी जाती है, वह गढ़ी हुई है।
*⚠️ NOTE :- हदीस शरीफ हज़रत अबू हुरैरा रज़ी अल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है के रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने फ़रमाया :* सब रोज़ों में अफ़ज़ल रोज़ा रमज़ान का रोज़ा है और उसके बाद *मुहर्रम* का रोज़ा है।
📗 *सहीह मुस्लिम हदीस 2755*
•••➲ अक्सर लोग इसमें कन्फ्यूज़ होते हैं के कितने रोज़े रखने हैं? तो जितना आप रख सकते हैं रखें जितना रखें उतना फायदा है। लेकिन 9/10 या 10/11 मुहर्रम के रोज़े ज़रूर रखें ये सुन्नत है। कुछ बाज़ औरते और आदमी मोहर्रम मे मछली खाने से परहेज़ करते है। यह सब उनकी गलतफहमी है। इस्लाम मे ऐसी बातों की कोई अस्ल नही है। मछली खाना जाइज़ है और उस पर फातहा भी हो सकती है। चाहे रमज़ान मुबारक का महीना हो या माहे मोहर्रमुल हराम का महीना हो।...✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 73 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 190
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 ज़क़ात से मुतअल्लिक़ कुछ ग़लतफ़मियाँ !?❓*
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•••➲ *कुछ लोग फ़क़ीरों म मस्जिदों, मदरसों को यूँही देते रहते है। और बाक़ाइदा ज़कात नही निकालते उनसे कहा जाता है। कि आप जकात निकालिये तो कह देते है। कि हम वैसे ही राहे खुदा मे काफी खर्च करते रहते है। यह उनकी सख़्त गलतफहमी है। आप हजार राहे खुदा मे खर्च करदे लेकिन जब तक हिसाब करके नियते ज़कात से ज़कात अदा न करेगे आप के इख़राजात जो राहे खुदा ही मे किये है। यह ज़कात न निकालने के अज़ाब व बबाल से आपको बचा नही सकेंगे।*
•••➲ हदीश शरीफ़ मे है। कि जिसको अल्लाह तआला माल दे और वह उसकी ज़कात अदा न करे तो क़ियामत के दिन वह माल गंजे सांप की शक्ल मे कर दिया जाएगा जिसके सर पर दो चोटियां होंगी वह सांप उनके गले मे तौक बना कर डाल दिया जाएगा। फिर उसकी बांछें पकड़ेगा और कहेगा मै तेरा माल हूँ मै तेरा ख़जाना हूँ। ख़ुलासा यह कि राहे ख़ुदा मे ख़र्च करने के जितने तरीक़े है। उनमे सबसे अव्वल ज़कात है। नियाज़ नज़्र और फ़ातिहायें वगैरा भी उसी माल से की जाये जिसकी ज़कात अदा की गई हो। वरना वह क़ाबिले क़बूल नहीं। अपनी ज़कात खुद खाते रहना और राहे ख़ुदा मे ख़र्च करने वाले बनना बहुत बड़ी ग़लतफहमी है। और शैतान का धोखा है। इस मसअले की ख़ूब तहक़ीक और तफसील देखना हो तो *आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा ख़ाँ रहमतुल्लाह तआला अलैह* बरेलवी की तसनीफ *"अअज़्जुल इकतिनाह"* का मुतालआ कीजिये। ज़कात सिर्फ़ साल मे एक बार निकलती है। और वह एक हज़ार मे 25 रूपये है। लह जो कि साहिबे निसाब पर निकालना फ़र्ज है। मसाइले ज़कात उलमा से मालूम किये जायें और बाक़ाइदा ज़कात निकाली जाए। ताकि नियाज़ व नज्र और सदका व खैरात भी क़ुबूल हो सके।..✍️
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 73-74 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 191
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 एतिकाफ़ मे चुप रहना !?❓*
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•••➲ कुछ लो एतिकाफ़ मे चुपचाप बैठे रहने को ज़रूरी समझते हैं हालाँकि एतिकाफ़ मे चुप रहना न ज़रूरी न महज ख़ामोशी कोई इबादत बल्कि चुप रहने को सबाब की बात समझना मकरूहे तहरीमी है!
📗 *बहारे शरीअत हिस्सा 5 सफ़ह 153*
•••➲ *अल्बत्ता बुरी बातों से चुप रहना ज़रूरी है। खुलासा यह कि एतिकाफ़ की हालत मे कुर्आन मजीद की तिलावत करे तसवीह व दुरूद का विर्द करे नफ़्ल पढ़े दीनी किताबों का मुताअला करें दीन की बाते सीखने और सिखाने मे कोई हरज नही बल्कि इबादत है। ज़रूरत के वक़्त कोई दुनिया की जाइज़ बात भी की जा सकती है। इससे एतिकाफ़ फ़ासिद नही होगा । हाँ ज़्यादा दुनियावी बातचीत से एतिकाफ़ बेनूर हो जाता है। और सबैब कम होता है।*
•••➲ *एतिकाफ़ पर बैठना यह भी एक सुन्नत है। जिसको हर इन्सान को अगर हर साल न कर सके तो ज़िन्दगी मे एक मर्तबा एतिकाफ़ पर बैठना चाहिए एतिकाफ़ एक ऐसी इबादत है। किसी एक बैठने से पूरी बस्ती को अजाब से निजात मिलतीं है। माशा अल्लाह किसी एक शख्श के बेठने से पूरी बस्ती का अजाब उठा लिया जाता है। अगर पूरी बस्ती मे 4-5 मस्जिद हो और हर मस्जिद मे एतिकाफ़ पर कई हजरात बैठें हो अल्लाह हुअकबर उस बस्ती पर अल्लाह अपनी रहमतो को नुजूल बरसाता होगा कुर्बान जाओ लब पर जिसने हम गुनहगारों को इतना सब दिया लेकिन हम उसका भी गलत फायदा उठाते है।*
•••➲ आजकल ज्यादा देखा जाता है। मस्जिदों मे कम उम्र बाले ज़्यादा और हमारे बुजुर्ग कम बैठते है। अल्लाह पाक सबको बैठने की तोफीक दे बहिर हाल मेरे कहने का मकसद यह है। जो हमारी आज की जनरेशन है। एतिकाफ़ पर बैठती है। उनके साथ उनके कई दोस्त यार एक दूसरे को देख कर बेठते है। लेकिन हम अपने उन नोजवान भाईयों से इतना कहना चाहता हू। अए मेरे भाई *अल्लाह ने अपने हबीब सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* के सदके मे यह रातें हमे दी है। इनकी कद्र करो अक्सर देखा जाता है। हमारे नौजवान भाई पूरी रात जागते है। पर इबादत मे नही फ़ोन मे बिजी रहते है। या बातो मे मसगूल रहते है। मे उनसे इतना पूँछना चाहूँगा क्या *अल्लाह तआला* तुम्हारे एतकाफ हो कुबूल करेगा या नही सोचो मेरे नौजवान भाईयों अगर तुमने एतिकाफ़ की नियत की है। उसे सही तरीके से निभाओ जिससे *अल्लाह और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* राजी हो जाए।
•••➲ दुआ है। रब तबारक तआला से हमे सही मायनो मे शरीयत का पाबंद बना दे।..✍️
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 73-74 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 192
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 क्या रमज़ान की रातों में शौहर और बीवी का हमबिस्तर होना गुनाह हैं। !?❓*
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•••➲ अवाम मे कुछ लोग ऐसा ख़्याल करते है। हालाँकि यह उनकी ग़लतफहमी है। माहे रमज़ान मे इफ़्तार के वक़्त से ख़त्मे शहरी तक रात मे जिस तरह खाना पीना जाइज़ है। उसी तरह बीवी और शौहर का हमबिस्तर होना और सुबहत व मुजामअत बिला शक जाइज़ है। और और बकसरत अहादीस से साबित है। बल्कि कुर्आन शरीफ़ मे ख़ास इसकी इजाज़त के लिए आयते करीमा नाजिल़ फरमाई गई।
•••➲ *इरशादे बारी तआला है : तर्जमा :-* तुम्हारे लिऐ रोजे की रातों मे औरतो से सुबहत हलाल की गई वो तुम्हारे लिए लिबास हैं तुम उनके लिए लिबास। *पारा 2 रूकूअ 7*
•••➲ खुलाशा यही है। कुछ जाहिलाना लोग इसको गलत समझते है। लेकिन ऐसा कुछ नही अल्लाह ने जेसे आम रातो मे बीवी के साथ सुबहत जाइज़ की है। इसी तरह रमज़ान की रातो मे बिला शक जाइज़ है। ख़्याल रहे रातो मे रोज़े की हालत मे दिन में नहीं खासकर रोज़दार को अपने रोज़े की हिफाजत ख़ुद करनी होती है। वो इसलिए रोज़ेदार का रोज़ा अल्लाह और उसके बन्दे के दरमियांन का होतां जिसको अल्लाह और अल्लाह के बन्दो के शिवा तीसरा कोई नही जानता है। अब जरा सोचो मुसलमानो रोज़दार अपने रब के कितने करीब न होंगा कुर्आन बान जाओ *प्यारे आका सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* जिनके सदके मे अल्लाह तआला ने यह महीना हम गुनहगारो को अता किया है। रोज़ा भूख प्यास नमाज़े पढ़ने का नाम नहीं रोज़ा तो वह है। जिससे रखनें के बाद अल्लाह और अल्लाह के *महबूब सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* के शिवा कोई दुनियाँवी खराबी मे मसगूल न हो ऐसा रोज़ेदार का रोज़ा बिला शक अल्लाह तआला की बारगाह मे मक़बूल है।
•••➲ कुछ रोज़ेदार रोज़े की हालत मे रहकर इतना थूखते है। जिसकी कोई हद नही है। और दूसरे को अहसास कराते है। हम रोज़े से है। यह रिया कारी होंगी रिया कारी करने बालो का रोज़ा अल्लाह पसन्द नही करता है। और दूसरी बात अगर बह हद से ज्यादा थूकेगा तो जल्द ही उसे प्यास की सिद्दत महसूश होने लगेगी जिससे रोज़ेदार की हालत कमजोर होतीं है। मे अपने उन भाई बहनो माँ से कहना चाहता हू। थूक को गुटकने से रोज़ा नही जाता है। यह भी गलतफहमी आवाम मे मशहूर है। हा मुँह भरकर थूक को अन्दर निगलने से रोज़ा मकरूह होता है। पर टूटता नही है। मुँह भर के थूक गुटकना आम दिनो मे भी मकरूह है। लेकिन थोड़ा थूक अगर आप अन्दर निगलते है। तो उससे रोज़ा नही जाता है। इस बात का खास ख़्याल रखे।...✍️
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 71 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मस्जिदों में आवाज़ करने वाले पंखो कूलरों का मसअला !?❓*
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•••➲ *आजकल कितने लोग हैं जो मस्जिदों में आते हैं तो उन्हें नमाज से ज्यादा अपने आराम, चैन व सुकून गर्मी और ठन्डक की फ़िक्र रहती है अपनी दुकानों, मकानों खेतों और खलिहानों, कामधन्धों में बड़ी बड़ी परेशानियाँ उठा लेने वाले मशक्कतें झेलने वाले जब मस्जिदों में दस पन्द्रह मिनट के लिए नमाज़ पढ़ने आते हैं। और जरा सी परेशानी हो जाए, थोड़ी सी गर्मी या ठन्डक लग जाए। तो बौखला जाते हैं, गोया कि आज लोगों ने मस्जिदों को आरामगाह और मकामे ऐश व इशरत समझ लिया है। जहाँ तक शरीअते इस्लामिया ने इजाजत दी है वहाँ तक आराम उठाने से रोका तो नहीं जा सकता लेकिन कुछ जगह यह देख कर सख्त तकलीफ़ होती है* कि मस्जिदों को आवाज़ करने वाले बिजली के पंखोंशोर मचाने वाले कूलरों से सजा देते हैं और जब वह सारे पंखे और कूलर चलते हैं तो मस्जिद में एक शोर व हंगामा होता है। और कभी कभी इमाम की किर्अत व तकबीरात तक साफ़ सुनाई नहीं देती या इमाम को उन पंखों और कूलरों की वजह से चीख़ कर किर्अत व तकबीर की आवाज निकालना पड़ती है। बाज जगह तो यह भी देखा गया है कि मस्जिदों में अपने ऐश व आराम की खातिर भारी आवाज वाले जनरेटर तक रख दिये जाते हैं जो सरासर आदावे मस्जिद के खिलाफ है। जहाँ तक बिजली के पंखों और कूलरों का सवाल है तो शुरू में अकाबिर उलमा ने इनको मस्जिद में लगाने को मुतलकन ममनू व मकरूह फरभाया था। जैसा कि *फतावा रजविया जिल्द 6 सय्हा 384* पर खुद *आलाहजरत इमामे अहलेसुन्नत मौलाना शाह अहमद रज़ा खाँ साहब अलैहिर्रहमतु वर्रिदवान* के कलम से इसकी तसरीह मौजूद है। अब बाद में जदीद तहकीकात और इब्तिलाए आम की बिना पर अगरचे इनकी इजाजत दे दी गई लेकिन आवाज़ करने वाले, शोर मचा कर मस्जिदों में एक हंगामा खड़ा कर देने वाले कूलरों और पंखों को लगाना आदावे मस्जिद और खुजू व खुशू के यकीनन ख़िलाफ़ है। उनकी इजाज़त हरगिज नहीं दी जा सकती। निहायत हल्की आवाज वाले हाथ के पंखों ही से काम चलाया जाए। कूलरों से मस्जिदों को बचा लेना ही अच्छा है क्यूंकि उसमें आमतौर से आवाज ज्यादा होती है न कि दर्जनों पंखे और कूलर लगा कर मस्जिदों में शोर मचाया जाए।...✍️
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 52 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 मस्जिदों में आवाज़ करने वाले पंखो कूलरों का मसअला !?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 193 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ भाईयो खुदाए तआला का ख़ौफ़ रखो। ख़ानए खुदा को ऐश व इशरत का मकाम न बनाओ वह नमाज़ व इबादत और तिलावते कुर्आन के लिए है जिस्म परवरी के लिए नहीं। नफ्स को मारने के लिए है नफ्स को पालने के लिए नहीं। मस्जिदों में आवाज करने वाले बिजली के पंखों का हुक्म बयान फ़रमाते हुए *आलाहजरत रदीअल्लाहो तआला अन्हु* फरमाते हैं।
"बेशक मस्जिदों में ऐसी चीज का एहदास ममनू बल्कि
ऐसी जगह नमाज़ पढ़ना मकरूह है।
📗 *फतवा रजविया जिल्द 6, सफ़ह 386*
•••➲ इस जगह आलाहजरत ने दुर्रेमुख्तार की यह इबारत भी नकल फ़रमाई है अगर खाना मौजूद हो और उसकी तरफ़ रगवत व ख्वाहिश हो तो ऐसे वक़्त में नमाज पढ़ना मकरूह है ऐसे ही हर वह चीज जो नमाज की तरफ से दिल को फेरे और खुशू में खलल डाले।
•••➲ मजीद फरमाते हैं ‘‘चक्की के पास नमाज मकरूह है! *रद्दुलमुख्तार में है शायद इसकी वजह यह है कि चक्की की आवाज दिल को नमाज़ से हटाती है।"*
•••➲ वह पंखे जो खराब और पुराने हो जाने की वजह से आवाज करने लगते हैं उनको दुरुस्त करा लेना चाहिए या मस्जिद से हटा देना चाहिए
*⚠️ NOTE* : - हमे अपने कल्बी सुकून की खातिर मस्जिद के अहितराम को न भूलना चाहिए बल्की अपनी नफ्स को फना कर देने मे ही सहूलियत और अल्लाह तआला की खुशनूदगी है।...✍️
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 53 📚*
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*📝 क्या जमाअत से नमाज़ पढ़ने वाले को इमाम के साथ दुआ मांगना भी जरूरी है !?❓*
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•••➲ हर नमाज़ सलाम फेर ने पर मुकम्मल हो जाती है। उसके बाद जो दुआ माँगी जाती है। यह नमाज़ मे दाखिल नही। अगर कोई शख़्स नमाज़ पढ़ने यानी सलाम फेरने के बाद बिल्कुल दुआ न मांगे तब भी उसकी नमाज़ मे कमी नही। अलबत्ता एक फजीलत हे मेहरूमी और सुन्नत के खिलाफ वर्जी है। कुछ जगह देखा गया इमाम लोग बहुत लम्बी लम्बी दुआऐ पढ़ते है। और मुकतदी कुछ ख़ुशी के साथ और कुछ बे रगबती से मजबूरन उनका साथ निभाते है। और कोई बग़ैर दुआ मागे या थोड़ी दुआ मांग कर इमाम साहब का पूरा साथ दिये बग़ैर चला जाए तो उसपर ऐतराज करते है। और बुरा जानते है। यह सब उनकी ग़लतफ़मियाँ हैं। इमाम के साथ दुआ मांगना मुक़तदी के ऊपर हरगिज़ लाजिम व जरूरी नही वह नमाज़ पूरी होने के बाद फौरन मुखतसर दुआ मांग कर भी जा सकता है। और कभी किसी मजबूरी और उज्र की बिना पर बग़ैर दुआ मांगे चला जाए तब भी नमाज़ मे कमी नही आती हवाले के *फ़तावा रज़विया जिल्द सोम सफ़हा 278 देखे)*।...✍️
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 41 📚*
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*📝 रमज़ान का आखिरी जुमुआ और क़ज़ा नमाज़ !?❓*
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•••➲ कुछ लोग इस गलत फहमी में मुब्तला हैं के रमज़ान के आखिरी जुमे को चंद रकअतें पढ़ने से पूरी उम्र की क़ज़ा नमाज़ें मुआफ़ हो जाती है।
•••➲ बाज़ जगहों पर तो इस का खास एहतेमाम भी किया जाता है के मानो कोई बम्पर ऑफर आया हो।
•••➲ एक मर्तबा मैंने अपने मुहल्ले की मस्जिद में देखा के एक इश्तेहार लगा हुआ है जिस में पूरी उम्र की क़ज़ा नमाज़ों को चुटकी में मुआफ़ करवाने का तरीका लिखा हुआ था और ताईद में चंद बे असल रिवायात भी लिखी हुई थी!
•••➲ मैंने फौरन उस इश्तेहार को वहाँ से हटा दिया और उस के लगाने वाले के मुतल्लिक दरियाफ्त किया लेकिन कुछ मालूम न हो सका।
•••➲ ऐसा ऑफर देखने के बाद वो लोग जिन की बीस तीस साल की नमाज़ें क़ज़ा है, अपने जज़्बात पर काबू नही कर पाते और असल जाने बिग़ैर इस पर यकीन कर लेते हैं।
•••➲ इस तरह की बातें बिल्कुल गलत हैं और इन की कोई असल नही है, उलमा -ए- अहले सुन्नत ने इस का रद्द किया है और इसे नाजायज़ क़रार दिया है।
•••➲ इमाम -ए- अहले सुन्नत, आला हज़रत रहिमहुल्लाहू त'आला इस के मुताल्लिक़ लिखते हैं के ये जाहिलों की ईजाद और महज़ नाजायज़ व बातिल है।
(انظر: فتاوی رضویہ، ج7، ص53، ط رضا فاؤنڈیشن لاہور)
•••➲ इमाम -ए- अहले सुन्नत एक दूसरे मकाम पर लिखते हैं के आखिरी जुमु'आ में इस का पढ़ना इख़्तिरा किया गया है और इस में ये समझा जाता है के इस नमाज़ से उम्र भर की अपनी और अपने माँ बाप की भी क़ज़ाये उतर जाती है महज़ बातिल व बिदअत -ए- शनिआ है, किसी मोतबर किताब में इस का असलन निशान नही।
(ایضاً، ص418، 419)
•••➲ सदरुश्शरिआ, हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अमजद अली आज़मी रहिमहुल्लाहू त'आला लिखते है के शबे क़द्र या रमज़ान के आखिरी जुमे को जो ये क़ज़ा -ए- उमरी जमा'अत से पढ़ते हैं और ये समझते है के उम्र भर की क़ज़ाये इसी एक नमाज़ से अदा हो गयी, ये बातिल महज़ है।
(بہار شریعت، ج1، ح4، ص708، قضا نماز کا بیان)
•••➲ हज़रत अल्लामा शरीफुल हक़ अमजदी अलैहिर्रहमा ने भी इस का रद्द किया है और इस कि ताईद में पेश की जाने वाली रिवायात को अल्लामा मुल्ला अली क़ारी हनफ़ी अलैहिर्रहमा के हवाले से मौज़ू क़रार दिया है।
(فتاوی امجدیہ، ج1، ص272، 273)
•••➲ अल्लामा क़ाज़ी शमशुद्दीन अहमद अलैहिर्रहमा लिखते है के बाज़ लोग शबे क़द्र या आखिरी रमज़ान में जो नमाज़े क़ज़ा -ए- उमरी के नाम से पढ़ते है और ये समझते है के उम्र भर की क़ज़ाओ के लिए ये काफी है, ये बिल्कुल गलत और बातिल महज़ है।
(قانون شریعت، ص241)
•••➲ हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद वक़ारूद्दीन क़ादरी रज़वी अलैहिर्रहमा लिखते है के बाज़ इलाक़ो में जो ये मशहूर है के रमज़ान के आखिरी जुमे को चंद रकाअत नमाज़ क़ज़ा -ए- उमरी की निय्यत से पढ़ते है और ख़याल ये किया जाता है के ये पूरी उम्र की क़ज़ा नमाज़ो के क़ायम मकाम है, ये गलत है जितनी भी नमाज़े क़ज़ा हुई है उन को अलग अलग पढ़ना ज़रूरी है।
(وقار الفتاوی، ج2، ص134)
•••➲ हज़रत अल्लामा गुलाम रसूल सईदी रहिमहुल्लाहू त'आला लिखते है के बाज़ अनपढ़ लोगो मे मशहूर है के रमज़ान के आखरी जुमा'आ को एक दिन की पांच नमाज़े वित्र समेत पढ़ ली जाए तो सारी उम्र की क़ज़ा नमाज़े अदा हो जाती है और इस को क़ज़ा -ए- उमरी कहते है, ये क़तअन बातिल है।
•••➲ रमज़ान की खुसूसियत, फ़ज़ीलत और अज्रो सवाब की ज़्यादती एक अलग बात है लेकिन एक दिन की क़ज़ा नमाज़े पढ़ने से एक दिन की ही अदा होगी, सारी उम्र की अदा नही होगी।
(شرح صحیح مسلم، ج2، ص352)
•••➲ साबित हुआ के ऐसी कोई नमाज़ नही है जिसे पढ़ने से पूरी उम्र की क़ज़ा नमाज़ अदा हो जाये।
•••➲ ये जो नमाज़ पढ़ी जाती है, इस कि कोई असल नही है, ये नाजायज़ ओ बातिल है।..✍️
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*📝 तीन तलाक़ों का रिवाज़ !?❓*
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•••➲ आजकल अज रूए जहालत व नादानी अपनी औरतों को तीन या उससे ज्यादा तलाकें दे डालते हैं या कागजों में लिखवा देते हैं और फिर कभी बात को दोबारा बनाने के लिए उसकी सजा यानी हलाले से बचने के लिए , सच बोलते और मुफ्तियाने किराम और उलमाए दीन को परेशान करते हैं।
•••➲ *काश यह लोग तलाक से पहले ही उलमा से मशवरा कर लें तो यह नौबत ही न आए तीन तलाकें एक वक्त देना गुनाह है। तलाक का मकसद सिर्फ यह है कि बीवी को अपने निकाह से बाहर करके दूसरे के लिए हलाल करना कि इदत के बाद वह किसी और से निकाह कर सके यह मकसद सिर्फ एक तलाक या दो से भी हासिल हो जाता है। एक तलाक देकर उसको इद्दत गुजारने के लिए छोड़ दिया जाए और इद्दत के अन्दर उसको एक अजनबी व गैर औरत की तरह रखा जाए और जबान से भी रजअत न की जाए तो इद्दत के बाद वह दूसरे से भी निकाह कर सकती है*
•••➲ और पहले शौहर के निकाह में भी सिर्फ निकाह करने से, बगैर हलाले के वापस आ सकती है। और तीन तलाकों के गुनाह व वबाल से भी बचा जा सकता है। जरूरत के वक़्त तलाक इस्लाम में मशरूअ है क्यूंकि मियां बीवी का रिश्ता कोई पैदाइशी खूनी और फ़ितरी रिश्ता नहीं होता बल्कि यह ताअल्लुक अमूमन जवानी में क्राइम होता है। तो यह जरूरी नहीं कि यह मोहब्बत काइम हो ही जाए बल्कि मिजाज अपने अपने आदतें अपनी अपनी तौर तरीके अपने अपने ख्यालात व रुजहानात अलग अलग होने की सूरत में बजाए मोहब्बत के नफरत पैदा हो जाती है!
•••➲ *और एक दूसरे के साथ जिन्दगी गुजारना निहायत मुश्किल बल्कि कभी कभी नामुमकिन हो जाता है। और नौबत रात दिन के झगड़ों, मारपीट यहाँ तक कि कभी कत्ल व खूंरेजी तक आ जाती है। बीवी शौहर एक दूसरे के लिए जानी दुश्मन बन जाते हैं तो इन हालात के पेशे नज़र इस्लाम में तलाक रखी गई कि लड़ाईयों, झगड़ों नफ़रतों और मारका आराईयों के बजाए सुलह व सफाई और हुस्न व खूबी के साथ अपना अपना रास्ता अलग अलग कर लिया जाए।*...✍️
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 74 📚*
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❝ हमारी ग़लत फ़हमी आवाम ग़ुमराह ❞
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*📝 तीन तलाक़ों का रिवाज़ !?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 197 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ इसी लिए जिन मजहबों और धर्मों में तलाक नहीं है यानी जिसके साथ जो बध गया वह हमेशा के लिए बंध गया जान छुड़ाने का कोई रास्ता नहीं। उनमें औरतों के क़त्ल तक कर दिये जाते हैं या जिन्दगी चैन व सुकून के बजाए अजाब बनी रहती है। आज औरतों की हमदर्दी के नाम पर कुछ इस्लाम दुश्मन ताकतें ऐसे कानून बना रही हैं जिनकी रू से तलाक का बुजूद मिट जाए और कोई तलाक न दे सके यह लोग औरतों के हमदर्द नहीं बल्कि उनका कत्ल कर रहे हैं। आज मिट्टी के तेल बदन पर डाल कर औरतों को जलाने, पानी में डुबोने, जहर खिला कर उनको मारने वगैरा ईजारसानी के ख़ौफ़नाक वाकिआत के जिम्मेदार वही लोग हैं जो किसी भी सूरते हाल में तलाक के रवादार नहीं और जब से हर हाल में तलाक को ऐब और बुरा जानने का रिवाज बढ़ा तभी से ऐसे दर्दनाक वाकिआत की तादाद बढ़ गई।
•••➲ *⚠️NOTE* : - हम पूछते हैं क्या किसी औरत को मारना, जलाना, डुबोना, बेरहमी से पीटना बेहतर है या उसको महर की रकम देकर साथ इज्जत के तलाक दे देना और किसी औरत के लिए अपने शौहर को किसी तरह राजी करके उस से तलाक हासिल कर लेना और अपनी आजादी कराके किसी और से निकाह कर लेना बेहतर है। या यारों, दोस्तों, आशनाओं से मिल कर शौहर को क़त्ल कराना। आज इस किस्म के वाकिआत व हादसात की ज्यादती है जिनका अन्दाजा अख़बारात का मुतालआ करने से होता है और अगर मुआशरे को बरकरार रखने के लिए इस्लाम ने शौहर और बीवी के जो हुकूक़ बताए हैं उन पर अमल किया जाए तो यह नौबतें न आयें और लड़ाई झगड़े और तलाक तक बात ही न पहुँचे।..✍️
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 74 📚*
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*📝 शरअ पयम्बरी महर मुक़र्रर करना ..❓*
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•••➲ कभी कभी कुछ जगहों पर निकाह में महर शरअ पयम्बरी मुकर्रर किया जाता और उस से उनकी मुराद चौंसठ रुपए और दस आने होती है या कोई और रकम। हालांकि यह सब वे अस्ल बातें हैं, *शरीअते पैगम्बरे आज़मﷺ* ने महर में ज़्यादती की कोई हद मुक़र्रर नहीं है जितने पर दोनों फरीक मुत्तफ़िक हो जायें वही महर शरए पयम्बरी है हाँ कम से कम महर की मिकदार दस दिरहम यानी तकरीबन दो तोले तेरह आने भर चांदी है उस से कम महर सही नहीं अगर बाँधा गया तो महरे मिस्ल लाजिम आएगा। और बाज़ लोग महर शरअ पयम्बरी से *सय्यिदतुना फ़ातिमा रदियल्लाह तआला अन्हा* के अक़दे मुबारक का महर ख्याल करते हैं हालांकि ख़ातूने जन्नत के निकाहे मुबारक का महर चार सौ मिस्काल यानी डेढ़ सौ तोले चांदी था।
•••➲ *खुलासा यह कि शरअ की तरफ से महर की कोई रकम मुकर्रर नहीं की गई। हाँ यह ज़रूर है कि दस दिरहम यानी दो तोले तेरह आने भर चांदी से कम कीमत में न हो।*
*⚠️ NOTE : -* नबी करीम सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने इरशाद फरमाया जिसने किसी उल्मा से मुसआफा किया गोया उसने मुझसे मुसआफा किया आप सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने उल्मा को नाएबे रसूल बताया है। आपने जो कहा जो किया वह हम सुन्नी मुसलमानो के लिए त कयामत तक हक हो गया यही हम सुन्नियो का अक़ीदा भी अल्हमदो लिल्लाह लेकिन बाज़ लोग़ जाने अंजाने उल्मा को गाली गलोज करते है। और फिर तोबा भी नही करते है।..✍️
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह 76-77 📚*
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*📝 क्या हालत- ए- हमल मे तलाक़ नहीं होतीं...❓*
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•••➲ हमल की हालत में तलाक वाकेअ हो जाती है। यह जो कुछ लोग समझते हैं कि औरत हमल से हो और उस हालत में शौहर तलाक़ दे तो तलाक वाक़ेअ नहीं होती, यह उनकी गलतफहमी है।
•••➲ *सय्यिदी आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत इरशाद फरमाते*(रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा)
•••➲ *‘जाइज़ व हलाल है अगरचे अय्यामे हमल में दी गई हो।’*
📗 *फतावा रजविया जिल्द 5 सफ़ा 625*
*⚠️ NOTE :-* बाज़ लोग हालात ए हमल मे तलाक़ को वाकेअ नही समझते यह उनकी गुमराही जहालत है। बल्की ऐसी सूरत मे तलाक़ वाक़ेअ हो जाता है। मेरा ऐसे मर्द और औरत को मसवरा अल्लाह तआला को हालाल काम मे सबसे ज्यादा न पंसन्दीदा चीज तलाक़ है। क्या बगैर कोई उज्र के ऐसा काम सही है। जो अल्लाह तआला को भी पसन्द न हो अपनी शादी शुदा जिन्दगी को शीरत ए मुस्ताफा का दर्श दो शीरत ए अम्बिया का दर्श दो शीरत ए सहाबा का दर्श दो शीरत ए ओलिया का दर्श दो फिर देखना तुम्हारी जिन्दगी भे अल्लाह तआला कितनी खुशियाँ अता करेगा बे वज़ह की लड़ाई झगड़ो से बचने का एक आशान तरीका गल्ती किसी की भी हो पर सबसे पहलें मनाने बाला ही सबसे ताक़त बर है। और बहादुर है।
•••➲ क्या हाशिल होगा अपनी मै मे अगर आप रहेगे आपकी ज़िन्दगी जहन्नम बनती नजर आएगी एक बार ही अपने प्यारे आका सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम का तसव्वुर कर लिया करे हमारे आका को हमारी माँ हजरते सैय्यदना आयशा रदिअल्लाहो तआला अन्हा से किस कदर मोहब्बत थीं क्या हम ज़र्रा बराबर भी इस किरदार को नही अपना सकतें है। यकीन जानो अगर शीरत ए मुस्ताफा की एक जर्रा बराबर बात पर अमल किया तो ज़िन्दगी आसान हो जाएगी। बरना इस दौर मे परेशानिया हर किसी को है। कोई चैन और सुकून मे नही है। वज़ह हमने इस्लाम के कानून को समझना ही बन्द कर दिया है। अगर समझा होता तो मज़ाल क्या किसी शियासत की जो उँगली उठाती और हमे चेलेन्ज करती अभी भी वक़्त है। अपने आपको समझो और पहचानो अल्लाह तआला का शुक्र व अहशान मानो कितना प्यारा मजहब अता किया।..✍️
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*📬 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह - 78 📚*
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*📝 क्या शौहर के लिए बीवी को हाथ लगाने से पहले महर माफ़ कराना ज़रूरी है...❓*
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•••➲ काफ़ी लोग यह ख़्याल करते हैं कि शौहर के लिए ज़रूरी है कि निकाह के बाद पहली मुलाक़ात में अपनी बीवी से पहले महर माफ़ कराये फिर उसके जिस्म को हाथ लगाये। यह एक गलत ख़्याल है, इस्लाम में ऐसा कुछ नहीं। महर माफ कराने की कोई ज़रूरत नहीं। आजकल जो महर राइज है, उसे 'गैर मुअज्जल’ कहते हैं, जो या तो तलाक देने पर या फिर दोनों में से किसी एक की मौत पर देना वाजिब होता है। इससे पहले देना वाजिब नहीं, हाँ अगर पहले दे दे तो कोई हर्ज नहीं बल्कि निहायत उम्दा बात है। माफ़ कराने की कोई ज़रूरत नहीं और महर माफ कराने के लिए नहीं बांधा जाता है। अब दे या फिर दे, वह देने के लिए है, माफ कराने के लिए नही।
•••➲ *हाँ अगर महर मुअज्जल’ हो यअनी निकाह के वक़्त नकद देना तय कर लिया गया हो तो बीवी को इख्तियार है कि वह अगर चाहे तो बगैर महर वसूल किये खुद को उसके काबू में न दे और उसको हाथ न लगाने दे और चाहे तो बगैर महर लिये भी उसको यह सब करने दे, माफ कराने का यहाँ भी कोई मतलब नहीं।*
*⚠️ NOTE : -* आज हम कितनी गफ़लत मे है। अल्लाह तआला हमे बख्श देगा यकीनन अल्लाह तआला की जात व बरकात रहमत बाली है। जिसमे ज़र्रा बराबर भी इनकार करना कुफ़्र होंगा और खारिजे इस्लाम होंगा अल्लाह तआला जिसे चाहे बख्श दे जिसे चाहे सज़ा दे यह अल्लाह तआला के इख्तियार मे है। लेकिन ज़रा सोचो मुसलमानो हम किस नबी करीम सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम की उम्मत मे पैदा है। जिस उम्मत मे पैदा होंने के लिए कई नबी अलेहिस्सलाम ने दुआ ए कि लेकिन हमारे नबी सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने हर वक़्त अपनी उम्मत के लिए दुआ की या अल्लाह तआला मेरी उम्मत अल्लाह अल्लाह हमारे आका सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम कितने बड़े सखी है। लेकिन आज हम अपनी गुलामी का सबूत सिर्फ़ नाम के मुसलमान होने से दे रहें हमे आज नाम से मुसलमान होना जाना जाता है। कभी आमाल से पहचान करके देखना दिल की गहराई से सोंचना क्या ऐसे मुसलमान होते अगर लगे हा हम खसारे मे है। तो अपनी मस्जिदो को आबाद करना बस मेरी हर मोमिन मुसलमान से इतनी गुजारिश है। पाक रहना सीखलो हर वक़्त मेरा दावा है। यही पाकी तुम्हें अपनी मस्जिद के करीब कर देंगी इन्शा अल्लाह तआला!
•••➲ *नमाज़ पढ़ो नमाज़ कायम करो अपने इमामो के साथ खुलूस और अख्लाक से पैस आओ!*..✍️
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*📝 जिस औरत के ज़िना का हमल हो उससे निकाह जाइज़ है..?❓*
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•••➲ ज़ानिया हामिला यअनी वह औरत जो बिना निकाह किए ही गर्भवती हो गई उससे निकाह को कुछ लोग नाजाइज़ समझते हैं हालाकि वह जाइज़ है। जिना इस्लाम में बहुत बड़ा गुनाह है और इसकी सज़ा बहुत सख्त है लेकिन अगर किसी औरत से जिनाकारी सरजद़ हुई, उससे निकाह किया जाये तो निकाह सही हो जायेगा, ख़्वाह वह ज़िना से हामिला हो गई हो जबकि वह औरत शौहर बाली न हो और निकाह अगर उसी शख्स से हो जिसका हमल है तो निकाह के बाद वह दोनों साथ रह सकते हैं. सुहबत व हमबिस्तरी भी कर सकते हैं और किसी दूसरे से निकाह हो तो जब तक बच्चा पैदा न हो जाये दोनों लोगों को अलग रखा जाये।और उनके लिए हमबिस्तरी जाइज़ नहीं।
•••➲ *इमामे अहले सुन्नत सय्यिदी आलाहज़रत फरमाते हैं।* जो औरत *माज़अल्लाह* ज़िना से हामिला हो उससे निकाह सही है ख्वाह उस ज़ानी से हो या गैर से फर्क इतना है अगर जानी से से निकाह हो तो वह बाद निकाह उससे कुर्बत भी कर सकता है और ग़ैर ज़ानी से हो तो वज़ए हमल तक (बच्चा पैदा होने तक) .कुर्बत न करे।
📗 *फतावा रजविया जिल्द 5 सफहा 199, फ़तावा अफ्रीका सफ़ह 15*
*⚠️ NOTE* : - मेरे प्यारे इस्लामी भाईयों ज़िना बहुत बड़ा गुनाह है। जिसके करने से अल्लाह तआला हमारी दुआ भी कुबूल नहीं करता है। और अपने कुर्ब खड़ा करना भी पंसद नही करता है। जरा सोचो मुसलमानों ज़िना कितना बड़ा गुनाह अल्लाह हुम्मा कबीरन कबीरा जिस शख्स और औरत ने जिना किया हो उसे रब तआला पसन्द न फरमाए फिर भी हमे ख़ौफ ए खुदा नही रहाइतना याद रखना मुसलमानों ज़िना एक ऐसा गुनाह है। जिसका खामयाजा तुम्हे अपने घर से देना होगा। अल्लाह हुअकबर अल्लाह हुअकबर खुदा की कसम जब भी तुम्हारे कदम इस गुनाह की तरफ बड़े अपने दिल मे एक ही ख़्याल रखना अगर दुनियाँ बाले नही देख रहे लेकिन मेरा अल्लाह तआला मुझें देख रहा है। यकीन जानो अगर तुम्हारे कदम ख़ौफ ए खुदा मे रूक गए तो आख़िरत सबर जाएँगी इन्शा अल्लाह तआला।..✍️
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*📝 इद्दत के लिए औरत को मायके में लाना..?❓*
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•••➲ आजकल अगर किसी औरत को तलाक हो जाये तो माएके वाले उसको फौरन अपने घर ले आते हैं बल्कि इस पर फक्र किया जाता है और अगर वह शौहर के घर में रहे तो कुछ लोग उसके माँ बाप और भाईयों को गैरत दिलाते हैं कि तलाक़ के बाद भी लड़की को शौहर के घर छोड़ दिया है। यह सब गलत बातें है।
•••➲ मसअला यह है कि तलाक के बाद भी औरत शौहर के घर में ही इद्दत गुजारे और शौहर के ऊपर इद्दत का नान व नफ़का और रहने के लिए मकान देना लाजिम है।
*📔 कुर्आन करीम में पारा 28 सूरह तलाक का तर्जमा यह है।*
•••➲ "तलाक वाली औरतों को उनके घर से न निकालो न वह खुद निकलें मगर जब कि वह खुली हुई बेहयाई करें।"
•••➲ हाँ यह ज़रूर है कि वो दोनों अजनबी और एक दूसरे के गैर होकर रहें और बेहतर यह है कि उनके दरमियान कोई बूढ़ी औरत रहे और उनकी देखभाल रखे और यह भी हो सकता है कि शौहर घर में न रहे ख़ास कर रात को कहीं और सोये। औरत के हाथ का पका हुआ खाना खाने में कोई हर्ज नहीं है। शौहर के कपड़े वगैरा धोना भी तलाक के बाद कोई गुनाह नहीं है क्यूंकि बाद तलाक वह अगरचे बीवी नहीं मगर एक मुसलमान औरत है। और शरई हुदूद की पाबन्दी के साथ एक मुसलमान का दूसरे मुसलमान के काम में आ जाना हुस्ने अख़लाक है और अच्छी बात है।..✍️
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*📝 इद्दत के लिए औरत को मायके में लाना..?❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 203 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ यह जो कुछ जगह लोग इतनी सख्ती करते हैं कि बाद तलाक इद्दत में अगर शौहर बीवी के हाथ का पका हुआ खाना भी खा ले तो हुक्का पानी बन्द कर देते हैं, यह गलत है। जब तक खूब यकीन से मालूम न हो कि वो मियाँ बीवी की तरह मखसूस मुआमलात करते हैं सिर्फ़ शुकूक की वजह से उन्हें तंग न किया जाये और बदगुमानी इस्लाम में गुनाह है।
•••➲ हाँ अगर तलाक ए मुग़ल्लज़ा या बाइना की इद्दत हो और शौहर फासिक़, बदकार हो और कोई वहाँ ऐसा न हो कि अगर शौहर की नियत ख़राब हो तो उसको रोक सके तो औरत के लिए उस घर को छोड़ देने का हुक्म है।
📗 *फ़तावा फैजुर्रसूल जिल्द 2 सफ़हा 290*
*⚠️ NOTE :-* मेरे मुसलमान भाईयो अपने अखलाक को ऐसा बना लो यह दिन देखना न पढ़े अपनी जिन्दगी को अपने बुजुर्गों के कुब्र करदो अपनी सब परेशानी अल्लाह रब्बुल इज्ज़त के दस्ते कुदरत करदो फिर देखना जिन्दगी कितनी खुस गवार गुजरे गी बस सर्त यह है। अपना दिल और सर मस्जिदो मे झुखाना चालू करदो दुनियाँ खुद व खुद तुम्हारे कदमो मे झुखती नज़र आएंगी इन्शा अल्लाह तआला।..✍️
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*📝 मुतलक़्क़ा की इद्दत कितने दिन है.?❓*
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•••➲ काफी लोग यह ख्याल करते हैं कि मुतलक्का (जिसे तलाक दी गई हो) की इद्दत तीन महीने या तीन महीने तेहरा दिन में पूरी हो जाती है यह गलत है। तलाकशुदा औरत की इद्दत यह है कि अगर वह हामिला (गर्भवती) न हो तो तलाक के बाद उसको तीन माहवारी (मासिकधर्म ,हैज़ ,पीरियड) हो जाये, ख्वाह तीन माहवारियाँ तीन महीने से कम में हो जाये या उससे ज्यादा में ख्वाह साल गुज़र जाये अगर तीन बार उसको माहवारी नही हुई तो इद्दत पूरी नहीं होगी। हाँ अगर वह पचपन (55) साल की हो गई हो और महीना आना बंद हो गया हो या नाबालिग हो कि अभी महीना शुरू ही नहीं हुआ या उसको कभी महीना किसी मर्ज़ की वजह से आया ही न हो तो उसकी इद्दत तीन माह है और हामिला की इद्दत बच्चा पैदा होने जाना है ख्वाह तलाक़ के बाद फ़ौरन बच्चा पैदा हो जाये इद्दत हो जायेगी।
•••➲ खुलासा यह है कि आम तौर से तलाक की इद्दत 3 महीने या 3 महीने 13 दिन समझना गलत है। सही बात वह है जो हमने ऊपर बयान कर दी।...✍️
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*📝 लड़को की शादी में बजाए वलीमे के मंढिया करना..❓*
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•••➲ लड़के की शादी मे जुफ़ाफ़ यानी बीवी और शौहर के जमा होने के बाद सुबह को अपनी बिसात के मुताबिक़ मुसलमानों को खाना खिलाया जाए उसे वलीमा' कहते हैं और यह *सय्यिदे आलम सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* की मुबारक सुन्नत है। काफी हदीसों में इसका जिक्र है। सरकार ने खुद वलीमे किये और सहाबए किराम को भी उस का हुक्म दिया मगर आज कल काफ़ी लोग शादी से पहले दावतें करके खाना खिलाते हैं जिसको मंढिया कहा जाता है।
•••➲ वलीमा न करना उसकी जगह मंढिया करना ख़िलाफ़ सुन्नत है। मगर लोग रस्म व रिवाज पर अड़े हुए हैं और अपनी ज़िद और हटधर्मी या नावाक़िफ़ी की बुनियाद पर *रसूले करीम सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* की इस मुबारक और प्यारी सुन्नत को छोड़ देते हैं। इस्लाम के इस तरीके में एक बड़ी हिकमत यह है कि अगर निकाह से पहले ही खाना खिला दिया तो हो सकता है किसी वजह से निकाह न होने पाए और अक्सर ऐसा हो भी जाता है तो इस सूरत में वह निकाह से पहले के तमाम इख़राजात बे मक़सद और बोझ बन कर रह जाते हैं।...✍️
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*📝 लड़को की शादी में बजाए वलीमे के मंढिया करना..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 206 में जरुर पढ़ें।*
*⚠️ NOTE* :- आप को बता दू मंढिया उसे कहते है। जो लड़को की शादी यानी निकाह होने से पहले आवाम बिरादरी को दावत देकर खाना खिलाया जाता है। यह खिलाफ़े शरअ है। लेकिन बाज़ लोगों ने इसका मामूल बना लिया है। एक और बात अगर लोग़ व़लीमा करते है तो इतना दिखावा इतना ख़र्च करते है। जो शरासर ग़लत और खिलाफ़े शरअ भी है। इस्लाम ने फ्जूल ख़र्च के लिए मना किया है। जिसका हिसाब हमे देना होंगा लेकिन आवाम इसको समझने का नाम नही लेती है। जो हम फ्ज़ूल ख़र्च करते है इसकी बजाह हम यही पैसा किसी ग़रीब लड़की कि शादी निकाह करने मे लगादे जो मुफलिसी के चलते अपने घर मे बैठी है!
•••➲ सोचो मुसलमानो कहा गई तुम्हारी ग़ैरत क्या जरा भी तुम्हे अल्लाह तआला और उसके रसूल सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम की रज़ा की फ़िक्र नही देती है। ऊपर से अपने आपको गुलामे रसूल कहते हो सिर्फ़ कहने से गुलाम नही हो सकते उसकी रज़ा अगर चाहनी है तो अपने किरदार को बदलना होंगा कसम ख़ुदा की अल्लाह तआला की रज़ा के लिए तुमने अपनी कमाई का एक पैसा भी ख़र्च कर दिया बरोज क़यामत अल्लाह तआला इसका अज्र जरूर देगा यकीन जानो ज़रा सोचो मेरे भाईयों आज यह पैसा हमारी रहती दुनिया तक साथ देगा बाद मरने के हमारे हाँथ खाली रह जाएंगे इसी के लिए शायर कुछ इस तरह कहता।
*_सज़ा लो अपने दामन मे दरूदे पाक के जुगनू_*
*_अंधेरी कब्र मे हम सबको उजाले की ज़रूरत है।_*
•••➲ जब हमे अंधेरी कब्र मे रहना ही है तो क्यूँ न नेक काम करके अपनी कब्र को रोशन करें फक़त मेरा कहना इतना है दुनिया भी देखों लेकिन कुछ ऐसा कर जाओ जिससे दुनियाँ मे भी नाम हो आखिरत मे भी इसका अज्र मिले अगर मेरी पोस्ट से किसी एक ने भी नसीहत ली यकीन जानो मेरी बख्शिस का जरिया वह शख्स होंगा इन्शा अल्लाह तआला!..✍️
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*📝 ज़वान लड़के लड़कियों की शादी में देर करना..❓*
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•••➲ आजकल जवान लड़के लड़कियों को घर में बिठाये रखना। और उनकी शादी में ताख़ीर करना आम हो गया है। इस्लामी नुक्तए नज़र से यह एक गलत बात है। हदीस पाक में है। *रसूलल्लाह सल्लाह तआला अलैहि वसल्लम* इरशाद फरमाते हैं।
जिसकी लड़की 12 बरस की उम्र को पहुंचे और वह उसका निकाह न करे फिर वह लड़की गुनाह में मुब्तिला हो तो वह गुनाह उस शख्स पर है। ऐसी ही हदीस लड़कों के बारे में भी आई है।
📗 *मिश्कात शरीफ़ सफ़ा 271*
आजकल की फ़ुजूल रस्मों और बेजा खर्चों ने भी शादियों को मुश्किल कर दिया है जिसकी वजह से भी बहुत सी जवान लड़कियां अपने घरों में बैठी हुई और लड़के मालदारों की लड़कियों की तलाश में बूढ़े हुए जा रहे हैं। इन खर्चों पर कन्ट्रोल करने के लिए जगह जगह तहरीकें चलाने और तन्ज़ीमें बनाने की जरूरत है चाहे वह अपनी अपनी बिरादरी की सतह पर ही काम किया जाये तो कोई हर्ज नहीं। भाईयो दौर काम करने का है। सिर्फ बातें मिलाने या नारे लगाने और मुशाएरे सुनने से कुछ हासिल न होगा। शादी ब्याह को कम से कम खर्च से करने का माहौल बनाओ ताकि ज्यादा से ज्यादा मर्दं और औरतें शादी शुदा रहें।..✍️
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*📝 ज़वान लड़के लड़कियों की शादी में देर करना..❓*
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*पहला हिस्सा पिछले पोस्ट 208 में जरुर पढ़ें।*
•••➲ कुछ लोग आला तालीम हासिल कराने के लिए लड़कियों की उम्र ज़्यादा कर देते हैं और उन्हें गैर शादी शुदा रहने पर मजबूर कर देते हैं। यह भी निरी हिमाकत और बेवकूफी है।
•••➲ आज मुसलमानों में कुछ बदमजहब और बातिल फ़िरके जवान लड़कियों की आला तालीम के लिए मदारिस और स्कूल खोलने में बहुत कोशिश कर रहे हैं। उनका मकसद अपने बातिल और मखसूस गैर इस्लामी अकाइद मुसलमानों में फैलाने और घरों में पहुँचाने के अलावा और कुछ नहीं है और इधर लोगों में आजकल औलाद से मोहब्बत इस कद्र बढ़ गई है कि हर शख्स इस कोशिश में है कि मेरी लड़की और मेरा लड़का पता नहीं क्या क्या बन जाये और आला तालीम के नशे सवार हैं और बनता तो कोई कुछ नहीं लेकिन अक्सर बुरे दिन देखने को मिलते हैं। लड़के ज्यादा पढ़कर बाप बन रहे हैं और लड़कियाँ माँ बन रही!
•••➲ हो सकता है कि हमारी इन बातों से कुछ लोगों को इख्तिलाक हो मगर हमारा मशवरा यही है लड़कियों को आला तालीम से बाज रखा जाये खासकर जब कि यह तालीम शादी की राह में रुकावट हो और पढ़ने पढ़ाने के चक्कर में अधेड़ कर दिया जाता हो और ख़ासकर गरीब तबके के लोगों में क्यूंकि उनके लिए पढ़ी लिखी लड़कियाँ बोझ बन जाती हैं क्यूंकि उनके लिए शौहर भी ए क्लास और आला घर के होना चाहिए और वह मिल नहीं पाते और कोई मिलता भी है तो वह जहेज में मारूती कार या मोटर साइकिल का तालिब है बल्कि बारात से पहले एक दो लाख रुपये का सवाल करता है!
•••➲ हिन्दुस्तान गवर्नमेंट जो बच्चों को ऊंची तालीम दिलाने पर ज़ोर दे रही है, उसके लिए मेरा मशविरा है कि वह तालीमयाफ्ता बच्चों की नौकरी व मुलाजिमत की जिम्मेदारी ले या उनके वजीफ़े मुतय्यन करे। खाली पढ़ा पढ़ा कर छोड़ देना, न घर का रखा न बाहर का, न खेत का न दफ़्तर का यह गरीबों के साथ जुल्म है और समाज की बरबादी है।..✍️
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