Monday, 30 September 2024

हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन

 



हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -1)

वालिदैन के हुक़ूक़ क़ुरआन की रोशनी में :

तर्जुमा : और तुम्हारे रब ने हुक़्म फ़रमाया कि उसके सिवा किसी को न पूजो (यअनी किसी ग़ैरुल्लाह की इबादत न करो) और माँ बाप के साथ अच्छा सुलूक करो और अगर तेरे सामने उनमें एक या दोनों बुढ़ापे को पहुँच जायें तो उनसे हूँ न कहना। और न उन्हें झिड़कना और उनसे तअज़ीम की बात कहना और उनके लिए आजिज़ी का बाज़ू बिछाना नर्म दिली से और अर्ज़ कर की ऐ मेरे रब तू इन दोनों पर रहम कर जैसा कि इन दोनों ने मुझे छोटपन (बचपन) में पाला।

📗 पारा 15, सूरह बनी इसराईल, आयत 23-24)

मज़कूरह बाला आयते करीमा में परवर दिगारे आलम ने वालिदैन के साथ अच्छा बरताव करने का हुक़्म फ़रमाया है ख़ास कर जब उन दोनों में से एक या दोनों पर बुढ़ापा आ जाये और उन के आज़ा कमज़ोर हो जायें और चलने फिरने की ताक़त न रहे जैसे बचपन में तेरे अंदर ताक़त व कुव्वत न थी और उनके‌ लिए ऐसा कोई कलिमा न निकालना जिसकी वजह से उनकी तबीअत को ना गवार हो और जब उनसे गुफ़्तगू करना तो हुस्ने अदब को मलहूज़ रखना आदाब व अलक़ाब से ही उन्हें ख़िताब करना और नरमी व तवाज़ो से पेश आना और उनके साथ शफ़क़त व मुहब्बत का बरताव करना उन्होंने तेरी मजबूरियों के वक़्त तुझे मुहब्बत से पाला था और जो चीज़ तुम्हें चाहिए थी उसे लाकर पेश किया था अब जो चीज़ें उन्हें दरकार हों उनके लाने में कोताही न करो और न उन पर ख़र्च करने में दरेग़ करो‌ दुनिया में बेहतर सुलूक और ख़िदमत करने में जिस क़द्र भी मुबालिग़ह किया जाये वालिदैन के एहसान का हक़ अदा नहीं होता इस लिए बंदे को चाहिए कि बारगाहे इलाही में उन पर फ़ज़्ल व रहमत फ़रमाने की दुआ करे और अर्ज़ करे। कि ऐ अल्लाह मेरी ख़िदमतें उनके एहसान का बदला नहीं हो सकतीं तू उन पर करम कर ताकि उनके एहसान का बदला हो।

बा-हवाला क़िताब : ¹तफ़सीरे ख़ज़ाइनुल इरफ़ान

📕 ²माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 12-13

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -2)

वालिदैन के हुक़ूक़ क़ुरआन की रोशनी में :

मसअला :- इस आयत से साबित हुआ कि मुसलमान के लिए रहमत व मगफ़िरत की दुआ करना जाइज़ है और उसे फ़ायदा‌ पहुँचाने वाली है, मुर्दों के ईसाले सवाब में भी उनके लिए‌ दुआए रहमत होती है लिहाज़ा इसके लिए यह आयत अस्ल है।

मसअला :- वालिदैन काफ़िर हों तो उनके लिए हिदायत व ईमान की दुआ करें कि यही उनके हक़ में रहमत है हदीस शरीफ़ में है कि वालिदैन की रज़ा में अल्लाह तआला की रज़ा और उनकी नाराज़ी में अल्लाह तआला की नाराज़ी है। दूसरी हदीस शरीफ़ में है कि सैय्यदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि वालिदैन की नाफ़रमानी से बचो इस लिए कि जन्नत की ख़ुशबू हज़ार बरस की राह तक आती है और नाफ़रमान वह ख़ुशबू न पाएगा।

बा-हवाला किताब : ¹तफ़सीरे ख़ज़ाइनुल इरफ़ान
📕²माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 12-13

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -3)

वालिदैन के हुक़ूक़ क़ुरआन की रोशनी में :

तर्जुमा :- और हम ने बनी इस्राईल से अहेद लिया कि अल्लाह के सिवा किसी को न पूजो (यअनी किसी ग़ैरुल्लाह की इबादत न करो) और माँ बाप के साथ भलाई करो।

 📙 पारा 1, सूरह अल बक़रा, आयत 83

इस आयते करीमा में अल्लाह तआला ने अपनी इबादत का हुक़्म फ़रमाने के बअद माँ बाप के साथ भलाई करने का हुक़्म दिया है इस से मअलूम होता है कि वालिदैन की ख़िदमत बहुत ज़रूरी है वालिदैन के साथ भलाई करने का यह मअना हैं कि ऐसी कोई बात न कहे और ऐसा कोई काम न करे जिस से उन्हें तकलीफ़ हो और अपने बदन व माल से उनकी ख़िदमत में दरेग़ न करे जब उन्हें ज़रूरत हो उनके पास रहे।

बा-हवाला किताब : ¹ख़ज़ाइनुल इरफ़ान
📕²माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 13-14

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -4)

वालिदैन के हुक़ूक़ क़ुरआन की रोशनी में :

मसअला :- अगर वालिदैन अपनी ख़िदमत के लिए नवाफ़िल छोड़ने का हुक़्म दें तो छोड़ दे उनकी ख़िदमत नफ़्ल से मुक़द्दम है।

मसअला:- वाजिबात वालिदैन के हुक़्म से तर्क नहीं किये जा सकते वालिदैन के साथ एहसान के तरीके जो अहादीस से साबित हैं वह यह हैं कि तहे दिल से उनके साथ मुहब्बत रख्खे, रफ़्तार व गुफ़्तार में नशिस्त व बरख़ास्त में अदब लाज़िम जाने (बअदे विसाल) उनके लिए फ़ातिहा, सदक़ात, तिलावते कुराआन से ईसाले सवाब करे। अल्लाह तआला से उनकी मगफ़िरत की दुआ करे, हफ़्तहवार उनकी क़ब्र की ज़ियारत करे, वालिदैन के साथ भलाई करने में यह भी दाख़िल है कि अगर वह गुनाहों के आदी हों या किसी बद मज़हबी में गिरिफ़्तार हों तो उनको नरमी से इस्लाह व तक़्वा और अक़ीदए हक़्क़ह की तरफ़ लाने की कोशिश करता रहे, अच्छी बात से मुराद नेकियों की तरग़ीब और बदयों से रोकना है।

📕माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़ह 13-14

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -5)

वालिदैन के हुक़ूक़ क़ुरआन की रोशनी में :

अल्लाह तआला वालिदैन के साथ हुस्ने सुलूक की इस तरह ताकीद और हुक़्म फ़रमाता है। तर्जुमा :- और हमने आदमी को हुक़्म दिया कि अपने माँ बाप से भलाई करे उसकी माँ ने कमज़ोरी पर कमज़ोरी बर्दाश्त करते हुए उसे पेट में उठाये रखा और उसका धूद छुड़ाने की मुद्दत दो साल में है के मेरा और अपने वालिदैन का शुक्र अदा करो मेरी ही तरफ़ लौटना है।

तर्जुमा :- अगर वालिदैन तुझ पर कोशिश करें कि तू किसी ऐसी चीज़ को मेरा शरीक ठहराये जिसका तुझे इल्म नहीं तो उनका कहना न मान और दुनिया में अच्छी तरह उनका साथ दे और मेरी ही तरफ़ तुम्हारा फिर कर आना है तो मैं बताउँगा तुझे जो तुम करते थे।

पारा 21, सूरह लुक़्मान, आयत 14-15 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -6)

वालिदैन के हुक़ूक़ क़ुरआन की रोशनी में :

शाने नुज़ूल :-  यह आयत सअद बिन मालिक जो सअद बिन अबी वकास रदिअल्लाहु तआला अन्हु के नाम से मशहूर हैं उनके हक़ में नाज़िल हुई, आप साबिक़ीने अव्वलीन में से हैं अपनी वालिदा के साथ अच्छा सुलूक करते थे, जब उन्होंने इस्लाम क़ुबूल किया या जब हिज़रत की (कज़ाफ़ित्तक्मिलह) तो उन्हें उनकी वालिदा हिमनह बिन्ते अबी सुफ़यान बिन उमय्यह ने कहा ऐ सअद यह तूने क्या किया कि अपने आबा व अजदाद का दीन छोड़कर नया दीन इख्तियार कर लिया। रोशनी को छोड़कर तू अंधेरे में चला गया जब तक तू अपने नये दीन को छोड़कर अपने आबा व अजदाद के दीन में वापस नहीं आयेगा मैं न खाऊँगी न पियूँगी यहाँ तक कि मर जाऊँगी।

अगर मैं मर गई तो फिर तुझे लोग पुकारेंगे या (क़ातिलु उम्मिही) ऐ माँ के क़ातिल इसी तरह हिमनह ने अपनी कसम पर तीन दिन गुज़ारा और ज़ुअफ़ व नक़ाहत से निहायत कमज़ोर पड़ गई। हज़रत सअद रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने फ़रमाया ऐ अम्मी अगर तेरी जान इसी तरह दुख और दर्द झेल कर निकल जाये तब भी मुझे कोई परवाह नहीं मैं अपने प्यारे नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के दीन को नहीं छोड़ सकता तुम खाओ या न खाओ। जब हिमनह ने देखा कि हज़रत सअद रदिअल्लाहु तआला अन्हु अपने क़ौल में पुख़्तह और मज़बूत है तो खाना पीना शुरू कर दिया।

हज़रत सअद रदिअल्लाहु तआला अन्हु को अल्लाह तआला ने ख़ुसूसन और बाक़ी जुमलह अहले इस्लाम को ताकीद फ़रमाई कि माँ बाप के साथ एहसान व मुरव्वत करो और उनकी ख़िदमात में कोताही न करो और शिर्क और नाफ़रमानी खिलाफ़े शरअ के सिवा बाक़ी जिन उमूर में वह राज़ी हों उन्हें राज़ी करें। हाँ जब वह शिर्क या हुक़्मे शरअ के ख़िलाफ़ फ़रमायें तो उनका कहना न मानें।

📕 तफ़्सीरे रूहुल बयान
माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 14-15

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -7)

वालिदैन के हुक़ूक़ क़ुरआन की रोशनी में :

*हदीस 1:-* हज़रत अबु हुरैरह रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने एक बार फ़रमाया ख़ाक आलूद हो उसकी नाक, फिर ख़ाक आलूद हो उसकी नाक, फिर ख़ाक आलूद हो उसकी नाक सहाबए किराम रिदवानुल्लाहि अलैहिम अजमईन अर्ज़ की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम किसकी नाक ख़ाक आलूद हो? फ़रमाया उसकी जिसने माँ बाप या उन दोनों में से एक को पाया फिर भी जन्नती न हुआ, यअनी उनकी ख़िदमत न की, न किसी और तरह उनकी खुशनूदी हासिल की जिसके सबब वह जन्नत का मुस्तहक़ होता।

मिशकात शरीफ़, सफ़्हा 418

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -8)

वालिदैन के हुक़ूक़ क़ुरआन की रोशनी में :

*हदीस 2 :-* हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रदिअल्लाहु तआला अन्हुमा से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि कबीरह गुनाहों में से एक यह भी है कि कोई शख़्स अपने वालिदैन को गाली दे सहाबह ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम कोई अपने माँ बाप को भी गाली देता है? हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया हाँ ! जबकि वह शख़्स किसी दूसरे के माँ बाप को गाली दे और जवाब में वह उसके माँ बाप को गाली दे तो गोया उसने खुद ही अपने माँ बाप को गाली दी!

मिशकात शरीफ़, सफ़्हा 417

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -9)

वालिदैन के हुक़ूक़ क़ुरआन की रोशनी में :

*हदीस 3 :-* हज़रत अबू हुरैरह रदिअल्लाहु तआला अन्हु रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया तीन दुआयें ऐसी हैं जिनके क़ुबूल होने में कोई शक नहीं।

 (1) मज़लूम की दुआ,

 (2) मुसाफ़िर की दुआ,

(3) और माँ बाप की अपने बेटे पर बद्दुआ,

औलाद को चाहिए कि हमेशा अपने माँ बाप की बद्दुआ से बचने की कोशिश करता रहे!

📕तिर्मिज़ी, जिल्द 2, सफ़्हा 13
माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 16


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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -10)

वालिदैन के हुक़ूक़ क़ुरआन की रोशनी में :

*हदीस 4 :-* हज़रत इब्ने अब्बास रदिअल्लाहु तआला अन्हुमा फ़रमाते हैं कि रसूले अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जो भी फ़रमाँबरदार बेटा अपने माँ बाप को एक बार मुहब्बत और रहम की निगाह से देखे तो अल्लाह तआला उसके बदले एक हज्जे मक़बूल लिखेगा। तो लोगों ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम चाहे रोज़ाना सौ बार देखे फ़रमाया हाँ! अल्लाह बहुत बड़ा और बहुत तैयब है।

मिशकात शरीफ़, सफ़्हा 421

*हदीस 5 :-*  हज़रत इब्ने उमर रदिअल्लाहु तआला अन्हुमा से मरवी है कि आक़ाये करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में एक शख़्स आया और उसने अर्ज़ की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मुझ से एक बड़ा गुनाह हो गया है क्या मेरी तौबा क़ुबूल हो सकती है? आप ने फ़रमाया! क्या तेरी माँ ज़िन्दा है ? उसने अर्ज़ किया नहीं, फिर फ़रमाया कि तेरी ख़ाला ज़िन्दा है अर्ज़ किया हाँ फ़रमाया तू उसके साथ हुस्ने सुलूक कर।

मिशकात शरीफ़, सफ़्हा 420

इस हदीस शरीफ़ से मअलूम हुआ कि माँ या ख़ाला के साथ हुस्ने सुलूक करने की वजह से बहुत से गुनाह माफ़ हो जाते हैं उसकी बरकत से अल्लाह करीम नेकियों की तौफ़ीक़ अता फ़रमाता है।

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -11)

वालिदैन के हुक़ूक़ क़ुरआन की रोशनी में :
  
*हदीस 6 :-* हज़रत अनस रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि जो शख़्स चाहे कि परवरदिगारे आलम उसकी उम्र में बरकत अता फ़रमाए और उसका रिज़्क़ बड़ा दे तो उसको चाहिए कि अपने माँ बाप के साथ अच्छा हुस्ने सुलूक और अपने रिश्तेदारों से तअल्लुक़ात बनाए रख्खे!

📙 दुर्रे मन्सूर, जिल्द 4, सफ़्हा 173
माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 16-17 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -12)

माँ बाप में किसका हक़ ज़्यादा है.!? 

इस तअल्लुक से इमाम अहमद रज़ा फाज़िले बरेलवी‌ रदिअल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं, औलाद पर बाप का हक निहायत‌ अज़ीम है और माँ का हक़ उस से आज़म है।
 
अल्लाह तआला सूरह लुक़्मान में फ़रमाता है और हमने ताक़ीद की आदमी को अपने माँ बाप के साथ नेक बरताव की उसे पेट में रख्खी उसकी माँ ने तकलीफ़ से और उसे जना तक्लीफ़ से और उसका पेट में रहना और दूध छुटना दो बरस में है।

इस आयते करीमा में अल्लाह तआला ने माँ बाप दोनों के हक़ में ताक़ीद फ़रमा कर माँ को फिर ख़ास अलग करके गिना। और उसकी उन सख़्तियों और तक्लीफ़ों को जो उसे हमल व विलादत और दो बरस तक अपने खून का इत्र (दूध) पिलाने में पेश आईं जिनके बाइस उसका हक़ अशद व आज़म हो गया शुमार फ़रमाया।

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -13)

माँ बाप में किसका हक़ ज़्यादा है.!? 

*हदीस :-*  उम्मुल मोमिनीन हज़रत आइशा सिद्दीक़ा रदिअल्लाहु तआला अन्हा फ़रमाती हैं कि मैंने आक़ाये करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से अर्ज़ की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम औरत पर सबसे बड़ा हक़ किसका है? फ़रमाया शौहर का मैंने अर्ज़ की और मर्द पर सबसे बड़ा हक़ किसका है? फ़रमाया उसकी माँ का।


*हदीस :-* एक शख़्स ने हुज़ूर पुर नूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम सबसे ज़्यादा कौन इसका मुसतहक़ है कि मैं उसके साथ नेक रिफ़ाक़त करूं? फ़रमाया तेरी माँ अर्ज़ फिर, फ़रमाया तेरी माँ अर्ज़ की फिर, फ़रमाया तेरा बाप।

*हदीस:-* रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं मैं आदमी को वसिय्यत करता हूँ उसकी माँ के हक़ में, वसिय्यत करता हूँ उसकी माँ के हक़ में, वसिय्यत करता हूँ उसके बाप के हक़ में।

 *📚 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 17-18  📫*


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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -14)

बाप से माँ का हक़ ज़्यादा होने का मतलब.!? 

मगर उस से ज़्यादत के यह मअना है कि ख़िदमत में या देने में बाप पर माँ को तरजीह दे मसलन सौ रूपये हैं और कोई ख़ास वजह मानए तफ़जीले मादर नहीं (माँ को ज़्यादा देने में कोई ख़ास रुकावट न हो) तो बाप को 25% दे माँ को 75% या माँ बाप दोनों ने एक साथ पानी मांगा तो पहले माँ को पिलाये फिर बाप को या दोनों सफ़र से आये हैं तो पहले माँ की ख़िदमत करे फिर बाप की वअला हाज़ल क़यास, न यह कि अगर वालिदैन में बाहम तनाज़अ (आपस में लड़ाई झगड़ा) हो तो माँ का साथ देकर मआज़अल्लाह बाप के दर पए ईज़ा हो, या उस पर किसी तरह दुरुश्ती (बद खुलकी) करे या उसे जवाब दे या वे अदबानह आँख मिलाकर बात करे, यह सब बातें हराम हैं, और अल्लाह अज़्ज़ावजल की मअसिअत (नाफ़रमानी) में न माँ की इताअत है न बाप की तो उसे माँ बाप में से किसी एक का साथ देना हरगिज़ जायज़ नहीं वह दोनों उसकी जन्नत और नार है जिसे तक्लीफ़ देगा दोज़ख का मुस्तहक़ होगा।

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -15)

माँ बाप की रज़ा में अल्लाह तआला की रज़ा है.!? 

जो लड़का अपने माँ बाप को सताये वह फ़ासिक व फाज़िर गुनाहे कबीरा का मुरतकिब और आक़ (सरकश) व नाफ़रमान और अल्लाह तआला का नाफ़रमान और उसके अज़ाब व ग़ज़ब का मुस्तहक़ है, बाप की नाफ़रमानी अल्लाह क़ह्हार व जब्बार की नाफ़रमानी है और बाप की नाराज़ी अल्लाह क़ह्हार व जब्बार की नाराज़ी है, आदमी माँ बाप को राज़ी करे तो वह उसके लिए जन्नत हैं और अगर नागज़ करे तो वह उसके लिए दोज़ख़ हैं जब तक माँ बाप को राज़ी न करेगा उसका कोई फ़र्ज़, कोई नफ़्ल, कोई अमले नेक बिल्कुल क़ुबूल न होंगे आख़िरत के अज़ाब के आलावा दुनिया ही में जीते जी सख़्त बला नाज़िल होगी मरते वक़्त मआज़अल्लाह कलिमा नसीब न होने का खौफ़ है।

रसूले अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं माँ बाप तेरी जन्नत और तेरी दोज़ख हैं। एक हदीस शरीफ़ में यूं आया है कि सब गुनाहों की सज़ा अल्लाह तआला चाहे तो क़यामत के लिए उठा रखता है मगर माँ बाप की नाफ़रमानी की सज़ा जीते जी पहुंचा देता है।

📙 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 19

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -16)

सौतेली माँ का हक़ व हुरमत.!? 

सौतेली माँ एक अज़ीम व ख़ास तअल्लुक़ उसके बाप से रखती है जिसकी वजह से तअज़ीम व हुरमत उस पर बिला शुब्हा लाज़िम है। इस हुरमत के बाइस अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने उसे हक़ीक़ी माँ के मिस्ल हरामे अबदी किया।

हदीस:- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं बेशक सब नेकोकारियों से बढ़ कर नेको कारी यह है कि बेटा अपने बाप के दोस्तों से अच्छा सुलूक करे (मुस्लिम) जब बाप के दोस्तों की निसबत यह अहकाम हैं तो उसकी मनकूहा, उसकी नामूस की तअज़ीम क्यों न हक़ वअकद होगी, खुसूसन जबकि उसकी नाराज़गी में बाप की नाराज़ी हो कि, बाप की नाराज़ी अल्लाह तआला की नाराज़ी है।

📕माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 20

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -17)

हुक़ूक़े वालिदैन बअदे इन्तिक़ाल.!? 

*(1)* सब से पहला हक़ बअदे मौत उनके जनाज़े की तजहीज़, गुस्ल व कफ़न व नमाज़ व दफ़न है और इन कामों में सुनन व मुस्तहिब्बात की रिआयत, जिस से उनके लिए हर ख़ूबी व बरकत व रहमत व वुसअत की उम्मीद हो।

*(2)* उनके लिए दुआ व इस्तिग़फ़ार हमेशह करते रहना, इस से कभी ग़फ़लत न करना।

*(3)* सदक़ा व ख़ैरात व आमाले सालिहात का सवाब उन्हें पहुँचाते रहना, हस्बे ताक़त उसमें कमी न करना, अपनी नमाज़ के साथ उनके लिए भी नमाज़ पढ़ना, अपने रोज़ों के साथ उनके वास्ते भी रोज़े रखना, बल्कि जो नेक काम करे सब का सवाब उन्हें और सब मुसलमानों को बख़्श देना कि उनको सवाब पहुंच जायेगा और उसके सवाब में कमी न होगी बल्कि बहुत तरक्कियाँ पायेगा।

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -18)

हुक़ूक़े वालिदैन बअदे इन्तिक़ाल.!?

*(4)*  उन पर कोई क़र्ज़ किसी का हो तो उसके अदा करने में हद दरजह की जल्दी व कोशिश करना और अपने माल से उनके कर्ज़ अदा होने को दोनों जहाँ की सआदत समझना आप, कुदरत न हो तो और अज़ीज़ों, क़रीबों फिर बाक़ी अहले ख़ैर से उसकी अदा में इमदाद लेना।

*(5)*  हर  जुमुआ को उनकी ज़्यारते क़ब्र के लिए जाना, वहाँ सूरह यासीन शरीफ़ ऐसी आवाज़ से कि वह सुनें पढ़ना, और उसका सवाब उनकी रूह को पहुँचाना, राह में जब कभी उनकी क़ब्र आये बे सलाम व फ़ातिहा न गुज़रना।

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -19)

हुक़ूक़े वालिदैन बअदे इन्तिक़ाल.!?

*(6)*  उनके रिश्तेदारों के साथ उम्र भर नेक सुलूक किये जाना।

*(7)*  उनके दोस्तों से दोस्ती निबाहना, हमेशा उनका एजाज़ व इकराम रखना।

*(8)*  कभी किसी के माँ बाप को बुरा कह कर उन्हें बुरा न कहेलवाना।

🤲🏻 अल्लाह ग़फ़ूर व रहीम, अज़ीज़ करीम जल्ला जलालहू सदक़ा अपने हबीब व रहीम अलैहि व अला आलिही अफ़्ज़लुस सलाते वत्तसलीम का हम मुसलमानों को नेकियों की तौफीक़ दे। गुनाहों से बचाये, हमारे अकाबिर की क़बरों में हमेशा नूर व सुरुर पहुँचाये कि वह क़ादिर और हम आजिज़, वह ग़नी है हम मुहताज हैं। *आमीन....आमीन...आमीन....*

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -20)

हुक़ूक़े वालिदैन बअदे इन्तिक़ाल !? 

*हदीस:-* एक सहाबी रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने हाज़िर होकर अर्ज़ की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मैं अपने माँ बाप के साथ ज़िन्दगी में नेक सुलूक करता था अब वह मर गए उनके साथ नेक सुलूक की क्या राह है?

फ़रमाया बअदे मौत नेक सुलूक यह है कि, तू अपनी नमाज़ के साथ उनके लिए भी नमाज़ पढ़े और अपने रोज़ों के साथ उनके लिए रोज़े रखे (रवाहु दारे क़ुतनी) यअनी जब तू अपने सवाब के लिए कुछ नफ़्ल पढ़े या रोज़े रखे तो कुछ नफ़्ल नमाज़ उनकी तरफ से, कि उन्हें सवाब पहुँचाये। या नमाज़ रोज़ा जो नेक अमल करे साथ ही उन्हें सवाब पहुँचने की भी निय्यत करे कि उन्हें भी सवाब मिलेगा और तेरा भी कम न होगा।

माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा - 21


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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -21)

हुक़ूक़े वालिदैन बअदे इन्तिक़ाल.!? 

*हदीस:-* अमीरुलमोमिनीन उमर फ़ारुक़े आज़म रदिअल्लाहु तआला अन्हु पर अस्सी हज़ार क़र्ज़ थे वक़्ते वफ़ात अपने साहिबज़ादे हज़रत अब्दुल्लाह रदिअल्लाहु तआला अन्हु को बुलाकर फ़रमाया मेरे दैन (क़र्ज़) में अव्वल तो मेरा माल बेचना अगर काफ़ी हो जाये फ़बिहा (बहुत अच्छा) वरना मेरी क़ौम बनी अदी से माँग कर पूरा करना अगर यूँ भी पूरा न हो तो कुरेश से माँगना और उनके सिवा औरों से सवाल न करना,

फिर साहिबज़ादे मौसूफ़ से फ़रमाया तुम मेरे क़र्ज़ की ज़मानत करलो, वह ज़ामिन हो गए और अमीरुल मोमिनीन उमर फ़ारुक़े आज़म रदिअल्लाहु तआला अन्हु के दफ़न से पहले अकाबिरे मुहाजिरीन व अनसार को गवाह कर लिया कि वह अस्सी हज़ार मुझ पर हैं, एक हफ़्तह न गुज़रा था कि अब्दुल्लाह रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने वह सारा क़र्ज़ अदा फ़रमा दिया!

तबक़ाते इब्ने सअद अज़ उसमान बिन उरवह

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -22)

हुक़ूक़े वालिदैन बअदे इन्तिक़ाल.!? 

हदीस:- क़बीलए जुहनियह से एक बीबी رضى الله تعالی عنه ने ख़िदमते अक़दस हुज़ूर सैय्यदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम में हाज़िर होकर अर्ज़ की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मेरी माँ ने हज करने की मन्नत मानी थी वह अदा न कर सकीं और उनका इन्तिक़ाल हो गया क्या उनकी तरफ़ से हज कर लूँ?? 

फ़रमाया हाँ उसकी तरफ़ से हज करो भला तू देख तो तेरी माँ पर अगर दैन (क़र्ज़) होता तो अदा करती या नहीं, यूँ ही ख़ुदा का दैन (क़र्ज़) अदा करो कि वह ज़्यादा हक़ रखता है।

📙 रवाहुल बुख़ारी अन इब्ने अनस रदिअल्लाहु तआला अन्हु

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -23)


हुक़ूक़े वालिदैन बअदे इन्तिक़ाल.!? 

सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं जो अपने माँ बाप दोनों या एक की क़ब्र पर हर जुमा के दिन ज़्यारत को हाज़िर हो अल्लाह तआला उसके गुनाह बख़्श देगा और माँ बाप के साथ अच्छा सुलूक करने वाला लिखा जायेगा।

📙 रवाहुल हकीम अत्तिर्मिज़ी फ़िन्नावादिर अन अबी हुरैरह

हदीस:- हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं जो शख़्स रोज़े जुमा अपने वालिदैन या एक की ज़्यारते क़ब्र करे और उसके पास सूरह यासीन शरीफ़ पढ़े और बख़्श दिया जाये।

📙 इब्ने अदी अनिस्सिद्दिक़िल अकबर रदिअल्लाहु तआला अन्हु

 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 22-23 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -24)

औलाद के लिए वालिद की शरई ज़िम्मेदारियां.!?

(1)   दीनदार लोगों में शादी करें ताकि बच्चे पर नाना व मामूं, की आदत व अफ़आल का भी असर पड़े।

(2)  जिमाअ की इब्तिदा बिस्मिल्लाह से करे वरना बच्चे में शैतान शरीक हो जाता है।

(3)  बवक़्ते जिमाअ औरत की शरमगाह पर नज़र न करे कि बच्चे के अन्धे होने का अन्देशा है।

(4)  बवक़्ते जिमाअ ज़्यादा बातें न करे कि बच्चे के गूंगे या तूतले होने का ख़तरा है।

(5)  मियाँ बीवी कपड़ा ओढ़ लें जानवरों की तरह नंगे होकर जिमाअ करने से बच्चे के बेहया होने का ख़दशह है।

📕माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 23 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -25)

औलाद के लिए वालिद की शरई ज़िम्मेदारियां.!?

(6)  जब बच्चा पैदा हो फ़ौरन सीधे कान में अज़ान, बायें में तकबीर कहे कि ख़लले शैतान व उम्मुस्सिबयान (मिरगी) से बचे।

(7)  छुहारा वगैरह कोई मीठी चीज़ चबाकर उसके मुंह में डाले कि हलावते अख़्लाक़ की फ़ाले हसन है।

(8)  सातवीं और न हो सके तो चौदहवीं वरना इक्कीसवें दिन अक़ीक़ह करे लड़की के लिए एक लड़के के लिए दो बकरे, कि उसमें बच्चे को गोया रहन से छुड़ाना है।

(9)  एक रान दाई को दे कि बच्चे की तरफ़ से शुकराना है।

(10)  सर के बाल उतरवाये और बालों के बराबर चाँदी तौल कर खैरात करे।

📕माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 23

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -26)

औलाद के लिए वालिद की शरई ज़िम्मेदारियां.!?

(11)  सर पर ज़अफ़रान लगाये।

(12)  नाम रखे यहाँ तक कि कच्चे बच्चे का जो कम दिनों का गिर जाये वरना वह बच्चा अल्लाह के यहाँ शाकी होगा।

(13)  बुरा नाम न रखे कि बुरा नाम फ़ाले बद है।

(14)  अब्दुल्लाह, अब्दुर्रहमान, अहमद, हामिद वगैराह इबादत व हम्द, या अंबिया, औलिया या अपने बुज़ुर्गों में जो नेक लोग गुज़रे हों उनके नाम पर नाम रखे कि मूजिबे बरकत है खुसूसन नामे पाके मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की इस मुबारक नाम की बेपायाँ बरकत बच्चे के दुनिया व आख़िरत में काम आती है।

(15)  जब मुहम्मद नाम रखे तो उसकी तअज़ीम करे, मजलिस में उसके लिए जगह छोड़ दे, मारने बुरा कहने में एहतियात रखे जो माँगे बर वज्हे मुनासिब दे।

📕माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 24

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -27)

औलाद के लिए वालिद की शरई ज़िम्मेदारियां.!?

(16)  प्यार में छोटे लक़ब बे क़दर नाम न रखे कि पड़ा हुआ नाम मुश्किल से छूटता है।

(17)  माँ या नेक दायह नमाज़ी सालिहा शरीफ़ुल क़ौम से दो साल तक दूध पिलवाये।

(18)  बच्चे को पाक कमाई से पाक रोज़ी दे कि नापाक माल नापाक ही आदतें लाता है।

(19)  उन्हें प्यार करे बदन से लिपटाये, कन्धे पर चढ़ाये, उनके हँसने खेलने, बहलाने की बाते करे!

📕माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 24 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -28)

औलाद के लिए वालिद की शरई ज़िम्मेदारियां.!?

(20)  नया मेवह, नया फल उन्हें दे कि वह भी ताज़े फल हैं नये को नया मुनासिब है।

(21)  बहलाने को झूटा वअदा न करे बल्कि बच्चे से भी वअदा वही जायज़ है जिसको पूरा करने का इरादा रखता हो।

(22)  अपने चंद बच्चे हों तो जो चीज़ दे सब को बराबर दे एक को दूसरे पर फ़ज़ीलत व तरजीह न दे।

(23)  सफ़र से आये तो उनके लिए कोई तोहफ़ा ज़रूर लाये!

📕माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 24

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -29)

औलाद के लिए वालिद की शरई ज़िम्मेदारियां.!?

(24)  बीमार हों तो उनका इलाज कराये।

(25)  ज़ुबान खुलते ही अल्लाह अल्लाह फिर कलिमा ला इलाहा इल्लल्लाह फिर पूरा कलिमा सिखाये।

(26)  जब तमीज़ आये अदब सिखाये, खाने, पीने, हँसने, बोलने, उठने, बैठने, चलने, फिरने, हया, लिहाज़,बुजुरगों की तअज़ीम, माँ बाप उस्ताज़ और लड़की को शौहर के भी इताअत के तरीके व आदाब बताये।

(27)  दीनी तअलीम सिखाये कुरआन मजीद पढ़ाये और बअदे ख़तमे क़ुरआन मजीद हमेशा तिलावत की ताकीद रखे।

(28)  अक़ाइदे इस्लाम व सुन्नत सिखाये कि बचपन का सिखाया हुआ पत्थर की लकीर होगा।

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 25 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -30)

औलाद के लिए वालिद की शरई ज़िम्मेदारियां.!?

(29)  हुज़ूरे अक़दस रहमते आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मुहब्बत व तअज़ीम उनके दिल में डाले कि अस्ल ईमान व ऐने ईमान यही है।

(30)  सात बरस की उम्र से नमाज़ सिखाये और नमाज़ की ज़बानी तकीद शुरू कर दे और जब दस बरस का हो नमाज़ मार कर पढ़ाये।

(31) दस बरस की उम्र हो जाये तो ख़्वाह अपने या किसी के साथ न सुलाये उनके लिए अलग बिस्तर अलग चारपाई का इन्तिज़ाम कर दे।

 (32) जब जवान हो जाये तो शादी कर दे शादी में वही रिआयत क़ौम व दीन व सूरत व सीरत मलहूज़ रखे।

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 25

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -31)

माँ बाप की नाफ़रमानी का वबाल.!?

हिकायत:-  इमाम इब्नुल जोज़ी मुहद्दिस, किताब ऐनुल हिकायात में बसनदे ख़ुद मुहम्मद इब्नुल अब्बास वर्राक़ से रिवायत करते हैं कि एक शख़्स अपने बेटे के साथ सफ़र को गया, राह में बाप का इन्तिक़ाल हो गया वह जंगल दरख़्ताने मुक़ुल यअनी गोगुल के पेड़ों का था, उनके नीचे दफ़न करके बेटा जहाँ जाता था चला गया, जब पलटकर आया तो उस मंज़िल में रात को पहुंचा और बाप की क़ब्र पर न गया, नागाह (अचानक) सुना कि कोई कहने वाला कहता है मैंने तुझे देखा कि तू रात में इस जंगल से गुज़र रहा है और वह जो उन पेड़ों में है (तेरा बाप) उस से कलाम करना अपने ऊपर लाज़िम नहीं जानता हालाँकि उन दरख़्तों में वह मुक़ीम है कि अगर उसकी जगह तू होता और वह यहाँ से गुज़रता तो राह से फिर कर आता और तेरी क़ब्र पर सलाम करता।

📕माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 26 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -32)

माँ बाप की नाफ़रमानी का वबाल.!?

हदीस:- एक सहाबी رضى الله تعالیٰ عنه ने हाज़िर होकर अर्ज़ की या रसूलल्लाह ﷺ एक राह में ऐसे गरम पत्थरों पर कि गोश्त उन पर डाला जाता तो कबाब हो जाता, मैं छ: मील तक अपनी माँ को अपनी गरदन पर सवार करके ले गया हूँ, क्या मैं अब उसके हक़ से अदा हो गया? रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया तेरे पैदा होने में जिस क़दर दरदों के झटके उसने उठाये हैं शायद उनमें से एक झटके का‌ बदला हो सके।

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 26


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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -33)

माँ बाप की नाफ़रमानी का वबाल.!? 

हदीस:- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि वालिद जन्नत के सब दरवाज़ों में बीच का दरवाज़ा है तू चाहे तो इस दरवाज़े को अपने हाथ से खो दे ख़्वाह निगाह रख (यअनी हिफ़ाज़त कर)।

हदीस:- रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं कि सब गुनाहों की सज़ा अल्लाह तआला चाहे तो क़यामत के लिए उठा रखता है मगर माँ बाप की नाफ़रमानी की सज़ा उसके जीते जी पहुंचाता है।

*📫 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 27 

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माँ बाप की नाफ़रमानी का वबाल.!? 

हिकायत:- हज़रत अवाम बिन हौशब रहमतुल्लाहि तआला अलैहि जो कि अजल्ले अइम्मए तबअे ताबईन से हैं 148हिज़री में इन्तिक़ाल किया, फ़रमाया मैं एक मुहल्ले में गया उसके किनारे पर क़बरिस्तान था अस्र के वक़्त एक क़ब्र शक़ हुई और उसमें एक आदमी निकला जिसका सर गधे का और बाक़ी बदन इन्सान का, उसने तीन आवाज़ें गधे की तरह की फिर क़ब्र बन्द हो गई एक बुढ़िया बैठी सूत कात रही थी, एक औरत ने मुझ से कहा उन बड़ी बी को देखते हो मैंने कहा उसका क्या मुआमला है? कहा यह उस क़ब्र वाले की माँ है, वह शराब पीता था जब शाम को आता माँ नसीहत करती कि ऐ  बेटे खुदा से डर, कब तक इस नापाक को पियेगा, यह जवाब देता कि तू तो गधे की तरह चिल्लाती है यह शख़्स अस्र के बअद मरा जब से हर रोज़ बअदे अस्र उसकी क़ब्र शक़ होती है रोज़ यूँ ही तीन आवाज़ें गधे की हो करके बंद हो जाती है।

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 28

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माँ बाप की नाफ़रमानी का वबाल :

इसी वाक़िआ को हज़रत अता बिन यसार रहमतुल्लाहि तआला अलैहि इस तरह बयान करते हैं कि बअज़ लोग सफ़र को गए जंगल में एक झोपड़े में क़याम किया। रात को झोपड़े में गधे की ढिचूँ ढिचूँ की आवाज़ सुनते रहे यहाँ तक कि सुबह हुई उन्होंने झोपड़े वाली बीबी से पूछा कि तुम्हारे यहाँ गधा तो है नहीं लेकिन हम ढिचूँ ढिचूँ की आवाज़ सुनते रहे इसकी वजह क्या है? बुढ़िया ने कहा यह मेरा लड़का ढिचूँ ढिचूँ करता है। इस लिए कि एक दिन उसने मुझे गधी कहा। मैंने अल्लाह तआला से बद्दुआ की कि उसे गधा बना दिया जाये। फिर जब से वह मरा है उस वक़्त से उसकी क़ब्र से हर रात ऐसे ही गधे की सी आवाज़ सुनाई देती है और सुबह तक ऐसे ही आवाज़ आती रहती है।

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 28

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -36)

ख़िदमाते वालिदैन का सिलाह.!? 

हज़रत ओस यमनी رضى الله تعالیٰ عنه फ़रमाते हैं कि एक शख़्स के चार लड़के थे जब उनका बाप बीमार हुआ तो उनमें से एक भाई ने दूसरों से कहा या तो तुम सब मिलकर बाप की तीमार दारी (ख़िदमत) करो मगर इस शर्त पर कि बाप की मीरास से कुछ न लूंगा। या मैं उनकी तीमार दारी करता हूँ और इसी शर्त पर कि इस मीरास से कुछ न लूंगा। यह सुनकर भाइयों ने इस बात पर इत्तिफ़ाक़ किया कि अच्छा बस तुम ही इनकी तीमार दारी करो। 

चुनांचे उसने अपने वालिदैन की तीमार दारी शुरू कर दी, एक दिन ख़्वाब में क्या देखता है कि कोई शख़्स उस से कह रहा है कि तुम फलाँ मक़ाम पर जाकर एक सौ अशरफ़ियाँ ले लो मगर उनमें बरकत नहीं है। सुबह उठकर उसने अपनी बीवी से तज़्किरा किया तो वह कहने लगी वह अशरफ़ियाँ ले आओ मगर उस अक़्ल मन्द ने उसके लेने से इन्कार कर दिया कि जब बरकत ही उनमें नहीं है तो लेकर क्या करूँ। इसी तरह फिर दूसरी रात को उसके ख़्वाब में नज़र आया कि फलाँ मक़ाम से दस अशरफ़ियाँ ले लो मगर बरकत उनमें भी नहीं है।

📕माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 29 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -37)

ख़िदमाते वालिदैन का सिलाह :

फिर जब सुबह को उसने बीवी से उसका ज़िक्र किया तो फिर उसने अशरफ़ियाँ लेने की रग़बत दिलाई मगर उस मरदे दाना ने बे बरकत चीज़ को लेना क़ुबूल न किया तो फिर तीसरी रात उस से कहा गया कि अच्छा फ़लाँ मक़ाम पर जाओ और वहाँ से एक अशरफ़ी लेलो उसमें अलबत्ता बरकत है बस यह सुनकर वह शख़्स वहाँ गया और एक अशरफ़ी ले आया वहाँ से वापसी पर उसने देखा कि एक शख़्स दो मछलियाँ फ़रोख़्त कर रहा है उस शख्स ने दरयाफ़्त किया कि दोनों मछलियाँ किस क़ीमत पर दोगे मछली वाले ने जवाब दिया एक अशरफी इनकी क़ीमत है,

चुनाँचे उस शख़्स ने वह अशरफ़ी देकर दोनों मछलियाँ ख़रीद ली और जब उनको लेकर घर आया और मछलियों का पेट चाक किया तो उनके पेट से दुरे बेबहा निकल आया जिनमें एक मोती लेकर वह बादशाहे वक़्त की ख़िदमत में हाज़िर हुआ, जो बादशाह को बहुत पसंद आया और उसके बदले बादशाह ने उस शख़्स को एक कसीर रक़म अता कर दी नीज़ उस से कहा अगर तुम इसका जोड़ मिला दो तो मैं तुम को बेशुमार दौलत अता करूँगा यह सुनकर उस शख़्स ने वह दूसरा मोती भी बादशाह को पेश कर दिया जिसके इवज़ बादशाह ने अपने वअदे के मुताबिक़ उस शख़्स को कसीर रक़म अता कर दी जिसको लेकर वह घर चला आया और अपनी वालिदैन की ख़िदमत की बदौलत सब भाइयों से ज़्यादा मालदार हो गया।

*फ़ायदा :-* ख़िदमते वालिदैन के सिले में अल्लाह तआला ने उसको दौलत से नवाज़ा ख़िदमते वालिदैन हक़ीक़त में बहुत बड़ी चीज़ है। *बेशक ✨🌹*

📕माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 29 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -38)

ख़िदमाते वालिदैन का सिलाह :

*हिकायत:-* एक वलीए कामिल का बयान है कि मैंने बसरह के बाज़ार में एक जनाज़ा देखा जिसे सिर्फ चार आदमी उठाकर दफ़नाने जा रहे थे उनके साथ और कोई न था। मैंने कहा अजीब बात है बसरह के भरे बाज़ार में मुसलमान के जनाज़े के साथ कोई भी नहीं। मैं जनाज़े के साथ हो लिया, उसकी नमाज़ पढ़ाई और दफ़नाने में शरीक रहा। उन चारों आदमियों से उसके मुतअल्लिक़ पूछा तो कहा हम कुछ नहीं जानते हमें तो यह औरत किराये पर ले आई है जो क़ब्र के सिरहाने खड़ी है। जब वह चारों आदमी चले गए तो वह औरत हाथ उठाकर देर तक वहाँ दुआ माँगती रही, फ़राग़त पर हंसी,

जब वह जाने लगी तो मैंने पूछा बीबी! मुझे इस राज़ से आगाह फ़रमाइए। फ़रमाया यह मुर्दा मेरा बेटा है, उसने ज़िन्दगी में कोई गुनाह न छोड़ा आज से तीन रोज़ पहले यह बीमार हुआ और मुझे कहा अम्मी! जब मैं मर जाऊँ तो पड़ोसियों को मेरी मौत की ख़बर तक न देना, वह मेरी मौत से खुश होंगे और मेरे जनाज़े के लिए भी नहीं आयेंगे लेकिन तुम ऐसे करना कि मेरी अंगूठी पर (لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ مُحَمَّدٌّ رَّسُوْلُ اللّٰه) लिखवाकर मेरी उंगली में पहना देना और मरने के बअद अपना पाँव मेरे चेहरे पर रखकर कहना यह है सज़ा उसकी जो ख़ुदा का नाफ़रमान हो, जब तुम मुझे दफ़ना चुको तो हाथ उठाकर दुआ माँगना कि या इलाही मैं अपने बेटे से राज़ी हूँ तू भी उस से राज़ी हो जा। अब मैंने उसकी तमाम वसिय्यतें पूरी कर दी हैं और अब जैसा कि आप ने देखा है मैंने हाथ उठाकर दुआ माँगी है तो मैंने क़ब्र के अन्दर से बेटे की आवाज़ सुनी वह फ़सीह अल्फ़ाज़ में कह रहा था अम्मीजान! तशरीफ़ ले जाइए मैं अपने रब के यहाँ हाज़िर हुआ तो उसे रहीम व करीम पाया वह मुझ से राज़ी है। मैंने जब उसकी यह बात सुनी तो मैं हंस पड़ी उसके हाल के सुरूर से।

📚 शरहुल अस्माउल इमामुल क़शीरी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 30 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -39)

यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को तंबीह :

मरवी है कि जब याक़ूब अलैहिस्सलाम किनआन से मिस्र तशरीफ़ लाए तो यूसुफ़ अलैहिस्सलाम वालिदे गिरामी की तअज़ीम के लिए न उठे तो अल्लाह तआला ने बज़रीअह वही यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को फ़रमाया कि आपको अपनी अज़मत पर नाज़ है याद रखिए मुझे अपनी इज़्ज़त की कसम मैं आपकी पुस्त से नबी पैदा नहीं करूंगा। ( इसलिए कि आप वालिदे गिरामी की इज़्ज़त व अज़मत के आदाब बजा नहीं लाए)

*मसअला:-* जब माँ बाप दोनों में से किसी एक दूसरे की रज़ा व अदमे रज़ा की तरजीह का मौक़ा दरपेश हो मसलन वालिद साहिब को राज़ी करना चाहता है तो वालिदा नाराज़ होती है अगर वालिदा की ख़िदमत करता है तो वालिद नाराज़ होता है तो वालिद की रज़ा को तरजीह दे लेकिन सिर्फ़ तअज़ीम व तकरीम में क्योंकि सब औलाद बाप की तरफ़ मनसूब होती है और ख़िदमत और इनआम में वालिदा को तरजीह दे यहाँ तक कि माँ बाप से मुलाकात के वक़्त बाप की तअज़ीम के लिए पहले उठे और कुछ इनआम व दीगर अशया देते वक़्त माँ को पेश करे।

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा  33

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -40)

 नूह अलैहिस्सलाम के बे अदब बेटे की सज़ा :

हज़रत वहब से मरवी है कि जब नूह अलैहिस्सलाम कशती से बाहर तशरीफ़ लाये तो आराम फ़रमाया। नींद की हालत में उनका सत्र खुल गया जिसे देखकर आप का बेटा हाम हँस पड़ा और आप के सत्र को न ढाँपा। जब आप के बेटे साम व याफ़स को मअलूम हुआ तो आकर वालिदे गिरामी पर कपड़ा डाल दिया। 

नूह अलैहिस्सलाम बेदार हुए तो आप को तमाम हाल सुनाया गया आप ने हाम से फ़रमाया कि अल्लाह तआला तेरे जिस्म को तबदील करदे चुनाँचे काले सूडानी और हबशी उन्हीं की औलाद से हैं और क़यामत तक उन्हें दुनयवी ज़िल्लत में मुब्तिला रखा गया।

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा  33 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -41)

माँ नाराज़ थी : मरवी है कि एक शख्स पर नज़अ तारी थी और कलिमए शहादत से महरूम था  हुज़ूर सरवरे आलम ﷺ को उसकी ख़बर दी गई आप उसके यहाँ तशरीफ़ ले गए और उसे कलिमए शहादत तलक़ीन फ़रमाई लेकिन कोशिश के बावजूद अपनी ज़बान पर कलिमए शहादत न ला सका हुज़ूर सरवरे आलम ﷺ ने फ़रमाया यह शख़्स नमाज़ नहीं पड़ता या ज़कात नहीं देता या रोज़े नहीं रखता था? 

सहाबए किराम رضى الله  تعالیٰ عنهم ने अर्ज़ की नमाज़ व रोज़े का बड़ा पाबंद था आप ने फ़रमाया क्या इसने वालिदैन की नाफ़रमानी तो नहीं की सब ने अर्ज़ की हाँ यही वजह है आप ने फ़रमाया इसकी वालिदा को मेरे सामने लाओ वह हाज़िर हुई तो वह बहुत बूढ़ी लाग़र और नाबीना थी, आप ने फ़रमाया क्या तू इसे माअफ़ नहीं करती, क्या तूने इसे जहन्नम की आग के लिए नौ माह पेट में उठाए रखा, क्या आग के लिए तूने इसे दो साल दूध पिलाया अगर तू मआफ़ नहीं करती तो माँ की मम्ता कहाँ गई ? (माँ ने माफ़ कर दिया) उस नौजवान की ज़बान कलिमए शहादत के लिए खुल गई।

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा  34 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -42)

चिड़िया का पाँव काटा है :

अल्लामा ज़मखशरी से किसी आलिमे दीन ने पूछा कि आप का पाँव कैसे कट गया था उसने कहा कि मैंने बचपन में एक चिड़िया को पकड़ कर धागे से उसके पाँव को जकड़ा और फिर अपनी तरफ़ खींचा तो उसका पाँव कट गया मेरी वालिदा उसकी हालते ज़ार से सख़्त मग़मूम हुईं और मुझे फ़रमाया बेटा जैसे तूने चिड़िया का पाँव काटा है ख़ुदा करे तेरा पाँव भी ऐसे कट जाये जब मैं इल्म की तहसील के लिए बुख़ारा को गया तो रास्ते में सवारी से गिरा तो मेरा पाँव टूट गया बअज़ ने कहा कि रास्ते में पाँव सरदी से सूख गया जिसे फिर काटना पड़ा इसी लिए ज़मखशरी लकड़ी के सहारे चलता था।

📚 कज़ाफी रौज़तिल अख़यार

हिकायत:-  हज़रतुल उस्ताज़ अबू‌ इसहाक़ रहमतुल्लाहि तआला अलैहि की ख़िदमत में एक शख़्स हाज़िर हुआ और अर्ज़ की कि मैंने रात को ख़्वाब में देखा है कि आप की दाढ़ी मुबारक में जौहर व याक़ूत हैं। आप ने फ़रमाया तेरा ख़्वाब सच्चा है इस लिए कि मैंने कल अपनी दाढ़ी वालिदा माजिदा के क़दमों के तलवों को लगाई थी।

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 34

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -43)

जरीज राहिब का क़िस्सा !?

हदीस शरीफ़ में है कि जरीज एक आबिद ज़ाहिद मर्द था उसने इबादत ख़ानह (गिर्जा) बनाया और उसी में रहता था। एक दिन माँ आई तो वह नमाज़ पढ़ रहा था माँ ने पुकारा या जरीज जरीज ने दिल में सोचा माँ बुला रही है और नमाज़ पढ़ रहा हूँ माँ जवाब न पाकर वापस लौट आई। इसी तरह दूसरे दिन आई और पुकारा या जरीज उस वक़्त भी वह नमाज़ में था। जवाब न दिया। माँ वापस लौट गई। तीसरे रोज़ भी ऐसे ही हुआ जवाब न मिलने पर माँ ने कहा अल्लाह इसे मौत न दे जब तक किसी ज़ानिया औरत के चेहरे को न देखले यह कहकर चली गई। बनी इस्राईल ने हस्बे आदत जरीज को फंसाना चाहा क्योंकि वह लोग उसकी इबादत से खुश न थे चुनांचे शहर की एक कुंजरी (रन्डी) जिसे अपने हुस्न पर नाज़ था उससे बात की तो उसने कहा तुम लोग जिसे चाहो मैं उसे अपने हुस्न में फंसा लूँ हुज़ूर नबीए पाक ﷺ ने फ़रमाया कि उस औरत को जरीज के लिए कहा गया तो वह हार सिंगार करके जरीज के सामने आ गई लेकिन जरीज ने उस तरफ़ तवज्जो न की।

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा  35

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -44)

जरीज राहिब का क़िस्सा !? 

कुंजरी ने जरीज से मायूस होकर एक चरवाहे से ज़िना कराया जो वह सूमिआ (गिजा) के करीब रहता था उससे कुंजरी हामिला हो गई जब बच्चा पैदा हुआ तो शोर बरपा कर दिया कि यह जरीज से है लोगों ने जरीज को गिर्जा से नीचे उतारा और उसका गिर्जा तोड़ा फोड़ा और उसे मारते हुए बाहर निकाल लाये जरीज ने पूछा मुझे कौन से जुर्म की सज़ा दे रहे हो कहा तूने फ़ला कुंजरी से ज़िना किया उससे बच्चा पैदा हुआ है वह तेरा नुतफ़ा है जरीज ने फ़रमाया वह बच्चा कहाँ है बच्चा उसके पास लाये फ़रमाया मुझे सिर्फ दो रकआत पढ़ने दो फिर जो चाहो करो। 

चुनांचे दो रकअत नमाज़ पढ़कर बच्चे के करीब आकर उसके पेट पर लकड़ी मारकर कहा ऐ गुलाम तेरा बाप कौन है कहा फ़लाँ चरवाहा नबीए पाक ﷺ ने फ़रमाया लोग जरीज की तरफ मुतवज्जह हुए और उसे चूमते थे और तबरुक़ के तौर उसे हाथ वगैरह लगाते और कहा कि ऐ जरीज हम तेरा इबादत खानह सोने का बनवाते हैं कहा बस इसी तरह मिट्टी का इबादत ख़ानह तैयार करदो चुनांचे सबने मिलकर इबादत खानह मिट्टी और गारे का तैयार किया।

नोट:- साबित हुआ कि महबूबाने ख़ुदा के हाथों को चूमना और उनसे बरकत हासिल करना और उनकी तअज़ीम व तकरीम बजा लाना तरीक़ए ईमान है। यही वजह है कि हुज़ूर नबीए पाक ﷺ ने उसकी फ़ज़ीलत में यह इरशादे गिरामी बयान फ़रमाया है अगर तक़बील व मसहे औलिया नाजाइज़ व हराम होता तो आप इस क़ौल को बयान करके रद फ़रमाते आप का रद न करना यह जवाज़ की दलील है।

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 35 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -45)

अज़मते वालिदैन :

मसअला:-  अपने माँ बाप की ख़िदमत खुद करे किसी दूसरे के सपुर्द न करे।

मसअला:-  इन्सान को अपने माँ बाप और उस्ताद (और पीर व मुर्शिद) की ख़िदमत से शर्म न करनी चाहिए इसी तरह बादशाह (हाकिमे वक़्त) और मेहमान का हुक़्म है।

मसअला:-  बाप के लिए नमाज़ का इमाम भी न बने अगर्चे वह उससे फ़कीह तर है (अगर वह हुक़्म दें या उनको मसाइल से कुछ भी वाकिफ़यत नहीं) तो जाइज़ है!

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 37 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -46)

अज़मते वालिदैन :

मसअला:-  माँ बाप के आगे भी न चले हाँ अगर रास्ता साफ़ करने की ज़रूरत दरपेश हो तो जाइज़ है।

मसअला:-  किसी ऐसी जगह पर न बैठे जहाँ उसके माँ बाप नीचे बैठे हों जब कि उससे माँ बाप की इहानत होती हो।

मसअला:-  किसी मुआमले में माँ बाप से सबक़त न करे मसलन खाने पीने और बैठने और गुफ़्तगू में वगैरह वगैरह!

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा  37 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -47)

अज़मते वालिदैन :

मसअला:-  अगर बाप बद मज़हब है वह उसे अपनी इबादत गाह में ले जाना चाहता है तो ना जाये, हाँ अगर बाप उसे किसी मज़हबी चीज़ को अपने यहाँ उठा लाने का हुक़्म दे तो उसे बजा लाये।

मसअला:-  बाप शराब लाने का हुक़्म दे तो न लाये अगर शराब पीकर बरतन (ग्लास, बोतल वगैरह) उठाने का हुक़्म दे तो यह हुक्म मानना जाइज़ है।

मसअला:-  माँ बाप से आर कर के अपने आप को किसी दूसरे मशहूर व मअरूफ़ शख़्शियत की तरफ़ मन्सूब न करे इस लिए कि यह लअनत का मूजिब है।

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 38 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -48)

अज़मते वालिदैन :

हदीस:-  हुज़ूर नबीए करीम ﷺ ने फ़रमाया अपने आप को दूसरी ज़ात में मन्सूब करने वाले पर अल्लाह तआला और फ़रिश्तों और तमाम लोगों की लअनत हो उसकी न कोई इबादत क़ुबूल होगी न नेकी। (इबादत से मुराद फ़राइज़ और नेकी से मुराद नवाफ़िल हैं)

हदीस:-  जो शख़्स हर जुमा अपने माँ बाप या उनमें से किसी एक की क़ब्र की ज़्यारत करता है तो उसे माँ बाप से एहसान करने वाला लिखा जाएगा।

शेख़ सअदी क़ुद्दसा सिर्रहू ने फ़रमाया कि बहुत बरस गुज़रने पर भी तू कभी अपने माँ बाप की क़ब्र पर फ़ातिहा ख़्वानी के लिए नहीं गया बताओ जब तूने अपने बाप के साथ भलाई नहीं किया तो फिर अपनी औलाद से किस मुँह से भलाई की उम्मीद करता है.!?

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 38 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -49)

हिकायत व रिवायत : एक शख़्स हुज़ूर सरवरे आलम ﷺ की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और अर्ज़ की कि मेरे माँ बाप बूढ़े हो गए हैं मेरे लिए उनकी अदायगिए हुक़ूक़ का कोई तरीक़ा है ताकि मैं अपनी बचपन की तरबियत का हक़ अदा कर सकूँ आप ने फ़रमाया तुम उनका कोई हक़ नहीं अदा कर सकते इस लिए कि उन्होंने तरबियत तेरी ज़िन्दगी की बक़ा की खुशी में की थी और तू उनकी खिदमत उनकी मौत की खुशी में करेगा।

*बाप कुल जायदाद का मालिक है :-*  मरवी है कि एक शख़्स ने हुज़ूर सरवरे आलम ﷺ की ख़िदमत में हाज़िर होकर अर्ज़ की कि उससे  उसका बाप उसका माल व असबाब छींन लेता है। हुज़ूर सरवरे आलम ﷺ ने उसके बाप को बुलाया तो लाठी के सहारे चलता हुआ बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुआ आप ने उससे माजरा पूछा तो उसने अर्ज़ की जब यह कमज़ोर और मैं क़वी था और मैं दौलत मंद और यह फ़कीर था तो मैं इसे माल व असबाब से नहीं रोकता था अब मैं ज़ईफ़ और यह क़वी और यह दौलत मंद और मैं फ़क़ीर हूँ लेकिन मुझ से अपने माल के मुतअल्लिक़ बख़ीली करता है।

हुज़ूर सरवरे आलम ﷺ बूढ़े की बात सुनकर रो पड़े और फ़रमाया कि तेरी बात जिस पत्थर और ढीले ने सुनी सब रोये। उसके बअद शिकायत करने वाले नौजवान को फ़रमाया तू और तेरा तमाम माल तेरे बाप का है।

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 39 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -50)

हिकायत व रिवायत :

हदीस:- हज़रत उमर رضى الله تعالیٰ عنه से मरवी है कि मैंने सुना है कि फ़ख़रुल अंबिया ﷺ ने फ़रमाया कि अगर मैं अपने बअद अपनी उम्मत के हालात के बदलने का खौफ़ न करता तो मैं तुम्हें हुक़्म फ़रमाता कि चार शख़्सों के लिए गवाही दो कि वह बहेशती हैं।

(1) वह औरत जिसने अपने शौहर को महेज़ अल्लाह तआला की रज़ा की ख़ातिर महेर बख़्श दिया और उसका शौहर भी उस पर राजी हुआ।

(2) ज़्यादा बाल बच्चों वाला जो हलाल कमाई से अपने कुंबे का पेट पालता हो।

(3) वह तौबा करने वाला जो अपने गुनाहों की तरफ़ ऐसे नहीं लौटता जैसे पिस्तान (छाती) से निकला हुआ दूध पिस्तान में वापस नहीं लौट सकता।

(4) वालिदैन के साथ एहसान व मुरव्वत से पेश आने वाला!

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 39 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -51)

वालिदैन को नसीहत :

माँ बाप पर लाज़िम है कि अपनी औलाद के साथ ऐसा ग़लत बरताव न करें कि जिससे औलाद नाफ़रमानी पर मजबूर हो जाये बल्कि उनके साथ ऐसा बरताव करें यानी वालिदैन को चाहिए कि औलाद को हुज़ूर ﷺ की सुन्नतों का पाबन्द बनाएं और अपने बुज़ुर्गाने दीन की ज़िंदगानी के बारे में बताएं ताकि फ़रमाँबरदारी में मदद कर सकें।

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 40 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -52)

फरमांबरदारी का सिलाह :

बनी इस्राईल का एक यतीम बच्चा हर काम अपनी वालिदा से पूछ कर उनकी मरज़ी के मुताबिक़ किया करता था। उसने एक खूबसूरत गाय पाली और हर वक़्त उसकी देख भाल में मसरूफ़ था। एक मरतबा एक फ़रिशता इन्सानी शक्ल में उस बच्चे के सामने आया और ख़रीदने का इरादा ज़ाहिर किया। बच्चे ने क़ीमत पूछी तो फ़रिशते ने बहुत थोड़ी क़ीमत बताई। जब बच्चे ने माँ को इत्तिलाअ दी तो‌ उसने इनकार कर दिया फ़रिशता हर बार क़ीमत बढ़ाता रहा और बच्चा हर बार अपनी माँ से पूछ कर जवाब देता रहा। जब कई मरतबा ऐसा हुआ तो बच्चे ने महसूस किया कि शायद मेरी वालिदा गाय बेचने पर राज़ी नहीं हैं।

लिहाज़ा बच्चे ने साफ़ साफ़ इनकार कर दिया कि गाय किसी क़ीमत पर नहीं बेची जा सकती। फ़रिशते ने कहा तुम बड़े खुश बख़्त और खुश नसीब हो कि हर बात अपनी वालिदा से पूछ कर करते हो। अनक़रीब तुम्हारे पास कुछ लोग इस गाय को ख़रीदने के लिए आयेंगे तो तुम इस गाय की अच्छी कीमत वसूल करना।

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा  40

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -53)

फरमांबरदारी का सिलाह :

दूसरी तरफ़ बनी इस्राईल में एक आदमी के क़त्ल का वाक़िआ पेश आया और उन्हें जिस गाय की कुर्बानी का हुक़्म मिला उसी बच्चे की गाय थी (जिसका ज़िक्र सूरह बक़रह में आया है) चुनांचे बनी इस्राईल के लोग जब उस बच्चे से गाय ख़रीदने के लिए आये तो उस बच्चे ने कहा कि इस गाय की क़ीमत इसके वज़न के बराबर सोना अदा करने के बराबर है। बनी इस्राईल के लोगों ने इतनी भारी क़ीमत अदा करके गाय ख़रीद ली। 

मुफ़स्सिरीन ने तफ़्सील में लिखा है कि उस बच्चे को यह दौलत वालिदैन के अदब और उनकी इताअत की वजह से मिली। तफ़सीरे तिबरी में भी इसी तरह का वाक़िआ मनक़ूल है। इस से मअलूम हुआ कि वालिदैन की ख़िदमत व अदब का कुछ सिलाह इस दुनिया में भी दे दिया जाता है।

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा  40 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -54)

इमाम आज़म और माँ का अदब :

हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफ़ा रहमतुल्लाहि तआला अलैहि अपनी वालिदा का बहुत अदब व एहतराम किया करते थे। जब कभी उनकी वालिदा साहिबा को कोई मसअला मअलूम करना होता तो वह एक बूढ़े फकीह से दरयाफ़्त करतीं। ऐसे मौक़े पर इमाम आज़म अबू हनीफ़ा रहमतुल्लाहि तआला अलैहि अपनी वालिदा को ऊँट पर सवार करते और ख़ुद ऊँट की नकील पकड़ कर पैदल चलते। जब लोग देखते। तो अदब व एहतराम की वजह से रास्ते के दोनों तरफ़ खड़े होकर सलाम करते।

इमाम आज़म अबू हनीफ़ा रहमतुल्लाहि तआला अलैहि की वालिदा उनसे मसअला दरयाफ़्त करतीं। कई मरतबा ऐसा होता कि बुज़ुर्ग फ़क़ीह को मसअला का सहीह हल मअलूम न होता तो वह आहिस्ता से इमाम आज़म अबू हनीफ़ा रहमतुल्लाहि तआला अलैहि से पूछ लेते फिर ऊँची आवाज़ से आप की वालिदा को बता देते। इमाम आज़म अबू हनीफ़ा रहमतुल्लाहि तआला अलैहि की तवाज़ो और उनके अदब का यह आलम था कि सारी ज़िन्दगी अपनी वालिदा पर यह ज़ाहिर न होने दिया कि जो मसाइल आप उनसे पूछती हैं वह मैं ही तो बताता हूँ। यह सब इस लिए था कि वालिदा साहिबा की तबीअत जिस तरह मुतमइन होती है होनी चाहिए।..✍🏻

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा  41

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -55)

वालिदैन के साथ मैदाने हश्र में सुलूक करने वाले का अजीब क़िस्सा!?

हदीस में है एक शख़्स के मीज़ाने अमल के दोनों पलड़े बराबर हो जायेंगे अल्लाह तआला फ़रमायेगा तुम जन्नत वालों में से नहीं और न ही दोज़ख वालों में से हो तो उस वक़्त एक फ़रिशता एक काग़ज़ लेकर आयेगा और उसको तराजू के एक पलड़े में रखेगा उस काग़ज़ में (उफ) लिखी होगी तो यह टुकड़ा नेकियों पर भारी हो जायेगा क्योंकि यह वालिदैन के नाफ़रमानी का ऐसा कलिमा है जो दुनिया के पहाड़ों से भारी है, चुनांचे उसे दोज़ख़ में ले जाने का हुक़्म दिया जायेगा कहते हैं वह शख़्स मुतालेबा करेगा कि उसको अल्लाह तआला के पास वापस ले चलें तो अल्लाह तआला फ़रमायेगा उसे वापस लाओ।

फिर अल्लाह तआला उस से सवाल फ़रमायेगा ऐ नाफ़रमान बंदे किस वजह से तुम मेरे पास आने का मुतालेबा कर रहे थे? वह कहेगा इलाही तूने देख लिया मैं दोज़ख़ की तरफ़ जा रहा हूँ और मुझे कोई जाये फ़रार नहीं मैं अपने वालिदैन का नाफ़रमान था हालाँकि वह भी मेरी तरह दोज़ख़ में जा रहे हैं मेरी नाफ़रमानी की वजह से मेरे अज़ाब को बढ़ा दे और मेरे वालिदैन को जहन्नम से निजात देदे। سبحان الله रब की रहमत मुस्कुरा उठेगी अल्लाह तआला फ़रमायेगा यह भी माँ बाप के साथ भलाई है जा तुझे इस नेकी के इवज बख़्श दिया।

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -56)

माँ का दिल :

एक घर में एक सास थी उसकी एक बहू थी बहू के दो एक बच्चे और शौहर बहू ख़ुदा के फ़ज़्ल से ऐसी मिली थी कि बस मआज़ अल्लाह। शौहर के लिए भी वबाले जान थी और सास के तो खून ही की प्यासी थी। बस गोया शेख सअदी अलैहिर्रहमह का यह शेर सादिक़ आता है।

_जने बद दर सराये मर्दे निकू_
_हम दरी आलम अस्त दोज़ख़ ऊ_

यअनी बुरी औरत किसी शरीफ़ के घर में चली गई तो उस बेचारे के लिए दुनिया ही में दोज़ख़ हो जाती है।

यह बहू हमेशा इसी कोशिश में रहती थी कि किसी तरह सास को घर से निकाल कर बाहर करे मगर कामियाब न होती थी। क्योंकि सास बेचारी सीधी साधी थी वह किसी मुआमले में दखल भी न देती थी। एक दिन उस बहू ने एक गुल खिलाया। बैठे बैठे खेलने, हाथ पाँव पटकने लगी, गुल मचाने लगी, शौहर ने जो देखा तो बहुत परेशान हुआ, पूछा कि यह क्या मुअमला है बीवी ने कहा कि तुम मुझे नहीं जानते कि मैं कौन हूँ? मैं हूँ कमाल शाह जिन्न।

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -57)

माँ का दिल :

शौहर ने पूछा क्यों आये हो? कमाल शाह ने कहा कि चूंकि तुम्हारी माँ की वजह से हमारी सवारी को तकलीफ़ रहती है इस लिए मैं चाहता हूँ कि अपनी माँ को अलग कर दो शौहर ने कहा कि बहुत अच्छा? आप जाइए मैं इन्तिज़ाम कर दूंगा। कमाल शाह के जाने के बअद बीवी ने पूछा कि यह क्या हुआ था? शौहर ने सब किस्सा बताया। 

बीवी ने कहा कि अच्छी बात है आप अगर मुझको और अपने बच्चों को चाहते हैं तो बुढ़िया को अलग कर देना ही मुनासिब है शौहर साहिब ने जो बिल्कुल बुदधू टाइप के आदमी थे घर के करीब ही एक दूसरा कुवाटर माँ के लिए ले दिया अब माँ उसमें रहने लगी साहिबज़ादे साहिब वहीं जाकर दोनों वक़्त खाना माँ को पहुँचा आते थे।

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा  

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -58)

माँ का दिल :

बहू बेगम ने जब देखा कि अब बुढ़िया बगैर काम काज के दोनों वक़्त खाना खाती है यूँ तो घर में कुछ कर लिया करती थी तो एक दिन फिर खुद बख़ुद खेलने लगी, शौहर ने पूछा आप कौन साहिब हैं? बीवी ने कहा मैं हूँ कमाल शाह जिन्न, शौहर ने अर्ज़ किया कि अब क्या मतलब है। कमाल शाह ने कहा अब हमको एक बूढ़ी औरत का दिल चाहिए, यह कहकर कमाल शाह तो रुख्सत हो गए, बीवी को होश आया, सब माजरा दरयाफ्त किया बुदधू मियाँ ने बताया, बीवी ने कहा यह तो बड़ी मुश्किल हुई अब किस बुढ़िया का दिल लाया जाये नहीं लाया जाता है तो बच्चे बिन माँ के होते हैं घर बरबाद होता है लाया जाता है तो पकड़ धकड़ का अंदेशा है, अब अगर मेरी राय लो तो अम्माँ जान ही फ़ालतू हैं, उन्हीं का दिल पेश कर दो और मैं क्या बताऊँ। 

बुदधू मियाँ ने बीवी का मशवरा कुबूल किया, रात को छुरी तेज़ करके माँ के घर पहुँचे, माँ समझी कि बेटा खाना लाया होगा, हस्बे मअमूल दरवाज़ा खोला, बेटा अंदर दाखिल हुआ, माँ को लिटाकर पेट में छुरी घोंप दी दम भर में माँ बेचारी जाँ बहक़ हो गई नालायक़ बेटे ने माँ का दिल निकाला और बड़े फ़ख़्र के साथ वापस हुआ, आते वक़्त दरवाज़े की सीढ़ी से पाँव जो फिस्ला तो ज़मीन पर धड़ाम से गिरा उस वक़्त माँ का दिल जो हाथ में था उसमें से आवाज़ आई।

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -59)

मॉं का दिल :

*हाय बेटा तेरे चोट तो नहीं लगी* यह आवाज़ सुनकर लड़के को इबरत हासिल हुई। आईन्दा जो कुछ हुआ हो, नौजवानो ! मैंने तुम को माँ की मुहब्बत का मंज़र दिखाया। इस से हमारी माओं, बहनों भाइयों को बड़ा सबक़ हासिल करना चाहिए। इसके यह मअना नहीं कि बीवी का कुछ हक़ ही नहीं या बीवी को शौहर की मुहब्बत ही नहीं होती, होती है और बहुत होती है बीवी अगर नेक हो तो वह अपने शौहर की आशिक होती है। अपनी सास और ससुर की फ़रमाँबरदार और इताअत गुज़ार होती है अपने शौहर के पूरे खानदान के लिए बाइसे इफ्तिखार होती है मेरा कहना तो सिर्फ यह है कि,

माँ को जो मुहब्बत अपनी औलाद से होती है उस मुहब्बत की मिसाल नहीं मिलती यह मुहब्बत बे ग़र्ज़ होती है। किसी रिश्ते की वजह से नहीं पैदा होती बल्कि खूनी होती है। उसी वक़्त से होती है जब से बच्चा पेट में आता है और किसी सबब से मुनक़तअ (ख़त्म) नहीं होती!

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -60)

माँ बाप का दर्जा :

जुलफ़ेकारे हैदरियह जो एक बहुत बड़े आलिमे दीन अल्लामए वक़्त मौलाना अब्दुन्नबी हैदर शाह साहिब कादरी हनफ़ी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि की तसनीफ़ है उसमें किफ़ायतुश शोअबी और माग़फ़िरतुल ग़फ़ूर के हवाले से एक हदीस शरीफ़ है जिसका तर्जुमा और मतलब यह है कि, एक बार एक शख़्स हुज़ूरे अकरम ﷺ की ख़िदमते अकदम में हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ मैंने क़सम खाई है कि जन्नत की चौखट और हूर की पेशानी का बोसा दूंगा अब क्या करूँ हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि (अनतक़ब्बल रिजलुल उम्मि व वजहिल अब्बि) यअनी अपनी माँ के क़दम और बाप की पेशानी चूम ले उसने अर्ज़ किया कि या हबीबल्लाह मेरे माँ बाप का इन्तिकाल हो चुका।

हुज़ूरे अकरम ﷺ ने फ़रमाया (क़ब्बिल क़बरहुमा) कि उनकी क़ब्रों को बोसा दे यअनी माँ की क़ब्र के पाँव की तरफ़ और बाप की क़ब्र के सिरहाने की तरफ़ चूमले बस तेरी क़सम पूरी हो जायेगी। उसने अर्ज़ किया कि या हबीबल्लाह अगर न पहचानूं वालिदैन की क़ब्र को तो आप ने हुक़्म दिया कि ज़मीन पर दो लकीरें खींच ले एक को माँ की कब्र तसव्वुर कर लो और एक को बाप की क़ब फ़र्ज़ करले और उन दोनों के पायेंती और सिरहाने को चूम ले जब भी तेरी क़सम पूरी हो जायेगी। लकीर को अर्बी में ख़त कहते हैं और दो लकीरों को ख़त्तैन कहते हैं। इसी वजह से इस हदीस शरीफ़ को ख़त्तैन कहते हैं। देखिए यह मरतबा है माँ बाप का और यह भी साबित हुआ कि माँ बाप के क़ब्रो को और बुज़र्गाने दीन के मज़ारात को चूमना जाइज़ है। अगर गुनाह होता तो हुज़ूर ﷺ हरगिज़ गुनाह का हुक़्म किसी हाल में न फ़रमाते।

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -61)

माँ की मम्ता :

प्यारे दीनी भाइयो ! माँ को अपनी औलाद से बेहद मुहब्बत होती है वह सब कुछ बरदाश्त कर लेती है लेकिन औलाद को कोई तकलीफ़ पहुँचे तो बरदाश्त नहीं कर सकती। माँ को अपनी जान से औलाद की जान प्यारी होती है। दरजे ज़ेल वाक़िआ से माँ की मम्ता का अन्दाज़ह होता है।

सैय्यदुना हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम के ज़माना में दो औरतें थीं दोनों के गोद में बेटे थे, दोनों कहीं जा रही थीं कि रास्ते में एक भेड़िया आया और एक का बच्चा उठा कर ले गया। वह औरत जिसका बच्चा उठाकर भेड़िया ले गया था दूसरी औरत के बच्चे को छीनकर बोली यह मेरा बच्चा है। बच्चे की माँ ने कहा बहन अल्लाह से डरो, यह बच्चा तो मेरा है। उन दोनों में जब झगड़ा बढ़ गया तो दोनों हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम के पास आई। हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम ने वह बच्चा बड़ी औरत को दिला दिया। हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम को इस बात की खबर हुई तो आप ने फ़रमाया अब्बा जान ! एक फैसला मेरा भी है और यह है कि छुरी मंगवाई जाये मैं इस बच्चे को दो टुकड़े करता हूँ और आधा बड़ी को और आधा छोटी को दे देता हूँ। 

यह फैसला सुनकर बड़ी तो खामोश रही लेकिन छोटी बोली कि हुज़ूर बच्चा बड़ी को ही दे दीजिए लेकिन खुदारा बच्चे के टुकड़े न कीजिए। हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया बच्चा इसी औरत का है क्योंकि इसके दिल में मम्ता का दर्द है। चुनांचे वह बच्चा उसी को दे दिया गया।

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 46 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -62)

प्यारे आका अलैहिस्सलातु वस्सलम के चाहने वालो ! सब से ज़्यादा अच्छे सुलूक की हक़दार माँ है उसके बअद बाप ताजदारे मदीना हुज़ूर अनवर ﷺ के वालिदे मोहतरम आप की पैदाइश से पहले इन्तिक़ाल कर चुके थे और आप की वालिदा मोहतरमा छे साल की उम्र में अल्लाह तआला को प्यारी हो गई और दो साल के बअद दादा जान का साया भी सर से उठ गया हुज़ूर अकदस सैय्यदे दो आलम ﷺ को दूध पिलाने का ज़्यादा शर्फ़ क़बीलए सअद की खुश नसीब औरत हज़रत हलीमा सादिया को हासिल हुआ इस तरह बह रज़ाई माँ हुई।

 बचपन के बअद वह हुज़ूर अनवर ﷺ के पास उस वक़्त तशरीफ़ लाईं कि जब आप फ़राइज़े रिसालत से मुशर्रफ थे ताजदारे मदीना हुज़ूर ﷺ तअज़ीम के तौर पर उठ कर मिले और उनके बैठने के लिए, अपनी चादरे मुबारक बिछा दी जिस पर हज़रत हलीमा सादिया बैठ गईं। एक शख़्स ने पूछा यह कौन खुश किस्मत ख़ातून हैं? तो सहाबए किराम रिज़वानुल्लहि तआला अलैहिम अजमईन ने कहा यह शहंशाहे कौनैन हुज़ूरे अकरम ﷺ की रज़ाई माँ हैं।...✍🏻

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -63)

माँ की दुआ का असर :

हज़रत सुलैम बिन अय्यूब फ़रमाते हैं मैं दस बरस का था और मुझ से सुरह फ़ातिहा तक नहीं पढ़ी जाती थी तो वअज़ मशाइख ने मुझ से फ़रमाया कि तू अपनी माँ से इल्तिजा कर कि वह तेरे क़ुरआन और इल्म के लिए दुआ करे। 

मैंने अपनी माँ से अपने इल्म के लिए दुआ कराई हज़रत इब्ने सुबकी फ़रमाते हैं माँ की दुआ का असर ऐसा हुआ कि हज़रत सुलैम बिन अय्यूब ज़बरदस्त आलिम हुए गोया मैदाने इल्म के ऐसे शैहसवार थे कि कोई उनका गर्द न पाता और निशाने क़दम तक न पहुँच सकता था।

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 47 

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हुक़ूक़ ए वालिदैन व अज़मतें वालिदैन (Part -64)

वालिदैन की ख़िदमत का सिलाह :

मनकूल है कि अगले ज़माने में तीन शख़्स रिज़्क की तलाश में सफ़र के लिए निकले रास्ते में बारिश होने लगी तीनों एक ग़ार में छुप गए अचानक एक चट्टान लुढ़क कर ग़ार के मुँह पर आकर रुक गई और गार का मुँह बन्द हो गया। उन्होंने आपस में यह तय किया कि हर एक अपने अच्छे आमल को याद करके दुआ मांगे ताकि चट्टान हट जाये उनमें से एक ने कहा ऐ अल्लाह! मेरे वालिदैन बूढ़े थे मैं शाम के वक़्त उनसे पहले किसी बच्चे को दूध नहीं पिलाया करता था एक मरतबा ऐसा हुआ मैं किसी काम से बाहर गया हुआ था जब वापस आया तो वह सो चुके थे मैंने दूध दुहा और सारी रात दूध का प्याला लेकर खड़ा रहा यहाँ तक कि सुबह हो गई और मेरे बच्चे सारी रात भूके सोते रहे यह सब कुछ मैंने तेरी रज़ा के लिए किया था अब तू यह चट्टान हम से हटा दे इस दुआ के बअद चट्टान इतनी हट गई कि सूरज की रोशनी अन्दर आने लगी। दूसरे ने अपनी चचा ज़ाद बहन से ज़िना से बाज़ रहने का ज़िक्र किया। तीसरे ने मज़दूर की अमानतदारी का ज़िक्र किया यहां तक कि चट्टान हट गई वह तीनों ग़ार से बाहर आ गए।

🤲🏻 अल्लाह तबरक व तआला अपने प्यारे हबीब रसूले मुअज़्ज़म ﷺ के सदक़े व तुफ़ैल में हम सबके वालिदैन की मगफ़िरत फ़रमाए जिनके वालिदैन इस दुनिया से रुखसत हो गए हैं मौला तआला उनकी क़ब्र पर रहमत व नूर के फूल बरसाए और हश्र के दिन नेक बन्दों के साथ उठाए मौला तआला मैदाने हश्र में हम सबके वालिदैन को अपने प्यारे हबीब ﷺ की शफ़ाअत नसीब फ़रमाए अल्लाह तबरक व तआला हमारी इन दुआओं को हुज़ूर गौसे आज़म رضى الله تعالیٰ عنه के वसीले से क़ुबूल फ़रमाए।

آميــــــــــــــــــــن یا رب العالمین بجاه سيد الانبياء والمرسلين صلی اللہ تعالی علیہ وسلم

📕 माँ का आँचल यानी अज़मते वालिदैन, सफ़्हा 48    

*Post End....✍🏻*

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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ 💚

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