Sunday, 1 December 2019

सीरत ए ग़ौसे आज़म ﺭﺿﻲ ﺍﻟﻠﻪ ﺗﻌﺎﻟﻲ ﻋﻨﻪ



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         ❝ सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

           ↳  *आवाम  से  दो  बातें*  ↲

▣ ❥  *सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ* की पोस्ट आप तमामी हज़रात के लिए हम एडमिन की ज़ानिब से आने वाला बा-बरक़त महीने के तअल्लुक़ से एक तोहफ़ा हैं इस पोस्ट में हम वालियों के इमाम हुज़ूर ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ का तज़किरा पेश करने वाले हैं जिसमें आपको मुकम्मल सीरत की मालूमात मिलेंगी इंशाअल्लाह तआला!

▣ ❥  हुज़ूर गौसे आज़म ने अपनी हयात ए ज़िन्दगी किस क़दर आज़माइशो में सब्र की बे- इन्तेहा हक़ीक़त को पेश करते हुई गुज़ार दिये इससे हमारे लिए क्या दर्स औऱ नसीहतें हासिल होती हैं औऱ ये भी सबक़ हासिल करें कि कैसे कोई अल्लाह तआला का मक़बूल बंदा फ़क़त रिज़ा ए इलाही के लिए अपनी ज़िंदगी के हर अमल को किस क़दर आजमाइशों से होकर अंजाम देता हैं।

▣ ❥  दामने गौसे पाक नही छोड़ेंगे का नारा लगाने वालों पहले अपने आमाल का मुशाहबा करके ये तो देखों की क्या हमने दामने गौसे पाक पकड़ा भी हैं फ़क़त नारा लगाने से कोई आशिके गौसे पाक नही हो सकता उनके नक़्शे क़दम पर चलकर दिखाओ तो कोई बात बनें!

▣ ❥  अगर सही तौर व तरीके से उनके दामन से वाबस्ता हो जाए तो आज भी दुनिया हमे सलाम करती नजर आएंगी।

▣ ❥   ख़ैर अब आपके लिए ये पोस्ट बेहतरीन दर्श का बाईस होंगा इंशाअल्लाह तआला आप इस पोस्ट के जरिये हुज़ूर ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ की सीरत को जाने और इस पर अमल की कोशिश करे!

🤲🏻 अल्लाह तबारक व तआला की बारगाह में दुआ है की मौला ए करीम अपने प्यारे हबीब नबिय्ये आखिरुज्ज़माँ ﷺ और इस मुबारक महीने के सदके मे हम गुनाहगारों ख़्ताकारो को ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ की सीरत को कहने सुन्ने से ज्यादा सही मायने में समझने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाये!...✍

    *🌹🤲🏻 आमीन  सुम्मा  आमीन 🤲🏻🌹*

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         ❝ सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

             ↳  *आबाओ  अज्दाद*   ↲

▣ ❥  हज़रत शैख़ अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाह तआला अलैह के आवाओ अज्दाद मादात अज़ाम से थे। घराना - ए - सादात की अजमत ज़माने भर में मशहूर है क्योंकि खानदाने सादात की निस्बत हुजूर ﷺ से है इसलिये सय्यद मोअज्जि और मुकर्रम हैं!

▣ ❥  आपके नाना जान हज़रत अब्दुल्लाह सोमअई रहमतुल्लाह तआला अलैह का शुमार उस दौर के ऊरफा - ए - कामिलीन में होता है। आपके वालिद सय्यद अबु सालेह भी यक्ताएं ज़माना औलिया ए इनाम से थे। इसी तरह आपकी बालिदा माजिदा हज़रत उम्मुलखेर फातिमा रादिअल्लाहु तआला अन्हा और आपकी फूफी सय्यदा आयशा रादिअल्लाहु तआला अन्हा भी आरफ़ात और सालेहात से थीं। तआरूफ के तौर पर उन मुकद्दस अफ्राद के बारे में चन्द ' सतूर पेशे खिदमत हैं!..✍

   *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 13 📚*

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         ❝  सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

             ↳  *आबाओ  अज्दाद*   ↲

▣ ❥  हज़रत अब्दुल्लाह सोमअई रहमतुल्लाह तआला अलैह हज़रत सय्यद अब्दुल्लाह सोमअई रहमतुल्लाह तआला अलैह जीलान के मशायलकराम और अहले तकया हज़रात से थे आप बड़े आविदो ज़ाहिद , मुनकसितल मिज़ाज और साहिबे फज़्लो कमाल थे। आपकी सखावत जीलान भर में मशहूर थी। कहा जाता है के आप बड़े रोशन बातिन के मालिक थे इसलिये आपकी करामात मशहूर ज़माना थीं। आप मुसतहाबुल दआवात बुर्जग थे। अगर किसी पर गुस्सा आ जाता , तो अल्लाह तबारक व तआला आपके गुस्से की वजह से उस पर गज़ब फरमाता। इसी तरह अगर आप किसी पर शफ्फत फरमाते और इसके लिये कलमाएं ख़ैर फरमाते तो अल्लाह तबारक व तआला उस पर उसको जजा अता फरमाता। आप जईफी और कियरसिनी के बावजुद बाकसरत नवाफिल पढ़ा करते थे इन्तिहाई खुश्बू के साथ मशगूल रहते थे!..✍

   *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 13 📚*

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         ❝ सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

             ↳  *आबाओ  अज्दाद*   ↲

▣ ❥  आप अयम्मर अमूर के वाकेअ होने से पहले खबर दे दिया करते थे और जिस तरह आप उनवान रहनुमा होने की इत्तिला देते थे उसी तरह ही वाकंयात होने थे।

▣ ❥  *करामत* हज़रत अयु अब्दुल्लाह किजबीनी  रादिअल्लाहु तआला अन्हु फरमाते के एक दफा का वाकया है के इरादतमंद एक तिजारती काफले के साथ समरकंद जा रहे थे जब एक लकोदिक सहरा में पहुंचे तो मुसल्सा डाकओं ने काफले पर हमला कर दिया।

▣ ❥  हज़रत के मुरीदों के मुंह से बइख्तियार " शेख सोमअई  रादिअल्लाहु तआला अन्हु निकल गया। मैंने देखा के शेख अब्दुल्लाह सोमअई रादिअल्लाहु तआला अन्हू उनके पास खड़े हैं और बा'आवाज बुलंद फरमा रहे!

*सुव्बुहुन कुद्दसुन रब्बुनल्लाहु तर्रकी या खेलू अन्ना*

▣ ❥  यानि ( हमारा अल्लाह पाक और बेऐब है ऐ घुड़सवारो दुर हो जाओ हम से ) शेख की आवाज़ सुनते ही डाकू , भाग खड़े हए और काफला बिलकुल महफूज़ रहा!...✍

   *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 14 📚*

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         ❝ सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

             ↳  *आबाओ  अज्दाद*   ↲

▣ ❥  *करामत* शैख़ की आवाज़ सुनते ही डाकू , भाग खड़े हुए और काफला बिल्कुल महफ़ूज़ रहा!

▣ ❥  अहले काफला ने अब शैख़ को तलाश करना शुरू किया मगर वो कहीं नजर ना आए। जब ये काफला वतन वापस आया और लोगों से इस वाक़ये का जिक्र किया तो सब ने हलफन बयान किया के शैख़ सामअई  रादिअल्लाहु तआला अन्हु जीलान से कहीं बाहर नहीं गए और हम उन्हें यहाँ देखते रहे। इसी तरह शैख़ सोमाई रादिअल्लाहु तआला अन्हु की मुतअहिद करामात लोगों में मशहूर थीं!...✍

   *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 14 📚*

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         ❝  सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का
 
↳  *हज़रते सय्यदा आयशा रादिअल्लाहु तआला  अन्हा*  ↲

▣ ❥   सय्यदा आयशा रादिअल्लाहु तआला अन्हा हज़रत शैख़ अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु की फूफी जान थी। आप का नाम मुबारक आयशा और कुन्नीयत उम्मे मोहम्मद थी। आप बहुत बड़ी आबिदा , आरफा , पाकयाज़ और सालेह खातुन थीं!

▣ ❥   मुश्किल के वक्त लोग उनसे दुआ कराते थे और बरक़त हासिल करते थे। एक दफा जीलान में सख्त कहत साली थी। लोग दुआयें माँग मांग कर आजिज़ आ गए लेकिन बारिश का एक कतरा भी ना बरसा। नमाजे इसतसकआ भी अदा की मगर बारिश ना हुई।

▣ ❥   आखिरकार सय्यदा आयशा रादिअल्लाहु तआला अन्हा की खिदमत में हाज़िर हुए और उनसे बारगाहे रब्बुल इज्जत में बारिश के लिये दआ मांगने की दरख्वास्त की। सय्यदा आयशा रादिअल्लाहु तआला अन्हा ने उसी वक्त घर के सहन में झाड़ू फेरी और फिर निहायत खशअ व खजअ से दुआ माँगते हुए अर्ज की " बारइलाही ! झाड़ू तो तेरी ना चीज़ बन्दी ने फेर दी है अब छिड़काओ तू कर दे " अभी ये अल्फाज़ उनके मुंह में ही थे के बादल छाने लगे और आनन फआनन उस ज़ोर की - बारिश हुई के लोग भीगते हुए घरों से निकले।

▣ ❥   हज़रत सय्यदा आयशा रादिअल्लाहु तआला अन्हा का विसाल जीलान में ही हुआ और उन्हें वहाँ सपुर्दे खाक किया गया!...✍

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 14-15 📚*

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         ❝  सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का
 
↳  *हज़रते सय्यद अबु सालेह मूसा जंगी दोस्त रादिअल्लाहु तआला अन्हु*   ↲

▣ ❥   हज़रते सय्यद अबु सालेह मूसा जंगी दोस्त हज़रत सय्यद अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु के वालिद मोहतरम का इस्मेग्रामी हज़रत सय्यद अबु सालेह मूसा जंगी दोस्त है।

▣ ❥   आपके जंगी दोस्त मशहूर होने की ये वजह बयान की जाती है के आपको जंगो जिहाद से बहुत उन्स था इसलिये लोग आपको जंगी दोस्त कहने लगे मगर रियाज - उल - हयात में लिखा है के आप अपने नफ़्स से हमेशा जिहाद फरमाते थे और नफ़्स कशी को तजकिया नफ्स का मदार समझते थे!

▣ ❥   चुनाँचे उस मुजाहिदाऐ नफ्स में आपने मुकम्मल एक साल तक कतई खाना पीना तर्क फरमा दिया था एक साल गुज़र जाने के बाद जब ज़रा ख्वाहिश महसूस हुई तो एक शख्स ने उम्दा गिज़ा और ठंडा पानी लाकर पेश किया आपने उस हदिये को कबूल फरमा लिया!..✍

  *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 15 📚*

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         ❝ सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का
 
↳  *हज़रते सय्यद अबु सालेह मूसा जंगी दोस्त रादिअल्लाहु तआला अन्हु*   ↲

▣ ❥   आपने मुकम्मल एक साल तक कतई खाना पीना तर्क फरमा दिया था एक साल गुज़र जाने के बाद जब ज़रा ख्वाहिश महसूस हुई तो एक शख्स ने उम्दा गिज़ा और ठंडा पानी लाकर पेश किया आपने उस हदिये को कबूल फरमा लिया।

▣ ❥   लेकिन उसी वक्त फुकआ को बुलाके उन्हें तकसीम कर दिया। और अपने आपको मुखातिब करके फरमाया के तेरे अन्दर अभी गिजा की ख्वाहिश पाई जाती है। तेरे वासते नाने जी और गर्म पानी भी बरन है। उसी कैफियत में हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम तशरीफ फरमा हुए और फरमाया आप पर सलाम हो। खुदा ऐ कदीर ने आपके कल्ब को जंगी और आपको अपना दोस्त बना लिया है और मुझे ये हुक्म दिया गया है के मैं आपको साथ इफ्तार करूँ!...✍

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 15-16 📚*

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         ❝ सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

↳  *हज़रते सय्यद अबु सालेह मूसा जंगी दोस्त रादिअल्लाहु तआला अन्हु*   ↲

▣ ❥   हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम के साथ जिस कद्र खाना था उसको आपने तनावुल फरमाया। तभी से आपका लकब " जंगी दोस्त " हो गया। मूसा इस्मे शरीफ है , अबु सालेह कुन्नियत है।

▣ ❥   *आपका चेहरा मुबारक आईनाए अनवारे रब्बानी का मुरबका था।* जिस महफिल में आप रौनक अफरोज होते वो महफिल मुनव्वर हो जाती थी। ज़बान में वला की फसाहत और शीरनी थी। जब तक आप वअज़ का सिलसिला जारी रखते हाज़रीन सिवाए इन्तिहाई मजबूरी के मजलिसे बअज से जुम्बिश नहीं करते थे। अक्सरो वेश्तर आप फरमाया करते थे : मैं खुदा का बन्दा हूँ . अल्लाह के बन्दों को मेहबूब रखता हूँ। रब तबारक व तआला से हमेशा डरते रहो।

▣ ❥   खिलाफे शरीयत अमूर से एहतराज़ करो। जब किसी मेहफिल में हज़रते सय्यद - उल - अम्बिया सल - लल्लाहो अलैह व सल्लम का नाम नामी व इस्मग्रामी आ जाए तो दुरूद शरीफ का नज़राना पेश करो। किसी वक्त अल्लाह तआला को ना भूलो। हर आन परवर दिगारे आलम को समीअ व बसीर जानो!...✍

    *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 16 📚*

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         ❝ सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

↳  *हज़रते सय्यद अबु सालेह मूसा जंगी दोस्त रादिअल्लाहु तआला अन्हु*   ↲

▣ ❥   *निकाह का वाकया* जवानी के आलम में आप का निकाह सय्यदा फातिमा رضی اللّٰــه تعالیٰ عنــــــــہا से हुआ। निकाह की रिवायत यूं बयान की जाती है के अनकवाने शबाब में सय्यद अबु सालेह अक्सर रियाज़त व इबादत में मश्गूल रहते थे।

••─➤ एक दफा दरिया के किनारे इबादत कर रहे थे। खाना खाये हुए तीन दिन गुजर चुके थे। नागहानी एक सेव दरया में बहता हुआ दिखाई दिया। बिस्मिल्लाह कह कर इसे पकड़ लिया। सेब खाने के बाद दिल ने आवाज़ दी ऐ अयु सालेह ! मालूम नहीं इस सेब का मालिक कोन है तूने बगैर इजाज़त उसे खा कर अमानत में ख्यानत की है। ये खयाल आते ही कपड़े झाड़ कर उठ खड़े हुए और दरया के किनारे किनारे पानी के बहाओ की मुखालिफ सिम्त सेव के मालिक की तलाश में चल दिये। कई दिन के सफर के बाद आपको दरया एक वसीअ बाग नजर आया। उसमें सेव का एक तनावर दरख्त था। जिसकी शाखों से पके हए सेव पानी में गिर रहे थे। सय्यद अबु सालेह रादिअल्लाहु तआला अन्हु के दिल ने शहादत दी के जो सेब मैंने खाया है वो इसी दरख्त का है!...✍

 *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 16-17 📚*

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         ❝  सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का
 
↳  *हज़रते सय्यद अबु सालेह मूसा जंगी दोस्त रादिअल्लाहु तआला अन्हु*   ↲

▣ ❥   *निकाह का वाकया :* सय्यद अबु सालेह रादिअल्लाहु तआला अन्हु के दिल ने शहादत थी के जो सेब मैंने खाया है वो इसी दरख्त का है।

••─➤ लोगों से उस बाग के मालिक का पता दरयाफ्त किया। मालूम हुआ के उसके मालिक हज़रत सय्यद अब्दुल्लाह सोमअई रादिअल्लाहु तआला अन्हु रईसे जीलान हैं। फौरन उनकी खिदमत में हाजिर हुए सारा माजरा बयान किया और यस्दे अदब बिला इजाज़त सेव खा लेने के लिये माफी के ख्वास्तगार हुऐ। सय्यद अब्दुल्लाह रादिअल्लाहु तआला अन्हु खासाने ख़ुदा में से थे। समझ गए के ये नौजवान भी अल्लाह का खास बन्दा है। दिन में तड़प उठी के उसे अपने साया ऐ आतिफ़त में कर्ब इलाही के मदारिज तय कराऊँ। फरमाया दस साल तक उस बाग की रख वाली करो और मुजाहेदाऐ नफ्स करो फिर सेब माफ करने के मुताल्लिक सोचूंगा!...✍

   *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 17 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

↳  *हज़रते सय्यद अबु सालेह मूसा जंगी दोस्त रादिअल्लाहु तआला अन्हु*   ↲

▣ ❥   *निकाह का वाकया :* हज़रत अबु सालेहा रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने रिजाए इलाही की खातिर फौरन ये शर्त मंजूर कर ली और दस साल बाद सय्यद अब्दुल्लाह सोमअई रादिअल्लाहु तआला अन्हु की खिदमत में अफ्वे रता के लिये हाज़िर हुए उन्होंने फरमाया नहीं अभी और दो साल मेरी खिदमत में रहो फिर तुम्हारे मुताल्लिक सोचेंगे।

▣ ❥   सैय्यद अबु सालेह ने दो बरस भी निहायत खुशी से गुज़ार दी के शेख अब्दुल्लाह रादिअल्लाहु तआला अन्हु की सूरत में उन्हें एक रहवरे कामिन मयस्सर आ गया था। ग्यारह साल की तवील मुद्दत खत्म हुई तो हज़रत अब्दुल्लाह सोमअई रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने उन्हें बुला कर फरमाया ऐ फरज़न्द तू आज़माईश की कसोटी पर खरा उतरा है लेकिन अभी एक और खिदमत बाकी है। वो ये के मेरी एक लड़की है जो पाँऊ से लंगड़ी हाथों से लंजी और कानों बहरी और आंखों से अंधी है उस बेचारी को अपने निकाह में कबूल कर लो तो मैं सेव तुम्हें बख्श दूंगा!...✍

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 17-18 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का
 
↳  *हज़रते सय्यद अबु सालेह मूसा जंगी दोस्त रादिअल्लाहु तआला अन्हु*   ↲

▣ ❥   *निकाह का वाकया :* हज़रत अबु सालेह रादिअल्लाहु तआला अन्हु  ने सय्यद अब्दुल्लाह रादिअल्लाहु तआला अन्हु की ये बात भी बसरोचश्म मंजूर कर ली और इस तरह सय्यदा फातिमा रादिअल्लाहु तआला अन्हा बिन्ते सैय्यद अब्दुल्लाह रादिअल्लाहु तआला अन्हु सोमअई से उनका निकाह हो गया। शादी के बाद जब सैय्यदा फातिमा का सामना हुआ तो ये देख कर हैरान रह गए के उनके तमाम आज़ा सही व सालिम हैं और अल्लाह ने उन्हें कमाल दर्जे के हुस्ने जाहिरी से मतस्सिफ फरमाया है।

▣ ❥   दिल में वस वसा पैदा हुआ के शायद कोई और लड़की है। उसी वक्त बाहर निकल गए। सुबह शेख अब्दुल्लाह रादिअल्लाहु तआला अन्हु की खिदमत में वहाले परेशान हाज़िर हुऐ वो अपनी फरासते यातिनी से सब कुछ जान गए थे। फरमाया ऐ बेटे ! जो सिफत मैंने अपनी बच्ची की तुम से बयान की थी वो सब सही हैं आज तक उसने किसी नामेहरम पर नज़र नहीं डाली इसलिये अंधी है। आज तक उसने खिलाफे हक कोई बात नहीं सुनी इसलिये बहरी है।

▣ ❥   आज तक घर से बाहर कदम नहीं निकाला इसलिये लंगड़ी है और आज तक खिलाफ शरअ उसने कोई काम नहीं किया इसलिये लंजी है। शेख अबु सालेह भी समझ गए और उनके दिल में अपनी बीवी के लिये कमाल दर्जे की मोहब्बत व इज्जत पैदा हो गई!...✍

    *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 18 📚*

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         ❝  सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

↳  *हज़रते सय्यद अबु सालेह मूसा जंगी दोस्त रादिअल्लाहु तआला अन्हु*   ↲

▣ ❥   *निकाह का वाकया :* अबु सालेह भी समझ गए और उनके दिल में अपनी बीवी के लिये कमाल दर्जे की मोहब्बत व इज्जत पैदा हो गई इस तरह बखरो खबी उन दोनों पाकबाज़ हस्तियों की रफाकत हयान का आगाज हुआ!

▣ ❥   आपके अहंदे हयात में अलकादिर बिल्लाह अबु - अल - अब्बास और अलकायम वअमरउल्लाह अबु जाफर अब्यासी खुल्फाए बगदाद में से तख्ते खिलाफत पर मुतमक्किन हुए।

••─➤ *खानदानी अज़मत : -* सीरत गौसे आजम में लिखा है के हज़रत ग़ौसे आज़म शैख़ अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु के वालिद बुजर्गवार कितने बड़े जलील - उल - कद्र रहनुमा और मुर्शिद कामिल थे। जान सभी को अज़ीज़ होती है लेकिन वक़्त का वो मर्द हक परस्त जान जैसी अज़ीज़ चीज़ को हक की राह में कुर्बान कर देने का अज्मे मोहक्कम कर चुका था उसकी खुदा व रसूल दोस्ती और मज़हब से सच्ची मोहब्बत का भला उससे बढ़ कर और क्या सबूत हो सकता है!...✍

    *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 19 📚*

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         ❝  सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का
 
↳  *हज़रते सय्यद अबु सालेह मूसा जंगी दोस्त रादिअल्लाहु तआला अन्हु*   ↲

▣ ❥   *खानदानी अज़मत : -* जहाँ एक तरफ सरकार गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु के वालिद बुगवार खासाने खुदा में से थे वहीं आपकी वालिदा माजिदा वक़्त की इनिहाई पाक सीरत खातून और तकवा व तहारत की बेनजीर मुजस्मा थीं जिनका नाम फ़ातिमा और कुनियत उम्मुलखेर थी। ये नाम ही उस बात की शहादत दे रहा है के आप तमामी इक्सामे खेर की मुकम्मल तफसीर थी और भला क्यों कर ना होती जबकि उन्होंने अपने वालिदग्रामी हज़रत अब्दुल्लाह सोमअईरह रादिअल्लाहु तआला अन्हु जैसे ज़ाहिद वक्त से फ़जायलो मुहासिन और फय्यूज़ व वर्कात को गराँमाया दौलत के हुसूल में पूरे होने से काम लिया था जो एक तरफ अगर रईसाने जीलान में शुमार किये जाते थे तो दूसरी जानिब उनके इल्मी फज्न , ज़हेदो तकवा , फेज़ ज़ाहिरी व बातिनी की जीलान के हर नगर और हर शहर में धूम मची थी!...✍


    *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 19 📚*

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         ❝ सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          ↳    *इब्तिदाई  हालात*     ↲

▣ ❥   हज़रत सैय्यद अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु नजीब - उल - तरफैन सय्यद हैं जैसा के पहले बयान दिया गया है के आप के वालिद का नाम सैय्यद सालेह मुसा रादिअल्लाहु तआला अन्हु और वालिदा माजिदा का इस्मे ग्रामी उम्मलखेर फातिमा और उनका लक़ब अमतुल'जब्बार था!

▣ ❥   *नाम व कुन्नियत : -* हज़रत गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु का अस्ल नाम हज़रत सय्यद अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु कुन्नियत अबु मोहम्मद है। लकब मुहीउद्दीन है मगर उम्मातुल मुसलिमीन में आप मेहबूबे सुब्हानी , गौस - उल - सिकलैन और गौस - उल - आज़म के नाम से मशहूर हैं!...✍

      *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 20 📚*

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         ❝ सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          ↳    *इब्तिदाई  हालात*     ↲

▣ ❥   *सिलसिला ए नसब : -* आप का सिलसिला नसब वालिद माजिद की तरफ से ग्यारह वासतों से और बवास्ता मादर मोहतरमा चौदह वासतों से अमीर - उल - मोमिनीन हज़रत अली करमल्लाहोवजदहुल करीम रादिअल्लाहु तआला अन्हु तक पहुंचता है।

▣ ❥   *आप वालिदा माजिद की नियत से हसनी हैं* और सिलसिला नसब है : सैय्यद मुहीउद्दीन अबु मोहम्मद अब्दुल कादिर बिन सय्यद अबु सालेह मूसा जंगी दोस्त विन सय्यद अब्दुल्लाह बिन सय्यद याहिया जाहिद बिन सय्यद मोहम्मद शम्सुद्दीन ज़कारिया बिन सय्यद अबुबकर् दाऊद बिन सय्यद मूसा सानी बिन सय्यद अब्दुल्लाह सानी बिन सय्यद मूसा जुन चिन सय्यद अब्दुल्लाह महेज़ बिन सय्यद इमाम हसन मसना बिन सय्यद इमाम हसन बिन सय्यदना अली रादिअल्लाहु तआला अन्हु!...✍

      *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 20 📚*

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         ❝ सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          ↳    *इब्तिदाई  हालात*     ↲

▣ ❥   *आप वालिदा माजिदा की निस्बत से हुसैनी हैं* और सिलसिला नसब है : सय्यद शम्सुद्दीन अबु मोहम्मद अब्दुल कादिर दिन अमतुल'जब्बार बिन्ते सय्यद अब्दुल्लाह सोमअई विन सय्यद बिन सालेह जीली उसी इलाके के जील के रहने वाले अजीब बात ये है के हज़रत गौस -उल -आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने भी कसीदा गौसीया में अपने आपको जीली फरमाया हैं!

▣ ❥   *अनाअल जीलिव्यू मुहीउद्दीनू इस्मी व आलामी अला रासीअलजिबाल*

▣ ❥   यानी मैं जील का रहने वाला और महीउद्दीन मेरा नाम है और मेरी अज़मत के झण्डे पहाड़ों पर गड़े हुए है।

▣ ❥   मालूम होता है जील , गील , कील , गीलान , जीलान सब एक ही इलाके के नाम हैं इस लिये हज़रत को किसी नाम से भी मनसूब किया जाए , गलत ना होगा। दुनियाऐ इस्लाम में आम तौर पर आप को गीलानी या जीलानी ही कहा जाता है!...✍

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 21-22 📚*

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         ❝  सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

*  ↳ बशारते औलिया कब्ल अज़ पैदाईश ↲*

▣ ❥  आपकी विलादत से बहुत अर्से पहले औलियाऐ कबार ने अपकी पैदाईश बुलंद शान और मुम्ताज़ मुकाम की बशारात दी हैं जो हस्वे जेल हैं।

▣ ❥  हज़रत जुनैद बगदादी रादिअल्लाहु तआला अन्हु शैख़ - अल - मशायख हज़रत जुनेद बगदादा रादिअल्लाहु तआला अन्हु जो हजरत गौस -उल -आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु से दो साल पहले गुज़रे हैं एक दिन मुराक्ये में थे के यकायक उन्होंने सर उठाया और फरमाया मुझे आलमे ग़ैब से मालूम हुआ है के पाँचवीं सदी के वक्त में सय्यद - उल - मुरसलीन अलैहिस्सलात व अलतसलीम की आलद अतहार में से एक कुतब आलिम होगा जिनका लकब महीउद्दीन और इस्मे मुबारक सय्यद अब्दुल कादिर है और वो गौसे ए आज़म होगा और गीलान में पैदाईश होगी उनका खात्मुन्नबीय्यीन सललल्लाहो अलैहि व सल्लम की औलाद अतहार में से आईम्माइक्राम और सहाबाइका अलैहि रिजवान के अलावा अव्वलीन व आखरीन के हर बली और वलीय्या की गर्दन पर मेरा कदम है , कहने का हुक्म होगा।...✍

        *तफरीह - उल - खातिर*

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 22-23 📚*

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         ❝सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ  ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

   *↳ बशारते औलिया कब्ल अज़ पैदाईश ↲*

▣ ❥  हज़रत हसन असकरी  रादिअल्लाहु तआला अन्हु का जुबह मुबारक

▣ ❥  शेख अबु मोहम्मद बताएहो रादिअल्लाहु तआला अन्हु का बयान के इमाम हसन असकरी रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने ब'वक्ते विसाल अपना जुबह मुबारक हज़रत शेख मअरूफ कुरखी रादिअल्लाहु तआला अन्हु के सपुर्द कर के वसीयत की के ये अमानत मेहबुबे सुबहानी अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु तक पहुँचा देना के मेरे बाद आख़िर सदी पंजुम में एक बुजर्ग होंगे। शेख मअरूफ कुरखीर रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने ये जुबहा हज़रत जुनैद बगदादी रादिअल्लाहु तआला अन्हु तक पहुंचाया!

▣ ❥  उन्होंने शेख दनवरी रादिअल्लाहु तआला अन्हु के सपुर्द किया। इस तरह ये मुकद्दस अमानत मुनतकिल होते होते आरिफ बिल्लाह के ज़रिये शव्वाल 487 हिज़री में हज़रत गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु तक पहुंचा गई। यानी हक़ बहकदार रसीद।...✍

 *( मख्जन - उल - कादरिया*

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 23 📚*

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         ❝ सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

   *↳ बशारते औलिया कब्ल अज़ पैदाईश ↲*

▣ ❥  शेख मोहम्मद शबंकी रादिअल्लाहु तआला अन्हु आप फरमाते हैं के मैंने अपने मुशिद से सुना के इराक के अवताद आठ हैं!

▣ ❥  ( 1 ) हज़रत मअरूफ कुरखी रादिअल्लाहु तआला अन्हु

▣ ❥  (2 ) इमाम अहमद बिन हंबल रादिअल्लाहु तआला अन्हु

▣ ❥  ( 3 ) हज़रत बशर साफीर रादिअल्लाहु तआला अन्हु

▣ ❥  ( 4 ) हजरत मनसूर बिन अम्मार रादिअल्लाहु तआला अन्हु

▣ ❥  ( 5 ) हजरत जुनैद वगदादी रादिअल्लाहु तआला अन्हु

▣ ❥  ( 6 ) हज़रत सरी सक्ती रादिअल्लाहु तआला अन्हु

▣ ❥  (7) हज़रत सवल बिन अब्दुल्लाह तसतरी रादिअल्लाहु तआला अन्हु

▣ ❥  ( 8 ) हज़रत अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु

▣ ❥  मैंने आपकी खिदमते अक्दस में अर्ज किया के हजरत अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु कौन हैं ? तो आप ने इर्शाद फरमाया के अब्दुल कादिर एक अजमी सालेह मर्द होगा उसका ज़हुर पाँचवीं सदी हिजरी के आखिर में होगा और उसका कयाम बगदाद में होगा।

 *(बहुज्जत - उल - असरार )..✍*

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 23 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

   *↳ बशारते औलिया कब्ल अज़ पैदाईश ↲*

▣ ❥   शेख मोहम्मद बिन नअमत - उल - सरूजी रादिअल्लाहु तआला अन्हु आप से किसी ने पूछा के इस वक्त कुतब वक्त कौन हैं ?

▣ ❥   तो आप ने इर्शाद फरमाया के कुतबे वक़्त इस वक्त मक्का मुकरमा में हैं और अभी वो लोगों पर मख्फी हैं। उन्हें सालहीन के सिवा दूसरा कोई नहीं पहचानता। नीज ईराक की तरफ इशारा कर के फरमाया के अनकरीब एक अजमी शख्स जिन का नाम नामी इस्म ग्रामी अब्दुल कादिर होगा। ज़ाहिर होगा जिन से करामात और खोराके आदात बकसरत जाहिर होंगे और यही वो गौस और कुतुब होंगे जो मजमाऐ आम में " कदामी हाज़िही अला रकाबती कुल्ली वलीय्यिल्लाह " फरमायेंगे और अपने इस कोल में हक बा-जानिब होंगे। तमाम ओलियाऐ वक्त आपके कदम के नीचे होंगे। अल्लाह तआला उनकी ज़ाते बा'बरकात और उनकी करामात की तसदीक करने की वजह से लोगों को नफा पहुँचाएगा!..✍

 *( कलायद - उल - जवाहर )*

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 24 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

   *↳ बशारते औलिया कब्ल अज़ पैदाईश ↲*

▣ ❥   हजरत ख्वाजा हसन बसरी  रादिअल्लाहु तआला अन्हु मोहम्मद विन सईद बिन ज़राअ - उल - जनजानी कुद्स सरह - उल - नुरानी ने अपनी किताब रोज़ात - उल - नवाज़िर व नज़हतुल ख्वातिर के बाब श्शम में उन मशायख का जिन्होंने हज़रत सय्यदना गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु के कुतबियत के मर्तबे की शहादत देने का तजकरा फरमाया है।

▣ ❥   जिक्र करते हुए लिखा है के आप से पहले औलियाए अर्रहमान में से कोई भी हज़रत का मुनकिर ना था बल्के उन्होंने आप की आमद की बशारत दी। हज़रत हसन बसरी रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने अपने ज़मानाए मुबारक से लेकर हज़रत सय्यद महीउद्दीन कुतुब सय्यद अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु के ज़मानाए मुबारक तक बिलवजाहत आगाह फरमा दिया है के जितने भी आलिया अल्लाह रादिअल्लाहु तआला अन्हुम गुजरे हैं सब ने हज़रत शेख अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु की खबर दी है।..✍

        *( तफरीह - उल - खातिर )*

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 24 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

   *↳ बशारते औलिया कब्ल अज़ पैदाईश ↲*

▣ ❥   हज़रत शेख खलील वलखी रादिअल्लाहु तआला अन्हु आप एक साहिब कशफ बुजुर्ग हा गुजरे है। एक दिन मजलिस में दर्स दे रहे थे के यकायक उन पर कशफ़ी हालत तारी हुई और फरमाया के अल्लाह का एक बरगुजीदा बन्दा सर - ज़मीने ईराक में पाँचवीं सदी के आखिर में जाहिर होगा। दीने हक को उसके दम से फरोग होगा। वो अपने वक्त का गौस होगा। खल्के खूदा उसका इत्तिवअ करेगी और वो जुमला औलिया व अक्ताब का सरदार होगा। हज़रत शेख खलील वलखी रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने हज़रत गौस - उल - आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु से बहुत मुद्दत पहले वफात पाई।..✍

                *( अज़कार - उल - अबरार )*

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 25 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

   *↳ बशारते औलिया कब्ल अज़ पैदाईश ↲*

▣ ❥   हजरत अबु अब्दुल्लाह अली रादिअल्लाहु तआला अन्हु  हज़रत इमाम याकूब हमदानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है के मेरे मुर्शिद ने एक दफा मुझे बताया के हज़रत शेख अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु की विलादत से कई साल पहले उन्होंने शेख - अल - मशायख अबु अब्दुल्लाह अली रादिअल्लाहु तआला अन्हु से सना के जमानाऐ करीब में एक बुजर्ग का जहूर सर - ज़मीने ईराक में होगा जो अल्लाह का ख़ास बन्दा होगा। और उसका नाम अब्दुल कादिर होगा। अल्लाह तआला ने इसे तमाम औलिया अल्लाह का सरताज बनाया है।..✍

            *( इसरार - उल - मआनी )*

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 25 📚*

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   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

   *↳ बशारते औलिया कब्ल अज़ पैदाईश ↲*

▣ ❥   हजरत अबुबकर हवार रादिअल्लाहु तआला अन्हु शेख अब मोहम्मद बताएही रादिअल्लाहु तआला अन्हु बयान करते है। के हज़रत गौस - उल - आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु की विलादते मसऊद से (32) बत्तीस साल पहले रमज़ानुल मुबारक 438 हिज़री - में शेख ज़माना हजरत अबुबकर हवार रादिअल्लाहु तआला अन्हु एक मजलिस में वअज़ फरमा रहे थे के यकायक उन पर हालते कशफ तारी हुई और उन्होंने फरमाया के लोगो ! आगाह हो जाओ के वो ज़माना बहुत करीब है।

▣ ❥   जब इंराक में एक आरिफे कामिल पैदा होगा। उसका इस्मे ग्रामी अब्दुल कादिर होगा और लकब मोइउदीन होगा। एक दिन वो हुक्मे इलाही से फरमाएगा ।

▣ ❥   *“ कदामी हाज़िही अला रकाबती कुल्ली वलीव्यिलाह* " ( यानी मेरा कदम तमाम औलिया अल्लाह की गर्दन पर है।)..✍

                  *( अंजकार - उल - अबरार )*

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 25 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

   *↳ बशारते औलिया कब्ल अज़ पैदाईश ↲*


▣ ❥   शेख अबुअहमद अब्दुल्लाह - अल - जूनी रादिअल्लाहु तआला अन्हु शेख अबु अहमद अब्दुल्लाह - अल - जूनी अलमुकल्लिब विलहकी रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने 468 हिज़री कोहे हुर्द में अपनी खलवत में इर्शाद फरमाया के अनकरीब बिलादे अजम में एक लड़का पैदा होगा जिसकी करामात और खवारिक की वजह से बहुत शौहरत होगी। उसको तमाम औलिया अर्रहमान के नज़दीक मकबूलियते ताम्मा हासिल होगी। उसके वजूदे बाजूद से अहले ज़माना शरफ हासिल करेंगे और जो उसकी ज़ियारत करेगा नफ़ा उठायेगा।..✍

            B *( बहुज्जात - उल - असरार )*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

   *↳   विलादत  व  बशारते  विलादत* ↲*

▣ ❥    सरकारे बगदाद हुज़ूर गौसे पाक समदानी हज़रते सय्यद अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु कसबा जीलान में यकम रमज़ान बरोज़ जुमआत - उल - मुबारक 40 हि मुताबिक़ 10,75 ई . को पैदा हुए मनाकिब मअराजिया की रिवायत है के सय्यदना अब्दुल कादिर रादिअल्लाहु तआला अन्हु का चेहरा मुबारक बवक्ते विलादत महेर दरख्शा की तरह रोशन था।

▣ ❥    इमाम हाफ़िज़ कसीर दमश्की अपनी तसनीफ़ - उल - बदाया व अलनहाया में हूजूर गौसे आजम रादिअल्लाहु तआला अन्हु  का सने विलादत 470 हिज़री लिखते हैं और इमाम याफ्अई रादिअल्लाहु तआला अन्हु अपनी तसनीफ मरात - उल - जनान व अबरात - उल - यक़ज़ान में लिखते हैं के हूजूर गौसे आजम रादिअल्लाहु तआला अन्हु से जब किसी ने आपके साले विलादत के मुताल्लिक सवाल किया तो आपने जवाब दिया के मुझ को सही तौर पर तो याद नहीं अल्बत्ता इतना ज़रूर जानता हूँ के जिस साल मैं बगदाद आया था उसी साल शेख अबु मोहम्मद रिपकूल्लाह बिन अब्दुलवहाव तमीमी का विसाल हुआ और ये 48 हिज़री था उस वक़्त मेरी उम्र (18) अठारह साल थी उस हिसाब से आपका सने विलादत 470 हि हुआ।...✍

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 27 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

   *↳   विलादत  व  बशारते  विलादत  ↲*

▣ ❥    हज़रते अल्लामा अब्दुर्रहमान जामी रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने नफहात - उल - अनस के अन्दर हूजूर गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु  के मुताल्लिक़ जो कुछ लिखा है इमाम याफ्अई रादिअल्लाहु तआला अन्हु की किताब से लिया है और बाद के जुमला सवानेह निगारों के बयानात ज्यादा तर नफहात ही से माख़ुज़ हैं उसी वजह से आम लोगों की राय यही हो गई के हूजूर गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु का सने विलादत 470 हिज़री है।

▣ ❥    बाज मोरिंखीन ने उससे इख्तिलाफ़ किया है मगर बेश्तर अहले तहकीक ने इसे ही तारीखे विलादत करार दिया है!..✍

          *वल्लाहू आलम बिल-सवाब*

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 27 📚*

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         ❝  सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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 ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          *↳   हैरत  अंगेज  वाकेयात ↲*

▣ ❥   हज़रते सय्यद अब्दुल कादिर जिलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु का विलादते मसऊद के बहुत से हैरत अंगेज़ वाकेयात ज़हूर पज़ीर हए सबड़ी बात तो ये है के जब आप रोनक अफ्रोज़ आलम हुए उस वक्त आपकी वालिदा माजिदा हज़रत उम्मुलखेर फातिमा रादिअल्लाहु तआला अन्हु की उम्र साठ साल की थी जो आम तौर पर औरतों का सनेयास होता है और उनको औलाद ना उम्मीदी हो जाती है।

▣ ❥   ये अल्लाह का ख़ास फज्ल था के उस उम्र में हुज़ूर गौसे आजम रादिअल्लाहु तआला अन्हु  उनके बतन मुवारक से ज़ाहिर हुए। मुनाकिब गौसिया में शेख शहाबुद्दीन सहरवदी रादिअल्लाहु तआला अन्हु से मनकुल है के सय्यदना अब्दुल कादिर जीलानी  रादिअल्लाहु तआला अन्हु की विलादत के वक्त  पांच अज़ीमुश्शान करामतों का ज़हुर हुआ।...✍

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 28 📚*

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         ❝  सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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 ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          *↳   हैरत  अंगेज  वाकेयात ↲*

▣ ① ❥   जिस रात आप पैदा हुए उस रात आपके वालिद माजिद हज़रत सय्यद अबु सालेह ने ख्वाब में देखा के सरवरे कायनात , फख्रे मौजूदात , मुनब्बअऐ कमालात , बाअसे तख़लीके काइनात हम्द मुजतबा , मोहम्मद मुसतफा अलेह अफ्ज़ल - उल - सलात व तसलीमात बमओ सहाबाइक्राम , आइम्मातुलहदा और औलिया निज़ाम अलेहिमुल रिज़वान उनके घर जलवा अफरोज़ हैं।

▣ ❥   और इन अलफाज़ मुबारका से उनको खिताब फ़रमाया और बशारत से नवाज़ा " ए अबु सालेह ! अल्लाह तआला ने तम को ऐसा फरज़न्द अता फरमाया है जो वली है। वो मेरा बेटा है। वो मरा और अल्लाह तआला का महबूब है और अनकरीब उसका वलियाअल्लाह और अक्ताब में वो शान होगी जो अम्बिया व मुसलीन में मेरी शान है।...✍

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 29 📚*

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         ❝ सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ  ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          *↳   हैरत  अंगेज  वाकेयात ↲*

▣ ❶ ❥    गौसे आज़म  रादिअल्लाहु तआला अन्हु दरमियान औलिया  हूजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम दरमियाने अम्बिया  अलैहिस्सलाम

▣ ❷ ❥    हूजूर गौसे आजम रादिअल्लाहु तआला अन्हु पैदा हुए तो आप शानाऐ मुबारक पर हूजुर नबी ए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के कदम मुबारक का नक्श मौजद था जो आप के वली ए कामिल होने की दलील था।

▣ ❸ ❥    आपके वालदैन को अल्लाह तआला ने आलमे ख्वाब में बशारत दी के जो लड़का तुम्हारे यहाँ पैदा होगा सुलतान - उल - औलिया होगा उसका मुखालिफ गुमराह और बद दीन होगा।...✍

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 29 📚*

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         ❝ सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ  ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          *↳   हैरत  अंगेज  वाकेयात ↲*

▣ ❹ ❥   जिस रात हज़रत सय्यद अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु स की विलादत हुई। उस रात जीलान शरीफ़ की जिन औरतों के हाँ बच्चा पैदा हुआ उन सबको अल्लाह करीम ने लड़का ही अता फरमाया और वो हर नोमोलूद लड़का अल्लाह का वली बना ।

▣ ❺ ❥   आप की विलादत माहे रमज़ान - उल - मुबारक में हुई और पहले दिन ही से रोज़ा रखा सहरी से लेकर इफ्तारी तक आप वालिदा मोहतरमा का दूध नहीं पीते थे। हज़रत सय्यद अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु अलमअरूफ गौसे आज़म की वालिदा माजिदा फरमाती हैं के जब मेरा फ़रज़न्द अरजुमंद अब्दुल कादिर रादिअल्लाहु तआला अन्हु पैदा हुआ तो रमज़ान शरीफ़ में दिन भर दूध ना पीता था। विलादत के दूसरे साल मौसम अन आलूद होने की वजह से लोगों को रमज़ान शरीफ का चांद दिखाई ना दिया इसलिये लोगों ने मेरे पास आकर सय्यदना अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु  के मुताल्लिक दरयाफ्त कियां के उन्होंने दूध पिया है के नहीं ! तो मैंने उनको बताया के मेरे फ़रज़न्द ने आज दूध नहीं पिया । बाद अज़ी तहकीकात करने पर इस हकीकत का इन्किशाफ हो गया के उस दिन रमज़ान की पहली तारीख थी यानी उस दिन रोज़ा था। जमानाऐ रजाअत आपकी वालिदा मोहतरमा का बयान है के पूरे ज़मानाएं रज़ाअत में आपका ये हाल रहा साल के तमाम महीनों में आप दूध पीते रहते थे लेकिन जूही रमज़ान शरीफ का महीना शुरू होता तो आप दिन को दूध की बिलकुल रगबत ना फरमाते थे और रमजान शरीफ का पूरा महीना आपका ये मामूल रहता था के तुलू आफ्ताब से ले कर गरूवे आफ्ताव तक क़तअन दूध नहीं पीते थे। ख्वाह कितनी ही दूध पिलाने की कोशिश की जाती यानी रमज़ान शरीफ़ का पूरा महीना आप दिन में रोज़े से रहते थे और जब मगरिब के वक्त अज़ान होती और लोग इफ्तार करते तो आप दूध पीते थे।..✍

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 29-30 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

               *↳   वाकेयाते  तरबीयत ↲*

▣  ❥   हूजुर गौस -उल- आजम रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने अभी होश नहीं संभाला था के उन्हें एक सदमाए जानकाह से दोचार होना पड़ा। यानी उनके वालिद माजिद हज़रते शेख अबु सालेह रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने अचानक पेके अजल को लब्बैक कहा।

▣  ❥   और इस तरह आप अपने हादी व आका जनाब सरवरे कोनैन सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मानिन्द बिल्कुल कमसिनी में दुरैयतीम बन गए।

▣  ❥   उस वक़्त आपके नाना हज़रत सय्यद अब्दुल्लाह सोमअई रादिअल्लाहु तआला अन्हु हयात थे उन्होंने यतीम नवासे को अपनी सरपरस्ती में ले लिया।..✍

      *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 31📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

               *↳   वाकेयाते  तरबीयत ↲*

▣  ❥   हज़रत अब्दुल्लाह सोमअई रादिअल्लाहु तआला अन्हु अपने वक्त के एक बहुत बड़े बली अल्लाह थे ये इन्हीं का फैजान था के हूजुर गौस - उल - आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु की वालिदा माजिदा और वालिद माजिद ने इल्मो इरफान की इन्तिहाई बुलंदियों को छू लिया था।

▣  ❥   अब हूजुर गौस - उल - आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु का उनके साया ऐ आतिफ़त में आना किसी सिर्रा इलाही की गमाजी कर रहा था। हज़रते अब्दुल्लाह सोमअई रादिअल्लाहु तआला अन्हु का कोई फ़रज़न्द नहीं था उन्होंने अपनी तमाम तर पदराना शफ्कत नवासे के लिये वक्फ कर दी उनकी फिरासते बातिनी ने मालूम कर लिया था के इस नोनिहाल की जबीने सआदत में तर विलायत चमक रहा है इस लिये फैजाने बातिनी से उन्होंने नन्हे अब्दुल कादिर रादिअल्लाहु तआला अन्हु को खुब खुब सेराव किया।...✍

      *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 31📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का
   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

               *↳   वाकेयाते  तरबीयत ↲*

▣  ❥   अब्दुल कादिर रादिअल्लाहु तआला अन्हु को खुब खुब सेराव किया। गोया हूजुर गौस - उल - आजम रादिअल्लाहु तआला अन्हु के उस्ताद और मर्शिद अब्बल हज़रते सय्यद अब्दुल्लाह सोमअई रादिअल्लाहु तआला अन्हु जैसे जलील - उल - कद्र आरिफे ज़माना थे। खेल कूद से बे रगबती बचपन ही से हूजुर सय्यदना अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु को खेल कूद से कोई रगवत नहीं थी।

▣  ❥   निहायत साफ सुथरे रहते और ज़बाने मुबारक कभी कोई कम अक्ली की बात ना निकलती थी । अपने लड़कपन के मुताल्लिक खुद इर्शाद फरमाते हैं के उम्र के इब्तिदाई दौर में जब कभी में लड़कों के साथ खेलना चाहता तो ग़ैब से आवाज़ आती थी के *लहू व लआब* से बाज़ रहो जिसे सुन कर मैं रूक जाया करता था। और अपने गोर्दोपश जो नज़र डालता तो मुझे कोई आवाज़ देने वाला ना दिखाई देता था जिससे मुझे दहशत सी मालूम होती और मैं जल्दी से भागता हुआ घर आता और वालिदा मोहतरमा की आगोश मोहब्बत में छुप जाता था। अब वही आवाज़ मैं अपनी तनहाईयों में सुना करता हूँ अगर मुझ को कभी नींद आती है तो वो आवाज़ फौरन मेरे कानों में आकर मुझे मुतानब्बह कर देती है के तुम को इस लिये नहीं पैदा किया है के तुम सोया करो *( खलासातुल मफ़ाख़िर )*।...✍

      *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 31-32 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

               *↳   शिकम मांदर में इल्म ↲*

▣  ❥   रिवायत है के जब आप पढ़ने के लायक हो गए तो आपको कुरआन मजीद की तालीम के लिये एक मदरसे में ले जाया गया के कुरआन पढ़ने के लिये वहाँ आपको दाखिल करवा दिया जाए। कहा जाता है के उस्ताद के सामने आप दो जानो हो कर बैठ गए। उस्ताद ने कहा पढ़ो बेटे बिस्मिल्लाहिर्रहमानिरहीम आप ने बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़ने के साथ साथ अलम में लेकर मुकम्मल (18) अठारह पारे ज़बानी पढ़ डाले। उस्ताद ने हैरत के साथ दरयाफ्त किया के ये तुम ने कब पढ़ा और कसे याद किया ? फरमाया वालिदा माजिदा (18) अठारह पारा की हाफिज़ा हैं जिनका वो अक्सर विर्द किया करती थी। जब मैं शिकमे मादर में था तो ये (18) अठारह पारे सुनते सुनते मुझे याद हो गए थे।...✍

      *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 32 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का
             *↳   मक्तब  में  दाखिला  ↲*

▣  ❥   एक रिवायत में है के जीलान ' एक मुकामी मक्तब था। जब हज़रते गौसे आज़मा रादिअल्लाहु तआला अन्हु  की उम्र पांच बरस की हुई तो आप को वालिदा मोहतरमा ने आपको उस मक्तब में बैठा दिया।

▣  ❥   हज़रत की इब्तिदाई तालीम उसी मक्तब मुबारक में हुई।

▣  ❥   उस मक्तब में आपके असातिजा या उस्ताद कौन थे कुतब तारीख व सेर इस बारे में ख़ामोश हैं।

▣  ❥   दस बरस की उम्र तक आपको इब्तिदाई तालीम में काफी दस"तरस हो गई!...✍

      *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 32-33 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

       *↳  अपनी विलायत का इल्म होना ↲*

▣  ❥    हुज़ुर गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्ह फरमाते हैं के जब में सिग्रसिनी के आलम में मदरसे को जाया करता था तो रोज़ाना एक फ़रिश्ता इंसानी शक्ल में मेरे पास आता और मुझे मदरसे ले जाता। खुद भी मेरे पास बैठा रहता। मैं उसको मुतलकन ना पहचानता था के ये फरिश्ता है । एक दिन मैंने उससे पूछा आप कौन हैं ? तो उसने जवाब दिया के मैं फरिश्तों में से एक फरिश्ता हूँ। अल्लाह तआला ने मुझे इस लिये भेजा है के मैं मदरसे में आप के साथ रहा करूं *( कलायद - उल - जवाहर )*

▣  ❥   हज़रते सय्यद अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने  फरमाया के एक रोज़ मेरे करीब से एक शख्स गुज़रा जिसको मैं बिलकुल ना जानता था उसने जब फरिश्तों को ये कहते सुना के कुशादा हो जाओ ताके अल्लाह का वली बैठ जाए तो उसने फरिश्तों में से एक को पूछा के ये लड़का किस का है ? तो फरिश्ते ने जवाब दिया के ये सादात के घराने का लड़का है । तो उसने कहा के ये अनकरीब बहुत बड़ी शान वाला होगा । *( बहुज्जत - उल - असरार )✍

   *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 32-33 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

       *↳  अपनी विलायत का इल्म होना ↲*

▣  ❥    आपके साहबजादे शेख अब्दुर्रक्ज़ाक का बयान है के एक दफा हज़रते गौसे आजम रादिअल्लाहु तआला अन्ह से दरयाफ्त किया गया के आपको अपने वली होने का इल्म कब हुआ ? तो आपने फरमाया के जब मैं दस बरस का था और अपने शहर के मक्तब में जाया करता था तो फरिश्तों को अपने पीछे और इर्दगिर्द चलते देखता और जब मक्तब में पहुंच जाता तो यु बार बार ये कहते के अल्लाह के वली को बैठने लिये जगह दो। अल्लाह के वली को बैठने लिये जगह दो। उसी वाकये को बार बार देख कर दिल में ये अहसास पैदा हुआ के अल्लाह तआला ने मुझे दरर्जाऐ विलायत पर फायज़ किया है!...✍

   *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 33-34 📚*

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   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

        *↳  नाना  जान  का  इन्तिकाल* ↲*

▣  ❥    हज़रते गौस - उल - आजम रादिअल्लाहु तआला अन्हु अभी जीलान के मक्तब में ज़ेरे तालीम थे के आप के नाना जान हज़रत सय्यद अब्दुल्लाह सोमअई रादिअल्लाहु तआला अन्हु को मनअमे हकीकी का बुलावा आ गया। और वो आली फानी से आलमे जावदानी को अलविदा कहा।

▣  ❥   अब उनकी सरपरस्ती और तालीमो तरवीयत का सारा बोझ वालिदा माजिदा सय्यदा फातिमा रादिअल्लाहु तआला अन्हुमा पर आ पड़ा। उस आरिफाएं पाक बातिन ने कमाल सब्रो इसतकामत से अपने फरजन्द जलील - उल - कद्र की निगरानी जारी रखी और इन्ही की ज़ेरे निगरानी आप सने रूश्द को पहुंचे आपका उन्फवाने शबाब भी पाकबाज़ी और बर्कात जलीला को अपने दामन में लिये हुए था!...✍

     *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 34 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

     *↳  तहसीले इल्म के लिये ग़ैबी इशारा ↲*

▣  ❥   आपकी उम्र तकरीबन (18) अठारह वर्ष की थी के एक दिन घर से बाहर सेर के लिये निकले ये यौमे अरफा था रास्ते में किसी किसान का बैल जा रहा था आप उसके पीछे पीछे जा रहे थे के यकायक बैल ने मुड़ कर आपकी तरफ देखा और बज़वाने इंसानी यूं गोया हुआ : मा बहाज़ा ख़लिक्ता वला बिहाजा उमिरता । यानी *( ए अब्दुल कादिर ! तू इस लिये नहीं पैदा किया गया और ना तुझे इसका हुक्म दिया गया है )* हज़रत उस पुरअसरार बैल के ज़रिये ये इशाराऐ गैबा पाकर हैरान रह गए इश्के इलाही के ज़ज्बे ने जोश मारा सीधे घर जा कर वालिदा माजिदा को ये हैरत अंगेज़ वाकया सुनाया और बस्दे अदर अर्ज की के तहसील व तकमीले इल्म के लिये बगदाद जाने की इजाज़त मरहमत फरमायें के वहाँ के मदारिस व मकातिब का एक आमल में शोहरा है।

▣  ❥   सय्यदा फातिमा रादिअल्लाहु तआला अन्हुमा चश्मे जदन में सब कुछ समझ गई!...✍

 *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 34-35 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

     *↳  तहसीले इल्म के लिये ग़ैबी इशारा  ↲*

▣  ❥    तैयारी सफर तज़करह गौसे आज़म में लिखा है के जिस वक़्त ये वाकया पेश आया।

▣  ❥    सय्यदा फातिमा रादिअल्लाहु तआला अन्हुमा की उम्र अठहत्तर वर्ष के करीब थी। मशफिक बाप सय्यद अब्दुल्लाह सोमअई रादिअल्लाहु तआला अन्हु और शोहर सय्यद अबु सालेह रादिअल्लाहु तआला अन्हु का साया सर से उठ चुका था। ज़ईफूलउम्री के उस आलम में उनकी उम्मीदों का मरकज़ सय्यदना अब्दुल कादिर ही थे।

▣  ❥    दूसरे फरज़न्द सय्यद अबु अहमद अब्दुल्लाह रादिअल्लाहु तआला अन्हु अभी ख़र्दसाल थे। जवान फरज़न्द का एक लम्हे के लिये आँखों से ओझल होना गवारा ना था। और फिर बगदाद का सफर कोई मामूली सफर नहीं था। दौरे हाज़िरा के ज़रीए आमदोरफ़्त का उस वक़्त तसव्वुर भी नहीं किया जा सकता था। लोग काफिलों की सूरत में पैदल या ऊंटों और घोड़ों पर सफर किया करते थे!...✍


  *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 35 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

     *↳  तहसीले इल्म के लिये ग़ैबी इशारा  ↲*

▣  ❥  बगदाद जीलान से कमो वैश (650) साडे छे: सौ किलोमीटर की दूरी पर था। सफर में हज़ारहा सऊबतें और ख़तरात पनेहाँ थे लेकिन जिस मक्सदे बुलंद के लिये सय्यदना अब्दुल कादिर रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने बगदाद जाने का इजहार किया था उससे उम्मुलखैर उम्मुलजब्बार सय्यदा फ़ातिमा रादिअल्लाहु तआला अन्हुमा जैसी पाक बातिन माँ भला अपने फ़रज़न्द को कैसे रोक सकती थीं।

▣  ❥    बाचश्म पुरनम लख्ते जिगर के सर पर हाथ फेरा और फरमाया मेरी आँखों के नूर तेरी जुदाई तो एक लम्हा के लिये भी मुझ से बर्दाश्त नहीं हो सकती। लेकिन जिस मुबारक मक्सद के लिये तुम बगदाद जाना चाहते हो। मैं इसके रास्ते में हायल नहीं होंगी!...✍


  *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 35 📚*

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         ❝ सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ  ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

     *↳  तहसीले इल्म के लिये ग़ैबी इशारा  ↲*


▣  ❥   हसूल व तकमीले इल्म एक मुकद्दस फरीजा है। मेरी दुआ है के तुम हर किस्म के उलूम जाहिरी व बातिनी में दर्जाए कमाल हासिल करो तो शायद अब जीते जी तुम्हारी सूरत ना देख सकेंगी। मेरी दुआएं हर हाल में तेरे साथ रहेंगी। फिर फरमाया तेरे वालिद मरहूम रहमतुल्लाहि तआला अलैह  के अस्सी दीनार मेरे पास हैं।

▣  ❥   चालीस दीनार तेरे भाई के रखती हूँ और चालीस ज़ादे राह के लिये तेरे सपुर्द करती हूँ। सय्यदा फातिमा रादिअल्लाहु तआला अन्हुमा ने ये चालीस दीनार , अब्दुल कादिरा जिलानी  रादिअल्लाहु तआला अन्हु की बगल के नीचे आपकी गढडी में सी दिये। और फिर उनके हक में दुआऐ ख़ैर फरमाई जब घर से रूखसत होने का वक्त आया तो सैय्यद उल गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु से मुखातिब होकर फरमाया " लख्ते जिगर अब्दुल कादिर रादिअल्लाहु तआला अन्हु ! मेरी एक नसीहत को हर्जे जान बना लो। हमेशा सच बोलना और झूठ के नज़दीक भी ना फटकना!...✍

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 35-36 📚*


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         ❝ सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ   ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

     *↳  तहसीले इल्म के लिये ग़ैबी इशारा  ↲*


▣  ❥   सैय्यदना गौसे आजम रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने बा दीदाऐ गरयाँ अर्ज किया। मादरे मोहतरमा ! मैं सिदके दिल से अहेद करता हु के हमेशा आपकी नसीहत पर अमल करूंगा। फिर आप वालिदा ने आपको अपनी दुआएं के साथ रूख़्सत किया।

     ◆☞ *आपकी बेमिस्ल सच्चाई* ☜◆

▣  ❥   हज़रते सैय्यद अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु वालिदा माजिदा से रूख़्सत होकर बगदाद जाने वाले एक काफले में शामिल हो गए आप काफला हमदान के मशहूर शहर तक तो बा-खेरियत पहुंच गया लेकिन जब हमदान से आगे तरतंक के सुनसान कोहिस्तानी इलाके में पहुंचा तो साठ कज़ाकों के एक जथ्थे ने काफले पर हमला कर दिया। इस जथ्थे। सरदार एक ताक़तवर कज़ाक अहमद बदवी था!...✍

  *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 36 📚*


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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

     *↳  आपकी  बेमिस्ल  सच्चाई  ↲*


▣  ❥   काफले के लोगों में उन खूनख्वार कज़ाकों के मुकाबले को सक नहीं थी। कज़ाकों ने काफले का तमाम मालो असव लूट लिया और उसे तकसीम करने के लिये एक जगह ढेर कर दिया।

▣  ❥   हज़रते गौस - उल - आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु इतमिनान से एक तरफ खड़े रहे। लड़का समझ कर किसी ने आप से कुछ तआरूज़ ना किया। इत्तिफाकन एक डाकू की नज़र उन पर पड़ी और आप से पूछा क्यों लड़के तेरे पास भी कुछ है! हज़रत ने बिला ख़ौफ़ो हिरास के इतमिनान से जवाब दिया। हाँ ! मेरे पास चालीस दीनार हैं। डाकू को आपकी बात पर यकीन ना आया और वो आप पर एक निगाहे इसतहेज़अ डालता हुआ चला गया। फिर एक दूसरे कज़ाक ने भी आप से दरयाफ्त किया। लड़के तेरे पास कुछ है ? आपने इसे भी वही जवाब दिया के हाँ मेरे पास चालीस दीनार हैं। उस कज़ाक ने भी आपकी बात को हंसी में उड़ा दिया और अपने सरदार के पास चला गया।..✍

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 36-37 📚*

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     ❝  सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ  ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

     *↳  आपकी  बेमिस्ल  सच्चाई  ↲*

▣  ❥   पहला कज़ाक भी वहाँ पहले ही मौजूद था और लूट के माल की तकसीम हो रही थी। इन दोनों कज़ाकों ने सरसरी तौर पर उस लड़के का वाकेया अपने सरदार को सुनाया। सरदार ने कहा उस लड़के को ज़रा मेरे सामने लाओ। दोनों डाकू भागते हुए गए और सैय्यदना गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु को पकड़ कर अपने सरदार के पास ले गए जब एक टीले पर अपने हमराहियों के साथ लूटा हुआ माल तकसीम करने के लिये बैठा था। - डाकूओं के सरदार ने उस फ़क़ीर मनिश नौजवान लड़के को देख कर पूछा। लड़के सच बतला तेरे पास क्या है ?

▣  ❥   हज़रते गौसे आजम रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने जवाब दिया के मैं पहले भी तेरे दो साथियों को बता चुका हूँ के मेरे पास चालीस दीनार हैं!..✍

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 37 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

        *↳  आपकी  बेमिस्ल  सच्चाई  ↲*


▣  ❥   हज़रते गौसे आजम रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने जवाब दिया के मैं पहले भी तेरे दो साथियों को बता चुका हूँ के मेरे पास चालीस दीनार हैं  सरदार ने कहा , कहाँ हैं ?

▣  ❥   निकाल कर दिखाओ। आपने फरमाया मेरी बाग्ल के नीचे गदड़ी में सिले हुए हैं। सरदार ने गदड़ी को उधेड़ कर देखा तो उसमें से वाकई चालीस दीनार निकल आए डाकूओं का सरदार और उसके साथी ये मन्जर देखकर सक्ते में आ गए कज़ाकों के कायद अहमद बदवी ने इसतअजाब के आलम में कहा , लड़के ! तुम्हें मालूम है के हम रहज़न हैं। मुसाफिरों को लूट लेते हैं फिर भी तुम हमे से मतल नहीं डरे और उन दीनारों का भेद हम पर जाहिर कर दिया इसकी क्या वजह है!...✍

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 37-38 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

        *↳  आपकी  बेमिस्ल  सच्चाई  ↲*


▣  ❥   सैय्यदना गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया के मेरी पाक बाज और ज़ईफलउन वालिदा ने घर से चलते वक़्त मुझे नसीहत दी के हमेशा सच बोलना , भला वालिदा की नसीहत मैं चालीस दीनारों की खातिर क्यों कर फरामोश कर सकता हूँ। ये अलफाज़ नहीं थे। हक व सदाकत के तरकश निकला हुआ एक तीर था , जो अहमद बदवी के सीने में पेवस्त हो गया। उस पर रक्त तारी हो गई। अश्कहा नदामत ने दिल की शिकावत और स्याही धो डाली।

▣  ❥   रोते हुए बोला आह ऐ बच्चे ! तुम ने अपनी माँ के अहेद का इतना पास रखा है मुझ पर के इतने सालों में अपने खालिक का अहेद तोड़ रहा हूँ। ये कह कर इतना रोया के धिध्घी बन्ध गई। फिर बेइख्तियार सैय्यदना गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु के कदमों पर गिर पड़ा और रहज़नी के पेशे से तौबा की। उसके साथियों ने ये माजरा देखा तो उनके दिल भी पिघल गए और सबने बेक जबान कहा ऐ सरदार ! तू रहज़नी में हमारा कायद था और अब तौबा में भी तु हमारा पेशरू है!..✍

  *📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 38 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

        *↳  आपकी  बेमिस्ल  सच्चाई  ↲*


▣  ❥   ग़र्ज़ उन सब ने भी सय्यदना गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु के हाथ पर तौबा की और लूटा हुआ तमाम माल काफ़ले को वापस कर दिया। कहते हैं के ये सब कज़ाक तौबा की बदोलत दर्जाऐ विलायत को पहुँचे सैय्यदना गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं के ये पहली तौबा थी जो ग़ुमराह लोगों ने मेरे हाथ पर की।

   ◆ ☞ *बगदाद में वरूदे मसऊद* ☜ ◆

▣  ❥   कज़ाकों के वाक्ये के बाद सारे रास्ते में काफला को कोई खतरा पेश ना आया और वो बखेरी आफियत बगदाद पहुंच गये। उस तरह 488 हिज़री में बगदाद शहर में पहुँचे। जब आप बगदाद मुकदस की सरहद पर जलवा अफ़रोज़ हुए तो बारिश हो रही थी और रात का कछ हिस्सा गुजर चुका था आप सीधे हज़रते हम्माद बिन मुस्लिम रादिअल्लाहु तआला अन्हु की खानकाह में तशरीफ ले गए खानकाह का दरवाजा बन्द पाया और बाहर के हिस्से में ही फिरूकश हो गए सुबह होते ही आप खानकाह में दाखिल हुए!..✍

*📬 सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 38-39 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

        *↳  बगदाद में वरूदे मसऊद  ↲*


▣  ❥   हज़रते हम्मादा रादिअल्लाहु तआला अन्हु जैसे आप ही के मुन्तज़िर थे। बढ़ कर फौरन ही आपका खैर मक़दम किया और मोहब्बत व रहमत के मिले जुले अंदाज़ में मोआनका किया। नीज़ खुशी के आंसू बहाते हुए फरमाया। फरज़न्द अब्दुल कादिर फिक्रो तसव्वुफ का खज़ाना आज मेरे पास है। कल ये दौलत ग्रानुमाया तुम्हारे हाथों में सोंपी जाएगी। जरा एहतियात से इसे खर्च करना और ऐ सर - ज़मीने ईराक ! तेरे ऊपर एक मुकद्दस हस्ती का आना मुबारक हो। अब तुझ पर रहमत की बदलियाँ साया फगन होंगी और इल्मो इरफान की घटा बन कर बरसेंगी जिससे सारी दुनिया के कलब व अरवाह हमेशा के लिये सर सब्ज व शादाब हो जायेंगे अब तेरी सर - जमीन से नफ्स व शैतान की कहेरमानी ताकतों का तख्ता उलट जायेगा और हजारों जाह व जलाल , अज़मत व वकार के साथ दीन की रहमत व करम का तख्ता बिछेगा। *मरहबा मरहबा ऐ सईद व सालेह फरज़न्द मरहबा!...✍*

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 39 📚*

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     ❝ सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

             *↳  बगदाद  में  क़याम  ↲*


▣  ❥   बगदाद में कयाम के लिए हज़रत हम्माद बिन मुस्लिम रादिअल्लाहु तआला अन्हु से मुलाकात के बाद बगदाद में आप जिस मक्सद के लिये आये थे उसकी तरफ मुतावज्ह हुए और ज़ाहिरी उलूम के हसूल के लिये सरगर्म हो गए कलावद - उल - जवाहर में लिखा है के हज़रते शेख को जो ये मालूम हुआ के इल्म का हासिल करना हर मुसलमान पर फर्ज़ है।

▣  ❥   और हसूले इल्म जहल की तारीकियों को दुर कर के नुरानियत अता करता है। और यही बीमार दिलों की दवा , मुत्तकीन के लिये वाजेह रास्ता हुज्जतों तक पहुंचने का जरिया और मराजे यक़ीन की रफअतों तक पहुँचा कर मुतईय्यन के मदारिज की बुलंदियों का जरिया बनता है। ये वो ख्यालात थे। जिन्होंने आपको हसूले इल्म की तरफ मुतावज्जह किया और आपने आईम्मा व मशायखे वक़्त की जानिब रूजूअ किया।...✍🏻

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 39-40 📚*

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     ❝ सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

             *↳  दीनी उलूम का हसूल  ↲*


▣  ❥ बगदाद में पहुंचने के चन्द रोज बाद हज़रत सैय्यद अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाहि तआला अलैह ने बगदाद के मदरसा निजामिया के असातिज़ा से दीनी इल्म हासिल करना शुरू कर दिया। बगदाद उस वक़्त बड़े नामवर असातिजा और मख़्तलिफ फ़िनृन के आईम्मा का गहवारा था। आपने उनसे बड़ी लगन के साथ इल्म हासिल किया। आपके असातिज़ा अबु- अल - वफा अली बिन अकोला रहमतुल्लाहि तआला अलैह अबु गालिब मोहम्मद बिन हसन बाकलानी रहमतुल्लाहि तआला अलैह , अबु ज़क्रया याहिया बिन अली तबरेजी रहमतुल्लाहि तआला अलैह अबु मईद बिन अब्दुलकरीमा रहमतुल्लाहि तआला अलैह, अबु - अल - गनायम मोहम्मद बिन अली बिन मोहम्म्दा रहमतुल्लाहि तआला अलैह, अब मईद इब्ने मुबारक मखरमी ( बामज़मी ) और अबु - अल - पर हम्माद बिन मुस्लिमा रहमतुल्लाहि तआला अलैह अंहबास जैसे नामवर उल्मा और मशायख़ अेजाम के अस्मअग्रामी काबिले ज़िक्र हैं। इल्मे क्रिआत, इल्मे तफसीर, इल्मे हदीस, इल्मे फिकह, इल्मे लुगत, इल्मे शरीअत, इल्मे तरीकत, गर्ज कोई ऐसा इल्म ना था जो आपने उस दौर के धाकमाल असातिजा व आईम्मा से हासिल ना किया हो। और सिर्फ़ हासिल ही नहीं किया बल्कि हर इल्म में वो कमाल पैदा किया के तमाम उल्माए ज़माना से सब्कत ले गए।

▣ ❥  इल्म व अदब में आपके उस्ताद अल्लामा अबु ज़क्रया तवरेजी रहमतुल्लाहि तआला अलैह थे जो अपने वक़त के यगानाऐ रोजगार आलिम थे और बेशुमार किताबों के मसन्निफ थे। उनकी तसनीफात में तफ़्सीर - उल - क़ुरआन वअलआराब , अलकाफी फी इल्म - उल - ऊरूज़ बलंकवानी तहजीब - उल - सलाह , शरा - उल - मफ्जीलात , शरह कसायदुल अशर , शरह दीवान हमामा , शह दीवान मतबनी , शरह दीवान अबी तमाम और शरह अलदरीदिया बहुत मशहर हैं।...✍🏻

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 41 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

             *↳  दीनी उलूम का हसूल  ↲*


▣  ❥  इल्मे फिकह और उसूले फिकह की तालीम आपने हज़रत शेख अबु-अल-वफा अली बिन अक़ील हंबली रहमतुल्लाहि तआला अलैह अबु-अल-हसन मोहम्मद बिन काजी अबु-अल-अली ख़त्ताब महफूज़-अल- कुलजानी हंबली रहमतुल्लाहि तआला अलैह , और काजी अबु सईद मुबारक बिन अली मखरमी हंबली रहमतुल्लाहि तआला अलैह से मुकम्मल की।

▣  ❥  इल्मे हदीस आपने उस दौर के मशहूर मुहद्दसीन से हसिल किया जिन में अबु-अल-बको तलहा-अल-आकोली रहमतुल्लाहि तआला अलैह, अबु-अल-गनायम मुहम्मद बिन अली बिन मेमन-अल-फुरसी रहमतुल्लाहि तआला अलैह, अबु उसमान इसमाईल बिन मोहम्मद-उल-सुबहानी रहमतुल्लाहि तआला अलैह, अब ताहिर अब्दुर्रहमान बिन अहमद, अबु गालिब मोहम्मद बिन हसन-अल-बाकलानी, अबु मोहम्मद जाफर बिन अहमद बिन अलहुसैन अलकारी-उल- सिराज अबु-अल-अज़्ज़ मोहम्मद बिन मुख्तार-उल-हाश्मी रहमतुल्लाहि तआला अलैह, अबु मनसूर अब्दुर्रहमान-अल-कज़ाज़, अबु-अल-कासिम अली बिन अहमद बिन बनान-उल-कुरखी रहमतुल्लाहि तआला अलैह, अबु तालिब अब्दुल कादिर बिन मोहम्मद बिन यूसुफ रहमतुल्लाहि तआला अलैह  के असमाऐ ग्रामी काबिले ज़िक्र हैं।

▣  ❥  गर्ज आठ साल की तवली मुद्दत में आप तमाम उलूम के इमाम बन चुके थे। और जब आपने माह जिल्हज में उन उलूम में तकमील की सनद हासिल की तो कुर्रहऐ अर्ज पर कोई ऐसा आलिम नहीं था जो आपकी हमसरी का दावा कर सके।...✍🏻

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 42 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

             *↳  दीनी उलूम का हसूल  ↲*


▣  ❥  *शेख हम्माद बिन मुस्लिम - अल - दबास* रादिअल्लाहु तआला अन्हु हज़रत सैय्यद अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु का उलूमे बातिनी का बेश्तर हिस्सा आप ही से मिला। शेख हम्मादा रादिअल्लाहु तआला अन्हु बगदाद के नामवर मशायख में से थे।

▣  ❥  और बहुत बड़े वली अल्लाह थे। उस दौर के बेशुमार मशायख औऱ सूफियाए इल्मे तरीकत में उनके तरबीयत याफ्ता थे। आप आम लोगों में शेख दबास ( शीरा फरोख्त करने वाले शेख ) के लकब से मशहूर थे। कहते है। आपका शीरा निहायत पाक व साफ होता था। क्योंके आप की बर्कत की वजह से मख्खी इसके नज़दीक ना फटकती थी!..✍🏻

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 42-43 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

             *↳  दीनी उलूम का हसूल  ↲*


▣  ❥  *आपके बारे में शेख हम्माद रादिअल्लाहु तआला अन्हु की राय*  शाम के उल्मा में से एक आलिम जिनका नाम अब्दुल्लाह था बयान करते हैं के मैं तालीबे इल्म में बगदाद गया उस वक़्त इब्ने सक्का मेरे रफीक थे मदरसा निज़ामिया बगदाद में हम इबादत में मसरूफ व मश्गल रहते थे और बुजर्गो की जियारत किया करते थे। उस वक़्त बगदाद में एक बुजर्ग हस्ती मौजूद थी , लोग उनको गौसे ए पाक कहते थे। उनके बारे में कहा जाता था के जब वो चाहते हैं पौशीदा हो जाते हैं और जब चाहते हैं ज़ाहिर हो जाते हैं। एक रोज़ मैं इब्ने सक्का और शेख अब्दुल कादिर रादिअल्लाहु तआला अन्हु ( जो उस वक़्त जवाँ साल थे ) उनकी जियारत के इरादे से रोज़ाना हुए रास्ते में इब्ने सक्का ने कहा के मैं उनसे एक ऐसा सवाल दरयाफ्त करूंगा के वो उसका जवाब नहीं दे सकेंगे। मैंने कहा के मैं भी उन से एक मसअला दरयाफ्त करूंगा। देखंगा वो क्या जवाब देते हैं।..✍🏻

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 43 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

             *↳  दीनी उलूम का हसूल  ↲*


▣  ❥  शेख अब्दल कादिर रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने कहा मआजअल्लाह के मैं उनसे कुछ पूछू ! मैं तो उनके पास इस लिये जा रहा हूँ के उनकी जियारत की बात हासिल करूं। अलगर्ज हम तीनों जब उनके मकान पर पहुंचे तो उनको उनकी जगह पर ना पाया ( जहाँ वो बैठते थे वहाँ मौजूद ना थे ) कुछ देर के बाद देखा तो वो अपनी जगह पर मौजूद थे तब उन्होंने इब्ने सक्का की तरफ ग़ज़ब की नज़रों से देखा और कहा इब्ने सक्का बड़े अफसोस की बात है

▣  ❥  के तुम मुझे में ऐसा मसअला पुछते हो जिसका मुझे जवाब नहीं आता। हालांके ये मसअला ये है और उसका जवाब ये है। और में देख रहा हूँ के तेरे कुर्फ की आग शोअला जन होगी। फिर मेरी तरफ मुतवजह हुए और फरमाया!...✍🏻

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 43-44 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

             *↳  दीनी उलूम का हसूल  ↲*


▣  ❥  अब्दुल्लाह ! मुझ से मसअला पूछते हो और जानना चाहते हो के में क्या जवाब देता हु। वो मसअला ये है उसका जवाब ये है । तुझ को बहुत जल्द दुनिया तेरे दोनों कानों तक घेर लेगी ( तु सरापा दुनिया में गर्क हो जाएगा। उसके बाद शेख़ अब्दुल कादिर रादिअल्लाहु तआला अन्हु की तरफ देखा उनको बुला कर अपने पास बैठाया और बहुत तोकीर से पेश आए और फरमाया ऐ अब्दुल कादिर रादिअल्लाहु तआला अन्हु तुम ने अपने अदब से खुदा और उसके रसूल ﷺ को खुश किया है। गोया में देख रहा। के तुम बगदाद में मिम्बर पर खड़े हो और कहते हो के कदामी हाजिही अला रकाबती कल्ली वलीइयिय्ल्लाह ( मेरा ये कदम तमाम आलिया की गर्दन पर है ) और तुम्हारे वक़्त के तमाम ओलिया को देखता हूँ के सब ने अपनी गर्दन तुम्हारी बुर्जुगी की वजह से झुका ली हैं। बस ये कह कर वो गायब हो गए। उस के बाद हम ने फिर उनको नहीं देखा और जैसा के उन्होंने कहा था वैसा ही हुआ। *( नफ्हात - उल - अनस )..✍🏻*

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 44 📚*

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     ❝ सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

             *↳  दीनी उलूम का हसूल  ↲*


▣  ❥  हज़रत शेख हम्मादा रादिअल्लाहु तआला अन्हु सय्यदना गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु के नामवर खलीफा और शागिर्द हज़रत अब्दुल्लाह जबाई रादिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है के मेरे शेख हज़रत सय्यदना अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने मुझे बताया है के मेरे तालिब इल्म के जमाने में एक दफा बगदाद फितना व फसाद की आमाजगाह बन गया। मैं फित्री तोर पर हंगामों मे मुतनफ्फर था इसलिए नित नए झगड़ों और फसादों को देखकर बगदाद का कयाम मुइर पर या गुजरने लगा।...✍🏻

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 44-45 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

             *↳  दीनी उलूम का हसूल  ↲*


▣  ❥  चुनाचे एक दिन बगदाद छोड़ने का इरादा किया और कुरआने करीम बगल में दबा कर याबे हल्या की तरफ चला के वहाँ से सहरा को रास्ता जाता था। यकायक किसी गैबी ताकत ने मुझे उस ज़ोर से धक्का दिया के में गिर पड़ा। फिर गैब से आवाज़ आई के “ यहाँ से मत जाओ। बल्कि खुदा को तुम से फेज़ पहुंचेगा। " मैंने कहा के " मुझे खल्के खुदा से क्या वास्ता मुझे तो अपने दीन की सलामती से मतलब है। " आवाज़ आई नहीं नहीं तुम्हारा यहाँ रहना ज़रूरी है। तुम्हारे दीन को कुछ ज़रर ना पहुंचेगा। चुनांचे मनशाऐ इलाही के मुताबिक मैंने बगदाद छोड़ने का इरादा तर्क कर दिया!...✍🏻

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 45 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

             *↳  दीनी उलूम का हसूल  ↲*


▣  ❥  दूसरे दिन में बगदाद के एक मोहल्ले से गुज़र रहा था के एक शख्स ने दरवाजा खोल कर अपना सर बाहर निकाला और मुझ से मुखातिब हो कर कहा क्यों अब्दुल कादिर ! कल तूने अपने रब से क्या मांगा था। मैं ये अचानक सवाल सुन कर हैरान रह गया और मेरी कुव्वते गोयाई जवाब दे गई। उस शख्स ने अब निहायत गुस्से से अपने घर का दरवाज़ा बन्द कर लिया और मैं वहाँ से चल दिया। जब मेरे होश बजा हुए तो मेरी समझ में आ गया के ये शख्स तो औलिया अल्लाह में से है जिसे कल के वाकये का इल्म हो गया। चुनाँचे मैंने उस दरवाजे की तलाश शुरू कर दी लेकिन हज़ार कोशिश के बावजूद ना काम रहा। अब मैं हर वक्त उस शख्स की तलाश में रहने लगा। आखिर एक दिन मैंने उन्हें पा लिया। ये बुजर्ग हम्माद दबास रादिअल्लाहु तआला अन्हु थे!...✍🏻

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 45 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

             *↳  दीनी उलूम का हसूल  ↲*


▣  ❥  बुजर्ग हम्माद दबास रादिअल्लाहु तआला अन्हु थे मैंने उनसे इल्मे तरीकत हासिल किया और अपने अश्कालात व शकूक रफऐ कराए। शेख हम्माद रादिअल्लाहु तआला अन्हु शाम के रहने वाले थे उनकी पदाईश दमिश्क के करीब एक गांव में रहेबा में हुई।

▣  ❥  बेशुमार मजाहेदात व रियाजात के बाद विलायत। दर्जे तक पहुंचे और बगदाद के मोहल्ले मुजफ्फरया ,आकर मुकीम हए। (525 हिज़री) में आपका विसाल हुआ आप मुदफिन मक्बरा शोनिजिया में है।...✍🏻

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 45-46 📚*

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   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

             *↳  अजयत  आमेज  बातें  ↲*


▣  ❥  आप फरमाते हैं के दौर तालीम जब मैं कभी शेख हम्माद के पास होता तो और मुझे फरमाते। फकिहा ! तू यहाँ क्यों आता है कहीं अहले फिकह के पास जाया कर और जब मैं ख़ामोश रहता तो मेरे नफ्स को बातों के ज़रिये अज़यत देते ताके मेरा नफ्स पाक हो जाए। लेकिन जब उनके पास दोबारा जाता तो फरमाते के आज हमारे पास बहुत सी रोटियां आई लेकिन हम ने सब खा ली हैं तुम्हारे लिये कुछ नहीं बचा मेरी ये हालत देख कर शेख के वाबसतगान भी मुझे तकलीफें पहुंचाने लगे और मुझ से बार बार कहते के तुम तो फुकीहा हो , तुम्हारा हमारे पास क्या काम , तुम यहाँ मत आया करो। लेकिन जब शेख हम्माद को इसका इल्म हुआ तो उन्होंने खुद्दाम से फरमाया के ऐ कुत्तो ! तुम उसको तकलीफ़ क्यों पहुंचाते हो। तुम में किसी एक फर्द को भी ये मर्तबा हासिल नहीं है। मैं तो महेज़ इम्तेहानन उसको अज़यत देता हूँ लेकिन ये एक ऐसा पहाड़ है जिस में ज़रा बराबर भी जुबिश नहीं होती।...✍🏻

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 46 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          *↳  चश्मे बातिन से मुशाहेदा  ↲*


▣  ❥  अबु नजीब सहरवरदी रादिअल्लाहु तआला अन्हु बयान करते हैं के 523 हिज़री में एक मर्तबा मैं शेख हम्माद की खिदमत में हाज़िर था तो उस वक़्त शेख अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु  भी मौजूद थे और शेख हम्मादा रादिअल्लाहु तआला अन्हु  से बहुत ही अजीब गुफ्तगु फरमा रहे थे। जिस पर शेख हम्माद रादिअल्लाहु तआला अन्हु  ने फरमाया के ऐ अब्दुल कादिर रादिअल्लाहु तआला अन्हु  ! तुम तो निहायत अजाब कलाम करते हो। क्या तुम्हें इसका खौफ नहीं के अल्लाह तआला तुम्हे मकर में मुबतला कर दे। ये सुन कर शेख़ अब्दुल कादिर रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने अपना हाथ शेख हम्माद के सीने पर रख कर फरमाया के अपनी चश्मे बातिन से मशाहेदा फरमा लीजिए के मेरी हथेली में क्या तहरीर है।

▣  ❥  ये सुन कर शेख हम्माद पर एक अजीब केफियत तारी हो गई और हजरत शेख अब्दल कादिर रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने उनके सीने पर से हाथ हटा लिया तो उन्होंने बताया के मैंने तुम्हारी हथेली पर खुदा से किये हुए सत्तर मुआहेदा का मुशाहेदा कर लिया है और उनमें से एक मुआहेदा ये भी है के अल्लाह तआला तुम्हें मकरो फरेब में मुबतला नहीं करेगा। लिहाजा तुम उस वादा के बाद चाहे जैसा भी कलाम करो तुम्हें कोई ज़रर नहीं पहुंचेगा। ये खुदा का फज्ल है वो जिस को चाहे मर्तबा अता कर दे वो बढ़ा फज्ल वाला है।...✍🏻

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 47 📚*

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   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

      *↳  दौरे तालिब इल्मी के वाकेयात  ↲*


▣  ❥  तालिबे इल्मी के दोर में आपको काफी मुश्किलात का सामना करना पड़ा। और ये पनाह मसावब आप ने बर्दाश्त किये मगर हिम्मत ना हारी। आप फरमाते हैं के मैने ऐसी होलनाक सख्तियाँ झेली हैं के अगर वो पहाड़ पर गुज़रती तो पहाड़ भी फट जाता। जब मसायब और शदाबद की हर तरफ से मुझ पर यलगार हो जाती थी तो मैं तंग आकर जमीन पर लेट जाता और इस आयते करीमा का विर्द शुरू कर देता : *फइन्न मआल उसरी यूसरा इन्ना उसरी युसरा* ( बे'शक तंगी के साथ आसानी है बे'शक तंगी के साथ आसानी है)...✍🏻

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 47 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

      *↳  दौरे तालिब इल्मी के वाकेयात  ↲*

▣  ❥  *फइन्न मआल उसरी यूसरा । इन्ना उसरी युसरा* ( बे'शक तंगी के साथ आसानी है बे'शक तंगी के साथ आसानी है )

▣  ❥  इस आयत मुबारका की तकरीर से मुझे तसकीन हासिल हो जाती और जब मैं ज़मीन से उठता तो सब रंजी कुर्ब दूर हो जाता। तहसील इल्म के ज़माना में सबक से फारिग होकर

▣  ❥  आप जंगल या बयाबान की तरफ निकल जाते और शहर की बजाये उन्हीं वीरानों में रात गुजारते थे। ज़मीन आपका बिस्तर होती थी। और ईट या पत्थर तकिया। मेंह , आँधी , झक्कड़ , तूफान , सर्दी , गर्मी आप हर चीज़ से बेनियाज़ हो कर बरहना - पा रात की तनहाईयों और तारीकियों में दश्त नूरदी करते रहते थे। सरे अक्दस पर एक छोटा सा अमामा होता था। और सूफ का जवा ज़ेबे तन होता था। खुदरू बूटियाँ और सब्जियां जो आम तौर पर दरयाए दजला के किनारे मिल जाती थीं आपकी खुराक होती थीं। ये सब जानकाहे मसायब आपको उस लज्जत के मुकाबले में हे मालूम होते थे जो आपको तहसीले इल्म में हासिल होती थी!..✍🏻


*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 47 - 48 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

      *↳  मुसलसल बीस रोज़ तक फाकह  ↲*

▣  ❥   शेख तलहा बिन मुजफ्फर बयान करते हैं के हज़रत शेख ने मुझ से फरमाया के कयामे बगदाद के दौरान मुझे बीस योम तक खाने पीने के लिये कोई मुबाह शै मयस्सर ना आई तो मैं एवाने किसरा की जानिब चल पड़ा वहाँ देखा चालीस औलिया अल्लाह पहले ही मुबाह चीज़ों की तलाश में उन खण्डरात में मौजूद हैं। आपने उन मर्दाने खुदा के रास्ते में मज़ाहिम होना मुनासिब ना समझा। और वापस शहर तशरीफ़ ले गए। रास्ते में जीलान के एक शख्स से मुलाकात हुई। जो आप ही की तलाश में सरर्गदा था। उसने आपको सोने का एक टुकड़ा दिया और कहा ऐ अब्दुल कादिर रादिअल्लाहु तआला अन्हु ! खुदा का शुक्र है के तुम मिल गए और मैं बारे अमानत से सबुकदोश हुआ!...✍🏻


*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 48 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

      *↳  मुसलसल बीस रोज़ तक फाकह  ↲*


▣  ❥   अब्दुल कादिर रादिअल्लाहु तआला अन्हु ! खुदा का शुक्र है के तुम मिल गए और मैं बारे अमानत से सबुकदोश हुआ।

▣  ❥   ये सोने का टुकड़ा तेरी वालिदा सय्यदा फातिमा रादिअल्लाहु तआला अन्हुमा ने तेरे लिये भेजा है। आप अल्लाह तआला का शुक्र बजा लाये और सोने का ये टुकड़ा ले कर फौरन एवाने किसरा के खण्डरों में पहुंचे जहाँ सत्तर औलिया अल्लाह को रिज्के तय्यब की तलाश में देख आए थे!...✍🏻

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 48 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

      *↳  मुसलसल बीस रोज़ तक फाकह  ↲*


▣  ❥  अब्दुल कादिर रादिअल्लाहु तआला अन्हु ओलिया अल्लाह को रिज्के तय्यब की तलाश में देख आए थे सोने का थोड़ा सा हिस्सा अपने पास रख कर बाकी सब उन मर्दाने खुदा की खिदमत में पेश कर दिया। उन्होंने पूछा कहाँ से लाए हो ? आपने फरमाया मेरी वालिदा माजिदा ने मेरे लिये भेजा है।

▣  ❥  मेरी गैरत ने ये बर्दाश्त ना किया के आप कुव्वते लायमूत की तलाश में मारे मारे फिरें और मैं आसूदा हाली से दिन गुजारूं इसलिये ये सोना आपके लिये ले आया हूँ। फिर आप बगदाद तशरीफ लाए। अपने हिस्से के सोने से खाना खरीदा और बआवाजे बुलंद फुकरआ को खाने की दावत दी। इस तरह बहुत से फुकरआ आ गए और सब ने मिल कर खाना खाया। *( कलायद - उल - जवाहर )*...✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 48 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

       *↳  शिद्दत भूक का एक वाकेया ↲*


▣  ❥  अबु बकर तमयती का बयान है के एक मर्तबा आप के कई दिन फाके से गुज़र गए। आखिर भूक से निढाल होकर एक दिन किसी मुबाह चीज़ की तलाश कर रहे थे सोक - उल - रीहानिय्यीन ( बगदाद की एक मंडी ) की मस्जिद के करीब पहुंचे तो इज्मेहलाले कवा - ए - इन्तिहा को पहुंच गया। शिद्दत गुरसंगी से दिमाग चकरा गया और आप लड़खड़ाते हुए मस्जिद के एक गोशे में जा बैठे अभी आपको बैठे थोड़ी ही देर हुई थी के एक अजमी नोजवान भुना हुआ गोश्त और रोटी ले कर मस्जिद में दाखिल हुआ।

▣  ❥  और एक तरफ बैठ कर खाने लगा। हजरत गौसे आजम रादिअल्लाहु तआला अन्हु का अपना बयान है के भूक की शिद्दत से मेरा ये हाल था के उस शख्स के हर लुक्मे के साथ बे'इखितीयार मेरा मुंह भी खुल जाता और मेरा जी चाहता के काश उस वक़्त मुझे भी कुछ खाना मयस्सर हो जाता लेकिन आखिर मैंने अपने नफ्स को मलामत की के बे सब्र मत बन।..✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 49 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

       *↳  शिद्दत भूक का एक वाकेया ↲*


▣  ❥  हजरत गौसे आजम रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने अपने नफ्स को मलामत की के बे सब्र मत बन आखिर तवक्कल और भरोसा भी तो कोई चीज़ है ग़र्ज़ आपका नफ्स मुतमईन हो गया और आप उस शख्स की तरफ से बेनियाज़ हो गए।

▣  ❥  इतने में खुद ही उसकी नज़र आप पर पड़ी और उसने आपको खाने की दावत दी। हज़रत ने इंकार किया लेकिन उसने शदीद इसरार किया। ना'बार आप उसके साथ खाने में शरीक हो गए। थोड़ी देर बाद वो आपके हालात दरयाफ्त करने लगा। आपने फरमाया में जीलान का बाशिन्दा हूँ। और यहाँ हसूले इल्म की गर्ज से मुकीम हु। ये सुनते ही वो बहुत मसरूर हुआ और कहने लगा। मैं भी जीलान का रहने वाला हूँ। क्या तुम जीलान के रहने वाले एक नोजवान अब्दुल कादिर रादिअल्लाहु तआला अन्हु  को जानते हो ? आपने फरमाया के अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु  मैं ही हूँ!..✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 49-50 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

       *↳  शिद्दत भूक का एक वाकेया ↲*


▣  ❥  अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु  मैं ही हूँ ये सुनते ही वो शख्स बैचेन हो गया और उसकी आँखें पुरनम हो गई। फिर रक्त आमेज़ लहजे में कहने लगा भाई मैंने तुम्हारी अमानत में ख्यानत की है। खुदा के लिये मुझे बख्श दो। आपको उस शख्स की बातों से हैरत हुई और फरमाया भाई कैसी अमानत और कैसी ख्यानत। अपनी बात की वज़ाहत करो।

▣  ❥  उस शख्स ने जवाब दिया भाई आप की वालिदा ने आपके लिये मेरे हाथ आठ दीनार भेजे थे। मैं कई रोज से तुम्हें तलाश कर रहा था के तुम्हारी अमानत के बार से सबुकदोश हो जाऊं लेकिन तुम्हारा कुछ पता ना चलता था और इसी वजह से बगदाद में मेरा कयाम तूल पकड़ गया हत्ता के मेरा जाती खर्च कम हो गया और फाकों तक नौबत आ पहुंची।...✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 50 📚*

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   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

       *↳  शिद्दत भूक का एक वाकेया ↲*


▣  ❥  उस शख्स ने जवाब दिया मेरा जाती खर्च कम हो गया और फाकों तक नौबत आ पहुंची पहले दो तीन दिन तक तो मैंने सब्र किया आखिर भूक की शिद्दत ने मजबूर कर दिया के तम्हारी अमानत से खाना खरीद कर पेट के दोजख की आग ठंडी करूं।

▣  ❥  भाई ये खाना जो हम खा रहे हैं दरअसल तुम्हारा ही है क्योंके तुम्हारी अमानत से खरीदा गया है। और तुम मेरे नहीं बल्क में तम्हारा मेहमान हूँ। ख़ुदा के लिये मुझे इस गनाहे अज़िम के लिये बख्श दो।

▣  ❥  आप ने उस शख्स को गले लगा लिया और उसके हुस्ने नीयत की तारीफ की और तसल्ली दी। फिर कुछ दीनार और बचा हुआ खाना देकर निहायत मोहब्बत से उसे रुख्मत किया। *( कलायद - उल - जवाहर )*...✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 50-51 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          *↳   पुरअसरार  आजमाईश   ↲*


▣  ❥  शेख अब्दुल्लाह सल्मी ( रहमतुल्लाह अलैह ) से मनकुल है के उन्होंने एक दफा शेख अब्दुल कादिर जीलानी ( रहमतुल्लाह अलैह ) से एक अजीब वाकया सुना। आपने फरमाया के ज़मानाऐ तालीम में एक मर्तबा मुझे कई दिन तक खाने के लिये कुछ मयस्सर ना हुआ उसी हालत में एक दिन मोहल्ला कतअय्यह शरकियह से गुज़र रहा था के एक शख्स ने एक तहेह किया हुआ कागज़ मेरे हाथ में दे कर कहा के नानबाई की दुकान पर जाओ। मैं ये कागज ले कर नानबाई की दुकान पर पहुंचा उसने ये कागज़ रख लिया और मुझे मैदे की रोटी और हलवा दिया। मैं ये हलवा और रोटी लेकर उस बेआबाद मस्जिद में गया जहाँ मैं अपने असबाक तनहाई में दोहराया करता था। अभी इस सोच में था के ये रोटी और हलवा खाऊ या ना खाऊं के नीगाह एक कागज़ एक पर नज़र पड़ी। जो दीवार के साये में पड़ा हुआ था। मैंने उसे उठा कर पढ़ा तो उस पर ये इबारत लिखी थी।..✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 51 📚*

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   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          *↳   पुरअसरार  आजमाईश   ↲*


▣  ❥  मैंने उसे उठा कर पढ़ा तो उस पर ये इबारत लिखी थी।

▣  ❥  *अल्लाह तआला के कुत्बे साविका में से एक किताब में फरमाया है के अल्लाह तआला के शेरों को लरज़ाते दुनयवी से कुछ सरोकार नहीं होता।ख्वाहिशात और लगज्ज़ात तो कमज़ोरों और जईफों के लिये हैं ताके वो उनके जरिये इबादते इलाही पर कादिर हो। "*

▣  ❥  ये पढ़ कर मेरे जिस्म पर कपकपी तारी हो गई। हर मोए बदन खौफे इलाही से खड़ा हो गया । रोटी और हलवा खाने का ख़याल तर्क किया और दो रकाअत नमाज अदा कर के यहां से चला आया। *( कलायद - उल - जवाहर )* ...✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 51-52 📚*

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     ❝ सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

       *↳ शरीफ याकवी की नसीहत ↲*


▣  ❥  बगदाद के कुछ तलबा का दस्तुर था के फस्ल काटने के बाद ये लोग एक गाँव याकबा में चले जाते और वहाँ से अनाज मांग कर लाते। उस ज़माने में लोग तलबा को कद्र की निगाह से देखते थे इस लिये साहिबे इसतताअत लोग खुशी से कुछ गल्ला उन तलबा को दे देते। एक दफा उन तलबा ने सय्यदना गौसे आजम रादिअल्लाहु तआला अन्हु को भी अपने साथ चलने के लिये कहा आप उनके इसरार की वजह से इंकार ना कर सके। और उनके साथ याकबा जा पहुंचे। उस गाँव में एक मर्दे सालेह रहते थे उनका नाम शरीफ याकुबी था। हज़रत ग़ौसे आजम रादिअल्लाहु तआला अन्हु उस मर्दे पाक बातिन की जियारत के लिये गए। उन्होंने आपकी जबीने सआदत आसार से अंदाजा लगा लिया के कुतूबे जमाना है।...✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 52 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

       *↳ शरीफ याकवी की नसीहत ↲*


▣  ❥  हज़रत ग़ौसे आजम रादिअल्लाहु तआला अन्हु उस मर्दे पाक बातिन की जियारत के लिये गए। उन्होंने आपकी जबीने सआदत आसार से अंदाजा लगा लिया के कुतूबे जमाना है फरमायाः

▣  ❥  बेटे तालिबाने हक अल्लाह के सिवा किसी के आगे दस्तं सवाल दराज़ नहीं करते। तुम खासाने खुदा से मालुम होते हो इस तरह गल्ला मांगना तुम्हारे शायाने शान नहीं। " हजरत गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं के उस वाकये के बाद ना मैं कभी उस किस्म के काम के लिये किसी जगह गया और ना किसी से सवाल किया।...✍

*📕 कलायद - उल - जवाहर , सफह 42*

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 52 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

        *↳ अदायगी कर्ज का वाक़या ↲*


▣  ❥  शेख अबु मोहम्मद अब्दुल्लाह रादिअल्लाहु तआला अन्हु बयान करते हैं के हज़रत शेख अब्दुल कादिर रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने मुझे अपना एक वाकया सुनाया के मैं एक दिन जंगल में बैठा हुआ फिकह की किताब का मुतालआ कर रहा था तो एक हातिफ गैबी ने मुझसे कहा के हमले इल्म फिकह और दीगर उलुम की तलब के लिये कुछ रकम लेकर काम चला लो।

▣  ❥  आप फरमाते हैं के मैंने कहा के तंगी की हालत में किस तरह कर्ज ले सकता हु जबकि मेरे पास अदायगी की कोई सुरत नहीं। तो उस पर हातिफे गैबी से जवाब मिला के तुम कहीं से कर्जा ले लो उसकी अदायगी का ज़िम्मेदार में हूँ। ये सुन कर मैंने खाना फरूस्त करने वाले से जा कर कहा के मैं तुम से इस शर्त पर मामला करना चाहता हूँ के जब मुझे खुदाबंद तआला सहूलत अता फरमा दे तो मैं तुम्हारी रकम अदा कर दुगा ये सुन कर उसने रोकर कहा के मेरे आका में हर वो शै पेश करने को तैयार हूँ जो आप तलब फरमायें।...✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 52 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

        *↳ अदायगी कर्ज का वाक़या ↲*

▣  ❥  आका में हर वो शै पेश करने को तैयार हूँ जो आप तलब फरमायें चुनांचे में उससे एक मुद्दत तक एक डेढ रोटी और कुछ सालन लेता रहा लेकिन मुझे ये शादीद परेशानी हर वक्त लाहक रहती के जब मेरे अन्दर इमतताअत ही नहीं तो मैं ये रकम कहाँ से अदा करूंगा। इस पेरशानी के आलम में मुझ से हातिफ गैबी ने कहा के फला मकाम पर चले जाओ। और वहाँ जो कुछ रेत में पड़ा हुआ मिल जाए उसको लेकर खाने वाले का कर्ज अदा कर दो और अपनी ज़रूरियात की भी तकमील करते रहो।

▣  ❥  चुनांचे जब मैं बताये हुए मुकाम पर पहुंचा तो वहाँ मुझे रेत पर पड़ा हुआ सोने का एक बहुत बड़ा टुकड़ा मिला जिसको मैंने लेकर होटल वाले का तमाम हिसाब दे दिया।...✍


*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 53 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

        *↳ अदायगी कर्ज का वाक़या ↲*


▣  ❥  चुनांचे जब मैं बताये हुए मुकाम पर पहुंचा तो वहाँ मुझे रेत पर पड़ा हुआ सोने का एक बहुत बड़ा टुकड़ा मिला जिसको मैंने लेकर होटल वाले का तमाम हिसाब दे दिया।

▣  ❥  आपने एक और वाकया बयान किया के एक रात जंगल में मेरे ऊपर ऐसी कैफियत तारी हुई के मैं चीख मार कर जमीन पर गिर पड़ा और मेरी आवाज़ सुन कर इलाके के मुसल्लाह डाकु घबराए हुए आए। मेरे पास खड़े हुए और मुझे पहचान कर कहने लगे। ये तो अब्दल कादिर रादिअल्लाहु तआला अन्हु दीवाना है। अल्लाह तआला हम पर फज्ल फरमाए।...✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 53 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

         *↳  मुजाहेदह  व  रियाज़त  ↲*


▣  ❥  शरअई तौर पर कामिल उबूर हासिल करने के बाद हज़रत सय्यदुना अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु मुजाहेदान में मशगूल हो गए क्योंके तजकिया और उलूम बातिन रियाज़त व मुजाहेदे के बगैर हासिल नहीं होता। बयान किया जाता है के आप ने बड़े तवील अर्से तक बड़े वर्ड सख्त मुजाहेदे किए बे पनाह सख्तियाँ और मसायब बर्दाश्त किए। अलायके दुनयवी से कतऐ तअल्लुक कर के खुदा से लो लगाई और कसरते इबादत व रियाज़त से फना फि'रसूल और फना फि'अल्लाह की मनाज़िल तय की। रग रग में इश्के इलाही और इश्के रसूल मोजज़न हो गया। उन मुजाहेदात ने उन्हें अज़ीमत व इसतकामत और इत्तिबा ऐ कामिल का बेमिस्ल मर्दे आहन बना दिया। आपके कोलो फऐल में इत्तिवाओ सुन्नत का जज्बा घर कर गया ताके कोई कदम भी शरऐ से बाहर ना जा सके। आपका ये मुजाहेदह असहाबे सफा के तर्जे अमल पर था आपके मुजाहेदात की कहानी बड़ी तवील है लिहाजा उनका आहाता करना मुश्किल है। अल्बत्ता मुजाहेदात के चन्द वाकेयात इस में दर्ज किए जाते हैं।...✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 54 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

         *↳   वीरानों  मे  फिरना   ↲*


▣  ❥   आप पर बिल्कुल जवानी का आलम था जब आप ने रियाज़त और मुजाहेदात में कदम रखा। और अल्लाह तआला की मअरफ़त की तलाश में ईराक के वसीअ व अरीज़ बयावानों में रहने लगे। दिन रात पुर खत्र मुकामात पर फिरते रहते। अगर आज यहाँ हैं तो कल कहीं और हैं। एक दफा आपने खुद फरमाया के मैं पच्चीस साल तक ईराक के वीरानों और जंगलों में फिरता रहा हूँ। और चालीस साल तक सुबह की नमाज़ ईशा के वुज़ु से पढ़ी है और पन्द्रह साल तक ईशा की नमाज़ पढ़ कर एक टाँग पर खड़े होकर सुबह तक कुरआने हकीम खत्म करता हुँ। मैंने बसाअवकान तीन से चालीस दिन तक बग़ैर कुछ खाए पिये गुजारे हैं।...✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 55 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

  *↳   फाके में मजीद सब्र का वाकेया  ↲*


▣  ❥  अब्दुल्लाह सल्मी बयान करते हैं के हज़रते गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने मुझे अपना एक वाकया इस तरह सुनाया के जिस वक्त में शहर के एक मोहल्ले कतबिया शरकी में मुकीम था तो मेरे ऊपर चन्द यौम ऐसे गुज़रे के ना तो मेरे पास खाने की कोई चीज़ थी और ना कुछ खरीदने की इसतताअत। उसी हालत में एक शख्स अचानक मेरे हाथ में काग़ज़ की बंधी हुई पुड़िया दे कर चल दिया और मैं उसके अन्दर बंधी हुई रकम से हलवा परौठा खरीद कर मस्जिद में पहुंच गया और किबलारू होकर उस फिक्र में गर्क हो गया के उसको खाऊँ या ना खाऊँ। उसी हालत में मस्जिद की दीवार में रखे हुए कागज पर मेरी नजर पड़ी तो मैंने उठ कर उसको पढ़ा तो उसमें ये लिखा हुआ था के " हम ने कमज़ोर मोमिनीन के लिये रिस्क की ख्वाहिश पैदा की ताके वो बन्दगी के लिए इसके जरिये कुव्वत हासिल कर सकें। " आप फरमाते हैं के उस तहरीर को देखकर मैंने अपना रूमाल उठाया और खाना वहीं छोड़ कर दो रकअत नमाज़ अदा कर के मस्जिद से निकल आया।..✍️ *( कलायद - उल - जवाहर )*

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 55 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

  *↳  हजरते गौसे आजम रादिअल्लाहु तआला अन्हु का मुजाहेदह  ↲*

▣  ❥  शेख अबुअल सऊद अहमद बिन अबी बकर हरीमी का बयान है के मैंने हज़रत सैय्यदुना शेख अब्दुल कादिर रादिअल्लाहु तआला अन्हु को फरमाते सुना के मैं पच्चीस बरस तक ईराक के जंगलों और वीरानों में घूमता रहा। ना मैं खल्क को पहचानता था और ना लोग मुझे जानते थे। मर्दाने गैब और जिन्नात के गिरोह मेरे पास आते थे मैं उन्हें अल्लाह का रास्ता बताता था। पहले पहल जब मैं ईराक में दाखिल हुआ था तो खिज्र अलैहिस्सलाम मुझ से मिले। और कहने लगे केमेरी बात पर अमल करना। फिर मुझे एक जगह बैठने का इशारा कर के गायब हो गए। तीन साल तक हर साल एक बार आते और मुझे कह जाते के अपनी जगह पर रहना यहाँ तक के मैं वापस आऊँ। उस दौरान दुनिया की ख्वाहिशात और जेबो जीनत की अशिया कई कई सुरत में मेरे पास आती मगर अल्लाह तआला ने उनकी तरफ से मुझे बचाए रखा!...✍️


*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 55-56 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

  *↳  हजरते गौसे आजम रादिअल्लाहु तआला अन्हु का मुजाहेदह  ↲*


▣  ❥  एक दफा मैं सख्त सर्दी के अय्याम में एवाने किसरा में सो रहा था के मुझे एहतलाम हो गया। मैं उठ कर दरया पर गया और गुस्ल किया। फिर आकर सोया तो दोबारा एहतलाम हो गया। अलगर्ज़ उस रात चलीस बार मुझे एहतलाम हुआ और चालीस बार ही मैंने दरया पर तहारत की। आखिर में नींद के डर से एवान के ऊपर चढ़ गया। कई बरस तक मैं कुर्ख के वीरानों में कुछ खाए पीये बगैर मुकीम रहा। उस दौरान मैं कव्यते ला यमूत के तौर पर बरवी नाम घास पर गुज़ारा करता रहा।...✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 56 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

  *↳  हजरते गौसे आजम रादिअल्लाहु तआला अन्हु का मुजाहेदह  ↲*


▣  ❥  उस दौरान मैं कव्यते ला यमूत के तौर पर बरवी नाम घास पर गुज़ारा करता रहा। उन दिना हर साल मेरे पास एक शख्स ऊनी ज़ुबह लाया करता था। मैने हज़ार तरीकों में तुम्हारी दुनिया से राहत हासिल करने की काशिश की मगर उस वक्त मेरी पहचान ही गूंगा पन , बेवकूफी और दीवानी थी। मैं कांटों में नंगे पांऊ चला करता था। जिस राह से मुझे डराया जाता में हमेशा वही राह इख्तियार करता। मेरा नफ्स अपने इरादों में कभी मुझ पर गालिब ना हुआ और ना ही कभी किसी दुनयावी जीनत ने मुझे अपनी तरफ खींचा रावी ने अर्ज की के जब आप छोटे थे तब भी ? आपने फरमाया हाँ तब भी। *( खुलासात - उल - मफाखिर )* ...✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 57 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

  *↳  दश्त नूरदी का अजीब माजरा  ↲*


▣  ❥   एक मर्तबा आपने फरमाया के मुजाहेदात व रियाजात के आगाज़ में मेरी दश्त नूरदी का अजीब माजरा था। कई दफा में अपने आप से बेखबर हो जाता था और कुछ मालुल नहीं होता था , के कहाँ फिर रहा हूँ। जब होश आता तो अपने आपको किसी दूर दराज़ जगह पर पाता।

▣  ❥   एक दफा बगदाद के करीब एक सहरा में मुझ पर इसी किस्म की कैफियत तारी हुई और में बेखबरी के आलम में एक अर्से तक तेज़ दौड़ता रहा। जब होश में आया तो अपने आप को नवाह शस्त्र में पाया जो बगदाद से (12) बारह दिन की मुसाफत पर है। मैं अपनी हालत पर तअन्जुब कर रहा था के एक औरत मेरे पास से गुज़री और कहने लगी के तुम शेख अब्दुल कादिर होकर अपनी हालत पर मुताज्जिब हो।...✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 57 📚*

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   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

  *↳  हजरते खिज्र अलैहिस्सलाम से मुलाकात  ↲*


▣  ❥  हज़रते सय्यदना अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने एक मर्तबा फरमाया के जब पहले पहल मैंने ईराक के बयाबानों में कदम रखा तो मेरी मुलाकात एक नूरानी सूरत शख्स से हुई जिसे मैंने पहले कभी नहीं देखा था उस शख्स में एक अजीब तरह की कशिश थी और मेरी फिरासते बातिनी कहती थी के ये शख्स रिजालूल गैब से है।

▣  ❥  उस शख्स ने मुझे कहा के क्या तू मेरे साथ रहना चाहता है ? मैंने हाँ में जवाब दिया। तो उस शख्स ने कहा के फिर अहेद करो के मेरी मुखालफत नहीं करोगे और जो मैं कहूंगा उस पर अमल करोगे। यानी हर मामले में बिला सोचे समझे मेरी इताअत करोगे। मैंने कहा बहेतर ! मैं तुम्हारी मुखालफत ना करने और तुम्हारा कहना मानने का अहेद करता हूँ।...✍️

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   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

  *↳  हजरते खिज्र अलैहिस्सलाम से मुलाकात  ↲*


▣  ❥  हज़रते सय्यदना अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने कहा में अहेद करता हूँ।

▣  ❥  अब उस शख्स ने कहा के अच्छा तो फिर उसी जगह बैठा रह जब तक मैं तुम्हारे पास वापस ना आँऊ तुम यहाँ से कहीं ना जाना। ये कहकर वो चला गया और मैं वहाँ बैठ कर इबादते इलाही में मश्गूल हो गया हत्ता के एक बरस गुज़र गया। अब वो शख्स फिर आया। एक साथ मेरे पास बैठा फिर उठ खड़ा हुआ और कहा के जब तक मैं फिर तेरे पास ना आँऊ यहीं बैठा रह। ये कह कर वो चला गया और मैं वहीं बैठ गया। एक साल बाद वो फिर आया , थोड़ी देर बैठा और फिर मुझे वहीं बैठे रहने की तलकीन कर के चला गया। जब तीसरा बरस भी गुज़र गया तो वो शख्स फिर नमूदार हुआ उसके पास रोटी और दूध था।...✍️

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

  *↳  हजरते खिज्र अलैहिस्सलाम से मुलाकात  ↲*


▣  ❥  जब तीसरा बरस भी गुज़र गया तो वो शख्स फिर नमूदार हुआ उसके पास रोटी और दूध था अब उसने कहा के तुम तो अपने वादे के बड़े पक्के निकले मैं तुझे दाद देता हूँ। मेरा नाम ख़िज़्र अलैहिस्लाम है , मुझे हुक्म हुआ है के रोटी और दूध तेरे साथ खाँऊ। चुनांचे हम दोनों ने मिल कर रोटी और दूध खाया। जिन लोगों में आपने ये वाकेया बयान किया उन्होंने आप से पूछा के आप उन तीन सालों में क्या खाते थे ? तो इस पर आपने फरमाया के मैं मुबह चीजों से अपनी गुज़र अवकात कर लेता था।...✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 58 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          *↳   शयातीन  से  जंग   ↲*


▣  ❥  शेख आरिफ अबु उमर व हरीफ़ानी का बयान है के मैंने हज़रत सय्यदी अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु से सुना। आप ने फरमाया के में रात दिन वीरानों में मुकीम रहता और बगदाद में मुसकिल रिहाईश इज़ियार नहीं करता था।

▣  ❥  शयातीन खोफनाक सूरतों में मुख्तलिफ किस्म के हथियार लेकर मेरे पास आते। ये गिरोह दर गिरोह प्यादा और सवार होते। मेरे साथ मुकाबला करते और मुझ पर आग के शोले फ़ेकते। मैं अपने दिल में इत्मीनान और सकुन महसूस करता। किसी किस्म की बेचैनी ना होती। मुझे अपने बातिन से आवाज़ आती ऐ अब्दुल कादिर ! हम ने तुझे साबित कदम कर दिया है और अपनी इम्दाद तेरे शामिल हाल कर दी है। ये लोग तेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। मेरे उठने की देर होती के ये सारे शयातीन दायें बायें भाग जाते।..✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 58-59 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          *↳   शयातीन  से  जंग   ↲*


▣  ❥  शयातीन दायें बायें भाग जाते अल्बत्ता एक शयातीन अकेला मेरे पास आता और मुझे कहता यहाँ से चले जाओ वरना मैं ये कर दूंगा वो कर दुंगा अलगर्ज वो डराता। मैं उसे तमाचा मारता और वो भाग जाता। मैं ला होला वलाक़व्वता इल्लाबिल्लाहिल अलीयिलअज़ीम पढ़ता तो वो मेरे सामने जल जाता। एक दफा एक निहायत ही बदसूरत शख्स मेरे पास आया उससे बदबू आ रही थी और कहने लगा मैं इब्लीस हूँ तेरी खिदमत के लिये तेरे पास आया हूँ। तूने मुझे धोका दिया और मेरे चेले चांटों को आजिज कर दिया। मैंने उसे कहा तु चला जा मगर उसने मेरी बात ना मानी। दरें असना ऊपर से एक हाथ नमूदार हुआ जो उसके भेजे पर पड़ा और वो ज़मीन में धंस गया।..✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 58-59 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          *↳   शयातीन  से  जंग   ↲*


▣  ❥  फिर आग का शोला लिए ही मेरे पास आया और मेरा मुकाबला करने लगा। अचानक एक मर्द ढाटा लगाए हुए कमीयत रंग के घोड़े पर सवार मेरे पास आया उसने मुझे एक तलवार दी और ऐड़ियों के बल पर पीछे हट गया। अब के मैंने उस शैतान को देखा को दूर बैठा रो रहा है और अपने सर पर खाक डाल रहा है और साथ ही कहता है के ऐ अब्दुल कादिर । मैं तुझसे ना उम्मीद हो चका हूँ। मैंने कहा अव्वलीन ! दुर हो। मैं हमेशा तुझ से होशियार रहता हू। उसने कहा मेरे लिये ये ज्यादा सन्जी है। फिर मुझ पर मुनकशिफ हुआ के मेरे इर्दगिर्द फंसाने के लिए कई रस्सियां और जाल हैं। मैंने पूछा ये क्या है ? बताया गया के ये दुनिया के जाल हैं जो तुम जैसे लोगों को फंसाने के लिए बिछाए जाते हैं। मैं एक साल तक उनके पीछे लगा रहा। यहाँ तक के वो टुकड़े टुकड़े हो गया।..✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 59-60 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          *↳   शयातीन  से  जंग   ↲*


▣  ❥  यहाँ तक के वो टुकड़े टुकड़े हो गया। फिर मैंने देखा के कई किस्म की रस्सियाँ हैं जो मेरे साथ वाबस्ता हो रही हैं। मैंने पूछा ये क्या है ? मुझे बताया गया के ये लोगों के असवाब हैं जो तुझ से वाबस्ता हैं। मैंने साल भर उस काम में तवज्जुह दी। वो सारी रस्सियाँ कट कटा गई। फिर मुझे अपने यातिन का कशफ अता किया गया। मैंने देखा के मेरा दिल कई अलायक से मुताल्लिक हो रहा है। मैंने पूछा ये क्या है मुझे बताया गया के ये तेरे इरादे और इख्तियारात हैं। मैंने साल भर उनके सिलसिले में मुजाहेदह किया तो वो सब खत्म हो गए और मेरा कल्ब उनसे आजाद हो गया। उसके बाद मुझे अपने नफ्स का कशफ हुआ तो मैंने देखा के उसकी बीमारियां बाक़ी हैं और उसकी हवादेहवस जिन्दा है और उसका शैतान बागी और सरकश है  एक बरस तक मैंने उस सिलसिले में कोशिश की तो नफ्स की बीमारियाँ जायल हो गई।..✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 60 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          *↳   शयातीन  से  जंग   ↲*


▣  ❥  ख्वाहिशात मर गई और उसका शैतान मतीअ हो गया। अब सारा अम्र अल्लाह के लिए हो गया और मैं तनहा बाकी रह गया सारा वजूद मेरे पीछे है और मेरी रसाई अभी तक मतलूब तक नहीं हुई। उसके बाद में तवक्कुल के दरवाजे पर गया ताके उस राह से अपने मतलब का पता हासिल करू। वहाँ मैंने हुजूम देखा। तो आगे गुज़र गया । फिर में शुक्र के दरवाजे पर गया केशायद यहाँ से मेहबूब का कोई निशान मिले तो यहाँ भी भीड़ थी। अब मैं बाबे गना की तरफ चला मगर वहाँ भी अज्दहाम था। उस के बाद में कुर्ब की दहलीज़ पर पहुंचा , के शायद यहाँ मेहबुबे हक़ीक़ी का वस्ल मिले मगर वही सूरत। फिर मैं बाबे मुशाहेदा पर गया ताके यहाँ से अपना मतलूब हासिल करूं मगर हुजूम की वजह से ना उम्मीदी हुई बिलआखिर मैं फिर फिरा कर बाबे फिक्र पर पहुंचा। हुस्ने इत्तिफाक से वो खाली था। चुनांचे उस राह से मैं अपने मतलूब के पास पहुँच गया। यहाँ मैंने हर वो खुशी देखी जो छोड़ आया था। यहाँ मेरे लिए गैबी ख़ज़ानों के दरवाजे खोल दिये गए। मुझे अज़ीम एजाज़ से सरफ़राज़ किया गया। गनाए सरमुदी और आज़ादीऐ कामिल की नेमतें अता की गई। अपने बका के तसब्बर को मिटा दिया गया। बशरी सिफात मनसूख हो गई और वजूद हकीकी अता हुआ। *( खुलासात - उल - मफ़ाख़िर )* ।..✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 60-61 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          *↳   शयातीन  से  जंग   ↲*


▣  ❥  *मुख्तलिफ बातों का मुशाहेदा* शेख उस्मान हेरी रादिअल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं के हज़रत शेख अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने मुझे बताया के मुजाहेदात के दौरान मुझ पर अजीब व गरीब केफ़ियात तारी हुई। कभी मुझे मेरे बातिन और नफ्स का मुशाहेदा कराया गया और कभी मुझे फिक्रो गना और शुक्रो तवक्कुल के दरवाजों से गुज़ारा गया जब मुझे बातिन का मुशाहेदा कराया गया तो उसको बहुत से अलायक से मुलव्विस पाया। मुझे बताया गया के ये मेरे इख्तियारात और इरादे हैं। मैंने एक साल तक उनके खिलाफ मुजाहेदह किया। हत्ता के ये सब अलायक मुनकतओ हो गए। फिर मुझे अपने नफ्स का मुशाहेदा कराया गया।  मैंने उसमें भी कई अमराज़ देखे। साल भर तक मैंने उनके खिलाफ जंग की हत्ता के ये अमराज़ जड़ से उखड़ गए। और मेरा नफ्स ताबऐ इलाही हो गया।..✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 61 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

         *↳ मुख्तलिफ बातों का मुशाहेदा ↲*

▣  ❥   उसके बाद में तवक्कुल के दरवाजे पर आया तो वहाँ बहुत बड़ा हुजूम देखा। मैं उस हजम को चीर कर निकल गया फिर शुक्र के दरवाजे पर आया तो वहां भी यही हाल था। मैं उसमें से भी गुज़र गया। फिर गना व मुशाहेदे के दरवाज़ों पर आया तो उन्हें बिलकुल खाली पाया। अन्दर दाखिल हुआ तो वहाँ रूहानी खज़ायन की इन्तिहा नहीं थी। उनमें मुझे हकीकी गना , इज्ज़त और मुसर्रत मयस्सर हुई मेरी हस्ती में इन्किलाब पैदा हो गया और मुझे वजूद सानी अता हुआ।

▣  ❥   एक दफा मुझ पर एक अजीब वजदानी केफ़ियत तारी हुई। मैंने ये इख्तियार एक होलनाक चीख मारी। कुछ सहराई रहजन मेरे करीब खेमाजन थे। वो घबरा गए के शायद हकूमत की फौज आ गई है। भागते हुए मेरे पास से गुज़रे तो मुझे बेहोश पड़ा पाया। कहने लगे। ओहो ! ये तो अब्दुल कादिर दीवाना है उस अल्लाह के बन्दे ने हमें ख्वाह मा ख्वाह डरा दिया। *( कलायद - उल - जवाहर )..✍️


*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 61 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          *↳ बुर्ज अजमी में ग्यारह साल ↲*

▣  ❥   एक मर्तबा हज़रत सैय्यद अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने खुत्बा देते हुए फरमाया के मैं ग्यारह साल तक बुर्ज में मुकीम रहा हूँ और मेरे उस तवील कयाम के बाअस ही लोग उसे अजमी बुर्ज कहने लगे। मैं उस बुर्ज में हर वक्त याद इलाही में मश्गूल रहता और मैंने खुदावंद तआला से अहेद किया था के जब तक वो लुकमा मेरे मुंह में नहीं देगा मैं नहीं खाऊंगा और जब तक खुद ना पिलायेगा नहीं पियूँगा। एक बार चालीस रोज तक मैंने कुछ नहीं खाया पिया और चालीस दिन के बाद एक शख्स आया और थोड़ा सा खाना मेरे पास रख कर चला गया। करीब था के मेरा नफ्स उस पर गिरे ( मैं वो खाना खा लू ) क्योंके ना काबिले बर्दाश्त भूक थी।..✍️


*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 62 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          *↳  बुर्ज अजमी में ग्यारह साल ↲*

▣  ❥   मैंने कहा के वल्लाह ! मैंने खुदा से जो अहेद किया है मैं उससे नहीं फिरूंगा। उस वक़्त मैंने सुना के मेरे अन्दर से कोई फरयाद कर रहा है और बुलंद आवाज़ से कह रहा है *अलजूअ ! अलजूअ !* ( भूक ! भूक ! ) उसी वक़्त शेख अबु सईद मखरूमी रादिअल्लाहु तआला अन्हु मेरे पास तशरीफ लाए और उन्होंने ये आवाज सुनी और फरमाया ऐ अब्दुल कादिर ! ये कैसी आवाज़ है , मैंने कहा ये नफ्स का कल्क और इज्तेराब है मगर रूह मुशाहेदाए हक में अपने इक्रार पर है। उन्होंने कहा के हमारे घर चलो। ये कह कर वो चले गए और मैं ने दिल में कहा के मैं यहाँ से बाहर नहीं जाऊँगा। इत्तिफाकन उसी वक़्त अबु - अल - अब्बास ख़िज़्र अलेहिस्सलाम तशरीफ़ लाए और फरमाया के उठो और अबु सईदर रादिअल्लाहु तआला अन्हु के पास जाओ। चुनाँचे मैंने तामील इर्शाद की। जब मैं उनके मकान पर पहुँचा तो शेख अबु सईद रादिअल्लाहु तआला अन्हु मेरे इन्तेज़ार में दरदाजे पर खड़े थे। फरमाने लगे ऐ अब्दुल कादिर ! क्या मेरा कहना काफी ना था के ख़िज़्र अलैहिस्सलाम के कहने की ज़रूरत पड़ी। ये कह कर मुझे घर के अन्दर ले गए और अपने हाथ से मुझे रोटी खिलाई हत्ता के मैं खूब सेर हो गया। *( नफहात - उल - अनस )..✍️


*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 63 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          *↳  शैतान के फरैब से बचना ↲*

▣  ❥   आपके साहिबजादे शेख ज्याउद्दीन अबु नम्र मूसा फरमाते हैं के मेरे वालिद बुज़र्गवार हज़रत शैख अब्दुल कादिर जीलानीरादिअल्लाहु तआला अन्हु ने मुझे बताया के एक दफा मैं एक बे आबो गयाह बयाबान में फिर रहा था। प्यास से ज़बान पर कांटे पड़े हुए थे। उस वक़्त मैंने देखा के बादल का एक टुकड़ा मेरे सर पर नमूदार हुआ और उसमें से टप टप बूंदें गिरने लगी मुझे मालूम हो गया के ये बाराने रहमत है। चुनाँचे बारिश के उस पानी से मैंने अपनी प्यास बुझाई और अल्लाह तआला का शुक्र अदा किया। फिर मैंने देखा के एक अजीमुश्शान रोशनी नमूदार हुई जिस से आसमान के किनारे रोशन हो गए। उसमें एक सूरत नमूदार हुई और मुझ से मुखातिब होकर कहा ऐ अब्दुल कादिर मैं तेरा रब हूँ मैंने तेरे लिये सब चीजें हलाल कर दी हैं।..✍️


*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 63-64 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          *↳  शैतान के फरैब से बचना ↲*

▣  ❥  मैंने आऊज़ बिल्लाही मिनश्शैतानिरजीम पढ़ कर उसे धत्कार दिया। वो रोशनी फौरन जलमत से बदल गई और वो सूरत धुंआ बन गई। उस धुंए से मैंने ये आवाज़ सुनी , ऐ अब्दुल कादिर ! खुदा ने तुम को तुम्हारे इल्मो तफक्का की बदोलत मेरे मन से बचा लिया वरना मैं अपने इस मक्र से सत्तर सूफिया को गुमराह कर चुका हूँ। मैंने कहा बेशक मेरे मौला करीम का करम है जो मेरे शामिले हाल है। सैय्यदुना गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु से पूछा गया। या हज़रत ! आपने कैसे जाना के वो शैतान है ? फरमाया उसके ये कहने से के ऐ अब्दुल कादिर ! मैंने हराम चीजें तेरे लिए हलाल कर दीं । क्योंके अल्लाह तआला फहश बातों का हुक्म नहीं देता। *( कलायद - उल - जवाहर )..✍️


*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 64 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          *↳  एक आरिफा का वाकेया  ↲*

▣  ❥  अज़कार - उल - अबरार में रिवायत है के एक दफा हज़रत सैय्यद अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया के एक मर्तबा में मक्का मुर्कमा के सफर पर रवाना होकर जब मीनार उम्मुलकरून के पास पहुंचा तो मेरी मुलाकात शैख अदी बिन मुसाफिर से हुई। ( शैख अदी बिन मुसाफिर अमवी रादिअल्लाहु तआला अन्हु उस दौर के मशहूर औलिया में से थे। उनकी मुतअद्दिद करामात मशहर हैं। 467 हिज़री में शाम के एक गाँव बैतफार में पैदा हुए। तवील मुजाहेदात के बाद कोहे हिकार में गोशा नशीन हो गए। नब्बे साल की उम्र में 557 हिज़री में वअसल बहक हुए )..✍️


*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 64 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          *↳  एक आरिफा का वाकेया  ↲*

▣  ❥  आपसे मुलाकात के वक्त आप जवानी के आलम में थे। उन्होंने आप से पूछा के कहाँ जाने का इरादा है ? आपने जवाब में कहा के हज बैतुल्लाह के लिए मक्का मुकर्रमा जा रहा हूँ। उन्होंने कहा के क्या मैं भी उस मुकद्दस सफर में आपकी हमराही इख्तियार कर सकता हूँ। आपने कहा हाँ आप मेरे साथ चलें। आखिर हम दोनों इक्ठे सफर करने लगे। कुछ दूर गए थे के हमें एक नकाब पोश हबशीया लड़की मिली। वो मेरे सामने खड़ी हो गई और गोर से मुझे देखते हुए कहने लगी ऐ खूबरू नोजवान ! तू कहाँ का रहने वाला है मैंने कहा अर्जे गीलान का बाशिन्दा हूं जो बिलादे ईरान में है । कहने लगी ऐ मर्दे खुदा ! आज तूने मुझे बहुत थकाया है । मैंने कहा , क्यों ? उसने कहा के मैं हवश में थी के मुझे हालते कश्फी में मालूम हुआ के अल्लाह तआला ने तेरे दिल को अपने नूर से भर दिया है और अपने फफ्लो करम से तुझे वो कुछ अता किया है जो किसी दूसरे ( वलीअल्लाह ) को नहीं दिया।.✍️


*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 65 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

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          *↳  एक आरिफा का वाकेया  ↲*

▣  ❥  उस मुशाहेदा के बाद मेरे दिल ने कहा के तेरी ज़ियारत करू। चुनांचे तेरी तलाश ने मुझे थका दिया है। अब मैंने तुझे देखा है तो जी चाहता है के आज तुम्हारे साथ रहूं और शाम को रोज़ा तुम्हारे साथ इफ्तार करू। ये बात कह कर वो रास्ते के एक तरफ चलने लगी और हम दूसरी तरफ चलने लगे। जब शाम हुई तो हमारे पास आसमान से एक तबाक नाज़िल हुआ। उस तबाक में छ : रोटियाँ , सिको और सब्ज़ी थी। ये देखकर उस हबशिया ने कहाः

▣  ❥  अल्हमदुलिल्लाहील्लज़ी अक्रमनी व अकरम जीफी अन्नाहु लज़ालिका अहलल फी कुल्ली लेलातिन युनज़्जिलु अला रगीफ़ानी व लैलातुन सित्तातू इक्रामनल्लीअम्निया फ़ी अल्लाह का शुक्र है जिसने मेरी और मेरे मेहमान की इज्जत की। मेरे लिए हर रात दो रोटियाँ उतरा करती हैं। आज मेरे मेहमानों की इज्ज़त के लिए छ : नाज़िल हुई )...✍️


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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          *↳  एक आरिफा का वाकेया  ↲*

▣  ❥   चुनांचे हम ने दो रोटियां उस सिरके और सब्जी के साथ खा ली। फिर हम पर तीन कुंजे पानी के नाजिल हुए उनका पानी ऐसा लज़ीज़ और शीरीं था के ज़मीन के पानी को उससे कुछ निसबत ही ना थी। फिर वो आइफा हबशिया हम से रूखसत हो गई और हम मंज़िलों पे मंजिलें तय करते मक्का मोअज्ज़मा जा पहुंचे। एक दिन हम तवाफ कर रहे थे के अदी पर अनवारे इलाही का नुज़ल हुआ वो गश खा कर गिर पड़े और ऐसे बेहोश हुए के उन पर मुर्दा का गुमान होता था। इतने में मैं ने देखा के वही आरंफा हवशिया शेख अदी रादिअल्लाहु तआला अन्हु के सर पर खड़ी है और उन्हें हिला हिला कर कह रही है। " जिस अल्लाह ने तुझे मारा है वही तुझे ज़िन्दा करेगा। पाक है वो ज़ात के जिस के नूरे जलाल के सामने किसी शै के ठहरने की मजाल नहीं है सिवाये उसके के वो खुद उसे कायम रखे और कायनात उसके ज़हूरे सिफात के वक़्त कायम नहीं रहती बजुज़ उसके के वो मदद करे।...✍️


*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 65 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          *↳  एक आरिफा का वाकेया  ↲*

▣  ❥   उस रब्बे जलजलाल के अनवारे मुकद्दस ने जेहनो दिमाग को मनजमिद कर दिया है और अहले अक्लो इल्म की आँखें चुन्धिया दी हैं। " आर्रफा हबशिया के मुंह से ये अलफाज़ निकलते ही हज़रत अदी रादिअल्लाहु तआला अन्हु को होश आ गया और वो उठ खड़े हुए। फिर अल्लाह तआला ने हालते तवाफ में मुझ पर अपने अनवारे मुकद्दस नाज़िल फरमाए और मैंने हातिफे गैबी को ये कहते हुए सुनाः - " ऐ अब्दुल कादिर ! तजरीद ज़ाहिर तर्क कर और तफरीद तोहीद और तजरीद तफरीद इख्तियार कर। हमतुझे अपने निशानात से अजायबात दिखाएंगे। पस अपनी मुराद को हमारी मुराद से मत मिला। साबित कदम रहो , मेरी रज़ा के सिवा किसी की रजा ना मांग तेरे लिये हमारा शहूदे दायमी है खल्के खुदा की फेज़ रसानी के लिए बैठ जा। क्योंके हमारे कुछ खास बन्दे हैं जिनहें हम तेरे वसीले से अपना मुकर्रब बनायेंगे।..✍️


*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 66-67 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

          *↳  एक आरिफा का वाकेया  ↲*

▣  ❥   उस वक़्त मुझे उस आर्रफा हबशिया की आवाज़ आई । कह रही थी। " ऐ जवाने सालेह ! आज तेरा अजीब रूत्बा है मैं देखती हूँ के तेरे सर पर एक नूरानी शामियाना है और उसके इर्दगिर्द आसमान तक फरिश्तों का हुजूम है और तमाम औलिया अल्लाह की नजरें तुझ पर लगी हुई हैं। " ये कह कर वो चली गई और उसके बाद मैंने उसे कभी नहीं देखा। ये आरंफा हवशिया कौन थी ? उसका मुताल्ल्कि तमाम सीरत निगार ख़ामोश हैं । इतना पता ज़रूर चलता है के ये आर्रफा खास - उल - खास मुकर्रबीने इलाही से थी और सय्यदना गोसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु के शोके दीद ने उसे हज़ारहा मील के सफर पर मजबूर कर दिया था।..✍️


*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 67 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

                  *↳  मजाहेदों में सब्र  ↲*

▣  ❥  शेख अबु अब्दुल्लाह नजारा रादिअल्लाहु तआला अन्हु बयान करते है। के हज़रत शेख ने मुझ से अपने वाक़यात इस तरह बयान फरमाए के मैं जिस कद्र मुशक्कतें बर्दाश्त करता था अगर वो किसी पहाड़ पर डाल दी जायें तो वो भी पारा पारा हो जाए । और जब वो मुशक्कतें मेरी कव्वते वर्दाश्त से बाहर हो जाती तो मैं ज़मीन पर लेट कर कहता के " हर तंगी के साथ आसानी है बेशक हर तंगी के साथ आसानी है। " ये कहकर अपने सर को ज़मीन से उठा लेता तो मेरी कैफियत बदली होती और मुझे सकून मिल जाता था। आपने फरमाया के जब मैं इल्मे फ़िक़ह हासिल कररहा था तो शहर के बजाये सहराओं और वीरानों में रातें गुज़ारता था।..✍️


*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 67-68 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

                  *↳  मजाहेदों में सब्र  ↲*

▣  ❥  आपने फरमाया के जब मैं इल्मे फ़िक़ह हासिल कर रहा था तो शहर के बजाये सहराओं और वीरानों में रातें गुज़ारता था । ऊनी लिबास पहन कर नंगे पाँऊ कांटों पर चला करता था और नहर के किनारे लगे हुए दरख्तों के पत्तों और घास फूस से अपना पेट भर लिया करता। गर्ज ये के मेरे मुजाहेदात में कोई सख्त से सख्त चीज़ भी हायल ना होती जिससे मैं दहशत ज़दा हो जाता। इस तरह शब व रोज़ मेरे ऊपर गुज़रते और मैं चीख़ मार कर मुंह के बल गिरता यहां के लोग मुझे दीवाना और मरीज़ समझ कर शिफाखानों में पहुँचा देते। कभी मेरी ये हालत होती जैसे के मुर्दा हो गया हूँ। और नहलाने वाले मुझे गुस्ल देने आ चुके हैं लेकिन फिर ये केफ़ियत भी मुझ से दूर कर जाती!..✍️


*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 68 📚*

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     ❝ सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

                  *↳  इबादत का मामूल ↲*

▣  ❥  शेख अबु - अल - हसन अली करशी और फकीहा मोहम्मद बिन अबादा अनसारी का बयान है के (553 हिज़री) में हमारी मौजूदगी में सय्यदी हज़रत शेख अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु की खिदमत में अर्ज किया गया के मुजाहेदे के आगाज़ और अंजाम में आप को जो जो हालात दरपेश आए उनमें से कुछ हमें बयान फरमायें ताके हम आप की पैरवी कर सकें। आपने ये अश्आ र पढ़े . .
🌹 *अना रागिब फीमन तगरब वसाह व मनासिब लफ़्ती तलातिफ लुत्फा*

▣  ❥  ( मैं तो उसका जोया हूँ जो नादिर ओसाफ का मालिक है और मेरी निसबत उस शख्स से है जो लुत्फो करम का मालिक है।...✍️


*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 68 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

                  *↳  इबादत का मामूल ↲*

▣  ❥  आपने ये अश्आ र पढ़े  *व मआरिज़ - उल - अशाक फी असरारहुम मनकुल मअनी लम यसअनी कश्फी*

▣  ❥  ( मैं उश्शाक के साथ उनके असरारो रमूज में हर मअनी में मद्दे मुकाबिल हूँ मगर मुझे उनके बयान करने की ताब नहीं )

▣  ❥  *कद काना यसकुरनी मज़ाज शराबहु वलयौम यसहसीनी लदेही सरफनी*

▣  ❥  ( पहले तो मेहबूब की पानी मिली हुई शराब भी मुझे मदहोश कर देती थी मगर आज उसके पास रह कर भी मैं बाहोश हूँ )

▣  ❥  *वा गैब अन रशदी बादल नजूरत वलयौमे असतजलीलह सुम्मा अज्फह*

▣  ❥  ( इससे कब्ल उसकी एक निगाह से मैं होशो हवास खो बैठता था और अब मैं उसका जलवा हासिल करता हूँ और फिर उसे रूखसत भी करता हूँ!..✍️


*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 68-69 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

              *↳  इबादत का मामूल ↲*


▣  ❥  उस पर लोगों ने अर्ज किया हुज़ूर ! हम आपकी तरह रोजे रखते हैं , नमाजें पढ़ते हैं और आपकी तरह इबादत में जद्दोजहेद करते हैं मगर हमें आपके अहवाल का कतरा भी नसीब नहीं होता। आपने फरमाया के तुमने आमाल में तो मुझ से बराबरी कर ली क्या इनायते इलाही में भी बराबरी करना चाहते हो। बख़ुदा मैंने उस वक़्त तक नहीं खाया जब तक मुझे अल्लाह ने अपने हक की कसम देकर खाने के लिये नहीं फरमाया। मैंने उस वक़्त तक नहीं पिया जब तक मुझे अपनी इज्ज़त की कसम देकर पीने का अम्र नहीं फरमाया गया और मैंने कोई काम नहीं किया यहाँ तक के मुझे उसका हुक्म नहीं हुआ। अब नफ्स का बयान है के शेख अब्दुर्रहीम असकरी ये अश्आर बसरत पढ़ा करते थे।..✍️ *( खुलासात - उल - मफाखिर )*

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 69 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

   *↳ ख़िरक़हऐ ख़िलाफ़त व जानशीनी ↲*


▣  ❥  हज़रत सैय्यद अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने तरीक़त की तालीम और मनाज़िले सलूक हज़रत हम्माद बिन मुस्लिम दबास रादिअल्लाहु तआला अन्हु की जेरे निगरानी तय की। उनके अलावा आपने काज़ी हज़रत अबु सईद मुबारक मखरूमी रादिअल्लाहु तआला अन्हु से भी इक्तिसाबे फेज़ किया। ये दोनों बुजर्ग अपने दौर के औलियाऐ कामिलीन से थे ल। आपने उन दोनों बुजुर्गों की सोहबत और नज़रे इनायत से ये शुमार फेज़ व बर्कात हासिल किये मगर अभी तक आपने बाज़ाब्ता किसी के दस्ते हक परस्त पर बेत ना की थी अगर आपको पूरी तरह तज़कियाऐ नफ्स और इल्म बातिन हासिल हो चुका था।...✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 70 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

   *↳ ख़िरक़हऐ ख़िलाफ़त व जानशीनी ↲*


▣  ❥  *बेअत* आख़िर आपने सूफिया के दस्तूर के मुताबिक़ ज़ाहिरी तौर पर बेअत होने का फैसला किया। चुनांचे मनशाऐ इलाही के मुताबिक आप हज़रत काजी अबु सईद मुबारक महकमी रादिअल्लाहु तआला अन्हु की खिदमत में हाज़िर हुए और बेत करके उनके हल्काए इरादत में शामिल हो गए। शेख अब सईद मुबारका रादिअल्लाहु तआला अन्हु को अपने इस अज़ीम - उल - मरतबत मुरीद पर बेहद नाज़ था अल्लाह तआला ने खुद उन्हें उस शार्गिदे रशीद के मरतवे से आगाह कर दिया था। एक दिन हज़रते गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु उनके पास मुसाफिर खाने में बैठे थे। किसी काम के लिए उठ कर बाहर गए तो काजी अबु सईद मुबारका रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया : " उस जवान के कदम एक दिन तमाम औलिया अल्लाह की गर्दन पर होंगे और उस के ज़माने के तमाम औलिया उसके आगे इन्किसारी करेंगे।...✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 70 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

             *↳  ख़िरक़हऐ  खिलाफ़त  ↲*


▣  ❥  बयान किया जाता है के हज़रत काजी अबु सईद मुबारक मखरुमी रादिअल्लाहु तआला अन्हु नेजब आपको अपनी बेअंत में ले लिया तो उसके बाद आपको अपने हाथों से खाना खिलाया। हजरत सैय्यद अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु का इरशाद है के मेरे शेख तरीक़त जो लुकमा मेरे मुंह में डालते थे वो मेरे सीने को नरे मआरफ़त से भर देता था। फिर हजरत शेख अबु सईद मुबारका रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने आपको ख़रकहऐ विलायत पहनाया और फरमाया : " ऐ अब्दुल क़ादिर ! ये खिरकह जनाब सरदार कायनात रसूले मक़बूल ﷺ ने हज़रत अली रादिअल्लाहु तआला अन्हु को अता फरमाया उन्होंने ख्वाजा हसन बसरी रादिअल्लाहु तआला अन्हु को अता फरमाया। और उनके दस्त य दस्त मुझ तक पहुँचा। " ये खिरकह ज़ेबे तन कर के हज़रत गौसे आजम रादिअल्लाहु तआला अन्हु पर बैशअज़बैश अनवारे इलाही का नुजल हुआ।...✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 71 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

                 *↳  शज्रे  तरीकत  ↲*


▣  ❥  शेख जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने खरकाएं इरादत व जानशीनी अपने पीरो मुर्शिद आरिफ बिल्लाह शेख अबु सईद मखरूमी मुबारक महरूमी रादिअल्लाहु तआला अन्हु से हासिल किया और उन्होंने अपने शेख अबु - अल - हसन अली बिन यूसुफ - अल - कुर्शी अलहनकारी से और उन्होंने आरिफ बिल्लाह शेख अबु - अल - फरह तोसी से और उन्होंने शेख अबु बकर शिबली से और उन्होंने शेख अबु - अल - कासिम जुनैद बगदादी रादिअल्लाहु तआला अन्हु से और उन्होंने शेख सरी सक्ता से और उन्होंने शेख मअरूफ कुर्जी से और उन्होंने शेख दाऊद ताई से और उन्होंने शेख हबीब अजमी रादिअल्लाहु तआला अन्हु से और उन्होंने सय्यदना शेख हज़रत हसन बसरी रादिअल्लाहु तआला अन्हु से और उनको अमीर - उल - मोमिनीन सय्यदना अली मुर्तजा करमुल्लाहो वह-अल-करीम ने पहनाया था और अली मुर्तज़ा रादिअल्लाहु तआला अन्हु को सरकार दो जहाँ ﷺ ने ये ख़िरकहऐ मुबारका अता फरमाया था। इस तरह बारह वासतों के ज़रिये शेख जीलानी मेहबूबे सुबहानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु को वो ख़िरका इरादत हासिल हुआ।...✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 72 📚*

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   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

*↳  हज़रत अबु सईद मुबारक मखरुमी रादिअल्लाहु तआला अन्हु हसूले इल्म  ↲*


▣  ❥  आप की विलादत बा सआदत बगदाद शरीफ में हुई। आपका नाम नामी मुबारक इब्ने अली बिन हुसैन बिन बन्दार - उल - बगदादी अलमखरुमी है और कुनियत अबु सईद है आपने अपने वक़्त के मुमताज़ उल्मा व मशायख से उलूम दीनिया का इक्तिसाब फरमाया यहा तक के फ़िक़ह , हदीस और इल्म माकूलात व मानकूलात मे महारत ताम्मा हासिल फरमाई और हदीस शरीफ की रिवायत काजी अबीयअला और एक जमाअत अयम्मा से की और फिकह शेख अबी जाफ़र इब्ने अबी मूसा से पढ़ी।...✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 73 📚*

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   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

*↳  हज़रत अबु सईद मुबारक मखरुमी रादिअल्लाहु तआला अन्हु हसूले इल्म  ↲*


▣  ❥  *खिलाफत* आप मुरीदो ख़लीफ़ा हज़रत शेख इब्राहीम अबु - अल - हसन अली हकारी रादिअल्लाहु तआला अन्हु के हैं और आपके खिरकह मुबारक का शिजरा इस तरतीब से है।

▣  ❥  हज़रत शेख अबु सईद मुबारक मखरूमी रादिअल्लाहु तआला अन्हु  को ख़िरकह अता फरमाया हज़रत शेख इब्राहीम अबु - अल - हसन अली हकारी रादिअल्लाहु तआला अन्हु  ने और उनको शेख अबु - अल - फरह तरतोसी ने और उनको शेख अबु - अल - फ़ज़ल अब्दुल वाहिद बिन अब्दुल अज़ीज़ रादिअल्लाहु तआला अन्हु  ने और उनको शेख अबु बकर् शिबली रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने।...✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 73 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

*↳  हज़रत अबु सईद मुबारक मखरुमी रादिअल्लाहु तआला अन्हु हसूले इल्म  ↲*


▣  ❥  *आम हालात* सुल्तान - उल - औलिया बुरहान - उल असफिया कुत्बे आरफा , किबलाए सालकों , वाकिफ हकीकत , जामओ उलूमे मअरफ़त हज़रत शेख अबु सईद मुबारक मखरूमी रादिअल्लाहु तआला अन्हु , आप सिलसिला आलिया काद्रया रिजवया के (16) सोल्हवें शेख तरीक़त हैं। आप ओहदा क़ज़ा पर भी मामूर हुए फिर आपने उसको तर्क कर दिया।

▣  ❥  आप हमेशा यादे इलाही और इबादते मोला में मशरूफ रहते थे। आपकी तवज्जूह गैबी व मुआनकह में ये तासीर थी के जिस पर तवज्जूह खास डाल दी या जिससे मुआनकाह फरमा लिया तो वो दुनिया व माफीहा से बेखबर हो जाता था। हज़रत शेख अपने वक्त के मुमताज़ तरीन फकीहा और बुजुर्ग तरीन इमाम थे। और उलूमे जाहिरी व बातिनी के मुनवब्बजे थे आप इल्मे मुनाज़रा में महारते ताम्मा रखते थे।...✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 74 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

*↳  हज़रत अबु सईद मुबारक मखरुमी रादिअल्लाहु तआला अन्हु हसूले इल्म  ↲*


▣  ❥  *आम हालात* आप इल्मे मुनाज़रा में महारते ताम्मा रखते थे मज़ाहिय अरबआ में से हंबली मज़हब के मुकल्लिद और मुतब्बो थे। बाब - उल - अज़ज बगदाद शरीफ का तारीख साज़ मदरसा आप ही ने कायम फरमाया और उसको तामीर फरमाया और अपनी हयात ही में उसको हज़रत गौसीयत मआब के सपुर्द कर दिया था जिसमें आपने मुद्दतलउम्र दर्स व तदरीस के फरायज़ अंजाम दिये। और साहबजादों ने भी आपकी वफात के बाद उस मदरसे में पढ़ाया। आप खुद फरमाते हैं के शेख अब्दुल कादिर रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने खिरकह मुझ से पहना और मैंने उनसे और हर एक ने एक दूसरे से तबरूंक लिया और आप हज़रत खिज्र अलेहिस्सलाम के मसाहिय में थे। सब्रो रजा व तवक्कुल व तफ्वीज़ में कदम रासिख रखते थे और तजरीद में यगानाऐ वक्त थे और साहिये मुकामाते बुलंद करामात अरजुमन्द थे।...✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 74 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

*↳  हज़रत अबु सईद मुबारक मखरुमी रादिअल्लाहु तआला अन्हु हसूले इल्म  ↲*


▣  ❥  *खुल्फाऐइक्राम* आपके खुल्फाअ व औलाद व अम्जाद की फहरिस्त से अक्सर मोअरिंखीन ने सकृत इख्तियार किया है। खल्फा में सिर्फ एक सय्यदना महीउद्दीन महबुबे सुबहानी अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु के नाम नामी ही पर अक्सर मोअरिंखीन ने इक्तफा किया है।

▣  ❥  *तारीखे विसाल* आपका विसाल मुबारक 27 शाबान - उल - मोअज्जम बरोज़ दो शंबा 513 हिजरी में बगदाद शरीफ में हुआ। इन्ना लिल्लाही व इन्ना इलैहि राजीऊन। मगर बाज़ ने 4 शाबान , दस मोहर्रमुलहराम और सात शाबानुलमोअरज़्जम 508 हिजरी भी तहरीर किया है।

▣  ❥  बू सईद आले असद दौर ज़मन जलवा गरशुद दर जनाँचूं माहे ईद " काफला सालार " सालिशे हस्त नीज़ आबिद तय्यब मुबारक बू सईद  शम्स हक़ 508 हिजरी गोया जे कृत्बे आरफाँ 513 हिजरी साल व सलश तरफा बे गुफ़्तों शनेद

▣  ❥  *मजारे मुकद्दस* आपका मज़ार मुकद्दस 513 हिजरी बगदाद शरीफ में आप के कायम कर्दा मरसे बाबुलअज़ज में मरजओ ख़लायक है।...✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 75 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

               *↳  वअ़ज व  तबलीग  ↲*


▣  ❥  हज़रत सैय्यद अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने  521 हिजरी में वअज़ व तबलीग का सिलसिला शुरू किया। इससे पहले आप चूंकि 25 साल तक मुजाहेदात में मसरूफ रहे इसलिए इस अर्से के दौरान आप वअज़ से अलहदा रहे मगर जूही आप हर लिहाज़ से उलूमे ज़ाहिरी व बातिनी में कामिल हो गए तो आपको हुक्म दिया गया के मसनदे इर्शाद पर जलवा अफ़रोज़ हों उस हुक्म का वाकेया यूं बयान किया जाता है।...✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 76 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

               *↳  वअ़ज व  तबलीग  ↲*


▣  ❥  *हक्मे वअज़* हज़रत शेख का बयान है के 16 शव्वाल सहि 521 हिजरी बरोज़ मंगल नमाजे ज़ोहर से कब्ल दिन के वक़्त आप ने ख्वाब में देखा के हुज़ूर ﷺ तशरीफ़ लाए हैं और फरमाते हैं ऐ अब्दुल कादिर ! तुम लोगों को राहे हक़ बतलाने के लिए वाज़ व नसीहत क्यों नहीं करते ताके लोग गुमराही से बचें। उसके जवाब में आप ने सरकारे दो ﷺ की खिदमते अक्दस में इलतिजा की के या रसूल अल्लाह ﷺ मैं एक अजमी हूँ। अरब के फसोहाअ के सामने लब कुशाई कैसे करूं ? उस पर हुज़ूर ﷺ ने फरमाया के अपना मुंह खोलो। तो आपने तामील इर्शाद फरमाते हुए मुंह खोला। सरवरे कायनात ﷺ ने अपना लुआबे दहन आपके मुंह में डाल दिया। इस तरह सरकारे दो आलम ﷺ ने सात मर्तया आपके मुंह में अपना लुआब लगाया और बादअज़ाँ हुक्म दिया के अब जाओ वअज़ व नसीहत के ज़रिये लोगों को अल्लाह की तरफ दाअवत दो।...✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 76 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

               *↳  वअ़ज व  तबलीग  ↲*


▣  ❥   *हक्मे वअज़* आप फरमाते हैं के उस वक़्त मुझ पर एक वजदानी केफियत तारी हो गई। ख्वाब से बेदार होकर आपने नमाज जोहर अदा फरमाई और उसके बाद आपको जो हुक्म मिला था उसकी तामील के लिए बैठ गए। उस वक्त आपके इर्दगिर्द काफी लोग मौजूद थे आपने सोचा के कुछ कहूँ मगर यकदम हालते इसतगराक की सी कैफियत पैदा हो गई।

▣  ❥   देखते क्या हैं हज़रत अली रादिअल्लाहु तआला अन्हु तशरीफ़ लाए हैं और फरमा रहे हैं के हुज़ूर ﷺ ने आपको जो हुक्म दिया है उसकी तामील शुरू कर दें। आपका इर्शाद है के मैं उस वक़्त घबराया हुआ था के क्या कहूँ आखिर आपने भी मुझे हुज़ूर ﷺ की तरह फेज़याब फरमाया और मेरे मुंह में छः मर्तबा अपना लुआबे दहन डाला और यकदम हज़रत अली रादिअल्लाहु तआला अन्हु तशरीफ ले गए और इसके बाद आप सही हालत में आ गए और वअज़ कहना शुरू कर दिया। लोग आपकी फसाहित और बलागत देख कर हैरान रह गए। उस रोज़ के बाद आपने मख्लूके खुदा में रूश्दो हिदायत के वअज़ का सिलसिला शुरू कर दिया।...✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 77 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

               *↳  वअ़ज व  तबलीग  ↲*


▣  ❥   *हातिफे गैबी से इशारा* आपके सवान्हे निगारों ने मनदर्जा बाला हुक्म को बाज़ कुतुब में यूं बयान किया है के एक मर्तबा हातिफे गैबी से इशारा हुआ के ऐ अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु  बगदाद में दाखिल हो कर लोगों में वअज़ करो। चुनांचे जब मैंने बगदाद वापसी के बाद लोगों को पहली ही जैसी हालत पर पाया , तो फिर वापसी का कसद कर लिया लेकिन हातिफे गैबी ने मुझ से दोबारा कहा ऐ अब्दुल कादिर ! बगदाद में लोगों को नसीहत करो। क्योंकि तुम्हारी ज़ात से लोगों को बहुत फायदा पहुंचने वाला है मगर मैंने जवाब दिया के मुझे लोगों से क्या गर्ज , मैं तो अपने ईमान की सलामती का ख्वाहाँ हूँ। इस पर मुझे जवाब मिला के वापस जा तेरा ईमान मलामन है।...✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 78 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

               *↳  वअ़ज व  तबलीग  ↲*


▣  ❥   *हातिफे गैबी से इशारा* आप फरमाते हैं के उसके बाद अल्लाह तआला मैंने सनर अहेद लिए जिनमें से एक ये के मुझे कभी मक्र में मवतला ना किया जाए। दूसरा ये के मेरा कोई मुरीद बगैर तौबा करने के मरने ना पाए।

▣  ❥   उसके बाद मैने बगदाद वापस आकर लोगों को पंदो नसाएहे शुरू कर दिए जिसके बाद मैंने मुशाहेदा किया के हिजाबात उठे और अनवार मेरी जानिब मुतवज्जेह हैं। जब मैंने पूछा के ये कौन सी हालत है ? तो मुझे बताया गया के उन फतूहात पर मुबारकबाद देने हुज़ूरे अकरम ﷺ तशरीफ ला रहे हैं। फिर उन अनवार में मजीद इजाफा होता चला गया और मुझ पर खुशी की कैफियत तारी हुई और मैंने देखा के हुज़ूर अक्रम ﷺ मिंबर पर तशरीफ फरमा रहे हैं और अब्दुल कादिर कह कर मुझे आवाज़ दे रहे हैं।...✍️

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   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

               *↳  वअ़ज व  तबलीग  ↲*


▣  ❥   *हातिफे गैबी से इशारा* चुनाँचे में फर्त मुसर्रत के सात कदम हवा में उड़ता हुआ आपकी जानिब बढ़ा। तब आपने सात मर्तबा मेरे मुंह में लुआबे दहन लगाया और आप ﷺ याद तीन मर्तबा हज़रत अली रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने लुआब लगाया। और जब मैंने हज़रत अली रादिअल्लाहु तआला अन्हु से सवाल किया के आपने हुजूर ﷺ की तरह क्यों नहीं किया ? आपने फरमाया के हुजूर ﷺ के अदब को मलहुज़ रखते हुए। फिर हुज़ूरे अकरम ﷺ ने मुझे खुलअत पहनाते हुए फरमाया ये तेरी विलायत की खुलअत है जो ओलिया व अफ्ताब के लिए मख्सूस है।...✍️

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   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

               *↳  वअ़ज व  तबलीग  ↲*


▣  ❥  *हातिफे गैबी से इशारा* ओलिया व अफ्ताब के लिए मख्सूस है  इसके बाद मेरे लिए तकरीर करना आसान हो गया और मैंने खुत्बा देना शुरू कर दिया। बाद में हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम मेरे इम्तेहान के लिए तशरीफ लाए ( जैसे वो दुसरे ओलिया का इम्तेहान लेते रहे थे ) तो मैंने उनसे कहा के में भी आप से ऐसे ही कहूंगा जैसे के आपने

▣  ❥  हजरते मूसा अलेहिस्सलाम से कहा था के आपके अन्दर मेरे जैसे सब्र तहम्मुल की ताक़त नहीं । आप इज्राईली है और मैं मोहम्मदी हूँ । खवरदार हो जायें मैं भी हूँ और आप भी । ये गेंद है और ये मैदाना ये मोहम्मद ( ﷺ ) हैं और ये रहमान । ये मेरा जीन कसा हुआ घोड़ा भी है और मेरी कमान का चिल्ला भी चढ़ा हुआ है और मेरी काट देने वाली तलवार भी है।...✍️ *( कलायद - उल - जवाहर )*

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   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

       *↳ वअज व तबलीग का आगाज़ ↲*


▣  ❥  अपने शेखे तरीक़त जनाब अबु सईद मखरुमी के मदरसे से हुआ क्योंके बयान किया जाता है के हज़रत काज़ी अबु सईद मुबारक मखरुमी रादिअल्लाहु तआला अन्हु का बगदाद मुकद्दस में एक बहुत बड़ा मदरसा भी था जिसमें वो वअज़ इर्शाद के अलावा तशनगाने उलूम दीनिया को दर्स भी दिया करते थे । काजी साहब को जब आपके रूहानी फ़फ्लो कमाल और इल्मी इसतदअदो सलाहियत और फेहमो फिरासत का अन्दाज़ाए वाफिर हो गया तो 521हिजरी में आपने अपना मदरसा आप ही के हवाले कर दिया।...✍️

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   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

       *↳ वअज व तबलीग का आगाज़ ↲*


▣  ❥  *मजलिसे वअज़ में हुजूम* शेख अब्दुल्लाह अलजबाई रादिअल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं के मुझे सय्यदना गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने बताया के इब्तिदा में मेरे पास दो या तीन आदमी बैठा करते थे। फिर जब शौहरत हुई तो मेरे पास खल्कत का हुजूम आने लगा। उस वक़्त मैं बगदाद शरीफ के मोहल्ला हल्बा की ईदगाह में बैठा करता था। लोग रात को मशअलें और लालटेनें लेकर आते। फिर इतना इजतमा होने लगा के ये ईदगाह भी लोगों के लिए नाकाफी हो गई इस वजह से बाहर बड़ी ईदगाह में मिंबर रखा गया। लोग दूरदराज़ से कसीर तअदाद में घोड़ों , खच्चरों , गधों , और ऊँटों पर सवार होकर आते। करीबन सत्तर हज़ार का इजतमा होता था।..✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 79 📚*

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       *↳ वअज व तबलीग का आगाज़ ↲*


▣  ❥  *मदरसे की तामीरे* नो अवाम के कसीर तअदाद में हाज़िर होने की वजह से मदरसे की इमारत की वूसअत ना काफी थी। लोग बाहर फसील के नज़दीक सराऐ के दरवाजे के करीब सड़क पर बैठ जाते। रोज़ बरोज़ की बढ़ती हुई तअदाद के पेशे नज़र कर्बो जवार के मकानात शामिल कर के मदरसा आलिया को इमारत को वसी कर दिया गया अम्राअ ने मदरसे की वसीअ तरीन इमारत बनवा देने में ज़रे कसीर खर्च किया। फुकराआ और सूफ़ियअ ने अपने हाथों से काम लिया। ये अजीमुश्शान मदरसा आपके इस्मे ग्रामी की निसबमत से मदरसा कादया के नाम से मशहूर हो गया।..✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 80 📚*

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       *↳ वअज व तबलीग का आगाज़ ↲*


▣  ❥  *शौहरते आम* आपके मवअज़ हसना की शौहरत बहुत जल्द करीब व नज़दीक फैल गई।

▣  ❥  जब मदरसे की वसीअ व अरीज़ इमारत भी लोगों के बेपनाह हुजूम का आहाता ना कर सकती थी और आप का मिंबर शहर के बाहर ईदगाह के वसीअ मैदान में रखा जाता था।

▣  ❥  हाज़रीने मजलिस की तअदाद बसा अवकात सत्तर हज़ार बल्के इससे भी बढ़ जाती थी।

▣  ❥  हज़रत शेख अब्दुल हक मोहद्दिस दहेलवी रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने अख्वार - उल - अख्यिार में लिखा है के हज़रत गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु की मजलिसे वअज़ में चार सौ अश्खास कलम व दवात लेकर बैठते थे और जो कुछ आपसे सुनते थे इमला करते थे यानी आपके इर्शादात को नोट किया करते थे।..✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 80 📚*

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▣  ❥  *चालीस साल तक वअज़* शहबाज़ुलइम्कानी कुदसुस्सरह - उल - नूरानी के फ़रज़न्दै अरजुमंद सय्यदना अब्दल वहाब  रादिअल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं के हुज़ूर गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने 21हिज़री से 561हिजरी तक चालीस साल मख्लूक को वअज़ व नसीहत फरमाया। *( अख़्वार - उल - अख्यिार )*

▣  ❥  शाहे जीलान रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने हफ्ते में तीन दिन ( जुमआ - मंगल और बुध ) को वअज़ व नसीहत फरमाने के लिए मुतईय्यन फरमाया था । इब्राहीम बिन साअदा रादिअल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं के जब हमारे - शेख हज़रते गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु उल्मा का लिबास पहन कर ऊँचे मुकाम पर जलवा अफ़ोरोज़ होकर वअज़ फरमाते तो लोग आप के कलाम मुबारक को बगौर सुनते और उस पर अमल पेरा होते।..✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 81 📚*

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▣  ❥  *अम्मादउद्दीन इब्ने कसीर रादिअल्लाहु तआला अन्हु* अपनी तारीख में फरमाते हैं के आप नेक बात की तलकीन फरमाते और बुराई को रोकने और इससे बचने की ताकीद फरमाते।

▣  ❥  अमरअ , सलातीन , खास व आम को मिंबर पर रोनक अफरोज़ होकर उनके सामने नेक बात बताते । जो कोई के ज़ालिम शख्स को हाकिम मुकर्रर करता तो उसको उससे मना फरमाते आपको बुराई से रोकने पर किसी से कतअन खौफ व खत्रा ना होता। *( कलायद - उल - जवाहर )*..✍️

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▣  ❥  *वअज़ की असर अंगेजी* सय्यदना गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु का वअज़ हिकमत व दानिशा का एक ठांठे मारता हुआ समुन्दर होता था उसकी तासीर का ये आलम होता था के लोगों पर वज्द की केफ़ियत तारी हो जाती थी।

▣  ❥  बाज लोग जोश में आकर अपने कपड़े फाड़ डालते थे बाज़ बेहोश हो जाते थे कई दफ़ा ऐसा हुआ के मजलिसे वअज़ में एक दो आदमी गशी की हालत में व अस्ल बहक़ हो गए।

▣  ❥ अक्सरो अवकात गैर मुस्लिम भी आपकी मजालिसे वअज़ में शिर्कत करने आते आपका वअज़ सुनकर उन्हें कलमाए शहादत पढ़ लेने के सिवा कोई चारा ना रहता जो गुमराह मुसलमान आपका वअज़ सुन लेता सिराते मुसतकीम इख्तियार कर लेता।..✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 81 📚*

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▣  ❥  *वअज़ की असर अंगेजी* मशहूर है के आपकी मजलिसे वअज़ में बकसरत रिजाल ( जिन्न व मलायक ) भी शिर्कत करते थे आपके वअज़ की असरअंगेजी से उनके लिबास और टोपियाँ शोला फिरोजाँ बन जातीं और शिद्दते जज्बात से उनमें इज्तेराब बर्पा हो जाता।

▣  ❥  आप की आवाज़ निहायत कड़कदार थी जिसे दूर व नज़दीक बैठने वाले तमाम लोग यक्साँ सुनते थे। हेबत का ये आलम था के दौराने वअज़ किसी की ये मजाल ना थी के बात करे , नाक साफ करे , थूके या इधर उधर उठ कर जाए। वअज़ कद्रे सरअत से फरमाते थे , क्योंके इल्हामाते रब्बानी की बेपनाह आमद होती थी। उस दौर के अक्सर नामवर मशायख आपकी मजालिसे वअज़ में बिलइल्तेज़ाम शरीक होते थे। मजालिसे वअज़ में बकसरत करामात आपसे सरज़द हो जाती।..✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 82 📚*

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▣  ❥  *वअज़ की असर अंगेजी* आपके मवअज़ दिलों पर बिजली का असर करते थे उनमें बेक वक़्त शौकत व अज़मत भी थी और दिलआवेज़ी और हलावत भी रसूले अक्रम ( ﷺ ) के नायब ख़ास थे आरिफे कामिल थे इसलिये हर वअज़ सामेईन के हालात व ज़रूरियात के मुताबिक़ होता था।

▣  ❥  लोग जब बगैर पूछे अपने शुबहात और कल्बी अमराज़ का जवाब पाते थे तो उनको रूहानी सकून हासिल हो जाता था।

▣  ❥  आपके मुवअजे हसना के अलफ़ाज़ आज भी दिलों में हरारत पैदा कर देते हैं और उनमें बेमिसाल ताज़गी और ज़िन्दगी मेहसूस होती है।..✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 82 📚*

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▣  ❥  *मवअजे हसना का असर* आपके शार्गिद शेख अब्दुल्लाह जबाई रादिअल्लाहु तआला अन्हु का बयान है के हज़रत शेख अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु के मुवअज़े हसना से मुतास्सिर होकर एक लाख से जायद फस्साको फज्जार और बद ऐतकाद लोगों ने आपके हाथ पर तौबा की और हज़ारहा यहूदी और इसाई दायराऐ इस्लाम में दाखिल हुए।

▣  ❥  हज़रत सय्यद अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने एक मर्तबा खुद इर्शाद फरमाया के मेरी आरज़ू होती है के हमेशा खलवत गज़ीन रहूँ। दश्त बयाबान मेरी मस्कन हो। ना मख्लूक मुझे देखे ना मैं उसको देखू लेकिन अल्लाह तआला को अपने बन्दों की भलाई मंज़ूर है। मेरे हाथ पर पाँच हज़ार से जायद इसाई और यहूदी मुसलमान हो चुके हैं। और एक लाख से ज्यादा बदकार और फिस्क व फिजूर में मुबतला लोग तौबा कर चुके हैं और ये अल्लाह तआला का खास फल व इनआम है।..✍️ *( अख्वार - उल - अख्यिार )*

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   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

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▣  ❥  *यहूद व नसारा का कबूले इस्लाम* बगदाद के बाशिन्दों का बड़ा हिस्सा हज़रत के हाथ पर तौबा से मुर्शफ हुआ और निहायत कसरत से इसाई , यहूदी और दूसरे ग़ैर मज़ाहिब के लोग मुर्शफ बइस्लाम हुए। शेख उमर अलकीमानी का कहना है के आपकी मजालिसे शरीफा में से कोई मजलिस ऐसी नहीं होती थी जिस में यहूद और नसारा इस्लाम कबूल ना करते हों। या डाकू , कज़ाक , कातिलउनफ्स , मुफ्सिद और बदऐतकाद लोग आपके दस्ते हक़ परस्त पर तौबा ना करते हों।...✍ *( अख्बार - उल - अख्यिार )*


*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 83 📚*

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▣  ❥  *इसाई राहिब का मुसलमान होना* इसी तरह एक दफा एक इसाई राहिब आपकी खिदमत में हाज़िर हुआ। उसका नाम सुनान था। सहायफ़ क़दीमा का ज़बरदस्त आलिम था उसने हज़रत के दस्ते हक परस्त पर इस्लाम कबूल किया और फिर मजमओ आम में खड़े होकर बयान किया के मैं यमन का रहने वाला हूँ मेरे दिल में ये बात पैदा हुई के मैं इस्लाम को कबूल कर लु और इस पर मेरा मुसममिम इरादा हो गया के यमन में सब से आला व अफ्ज़ल शख्सीयत के हाथ पर इस्लाम कबूल करूंगा। इसी सोच बिचार में था के मुझे नींद आई और मैंने हज़रत सय्यदना ईसा अला नबय्यिना व अलैहिस्सलाम को ख्वाब में देखा आपने मुझे इर्शाद फरमाया ऐ सुनान ! बगदाद शरीफ जाओ और शेख अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु के दस्ते हक परस्त पर इस्लाम कबूल करो। क्योंके वो उस वक़्त रूए जमीन के तमाम लोगों से अफ्ज़ल व आला हैं।..✍️ *( सकीनात - उल - औलिया )*

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 83 📚*

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▣  ❥  *तेरह इसाईयों का कबूले इस्लाम* शेख उमर - अल - कीमानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं के एक दफा आपकी खिदमते अक्दस में तेरह अश्खास इस्लाम कबूल करने के लिए हाज़िर हुए। मुसलमान होने के बाद उन्होंने बयान किया के हम लोग अरब इसाई हैं। हम ने इस्लाम कबूल करने का इरादा किया था और ये सोच रहे थे के किसी मर्दे कामिल के दस्ते हके परस्त पर इस्लाम कबूल करें इसी आसना में हातिफे गैब ने आवाज़ दी के बगदाद शरीफ़ जाओ और शेख अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु के मुबारक हाथों पर इस्लाम कबूल करो क्योंके जिस कद्र ईमान उनकी बर्कत से तुम्हारे दिलों में जांगुज़ीन होगा उस कद्र ईमान उस ज़माने में किसी दूसरी जगह से ना मुमकिन है चुनांचे हम उस गैबी इशारा के मातहत बगदाद आए और अलहम्दुलिल्लाह के हमारे सीने नूरे हिदायत से मामूर हो गए।...✍️ *( कलायद - उल - जवाहर )*

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       *↳ वअज व तबलीग का आगाज़ ↲*

▣  ❥  *बादशाह और ऊमरआ की नियाजमंदी*  शेन मोफिकउद्दीन इब्ने कदामा साहब मुफ्ति का बयान है के मैंने किसी शख्स की आपसे बढ़ कर तअज़ीमो तकरीम होते नहीं देखी।

▣  ❥  आपकी मजालिसे वअज़ में बादशाह , वज़राअ और ऊमरआ नियाज़मंदाना हाज़िर होते थे। और आम लोगों के साथ मोअद्दवाना और खामोश बैठ जाते थे। उल्मा और फूकेहा का तो कुछ शुमार ही ना था। अपने वअज़ में मतलक किसी की रिवायत नहीं करते थे और जो बात हक़ होती बरमला कह देते ख्वाह उसकी जद किसी बड़े से बड़े आदमी पर पड़ती।

▣  ❥  आपकी इसी बेबाकी और आलाऐ कल्मातुलहक में बेमिसाल जुराअत की वजह से आपके मवअज़ ऐसी शमशीर बुराँ बन गए थे जो मुसीबत व तुगयान के झाड़ झंकार को एक ही वार में कतऐ कर दे!..✍


*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह 84 - 85 📚*

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     ❝ *सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ* ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

       *↳ वअज व तबलीग का आगाज़ ↲*


▣  ❥  *हिकायत* एक दफा खलीफा के महल्लात का नाज़िम अज़ीज़ूद्दीन आपकी मजलिस में बड़े तज्को एहतशाम के साथ आया। ये शख्स खलीफा का मोअतमिद खास और मुकरंब था और बडा साहिबे असर अमीर था। उसके आते ही आप ने अपनी तकरीर का मोज़ू बदल दिया और उसकी तरफ इशारा करते हुए फरमाया , तुम सब की ये हालत है के एक इंसान दूसरे इंसान की बन्दगी करता है। अल्लाह की बन्दगी कौन करता है। उसके बाद आपने उससे मुखातिब होकर फरमाया , खड़ा हो , अपना हाथ मेरे हाथ पर रख दे ताके इस फानी घर यानी दुनिया से भाग कर रब्बुल आलमीन की तरफ लपकें और उसकी रस्सी को थाम लें।

▣  ❥  अनकरीब तुझ को खुदा की तरफ लौटना होगा और वो तेरे आमाल का मुहासबह करेगा!..✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 85 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

       *↳ वअज व तबलीग का आगाज़ ↲*

▣  ❥  *इस्लाह व ततहीर*  ग़र्ज़ वअज़ व नसीहत में आपकी बेबाकी बे मिसाल थी । बाज़ अवकात उसमें निहायत तेजी और तंदी पैदा हो जाती थी आप फरमाते थे के लोगों के दिलों पर मेल जम गया है जब तक उसे ज़ोर से रगड़ा नहीं जाएगा दूर ना होगा । मेरी सख्त कलामी इंशाअल्लाह उनके लिए आबे हयात साबित होगी।

▣  ❥  एक दफा अपने वअज़ के मुताल्लिक आपने फरमाया के मेरा वअज़ के मिंबर पर बैठना तुम्हारे कलूब की इस्लाह व ततहीर के लिए है ना के अल्फाज़ के उलट फैर और तकरीर की खुशनुमाई के लिए है!..✍


*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 85 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

       *↳ वअज व तबलीग का आगाज़ ↲*


▣  ❥  *इस्लाह व ततहीर* मेरी सख्त कलामी से मत भागो क्योंकि मेरी तरबीयत उसने की है। जो दीने खदावंदी में सख़्त था मेरी तकरीर भी सख्त है और खाना भी सख्त और रूखा सूखा है। पस जो मुझ से और मेरे जैसे लोगों से भागा उसको फलाह नसीब नहीं हुई जिन बातों का ताल्लुक दीन से है उनके मुताल्लिक जब तू बेअदब है तो मैं तुझ को छोडूंगा नहीं और ना ये कहुंगा के उसको किये जा! तू मेरे पास आए या ना आए परवा ना करूंगा। मैं कव्वत का ख्वाहाँ खुदा से हूँ ना के तम से मैं तुम्हारी गिन्ती और शुमार से बेनियाज हूँ!..✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 85 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

         *↳ आप के समझाने का अंदाज़ ↲*


▣  ❥  आप के समझाने का अंदाज़ ये था के जब कोई आप की मजलिस में शरीयत के खिलाफ काम करने वाला हाज़िर होता या कोई तायब होकर तौबा तोड़ देता तो आप फरमाते के ऐ शख्स हम ने तुझ को पुकारा लेकिन तूने जवाब नहीं दिया। हम ने तुझे रोकना चाहा लेकिन तू नहीं रूका। हम ने तुझे हलाकत से बचाना चाहा लेकिन तु शरमिंदा नहीं हुआ। हम ने तेरी बुराईयों को वाजेह किया और तू जानता था के हमें तेरे अयूब का इल्म भी है। हम ने तझे दिनों और महीनों की मोहलत अता की हम ने बरसों तुझे बशारतें सुनाई लेकिन तेरी नफ़रत में इजाफा होता चला गया और हम तुझे जायद से जायद फिस्को फिजूर में मुबतला पाते रहे!..✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 86 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

         *↳ आप के समझाने का अंदाज़ ↲*


▣  ❥  ऐ शख्स अगर तूने अहेद करने के बाद अहेद शिकनी करके खुद को अपने पहले अहेद की तरफ रूजू कर लिया तो फिर ये बता के अगर हम तेरी जानिब मुतावज्जेह ना हों फिर तू किस तरह सीधी राह पर आएगा क्या तुझे ये इल्म है के अगर हम तुझ से दरगुज़र कर के तुझे ना डरायें तो फिर तू कब तक सीधा हो जाएगा।

▣  ❥  अगर हम तुझे दफा कर के फरामोश कर दें और तेरे रुजू होने को कबूल करें तो तेरा क्या हा होगा। क्या तुझे याद नहीं के तू हमारे पास खौफ़ज़दा होकर आया था और आजज़ी के साथ हमारे दरवाजे पर पड़ा रहा। फिर हम से मुनहरिफ हो कर लौट गया!..✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 86 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

         *↳ आप के समझाने का अंदाज़ ↲*


▣  ❥  हालाँके तू हमारी मोहब्बत का दावेदार था। किस कद्र हैरानकुन बात है के तूने हमारा कुर्ब हासिल करके भी अल्लाह की मोहब्बत का जायका चखा लेकिन उसके बावजूद भी हमारी जमाअत से कट गया ऐ शख्स अगर तू सच्चा होता तो हमारी मुवाफ्कत करता अगर हम से मोहब्बत होती तो हमारी मुखालफत ना करता। अगर हमारे अहबाब में से होता तो हमारे दरवाजे से ना भागता और खुशी के साथ हमारी सज़ाओं में लज्ज़त हासिल करता। ऐ शख्स ! काश तू पैदा ही ना हुआ होता और जब पैदा हो गया तो मक्सदे तख़लीक़ को समझता। ऐ ख्वाबदीदा शख्स ! बेदार हो , आँखें खोल और देख के तेरे सामने अज़ाब के लश्कर सज़ा के लिए पहुंच चुके हैं और तू उनका मुसतहिक भी है लेकिन रहीम व करीम रब की वजह से मेहफ़ज़ है!..✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 87 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

         *↳ आप के समझाने का अंदाज़ ↲*


▣  ❥  ऐ कूच करने वाले ! अपने सफर के लिए जादे राह तैयार कर ले और मुझ से ये हुक्म सुनता जा के कसरते मालो जाह और तवील ज़िन्दगी से फरेब ना खा। क्योंके गर्दिशे लेलो नहार के नतीजे में अजीब व गरीब वाकेयात पेश आते रहते हैं। तुझ से कब्ल भी उस दुनिया में बहुत से नामवर पैदा हुए। तू अपनी हिफाज़त कर ख़बरदार हो जा के ये दुनिया तुझे कत्ल करने के लिए शमशीर बदस्त है। ये बहुत ही गद्दार और मक्कार है उसे जब भी मौका मिलेगा तुझ को लूट लेगी। और तुझ जैसे कितने ही लोग उसकी चमक व दमक और उसके हिर्स व तमअ से फरेब खा चुके हैं।

▣  ❥  अगर तूने उसकी इताअत की या उसकी कसमों पर कान लगाए या उसको मुराद व ख्वाहिश समझ लिया तो ये तुझे फरेब ही फरेब में सितमे कातिल का जाम पिला देगी। उसने बहुत सी बस्तियों को इस तरह उजाड़ दिया के अहले बस्ती खून के आंसू बहाए चले और यौमे बअस तक के लिए वहाँ रोक दिये गए!..✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 88 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

               *↳ आपकी  इल्मी  शान ↲*


▣  ❥  हज़रत सय्यद अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु की इल्मी शान बहुत बुलंद है। अल्लाह तआला ने आपको जाहिरी और बातिनी इल्म में कामिल दसतरस अता फरमाई। कुरआन व हदीस पर आप पूरी तरह उबूर रखते थे। आपका हाफ्ज़ा बड़ा बाकमाल था जिस चीज़ पर ज़रा सा गौर फरमाते फौरन अज़ बरयाद हो जाती। जाहिरी उलूम के अलावा आपने जब बेपनाह रियाज़त की तो उस वक़्त मुशाहेदा के ज़रिये बे पनाह उलूम आप पर ज़ाहिर हुए। और असरारो रमूज़ इतने ज्यादा मिले के जब कोई इल्मी बात करता तो आप फौरन उसके असरार बयान फरमा देते!..✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 89 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

               *↳ आपकी  इल्मी  शान ↲*


▣  ❥  बयान किया जाता है के जब आप ने दर्स व तदरीस और खुत्बात का आगाज़ फरमाया तो दुनिया आपके इल्म पर हैरान हुई। आप ऐसे ऐसे निकात बयान फरमाते के बड़े बड़े उल्मा के इल्म में ना होते इसलिए थोड़े ही अर्से में आपके इल्म की शीहरत दूर व नज़दीक में बहुत जल्द फैल गई। आपकी दर्सगाह से बहुत जईय्यद उल्मा सैराब हुए गर्ज़ हज़रत सय्यद गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु दीनी उलूम का अनमोल ख़ज़ाना थे और तशनगाने उलूमे दुनिया ने उससे बे पनाह फायदा उठाया।

▣  ❥  आपके इल्मो फज्ल की शौहरत सुनकर लोग सेंकड़ों कोस का पुर सऊबत सफर तय करके आपकी खिदमते अक्दस में हाज़िर होते और इल्म के इस बहेरे ज़खार से सेराब होते वुस्अते इल्म के लिहाज़ से आप तमाम उल्मा फिकहाऐ ज़माना पर सब्क़त ले गए और दुनियाए इस्लाम में कोई ऐसा आलिम नहीं था जो आपके तबहरे इल्मी , अज़मत और कमाल का मुतअर्रिफ ना हो गया हो। इस ज़िम्न में चन्द वाकेयात यहाँ दर्ज किये जाते हैं जिन से आपकी इल्मी वुस्अत का बखूबी अंदाज़ा हो सकेगा!..✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 89 📚*

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   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

               *↳ आपकी  इल्मी  शान ↲*


▣  ❥  *आपके फरज़न्दों का बयान* सय्यद शेख अब्दुरज्जाक , शेख अब्दुलवहाब , शेख इब्राहीम ( फरज़न्दाने हज़रत शेख ) शेख अबु - अल - हसन उमर कीमानी और शेख अबु - अल - हसन उमर बज़ाज़ का मुत्तफ़िका बयान है के हम (557) हिजरी में हज़रत शेख के घर पहुँचे जो आपके मदरसे बाबे अज़ज में वाक़ीया है। उस वक़्त आप दूध नोश फरमा रहे थे। आपने दूध छोड़ दिया और देर तक मुसतगरिक रहे फिर फरमाने लगे अभी अभी मेरे लिए इल्मे लुदनी के सत्तर दरवाजे खोल दिये गए हैं उनमें से हर दरवाजे की वुस्अत ज़मीनो आसमान के दरमियान फराखी के मिस्ल है उसके बाद आपने तबकाए ख़ास के मुआरिफ बयान करना शुरू कर दिये उससे हाज़रीन हैरत व दहशत में डूब गए। हमने कहा हमें यकीन नहीं आता के हज़रत शेख के बाद कोई ऐसा कलाम कर सके!..✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 89 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

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▣  ❥  *शेख यूसुफ हमदानी  रादिअल्लाहु तआला अन्हु का बयान* शेख यूसुफ बिन अय्युब हमदानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है के एक दफा उन्होंने हज़रत सय्यद अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु से फरमाया के लोगों को वअज व नसीहत करो। उन दिनों हज़रत शेख नोजवान थे। उन्होंने फरमाया हुज़ूर ! मैं एक अजमी आदमी हूँ। बगदाद के फसीह - उल - लिसान लोगों के सामने किस तरह बोलूं ? उन्होंने फरमाया तुम ने फ़िक़ह , उसूल फ़िकह , अकायद , नहू , लुगत और तफ्सीर - उल - कुरआन के उलूम हासिल किये हैं तुम किस तरह लोगों के सामने तकरीर करने के काबिल नहीं हो ? मिंबर पर बैठो और वअज़ कहो। मैं तुम्हारे अन्दर ऐसा बीज देख रहा हूँ जो खुर्मा ( समरआवर ) का दरख्त बन जाएगा!..✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 90 📚*

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▣  ❥  *सौ फिकहा के सवालों के जवाब* शेख अबु मोहम्मद मफ्रह बिन नबहान शीबानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु का बयान है के जब हज़रत सय्यद अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु का शुरू शुरू में शोहरा हुआ तो बगदाद के अकाबिर फिकहा और उल्मा में से सौ आदमी आपकी खिदमत में ये तय कर के आए के उनमें से हर फिकीहा मुख्तलिफ़ उलूम में आप से अलग अलग मसायल (मस्अला) पूछेगा उससे उनका मक्सद ये था के इस तरह वो आपको ला जवाब कर देंगे। रावी का बयान है के जिस वक्त ये लोग मेहफिल में आए मैं भी वहाँ मौजूद था। हर शख्स अपनी अपनी जगह पर बैठ गया और मेहफिल जम गई!..✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 90 📚*

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▣  ❥  सौ फिकहा के सवालों के जवाब* रावी का बयान है के जिस वक्त ये लोग मेहफिल में आए मैं भी वहाँ मौजूद था। हर शख्स अपनी अपनी जगह पर बैठ गया और मेहफिल जम गई। उस वक़्त हज़रत शेख के सीने से नूर की एक तलवार निकली जो उन सौ फिकीहों के सीनों पर तेजी से गुज़र गई। उसे सिर्फ वही लोग देख रहे थे , फज्ले खुदावंदी जिनके शामिल हाल था । हर फिकीहा के सीने पर तलवार क्या गुज़री के सब को हैरान , परेशान और मुज़तरिब करती गई। उसके बाद उन्होंने मिल कर चीख मारी , कपड़े फाड़ डाले और सर खोल दिये। और तमाम फिकीहा आप की कुर्सी पर टूट पड़े। उन्होंने अपने सर आपके कदमों में रख दिये। इस मौके पर तमाम अहले मजलिस ने बुलंद आवाज़ से इस कद्र हाहू की जिससे बगदाद कांप उठा!..✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 91 📚*

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▣  ❥  *सौ फिकहा के सवालों के जवाब* हज़रत शेख ने उनमें से हर एक को अपने सीने से लगाना शुरू किया ल। जब तमाम को सीने से लगा चुके तो एक एक को पकड़ कर फरमाना शुरू किया के तेरा सवाल ये है और उसका जवाब ये है। अलगर्ज सौ के सौ फिकहा के सवालात और उनके मुकम्मल जवाबात उन्हें सुना दिये। रावी का बयान है के मजलिस के इजितीमि पर मैंने उन फिकहा से हाल पूछा , तो उन्होंने बताया के जिस वक्त हम हज़रत शेख की मेहफिल में आन बैठे तो हमारा सारा इल्म लोहे कल्बो दिमाग से महू हो गया ल। यूं लगता था जैसे हमें इल्म की हवा भी नहीं लगी। फिर जिस वक्त हजरत शेख ने हमें सीने से लगाना शुरू किया तो इल्म वापस आ गया। हैरांगी की ये बात है के अपने जो सवाल हम भूल गए थे उन्होंने वो हमें बता दिये और उनके ऐसे ऐसे जवाबात दिये जो खुद हमें भी मालूम ना थे!..✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 92 📚*

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▣  ❥  *अल्लामा इब्ने जोजी रादिअल्लाहु तआला अन्हु का एत्राफे कमाल* मशहूर मोहद्दिस , मोअरिंख और फिकीहा ( मालिकी ) अल्लामा इने जोजी रादिअल्लाहु तआला अन्हु, सय्यदना गौसे आज़मा रादिअल्लाहु तआला अन्हु के हम अम्र थे। वो (510 हिजरी) (1116 ईसवी) में बगदाद में पैदा हुए। और  (597 हिज़री) (1200 ईसवी) में फौत हुए। उन्होंने फिकह इमाम मालिक रादिअल्लाहु तआला अन्हु की ताईद में अहादीस पर बहुत जिरेह की और इमाम गज़ाली रादिअल्लाहु तआला अन्हु की मशहूर किताब अहया - उल - उलूम में ज़ईफ अहादीस पाई जाती हैं उन पर भी बहेस की निहायत ज़बरदस्त खतीब और वअज़ थे। उनकी चन्द मशहूर तसानीफ के नाम ये हैं!..✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 92 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

               *↳ आपकी  इल्मी  शान ↲*


▣  ❥  *अल्लामा इब्ने जोजी रादिअल्लाहु तआला अन्हु का एत्राफे कमाल* उनकी चन्द मशहूर तसानीफ के नाम ये हैं अलमुल्तज़िम , अलमुलतसकृत अलमुल्तज़िम , अलमुनतज़िम फी तारीख - उल - उमम , तरयाक - उल -जुनुब तजकरात - उल - एकात , कफातुल मजालिस फी अलवअज़ , अलमुजतना मिन अलमुजतबा , कशफउन्न नकाब अन - उल - असमअ व अलअलकाब कहते हैं के वफात से पहले उन्होंने वसीयत की के मैंने अपनी ज़िन्दगी में जिन कलमों से हदीस लिखी है उनका तराशह मेरे हुजरे में मेहफज़ है मरने के बाद मुझे गस्ल दें तो गस्ल का पानी उस तरीशह से गर्म करें। चुनांचे उनकी वसीयत पर अमल किया गया। तराशह इतना कसीर था के पानी गर्म होकर भी बच रहा। जमाल - उल - हफ्फाज़ आपका लकब था और बहुत से लोग उन्हें तफ्सीर व हदीस का इमाम मानते थे!..✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 92 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का
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               *↳ आपकी  इल्मी  शान ↲*
▣  ❥  *अल्लामा इब्ने जोजी रादिअल्लाहु तआला अन्हु का एत्राफे कमाल* सैय्यदना गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु की अज़मत व कमाल का अंदाज़ा इस बात से बखूबी किया जा सकता है के अल्लामा इब्ने जोजी रादिअल्लाहु तआला अन्हु जैसे आलिम भी आपके तबहरे इल्मी के मुतअर्रिफ हैं। बयान किया जाता है के इब्ने जोजी रादिअल्लाहु तआला अन्हु इब्तिदा में सय्यदना गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु के मुखालिफ थे और आपके इर्शादात व मवअज़ पर वक्तन फवक़्तन एतराज़ करते रहते थे।
▣  ❥  एक दिन हाफिज़ अबु - अल - अब्बास अहमद से इसरार करके उन्हें अपने हमराह सय्यदना गौस - उल - सिकलैन रादिअल्लाहु तआला अन्हु की मजलिस में ले गए। उस वक़्त आप कुरआने हकीम का दर्स दे रहे थे। इर्द गिर्द तलबा व तलान्दा का हुजूम था शेख अबु - अल - अब्बास अहमदा रादिअल्लाहु तआला अन्हु और अल्लामा इब्ने जोजी रादिअल्लाहु तआला अन्हु हल्काऐ दर्स से परे हट कर बैठ गए। इतने में कारी ने एक आयत पढ़ी।..✍

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 92 📚*

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     ❝ *सीरते ग़ौसे आज़म  رضی اللہ تعالی عنہ* ❞
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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

               *↳ आपकी  इल्मी  शान ↲*

▣  ❥  *अल्लामा इब्ने जोजी रादिअल्लाहु तआला अन्हु का एत्राफे कमाल* अब्बास अहमदा रादिअल्लाहु तआला अन्हु और अल्लामा इब्ने जोजी रादिअल्लाहु तआला अन्हु हल्काऐ दर्स से परे हट कर बैठ गए। इतने में कारी ने एक आयत पढ़ी l। सय्यदना गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने उसका तर्जुमा बताया और फिर तफ्सीरी निकात बयान करने शुरू कर दिये। पहले नुक्ते पर हाफ़िज़ अबु - अल - अब्बास अहमदा रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने अल्लामा इने जोज़ी रादिअल्लाहु तआला अन्हु से पूछा क्या आपको उसका इल्म है ? उन्होंने इसबात में सर हिलाया फिर दूसरे नुक्ता पर यही सवाल किया और अल्लामा इब्ने जोजी रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने इसबात में जवाब दिया। हत्ता के ग्यारह तफ्सीरी निकात तक अल्लामा इने जोज़ी रादिअल्लाहु तआला अन्हु इसबात में जवाब देते रहे। उसके बाद जो सय्यदना गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने (12) बारहवाँ नुक्ता बयान किया तो अल्लामा इने जोज़ी रादिअल्लाहु तआला अन्हु को अपना इल्म जवाब देता नज़र आया और उन्होंने कहा ये नुक्ता मुझे मालूम नहीं।..✍


*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 93 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

               *↳ आपकी  इल्मी  शान ↲*


▣  ❥   *अल्लामा इब्ने जोजी रादिअल्लाहु तआला अन्हु का एत्राफे कमाल*  अल्लामा इने जोज़ी रादिअल्लाहु तआला अन्हु को अपना इल्म जवाब देता नज़र आया और उन्होंने कहा ये नुक्ता मुझे मालूम नहीं। उधर सय्यदना गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु का बयान इस तरह जारी था के इल्म का एक दरया है जो उमंडता ही चला आता है और कहीं रूकने का नाम नहीं लेता उसके बाद यके बाद दीगरे आपने इस आयत के चालीस तफ्सीरी निकात व रमूज़ बयान फरमाए बारहवीं से चालीसवें नुक्ते तक अल्लामा इब्ने जोजी रादिअल्लाहु तआला अन्हु अपने इल्म की बेबसी का एत्राफ करते रहे और हैरत व इसतअजाब के आलम में सर धुंदते रहे।

▣  ❥   आखिर होकर पुकार उठे अब मैं काल को छोड़ कर तरफ रूजू करता हूँ। लाइलाहा इल - लल्लाह मोहम्मदुर्र रसूल अल्लाह असे फिर जोशो हिजान में अपने कपड़े फाड़ डाले और आपके करीब पहुँच कर आप के तबहरे इल्मी और अजमत का एत्राफ कर लिया।

▣  ❥   हाफ़िज़ अबु - अल - अब्बास रादिअल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं के ये वाकेया देख कर हाज़रीने मजलिस के जोशी इजत्राब का ठिकाना ना रहा। *( कलायद - उल - जवाहर )* ...✍

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

               *↳ आपकी  इल्मी  शान ↲*


▣  ❥    *इल्मी वुस्अत* अबु मोहम्मद - अल - खशाब - उल - नहवी रादिअल्लाहु तआला अन्हु का बयान है के मैं जवानी में इल्मे नहू पढा़ करता था और मुझे बेहद इश्तियाक था के किसी उस्ताद कामिल की शार्गिदी इख्तियार करूं जो मुझे नहू और दूसरे उलूम पर उबूर करा दे। इसी आसना में शेख अब्दल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु के इल्मो फज्ल की शौहरत आम हुई। जो शख्स एक दफा आपकी मजलिस में जाता हमेशा के लिए आपके इल्मो फज्ल का मोतकिद हो जाता।

▣  ❥    जब बकसरत लोगों से आपकी तारीफ व तोसीफ सुनी तो में भी एक दिन आपकी मजलिस में जा पहुँचा। मेरे वहा पहुँचते ही आप मेरी तरफ मुखातिब हुए और फरमाया " अगर तुम हमारे पास रहो तो हम तुम्हें सीबोया रादिअल्लाहु तआला अन्हु का ज़माना दिखा देंगे। " मैं तो दिल से यही चाहता था चुनाँचे उसी वक्त - आपकी खिदमत में रहना शुरू कर दिया। थोडे ही अर्से आपने मुझे मसायले नहविया व उलमे अक्लिया व उनक्लिया पर ऐसा उबूर करा दिया के मेरे वहेमो गुमान में भी नहीं आ सकता था। मैंने आप जैसा मुफस्सिर मोहद्दिस , फुकिहा और दूसरे उलूम का माहिरे का सारी उम्र नहीं देखा..✍️

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

              *↳ इल्मो फज्ल में मर्तबा ↲*


▣  ❥    शैख अब्दुल्लाह जबाई बयान करते हैं के हज़रत शेख का एक शार्गिद उम्र हलावी बगदाद से बाहर चला गया और जब चन्द साल गायब रह कर बगदाद वापस आया तो मैंने पूछा के तुम कहाँ गायब हो गए थे ? उसने कहा मैं मिस्रे शाम और बिलादे मगरिब में घूमता फिरा । जहाँ मैंने तीन सौ साठ मशायखइक्राम से मुलाकात की लेकिन उनमें से एक भी ऐसा ना मिला जो इल्मो फज्ल में हजरत शेख अब्दुल कादिर जीलानी रादिअल्लाहु तआला अन्हु का हम पल्ला हो और सबको यही कहते सुना के हज़रत मोसूफ हमारे शेख व पैश्वा हैं!..✍️

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

              *↳ इल्मो फज्ल में मर्तबा ↲*


▣  ❥   मुहिब्बउद्दीन इब्ने नजार अपनी तारीख में रकमतराज़ हैं के आपका शुमार जीलान के सरबरआवर्दा जाहेदीन में से था और उल्माए रासख़ीन में ऐसे इमाम थे जो अपने इल्म पर अमल पेरा होते हैं आप से बेशुमार करामतों का ज़हूर हुआ।

▣  ❥   आपने बगदाद ओने के बाद उलूम फ़िका , उसूल व फरोअ की तालीम हासिल की और समाअते हदीस मुकम्मल कर के वअज़ व नसीहत में मशगल हो गए जब आपके फज़ायलो करामात की शौहरत हुई तो आप मख्लूक से अलहेदगी इख्तियार करके खाना नशीन हो गए मुखालफत नफ्स के सिलसिले में शदीद मुजाहेदात किये और सऊबतों को हासिले जीस्त बना लिया फिक्रो फाका की हालत में बादिया पेमाई करते और वीरानों में अकामत गजीन हो जाते!..✍️

*📬  सीरत ए ग़ौसे आज़म सफ़ह - 95 📚*

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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर हैं साया गौसे आज़म का

   हमें दोनों जहां में हैं सहारा गौसे आज़म का

              *↳ इल्मो फज्ल में मर्तबा ↲*

▣  ❥   हाफिज जेनउद्दीन ने अपनी तसनीफ " तबकात " में लिखा है के शेख अब्दुल कादिर बिन अबी सालेह मूसा अब्दल्लाह बिन जंगी दोस्त बिन अबी अब्दुल्लाह अल्जीली सुम्मा बगदादी , जाहिद शेख वक़्त अल्लामाए दहर कदवतुलआरफीन , सुल्तान - उल - मशायख और सरदार अहले तरीक़त थे।

▣  ❥   *आपको खल्कउल्लाह में कबूलियत आम* हासिल हुई अहले सुन्नत को आपकी ज़ात से तकवीयत हासिल हुई और मुब्तदेऐन जिल्लत और रूसवाई से हमकिनार हुए आपके अक़वाल व अफआल और करामात व मकाश्फाते ज़बान ज़दे ख़ास व आम हुए एत्राफ व अवनाफ से मसायले शरई मालूम करने के लिए इसतफ्तअ आते जिनके जवाबात दिये जाते अमरअ व वुज़रआ खलीफा और अवाम सबके दिलों में आपकी अज़मत व हैबत बैठ गई!..✍️


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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ 💚

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