🌹 ✍🏻 *اَلصَّلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَیۡكَ يَــــــــارَسُوۡلَ اللّٰهِ ﷺ*
❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 01
रमज़ान रम्ज़ से बना है जिसके मायने हैं जलाना चुंकि ये महीना भी मुसलमानों के गुनाहों को जला देता है इसलिये इसे रमज़ान कहा गया या रम्ज़ का एक मायने गर्म जमीन से पांव जलना भी है चुंकि माहे रमज़ान में मुसलमान अपने नफ़्स को भी जलाता है इसलिए ये नाम पड़ा या रमज़ान गर्म पत्थर को भी कहते हैं चुंकि जब इस महीने का नाम रखा गया वो मौसम भी सख्त गर्मी का था.!
📘 गुनियतुत तालेबीन,जिल्द 2,सफह 5
उम्मत का इस बात पर इज्माअ है कि रमज़ानुल मुबारक तमाम महीनों में अफज़ल है,फुक़्हा फरमाते हैं कि जिस तरह हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम के 12 बेटों में हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम अपने वालिद को सबसे ज़्यादा प्यारे थे उसी तरह 12 महीनों में रमज़ानुल मुबारक अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त को सबसे ज़्यादा महबूब है,और जिस तरह हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की बरकत से उनके 11 भाईयों की खतायें माफ हुईं और मौला ने उन्हें बख्शा उसी तरह रमज़ानुल मुबारक की बरकत से भी मुसलमानों के 11 महीनों के गुनाह माफ होंगे और मौला उसके सदक़े में मुसलमानों की बख़्शिशो मगफिरत फरमायेगा इनशा अल्लाह तआला.
📕 नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 1,सफह 136
जैसा कि एक हदीसे पाक में भी आता है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जिसने रमज़ान पाया और अपनी बख्शिश ना करा सका वो हलाक हुआ, मतलब ये कि अगर चे मुसलमानों से 11 महीनों में बेशुमार गुनाह होते हैं लेकिन अगर उन्हें रमज़ानुल मुबारक मयस्सर आये तो उसकी ताज़ीम और उसका हक़ अदा करके मौला तआला को राज़ी किया जा सकता है और अपनी बख्शिश कराई जा सकती है तो अब अगर किसी को रमज़ानुल मुबारक मिले और वो रोज़ा छोड़ता रहे नमाज़ क़ज़ा करे ज़कातो फ़ित्रा खुद खा जाये गुनाहों में उसी तरह मुलव्विस रहे तो फिर उसके हलाक़ होने में क्या बाकी रहा.!
📗 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 97
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 02
रमज़ानुल मुबारक का रोज़ा 10 शव्वाल 2 हिजरी में फर्ज़ हुआ.!
📙 खज़ाईनुल इरफान,सफह 42
इस उम्मत में सबसे पहले आशूरह का रोज़ा फर्ज़ हुआ फिर अय्यामे बैद के रोज़े यानि हर महीने की 13-14-15 के रोज़ों से उसकी फर्ज़ियत मंसूख हुई फिर जब रमज़ान का रोज़ा फर्ज़ हुआ तो अय्यामे बैद की भी फर्ज़ियत मंसूख हुई.!
📒 तफ़्सीरे अहमदी,सफह 57
दीगर अम्बिया-ए किराम भी रोज़े रखा करते थे अगर चे इसमें इख्तिलाफ़ है कि ये रोज़ा उन पर फर्ज़ था या नहीं जैसा कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम अय्यामे बैद के रोज़े रखते थे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम आशूरह का रोज़ा रखते थे हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम हमेशा रोज़ा रखते थे हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ईदुल फित्र और ईदुल अज़्हा को छोड़कर हमेशा रोज़ा रखते थे हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम एक दिन छोड़कर रोज़ा रखते हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम हर महीने की शुरू और बीच और आखिर में 3-3 रोज़ा रखते हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम हर महीने में 3 दिन रोज़ा रखते हज़रत ज़ुलक़िफ्ल अलैहिस्सलाम हमेशा दिन में रोज़ा रखते और तमाम रात जागकर इबादत करते हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम हमेशा रोज़ा रखते.!
📓 तफ़्सीरे अहमदी,सफह 57
📕 तफ़्सीरे खाज़िन,जिल्द 4,सफह 203
📗 तफ़्सीरे जुमल,जिल्द 3,सफह 142
📘 अल्बिदाया,जिल्द 1/2,सफह 118/19
रमज़ानुल मुबारक के बाद तमाम नफ्ली रोज़ों में सबसे अफज़ल अरफा यानि 9वी ज़िलहज का रोज़ा है.!
📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 8,सफह 442
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 03
*रोज़े के मसाइल में ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह.!*
रोज़े के बारे में लोगों में पाई जाने वाली 10- ग़लत बातें जिन की कोई हक़ीक़त नहीं- पूरा ज़रूर पढ़ें.!
*NO.1 ग़लत फ़ेहमी :-* कुछ लोग समझते हैं कि रोज़ा इफ़्तार की दुआ रोज़ा खोलने से पहले पढ़ना चाहिए और वह पहले दुआ पढ़ते हैं फिर रोज़ा खोलते हैं!
सही मस्अला यह है कि रोज़ा इफ़्तार की दुआ रोज़ा खोलने के बाद पढ़ना चाहिए, -بسم اللہ شریف - पढ़ कर रोज़ा ख़ोलें फिर कुछ खाने के बाद जो दुआ पढ़ी जाती है वह पढ़ें.!
📕 फ़तावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 4 सफह 651
📘 फ़तावा फ़िक़्हे मिल्लत जिल्द 1 सफह 344
*NO.2 ग़लत फ़ेहमी :-* बहुत लोग समझते हैं कि उलटी होने से रोज़ा टूट जाता है!
सही मस्अला यह है कि ख़ुद बा ख़ुद यानि ख़ुद से कितनी ही पलटी या क़ै आये इस से रोज़ा नहीं टूटता!
सिर्फ दो सूरतों में रोज़ा टूट जाता है,वह दो सूरतें ये हैं👇
1- रोज़ा याद होने के बावजूद जानबूझकर क़ै ( उलटी ) की मसलन उंगली वगैरह ह़लक़ में डाल कर क़ै की और वह क़ै ( उलटी) मुंह भर हुई तो रोज़ा टूट जायेगा, ब शर्तेकि क़ै खाने पीने या बहते ख़ून वगैरह की हो!
2- बगैर इख़्तियार के मुंह भर क़ै (उलटी) आई और एक चने या उस से ज़्यादा मिक़दार में वापस ह़लक़ से नीचे वापस लौटा दी तो रोज़ा टूट जायेगा!
📕रद्दुल मुह़तार अला दुर्रे मुख़्तार जिल्द 3 सफह 450- 451-452
📚رد المحتار علی الدر المختار، کتاب الصوم، باب ما یفسد الصوم وما لا یفسدہ، جلد ۳ صفحہ نمبر 450-451-452- مکتبہ رشیدیہ کوئٹہ
जिस क़ै ( उलटी ) को बगैर तकल्लुफ़ के न रोका जा सके उसे मुंह भर क़ै ( उलटी ) कहते हैं!...✍🏻
📚 फ़तावा आलमगीरी जिल्द 1 सफह 12
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 04
*रोज़े के मसाइल में ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह.!*
रोज़े के बारे में लोगों में पाई जाने वाली 10- ग़लत बातें जिन की कोई हक़ीक़त नहीं- पूरा ज़रूर पढ़ें.!
*No.3 ग़लत फ़ेहमी :-* ये भी मशहूर है कि रोज़े की ह़ालत में ऐह़तलाम (सोते में मनी निकलना) नाइटफाल हो जाये तो रोज़ा टूट जाता है!
सही मस्अला ये है कि रोज़े की ह़ालत में ऐह़तलाम हो जाने से रोज़ा नहीं टूटता!
📙 रद्दुल मुह़तार अला दुर्रे मुख़्तार जिल्द 3 सफह 421
📒 رد المحتار علی الدرالمختار، کتاب الصوم، باب ما یفسد الصوم وما لا یفسدہ، جلد 3 صفحہ نمبر 421 مکتبہ رشیدیہ کوئٹہ
*No.4 ग़लत फ़ेहमी :-* कुछ लोग समझते हैं कि सेहरी में आंख न ख़ुले और सेहरी खाना छूट जाए तो रोज़ा नहीं होता!
सही मस्अला यह है कि सेहरी रोज़ा के लिए शर्त़ नहीं यानि ज़रुरी नहीं आपने रात में रोज़े की नियत कर ली थी यानि दिल में रोज़ा रखने का इरादा था फिर सेहरी में आंख नहीं भी ख़ुली तब भी रोज़ा हो जायेगा, हाँ जानबूझकर सेहरी न करना अपने आपको अज़ीम सुन्नत से मेह़रुम करना है!
📘 رد المحتار علی الدرالمختار، کتاب الصوم باب ما یفسد الصوم وما لا یفسدہ جلد 3 صفحہ 393 -394, مکتبہ رشیدیہ کوئٹہ
*No.5 ग़लत फ़ेहमी :-* कुछ लोग समझते हैं कि मुंह में मौजूद थूक या बलग़म निग़ल जाने से रोज़ा टूट जाता है या मकरुह हो जाता है इसलिए वह बार बार थूकते रहते हैं!
सही मस्अला यह है कि मुंह में मौजूद थूक और बलग़म निग़लने से रोज़ा बिलकुल नहीं टूटेगा- हां अगर कोई बेवकूफ मुंह से बाहर मसलन हथेली पर थूक कर अपनी थूक या बलग़म मुंह में दुबारा डाल कर निग़ल जाए तो फ़िर टूट जायेगा, लेकिन ऐसा आम तौर पर कोई नहीं करता!..✍🏻
📕 दुर्रे मुख़्तार मा रद्दुल मुह़तार
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 05
*रोज़े के मसाइल में ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह.!*
रोज़े के बारे में लोगों में पाई जाने वाली 10- ग़लत बातें जिन की कोई हक़ीक़त नहीं- पूरा ज़रूर पढ़ें.!
*No.6- ग़लत फ़ेहमी :-* कुछ लोग समझते हैं कि चोट वगैरह लग़ने पर खून निकल आने या खून टेस्ट करवाने पर रोज़ा टूट जाता है!
सही मस्अला यह है कि रोज़ा किसी चीज़ के मेदे के रास्ते में या दिमाग़ में जाने से टूटता है जिस्म से कोई चीज़ बाहर आने पर नहीं टूटता- ख़ुलासा यह है कि खून ज़ख्मी होने पर निकले या फ़िर टेस्ट करवाने के लिए निकलवाये इस से रोज़ा नहीं टूटेगा!
📗 مصنف ابن ابی شیبہ، رقم الحدیث-9319
📕 سنن الترمذی رقم الحدیث-719
*No.7 गलत फ़ेहमी :-* कुछ लोग समझते हैं कि रोज़े की ह़ालत में गुस्ल फ़र्ज़ हो जाए तो कुल्ली करना नाक में पानी डालना मना है!
सही मस्अला यह है कि रोज़ा शुरू होने से पहले गुस्ल फर्ज़ हो या रोज़ा में ऐहतलाम हो जाये रोज़ा की ह़ालत में गुस्ल के तमाम फ़राएज़ अदा किये जायेंगे, गुस्ल में तीन फर्ज़ हैं कुल्ली करना, और नाक में नरम हिस्से तक पानी पहुंचाना पूरे जिस्म बदन पर पानी बहाना फर्ज़ है, इसके बगैर न गुस्ल होगा, न नमाज़ होगी.!
📙 ماخوذ از رد المحتار علی الدرالمختار کتاب الطہارۃ1 صفحہ نمبر 311-312 مکتبہ رشیدیہ کوئٹہ
अलबत्ता रोज़ा हो तो गरारह नहींं करना चाहिए और आम दिनों में भी गरारह गुस्ल का फर्ज़ या कुल्ली का हिस्सा नहीं है बल्कि जुदागाना सुन्नत है वह भी उस वक्त जब रोज़ा न हो अलबत्ता रोज़ा की ह़ालत में नाक में पानी सांस के ज़रिए ऊपर खींचने की इजाज़त नहीं!
📒 حاشیہ الطحطاوی علی مراقی الفلاح جلد 1 صفحہ نمبر 152 المکتبہ الغوثیہ،
📓 الجوھرۃ النیرۃ شرح مختصر القدوری جلد 1 صفحہ نمبر 30 مکتبہ رحمانیہ،
📘 نماز کے احکام صفحہ نمبر 102 مکتبہ المدینہ کراچی
*No.8 ग़लत फ़ेहमी :-* कुछ लोग समझते हैं कि जब तक अज़ान होती रहे सेहरी में खाना पीना जारी रखा जा सकता है, इस लिए वह अज़ान होती रहती है और वह खाते पीते रहते हैं!
सही मस्अला यह है कि अज़ाने फजर और नमाज़े फजर का वक्त तो तब शुरू होता है जब सेहरी का वक्त ख़त्म हो जाता है, जो सेहरी का टाइम ख़त्म हो जाने के बाद भी खाता पीता रहता है उसने अपना रोज़ा बरबाद किया उसका रोज़ा हुआ ही नहीं, यानि जो अज़ान होती रहती है और वह खाता पीता रहता है उसका रोज़ा माना ही नहीं जायेगा!
📕 फैज़ाने रमज़ान सफह 110
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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हिस्सा - 06
*रोज़े के मसाइल में ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह.!*
रोज़े के बारे में लोगों में पाई जाने वाली 10- ग़लत बातें जिन की कोई हक़ीक़त नहीं- पूरा ज़रूर पढ़ें.!
*No.9 ग़लत फ़ेहमी :-* कुछ लोग समझते हैं कि रोज़ा में इंजक्शन लगवाने से रोज़ा टूट जाता है!
सही मस्अला यह है कि इंजक्शन ख़्वाह गोश्त में लगवाया जाए या रग़ में इस से रोज़ा नहीं टूटता, अलबत्ता उलमा ए कराम ने रोज़े में इंजक्शन लगवाने को मकरुह फ़रमाया है जब तक ख़ास ज़रुरत न हो न लगवायें, ख़ास ज़रुरत पर रोज़ा में भी इंजक्शन लगवा सकते हैं इस से रोज़ा नहीं टूटेगा!
📘 ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह सफह 71
📓 फ़तावा फ़ैज़ुर रसूल जिल्द 1 सफह 517
📙 फ़तावा मरकज़ी दारुल इफ़्ता सफह 359
📒 मक़ालात शारेह़ बुख़ारी जिल्द 1 सफह 408/398
📗 दुर्रे मुख़्तार मा रद्दुल मुह़तार जिल्द 3 सफह 398
📘 मजलिसे शरई के फैसले सफह 284
📓 फ़तावा गौसिया जिल्द 1 सफह 209
📒 फ़तावा अलीमिया जिल्द 1 सफह 418- रोज़ा का ब्यान
*No.10 ग़लत फ़ेहमी :-* कुछ लोग रोज़ा में तेल खुश्बू लगाने और मोवे ज़ेरे नाफ़ यानि नाफ़ के नीचे वाले बाल बनाने को दुरुस्त नहीं समझते!
सही मस्अला यह है कि इन तमाम कामों से रोज़ा नहीं टूटता यानि रोज़े की ह़ालत में तेल लगाना और मोवे ज़ेरे नाफ़ (नाफ़ के नीचे के बाल ) बनाना जायज़ है इस से रोज़ा नहीं टूटता.!
📕رد المحتار علی الدرالمختار کتاب الصوم باب ما یفسد الصوم وما لا یفسدہ جلد 3 صفحہ 421 نمبر مکتبہ رشیدیہ کوئٹہ وغیرہ
🌹والله تعالیٰ اعلم بالصواب🌹
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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हिस्सा - 07
भूल कर खाने पीने या भूल कर जिमआ करने से रोज़ा नहीं टूटेगा.!
📙 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 112
बिला कस्द हलक में मक्खी धुआं गर्दो गुबार कुछ भी गया रोज़ा नहीं टूटेगा!
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 112
बाल या दाढ़ी में तेल लगाने से या सुरमा लगाने से या खुशबू सूंघने से रोज़ा नहीं टूटता अगर चे सुरमे का रंग थूक में दिखाई भी दे तब भी नहीं!
📗 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 113
कान में पानी जाने से तो रोज़ा नहीं टूटा मगर तेल चला गया या जानबूझकर डाला तो टूट जायेगा!
📓 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 117
एहतेलाम यानि नाइट फाल हुआ तो रोज़ा नहीं टूटा मगर बीवी को चूमा और इंजाल हो गया तो रोज़ा टूट गया युंहि हाथ से मनी निकालने से भी रोज़ा टूट जायेगा!
📒 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 117
तिल या तिल के बराबर कोई भी चीज़ चबाकर निगल गया और मज़ा हलक में महसूस ना हुआ तो रोज़ा नहीं टूटा और अगर मज़ा महसूस हुआ या बगैर चबाये निगल गया तो टूट गया और अब क़ज़ा के साथ कफ्फारह भी वाजिब है!
📘 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 114,122
आंसू मुंह में गया और हलक़ से उतर गया तो अगर 1-2 क़तरे हैं तो रोज़ा ना गया लेकिन पूरे मुंह में नमकीनी महसूस हुई तो टूट गया.!
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 117
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हिस्सा - 08
बिला इख्तियार उलटी हो गयी तो चाहे मुंह भरकर ही क्यों ना हो रोज़ा नहीं टूटेगा ये समझकर कि रोज़ा टूट गया खाया पिया तो कफ्फारह वाजिब होगा!
📗 फतावा आलमगीरी,जिल्द 1,सफह 190
📘 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 121
कुल्ली करने में पानी हलक़ से नीचे उतरा या नाक से पानी चढ़ाने में दिमाग तक पहुंच गया अगर रोज़ा होना याद था तो टूट गया वरना नहीं!
📙 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 117
पान,तम्बाकू,सिगरेट,बीड़ी, हुक्का खाने पीने से रोज़ा टूट जायेगा!
📒 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 116
जानबूझकर अगरबत्ती का धुआं खींचा या नाक से दवा चढ़ाई या कसदन कुछ भी निगल गया तो रोज़ा टूट गया!
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 113,114,117
इंजेक्शन चाहे गोश्त में लगे या नस में रोज़ा नहीं टूटेगा मगर उसमें अलकोहल होता है इसलिए जितना हो सके बचा जाये!
📓 फतावा अफज़लुल मदारिस,सफह 88
पूरा दिन नापाक रहने से रोज़ा नहीं जाता मगर जानबूझकर 1 वक़्त की नमाज़ खो देना हराम है!
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 113
झूट,चुगली,ग़ीबत,गाली गलौच,बद नज़री व दीगर गुनाह के कामों से रोज़ा मकरूह होता है लेकिन टूटेगा नहीं!
📘 जन्नती ज़ेवर,सफह 264
जिन बातों से रोज़ा नहीं टूटता ये सोचकर कि टूट गया फिर जानबूझकर खाया पिया तो उस पर क़ज़ा के साथ कफ्फारह भी वाजिब होगा!
📗 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 120
कफ्फारये रोज़ा ये है कि लगातार 60 रोज़े रखे बीच में अगर 1 भी छूटा तो फिर 60 रखना पड़ेगा या 60 मिस्कीन को दोनों वक़्त पेट भर खाना खिलाये या 1 ही फकीर को दोनों वक़्त 60 दिन तक खाना खिलाये!
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 123
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हिस्सा - 09
*मसअला* :- शकर वगैरह एसी चीज़ें जो मुंह में रखने से घुल जाती है,मुंह में रखी और थूक निगल गया तो रोज़ा जाता रहा,यूंही दांतों के दरमियान कोई चीज़ चने के बराबर या ज़्यादा थी उसे खा गया या कम ही थी मगर मुंह से निकाल कर फिर खा ली या दांतों से खून निकल कर हलक़ से नीचे उतरा और खून थूक से ज़्यादा या बराबर था या कम था मगर उसका मज़ा हलक़ में महसूस हुआ तो इन सब सूरतों में रोज़ा जाता रहा,और अगर कम था और मज़ा भी महसूस ना हुआ तो नहीं!
📒 बहारे शरीअत जिल्द,1 हिस्सा 5 सफह 986
*मसअला* :- औरत का बोसा लिया मगर इंज़ाल ना हुआ तो रोज़ा नहीं टूटा युंही अगर औरत सामने है और जिमअ के ख्याल से ही इंज़ाल हो गया तब भी रोज़ा नहीं टूटा!
📙 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 113
*मसअला* :- औरत का बोसा लिया या छुवा या मुबाशिरत की या ग़ले लगाया औरत इंज़ाल हो गया तो रोज़ा जाता रहा औरत ने मर्द को छुआ और मर्द को इंज़ाल हो गया रोज़ा ना टूटा और मर्द ने औरत को कपड़े के ऊपर से छुआ और उसके बदन की गर्मी महसूस ना हुई तो अगर इंज़ाल हो भी गया तब भी रोज़ा ना टूटा!
📗 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 117
*मसअला* :- औरत ने मर्द को सोहबत करने पर मजबूर किया तो औरत पर क़ज़ा के साथ कफ्फारह भी वाजिब है मर्द पर सिर्फ क़ज़ा!..✍🏻
📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 122
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 10
*मसअला :-* औरत को मुअय्यन तारीख पर हैज़ आता था आज हैज़ आने का दिन था उसने कस्दन रोज़ा तोड़ दिया मगर हैज़ ना आया तो कफ्फारह नहीं सिर्फ क़ज़ा करेगी युंही सुबह होने के बाद पाक हुई और नियत कर ली तो आज का रोज़ा नहीं होगा!
📓 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 123/119
*मसअला :-* मर्द नें पैशाब के सुराख में पानी या तेल डाला तो रोज़ा ना गाय,और अगर औरत नें शरमगाह में टपकाया तो जाता रहा!
📗 फतावा हिन्दिया जिल्द,1 सफह 204
*मसअला :-* रमज़ान के दिनों में ऐसा काम करना जायज़ नहीं जिससे रोज़ा ना रख सके बल्कि हुक्म ये है कि अगर रोज़ा रखेगा और कमज़ोरी महसूस होगी और खड़े होकर नमाज़ ना पढ़ सकेगा तो भी रोज़ा रखे और बैठ कर नमाज़ पढ़े लेकिन ये तब ही है जब कि बिल्कुल ही खड़ा ना हो सके वरना बैठकर नमाज़ ना होगी!
📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 126
मगर मआज़ अल्लाह आज की अवाम का ख्याल तो ये है कि रमज़ान इबादत के लिए नहीं बल्कि कमाने के लिए आता है,ऐसा लगता है कि रमज़ानुल मुबारक के रोज़े फर्ज़ नहीं हुई है बल्कि रमज़ान में काम फर्ज़ हुआ है, 10 घंटा काम करने वाला 12 घंटे काम करता है 12 घंटे वाला 16 घंटा और कुछ तो रातो दिन पैसा कमाने में जुट जाते हैं,और रोज़ा भी नहीं रखते, जबकि हुक्म तो ये है कि नान-बाई मजदूर और हर मेहनत कश आदमी सिर्फ आधे दिन ही काम करे और आधे दिन आराम करे ताकि रोज़ा रख सके,मगर मआज़ अल्लाह सुम्मा मआज़ अल्लाह आज के नाम निहाद मुसलमानो को ना तो रोज़े की खबर है और ना नमाज़ की फिक्र दिन भर उसी तरह खाना पीना जैसे कि कोई बात ही नहीं और उस पर तुर्रा ये कि हम मुसलमान हैं जन्नती हैं अगर दीन पर बात आई तो जान दे देंगे सर कटा देंगे अरे जिन कमबख़्तों से दिन भर भूखा प्यासा नहीं रहा जाता वो गर्दन क्या खाक कटायेंगे,मौला ऐसों को हिदायत अता फरमाये!
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 11
*मसअला :-* दूसरे का थूक निगल गया या अपना ही थूक हाथ पर लेकर निगल गया रोज़ा जाता रहा यानि टूट जायेगा!
📗 बहारे शरीअत जिल्द,1 हिस्सा 5
*मसअला :-* मुंह से खून निकला और हलक़ से उतरा तो अगर मज़ा महसूस हुआ तो रोज़ा टूट गया और अगर खून कम था या मज़ा महसूस ना हुआ तो नहीं टूटा!
📓 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 116
*मसअला :-* मुंह में रंगीन डोरा रखा जिस से थूक रंगीन हो गया फिर थूक निगल लिया रोज़ा जाता रहा!
📘 बहारे शरीअत हिस्सा 5 सफह 117
*मसअला :-* डोरा बट रहा था बार बार तर करने के लिए मुंह से गुज़ारा तो अगर उसकी रंगत या मज़ा महसूस ना हुआ तो रोज़ा नहीं गया लेकिन डोरे की रतूबत अगर थूक के ज़रिये निगला तो रोज़ा टूट गया!
📗 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 117
*मसअला :-* ये गुमान था कि अभी सुबह नहीं हुई और खाया पिया या जिमअ किया और बाद को मालूम हुआ कि सुबह हो चुकी थी या किसी ने जबरन खिलाया तो इन सूरतों में सिर्फ क़ज़ा है कफ़्फ़ारह नहीं!
📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 118
*मसअला :-* भूल कर खाया पिया या जिमअ किया या ख्याल से ही इंज़ाल हो गया या नाइटफॉल हुआ या बिला क़स्द उलटी हुई तो इन सूरतों में रोज़ा नहीं टूटता!
📙 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 118
*मसअला :-* अगर किसी का रोज़ा गलती से टूट जाए तो फिर भी उसे मग़रिब तक कुछ भी खाना पीना जायज़ नहीं है पूरा दिन मिस्ल रोज़े के ही गुज़ारना वाजिब है युंही जो शख्स रमज़ान में खुले आम खाये पिये हुक्म है कि उसे क़त्ल किया जाये!
📒 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 118/119
*मसअला :-* रोज़ेदार वुज़ू में कुल्ली करने और नाक में पानी चढ़ाने में मुबालग़ा ना करे!
📘 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 126
मतलब ये कि इतना पानी मुंह में ना भर ले कि हलक़ तक पहुंच जाये या नाक में इतना ना चढ़ाये कि दिमाग़ तक पहुंच जाये वरना रोज़ा टूट जायेगा!
*मसअला :-* सहरी खाने में देर करना मुस्तहब है मगर इतनी देर ना करें कि वक़्ते सहर ही खत्म हो जाये युंही अफ्तार में जल्दी करना भी मुस्तहब है मगर इतनी जल्दी भी ना हो कि सूरज ही ग़ुरूब ना हुआ हो!..✍🏻
📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 126
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 12
बाज़ लोग अज़ान को ही खत्मे सहर समझते हैं ये उनकी गलत फहमी है मसलन आज बाराबंकी,यू,पी, में खत्मे सहर 4:10 मिनट तक था तो कम से कम एहतियातन 5 मिनट पहले यानि 4:05 पर ही खाना पीना छोड़ दें,अगर खत्मे सहर के बाद अगर एक बूंद पानी या एक दाना भी मुंह में डाला तो रोज़ा शुरू ही नहीं होगा अगर चे अभी अज़ान हुई हो या न हुई हो अगर चे वो नियत भी करले और दिन भर मिस्ल रोज़ा भूखा प्यासा भी रहे लिहाज़ा वक्त का ख़्याल रखें!
*मसअला :-* मिस्वाक करना सुन्नत है अगर चे खुश्क हो या पानी से तर हो अगर चे हलक़ में उसकी कड़वाहट महसूस भी होती हो!
📒 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 125
*मस्अला :-* रोज़े की ह़ालत में अनार और बांस की लकड़ी के अलावा हर कड़वी लकड़ी की ही मिस्वाक बेहतर है!
📓 रद्दुल मुह़तार जिल्द 1 सफह 235
*मसअला :-* रोज़े की हालत में मियां बीवी का एक दूसरे के बदन को छूना चूमना गले लगाना मकरूह है अगर बगैर सोहबत किये भी इंज़ाल हुआ तो रोज़ा टूट जायेगा और सोहबत की तो कफ्फारह वाजिब!
📘 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 125
*मसअला :-* अफ्तार के वक़्त जो दुआ पढ़ी जाती है वो एक दो लुक़्मा खाने बाद ही पढ़ी जाये बिस्मिल्लाह शरीफ के साथ रोज़ा खोलें फिर दुआ पढ़ें!
📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 1,सफह 13
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हिस्सा - 13
*मस्अला :-* इफ्तार करने की दुआ इफ्तार के बाद पढ़ना सुन्नत है इफ्तार से पहले नहीं!
📗 फ़तावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 4 सफह 651
*मस्अला :-* रमज़ानुल मुबारक की रातों में बीवी से हम्बिस्तरी करना जायज़ है!
📒 पारा 2 सूरह बक़रा आयत 187 रुकू 7
*मसअला :-* शरई उज़्र की वजह से रोज़ा ना रखने की इजाज़त है बाद रमज़ान रोज़ों की कज़ा करे,ये शरई उज़्र हैं 1. बीमारी 2. सफर 3. औरत को हमल हो या दूध पिलाने की मुद्दत में हो 4. सख्त बुढ़ापा 5. बेहद कमज़ोरी 6. जान जाने का डर.!
📓 दुर्रे मुख्तार,जिल्द 2,सफह 115
📘 बहारे शरियत,हिस्सा 5,सफह 130
*मसअला :-* औरत बगैर शौहर के इजाज़त के नफ्ली रोज़ा ना रखे, मगर रमज़ान का रोज़ा या रमज़ान में जो रोज़ा छूट गया था उसकी क़ज़ा रखने के लिए शौहर की इजाज़त की कुछ ज़रुरत नहीं, शौहर के मना करने पर भी औरत रोज़ा रखे!
📙 दुर्रे मुख्तार जिल्द 3 सफह 477
📗 बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 5
*मसअला :-* एक शख्स की तरफ से दूसरा शख्स रोज़ा नहीं रख सकता!
📓 बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 5
*मसअला :-* औरत को जब हैज़ वह निफास आगया तो रोज़ा जाता रहा!
📘 फतावा हिन्दिया जिल्द,1 सफह 207
*मस्अला :-* हैज़ वह निफास वाली औरत केबेहतर है कि दिन में छुप कर खाये पिये रोज़ा की तरह रहना उस पर ज़रुरी नहीं!
📙 बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 5
रोज़े के तअल्लुक़ से मोटे मोटे मसायल मैंने बयान कर दिये पूरी मअलूमात के लिए बहारे शरीयत का 5वां हिस्सा पढ़ा जाये!...✍🏻
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हिस्सा - 14
*तरावीह़ :-* नमाज़े तरावीह़ मर्द व औरत सबके लिए सुन्नते मुअक्किदह है इसका छोडना जायज़ नहीं!
📒 दुर्रे मुख्तार जिल्द 2, सफह 596
📓 बहारे शरीअत हिस्सा,4 सफह 688
📗 हमारा इस्लाम सफह 252
📙 हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम नें खुद तरावीह़ की नमाज़ पढ़ी और इसे बहुत पसंद फरमाया!
📒 बहारे शरीअत हिस्सा 4,सफह 688
हज़रते अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने कहा कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम नें इरशाद फरमाया कि, जो शख्स सच्चे दिल से सवाब की नियत से तरावीह़ की नमाज़ पढे़ तो उसके अगले गुनाह बख्श दिऐ जाते हैं!
📓 मुस्लिम शरीफ,जिल्द 1 सफह 259
📘 मिशकात शरीफ सफह 114
📙 अनवारूल ह़दीस सफह 115
तरावीह जमाअत से पढ़ना सुन्नते कफाया है,यानि अगर मस्जिद के सब लोग छोड़ देंगे तो सब गुनहगार होंगे और अगर किसी एक नें घर में तन्हा पढ़ ली,तो गुनहगार नहीं मगर ऐसे शख्स का जिसके वजह से जमाअत बड़ी होती हो,कि अगर वह छोड़ देगा तो लोग कम हो जायेंगे,तो उसे बिला उज़्र जमाअत छोड़ने की इजाज़त नहीं!
📘 फतावा हिन्दिया जिल्द,1 सफह 116
📒 बहारे शरीअत हिस्सा,4 सफह 691
तरावीह में एक बार क़ुरआन मजीद खत्म करना सुन्नते मुअक्किदह है और दो मरतबा फज़ीलत और तीन मरतबा अफज़ल- लोगों की सुसती की वजह से खत्म को तरक न करें!..✍🏻
📕 दुर्रे मुख्तार जिल्द 1 सफह 601
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हिस्सा - 15
*तरावीह़ :-* अगर एक खत्म करना हो तो बेहतर है कि 27 वें शब में खत्म हो फिर अगर इस रात में या इस के पहले खत्म हो तो तरावीह आखिर रमज़ान तक बराबर पढ़ते रहें कि सुन्नते मुअक्किदह हैं!
📘 बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफह 690
📗 फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 118
नाबालिग के पीछे बालिग की तरावीह ना होगी यही सही़ है!
📒 बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 692
📓 फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 85
तरावीह़ बैठ कर पढ़ना बिला उज़्र मकरूह है बल्कि बाज़ के नज़दीक तो होगी ही नहीं.!
📙 दुर्रे मुख्तार जिल्द 2 सफह 603
📘 बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफह 693
मुक़तदी को ये जायज़ नहीं कि बैठा रहे जब इमाम रुकू करने को हो तब ऐ खड़ा हो ये मुनाफिक़ीन से मुशाबहत है अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है मुनाफिक़ जब नमाज़ को खड़े होते हैं तो थके जी से.!
📒 बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफह 693
तरावीह पढ़ाने वाले को एक बार बिस्मिल्लाह शरीफ बुलंद यानि तेज़ आवाज़ से पढ़ना सुन्नत है और हर सूरत की इबतिदा में आहिस्ता पढ़ना मुस्तहब है,कुछ जगहों पर कहते हैं कि 114 बार बिस्मिल्लाह शरीफ तेज़ यानि बुलंद आवाज़ से पढी जाऐ वरना खत्म नही होगा ऐ बे असल है इस से बचना चाहिए!
📗 बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफह 694
शबीना की एक रात की तरावीह में पूरा क़ुरआन पढ़ा जाता है,जिस तरह आजकल रिवाज है कि कोई बैठा बातें कर रहा है,कुछ लोग लेटे हैं,कुछ लोग चाय पी रह है,कुछ लोग मस्जिद के बाहर हुक़्क़ा पी रहे हैं और जब जी में आया एक आद्ध रकाअत में शामिल भी हो गये य नाजायज़ है!
📓 बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफह 695
हमारे इमामे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु रमज़ान शरीफ में 61 खत्म किया करते थे, तीस दिन में,और तीस रात में और एक तरावीह में, और 45 साल ईशा के वज़ू से नमाज़े फज्र पढ़ी है!..✍🏻
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफह 695
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 16
*तरावीह 20 रकाअत या 8 :-* तरावीह चारों इमामों के नज़दीक 20 रकाअत है जबकि गैर मुक़ल्लिद जो अपने आप को अहले हदीस कहता है लेकिन दर हकीकत वह अहले हदीस कहलाने के क़ाबिल नहीं वो सिर्फ 8 रकाअत ही तरावीह पढ़ता है बुखारी शरीफ़ की जिस 11 रकाअत की रिवायत को गैर मुक़ल्लिदीन 8 रकाअत तरावीह के लिए पेश करता है वो दर अस्ल तरावीह नहीं बल्कि 8 रकाअत तहज्जुद और 3 रकाअत वित्र है और हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से ये 11 रकाअत पूरी ज़िन्दगी में साबित है क्योंकि आप पर तहज्जुद भी फर्ज़ थी,जैसा कि उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आइशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि :
हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम रमज़ान और ग़ैर रमज़ान में 11 रकाअत से ज़्यादा अदा नहीं फरमाते थे!
📓 बुखारी,जिल्द 1,सफह 154
📒 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 254
ज़रा गौर करें इस हदीसे पाक से साफ़ ज़ाहिर होता है कि अगर ये 8 रकाअत तरावीह़ की पढ़ी जा रही थी तो ग़ैर रमज़ान में तरावीह तो है नहीं फिर क्यों हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ग़ैर रमज़ान में भी 8 रकात तरावीह़ पढ़ रहे हैं तो मानना पड़ेगा कि ये 8 रकात तरावीह नहीं बल्कि तहज्जुद की 8 रकाते हैं और 3 रकात वित्र,फुक़्हा फरमाते हैं कि वित्र वाजिबुल लैल यानि रात की नमाज़ है तो अगर किसी को रात में उठने का यक़ीन हो तो वित्र रात में पढ़ने के लिए मुअख्खर कर दे,तो जब हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर तहज्जुद फर्ज़ थी और आपको उसे सोकर उठकर पढ़ना ही था तो इसलिए आप हमेशा ईशा के बाद और रमज़ान में तरावीह के बाद वित्र छोड़ देते थे और जब रात को तहज्जुद पढ़ लेते तब वित्र पढ़ते यही राजेह क़ौल है!
कसीर सहाब ए किराम जिनमे हज़रते उमर फारुक़े आज़म हज़रते मौला अली हज़रते इमाम हसन हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास हज़रते कअब हज़रते यज़ीद बिन रूमान हज़रत सायब बिन यज़ीद रिज़वानुल्लाहि तआला अलैहिम अजमईन से यही मरवी है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम व तमाम सहाबा 20 रकाअत तरावीह़ ही पढ़ते थे,20 रकाअत तरावीह़ की दलील इन तमाम हदीस की किताबों में मौजूद है!..✍🏻
📗 जामेअ तिर्मिज़ी,जिल्द 1,सफह 139
📙 अबु दाऊद,जिल्द 1,सफह 202
📘 इब्ने अबी शीबा,जिल्द 2,सफह 393
📓 सुनन कुबरा,जिल्द 2,सफह 496
📒 ज़जाजतुल मसाबीह,जिल्द 2,सफह 307
📙 अब्दुर रज़्ज़ाक़,जिल्द 4,सफह 261
📕 तिब्रानी,जिल्द 1,सफह 243
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हिस्सा - 17
*तरावीह 20 रकाअत या 8 :-* हां एक बात और अर्ज़ कर दूं कि जमात से तरावीह पढ़ना हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम या अबु बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के ज़माने में नहीं था बल्कि इसकी शुरुआत खलीफये दोम हज़रते सय्यदना उमर फारूक़े आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के दौर में आपकी इजाज़त से हुई,वाक़िया ये हुआ कि :
एक रोज़ आप रमज़ान शरीफ में मस्जिद तशरीफ ले गए जहां पर लोग अलग अलग यानि तन्हा तन्हा अपनी अपनी नमाज़े तरावीह़ पढ़ रहे थे आपने उन लोगों को देखकर फरमाया कि मैं मुनासिब समझता हूं कि इन सबको मुत्तहिद कर दूं और फिर हज़रते अबी बिन कअब को इमाम बनाकर जमात से तरावीह़ पढ़ने का हुक्म दिया और जमात से उन्हें पढ़ते देखकर फरमाया कि "नेअमतिल बिदअते हाज़ेही" यानि कितनी अच्छी बिदअत है!
📓 बुखारी,हदीस 2010
📗 मिरक़ात,जिल्द 1,सफह 179
और पिछले 1400 सालों से मुसलमानों का अमल भी इसी पर रहा है जो कि 20 रकाअत तरावीह़ के हक़ होने की दलील है एक बात और हर नया काम यानि कि हर बिदअत गुमराही है का रट्टा मारने वाले लोग हज़रते उमर फारूक़े आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का क़ौल देखें कि आप खुद फरमा रहे हैं कि कितनी अच्छी बिदअत है मालूम हुआ कि हर बिदअत गुमराही नहीं और हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का ये फरमाना कि हर बिदअत गुमराही है इससे मुराद ये है कि जो नया काम शरीयत के खिलाफ होगा वो गुमराही होगा और जो नया काम शरीयत की मुखालिफत ना करे तो हरगिज़ वो गुमराही नहीं,बिदअत के बारे में अलग से पोस्ट बनी हुई है फिर कभी इंशाअल्लाह उसे सेंड करूंगा!..✍🏻
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हिस्सा - 18
*मसाइले ज़कात मसअला :-* जिसके पास 7.5 तोला सोना या 52.5 तोला चांदी या इसके बराबर की रकम पर साल गुज़र गई तो ज़कात फर्ज़ हो गई!
📒 फतावा आलमगीरी,जिल्द 1,सफह 168
मसलन आज 09,अप्रेल 2022,को चांदी 69125 हज़ार रू किलो है यानि 52.5 तोला चांदी जो कि 653.184 ग्राम हुई उसकी कीमत तक़रीबन 36400,रू हुई तो अगर आज यानि 07,रमज़ान को कोई इतने रूपये का मालिक है और अगले साल 06- रमज़ान को फिर उसके पास साहिबे निसाब की जो मिल्क बनती होगी उतनी रकम पाई जायेगी तो उस पर ज़कात फर्ज़ हो जायेगी अगर चे वो पूरे साल फकीर रहा हो मतलब ये कि पूरे साल कभी उसके पास निसाब के बराबर रक़म हो या ना हो मगर शुरुआत और इख़्तिताम पर अगर निसाब का मालिक हुआ तो ज़कात फर्ज़ हो गई,बाज़ लोग ये सवाल करते हैं कि उनके पास 7.5 तोला सोना नहीं है बल्कि 1 या 2 तोला सोना ही है तो क्या उनको भी ज़कात देनी होगी तो याद रखें कि अगर सिर्फ सोना रखा है और कैश कुछ नहीं है या चांदी ज़र्रा बराबर भी नहीं है और माले तिजारत भी कुछ नहीं है तब तो सोने का निसाब 7.5 तोला ही माना जायेगा यानि जब तक कि 7.5 तोला सोना नहीं होगा ज़कात फ़र्ज़ नहीं होगी लेकिन अगर सोना 0.5 तोला कुछ चाँदी कुछ कैश मौजूद है और सबका टोटल 52.5 तोला चांदी की कीमत 36400 रुपये जो आजकल के रेट से बन रही है तो ज़कात फ़र्ज़ हो गई,सोने चांदी की कीमत के ऐतबार से रक़म घटती बढ़ती रहती है!
*मसअला :-* हाजते असलिया यानि रहने का घर,पहनने के कपड़े,किताबें,सफर के लिए सवारियां,घरेलु सामान पर ज़कात फर्ज़ नहीं है!
📗 फतावा आलमगीरी,जिल्द 1,सफह 160
एसी-फ्रिज-बाईक-फोर व्हीलर ये सब हाजते असलिया में दाखिल हैं, इसी तरह किसी के पास कई मकान हैं और वो सब उसके खुद के रहने के लिए है तो ज़कात नहीं लेकिन अगर किसी मकान में किरायेदार को बसा दिया और उसका किराया इतना है कि ये साहिबे निसाब को पहुंच जाये तो किराये पर ज़कात फर्ज़ होगी,उसी तरह दुकान पर तो ज़कात नहीं है मगर उसमे भरे हुये माल की ज़कात है माल से मुराद फक़त बेचने और खरीदने का सामान है उसके काम करने का सामान नहीं मस्लन उसके औज़ार मशीनें फर्नीचर पर्सनल इस्तेमाल का सामान नहीं,लिहाज़ा सब एहतियात से जोड़कर ज़कात अदा करी जाये!
*मसअला :-* पालिसी या f.d अपने नाम है तो ज़कात फर्ज़ है लेकिन अपनी नाबालिग औलाद को देकर उनको मालिक बना दिया या उनके नाम से फिक्स किया तो ज़कात नहीं!..✍🏻
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 11
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 19
*मसाइले ज़कात मसअला :-* ये मसअला भी खूब ज़हन में रखें रुपया या सोना चांदी अगर है तो उस पर ज़कात फर्ज़ है अगर चे किसी भी काम के लिए रखा हो मसलन हज के लिए रुपया रखा है या बेटी की शादी के लिए तो अगर निसाब से ज़्यादा है तो ज़कात देनी पड़ेगी,हां एक सूरत ये है कि अगर 5 लाख रुपया बेटी की शादी के लिए फिक्स किया तो अगर अपने नाम से करेगा तो ज़कात हर साल देनी होगी और अगर अपनी बेटी के नाम से फिक्स किया तो जब तक वो नाबालिग़ रहेगी उस पैसे पर ज़कात नहीं निकलेगी मगर जैसे ही वो बालिग़ होगी उस पैसे पर ज़कात फर्ज़ हो जायेगी अगर लड़की मालिक है तो लड़की पर ज़कात फर्ज़ हो गई!
*मसअला :-* औरतों के पास जो ज़ेवर होते हैं उनकी मालिक औरत खुद होती है तो अगर सोना चांदी मिलाकर 52.5 तोला चांदी की कीमत, आज के रेट के हिसाब से 36400,रु.बनती है तो औरत पर ज़कात फर्ज़ है,शौहर पर उसकी ज़कात नहीं शौहर चाहे तो दे और चाहे ना दे उस पर कुछ इलज़ाम नहीं,अगर शौहर अपनी बीवी के ज़ेवर की ज़कात नहीं देता तो औरत जितनी रकम ज़कात की बनती है उतने का ज़ेवर बेचकर अदा करे!
📘 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 62
📓 क्या आप जानते हैं,सफह 391
*मसअला :-* किसी पर 1 लाख रुपए क़र्ज़ हैं उसको कहीं से 1 लाख रुपये मिल गए अगर वो अपना क़र्ज़ नहीं चुकाता तो बुरा करता है मगर अब भी उस पर ज़कात फर्ज़ नहीं है!
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 15
ज़कात किसको दें और किसको नहीं मगर सबसे पहले ये मसअला ज़हन में रखें कि ज़कात में तम्लीक शर्त है मतलब ये कि जिसको ज़कात या फ़ित्रे का रुपया कपड़ा या खाना दिया जा रहा है उसे मालिक बना दिया जाये और अगर युंही ज़कात के पैसो से किसी गरीब को खाना खिलाया या ऐसे नाबालिग को दिया जो माल पर क़ब्ज़ा भी ना कर सकता हो या जानवरों-परिंदों के लिए दाना पानी का इंतेज़ाम किया तो हरगिज़ ज़कात अदा ना होगी,हाँ ज़कात के पैसे का खाना देते वक़्त ये कहा कि चाहे खाओ और चाहे ले जाओ तो अब उसको मालिक बना दिया लिहाज़ा ज़कात अदा हो जायेगी!
*मसअला :-* सगे भाई-बहन,चाचा,मामू,खाला,फूफी,सास-ससुर,बहु-दामाद या सौतेले माँ-बाप को ज़क़ात की रक़म दी जा सकती है!..✍🏻
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 60-64
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 20
*मसाइले ज़कात मसअला :-* ज़कात, फित्रा या कफ्फारह का रुपया अपने असली मां-बाप, दादा-दादी, नाना-नानी, बेटा-बेटी, पोता-पोती, नवासा-नवासी को नहीं दे सकते!
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 60
*मसअला :-* कफन दफन में तामीरे मस्जिद में मिलादे पाक की महफिल में ज़कात का रुपया खर्च नहीं कर सकते किया तो ज़कात अदा नहीं होगी!
📘 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 24
*मसअला :-* अफज़ल है कि ज़कात पहले अपने अज़ीज़ हाजतमंदों को दें दिल में नियत ज़कात हो और उन्हें तोहफा या क़र्ज़ कहकर भी देंगे तो ज़कात अदा हो जायेगी!
📙 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 24
*मसअला :-* अफज़ल है कि ज़कात व फितरे की रक़म जिसको भी दें तो कम से कम इतना दें कि उसे उस दिन किसी और से सवाल की हाजत ना पड़े!
📓 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 66
*मसअला :-* हदीस में है कि रब तआला उसके सदक़े को क़ुबूल नहीं करता जिसके रिश्तेदार मोहताज़ हो और वो दूसरों पर खर्च करे!
📗 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 65
*मसअला :-* तंदरुस्त कमाने वाले शख्स को अगर वो साहिबे निसाब ना हो तो उसे ज़कात दे सकते हैं पर उसे खुद मांगना जायज़ नहीं!
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 61
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 21
*मसाइले ज़कात मसअला :-* जिसके पास खुद का मकान, दुकान, खेत या खाने का गल्ला साल भर के लिए मौजूद हो मगर वो साहिबे निसाब ना हो तो उसे ज़कात व फित्रा दे सकते हैं!
📓 बहारे शरीअत, हिस्सा 5,सफह 62
*मसअला :-* काफिर व बदमज़हब को ज़कात-फित्रा-हदिया-तोहफा कुछ भी देना नाजायज़ है अगर उनको ज़क़ात व फितरे की रकम दी तो अदा ना होगी!
📗 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 63-65
सुन्नी मदारिस को ज़कात व फित्रा दे सकते हैं मगर वहाबी देवबंदी क़ादियानी खारजी शिया अहले हदीस जमाते इस्लामी वाले व इन बदअक़ीदों के मदारिस को ज़कात व फित्रा नहीं दे सकते अगर देंगे तो अदा नहीं होगी!
*मसअला :-* बाप अपनी बालिग़ औलाद की तरफ से या शौहर बीवी की तरफ से ज़कात या सदक़ये फित्र देना चाहे तो बगैर उनकी इजाज़त के नहीं दे सकता!
📓 फतावा अफज़लुल मदारिस,सफह 88
*मसअला :-* ज़कात व फित्रा बनी हाशिम यानि कि सय्यदों को नहीं दे सकते!
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 63
अगर कोई सय्यद साहब परेशान हाल हैं तो उनकी मदद करना मुसलमान पर ज़रूरी है उनकी मदद अपने असली माल से करें ज़कात व फित्रा से नहीं!
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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हिस्सा - 22
*ज़कात :-* कंज़ुल ईमान :- कुछ अस्ल नेकी ये नहीं कि (नमाज़ मे) मुंह मशरिक या मग़रिब की तरफ करो हाँ अस्ल नेकी ये है कि ईमान लाये अल्लाह और क़यामत और फरिश्तों और किताब और पैगम्बरों पर,और अल्लाह की मुहब्बत में अपना अज़ीज़ माल दें रिश्तेदारो और यतीमों और मिस्कीनों और राह गीर और साईलों को और गर्दने छुड़ाने में,और नमाज़ क़ायम रखे और ज़कात दे और अपना कौल पूरा करने वाले जब अहद करें और सब्र वाले मुसीबत और सख्ती में,और जिहाद के वक़्त यही है जिन्होंने अपनी बात सच्ची की,और यही परहेज़गार हैं!
*📓 पारा 2,सूरह बक़र,आयत 177*
वैसे तो क़ुर्आन में तक़रीबन 150 मर्तबा सदक़े की ताकीद आई है जिसमे 70 से ज़्यादा बार नमाज़ के साथ ज़कात का हुक्म दिया गया है मगर ये आयत पेश करने का एक दूसरा मक़सद था,मक़सद ये था कि बाज़ लोग मुसलमानों को ये समझाने की कोशिश करते हैं कि “जिसने नमाज़ पढ़ी रोज़ा रखा हज किया ज़कात दी यानि बज़ाहिर मुसलमान हैं उसको काफ़िर किस तरह कहा जा सकता है क्योंकि हदीसे पाक में आता है कि जो हमारी नमाज़ पढ़े हमारे क़िब्ले को मुंह करे हमारा ज़बीहा खाये वो मुसलमान है” तो इस बात का रद्द तो अल्लाह ने क़ुर्आन में ही साफ साफ फरमा दिया है कि सिर्फ अपना मुंह मशरिक या मग़रिब की तरफ कर लेने से कोई मुसलमान नहीं हो जाता बल्कि मुसलमान होने के लिए अल्लाह और उसके नबियों उसकी किताबों उसके फरिश्तों और क़यामत पर ईमान लाना होगा वरना लाखों क्या करोड़ों बरस नमाज़ पढ़े अगर उसके महबूबो से बुग्ज़ो हसद रखेगा तो मलऊन बनाकर हमेशा के लिए जहन्नम में डाल दिया जायेगा इसे समझने के लिए इब्लीस की मिसाल काफी है,खैर अपने मौज़ू पर आते हैं जिस तरह ज़कात के बारे में काफी आयतें नाज़िल हुई उसी तरह बेशुमार हदीसों में भी इसका तज़किरा मिलता है चन्द का ज़िक्र करता हूं!
*हदीस :-* हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि जो लोग अपने माल की ज़कात नहीं अदा करेंगे तो क़यामत के दिन उनका माल गंजे सांप की शक्ल में उनके गले में पड़ा होगा और वो अपने जबड़ों से उसके मुंह को पकड़े होगा और कहेगा कि मैं तेरा माल हूं!
*📗 बुखारी,जिल्द 1,सफह 188*
*हदीस :-* हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो सोने और चांदी का मालिक हुआ और उसने उसका हक़ अदा ना किया यानि ज़कात ना दी तो क़यामत के दिन आग के बने हुए पतरों से उसकी पेशानी और पहलु और पीठ को दागा जायेगा,और जिन्होंने अपने जानवरों की ज़कात ना दी तो क़यामत के दिन उसके ऊपर से तमाम जानवरों को गुज़ारा जायेगा जिससे कि वो रौंदा जायेगा!
*📓 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 318*
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हिस्सा - 23
*ज़कात :-* *हदीस* जिस पर हज फर्ज़ हुआ और हज ना किया और ज़कात फर्ज़ हुई और ज़कात ना दी तो मौत के वक़्त वो वापसी का सवाल करेगा (यानि जिस तरह काफ़िर पर अज़ाब मुसल्लत किया जायेगा और वो तौबा करने के लिए वापस दुनिया में आने की ख्वाहिश करेगा मआज़ अल्लाह ऐसा ही कुछ उस बदकार मुसलमान के साथ भी होगा कि जिससे वो वापस आकर अपना हक़ अदा करने की दुआ करेगा,मगर ऐसा होगा नहीं)
📒 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 165
*हदीस :-* हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम फरमाते हैं कि मुसलमान को जो भी माल का नुक्सान होता है वो ज़कात ना देने के सबब से होता है!
📗 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 7
*फुक़्हा :-* शैतान हर तरह से इंसान को फरेब देने में लगा रहता है मगर जब कोई बंदा उसके फरेब में नहीं आता तो उसके माल से लिपट जाता है और उसको सदक़ा व खैरात करने से रोक देता है!
📓 तिलबीसे इब्लीस,सफह 455
*फुक़्हा :-* ताबईन रज़ियल्लाहु तआला अन्हुम की एक जमाअत किसी फौत शुदा के घर उसकी ताज़ियत को गई वहां मरने वाले का भाई आहो बका व चीख पुकार कर रहा था,इस पर तमाम हज़रात ने उसे सब्र करने की तालीम दी इस पर वो बोला कि मैं कैसे सब्र करूं जबकि मैं खुद अपने भाई पर अज़ाब होते देखकर आ रहा हूं,वाक़िया कुछ युं है कि जब सब उसे दफ्न करके चले गए तो मैं वहीं बैठा रहा अचानक अपने भाई के चिल्लाने की आवाज सुनी वो चिल्ला रहा था कि सब मुझे छोड़कर चले गए मैं यहां अज़ाब में हूं मेरे रोज़े मेरी नमाज़ें सब कहां गई,इस पर मुझसे बर्दाश्त ना हुआ मैंने कब्र खोदा तो देखता क्या हूं कि उसकी क़ब्र में आग भड़क रही है और उसके गले में आग का तौक़ पड़ा है मैंने सोचा कि वो तौक़ निकाल दूं तो देखो कि खुद मेरा हाथ जलकर सियाह हो गया अब बताइये मैं कैसे सब्र करूं,जब उससे पूछा गया कि तुम्हारे भाई पर ये अज़ाब क्यों आया तो वो कहने लगा कि वो नमाज़ रोज़े और दीगर इबादतें तो खूब करता था मगर ज़कात नहीं देता था,जब ये खबर सहाबिये रसूल हज़रत अबूज़र रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को मिली तो आपने फरमाया कि ये अल्लाह तआला ने तुमको इबरत हासिल करने के लिए दिखाया है वरना काफिरो मुशरिक पर तो अज़ाब दायमी है!
📕 मुकाशिफातुल क़ुलूब,सफह 164
जो क़ौम ज़कात अदा नहीं करती तो मौला तआला उन पर से बारिश को रोक देता है (यानि सूखा अकाल पड़ जाता है)
📘 किताबुल कबायेर,सफह 59
लिहाज़ा मुसलमानों अपने माल की ज़कात पूरी पूरी ईमानदारी से अदा करें वरना अज़ाब के लिए तैयार रहें!..✍🏻
والله تعالیٰ اعلم بالصواب
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 24
*सदक़ये फित्र :-* मसअला : सदक़ये फित्र मालिके निसाब मर्द वह औरत बालिग नाबालिग आक़िल पागल हर मुसलमान पर वाजिब है, 2 किलो 47 ग्राम गेंहू या उसकी क़ीमत अदा करें!
📙 अनवारूल ह़दीस सफह 257
*हदीस :-* रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि बन्दे का रोज़ा आसमानो ज़मीन के बीच रुका रहता है जब तक कि सदक़ये फित्र अदा ना कर दे!
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 66
*हदीस :-* रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि सदक़ये फित्र इस लिए मुक़र्रर किया गया ताकि तमाम बुरी और बेहूदा बातों से रोज़ों की तहारत हो जाये!
📓 अनवारुल हदीस,सफह 257
सदक़ये फित्र देने वाले को उसके हर दाने के बदले जन्नत में, 70000 महल मिलेंगे!
📗 क्या आप जानते हैं,सफह 384
तालिबे इल्म पर 1 दरहम खर्च करना गोया उहद पहाड़ के बराबर सोना खर्च करना है!
📒 क्या आप जानते हैं,सफह 385
सदक़ये फित्र में गेहूं की शुरुआत हज़रत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के दौर से हुई इससे पहले सदक़ये फित्र में खजूर मुनक्का और जौ ही दिया जाता था!
📘 क्या आप जानते हैं,सफह 393
उम्मते मुहम्मदिया में जब कोई शख्स सदक़ा करता है तो जहन्नम रब से अर्ज़ करती है कि मौला मुझे सज्दये शुक्र की इजाज़त दे कि इस उम्मत से एक शख्स तो मुझसे निजात पा गया!..✍🏻
📕 क्या आप जानते हैं,सफह 394
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हिस्सा - 25
*सदक़ये फित्र :-* यहां निसाब से मुराद ज़कात का निसाब ही है मगर फर्क इतना है कि सदक़ये फित्र वाजिब होने के लिए माल पर साल गुज़रना ज़रूरी नहीं बल्कि ईद की नमाज़ से पहले अगर 52.5 तोला चांदी की क़ीमत जो आजकल की कामत के हिसाब से तक़रीबन 36400- रू बनेगा का मालिक हो गया तो सदक़ये फित्र वाजिब हो गया,यही निसाब क़ुर्बानी के लिए भी होता है यानि क़ुर्बानी के दिनों में अगर इतनी कीमत का मालिक हो गया तो क़ुर्बानी वाजिब हो गई माल पर साल गुज़रना ज़रूरी नहीं!
*मसअला :-* मालिके निसाब मर्द पर अपना और अपनी नाबालिग औलाद की तरफ से सदक़ये फित्र देना वाजिब है बाप ना हो तो दादा दे मगर मां पर वाजिब नहीं!
📗 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 67-68
*मसअला :-* बीवी और बालिग़ औलाद का सदक़ये फित्र मर्द पर वाजिब नहीं हां अदा करना चाहे तो कर सकता है अगर उनका खर्च उठाता है तो बग़ैर इजाज़त भी दे सकता है अदा हो जायेगा वरना बग़ैर इजाज़त नहीं,युंही मां-बाप दादा-दादी नाबालिग भाई-बहन का सदक़ये फित्र मर्द पर वाजिब नहीं हां उनकी इजाज़त लेकर दे सकता है!
📘 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 69
*मसअला :-* सदक़ये फित्र के लिए रोज़ा रखना शर्त नहीं अगर शरई उज़्र की वजह से या मआज़अल्लाह क़सदन भी रोज़ा ना रखे तब भी वाजिब है!
📓 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 68
*मसअला :-* बेहतर है कि ईद की सुबह होने के बाद ईदगाह जाने से पहले अदा करे और अगर रमज़ान में ही अदा कर दिया तब भी अदा हो गया युंही अगर ईद की नमाज़ हो गई और सदक़ये फित्र अदा ना किया तब भी वो साकित ना हुआ अब अदा करे!..✍🏻
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 67/71
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 26
*सवाल :-* क्या मर्द हज़रात घर में रमज़ान के आखिरी अशरे का एतेक़ाफ़ कर सकता है जवाब इनायत करें महरबानी होगी!?
*जवाब :-* मर्द के लिए एतेक़ाफ़ घर में करना जायज़ नहीं कियोंकि एतेक़ाफ़ के लिए मस्जिद शर्त है- अल्लाह तआला के लिए मस्जिद में नियत के साथ ठहरने को एतेक़ाफ़ कहते हैं, एतेक़ाफ़ की दो शर्तें हैं!
1- पहली शर्त मस्जिद होना!
2- दूसरी शर्त एतेक़ाफ़ करने वाले का मुसलमान, आक़िल और जनाबत से पाक होना और औरत है तो उस का हैज़ वो निफास से पाक होना भी शर्त है अलबत्ता बालिग़ होना शर्त नहीं बल्कि नाबालिग बच्चा जो तमीज़ और समझ रखता हो तो एतेक़ाफ़ कर सकता है, एतेक़ाफ़ हर मस्जिद में जायज़ है अलबत्ता मस्जिद जमाअत यानि एसी मस्जिद जिस में इमाम मुअज़्ज़िन मुक़र्रर हों अगर चेह पांचों वक़्त की जमाअत न होती हो उस में एतेक़ाफ़ ज़्यादा मुनासिब है!
📒 दुर्रे मुख़्तार व रद्दुल मुह़तार जिल्द 3 सफह 429
📕 रोज़े के ज़रुरी मसाइल सफह 101
📙 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 1020
*सवाल :-* एक सवाल अर्ज़ है कि रोज़े की ह़ालत में आंखों में दवा डाल सकते हैं कि नहीं, जवाब इनायत करें महरबानी होगी!?
*जवाब :-* रोज़े की ह़ालत में आंखों में दवा डालने में कोई ह़रज नहीं इस से रोज़ा नहीं टूटेगा!
📓 शामी जिल्द 2 सफह 395
*सवाल :-* सवाल रात में आंखें नहीं खुली जिस की वजह से सेहरी नहीं खा पाये तो क्या बगैर सेहरी के रोज़ा रख सकते हैं!
*जवाब :-* सेहरी खाना सुन्नत है और रोज़ा रखना फर्ज़ है अब आप ही बतायें अगर सुन्नत छूट जाये तो क्या फर्ज़ भी छोड़ देंगे?- अगर सेहरी में आंख न खुले तो भी बगैर सेहरी के रोज़ा रखना जायज़ है!..✍🏻
📗 फतावा फैज़ुर रसूल जिल्द 1 सफह 513
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हिस्सा - 27
*सवाल :-* रोज़े की ह़ालत में इतर खुश्बू लगा सकते हैं कि नहीं?
*जवाब :-* रोज़े की ह़ालत में इतर लगाना, तेल लगाना बाल तरशवाना, बाम लगाना, वैसलीन या क्रीम लगाना, तेल की मालिश करना, यह सब जायज़ हैं, इन सब चीजों से रोज़ा नहीं टूटता है!
📕 फतावा मरकज़ी दारुल इफ़्ता बरेली शरीफ़ सफह 357
*सवाल :-* रमज़ान की रातों में हम अपनी बीवी से सोहबत हमबिस्तरी कर सकते हैं कि नहीं, जवाब इनायत करें-?
*जवाब :-* रमज़ानुल मुबारक की रातों में बीवी से हमबिस्तरी करना जायज़ है!
📘 पारा 2 सूरह बक़रा आयत नं 187
*सवाल :-* साल में कौन कौन से दिन रोज़ा नहीं रख सकते-?
*जवाब :-* ईद के दिन,और बक़रा ईद के दिन और बक़रा ईद की 11-12-13- जिलहिज्ज को रोज़ा रखना मकरुहे तह़रीमी है, यानि इन दिनों का रोज़ा रखना जायज़ नहीं!
📗 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 967
📓 फतावा हिन्दिया जिल्द जिल्द 1 सफह 193
📒 दुर्रे मुख़्तार व, रद्दुल मुह़तार किताबुस्सोम जिल्द 3 सफह 388-392
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 28
*सवाल :-* अगर कोई शख़्स रमज़ान का रोज़ा नहीं रखा तो क्या उस को भी सदक़ये फ़ित्र अदा करना पड़ेगा या नहीं?
*जवाब :-* जो शख़्श रोज़ा न रखे उस पर भी सदक़ये फ़ित्र वाजिब है कियोंकि सदक़ये फ़ित्र के वुजूब के लिए रोज़ा रखना शर्त नहीं!
📓 शामी जिल्द 2 सफह 76
*सवाल :-* अगर कोई शख्स़ नापाकी की ह़ालत में रोज़ा रख ले और पूरा दिन गुज़र जाए तो क्या उस का रोज़ा माना जायेगा कि नहीं?_
*जवाब :-* नापाकी की ह़ालत में भी रोज़ा दुरुस्त हो जायेगा,पर इतनी देर नापाक रहना जिस से नमाज़ क़ज़ा हो जाये येह ह़राम है वोह शख्स नमाज़ें छोड़ने के सबब सख्धत गुनहगार होगा!
📙 फ़तावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 4 सफह 615
*सवाल :-* एक सवाल अर्ज़ है कि खाने पीने के लिए एतेक़ाफ़ करना कैसा है, हमारे यहाँ जो एतेक़ाफ़ बैठता है उस को खाने के लिए बहुत मिलता है कुछ लोग इसी लालच में बैठते हैं इसके बारे में बतायें कुछ-?
*जवाब :-* खाने पीने के लिए एतेक़ाफ़ न किया जाए बल्कि एतेक़ाफ़ सिर्फ ज़िक्रे इलाही के लिए किया जाए!
📒 मलफ़ूज़ाते आला ह़ज़रत हिस्सा 1 सफह 86/87
*सवाल :-* एक सवाल है कि मस्जिद में सोना कैसा है कुछ लोग मस्जिद में नमाज़ पढ़ कर सो जाते हैं ऐसा करना चाहिए कि नहीं?
*जवाब :-* मस्जिद में सोना जायज़ नहीं है मगर जो एतेक़ाफ़ की नियत कर ले फिर कुछ देर के लिए ज़िक्रे इलाही में मशगूल हो जाए फिर उसके बाद सोना चाहे तो सो सकता है!
📕 फतावा आलमगीरी जिल्द 5 सफह 321-- کتاب الکراھیتہ، باب اداب المسجد، والقبلتہ-- الخ
📚 रद्दुल मुह़तार अला दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 525--- کتاب الصلوۃ، باب ما یفسد الصلوۃ، وما یکرہ فیھا
*सवाल :-* क्या एतेक़ाफ़ में बैठने वाला शख़्स मस्जिद में ही दीनी मसाइल ब्यान कर सकता है-?
*जवाब :-* बिलकुल मोतकिफ़ एतेक़ाफ़ के दौरान दीनी मसाइल ब्यान कर सकता है इस में कोई ह़रज नहीं!
📘 फ़तावा नूरिया जिल्द 2 सफह 283/286
📕 एतेक़ाफ़ के मसाइल सफह 24
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 29
*सवाल :-* क्या एतेक़ाफ़ में बैठने वाला शख्स रोज़ा खोलने के बाद सिगरेट पी सकता है?
*जवाब :-* मोतकिफ़ एतेक़ाफ़ के दौरान ऐने मस्जिद जैसे मस्जिद का ह़ाल और सिहन में सिगरेट नहीं पी सकता, लेकिन फ़नाऐ मस्जिद में इस तरह़ सिगरेट पी सकता है कि सिगरेट का धुआँ ऐने मस्जिद तक न पहुंचे, और मस्जिद में दाख़िल होने से पहले मुंह को अच्छी तरह़ साफ़ कर ले, कियोंकि अगर सिगरेट की बदबू ऐने मस्जिद तक पहुंची तो भी सिगरेट पीना जायज़ नहीं होगा, या मोतकिफ़ के मुंह में सिगरेट की बू बाक़ी हुई तो उसके लिए मस्जिद में दाख़िल होना जायज़ नहीं होगा!
📙 फतावा फैज़ुर रसूल जिल्द 1 सफह 535
📒 एतेक़ाफ़ के मसाइल सफह 23
*नोट :-* अगर मोतकिफ़ सिगरेट पीने के लिए मस्जिद के अह़ाता से बाहर निकला तो उसका एतेक़ाफ़ टूट जायेगा_!
फ़नाऐ मस्जिद उसे कहते हैं मस्जिद से मिली हुई वह जगह जो मस्जिद की ज़रुरियात के लिए वक़्फ़ की गई हो वह फ़नाऐ मस्जिद कहलाती है जैसे, वुज़ू खाना इस्तिन्जा खाना,गुस्ल खाना,मस्जिद से बिलकुल मिले हुए, इमाम वो मुअज़्ज़िन के ह़ुजरे कमरे नमाज़ियों के जूते उतारने की जगह वगैरह यह सब फ़नाऐ मस्जिद के हुक्म में दाख़िल है!
📘 फतावा अमजदिया जिल्द 1 सफह 399
*सवाल :-* अगर एतेक़ाफ़ में बैठने वाला बगैर किसी मजबूरी के भूल कर मस्जिद से बाहर निकल जाए तो उसका एतेक़ाफ़ टूटेगा कि नहीं!
*जवाब :-* मोतकिफ़ बगैर उज़्र के मस्जिद से भूल कर निकले या जानबूझकर निकले दोनों सूरतों में उसका एतेक़ाफ़ टूट जायेगा, अलबत्ता बिला उज़्र यानि बगैर किसी मजबूरी के जानबूझकर मस्जिद से निकलने की वजह से मोतकिफ़ गुनहगार भी होगा!
📕 फतावा आलमगीरी जिल्द 1 सफह 211--- کتاب الصوم، الباب السابع فی الاعتکاف،، دارالکتب العلمیہ بیروت،
📓 रद्दुल मुह़तार अला दुर्रे मुख़्तार किताबुस्सोम बाब एतेक़ाफ़, जिल्द 3 सफह 501
*सवाल :-* अगर फ़नाऐ मस्जिद में वुज़ू खाना,गुस्ल खाना,और इस्तिन्जा खाना,मौजूद हो तो क्या मोतकिफ़ क़जाऐ ह़ाजत और गुस्ल फर्ज़ होने पर मस्जिद से बाहर जा सकता है?
*जवाब :-* जब मस्जिद में सब इंतिज़ाम है तो फिर बाहर नहीं जा सकता, यानि फ़नाऐ मस्जिद में वुज़ू खाना, गुस्ल खाना और इंस्तिंजा खाना मौजूद हो तो मोतकिफ़ क़जाऐ ह़ाजत और गुस्ल फर्ज़ होने पर मस्जिद के अह़ाता से बाहर नहीं जा सकता क्योंकि अब बाहर जाने के लिए ज़रुरत साबित नहीं है, लिहाज़ा अगर इस सूरत में यह मस्जिद से बाहर जायेगा तो उसका एतेक़ाफ़ टूट जायेगा!...✍🏻
📗 माखूज़ अज़ रद्दुल मुह़तार अला दुर्रे मुख़्तार जिल्द 3 सफह 501-- किताबुस्सोम, बाब एतेक़ाफ़
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 30
*सवाल :-* क्या मोतकिफ़ माइक, लोडस्पीकर पर क़ुरआन पाक या नात शरीफ़ पढ़ सकता है या माइक- लोडस्पीकर पर दर्स दे सकता है??
*जवाब :-* मस्जिद में या फ़नाऐ मस्जिद में मोतकिफ़ यह सब काम कर सकता है उस से एतेक़ाफ़ पर कोई फरक़ नहीं पड़ता, लेकिन उस में यह अह़तियात है कि किसी की इबादत या आराम में ख़लल (ख़राबी) न हो!
*📙 एतेक़ाफ़ के मसाइल सफह 24*
*सवाल :-* रमज़ानुल मुबारक के आख़िरी अशरे का एतेक़ाफ़ की नियत किस तरह की जायेगी..??
*जवाब :-* इस एतेक़ाफ़ की नियत इस तरह की जायेगी : मैं अल्लाह पाक की रिज़ा के लिए रमज़ानुल मुबारक के आख़िरी अशरे के सुन्नते एतेक़ाफ़ की नियत करता हूँ, या नियत (करती हूँ )!
*नोट :-* याद रखिये कि दिल में नियत होना शर्त है, दिल में नियत हाज़िर होते हुए ज़बान से भी कह लेना बेहतर है!
*सवाल :-* रमज़ानुल मुबारक के आख़िरी अशरे का एतेक़ाफ़ किस दिन और किस वक़्त मुकम्मल होगा?
*जवाब :-* अगर 29 रमज़ानुल मुबारक को ईद का चांद नज़र आ गया तो चांद के नज़र आने के बाद यह एतेक़ाफ़ मुकम्मल हो जायेगा, और अगर 29 रमज़ानुल मुबारक को चांद नज़र न आया तो फिर 30 रमज़ानुल मुबारक के गुरुब आफ़ताब के बाद यह एतेक़ाफ़ मुकम्मल हो जायेगा!
*📙 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 1021*
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 31
*सवाल :-* क्या सुन्नते एतेक़ाफ़ ऐसी मस्जिद में हो सकता है कि जहाँ पर जुमां की नमाज़ अदा न की जाती हो??
*जवाब :-* जी हाँ, सुन्नते एतेक़ाफ़ ऐसी मस्जिद में हो सकता है जहाँ पर जुमां की नमाज़ अदा न की जाती हो क्योंकि सुन्नते एतेक़ाफ़ के लिए जामा मस्जिद होना शर्त नहीं है!
📙 रद्दुल मुह़तार अला दुर्रे मुख़्तार किताबुस्सोम बाब एतेक़ाफ़ जिल्द 3 सफह 493
*सवाल :-* सुन्नते एतेक़ाफ़ के लिए कितनी और कौन कौन सी शराएत हैं!
*जवाब :-* सुन्नते एतेक़ाफ़ के लिए 6 शराएत हैं :-
1- मुसलमान होना
2- आक़िल होना
3- पाक साफ़ होना
4- औरत का हैज़ mc. वो निफ़ास से पाक होना
5- नियत करना
6- रोज़ा रखना
📗 फ़तावा आलमगीरी जिल्द 1 सफह 211--- کتاب الصوم الباب السابع فی الاعتکاف
📙 रद्दुल मुह़तार अला दुर्रे मुख़्तार किताबुस्सोम बाब एतेक़ाफ़ जिल्द 3 सफह 492/493
*सवाल :-* क्या एतेक़ाफ़ के लिए मस्जिद में पर्दे लगाना ज़रुरी है!
*जवाब :-* एतेक़ाफ़ के लिए मस्जिद में पर्दे लगाना ज़रुरी नहीं है बल्कि बगैर पर्दे के भी एतेक़ाफ़ दुरुस्त है लेकिन अगर कोई रुकावट न हो और ज़रुरत हो तो पर्दे लगा लेना बहुत उम्दा है कि सरकारे मदीना सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से एतेक़ाफ़ के लिए खेमा लगाना साबित है!
📔 मिशकातुल मसाबीह़ जिल्द 1 सफह 392 हदीस 2086
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हिस्सा - 32
*सवाल :-* क्या ज़कात अपने माँ बाप को या बेटी को दे सकते हैं??
*जवाब :-* ज़कात माँ-बाप- दादा दादी- नाना नानी- वगैरह इनको ज़कात नहीं दे सकते हम जिनकी औलाद में हैं, और अपनी औलाद बेटा बेटी- पोता पोती- नवासा नवासी- को भी ज़कात नहीं दे सकते!
📙रद्दुल मुह़तार किताबुज़्ज़कात जिल्द 3 सफह 344
📕ब ह़वाला बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 927
*सवाल :-* ज़कात देना फर्ज़ है या वाजिब और अगर कोई ज़कात न देता हो उसके लिए क्या हुक्म है जवाब इनायत करें??
*जवाब :-* ज़कात देना फर्ज़ है, उसका मुन्किर काफिर है और न देने वाला फासिक़ और क़त्ल का मुस्तहिक़ और अदा में ताखीर ( देरी ) करने वाला गुनहगार व मरदूद है!
📔फतावा हिन्दिया किताबुज़्ज़कात बाब 1 जिल्द 1 सफह 170
📗 ब ह़वाला बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 874
*सवाल :-* एक सवाल है कि अगर ज़कात के रुपये से हम गरीब को खाना खिला दें तो ज़कात अदा हो जायेगी कि नहीं,???
*जवाब :-* अगर किसी गरीब को खाना खिला दिया तो इस तरह ज़कात अदा न होगी कियोंकि एक शर्त ये भी है कि मालिक बना देना, तो इस में मालिक बना देना नहीं पाया गया, हाँ अगर खाना दे दिया कि चाहे खाऐ या ले जाए यानि खाना देकर उसको मालिक बना दें कि आपकी मर्ज़ी यहाँ खायें या ले जाऐं तो ज़कात अदा हो जायेगी, इसी तरह ज़कात की नियत से फ़कीर को कपड़ा दे दिया या पहना दिया तो ज़कात अदा हो जायेगी!
📔दुर्रे मुख़्तार मा रद्दुल मुह़तार किताबुज़्ज़कात जिल्द 3 सफह 204
📙ब ह़वाला बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 874
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हिस्सा - 33
*सवाल :-* अगर किसी पागल को ज़कात दे दें तो ज़कात अदा होगी कि नहीं??
*जवाब :-* ज़कात देने में यह भी ज़रूरी है कि ऐसे को दे जो क़ब्ज़ा करना जानता हो, यानि ऐसा न हो कि फ़ेंक दे या धोका खाए वरना ज़कात अदा न होगी, मसलन निहायत छोटे बच्चे या पागल को देना, लिहाज़ा अगर किसी पागल को ज़कात की रक़म या कुछ भी दी तो अदा नहीं होगी, कियोंकि पागल क़ब्ज़ा नहीं कर पायेगा!
📗दुर्रे मुख़्तार व रद्दुल मुह़तार किताबुज़्ज़कात जिल्द 3 सफह 204
📙 ब ह़वाला बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 875
*सवाल :-* अगर कोई साल भर खैरात करता रहे और अब नियत कर ले कि जो भी साल भर खैरात में दिया वह ज़कात है तो क्या इस तरह ज़कात अदा हो जायेगी,??
*जवाब :-* इस तरह ज़कात अदा न होगी, कियोंकि ज़कात देते वक़्त नियत ज़रुरी है, मसलन साल भर तक खैरात करता रहा, अब नियत की कि जो कुछ दिया है ज़कात है तो इस तरह अदा न होगी!
📔 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 886
*सवाल :-* क्या ज़कात देते वक़्त उसको यह बताना ज़रुरी है कि यह रक़म ज़कात की है जैसे बहुत लोग ज़कात के हक़दार होते हैं पर अगर उनको बता दिया जाऐ तो नहीं लेंगे ऐसे शख्स को बगैर बताये ज़कात दे दें तो क्या अदा हो जायेगी??
*जवाब :-* ज़कात देने में इसकी ज़रुरत नहीं कि फ़क़ीर गरीब को ज़कात कह कर दे बल्कि सिर्फ नियत ज़कात की काफी है, आप नज़राना, या हदिया या पान खाने के लिए या बच्चों के मिठाई खाने या ईदी के नाम से दे दी तो भी ज़कात अदा हो जायेगी, बाज़ मोहताज हाजतमंद ज़कात का रुपये नहीं लेना चाहते, उन्हें ज़कात कहकर दिया जायेगा तो नहीं लेंगे उनको ज़कात का लफ्ज़ न कहें, यहाँ तक कि अगर क़र्ज़ कहकर दें और नियत ज़कात की हो तो अदा हो जायेगी!
📗बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 890
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 34
*सवाल :-* एक सवाल है कि क्या भीख मांगने वालों को ज़कात फित्रा देने से ज़कात फित्रा अदा हो जायेगी कि नहीं और इनको देना चाहिए कि नहीं जवाब इनायत करें महरबानी होगी?
*जवाब :-* भीख मांगने वाले 3 तरह के होते हैं!
*No.1:-* एक मालदार! जैसे बहुत से क़ौम के फ़क़ीर जिनका पेशा ही भीख मांगना होता है जोगी और साधू उन्हें भीख मांगना ह़राम और उन्हें देना भी ह़राम ऐसे लोगों को देने से ज़कात फित्रा अदा नहीं हो सकती!
*No.2 :-* दूसरे वह जो हक़ीक़त में फ़क़ीर हैं यानि निसाब के मालिक नहीं मगर मज़बूत व तंदरुस्त हैं कमाने की ताक़त भी रखते हैं, हाथ पैर सब सलामत है मोटे ताज़े होने के बावजूद कोई काम नहीं करना चाहते हैं मुफ्त खाना खाने की आदत पड़ी है जिसके सबब भीख मांगते फिरते हैं ऐसे लोगों को भीख मांगना ह़राम है और जो उन्हें मांगने से मिले वह उनके लिए ख़बीस है ह़दीस शरीफ़ में है कि لا تحل الصدقةلغنى ولالذى مرةسوى،، यानि न किसी मालदार के लिए सदक़ा ह़लाल है और न किसी तवाना तंदरुस्त के लिए ऐसे लोगों को भीख देना मना है कि गुनाह पर मदद करना है अगर लोग उन्हें नहीं देंगे तो मेहनत मजदूरी करने पर मजबूर होंगे अल्लाह ताआला क़ुरआन मजीद में इरशाद फरमाता है कि : गुनाह व ज़्यादती पर मदद न करो!
📘 पारा 6 सूरह माइदा आयत 02
मगर ऐसे लोगों को ज़कात देने से ज़कात फित्रा अदा हो जायेगी जबकि और कोई शरई रुकावट न हो इसलिए कि वह मालिके निसाब नहीं है!
*No.3 :-* और भीख मांगने वालों की तीसरी क़िस्म वह है कि जो न माल रखते हैं और न कमाने की ताक़त रखते हैं या अपनी ज़रुरत भर कमाने की ताक़त नहीं रखते ऐसे लोगों को अपनी हाजत पूरी करने भर की भीख मांगना जायज़ है और मांगने से जो कुछ मिले वह उसके लिए हलाल व तय्यब (पाक) है और यही लोग ज़कात के मुस्तहिक़ हैं उन्हें देना बहुत बड़ा सवाब है और यही वह लोग हैं जिन्हें झिड़कना हराम है!
📙 फतावा बरकातिया सफह 131
📓 माख़ूज़ अज़ फतावा इस्माइलिया सफह 386
*सवाल :-* पहनने वाले ज़ेवर पर ज़कात है या नहीं!
*जवाब :-* पहनने के ज़ेवरात पर भी ज़कात फर्ज़ है!..✍🏻
📕 दुर्रे मुख्तार व रद्दुल मुहतार जिल्द 1 सफह 270
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 35
हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में एक औरत आई उसके साथ उसकी बेटी भी थी, जिसके हाथ में सोने के मोटे मोटे कंगन थे,आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उस औरत से पूछा, क्या तुम इसकी ज़कात अदा करती हो? उस औरत ने अर्ज़ की जी नहीं- आपने इरशाद फरमाया क्या तुम इस बात से खुश हो कि क़यामत के दिन अल्लाह तआला तुम्हें इन कंगनों के बदले आग के कंगन पहना दे, ये सुनते ही उसने वह कंगन रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के आगे डाल दिए और कहा ये अल्लाह तआला और उसके रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के लिए हैं!
📘 सुनन अबी दाऊद जिल्द 2 सफह 137 हदीस 1563
*सवाल :-* सगे भाई को ज़कात देना कैसा है?
*जवाब :-* सगे भाई बहन, भतीजा, भतीजी, भांजा, भांजी, चचा, फूफी, खाला, मामू, सास, ससुर, दामाद, बहू, वगैरह में से जो हाजतमन्द और ज़कात के मुस्तहिक़ हों तो उनको देने से ज़कात अदा हो जायेगी और इन सबको देने में डबल सवाब मिलता है एक सवाब ज़कात देने का और दूसरा सिलह रह़मी का!
📕 फतावा इस्माइलिया सफह 395
*सवाल :-* ज़कात वहाबी देवबंदी या गैर मुस्लिम को दे सकते हैं कि नहीं,?
*जवाब :-* वहाबी देवबंदी और तमाम बद मज़हब फिर्क़ों को ज़कात देना ह़राम है और उसको देने से ज़कात अदा नहीं होगी, आला ह़ज़रात इमाम अह़मद रज़ा खान काफिर मुशरिक वहाबी राफ़ज़ी क़ादियानी वगैरह को ज़कात देने के मुतअल्लिक़ तह़रीर फरमाते हैं कि इनको ज़कात देना ह़राम है और इनको देने से ज़कात अदा न होगी!
📕 फतावा रज़वीया शरीफ़ जिल्द 4 सफह 491
📒 फतावा फक़ीहे मिल्लत जिल्द 1 सफह 315
📗 फतावा इस्माइलिया सफह 393
*सवाल :-* एक सवाल है कि वह कौन लोग हैं जिन को ज़कात नहीं दी जा सकती और उनको देने से अदा नहीं होगी जवाब इनायत करें?
*जवाब :-* बनू हाशिम यानि सादाते कराम को ज़कात नहीं दे सकते, अगर कोई सय्यद साहब परेशान हों तो उनकी पाक पैसे से मदद करें, और अपनी अस्ल यानि जिनकी औलाद में से हैं जैसे माँ, बाप, दादा, दादी, नाना नानी, वगैरह इनको भी ज़कात नहीं दे सकते अगर दिया तो अदा नहीं होगी, इसी तरह बेटा, बेटी, पोता, पोती, नवासा, नवासी, वगैरह को भी ज़कात नहीं दे सकते अगर दिया तो अदा नहीं होगी, इसी तरह बीवी शौहर को या शौहर बीवी को ज़कात नहीं दे सकती, गनी के नाबालिग बच्चे को भी ज़कात नहीं दे सकते क्योंकि वह अपने बाप की वजह से गनी शुमार होते हैं!..✍🏻
📓 दुर्रे मुख्तार व रद्दुल मुहतार जिल्द 3 सफह 344/349/350/
📙 फतावा रज़वीया शरीफ़ जिल्द 10 सफह 109
📘 फैज़ाने ज़कात सफह 61
📕 फतावा इस्माइलिया सफह 396
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🔮 𝑆𝑢𝑙𝑡𝑎𝑛 𝑒 𝐻𝑖𝑛𝑑 𝑔𝑟𝑜𝑢𝑝 ☏ 𝟩𝟧𝟨𝟨𝟫𝟪𝟢𝟪𝟥𝟪 🔮
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 36
*सवाल :-* एक सवाल ये है कि पीछले साल एक लाख रुपये का सोना खरीदा लेकिन इस्तेमाल नहीं किया है क्या उस पर ज़कात होगी?
*जवाब :-* ज़कात अदा करने के लिए इस्तेमाल करना ज़रुरी नहीं, सोना या रुपये जो भी रखा हुआ हो ज़कात अदा करनी होगी इस्तेमाल होता हो या न होता हो, ज़कात नहीं देगा तो सख्त गुनहगार होगा, बहारे शरीयत में हुज़ूर सदरुश्शरिय्या तहरीर फरमाते हैं कि : जिसने चांदी सोने की ज़कात न दी होगी उस माल को ख़ूब गरम करके उस की करवट और पेशानी और पीठ दागी जायेगी!
📙 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 1 सफह 136
*सवाल :-* बद मज़हब काफिर को ज़कात देना कैसा है रहनुमाई फरमाये?
*जवाब :-* तमाम बद मज़हब मसलन वहाबी देवबंदी ब नाम अहले हदीस वगैरह वगैरह इन सबको ज़कात नहीं दे सकते अगर देंगे तो अदा नहीं होगी!
📘 दुर्रे मुख़्तार किताबुज़्ज़कात जिल्द 3 सफह 356
📒 ब ह़वाला बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 933/934
*सवाल :-* रोज़े की ह़ालत में सर के बालों में मेंहदी लगा सकते हैं कि नहीं?
*जवाब :-* रोज़े की ह़ालत में बालों में मेंहदी लगा सकते हैं जैसा कि तफ़हीमुल मसाइल में है कि रोज़े की ह़ालत में बालों में मेंहदी लगा सकते हैं इस से रोज़े पर कोई असर नहीं पड़ेगा!
📗 तफ़हीमुल मसाइल जिल्द 2 सफह 188 किताबुस्सोम का ब्यान
मर्दों को हाथ पैर में मेंहदी लगाना नाजायज़ है!
📕 फतावा मुस्तफविया जिल्द 3 सफह 175
*सवाल :-* क्या नाबालिग बच्चों पर और पागल पर भी सदक़ ए फित्र वाजिब होता है?
*जवाब :-* सदक़ ए फित्र वाजिब होने के लिए आक़िल और बालिग होना शर्त नहीं है, अगर छोटे बच्चे और पागल,(पागल चाहे बालिग हो या नाबालिग)साहिबे निसाब हों तो उनका सरपरस्त उनके माल में से अदा करेगा और अगर वह साहिबे निसाब न हों तो फिर उनके सरपरस्त पर वाजिब है कि उनकी तरफ़ से सदक़ ए फित्र अपने माल में से अदा करे!..✍🏻
📓 फतावा आलमगीरी किताबुज़्ज़कात जिल्द 1 सफह 191
📙 रद्दुल मुह़तार अला दुर्रे मुख़्तार किताबुज़्ज़कात बाब सदक़ ए फित्र जिल्द 3 सफह 365
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 37
*एतेक़ाफ___* *कंज़ुल ईमान :-* औरतों से मुबाशिरत न करो, जबकि तुम मस्जिदों में एतेकाफ़ किए हुए हो!
📗 पारा 2 सूरह बक़रा आयत 187
मस्जिद में रब की रिज़ा के लिए ठहरना एतेक़ाफ कहलाता है इसकी 3 किस्में हैं :-
*1. वाजिब :-* किसी ने मन्नत मानी कि मेरा ये काम होगा तो मैं 1,2 या 3 दिन का एतेक़ाफ करूंगा तो उतने दिन का एतेक़ाफ उस पर वाजिब होगा!
*2. सुन्नते मुअक़्किदह :-* रमज़ान में आखिर 10 रोज़ का यानि बीसवें रमज़ान को मग़रिब के वक़्त बा नियत एतेक़ाफ मस्जिद में मौजूद हो, ये एतेक़ाफ सुन्नते मुअक़्किदह अलल किफाया है यानि अगर पूरे मुहल्ले से 1 आदमी एतेक़ाफ में बैठ जाये तो सबके लिए काफी है पर 1 भी नहीं बैठा तो सब गुनाहगार होंगे!
*3. मुसतहब ;-* जब भी मस्जिद में दाखिल हों तो पढ़ लें 'नवैतो सुन्नतल एतेक़ाफ' तो जब तक मस्जिद में रहेंगे एतेक़ाफ का सवाब पायेंगे!
📕 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 1021
इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का क़ौल है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम फरमाते हैं जिसने रमज़ान में 10 दिनों का एतेक़ाफ किया तो उसे 2 हज व 2 उमरे का सवाब मिलेगा!
📔 बहारे शरीयत जिल्द 1 ,हिस्सा 5,सफह 1020
📗شعب الایمان، باب فی الاعتکاف، الحدیث، 3966 जिल्द 3 सफह 425
मस्जिद में खाना पीना सिवाये मोअतक़िफ के दूसरों को नाजायज़ है तो जो लोग मस्जिद में अफ्तार करते हैं उन्हें चाहिए कि एतेक़ाफ की नीयत कर के बैठें वरना गुनाहगार होंगे!
📙 अलमलफूज़,हिस्सा 2,सफह 108
मोअतक़िफ ना तो किसी मरीज़ की इयादत को जा सकता है ना जनाज़े में शामिल हो सकता है ना किसी औरत को छुए और ना मस्जिद से बाहर निकले!
📕 अबु दाऊद,जिल्द 2,सफह 492
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 38
*एतेक़ाफ ____* अगर मोअतक़िफ मस्जिद से बाहर निकला तो एतेक़ाफ टूट जायेगा जिसकी क़ज़ा वाजिब होगी!
📙 बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 5,सफह 1023
📗रद्दुल मुह़तार किताबुस्सोम बाब एतेकाफ़ जिल्द 3 सफह 501
मोअतक़िफ का मस्जिद से बाहर निकलने के 2 उज़्र हैं!
*1. हाजते शरई :-* मसलन जिस मस्जिद में ये एतेक़ाफ में है वहां जुमे की नमाज़ नहीं होती हो तो जुमा पढ़ने बाहर जा सकता है और अज़ान देने लिए मीनारे पर जाना है और रास्ता बाहर से है तो जा सकता है!
*2. हाजते तबई :-* मसलन पेशाब पखाना वुज़ू गुस्ल अगर खारिजे मस्जिद में इनका इंतज़ाम नहीं है तो बाहर जा सकता है!
📔 बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 5,सफह 1023
📕दुर्रे मुख़्तार वो रद्दुल मुह़तार किताबुस्सोम बाब एतेकाफ़ जिल्द 3 सफह 501
एतेक़ाफे रमज़ान के लिए रोज़ा रखना शर्त है तो अगर रोज़ा नहीं रखा तो ये एतेक़ाफ नफ्ल होगा सुन्नत नहीं!
📗 बहारे शरीयत जिल्द 1 ,हिस्सा 5,सफह 1022
📙रद्दुल मुह़तार किताबुस्सोम बाब एतेकाफ़ जिल्द 3 सफह 496
मर्द के लिए मस्जिद में एतेक़ाफ करना ज़रूरी है और अगर औरत एतेक़ाफ में बैठना चाहे तो जिस जगह वो नमाज़ पढ़ती है वहां एतेक़ाफ में बैठ सकती है!
📔 दुर्रे मुख्तार,जिल्द 2,सफह 129
जिस तरह बिला उज़्रे शरई मर्द का मस्जिद से निकलना एतेक़ाफ तोड़ देगा उसी तरह औरत का भी घर से बिला उज़्रे शरई निकलना एतेक़ाफ को तोड़ देगा जिसकी क़ज़ा उस पर वाजिब होगी अगर चे भूल से ही निकले या सिर्फ 1 मिनट के लिए ही बाहर निकले!
📕 दुर्रे मुख्तार,जिल्द 2,सफह 132
मोतक़िफ को फालतू बातों से परहेज़ ज़रूरी है हां अगर लोगों को दर्स देने के लिए महफिल करता है तो इजाज़त है!
📗दुर्रे मुख्तार,जिल्द 2,सफह 135
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 39
*एतेक़ाफ___* *ह़दीस :-* ह़ुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम रमज़ानुल मुबारक के आखिरी अशरह का एतेकाफ़ फ़रमाया करते थे!
📗 सही मुस्लिम शरीफ़ किताबुल एतेकाफ़ सफह 597 ह़दीस 1172//2780
एतेकाफ़ में बैठने वाला शख्स न मरीज़ की इयादत (देखने) को जा सकता है न जनाज़े में ह़ाज़िर हो सकता है,और न औरत को हाथ लगाये और न उस से मुबाशिरत करे और न किसी ह़ाजत के लिए जाऐ, मगर उस ह़ाजत के लिए जा सकता है जो ज़रुरी है,( मसलन अगर खारिजे मस्जिद में पाखाना पेशाब वगैरह के लिए इंतिज़ाम नहीं है या उस मस्जिद में जुमां न होती हो तो उसके लिए,)और एतेकाफ़ जमाअत वाली मस्जिद में करे!
📙 सुनन अबी दाऊद शरीफ़ किताबुस्सोम बाब मोतकिफ जिल्द 2 सफह 492 ह़दीस 2473
औरत को मस्जिद में एतेकाफ़ में बैठना मकरुह है बल्कि वह घर में ही एतेकाफ़ करे मगर उस जगह करे जो उसने नमाज़ पढ़ने के लिए मुक़र्रर कर रखी है और औरत के लिए मुस्तहब भी है कि घर में नमाज़ पढ़ने के लिए कोई जगह मुक़र्रर कर ले और चाहिए कि उस जगह को हमेशा पाक साफ़ रखे और बेहतर यह है कि उस जगह को चबूतरह़ वगैरह की तरह़ बुलंद कर ले, बल्कि मर्द को भी चाहिए कि नवाफ़िल के लिए घर में कोई जगह मुक़र्रर कर ले कि नफ्ल नमाज़ घर में पढ़ना अफ़ज़ल है!
📓 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 1021
📗दुर्रे मुख़्तार वो रद्दुल मुह़तार किताबुस्सोम बाब एतेकाफ़ जिल्द 3 सफह 493
अगर औरत ने नमाज़ के लिए कोई जगह मुक़र्रर नहीं कर रखी है तो घर में एतेकाफ़ नहीं कर सकती इस लिए जब एतेकाफ़ का इरादा करे तो पहले किसी जगह को नमाज़ के लिए मुक़र्रर (ख़ास) कर ले फिर एतेकाफ़ करे!
📙 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 1021
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 40
*एतेक़ाफ___* अगर खारिजे मस्जिद में पाखाना पेशाब का इंतिज़ाम नहीं तो अपने घर जा सकता है पर याद रहे कि पाखाना पेशाब करने के फ़ौरन बाद चला आये उसको घर में ठहरने की इजाज़त नहीं, अगर उसके दो मकान हैं तो जो मस्जिद से ज़्यादा क़रीब हैं उस में जाए बाज़ मशाएख़ फरमाते हैं कि दूर वाले में जायेगा तो एतेकाफ़ टूट जायेगा!
📙 रद्दुल मुह़तार किताबुस्सोम बाब एतेकाफ़ जिल्द 3 सफह 501
📗 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 1024
अगर किसी ऐसी मस्जिद में एतेकाफ़ किया जहाँ जमाअत से नमाज़ नहीं होती तो जमाअत से नमाज़ पढ़ने के लिए निकलने की इजाज़त है!
📕रद्दुल मुह़तार किताबुस्सोम बाब एतेकाफ़ जिल्द 3 सफह 503/505
📔बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 1024
अगर कोई डूब रहा हो या जल रहा हो उसको बचाने के लिए मस्जिद से बाहर गया तो एतेकाफ़ टूट गया इसी तरह गवाही देने के लिए गया या किसी मरीज़ को देखने गया या नमाज़ जनाज़ा के लिए गया एतेकाफ़ टूट जायेगा अगर चेह नमाज़ जनाज़ा दूसरा कोई पढ़ाने वाला न हो फिर भी एतेकाफ़ टूट जायेगा!
📓 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 1025
एतेकाफ़ में बैठने वाला मस्जिद में ही खाए पीए सोए इन सब काम के लिए मस्जिद से बाहर जायेगा तो एतेकाफ़ टूट जायेगा, मगर खाने पीने में बहुत अहतियात से खाए कि मस्जिद में यह अहतियात लाज़िम है कि मस्जिद आलूदा न हो!
📗 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 1026
मोतकिफ के सिवा और किसी को मस्जिद में खाने पीने सोने की इजाज़त नहीं और अगर यह काम करना चाहे तो एतेकाफ़ की नियत कर के मस्जिद में जाए और नमाज़ पढ़े या ज़िक्रे इलाही करे फिर यह काम कर सकता है!
📔 रद्दुल मुह़तार किताबुस्सोम बाब एतेकाफ़ जिल्द 3 सफह 506
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 41
*रमज़ान शरीफ़ का आखिरी जुम्अ और क़ज़ा नमाज़ :-* किसी भाई ने एक सवाल किया था कि शबे क़द्र या रमज़ानुल मुबारक के आखिरी जुम्अ को 4 रकात नमाज़ पढ़ने से क्या, 700 साल की क़ज़ा नमाज़ अदा हो जाती हैं?
सबसे पहले उस MSG, की वज़ाहत कर दूं कि आजकल सोशल मीडिया पर एक meg, आ रहा है कि रमज़ानुल मुबारक के आखिरी जुम्अ को या शबे क़द्र को 4 रकाअत नमाज़ पढ़ लें और आपकी 700 साल की क़ज़ा नमाज़ अदा हो जायेगी, ये सिवाये जिहालत के कुछ नहीं है, ऐसा हरगिज़ नहीं है कि आप 4 रकाअत नमाज़ पढ़ लें और आपकी 700 साल की क़ज़ा नमाज़ अदा हो जाये, बल्कि हक़ीक़त ये है कि 4 रकाअत नमाज़ पढ़ने से आपकी 4 रकाअत नमाज़ ही होगी, वो भी तब जब कि आप किसी क़ज़ा नमाज़ को अदा करने की नियत से पढें, वरना ये भी नफ्ल होगी!
📙 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 708
कुछ लोग इस गलत फहमी में मुब्तला हैं के रमज़ान के आखिरी जुमे को चंद रकअतें पढ़ने से पूरी उम्र की क़ज़ा नमाज़ें मुआफ़ हो जाती हैं। बाज़ जगहों पर तो इस का खास एहतेमाम भी किया जाता है कि मानो कोई बम्पर ऑफर आया हो।
एक मर्तबा मैंने अपने मुहल्ले की मस्जिद में देखा के एक इश्तेहार लगा हुआ है जिसमें पूरी उम्र की क़ज़ा नमाज़ों को चुटकी में मुआफ़ करवाने का तरीका लिखा हुआ था और ताईद में चंद बे असल रिवायात भी लिखी हुई थी, मैंने फौरन उस इश्तेहार को वहाँ से हटा दिया और उसके लगाने वाले के मुतल्लिक़ दरियाफ्त किया लेकिन कुछ मालूम न हो सका।
ऐसा ऑफर देखने के बाद वो लोग जिन की बीस तीस साल की नमाज़ें क़ज़ा हैं,अपने जज़्बात पर क़ाबू नहीं कर पाते,और असलियत जाने बग़ैर इस पर यकी़न कर लेते हैं। इस तरह की बातें बिल्कुल गलत हैं और इन की कोई असल नहीं है, उलमा -ए- अहले सुन्नत ने इस का रद्द किया है और इसे नाजाइज़ क़रार दिया है।
मुजद्दिद ए दीन व मिल्लत इमाम-ए-अहले सुन्नत, सैय्यिदी सरकारे आला हज़रत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु इस के मुतअल्लिक़ लिखते हैं कि ये जाहिलों की ईजाद और महज़ नाजाइज़ व बातिल है।
📕फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द,7 सफह 53
इमाम-ए-अहले सुन्नत एक दूसरे मकाम पर लिखते हैं के आखिरी जुम्अ में इस का पढ़ना इख़्तिरा किया गया है और इस में ये समझा जाता है कि इस नमाज़ से उम्र भर की अपनी और अपने माँ बाप की भी क़ज़ाएं उतर जाती हैं महज़ बातिल व बिदअत -ए- शईआ है, किसी मुअतबर किताब में इस का असलन निशान नहींं।
📗 फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द,सफह 419/418
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 42
*रमज़ान शरीफ़ का आखिरी जुम्अ और क़ज़ा नमाज़ :-* ख़लीफ़ा ए हुज़ूर आलाहज़रत, सदरुश्शरीया, हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अमजद अली आज़मी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु लिखते हैं कि शबे क़द्र या रमज़ान के आखिरी जुमें को जो लोग ये क़ज़ा-ए-उमरी जमा'अत से पढ़ते हैं और ये समझते हैं कि उम्र भर की क़ज़ाएं इसी एक नमाज़ से अदा हो गयीं, ये बातिल महज़ है।
📙 बहारे शरीअत जिल्द,1 सफह हिस्सा,4 सफह 708,कज़ा नमाज़ का बयान
हज़रत अल्लामा शरीफुल हक़ अमजदी अलैहिर्रहमह ने भी इस का रद्द किया है और इस कि ताईद में पेश की जाने वाली रिवायात को अल्लामा मुल्ला अली क़ारी हनफ़ी अलैहिर्रहमह के हवाले से मौज़ू क़रार दिया है।
📗 फतावा अमजदिया जिल्द 1,सफह 272/273
अल्लामा क़ाज़ी शमशुद्दीन अहमद अलैहिर्रहमह लिखते हैं कि बाज़ लोग शबे क़द्र या आखिरी रमज़ान में जो नमाज़े क़ज़ा-ए-उमरी के नाम से पढ़ते हैं और ये समझते हैं कि उम्र भर की क़ज़ाओ के लिए ये काफी है,ये बिल्कुल ग़लत और बातिले महज़ है।
📓 क़ानूने शरीअत सफह 241
हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद वक़ारूद्दीन क़ादरी रज़वी अलैहिर्रहमह लिखते हैं कि बाज़ इलाक़ो में जो ये मशहूर है कि रमज़ान के आखिरी जुमें को चंद रकाअत नमाज़ क़ज़ा-ए-उमरी की निय्यत से पढ़ते हैं और ख़याल ये किया जाता है कि ये पूरी उम्र की क़ज़ा नमाज़ों के क़ाइम मुकाम है, ये गलत है, जितनी भी नमाज़े क़ज़ा हुई हैं उन को अलग अलग पढ़ना ज़रूरी है।
📔 वक़ारुल फतावा जिल्द 2, सफह 134
हज़रत अल्लामा गुलाम रसूल सईदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु लिखते हैं कि बाज़ अनपढ़ लोगों में मशहूर है कि रमज़ान के आखिरी जुम्अ को एक दिन की पांच नमाज़ें वित्र समेत पढ़ ली जाए तो सारी उम्र की क़ज़ा नमाज़ें अदा हो जाती हैं और इस को क़ज़ा -ए- उमरी कहते है, ये क़तअन बातिल है।
रमज़ान की खुसूसियत,फ़ज़ीलत और अज्र व सवाब की ज़्यादती एक अलग बात है लेकिन एक दिन की क़ज़ा नमाज़े पढ़ने से एक दिन की ही अदा होगी, सारी उम्र की अदा नही होगी।
📕शरह़ सही मुस्लिम शरीफ,जिल्द 2 सफह 352
इन तमाम रिवायातों से साबित हुआ के ऐसी कोई नमाज़ नहीं है जिसे पढ़ने से पूरी उम्र की क़ज़ा नमाज़ अदा हो जाये।, ये जो चंद रकअत नमाज़ पढ़ी जाती है और ये समझा जाता है कि पूरी उम्र की क़ज़ा नमाज़ें अदा हो गईं, इसकी कोई असल नहीं है, ये नाजाइज़ ओ बातिल है।
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 43
*शबे क़द्र :-* ह़ज़रते अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया कि जब रमज़ान का महीना शुरू हुआ तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि यह महीना तुम में आया है और इस में एक रात ऐसी है जो हज़ार महीनों से बेहतर है तो जो शख्स उसकी बरकतों से मह़रुम रहा वह तमाम भलाइयों से मह़रुम रहा!
📓 इब्ने माजा शरीफ़ जिल्द 1 सफह 119
📘 ब ह़वाला अनवारुल हदीस सफह 205
हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम की तमन्ना पर रब ने आपकी उम्मत को शबे क़द्र अता की जो 1000 महीनो की इबादत से अफज़ल है!
📗 मुकाशिफातुल क़ुलूब,सफह 647
जो शबे क़द्र मे इतनी देर इबादत के लिये खड़ा रहा जितनी देर मे चरवाहा अपनी बकरी का दूध दूह ले तो वह रब के नज़दीक साल भर रोज़ा ( नफ्ली ) रखने वाले से बेहतर है!
📙 क्या आप जानते हैं,सफह 367
जिसने इस रात खड़े बैठे जैसे भी ज़िक्रे इलाही किया तो जिब्रीले अमीन अपने पूरे फरिश्तों की जमात के साथ उसके लिये मग्फिरत की दुआ करते हैं!
📕 अनवारुल हदीस,सफह 289
जो शबे क़द्र की बरक़त से महरूम रहा वो बड़ा बदनसीब है!
📓 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह
ज़्यादा तर बुज़ुर्गो का क़ौल है कि शबे क़द्र रमज़ान की 27वीं शब ही है!
📘 कंज़ुल ईमान,पारा 30,सफह 710
📗 तफसीरे अज़ीज़ी,पारा 30,सूरह क़द्र
📙 मुकाशिफातुल क़ुलूब,सफह 649
📕 कशफुल ग़िमा,जिल्द 1,सफह 214
हजरते आइशा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा ने कहा कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि रमज़ान के आख़िरी अशरा की ताक़ रातों में शबे क़द्र को तलाश करो!..✍🏻
📒 बुखारी शरीफ़ जिल्द 1 सफह 270
📓 ब ह़वाला अनवारुल हदीस सफह 205
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 44
*शबे क़द्र :-* बहरे कैफ जो लोग इन 5 ताक रातों यानि 21,23,25,27,29 में इबादते इलाही मे मसरूफ रहते हैं बिला शुबह वो अल्लाह के नेक बन्दे हैं मौला उनकी इबादतों को क़ुबूल फरमाये और अपने उन अच्छे बन्दों के सदक़े हम जैसे बदकारों की भी इबादतों को क़ुबूल फरमाये!
4 रकात नमाज़ 2,2 करके इस तरह पढ़ें कि सूरह फातिहा के बाद सूरह तकासुर 1 बार और सूरह इख्लास 3 बार,इसको पढ़ने से मौत की सख्तियां आसान होगीं!
📓 नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 1,सफह 129
2 रकात नमाज़ बाद सूरह फातिहा के सूरह इख्लास 7 बार सलाम के बाद 'अस्तग़फिरुल्लाह' 7 बार,इसको पढ़ने से उसके वालिदैन पर रहमत बरसेगी!
📘 बारह माह के फज़ायल,सफह 436
2 रकात नमाज़ बाद सूरह फातिहा के सूरह इख्लास 3 बार,इस नमाज़ का सवाब तमाम मुसलमानों को बख्शें और अपने लिए मग़फिरत कि दुआ करें तो रब तआला उसे बख्श देगा!
📗 मुकाशिफातुल क़ुलूब,सफह 650
याद रहे कि जब तक फर्ज़ ज़िम्मे पर बाक़ी हो कोई भी नफ्ल इबादत मसलन नमाज़ रोज़ा वज़ायफ क़ुबूल नहीं किया जाता,क़ज़ा नमाज़ का पढ़ना फर्ज़े अज़ीम है अब अगर नमाज़े क़ज़ा हैं तो पहले उन्हें पढ़ें,हुक्म तो यहां तक है कि अस्र और इशा की पहली सुन्नत की जगह और तमाम पंज वक्ता नवाफिल की जगह अपनी क़ज़ा नमाज़ें पढ़ें,जिनकी बहुत ज़्यादा नमाज़ें क़ज़ा हो उसको आसानी से अदा करने के लिए सरकारे आलाहज़रत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि : एक दिन की 20 रकात नमाज़ पढ़नी होगी पांचों वक़्त की फर्ज़ और इशा की वित्र.!
नियत यूं करें "सब में पहली वो फज्र जो मुझसे क़ज़ा हुई अल्लाहु अकबर" कहकर नियत बांध लें,युंही फज्र की जगह ज़ुहर अस्र मग़रिब इशा वित्र सिर्फ नमाज़ो का नाम बदलता रहे!
क़याम में सना छोड़ दे और बिस्मिल्लाह से शुरू करे,बाद सूरह फातिहा के कोई सूरह मिलाकर रुकू करे और रुकू की तस्बीह सिर्फ 1 बार पढ़े फिर युंही सजदों में भी 1 बार ही तस्बीह पढ़े इस तरह दो रकात पर क़ायदा करें और आखरी क़ायदे में अत्तहयात के बाद दुरूद इब्राहीम और दुआए मासूरह की जगह सिर्फ "अल्लाहुम्मा सल्ले अला सय्यदना मुहम्मदिंव व आलेही" कहकर सलाम फेर दें,वित्र की तीनो रकात में सूरह मिलेगी मगर दुआये क़ुनूत की जगह सिर्फ "अल्लाहुम्मग़ फिरली" कह लेना काफी है!
📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 62
अगर आपने क़ज़ाये उमरी पढ़ी तो इंशाअल्लाह तआला आपके ज़िम्मे से आपकी नमाज़ भी अदा हो जायेगी और आपको उन नफ्ल नमाज़ो की फज़ीलत भी मिल जायेगी!...✍🏻
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 45
*मसाइले रोज़ा :-* रोज़े के 3 दर्जे हैं :
*1. अवाम का रोज़ा :-* सुबह सादिक़ से लेकर ग़ुरूब आफताब तक खाने पीने और जिमआ से परहेज़ करें औरत हैज़ व निफास से पाक हो!
*2. ख्वास का रोज़ा :-* इन सबके अलावा आंख, कान, नाक, ज़बान और हाथ पांव व तमाम आज़ा का गुनाहों से बाज़ रखना!
*3. ख्वासुल ख्वास का रोज़ा :-* पूरा रमज़ानुल मुबारक सिर्फ अल्लाह की ही जानिब मुतवज्जह रहना!
📗 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 98
बच्चा जब 10 साल का हो जाये तो उसे नमाज़ पढ़वायें और रोज़ा रखवायें अगर नमाज़ तोड़ दे तो फिर से पढ़वायें पर रोज़ा तोड़ दे तो क़ज़ा नहीं!
📔 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 119
हदीस में है 'रात आई रोज़ा पूरा हो गया' कि जिस तरह नियत से रोज़ा शुरू होगा वैसे ही नियत से खत्म भी हो जायेगा!
📙 अलमलफूज़,हिस्सा 4,सफह 56
सहरी खाना भी नियत है हां सहरी खाते वक़्त ये सोचे कि रोज़ा ना रखूंगा तो नियत नही!
📗 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 101
किसी ने ये कहा कि रोज़ा वो रखे जिसके पास खाने को नहीं है या जब खुदा ने खाने को दिया है तो भूखे क्यों मरे ऐसा कहने वाला काफिर है!
📕 अनवारुल हदीस,सफह 91
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 46
*मसाइले रोज़ा :-* शरई उज़्र की वजह से रोज़ा ना रखने की इजाज़त है बाद रमज़ान रोज़ों की कज़ा करे, ये शरई उज़्र हैं :-
1. बीमारी
2. सफर
3. औरत को हमल या दूध पिलाने की मुद्दत हो
4. सख्त बुढ़ापा
5. बेहद कमज़ोरी
6. जान जाने का डर
📗 दुर्रे मुख्तार,जिल्द 2,सफह 115
📕 बहारे शरियत,हिस्सा 5,सफह 130
इनमे से शैखे फानी यानि बहुत ज्यादा बूढ़ा और ऐसा बीमार जिसके ठीक होने की उम्मीद ना हो वो लोग अगर रोज़ा ना रख सकें तो उन्हें हर रोज़े के बदले 2 kg 47 ग्राम गेंहू की कीमत देनी होगी!
📙 दुर्रे मुख्तार,जिल्द 2,सफह 119
शरई उज़्र की वजह से रोज़ा ना रखा और फिदिया देता रहा मगर अगला रमजान आने से पहले उसका उज़्र जाता रहा तो अब रोज़ो की क़ज़ा फर्ज़ है उसके सारे फिदिए नफ्ल हो गए!
📓 दुर्रे मुख्तार,जिल्द 2,सफह 115
📕 बहारे शरियत,हिस्सा 5,सफह 133
जिन लोगों को शरई उज़्र की वजह से रोज़ा ना रखने की मोहलत है उन्हें भी अलानिया खाने पीने की इजाज़त नहीं है युंहि जिन लोगों का रोज़ा किसी गलती की वजह से टूट जाये तो उन्हे भी मग़रिब तक कुछ भी खाने पीने की इजाज़त नहीं है लिहाज़ा इसका ख्याल रखें!
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 47
ह़ज़रते अबू ह़ुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने कहा कि ह़ुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जो शख्स रोज़ा रख़ कर बुरी बात कहना, और उस पर अमल करना तर्क न करे तो ख़ुदा ए तआला को उसकी परवाह नहीं कि उसने ख़ाना पीना छोड़ दिया!
📗 बुखारी शरीफ़ जिल्द 1 सफह 255 किताबुस्सोम
📔 अनवारुल ह़दीस सफह 194
ह़जरते अबू ह़ुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं कि ह़ुज़ूर सल्लल्लाहु त आला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया इस माह में जहन्नुम के दरवाज़े बन्द हो जाते हैं जन्नत के दरवाज़े खुल जाते हैं और सरकश शयातीन क़ैद कर लिये जाते हैं!
📓 अह़मद निसाई जिल्द 1 सफह 299
📕मिश़कात शरीफ़ सफह 173
📘 ब ह़वाला अनवारुल हदीस,सफह 192
📙बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 958
माहे रमज़ान में हर पल फरिश्ते उम्मते मुहम्मदिया के लिए अस्तग़फार करते हैं!
📔 बहारे शरीयत,हिस्सा 5
हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि अगर लोगों को मालूम हो जाये कि रमज़ान क्या है तो वो ये तमन्ना करेंगे कि पूरा साल ही रमज़ान हो जाये!
📗 क्या आप जानते हैं,सफह 371
जो कोई रमज़ान के महीने में इल्मे दीन की महफिल में हाज़िर होगा तो उसके हर क़दम के बदले एक साल की इबादत लिखी जाती है!
📙 क्या आप जानते हैं,सफह 368
जो शख्स बिला उज़्र रमज़ान का एक भी रोज़ा खो देगा तो अगर वो सारी ज़िन्दगी भी रोज़े से रहेगा तो उस एक रोज़े की फज़ीलत ना पा सकेगा!
📘 दारकुतनी,जिल्द 2,सफह 212*
हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम फरमाते हैं कि मुसलमान को जो भी माल का नुक्सान होता है वो ज़कात ना देने के सबब से होता है!
📔 अत्तरग़ीब वत्तरहीब जिल्द 1 सफह 308
📗 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह871
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 48
इस महीने में नेकियों का सवाब बढ़ाकर 70 से 700 गुना तक कर दिया जाता है!
📙 बहारे शरीयत,जिल्द 1,हिस्सा 5
जिसने किसी रोज़ादार को सिर्फ एक खजूर से ही अफ्तार करा दिया तो उसे उतना ही सवाब मिलेगा जितना रोज़ादार को मिला!
📗 बहारे शरीयत,जिल्द 1,हिस्सा 5
जिसने मक्का शरीफ में रमज़ान पाया तो उसे एक लाख रमज़ान का सवाब मिलेगा!
📔 बहारे शरीयत,हिस्सा 5, जिल्द 1
इस महीने में हर रोज़ मौला तआला 10 लाख लोगों को जहन्नम से आज़ाद करता है और आखिर दिन महीने भर की गिनती के बराबर!
📘 बहारे शरीयत,हिस्सा 5, जिल्द 1
जिसने रमज़ान पाया और अपनी बख्शिश ना करा सका वो हलाक हुआ!
📙 बहारे शरीयत,हिस्सा 5, जिल्द 1
जिसने रमज़ान में किसी मुसलमान की हाजत रवाई की तो मौला तआला उसकी 1000 हाजतें पूरी करेगा!
📗 क्या आप जानते हैं,सफह 369
एक काफिर को सिर्फ रमज़ान का एहतेराम करने पर ईमान जैसी दौलत मिल गई!
📔 नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 1,सफह 136
जो मुसलमान इस मुबारक महीने में इंतेक़ाल करेगा उससे क़ब्र में सवाल जवाब ही नहीं होगा ना अभी और ना कभी!
📘 दुर्रे मुख्तार,जिल्द 1,सफह 596
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 49
*कंज़ुल ईमान :-* ऐ ईमान वालो तुम पर रोज़े फर्ज़ किये गए जैसे अगलों पर फर्ज़ हुए थे कि कहीं तुम्हें परहेज़गारी मिले,गिनती के दिन हैं,तो तुम में जो कोई बीमार या सफर में हो इतने रोज़े और दिनों में रखे,और जिन्हे इसकी ताक़त ना हो वो बदला दें एक मिस्कीन का खाना,फिर जो अपनी तरफ से नेकी ज़्यादा करे,तो वो उसके लिए बेहतर है और रोज़ा रखना तुम्हारे लिए ज़्यादा भला है अगर तुम जानो,रमजान का महीना जिसमे क़ुर्आन उतरा लोगों के लिए हिदायत और रहनुमाई और फैसले की रौशन बातें तो तुम में जो कोई ये महीना पाये ज़रूर इसके रोज़े रखे,और जो बीमार या सफर में हो तो इतने रोज़े और दिनों में, अल्लाह तुम पर आसानी चाहता है और तुम पर दुशवारी नहीं चाहता और इसलिए कि तुम गिनती पूरी करो,और अल्लाह की बड़ाई बोलो इस पर कि उसने तुम्हें हिदायत की और कहीं तुम हक़ गुज़ार हो.और ऐ महबूब जब तुमसे मेरे बन्दे मुझे पूछें तो मैं नज़दीक हूं,दुआ क़ुबूल करता हूं पुकारने वाले की जब मुझे पुकारें,तो उन्हें चाहिये मेरा हुक्म मानें और मुझ पर ईमान लायें कि कहीं राह पायें.रोज़े की रातों में अपनी औरतों के पास जाना तुम्हारे लिए हलाल हुआ,वो तुम्हारा लिबास है और तुम उनके लिबास,अल्लाह ने जाना कि तुम अपनी जानों को खयानत में डालते थे तो उसने तुम्हारी तौबा क़ुबूल की और तुम्हें माफ फरमाया,तो अब उनसे सोहबत करो,और तलब करो जो अल्लाह ने तुम्हारे नसीब में लिखा हो,और खाओ और पियो यहां तक कि तुम्हारे लिए ज़ाहिर हो जाये सफेदी का डोरा स्याही के दौरे से,फिर रात आने तक रोज़े पूरे करो,और औरतों को हाथ ना लगाओ जब तुम मस्जिदों में एतेकाफ से हो,ये अल्लाह की हदें हैं उनके पास ना जाओ अल्लाह युंही बयान करता है लोगों से अपनी आयतें कि कहीं उन्हें परहेज़गारी मिले!
📗 पारा 2,सूरह बक़र,आयत 183-187
*√ तफसीर*
ऐ ईमान वालो तुम पर रोज़े फर्ज़ किये गये ------:- मर्द व हैज़ो निफास से पाक औरत सुबह सादिक़ से ग़ुरूब आफताब तक इबादत की नियत से खाना पीना और सोहबत छोड़ दे इसको शरह में रोज़ा कहते हैं-ये भी मालूम हुआ कि ये इबादत क़दीमा है यानि तमाम अंबिया अलैहिस्सलाम की शरीयत में फर्ज़ होते चले आये हैं अगर चे उनके अय्यामो एहकाम मुख्तलिफ रहे हों,रोज़ा रखने से इंसान मुत्तक़ी व परहेज़गार बन जाता है!
तो तुम में जो कोई बीमार या सफर में हो!----:- सफर से मुराद 92.5 किलोमीटर है यानि कोई इतनी दूरी का सफर करे तो उसके लिए रुख्सत है कि अगर दुश्वारी हो तो रोज़ा ना रखे मगर चुंकि अब आज के ज़माने में दुश्वारी कहां 500 किलोमीटर भी जाना हो तो ए.सी कार में बैठे और निकल गये लिहाज़ा उल्मा फरमाते हैं कि रोज़ा रखे लेकिन अगर ना भी रखेगा तो गुनहगार ना होगा क्योंकि रुख्सत का हुक्म है,युंही ऐसा बीमार जो रोज़ा रखेगा तो उसका मर्ज़ बढ़ जायेगा या बीमार तो नहीं है मगर दिन भर भूखा प्यासा रहेगा तो मर्ज़ हो जायेगा या ऐसी औरत जो बच्चों को दूध पिलाती हो तो ऐसों को रोज़ा ना रखने की रुख्सत है वो बाद में अपने रोज़ों की क़ज़ा करें,ऐसा मरीज़ जिसके अच्छा होने का अंदेशा ना हो या ऐसा बूढ़ा जिसको फिर से सेहत मिलने की उम्मीद ना हो उनको रोज़ा ना रखने की इजाज़त है मगर इस सूरत में उन्हें हर रोज़े के बदले 2 किलो 47 ग्राम गेहूं की कीमत बतौर फिदिया अदा करना होगा,लेकिन फिदिया अदा कर दिया और मौला तआला ने अगले रमज़ान से पहले उसको सेहत अता कर दी तो उसका फिदिया नफ़्ल हो जायेगा अब उसको रमज़ान के रोजों की क़ज़ा करनी होगी युंही अगर जिसके पास फिदिया अदा करने की इस्तेताअत ना हो तो वो अस्तग़फार करता रहे!..✍🏻
📕 खज़ाईनुल इरफान,सफह 32-33
ज़ारी रहेगा..! *फैजान ए रमज़ान•* اِنْ شَآءَ اللہ
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 50
*रमज़ान का महीना जिसमे क़ुर्आन उतरा :-* क़ुर्आन मजीद फुरकाने हमीद का नुज़ूल 2 बार हुआ पहली बार लौहे महफूज़ से आसमाने दुनिया के बैतुल इज़्ज़त यानि बैतुल मामूर में एकबारगी नाज़िल कर दिया गया ये नुज़ूल रमज़ानुल मुबारक की शबे क़द्र में हुआ,फिर दूसरी बार 23 साल के अर्से में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर हस्बे ज़रूरत थोड़ा थोड़ा नाज़िल होता रहा,रोज़ा रमज़ान का ही फर्ज़ है हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि महीना 29 दिन का भी होता है तो चाँद देखकर रोज़े शुरू करो और अगर 29 को चाँद ना दिखाई दे तो 30 की गिनती पूरी करो,साल भर में 5 दिन रोज़ा रखना जायज़ नहीं है 1 ईद-उल फित्र और 10-11-12-13 ईद-उल अज़हा के,इसके अलावा कभी भी रोज़ा रखा जा सकता है!
और ऐ महबूब जब तुमसे मेरे बन्दे मुझे पूछें ----- सहाबा की एक जमाअत ने जज़्ब-ए इश्क़ में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से पूछा कि हमारा रब कहां है तो इस पर ये आयत उतरी कि अगर चे अल्लाह ज़मानो मकान से पाक है मगर वो हमारे क़रीब है और दुआ करने वालो की पुकार पर लब्बैक अब्दी यानि ऐ बन्दे मैं हाज़िर हूं फरमाता है,और दुआ की क़ुबूलियत के चन्द तरीक़े हैं पहली तो जो मांगा वही मिल गया दूसरी जो मांगा वो बेहतर ना था तो उसके बदले कुछ और अता कर दिया तीसरी दुनिया में ना देकर उसके लिए आखिरत में ज़खीरा इकठ्ठा कर दिया और देर करने में हिकमत ये होती है कि मौला का अपने बन्दे का गिड़गिड़ाना पसंद आता है जिसके लिए उसकी हाजतों को पूरा होने से रोके रखता है लिहाज़ा कभी भी अपने रब से शिकायत ना करनी चाहिये कि मैंने फलां चीज़ मांगी और नहीं मिली क्योंकि किसी को ना देना ना तो उसकी आदत है और ना उसके खज़ाने में किसी चीज़ की कमी,तो ज़रूर ज़रूर ज़रूर बन्दे को उसकी मांगी हुई चीज़ ना देने में हिकमत ही हिकमत होगी!
रोज़े की रातो में अपनी औरतों के पास जाना तुम्हारे लिए हलाल हुआ ----- शुरू इस्लाम में मग़रिब से लेकर इशा तक ही खाना पीना और सोहबत जायज़ थी इशा के बाद फिर से ये सब हराम हो जाता था,बाज़ सहाबा से रात में अपनी बीवियों से सोहबत वाक़ेय हुई जिसमें हज़रत उमर फारूक़े आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु भी थे,जब ये सूरते हाल हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से बताई गयी तो ये आयत नाज़िल हुई जिसमें उनकी खताओं को दर गुज़र फरमाकर रात में खाने पीने और सोहबत की क़ैद हटा ली गई!
और खाओ और पियो यहां तक कि तुम्हारे लिए ज़ाहिर हो जाये सफेदी का डोरा स्याही के दौरे से :-
ये आयत हज़रत सरमह बिन क़ैस के हक़ में नाज़िल हुई आप एक मेहनत कश आदमी थे,दिन भर काम करके वापस आये और बीवी से खाना मांगा वो पकाने में मसरूफ हो गयीं ये थके तो थे ही सो गये,जब बीवी खाना लायी तो इन्होने खाने से इंकार कर दिया क्योंकि उस वक़्त सो जाने के बाद उठने पर कुछ भी खाना पीना जायज़ नहीं था लिहाज़ा उसी हालत में फिर से रोज़ा शुरू कर दिया,दोपहर को कमज़ोरी के बाईस बेहोश हो गए तब ये आयत नाज़िल हुई कि अपनी बीवियों के पास जाने के अलावा रात में खाना पीना भी जायज़ हो गया!..✍🏻
📕 खज़ाईनुल इरफान,सफह 32-33
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 51
*ईद का बयान :-* रोज़ों की गिनती पूरी करो और अल्लाह की बडाई बोलो कि उसने तुम्हें हिदायत दी!
📕पारा 2 सूरह बक़रा आयत 185
हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो ईदाइन की रातों में क़याम करे (यानि कि रात में इबादत करे,) उसका दिल ना मरेगा जिस दिन लोगों के दिल मरेंगे!
📔 इबने माजा शरीफ जिल्द 2 सफह 365,हदीस 1782
जो पांच रातों में शब बेदारी करे उसके लिए जन्नत वाजिब है जिलहिज्ज की 8वीं 9वीं 10वीं रातें और ईद उल फित्र की रात और शाबान की 15वीं रात यानि कि शबे बरात!
📗अत्तरगीब वत्तरहीब जिल्द 2 सफह 98 ह़दीस 2
📙बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफह 778
हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ईद उल फित्र के दिन कुछ खा कर नमाज़ के लिए तशरीफ ले जाते और ईद उल अज़हा (बक़रा ईद) को ना खाते जब तक नमाज़ ना पढ़ लेते, और बुखारी शरीफ में है कि ईद उल फित्र के दिन तशरीफ ना ले जाते जब तक चन्द खजूरें ना खा लेते और वह ताक़ होती!
📘 तिर्मिज़ी शरीफ जिल्द 2 सफह 70 हदीस 542
📔बुखारी शरीफ जिल्द 1 सफह 328 हदीस 953
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हिस्सा - 52
*ईद का बयान :-* नमाज़ को जाने से पेशतर पहले चन्द खजूरें खा लेना चाहिए 3/5/7/ या कम व बेश मगर ताक हों, खजूरें ना हो तो कोई मीठी चीज़ खा लें!
📗फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 149
📔 बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफह 780
ईदाइन की नमाज़ वाजिब है मगर सब पर नहीं बल्कि उन्हीं पर जिन पर जुमां वाजिब है औरत पर ईद की नमाज़ वाजिब नहीं, और उसकी अदा की वही शरतें है जो जुमां के लिए हैं सिर्फ इतना फर्क़ है कि जुमां में खुतबा शर्त है और ईदाइन में सुन्नत, यानि अगर जुमां में खुतबा ना पढ़ा तो जुमां ना हुआ और ईद में खुतबा ना पढ़ा तो नमाज़ हो गयी मगर बुरा किया_
दूसरा फर्क ए है कि जुमां का खुतबा नमाज़ से पहले है, और ईद का नमाज़ के बाद, अगर किसी ने पहले पढ़ लिया तो बुरा किया मगर नमाज़ हो गयी लोटाई नहीं जायेगी, और खुतबा भी दुबारा नहीं पढ़ा जायेगा, और ईदाइन में न अज़ान है ना इक़ामत सिर्फ दो बार इतना कहने की इजाज़त है, اَلصّلوٰۃُ جَامِعَۃ बिला वजह ईद की नमाज़ छोड़ना गुमराही व बिदअत है!
📘 बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफह 779
जब ईद का दिन आता है तो अल्लाह अपने बन्दों पर फख्र करते हुए फरिश्तों से फरमाता है कि उस मज़दूर की क्या मज़दूरी है जिसने अपना काम पूरा कर लिया हो तो फरिश्ते अर्ज़ करते हैं मौला ये कि उसकी पूरी मज़दूरी उसे दी जाये तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है कि मेरे बन्दो के ज़िम्मे जो फरीज़ा था वो उन्होने अदा कर दिया तो मुझे अपनी इज़्ज़तो जलाल की कसम मैने उन सबको बख्श दिया!
📙 मिश्कात,सफह 183
जिसने ईद के दिन 300 बार “سُبْحَانَ اللّٰهِ وَبِحَمْدِه” पढ़कर इसका सवाब तमाम मुसलमान मरहूमीन को बख्शा तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हर मुसलमान की क़ब्र में 1000 अनवार दाखिल फरमायेगा और जब वो खुद इस दुनिया से जायेगा तो उसकी क़ब्र में भी 1000 अनवार दाखिल फरमायेगा!
📗 मुकाशिफातुल क़ुलूब,सफह 650
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हिस्सा - 53
*ईद का बयान :-* ईद के दिन ये काम मुस्तहब है,👇
1 - हिजामत बनवाना
2- नाखून तरशवाना
3- गुस्ल करना
4- मिसवाक करना
5- अच्छे कपड़े पहनना नया हो तो नया वरना धुला
6 अंगूठी पहनना, जब कभी अंगूठी पहने तो इस बात का खास खयाल रखिये कि सिर्फ साढ़े चार माशा से कम वज़न चांदी की एक ही अंगूठी पहनें, एक से ज़्यादा ना पहनें और उस एक अंगूठी में भी नगीना एक ही हो, एक से ज़्यादा ना हों, बगैर नगीने की भी न पहनें नगीने के वज़न की कोई क़ैद नहीं,मर्द को सोने की अंगूठी पहनना जायज़ नहीं,चांदी के अलावा किसी भी धात की अंगूठी या छल्ला मर्द नहीं पहन सकता!
7- खुशबू लगाना
8-सुबह की नमाज़ मोहल्ले की मस्जिद में पढ़ना
9- ईदगाह जल्द जाना
10- नमाज़ से पहले सदक़ा फित्रा अदा करना
11- ईदगाह को पैदल जाना, सवारी पर जाने में भी हरज नहीं
12 दूसरे रास्ते से वापस आना
13- नमाज़ से पहले खजूरें खा लेना
14 खुशी ज़ाहिर करना
15 कसरत से सदक़ा देना
16 ईदगाह को इतमिनान व क़ार और नीची नगाह किये जाना
17 आपस में मुबारक बाद देना
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफह 781
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❘༻ *रमज़ान मुबारक* ༺❘
हिस्सा - 54
*ईद का बयान :* *नमाज़े ईद की नियत यूँ करे :-* नियत की मैं दो रकात नमाज़ वाजिब ईदुल फित्र मा ज़ायद 6 तकबीरों के, वास्ते अल्लाह तआला के, मुकतदी कहे पीछे इस इमाम के मुंह मेरा काबा शरीफ के तरफ़!
*नमाज़े ईद का तरीका :-* नमाज़े ईद का तरीका ऐ है कि दो रकात वाजिब ईदुल फित्र की नियत कर के कानों तक हाथ उठाऐं और अल्लाहु अकबर कहकर हाथ नाफ़ के नीचे बांध ले फिर सना पढ़े फिर कानों तक हाथ उठाये और अल्लाहु अकबर कहता हुआ हाथ छोड़ दे, फिर हाथ उठाये और अल्लाहु अकबर कहकर हाथ छोड़ दे, फिर हाथ उठाये और अल्लाहु अकबर कहकर हाथ बांध ले,यानि पहली तकबीर में हाथ बांधे,उसके बाद दो तकबीरों में हाथ
लटकाये, फिर चौथी तकबीर में बांध ले,इसको यूँ याद रखिये कि जहाँ तकबीर के बाद कुछ पढ़ना है वहाँ हाथ बांध ले और जहाँ पढ़ना नहीं वहाँ हाथ छोड़ दिऐ जायें,, फिर इमाम अऊज़ और बिस्मिल्लाह आहिस्ता पढकर बुलंद आवाज़ से सूरह फातिहा और सूरत पढ़ेगा फिर रूकू और सुजूद करेगा, फिर दूसरी रकात में,पहले इमाम सूरह फातिहा और सूरत पढ़ेगा,फिर तीन बार कान तक हाथ ले जाकर अल्लाहु अकबर कहे और हाथ ना बांधे और चौथी बार बगैर हाथ उठाये अल्लाहु अकबर कहता हुआ रुकू में जाये,और नमाज़ पूरी करके खामोशी से खुतबा सनें कियोंकि खुतबा सनना वाजिब है!
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🔮 𝑆𝑢𝑙𝑡𝑎𝑛 𝑒 𝐻𝑖𝑛𝑑 𝑔𝑟𝑜𝑢𝑝 ☏ 𝟩𝟧𝟨𝟨𝟫𝟪𝟢𝟪𝟥𝟪 🔮