*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 01╠✧◉*
࿐ *सीरत क्या है?* कुदमाए मुहूद्दिषीन व फुकहा "मग़ाज़ी व सियर" के उन्वान के तहत में फ़क़त ग़ज़वात और इस के मुतअल्लिक़ात को बयान करते थे मगर सीरते नबविय्या के मुसन्निफ़ीन ने इस उन्वान को इस क़दर वस्त दे दी कि हुज़ूर रहमते आलम ﷺ की विलादते बा सआदत से वफ़ाते अक्दस तक के तमाम मराहिले हयात, आप की जात व सिफ़ात, आप के दिन रात और तमाम वोह चीजें जिन को आप की जाते वाला सिफ़ात से तअल्लुकात हो ख़्वाह वोह इन्सानी ज़िन्दगी के मुआमलात हों या नुबुव्वत के मोजिजात हों उन सब को "किताबे सीरत" ही के अब्वाब व फुसूल और मसाइल शुमार करने लगे।
࿐ चुनान्चे एलाने नुबुव्वत से पहले और बाद तमाम वाकिआत काशानए नुबुव्वत से जबले हिरा के गार तक और जबले हिरा के गार से जबले सौर के गार तक और हरमे का बा से ताइफ़ के बाज़ार तक और मक्का की चरागाहों से मुल्के शाम की तिजारत गाहों तक और अज़्वाजे मुतहहरात के हुजरों की खल्वत गाहों से ले कर इस्लामी ग़ज़वात की रज्म गाहों तक आप की हयाते मुक़द्दसा के हर हर लम्हा में आप की मुक़द्दस सीरत का आफ्ताबे आलम ताब जल्वा गर है।
࿐ इसी तरह खुलफ़ाए राशिदीन हों या दूसरे सहाबए किराम, अज्वाजे मुतहहरात हों या आप की औलादे इज़ाम, इन सब की किताबे ज़िन्दगी के अवराक़ पर सीरते नुबुव्वत के नक्शो निगार फूलों की तरह महक्ते, मोतियों की तरह चमक्ते और सितारों की तरह जग मगाते हैं। और येह तमाम मज़ामीन सीरते न बविय्या के "श-ज-रतुल खुल्द" ही की शाखें, पत्तियां, फूल और फल हैं।...✍🏻
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 40 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 02╠✧◉*
࿐ *मुल्के अरब :-* येह बर्रे आ'ज़म एशिया के जनूब मग़रिब में वाकेअ है चूंकि इस मुल्क के तीन तरफ़ समुन्दर ने और चौथी तरफ़ से दरियाए फुरात ने जज़ीरे की तरह घेर रखा है इस लिये इस मुल्क को "जज़ी-रतुल अरब" भी कहते हैं। इस के शिमाल में शाम व इराक़, मगरिब में बहरे अहमर (बुहैरए कुल्जुम) जो मक्कए मुअज्जमा से ब जानिबे मगरिब तकरीबन सतत्तर (77) किलो मीटर के फ़ासिले पर है और जनूब में बहरे हिन्द और मशरिक़ में खलीज अमान व खलीज फारस है। इस मुल्क में क़ाबिले ज़राअत ज़मीने कम है और इसका कषीर हिस्सा पहाड़ो और रेगिस्तानी सहराओं पर मुश्तमिल है।
࿐ उलमाने जुग्राफिया ने ज़मीनों की तबई सख्त के लिहाज़ से इस मुल्क को 8 हिस्सों में तक़सीम किया है। (1) हिजाज़ (2) यमन (3) हज़रमोत (4) महरा (5) अमान (6) बहरीन (7) नज्द (8) अहक़ाफ़!हिजाज़ की तफ्सील अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 40 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 03╠✧◉*
࿐ *हिजाज़ :-* येह मुल्क के मग़रिबी हिस्से में बहरे अहमर (बुहैरए कुल्जुम) के साहिल के क़रीब वाकेअ है हिजाज़ से मिले हुए साहिले समुन्दर को जो नशीब में वाकेअ है "तिहामा" या "गौर" ( पस्त ज़मीन) कहते और हिजाज़ से मशरिक़ की जानिब जो मुल्क का हिस्सा है वोह "नज्द " (बुलन्द ज़मीन) कहलाता है। “हिजाज़” चूंकि “तिहामा” और “नज्द" के दरमियान हाजिज़ और हाइल है इसी लिये मुल्क के इस हिस्से को "हिजाज़" कहने लगे।
࿐ हिजाज़ के मुन्दरिजए ज़ैल मकामात तारीखे इस्लाम में बहुत ज़ियादा मशहूर हैं, मक्कए मुकर्रमा, मदीनए मुनव्वरह, बद्र, उहुद, ख़ैबर, फ़दक, हुनैन, ताइफ़, तबूक, ग़दीर ख़म वग़ैरा।
࿐ हज़रते शुऐब अलैहिस्सलाम का शहर "मदयन" तबूक के महाज़ में बहरे अहमर के साहिल पर वाकेअ है मक़ाम "हजर" में जो वादी अलकुरा है वहां अब तक अज़ाब से क़ौमे समूद की उलट पलट कर दी जाने वाली बस्तियों के आसार पाए जाते हैं "ताइफ़" हिजाज़ में सब से ज़ियादा सर्द और सर सब्ज़ मक़ाम है और यहां के मेवे बहुत मश्हूर हैं।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 41 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 04╠✧◉*
࿐ *मक्कए मुकर्रमा :* हिजाज़ का येह मश्हूर शहर मशरिक़ में “ज-बले अबू कुबैस" और मग़रिब में “ज-बले कईकआन" दो बड़े बड़े पहाड़ों के दरमियान वाकेअ है और इस के चारों तरफ छोटी छोटी पहाड़ियों और रैतीले मैदानों का सिल्सिला दूर दूर तक चला गया है इसी शहर में हुज़ूर शहनशाहे कौनैन ﷺ की विलादते बा सआदत हुई।
࿐ इस शहर और इस के अतराफ़ में मुन्दरिजए जैल मश्हूर मक़ामात वाक़ेअ हैं का'बए मुअज्जमा, सफा मर्वह, मिना, मुज्दलिफा, अ-रफात, गारे हिरा, गारे पौर, जबले तईम, जिइराना वगैरा।
࿐ मक्कए मुकर्रमा की बन्दरगाह और हवाई अड्डा "जद्दा" है जो तक़रीबन चौवन किलो मीटर से कुछ ज़ाइद के फ़ासिले पर बुहैरए कुल्जुम के साहिल पर वाक़ेअ है।
࿐ मक्कए मुकर्रमा में हर साल जुल हिज्जा के महीने में तमाम दुनिया के लाखों मुसलमान, बहरी, हवाई और खुश्की के रास्तों से हज के लिये आते है। *मदीन ए मुनव्वरह* की तफ्सील अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 41 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 05╠✧◉*
࿐ *मदीनए मुनव्वरह :-* मक्कए मुकर्रमा से तकरीबन तीन सो बीस किलो मीटर के फ़ासिले पर मदीनए मुनव्वरह है जहां मक्कए मुकर्रमा से हिजरत फ़रमा कर हुजूरे अकरम ﷺ तशरीफ़ लाए और दस बरस तक मुक़ीम रह कर इस्लाम की तब्लीग फ़रमाते रहे और इसी शहर में आप का मज़ारे मुक़द्दस है जो मस्जिदे न-बवी के अन्दर “गुम्बदे खजरा" के नाम से मशहूर है।
࿐ मदीनए मुनव्वरह से तकरीबन साढ़े चार किलो मीटर जानिब शिमाल को "उहुद" का पहाड़ है जहां हक्को बातिल की मशहूर लड़ाई “जंगे उहुद" लड़ी गई इसी पहाड़ के दामन में हुज़ूर ﷺ के चचा हज़रत सय्यिदुश्शु-हदा हम्जाका मज़ारे मुबारक है जो जंगे उहुद में शहीद हुए।
࿐ मदीनए मुनव्वरह से तक़रीबन पांच किलो मीटर की दूरी पर “मस्जिदे कुबा" है। येही वोह मुक़द्दस मक़ाम है जहां हिजरत के बाद हुजूरे अक्दस ﷺ ने कियाम फ़रमाया और अपने दस्ते मुबारक से इस मस्जिद को तामीर फ़रमाया इस के बाद मदीनए मुनव्वरह में तशरीफ़ लाए और मस्जिदे नबवी की तामीर फ़रमाई।
࿐ मदीनए मुनव्वरह की बन्दरगाह “यम्बअ” है जो मदीनए मुनव्वरह से एक सो सतरह किलो मीटर के फ़ासिले पर बुहैरए कुल्जुम के साहिल पर वाकेअ है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 42 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 06╠✧◉*
࿐ *खा-तमुन्नबिय्यीन ﷺ अरब में क्यूं ?* अगर हम अरब को कुर्रए ज़मीन के नक्शे पर देखें तो इस के महल्ले वुकूअ से येही मा'लूम होता है कि अल्लाह तआला ने मुल्के अरब को एशिया, यूरोप और अफ्रीका तीन बर्रे आज़मों के वस्त में जगह दी है इस से बखूबी येह समझ में आ सकता है कि अगर तमाम की हिदायत के वासिते एक वाहिद मर्कज़ काइम करने के लिये हम किसी जगह का इन्तिख़ाब करना चाहें तो मुल्के अरब ही इस के लिये सब से ज़ियादा मोजूं और मुनासिब मक़ाम है।
࿐ खुसूसन हुजूर खा-तमुन्नबिय्यीन ﷺ के ज़माने पर नज़र कर के हम कह सकते हैं कि जब अफ़रीका और यूरोप और एशिया की तीन बड़ी बड़ी सल्तनतों का तअल्लुक़ मल्के अरब से था तो जाहिर है कि मल्के अरब से उठने वाली आवाज को इन बर्रे आज़मों में पहुंचाए जाने के जराएअ बखूबी मौजूद थे।
࿐ ग़ालिबन येही वोह हिक्मते इलाहिय्यह है कि अल्लाह तआला ने हुजूर खा-तमुन्नबिय्यीन ﷺ को मुल्के अरब में पैदा फ़रमाया और इन को अक्वामे आलम की हिदायत का काम सिपुर्द फ़रमाया।
࿐ *अरब की सियासी पोजीशन :* हुजूर नबिय्ये आख़िरुज्जमान ﷺ की विलादते मुबारका के वक्त मुल्के अरब की सियासी हालत का येह हाल था कि जनूबी हिस्से पर सल्तनते हब्शा का और मशरिकी हिस्से पर सल्तनते फ़ारस का कब्ज़ा था और शिमाली टुकड़ा सल्तनते रूम की मशरिकी शाख सल्तनते कुस्तुन्तुनिया के ज़ेरे अषर था। अन्दरूने मुल्क ब ज़ोमे खुद मुल्के अरब आज़ाद था लेकिन इस पर क़ब्ज़ा करने के लिये हर एक सल्तनत कोशिश में लगी हुई थी और दर हक़ीक़त इन सल्तनतों की बाहमी रक़ाबतों ही के तुफ़ैल में मुल्के अरब आज़ादी की नेअमत से बहरा वर था।
࿐ *अरब की अख़लाकी हालत :* अरब की अख़लाक़ी हालत निहायत ही अबतर बल्कि बद से बदतर थी जहालत ने इन में बुत परस्ती को जन्म दिया और बुत की लानत ने इन के इन्सानी दिलो दिमाग पर काबिज़ हो कर इन को तवहहुम परस्त बना दिया था वोह मुज़ाहिरे फ़ितरत की हर चीज़ पथ्थर, दरख़्त, चांद, सूरज, पहाड़, दरिया वगैरा को अपना माअबूद समझने लग गए थे और खुद साख्ता मिट्टी और पथ्थर की मूरतों की इबादत करते थे।
࿐ अकाइद की खराबी के साथ साथ इन के आमाल व अफ़आल बेहद बिगड़े हुए थे, कत्ल, रहजनी, जूआ, शराब नोशी, हराम कारी, औरतों का इग्वा, लड़कियों को ज़िन्दा दरगोर करना, अय्याशी, फोहश गोई, गरज़ कौन सा ऐसा गन्दा और घिनावना अमल था जो इन की सरशत में न रहा हो। छोटे बड़े सब के सब गुनाहों के पुतले और पाप के पहाड़ बने हुए थे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 43 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 07╠✧◉*
࿐ *हज़रते इब्राहीम की औलाद :* बानिये का'बा हज़रते इब्राहीम खुलीलुल्लाह عليه السلام एक फ़रज़न्द का नामे नामी हज़रते इस्माईल عليه السلام जो हज़रते बीबी हाजिरा رضي الله عنها के शिकमे मुबारक से पैदा हुए थे। हज़रते इब्राहीम عليه السلام ने उन को और उन की वालिदा हजरते बीबी हाजिरा رضي الله عنها मक्कए मुकर्रमा में ला कर आबाद किया और अरब की ज़मीन इन को अता फ़रमाई।
࿐ हज़रते इब्राहीम عليه السلام के दूसरे फ़रज़न्द का नामे नामी हज़रते इस्हाक़ عليه السلام है जो हज़रते बीबी सारह رضي الله عنها के मुक़द्दस शिकम से तवल्लुद हुए थे। हज़रते इब्राहीम عليه السلام ने उन को मुल्के शाम अता फरमाया हज़रते इब्राहीम عليه السلام की तीसरी बीवी हज़रते क़तूरह के पेट से जो औलाद “मुदैन" वगैरा हुए इन को आप ने यमन का अलाका अता फरमाया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 44 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 08╠✧◉*
࿐ *औलादे हज़रते इस्माईल :-* हज़रते इस्माईल عليه السلام के बारह बेटे हुए और इन की औलाद में खुदा वन्दे कुद्दूस ने इस क़दर बरकत अता फरमाई कि वोह बहुत जल्द तमाम अरब में फैल गए यहां तक कि मग़रिब में मिस्र के करीब तक इन की आबादियां जा पहुंचीं और जनूब की तरफ़ इन के खैमे यमन तक पहुंच गए और शिमाल की तरफ़ इन की बस्तियां मुल्के शाम से जा मिलीं।
࿐ हज़रते इस्माईल عليه السلام के एक फ़रज़न्द जिन का नाम "कैदार" था बहुत ही नामवर हुए और इन की औलाद ख़ास मक्का में आबाद रही और येह लोग अपने बाप की तरह हमेशा काबए मुअज्जमा की ख़िदमत करते रहे जिस को दुन्या में तौहीद की सब से पहली दर्सगाह होने का शरफ़ हासिल है।, इन्ही क़ैदार की औलाद में "अदनान" नामी निहायत ऊलुल अज्म शख़्स पैदा हुए और “अदनान" की औलाद में चन्द पुश्तों के बाद "क़सी" बहुत ही जाहो जलाल वाले शख़्स पैदा हुए जिन्हों ने मक्कए मुकर्रमा में मुश्तरिका हुकूमत की बुन्याद पर सि 440 ई. में एक सल्तनत काइम की और एक क़ौमी मजलिस (पार्लामेन्ट) बनाई जो "दारुन्नदवा" के नाम से मशहूर है और अपना एक क़ौमी झन्डा बनाया जिस को “लिवा" कहते थे और चार ओहदे काइम किये। जिन की जिम्मादारी चार क़बीलों को सोंप दी। (1) रिफ़ादह (2) सकायह (3) हिजाबह (4) कियादह
࿐ "क़सी" के बाद इन के फ़रज़न्द "अब्दे मनाफ़" अपने बाप के जा नशीन हुए फिर इन के फ़रज़न्द "हाशिम" फिर इन के फ़रज़न्द "अब्दुल मुत्तलिब" यके बाद दीगरे एक दूसरे के जा नशीन होते रहे इन्ही अब्दुल मुत्तलिब के फ़रजन्द हज़रते अब्दुल्लाह हैं जिन के फरजन्दे अरजुमन्द हमारे हजुर रहमतुल्लिल आ-लमीन ﷺ है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 45 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 09 ╠✧◉*
࿐ *खानदानी हालात #01 :* *नसब नामा* नसब नामा हुज़ूरे अक्दस ﷺ का नसब शरीफ वालिदे माजिद की तरफ से येह है (1) हज़रत मुहम्मद (ﷺ) (2) बिन अब्दुल्लाह (3) बिन अब्दुल मुत्तलिब (4) बिन हाशिम (5) बिन अब्दे मनाफ़ (6) बिन कसी (7) बिन किलाब (8) बिन मुर्रह (9) बिन का'ब (10) बिन लवी (11) बिन गालिब (12) बिन फ़हर (13) बिन मालिक (14) बिन नज़र (15) बिन किनाना (16) बिन खुज़ैमा (17) बिन मुदरिकह (18) बिन इल्यास (19) बिन मज़र (20) बिन नज़ार (21) बिन मअद (22) बिन अदनान।
࿐ और वालिदए माजिदा की तरफ से हुजूर ﷺ का श-ज-रए नसब येह है (1) हज़रत मुहम्मद (ﷺ) (2) बिन आमिना (3) बिन्ते वहब (4) बिन अब्दे मनाफ़ (5) बिन ज़हरा (6) बिन किलाब (7) बिन मुर्रह।
࿐ हुज़ूर ﷺ के वालिदैन का नसब नामा “किलाब बिन मुर्रह" पर मिल जाता है और आगे चल कर दोनों सिल्सिले एक हो जाते हैं। “अदनान" तक आप का नसब नामा सहीह सनदों के साथ ब इत्तिफ़ाक़े मुअर्रिख़ीन षाबित है इस के बाद नामों में बहुत कुछ इख़्तिलाफ़ है और हुजूर ﷺ जब भी अपना नामा बयान फ़रमाते थे तो "अदनान" ही तक ज़िक्र फ़रमाते थे।
࿐ मगर इस पर तमाम मुअरिखीन का इत्तिफ़ाक़ है कि "अदनान" हज़रते इस्माईल عليه السلام की औलाद में से हैं, और हज़रते इस्माईल عليه السلام हज़रते इब्राहीम ख़लीलुल्लाह عليه السلام के फ़रज़न्दे अरजुमन्द हैं।
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 10╠✧◉*
࿐ *खानदानी हालात #02 :* *खानदानी शराफत* हुज़ूरे अकरम ﷺ का ख़ानदान व नसब नजाबत व शराफ़त में तमाम दुन्या के खानदानों से अशरफ़ व आ'ला है और येह वोह हक़ीक़त है कि आप ﷺ के बद तरीन दुश्मन कुफ़्फ़ारे मक्का भी कभी इस का इन्कार न कर सके चुनान्चे अबू सुफ्यान ने जब वोह कुफ्र की हालत में थे बादशाहे रूम हरकुल के भरे दरबार में इस हक़ीक़त का इक़रार किया कि "नबी ﷺ" "आली खानदान" हैं। हालां कि उस वक़्त वोह आप ﷺ के बद तरीन दुश्मन थे और चाहते थे कि अगर ज़रा भी कोई गुन्जाइश मिले तो आप ﷺ की जाते पाक पर कोई ऐब लगा कर बादशाहे रूम की नज़रों से आप का वक़ार गिरा दें।
࿐ मुस्लिम शरीफ़ की रिवायत है कि अल्लाह तआला ने हज़रते इस्माईल عليه السلام की अवलाद में से “किनाना" को बर गुज़ीदा बनाया और “किनाना” में से "कुरैश" को चुना, और "कुरैश” में से “बनी हाशिम" को मुन्तख़ब फ़रमाया, और "बनी हाशिम" में से मुझ को चुन लिया।
࿐ बहर हाल येह एक मुसल्लमा हक़ीक़त है कि हुजूरे अन्वर ﷺ का ख़ानदान इस क़दर बुलन्द मर्तबा है कि कोई भी हसब व नसब वाला और नेअमत व बुजुर्गी वाला आपके मिष्ल नहीं है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 51 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 11╠✧◉*
࿐ *खानदानी हालात #03* *कुरैश :* हुजूरे अक्दस ﷺ के ख़ानदाने नुबुव्वत में सभी हज़रात अपनी गूना गूं खुसूसियात की वजह से बड़े नामी गिरामी हैं। मगर चन्द हस्तियां ऐसी हैं जो आसमाने फ़ज़्लो कमाल पर चांद तारे बन कर चमके। इन बा कमालों में से "फुहर बिल मालिक" भी हैं इन का लक़ब "कुरैश" है और इन की अवलाद कुरैशी या "कुरैश" कहलाती है।
࿐ "फुहर बिल मालिक" कुरैश इस लिये कहलाते हैं कि "कुरैश" एक समुन्दरी जानवर का नाम है जो बहुत ही ताकत वर होता है, और समुन्दरी जानवरों को खा डालता है येह तमाम जानवरों पर हमेशा गालिब ही रहता है कभी मगलूब नहीं होता चूंकि "फुहर बिल मालिक" अपनी शुजाअत और खुदा दाद ताक़त की बिना पर तमाम क़बाइले अरब पर गालिब थे इस लिये तमाम अहले अरब इन को "कुरैश" के लक़ब से पुकारने लगे।
࿐ हुज़ूर ﷺ के मां बाप दोनों का सिल्सिलए नसब "क़हर बिन मालिक" से मिलता है इस लिये हुज़ूरे अकरम ﷺ मां बाप दोनों की तरफ से "कुरैशी” हैं।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 52 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 12╠✧◉*
࿐ *खानदानी हालात #04* *हाशिम :* हुज़ूर ﷺ के परदादा "हाशिम" बड़ी शानो शौकत के मालिक थे इन का असली नाम "अम्र" था इन्तिहाई बहादुर, बेहद सखी, और आला दरजे के मेहमान नवाज़ थे एक साल अरब में बहुत सख़्त कहत पड़ गया और लोग दाने दाने को मोहताज हो गए तो येह मुल्के शाम से खुश्क रोटियां खरीद कर हज के दिनों में मक्का पहुंचे और रोटियों का चूरा कर के ऊंट के गोश्त के शोरबे में षरीद बना कर तमाम हाजियों को खूब पेट भर कर खिलाया। उस दिन से लोग इन को "हाशिम" (रोटियों का चूरा करने वाला) कहने लगे।
࿐ चूँकि ये "अब्दे मनाफ़" के सब लड़कों में बड़े और बा सलाहिय्यत थे इस लिये अब्दे मनाफ़ के बाद काबा के मुतवल्ली और सज्जादा नशीन हुए बहुत हसीन व ख़ूब सूरत और वजीह थे जब सिने शुऊर को पहुंचे तो इन की शादी मदीने में क़बीला ख़ज़रज के एक सरदार अम्र की साहिब जादी से हुई जिन का नाम "सलमा" था और उन के साहिब जादे "अब्दुल मुत्तलिब" मदीना ही में पैदा हुए चूंकि हाशिम पच्चीस साल की उम्र पा कर मुल्के शाम के रास्ते में ब मक़ाम "ग़ज़ा" इन्तिकाल कर गए। इस लिये अब्दुल मुत्तलिब मदीना ही में अपने नाना के घर पले बढ़े, और जब सात या आठ साल के हो गए तो मक्का आ कर अपने खानदान वालों के साथ रहने लगे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 53 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 13╠✧◉*
࿐ *खानदानी हालात #05* *अब्दुल मुत्तलिब :* हुज़ूरे अक्दस ﷺ के दादा "अब्दुल मुत्तलिब" का असली नाम "शैबा" है येह बड़े ही नेक नफ्स और आबिद जाहिद थे “गारे हिरा" में खाना पानी साथ ले कर जाते और कई कई दिनों तक लगातार खुदा की इबादत में मसरूफ़ रहते, रमज़ान शरीफ के महीने में अकषर गारे हिरा में एतिकाफ़ किया करते थे, और खुदा के ध्यान में गोशा नशीन रहा करते थे, रसूलुल्लाह ﷺ का नूरे नुबुव्वत इन की पेशानी में चमक्ता था और इन के बदन से मुश्क की खुश्बू आती थी।
࿐ अहले अरब खुसूसन कुरैश को इन से बड़ी अकीदत थी, मक्का वालों पर जब कोई मुसीबत आती या कहत पड़ जाता तो लोग अब्दुल मुत्तलिब को साथ ले कर पहाड़ पर चढ़ जाते और बारगाहे खुदा वन्दी में इन को वसीला बना कर दुआ मांगते थे तो दुआ मक्बूल हो जाती थी, येह लड़कियों को ज़िन्दा दरगोर करने से लोगों को बड़ी सख़्ती के साथ रोकते थे और चोर का हाथ काट डालते थे, अपने दस्तर ख़्वान से परिन्दों को भी खिलाया करते थे इस लिये इन का लक़ब "मुतइमुत्तीर" (परिन्दों को खिलाने वाला) है। शराब और जिना को हराम जानते थे और अक़ीदे के लिहाज से "मुवहिहद" थे।
࿐य “ज़मज़म शरीफ़" का कूंआं जो बिल्कुल पट गया था आप ही ने उस को नए सिरे से खुदवा कर दुरुस्त किया, और लोगों को आबे ज़मज़म से सैराब किया आप भी का'बे के मुतवल्ली और सज्जादा नशीन हुए असहाबे फील का वाकिआ आप ही के वक्त में पेश आया एक सो बीस बरस की उम्र में आप की वफात हुई।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 53 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 14╠✧◉*
࿐ *खानदानी हालात #06* *अस्हाबे फील का वाकिआ #01 :-* हुज़ूरे अकरम ﷺ की पैदाइश से सिर्फ पचपन दिन पहले यमन का बादशाह "अबरहा" हाथियों की फ़ोज ले कर काबा ढाने के लिये मक्का पर हुम्ला आवर हुवा था। इस का सबब येह था कि "अबरहा" ने यमन के दारुस्सल्तनत "सन्आ" में एक बहुत ही शानदार और आलीशान "गिरजा घर" बनाया और येह कोशिश करने लगा कि अरब के लोग बजाए खानए काबा के यमन आ कर इस गिरजा घर का हज किया करें। जब मक्का वालों को येह मालूम हुवा तो क़बीलए "किनाना" का एक शख़्स गैजो गज़ब में जल भुन कर यमन गया, और वहां के गिरजा घर में पाखाना फिर कर उस को नजासत से लतपत कर दिया। जब अबरहा ने येह वाकिआ सुना तो वोह तैश में आपे से बाहर हो गया और ख़ानए काबा को ढाने के लिये हाथियों की फ़ोज ले कर मक्का पर हम्ला कर दिया। और उस की फ़ोज का अगले दस्ते ने मक्का वालों के तमाम ऊंटों और दूसरे मवेशियों को छीन लिया उस में दो सो या चार सो ऊंट अब्दुल मुत्तलिब के भी थे।
࿐ अब्दुल मुत्तलिब को इस वाकिए से बड़ा रन्ज पहुंचा, चुनान्चे आप इस मुआमले में गुफ्तगू करने के लिये उस के लश्कर में तशरीफ़ ले गए जब अबरहा को मालूम हुवा कि कुरैश का सरदार इस से मुलाक़ात करने के लिये आया है तो उस ने आप को अपने खैमे में बुला लिया और जब अब्दुल मुत्तलिब को देखा कि एक बुलन्द कामत, रोबदार और निहायत ही हसीनो जमील आदमी हैं जिन की पेशानी पर नूरे नुबुव्वत का जाहो जलाल चमक रहा है तो सूरत देखते ही अबरहा मरऊब हो गया, और बे इख़्तियार तख़्ते शाही से उतर कर आप की ता'ज़ीमो तक्रीम के लिये खड़ा हो गया और अपने बराबर बिठा कर दरयाफ्त किया कि कहिये सरदारे कुरैश ! यहां आप की तशरीफ़ आवरी का क्या मक्सद है?
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 15╠✧◉*
࿐ *खानदानी हालात #07* *असहाबे फील का वाकिआ #02 :* अब्दुल मुत्तलिब को देख के अबरहा आप की ताज़ीम के लिए खड़ा हो गया और अपने बराबर बिठा कर दरयाफ्त किया सरदार कुरैश ! यहां आप की तशरीफ़ आवरी का क्या मक़सद है? अब्दुल मुत्तलिब ने जवाब दिया कि हमारे ऊंट और बकरियां वगैरा जो आप के लश्कर के सिपाही हांक लाए हैं आप उन सब मवेशियों को हमारे सिपुर्द कर दीजिये। येह सुन कर अबरहा ने कहा कि ऐ सरदारे कुरैश ! मैं तो येह समझता था कि आप बहुत ही हौसला मन्द और शानदार आदमी हैं। मगर आप ने मुझ से अपने ऊंटों का सुवाल कर के मेरी नज़रों में अपना वकार कम कर दिया।
࿐ ऊंट और बकरी की हक़ीक़त ही क्या है? मैं तो आप के का'बे को तोड़ फोड़ कर बरबाद करने के लिये आया हू, आप ने उस के बारे में कोई गुफ्तगू नहीं की अब्दुल मुत्तलिब ने कहा कि मुझे तो अपने ऊंटों से मतलब है काबा मेरा घर नहीं है बल्कि वोह खुदा का घर है वोह खुद अपने घर को बचा लेगा मुझे का'बे की ज़रा भी फ़िक़्र नहीं है येह सुन कर अबरहा अपने फ़िरऔनी लहजे में कहने लगा कि ऐ सरदारे मक्का ! सुन लीजिये ! मैं का'बे को ढा कर उस की ईंट से ईंट बजा दूंगा, और रूए ज़मीन से इस का नामो निशान मिटा दूंगा क्यू कि मक्का वालों ने मेरे गिरजा घर की बड़ी बे हुर्मती की है इस लिये मैं इस का इन्तिकाम लेने के लिये का'बे को मिस्मार कर देना ज़रूरी समझता हूं।
࿐ अब्दुल मुत्तलिब ने फ़रमाया कि फिर आप जानें और खुदा जाने मैं आप से सिफारिश करने वाला कौन? इस गुफ़्तगू के बाद अबरहा ने तमाम जानवरों को वापस कर देने का हुक्म दे दिया। और अब्दुल मुत्तलिब तमाम ऊंटों और बकरियों को साथ ले कर अपने घर चले आए और मक्का वालों से फ़रमाया कि तुम लोग अपने अपने माल और मवेशियों को ले कर मक्का से बाहर निकल जाओ और पहाड़ों की चोटियों पर चढ़ कर और दरों में छुप कर पनाह लो मक्का वालों से येह कह कर फिर खुद अपने ख़ानदान के चन्द आदमियों को साथ ले कर ख़ानए का'बा में गए और दरवाज़े का हल्का पकड़ कर इन्तिहाई बे करारी और गिर्या व ज़ारी के साथ दरबारे बारी में दुआ मांगने लगे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 55 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 16╠✧◉*
࿐ *खानदानी हालात #08* *अस्हाबे फील का वाकिआ #03 :-* अब्दुल मुत्तलिब खानए काबा के दरवाजे के हलका पकड़ कर दुआ मांगने लगे... ऐ अल्लाह ! बेशक हर शख़्स अपने अपने घर की हिफाजत करता है। लिहाजा तू भी अपने घर की हिफाजत फ़रमा, और सलीब वालों और सलीब के पुजारियों (ईसाइयों) के मुकाबले में अपने इताअत शिआरों की मदद फ़रमा।
࿐ अब्दुल मुत्तलिब ने येह दुआ मांगी और अपने खानदान वालों को साथ ले कर पहाड़ की चोटी पर चढ़ गए और खुदा की कुदरत का जल्वा देखने लगे।, अबरहा जब सुब्ह को काबा ढाने के लिये अपने लश्करे जर्रार और हाथियों की कतार के साथ आगे बढ़ा और मक़ामे "मगमस" में पहुंचा तो खुद उस का हाथी जिस का नाम "महमूद" था एक दम बैठ गया। हर चन्द मारा, और बार बार ललकारा मगर हाथी नहीं उठा। (
࿐ इसी हाल में क़हरे इलाही अबाबीलों की शक्ल में नुमूदार हुवा और नन्हे नन्हे परिन्दे झुंड के झुंड जिन की चोंच और पन्जों में तीन तीन कंकरियां थीं समुन्दर की जानिब से हरमे काबा की तरफ आने लगे। अबाबीलों के इन दल बादल लश्करों ने अबरहा की फ़ौजों पर इस ज़ोर शोर से संगबारी शुरू कर दी कि आन की आन अबरहा के लश्कर, और उस के हाथियों के परखचे उड़ गए। अबाबीलों की संगबारी खुदा वन्दे क़हार व जब्बार के क़हरो ग़ज़ब की ऐसी मार थी कि जब कोई कंकरी किसी फ़ील सुवार के सर पर पड़ती थी तो वोह उस आदमी के बदन को छेदती हुई हाथी के बदन से पार हो जाती थी। अबरहा की फ़ोज का एक आदमी भी जिन्दा नहीं बचा और सब के सब अबरहा और उस के हाथियों समेत इस तरह हलाक बरबाद हो गए कि उन के जिस्मों की बोटियां टुकड़े टुकड़े हो कर ज़मीन पर बिखर गई।
࿐ चुनान्चे कुरआने मजीद की "सूरए फ़ील" में खुदा वन्दे कुद्दूस ने इस वाकिए का जिक्र करते हुए इर्शाद फ़रमाया कि - *तर्जुमा :-* (ऐ महबूब) क्या आप ने न देखा कि आप के रब ने उन हाथी वालों का क्या हाल कर डाला क्या उन के दाउं को तबाही में न डाला और उन पर परिंदो की टुकड़ियां भेजी ताकि उन्हें कंकर के पत्थरो से मारे तो उन्हें चबाए हुए भुस जैसा बना डाला।
࿐ जब अबरहा और उसके लश्करों का ये अंजाम हुवा तो अब्दुल मुत्तलिब पहाड़ से नीचे उतरे और खुदा का शुक्र अदा किया। उनकी इस करामत का दूर दूर तक चर्चा हो गया और तमाम अहले अरब इन को एक खुदा रसीदा बुज़ुर्ग की हैशिययत से क़ाबिले एहतिराम समझने लगे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 57 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 17╠✧◉*
࿐ *खानदानी हालात #09* *हज़रते अब्दुल्लाह :-* येह हमारे हुजूर रहमते आलम ﷺ के वालिदे माजिद हैं येह अब्दुल मुत्तलिब के तमाम बेटों में सब से जियादा बाप के लाडले और प्यारे थे चूंकि इन की पेशानी में नूरे मुहम्मदी अपनी पूरी शानो शौकत के साथ जल्वा गर था इस लिये हुस्नो ख़ूबी के पैकर, और जमाले सूरत व कमाले सीरत के आईना दार, और इफ्फ़त व पारसाई में यक्ताए रोज़गार थे, क़बीलए कुरैश की तमाम हसीन औरतें इन के हुस्नो जमाल पर फ़रेफ्ता और इन से शादी की ख़्वास्त गार थीं मगर अब्दुल मुत्तलिब इन के लिये एक ऐसी औरत की तलाश में थे जो हुस्नो जमाल के साथ साथ हसब व नसब की शराफ़त और इफ्फ़त व परसाई में भी मुम्ताज़ हो।
࿐ अजीब इत्तिफ़ाक़ कि एक दिन अब्दुल्लाह शिकार के लिये जंगल में तशरीफ़ ले गए थे मुल्के शाम के यहूदी चन्द अलामतों से पहचान गए थे कि नबिय्ये आख़िरुज़्ज़मां के वालिदे माजिद येही हैं चुनान्चे उन यहूदियों ने हज़रते अब्दुल्लाह को बारहा क़त्ल कर डालने की कोशिश की इस मरतबा भी यहूदियों की एक बहुत बड़ी जमाअत मुसल्लह हो कर इस निय्यत से जंगल में गई कि हज़रते अब्दुल्लाह को तन्हाई में धोके से कत्ल कर दिया जाए मगर अल्लाह तआला ने इस मरतबा भी अपने फ़ज़्लो करम से बचा लिया आलमे ग़ैब से चन्द ऐसे सुवार ना गहां नुमूदार हुए जो इस दुन्या के लोगों से कोई मुशाबहत ही नहीं रखते थे, उन सुवारों ने आ कर यहूदियों को मार भगाया और हज़रते अब्दुल्लाह को ब हिफाज़त उन के मकान तक पहुंचा दिया।
࿐ "वब बिन मनाफ़" भी उस दिन जंगल में थे और उन्हों ने अपनी आंखों से येह सब कुछ देखा, इस लिये उन को हज़रते अब्दुल्लाह से बे इन्तिहा महब्बत व अकीदत पैदा हो गई, और घर आ कर येह अज़्म कर लिया कि मैं अपनी नूरे नज़र हज़रते आमिना की शादी हज़रते अब्दुल्लाह ही से करूंगा चुनान्चे अपनी इस दिली तमन्ना को अपने चन्द दोस्तों के जरीए उन्हों ने अब्दुल मुत्तलिब तक पहुंचा दिया, खुदा की शान कि अब्दुल मुत्तलिब अपने नूरे नज़र हज़रते अब्दुल्लाह के लिये जैसी दुल्हन की तलाश में थे, वोह सारी खूबियां हज़रते आमिना बिन्ते वह्ब में मौजूद थीं अब्दुल मुत्तलिब ने इस रिश्ते को खुशी खुशी मन्जूर कर लिया।
࿐ चुनान्चे चौबीस साल की उम्र में हज़रते अब्दुल्लाह का हज़रते बीबी आमिना से निकाह हो गया और नूरे मुहम्मदी हज़रते अब्दुल्लाह से मुन्तकिल हो कर हज़रते बीबी आमिना के शिकमे अतहर में जल्वा गर हो गया और जब हम्ल शरीफ़ को दो महीने पूरे हो गए तो अब्दुल मुत्तलिब ने हज़रते अब्दुल्लाह को खजूरें लेने के लिये मदीने भेजा, या तिजारत के लिये मुल्के शाम रवाना किया, वहां से वापस लौटते हुए मदीने में अपने वालिद के नन्हाल "बनू अदी बिन नज्जार" में एक माह बीमार रह कर पच्चीस बरस की उम्र में वफ़ात पा गए। और वहीं "दारे नाबिगा" में मदफून हुए।
࿐ क़ाफ़िले वालों ने जब मक्का वापस लौट कर अब्दुल मुत्तलिब को हज़रते अब्दुल्लाह की बीमारी का हाल सुनाया तो उन्हों ने ख़बर गीरी के लिये अपने सब से बड़े लड़के "हारिष" को मदीने भेजा उन के मदीने पहुंचने से कब्ल ही हज़रते अब्दुल्लाह राहिये मुल्के बका हो चुके थे हारिष ने मक्का वापस आ कर जब वफ़ात की खबर सुनाई तो सारा घर मातम कदा बन गया और बनू हाशिम के हर घर में मातम बरपा हो गया, खुद हज़रते आमिना ने अपने मरहूम शोहर का ऐसा पुरदर्द मरसिया कहा है कि जिस को सुन कर आज भी दिल दर्द से भर जाता है, रिवायत है कि हज़रते अब्दुल्लाह की वफ़ात पर फ़िरिश्तों ने ग़मगीन हो कर बड़ी हसरत के साथ येह कहा कि इलाही ! तेरा नबी यतीम हो गया। हज़रते हक़ ने फ़रमाया : क्या हुवा ? में उस का हामी व हाफ़िज़ हूं।
࿐ हज़रते अब्दुल्लाह का तर्का एक लौंडी "उम्मे ऐमन" जिस का नाम “बरकह" था कुछ ऊंट कुछ बकरियां थीं, येह सब तर्का हुज़ूर ﷺ को मिला "उम्मे एमन" बचपन मे हुज़ूर ﷺ की देखभाल करती थी खिलाती, कपड़ा पहनाती, परवरिश की पूरी ज़रूरिआत मुहय्या करती, इस लिये हुज़ूर ﷺ तमाम उम्र "उम्मे एमन" की दिलजुई फरमाते रहे, अपने महबूब व मुतबन्ना गुलाम हज़रते ज़ैद बिन हारिषा से उन का निकाह कर दिया, और उन के शिकम से हज़रते उसामा पैदा हुए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 59 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 18╠✧◉*
*❝ खानदानी हालात #10 ❞*
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࿐ *हुजुर ﷺ के वालिदैन का ईमान #01 :-* हुज़ूरे अक्दस ﷺ के वालिदैने करीमैन के बारे में उलमा का इख़्तिलाफ़ है कि वोह दोनों मोमिन हैं या नहीं ? बा'ज़ उलमा इन दोनों को मोमिन नहीं मानते और बा'ज़ उलमा ने इस मस्अले में तवक्कुफ़ किया और फ़रमाया कि इन दोनों को मोमिन या काफ़िर कहने से ज़बान को रोकना चाहिये और इस का इल्म खुदा के सिपुर्द कर देना चाहिये, मगर अहले सुन्नत के उलमाए मुहक्कुकीन मषलन इमाम जलालुद्दीन सुयूती व अल्लामा इब्ने हजर हैतमी व इमाम कुरतुबी व हाफ़िजुश्शाम इब्ने नासिरुद्दीन व हाफ़िज़ शम्सुद्दीन दिमश्की व क़ाज़ी अबू बक्र इब्नुल अरबी मालिकी व शैख़ अब्दुल हक़ मुहूद्दिष देहलवी व साहिबुल इक्लील मौलाना अब्दुल हक मुहाजिर मदनी वगैरा का येही अकीदा और क़ौल है कि हुज़ूर ﷺ के मां बाप दोनों यक़ीनन बिला शुबा मोमिन हैं।
࿐ चुनान्चे इस बारे में हज़रते शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिष देहलवी का इर्शाद है कि हुजूर ﷺ के वालिदैन को मोमिन न मानना येह उलमाए मुतक़द्दिमीन का मस्लक है लेकिन उला मुतअख्ख़िरीन ने तहकीक़ के साथ इस मस्अले को षाबित किया है कि हुज़ूर ﷺ के वालिदैन बल्कि हुज़ूर ﷺ के तमाम आबाओ अज्दाद हज़रते आदम तक सब के सब "मोमिन" हैं और इन हज़रात के ईमान को षाबित करने में उलमाए मुतअख़िख़रीन के तीन तरीके हैं :
࿐ अव्वल : येह कि हुजुर ﷺ के वालिदैन और आबाओ अज्दाद सब हज़रते इब्राहीम के दीन पर थे, लिहाज़ा "मोमिन" हुए।
࿐ दुवुम : येह कि येह तमाम हज़रात हुजूर ﷺ के एलाने नुबुव्वत से पहले ही ऐसे ज़माने में वफ़ात पा गए जो से ज़मानए "फ़्तरत” कहलाता है और इन लोगों तक हुज़ूर ﷺ की दावते ईमान पहुंची ही नहीं लिहाजा हरगिज़ हरगिज़ इन हज़रात को काफ़िर नहीं कहा जा सकता बल्कि इन लोगों को मोमिन ही कहा जाएगा।
࿐ सिवुम : येह कि अल्लाह तआला ने इन हज़रात को ज़िन्दा फ़रमा कर इन की क़ब्रों से उठाया और इन लोगों ने कलिमा पढ़ कर हुजूर ﷺ की तस्दीक की और हुजूर ﷺ के वालिदैन को ज़िंदा करने की हदीष अगर्चे बजाते खुद जईफ़ है मगर इस की सनदें इस कदर कषीर हैं कि येह हृदीष “सहीह" और "हसन" के दरजे को पहुंच गई है।
࿐ और येह वोह इल्म है जो उलमाए मुतक़द्दिमीन पर पोशीदा रह गया जिस को हक तआला ने उलमाए मुतअख़िख़रीन पर मुन्कशिफ़ फ़रमाया और अल्लाह तआला जिस को चाहता है अपने फ़ज़्ल से अपनी रहमत के साथ ख़ास फ़रमा लेता है और शैख जलालुद्दीन सुयूती ने इस मस्अले में चन्द रसाइल तस्नीफ़ किये हैं और इस मस्अले को दलीलों से षाबित किया है और मुखालिफ़ीन के शुब्हात का जवाब दिया है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 60 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 19╠✧◉*
*❝ खानदानी हालात # 11 ❞*
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࿐ *हुजुर ﷺ के वालिदैन का ईमान #02 :-* इसी तरह खातिमतुल मुफस्सिरीन हज़रते शैख इस्माईल हक्की رحمة الله عليه का बयान है कि, इमाम कुरतुबी ने अपनी किताब "तज़किरा" में तहरीर फ़रमाया कि हज़रते आइशा رضي الله عنها ने फ़रमाया कि हुजूर ﷺ जब “हिज्जतुल वदाअ" में हम लोगों को साथ ले कर चले और “हुजून" की घाटी पर गुज़रे तो रन्जो ग़म में डूबे हुए रोने लगे और हुजूर ﷺ रोता देख कर मैं भी रोने लगी। फिर हुजूर ﷺ अपनी ऊंटनी से उतर पड़े और कुछ देर के बाद मेरे पास वापस तशरीफ़ लाए तो खुश खुश मुस्कुराते हुए तशरीफ़ लाए, मैंने दरयाफ्त किया कि या रसूलल्लाह ﷺ आप पर मेरे मां बाप कुरबान हों, क्या बात है? कि आप रन्जो ग़म में डूबे हुए ऊंटनी से उतरे और वापस लौटे तो शादां व फरहां मुस्कुराते हुए तशरीफ़ फ़रमा हुए तो हुजूर ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया कि मैं अपनी वालिदा हज़रते आमिना رضي الله عنها की कब्र की ज़ियारत के लिये गया था और मैंने अल्लाह तआला से सुवाल किया कि वोह उन को ज़िन्दा फरमा दे तो "खुदा वन्दे तआला ने उन को ज़िन्दा फरमा दिया और वोह ईमान लाई।
࿐ और "अल इश्बाहि वन्नज़ाइर" में है कि हर वोह शख्स जो कुफ्र की हालत में मर गया हो उस पर लानत करना जाइज़ है बजुज रसूलुल्लाह ﷺ के वालिदैन के, क्यूं कि इस बात का षुबूत मौजूद है कि अल्लाह तआला ने इन दोनों को ज़िन्दा फ़रमाया और येह दोनों ईमान लाए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 62 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 20╠✧◉*
*❝ खानदानी हालात #12 ❞*
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࿐ *हुजुर ﷺ के वालिदैन का ईमान #03 :-* येह भी ज़िक्र किया गया है कि हुज़ूर ﷺ अपने बाप की क़ब्रों के पास रोए और एक खुश्क दरख़्त ज़मीन में बो दिया, और फ़रमाया कि अगर येह दरख़्त हरा हो गया तो येह इस बात की अलामत होगी कि इन दोनों का ईमान लाना मुमकिन है। चुनान्चे वोह दरख़्त हरा हो गया फिर हुज़ूर ﷺ की दुआ की बरकत से वोह दोनों अपनी अपनी कब्रों से निकल कर इस्लाम लाए और फिर अपनी अपनी क़ब्रों में तशरीफ़ ले गए।
࿐ और इन दोनों का ज़िन्दा होना, और ईमान लाना, न अक्लन मुहाल है न शरअन क्यूं कि कुरआन शरीफ़ से षाबित है कि बनी इस्राईल के मक्तूल ने ज़िन्दा हो कर अपने कातिल का नाम बताया इसी तरह हज़रते ईसा के दस्ते मुबारक से भी चन्द मुर्दे जिन्दा हुए जब येह सब बातें षाबित हैं तो हुजुर ﷺ के वालिदैन के ज़िन्दा हो कर ईमान लाने में भला कौन सी चीज़ मानेअ हो सकती है? और जिस हदीष में येह आया है कि मैं ने अपनी वालिदा के लिये दुआए मरिफ़रत की इजाजत तलब की तो मुझे इस की इजाजत नहीं दी गई।
࿐ येह हदीष हुजूर ﷺ के वालिदैन, के ज़िन्दा हो कर ईमान लाने से बहुत पहले की है क्यूं कि हुजुर ﷺ के वालिदैन का ज़िन्दा हो कर ईमान लाना येह “हिज्जतुल वदाअ" के मौकअ पर हुवा है (जो हुज़ूर के विसाल से चन्द ही माह पहले के मरातिब व दरजात का वाकिआ है) और हुजूर ﷺ हमेशा बढ़ते ही रहे तो हो सकता है कि पहले हुज़ूर ﷺ को खुदा वन्दे तआला ने येह शरफ़ नहीं अता फरमाया था कि आप के वालिदैन मुसलमान हों मगर बाद में इस फ़ज़्ल व शरफ़ से भी आप ﷺ को सरफ़राज़ फ़रमा दिया कि आप के वालिदैन को साहिबे ईमान बना दिया।
࿐ और क़ाज़ी इमाम अबू बक्र इब्नुल अरबी मालिकी से येह सुवाल किया गया कि एक शख़्स येह कहता है कि हुज़ूर ﷺ के आबाओ अज्दाद जहन्नम में हैं, तो आप ने फ़रमाया कि येह शख़्स मलउन है क्यूं कि अल्लाह तआला ने कुरआने मजीद में इर्शाद फ़रमाया है कि जो लोग अल्लाह और उस के रसूल को ईज़ा देते हैं अल्लाह तआला उन को दुन्या व आख़िरत में मलऊन कर देगा।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 64 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 21╠✧◉*
*❝ खानदानी हालात #13 ❞*
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࿐ *हुजुर ﷺ के वालिदैनका ईमान #04 :-* साहिबुल इक्लील हज़रते अल्लामा शैख अब्दुल हक़ मुहाजिर मदनी ने तहरीर फ़रमाया कि अल्लामा इब्ने हजर हैतमी ने मिश्कात की शर्ह में फ़रमाया है कि "हुजुर ﷺ के वालिदैन को अल्लाह तआला ने जिन्दा फ़रमाया, यहां तक कि वोह दोनों ईमान लाए और फिर वफ़ात पा गए।" येह हदीष सही है और जिन मुहूद्दिषीन ने इस हदीष को सहीह बताया है उन में से इमाम कुरतुबी और शाम के हाफ़िजुल हदीष इब्ने नासिरुद्दीन भी हैं और इस में तान करना बे महल और बे जा है, क्यूं कि करामात और खुसूसिय्यात की शान ही येह है कि वोह कवाइद और आदात के ख़िलाफ़ हुवा करती हैं।
࿐ चुनान्चे हुज़ूर ﷺ के वालिदैन का मौत के बाद उठ कर ईमान लाना, येह ईमान उन के लिये नाफेअ है हालां कि दूसरों के लिये येह ईमान मुफ़ीद नहीं है, इस की वजह यह है कि हुज़ूर ﷺ के वालिदैन को निस्बते रसूल की वजह से जो कमाल हासिल है वोह दूसरों के लिये नहीं है और हुज़ूर ﷺ की हदीष "काश ! मुझे ख़बर होती कि मेरे वालिदैन के साथ क्या मुआमला किया गया" के बारे में इमाम सुयूतीने "दुर्रे मन्सूर में फ़रमाया है कि येह हदीष मुरसल और ज़ईफुल अस्नाद है।
࿐ बहर कैफ़ मुन्दरिजए बाला इक्तिबासात जो मोतबर किताबों से लिये गए हैं इन को पढ़ लेने के बाद हुजूरे अक्दस ﷺ के साथ वालिहाना अकीदत और ईमानी महब्बत का येही तकाजा है कि हुजूर ﷺ के वालिदैन और तमाम आबाओ अज्दाद बल्कि तमाम रिश्तेदारों के साथ अदबो एहतिराम का इल्तिज़ाम रखा जाए बजुज़ उन रिश्तेदारों के जिन का काफिर और जहन्नमी होना कुरआन व हृदीष से यक़ीनी तौर पर षाबित है जैसे "अबू लहब" और उस की बीवी "हम्मा लतल हतब" बाक़ी तमाम कराबत वालों अदब मल्हूजे खातिर रखना लाज़िम है क्यूं कि जिन लोगों को हुज़ूर ﷺ से निस्बते कराबत हासिल है उन की बे अदबी व गुस्ताखी यक़ीनन हुज़ूर ﷺ की ईज़ा रसानी का बाइष होगा और आप कुरआन का फ़रमान पढ़ चुके कि जो लोग अल्लाह और उस के रसूल को ईजा देते हैं, वोह दुन्या व आखिरत में मलऊन हैं।
࿐ इस मस्अले में आ'ला हज़रत मौलाना शाह अहमद रज़ा खां साहिब क़िब्ला बरेल्वी का एक मुहुक्कुक़ाना रिसाला भी है जिस का नाम “शुमूलिल इस्लाम लि आबाइल किराम" है। जिस में आप ने निहायत ही मुफ़स्सल व मुदल्लल तौर पर येह तहरीर फ़रमाया है कि हुज़ूर ﷺ के आबाओ अज्दाद मुवहहीद व मुस्लिम हैं।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 65 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 22╠✧◉*
*❝ खानदानी हालात #14 ❞*
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࿐ *बरकाते नुबुव्वत का इज़हार #01 :-* जिस तरह सूरज निकलने से पहले सितारों की रूपोशी, सुब्हे सादिक की सफ़ेदी, शफ़क़ की सुर्खी सूरज निकलने की खुश खबरी देने लगती हैं इसी तरह जब आफ्ताबे रिसालत के तुलूअ का ज़माना क़रीब आ गया तो अतराफ़े आलम में बहुत से ऐसे अजीब अजीब वाकिआत और खवारिके आदात बतौरे अलामात के ज़ाहिर होने लगे जो सारी काएनात को झंझोड़ झंझोड़ कर येह बिशारत देने लगे कि अब रिसालत का आफ्ताब अपनी पूरी आबो ताब के साथ तुलूअ होने वाला है।
࿐ चुनान्चे असहाबे फ़ील की हलाकत का वाकिआ, ना गहां बाराने रहमत से सर ज़मीने अरब का सर सब्ज़ो शादाब हो जाना, और बरसों की खुश्क साली दफ्अ हो कर पूरे मुल्क में खुशहाली का दौर दौरा हो जाना, बुतों का मुंह के बल गिर पड़ना, फारस के मजूसियों की एक हज़ार साल से जलाई हुई आग का एक लम्हे में बुझ जाना, किस्रा के महल का जल्ज़ला, और इस के चौदह कंगूरों का मुन्हदिम हो जाना, "हमदान" और "कुम" के दरमियान छे मील लम्बे छे मील चौड़े "बहरए सावह" का यकायक बिल्कुल खुश्क हो जाना, शाम और कूफा के दरमियान वादिये “समावह" की खुश्क नदी का अचानक जारी हो जाना, हुज़ूर ﷺ की वालिदा के बदन से एक ऐसे नूर का निकलना जिस से "बसरा" के महल रोशन हो गए। येह सब वाक़िआत इसी सिल्सिले की कड़ियां हैं जो हुज़ूर ﷺ की तशरीफ़ आवरी से पहले ही "मुबश्शरात" बन कर आलमे काएनात को येह खुश खबरी देने लगे कि
*मुबारक हो वोह शह पर्दे से बाहर आने वाला है*
*गदाई को ज़माना जिस के दर पर आने वाला है*
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 67 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 23╠✧◉*
*❝ खानदानी हालात #15 ❞*
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࿐ *बरकाते नुबुव्वत का इज़हार #02 :-* हज़राते अम्बियाए किराम عليه السلام से कब्ले एलाने नुबुव्वत जो ख़िलाफ़े आदात और अक्ल को हैरत में डालने वाले वाकआत सादिर होते हैं उन को शरीअत की इस्तिलाह में "इरहास" कहते हैं और एलाने नुबुव्वत के बाद इन्ही को "मोजिज़ा" कहा जाता है। इस मज्कूरा बाला तमाम वाकिआत "इरहास" हैं जो हुज़ूरे अकरम ﷺ के ए'लाने नुबुव्वत करने से क़ब्ल जाहिर हुए जिन को हम ने "बरकाते नुबुव्वत" बयान किया है। इस किस्म के वाकिआत जो "इरहास" कहलाते हैं उन की तादाद बहुत जियादा है, इन में से चन्द का ज़िक्र हो चुका है चन्द दूसरे वाक़िआत भी पढ़ लीजिये।
࿐ मुहूद्दिष अबू नुऐम ने अपनी किताब "दलाइलुन्नुबुव्वह" में हज़रते अब्दुल्लाह बिन अब्बास رضي الله عنه की रिवायत से यह हदीष बयान की है कि जिस रात हुजूर ﷺ का नूरे नुबुव्वत हज़रते अब्दुल्लाह की पुश्त से हज़रते आमिना के बत्ने मुक़द्दस में मुन्तकिल हुवा, रूए ज़मीन के तमाम चौपायों, खुसूसन कुरैश के जानवरों को अल्लाह तआला ने गोयाई अता फ़रमाई और उन्हों ने ब ज़बाने फ़सीह ए'लान किया कि आज अल्लाह का वोह मुक़द्दस रसूल शिकमे मादर में जल्वा गर हो गया जिस के सर पर तमाम दुन्या की इमामत का ताज है और जो सारे आलम को रोशन करने वाला चराग है मशरिक के जानवरों ने मगरिब के जानवरों को बशारत दी इसी तरह समुन्दरों और दरियाओं के जानवरों ने एक दूसरे को येह खुश खबरी सुनाई कि हज़रते अबुल कासिम ﷺ की विलादते बा सआदत का वक़्त क़रीब आ गया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 68 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 24╠✧◉*
*❝ खानदानी हालात #16 ❞*
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࿐ *बरकाते नुबुव्वत का इज़हार #03 :-* खतीब बगदादी ने अपनी सनद के साथ येह हदीष रिवायत की है कि हुजूर ﷺ की वालिदए माजिदा हज़रते बीबी आमिना ने फ़रमाया कि जब हुजूरे अक्स ﷺ पैदा हुए तो मैं ने देखा कि एक बहुत बड़ी बदली आई जिस में रोशनी के साथ घोड़ों के हुनहुनाने और परन्दों के उड़ने की आवाज़ थी और कुछ इन्सानों की बोलियां भी सुनाई देती थीं। फिर एक दम हुजूर ﷺ मेरे सामने से गैब हो गए और मैं ने सुना कि एक ए'लान करने वाला ए'लान कर रहा है कि मुहम्मद ﷺ को मशरिक व मग़रिब में गश्त कराओ और इन को समुन्दरों की भी सैर कराओ ताकि तमाम काएनात को इन का नाम, इन का हुल्या, इन की सिफ़त मालूम हो जाए और इन को तमाम जानदार मख़्लूक या'नी जिन्नो इन्स, मलाएका और चरिन्दों व परन्दों के सामने पेश करो!
࿐ और इन्हें हज़रते आदम عليه السلام की सूरत, हज़रते शीष عليه السلام की मारिफ़त, हज़रते नूहु عليه السلام की शुजाअत, हज़रते इब्राहीम عليه السلام की खिल्लत, हज़रते इस्माईल عليه السلام की ज़बान, हज़रते इस्हाक़ عليه السلام की रिज़ा, हज़रते सालेह عليه السلام की फ़साहत, हज़रते लूत عليه السلام की हिकमत, हज़रते याकूब عليه السلام की बिशारत, हज़रते मूसा عليه السلام की शिद्दत, हज़रते अय्यूब عليه السلام का सब्र, हजरते यूनुस عليه السلام की ताअत, हजरते यूशु عليه السلام का जिहाद, हज़रते दाऊद عليه السلام की आवाज़, हज़रते दान्याल عليه السلام की महब्बत, हज़रते इल्यास عليه السلام का वकार, हज़रते यहया عليه السلام की इस्मत, हज़रते ईसा عليه السلام का जोहद अता कर के इन को तमाम पैग़म्बरों के कमालात और अख़्लाक़े हसना से मुजय्यन कर दो। इस के बाद वो बादल छट गया।
࿐ फिर मैंने देखा कि आप रेशम के सब्ज कपड़े में लिपटे हुए हैं और उस कपड़े से पानी टपक रहा है और कोई मुनादी ए'लान कर रहा है कि वाह वा ! क्या खूब मुहम्मद (ﷺ) को तमाम दुन्या पर क़ब्ज़ा दे दिया गया और काएनाते आलम की कोई चीज़ बाक़ी न रही जो इन के कब्ज़ए इक्तिदार व ग़लबए इताअत में न हो अब मैं ने चेहरए अन्वर को देखा तो चौदहवीं के चांद की तरह चमक रहा था और बदन से पाकीज़ा मुश्क की खुश्बू आ रही थी फिर तीन शख़्स नज़र आए, एक के हाथ में चांदी का लोटा, दूसरे के हाथ में सब्ज़ जुमर्रद का तश्त, तीसरे के हाथ में एक चमकदार अंगूठी थी अंगूठी को सात मरतबा धो कर उस ने हुज़ूर ﷺ के दोनों शानों के दरमियान मोहरे नुबुव्वत लगा दी, फिर हुज़ूर ﷺ को रेशमी कपड़े में लपेट कर उठाया और एक लम्हे के बाद मुझे सिपुर्द कर दिया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 69 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 25╠✧◉*
*❝ बचपन ❞*
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࿐ *विलादते बा सआदत :-* हुज़ूरे अक्दस ﷺ की तारीखे पैदाइश में इख़्तिलाफ़ है। मगर क़ौले मशहूर येही है कि वाकिअए "असहाबे फ़ील" से पचपन दिन के बाद 12 रबीउल अव्वल ब मुताबिक 20 एप्रिल सि. 571 ई. विलादते बा सआदत की तारीख है अहले मक्का का भी इसी पर अमल दर आमद है कि वोह लोग बारहवीं रबीउल अव्वल ही को काशानए नुबुव्वत की जियारत के लिये जाते हैं और वहां मीलाद शरीफ़ की महफ़िलें मुन्अकिद करते हैं।
࿐ तारीख़े आलम में येह वोह निराला और अजमत वाला दिन है कि इसी रोज़ आलमे हस्ती के ईजाद का बाइष, गर्दिशे लैलो नहार का मतलूब, खल्के आदम का रम्ज, किश्तिये नूहु की हिफाज़त का राज, बानिये काबा की दुआ, इब्ने मरयम की बिशारत का जुहूर हुवा, काएनाते वुजूद के उलझे हुए गेसुओं को सवारने वाला, तमाम जहान के बिगड़े निज़ामों को सुधारने वाला यानी मुहम्मद ﷺ आलमे वुजूद में रौनक़ अफ़रोज़ हुए और पाकीज़ा बदन, नाफ़ बरीदा, खतना किये हुए खुशबू में बसे हुए ब हालते सजदा, मक्कए मुकर्रमा की मुक़द्दस सर ज़मीन में अपने वालिदे माजिद के मकान के अंदर पैदा हुए, बाप कहाँ थे जो बुलाए जाते और अपने नौ निहाल को देख कर निहाल होते, वोह तो पहले ही वफात पा चुके थे दादा बुलाए गए जो उस वक़्त तवाफे काबा में मशगूल थे, ये खुश खबरी सुन कर दादा "अब्दुल मुत्तलिब" खुश खुश हरमे काबा से अपने घर आए और वालिहाना जोशे महब्बत में अपने पोते को कलेजे से लगा लिया फिर का'बे में ले जा कर खैरो बरकत की दुआ मांगी और “मुहम्मद" नाम रखा।
࿐ आप ﷺ के चचा अबू लहब की लौंडी “षुवैबा" खुशी में दौड़ती हुई गई और “अबू लहब" को भतीजा पैदा होने की खुश खबरी दी तो उस ने इस खुशी में शहादत की उंगली के इशारे से "षुवैबा" को आज़ाद कर दिया जिस का षमरा अबू लहब को येह मिला कि उस की मौत के बाद उस के घर वालों ने उस को ख़्वाब में देखा और हाल पूछा, तो उस ने अपनी उंगली उठा कर यह कहा कि तुम लोगों से जुदा होने के बाद मुझे कुछ (खाने पीने) को नहीं मिला बजुज़ इस के कि "षुवैबा" को आज़ाद करने के सबब से इस उंगली के जरीए कुछ पानी पिला दिया जाता हूं।
࿐ इस मौक़अ पर हज़रते शैख अब्दुल हक़ मुहूद्दिष देहलवी ने एक बहुत ही फ़िक्र अंगेज़ और बसीरत अफरोज बात तहरीर फ़रमाई है जो अहले महब्बत के लिये निहायत ही लज्ज़त बख़्श है, वोह लिखते हैं कि इस जगह मीलाद करने वालों के लिये एक सनद है कि येह आं हज़रत ﷺ की शबे विलादत में खुशी मनाते हैं और अपना माल खर्च करते हैं मतलब यह है कि जब अबू लहब को जो काफ़िर था और उस की मज़म्मत में कुरआन नाजिल हुवा, आं हज़रत ﷺ की विलादत पर खुशी मनाने, और बांदी का दूध खर्च करने पर जज़ा दी गई तो उस मुसलमान का क्या हाल होगा जो आं हज़रत ﷺ की महब्बत में सरशार हो कर खुशी मनाता है और अपना माल खर्च करता है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 72 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 26╠✧◉*
*❝ मौलूदुन्नबी ❞*
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࿐ जिस मुक़द्दस मकान में हुजूरे अक्दस ﷺ की विलादत हुई, तारीखे इस्लाम में उस मकाम का नाम "मौलूदुन्नबी" (नबी की पैदाइश की जगह) है, येह बहुत ही मुतबर्रिक मकाम है सलातीने इस्लाम ने इस मुबारक यादगार पर बहुत ही शानदार इमारत बना दी थी, जहां अहले हरमैने शरीफैन और तमाम दुन्या से आने वाले मुसलमान दिन रात महफ़िले मीलाद शरीफ़ मुन्अक़िद करते और सलातो सलाम पढ़ते रहते थे!
࿐ चुनान्चे हज़रते शाह वलिय्युल्लाह साहिब मुहद्दिष देहलवी ने अपनी किताब "फुयूजुल हरमैन" में तहरीर फ़रमाया है कि मैं एक मरतबा उस महफिले मीलाद में हाज़िर हुवा, जो मक्कए मुकर्रमा में बारहवीं रबीउल अव्वल को "मौलूदुन्नबी" में मुन्अकिद हुई थी जिस वक्त विलादत का ज़िक्र पढ़ा जा रहा था तो मैं ने देखा कि यक बारगी उस मजलिस से कुछ अन्वार बुलन्द हुए, मैं ने उन अन्वार पर गौर किया तो मालूम हुवा कि वोह रहमते इलाही और उन फ़िरिश्तों के अन्वार थे जो ऐसी महफ़िलों में हाज़िर हुवा करते हैं।
࿐ जब हिजाज़ पर नज्दी हुकूमत का तसल्लुत हुवा तो मक़ाबिरे जन्नतुल मअला व जन्नतुल बक़ीअ के गुम्बदों के साथ साथ नज्दी हुकूमत ने इस मुक़द्दस यादगार को भी तोड़ फोड़ कर मिस्मार कर दिया और बरसों येह मुबारक मक़ाम वीरान पड़ा रहा, मगर मैं जब जून सि 1959 ई. में इस मर्कज़े खैरो बरकत की ज़ियारत के लिये हाज़िर हुवा तो मैं ने उस जगह एक छोटी सी बिल्डिंग देखी जो मुक़फ्फ़ल थी, बा'ज़ अरबों ने बताया कि अब इस बिल्डिंग में एक मुख़्तसर सी लाएब्रेरी और एक छोटा सा मक्तब है, अब इस जगह न मीलाद शरीफ़ हो सकता है न सलातो सलाम पढ़ने की इजाजत है मैं ने अपने साथियों के साथ बिल्डिंग से कुछ दूर खड़े हो कर चुपके चुपके सलातो सलाम पढ़ा, और मुझ पर ऐसी रिक्क़त तारी हुई कि मैं कुछ देर तक रोता रहा।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 72 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 27╠✧◉*
*❝ दूध पीने का ज़माना #01 ❞*
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࿐ सब से पहले हुज़ूर ﷺ ने अबू लहब की लौंडी "हज़रते षुवैबा" का दूध नोश फ़रमाया फिर अपनी वालिदए माजिदा हज़रते आमिना के दूध से सैराब होते रहे, फिर हज़रते हलीमा सादिया आप को अपने साथ ले गई और अपने क़बीले में रख कर आप को दूध पिलाती रहीं और इन्हीं के पास आप ﷺ के दूध पीने का ज़माना गुज़रा। शुरफ़ाए अरब की आदत थी कि वोह अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिये गिर्दो नवाह देहातों में भेज देते थे देहात की साफ़ सुथरी आबो हवा में बच्चों की तन्दुरुस्ती और जिस्मानी सिहत भी अच्छी हो जाती थी और वोह ख़ालिस और फ़सीह अरबी ज़बान भी सीख जाते थे क्यूं कि शहर की ज़बान बाहर के आदमियों के मेलजोल से ख़ालिस और फ़सीह व बलीग ज़बान नहीं रहा करती।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 74 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 28╠✧◉*
*❝ दूध पीने का ज़माना #02 ❞*
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࿐ हज़रते हलीमा उस दुर्रे यतीम को ले कर आई जिस से सिर्फ हज़रते हलीमा और हज़रते आमिना ही के घर में नहीं बल्कि काएनाते आलम के मशरिक व मग़रिब में उजाला होने वाला था, येह खुदा वन्दे कुद्दूस का फ़ज़्ले अज़ीम ही था कि हज़रते हलीमा की सोई हुई क़िस्मत बेदार हो गई और सरवरे काएनात ﷺ इन की आगोश में आ गए, अपने खैमे में ला कर जब दूध पिलाने बैठीं तो बाराने रहमत की तरह बरकाते नुबुव्वत का ज़ुहूर शुरू हो गया, खुदा की शान देखिये कि हज़रते हलीमा के मुबारक पिस्तान में इस क़दर दूध उतरा कि रहमते आलम ﷺ ने भी और उनके रज़ाई भाई ने भी ख़ूब शिकम सैर हो कर दूध पिया, और दोनों आराम से सो गए, उधर उंटनी को देखा तो उस के थन दूध से भर गए थे हज़रते हलीमा के शोहर ने उस का दूध दोहा, और मियां बीवी दोनों ने ख़ूब सैर हो कर दूध पिया और दोनों शिकम सैर हो कर रात भर सुख और चैन की नींद सोए।
࿐ हज़रते हलीमा का शोहर हुजुर रहमते आलम ﷺ की येह बरकतें देख कर हैरान रह गया, और कहने लगा कि हलीमा ! तुम बड़ा ही मुबारक बच्चा लाई हो। हज़रते हलीमा ने कहा कि वाकेई मुझे भी येही उम्मीद है कि येह निहायत ही बा बरकत बच्चा है और खुदा की रहमत बन कर हम को मिला है और मुझे येही तवक्कोअ है कि अब हमारा घर खैरो बरकत से भर जाएगा।
࿐ हज़रते हलीमा फरमाती है कि इस के बाद हम आप ﷺ को अपनी गोद में ले कर मक्कए मुकर्रमा से अपने गाउं की तरफ रवाना हुए तो मेरा वोही खच्चर अब इस क़दर तेज़ चलने लगा कि किसी की सुवारी उस की गर्द को नहीं पहुंचती थी, क़ाफ़िले की औरतें हैरान हो कर मुझ से कहने लगीं कि ऐ हलीमा ! क्या येह वोही खच्चर है जिस पर तुम सुवार हो कर आई थीं या कोई दूसरा तेज़ रफ्तार खच्चर तुम ने खरीद लिया है? अल गरज हम अपने घर पहुंचे वहां सख्त कहत पड़ा हवा था।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 75 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 29╠✧◉*
*❝ दूध पीने का ज़माना #03 ❞*
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࿐ हज़रते हलीमा फरमाती है कि जब हम आप ﷺ को ले कर अपने घर पहुंचे वहां सख्त कहत पड़ा हुवा था तमाम जानवरों के थन में दूध खुश्क हो चुके थे, लेकिन मेरे घर में क़दम रखते ही मेरी बकरियों के थन दूध से भर गए, अब रोज़ाना मेरी बकरियां जब चरागाह से घर वापस आतीं तो उन के थन दूध से भरे होते हालां कि पूरी बस्ती में और किसी को अपने जानवरों का एक क़तरा दूध नहीं मिलता था मेरे क़बीले वालों ने अपने चरवाहों से कहा कि तुम लोग भी अपने जानवरों को उसी जगह चराओ जहां हलीमा के जानवर चरते हैं। चुनान्चे सब लोग उसी चरागाह में अपने मवेशी चराने लगे जहां मेरी बकरियां चरती थीं, मगर यहां तो चरागाह और जंगल का कोई अमल दख़ल ही नहीं था येह तो रहमते आलम ﷺ के बरकाते नुबुव्वत का फ़ैज़ था जिस को मैं और मेरे शोहर के सिवा मेरी क़ौम का कोई शख़्स नहीं समझ सकता था।
࿐ अल ग़रज़ इसी तरह हर दम हर कदम पर हम बराबर आप ﷺ की बरकतों का मुशाहदा करते रहे यहां तक कि दो साल पूरे हो गए और मैं ने आप का दूध छुड़ा दिया, आप ﷺ की तन्दुरुस्ती और नश्वो नुमा का हाल दूसरे बच्चों से इतना अच्छा था कि दो साल में आप खूब अच्छे बड़े मालूम होने लगे, अब हम दस्तूर के मुताबिक रहमते आलम ﷺ को उनकी वालिदा के पास लाए और उन्हों ने हस्बे तौफ़ीक़ हम को इन्आमो इक्राम से नवाज़ा।
࿐ गो काइदे के मुताबिक अब हमें रहमते आलम ﷺ को अपने पास रखने का कोई हक़ नहीं था, मगर आप ﷺ की बरकाते नुबुव्वत की वजह से एक लम्हा के लिये भी हम को आप ﷺ की जुदाई गवारा नहीं थी। अजीब इत्तिफ़ाक़ कि उस साल मक्कए मुअज्ज़मा में वबाई बीमारी फैली हुई थी चुनान्चे हम ने उस वबाई बीमारी का बहाना कर के हज़रते बीबी आमिना को रिजा मन्द कर लिया और फिर हम आप ﷺ को वापस अपने घर लाए और फिर हमारा मकान रहमतों और बरकतों की कान बन गया और आप हमारे पास निहायत खुश व खुर्रम हो कर रहने लगे। जब आप कुछ बड़े हुए तो घर से बाहर निकलते और दूसरे लड़कों को खेलते हुए देखते मगर खुद हमेशा हर क़िस्म के खेलकूद से अलाहिदा रहते। एक रोज़ मुझ से कहने लगे कि अम्माजान ! मेरे दूसरे भाई बहन दिन भर नज़र नहीं आते येह लोग हमेशा सुब्ह को उठ कर रोजाना कहां चले जाते हैं ? मैं ने कहा कि येह लोग बकरियां चराने चले जाते हैं, येह सुन कर आप ने फ़रमाया : मादरे मेहरबान ! आप मुझे भी मेरे भाई बहनों के साथ भेजा कीजिये। चुनान्चे आप ﷺ के इस्रार से मजबूर हो कर आप को हज़रते हलीमा ने अपने बच्चों के साथ चरागाह जाने की इजाजत दे दी। और आप ﷺ रोज़ाना जहां हज़रते हलीमा की बकरियां चरती थीं तशरीफ़ ले जाते रहे और बकरियां चरागाहों में ले जा कर उन की देखभाल करना जो तमाम अम्बिया और रसूलों की सुन्नत है आप ने अपने अमल से बचपन ही में अपनी एक ख़स्लते नुबुव्वत का इज़हार फ़रमा दिया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 77 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 30╠✧◉*
*❝ शक्के सद्र ❞*
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࿐ एक दिन आप ﷺ चरागाह में थे कि एक दम हज़रते हलीमा के एक फ़रज़न्द “ज़मरह" दौड़ते और हांपते कांपते हुए अपने घर पर आए और अपनी मां हज़रते बीबी हलीमा से कहा कि अम्माजान ! बड़ा ग़ज़ब हो गया, मुहम्मद ﷺ को तीन आदमियों ने जो बहुत ही सफ़ेद लिबास पहने हुए थे, चित लिटा कर उन का शिकम फाड़ डाला है और मैं इसी हाल में उन को छोड़ कर भागा हुवा आया हूं। येह सुन कर हज़रते हलीमा और उन के शोहर दोनों बद हवास हो कर घबराए हुए दौड़ कर जंगल में पहुंचे तो येह देखा कि आप ﷺ बैठे हुए है। मगर ख़ौफ़ो हिरास से चेहरा ज़र्द और उदास है, हज़रते हलीमा के शोहर ने इन्तिहाई मुश्फिक़ाना लहजे में प्यार से चुमकार कर पूछा कि बेटा ! क्या बात है? आप ﷺ ने फ़रमाया कि तीन शख़्स जिन के कपड़े बहुत ही सफ़ेद और साफ़ सुथरे थे मेरे पास आए और मुझ को चित लिटा कर मेरा शिकम चाक कर के उस में से कोई चीज़ निकाल कर बाहर फेंक दी और फिर कोई चीज़ मेरे शिकम में डाल कर शिगाफ़ को सी दिया लेकिन मुझे ज़र्रा बराबर भी कोई तकलीफ़ नहीं हुई।
࿐ येह वाकिआ सुन कर हज़रते हलीमा और उन के शोहर दोनों बेहद घबराए और शोहर ने कहा कि हलीमा मुझे डर है कि इन के ऊपर शायद कुछ आसेब का अषर है लिहाजा बहुत जल्द तुम इन को इन के घर वालों के पास छोड़ आओ, इसके बाद हज़रते हलीमा आप को ले कर मक्कए मुकर्रमा आई क्यूं कि उन्हें इस वाकिए से येह ख़ौफ़ पैदा हो गया था कि शायद अब हम कमा हक्कुहू इन की हिफ़ाज़त न कर सकेंगे, हज़रते हलीमा ने जब मक्कए मुअज्ज़मा पहुंच कर आप ﷺ की वालिदए माजिदा के सिपुर्द किया तो उन्हों ने दरयाफ्त फ़रमाया की हलीमा तुम तो बड़ी ख़्वाहिश और चाह के साथ मेरे बच्चे को अपने घर ले गई थीं फिर इस क़दर जल्द वापस ले आने की वजह क्या है? जब हज़रते हलीमा ने शिकम चाक करने का वाक़िआ बयान किया और आसेब का शुबा जाहिर किया तो हज़रते बीबी आमिना ने फ़रमाया कि हरगिज़ नहीं, खुदा की क़सम ! मेरे नूरे नज़र पर हरगिज़ हरगिज़ कभी भी किसी जिन्न या शैतान का अमल दख़ल नहीं हो सकता, मेरे बेटे की बड़ी शान है फिर अय्यामे हम्ल और वक्ते विलादत के हैरत अंगेज़ वाकिआत सुना कर हज़रते हलीमा को मुत्मइन कर दिया और हज़रते हलीमा आप को आप की वालिदए माजिदा के सिपुर्द कर के अपने गाऊं वापस चली आई और आप ﷺ अपनी वालिदा की आगोशे तरबियत में परवरिश पाने लगे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 78 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 31╠✧◉*
*❝ शक्के सद्र कितनी बार हुवा? ❞*
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࿐ हज़रते मौलाना शाह अब्दुल अजीज़ साहिब मुहद्दिषे देहलवी ने सूरए "अलम नश्रह" की तफ्सीर में फ़रमाया है कि चार मर्तबा आप ﷺ का मुक़द्दस सीना चाक किया गया और उस में नूर व हिक्मत का खजीना भरा गया।
࿐ पहली मरतबा जब आप ﷺ हज़रते हलीमा के घर थे जिस का ज़िक्र हो चुका, इस की हिक्मत येह थी कि हुज़ूर ﷺ उन वस्वसों और ख़यालात से महफूज़ रहें जिन में बच्चे मुब्तला हो कर खेलकूद और शरारतों की तरफ़ माइल हो जाते हैं।
࿐ दूसरी बार दस बरस की उम्र में हुवा ताकि जवानी की पुर आशोब शह्वतों के ख़तरात से आप बे ख़ौफ़ हो जाएं, तीसरी बार गारे हिरा में शक्के सद्र हुवा और आप ﷺ के कल्ब में नूरे सकीना भर दिया गया ताकि आप वहये इलाही के अज़ीम और गिरांबार बोझ को बरदाश्त कर सकें, चौथी मरतबा शबे मेराज में आप ﷺ का मुबारक सीना चाक कर के नूर व हिक्मत के ख़ज़ानों से मा'मूर किया गया, ताकि आप ﷺ के कल्बे मुबारक में इतनी वुस्अत और सलाहिय्यत पैदा हो जाए कि आप दीदारे इलाही की तजल्लियों, और कलामे रब्बानी की हैबतों और अज़मतों के मुतहम्मिल हो सकें।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 80 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 32╠✧◉*
*❝ उम्मे ऐमन ❞*
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࿐ जब हुजुरे अक्दस ﷺ हज़रते हलीमा के घर से मक्कए मुकर्रमा पहुंच गए और अपनी वालिदए मोहतरमा के पास रहने लगे तो हज़रते "उम्मे ऐमन" जो आप के वालिदे माजिद की बांदी थीं आप ﷺ की खातिर दारी और ख़िदमत गुज़ारी में दिन रात जी जान से मसरूफ रहने लगीं। उम्मे ऐमन का नाम "बरकह" है येह आप ﷺ को आप ﷺ के वालिद से मीराष में मिली थीं, येही आप को खाना खिलाती थीं कपड़े पहनाती थीं आप के कपड़े धोया करती थीं, आप ﷺ ने अपने आज़ाद करदा गुलाम हज़रते ज़ैद बिन हारिषा से उनका निकाह कर दिया था जिन से हज़रते उसामा बिन जैद पैदा हुए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 80 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 33╠✧◉*
*❝ बचपन की अदाएं ❞*
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࿐ हज़रते हलीमा का बयान है कि आप ﷺ का गहवारा या'नी झूला फ़िरिश्तों के हिलाने से हिलता था और आप बचपन में चांद की तरफ उंगली उठा कर इशारा फ़रमाते थे तो चांद आप ﷺ की उंगली के इशारों पर हरकत करता था। जब आप ﷺ की ज़बान खुली तो सब से अव्वल जो कलाम आप की ज़बाने मुबारक से निकला वोह येह था "اللہ اکبر اللہ اکبر الحمدللہ رب العالمین و سبحان اللہ بکرۃ واصىال"
࿐ बच्चों की आदत के मुताबिक कभी भी आप ﷺ ने कपड़ों में बोल व बराज़ नहीं फ़रमाया बल्कि हमेशा एक मुअय्यन वक्त पर रफ्ए हाजत फ़रमाते, अगर कभी आप ﷺ की शर्मगाह खुल जाती तो आप रो रो कर फ़रियाद करते और जब तक शर्मगाह न छुप जाती आप को चैन और करार नहीं आता था और अगर शर्मगाह छुपाने में मुझ से कुछ ताख़ीर हो जाती तो गैब से कोई आप की शर्मगाह छुपा देता, जब आप अपने पाउं पर चलने के काबिल हुए तो बाहर निकल कर बच्चों को खेलते हुए देखते मगर खुद खेलकूद में शरीक नहीं होते थे लड़के आप को खेलने के लिये बुलाते तो आप फ़रमाते कि मैं खेलने के लिये नहीं पैदा किया गया हूं।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 81 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 34╠✧◉*
*❝ हज़रते आमिना की वफात ❞*
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࿐ हुज़ूरे अक्दस ﷺ की उम्र शरीफ़ जब छे बरस की हो गई तो आप की वालिदए माजिदा आप को साथ ले कर मदीनए मुनव्वरह आप के दादा के नन्हियाल बनू अदी बिन नज्जार में रिश्तेदारों की मुलाक़ात या आपने शोहर की क़ब्र की ज़ियारत के लिये तशरीफ़ ले गई। हुज़ूर ﷺ के वालिदे माजिद की बांदी उम्मे ऐमन भी इस सफ़र में आप के साथ थीं वहां से वापसी पर "अब्वाअ" नामी गाउं में हज़रते बीबी आमिना की वफ़ात हो गई और वोह वहीं मदफून हुई। वालिदे माजिद का साया तो विलादत से पहले ही उठ चुका था अब वालिदए माजिदा की आगोशे शफ्कत का ख़ातिमा भी हो गया। लेकिन हज़रते बीबी आमिना का येह दुर्रे यतीम जिस आगोशे रहमत में परवरिश पा कर परवान चढ़ने वाला है वोह इन सब जाहिरी अस्बाबे तरबिय्यत से बे नियाज़ है।
࿐ हज़रते बीबी आमिना की वफात के बाद हज़रते उम्मे ऐमन आप ﷺ को मक्कए मुकर्रमा लाई और आप के दादा अब्दुल मुत्तलिब के सिपुर्द किया और दादा ने आप को अपनी आगोशे तरबिय्यत में इन्तिहाई शफ़क़त व महब्बत के साथ परवरिश किया और हज़रते उम्मे ऐमन आप की ख़िदमत करती रहीं जब आप ﷺ की उम्र शरीफ़ आठ बरस की हो गई तो आप के दादा अब्दुल मुत्तलिब का भी इन्तिकाल हो गया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 82 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 35╠✧◉*
*❝ अबू तालिब के पास ❞*
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࿐ अब्दुल मुत्तलिब की वफ़ात के बाद आप ﷺ के चचा अबू तालिब ने आप को अपनी आगोशे तरबिय्यत में ले लिया और हुजुर ﷺ की नेक ख़स्लतों और दिल लुभा देने वाली बचपन की प्यारी प्यारी अदाओं ने अबू तालिब को आप ﷺ का ऐसा गिरवीदा बना दिया कि मकान के अन्दर और बाहर हर वक़्त आप को अपने साथ ही रखते, अपने साथ खिलाते पिलाते, अपने पास ही आप का बिस्तर बिछाते और एक लम्हे के लिये भी कभी अपनी नज़रों से ओझल नहीं होने देते थे।
࿐ अबू तालिब का बयान है कि मैं ने कभी भी नहीं देखा कि हुजूर ﷺ किसी वक़्त भी कोई झूट बोले हो या कभी किसी को धोका दिया हो, या कभी किसी को कोई इज़ा पोहचाई हो, या बेहूदा लड़कों के साथ खेलने गए हो या कभी कोई ख़िलाफ़े तहज़ीब बात की हो। हमेशा इन्तिहाई खुश अख़लाक़, नेक अतवार, नर्म गुफ्तार, बुलन्द किरदार और आला दर्जे के पारसा और परहेज़ गार रहे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 83 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 36╠✧◉*
*❝ आप ﷺ की दुआ से बारिश ❞*
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࿐ एक मरतबा मुल्के अरब में इन्तिहाई ख़ौफ़नाक कहत पड़ गया अहले मक्का ने बुतों से फरियाद करने का इरादा किया मगर एक हसीनो जमील बूढ़े ने मक्का वालों से कहा कि ऐ अहले मक्का ! हमारे अन्दर अबू तालिब मौजूद हैं जो बानिये काबा हज़रते इब्राहीम खलीलुल्लाह अलैहिस्सलाम की नस्ल से हैं और काबे के मुतवल्ली और सज्जादा नशीन भी हैं हमें उन के पास चल कर दुआ की दर ख्वास्त करनी चाहिये।
࿐ चुनान्चे सरदाराने अरब अबू तालिब की खिदमत में हाज़िर हुए और फ़रियाद करने लगे कि ऐ अबू तालिब ! कहत की आग ने सारे अरब को झुलसा कर रख दिया है। जानवर घास, पानी के लिये तरस रहे हैं और इन्सान दाना पानी न मिलने से तड़प तड़प कर दम तोड़ रहे हैं। काफ़िलों की आमदो रफ्त बन्द हो चुकी है और हर तरफ़ बरबादी व वीरानी का दौर दौरा है। आप बारिश के लिये दुआ कीजिये।
࿐ अहले अरब की फ़रियाद सुन कर अबू तालिब का दिल भर आया और हुज़ूर ﷺ को अपने साथ ले कर हरमे का'बा में गए और हुजुर ﷺ को दीवारे काबा से टेक लगा कर बिठा दिया और दुआ मांगने में मश्गूल हो गए, दरमियाने दुआ में हुज़ूर ﷺ ने अपनी अंगुश्ते मुबारक को आस्मान की तरफ़ उठा दिया एक दम चारों तरफ़ से बदलियां नमूदार हुई और फ़ौरन ही इस ज़ोर का बाराने रहमत बरसा कि अरब की ज़मीन सैराब हो गईं जंगलों और मैदानों में हर तरफ़ पानी ही पानी नज़र आने लगा चटियल मैदानों की ज़मीनें सर सब्जो शादाब हो गई। कहत दफ्अ हो गया और काल कट गया और सारा अरब खुशहाल और निहाल हो गया।
࿐ चुनान्चे अबू तालिब ने अपने उस तवील क़सीदे में जिस को उन्हों ने हुजूरे अक्दस ﷺ की मदह में नज़्म किया है इस वाकिए को एक शे'र में इस तरह ज़िक्र किया है कि.. *तर्जमा :* वो हुज़ूर ﷺ ऐसे गोरे रंग वाले है कि इनके रूखे अनवर के ज़रिए बदली से बारिश तलब की जाती है वो यतीमों का ठिकाना और बेवाओं के निगहबान है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 83 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 37╠✧◉*
*❝ उम्मी लक़ब ❞*
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࿐ हुज़ूरे अक्दस ﷺ का लकब "उम्मी" इस लफ्ज़ के दो मा'ना हैं या तो येह "उम्मुल कुरा" की तरफ़ निस्बत है। "उम्मुल कुरा" मक्कए मुकर्रमा का लक़ब है। लिहाज़ा "उम्मी" के माना मक्कए मुकर्रमा के रहने वाले या "उम्मी" के येह माना हैं कि आप ने दुन्या में किसी इन्सान से लिखना पढ़ना नहीं सीखा। येह हुज़ूरे अक्दस ﷺ का बहुत ही अजीमुश्शान मोजिजा है कि दुन्या में किसी ने भी आप को नहीं पढ़ाया या लिखाया। मगर खुदा वन्दे कुद्दूस ने आप को इस क़दर इल्म अता फ़रमाया कि आप का सीना अव्वलीन व आख़िरीन के उलूम व मआरिफ का खज़ीना बन गया। और आप पर ऐसी किताब नाज़िल हुई जिस की शान हर हर चीज़ का रोशन बयान है।
࿐ हज़रते मौलाना जामी ने क्या खूब फ़रमाया है कि "मेरे महबूब न कभी मक्तब में गए, न लिखना सीखा मगर अपने चश्म व अब्रू के इशारे से सेकड़ों मुदर्रिसों को सबक़ पढ़ा दिया।" ज़ाहिर है कि जिस का उस्ताद और तालीम देने वाला खल्लाक़े आलम हो भला उस को किसी और उस्ताद से तालीम हासिल करने की क्या ज़रूरत होगी ? आ'ला हज़रत फ़ाज़िले बरेल्वी ने इर्शाद फ़रमाया कि :
*ऐसा उम्मी किस लिये मिन्नत कुशे उस्ताज़ हो*
*क्या किफ़ायत इस को اقرء ربک الاکرم नहीं*
࿐ आप ﷺ के उम्मी लकब होने का हकीकी राज़ क्या है? इस को तो खुदा वन्दे अल्लामुल गुयूब के सिवा और कौन बता सकता है ? लेकिन ब ज़ाहिर इस में चन्द हिक्मतें और फ़वाइद मा'लूम होते हैं।
★ *अव्वल :-* येह कि तमाम दुन्या को इल्म व हिक्मत सिखाने वाले हुज़ूरे अक्दस ﷺ हों और आप का उस्ताद सिर्फ खुदा वन्दे आलम ही हो, कोई इन्सान आप का उस्ताद न हो ताकि कभी कोई येह न कह सके कि पैग़म्बर तो मेरा पढ़ाया हुवा शागिर्द है।
★ *दुवुम :-* येह कि कोई शख़्स कभी येह ख़याल न कर सके कि फुलां आदमी हुज़ूर ﷺ का उस्ताद था तो शायद वोह हुज़ूर ﷺ से जियादा इल्म वाला होगा।
★ *सिवुम :-* हुज़ूर ﷺ के बारे में कोई येह वहम भी न कर सके कि हुजूर ﷺ चूंकि पढ़े लिखे आदमी थे इस लिये उन्हों ने खुद ही कुरआन की आयतों को अपनी तरफ से बना कर पेश किया है और कुरआन उन्हीं का बनाया हुवा कलाम है।
★ *चहारुम :-* जब हुजूर ﷺ सारी दुन्या को किताब व हिक्मत की ता'लीम दें तो कोई येह न कह सके कि पहली और पुरानी किताबों को देख देख कर इस किस्म की अनमोल और इन्क़िलाब आफ़रीं ता'लीमात दुन्या के सामने पेश कर रहे हैं।
★ *पन्जुम :-* अगर हुजूर ﷺ का कोई उस्ताद होता तो आप को उस की ता'ज़ीम करनी पड़ती, हालां कि हुज़ूर ﷺ को ख़ालिक़े काएनात ने इस लिये पैदा फ़रमाया था कि सारा आलम आप ﷺ की ताज़ीम करे, इस लिये हज़रते हक़ ने इस को गवारा नहीं फ़रमाया कि मेरा महबूब किसी के आगे जानूए तलम्मुज़ तह करे और कोई इस का उस्ताद हो।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 85 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 38╠✧◉*
*❝ सफ़रे शाम और बुहैरा ❞*
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࿐ जब हुज़ूर ﷺ की उम्र शरीफ़ बारह बरस की हुई तो उस वक्त अबू तालिब ने तिजारत की गरज से मुल्के शाम का सफ़र किया। अबू तालिब को चूंकि हुजुर ﷺ से बहुत ही वालिहाना महब्बत थी इस लिये वोह आप को भी इस सफ़र में अपने हमराह ले गए, हुज़ूरे अक्दस ﷺ ने ए'लाने नुबुव्वत से क़ब्ल तीन बार तिजारती सफ़र फ़रमाया, दो मरतबा मुल्के शाम गए और एक बार यमन तशरीफ़ ले गए।
࿐ येह मुल्के शाम का पहला सफ़र है इस सफ़र के दौरान "बुसरा" में ) “बुहैरा” राहिब (ईसाई साधू) के पास आप का क़ियाम हुवा उस ने तौरात व इन्जील में बयान की हुई नबिय्ये आखिरुज्जमां की निशानियों से आप ﷺ को देखते ही पहचान लिया और बहुत अकीदत और एहतिराम के साथ उस ने आप के काफिले वालों की दावत की और अबू तालिब से कहा कि येह सारे जहान के सरदार और रब्बुल आलमीन के रसूल हैं, जिन को खुदा ने रहमतुल्लिल आलमीन बना कर भेजा है। मैं ने देखा है कि शजरो हजर इन को सज्दा करते हैं और अब्र इन पर साया करता है और इन के दोनों शानों के दरमियाने मोहरे नुबुव्वत है। इस लिये तुम्हारे हक़ में येही बेहतर होगा कि अब तुम इन को ले कर आगे न जाओ और अपना माले तिजारत यहीं फरोख्त कर के बहुत जल्द मक्का चले जाओ। क्यूं कि मुल्के शाम में यहूदी लोग इन के बहुत बड़े दुश्मन हैं। वहां पहुंचते ही वोह लोग इन को शहीद कर डालेंगे। बुहैरा राहिब के कहने पर अबू तालिब को ख़तरा महसूस होने लगा, चुनान्चे उन्हों ने वहीं अपनी तिजारत का माल फरोख्त कर दिया और बहुत जल्द हुज़ूर को अपने साथ ले कर मक्कए मुकर्रमा वापस आ गए, बुहैरा राहिब ने चलते वक्त इन्तिहाई अकीदत के साथ आप को सफ़र का कुछ तोशा भी दिया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 87 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 39╠✧◉*
*❝ एलने नुबुव्वत से पहले के कारनामे #01 ❞*
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࿐ *जंगे फुज्जार :-* इस्लाम से पहले अरबों में लड़ाइयों का एक तवील सिल्सिला जारी था, इन्ही लड़ाइयों में से एक मशहूर लड़ाई "जंगे फुज्जार" के नाम से मशहूर है। अरब के लोग जुल कादह, जुल हिज्जा, मुहर्रम और रजब, इन चार महीनों का बेहद एहतराम करते थे और इन महीनों में लड़ाई करने को गुनाह जानते थे, यहां तक कि आम तौर पर इन महीनों में लोग तलवारों को नियाम में रख देते, और नेज़ों की बरछियां उतार लेते थे मगर इस के बावजूद कभी कभी कुछ ऐसे हंगामी हालात दरपेश हो गए कि मजबूरन इन महीनों में भी लड़ाइयां करनी पड़ीं तो इन लड़ाइयों को अहले अरब "हुरूबे फुज्जार" (गुनाह की लड़ाइयां) कहते थे।
࿐ सब से आखिरी जंगे फुज्जार जो "कुरैश" और "कैस" के क़बीलों के दरमियान हुई उस वक़्त हुजूर ﷺ की उम्र शरीफ़ बीस बरस की थी चूंकि कुरैश इस जंग में हक़ पर थे, इस लिये अबू तालिब वगैरा अपने चचाओं के साथ आप ने भी इस जंग में शिर्कत फ़रमाई मगर किसी पर हथियार नहीं उठाया सिर्फ इतना ही किया कि अपने चचाओं को तीर उठा उठा कर देते रहे इस लड़ाई में पहले कैस फिर कुरैश ग़ालिब आए और आखिरे कार सुल्ह पर इस लड़ाई का ख़ातिमा हो गया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 87 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 40╠✧◉*
*❝ एलने नुबुव्वत से पहले के कारनामे #02 ❞*
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࿐ *हल्फुल फुजूल :-* रोज़ रोज़ की लड़ाइयों से अरब के सेकड़ों घराने बरबाद हो गए थे, हर तरफ़ बद अम्नी और आए दिन की लूटमार से मुल्क का अम्नो अमान गारत हो चुका था कोई शख़्स अपनी जान व माल को महफूज़ नहीं समझता था न दिन को चैन, न रात को आराम, इस वहशत के सूरते हाल से तंग आ कर कुछ सुल्ह पसन्द लोगों ने जंगे फुज्जार के खातिमे के बाद एक इस्लाही तहरीक चलाई चुनान्चे बनू हाशिम, बनू ज़हरा, बनू असद वगैरा क़बाइले क़ुरैश के बड़े बड़े सरदारान अब्दुल्लाह बिन जदआन के मकान पर जम्अ हुए और हुज़ूर ﷺ के चचा जुबैर बिन अब्दुल मुत्तलिब ने येह तज्वीज़ पेश की, कि मौजूदा हालात को सुधारने के लिये कोई मुआहदा करना चाहिये!
࿐ चुनान्चे ख़ानदाने कुरैश के सरदारों ने "बक़ाए बाहम" के उसूल पर "जियो और जीने दो" के क़िस्म का एक मुआहदा किया और हलफ़ उठा कर अहद किया कि हम लोग : (1) मुल्क से बे अम्नी दूर करेंगे, (2) मुसाफिरों की हिफाज़त करेंगे, (3) गरीबों की इमदाद करते रहेंगे, (4) मज़लूम की हिमायत करेंगे। (5) किसी जालिम या ग़ासिब को मक्का में नहीं रहने देंगे।
࿐ इस मुआहदे में हुज़ूरे अक्दस ﷺ भी शरीक हुए और आप को येह मुआहदा इस क़दर अजीज़ था कि ए'लाने नुबुव्वत के बाद आप ﷺ फ़रमाया करते थे कि इस मुआहदे से मुझे इतनी खुशी हुई कि अगर इस मुआहदे के बदले में कोई मुझे सुर्ख रंग के ऊंट भी देता तो मुझे इतनी खुशी नहीं होती। और आज इस्लाम में भी अगर कोई मज़लूम "یاآل حلف الفضول" कह कर मुझे मदद के लिये पुकारे तो मैं उस की मदद के लिये तय्यार हूं।
࿐ इस तारीखी मुआहदे को "हल्फुल फुज़ूल" इस लिये कहते हैं कि कुरैश के इस मुआहदे से बहुत पहले मक्का में क़बीलए “जरहम" के सरदारों के दरमियान भी बिल्कुल ऐसा ही एक मुआहदा हुवा था। और चूंकि क़बीलए जरहम के वोह लोग जो इस मुआहदे के मुहर्रिक थे उन सब लोगों का नाम "फ़ज़्ल” था या'नी फ़ज़्ल बिन हारिष और फ़ज़्ल बिन वदाआ और फ़ज़्ल बिन फुजा़ला इस लिये इस मुआहदे का नाम "हल्फुल फुज़ूल" रख दिया गया, या'नी उन चन्द आदमियों का मुआहदा जिन के नाम " फ़ज़्ल ' थे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 89 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 41╠✧◉*
*❝ एलने नुबुव्वत से पहले के कारनामे #03 ❞*
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࿐ *मुल्के शाम का दूसरा सफ़र :-* जब आप ﷺ की उम्र शरीफ़ तकरीबन पच्चीस' साल की हुई तो आप ﷺ की अमानत व सदाकत का चरचा दूर दूर तक पहुंच चुका था। हज़रते खदीजा رضی اللّٰه تعالیٰ عنہا मक्का की एक बहुत ही मालदार औरत थीं इन के शोहर का इनतिकाल हो चुका था, इन को ज़रूरत थी कि कोई अमानत दार आदमी मिल जाए तो उस के साथ अपनी तिजारत का माल व सामान मुल्के शाम भेजें, चुनान्चे इन की नज़रे इनतिखाब ने इस काम के लिये हुजूर ﷺ को मुन्तखुब किया और कहला भेजा कि आप ﷺ मेरा माले तिजारत ले कर मुल्के शाम जाएं जो मुआवजा मैं दूसरों को देती हूं आप ﷺ की अमानत व दियानत दारी की बिना पर मैं आप को उस का दुगना दूंगी। हुजूर ﷺ ने उन की दरख्वास्त मन्जूर फ़रमा ली और तिजारत का माल व सामान ले कर मुल्के शाम को रवाना हो गए। इस सफ़र में हज़रते ख़दीजा رضی اللّٰه تعالیٰ عنہا ने अपने एक मोतमद गुलाम "मैसरह" को भी आप ﷺ के साथ रवाना कर दिया ताकि वोह आप की खिदमत करता रहे।
࿐ जब आप ﷺ मुल्के शाम मशहूर शहर "बुसरा" के बाज़ार में पहुंचे तो वहां "नस्तूरा" राहिब की खानकाह के करीब में ठहरे। "नस्तूरा" मैसरह को बहुत पहले से जानता पहचानता था हुजूर ﷺ की सूरत देखते ही "नस्तूरा" मैसरह के पास आया और दरयाप्त किया कि ऐ मैसरह येह कौन शख्स हैं जो इस दरख्त के नीचे उतर पड़े हैं मैसरह ने जवाब दिया कि यह मक्का के रहने वाले हैं और खानदाने बनू हाशिम के चश्मो चराग हैं इन का नामे नामी “मुहम्मद" और लकब "अमीन" है नस्तूरा ने कहा कि सिवाए नबी के इस दरख़्त के नीचे आज तक कभी कोई नहीं उतरा। इस लिये मुझे यक़ीने कामिल है कि "नबिय्ये आखिरुज़्ज़मां' येही हैं। क्यूं कि आखिरी नबी की तमाम निशानियां जो मैं ने तौरैत व इन्जील में पढ़ी हैं वोह सब मैं इन में देख रहा हूं। *काश ! मैं* उस वक़्त ज़िन्दा रहता जब येह अपनी नुबुव्वत का एलान करेंगे तो मैं इन की भरपूर मदद करता और पूरी जां निसारी के साथ इन की खिदमत गुज़ारी में अपनी तमाम उम्र गुज़ार देता ऐ मैसरह ! मैं तुम को नसीहत और वसिय्यत करता हूं कि ख़बरदार ! एक लम्हें के लिये भी तुम इन से जुदा न होना और इनतिहाई खुलूस व अकीदत के साथ इन की खिदमत करते रहना क्यूं कि अल्लाह तआला ने इन को "खातमुन्नबिय्यीन" होने का शरफ़ अता फरमाया है।
࿐ हुजूरे अक्सदस ﷺ बुसरा के बाज़ार में बहुत जल्द तिजारत का माल फ़रोख्त कर के मक्कए मुकर्रमा वापस आ गए वापसी में जब आप का क़ाफ़िला शहरे मक्का में दाखिल होने लगा तो हज़रते बीबी ख़दीजा رضی اللّٰه تعالیٰ عنہا एक बालाखाने पर बैठी हुई क़ाफ़िले की आमद का मन्ज़र देख रही थीं, जब उन की नज़र हुज़ूर ﷺ पर पड़ी तो उन्हें ऐसा नज़र आया कि दो फ़िरिश्ते आप ﷺ के सर पर धूप से साया किये हुए हैं। हज़रते ख़दीजा رضی اللّٰه تعالیٰ عنہا के कल्ब पर इस नूरानी मन्ज़र का एक खास असर हुवा और वोह फर्ते अकीदत से इनतिहाई वालिहाना महब्बत के साथ येह हसीन जल्वा देखती रहीं फिर अपने गुलाम मैसरह से उन्हों ने कई दिन के बा'द इस का ज़िक्र किया तो मैसरह ने बताया कि मैं तो पूरे सफ़र में येही मन्ज़र देखता रहा हूं, और इस के इलावा मैं ने बहुत सी अजीबो गरीब बातों का मुशाहदा किया है। फिर मैसरह ने नस्तूरा राहिब की गुफ़्तगू और उस की अक़ीदत व महब्बत का तज़किरा भी किया येह सुन कर हज़रते बीबी खदीजा رضی اللّٰه تعالیٰ عنہا को आप ﷺ से बे पनाह क़ल्बी तअल्लुक़ और बेहद अक़ीदत व महब्बत हो गई और यहां तक इनका दिल झुक गया कि इन्हें आप ﷺ से निकाह की रग़्बत हो गई।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह 90-92 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 42╠✧◉*
*❝ एलने नुबुव्वत से पहले के कारनामे #04 ❞*
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࿐ *निकाह #01 :-* हज़रते बीबी ख़दीजा माल व दौलत के साथ इन्तिहाई शरीफ़ और इफ्फ़त मआब खातून थीं। अहले मक्का इन की पाक दामनी और पारसाई की वजह से इन को ताहिरा (पाकबाज़) कहा करते थे। इन की उम्र चालीस साल की हो चुकी थी पहले इन का निकाह अबू हाला बिन ज़रारह तमीमी से हुवा था और उन से दो लड़के "हिन्द बिन अबू हाला" और "हाला बिन अबू हाला" पैदा हो चुके थे। फिर अबू हाला के इन्तिकाल के बाद हज़रते ख़दीजा ने दूसरा निकाह "अतीक बिन आबिद मख़्ज़ूमी" से किया। इन से भी दो औलाद हुई, एक लड़का "अब्दुल्लाह बिन अतीक़" और एक लड़की "हिन्द बिन्ते अतीक"। हज़रते ख़दीजा के दूसरे शोहर "अतीक" का भी इन्तिकाल हो चुका था, बड़े बड़े सरदाराने कुरैश इन के साथ अक्दे निकाह के ख़्वाहिश मन्द थे लेकिन उन्हों ने सब पैग़ामों को ठुकरा दिया।
࿐ मगर हुजुरे अक्दस ﷺ के पैगम्बराना अख़लाक़ व आदात को देख कर और आपके हैरत अंगेज़ हालात को सुन कर यहां तक इन का दिल आप की तरफ़ माइल हो गया कि खुद बखुद इन के कल्ब में आप से निकाह की रगबत पैदा हो गई, कहां तो बड़े बड़े मालदारों और शहरे मक्का के सरदारों के पैग़ामों को रद कर चुकी थीं और येह तै कर चुकी थीं कि अब चालीस बरस की उम्र तीसरा निकाह नहीं करूंगी और कहां खुद ही हुज़ूर ﷺ की फूफी हज़रते सफ़िय्या को बुलाया जो उन के भाई अवाम बिन खुवैलद की बीवी थीं, उन से हुज़ूर ﷺ के कुछ जाती हालात के बारे में मजीद मालूमात हासिल कीं फिर "नफ़ीसा" बिन्ते उमय्या के जरीए खुद ही हुज़ूर ﷺ के पास निकाह का पैगाम भेजा।
࿐ मशहूर इमामे सीरत मुहम्मद बिन इस्हाक़ ने लिखा है कि इस रिश्ते को पसन्द करने की जो वजह हज़रते ख़दीजा ने खुद हुजुर ﷺ से बयान की है वोह खुद उन के अल्फ़ाज़ में येह है : मैं ने आप के अच्छे अख़लाक़ और आप की सच्चाई की वजह से आप को पसन्द किया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह -93 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 43╠✧◉*
*❝ एलने नुबुव्वत से पहले के कारनामे #05 ❞*
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࿐ *निकाह #02 :-* हुज़ूर ﷺ ने इस रिश्ते को अपने चचा अबू तालिब और ख़ानदान के दूसरे बड़े बूढ़ों के सामने पेश फ़रमाया, भला हज़रते ख़दीजा जैसी पाक दामन, शरीफ़, अक्ल मन्द और मालदार औरत से शादी करने को कौन न कहता? सारे खानदान वालों ने निहायत खुशी के साथ इस रिश्ते को मन्जूर कर लिया, और निकाह की तारीख मुक़र्रर हुई और हुजूर ﷺ हज़रते हम्जा़ा और अबू तालिब वगैरा अपने चचाओं और ख़ानदान के दूसरे अफराद और शुरफ़ाए बनी हाशिम व मुज़र को अपनी बरात में ले कर हज़रते बीबी ख़दीजा के मकान पर तशरीफ़ ले गए और निकाह हुवा।
࿐ इस निकाह के वक्त अबू तालिब ने निहायत ही फ़सीह व बलीग खुत्बा पढ़ा, इस खुत्बे से बहुत अच्छी तरह इस बात का अन्दाजा हो जाता है कि एलाने नुबुव्वत से पहले आप के खानदानी बड़े बूढ़ों का आप ﷺ के मुतअल्लिक कैसा ख्याल था और आप के अख़्लाक़ व आदात ने इन लोगों पर कैसा अषर डाला था।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 93 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 44╠✧◉*
*❝ एलने नुबुव्वत से पहले के कारनामे #06 ❞*
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࿐ *निकाह #03 :* अबू तालिब के उस खुत्बे का तर्जमा येह है तमाम तारीफें उस खुदा के लिये हैं जिस ने हम लोगों को हज़रते इब्राहीम की नस्ल और हज़रते इस्माईल की औलाद में बनाया और हम को मअद और मुज़िर खानदान में पैदा फ़रमाया और अपने घर (का'बे) का निगहबान और अपने हरम का मुन्तज़िम बनाया और हम को इल्म व हिक्मत वाला घर और अम्न वाला हरम अता फरमाया और हम को लोगों पर हाकिम बनाया।
࿐ येह मेरे भाई का फ़रज़न्द मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह है येह एक ऐसा जवान है कि कुरैश के जिस शख्स का भी इस के साथ मुवाजना किया जाए येह उस से हर शान में बढ़ा हुवा ही रहेगा, हां माल इस के पास कम है लेकिन माल तो एक ढलती हुई छाउं और अदल बदल होने वाली चीज़ है, अम्मा बा'द ! मेरा भतीजा मुहम्मद वोह शख़्स है जिस के साथ मेरी कराबत और कुरबत व महब्बत को तुम लोग अच्छी तरह जानते हो, वोह ख़दीजा बिन्ते खुवैलद से निकाह करता है और मेरे माल में से बीस ऊंट महर मुक़र्रर करता है और इस का मुस्तक्बिल बहुत ही ताबनाक, अजीमुश्शान और जलीलुल केंद्र है।
࿐ जब अबू तालिब अपना येह वल्वला अंगेज़ खुत्बा ख़त्म कर चुके तो हज़रते बीबी ख़दीजा के चचाजा़ाद भाई वरका बिन नोफ़िल ने भी खड़े हो कर एक शानदार खुत्बा पढ़ा, जिस का मज़मून येह है : खुदा ही के लिये हम्द है जिस ने हम को ऐसा ही बनाया जैसा कि ऐ अबू तालिब ! आप ने ज़िक्र किया और हमें वोह तमाम फ़ज़ीलतें अता फ़रमाई हैं जिन को आप ने शुमार किया। बिला शुबा हम लोग अरब के पेशवा और सरदार हैं और आप लोग भी तमाम फ़ज़ाइल के अहल हैं, कोई क़बीला आप लोगों के फ़ज़ाइल का इन्कार नहीं कर सकता और कोई शख़्स आप लोगों के फ़ख्रो शरफ़ को रद नहीं कर सकता और बेशक हम लोगों ने निहायत ही रग़बत के साथ आप लोगों के साथ मिलने और रिश्ते में शामिल होने को पसन्द किया, लिहाजा ऐ कुरैश ! तुम गवाह रहो कि खदीजा बिन्ते खुवैलद को मैं ने मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह की ज़ौजिय्यत में दिया चार सो मिस्काल महर के बदले।
࿐ गरज हज़रते बीबी ख़दीजा के साथ हुजूर ﷺ का निकाह हो गया और हुज़ूर महबूबे खुदा ﷺ का खानए मईशत अज्दवाजी ज़िन्दगी के साथ आबाद तकरीबन 25 बरस तक हो गया। हज़रते बीबी ख़दीजा हुजूर ﷺ की ख़िदमत में रहीं और इन की ज़िन्दगी में हुजूर ﷺ ने कोई दूसरा निकाह नहीं फ़रमाया और हुज़ूर ﷺ के एक फ़रज़न्द हज़रते इब्राहीम के सिवा बाक़ी आप की तमाम औलाद हज़रते ख़दीजा ही के बतन से पैदा हुई, जिन का तफ्सीली बयान आगे आएगा, हज़रते ख़दीजा ने अपनी सारी दौलत हुजूर ﷺ के क़दमो पर क़ुर्बान कर दी और अपनी तमाम उम्र हुज़ूर ﷺ की गम गुसारी और खिदमत में निशार कर दी जिन की तफ्सील आगे आएगी।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 95 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 45╠✧◉*
*❝ काबे की तामीर #01 ❞*
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࿐ आप ﷺ रास्त बाज़ी और अमानत व दियानत की बदौलत खुदा वन्दे आलम ने आप को इस कदर मक्बूले खलाइक बना दिया और अक्ले सलीम और बे मिषाल दानाई का ऐसा अजीम जौहर अता फरमा दिया कि कम उम्री में आपने अरब के बड़े बड़े सरदारों के झगड़ों का ऐसा ला जवाब फैसला फ़रमा दिया कि बड़े बड़े दानिश्वरों और सरदारों ने इस फैसले की अज़मत के आगे सर झुका दिया, और सब ने बिल इत्तिफ़ाक़ आप ﷺ को अपना हुकम और सरदारे अज़ीम तस्लीम कर लिया।
࿐ चुनान्चे इस किस्म का एक वाकिआ तामीरे काबा के वक़्त पेश आया जिस की तफ्सील येह है कि जब आप ﷺ की उम्र पेंतीस (35) बरस की हुई तो ज़ोरदार बारिश से हरमे काबा में ऐसा अज़ीम सैलाब आ गया कि का'बे की इमारत बिल्कुल ही मुन्हदिम हो गई, हज़रते इब्राहीम व हज़रते इस्माईल का बनाया हुवा का'बा बहुता पुराना हो चुका था, इमालका, क़बीलए जरहम और कसी वगैरा अपने अपने वक्तों में इस काबे की तामीर व मरम्मत करते रहते थे मगर चूंकि इमारत नशीब में थी इस लिये पहाड़ों से बरसाती पानी के बहाव का ज़ोरदार धारा वादिये मक्का में हो कर गुज़रता था और अकषर हरमे का'बा में सैलाब आ जाता था। का'बे की हिफाजत के लिये बालाई हिस्से में कुरैश ने कई बन्द भी बनाए थे मगर वोह बन्द बार बार टूट जाते थे। इस लिये कुरैश ने येह तै किया कि इमारत को ढा कर फिर से काबे की एक मज़बूत इमारत बनाई जाए जिस का दरवाज़ा बुलन्द हो और छत भी हो।
࿐ चुनान्चे कुरैश ने मिलजुल कर तामीर का काम शुरू कर दिया, इस ता'मीर में हुजूर ﷺ भी शरीक हुए और सरदाराने कुरैश के दोश बदोश पथ्थर उठा उठा कर लाते रहे, मुख़्तलिफ़ क़बीलों ने ता'मीर के लिये मुख़्तलिफ़ हिस्से आपस में तक़सीम कर लिये जब इमारत "हजरे अस्वद" तक पहुंच गई तो क़बाइल में सख्त झगड़ा खड़ा हो गया। हर क़बीला येही चाहता था कि हम ही "हजरे अस्वद" को उठा कर दीवार में नस्ब करें। ताकि हमारे क़बीले के लिये येह फख्र व एजाज का बाईष बन जाए, इस कशमकश में चार दिन गुज़र गए यहां तक नौबत पहुची की तलवारें निकल आई।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 96 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 46╠✧◉*
*❝ काबे की तामीर #02 ❞*
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࿐ जब इमारत "हजरे अस्वद" तक पहुंच गई तो क़बाइल में सख्त झगड़ा खड़ा हो गया। हर क़बीला येही चाहता था कि हम ही "हजरे अस्वद" को उठा कर दीवार में नस्ब करें, ताकि हमारे क़बीले के लिये येह फख्र व ए'ज़ाज़ का बाइष बन जाए, इस कश्मकश में चार दिन गुज़र गए यहां तक नौबत पहुंची कि तलवारें निकल आई बनू अब्दुद्दार और बनू अदी के क़बीलों ने तो इस पर जान की बाज़ी लगा दी और ज़मानए जाहिलिय्यत के दस्तूर के मुताबिक़ अपनी कस्मों को मजबूत करने के लिये एक पियाले में ख़ून भर कर अपनी उंग्लियां उस में डबो कर चाट लीं।
࿐ पांचवें दिन हरमे काबा में तमाम क़बाइले अरब जम्अ हुए और इस झगड़े को तै करने के लिये एक बड़े बूढ़े शख्स ने येह तज्वीज़ पेश की, कि कल जो शख्स सुबह सवेरे सब से पहले हरमे काबा में दाखिल हो उस को पन्च मान लिया जाए, वोह जो फैसला कर दे सब उस को तस्लीम कर लें, चुनान्चे सब ने येह बात मान ली खुदा की शान कि सुब्ह को जो शख़्स हरमे काबा में दाखिल हुवा वोह हुज़ूर रहमते आलम ﷺ ही थे, आप को देखते ही सब पुकार उठे कि वल्लाह येह “अमीन" हैं लिहाज़ा हम सब इन के फैसले पर राज़ी हैं। आप ﷺ ने उस झगड़े का इस तरह तस्फिया फ़रमाया कि पहले आप ने येह हुक्म दिया कि जिस जिस क़बीले के लोग हजरे अस्वद को उस के मक़ाम पर रखने के मुद्दई हैं उन का एक एक सरदार चुन लिया जाए। चुनान्चे हर क़बीले वालों ने अपना अपना सरदार चुन लिया। फिर हुज़ूर ﷺ ने अपनी चादरे मुबारक को बिछा कर हजरे अस्वद को उस पर रखा और सरदारों को हुक्म दिया कि सब लोग इस चादर को थाम कर मुक़द्दस पथ्थर को उठाएं चुनान्चे सब सरदारों ने चादर को उठाया और जब हजरे अस्वद अपने मक़ाम तक पहुंच गया तो हुजूर ﷺ ने अपने मुतबर्रक हाथों से इस मुक़द्दस पथ्थर को उठा कर उस की जगह रख दिया इस तरह एक ऐसी खूंरेज लड़ाई टल गई जिस के नतीजे में न मा'लूम कितना ख़ून खराबा होता।
࿐ खानए काबा की इमारत बन गई लेकिन तामीर के लिये जो सामान जम्अ किया गया था वोह कम पड़ गया इस लिये एक तरफ़ का कुछ हिस्सा बाहर छोड़ कर नई बुन्याद काइम कर के छोटा सा काबा बना लिया गया काबए मुअज्जमा का येही हिस्सा जिस को कुरैश ने इमारत से बाहर छोड़ दिया "हतीम" कहलाता है जिस में काबए मुअज्जमा की छत का परनाला गिरता है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 97 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 47╠✧◉*
*❝ काबा कितनी बार तामीर किया गया? ❞*
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࿐ हज़रते अल्लामा जलालुद्दीन सुयूती ने तारीखे "मक्का" में तहरीर फ़रमाया है कि "ख़ानए काबा" दस मरतबा तामीर किया गया : (1) सब से पहले फ़िरिश्तों ने ठीक "बैतुल मामूर" के सामने ज़मीन पर ख़ानए का'बा को बनाया। (2) फिर हज़रते आदम عليه السلام ने इस की तामीर फ़रमाई। (3) इस के बाद हज़रते आदम عليه السلام के फ़रज़न्दों ने इस इमारत को बनाया ल। (4) इस के बाद हज़रते इब्राहीम खुलीलुल्लाह और उन के फ़रज़न्दे अरजुमन्द हज़रते इस्माईल عليه السلام ने इस मुक़द्दस घर को तामीर किया। जिस का तज़करा कुरआने मजीद में है। (5) कौमे इमालका की इमारत। (6) इस के बाद क़बीलए जरहम ने इस की इमारत बनाई। (7) कुरैश के मूरिषे आ'ला “क़सी बिन किलाब" की तामीर। (8) कुरैश की तामीर जिस में खुद हुजूर ﷺ ने भी शिर्कत फ़रमाई और कुरैश के साथ खुद भी अपने दोशे मुबारक पर पथ्थर उठा उठा कर लाते रहे। (9) हज़रते अब्दुल्लाह बिन जुबैर ने अपने दौरे ख़िलाफ़त में हुजूर ﷺ के तज्वीज कर्दा नक्शे के मुताबिक़ तामीर किया। या'नी हतीम की जमीन को का'बे में दाखिल कर दिया। और दरवाजा सत्हे ज़मीन के बराबर नीचा रखा और एक दरवाज़ा मशरिक की जानिब और एक दरवाजा़ा मगरिब की सम्त बना दिया। (10) अब्दुल मलिक बिन मरवान उमवी के जालिम गवर्नर हज्जाज बिन यूसुफ़ षक़फ़ी ने हज़रते अब्दुल्लाह बिन जुबैर को शहीद कर दिया। और इन के बनाए हुए का'बे को ढा दिया। और फिर ज़मानए जाहिलिय्यत के नक्शे के मुताबिक़ काबा बना दिया। जो आज तक मौजूद है।
࿐ लेकिन हज़रते अल्लामा हलबी ने अपनी सीरत में लिखा है कि नए सिरे से का'बे की ता मीरे जदीद सिर्फ तीन ही मरतबा है : (1) हज़रते इब्राहीम खलीलुल्लाह की ता'मीर (2) ज़मानए जाहिलिय्यत में कुरैश की इमारत और इन दोनों तामीरों में दो हजार सात सो पेंतीस (2735) बरस का फ़ासिला है (3) हज़रते अब्दुल्लाह बिन जुबैर की तामीर जो कुरैश की तामीर के बयासी साल बा'द हुई।
࿐ हज़राते मलाएका और हज़रते आदम عليه السلام के फ़रज़न्दों की तामीरात के बारे में अल्लामा हलबी ने फ़रमाया कि येह सहीह रिवायतों से षाबित ही नहीं है। बाक़ी तामीरों के बारे में उन्हों ने लिखा कि येह इमारत में मामूली तरमीम या टूट फूट की मरम्मत थी, तामीरे जदीद नहीं थी।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 98 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 48 ╠✧◉*
*❝ मख़्सूस अहबाब ❞*
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࿐ ए'लाने नुबुव्वत से क़ब्ल जो लोग हुज़ूर ﷺ के मख़्सूस अहबाब व रु-फ़क़ा थे वोह सब निहायत ही बुलन्द अख़्लाक़, आली मर्तबा, होश मन्द और बा वक़ार लोग थे। इन में सब से जियादा मुकर्रब हज़रते अबू बक्र رضي الله عنه थे जो बरसों आप के साथ वतन और सफ़र में रहे। और तिजारत नीज़ दूसरे कारोबारी मुआमलात में हमेशा आप के शरीके कार व राज़दार रहे। इसी तरह हज़रते ख़दीजा رضي الله عنها के चचाज़ाद भाई हज़रते हकीम बिन हिज़ाम رضي الله عنه जो क़ुरैश के निहायत ही मुअज्ज़ज़ रईस थे और जिन का एक खुसूसी शरफ़ येह है कि उन की विलादत ख़ानए काबा के अन्दर हुई थी, येह भी हुज़ूर ﷺ के मख़्सूस अहबाब में खुसूसी इम्तियाज़ रखते थे, हज़रते ज़माद बिन षालबा رضي الله عنه जो ज़मानए जाहिलिय्यत में तिबाबत और जराही का पेशा करते थे येह भी अहबाबे ख़ास में से थे।
࿐ हुज़ूर ﷺ के ए'लाने नुबुव्वत के बा'द येह अपने गाउं से मक्का आए तो कुफ्फ़ारे कुरैश की ज़बानी येह प्रोपेगन्डा सुना कि मुहम्मद मजनून हो गए हैं। फिर येह देखा कि हुज़ूर ﷺ रास्ते में तशरीफ़ ले जा रहे हैं और आपके पीछे लड़कों का एक ग़ौल है जो शोर मचा रहा है येह देख कर हज़रते ज़माद बिन षालबा رضي الله عنه को कुछ शुबा पैदा हुवा और पुरानी दोस्ती की बिना इन को इन्तिहाई रन्जो क़लक़ हुवा। चुनान्चे येह हुज़ूर ﷺ के पास आए और कहने लगे कि ऐ मुहम्मद ! मैं तबीब हूं और जुनून का इलाज कर सकता हूं। येह सुन कर हुज़ूर ﷺ ने खुदा की हम्दो षना के बाद चन्द जुम्ले इर्शाद फ़रमाए जिन का हज़रते ज़माद बिन षालबा رضي الله عنه के कल्ब पर इतना गहरा अषर पड़ा कि वोह फ़ौरन ही मुशर्रफ़ ब इस्लाम हो गए।
࿐ हज़रते कैस बिन साइब मख़्ज़ूमी رضي الله عنه तिजारत के कारोबार में आप ﷺ के शरीके कार रहा करते और आप ﷺ के गहरे दोस्तों में से थे कहा करते थे कि हुज़ूरे अकरम ﷺ का मुआमला अपने तिजारती शुरका के साथ हमेशा निहायत ही साफ़ सुथरा रहता था और कभी कोई झगड़ा पेश नहीं आता था।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 100 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 49╠✧◉*
*❝ मुवहि्हदीने अरब से तअल्लुकात ❞*
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࿐ अरब में अगर्चे हर तरफ़ शिर्क फैल गया था और घर घर में बुत परस्ती का चरचा था। मगर इस माहोल में भी कुछ ऐसे लोग थे जो तौहीद के परस्तार और शिर्क व बुत परस्ती से बेज़ार थे, इन्ही खुश नसीबों में जैद बिन अम्र बिन नुफैल हैं, येह अलल ए'लान शिर्क व बुत परस्ती से इन्कार और जाहिलिय्यत की मुशरिकाना रस्मों से नफ़रत का इज़हार करते थे, येह हज़रते उमर رضي الله عنه के चचाज़ाद भाई हैं। शिर्क व बुत परस्ती के ख़िलाफ़ एलाने मज़म्मत की बिना पर इन का चचा “ख़त्ताब बिन नुफैल" इन को बहुत ज्यादा तक्लीफें दिया करता था यहां तक कि इन को मक्के से शहर बदर कर दिया था और इन को मक्का में दाखिल नहीं होने देता था मगर येह हज़ारों ईजाओं के बावजूद अकीदए तौहीद पर पहाड़ की तरह डटे हुए थे।
࿐ चुनान्चे आप के दो शे'र बहुत मशहूर हैं जिन को येह मुशरिकीन के मेलों और मज्मओं में बा आवाज़े बुलन्द सुनाया करते थे, तर्जमा : "क्या मैं एक रब की इताअत करूं या एक हज़ार रब की ? जब कि लोगों के दीनी मुआमलात तक्सीम हो चुके हैं मैं ने तो लात व उज्ज़ा को छोड़ दिया है और हर बसीरत वाला ऐसा ही करेगा।
࿐ येह मुशरिकीन के दीन से मुतनफ्फ़िर हो कर दीने बरहक़ की तलाश में मुल्के शाम चले गए थे वहां एक यहूदी आलिम से मिले फिर एक नसरानी पादरी से मुलाकात की और जब आप ने यहूदी व नसरानी दीन को क़बूल नहीं किया तो इन दोनों ने “दीने हनीफ़" की तरफ़ आप की रहनुमाई की जो हज़रते इब्राहीम ख़लीलुल्लाह का दीन था और उन दोनों ने यह भी बताया कि हज़रते इब्राहीम عليه السلام न यहूदी
थे न नसरानी, और वोह एक खुदाए वाहिद के सिवा किसी की इबादत नहीं करते थे। येह सुन कर जैद बिन अम्र बिन नुफैल मुल्के शाम से मक्का वापस आ गए। और हाथ उठा उठा कर मक्का में ब आवाज़े बुलन्द येह कहा करते थे कि ऐ लोगो ! गवाह रहो कि मैं हज़रते इब्राहीम عليه السلام के दीन पर हूं।
࿐ एलाने नुबुव्वत से पहले हुजूर ﷺ के साथ जैद बिन अम्र बिन नुफ़ैल को बड़ा खास तअल्लुक था और कभी कभी मुलाक़ातें भी होती रहती थीं चुनान्चे हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर رضي الله عنه रावी हैं कि एक मरतबा वहय नाज़िल होने से पहले हुजूर ﷺ की मक़ामे "बलदह" की तराई में जैद बिन अम्र बिन नुफैल से मुलाक़ात हुई तो उन्हों ने हुजुर ﷺ के सामने ने दस्तर ख़्वान पर खाना पेश किया। जब हुजूर ﷺ ने खाने से इन्कार कर दिया, तो ज़ैद बिन अम्र बिन नुफैल कहने लगे कि मैं बुतों के नाम पर जब्ह किये हुए जानवरों का गोश्त नहीं खाता। मैं सिर्फ वोही ज़बीहा खाता हूं जो अल्लाह तआला के नाम पर जुब्ह किया गया हो। फिर कुरैश के ज़बीड़ों की बुराई बयान करने लगे और कुरैश को मुखातब कर के कहने लगे कि बकरी को अल्लाह तआला ने पैदा फ़रमाया और अल्लाह तआला ने इस के लिये आस्मान से पानी बरसाया और ज़मीन से घास उगाई फिर ऐ कुरैश ! तुम बकरी को अल्लाह के गैर (बुतों) के नाम पर जब्ह करते हो ?
࿐ हज़रते अस्मा बिन्ते अबू बक्र رضي الله عنه कहती हैं कि मैं ने जैद बिन अम्र बिन नुफ़ैल को देखा कि वोह ख़ानए काबा से टेक लगाए हुए कहते थे कि ऐ जमाअते कुरैश ! खुदा की क़सम ! मेरे सिवा तुम में से कोई भी हज़रते इब्राहीम के दीन पर नहीं है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 102 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 50╠✧◉*
*❝ कारोबारी मशागिल ❞*
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࿐ हुजूरे अक्दस ﷺ का अस्ल खानदानी पेशा तिजारत था और चूंकि आप बचपन ही में अबू तालिब के साथ कई बार तिजारती सफ़र फ़रमा चुके थे। जिस से आप ﷺ को तिजारती लैन दैन का काफ़ी तजरिबा भी हासिल हो चुका था, इस लिये ज़रीअए मआश के लिये आपने तिजारत का पेशा इख़्तियार फ़रमाया, और तिजारत की ग़रज़ से शाम व बुसरा और यमन का सफ़र फ़रमाया, और ऐसी रास्त बाज़ी और अमानत व दियानत के साथ आपने तिजारती कारोबार किया कि आप के शुरकाए कार और तमाम अहले बाज़ार आप ﷺ को "अमीन" के लक़ब से पुकारने लगे।
࿐ एक काम्याब ताजिर के लिये अमानत, सच्चाई, वादे की पाबन्दी, खुश अख़्लाकी तिजारत की जान हैं इन खुसूसिय्यात में मक्का के ताजिर अमीन ﷺ ने जो तारीख़ी शाहकार पेश किया है उस की मिषाल तारीखे आलम में नादिरे रोज़गार है।
࿐ हज़रते अब्दुल्लाह बिन अबिल हम्साअ सहाबी رضي الله عنه का बयान है कि नुज़ूले वहय और एलाने नुबुव्वत से पहले मैं ने आप ﷺ से कुछ खरीदो फरोख्त का मुआमला किया, कुछ रक़म मैं ने अदा कर दी, कुछ बाक़ी रह गई थी मैं ने वादा किया कि मैं अभी अभी आ कर बाक़ी रक़म भी अदा कर दूंगा इत्तिफ़ाक़ से तीन दिन तक मुझे अपना वादा याद नहीं आया तीसरे दिन जब मैं उस जगह पहुंचा जहां मैं ने आने का वादा किया था तो हुजूर ﷺ को उसी जगह मुन्तज़िर पाया मगर मेरी इस वादा खिलाफ़ी से हुज़ूर ﷺ के माथे पर इक जरा बल नहीं आया बस सिर्फ इतना ही फ़रमाया कि तुम कहां थे? मैं इस मक़ाम पर तीन दिन से तुम्हारा इन्तिज़ार कर रहा हूं।
࿐ इसी तरह एक सहाबी हज़रते साइब رضي الله عنه जब मुसलमान हो कर बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए तो लोग उन की तारीफ़ करने लगे तो रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि मैं इन्हें तुम्हारी निस्बत जियादा जानता हूं हज़रते साइब कहते हैं मैं अर्ज गुज़ार हुवा मेरे मां बाप आप पर फ़िदा हों आप ने सच फ़रमाया, ए'लाने नुबुव्वत से पहले आप मेरे शरीके तिजारत थे और क्या ही अच्छे शरीक थे, आप ने कभी लड़ाई झगड़ा नहीं किया था।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 103 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 51╠✧◉*
*❝ गैर मांमूली किरदार #01 ❞*
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࿐ हुज़ूरे अक्दस ﷺ का ज़मानए तुफूलियत ख़त्म हुवा और जवानी का ज़माना आया तो बचपन की तरह आप की जवानी भी आम लोगों से निराली थी आप का शबाब मुजस्समे हया और चाल चलन इस्मत व वकार का कामिल नुमूना था, ए'लाने नुबुव्वत से क़ब्ल हुजूर ﷺ की तमाम ज़िन्दगी बेहतरीन अख़्लाक़ व आदात का खजाना थी सच्चाई, दियानत दारी, वफ़ादारी, अह्द की पाबन्दी, बुजुर्गों की अजमत, छोटों पर शफ्कत, रिश्तेदारों से महब्बत, रहम व सखावत, कौम की ख़िदमत, दोस्तों से हमदर्दी, अज़ीजों की गम ख़्वारी, गरीबों और मुफ्लिसों की खबर गीरी, दुश्मनों के साथ नेक बरताव, मख़्लूके खुदा की खैर ख़्वाही, गरज़ तमाम नेक ख़स्लतों और अच्छी अच्छी बातों में आप ﷺ इतनी बुलन्द मन्ज़िल पर पहुंचे हुए थे कि दुन्या के बड़े से बड़े इन्सानों के लिये वहां तक रसाई तो क्या, इस का तसव्वुर भी मुमकिन नहीं है।
࿐ कम बोलना, फुज़ूल बातों से नफ़रत करना, खन्दा पेशानी और खुशरूई के साथ दोस्तों और दुश्मनों से मिलना, हर मुआमले में सादगी और सफाई के साथ बात करना हुज़ूर ﷺ का खास शेवा था।
࿐ हिर्स, तम्अ, दगा, फ़रेब, झूट, शराब खोरी, बदकारी, नाच गाना, लूटमार, चोरी, फोहश गोई, इश्क़ बाज़ी, येह तमाम बुरी आदतें और मज्मूम खस्लतें जो जमानए जाहिलिय्यत में गोया हर बच्चे के ख़मीर में होती थीं हुज़ूर ﷺ की जाते गिरामी इन तमाम उयूब व नकाइस से पाक साफ़ रही। आप की रास्त बाज़ी और अमानत व दियानत का पूरे अरब में शोहरा था और मक्का के हर छोटे बड़े के दिलों में आप के बरगुज़ीदा अख़्लाक़ का एतिबार और सब की नज़रों में आप ﷺ का एक ख़ास वक़ार था।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 105 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 52╠✧◉*
*❝ गैर मांमूली किरदार #02 ❞*
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࿐ बचपन से तकरीबन चालीस बरस की उम्र शरीफ़ हो गई लेकिन ज़मानए जाहिलिय्यत के माहोल में रहने के बा वुजूद तमाम मुशरिकाना रुसूम, और जाहिलाना अत्वार से हमेशा आप ﷺ का दामने इस्मत पाक ही रहा, मक्का शिर्क व बुत परस्ती का सब से बड़ा मर्कज़ था खुद खानए काबा में तीन सो साठ बुतों की पूजा होती थी, आप ﷺ के ख़ानदान वाले ही काबे के मुतवल्ली और सज्जादा नशीन थे लेकिन इस के बा वुजूद आप ﷺ ने कभी भी बुतों के आगे सर नहीं झुकाया।
࿐ गरज नुज़ूले वहय और एलाने नुबुव्वत से पहले भी आप ﷺ की मुक़द्दस जिन्दगी अख़्लाक़े हसना और महासिन अफ्आल का मुजस्समा और तमाम उयूब व नकाइस से पाक व साफ़ रही, चुनान्चे एलाने नुबुव्वत के बाद आप ﷺ के दुश्मनों ने इन्तिहाई कोशिश की, कि कोई अदना सा ऐब या ज़रा सी ख़िलाफ़े तहज़ीब कोई बात आप की ज़िन्दगी के किसी दौर में भी मिल जाए तो उस को उछाल कर आप के वक़ार पर हुम्ला कर के लोगों की निगाहों में आप को ज़लीलो ख़्वार कर दें मगर तारीख़ गवाह है कि हज़ारों दुश्मन सोचते सोचते थक गए लेकिन कोई एक वाक़आ भी ऐसा नहीं मिल सका जिस से वोह आप ﷺ पर अंगुश्त नुमाई कर सकें!
࿐ लिहाज़ा हर इन्सान इस हक़ीक़त के ए'तिराफ़ पर मजबूर है कि बिला शुबा हुज़ूर ﷺ का किरदार इन्सानिय्यत का एक ऐसा मुहय्यिरुल उकूल और गैर मामूली किरदार है जो नबी ﷺ के सिवा किसी दूसरे के लिये मुमकिन ही नहीं है यही वजह है कि एलाने नुबुव्वत के बाद सईद रूहें आप ﷺ का कलिमा पढ़ कर तन मन धन के साथ इस तरह आप पर कुरबान होने लगीं कि उन की जां निषारियों को देख कर शम्अ के परवानों ने जां निषारी का सबक सीखा और हक़ीक़त शनास लोग फ़र्ते अकीदत से आपके हुस्ने सदाक़त पर अपनी अक्लों को कुरबान कर के आप के बताए हुए इस्लामी रास्ते पर आशिकाना अदाओं के साथ ज़बाने हाल से यह कहते हुए चल पड़े कि
*चलो वादिये इश्क़ में पा बरहना !*
*येह जंगल वोह है जिस में कांटा नहीं है*
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 106 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 53╠✧◉*
*चौथा बाब*
*❝ एलाने नुबुव्वत से बैअते अकबा तक ❞*
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࿐ जब हुज़ूरे अन्वर ﷺ की मुक़द्दस ज़िन्दगी का चालीसवां साल शुरूअ हुवा तो ना गहां आपकी जाते मुक़द्दस में एक नया इनक़िलाब रूनुमा हो गया कि एक दम आप ﷺ खल्वत पसन्द हो गए और अकेले तन्हाई में बैठ कर खुदा की इबादत करने का जौक व शौक पैदा हो गया। आप अकषर अवकात गौरो फ़िक्र में पाए जाते थे और आप का बेशतर वक्त मनाज़िरे कुदरत के मुशाहदे और काएनाते फ़ितरत के मुतालए में सर्फ होता था। दिन रात खालिके काएनात की जात व सिफ़ात के तसव्वुर में मुस्तग्रक और अपनी क़ौम के बिगड़े हुए हालात के सुधार और इस की तदबीरों के सोच बिचार में मसरूफ़ रहने लगे और उन दिनों एक नई बात यह भी हो गई कि हुज़ूर ﷺ को अच्छे अच्छे ख़्वाब नज़र आने लगे और आप का हर ख़्वाब इतना सच्चा होता कि ख़्वाब में जो कुछ देखते उस की तबीर सुब्हे सादिक की तरह रोशन हो कर जाहिर हो जाया करती थी।
࿐ *गरे हिरा :-* मक्कए मुकर्रमा से तकरीबन तीन मील की दूरी पर "जबले हिरा" नामी पहाड़ के ऊपर एक गार (खोह) है जिस को "गारे हिरा" कहते हैं आप अकषर कई कई दिनों का खाना पानी साथ ले कर इस गार के पुर सुकून माहोल के अन्दर खुदा की इबादत में मसरूफ़ रहा करते थे। जब खाना पानी ख़त्म हो जाता तो कभी खुद घर पर आ कर ले जाते और कभी हज़रत बीबी ख़दीजा رضي الله عنها खाना पानी गार में पहुंचा दिया करती थीं, आज भी येह नूरानी गार अपनी अस्ली हालत में मौजूद और ज़ियारत गाहे खलाइक है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 107 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 54╠✧◉*
*❝ पहली वही #01 ❞*
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࿐ एक दिन आप ﷺ "गारे हिरा" के अन्दर इबादत में मश्गुल थे कि बिल्कुल अचानक गार में आप के पास एक फ़िरिश्ता जाहिर हुवा। (येह हज़रते जिब्रील थे जो हमेशा खुदा का पैगाम उस के रसूलों तक पहुंचाते रहे हैं) फ़िरिश्ते ने एक दम कहा कि "पढिये" आप ने फ़रमाया कि "मैं पढ़ने वाला नहीं हूं।" फ़रिश्ते ने आप ﷺ को पकड़ा और निहायत गर्म के साथ आप ﷺ से जोरदार मुआनका किया फिर छोड़ कर कहा कि "पढिये" आप ﷺ ने फिर फ़रमाया कि “मैं पढ़ने वाला नहीं हूं।" फ़िरिश्ते ने दूसरी मरतबा फिर आप को अपने सीने से चिमटाया और छोड़ कर कहा कि “पढ़िये" आपने फिर वोही फ़रमाया कि "मैं पढ़ने वाला नहीं हूं।" तीसरी मरतबा फिर फ़िरिश्ते ने आप ﷺ को बहुत ज़ोर के साथ अपने सीने से लगा कर छोड़ा और कहा कि...तर्जमा : पढो अपने रब के नाम से जिस ने पैदा किया आदमी को खून की फटक से बनाया पढो और तुम्हारा रब ही सब से बड़ा करीम जिस ने क़लम से लिखना सिखाया आदमी को सिखाया जो न जानता था। (पा. 30)
࿐ येही सब से पहली वहय थी जो आप ﷺ पर नाज़िल हुई, इन आयतों को याद कर के हुज़ूरे अक्दस ﷺ अपने घर तशरीफ़ लाए मगर इस वाक़िए से जो बिल्कुल ना गहानी तौर पर आप ﷺ को पेश आया इस से आप के कल्बे मुबारक पर लरज़ा तारी था आप ने घर वालों से फ़रमाया कि मुझे कमली उढ़ाओ, मुझे कमली उढ़ाओ जब आप ﷺ का ख़ौफ़ दूर हुवा और कुछ सुकून हुवा तो आप ने हज़रते बीबी ख़दीजा رضي الله عنها से गैर में पेश आने वाला वाक़िआ बयान किया और फ़रमाया कि "मुझे अपनी जान का डर है।"
࿐ येह सुन कर हज़रते बीबी ख़दीजा رضي الله عنها ने कहा कि नहीं, हरगिज़ नहीं आपकी जान को कोई खतरा नहीं है खुदा की क़सम ! अल्लाह तआला कभी भी आप को रुस्वा नहीं करेगा आप तो रिश्तेदारों के साथ बेहतरीन सुलूक करते हैं! दूसरों का बार खुद उठाते हैं खुद कमा कमा कर मुफ़्लिसों और मोहताजों को अता फरमाते हैं मुसाफिरों की मेहमान नवाज़ी करते हैं और हक़ व इन्साफ़ की खातिर सब की मुसीबतों मुश्किलात में काम आते हैं।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 108 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 55╠✧◉*
*❝ पहली वही #02 ❞*
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࿐ हज़रते खदीजा رضي الله عنها ने आप ﷺ को तसल्ली दी और इस के बाद हज़रते ख़दीजा ﷺ आप को अपने चचाज़ाद भाई "वरका बिन नौफ़िल" के पास ले गईं। वरका उन लोगों में से थे जो "मुवहिहद" थे और अहले मक्का के शिर्क व बुत परस्ती से बेज़ार हो कर "नसरानी" हो गए थे और इन्जील का इबरानी ज़बान से अरबी में तर्जमा किया करते थे, बहुत बूढ़े और नाबीना हो चुके थे, हज़रते बीबी ख़दीजा رضي الله عنها ने उन से कहा कि भाईजान ! आप अपने भतीजे की बात सुनिये वरका बिन नौफ़िल ने कहा कि बताइये आप ने क्या देखा है? हुज़ूर ﷺ ने गारे हिरा का पूरा वाकिआ बयान फ़रमाया।
࿐ येह सुन कर वरका बिन नौफ़िल ने कहा कि येह तो वोही फ़िरिश्ता है जिस को अल्लाह तआला ने हज़रते मूसा عليه السلام के पास भेजा था, फिर वरका बिन नौफ़िल कहने लगे कि काश ! मैं आपके एलाने नुबुव्वत के ज़माने में तन्दुरुस्त जवान होता, काश ! मैं उस वक़्त तक ज़िन्दा रहता जब आप की क़ौम आप को मक्का से बाहर निकालेगी येह सुन कर हुजूर ﷺ ने (तअज्जुब से) फ़रमाया कि क्या मक्का वाले मुझे मक्का से निकाल देंगे ? तो वरका ने कहा : जी हां ! जो शख्स भी आप की तरह नुबुव्वत ले कर आया लोग उस के साथ दुश्मनी पर कमर बस्ता हो गए।
࿐ इस के बाद कुछ दिनों तक वहय उतरने का सिल्सिला बन्द हो गया और हुज़ूर ﷺ वहय के इन्तिज़ार में मुज़तरिब और बे क़रार रहने लगे, यहां तक कि एक दिन हुज़ूर ﷺ कहीं घर से बाहर तशरीफ ले जा रहे थे कि किसी ने “या मुहम्मद" कह कर पुकारा। आप ने आस्मान की तरफ सर उठा कर देखा तो येह नज़र आया कि वोही फ़िरिश्ता (हज़रते जिब्रील) जो गार में आया था आस्मान व ज़मीन के दरमियान एक कुरसी पर बैठा हुवा हैं। येह मन्ज़र देख कर आप के कल्बे मुबारक में एक ख़ौफ़ की कैफ़िय्यत पैदा हो गई और आप मकान पर आ कर लैट गए और घर वालों से फ़रमाया कि मुझे कम्बल उढ़ाओ मुझे कम्बल उढ़ाओ। चुनान्चे आप कम्बल ओढ़ कर लैटे हुए थे कि ना गहां आप पर सूरए "मुद्दष्षिर" की इब्तिदाई आयात नाज़िल हुई और रब तआला का फरमान उतर पड़ा कि *तर्जमा :-* ऐ बाला पोश ओढ़ने वाले खड़े हो जाओ फिर डर सुनाओ और अपने रब ही की बड़ाई बोलो और अपने कपड़े पाक रखो और बुतों से दूर रहो।
࿐ इन आयात के नुज़ूल के बाद हुज़ूर ﷺ को खुदा वन्दे कुद्दूस ने दा’वते इस्लाम के मन्सब पर मामूर फ़रमा दिया और आप खुदा वन्दे तआला के हुक्म के मुताबिक दा'वते हक़ और तब्लीगे इस्लाम के लिये कमर बस्ता हो गए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 111 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 56╠✧◉*
*❝ दावते इस्लाम के लिये तीन दौर #01 ❞*
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*पहला दौर*
࿐ तीन बरस तक हुज़ूरे अक्दस ﷺ इन्तिहाई पोशीदा तौर पर निहायत राज़दारी के साथ तब्लीगे इस्लाम का फ़र्ज़ अदा फ़रमाते रहे और इस दरमियान में औरतों में सब से पहले हज़रते बीबी ख़दीजा رضي الله عنها और आज़ाद मर्दों में सब से पहले हज़रते अबु बक्र सिद्दीक़ رضي الله عنه और लड़कों में सब से पहले हजरते अली رضي الله عنه और गुलामों में सब पहले जैद बिन हारिषा رضي الله عنه ईमान लाए। फिर हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه की दा'वत व तब्लीग से हज़रते उषमान, हज़रते जुबैर बिन अल अव्वाम, हज़रते अब्दुर्रहमान बिन औफ़, हज़रते सा'द बिन अबी वक्कास, हज़रते तल्हा बिन उबैदुल्लाह رضي الله عنه भी जल्द ही दामने इस्लाम में आ गए।
࿐ फिर चन्द दिनों के बाद हज़रते अबू उबैदा बिन अल जर्राह, हज़रते अबू सलमा अब्दुल्लाह बिन अब्दुल असद, हज़रते अरक़म बिन अबू अरकम, हज़रते उषमान बिन मज़ऊन और उनके दोनों भाई हज़रते क़िदामा और हज़रते अब्दुल्लाह رضي الله عنه भी इस्लाम में दाखिल हो गए। फिर कुछ मुद्दत के बाद हज़रते अबू जर गिफ़ारी व हज़रते सुहैब रूमी, हज़रते उबैदा बिन अल हारिष बिन अब्दुल मुत्तलिब, सईद बिन जैद बिन अम्र बिन नुफैल और इन की बीवी फ़ातिमा बिन्ते अल ख़त्ताब, हज़रते उमर की बहन ने भी इस्लाम क़बूल कर लिया। और हुज़ूर ﷺ की चची हज़रते उम्मुल फ़ज़्ल, हज़रते अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब की बीवी और हज़रते अस्मा बिन्ते अबू बक्र भी मुसलमान हो गईं इन के इलावा दूसरे बहुत से मर्दों और औरतों ने भी इस्लाम लाने का शरफ़ हासिल कर लिया।
࿐ वाज़ेह रहे कि सब से पहले इस्लाम लाने वाले जो "साबिक़ीने अव्वलीन" के लक़ब से सरफ़राज़ हैं उन खुश नसीबों की फेहरिस्त पर नज़र डालने से पता चलता है कि सब से पहले दामने इस्लाम में आने वाले वोही लोग हैं जो फितरतन नेक तब्अ और पहले ही से दीने हक़ की तलाश में सरगर्दी थे और कुफ्फ़ारे मक्का के शिर्क व बुत परस्ती और मुशरिकाना रुसूमे जाहिलिय्यत से मुतनफ्फिर और बेज़ार थे। चुनान्चे नबीय्ये बरहक़ के दामन में दिने हक़ की तजल्ली देखते ही ये नेक बख्त लोग परवानों की तरह शमए नुबुव्वत पर निषार होने लगे और मुशर्रफ ब इस्लाम हो गए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 112 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 57╠✧◉*
*❝ दावते इस्लाम के लिये तीन दौर #02 ❞*
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࿐ *दूसरा दौर :-* तीन बरस की इस खुफ़या दा'वते इस्लाम में मुसलमानों की एक जमाअत तय्यार हो गई इस के बाद अल्लाह तआला ने अपने हबीब ﷺ पर सूरए "शु-अराअ" की आयत, *وَ اَنْذِرْ عَشِیْرَتَكَ الْاَقْرَبِیْنَ* (पा.19) नाज़िल फ़रमाई और खुदा वन्दे तआला का हुक्म हुवा कि ऐ महबूब ! आप अपने करीबी खानदान वालों को खुदा से डराइये तो हुज़ूर ﷺ ने एक दिन कोहे सफ़ा की चोटी पर चढ़ कर "या माशरे कुरैश" कह कर क़बीलए कुरैश को पुकारा। जब सब कुरैश जम्अ हो गए तो आपने फ़रमाया कि ऐ मेरी क़ौम ! अगर मैं तुम लोगों से येह कह दूं कि इस पहाड़ के पीछे एक लश्कर छुपा हुवा है जो तुम पर हम्ला करने वाला है तो क्या तुम लोग मेरी बात का यक़ीन कर लोगे? तो सब ने एक ज़बान हो कर कहा कि हां ! हां ! हम यक़ीनन आपकी बात का यकीन कर लेंगे क्यूं कि हम ने आप को हमेशा सच्चा और अमीन ही पाया है। आप ने फ़रमाया कि अच्छा तो फिर मैं येह कहता हूं कि मैं तुम लोगों को अज़ाबे इलाही से डरा रहा हूं और अगर तुम लोग ईमान न लाओगे तो तुम पर अज़ाबे इलाही उतर पड़ेगा। ये सुन कर तमाम कुरैश जिन में आपका चचा अबू लहब भी था, सख्त नाराज़ हो कर सब के सब चले गए और हुजूर ﷺ की शान में ऊल फूल बकने लगे।
࿐ *तीसरा दौर :-* अब वोह वक़्त आ गया कि एलाने नुबुव्वत के चौथे साल सूरए हजर की आयत *فَاصْدَعْ بِمَا تُؤْمَرُ* नाज़िल फ़रमाई और हज़रते हक़ جل شانه ने येह हुक्म फ़रमाया कि ऐ महबूब ! आप को जो हुक्म दिया गया है उस को अलल ए'लान बयान फ़रमाइये। चुनान्चे इस के बाद अलानिया तौर पर दीने इस्लाम की तब्लीग फ़रमाने लगे, और शिर्क व बूत परस्ती की खुल्लम खुल्ला बुराई बयान फरमाने लगे और तमाम क़ुरैश बल्कि तमाम अहले मक्का बल्कि पूरा अरब आप की मुखालफत पर कमर बस्ता हो गया और हुज़ूर ﷺ और मुसलमानों की इज़ा रसानियों का एक तूलानी सिलसिला शुरू हो गया!
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 113 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 58╠✧◉*
*❝ रहमते आलम ﷺ पर ज़ुल्मो सितम #01❞*
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࿐ कुफ़्फ़ारे मक्का खानदाने बनू हाशिम के इन्तिकाम और लड़ाई भड़क उठने के खौफ से हुज़ूर ﷺ को क़त्ल तो नहीं कर सके लेकिन तरह तरह की तकलीफों और ईजा रसानियों से आप पर जुल्मो सितम का पहाड़ तोड़ने लगे। चुनान्चे सब से पहले तो हुज़ूर ﷺ के काहिन, साहिर, शाइर, मजनून होने का हर कूचा व बाज़ार में जोरदार प्रोपेगन्डा करने लगे, आप ﷺ के पीछे शरीर लड़कों का गौल लगा दिया जो रास्तों में आप पर फब्तियां कसते, गालियां देते और दीवाना है, येह दीवाना है, का शोर मचा मचा कर आप ﷺ के ऊपर पथ्थर फेंकते। कभी कुफ्फ़ारे मक्का आप ﷺ के रास्तों में कांटे बिछाते, कभी आप ﷺ के जिस्म मुबारक पर नजासत डाल देते, कभी आपको धक्का देते कभी आपकी मुक़द्दस और नाजुक गरदन में चादर का फन्दा डाल कर गला घोंटने की कोशिश करते।
࿐ रिवायत है कि एक मरतबा आप ﷺ हरमे काबा में नमाज़ पढ़ रहे थे कि एक दम संगदिल काफिर उक्बा बिन अबी मुईत ने आप के गले में चादर का फन्दा डाल कर इस ज़ोर से खींचा कि आपका दम घुटने लगा, चुनान्चे येह मन्ज़र देख कर हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه बे करार हो कर दौड़ पड़े और उक्बा बिन अबी मुईत को धक्का दे कर दफ्अ किया और येह कहा कि क्या तुम लोग ऐसे आदमी को क़त्ल करते हो जो येह कहता है कि "मेरा रब अल्लाह है।" इस धक्कम धक्का में हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه कुफ्फ़ार को मारा भी और कुफ्फार की मार भी खाई।
࿐ कुफ्फार आप ﷺ के मोजिजात और रूहानी ताषीरात व तसर्रुफ़ात को देख कर आप को सब से बड़ा जादूगर कहते, जब हुज़ूर ﷺ कुरआन शरीफ़ की तिलावत फ़रमाते तो येह कुफ्फ़ार कुरआन और कुरआन को लाने वाले (जिब्रील) और कुरआन को नाज़िल फ़रमाने वाले (अल्लाह तआला) को और आप ﷺ को गालियां देते, और गली कूचों में पहरा बिठा देते कि कुरआन की आवाज़ किसी के कान में न पड़ने पाए और तालियां पीट पीट कर और सीटियां बजा बजा कर इस क़दर शोर मचाते कि कुरआन की आवाज़ किसी को सुनाई नहीं देती थी, हुजूर ﷺ जब कहीं किसी आम मज्मअ में या कुफ्फ़ार के मेलों में कुरआन पढ़ कर सुनाते या दा'वते ईमान का वाअज़ फ़रमाते तो आप ﷺ का चचा अबू लहब आप के पीछे चिल्ला चिल्ला कर कहता जाता था कि ऐ लोगों ! येह मेरा भतीजा झूठा है, येह दीवाना हो गया है, तुम लोग इस की कोई बात न सुनो।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 114 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 59╠✧◉*
*❝ रहमते आलम ﷺ पर ज़ुल्मो सितम #02 ❞*
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࿐ एक मरतबा हुज़ूर ﷺ "जुल मजाज़" के बाज़ार में दा'वते इस्लाम का वाअज़ फ़रमाने के लिये तशरीफ़ ले गए और लोगों को कलिमए हक़ की दावत दी तो अबू जहल आप पर धूल उड़ाता जाता था और कहता था कि ऐ लोगों इस के फ़रेब में मत आना, ये चाहता है कि तुम लोग लात व उज्ज़ा की इबादत छोड़ दो।
࿐ इसी तरह एक मरतबा जब कि हुजुर ﷺ हरमे काबा में नमाज़ पढ़ रहे थे ऐन हालते नमाज़ में अबू जहल ने कहा कि कोई है? जो आले फुलां के जब्ह किये हुए ऊंट की ओझड़ी ला कर सज्दे की हालत में इन के कन्धों पर रख दे। येह सुन कर उकबा बिन अबी मुईत काफ़िर उठा और उस ओझड़ी को ला कर हुज़ूर ﷺ के दोश मुबारक पर रख दिया। हुज़ूर ﷺ सज्दे में थे देर तक ओझड़ी कन्धे और गरदन पर पड़ी रही और कुफ़्फ़ार ठठ्ठा मार मार कर हंसते रहे और मारे हंसी के एक दूसरे पर गिर गिर पड़ते रहे आखिर हज़रते बीबी फातिमा رضي الله عنها जो उन दिनों अभी कमसिन लड़की थी आई और उन काफ़िरों को बुरा भला कहते हुए उस ओझड़ी को आप के दोश मुबारक से हटा दिया। हुजुर ﷺ के कल्बे मुबारक पर कुरैश की इस शरारत से इन्तिहाई सदमा गुज़रा और नमाज़ से फ़ारिग हो कर तीन मरतबा येह दुआ मांगी कि "ऐ अल्लाह ! तू कुरैश को अपनी गरिफ्त में पकड़ ले", फिर अबू जहल, उत्बा बिन रबीआ, शैबा बिन रबीआ, वलीद बिन उत्बा, उमय्या बिन खलफ़, अम्मारा बिन वलीद का नाम ले कर दुआ मांगी कि इलाही ! तू इन लोगों को अपनी गरिफ्त में ले ले।
࿐ हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद رضي الله عنه फ़रमाते हैं कि खुदा की क़सम ! मैं ने इन सब काफ़िरों को जंगे बद्र के दिन देखा कि इन की लाशें ज़मीन पर पड़ी हुई है फिर इन सब कुफ़्फ़ार की लाशों को निहायत जिल्लत के साथ घसीट कर बद्र के एक गढ़े में डाल दिया गया और हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि इन गढ़े वालों पर खुदा की लानत है।
࿐ *चन्द शरीर कुफ्फार :-* जो कुफ्फ़ारे मक्का हुजुर ﷺ की दुश्मनी और ईजा रसानी में बहुत ज्यादा सरगर्म थे उन में से चन्द शरीरों के नाम येह हैं : (1) अबू लहब (2) अबू जहल (3) अस्वद बिन अब्दे यगुष (4) हारिष बिन कैस बिन अदी (5) वलीद बिन मुगीरा (6) उमय्या बिन ख़लफ़ (7) उबय्य बिन खलफ (8) अबू कैस बिन फ़ाकिहा (9) आस बिन वाइल (10) नज़र बिन हारिष (11) मुनब्बेह बिन अल हज्जाज (12) जुहैर बिन अबी उमय्या (13) साइब बिन सैफी (14) अदी बिन हमरा (15) अस्वद बिन अब्दुल असद (16) आस बिन सईद बिन अल आस (17) आस बिन हाशिम (18) उक्बा बिन अबी मुईत (19) हकम बिन अबिल आस।
࿐ येह सब के सब हुज़ूर ﷺ के पड़ोसी थे और इन में से अकषर बहुत मालदार और साहिबे इक्तिदार थे और दिन रात हुज़ूर ﷺ की ईज़ा रसानी में मसरूफ़े कार रहते थे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 116 📚*F
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 60╠✧◉*
*❝ मुसलमानों पर मज़ालिम #01 ❞*
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࿐ हुज़ूर रहमते आलम ﷺ के साथ साथ गरीब मुसलमानों पर भी कुफ़्फ़ारे मक्का ने ऐसे ऐसे जुल्मो सितम के पहाड़ तोड़े कि मक्का की ज़मीन बिलबिला उठी, येह आसान था कि कुफ़्फ़ारे मक्का इन मुसलमानों को दम ज़दन में क़त्ल कर डालते मगर इस से उन काफ़िरों का जोशे इन्तिकाम का नशा नहीं उतर सकता था क्यूं कि कुफ्फार इस बात में अपनी शान समझते थे कि इन मुसलमानों को इतना सताओ कि वोह इस्लाम को छोड़ कर फिर शिर्क व बुत परस्ती करने लगें, इस लिये क़त्ल कर देने की बजाए कुफ्फ़ारे मक्का मुसलमानों को तरह तरह की सज़ाओं और ईज़ा रसानियों के साथ सताते थे।
࿐ मगर खुदा की क़सम ! शराबे तौहीद के इन मस्तों ने अपने इस्तिक्लाल व इस्तिकामत का वोह मन्ज़र पेश कर दिया कि पहाड़ों की चोटियां सर उठा उठा कर हैरत के साथ इन बला कुशाने इस्लाम के जज्बए इस्तिकामत का नज़ारा करती रहीं संगदिल, बे रहम और दरिन्दा सिफ़त काफ़िरों ने इन ग़रीब व बेकस मुसलमानों पर जब्रो इक्राह और जुल्मो सितम का कोई दक़ीका बाकी नहीं छोड़ा मगर एक मुसलमान के पाए इस्तिकामत में भी ज़र्रा बराबर तज़ल्जुल नहीं पैदा हुवा और एक मुसलमान का बच्चा भी इस्लाम से मुंह फैर कर काफ़िर व मुरतद नहीं हुवा।
࿐ कुफ्फ़ारे मक्का ने इन गुरबा मुस्लिमीन पर जोरो जफ़ाकारी के बे पनाह अन्दौह नाक मज़ालिम ढाए और ऐसे ऐसे रूह फ़रसा और जां सोज़ अज़ाबों में मुब्तला किया कि अगर इन मुसलमानों की जगह पहाड़ भी होता तो शायद डग मगाने लगता, सहराए अरब की तेज़ धूप में जब कि वहां की रैत के ज़र्रात तन्नूर की तरह गर्म हो जाते इन मुसलमानों की पुश्त को कोड़ों की मार से जख्मी कर के उस जलती हुई रैत पर पीठ के बल लिटाते और सीनों पर इतना भारी पथ्थर रख देते कि वोह करवट न बदलने पाएं लोहे को आग में गर्म कर के इन से उन मुसलमानों के जिस्मों को दागते, पानी में इस क़दर डुब्कियां देते कि उन का दम घुटने लगता, चटाइयों में इन मुसलमानों को लपेट कर उन की नाकों में धूआं देते जिस से सांस लेना मुश्किल हो जाता और वोह कर्ब व बेचैनी से बद हवास हो जाते।
الله اکبر الله اکبر 😭😭
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 118 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 62╠✧◉*
*❝ मुसलमानों पर मज़ालिम #02 ❞*
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࿐ हज़रते खब्बाब बिन अल अरत رضي الله عنه येह उस ज़माने में इस्लाम लाए जब हुज़ूर ﷺ हज़रते अरक़म बिन अबू अरकम رضي الله عنه के घर में मुकीम थे और सिर्फ चन्द ही आदमी मुसलमान हुए थे, कुरैश ने इन को बेहद सताया, यहां तक कि कोएले के अंगारों पर इन को चित लिटाया और एक शख़्स इन के सीने पर पाउं रख कर खड़ा रहा, यहां तक कि इन की पीठ की चरबी और रुतूबत से कोएले बुझ गए, बरसों के बाद जब हज़रते खब्बाब رضي الله عنه ने येह वाकिआ हज़रते अमीरुल मुअमिनीन हज़रते उमर رضي الله عنه के सामने बयान किया तो अपनी पीठ खोल कर दिखाई पूरी पीठ पर सफ़ेद सफ़ेद दाग धब्बे पड़े हुए थे इस इब्रत नाक मन्ज़र को देख कर हज़रते उमर رضي الله عنه का दिल भर आया और वोह रो पड़े।
࿐ हज़रते बिलाल رضي الله عنه को जो उमय्या बिन खलफ़ काफ़िर के गुलाम थे इन की गरदन में रस्सी बांध कर कूचा व बाज़ार में इन को घसीटा जाता था इन की पीठ पर लाठियां बरसाई जाती थीं और ठीक दो पहर के वक्त तेज़ धूप में गर्म गर्म रैत पर इन को लिटा कर इतना भारी पथ्थर इन की छाती पर रख दिया जाता था कि इन की ज़बान बाहर निकल आती थी, उमय्या काफ़िर कहता था कि इस्लाम से बाज़ आ जाओ वरना इसी तरह घुट घुट कर मर जाओगे, मगर इस हाल में भी हज़रते बिलाल رضي الله عنه की पेशानी पर बल नहीं आता था बल्कि ज़ोर ज़ोर से “अहद, अहद" का नारा लगाते थे और बुलन्द आवाज़ से कहते थे कि खुदा एक है। खुदा एक है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 119 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 62╠✧◉*
*❝ मुसलमानों पर मज़ालिम #03 ❞*
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࿐ हज़रते अम्मार बिन यासिर رضي الله عنه को गर्म गर्म बालू पर चित लिटा कर कुफ़्फ़ारे कुरैश इस क़दर मारते थे कि येह बेहोश हो जाते थे, इन की वालिदा हज़रते बीबी सुमय्या رحمة الله عليه इस्लाम लाने की बिना पर अबू जहल ने इन की नाफ़ के नीचे ऐसा नेजा मारा कि येह शहीद हो गई, हज़रते अम्मार رضي الله عنه के वालिद हज़रते यासिर رضي الله عنه भी कुफ्फ़ार की मार खाते खाते शहीद हो गए। हज़रते सुहैब रूमी رضي الله عنه को कुफ्फ़ारे मक्का इस क़दर तरह तरह की अज़िय्यत देते और ऐसी ऐसी मारधाड़ करते कि येह घन्टों बेहोश रहते। जब येह हिजरत करने लगे तो कुफ्फ़ारे मक्का ने कहा कि तुम अपना सारा माल व सामान यहां छोड़ कर मदीना जा सकते हो। आप खुशी खुशी दुन्या की दौलत पर लात मार कर अपनी मताए ईमान को साथ ले कर मदीना चले गए।
࿐ हज़रते अबू फ़कीहा رضي الله عنها सफ्वान बिन उमय्या काफ़िर के गुलाम थे और हज़रते बिलाल رضي الله عنه के साथ ही मुसलमान हुए थे। जब सफ्वान को इन के इस्लाम का पता चला तो उस ने इन के गले में रस्सी का फन्दा डाल कर इन को घसीटा और गर्म जलती हुई ज़मीन पर इन को चित लिटा कर सीने पर वज़्नी पथ्थर रख दिया जब इन को कुफ्फ़ार घसीट कर ले जा रहे थे रास्ते में इत्तिफ़ाक़ से एक गुबरीला नज़र पड़ा। उमय्या काफ़िर ने ताना मारते हुए कहा कि "देख तेरा खुदा येही तो नहीं है।" हज़रते अबू फ़कीहा رضي الله عنه ने फ़रमाया कि “ऐ काफ़िर के बच्चे ! खामोश, मेरा और तेरा खुदा अल्लाह है।" येह सुन कर उमय्या काफ़िर ग़ज़बनाक हो गया और ज़ोर से उन का गला घोंटा कि वोह बेहोश हो गए और लोगों ने समझा कि इन का दम निकल गया।
࿐ इसी तरह हज़रते आमिर बिन फुहैरा رضي الله عنه को भी इस क़दर मारा जाता था कि इन के जिस्म की बोटी बोटी दर्द मन्द हो जाती थी।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 120 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 63╠✧◉*
*❝ मुसलमानों पर मज़ालिम #04 ❞*
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࿐ हज़रते बीबी लुबैना رضي الله عنها जो लौंडी थीं, हज़रते उमर رضي الله عنه जब कुफ्र की हालत में थे इस गरीब लौंडी को इस क़दर मारते थे कि मारते मारते थक जाते थे मगर हज़रते लुबैना उफ़ तक नहीं करती थीं बल्कि निहायत जुरअत व इस्तिक्लाल के साथ कहती थीं कि ऐ उमर ! अगर तुम खुदा के सच्चे रसूल पर ईमान नही लाओगे तो खुदा तुम से ज़रूर इन्तिकाम लेगा।
࿐ हज़रते जनीरा رضي الله عنها हज़रते उमर رضي الله عنه के घराने की बांदी थीं, येह मुसलमान हो गई तो इन को इस क़दर काफ़िरों ने मारा कि इन की आंखें जाती रहीं, मगर खुदा वन्दे तआला ने हुज़ूरे अक्दस ﷺ की दुआ से फिर इन की आंखों में रोशनी अता फरमा दी तो मुशरिकीन कहने लगे कि येह मुहम्मद के जादू का अषर है।
࿐ इसी तरह हज़रते बीबी "नहदिया" और हज़रते बीबी उम्मे उबैस भी बांदियां थीं, इस्लाम लाने के बाद कुफ़्फ़ारे मक्का ने इन दोनों को तरह तरह की तक्लीफें दे कर बे पनाह अज़िय्यतें दीं मगर येह अल्लाह वालियां सब्रो शुक्र के साथ इन बड़ी बड़ी मुसीबतों को झेलती रहीं और इस्लाम से इन के क़दम नहीं डग मगाए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 121 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 64╠✧◉*
*❝ मुसलमानों पर मज़ालिम #05 ❞*
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࿐ हज़रते यारे ग़ारे मुस्तफा अबू बक्र सिद्दीके बा सफ़ा رضي الله عنه ने किस किस तरह इस्लाम पर अपनी दौलत निषार की इस की एक झलक येह है कि आप ने इन गरीब व बेकस मुसलमानों में से अकषर की जान बचाई, आप ने हज़रते बिलाल व आमिर बिन फुहैरा व अबू फ़कीहा व लुबैना व जुनीरा व नहदिया व उम्मे उनैस रादिअल्लाहु तआला अन्हुम इन तमाम गुलामों को बड़ी बड़ी रक़में दे कर खरीदा और सब को आज़ाद कर दिया और इन मज़लूमों को काफ़िरों की ईजाओं से बचा लिया।
࿐ हज़रते अबू जर गिफ़ारी رضي الله عنه जब दामने इस्लाम में आए तो मक्का में एक मुसाफिर की हैषिय्यत से कई दिन तक हरमे का'बा में रहे येह रोज़ाना ज़ोर ज़ोर से चिल्ला चिल्ला कर अपने इस्लाम का ए'लान करते थे और रोजाना कुफ्फ़ारे कुरैश इन को इस क़दर मारते थे कि येह लहूलुहान हो जाते थे और उन दिनों में आबे ज़मज़म के सिवा इन को कुछ भी खाने पीने नहीं मिला।
࿐ वाज़ेह रहे कि कुफ्फ़ारे मक्का का येह सुलूक सिर्फ गरीबों और गुलामों ही तक महदूद नहीं था बल्कि इस्लाम लाने के जुर्म में बड़े बड़े मालदारों और रईसों को भी इन ज़ालिमों ने नहीं बख़्शा, हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ رضي الله عنه जो शहरे मक्का के एक मतमूल और मुमताज मुअज्जिज़ीन में से थे मगर इन को भी हरमे काबा में कुफ़्फ़ारे कुरैश ने इस क़दर मारा कि इन का सर खून से लतपत हो गया, इसी तरह हज़रते उषमाने गनी رضي الله عنه जो निहायत मालदार और साहिबे इक्तिदार थे जब येह मुसलमान हुए तो गैरों ने नहीं बल्कि खुद चचा ने इन को रस्सियों में जकड़ कर खूब मारा, हज़रते जुबैर बिन अल अवाम رضي الله عنه बड़े रोब और दबदबे के आदमी थे मगर इन्हों ने जब इस्लाम क़बूल किया तो इन के चचा इन को चटाई में लपेट कर इन की नाक में धूआं देते थे जिस से इन का दम घुटने लगता था, हज़रते उमर رضي الله عنه के चचाज़ाद भाई और बहनोई हज़रते सईद बिन जैद رضي الله عنه ए'जा़ाज़ वाले रईस थे मगर जब इन के इस्लाम का हज़रते उमर को पता चला तो इन को रस्सी में बांध कर मारा और अपनी बहन हज़रते बीबी फ़ातिमा बिन्ते अल ख़त्ताब को भी इस ज़ोर से थप्पड़ मारा कि उन के कान के आवेज़े गिर पड़े और चेहरे पर खून बह निकला।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 122 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 65╠✧◉*
*❝ कुफ़्फ़ार का वफद बारगाहे रिसालत में ❞*
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࿐ एक मरतबा सरदाराने कुरैश हरमे काबा में बैठे हुए येह सोचने लगे कि आखिर इतनी तकालीफ़ और सख़्तियां बरदाश्त करने के बा वजूद मुहम्मद अपनी तब्लीग क्यूं बन्द नहीं करते? आख़िर इन का मक्सद क्या है? मुमकिन है येह इज्ज़त व जाह या सरदारी व दौलत के ख़्वाहां हों, चुनान्चे सभों ने उत्बा बिन रबीआ को हुजूर ﷺ के पास भेजा कि तुम किसी तरह उन का दिली मक्सद मा'लूम करो।
࿐ चुनान्चे उत्बा तन्हाई में आप ﷺ से मिला और कहने लगा कि ऐ मुहम्मद आखिर इस दावते इस्लाम से आप का मक्सद क्या है ? क्या आप मक्का की सरदारी चाहते हैं ? या इज्ज़त व दौलत के ख़्वाहां हैं ? या किसी बड़े घराने में शादी के ख़्वाहिश मन्द हैं ? आप के दिल में जो तमन्ना हो खुले दिल के साथ कह दीजिये। मैं इस की ज़मानत लेता हूं कि अगर आप दा'वते इस्लाम से बाज़ आ जाएं तो पूरा मक्का आप के ज़ेरे फ़रमान हो जाएगा और आप की हर ख़्वाहिश और तमन्ना पूरी कर दी जाएगी। उत्बा की येह साहिराना तक़रीर सुन कर हुजुर रहमते आलम ﷺ ने जवाब में कुरआने मजीद की चन्द आयतें तिलावत फ़रमाई। जिन को सुन कर उतबा इस क़दर मुतअष्षिर हुवा कि उस के जिस्म का रोंगटा रोंगटा और बदन का बाल बाल ख़ौफ़े जुल जलाल से लरज़ने और कांपने लगा और हुजूर ﷺ के मुंह पर हाथ रख कर कहा कि मैं आप को रिश्तेदारी का वासिता दे कर दर ख्वास्त करता हूं कि बस कीजिये, मेरा दिल इस कलाम की अजमत से फटा जा रहा है।
࿐ उत्बा बारगाहे रिसालत से वापस हुवा मगर उस के दिल की दुन्या में एक नया इनक़लाब रूनुमा हो चुका था, उत्बा एक बड़ा ही साहिरुल बयान खतीब और इनतिहाई फ़सीहो बलीग आदमी था उस ने वापस लौट कर सरदाराने कुरैश से कह दिया कि मुहम्मद जो कलाम पेश करते हैं वोह न जादू है न कहानत न शाईरी बल्कि वोह कोई और ही चीज़ है लिहाजा मेरी राय है कि तुम लोग उन को उन के हाल पर छोड़ दो अगर वोह काम्याब हो कर सारे अरब पर ग़ालिब हो गए तो इस में हम कुरैशियों ही की इज्ज़त बढ़ेगी, वरना सारा अरब उन को खुद ही फ़ना कर देगा मगर कुरैश के सरकश काफ़िरों ने उत्बा का येह मुख़िलसाना और मुदब्बिराना मश्वरा नहीं माना बल्कि अपनी मुखालफत और इज़ा रसानियों में और ज़्यादा इज़ाफ़ा कर दिया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 124 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 66╠✧◉*
*❝ कुरैश का वफ़द अबू तालिब के पास ❞*
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࿐ कुफ़्फ़ारे कुरैश में कुछ लोग सुल्ह पसन्द भी थे वोह चाहते थे कि बातचीत के जरीए सुल्हो सफ़ाई के साथ मुआमला तै हो जाए, चुनान्चे कुरैश के चन्द मुअज्ज़ज़ रूअसा अबू तालिब के पास आए और हुज़ूर ﷺ की दा'वते इस्लाम और बुत परस्ती के ख़िलाफ़ तक़रीरों की शिकायत की अबू तालिब ने निहायत नर्मी के साथ उन लोगों को समझा बुझा कर रुख़सत कर दिया लेकिन हुजुर ﷺ ख़ुदा के फरमान "तो एलानिया कह दो जिस बात का तुम्हे हुक्म है।" की तामील करते हुए अलल एलान शिर्क व बुत परस्ती की मज़म्मत और दा'वते तौहीद का वाअज़ फ़रमाते ही रहे। इस लिये कुरैश का गुस्सा फिर भड़क उठा चुनान्चे तमाम सरदाराने कुरैश या'नी उ॒त्वा व शैबा व अबू सुफ्यान व आस बिन हश्शाम व अबू जहल व वलीद बिन मुग़ीरा व आस बिन वाइल वगैरा वगैरा सब एक साथ मिल कर अबू तालिब के पास आए और येह कहा कि आप का भतीजा हमारे मा'बूदों की तौहीन करता है इस लिये या तो आप दरमियान में से हट जाएं और अपने भतीजे को हमारे सिपुर्द कर दें या फिर आप भी खुल कर उन के साथ मैदान में निकल पड़ें ताकि हम दोनों में से एक का फैसला हो जाए।
࿐ अबू तालिब ने कुरैश का तेवर देख कर समझ लिया कि अब बहुत ही ख़तरनाक और नाजुक घड़ी सर पर आन पड़ी है जाहिर है कि अब कुरैश बरदाश्त नहीं कर सकते और मैं अकेला तमाम कुरैश का मुक़ाबला नहीं कर सकता। अबू तालिब ने हुजूर ﷺ को इन्तिहाई मुख़्लिसाना और मुश्फिकाना लहजे में समझाया भतीजे ! अपने बूढ़े चचा की सफ़ेद दाढ़ी पर रहम करो और बुढ़ापे में मुझ पर इतना बोझ मत डालो कि मैं उठा न सकूं। अब तक तो कुरैश का बच्चा बच्चा मेरा एहतिराम करता था मगर आज कुरैश के सरदारों का लबो लहजा और उन का तेवर इस क़दर बिगड़ा हुवा था कि अब वोह मुझ पर और तुम पर तलवार उठाने से भी दरेग नहीं करेंगे लिहाजा मेरी राय येह है कि तुम कुछ दिनों के लिये दा'वते इस्लाम मौकूफ़ कर दो।
࿐ अब तक हुजूर ﷺ के ज़ाहिरी मुईन व मददगार जो कुछ भी थे वोह सिर्फ अकेले अबू तालिब ही थे, हुज़ूर ﷺ ने देखा कि अब इन के क़दम भी उखड़ रहे हैं चचा की गुफ्तगू सुन कर हुजुरे अक्दस ﷺ ने भर्राई हुई मगर जज़्बात से भरी हुई आवाज़ में फ़रमाया कि चचाजान ! खुदा की क़सम ! अगर कुरैश मेरे एक हाथ में सूरज और दूसरे हाथ में चांद ला कर दे दें तब भी मैं अपने इस फ़र्ज़ से बाज़ न आऊंगा, या तो खुदा इस काम को पूरा फ़रमा देगा या मैं खुद दीने इस्लाम पर निषार हो जाऊंगा, हुज़ूर ﷺ की येह जज़्बाती तक़रीर सुन कर अबू तालिब का दिल पसीज गया और वोह इस क़दर मुतअष्षिर हुए कि उन की हाशिमी रगों के खून का क़तरा क़तरा भतीजे की महब्बत में गर्म हो कर खौलने लगा और इन्तिहाई जोश में आ कर कह दिया कि जाने अम ! जाओ मैं तुम्हारे साथ हूं जब तक मैं ज़िन्दा हूं कोई तुम्हारा बाल बीका नहीं कर सकता।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 125 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 67╠✧◉*
*❝ हिजरते हबशा सि. 5 न-बवी ❞*
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࿐ कुफ्फ़ारे मक्का ने जब अपने जुल्मो सितम से मुसलमानों पर अर्सए हयात तंग कर दिया तो हुज़ूर रहमते आलम ﷺ ने मुसलमानों को "हबशा" जा कर पनाह लेने का हुक्म दिया।
࿐ *नज्जाशी :-* हबशा के बादशाह का नाम " अस्हमा " और लक़ब " नज्जाशी था, ईसाई दीन का पाबन्द था मगर बहुत ही इन्साफ़ पसन्द और रहम दिल था और तौरात व इन्जील वगैरा आस्मानी किताबों का बहुत ही माहिर आलिम था।
࿐ एलाने नुबुव्वत के पांचवें साल रजब के महीने में ग्यारह मर्द और चार औरतों ने हबशा की जानिब हिजरत की, इन मुहाजिरिने किराम के मुक़द्दस नाम ये है। (1,2) हजरते उषमाने गनी رضي الله عنه अपनी बीवी हज़रत बीबी रुकय्या के साथ जो हुज़ूर की साहब जादी हैं। (3,4) हज़रते अबू हुजैफा رضي الله عنه अपनी बीवी हज़रते सहला बिन्ते सुहैल के साथ (5,6) हज़रते अबू सलमह अपनी अहलिया हज़रते उम्मे सलमह के साथ। (7,8) हज़रते आमिर बिन रबीआ अपनी ज़ौजा हज़रते लैला बिन्ते अबी हश्मा के साथ। (9) हज़रते जुबैर बिन अल अव्वाम رضي الله عنه। (10) हज़रते मुस्अब बिन उमैर رضي الله عنه। (11) हज़रते अब्दुर्रहमान बिन औफ رضي الله عنه। (12) हज़रते उषमान बिन मजऊन رضي الله عنه । (13) हज़रते अबू सबरा बिन अबी रहम या हातिब बिन अम्र رضي الله عنه। (14) हज़रते सुहैल बिन बैजा رضي الله عنه। (15) हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद رضي الله عنه.
࿐ कुफ्फ़ारे मक्का को जब इन लोगों की हिजरत का पता चला तो उन ज़ालिमों ने इन लोगों की गरिफ्तारी के लिये इन का तआकुब किया लेकिन येह लोग किश्ती पर सुवार हो कर रवाना हो चुके थे इस लिये कुफ्फ़ार नाकाम वापस लौटे, येह मुहाजिरीन का काफिला हबशा की सर ज़मीन में उतर कर अम्नो अमान के साथ खुदा की इबादत में मसरूफ़ हो गया। चन्द दिनों के बा'द ना गहां येह ख़बर फैल गई कि कुफ्फ़ारे मक्का मुसलमान हो गए, येह ख़बर सुन कर चन्द लोग हबशा से मक्का लौट आए मगर यहां आ कर पता चला कि येह ख़बर ग़लत थी। चुनान्चे बा'ज़ लोग तो फिर हबशा चले गए मगर कुछ लोग मक्का रूपोश हो कर रहने लगे लेकिन कुफ़्फ़ारे मक्का ने उन लोगों को ढूंड निकाला और उन लोगों पर पहले से भी जियादा जुल्म ढाने लगे तो हुजुर ﷺ ने लोगों को हबशा चले जाने का हुक्म दिया। चुनांचे हबशा से वापस आने वाले और इन के साथ दूसरे मज़्लूम मुसलमान कुल तिरासी (83) मर्द और 18 औरतों ने हबशा की जानिब हिजरत की।
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 68╠✧◉*
*❝ कुफ़्फ़ार का सफीर नज्ज़ाशी के दरबार में #01 ❞*
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࿐ तमाम मुहाजिरिन निहायत अम्नो सुकून के साथ हबशा में रहने लगे मगर कुफ़्फ़ारे मक्का को कब गवारा हो सकता था कि फ़रज़न्दाने तौहीद कहीं अम्नो चैन के साथ रह सकें, इन जालिमों ने कुछ तहाइफ के साथ "अम्र बिन अल आस" और "अम्मारा बिन वलीद" को बादशाहे हबशा के दरबार में अपना सफ़ीर बना कर भेजा। इन दोनों ने नज्जाशी के दरबार में पहुंच कर तोहफों का नज़राना पेश किया और बादशाह को सज्दा कर के येह फ़रियाद करने लगे कि ऐ बादशाह ! हमारे कुछ मुजरिम मक्का से भाग कर आप के मुल्क में पनाह गुज़ीन हो गए हैं आप हमारे उन मुजरिमों को हमारे हवाले कर दीजिये येह सुन कर नज्जाशी बादशाह ने मुसलमानों को दरबार में तलब किया और हज़रते अली رضي الله عنه के भाई हज़रते जाफर رضي الله عنه मुसलमानों के नुमाइन्दा बन कर गुफ्तगू के लिये आगे बढ़े और दरबार के आदाब के मुताबिक बादशाह को सज्दा नहीं किया बल्कि सिर्फ सलाम कर के खड़े हो गए दरबारियों ने टोका तो हज़रते जाफ़र رضي الله عنه ने फ़रमाया कि हमारे रसूल ﷺ ने खुदा के सिवा किसी को सज्दा करने से मन्अ फरमाया है इस लिये मैं बादशाह को सज्दा नहीं कर सकता।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 127 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 69╠✧◉*
*❝ कुफ़्फ़ार का सफीर नज्ज़ाशी के दरबार में #02 ❞*
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࿐ हज़रते जाफर बिन अबी तालिब رضي الله عنه ने दरबारे शाही में इस तरह तकरीर शुरूअ फ़रमाई कि... “ऐ बादशाह ! हम लोग एक जाहिल क़ौम थे शिर्क व बुत परस्ती करते थे लूटमार, चोरी, डकैती, जुल्मो सितम और तरह तरह की बदकारियों और बद आमालियों में मुब्तला थे। अल्लाह तआला ने हमारी क़ौम में एक शख्स को अपना रसूल बना कर भेजा जिस के हसब व नसब और सिद्को दियानत को हम पहले से जानते थे, उस रसूल ने हम को शिर्क व बुत परस्ती से रोक दिया और सिर्फ एक खुदाए वाहिद की इबादत का हुक्म दिया और हर किस्म के जुल्मो सितम और तमाम बुराइयों और बदकारियों से हम को मन्अ किया, हम उस रसूल पर ईमान लाए और शिर्क व बुत परस्ती छोड़ कर तमाम बुरे कामों से ताइब हो गए। बस येही हमारा गुनाह है जिस पर हमारी क़ौम हमारी जान की दुश्मन हो गई और उन लोगों ने हमें इतना सताया कि हम अपने वतन को खैरबाद कह कर आप की सल्तनत के ज़ेरे साया पुर अम्न ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं अब येह लोग हमें मजबूर कर रहे हैं कि हम फिर उसी पुरानी गुमराही में वापस लौट जाएं।"
࿐ हज़रते जाफर رضي الله عنه की तक़रीर से नज्जाशी बादशाह बेहद मुतअष्षिर हुवा येह देख कर कुफ्फ़ारे मक्का के सफ़ीर अम्र बिन अल आस ने अपने तरकश का आखिरी तीर भी फेंक दिया और कहा कि ऐ बादशाह ! येह मुसलमान लोग आप के नबी हज़रते ईसा के बारे में कुछ दूसरा ही एतिक़ाद रखते हैं जो आप के अकीदे के बिल्कुल ही ख़िलाफ़ है येह सुन कर नज्जाशी बादशाह ने हजरते जाफर से इस बारे में सुवाल किया तो आप ने सूरए मरयम की तिलावत फ़रमाई कलामे रब्बानी की ताषीर से नज्जाशी बादशाह के कल्ब पर इतना गहरा अषर पड़ा कि उस पर रिक़्क़त तारी हो गई और उस की आंखों से आंसू जारी हो गए।
࿐ हज़रते जाफ़र رضي الله عنه ने फ़रमाया कि हमारे रसूल ﷺ ने हम को येही बताया है कि हज़रते ईसा عليه السلام खुदा के बन्दे और उस के रसूल है जो कंवारी मरयम رضي الله عنها के शिकमे मुबारक से बिगैर बाप के खुदा की कुदरत का निशान बन कर पैदा हुए। नज्जाशी बादशाह ने बड़े गौर से हज़रते जाफ़र की तक़रीर को सुना और येह कहा कि बिला शुबा इन्जील और कुरआन दोनों एक ही आफ्ताबे हिदायत के दो नूर हैं और यक़ीनन हज़रते ईसा खुदा के बन्दे और उस के रसूल हैं और मैं गवाही देता हूं कि बेशक हज़रत मुहम्मद ﷺ खुदा के वोही रसूल हैं जिन की बिशारत हज़रते ईसा ने इन्जील में दी है और अगर मैं दस्तूरे सल्तनत के मुताबिक तख़्ते शाही पर रहने का पाबन्द न होता तो मैं खुद मक्का जा कर रसूले अकरम ﷺ की जूतियां सीधी करता और उन के क़दम धोता।
࿐ बादशाह की तक़रीर सुन कर उस के दरबारी जो कट्टर क़िस्म के ईसाई थे नाराज़ व बरहम हो गए मगर नज्जाशी बादशाह ने जोशे ईमानी में सब को डांट फटकार कर ख़ामोश कर दिया, और कुफ़्फ़ारे मक्का के तोहफ़ों को वापस लौटा कर अम्र बिन अल आस और अम्मारा बिन वलीद को दरबार से निकलवा दिया और मुसलमानों से कह दिया कि तुम लोग मेरी सल्तनत में जहां चाहो अम्नो सुकून के साथ आराम व चैन की ज़िन्दगी बसर करो कोई तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता।
࿐ वाज़ेह रहे कि नज्जाशी बादशाह मुसलमान हो गया था, चुनान्चे उस के इन्तिकाल पर हुजूर ﷺ ने मदीनए मुनव्वरह में उस की नमाज़े जनाजा पढ़ी हालां कि नज्जाशी बादशाह का इन्तिकाल हबशा में हुवा था और वोह हबशा ही में मदफून भी हुए मगर हुजूर ﷺ ने गाइबाना उन की नमाज़े जनाज़ा पढ़ कर उन के लिये दुआए मग़्फ़रत फ़रमाई।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 129 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 70╠✧◉*
*❝ हज़रते अबू बक्र और इब्ने दुगन्ना ❞*
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࿐ हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه ने भी हबशा की तरफ हिज़रत की मगर जब आप मकाम "बर्कुल ग़म्माद" में पहुंचे तो क़बीलए कारा का सरदार "मालिक बिन दुगुन्ना" रास्ते में मिला और दरयाफ्त किया कि क्यूं ? ऐ अबू बक्र ! कहां चले ? आप رضي الله عنه ने अहले मक्का के मज़ालिम का तज़किरा फ़रमाते हुए कहा कि अब मैं अपने वतन मक्का को छोड़ कर खुदा की लम्बी चौड़ी ज़मीन में फिरता रहूंगा और खुदा की इबादत करता रहूंगा इब्ने दुगन्ना ने कहा कि ऐ अबू बक्र ! आप जैसा आदमी न शहर से निकल सकता है न निकाला जा सकता है आप दूसरों का बार उठाते हैं, मेहमानाने हरम की मेहमान नवाज़ी करते हैं, खुद कमा कमा कर मुफ्लिसों और मोहताजों की माली इमदाद करते हैं, हक़ के कामों में सब की इमदाद व इआनत करते हैं आप मेरे साथ मक्का वापस चलिये मैं आप को अपनी पनाह में लेता हूं, इब्ने दुगन्ना आप को जबर दस्ती मक्का वापस लाया और तमाम कफ्फारे मक्का से कह दिया कि मैं ने अबु बक्र رضي الله عنه को अपनी पनाह में ले लिया है लिहाज़ा ख़बरदार ! कोई इन को न सताए कुफ्फ़ारे मक्का ने कहा कि हम को इस शर्त पर मन्जूर है कि अबू बक्र अपने घर के अन्दर छुप कर कुरआन पढ़ें ताकि हमारी औरतों और बच्चों के कान में कुरआन की आवाज़ न पहुंचे।
࿐ इब्ने दुगुन्ना ने कुफ्फार की शर्त को मन्जूर कर लिया, और हज़रते अबू बक्र رضي الله عنه चन्द दिनों तक अपने घर के अन्दर कुरआन पढ़ते रहे मगर हज़रते अबू बक्र رضي الله عنه के जज़्बए इस्लामी और जोशे ईमानी ने येह गवारा नहीं किया कि माबूदाने बातिल लात व उज्ज़ा की इबादत तो अलल एलान हो और माबूदे बरहक़ अल्लाह तआला की इबादत घर के अन्दर छुप कर की जाए चुनान्चे आप ने घर के बाहर अपने सहन में एक मस्जिद बना ली और इस मस्जिद में अलल ए'लान नमाज़ों में बुलन्द आवाज से कुरआन पढ़ने लगे और कुफ़्फ़ारे मक्का की औरतें और बच्चे भीड़ लगा कर कुरआन सुनने लगे।
࿐ येह मन्ज़र देख कर कुफ्फ़ारे मक्का ने इब्ने दुगुन्ना को मक्का बुलाया और शिकायत की, कि अबू बक्र घर के बाहर कुरआन पढ़ते हैं जिस को सुनने के लिये उन के गिर्द हमारी औरतों और बच्चों का मेला लग जाता है इस से हम को बड़ी तक्लीफ़ होती है लिहाजा तुम उन से कह दो कि या तो वोह घर में कुरआन पढ़ें वरना तुम अपनी पनाह की ज़िम्मादारी से दस्त बरदार हो जाओ चुनान्वे इब्ने दुगुन्ना ने हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه से कहा कि ऐ अबू बक्र ! आप घर के अन्दर छुप कर कुरआन पढ़ें वरना मैं अपनी पनाह से कनारा कश हो जाऊंगा इस के बा'द कुफ्फ़ारे मक्का आप को सताएंगे तो मैं इस का ज़िम्मादार नहीं होउंगा, येह सुन कर हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه ने फ़रमाया कि ऐ इब्ने दुगन्ना ! तुम अपनी पनाह की ज़िम्मादारी से अलग हो जाओ मुझे अल्लाह तआला की पनाह काफी है और मैं उस की मरज़ी पर राजी ब रिज़ा हूं।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 132 📚*
*❝ हज़रते हम्ज़ा मुसलमान हो गए ❞*
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࿐ एलाने नुबुव्वत के छटे साल हज़रते हम्ज़ा رضي الله عنه और हज़रते उमर رضي الله عنه दो ऐसी हस्तियां दामने इस्लाम में आ गई जिन से इस्लाम और मुसलमानों के जाहो जलाल और इन के इज्ज़तो इक़बाल का परचम बहुत ही सर बुलन्द हो गया, हुज़ूर ﷺ के चचाओं में हज़रते हम्ज़ा को आप ﷺ से बड़ी वालिहाना महब्बत थी और वोह सिर्फ दो तीन साल हुजुर ﷺ से उम्र में जियादा थे और चूंकि इन्हों ने भी हज़रते सुवैबा का दूध पिया था इस लिये हुज़ूर ﷺ के रज़ाई भाई भी थे, हज़रते हम्जा رضي الله عنه बहुत ही ताकत वर और बहादुर थे और शिकार के बहुत ही शौक़ीन थे रोजाना सुब्ह सवेरे तीर कमान ले कर घर से निकल जाते और शाम को शिकार से वापस लौट कर हरम में जाते, खानए काबा का तवाफ़ करते और कुरैश के सरदारों की मजलिस में कुछ देर बैठा करते थे।
࿐ एक दिन हस्बे मामूल शिकार से वापस लौटे तो इब्ने जदआन की लौंडी और खुद इन की बहन हज़रते बीबी सफ़िय्या رحمة الله عليه ने इन को बताया कि आज अबू जहल ने किस किस तरह तुम्हारे भतीजे हजरत मुहम्मद ﷺ के साथ बेअदबी और गुस्ताखी की है येह माजरा सुन कर मारे गुस्से के हज़रते हम्ज़ा رضي الله عنه का खून खौलने लगा एक दम तीर कमान लिये हुए मस्जिदे हराम में पहुंच गए और अपनी कमान अबू जहल के सर पर इस ज़ोर से मारा कि उस का सर फट गया और कहा कि तू मेरे भतीजे को गालियां देता है ? तुझे खबर नहीं कि मैं भी उसी के दीन पर हूं येह देख कर क़बीलए बनी मख़्ज़ूम के लोग अबू जहल की मदद के लिये खड़े हो गए तो अबू जहल ने येह सोच कर कि कहीं बनू हाशिम से जंग न छिड़ जाए येह कहा कि ऐ बनी मख़्ज़ूम ! आप लोग हम्ज़ा को छोड़ दीजिये। वाक़ेई आज मैं ने इन के भतीजे को बहुत ही खराब ख़राब क़िस्म की गालियां दी थीं।
࿐ हज़रते हम्ज़ा رضي الله عنه ने मुसलमान हो जाने के बाद ज़ोर ज़ोर से इन अशआर को पढ़ना शुरू कर दिया :
★ मैं अल्लाह तआला की हम्द करता हूं जिस वक़्त कि उस ने मेरे दिल को इस्लाम और दीने हनीफ़ की तरफ़ हिदायत दी।
★ जब अहकामे इस्लाम की हमारे सामने तिलावत की जाती है तो बा कमाल अक्ल वालों के आंसू जारी हो जाते हैं।
★ और खुदा के बरगुज़ीदा अहमद ﷺ हमारे मुक्तदा हैं तो (ऐ काफ़िरो) अपनी बातिल बक्वास से इन पर गलबा मत हासिल करो।
★ तो खुदा की कसम ! हम इन्हें क़ौमे कुफ्फ़ार के सिपुर्द नहीं करेंगे, हालां कि अभी तक हम ने उन काफ़िरों के साथ तलवारों से फ़ैसला नहीं किया है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 133 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 72╠✧◉*
*❝ हज़रते उमर का इस्लाम #01 ❞*
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࿐ हज़रते हम्जा رضي الله عنه के इस्लाम लाने के बाद तीसरे ही दिन हज़रते उमर رضي الله عنه भी दौलते इस्लाम से मालामाल हो गए, आप के मुशर्रफ़ ब इस्लाम होने के वाक़िआत में बहुत सी रिवायात हैं।
࿐ एक रिवायत येह है कि आप एक दिन गुस्से में भरे हुए नंगी तलवार ले कर इस इरादे से चले कि आज मैं इसी तलवार से पैग़म्बरे इस्लाम का खातिमा कर दूंगा इत्तिफ़ाक़ से रास्ते में हज़रते नुऐम बिन अब्दुल्लाह कुरैशी رضي الله عنه से मुलाक़ात हो गई, येह मुसलमान हो चुके थे मगर हज़रते उमर को इनके इस्लाम की खबर नहीं थी, हज़रते नुऐम बिन अब्दुल्लाह رضي الله عنه ने पूछा कि क्यूं ? ऐ उमर ! इस दो पहर की गर्मी में नंगी तलवार ले कर कहां चले ? कहने लगे कि आज बानिये इस्लाम का फैसला करने के लिये घर से निकल पड़ा हूं। इन्हों ने कहा कि पहले अपने घर की ख़बर लो। तुम्हारी बहन “फातिमा बिन्ते अल ख़त्ताब" और तुम्हारे बहनोई "सईद बिन जैद" भी तो मुसलमान हो गए हैं ! येह सुन कर आप बहन के घर पहुंचे और दरवाजा खट खटाया घर के अन्दर चन्द मुसलमान छुप कर कुरआन पढ़ रहे थे।
࿐ हज़रते उमर की आवाज़ सुन कर सब लोग डर गए और कुरआन के अवराक़ छोड़ कर इधर उधर छुप गए बहन ने उठ कर दरवाजा खोला तो हज़रते उमर चिल्ला कर बोले कि ऐ अपनी जान की दुश्मन ! क्या तू भी मुसलमान हो गई है ? फिर अपने बहनोई हज़रते सईद बिन जैद رضي الله عنه पर झपटे और उन की दाढ़ी पकड़ कर उन को ज़मीन पर पटख दिया और सीने पर सुवार हो कर मारने लगे इन की बहन हज़रते फ़ातिमा رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْھَا अपने शोहर को बचाने के लिये दौड़ पड़ीं तो हज़रते उमर ने उन को ऐसा तमांचा मारा कि उन के कानों के उमर झूमर टूट कर गिर पड़े और उन का चेहरा खून से लहू लुहान हो गया बहन ने साफ़ साफ़ कह दिया कि उमर ! सुन लो, तुम से जो हो सके कर लो मगर अब इस्लाम दिल से नहीं निकल सकता हज़रते उमर رضي الله عنه ने बहन का ख़ून आलूदा चेहरा देखा और उन का अज़मो इस्तिकामत से भरा हुवा येह जुम्ला सुना उन पर रिक्क़त तारी हो गई और एक दम दिल नरम पड़ गया थोड़ी देर तक खामोश खड़े रहे फिर कहा कि अच्छा तुम लोग जो पढ़ रहे थे मुझे भी दिखाओ बहन ने क़ुरआन के अवराक़ को सामने रख दिया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 134 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 73╠✧◉*
*❝ हज़रते उमर का इस्लाम #02 ❞*
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࿐ हज़रते उमर के कहने पर आप की बहन ने कुरआन के अवराक़ को आप के सामने रख दिया उठा कर देखा तो इस आयत पर नज़र पड़ी कि, *तर्जमए कन्जुल ईमान :* अल्लाह की पाकी बोलता है जो कुछ आस्मानों और ज़मीन में है और वोही इज्ज़त व हिक्मत वाला है।
࿐ इस आयत का एक एक लफ्ज़ सदाकत की ताषीर का तीर बन कर दिल की गहराई में पैवस्त होता चला गया और जिस्म का एक एक बाल लरज़ा बर अन्दाम होने लगा। जब इस आयत पर पहुंचे कि... *तर्जमा :* अल्लाह और उस के रसूल पर ईमान लाओ।
࿐ तो बिल्कुल ही बे क़ाबू हो गए और बे इख़्तियार पुकार उठे कि أشهد أن لا إله إلا الله وأشهد أن محمدا رسول الله येह वोह वक़्त था कि हुजूरे अकरम ﷺ हज़रते अरकम رضي الله عنه के मकान में मुक़ीम थे हज़रते उमर رضي الله عنه बहन के घर से निकले और सीधे हज़रते अरक़म رضي الله عنه के मकान पर पहुंचे तो दरवाज़ा बन्द पाया, कुन्डी बजाई, अन्दर के लोगों ने दरवाज़े की झरी से झांक कर देखा तो हज़रते उमर رضي الله عنه नंगी तलवार लिये खड़े थे।
࿐ लोग घबराए और किसी में दरवाज़ा खोलने की हिम्मत नहीं हुई मगर हज़रते हम्ज़ा رضي الله عنه ने बुलन्द आवाज़ से फ़रमाया कि दरवाज़ा खोल दो और अन्दर आने दो अगर नेक निय्यती के साथ आया है तो उस का खैर मक्दम किया जाएगा वरना उसी की तलवार से उस की गरदन उड़ा दी जाएगी, हज़रते उमर رضي الله عنه ने अन्दर क़दम रखा हुजूर ﷺ ने खुद आगे बढ़ कर हज़रते उमर رضي الله عنه का बाज़ू पकड़ा और फ़रमाया कि ऐ ख़त्ताब के बेटे ! तू मुसलमान हो जा आखिर तू कब तक मुझ से लड़ता रहेगा ? हजरते उमर رضي الله عنه ने बा आवाज़े बुलन्द कलिमा पढ़ा। हुज़ूर ﷺ ने मारे खुशी के नारए तक्बीर बुलन्द फ़रमाया और तमाम हाज़िरीन ने इस ज़ोर से अल्लाहु अकबर का नारा मारा कि मक्का की पहाड़ियां गूंज उठीं। سبحان الله سبحان الله
࿐ फिर हज़रते उमर رضي الله عنه कहने लगे कि या रसूलल्लाह ﷺ ! येह छुप छुप कर खुदा की इबादत करने के क्या माना ? उठिये हम काबे में चल कर अलल एलान खुदा की इबादत करेंगे और खुदा की क़सम ! में कुफ्र की हालत में जिन जिन मजलिसों में बैठ कर इस्लाम की मुख़ालफ़त करता रहा हु अब उन तमाम मजलिसों में अपने इस्लाम का एलान करूँगा फिर हुज़ूर ﷺ सहाबा की जमाअत को ले कर दो कितारों में रवाना हुए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 136 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 74╠✧◉*
*❝ हज़रते उमर का इस्लाम #03 ❞*
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࿐ हुज़ूर ﷺ सहाबा की जमाअत को ले कर दो क़ितारों में रवाना हुए, एक सफ़ के आगे आगे हज़रते हम्ज़ा رضي الله عنه चल रहे थे और दूसरी सफ के आगे आगे हज़रते उमर رضي الله عنه थे, इस शान से मस्जिदे हरम में दाखिल हुए और नमाज़ अदा की और हज़रते उमर رضي الله عنه ने हरमे का'बा में मुशरिकीन के सामने अपने इस्लाम का एलान किया येह सुनते ही हर तरफ से कुफ्फ़ार दौड़ पड़े और हज़रते उमर رضي الله عنه को मारने लगे और हज़रते उमर भी उन लोगों से लड़ने लगे, एक हंगामा बरपा हो गया इतने में हज़रते उमर رضي الله عنه का मामूं अबू जहल आ गया उस ने पूछा कि येह हंगामा कैसा है ? लोगों ने बताया कि हज़रते उमर मुसलमान हो गए हैं इस लिये लोग बरहम हो कर इन पर हम्ला आवर हुए हैं येह सुन कर अबू जहल ने हतीमे काबा में खड़े हो कर अपनी आस्तीन से इशारा कर के एलान कर दिया कि मैं ने अपने भान्जे उमर को पनाह दी, अबू जहल का येह एलान सुन कर सब लोग हट गए हज़रते उमर رضي الله عنه का बयान है कि इस्लाम लाने के बा'द मैं हमेशा कुफ्फ़ार को मारता और उनकी मार खाता रहा यहां तक कि अल्लाह तआला ने इस्लाम को गालिब फ़रमा दिया।
࿐ हज़रते उमर رضي الله عنه के मुसलमान होने का एक सबब यह भी बताया गया है कि खुद हज़रते उमर फ़रमाया करते थे कि मैं कुफ़्र की हालत में कुरैश के बुतों के पास हाज़िर था इतने में एक शख़्स गाय का एक बछड़ा ले कर आया और उस को बुतों के नाम पर जब्ह किया फिर बड़े ज़ोर से चीख मार कर किसी ने येह कहा कि
(یَاجَلِیْحُ اَمْرٌ نَّجِیْحٌ رَجُلٌ فَصِیْحٌ یَقُوْلُ لَآ اِلٰهَ اِلَا اللّٰهُ)
येह आवाज़ सुन कर सब लोग वहां से भाग खड़े हुए। लेकिन मैं ने येह अज़्म कर लिया कि मैं इस आवाज़ देने वाले की तहक़ीक़ किये बिगैर हरगिज़ हरगिज़ यहां से नहीं टलूंगा, इस के बाद फिर येही आवाज़ आई कि
یَاجَلِیْحُ اَمْرٌ نَّجِیْحٌ رَجُلٌ فَصِیْحٌ یَقُوْلُ لَآ اِلٰهَ اِلَا اللّٰهُ
या'नी ऐ खुली हुई दुश्मनी करने वाले ! एक काम्याबी की चीज़ है कि एक फ़साहत वाला आदमी "ला-इलाहा-इल्लल्लाहु" कह रहा है। हालां कि बुतों के आस पास मेरे सिवा दूसरा कोई भी नहीं था। इस के फ़ौरन ही बाद हुज़ूर ﷺ ने अपनी नुबुव्वत का ए'लान फ़रमाया, इस वाकिए से हज़रते उमर मुतअष्षिर थे इस लिये इन के इस्लाम लाने के अस्बाब में इस वाक़िए को भी कुछ न कुछ ज़रूर दख़ल है।
࿐ हज़रते उमर رضي الله عنه को जब कुफ्फ़ारे मक्का ने बहुत ज़ियादा सताया तो आस बिन वाइल सहमी ने भी आपको अपनी पनाह में ले लिया जो ज़मानए जाहिलिय्यत में आप का हलीफ़ था इस लिये हज़रते उमर कुफ्फ़ार की मारधाड़ से बच गए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह 137 - 138 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 75╠✧◉*
*❝ गम का साल सि. 10 नबवी ❞*
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࿐ हुजूरे अक्दस ﷺ "शअबे अबी तालिब" से निकल कर अपने घर में तशरीफ़ लाए और चन्द ही रोज़ कुफ्फ़ारे कुरैश के जुल्मो सितम से कुछ अमान मिली थी कि अबू तालिब बीमार हो गए और घाटी से बाहर आने के आठ महीने बाद इन का इन्तिकाल हो गया।
࿐ अबू तालिब की वफ़ात हुज़ूर ﷺ के लिये एक बहुत ही जां गुदाज़ और रूह फरसा हादिसा था क्यूं कि बचपन से जिस तरह प्यार व महब्बत के साथ अबू तालिब ने आप की परवरिश की थी और ज़िन्दगी के हर मोड़ पर जिस जां निषारी के साथ आप की नुसरत व दस्त गीरी की और आप दुश्मनों के मुक़ाबिल सीना सिपर हो कर जिस तरह आलामो मसाइब का मुक़ाबला किया इस को भला हुजूर ﷺ किस तरह भूल सकते थे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 141 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 76╠✧◉*
*❝ अबू तालिब का खातिमा ❞*
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࿐ जब अबू तालिब म-रजुल मौत में मुब्तला हो गए तो हुज़ूर ﷺ उनके पास तशरीफ़ ले गए और फ़रमाया कि ऐ चचा ! आप कलिमा पढ़ लीजिये। येह वोह कलिमा है कि इस के सबब से मैं खुदा के दरबार में आप की मरिफ़रत के लिये इस्रार करूंगा। उस वक्त अबू जहल और अब्दुल्लाह बिन अबी उमय्या अबू तालिब के पास मौजूद थे। उन दोनों ने अबू तालिब से कहा कि ऐ अबू तालिब ! क्या आप अब्दुल मुत्तलिब के दीन से रू गर्दानी करेंगे ? और येह दोनों बराबर अबू तालिब से गुफ्तगू करते रहे यहां तक कि अबू तालिब ने कलिमा नहीं पढ़ा बल्कि उन की ज़िन्दगी का आखिरी कौल येह रहा कि "मैं अब्दुल मुत्तलिब के दीन पर हूं।" येह कहा और उन की रूह परवाज़ कर गई।
࿐ हुजुर रहमते आलम ﷺ को इस से बड़ा सदमा पहुंचा और आप ने फ़रमाया कि मैं आप के लिये उस वक़्त तक दुआए मग़फ़िरत करता रहूंगा जब तक अल्लाह तआला मुझे मन्अ न फ़रमाएगा। इस के बाद येह आयत नाज़िल हो गई कि "नबी और मुअमिनीन के लिये येह जाइज़ ही नहीं कि वोह मुशरिकीन के लिये मग़्फ़रत की दुआ मांगें अगर्चे वोह रिश्तेदार ही क्यूं न हों। जब इन्हें मालूम हो चुका है कि मुशरिकीन जहन्नमी हैं।
(पारा 11, अल-तौबा:113)
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 143 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 77╠✧◉*
*❝ हज़रते बीबी खदीजा की वफ़ात ❞*
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࿐ हुज़ूरे अक्दस ﷺ के कल्बे मुबारक पर अभी अबू तालिब के इन्तिकाल का जख्म ताज़ा ही था कि अबू तालिब की वफ़ात के तीन दिन या पांच दिन के बाद हज़रते बीबी ख़दीजा رضي الله عنها भी दुन्या से रिहलत फ़रमा गई। मक्का में अबू तालिब के बाद सब से ज़ियादा जिस हस्ती ने रहमते आलम ﷺ की नुसरत व हिमायत में अपना तन मन धन सब कुछ कुरबान किया वोह हज़रते बीबी ख़दीजा رضي الله عنها की जाते गिरामी थी। जिस वक्त दुन्या में कोई आप ﷺ का मुख़्लिस मुशीर और ग़म ख़्वार नहीं था हज़रते बीबी ख़दीजा رضي الله عنها ही थीं कि हर परेशानी के मौकअ पर पूरी जां निषारी के साथ आप ﷺ की गम ख़्वारी और दिलदारी करती रहती थीं इस लिये अबू तालिब और हज़रते बीबी ख़दीजा رضي الله عنها दोनों की वफ़ात से आप ﷺ के मददगार और ग़म गुसार दोनों ही दुन्या से उठ गए जिस से आप ﷺ के कल्बे नाजुक पर इतना अज़ीम सदमा गुज़रा कि आप ﷺ ने उस साल का नाम "आमुल हुज्न" (गम का साल) रख दिया।
࿐ हज़रते बीबी ख़दीजा رضي الله عنها ने रमज़ान सि. 10 न-बवी में वफ़ात पाई, ब वक्ते वफ़ात पैंसठ बरस की उम्र थी, मक़ामे हजून (क़ब्रिस्तान जन्नतुल म-अला) में मदफून हुई। हुजुर रहमते आलम ﷺ खुद ब नफ्से नफ़ीस क़ब्र में उतरे और अपने मुक़द्दस हाथों से उन की लाश को ज़मीन के सिपुर्द फ़रमाया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 144 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 78╠✧◉*
*❝ ताइफ वगैश का सफर ❞*
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࿐ मक्का वालों के इनाद और सरकशी को देखते हुए जब हुज़ूर रहमते आलम ﷺ को उन लोगों के ईमान लाने से मायूसी नज़र आई तो आपने तब्लीगे इस्लाम के लिये मक्का के कर्बो जवार की बस्तियों का रुख किया, चुनान्चे इस सिल्सिले में आपने "ताइफ" का भी सफ़र फ़रमाया, इस सफ़र में हुज़ूर ﷺ के गुलाम हज़रते जैद बिन हारिषा رضي الله عنه भी आप ﷺ में के हमराह थे ताइफ़ में बड़े बड़े उ-मरा और मालदार लोग रहते थे। उन रईसों में "अम्र" का ख़ानदान तमाम क़बाइल का सरदार शुमार किया जाता था। येह लोग तीन भाई थे अब्दे यालील, मसऊद, हबीब। हुज़ूर ﷺ इन तीनों के पास तशरीफ़ ले गए और इस्लाम की दावत दी उन तीनों ने इस्लाम क़बूल नहीं किया बल्कि इन्तिहाई बेहूदा और गुस्ताखाना जवाब दिया उन बद नसीबों ने इसी पर बस नहीं किया बल्कि ताइफ के शरीर गुन्डों को उभार दिया कि येह लोग हुजूर ﷺ के साथ बुरा सुलूक करें।
࿐ चुनान्चे लुच्चों लफंगों का येह शरीर गुरौह हर तरफ़ से आप ﷺ पर टूट पड़ा और येह शरारतों के मुजस्समे आप पर पथ्थर बरसाने लगे यहां तक कि आप के मुक़द्दस पाउं जख्मों से लहू लुहान हो गए और आप ﷺ के मोज़े और नालैन मुबारक ख़ून से भर गए जब आप जख्मों से बेताब हो कर बैठ जाते तो येह ज़ालिम इनतिहाई बे दर्दी के साथ आप का बाजू पकड़ कर उठाते और जब आप चलने लगते तो फिर आप पर पथ्थरों की बारिश करते और साथ साथ ताना जनी करते, गालियां देते, तालियां बजाते, हंसी उड़ाते, हज़रते जैद बिन हारिषा दौड़ दौड़ कर हुजुर ﷺ पर आने वाले पथ्थरों को अपने बदन पर लेते थे और हुज़ूर ﷺ को बचाते थे यहां तक कि वोह भी ख़ून में नहा गए और ज़ख्मों से निढाल हो कर बे क़ाबू हो गए,
࿐ यहां तक कि आखिर आप ﷺ ने अंगूर के एक बाग़ में पनाह ली येह बाग़ मक्का के एक मशहूर काफ़िर उत्बा बिन रबीआ का था हुज़ूर का यह हाल देख कर उत्बा बिन रबीआ और उस के भाई शैबा बिन रबीआ को आप ﷺ पर रहम आ गया और काफ़िर होने के बावजूद खानदानी हमिय्यत ने जोश मारा चुनान्चे उन दोनों काफ़िरों ने हुज़ूर ﷺ को अपने बाग़ में ठहराया और अपने नसरानी गुलाम “अद्दास" के हाथ से आप की ख़िदमत में अंगूर का एक खोशा भेजा हुज़ूर ﷺ ने बिस्मिल्लाह पढ़ कर खोशे को हाथ लगाया तो अद्दास तअज्जुब से कहने लगा कि इस अतराफ़ के लोग तो येह कलिमा नहीं बोला करते ! हुजूर ﷺ ने उस से दरयाफ्त फ़रमाया कि तुम्हारा वतन कहां है ? अद्दास ने कहा कि मैं “शहर नैनवा” का रहने वाला हूं। आप ﷺ ने फ़रमाया कि वोह हज़रते यूनुस बिन मत्ता عليه السلام का शहर है वो भी मेरी तरह खुदा के पैग़म्बर थे येह सुन कर अद्दास आप ﷺ के हाथ पाउं चूमने लगा और फ़ौरन ही आप का कलिमा पढ़ कर मुसलमान हो गया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 145 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 79╠✧◉*
*❝ ताइफ़ वगैरा का सफर #02 ❞*
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࿐ इसी सफर में जब आप ﷺ मकाम “नखला" में तशरीफ़ फ़रमा हुए और रात को नमाज़े तहज्जुद में कुरआने मजीद पढ़ रहे थे तो "नसीबैन" के जिन्नों की एक जमाअत आपकी ख़िदमत में हाज़िर हुई और कुरआन सुन कर येह सब जिन्न मुसलमान हो गए, फिर उन जिन्न ने लौट कर अपनी क़ौम को बताया तो मक्कए मुकर्रमा में जिन्नों की जमाअत ने फ़ौज दर फ़ौज आ कर इस्लाम क़बूल किया। चुनान्चे कुरआने मजीद में सूरए जिन्न की इब्तिदाई आयतों में खुदा वन्दे आलम ने इस वाक़िए का तजकिरा फ़रमाया है।
࿐ मकामे नखला में हुजूर ﷺ ने चन्द दिनों तक क़याम फ़रमाया फिर आप ﷺ मकामे "हिरा" में तशरीफ़ लाए और कुरैश के एक मुमताज़ सरदार मुतइम बिन अदी के पास येह पैग़ाम भेजा कि क्या तुम मुझे अपनी पनाह में ले सकते हो ? अरब का दस्तूर था कि जब कोई शख़्स इन से हिमायत और पनाह तलब करता तो वोह अगर्चे कितना ही बड़ा दुश्मन क्यूं न हो वोह पनाह देने से इन्कार नहीं कर सकते थे। चुनान्चे मुतइम बिन अदी ने हुजूर ﷺ को अपनी पनाह में ले लिया और उस ने अपने बेटों को हुक्म दिया कि तुम लोग हथियार लगा कर हरम में जाओ और मुतइम बिन अदी खुद घोड़े पर सुवार हो गया और हुज़ूर ﷺ को अपने साथ मक्का लाया और हरमे का'बा में अपने साथ ले कर गया और मज्मए आम में एलान कर दिया कि मैं ने मुहम्मद (ﷺ) को पनाह दी है इस के बाद हुजूर ﷺ ने इत्मीनान के साथ हजरे अस्वद को बोसा दिया और का'बे का तवाफ़ कर के हरम में नमाज़ अदा की और मुतइम बिन अदी और इस के बेटों ने तलवारों के साए में आप ﷺ को आप के दौलत खाने तक पहुंचा दिया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 145 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 80╠✧◉*
*❝ ताइफ़ वगैरा का सफर #03 ❞*
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࿐ इस सफ़र के मुद्दतों बाद एक मरतबा उम्मुल मुअमिनीन हज़रते आइशा رضي الله عنها ने हुज़ूरे अक्दस ﷺ से दरयाफ्त किया कि या रसूलल्लाह ﷺ क्या जंगे उहुद के दिन से भी जियादा सख़्त कोई दिन आप पर गुज़रा है ? तो आप ﷺ ने इर्शाद फरमाया कि हां ऐ आइशा ! वोह दिन मेरे लिये जंगे उहुद के दिन से भी ज़ियादा सख़्त था जब मैं ने ताइफ में वहां के एक सरदार "अब्दे यालील" को इस्लाम की दावत दी, उस ने दा'वते इस्लाम को हक़ारत के साथ ठुकरा दिया और अहले ताइफ़ ने मुझ पर पथराव किया,मैं इस रन्जो ग़म में सर झुकाए चलता रहा यहां तक कि मक़ामे "कर्नुस्सआलिब" में पहुंच कर मेरे होशो हवास बजा हुए।
࿐ वहां पहुंच कर जब मैं ने सर उठाया तो क्या देखता हूं कि एक बदली मुझ पर साया किये हुए है उस बादल में से हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम ने मुझे आवाज़ दी और कहा कि अल्लाह तआला ने आप की क़ौम का क़ौल और उन का जवाब सुन लिया और अब आप की ख़िदमत में पहाड़ों का फ़िरिश्ता हाज़िर है ताकि वोह आप के हुक्म की तामील करे हुज़ूर ﷺ का बयान है कि पहाड़ों का फ़िरिश्ता मुझे सलाम कर के अर्ज़ करने लगा कि ऐ मुहम्मद (ﷺ) ! अल्लाह तआला ने आप की कौम का कौल और उन्हों ने आप को जो जवाब दिया है वोह सब कुछ सुन लिया है और मुझ को आप की ख़िदमत में भेजा है ताकि आप मुझे जो चाहें हुक्म दें और मैं आप का हुक्म बजा लाऊं। अगर आप चाहते हैं कि मैं “अख़्शबैन” (अबू कुबैस कईकआन) दोनों पहाड़ो को इन कुफ़्फ़ार पर उलट दु तो में उलट देता हूं। ये सुन कर जब हुज़ूर ﷺ ने जवाब दिया कि नहीं बल्कि में उम्मीद करता हूँ कि अल्लाह इन की नस्लों से अपने ऐसे बन्दों को पैदा फरमाएगा जो सिर्फ अल्लाह की ही इबादत करेंगे और शिर्क नहीं करेंगे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 147 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 81╠✧◉*
*❝ कबाइल में तब्लीगे इस्लाम ❞*
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࿐ हुज़ूर नबिय्ये करीम ﷺ का तरीका था कि हज के ज़माने में जब कि दूर दूर के अरबी क़बाइल मक्का में जम्अ होते थे तो हुज़ूर ﷺ तमाम क़बाइल में दौरा फ़रमा कर लोगों को इस्लाम की दावत देते थे, इसी तरह अरब में जा बजा बहुत से मेले लगते थे जिन में दूरदराज़ के क़बाइले अरब जम्अ होते थे इन मेलों में भी आप ﷺ तब्लीगे इस्लाम के लिये तशरीफ़ ले जाते थे। चुनान्चे अक्काज, मुजना, जुल मजाज़ के बड़े बड़े मेलों में आपने क़बाइले अरब के सामने दा'वते इस्लाम पेश फ़रमाई ,अरब के क़बाइल बनू आमिर, मुहारिब, फ़ज़ारा, गुस्सान, मुर्रह, सुलैम, अब्स, बनू नस्र, कन्दा, कल्ब, उज्रा, हज़ारिमा वगैरा इन सब मशहूर क़बाइल के सामने आपने इस्लाम पेश फ़रमाया मगर आप का चचा अबू लहब हर जगह आप ﷺ के साथ साथ जाता और जब आप ﷺ किसी क़बीले के सामने वा'ज़ फ़रमाते तो अबू लहब चिल्ला चिल्ला कर येह कहता कि "येह दीन से फिर गया है, येह झूट कहता है।"
࿐ क़बीलए बनू जहल बिन शैबान के पास जब आप ﷺ तशरीफ़ ले गए तो हज़रते अबू बक्र सिद्दीक भी आप ﷺ के साथ थे इस क़बीले का सरदार "मफ्रूक" आप ﷺ की तरफ़ मुतवज्जेह हुवा और उस ने कहा कि ऐ कुरैशी बरादर ! आप लोगों के सामने कौन सा दीन पेश करते हैं ? आप ﷺ ने फ़रमाया कि खुदा एक है और मैं उस का रसूल हूं फिर आपने सूरए अन्आम की चन्द आयतें तिलावत फ़रमाई। येह सब लोग आप की तक़रीर और कुरआनी आयतों की ताषीर से इन्तिहाई मुतअष्षिर हुए लेकिन येह कहा कि हम अपने उस ख़ानदानी दीन को भला एक दम कैसे छोड़ सकते हैं ? जिस पर हम बरसहा बरस से कारबन्द हैं। इस के इलावा हम मल्के फारस के बादशाह किस्रा के ज़ेरे अषर और रइय्यत हैं। और हम येह मुआहदा कर चुके हैं कि हम बादशाहे किस्रा के सिवा किसी और के जेरे अषर नहीं रहेंगे। हुज़ूर ﷺ ने उन लोगों की साफगोई की तारीफ़ फ़रमाई और इर्शाद फ़रमाया कि खैर, खुदा अपने दीन का हामी व नासिर और मुईन व मददगार है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 148 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 82╠✧◉*
*पांचवां बाब*
*❝ मदीने में आफ्ताबे रिसालत की तजल्लियां ❞*
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࿐ मदीनए मुनव्वरह का पुराना नाम "यषरब" है, जब हुज़ूर ﷺ ने इस शहर में सुकूनत फ़रमाई तो इस का नाम "मदीनतुन्नबी" (नबी का शहर) पड़ गया फिर ये नाम मुख्तसर हो कर "मदीना" मशहूर हो गया तारीखी हैषिय्यत से येह बहुत पुराना शहर है हुजुर ﷺ ने जब एलाने नुबुव्वत फ़रमाई तो इस शहर में अरब के दो क़बीले "औस" और "खज़रज" और कुछ “यहूदी" आबाद थे, औस व खज़रज कुफ्फ़ारे मक्का की तरह "बुत परस्त” और यहूदी “अहले किताब" थे। औस व खज़रज पहले तो बड़े इत्तिफ़ाको इत्तिहाद के साथ मिलजुल कर रहते मगर फिर अरबों की फ़ितरत के मुताबिक इन दोनों क़बीलों में लड़ाइयां शुरूअ हो गईं, यहां तक कि आखिरी लड़ाई जो तारीखे अरब में "जंगे बआष" के नाम से मशहूर है इस क़दर होलनाक और खूंरेज़ हुई कि इस लड़ाई में औस व ख़ज़रज के तकरीबन तमाम नामवर बहादुर लड़ भिड़ कर कट मर गए और येह दोनों क़बीले बेहद कमज़ोर हो गए यहूदी अगर्चे ता'दाद में बहुत कम थे मगर चूंकि वोह ता'लीम याफ्ता थे इस लिये औस व ख़ज़रज हमेशा यहूदियों की इल्मी बरतरी से मरऊब और उन के ज़ेरे अषर रहते थे।
࿐ इस्लाम क़बूल करने के बाद रसूले रहमत ﷺ की मुक़द्दस तालीम व तरबिय्यत की बदौलत औस व ख़ज़रज के तमाम पुराने इख़्तिलाफ़ात ख़त्म हो गए और येह दोनों क़बीले शीरो शकर की तरह मिलजुल कर रहने लगे, और चूंकि इन लोगों ने इस्लाम और मुसलमानों की अपने तन मन धन से बे पनाह इमदाद व नुसरत की इस लिये हुजूर ﷺ ने इन खुश बख़्तों को "अन्सार" के मुअज्ज़ज़ लक़ब से सरफ़राज़ फ़रमा दिया और कुरआने करीम ने भी इन जां निषाराने इस्लाम की नुस्रते रसूल व इमदादे मुस्लिमीन पर इन खुश नसीबों की मद्हो षना का जा बजा खुत्बा पढ़ा और अज़ रूए शरीअत अन्सार की महब्बत और इन की जनाब में हुस्ने अक़ीदत तमाम उम्मते मुस्लिमा के लिये लाज़िमुल ईमान और वाजिबुल अमल करार पाई।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 149 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 83╠✧◉*
*❝ मदीने में इस्लाम क्यूं कर फैला ❞*
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࿐ अन्सार गो बुत परस्त थे मगर यहूदियों के मेलजोल से इतना जानते थे कि नबिय्ये आखिरुज्ज़मान का जुहूर होने वाला है और मदीने के यहूदी अकषर अन्सार के दोनों क़बीलों औस व खज़रज को धम्कियां भी दिया करते थे कि नबिय्ये आख़िरुज़्ज़मान के जुहूर के वक़्त हम उन लश्कर में शामिल हो कर तुम बुत परस्तों को दुन्या से नेसतो नाबूद कर डालेंगे इस लिये नबिय्ये आखिरुज्ज़मान की तशरीफ़ आवरी का यहूद और अन्सार दोनों को इन्तिज़ार था।
࿐ सि. 11 नबवी में हुज़ूर ﷺ मा'मूल के मुताबिक हज में आने वाले क़बाइल को दा'वते इस्लाम देने के लिये मिना के मैदान में तशरीफ़ ले गए और कुरआने मजीद की आयतें सुना सुना कर लोगों के सामने इस्लाम पेश फ़रमाने लगे, हुज़ूर ﷺ मिना में अक़बा (घाटी) के पास जहां आज “मस्जिदुल अक़बा” है तशरीफ़ फ़रमा थे कि क़बीलए ख़ज़रज के छे आदमी आप ﷺ के पास आ गए, आपने उन लोगों से उन का नाम व नसब पूछा फिर कुरआन की चन्द आयतें सुना कर उन लोगों को इस्लाम की दावत दी जिस से येह लोग बेहद मुतअसीर हो गए और एक दूसरे का मुंह देख कर वापसी में येह कहने लगे कि यहूदी जिस नबिय्ये आखिरुज्जमान की खुश खबरी देते रहे हैं यकीनन वोह नबी येही हैं लिहाजा कहीं ऐसा न हो कि यहूदी हम से पहले इस्लाम की दा'वत क़बूल कर लें, येह कह कर सब एक साथ मुसलमान हो गए और मदीने जा कर अपने अहले खानदान और रिश्तेदारों को भी इस्लाम की दावत दी। उन छे खुश नसीबों के नाम येह हैं : (1) हज़रते उक्बा बिन आमिर बिन नाबी (2) हज़रते अबू उमामा अस्अद बिन ज़रारह (3) हज़रते औफ़ बिन हारिष (4) हज़रते राफेअ बिन मालिक (5) हज़रते कुत्बा बिन आमिर बिन हदीदा (6) हज़रते जाबिर बिन अब्दुल्लाह बिन रय्याब।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 150 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 84╠✧◉*
*❝ बैअते अकबा ऊला ❞*
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࿐ दूसरे साल सि. 12 नबवी में हज के मौक़अ पर मदीने के बारह अशखास मिना की उसी घाटी में छुप कर मुशर्रफ ब इस्लाम हुए और हुज़ूर ﷺ से बैअत हुए, तारीखे इस्लाम में इस बैअत का नाम "बैअते अक़बा ऊला" है। साथ ही इन लोगों ने हुजुर ﷺ से येह दरख्वास्त भी की, कि अहकामे इस्लाम की तालीम के लिये कोई मुअल्लिम भी इन लोगों के साथ कर दिया जाए। चुनान्चे हुजुर ﷺ ने हज़रते मुस्अब बिन उमैर رضي الله عنه को इन लोगों के साथ मदीन मुनव्वरह भेज दिया, वोह मदीने में हज़रते अस्अद बिन ज़रारह رضي الله عنه के मकान पर ठहरे और अन्सार के एक एक घर में जा जा कर इस्लाम की तब्लीग करने लगे और रोज़ाना एक दो नए आदमी आगोशे इस्लाम में आने लगे यहां तक कि रफ्ता रफ़्ता मदीने से कुबा तक घर घर इस्लाम फैल गया।
࿐ क़बीलए औस के सरदार हज़रते सा'द बिन मुआज رضي الله عنه बहुत ही बहादुर और बा अषर शख़्स थे, हज़रते मुस्अब बिन उमैर رضي الله عنه ने जब उन के सामने इस्लाम की दा'वत पेश की तो उन्हों ने पहले तो इस्लाम से नफ़रत व बेजारी जाहिर की मगर जब मुस्अब बिन उमैर رضي الله عنه ने उन को कुरआने मजीद पढ़कर सुनाया तो एक दम उन का दिल पसीज गया और इस क़दर मुतअशशिर हुए की सआदते ईमान से सरफ़राज़ हो गए, उन के मुसलमान होते ही इन का क़बीला "औस" भी दामने इस्लाम मे आ गया।
࿐ उसी साल बक़ौल मशहूर माहे रजब की सत्ताइसवीं रात को हुज़ूर ﷺ को ब हालते बेदारी *"मेराजे जिस्मानी"* हुई। और इसी सफरे मेराजे में पांच नमाज़ें फ़र्ज़ हुई जिस का तफसीली बयान मोजिज़ात के बाबा में आएगा।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 151 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 85╠✧◉*
*❝ बैअते अकबए सानिया #01 ❞*
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࿐ सि. 13 नबवी में हज के मौकअ पर मदीने के तक़रीबन बहत्तर अश्खास ने मिना की उसी घाटी में अपने बुत परस्त साथियों से छुप कर हुजुर ﷺ के दस्ते हक परस्त पर बैअत की और येह अह्द किया कि हम लोग आप ﷺ की और इस्लाम की हिफाज़त के लिये अपनी जान कुरबान कर देंगे इस मौकअ पर हुजूर ﷺ के चचा हज़रते अब्बास رضي الله عنه भी मौजूद थे जो अभी तक मुसलमान नहीं हुए थे। उन्हों ने मदीने वालों से कहा कि देखो ! मुहम्मद ﷺ अपने ख़ानदान बनी हाशिम में हर तरह मोहतरम और बा इज्जत हैं हम लोगों ने दुश्मनों के मुकाबले में सीना सिपर हो कर हमेशा इन की हिफाज़त की है अब तुम लोग इन को अपने वतन में ले जाने के ख़्वाहिश मन्द हो तो सुन लो ! अगर मरते दम तक तुम लोग इन का साथ दे सको तो बेहतर है वरना अभी से कनारा कश हो जाओ।
࿐ येह सुन कर हज़रते बराअ बिन आजिब رضي الله عنه तैश में आ कर कहने लगे कि “हम लोग तलवारों की गोद में पले हैं।" हज़रते बराअ बिन आजिब رضي الله عنه इतना ही कहने पाए थे कि हज़रते अबुल हैषम رضي الله عنه ने बात काटते हुए येह कहा कि या रसूलल्लाह ﷺ ! हम लोगों के यहूदियों से पुराने तअल्लुक़ात हैं अब ज़ाहिर है कि हमारे मुसलमान हो जाने के बा'द येह तअल्लुक़ात टूट जाएंगे कहीं ऐसा न हो कि जब अल्लाह तआला आपको गलबा अता फरमाए तो आप हम लोगों को छोड़ कर अपने वतन मक्का चले जाएं। येह सुन कर हुजूर ﷺ ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि तुम लोग इत्मीनान रखो कि "तुम्हारा खून मेरा ख़ून है" और यक़ीन करो "मेरा जीना मरना तुम्हारे साथ है। मैं तुम्हारा हूं और तुम मेरे हो। तुम्हारा दुश्मन मेरा दुश्मन तुम्हारा दोस्त मेरा दोस्त है।"
जब अन्सार ये बैअत कर रहे थे तो हज़रते साद बिन ज़रारह ने या हज़रते अब्बास ने कहा की...
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 153 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 86╠✧◉*
*❝ बैअते अकबए सानिया #02 ❞*
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࿐ जब अन्सार येह बैअत कर रहे थे तो हज़रते सा'द बिन ज़रारह رضي الله عنه ने या हज़रते अब्बास बिन नज़ला رضي الله عنه ने कहा कि "मेरे भाइयो ! तुम्हें येह भी ख़बर है ? कि तुम लोग किस चीज़ पर बैअत कर रहे हो ? ख़ूब समझ लो कि येह अरबो अजम के साथ एलाने जंग है। अन्सार ने तैश में आ कर निहायत ही पुरजोश लहजे में कहा कि हां ! हां ! हम लोग इसी पर बैअत कर रहे हैं।
࿐ बैअत हो जाने के बाद आप ﷺ ने इस जमाअत में से बारह आदमियों को नक़ीब (सरदार) मुक़र्रर फ़रमाया इन में नव आदमी क़बीलए खज़रज के और तीन अश्खास क़बीलए औस के थे जिन के मुबारक नाम येह हैं : (1) हज़रते अबू उमामा अस्अद बिन जरारह (2) हज़रते साद बिन रबीअ (3) हज़रते अब्दुल्लाह बिन रवाहा (4) हज़रते राफेअ बिन मालिक (5) हज़रते बराअ बिन मारूर (6) हज़रते अब्दुल्लाह बिन अम्र (7) हज़रते सा'द बिन उबादा (8) हज़रते मुन्जिर बिन उमर (9) हज़रते उबादा बिन षाबित। येह नव आदमी क़बीलए खज़रज के हैं। (10) हज़रते उसैद बिन हुजैर (11) हज़रते साद बिन खैषमा (12) हज़रते अबुल हैषम बिन तैहान। येह तीन शख़्स क़बीलए औस के हैं।
࿐ इस के बाद येह तमाम हज़रात अपने अपने डेरों पर चले गए सुबह के वक़्त जब कुरैश को इस की इत्तिलाअ पहुंची तो वोह आग बगूला हो गए और उन लोगों ने डांट कर मदीने वालों से पूछा कि क्या तुम लोगों ने हमारे साथ जंग करने पर मुहम्मद (ﷺ) से बैअत की है ? अन्सार के कुछ साथियों ने जो मुसलमान नहीं हुए थे अपनी ला इल्मी जाहिर की। येह सुन कर कुरैश वापस चले गए मगर जब तफ्तीश व तहकीकात के बाद कुछ अन्सार की बैअत का हाल मालूम हुवा तो कुरैश गैजो गज़ब में आपे से बाहर हो गए और बैअत करने वालों की गरिफ्तारी के लिये तआकुब किया मगर कुरैश हज़रते सा'द बिन उबादा رضي الله عنه के सिवा किसी और को नहीं पकड़ सके। कुरैश हज़रते सा'द बिन उबादा رضي الله عنه को अपने साथ मक्का लाए और उन को क़ैद कर दिया मगर जब जबीर बिन मुतइम और हारिष बिन हर्ब बिन उमय्या को पता चला तो इन दोनों ने कुरैश को समझाया कि खुदा के लिये सा'द बिन उबादा को फ़ौरन छोड़ दो वरना तुम्हारी मुल्के शाम की तिजारत ख़तरे में पड़ जाएगी। येह सुन कर कुरैश ने हज़रते सा'द बिन उबादा رضي الله عنه को क़ैद से रिहा कर दिया और वोह ब खैरियत मदीना पहुंच गए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 155 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 87╠✧◉*
*❝ हिजरते मदीना ❞*
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࿐ मदीनए मुनव्वरह में जब इस्लाम और मुसलमानों को एक पनाह गाह मिल गई तो हुज़ूर ﷺ ने सहाबए किराम को आम इजाज़त दे दी कि वोह मक्का से हिजरत कर के मदीना चले जाएं, चुनान्चे सब से पहले हज़रते अबू सलमा رضي الله عنه ने हिजरत की इस के बा'द यके बा'द दीगरे दूसरे लोग भी मदीना रवाना होने लगे, जब कुफ्फ़ारे कुरैश को पता चला तो उन्हों ने रोक टोक शुरू कर दी मगर छुप छुप कर लोगों ने हिजरत का सिल्सिला जारी रखा यहां तक कि रफ्ता रफ्ता बहुत से सहाबए किराम मदीनए मुनव्वरह चले गए, सिर्फ वोही हज़रात मक्का में रह गए जो या तो काफ़िरों की क़ैद में थे या अपनी मुफ्लिसी की वजह से मजबूर थे।
࿐ हुजूर ﷺ को चुकी अभी तक खुदा की तरफ़ से हिजरत का हुक्म नहीं मिला था इस लिये आप मक्का ही में मुक़ीम रहे और हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ और हज़रते अली मर्तजा رضي الله عنه को भी आप ﷺ ने रोक लिया था लिहाजा यह दोनों शमए नुबुव्वत के परवाने भी आप ही के साथ मक्का में ठहरे हुए थे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 155 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 88╠✧◉*
*❝ कुफ्फार कॉन्फ्रेन्स #01 ❞*
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࿐ जब मक्का के काफ़िरों ने येह देख लिया कि हुज़ूर ﷺ और मुसलमानों के मददगार मक्का से बाहर मदीना में भी हो गए और मदीना जाने वाले मुसलमानों को अन्सार ने अपनी पनाह में ले लिया है तो कुफ्फ़ारे मक्का को येह ख़तरा महसूस होने लगा कि कहीं ऐसा न हो कि मुहम्मद (ﷺ) भी मदीना चले जाएं और वहां से अपने हामियों की फ़ौज ले कर मक्का पर चढ़ाई न कर दें चुनान्चे इस ख़तरे का दरवाज़ा बन्द करने के लिये कुफ्फ़ारे मक्का ने अपने दारुन्नदवा (पन्चायत घर) में एक बहुत बड़ी कॉन्फ़न्स मुन्अकिद की। और ये कुफ्फ़ारे मक्का का ऐसा जबर दस्त नुमाइन्दा इजतिमाअ था कि मक्का का कोई भी ऐसा दानिश्वर और बा अषर शख़्स न था जो इस कॉन्फ्रेन्स में शरीक न हुवा हो। खुसूसिय्यत के साथ अबू सुफ्यान, अबू जहल, उत्बा, जबीर बिन मुइम, नज़र बिन हारिष, अबुल बख़्तरी, जमआ बिन अस्वद, हकीम बिन हिजाम, उमय्या बिन ख़लफ़ वगैरा वगैरा तमाम सरदाराने कुरैश इस मजलिस में मौजूद थे। शैताने लईन भी कम्बल ओढ़े एक बुजुर्ग शैख की सूरत में आ गया। कुरैश के सरदारों ने नाम व नसब पूछा तो बोला कि मैं "शैख़े नज्द" हूं इस लिये इस कॉन्फ्रेन्स में आ गया हूं कि मैं तुम्हारे मुआमले में अपनी राय भी पेश कर दूं, येह सुन कर कुरैश के सरदारों ने इब्लीस को भी अपनी कॉन्फ़न्स में शरीक कर लिया, और कॉन्फ्रेन्स की कारवाई शुरू हो गई।
࿐ जब हुजूर ﷺ का मुआमला पेश हुवा तो अबुल बख़्तरी ने येह राय दी कि इन को किसी कोठरी में बन्द कर के इन के हाथ पाउं बांध दो और एक सूराख से खाना पानी इन को दे दिया करो शैखे नज्दी (शैतान) ने कहा कि येह राय अच्छी नहीं है। खुदा की क़सम ! अगर तुम लोगों ने उन को किसी मकान में कैद कर दिया तो यक़ीनन उन के जां निषार असहाब को इस की ख़बर लग जाएगी और वोह अपनी जान पर खेल कर उन को कैद से छुड़ा लेंगे।
इसके बाद अबुल अस्वद रबीआ बिन अम्र आमिरी ने क्या मश्वरा दिया ये अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 156 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 89╠✧◉*
*❝ कुफ्फार कॉन्फ्रेन्स #02 ❞*
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࿐ अबुल अस्वद रबीआ बिन अम्र आमिरी ने येह मश्वरा दिया कि इन को मक्का से निकाल दो ताकि येह किसी दूसरे शहर में जा कर रहें इस तरह हम को इन के कुरआन पढ़ने और इन की तब्लीगे इस्लाम से नजात मिल जाएगी येह सुन कर शैखे नज्दी ने बिगड़ कर कहा कि तुम्हारी इस राय पर लानत, क्या तुम लोगों को मालूम नहीं कि मुहम्मद (ﷺ) के कलाम में कितनी मिठास और ताषीर व दिलकशी है ? खुदा की क़सम ! अगर तुम लोग इन को शहर बदर कर के छोड़ दोगे तो येह पूरे मुल्के अरब में लोगों को कुरआन सुना सुना कर तमाम क़बाइले अरब को अपना ताबेए फ़रमान बना लेंगे और फिर अपने साथ एक अज़ीम लश्कर को ले कर तुम पर ऐसी यलगार कर देंगे कि तुम इन के मुक़ाबले से आजिज़ व लाचार हो जाओगे और फिर बजुज़ इस के कि तुम इन के गुलाम बन कर रहो कुछ बनाए न बनेगी इस लिये इन को जिला वतन करने की तो बात ही मत करो।
࿐ अबू जहल बोला कि साहिबो ! मेरे ज़ेहन में एक राय है जो अब तक किसी को नहीं सूझी येह सुन कर सब के कान खड़े हो गए और सब ने बड़े इश्तियाक़ के साथ पूछा कि कहिये वोह क्या है ? तो अबू जहल ने कहा कि मेरी राय येह है कि हर क़बीले का एक एक मशहूर बहादुर तलवार ले कर उठ खड़ा हो और सब यक्बारगी हम्ला कर के मुहम्मद (ﷺ) को क़त्ल कर डालें इस तदबीर से खून करने का जुर्म तमाम क़बीलों के सर पर रहेगा, जाहिर है कि खानदाने बनू हाशिम इस खून का बदला लेने के लिये तमाम क़बीलों से लड़ने की ताकत नहीं रख सकते लिहाजा यकीनन वोह खून बहा लेने पर राज़ी हो जाएंगे और हम लोग मिलजुल कर आसानी के साथ खून बहा की रकम अदा कर देंगे अबू जहल की येह ख़ूनी तज्वीज़ सुन कर शैखे नज्दी मारे खुशी के उछल पड़ा और कहा कि बेशक येह तदबीर बिल्कुल दुरुस्त है इस के सिवा और कोई तज्वीज़ क़ाबिले क़बूल नहीं हो सकती चुनान्चे तमाम शुरकाए कॉन्फ्रन्स ने इत्तिफ़ाके राय से इस तज्वीज़ को पास कर दिया और मजलिसे शूरा बरखास्त हो गई और हर शख़्स येह ख़ौफ़नाक अज़्म ले कर अपने अपने घर चला गया।
࿐ खुदा वन्दे कुद्दूस ने कुरआने मजीद की आयत में इस वाकिएका जिक्र इर्शाद फ़रमाया कि :
(ऐ महबूब याद कीजिये) जिस वक्त कुफ़्फ़ार आप के बारे में खुफ़या तदबीर कर रहे थे कि आप को कैद कर दें या कत्ल कर दें या शहर बदर कर दें येह लोग खुफ़या तदबीर कर रहे थे और अल्लाह खुफ़या तदबीर कर रहा था और अल्लाह की पोशीदा तदबीर सब से बेहतर है।
अल्लाह तआला की खुफ़या तदबीर क्या थी ? अगली पोस्ट में इस का जल्वा देखिये कि किस तरह उस ने अपने हबीब ﷺ की हिफाजत फ़रमाई और कुफ्फ़ार की सारी स्कीम को किस तरह उस कादिरे कय्यूम ने तहस नहस फ़रमा दिया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 157 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 90╠✧◉*
*❝ हिजरते रसूल का वाकिआ ❞*
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࿐ जब कुफ्फार हुजुर ﷺ के क़त्ल पर इत्तिफ़ाक कर के कॉन्फ्रेन्स ख़त्म कर चुके और अपने अपने घरों को रवाना हो गए तो हज़रते जिब्रीले अमीन रब्बुल आलमीन का हुक्म ले कर नाज़िल हो गए कि ऐ महबूब (ﷺ)! आज रात को आप अपने बिस्तर पर न सोएं और हिजरत कर के मदीना तशरीफ़ ले जाएं, चुनान्चे ऐन दो पहर के वक़्त हुज़ूर ﷺ हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه के घर तशरीफ़ ले गए और हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه से फ़रमाया कि सब घर वालों को हटा दो कुछ मश्वरा करना है हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه ने अर्ज किया कि या रसूलल्लाह ﷺ ! आप पर मेरे मां बाप कुरबान यहां आप की अहलिया (हज़रते आइशा) के सिवा और कोई नहीं है (उस वक्त हज़रते आइशा से हुज़ूर की शादी हो चुकी थी) हुजूर ﷺ ने फरमाया कि ऐ अबू बक्र ! अल्लाह तआला ने मुझे हिजरत की इजाजत फ़रमा दी है हज़रते अबू बक्र सिद्दीक ने अर्ज किया कि मेरे मां बाप आप पर कुरबान ! मुझे भी हमराही का शरफ अता फरमाइये आप ﷺ ने उन की दर ख्वास्त मन्जूर फ़रमा ली, हज़रते अबू बक्र सिद्दीक ने चार महीने से दो ऊंटनियां बबूल की पत्ती खिला खिला कर तय्यार की थीं कि हिजरत के वक़्त येह सुवारी के काम आएंगी अर्ज किया कि या रसूलल्लाह ﷺ! इन में से एक ऊंटनी आप क़बूल फ़रमा लें। आपने इर्शाद फ़रमाया कि क़बूल है मगर मैं इस की कीमत दूंगा। हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ ने बा दिले ना ख़्वास्ता फ़रमाने रिसालत से मजबूर हो कर इस को क़बूल किया।
࿐ हज़रते आइशा सिद्दीका رضي الله عنها तो उस वक़्त बहुत कम उम्र थीं लेकिन उन की बड़ी बहन हज़रते बीबी अस्मा رضي الله عنها ने सामाने सफ़र दुरुस्त किया और तोशादान में खाना रख कर अपनी कमर के पटके को फाड़ कर दो टुकड़े किये एक से तोशादान को बांधा और दूसरे से मशक का मुंह बांधा येह वोह काबिले फख्र शरफ़ है जिस की बिना पर इन को "जातुन्नताकैन” (दो पटके वाली) के मुअज्ज़ज़ लकब से याद किया जाता है।
࿐ इस के बाद हुज़ूर ﷺ ने एक काफ़िर को जिस का नाम "अब्दुल्लाह बिन उरैकत" था जो रास्तों का माहिर था राहनुमाई के लिये उजरत पर नोकर रखा और इन दोनों ऊंटनियों को उस के सिपुर्द कर के फ़रमाया कि तीन रातों के बाद वोह इन दोनों ऊंटनियों को ले कर “गारे षौर” के पास आ जाए। येह सारा निज़ाम कर लेने के बाद हुज़ूर ﷺ अपने मकान पर तशरीफ़ लाए।
*काशानए नुबुव्वत का मुहासरा* की तफ्सील अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 159 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 91╠✧◉*
*❝ काशानए नुबुव्वत का मुहासरा #01 ❞*
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࿐ कुफ़्फ़ारे मक्का ने अपने प्रोग्राम के मुताबिक काशानए नुबुव्वत को घेर लिया और इन्तिज़ार करने लगे कि हुज़ूर ﷺ सो जाएं तो इन पर कातिलाना हम्ला किया जाए, उस वक़्त घर में हुज़ूर ﷺ के पास सिर्फ अली मुर्तजा كَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم थे। कुफ्फारे मक्का अगर्चे रहमते आलम ﷺ के बदतरीन दुश्मन थे मगर इस के बा वुजूद हुज़ूर ﷺ की अमानत व दियानत पर कुफ्फ़ार को इस क़दर ए'तिमाद था कि वोह अपने क़ीमती माल व सामान को हुज़ूर ﷺ के पास अमानत रखते थे, चुनांचे उस वक़्त भी बहुत सी अमानते काशानए नुबुव्वत में थी, हुज़ूर ﷺ ने हज़रते अली كَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم से फ़रमाया की तुम मेरी सब्ज़ रंग की चादर ओढ़ कर मेरे बिस्तर पर सो रहो और मेरे चले जाने के बाद तुम कुरैश की तमाम अमानतें इन के मालिकों को सौंप कर मदीना चले आना।
࿐ येह बड़ा ही ख़ौफ़नाक और बड़े सख्त खतरे का मौकअ॒ था, हज़रते अली كَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم को मालूम था कि कुफ्फ़ारे मक्का हुज़ूर ﷺ को क़त्ल का इरादा कर चुके हैं मगर हुजुरे अक्दस ﷺ के इस फ़रमान से कि "तुम कुरैश की सारी अमानतें लौटा कर मदीना चले आना" हज़रते अली كَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم को यक़ीने कामिला था कि मैं ज़िन्दा रहूंगा और मदीने पहुंचूंगा इस लिये रसूलुल्लाह ﷺ का बिस्तर जो आज कांटों का बिछोना था, हजरते अली كَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم के लिये फूलों की सेज बन गया और आप सुबह तक आराम के साथ मीठी मीठी नींद सोते रहे, अपने इसी कारनामे पर फख्र करते हुए शेरे खुदा رضي الله عنه ने अपने अश्आर में फ़रमाया कि
मैं ने अपनी जान को ख़तरे में डाल कर उस जाते गिरामी की हिफ़ाज़त की जो ज़मीन पर चलने वालों और ख़ानए का'बा व हतीम का तवाफ़ करने वालों में सब से जियादा बेहतर और बुलन्द मर्तबा हैं।
࿐ रसूले खुदा ﷺ को येह अन्देशा था कि कुफ्फ़ारे मक्का इन के साथ खुफ़या चाल चल जाएंगे मगर खुदा वन्दे मेहरबान ने इन को काफ़िरों की खुफ़या तदबीर से बचा लिया।
हुज़ूरे अक्दस ﷺ ने बिस्तरे नुबुव्वत पर जाने विलायत को सुला कर एक मुठ्ठी खाक हाथ में ली और सूरए यासीन की इब्तिदाई आयतों को तिलावत फ़रमाते हुए नुबुव्वत खाने से बाहर तशरीफ लाए...
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 160 📚*
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*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 92╠✧◉*
*❝ काशानए नुबुव्वत का मुहासरा #02 ❞*
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࿐ हुज़ूरे अक्दस ﷺ ने बिस्तरे नुबुव्वत पर जाने विलायत को सुला कर एक मुठ्ठी खाक हाथ में ली और सूरए यासीन की इब्तिदाई आयतों को तिलावत फ़रमाते हुए नुबुव्वत खाने से बाहर तशरीफ़ लाए और मुहासरा करने वाले काफिरों के सरों पर डालते हुए उन मज्मअ से साफ़ निकल गए, न किसी को नज़र आए न किसी को कुछ ख़बर हुई, एक दूसरा शख़्स जो इस मज्मअ में मौजूद न था उस ने इन लोगों को ख़बर दी कि मुहम्मद (ﷺ) तो यहां से निकल गए और चलते वक्त तुम्हारे सरों पर ख़ाक डाल गए हैं चुनान्चे इन कोर बख़्तों ने अपने सरों पर हाथ फैरा तो वाकेई उन के सरों पर खाक और धूल पड़ी हुई थी।
࿐ रहमते आलम ﷺ अपने दौलत खाने से निकल कर मक़ाम "हज़ूरा" के पास खड़े हो गए और बड़ी हसरत के साथ "का'बा" को देखा और फ़रमाया कि ऐ शहरे मक्का ! तू मुझ को तमाम दुन्या से जियादा प्यारा है, अगर मेरी क़ौम मुझ को तुझ से न निकालती तो मैं तेरे सिवा किसी और जगह सुकूनत पज़ीर न होता।
࿐ हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه से पहले ही क़रार दाद हो चुकी थी, वोह भी उसी जगह आ गए और इस ख़याल से कि कुफ़्फ़ारे मक्का हमारे क़दमों के निशान से हमारा रास्ता पहचान कर हमारा पीछा न करें फिर येह भी देखा कि हुज़ूर ﷺ के पाए नाजुक जख्मी हो गए हैं हज़रते अबू बक्र सिद्दीक ने आप ﷺ को अपने कन्धों पर सुवार कर लिया और इस तरह ख़ारदार झाड़ियों और नोकदार पथ्थरों वाली पहाड़ियों को रौंदते हुए उसी रात “गारे षौर" पहुंचे।
हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه पहले खुद गार में दाखिल हुए और अच्छी तरह गार की सफाई की और अपने बदन के कपड़े फाड़ फाड़ कर गार के तमाम सूराखों को बन्द किया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 162 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 93╠✧◉*
*❝ काशानए नुबुव्वत का मुहासरा #03 ❞*
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࿐ हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه पहले खुद गार में दाखिल हुए और अच्छी तरह गार की सफाई की और अपने बदन के कपड़े फाड़ फाड़ कर गार के तमाम सूराखों को बन्द किया, फिर हुजूरे अकरम ﷺ गार के अन्दर तशरीफ और हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه की गोद में अपना सर मुबारक रख कर सो गए, हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه ने एक सूराख को अपनी एड़ी से बन्द कर रखा था, सूराख के अन्दर से एक सांप ने बार बार यारे गार के पाउं में काटा मगर हज़रते सिद्दीक़े जां निषार رضي الله عنه ने इस ख़याल से पाउं नहीं हटाया कि रहमते आलम ﷺ के ख़्वाबे राहत में खलल न पड़ जाए मगर दर्द की शिद्दत से यारे गार के आंसूओं की धार के चन्द क़तरात सरवरे काएनात ﷺ के रुख़सार पर निषार हो गए।
࿐ जिस से रहमते आलम ﷺ बेदार हो गए और अपने यारे गार को रोता देख कर बे क़रार हो गए पूछा : अबू बक्र ! क्या हुवा ? अर्ज किया कि या रसूलल्लाह ﷺ ! मुझे सांप ने काट लिया है। येह सुन कर हुज़ूर ﷺ ने जख्म पर अपना लुआबे दहन लगा दिया जिस से फ़ौरन सारा दर्द जाता रहा, हुज़ूरे अक्दस ﷺ तीन रात उस ग़ार में रौनक अफरोज़ रहे।
࿐ हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه के जवान फ़रज़न्द हज़रते अब्दुल्लाह رضي الله عنه रोजाना रात को गार के मुंह पर सोते और सुबह सवेरे ही मक्का चले जाते और पता लगाते कि कुरैश क्या तदबीरें कर रहे हैं ? जो कुछ खबर मिलती शाम को आ कर हुज़ूर ﷺ से अर्ज कर देते। हज़रते अबू बक्र के गुलाम हज़रते आमिर बिन फुहैरा رضي الله عنه कुछ रात गए चरागाह से बकरियां ले कर ग़ार के पास आ जाते और उन बकरियों का दूध दोनों आलम के ताजदार ﷺ और उन के यारे गार पी लेते थे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 163 📚*
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*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 94╠✧◉*
*❝ काशानए नुबुव्वत का मुहासरा #04 ❞*
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࿐ हुज़ूर ﷺ तो गारे षौर में तशरीफ़ फ़रमा हो गए, उधर काशानए नुबुव्वत का मुहासरा करने वाले कुफ्फार जब सुब्ह को मकान में दाखिल हुए तो बिस्तरे नुबुव्वत पर हज़रते अली رضي الله عنه थे, ज़ालिमों ने थोड़ी देर आप से पूछगछ कर के आप को छोड़ दिया फिर हुज़ूर ﷺ की तलाश व जुस्तजू में मक्का और अताफ़ व जवानिब का चप्पा चप्पा छान मारा यहां तक कि ढूंडते ढूंडते गारे षौर तक पहुंच गए मगर गार के मुंह पर उस वक्त खुदा वन्दी हिफ़ाज़त का पहरा लगा हुवा था, या'नी गार के मुंह पर मकड़ी ने जाला तन दिया था और कनारे पर कबूतरी ने अन्डे दे रखे थे। येह मन्ज़र देख कर कुफ्फ़ारे कुरैश आपस में कहने लगे कि इस गार में कोई इन्सान मौजूद होता तो न मकड़ी जाला तनती न कबूतरी यहां अन्डे देती, कुफ़्फ़ार की आहट पा कर हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه कुछ घबराए और अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ! अब हमारे दुश्मन इस क़दर क़रीब आ गए हैं कि अगर वोह अपने क़दमों पर नज़र डालेंगे तो हम को देख लेंगे। हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि : मत घबराओ ! खुदा हमारे साथ है।
࿐ इस के बाद अल्लाह तआला ने हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ رضي الله عنه के कल्ब पर सुकून व इत्मीनान का ऐसा सकीना उतार दिया कि वोह बिल्कुल ही बे ख़ौफ़ हो गए, हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه की येही वोह जां निषारियां हैं जिन को दरबारे नुबुव्वत के मशहूर शाइर हस्सान बिन षाबित अन्सारी खूब कहा है कि
और दो में के दूसरे (अबू बक्र) जब कि पहाड़ पर चढ़ कर बुलन्द मर्तबा गार में इस हाल में थे कि दुश्मन उन के इर्द गिर्द चक्कर लगा रहा था।
और वोह (अबू बक्र) रसूलुल्लाह ﷺ के महबूब थे। तमाम मख्लूक इस बात को जानती है कि हुजूर ﷺ ने किसी को भी इन के बराबर नहीं ठहराया।
࿐ बहर हाल चौथे दिन हुज़ूर ﷺ यकुम रबील अव्वल शम्बा के दिन गारे षौर से बाहर तशरीफ़ लाए अब्दुल्लाह बिन उरैकत जिस को रहनुमाई के लिये किराए पर हुज़ूर ﷺ ने नोकर रख लिया था वोह क़रार दाद के मुताबिक दो ऊंटनियां ले कर ग़ारे षौर पर हाज़िर था हुज़ूर ﷺ अपनी ऊंटनी पर सुवार हुए और एक ऊंटनी पर हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ رضي الله عنه और हज़रते आमिर बिन फुहैरा رضي الله عنه बैठे और अब्दुल्लाह बिन उरैकत आगे आगे पैदल चलने लगा और आम रास्ते से हट कर साहिले समुन्दर के गैर मा'रूफ़ रास्तों से सफर शुरूअ कर दिया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 165 📚*
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*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 95╠✧◉*
*❝ सो ऊंट का इन्आम ❞*
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࿐ उधर अहले मक्का ने इश्तिहार दे दिया था कि जो शख़्स मुहम्मद (ﷺ) को गरिफ्तार कर के लाएगा उस को एक सो ऊंट इन्आम मिलेगा। इस गिरां क़द्र इन्आम के लालच में बहुत से लालची लोगों ने हुजूर ﷺ की तलाश शुरू कर दी और कुछ लोग तो मन्ज़िलों दूर तक तआकुब में गए।
*❝ उम्मे माबद की बकरी ❞*
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࿐ दूसरे रोज़ मक़ामे क़दीद में उम्मे माबद आतिका बिन्ते खालिद खज़ाइया के मकान पर आप ﷺ का गुज़र हुवा, उम्मे माबद एक जईफ़ा औरत थी जो अपने खैमे के सहन में बैठी रहा करती थी और मुसाफिरों को खाना पानी दिया करती थी, हुजूर ﷺ ने उस से कुछ खाना खरीदने का कस्द किया मगर उस के पास कोई चीज़ मौजूद न थी, हुज़ूर ﷺ ने देखा कि उस के खैमे के एक जानिब एक बहुत ही लागर बकरी है दरयाफ्त फ़रमाया : क्या येह दूध देती है ? उम्मे माबद ने कहा नहीं। आप ﷺ ने फ़रमाया कि अगर तुम इजाजत दो तो मैं इस का दूध दोह लूं, उम्मे माबद ने इजाजत दे दी और आप ﷺ ने "बिस्मिल्लाह" पढ़ कर जो उस के थन को हाथ लगाया तो उस का थन दूध से भर गया और इतना दूध निकला कि सब लोग सैराब हो गए और उम्मे माबद के तमाम बरतन दूध से भर गए, येह मोजिज़ा देख कर उम्मे माबद और उन के खावन्द दोनों मुशर्रफ ब इस्लाम हो गए। रिवायत है कि उम्मे माबद की येह बकरी सि. 18 हि. तक ज़िन्दा रही और बराबर दूध देती रही और हज़रते उमर رضي الله عنه के दौरे ख़िलाफ़त में जब "आमुर्रमाद" का सख़्त कहत पड़ा कि तमाम जानवरों के थनों का दूध खुश्क हो गया उस वक्त भी येह बकरी सुबह व शाम बराबर दूध देती रही।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 167 📚*
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*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 96╠✧◉*
*❝ सुराका का घोड़ा ❞*
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࿐ जब उम्मे मा'बद के घर से हुजूर ﷺ रवाना हुए तो मक्का का एक मशहूर शह सुवार सुराका बिन मालिक बिन जा'शम तेज़ रफ्तार घोड़े पर सवार हो कर तआकुब करता नज़र आया, क़रीब पहुंच कर हम्ला करने का इरादा किया मगर उस के घोड़े ने ठोकर खाई और वोह घोड़े से गिर पड़ा मगर सो ऊंटों का इन्आम कोई मामूली चीज़ न थी, इन्आम के लालच ने उसे दोबारा उभारा और वोह हम्ले की निय्यत से आगे बढ़ा तो हुजुर ﷺ की दुआ से पथरीली ज़मीन में उस के घोड़े का पाउं घुटनों तक ज़मीन में धंस गया। सुराका येह मोजिज़ा देख कर ख़ौफ़ व दहशत से कांपने लगा और अमान ! अमान ! पुकारने लगा । रसूले अकरम ﷺ का दिल रहमो करम का समुन्दर था। सुराका की लाचारी और गिर्या जारी पर आप ﷺ का दरियाए रहमत जोश में आ गया। दुआ फरमा दी तो जमीन ने उस के घोड़े को छोड़ दिया। इस के बाद सुरका ने अर्ज किया कि मुझ को अम्न का परवाना लिख दीजिये। हुज़ूर ﷺ के हुक्म से हज़रते आमिर बिन फुहैराने सुराक़ा के लिये अम्न की तहरीर लिख दी सुराक़ा ने उस तहरीर को अपने तरकश में रख लिया और वापस लौट गया। रास्ते में जो शख़्स भी हुजूर ﷺ के बारे में दरयाफ्त करता तो सुराका उस को यह कह कर लौटा देते कि मैं ने बड़ी दूर तक बहुत ज़ियादा तलाश किया मगर आं हज़रत ﷺ उस तरफ़ नहीं हैं। वापस लौटते हुए सुराक़ा ने कुछ सामाने सफ़र भी हुजुर ﷺ की ख़िदमत में बतौरे नज़राना के पेश किया मगर आं हज़रत ﷺ ने क़बूल नहीं फ़रमाया।
࿐ सुराका उस वक्त तो मुसलमान नहीं हुए मगर हुज़ूर ﷺ की अजमते नुबुव्वत और इस्लाम की सदाकत का सिक्का उन के दिल पर बैठ गया, जब हुज़ूर ﷺ ने फ़तेह मक्का और जंगे ताइफ़ व हुनैन से फ़ारिग हो कर "जिइराना" में पड़ाव किया तो सुराका उसी परवानए अम्न को ले कर बारगाहे नुबुव्वत में हाज़िर हो गए और अपने क़बीले की बहुत बड़ी जमाअत के साथ इस्लाम क़बूल कर लिया।
࿐ वाज़ेह रहे कि येह वोही सुराका बिन मालिक हैं जिन के बारे में हुजूर ﷺ ने अपने इल्मे गैब से गैब की ख़बर देते हुए येह इर्शाद फ़रमाया था कि ऐ सुराका ! तेरा क्या हाल होगा जब तुझ को मुल्के फ़ारस के बादशाह किस्रा के दोनों कंगन पहनाए जाएंगे ? इस इर्शाद के बरसों बाद जब हज़रते उमर फ़ारूक رضي الله عنه के दौरे ख़िलाफ़त में ईरान फतह हुवा और किस्रा के कंगन दरबारे ख़िलाफ़त में लाए गए तो अमीरुल मुअमिनीन हज़रते उमर رضي الله عنه ने ताजदारे दो आलम ﷺ के फ़रमान की तस्दीक व तहक़ीक़ के लिये वोह कंगन हज़रते सुराका बिन मालिक رضي الله عنه को पहना दिये और फ़रमाया कि ऐ सुराका ! येह कहो कि अल्लाह तआला ही के लिये हम्द है जिस ने इन कंगनों को बादशाहे फ़ारस किसरा से छीन कर सुराका बदवी को पहना दिया। हज़रते सुराका رضي الله عنه ने सि. 24 हि. में वफ़ात पाई। जब कि हज़रते उषमाने गनी رضي الله عنه तख्ते खिलाफ़त पर रौनक अफरोज़ थे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 168 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 97╠✧◉*
*❝ बरीदा अस्लमी का झन्डा ❞*
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࿐ जब हुजूर ﷺ मदीना के करीब पहुंच गए तो "बरीदा अस्लमी" क़बीलए बनी सहम के सत्तर सुवारों को साथ ले कर इस लालच में आपकी गरिफ्तारी के लिये आए कि कुरैश से एक सो ऊंट इन्आम मिल जाएगा। मगर जब हुजूर ﷺ के सामने आए और पूछा कि आप कौन हैं ? तो आप ﷺ ने फ़रमाया कि मैं मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह हूं और खुदा का रसूल हूं। जमाल व जलाले नुबुव्वत का उन के कल्ब पर ऐसा अषर हुवा कि फ़ौरन ही कलिमए शहादत पढ़ कर दामने इस्लाम में आ गए और कमाले अक़ीदत से येह दर ख़्वास्त पेश की, कि या रसूलल्लाह ﷺ ! मेरी तमन्ना है कि मदीने में हुजूर ﷺ का दाखिला एक झन्डे के साथ होना चाहिये, येह कहा और अपना इमामा सर से उतार कर अपने नेज़े पर बांध लिया और हुजूरे अक्दस ﷺ के अलम बरदार बन कर मदीना तक आगे आगे चलते रहे। फिर दरयाफ्त किया कि या रसूलल्लाह ﷺ ! आप मदीने में कहां उतरेंगे ? ताजदारे दो आलम ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया कि मेरी ऊंटनी खुदा की तरफ़ से मामूर है येह जहां बैठ जाएगी वोही मेरी क़ियाम गाह है।
*❝ हज़रते जुबैर के बेश कीमत कपड़े ❞*
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࿐ इस सफ़र में हुस्ने इत्तिफ़ाक़ से हज़रते जुबैर बिन अल अव्वाम رضي الله عنه से मुलाकात हो गई जो हुजुरे अकरम ﷺ की फूफी हज़रते स्फीय्या رضي الله عنها के बेटे है। ये मुल्के शाम से तिजारत का सामान ले कर आ रहे थे, इन्हों ने हुज़ूर ﷺ और हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ رضي الله عنه की खिदमत में चंद नफीस कपड़े बतौरे नज़राना पेश किये जिनको हुज़ूर ﷺ और हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ رضي الله عنه ने कबूल फरमा लिया।
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 98╠✧◉*
*❝ शहनशाहे रिसालत मदीने में ❞*
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࿐ हुज़ूरे अकरम ﷺ की आमद आमद की ख़बर चूंकि मदीने में पहले से पहुंच चुकी थी और औरतों बच्चों तक की जबानों पर आप ﷺ की तशरीफ़ आवरी का चरचा था, इस लिये अहले मदीना आप ﷺ के दीदार के लिये इन्तिहाई मुश्ताक व बेकरार थे रोजाना सुबह से निकल निकल कर शहर के बाहर सरापा इन्तिज़ार बन कर इस्तिक्बाल के लिये तय्यार रहते थे और जब धूप तेज़ हो जाती तो हसरत व अफ्सोस के साथ अपने घरों को वापस लौट जाते।
࿐ एक दिन अपने मा'मूल के मुताबिक अहले मदीना आप ﷺ की राह देख कर वापस जा चुके थे कि ना गहां एक यहूदी ने अपने कल्ए से देखा कि ताजदारे दो आलम ﷺ की सुवारी मदीने के करीब आन पहुंची है उसने ब आवाज़े बुलन्द पुकारा कि ऐ मदीने वालो ! लो तुम जिस का रोज़ाना इन्तिज़ार करते थे वोह कारवाने रहमत आ गया येह सुन कर तमाम अन्सार बदन पर हथियार सजा कर और वज्द व शादमानी से बे करार हो कर दोनों आलम के ताजदार ﷺ का इस्तिकबाल करने के लिये अपने घरों से निकल पड़े और नारए तक्बीर की आवाज़ों से तमाम शहर गूंज उठा।
࿐ मदीनए मुनव्वरह से तीन मील के फ़ासिले पर जहां आज “मस्जिदे कुबा" बनी हुई है, 12 रबीउल अव्वल को हुज़ूर ﷺ रौनक अफरोज हुए और क़बीलए अम्र बिन औफ़ के खानदान में हज़रते कुलषूम बिन हदम رضی الله تعالی عنه के मकान में तशरीफ़ फ़रमा हुए, अहले ख़ानदान ने इस फख्रो शरफ़ पर कि दोनों आलम के मेज़बान इन के मेहमान बने الله اکبر का पुरजोश ना'रा मारा, चारों तरफ़ से अन्सार जोशे मुसर्रत में आते और बारगाहे रिसालत में सलातो सलाम का नज़रानए अकीदत पेश करते, अकषर सहाबए किराम जो हुज़ूर ﷺ से पहले हिजरत कर के मदीनए मुनव्वरह आए थे वोह लोग भी उस मकान में ठहरे थे!
࿐ हज़रते अली رضي الله عنه भी हुक्मे नबवी के मुताबिक कुरैश की अमानतें वापस लौटा कर तीसरे दिन मक्का से चल पड़े थे वोह भी मदीना आ गए और इसी मकान में कियाम फ़रमाया और हज़रते कुलषूम बिन हदम رضي الله عنه और इन के खानदान वाले इन तमाम मुक़द्दस मेहमानों की मेहमान नवाज़ी में दिन रात मसरूफ़ रहने लगे। الله اکبر ! .अम्र बिन औफ़ के खानदान में हज़रते सय्यिदुल अम्बिया ﷺ व सय्यिदुल औलिया और सालिहीने सहाबा के नूरानी इजतिमाअ से ऐसा समां बंध गया होगा कि ग़ालिबन चांद, सूरज और सितारे हैरत के साथ इस मज्मअ को देख कर ज़बाने हाल से कहते होंगे कि येह फ़ैसला मुश्किल है कि आज अन्जुमने आस्मान ज़ियादा रोशन है या हज़रते कुलषूम बिन हदम का मकान ? और शायद खानदाने अम्र बिन औफ़ का बच्चा बच्चा जोशे मुसर्रत से मुस्कुरा मुस्कुरा कर ज़बाने हाल से येह नग्मा गाता होगा कि...
उन के क़दम पे मैं निषार जिन के कुदूमे नाज़ ने
उजड़े हुए दियार को रश्के चमन बना दिया
࿐ हुजुर रहमते आलम ﷺ की "मक्की ज़िन्दगी" आप पढ़ चुके, अब हम आप ﷺ की "मदनी ज़िन्दगी" पर सिनह वार वाकिआत तहरीर करने की सआदत हासिल करते हैं, आप भी इस के मुतालए से आंखों में नूर और दिल में सुरूर की दौलत हासिल करें।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 171 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 99╠✧◉*
*हुज़ूर ﷺ की मदनी ज़िन्दगी*
*❝ मस्जिदे कुबा ❞*
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࿐ "कुबा" में सब से पहला काम एक मस्जिद की तामीर थी, इस मक्सद के लिये हुज़ूर ﷺ ने हज़रते कुलषूम बिन हदम رضي الله عنه की एक ज़मीन को पसन्द फ़रमाया जहां खानदाने अम्र बिन औफ़ की खजूरें सुखाई जाती थीं इसी जगह आप ﷺ ने अपने मुक़द्दस हाथों से एक मस्जिद की बुन्याद डाली, येही वोह मस्जिद है जो आज भी "मस्जिदे कुबा" के नाम से मशहूर है और जिस की शान में कुरआन की येह आयत नाज़िल हुई :
*तर्ज़मा :-* यकीनन वोह मस्जिद जिस की बुन्याद पहले ही दिन से परहेज़ गारी पर रखी हुई है वोह इस बात की जियादा हकदार है कि आप इस में खड़े हों इस (मस्जिद) में ऐसे लोग हैं जिन को पाकी बहुत पसन्द है और अल्लाह तआला पाक रहने वालों से महब्बत फ़रमाता है। (पा.11 अल-तौबा, 108)
࿐ इस मुबारक मस्जिद की ता'मीर में सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم के साथ साथ खुद हुजूर ﷺ भी ब नफ्से नफीस अपने दस्ते मुबारक से इतने बड़े बड़े पथ्थर उठाते थे कि उन के बोझ से जिस्मे नाजुक ख़म हो जाता था और अगर आप ﷺ के जां निषार असहाब में से कोई अर्ज करता या रसूलल्लाह ﷺ! आप पर हमारे मां बाप कुरबान हो जाएं आप छोड़ दीजिये हम उठाएंगे, तो उस की दिलजूई के लिये छोड़ देते मगर हुज़ूर ﷺ फिर उसी वज़्न का दूसरा पथ्थर उठा लेते और खुद ही उस को ला कर इमारत में लगाते और तामीरी काम में जोश व वल्वला पैदा करने के लिये सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم के साथ आवाज़ मिला कर हजुर ﷺ हजरते अब्दुल्लाह बिन रवाहा رضي الله عنه ये अशआर पढ़ते...
वोह कामयाब है जो मस्जिद तामीर करता है और उडते बैठते क़ुरआन पढ़ता है और सोते हुए रात नहीं गुज़रता।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 175 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 100╠✧◉*
*❝ मस्जिदुल जुमुआ ❞*
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࿐ चौदह या चौबीस रोज़ के क़ियाम में मस्जिदे कुबा की तामीर फ़रमा कर जुमुआ के दिन आप "कुबा" से शहरे मदीना की तरफ़ रवाना हुए, रास्ते में क़बीलए बनी सालिम की मस्जिद में पहला जुमुआ आप ﷺ ने पढ़ा, येही वोह मस्जिद है जो आज तक "मस्जिदुल जुमुआ" के नाम से मशहूर है। अहले शहर को ख़बर हुई तो हर तरफ़ से लोग जज़्बाते शौक में मुश्ताक़ाना इस्तिक्बाल के लिये दौड़ पड़े, आप ﷺ के दादा अब्दुल मुत्तलिब के नन्हाली रिश्ते दार “बनू अल नज्जार" हथियार लगाए "कुबा" से शहर तक दो रोया सफे़ बांधे मस्ताना वार चल रहे थे। आप रास्ते में तमाम क़बाइल की महब्बत का शुक्रिया अदा करते और सब को खैरो बरकत की दुआएं देते हुए चले जा रहे थे। शहर क़रीब आ गया तो अहले मदीना के जोशो खरोश का येह आलम था कि पर्दा नशीन खवातीन मकानों की छतों पर चढ़ गई और येह इस्तिकबालिया अशआर पढ़ने लगीं कि...
हम पर चांद तुलूअ हो गया वदाअ की घाटियों से, हम पर खुदा का शुक्र वाजिब है। जब तक अल्लाह से दुआ मांगने वाले दुआ मांगते रहें।
ऐ वोह जाते गिरामी ! जो हमारे अन्दर मबऊस किये गए। आप ﷺ वोह दीन लाए जो इताअत के काबिल है आप ने मदीने को मुशर्रफ़ फ़रमा दिया तो आप के लिये “खुश आ-मदीद' है ऐ बेहतरीन दा'वत देने वाले।
࿐ तो हम लोगों ने य–मनी कपड़े पहने हालां कि इस से पहले पैवन्द जोड़ जोड़ कर कपड़े पहना करते थे तो आप पर अल्लाह तआला उस वक्त तक रहमतें नाज़िल फ़रमाए जब तक अल्लाह के लिये कोशिश करने वाले कोशिश करते रहें।
मदीने की नन्ही नन्ही बच्चियां जोशे मुसर्रत में झूम झूम कर और दफ़ बजा बजा कर येह गीत गाती थीं कि... हम ख़ानदाने "बनू अल नज्जार" की बच्चियां हैं, वाह क्या ख़ूब हुवा कि हज़रत मुहम्मद ﷺ हमारे पड़ोसी हो गए। हुज़ूरे अक्दस ﷺ ने उन बच्चियों के जोशे मुसर्रत और उन की वालिहाना महब्बत से मुतअष्षिर हो कर पूछा कि ऐ बच्चियो ! क्या तुम मुझ से महब्बत करती हो ? तो बच्चियों ने यक ज़बान हो कर कहा कि “जी हां ! जी हां।" येह सुन कर हुजूर ﷺ ने खुश हो कर मुस्कुराते हुए फ़रमाया कि "मैं भी तुम से प्यार करता हूं।”
࿐ छोटे छोटे लड़के और गुलाम झुंड के झुंड मारे खुशी के मदीने की गलियों में हुजुर ﷺ की आमद आमद का ना'रा लगाते हुए दौड़े फिरते थे सहाबिये रसूल बराअ बिन आजिब رضی الله تعالی عنه फ़रमाते हैं कि जो फ़रहत व सुरूर और अन्वारो तजल्लियात हुज़ूर सरवरे आलम ﷺ के मदीने में तशरीफ़ लाने के दिन ज़ाहिर हुए न इस से पहले कभी ज़ाहिर हुए थे न इस के बाद।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 176 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 101╠✧◉*
*❝ अबू अय्यूब अन्सारी का मकान ❞*
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࿐ तमाम क़बाइले अन्सार जो रास्ते में थे इन्तिहाई जोशे मुसर्रत के साथ ऊंटनी की मुहार थाम कर अर्ज करते या रसूलल्लाह ﷺ ! आप हमारे घरों को शरफे नुज़ूल बख़्शें मगर आप उन सब मुहिब्बीन से येही फ़रमाते कि मेरी ऊंटनी की मुहार छोड़ दो जिस जगह खुदा को मन्जूर होगा उसी जगह मेरी ऊंटनी बैठ जाएगी, चुनान्चे जिस जगह आज मस्जिदे नबवी शरीफ़ है उस के पास हज़रते अबू अय्यूब अन्सारी رضي الله عنه का मकान था उसी जगह हुजुर ﷺ की ऊंटनी बैठ गई और हज़रते अबू अय्यूब अन्सारी आप ﷺ की इजाजत से आप का सामान उठा कर अपने घर में ले गए और हुजूर ﷺ ने उन्ही के मकान पर क़ियाम फ़रमाया।
࿐ हज़रते अबू अय्यूब अन्सारी رضي الله عنه ने ऊपर की मन्जिल पेश की मगर आप ﷺ ने मुलाक़ातियों की आसानी का लिहाज़ फ़रमाते हुए नीचे की मन्ज़िल को पसन्द फ़रमाया, हज़रते अबू अय्यूब अन्सारी दोनों वक़्त आप के लिये खाना भेजते और आप का बचा हुवा खाना तबर्रुक समझ कर मियां बीवी खाते। खाने में जहां हुजूर ﷺ की उंगलियों का निशान पड़ा होता हुसूले बरकत के लिये हज़रते अबू अय्यूब अन्सारी उसी जगह से लुक्मा उठाते और अपने हर क़ौल व फे'ल से बे पनाह अदब व एहतिराम और अकीदत व जां निषारी का मुज़ाहरा करते।
࿐ एक मरतबा मकान के ऊपर की मन्ज़िल पर पानी का घड़ा टूट गया तो इस अन्देशे से कि कहीं पानी बह कर नीचे की मन्जिल में न चला जाए और हुजूर रहमते आलम ﷺ को कुछ तक्लीफ़ न हो जाए, हज़रते अबू अय्यूब अन्सारी رضي الله عنه ने सारा पानी अपने लिहाफ़ में खुश्क कर लिया, घर में येही एक लिहाफ़ था जो गीला हो गया। रात भर मियां बीवी ने सर्दी खाई मगर हुजुर ﷺ को ज़र्रा बराबर तक्लीफ़ पहुंच जाए येह गवारा नहीं किया। सात महीने तक हज़रते अबू अय्यूब अन्सारी ने इसी शान के साथ हुज़ूरे अक़दस ﷺ की मेजबानी का शरफ़ हासिल किया।
࿐ जब मस्जिदे नबवी और इस के आस पास के हुजरे तय्यार हो गए, तो हुज़ूर ﷺ उन हुजरों में अपनी अज्वाजे मुतहहरात के साथ कियाम पज़ीर हो गए।
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 102╠✧◉*
*❝ हजरते अब्दुल्लाह बिन सलाम का इस्लाम ❞*
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࿐ हज़रते अब्दुल्लाह बिन सलाम رضي الله عنه मदीने में यहूदियों के सब से बड़े आलिम थे, खुद इन का अपना बयान है कि जब हुजूर ﷺ मक्का से हिजरत फ़रमा कर मदीने में तशरीफ़ लाए और लोग जूक दर जूक इन की जियारत के लिये हर तरफ़ से आने लगे तो मैं भी उसी वक़्त ख़िदमते अक्दस में हाज़िर हुवा और जूंही मेरी नज़र जमाले नुबुव्वत पर पड़ी तो पहली नजर में मेरे दिल ने येह फैसला कर दिया कि येह चेहरा किसी झूटे आदमी का चेहरा नहीं हो सकता।, फिर हुजूर ﷺ ने अपने वाअज़ में येह इर्शाद फ़रमाया कि "ऐ लोगो ! सलाम का चरचा करो और खाना खिलाओ और (रिश्तेदारों के साथ) सिलए रेहमी करो और रातों को जब लोग सो रहे हों तो तुम नमाज़ पढ़ो।"
࿐ हज़रते अब्दुल्लाह बिन सलाम رضی الله تعالی عنه फ़रमाते हैं कि मैंने हुज़ूर ﷺ को एक नज़र देखा और आप के येह चार बोल मेरे कान में पड़े तो मैं इस क़दर मुतअष्षिर हो गया कि मेरे दिल की दुन्या ही बदल गई और मैं मुशर्रफ ब इस्लाम हो गया, हज़रते अब्दुल्लाह बिन सलाम رضی الله تعالی عنه का दामने इस्लाम मे आ जाना यह इतना अहम वाकिया था कि मदीने के यहूदियों में खलबली मच गई।
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 103╠✧◉*
*❝ हुज़ूर ﷺ के अहलो अयाल मदीने में ❞*
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࿐ हुजूरे अक्दस ﷺ जब कि अभी हज़रते अबू अय्यूब अन्सारी رضي الله عنه के मकान ही में तशरीफ़ फ़रमा थे आप ने अपने गुलाम हज़रते जैद बिन हारिषा और हज़रते अबू राफेअ رضي الله عنه को पांच सो दिरहम और दो ऊंट दे कर मक्का भेजा ताकि येह दोनों साहिबान अपने साथ हुजूर के अहलो अयाल को मदीना लाएं।
࿐ चुनान्चे येह दोनों हज़रात जा कर हुजूर ﷺ की दो साहिब ज़ादियों हज़रते फ़ातिमा और हज़रते उम्मे कुलषूम رضي الله عنها और आप ﷺ की ज़ौजए मुतहहरा उम्मुल मुअमिनीन हज़रते बीबी सौदह رضي الله عنها और हज़रते उसामा बिन जैद और हज़रते उम्मे ऐमन और رضي الله عنهما को मदीना ले आए।
࿐ आप ﷺ की साहिब जादी हज़रते जैनब رضي الله عنها न आ सकीं क्यूं कि उन के शोहर हज़रते अबुल आस बिन अर्रबीअ رضي الله عنه ने इन को मक्का में रोक लिया और हुजुर ﷺ की एक साहिब जादी हज़रते बीबी रुकय्या رضي الله عنها अपने शोहर हज़रते उषमाने गनी رضي الله عنه के साथ "हबशा" में थीं। इन्ही लोगों के साथ हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه के फरज़न्द हज़रते अब्दुल्लाह رضي الله عنه भी अपने सब घर वालों को साथ ले कर मक्का से मदीना आ गए इन में हज़रते बीबी आइशा رضي الله عنها भी थी येह सब लोग मदीना आ कर पहले हज़रते हारिषा बिन नोमान رضي الله عنه के मकान पर ठहरे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 104 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 104╠✧◉*
*❝ मस्जिदे नबवी की तामीर ❞*
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࿐ मदीने में कोई ऐसी जगह नहीं थी जहां मुसलमान बा जमाअत नमाज़ पढ़ सकें इस लिये मस्जिद की तामीर निहायत ज़रूरी थी हुज़ूर ﷺ की क़ियाम गाह के क़रीब ही "बनू अल नज्जार" का एक बाग था, आप ﷺ ने मस्जिद तामीर करने के लिये उस बाग़ को कीमत दे कर खरीदना चाहा। उन लोगों ने यह कह कर "या रसूलल्लाह ﷺ! हम खुदा ही से इस की क़ीमत (अज्रो षवाब) लेंगे।" मुफ्त में ज़मीन मस्जिद की ता'मीर के लिये पेश कर दी लेकिन चूंकि येह ज़मीन अस्ल में दो यतीमों की थी आपने उन दोनों यतीम बच्चों को बुला भेजा। उन यतीम बच्चों ने भी ज़मीन मस्जिद के लिये नज़्र करनी चाही मगर हुजूर सरवरे आलम ﷺ ने इस को पसन्द नहीं फ़रमाया। इस लिये हज़रते अबू बक्र सिद्दीक के माल से आप ने इस की क़ीमत अदा फ़रमा दी।
࿐ इस ज़मीन में चन्द दरख़्त, कुछ खन्डरात और कुछ मुशरिकों की क़ब्रें थीं, आप ﷺ ने दरख़्तों के काटने और मुशरिकीन की क़ब्रों को खोद कर फेंक देने का हुक्म दिया, फिर ज़मीन को हमवार कर के खुद आप ने अपने दस्ते मुबारक से मस्जिद की बुन्याद डाली और कच्ची ईंटों की दीवार और खजूर के सुतूनों पर खजूर की पत्तियों से छत बनाई जो बारिश में टपक्ती थी। इस मस्जिद की तामीर में सहाबए किराम के साथ खुद हुज़ूर ﷺ भी ईंटें उठा उठा कर लाते थे और सहाबए किराम को जोश दिलाने के लिये उन के साथ आवाज़ मिला कर हुज़ूर ﷺ रज्ज का येह शे'र पढ़ते थे कि... ऐ अल्लाह ! भलाई तो सिर्फ आख़िरत ही की भलाई है। लिहाजा ऐ अल्लाह ! तू अन्सार व मुहाजिरीन को बख़्श दे।
࿐ इसी मस्जिद का नाम "मस्जिदे नबवी" है। येह मस्जिद हर किस्म के दुन्यवी तकल्लुफ़ात से पाक और इस्लाम की सादगी की सच्ची और सही तस्वीर थी, इस मस्जिद की इमारते अव्वल तूल व अर्ज़ में साठ गज़ लम्बी और चौवन गज़ चौडी थी और इस का किब्ला बैतल मुकद्दस की तरफ बनाया गया था मगर जब क़िब्ला बदल कर काबे की तरफ हो गया तो मस्जिद के शिमाली जानिब एक नया दरवाज़ा काइम किया गया। इस के बाद मुख़्तलिफ़ ज़मानों में मस्जिदे नबवी की तजदीद व तौसीअ होती रही।
मस्जिद के एक कनारे पर एक चबूतरा था जिस पर खजूर की पत्तियों से छत बना दी गई थी। इसी चबूतरे का नाम "सुफ़्फ़ा" है जो सहाबा घरबार नहीं रखते थे वोह इसी चबूतरे पर सोते बैठते थे और येही लोग “अस्हाबे सुफ्फ़ा" कहलाते हैं।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 181 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 105╠✧◉*
*❝ अज्वाजे मुतहहरात رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْهُنَّ के मकानात ❞*
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࿐ मस्जिदे नबवी के मुत्तसिल ही आप ﷺ ने अज़वाजे मुतहहरात رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْهُنَّ के लिये हुजरे भी बनवाए उस वक़्त तक हज़रते बीबी सौदह और हज़रते आइशा رضی الله تعالی عنهما निकाह में थीं इस लिये दो ही मकान बनवाए, जब दूसरी अज्वाजे मुतहहरात आती गई तो दूसरे मकानात बनते गए, येह मकानात भी बहुत ही सादगी के साथ बनाए गए थे। दस दस हाथ लम्बे छे छे, सात सात हाथ चौड़े कच्ची ईंटों की दीवारें, खजूर की पत्तियों की छत वोह भी इतनी नीची कि आदमी खड़ा हो कर छत को छू लेता, दरवाज़ों में किवाड़ भी न थे कम्बल या टाट के पर्दे पड़े रहते थे। *الله اکبر !* येह है शहनशाहे दो आलम ﷺ का वोह काशानए नुबुव्वत जिस की आस्ताना बोसी और दरबानी जिब्रील के लिये सरमायए सआदत और बाइषे इफ्तिखार थी।
࿐ *अल्लाह अल्लाह !* वोह शहनशाहे कौनैन जिस को खालिक ने अपना मेहमान बना कर अर्शे आज़म पर मस्नद नशीन बनाया और जिस के सर पर अपनी महबूबियत का ताज पहना कर ज़मीन के ख़ज़ानों की कुन्जियां जिस के हाथों में अता फरमा दीं और जिस को काएनाते आलम में किस्म किस्म के तसर्रुफात का मुख्तार बना दिया, जिस की ज़बान का हर फ़रमान कुन की कुन्जी, जिस की निगाहे करम के एक इशारे ने उन लोगों को जिन के हाथों में ऊंटों की मुहार रहती थी उन्हें अक्वामे आलम की किस्मत की लगाम अता फ़रमा दी। *الله اکبر !* वोह ताजदारे रिसालत जो सुल्ताने दारैन और शहनशाहे कौनैन है उस की हरम सरा का येह आलम ! ऐ सूरज ! बोल, ऐ चांद ! बता, तुम दोनों ने इस ज़मीन के बे शुमार चक्कर लगाए हैं मगर क्या तुम्हारी आंखों ने ऐसी सादगी का कोई मन्ज़र कभी भी और कहीं भी देखा है?
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 182 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 106 ╠✧◉*
*❝ मुहाजिरीन के घर ❞*
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࿐ मुहाजिरीन जो अपना सब कुछ मक्का में छोड़ कर मदीना चले गए थे, उन लोगों की सुकूनत के लिये भी हुजूर ﷺ ने मस्जिदे नबवी के कुर्बो जवार ही में इन्तिज़ाम फ़रमाया, अन्सार ने बहुत बड़ी कुरबानी दी कि निहायत फ़राख़ दिली के साथ अपने मुहाजिर भाइयों के लिये अपने मकानात और ज़मीनें दीं और मकानों की तामीरात में हर किस्म की इमदाद बहम पहुंचाई जिस से मुहाजिरीन की आबाद कारी में बड़ी सुहूलत हो गई।
࿐ सब से पहले जिस अन्सारी ने अपना मकान हुज़ूर ﷺ को बतौरे हिबा के नज़्र किया उस खुश नसीब का नामे नामी हज़रते हारिषा बिन नोमान رضي الله عنه है, चुनान्चे अज्वाजे मुतहहरात के मकानात हज़रते हारिषा बिन नोमान ही कि ज़मीन में बनाए गए।
*❝ हज़रते आइशा की रुखसती ❞*
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࿐ हज़रते बीबी आइशा رضي الله عنها का हुज़ूर ﷺ से निकाह तो हिजरत से कब्ल ही मक्का में हो चुका था मगर इन की रुख़सती हिजरत के पहले ही साल मदीने में हुई, हुज़ूर ﷺ ने एक पियाला दूध से लोगों की दा'वते वलीमा फ़रमाई।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 183 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 107╠✧◉*
*❝ अजान की इब्तिदा ❞*
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࿐ मस्जिदे नबवी की तामीर तो मुकम्मल हो गई मगर लोगों को नमाज़ों के वक़्त जम्अ करने का कोई ज़रीआ नहीं था जिस से नमाज़े बा जमाअत का इन्तिज़ाम होता, इस सिल्सिले में हुज़ूर ﷺ ने सहाबए किराम से मश्वरा फ़रमाया, बा'ज़ ने नमाज़ों के वक़्त आग जलाने का मश्वरा दिया, बा'ज़ ने नाकूस बजाने की राय दी मगर हुज़ूर ﷺ ने गैर मुस्लिमों के इन तरीकों को पसन्द नहीं फ़रमाया। हजरते उमर رضي الله عنه ने येह तज्वीज़ पेश की, कि हर नमाज़ के वक़्त किसी आदमी को भेज दिया जाए जो पूरी मुस्लिम आबादी में नमाज़ का ए'लान कर दे, हुज़ूर ﷺ ने इस राय को पसन्द फ़रमाया और हज़रते बिलाल رضي الله عنه को हुक्म फ़रमाया कि वोह नमाज़ों के वक़्त लोगों को पुकार दिया करें।
࿐ चुनान्चे वोह "الصلوٰۃ جامعۃ" कह कर पांचों नमाज़ों के वक़्त एलान करते थे, इसी दरमियान में एक सहाबी हज़रते अब्दुल्लाह बिन जैद अन्सारी رضي الله عنه ने ख़्वाब में देखा कि अज़ाने शरई के अल्फाज़ कोई सुना रहा है इस के बाद हुज़ूर ﷺ और हज़रते उमर رضي الله عنه और दूसरे सहाबा को भी इसी क़िस्म के ख़्वाब नज़र आए, हुजुर ﷺ ने इस को मिन जानिबिल्लाह समझ कर क़बूल फ़रमाया और हज़रते अब्दुल्लाह बिन जैद رضي الله عنه को हुक्म दिया कि तुम बिलाल को अज़ान के कलिमात सिखा दो क्यूं कि वोह तुम से जियादा बुलन्द आवाज़ हैं।
चुनान्चे उसी दिन से शरई अज़ान का तरीका जो आज तक जारी है और क़ियामत तक जारी रहेगा।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 184 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 108╠✧◉*
*❝ अन्सार व मुहाजिर भाई-भाई #01 ❞*
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࿐ हज़राते मुहाजिरीन चूंकि इन्तिहाई बे सरो सामानी की हालत में बिल्कुल खाली हाथ अपने अहलो अयाल को छोड़ कर मदीना आए थे इस लिये परदेस में मुफ्लिसी के साथ वहशत व बेगानगी और अपने अहलो अयाल की जुदाई का सदमा महसूस करते थे। इस में शक नहीं कि अन्सार ने इन मुहाजिरीन की मेहमान नवाज़ी और दिलजूई में कोई कसर नहीं उठा रखी लेकिन मुहाजिरीन देर तक दूसरों के सहारे ज़िन्दगी बसर करना पसन्द नहीं करते थे क्यूं कि वोह लोग हमेशा से अपने दस्त व बाजू की कमाई खाने के खूगर थे। इस लिये ज़रूरत थी कि मुहाजिरीन की परेशानी को दूर करने और इन के लिये मुस्तकिल ज़रीअए मआश मुहय्या करने के लिये कोई इन्तिज़ाम किया जाए। इस लिये हुज़ूरे अकरम ﷺ ने ख्याल फ़रमाया कि अन्सार व मुहाजिरीन में रिश्तए उखुव्वत (भाईचारा) काइम कर के इन को भाई भाई बना दिया जाए ताकि मुहाजिरीन के दिलों से अपनी तन्हाई और बे कसी का एहसास दूर हो जाए और एक दूसरे के मददगार बन जाने से मुहाजिरीन के जरीए मआश का मस्अला भी हल हो जाए।
࿐ चुनान्चे मस्जिदे नबवी की तामीर के बाद एक दिन हुज़ूर ﷺ ने हज़रते अनस बिन मालिक رضی الله تعالی عنه के मकान में अन्सार व मुहाजिरीन को जम्अ फ़रमाया उस वक़्त तक मुहाजिरीन की तादाद पेंतालीस या पचास थी। हुजूर ﷺ ने अन्सार को मुखातब कर के फ़रमाया कि येह मुहाजिरीन तुम्हारे भाई हैं फिर मुहाजिरीन व अन्सार में से दो दो शख़्स को बुला कर फ़रमाते गए कि येह और तुम भाई-भाई हो। हुजूर ﷺ के इर्शाद फ़रमाते ही येह रिश्तए उखुव्वत बिल्कुल हक़ीकी भाई जैसा रिश्ता बन गया। चुनान्चे अन्सार ने मुहाजिरीन को साथ ले जा कर अपने घर की एक एक चीज़ सामने ला कर रख दी और कह दिया कि आप हमारे भाई हैं इस लिये इन सब सामानों में आधा आप का और आधा हमारा है।
हद हो गई कि हज़रते सा'द बिन रबीअ अन्सारी رضی الله تعالی عنه जो हज़रते अब्दुर्रहमान बिन औफ़ رضی الله تعالی عنه मुहाजिर के भाई क़रार पाए थे इन की दो बीवियां थीं, हज़रते साद बिन रबीअ अन्सारी رضی الله تعالی عنه ने हज़रते अब्दुर्रहमान बिन औफ़ رضی الله تعالی عنه से कहा कि मेरी एक बीवी जिसे आप पसन्द करें मैं उस को तलाक़ दे दूं और आप उस से निकाह कर लें।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 185 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 109╠✧◉*
*❝ अन्सार व मुहाजिर भाई-भाई #02 ❞*
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࿐ हज़रते साद बिन रबीअ अन्सारी رضي الله عنه ने हज़रते अब्दुर्रहमान बिन औफ़ رضي الله عنه से कहा कि मेरी एक बीवी जिसे आप पसन्द करें मैं उस को तलाक़ दे दूं और आप उस से निकाह कर लें। الله اکبر ! इस में शक नहीं कि अन्सार का ये ईसार एक ऐसा बे मिषाल शाहकार है कि अक्वामे आलम की तारीख में इस की मिषाल मुश्किल से ही मिलेगी मगर मुहाजिरीन ने क्या तर्जे अमल इख़्तियार किया येह भी एक क़ाबिले तक्लीद तारीख़ी कारनामा है। हज़रते साद बिन रबीअ अन्सारी رضی الله تعالی عنه की इस मुख़िलसाना पेशकश को सुन कर हजरते अब्दुर्रहमान बिन औफ رضی الله تعالی عنه ने शुक्रिया के साथ येह कहा कि अल्लाह तआला येह सब माल व मताअ और अहलो अयाल आप को मुबारक फ़रमाए मुझे तो आप सिर्फ बाज़ार का रास्ता बता दीजिये। उन्हों ने मदीने के मश्हूर बाज़ार “क़ीनकाअ" का रास्ता बता दिया।
࿐ हज़रते अब्दुर्रहमान बिन औफ़ رضی الله تعالی عنه बाज़ार गए और कुछ घी, कुछ पनीर खरीद कर शाम तक बेचते रहे। इसी तरह रोज़ाना वोह बाज़ार जाते रहे और थोड़े ही अर्से में वोह काफ़ी मालदार हो गए और उन के पास इतना सरमाया जम्अ हो गया कि उन्हों ने शादी कर के अपना घर बसा लिया, जब येह बारगाहे रिसालत में हाजिर हुए तो हुज़ूर ﷺ ने दरयाफ्त फ़रमाया कि तुम ने बीवी को कितना महर दिया? अर्ज़ किया कि पांच दिरहम बराबर सोना। इर्शाद फ़रमाया कि अल्लाह तआला तुम्हें बरकतें अता फरमाए तुम दा'वते वलीमा करो अगर्चे एक बकरी ही हो।
࿐ और रफ्ता रफ्ता हज़रते अब्दुर्रहमान बिन औफ رضی الله تعالی عنه की तिजारत में इतनी खैरो बरकत और तरक्की हुई कि खुद इन का क़ौल है कि “मैं मिट्टी को छू देता हूं तो सोना बन जाती है" मन्कूल है कि इन का सामाने तिजारत सात सो ऊंटों पर लाद कर आता था और जिस दिन मदीने इन का तिजारती सामान पहुंचता था तो तमाम शहर में धूम मच जाती थी।
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 110╠✧◉*
*❝ अन्सार व मुहाजिर भाई-भाई #03 ❞*
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࿐ हज़रते अब्दुर्रहमान बिन औफ़ رضي الله عنه की तरह दूसरे मुहाजिरीन ने भी दुकानें खोल लीं, हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه कपड़े की तिजारत करते थे। हज़रते उषमान رضي الله عنه "कैनुकाअ" के बाज़ार में खजूरों की तिजारत करने लगे। हज़रते उमर رضي الله عنه भी तिजारत में मश्गूल हो गए थे। दूसरे मुहाजिरीन ने भी छोटी बड़ी तिजारत शुरू कर दी। गरज बा वुजूदे कि मुहाजिरीन के लिये अन्सार का घर मुस्तकिल मेहमान खाना था मगर मुहाजिरीन ज़ियादा दिनों तक अन्सार पर बोझ नहीं बने बल्कि अपनी मेहनत और बे पनाह कोशिशों से बहुत जल्द अपने पाउं पर खड़े हो गए।
࿐ मश्हूर मुअर्रिखे इस्लाम हज़रते अल्लामा इब्ने अब्दुल बर رحمة الله عليه का क़ौल है कि येह अक्दे मुआखात (भाईचारे का मुआहदा) तो अन्सार व मुहाजिरीन के दरमियान हुवा, इस के इलावा एक खास "अक्दे मुआखात" मुहाजिरीन के दरमियान भी हुवा जिस में हुजूर ﷺ ने एक मुहाजिर को दूसरे मुहाजिर का भाई बना दिया। चुनान्चे हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ व हज़रते उमर رضی الله تعالی عنهما और हज़रते तल्हा व हज़रते जुबैर رضی الله تعالی عنهما और हज़रते उषमान व हज़रते अब्दुर्रहमान बिन औफ़ رضی الله تعالی عنهما के दरमियान जब भाईचारा हो गया तो हज़रते अली رضي الله عنه ने दरबारे रिसालत में अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ ! आप ने अपने सहाबा को एक दूसरे का भाई बना दिया लेकिन मुझे आप ने किसी का भाई नहीं बनाया। आखिर मेरा भाई कौन है ? तो हुजुर ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया कि तुम दुन्या और आख़िरत में मेरे भाई हो।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 188 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 111╠✧◉*
*❝ यहूदियों से मुआहदा ❞*
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࿐ मदीने में अन्सार के इलावा बहुत से यहूदी भी आबाद थे, उन यहूदियों के तीन क़बीले बनू कैनुकाअ, बनू नज़ीर और करीज़ा मदीने के अतराफ़ में आबाद थे और निहायत मज़बूत महल्लात और मुस्तहकम क़ल्ए बना कर रहते थे। हिजरत से पहले यहूदियों और अन्सार में हमेशा इख़्तिलाफ़ रहता था और वोह इख़्तिलाफ़ अब भी मौजूद था और अन्सार के दोनों क़बीले औस व खज़रज बहुत कमज़ोर हो चुके थे क्यूं कि मश्हूर लड़ाई “जंगे बआस" में इन दोनों क़बीलों के बड़े बड़े सरदार और नामवर बहादुर आपस में लड़ लड़ कर क़त्ल हो चुके थे और यहूदी हमेशा इस क़िस्म की तदबीरों और शरारतों में लगे रहते थे कि अन्सार के येह दोनों क़बाइल हमेशा टकराते रहें और कभी भी मुत्तहिद न होने पाएं।
࿐ इन वुजूहात की बिना पर हुज़ूरे अक्दस ﷺ ने यहूदियों और मुसलमानों के आयन्दा तअल्लुकात के बारे में एक मुआहदे की जरूरत महसूस फ़रमाई ताकि दोनों फ़रीक़ अम्नो सुकून के साथ रहें और आपस में कोई तसादुम और टकराव न होने पाए, चुनान्चे आप ﷺ ने अन्सार और यहूद को बुला कर मुआहदे की एक दस्तावेज़ लिखवाई जिस पर दोनों फ़रीक़ों के दस्तख्त हो गए।
࿐ इस मुआहदे की दफ्आत का खुलासा हस्बे जैल है :
(1) ➻ खूनबहा (जान के बदले जो माल दिया जाता है) और फ़िदया (कैदी को छुड़ाने के बदले जो रकम दी जाती है) का जो तरीका पहले से चला आता था अब भी वोह क़ाइम रहेगा।
(2) ➻ यहूदियों को मजहबी आज़ादी हासिल रहेगी इन के मज़हबी रुसूम में कोई दख़ल अन्दाज़ी नहीं की जाएगी।
(3) ➻ यहूदी और मुसलमान बाहम दोस्ताना बरताव रखेंगे।
(4) ➻ यहूदी या मुसलमानों को किसी से लड़ाई पेश आएगी तो एक फ़रीक दूसरे की मदद करेगा।
(5) ➻ अगर मदीने पर कोई हम्ला होगा तो दोनों फ़रीक़ मिल कर (हम्ला आवर का मुकाबला करेंगे।
(6) ➻ कोई फ़रीक़ कुरैश और इन के मददगारों को पनाह नहीं देगा।
(7) ➻ किसी दुश्मन से अगर एक फ़रीक़ सुल्ह करेगा तो दूसरा फ़रीक़ भी इस मुसालहत में शामिल होगा लेकिन मजहबी लड़ाई इस से मुस्तषना रहेगी।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 189 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 112╠✧◉*
*❝ मदीने के लिये दुआ ❞*
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࿐ चूंकि मदीने की आबो हवा अच्छी न थी यहां तरह तरह की वबाएं और बीमारियां फैलती रहती थीं इस लिये कषरत से मुहाजिरीन बीमार होने लगे हज़रते अबू बक्र सिद्दीक और हज़रते बिलाल رضي الله عنه शदीद लरजा बुखार में मुब्तला हो कर बीमार हो गए और बुखार की शिद्दत में येह हज़रात अपने वतन मक्का को याद कर के कुफ़्फ़ारे मक्का पर लानत भेजते थे और मक्का की पहाड़ियों और घासों के फ़िराक़ में अशआर पढ़ते।
࿐ हुज़ूर ﷺ ने इस मौकअ पर येह दुआ फ़रमाई कि या अल्लाह ! हमारे दिलों में मदीने की ऐसी ही महब्बत डाल दे जैसी मक्का की महब्बत है बल्कि इस से भी जियादा और मदीने की आबो हवा को सिहहत बख़्श बना दे और मदीने के साअ और मुद (नाप तोल के बरतनों) में खैरो बरकत अता फ़रमा और मदीने के बुखार को “जुहफ़ा" की तरफ़ मुन्तकिल फ़रमा दे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 190 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 113╠✧◉*
*❝ हज़रते सलमान फ़ारसी मुसलमान हो गए ❞*
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࿐ सि. 1 हि के वाकिआत में हज़रते सलमान फ़ारसी رضی الله تعالی عنه के इस्लाम लाने का वाकिआ भी बहुत अहम है। येह फ़ारस के रहने वाले थे, इन के आबाओ अजदाद बल्कि इन के मुल्क की पूरी आबादी मजूसी (आतश परस्त) थी। येह अपने आबाई दीन से बेज़ार हो कर दीने हक की तलाश में अपने वतन से निकले डाकूओं ने इन को गरिफ्तार कर के अपना गुलाम बना लिया फिर इन को बेच डाला। चुनान्चे येह कई बार बिकते रहे और मुख़्तलिफ़ लोगों की गुलामी में रहे। इसी तरह येह मदीना पहुंचे, कुछ दिनों तक ईसाई बन कर रहे और यहूदियों से भी मेलजोल रखते रहे। इस तरह इन को तौरैत व इन्जील की काफ़ी मा'लूमात हासिल हो चुकी थीं।
࿐ येह हुजूर ﷺ की बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए तो पहले दिन ताज़ा खजूरों का एक तबाक़ ख़िदमते अक्दस में येह कह कर पेश किया कि येह "सदका" है। हुजूर ﷺ ने फ़रमाया कि इस को हमारे सामने से उठा कर फु-करा व मसाकीन को दे दो क्यूं कि मैं सदक़ा नहीं खाता, फिर दूसरे दिन खजूरों का ख़्वान ले कर पहुंचे और येह कह कर कि येह "हदिय्या" है सामने रख दिया तो हुजूर ﷺ ने सहाबा को हाथ बढ़ाने का इशारा फरमाया और खुद भी खा लिया इस दरमियान में हज़रते सलमान फारसी رضی الله تعالی عنه ने हुजूर ﷺ के दोनों शानों के दरमियान जो नज़र डाली तो "मोहरे नुबुव्वत" को देख लिया चूंकि येह तौरात व इन्जील में नबिय्ये आख़िरुज्ज़मान की निशानियां पढ़ चुके थे इस लिये फ़ौरन ही इस्लाम क़बूल कर लिया।
*❝ नमाज़ों की रक्त में इजाफा ❞*
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࿐ अब तक फ़र्ज़ नमाज़ों में सिर्फ दो ही रक्अतें थीं मगर हिजरत के साले अव्वल में जब हुजूर ﷺ मदीना तशरीफ़ लाए तो ज़ोहर व अस्र व इशा में चार चार रक्अतें फ़र्ज़ हो गई लेकिन सफ़र की हालत में अब भी वोही दो रक्अतें काइम रहीं इसी को सफ़र की हालत में नमाज़ों में “क़सर” कहते हैं।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 190 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 114╠✧◉*
*❝ तीन जां निषारों की वफ़ात ❞*
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࿐ इस साल हज़राते सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم में से तीन निहायत ही शानदार और जां निषार हज़रात ने वफ़ात पाई जो दर हक़ीक़त इस्लाम के सच्चे जां निषार और बहुत ही बड़े मुईन व मददगार थे।
࿐ अव्वल : हज़रते कुलषूम बिन हदम رضي الله عنه येह वोह खुश नसीब मदीना के रहने वाले अन्सारी हैं कि हुज़ूरे अक्दस ﷺ जब हिजरत फ़रमा कर "कुबा" में तशरीफ़ लाए तो सब से पहले इन्ही के मकान को शरफ़े नुज़ूल बख़्शा और बड़े बड़े मुहाजिरीन सहाबा भी इन्ही के मकान में ठहरे थे और इन्हों ने दोनों आलम के मेज़बान को अपने घर में मेहमान बना कर ऐसी मेजबानी और मेहमान नवाजी की, कि कियामत तक तारीखे रिसालत के सफ़हात पर इनका नामे नामी सितारों की तरह चमकता रहेगा।
࿐ दुवुम : हज़रते बराअ बिन मारूर अन्सारी رضي الله عنه ये वोह शख़्स हैं कि “बैअते अकबए षानिया" में सब से पहले हुजुर ﷺ के दस्ते हक़ परस्त पर बैअत की और येह अपने क़बीले "खज़रज" के नक़ीबों में थे।
࿐ सिवुम : हज़रते अस्अद बिन ज़रारह अन्सारी رضي الله عنه ये बैअते अकबए ऊला और बैअते अकबए षानिया की दोनों बैअतों में शामिल रहे और येह पहले वोह शख़्स हैं जिन्हों ने मदीने में इस्लाम का डंका बजाया और हर घर में इस्लाम का पैग़ाम पहुंचा।
࿐ जब मजकूरा बाला तीनों मुअज्जजीन सहाबा ने वफ़ात पाई तो मुनाफ़िक़ीन और यहूदियों ने इस की खुशी मनाई और हुजूर ﷺ को ता'ना देना शुरूअ किया कि अगर येह पैग़म्बर होते तो अल्लाह तआला इन को येह सदमात क्यूं पहुंचाता ? खुदा की शान कि ठीक उसी ज़माने में कुफ़्फ़ार के दो बहुत ही बड़े बड़े सरदार भी मर कर मुर्दार हो गए। एक "आस बिन वाइल सहमी" जो हज़रते अम्र बिन अल आस सहाबी رضي الله عنه फातेहे मिस्र का बाप था। दूसरा “वलीद बिन मुग़ीरा" जो हज़रते खालिद सैफुल्लाह सहाबी رضي الله عنه का बाप था।
࿐ रिवायत है कि "वलीद बिन मुग़ीरा" जां कनी के वक़्त बहुत ज़ियादा बेचैन हो कर तड़पने और बे क़रार हो कर रोने लगा और फ़रियाद करने लगा तो अबू जहल ने पूछा कि चचाजान ! आखिर आप की बे करारी और इस गिर्या व ज़ारी की क्या वजह है ? तो "वलीद बिन मुग़ीरा" बोला कि मेरे भतीजे ! मैं इस लिये इतनी बे करारी से रो रहा हूं कि मुझे अब येह डर है कि मेरे बाद मक्का में मुहम्मद (ﷺ) का दीन फैल जाएगा। येह सुन कर अबू सुफ्यान ने तसल्ली दी और कहा कि चचा ! आप हरगिज़ हरगिज़ इस का ग़म न करें मैं ज़ामिन होता हूं कि मैं दीने इस्लाम को मक्का में नहीं फैलने दूंगा
࿐ चुनान्चे अबू सुफ्यान अपने इस अहद पर इस तरह क़ाइम रहे कि मक्का फतह होने तक वोह बराबर इस्लाम के ख़िलाफ़ जंग करते रहे मगर फ़तहे मक्का के दिन अबू सुफ्यान ने इस्लाम क़बूल कर लिया और फिर ऐसे सादिकुल इस्लाम बन गए कि इस्लाम की नुसरत व हिमायत के लिये ज़िन्दगी भर जिहाद करते रहे और इन्ही जिहादों में कुफ़्फ़ार के तीरों से इन की आंखें जख्मी हो गई और रोशनी जाती रही। येही वोह हज़रते अबू सुफ्यान رضي الله عنه हैं जिन के सपूत बेटे हज़रते अमीरे मुआविया رضي الله عنه हैं।
࿐ इसी साल सि. 1 हि. में हज़रते अब्दुल्लाह बिन जुबैर رضي الله عنه की विलादत हुई। हिजरत के बाद मुहाजिरीन के यहां सब से पहला बच्चा जो पैदा हुवा वोह येही हज़रते अब्दुल्लाह बिन जुबैर رضی الله تعالی عنه हैं इन की वालिदा हज़रते बीबी अस्मा जो हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه की साहिब जादी हैं पैदा होते ही इन को ले कर बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुई। हुज़ूर सय्यिदे आलम ﷺ ने इन को अपनी गोद में बिठा कर और खजूर चबा कर इन के मुंह में डाल दी। इस तरह सब से पहली गिज़ा जो इन के शिकम में पहुंची वोह हुज़ूरे अक्दस ﷺ का लुआबे दहन था।
हज़रते अब्दुल्लाह बिन जुबैर رضي الله عنه की पैदाइश से मुसलमानों को बेहद खुशी हुई इस लिये कि मदीना के यहूदी कहा करते थे कि हम लोगों ने मुहाजिरीन पर ऐसा जादू कर दिया है कि इन लोगों के यहां कोई बच्चा पैदा ही नहीं होगा।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 192 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 115╠✧◉*
*❝ हिजरत का दूसरा साल ❞*
सि. 2 हि.
❐❐ सि. 1 हि. की तरह सि. 2 हि. में भी बहुत से अहम वाकआत वुकूअ पज़ीर हुए जिन में से चन्द बड़े बड़े वाक़िआत येह हैं।
*❝ किब्ले की तब्दीली #01 ❞*
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࿐ जब तक हुजूर ﷺ मक्का में रहे खानए काबा की तरफ मुंह कर के नमाज़ पढ़ते रहे मगर हिजरत के बाद जब आप ﷺ मदीना तशरीफ़ लाए तो खुदा वन्दे तआला का येह हुक्म हुवा कि आप अपनी नमाजों में "बैतुल मुकद्दस" को अपना किब्ला बनाएं। चुनान्चे आप सोलह या सत्तरह महीने तक बैतुल मुक़द्दस की तरफ रुख कर के नमाज़ पढ़ते रहे मगर आप के दिल की तमन्ना येही थी कि काबा ही को क़िब्ला बनाया जाए। चुनान्चे आप ﷺ अकषर आस्मान की तरफ़ चेहरा उठा उठा कर इस वहये इलाही का इन्तिज़ार फ़रमाते रहे यहां तक कि एक दिन अल्लाह तआला ने अपने हबीब ﷺ की कल्बी आरज़ू पूरी फ़रमाने के लिये कुरआन की येह आयत नाज़िल फ़रमा दी कि...
"हम देख रहे हैं बार बार आप का आस्मान की तरफ मुंह करना तो हम ज़रूर आप को फैर देंगे उस क़िब्ले की तरफ जिस में आप की खुशी है तो अभी आप फैर दीजिये अपना चेहरा मस्जिदे हराम की तरफ़"! (पा.2 अल-बक़रह)
࿐ चुनान्चे हुज़ूरे अक्दस ﷺ क़बीलए बनी सलमह की मस्जिद में नमाज़े जोहर पढ़ा रहे थे कि हालते नमाज़ ही में येह वहय नाज़िल हुई और नमाज़ ही में आप ने बैतुल मुक़द्दस से मुड़ कर खानए काबा की तरफ़ अपना चेहरा कर लिया और तमाम मुक्तदियों ने भी आप की पैरवी की।
इस मस्जिद को जहां येह वाकिआ पेश आया "मस्जिदुल क़िब्लतैन" कहते हैं और आज भी येह तारीख़ी मस्जिद जियारत गाहे खवास व अवाम है जो मदीना से तक़रीबन दो कीलो मीटर दूर जानिबे शिमाल मगरिब वाकेअ॒ है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 194 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 116╠✧◉*
*❝ किब्ले की तब्दीली #02 ❞*
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࿐ इस क़िब्ला बदलने को "तहवीले क़िब्ला" कहते हैं। तहवीले क़िब्ला से यहूदियों को बड़ी सख्त तक्लीफ़ पहुंची जब तक हुज़ूर ﷺ बैतुल मुक़द्दस की तरफ रुख कर के नमाज़ पढ़ते रहे तो और फख्र के साथ कहा करते थे कि मुहम्मद (ﷺ) भी हमारे ही क़िब्ले की तरफ रुख कर के इबादत करते हैं मगर जब क़िब्ला बदल गया तो यहूदी इस क़दर बरहम और नाराज़ हो गए कि वो यह ताना फेन लगे कि मुहम्मद (ﷺ) चूंकि हर बात में हम लोगों की मुखालफत करते हैं इस लिये इन्हों ने महज़ हमारी मुखालफ़त में क़िब्ला बदल दिया है।
࿐ इसी तरह मुनाफ़िक़ीन का गुरौह भी तरह तरह की नुक्ता चीनी और क़िस्म क़िस्म के एतिराज़ात करने लगा तो इन दोनों गुरौहों की ज़बान बन्दी और दहन दोज़ी के लिये खुदा वन्दे करीम ने येह आयतें नाज़िल फ़रमाई :
"अब कहेंगे बे वुकूफ़ लोगों में से किस ने फैर दिया मुसलमानों को इन को उस क़िब्ले से जिस पर वोह थे आप कह दीजिये कि पूरब पच्छिम सब अल्लाह ही का है वोह जिसे चाहे सीधी राह चलाता है और (ऐ महबूब) आप पहले जिस क़िब्ला पर थे हम ने वोह इसी लिये मुक़र्रर किया था कि देखें कौन रसूल की पैरवी करता है और कौन उलटे पाउं फिर जाता है और बिला शुबा येह बड़ी भारी बात थी मगर जिन को अल्लाह तआला ने हिदायत दे दी है (उन के लिये कोई बड़ी बात नहीं)"_ (पा. 2 अल-बक़रह)
࿐ पहली आयत में यहूदियों के ए'तिराज़ का जवाब दिया गया इबादत में क़िब्ले की कोई ख़ास जिहत ज़रूरी नहीं है। उस की इबादत के लिये पूरब, पच्छिम, उत्तर, दख्खन, सब जिहतें बराबर हैं अल्लाह तआला जिस जिहत को चाहे अपने बन्दों के लिये क़िब्ला मुक़र्रर फ़रमा दे लिहाजा इस पर किसी को एतिराज़ का कोई हक़ नहीं है, दूसरी आयत में मुनाफ़िक़ीन की ज़बान बन्दी की गई है जो तहवीले क़िब्ला के बाद हर तरफ़ येह प्रोपेगन्डा करने लगे थे कि पैग़म्बरे इस्लाम तो अपने दीन के बारे में खुद ही मुतरद्दिद हैं कभी बैतुल मुक़द्दस को क़िब्ला मानते हैं कभी कहते हैं कि काबा क़िब्ला है। आयत में तहवीले क़िब्ला की हिक्मत बता दी गई कि मुनाफ़िक़ जो महज़ नुमाइशी मुसलमान बन कर नमाज़ें पढा करते थे। वो किब्ले के बदलते ही बदल गए और और इस्लाम से मुनहरिफ हो गए इस तरह ज़ाहिर हो गया कि कौन सादिकुल इस्लाम है और कौन मुनाफ़िक़ और कौन रसूलुल्लाह ﷺ की पैरवी करने वाला है और कौन दीन से फिर जाने वाला।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 197 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 117╠✧◉*
*❝ लड़ाइयों का सिल्सिला #01 ❞*
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࿐ अब तक हुजुर ﷺ को खुदा की तरफ से सिर्फ येह हुक्म था कि दलाइल और मौइजए हसना के जरीए लोगों को इस्लाम की दावत देते रहें और मुसलमानों को कुफ्फार की ईज़ाओं पर सब्र का हुक्म था इसी लिये काफ़िरों ने मुसलमान पर बड़े बड़े जुल्मो सितम के पहाड़ तोड़े, मगर मुसलमानों ने इन्तिकाम के लिये कभी हथियार नहीं उठाया बल्कि हमेशा सब्रो तहम्मुल के साथ कुफ्फार की ईज़ाओं और तक्लीफ़ों को बरदाश्त करते रहे लेकिन हिजरत के बाद जब सारा अरब और यहूदी इन मुठ्ठी भर मुसलमानों के जानी दुश्मन हो गए और इन मुसलमानों को फ़ना के घाट उतार देने का अज़्म कर लिया तो खुदा वन्दे कुद्दूस ने मुसलमानों को येह इजाजत दी कि जो लोग तुम से जंग की इब्तिदा करें उन से तुम भी लड़ सकते हो।
࿐ चुनान्चे 12 सफ़र सि. 2 हि. तवारीखे इस्लाम में वोह यादगार दिन है जिस में ख़ुदा वन्दे किरदिगार ने मुसलमानों को कुफ्फार के मुकाबले में तलवार उठाने की इजाजत दी और येह आयत नाज़िल फ़रमाई कि :- जिन से लड़ाई की जाती है (मुसलमान) उन को भी अब लड़ने की इजाज़त दी जाती है क्यूं कि वोह (मुसलमान) मज़लूम हैं और खुदा इन की मदद पर यकीनन कादिर है! (पा.17, अल-हज, 39)
࿐ हज़रते इमाम मुहम्मद बिन शहाब ज़ोहरी अलैहिर्रामा का क़ौल है कि जिहाद की इजाज़त के बारे में येही वोह आयत है जो सब से पहले नाज़िल हुई। मगर तफ्सीरे इब्ने जरीर में है कि जिहाद के बारे में सब से पहले जो आयत उतरी वोह येह है :- खुदा की राह में उन लोगों से लड़ो जो तुम लोगों से लड़ते हैं। (पा.2 अल-बक़रह)
࿐ बहर हाल सि. 2 हि. में मुसलमानों को खुदा वन्दे तआला ने कुफ्फार से लड़ने की इजाजत दे दी मगर इब्तिदा में येह इजाज़त मश्रूरत थी या'नी सिर्फ उन्हीं काफिरों से जंग करने की इजाज़त थी जो मुसलमानों पर हम्ला करें। मुसलमानों को अभी तक इस की इजाजत नहीं मिली थी कि वोह जंग में अपनी तरफ से पहल करें लेकिन हक वाज़ेह हो जाने और बातिल जाहिर हो जाने के बा'द चूंकि तब्लीगे हक और अहकामे इलाही की नश्रो इशाअत हुज़ूर ﷺ पर फ़र्ज़ थी इस लिये तमाम उन कुफ़्फ़ार से जो इनाद के तौर पर हक को क़बूल करने से इन्कार करते थे जिहाद का हुक्म नाज़िल हो गया ख़्वाह वोह मुसलमानों से लड़ने में पहल करें या न करें क्यूं कि हक के ज़ाहिर हो जाने के बाद हक को क़बूल करने के लिये मजबूर करना और बातिल को जबरन तर्क कराना येह ऐन हिक्मत और बनी नौअ इन्सान की सलाह व फ़्लाह के लिये इन्तिहाई ज़रूरी था।
࿐ बहर हाल इस में कोई शक नहीं कि हिजरत के बा'द जितनी लड़ाइयां भी हुई अगर पूरे माहोल को गहरी निगाह से बगौर देखा जाए तो येही जाहिर होता है कि येह सब लड़ाइयां कुफ्फार की तरफ से मुसलमानों के सर पर मुसल्लत की गई और गरीब मुसलमान ब दरजए मजबूरी तलवार उठाने पर मजबूर हुए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 198 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 118╠✧◉*
*❝ लड़ाइयों का सिल्सिला #02 ❞*
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࿐ हुजुर ﷺ और आप के असहाब अपना सब कुछ मक्का में छोड़ कर इन्तिहाई बे कसी के आलम में मदीना चले आए थे, चाहिये तो येह था कि कुफ्फ़ारे मक्का अब इत्मीनान से बैठ रहते कि उन के दुश्मन या'नी रहमते आलम ﷺ और मुसलमान उन के शहर से निकल गए मगर हुवा येह कि इन काफ़िरों के गैज़ो ग़ज़ब का पारा इतना चढ़ गया कि अब येह लोग अहले मदीना के भी दुश्मने जान बन गए।
࿐ चुनान्चे हिजरत के चन्द रोज़ बाद कुफ्फ़ारे मक्का ने रईसे अन्सार "अब्दुल्लाह बिन उबय्य" के पास धम्कियों से भरा हुवा एक खत भेजा। ' "अब्दुल्लाह बिन उबय्य" वोह शख़्स है कि वाक़िअए हिजरत से पहले तमाम मदीना वालों ने इस को अपना बादशाह मान कर इस की ताजपोशी की तय्यारी कर ली थी मगर हुज़ूर ﷺ के मदीना तशरीफ़ आने के बाद येह स्कीम ख़त्म हो गई। चुनान्चे इसी ग़म व गुस्से में अब्दुल्लाह बिन उबय्य उम्र भर मुनाफ़िकों का सरदार बन कर इस्लाम की बैख़ कनी करता रहा और इस्लाम व मुसलमानों के खिलाफ़ तरह तरह की साज़िशों में मसरूफ़ रहा।
࿐ बहर कैफ़ कुफ़्फ़ारे मक्का ने इस दुश्मने इस्लाम के नाम जो ख़त लिखा उस का मज़मून येह है कि तुम ने हमारे आदमी (मुहम्मद ﷺ) को अपने यहां पनाह दे रखी है हम खुदा की क़सम खा कर कहते हैं कि या तो तुम लोग उन को क़त्ल कर दो या मदीने से निकाल दो वरना हम सब लोग तुम पर हम्ला कर देंगे और तुम्हारे तमाम लड़ने वाले जवानों को क़त्ल कर के तुम्हारी औरतों पर तसर्रुफ़ करेंगे।
࿐ जब हुज़ूर ﷺ को कुफ्फारे मक्का के इस तहदीद आमेज़ और ख़ौफ़नाक ख़त की ख़बर मालूम हुई तो आप ने अब्दुल्लाह बिन उबय्य से मुलाक़ात फ़रमाई और इर्शाद फ़रमाया कि “क्या तुम अपने भाइयों और बेटों को क़त्ल करोगे।" चूंकि अकषर अन्सार दामने इस्लाम में आ चुके थे इस लिये अब्दुल्लाह बिन उबय्य ने इस नुक्ते को समझ लिया और कुफ्फ़ारे मक्का के हुक्म पर अमल नहीं कर सका।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 200 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 119╠✧◉*
*❝ लड़ाइयों का सिल्सिला #03 ❞*
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࿐ ठीक उसी ज़माने में हज़रते सा'द बिन मुआज़ رضي الله عنه जो क़बीलए औस के सरदार थे उमरह अदा करने के लिये मदीने से मक्का गए और पुराने तअल्लुकात की बिना पर "उमय्या बिन ख़लफ़" के मकान पर कियाम किया। जब उमय्या ठीक दो पहर के वक़्त उन को साथ ले कर तवाफ़े काबा के लिये गया तो इत्तिफ़ाक़ से अबू जहल सामने आ गया और डांट कर कहा कि ऐ उमय्या ! येह तुम्हारे साथ कौन है ? उमय्या ने कहा कि येह मदीना के रहने वाले “सा'द बिन मुआज़" हैं। येह सुन कर अबू जहल ने तड़प कर कहा कि तुम लोगों ने बे धर्मों (मुहम्मद ﷺ और सहाबा) को अपने यहां पनाह दी है। खुदा की क़सम ! अगर तुम उमय्या के साथ में न होते तो बच कर वापस नहीं जा सकते थे। हज़रते सा'द बिन मुआज رضي الله عنه ने भी इन्तिहाई जुरअत और दिलेरी के साथ येह जवाब दिया कि अगर तुम लोगों ने हम को का'बे की जियारत से रोका तो हम तुम्हारी शाम की तिजारत का रास्ता रोक देंगे।
࿐ कुफ्फ़ारे मक्का ने सिर्फ इन्ही धम्कियों पर बस नहीं किया बल्कि वोह मदीने पर हम्ले की तय्यारियां करने लगे और हुज़ूर ﷺ और मुसलमानों के क़त्ले आम का मन्सूबा बनाने लगे। चुनांचे हुज़ूर ﷺ रातों को जाग जाग कर बसर करते थे और सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم पहरा दिया करते थे, कुफ्फ़ारे मक्का ने सारे अरब पर अपने अषरो रुसूख की वजह से तमाम क़बाइल में येह आग भड़का दी थी कि मदीने पर हम्ला कर के मुसलमानों को दुन्या से नेस्तो नाबूद करना ज़रूरी है।
࿐ ये सभी वुजूहात की मौजूदगी में हर आकिल को येह कहना ही पड़ेगा कि इन हालात में हुज़ूर ﷺ को हिफ़ाजते खुद इख़्तियारी के लिये कुछ न कुछ तदबीर करनी ज़रूरी ही थी ताकि अन्सार व मुहाजिरीन और खुद अपनी ज़िन्दगी की बक़ा और सलामती का सामान हो जाए।, चुनान्चे कुफ्फ़ारे मक्का के ख़तरनाक इरादों का इल्म हो जाने के बाद हुज़ूर ﷺ ने अपनी और सहाबा की हिफ़ाज़त खुद इख़्तियारी के लिये दो तदबीरों पर अमल दरआमद का फैसला फ़रमाया।
࿐ अव्वल : येह कि कुफ्फ़ारे मक्का की शामी तिजारत जिस पर इन की जिन्दगी का दारोमदार है इस में रुकावट डाल दी जाए ताकि वोह मदीने पर हम्ले का ख़याल छोड़ दें और सुल्ह पर मजबूर हो जाएं।
࿐ दुवुम : येह कि मदीने के अतराफ़ में जो क़बाइल आबाद हैं उन से अम्नो अमान का मुआहदा हो जाए ताकि कुफ्फ़ारे मक्का मदीने पर हम्ले की निय्यत न कर सकें।
࿐ चुनान्चे हुजूर ﷺ ने इन्ही दो तदबीरों के पेशे नज़र सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم के छोटे छोटे लश्करों को मदीने के अतराफ़ में भेजना शुरू कर दिया और बा'ज़ बा'ज़ लश्करों के साथ खुद भी तशरीफ़ ले गए। सहाबए किराम के येह छोटे छोटे लश्कर कभी कुफ्फ़ारे मक्का की नक्लो हरकत का पता लगाने के लिये जाते थे और कहीं बा'ज़ क़बाइल से मुआहदए अम्नो अमान करने के लिये रवाना होते थे। कहीं इस मक्सद से भी जाते थे कि कुफ्फ़ारे मक्का की शामी तिजारत का रास्ता बन्द हो जाए। इसी सिल्सिले में कुफ्फ़ारे मक्का और उन के हलीफ़ों से मुसलमानों का टकराव शुरूअ हुवा और छोटी बड़ी लड़ाइयों का सिल्सिला शुरू हो गया इन्ही लड़ाइयों को तारीखे इस्लाम में "ग़ज़वात व सराया" के उन्वान से बयान किया गया है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 201 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 120╠✧◉*
*❝ गज्वा व सरिय्या का फर्क ❞*
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࿐ यहां मुसन्निफ़ीने सीरत की येह इस्तिलाह याद रखनी ज़रूरी है कि वोह जंगी लश्कर जिस के साथ हुजूर ﷺ भी तशरीफ़ ले गए उस को "ग़ज़वा" कहते हैं और वोह लश्करों की टोलियां जिन में हुजूर ﷺ शामिल नहीं हुए उन को "सरिय्या" कहते हैं। "ग़जवात” या'नी जिन जिन लश्करों में हुज़ूर ﷺ शरीक हुए उन की तादाद में मुअर्रिखीन का इख़्तिलाफ़ है। “मवाहिबे लदुन्निय्या" में है कि "ग़ज़वात" की तादाद "सत्ताईस" है और रौ-ज़तुल अहबाब में येह लिखा है कि "ग़ज़वात की तादाद" एक क़ौल की बिना पर “इक्कीस” और बा’ज़ के नज़दीक "चौबीस" है और बा'ज़ ने कहा कि "पच्चीस" और बा'ज़ ने लिखा "छब्बीस" है।
࿐ मगर हज़रत इमाम बुखारी ने हज़रते जैद बिन अरकम सहाबी से जो रिवायत तहरीर की है इस में गज़वात की कुल तादाद "उन्नीस" बताई गई है, और इन में से जिन नव गज्वात में जंग भी हुई वोह येह हैं : (1) जंगे बद्र (2) जंगे उहुद (3) जंगे अहजाब (4) जंगे बनू कुरैज़ा (5) जंगे बनू अल मुस्तलिक (6) जंगे खैबर (7) फ़तेह मक्का (8) जंगे हुनैन (9) जंगे ताइफ।
࿐ “सराया" या'नी जिन लश्करों के साथ हुजूर ﷺ तशरीफ़ नहीं ले गए उन की तादाद बा'ज़ मुअर्रिख़ीन के नज़दीक "सेंतालीस" और बा'ज़ के नज़दीक "छप्पन" है। इमाम बुखारी ने मुहम्मद बिन इस्हाक़ से रिवायत किया है कि सब से पहला गज्वा “अब्वा" और सब से आखिरी गज्वा "तबूक" है और सब से पहला "सरिय्या" जो मदीने से जंग के लिये रवाना हुवा वोह “सरिय्यए हम्ज़ा" है जिस का ज़िक्र आगे आता है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 202 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 121╠✧◉*
*❝ गज़वात व सराया ❞*
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࿐ हिजरत के बाद का तक़रीबन कुल ज़माना "ग़ज़वात व सराया" के एहतिमाम व इनतिज़ाम में गुज़रा इस लिये कि अगर "ग़ज़वात" की कम से कम तादाद जो रिवायात में आई हैं। या'नी "उन्नीस" और "सराया" की कम से कम तादाद जो रिवायतों में है या'नी "सेंतालीस" शुमार कर ली जाए तो नव साल में हुजूर ﷺ को छोटी बड़ी "छियासठ" लड़ाइयों का सामना करना पड़ा लिहाज़ा "ग़ज़वात व सराया" का उन्वान हुज़ूर ﷺ की सीरते मुक़द्दसा का बहुत ही अज़ीमुश्शान हिस्सा है और بحمده تعالی इन तमाम गजवात व सराया और इन के वुजूह व अस्बाब का पूरा पूरा हाल इस्लामी तारीखों में मजकूर व महफूज है, मगर येह इतना लम्बा चौड़ा मज़मून है कि हमारी इस किताब का तंग दामन उन तमाम मज़ामीन को समेटने से बिल्कुल ही क़ासिर है लेकिन बड़ी मुश्किल येह है कि अगर हम बिल्कुल ही इन मज़ामीन को छोड़ दें तो यक़ीनन “सीरते रसूल" का मज़मून बिल्कुल ही नाक़िस और ना मुकम्मल रह जाएगा इस लिये मुख़्तसर तौर पर चन्द मशहूर ग़ज़वात व सराया का यहां जिक्र कर देना निहायत ज़रूरी है ताकि सीरते मुक़द्दसा का येह अहम बाब भी नाज़िरीन के लिये नज़र अफ़रोज़ हो जाए।
*❝ सरिय्यए हम्ज़ा ❞*
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࿐ हुज़ूरे ﷺ ने हिज़रत के बाद जब जिहाद की आयत नाज़िल हो गई तो सब से पहले जो एक छोटा सा लश्कर कुफ्फ़ार के मुकाबले के लिये रवाना फ़रमाया उस का नाम "सरिय्य हम्ज़ा" है। हुज़ूर ﷺ ने अपने चचा हज़रते हम्ज़ा बिन अब्दुल मुत्तलिब رضي الله عنه को एक सफ़ेद झन्डा अता फरमाया और उस झन्डे के नीचे सिर्फ 30 मुहाजिरीन को एक लश्करे कुफ्फार के मुक़ाबले के लिये भेजा जो तीन सो की तादाद में थे और अबू जहल उन का सिपहसालार था।
हज़रते हम्ज़ा رضي الله عنه "सैफुल बहर" तक पहुंचे और दोनों तरफ से जंग के लिये सफ़ बन्दी भी हो गई लेकिन एक शख़्स मज्दी बिन अम्र जुहनी ने जो दोनों फ़रीक़ का हलीफ़ था बीच में पड़ कर लड़ाई मौकूफ़ करा दी।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 204 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 122╠✧◉*
*❝ सरिय्यए उबैदा बिन अल हारिष ❞*
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࿐ इसी साल साठ या अस्सी मुहाजिरीन के साथ हुज़ूर ﷺ ने हज़रते उबैदा बिन अल हारिष رضي الله عنه को सफ़ेद झन्डे के साथ अमीर बना कर "राबिग" की तरफ रवाना फ़रमाया। इस सरिय्ये के अलम बरदार हज़रते मुस्तह बिन असासा رضي الله عنه थे। जब येह लश्कर "षनिय्यए मुर्रह" के मक़ाम पर पहुंचा तो अबू सुफ्यान और अबू जहल के लड़के इक्रमा की कमान में दो सो कुफ्फ़ारे कुरैश जम्अ थे दोनों लश्करों का सामना हुवा। हज़रते सा'द बिन अबी वक्कास कुफ्फ़ार पर तीर फेंका येह सब से पहला तीर था जो मुसलमानों की तरफ से कुफ्फ़ारे मक्का पर चलाया गया, हज़रते सा'द बिन अबी वक्कास رضي الله عنه ने कुल आठ तीर फेंके और हर तीर निशाने पर ठीक बैठा। कुफ्फ़ार इन तीरों की मार से घबरा कर फ़िरार हो गए इस लिये कोई जंग नहीं हुई।
*❝ सरिय्यए सा'द बिन अबी क्कास ❞*
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࿐ इसी साल माह जुल कादह में हज़रते सा'द बिन अबी वक्कास رضي الله عنه को बीस सुवारों के साथ हुजुर ﷺ ने इस मक्सद से भेजा कि येह लोग कुफ्फ़ारे कुरैश के एक लश्कर का रास्ता रोकें, इस सरिय्ये का झन्डा भी सफेद रंग का था और हज़रते मिक्दाद बिन अस्वद رضي الله عنه इस लश्कर के अलम बरदार थे। येह लश्कर रातों रात सफर करते हुए जब पांचवें दिन मकामे "खिरार" पर पहुंचा तो पता चला कि मक्का के कुफ़्फ़ार एक दिन पहले ही फ़िरार चुके हैं इस लिये किसी तसादुम की नौबत ही नहीं आई।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 205 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 123╠✧◉*
*❝ गज्वए अब्वा ❞*
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࿐ इस ग़ज़वे को "गज्वए वदान" भी कहते हैं। येह सब से पहला गज्वा है या'नी पहली मरतबा हुजूर ﷺ जिहाद के इरादे से माहे सफ़र सि. 2 हि. में साठ मुहाजिरीन को अपने साथ कर मदीने से बाहर निकले। हज़रते सा'द बिन उबादा رضي الله عنه को मदीने में अपना खलीफा बनाया और हज़रते हम्ज़ा رضي الله عنه को झन्डा दिया और मकामे "अब्वा" कुफ्फ़ार का पीछा करते हुए तशरीफ़ ले गए मगर कुफ्फ़ारे मक्का फ़िरार हो चुके थे इस लिये कोई जंग नहीं हुई। "अब्वा" मदीने से अस्सी मील दूर एक गाउं है जहां हुज़ूर ﷺ की वालिदए माजिदा हजरते आमिना का मजार है। यहां चन्द दिन ठहर कर क़बीलए बनू ज़मरा के सरदार "मख़्शी बिन अम्र ज़मरी" से इमदादे बाहमी का एक तहरीरी मुआहदा किया और मदीना वापस तशरीफ़ लाए इस गज़वे में पन्दरह दिन आप ﷺ मदीना से बाहर रहे।
*❝ गज्वए बवात ❞*
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࿐ हिजरत के तेरहवें महीने सि. 2 हि. में मदीने पर हज़रते सा'द बिन मुआज رضي الله عنه को हाकिम बना कर दो सो मुहाजिरीन साथ ले कर हुज़ूर ﷺ जिहाद की निय्यत से रवाना हुए। इस गज़वे का झन्डा भी सफ़ेद था और अलम बरदार हज़रते सा'द बिन अबी वक़्क़ास رضي الله عنه थे। इस गज़वे का मक्सद कुफ़्फ़ारे मक्का के एक तिजारती काफ़िले का रास्ता रोकना था। इस काफिले का सालार "उमय्या बिन खलफ़ जमही" था और इस क़ाफ़िले में एक सो कुरैशी कुफ्फ़ार और ढाई हज़ार ऊंट थे। हुज़ूर ﷺ इस काफ़िले की तलाश में मकामे "बवात" तक तशरीफ़ ले गए मगर कुफ्फ़ारे कुरैश का कहीं सामना नहीं हुवा इस लिये हुजूर ﷺ बिगैर किसी जंग के मदीना वापस तशरीफ़ लाए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 206 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 124╠✧◉*
*❝ गज्वए सफ्वान ❞*
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࿐ इसी साल "करज़ बिन जाफ़र फ़हरी" ने मदीने की चरागाह में डाका डाला और कुछ ऊंटों को हांक कर ले गया। हुजूर ﷺ ने हज़रते जैद बिन हारिषा رضي الله عنه को मदीने में अपना ख़लीफ़ा बना कर और हज़रते अली رضي الله عنه को अलम बरदार बना कर सहाबा की एक जमाअत के साथ वादिये सफ्वान तक उस डाकू का तआकुब किया मगर वोह इस क़दर तेज़ी के साथ भागा कि हाथ नहीं आया और हुजूर ﷺ मदीना वापस तशरीफ़ लाए। वादिये सफ्वान "बद्र" के क़रीब है इसी लिये बा'ज़ मुअरिख़ीन ने इस ग़ज़वे का नाम “गज्वए बद्रे ऊला" रखा है। इस लिये येह याद रखना चाहिये कि ग़ज्वए सफ्वान और गज्वर बदरे ऊला दोनों एक ही गजवे के दो नाम हैं।
*❝ गज्वए जिल उशैरह ❞*
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࿐ इसी सि. 2 हि. में कुफ्फ़ारे कुरैश का एक क़ाफ़िला माले तिजारत ले कर मक्का से शाम जा रहा था। हुजूर ﷺ डेढ़ सो या दो सो मुहाजिरीन सहाबा को साथ ले कर उस क़ाफ़िले का रास्ता रोकने के लिये मक़ामे “ज़िल उशैरह" तक तशरीफ़ ले गए जो "यम्बूअ" की बन्दर गाह के क़रीब है मगर यहां पहुंच कर मालूम हुवा कि क़ाफ़िला बहुत आगे बढ़ गया है। इस लिये कोई टकराव नहीं हुवा मगर काफ़िला जब शाम से वापस लौटा और हुजुर ﷺ उस की मुज़ाहमत के लिये निकले तो जंगे बद्र का मारिका पेश आ गया जिस का मुफ़स्सल ज़िक्र आगे आता है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 207 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 125╠✧◉*
*❝ सरिय्यए अब्दुल्लाह बिन हजश ❞*
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࿐ इसी साल माहे रजब सि . 2 हि . में हुजुर ﷺ ने हज़रते अब्दुल्लाह बिन हजश رضي الله عنه को अमीरे लश्कर बना कर उन की मा तहती में आठ या बारह मुहाजिरीन का एक जथ रवाना फ़रमाया, दो दो आदमी एक एक ऊंट पर सुवार थे। हुज़ूर ﷺ ने हज़रते अब्दुल्लाह बिन जहश رضی الله تعالی عنه को लिफ़ाफ़े में एक मोहर बन्द ख़त दिया और फ़रमाया कि दो दिन सफर करने के बा'द इस लिफ़ाफ़े को खोल कर पढ़ना और इस में जो हिदायात लिखी हुई हैं उन पर अमल करना। जब ख़त खोल कर पढ़ा तो उस में येह दर्ज था कि तुम ताइफ़ और मक्का के दरमियान मक़ामे “नखला" में ठहर कर कुरैश के क़ाफ़िलों पर नज़र रखो और सूरते हाल की हमें बराबर ख़बर देते रहो।
࿐ येह बड़ा ही खतरनाक काम था क्यूं कि दुश्मनों के ऐन मर्कज़ में क़ियाम कर के जासूसी करना गोया मौत के मुंह में जाना था मगर ये सब जां निषार बे धड़क मक़ामे “नखला" पहुंच गए। अजीब इत्तिफ़ाक़ कि रजब की आखिरी तारीख को येह लोग नखला में पहुंचे और इसी दिन कुफ़्फ़ारे कुरैश का एक तिजारती काफिला आया जिस में अम्र बिन अल हज़मी और अब्दुल्लाह बिन मुगीरा के दो लड़के उषमान व नौफ़िल और हकम बिन कैसान वगैरा थे और ऊंटों पर खजूर और दूसरा माले तिजारत लदा हुआ था।
࿐ अमीरे सरिय्या हज़रते अब्दुल्लाह बिन जहश رضی الله تعالی عنه ने अपने साथियों से फ़रमाया कि अगर हम इन क़ाफ़िले वालों को छोड़ दें तो येह लोग मक्का पहुंच कर हम लोगों की यहां मौजूदगी से मक्का वालों को बा ख़बर कर देंगे और हम लोगों को क़त्ल या गरिफ्तार करा देंगे और अगर हम इन लोगों से जंग करें तो आज रजब की आखिरी तारीख़ है लिहाजा शहरे हराम में जंग करने का गुनाह हम पर लाज़िम होगा। आखिर येही राय क़रार पाई कि इन लोगों से जंग कर के अपनी जान के खतरे को दफ्अ करना चाहिये। चुनान्चे हज़रते वाक़िद बिन अब्दुल्लाह तमीमी رضي الله عنه ने एक ऐसा ताक कर तीर मारा कि वोह अम्र बिन अल हज़मी को लगा और वोह उसी तीर से क़त्ल हो गया और उषमान व हकम को इन लोगों ने गरिफ्तार कर लिया, नौफ़िल भाग निकला। हज़रते अब्दुल्लाह बिन जहश رضي الله عنه ऊंटों और उन पर लदे हुए माल व अस्बाब को माले गनीमत बना कर मदीना लौट आए और हुजूर ﷺ की ख़िदमत में इस माले गनीमत का पांचवां हिस्सा पेश किया।
࿐ जो लोग क़त्ल या गरिफ्तार हुए वोह बहुत ही मुअज्ज खानदान के लोग थे। अम्र बिन अल हज़मी जो क़त्ल हुवा अब्दुल्लाह हज़मी का बेटा था। अम्र बिन अल हज़मी पहला काफ़िर था जो मुसलमानों के हाथ से मारा गया। जो लोग गरिफ्तार हुए या'नी उषमान और हकम, इन में से उषमान तो मुग़ीरा का पोता था जो कुरैश का एक बहुत बड़ा रईस शुमार किया जाता था और हकम बिन कैसान हश्शाम बिन अल मुगीरा का आज़ाद कर्दा गुलाम था। इस बिना पर इस वाकिए ने तमाम कुफ़्फ़ारे कुरैश को गैज़ो ग़ज़ब में आग बगूला बना दिया और "ख़ून का बदला ख़ून" लेने का नारा मक्का के हर कूचा व बाज़ार में गूंजने लगा और दर हक़ीक़त जंगे बद्र का मारिका इसी वाकिए का रद्दे अमल है।
࿐ चुनान्चे हज़रते उर्वह बिन जुबैर رضي الله عنه का बयान है कि जंगे बद्र और तमाम लड़ाइयां जो कुफ्फ़ारे कुरैश से हुई उन सब का बुन्यादी सबब अम्र बिन अल हज़मी का क़त्ल है जिस को हज़रते वाक़िद बिन अब्दुल्लाह तमीमी رضي الله عنه ने तीर मार कर क़त्ल कर दिया था
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 209 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 126╠✧◉*
*❝ जंगे बद्र ❞*
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࿐ बद्र मदीना से तकरीबन अस्सी मिल के फासले पर एक गांव का नाम है जहाँ ज़मानए जाहिलिय्यत में सालाना मेला लगता था। यहां एक कूंआं भी था जिस के मालिक का नाम "बद्र" था उसी के नाम पर इस जगह का नाम "बद्र" रख दिया गया। इसी मक़ाम पर जंगे बद्र का वोह अज़ीम मारिका हुवा जिस में कुफ्फ़ारे कुरैश और मुसलमानों के दरमियान सख़्त खूंरेज़ी हुई और मुसलमानों को वोह अजीमुश्शान फतह मुबीन नसीब हुई जिस के बाद इस्लाम की इज्ज़त व इक़बाल का परचम इतना सर बुलन्द हो गया कि कुफ्फ़ारे कुरैश की अज़मतो शौकत बिल्कुल ही ख़ाक में मिल गई।
࿐ अल्लाह तआला ने जंगे बद्र के दिन का नाम "यौमुल फुरकान" रखा। कुरआन की सूरए अन्फाल में तफ्सील के साथ और दूसरी सूरतों में इज्मालन बार बार इस मारिके का जिक्र फ़रमाया और इस जंग में मुसलमानों की फ़तहे मुबीन के बारे में एहसान जताते हुए खुदा वन्दे आलम ने कुरआने मजीद में इर्शाद फरमाया : और यक़ीनन खुदा वन्दे तआला ने तुम लोगों की मदद फ़रमाई बद्र में जब कि तुम लोग कमज़ोर और बे सरो सामान थे तो तुम लोग अल्लाह से डरते रहो ताकि तुम लोग शुक्र गुज़ार हो जाओ। (पा.4 आले इमरान, 123)
*❝ जंगे बद्र का सबब ❞*
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࿐ जंगे बद्र का अस्ली सबब तो जैसा कि हम तहरीर कर चुके हैं "अम्र बिन अल हज़मी" के कत्ल से कुफ्फ़ारे कुरैश में फैला हुवा जबर दस्त इश्तिआल था जिस से हर काफ़िर की जुबान पर येही एक नारा था कि "ख़ून का बदला ख़ून ले कर रहेंगे।” मगर बिल्कुल ना गहां येह सूरत पेश आ गई कि कुरैश का वोह काफ़िला जिस की तलाश में हुजुर ﷺ मकामे “ज़िल उशैरह" तक तशरीफ़ ले गए थे मगर वोह काफ़िला हाथ नहीं आया था बिल्कल अचानक मदीने में खबर मिली कि अब वोही काफिला मुल्के शाम से लौट कर मक्का जाने वाला है और येह भी पता चल गया कि इस क़ाफ़िले में अबू सुफ्यान बिन हर्ब व मखरिमा बिन नौफ़िल व अम्र बिन अल आस वगैरा कुल तीस या चालीस आदमी हैं और कुफ्फ़ारे कुरैश का माले तिजारत जो उस काफिले में है वोह बहुत ज्यादा है।
࿐ हुजूर ﷺ ने अपने असहाब से फ़रमाया कि कुफ्फ़ारे कुरैश की टोलियां लूटमार की निय्यत से मदीने के अतराफ़ में बराबर गश्त लगाती रहती हैं और "करज़ बिन जाबिर फ़हरी" मदीने की चरागाहों तक आ कर गारत गरी और डाका जनी कर गया है लिहाजा क्यूं न हम भी कुफ्फ़ारे कुरैश के इस काफिले पर हम्ला कर के उस को लूट लें ताकि कुफ्फ़ारे कुरैश की शामी तिजारत बन्द हो जाए और वोह मजबूर होकर हम से सुल्ह कर लें। हुज़ूर ﷺ का येह इर्शादे गिरामी सुन कर अन्सार व मुहाजिरीन इस के लिये तय्यार हो गए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 210 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 127╠✧◉*
*❝ मदीने से रवानगी ❞*
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࿐ चुनान्चे 12 रमज़ान सि. 2 हि. को बड़ी उजलत के साथ लोग चल पड़े, जो जिस हाल में था उसी हाल में रवाना हो गया। इस लश्कर में हुज़ूर ﷺ के साथ न ज़ियादा हथियार थे न फ़ौजी राशन की कोई बड़ी मिक्दार थी क्यूं कि किसी को गुमान भी न था कि इस सफ़र में कोई बड़ी जंग होगी।
࿐ मगर जब मक्का में येह ख़बर फैली कि मुसलमान मुसल्लह हो कर कुरैश का क़ाफ़िला लूटने के लिये मदीने चल पड़े हैं तो मक्का में एक जोश फैल गया और एक दम कुफ्फ़ारे कुरैश की फ़ौज का दल बादल मुसलमानों पर हम्ला करने के लिये तय्यार हो गया। जब हुजूर ﷺ को इस की इत्तिलाअ मिली तो आप ने सहाबए किराम को जम्अ फ़रमा कर सूरते हाल से आगाह किया और साफ़ साफ़ फ़रमा दिया कि मुमकिन है कि इस सफ़र में कुफ्फ़ारे कुरैश के काफ़िले से मुलाक़ात हो जाए और येह भी हो सकता है कि कुफ्फ़ारे मक्का के लश्कर से जंग की नौबत आ जाए। इर्शादे गिरामी सुन कर हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ व हज़रते उमर फारूक और दूसरे मुहाजिरीन ने बड़े जोशो खरोश का इज़्हार किया मगर हुज़ूर ﷺ अन्सार का मुंह देख रहे थे क्यूं कि किया अन्सार ने आपके दस्ते मुबारक पर बैअत करते वक़्त इस बात का अह्द किया था कि वोह उस वक़्त तलवार उठाएंगे जब कुफ्फ़ार मदीने पर चढ़ आएंगे और यहां मदीने से बाहर निकल कर जंग करने का मुआमला था।
࿐ अन्सार से क़बीलए खज़रज के सरदार हज़रते सा'द बिन उबादा رضی الله تعالی عنه हुज़ूर ﷺ का चेहरए अन्वर देख कर बोल उठे, कि या रसूलल्लाह ﷺ ! क्या आप का इशारा हमारी तरफ़ है ? खुदा की कसम ! हम वोह जां निषार हैं कि अगर आप का हुक्म हो तो हम समुन्दर में कूद पड़ें इसी तरह अन्सार के एक और मुअज्जज सरदार हज़रते मिक्दाद बिन अस्वद رضی الله تعالی عنه ने जोश में आ कर अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ ! मूसा (अलैहिस्सलाम) की क़ौम की तरह येह न कहेंगे कि आप और आप का खुदा जा कर लड़े बल्कि हम लोग आप के दाएं से, बाएं से, आगे से, पीछे से लड़ेंगे। अन्सार के इन दोनों सरदारों की तक़रीर सुन कर हुज़ूर ﷺ का चेहरा खुशी से चमक उठा।
मदीने से एक मील दूर चल कर हुजूर ﷺ ने अपने लश्कर का जाएजा लिया, जो लोग कम उम्र थे उन को वापस कर देने का हुक्म दिया क्यूं कि जंग के पुर ख़तर मौकअ पर भला बच्चों का क्या काम?
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 212 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 128╠✧◉*
*❝ नन्हा सिपाही ❞*
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࿐ मदीने से एक मील दूर चल कर हुजूर ﷺ ने अपने लश्कर का जाएजा लिया, जो लोग कम उम्र थे उन को वापस कर देने का हुक्म दिया क्यूं कि जंग के पुर ख़तर मौकअ पर भला बच्चों का क्या काम ? मगर इन्ही बच्चों में हज़रते सा'द बिन अबी वक्कास رضي الله عنه के छोटे भाई हज़रते उमैर बिन अबी वक्कास رضي الله عنه भी थे। जब उन से वापस होने को कहा गया तो वोह मचल गए और फूट फूट कर रोने लगे और किसी तरह वापस होने पर तय्यार न हुए। उन की बे क़रारी और गिर्या व जारी देख कर रहमते आलम ﷺ का कल्बे नाजुक मुतअष्षिर हो गया और आप ﷺ ने उन को साथ चलने की इजाजत दे दी। चुनान्चे हज़रते सा'द बिन अबी वक्कास رضی الله تعالی عنه ने उस नन्हे सिपाही के गले में भी एक तलवार हमाइल कर दी मदीने से रवाना होने के वक़्त नमाज़ों के लिये हज़रते इब्ने उम्मे मक्तूम رضي الله عنه को आप ने मस्जिदे नबवी का इमाम मुक़र्रर फ़रमा दिया था लेकिन जब आप मक़ामे “रौहा” में पहुंचे तो मुनाफ़िक़ीन और यहूदियों की तरफ से कुछ ख़तरा महसूस फ़रमाया इस लिये आप ﷺ अबू लुबाबा बिन अब्दुल मुन्जिर رضي الله عنه को मदीने का हाकिम मुक़र्रर फ़रमा कर इन को मदीना वापस जाने का हुक्म दिया और हज़रते आसिम बिन अदी رضي الله عنه को मदीने के चढ़ाई वाले गाउं पर निगरानी रखने का हुक्म सादिर फ़रमाया।
࿐ इन इनतिज़ामात के बा'द हुज़ूरे अकरम ﷺ "बद्र" की जानिब चल पड़े जिधर से कुफ्फ़ारे मक्का के आने की ख़बर थी। अब कुल फ़ौज की तादाद तीन सो तेरह थी जिन में साठ मुहाजिर और बाकी अन्सार थे। मन्जिल ब मन्ज़िल सफ़र फ़रमाते हुए जब आप मकामे “सफ़रा” में पहुंचे तो दो आदमियों को जासूसी के लिये रवाना फ़रमाया ताकि वोह काफ़िले का पता चलाएं कि वोह किधर है ? और कहां तक पहुंचा है ?
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 213 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 129╠✧◉*
*❝ अबू सुफ्यान की चालाकी ❞*
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࿐ उधर कुफ्फ़ारे कुरैश के जासूस भी अपना काम बहुत मुस्तइदी से कर रहे थे, जब हुज़ूर ﷺ मदीने से रवाना हुए तो अबू सुफ्यान को इस की ख़बर मिल गई, इस ने फ़ौरन ही “ज़मज़म बिन अम्र गिफ़ारी" को मक्का भेजा कि वोह कुरैश को इस की ख़बर दे ताकि वोह अपने काफ़िले की हिफ़ाज़त का इनतिज़ाम करें और खुद रास्ता बदल कर क़ाफ़िले को समुन्दर की जानिब ले कर रवाना हो गया।
࿐ अबू सुफ्यान का क़ासिद ज़मज़म बिन अम्र गिफारी जब मक्का पहुंचा तो उस वक्त के दस्तूर के मुताबिक़ कि जब कोई ख़ौफ़नाक खबर सुनानी होती तो ख़बर सुनाने वाला अपने कपड़े फाड़ कर और ऊंट की पीठ पर खड़ा हो कर चिल्ला चिल्ला कर खबर सुनाया करता था। ज़मज़म बिन अम्र गिफारी ने अपना कुरता फाड़ डाला और ऊंट की पीठ पर खड़ा हो कर ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगा कि ऐ अहले मक्का ! तुम्हारा सारा माले तिजारत अबू सुफ्यान के क़ाफ़िले में है और मुसलमानों ने इस काफ़िले का रास्ता रोक कर क़ाफ़िले को लूट लेने का अज्म कर लिया है लिहाज़ा जल्दी करो और बहुत जल्द अपने इस क़ाफ़िले को बचाने के लिये हथियार ले कर दौड़ पड़ो।
*❝ कुफ्फारे कुरैश का जोश ❞*
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࿐ जब मक्का में येह ख़ौफ़नाक खबर पहुंची तो इस कदर हलचल मच गई कि मक्का का सारा अम्नो सुकून गारत हो गया तमाम क़बाइले कुरैश अपने घरों से निकल पड़े, सरदाराने मक्का में से सिर्फ़ अबू लहब अपनी बीमारी की वजह से नहीं निकला, इस के सिवा तमाम रूअसाए कुरैश पूरी तरह मुसल्लह हो कर निकल पड़े और चूंकि मकामे नखला का वाक़िआ बिल्कुल ही ताज़ा था जिस में अम्र बिन अल हज़मी मुसलमानों के हाथ से मारा गया था और उस के काफिले को मुसलमानों ने लूट लिया था इस लिये कुफ्फ़ारे कुरैश जोशे इनतिक़ाम में आपे से बाहर हो रहे थे।
࿐ एक हज़ार का लश्करे जर्रार जिस का हर सिपाही पूरी तरह मुसल्लह, दौहरे हथियार, फ़ौज की खुराक का येह इनतिजाम था कि कुरैश के मालदार लोग या'नी अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब, उत्बा बिन रबीआ, हारिष बिन आमिर, नज़र बिन अल हारिष, अबू जहल, उमय्या वगैरा बारी बारी से रोजाना दस दस ऊंट जब्ह करते थे और पूरे लश्कर को खिलाते थे उ॒त्वा बिन रबीआ जो कुरैश का सब से बड़ा रईसे आज़म था इस पूरे लश्कर का सिपहसालार था।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 214 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 130╠✧◉*
*❝ अबू सुफ्यान बच कर निकल गया ❞*
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࿐ अबू सुफ्यान जब आम रास्ते से मुड़ कर साहिले समुन्दर के रास्ते पर चल पड़ा और ख़तरे के मक़ामात से बहुत दूर पहुंच गया और इस को अपनी हिफ़ाज़त का पूरा पूरा इतमीनान हो गया तो इस ने कुरैश को एक तेज रफ्तार कासिद के जरीए खत भेज दिया कि तूम लोग अपने माल और आदमियों को बचाने के लिये अपने घरों से हथियार ले कर निकल पड़े थे अब तुम लोग अपने अपने घरों को वापस लौट जाओ क्यूं कि हम लोग मुसलमानों की यलगार और लूटमार से बच गए हैं और जान व माल की सलामती के साथ हम मक्का पहुंच रहे हैं।
*❝ कुफ्फ़ार में इख़्तिलाफ़ ❞*
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࿐ अबू सुफ्यान का येह खत कुफ्फ़ारे मक्का को उस वक्त मिला जब वोह मकामे "जुहफा" में थे। खत पढ़ कर क़बीलए बनू ज़हरा और क़बीलए बनू अदी के सरदारों ने कहा कि अब मुसलमानों से लड़ने की कोई ज़रूरत नहीं है लिहाजा हम लोगों को वापस लौट जाना चाहिये, येह सुन कर अबू जहल बिगड़ गया और कहने लगा कि हम खुदा की क़सम ! इसी शान के साथ बद्र तक जाएंगे, वहां ऊंट जब्ह करेंगे और खूब खाएंगे, खिलाएंगे, शराब पियेंगे, नाचरंग की महफ़िलें जमाएंगे ताकि तमाम क़बाइले अरब पर हमारी अज़मत और शौकत का सिक्का बैठ जाए और वोह हमेशा हम से डरते रहें।
࿐ कुफ्फ़ारे कुरैश ने अबू जहल की राय पर अमल किया लेकिन बनू ज़हरा और बनू अदी के दोनों क़बाइल वापस लौट गए। इन दोनों क़बीलों के सिवा बाकी कुफ्फ़ारे कुरैश के तमाम क़बाइल जंगे बद्र में शामिल हुए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 215 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 131╠✧◉*
*❝ कुफ्फारे कुरैश बद्र में ❞*
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࿐ कुफ्फ़ारे कुरैश चूंकि मुसलमानों से पहले बद्र में पहुंच गए थे इस लिये मुनासिब जगहों पर उन लोगों ने अपना कब्ज़ा जमा लिया था। हुज़ूर ﷺ जब बद्र के करीब पहुंचे तो शाम के वक्त हज़रते अली, हज़रते जुबैर, हज़रते सा'द बिन अबी वक़्क़ास رضی الله تعالی عنهم को बद्र की तरफ़ भेजा ताकि येह लोग कुफ्फ़ारे कुरैश के बारे में ख़बर लाएं। इन हज़रात ने कुरैश के दो गुलामों को पकड़ लिया जो लश्करे कुफ्फ़ार के लिये पानी भरने पर मुक़र्रर थे। हुजूर ﷺ ने उन दोनों गुलामों से दरयाफ्त फ़रमाया कि बताओ उस कुरैशी फ़ौज में कुरैश के सरदारों में से कौन कौन है ? तो दोनों गुलामों ने बताया कि उत्बा बिन रबीआ, शैबा बिन रबीआ, अबुल बख़्तरी, हकीम बिन हिजाम, नौफ़िल बिन खुवैलद, हारिष बिन आमिर, नज़र बिन अल हारिष, जमआ बिन अल अस्वद, अबू जहल बिन हश्शाम, उमय्या बिन खलफ़, सुहैल बिन अम्र, अम्र बिन अब्दे वुद, अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब वगैरा सब इस लश्कर में मौजूद हैं। येह फेहरिस्त सुन कर हुजूर ﷺ अपने असहाब की तरफ़ मुतवज्जेह हुए और फ़रमाया कि मुसलमानो ! सुन लो ! मक्का ने अपने जिगर के टुकड़ों को तुम्हारी तरफ़ डाल दिया है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 216 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 132 ╠✧◉*
*❝ ताजदारे दो आलम ﷺ बद्र के मैदान में ❞*
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࿐ हुज़ूर ﷺ ने जब बद्र में नुज़ूल फ़रमाया तो ऐसी जगह पड़ाव डाला कि जहां न कोई कूंआं था न कोई चश्मा और वहां की ज़मीन इतनी रैतीली थी कि घोड़ों के पाउं ज़मीन में धंसते थे। येह देख कर हज़रते हुबाब बिन मुन्जिर رضي الله عنه ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ! आप ने पड़ाव के लिये जिस जगह को मुन्तख़ब फ़रमाया है येह वहय की रू से है या फ़ौजी तदबीर है ? आप ﷺ ने फरमाया कि इस के बारे में कोई वहय नहीं उतरी है। हज़रते हुबाब बिन मुन्जिर رضي الله عنه ने कहा कि फिर मेरी राय में जंगी तदाबीर की रू से बेहतर यह है कि हम कुछ आगे बढ़ कर पानी के चश्मों पर कब्ज़ा कर लें ताकि कुफ्फ़ार जिन कूंओं पर काबिज़ हैं वोह बेकार हो जाएं क्यूं कि इन्ही चश्मों से उन के कूंओं में पानी जाता है। हुज़ूर ﷺ ने उन की राय को पसन्द फ़रमाया और उसी पर अमल किया गया। खुदा की शान कि बारिश भी हो गई जिस से मैदान की गर्द और रैत जम गई जिस पर मुसलमानों के लिये चलना फिरना आसान हो गया और कुफ़्फ़ार की ज़मीन पर कीचड़ हो गई जिस से उन को चलने फिरने में दुश्वारी हो गई और मुसलमानों ने बारिश का पानी रोक कर जा बजा हौज़ बना लिये ताकि येह पानी गुस्ल और वुज़ू के काम आए।
࿐ इसी एहसान को अल्लाह ने कुरआन में इस तरह बयान फ़रमाया की : और खुदा ने आसमान से पानी बरसा दिया ताकि वो तुम लोगो को पाक करे! (सूरए अफ़आल)
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 217 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 133╠✧◉*
*जंगे बद्र #01*
*❝ सरवरे काएनात ﷺ की शब बेदारी ❞*
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࿐ 17 रमज़ान सि. 2 हि. जुमुआ की रात थी तमाम फ़ौज तो आराम व चैन की नींद सो रही थी मगर एक सरवरे काएनात ﷺ की जात थी जो सारी रात खुदा वन्दे आलम से लौ लगाए दुआ में मसरूफ़ थी। सुब्ह नुमूदार हुई तो आप ﷺ ने लोगों को नमाज़ के लिये बेदार फ़रमाया फिर नमाज़ के बाद कुरआन की आयाते जिहाद सुना कर ऐसा लरज़ा खैज़ और वल्वला अंगेज़ वाअज़ फ़रमाया कि मुजाहिदीने इस्लाम की रगों के खून का क़तरा क़तरा जोशो खरोश का समुन्दर बन कर तूफ़ानी मौजें मारने लगा और लोग मैदाने जंग, के लिये तय्यार होने लगे।
*❝ कौन कब ? और कहां मरेगा ? ❞*
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࿐ रात ही में चन्द जां निषारों के साथ आप ﷺ मैदाने जंग का मुआयना फ़रमाया, उस वक्त दस्ते मुबारक में एक छड़ी थी। आप उसी छड़ी से ज़मीन पर लकीर बनाते थे और येह फ़रमाते जाते थे कि येह फुलां काफ़िर के क़त्ल होने की जगह है और कल यहां फुलां काफ़िर की लाश पड़ी हुई मिलेगी। चुनान्चे ऐसा ही हुवा कि आप ﷺ ने जिस जगह जिस काफ़िर की कत्ल गाह बताई थी उस काफ़िर की लाश ठीक उसी जगह पाई गई उन में से किसी एक ने लकीर से बाल बराबर भी तजावुज नहीं किया।
इस हदीष से साफ़ और सरीह तौर पर येह मस्अला षाबित हो जाता है कि कौन कब ? और कहां मरेगा ? इन दोनों गैब की बातों का इल्म अल्लाह तआला ने अपने हबीब ﷺ को अता फरमाया था।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 218 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 134╠✧◉*
*जंगे बद्र #02*
*❝ लड़ाई टलते टलते फिर ठन गई ❞*
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࿐ कुफ्फ़ारे कुरैश लड़ने के लिये बेताब थे मगर उन लोगों में कुछ सुलझे दिलो दिमाग के लोग भी थे जो खूनरेज़ी को पसन्द नहीं करते थे। चुनान्चे हकीम बिन हिज़ाम जो बाद में मुसलमान हो गए बहुत ही सन्जीदा और नर्म ख़ू थे। उन्हों ने अपने लश्कर के सिपहसालार उत्बा बिन रबीआ से कहा कि आखिर इस खूनरेज़ी से क्या फ़ाएदा ? मैं आप को एक निहायत ही मुख़िलसाना मश्वरा देता हूं वोह येह है कि कुरैश का जो कुछ मुतालबा है वोह अम्र बिन अल हज़मी का ख़ून है और वोह आप का हलीफ़ है आप उस का खून बहा अदा कर दीजिये, इस तरह येह लड़ाई टल जाएगी और आज का दिन आप की तारीखी ज़िन्दगी में आप की नेक नामी की यादगार बन जाएगा कि आप के तदब्बुर से एक बहुत ही खौफनाक और खूनरेज़ लड़ाई टल गई। उत्बा बजाते खुद बहुत ही मुदब्बिर और नेक नफ्स आदमी था। इस ने बखुशी इस मुख़िलसाना मश्वरे को क़बूल कर लिया मगर इस मुआमले में अबू जहल की मन्जूरी भी ज़रूरी थी। चुनान्चे हकीम बिन हिज़ाम जब उत्बा बिन रबीआ का येह पैग़ाम ले कर अबू जहल के पास गए तो अबू जहल की रगे जहालत भड़क उठी और उस ने एक ख़ून खौला देने वाला ताना मारा और कहा कि हां हां ! मैं खूब समझता हूं कि उत्बा की हिम्मत ने जवाब दे दिया चूंकि इस का बेटा हुजैफ़ा मुसलमान हो कर इस्लामी लश्कर के साथ आया है इस लिये वोह जंग से जी चुराता है ताकि इस के बेटे पर आंच न आए।
࿐ फिर अबू जहल ने इसी पर बस नहीं किया बल्कि अम्र बिन अल हज़मी मक्तूल के भाई आमिर बिन अल हज़मी को बुला कर कहा कि देखो तुम्हारे मक्तूल भाई अम्र बिन अल हज़मी के खून का बदला लेने की सारी स्कीम तहस नहस हुई जा रही है क्यूं कि हमारे लश्कर का सिपह सालार उत्बा बुज़दिली जाहिर कर रहा है। येह सुनते ही आमिर बिन अल हज़मी ने अरब के दस्तूर के मुताबिक अपने कपड़े फाड़ डाले और अपने सर पर धूल डालते हुए "वा उमराह वा उमराह" का नारा मारना शुरूअ कर दिया। इस कार रवाई ने कुफ्फ़ारे कुरैश की तमाम फ़ौज में आग लगा दी और सारा लश्कर "खून का बदला खून" के नारों से गूंजने लगा और हर सिपाही जोश में आपे से बाहर हो कर जंग के लिये बेताब व बे क़रार हो गया।
࿐ उत्बा ने जब अबू जहल का ताना सुना तो वोह भी गुस्से में भर गया और कहा कि अबू जहल से कह दो कि मैदाने जंग बताएगा कि बुज़दिल कौन है ? येह कह कर लोहे की टोपी तलब की मगर उस का सर इतना बड़ा था कि कोई टोपी उस के सर पर ठीक नहीं बैठी तो मजबूरन उस ने अपने सर पर कपड़ा लपेटा और हथियार पहन कर जंग के लिये तय्यार हो गया।
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 135╠✧◉*
*जंगे बद्र #03*
*❝ मुजाहिदीन की सफ़ आराई ❞*
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࿐ 17 रमज़ान सि. 2 हि. जुमुआ के दिन हुजूर ﷺ ने मुजाहिदीने इस्लाम को सफ़ बन्दी का हुक्म दिया। दस्ते मुबारक में एक छड़ी थी उस के इशारे से आप सफे़ दुरुस्त फ़रमा रहे थे कि कोई शख़्स आगे पीछे न रहने पाए और येह भी हुक्म फ़रमा दिया कि बजुज़ ज़िक्रे इलाही के कोई शख्स किसी किस्म का कोई शोरो गुल न मचाए। ऐन ऐसे वक़्त में कि जंग का नक्कारा बजने वाला ही है दो ऐसे वाकआत दरपेश हो गए जो निहायत ही इब्रत खैज़ और बहुत ज़ियादा नसीहत आमोज़ हैं।
*❝ शिकमे मुबारक का बोसा ❞*
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࿐ हुज़ूर ﷺ अपनी छड़ी के इशारे से सफे़ सीधी फ़रमा रहे थे कि आप ने देखा कि हज़रते सवाद अन्सारी رضي الله عنه का पेट सफ़ से कुछ आगे निकला हुवा था। आप ने अपनी छड़ी से उन के पेट पर एक कोंचा दे कर फ़रमाया कि ऐ सवाद सीधे खड़े हो जाओ हज़रते सवाद رضی الله تعالی عنه ने कहा कि या रसूलल्लाह ﷺ! आप ने मेरे शिकम पर छड़ी मारी है मुझे आप से इस का क़िसास (बदला) लेना है। येह सुन कर आप ﷺ ने अपना पैराहन शरीफ़ उठा कर फ़रमाया कि सवाद ! लो मेरा शिकम हाज़िर है तुम इस पर छड़ी मार कर मुझ से अपना किसास ले लो। हज़रते सवाद رضی الله تعالی عنه ने दौड़ कर आप के शिकम मुबारक को चूम लिया और फिर निहायत ही वालिहाना अन्दाज़ में इनतिहाई गर्म जोशी के साथ आप के जिस्मे अक़दस से लिपट गए। आपने इर्शाद फ़रमाया कि ऐ सवाद! तुम ने ऐसा क्यूं किया ? अर्ज किया कि या रसूलल्लाह ﷺ ! मैं इस वक़्त जंग की सफ़ में अपना सर हथेली पर रख कर खड़ा हूं शायद मौत का वक़्त आ गया हो, इस वक़्त मेरे दिल में इस तमन्ना ने जोश मारा कि काश! मरते वक़्त मेरा बदन आप ﷺ के जिस्मे अत्हर से छू जाए। येह सुन कर हुज़ूर ﷺ ने हज़रते सवाद رضی الله تعالی عنه के इस जज्बए महब्बत की कद्र फ़रमाते हुए उन के लिये खैरो बरकत की दुआ फ़रमाई और हज़रते सवाद رضی الله تعالی عنه ने दरबारे रिसालत में माज़िरत करते हुए अपना किसास मुआफ कर दिया और तमाम सहाबए किराम हज़रते सवाद رضی الله تعالی عنه की इस आशिकाना अदा को हैरत से देखते हुए उन का मुंह तकते रह गए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 221 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 136╠✧◉*
*जंगे बद्र # 04*
*❝ अहद की पाबन्दी ❞*
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࿐ इत्तिफ़ाक़ से हज़रते हुज़ैफ़ा बिन अल यमान और हज़रते हसील رضی الله تعالی عنهما येह दोनों सहाबी कहीं से आ रहे थे। रास्ते में कुफ़्फ़ार ने इन दोनों को रोका कि तुम दोनों बद्र के मैदान में हज़रत मुहम्मद (ﷺ) की मदद करने के लिये जा रहे हो। उन दोनों ने इन्कार किया और जंग में शरीक न होने का अहद किया चुनान्चे कुफ्फ़ार ने इन दोनों को छोड़ दिया। जब येह दोनों बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए और अपना वाकिआ बयान किया तो हुज़ूर ﷺ ने इन दोनों को लड़ाई की सफ़ों से अलग कर दिया और इर्शाद फ़रमाया कि हम हर हाल में अहद की पाबन्दी करेंगे हम को सिर्फ खुदा की मदद दरकार है।
࿐ नाज़रीने किराम! गौर कीजिये। दुन्या जानती है कि जंग के मौक़अ पर खुसूसन ऐसी सूरत में जब कि दुश्मनों के अजीमुश्शान लश्कर का मुक़ाबला हो एक एक सिपाही कितना कीमती होता है मगर ताजदारे दो आलम ﷺ ने अपनी कमज़ोर फ़ौज को दो बहादुर और जांबाज़ मुजाहिदों से महरूम रखना पसन्द फ़रमाया मगर कोई मुसलमान किसी काफ़िर से भी बद अहदी और वादा खिलाफी करे इस को गवारा नहीं फ़रमाया।
࿐ अल्लाहु अकबर ! ऐ अक्वामे आलम के बादशाहो ! लिल्लाह मुझे येह बताओ कि क्या तुम्हारी तारीखे ज़िन्दगी के बड़े बड़े दफ्तरों में कोई ऐसा चमकता हुवा वरक भी है ? ऐ चांद व सूरज की दूरबीन निगाहो ! तुम खुदा के लिये बताओ ! क्या तुम्हारी आंखों ने भी कभी सफ्हए हस्ती पर पाबन्दिये अहद की कोई ऐसी मिषाल देखी है ? खुदा की कसम ! मुझे यकीन है कि तुम इस के जवाब में "नहीं" के सिवा कुछ भी नहीं कह सकते।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 222 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 137╠✧◉*
*जंगे बद्र #05*
*❝ दोनों लश्कर आमने सामने ❞*
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࿐ अब वोह वक़्त है कि मैदाने बद्र में हक्को बातिल की दोनों सफ़े एक दूसरे के सामने खड़ी हैं। कुरआन ए'लान कर रहा है कि : जो लोग बाहम लड़े उन में तुम्हारे लिये इब्रत का निशान है एक खुदा की राह में लड़ रहा था और दूसरा मुन्किरे खुदा था! (पा.3 आले इमरान)
࿐ हुज़ूर ﷺ मुजाहिदीने इस्लाम की सफ़ बन्दी से फ़ारिग हो कर मुजाहिदीन की क़रार दाद के मुताबिक अपने उस छप्पर में तशरीफ़ ले गए जिस को सहाबए किराम ने आप ﷺ की निशस्त के लिये बना रखा था। अब इस छप्पर की हिफाज़त का सुवाल बेहद अहम था क्यूं कि कुफ्फ़ारे कुरैश के हम्लों का अस्ल निशाना हुज़ूर ताजदारे दो आलम ﷺ ही की जात थी किसी की हिम्मत नहीं पड़ती थी कि इस छप्पर का पहरा दे लेकिन इस मौकअ पर भी आप के यारे गार हज़रते सिद्दीक़े बा वक़ार رضي الله عنه की किस्मत में यह सआदत लिखी थी कि वोह नंगी तलवार ले कर उस झोंपड़ी के पास डटे रहे और हज़रते साद बिन मुआज़ رضي الله عنه भी चन्द अन्सारीयों के साथ उस छप्पर के गिर्द पहरा देते रहे।
*❝ दुआए नबवी ❞*
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࿐ हुज़ूर सरवरे आलम ﷺ इस नाजुक घड़ी में जनाबे बारी से लौ लगाए गिर्या व ज़ारी के साथ खड़े हो कर हाथ फैलाए येह दुआ मांग रहे थे कि "खुदा वन्दा ! तूने मुझ से जो वादा फ़रमाया है आज उसे पूरा फ़रमा दे।" आप ﷺ पर इस क़दर रिक्कत और महवियत तारी थी कि जोशे गिर्या में चादरे मुबारक दोशे अन्वर से गिर पड़ती थी मगर आप को ख़बर नहीं होती थी, कभी आप सज्दे में सर रख कर इस तरह दुआ मांगते कि “इलाही ! अगर येह चन्द नुफूस हलाक हो गए तो फिर क़ियामत तक रूए ज़मीन पर तेरी इबादत करने वाले न रहेंगे।"
࿐ हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه आप के यारे ग़ार थे। आप ﷺ को इस तरह बे क़रार देख कर उन के दिल का सुकून व करार जाता रहा और उन पर रिक्क़त तारी हो गई और उन्हों ने चादरे मुबारक को उठा कर आप ﷺ के मुक़द्दस कन्धे पर डाल दी और आप ﷺ का दस्ते मुबारक थाम कर भर्राई हुई आवाज़ में बड़े अदब के साथ अर्ज़ किया कि हुज़ूर ! अब बस कीजिये खुदा ज़रूर अपना वा'दा पूरा फ़रमाएगा।
࿐ अपने यारे गार सिद्दीक़े जां निषार की बात मान कर आप ﷺ ने दुआ ख़त्म फरमा दी और आप ﷺ की ज़बाने मुबारक पर इस आयत का विर्द जारी हो गया कि : अन करीब (कुफ्फार की) फ़ौज को शिकस्त दे दी जाएगी और वोह पीठ फैर कर भाग जाएंगे!
आप इस आयत को बार बार पढ़ते रहे जिस में फ़त्ह मुबीन की बिशारत की तरफ़ इशारा था।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 223 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 138 ╠✧◉*
*जंगे बद्र #06*
*❝ लड़ाई किस तरह शुरू हुई ❞*
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࿐ जंग की इब्तिदा इस तरह हुई कि सब से पहले आमिर बिन अल हज्रमी जो अपने मक़तूल भाई उम्र बिल अल हज्रमी के खून का बदला लेने के लिये बे क़रार था जंग के लिये आगे बढ़ा उस के मुकाबले के लिये हज़रते उमर رضي الله عنه के गुलाम हज़रते महजअ رضي الله عنه मैदान में निकले और लड़ते हुए शहादत से सरफ़राज़ हो गए। फिर हज़रते हारिषा बिन सुराका अन्सारी رضي الله عنه हौज़ से पानी पी रहे थे कि ना गहां इन को कुफ़्फ़ार का एक तीर लगा और वोह शहीद हो गए।
*❝ हज़रते उमैर का शौके शहादत ❞*
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࿐ हुज़ूरे अक्दस ﷺ ने जब जोशे जिहाद का वाअज़ फ़रमाते हुए येह इर्शाद फ़रमाया कि मुसलमानो ! उस जन्नत की तरफ़ बढ़े चलो जिस की चौड़ाई आस्मान व ज़मीन के बराबर है तो हज़रते उमैर बिन अल हमाम अन्सारी رضي الله عنه बोल उठे कि या रसूलल्लाह ! क्या जन्नत की चौड़ाई ज़मीन व आस्मान के बराबर है ? इर्शाद फ़रमाया कि : "हां" येह सुन कर हज़रते उमैर ने कहा : "वाह वा" आप ने दरयाफ्त फ़रमाया कि क्यूं ऐ उमैर ! तुम ने "वाह वा" किस लिये कहा ? अर्ज किया कि या रसूलल्लाह ﷺ ! फ़क़त इस उम्मीद पर कि मैं भी जन्नत में दाखिल हो जाऊं। आप ﷺ ने खुश खबरी सुनाते हुए इर्शाद फ़रमाया कि ऐ उमैर ! तू जन्नती है। हजरते उमैर رضی الله تعالی عنه उस वक्त खजूरें खा रहे थे। येह बिशारत सुनी तो मारे खुशी के खजूरें फेंक कर खड़े हो गए और एक दम कुफ़्फ़ार के लश्कर पर तलवार ले कर टूट पड़े और जांबाजी के साथ लड़ते हुए शहीद हो गए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 225 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 139╠✧◉*
*जंगे बद्र #07*
*❝ कुफ्फ़ार का सिपह सालार ❞*
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࿐ कुफ्फ़ार का सिपह सालार उत्बा बिन रबीआ अपने सीने पर शुतर मुर्ग़ का पर लगाए हुए अपने भाई शैबा बिन रबीआ और अपने बेटे वलीद बिन उत्बा को साथ ले कर गुस्से में भरा हुवा अपनी सफ़ से निकल कर मुक़ाबले की दावत देने लगा। इस्लामी सफ़ों में से हज़रते औफ़ व हज़रते मुआ़ज़ व अब्दुल्लाह बिन रवाहा رضی الله تعالی عنهم मुकाबले को निकले। उत्बा ने इन लोगों का नाम व नसब पूछा, जब मालूम हुवा कि येह लोग अन्सारी हैं तो उत्बा ने कहा कि हम को तुम लोगों से कोई गरज नहीं। फिर उत्बा ने चिल्ला कर कहा ऐ मुहम्मद (ﷺ) येह लोग हमारे जोड़ के नहीं हैं अशराफ़े कुरैश को हम से लड़ने के लिये मैदान में भेजिये। हुज़ूर ﷺ ने हज़रते हम्ज़ा व हज़रते अली व हज़रते उबैदा رضی الله تعالی عنهم को हुक्म दिया कि आप लोग इन तीनों के मुक़ाबले के लिये निकलें।
࿐ चुनान्चे येह तीनो बहादुराने इस्लाम मैदान में निकले। चूंकि येह तीनों हजरात सर पर ख़ौद पहने हुए थे जिस से इन के चेहरे छुप गए थे इस लिये उत्बा ने इन हज़रात को नहीं पहचाना और पूछा कि तुम कौन लोग हो? जब उन तीनों ने अपने अपने नाम व नसब बताए तो उत्बा ने कहा कि "हां अब हमारा जोड़ है" जब इन लोगों में जंग शुरू हुई तो हज़रते हम्ज़ा व हज़रते अली व हज़रते उबैदा رضی الله تعالی عنهم ने अपनी ईमानी शुजाअत का ऐसा मुज़ाहरा किया कि बद्र की ज़मीन दहल गई और कुफ़्फ़ार के दिल थर्रा गए और उन की जंग का अन्जाम येह हुवा कि हज़रते हम्ज़ा رضی الله تعالی عنه ने उत्बा का मुकाबला किया, दोनों इनतिहाई बहादुरी के साथ लड़ते रहे मगर आखिर कार हज़रते हम्ज़ा رضی الله تعالی عنه ने अपनी तलवार के वार से मार मार कर उत्बा को ज़मीन पर ढेर कर दिया।
࿐ वलीद ने हज़रते अली رضی الله تعالی عنه से जंग की, दोनों ने एक दूसरे पर बढ़ बढ़ कर क़ातिलाना हम्ला किया और खूब लड़े लेकिन असदुल्लाहिल गालिब की जुल फ़िकार ने वलीद को मार गिराया और वोह जिल्लत के साथ क़त्ल हो गया।
࿐ मगर उत्बा के भाई शैबा ने हज़रते उबैदा رضی الله تعالی عنه को इस तरह जख्मी कर दिया कि वोह जख्मों की ताब न ला कर ज़मीन पर बैठ गए। येह मन्ज़र देख कर हज़रते अली رضی الله تعالی عنه झपटे और आगे बढ़ कर शैबा को कत्ल कर दिया और हज़रते उबैदा رضی الله تعالی عنه को अपने कांधे पर उठा कर बारगाहे रिसालत में लाए, उन की पिंडली टूट कर चूर चूर हो गई थी और नली का गूदा बह रहा था, इस हालत में अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ! क्या मैं शहादत से महरूम रहा ? इर्शाद फ़रमाया कि नहीं हरगिज़ नहीं ! बल्कि तुम शहादत से सरफ़राज़ हो गए। हज़रते उबैदा رضی الله تعالی عنه ने कहा कि या रसूलल्लाह ﷺ! अगर आज मेरे और आप के चचा अबू तालिब ज़िन्दा होते तो वोह मान लेते कि उन के इस शेर का मिस्दाक़ मैं हूं "कि हम मुहम्मद ﷺ को उस वक़्त दुश्मनो के हवाले करेंगे जब हम इन के गिर्द लड़ लड़ कर पछाड़ दिये जाएंगे और हम अपने बेटों और बीवियों को भूल जाएंगे। "
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 226 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 140╠✧◉*
*जंगे बद्र #08*
*❝ हज़रते जुबैर की तारीखी बरछी ❞*
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࿐ इस के बाद सईद बिन अल आस का बेटा "उबैदा" सर से पाउं तक लोहे के लिबास और हथियारों से छुपा हुवा सफ़ से बाहर निकला और येह कह कर इस्लामी लश्कर को ललकारने लगा कि "मैं अबू करश हूं" उस की येह मगुरूराना ललकार सुन कर हुज़ूर ﷺ के फूफीज़ाद भाई हज़रते जुबैर बिन अल अव्वाम رضي الله عنه जोश में भरे हुए अपनी बरछी ले कर मुक़ाबले के लिये निकले मगर येह देखा कि उस की दोनों आंखों के सिवा उस के बदन का कोई हिस्सा भी ऐसा नहीं है जो लोहे से छुपा हुवा न हो। हज़रते जुबैर رضی الله تعالی عنه ने ताक कर उस की आंख में इस ज़ोर से बरछी मारी कि वोह ज़मीन पर गिरा और मर गया। बरछी उस की आंख को छेदती हुई खोपड़ी की हड्डी में चुभ गई थी। हज़रते जुबैर رضی الله تعالی عنه ने जब उस की लाश पर पाउं रख कर पूरी ताकत से खींचा तो बड़ी मुश्किल से बरछी निकली लेकिन उस का सर मुड़ कर ख़म हो गया।
࿐ येह बरछी एक तारीख़ी यादगार बन कर बरसों तबर्रुक बनी रही। हुज़ूर ﷺ ने हज़रते ज़ुबैर رضی الله تعالی عنه से येह बरछी तलब फ़रमा ली और उस को हमेशा अपने पास रखा फिर हुज़ूर ﷺ के बाद चारों खुलफ़ाए राशिदीन رضی الله تعالی عنهم के पास मुन्तकिल होती रही। फिर हज़रते जुबैर رضی الله تعالی عنه के फ़रज़न्द हज़रते अब्दुल्लाह बिन जुबैर رضی الله تعالی عنهما के पास आई यहां तक कि सि. 73 हि. में जब बनू उमय्या के ज़ालिम गवर्नर हज्जाज बिन यूसुफ़ षक़फ़ी ने इन को शहीद कर दिया तो येह बरछी बनू उमय्या के क़ब्ज़े में चली गई फिर इस के बाद ला पता हो गई।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 227 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 141╠✧◉*
*जंगे बद्र #09*
*❝ अबू जहल जिल्लत के साथ मारा गया ❞*
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࿐ हज़रते अब्दुर्रहमान बिन औफ رضي الله عنه का बयान है कि मैं सफ़ में खड़ा था और मेरे दाएं बाएं दो नौ उम्र लड़के खड़े थे, एक ने चुपके से पूछा कि चचाजान ! क्या आप अबू जहल को पहचानते हैं ? मैं ने उस से कहा कि क्यूं भतीजे ! तुम को अबू जहल से क्या काम है ? उस ने कहा कि चचाजान ! मैं ने खुदा से येह अह्द किया है कि मैं अबू जहल को जहां देख लूंगा या तो उस को क़त्ल कर दूंगा या खुद लड़ता हुवा मारा जाऊंगा क्यूं कि वोह अल्लाह के रसूल ﷺ का बहुत ही बड़ा दुश्मन है। हज़रते अब्दुर्रहमान رضی الله تعالی عنه कहते है कि मैं हैरत से उस नौ जवान का मुंह ताक रहा था कि दूसरे नौ जवान ने भी मुझ से येही कहा। इतने में अबू जहल तलवार घुमाता हुवा सामने आ गया और मैं ने इशारे से बता दिया कि अबू जहल येही है, बस फिर क्या था येह दोनों लड़के तलवारें ले कर उस पर इस तरह झपटे जिस तरह बाज़ अपने शिकार पर झपटता है। दोनों ने अपनी तलवारों से मार मार कर अबू जहल को ज़मीन पर ढेर कर दिया। येह दोनों लड़के हज़रते मुअव्वज़ और हज़रते मुआज رضی الله تعالی عنهما थे जो “अफ़राअ" के बेटे थे।
࿐ अबू जहल के बेटे इकरमा ने अपने बाप के कातिल हज़रते मुआज رضی الله تعالی عنه पर हम्ला कर दिया और पीछे से उन के बाएं शाने पर तलवार मारी जिस से उन का बाज़ू कट गया लेकिन थोड़ा सा चमड़ा बाकी रह गया और हाथ लटकने लगा। हज़रते मुआज رضی الله تعالی عنه ने इकरमा का पीछा किया और दूर तक दौड़ाया मगर इकरमा भाग कर बच निकला।
࿐ हज़रते मुआज رضي الله عنه इस हालत में भी लड़ते रहे लेकिन कटे हुए हाथ के लटकने से ज़हमत हो रही थी तो उन्हों ने अपने कटे हुए हाथ को पाउं से दबा कर इस ज़ोर से खींचा कि तस्मा अलग हो गया और फिर वोह आज़ाद हो कर एक हाथ से लड़ते रहे।
࿐ हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद رضي الله عنه अबू जहल के पास से गुज़रे, उस वक्त अबू जहल में कुछ कुछ जिन्दगी की रमक़ बाक़ी थी। हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद رضی الله تعالی عنه उस की गरदन को अपने पाउं से रौंद कर फ़रमाया कि "तू ही अबू जहल है ! बता आज तुझे अल्लाह ने कैसा रुस्वा किया।" अबू जहल ने इस हालत में भी घमन्ड के साथ येह कहा कि तुम्हारे लिये येह कोई बड़ा कारनामा नहीं है मेरा कत्ल हो जाना इस से ज़ियादा नहीं है कि एक आदमी को उस की क़ौम ने कत्ल कर दिया। हां ! मुझे इस का अफसोस है कि काश ! मुझे किसानों के सिवा कोई दूसरा शख़्स कत्ल करता। हज़रते मुअव्वज़ और हज़रते मुआज رضی الله تعالی عنهما चूंकि येह दोनों अन्सारी थे और अन्सार खेतीबाड़ी का काम करते थे और क़बीलए कुरैश के लोग किसानों को बड़ी हकारत की नज़र से देखा करते थे इस लिये अबू जहल ने किसानों के हाथ से क़त्ल होने को अपने लिये काबिले अफ्सोस बताया।
࿐ जंग ख़त्म हो जाने के बाद हुज़ूरे अकरम ﷺ हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद رضی الله تعالی عنه को साथ ले कर जब अबू जहल की लाश के पास से गुज़रे तो लाश की तरफ इशारा कर फ़रमाया कि अबू जहल इस ज़माने का “फ़िरऔन" है। फिर अब्दुल्लाह बिन मसऊद رضی الله تعالی عنه ने अबू जहल का सर काट कर ताजदारे दो आलम ﷺ के क़दमों पर डाल दिया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 228 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 142╠✧◉*
*जंगे बद्र #10*
*❝ अबुल बख्तरी का कत्ल ❞*
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࿐ हुज़ूर ﷺ ने जंग शुरू होने से पहले ही येह फ़रमा दिया था कि कुछ लोग कुफ्फ़ार के लश्कर में ऐसे भी हैं जिन को कुफ्फ़ारे मक्का दबाव डाल कर लाए हैं ऐसे लोगों को क़त्ल नहीं करना चाहिये। उन लोगों के नाम भी हुज़ूर ﷺ ने बता दिये थे। इन्ही लोगों में से अबुल बख़्तरी भी था जो अपनी खुशी से मुसलमानों से लड़ने के लिये नहीं आया था बल्कि कुफ्फ़ारे कुरैश उस पर दबाव डाल कर ज़बर दस्ती कर के लाए थे। ऐन जंग की हालत में हज़रते मजज़र बिन ज़ियाद رضي الله عنه की नज़र अबुल बख़्तरी पर पड़ी जो अपने एक गहरे दोस्त जुनादा बिन मलीहा के साथ घोड़े पर सुवार था। हज़रते मजज़र ने फ़रमाया कि ऐ अबुल ! चूंकि हुजूर ﷺ ने हम लोगों को तेरे क़त्ल से मना फ़रमाया है इस लिये मैं तुझ को छोड़ देता हूं। अबुल बख़्तरी ने कहा कि मेरे साथी जुनादा के बारे में तुम क्या कहते हो ? तो हज़रते मजज़र رضی الله تعالی عنه ने साफ़ साफ़ कह दिया कि इस को हम ज़िन्दा नहीं छोड़ सकते। येह सुन कर अबुल बख़तरी तैश में आ गया और कहा कि मैं अरब की औरतों का येह ताना सुनना पसन्द नहीं कर सकता कि अबुल बख़्तरी ने अपनी जान बचाने के लिये अपने साथी को तन्हा छोड़ दिया। येह कह कर अबुल बख़्तरी ने रज्ज़ का येह शे'र पढ़ा कि "एक शरीफ़ जादा अपने साथी को कभी हरगिज़ नहीं छोड़ सकता जब तक कि मर न जाए या अपना रास्ता न देख ले"।
*❝ उमय्या की हलाकत ❞*
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࿐ उमय्या बिन खुलफ़ बहुत ही बड़ा दुश्मने रसूल था। जंगे बद्र में जब कुफ्र व इस्लाम के दोनों लश्कर गुथ्थम गुथ्था हो गए तो उमय्या अपने पुराने तअल्लकात की बिना पर हजरते अब्दर्रहमान बिन औफ رضي الله عنه को रहम आ गया और आप ने चाहा कि उमय्या बच कर निकल भागे मगर हज़रते बिलाल رضي الله عنه ने उमय्या को देख लिया। हज़रते बिलाल رضی الله تعالی عنه जब उमय्या के गुलाम थे तो उमय्या ने इन को बहुत ज़ियादा सताया था इस लिये जोशे इनतिकाम में हज़रते बिलाल رضی الله تعالی عنه ने अन्सार को पुकारा, अन्सारी लोग दफ्अतन टूट पड़े। हज़रते अब्दुर्रहमान बिन औफ رضی الله تعالی عنه ने उमय्या से कहा कि तुम ज़मीन पर लैट जाओ वोह लेट गया तो हज़रते अब्दुर्रहमान बिन औफ رضی الله تعالی عنه उस को बचाने के लिये उस के ऊपर लैट कर उस को छुपाने लगे लेकिन हज़रते बिलाल और अन्सार رضی الله تعالی عنهم ने उन की टांगों के अन्दर हाथ डाल कर और बगल से तलवार घोंप घोंप कर उस को कत्ल कर दिया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 230 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 143╠✧◉*
*जंगे बद्र #11*
*❝ फ़िरिश्तों की फौज ❞*
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࿐ जंगे बद्र में अल्लाह तआला ने मुसलमानों की मदद के लिये आस्मान से फ़िरिश्तों का लश्कर उतार दिया था। पहले एक हज़ार फ़िरिश्ते आए फिर तीन हज़ार हो गए इस के बाद पांच हज़ार हो गए। (कुरआन, सूरए आले इमरान व अन्फाल)
࿐ जब खूब घुमसान का रन पड़ा तो फ़िरिश्ते किसी को नज़र नहीं आते थे मगर उन की हर्बो ज़ब के अषरात साफ़ नज़र आते थे। बा'ज़ काफ़िरों की नाक और मुंह पर कोड़ों की मार का निशान पाया जाता था, कहीं बिगैर तलवार मारे सर कट कर गिरता नज़र आता था, येह आस्मान से आने वाले फ़िरिश्तों की फ़ौज के कारनामे थे।
*❝ कुफ्फार ने हथियार डाल दिये ❞*
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࿐ उत्बा, शैबा, अबू जहल वगैरा कुफ्फारे कुरैश के सरदारों की हलाकत से कुफ्फ़ारे मक्का की कमर टूट गई और उन के पाउं उखड़ गए और हथियार डाल कर भाग खड़े हुए और मुसलमानों ने उन लोगों को गरिफ्तार करना शरू कर दिया।
࿐ इस जंग में कुफ़्फ़ार के सत्तर आदमी क़त्ल और सत्तर आदमी गरिफ्तार हुए। बाक़ी अपना सामान छोड़ कर फ़िरार हो गए इस जंग में कुफ्फ़ारे मक्का को ऐसी जबर दस्त शिकस्त हुई कि उन की अस्करी ताकत ही फ़ना हो गई। कुफ्फ़ारे कुरैश के बड़े बड़े नामवर सरदार जो बहादुरी और फन्ने सिपह गरी में यक्ताए रोजगार थे एक एक कर के सब मौत के घाट उतार दिये गए। इन नामवरों में उत्बा, शैबा, अबू जहल, अबुल बख़्तरी, जम्आ, आस बिन हश्शाम, उमय्या बिन खलफ़, मुनब्बेह बिन अल हज्जाज, उक्बा बिन अबी मुईत, नज़र बिन अल हारिष वगैरा कुरैश के सरताज थे येह सब मारे गए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 232 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 144╠✧◉*
*जंगे बद्र #12*
*❝ शुहदाए बद्र ❞*
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࿐ जंगे बद्र में कुल चौदह मुसलमान शहादत सरफ़राज़ हुए जिन में से छे मुहाजिर और आठ अन्सार थे। शुहदाए मुहाजिरीन के नाम येह हैं: (1) हज़रते उबैदा बिन अल हारिस (2) हज़रते उमैर बिन अबी वक्कास (3) हज़रते जुश्शिमालैन उमैर बिन अब्दे अम्र (4) हज़रते आकिल बिन अबू बुकैर (5) हज़रते महजअ (6) हज़रते सवान बिन बैज़ा और अन्सार के नामों की फेहरिस्त येह है : (7) हज़रते सा 'द बिन खैसमा (8) हज़रते मुबश्शिर बिन अब्दुल मुन्जिर (9) हज़रते हारिसा बिन सुराका (10) हज़रते मुअव्वज़ बिन अफ़रा (11) हज़रते उमैर बिन हमाम (12) हज़रते राफ़ेअ बिन मुअल्ला (13) हज़रते औफ बिन अफ़रा (14) हज़रते यज़ीद बिन हारिस! (رَضِىَ اللّٰهُ تَعَالٰى عَنْهُمْ اَجْمَعِين)
࿐ इन शुहदाए बद्र में से तेरह हज़रात तो मैदाने बद्र ही में मदफ़न हुए मगर हज़रते उबैदा बिन हारिस رضی الله تعالی عنه ने चूंकि बद्र से वापसी पर मन्जिले "सफ़रा" में वफात पाई इसलिये इन की कब्र शरीफ़ मन्जिले "सफ़रा" में है।
*❝ बद्र का गढ़ा ❞*
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࿐ हुज़ूरे अकरम ﷺ का हमेशा येह तुर्जे अमल रहा कि जहां कभी कोई लाश नज़र आती थी आप ﷺ उस को दफ्न करवा देते थे लेकिन जंगे बद्र में क़त्ल होने वाले कुफ्फार चूंकि तादाद में बहुत ज़ियादा थे, सब को अलग अलग दफ्न करना एक दुश्वार काम था इस लिये तमाम लाशों को आप ﷺ ने बद्र के एक गढ़े में डाल देने का हुक्म फ़रमाया। चुनान्चे सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم ने तमाम लाशों को घसीट घसीट कर गढ़े में डाल दिया। उमय्या बिन ख़लफ़ की लाश फूल गई थी, सहाबए किराम ने उस को घसीटना चाहा तो उस के आज़ा अलग अलग होने लगे इस लिये उस की लाश वहीं मिट्टी में दबा दी गई।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 233 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 145╠✧◉*
*जंगे बद्र #13*
*❝ कुफ्फार की लाशों से खिताब ❞*
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࿐ जब कुफ्फ़ार की लाशें बद्र के गढ़े में डाल दी गई तो हुज़ूर सरवरे आलम ﷺ ने उस गढ़े के कनारे खड़े हो कर मक्तूलीन का नाम ले कर इस तरह पुकारा कि ऐ उत्बा बिन रबीआ ! ऐ शैबा बिन रबीआ ! ऐ फुलां ! ऐ फुलां ! क्या तुम लोगों ने अपने रब के वादे को सच्चा पाया ? हम ने तो अपने रब के वादे को बिल्कुल ठीक ठीक सच पाया। हज़रते उमर फारूक رضي الله عنه ने जब देखा कि हुज़ूर ﷺ कुफ्फ़ार की लाशों से खिताब फरमा रहे हैं तो उन को बड़ा तअज्जुब हुवा। चुनान्चे उन्हों ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ! क्या आप इन बे रूह के जिस्मों से कलाम फरमा रहे हैं ? येह सुन कर हुज़ूर ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया कि ऐ उमर ! कसम खुदा की जिस के क़ब्ज़ए कुदरत में मेरी जान है कि तुम (ज़िन्दा लोग) मेरी बात को इन से ज़ियादा नहीं सुन सकते लेकिन इतनी बात है कि येह मुर्दे जवाब नहीं दे सकते।
*❝ ज़रूरी तम्बीह ❞*
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࿐ बुखारी वगैरा की हदीष से येह मस्अला षाबित होता है कि जब कुफ्फ़ार के मुर्दे ज़िन्दों की बात सुनते हैं तो फिर मुअमिनीन खुसूसन औलिया, शुहदा, अम्बिया عَلَیْھِمُ السَّلَام वफ़ात के बाद यक़ीनन हम ज़िन्दों का सलाम व कलाम और हमारी फ़रियादें सुनते हैं और हुज़ूर ﷺ ने जब कुफ्फार की मुर्दा लाशों को पुकारा तो फिर खुदा के बरगुज़ीदा बन्दों या'नी वलियों, शहीदों और नबियों को "उन की वफ़ात के बाद पुकारना भला क्यूं न," *जाइज़ व दुरुस्त होगा?* इसी लिये तो हुज़ूरे अकरम ﷺ जब मदीने के कब्रिस्तान में तशरीफ़ ले जाते तो क़ब्रों की तरफ अपना रुखे अन्वर कर के यूं फ़रमाते कि "ऐ क़ब्र वालो ! तुम पर सलामती हो खुदा हमारी और तुम्हारी मग़फ़रत फ़रमाए, तुम लोग हम से पहले चले गए और हम तुम्हारे बाद आने वाले हैं। और हुज़ूर ﷺ ने अपनी उम्मत को भी येही हुक्म दिया है और सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم को इस की तालीम देते थे।
࿐ इन हदीषों से ज़ाहिर है कि मुर्दे ज़िन्दों का सलाम व कलाम सुनते हैं वरना जाहिर है कि जो लोग सुनते ही नहीं उन को सलाम करने से क्या हासिल?
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 234 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 146╠✧◉*
*जंगे बद्र #14*
*❝ मदीने को वापसी ❞*
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࿐ फ़तह के बाद तीन दिन तक हुज़ूर ﷺ ने "बद्र" में क़ियाम फ़रमाया फिर तमाम अम्वाले गनीमत और कुफ़्फ़ार कैदियों को साथ ले कर रवाना हुए। जब "वादिये सफ़रा" में पहुंचे तो अम्वाले गनीमत को मुजाहिदीन के दरमियान तक्सीम फ़रमाया। हज़रते उषमाने गनी رضي الله عنه की जौजए मोहतरमा हज़रत बीबी रुक़य्या رضي الله عنها जो हुज़ूर ﷺ की साहिब जादी थीं जंगे बद्र के मौकअ पर बीमार थीं इस लिये हुज़ूर ﷺ ने हज़रते उषमाने गनी رضی الله تعالی عنه को साहिब जादी की तीमार दारी के लिये मदीने में रहने का हुक्म दे दिया था इस लिये वोह जंगे बद्र में शामिल न हो सके मगर हुज़ूर ﷺ ने माले गनीमत में से उन को मुजाहिदीने बद्र के बराबर ही हिस्सा दिया और उन के बराबर ही अज्रो षवाब की बिशारत भी दी इसी लिये हज़रते उषमाने गनी رضی الله تعالی عنه को भी असहाबे बद्र की फ़ेहरिस्त में शुमार किया जाता है।
*❝ मुजाहिदीने बद्र का इस्तिकबाल ❞*
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࿐ हुज़ूर ﷺ ने फत्ह के बाद हज़रते जैद बिन हारिषा رضي الله عنه को फ़तहे मुबीन की खुश खबरी सुनाने के लिये मदीना भेज दिया था। चुनान्चे हज़रते जैद बिन हारिषा رضی الله تعالی عنه येह खुश खबरी ले कर जब मदीना पहुंचे तो तमाम अहले मदीना जोशे मुसर्रत के साथ हुजूर ﷺ की आमद आमद के इनतिज़ार में बे क़रार रहने लगे और जब तशरीफ़ आवरी की ख़बर पहुंची तो अहले मदीना ने आगे बढ़ कर मक़ामे "रौहा" में आप का पुरजोश इस्तिकबाल किया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 236 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 147╠✧◉*
*जंगे बद्र #15*
*❝ कैदियों के साथ सुलूक ❞*
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࿐ कुफ्फ़ारे मक्का जब असीराने जंग बन कर मदीने में आए तो उन को देखने के लिये बहुत बड़ा मजमा इकठ्ठा हो गया और लोग उन को देख कर कुछ न कुछ बोलते रहे। हुजूर ﷺ की मोहतरमा हज़रते बीबी सौदह رضي الله عنها उन कैदियों को देखने के लिये तशरीफ़ लाईं और येह देखा कि उन कैदियों में इन के एक क़रीबी रिश्तेदार "सुहैल" भी हैं तो वोह बे साख़ता बोल उठीं कि "ऐ सुहैल ! तुम ने भी औरतों की तरह बेड़ियां पहन लीं तुम से येह न हो सका कि बहादुर मर्दों की तरह लड़ते हुए क़त्ल हो जाते।"
࿐ इन कैदियों को हुजूर ﷺ ने सहाबा में तक्सीम फ़रमा दिया और येह हुक्म दिया कि इन कैदियों को आराम के साथ रखा जाए। चुनान्चे दो दो, चार चार कैदी सहाबा के घरों में रहने लगे और सहाबा ने इन लोगों के साथ येह हुस्ने सुलूक किया कि इन लोगों को गोश्त रोटी वगैरा हस्बे मक्दूर बेहतरीन खाना खिलाते थे और खुद खजूरें खा कर रह जाते थे।
࿐ कैदियों में हुजूर ﷺ के चचा हजरते अब्बास के बदन पर कुरता नहीं था लेकिन वोह इतने लम्बे कद के आदमी थे कि किसी का कुरता उन के बदन पर ठीक नहीं उतरता था अब्दुल्लाह बिन उबय्य (मुनाफ़िक़ीन का सरदार) चूंकि क़द में इन के बराबर था इस लिये इस ने अपना कुरता इन को पहना दिया। बुख़ारी में येह रिवायत है कि हुज़ूर ﷺ ने अब्दुल्लाह बिन उबय्य के कफ़न के लिये जो अपना पैराहन शरीफ़ अता फरमाया था वोह उसी एहसान का बदला था।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 237 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 148╠✧◉*
*जंगे बद्र #16*
*❝ असीराने जंग का अन्जाम ❞*
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࿐ इन कैदियों के बारे में हुजूर ﷺ ने सहाबा رضی الله تعالی عنهم से मश्वरा फ़रमाया कि इन के साथ क्या मुआमला किया जाए? हज़रते उमर رضي الله عنه ने येह राय दी कि इन सब दुश्मनाने इस्लाम को क़त्ल कर देना चाहिये और हम में से हर शख़्स अपने अपने क़रीबी रिश्तेदार को अपनी तलवार से क़त्ल करे। मगर हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ رضي الله عنه ने येह मश्वरा दिया कि आखिर येह सब लोग अपने अजीजो अकारिब ही हैं लिहाजा इन्हें क़त्ल न किया जाए बल्कि इन लोगों से बतौरे फ़िदया कुछ रक़म ले कर इन सब को रिहा कर दिया जाए। इस वक़्त मुसलमानों की माली हालत बहुत कमज़ोर है फ़िदये की रक़म से मुसलमानों की माली इमदाद का सामान भी हो जाएगा और शायद आयन्दा अल्लाह तआला इन लोगों को इस्लाम की तौफीक नसीब फ़रमाए।
࿐ हुज़ूर रहमते आलम ﷺ ने हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ की सन्जीदा राय को पसन्द फ़रमाया और उन कैदियों से चार चार हज़ार दिरहम फ़िदया ले कर उन लोगों को छोड़ दिया। जो लोग मुफ़िलसी की वजह से फ़िदया नहीं दे सकते थे वोह यूं ही बिला फ़िदया छोड़ दिये गए।
࿐ इन कैदियों में जो लोग लिखना जानते थे उन में से हर एक का फिदिया येह था कि वोह अन्सार के दस लड़कों को लिखना सिखा दें।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 239 📚*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 149╠✧◉*
*जंगे बद्र #17*
*❝ हज़रते अब्बास का फ़िदया ❞*
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࿐ अन्सार ने हुज़ूर ﷺ से येह दर ख़्वास्त अर्ज की, कि या रसूलल्लाह ﷺ! हज़रते अब्बास हमारे भान्जे हैं लिहाजा हम इन का फ़िदया मुआफ़ करते हैं। लेकिन आप ﷺ ने येह दर ख्वास्त मन्जूर नहीं फ़रमाई। हज़रते अब्बास कुरैश के उन दस दौलत मन्द रईसों में से थे जिन्हों ने लश्करे कुफ्फ़ार के राशन की ज़िम्मादारी अपने सर ली थी, इस गरज़ के लिये हज़रते अब्बास के पास बीस ओकिया सोना था। चूंकि फ़ौज को खाना खिलाने में अभी हज़रते अब्बास की बारी नहीं आई थी इस लिये वोह सोना अभी तक इन के पास महफूज़ था। उस सोने को हुज़ूर ﷺ ने माले गनीमत में शामिल फ़रमा लिया और हज़रते अब्बास से मुतालबा फ़रमाया कि वोह अपना और अपने दोनों भतीजों अकील बिन अबी तालिब और नौफिल बिन हारिष और अपने हलीफ़ उत्बा बिन अम्र बिन जहदम चार शख़्सों का फ़िदया अदा करें।
࿐ हज़रते अब्बास ने कहा कि मेरे पास कोई माल ही नहीं है, मैं कहां से फ़िदया अदा करूं ? येह सुन कर हुजूर ﷺ ने फ़रमाय चचाजान ! आप का वोह माल कहां है ? जो आप ने जंगे बद्र के लिये रवाना होते वक़्त अपनी बीवी "उम्मुल फ़ज़्ल" को दिया था और येह कहा था कि अगर मैं इस लड़ाई में मारा जाऊं तो इस में से इतना इतना माल मेरे लड़कों को दे देना। येह सुन कर हज़रते अब्बास ने कहा कि क़सम है उस खुदा की जिस ने आप को हक़ के साथ भेजा है कि यकीनन आप अल्लाह के रसूल हैं क्यूं कि उस माल का इल्म मेरे और मेरी बीवी उम्मुल फ़ज़्ल के सिवा किसी को नहीं था।
࿐ चुनान्चे हज़रते अब्बास ने अपना और अपने दोनों भतीजों और अपने हलीफ़ का फ़िदया अदा कर के रिहाई हासिल की फिर इस के बाद हज़रते अब्बास और हज़रते अकील और हज़रते नौफ़िल तीनों मुशर्रफ ब इस्लाम हो गए। رضی الله تعالی عنهم
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 239 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 150╠✧◉*
*जंगे बद्र #18*
*❝ हज़रते जैनब का हार ❞*
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࿐ जंगे बद्र के कैदियों में हुजूर ﷺ के दामाद अबुल आस बिन अर्रबीअ भी थे। येह हाला बिन्ते खुवैलद के लड़के थे और हाला हज़रते बीबी ख़दीजा رضي الله عنها की हक़ीक़ी बहन थीं इस लिये हज़रते बीबी ख़दीजा ने हुज़ूर ﷺ से मश्वरा ले कर अपनी लड़की हज़रते जैनब का अबुल आस बिन अर्रबीअ से निकाह कर दिया था। हुज़ूर ﷺ ने जब अपनी नुबुव्वत का एलान फ़रमाया तो आप की साहिब जादी हज़रते जैनब رضي الله عنها ने तो इस्लाम कुबूल कर लिया मगर इन के शोहर अबुल आस मुसलमान नहीं हुए और न हज़रते ज़ैनब رضی الله تعالی عنها को अपने से जुदा किया। अबुल आस बिन अर्रबीअ ने हज़रते जैनब رضی الله تعالی عنها के पास क़ासिद भेजा कि फ़िदये की रक़म भेज दें। हज़रते ज़ैनब رضی الله تعالی عنها को उन की वालिदा हज़रते बीबी ख़दीजा رضی الله تعالی عنها ने जहेज़ में एक क़ीमती हार भी दिया था। हज़रते जैनब رضی الله تعالی عنها के साथ वोह हार भी अपने गले से उतार कर मदीना भेज दिया। जब हुज़ूर ﷺ की नज़र उस हार पर पड़ी तो हज़रते बीबी खदीजा رضی الله تعالی عنها और उन की महब्बत की याद ने कल्बे मुबारक पर ऐसा रिक्त अंगेज़ अषर डाला कि आप रो पड़े और सहाबा से फ़रमाया कि “अगर तुम लोगों की मरज़ी हो तो बेटी को उस की मां की यादगार वापस कर दो” येह सुन कर तमाम सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم ने सरे तस्लीम ख़म कर दिया और येह हार हज़रते बीबी जैनब के पास मक्का भेज दिया गया।
࿐ अबुल आस रिहा हो कर मदीने से मक्का आए और हज़रते बीबी ज़ैनब رضی الله تعالی عنها को मदीना भेज दिया। अबुल आस बहुत बड़े ताजिर थे येह मक्का से अपना सामाने तिजारत ले कर शाम गए और वहां से खूब नफ्अ कमा कर मक्का आ रहे थे कि मुसलमान मुजाहिदीन ने इन के काफिले पर हम्ला कर के इन का सारा माल व अस्बाब लूट लिया और येह माले गनीमत तमाम सिपाहियों पर तक्सीम भी हो गया। अबुल आस छुप कर मदीना पहुंचे और हज़रते जैनब رضي الله عنها ने इन को पनाह दे कर अपने घर में उतारा। हुजूर ﷺ ने सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم से फ़रमाया कि अगर तुम लोगों की खुशी हो तो अबुल आस का माल व सामान वापस कर दो। फ़रमाने रिसालत का इशारा पाते ही तमाम मुजाहिदीन ने सारा माल व सामान अबुल आस के सामने रख दिया।
࿐ अबुल आस अपना सारा माल व अस्बाब ले कर मक्का आए और अपने तमाम तिजारत के शरीकों को पाई पाई का हिसाब समझा कर और सब को उस के हिस्से की रकम अदा कर अपने मुसलमान होने का एलान कर दिया और अहले मक्का से कह दिया कि मैं यहां आ कर और सब का पूरा पूरा हिसाब अदा कर के मदीने जाता हूं ताकि कोई येह न कह सके कि अबुल आस हमारा रुपिया ले कर तक़ाज़े के डर से मुसलमान हो कर मदीना भाग गया। इस के बाद हज़रते अबुल आस رضي الله عنه मदीना आ कर बीबी ज़ैनब رضي الله عنها के साथ रहने लगे।
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 151╠✧◉*
*जंगे बद्र #19*
*❝ मक्तूलीने बद्र का मातम ❞*
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࿐ बद्र में कुफ्फ़ारे कुरैश की शिकस्ते फ़ाश की ख़बर जब मक्का में पहुंची तो ऐसा कोहराम मच गया कि घर घर मातम कदा बन गया मगर इस ख़याल से कि मुसलमान हम पर हंसेंगे अबू सुफ्यान ने तमाम शहर में ए'लान करा दिया कि ख़बरदार कोई शख़्स रोने न पाए।
࿐ इस लड़ाई में अस्वद बिन अल मुत्तलिब के दो लड़के “अकील" और "ज़मआ" और एक पोता "हारिष बिन जमआ" क़त्ल हुए थे। इस सदमए जांकाह से अस्वद का दिल फट गया था वोह चाहता था कि अपने इन मक्तूलों पर खूब फूट फूट कर रोए ताकि दिल की भड़ास निकल जाए लेकिन क़ौमी गैरत के ख़याल से रो नहीं सकता था मगर दिल ही दिल में घुटता और कुढ़ता रहता था और आंसू बहाते बहाते अन्धा हो गया था, एक दिन शहर में किसी औरत के रोने की आवाज़ आई तो इस ने अपने गुलाम को भेजा कि देखो कौन रो रहा है ? क्या बद्र के मक्तूलों पर रोने की इजाज़त हो गई है ? मेरे सीने में रन्जो ग़म की आग सुलग रही है, मैं भी रोने के लिये बे क़रार हूं। गुलाम ने बताया कि एक औरत का ऊंट गुम गया है इसी ग़म में रो रही है। अस्वद शाइर था, येह सुन कर बे इख़्तियार उस की ज़बान से येह दर्दनाक अश्आर निकल पड़े जिस के लफ्ज़ लफ्ज़ से खून टपक रहा है....
࿐ क्या वो औरत एक ऊंट के गुम हो जाने पर रो रही है? और बे ख्वाबी ने उस की नींद को रोक दिया है।
तो वो एक ऊंट पर न रोए लेकिन "बद्र" पर रोए जहां किस्मतों ने कोताही की है।
अगर तुझ को रोना है तो "अकील" पर रोया कर और "हरीष" पर रोया कर को शेरों के शेर है।
और उन सब पर रोया कर मगर उन सभों का नाम मत ले और "अबू हकीमा" "जमआ" का तों कोइ हमसर ही नहीं है।
*🌹✨ सीरते मुस्तफा ﷺ ✨🌹*
*📑 ◉✧╣पोस्ट नं.➪ 152╠✧◉*
*जंगे बद्र # 20*
*❝ उमैर और सफ्वान की ख़ौफ़नाक साजिश ❞*
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࿐ एक दिन उमैर और सफ्वान दोनों हतीमे काबा में बैठे हुए मक्तूलीने बद्र पर आंसू बहा रहे थे। एक दम सफ्वान बोल उठा कि ऐ उमैर! मेरा बाप और दूसरे रूअसाए मक्का जिस तरह बद्र में कत्ल हुए उन को याद कर के सीने में दिल पाश पाश हो रहा है और अब ज़िन्दगी में कोई मज़ा बाक़ी नहीं रह गया है। उमैर ने कहा कि ऐ सफ्वान! तुम सच कहते हो मेरे सीने में भी इनतिकाम की आग भड़क रही है, मेरे अइज्जा व अक़रबा भी बद्र में बे दर्दी के साथ क़त्ल किये गए हैं और मेरा बेटा मुसलमानों की कैद में है। खुदा की क़सम! अगर मैं क़र्जदार न होता और बाल बच्चों की फ़िक्र से चार न होता तो अभी अभी मैं तेज़ रफ्तार घोड़े पर सुवार हो कर मदीने जाता और दम ज़दन में धोके से मुहम्मद (ﷺ) को कत्ल कर के फिरार हो जाता। यह सुन कर सफ्वान ने कहा कि ऐ उमैर! तुम अपने कर्ज और बच्चों की ज़रा भी फ़िक्र न करो। मैं खुदा के घर में अहद करता हूं कि तुम्हारा सारा क़र्ज़ अदा कर दूंगा और मैं तुम्हारे बच्चों की परवरिश का भी ज़िम्मादार हूं।
࿐ इस मुआहदे के बाद उमैर सीधा घर आया और ज़हर में बुझाई हुई तलवार ले कर घोड़े पर सवार हो गया। जब मदीने में मस्जिदे नबवी के करीब पहुंचा तो हज़रते उमर رضي الله عنه ने उस को पकड़ लिया और उस का गला दबाए और गरदन पकड़े हुए दरबारे रिसालत में ले गए। हुजूर ﷺ ने पूछा कि क्यूं उमैर ! किस इरादे से आए हो ? जवाब दिया कि अपने बेटे को छुड़ाने के लिये। आप ﷺ ने फ़रमाया कि क्या तुम ने और सफ्वान ने हतीमे काबा में बैठ कर मेरे क़त्ल की साज़िश नहीं की है? उमैर येह राज़ की बात सुन कर सन्नाटे में आ गया और कहा कि मैं गवाही देता हूं कि बेशक आप अल्लाह के रसूल हैं क्यूं कि खुदा की क़सम ! मेरे और सफ़वान के सिवा इस राज़ की किसी को भी ख़बर न थी। उधर मक्का में सफ्वान हुज़ूर ﷺ के कत्ल की खबर सुनने के लिये इनतिहाई बे करार था और दिन गिन गिन कर उमैर के आने का इनतिज़ार कर रहा था मगर जब इस ने ना गहां येह सुना कि उमैर मुसलमान हो गया तो फ़र्ते हैरत से उस के पाउं के नीचे से ज़मीन निकल गई और वोह बोखला गया।
࿐ हज़रते उमैर मुसलमान हो कर मक्का आए और जिस तरह वोह पहले मुसलमानों के खून के प्यासे थे अब वोह काफ़िरों की जान के दुश्मन बन गए और इनतिहाई बे ख़ौफ़ी और बहादुरी के साथ मक्का में इस्लाम की तब्लीग करने लगे यहां तक कि इन की दावते इस्लाम से बड़े बड़े काफ़िरों के अंधेरे दिलों में नूरे ईमान की रोशनी से उजाला हो गया और येही उमैर अब सहाबिये रसूल हज़रते इमैर رضي الله عنه कहलाने लगे।
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 153* ༺❘
*❝ जंगे बद्र # 21 ¶ मुजाहिदीने बद्र के फ़ज़ाइल ❞*
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࿐ जो सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم जंगे बद्र के जिहाद में शरीक हो गए वोह तमाम सहाबा में एक खुसूसी शरफ़ के साथ मुमताज़ हैं और इन खुश नसीबों के फ़ज़ाइल में एक बहुत ही अज़ीमुश्शान फजीलत यह है कि इन सआदत मन्दों के बारे में हुजूरे अकरम ﷺ ने येह फ़रमाया कि "बेशक अल्लाह तआला अहले बद्र से वाक़िफ़ है और उस ने येह फ़रमा दिया है कि तुम अब जो अमल चाहो करो बिला शुबा तुम्हारे लिये जन्नत वाजिब हो चुकी है या (येह फ़रमाया) कि मैं ने तुम्हें बख़्श दिया है।"
࿐ *अबू लहब की इब्रतनाक मौत :-* अबू लहब जंगे बद्र में शरीक नहीं हो सका, जब कुफ्फ़ारे कुरैश शिकस्त खा कर मक्का वापस आए तो लोगों की जुबानी जंगे बद्र के हालात सुन कर अबू लहब को इनतिहाई रन्जो मलाल हुवा इस के बाद ही वोह चेचक की बड़ी बीमारी में मुब्तला हो गया जिस से उस का तमाम बदन सड़ गया और आठवें दिन मर गया।
࿐ अरब के लोग चेचक से बहुत डरते थे और इस बीमारी में मरने वाले को बहुत ही मन्हूस समझते थे इस लिये इस के बेटों ने भी तीन दिन तक इस की लाश को हाथ नहीं लगाया मगर इस ख़याल से कि लोग ताना मारेंगे एक गढ़ा खोद कर लकड़ियों से धकेलते ले गए और उस गढ़े में लाश को गिरा कर ऊपर से मिट्टी डाल दी और बा'ज़ मुअर्रिख़ीन ने तहरीर फ़रमाया कि दूर लोगों ने उस गढ़े में इस क़दर पथ्थर फेंके कि उन पथ्थरों से उस की लाश छुप गई।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह-245 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 154* ༺❘
*❝ गज्वए बनी कीनकाअ #01 ❞*
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࿐ रमज़ान सि. 2 हि. में हुजूर ﷺ जंगे बद्र के मारिके से वापस हो कर मदीना वापस लौटे। इस के बाद ही 15 शव्वाल सि. 2 हि. में "गज्वए बनी क़ीनकाअ" का वाकिआ दरपेश हो गया। हम पहले लिख चुके हैं कि मदीने के अंतराफ़ में यहूदियों के तीन बड़े बड़े क़बाइल आबाद थे। बनू कीनकाअ, बनू नज़ीर, बनू करीज़ा। इन तीनों से मुसलमानों का मुआहदा था मगर जंगे बद्र के बाद जिस क़बीले ने सब से पहले मुआहदा तोड़ा वोह क़बीलए बनू कीनकाअ के यहूदी थे जो सब से ज़ियादा बहादुर और दौलत मन्द थे। वाकीआ येह हुवा कि एक बुरकअ पोश अरब औरत यहूदियों के बाज़ार में आई, दुकान दारों ने शरारत की और उस औरत को नंगा कर दिया इस पर तमाम यहूदी कहकहा लगा कर हंसने लगे, औरत चिल्लाई तो एक अरब आया और दुकान दार को क़त्ल कर दिया इस पर यहूदियों और अरबों में लड़ाई शुरू हो गई।
࿐ हुज़ूर ﷺ को ख़बर हुई तो तशरीफ़ लाए और यहूदियों की इस गैर शरीफ़ाना हरकत पर मलामत फ़रमाने लगे। इस पर बनू कीनकाअ के ख़बीस यहूदी बिगड़ गए और बोले कि जंगे बद्र की फ़तह से आप मगुरूर न हो जाएं मक्का वाले जंग के मुआमले में बे ढंगे थे इस लिये आप ने उन को मार लिया अगर हम से आप का साबिका पड़ा तो आप को मालूम हो जाएगा कि जंग किस चीज का नाम है ? और लड़ने वाले कैसे होते हैं ? जब यहूदियों ने मुआहदा तोड़ दिया तो हुज़ूर ﷺ ने निस्फ़ शव्वाल सि. 2 हि. सनीचर के दिन इन यहूदियों पर हम्ला कर दिया। यहूदी जंग की ताब न ला सके और अपने कल्ओं का फाटक बन्द कर के कल्आ बन्द हो गए मगर पन्दरह दिन के मुहासरे के बा'द बिल आखिर यहूदी मगलूब हो गए और हथियार डाल देने पर मजबूर हो गए। हुजूर ﷺ ने सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم के मश्वरे से इन यहूदियों को शहर बदर कर दिया और येह अह्द शिकन, बदज़ात यहूदी मुल्के शाम के मक़ाम "अज़रआत" में जा कर आबाद हो गए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह-245 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 155* ༺❘
*❝ गज्वए सवीक़ ❞*
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࿐ येह हम तहरीर कर चुके हैं कि जंगे बद्र के बाद मक्का के हर घर में सरदाराने कुरैश के कत्ल हो जाने का मातम बरपा था और अपने मक्तूलों का बदला लेने के लिये मक्का का बच्चा बच्चा मुज़तरिब और बे करार था।चुनान्चे गज्वए सवीक और जंगे उहद वगैरा की लड़ाइयां मक्का वालों के इसी जोशे इनतिकाम का नतीजा हैं। उत्बा और अबू जहल के क़त्ल हो जाने के बाद अब कुरैश का सरदारे आ'जम अबू सुफ्यान था और इस मन्सब का सब से बड़ा काम ग़ज्वए बद्र का इनतिक़ाम था। चुनान्चे अबू सुफ्यान ने कसम खा ली कि जब तक बद्र के मक्तूलों का मुसलमानों से बदला न लूंगा न गुस्ले जनाबत करूंगा न सर में तेल डालूंगा।
࿐ चुनान्चे जंगे बद्र के दो माह बाद जुल हिज्जा सि. 2 हि. में अबू सुफ्यान दो सो शुतर सुवारों का लश्कर ले कर मदीने की तरफ बढ़ा। इस को यहूदियों पर बड़ा भरोसा बल्कि नाज़ था कि मुसलमानों के मुकाबले में वोह इस की इमदाद करेंगे। इसी उम्मीद पर अबू सुफ्यान पहले "हुयय बिन अख़्तब" यहूदी के पास गया मगर उस ने दरवाजा भी नहीं खोला। वहां से मायूस हो कर सलाम बिन मुश्कम से मिला जो क़बीलए बनू नज़ीर के यहूदियों का सरदार था और यहूद के तिजारती खजाने का मेनेजर भी था उस ने अबु सफ्यान का पुरजोश इस्तिकबाल किया और हुजुर ﷺ के तमाम जंगी राज़ों से अबू सुफ्यान को आगाह कर दिया।
࿐ सुब्ह को अबू सुफ्यान ने मकामे "अरीज़" पर हम्ला किया येह बस्ती मदीने से तीन मील की दूरी पर थी, इस हम्ले में अबू सुफ्यान ने एक अन्सारी सहाबी को जिन का नाम सा'द बिन अम्र رضي الله عنه था शहीद कर दिया और कुछ दरख्तों को काट डाला और मुसलमानों के चन्द घरों और बागात को आग लगा कर फूंक दिया, इन हरकतों से उस के गुमान में उस की क़सम पूरी हो गई।
࿐ जब हुज़ूरे अक्दस ﷺ को इस की ख़बर हुई तो आप ने उस का तआकुब किया लेकिन अबू सुफ्यान बद हवास हो कर इस क़दर तेज़ी से भागा कि भागते हुए अपना बोझ हलका करने के लिये सत्तू की बोरियां जो वोह अपनी फ़ौज के राशन के लिये लाया था फेंकता चला गया जो मुसलमानों के हाथ आए। अरबी जुबान में सत्तू को सवीक़ कहते हैं इस लिये इस गज्वे का नाम गज्वए सवीक़ पड़ गया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह-248 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 156* ༺❘
*❝ हज़रते फातिमा رضی الله تعالی عنها की शादी ❞*
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࿐ इसी साल सि. 2 हि. में हुज़ूर ﷺ की सब से प्यारी बेटी हज़रते फ़ातिमा رضي الله عنها की शादी खाना आबादी हजरते अली كَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم के साथ हुई। येह शादी इन्तिहाई वक़ार और सादगी के साथ हुई। हुज़ूर ﷺ ने हज़रते अनस رضي الله عنه को हुक्म दिया कि वोह हज़रते अबू बक्र सिद्दीक व उमर व उषमान व अब्दुर्रहमान बिन औफ़ رضی الله تعالی عنهم اجمعین और दूसरे चन्द मुहाजिरीन अन्सारको मदऊ करें। चुनान्चे जब सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم जम्अ हो गए तो हुजुर ﷺ ने खुत्बा पढ़ा और निकाह पढ़ा दिया।
࿐ शहनशाहे कौनैन ﷺ ने शहज़ादिये इस्लाम हज़रते बीबी फातिमा رضی الله تعالی عنها को जहेज़ में जो सामान दिया उस की फेहरिस्त येह है। एक कमली, बान की एक चारपाई, चमड़े का गद्दा जिस में रूई की जगह खजूर की छाल भरी हुई थी, एक छागल, एक मशक, दो चक्कियां, दो मिट्टी के घड़े। हज़रते हारिषा बिन नो'मान अन्सारी رضي الله عنه ने अपना एक मकान हुज़ूर ﷺ को इस लिये नज़्र कर दिया कि इस में हज़रते अली और हज़रते बीबी फातिमा رضی الله تعالی عنهما सुकूनत फ़रमाएं।
࿐ जब हज़रते बीबी फातिमा रुखसत हो कर नए घर में गई तो इशा की नमाज़ के बाद हुजुर ﷺ तशरीफ़ लाए और एक बरतन में पानी तलब फ़रमाया और उस में कुल्ली फ़रमा कर हज़रते अली رضی الله تعالی عنه के सीने और बाज़ूओं पर पानी छिड़का फिर हज़रते फ़ातिमा رضی الله تعالی عنهما को बुलाया और उन के सर और सीने पर भी पानी छिड़का और फिर यूं दुआ फ़रमाई कि "या अल्लाह मैं अली और फ़ातिमा और इन की औलाद को तेरी पनाह में देता हूं कि येह सब शैतान के शर से महफूज़ रहें।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह 248-249 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 157* ༺❘
*❝ सि. 2 हि. के मुतफर्रिक वाकिआत ❞*
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࿐ इसी साल रोज़ा और ज़कात की फ़र्जिय्यत के अहकाम नाज़िल हुए और नमाज़ की तरह रोजा और ज़कात भी मुसलमानों पर फ़र्ज़ हो गए।
࿐ इसी साल हुजूर ﷺ ने ईदुल फित्र की नमाज़ जमाअत के साथ ईदगाह में अदा फ़रमाई, इस से क़ब्ल ईदुल फित्र की नमाज़ नहीं हुई थी।
࿐ सदकए फ़ित्र अदा करने का हुक्म इसी साल जारी हुवा।
࿐ इसी साल 10 जुल हिज्जा को हुजूर ﷺ ने बकर ईद की नमाज़ अदा फ़रमाई और नमाज़ के बाद दो मेंढों की कुरबानी फ़रमाई।
࿐ इसी साल "गज्वए कर कर अल कदर" व "गज्वए बहरान" वगैरा चन्द छोटे छोटे गज़वात भी पेश आए जिन में हुज़ूर ﷺ ने शिर्कत फ़रमाई मगर इन ग़ज़वात में कोई जंग नहीं हुई।
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 158* ༺❘
*❝ हिजरत का तीसरा साल ¶ जंगे उहुद #01 ❞*
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࿐ इस साल का सब से बड़ा वाकिआ "जंगे उहुद" है। "उहुद" एक पहाड़ का नाम है जो मदीनए मुनव्वरह से तक़रीबन तीन मील दूर है। चूंकि हक व बातिल का येह अज़ीम मारिका इसी पहाड़ के दामन में दरपेश हुवा इसी लिये येह लड़ाई "गज्वए उहुद" के नाम से मशहूर है और कुरआने मजीद की मुख़्तलिफ़ आयतों में इस लड़ाई के वाकिआत का खुदा वन्दे आलम ने तकिरा फ़रमाया है।
*❝ जंगे उहुद का सबब ❞*
࿐ येह आप पढ़ चुके हैं कि जंगे बद्र में सत्तर कुफ्फार कत्ल और सत्तर गरिफ्तार हुए थे। और जो क़त्ल हुए उन में से अकषर कुफ़्फ़ारे कुरैश के सरदार बल्कि ताजदार थे। इस बिना पर मक्का का एक एक घर मातम कदा बना हुवा था। और कुरैश का बच्चा बच्चा जोशे इनतिकाम में आतशे गैजो ग़ज़ब का तन्नूर बन कर मुसलमानों से लड़ने के लिये बे करार था। अरब खुसूसन कुरैश का येह तुर्रए इम्तियाज़ था कि वोह अपने एक एक मक्तूल के खून का बदला लेने को इतना बड़ा फ़र्ज़ समझते थे जिसे अदा किये बिगैर गोया इन की हस्ती काइम नहीं रह सकती थी।
࿐ चुनान्चे जंगे बद्र के मक्तूलों के मातम से जब कुरैशियों को फुरसत मिली तो उन्हों ने येह अज़्म कर लिया कि जिस क़दर मुमकिन हो जल्द से जल्द मुसलमानों से अपने मक्तूलों के खून का बदला लेना चाहिये। चुनान्चे अबू जहल का बेटा इक्रमा और उमय्या का लड़का सफ़वान और दूसरे कुफ़्फ़ारे कुरैश जिन के बाप, भाई, बेटे जंगे बद्र में क़त्ल हो चुके थे सब के सब अबू सुफ्यान के पास गए और कहा कि मुसलमानों ने हमारी क़ौम के तमाम सरदारों को क़त्ल कर डाला है। इस का बदला लेना हमारा क़ौमी फ़रीजा है लिहाजा हमारी ख़्वाहिश है कि कुरैश की मुश्तरिका तिजारत में इमसाल जितना नफ्अ हुवा है वोह सब क़ौम के जंगी फंड में जम्अ हो जाना चाहिये और उस रक़म से बेहतरीन हथियार खरीद कर अपनी लश्करी ताकत बहुत जल्द मज़बूत कर लेनी चाहिये और फिर एक अजीम फौज ले कर मदीने पर चढ़ाई कर के बानिये इस्लाम और मुसलमानों को दुन्या से नेस्तो नाबूद कर देना चाहिये।
࿐ अबू सुफ्यान ने खुशी खुशी कुरैश की इस दरख्वास्त को मन्जूर कर लिया। लेकिन कुरैश को जंगे बद्र से येह तजरिबा हो चुका था कि मुसलमानों से लड़ना कोई आसान काम नहीं है। आंधियों और तूफानों का मुकाबला, समुन्दर की मौजों से टकराना, पहाड़ों से टक्कर लेना बहुत आसान है मगर मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह ﷺ के आशिकों से जंग करना बड़ा ही मुश्किल काम है। इस लिये इन्हों ने अपनी जंगी ताकत में बहुत ज़ियादा इज़ाफ़ा करना निहायत ज़रूरी ख़याल किया।
࿐ चुनान्चे इन लोगों ने हथियारों की तय्यारी और सामाने जंग की खरीदारी में पानी की तरह रुपिया बहाने के साथ साथ पूरे अरब में जंग का जोश और लड़ाई का बुखार फैलाने के लिये बड़े बड़े शाइरों को मुन्तख़ब किया और अपनी आतश बयानी से तमाम क़बाइले अरब में जोशे इनतिकाम की आग लगा दे “अम्र जमही” और “मसाफ़ेअ” येह दोनों अपनी शाइरी में ताक और आतश बयानी में शोहरए आफ़ाक़ थे, इन दोनों ने बा काइदा दौरा कर के तमाम क़बाइले अरब में ऐसा जोश और इश्तिआल पैदा कर दिया कि बच्चा बच्चा "खून का बदला खून" का नारा लगाते हुए मरने और मारने पर तय्यार हो गया जिस का नतीजा येह हुवा कि एक बहुत बड़ी फ़ौज तय्यार हो गई। मर्दों के साथ साथ बड़े बड़े मुअज्ज़ज़ और मालदार घरानों की औरतें भी जोशे इनतिक़ाम से लबरेज़ हो कर फ़ौज में शामिल हो गई। जिन के बाप, भाई, बेटे, शोहर जंगे बद्र में क़त्ल हुए थे। उन औरतों ने कसम खा ली थी कि हम अपने रिश्तेदारों के क़ातिलों का खून पी कर ही दम लेंगी।
࿐ हुजूर ﷺ के चचा हज़रते हम्ज़ा رضي الله عنه ने हिन्द के बाप उत्बा और जबीर बिन मुतअम के चचा को जंगे बद्र में क़त्ल किया था। इस बिना पर "हिन्द" ने "वहशी" को जो जबीर बिन मुतअम का गुलाम था हज़रते हम्ज़ा رضي الله عنه के कत्ल पर आमादा किया और येह वादा किया कि अगर इस ने हज़रते हम्ज़ा رضي الله عنه को कत्ल कर दिया तो वोह इस कार गुज़ारी के सिले में आज़ाद कर दिया जाएगा।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह-251 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 159* ༺❘
*❝ जंगे उहुद #02 ¶ मदीने पर चढ़ाई ❞*
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࿐ अल ग़रज़ बे पनाह जोशो खरोश और इनतिहाई तय्यारी के साथ लश्करे कुफ्फ़ार मक्का से रवाना हुवा और अबू सुफ्यान इस लश्करे जर्रार का सिपहसालार बना।
࿐ हुजुर ﷺ के चचा हज़रते अब्बास رضي الله عنه जो खुफ्या तौर पर मुसलमान हो चुके थे और मक्का में रहते थे इन्हों ने एक ख़त लिख कर हुजूर ﷺ को कुफ्फारे कुरैश की लश्कर कशी से मुत्तल कर दिया।
࿐ जब आप ﷺ को येह खौफनाक खबर मिली तो आप ने 5 शव्वाल सी. 3 ही. को हज़रते अदी बिन फुज़ाला رضي الله عنه के दोनों लड़कों हज़रते अनस और हज़रते मूनस رضي الله عنه को जासूस बना कर कुफ्फ़ारे कुरैश के लश्कर की ख़बर लाने के लिये रवाना फ़रमाया। चुनान्चे इन दोनों ने आ कर येह परेशान कुन ख़बर सुनाई कि अबू सुफ्यान का लश्कर मदीने के बिल्कुल क़रीब आ गया है और उन के घोड़े मदीने की चरागाह (अरीज़) की तमाम घास चर गए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 252 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 160* ༺❘
*❝ जंगे उहुद #03 ¶ मुसलमानों की तय्यारी और जोश ❞*
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࿐ येह खबर सुन कर 14 शव्वाल सि. 3 हि जुमुआ की रात में हज़रते सा'द बिन मुआज व हज़रते उसैद बिन हुजैर व हज़रते सा'द बिन उबादा رضي الله عنهم हथियार ले कर चन्द अन्सारियों के साथ रात भर काशानए नुबुव्वत का पहरा देते रहे और शहरे मदीना के अहम नाकों पर भी अन्सार का पहरा बिठा दिया गया। सुब्ह हुज़ूर ﷺ ने अन्सार व मुहाजिरीन को जम्अ फ़रमा कर मश्वरा तलब फ़रमाया कि शहर के अन्दर रह कर दुश्मनों की फ़ौज का मुक़ाबला किया जाए या शहर से बाहर निकल कर मैदान में येह जंग लड़ी जाए? मुहाजिरीन ने आम तौर पर और अन्सार में से बड़े बूढ़ों ने येह राय दी कि औरतों और बच्चों को कुल्ओं में महफूज कर दिया जाए और शहर के अन्दर रह कर दुश्मनों का मुक़ाबला किया जाए। मुनाफ़िकों का सरदार अब्दुल्लाह बिन उबय्य भी उस मजलिस में मौजूद था। उस ने भी येही कहा कि शहर में पनाहगीर हो कर कुफ्फारे कुरैश के हमलों की मुदाफअत की जाए, मगर चन्द कमसिन नौ जवान जो जंगे बद्र में शरीक नहीं हुए थे और जोशे जिहाद में आपे से बाहर हो रहे थे वोह इस राय पर अड़ गए कि मैदान में निकल कर इन दुश्मनाने इस्लाम से फैसला कुन जंग लड़ी जाए।
࿐ हुजूर ﷺ ने सब की राय सुन ली फिर मकान में जा कर हथियार ज़ैबे तन फ़रमाया और बाहर तशरीफ़ लाए अब तमाम लोग इस बात पर मुत्तफ़िक़ हो गए कि शहर के अन्दर ही रह कर कुफ्फ़ारे कुरैश के हम्लों को रोका जाए मगर हुजूर ﷺ ने फ़रमाया कि पैग़म्बर के लिये येह ज़ैबा नहीं है कि हथियार पहन कर उतार दे यहां तक कि अल्लाह तआला उस के और उस के दुश्मनों के दरमियान फ़ैसला फ़रमा दे। अब तुम लोग खुदा का नाम ले कर मैदान में निकल पड़ो अगर तुम लोग सब्र के साथ मैदाने जंग में डटे रहोगे तो ज़रूर तुम्हारी फ़तह होगी।
࿐ फिर हुज़ूर ﷺ ने अन्सार के क़बीलए औस का झन्डा हज़रते उसैद बिन हुजैर رضي الله عنه को और क़बीलए खज़रज का झन्डा हज़रते खब्बाब बिन मुन्जिर رضي الله عنه को और मुहाजिरीन का झन्डा हज़रते अली رضي الله عنه को दिया और एक हज़ार की फ़ौज ले कर मदीने से बाहर निकले।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह-253 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 161* ༺❘
*❝ जंगे उहुद #04 ¶ हुज़ूर ﷺ यहूद की इमदाद को ठुकरा दिया ❞*
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࿐ शहर से निकलते ही आप ﷺ ने देखा कि एक फ़ौज चली आ रही है आप ने पूछा कि येह कौन लोग हैं? लोगों ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ येह रईसुल मुनाफ़िक़ीन अब्दुल्लाह बिन उबय्य के हलीफ़ यहूदियों का लश्कर है जो आप की इमदाद के लिये आ रहा है। आप ने इर्शाद फ़रमाया कि : “इन लोगों से कह दो कि वापस लौट जाएं। हम मुशरिकों के मुक़ाबले में मुशरिकों की मदद नहीं लेंगे।" चुनान्चे यहूदियों का येह लश्कर वापस चला गया। फिर अब्दुल्लाह बिन उबय्य (मुनाफिकों का सरदार) भी जो तीन सो आदमियों को ले कर हुज़ूर ﷺ के साथ आया था येह कह कर वापस चला गया कि मुहम्मद (ﷺ) ने मेरा मश्वरा क़बूल नहीं किया और मेरी राय के ख़िलाफ़ मैदान में निकल पड़े, लिहाजा मैं इन का साथ नहीं दूंगा।
࿐ अब्दुल्लाह बिन उबय्य की बात सुन कर क़बीलए खज़रज में से "बनू सलमह" के और क़बीलए औस में से "बनू हारिषा" के लोगों ने भी वापस लौट जाने का इरादा कर लिया मगर अल्लाह तआला ने इन लोगों के दिलों में अचानक महब्बते इस्लाम का ऐसा जज्बा पैदा फ़रमा दिया कि इन लोगों के क़दम जम गए। चुनान्चे अल्लाह तआला ने कुरआने मजीद में इन लोगों का तज़किरा फ़रमाते हुए इर्शाद फ़रमाया कि : जब तुम में के दो गुरौहों का इरादा हुवा कि ना मर्दी कर जाएं और अल्लाह इन का संभालने वाला है और मुसलमानों को अल्लाह ही पर भरोसा होना चाहिये!
࿐ अब हुज़ूर ﷺ के लश्कर में कुल सात सो सहाबा رضی الله تعالی عنهم रह गए जिन में कुल एक सो जिरह पोश थे और कुफ़्फ़ार की फ़ौज में तीन हज़ार अश्रार का लश्कर था जिन में सात सो जिरह पोश जवान, दो सो घोड़े, तीन हज़ार ऊंट और पन्दरह औरतें थीं। शहर से बाहर निकल कर हुज़ूर ﷺ ने अपनी फ़ौज का मुआयना फ़रमाया और जो लोग कम उम्र थे, उन को वापस लौटा दिया कि जंग के होलनाक मौकअ पर बच्चों का क्या काम?
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह-254 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 162* ༺❘
*❝ जंगे उहुद #05 ¶ बच्चों का जोशे जिहाद ❞*
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࿐ जब हज़रते राफेअ बिन खदीज رضي الله عنه से कहा गया कि तुम बहुत छोटे हो तुम भी वापस चले जाओ तो वोह फौरन अंगूठों के बल तन कर खड़े हो गए ताकि इन का कद ऊंचा नज़र आए चुनान्चे उन की येह तरकीब चल गई और वोह फ़ौज में शामिल कर लिये गए।
࿐ हज़रते समुरह رضي الله عنه जो एक कम उम्र नौ जवान थे जब इन को वापस किया जाने लगा तो इन्हों ने अर्ज़ किया कि मैं राफेअ बिन ख़दीज को कुश्ती में पछाड़ लेता हूं। इस लिये अगर वोह फ़ौज में ले लिये गए हैं तो फिर मुझ को भी ज़रूर जंग में शरीक होने की इजाज़त मिलनी चाहिये चुनान्चे दोनों का मुकाबला कराया गया और वाकेई हज़रते समुरह رضي الله عنه ने हज़रते राफेअ बिन ख़दीज رضي الله عنه को ज़मीन पर दे मारा इस तरह इन दोनों पुरजोश नौ जवानों को जंगे उहुद में शिर्कत की सआदत नसीब हो गई।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह-256 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 163* ༺❘
*❝ जंगे उहुद #06 ¶ ताजदारे दो आलम ﷺ मैदाने जंग में ❞*
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࿐ मुशरिकीन तो 12 शव्वाल सि. 3 हि. बुध के दिन ही मदीना के क़रीब पहुंच कर कोहे उहुद पर अपना पड़ाव डाल चुके थे मगर हुजूरे अकरम ﷺ 14 शव्वाल सि. 3 हि. बाद नमाज़े जुमुआ मदीने से रवाना हुए। रात को बनी नज्जार में रहे और 15 शव्वाल सनीचर के दिन नमाज़े फज्र के वक्त उहुद में पहुंचे। हज़रते बिलाल رضي الله عنه ने अजान दी और आप ﷺ नमाज़े फ़ज्र पढ़ा कर मैदाने जंग में मोरचा बन्दी शुरूअ फ़रमाई। हज़रते अक्काशा बिन मुहसिन असदी को लश्कर के मैमना (दाएं बाज़ू) पर और हज़रते अबू सलमह बिन अब्दुल असद मख़्ज़ूमी को मैसरह (बाएं बाज़ू) पर और हज़रते अबू उबैदा बिन अल जर्राह व हज़रते सा'द बिन अबी वक्कास को मुक़द्दमा (अगले हिस्से) पर और हज़रते मिक्दाद बिन अम्र को साका (पिछले हिस्से) पर अफ्सर मुकर्रर फरमाया (رضی الله تعالی عنهم) और सफ बंदी के वक़्त उहूद पहाड़ को पुश्त पर रखा और कोहे इनैन को जो वादिये क़नाह में है अपने बाईं तरफ रखा। लश्कर के पीछे पहाड़ में एक दर्रा (तंग रास्ता) था जिस में से गुज़र कर कुफ्फार कुरैश मुसलमानों की सफों के पीछे से हमला आवर हो सकते थे इस लिए हुज़ूर ﷺ ने उस दर्रे की हिफाज़त के लिये पचास तीर अंदाज़ों का एक दस्ता मुक़र्रर फ़रमा दिया और हज़रते अब्दुल्लाह बिन जुबैर رضی الله تعالی عنه को उस दस्ते का अफ़सर बना दिया और येह हुक्म दिया कि देखो हम चाहे मग्लूब हों या ग़ालिब मगर तुम लोग अपनी इस जगह से उस वक्त तक न हटना जब तक मैं तुम्हारे पास किसी को न भेजूं।
࿐ मुशरिकीन ने भी निहायत बा काइदगी के साथ अपनी सफ़ों को दुरुस्त किया। चुनान्चे उन्हों ने अपने लश्कर के मैमना पर खालिद बिन वलीद को और मैसरह पर इक्रमा बिन अबू जहल को अफ्सर बना दिया, सुवारों का दस्ता सफ्वान बिन उमय्या की कमान में था। तीर अन्दाज़ों का एक दस्ता अलग था जिन का सरदार अब्दुल्लाह बिन रबीआ था और पूरे लश्कर का अलम बरदार तल्हा बिन अबू तल्हा था जो क़बीलए बनी अब्दुद्दार का एक आदमी था।
࿐ हुज़ूर ﷺ ने जब देखा कि पूरे लश्करे कुफ़्फ़ार का अलम बरदार क़बीलए बनी अब्दुद्दार का एक शख़्स है तो आप ने भी इस्लामी लश्कर का झन्डा हज़रते मुस्अब बिन उमैर رضی الله تعالی عنه को अता फरमाया जो क़बीलए बनू अब्दुद्दार से तअल्लुक रखते थे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 257 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 164* ༺❘
*❝ जंगे उहुद #07 ¶ जंग की इब्तिदा ❞*
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࿐ सब से पहले कुफ्फारे कुरैश की औरतें दफ़ बजा बजा कर ऐसे अशआर गाती हुई आगे बढ़ीं जिन में जंगे बद्र के मक्तूलीन का मातम और इनतिक़ामे खून का जोश भरा हुवा था। लश्करे कुफ़्फ़ार के सिपहसालार अबू सुफ्यान की बीवी "हिन्द" आगे आगे और कुफ्फ़ारे कुरैश के मुअज्ज़ज़ घरानों की चौदह औरतें उस के साथ साथ थीं और येह सब आवाज़ मिला कर येह अशआर गा रही थीं कि "हम आस्मान के तारों की बेटियां हैं हम कालीनों पर चलने वालियां है" "अगर तुम बढ़ कर लड़ोगे तो हम तुम से गले मिलेंगे और पीछे क़दम हटाया तो हम तुम से अलग हो जाएंगे"
࿐ मुशरिकीन की सफ़ों में से सब से पहले जो शख़्स जंग के लिये निकला वोह "अबू आमिर औसी" था। जिस की इबादत और पारसाई की बिना पर मदीना वाले उस को “राहिब" कहा करते थे मगर रसूलुल्लाह ﷺ ने उस का नाम "फ़ासिक” रखा था। ज़मानए जाहिलिय्यत में येह शख़्स अपने क़बीले औस का सरदार था और मदीने का मक़बूले आम आदमी था। मगर जब रसूले अकरम ﷺ मदीने में तशरीफ़ लाए तो येह शख़्स जज्बए हसद में जल भुन कर खुदा के महबूब की मुखालफ़त करने लगा और मदीने से निकल कर मक्का चला गया और कुफ्फ़ारे कुरैश को आप से जंग करने पर आमादा किया। इस को बड़ा भरोसा था कि मेरी क़ौम जब मुझे देखेगी तो रसूलुल्लाह ﷺ का साथ छोड़ देगी। चुनान्चे उस ने मैदान में निकल कर पुकारा कि ऐ अन्सार ! क्या तुम लोग मुझे पहचानते हो ! में अबू आमिर राहिब हूं। अन्सार ने चिल्ला कर कहा हां हां ! ऐ फ़ासिक ! हम तुझ को खूब पहचानते हैं। खुदा तुझे ज़लील फ़रमाए। अबू आमिर अपने लिये फ़ासिक का लफ्ज़ सुन कर तिलमिला गया। कहने लगा कि हाए अफ़सोस ! मेरे बाद मेरी क़ौम बिल्कुल ही बदल गई।
࿐ फिर कुफ्फ़ारे कुरैश की एक टोली जो उस के साथ थी मुसलमानों पर तीर बरसाने लगी इस के जवाब में अन्सार ने भी इस ज़ोर की संगबारी की, कि अबू आमिर और उस के साथी मैदाने जंग से भाग खड़े हुए। लश्करे कुफ्फ़ार का अलम बरदार तल्हा बिन अबू तल्हा सफ़ से निकल कर मैदान में आया और कहने लगा कि क्यूं मुसलमानों ! तुम में कोई ऐसा है कि या वोह मुझ को दोजख में पहुंचा दे या खुद मेरे हाथ से वोह जन्नत में पहुंच जाए। उस का येह घमन्ड से भरा हुवा कलाम सुन कर हज़रत अली शेरे खुदा رضي الله عنه ने फ़रमाया कि हां "मैं हूं" येह कह कर फातेहे खैबर ने जुल फ़िकार के एक ही वार से उस का सर फाड़ दिया और वोह ज़मीन पर तड़पने लगा और शेरे खुदा मुंह फैर कर वहां से हट गए। लोगों ने पूछा कि आप ने उस का सर क्यूं नहीं काट लिया ? शेरे खुदा رضی الله تعالی عنه ने फ़रमाया कि जब वोह ज़मीन पर गिरा तो उस की शर्मगाह खुल गई और वोह मुझे कसम देने लगा कि मुझे मुआफ़ कर दीजिये उस बे हया को बे सित्र देख कर मुझे शर्म दामन गीर हो गई इस लिये मैं ने मुंह फैर लिया। तल्हा के बाद उस का भाई उषमान बिन अबू तल्हा रज्ज का येह शे'र पढ़ता हुवा हम्ला आवर हुवा कि "अलम बरदार का फ़र्ज़ है कि नेज़े को ख़ून में रंग दे या वोह टकरा कर टूट जाए।"
࿐ हज़रते हम्ज़ा رضی الله تعالی عنه उस के मुकाबले के लिये तलवार ले कर निकले और उस के शाने पर ऐसा भरपूर हाथ मारा कि तलवार रीढ़ की हड्डी को काटती हुई कमर तक पहुंच गई और आप के मुंह से येह नारा निकला कि "मैं हाजियों के सैराब करने वाले अब्दुल मुत्तलिब का बेटा हूं।" इस के बाद आम जंग शुरू हो गई और मैदाने जंग में कुश्तो खून का बाज़ार गर्म हो गया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह-258 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 165* ༺❘
*❝ जंगे उहुद #08 ¶ अबू दजाना की खुश नसीबी ❞*
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࿐ हुज़ूरे अक्दस ﷺ के दस्ते मुबारक में एक तलवार थी जिस पर येह शे'र कन्दा था कि "बुज़दिली में शर्म है और आगे बढ़ कर लड़ने में इज्ज़त है और आदमी बुज़दिली कर के तक़दीर से नहीं बच सकता।"
࿐ हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि कौन है जो इस तलवार को ले कर इस का हक अदा करे "येह सुन कर बहुत से लोग इस सआदत के लिये लपके मगर येह फ़ख्रो शरफ़ हज़रते अबू दजाना رضی الله تعالی عنه के नसीब में था कि ताजदारे दो आलम ﷺ ने अपनी येह तलवार अपने हाथ से हज़रते अबू दजाना رضی الله تعالی عنه के हाथ में दे दी। वोह येह एज़ाज़ पा कर जोशे मुसर्रत में मस्तो बेखुद हो गए और अर्ज किया कि या रसूलल्लाह ﷺ ! इस तलवार का हक़ क्या है ? इर्शाद फ़रमाया कि "तू इस से काफ़िरों को क़त्ल करे यहां तक कि येह टेढ़ी हो जाए।
࿐ हज़रते अबू दजाना رضی الله تعالی عنه ने अर्ज किया कि या रसूलल्लाह ﷺ! मैं इस तलवार को इस के हक़ के साथ लेता हूं। फिर वोह अपने सर पर एक सुर्ख रंग का रुमाल बांध कर अकड़ते और इतराते हुए मैदाने जंग में निकल पड़े और दुश्मनों की सफ़ों को चीरते हुए और तलवार चलाते हुए आगे बढ़ते चले जा रहे थे कि एक दम उन के सामने अबू सुफ्यान की बीवी “हिन्द” आ गई। हज़रते अबू दजाना رضی الله تعالی عنه ने इरादा किया कि इस पर तलवार चला दें मगर फिर इस ख़याल से तलवार हटा ली कि रसूलुल्लाह ﷺ की मुक़द्दस तलवार के लिये येह जैब नहीं देता कि वोह किसी औरत का सर काटे।
࿐ हज़रते अबू दजाना رضی الله تعالی عنه की तरह हज़रते हम्ज़ा और हज़रते अली رضی الله تعالی عنهما भी दुश्मनों की सफ़ों में घुस गए और कुफ़्फ़ार का क़त्ले आम शुरू कर दिया। हज़रते हम्ज़ा رضی الله تعالی عنه इनतिहाई जोशे जिहाद में दो दस्ती तलवार मारते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। इसी हालत में "सबाअ ग़बशानी" सामने आ गया आप ने तड़प कर फ़रमाया कि ऐ औरतों का ख़तना करने वाली औरत के बच्चे! ठहर, कहां जाता है? तू अल्लाह व रसूल से जंग करने चला आया है। येह कह कर उस पर तलवार चला दी, और वोह दो टुकड़े हो कर ज़मीन पर ढेर हो गया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 260 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 166* ༺❘
*❝ जंगे उहुद #09 ¶ हज़रते हम्ज़ा की शहादत ❞*
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࿐ “वहशी" जो एक हबशी गुलाम था और उस का आका जबीर बिन मुतअम उस से वादा कर चुका था कि तू अगर हज़रते हम्ज़ा رضی الله تعالی عنه को क़त्ल कर दे तो मैं तुझ को आजाद कर दूंगा। वहशी एक चट्टान के पीछे छुपा हुवा था और हज़रते हम्ज़ा رضي الله عنه की ताक में था जूं ही आप उस के करीब पहुंचे उस ने दूर से अपना नेज़ा फेंक कर मारा जो आप की नाफ़ में लगा। और पुश्त के पार हो गया। इस हाल में भी हज़रते हम्ज़ा رضی الله تعالی عنه तलवार ले कर उस की तरफ बढ़े मगर ज़ख़्म की ताब न ला कर गिर पड़े और शहादत से सरफ़राज़ गए।
࿐ कुफ़्फ़ार के अलम बरदार खुद कट कट कर गिरते चले जा रहे थे मगर उन का झन्डा गिरने नहीं पाता था एक के कत्ल होने के बाद दूसरा उस झन्डे को उठा लेता था। उन काफ़िरों के जोशो खरोश का येह आलम था कि जब एक काफ़िर ने जिस का नाम "सवाब" था मुशरिकीन का झन्डा उठाया तो एक मुसलमान ने उस को इस ज़ोर से तलवार मारी कि उस के दोनों हाथ कट कर ज़मीन पर गिर पड़े मगर उस ने अपने क़ौमी झन्डे को ज़मीन पर गिरने नहीं दिया बल्कि झन्डे को अपने सीने से दबाए हुए ज़मीन पर गिर पड़ा। इसी हालत में मसलमानों ने उस को कत्ल कर दिया। मगर वोह क़त्ल होते होते येही कहता रहा कि “मैं ने अपना फ़र्ज़ अदा कर दिया।” उस के मरते ही एक बहादुर औरत जिस का नाम “अमरह" था उस ने झपट कर क़ौमी झन्डे को अपने हाथ में ले कर बुलन्द कर दिया, येह मन्ज़र देख कर कुरैश को गैरत आई और उन की बिखरी हुई फ़ौज सिमट आई और उन के उखड़े हुए कदम फिर जम गए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह-262 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 167* ༺❘
*❝ जंगे उहुद #10 ¶ हज़रते हन्ज़ला की शहादत ❞*
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࿐ अबू आमिर राहिब कुफ्फ़ार की तरफ से लड़ रहा था मगर उस के बेटे हज़रते हन्जला رضي الله عنه परचमे इस्लाम के नीचे जिहाद कर रहे थे।हज़रते हन्ज़ला رضی الله تعالی عنه ने बारगाहे रिसालत में अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ मुझे इजाजत दीजिये मैं अपनी तलवार से अपने बाप अबू आमिर राहिब का सर काट कर लाऊं मगर हुजूर रहमतुल्लिल आलमीन ﷺ की रहमत ने येह गवारा नहीं किया कि बेटे की तलवार बाप का सर काटे।
࿐ हज़रते हन्ज़ला رضی الله تعالی عنه इस क़दर जोश में भरे हुए थे कि सर हथेली पर रख कर इनतिहाई जां बाज़ी के साथ लड़ते हुए कल्बे लश्कर तक पहुंच गए और कुफ्फ़ार के सिपहसालार अबू सुफ्यान पर हम्ला कर दिया और करीब था कि हज़रते हन्ज़ला की तलवार अबू सुफ्यान का फैसला कर दे कि अचानक पीछे से शदाद बिन अल अस्वद ने झपट कर वार को रोका और हज़रते हन्ज़ाला رضي الله عنه को शहीद कर दिया।
࿐ हज़रते हन्ज़ला رضی الله تعالی عنه के बारे में हुजूरे अकरम ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया कि "फ़िरिश्ते हन्ज़ाला को गुस्ल दे रहे हैं!" जब उन की बीवी से उन का हाल दरयाफ्त किया गया तो उस ने कहा कि जंगे उहुद की रात में वोह अपनी बीवी के साथ सोए थे, गुस्ल की हाजत थी मगर दावते जंग की आवाज़ उन के कान में पड़ी तो वोह इसी हालत में शरीके जंग हो गए। येह सुन कर हुज़ूरे अक्दस ﷺ ने फ़रमाया कि येही वजह है जो फ़िरिश्तों ने उस को गुस्ल दिया। इसी वाकिए की बिना पर हज़रते हन्ज़ला को "गसीलुल मलाएका" के लक़ब से याद किया जाता है।
࿐ इस जंग में मुजाहिदीने अन्सार व मुहाजिरीन बड़ी दिलेरी और जांबाज़ी से लड़ते रहे यहां तक कि मुशरिकीन के पाउं उखड़ गए। हज़रते अली व हज़रते अबू दजाना व हज़रत साद बिन अबी वक़्क़ास رضي الله عنهم वगैरा के मुजाहिदाना हम्लों ने मुशरिकीन की कमर तोड़ दी। कुफ्फ़ार के तमाम अलम बरदार उषमान, अबू सा'द, मसाफ़ेअ, तल्हा बिन अबू तल्हा वगैरा एक एक कर के कट कट कर ज़मीन पर ढेर हो गए। कुफ्फ़ार को शिकस्त हो गई और वोह भागने लगे और उन की औरतें जो अशआर पढ़ पढ़ कर लश्करे कुफ्फ़ार को जोश दिला रही थीं वोह भी बद हवासी के आलम में अपने इज़ार उठाए हुए बरह्ना साक भागती हुई पहाड़ों पर दौड़ती हुई चली जा रही थीं और मुसलमान कत्लो गारत में मश्गूल थे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 264 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 168* ༺❘
*❝ जंगे उहुद #11 ¶ ना गहां जंग का पांसा पलट गया ❞*
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࿐ कुफ्फ़ार की भगदड़ और मुसलमानों के फ़ातिहाना क़त्लो गारत का येह मन्ज़र देख कर वोह पचास तीर अन्दाज़ मुसलमान जो दर्रे की हिफ़ाज़त पर मुक़र्रर किये गए थे वोह भी आपस में एक दूसरे से येह कहने लगे कि गनीमत लूटो, गनीमत लूटो, तुम्हारी फत्ह हो गई। उन लोगों के अफ्सर हज़रते अब्दुल्लाह बिन जबीर رضي الله عنه ने हर चन्द रोका और हुज़ूर ﷺ का फरमान याद दिलाया और फ़रमाने मुस्तफ़वी की मुखालफ़त से डराया मगर उन तीर अन्दाज़ मुसलमानों ने एक न सुनी और अपनी जगह छोड़ कर माले गनीमत लूटने में मसरूफ हो गए। लश्करे कुफ्फ़ार का एक अप्सर खालिद बिन वलीद पहाड़ की बुलन्दी से येह मन्ज़र देख रहा था जब उस ने देखा कि दर्रा पहरेदारों से खाली हो गया है फौरन ही उस ने दर्रे के रास्ते से फौज ला कर मुसलमानों के पीछे से हमला कर दिया हज़रते अब्दुल्लाह बिन जबीर ने चन्द जबाज़ों के साथ इंतिहाई दिलेराना मुक़ाबला किया मगर येह सब के सब शहीद हो गए।
࿐ अब क्या था काफ़िरों की फ़ौज के लिये रास्ता साफ़ हो गया खालिद बिन वलीद ने ज़बर दस्त हम्ला कर दिया येह देख कर भागती हुई कुफ़्फ़ारे कुरैश की फ़ौज भी पलट पड़ी मुसलमान माले गनीमत लूटने में मसरूफ़ थे पीछे फिर कर देखा तो तलवारें बरस रही थीं और कुफ्फ़ार आगे पीछे दोनों तरफ से मुसलमानों पर हम्ला कर रहे थे और मुसलमानों का लश्कर चक्की के दो पाटों में दाने की तरह पिसने लगा और मुसलमानों में ऐसी बद हवासी और अब्तरी फैल गई कि अपने और बेगाने की तमीज़ नहीं रही खुद मुसलमान मुसलमानों की तलवारों से कत्ल हुए।
࿐ चुनान्चे हजरते हुजैफा رضی الله تعالی عنه के वालिद हज़रते यमान رضی الله تعالی عنه खुद मुसलमानों की तलवार से शहीद हुए। हज़रते हुजैफा رضی الله تعالی عنه चिल्लाते ही रहे कि "ऐ मुसलमानो ! येह मेरे बाप हैं, येह मेरे बाप हैं।" मगर कुछ अजीब बद हवासी फैली हुई थी कि किसी को किसी का ध्यान ही नहीं था और मुसलमानों ने हज़रते यमान رضی الله تعالی عنه को शहीद कर दिया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह-265 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 169* ༺❘
*❝ जंगे उहुद #12 ¶ हज़रते मुस्अब बिन उमैर भी शहीद ❞*
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࿐ फिर बड़ा गज़ब येह हुवा कि लश्करे इस्लाम के अलम बरदार हज़रते मुस्अब बिन उमैर رضي الله عنه पर इब्ने कमीआ काफ़िर झपटा और उन के दाएं हाथ पर इस ज़ोर से तलवार चला दी कि उन का दायां हाथ कट कर गिर पड़ा। इस जांबाज़ मुहाजिर ने झपट कर इस्लामी झन्डे को बाएं हाथ से संभाल लिया मगर इब्ने क़मीआ ने तलवार मार कर उन के बाएं हाथ को भी शहीद कर दिया दोनों हाथ कट चुके थे मगर हज़रते उमैर رضی الله تعالی عنه अपने दोनों कटे हुए बाज़ूओं से परचमे इस्लाम को अपने सीने से लगाए हुए खड़े रहे और बुलन्द आवाज़ से येह आयत पढ़ते रहे कि "और मुहम्मद (ﷺ) तो एक रसूल है इन से पहले और रसूल हो चुके।"
࿐ फिर इब्ने क़मीआ ने इन को तीर मार कर शहीद कर दिया। हज़रत मुसअब बिन उमैर رضی الله تعالی عنه जो सूरत में हुज़ूर ﷺ से कुछ मुशाबेह थे उन को ज़मीन पर गिरते हुए देख कर कुफ़्फ़ार ने गुल मचा दिया معاذ الله कि हुज़ूर (ﷺ) कत्ल हो गए। الله اکبر ! इस आवाज़ ने गज़ब ही ढा दिया मुसलमान येह सुन कर बिल्कुल ही सरासीमा और परागन्दा दिमाग हो गए और मैदाने जंग छोड़ कर भागने लगे। बड़े बड़े बहादुरों के पाउं उखड़ गए और मुसलमानों में तीन गुरौह हो गए। कुछ लोग तो भाग कर मदीने के करीब पहुंच गए, कुछ लोग सहम कर मुर्दा दिल हो गए जहां थे वहीं रह गए अपनी जान बचाते रहे या जंग करते रहे, कुछ लोग जिन की तादाद तक़रीबन बारह थी वोह रसूलुल्लाह ﷺ के साथ षाबित कदम रहे। इस हलचल और भगदड़ में बहुत से लोगों ने तो बिल्कुल ही हिम्मत हार दी और जो जांबाज़ी के साथ लड़ना चाहते थे वोह भी दुश्मनों के दो तरफा हम्लों के नरगे में फंस कर मजबूर व लाचार हो चुके थे। ताजदारे दो आलम ﷺ कहां हैं ? और किस हाल में हैं ? किसी को इस की ख़बर नहीं थी।
࿐ हज़रत अली शेरे खुदा رضی الله تعالی عنه तलवार चलाते और दुश्मनों की सफ़ों को दरहम बरहम करते चले जाते थे मगर वोह हर तरफ मुड़ मुड़ कर रसूलुल्लाह (ﷺ) को देखते थे मगर जमाले नुबुव्वत नज़र न आने से वोह इनतिहाई इज्तिराब व बे करारी के आलम में थे। हज़रते अनस رضی الله تعالی عنه के चचा हज़रते अनस बिन नज़र رضی الله تعالی عنه लड़ते लड़ते मैदान जंग से भी कुछ आगे निकल पड़े वहां जा कर देखा कि कुछ मुसलमानों ने मायूस हो कर हथियार फेंक दिये है। आप ने पूछा कि तुम लोग यहां बैठे क्या कर रहे हो? लोगों ने जवाब दिया कि अब हम लड़ कर क्या करेंगे? जिन के लिये लड़ते थे वोह तो शहीद हो गए। हज़रते अनस बिन नज़र رضی الله تعالی عنه ने फ़रमाया कि अगर वाक़ेई रसूले खुदा ﷺ शहीद हो चुके तो फिर हम उन के बाद ज़िन्दा रह कर क्या करेंगे? चलो हम भी इसी मैदान में शहीद हो कर हुज़ूर ﷺ के पास पहुंच जाएं। येह कह कर आप दुश्मनों के लश्कर में लड़ते हुए घुस गए और आखिरी दम तक इनतिहाई जोशे जिहाद और जांबाज़ी के साथ जंग करते रहे यहां तक कि शहीद हो गए। लड़ाई खत्म होने के बाद जब इन की लाश देखी गई तो अस्सी से ज़ियादा तीर व तलवार और नेजों के जख्म इन के बदन पर थे काफिरों ने इन के बदन को छलनी बना दिया था और नाक, कान वगैर काट कर इन की सूरत बिगाड़ दी थी, कोई शख़्स इन की लाश को पहचान न सका सिर्फ इन की बहन ने इन की उंगलियों को देख कर इन को पहचाना।
࿐ इसी तरह हज़रते षाबीत दहदाह رضی الله تعالی عنه ने मायूस हो जाने वाले अन्सारियों से कहा कि ऐ जमाअते अन्सार! अगर बिलफ़र्ज़ रसूले अकरम ﷺ शहीद भी हो गए तो तुम हिम्मत क्यूं हार गए? तुम्हारा अल्लाह तो ज़िन्दा है लिहाज़ा तुम लोग उठो और अल्लाह के दीन के लिये जिहाद करो, येह कह कर आप ने चन्द अन्सारियों को अपने साथ लिया और लश्करे कुफ्फ़ार पर भूके शेरों की तरह हम्ला आवर हो गए और आखिर खालिद बिन वलीद के नेज़े से जामे शहादत नोश कर लिया।
࿐ जंग जारी थी और जां निषाराने इस्लाम जो जहां थे वहीं लड़ाई में मसरूफ़ थे मगर सब की निगाहें इनतिहाई बे करारी के साथ जमाले नुबुव्वत को तलाश करती थीं, ऐन मायूसी के आलम में सब से पहले जिस ने ताजदारे दो आलम ﷺ का जमाल देखा वोह हज़रते का'ब बिन मालिक की खुश नसीब आंखें हैं, उन्होंने हुज़ूर ﷺ को पहचान कर मुसलमानों को पुकारा कि ऐ मुसलमानो! इधर आओ, रसूले खुदा ﷺ येह हैं, इस आवाज़ को सुन कर तमाम जां निषारों में जान पड़ गई और हर तरफ़ से दौड़ दौड़ कर मुसलमान आने लगे, कुफ्फ़ार ने भी हर तरफ़ से हम्ला रोक कर रहमते आलम पर कातिलाना हम्ला करने के लिये सारा ज़ोर लगा दिया। लश्करे कुफ्फ़ार का दल बादल हुजूम के साथ उमंड पड़ा और बार बार मदनी ताजदार ﷺ पर यलगार करने लगा मगर जुल फ़िकार की बिजली से येह बादल फट फट कर रह जाता था।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 265-268 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 170* ༺❘
*❝ जंगे उहुद #13 ¶ जियाद बिन सकन की शुजाअत और शहादत ❞*
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࿐ एक मरतबा कुफ़्फ़ार का हुजूम हम्ला आवर हुवा तो सरवरे दो आलम ﷺ ने फ़रमाया कि "कौन है जो मेरे ऊपर अपनी जान कुरबान करता है?" येह सुनते ही हज़रते ज़ियाद बिन सकन رضي الله عنه पांच अन्सारियों को साथ ले कर आगे बढ़े और हर एक ने लड़ते हुए अपनी जानें फ़िदा कर दीं। हज़रते ज़ियाद बिन सकन رضي الله عنه ज़ख़्मों से लाचार हो कर ज़मीन पर गिर पड़े थे मगर कुछ कुछ जान बाक़ी थी, हुज़ूर ﷺ ने हुक्म दिया कि उन की लाश को मेरे पास उठा लाओ, जब लोगों ने उन की लाश को बारगाहे रिसालत में पेश किया तो हज़रते ज़ियाद बिन सकन खिसक कर महबूबे खुदा के कदमों पर अपना मुंह रख दिया और इसी हालत में उन की रूह परवाज़ कर गई। الله اکبر الله اکبر ! हज़रते ज़ियाद बिन सकन رضي الله عنه की इस मौत पर लाखों ज़िन्दगियां कुरबान!
*❝ खजूर खाते खाते जन्नत में ❞*
࿐ इस घुमसान की लड़ाई और मारधाड़ के हंगामों में एक बहादुर मुसलमान खड़ा हुवा, निहायत बे परवाई के साथ खजूरें खा रहा था। एक दम आगे बढ़ा और अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ अगर मैं इस वक्त शहीद हो जाऊं तो मेरा ठिकाना कहां होगा? आप ने इर्शाद फ़रमाया कि तू जन्नत जाएगा। वोह बहादुर इस फ़रमाने बिशारत को सुन कर मस्तो बेखुद हो गया। एक दम कुफ्फ़ार के हुजूम में कूद पड़ा और ऐसी शुजाअत के साथ लड़ने लगा कि काफ़िरों के दिल दहल गए। इसी तरह जंग करते करते शहीद हो गया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह-269 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 171* ༺❘
*❝ जंगे उहुद #14 ¶ लंगड़ाते हुए बिहिश्त में ❞*
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࿐ हज़रते अम्र बिन जमूह अन्सारी رضي الله عنه लंगड़े थे, येह घर से निकलते वक्त येह दुआ मांग कर चले थे कि या अल्लाह मुझ को मैदाने जंग से अहलो इयाल में आना नसीब मत कर, इन के चार फ़रज़न्द भी जिहाद में मसरूफ़ थे लोगों ने इन को लंगड़ा होने की बिना पर जंग करने से रोक दिया तो येह हुजूर ﷺ की बारगाह में गिड़गिड़ा कर अर्ज करने लगे कि या रसूलल्लाह ﷺ मुझ को जंग में लड़ने की इजाजत अता फ़रमाइये, मेरी तमन्ना है कि मैं भी लंगड़ाता हुवा बागे बिहिश्त में खिरामां खिरामां चला जाऊं। उन की बे क़रारी और गिर्या व जारी से रहमते आलम का कल्बे मुबारक मुतअष्षिर हो गया और आप ने उन को जंग की इजाजत दे दी। येह खुशी से उछल पड़े और अपने एक फ़रज़न्द को साथ ले कर काफ़िरों के हुजूम में घुस गए। हज़रते अबू तल्हा رضي الله عنه का बयान है कि मैं ने हज़रते अम्र बिन जमूह رضي الله عنه को देखा कि वोह मैदाने जंग में येह कहते हुए चल रहे थे कि "खुदा की कसम मैं जन्नत का मुश्ताक हूं।" उन के साथ साथ उन को सहारा देते हुए उन का लड़का भी इनतिहाई शुजाअत के साथ लड़ रहा था यहां तक कि यह दोनों शहादत से सरफ़राज़ हो कर बागे बिहिश्त में पहुंच गए।
࿐ लड़ाई खत्म हो जाने के बाद इन की बीवी हिन्द जौजए अम्र बिन जमूह मैदाने जंग में पहुंची और उस ने एक ऊंट पर इन की और अपने भाई और बेटे की लाश को लाद कर दफ्न के लिये मदीना लाना चाहा तो हज़ारों कोशिशों के बावजूद किसी तरह भी वोह ऊंट एक कदम भी मदीने की तरफ़ नहीं चला बल्कि वोह मैदाने जंग ही की तरफ़ भाग भाग कर जाता रहा हिन्द ने जब हुजूर ﷺ से येह माजरा अर्ज़ किया तो आप ने फ़रमाया कि येह बता क्या अम्र बिन जमूह ने घर से निकलते वक्त कुछ कहा था? हिन्द ने कहा कि जी हां! वोह येह दुआ कर के घर से निकले थे कि "या अल्लाह! मुझ मैदाने जंग से अहलो इयाल में आना नसीब मत कर।" आप ने इर्शाद फ़रमाया कि येही वजह है कि ऊंट मदीने की तरफ़ नहीं चल रहा है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 270📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 172* ༺❘
*❝ जंगे उहुद #15 ¶ ताजदारे दो आलम ﷺ ज़ख्मी ❞*
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࿐ इसी सरासीमगी और परेशानी के आलम में जब कि बिखरे हुए मुसलमान अभी रहमते आलम ﷺ के पास जम्अ भी नहीं हुए थे कि अब्दुल्लाह बिन क़मीआ जो कुरैश के बहादुरों में बहुत ही नामवर था। उस ने ना गहां हुजुर ﷺ को देख लिया। एक दम बिजली की तरह सफ़ों को चीरता हुवा आया और ताजदारे दो आलम ﷺ पर कातिलाना हम्ला कर दिया ज़ालिम ने पूरी ताकत से आप के चेहरए अन्वर पर तलवार मारी जिस से ख़ौद की दो कड़ियां रुखे अन्वर में चुभ गई। एक दूसरे काफ़िर ने आप के चेहरए अक्दस पर ऐसा पथ्थर मारा कि आप के दो दन्दाने मुबारक शहीद, और नीचे का मुक़द्दस होंट जख्मी हो गया। इसी हालत में उबय्य बिन खलफ़ मलऊन अपने घोड़े पर सुवार हो कर आप को शहीद कर देने की निय्यत से आगे बढ़ा।
࿐ हुज़ूर ﷺ ने अपने एक जां निषार सहाबी हज़रते हारिष बिन समा رضي الله عنه से एक छोटा सा नेज़ा ले कर उबय्य बिन खलफ़ की गरदन पर मारा जिस से वोह तिलमिला गया, गरदन पर बहुत मामूली ज़ख्म आया और वोह भाग निकला मगर अपने लश्कर में जा कर अपनी गरदन के ज़ख़्म के बारे में लोगों से अपनी तक्लीफ़ और परेशानी जाहिर करने लगा और बे पनाह ना क़ाबिले बरदाश्त दर्द की शिकायत करने लगा। इस पर उस के साथियों ने कहा कि "येह तो मामूली खराश है, तुम इस क़दर परेशान क्यूं हो?" उस ने कहा कि तुम लोग नहीं जानते कि एक मरतबा मुझ से मुहम्मद (ﷺ) ने कहा था कि मैं तुम को क़त्ल करूंगा इस लिये। येह तो बहर हाल जख्म है मेरा तो एतिक़ाद है कि अगर वोह मेरे ऊपर थूक देते तो भी मैं समझ लेता कि मेरी मौत यक़ीनी है।
࿐ इस का वाकिआ येह है कि उबय्य बिन खलफ़ ने मक्का में एक घोड़ा पाला था जिस का नाम इस ने “औद" रखा था। वोह रोज़ाना उस को चराता था और लोगों से कहता था कि मैं इसी घोड़े पर सुवार हो कर मुहम्मद (ﷺ) को कत्ल करूंगा। जब हुज़ूर ﷺ को इस की खबर हुई तो आप ने फ़रमाया कि मैं उबय्य बिन ख़लफ़ को क़त्ल करूंगा चुनान्चे उबय्य बिन खुलफ़ अपने उसी घोड़े पर चढ़ कर जंगे उहुद में आया था जो येह वाकिआ पेश आया। उबय्य बिन खलफ़ नेज़े के ज़ख्म से बे क़रार हो कर रास्ते भर तड़पता और बिलबिलाता रहा। यहां तक कि जंगे उहुद से वापस आते हुए मक़ामे "सरफ़" में मर गया।
࿐ इस तरह इब्ने क़मीआ मलऊन जिस ने हुज़ूर ﷺ के रुखे अन्वर पर तलवार चला दी थी एक पहाड़ी बकरे को खुदा वन्दे कहहार व जब्बार ने उस पर मुसल्लत फ़रमा दिया और उस ने इस को सींग मार मार कर छलनी बना डाला और पहाड़ की बुलन्दी से नीचे गिरा दिया जिस से इस की लाश के टुकड़े टकड़े हो कर जमीन पर बिखर गई।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह-262 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 173* ༺❘
*❝ जंगे उहुद #16 ¶ सहाबा का जोशे जां निषारी #01 ❞*
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࿐ जब हुज़ूरे अकरम ﷺ जख्मी हो गए तो चारों तरफ़ से कुफ्फ़ार ने आप पर तीर व तलवार का वार शुरू कर दिया और कुफ़्फ़ार का बे पनाह हुजूम आप के हर चहार तरफ़ से हमला करने लगा जिस से आप कुफ्फ़ार के नरगे में महसूर होने लगे, येह मन्ज़र देख कर जां निषार सहाबा का जोशे जां निषारी से खून खौलने लगा और वोह अपना सर हथेली पर रख कर आप को बचाने के लिये इस जंग की आग में कूद पड़े और आप के गिर्द एक हल्का बना लिया। हज़रते अबू दजाना رضي الله عنه झुक कर आप के लिये ढाल बन गए और चारों तरफ़ से जो तलवारें बरस रही थीं उन को वोह अपनी पुश्त पर लेते रहे और आप तक किसी तलवार या नेज़े की मार को पहुंचने ही नहीं देते थे। हज़रते तल्हा رضي الله عنه की जां निषारी का येह आलम था कि वोह कुफ्फार की तलवारों के वार को अपने हाथ पर रोकते थे यहां तक कि इन का एक हाथ कट कर शल हो गया और इन के बदन पर पेंतीस या उन्तालीस जख्म लगे। गरज जां निषार सहाबा ने हुज़ूर ﷺ की हिफाजत में अपनी जानों की परवा नहीं की और ऐसी बहादुरी और जांबाज़ी से जंग करते रहे कि तारीखे आलम में इस की मिषाल नहीं मिल सकती।
࿐ हज़रते अबू तल्हा رضی الله تعالی عنه निशाना बाज़ी में मशहूर थे, इन्हों ने इस मौकअ पर इस क़दर तीर बरसाए कि कई कमानें टूट गई। इन्होंने हुज़ूर ﷺ को अपनी पीठ के पीछे बिठा लिया था ताकि दुश्मनों के तीर या तलवार का कोई वार आप पर न आ सके कभी कभी आप दुश्मनों की फ़ौज को देखने के लिये गरदन उठाते तो हज़रते तल्हा अर्ज करते कि या रसूलल्लाह ﷺ मेरे मां बाप आप पर कुरबान! आप गरदन न उठाएं, कहीं ऐसा न हो कि दुश्मनों का कोई तीर आप को लग जाए। आप मेरी पीठ के पीछे ही रहें मेरा सीना आप के लिये ढाल बना हुवा है।
࿐ हज़रते कतादा बिन नोमान अन्सारी رضی الله تعالی عنه हुज़ूर ﷺ के चेहरए अन्वर को बचाने के लिये अपना चेहरा दुश्मनों के सामने किये हुए थे। ना गहां काफ़िरों का एक तीर इन की आंख में लगा और आंख बह कर इन के रुख़सार पर आ गई। हुज़ूर ﷺ ने अपने दस्ते मुबारक से उन की आंख को उठा कर आंख के हल्के में रख दिया और यूं दुआ फ़रमाई या अल्लाह! कतादा की आंख बचा ले जिस ने तेरे रसूल ﷺ के चेहरे को बचाया है। मशहूर है कि उन की वोह आंख दूसरी आंख से जियादा रोशन और खूब सूरत हो गई।
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 174* ༺❘
*❝ जंगे उहुद ¶ #17 सहाबा का जोशे जां निषारी #02 ❞*
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࿐ हज़रते सा'द बिन अबी वक्कास رضي الله عنه भी तीर अन्दाज़ी में इनतिहाई बा कमाल थे। येह भी हुजूर ﷺ की मुदाफ़अत में जल्दी जल्दी तीर चला रहे थे और हुजुरे अन्वर ﷺ खुद अपने दस्ते मुबारक से तीर उठा उठा कर इन को देते थे और फ़रमाते थे कि ऐ सा'द! तीर बरसाते जाओ तुम पर मेरे मां बाप कुरबान।, ज़ालिम कुफ्फ़ार इनतिहाई बेदर्दी के साथ हुज़ूरे अन्वर ﷺ पर तीर बरसा रहे थे मगर उस वक़्त भी ज़बाने मुबारक पर येह दुआ थी "ऐ अल्लाह ! मेरी क़ौम को बख़्श दे वोह मुझे जानते नहीं हैं।"
࿐ हुज़ूरे अक्दस ﷺ दन्दाने मुबारक के सदमे और चेहरए अन्वर के जख्मों से निढाल हो रहे थे इस हालत में आप उन गढ़ों में से एक गढ़े में गिर पड़े जो अबू आमिर फ़ासिक ने जा बजा खोद कर उन को छुपा दिया था ताकि मुसलमान ला इल्मी में इन गढ़ों के अन्दर गिर पड़ें। हज़रते अली رضی الله تعالی عنه ने आप का दस्ते मुबारक पकड़ा और हज़रते तल्हा बिन उबैदुल्लाह رضی الله تعالی عنه ने आप को उठाया। हज़रते अबू उबैदा बिन अल जर्राह رضی الله تعالی عنه ने ख़ौद (लोहे की टोपी) की कड़ी का एक हल्का जो चेहरए अन्वर में चुभ गया था अपने दांतों से पकड़ कर इस ज़ोर के साथ खींच कर निकाला कि इन का एक दांत टूट कर ज़मीन पर गिर पड़ा। फिर दूसरा हल्का जो दांतों से पकड़ कर खींचा तो दूसरा भी टूट गया। चेहरए अन्वर से जो ख़ून बहा उस को हज़रते अबू सईद खुदरी رضی الله تعالی عنه के वालिद हज़रते मालिक बिन सिनान رضی الله تعالی عنه ने जोशे अकीदत से चूस चूस कर पी लिया और एक क़तरा भी ज़मीन पर गिरने नहीं दिया। हुज़ूर ﷺने फ़रमाया कि ऐ मालिक बिन सिनान! क्या तूने मेरा खून पी डाला? अर्ज़ किया कि जी हां या रसूलल्लाह ﷺ पी डाला, इर्शाद फ़रमाया कि जिस ने मेरा खून पी लिया जहन्नम की क्या मजाल जो उस को छू सके।
࿐ इस हालत में रसूलुल्लाह ﷺ अपने जां निषारों के साथ पहाड़ की बुलन्दी पर चढ़ गए जहां कुफ़्फ़ार के लिये पहुंचना दुश्वार था, अबू सुफ्यान ने देख लिया और फ़ौज ले कर वोह भी पहाड़ पर चढ़ने लगा लेकिन हज़रते उमर رضی الله تعالی عنه और दूसरे जांनिषार सहाबा رضی الله تعالی عنهم ने काफ़िरों पर इस ज़ोर से पथ्थर बरसाए कि अबू सुफ्यान उस की ताब न ला सका और पहाड़ उतर गया। हुज़ूरे अक्दस ﷺ अपने चन्द सहाबा के साथ पहाड़ की एक घाटी में तशरीफ़ फ़रमा थे और चेहरए अन्वर से खून बह रहा था। हजरते अली رضی الله تعالی عنه अपनी ढाल में पानी भर भर कर ला रहे थे और हज़रते फ़ातिमा ज़हरा رضی الله تعالی عنها अपने हाथों से खून धो रही थी मगर खून बन्द नही होता था बिल आखिर खजूर की कटाई का एक टुकड़ा जलाया और उस की राख ज़ख्म पर रख दी तो खून फौरन ही थम गया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 274 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 175* ༺❘
*❝ जंगे उहुद #18 ¶ अबू सुफ्यान का नारा और उस का जवाब ❞*
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࿐ अबू सुफ्यान जंग के मैदान से वापस जाने लगा तो एक पहाड़ी पर चढ़ गया और ज़ोर ज़ोर से पुकारा कि क्या यहां मुहम्मद (ﷺ) हैं ? हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि तुम लोग इस का जवाब न दो, फिर उस ने पुकारा कि क्या तुम में अबू बक्र है? हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि कोई कुछ जवाब न दे, फिर उस ने पुकारा कि क्या तुम में उमर हैं? जब इस का भी कोई जवाब नहीं मिला तो अबू सुफ्यान घमन्ड से कहने लगा कि यह सब मारे गए क्यूं कि अगर ज़िन्दा होते तो ज़रूर मेरा जवाब देते। येह सुन कर हज़रते उमर رضی الله تعالی عنه से जब्त न हो सका और आप رضی الله تعالی عنه ने चिल्ला कर कहा कि ऐ दुश्मने खुदा! तू झूटा है। हम सब ज़िन्दा हैं।
࿐ अबू सुफ्यान ने अपनी फत्ह के घमन्ड में येह नारा मारा कि "ऐ हुबल ! तू सर बुलन्द हो जा। ऐ हुबल ! तू सर बुलन्द हो जा।" हुजूर ﷺ ने सहाबा से फ़रमाया कि तुम लोग भी इस के जवाब में नारा लगाओ। लोगों ने पूछा कि हम क्या कहें ? इर्शाद फ़रमाया कि तुम लोग येह नारा मारो कि "अल्लाह सब से बढ़ कर बुलन्द मर्तबा और बड़ा है।" अबू सुफ्यान ने कहा कि हमारे लिये उज्ज़ा (बुत) है और तुम्हारे लिये कोई "उज्ज़ा" नहीं। हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि तुम लोग इस के जवाब में ये कहो कि अल्लाह हमारा मददगार है और तुम्हारा कोई मददगार नहीं।
࿐ अबू सुफ्यान ने ब आवाज़े बुलन्द बड़े फख्र के साथ येह एलान किया कि आज का दिन बद्र के दिन का बदला और जवाब है। लड़ाई में कभी फतह कभी शिकस्त होती है। ऐ मुसलमानो ! हमारी फ़ौज ने तुम्हारे मक्तूलों के कान, नाक काट कर उन की सूरतें बिगाड़ दी है मगर मैं ने न तो इस का हुक्म दिया था, न मुझे इस पर कोई रन्ज व अफसोस हुवा है ये कह कर अबू सुफ़यान मैदान से हट गया और चल दिया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 277 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 176* ༺❘
*❝ जंगे उहुद #19 ¶ हिन्द जिगर ख्वार ❞*
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࿐ कुफ़्फ़ारे कुरैश की औरतों ने जंगे बद्र का बदला लेने के लिये जोश में शुहदाए किराम की लाशों पर जा कर उन के कान, नाक वगैरा काट कर सूरतें बिगाड़ दीं और अबू सुफ्यान की बीवी हिन्द ने तो इस बे दर्दी का मुज़ाहरा किया कि इन आ'ज़ा का हार बना कर अपने गले में डाला। हिन्द हज़रते हम्ज़ा رضي الله عنه की मुक़द्दस लाश को तलाश करती फिर रही थी क्यूं कि हज़रते हम्ज़ा رضی الله تعالی عنه ही ने जंगे बद्र के दिन हिन्द के बाप उत्बा को क़त्ल किया था। जब इस बे दर्द ने हज़रते हम्जा की लाश को पा लिया तो खन्जर से इन का पेट फाड़ कर कलेजा निकाला और उस को चबा गई लेकिन हल्क़ से न उतर सका इस लिये उगल दिया तारीखों में हिन्द का लक़ब जो “जिगर ख़्वार” है वोह इसी वाक़िए की बिना पर है। हिन्द और इस के शोहर अबू सुफ्यान ने रमज़ान सि 8 हि. में फ़तहे मक्का के दिन इस्लाम क़बूल किया।
*❝ सा'द बिन अर्रबीअ की वसिय्यत ❞*
࿐ हज़रते जैद बिन षाबित رضي الله عنه का बयान है कि मैं हुज़ूर ﷺ के हुक्म से हज़रते सा'द बिन अर्रबीअ رضی الله تعالی عنه की लाश की तलाश में निकला तो मैं ने उन को सकरात में पाया। उन्हों ने मुझ से कहा कि तुम रसूलुल्लाह ﷺ से मेरा सलाम अर्ज कर देना और अपनी क़ौम को बादे सलाम मेरा येह पैग़ाम सुना देना कि जब तक तुम में से एक आदमी भी ज़िन्दा है अगर रसूलुल्लाह ﷺ तक कुफ्फ़ार पहुंच गए तो खुदा के दरबार में तुम्हारा कोई उज्र भी काबिले क़बूल न होगा येह कहा और उन की रूह परवाज़ कर गई।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 278 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 177* ༺❘
*❝ जंगे उहुद #20 ¶ खवातीने इस्लाम के कारनामे #01 ❞*
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࿐ जंगे उहुद में मर्दो की तरह औरतों ने भी बहुत ही मुजाहिदाना जज़्बात के साथ लड़ाई में हिस्सा लिया हज़रते बीबी आइशा और हज़रते बीबी उम्मे सुलैमा رضی الله تعالی عنهما के बारे में हज़रते अनस رضی الله تعالی عنه का बयान है कि येह दोनों पाइंचे चढ़ाए हुए मशक में पानी भर भर कर लाती थीं और मुजाहिदीन खुसूसन जख्मियों को पानी पिलाती थीं। इसी तरह हज़रते अबू सईद खुदरी رضی الله تعالی عنه की वालिदा हज़रते बीबी उम्मे सलीत رضی الله تعالی عنها भी बराबर पानी की मशक भर कर लाती थीं और मुजाहिदीन को पानी पिलाती थीं।
*❝ हज़रते उम्मे अम्मारा की जां निषारी ❞*
࿐ हज़रते बीबी उम्मे अम्मारा जिन का नाम "नसीबा" है जंगे उहुद में अपने शोहर हज़रते जैद बिन आसिम और दो फ़रज़न्द हज़रते अम्मारा और हज़रते अब्दुल्लाह رضی الله تعالی عنهم को साथ ले कर आई थीं। पहले तो येह मुजाहिदीन को पानी पिलाती रहीं लेकिन जब हुजूर ﷺ पर कुफ्फार की यलगार का होशरुबा मन्ज़र देखा तो मशक को फेंक दिया और एक खन्जर ले कर कुफ्फ़ार के मुकाबले में सीना सिपर हो कर खड़ी हो गईं और कुफ्फ़ार के तीर व तलवार के हर एक वार को रोकती रहीं चुनान्चे उन के सर और गरदन पर तेरह ज़ख़्म लगे, इब्ने क़मीआ मलऊन ने जब हुजूर ﷺ पर तलवार चला दी तो बीबी उम्मे अम्मारा ने आगे बढ़ कर अपने बदन पर रोका, चुनान्चे उन के कन्धे पर इतना गहरा जख्म आया कि गार पड़ गया फिर खुद बढ़ कर इब्ने क़मीआ के शाने पर जोरदार तलवार मारी लेकिन वोह मलऊन दौहरी जिरह पहने हुए था इस लिये बच गया।
࿐ हज़रते बीबी उम्मे अम्मारा رضی الله تعالی عنها के फरज़न्द हज़रते अब्दुल्लाह कहते رضی الله تعالی عنه हैं कि मुझे एक काफ़िर ने ज़ख्मी कर दिया और मेरे ज़ख़्म से ख़ून बन्द नहीं होता था, मेरी वालिदा हज़रते उम्मे अम्मारा ने फ़ौरन अपना कपड़ा फाड़ कर जख्म को बांध दिया और कहा कि बेटा उठो, खड़े हो जाओ और फिर जिहाद में मश्गुल हो जाओ। इत्तिफ़ाक़ से वोही काफ़िर हुज़ूर ﷺ के सामने आ गया तो आप ने फ़रमाया कि ऐ उम्मे अम्मारा! رضی الله تعالی عنها देख तेरे बेटे को जख्मी करने वाला येही है। येह सुनते ही हज़रते बीबी उम्मे अम्मारा ने झपट कर उस काफ़िर की टांग पर तलवार का ऐसा भरपूर हाथ मारा कि वोह काफ़िर गिर पड़ा और फिर चल न सका बल्कि सुरीन के बल घिसटता हुवा भागा। येह मन्ज़र देख कर हुज़ूर ﷺ हंस पड़े और फ़रमाया कि ऐ उम्मे अम्मारा! खुदा का शुक्र अदा कर कि उस ने तुझ को इतनी ताकत और हिम्मत अता फ़रमाई कि तूने खुदा की राह में जिहाद किया, हज़रते बीबी उम्मे अम्मारा رضی الله تعالی عنها ने अर्ज किया कि या रसूलल्लाह ﷺ दुआ फ़रमाइये कि हम लोगों को जन्नत में आप की खिदमत गुज़ारी का शरफ़ हासिल हो जाए। उस वक्त आप ने उन के लिये और उन के शोहर और उन के बेटों के लिये इस तरह दुआ फ़रमाई कि या अल्लाह ! इन सब को जन्नत में मेरा रफ़ीक़ बना दे। سبحان الله ما شاء الله
࿐ हज़रते बीबी उम्मे अम्मारा رضی الله تعالی عنها ज़िन्दगी भर अलानिया येह कहती रहीं कि रसूलुल्लाह ﷺ की दुआ के बाद दुन्या में बड़ी से बड़ी मुसीबत भी मुझ पर आ जाए तो मुझे उस की कोई परवा नहीं है।
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 178* ༺❘
*❝ जंगे उहुद #21 ¶ खवातीने इस्लाम के कारनामे #02 ❞*
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࿐ *हज़रते सफिय्या का हौसला :-* हुज़ूर ﷺ की फूफी हज़रते बीबी सफ़िय्या رضي الله عنها अपने भाई हज़रते हम्ज़ा رضي الله عنه की लाश पर आई तो आप ने उन के बेटे हज़रते जुबैर رضي الله عنه को हुक्म दिया कि मेरी फूफी अपने भाई की लाश न देखने पाएं। हज़रते बीबी सफिय्या رضي الله عنها ने कहा कि मुझे अपने भाई के बारे में सब कुछ मालूम हो चुका है लेकिन मैं इस को खुदा की राह में कोई बड़ी कुरबानी नहीं समझती, फिर हुज़ूर ﷺ की इजाजत से लाश के पास गई और येह मन्ज़र देखा कि प्यारे भाई के कान, नाक, आंख सब कटे पिटे शिकम चाक, जिगर चबाया हुवा पड़ा है, येह देख कर इस शेर दिल खातून ने *انا لله وانا الیه رٰجعون* के सिवा कुछ भी न कहा फिर उन की मगफिरत की दुआ मांगती हुई चली आई।
࿐ *एक अन्सारी औरत का सब्र :-* एक अन्सारी औरत जिस का शोहर, बाप, भाई सभी इस जंग में शहीद हो चुके थे तीनों की शहादत की ख़बर बारी बारी से लोगों ने उसे दी मगर वोह हर बार येही पूछती रही येह बताओ कि रसूलुल्लाह ﷺ कैसे हैं ? जब लोगों ने उस को बताया कि الحمد لله वोह ज़िन्दा और सलामत हैं तो बे इख़्तियार उस की ज़बान से इस शे'र का मज़मून निकल पड़ा कि
*तसल्ली है पनाहे बे कसां ज़िन्दा सलामत है*
*कोई परवा नहीं सारा जहां ज़िन्दा सलामत है*
࿐ अल्लाहु अकबर ! इस शेर दिल औरत का सब्र व ईषार का क्या कहना? शोहर, बाप, भाई, तीनों के क़त्ल से दिल पर सदमात के तीन तीन पहाड़ गिर पड़े हैं मगर फिर भी ज़बाने हाल से उस का येही नारा है कि
*मैं भी और बाप भी, शोहर भी, बरादर भी फ़िदा*
*ऐ शहे दीं ! तेरे होते हुए क्या चीज़ हैं हम*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 179* ༺❘
*❝ जंगे उहुद #22 ¶ शुहदाए किराम رضی الله تعالی عنهم ❞*
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࿐ इस जंग में सत्तर सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم ने जामे शहादत नोश फ़रमाया जिन में चार मुहाजिर और छियासठ अन्सार थे। तीस की तादाद में कुफ्फ़ार भी निहायत जिल्लत के साथ क़त्ल हुए।
࿐ मगर मुसलमानों की मुफ्लिसी का येह आलम था कि इन शुहदाए किराम رضی الله تعالی عنهم के कफ़न के लिये कपड़ा भी नहीं था, हज़रते मुस्अब رضی الله تعالی عنه का येह हाल था कि ब वक्ते शहादत उन के बदन पर सिर्फ एक इतनी बड़ी कमली थी कि उन की लाश को कब्र में लिटाने के बाद अगर उन का सर ढांपा जाता था तो पाउं खुल जाते थे और अगर पाउं को छुपाया जाता था तो सर खुल जाता था बिल आखिर सर छुपा दिया गया और पाउं पर इज़खर घास डाल दी गई। शुहदाए किराम رضی الله تعالی عنهم ख़ून में लिथड़े हुए दो दो शहीद एक एक कब्र में दफ्न किये गए। जिस को कुरआन ज़ियादा याद होता उस को आगे रखते।
࿐ *कुबूरे शुहदा की ज़ियारत :-* हुज़ूर ﷺ शुहदाए उहुद की क़ब्रों की ज़ियारत के लिये तशरीफ़ ले जाते थे और आप के बाद हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ व हज़रते उमर फारूक رضی الله تعالی عنهما का भी येही अमल रहा। एक मरतबा हुजूर ﷺ शुहदाए उहुद की क़ब्रों पर तशरीफ ले गए तो इर्शाद फ़रमाया कि या अल्लाह ! तेरा रसूल गवाह है कि इस जमाअत ने तेरी रिज़ा की तलब में जान दी है, फिर येह भी इर्शाद फ़रमाया कि क़ियामत तक जो मुसलमान भी इन शहीदों की क़ब्रों पर ज़ियारत के लिये आएगा और इन को सलाम करेगा तो येह शुहदाए किराम उस के सलाम का जवाब देंगे। चुनान्चे हजरते फ़ातिमा खुजाइया رضی الله تعالی عنها का बयान है कि मैं एक दिन उहुद के मैदान से गुज़र रही थी। हज़रते हम्ज़ा की कब्र के पास पहुंच कर मैं ने अर्ज़ किया कि ऐ रसूलुल्लाह (ﷺ) के चचा ! आप पर सलाम हो) तो मेरे कान में ये आवाज़ आई कि "وعليكم السلام ورحمة الله وبركاته"।
࿐ *हयाते शोहदा :-* छियालीस बरस के बाद शुहदाए उहुद की बा'ज़ क़ब्रें खुल गई तो उन के कफ़न सलामत और बदन तरो ताजा थे और तमाम अहले मदीना और दूसरे लोगों ने देखा कि शुहदाए किराम अपने ज़ख्मों पर हाथ रखे हुए हैं और जब ज़ख़्म से हाथ उठाया तो ताज़ा खून निकल कर बहने लगा।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 283 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 180* ༺❘
*❝ काब बिन अशरफ़ का कत्ल ❞*
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࿐ यहूदियों में का'ब बिन अशरफ़ बहुत ही दौलत मन्द था यहूदी उलमा और यहूद के मज़हबी पेशवाओं को अपने ख़ज़ाने से तनख़्वाह देता था दौलत के साथ शाइरी में भी बहुत बा कमाल था जिस की वजह से न सिर्फ यहूदियों बल्कि तमाम क़बाइले अरब पर इस का एक ख़ास अषर था इस को हुज़ूर ﷺ से सख्त अदावत थी जंगे बद्र में मुसलमानों की फत्ह और सरदाराने कुरैश के क़त्ल हो जाने से इस को इनतिहाई रन्ज व सदमा हुवा।
࿐ चुनान्चे येह कुरैश की ताजिय्यत के लिये मक्का गया और कुफ्फ़ारे कुरैश का जो बद्र में मक्तूल हुए थे ऐसा पुरदर्द मरषिया लिखा कि जिस को सुन कर सामिईन के मज्मअ में मातम बरपा हो जाता था इस मरषिया को येह शख़्स कुरैश को सुना सुना कर खुद भी जारो जार रोता था और सामेईन को भी रुलाता था, मक्का में अबू सुफ्यान से मिला और उस को मुसलमानों से जंगे बद्र का बदला लेने पर उभारा बल्कि अबू सुफ्यान को ले कर हरम आया और कुफ्फ़ारे मक्का के साथ खुद भी का'बे का गिलाफ़ पकड़ कर अह्द किया कि मुसलमानों से बद्र का ज़रूर इनतिकाम लेंगे फिर मक्का से मदीना लौट कर आया तो हुज़ूरे अकरम ﷺ की हिजू लिख कर शाने अक्दस में तरह तरह की गुस्ताखियां और बे अदबियां करने लगा, इसी पर बस नहीं किया बल्कि आप को चुपके से क़त्ल करा देने का कस्द किया।
࿐ का'ब बिन अशरफ़ यहूदी की येह हरकतें सरासर उस मुआहदे की ख़िलाफ़ वरज़ी थी जो यहूद और अन्सार के दरमियान हो चुका था कि मुसलमानों और कुफ्फ़ारे कुरैश की लड़ाई में यहूदी गैर जानिब दार रहेंगे, बहुत दिनों तक मुसलमान बरदाश्त करते रहे मगर जब बानिये इस्लाम ﷺ की मुक़द्दस जान को खतरा लाहिक हो गया तो हज़रते मुहम्मद बिन मुस्लिमा ने हज़रते अबू नाइला व हज़रते अब्बाद बिन बिशर व हज़रते हारिष बिन औस व हज़रते अबू अबस को رضی الله تعالی عنهم साथ लिया और रात में का'ब बिन अशरफ़ के मकान पर गए और रबीउल अव्वल सि. 3 हि. को उस के क़ल्ए के फाटक पर उस को क़त्ल कर दिया और सुबह को बारगाहे रिसालत में हाज़िर हो कर उस का सर ताजदारे दो आलम ﷺ के क़दमों में डाल दिया इस क़त्ल के सिल्सिले में हज़रते हारिष बिन औस رضی الله تعالی عنه तलवार की नोक से जख्मी हो गए थे। मुहम्मद बिन मुस्लिमा वगैरा इन को कन्धों पर उठा कर बारगाहे रिसालत में लाए और आप ने अपना लुआबे दहन उन के ज़ख़्म पर लगा दिया तो उसी वक्त शिफाए कामिल हासिल हो गई।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 284 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 181* ༺❘
*❝ गज्वए गतक़ान ❞*
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࿐ रबीउल अव्वल सि. 3 हि. में हुजुर ﷺ को येह इत्तिलाअ मिली कि नज्द के एक मशहूर बहादुर "दाषूर बिन अल हारिष मुहारिबी" ने एक लश्कर तय्यार कर लिया है ताकि मदीने पर हम्ला करे, इस ख़बर के बाद आप ﷺ चार सो सहाबए किराम की फ़ौज ले कर मुकाबले के लिये रवाना हो गए। जब दाषूर को ख़बर मिली कि रसूलुल्लाह हमारे दियार में आ गए तो वोह भाग निकला और अपने लश्कर को ले कर पहाड़ों पर चढ़ गया मगर उस की फ़ौज का एक आदमी जिस का नाम "हब्बान" था गरिफ्तार हो गया और फ़ौरन ही कलिमा पढ़ कर उस ने इस्लाम क़बूल कर लिया।
࿐ इत्तिफ़ाक़ से उस रोज़ ज़ोरदार बारिश हो गई, हुजूर ﷺ एक दरख़्त के नीचे लैट कर अपने कपड़े सुखाने लगे पहाड़ की बुलन्दी से काफ़िरों ने देख लिया कि आप बिल्कुल अकेले और अपने असहाब से दूर भी हैं, एक दम दाषूर बिजली की तरह पहाड़ से उतर कर नंगी शमशीर हाथ में लिये हुए आया और हुज़ूर ﷺ के सरे मुबारक पर तलवार बुलन्द कर के बोला कि बताइये अब कौन है जो आप को मुझ से बचा ले? आप ने जवाब दिया कि “मेरा अल्लाह मुझ को बचा लेगा।" चुनान्चे जिब्रील عليه السلام दम जदन में ज़मीन पर उतर पड़े और दाषूर के सीने में एक ऐसा घूंसा मारा कि तलवार उस के हाथ से गिर पड़ी और दाषूर ऐन गैन हो कर रह गया।
࿐ रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़ौरन तलवार उठा ली और फ़रमाया कि बोल अब तुझ को मेरी तलवार से कौन बचाएगा? दाषूर ने कांपते हुए भर्राई हुई आवाज़ कहा कि "कोई नहीं।" रहूमतुल्लिल आलमीन ﷺ को उस की बे कसी पर रहम आ गया और आप ने उस का कुसूर मुआफ़ फ़रमा दिया,दाषूर इस अख़्लाक़े नुबुव्वत से बेहद मुतअष्षिर हुवा और कलिमा पढ़ कर मुसलमान हो गया और अपनी क़ौम में आ कर इस्लाम की तब्लीग करने लगा। इस ग़ज़वे में कोई लड़ाई नहीं हुई और हुजूर ﷺ ग्यारह या पन्दरह दिन मदीने से बाहर रह कर फिर मदीने आ गए।
࿐ बा'ज़ मुअर्रिख़ीन ने इस तलवार खींचने वाले वाकिए को "ग़ज्वए जातुर्रकाअ" के मौकअ पर बताया है मगर हक़ येह है कि तारीखे नबवी में इस क़िस्म के दो वाकिआत हुए हैं। "गज्वए गुतफ़ान" के मौक़अ पर सरे अन्वर के ऊपर तलवार उठाने वाला “दाषूर बिन हारिष मुहारिबी" था जो मुसलमान हो कर अपनी क़ौम के इस्लाम का बाईष बना और गज्वए जातुर्रकाअ में जिस शख़्स ने हुज़ूरे अक्दस ﷺ पर तलवार उठाई थी उस का नाम "गौरष" था। उस ने इस्लाम क़बूल नहीं किया बल्कि मरते वक़्त तक अपने कुफ़्र पर अड़ा रहा हां अलबत्ता उस ने येह मुआहदा कर लिया था कि वोह हुज़ूर ﷺ से कभी जंग नहीं करेगा।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 286 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 182* ༺❘
*❝ सि. 3 हि. के वाकिआते मुतफर्रिका ❞*
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࿐ हिजरत के तीसरे साल में मुन्दरिजए जैल वाकिआत भी जुहूर पज़ीर हुए।
࿐ 15 रमज़ान सि. 3 हि को हज़रते इमामे हसन رضي الله عنه की विलादत हुई।
࿐ इसी साल हुज़ूरे अक्दस ﷺ ने हज़रते बीबी हफ़सा رضی الله تعالی عنها से निकाह फ़रमाया। हज़रते हफ्सा رضی الله تعالی عنها हज़रते उमर फारूक رضي الله عنه की साहिब जादी हैं जो गज्वए बद्र के ज़माने में बेवा हो गई थीं इन के मुफ़स्सल हालात अज्वाजे मुतहहरात के ज़िक्र में आगे तहरीर किये जाएंगे।
࿐ इसी साल हज़रते उषमाने गनी رضي الله عنه ने हुज़ूर ﷺ की साहिब ज़ादी हज़रते उम्मे कुलसुम رضي الله عنها से निकाह किया।
࿐ मीराष के अहकाम व कवानीन भी इसी साल नाज़िल हुए अब तक मीराष में ज़विल अरहाम का कोई हिस्सा न था इन के हुकूक का मुफ़स्सल बयान नाज़िल हो गया।
࿐ अब तक मुशरिक औरतों का निकाह मुसलमानों से जाइज़ था मगर सि. 3 हि. में इस की हुरमत नाज़िल हो गई और हमेशा के लिये मुशरिक औरतों का निकाह मुसलमानों से हराम कर दिया गया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 286 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 183* ༺❘
*❝ हिज़रत का चौथा साल ❞*
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࿐ हिजरत का चौथा साल भी कुफ्फ़ार के साथ छोटी बड़ी लड़ाइयों ही में गुज़रा। जंगे बद्र की फ़त्हे मुबीन से मुसलमानों का रो'ब तमाम क़बाइले अरब पर बैठ गया था इस लिये तमाम क़बीले कुछ दिनों के लिये ख़ामोश बैठ गए थे लेकिन जंगे उहुद में मुसलमानों के जानी नुक्सान का चरचा हो जाने से दोबारा तमाम कबाइल दफ्अतन इस्लाम और मुसलमानों को मिटाने के लिये खड़े हो गए और मजबूरन मुसलमानों को भी अपने दिफाअ के लिये लड़ाइयों में हिस्सा लेना पड़ा। सि. 4 हि की मशहूर लड़ाइयों में से चन्द येह हैं:
࿐ *सरिय्यए अबू सलमह :-* यकुम मुहुर्रम सि. 4 हि को ना गहां एक शख्स ने मदीने में येह ख़बर पहुंचाई कि तुलैहा बिन खुवैलद और सलमह बिन खुवैलद दोनों भाई कुफ़्फ़ार का लश्कर जम्अ कर के मदीने पर चढ़ाई करने के लिये निकल पड़े हैं। हुज़ूर ﷺ ने इस लश्कर के मुक़ाबले में हज़रते अबू सलमह رضي الله عنه को डेढ़ सो मुजाहिदीन के साथ रवाना फ़रमाया जिस में हज़रते अबू सबरह और हज़रते अबू उबैदा رضی الله تعالی عنهما जैसे मुअज्जज मुहाजिरीन व अन्सार भी थे, लेकिन कुफ्फ़ार को जब पता चला कि मुसलमानों का लश्कर आ रहा है तो वोह लोग बहुत से ऊंट और बकरियां छोड़ कर भाग गए जिन को मुसलमान मुजाहिदीन ने माले गनीमत बना लिया और लड़ाई की नौबत ही नहीं आई।
࿐ *सरिय्यए अब्दुल्लाह बिन अनीस :-* मुहर्रम सि. 4 हि. को इत्तिलाअ मिली कि "खालिद बिन सुफ्यान हजुली" मदीने पर हम्ला करने के लिये फ़ौज जम्अ कर रहा है। हुजूर ﷺ ने उस के मुक़ाबले के लिये हज़रते अब्दुल्लाह बिन अनीस رضي الله عنه को भेज दिया। आप ने मौकअ पा कर खालिद बिन सुफ्यान हज़ली को क़त्ल कर दिया और उस का सर काट कर मदीना लाए और ताजदारे दो आलम ﷺ के क़दमों में डाल दिया। हुजूर ﷺ ने हज़रते अब्दुल्लाह बिन अनीस رضی الله تعالی عنه की बहादुरी और जांबाज़ी से खुश हो कर उन को अपना असा (छड़ी) अता फ़रमाया और इर्शाद फ़रमाया कि तुम इसी असा को हाथ में ले कर जन्नत में चहल कदमी करोगे। उन्हों ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ! कियामत के दिन येह मुबारक असा मेरे पास निशानी के तौर पर रहेगा। चुनान्चे इनतिकाल के वक़्त उन्हों ने येह वसिय्यत फ़रमाई की इस असा को मेरे कफ़न में रख दिया जाए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 287 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 184* ༺❘
*❝ हादिषए रजीअ ❞*
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࿐ अस्फ़ान व मक्का के दरमियान एक मक़ाम का नाम “रजीअ" है। यहां की ज़मीन सात मुक़द्दस सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم के ख़ून से रंगीन हुई इस लिये येह वाकिआ "सरिय्यए रजीअ" के नाम से मशहूर है। येह दर्दनाक सानिहा भी सि. 4 हि में पेश आया। इस का वाकिआ येह है कि क़बीलए अज़ल व कारह के चन्द आदमी बारगाहे रिसालत में आए और अर्ज़ किया कि हमारे क़बीले वालों ने इस्लाम क़बूल कर लिया है। अब आप चन्द सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم को वहां भेज दें ताकि वो हमारी क़ौम को अकाइदो आमाले इस्लाम सिखा दें, उन लोगों की दर ख्वास्त पर हुज़ूर ﷺ ने दस मुन्तख़ब सहाबा رضی الله تعالی عنهم को हज़रते आसिम बिन षाबित की मा तहती में भेज दिया। जब येह मुक़द्दस क़ाफ़िला मक़ामे रजीअ पर पहुंचा तो ग़द्दार कुफ़्फ़ार ने बद अहदी की और क़बीलए बनू लगाना के काफ़िरों ने दो सो की तादाद में जम्अ हो कर इन दस मुसलमानों पर हमला कर दिया मुसलमान अपने बचाव के लिये एक ऊंचे टीले पर चढ़ गए। काफ़िरों ने तीर चलाना शुरू किया और मुसलमानों ने टीले की बुलन्दी से संगबारी की कुफ्फ़ार ने समझ लिया कि हम हथियारों से इन मुसलमानों को ख़त्म नहीं कर सकते तो उन लोगों ने धोका दिया!
࿐ और कहा कि ऐ मुसलमानों ! हम तुम लोगों को अमान देते हैं और अपनी पनाह में लेते हैं इस लिये तुम लोग टीले से उतर आओ हज़रते आसिम बिन षाबित رضی الله تعالی عنه ने फ़रमाया कि मैं किसी काफ़िर की पनाह में आना गवारा नहीं कर सकता। येह कह कर खुदा से दुआ मांगी कि "या अल्लाह ! तू अपने रसूल को हमारे हाल से मुत्तलअ फरमा दे।" फिर वोह जोशे जिहाद में भरे हुए टीले से उतरे और कुफ्फ़ार से दस्त बदस्त लड़ते हुए अपने छे साथियों के साथ शहीद हो गए। चूंकि हज़रते आसिम رضی الله تعالی عنه ने जंगे बद्र के दिन बड़े बड़े कुफ्फ़ारे कुरैश को क़त्ल किया था इस लिये जब कुफ्फ़ारे मक्का को हज़रते आसिम رضی الله تعالی عنه की शहादत का पता चला तो कुफ्फ़ारे मक्का ने चन्द आदमियों को मक़ामे रजीअ में भेजा ताकि उन के बदन का कोई ऐसा हिस्सा काट कर लाएं जिस से शनाख्त हो जाए कि वाकेई हज़रते आसिम क़त्ल رضی الله تعالی عنه हो गए हैं लेकिन जब कुफ़्फ़ार आप की लाश की तलाश में उस मक़ाम पर पहुंचे तो उस शहीद की येह करामत देखी कि लाखों की तादाद में शहद की मख्खियों ने उन की लाश के पास इस तरह घेरा डाल रखा है जिस से वहां तक पहुंचना ही ना मुमकिन हो गया है इस लिये कुफ्फ़ारे मक्का नाकाम वापस चले गए।
࿐ बाकी तीन अश्खास हज़रते खुबैब व हज़रते जैद बिन दषिना व हज़रते अब्दुल्लाह बिन तारिक رضی الله تعالی عنهم कुफ्फार की पनाह पर ए'तिमाद कर के नीचे उतरे तो कुफ़्फ़ार ने बद अहदी की और अपनी कमान की तांतों से इन लोगों को बांधना शुरू कर दिया, येह मन्ज़र देख कर हज़रते अब्दुल्लाह बिन तारिक رضی الله تعالی عنه ने फ़रमाया कि येह तुम लोगों की पहली बद अहदी है और मेरे लिये अपने साथियों की तरह शहीद हो जाना बेहतर है। चुनान्चे वोह उन काफ़िरों से लड़ते हुए शहीद हो गए लेकिन हज़रते खुबैब और हज़रते जैद बिन दषिना رضی الله تعالی عنهما को काफ़िरों ने बांध दिया था इस लिये येह दोनों मजबूर हो गए थे इन दोनों को कुफ़्फ़ार ने मक्का में ले जा कर बेच डाला, हज़रते खुबैब رضی الله تعالی عنه ने जंगे उहुद में हारिष बिन आमिर को क़त्ल किया था इस लिये उस के लड़कों ने इन को खरीद लिया ताकि इन को क़त्ल कर के बाप के खून का बदला लिया जाए और हज़रते जैद बिन दषिना को उमय्या के बेटे सफ्वान ने कत्ल करने के इरादे से खरीदा। हज़रते खुबैब को काफिरों ने चन्द दिन क़ैद में रखा फिर हुदूदे हरम के बाहर ले जा कर सूली पर चढ़ा कर क़त्ल कर दिया हजरते खुबैब ने कातिलों से दो रक्अत नमाज पढ़ने की इजाजत तलब की, क़ातिलों ने इजाजत दे दी।
࿐ आप ने बहुत मुख़्तसर तौर पर दो रक्अत नमाज़ अदा फ़रमाई और फ़रमाया कि ऐ गुरौहे कुफ्फ़ार ! मेरा दिल तो येही चाहता था कि देर तक नमाज़ पढ़ता रहूं क्यूं कि येह मेरी ज़िन्दगी की आखिरी नमाज़ थी मगर मुझ को येह ख़याल आ गया कि कहीं तुम लोग येह न समझ लो कि मैं मौत से डर रहा हूं। कुफ्फ़ार ने आप को सूली पर चढ़ा दिया उस वक़्त आप ने ये अशआर पढ़े "जब मैं मुसलमान हो कर कत्ल किया जा रहा हूं परवा नहीं है कि मैं किस पहलू पर कत्ल किया जाऊंगा।" येह सब कुछ खुदा के लिये है अगर वोह चाहेगा तो मेरे कटे पिटे जिस्म के टुकड़ों पर बरकत नाजिल फ़रमाएगा।" हारिष बिन आमिर के लड़के “अबू सरूआ" ने आप को क़त्ल किया मगर खुदा की शान कि येही अबू सरूआ और इन के दोनों भाई "उक्बा" और "हुजैर" फिर बाद में मुशर्रफ ब इस्लाम हो कर सहाबिय्यत के शरफ़ व एजाज़ से सरफ़राज़ हो गए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 290📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 185* ༺❘
*❝ हज़रते खुबैब की कब्र ❞*
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࿐ हुज़ूर ﷺ को अल्लाह तआला ने वहय के जरीए हज़रते खुबैब رضی الله تعالی عنه की शहादत से मुत्तलअ फ़रमाया, आप ने सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم से फ़रमाया कि जो शख्स खुबैब की लाश को सूली से उतार लाए उस के लिये जन्नत है, येह बिशारत सुन कर हज़रते जुबैर बिन अल अव्वाम व हज़रते मिक्दाद बिन अल अस्वद رضی الله تعالی عنهما रातों को सफर करते और दिन को छुपते हुए मक़ामे "तईम" में हज़रते खुबैब की सूली के पास पहुंचे। चालीस कुफ्फ़ार सूली के पहरादार बन कर सो रहे थे इन दोनों हज़रात ने सूली से लाश को उतारा और घोड़े पर रख कर चल दिये। चालीस दिन गुज़र जाने के बावजूद लाश तरो ताजा थी और ज़ख़्मों से ताज़ा खून टपक रहा था। सुब्ह को कुरैश के सत्तर सुवार तेज रफ्तार घोड़ों पर तआकूब में चल पड़े और इन दोनों हज़रात के पास पहुंच गए, इन हज़रात ने जब देखा कि कुरैश के सुवार हम को गरिफ्तार कर लेंगे तो इन्हों ने हज़रते खुबैब رضی الله تعالی عنه की लाश मुबारक को घोड़े से उतार कर ज़मीन पर रख दिया। खुदा की शान कि एक दम ज़मीन फट गई और लाश मुबारक को निगल गई और फिर ज़मीन इस तरह बराबर हो गई कि फटने का निशान भी बाक़ी नहीं रहा। येही वजह है कि हज़रते खुबैब رضی الله تعالی عنه का लक़ब "बलीउल अर्द" (जिन को ज़मीन निगल गई) है।"
࿐ इस के बाद इन हज़रात رضی الله تعالی عنهما ने कुफ्फार से कहा कि हम दो शेर हैं जो अपने जंगल में जा रहे हैं अगर तुम लोगों से हो सके तो हमारा रास्ता रोक कर देखो वरना अपना रास्ता लो। कुफ्फ़ार ने इन हज़रात के पास लाश नहीं देखी इस लिये मक्का वापस चले गए। जब दोनों सहाबए किराम ने बारगाहे रिसालत में सारा माजरा अर्ज़ किया तो हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम भी हाज़िरे दरबार थे। उन्हों ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ! आप के इन दोनों यारों के इस कारनामे पर हम फ़िरिश्तों की जमाअत को भी फख्र है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 293 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 186* ༺❘
*❝ हज़रते ज़ैद की शहादत ❞*
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࿐ हज़रते ज़ैद बिन दसिना رضي الله عنه के क़त्ल का तमाशा देखने के लिये कुफ्फ़ारे कुरैश कषीर तादाद में जम्अ हो गए जिन में अबू सुफ्यान भी थे जब इन को सूली पर चढ़ा कर क़ातिल ने तलवार हाथ में ली तो अबू सुफ्यान ने कहा कि क्यूं ? ऐ जैद ! सच कहना, अगर इस वक़्त तुम्हारी जगह मुहम्मद (ﷺ) इस तरह क़त्ल किये जाते तो क्या तुम इस को पसन्द करते ? हज़रते जैद رضي الله عنه अबू सुफ्यान की इस ताना जनी को सुन कर तड़प गए और जज़्बात से भरी हुई आवाज़ में फ़रमाया कि ऐ अबू सुफ्यान ! खुदा की क़सम ! मैं अपनी जान को कुरबान कर देना अज़ीज़ समझता हूं मगर मेरे प्यारे रसूल (ﷺ) के मुक़द्दस पाउं के तल्वे में एक कांटा भी चुभ जाए मुझे कभी भी येह गवारा नहीं हो सकता।
*मुझे हो नाज़ क़िस्मत पर अगर नामे मुहम्मद (ﷺ) पर*
येह सर कट जाए और तेरा कफ़े पा उस को ठुकराए
*येह सब कुछ है गवारा पर येह मुझ से हो नहीं सकता*
कि उन के पाउं के तल्वे में इक कांटा भी चुभ जाए
࿐ येह सुन कर अबू सुफ्यान ने कहा कि मैं ने बड़े बड़े महब्बत करने वालों को देखा है मगर मुहम्मद (ﷺ) के आशिकों की मिषाल नहीं मिल सकती सफ्वान के गुलाम "नसतास" ने तलवार से उन की गरदन मारी।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 294 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 187* ༺❘
*❝ वाकिअए बीरे मुअव्वना ❞*
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࿐ माहे सफ़र सि. 4 हि में "बीरे मुअव्वना" का मशहूर वाकिआ पेश आया। अबू बराअ आमिर बिन मालिक जो अपनी बहादुरी की वजह से "मलाइबुल असिन्नह" (बरछियों से खेलने वाला) कहलाता था, बारगाहे रिसालत में आया हुज़ूर ﷺ ने उस को इस्लाम की दा'वत दी, उस ने न तो इस्लाम क़बूल किया न इस से कोई नफ़रत जाहिर की बल्कि येह दर ख्वास्त की, कि आप अपने चन्द मुन्तख़ब सहाबा को हमारे दियार में भेज दीजिये मुझे उम्मीद है कि वोह लोग इस्लाम की दावत क़बूल कर लेंगे। आप ने फ़रमाया कि मुझे नज्द के कुफ्फार की तरफ से ख़तरा है। अबू बराअ ने कहा कि मैं आप के असहाब की जान व माल की हिफाज़त का ज़ामिन हूं।
࿐ इस के बाद हुजुर ﷺ ने सहाबा में से 70 मुन्तख़ब सालिहीन को जो "कुर्रा" कहलाते थे भेज दिया जब मक़ामे "बीरे मुअव्वना" पर पहुंचे तो ठहर गए और सहाबा के काफ़िला सालार हज़रते हिराम बिन मलहान हुज़ूर ﷺ का खत ले कर आमिर बिन तुफ़ैल के पास अकेले तशरीफ़ ले गए जो क़बीले का रईस और अबू बराअ का भतीजा था उस ने खत को पढ़ा भी नहीं और एक शख़्स को इशारा कर दिया जिस ने पीछे से हज़रते हिराम رضی الله تعالی عنه को नेज़ा मार कर शहीद कर दिया और आसपास के क़बाइल या'नी रअल व ज़क्वान और असिय्या व बनू लहयान वगैरा को जम्अ कर के एक लश्कर तय्यार कर लिया और सहाबए किराम पर हम्ले के लिये रवाना हो गया।
࿐ हज़राते सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم बीरे मुअव्वना के पास बहुत देर तक हज़रते हिराम رضی الله تعالی عنه की वापसी का इनतिज़ार करते रहे मगर जब बहुत ज़्यादा देर हो गई तो येह लोग आगे बढ़े रास्ते में आमिर बिन तुफ़ैल की फ़ौज का सामना हुवा और जंग शुरू हो गई कुफ्फार ने हज़रते अम्र बिन उमय्या जमरी رضی الله تعالی عنه के सिवा तमाम सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم को शहीद कर दिया, इन्ही शुहदाए किराम में हज़रते आमिर बिन फुहैरा رضی الله تعالی عنه भी थे। जिन के बारे में आमिर बिन तुफ़ैल का बयान है की क़त्ल होने के बाद इन की लाश बुलन्द हो कर आस्मान तक पहुंची फिर ज़मीन पर आ गई, इस के बाद इन की लाश तलाश करने पर भी नहीं मिली क्यूं कि फ़िरिश्तों ने इन्हें दफ्न कर दिया।
࿐ हज़रते अम्र बिन उमय्या जमरी رضی الله تعالی عنه को आमिर बिन तुफ़ैल ने येह कह कर छोड़ दिया कि मेरी मां ने एक गुलाम आज़ाद करने की मन्नत मानी थी इस लिये मैं तुम को आज़ाद करता हूं येह कहा और इन की चोटी का बाल काट कर इन को छोड़ दिया , हज़रते अम्र बिन उमय्या ज़मरी رضی الله تعالی عنه मकामे "कर करह" में आए तो एक दरख़्त के साए में ठहरे वही क़बीलए बनू किलाब के दो आदमी भी ठहरे हुए थे। जब वोह दोनों सो गए तो हज़रते आमिर बिन उमय्या जमरी رضی الله تعالی عنه ने उन दोनों काफिरों को क़त्ल कर दिया और येह सोच कर दिल में खुश हो रहे थे कि मैं ने सहाबए किराम के खून का बदला ले लिया है। मगर उन दोनों शख़्सों को हुजुर ﷺ अमान दे चुके थे जिस का हज़रते अम्र बिन उमय्या ज़मरी को इल्म न था।
࿐ जब मदीना पहुंच कर इन्हों ने सारा हाल दरबारे रिसालत में बयान किया तो अस्हाबे बीरे मुअव्वना की शहादत की खबर सुन कर सरकारे रिसालत ﷺ को इतना अजीम सदमा पहुंचा कि तमाम उम्र शरीफ़ में कभी भी इतना रन्ज़ व सदमा नहीं पहुंचा था। चुनान्चे हुज़ूर ﷺ महीना भर तक क़बाइले रअल व जक्वान और असिय्या व बनू लयान पर नमाज़े फ़ज़्र में लानत भेजते रहे और जिन दो शख़्सों को हज़रते अम्र बिन उमय्या जमरी क़त्ल कर दिया था हुज़ूर ﷺ ने उन दोनों के ख़ून-बहा अदा करने का एलान फ़रमाया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 296 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 188* ༺❘
*❝ गज़्वए बनू नज़ीर #01❞*
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࿐ हज़रते अम्र बिन उमय्या ज़मरी رضي الله عنه ने क़बीलए बनू किलाब के जिन दो शख़्सों को क़त्ल कर दिया था और हुज़ूर ﷺ ने उन दोनों का ख़ून बहा अदा करने का एलान फ़रमा दिया था इसी मुआमले के मुतअल्लिक गुफ़्तगू करने के लिये हुजूर ﷺ कबीलए बनू नज़ीर के यहूदियों के पास तशरीफ़ ले गए क्यूं कि इन यहूदियों से आप का मुआहदा था मगर यहूदी दर हक़ीक़त बहुत ही बद बातिन ज़ेहनिय्यत वाली क़ौम हैं मुआहदा कर लेने के बा वुजूद इन ख़बीषों के दिलों में पैग़म्बरे इस्लाम की दुश्मनी और इनाद की आग भरी हुई थी। हर चन्द हुजूर ﷺ इन बद बातिनों से अहले किताब होने की बिना पर अच्छा सुलूक फ़रमाते थे मगर येह लोग हमेशा इस्लाम की बेख कुनी और बानिये इस्लाम की दुश्मनी में मसरूफ़ रहे। मुसलमानों से बुग्ज़ो इनाद और कुफ़्फ़ार व मुनाफ़िक़ीन से साज़बाज़ और इत्तिहाद येही हमेशा इन ग़द्दारों का तर्जे अमल रहा।
࿐ चुनान्चे इस मौक़अ पर जब रसूलुल्लाह ﷺ उन यहूदियों के पास तशरीफ़ ले गए तो उन लोगों ने ब ज़ाहिर तो बड़े अख़्लाक़ का मुज़ाहरा किया मगर अन्दरूनी तौर पर बड़ी ही ख़ौफ़नाक साज़िश और इनतिहाई खतरनाक स्कीम का मन्सूबा बना लिया। हुज़ूर ﷺ के साथ हज़रते अबू बक्र व हज़रत उम्र व हज़रत अली رضي الله عنه भी थे। यहूदियों ने इन सब हज़रात को एक दीवार के नीचे बड़े एहतिराम के साथ बिठाया और आपस में येह मश्वरा किया कि छत पर से एक बहुत ही बड़ा और वजनी पथ्थर इन हज़रात पर गिरा दें ताकि येह सब लोग दब कर हलाक हो जाएं।
࿐ चुनान्चे अम्र बिन जहाश इस मक्सद के लिये छत के ऊपर चढ़ गया, मुहाफ़िज़े हकीकी परवर दगारे आलम ने अपने हबीब ﷺ को यहूदियों की इस नापाक साज़िश से ब जरीअए वहय मुत्तलअ फ़रमा दिया इस लिये फ़ौरन ही आप वहां से उठ कर चुपचाप अपने हमराहियों के साथ चले आए और मदीना तशरीफ़ ला कर सहाबए किराम को यहूदियों की इस साज़िश से आगाह फ़रमाया और अन्सार व मुहाजिरीन से मश्वरे के बाद उन यहूदियों के पास क़ासिद भेज दिया कि चूंकि तुम लोगों ने अपनी इस दसीसा कारी और क़ातिलाना साज़िश से मुआहदा तोड़ दिया इस लिये अब तुम लोगों को दस दिन की मोहलत दी जाती है कि तुम इस मुद्दत में मदीने से निकल जाओ, इस के बाद जो शख़्स भी तुम में का यहां पाया जाएगा कत्ल कर दिया जाएगा।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 298 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 189* ༺❘
*❝ गज़्वए बनू नज़ीर #02 ❞*
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࿐ हुज़ूर ﷺ ने यहूदीयो को मदीने से निकल जाने को कहा शहनशाहे मदीना का येह फ़रमान सुन कर बनू नज़ीर के यहूदी जिला वतन होने के लिये तय्यार हो गए थे मगर मुनाफ़िकों का सरदार अब्दुल्लाह इब्ने उबय्य उन यहूदियों का हामी बन गया और इस ने कहला भेजा कि तुम लोग हरगिज़ हरगिज़ मदीने से न निकलो हम दो हज़ार आदमियों से तुम्हारी मदद करने को तय्यार हैं इस के इलावा बनू क़रीज़ा और बनू गतफ़ान यहूदियों के दो ताक़त वर क़बीले भी तुम्हारी मदद करेंगे। बनू नज़ीर के यहूदियों को जब इतना बड़ा सहारा मिल गया तो वोह शेर हो गए और उन्हों ने हुज़ूर ﷺ के पास कहला भेजा कि हम मदीना छोड़ कर नहीं जा सकते आप के जो दिल में आए कर लीजिये।
࿐ यहूदियों के इस जवाब के बाद हुज़ूर ﷺ मस्जिदे नबवी की इमामत हज़रते इब्ने उम्मे मक्तूम رضي الله عنه के सिपुर्द फ़रमा कर खुद बनू नज़ीर का क़स्द फ़रमाया और उन यहूदियों के कल्ए का मुहासरा कर लिया येह मुहासरा पन्दरह दिन तक क़ाइम रहा कल्आ में बाहर से हर क़िस्म के सामानों का आना जाना बन्द हो गया और यहूदी बिल्कुल ही महसूर व मजबूर हो कर रह गए मगर इस मौकअ पर न तो मुनाफ़िक़ों का सरदार अब्दुल्लाह बिन उबय्य यहूदियों की मदद के लिये आया न बनू करीज़ा और बनू गतफ़ान ने कोई मदद की।
࿐ चुनान्चे अल्लाह तआला ने इन दगाबाज़ों के बारे में इर्शाद फ़रमाया कि, तर्जुमा :- इन लोगों की मिषाल शैतान जैसी है जब इस ने आदमी से कहा कि तू कुफ्र कर फिर जब उस ने कुफ़्र किया तो बोला कि मैं तुझ से अलग हूं मैं अल्लाह से डरता हूं जो सारे जहान का पालने वाला है।
(सूरए हश्र)
࿐ या'नी जिस तरह शैतान आदमी को कुफ़्र पर उभारता है लेकिन जब आदमी शैतान के वरगलाने से कुफ्र में मुब्तला हो जाता है तो शैतान चुपके से खिसक कर पीछे हट जाता है इसी तरह मुनाफ़िकों ने बनू नज़ीर के यहूदियों को शह दे कर दिलेर बना दिया और अल्लाह के हबीब ﷺ से लड़ा दिया लेकिन जब बनू नज़ीर के यहूदियों को जंग का सामना हुवा तो मुनाफ़िक छुप कर अपने घरों में बैठ रहे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 299 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 190* ༺❘
*❝ गज़्वए बनू नज़ीर #03 ❞*
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࿐ हुज़ूर ﷺ ने कल्ए के मुहासरे के साथ कल्ए के आसपास खजूरों के कुछ दरख्तों को भी कटवा दिया क्यूं कि मुमकिन था कि दरख़्तों के झुंड में यहूदी छुप कर इस्लामी लश्कर पर छापा मारते और जंग में मुसलमानों को दुश्वारी हो जाती। इन दरख्तों को काटने के बारे में मुसलमानों के दो गुरौह हो गए, कुछ लोगों का येह ख़याल था कि येह दरख़्त न काटे जाएं क्यूं कि फतह के बा'द येह सब दरख़्त माले गनीमत बन जाएंगे और मुसलमान इन से नफ्अ उठाएंगे और कुछ लोगों का यह कहना था कि दरख़्तों के झुंड को काट कर साफ़ कर देने से यहूदियों की कमीन गाहों को बरबाद करना और इन को नुक्सान पहुंचा कर गैजो गज़ब में डालना मक्सूद है, लिहाजा इन दरख़्तों को काट देना ही बेहतर है इस मौकअ पर सूरए हश्र की येह आयत उतरी : "जो दरख़्त तुम ने काटे या जिन को उन की जड़ों पर काइम छोड़ दिये येह सब अल्लाह के हुक्म से था ताकि खुदा फ़ासिकों को रुस्वा करे"
࿐ मतलब यह है कि मुसलमानों में जो दरख़्त काटने वाले हैं उन का अमल भी दुरुस्त है और जो काटना नहीं चाहते वोह भी ठीक कहते हैं क्यूं कि कुछ दरख्तों को काटना और कुछ को छोड़ देना येह दोनों अल्लाह तआला के हुक्म और उस की इजाजत से हैं।
࿐ बहर हाल आखिरे कार मुहासरे से तंग आ कर बनू नज़ीर के यहूदी इस बात पर तय्यार हो गए कि वोह अपना अपना मकान और कल्आ छोड़ कर इस शर्त पर मदीने से बाहर चले जाएंगे कि जिस क़दर माल व अस्बाब वोह ऊंटों पर ले जा सकें ले जाएं, हुजूर ﷺ ने यहूदियों की इस शर्त को मन्जूर फ़रमा लिया और बनू नज़ीर के सब यहूदी छे सो ऊंटों पर अपना माल व सामान लाद कर एक जुलूस की शक्ल में गाते बजाते हुए मदीने से निकले कुछ तो "खैबर" चले गए और ज़ियादा तादाद में मुल्के शाम जा कर "अज़रआत" और "उरैहा" में आबाद हो गए। इन लोगों के चले जाने के बाद इन के घरों की मुसलमानों ने जब तलाशी ली तो पचास लोहे की टोपियां, पचास जिरहें, तीन सो चालीस तलवारें निकलीं, जो हुज़ूर ﷺ के कब्जे में आई।
࿐ अल्लाह तआला ने बनू नज़ीर के यहूदियों की इस जिला वतनी का ज़िक्र कुरआने मजीद की सूरए हश्र में इस तरह फ़रमाया कि "अल्लाह वोही है जिस ने काफ़िर किताबियों को उन के घरों से निकाला के पहले हश्र के लिये (ऐ मुसलमानो !) तुम्हें येह गुमान न था कि वोह निकलेंगे और वोह समझते थे कि उन के कल्ए उन्हें अल्लाह से बचा लेंगे तो अल्लाह का हुक्म उन के पास आ गया जहां से उन को गुमान भी न था और उस ने उन के दिलों में ख़ौफ़ डाल दिया कि वोह अपने घरों को खुद अपने हाथों से और मुसलमानों के हाथों से वीरान करते है तो इबरत पकड़ो ऐ निगाह वालो!"
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह - 301 📚*
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❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 191* ༺❘
*❝ बद्रे सुगरा ❞*
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࿐ जंगे उहुद से लौटते वक़्त अबू सुफ्यान ने कहा था कि आयन्दा साल बद्र में हमारा तुम्हारा मुक़ाबला होगा। चुनान्चे शाबान या जुल कादह सि. 4 हि में हुज़ूर ﷺ मदीने के नज़्मो नस्क़ का इनतिज़ाम हज़रते अब्दुल्लाह बिन रवाहा رضي الله عنه के सिपुर्द फ़रमा कर लश्कर के साथ बद्र में तशरीफ़ ले गए आठ रोज़ तक कुफ्फ़ार का इनतिज़ार किया उधर अबू सुफ्यान भी फ़ौज के साथ चला, एक मन्ज़िल चला था कि उस ने अपने लश्कर से येह कहा कि येह साल जंग के लिये मुनासिब नहीं है क्यूं कि इतना जबर दस्त कहत पड़ा हुवा है कि न आदमियों के लिये दाना पानी है न जानवरों के लिये घास चारा, येह कह कर अबू सुफ्यान मक्का वापस चला गया, मुसलमानों के पास कुछ माले तिजारत भी साथ था जब जंग नहीं हुई तो मुसलमानों ने तिजारत कर के ख़ूब नफ्अ कमाया और मदीना वापस चले आए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 301 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 192* ༺❘
*❝ सि. 4 हि. के मुतफ़रिक वाकिआत ❞*
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࿐ इसी साल गज़्वए बनू नज़ीर के बाद जब अन्सार ने कहा कि या रसूलल्लाह ﷺ! बनू नज़ीर के जो अम्वाल गनीमत में मिले हैं वोह सब आप हमारे मुहाजिर भाइयों को दे दीजिये हम इस में से किसी चीज़ के तलब गार नहीं हैं तो हुज़ूर ﷺ ने खुश हो कर येह दुआ फ़रमाई कि : ऐ अल्लाह अन्सार पर, और अन्सार के बेटों पर और अन्सार के बेटों के बेटों पर रहम फरमा।
࿐ ★ इसी साल हुज़ूर ﷺ के नवासे हज़रते अब्दुल्लाह बिन उषमान गनी رضي الله عنه की आंख में एक मुर्ग ने चोंच मार दी जिस के सदमे से वोह दो रात तड़प कर वफ़ात पा गए।
࿐ ★ इसी साल हुज़ूर ﷺ की ज़ौजए मुतहहरा हज़रते बीबी ज़ैनब बिन्ते खुज़ैमा رضي الله عنها की वफात हुई।
࿐ ★ इसी साल हुजूर ﷺ ने बीबी उम्मे सलमह से निकाह फ़रमाया।
࿐ ★इसी साल हज़रते अली رضي الله عنه की वालिदए माजिदा हज़रते बीबी फ़ातिमा बिन्ते असद ने वफ़ात पाई, हुज़ूर ﷺ ने अपना मुक़द्दस पैराहन उन के कफ़न के लिये अता फ़रमाया और उन की क़ब्र में उतर कर उन की मय्यित को अपने दस्ते मुबारक से कब्र में उतारा और फ़रमाया कि फ़ातिमा बिन्ते असद के सिवा कोई शख़्स भी क़ब्र के दबोचने से नहीं बचा है। हज़रते उमर बिन अब्दुल अजीज से रिवायत है कि सिर्फ पांच ही मय्यित ऐसी खुश नसीब हुई हैं जिन की क़ब्र में हुज़ूर ﷺ खुद उतरे : अव्वल : हज़रते बीबी ख़दीजा, दुवुम : हज़रते बीबी ख़दीजा का एक लड़का, सिवुम : अब्दुल्लाह मुज़्नी जिन का लक़ब जुल बिजादैन है, चहारुम : हज़रते बीबी आइशा की मां हज़रते उम्मे रूमान, पन्जुम : हज़रते फ़ातिमा बिन्ते असद हज़रते अली की वालिदा।
࿐ ★ इसी साल 4 शाबान सि. 4 हि को हज़रते इमामे हुसैन की पैदाइश हुई।
࿐ ★ इसी साल एक यहूदी ने एक यहूदी की औरत के साथ जिना किया और यहूदियों ने येह मुक़द्दमा बारगाहे नुबुव्वत में पेश किया तो आप ने तौरात व कुरआन दोनों किताबों के फ़रमान से उस को संगसार करने का फैसला फ़रमाया।
࿐ ★ इसी साल तअमा बिन उबैरक ने जो मुसलमान था चोरी की तो हुज़ूर ﷺ ने कुरआन के हुक्म से उस का हाथ काटने का हुक्म फ़रमाया, इस पर वोह भाग निकला और मक्का चला गया। वहां भी उस ने चोरी की तो अहले मक्का ने उस को क़त्ल कर डाला या उस पर दीवार गिर पड़ी और मर गया या दरिया में फेंक दिया गया। एक क़ौल ये भी है कि वो मिरतद हो गया।
࿐ ★ बाज़ मुअररीखीन के नज़दीक शराब की हुरमत का हुक्म भी इसी साल नाज़िल हुवा और बाज़ के नज़दीक सि. 6 हि. और बाज़ ने कहा कि सि. 8 हि. में शराब हराम की गई।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 302 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 193* ༺❘
*❝ हिज़रत का पांचवा साल ❞*
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࿐ जंगे उहुद में मुसलमानों के जानी नुक्सान का चरचा हो जाने और कुफ़्फ़ारे कुरैश और यहूदियों की मुश्तरिका साज़िशों से तमाम क़बाइले कुफ़्फ़ार का हौसला इतना बुलन्द हो गया कि सब को मदीने पर हम्ला करने का जुनून हो गया। चुनान्चे सि. 5 हि. भी कुफ़्र व इस्लाम के बहुत से मारिकों को अपने दामन में लिये हुए है। हम यहां चन्द मशहूर ग़ज़वात व सराया का जिक्र करते हैं।
࿐ *गज़्वए जातुर्रकाअ :-* सब से पहले क़बाइले "अनमार व षालबा" ने मदीने पर चढ़ाई करने का इरादा किया जब हुजूर ﷺ को इस की इत्तिलाअ मिली तो आप ने चार सो सहाबए किराम का लश्कर अपने साथ लिया और 10 मुहर्रम सि. 5 हि. को मदीने से रवाना हो कर मक़ामे “जातुर्रकाअ" तक तशरीफ़ ले गए लेकिन आप ﷺ की आमद का हाल सुन कर येह कुफ्फार पहाड़ों में भाग कर छुप गए इस लिये कोई जंग नहीं हुई। मुशरिकीन की चन्द औरतें मिलीं जिन को सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم ने गरिफ्तार कर लिया।
࿐ उस वक़्त मुसलमान बहुत ही मुफ्लिस और तंग दस्ती की हालत में थे। चुनान्वे हज़रते अबू मूसा अश्अरी رضي الله عنه का बयान है कि सुवारियों की इतनी कमी थी कि छे छे आदमियों की सुवारी के लिये एक एक ऊंट था जिस पर हम लोग बारी बारी सुवार हो कर सफ़र करते थे पहाड़ी ज़मीन में पैदल चलने से हमारे क़दम ज़ख्मी और पाउं के नाखुन झड़ गए थे इस लिये हम लोगों ने अपने पाउं पर कपड़ों के चीथड़े लपेट लिये थे येही वजह है कि इस गज़वे का नाम “गज़्वए जातुर्रकाअ" (पैवन्दों वाला गज़्वा) हो गया।
࿐ बा'ज़ मुअर्रिख़ीन ने कहा कि चूं कि वहां की ज़मीन के पथ्थर सफ़ेद व सियाह रंग के थे और ज़मीन ऐसी नज़र आती थी गोया सफ़ेद और काले पैवन्द एक दूसरे से जोड़े हुए हैं, लिहाजा इस गज़वे को “गज़्वए जातुर्रकाअ" कहा जाने लगा और बा'ज़ का क़ौल है कि यहां पर एक दरख़्त का नाम "जातुर्रकाअ" था इस लिये लोग इस को गज़्वए जातुर्रकाअ कहने लगे, हो सकता है कि येह सारी बातें हों।
࿐ मशहूर इमामे सीरत इब्ने साद का क़ौल है कि सब से पहले इस गज़वे में हुज़ूर ﷺ ने "सलातुल ख़ौफ़" पढ़ी।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 305 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 194* ༺❘
*❝ गज़्वर दूमतुल जन्दल ❞*
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࿐ रबीउल अव्वल सि. 5 हि. में पता चला कि मक़ाम "दूमतुल जन्दल" में जो मदीना और शहरे दिमश्क के दरमियान एक कल्ए का नाम है मदीने पर हम्ला करने के लिये एक बहुत बड़ी फ़ौज जम्अ हो रही है हुज़ूर ﷺ एक हज़ार सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم का लश्कर ले कर मुकाबले के लिये मदीने से निकले, जब मुशरिकीन को येह मालूम हुवा तो वोह लोग अपने मवेशियों और चरवाहों को छोड़ कर भाग निकले, सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم ने उन तमाम जानवरों को माले ग़नीमत बना लिया और आप ﷺ ने तीन दिन वहां क़ियाम फरमा कर मुख़्तलिफ़ मकामात पर सहाबा رضی الله تعالی عنهم के लश्करों को रवाना फ़रमाया। इस गज़वे में भी कोई जंग नहीं हुई इस सफर में एक महीने से ज़ाइद आप ﷺ मदीने से बाहर रहे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 306 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 195* ༺❘
*❝ गज़्वए मुरैसीअ ❞*
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࿐ इस का दूसरा नाम "गज़्वए बनी अल मुस्तलिक" भी है "मुरैसीअ” एक मक़ाम का नाम है जो मदीने से आठ मन्ज़िल दूर है। क़बीलए खजाआ का एक ख़ानदान “बनू अल मुस्तलिक" यहां आबाद था और इस क़बीले का सरदार हारिष बिन ज़रार था इस ने भी मदीने पर फ़ौज कशी के लिये लश्कर जम्अ किया था, जब येह ख़बर मदीने पहुंची तो 2 शाबान सि. 5 हि. को हुजूरे अक्दस ﷺ मदीने पर हज़रते जैद बिन हारिषा رضي الله عنه को अपना ख़लीफ़ा बना कर लश्कर के साथ रवाना हुए। इस ग़ज़वे में हज़रते बीबी आइशा और हज़रते बीबी उम्मे सलमह رضي الله عنهما भी आप के साथ थीं, जब हारिष बिन ज़रार को आप ﷺ की तशरीफ़ आवरी की ख़बर हो गई तो उस पर ऐसी दहशत सुवार हो गई कि वाह और उस की फ़ौज भाग कर मुन्तशिर हो गई मगर खुद मुरैसीअ के बाशिन्दों ने लश्करे इस्लाम का सामना किया और जम कर मुसलमानों पर तीर बरसाने लगे लेकिन जब मुसलमानों ने एक साथ मिल कर हम्ला कर दिया तो दस कुफ्फ़ार मारे गए और एक मुसलमान भी शहादत से सरफ़राज़ हुए, बाकी सब कुफ्फ़ार गरिफ्तार हो गए जिन की तादाद सात सो से जाइद थी, दो हज़ार ऊंट और पांच हज़ार बकरियां माले गनीमत में सहाबए किराम के हाथ आई।
࿐ ग़ज़्वए मुरैसीअ जंग के एतिबार से तो कोई ख़ास अहम्मिय्यत नहीं रखता मगर इस जंग में बा'ज़ ऐसे अहम वाकआत दरपेश हो गए कि येह ग़ज़्वा तारीखे नबवी का एक बहुत ही अहम और शानदार उन्वान बन गया है, इन मशहूर वाकिआत में से चन्द येह हैं :
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 307 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 196* ༺❘
*❝ मुनाफिकीन की शरारत ❞*
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࿐ इस गज़्वए मुरैसीअ में माले गनीमत के लालच में बहुत से मुनाफ़िक़ीन भी शरीक हो गए थे। एक दिन पानी लेने पर एक मुहाजिर और एक अन्सारी में कुछ तकरार हो गई मुहाजिर ने बुलन्द आवाज़ से ऐ मुहाजिरो ! फ़रियाद है और अन्सारी ने ऐ अन्सारियो ! फ़रियाद है का ना'रा मारा, येह ना'रा सुनते ही अन्सार व मुहाजिरीन दौड़ पड़े और इस क़दर बात बढ़ गई कि आपस में जंग की नौबत आ गई रईसुल मुनाफ़िक़ीन अब्दुल्लाह बिन उबय्य को शरारत का एक मौकआ मिल गया उस ने इश्तिआल दिलाने के लिये अन्सारियों से कहा कि "लो ! येह तो वोही मिस्ल हुई कि तुम अपने कुत्तो को फ़रबा करो ताकि वोह तुम्हीं को खा डाले तुम अन्सारियों ही ने इन मुहाजिरीन का हौसला बढ़ा दिया है लिहाज़ा अब इन मुहाजिरीन की माली इमदाद व मदद बिल्कुल बन्द कर दो येह लोग ज़लीलो ख़्वार हैं और हम अन्सार इज्जत दार हैं अगर हम मदीना पहुंचे तो यक़ीनन हम इन ज़लील लोगों को मदीने से "निकाल बाहर कर देंगे।"
࿐ हुज़ूरे अकरम ﷺ ने जब इस हंगामे का शोरो गोगा सुना तो अन्सार व मुहाजिरीन से फ़रमाया कि क्या तुम लोग ज़मानए जाहिलिय्यत की नाराबाजी कर रहे हो? जमाले नुबुव्वत देखते ही अन्सार व मुहाजिरीन बर्फ की तरह ठन्डे पड़ गए और रहमते आलम ﷺ के चन्द फ़िक्रों ने महब्बत का ऐसा दरिया बहा दिया कि फिर अन्सार व मुहाजिरीन शीरो शकर की तरह घुल मिल गए।
࿐ जब अब्दुल्लाह बिन उबय्य की बेहूदा बात हज़रते उमर رضي الله عنه के कान में पड़ी तो वोह इस क़दर तैश में आ गए कि नंगी तलवार ले कर आए और अर्ज किया कि या रसूलल्लाह ﷺ मुझे इजाजत दीजिये कि मैं इस मुनाफ़िक की गरदन उड़ा दूं। हुजूरे अक्दस ﷺ ने निहायत नर्मी के साथ इर्शाद फ़रमाया कि ऐ उमर ! ख़बरदार ऐसा न करो, वरना कुफ्फ़ार में येह ख़बर फैल जाएगी कि मुहम्मद (ﷺ) अपने साथियों को भी क़त्ल करने लगे हैं। येह सुन कर हज़रते उमर رضي الله عنه खामोश हो गए मगर इस ख़बर का पूरे लश्कर में चरचा हो गया, येह अजीब बात है कि अब्दुल्लाह इब्ने उबय्य जितना बड़ा इस्लाम और बानिये इस्लाम ﷺ का दुश्मन था इस से कहीं ज़ियादा बढ़ कर उस के बेटे इस्लाम के सच्चे शैदाई और हुजुर ﷺ के जांनिषार सहाबी थे उन का नाम भी अब्दुल्लाह था जब अपने बाप की बक्वास का पता चला तो वोह गैजो गज़ब में भरे हुए बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ! अगर आप मेरे बाप के क़त्ल को पसन्द फ़रमाते हों तो मेरी तमन्ना है कि किसी दूसरे के बजाए मैं खुद अपनी तलवार से अपने बाप का सर काट कर आपके कदमों में डाल दूं। आप ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया कि नहीं हरगिज़ नहीं मैं तुम्हारे बाप के साथ कभी भी कोई बुरा सुलूक नहीं करूंगा।
࿐ और एक रिवायत में येह भी आया है कि मदीने के करीब वादिये अक़ीक़ में वोह अपने बाप अब्दुल्लाह बिन उबय्य का रास्ता रोक कर खड़े हो गए और कहा कि तुम ने मुहाजिरीन और रसूलुल्लाह ﷺ को जलील कहा है खुदा की क़सम ! मैं उस वक़्त तक तुम को मदीने में दाखिल नहीं होने दूंगा जब तक रसूलुल्लाह ﷺ इजाजत अता न फ़रमाएं और जब तक तुम अपनी जबान से येह न कहो कि हुज़ूर ﷺ तमाम औलादे आदम में सब से जियादा इज्जत वाले हैं और तुम सारे जहान वालों में सब से जियादा ज़लील हो, तमाम लोग इनतिहाई हैरत और तअज्जुब के साथ येह मन्जर देख रहे थे जब हुज़ूर ﷺ वहां पहुंचे और येह देखा कि बेटा बाप का रास्ता रोके हुए खड़ा है और अब्दुल्लाह बिन उबय्य ज़ोर ज़ोर से कह रहा है कि "मैं सब से जियादा ज़लील हूं और हुज़ूरे अकरम ﷺ सब से जियादा इज्ज़त दार हैं।" आप ने येह देखते ही हुक्म दिया कि इस का रास्ता छोड़ दो ताकि येह मदीने में दाखिल हो जाए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह - 308 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 197* ༺❘
*❝ हज़रते जुवैरिया رضی الله تعالی عنها से निकाह ❞*
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࿐ गज़्वए मुरैसीअ की जंग में जो कुफ्फ़ार मुसलमानों के हाथ में गरिफ्तार हुए उन में सरदारे क़ौम हारिष बिन ज़रार की बेटी हज़रते जुवैरिया رضي الله عنها भी थीं जब तमाम कैदी लौंडी गुलाम बना कर मुजाहिदीने इस्लाम में तक़सीम कर दिये गए तो हज़रते जुवैरिया हज़रते رضی الله تعالی عنها षाबित बिन कैस के हिस्से में आई उन्हों ने हज़रते जुवैरिया رضی الله تعالی عنها से येह कह दिया कि तुम मुझे इतनी इतनी रक़म दे दो तो मैं तुम्हें आज़ाद कर दूंगा, हज़रते जुवैरिया के पास कोई रकम नहीं थी वोह हुज़ूर ﷺ के दरबार में हाज़िर हुई और अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ! मैं अपने क़बीले के सरदार हरिष बिन ज़रार की बेटी हूं और मैं मुसलमान हो चुकी हूं हज़रते षाबित बिन कैस ने इतनी इतनी रक़म ले कर मुझे आज़ाद कर देने का वादा कर लिया है आप मेरी मदद फ़रमाएं ताकि मैं येह रकम अदा कर के आज़ाद हो जाऊं।
࿐ आपने इर्शाद फ़रमाया कि अगर मैं इस से बेहतर सुलूक तुम्हारे साथ करूं तो क्या तुम मन्जूर कर लोगी? उन्हों ने पूछा कि वोह क्या है? आपने फ़रमाया कि मैं चाहता हूं कि मैं खुद तन्हा तुम्हारी तरफ़ से सारी रकम अदा कर दूं और मैं तुम को आज़ाद कर के मैं तुम से निकाह कर लूं ताकि तुम्हारा खानदानी ए'जा़ाज़ व वक़ार बर क़रार रह जाए, हजरते जुवैरिया رضی الله تعالی عنها खुशी खुशी इस को मन्जूर कर लिया, चुनान्चे हुजूर ﷺ ने सारी रक़म अपने पास से अदा फ़रमा कर हज़रते जुवैरिया رضی الله تعالی عنها से निकाह फ़रमा लिया!
࿐ जब येह ख़बर लश्कर में फैल गई कि हुजूर ﷺ ने हज़रते जुवैरिया رضی الله تعالی عنها से निकाह फरमा लिया तो मुजाहिदीने इस्लाम के लश्कर में इस ख़ानदान के जितने लौंडी गुलाम थे मुजाहिदीन ने सब को फ़ौरन ही आज़ाद कर के रिहा कर दिया और लश्करे इस्लाम का हर सिपाही येह कहने लगा कि जिस ख़ानदान में रसूलुल्लाह ने शादी कर ली उस ख़ानदान का कोई आदमी लौंडी गुलाम नहीं रह सकता और हज़रते बीबी आइशा رضی الله تعالی عنها कहने लगीं कि हम ने किसी औरत का निकाह हज़रते जुवैरिया رضی الله تعالی عنها के निकाह से बढ़ कर खैरो बरकत वाला नहीं देखा कि इस की वजह से तमाम ख़ानदान बनी अल मुस्तलिक को गुलामी से आजादी नसीब हो गई।
࿐ हज़रते जुवैरिया رضی الله تعالی عنها का अस्ली नाम "बर्रह" था। हुज़ूर ﷺ ने इस नाम को बदल कर "जुवैरिया" नाम रखा।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 309 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 198* ༺❘
*❝ वाकिअए इफ्क #01 ❞*
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࿐ गज़्वए मुरैसीअ से जब रसूलुल्लाह ﷺ मदीना वापस आने लगे तो एक मन्जिल पर रात में पड़ाव किया, हज़रते आइशा رضي الله عنها एक बन्द हौदज में सुवार हो कर सफर करती थीं और चन्द मख़्सूस आदमी उस हौदज को ऊंट पर लादने और उतारने के लिये मुक़र्रर थे, हज़रते बीबी आइशा लश्कर की रवानगी से कुछ पहले लश्कर से बाहर रफ्ए हाजत के लिये तशरीफ़ ले गई जब वापस हुईं तो देखा कि उन के गले का हार कहीं टूट कर गिर पड़ा है वोह दोबारा उस हार की तलाश में लश्कर से बाहर चली गई इस मरतबा वापसी में कुछ देर लग गई और लश्कर रवाना हो गया आप का हौदज लादने वालों ने येह ख़याल कर के कि उम्मुल मुअमिनीन رضي الله عنها हौदज के अन्दर तशरीफ़ फ़रमा हैं हौदज को ऊंट पर लाद दिया और पूरा क़ाफ़िला मन्जिल से रवाना हो गया!
࿐ जब हज़रते आइशा मन्ज़िल पर वापस आई तो यहां कोई आदमी मौजूद नहीं था तन्हाई से सख़्त घबराई अंधेरी रात में अकेले चलना भी ख़तरनाक था इस लिये वोह येह सोच कर वहीं लैट गई कि जब अगली मन्ज़िल पर लोग मुझे न पाएंगे तो ज़रूर ही मेरी तलाश में यहां आएंगे, वोह लैटी लैटी सो गईं एक सहाबी जिन का नाम हज़रते सफ्वान बिन मुअत्तल رضي الله عنه था वोह हमेशा लश्कर के पीछे पीछे इस ख़याल से चला करते थे ताकि लश्कर का गिरा पड़ा सामान उठाते चलें वोह जब उस मन्ज़िल पर पहुंचे तो हज़रते बीबी आइशा رضی الله تعالی عنها को देखा और चूंकि पर्दे की आयत नाज़िल होने से पहले वोह बारहा उम्मुल मुअमिनीन को देख चुके थे इस लिये देखते ही पहचान लिया और उन्हें मुर्दा समझ कर "اِنَّ لِلّٰهِ وَاِنَّٓ اِلَيْهِ رٰجِعُوْنَ" पढ़ा इस आवाज़ से वोह जाग उठीं, हज़रते सफ्वान बिन मुअत्तल सुलमी ने फ़ौरन ही उन को अपने ऊंट पर सुवार कर लिया और खुद ऊंट की मुहार थाम कर पैदल चलते हुए अगली मन्ज़िल पर हुजूर ﷺ के पास पहुंच गए।
࿐ मुनाफ़िकों के सरदार अब्दुल्लाह बिन उबय्य ने इस वाकिए को हज़रते बीबी आइशा رضي الله عنها पर तोहमत लगाने का ज़रीआ बना लिया और खूब खूब इस तोहमत का चरचा किया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 312 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 199* ༺❘
*❝ वाकिअए इफ्क #02 ❞*
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࿐ मुनाफीको के सरदार अब्दुल्लाह बिन उबय्य ने इस वाकिए को हज़रते बीबी आइशा رضي الله عنها पर तोहमत लगाने का ज़रिआ बना लिया और खूब खूब इस तोहमत का चर्चा किया यहां तक कि मदीने में इस मुनाफ़िक़ ने इस शर्मनाक तोहमत को इस क़दर उछाला और इतना शोरो गुल मचाया कि मदीने में हर तरफ़ इस इफ्तिरा और तोहमत का चरचा होने लगा और बा'ज़ मुसलमान मषलन हज़रते हस्सान बिन षाबित और हज़रते मिस्तह बिन अषाषा और हज़रते हमना बिन्ते जहश رضی الله تعالی عنهم ने भी इस तोहमत को फैलाने में कुछ हिस्सा लिया, हुजूरे अक्दस ﷺ को इस शर अंगेज़ तोहमत से बेहद रन्ज व सदमा पहुंचा और मुख़्लिस मुसलमानों को भी इनतिहाई रन्जो ग़म हुवा।
࿐ हज़रते बीबी आइशा رضی الله تعالی عنها मदीना पहुंचते ही सख़्त बीमार हो गई, पर्दा नशीन तो थीं ही साहिबे फ़राश हो गई और उन्हें इस तोहमत तराशी की बिल्कुल खबर ही नहीं हुई गो कि हुज़ूर ﷺ को हज़रते बीबी आइशा رضی الله تعالی عنها की पाक दामनी का पूरा पूरा इल्म व यक़ीन था मगर चूंकि अपनी बीवी का मुआमला था इस लिये आपने अपनी तरफ से अपनी बीवी की बराअत और पाक दामनी का एलान करना मुनासिब नहीं समझा और वहये इलाही का इनतिज़ार फ़रमाने लगे इस दरमियान में आप अपने मुख़िलस असहाब से इस मुआमले में मश्वरा फ़रमाते रहे ताकि इन लोगों के ख़यालात का पता चल सके।
࿐ चुनान्चे हज़रते उमर رضي الله عنه से जब आप ﷺ ने इस तोहमत के बारे में गुफ़्तगू फ़रमाई तो उन्हों ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ ! येह मुनाफ़िक यकीनन झूटे हैं इस लिये कि जब अल्लाह तआला को येह गवारा नहीं है कि आप के जिस्मे अतहर पर एक मख्खी भी बैठ जाए क्यूं कि मख्खी नजासतों पर बैठती है तो भला जो औरत ऐसी बुराई की मुरतकिब हो खुदा वन्दे कुद्दूस कब और कैसे बरदाश्त फ़रमाएगा कि वोह आप की ज़ौजिय्यत में रह सके।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 313 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 200* ༺❘
*❝ वाकिअए इफ्क #03 ❞*
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࿐ हज़रते उषमान गनी رضي الله عنه ने कहा कि या रसूलल्लाह ﷺ ! जब अल्लाह तआला ने आप के साए को ज़मीन पर नहीं पड़ने दिया ताकि उस पर किसी का पाउं न पड़ सके तो भला उस माबूदे बरहक़ की गैरत कब येह गवारा करेगी कि कोई इन्सान आप की ज़ौजए मोहतरमा के साथ ऐसी कबाहत का मुरतकिब हो सके?
࿐ हज़रते अली رضي الله عنه ने येह गुज़ारिश की, कि या रसूलल्लाह ﷺ ! एक मरतबा आप की नालैने अक्दस में नजासत लग गई थी तो अल्लाह तआला ने हज़रते जिब्रील को भेज कर आपको ख़बर दी कि आप अपनी ना'लैने अक्दस को उतार दें इस लिये हज़रते बीबी आइशा رضي الله عنها माज़ अल्लाह अगर ऐसी होतीं तो ज़रूर अल्लाह तआला आप पर वहय नाज़िल फ़रमा देता कि "आप इन को अपनी ज़ौजिययत से निकाल दे।
࿐ हज़रते अबू अय्यूब अन्सारी رضی الله تعالی عنه ने जब इस तोहमत की ख़बर सुनी तो उन्हों ने अपनी बीवी से कहा कि ऐ बीवी ! तू सच बता ! अगर हज़रते सफ्वान बिन मुअत्तल رضی الله تعالی عنه की जगह मैं होता तो क्या तू येह गुमान कर सकती है कि मैं हुजूरे अक्दस ﷺ की हरमे पाक के साथ ऐसा कर सकता था ? तो उन की बीवी ने जवाब दिया कि अगर हज़रते आइशा رضی الله تعالی عنها की जगह मैं रसूलुल्लाह ﷺ की बीवी होती तो खुदा की क़सम ! मैं कभी ऐसी खियानत नहीं कर सकती थी तो फिर हज़रते आइशा जो मुझ से लाखों दरजे बेहतर है और हज़रते सफ्वान बिन मुअत्तल رضی الله تعالی عنه जो बदर-जहा तुम से बेहतर हैं भला क्यूंकर मुमकिन है कि यह दोनों ऐसी खियानत कर सकते हैं?
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 201* ༺❘
*❝ वाकिअए इफ्क #04 ❞*
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࿐ बुखारी शरीफ की रिवायत है कि हुज़ूर ﷺ ने जब मश्वरा तलब फ़रमाया तो हज़रते उसामा رضي الله عنه ने बरजस्ता कहा कि या रसूलल्लाह ﷺ ! वोह आप की बीवी हैं और हम उन्हें अच्छी ही जानते हैं, और हजरते अली رضي الله عنه ने येह जवाब दिया कि या रसूलल्लाह ﷺ! अल्लाह तआला ने आप पर कोई तंगी नहीं डाली है औरतें इन के सिवा बहुत हैं और आप उन के बारे में उन की लौंडी (हज़रते बरीरा) से पूछ लें वोह आप से सचमुच कह देगी।
࿐ हज़रते बरीरा رضي الله عنها से जब आप ने सुवाल फ़रमाया तो उन्हों ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ! उस जाते पाक की क़सम जिस ने आप को रसूले बरहक बना कर भेजा है कि मैं ने हज़रते बीबी आइशा में कोई ऐब नहीं देखा, हां इतनी बात ज़रूर है कि वोह अभी कमसिन लड़की हैं वोह गूंधा हुवा आटा छोड़ कर सो जाती हैं और बकरी आ कर खा डालती है।
࿐ फिर हुज़ूर ﷺ ने अपनी ज़ौजाए मोहतरमा हज़रते जैनब बिन्ते जहश से दरयाफ्त फ़रमाया जो हुस्नो जमाल में हज़रते आइशा के मिष्ल थीं तो उन्हों ने क़सम खा कर येह अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ! मैं अपने कान और आंख की हिफाजत करती हूं खुदा की क़सम ! मैं तो हज़रते बीबी आइशा को अच्छी ही जानती हूं।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 315📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 202* ༺❘
*❝ वाकिअए इफ्क #05 ❞*
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࿐ इस के बाद हुजूरे अकरम ﷺ ने एक दिन मिम्बर पर खड़े हो कर मुसलमानों से फ़रमाया कि उस शख़्स की तरफ से मुझे कौन मा'ज़ूर समझेगा, या मेरी मदद करेगा जिस ने मेरी बीवी पर बोहतान तराशी कर के मेरी दिल आजारी की है, खुदा की कुसम! मैं अपनी बीवी को हर तरह की अच्छी ही जानता हूं। और उन लोगों (मुनाफ़िकों) ने (इस बोहतान में) एक ऐसे मर्द (सफ्वान बिन मुअत्तल) का जिक्र किया है जिस को मैं बिल्कुल अच्छा ही जानता हूं।
࿐ हुजूर ﷺ की बर सरे मिम्बर इस तकरीर से मा'लूम हुवा कि हुज़ूरे अक्दस ﷺ को हज़रते आइशा और हज़रते सफ्वान बिन मुअत्तल رضی الله تعالی عنهما दोनों की बराअत व तहारत और इफ्फ़त व पाक दामनी का पूरा पूरा इल्म और यक़ीन था और वहय नाज़िल होने से पहले ही आप को यक़ीनी तौर पर मा'लूम था कि मुनाफ़िक झूटे और उम्मुल मुअमिनीन رضی الله تعالی عنها पाक दामन हैं वरना आप बर सरे मिम्बर कसम खा कर इन दोनों की अच्छाई का मज्मए आम में हरगिज़ ए'लान न फ़रमाते मगर पहले ही एलाने आम न फ़रमाने की वजह येही थी कि अपनी बीवी की पाक दामनी का अपनी ज़बान से एलान करना हुज़ूर ﷺ मुनासिब नहीं समझते थे, जब हद से ज़ियादा मुनाफ़िक़ीन ने शोरो गोगा शुरूअ कर दिया तो हुजूर ﷺ ने मिम्बर पर अपने ख़याले अक्दस का इज़्हार फ़रमा दिया मगर अब भी एलाने आम के लिये आप को वहये इलाही का इनतिज़ार ही रहा।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 315📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 203* ༺❘
*❝ वाकिअए इफ्क #06 ❞*
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࿐ येह पहले तहरीर किया जा चुका है कि उम्मुल मुअमिनीन हज़रते आइशा رضي الله عنها सफर से आते ही बीमार हो कर साहिबे फ़राश हो गई थीं इस लिये वोह इस बोहतान के तूफान से बिल्कुल ही बे ख़बर थीं जब उन्हें मरज़ से कुछ सिहहत हासिल हुई और वोह एक रात हज़रते उम्मे मिस्तह सहाबिया رضي الله عنها के साथ रफ्ए हाजत के लिये सहरा में तशरीफ़ ले गई तो उन की ज़बानी इन्हों ने इस दिल खराश और रूह फरसा ख़बर को सुना। जिस से इन्हें बड़ा धचका लगा और वोह शिद्दते रन्जो गम से निढाल हो गई चुनान्चे उन की बीमारी में मजीद इज़ाफ़ा हो गया और वोह दिन रात बिलक बिलक कर रोती रहीं आखिर जब इन से सदमए जांकाह बरदाश्त न हो सका तो वोह हुज़ूर ﷺ से इजाज़त ले कर अपनी वालिदा के घर चली गई और इस मन्हूस ख़बर का तज़किरा अपनी वालिदा से किया, मां ने काफी तसल्ली व तशफ्फ़ी दी मगर येह बराबर लगातार रोती ही रहीं।
࿐ इसी हालत में ना गहां हुजूर ﷺ तशरीफ़ लाए और फ़रमाया कि ऐ आइशा! तुम्हारे बारे में ऐसी ऐसी ख़बर उड़ाई गई है अगर तुम पाक दामन हो और येह ख़बर झूटी है तो अन क़रीब खुदा वन्दे तआला तुम्हारी बराअत का बज़रीअए वहय एलान फ़रमा देगा। वरना तुम तौबा व इस्तिफ़ार कर लो क्यूं कि जब कोई बन्दा खुदा से तौबा करता है और बशिश मांगता है तो अल्लाह तआला उस के गुनाहों को मुआफ़ फ़रमा देता है। हुजुर ﷺ की येह गुफ्तगू सुन कर हज़रते आइशा के आंसू बिल्कुल थम गए और उन्हों ने अपने वालिद से कहा कि आप रसूलुल्लाह ﷺ का जवाब दीजिये। तो उन्हों ने फ़रमाया कि खुदा की क़सम! मैं नहीं जानता कि हुजुर ﷺ को क्या जवाब दूं? फिर उन्हों ने मां से जवाब देने की दरख्वास्त की तो उन की मां ने भी येही कहा फिर खुद हज़रते बीबी आइशा ने हुजूर ﷺ को येह जवाब दिया कि लोगों ने जो एक बे बुन्याद बात उड़ाई है और येह लोगों के दिलों में बैठ चुकी है और कुछ लोग इस को सच समझ चुके हैं इस सूरत में अगर मैं येह कहूं कि मैं पाक दामन हूं तो लोग इस की तस्दीक़ नहीं करेंगे और अगर मैं इस बुराई का इक्रार कर लूं तो सब मान लेंगे हालां कि अल्लाह तआला जानता है कि मैं इस इल्ज़ाम से बरी और पाक दामन हूं इस वक़्त मेरी मिषाल हज़रते यूसुफ عليه السلام के बाप (हज़रते याकूब عليه السلام) जैसी है लिहाजा मैं भी वोही कहती हूं जो उन्हों ने कहा था "तो सब्र अच्छा और अल्लाह ही से मदद चाहता हु उन बातों पर जो तुम बता रहे हो" (पा. 11)
࿐ येह कहती हुई उन्हों ने करवट बदल कर मुंह फैर लिया और कहा कि अल्लाह तआला जानता है कि मैं इस तोहमत से बरी और पाक दामन हूं और मुझे यकीन है कि अल्लाह तआला जरूर बराअत को ज़ाहिर फ़रमा देगा। हज़रते बीबी आइशा رضی الله تعالی عنها का जवाब सुन कर अभी रसूलुल्लाह ﷺ अपनी जगह से उठे भी न थे कि ना गहां हुज़ूर पर वहय नाज़िल होने लगी।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 318 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 204* ༺❘
*❝ वाकिअए इफ्क #07 ❞*
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࿐ हज़रते बीबी आइशा رضی الله تعالی عنها का जवाब सुन कर अभी रसूलुल्लाह ﷺ अपनी जगह से उठे भी न थे और हर शख़्स अपनी अपनी जगह पर बैठा ही हुवा था कि ना गहां हुज़ूर ﷺ पर वहय नाज़िल होने लगी और आप पर नुज़ूले वहय के वक्त की बेचैनी शुरू हो गई और बा वजूदे कि शदीद सर्दी का वक्त था मगर पसीने के क़तरात मोतियों की तरह आपके बदन से टपकने लगे जब वहय उतर चुकी तो हंसते हुए हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि ऐ आइशा ! तुम खुदा का शुक्र अदा करते हुए उस की हम्द करो कि उस ने तुम्हारी बराअत और पाक दामनी का एलान फ़रमा दिया और फिर आपने कुरआन की सूरए नूर में से दस आयतों की तिलावत फ़रमाई।
࿐ इन आयात के नाज़िल हो जाने के बाद मुनाफ़िक़ों का मुंह काला हो गया और हज़रते उम्मुल मुअमिनीन बीबी आइशा رضی الله تعالی عنها की पाक दामनी का आफ्ताब अपनी पूरी आबो ताब के साथ इस तरह चमक उठा कि क़ियामत तक आने वाले मुसलमानों के दिलों की दुन्या में नूरे ईमान से उजाला हो गया।
࿐ हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ رضي الله عنه को हजरते मिस्तह बिन अषाषा पर बड़ा गुस्सा आया येह आप के ख़ालाजाद भाई थे और बचपन ही में इन के वालिद वफ़ात पा गए थे तो हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضی الله تعالی عنه ने इन की परवरिश भी की थी और इन की मुफ्लिसी की वजह से हमेशा आप इन की माली इमदाद फ़रमाते रहते थे मगर इस के बा वुजूद हज़रते मिस्तह बिन अषाषा ने भी इस तोहमत तराशी और इस का चरचा करने में कुछ हिस्सा लिया था इस वजह से हज़रते अबू बक्र सिद्दीक ने गुस्से में भर कर येह क़सम खा ली कि अब में मिस्तह बिन अषाषा की कभी भी कोई माली मदद नहीं करूंगा, इस मौकअ पर अल्लाह तआला ने येह आयत नाज़िल फ़रमाई कि : "और कसम न खाएं वोह जो तुम में फ़ज़ीलत वाले और गुन्जाइश वाले हैं क़राबत वालो और मिस्कीनों और अल्लाह की राह में हिजरत करने वालों को देने की और चाहिये कि मुआफ़ करें और दर गुज़र करें क्या तुम इसे पसन्द नहीं करते कि अल्लाह तुम्हारी बख़्शिश करे और अल्लाह बहुत बख़्शने वाला और बड़ा मेहरबान है।" (पा. 18)
࿐ इस आयत को सुन कर हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضی الله تعالی عنه ने अपनी क़सम तोड़ डाली और फिर हज़रते मिस्तह बिन अषाषा का खर्च ब दस्तूरे साबिक अता फरमाने लगे।
࿐ फिर हुज़ूर ﷺ ने मस्जिदे नबवी में एक खुत्बा पढ़ा और सूरए नूर की आयतें तिलावत फ़रमा कर मज्मए आम सुना दीं और तोहमत लगाने वालों में से हज़रते हस्सान बिन षाबित व हज़रते मिस्तह बिन अषाषा व हज़रते हमना बिन्ते जहश और रईसुल मुनाफ़िक़ीन अब्दुल्लाह बिन उबय्य इन चारों को हुद्दे क़ज़फ़ की सजा में अस्सी अस्सी दुर्रे मारे गए।
࿐ शारेहे बुखारी अल्लामा किरमानी رحمة الله عليه ने फ़रमाया कि हज़रते बीबी आइशा رضی الله تعالی عنها की बराअत और पाक दामनी कतई व यकीनी है जो कुरआन से षाबित है अगर कोई इस में ज़रा भी शक करे काफ़िर है। दूसरे तमाम फु-कुहाए उम्मत का भी येही मस्लक है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 320 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 205* ༺❘
*❝ आयते तयम्मुम का नुजुल ❞*
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࿐ इब्ने अब्दुल बर व इब्ने सा'द व इब्ने हब्बान वगैरा मुहद्दिषीन व उलमाए सीरत का क़ौल है कि तयम्मुम की आयत इसी गज्वए मुरैसीअ में नाज़िल हुई मगर रौज़तुल अहबाब में लिखा है कि आयते तयम्मुम किसी दूसरे ग़ज़वे में उतरी है।
࿐ बुखारी शरीफ़ में आयते तयम्मुम की शाने नुज़ूल जो मज़कूर है वोह यह है कि हज़रते बीबी आइशा رضي الله عنها का बयान है कि हम लोग हुज़ूर ﷺ के साथ एक सफ़र में थे जब हम लोग मकामे "बैदाअ" या मक़ामे "जातुल जैश" में पहुंचे तो मेरा हार टूट कर कहीं गिर गया हुजूर ﷺ और कुछ लोग उस हार की तलाश में वहां ठहर गए और वहां पानी नहीं था तो कुछ लोगों ने हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ رضي الله عنه के पास आ कर शिकायत की, कि क्या आप देखते नहीं कि हज़रते आइशा رضی الله تعالی عنها ने क्या किया? हुज़ूर ﷺ और सहाबा رضی الله تعالی عنهم को यहां ठहरा लिया है हालां कि यहां पानी मौजूद नहीं है, येह सुन कर हज़रते अबू बक्र मेरे पास आए और जो कुछ खुदा ने चाहा उन्हों ने मुझ को (सख़्त व सुस्त) कहा और फिर (गुस्से में) अपने हाथ से मेरी कोख में कोंचा मारने लगे उस वक्त रसूलुल्लाह ﷺ मेरी रान पर अपना सरे मुबारक रख कर आराम फ़रमा रहे थे इस वजह से (मार खाने के बावजूद) मैं हिल नहीं सकती थी सुब्ह को जब रसूलुल्लाह ﷺ बेदार हुए तो वहां कहीं पानी मौजूद ही नहीं था ना गहां हुजूर ﷺ पर तयम्मुम की आयत नाज़िल हो गई चुनान्चे हुजूर ﷺ और तमाम असहाब ने तयम्मुम किया और नमाज़े फज्र अदा की इस मौक़अ पर हज़रते उसैद बिन हुज़ैर رضی الله تعالی عنه ने (खुश हो कर) कहा कि ऐ अबू बक्र की आल! येह तुम्हारी पहली ही बरकत नहीं है। फिर हम लोगों ने ऊंट को उठाया तो उस के नीचे हम ने हार को पा लिया।
࿐ इस हदीष में किसी ग़ज़वे का नाम नहीं है मगर शारेहे बुखारी हज़रते अल्लामा इब्ने हजर رحمة الله عليه ने फ़रमाया कि येह वाकिआ ग़ज़्वए बनी अल मुस्तलिक का है जिस का दूसरा नाम गज्वए मुरैसीअ भी है जिस में क़िस्सए इफ्क वाक़ेअ हुवा। इस ग़ज़वे में हुजूर ﷺ अठ्ठाईस दिन मदीने से बाहर रहे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 331 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 206* ༺❘
*❝ जंगे खन्दक #01 ❞*
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࿐ सि. 5 हि. की तमाम लड़ाइयों में येह जंग सब से जियादा मशहूर और फ़ैसला कुन जंग है चूंकि दुश्मनों से हिफ़ाज़त के लिये शहरे मदीना के गिर्द खन्दक खोदी गई थी इस लिये येह लड़ाई "जंगे खन्दक" कहलाती है और चूंकि तमाम कुफ्फ़ारे अरब ने मुत्तहिद हो कर इस्लाम के ख़िलाफ़ येह जंग की थी इस लिये इस लड़ाई का दूसरा नाम "जंगे अहज़ाब" (तमाम जमाअतों की मुत्तहिदा जंग) है, कुरआने मजीद में इस लड़ाई का तज़किरा इसी नाम के साथ आया है।
*❝ जंगे खन्दक का सबब ❞*
࿐ गुज़श्ता पोस्ट में हम येह लिख चुके हैं कि "क़बीलए बनू नज़ीर" के यहूदी जब मदीने से निकाल दिये गए तो उन में से यहूदियों के चन्द रूअसा "खैबर" में जा कर आबाद हो गए और खैबर के यहूदियों ने उन लोगों का इतना एजाजो इक्राम किया कि सलाम बिन मशकम व इब्ने अबिल हुकैक व हुयय बिन अख्तब व किनाना बिन अर्रबीअ को अपना सरदार मान लिया येह लोग चूंकि मुसलमानों के खिलाफ़ गैज़ो गज़ब में भरे थे और इनतिकाम की आग इन के सीनों में दहक रही थी इस लिये इन लोगों ने मदीने पर एक ज़बर दस्त हम्ले की स्कीम बनाई, चुनान्चे येह तीनों इस मक्सद के पेशे नज़र मक्का गए और कुफ्फ़ारे कुरैश से मिल कर येह कहा कि अगर तुम लोग हमारा साथ दो तो हम लोग मुसलमानों को सफ्हए हस्ती से नेस्तो नाबूद कर सकते हैं।
࿐ कुफ्फ़ारे कुरैश तो इस के भूके ही थे फ़ौरन ही उन लोगों ने यहूदियों की हां में हां मिला दी। कुफ्फ़ारे कुरैश से साज़ बाजा कर लेने के बाद इन तीनों यहूदियों ने "क़बीलए बनू गतफ़ान" का रुख किया और खैबर की आधी आमदनी देने का लालच देकर उन लोगों को भी मुसलमानों के ख़िलाफ़ जंग करने के लिये आमादा कर लिया फिर बनू गतफ़ान ने अपने हलीफ़ "बनू असद" को भी जंग के लिये तय्यार कर लिया। इधर यहूदियों ने अपने हलीफ़ "क़बीलए बनू अस्अद" को भी अपना हमनवा बना लिया और कुफ्फ़ारे कुरैश ने अपनी रिश्ते दारियों की बिना पर "क़बीलए बनू सुलैम" को भी अपने साथ मिला लिया। ग़रज़ इस तरह तमाम क़बाइले अरब के कुफ्फ़ार ने मिलजुल कर एक लश्करे जर्रार तय्यार कर लिया जिस की तादाद दस हज़ार थी और अबू सुफ्यान इस पूरे लश्कर का सिपहसालार बन गया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 223 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 207* ༺❘
*❝ जंगे खन्दक #02 ❞*
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࿐ *मुसलमानों की तय्यारी :-* जब क़बाइले अरब के तमाम काफ़िरों के इस गठजोड़ और ख़ौफ़नाक हम्ले की ख़बरें मदीना पहुंचीं तो हुज़ूरे अक्दस ﷺ ने अपने असहाब को जम्अ फ़रमा कर मश्वरा फ़रमाया कि इस हम्ले का मुक़ाबला किस तरह किया जाए? हज़रते सलमान फ़ारसी رضي الله عنه ने येह राय दी कि जंगे उद्दुद की तरह शहर से बाहर निकल कर इतनी बड़ी फ़ौज के हम्ले को मैदानी लड़ाई में रोकना मस्लहत के ख़िलाफ़ है लिहाजा मुनासिब येह है कि शहर के अन्दर रह कर इस हम्ले का दिफाअ किया जाए और शहर के गिर्द जिस तरफ़ से कुफ्फार की चढ़ाई का ख़तरा है एक खन्दक खोद ली जाए ताकि कुफ्फ़ार की पूरी फ़ौज ब यक वक्त हम्ला आवर न हो सके।
࿐ मदीने के तीन तरफ़ चूंकि मकानात की तंग गलियां और खजूरों के झुंड थे इस लिये इन तीनों जानिब से हम्ले का इम्कान नहीं था मदीने का सिर्फ एक रुख खुला हुवा था इस लिये येह तै किया गया कि इसी तरफ़ पांच गज़ गहरी खन्दक़ खोदी जाए, चुनान्चे 8 ज़ू कादह सि. 5 हि. को हुजुर ﷺ तीन हजार सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم को साथ ले कर खन्दक़ खोदने में मसरूफ़ हो गए, हुजूर ﷺ ने खुद अपने दस्ते मुबारक से खन्दक़ की हद बन्दी फ़रमाई और दस दस आदमियों पर दस दस गज़ ज़मीन तक्सीम फ़रमा दी और तक़रीबन बीस दिन में येह खन्दक़ तय्यार हो गई।
࿐ हज़रते अनस رضي الله عنه का बयान है कि हुज़ूर ﷺ खन्दक के पास तशरीफ़ लाए और जब येह देखा कि अन्सार व मुहाजिरीन कड़ कड़ाते हुए जाड़े के मौसम में सुबह के वक्त कई कई फ़ाक़ों के बावजूद जोशो खरोश के साथ खन्दक खोदने में मश्गूल हैं तो इनतिहाई मुतअष्षिर हो कर आप ने येह रज्ज़ पढ़ना शुरूअ कर दिया कि *ऐ अल्लाह ! बिला शुबा ज़िन्दगी तो बस आखिरत की ज़िन्दगी है लिहाजा तू अन्सार व मुहाजिरीन को बख़्श दे।*
࿐ इस के जवाब में अन्सार व मुहाजिरीन ने आवाज़ मिला कर येह पढ़ना शुरू कर दिया कि... हम वोह लोग हैं जिन्हों ने जिहाद पर हज़रत मुहम्मद ﷺ की बैअत कर ली है जब तक हम ज़िन्दा रहें हमेशा हमेशा के लिये।
࿐ हज़रते बराअ बिन आजिबرضي الله عنه कहते हैं कि हुज़ूर ﷺ खुद भी खन्दक खोदते और मिट्टी उठा उठा कर फेंकते थे। यहां तक कि आप के शिकमे मुबारक पर गुबार की तह जम गई और मिट्टी उठाते हुए सहाबा को जोश दिलाने के लिये रज्ज के येह अशआर पढ़ते थे कि *खुदा की क़सम ! अगर अल्लाह का फ़ज़्ल न होता तो हम हिदायत न पाते और न सदक़ा देते न नमाज़ पढ़ते*
࿐ लिहाजा ऐ अल्लाह ! तू हम पर कल्बी इतमीनान उतार दे और जंग के वक़्त हम को षाबित क़दम रख। यक़ीनन इन (काफ़िरों) ने हम पर जुल्म किया है और जब भी इन लोगों ने फ़ितने का इरादा किया तो हम लोगों ने इन्कार कर दिया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 324 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 208* ༺❘
*❝ जंगे खन्दक #03 ¶ एक अजीब चट्टान ❞*
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࿐ हज़रते जाबिर رضي الله عنه ने बयान फ़रमाया कि खन्दक खोदते वक़्त ना गहां एक ऐसी चट्टान नमूदार हो गई जो किसी से भी नहीं टूटी जब हम ने बारगाहे रिसालत में येह माजरा अर्ज किया तो आप ﷺ उठे तीन दिन का फ़ाक़ा था और शिकमे मुबारक पर पथ्थर बंधा हुवा था आप ने अपने दस्ते मुबारक से फावड़ा मारा तो वोह चट्टान रैत के भुरभुरे टीले की तरह बिखर गई।
࿐ और एक रिवायत यह है कि आप ﷺ ने उस चट्टान पर तीन मरतबा फावड़ा मारा। हर ज़र्ब पर उस में से एक रोशनी निकलती थी और उस रोशनी में आप ﷺ ने शाम व ईरान और यमन के शहरों को देख लिया और इन तीनों मुल्कों के फ़त्ह होने की सहाबए किराम को बिशारत दी।
࿐ और नसाई की रिवायत में है कि आप ﷺ ने मदाइने किसरा व मदाइने कैसर व मदाइने हबशा की फुतूहात का एलान फ़रमाया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 326 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 209* ༺❘
*❝ जंगे खन्दक #04 ❞*
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࿐ *हज़रते जाबिर رضی الله تعالی عنه की दावत :-* हज़रते जाबिर رضي الله عنه कहते हैं कि फ़ाक़ों से शिकमे अक्दस पर पथ्थर बंधा हुवा देख कर मेरा दिल भर आया चुनान्चे मैं हुज़ूर ﷺ से इजाज़त ले कर अपने घर आया और बीवी को कहा कि मैं ने नबिय्ये अकरम ﷺ को इस क़दर शदीद भूक की हालत में देखा है कि मुझ को सब्र की ताब नहीं रही क्या घर में कुछ खाना है? बीवी ने कहा कि घर में एक साअ जव के सिवा कुछ भी नहीं है, मैं ने कहा कि तुम जल्दी से उस जव को पीस कर गूंध लो और अपने घर का पला हुवा एक बकरी का बच्चा मैं ने जब्ह कर के उस की बोटियाँ बना दी और बीवी से कहा कि जल्द से तुम गोश्त रोटी तैयार कर लो में हुज़ूर ﷺ को बुला कर लाता हूं, चलते वक़्त बीवी ने कहा कि देखना सिर्फ हुज़ूर ﷺ और चन्द ही असहाब को साथ में लाना। खाना कम ही है कहीं मुझे रुस्वा मत कर देना।
࿐ हज़रते जाबिर رضی الله تعالی عنه ने खन्दक़ पर आ कर चुपके से अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ! एक साअ आटे की रोटियां और एक बकरी के बच्चे का गोश्त मैं ने घर में तय्यार कराया है लिहाजा आप सिर्फ चन्द अश्वास के साथ चल कर तनावुल फ़रमा लें, येह सुन कर हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि ऐ खन्दक़ वालो ! जाबिर ने दा'वते तआम दी है लिहाज़ा सब लोग इन के घर पर चल कर खाना खा लें फिर मुझ से फ़रमाया कि जब तक मैं न आ जाऊं रोटी मत पकवाना, चुनान्चे जब हुज़ूर ﷺ तशरीफ़ लाए तो गुंधे हुए आटे में अपना लुआबे दहन डाल कर बरकत की दुआ फ़रमाई और गोश्त की हांडी में भी अपना लुआबे दहन डाल दिया फिर रोटी पकाने का हुक्म दिया और येह फ़रमाया कि हांडी चूल्हे से न उतारी जाए फिर रोटी पकनी शुरू हुई और हांडी में से हज़रते जाबिर की बीवी ने गोश्त निकाल निकाल कर देना शुरूअ किया एक हज़ार आदमियों ने आसूदा हो कर खाना खा लिया मगर गूंधा हुवा आटा जितना पहले था उतना ही रह गया और हांडी चूल्हे पर ब दस्तूर जोश मारती रही।
࿐ *बा बकत खजूरें :-* इसी तरह एक लड़की अपने हाथ में कुछ खजूरें ले कर आई, हुज़ूर ﷺ ने पूछा कि क्या है? लड़की ने जवाब दिया कि कुछ खजूरें हैं जो मेरी मां ने मेरे बाप के नाश्ते के लिये भेजी हैं, आप ने उन खजूरों को अपने दस्ते मुबारक में ले कर एक कपड़े पर बिखेर दिया और तमाम अहले खन्दक को बुला कर फ़रमाया कि ख़ूब सैर हो कर खाओ चुनान्चे तमाम खन्दक़ वालों ने शिकम सैर हो कर उन खजूरों को खाया।
ये दोनों 👆🏻 वाक़्यात हुज़ूर ﷺ के मोजिज़ात में से है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 329 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 210* ༺❘
*❝ जंगे खन्दक #05 ❞*
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࿐ *इस्लामी अफ़वाज की मोरचा बन्दी :-* हुज़ूरे अक्दस ﷺ ने खन्दक तय्यार हो जाने के बाद औरतों और बच्चों को मदीने के महफूज़ क़लए में जम्अ फ़रमा दिया और मदीने पर हज़रते इब्ने उम्मे मक्तूम رضي الله عنه को अपना ख़लीफ़ा बना कर तीन हज़ार अन्सार व मुहाजिरीन की फ़ौज के साथ मदीने से निकल कर सलअ पहाड़ के दामन में ठहरे। सलअ आप की पुश्त पर था और आप के सामने खन्दक थी। मुहाजिरीन का झन्डा हज़रते जैद बिन हारिषा رضي الله عنه के हाथ में दिया और अन्सार का अलम बरदार हज़रते सा'द बिन उबादा رضي الله عنه को बनाया।
࿐ *कुफ्फ़ार का हम्ला :-* कुफ्फ़ारे कुरैश और उन के इत्तिहादियों ने दस हज़ार के लश्कर के साथ मुसलमानों पर हल्ला बोल दिया और तीन तरफ से काफ़िरों का लश्कर इस जोरो शोर के साथ मदीने पर उमंड पड़ा कि शहर की फ़ज़ाओं में गर्दो गुबार का तूफ़ान उठ गया इस ख़ौफ़नाक चढ़ाई और लश्करे कुफ्फ़ार के दल बादल की मारिका आराई का नक्शा कुरआन की जुबान से सुनिये : जब काफ़िर तुम पर आ गए तुम्हारे ऊपर से और तुम्हारे नीचे से और जब कि ठिठक कर रह गई निगाहें और दिल गलों के पास (ख़ौफ़ से) आ गए और तुम अल्लाह पर (उम्मीद व यास से) तरह तरह के गुमान करने लगे उस जगह मुसलमान आज्माइश और इमतिहान में डाल दिये गए और वोह बड़े जोर के जल्ज़ले में झंझोड़ कर रख दिये गए। (पा.21)
࿐ मुनाफ़िक़ीन जो मुसलमानों के दोश बदोश खड़े थे वोह कुफ्फार के इस लश्कर को देखते ही बुज़दिल हो कर फिसल गए और उस वक्त उन के निफ़ाक़ का पर्दा चाक हो गया। चुनान्चे उन लोगों ने अपने घर जाने की इजाजत मांगनी शुरू कर दी। जैसा कि कुरआन में अल्लाह तआला का फरमान है कि : और एक गुरौह (मुनाफ़िक़ीन) उन में से नबी की इजाज़त तलब करता था मुनाफिक कहते हैं कि हमारे घर खुले पड़े हैं हालां कि वोह खुले हुए नहीं थे उन का मक्सद भागने के सिवा कुछ भी न था। (पा.21)
࿐ लेकिन इस्लाम के सच्चे जां निषार मुहाजिरीन व अन्सार ने जब लश्करे कुफ्फ़ार की तूफ़ानी यलगार को देखा तो इस तरह सीना सिपर हो कर डट गए कि "सलअ" और "उहुद" की पहाड़ियां सर उठा उठा कर इन मुजाहिदीन की ऊलुल अज्मी को हैरत से देखने लगीं इन जां निषारों की ईमानी शुजाअत की तस्वीर सफ़हाते कुरआन पर तहरीर देखिये इर्शादे रब्बानी है कि : और जब मुसलमानों ने क़बाइले कुफ्फ़ार के लश्करों को देखा तो बोल उठे कि येह तो वोही मन्जर है जिस का अल्लाह और उस के रसूल ने हम से वादा किया और खुदा और उसका रसूल दोनों सच्चे हैं और उस ने उन के ईमान व इताअत को और ज़ियादा बढ़ा दिया। (पा.21)
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 329 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 211* ༺❘
*❝ जंगे खन्दक #06 ¶ बनू करीजा की गद्दारी ❞*
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࿐ क़बीलए बनू क़रीज़ा के यहूदी अब तक गैर जानिब दार थे लेकिन बनू नज़ीर के यहूदियों ने उन को भी अपने साथ मिला कर कुफ्फ़ार में शामिल कर लेने की कोशिश शुरू कर दी चुनान्चे हुयय बिन अख़्तब अबू सुफ्यान के मश्वरे से बनू क़रीज़ा के सरदार का'ब बिन असद के पास गया। पहले तो उस ने अपना दरवाजा नहीं खोला और कहा कि हम मुहम्मद (ﷺ) के हलीफ़ हैं और हम ने उन को हमेशा अपने अह्द का पाबन्द पाया है इस लिये हम उन से अहद शिकनी करना ख़िलाफ़े मुरुव्वत समझते हैं मगर बनू नज़ीर के यहूदियों ने इस क़दर शदीद इसरार किया और तरह तरह से वर गलाया कि बिल आखिर का'ब बिन असद मुआहदा तोड़ने के लिये राज़ी हो गया, बनू क़रीज़ा ने जब मुआहदा तोड़ दिया और कुफ्फ़ार से मिल गए तो कुफ्फ़ारे मक्का और अबू सुफ्यान खुशी से बाग़ बाग़ हो गए।
࿐ हुज़ूरे अक्दस ﷺ को जब इसकी खबर मिली तो आप ने हज़रते सा'द बिन मुआज़ और हज़रते बिन उबादा رضي الله عنهما को तहक़ीके हाल के लिये बनू क़रीज़ा के पास भेजा वहां जा कर मालूम हुवा कि वाकई बनू क़रीजा ने मुआहदा तोड़ दिया है जब इन दोनों मुअज्जज सहाबियों رضی الله تعالی عنهما ने बनू क़रीज़ा को उन का मुआहदा याद दिलाया तो उन बद जात यहूदियों ने इनतिहाई बे हयाई के साथ यहां तक कह दिया कि हम कुछ नहीं जानते कि मुहम्मद (ﷺ) कौन हैं? और मुआहदा किस को कहते हैं? हमारा कोई मुआहदा हुवा ही नहीं था येह सुन कर दोनों हज़रात वापस आ गए और सूरते हाल से हुजूर ﷺ को मुत्तलअ किया तो आप ने बुलन्द आवाज़ से "अल्लाहु अक्बर" कहा और फ़रमाया कि मुसलमानो ! तुम इस से न घबराओ न इस का ग़म करो इस में तुम्हारे लिये बिशारत है।
࿐ कुफ़्फ़ार का लश्कर जब आगे बढ़ा तो सामने खन्दक़ देख कर ठहर गया और शहरे मदीना का मुहासरा कर लिया और तक़रीबन एक महीने तक कुफ्फार शहरे मदीना के गिर्द घेरा डाले हुए पड़े रहे और ये मुहासरा इस सख्ती के साथ काइम रहा कि हुजूर ﷺ और सहाबा पर कई कई फाके गुज़र गए।
࿐ कुफ्फार ने एक तरफ तो खन्दक़ का मुहासरा कर रखा था और दूसरी तरफ़ इस लिये हम्ला करना चाहते थे कि मुसलमानों की औरतें और बच्चे कल्ओं में पनाह गुज़ी थे मगर हुजूर ﷺ ने जहां ख़न्दक़ के मुख़्तलिफ़ हिस्सों पर सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم को मुक़र्रर फ़रमा दिया था कि वोह कुफ्फ़ार के हम्लों का मुक़ाबला करते रहें इसी तरह औरतों और बच्चों की हिफाजत के लिये भी कुछ सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم को मुतअय्यन कर दिया था।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 330 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 212* ༺❘
*❝ जंगे खन्दक #07 अन्सार की ईमानी शुजाअत ❞*
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࿐ मुहासरे की वजह से मुसलमानों की परेशानी देख कर हुज़ूरे अकरम ﷺ ने येह खयाल किया कि कहीं मुहाजिरीन व अन्सार हिम्मत न हार जाएं इस लिये आप ने इरादा फ़रमाया कि क़बीलए गतफ़ान के सरदार उयैना बिन हसन से इस शर्त पर मुआहदा कर लें कि वोह मदीने की एक तिहाई पैदावार ले लिया करे और कुफ्फ़ारे मक्का का साथ छोड़ दे मगर जब आप ﷺ ने हज़रते सा'द बिन मुआज़ और हज़रते साद बिन उबादा رضی الله تعالی عنهما से अपना येह खयाल जाहिर फ़रमाया तो इन दोनों ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ ! अगर इस बारे में अल्लाह तआला की तरफ से वहय उतर चुकी है जब तो हमें इस से इन्कार की मजाल ही नहीं हो सकती,
࿐ और अगर येह एक राय है तो या रसूलल्लाह ﷺ ! जब हम कुफ़्र की हालत में थे उस वक्त तो क़बीलए गतफ़ान के सरकश कभी हमारी एक खजूर न ले सके और अब जब कि अल्लाह तआला ने हम लोगों को इस्लाम और आप की गुलामी की इज्जत से सरफ़राज़ फ़रमा दिया है तो भला क्यूंकर मुमकिन है कि हम अपना माल इन काफ़िरों को दे देंगे ? हम इन कुफ़्फ़ार को खजूरों का अम्बार नहीं बल्कि नेज़ों और तलवारों की मार का तोहफ़ा देते रहेंगे यहां तक कि अल्लाह तआला हमारे और इन के दरमियान फैसला फ़रमा देगा, येह सुन कर हुजूर ﷺ खुश हो गए और आप को पूरा पूरा इत्मीनान हो गया।
࿐ ख़न्दक़ की वजह से दस्त ब दस्त लड़ाई नहीं हो सकती थी और कुफ़्फ़ार हैरान थे कि इस ख़न्दक को क्यूंकर पार करें मगर दोनों तरफ से रोजाना बराबर तीर और पथ्थर चला करते थे आखिर एक रोज़ अम्र बिन अब्दे वुद व इक्रमा बिन अबू जहल व हबीरा बिन अबी वहब व ज़रार बिन अल ख़त्ताब वगैरा कुफ्फ़ार के चन्द बहादुरों ने बनू किनाना से कहा कि उठो आज मुसलमानों से जंग कर के बता दो कि शह सुवार कौन है ? चुनान्चे येह सब खन्दक़ के पास आ गए और एक ऐसी जगह से जहां खन्दक की चौड़ाई कुछ कम थी घोड़ा कुदा कर खन्दक़ को पार कर लिया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 332 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 213* ༺❘
*❝ जंगे खन्दक #08 ❞*
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࿐ *अम्र बिन अब्दे वुद मारा गया :-* सब से आगे अम्र बिन अब्दे वुद था येह अगर्चे नव्वे बरस का खुर्रांट बुड्ढा था मगर एक हज़ार सुवारों के बराबर बहादुर माना जाता था जंगे बद्र में ज़ख़्मी हो कर भाग निकला था और इस ने येह कसम खा रखी थी कि जब तक मुसलमानों से बदला न ले लूंगा बालों में तेल न डालूंगा, येह आगे बढ़ा और चिल्ला चिल्ला कर मुक़ाबले की दा'वत देने लगा तीन मरतबा इस ने कहा कि कौन है जो मेरे मुक़ाबले को आता है ? तीनों मरतबा हज़रते अली शेरे खुदा كَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने उठ कर जवाब दिया कि “मैं”। हुज़ूर ﷺ ने रोका कि ऐ अली ! येह अम्र बिन अब्दे वुद है। हज़रते अली शेरे खुदा ने अर्ज़ किया कि जी हां मैं जानता हूं कि येह अम्र बिन अब्दे वुद हैं लेकिन मैं इस से लडूंगा, येह सुन कर ताजदारे नुबुव्वत ﷺ ने अपनी ख़ास तलवार जुलफ़िकार अपने दस्ते मुबारक से हैदरे कर्रार के मुक़द्दस हाथ में दे दी और अपने मुबारक हाथों के मुक़द्दस हाथ में दे दी और अपने मुबारक हाथों से उन के सरे अन्वर पर इमामा बांधा और येह दुआ फ़रमाई कि या अल्लाह ! तू अली की मदद फ़रमा।
࿐ हज़रते असदुल्लाहिल ग़ालिब अली बिन अबी तालिब मुजाहिदाना शान से उस के सामने खड़े हो गए और दोनों में इस तरह मुकालमा शुरूअ हुवा :
हज़रते अली : ऐ अम्र बिन अब्दे वुद ! तू मुसलमान हो जा !
अम्र बिन अब्दे : येह मुझ से कभी हरगिज़ हरगिज़ नहीं हो सकता !
हज़रते अली : लड़ाई से वापस चला जा !
अम्र बिन अब्दे वुद : येह मुझे मन्जूर नहीं !
हज़रते अली : तो फिर मुझ से जंग कर !
अम्र बिन अब्दे वुद : हंस कर कहा कि मैं कभी येह सोच भी नहीं सकता था कि दुन्या में कोई मुझ को जंग की दा'वत देगा।
हज़रते अली : लेकिन मैं तुझ से लड़ना चाहता हूं।
अम्र बिन अब्द वुद :आखिर तुम्हारा नाम क्या है ?
हज़रते अली : अली बिन अबी तालिब
अम्र बिन अब्दे वुद : ऐ भतीजे ! तुम अभी बहुत ही कम उम्र हो मैं तुम्हारा खून बहाना पसन्द नहीं करता।
हज़रते अली : लेकिन मैं तुम्हारा खून बहाने को बेहद पसन्द करता हूं।
࿐ अम्र बिन अब्दे वुद ख़ून खौला देने वाले येह गर्मा गर्म जुम्ले सुन कर मारे गुस्से के आपे से बाहर हो गया हज़रते शेरे खुदा पैदल थे और येह सुवार था इस पर जो गैरत सुवार हुई तो घोड़े से उतर पड़ा और अपनी तलवार से घोड़े के पाउं काट डाले और नंगी तलवार ले कर आगे बढ़ा और हज़रते शेरे खुदा पर तलवार का भरपूर वार किया हजरते शेरे खुदा ने तलवार के उस वार को अपनी ढाल पर रोका, येह वार इतना सख़्त था कि तलवार ढाल और इमामे को काटती हुई पेशानी पर लगी गो बहुत गहरा ज़ख़्म नहीं लगा मगर फिर भी ज़िन्दगी भर येह तुगरा आप की पेशानी पर यादगार बन कर रह गया। हज़रते अली शेरे खुदा رضی الله تعالی عنه ने तड़प कर ललकारा कि ऐ अम्र ! संभल जा अब मेरी बारी है येह कह कर असदुल्लाहिल गालिब ने जुल फ़िकार का ऐसा जचा तुला हाथ मारा कि तलवार दुश्मन के शाने को काटती हुई कमर पार हो गई और वोह तिलमिला कर ज़मीन पर गिरा और दम ज़दन में मर कर फ़िन्नार हो गया और मैदाने कारज़ार ज़बाने हाल से पुकार उठा
*शाहे मर्दों, शेरे यज़दां कुव्वते परवर्द गार*
࿐ हज़रते अली رضی الله تعالی عنه ने उस को क़त्ल किया और मुंह फैर कर चल दिये हज़रते उमर رضی الله تعالی عنه ने कहा कि ऐ अली ! आप ने अम्र बिन अब्दे वुद की जिरह क्यूं नहीं उतार ली ? सारे अरब में इस से अच्छी कोई जिरह नहीं है आप ने फ़रमाया कि ऐ उमर ! जुल फ़िकार की मार से वोह इस तरह बे क़रार हो कर ज़मीन पर गिरा कि उस की शर्मगाह खुल गई इस लिये हया की वजह से मैं ने मुंह फैर लिया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 333 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 214* ༺❘
*❝ जंगे खन्दक #09 ¶ नौफ़िल की लाश ❞*
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࿐ इस के बाद नौफ़िल गुस्से में बिफरा हुवा मैदान में निकला और पुकारने लगा कि मेरे मुकाबले के लिये कौन आता है ? हज़रते जुबैर बिन अल अव्वाम رضي الله عنه उस पर बिजली की तरह झपटे और ऐसी तलवार मारी कि वोह दो टुकड़े हो गया और तलवार जन को काटती हुई घोड़े की कमर तक पहुंच गई लोगों ने कहा कि ऐ जुबैर ! तुम्हारी तलवार की तो मिषाल नहीं मिल सकती। आप ने फ़रमाया कि तलवार क्या चीज़ है ? कलाई में दम खम और ज़र्ब में कमाल चाहिये।
࿐ हबीरा और ज़रार भी बड़े तन तने से आगे बढ़े मगर जब ज़ुल्फ़िक़ार का वार देखा तो लरज़ा बर अन्दाम हो कर फ़िरार हो गए कुफ्फ़ार के बाकी शह सुवार भी जो खन्दक को पार कर के आ गए थे वोह सब भी भाग खड़े हुए और अबू जहल का बेटा इक्रमा तो इस क़दर बद हवास हो गया कि अपना नेजा फेंक कर भागा और खन्दक के पार जा कर उस को करार आया।
࿐ बा'ज़ मुअर्रिख़ीन का क़ौल है कि नौफ़िल को हज़रते अली ने क़त्ल किया और बा'ज़ ने येह कहा कि नौफ़िल हुज़ूर ﷺ पर हम्ला करने की गरज से अपने घोड़े को कुदा कर खन्दक़ को पार करना चाहता था कि खुद ही खन्दक़ में गिर पड़ा और उस की गरदन टूट गई और वोह मर गया बहर हाल कुफ्फ़ारे मक्का ने दस हज़ार दिरहम में उस की लाश को लेना चाहा ताकि वोह उस को ए'ज़ाज़ के साथ दफ्न करें हुजूर ﷺ ने रकम लेने से इन्कार फ़रमा दिया और इर्शाद फ़रमाया कि हम को इस लाश से कोई ग़रज़ नहीं मुशरिकीन इस को ले जाएं और दफ्न करें हमें इस पर कोई ए'तिराज़ नहीं है।
࿐ उस दिन का हम्ला बहुत ही सख़्त था दिन भर लड़ाई जारी रही और दोनों तरफ से तीर अन्दाज़ी और पथ्थर बाज़ी का सिल्सिला बराबर जारी रहा और किसी मुजाहिद का अपनी जगह से हटना ना मुमकिन था, ख़ालिद बिन वलीद ने अपनी फ़ौज के साथ एक जगह से खन्दक़ को पार कर लिया और बिल्कुल ही ना गहां हुज़ूर ﷺ के खैमए अक्दस पर हम्ला आवर हो गया मगर हज़रते उसैद बिन हुजैर رضي الله عنه ने उस को देख लिया और दो सो मुजाहिदीन को साथ ले कर दौड़ पड़े और खालिद बिन वलीद के दस्ते के साथ दस्त ब दस्त की लड़ाई में टकरा गए और खूब जम कर लड़े इस लिये कुफ्फार खैमए अतहर तक न पहुंच सके।
࿐ इस घुमसान की लड़ाई में हुज़ूर ﷺ की नमाज़े अस्र कजा हो गई। बुखारी शरीफ़ की रिवायत है कि हज़रते उमर जंगे खन्दक के दिन सूरज गुरूब होने के बा'द कुफ़्फ़ार को बुरा भला कहते हुए बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ ! मैं नमाज़े अस्र नहीं पढ़ सका। तो हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि मैं ने भी अभी तक नमाज़े असर नहीं पढ़ी है फिर आप ने वादिये बतान में सूरज गुरुब हो जाने के बाद नमाज़े अस्र कजा पढ़ी फिर इस के बाद नमाज़े मगरिब अदा फ़रमाई। और कुफ्फ़ार के हक़ में येह दुआ मांगी कि, अल्लाह इन मुशरिकों के घरों और इन की क़ब्रों को आग से भर दे इन लोगों ने हम को नमाज़े वुस्ता से रोक दिया यहां तक कि सूरज गुरूब हो गया।
࿐ जंगे खन्दक के दिन हुजूर ने येह दुआ भी फ़रमाई की :-* ऐ अल्लाह ! ऐ किताब नाजिल फ़रमाने वाले ! जल्द हिसाब लेने वाले ! तू इन कुफ्फ़ार के लश्करों को शिकस्त दे दे, ऐ अल्लाह ! इन को शिकस्त दे और इन्हें झंझोड़ दे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 336 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 215* ༺❘
*❝ जंगे खन्दक #10 ¶ ❞*
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࿐ *हज़रते ज़ुबैर को खिताब मिला :-* हुज़ूर ﷺ ने जंगे खन्दक़ के मौकअ पर जब कि कुफ्फ़ार मदीने का मुहासरा किये हुए थे और किसी के लिये शहर से बाहर निकलना दुश्वार था तीन मरतबा इर्शाद फ़रमाया कि कौन है जो क़ौमे कुफ्फार की खबर लाए ? तीनों मरतबा हज़रते जुबैर बिन अल अव्वाम رضي الله عنه ने जो हजूर ﷺ की फूफी हज़रते सफिय्या رضي الله عنها के फ़रज़न्द हैं येह कहा कि "मैं या रसूलल्लाह ﷺ! ख़बर लाऊंगा।" हज़रते जुबैर की इस जां निषारी से खुश हो कर ताजदारे दो आलम ने फरमाया कि "हर नबी के लिये हवारी (मददगारे खास) होते हैं और मेरा "हवारी" जुबैर है।
࿐ इसी तरह हज़रते जुबैर को बारगाहे रिसालत से "हवारी" का खिताब मिला जो किसी दूसरे सहाबी को नहीं मिला।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह - 338 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 216* ༺❘
*❝ जंगे खन्दक #11 ❞*
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࿐ *हज़रते साद बिन मुआज़ शहीद :-* इस जंग में मुसलमान का जानी नुक्सान बहुत ही कम हुआ या'नी कुल छे मुसलमान शहादत से सरफ़राज़ हुए मगर अन्सार का सब से बड़ा बाज़ू टूट गया यानी हज़रते साद बिन मुआज رضي الله عنه जो क़बीलए औस के सरदारे आज़म थे, इस जंग में एक तीर से जख्मी हो गए और फिर शिफ़ायाब न हो सके। आप की शहादत का वाक़आ येह है कि आप एक छोटी सी जिरह पहने हुए जोश में भरे हुए नेजा ले कर लड़ने के लिये जा रहे थे कि इब्नुल अरका नामी काफ़िर ने ऐसा निशाना बांध कर तीर मारा कि जिस से आप की एक रग जिस का नाम अकल है वोह कट गई जंग ख़त्म होने के बाद इन के लिये हुजुर ﷺ ने मस्जिदे नबवी में एक खैमा गाड़ा और इन का इलाज करना शुरू किया। खुद अपने दस्ते मुबारक से इन के ज़ख़्म को दो मरतबा दागा, इसी हालत में आप एक मरतबा बनी क़रीज़ा तशरीफ़ ले गए और वहां यहूदियों के बारे में अपना वोह फैसला सुनाया जिस का जिक्र "गज्वए कुरैज़ा" के उन्वान के तहत आएगा इस के बाद वोह अपने खैमे में वापस तशरीफ़ लाए और अब उन का जख्म भरने लग गया था लेकिन,
࿐ उन्हों ने शौक़े शहादत में खुदा वन्दे तआला से येह दुआ मांगी कि : या अल्लाह ! तू जानता है कि किसी क़ौम से जंग करने की मुझे इतनी ज़ियादा तमन्ना नहीं है जितनी कुफ्फ़ारे कुरैश से लड़ने की तमन्ना है जिन्हों ने तेरे रसूल को झुटलाया और इन को इन के वतन से निकाला, ऐ अल्लाह ! मेरा तो येही ख़याल है कि अब तूने हमारे और कुफ्फ़ारे कुरैश के दरमियान जंग का ख़ातिमा कर दिया है लेकिन अगर अभी कुफ्फ़ारे कुरैश से कोई जंग बाक़ी रह गई हो जब तो मुझे तू ज़िन्दा रख ताकि मैं तेरी राह में उन काफ़िरों से जिहाद करूं और अगर अब उन लोगों से कोई जंग बाक़ी न रह गई हो तो मेरे इस ज़ख़्म को तू फाड़ दे और इसी जख्म में तू मुझे मौत अता फरमा दे।
࿐ आप की येह दुआ ख़त्म होते ही बिल्कुल अचानक आप का ज़ख्म फट गया और खून बह कर मस्जिदे नबवी के अन्दर बनी ग़िफ़ार के खैमे में पहुंच गया उन लोगों ने चौंक कर कहा कि ऐ खैमे वालो ! येह कैसा खून है जो तुम्हारे खैमे से बह कर हमारी तरफ़ आ रहा है ? जब लोगों ने देखा तो हज़रते सा'द बिन मुआज़ के जख्म से ख़ून बह रहा था इसी जख्म में उन की वफ़ात हो गई।
࿐ हुजूरे अक्दस ﷺ ने फ़रमाया कि सा'द बिन मुआज की मौत से अर्शे इलाही हिल गया और इन के जनाज़े में सत्तर हज़ार मलाएका हाज़िर हुए और जब इन की क़ब्र खोदी गई तो उस में मुश्क की खुश्बू आने लगी। ऐन वफ़ात के वक्त हुजूरे अन्वर ﷺ तशरीफ़ फ़रमा थे, इन्हों ने आंख खोल कर आखिरी बार जमाले नुबुव्वत का नज़ारा किया और कहा कि "अस्सलामु अलैक या रसूलल्लाह" फिर ब आवाज़े बुलन्द येह कहा कि मैं गवाही देता हूं कि आप अल्लाह के रसूल हैं और आप ने तब्लीगे रिसालत का हक़ अदा कर दिया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 339 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 217* ༺❘
*❝ जंगे खन्दक #12 ❞*
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࿐ *हज़रते सफिय्या की बहादुरी :-* जंगे खन्दक़ में एक ऐसा मौक़अ भी आया कि जब यहूदियों की बहादुरी ने येह देखा कि सारी मुसलमान फ़ौज खन्दक़ की तरफ़ मसरूफे जंग है तो जिस क़लए में मुसलमानों की औरतें और बच्चे पनाह गुज़ीं थे यहूदियों ने अचानक उस पर हम्ला कर दिया और एक यहूदी दरवाज़े तक पहुंच गया, हुज़ूर ﷺ की फूफी हज़रते सफ़िय्या رضي الله عنها ने उस को देख लिया और हज़रते हस्सान बिन षाबित رضي الله عنه से कहा कि तुम इस यहूदी को क़त्ल कर दो, वरना येह जा कर दुश्मनों को यहां का हाल व माहोल बता देगा।
࿐ हज़रते हस्सान رضي الله عنه की उस वक्त हिम्मत नहीं पड़ी कि उस यहूदी पर हम्ला करें येह देख कर खुद हज़रते सफ़िय्या رضي الله عنها ने खैमे की एक चौब उखाड़ कर उस यहूदी के सर पर इस ज़ोर से मारा कि उस का सर फट गया फिर खुद ही उस का सर काट कर कलए के बाहर फेंक दिया येह देख कर हम्ला आवर यहूदियों को यक़ीन हो गया कि कलए के अन्दर भी कुछ फ़ौज मौजूद है इस डर से उन्हों ने फिर उस तरफ़ हम्ला करने की जुरअत ही नहीं की।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 340 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 218* ༺❘
*❝ जंगे खन्दक #13 ❞*
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࿐ *कुफ्फ़ार कैसे भागे ?* हज़रते नुऐम बिन मसऊद अश्जई رضي الله عنه क़बीलए गतफ़ान के बहुत ही मुअज्ज़ज़ सरदार थे और कुरैश व यहूद दोनों को इन की जात पर पूरा पूरा एतिमाद था येह मुसलमान हो चुके थे लेकिन कुफ्फ़ार को इन के इस्लाम का इल्म न था इन्हों ने बारगाहे रिसालत में येह दरख्वास्त की, कि या रसूलल्लाह ﷺ! अगर आप मुझे इजाजत दें तो मैं यहूद और कुरैश दोनों से ऐसी गुफ्तगू करूं कि दोनों में फूट पड़ जाए, आप ने इस की इजाज़त दे दी चुनान्चे इन्हों ने यहूद और कुरैश से अलग अलग कुछ इस क़िस्म की बातें कीं जिस से वाक़ई दोनों में फूट पड़ गई।
࿐ अबू सुफ्यान शदीद सर्दी के मौसिम, तवील मुहसरा, फ़ौज का राशन ख़त्म हो जाने से हैरान व परेशान था जब इस को येह पता चला कि यहूदियों ने हमारा साथ छोड़ दिया है तो इस का हौसला पस्त हो गया और वोह बिल्कुल ही बद दिल हो गया फिर ना गहां कुफ्फ़ार के लश्कर पर कहरे कहहार व ग़-ज़बे जब्बार की ऐसी मार पड़ी कि अचानक मशरिक़ की जानिब से ऐसी तूफ़ान खैज आंधी आई कि देगें चूल्हों पर से उलट पलट हो गई, खैमे उखड़ उखड़ कर उड़ गए और काफ़िरों पर ऐसी वहशत और दहशत सुवार हो गई कि उन्हें राहे फ़िरार इख़्तियार करने के सिवा कोई चारए कार ही नहीं रहा, येही वोह आंधी है जिस का ज़िक्र खुदा वन्दे कुद्दूस ने कुरआन में इस तरह बयान फ़रमाया कि : ऐ ईमान वालो ! खुदा की उस नेमत को याद करो जब तुम पर फ़ौजें आ पड़ीं तो हम ने उन पर आंधी भेज दी। और ऐसी फ़ौजें भेजीं जो तुम्हें नज़र नहीं आती थीं और अल्लाह तुम्हारे कामों को देखने वाला हैं।(पा. 12, अल-अहज़ाब)
࿐ अबू सुफ्यान ने अपनी फ़ौज में ए'लान करा दिया कि राशन ख़त्म हो चुका, मौसिम इनतिहाई खराब है, यहूदियों ने हमारा साथ छोड़ दिया लिहाजा अब मुहासरा बेकार है, येह कह कर कूच का नक्कारा बजा देने का हुक्म दे दिया और भाग निकला। क़बीलए गतफ़ान का लश्कर भी चल दिया बनू करीज़ा भी मुहासरा छोड़ कर अपने कल्ओं में चले आए और इन लोगों के भाग जाने से मदीने का मत्लअ कुफ्फार के गर्दो गुबार से साफ हो गया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 343 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 219* ༺❘
*❝ गज़्वए बनी क़रज़ा ❞*
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࿐ हुज़ूर ﷺ जंगे खन्दक से फ़ारिग हो कर अपने मकान में तशरीफ़ लाए और हथियार उतार कर गुस्ल फ़रमाया, अभी इतमीनान के साथ बैठे भी न थे कि ना गहां हज़रते जिब्रील عليه السلام तशरीफ़ लाए और कहा कि या रसूलल्लाह ﷺ आप ने हथियार उतार दिया लेकिन हम फ़िरिश्तों की जमाअत ने अभी तक हथियार नहीं उतारा है अल्लाह तआला का येह हुक्म है कि आप बनी कुरीजा की तरफ चलें क्यूं कि इन लोगों ने मुआहदा तोड़ कर अलानिया जंगे खन्दक़ में कुफ्फ़ार के साथ मिल कर मदीने पर हम्ला किया है। चुनान्चे हुजूर ﷺ ने एलान कर दिया कि लोग अभी हथियार न उतारें और बनी क़रीजा की तरफ रवाना हो जाएं, हुजूर ﷺ ने खुद भी हथियार जैबे तन फ़रमाया, अपने घोड़े पर जिस का नाम “लहीफ़” था सुवार हो कर लश्कर के साथ चल पड़े और बनी क़रीज़ा के एक कूंएं के पास पहुंच कर नुज़ूल फ़रमाया।
࿐ बनी क़रीज़ा भी जंग के लिये बिल्कुल तय्यार थे चुनान्चे जब हज़रते अली رضي الله عنه उन के कल्ओं के पास पहुंचे तो उन ज़ालिम और अह्द शिकन यहूदियों ने हुज़ूरे अकरम ﷺ को (मआज़अल्लाह) गालियां दीं हुज़ूर ﷺ ने उन के कुओं का मुहासरा फ़रमा लिया और तक़रीबन एक महीने तक येह मुहासरा जारी रहा यहूदियों ने तंग आ कर येह दर ख़्वास्त पेश की, कि “हज़रते सा'द बिन मुआज हमारे बारे में जो फ़ैसला कर दें वोह हमें मन्जूर है
࿐ हज़रते सा'द बिन मुआज जंगे खन्दक में एक तीर खा कर शदीद तौर पर ज़ख़्मी थे मगर इसी हालत में वो एक गधे पर सुवार हो कर बनी क़रीज़ा गए और उन्हों ने यहूदियों के बारे में ये फैसला फ़रमाया कि "लड़ने वाली फ़ौजों को क़त्ल कर दिया जाए, औरतें और बच्चे कैदी बना लिये जाएं और यहूदियों का माल व अस्बाब माले गनीमत बना कर मुजाहिदों में तक़सीम कर दिया जाए।" हुज़ूर ﷺ ने उन की ज़बान से येह फैसला सुन कर इर्शाद फ़रमाया कि यक़ीनन बिला शुबा तुम ने इन यहूदियों के बारे में वोही फ़ैसला सुनाया है जो अल्लाह का फ़ैसला है। इस फैसले के मुताबिक़ बनी करीजा की लड़ाका फ़ौजें क़त्ल की गई और औरतों बच्चों को कैदी बना लिया गया और उन के माल व सामान को मुजाहिदीने इस्लाम ने माले गनीमत बना लिया और इस शरीर व बद अहद क़बीले के शर्रो फ़साद से हमेशा के लिये मुसलमान पुर अम्न महफूज़ हो गए।
࿐ यहूदियों का सरदार हुयय बिन अख़्तब जब क़त्ल के लिय मक्तल में लाया गया तो उस ने क़त्ल होने से पहले येह अल्फ़ाज़ कहे कि ऐ मुहम्मद (ﷺ) ! ख़ुदा की क़सम ! मुझे इस का जरा भी अफ्सोस नहीं है कि मैं ने क्यूं तुम से अदावत की लेकिन हक़ीक़त येह है कि जो खुदा को छोड़ देता है, खुदा भी उस को छोड़ देता है, लोगो ! खुदा के हुक्म की तामील में कोई मुज़ायका नहीं बनी क़रीज़ा का क़त्ल होना येह एक हुक्मे इलाही था येह (तौरात) में लिखा हुवा था येह एक सज़ा थी जो खुदा ने बनी इस्राईल पर लिखी थी। हुयय बिन अख़्तब वोही बद नसीब है कि जब वोह मदीने से जिला वतन हो कर खैबर जा रहा था तो इस ने येह मुआहदा किया था कि नबी की मुखालफ़त पर मैं किसी को मदद न दूंगा और इस अहद पर इस ने खुदा को जामिन बनाया था लेकिन जंगे खन्दक़ के मौक़अ पर इस ने इस मुआहदे को किस तरह तोड़ डाला येह आप गुज़श्ता अवराक़ में पढ़ चुके कि इस जालिम ने तमाम कुफ़्फ़ारे अरब के पास दौरा कर के सब को मदीने पर हम्ला करने के लिये उभारा फिर बनू क़रीज़ा को भी मुआहदा तोड़ने पर उक्साया फिर खुद जंगे खन्दक में कुफ्फ़ार के साथ मिल कर लड़ाई में शामिल हुवा।
࿐ *सि. 5 हि. के मुतफ़र्रिक वाकिआत :-* (1) इस साल हुज़ूर ﷺ ने हज़रते बीबी ज़ैनब से निकाह फ़रमाया।
(2) इसी साल मुसलमान औरतों पर पर्दा फ़र्ज़ कर दिया गया।
(3) इसी साल हद्दे क़ज़फ़ (किसी पर जिना की तोहमत लगाने की सज़ा) और लिआन व जिहार के अहकाम नाज़िल हुए।
(4) इसी साल तयम्मुम की आयत नाज़िल हुई।
(5) इसी साल नमाज़े ख़ौफ़ का हुक्म नाज़िल हुवा।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 344 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 220* ༺❘
*❝ हिजरत का छटा साल ¶ बैअतुरिजवान व सुल्हे हुदैबिया ❞*
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࿐ इस साल के तमाम वाक़िआत में सब से जियादा अहम और शानदार वाकिआ "बैअतुर्रिज़वान" और "सुल्हे हुदैबिया" है तारीख़े इस्लाम में इस वाकिए की बड़ी अहम्मिय्यत है क्यूं कि इस्लाम की तमाम आयन्दा तरक्क़यों का राज़ इसी के दामन से वाबस्ता है येही वजह है कि गो ब ज़ाहिर येह एक मगलूबाना सुल्ह थी मगर कुरआने मजीद में खुदा वन्दे आलम ने इस को "फ़ल्हे मुबीन" का लक़ब अता फ़रमाया है।
࿐ जुल का'दह सि. 6 हि. में हुजूर ﷺ चौदह सो सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم के साथ उमरह का एहराम बांध कर मक्का के लिये रवाना हुए। हुजूर ﷺ को अन्देशा था कि शायद कुफ़्फ़ार हमें उमरह अदा करने से रोकेंगे इस लिये आपने पहले ही से क़बीलए खजाआ के एक शख़्स को मक्का भेज दिया था ताकि वोह कुफ्फ़ारे मक्का के इरादों की ख़बर लाए।
࿐ जब आप ﷺ का काफ़िला मक़ामे “अस्फ़ान" के करीब पहुंचा तो वोह शख़्स येह खबर ले कर आया कि कुफ्फ़ारे मक्का ने तमाम क़बाइले अरब के काफिरों को जम्अ कर के येह कह दिया है कि मुसलमानों को हरगिज़ हरगिज़ मक्का में दाख़िल न होने दिया जाए। चुनान्चे कुफ्फ़ारे कुरैश ने अपने तमाम हम नवा क़बाइल को जम्अ कर के एक फ़ौज तय्यार कर ली और मुसलमानों का रास्ता रोकने के लिये मक्का से बाहर निकल कर मकामे "बलदह" में पड़ाव डाल दिया। और ख़ालिद बिन अल वलीद और अबू जहल का बेटा इक्रमा येह दोनों दो सो चुने हुए सुवारों का दस्ता ले कर मक़ामे "ग़मीम" तक पहुंच गए।
࿐ जब हुजूर ﷺ को रास्ते में ख़ालिद बिन अल वलीद के सुवारों की गर्द नज़र आई तो आप ﷺ ने शाहराह से हट कर सफ़र शुरू कर दिया और आम रास्ते से कटकर आगे बढ़े और मक़ामे "हुदैबिया" में पहुंच कर पड़ाव डाला। यहां पानी की बेहद कमी थी एक ही कूंआं था वोह चन्द घन्टों ही में खुश्क हो गया जब सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم प्यास से बेताब होने लगे तो हुज़ूर ﷺ ने एक बड़े पियाले में अपना दस्ते मुबारक डाल दिया और आपकी मुक़द्दस उंगलियों से पानी का चश्मा जारी हो गया। फिर आपने खुश्क कूंएं में अपने वुज़ू का गसाला और अपना एक तीर डाल दिया कुंएं में इस कदर पानी उबल पड़ा कि पूरा लश्कर और तमाम जानवर उस कुंएं से कई दिनों तक सैराब होते रहे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 346📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 221* ༺❘
*❝ बैअतुरिजवान ❞*
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࿐ मक़ामे हुदैबिया में पहुंच कर हुज़ूर ﷺ ने येह देखा कि कुफ़्फ़ारे कुरैश का एक अज़ीम लश्कर जंग के लिये आमादा है और इधर येह हाल है कि सब लोग एहराम बांधे हुए हैं इस हालत में जूई भी नहीं मार सकते तो आप ने मुनासिब समझा कि कुफ्फ़ारे मक्का से मसालहत की गुफ्तगू करने के लिये किसी को मक्का भेज दिया जाए। चुनान्चे इस काम के लिये आप ने हज़रते उमर رضي الله عنه को मुन्तख़ब फ़रमाया। लेकिन उन्हों ने यह कह कर माज़िरत कर दी कि या रसूलल्लाह ﷺ! कुफ्फारे कुरैश मेरे बहुत ही सख़्त दुश्मन हैं और मक्का में मेरे क़बीले का कोई एक शख्स भी ऐसा नहीं है जो मुझ को उन काफ़िरों से बचा सके। येह सुन कर आप ने हज़रते उषमान رضي الله عنه को मक्का भेजा। उन्हों ने मक्का पहुंच कर कुफ्फ़ारे कुरैश को हुज़ूर ﷺ की तरफ से सुल्ह का पैगाम पहुंचाया।
࿐ हज़रते उषमान رضي الله عنه अपनी मालदारी और अपने क़बीले वालों की हिमायत व पासदारी की वजह से कुफ्फ़ारे कुरैश की निगाहों में बहुत ज़ियादा मुअज्ज़ज़ थे। इस लिये कुफ्फ़ारे कुरैश उन पर कोई दराज़ दस्ती नहीं कर सके। बल्कि उन से येह कहा कि हम आप को इजाजत देते हैं कि आप का'बे का तवाफ़ और सफ़ा व मर्वह की सअय कर के अपना उमरह अदा कर लें मगर हम मुहम्मद (ﷺ) को कभी हरगिज़ हरगिज़ का'बे के क़रीब न आने देंगे। हज़रते उषमान رضی الله تعالی عنه ने इनकार कर दिया और कहा कि मैं बिगैर रसूलुल्लाह ﷺ को साथ लिये बगैर कभी हरगिज़ हरगिज़ अकेले अपना उमरह नहीं अदा कर सकता। इस पर बात बढ़ गई और कुफ्फार ने आपको मक्का में रोक लिया। मगर हुदैबिया के मैदान में येह ख़बर मशहूर हो गई कि कुफ्फ़ारे कुरैश ने उन को शहीद कर दिया।
࿐ हुजूर ﷺ को जब येह ख़बर पहुंची तो आपने फ़रमाया कि उषमान के खून का बदला लेना फ़र्ज़ है। येह फ़रमा कर आप बबूल के दरख़्त के नीचे बैठ गए और सहाबए किराम से फ़रमाया कि तुम सब लोग मेरे हाथ पर इस बात की बैअत करो कि आखिरी दम तक तुम लोग मेरे वफ़ादार और जां निषार रहोगे। तमाम सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم ने निहायत ही वल्वला अंगेज़ जोशो खरोश के साथ जां निषारी का अह्द करते हुए हुजुर ﷺ के दस्ते हक़ परस्त पर बैअत कर ली। येही वोह बैअत है जिस का नाम तारीखे इस्लाम में "बैअतुर्रिजवान" है।
࿐ हज़रते हक़ ने इस बैअत और इस दरख़्त का तज़किरा कुरआने मजीद की सूरए फ़तह में इस तरह फ़रमाया है कि _यकीनन जो लोग (ऐ रसूल) तुम्हारी बैअत करते हैं वोह तो अल्लाह ही से बैअत करते हैं उन के हाथों पर अल्लाह का हाथ है।
࿐ इसी सूरए फ़त्ह में दूसरी जगह इन बैअत करने वालों की फ़ज़ीलत और इन के अज्रो षवाब का कुरआने मजीद में इस तरह खुत्बा पढ़ा कि : बेशक अल्लाह राजी हुवा ईमान वालों से जब वोह दरख़्त के नीचे तुम्हारी बैअत करते थे तो अल्लाह ने जाना जो उन के दिलों में है फिर उन पर इत्मीनान उतार दिया और उन्हें जल्द आने वाली फत्ह का इन्आम दिया। लेकिन "बैअतुर्रिजवान" हो जाने के बाद पता चला कि हज़रते उषमान की शहादत की ख़बर ग़लत थी। वोह बा इज्ज़त तौर पर मक्का में ज़िन्दा व सलामत थे और फिर वोह बखैरो आफ़िय्यत हुजूर ﷺ की ख़िदमते अक्दस में हाज़िर भी हो गए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 347 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 222* ༺❘
*❝ सुल्हे हुदैबिया क्यूंकर हुई #01 ❞*
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࿐ हुदैबिया में सब से पहला शख्स जो हुजुर ﷺ की ख़िदमत में हाज़िर हुवा वोह बदील बिन वरकाअ खज़ाई था। उन का क़बीला अगर्चे अभी तक मुसलमान नहीं हुवा था मगर येह लोग हुजुर ﷺ के हलीफ़ और इनतिहाई मुख़्लिस व खैर ख़्वाह थे। बदील बिन वरकाअ ने आप को खबर दी कि कुफ़्फ़ारे कुरैश ने कषीर तादाद में फ़ौज जम्अ कर ली है और फ़ौज के साथ राशन के लिये दूध वाली ऊंटनियां भी हैं। येह लोग आप से जंग करेंगे और आप को ख़ानए काबा तक नहीं पहुंचने देंगे।
࿐ हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि तुम कुरैश को मेरा येह पैग़ाम पहुंचा दो कि हम जंग के इरादे से नहीं आए हैं और न हम जंग चाहते हैं। हम यहां सिर्फ उमरह अदा करने की गरज से आए हैं। मुसल्सल लड़ाइयों से कुरैश को बहुत काफ़ी जानी व माली नुक्सान पहुंच चुका है। लिहाजा उन के हक़ में भी येही बेहतर है कि वोह जंग न करें बल्कि मुझ से एक मुद्दते मुअय्यना तक के लिये सुल्ह का मुआहदा कर लें और मुझ को अहले अरब के हाथ में छोड़ दें। अगर कुरैश मेरी बात मान लें तो बेहतर होगा और अगर उन्हों ने मुझ से जंग की तो मुझे उस जात की क़सम है जिस के क़ब्ज़ए कुदरत में मेरी जान है कि मैं उन से उस वक्त तक लडूंगा कि मेरी गरदन मेरे बदन से अलग हो जाए।
࿐ बदील बिन वरकाअ आप का येह पैग़ाम ले कर कुफ्फ़ारे कुरैश के पास गया और कहा कि मैं मुहम्मद ﷺ का एक पैग़ाम ले कर आया हूं। अगर तुम लोगों की मरज़ी हो तो मैं उन का पैग़ाम तुम लोगों को सुनाऊं। कुफ्फ़ारे कुरैश के शरारत पसन्द लौंडे जिन का जोश उन के होश पर गालिब था शोर मचाने लगे कि नहीं ! हरगिज़ नहीं ! हमें उन का पैगाम सुनने की कोई जरूरत नहीं। लेकिन कुफ्फारे कुरैश के सन्जीदा और समझदार लोगों ने पैगाम सुनाने की इजाजत दे दी और बदील बिन वरकाअ ने हुज़ूर ﷺ की दावते सुल्ह को उन लोगों के सामने पेश कर दिया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 350 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 223* ༺❘
*❝ सुल्हे हुदैबिया क्यूंकर हुई #02 ❞*
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࿐ बदील बिन वरकाअ ने हुज़ूर ﷺ की दावते सुल्ह को उन लोगों के सामने पेश कर दिया। येह सुन कर क़बीलए कुरैश का एक बहुत ही मुअम्मर और मुअज्जज सरदार उर्वह बिन मसऊद सक़फ़ी खड़ा हो गया और उस ने कहा कि ऐ कुरैश ! क्या मैं तुम्हारा बाप नहीं ? सब ने कहा कि क्यूं नहीं। फिर उस ने कहा कि क्या तुम लोग मेरे बच्चे नहीं ? सब ने कहा कि क्यूं नहीं। फिर उस ने कहा कि मेरे बारे में तुम लोगों को कोई बद गुमानी तो नहीं ? सब ने कहा कि नहीं ! हरगिज़ नहीं। इस के बाद उर्वह बिन मसऊद ने कहा कि मुहम्मद (ﷺ) ने बहुत ही समझदारी और भलाई की बात पेश कर दी। लिहाज़ा तुम लोग मुझे इजाजत दो कि मैं उन से मिल कर मुआमलात तै करूं। सब ने इजाज़त दे दी कि बहुत अच्छा ! आप जाइये। उर्वह बिन मसऊद वहां से चल कर हुदैबिया के मैदान में पहुंचा और हुजूर ﷺ को मुखातब कर के येह कहा कि बदील बिन वरकाअ की ज़बानी आप का पैग़ाम हमें मिला। ऐ मुहम्मद (ﷺ) मुझे आप से येह कहना है कि अगर आप ने लड़ कर कुरैश को बरबाद कर के दुन्या से नेस्तो नाबूद कर दिया तो मुझे बताइये कि क्या आप से पहले कभी किसी अरब ने अपनी ही क़ौम को बरबाद किया है ? और अगर लड़ाई में कुरैश का पल्ला भारी पड़ा तो आप के साथ जो येह लश्कर है मैं इन में ऐसे चेहरों को देख रहा हूं कि येह सब आप को तन्हा छोड़ कर भाग जाएंगे। उर्वह बिन मसऊद का येह जुम्ला सुन कर हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه को सब्रो ज़ब्त की ताब न रही। उन्हों ने तड़प कर कहा कि ऐ उर्वह ! चुप हो जा ! अपनी देवी "लात" की शर्मगाह चूस, क्या हम भला अल्लाह के रसूल को छोड़ कर भाग जाएंगे।
࿐ उर्वह बिन मसऊद ने तअज्जुब से पूछा कि येह कौन शख़्स है ? लोगों ने कहा कि “येह अबू बक्र हैं।" उर्वह बिन मसऊद ने कहा कि मुझे उस जात की क़सम जिस के कब्जे में मेरी जान है, ऐ अबू बक्र ! अगर तेरा एक एहसान मुझ पर न होता जिस का बदला मैं अब तक तुझ को नहीं दे सका हूं तो मैं तेरी इस तल्ख़ गुफ्तगू का जवाब देता। उर्वह बिन मसऊद अपने को सब से बड़ा आदमी समझता था। इस लिये जब भी वोह हुज़ूर ﷺ से कोई बात कहता तो हाथ बढ़ा कर आप की रीश मुबारक पकड़ लेता था और बार बार आप की मुक़द्दस दाढ़ी पर हाथ डालता था। हज़रते मुगीरा बिन शअबा जो नंगी तलवार ले कर हुज़ूर ﷺ के पीछे खड़े थे। वोह उर्वह बिन मसऊद की इस जुरअत और हरकत को बरदाश्त न कर सके। उर्वह मसऊद जब रीश मुबारक की तरफ़ हाथ बढ़ाता तो वोह तलवार का क़ब्ज़ा उस के हाथ पर मार कर उस से कहते कि रीश मुबारक से अपना हाथ हटा ले। उर्वह बिन मसऊद ने अपना सर उठाया और पूछा की ये कौन आदमी है ? लोगों ने बताया कि येह मुग़ीरा बिन शअबा हैं। तो उर्वह बिन मसऊद ने डांट कर कहा कि ऐ दगाबाज़ ! क्या मैं तेरी अहद शिकनी को संभालने की कोशिश नहीं कर रहा हूं ? (हज़रते मुग़ीरा बिन शअबा ने चन्द आदमियों को क़त्ल कर दिया था जिस का खून बहा उर्वह बिन मसऊद ने अपने पास से अदा किया था येह उसी तरफ़ इशारा था) इस के बाद उर्वह बिन मसऊद सहाबए किराम को देखने लगा और पूरी लश्कर गाह को देखभाल कर वहां से रवाना हो गया।
࿐ उर्वह बिन मसऊद ने हुदैबिया के मैदान में सहाबए किराम की हैरत अंगेज़ और तअज्जुब खैज़ अकीदत व महब्बत का जो मन्ज़र देखा था उस ने इस के दिल पर बड़ा अजीब अषर डाला था। चुनान्चे उस ने कुरैश के लश्कर में पहुंच कर अपना तअष्पुर बयान किया उस की तफ्सील अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 352 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 224* ༺❘
*❝ सुल्हे हुदैबिया क्यूंकर हुई #03 ❞*
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࿐ उर्वह बिन मसऊद ने हुदैबिया के मैदान में सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم की हैरत अंगेज़ और तअज्जुब खैज़ अकीदत व महब्बत का जो मन्ज़र देखा था उस ने इस के दिल पर बड़ा अजीब अषर डाला था। चुनान्चे उस ने कुरैश के लश्कर में पहुंच कर अपना तअष्पुर इन लफ्ज़ों में बयान किया : “ऐ मेरी क़ौम ! खुदा की क़सम ! जब मुहम्मद (ﷺ) अपना खंखार थूकते हैं तो वोह किसी न किसी सहाबी की हथेली में पड़ता है और वोह फ़र्ते अकीदत से उस को अपने चेहरे और अपनी खाल पर मल लेता है। और अगर वोह किसी बात का उन लोगों को हुक्म देते हैं तो सब के सब उस की तामील के लिये झपट पड़ते हैं। और वो जब वुज़ू करते है तो उनके असहाब उनके वुज़ू के धोवन को इस तरह लिटते है कि गोया उनमे तलवार चल पड़ेगी और वो जब कोई गुफ़्तगू करते हैं तो तमाम असहाब ख़ामोश हो जाते हैं। और उन के साथियों के दिलों में उन की इतनी जबर दस्त अजमत है कि कोई शख़्स उन की तरफ़ नज़र भर देख नहीं सकता। ऐ मेरी क़ौम ! खुदा की क़सम ! मैं ने बहुत से बादशाहों का दरबार देखा है। मैं कैसरो किस्रा और नज्जाशी के दरबारों में भी बारयाब हो चुका हूं। मगर खुदा की क़सम ! मैं ने किसी बादशाह के दरबारियों को अपने बादशाह की इतनी ता'ज़ीम करते हुए नहीं देखा है जितनी ता'ज़ीम मुहम्मद (ﷺ) के साथी मुहम्मद (ﷺ) की करते हैं।"
࿐ उर्वह बिन मसऊद की येह गुफ्तगू सुन कर क़बीलए बनी किनाना के एक शख़्स ने जिस का नाम "हलीस" था, कहा कि तुम लोग मुझ को इजाज़त दो कि मैं उन के पास जाऊं। कुरैश ने कहा कि “ज़रूर जाइये।” चुनान्चे येह शख़्स जब बारगाहे रिसालत करीब पहुंचा तो आप ﷺ ने सहाबा से फ़रमाया कि येह फुला शख़्स है और येह उस क़ौम से तअल्लुक रखता है जो कुरबानी के जानवरों की ताज़ीम करते हैं। लिहाजा तुम लोग कुरबानी के जानवरों को इस के सामने खड़ा कर दो और सब लोग "लब्बैक" पढ़ना शुरूअ कर दो। उस शख़्स ने जब कुरबानी के जानवरों को देखा और एहराम की हालत में सहाबए किराम को "लब्बैक" पढ़ते हुए सुना तो कहा कि ! भला इन लोगों को किस तरह मुनासिब है कि बैतुल्लाह से रोक दिया जाए? वोह फ़ौरन ही पलट कर कुफ़्फ़ारे कुरैश के पास पहुंचा और कहा कि मैं अपनी आंखों से देख कर आ रहा हूं कि कुरबानी के जानवर उन लोगों के साथ हैं और सब एहराम की हालत में हैं। लिहाजा मैं कभी भी येह राय नहीं दे सकता कि उन लोगों को खानए का'बा से रोक दिया जाए।
࿐ इस के बाद एक शख्स कुफ्फारे कुरैश के लश्कर में से खड़ा हो गया जिस का नाम मकरज़ बिन हफ्स था उस ने कहा कि मुझ को तुम लोग वहां जाने दो।
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 225* ༺❘
*❝ सुल्हे हुदैबिया क्यूंकर हुई #04 ❞*
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࿐ इस के बाद एक शख्स कुफ्फारे कुरैश के लश्कर में से खड़ा हो गया जिस का नाम मकरज़ बिन हफ्स था उस ने कहा कि मुझ को तुम लोग वहां जाने दो। कुरैश ने कहा : “तुम भी जाओ" चुनान्चे येह चला। जब येह नज़्दीक पहुंचा तो हुजूर ﷺ ने फ़रमाया कि येह मकरज़ है। बहुत ही लुच्चा आदमी है। उस ने आप ﷺ से गुफ्तगू शुरू की। अभी उस की बात पूरी भी न हुई थी कि ना गहां "सुहैल बिन अम्र" आ गया उस को देख कर आप ﷺ ने नेक फाली के तौर पर येह फ़रमाया कि सुहैल आ गया, लो ! अब तुम्हारा मुआमला सहल हो गया। चुनान्चे सहल ने आते ही कहा कि आइये हम और आप अपने और आप के दरमियान मुआहदा की एक दस्तावेज़ लिख लें। हुज़ूर ﷺ ने इस को मन्जूर फ़रमा लिया और हज़रते अली رضی الله تعالی عنه को दस्तावेज़ लिखने के लिये तलब फ़रमाया। सुहैल बिन अम्र और हुजूर ﷺ के दरमियान देर तक सुल्ह के शराइत पर गुफ़्तगू होती रही। बिल आखिर चन्द शर्तों पर दोनों का इत्तिफ़ाक़ हो गया।
࿐ हुजूर ﷺ ने हज़रते अली رضی الله تعالی عنه से इरशाद फ़रमाया कि लिखो सुहैल ने कहा कि हम “रहमान” को नहीं जानते कि येह क्या है ? आप "باسمک اللھم" लिखवाइये जो हमारा और आप का पुराना दस्तूर रहा है। मुसलमानों ने कहा कि हम بسم االلہ الرحمن الرحیم के सिवा कोई दूसरा लफ्ज़ नहीं लिखेंगे। मगर हुजूर ﷺ ने सुहैल की बात मान ली और फ़रमाया कि अच्छा। ऐ अली باسمک اللھم ही लिख दो। फिर हुजुर ﷺ ने येह ईबारत लिखवाई "येह वोह शराइत हैं जिन पर कुरैश के साथ मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह ﷺ ने सुल्ह का फैसला किया।" सुहैल फिर भड़क गया और कहने लगा कि खुदा की क़सम ! अगर हम जान लेते कि आप अल्लाह के रसूल हैं तो न हम आप को बैतुल्लाह से रोकते न आप के साथ जंग करते लेकिन आप "मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह" लिखिये। आपने फ़रमाया कि खुदा की कसम ! मैं मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह ﷺ भी हूं और मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह भी हूं। येह और बात है कि तुम लोग मेरी रिसालत को झुटलाते हो।
࿐ येह कह कर आप ﷺ ने हज़रते अली से फ़रमाया कि मुहम्मदर्रसूलुल्लाह ﷺ को मिटा दो और इस जगह मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह लिख दो। हज़रते अली رضی الله تعالی عنه से ज़ियादा कौन मुसलमान आपका फ़रमां बरदार हो सकता है ? लेकिन महब्बत के आलम में कभी कभी ऐसा मक़ाम भी आ जाता है कि सच्चे मुहिब को भी अपने महबूब की फ़रमां बरदारी से महब्बत ही के जज़्बे में इन्कार करना पड़ता है। हजरते अली رضی الله تعالی عنه ने अर्ज किया कि या रसूलल्लाह ﷺ! मैं आप के नाम को तो कभी हरगिज़ हरगिज़ नहीं मिटाऊंगा। आप ﷺ ने फ़रमाया कि अच्छा मुझे दिखाओ मेरा नाम कहां है। हज़रते अली رضی الله تعالی عنه ने उस जगह पर उंगली रख दी। आप ﷺ ने वहां से “रसूलुल्लाह” का लफ्ज़ मिटा दिया। बहर हाल सुल्ह की तहरीर मुकम्मल हो गई। इस दस्तावेज़ में येह तै कर दिया कि फ़रीकैन के दरमियान दस साल तक लड़ाई बिल्कुल मौकूफ़ रहेगी। सुल्ह नामा की बाक़ी दफ्आत और शर्तें येह थीं कि :
࿐ (1) मुसलमान इस साल बिगैर उमरह अदा किये वापस चले जाएं।
࿐ (2) आयन्दा साल उमरह के लिये आएं और सिर्फ तीन दिन मक्क ठहर कर वापस चले जाएं।
࿐ (3) तलवार के सिवा कोई दूसरा हथियार ले कर न आएं। तलवार भी नियाम के अन्दर रख कर थेले वगैरा में बन्द हो।
࿐ (4) मक्का में जो मुसलमान पहले से मुकीम हैं उन में से किसी को अपने साथ न ले जाएं और मुसलमानों में से अगर कोई मक्का में रहना चाहे तो उस को न रोकें।
࿐ (5) काफ़िरों या मुसलमानों में से कोई शख़्स अगर मदीना चला जाए तो वापस कर दिया जाए लेकिन अगर कोई मुसलमान मदीने से मक्का में चला जाए तो वोह वापस नहीं किया जाएगा।
࿐ (6) क़बाइले अरब को इख़्तियार होगा कि वोह फ़रीकैन में से जिस के साथ चाहें दोस्ती का मुआहदा कर लें।
࿐ येह शर्तें जाहिर है कि मुसलमानों के सख्त ख़िलाफ़ थीं और सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم को इस पर बड़ी ज़बरदस्त नागवारी हो रही थी मगर वोह फ़रमाने रिसालत के ख़िलाफ़ दम मारने से मजबूर थे।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 354 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 226* ༺❘
*❝ सुल्हे हुदैबिया ¶ हज़रते अबू जन्दल का मुआमला #01 ❞*
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࿐ येह अजीब इत्तिफ़ाक़ है कि मुआहदा लिखा जा चुका था लेकिन अभी इस पर फ़रीकैन के दस्तखत नहीं हुए थे कि अचानक के इसी सुहैल बिन अम्र के साहिब जादे हज़रते अबू जन्दल رضي الله عنه अपनी बेड़ियां घसीटते हुए गिरते पड़ते हुदैबिया में मुसलमानों के दरमियान आन पहुंचे। सुहैल बिन अम्र अपने बेटे को देख कर कहने लगा कि ऐ मुहम्मद (ﷺ) इस मुआहदे की दस्तावेज़ पर दस्तखत करने के लिये मेरी पहली शर्त येह है कि आप अबू जन्दल को मेरी तरफ वापस लौटाइये। आप ﷺ ने फ़रमाया कि अभी तो इस मुआहदे पर फरीकैन के दस्तखत ही नहीं हुए हैं। हमारे और तुम्हारे दस्तखत हो जाने के बाद येह मुआहदा नाफ़िज़ होगा। येह सुन कर सुहैल बिन अम्र कहने लगा कि फिर जाइये। मैं आप से कोई सुल्ह नहीं करूंगा। आप ﷺ ने फ़रमाया कि अच्छा ऐ सुहैल ! तुम अपनी तरफ से इजाजत दे दो कि मैं अबू जन्दल को अपने पास रख लूं। उस ने कहा कि मैं हरगिज़ कभी इस की इजाज़त नहीं दे सकता। हज़रते अबू जन्दल رضی الله تعالی عنه ने जब देखा कि मैं फिर मक्का लौटा दिया जाऊंगा तो उन्हों ने मुसलमानों से फ़रियाद की और कहा कि ऐ जमाअते मुस्लिमीन ! देखो मैं मुशरिकीन की तरफ लौटाया जा रहा हूं हालां कि मैं मुसलमान हूं और तुम मुसलमानों के पास आ गया हूं। कुफ्फ़ार की मार से उन के बदन पर चोटों के जो निशानात थे उन्हों ने उन निशानात को दिखा दिखा कर मुसलमानों को जोश दिलाया।
࿐ हज़रते उमर رضي الله عنه पर हज़रते अबू जन्दल की तकरीर सुन कर ईमानी जज्बा सुवार हो गया और वोह दन्दनाते हुए बारगाहे रिसालत में पहुंचे और अर्ज किया कि क्या आप सचमुच अल्लाह के रसूल नहीं हैं ? इर्शाद फ़रमाया कि क्यूं नहीं ? उन्हों ने कहा कि क्या हम हक़ पर और हमारे दुश्मन बातिल पर नहीं हैं ? इर्शाद फ़रमाया कि क्यूं नहीं ? फिर उन्हों ने कहा कि तो फिर हमारे दीन में हम को येह जिल्लत क्यूं दी जा रही है ? आप ﷺ ने फ़रमाया कि ऐ उमर ! मैं अल्लाह का रसूल हूं । मैं उस की ना फ़रमानी नहीं करता हूं। वोह मेरा मददगार है। फिर हज़रते उमर ने अर्ज किया कि या रसूलल्लाह ﷺ! क्या आप हम से येह वादा न फ़रमाते थे कि हम अन क़रीब बैतुल्लाह में आ कर तवाफ़ करेंगे ? इर्शाद फ़रमाया कि क्या मैं ने तुम को येह ख़बर दी थी कि हम इसी साल बैतुल्लाह में दाखिल होंगे ? उन्हों ने कहा कि "नहीं" आप ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया कि मैं फिर कहता हूं कि तुम यक़ीनन काबे में पहुंचोगे और उस का तवाफ़ करोगे।
࿐ दरबारे रिसालत से उठ कर हज़रते उमर हजरते अबू बक्र सिद्दीक़ के पास आए...बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 227* ༺❘
*❝ सुल्हे हुदैबिया ¶ हज़रते अबू जन्दल का मुआमला #02 ❞*
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࿐ दरबारे रिसालत से उठ कर हज़रते उमर رضي الله عنه हजरते अबू बक्र सिद्दीक़ رضي الله عنه के पास आए और वोही गुफ्तगू की जो बारगाहे रिसालत में अर्ज़ कर चुके थे। आप رضي الله عنه ने फ़रमाया कि ऐ उमर ! वोह खुदा के रसूल हैं। वह अल्लाह तआला ही के हुक्म से करते हैं वोह कभी खुदा की नाफरमानी नहीं करते और खुदा उन का मददगार है और खुदा की क़सम ! यक़ीनन वोह हक़ पर हैं लिहाज़ा तुम उन की रिकाब थामे रहो, हज़रते उमर رضي الله عنه को तमाम उम्र इन बातों का सदमा और सख्त रन्ज व अफ्सोस रहा जो उन्हों ने जज़्बए बे इख़्तियारी में हुज़ूर ﷺ से कह दी थीं। जिन्दगी भर वोह इस से तौबा व इस्तिगफार करते रहे और इस के कफ़्फ़ारे के लिये उन्हों ने नमाजें पढ़ीं, रोज़े रखे, खैरात की, गुलाम आज़ाद किये। बुखारी शरीफ़ में अगर्चे इन आमाल का मुफ़स्सल तज़किरा नहीं है, इज्मालन ही ज़िक्र है लेकिन दूसरी किताबों में निहायत तफ्सील के साथ येह तमाम बातें बयान की गई हैं।
࿐ बहर हाल येह बड़े सख़्त इम्तिहान और आज्माइश का वक्त था। एक तरफ़ हज़रते अबू जन्दल رضی الله تعالی عنه गिड़गिड़ा कर मुसलमानों से फ़रियाद कर रहे हैं और हर मुसलमान इस क़दर जोश में भरा हुवा है कि अगर रसूलुल्लाह ﷺ का अदब मानेअ न होता तो मुसलमानों की तलवारें नियाम से बाहर निकल पड़तीं। दूसरी तरफ़ मुआहदे पर दस्तखत हो चुके हैं और अपने अहद को पूरा करने की ज़िम्मादारी सर पर आन पड़ी है। हुज़ूरे अन्वर ﷺ ने मौकअ की नजाकत का ख़याल फ़रमाते हुए हज़रते अबू जन्दल से फ़रमाया कि तुम सब्र करो। अन क़रीब अल्लाह तआला तुम्हारे लिये और दूसरे मज़्लूमों के लिये ज़रूर ही कोई रास्ता निकालेगा। हम सुल्ह का मुआहदा कर चुके अब हम इन लोगों से बद अह्दी नहीं कर सकते। गरज हज़रते अबू जन्दल को इसी तरह पा ब जन्जीर फिर मक्का वापस जाना पड़ा।
࿐ जब सुल्हू नामा मुकम्मल हो गया तो हुजुर ﷺ ने सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم को हुक्म दिया कि उठो और कुरबानी करो और सर मुंडा कर एहराम खोल दो। मुसलमानों की ना गवारी और उन के गैज़ो ग़ज़ब का येह आलम था कि फ़रमाने नबवी सुन कर एक शख्स भी नहीं उठा। मगर अदब के ख़याल से कोई एक लफ्ज़ बोल भी न सका। आप ﷺ ने हज़रते बीबी उम्मे सलमह رضی الله تعالی عنها से इस का तजकिरा फ़रमाया तो उन्हों ने अर्ज़ किया कि मेरी राय येह है कि आप किसी से कुछ भी न कहें और खुद आप अपनी कुरबानी कर लें और बाल तरश्वा लें। चुनान्चे आप ﷺ ने ऐसा ही किया। जब सहाबए किराम ने आप को कुरबानी कर के एहराम उतारते देख लिया तो फिर वोह लोग मायूस हो गए कि अब आप अपना फैसला नहीं बदल सकते तो सब लोग कुरबानी करने लगे और एक दूसरे के बाल तराश्ने लगे मगर इस कदर रंजो गम में भरे हुए थे कि ऐसा मालूम होता था कि एक दूसरे को क़त्ल कर डालेगा। इस के बाद रसूलुल्लाह ﷺ अपने असहाब के साथ मदीना के लिये रवाना हो गए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 358 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 228* ༺❘
*❝ सुल्हे हुदैबिया ¶ फत्हे मुबीन ❞*
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࿐ इस सुल्हू को तमाम सहाबा رضی الله تعالی عنهم ने एक मगलूबाना सुल्ह और जिल्लत आमेज़ मुआहदा समझा और हज़रते उमर رضی الله تعالی عنه को इस से जो रन्ज़ व सदमा गुज़रा वोह आप पढ़ चुके। मगर इस के बाद येह आयत नाज़िल हुई कि : ऐ हबीब! हम ने आप को फ़त्हे मुबीन अता की।
࿐ ख़ुदा वन्दे कुद्दूस ने इस सुल्ह को "फत्हे मुबीन" बताया। हज़रते उमर رضی الله تعالی عنه ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह (ﷺ) ! क्या येह "फ़त्ह" है ? आप ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि "हां! येह फत्ह है।"
࿐ गो उस वक़्त इस सुल्ह नामे के बारे में सहाबा رضی الله تعالی عنهم के ख्यालात अच्छे नहीं थे। मगर इस के बाद के वाक़िआत ने बता दिया कि दर हक़ीक़त येही सुल्ह तमाम फुतूहात की कुन्जी साबित हुई और सब ने मान लिया कि वाकेई सुल्हे हुदैबिया एक ऐसी फ़त्हे मुबीन थी जो मक्का में इशाअते इस्लाम बल्कि फ़त्हें मक्का का ज़रीआ बन गई। अब तक मुसलमान और कुफ़्फ़ार एक दूसरे से अलग थलग रहते थे एक दूसरे से मिलने जुलने का मौका ही नहीं मिलता था मगर इस सुल्हू की वजह से एक दूसरे के यहां आमदो रफ़्त आज़ादी के साथ गुप्तो शुनीद और तबादिलए ख्यालात का रास्ता खुल गया।
࿐ कुफ़्फ़ार मदीना आते और महीनों ठहर कर मुसलमानों के किरदार व आ'माल का गहरा मुतालआ करते। इस्लामी मसाइल और इस्लाम की खूबियों का तज़किरा सुनते जो मुसलमान मक्का जाते वोह अपने चाल चलन, इफ्फत शिआरी और इबादत गुज़ारी से कुफ़्फ़ार के दिलों पर इस्लाम की खूबियों का ऐसा नक्श बिठा देते कि खुद बखुद कुफ्फार इस्लाम की तरफ माइल होते जाते थे। चुनान्चे तारीख गवाह है कि सुल्हे हुदैबिया से कहे मक्का तक इस क़दर कसीर तादाद में लोग मुसलमान हुए कि इतने कभी नहीं हुए थे। चुनाचे हज़रते खालिद बिन अल-वलीद (फातेहे शाम) और हज़रते अम्र बिन अल-आस (फातेह मिस्र) भी इसी ज़माने में खुद बखुद मक्का से मदीना जा कर मुसलमान हुए! رضی الله تعالی عنهما
࿐ *मज़्लूमीने मक्का :-* हिजरत के बाद जो लोग मक्का में मुसलमान हुए उन्हों ने कुफ्फार के हाथों बड़ी बड़ी मुसीबतें बरदाश्त की उन को जन्जीरों में बांध बांध कर कुफ्फार कोड़े मारते थे लेकिन जब भी उन में से कोई शख्स मौक पाता तो छुप कर मदीने आ जाता था। सुल्हे हुदैबिया ने इस का दरवाजा बन्द कर दिया क्यूं कि इस सुल्ह नामे में येह शर्त तहरीर थी कि मक्का से जो शख्स भी हिजरत कर के मदीने जाएगा वोह फिर मक्का वापस भेज दिया जाएगा।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 360 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 229* ༺❘
*❝ हज़रते अबू बसीर का कारनामा ❞*
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࿐ सुल्हे हुदैबिया से फ़ारिग हो कर जब हुजूर ﷺ मदीना वापस तशरीफ़ लाए तो सब से पहले जो बुजुर्ग मक्का से हिजरत कर के मदीना आए वोह हज़रते अबू बसीर رضي الله عنه थे। कुफ़्फ़ारे मक्का ने फ़ौरन ही दो आदमियों को मदीना भेजा कि हमारा आदमी वापस कर दीजिये। हुजूर ﷺ ने हज़रते अबू बसीर رضی الله تعالی عنه से फ़रमाया कि "तुम मक्के चले जाओ, तुम जानते हो कि हम ने कुफ़्फ़ारे कुरैश से मुआहदा कर लिया है और हमारे दीन में अह्द शिकनी और गद्दारी जाइज़ नहीं है।" हज़रते अबू बसीर ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ! क्या आप मुझ को काफ़िरों के हवाले फ़रमाएंगे ताकि वोह मुझ को कुफ्र पर मजबूर करें ? आप ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया कि तुम जाओ ! खुदा वन्दे करीम तुम्हारी रिहाई का कोई सबब बना दोनों देगा। आखिर मजबूर हो कर हज़रते अबू बसीर رضی الله تعالی عنه काफ़िरों की हिरासत में मक्का वापस हो गए। लेकिन जब मक़ामे "जुल हलीफ़ा" में पहुंचे तो सब खाने के लिये बैठे और बातें करने लगे। हज़रते अबू बसीर ने एक काफ़िर से कहा कि अजी ! तुम्हारी तलवार बहुत अच्छी मालूम होती है। उस ने खुश हो कर नियाम से तलवार निकाल कर दिखाई और कहा कि बहुत ही उम्दा तलवार है और मैं ने बारहा लड़ाइयों में इस का तजरिबा किया है। हज़रते अबू बसीर ने कहा कि ज़रा मेरे हाथ में तो दो। मैं भी देखूं कि कैसी तलवार है ? उस ने उन के हाथ में तलवार दे दी। उन्हों ने तलवार हाथ में ले कर इस ज़ोर से तलवार मारी कि काफ़िर की गरदन कट गई और उस का सर दूर जा गिरा। उस के साथी ने जो येह मन्ज़र देखा तो वोह सर पर पैर रख कर भागा और सरपट दौड़ता हुवा मदीना पहुंचा और मस्जिदे नबवी में घुस गया।
࿐ हुज़ूर ﷺ ने उसको देखते ही फ़रमाया कि येह शख़्स ख़ौफ़ज़दा मा'लूम होता है। उस ने हांपते कांपते बारगाहे नुबुव्वत में अर्ज किया कि मेरे साथी को अबू बसीर ने कत्ल कर दिया और मैं भी ज़रूर मारा जाऊंगा। इतने में हज़रते अबू बसीर رضی الله تعالی عنه भी नंगी तलवार हाथ में लिये हुए आन पहुंचे और अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ ! अल्लाह तआला ने आप की ज़िम्मादारी पूरी कर दी क्यूं कि सुल्ह नामा की शर्त के ब मूजिब आप ने तो मुझ को वापस कर दिया। अब येह अल्लाह तआला की मेहरबानी है कि उस ने मुझ को उन काफ़िरों से नजात दे दी। हुजुर ﷺ को इस वाक़िए से बड़ा रन्ज पहुंचा और आप ने खफा हो कर फ़रमाया कि "इस की मां मरे ! येह तो लड़ाई भड़का देगा। काश ! इस के साथ कोई आदमी होता जो इस को रोकता।"
࿐ हज़रते अबू बसीर رضی الله تعالی عنه इस जुम्ले से समझ गए कि मैं फिर काफ़िरों की तरफ़ लौटा दिया जाऊंगा, इस लिये वोह वहां से चुपके से खिसक गए और साहिले समुन्दर के करीब मक़ामे “ऐस" में जा कर ठहरे। उधर मक्का से हज़रते अबू जन्दल अपनी जन्जीर काट कर भागे और वोह भी वहीं पहुंच गए। फिर मक्का के दूसरे मज़्लूम मुसलमानों ने भी मौक़अ पा कर कुफ्फ़ार की कैद से निकल निकल कर यहां पनाह लेनी शुरू कर दी। यहां तक कि इस जंगल में सत्तर आदमियों की जमाअत जम्अ हो गई। कुफ्फ़ारे कुरैश के तिजारती क़ाफ़िलों का येही रास्ता था। जो क़ाफ़िला भी आमदो रफ्त में यहां से गुज़रता, येह लोग उस को लूट लेते। यहां तक कि कुफ्फ़ारे कुरैश की नाक में दम कर दिया। बिल आखिर कुफ्फ़ारे कुरैश ने खुदा और रिश्तेदारी का वासिता देकर हुजुर ﷺ को खत लिखा कि हम सुल्ह नामा में अपनी शर्त से बाज़ आए। आप लोगों को साहिले समुन्दर से मदीना बुला लीजिये और अब हमारी तरफ से इजाज़त है कि जो मुसलमान भी मक्के से भाग कर मदीना जाए आप उस को मदीने में ठहरा लीजिये। हमें इस पर कोई एतिराज़ न होगा।
࿐ येह भी रिवायत है कि कुरैश ने खुद अबू सुफ्यान को मदीने भेजा कि हम सुल्ह नामए हुदैबिया में अपनी शर्त से दस्त बरदार हो गए। लिहाजा आप हज़रते अबू बसीर رضی الله تعالی عنه को मदीने में बुला लें ताकि हमारे तिजारती क़ाफ़िले उन लोगों के क़त्लो गारत से महफूज़ हो जाएं। चुनान्चे हुज़ूर ﷺ ने हज़रते अबू बसीर के पास खत भेजा कि तुम अपने साथियों समेत मक़ामे "ऐस" से मदीना चले आओ। मगर अफ़सोस ! कि फ़रमाने रिसालत उन के पास ऐसे वक्त पहुंचा जब वोह नज्अ की हालत में थे। मुक़द्दस ख़त को उन्हों ने अपने हाथ में ले कर सर और आंखों पर रखा और उन की रूह परवाज़ कर गई। हज़रते अबू जन्दल ने अपने साथियों के साथ मिलजुल कर उन की तज्हीज़ व तक्फीन का इनतिजाम किया और दफ्न के बाद उन की क़ब्र शरीफ़ के पास यादगार के लिये एक मस्जिद बना दी। फिर फ़रमाने रसूल के ब मूजिब येह सब लोग वहां से आ कर मदीने में आबाद हो गए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 362 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 230* ༺❘
*❝ सलातीन के नाम दावते इस्लाम ❞*
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࿐ सि. 6 में सुल्हे हुदैबिया के बाद जब जंग व जिदाल के ख़तरात टल गए और हर तरफ़ अम्नो सुकून की फ़ज़ा पैदा हो गई तो चूंकि रसूलुल्लाह ﷺ की नुबुव्वत व रिसालत का दाएरा सिर्फ खित्तए अरब ही तक महदूद नहीं था बल्कि आप तमाम आलम के लिये नबी बना कर भेजे गए इस लिये आपने इरादा फ़रमाया कि इस्लाम का पैग़ाम तमाम दुन्या में पहुंचा दिया जाए, चुनान्चे आप ﷺ ने रूम के बादशाह "कैसर" फ़ारस के बादशाह "किस्रा" हबशा के बादशाह "नज्जाशी" मिस्र के बादशाह "अज़ीज़" और दूसरे सलातीने अरब व अजम के नाम दावते इस्लाम के खुतूत रवाना फ़रमाए।
࿐ सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم में से कौन कौन हज़रात इन खुतूत को ले कर किन किन बादशाहों के दरबार में गए ? उन की फेहरिस्त काफ़ी तवील है मगर एक ही दिन छे खुतूत लिखवा कर और अपनी मोहर लगा कर जिन छे कासिदों को जहां जहां आप ने रवाना फ़रमाया वोह येह हैं।
{1.} हज़रते दहया कलबी رضي الله عنه हर कुल कैसरे रूम के दरबार मे,
{2.} हज़रते अब्दुल्लाह बिन हुज़ाफा رضي الله عنه खुसरू परवेज़ शाहे ईरान के दरबार मे,
{3} हज़रते हातिब رضي الله عنه मकुक़स अज़ीज़े मिस्र के दरबार मे,
{4.} हज़रते अम्र बिन उमय्या رضي الله عنه नज्जाशी बादशाहे हबशा के दरबार मे,
{5.} हज़रते सलीत बिन अम्र رضي الله عنه हज़ा, बादशाहे इमाम के दरबार मे,
{6.} हज़रते शुजाअ बिन वहब رضي الله عنه हारिष गस्सनी वालिये गस्सान के दरबार में!
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह - 365📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 231* ༺❘
*❝ नामए मुबारक और कैसर #01 ❞*
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࿐ हज़रते दहया कलबी رضي الله عنه हुज़ूर ﷺ का मुक़द्दस ख़त ले कर "बसरा" तशरीफ़ ले गए और वहां कैसरे रूम के गवर्नरे शाम हारिष गुस्सानी को दिया। उस ने नामए मुबारक को “बैतुल मुक़द्दस" भेज दिया। क्यूं कि कैसरे रूम "हरकिल" उन दिनों बैतुल मुक़द्दस के दौरे पर आया हुवा था। कैसर को जब येह मुबारक ख़त मिला तो उस ने हुक्म दिया कि कुरैश का कोई आदमी मिले तो उस को हमारे दरबार में हाज़िर करो। कैसर के हुक्काम ने तलाश किया तो इत्तिफ़ाक़ से अबू सुफ्यान और अरब के कुछ दूसरे ताजिर मिल गए। येह सब लोग कैसर के दरबार में लाए गए। कैसर ने बड़े तम-तराक़ के साथ दरबार मुन्अकिद किया और ताजे शाही पहन कर तख़्त पर बैठा। और तख़्त के गिर्द अराकीने सल्तनत, बतारका और अहबार व रहबान वगैरा सफ़ बांध कर खड़े हो गए।
࿐ इसी हालत में अरब के ताजिरों का गुरौह दरबार में हाज़िर किया गया और शाही महल के तमाम दरवाज़े बन्द कर दिये गए। फिर कैसर ने तरजुमान को बुलाया और उस के जरीए गुफ्तगू शुरूअ की। सब से पहले कैसर ने येह सुवाल किया कि अरब में जिस शख्स ने नुबुव्वत का दावा किया है तुम में से उन का सब ने से क़रीबी रिश्तेदार कौन है ? अबू सुफ्यान ने कहा कि “मैं” कैसर ने उन को सब से आगे किया और दूसरे अरबों को उन के पीछे खड़ा किया और कहा कि देखो ! अगर अबू सुफ्यान कोई ग़लत बात कहे तुम। लोग इस का झूट जाहिर कर देना। फिर कैसर और अबू सुफ्यान में जो मुकालमा हुवा वोह येह है :
*कैसर* : मुद्दइये नुबुव्वत का खानदान कैसा है ?
*अबू सुफ्यान* : उन का ख़ानदान शरीफ़ है।
*कैसर* : क्या इस ख़ानदान में इन से पहले भी किसी ने नुबुव्वत का दावा किया था ?
*अबू सुफ्यान* : "नहीं।"
*कैसर* : क्या इन के बाप दादाओं में कोई बादशाह था ?
*अबू सुफ्यान* : नहीं।
*कैंसर* : जिन लोगों ने इन का दीन क़बूल किया है वोह कमज़ोर लोग हैं या साहिबे अषर ?
*अबू सुफ्यान* : कमज़ोर लोग हैं।
*कैसर* : इन के मुत्तबिईन बढ़ रहे हैं या घटते जा रहे हैं ?
*अबू सुफ्यान* : बढ़ते जा रहे हैं।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 366 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 232* ༺❘
*❝ नामए मुबारक और कैसर #02 ❞*
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࿐ *कैंसर* : क्या कोई इन के दीन में दाखिल हो कर फिर इस को ना पसन्द कर के पलट भी जाता है ?
*अबू सुफ्यान* : "नहीं।"
*कैसर* : क्या नुबुव्वत का दावा करने से पहले तुम लोग उन्हें झूटा समझते थे ?
*अबू सुफ्यान* : नहीं।
*कैसर* : क्या वोह कभी अह्द शिकनी और वादा ख़िलाफ़ी भी करते हैं ?
*अबू सुफ्यान* : अभी तक तो नहीं की है लेकिन अब हमारे और उन के दरमियान (हुदैबिया) में जो एक नया मुआहदा हुवा है मालूम नहीं इस में वोह क्या करेंगे।
*क़ैसर* : क्या कभी तुम लोगों ने उन से जंग भी की ?
*अबू सुफ्यान* : "हां"
*कैसर* : नतीजए जंग क्या रहा ?
*अबू सुफ्यान* : कभी हम जीते, कभी वोह।
*कैसर* : वोह तुम्हें किन बातों का हुक्म देते हैं ?
*अबू सुफ्यान* : वोह कहते हैं कि सिर्फ एक खुदा की इबादत करो किसी और को खुदा का शरीक न ठहराओ, बुतों को छोड़ो, नमाज़ पढ़ो, सच बोलो, पाक दामनी इख़्तियार करो, रिश्तेदारों के साथ नेक सुलूक करो।
࿐ इस 👆🏻 सुवाल व जवाब के बाद कैसर ने कहा कि तुम ने उन को खानदानी शरीफ़ बताया और तमाम पैगम्बरों का यही हाल है कि हमेशा पैग़म्बर अच्छे खानदानों ही में पैदा होते हैं। तुम ने कहा कि उन के खानदान में कभी किसी और ने नुबुव्वत का दावा नहीं किया। अगर ऐसा होता तो मैं कह देता कि येह शख़्स औरों की नकल उतार रहा है। तुम ने इक्रार किया है कि उन के खानदान में कभी कोई बादशाह नहीं हुवा है। अगर येह बात होती तो मैं समझ लेता कि येह शख़्स अपने आबाओ अज्दाद की बादशाही का तलबगार है। तुम मानते हो कि नुबुव्वत का दावा करने से पहले वोह कभी कोई झूट नहीं बोले तो जो शख्स इन्सानों से झूट नहीं बोलता भला वोह खुदा पर क्यूंकर झूट बांध सकता है ?
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 367 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 233* ༺❘
*❝ नामए मुबारक और कैसर #03 ❞*
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࿐ क़ैसर ने आगे कहा कि तुम कहते हो कि कमज़ोर लोगों ने उन के दीन को क़बूल किया है। तो सुन लो हमेशा इब्तिदा में पैगम्बरों के मुत्तबिईन मुफ्लिस और कमज़ोर ही लोग होते रहे हैं। तुम ने येह तस्लीम किया है कि उन की पैरवी करने वाले बढ़ते ही जा रहे हैं तो ईमान का मुआमला हमेशा ऐसा ही रहा है कि इस के मानने वालों की तादाद हमेशा बढ़ती ही जाती है। तुम को येह तस्लीम है कि कोई उन के दीन से फिर कर मुरतद नहीं हो रहा है। तो तुम्हें मालूम होना चाहिये कि ईमान की शान ऐसी ही हुवा करती है कि जब इस की लज्जत किसी के दिल में घर कर लेती है तो फिर वोह कभी निकल नहीं सकती। तुम्हें इस का एतिराफ़ है कि उन्हों ने कभी कोई ग़द्दारी और बद अहदी नहीं की है। तो रसूलों का येही हाल होता है कि वोह कभी कोई दगा फ़रेब का काम करते ही नहीं। तुम ने हमें बताया कि वोह खुदाए वाहिद की इबादत, शिर्क से परहेज़, बुत परस्ती से मुमानअत, पाक दामनी, सिलए रेहमी का हुक्म देते हैं। तो सुन लो कि तुम ने जो कुछ कहा है अगर यह सही है तो वोह अन क़रीब इस जगह के मालिक हो जाएंगे जहां इस वक्त मेरे कदम हैं और मैं जानता हूं कि एक रसूल का जुहूर होने वाला है मगर मेरा येह गुमान नहीं था कि वोह रसूल तुम अरबों में से होगा। अगर मैं येह जान लेता कि मैं उन के बारगाह में पहुंच सकूंगा तो मैं तक्लीफ़ उठा कर वहां तक पहुंचता और अगर मैं उन के पास होता तो मैं उन का पाउ धोता।
࿐ कैसर ने अपनी इस तक़रीर के बाद हुक्म दिया कि रसूलुल्लाह ﷺ का ख़त पढ़ कर सुनाया जाए। नामए मुबारक की इबारत येह थी : शुरूआ करता हूं मैं खुदा के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम फ़रमाने वाला है। अल्लाह के बन्दे और रसूल मुहम्मद (ﷺ) की तरफ से येह ख़त "हरकिल" के नाम है जो रूम का बादशाह है। उस शख़्स पर सलामती हो जो हिदायत का पैरू है। इस के बाद मैं तुझ को इस्लाम की दावत देता हूं तू मुसलमान हो जा तो सलामत रहेगा। खुदा तुझ को दो गुना षवाब देगा। और अगर तूने रू गर्दानी की तो तेरी तमाम रिआया का गुनाह तुझ पर होगा। ऐ अहले किताब ! एक ऐसी बात की तरफ़ आओ जो हमारे और तुम्हारे दरमियान यक्सां है और वोह येह है कि हम खुदा के सिवा किसी की इबादत न करें और हम में से बा'ज़ लोग दूसरे बाज़ लोगों को खुदा न बनाएं और अगर तुम नहीं मानते तो गवाह हो जाओ कि हम मुसलमान हैं !
࿐ कैसर ने अबू सुफ़्यान से जो गुफ्तगू की उस से इस के दरबारी पहले ही इनतिहाई बरहम और बेज़ार हो चुके थे। अब येह ख़त सुना। फिर जब कैसर ने उन लोगों से येह कहा कि ऐ जमाअते रूम ! अगर तुम अपनी फलाह और अपनी बादशाही की बक़ा चाहते हो तो इस नबी की बैअत कर लो। तो दरबारियों में इस क़दर नाराज़ी और बेजारी फैल गई कि वोह लोग जंगली गधों की तरह बिदक बिदक कर दरबार से दरवाजों की तरफ भागने लगे। मगर चूंकि तमाम दरवाज़े बन्द थे इस लिये वोह लोग बाहर न निकल सके। जब कैसर ने अपने दरबारियों की नफ़रत का येह मन्ज़र देखा तो वोह उन लोगों के ईमान लाने से मायूस हो गया और उस ने कहा कि इन दरबारियों को बुलाओ। जब सब आ गए तो कैसर ने कहा कि अभी अभी मैं ने तुम्हारे सामने जो कुछ कहा, इस से मेरा मक्सद तुम्हारे दीन की पुख़्तगी का इम्तिहान लेना था तो मैं ने देख लिया कि तुम लोग अपने दीन में बहुत पक्के हो। येह सुन कर तमाम दरबारी कैंसर के सामने सज्दे में गिर पड़े और अबू सुफ्यान वगैरा दरबार से निकाल दिये गए और दरबार बरखास्त हो गया। चलते वक्त अबू सुफ़्यान ने अपने साथियों से कहा कि अब यक़ीनन अबू कबशा के बेटे (मुहम्मद ﷺ) का मुआमला बहुत बढ़ गया। देख लो ! रूमियों का बादशाह इन से डर रहा है।
࿐ कैसर चूंकि तौरात व इन्जील का माहिर और इल्मे नुजूम से वाक़िफ़ था इस लिये वोह नबिय्ये आखिरुज्जमां के जुहूर से बा ख़बर था और अबू सुफ्यान की ज़बान से हालात सुन कर उस के दिल में हिदायत का चराग़ रोशन हो गया था। मगर सल्तनत की हिर्स व हवस की आंधियों ने इस चरागे हिदायत को बुझा दिया और वोह इस्लाम की दौलत से महरूम रह गया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 369 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 234* ༺❘
*❝ खुसरू परवेज़ की बद दिमागी ❞*
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࿐ तक़रीबन इसी मज़मून के खुतूत दूसरे बादशाहों के पास भी हुज़ूर ﷺ ने रवाना फ़रमाए। शहनशाहे ईरान खुसरू परवेज़ के दरबार में जब नामए मुबारक पहुंचा तो सिर्फ इतनी सी बात पर उस के गुरूर और घमन्ड का पारा इतना चढ़ गया कि उस ने कहा कि इस ख़त में मुहम्मद (ﷺ) ने मेरे नाम से पहले अपना नाम क्यूं लिखा ? येह कह कर उस ने फ़रमाने रिसालत को फाड़ डाला और पुर्ज़े पुर्जे कर के ख़त को ज़मीन पर फेंक दिया। जब हुजुर ﷺ को येह ख़बर मिली तो आप ने फ़रमाया कि उस ने मेरे ख़्त को टुकड़े टुकड़े कर डाला खुदा उसकी सल्तनत को टुकड़े टुकड़े कर दे। चुनान्चे इस के बा'द ही खुसरू परवेज़ उसके बेटे “शैरूया" ने रात में सोते हुए उस का शिकम फाड़ कर उस को क़त्ल कर दिया। और उस की बादशाही टुकड़े टुकड़े हो गई। यहां तक कि हज़रते अमीरुल मुअमिनीन उमर फारूके आजम رضي الله عنه के दौरे ख़िलाफ़त में येह हुकूमत सफ़हए हस्ती से मिट गई।
࿐ *नज्जाशी का किरदार :-* नज्जाशी बादशाहे हबशा के पास जब फ़रमाने रिसालत पहुंचा तो उस ने कोई बे अदबी नहीं की। इस मुआमले में मुअरि॑खीन का इख़्तिलाफ़ है कि उस नज्जाशी ने इस्लाम क़बूल किया या नहीं ? मगर मवाहिबे लदुन्निय्यह में लिखा हुवा है कि येह नज्जाशी जिस के पास एलाने नुबुव्वत के पांचवें साल मुसलमान मक्का से हिजरत कर के गए थे और सि. 6 हि. में जिस के पास हुजुर ﷺ ने खत भेजा और सि. 9 हि में जिस का इनतिकाल हुवा और मदीने में हुज़ूर ﷺ ने जिस की गाइबाना नमाज़े जनाजा पढ़ाई उस का नाम “असमहा" था और येह बिला शुबा मुसलमान हो गया था। लेकिन इस के बाद जो नज्जाशी तख़्त पर बैठा उस के पास भी हुजूर ﷺ ने इस्लाम का दा'वत नामा भेजा था। मगर उस के बारे में कुछ मालूम नहीं होता कि उस नज्जाशी का नाम क्या था ? और उस ने इस्लाम क़बूल किया या नहीं ? मशहूर है कि यह दोनों मुक़द्दस खुतूत अब तक सलातीने हबशा के पास मौजूद हैं और वोह लोग इस का बेहद अदबो एहतिराम करते हैं।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 370 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 235* ༺❘
*❝ शाहे मिस्र का बरताव ❞*
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࿐ हज़रते हातिब बिन अबी बलतआ رضي الله عنه को हुज़ूर ﷺ ने "मकूकस" मिस्र व अस्कन्दरिया के बादशाह के पास क़ासिद बना कर भेजा। येह निहायत ही अख़्लाक़ के साथ क़ासिद से मिला और फ़रमाने नबवी को बहुत ही ता'ज़ीम व तक्रीम के साथ पढ़ा। मगर मुसलमान नहीं हुवा। हां हुजूर ﷺ की ख़िदमत में चन्द चीज़ों का तोहफा भेजा। दो लौंडियां एक हज़रते “मारिया क़िब्तिया" رضي الله عنها जो हुज़ूर ﷺ के हरम में दाखिल हुई और इन्हीं के शिकमे मुबारक से हुज़ूर ﷺ के फ़रज़न्द हज़रते इब्राहीम पैदा हुए। दूसरी हज़रते “सीरीन" رضي الله عنها थीं जिन को आप ने हज़रते हस्सान बिन षाबित को अता फ़रमा दिया। इन के बत्न से हज़रते हस्सान के साहिब जादे हजर अब्दुर्रहमान पैदा हुए इन दोनों लौंडियों के इलावा एक सफ़ेद गधा जिस का नाम '"या'फूर" था और एक सफ़ेद खच्चर जो दुलदुल कहलाता था, एक हज़ार मिस्काल सोना, एक गुलाम, कुछ शहद, कुछ कपड़े भी थे।
࿐ *बादशाहे यमामा का जवाब :-* हज़रते सलीत رضي الله عنه जब "हूजा" बादशाहे यमामा के पास ख़त ले कर पहुंचे तो उस ने भी क़ासिद का एहतिराम किया। लेकिन इस्लाम कुबूल नहीं किया और जवाब में येह लिखा कि आप जो बातें कहते हैं वोह निहायत अच्छी हैं। अगर आप अपनी हुकूमत में से कुछ मुझे भी हिस्सा दें तो मैं आप की पैरवी करूंगा। हुज़ूर ﷺ ने उस का खत पढ़ कर फ़रमाया कि इस्लाम मुल्क गीरी की हवस के लिये नहीं आया है अगर ज़मीन का एक टुकड़ा भी हो तो मैं न दूंगा।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 372 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 236* ༺❘
*❝ हारिष गस्सानी का घमन्ड ❞*
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࿐ हज़रते शुजाअ رضي الله عنه ने जब हारिष गुस्सानी वालिये गुस्सान के सामने नामए अक्दस को पेश किया तो वोह मग़रूर ख़त को पढ़ कर बरहम हो गया और अपनी फ़ौज को तय्यारी का हुक्म दे दिया। चुनान्चे मदीने के मुसलमान हर वक्त उस के हम्ले के मुन्तज़िर रहने लगे। और बिल आख़िर "गज्वए मौता" और "गज्वए तबूक" के वाकिआत दरपेश हुए जिन का मुफ़स्सल तकिरा हम आगे तहरीर करेंगे।
࿐ हुज़ूर ﷺ ने इन बादशाहों के इलावा और भी बहुत से सलातीन व उमरा को दावते इस्लाम के खुतूत तहरीर फ़रमाए जिन में से कुछ ने इस्लाम कुबूल करने से इन्कार कर दिया और कुछ खुश नसीबों ने इस्लाम कुबूल कर के हुज़ूरे अक्स ﷺ की ख़िदमते अक्दस में नियाज मन्दियों से भरे हुए खुतूत भी भेजे। मषलन यमन के शाहाने हुमैर में से जिन जिन बादशाहों ने मुसलमान हो कर बारगाहे नुबुव्वत में अर्जियां भेजीं जो गज्वए तबूक से वापसी पर में आप ﷺ की खिदमत में पहुंचीं उन बादशाहों के नाम येह हैं :
(1) हारिष बिन अब्दे कलाल
(2) नईम बिन अब्दे कलाल
(3) नोमान हाकिमे जूरऐन व मुआफिर व हमदान
(4) ज़रआ
येह सब यमन के बादशाह हैं।
࿐ इन के इलावा "फ़रवह बिन अम्र" जो कि सल्तनते रूम की जानिब से गवर्नर था। अपने इस्लाम लाने की खबर क़ासिद के जरीए बारगाहे रिसालत में भेजी। इस तरह "बाज़ान" जो बादशाहे ईरान किस्रा की तरफ से सूबए यमन का सूबेदार था अपने दो बेटों के साथ मुसलमान हो गया और एक अर्ज़ी तहरीर कर के हुज़ूर ﷺ को अपने इस्लाम की खबर दी। इन सब का मुफुस्सल तज़किरा "सीरते इब्ने हिश्शाम व जुरक़ानी व मदारिजुन्नुबुव्वह" वगैरा में मौजूद है। हम अपनी इस मुख़्तसर किताब में इन का मुफ़स्सल बयान तहरीर करने से माज़िरत ख़्वाह हैं।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 373📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 237* ༺❘
*❝ सरिय्यए नज्द ❞*
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࿐ सि. 6 हि. में रसूलुल्लाह ﷺ ने हज़रते मुहम्मद बिन मुस्लिमा رضي الله عنه की मा तहती में एक लश्कर नज्द की जानिब रवाना फ़रमाया। उन लोगों ने बनी हनीफ़ा के सरदार षमामा बिन उषाल को गरिफ्तार कर लिया और मदीना लाए। जब लोगों ने इन को बारगाहे रिसालत में पेश किया तो आप ने हुक्म दिया कि इस को मस्जिदे नबवी के एक सुतून में बांध दिया जाए। चुनांचे ये सुतून में बांध दिये गए। फिर हुज़ूर ﷺ उस के पास तशरीफ़ ले गए और दरयाफ्त फ़रमाया कि ऐ षमामा ! तुम्हारा क्या हाल है ? और तुम अपने बारे में क्या गुमान करते हो ? षमामा ने जवाब दिया कि ऐ मुहम्मद (ﷺ)! मेरा हाल और ख़याल तो अच्छा ही है। अगर आप मुझे क़त्ल करेंगे तो एक खूनी आदमी को क़त्ल करेंगे और अगर मुझे अपने इन्आम से नवाज़ कर छोड़ देंगे तो एक शुक्र गुज़ार को छोड़ेंगे और अगर आप मुझ से कुछ माल के तलब गार हों तो बता दीजिये। आप को माल दिया जाएगा। हुज़ूर ﷺ येह गुफ्तगू कर के चले आए। फिर दूसरे रोज़ भी येही सुवाल व जवाब हुवा। फिर तीसरे रोज़ भी येही हुवा। इस बाद आपने सहाबा से फ़रमाया कि षमामा को छोड़ दो। चुनान्चे लोगों ने उन को छोड़ दिया।
࿐ षमामा मस्जिद से निकल कर एक खजूर के बाग में चले गए जो मस्जिदे नबवी के क़रीब ही में था। वहां उन्हों ने गुस्ल किया। फिर मस्जिदे नबवी में वापस आए और कलिमए शहादत पढ़ कर मुसलमान हो गए और कहने लगे कि खुदा की क़सम ! मुझे जिस क़दर आप के चेहरे से नफ़रत थी इतनी रूए ज़मीन पर किसी के चेहरे से न थी। मगर आज आप के चेहरे से मुझे इस क़दर महब्बत हो गई है कि इतनी महब्बत किसी के चेहरे से नहीं है। कोई दीन मेरी नज़र में इतना ना पसन्द न था जितना आप का दीन लेकिन आज कोई दीन मेरी नज़र में इतना महबूब नहीं है जितना आप का दीन। कोई शहर मेरी निगाह में इतना बुरा न था जितना आप का शहर और अब मेरा येह हाल हो गया है कि आप के शहर से ज़ियादा मुझे कोई शहर महबूब नहीं है। या रसूलल्लाह ﷺ! मैं उमरह अदा करने के इरादे से मक्का जा रहा था कि आप के लश्कर ने मुझे गरिफ्तार कर लिया। अब आप मेरे बारे में क्या हुक्म देते हैं ? हुजूर ﷺ ने उन को दुन्या व आख़िरत की भलाइयों का मुज्दा सुनाया और फिर हुक्म दिया कि तुम मक्का जा कर उमरह अदा कर लो !
࿐ जब येह मक्का पहुंचे और तवाफ़ करने लगे तो कुरैश के किसी काफ़िर ने इन को देख कर कहा कि ऐ षमामा ! तुम साबी (बे दीन) हो गए हो ? आपने निहायत जुरअत के साथ जवाब दिया कि मैं बे दीन नहीं हुवा हूं बल्कि मैं मुसलमान हो गया हूं और ए अहले मक्का सुन लो अब जब तक रसूलुल्लाह ﷺ इजाज़त न देंगे तुम लोगों को हमारे वतन से गेहूं का एक दाना भी नहीं मिल सकेगा। मक्का वालों के लिये इन वतन "यमामा" ही से गल्ला आया करता था।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 374 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 238* ༺❘
*❝ अबू राफेअ कत्ल कर दिया गया ❞*
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࿐ सि. 6 हि. के वाक़िआत में से अबू राफेअ यहूदी का क़त्ल भी है। अबू राफेअ यहूदी का नाम अब्दुल्लाह बिन अबिल हुकैक़ या सलाम बिन अल हुकैक़ था। येह बहुत ही दौलत मन्द ताजिर था लेकिन इस्लाम का ज़बर दस्त दुश्मन और बारगाहे नुबुव्वत की शान में निहायत ही बद तरीन गुस्ताख़ और बे अदब था। येह वोही शख़्स है जो हुयय बिन अख़्तब यहूदी के साथ मक्का गया और कुफ्फ़ारे कुरैश और दूसरे क़बाइल को जोश दिला कर गज्वए खन्दक़ में मदीने पर हम्ला करने के लिये दस हज़ार की फ़ौज ले कर आया था और अबू सुफ्यान को उभार कर इसी ने उस फ़ौज का सिपहसालार बनाया था। हुयय बिन अख़्तब तो जंगे खन्दक के बा'द गज्वए बनी क़रीज़ा में मारा गया था मगर येह बच निकला था और हुज़ूर ﷺ की ईज़ा रसानी और इस्लाम की बेख कनी में तन, मन, धन से लगान हुवा था।
࿐ अन्सार के दोनों क़बीलों औस और खज़रज में हमेशा मुक़ाबला रहता था और यह दोनों अकषर रसूलुल्लाह ﷺ के सामने नेकियों में एक दूसरे से बढ़ जाने की कोशिश करते रहते थे। चूंकि क़बीलए औस के लोगों हज़रते मुहम्मद बिन मुस्लिमा वगैरा ने सि. 3 हि. में बड़े खतरे में पड़ कर एक दुश्मने रसूल "का'ब बिन अशरफ़ यहूदी" को क़त्ल किया था। इस लिये क़बीलए खज़रज के लोगों ने मश्वरा किया कि अब रसूलुल्लाह ﷺ का सब से बड़ा दुश्मन “अबू राफेअ" रह गया है। लिहाजा हम लोगों को चाहिये कि उस को क़त्ल कर डालें ताकि हम लोग भी क़बीलए औस की तरह एक दुश्मने रसूल को क़त्ल करने का अज्रो षवाब हासिल कर लें। चुनान्चे हज़रते अब्दुल्लाह बिन अतीक व अब्दुल्लाह बिन अनीस व अबू कुतादा व हारिष बिन रिबई व मसऊद बिन सिनान व खज़ा-ई बिन अस्वद इस के लिये मुस्तइद और तय्यार हुए। इन लोगों की दरख्वास्त पर हुज़ूर ﷺ ने इजाज़त दे दी और हज़रते अब्दुल्लाह बिन अतीक को इस जमाअत का अमीर मुक़र्रर फ़रमा दिया और इन लोगों को मन्अ कर दिया कि बच्चों और औरतों को क़त्ल न किया जाए।
࿐ हज़रते अब्दुल्लाह बिन अतीक अबू राफेअ के महल के पास पहुंचे और अपने साथियों को हुक्म दिया कि तुम लोग यहां बैठ कर मेरी आमद का इनतिज़ार करते रहो और खुद बहुत ही खुपया तदबीरों से रात में उस के महल के अन्दर दाखिल हो गए और उस के बिस्तर पर पहुंच कर अंधेरे में उस को क़त्ल कर दिया। जब महल से निकलने लगे तो सीढ़ी से गिर पड़े जिस से इन के पाउं की हड्डी टूट गई। मगर इन्हों ने फ़ौरन ही अपनी पगड़ी से अपने टूटे हुए पाउं को बांध दिया और किसी तरह महल से बाहर आ गए। फिर अपने साथियों की मदद से मदीना पहुंचे। जब दरबारे रिसालत में हाज़िर हो कर अबू राफेअ के कत्ल का सारा माजरा बयान किया तो हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि “पाउं फैलाओ" इन्हों ने पाउं फैलाया तो आपने अपना दस्ते मुबारक इन के पाउं पर फिरा दिया। फ़ौरन ही टूटी हुई हड्डी जुड़ गई और इन का पाउं बिल्कुल सहीह व सालिम हो गया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 376📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 239* ༺❘
*❝ सि. 6 हि. की बा'ज़ लड़ाइयां ❞*
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࿐ सि. 6 हि. में सुल्हे हुदैबिया से कब्ल चन्द छोटे छोटे लश्करों को हुज़ूर ﷺ ने मुख़्तलिफ़ अंतराफ़ में रवाना फ़रमाया ताकि वोह कुफ्फ़ार के हम्लों की मुदाफ़अत करते रहें। इन लड़ाइयों का मुफ़स्सल तज़किरा जुरकानी अलल मवाहिब और मदारिजुन्नुबुव्वह वगैरा किताबों में लिखा हुवा है। मगर इन लड़ाइयों की तरतीब और इन की तारीखों में मुअर्रिख़ीन का बड़ा इख़्तिलाफ़ है। इस लिये ठीक तौर पर इन की तारीखों की ता'यीन बहुत मुश्किल है। इन वाकिआत का चीदा चीदा बयान हदीषों में मौजूद है मगर हदीषों में भी इन की तारीखें मजकूर नहीं है। अलबत्ता बा'ज़ क़राइन व शवाहिद से इतना पता चलता है कि येह सब सुल्हे हुदैबिया से कब्ल के वाकिआत हैं। इन लड़ाइयों में से चन्द के नाम येह हैं :
࿐ (1) सरिय्यए करताअ (2) गज्वए बनी लहयान (3) सरिय्यतुल गमर (4) सरिय्यए जैद ब जानिब जमूम (5) सरिय्यए जैद ब जानिब ऐस (6) सरिय्यए जैद ब जानिब वादिये अल कुरा (7) सरिय्यए अली ब जानिब बनी सा'द (8) सरिय्यए जैद ब जानिब उम्मे करफा (9) सरिय्यए इब्ने रवाहा (10) सरिय्यए इब्ने मुस्लिमा (11) सरिय्यए जैद ब जानिब तरफ (12) सरिय्यए अकल व उरैना (13) बअस जमरी।
࿐ इन लड़ाइयों के नामों में भी इख़्तिलाफ़ है। हम ने यहां इन लड़ाइयों के मज़्कूरा बाला नाम जुरक़ानी अलल मवाहिब की फेहरिस्त से नकल किये हैं।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 378 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 240* ༺❘
*❝ हिजरत का सातवां साल ¶ गज़्वए जातुल करद ❞*
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࿐ मदीने के क़रीब "जातुल करद" एक चरागाह का नाम है जहां हुज़ूर ﷺ की ऊंटनियां चरती थीं, अब्दुर्रहमान बिन उयैना फ़ज़ारी ने जो क़बीलए गतफ़ान से तअल्लुक रखता था अपने चन्द आदमियों के साथ ना गहां इस चरागाह पर छापा मारा और येह लोग बीस ऊंटनियों को पकड़ कर ले भागे। मशहूर तीर अन्दाज़ सहाबी हज़रते सलमह बिन अक्वअ رضي الله عنه को सब से पहले इस की ख़बर मालूम हुई। इन्हों ने इस ख़तरे का एलान करने के लिये बुलन्द आवाज़ से येह नारा मारा कि "या सबा हाह" फिर अकेले ही उन डाकूओं के तआकुब में दौड़ पड़े और उन डाकूओं को तीर मार मार कर तमाम ऊंटनियों को भी छीन लिया और डाकू भागते हुए जो तीस चादरें फेंकते गए थे उन चादरों पर भी क़ब्ज़ा कर लिया।
࿐ इस के बाद हुज़ूर ﷺ लश्कर ले कर पहुंचे। हज़रते सलमह बिन अक्वअ ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ! मैं ने उन छापा मारों को अभी तक पानी नहीं पीने दिया है। यह सब प्यासे हैं। इन लोगों के तआकुब में लश्कर भेज दीजिये तो येह सब गरिफ्तार हो जाएंगे। आप ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया कि तुम अपनी ऊंटनियों के मालिक हो चुके हो। अब उन लोगों के साथ नर्मी का बरताव करो। फिर हुज़ूर ﷺ ने हज़रते सलमह बिन अक्वअ को अपने ऊंट के पीछे बिठा लिया और मदीने वापस तशरीफ़ लाए।
࿐ हज़रते इमाम बुखारी का बयान है कि येह गज़्वा जंगे खैबर केलिये रवाना होने से तीन दिन क़ब्ल हुवा।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 379 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 241* ༺❘
*❝ जंगे खैबर #01 ❞*
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࿐ “खैबर" मदीने से आठ मन्जिल की दूरी पर एक शहर है। एक अंग्रेज़ सय्याह ने लिखा है कि खैबर मदीने से तीन सो बीस किलो मीटर है। येह बड़ा ज़रखैज़ अलाका था और यहां उम्दा खजूरें ब कषरत पैदा होती थीं। अरब में यहूदियों का सब से बड़ा मर्कज़ येही खैबर था। यहां के यहूदी अरब में सब से ज़ियादा मालदार और जंगजू थे और इन को अपनी माली और जंगी ताकतों पर बड़ा नाज़ और घमन्ड भी था। येह लोग इस्लाम और बानिये इस्लाम के बद तरीन दुश्मन थे। यहां यहूदियों ने बहुत से मज़बूत क़ल्ए बना रखे थे जिन में से बा'ज़ के आषार अब तक मौजूद हैं। इन में से आठ कुल्ए बहुत मशहूर है। जिनके नाम ये है : (1) कतीबा (2) नाअम (3) शक़ (4) क़मुस (5) नतारह (6) सअब (7) सतीख (8) सलालम
࿐ दर हक़ीक़त ये आठ क़लए आठ महल्लो के मिशल थे और इन्ही आठों कलओ का मजमुआ "खैबर" कहलाता था।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 380📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 242* ༺❘
*❝ जंगे खैबर #02 ¶ गज़्व ए खैबर कब हुवा ? ❞*
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࿐ तमाम मुअर्रिख़ीन का इस बात पर इत्तिफ़ाक़ है कि जंगे खैबर मुहर्रम के महीने में हुई। लेकिन इस में इख़्तिलाफ़ है कि सि. 6 हि. था या सि. 7। ग़ालिबन इस इख़्तिलाफ़ की वजह यह है कि बा'ज़ लोग सिने हिजरी की इब्तिदा मुहर्रम से करते हैं। इस लिये उन के नजदीक मुहर्रम में सि. 7 हि. शुरूअ हो गया और बा'ज़ लोग सिने हिजरी की इब्तिदा रबीउल अव्वल से करते हैं। क्यूं कि रसूलुल्लाह ﷺ की हिजरत रबीउल अव्वल में हुई। लिहाजा उन लोगों के नज़दीक येह मुहर्रम व सफ़र सि. 6 हि. के थे।
࿐ *जंगे खैबर का सबब :-* येह हम पहले लिख चुके हैं कि जंगे खन्दक़ में जिन जिन कुफ्फ़ारे अरब ने मदीने पर हमला किया था उन में खैबर के यहूदी भी थे। बल्कि दर हक़ीक़त वोही इस हम्ले के बानी और सब से बड़े मुहर्रिक थे। चुनान्चे "बनू नज़ीर" के यहूदी जब मदीने से जिला वतन किये गए तो यहूदियों के जो रूअसा खैबर चले गए थे उन में से हुयय बिन अख़्तब और अबू राफेअ सलाम बिन अबिल हुकैक़ ने तो मक्का जा कर कुफ्फ़ारे कुरैश को मदीने पर हम्ला करने के लिये उभारा और तमाम क़बाइल का दौरा कर के कुफ्फ़ारे अरब को जोश दिला कर बर अंगेख़ता किया और हम्ला आवरों की माली इमदाद के लिये पानी की तरह रुपिया बहाया। और खैबर के तमाम यहूदियों को साथ ले कर यहूदियों के येह दोनों सरदार हम्ला करने वालों में शामिल रहे।
࿐ हुयय बिन अख़्तब तो जंगे क़रीजा में क़त्ल हो गया और अबू राफेअ सलाम बिन अबिल हुकैक़ को सि. 6 हि. में हज़रते अब्दुल्लाह बिन अतीक अन्सारी رضی الله تعالی عنه ने उस के महल में दाखिल हो कर क़त्ल कर दिया। लेकिन इन सब वाक़िआत के बाद भी खैबर के यहूदी बैठ नहीं रहे बल्कि और ज़ियादा इनतिकाम की आग उन के सीनों में भडक्ने लगी। चुनान्चे येह लोग मदीने पर फिर एक दूसरा हमला करने की तैयारियां करने लगे और इस मकसद के लीये क़बीलए गतफ़ान को भी आमादा कर लिया। क़बीलए गतफ़ान अरब का एक बहुत ही ताकत वर और जंगजू क़बीला था और इस की आबादी खैबर से बिल्कुल ही मुत्तसिल थी और खैबर के यहूदी खुद भी अरब के सब से बड़े सरमाया दार होने के साथ बहुत ही जंगबाज़ और तलवार के धनी थे। इन दोनों के गठजोड़ से एक बड़ी ताकत वर फ़ौज तयार हो गई और इन लोगों ने मदीने पर हम्ला कर के मुसलमानों को तहस नहस कर देने का प्लान बना लिया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 381📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 243* ༺❘
*❝ जंगे खैबर #03 ¶ मुसलमान खैबर चले ❞*
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࿐ जब रसूले खुदा ﷺ को खबर मिली कि खैबर के यहूदी क़बीलए गतफ़ान को साथ ले कर मदीने पर हमला करने वाले हैं तो उन की इस चढ़ाई को रोकने के लिये सोलह सो सहाबए किराम का लश्कर साथ ले कर आप खैबर रवाना हुए। मदीने पर हज़रते सबाअ बिन अरफ़ता رضي الله عنه को अफ्सर मुक़र्रर फरमाय और तीन झन्डे तय्यार कराए। एक झन्डा हज़रते हुबाब बिन मुन्जिर رضي الله عنه को दिया और एक झन्डे का अलम बरदार हज़रते साद बिन उबादा رضي الله عنه को बनाया और खास अलमे नबवी हज़रते अली رضي الله عنه के दस्ते मुबारक में इनायत फ़रमाया और अज्वाजे मुतहहरात में से हज़रते बीबी उम्मे सलमह رضي الله عنها को साथ लिया।
࿐ हुज़ूर ﷺ रात के वक्त हुदूदे खैबर में अपनी फ़ौजे ज़फ़र मौज के साथ पहुंच गए और नमाज़े फज्र के बाद शहर में दाखिल हुए तो खैबर के यहूदी अपने अपने हंसिया और टोकरी ले कर खेतों और बागों में कामकाज के लिये कुल्ए से निकले। जब उन्हों ने हुज़ूर ﷺ को देखा तो शोर मचाने लगे और चिल्ला चिल्ला कर कहने लगे कि "खुदा की क़सम ! लश्कर के साथ मुहम्मद (ﷺ) हैं।" उस वक्त हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि खैबर बरबाद हो गया। बिला शुबा हम जब किसी क़ौम के मैदान में उतर पड़ते हैं तो कुफ्फार की सुबह बुरी हो जाती है।
࿐ हज़रते अबू मूसा अश्अरी رضي الله عنه कहते हैं कि जब हुजूर ﷺ खैबर की तरफ़ मुतवज्जेह हुए तो सहाबए किराम बहुत ही बुलन्द आवाज़ों से नारए तक्बीर लगाने लगे। तो आप ﷺ ने फ़रमाया कि अपने ऊपर नर्मी बरतो। तुम लोग किसी बहरे और गाइब को नहीं पुकार रहे हो बल्कि उस (अल्लाह) को पुकार रहे हो जो सुनने वाला और क़रीब है। मैं हुजूर ﷺ की सुवारी के पीछे "ला-हवल-वला क़ुव्वत इल्ला बिल्ला" का वजीफा पढ़ रहा था। जब आप ने सुना तो मुझ को पुकारा और फ़रमाया कि क्या मैं तुम को एक ऐसा कलिमा न बता दूं जो जन्नत के ख़ज़ानों में से एक खजाना है। मैं ने अर्ज़ किया कि "क्यूं नहीं या रसूलल्लाह ﷺ ! आप पर मेरे मां बाप कुरबान!" तो फ़रमाया कि वोह कलिमा ला-हवल-वला क़ुव्वत इल्ला बिल्ला" है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 383 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 244* ༺❘
*❝ जंगे खैबर #04 ¶ यहूदियों की तय्यारी ❞*
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࿐ यहूदियों ने अपनी औरतों और बच्चों को एक महफूज़ कल्एअ में पहुंचा दिया और राशन का जखीरा कल्आ "नाअम" में जम्अ कर दिया और फ़ौजों को "नताह" और "क़मूस" के कल्ओं में इकठ्ठा किया। इन में सब से जियादा मज़बूत और महफूज़ कल्आ "कमूस" था और "मरहब यहूदी" जो अरब के पहलवानों में एक हज़ार सुवारों के बराबर माना जाता था इसी कुल्ए का रईस था। सलाम बिन मशकम यहूदी गो बीमार था मगर वोह भी कल्आ “नताह” में फ़ौजें ले कर डटा हुवा था। यहूदियों के पास तक़रीबन बीस हज़ार फ़ौज थी जो मुख़्तलिफ़ कल्ओं की हिफाजत के लिये मोरचा बन्दी किये हुए थी।
࿐ *महमूद बिन मुस्लिमा शहीद हो गए :-* सब से पहले कल्आ "नाअम" पर मारिका आराई और जम कर लड़ाई हुई। हज़रते महमूद बिन मुस्लिमा رضي الله عنه ने बहादुरी और जां निषारी के साथ जंग की मगर सख्त गर्मी और लू के थपेड़ों की वजह से इन पर प्यास का ग़लबा हो गया। वोह कुल्आ नाअम की दीवार के नीचे सो गए। किनाना बिन अबिल हुकैक़ यहूदी ने इन को देख लिया और छत से एक बहुत बड़ा पथ्थर इन के ऊपर गिरा दिया जिस से इन का सर कुचल गया और येह शहीद हो गए। इस क़ल्ए को फतह करने में पचास मुसलमान जख्मी हो गए, लेकिन कल्आ फतह हो गया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 384 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 245* ༺❘
*❝ जंगे खैबर #05 ¶ अस्वद राई की शहादत ❞*
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࿐ हज़रते अस्वद राई رضي الله عنه इसी कल्ए की जंग में शहादत से सरफ़राज़ हुए। इन का वाकिआ येह है कि येह एक हबशी थे जो खैबर के किसी यहूदी की बकरियां चराया करते थे। जब यहूदी जंग की तय्यारियां करने लगे तो इन्हों ने पूछा कि आख़िर तुम लोग किस से जंग के लिये तय्यारियां कर रहे हो ? यहूदियों ने कहा कि आज हम उस शख्स से जंग करेंगे जो नुबुव्वत का दावा करता है। येह सुन कर इन के दिल में हुज़ूर ﷺ की मुलाकात का जज्बा पैदा हुआ चुनान्चे येह बकरियां लिये हुए बारगाहे रिसालत में हाज़िर हो गए और हुज़ूर ﷺ से दरयाफ्त किया कि आप किस चीज़ की दा'वत देते हैं ? आप ने इन के सामने इस्लाम पेश फ़रमाया। इन्हों ने अर्ज किया कि अगर मैं मुसलमान हो जाऊं तो मुझे खुदा वन्दे तआला की तरफ से क्या अज्रो षवाब मिलेगा ? आप ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया कि तुम को जन्नत और उस की ने'मतें मिलेंगी। इन्हों ने फ़ौरन ही कलिमा पढ़ कर इस्लाम क़बूल कर लिया। फिर अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ ! येह बकरियां मेरे पास अमानत हैं। अब मैं इन को क्या करूं। आप ﷺ ने फ़रमाया कि तुम इन बकरियों को कल्ए की तरफ़ हांक दो और इन को कंकरियों से मारो। येह सब खुद बखुद अपने मालिक के घर पहुंच जाएंगी। चुनान्चे येह हुज़ूर ﷺ का मो'जिज़ा था कि उन्हों ने बकरियों को कंकरियां मार कर हांक दिया और वोह सब अपने मालिक के घर पहुंच गई।
࿐ इस के बाद येह खुश नसीब हबशी हथियार पहन कर मुजाहिदीने इस्लाम की सफ़ में खड़ा हो गया और इनतिहाई जोशो खरोश के साथ जिहाद करते हुए शहीद हो गया। जब हुज़ूर ﷺ को इस की ख़बर हुई तो फ़रमाया कि इस शख़्स ने बहुत ही कम अमल किया और बहुत ज़ियादा अज्र दिया गया। फिर हुजुर ﷺ ने इन की लाश को खैमे में लाने का हुक्म दिया और इन की लाश के सिरहाने खड़े हो कर आपने येह बिशारत सुनाई कि अल्लाह तआला ने इस के काले चेहरे को हसीन बना दिया, इस के बदन को खुश्बूदार बना दिया और दो हूरें इस को जन्नत में मिलीं। इस शख्स ने ईमान और जिहाद के सिवा कोई दूसरा अमले खैर नहीं किया, न एक वक़्त की नमाज़ पढ़ी, न एक रोज़ा रखा, न हज व ज़कात का मौकआ मिला मगर ईमान और जिहाद के सबब से अल्लाह तआल ने इस को इतना बुलन्द मर्तबा अता फरमाया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 385 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 246* ༺❘
*❝ जंगे खैबर #06 ¶ इस्लामी लश्कर का हेड क्वार्टर ❞*
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࿐ हुजूर ﷺ को पहले ही से येह इल्म था कि क़बीलए गतफ़ान वाले ज़रूर ही खैबर वालों की मदद को आएंगे। इस लिये आपने खैबर और गत्फ़ान के दरमियान मकामे “रजीअ” में अपनी फ़ौजों का हेड क्वार्टर बनाया और खैमों, बार बरदारी के सामानों और औरतों को भी यहीं रखा था और यहीं से निकल निकल कर यहूदियों के कल्ओं पर हम्ला करते थे। कल्आ नाअम के बाद दूसरे क़ल्ए भी ब आसानी और बहुत जल्द फ़तह हो गए लेकिन क़ल्आ "क़मूस" चूंकि बहुत ही मज्बूत और महफूज़ कल्आ था और यहां यहूदियों की फ़ौजें भी बहुत ज़ियादा थीं और यहूदियों का सब से बड़ा बहादुर "मरहब" खुद इस क़ल्ए की हिफ़ाज़त करता था इस लिये इस क़ल्ए को फ़त्ह करने में बड़ी दुश्वारी हुई। कई रोज़ तक येह मुहिम सर न हो सकी।
࿐ हुज़ूर ﷺ ने इस कल्ए पर पहले दिन हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ رضي الله عنه की कमान में इस्लामी फ़ौजों को चढ़ाई के लिये भेजा और उन्हों ने बहुत ही शुजाअत और जांबाज़ी के साथ हम्ला फ़रमाया मगर यहूदियों ने कल्ए की फ़सील पर से इस ज़ोर की तीर अन्दाजी और संगबारी की, कि मुसलमान कल्ए के फाटक तक न पहुंच सके और रात हो गई। दूसरे दिन हज़रते उमर رضي الله عنه ने ज़बर दस्त हम्ला किया और मुसलमान बड़ी गर्मजोशी के साथ बढ़ बढ़ कर दिन भर क़ल्ए पर हम्ला करते रहे मगर कुल्आ फत्ह न हो सका। और क्यूंकर फ़त्ह होता ? फातेहे खैबर होना तो अली हैदर के मुक़द्दर में लिखा था। चुनान्चे हुज़ूर ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया कि कल मैं उस आदमी को झन्डा दूंगा जिस के हाथ पर अल्लाह तआला फ़तह देगा वोह अल्लाह व रसूल का मुहिब भी है और महबूब भी।
࿐ रावी ने कहा कि लोगों ने येह रात बड़े इजतराब में गुज़ारी कि देखिये कल किस को झन्डा दिया जाता है ? सुबह हुई तो सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم खिदमते अक़दस में बड़े इश्तियाक़ के साथ येह तमन्ना ले कर हाज़िर हुए कि येह ए'जा़ाज़ व शरफ़ हमें मिल जाए। इस लिये कि जिस को झन्डा मिलेगा उस के लिये तीन बिशारतें हैं।
(1) वोह अल्लाह व रसूल का मुहिब है।
(2) वोह अल्लाह व रसूल का महबूब है।
(3) खैबर उस के हाथ से फतह होगा।
࿐ हज़रते उमर رضی الله تعالی عنه का बयान है कि उस रोज़ मुझे बड़ी तमन्ना थी कि काश! आज मुझे झन्डा इनायत होता। वोह येह भी फ़रमाते हैं कि इस मौकअ के सिवा मुझे कभी भी फ़ौज की सरदारी और अफ्सरी की तमन्ना न थी। हज़रते साद رضی الله تعالی عنه के बयान से मालूम होता है कि दूसरे सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم भी इस नेमते उज़्मा के लिये तरस रहे थे। लेकिन सुब्ह को अचानक येह सदा लोगों के कान में आई कि अली कहां हैं ? लोगों ने अर्ज़ किया कि उन की आंखों में आशोब है। आप ﷺ ने क़ासिद भेज कर उन को बुलाया और उन की दुखती हुई आंखों में अपना लुआबे दहन लगा दिया और दुआ फ़रमाई तो फ़ौरन ही उन्हें ऐसी शिफा हासिल हो गई कि गोया उन्हें कोई तक्लीफ़ थी ही नहीं।
࿐ फिर ताजदारे दो आलम ﷺ ने अपने दस्ते मुबारक से अपना अलमे नबवी जो हज़रते उम्मुल मुअमिनीन बीबी आइशा رضی الله تعالی عنها की सियाह चादर से तय्यार किया गया था हज़रते अली के हाथ में अता फरमाया। और इर्शाद फ़रमाया कि तुम बड़े सुकून के साथ जाओ और उन यहूदियों को इस्लाम की दावत दो और बताओ कि मुसलमान हो जाने के बा'द तुम पर फुलां फुलां अल्लाह के हुकूक वाजिब हैं। खुदा की कुसम ! अगर एक आदमी ने भी तुम्हारी बदौलत इस्लाम कुबूल कर लिया तो येह दौलत तुम्हारे लिये सुर्ख ऊंटों से भी ज़ियादा बेहतर है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 387 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 247* ༺❘
*❝ जंगे खैबर #07 ¶ हज़रते अली और मरहब की जंग ❞*
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࿐ हज़रते अली رضي الله عنه ने "कल्अए क़मूस" के पास पहुंच कर यहूदियों को इस्लाम की दावत दी, लेकिन उन्हों ने इस दावत का जवाब ईंट और पथ्थर और तीर व तलवार से दिया। और कल्ए का रईसे आ'ज़म "मरहब" खुद बड़े तन तने के साथ निकला। सर पर यमनी ज़र्द रंग का ढाटा बांधे हुए और उस के ऊपर पथ्थर का ख़ौद पहने हुए रज्ज़ का येह शे'र पढ़ते हुए हम्ले के लिये आगे बढ़ा कि "खैबर खूब जानता है कि मैं "मरहब" हूं, अस्लिहा पोश हूं, बहुत ही बहादुर और तजरिबा कार हूं। हज़रते अली رضی الله تعالی عنه ने उस के जवाब में रज्ज़ का येह शे'र पढ़ा "मैं वोह हूं कि मेरी मां ने मेरा नाम हैदर (शेर) रखा है। मैं कछार के शेर की तरह हैबत नाक हूं।
࿐ मरहब ने बड़े तम तराक़ के साथ आगे बढ़ कर हज़रते शेरे खुदा पर अपनी तलवार से वार किया मगर आपने ऐसा पेंतरा बदला कि मरहब का वार खाली गया। फिर आपने बढ़ कर उस के सर पर इस ज़ोर की तलवार मारी कि एक ही ज़र्ब से खौद कटा, मगफर कटा और जुल फ़िक़ारे हैदरी सर को काटती हुई दांतों तक उतर आई और तलवार की मार का तड़ाका फ़ौज तक पहुंचा और मरहब ज़मीन पर गिर कर ढेर हो गया।
࿐ मरहब की लाश को ज़मीन पर तड़पते हुए देख कर उस की तमाम फ़ौज हज़रत शेरे खुदा पर टूट पड़ी। लेकिन जुल फ़िक़ारे हैदरी बिजली की तरह चमक चमक कर गिरती थी जिस से सफ़ों की सफ़े उलट गई। और यहूदियों के मायानाज़ बहादुर मरहब, हारिष, असीर, आमिर वगैरा कट गए। इसी घमसान की जंग में हजरते अली की ढाल कट कर गिर पड़ी तो आप ने आगे बढ़ कर कलअए क़मुस का फाटक उखाड़ दिया और किवाड़ को ढाल बना कर उस पर दुश्मनों की तलवारें रोकते रहे। येह किवाड़ इतना बड़ा और वज़्नी था कि बाद को चालीस आदमी उस को न उठा सके।
࿐ जंग जारी थी कि हज़रते अली शेरे खुदा رضی الله تعالی عنه ने कमाले शुजाअत के साथ लड़ते हुए खैबर को फतह कर लिया और हज़रते सादिकुल वाद ﷺ का फरमान सदाक़त का निशान बन कर फ़ज़ाओं में लहराने लगा कि "कल मैं उस आदमी को झन्डा दूंगा जिस के हाथ पर अल्लाह तआला फत्ह देगा वोह अल्लाह व रसूल का मुहिब भी है और अल्लाह व रसूल का महबूब भी।"
࿐ बेशक हज़रत मौलाए कानात رضی الله تعالی عنه अल्लाह व रसूल के मुहिब भी हैं और महबूब भी हैं। और बिला शुबा अल्लाह तआला ने आपके हाथ से खैबर की फ़त्ह अता फ़रमाई और क़ियामत तक के लिये अल्लाह तआला ने आप को फातेहे खैबर के मुअज्जज लकब से सरफ़राज़ फ़रमा दिया और येह वोह फ़तहे अज़ीम है जिस ने पूरे "जज़ी-रतुल अरब" में यहुदीयों की जंगी ताकत का जनाज़ा निकाल दिया। फ़तहे खैबर से क़ब्ल इस्लाम यहूदियों और मुशरिकीन के गठजोड़ से नज्अ की हालत में था लेकिन खैबर फ़तह हो जाने के बाद इस्लाम इस ख़ौफ़नाक नज्अ से निकल गया और आगे इस्लामी फुतूहात के दरवाज़े खुल गए। चुनान्चे इस के बाद ही मक्का भी फ़तह हो गया। इस लिये येह एक मुसल्लमा हक़ीक़त है कि फ़ातेह खैबर की जात से तमाम इस्लामी फुतूहात का सिल्सिला वाबस्ता है। बहर हाल खैबर का कल्आ कमूस बीस दिन के मुहासरे और ज़बर दस्त मारिका आराई के बाद फ़तह हो गया। इन मारिकों में 93 यहूदी क़त्ल हुए और 15 मुसलमान जामे शहादत से सैराब हुए।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 388 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 248* ༺❘
*❝ जंगे खैबर #08 ¶ खैबर का इन्तिज़ाम ❞*
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࿐ फ़तह के बाद खैबर की ज़मीन पर मुसलमानों का कब्जा हो गया और हुजूर ﷺ ने इरादा फ़रमाया कि बनू नज़ीर की तरह अहले खैबर को भी जिला वतन कर दें। लेकिन यहूदियों ने येह दर ख्वास्त की, कि हम को खैबर से न निकाला जाए और ज़मीन हमारे ही क़ब्ज़े में रहने दी जाए। हम यहां की पैदावार का आधा हिस्सा आप को देते रहेंगे। हुजूर ﷺ ने उन की येह दर ख्वास्त मन्जूर फ़रमा ली। चुनान्चे जब खजूरें पक जातीं और गल्ला तय्यार हो जाता तो हुजुर ﷺ हज़रते अब्दुल्लाह बिन रवाहा رضي الله عنه को खैबर भेज देते वोह खजूरों और अनाजों को दो बराबर हिस्सों में तक्सीम कर देते और यहूदियों से फ़रमाते कि इस में से जो हिस्सा तुम को पसन्द हो वोह ले लो। यहूदी इस अद्ल पर हैरान हो कर कहते थे कि ज़मीन व आस्मान ऐसे ही अद्ल से काइम हैं।
࿐ हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर رضي الله عنه का बयान है कि खैबर फ़त्ह हो जाने के बाद यहूदियों से हुज़ूर ﷺ ने इस तौर पर सुल्ह फ़रमाई कि यहूदी अपना सोना चादी हथियार सब मुसलमानों के सिपुर्द कर दें और जानवरों पर जो कुछ लदा हुवा है वोह यहूदी अपने पास ही रखें मगर शर्त येह है कि यहूदी कोई चीज़ मुसलमानों से न छुपाएं मगर इस शर्त को क़बूल कर लेने के बावजूद हुयय बिन अख़्तब का वोह चरमी थेला यहूदियों ने गाइब कर दिया जिस में बनू नज़ीर से जिला वतनी के वक्त वोह सोना चांदी भर कर लाया था। जब यहूदियों से पूछगछ की गई तो वोह झूट बोले और कहा कि वोह सारी रकम लड़ाइयों में खर्च हो गई। लेकिन अल्लाह तआला ने ब ज़रीअए वहय अपने रसूल ﷺ को बता दिया कि वोह थेला कहां है।चुनान्चे मुसलमानों ने उस थेले को बर आमद कर लिया।
࿐ इस के बाद (चूंकि किनाना बिन अबिल हुकैक ने हज़रते महमूद बिन मुस्लिमा को छत से पथ्थर गिरा कर क़त्ल कर दिया था इस लिये हुजूर ﷺ ने उस को किसास में क़त्ल करा दिया और उस की औरतों को कैदी बना लिया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 391 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 249* ༺❘
*❝ जंगे खैबर #09 ¶ हज़रते सफिय्या का निकाह ❞*
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࿐ कैदियों में हज़रते बीबी सफिय्या رضي الله عنها भी थीं। येह बनू नज़ीर के रईसे आ'जम हुयय बिन अख़्तब की बेटी थीं और इन का शोहर किनाना बिन अबिल हुकैक भी बनू नज़ीर का रईसे आ'ज़म था। जब सब कैदी जम्अ किये गए तो हज़रते दहया कलबी رضي الله عنه ने हुजूर ﷺ से अर्ज किया कि या रसूलल्लाह ﷺ इन में से एक लौंडी मुझ को इनायत फ़रमाइये। आप ﷺ ने उन को इख़्तियार दे दिया कि खुद जा कर कोई लौंडी ले लो। उन्हों ने हज़रते सफ़िय्या को ले लिया। बा'ज़ सहाबा पर गुज़ारिश की, कि या रसूलल्लाह ﷺ! आप ने सफिय्या को दहया के हवाले कर दिया। वोह क़रीज़ा और बनू नज़ीर की रईसा है वोह आप के सिवा किसी और के लाइक़ नहीं है।
࿐ येह सुन कर आप ﷺ ने हज़रते दहया कलबी और हज़रते सफिय्या को बुलाया और हज़रते दहया से फ़रमाया कि तुम इस के सिवा कोई दूसरी लौंडी ले लो। इसके बाद हज़रते सफीय्या رضی الله تعالی عنها को आज़ाद कर के आप ﷺ ने उन से निकाह फ़रमा लिया और तीन दिन तक मन्ज़िले सहबा में इन को अपने खैमे में सरफ़राज़ फ़रमाया और सहाबा किराम رضی الله تعالی عنهم को दावते वलीमा में खजूर, घी, पनीर का मालीदा खिलाया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 392📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 250* ༺❘
*❝ जंगे खैबर #10 ¶ हुज़ूर ﷺ को ज़हर दिया गया ❞*
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࿐ फ़तह के बाद चन्द रोज़ हुज़ूर ﷺ खैबर में ठहरे। यहूदियों को मुकम्मल अम्नो अमान अता फ़रमाया और क़िस्म क़िस्म की नवाजिशों से नवाज़ा मगर इस बद बातिन क़ौम की फ़ितरत में इस क़दर ख़बाषत भरी हुई थी कि सलाम बिन मशकम यहूदी की बीवी “ज़ैनब” ने हुज़ूर ﷺ की दावत की और गोश्त में ज़हर मिला दिया। खुदा के हुक्म से गोश्त की बोटी ने आप ﷺ को ज़हर की ख़बर दी और आप ने एक ही लुकमा खा कर हाथ खींच लिया। लेकिन एक सहाबी हज़रते बिशर बिन बराअ رضي الله عنه ने शिकम सैर खा लिया और ज़हर से उन की शहादत हो गई और हुज़ूर ﷺ को भी इस ज़हरीले लुक्मे से उम्र भर तालू में तकलीफ़ रही।
࿐ आप ने जब यहूदियों से इस के बारे में पूछा तो उन ज़ालिमों ने अपने जुर्म का इक्रार कर लिया और कहा कि हम ने इस निय्यत से आप को जहर खिलाया कि अगर आप सच्चे नबी होंगे तो आप पर इस ज़हर का कोई अषर नहीं होगा। वरना हम को आप से नजात मिल जाएगी। आप ﷺ ने अपनी जात के लिये तो कभी किसी से इनतिकाम लिया ही नहीं इस लिये आप ने जैनब से कुछ भी नहीं फ़रमाया मगर जब हज़रते बिशर बिन बराअ رضی الله تعالی عنه की वफ़ात हो गई तो उन के क़िसास में जैनब कत्ल की गई।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 394 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 251* ༺❘
*❝ जंगे खैबर #11¶ हज़रत जाफर हबशा से आ गए ❞*
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࿐ हुज़ूर ﷺ फतह खैबर से फारिग हुए ही थे कि मुहाजिरीने हबशा में से हज़रते जाफर رضي الله عنه जो हज़रते अली رضي الله عنه के भाई थे और मक्का से हिजरत कर के हबशा चले गए थे वोह अपने साथियों के साथ हबशा से आ गए। हुज़ूर ﷺ ने फर्ते महब्बत से उन की पेशानी चूम ली और इर्शाद फ़रमाया कि मैं कुछ कह नहीं सकता कि मुझे खैबर की फ़त्ह से ज्यादा खुशी हुई है या जाफर के आने से।
࿐ उन लोगों को हुजूर ﷺ ने "साहिबुल हिजरतैन (दो हिजरतों वाले) का लकब अता फरमाया क्यूं कि येह लोग मक्का से हबशा हिजरत कर के गए। फिर हबशा से हिजरत कर के मदीना आए और बा वुजूदे कि येह लोग जंगे खैबर में शामिल न हो सके मगर इन लोगों को आप ﷺ ने माले गनीमत में से मुजाहिदीन के बराबर हिस्सा दिया।
࿐ *खैबर में एलाने मसाइल :-* जंगे खैबर के मौक़अ पर मुन्दरिजए जैल फ़िक़ही मसाइल की हुज़ूर ﷺ ने तब्लीग फ़रमाई।
(1) पन्जादार परिन्दों को हराम फ़रमाया।
(2) तमाम दरिन्दा जावनरों की हुरमत का एलान फ़रमा दिया।
(3) गधा और खच्चर हराम कर दिया गया।
(4) चांदी सोने की खरीदो फरोख्त में कमी बेशी के साथ खरीदने और बेचने को हराम फ़रमाया और हुक्म दिया कि चांदी को चांदी के बदले और सोने को सोने के बदले बराबर बराबर बेचना ज़रूरी है। अगर कमी बेशी होगी तो वोह सूद होगा जो हराम है।
(5) अब तक येह हुक्म था कि लौंडियों से हाथ आते ही सोहबत करना जाइज़ था लेकिन अब "इस्तिब्रा" ज़रूरी क़रार दे दिया गया या'नी अगर वोह हामिला हों तो बच्चा पैदा होने तक वरना एक महीना उन से सोहबत जाइज़ नहीं।" औरतों से मुतआ करना भी इसी गज़वे में हराम कर दिया गया।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 395 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 252* ༺❘
*❝ वादिये अल कुरा की जंग ❞*
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࿐ खैबर की लड़ाई से फारिग हो कर हुजुरे अकरम ﷺ "वादिये अल कुरा" तशरीफ़ ले गए जो मक़ामे “तीमाअ" और "फ़िदक" के दरमियान एक वादी का नाम है। यहां यहूदियों की चन्द बस्तियां आबाद थीं। हुजुर ﷺ जंग के इरादे से यहां नहीं आए थे मगर यहां के यहूदी चूंकि जंग के लिये तय्यार थे इस लिये उन्हों ने हुज़ूर ﷺ पर तीर बरसाना शुरू कर दिया। चुनान्चे आप ﷺ के एक गुलाम जिन का नाम हज़रते मदअम رضي الله عنه था येह ऊंट से कजावा उतार रहे थे कि उन को एक तीर लगा और येह शहीद हो गए। रसूलुल्लाह ﷺ ने उन यहूदियों को इस्लाम की दावत दी जिस का जवाब उन बद बख़्तों ने तीर व तलवार से दिया और बा काइदा सफ़ बन्दी कर के मुसलमानों से जंग के लिये तय्यार हो गए।
࿐ मजबूरन मुसलमानों ने भी जंग शुरू कर दी, चार दिन तक नबिय्ये अकरम ﷺ उन यहूदियों का मुहासरा किये हुए उन को इस्लाम की दावत देते रहे मगर येह लोग बराबर लड़ते ही रहे। आखिर दस यहूदी क़त्ल हो गए और मुसलमानों को फ़तहे मुबीन हासिल हो गई। इस के बा'द अहले खैबर की शर्तों पर इन लोगों ने भी सुल्ह कर ली कि मक़ामी पैदावार का आधा हिस्सा मदीना भेजते रहेंगे। जब खैबर और वादिये अल कुरा के यहूदियों का हाल मालूम हो गया तो “तीमाअ" के यहूदियों ने भी जिज्या दे कर हुज़ूर ﷺ से सुल्ह कर ली। वादिये अल कुरा में हुजूर ﷺ चार दिन मुकीम रहे।
࿐ *फ़िदक की सुल्ह :-* जब “फ़िदक" के यहूदियों को खैबर और वादिये अल कुरा के मुआमले की इत्तिलाअ मिली तो उन लोगों ने कोई जंग नहीं की। बल्कि दरबारे नुबुव्वत में क़ासिद भेज कर येह दर ख़्वास्त की, कि खैबर और वादिये अल कुरा वालों से जिन शर्तों पर आप ने सुल्ह की है उसी तरह के मुआमले पर हम से भी सुल्ह कर ली जाए। रसूलुल्लाह ﷺ ने उन की येह दरख्वास्त मन्ज़ूर फ़रमा ली और उन से सुल्ह हो गई। लेकिन यहां चूंकि कोई फ़ौज नहीं भेजी गई इस लिये इस बस्ती में मुजाहिदीन को कोई हिस्सा नहीं मिला बल्कि ये खास हुज़ूर ﷺ की मिल्किय्यत करार पाई और खैबर व वादिये अल कुरा की ज़मीनें तमाम मुजाहिदीन की मिल्किय्यत ठहरीं।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 395 📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 253* ༺❘
*❝ उम्रतिल कज़ा ❞*
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࿐ चूंकि हुदैबिया के सुल्ह नामे में एक दफ्आ येह भी थी कि आइन्दा साल हुज़ूर ﷺ मक्का आ कर उमरा अदा करेंगे और तीन दिन मक्का में ठहरेंगे। इस दफ्आ के मुताबिक माहे जुल कादह सि. 7 हि. में आप आयन्दा साल आप ने उमरा अदा करने के लिये मक्का रवाना होने का अज़्म फ़रमाया और ए'लान करा दिया कि जो लोग गुज़श्ता साल हुदैबिया में शरीक थे वोह सब मेरे साथ चलें। चुनान्चे ब जुज़ उन लोगों के जो जंगे खैबर में शहीद या वफ़ात पा चुके थे सब ने येह सआदत हासिल की। हुजूर ﷺ को चूंकि कुफ्फारे मक्का पर भरोसा नहीं था कि वोह अपने अहद को पूरा करेंगे इस लिये आप जंग की पूरी तय्यारी के साथ रवाना हुए। ब वक्ते रवानगी हज़रते अबू रहम गिफ़ारी رضي الله عنه को आप ने मदीना पर हाकिम बना दिया और दो हज़ार मुसलमानों के साथ जिन में एक सो घोड़ों पर सुवार थे आप मक्का के लिये रवाना हुए। साठ ऊंट कुरबानी के लिये साथ थे। जब कुफ्फ़ारे मक्का को ख़बर लगी कि हुजूर ﷺ हथियारों और सामाने जंग के साथ मक्का आ रहे हैं तो वोह बहुत घबराए और उन्हों ने चन्द आदमियों को सूरते हाल की तहकीकात के लिये "मुर्रुज्ज़हरान" तक भेजा।
࿐ हजरते मुहम्मद बिन मुस्लिमा رضي الله عنه जो अस्प सुवारों के अफ्सर थे कुरैश के क़ासिदों ने उन से मुलाकात की। उन्हों ने इत्मीनान दिलाया कि नबी ﷺ सुल्ह नामा की शर्त के मुताबिक बिगैर हथियार के मक्का में दाखिल होंगे येह सुन कर कुफ्फ़ारे कुरैश मुत्मइन हो गए। चुनान्चे हुजूर ﷺ जब मकामे “याजज" में पहुंचे जो मक्का से आठ मील दूर है, तो तमाम हथियारों को उस जगह रख दिया और हज़रते बशीर बिन साद की मा तहती में चन्द सहाबए किराम को उन हथियारों की हिफाजत के लिये मुतअय्यन फ़रमा दिया। और अपने साथ एक तलवार के सिवा कोई हथियार नहीं रखा और सहाबए किराम के मज्मअ के साथ "लब्बैक" पढ़ते हुए हरम की तरफ बढ़े जब मक्का में दाखिल होने लगे तो दरबारे नुबुव्वत के शाइर हज़रते अब्दुल्लाह बिन रवाहा ऊंट की मुहार थामे हुए आगे आगे रज्ज के येह अशआर जोशो खरोश के साथ बुलन्द आवाज़ से पढ़ते जाते थे कि
*ऐ काफिरों के बेटो ! सामने से हट जाओ। आज जो तुम ने उतरने से रोका तो हम तलवार चलाएंगे।*
*हम तलवार का ऐसा वार करेंगे जो सर को उस की ख़्वाब गाह से अलग कर दे और दोस्त की याद उस के दोस्त के दिल से भुला दे।*
࿐ हज़रते उमर ने टोका और कहा कि ऐ अब्दुल्लाह बिन रवाहा ! रसूलुल्लाह ﷺ के आगे आगे और अल्लाह तआला के हरम में तुम अश्आर पढ़ते हो ? तो हुज़ूर ने फ़रमाया कि ए उमर! इन को छोड़ दो। येह अशआर कुफ्फार के हक़ में तीरों से बढ़ कर हैं। जब रसूले अकरम ﷺ खास हरमे काबा में दाखिल हुए तो कुछ कुफ्फारे कुरैश मारे जलन के इस मन्ज़र की ताब न ला सके और पहाड़ों पर चले गए। मगर कुछ कुफ्फार अपने दारुन्नदवा (कमेटी घर) के पास खड़े आंखें फाड़ फाड़ कर बाद तौहीद व रिसालत से मस्त होने वाले मुसलमानों के तवाफ़ का नज़ारा करने लगे और आपस में कहने लगे कि येह मुसलमान भला क्या तवाफ़ करेंगे? इन को तो भूक और मदीने के बुखार ने कुचल कर रख दिया है।
࿐ हुजुर ﷺ ने मस्जिदे हराम में पहुंच कर "इज़तिबाअ" कर लिया। या'नी चादर को इस तरह ओढ़ लिया कि आप का दाहिना शाना और बाज़ू खुल गया और आप ने फ़रमाया कि खुदा उस पर अपनी रहमत नाज़िल फ़रमाए जो इन कुफ्फ़ार के सामने अपनी कुव्वत का इज़हार करे। फिर आप ﷺ ने अपने असहाब के साथ शुरूअ के तीन फेरों में शानों को हिला हिला कर और खूब अकड़ते हुए चल कर तवाफ़ किया। इस को अरबी ज़बान में "रमल" कहते हैं। चुनान्चे येह सुन्नत आज तक बाक़ी है और क़ियामत तक बाक़ी रहेगी कि हर तवाफ़े काबा करने वाला शुरूए तवाफ़ के तीन फेरों में "रमल" करता है।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 398📚*
*🌹✨ सीरते मुस्तफा صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 254* ༺❘
*❝ हज़रते हम्ज़ा की साहिब जादी ❞*
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࿐ तीन दिन के बाद कुफ्फ़ारे मक्का के चन्द सरदार हज़रते अली رضي الله عنه के पास आए और कहा कि शर्त पूरी हो चुकी। अब आप लोग मक्का से निकल जाएं। हज़रते अली رضي الله عنه ने बारगाहे नुबुव्वत में कुफ्फ़ार का पैगाम सुनाया तो आप उसी वक्त मक्का से रवाना हो गए। चलते वक्त हज़रते हम्जा की एक छोटी साहिब जादी जिन का नाम “अमामा" था। हुजूर ﷺ को चचा चचा कहती हुई दौड़ी आई। हुजूर ﷺ के चचा हज़रते हम्जा رضي الله عنه जंगे उहुद में शहीद हो चुके थे। उन की येह यतीम छोटी बच्ची मक्का में रह गई थीं। जिस वक्त येह बच्ची आप को पुकारती हुई दौड़ी आई तो हुज़ूर ﷺ को अपने शहीद चचाजान की इस यादगार को देख कर प्यार आ गया। उस बच्ची ने आप को भाईजान कहने की बजाए चचाजान इस रिश्ते से कहा कि आप ﷺ हज़रते हम्ज़ा के रज़ाई भाई हैं, क्यूं कि आप ﷺ ने और हज़रते हम्जा ने हज़रते षुवैबा का दूध पिया था।
࿐ जब येह साहिब ज़ादी क़रीब आई तो हज़रते अली رضی الله تعالی عنه ने आगे बढ़ कर उन को अपनी गोद में उठा लिया लेकिन अब उन की परवरिश के लिये तीन दावेदार खड़े हो गए। हज़रते अली رضی الله تعالی عنه ने येह कहा कि या रसूलल्लाह ﷺ! येह मेरी चचाज़ाद बहन है और मैं ने इस को सब से पहले अपनी गोद में उठा लिया है इस लिये मुझ को इस की परवरिश का हक मिलना चाहिये, हजरते जाफर رضی الله تعالی عنه ने येह गुज़ारिश की, कि या रसूलल्लाह ﷺ! येह मेरी चचाज़ाद बहन भी है और इस की ख़ाला मेरी बीवी है इस लिये इस की परवरिश का मैं हक़दार हूं। हज़रते जैद बन हारिषा رضی الله تعالی عنه ने अर्ज किया कि या रसूलल्लाह ﷺ! येह मेरे दीनी भाई हज़रते हम्जा की लड़की है इस लिये मैं इस की परवरिश करूंगा। तीनों साहिबों का बयान सुन कर हुज़ूर ﷺ ने येह फ़ैसला फ़रमाया कि "खाला मां के बराबर होती है" लिहाजा येह लड़की हज़रते जाफर की परवरिश में रहेगी।
࿐ फिर तीनों साहिबों की दिलदारी व दिलजूई करते हुए रहमते आलम ﷺ ने येह इर्शाद फ़रमाया कि “ऐ अली ! तुम मुझ से हो और मैं तुम से हूं।" और हज़रते जाफर رضی الله تعالی عنه से फ़रमाया कि “ऐ जाफ़र ! तुम सीरत व सूरत में मुझ से मुशाबहत रखते हो।" और हज़रते जैद बिन हारिषा رضی الله تعالی عنه से येह फरमाया कि " ऐ जैद ! तुम मेरे भाई और मेरे मौला (आज़ाद करदा गुलाम) हो।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 400 📚*
❘༻ *पोस्ट नम्बर :- 255* ༺❘
*❝ हज़रते मैमूना का निकाह ❞*
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࿐ इसी उम्रतिल क़ज़ा के सफर में हुज़ूर ﷺ ने हज़रते बीबी मैमूना رضي الله عنها से निकाह फ़रमाया। येह आप की चची उम्मे फ़ज़्ल जौजए हज़रते अब्बास की बहन थीं। उमरतील क़ज़ा से वापसी में जब आप ﷺ मक़ामे "सरफ़" में पहुंचे तो इन को अपने खैमे में रख कर अपनी सोहबत से सरफ़राज़ फ़रमाया और अजीब इत्तिफ़ाक़ कि इस वाकिए से चव्वालीस बरस के बाद इसी मक़ामे सरफ़ में हजरते बीबी मैमूना का विसाल हुवा और उन की क़ब्र शरीफ़ भी इसी मक़ाम में है। सहीह क़ौल येह है कि इन की वफ़ात का साल सि. 51 हि. है। मुफ़स्सल बयान अज्वाजे मुतहहरात के बयान में आएगा।
*❝ हिजरत का आठवां साल सि. 8 हि. ❞*
࿐ हिजरत का आठवां साल भी हुज़ूर सरवरे काएनात ﷺ की मुक़द्दस हयात के बड़े बड़े वाक़िआत पर मुश्तमिल है। हम इन में से यहां चन्द अहम्मिय्यत व शोहरत वाले वाकआत का तज़किरा करते हैं।
*❝ जंगे मौता #01 ❞*
࿐ “मौता" मुल्के शाम में एक मक़ाम का नाम है। यहां सि. 8 हि. में कुफ़्र व इस्लाम का वोह अज़ीमुश्शान मारिका हुवा जिस में एक लाख लश्करे कुफ्फ़ार से सिर्फ तीन हज़ार जां निषार मुसलमानों ने अपनी जान पर खेल कर ऐसी मरिका आराइ की, कि ये लड़ाई तारीखे इस्लाम में एक तारीखी यादगार बन कर क़यामत तक बाकी रहेगी और इस जंग में सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم की बड़ी बड़ी उलूल अज़्म हस्तियां शरफे शहादत से सरफ़राज़ हुई।
*📬 क़िताब :- सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 402 📚*