❝ गुनाहों से तौबा ❞
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❝ गुनाहों से तौबा करना हर मुसलमान मर्द व औरत पर वाजिब है!?❞
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៚ फरमाने इलाही है!
*៚ ऐ ईमान वालो !* अल्लाह की तरफ ऐसी तौबा करो जो आगे को नसीहत हो जाए।
*📘 अत्तहरीम : 8*
៚ और उन जैसे न हो जो अल्लाह को भूल बैठे।
*📔 अल हश्र : 19*
៚ बेशक अल्लाह पसंद करता है बहूत तौबा करने वालों को और पसंद रखता हैं सुथ्रों को।
📕 *अलबकरह : 222*
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❝ गुनाहों से तौबा करना हर मुसलमान मर्द व औरत पर वाजिब है!?❞
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៚ *फरमाने रसूल ﷺ*
៚ गुनाहों से तौबा करने वाला ऐसा है, जैसे कि उसने गुनाह किया ही नहीं।"
៚ अल्लाह तआला के नज़्दीक कोई चीज़ इससे ज़्यादा पसंदीदा नहीं कि जवान आदमी तौबा करे।
៚ तुम में से बेहतर वोह शख्स है जिससे अगर गुनाह सादिर हो तो बाद में फौरन तौबा करें।
*៚ तौबतुन- नसुहा के क्या मअना है, उसकी तअरीफ क्या है और बंदे को क्या करना चाहिये जिससे उसके तमाम गुनाह मुआफ हो जायें।*
*៚ तो इस बारे में सुफीया फरमाते हैं* कि दिल के कामों में से एक काम तौबा है और आम उलमाए किराम ने इसकी तअरीफ ये की है।
៚ *दिल को गुनाहों से पाक करना।*
៚ और मशाएख ने इस बारे में येह तअरीफ की है। आइन्दा के लिये ऐसे गुनाह छोड़ देने का इरादा करना जिस दर्जे का गुनाह पहले हो चुका हो और येह तर्क खुदा की तअजीम और उसकी नाराजगी के डर की वजह से हो।...✍🏻
*📔 मिन्हाजुलआबेदीन*
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❝ गुनाहों से तौबा करना हर मुसलमान मर्द व औरत पर वाजिब है!?❞
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៚ *इमामें गज़ाली फरमाते हैं कि* ऐ इबादत के तालिब! तुझ पर इबादत में मशगूल होने से पहले अपने गुनाहों से तौबा करना लाजिम है और येह दो वजह से लाजिम है। एक तो इसलिये कि तौबा की वजह से तुम्हें फरमाबरदारी और इबादत की तौफीक नसीब हो। क्योंकि गुनाहों की नहूसत बंदे को फरमाबरदारी और इबादात बजा लाने से महरूम कर देती है और उसपर ज़िल्लत और रूसवाई मुसल्लत कर देती है। यकीन जानों कि गुनाह एक ऐसी जंजीर है जो बंदे को नेकी की तरफ चलने से रोक देती है और गुनाहो के होते हुए अच्छे कामों में जल्दी नहीं हो सकती। क्योंकि गुनाहो का बोझ नेकीयों के सुकून को पैदा नहीं होने देता और गुनाहों पर इसरार और अड़े रहना दिल को सियाह (काला) कर देता है। इस तरह इन्सान संगदिली और गुनाहों के अंधेरों में मुब्तला हो जाता है, न उसमें खुलूस पैदा हो सकता है और न ही इबादत में लज्जत और हलावत पैदा हो सकती है।...✍🏻
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❝ गुनाहों से तौबा करना हर मुसलमान मर्द व औरत पर वाजिब है!?❞
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៚ जो शख़्स गुनाहों से तौबा ही न करेगा और अगर खुदा का फल उस के शामिले हाल न हो तो रफ्ता रफ्ता येह गुनाह उसे कुफ्र तक पहुँचा देंगे। ऐसे शख्स पर बदबख़्ती गालिब आ जायेगी। तौबा के जरूरी होने की दुसरी वजह येह है कि बगैर तौबा के इबादात कुबूल नहीं होती। जिस तरह कर्ज ख्वाह का कर्ज अदा करने से पहले उसके सामने हदये तोहफे कोई अहमियत नहीं रखते और न ही वोह उन्हें कुबूल करता है। इसी तरह पहले गुनाहों से तौबा लाज़िम है उसके बाद आम इबादाते नाफेला। इसी तरह जब फराइज़ किसी के जिम्मे लाज़िम हो तो उसके नवाफिल वगैरह कैसे कुबूल हो सकते है। इसी तरह अगर कोई शख़्स हराम व मम्नुअ काम ना छोड़े मगर मुबाह और हलाल चिज़ो में परहेज़ व अहतियात करें तो उसका परहेज करना क्या हैसियत रख सक्ता है और वोह शख़्स खुदा तआला से मुनाजात, उसकी बारगाह में पसंदीदा और उसकी सना करने के लायक कैसे हो सकता है।...✍🏻
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❝ तौबा के शराइत❞
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៚ मशाएख की तअररीफ के मुताबिक तौबा की चार शर्ते हैं।
៚ *❶ "पहली शर्त'* गुनाह छोड़ देने का इरादा। इसका मतलब येह है कि अपने दिल को इस बात पर पुख्ता और मजबूत करले, कि आईन्दा कमी गुनाहों की तरफ नहीं पलदूंगा। लेकिन अगर कोई शख्स गुनाह छोड़ दे मगर दिल में ख्याल हो कि फिर कभी गुनाह करूँगा या शुरूआत से गुनाह छोड़ने का इरादा ही न हो तो ऐसा शख्स बअज औकात फिर गुनाहों में मुब्तला हो जाता है। ऐसा शख्स अगरचे वक्ती तौर पर गुनाहों से रूक जाता है मगर उसे ताइब नहीं कहा जा सकता।
៚ *❷ "दुसरी शर्त येह है कि"* जिस गुनाह से तौबा कर रहा हो उस दर्जे का गुनाह पहले कहीं उससे सादिर हो चुका हो क्योंकि अगर पहले इससे ऐसा गुनाह सादिर नहीं हुआ सिर्फ आइन्दा के लिये उससे बचता है तो ऐसे शख्स को ताइब नहीं कहेंगे बल्कि मुत्तकी कहेगे।...✍🏻
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❝ तौबा के शराइत❞
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៚ मशाएख की तअररीफ के मुताबिक तौबा की चार शर्ते हैं।
៚ ❸ *"तिसरी शर्त येह है"* कि वोह गुनाह रूतबे में पहले गुनाह की तरह हो न कि सुरत में जैसा कि पुराने बुढ़े ने जवानी के जमाने में जिना या डाका - जनी का इर्तेकाब किया हो कि अब वोह बुढ़ापे में तौबा तो कर सकता है क्योंकि तौबा का दरवाजा बंद नहीं हुआ हैं मगर अब उसे जिना या डाका - जनी को छोड़ने का इख्तियार नहीं। क्योंकि अब वोह अमली तौर पर गुनाह नहीं कर सकता। तो चुंकि अब वोह जिना या डाका - जनी पर कादिर नहीं, इसलिये ये नहीं कह सकते कि वोह उन्हे अपने इख्तियार से छोड़ रहा है या उनसे रूक रहा है क्यों कि अब वोह आजिज हो चुका है और अब उसे गुनाहों पर कुदरत नहीं रही। मगर वोह इस वक्त भी जिना या डाका जनी जैसे दुसरे हराम व मम्नुअ कामों पर कादिर है जैसे झूट बोलना, किसी को ज़िना की तोहमत लगाना, किसी की गीबत या चुगली करना वगैरह .... येह सब गुनाह है। अगरचे हर एक में अपने एअतेबार से फर्क हैं लेकिन ये गुनाह एक ही रूतबे के शुमार होते है। मगर येह गुनाह बिदअत की पैरवी से कम हैं और बिदअत की पैरवी कुफ से कम है।
៚ ❹ *"चौथी शर्त येह है कि* तौबा अल्लाह तआला की तअजीम के लिये और उसके दर्दनाक अजाब से डर कर हो, किसी दुनयवी गर्ज या लोगो से डर कर अपनी तअरीफ के लिये या अपनी शोहरत के लिये या जिस्मानी लागरी व कमजोरी या मोहताजी और किसी रूकावट की वजह से न हो। जब तौबा के येह शराइत पाये जायेंगे तो तौबा मुकम्मल तौर पर होगी और उसे सच्ची तौबा कहा जायेगा।...✍🏻
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❝ तौबा के मुकद्देमात❞
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៚ इन तीन चिज़ो का तौबा से पहले होना ज़रूरी है।
៚ ❶ अपने गुनाहों को बहुत ही बुरा तसव्वुर करें।
៚ ❷ अल्लाह तआला के अज़ाब की शिद्दत और उसके गजब की सख़्ती को दिल में हाज़िर करें !
៚ ❸ अपनी कमजोरी और गुनाहों के बारे में अपनी बेहयाई को महसूस करे। क्यों कि जो शख़्स सूरज की तेज धुप, चौकीदार के थप्पड़, और च्यूटी के डंक को बर्दाश्त नहीं कर सकता वोह दोजख की शदीद गरमी, जहन्नम के फरिश्तों की मार और इन्तेहाई जहरीले सांपों के डंक को कैसे बर्दश्त कर सकता है। दोजख मे बिच्छू खच्चर के बराबर होंगे और वहाँ सांप ऊँट की गर्दन के बराबर होंगे और यह सांप विच्छू दोजख की आग के होंगे। उस वक्त वोह गुस्से व गजब के मकान मे रखे होगे!
៚ हम बार बार खुदा के गज़ब और अजाब से पनाह मांगते हैं। तुम अगर इस दहशतनाक अजाब को याद रखोगे और दिन व रात में किसी वक्त उनकी याद ताजा करते रहोगे तो ज़रूर तुम्हें गुनाहों से ख़ालिस तौबा नसीब हो जायेगा। अल्लाह तआला हर एक को अपने फल से तौबा की तौफीक दे। अगर तुम तौबा न करने का येह बहाना करो कि हमें अपने नफ्स पर भरोसा नहीं, शायद तौबा करने के बाद फिर गुनाह से बाज़ रहे या न रहें।...✍🏻
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❝तौबा के मुकद्देमात ❞
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៚ और शायद हम तौबा पर कायम रहे या न रहे, इसलिये तौबा करने से क्या फायदा। तो इसका जवाब सुन लो कि ऐसा ख्याल शैतान का सरासर धोका और फरेब है क्योंकि तुम्हें कैसे मअलूम कि तौबा करने के बाद तुम से ज़रूर गुनाह हो जायेगा। हो सकता है तौबा करने के फौरन वाद तुम्हे मौत आजाये और गुनाह करने का मौका न मिले। बाकी येह ख्याल कि तौबा करने के बाद शायद फिर गुनाह हो जाए तो इस ख़्याल का कोई एअतेबार नहीं। तुम पर सिर्फ येह लाज़िम है कि तौबा करते वक्त्त आइन्दा गुनाह छोड़ देने का पक्का इरादा करे। बाकी इस इरादे पर तुम्हें इस्तेकामत देना खुदा का काम हैं अगर इस इरादे पर खुदा के फल से तुम कायम रहे तो बस यही मक्सदे असली है। और अगर तुम इस इरादे पर कायम न रह सके तो भी तुम्हें एक फायदा ज़रूर मिला कि तुम्हारे गुज़िश्ता गुनाह तो मुआफ हो गये। गुजिश्ता गुनाहों के अज़ाब से तो तुम्हे निजात मिल गयी और गुज़िश्ता गुनाहों की गंदगी से तुम पाक हो गये। तौबा के बाद अगर तुम से कोई गुनाह हो तो वही तुम्हारे ज़िम्मे है।...✍🏻
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❝ तौबा के मुकद्देमात❞
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៚ तो इसलिये सिर्फ इस वस्वसे से तौबा करने से न रूको कि कहीं फिर गुनाह न हो जाये। क्योंकि सच्ची तौबा करने से तुम्हें दो बड़े फायेदो मे से एक फायदा यकीनन होगाया तो हमेशा के लिये तौबतन नसूहा (सच्ची तौबा) मिल जायेगी या गुजिश्ता गुनाह मुआफ हो जायेंगे। अल्लाह तआला ही तौफीक व हिदायत का मालिक है।
៚ हज़रत दाता गंज बख़्श रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है कि मैंने सुना है कि एक मर्तबा एक शख्स ने गुनाहों से तौबा की उसके बाद फिर उससे गुनाह सरज़द हो गया। जिससे वोह बहुत शर्मसार हुआ। एक दिन उसने अपने दिल मे कहा अगर में अब दोबारा तौबा करके राहे सवाब इख़्तियार कर लूँ तो मेरा क्या हाल होगा। हातिफ ने आवाज़ दी तूने हमारी इताअत की, हम ने उसे कुबूल किया। फिर तूने बेवफाई की और हमें छोड़ दिया तो हम ने तुझे मोहलत दी अब अगर तू तौबा करके हमारी तरफ आये तो फिर हम तुझे कुबूल कर लेंगे।...✍🏻
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❝तौबा के अकसाम ❞
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៚ गुनाहों के मुतअल्लिक येह याद रखो कि गुनाहों की नौअियत अलग अलग है। क्योंकि गुनाह तीन किस्म के हैं।
៚ ❶ *पहली* येह कि तुमने खुदा के फर्ज का अहकाम को अदा न किया हो और उनकी अदायगी तुम्हारे जिम्मे हो। जैसे नमाज़ रोज़ा ज़कात और कफ्फारा वगैरह, तो येह सिर्फ जुबानी तौबा से मुआफ नहीं होंगे बल्कि इनकी कज़ा लाजिम है।
៚ ❷ *दुसरी किस्म के* वोह गुनाह जिनकी अब क़ज़ा तो नहीं हो सकती मगर हो, वोह भी बंदे और खुदा के दरिम्यान जैसे कहीं शराब पी हो, नाच गाने की महफिल सजाई हो या सूद खाया हो तो इस किस्म के गुनाहों की मुआफी की सूरत येह है कि गुज़िश्ता गुनाहों पर नादिम और शर्मिदा हो और आईन्दा ऐसे गुनाह न करने का सच्चा पक्का इरादा करें।..✍🏻
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❝तौबा के अकसाम ❞
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៚ ❸ *तीसरी किस्म वोह* गुनाह है जो तुम्हारे और मखलूक के दरिम्यान हैं। तमाम गुनाहों से ज़्यादा संगीन गुनाह तिसरी किस्म के गुनाह हैं। उनकी किसमें मुख्तलिफ होती हैं। कुछ वोह हैं जो किसी के माल से तअल्लुक रखते हैं। और बअज़ किसी की ज़ात से। इसी तरह बअज़ वोह होते हैं। जिन का तअल्लुक किसी की इज़्ज़त वहुरमत से होता है। तो जिन का तअल्लुक माल से है उनके लिये ज़रूरी है कि अगर हो सके तो माल वापस कर दे और अगर गुर्बत और तंगदस्ती की वजह से मअजूर है तो साहिबे माल से मुअफ़ करवा कर जाइज़ व हलाल करवाले और अगर साहिबे माल मर चुका हो या वहाँ मौजूद नहीं है तो माल की मिकदार के मुताबिक कोई चिज़ सदका कर दे। और ये भी मुम्किन न हो तो कसरत से नेक अअमाल करे और अल्लाह तआला के दरबार मे गिरया व जारी करे ताकि कियामत के दिन खुदा तआला उस साहिबे माल को राजी कर दे। और वोह गुनाह जिन का तअल्लुक जिस किसी की जान या जात से हो जैसे किसी को कत्ल किया हो तो उसके बदले किसास देना लाजिम है या मकतूल के वारिसों से मुआफ कराना ज़रूरी है और अगर वारिस मौजूद नहीं है तो बारगाहे इलाही में गिरया व जासरी करे और खुदा तआला से मुआफी मांगे ताकि अल्लाह तआला उस मकतूल को तुम से राजी कर दे।..✍🏻
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 12
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❝ तौबा के अकसाम❞
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៚ और वोह गुनाह किसी की इज़्ज़त व आबरू के मुतअल्लिक है कि किसी की गीबत की हो, या किसी पर झूटा इल्ज़ाम लगाया हो या किसी को गालियाँ दी हो तो इस किस्म के गुनाहों की मुआफी की सूरत येह है कि उसके सामने अपनी ज़्यादती और खता का एअतेराफ करे और उस्से माफी मांगे और अगर येह खतरा हो की उसके सामने एअतेराफ करने से सुलह की बजाये और बात बिगड़ जायेगी तो इस सूरत मे भी मुआफी के लिये खुदा की बारगाह में ही गिरयाव व जारी करे ताकि मुआफी हो जाये। और किसी की आबरू के मुत्अल्लिक येह गुनाह हो कि किसी के अहलो अयाल से खियानत की है या कोई और बुरी हरकत की है तो ऐसे गुनाह को न उसके सामने जाहिर कर सकता है और न ही बख्शवा सकता है तो उसकी मुआफी के लिये भी बारगाहे इलाही मे ही गिरया व जारी करें।...✍🏻
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❝तौबा के अकसाम ❞
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៚ हाँ ! अगर फितने का खौफ न हो तो उसके सामने ज़ाहिर करके मुआफ करा लिया जाये। खुलासा येह कि अगर तुम ने लोगों को तकलीफ दी हो या उन्हें सताया हो तो उनसे मुआफी मांगकर उन्हें राजी करो और अल्लाह तआला की बारगाह में गिरया व जारी करो और सदका खैरात करो ताकि कियामत के दिन अल्लाह तआला तुम्हारे दरमियान रज़ामंदी करा दे। तौबा के शराइत जो बयान किये गये हैं। जब तुम उन पर पुरी तरह अमल पैरा हो जाओगे और आईन्दा के लिये अपने दिल को हर किस्म के गुनाहो से पाक रखने का सच्चा वअदा कर लोगे तो तुम्हारे गुज़िश्ता गुनाह मुआफ हो जायेगे। अब आईन्दा अगर इस वअदे पर कायम रहे मगर गुज़िश्ता कजा अदा न कर सके। या नाराज लोगो को राजि न कर सके तो उसका गुनाह तुम्हारे ज़िम्मे रहेगा। बाकी सारे गुनाह बख़्श दिए जाएंगे। लिहाजा जो कज़ाएँ बाकी है उन्हे अदा करें और नाराज लोगो को राजी करले ताकि अल्लाह के फल के दरवाजे तुम पर खुल जाएँ। तुम्हें मअलूम होना चाहिये कि तौबा की अहमियत बहूत ज़्यादा है।..✍🏻
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❝ तौबा के तरीक़ा❞
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៚ जब तुम तौबा व इस्तिगफार के जरिए अपने दिल को तमाम गुनाहों से साफ कर लो और आईन्दा के लिये अपने दिल को गुनाहों से दुर रखने का पक्का इरादा कर लो। इस पर खुलूस से तौबा कर लो कि अल्लाह तआला तुम्हारे दिल को तौबा में सच्च और खालिस पाये। और जहाँ तक हो सके लोगो को राजी कर लो। जिन्हे तुम ने माली बदनी या और किसी किस्म की तक्लीफें पहूँचाई हो और गुज़ारिश्ता ज़माने में छुटी हुई नमाजें और रोजे वगैरह की भी कजा कर लो। तो फिर तुम गुस्ल करों और पाक कपड़े पहनों और वुजू करके खुशूअ व खुजूअसे चार रक्त नमाज अदा करो। और अपनी पेशानी को ऐसी जगह ज़मीन पर रखो, जहाँ तुम्हें अल्लाह के सिवा कोई न देख रहा हो। फिर तुम अपने चहरे पर खाक डालो। और अपने चेहरे को जो तमाम अअज़ा से अअला अजू है, मिटटी से आलूदा करो।..✍🏻
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❝तौबा के तरीक़ा ❞
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៚ और हालत ये हो जाये कि आँखों से आंसू बह रहे हो। दिल गम के दरिया में तैर रहा हो और शिद्दते खौफ की वजह से तुम्हारे रोने की आवाज बेसाख़्ता बुलन्द हो रही हो और एक - एक करके तुम्हारे गुनाह, तुम्हारी खताएँ, तुम्हारे जुर्म आँखों के सामने फिर रहे हो। फिर तुम आपने गुनाहों को याद करते हुये अपने नफ्स को डांटते हुये उस से यूँ कहो।
៚ ऐ नफ्स क्या तुझे खुदा से शर्म नहीं आती ? या तेरी तौबा का वक्त करीब नहीं आया ? क्या तुझ में कहार व जब्बार के दर्दनाक अजाब बर्दाश्त करने की ताकत है ? क्या तू अपने ऊपर खुदा को नराज करने का ख्वाहिशमंद है।
៚ इसी तरह चंद बार अपने गुनाहों को याद करके इन अल्फाज को दोहराते को रहो और पूरे सोज़ व गुदाज़ से रोओ और गिरया व जारी करो फिर सज्दे से सर उठाओ और अपने महरबान खुदा के आगे हाथ फैला दो और येह दुआ करो।..✍🏻
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❝तौबा के तरीक़ा ❞
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៚ *मौला !* तेरा भागा हुआ बंदा तेरे दर पर वापस आ गिरा है। तेरा ना - फरमान बंदा सुलह की तरफ लौट आया है। और तेरा गुनाहगार बंदा अपने उज़ को तेरी बारगाह में पेश करने के लिये हाज़िर है। मुझे अपने करम से बख्श दे और मुझे कुबूल फरमा ले और मुझ पर नज़रे रहमत फरमा। या इलाही ! मेरे गुज़िश्ता तमाम गुनाहों को बख्श दे और बाकी उम्र हर गुनाह से महफूज रखा तू ही हर भलाई का मालिक है और तू ही हम पर महेरबान और नरमी फरमाने वाला है।
៚ फिर उस के बाद येह दुआ करें। ऐ मुशकिलात को हल करने वाले ! ऐ गमनाक और परेशान हाल लोगो को पनाह देने वाले ! ऐ वोह कादिर जात, जिस की शान येह है कि जब किसी चिज़ का इरादा फरमाये तो लफ्ज कुन फरमाने से वोह शय् वजूद में आ जाती है। हमारा हाल येह है कि कसरते गुनाह ने हम को घेर लिया है। तु ही आड़े वक्त में हमारा जखीरा है।..✍🏻
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❝तौबा के तरीक़ा ❞
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៚ मै तुझे ऐसे ही वक्त के लिये अपना जखीरा समझता हूँ तू मुझे मुआफ फरमा दे। बेशक तू ही तौबा कुबूल फरमाने वाला महेरबान है। फिर जितना ज़्यादा रो सको रोओ और अपनी जिल्लत व आजिजी का इज़हार करो और जुबान से येह दुआ करो!
៚ ऐ वोह जात जिसको एक काम दुसरे काम में मश्गूल नहीं रख सकता और न एक तरफ सुनना दुसरे सुनने से बाज़ रख सकता है। ऐ वोह जात जिसको मसाइल की कसरत मुगालते में नहीं डाल सकती। और न दुआ में इसरार करने वालों का इसरार उसे दो टुक बात करने मे मजबूर कर सकता है, हमें अपनी मुआफी की ठंडक पहूँचा और बख्शिश की हलावत नसीब फरमा। ऐ सब से बेहतर रहमत करने वाले हम पर रहम फरमा। बेशक तू सब कुछ कर सकता है।..✍🏻
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 18
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❝तौबा के तरीक़ा ❞
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៚ नबीए करीम ﷺ एक अराबी के पास से गुजरे जबकि वोह नमाज में दुआ पढ़ रहा था। "ऐ वोह जात जिस को आँखें देख नहीं सकती, जो ख्याल व गुमान की रसाई से बरतर है और वस्फ बयान करने वाले उसका वॅस्फ बयान न कर सके और जो हवादिस से मुतगय्यर नहीं होता, और न गर्दिशों से डरता है। वोह पहाड़ो के बोझ से वाकिफ है। दरख्तो के पत्तों, बारिश के कतरों से भी वाकिफ है। हर चिज की तअदाद जिस पर रात आती है और दिन तुलूअ होता है, सब उस पर ज़ाहिर हैं कोई आस्मान और कोई ज़मीन उस से छुपे हुए नहीं, कोई समुन्दर ऐसा नहीं जिस से खुदा वाकिफ न हो कि उस की गहराईयों मे क्या है और कोई पहाड़ ऐसा नहीं, जिसके सख़्त पत्थरों के राज़ों से खुदा वाकिफ न हो । ऐ अल्लाह ! मेरी बेहतरीन उम्र को मेरी आखरी उम्र बना। मेरे बेहतरीन अमल को मेरा आखरी अमल बना और मेरे बहतरीन दिन को वोह दिन बना जिस दिन मैं तुझ से मुलाकात करूँ।..✍🏻
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❝ तौबा के तरीक़ा❞
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៚ " हजूर नबीए करीम ﷺ ने जब येह दुआ सुनी तो एक शख्स को मुतय्यिन कर दिया कि जब येह एअराबी नमाज से फारिग हो जाये तो इसको हमारे पास लाओं। चुनांचे जब उसने नमाज़ मुकम्मल कर ली तो उसको हजूर अलैहिस्स - सलातो वस्सलाम की बारगाह मे पेश किया गया। आप ﷺ के पास किसी काम से लाया गया सोना बतौर हदया मौजूद था। आप ﷺ ने वो सोना उस एअराबी को अता कर दिया और फरमाया कि ऐ एअराबी ! तु किस कबीले से तअल्लुक रखता है ? एअराबी ने जवाब दिया कि कबीलए बनू आमिर बिन सॅअसॅअसे नबीए करीम ﷺ ने फरमाया तुझे मअलूम है , मैंने येह सोना तुझे क्यों अता किया ? उस ने जवाब दिया कि सिलह रहमी की बुनयाद पर दिया है या रसूलुल्लाह ﷺ हजूर अलैहिस्स - सलातो वस्सलाम ने फरमाया कि सिलह रहमी भी एक हक है, लेकिन मैंने येह सोना इसलिये दिया है कि तूने अल्लाह जल्ल जलालहू की स्ना बेहतर अंदाज़ में की है।..✍🏻
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❝तौबा के तरीक़ा ❞
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៚ इन तमाम दुआओं को पढ़ने के बाद हजूर अलैहिस - सॅलातो वस्सलाम पर दुरूद व सलाम भेजा और तमाम मोमिनीन व मोमिनात के लिये दुआए मगफिरत करो और अल्लाह जल्ल जलालहू की तरफ रूजूअ करो। जब तुम दरबारे खुदावंदी में गिरया व जारी के साथ येह तमाम दुआएँ और तौबा व इस्तिगफार वगैरह पूरी तरह कर लो तो अल्लाह की जात से उमीद है कि वोह तुम्हें ज़रूर तौबतुन - नसूहा (सच्ची तौबा) अता फरमायेगा। और गुनाहों से ऐसे पाक हो जायेगे जैसे आज ही पैदा हुये हो। अब तुम्हें अल्लाह तआला दोस्त बनायेगा। और तुम्हे बहूत अजरो सवाब अता करेगा और तुम पर इतनी रहमत व बरकत नाज़िल फरमायेगा, जिसका बयान नहीं हो सकता। अब तुम्हे हकीकी अमन व खुलासी हासिल हो गयी और अल्लाह तआला के गज़ब और गुनाहों की सजा से निजात पा गये। दुनिया व आखिरत में गुनाहो की आफत से छूट गये। और अल्लाह तआला ही अपने फज्ल व एहसान से हिदायत का मालिक है।..✍🏻
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❝ ज़न्दगी की आखरी सांस तक तौबा कुबूल होगी!❞
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៚ जब अल्लाह तआला ने इब्लीस को मलअून करार दिया तो उसने कियामत तक के लिये मोहलत मांगी तो अल्लाह तआला ने उसे मोहलत दे दी तो कहने लगा मुझे तेरे इज़्ज़त व जलाल की कसम ! जब तक इन्सान की जिन्दगी का रिश्ता कायम रहेगा मैं उसे गुनाहो पर उकसाता रहूँगा। रब्बुल इज़्ज़त ने फरमाया मुझे अपने इज़्ज़त व जलाल की कसम ! जब तक बंदे के हलक में आखरी सांस है मैं उस की तौबा कुबूल करता रहूँगा।
៚ तौबा का दरवाज़ा कभी बंद नहीं होता हजरत अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद से एक शख्स ने दरयाफ्त किया। मै गुनाह करके शर्मिन्दा हूँ। क्या मेरे लिये तौबा है ? आप ने मुहँ फेर लिया। जब दोबारा उस शख्स की तरफ देखा तो आप की आँखों मे आंसू बह रहे थे फरमाया जन्नत के आठ दरवाजे है कभी खोले भी जाते है और बन्द भी किये जाते हैं सिवाए तौबा के दरवाजे के कि वोह कभी बन्द नहीं होता। अमल करता रह और रब की रहमत से ना - उमीद न हो।
៚ तौबा का दरवाजा सुबह व शाम हर वक्त खुला हुआ है। हमें चाहिये कि आगे बढ़कर अपने गुनाहों से सच्ची तौबा करें। अल्लाह तआला हमें सच्ची तौबा करने की तौफीक अता फरमायें आमीन!..✍🏻
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*📮पोस्ट मुकम्मल हुई अल्हम्दुलिल्लाह 🔃*
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