🅿🄾🅂🅃 ➪ 01
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❝ ज़िक्रे ख़ुदा यादे मुस्तफा ﷺ
और
किताब लिखने की वजह!? ❞
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┇𖠁 ➧ सारी तारीफैं ख़ूबियां और बुल्दिंया अल्लाह तआला के लिये हैं जिसके अलावा कोई इबादत, पूजा और परस्तिश के लायक़ नहीं वही और सिर्फ़ वही सबको पैदा करने, बनाने मारने, जिलाने और रोज़ी व रोटी देने वाला है आलम में जो कुछ भी होता है उसकी मर्ज़ी के बग़ैर नही होता वह हमेशा से है और हमेशा रहेगा, मौत, फ़ना, नींद, ऊंघ, सुस्ती गफ़लत और बे तवज्जेही से पाक है वह बीबी बच्चों से पाक है और वह किसी की औलाद भी नही है बल्कि सब उसके बन्दे हैं वह हर ऎब, नुक्स, कोताही और कमी से पाक है वह जैसा है उसकी हक़ीक़त को पूरे तौर पर उसके अलावा कोई नहीं जान सकता!
┇𖠁 ➧ बेशुमार दुरूद व सलाम और रहमतें नाज़िल हों उन पर जो जाने कायनात रूहे ईमान हैं जिनका नाम आसमानों में अहमद और ज़मीनों में मुहम्मदﷺ है वह सारे कमालात ख़ूबियां और बुल्दिंया अल्लाह तआला ने उन्हे अता फरमाई जो एक मख़लूक में हो सकती हैं उनका ज़िक्र ख़ुदा का ज़िक्र है उनकी याद उसी की याद है उनसे मुहब्बत उसी से मुहब्बत है।
┇𖠁 ➧ उनकी आल व असहाब पर भी जिनके बग़ैर इस्लाम को नही समझा जा सकता और इन्हें छोड़ कर ख़ुदाई रास्तों पर नहीं चला जा सकता!..✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह 7-8 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 02
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❝ ज़िक्रे ख़ुदा यादे मुस्तफा ﷺ
और
किताब लिखने की वजह!? ❞
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┇𖠁 ➧ इस हम्दे इलाही और ज़िक्रे मुस्तफाई के बाद बन्दा गुनाहगार ततहीर अहमद क़ादरी रज़वी बरेलवी अर्ज़ करता है कि अल्लाह तआला ने बनाम इस्लाम जो रास्ता बन्दों को अपने महबूब पैग़म्बर के ज़रिये अता फरमाया। इंसानों में कुछ तो वह हैं जिन्होने क़बूल ही नही किया और कुछ वह जो कलमा पढकर मुसलमान होकर भी इस्लाम से दूर हैं मुझको देखकर अफ़सोस होता है मैं इस बात पर कुढता हुँ, रोता हुँ कि अल्लाह तआला ने फूल बरसाये लेकिन लोग कांटों की तरफ़ आये उसने उजाला भेज दिया मगर वह अंधेरे में भटकते रहे नूर आ गया लेकिन वह आग में ही छलांगे लगाते रहे मैंने मुआशरे, समाज, माहौल को गहराई से देखा तो मुझको एक बड़ी तादाद उन मुसलमानों की भी नज़र आई जो इस्लाम मजहब की खूबियों से वाक़िफ़ हैं और चाहते हुए भी वह इस्लामी उसूलों पर अमल नहीं कर पाते कोशिश करते हैं लेकिन क़ामयाब नहीं हो पाते जज़बात और जोश में आते हैं लेकिन ठण्डे पड़ जाते हैं अमल शुरू करते हैं लेकिन टिक नही पाते हैं मैंने खुदाये तआला की तौफीक़ से उनकी राह की रूकावटों पर ग़ौर किया तो उस परवर दिगारे आलम ने कुछ बातें अपने फ़ज़ल व करम से मेरे ज़हन में डाल दी और बेशक वह परवर दिगार बड़े फ़ज़ल वाला है और उसका सबसे बड़ा फ़ज़ल यह है कि उसने उस रसूलﷺ की उम्मत में पैदा फ़रमाया जिनको उसने रहमतुल आलामीन बनाया और बताया है।..✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह 7-8 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 03
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❝ 📿 दीनदार बनकर रहना ज़्यादा मुश्किल नही!? ❞
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┇𖠁 ➧ बहुत से हमारे मुसलमान भाई समझते हैं कि हम दीनदार सच्चे पक्के मुसलमान बन ही नहीं सकते या बनकर रह ही नही सकते इसकी वजह यह है कि उन्होने इस्लाम को एक मुश्किल और मुसीबत समझ लिया है या उन्हे समझा दिया गया है और सही माअना में इस्लाम का ताअरूफ उन्हे नहीं हो सका और वह मजहब को पहचान नही सके क्या उन्हे यह पता नही कि जिसने इस्लाम भेजा है उनका वह परवर दिगार निहायत रहम व करम वाला है बड़ा मेहरबान है बल्कि वह बड़ा अरहमुर्राहेमीन है अकरमुल अकरामीन है और जिस रसूलﷺ के वसीले से उसने इस्लाम दिया है उसको उसने सब जहानों के लिये रहमत बनाकर भेजा है हां अगर आप यह ख़्याल करते हों कि आपके नफ़्स पर कोई ज़ोर न पड़े ऐश व आराम में कोई कमी न आये ज़रूरत से ज़्यादा खाने पीने पहनने ओढने, सोने और घूमने फिरने भी होते रहें और आप सच्चे पक्के मुसलमान बन जायें अपने रब को राज़ी कर लें तो यह आपकी भूल है आख़िर अपने दुनियावी मक़ासिद हासिल करने के लिये भी तो आपको परेशानियों उठानी पड़ती हैं कभी रातों की नींदे ख़राब होती हैं और कभी दिन के चैन छोड़ना पड़ते हैं लड़ाई और झगड़े मोल लेना पड़ते हैं बुराई भलाई से वास्ता पड़ता है कभी आपकी हंसी उड़ाई जाती है कभी ज़िल्लत व रुसवाई का सामना करना पड़ता है।...✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 9 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 04
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❝ 📿 दीनदार बनकर रहना ज़्यादा मुश्किल नही!? ❞
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┇𖠁 ➧ फिर अल्लाह तआला और उसके रसूलﷺ को राज़ी करने के लिये सब दिन की जन्नत और दोज़ख से निज़ात हासिल करने के लिये आपको कुछ परेशानियां मिज़ाज के खिलाफ़ बातों का सामना करना पड़े तो इस पर आप क्यों हैरान हैं आख़िर वह कौनसी बुलंदी है जिस पर आप बग़ैर जीने और सीदी के चढ़ जाते हैं और वह कौन सा मक़सद है जो बग़ैर कुछ किये हासिल हो जाता है और कौन सी मंज़िल और कौनसा मरतबा है जो बग़ैर जान जोखम में डाले आप हासिल कर लेते हैं क्या आप ने सरबराहियां और कुर्सियां हासिल करने के लिये सियासी लोगों की दीवानगी और उनके जुनून को नहीं देखा है उनकी रास्तों की दिक्क़ते अड़चनें और परेशानियां आपकी नज़र से नही गुज़री हैं ? कहीं उन्हें काले झण्डे दिखाये जा रहे हैं कहीं उनकी कारों पर पत्थर बरसाये जा रहे हैं कहीं तालियां बजाई जा रही हैं तो कहीं गालियां दी जा रही हैं कहीं वापस जाओ के नारे का सामना करना पड़ रहा है कभी थानों हवालातों लाठी डण्डों और बन्दूक की नालों से गुज़रना पड़ रहा है।...✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 9 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 05
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❝ 📿 दीनदार बनकर रहना ज़्यादा मुश्किल नही!? ❞
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┇𖠁 ➧ आप हैं कि आपको ख़ुदा की रज़ा और जन्नत की नेअमत हासिल करने के लियें नमाज़ पढ़ते हुए शर्म महसूस हो रही है जरा सी टोपी सर पर रखना बोझ बना हुआ है चार उंगल दाढी रखने में सर शर्म के मारे झुके जा रहे हैं गन्दी फिल्मे नंगी तस्वीरें देखने और बे हयाई भरे गाने सुने बग़ैर आपकी रोटी हज़म नहीं हो रही है नाच और तमाशे आपके दिल का सुकुन और ज़िस्म की गिज़ा बन गये हैं वह मेम्बरी, प्रधानी और चैयरमैनी के ओहदे असम्बली और पारलियामेन्ट की कुर्सियां हासिल करने के लिये किसी की बुराई मुख़ालफ़त और दुश्मनी की परवाह नही करते आप अपने बीबी बच्चों और नौकरों तक से नमाज़ रोज़े के लिये कहते हुए डरते हैं आपकी जवान बहनें बेटियां खुले गले और बे आस्तीन वाले लिबास पहन कर नंगे सर सड़कों बाज़ारों में अपने ज़िस्म सबको दिखाती घूम रही हैं और आप उन्हें टोकने और रोकने में झिझक महसूस कर रहे है सही बात यह है कि आपको क़ब्र व आख़िरत की कोई फ़िक्र नही रह गई बस दुनिया ही की ज़िन्दगी को आपने सब कुछ समझ लिया है।..✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 10 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 06
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❝ 📿 दीनदार बनकर रहना ज़्यादा मुश्किल नही!? ❞
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┇𖠁 ➧ देखेंगे हम भी कि इस दुनिया में आप कब तक रहेंगे जिस पर कुर्बान हो गये हैं बहुत ज़ल्द मौत का फ़रिश्ता आयेगा और आपके सब अरमान पूरे कर देगा जिन्हें हम नही समझा सके उन्हे वह समझा देगा और बता देगा।
┇𖠁 ➧ मैं समझता हुँ कि लोग मालदार और दौलतमन्द बनने उम्दा और शानदार बिल्डिंगे बनाने, एक से एक बढ़िया लिबास पहनने और सियासी इक़्तेदार हासिल करने के लियें जितनी परेशानिया उठाते हैं वह अगर दीनदार सच्चा पक्का मुसलमान बनने अल्लाह व रसूल को राज़ी और जन्नत व क़ब्र का आराम हासिल करने के लिये इससे आधी भी कुर्बानियां दे दें तो वह अपने मक़सद में कामयाब हो जायेंगे और उन्हे वह मिलेगा जिसको वह जानते तक नही और वह उनके गुमान में भी पहुंच सकता और अल्लाह तआला के लिये हम्द है और उसके नबीﷺ पर दुरूद व सलाम।..✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 11 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 07
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❝ 📿 दीन वाला कभी हार में नहीं !? ❞
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┇𖠁 ➧ जिन लोगों ने दुनिया को अपना मक़सद बना रखा है वह अक्सर अपने मक़सद मे नाकाम रहते है कि कभी नफ़ा और फ़ायदा तो कभी नुक़्सान और घाटा भी जीतने की खुशियां और मिठाईयां हैं तो कभी हारने पर रुसवाईयां और तालियां ग़म और सदमें बल्कि नफ़ा और फ़ायदे वाले कम होते हैं नुक़्सान और घाटे वाले ज़्यादा फ़तह पाने और जीतने वाले कम नाकाम और हारने वाले ज़्यादा लेकिन अल्लाह तआला और रसूलﷺ के लिये जो करता है वह कभी हारता नही नियत में खुलूस है तो सवाब कहीं नहीं जाता और अल्लाह तआला धोका देने से पाक है।..✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 12 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 08
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❝ 📿 दीन वाला कभी हार में नहीं !? ❞
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┇𖠁 ➧ हदीसे पाक में है अल्लाह के रसूल सय्यदे आलम सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम फरमाते हैं।
┇𖠁 ➧ अल्लाह तआला फरिशतो को हुक्म देता है कि मेरा बन्दा गुनाह का इरादा करे तो सिर्फ़ इरादे से उसके नाम-ए-अअमाल में गुनाह मत लिखो और वह जब गुनाह कर ले तो एक ही गुनाह लिख दो और नेकी का जब वह इरादा करे तभी लिख दो और जब वह नेकी कर ले तब उसको डबल कर दो।
*📔 मुस्लिम जिल्द सफह 78*
┇𖠁 ➧ यानि अल्लाह तआला के लिये जब बन्दा कुछ करता है तो वह ख़्वाह अपने ज़ाहिरी मक़सद में भले ही कामयाब न हो लेकिन सवाब उसके नाम -ए-अमाल में सिर्फ़ नियत और इरादे ही से लिख दिया जाता है तो ज़ाहिर है वह कभी हार मे नही क्योंकि दुनिया का कुछ भी अगर हाथ न आये लेकिन उसका मक़सद सवाबे आख़रत और अल्लाह तआला की रज़ा हासिल करना था वह मिल गया उसका कोई काट नही सकता।...✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 13 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 09
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❝ ☝🏻 अल्लाह तआला के लिए करने वाले किसी बात की परवाह नहीं करते!? ❞
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┇𖠁 ➧ जो अल्लाह तआला को राज़ी करने जन्नत और सवाब हासिल करने के लिये कोई कोशिश,मेहनत या अमल करता है उसको इस बात की फ़िक्र नहीं रहती कि कोई उसकी इज़्ज़त कर रहा है या नहीं उसकी तारीफ़ हो रही है या नही उसके कारनामों कोशिंशों और कुर्बानियों को दुनिया वाले जानते हैं या नही उसके लिये अल्लाह तआला का जानना काफ़ी है। और सही मअना में दीन पर ऐसे ही लोग चल सकते हैं और यही लोग दीनदार बनकर रह सकते हैं जिन्हे इस बात की परवाह नहीं होती कि कोई उन्हे बेवकूफ कह रहा है या समझदार उनकी तारीफ़ हो रही है या बुराई वह इमाम हैं या मुक़्तदी वह मस्न्द, मिम्बर व इस्टेज पर बैठे है या नीचे बोरिये व टाट पर वह ख़तीब व मुक़र्रर व शायर हैं या ज़मीन पर बैठ कर सुनने वाले वह अमीर हैं या रिआया फ़कीर हैं या बादशाह उन्हें कोई जानता मानता है कि नहीं वह भीड़ भाड़ मजमअ में हैं या अकेले और तनहा जो कुछ वह कह रहे पढ़ रहे हैं बोल रहे हैं उसको उनके लिये उनके परवर दिगार का सुनना काफी है।...✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 13 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 10
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❝ ☝🏻 अल्लाह तआला के लिए करने वाले किसी बात की परवाह नहीं करते!? ❞
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┇𖠁 ➧ और भी सुने अच्छी बात है दीन का काम है इशाअत व तबलीग़ है और कोई न सुने तब भी उनके लिये और उनकी नज़र में यह दीन का काम है क्योंकि जिसके लिये वह कर रहे हैं। वह ज़रूर सुन रहा है और वह न सुनने से पाक है वह अल्लाह तआला है जो शाहिद व बसीर है अलीम व ख़बीर है समीअ व क़दीर है और उसी के लिये हम्द है। इसी लिये हदीसे पाक मे है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम ने फरमाया!
┇𖠁 ➧ दीन के मामले मे इल्म व समझ रखने वाला बेहतरीन आदमी वह है कि जब लोग उसकी ज़रूरत महसूस करें उसकी तरफ़ रागिब हों तो उन्हे नफ़ा और फायदा पहुंचाये और जब लोग उसकी तरफ़ से बे रग़बत और बे परवाह हो जायें तो वह भी उनसे बे परवाह और दूर हो जाये!..✍
*📔 मिशकात किताबुल इल्म फ़सल सालिस सफ़ह 36*
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 13 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 11
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❝ ☝🏻 अल्लाह तआला के लिए करने वाले किसी बात की परवाह नहीं करते!? ❞
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┇𖠁 ➧ और वह जो कुरआन करीम में फरमाया कि अल्लाह तआला वाले न किसी से डरते हैं न वह रंजीदा और ग़मगीन होते है उसका मतलब यही है कि वह जब हर काम अल्लाह तआला के लिये करते हैं सवाबे आख़रत और जन्नत उनका मक़सद है और जब नियत सही है तो वह बहरहाल उन्हे हासिल है क्योकि अल्लाह तआला धोका देने और वादा खिलाफी से पाक है और रहम व करम फ़ज़ल व मेहरबानी वाला है तो वह अल्लाह तआला के अलावा किसी से क्यों डरें और दुनियाँ में कुछ भी हुआ करे उन्हें उसका ग़म क्यों होने लगा और जब उनका रब उनसे राज़ी है तो उन्हें किसी बात की फ़िक्र क्यों हो इस आयत का मतलब यह नही है कि वह माआज़अल्लाह, अल्लाह तआला से भी नही डरते और उन्हे आख़रत का ग़म और उसकी फ़िक्र नहीं है अल्लाह तआला से तो जितना ज़्यादा डरे और जन्नत और आख़रत की जितनी ज़्यादा फ़िक्र रखे वह उतना ही बड़ा वली है।...✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 14 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 12
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❝ लोगों से दूरी और तन्हाई किसके लिए बेहतर है!? ❞
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┇𖠁 ➧ इसी लिये अल्लाह तआला के वलियों मे से एक बड़ी जमाअत ऐसे लोगों की हुई है जिन्होने दुनियां में रहकर भी दनियां वालो से दूरी बनाये रखी इस सिलसिले में बिल्कुल सही बात यह है कि जब कोई शख़्स ऐसे मन्सब व मर्तबे, ताक़त व कुव्वत, हिम्मत व हौसले, इल्म व सलाहियत और क़ाबलियत साबित क़दमी और इस्तक़ामत वाला हो कि लोगों में मिलजुल कर रहने इनमे बैठने सठने इनके साथ खाने पीने बातचीत करने में उन्हे अपने दीनी शरबह इस्लामी रंग में रंग सकता है या कम अज़ कम उनका ग़ैर इस्लामी ख़िलाफे शरआ असर और रंग अपने ऊपर नही चढ़ने देगा तो ऐसे के लिये क़ौम से दूरी अच्छी नहीं बल्कि ऐसे शख़्स के लियें तो अवाम में रहना ही अच्छा है उसको तन्हाई इख़्तियार करने और गोशानशीनी अपनाने की इजाज़त नहीं हां वह शख़्स जो अपने इल्म व हौसले की कमी या ईमान की कमज़ोरी की बुनियाद पर लोगों में मिलजुल कर रहने से उनके रंग में रंग जाने का ख़तरा महसूस करे।...✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 15 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 13
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❝ लोगों से दूरी और तन्हाई किसके लिए बेहतर है!? ❞
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┇𖠁 ➧ अपनी अच्छाईयां उनमे छोड़ने के बजाय उनकी बुराईयां अपनी ज़िन्दगी में दाखिल होती हुई महसूस करता है अपनी सही बात उनसे मनवाने के बजाय जुबान व दिल की कमज़ोरी की वजह से उनकी ग़लत बात मान सकता है या हां में हां मिला सकता है ऐसे के लिये लोगों से जितना बचकर रहे उतना ही बेहतर है और बचने का मतलब सिर्फ़ यह नहीं कि आबादियों से बाहर जंगल में जाकर रहने लगे बल्कि ज़्यादा तअल्लुक़ात गहरी यारी दोस्ती से बचे बिला खास ज़रूरत न मुलाक़ात करे न बातचीत।
┇𖠁 ➧ यहां यह बात भी काबिले ज़िक्र है कि कुछ नाम निहाद इस्लामी गुमराह फ़िरक़ो और बद मज़हब जमाअतों के बारे में उनसे मेल जोल न रखने और उनका बाईकाट करने का फ़तवा दिया जाता है।..✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 15 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 14
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❝ लोगों से दूरी और तन्हाई किसके लिए बेहतर है!? ❞
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┇𖠁 ➧ वह मेरे ख़्याल मे उन्ही ईमान के कमज़ोर बे इल्म अवाम तक महदूद होना चाहिये जो उनके फरेब में आ सकते हों उनका असर क़बूल कर सकते हों लेकिन वह अहले इल्म और मज़बूत लोग जो उन्हे हक़ पर लाने और उन पर असर डालने की सलाहियत व हिम्मत और ताक़त रखते हों वह अगर शरअई हदों में रहकर उनसे बातचीत करें तो शायद यह मसलिहत व हिकमत से क़रीब है और अल्लाह तआला जानता है कि किसकी नियत में इस्लाह व सच्चाई है और किसकी नियत में फ़साद और बुराई और क़यामत का दिन भेदों के खुनले का दिन है मगर मैं देख रहा हूँ कि आज उसका उल्टा हो रहा है अवाम ना अहिल ना वाकिफ़ लोग तो घाल मेल तआल्लुक़ात यारियों दोस्तियों में कोई कोताही नहीं बरत रहे हैं और ख़्वास अहले इल्म बहुत से इमाम और मौलवी लोग उनसे मिलने जुलने से सिर्फ़ इस लिये रूके हुए है कि कही फ़तवे की ज़द में न आ जायें और आज कल फ़तवे भी सिर्फ़ मोलवियों के लिये ही रह गये हैं अवाम तो बिल्कुल आज़ाद होते जा रहे हैं!...✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 16 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 15
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❝ काम शैतानी और मिसाल बुज़ुर्गों की!? ❞
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┇𖠁 ➧ आज कितने लोग वह भी हैं जो अपने सियासी माली और कारोबारी मक़ासिद के लिये गैर मुस्लिमों से बे दीनों और बदमज़हबों हरामकार बदकार बदमआश चोरों डकैतों और ज़ालिमों से गहरी यारी और दोस्ती रखते और उनमें ज़रूरत से ज़्यादा घुल मिल जाते हैं ग़ैर मुस्लिमों के मज़हबी त्यौहार उनके कुफ़ी रसूम व रिवाज में ख़ूब शरीक होते हैं और उनकी बोलियां बोलते उनके से लिबास पहनते हैं और कोई कुछ बताये या समझाये तो मिसाल, उन बुजुर्गों की और पैगम्बरों की देते हैं जो ग़ैरो में दीन की तबलीग के लियें घुसते और उन्हे मुसलमान बनाने के लिये उनसे ज़ाहिरदारी बरतते और वाक़ई उन्होने उनमे रहकर उनके साथ नरम रवय्ये अखलाक़ और किरदार से पेश आकर उनको मुसलमान बना लिया!...✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 17 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 16
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❝ काम शैतानी और मिसाल बुज़ुर्गों की!? ❞
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┇𖠁 ➧ एक दो नही करोड़ों को बना डाला एक तुम हो कि उन से गहरे मरासिम यारियां और दोस्तिया करके उनके रंग में रंगे जाते हो उनके तौर तरीक़े खाने पहननें रहन सहन आपनाये चले जाते हो उनकी ज़बान तुम्हारी ज़बान हो गई उनकी बोलियां तुम्हारी बोलियां हो गई उनके लिबास तुम्हारे लिबास हो गये तुम सर से पैर तक पूरे ईसाई या हिन्दू नज़र आने लगे तुम्हे शर्म व ग़ैरत आना चाहिये उन पैग़म्बरों वलियों और बुजुर्गों के ग़ैरो से तअल्लुक़ात अख़लाक व किरदार की मिसालें पेश करते हुए जिन्होने कुफ़ व इल्हाद बेदीनी और गमराही के कटीले जंगलों में इस्लाम व ईमान के फूल खिला दिये बुत परस्तों को ख़ुदा परस्त और नारियो को नूरी बना दिया पूजा स्थलों को इबादतगाहो में बदल दिया जहां घन्टे और संख बचते थे वहां से अज़ानों की आवाज़े आने लगी हज़ारो देवी और देवताओं की पूजा करने वालों को एक माबूदे बरहक के आगे झुका दिया जहां शराबों के दौर चलते थे वहां रोज़ों की अफतारें होने लगी एक आप हैं कि दोस्तियां ताअल्लुक़ात याराने करके सैकुलर इज़्म के नाम पर हर रोज़ हर लम्हा कुफ्र की तरफ़ बढ़े चले जा रहे हैं।...✍
*उम्मती बाईसे रुसवाईये पैग़म्बर हैं।*
*था ब्राहीम पिदर और पिसर आज़र हैं*
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 17 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 17
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❝ काम शैतानी और मिसाल बुज़ुर्गों की!? ❞
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┇𖠁 ➧ भाईयों अगर उनको अपने रंग में नही रंग सकते थे तो कमअज़ कम ख़ुद को तो उनके रंग ढंग कल्चर और तहज़ीब से बचा लेते अब जो कर मिले सो कर लो अब मौत आनी है और कब की अन्धेरी कोठरी तुम्हारी आंखे खोल देगी देखेंगे अल्लाह तआला से निकल कर कौन भागेगा उसकी पकड़ से कौन कैसे बचेगा?
┇𖠁 ➧ क्या मआज़ल्लाह तुमने यह समझ लिया है कि वह ख़ुदाये क़ादिर व क़य्यूम जिसने तुमको पैदा फ़रमाया वह तुमको मारने के बाद ज़िन्दा नहीं कर सकेगा।
┇𖠁 ➧ आज मुसलमानों में सियासी लोगो के लिये ग़ैर मुस्लिम धर्मात्माओं की जय जय कार पुकार लेना और उनके पूजा स्थलो में जाकर माथा टेकना माथे पर तिलक लगवा लेना उनके खालिस मज़हबी कामों में चन्दे देना एक आम बात हो गई है क्या सैकुलरइज़्म का मतलब यही है कि आप बिल्कुल ग़ैर मुस्लिम बन जायें ख़ुदा बचाये ऐसे सेकुल्रज़म और नेतागीरी से जो ईमान बेचकर मिले जन्नत के बदले जहन्नम ख़रीद कर मिले और इन मे से बहुत तो वह हैं कि जिन्होने अपना ईमान भी ख़राब कर लिया है।...✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 18 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 18
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❝ काम शैतानी और मिसाल बुज़ुर्गों की!? ❞
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┇𖠁 ➧ बेइन्तहा दौलत भी लुटा दी ज़लील व रुसवा भी हुए और इलैक्शन में हार भी गये यह दुनिया का अज़ाब है और आख़रत का अज़ाब इससे भी बढ़कर है और मैं देख भी रहा है कि जिन ग़ैर मस्लिमों ने मुसलमानों को सैकुलरइज़्म का पाठ पढ़ाया वह ख़ुद कट्टरपंथी बन बैठे जिन्होने इनके हाथों मे तिरंगे झण्डे दिये उन्होने ख़ुद त्रिशूल थाम लिये मुस्लिम नौजवानों को क्रिकेट और फुटबाल में लगाकर अपने छोकरों को आर. एस.एस की जंगी तरबियतगाहों (ट्रेनिंग सेन्टरों) में भेज दिया जिन्होंने मुसलमानों से कहा था कि मज़हब कोई चीज़ नही सब इंसान भाई भाई हैं वह ख़ुद धर्मात्मा बन गये माथे पर तिलक, बिन्दी, मेज़ पर मूर्ति सजाये दफ्तरों में बैठे हैं जिन्होने मुस्लिम ताक़तों को शामिल करके अक़वामे मुत्तहिदा (संयुक्त राष्ट्र संघ) बनाई और जंग बन्दी का एलान किया उन्हीं ने मुस्लिम मुल्कों पर हमले शुरू कर दिये आज मैं हिन्दुस्तान में देख रहा हूँ कि हिन्दुओं की दुकानों और फ़र्मो के नाम राम कृष्ण और शंकर और शिव के नामों पर मिलेंगे और मुसलमानों के इंण्डिया और भारत मेडिकल स्टोर, जनरल स्टोर। इन्हें देश भक्त बनाने वाले ख़ुद शिव शंकर के भगत बने रहे इनकी आंखें अब भी बन्द हैं पता नही कब खुलें।..✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 19 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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❝ अहले सियासत व हुकूमत के लिये मशवरह!? ❞
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┇𖠁 ➧ आज मैं देख रहा हूँ हमारे कुछ सियासी भाई अगर मस्जिद व मदरसे के लिये भी कोई चन्दा देते हैं या किसी ज़रूरतमन्द इन्सान की मदद करते हैं तो इन्सानी हमदर्दी और रज़ाए ख़ुदा हासिल करने के लिये नही बल्कि लोगों को ख़ुश करके उनके वोट हासिल करने के लिये गोया कि उन्होने दीन के अच्छे कामों को भी दुनिया बना लिया मेरा मशवरह है आप जो कुछ भी कीजिये इंसानी हमदर्दी के उन तक़ाज़ों को पूरा करने के लिये कीजिये जिनका खुदा और रसूल ने हुक्म दिया है तो मुझको उम्मीद है कि आपको लोगों का तआव्वुन और उनका वोट भी मिलेगा और थोड़ी देर के लियें मान लें कि अगर नही भी मिलेगा और आप इलैक्शन हार भी गये तब भी आप हार मे नही हैं क्योकि आपने जो कुछ जिसके लिये किया वह आपको हासिल है और आप अपने मक़सद मे क़ामयाब और जीते हुए हैं।...✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 19 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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❝ अहले सियासत व हुकूमत के लिये मशवरह!? ❞
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┇𖠁 ➧ क्योकि आपका मक़सद इंसानों के साथ नेकी और हुसने सलूक करके उनको ज़ुल्म से बचाकर उनको इंसाफ दिलाकर ख़ुदाए तआला के यहां सवाब लेना था तो वह आपको ज़रूर मिलेगा और यह जो हुक़ूमत व सियासत इमारत और बादशाहत वालों में जिन्होने नाम पैदा किये हैं उनके चर्चे गली गली हैं और उनकी यादगारें क़ायम हैं यह वही लोग है जिनको अपनी हुक़ूमत व इक़्तेदार की फ़िक्र कम और क़ौम व मुल्क रिआया और आवाम की फ़िक्र ज़्यादा थी मर्तबे और ओहदे हासिल करने से भी उनका मक़सद दुनिया इंसाफ क़ायम करना रहा है और जिनका मक़सद वाह वाही हासिल करने नाक और शान ऊंची रखने शान शौकत दिखाने के अलावा और कुछ नही उन्हे कुछ भी हासिल नहीं होता और वह बुझकर रह जाते हैं आप तो कौम की ख़िदमत कीजिये मर्तबे और ओहदे देना अल्लाह तआला का काम है।..✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 20 📚*
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❝ अहले सियासत व हुकूमत के लिये मशवरह!? ❞
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┇𖠁 ➧ हमारे इस बयान का निचोड़ यह है कि मंसब और मर्तबे हुक़ूमत और ओहदे हासिल करने की कोशिश भी इस्लाम में कोई बुरी चीज़ नही है जबकि इसका मक़सद दुनिया में अमन व अमान क़ायम करना है अच्छाईयों और सच्चाईयों को फैलाना ख़राबियों और बुराईयों को मिटाना होता कि अल्लाह तआला राज़ी हो और जन्नत हासिल हो और बाद मरने के रूह को सुकून मिले।
┇𖠁 ➧ हज़रत अबू सईद ख़ुदरी रज़ीअल्लाहु तआला अन्हो से मरवी है रसूले ख़ुदा ﷺ ने फरमाया
┇𖠁 ➧ क़यामत के दिन लोगों मे सबसे ज़्यादा अल्लाह तआला का पसन्ददीदा और नज़दीक बन्दा इंसाफ करने वाला हाकिम होगा और सबसे ज़्यादा ना पसन्दीदा सख़्त अज़ाब का मुस्तहक़ ज़ालिम हाकिम होगा।..✍
*📔 मिशकात किताबुल इमारत फ़सल 2 सफ़ह 322*
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 21 📚*
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❝ अहले सियासत व हुकूमत के लिये मशवरह!? ❞
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┇𖠁 ➧ आज हुक़ूमत सियासत व इक़्तेदार वालों में रिश्वतख़ोरी ज़ुल्म व ज़्यादती ईज़ा रसानी ज़ालिमों लुटेरो ज़िनाकारों का साथ देना और उनकी सिफारिशे करने का मर्ज़ बहुत ज़्यादा बढ़ गया है यह लोग बस इतना जान लें कि इन्हें जब मौत आयेगी तो भागने का कोई रास्ता नहीं मिलेगा हदीसे पाक में है रसूले ख़ुदाﷺ ने फरमाया जो ज़ालिम के साथ चला ताकि उसको ताक़त पंहुचाये हालाकि वह जानता है कि वह ज़ालिम है तो वह इस्लाम से बाहर हो गया।...✍
*📔 मिशकात बाबुल जुल्म फ़सल 3 सफ़ह 436*
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❝ दीनी मदरसो को तलवा व मौलवियों के लिए मशवरह!? ❞
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┇𖠁 ➧ हमारे कुछ दीनी मदरसों में पढ़ने वाले तालिबे इल्म और मौलवी हज़रात यह शिकायत करते हैं कि हम जो मुतालआ करते हैं किताबें देखते हैं हमें वह याद नहीं रहती अपनी याद्दाशत की कमजोरी और हाफजे की कोताही का रोना रोते हैं और अपनी इस कमज़ोरी की बिना पर वह किताबों का मुतालआ छोड़ देते हैं मेरी दुआ है कि खुदा-ए-तआला दीन सीखने और सिखाने वालों को कबीउलाफज़ा (पक्की याद्दाशत वाला) बनाये और जो पढे याद रखने की तौफीक़ अता फरमाये लेकिन मेरे बुजुर्गों और भाईयों आपको पढ़ा हुआ और सुना हुआ कुछ याद रहे या न रहे इसकी बहुत ज़्यादा फ़िक्र भी न करो आख़िर आप जिस काम में लगे हुए हैं वह बेहतरीन इबादत और ख़ुदा व रसूलﷺ की रज़ामन्दी हासिल करने का सबसे अच्छा तरीक़ा है।...✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 22 📚*
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❝ दीनी मदरसो को तलवा व मौलवियों के लिए मशवरह!? ❞
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┇𖠁 ➧ जब आपका मक़सद दीन सीखने और सिखाने से अल्लाह तआला को राज़ी करना और अपनी आख़िरत का संभालना है तो यह तो आपको बहरहाल हासिल है कुछ याद रहे या न रहे जितनी देर आप दीनी किताबों खासकर तफ़सीर व हदीस व फिक़ह और तसव्वुफ़ सीखने और सिखाने में लगे हैं इतना अच्छा उम्दा वक़्त गुज़ार रहे है कि जिसकी तारीफ़ करने के लिये मेरे पास अल्फ़ाज़ नहीं हैं खुदाये तआला मुझको भी ऐसा वक़्त गुज़ारने की तौफीक़ अता फराये ज़हन में महफ़ूज कर देना यह अल्लाह तआला का काम है उसका काम उस पर छोड़िये आप तो वह कीजिये जो आपका काम है और जिसका अल्लाह व रसूलﷺ ने आपको हुक़्म दिया है और जिस पर सवाब व रहमत जन्नत व मगफिरत का वायदा फरमाया है जरा गौर कीजिये जिस वक़्त आप हदीस की किताबों का मुतआला करते हैं तो उसमे अहले ईमान के लियें कितनी लज़्ज़त है कितना जायका लुत्फ और मजा है। हल्की आवाज़ से हदीसों की तिलावत कीजिये।...✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 22 📚*
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❝ दीनी मदरसो को तलवा व मौलवियों के लिए मशवरह!? ❞
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┇𖠁 ➧ और देखिये इसमें कितनी मर्तवा बार बार अल्लाह तआला का और उसके रसूल सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम और दूसरे अम्बिया व स्वालेहीन का नाम आता है और हुज़ूरﷺ का नाम ज़बान पर आते वक़्त सल्लल्लाहो तआला अलैह वसल्लम भी ज़रूर कहते होंगे यह ज़िक्रे ख़ुदा और यादे मुस्तफा और इल्मे दीन सीखने और सिखाने का मशगला क्या इससे उम्दा अमल और वज़ीफ़ा आपने कही देखा है ? कुर्वे ईलाही की मंज़िले तय करने का इससे उम्दा रास्ता और जीना आपकी नज़र से गुज़रा है? और इसी लिये हदीस में फरमाया गया है आलिम की फजीलत आबिद पर ऐसी है जैसी मेरी तुम्हारे अदना (घटिया) इंसान पर यह अल्लाह और रसूलﷺ का ज़िक्र ही तो है कि जिसके लिये इन्सान को पैदा किया गया और यह ही तो मोमिन की रूहानी गिज़ा है। अहले दिल के लिये इससे ज़्यादा मीठी और कौनसी शय है। अल्लाह के ज़िक्र और हुज़ूरﷺ पर दुरूद शरीफ़ की जो फज़ीलतें मरवी हैं वह सब आपको हासिल हो रही हैं और इल्म सीखने का सवाब अलग।...✍
*उनकी याद उनका तसव्वुर है उन्ही की बातें*
*कितना आबाद मेरा गोशा-ए-तनहाई है*
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 23 📚*
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❝ दीनी मदरसो को तलवा व मौलवियों के लिए मशवरह!?❞
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┇𖠁 ➧ आपको कुछ याद रहे या न रहे आप परेशान न हों ऐ उलूमे मुस्तफाﷺ के तलबगारो अगर तुम्हारी नियत सही है तो तुम से अच्छा और ज़्यादा नफ़ा वाला कोई नहीं और इल्म हासिल करने का भी मक़सद ज़िक्र है जिन लोगों ने बेशुमार किताबें पढ़ ली हैं लाईबेरिया खंगाल डाली हैं लेकिन उन्हें अल्लाह तआला के ज़िक्र और उसके महबूब रसूल पर दुरूद पढ़ने और सुनने की लज़्ज़त हासिल नहीं है तो वह इल्म वाले नहीं हैं वह पढ़कर भी बे पढ़े हैं और जिसको अल्लाह व रसूलﷺ का नाम जितना ज़्यादा अच्छा लगने लगे वह उतना ही बड़ा मुसलमान और मोमिन है और जो जितना ज़्यादा अल्लाह तआला से डरे वह उतना ही बड़ा आलिम है हदीस पाक मे है रसूले पाक सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम ने फरामया!
┇𖠁 ➧ दो ख्वाहिश रखने वाले कभी सैर नहीं होते एक इल्म का ख्वाहिशमन्द कभी इल्म से सैर नहीं होता और दूसरे दुनिया का तलबगार कभी दुनिया से उसका पेट नही भरता।...✍
*📔 मिशकात किताबुल इल्म फसल 3 सफ़ह 37*
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 24 📚*
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❝ दीनी मदरसो को तलवा व मौलवियों के लिए मशवरह!?❞
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┇𖠁 ➧ आज दीनी मदारिस मे पढ़ने और पढ़ाने वाले हमारे भाईयों में एक बड़ी तादाद उनकी है जो मुकर्रिर व ख़तीब या ख़ुश इल्हान शायर बनने के तमन्नाई हैं कितने ही भोले भाले तलबा ने मुझसे पूछा कि अच्छा मुकर्रर और शानदार धांसू ख़तीब बनने की तरकीब क्या है मुझसे जो हो सका वह मैंने उनको बताया लेकिन भाईयो यह सब क्या है आप तो अपना काम कीजिये यह अल्लाह तआला का काम है कि वह आपको मुकर्रिर व ख़तीब बनायेगा या मुदर्रिस व मुफ़्ती मुसन्निफ व अदीब बनायेगा या ज़ाहिद व सूफी आप तो अल्लाह तआला को राज़ी करने के लिये इल्मे दीन हासिल कीजिये और जब वह आप से राज़ी है तो बहरहाल आप क़ामयाब हैं और वह आप से नाराज़ तो आप कुछ भी बन जायें अपने मक़सद में फेल हैं क्या आपको मालूम नहीं कि कितने ही वह लोग हैं जो स्टेजों के धांसू मुकर्रर शोला बयान ख़तीब जाह व शोहरत माल व दौलत वाले हैं।...✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 24 📚*
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❝ दीनी मदरसो को तलवा व मौलवियों के लिए मशवरह!?❞
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┇𖠁 ➧ लेकिन उनसे अल्लाह तआला नाराज़ है वह क़यामत के दिन रूसवा और ज़लील होंगे और कितने ही वह लोग हैं कि गुमनाम हैं उन्हें न कोई जानता है न मानता है लेकिन उनसे अल्लाह राज़ी है और क़यामत के दिन उनके सरों पर ऐसा रौशन और ज़र्री (चमकता हुआ) ताज रखा जायेगा कि देखने वालों की आंखें चकाचौंध हो जायेंगी और सही बात पूछो तो जन्नत में गुमनामों की तादाद ज़्यादा होगी नामवरों की कम जिनके डंके दुनिया में बज गये वह अकल्लियत (थोड़े) में होंगे और जिन्हें कोई जानता मानता न था वह अकसरियत (ज़्यादा) में होंगे फुखराह व दुर्वेश ख़ुदा से क़रीब होंगे और ज़्यादातर माल व दौलत वाले बहुत दूर मगर यह तो सब वह सोचे कि जिसका मक़सद ख़ुदा का कुर्ब उसकी रज़ामन्दी हासिल करना और जन्नत मे जाना हो और जिसने यह सोचना ही छोड़ दिया हो और दुनिया की ज़िन्दगी उसका मक़सद व महवर बनकर रह गयी हो उसे इस सब से क्या मतलब? लेकिन भाईयो सुनो यह सोच आपको मौत से बचा न सकेगी और क़ब्र व हशर में जाने से आप किसी सूरत छूट नही पायेंगे।..✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 25 📚*
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❝ दीनी मदरसो को तलवा व मौलवियों के लिए मशवरह!?❞
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┇𖠁 ➧ हमारे कुछ ब्रादराने इल्म व फ़ज़ल यह भी कहते है कि हम कुछ इस लियें बनना चाहते हैं ताकि कुछ बनकर मनसब व दौलत व इज्ज़त व शोहरत हासिल करके दीन की ख़िदमत और उसका काम करें तो भाईयो यह एक अच्छी बात है जो तुमने कही और अच्छी नियत है जो दिल मे आयी आपको यह नियत मुबारक हो लेकिन अज़ीज़ो यह भी मत भूलो कि सबसे बड़ी दीन की ख़िदमत और उसका काम ख़ुद को संभालना है कही ऐसा न हो कि हम दूसरों को सुधारने के चक्कर में ख़ुद को बिगाड़ लें औरों को उठाने चलें और ख़ुद गिर पड़ें अल्लाह तआला आपके सिर्फ़ कामों को नही बल्कि दिल के इरादों को देख रहा है वह खूब जानता कि आप क्या कर रहे हैं और किस लियें कर रहे हैं कितने ही वह लोग हैं कि दूसरो को रास्ता बताने कि लिये चले और खुद भटक गये दूसरों को दीनदार बनाने निकले और खुद दुनियादार बन गये रात को स्टेजों पर जन्नत व दोज़ख व क़यामत व आख़रत की बाते करने वाले दिन में नज़राने में सौ सौ रूपये का इज़ाफा करने के लिये लड़ने और झगड़ने लगे जिन्होने बनाम इस्लाम मौलवी और आलिम बनकर दीनी जलसों और मज़हबी कान्फ्रेन्सों के ज़रिये इज़्ज़त शोहरत और नामवरी हासिल की उन्होने वह सब कुफ़्र व बुत परस्ती पर निसार कर दी और नेता गीरी और सियासत के चक्कर में पड़कर गैर मुस्लिमों की गोदों में खेलने लगे जिनकी इबतिदा इस्लाम व कुरआन से हुई थी।...✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 26 📚*
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❝ दीनी मदरसो को तलवा व मौलवियों के लिए मशवरह!?❞
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┇𖠁 ➧ उनकी इन्तिहा रामायण और महाभारत पर हुई जिन्हें मस्जिदो ने चलना सिखाया था वह मन्दिरों गुरुद्वारों और गिरजा घरों में जाकर औंधे मुंह गिर पड़े जरा होश में रहियेगा और हर वक़्त शैतान के पैतरों से अल्लाह तआला की पनाह मांगते हुए क़दम आगे बढ़ाइये और नज़र अंजाम (नतीजे) पर रखियेगा मैंने दीन के ठेकेदारों को कुफ़्र की दलदल में फंसते देखा है मैंने इस्लाम के अलमबरदारों को जहान्नम के गड़हों में गिरते देखा है मैंने मदरसों के पढ़ने और पढ़ाने वालों को ग़ैर मुस्लिमों के जनाज़ों के पास कुरआनख्वानी करते सुना है नारा-ए-तकबीर व रिसालत की गूंज में मुसलमानों से गले में हार फूल डलवाने वालों को बाद में जय जनकार और वन्देमातरम् पुकारने वालों से गले में मालायें डलवाकर तिलकधारी बनते देखा है माल व दौलत इज़्ज़त व शोहरत इल्म व अमल वाला बन जाना आसान है लेकिन इनको हासिल करने के बाद ख़ुद पर कंट्रोल रखना होश में रहना ज़रा मुश्किल काम है।...✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 27 📚*
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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !?❞
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┇𖠁 ➧ लोगों के सच्चा मुसलमान दीनदार इंसान बनने की राह में जो रूकावटें हैं उनमे वाज़ व नसीहत तबलीग व इरशाद करने वालों के तरीक-ए-कार को भी दखल है इनमें कुछ तो वह हैं जो दीन को इतना आसान बनाकर पेश करते हैं कि आदमी बिल्कुल बे फ़िक्र और फ़राईज़ व वाजिबात और इस्लामी एहकाम पर अमल करने में सुस्त और ला परवाह हो जाता है वह इसकी ज़रूरत ही महसूस नहीं करता नमाज़ रोज़ा अदा करे और यह कोई ज़रूरी काम हैं ज़कात निकाले बग़ैर इस्लाम में कोई कमी रह जाती है हराम काम छोड़े बगैर अल्लाह तआला को राज़ी और जन्नत को हासिल नहीं किया जा सकता उसको पीर साहब ने यह बता दिया है या अपने तरीक़ा-ए-कार और किरदार से यह समझा दिया है कि हमारे मुरीद हो जाना और हमें नज़राना दे देना ही पूरा इस्लाम है!..✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 28 📚*
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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !?❞
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┇𖠁 ➧ अल्लाह तआला को राज़ी और जन्नत को हासिल करने के लिये और कुछ करने की ज़रूरत नहीं है मुकर्रिर साहब ने यह बावर करा दिया है कि जलसा करने और उसके लिये चन्दा देने नारे लगाने और हमे भरपूर रक़म नज़राने के नाम पर भेंट चढ़ाने का नाम इस्लाम है ज़्यादा करो तो नियाज़ व फ़ातहा और उर्स कर लो मज़ार शरीफ़ पर हाज़री दे दो बस काफ़ी है अब ज़ाहिर है जब उसे साल में एक बार जलसा करने उसमे नारे बोलने कभी कभी नियाज़ व फ़ातहा उर्स व लंगर करने से ही जन्नत मिल गई तो वह नमाज़ क्यूं पढ़ने लगा और कभी पढ़ भी ली तो उसकी पाबंदी क्यों करने लगा जब पीरों को नज़राना देना ही निजात के लिये काफ़ी है तो वह ज़कात क्यों निकालने लगा ख़ुलासा यह है कि आज मामूली मामूली बातो पर करोड़ों नेकियां बांटने वाले जिन कामों की हैसियत इस्लाम में एक मुस्तहब (अच्छा काम जिसके करने पर सवाब हो और न करने पर कोई गुनाह व अज़ाब न हो) या बिअदते हसना (वह अच्छे नये काम जो हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम और आपके सहाबा के ज़माने में न थे) की है!..✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 29 📚*
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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ सिर्फ़ उन पर जन्नत का टिकट देने वाले पीरों और मुकरिरों की कमी नहीं है यह यह नहीं बताते कि नवाफ़िल व मुस्तहबात नियाज़ें और फातहाऐं उर्स और मीलादों का नफ़ा और फ़ायदा उन्ही के लिये है जो फराईज़ व वाजिबात पर अमल पैरा हैं इस बारे में कुछ तफ़सील से देखना हो तो मेरी लिखी हुई किताब"दरमियानी उम्मत का मुतआला किया जाये आने वाले सफहात में फुजूल खर्चियो के बयान में भी इस किस्म की कुछ बातें आपके सामने आयेंगी।
┇𖠁 ➧ इस बयान से मेरा मक़सद वह वायज़ीन मुकर्ररीन व मुबल्लेग़ीन थे जिन्होने कम ज़रूरी मामूली बातों पर जन्नत बांट कर लोगों के दिलों से ख़ौफे ख़ुदा निकाल दिया और उन्हे नमाज़ रोज़े वगैरह दीन की ज़रूरी बातों पर अमल करने और हराम कारियों से बाज रहने की तलक़ीन नही की!..✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 30 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 34
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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ अब थोड़ा उनका भी ज़िक्र करते हुए चलें कि जिन्होने इस्लाम को क़ौम की नज़र में इतना मुश्किल बनाकर पेश किया कि दुनिया के धंधों कारोबार और बाल बच्चों में रहने वाले लोग यह ख़्याल करने लगे कि पक्का सच्चा मुसलमान बनकर रहना हमारे बस की बात ही नही तक़वा और परहेज़गारी की बातें या जिनका ताअल्लुक़ मुजाहिदात और रियाज़ियात तसव्वुफ़ और तरीक़त से था उनके किरदार तरीक़ा-ए-कार बे पढ़ो की तबलीग़ से इस्लाम का ज़रूरी उनसुर (हिस्सा) मालूम होने लगे उन्होने इस्लाम के ज़रिये रोहबानियत और तर्क दुनिया (दुनिया छोड़ने) का तसव्वुर दिया और बहुत से दुनियादार इस्लाम को मख़सूस लोगों का मज़हब समझने लगे और खुद वह मज़हब से बिल्कुल आज़ाद हो गये।..✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 27 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 35
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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ इस्लाम एक मुकम्मल आईन है और हर तरह के इंसानों के लिये ज़िन्दगी गुज़ारने का शानदार रहनुमा इसमें जो एहकाम व आमाल हैं उन सबकी हैसियत व अहमियत जुदागाना अलग अलग है न सब नेकियां एक जैसी हैं न सब गुनाह बराबर न हर अक़ीदा यकसां है न हर इबादत कोई बहुत ज़्यादा ज़रूरी है कोई उससे कम कोई उससे भी कम कोई ऐसा कि बिल्कुल ज़रूरी ही नहीं कर लिया जाये तो बेहतर न किया जाये तो गुनाह पकड़ और अज़ाब नहीं हां करने वालों के लिये अजर व सवाब है इस्लामी तबलीग़ करने और उसकी दावत देने वालों के लिये ज़रूरी है कि वह क़ौम को अहकाम व आमाल के दरमियान-यह फ़र्क ज़रूर बतायें अपने बयानात व अक़वाल के ज़रिये भी और अपने अफ़आल व किरदार के जरिये भी अगर आप इस्लामी अरकान आमाल व अफ़आल व अहकाम व अज़कार लोगों को समझा रहे हैं लेकिन आप इनमें ज़्यादा ज़रूरी कम ज़रूरी और ग़ैर ज़रूरी का फ़र्क नहीं बता रहे हैं तो आप उस दीन की तबलीग़ नहीं कर रहे हैं जो पैगम्बरे इस्लाम लाये थे और आपकी ज़िन्दगी उस मज़हब की मुकम्मल तौर पर तर्जुमानी नही कर रही है जिसको इस्लाम कहा जाता है!..✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 29 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 36
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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ मज़हबे इस्लाम इंसानी फ़ितरी तक़ाजों को पूरा फरमाने वाला एक ऐसा दरमियानी रास्ता है कि जो इतना ज़्यादा आसान भी नहीं कि बिल्कुल आवारागर्दी और आज़ाद ख़्याली बन जाये और न इतना मुश्किल कि लोग उसको अपने बस से बाहर ख़्याल करने लगें कुरआने करीम मे फरमाया गया है कि :-
┇𖠁 ➧ *"अल्लाह तआला किसी जान पर उसकी ताक़त से ज़्यादा बोझ नही डालता।"*
┇𖠁 ➧ हदीसे पाक मे है हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रदिअल्लाहु तआला अन्हा और हज़रत अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि रसूल'ल्लाह सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम किसी महीने मे रोज़े छोड़ते चले जाते तो लगता था कि इस महीने में बिल्कुल रोज़ा नही रखेंगे और किसी महीने में रोज़े रखते तो रखते चले जाते लगता था कि पूरे महीने रोज़े रखेंगे और रमज़ान के अलावा कभी किसी महीने के पूरे रोज़े आप नही रखते थे!..✍
*📔 बुख़ारी ज़िल्द नं.1 किताबुस्सौम सफ़ह 264*
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 31 📚*
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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ हज़रत अबू सईद ख़ुदरी रदिअल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम चाश्त की नमाज़ पढ़ना शुरू फरमाते हम कहते कि अब रोज़ाना पढ़ते ही रहेंगे कभी छोड़ना शुरू करते तो हम कहते कि अब कभी नही पढ़ेगे।
*📓 तिर्मिजी ज़िल्द 1 अबवाबुल वितर सफ़हा 62*
┇𖠁 ➧ एक सहाबी-ए-रसूल हज़रत उस्मान बिन मज़ऊन रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने हुज़ूरﷺ से दुनिया छोड़ने की इजाज़त चाही तो फ़रमाया मस्जिदों में नमाज़ के इन्तिज़ार में बैठना ही मेरी उम्मत का तरहब यानि तर्क़ दुनिया है!..✍️
*📘 मिशकात बाबुल मसाजिद सफहा 69*
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 32 📚*
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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ एक मर्तबा हुज़ूरﷺ घर में तशरीफ़ लाये तो मुलाहिज़ा फरमाया कि दो सुतूनों के दरमियान एक रस्सी बंधी हुई है पूछा यह कैसी रस्सी है अर्ज़ किया गया कि ज़ैनब ने बांधी है जब वह नमाज़ पढ़ते पढ़ते थक जाती हैं तो इससे लटक जाती हैं फरमाया इसको खोल दो इसकी कोई ज़रूरत नही हर शख्स उस वक़्त तक नमाज़ पढ़े जब तक ख़ुश दिली से पढ़ सके जब थक जाये तो रहने दे!...✍️
*📕 सहीह बुख़ारी ज़िल्द नं01 किताबुल तहज्जुद सफ़हा 154*
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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ इसी के आगे मुत्तसिल दूसरी हदीस मे है की हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रदिअल्लाहु तआला अन्हा के पास बनी असद की एक औरत बैठी थी कि हुज़ूरﷺ तशरीफ़ लाये फरमाया यह कौन है? हज़रत आयशा ने अर्ज़ किया यह फलां औरत है जो रात भर जागती है और उसकी नमाज़ व इबादत की तारीफ़ करना शुरू कर दी हुज़ूरﷺ ने फरामया खामोश रहो इतना ही अमल करो जितनी तुम में ताक़त है अल्लाह तआला उस वक़्त तक ख़ूब सवाब देता है जब तक तुम थकते नहीं हो।..✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 32 📚*
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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ इस क़िस्म की और भी आहादीस मरवी हैं जिनसे ज़ाहिर होता है कि सरकारे दो आलमﷺ को हर वक़्त यह ख़्याल रहता था कि मज़हबे इस्लाम को लोग बहुत मुश्किल और मुसीबत न समझ लें और वह कुछ मखसूस नफ्सकुश असहावे रिजयाज़त व मुजाहिदा का ही मज़हब बनकर रह न जाये बल्कि पैग़ाम इस्लाम सबके लिये आम हो जाये और अल्लाह तआला ने आपको सबके लिये रसूल बनाकर भेजा कसरते इबादत (बहुत ज़्यादा इबादत) नवाफिल में मशगूलियत मुजाहिदा और रियाज़त की कभी कभी आपने तालीम भी दी है उसकी तरफ़ रग़बत भी दिलायी है!...✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 32 📚*
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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ लेकिन उसको मज़हब का लाज़मी और ज़रूरी हिस्सा नहीं बन्ने दिया रमज़ान शरीफ़ की रातों में आपने अस्हाब को मुसलसल कई रोज़ तक जमाअत के साथ तरावीह की नमाज़
पढानी शुरू की इसका चर्चा हुआ और मस्जिद भरने लगी तो आप नमाज़ पढाने के लिये अगले दिन तशरीफ़ नही लाये सुबह को बाद नमाज़ फज़्र लोगों की तरफ़ मुतवज्जा होकर फरमाया कि इस नमाज़ के लिये तुम्हारे जमा होने से मुझको कोई परेशानी नहीं है यानि मुझको यह नमाज़ पसंद है लेकिन मेरे न आने की वजह यह है कि मेरी पाबन्दी से वह कही तुम पर फर्ज़ न हो जाये यानि तुम लोग उसको ज़रूरी न समझने लगो।..✍️
*📕 बुख़ारी शरीफ़ ज़िल्द नं01 सफ़हा 136*
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 33 📚*
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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ एक दिन हुज़ूरﷺ का वाज़ (नसीहत वाली तक़रीर) सुनने के बाद हज़रत उस्मान बिन मज़ऊन रदिअल्लाहु तआला अन्हु के मकान में जमा होकर सहाबा ने यह अहद किया कि वह सब दिन रोज़े रखेंगे रात भर नमाज़ पढ़ेंगे औरतों के क़रीब नही जायेंगे खुशबू का इस्तेमाल नही करेंगे गोश्त नही खायेंगे बिस्तरों पर नहीं सोंयेंगे तो कुराआने करीम की आयते करीमा नाज़िल हुई जिसका तर्जुमा यह है।
┇𖠁 ➧ ऐ ईमान वालो अपने ऊपर हराम न ठहराओ वह सुथरी चीज़े जो अल्लाह तआला ने तुम्हारे लिये हलाल की हैं और हद से न बढ़ो बेशक अल्लाह तआला हद से बढ़ने को पसंद नही फरमाता और खाओ जो कुछ तुम्हे अल्लाह तआला ने रोज़ी दी हलाल व पाकीज़ा और डरो अल्लाह से जिस पर तुम्हारा ईमान है!..✍️
*📕 सूरह मायेदा पारा नं 07 रूकु नं 02*
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 34 📚*
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┇𖠁 ➧ इस सब बयान का मतलब व मक़सद यह नहीं है कि बहुँत ज़्यादा इबादत व रियाज़त नफ्सकुशी और मुजाहिदा इस्लाम में कोई ना पसन्दीदा चीज़ है बल्कि बात सिर्फ़ यह है इसको मज़हब और मज़हब वालों के लिये शरअन ज़रूरी फर्ज़ व वाजिब नहीं होने दिया जाये यह जो बाज लोग पढ़े लिखे होकर अहले तसव्वुफ़ व तरीक़त मुजाहिदा व रियाज़त (बहुत ज़्यादा इबादत करने वालो) को गिरी नज़रों से देखते हैं और उनकी मज़ाक उड़ाते हैं यह सब गुमराह व बद्दीन हैं हमारा मक़सद सिर्फ यह है कि तकवा व परहेजगारी नफिल नमाज़ रोज़े और इबादात को लोग इस्लाम का ज़रूरी हिस्सा न समझ लें कि जिसके बग़ैर इस्लाम ना मुकम्मल है अगर आप नफिल नमाज़े पढ़ने के आदी हैं!...✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 34 📚*
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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ ताहज्जुद, इशराक़, चाश्त, अव्वाबीन व सलात्तुतसबीह की अदायगी की तौफीक़ खुदाये तआला ने अपने करम से आपको अता फरमाई और आप मुसलमानों को इस तरफ़ राग़िब करते हैं और यह नमाज़े उन्हे सिखाते और याद कराते हैं तो यह एक निहायत ही उम्दा काम है जो आप कर रहे हैं लेकिन अपने कौल व फेल से लोगों को यह तआस्सुर देना भी आपकी जिम्मेदारी है कि अगर कोई शख़्स फज़्र ज़ोहर व असर व मग़रिब व इशा पांचों वक़्त की नमाज़ ब जमाअत की पाबन्दी करले तो इतनी इबादत एक सच्चा अच्छा मुसलमान होने के लिये काफी है और अगर आप गाहे बगाहे महीने अशरे और हफ्ते में कुछ नफिल रोज़े रखने के आदी हैं तो आप क़ाबिले मुबारक बाद है लेकिन कौम के ज़हन में यह भी बैठाते रहें कि अगर कोई इस्लाम में सिर्फ़ रमज़ान के रोज़े रख ले तो वह गुनाहगार नहीं है और क़यामत के दिन उससे रोज़ो के बारे में कोई पुरसिश (पूछताछ) नहीं होगी।...✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 35 📚*
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┇𖠁 ➧ रसूले पाकﷺ से मन्कूल खाने पीने उठने बैठने सोने जागने पहनने ओढ़ने की वह सुन्नते और दुआए कि जिन पर हुज़ूरﷺ कभी अमल किया और कभी छोड़ा और उनके न करने पर आख़िरत में किसी अज़ाब एताब सज़ा और पकड़ की बात भी नहीं बताई तो अगर आप उन सुन्नतों पर अमल करते हैं और दूसरों को कराते हैं तो आपकी जितनी तारीफ़ की जाये वह कम है लेकिन साथ साथ इस बात की भी लोगों को आगाही और जानकारी देना आपका फ़र्ज़ और ज़िम्मेदारी है कि अगर किसी से इन सब पर अमल न हो सके और यह सुन्नतें उससे कभी छूट जायें तो सिर्फ़ इतनी बात पर अल्लाह तआला के यहां उसकी कोई पकड़ नहीं है और उस पर लअन तअन नहीं किया जा सकता अलबत्ता किसी भी सुन्नते मुस्तफाﷺ या उस पर अमल करने वालो को इस सुन्नत की वजह से हक़ीर जानना तफ़रीह और दिललगी उड़ाना काफ़िरों का काम है।...✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 36 📚*
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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ बुरे से बुरे मुसलमान से भी यह उम्मीद नहीं की जा सकती हमारे इस सब बयान व कलाम का खुलासा यह है कि अगर आप रातों को जागने और इबादत करने वाले और दिन को नफ़िल रोज़े रखने वाले हर वक़्त पर सुन्नत और मनकूल व मासूरा। दुआओं का ध्यान व ख़्याल रखने वाले हैं तो यक़ीनन आपकी शान और आपका मर्तबा बहुत बड़ा है लेकिन साथ ही साथ यह भी जान लेना और दूसरों को बता देना ज़रूरी है कि कोई शख़्स सिर्फ़ अगर पांचो वक़्त की फ़र्ज़ नमाज़ ब जमाअत अदा करले रमज़ान शरीफ़ के रोज़े रख ले अगर साहिबे निसाब है तो ज़कात व सदक़ा फ़ितर और कुर्बानी की अदायगी कर ले अगर बस की बात है तो। ज़िन्दगी में एक बार हज कर ले तमाम हराम काम मसलन ज़िना, झूठ, गीबत, सूद, शराब, जुआ, गाने बजाने, तमाशे और सिनेमाओं, हक़तलफी, अमानत में ख़यानत, ज़ुल्म व ज़्यादती वगैरह से बचता रहे तो यह यक़ीनन उसकी निज़ात के लिये अल्लाह तआला के करम से काफ़ी है!..✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 36 📚*
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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ बल्कि आज के दौर में तो जो इतना करले उसको अल्लाह तआला का मुक़र्रब व मख़सूस बन्दा कहा जाये तो बेजा नही है दीनी अहकाम व आमाल में ज़रूरी ग़ैर ज़रूरी और कम ज़रूरी का फ़र्क लोगों को न बताने का नतीज़ा यह है कि आज बहुत से आवाम अगर कोई किसी नफ़िल या मुस्तहब को छोड़ दे तो उसे बहुत बुरी नज़रों से देखते हैं मसलन अगर कोई हर नमाज़ के बाद जो दो रकत नफिल पढ़े जाते हैं उन्हे न पढ़े तो आधी नमाज़ पढ़ने का फ़तवा लगा देते हैं। ऐसे ही कितने वह मुस्तहबात है जिन्हे उन्होने फराईज़ का दर्ज़ा दे रखा है और यह अनपढ अवाम अहले इल्म के लिये मुसीबत बन गये हैं!...✍️
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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ एक जगह एक इमाम का हिसाब सिर्फ़ इस लिये कर दिया गया कि उन्होंने बे वजू अज़ान पढ़ दी थी हालांकि वजू करके अज़ान पढ़ना सिर्फ़ एक मुस्तहब काम है यहां तक कि एक गिरोह तबका बल्कि फिरका तैयार हो गया जो फराईज़ और ज़रूरी अहकामे शरअ की तरफ से एक दम गाफ़िल और दूर है और औरादो वज़ाइफ़ व नवाफिल में लगा हुआ है और इन्हे कोई यह बताने वाला नहीं कि जब तक फ़र्ज़ जिम्मे पर बाकी है कोई नफिल या मुस्तहब क़बुल नहीं है और जो लोग नमाज़ व रोज़े की पाबन्दी नही करते उनके सारे वज़ीफ़े इबादतें और रियाज़ते सब मरदूद और ना क़ाबिले क़बूल हैं ग़ैर इस्लामी काम हैं और गुमराही के रास्ते हैं।..✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 37 📚*
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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ इसे यह भी मालूम होना चाहिये कि यह सब काम भी तभी फायदेमन्द हैं जब फ़राईज़ व वाजिबात पूरे हों और जो लोग फराईज़ को छोड़कर नवाफ़िल में मशगूल हैं यह उनसे भी ज़्यादा ख़तरनाक और ग़लत हैं जो फराईज़ व नवाफ़िल दोनों को छोड़े हुए हैं। क्योकि जो फ़राईज़ छोड़कर नवाफ़िल मे मशगूल है उसके तरीक़ा-ए-कार से ऐसा महसूस होगा कि इस्लाम पांचो वक़्त की नमाज़ का नाम नहीं है बल्कि औराद वज़ाईफ़ और दीगर नवाफ़िल का नाम है और मज़हब की शकल बदलती हुई मालूम होगी इस बारे में तफसीली मालूमात हासिल करने के लिये आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी अलैहिर्ररहमा का किताब *"अलअअज़्जुलइकतिनाह"* का मुताअला करना चाहिये।..✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 38 📚*
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❝ शैतान की एक चाल !? ❞
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┇𖠁 ➧ शैतान की चालों में से एक चाल यह भी है कि इंसान के खराब व बर्बाद करने के लिये ज़रूरी इस्लामी अहकाम नमाज़ रोज़े और ज़कात वगैरह की तरफ़ से उसका दिल हटा देता है और ग़ैर ज़रूरी बातों नवाफ़िल व मुस्तहबात सदक़ात नाफ़िला और ख़ैरात न्याज़ व फ़ातहा, उर्स व मीलाद, जलसे व जुलूस और दीगर औराद व अज़कार में उसके लिये रग़बत और दिलचस्पी पैदा कर देता है और बजाय फ़राईज़ व वाजिबात के उन कामों के लिये उसे उभारता है और वह शख़्स खुद को मुत्तक़ी परहेज़गार दीनदार ख़्याल करने लगता है हालांकि वह गुमराही से बहुत क़रीब है और ख़ुदा व रसूलﷺ से बहुत दूर है याद रखो जिसका दिल फ़जर व ज़ोहर व असर व मग़रिब व इशा में न लगता हो और वह उनका ख़्याल व एहतमाम न रखता हो और इशराक़ व चाश्त, तहाज्जुद व अव्वाबीन ,अज़कार व वज़ाईफ़ और नवाफ़िल में उसे खूब मज़ा आता हो उस पर शैतान का दांव चल गया है और यह दीनदारी के नाम पर धोका खा गया ऐसे की सोहबत दूसरे के लिये भी ख़तरनाक है।..✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 39 📚*
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❝ इबादत और नेक काम मर्तबे हासिल करने के लिए नहीं करना चाहिए!? ❞
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❝ इबादत और नेक काम मर्तबे हासिल करने के लिए नहीं करना चाहिए!? ❞
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┇𖠁 ➧ और उनकी इबादत एक तरह की दुनियादारी बल्कि बाज़ की तो निरी दुकानदारी है भाईयो मर्तबे उन्हे नहीं मिल पाते जो मर्तबों के तलबगार होते हैं तुम तो अपनी निज़ात व मग़फिरत की फ़िक्र करो अल्लाह तआला की मुहब्बत में इबादत करते रहो मर्तबे देना अल्लाह तआला का काम है किसी को बग़ैर कुछ किये दे देता है और किसी को करने के बाद भी नहीं देता और इबादत व रियाज़त करने वाले करते रहते हैं और इन्हे मर्तबे भी मिल जाते हैं लेकिन इन्हे पता भी नहीं चलता कि वह कौन से मर्तबे पर फाईज़ हो गये वह खुद को गुनाहगार ख्याल करते रहते हैं औलिया व सूफ़िया मे से एक गिरोह का ख़्याल यह ही है कि वली को अपनी विलायत का इल्म होना ज़रूरी नहीं।..✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 40 📚*
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❝ दीन दारी दूसरो पर तनक़ीद करने के लिए न हो!? ❞
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┇𖠁 ➧ तक़वे, तहारत, ख़ूब ज़्यादा इबादत व रियाज़त वालों को यह भी ख़ूब याद रखना चाहिये कि वह उन मुसलमानों को हक़ीर न समझें और गिरी नज़रों से न देखें जो उनकी बराबरी नही कर पाते बल्कि अल्लाह तआला के औरों से ज़्यादा शुक्रगुज़ार बनकर रहें कि अल्लाह तआला ने तुम्हे तौफीक़ दी उन्हे न दी नमाज़ की हर रकअत में जो दो सजदे रखे गये हैं उसकी वजह अहले इल्म ने यह बताई है कि अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहस्सलाम के लिये सजदे का हुक़्म फ़रिश्तों को दिया तो सब फ़रिश्तों ने सजदा कर लिया लेकिन अज़ाजील इनकार करने की वजह से मर्दूद मलउन करार दिया गया तो फ़रिश्तो ने पहले सजदे की तौफीक़ के शुक्राने के लिये एक सजदा और किया।..✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 40 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 54
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❝ दीन दारी दूसरो पर तनक़ीद करने के लिए न हो!? ❞
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┇𖠁 ➧ मशहूर ज़माना सूफ़ी और बुजूर्ग हज़रत सय्यदना शेख़ सांदी रहमतुल्लाह तआला अलैह फरमाते हैं कि मैंने बचपन में एक मर्तबा अपने वालिद बुजुर्गवार के साथ शब्बेदारी की सारी रात इबादत व तिलावत में गुज़ारी कुछ लोग सो रहे थे तो मैंने कहा इन लोगों में से किसी ने यह भी नही लिया कि रात मे उठकर दो रकअत नफ़िल नमाज़ पढ़ लेता तो वालिद बुजूर्गवार ने फरमाया ऐ मेरे प्यारे बेटे अगर तू भी सोता रहता तो इस गीबत और दूसरों की ऐवजोई से अच्छा होता है!
*📕 गुलिस्तान बाब 2*
┇𖠁 ➧ हाँ जो लोग फराइज़ व वाजिबात की अदायगी में कोताही करते हों और हरामकारियों के आदी हों उन पर इस्लाह व सुधार की नियत से मलामत व तनक़ीद की जा सकती है अपने जात की बर्तरी और बड़ाई का इसमे भी दखल न हो।..✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 41 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 55
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❝ रियाकारी (दिखावा) से बचने की तरकीब!? ❞
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┇𖠁 ➧ रियाकारी और दिखावे की कुरआन व हदीस में जगह जगह बहुत बुराई आयी है और इसकी वजह से इन्सान का सारा करा धरा बेकार हो जाता है इससे बचने की एक ख़ास तरकीब यह है कि आप कभी कभी ऐसे वक़्त और मौक़े से कोई इबादत या नेक काम करते रहें कि अल्लाह तआला के अलावा कोई न जान सके मसलन रात में ऐसे वक़्त उठिये कि सब लोग सोते हों और इबादत व तिलावत में मशगूल हो जाइये किसी पर कोई एहसान कीजिये कि दूसरों को पता न चल सके फिर भी अगर कोई जान जाये या उसे पता चल जाये तो सिर्फ़ इससे आप के अमल को रियाकारी नही कहा जा सकता रियाकारी तो वह है कि लोगों को बताने जताने और ज़ाहिर करने के लिये ही किया जाये ज़ाहिर होजाना और बात है और ज़ाहिर करना और लेकिन कभी कभी ऐसे नेक काम ज़रूर करते रहें कि आपकी कोशिश में जिनका इल्म ख़ुदा तआला के अलावा किसी को न हो।..✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 42 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 56
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❝ शैतान की एक और चाल !? ❞
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┇𖠁 ➧ शैतान किसी को इबादत व रिजाज़त और नेकियों से बाज़ रखकर (रोक कर) खुदाये तआला से दूर करता है और किसी को ख़ूब इबादत कराकर उसे अपनी इबादत पर मगरूर व घमन्डी और मुताकब्बिर बनाकर गुमराह करता है और उसे खूब इबादत व परहेजगारी पर उभारता है यहां तक कि वह शख्स दूसरों को जहन्नमी और ख़ुद को जन्नत का ठेकेदार ख़्याल करने लगता है और उसके दिल से ख़ौफे खुदा और आख़रत की फ़िक्र निकाल देता है और उससे कहता है अब तुझे अल्लाह तआला से डरने की और आख़िरत की फ़िक्र करने की क्या ज़रूरत है तू तो इतना बड़ा दीनदार परहेज़गार है तेरा तो जन्नत में जाना ज़रूरी और यकीनी है और उसे ऐसे गार मे ले जाकर फेंकता है जहां से उसका निकलना न मुमकिन हो जाता है!..✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 43 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 57
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❝ शैतान की एक और चाल !? ❞
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┇𖠁 ➧ हालाकि ख़ौफे ख़ुदा और आख़िरत की फ़िक्र ही अल्लाह वालो की सबसे बड़ी पूंजी है और बन्दे का अल्लाह तआला के डर से लरजना कापना गिरगिड़ाना अल्लाह तआला को इबादत से भी ज़्यादा पसन्द है कभी कभी अल्लाह तआला को बन्दे का गुनाह करके पछताना और शर्माना नेकियों से भी ज़्यादा पसन्द आ जाता है जबकि यह पछताना और शर्माना दिल से हो दिखावा और मक्कारी न हो और जो गुनाह करके दिल से पछताते और शर्माते हैं इनकी पहचान यह है कि वह फिर बार बार गुनाह नहीं करते और अल्लाह तआला पर कुछ वाजिब नही और उस पर किसी का कर्ज़ा और ऐसा एहसान नहीं कि जिसका सिला और बदला उसके ज़िम्मे लाज़िम हो जब किसी को कुछ देता है तो यह उसका करम है और कुछ न दे तो यह अदल व इंसाफ है उस पर किसी किस्म का एअतराज़ करने का कोई हक़ नही उसकी जात हर ऐब व नुक्स से पाक है चाहें तो गुनाहगारों को जन्नत मे भेजे और चाहे तो नेको कारों को दोज़ख में दाखिल कर दे।
┇𖠁 ➧ लिहाज़ा उससे हर शख़्स को हर आलिम को डरते रहना चाहिये और जो ज़्यादा डरने वाले हैं वही ज़्यादा इल्म वाले हैं!..✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 44 📚*
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❝ ग़लती करके शर्माना ईमान वालों की शान !? ❞
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┇𖠁 ➧ हज़रत अबू उम़ामा से मरवी है कि एक साहब ने रसूले पाकﷺ से पूछा या रसूल अल्लाहﷺ ईमान की पहचान क्या है फरमाया जब तुम्हे नेकी करके ख़ुशी हो और गुनाह करके अफ़सोस हो तो तुम साहिबे ईमान हो!
*📕 मिशकात किताबुल ईमान सफ़ह 16*
┇𖠁 ➧ इस फरमाने रसूल ﷺ से ज़ाहिर है कि मोमिन वही नही जो कभी गुनाह व करे बल्कि मोमिन भी गुनाहगार हो सकता है और होता है!...✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 44 📚*
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❝ ग़लती करके शर्माना ईमान वालों की शान !? ❞
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┇𖠁 ➧ लेकिन इस को गुनाह करने पर अफ़सोस सदमा और दिली तकलीफ़ होती है और गुनाह करके यह तकलीफ़ उसी को होती है जो गुनाहों पर जरी और उनका आदी न हो गया हो और जो गुनाहो पर गुनाह करते ही रहते हैं और हराम कारियां उनकी सरशत और फ़ितरत व आदत बन गयी, तो उन्हे गुनाह करके पछतावे एहसास और शर्मिन्दगी की नेअमत हासिल नही होती मसलन कोई शख़्स नमाज़ का पाबन्द है और किसी ख़ास मज़बूरी की वजह से सोता रह गया और नमाज़ का वक़्त निकल गया तो यक़ीनन उसको अफ़सोस होगा वह घुटन और कुड़हन महसूस करेगा लेकिन जो नमाज़ छोड़ने का आदी हो गया कभी पढ़ता ही नही तो उसे नमाज़ छूटने का अफ़सोस क्यो होने लगा इस हदीस से लोग यह न समझ लें कि अब हम ख़ूब गुनाह करेंगे और बाद में अफ़सोस कर लिया करेंगे क्योकि अफ़सोस पछतावे और शर्मिन्दगी का ताआल्लुक़ दिल से है और अल्लाह तआला जानता है कि किसके दिल मे क्या है और कौन गुनाह करके पछता रहा है और अफ़सोस कर रहा है और कौन अफ़सोस करने पछताने के लिये ही गुनाह कर रहा है और अल्लाह तआला को कोई धोका नही दे सकता वह धोका खाने से पाक है उसको धोका देने की कोशिश करने वाले खुद ही बड़े धोके मे हैं!...✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 45 📚*
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❝ ख़ताऐं बुजुर्गो से भी हुई है!? ❞
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┇𖠁 ➧ ग़लतियां गुनाह और भूल चूक कुछ अकाबिर बुजुर्गाने दीन में यहाँ तक कि सहाबा-ए-कराम से भी हो गई हैं लेकिन ग़लती करके उनके पछताने, अफसोस, तौबा करने की मिसालें तारीख में अनोखी हैं एक सहाबी-ए-रसूलﷺ हज़रत सय्यदना अबू लुबाबा रज़िअल्लाहो अन्हू से एक भूल हो गई थी तो उन्होने ख़ुद को मस्जिदे नब्बी शरीफ़ के एक सुतून (थम) से बांध लिया था कि जब तक अल्लाह तआला मेरी तौबा क़बूल नहीं फरमायेगा यूं ही बंधा रहुँगा और हुज़ूर ﷺ खुद ही अपने मुबारक हाथों से मुझको खोलेंगे मुसलसल (लगातार) छ:दिन तक भूके प्यासे बंधे रहे नमाज़ की अदायगी और ज़रूरी हाज़त के लिये उनकी बीबी साहिवा या उनकी बच्ची उनको खोल देती थी और बाद में फिर बांध दिया जाता था यहां तक की सुन्ने की ताकत ख़त्म हो गई आंखें भी जवाब देने लगी थी आख़िर अल्लाह तआला को उनकी तौबा पसन्द आयी और कुरआने करीम की एक आयत नाज़िल फरमाकर अपने महबूबﷺ के ज़रिये उन्हें तौबा क़बूल होने की ख़ुशखबरी सुनाई गयी और हुज़ूरﷺ ने ख़ुद ही अपने मुबारक हाथों से उन्हे खोला।...✍️
*📕 मवाहिबुल लदुनिया जिल्द 1 सफ़ह 464*
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 45 📚*
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❝ ख़ताऐं बुजुर्गो से भी हुई है!? ❞
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┇𖠁 ➧ सुब्हान अल्लाह कैसी खुशक़िस्मती है जो ग़लती और फिर तौबा करने से हासिल हुई है परहेज़गारियां इस मर्तबे पर रश्क करें तो बजा है मस्जिद नबवी के उस सुतून का नाम सुतूने अबुलुबाबा या सुतूने तौबा पड़ गया वह अब भी है अहले इस्लाम उसके नज़दीक अपने गुनाहों से तौबा करते हैं।
┇𖠁 ➧ ऐसा ही एक वाक्या हज़रत माअज़ बिन मालिक असलमी रदिअल्लाहु तआला अन्हु का है इनसे ज़िना सरज़द हो गया था तो सरकारﷺ की ख़िदमत मे आये अर्ज़ किया या रसूलल्लाहﷺ मुझको पाक कर दीजिये इरशाद फरमाया जाओ!..✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 45 📚*
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❝ ख़ताऐं बुजुर्गो से भी हुई है!? ❞
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┇𖠁 ➧ अल्लाह तआला से अपने गुनाह की मग़फिरत चाहो और तौबा कर लो वह वापिस लौटे और फिर वापस आ गये अर्ज़ किया या रसूलल्लाहﷺ मुझको पाक कर दीजिये हुज़ूरﷺ ने फ़िर यह ही फ़रमाया यहां तक कि चार मर्तबा ऐसा ही हुआ तो हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया मैं तुम्हे किस चीज़ से पाक करूँ अर्ज़ किया मैनें ज़िना किया है हुज़ूर ने दूसरी तरफ़ को चेहरा फेर लिया तो वह हुज़ूरﷺ के सामने आ गये और इक़रार किया कि मैनें ज़िना किया है फरमाया क्या तुम पागल तो नही हो अर्ज़ किया नही यहां तक कि चार मर्तबा उन्होने अपने ज़िना करने का इक़रार किया फिर हुज़ूरﷺ ने उन्हे संगसार करने का हुक्म दिया और उन्हे जंगल में ले जाकर गढ़हा खोद कर उसमे आधा गाढ़ दिया गया बाक़ी जिस्म को पत्थरों से मारा गया यहां तक कि वह जां बहक़ हो गये हुज़ूरﷺ ने उनके बारे में फरमाया कि मा अज़ ने ऐसी तौबा की है कि अगर सारी उम्मत मे बांटी जाये तो सबको काफ़ी हो जाये!..✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 46 📚*
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❝ ख़ताऐं बुजुर्गो से भी हुई है!? ❞
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┇𖠁 ➧ ऐसा ही उस मुबारक ज़माने की एक औरत के बारे में मरवी है कि उनसे भी ग़लती हो गई थी तो वह भी सरकारﷺ की ख़िदमत में ख़ुद ही हाज़िर हुई और अपनी ग़लती का इक़रार फरमया सरकारﷺ ने तौबा व इस्तग़फार करने के लिये कहा कहने लगी क्या आप मुझको वापिस कर देंगे? मुझको खूब पाक फरमाईये मैं ज़िना से हामला हो चुकी हुँ इरशाद फरमाया जब तक बच्चे की विलादत ना हो जाये सजा नही दी जाती यह सुनकर वापस चली गई और जब बच्चा पैदा हुआ तो फिर हुज़ूरﷺ को इत्तिला करायी कि अब मुझको सज़ा दी जाये हुज़ूरﷺ ने फिर टाल दिया और फरमाया जब तक बच्चा माँ के दूध का मुहताज है माँ को सज़ा नही दी जा सकती फिर चली गई यहां तक कि बच्चा कुछ समझदार हो गया तो फिर हाज़िरे ख़िदमत हुई और बच्चे के हाथ में एक रोटी का टुकड़ा था यानि हुज़ूरﷺ को यह दिखाना चहाती थी कि अब बच्चे को मेरे दूध की ज़रूरत नहीं है वह रोटी खाने लगा है तब सरकारﷺ के हुक्त से उनके लिये सीने तक एक गढ़हा खोदा गया और बाक़ी जिस्म को पत्थरों से मारकर उन्हे ख़त्म कर दिया गया!..✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 46 📚*
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❝ ख़ताऐं बुजुर्गो से भी हुई है!? ❞
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┇𖠁 ➧ हज़रत खालिद बिन वलीद ने एक पत्थर मारा जो सर में लगा खून के कुछ छींटे उनके जिस्म पर आ गये तो उन्होने कुछ बुरा भला कहा तो हुज़ूरﷺ ने फरमाया इस औरत के बारे में कुछ न कहो इसने ऐसी तौबा की है कि बड़े से बड़े गुनाह के लिये काफ़ी है और हुज़ूरﷺ ने इनकी तौबा की बहुत तारीफ़ फरमायी और ख़ुद उनके जनाज़े की नमाज़ अदा फरमायी यह दोनो वाक़्यात हदीस की मशहूर किताब *मिशकात शरीफ़ सफ़हा 310* में बुखारी और मुस्लिम के हवाले से देखे जा सकते हैं सुब्हान अल्लाह कितने प्यारे और मर्तबे वाले हैं यह ख़ताकार और गुनाहगार कि जिनकी तारीफ़ वह फरमायें कि जिनका कलाम ख़ुदा का कलाम है और खुद सरकारﷺ इनके जनाज़े की नमाज़ अदा फरमायें और क्यूँ न हो शाने ईमान देखिये कि जानते है कि हमारे इस गुनाह की सज़ा इस्लाम में संगसार करना है लेकिन छुपते बचते और भागते नहीं और दुनिया की इतनी सख़्त सज़ा को आख़रत की भलाई के लिये बर्दाशत कर लेते हैं कितने तक़बे और परहेज़गारियां कुर्बान हैं इन खतकारों पर।...✍️
*चोर हाकिम से छुपा करते हैं यां इसके*
*तेरे दामने में छुपे चोर अनोख़ा तेरा*
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 47 📚*
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❝ एक ज़रूरी बात!? ❞
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┇𖠁 ➧ ख़्याल रहे कि बुजर्गो से जो खताऐं सरजद हुई हैं बिला ख़ास ज़रूरत उनका ज़िक्र करना जाइज़ व मुनासिब नही है, और बड़ी महरूमी और बे अदबी है पढ़ने पढ़ाने या कुरान व हदीस या दीनी किताबों की तिलावत व मुतआले में ज़िक्र आ जाये तो कोई हर्ज़ नही ख्वामुख्यां ऐसी बातों का ज़िक्र करना मुनाफिक़ की पहचान है हमने इस मौक़े पर इन वाक़्यात का ज़िक्र इस लिये किया ताकि लोगों को ख़ता और गुनाह करके पछताने अफ़सोस करने और शर्मिन्दा होने के माआने मालूम हो जायें।...✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 48 📚*
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❝ ऐ लोगों तुमने दीन क्यूँ छोड़ा!? ❞
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┇𖠁 ➧ यह एक सवाल है जिसका जवाब आपसे बरोज़े क़यामत तल़ब किया जायेगा बजाये हमारे बताने के आप ख़ुद ही अकेले में बैठकर इस सवाल के जवाब पर गौर करें आखिर मज़हबे इस्लाम में वह कौन कौन सी बातें है जिन पर आप अमल नहीं कर सकते और क्यों नहीं कर सकते आपकी राह में क्या मुश्किलात और दुशवारियां हाईल हैं उनको दूर करने की क्या सूरत है इन सवालात के जवाब आपके पास क्या हैं आप खुद अपने से पूछिये और ख़ुद जवाब दीजिये कहीं ऐसा न हो कि मरने के बाद ही सोचना नसीब हो सही बात यह है कि इस्लाम ने आपको दुनिया के हर ऐश व आराम और तफ़रीह से रोका तो नहीं है बस एक दायरा और हद मुतअय्यन कर दी है इसके अन्दर रहकर आप दुनियवी ज़िन्दगी से भी लुत्फ़ अन्दोज़ हो सकते हैं इसके बावजूद आपने दीन छोड़ दिया हर चीज़ की एक हद ज़रूर होती है।...✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 48 📚*
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❝ ऐ लोगों तुमने दीन क्यूँ छोड़ा!? ❞
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┇𖠁 ➧ खुशियों अरमानों और हसरतों की भी एक हद होनी चाहिये कि नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि आप हद से ज़्यादा अरमान पूरे करने हसरतो को मिटाने और ऐश व आराम उठाने में लग गये इस लिये आप इस्लाम से दूर भाग रहे हैं तो आपको मालूम होना चाहिये कि जो हर ख़ुशी हर ऐश और हर आराम के तलबगार होते है उन्हें कुछ भी नहीं मिलता बल्कि रंज व तकलीफ़ ग़म व परेशानियों का सामना करना पड़ता है और हद से ज़्यादा हंसने का नतीजा रोना होता है अब तुम जो कर सकते हो करों लेकिन याद रखो तुम दुनिया को जन्नत नही बना सकोगे देखते नहीं हो जब से दुनिया में बज़ाहिर आसानियां बढ़ी है तो परेशानियां भी बढ़ी है इलाज़ तरक़्क़ी कर गये हैं तो बीमारियां भी ज़्यादा हो गई हैं ज़राय व वसाइल अगर बढ़े हैं तो आराम तलबियां और ऐश परस्ती भी बढ़ गई हैं हद से ज़्यादा आराम परेशानी बन जाता है हर वक़्त बिस्तर पर लेटे रहना ग़म व रंज में बदल जाता है अल्लाह ने जिसको जितना बनाया है वह उतना ही है और उतना ही रहेगा इन्सान जो दुनिया को जन्नत बनाने की कोशिश में लगा है वह कभी बना नहीं सकेगा तो दुनिया मे जो कुछ थोड़ा बहुत आराम व सुकून अल्लाह अपने करम से अता फरमाये वह उठाओ और जन्नत की तैयारी में लग जाओ वह ही एक ऐसी जगह है जहां कोई न रंज होगा न ग़म न दुख न दर्द न बीमारी न परेशानी न फ़िक्र न कोई उलझन।...✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 49-50 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 68
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❝ जो हो सकें वो करों !? ❞
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┇𖠁 ➧ मैं अपनी तहरीर के जरिये आपको यह दावत नहीं दे रहा हूँ कि आप मुकम्मल अल्लाह तआला वाले बहुत बड़े वली या कुतुब बन जायें मैं तो सिर्फ़ यह कह रहा हूँ कि आपसे जो हो सके वह तो करो आप ने दीन को एक दम छोड़ रखा है आप यह सोचते ही नहीं कि हमें भी दीन पर चलना है आपने एकदम यह पूछना ही छोड़ दिया कि इस्लाम में क्या अच्छा है क्या बुरा क्या जाइज़ है और क्या नाजाइज़ क्या हलाल है और क्या हराम भाईयो जो हो सके वह तो करो और बाकी के लिये अल्लाह तआला से रहमत व बख़्शिश मआफ़ी और मगफ़िरत की उम्मीद रखो बेशक वह परवरदिगार बहुत बख़्शने वाला निहायत मेहरबान है।...✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 50 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 69
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❝ ख़ुद को संभालना तो आसान है!? ❞
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┇𖠁 ➧ आज हम में क़ौम की दीन से दूरी और बदअम्ली का रोना रोने वालों की कमी नहीं है और यही दूसरों का रोना रोने वाले जब इनकी ज़िन्दगी के हालात का जाइज़ा लो तो इस्लाम से बहुत दूर नज़र आते है हालांकि वह चाहते हैं कि सब लोग दीनदार हो जायें और माहौल दीनी इस्लामी हो जाये तो भाईयो दूसरों को संभालना सुधारना तो एक मुश्किल काम है पता नहीं वह हमारी बात माने ना माने उसका दिल व दिमाग़ हमारे बस में नहीं उसके हाथ पांव हमारे काबू में नहीं बस कह सकते हैं समझा सकते हैं मनवा नहीं सकते लेकिन भाईयो अपने दिल व दिमाग पर तो अपना कन्ट्रोल है अपने हाथ पांव खुदा ने आपके बस में कर दिये है इन्हें सही राह पर चलाने के लिये इनसे सही काम कराने के लिये तो आपको किसी को समझाने या किसी की खुशामद करने की ज़रूरत नहीं है।...✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 51 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 70
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❝ ख़ुद को संभालना तो आसान है!? ❞
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┇𖠁 ➧ सिर्फ़ इरादा करने ही की तो देर है फिर यह आप क्यों नहीं कर रहे दूसरों से शराब और जूऐ छुड़ाने उन्हे फिल्मों और गानों तमाशों से बचाने उनसे नमाज़ पढ़वाने रोज़ा रखवाने उन्हे दाढ़ी और टोपीवाला बनाने का काम मुश्किल है हर एक के बस का नहीं है लेकिन खुद अपने लिये क्या मुश्किल है इसमें आप सुस्ती और काहिली क्यों कर रहे हैं? आप ख़ुद को भी नहीं संभाल सके तो आपसे ज़्यादा निकम्मा और नाकारह कोई नहीं दूसरों का ग़म छोड़ कर हर आदमी ख़ुद को दुरूस्त और सही कर ले तो ज़ाहिर है कि पूरी क़ौम सुधर जायेगी क्योंकि कौम अफराद ही के मजमूऐ (संगठन) का तो नाम है मुझको अफ़सोस के साथ लिखना पड़ रहा है कि आज हमारी क़ौम में दीन के ठेकेदार बहुत है लेकिन दीनदार कम हैं दीन के नाम पर रोटियाँ सेकने वाले उसका नाम लेकर मुसलमानों को ख़ुश करके नेतागीरी और सियासत चमकाने वाले बहुत हैं लेकिन जिन्हें देखकर अल्लाह व रसूलﷺ की याद आ जाये वह नज़र नहीं आते।..✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 52 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 71
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❝ मुस्लिम क़ौम का लीडर कौन !? ❞
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┇𖠁 ➧ यह एक सवाल है कि क़ौमे मुस्लिम का सही मअना में लीडर और क़ाइद कौन हो सकता है और कौन होगा और मुसलमानों के लिये छोटी बड़ी घरेलु समाजी और सियासी जो मुश्किलात हैं उनका हल कौन लायेगा आज यह एक अहम सवाल है जिसका जवाब तलाश करना जरूरी है और हर एक की सोच एक जैसी नहीं होती मेरा अपना ख़्याल तो यह ही है मुसलमानों का मुकम्मल रहनुमा उनका सच्चा क़ाइद और उनके हर क़िस्म के मसाइल का हल उसी शख़्स के पास रहा है और रहेगा जो सही मअना में नाइबे रसूले अकरमﷺ हो उसकी ज़िन्दगी उनकी हयात का आईना हो उसे और उसके हालात देखकर उनकी याद आ जाती हो।..✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 52 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 72
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❝ मुस्लिम क़ौम का लीडर कौन !? ❞
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┇𖠁 ➧ पैगम्बरे इस्लाम अलैह सलातोवस्सलाम की हैरानकुन खुदा साज अज़ीम शख्सियत और उनकी मुबारक ज़िन्दगी पर जब हम नज़र डालते है कि अल्लाह तआला ने उनमें वह सारी खूबियाँ और कमालात जमा फरमा दिये जो एक मख़लूक या इन्सान में हो सकते हैं आप मस्जिदे नबवी शरीफ़ में दीन व कुरान की तालीम भी देते ख़ुदा की बातें लोगों को सुनाते नमाज़ रोज़े हज व ज़कात इबादत व रियाज़त तसव्वुफ़ व तरीक़त के तौर तरीक़े लोगों को सिखाते ख़ुद ही मस्जिदे मुबारक में पांचों वक़्त की नमाज़ में इमामत फरमाते अख़लाक व आदाब की तालीम देते और जब मुसलमानों को मिटाने की साज़िश रचने वाले उन पर ज़ुल्म व ज़ियादती और हमला करने वालों से जंग लड़ना पड़ी तो ख़ुद ही मैदाने जंग में इस्लामी फ़ौज के सरदार व सरवराह बनकर तशरीफ़ लाते और जंग व जेहाद के तौर तरीक़े बताते इसी लिये आपकी उम्मत में बड़े बड़े मुजाहिदीन व फातेहीन भी हुये और दुनिया से दूर रहने वाले सूफ़ी और दुर्वेश भी इल्म व फ़ज़ल वाले आलिम मौलवी फ़ाक़ा मिस्त फ़क़ीर भी और रईस व अमीर भी इन सबका एक ही कलमा और एक ही नअरा था और सब आपकी ग़ुलामी का दम भरते थे।..✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 53 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 73
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❝ मुस्लिम क़ौम का लीडर कौन !?❞
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┇𖠁 ➧ इनमें से बहुत से वह भी हैं जिन्होनें बड़े बड़े मरतबे पाये वह खुदाये तआला के मुर्करब बन्दे हुये लेकिन रसूले ख़ुदा का सच्चा पक्का और जामे जानशीन और क़ौमे मुस्लिम का मुकम्मल रहनुमा जिसके दम से हर क़िस्म की इस्लाम मुख़ालिफ तहरीक़े तन्ज़ीमें पालेसियाँ और साज़िशें नाक़ाम व मगलूब रहें वही हो सकता है जिसको इन सारे कमालात और खूबियों में से हिस्सा मिला हो वह इल्म व फॠज़ल वाला भी हो और इबादत व रियाज़त तक़वा तहारत वाला भी ईमानदार और दयान्तदार भी हो जरी बहादुर और हिम्मत वाला भी साहिबे तलवार भी और साहिबे किरदार भी रात का नमाज़ी भी हो और दिन का गाज़ी भी वही मुकम्मल तौर पर आँसू पोंछेगा और ग़म ग़लत करेगा और नय्या पार लगायेगा खुल्फ़ाये राशेदीन की शान यही थी हज़रत सय्यदना उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रदिअल्लाहु तआला अन्हु भी इसी मनसब पर फाइज़ थे।..✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 53 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 74
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❝ मुस्लिम क़ौम का लीडर कौन !?❞
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┇𖠁 ➧ मैनें तारीख़ (इतिहास) की किताबों में पढ़ा है कि सारी सलेबी ईसाई दुनिया को धूल चटाने वाले सुल्तान सलाह उद्दीन अय्यूबी एक मरतबा मैदाने जंग में दुश्मनों में घिरे हुये थे दोनों तरफ़ से खुरेज़ घमासान की जंग हो रही थी नमाज़ का वक़्त जा रहा था तो सुल्तान उसी आलम में घोड़े से उतरे और दाए बांए आगे पीछे देखे बगैर वहीं नमाज़ शुरू कर दी और नमाज़ से फारिग होकर फिर घोड़े पर सवार होकर तलवार चलाने लगे और खुदा ने उनकी हिफाज़त फ़रमायी हिन्दुस्तान में सुल्तान मुहि उद्दीन औरंगजेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह के बारे में भी इस किस्म के वाक्यात ज़िक्र किये जाते हैं मैं देख रहा हूँ कि आज दुनियाँ में मुस्लिम मुल्क़ों के सरबराह हों या हिन्दुस्तान में क़ौम के सियासी मुस्लिम रहनुमा इनमें एक बड़ी तादाद तो उनकी है कि जिनके हालाते ज़िन्दगी और रात दिन के मअमूलात कपड़े लिबास और रहन सहन बिल्कुल गैर मुस्लिम ईसाईयों और हिन्दुओं की तरह हो गये हैं!..✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 54 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 75
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❝ मुस्लिम क़ौम का लीडर कौन !? ❞
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┇𖠁 ➧ यह क्या जानें नमाज़ रोज़े को कभी पढ़ी भी तो खुदा के लिये नहीं बल्कि मुसलमानों को ख़ुश करने या उनके वोट लेने के लिये इनके घरेलू हालात औरतों और बच्चों का माहौल चौदह सौ साल पहले वाले मक्के और मदीने वाले माहौल से बिल्कुल मेल नहीं खाता इनकी रंगीन मिज़ाजियों एश व तरब की ज़िन्दगीयों ने काफिरों तक को। पीछे छोड़ दिया यह इस्लाम के नाम पर सियासत का ढंडोरा तो पीटते हैं लेकिन मज़हब को ऐसे भूल जाते हैं जैसे वह कोई अफ़साना मनगड़हंत किस्सा कहानी हो यह ईसाईयों यहूदियों और शिद्दत पसन्द हिन्दुओं की हुकूमत को मुसलमानों के लिये ख़तरा बताते हैं लेकिन उनकी तहज़ीब कल्चर को बड़े शौक से अपनाये हुये हैं यह अंग्रेजो को दुश्मन बताते हैं लेकिन अंग्रेजी फिल्में गानों और तमाशों को अपने मुल्कों और घरों में ख़ूब जगह दिये हुये हैं मैं पूछता हूँ तुमको उनकी हुकूमत वा बादशाहत ना गवार मालूम हो रही है लेकिन उनकी तहज़ीब तुमने क्यों ओढ़ी है? और सही बात यह है कि इन्हे इनकी हुकूमत ना गवार इसलिये हो रही है कि इन्हे ख़ुद हुकूमत करने की पड़ी है इन्हें मज़हब की नहीं बल्कि अपनी हुकूमत की फ़िक्र है!..✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 55 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 76
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❝ मुस्लिम क़ौम का लीडर कौन !? ❞
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┇𖠁 ➧ याद रखो तुमने जिस क़ौम की तहज़ीब ओढ़ी है उनकी हुकूमत भी तुम्ही को झेलना पड़ेगी जब तहज़ीब आयी थी टोपी उतरी थी टाई लटकी थी और तुम इगिंलश शराबें पीकर मस्त हो गये थे अब उन्ही की हुकूमत आयी तो मुज़ाहिरे करते हो पुतले फूक रहे हो अफ़सोस जो क़ौम कभी इस्लाम के लिये तन मन धन जान माल की बाज़ी लगाती थी वह आज रेलियों- मुज़ाहिरों जलसों तक़रीरों और नआरों तक महदूद रह गयी जो कभी तलवारों के साये और जंग के मैदानों में मुसल्लेह बिछाकर नमाज़े अदा करते थे वह आज आम हालात पुरसुकून माहौल में घरों में रहकर भी इस खुदाई फ़रीज़े को छोड़ देते है मैं कहता हूँ ऐ मुस्लिम सरवराहो इस्लाम के नाम पर सियासत करने वालो दुनियाँ व आख़रत की ख़ैरियत चाहो तो नमाज़ रोज़े के पाबन्द बनों और इसकी तबलीग करो कुरआन सीखो पढ़ो और दूसरों को पढ़वाओ और लिबास व तहज़ीब के ज़रिये सिर से पैर तक ग़ुलाम रसूल ﷺ सच्चे पक्के मुसलमान नज़र आओ याद रखो दीन छोड़ने वालों की दुनिया भी जाती है।...✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 56 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 77
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❝ मुस्लिम क़ौम का लीडर कौन !?❞
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┇𖠁 ➧ आज पूरी दुनिया के इस्लामी मुल्क़ों में किसी एक भी मुल्क़ का सरबराह और सदर ऐसा नहीं है जो दीनदार नमाज़ी सुन्नते रसूलﷺ की पैरवी करने वाला और अक़ाइद व ख़यालात इस्लामी रखता हो हमारे मुल्क़ हिन्दुस्तान में दो ओहदे सबसे बड़े होते हैं एक सदर जम्हूरिया और एक वज़ीरे आज़म इस वक़्त सदरे जम्हूरिया एक मुसलमान हैं मिस्टर एपीजी अब्दुल कलाम और वज़ीरे आज़म मिस्टर मनमोहन सिंह लेकिन मुसलमान सदर जम्हूरिया में इस्लामी नाम की कमी कोई बात न देखी न सुनी न अख़बार में पढ़ी लेकिन सिक्ख वज़ीरे आज़म अपने धर्म का पूरे तौर पर पालन कर रहे हैं यहाँ टोपी तक नहीं वह सिर पर पगड़ी बांधते हैं यहाँ चार उंगल दादी मुसीबत मालूम हो रही है वह दादी मूंछ ही नही बल्कि पूरे जिस्म के सारे बाल रखाऐ हुये हैं जबकि इस्लाम एक ऐसा मज़हब है कि आज भी बहुत से गैर मुस्लिम उसकी तारीफ़ करते हैं ऐ क़ौमे मुस्लिम के बड़े लोगो अमीरो दौलत मन्दो सरवराहो मंत्रियो कान खोलकर सुन लो मुझको कुछ ऐसा मअलूम हो रहा है कि तुम में से ज़्यादा तर लोग तो अब दिन ब दिन ग़ैर मुस्लिमों की तरह बल्कि बिल्कुल ग़ैर मुस्लिम ही होते जायेंगे और ख़ुदा ने चाहा तो उन ग़ैर मुस्लिमों में से एक बड़ी तादाद कलमा पढ़कर मुसलमान बनेगी और तुम जिस दीन को गिरी नज़रों से देखने लगे हो वह गिरा हुआ नहीं है अल्लाह तआला उसकी वक़त व इज़्ज़त शान शौक़त तुमको दिखा देगा मुझको हैरत है आज हमारी क़ौम में जिसके पास चार पैसे हो जाते है या कोई नौकरी या ओहदा मिल जाता है वह सबसे पहले दीन छोड़ बैठता है और ग़ैर मुस्लिमों की तरह हो जाता है।...✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 57 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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❝ मौलवी और सियासत!? ❞
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┇𖠁 ➧ सियासत व हुकूमत अच्छे भले लोगों ही का काम है क्योंकि अच्छे लोग जब इक़्तेदार व इख़्तियार वाले होते हैं तो दुनिया में अच्छाई फैलती है और मखलूक को राहत मिलती है लेकिन यह सियासत व हुकूमत दुनिया की तारीख़ में आम तौर से सही लोगों को रास नहीं आई है और दुनिया वालों ने उन्हे बर्दाशत नहीं किया है क्योंकि लोग जैसे होते हैं वैसा ही हाकिम चाहते हैं भले लोगों को साहिबे इक़्तेदार बनने में कुछ ज़्यादा ही दुश्वारियों और अड़चनों को सामना करना पड़ता है और यह भी देखा गया है कि आलिम व मौलवी अच्छे भले ईमानदार लोग जब इक़्तेदार व हुकूमत में आये तो वह न आलिम मौलवी रहे और न दीनदार न ईमानदार बल्कि बे ईमानी, दुनियादारी, नफ़स परस्ती, आराम तलबी व ऐश कोशी में बड़े बड़े दुनियादारों यहां तक कि काफ़िरों तक को पीछे छोड़ गये इसी लिये ख़ासाने ख़ुदा और अल्लाह वालों का एक बड़ा गिरोह इस चीज़ से बचता और कतराता रहा है!...✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 57 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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❝ मौलवी और सियासत!? ❞
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┇𖠁 ➧ कि दूसरों की इस्लाह और उनको फायदा पहुंचाने के चक्कर में ख़ुद को बिगाड़ लेना और अपना नुक़्सान कर लेना अक़लमन्दी नहीं है और अब तो ज़्यादातर ऐसा ही हो रहा है कि जो आलिम मौलवी दीनदार लोग सियासत व हुकूमत में आये वह आलिम व मौलवी भी न रहे और हुकूमत व इक़्तेदार भी क्योंकि आने जाने वाली चीज़ है इस लिये वह भी गया फिर वह जहन्नम के अलावा कहीं के न रहे लिहाज़ा मेरा मशवरह तो यह ही है कि भले लोग इस चीज़ से बचते रहें तो यही उनके हक़ में बेहतर है ख़ासकर मौजूदा हिन्दुस्तान के मौजूदा हालात कि जिनमे ग़ैरों की खुशामद करना और उनकी खुशनूदी हासिल करना और ज़िन्दगी भर उनके चरनों में पड़ा रहना ही सियासत है!..✍️
*वह शख़्स कि क़द जिसका उन सब में बड़ा था*
*देखा तो वही ग़ैर के क़दमों में पड़ा था*
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 57 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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❝ मौलवी और सियासत!? ❞
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┇𖠁 ➧ हाँ अगर कोई बन्दा-ए-ख़ुदा मर्दै मुजाहिद अल्लाह की तौफीक़ से अपने अन्दर इतनी हिम्मत व जुरअत सलाहियत व इस्तिक़ामत पाता है कि वह इन कुफ़ व इल्हाद बे दीनी, बदकारी, ग़लतकारी की कटीली झाड़ियों से गुज़र कर अपने दामन को बचा ले जायेगा और हुकूमत व इक़्तेदार हासिल करके दुनिया में अदलो इंसाफ क़ायम कर सकेगा और ख़ुद को भी संभाले रखेगा उसके लिये हदीसों में जन्नत का वअदा है जैसा कि पिछले बयान में गुज़र चुका है और खुदा रसूल ﷺ के वादे कभी गलत नहीं होते।
┇𖠁 ➧ एक हदीस में है रसूल पाक ﷺ फरमाते है वह 'मुसलमान जो लोगों मे रहे और उनकी तरफ़ से जो तकलीफ़ उसे पहुंचे उस पर सब्र करे वह उससे ज़्यादा मर्तबे वाला है जो लोगों से दूर रहे और उसे उनकी ईज़ा रसानी (सताने दुख पहुंचाने) पर सब्र न करना पड़े!..✍️
*📔 मिशकात बाबुल रिफ़क व लहया फ़सल 2 सफ़ह 432*
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 58 📚*
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❝ नियत सही है यो ख़ता पर भी पकड़ नहीं !?❞
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┇𖠁 ➧ इस बयान का मतलब यह है कि अगर कोई शख़्स किसी मसले या माअमले में उलझा हुआ हो और हर मुमकिन कोशिश के बावजूद वह यह न जान सके कि इस बारे में हक़ क्या है और ख़ुदा व रसूलﷺ की मर्ज़ी क्या है तो नियत के साथ अपने ज़हन पर ज़ोर दे जिधर ज़हन का झुकाव हो खुदाऐ ताअला से ख़ैर का तालिब होते हुए इस फैसले पर अमल करे तो अगर ग़लती पर भी होगा अजर व सवाब पायेगा मिसाल के तौर पर कोई शख़्स जंगल सेहरा या समन्दर वगैरह मे किसी ऐसी जगह पर हो जहाँ इसे किसी ज़रिये से यह पता न चल सके कि नमाज़ पढ़ने के लिये क़िबले का रुख किधर है ज़हन पर जोर देकर जिधर मुहँ करके नमाज़ पढ़ेगा सही हो जायेगी और लौटाने की भी ज़रूरत नहीं।..✍️
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 58 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 82
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❝ नियत सही है यो ख़ता पर भी पकड़ नहीं !? ❞
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┇𖠁 ➧ हदीस पाक में है रसूले ख़ुदा ﷺ ने फरमाया :
┇𖠁 ➧ जब किसी फैसला करने वाले ने कोई फैसला किया और हद भर कोशिश की अगर सही फैसला कर दिया तो उसके लिये डबल सवाब है और अगर ग़लती कर गया तब भी सवाब है।..✍️
*📬 सही बुख़ारी ज़िल्द 2 सफ़ह 1092 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 83
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❝ नियत सही है यो ख़ता पर भी पकड़ नहीं !? ❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 84
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❝ नियत सही है यो ख़ता पर भी पकड़ नहीं !? ❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 85
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❝ नियत सही है यो ख़ता पर भी पकड़ नहीं !? ❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 86
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❝ नियत सही है यो ख़ता पर भी पकड़ नहीं !? ❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 87
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❝ दीनदार लोग अब भी चैन व सुकून से!? ❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 88
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❝ दीनदार लोग अब भी चैन व सुकून से!? ❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 89
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❝ निकम्मे पन से बचिए!? ❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 90
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❝ मोहताजी से बचों !? ❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 91
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❝ मोहताजी से बचों !?❞
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┇𖠁 ➧ हदीसे ग़ार जो मशहूर है उसमें आपने पढ़ा या सुना होगा कि एक ख़ूबसूरत जवान लड़की जिसको उसका चचाज़ाद भाई परेशान करता था और उसको बदकारी के लिये अमादा करना चाहता था लेकिन वह किसी सूरत उसके काबू में नहीं आती थी लेकिन क़हत और सूखे के दिनों में जब नौबत फ़ाक़ों तक आयी तो एक सौ दिरहम (चाँदी के पुराने सिक्के) के बदले ज़िना कराने पर तैयार हो गयी थी।
📙 सही मुस्लिम जिल्द नं02 सफ़हा 353 बारिवायत मोहम्मद बिन सहल तमीमी
⚠ *नॉट :* पूरी हदीस हदीसों की किताबों में देखी जाये। और इस क़िस्म के मजबूरी से फायदे उठाने के वाक्यात दुनिया में रोज़ाना जाने कितने होते रहे और होते हैं।
┇𖠁 ➧ ग़ैर मुस्लिमों और बदमज़हबों में हमेशा ग़रीब मुसलमानों की मज़बूरी से फायदा उठाने की कोशिश की है और करते हैं आज कितने ही लोग हैं जो ग़ैर मुस्लिमों की बोलियाँ बोल रहे हैं उनके रंग में रंग गये या बदमज़हब व गुमराह फ़िरक़ों में शामिल हो गये हैं सिर्फ अपनी मज़बूरियों और जरूरतों की वजह से। शैतान के जाल फैले हुये हैं और फन्दे लगे हुये हैं बस खुदाये तआला से हमेशा दुआ करते रहना चाहिये कि वह किसी गलत आदमी का मुहताज न बनाये और किसी गुमराह और बद्दीन के सामने जाने की ज़रूरत न आये और अल्लाह तआला से दुआ करने के साथ साथ मेहनत व मशक्कत काम धन्धे करते रहना चाहिये।...✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 66 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 92
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❝ मोहताजी से बचों !?❞
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┇𖠁 ➧ और जो मुश्किल और कड़े वक़्त पर साबित क़दम रहने की हिम्मत अपने अन्दर नहीं पाता वह अपनी कमाई में से कुछ बचाकर रखे ताकि मुश्किल वक़्त में दूसरों का मोहताज न बनना पड़े और अपने मज़हबी मिज़ाज पर क़ायम रह सके तो कुछ हर्ज़ नही हालांकि दौलत जमा करना इस्लाम में पसन्दीदा नहीं लेकिन नियत अच्छी हो तो कभी कभी ना पसन्दीदा काम भी पसन्दीदा हो जाते हैं हदीस पाक में है फरमाया या रसूले ख़ुदा ﷺ ने फरमाया! नेक माल नेक आदमी के लिये अच्छी चीज़ है!
📙 मिशक़ात सफ़हा - 326
┇𖠁 ➧ हां इसमें कोई शक नहीं कि मालदार होकर नेक रहना भी हिम्मत का काम है इसके लिये भी अल्लाह तआला से हर वक़्त दुआ करते रहना चाहिये क्योंकि सब कुछ उसकी तरफ से और उसी की तौफीक़ (मदद) से है।...✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 67 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 93
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❝ मोहताजी से बचों !?❞
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┇𖠁 ➧ बुखारी व मुस्लिम की हदीस में हज़रत सय्यदना उमर फारूक रज़िअल्लाह तआला अन्हो से मरवी है।
┇𖠁 ➧ एक मरतबा हुज़ूरﷺ ने मुझको कुछ माल देना चाहा मैनें अर्ज़ किया ऐ अल्लाह के रसूलﷺ मुझसे ज़्यादा ज़रूरतमन्द को दे दीजिये फरमाया ऐ उमर इसको लो और इसको अपने पास रखो और राहे ख़ुदा में ख़र्च करो जो माल साथ इज़्ज़त के बे माँगे मिले उसको ले लेना चाहिये और इस तरह न मिले तो उसके पीछे न फिरो।..✍🏻
*📔 बुखारी जिल्द नं 01 सफहा 199 मिशकात सफह 162*
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 67 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 94
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❝ मोहताजी से बचों !? ❞
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┇𖠁 ➧ *एक और हदीस में है हुज़ूर अक़दसﷺ फरमाते हैं!*
┇𖠁 ➧ कुछ गुनाह ऐसे हैं कि उनसे बचने के लिये काम धन्धे और रोज़गार की परेशानियाँ उठाना ज़रूरी है हदीस के अल्फ़ाज़ के लिए किताब देखें!
*📕 इहयाउलउलूम जिल्द नं02 सफहा 33*
┇𖠁 ➧ रिवायत है कि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने एक शख़्स को रोखा उससे पूछा तुम क्या करते हो उसने कहा इबादत में लगा रहता हूँ फ़रमाया फिर तुम्हारी परवरिश कौन करता है उसने कहा मेरा भाई। फ़रमाया तुम्हारा भाई तुमसे ज़्यादा इबादतगुजार है!..✍🏻
*📔 हयाउलउलूम जिल्द नं0 2 सफ़हा 64*
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 68 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 95
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❝ काम धंधे सब अच्छे !? ❞
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┇𖠁 ➧ आदमी हराम व नाजाइज़ कामों और धंधों से बचता रहे इसके अलावा जो भी काम धन्धे और पेशे है सब अच्छे हैं जो कर सके करे किसी जाइज़ काम धन्धे को हक़ीर व ज़लील समझना चाहिये और न किसी के समझने की परवाह करनी चाहिये बहुत से लोग कोई ऐसा वैसा काम मेहनत मज़दूरी करते हुये शर्माते है यह उनकी भूल है उनको यह ख़्याल करना चाहिये कि वह कोई ग़लत व नाजाइज़ काम तो नहीं कर रहे है, बस इतना ही काफ़ी है शर्माये वह जो ग़लत काम करें भीख़ मांगे तेरे मेरे सामने हाथ फैलाये चोरी डकैती बेईमानी करे या रिश्वत ले, रसूल ए खुदाﷺ फरमाते है!...✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 68 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 96
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❝काम धंधे सब अच्छे !? ❞
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┇𖠁 ➧ तुममे से कोई शख़्स एक रस्सी ले और लकड़ियों का एक गठ्ठर बाँधकर उसको अपनी पीठ पर लाद्कर लाये और बेचे और इसके ज़रिये अल्लाह तआला उसकी आबरू(इज्ज़त) की हिफाज़त फरमाये यह बेहतर है इससे कि वह लोगों के सामने हाथ फ़ैलाये और वह इसको दें या मना करें।
*📔 सही बुख़ारी ज़िल्द नं.1*
┇𖠁 ➧ और लोगों को चाहिये कि जो आदमी कोई ग़लत काम न करे भीख न मांगे मेहनत मज़दूरी करता हो भले से ग़रीब हो किसी भी क़िस्म का जाइज़ धन्धा करता हो उसको गिरी नज़रों से न देखें उसकी इज़्ज़त करें और जो हराम तरीके से कमाता है ख़्वाह मालदार हो हरगिज़ उसकी इज़्ज़त न करें!...✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 69 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 97
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❝ लोगों को नफ़ा नहीं तो नुक़सान भी न पहुँचाये!?❞
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┇𖠁 ➧ इस्लाम में हर क़िस्म के लोगों का ठिकाना है और रहमते आलम की रहमत सबके लिये आम है और दीनदार बनना कितना आसान है कि अगर आपसे लोगों को नफ़ा और फ़ायदा नहीं पहुँचता और आपमें इतनी सलाहियत और क़ाबलियत और ताक़त व हिम्मत व दौलत नहीं है कि आप लोगों के काम आ सकें उनका काम चला सकें उनकी मदद कर सकें उनकी मुसीबत व परेशानी दूर कर सकें तो इस्लाम में तब भी आपके लिये जगह है और दामने मुस्तफाﷺ में अब भी आपके लिये ठिकाना है और वह यह कि आप दूसरों को नुकसान पहुचाने परेशान करने दुख देने और उनको सताने से बचते रहें तो यह भी नेकी और दीनदारी है और अल्लाह व रसूलﷺ ऐसे लोगों से भी राज़ी हो जाते हैं क्योंकि वह परवरदिगार बहुत रहम फरमाने वाला है!...✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 70 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 98
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❝ लोगों को नफ़ा नहीं तो नुक़सान भी न पहुँचाये!?❞
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┇𖠁 ➧ *हदीस शरीफ में है।* हज़रत अबू ज़र गफ़ारी रदिअल्लाह अन्हु ने रसूले पाकﷺ से माअलूम किया ऐ अल्लाह के रसूलﷺ कौन सा अमल ज़्यादा फज़ीलत वाला है फरमाया अल्लाह तआला पर ईमान रखना और उसकी राह में जिहाद करना फ़िर पूछा कि कौन सा ग़ुलाम आज़ाद करना ज़्यादा सवाब है फरमाया जो क़ीमत में ज़्यादा हो और अपने मालिकों को ज़्यादा पसन्द हो उन्होने कहा अगर यह जेहाद और ग़ुलाम आज़ाद करना मेरे बस का न हो तब फरमाया किसी काम करने वाले की मदद करो या किसी फुहड़ आदमी का काम कर दो अर्ज़ किया यह भी मुझसे न हो सके तब फरमाया तुम लोगों को नुकसान व तक़लीफ़ पहुँचाने से बचो यह भी सदका है जो तुम अपने लिये कर रहे हो।
┇𖠁 ➧ *यानि तुम्हारी ज़बान हाथ पाँव वगैरह से दूसरों को तकलीफ़ न पहुँचे।..✍*
*📔 सही बुख़ारी जिल्द अव्वल सफ़हा 342*
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 69 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 99
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❝लोगों को नफ़ा नहीं तो नुक़सान भी न पहुँचाये!? ❞
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┇𖠁 ➧ ख़्याल रहे को दूसरों को तक़लीफ देने से वह ही बच सकता है जिसके अरमान थोड़े ख़्वाहिशात कम और हसरतें न होने के बराबर हों हद से ज़्यादा आराम तलब ऐश परस्त शौक़ीन और खर्चीले ख़्वाहिशात में जकड़े हुये बेजा हसरतें और अरमान रखने वाले दूसरों की नुकसान रसानी और उन पर ज़ुल्म व ज़्यादती करने से नहीं बच सकते जब दुनियावी शौक़ बढ़ जाते हैं तो उनकी तकमील (पूर्ति) के लियें दूसरों के गले घोंटे जाते हैं और जब ख़र्चे बढ जाते हैं उनकी पूर्ति के लिये जेबें काटी जाती हैं तेरे मेरे हक़ दबाये जाते हैं।..✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 71 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 100
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❝गुनाह से बचना पहली नेकी!? ❞
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┇𖠁 ➧ सबसे बड़ी और पहली नेकी ख़ुद को ग़लत कामों और हराम कमाईयों से बचाना हैं शर (बुराई) से बचना बड़ी ख़ैर (भलाई) है और हराम खोरी व बेईमानी से बचना बड़ी ख़ैरात है आज कितने लोग हैं जो डींगे मारते हैं अपनी तारीफें करते हैं अपने कारनामे सुनाते हैं हमने यह मस्जिद बनवाई हमने वह मदरसा खुलवाया हमने इतना चन्दा दिया हमने उसका वह काम चलाया वगैरह वगैरह ठीक है ख़ुदा मुबारक फरमाये और ज़्यादा तौफीक़ दे लेकिन मेरे अज़ीज़ ज़रा ख़ुद ही यह भी देख लें और नज़र डाल लें कि तूने यह सब किया कहाँ से और कहाँ से तू लाया और किस किस का हक़ मारा और किस किस की मज़दूरी रोकी और किस किस का कर्ज़ा लेकर न दिया और किसका गला घोंटा और किससे सूद लिया और किस किस की जायदाद हड़पी और किसकी पूँजी छीनी कान खोलकर सुन हदीस पाक में है अल्लाह तआला के महबूबﷺ फरमाते हैं अल्लाह तआला पाक है और पाक ही को क़ुबूल फरमाता है।..✍
*📒 मिशक़ात बाबुल कसब सफ़हा 241*
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 72 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 101
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❝गुनाह से बचना पहली नेकी!? ❞
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┇𖠁 ➧ कुछ लोग दीन के कुछ काम करने के लिये खिलाफ़े शरअ और हराम कामों का इरतिकाब करते हैं और फिर कहते हैं कि अगर हम ऐसा नहीं करते तो इतना बड़ा काम कैसे होता तो ख़्याल रहे यह ख़ुद को बिगाड़ने वाले दूसरों को सुधार नहीं पायेंगे और हराम से हलाल और शर से ख़ैर बुराई से भलाई हासिल नहीं होती दूसरों की फ़िक्र बाद को पहले ख़ुद को संभालो ग़लत राहों पर चलने वाले मंज़िल तक नहीं पहुंच पाते जहन्नुम का रास्ता जन्नत को नहीं पहुंचाता ख़ुद गिरे हुये दूसरों को उठा नहीं पायेंगे हदीस में है रसूले ख़ुदाﷺ फरमाते हैं थोड़ा सा भी गुनाह से बचना इन्सानों और जिन्नों की हर इबादत से बढकर है।
*📔 फताबा रज़विया जिल्द नं0 23 सफ़हा 618 बा हवाला अलशबाह वलनज़ाइर*
┇𖠁 ➧ *आला हजरत अलैहिर्ररहमा फरमाते हैं!* जिन कामों से मना किया गया है उनसे बाज रहना ज़्यादा ज़रूरी है उन पर अमल करने से जिनका हुक्म दिया गया है!
*📕 फ़तावा रज़विया जिल्द नं0 23 सहा 618 मतबूआ बरक़ाते रज़ा पोरबन्दर*
┇𖠁 ➧ यानी ज़कात व ख़ैरात व सदका देना जितना ज़रूरी है उससे ज़्यादा ज़रूरी हराम कमाई से बचना है।...✍🏻
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 72 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 102
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❝सिर्फ़ ऊपर नहीं नीचे भी देखें!? ❞
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┇𖠁 ➧ अगर आप दीनदार और खुदाये तआला का दीनदार बन्दा बनकर रहना चाहते हैं तो आपके लिये ज़रूरी है कि अगर आपकी नज़र अपने से ज़्यादा मालदार और ठांट बाट वाले लोगों पर पड़ रही है तो अपने से नीचे और कम मेअयार (स्तर) वालों को देखते रहें और कुदरत ने इन्सानी मुआशराह (समाज) कुछ इस क़िस्म का बनाया है कि कोई कितना भी परेशान हो लेकिन वह दुनिया में नज़र डालेगा तो उसे अपने से ज़्यादा परेशान मुसीबत ज़दा लोग मिल जायेंगे और यह इसीलिये है ताकि हर इन्सान ख़ुदा का शुक्र अदा करे और कहे कि या अल्लाह तआला तेरा शुक्र है तूने अपनी मख़लूक़ में मुझको बहुत सारे लोगों से बेहतर और अफ़ज़ल बनाया है।
┇𖠁 ➧ हदीसे पाक में है रसूले ख़ुदा ﷺ फरमाते है जब तुममे से कोई अपने से ज़्यादा मालदार और हुस्न व जमाल वाले को देखे तो उसको चाहिये कि वह उसको भी देखे कि जो उससे नीचे है कम माल और कम हुस्न व जमाल वाला है।...✍🏻
📙 सही बुख़ारी ज़िल्द नं02 कितार्बरक़ाक़ सफ़हा 960
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 73 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 103
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❝ सिर्फ़ ऊपर नहीं नीचे भी देखें!?❞
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┇𖠁 ➧ खुलासा यह कि आप किसी सादा से पक्के मकान में रहते हैं तो उन लोगों को देखा करें जो किसी झोपड़ी या कच्चे मकान में रहते हैं या जिनके पास अपने मकान ही नहीं हैं अगर आपके जिस्म में एक मर्ज़ है तो उन लोगों को देखें कि जिनके जिस्म में कई कई बीमारियां हैं अगर आप सौ रूपये रोज़ कमाने वाले हैं तो उनको ज़रूर देख लिया करें जो पचास साठ रूपये की ही रोज़ाना आमदनी कर पाते हैं या वह कमाने के बिल्कुल लायक़ ही नहीं और बाल बच्चों का साथ है ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो सख़्त मरीज़ किसी ख़तरनाक बीमारी में फंसे हुये हैं।
┇𖠁 ➧ और इलाज दवा के लिये पैसे भी नहीं भाईयो जब तुम रात को बिस्तर पर सोने के लिये लेटा करो तो आंखे बन्द करके ज़रा देर के लिये दुनिया के हालात पर नज़र डाला करो कि जिस वक़्त तुम आराम के बिस्तर पर हो ठीक उसी वक़्त दुनिया में कहां-कहां कितने लोग किस किस तरह मुसीबतों और परेशानियों में होंगे कितने सड़कों पर चोटें खाये होंगे कितने अस्पतालों जेलों और थानों में कैसी कैसी मुसीबतों में होंगे भाईयो हर हाल में ख़ुदा तआला का शुक्र करो और शुक्र करने का सबसे उम्दा और बेहतरीन तरीक़ा पांचों वक़्त की नमाज़ की पाबन्दी है और इसके अलावा भी जहां तक मुमकिन हो हर वक़्त ज़बान से अल्लाह तआला का शुक्र अदा करने की आदत बना लीजिये।...✍🏻
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 74 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 104
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❝जहां तक मुमकिन हो कर्ज़ न लें!? ❞
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┇𖠁 ➧ अगर आप दीनदार इज़्ज़तदार आदमी बनकर रहना चाहते हैं तो कर्ज़ लेने और उधार का खाने की आदत न बनाईये जहां तक मुमकिन हो परेशानी उठाईये नफ़्स को काबू में रखिये अपने ऊपर और अपने घर वालों पर कंट्रोल रखिये शौक हसरतें और अरमान एकदम ख़त्म या कम कर दीजिये किसी के कहने सुनने में मत जाईये और कर्ज़ हरगिज़ मत लीजिये और जो लोग दूसरों के कहने और सुनने में आकर शौक पूरे करने के लिये कर्ज़े लेते हैं वह दुनिया के सबसे बड़े बेवक़ूफ और अहमक़ लोग हैं और जो लोग मामूली परेशानियों पर या सिर्फ़ शौक पूरे करने और फालतू खर्चों के लिये कर्ज़े ले लेते हैं उधार खाने पीने और पहनने के आदि हो गये यह कभी इज़्ज़तदार और सच्चे पक्के मुसलमान बनकर नहीं रह सकते अगर कभी कर्ज़ लिया भी जाये तो लेते वक़्त ही यह इरादा करना चाहिये ख्वाह घर जमीन बेचकर अदा करूं इसका कर्ज़ ज़रूर हर हाल में अदा करूंगा और जो लोग ऐसी नियत करते हैं अल्लाह तआला अपने करम से उनकी मदद फरमाता है और उनके कर्ज़े अदा हो जाते हैं।...✍🏻
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 75 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 105
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❝ जहां तक मुमकिन हो कर्ज़ न लें!?❞
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┇𖠁 ➧ और जिनकी नियत लेते वक़्त ही ख़राब हो या बाद में ख़राब हो जाती है यह लोग कर्ज़ा ही में मरते हैं और ज़िन्दगी भर ज़लील व ख़्वार रहते हैं भाईयो जिन यार दोस्तों और बीवी बच्चों की बेजा खुशियां पूरी करने के लिये तेरे मेरे सामने हाथ फैलाते हो ख़यानत और बेईमानियां करते हों बेइज़्ज़त होते हो ज़िल्लत उठाते हो एक दिन आयेगा और तुम्हे दुनिया ही में उनकी बेमुरव्वती और बेवफ़ाई का एहसास करा दिया जायेगा और तुम्हे मालूम हो जायेगा कि जिसके लियें तुमने यह सब किया वह तुम्हारे नहीं हैं।
┇𖠁 ➧ हदीस पाक में है रसूले ख़ुदा ﷺ ने फ़रमाया जिसने किसी से कर्ज़ लिया और वह अदा करने का इरादा रखता है तो अल्लाह तआला उसकी तरफ़ से कर्ज़ अदा फ़रमा देता है और जिसने न देने का इरादा कर लिया तो खुदाये पाक उसकी मदद नहीं फरमाता एक मर्तबा एक साहब इस हाल में दुनिया से चले गये कि उन पर कर्ज़ था और अदायगी के लिये कुछ छोड़ा भी न था तो हुज़ूर ﷺ ने उनके जनाज़े की नमाज़ ख़ुद नहीं पढ़ाई बल्कि दूसरों से पढवा दी एक बार हुज़ूर ﷺ ने फरमाया अल्लाह तआला शहीद के सारे गुनाह माफ कर देता है सिवाये उस कर्ज़ के जो उसने अदा नहीं किया यह सारी हदीसें हमने मिशक़त शरीफ़ सफ़हा 252 से नकल की हैं।...✍🏻
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 76 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 106
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❝क्या दीन मख़्सूस लोगों के लिए हैं!?↲ ❞
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┇𖠁 ➧ मुसलमानों में काफी लोग़ यह ख़्याल रखते हैं कि दीन सिर्फ़ मौलवियों पीरों फ़कीरों के लिये है हमारे लिये दीन पर चलना कोई ज़रूरी नहीं हमारे लिये तो बस इतना काफ़ी है कि मौलवियों और पीरों की ख़िदमत कर लें और बुजुर्गों की नज़र व न्याज़ करते रहें और उनका नाम लेते रहें ऐसे लोग सख़्त ग़लत फहमी का शिकार हैं और उन पर शैतान का दाव चल गया और उसने उन्हे गुमराह कर दिया भाईयो अल्लाह तआला ने इन्सानों की रहनुमाई के लिये इंसानो ही को रसूल व पैगम्बर इस लिये बनाकर भेजा कि लोग उनके तौर तरीके सूरत और सीरत चाल चलन को अपनायें वरना फ़रिशते भी रसूल बनाकर भेजे जा सकते थे और किसी के लिये यह कहने का मौक़ा नहीं रहा कि दीन पर चलना हमारे बस की बात कहां वह तो फ़रिशते थे वह तो नफ़स और उसकी ख़्वाहिशात से पाक थे उनके साथ खाने पीने सोने और जागने पहनने ओढ़ने की ज़रूरतें नहीं थीं।...✍🏻
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 76 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 107
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❝ क्या दीन मख़्सूस लोगों के लिए हैं!?↲❞
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┇𖠁 ➧ उन्हे दुःख दर्द गर्मी सर्दी मर्ज़ व बीमारी का एहसास और उन चीज़ो से ताल्लुक़ नहीं था ईसाईयों और कुछ दूसरे ग़ैर मुस्लिमों में यह बात रही है कि उन्होने कुछ मख़सूस लोगों के लिये मज़हब ज़रूरी ख़्याल करके उनकी पूजा पाठ ताज़ीम व इबादत में लग गये और ख़ुद को दीन धर्म की पाबन्दियों से बिल्कुल आज़ाद समझ बैठे मज़हबे इस्लाम ने इस जहनियत का ख़ात्मा फरमाया और मज़हब को हर शख़्स के लिये ज़रूरी करार दिया गया और बताया गया कि बुजुर्गों का नाम लेना उनका ज़िक्र करना उनकी यादगारें मनाना उनकी ताज़ीम व तकरीम करना काफ़ी नहीं बल्कि उनके जैसे काम करना और उनके चाल चलन को अपनाना भी निहायत ज़रूरी है और असली मुहब्बत और सच्ची अक़ीदत इताअत व फरमाबरदारी है उनका कहना मानना ही वफ़ादारी है कुरआन व हदीस में जहां जहां अक़ीदत व मुहब्बत की बात आई है उसकी तशरी मआना और तफ़सीर बयान फरमाने वाले इस्लामी बुजुर्गों ने उसका हक़ीक़ी मफ़हूम व मतलब फरमाबरदारी ही लिखा है यानि कहना मानना ही मुहब्बत है।...✍🏻
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 77 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 108
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❝ दीन दारी के नाम पर एक धोका !?↲❞
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┇𖠁 ➧ आजकल मुसलमानों मे बुजुर्गों की यादगार और उनके नाम पर कुछ ऐसे खिलाफ़े शरअ काम रिवाज पा गये हैं कि अगर कोई थोड़ा सा भी इस्लामी ज़हन रखने वाला ज़िद और हटधर्मी छोड़कर और खाली ज़हन होकर उनके बारे में सोचे तो उसका दिल व दिमाग़ इस बात की गवाही देगा कि यह बातें इस्लाम जैसे अच्छे भले सीधे सच्चे मज़हब में जाईज़ हो ही नहीं सकती मिसाल के तौर पर आज की कव्वाली और ताज़ियेदारी यह पूरे तमाशे बल्कि बाज़ बाज़ जगह तो गुन्डागर्दी बन चुकी है ग़रीब मुसलमानों से ज़बरदस्ती चन्दे करके ढोल धमाकों,बाजों ताशों कूद फांद में लाखो रूपया उर्सों और बुजुर्गों के नाम का सहारा लेकर उड़ा देना एक आम बात हो गई है इन ताज़ियेदारों और कव्वाली और नाच रंग की महफ़िलों को सजाने वालों में कोई समझाये बुझाये से मान भी जाये तो फिर वह कहता है हम जलसा या मुशायरा करेंगे हमे फलां फलां मुकर्रिर या शायर बुलाकर दीजिये तो यह भी एक कम समझी है इसकी वजह यह है कि उन लोगों ने नमाज़ रोज़े ज़िक्र शुक्र और कुरआन की तिलावत में ध्यान नही लगाया उनका ज़हन भीड़ भाड़ पसन्द और तमाशाई रहा।...✍🏻
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 78 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 109
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❝ दीन दारी के नाम पर एक धोका !?↲❞
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┇𖠁 ➧ सही बात यह है कि आजकल के अक़्सर जलसे और मुशायरे भी तमाशा होते जा रहे हैं और अक़्सर जलसे वह है कि जिनमें तफरी दिललगी और मजेदारी के अलावा कुछ भी नही है दीन की बात भी कही जाती है तो हंसी और दिल लगी में एक तरह से पब्लिक को धोका दिया जा रहा है और उन्हें दीन के नाम पर जमा करके दुनिया दी जा रही है और ज़्यादातर जलसों और मुशायरों की हैसियत अहले इल्म की नज़र में खेल तमाशों से ज़्यादा नहीं रह गई है और काफ़ी मुकर्ररों की तक़रीरें और शायरों की शायरी धीरे धीरे डिरामा और नक़्क़ाली का रंग इख़्तियार करती जा रही है जिन्हे देख कर और सुनकर ख़ुदा व रसूलﷺ और बुजुर्गो की नही बल्कि मसख़रों और नक़्क़ालों की याद आती है और ज़ाहिर है कि जिनकी ज़िन्दगी का मक़सद कौम से पैसा खींचना और लम्बी लम्बी रकमें समेटना हो वह नक़्क़ाली और डिरामा नही करेंगे तो और क्या करेंगे। भाईयो तनहाई पसन्द नमाज़ रोज़े तिलावत ज़िक्र व शुक्र फ़िक्र वाले बनो और महफ़िल ही करना है तो खुलूस के साथ दीन सीखने और सिखाने नमाज़ याद करने और कराने कुरआन पढने और पढ़ाने की मजलिसें करो और यह काम मुकामी उलमा मसाजिद के बा सलाहियत इमाम और मदारिस के उस्तादों से बखूबी लिया जा सकता है और जलसे कराना है तो मुखलिस और बा अमल मुकर्ररों से तक़रीरें कराओ ऐसे मुकर्रिर न मिलें तो जलसे कराना फर्ज़ भी नही है दीन बाक़ी रखना है तो मस्जिदों में नमाज़ पढाने वाले और दीन सिखाने वालों की खूब क़द्र करो मुकर्रिरों शायरों और पीरों से कहीं ज़्यादा।...✍🏻
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 78 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 110
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❝दीन दारी के नाम पर एक धोका !?↲ ❞
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┇𖠁 ➧ ऐ लोगो तुम्हे क्या हुआ कि दस मिनट की नमाज़ तुम पर भारी पड़ती है कुरआन के एक पारे की तिलावत तुम्हे मुसीबत मअलूम होती है और जलसों और मुशायरों में तुम रात रात भर बैठे रहते हो शैतान इंसान को सही रास्ते पर न चलने देने की भरपूर कोशिश करता है अगर इंसान एक ख़राबी और बुराई से बचता है तो दूसरी में उसे लाने की कोशिश करता है एक जाल से निकलता तो दूसरी जानिब जाल लगा देता है सही बात यह है कि कव्वाली और ताज़ियेदारी से बचकर आजकल के पेशावर मुकर्रिरों और शायरों की तरफ़ भागना ऐसा ही है जैसे एक जाल में से निकलकर दूसरे में फंसना-हदीसे पाक में है।
┇𖠁 ➧ रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अलेह वसल्लम मेअराज की रात उन लोगों के पास से गुज़रे जिनके होंट आग की कैंचियों से काटे जा रहे थे पूछा यह कौन लोग हैं हज़रत जिबराईल अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ की ऐ अल्लाह के रसूलﷺ यह आपकी उम्मत के वह मुकर्रेरीन व वाअिज़ीन हैं जो अपने कहे हुए पर ख़ुद अमल नहीं करते थे।..✍
*📒 मिशकात बाबुल बयान वल शेर फसल 2*
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 79 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 111
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❝ दीन दारी के नाम पर एक धोका !?↲❞
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┇𖠁 ➧ इस हदीस की शरह करते हुए हज़रत मौलाना मुफ़्ती अहमद यार खाँ नईमी अलैहिर्ररहमा फ़रमाते हैं फी ज़माना वाज़ेईन अमल का वाज़ ही नहीं करते शेर ख्वांनी खुश इल्हानी क़िस्से कहानी में सारा वक़्त पूरा करते हैं आम जलसे गोया हलाल सिनेमा है कि सुन्ने वाले भी तमाशाई ज़हनी अय्याश होते हैं!
*📒 मरातुलमनाजी जिल्द नं06 सफ़हा 439*
┇𖠁 ➧ मुफ़्ती अहमद यार खाँ सहाब नईमी रहमतुल्ला तआला अलैह को भी यह बात लिखे चालीस पचास साल तो हो ही गये होंगे उन्होने आज का ज़माना और आज के जलसे देखे होते पता नही वह क्या लिखते।...✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 80 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 112
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❝मौलवियों की मज़बूरी ❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 113
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❝मौलवियों की मज़बूरी ❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 114
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❝ मौलवियों की मज़बूरी❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 115
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❝ बे अदबी से बचों❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 116
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❝ बे अदबी से बचों❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 117
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❝ बे अदबी से बचों ❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 118
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❝ ख़ामोश रहने की आदत डालिये ❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 119
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❝ ख़ामोश रहने की तरकीब ❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 120
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❝ ख़ामोश रहने की तरकीब❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 121
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❝ख़ामोश रहने की तरकीब ❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 122
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❝ हसद (जलन) से बचने की तरकीब ❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 123
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❝ हसद (जलन) से बचने की तरकीब ❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 124
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❝ ग़ज़ब और गुस्से से बचने की तरकीब!? ❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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❝ ग़ज़ब और गुस्से से बचने की तरकीब!? ❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 126
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❝ ग़ज़ब और गुस्से से बचने की तरकीब!?❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 127
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❝ ग़ज़ब और गुस्से से बचने की तरकीब!?❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 128
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❝ ग़ज़ब और गुस्से से बचने की तरकीब!?❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 129
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❝ ग़ज़ब और गुस्से से बचने की तरकीब!?❞
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 98 📚*
┇𖠁 ➧ पाँचों वक़्त की नमाज़ की पाबन्दी इस्लाम में कितनी ज़रूरी है उसका अन्दाज़ा नहीं लगाया जा सकता और न उसे पूरे तौर पर बताया जा सकता है बस यह समझ लीजिये कि बे नमाज़ी सिर्फ नाम का मुसलमान है जैसे बे रूह का जिस्म हदीसे पाक में है हज़रत अब्दुल्ला बिन मसऊद रज़िअल्ला तआला अन्हो ने अर्ज़ की या रसूलल्लाहﷺ अल्लाह तआला को अपने बन्दे का कौन सा अमल सबसे ज़्यादा प्यारा है सरकारﷺ ने फरमाया नमाज़ को उसके वक़्त पर अदा करना!...✍🏻
📗 सही बुखारी सफह - 76
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 98 📚*
┇𖠁 ➧ तुम्हारे सब कामों में मेरे नज़दीक सबसे ज़्यादा अहमियत नमाज़ की है (यानि मुझको तुम्हारी नमाज़ों की ज़्यादा फ़िक्र है) तो तुम में से जिसने नमाज़ों का ध्यान रखा और उनकी पाबन्दी की उसने पूरे दीन की हिफाज़त कर ली और जिसने नमाज़ों को जाइअ (बर्बाद) कर दिया और कामों को भी जाइअ करेगा।
📕 फ़तावा रज़विया जिल्द नं05 सफ़हा 278 मतबूआ पोरबन्दर
┇𖠁 ➧ आला हज़रत मौलाना शाह अहमद रज़ा खाँ रहमतुल्ला तआला अलैह फरमाते हैं ईमान के बाद पहली शरिअत नमाज़ है।
*📗 फ़तावा रज़विया जिल्द नं02 सफ़हा 214 मतबुआ संभल*
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 98 📚*
┇𖠁 ➧ नमाज़ की इस्लाम में कितनी अहमियत है यह बताने की ज़्यादा ज़रूरत नहीं क्योंकि यह हर मुसलमान जानता है बल्कि ग़ैर मुस्लिम तक जानते हैं कि मुसलमानो के मज़हब में सबसे ज़्यादा अहम काम नमाज़ है।
┇𖠁 ➧ मैंने कितने लोग देखे हैं जो नमाज़ी बनना चाहते है लेकिन बन नही पाते मैं उन्हे यहां चन्द मशवरे देता हुँ उम्मीद है कि उनके ज़रिये अल्लाह रब्बुल इज़्जत उनके लिये रास्ता आसान फ़रमायेगा सबसे अव्वल और अहम मशवरह तो यही है कि अल्लाह तआला से ज़्यादा से ज़्यादा दुआ करते रहें कि या अल्लाह मुझको नमाज़ का पाबन्द बना दे क्योंकि सब कुछ उसी की तरफ़ से और इसी की तौफीक़ से है और दीनदार बन जाना कमाल नहीं है मरते दम तक दीनदार बने रहना कमाल है इसी लिये कुरआन शरीफ़ में ज़्यादातर दुआएँ ईमान इस्लाम और दीन पर क़ायम और साबित रहने की सिखाई गयी हैं।...✍
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 98 📚*
📕 बुखारी जिल्द सफ़हा 84 मिशक़ात सफ़ह - 61
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 98 📚*
🅿🄾🅂🅃 ➪ 198
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❝भात और छोछक की रस्में!? ❞
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┇𖠁 ➧ औरत के पहला बच्चा पैदा होने पर भी मायके वालों के ज़िम्मे उसके तमाम खानदान वालों को कपड़े और जोड़े देना ज़रूरी समझा जाता है उसको छोचक कहते हैं शरअई नुक़्ता-ए-नज़र से उन रस्मों में कई तरह की ख़राबियां हैं और यह सब रस्में ग़ैर मुस्लिमों से मुसलामनों में आयी हैं मुसलामानों के लिये ज़रूरी है वह उन्हे मिटाने कम अज़ कम अपने घर से ख़त्म करने की कोशिश ज़रूर करें ताकि इस्लामी माहौल दुनियां के सामने आये और ग़लत रस्म व रिवाज को मिटाने के लिये हिम्मत व हौसले की ज़रूरत होती है जो ग़लत काम पहले से होता चला आया हो उसके खिलाफ़ करना और चलना मर्दो, बहादरों और अल्लाह वालों का काम है।...✍🏻
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 142 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 199
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❝ बीमारी मे न्योते देने का रिवाज़ डालिये!?❞
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┇𖠁 ➧ ख़तना, ब्याह शादी अक़ीक़ा वग़ैरह की तक़रीबात के मौक़े पर लोग एक दूसरे के यहां जाते हैं तो न्योते देते हैं जो लिखे भी जाते हैं मैं कहता हुँ यह कोई ज़रूरी तो नही है वह अपनी ख़ुशी से दावत करता है उससे कोई कहता तो नहीं कि तुम हमारी दावत करो फिर ख़ुद दावत करना फिर जिस घर में खाना खिलाया जा रहा है उसके दरवाज़े पर न्योते लिखने वालों को बैठाना मेरी समझ में नही आता जब आपके बस की बात न थी तो आपने लोगों को खाने के लिये क्यों बुलाया और जब बुलाया फिर यह कागज़ क़लम लेकर क्यों बैठाया मैं पूछता हुँ यह दावतें हैं या होटल ज़ाहिर है कि कोई इज़्ज़तदार शरीफ़ बा ग़ैरत आदमी उसके पास उस वक़्त कुछ देने और लिखाने को न हो तो वह आपकी दावत से महरूम रहेगा और लेने की नियत से न्योता देना इस्लामी एतबार से पसन्दीदा नहीं है कुरआने करीम में है *ज़्यादा लेने के लिये एहसान न करो!* ...✍🏻
*📕 सूरह मुदस्सिर पारा 29 रूकुउ नं.15*
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 142 📚*
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❝ बीमारी मे न्योते देने का रिवाज़ डालिये!?❞
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┇𖠁 ➧ उसके बजाये लोग एक दूसरे के यहां बीमारों की अयादत को जायें तो मदद के तौर पर दस बीस सौ पचास रूपया देकर आने का रिवाज़ बन जाये तो निहायत अच्छा होगा ब्याह शादी वग़ैरह में कोई लाज़मी ख़र्चा नही बस जितना होता या मिलता है उतना ही ख़र्च के माअमले में उसका दिमाग ख़राब होता है बीमारों में ऐसे कितने होते हैं कि घर में एक ही कमाने वाला है वही चारपाई पर पड़ गया उधर कमाई का रास्ता बन्द उधर इधर इलाज़ व दवा के ख़र्चे और घरेलू ख़र्चों के साथ सर पर आ पड़े दूसरी तरफ़ आने जाने वालों की मेहमानी।...✍🏻
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 143 📚*
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❝बीमारी मे न्योते देने का रिवाज़ डालिये!? ❞
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┇𖠁 ➧ यह अजीब माहौल है ब्याह शादी ख़तना अक़ीक़ा में तो एक दूसरे के यहां जाते हैं तो ख़ूब देकर आते हैं और बीमार व परेशान की मिज़ाज पुर्सी को जाते हैं तो उसके यहां खूब ढूंस ढूंस कर आते हैं और बीमारी व मौत में मेहमान नवाज़ी कभी कभी कोढ़ में खाज और घूंसे पर लात का काम करती है मेरा मशवरह तो यह ही है कि बीमारों की मिजाजपुर्सी में कुछ न कुछ मदद के तौर पर देने का रिवाज़ बनाया जाये खासकर गरीबों नादारों को और वह बीमार आदमी अगर साहिबे निसाब न हो तो ज़कात व उशर और सदक़ा-ए-फ़ितर भी दिया जा सकता है और उसको बताना भी ज़रूरी नही कि ज़कात है और लेने वाले को शर्म नही करनी चाहिये आख़िर ब्याह शादी के मौके पर भी तो न्योते लिखवाने के लिये किसी को बैठाया जाता है उस वक़्त शर्म नहीं आती।...✍🏻
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 147 📚*
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❝ आख़िरी बातें!? ❞
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┇𖠁 ➧ यह किताब मैनें यह सोचकर नहीं लिखी है कि इसको पढ़कर सब लोग सच्चे और पक्के मुसलमान बन जायेंगे लेकिन मैं ना उम्मीद भी नहीं हूँ सब न सही लेकिन कुछ न कुछ लोग ज़रूर अपने अन्दर सुधार लायेंगे अलबत्ता कम अज़ कम इतना तो ज़रूर है कि हम अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं सबको मरना है हमे भी मरना है और मौत का कुछ पता भी नहीं कि कब आ जाये और मरने से पहले अल्लाह तआला और उसके रसूलﷺ का पैगाम ज़बान व क़लम के ज़रिये बन्दगाने ख़ुदा तक पहुंचाना मैंने ज़रूरी समझा दिल में डालना तो अल्लाह तआला ही का काम है हमारा काम तो पहुंचाना था वह हमने पहुंचा दिया अब कोई माने ना माने उसको वह जाने लेकिन क़यामत के रोज़ यह मत कहना कि हमे किसी ने बताया न था, हमें जो मालूम था वह बता दिया और हमसे जैसे हो सका हमने वैसे समझा दिया अगर उससे और अच्छी तरह हमें समझाना आता तो हम वैसे समझाते हम तो सिर्फ़ ज़बान से बोलकर क़लम से लिखकर चले अब अल्लाह तआला से दुआ है ज़ल्द अज़ ज़ल्द अल्लाह तआला ऐसे बन्दे भी पैदा फरमा दे जो उसका दीन नाफ़िज करें और इस्लामी एहकाम पर लोगों को चला भी सकें मुआशरे और समाज से हर ग़ैर इस्लामी बात निकालकर फेक दें और इस्लामी राज हो और इस्लामी काज़ और मरने से पहले वह दौर हमें भी दिखा दे।
┇𖠁 ➧ और उन मुजाहेदीन के सद्के में हमारी भी मगफ़िरत बख़्शिश फरमा दे और कयामत के दिन की शर्मसारी से बचा ले और वह अल्लाह तआला ही है जो बहुत सुनने वाला और जानने वाला है और दुआओं को क़ुबूल फरमाने वाला है।..✍🏻
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 175 📚*
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❝ मालदारो से दो बातें!?❞
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┇𖠁 ➧ ऐ मेरी क़ौम के अमीरो, मालदारो, सरवराहो, हुकूमत व इक़तिदार वालों ज़बान और बात में असर रखने वालों तुम अगर चाहों तो काफ़ी दीन फैल सकता है मगर अफ़सोस तुम मज़हबे इस्लाम और ख़ुदा व रसूलﷺ के लिये मुंह के दो बोल देने के लिये तैयार नहीं हो लोग तुमसे दबते हैं डरते हैं अपनी ज़रूरतों और मतलब के लिये तुम्हारे पास आते हैं तो ज़ाहिर है कि तुम्हारी बात उनपर असर करेगी तुम क्यों नहीं बोलते और हक़ समझाते और क्यों नहीं प्यार मुहब्बत के साथ दीन की तबलीग करते और ज़रूरत पड़ने पर अपनी खुदादाद ताक़त व कुव्वत और दौलत का इस्तेमाल करतें।
┇𖠁 ➧ मुबारक है वह ताक़त व कुव्वत इक़तेदार व हुकूमत दौलत व शौहरत जो दुनिया मे दीन क़ायम करने और बुराईयां हरामकारियां मिटाने के काम मे आ जाये।...✍🏻
*📬 आओ दीन पर चलें सफ़ह - 176 📚*
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*📮 पोस्ट मुकम्मल हुई अल्हम्दुलिल्लाह 🔃* ••──────────────────────••►
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