Thursday, 9 April 2020

आओ दीन पर चलें











🅿🄾🅂🅃 ➪ 01


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         ❝  ज़िक्रे ख़ुदा यादे मुस्तफा ﷺ
                           और
               किताब लिखने की वजह!? ❞
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┇𖠁 ➧ सारी तारीफैं ख़ूबियां और बुल्दिंया अल्लाह तआला के लिये हैं जिसके अलावा कोई इबादत, पूजा और परस्तिश के लायक़ नहीं वही और सिर्फ़ वही सबको पैदा करने, बनाने मारने, जिलाने और रोज़ी व रोटी देने वाला है आलम में जो कुछ भी होता है उसकी मर्ज़ी के बग़ैर नही होता वह हमेशा से है और हमेशा रहेगा, मौत, फ़ना, नींद, ऊंघ, सुस्ती गफ़लत और बे तवज्जेही से पाक है वह बीबी बच्चों से पाक है और वह किसी की औलाद भी नही है बल्कि सब उसके बन्दे हैं वह हर ऎब, नुक्स, कोताही और कमी से पाक है वह जैसा है उसकी हक़ीक़त को पूरे तौर पर उसके अलावा कोई नहीं जान सकता!

┇𖠁 ➧ बेशुमार दुरूद व सलाम और रहमतें नाज़िल हों उन पर जो जाने कायनात रूहे ईमान हैं जिनका नाम आसमानों में अहमद और ज़मीनों में मुहम्मदﷺ है वह सारे कमालात ख़ूबियां और बुल्दिंया अल्लाह तआला ने उन्हे अता फरमाई जो एक मख़लूक में हो सकती हैं उनका ज़िक्र ख़ुदा का ज़िक्र है उनकी याद उसी की याद है उनसे मुहब्बत उसी से मुहब्बत है।

┇𖠁 ➧ उनकी आल व असहाब पर भी जिनके बग़ैर इस्लाम को नही समझा जा सकता और इन्हें छोड़ कर ख़ुदाई रास्तों पर नहीं चला जा सकता!..✍

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह 7-8 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪ 02


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         ❝   ज़िक्रे ख़ुदा यादे मुस्तफा ﷺ
                           और
               किताब लिखने की वजह!?  ❞
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┇𖠁 ➧ इस हम्दे इलाही और ज़िक्रे मुस्तफाई के बाद बन्दा गुनाहगार ततहीर अहमद क़ादरी रज़वी बरेलवी अर्ज़ करता है कि अल्लाह तआला ने बनाम इस्लाम जो रास्ता बन्दों को अपने महबूब पैग़म्बर के ज़रिये अता फरमाया। इंसानों में कुछ तो वह हैं जिन्होने क़बूल ही नही किया और कुछ वह जो कलमा पढकर मुसलमान होकर भी इस्लाम से दूर हैं मुझको देखकर अफ़सोस होता है मैं इस बात पर कुढता हुँ, रोता हुँ कि अल्लाह तआला ने फूल बरसाये लेकिन लोग कांटों की तरफ़ आये उसने उजाला भेज दिया मगर वह अंधेरे में भटकते रहे नूर आ गया लेकिन वह आग में ही छलांगे लगाते रहे मैंने मुआशरे, समाज, माहौल को गहराई से देखा तो मुझको एक बड़ी तादाद उन मुसलमानों की भी नज़र आई जो इस्लाम मजहब की खूबियों से वाक़िफ़ हैं और चाहते हुए भी वह इस्लामी उसूलों पर अमल नहीं कर पाते कोशिश करते हैं लेकिन क़ामयाब नहीं हो पाते जज़बात और जोश में आते हैं लेकिन ठण्डे पड़ जाते हैं अमल शुरू करते हैं लेकिन टिक नही पाते हैं मैंने खुदाये तआला की तौफीक़ से उनकी राह की रूकावटों पर ग़ौर किया तो उस परवर दिगारे आलम ने कुछ बातें अपने फ़ज़ल व करम से मेरे ज़हन में डाल दी और बेशक वह परवर दिगार बड़े फ़ज़ल वाला है और उसका सबसे बड़ा फ़ज़ल यह है कि उसने उस रसूलﷺ की उम्मत में पैदा फ़रमाया जिनको उसने रहमतुल आलामीन बनाया और बताया है।..✍

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह 7-8 📚*

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❝ 📿 दीनदार बनकर रहना ज़्यादा मुश्किल नही!? ❞
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┇𖠁 ➧ बहुत से हमारे मुसलमान भाई समझते हैं कि हम दीनदार सच्चे पक्के मुसलमान बन ही नहीं सकते या बनकर रह ही नही सकते इसकी वजह यह है कि उन्होने इस्लाम को एक मुश्किल और मुसीबत समझ लिया है या उन्हे समझा दिया गया है और सही माअना में इस्लाम का ताअरूफ उन्हे नहीं हो सका और वह मजहब को पहचान नही सके क्या उन्हे यह पता नही कि जिसने इस्लाम भेजा है उनका वह परवर दिगार निहायत रहम व करम वाला है बड़ा मेहरबान है बल्कि वह बड़ा अरहमुर्राहेमीन है अकरमुल अकरामीन है और जिस रसूलﷺ के वसीले से उसने इस्लाम दिया है उसको उसने सब जहानों के लिये रहमत बनाकर भेजा है हां अगर आप यह ख़्याल करते हों कि आपके नफ़्स पर कोई ज़ोर न पड़े ऐश व आराम में कोई कमी न आये ज़रूरत से ज़्यादा खाने पीने पहनने ओढने, सोने और घूमने फिरने भी होते रहें और आप सच्चे पक्के मुसलमान बन जायें अपने रब को राज़ी कर लें तो यह आपकी भूल है आख़िर अपने दुनियावी मक़ासिद हासिल करने के लिये भी तो आपको परेशानियों उठानी पड़ती हैं कभी रातों की नींदे ख़राब होती हैं और कभी दिन के चैन छोड़ना पड़ते हैं लड़ाई और झगड़े मोल लेना पड़ते हैं बुराई भलाई से वास्ता पड़ता है कभी आपकी हंसी उड़ाई जाती है कभी ज़िल्लत व रुसवाई का सामना करना पड़ता है।...✍

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🅿🄾🅂🅃 ➪ 04


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❝ 📿 दीनदार बनकर रहना ज़्यादा मुश्किल नही!? ❞
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┇𖠁 ➧ फिर अल्लाह तआला और उसके रसूलﷺ को राज़ी करने के लिये सब दिन की जन्नत और दोज़ख से निज़ात हासिल करने के लिये आपको कुछ परेशानियां मिज़ाज के खिलाफ़ बातों का सामना करना पड़े तो इस पर आप क्यों हैरान हैं आख़िर वह कौनसी बुलंदी है जिस पर आप बग़ैर जीने और सीदी के चढ़ जाते हैं और वह कौन सा मक़सद है जो बग़ैर कुछ किये हासिल हो जाता है और कौन सी मंज़िल और कौनसा मरतबा है जो बग़ैर जान जोखम में डाले आप हासिल कर लेते हैं क्या आप ने सरबराहियां और कुर्सियां हासिल करने के लिये सियासी लोगों की दीवानगी और उनके जुनून को नहीं देखा है उनकी रास्तों की दिक्क़ते अड़चनें और परेशानियां आपकी नज़र से नही गुज़री हैं ? कहीं उन्हें काले झण्डे दिखाये जा रहे हैं कहीं उनकी कारों पर पत्थर बरसाये जा रहे हैं कहीं तालियां बजाई जा रही हैं तो कहीं गालियां दी जा रही हैं कहीं वापस जाओ के नारे का सामना करना पड़ रहा है कभी थानों हवालातों लाठी डण्डों और बन्दूक की नालों से गुज़रना पड़ रहा है।...✍

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🅿🄾🅂🅃 ➪ 05


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❝ 📿 दीनदार बनकर रहना ज़्यादा मुश्किल नही!? ❞
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┇𖠁 ➧ आप हैं कि आपको ख़ुदा की रज़ा और जन्नत की नेअमत हासिल करने के लियें नमाज़ पढ़ते हुए शर्म महसूस हो रही है जरा सी टोपी सर पर रखना बोझ बना हुआ है चार उंगल दाढी रखने में सर शर्म के मारे झुके जा रहे हैं  गन्दी फिल्मे नंगी तस्वीरें देखने और बे हयाई भरे गाने सुने बग़ैर आपकी रोटी हज़म नहीं हो रही है नाच और तमाशे आपके दिल का सुकुन और ज़िस्म की गिज़ा बन गये हैं वह मेम्बरी, प्रधानी और चैयरमैनी के ओहदे असम्बली और पारलियामेन्ट की कुर्सियां हासिल करने के लिये किसी की बुराई मुख़ालफ़त और दुश्मनी की परवाह नही करते आप अपने बीबी बच्चों और नौकरों तक से नमाज़ रोज़े के लिये कहते हुए डरते हैं आपकी जवान बहनें बेटियां खुले गले और बे आस्तीन वाले लिबास पहन कर नंगे सर सड़कों बाज़ारों में अपने ज़िस्म सबको दिखाती घूम रही हैं और आप उन्हें टोकने और रोकने में झिझक महसूस कर रहे है सही बात यह है कि आपको क़ब्र व आख़िरत की कोई फ़िक्र नही रह गई बस दुनिया ही की ज़िन्दगी को आपने सब कुछ समझ लिया है।..✍

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🅿🄾🅂🅃 ➪ 06


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❝ 📿 दीनदार बनकर रहना ज़्यादा मुश्किल नही!? ❞
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┇𖠁 ➧ देखेंगे हम भी कि इस दुनिया में आप कब तक रहेंगे जिस पर कुर्बान हो गये हैं बहुत ज़ल्द मौत का फ़रिश्ता आयेगा और आपके सब अरमान पूरे कर देगा जिन्हें हम नही समझा सके उन्हे वह समझा देगा और बता देगा।

┇𖠁 ➧ मैं समझता हुँ कि लोग मालदार और दौलतमन्द बनने उम्दा और शानदार बिल्डिंगे बनाने, एक से एक बढ़िया लिबास पहनने और सियासी इक़्तेदार हासिल करने के लियें जितनी परेशानिया उठाते हैं वह अगर दीनदार सच्चा पक्का मुसलमान बनने अल्लाह व रसूल को राज़ी और जन्नत व क़ब्र का आराम हासिल करने के लिये इससे आधी भी कुर्बानियां दे दें तो वह अपने मक़सद में कामयाब हो जायेंगे और उन्हे वह मिलेगा जिसको वह जानते तक नही और वह उनके गुमान में भी पहुंच सकता और अल्लाह तआला के लिये हम्द है और उसके नबीﷺ पर दुरूद व सलाम।..✍

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 11 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪ 07


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     ❝ 📿 दीन  वाला  कभी  हार  में  नहीं !? ❞
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┇𖠁 ➧ जिन लोगों ने दुनिया को अपना मक़सद बना रखा है वह अक्सर अपने मक़सद मे नाकाम रहते है कि कभी नफ़ा और फ़ायदा तो कभी नुक़्सान और घाटा भी जीतने की खुशियां और मिठाईयां हैं तो कभी हारने पर रुसवाईयां और तालियां ग़म और सदमें बल्कि नफ़ा और फ़ायदे वाले कम होते हैं नुक़्सान और घाटे वाले ज़्यादा फ़तह पाने और जीतने वाले कम नाकाम और हारने वाले ज़्यादा लेकिन अल्लाह तआला और रसूलﷺ के लिये जो करता है वह कभी हारता नही नियत में खुलूस है तो सवाब कहीं नहीं जाता और अल्लाह तआला धोका देने से पाक है।..✍

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 12 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪ 08


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     ❝ 📿 दीन  वाला  कभी  हार  में  नहीं !? ❞
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┇𖠁 ➧ हदीसे पाक में है अल्लाह के रसूल सय्यदे आलम सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम फरमाते हैं।

┇𖠁 ➧ अल्लाह तआला फरिशतो को हुक्म देता है कि मेरा बन्दा गुनाह का इरादा करे तो सिर्फ़ इरादे से उसके नाम-ए-अअमाल में गुनाह मत लिखो और वह जब गुनाह कर ले तो एक ही गुनाह लिख दो और नेकी का जब वह इरादा करे तभी लिख दो और जब वह नेकी कर ले तब उसको डबल कर दो।
   
*📔 मुस्लिम जिल्द सफह 78*

┇𖠁 ➧ यानि अल्लाह तआला के लिये जब बन्दा कुछ करता है तो वह ख़्वाह अपने ज़ाहिरी मक़सद में भले ही कामयाब न हो लेकिन सवाब उसके नाम -ए-अमाल में सिर्फ़ नियत और इरादे ही से लिख दिया जाता है तो ज़ाहिर है वह कभी हार मे नही क्योंकि दुनिया का कुछ भी अगर हाथ न आये लेकिन उसका मक़सद सवाबे आख़रत और अल्लाह तआला की रज़ा हासिल करना था वह मिल गया उसका कोई काट नही सकता।...✍

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 13 📚*

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❝ ☝🏻 अल्लाह तआला के लिए करने वाले किसी बात की परवाह नहीं करते!? ❞
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┇𖠁 ➧ जो अल्लाह तआला को राज़ी करने जन्नत और सवाब हासिल करने के लिये कोई कोशिश,मेहनत या अमल करता है उसको इस बात की फ़िक्र नहीं रहती कि कोई उसकी इज़्ज़त कर रहा है या नहीं उसकी तारीफ़ हो रही है या नही उसके कारनामों कोशिंशों और कुर्बानियों को दुनिया वाले जानते हैं या नही उसके लिये अल्लाह तआला का जानना काफ़ी है। और सही मअना में दीन पर ऐसे ही लोग चल सकते हैं और यही लोग दीनदार बनकर रह सकते हैं जिन्हे इस बात की परवाह नहीं होती कि कोई उन्हे बेवकूफ कह रहा है या समझदार उनकी तारीफ़ हो रही है या बुराई वह इमाम हैं या मुक़्तदी वह मस्न्द, मिम्बर व इस्टेज पर बैठे है या नीचे बोरिये व टाट पर वह ख़तीब व मुक़र्रर व शायर हैं या ज़मीन पर बैठ कर सुनने वाले वह अमीर हैं या रिआया फ़कीर हैं या बादशाह उन्हें कोई जानता मानता है कि नहीं वह भीड़ भाड़ मजमअ में हैं या अकेले और तनहा जो कुछ वह कह रहे पढ़ रहे हैं बोल रहे हैं उसको उनके लिये उनके परवर दिगार का सुनना काफी है।...✍

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 13 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪ 10


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❝ ☝🏻 अल्लाह तआला के लिए करने वाले किसी बात की परवाह नहीं करते!? ❞
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┇𖠁 ➧ और भी सुने अच्छी बात है दीन का काम है इशाअत व तबलीग़ है और कोई न सुने तब भी उनके लिये और उनकी नज़र में यह दीन का काम है क्योंकि जिसके लिये वह कर रहे हैं। वह ज़रूर सुन रहा है और वह न सुनने से पाक है वह अल्लाह तआला है जो शाहिद व बसीर है अलीम व ख़बीर है समीअ व क़दीर है और उसी के लिये हम्द है। इसी लिये हदीसे पाक मे है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम ने फरमाया!

┇𖠁 ➧ दीन के मामले मे इल्म व समझ रखने वाला बेहतरीन आदमी वह है कि जब लोग उसकी ज़रूरत महसूस करें उसकी तरफ़ रागिब हों तो उन्हे नफ़ा और फायदा पहुंचाये और जब लोग उसकी तरफ़ से बे रग़बत और बे परवाह हो जायें तो वह भी उनसे बे परवाह और दूर हो जाये!..✍

*📔 मिशकात किताबुल इल्म फ़सल सालिस सफ़ह 36*

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 13 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪ 11


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❝ ☝🏻 अल्लाह तआला के लिए करने वाले किसी बात की परवाह नहीं करते!? ❞
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┇𖠁 ➧ और वह जो कुरआन करीम में फरमाया कि अल्लाह तआला वाले न किसी से डरते हैं न वह रंजीदा और ग़मगीन होते है उसका मतलब यही है कि वह जब हर काम अल्लाह तआला के लिये करते हैं सवाबे आख़रत और जन्नत उनका मक़सद है और जब नियत सही है तो वह बहरहाल उन्हे हासिल है क्योकि अल्लाह तआला धोका देने और वादा खिलाफी से पाक है और रहम व करम फ़ज़ल व मेहरबानी वाला है तो वह अल्लाह तआला के अलावा किसी से क्यों डरें और दुनियाँ में कुछ भी हुआ करे उन्हें उसका ग़म क्यों होने लगा और जब उनका रब उनसे राज़ी है तो उन्हें किसी बात की फ़िक्र क्यों हो इस आयत का मतलब यह नही है कि वह माआज़अल्लाह, अल्लाह तआला से भी नही डरते और उन्हे आख़रत का ग़म और उसकी फ़िक्र नहीं है अल्लाह तआला से तो जितना ज़्यादा डरे और जन्नत और आख़रत की जितनी ज़्यादा फ़िक्र रखे वह उतना ही बड़ा वली है।...✍

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 14 📚*

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❝ लोगों से दूरी और तन्हाई किसके लिए बेहतर है!? ❞
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┇𖠁 ➧ इसी लिये अल्लाह तआला के वलियों मे से एक बड़ी जमाअत ऐसे लोगों की हुई है जिन्होने दुनियां में रहकर भी दनियां वालो से दूरी बनाये रखी इस सिलसिले में बिल्कुल सही बात यह है कि जब कोई शख़्स ऐसे मन्सब व मर्तबे, ताक़त व कुव्वत, हिम्मत व हौसले, इल्म व सलाहियत और क़ाबलियत साबित क़दमी और इस्तक़ामत वाला हो कि लोगों में मिलजुल कर रहने इनमे बैठने सठने इनके साथ खाने पीने बातचीत करने में उन्हे अपने दीनी शरबह इस्लामी रंग में रंग सकता है या कम अज़ कम उनका ग़ैर इस्लामी ख़िलाफे शरआ असर और रंग अपने ऊपर नही चढ़ने देगा तो ऐसे के लिये क़ौम से दूरी अच्छी नहीं बल्कि ऐसे शख़्स के लियें तो अवाम में रहना ही अच्छा है उसको तन्हाई इख़्तियार करने और गोशानशीनी अपनाने की इजाज़त नहीं हां वह शख़्स जो अपने इल्म व हौसले की कमी या ईमान की कमज़ोरी की बुनियाद पर लोगों में मिलजुल कर रहने से उनके रंग में रंग जाने का ख़तरा महसूस करे।...✍

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 15 📚*

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❝ लोगों से दूरी और तन्हाई किसके लिए बेहतर है!? ❞
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┇𖠁 ➧ अपनी अच्छाईयां उनमे छोड़ने के बजाय उनकी बुराईयां अपनी ज़िन्दगी में दाखिल होती हुई महसूस करता है अपनी सही बात उनसे मनवाने के बजाय जुबान व दिल की कमज़ोरी की वजह से उनकी ग़लत बात मान सकता है या हां में हां मिला सकता है ऐसे के लिये लोगों से जितना बचकर रहे उतना ही बेहतर है और बचने का मतलब सिर्फ़ यह नहीं कि आबादियों से बाहर जंगल में जाकर रहने लगे बल्कि ज़्यादा तअल्लुक़ात गहरी यारी दोस्ती से बचे बिला खास ज़रूरत न मुलाक़ात करे न बातचीत।

┇𖠁 ➧ यहां यह बात भी काबिले ज़िक्र है कि कुछ नाम निहाद इस्लामी गुमराह फ़िरक़ो और बद मज़हब जमाअतों के बारे में उनसे मेल जोल न रखने और उनका बाईकाट करने का फ़तवा दिया जाता है।..✍

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 15 📚*

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❝ लोगों से दूरी और तन्हाई किसके लिए बेहतर है!? ❞
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┇𖠁 ➧ वह मेरे ख़्याल मे उन्ही ईमान के कमज़ोर बे इल्म अवाम तक महदूद होना चाहिये जो उनके फरेब में आ सकते हों उनका असर क़बूल कर सकते हों लेकिन वह अहले इल्म और मज़बूत लोग जो उन्हे हक़ पर लाने और उन पर असर डालने की सलाहियत व हिम्मत और ताक़त रखते हों वह अगर शरअई हदों में रहकर उनसे बातचीत करें तो शायद यह मसलिहत व हिकमत से क़रीब है और अल्लाह तआला जानता है कि किसकी नियत में इस्लाह व सच्चाई है और किसकी नियत में फ़साद और बुराई और क़यामत का दिन भेदों के खुनले का दिन है मगर मैं देख रहा हूँ कि आज उसका उल्टा हो रहा है अवाम ना अहिल ना वाकिफ़ लोग तो घाल मेल तआल्लुक़ात यारियों दोस्तियों में कोई कोताही नहीं बरत रहे हैं और ख़्वास अहले इल्म बहुत से इमाम और मौलवी लोग उनसे मिलने जुलने से सिर्फ़ इस लिये रूके हुए है कि कही फ़तवे की ज़द में न आ जायें और आज कल फ़तवे भी सिर्फ़ मोलवियों के लिये ही रह गये हैं अवाम तो बिल्कुल आज़ाद होते जा रहे हैं!...✍

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 16 📚*

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 ❝ काम  शैतानी  और  मिसाल  बुज़ुर्गों  की!? ❞
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┇𖠁 ➧ आज कितने लोग वह भी हैं जो अपने सियासी माली और कारोबारी मक़ासिद के लिये गैर मुस्लिमों से बे दीनों और बदमज़हबों हरामकार बदकार बदमआश चोरों डकैतों और ज़ालिमों से गहरी यारी और दोस्ती रखते और उनमें ज़रूरत से ज़्यादा घुल मिल जाते हैं ग़ैर मुस्लिमों के मज़हबी त्यौहार उनके कुफ़ी रसूम व रिवाज में ख़ूब शरीक होते हैं और उनकी बोलियां बोलते उनके से लिबास पहनते हैं और कोई कुछ बताये या समझाये तो मिसाल, उन बुजुर्गों की और पैगम्बरों की देते हैं जो ग़ैरो में दीन की तबलीग के लियें घुसते और उन्हे मुसलमान बनाने के लिये उनसे ज़ाहिरदारी बरतते और वाक़ई उन्होने उनमे रहकर उनके साथ नरम रवय्ये अखलाक़ और किरदार से पेश आकर उनको मुसलमान बना लिया!...✍

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 17 📚*

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   ❝ काम  शैतानी  और  मिसाल  बुज़ुर्गों  की!? ❞
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┇𖠁 ➧ एक दो नही करोड़ों को बना डाला एक तुम हो कि उन से गहरे मरासिम यारियां और दोस्तिया करके उनके रंग में रंगे जाते हो उनके तौर तरीक़े खाने पहननें रहन सहन आपनाये चले जाते हो उनकी ज़बान तुम्हारी ज़बान हो गई उनकी बोलियां तुम्हारी बोलियां हो गई उनके लिबास तुम्हारे लिबास हो गये तुम सर से पैर तक पूरे ईसाई या हिन्दू नज़र आने लगे तुम्हे शर्म व ग़ैरत आना चाहिये उन पैग़म्बरों वलियों और बुजुर्गों के ग़ैरो से तअल्लुक़ात अख़लाक व किरदार की मिसालें पेश करते हुए जिन्होने कुफ़ व इल्हाद बेदीनी और गमराही के कटीले जंगलों में इस्लाम व ईमान के फूल खिला दिये बुत परस्तों को ख़ुदा परस्त और नारियो को नूरी बना दिया पूजा स्थलों को इबादतगाहो में बदल दिया जहां घन्टे और संख बचते थे वहां से अज़ानों की आवाज़े आने लगी हज़ारो देवी और देवताओं की पूजा करने वालों को एक माबूदे बरहक के आगे झुका दिया जहां शराबों के दौर चलते थे वहां रोज़ों की अफतारें होने लगी एक आप हैं कि दोस्तियां ताअल्लुक़ात याराने करके सैकुलर इज़्म के नाम पर हर रोज़ हर लम्हा कुफ्र की तरफ़ बढ़े चले जा रहे हैं।...✍

      *उम्मती  बाईसे  रुसवाईये  पैग़म्बर  हैं।*

   *था  ब्राहीम  पिदर  और  पिसर  आज़र  हैं*

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 17 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪ 17


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   ❝ काम  शैतानी  और  मिसाल  बुज़ुर्गों  की!? ❞
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┇𖠁 ➧ भाईयों अगर उनको अपने रंग में नही रंग सकते थे तो कमअज़ कम ख़ुद को तो उनके रंग ढंग कल्चर और तहज़ीब से बचा लेते अब जो कर मिले सो कर लो अब मौत आनी है और कब की अन्धेरी कोठरी तुम्हारी आंखे खोल देगी देखेंगे अल्लाह तआला से निकल कर कौन भागेगा उसकी पकड़ से कौन कैसे बचेगा?

┇𖠁 ➧ क्या मआज़ल्लाह तुमने यह समझ लिया है कि वह ख़ुदाये क़ादिर व क़य्यूम जिसने तुमको पैदा फ़रमाया वह तुमको मारने के बाद ज़िन्दा नहीं कर सकेगा।

┇𖠁 ➧ आज मुसलमानों में सियासी लोगो के लिये ग़ैर मुस्लिम धर्मात्माओं की जय जय कार पुकार लेना और उनके पूजा स्थलो में जाकर माथा टेकना माथे पर तिलक लगवा लेना उनके खालिस मज़हबी कामों में चन्दे देना एक आम बात हो गई है क्या सैकुलरइज़्म का मतलब यही है कि आप बिल्कुल ग़ैर मुस्लिम बन जायें ख़ुदा बचाये ऐसे सेकुल्रज़म और नेतागीरी से जो ईमान बेचकर मिले जन्नत के बदले जहन्नम ख़रीद कर मिले और इन मे से बहुत तो वह हैं कि जिन्होने अपना ईमान भी ख़राब कर लिया है।...✍

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 18 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪ 18


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  ❝ काम  शैतानी  और  मिसाल  बुज़ुर्गों  की!? ❞
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┇𖠁 ➧ बेइन्तहा दौलत भी लुटा दी ज़लील व रुसवा भी हुए और इलैक्शन में हार भी गये यह दुनिया का अज़ाब है और आख़रत का अज़ाब इससे भी बढ़कर है और मैं देख भी रहा है कि जिन ग़ैर मस्लिमों ने मुसलमानों को सैकुलरइज़्म का पाठ पढ़ाया वह ख़ुद कट्टरपंथी बन बैठे जिन्होने इनके हाथों मे तिरंगे झण्डे दिये उन्होने ख़ुद त्रिशूल थाम लिये मुस्लिम नौजवानों को क्रिकेट और फुटबाल में लगाकर अपने छोकरों को आर. एस.एस की जंगी तरबियतगाहों (ट्रेनिंग सेन्टरों) में भेज दिया जिन्होंने मुसलमानों से कहा था कि मज़हब कोई चीज़ नही सब इंसान भाई भाई हैं वह ख़ुद धर्मात्मा बन गये माथे पर तिलक, बिन्दी, मेज़ पर मूर्ति सजाये दफ्तरों में बैठे हैं जिन्होने मुस्लिम ताक़तों को शामिल करके अक़वामे मुत्तहिदा (संयुक्त राष्ट्र संघ) बनाई और जंग बन्दी का एलान किया उन्हीं ने मुस्लिम मुल्कों पर हमले शुरू कर दिये आज मैं हिन्दुस्तान में देख रहा हूँ कि हिन्दुओं की दुकानों और फ़र्मो के नाम राम कृष्ण और शंकर और शिव के नामों पर मिलेंगे और मुसलमानों के इंण्डिया और भारत मेडिकल स्टोर, जनरल स्टोर। इन्हें देश भक्त बनाने वाले ख़ुद शिव शंकर के भगत बने रहे इनकी आंखें अब भी बन्द हैं पता नही कब खुलें।..✍

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 19 📚*

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 ❝ अहले सियासत व हुकूमत के लिये मशवरह!? ❞
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┇𖠁 ➧ आज मैं देख रहा हूँ हमारे कुछ सियासी भाई अगर मस्जिद व मदरसे के लिये भी कोई चन्दा देते हैं या किसी ज़रूरतमन्द इन्सान की मदद करते हैं तो इन्सानी हमदर्दी और रज़ाए ख़ुदा हासिल करने के लिये नही बल्कि लोगों को ख़ुश करके उनके वोट हासिल करने के लिये गोया कि उन्होने दीन के अच्छे कामों को भी दुनिया बना लिया मेरा मशवरह है आप जो कुछ भी कीजिये इंसानी हमदर्दी के उन तक़ाज़ों को पूरा करने के लिये कीजिये जिनका खुदा और रसूल ने हुक्म दिया है तो मुझको उम्मीद है कि आपको लोगों का तआव्वुन और उनका वोट भी मिलेगा और थोड़ी देर के लियें मान लें कि अगर नही भी मिलेगा और आप इलैक्शन हार भी गये तब भी आप हार मे नही हैं क्योकि आपने जो कुछ जिसके लिये किया वह आपको हासिल है और आप अपने मक़सद मे क़ामयाब और जीते हुए हैं।...✍

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 ❝ अहले सियासत व हुकूमत के लिये मशवरह!? ❞
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┇𖠁 ➧ क्योकि आपका मक़सद इंसानों के साथ नेकी और हुसने सलूक करके उनको ज़ुल्म से बचाकर उनको इंसाफ दिलाकर ख़ुदाए तआला के यहां सवाब लेना था तो वह आपको ज़रूर मिलेगा और यह जो हुक़ूमत व सियासत इमारत और बादशाहत वालों में जिन्होने नाम पैदा किये हैं उनके चर्चे गली गली हैं और उनकी यादगारें क़ायम हैं यह वही लोग है जिनको अपनी हुक़ूमत व इक़्तेदार की फ़िक्र कम और क़ौम व मुल्क रिआया और आवाम की फ़िक्र ज़्यादा थी मर्तबे और ओहदे हासिल करने से भी उनका मक़सद दुनिया इंसाफ क़ायम करना रहा है और जिनका मक़सद वाह वाही हासिल करने नाक और शान ऊंची रखने शान शौकत दिखाने के अलावा और कुछ नही उन्हे कुछ भी हासिल नहीं होता और वह बुझकर रह जाते हैं आप तो कौम की ख़िदमत कीजिये मर्तबे और ओहदे देना अल्लाह तआला का काम है।..✍

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 ❝ अहले सियासत व हुकूमत के लिये मशवरह!? ❞
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┇𖠁 ➧ हमारे इस बयान का निचोड़ यह है कि मंसब और मर्तबे हुक़ूमत और ओहदे हासिल करने की कोशिश भी इस्लाम में कोई बुरी चीज़ नही है जबकि इसका मक़सद दुनिया में अमन व अमान क़ायम करना है अच्छाईयों और सच्चाईयों को फैलाना ख़राबियों और बुराईयों को मिटाना होता कि अल्लाह तआला राज़ी हो और जन्नत हासिल हो और बाद मरने के रूह को सुकून मिले।

┇𖠁 ➧ हज़रत अबू सईद ख़ुदरी रज़ीअल्लाहु तआला अन्हो से मरवी है रसूले ख़ुदा ﷺ ने फरमाया

┇𖠁 ➧ क़यामत के दिन लोगों मे सबसे ज़्यादा अल्लाह तआला का पसन्ददीदा और नज़दीक बन्दा इंसाफ करने वाला हाकिम होगा और सबसे ज़्यादा ना पसन्दीदा सख़्त अज़ाब का मुस्तहक़ ज़ालिम हाकिम होगा।..✍

*📔 मिशकात किताबुल इमारत फ़सल 2 सफ़ह 322*

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❝ अहले सियासत व हुकूमत के लिये मशवरह!? ❞
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┇𖠁 ➧ आज हुक़ूमत सियासत व इक़्तेदार वालों में रिश्वतख़ोरी ज़ुल्म व ज़्यादती ईज़ा रसानी ज़ालिमों लुटेरो ज़िनाकारों का साथ देना और उनकी सिफारिशे करने का मर्ज़ बहुत ज़्यादा बढ़ गया है यह लोग बस इतना जान लें कि इन्हें जब मौत आयेगी तो भागने का कोई रास्ता नहीं मिलेगा हदीसे पाक में है रसूले ख़ुदाﷺ ने फरमाया जो ज़ालिम के साथ चला ताकि उसको ताक़त पंहुचाये हालाकि वह जानता है कि वह ज़ालिम है तो वह इस्लाम से बाहर हो गया।...✍

*📔 मिशकात बाबुल जुल्म फ़सल 3 सफ़ह 436*

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 ❝ दीनी मदरसो को तलवा व मौलवियों के लिए मशवरह!? ❞
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┇𖠁 ➧ हमारे कुछ दीनी मदरसों में पढ़ने वाले तालिबे इल्म और मौलवी हज़रात यह शिकायत करते हैं कि हम जो मुतालआ करते हैं किताबें देखते हैं हमें वह याद नहीं रहती अपनी याद्दाशत की कमजोरी और हाफजे की कोताही का रोना रोते हैं और अपनी इस कमज़ोरी की बिना पर वह किताबों का मुतालआ छोड़ देते हैं मेरी दुआ है कि खुदा-ए-तआला दीन सीखने और सिखाने वालों को कबीउलाफज़ा (पक्की याद्दाशत वाला) बनाये और जो पढे याद रखने की तौफीक़ अता फरमाये लेकिन मेरे बुजुर्गों और भाईयों आपको पढ़ा हुआ और सुना हुआ कुछ याद रहे या न रहे इसकी बहुत ज़्यादा फ़िक्र भी न करो आख़िर आप जिस काम में लगे हुए हैं वह बेहतरीन इबादत और ख़ुदा व रसूलﷺ की रज़ामन्दी हासिल करने का सबसे अच्छा तरीक़ा है।...✍

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❝ दीनी मदरसो को तलवा व मौलवियों के लिए मशवरह!? ❞
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┇𖠁 ➧ जब आपका मक़सद दीन सीखने और सिखाने से अल्लाह तआला को राज़ी करना और अपनी आख़िरत का संभालना है तो यह तो आपको बहरहाल हासिल है कुछ याद रहे या न रहे जितनी देर आप दीनी किताबों खासकर तफ़सीर व हदीस व फिक़ह और तसव्वुफ़ सीखने और सिखाने में लगे हैं इतना अच्छा उम्दा वक़्त गुज़ार रहे है कि जिसकी तारीफ़ करने के लिये मेरे पास अल्फ़ाज़ नहीं हैं खुदाये तआला मुझको भी ऐसा वक़्त गुज़ारने की तौफीक़ अता फराये ज़हन में महफ़ूज कर देना यह अल्लाह तआला का काम है उसका काम उस पर छोड़िये आप तो वह कीजिये जो आपका काम है और जिसका अल्लाह व रसूलﷺ ने आपको हुक़्म दिया है और जिस पर सवाब व रहमत जन्नत व मगफिरत का वायदा फरमाया है जरा गौर कीजिये जिस वक़्त आप हदीस की किताबों का मुतआला करते हैं तो उसमे अहले ईमान के लियें कितनी लज़्ज़त है कितना जायका लुत्फ और मजा है। हल्की आवाज़ से हदीसों की तिलावत कीजिये।...✍

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 22 📚*

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❝ दीनी मदरसो को तलवा व मौलवियों के लिए मशवरह!? ❞
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┇𖠁 ➧ और देखिये इसमें कितनी मर्तवा बार बार अल्लाह तआला का और उसके रसूल सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम और दूसरे अम्बिया व स्वालेहीन का नाम आता है और हुज़ूरﷺ का नाम ज़बान पर आते वक़्त सल्लल्लाहो तआला अलैह वसल्लम भी ज़रूर कहते होंगे यह ज़िक्रे ख़ुदा और यादे मुस्तफा और इल्मे दीन सीखने और सिखाने का मशगला क्या इससे उम्दा अमल और वज़ीफ़ा आपने कही देखा है ? कुर्वे ईलाही की मंज़िले तय करने का इससे उम्दा रास्ता और जीना आपकी नज़र से गुज़रा है? और इसी लिये हदीस में फरमाया गया है आलिम की फजीलत आबिद पर ऐसी है जैसी मेरी तुम्हारे अदना (घटिया) इंसान पर यह अल्लाह और रसूलﷺ का ज़िक्र ही तो है कि जिसके लिये इन्सान को पैदा किया गया और यह ही तो मोमिन की रूहानी गिज़ा है। अहले दिल के लिये इससे ज़्यादा मीठी और कौनसी शय है। अल्लाह के ज़िक्र और हुज़ूरﷺ पर दुरूद शरीफ़ की जो फज़ीलतें मरवी हैं वह सब आपको हासिल हो रही हैं और इल्म सीखने का सवाब अलग।...✍

  *उनकी याद उनका तसव्वुर है उन्ही की बातें*

     *कितना आबाद मेरा गोशा-ए-तनहाई है*

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❝ दीनी मदरसो को तलवा व मौलवियों के लिए मशवरह!?❞
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┇𖠁 ➧ आपको कुछ याद रहे या न रहे आप परेशान न हों ऐ उलूमे मुस्तफाﷺ के तलबगारो अगर तुम्हारी नियत सही है तो तुम से अच्छा और ज़्यादा नफ़ा वाला कोई नहीं और इल्म हासिल करने का भी मक़सद ज़िक्र है जिन लोगों ने बेशुमार किताबें पढ़ ली हैं लाईबेरिया खंगाल डाली हैं लेकिन उन्हें अल्लाह तआला के ज़िक्र और उसके महबूब रसूल पर दुरूद पढ़ने और सुनने की लज़्ज़त हासिल नहीं है तो वह इल्म वाले नहीं हैं वह पढ़कर भी बे पढ़े हैं और जिसको अल्लाह व रसूलﷺ का नाम जितना ज़्यादा अच्छा लगने लगे वह उतना ही बड़ा मुसलमान और मोमिन है और जो जितना ज़्यादा अल्लाह तआला से डरे वह उतना ही बड़ा आलिम है हदीस पाक मे है रसूले पाक सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम ने फरामया!

┇𖠁 ➧ दो ख्वाहिश रखने वाले कभी सैर नहीं होते एक इल्म का ख्वाहिशमन्द कभी इल्म से सैर नहीं होता और दूसरे दुनिया का तलबगार कभी दुनिया से उसका पेट नही भरता।...✍

*📔 मिशकात किताबुल इल्म फसल 3 सफ़ह 37*

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❝ दीनी मदरसो को तलवा व मौलवियों के लिए मशवरह!?❞
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┇𖠁 ➧ आज दीनी मदारिस मे पढ़ने और पढ़ाने वाले हमारे भाईयों में एक बड़ी तादाद उनकी है जो मुकर्रिर व ख़तीब या ख़ुश इल्हान शायर बनने के तमन्नाई हैं कितने ही भोले भाले तलबा ने मुझसे पूछा कि अच्छा मुकर्रर और शानदार धांसू ख़तीब बनने की तरकीब क्या है मुझसे जो हो सका वह मैंने उनको बताया लेकिन भाईयो यह सब क्या है आप तो अपना काम कीजिये यह अल्लाह तआला का काम है कि वह आपको मुकर्रिर व ख़तीब बनायेगा या मुदर्रिस व मुफ़्ती मुसन्निफ व अदीब बनायेगा या ज़ाहिद व सूफी आप तो अल्लाह तआला को राज़ी करने के लिये इल्मे दीन हासिल कीजिये और जब वह आप से राज़ी है तो बहरहाल आप क़ामयाब हैं और वह आप से नाराज़ तो आप कुछ भी बन जायें अपने मक़सद में फेल हैं क्या आपको मालूम नहीं कि कितने ही वह लोग हैं जो स्टेजों के धांसू मुकर्रर शोला बयान ख़तीब जाह व शोहरत माल व दौलत वाले हैं।...✍

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❝ दीनी मदरसो को तलवा व मौलवियों के लिए मशवरह!?❞
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┇𖠁 ➧ लेकिन उनसे अल्लाह तआला नाराज़ है वह क़यामत के दिन रूसवा और ज़लील होंगे और कितने ही वह लोग हैं कि गुमनाम हैं उन्हें न कोई जानता है न मानता है लेकिन उनसे अल्लाह राज़ी है और क़यामत के दिन उनके सरों पर ऐसा रौशन और ज़र्री (चमकता हुआ) ताज रखा जायेगा कि देखने वालों की आंखें चकाचौंध हो जायेंगी और सही बात पूछो तो जन्नत में गुमनामों की तादाद ज़्यादा होगी नामवरों की कम जिनके डंके दुनिया में बज गये वह अकल्लियत (थोड़े) में होंगे और जिन्हें कोई जानता मानता न था वह अकसरियत (ज़्यादा) में होंगे फुखराह व दुर्वेश ख़ुदा से क़रीब होंगे और ज़्यादातर माल व दौलत वाले बहुत दूर मगर यह तो सब वह सोचे कि जिसका मक़सद ख़ुदा का कुर्ब उसकी रज़ामन्दी हासिल करना और जन्नत मे जाना हो और जिसने यह सोचना ही छोड़ दिया हो और दुनिया की ज़िन्दगी उसका मक़सद व महवर बनकर रह गयी हो उसे इस सब से क्या मतलब? लेकिन भाईयो सुनो यह सोच आपको मौत से बचा न सकेगी और क़ब्र व हशर में जाने से आप किसी सूरत छूट नही पायेंगे।..✍

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❝ दीनी मदरसो को तलवा व मौलवियों के लिए मशवरह!?❞
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┇𖠁 ➧ हमारे कुछ ब्रादराने इल्म व फ़ज़ल यह भी कहते है कि हम कुछ इस लियें बनना चाहते हैं ताकि कुछ बनकर मनसब व दौलत व इज्ज़त व शोहरत हासिल करके दीन की ख़िदमत और उसका काम करें तो भाईयो यह एक अच्छी बात है जो तुमने कही और अच्छी नियत है जो दिल मे आयी आपको यह नियत मुबारक हो लेकिन अज़ीज़ो यह भी मत भूलो कि सबसे बड़ी दीन की ख़िदमत और उसका काम ख़ुद को संभालना है कही ऐसा न हो कि हम दूसरों को सुधारने के चक्कर में ख़ुद को बिगाड़ लें औरों को उठाने चलें और ख़ुद गिर पड़ें अल्लाह तआला आपके सिर्फ़ कामों को नही बल्कि दिल के इरादों को देख रहा है वह खूब जानता कि आप क्या कर रहे हैं और किस लियें कर रहे हैं कितने ही वह लोग हैं कि दूसरो को रास्ता बताने कि लिये चले और खुद भटक गये दूसरों को दीनदार बनाने निकले और खुद दुनियादार बन गये रात को स्टेजों पर जन्नत व दोज़ख व क़यामत व आख़रत की बाते करने वाले दिन में नज़राने में सौ सौ रूपये का इज़ाफा करने के लिये लड़ने और झगड़ने लगे जिन्होने बनाम इस्लाम मौलवी और आलिम बनकर दीनी जलसों और मज़हबी कान्फ्रेन्सों के ज़रिये इज़्ज़त शोहरत और नामवरी हासिल की उन्होने वह सब कुफ़्र व बुत परस्ती पर निसार कर दी और नेता गीरी और सियासत के चक्कर में पड़कर गैर मुस्लिमों की गोदों में खेलने लगे जिनकी इबतिदा इस्लाम व कुरआन से हुई थी।...✍

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❝ दीनी मदरसो को तलवा व मौलवियों के लिए मशवरह!?❞
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┇𖠁 ➧ उनकी इन्तिहा रामायण और महाभारत पर हुई जिन्हें मस्जिदो ने चलना सिखाया था वह मन्दिरों गुरुद्वारों और गिरजा घरों में जाकर औंधे मुंह गिर पड़े जरा होश में रहियेगा और हर वक़्त शैतान के पैतरों से अल्लाह तआला की पनाह मांगते हुए क़दम आगे बढ़ाइये और नज़र अंजाम (नतीजे) पर रखियेगा मैंने दीन के ठेकेदारों को कुफ़्र की दलदल में फंसते देखा है मैंने इस्लाम के अलमबरदारों को जहान्नम के गड़हों में गिरते देखा है मैंने मदरसों के पढ़ने और पढ़ाने वालों को ग़ैर मुस्लिमों के जनाज़ों के पास कुरआनख्वानी करते सुना है नारा-ए-तकबीर व रिसालत की गूंज में मुसलमानों से गले में हार फूल डलवाने वालों को बाद में जय जनकार और वन्देमातरम् पुकारने वालों से गले में मालायें डलवाकर तिलकधारी बनते देखा है माल व दौलत इज़्ज़त व शोहरत इल्म व अमल वाला बन जाना आसान है लेकिन इनको हासिल करने के बाद ख़ुद पर कंट्रोल रखना होश में रहना ज़रा मुश्किल काम है।...✍

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 27 📚*

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 ❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !?❞
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┇𖠁 ➧ लोगों के सच्चा मुसलमान दीनदार इंसान बनने की राह में जो रूकावटें हैं उनमे वाज़ व नसीहत तबलीग व इरशाद करने वालों के तरीक-ए-कार को भी दखल है इनमें कुछ तो वह हैं जो दीन को इतना आसान बनाकर पेश करते हैं कि आदमी बिल्कुल बे फ़िक्र और फ़राईज़ व वाजिबात और इस्लामी एहकाम पर अमल करने में सुस्त और ला परवाह हो जाता है वह इसकी ज़रूरत ही महसूस नहीं करता नमाज़ रोज़ा अदा करे और यह कोई ज़रूरी काम हैं ज़कात निकाले बग़ैर इस्लाम में कोई कमी रह जाती है हराम काम छोड़े बगैर अल्लाह तआला को राज़ी और जन्नत को हासिल नहीं किया जा सकता उसको पीर साहब ने यह बता दिया है या अपने तरीक़ा-ए-कार और किरदार से यह समझा दिया है कि हमारे मुरीद हो जाना और हमें नज़राना दे देना ही पूरा इस्लाम है!..✍

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 28 📚*

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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !?❞
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┇𖠁 ➧ अल्लाह तआला को राज़ी और जन्नत को हासिल करने के लिये और कुछ करने की ज़रूरत नहीं है मुकर्रिर साहब ने यह बावर करा दिया है कि जलसा करने और उसके लिये चन्दा देने नारे लगाने और हमे भरपूर रक़म नज़राने के नाम पर भेंट चढ़ाने का नाम इस्लाम है ज़्यादा करो तो नियाज़ व फ़ातहा और उर्स कर लो मज़ार शरीफ़ पर हाज़री दे दो बस काफ़ी है अब ज़ाहिर है जब उसे साल में एक बार जलसा करने उसमे नारे बोलने कभी कभी नियाज़ व फ़ातहा उर्स व लंगर करने से ही जन्नत मिल गई तो वह नमाज़ क्यूं पढ़ने लगा और कभी पढ़ भी ली तो उसकी पाबंदी क्यों करने लगा जब पीरों को नज़राना देना ही निजात के लिये काफ़ी है तो वह ज़कात क्यों निकालने लगा ख़ुलासा यह है कि आज मामूली मामूली बातो पर करोड़ों नेकियां बांटने वाले जिन कामों की हैसियत इस्लाम में एक मुस्तहब (अच्छा काम जिसके करने पर सवाब हो और न करने पर कोई गुनाह व अज़ाब न हो) या बिअदते हसना (वह अच्छे नये काम जो हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम और आपके सहाबा के ज़माने में न थे) की है!..✍

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 29 📚*

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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ सिर्फ़ उन पर जन्नत का टिकट देने वाले पीरों और मुकरिरों की कमी नहीं है यह यह नहीं बताते कि नवाफ़िल व मुस्तहबात नियाज़ें और फातहाऐं उर्स और मीलादों का नफ़ा और फ़ायदा उन्ही के लिये है जो फराईज़ व वाजिबात पर अमल पैरा हैं इस बारे में कुछ तफ़सील से देखना हो तो मेरी लिखी हुई किताब"दरमियानी उम्मत का मुतआला किया जाये आने वाले सफहात में फुजूल खर्चियो के बयान में भी इस किस्म की कुछ बातें आपके सामने आयेंगी।

┇𖠁 ➧ इस बयान से मेरा मक़सद वह वायज़ीन मुकर्ररीन व मुबल्लेग़ीन थे जिन्होने कम ज़रूरी मामूली बातों पर जन्नत बांट कर लोगों के दिलों से ख़ौफे ख़ुदा निकाल दिया और उन्हे नमाज़ रोज़े वगैरह दीन की ज़रूरी बातों पर अमल करने और हराम कारियों से बाज रहने की तलक़ीन नही की!..✍

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 30 📚*

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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ अब थोड़ा उनका भी ज़िक्र करते हुए चलें कि जिन्होने इस्लाम को क़ौम की नज़र में इतना मुश्किल बनाकर पेश किया कि दुनिया के धंधों कारोबार और बाल बच्चों में रहने वाले लोग यह ख़्याल करने लगे कि पक्का सच्चा मुसलमान बनकर रहना हमारे बस की बात ही नही तक़वा और परहेज़गारी की बातें या जिनका ताअल्लुक़ मुजाहिदात और रियाज़ियात तसव्वुफ़ और तरीक़त से था उनके किरदार तरीक़ा-ए-कार बे पढ़ो की तबलीग़ से इस्लाम का ज़रूरी उनसुर (हिस्सा) मालूम होने लगे उन्होने इस्लाम के ज़रिये रोहबानियत और तर्क दुनिया (दुनिया छोड़ने) का तसव्वुर दिया और बहुत से दुनियादार इस्लाम को मख़सूस लोगों का मज़हब समझने लगे और खुद वह मज़हब से बिल्कुल आज़ाद हो गये।..✍

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 27 📚*

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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ इस्लाम एक मुकम्मल आईन है और हर तरह के इंसानों के लिये ज़िन्दगी गुज़ारने का शानदार रहनुमा इसमें जो एहकाम व आमाल हैं उन सबकी हैसियत व अहमियत जुदागाना अलग अलग है न सब नेकियां एक जैसी हैं न सब गुनाह बराबर न हर अक़ीदा यकसां है न हर इबादत कोई बहुत ज़्यादा ज़रूरी है कोई उससे कम कोई उससे भी कम कोई ऐसा कि बिल्कुल ज़रूरी ही नहीं कर लिया जाये तो बेहतर न किया जाये तो गुनाह पकड़ और अज़ाब नहीं हां करने वालों के लिये अजर व सवाब है इस्लामी तबलीग़ करने और उसकी दावत देने वालों के लिये ज़रूरी है कि वह क़ौम को अहकाम व आमाल के दरमियान-यह फ़र्क ज़रूर बतायें अपने बयानात व अक़वाल के ज़रिये भी और अपने अफ़आल व किरदार के जरिये भी अगर आप इस्लामी अरकान आमाल व अफ़आल व अहकाम व अज़कार लोगों को समझा रहे हैं लेकिन आप इनमें ज़्यादा ज़रूरी कम ज़रूरी और ग़ैर ज़रूरी का फ़र्क नहीं बता रहे हैं तो आप उस दीन की तबलीग़ नहीं कर रहे हैं जो पैगम्बरे इस्लाम लाये थे और आपकी ज़िन्दगी उस मज़हब की मुकम्मल तौर पर तर्जुमानी नही कर रही है जिसको इस्लाम कहा जाता है!..✍

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 29 📚*

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 ❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ मज़हबे इस्लाम इंसानी फ़ितरी तक़ाजों को पूरा फरमाने वाला एक ऐसा दरमियानी रास्ता है कि जो इतना ज़्यादा आसान भी नहीं कि बिल्कुल आवारागर्दी और आज़ाद ख़्याली बन जाये और न इतना मुश्किल कि लोग उसको अपने बस से बाहर ख़्याल करने लगें कुरआने करीम मे फरमाया गया है कि :-

┇𖠁 ➧ *"अल्लाह तआला किसी जान पर उसकी ताक़त से ज़्यादा बोझ नही डालता।"*

┇𖠁 ➧ हदीसे पाक मे है हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रदिअल्लाहु तआला अन्हा और हज़रत अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि रसूल'ल्लाह सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम किसी महीने मे रोज़े छोड़ते चले जाते तो लगता था कि इस महीने में बिल्कुल रोज़ा नही रखेंगे और किसी महीने में रोज़े रखते तो रखते चले जाते लगता था कि पूरे महीने रोज़े रखेंगे और रमज़ान के अलावा कभी किसी महीने के पूरे रोज़े आप नही रखते थे!..✍

*📔 बुख़ारी ज़िल्द नं.1 किताबुस्सौम सफ़ह 264*

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 31 📚*

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 ❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ हज़रत अबू सईद ख़ुदरी रदिअल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम चाश्त की नमाज़ पढ़ना शुरू फरमाते हम कहते कि अब रोज़ाना पढ़ते ही रहेंगे कभी छोड़ना शुरू करते तो हम कहते कि अब कभी नही पढ़ेगे।

*📓 तिर्मिजी ज़िल्द 1 अबवाबुल वितर सफ़हा 62*

┇𖠁 ➧ एक सहाबी-ए-रसूल हज़रत उस्मान बिन मज़ऊन रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने हुज़ूरﷺ से दुनिया छोड़ने की इजाज़त चाही तो फ़रमाया मस्जिदों में नमाज़ के इन्तिज़ार में बैठना ही मेरी उम्मत का तरहब यानि तर्क़ दुनिया है!..✍️

*📘 मिशकात बाबुल मसाजिद सफहा 69*

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 32 📚*

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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ एक मर्तबा हुज़ूरﷺ घर में तशरीफ़ लाये तो मुलाहिज़ा फरमाया कि दो सुतूनों के दरमियान एक रस्सी बंधी हुई है पूछा यह कैसी रस्सी है अर्ज़ किया गया कि ज़ैनब ने बांधी है जब वह नमाज़ पढ़ते पढ़ते थक जाती हैं तो इससे लटक जाती हैं फरमाया इसको खोल दो इसकी कोई ज़रूरत नही हर शख्स उस वक़्त तक नमाज़ पढ़े जब तक ख़ुश दिली से पढ़ सके जब थक जाये तो रहने दे!...✍️

*📕 सहीह बुख़ारी ज़िल्द नं01 किताबुल तहज्जुद सफ़हा 154*

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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ इसी के आगे मुत्तसिल दूसरी हदीस मे है की हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रदिअल्लाहु तआला अन्हा के पास बनी असद की एक औरत बैठी थी कि हुज़ूरﷺ तशरीफ़ लाये फरमाया यह कौन है? हज़रत आयशा ने अर्ज़ किया यह फलां औरत है जो रात भर जागती है और उसकी नमाज़ व इबादत की तारीफ़ करना शुरू कर दी हुज़ूरﷺ ने फरामया खामोश रहो इतना ही अमल करो जितनी तुम में ताक़त है अल्लाह तआला उस वक़्त तक ख़ूब सवाब देता है जब तक तुम थकते नहीं हो।..✍️

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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ इस क़िस्म की और भी आहादीस मरवी हैं जिनसे ज़ाहिर होता है कि सरकारे दो आलमﷺ को हर वक़्त यह ख़्याल रहता था कि मज़हबे इस्लाम को लोग बहुत मुश्किल और मुसीबत न समझ लें और वह कुछ मखसूस नफ्सकुश असहावे रिजयाज़त व मुजाहिदा का ही मज़हब बनकर रह न जाये बल्कि पैग़ाम इस्लाम सबके लिये आम हो जाये और अल्लाह तआला ने आपको सबके लिये रसूल बनाकर भेजा कसरते इबादत (बहुत ज़्यादा इबादत) नवाफिल में मशगूलियत मुजाहिदा और रियाज़त की कभी कभी आपने तालीम भी दी है उसकी तरफ़ रग़बत भी दिलायी है!...✍️

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 32 📚*

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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ लेकिन उसको मज़हब का लाज़मी और ज़रूरी हिस्सा नहीं बन्ने दिया रमज़ान शरीफ़ की रातों में आपने अस्हाब को मुसलसल कई रोज़ तक जमाअत के साथ तरावीह की नमाज़
पढानी शुरू की इसका चर्चा हुआ और मस्जिद भरने लगी तो आप नमाज़ पढाने के लिये अगले दिन तशरीफ़ नही लाये सुबह को बाद नमाज़ फज़्र लोगों की तरफ़ मुतवज्जा होकर फरमाया कि इस नमाज़ के लिये तुम्हारे जमा होने से मुझको कोई परेशानी नहीं है यानि मुझको यह नमाज़ पसंद है लेकिन मेरे न आने की वजह यह है कि मेरी पाबन्दी से वह कही तुम पर फर्ज़ न हो जाये यानि तुम लोग उसको ज़रूरी न समझने लगो।..✍️

*📕 बुख़ारी शरीफ़ ज़िल्द नं01 सफ़हा 136*

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 33 📚*

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 ❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ एक दिन हुज़ूरﷺ का वाज़ (नसीहत वाली तक़रीर) सुनने के बाद हज़रत उस्मान बिन मज़ऊन रदिअल्लाहु तआला अन्हु के मकान में जमा होकर सहाबा ने यह अहद किया कि वह सब दिन रोज़े रखेंगे रात भर नमाज़ पढ़ेंगे औरतों के क़रीब नही जायेंगे खुशबू का इस्तेमाल नही करेंगे गोश्त नही खायेंगे बिस्तरों पर नहीं सोंयेंगे तो कुराआने करीम की आयते करीमा नाज़िल हुई जिसका तर्जुमा यह है।

┇𖠁 ➧ ऐ ईमान वालो अपने ऊपर हराम न ठहराओ वह सुथरी चीज़े जो अल्लाह तआला ने तुम्हारे लिये हलाल की हैं और हद से न बढ़ो बेशक अल्लाह तआला हद से बढ़ने को पसंद नही फरमाता और खाओ जो कुछ तुम्हे अल्लाह तआला ने रोज़ी दी हलाल व पाकीज़ा और डरो अल्लाह से जिस पर तुम्हारा ईमान है!..✍️

*📕 सूरह मायेदा पारा नं 07 रूकु नं 02*

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 ❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞
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┇𖠁 ➧ इस सब बयान का मतलब व मक़सद यह नहीं है कि बहुँत ज़्यादा इबादत व रियाज़त नफ्सकुशी और मुजाहिदा इस्लाम में कोई ना पसन्दीदा चीज़ है बल्कि बात सिर्फ़ यह है इसको मज़हब और मज़हब वालों के लिये शरअन ज़रूरी फर्ज़ व वाजिब नहीं होने दिया जाये यह जो बाज लोग पढ़े लिखे होकर अहले तसव्वुफ़ व तरीक़त मुजाहिदा व रियाज़त (बहुत ज़्यादा इबादत करने वालो) को गिरी नज़रों से देखते हैं और उनकी मज़ाक उड़ाते हैं यह सब गुमराह व बद्दीन हैं हमारा मक़सद सिर्फ यह है कि तकवा व परहेजगारी नफिल नमाज़ रोज़े और इबादात को लोग इस्लाम का ज़रूरी हिस्सा न समझ लें कि जिसके बग़ैर इस्लाम ना मुकम्मल है अगर आप नफिल नमाज़े पढ़ने के आदी हैं!...✍️

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 34 📚*

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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞     
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┇𖠁 ➧ ताहज्जुद, इशराक़, चाश्त, अव्वाबीन व सलात्तुतसबीह की अदायगी की तौफीक़ खुदाये तआला ने अपने करम से आपको अता फरमाई और आप मुसलमानों को इस तरफ़ राग़िब करते हैं और यह नमाज़े उन्हे सिखाते और याद कराते हैं तो यह एक निहायत ही उम्दा काम है जो आप कर रहे हैं लेकिन अपने कौल व फेल से लोगों को यह तआस्सुर देना भी आपकी जिम्मेदारी है कि अगर कोई शख़्स फज़्र ज़ोहर व असर व मग़रिब व इशा पांचों वक़्त की नमाज़ ब जमाअत की पाबन्दी करले तो इतनी इबादत एक सच्चा अच्छा मुसलमान होने के लिये काफी है और अगर आप गाहे बगाहे महीने अशरे और हफ्ते में कुछ नफिल रोज़े रखने के आदी हैं तो आप क़ाबिले मुबारक बाद है लेकिन कौम के ज़हन में यह भी बैठाते रहें कि अगर कोई इस्लाम में सिर्फ़ रमज़ान के रोज़े रख ले तो वह गुनाहगार नहीं है और क़यामत के दिन उससे रोज़ो के बारे में कोई पुरसिश (पूछताछ) नहीं होगी।...✍️

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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞     
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┇𖠁 ➧ रसूले पाकﷺ से मन्कूल खाने पीने उठने बैठने सोने जागने पहनने ओढ़ने की वह सुन्नते और दुआए कि जिन पर हुज़ूरﷺ कभी अमल किया और कभी छोड़ा और उनके न करने पर आख़िरत में किसी अज़ाब एताब सज़ा और पकड़ की बात भी नहीं बताई तो अगर आप उन सुन्नतों पर अमल करते हैं और दूसरों को कराते हैं तो आपकी जितनी तारीफ़ की जाये वह कम है लेकिन साथ साथ इस बात की भी लोगों को आगाही और जानकारी देना आपका फ़र्ज़ और ज़िम्मेदारी है कि अगर किसी से इन सब पर अमल न हो सके और यह सुन्नतें उससे कभी छूट जायें तो सिर्फ़ इतनी बात पर अल्लाह तआला के यहां उसकी कोई पकड़ नहीं है और उस पर लअन तअन नहीं किया जा सकता अलबत्ता किसी भी सुन्नते मुस्तफाﷺ या उस पर अमल करने वालो को इस सुन्नत की वजह से हक़ीर जानना तफ़रीह और दिललगी उड़ाना काफ़िरों का काम है।...✍️

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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞     
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┇𖠁 ➧ बुरे से बुरे मुसलमान से भी यह उम्मीद नहीं की जा सकती हमारे इस सब बयान व कलाम का खुलासा यह है कि अगर आप रातों को जागने और इबादत करने वाले और दिन को नफ़िल रोज़े रखने वाले हर वक़्त पर सुन्नत और मनकूल व मासूरा। दुआओं का ध्यान व ख़्याल रखने वाले हैं तो यक़ीनन आपकी शान और आपका मर्तबा बहुत बड़ा है लेकिन साथ ही साथ यह भी जान लेना और दूसरों को बता देना ज़रूरी है कि कोई शख़्स सिर्फ़ अगर पांचो वक़्त की फ़र्ज़ नमाज़ ब जमाअत अदा करले रमज़ान शरीफ़ के रोज़े रख ले अगर साहिबे निसाब है तो ज़कात व सदक़ा फ़ितर और कुर्बानी की अदायगी कर ले अगर बस की बात है तो। ज़िन्दगी में एक बार हज कर ले तमाम हराम काम मसलन ज़िना, झूठ, गीबत, सूद, शराब, जुआ, गाने बजाने, तमाशे और सिनेमाओं, हक़तलफी, अमानत में ख़यानत, ज़ुल्म व ज़्यादती वगैरह से बचता रहे तो यह यक़ीनन उसकी निज़ात के लिये अल्लाह तआला के करम से काफ़ी है!..✍️

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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞     
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┇𖠁 ➧  बल्कि आज के दौर में तो जो इतना करले उसको अल्लाह तआला का मुक़र्रब व मख़सूस बन्दा कहा जाये तो बेजा नही है दीनी अहकाम व आमाल में ज़रूरी ग़ैर ज़रूरी और कम ज़रूरी का फ़र्क लोगों को न बताने का नतीज़ा यह है कि आज बहुत से आवाम अगर कोई किसी नफ़िल या मुस्तहब को छोड़ दे तो उसे बहुत बुरी नज़रों से देखते हैं मसलन अगर कोई हर नमाज़ के बाद जो दो रकत नफिल पढ़े जाते हैं उन्हे न पढ़े तो आधी नमाज़ पढ़ने का फ़तवा लगा देते हैं। ऐसे ही कितने वह मुस्तहबात है जिन्हे उन्होने फराईज़ का दर्ज़ा दे रखा है और यह अनपढ अवाम अहले इल्म के लिये मुसीबत बन गये हैं!...✍️

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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞     
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┇𖠁 ➧  एक जगह एक इमाम का हिसाब सिर्फ़ इस लिये कर दिया गया कि उन्होंने बे वजू अज़ान पढ़ दी थी हालांकि वजू करके अज़ान पढ़ना सिर्फ़ एक मुस्तहब काम है यहां तक कि एक गिरोह तबका बल्कि फिरका तैयार हो गया जो फराईज़ और ज़रूरी अहकामे शरअ की तरफ से एक दम गाफ़िल और दूर है और औरादो वज़ाइफ़ व नवाफिल में लगा हुआ है और इन्हे कोई यह बताने वाला नहीं कि जब तक फ़र्ज़ जिम्मे पर बाकी है कोई नफिल या मुस्तहब क़बुल नहीं है और जो लोग नमाज़ व रोज़े की पाबन्दी नही करते उनके सारे वज़ीफ़े इबादतें और रियाज़ते सब मरदूद और ना क़ाबिले क़बूल हैं ग़ैर इस्लामी काम हैं और गुमराही के रास्ते हैं।..✍️

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 37 📚*

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❝ कुछ दीन की तब्लीग़ करने वालों की एक कमी !? ❞     
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┇𖠁 ➧ इसे यह भी मालूम होना चाहिये कि यह सब काम भी तभी फायदेमन्द हैं जब फ़राईज़ व वाजिबात पूरे हों और जो लोग फराईज़ को छोड़कर नवाफ़िल में मशगूल हैं यह उनसे भी ज़्यादा ख़तरनाक और ग़लत हैं जो फराईज़ व नवाफ़िल दोनों को छोड़े हुए हैं। क्योकि जो फ़राईज़ छोड़कर नवाफ़िल मे मशगूल है उसके तरीक़ा-ए-कार से ऐसा महसूस होगा कि इस्लाम पांचो वक़्त की नमाज़ का नाम नहीं है बल्कि औराद वज़ाईफ़ और दीगर नवाफ़िल का नाम है और मज़हब की शकल बदलती हुई मालूम होगी इस बारे में तफसीली मालूमात हासिल करने के लिये आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी अलैहिर्ररहमा का किताब *"अलअअज़्जुलइकतिनाह"* का मुताअला करना चाहिये।..✍️

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 38 📚*

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         ❝ शैतान  की  एक  चाल !? ❞
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┇𖠁 ➧ शैतान की चालों में से एक चाल यह भी है कि इंसान के खराब व बर्बाद करने के लिये ज़रूरी इस्लामी अहकाम नमाज़ रोज़े और ज़कात वगैरह की तरफ़ से उसका दिल हटा देता है और ग़ैर ज़रूरी बातों नवाफ़िल व मुस्तहबात सदक़ात नाफ़िला और ख़ैरात न्याज़ व फ़ातहा, उर्स व मीलाद, जलसे व जुलूस और दीगर औराद व अज़कार में उसके लिये रग़बत और दिलचस्पी पैदा कर देता है और बजाय फ़राईज़ व वाजिबात के उन कामों के लिये उसे उभारता है और वह शख़्स खुद को मुत्तक़ी परहेज़गार दीनदार ख़्याल करने लगता है हालांकि वह गुमराही से बहुत क़रीब है और ख़ुदा व रसूलﷺ से बहुत दूर है याद रखो जिसका दिल फ़जर व ज़ोहर व असर व मग़रिब व इशा में न लगता हो और वह उनका ख़्याल व एहतमाम न रखता हो और इशराक़ व चाश्त, तहाज्जुद व अव्वाबीन ,अज़कार व वज़ाईफ़ और नवाफ़िल में उसे खूब मज़ा आता हो उस पर शैतान का दांव चल गया है और यह दीनदारी के नाम पर धोका खा गया ऐसे की सोहबत दूसरे के लिये भी ख़तरनाक है।..✍️

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 39 📚*

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❝ इबादत और नेक काम मर्तबे हासिल करने के लिए नहीं करना चाहिए!? ❞
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➧ अल्लाह तआला की इबादत उसकी बन्दगी के इन्तज़ार उसका हक़ अदा करने की कोशिश और उसकी मुहब्बत की वजह से करना चाहिये कि अल्लाह तआला ने मुझ पर बे शुमार एहसानात व इनआमात फरमाये है, मे बन्दा हुँ वह मेरा रब है मेरा फ़र्ज़ और ज़िम्मेदारी है कि मैं उसका शुक्र अदा करूँ उसकी बन्दगी का इज़हार और इबादत करूँ कुछ लोग जो इस लिये इबादत करते हैं ताकि वह अल्लाह तआला के वली और कुतब बन जायें या साहिबे कश्फ़ व करामत (चमत्कारी) हो जायें ताकि हमारे पढ़ने फूकने और तावीज़ गण्डों मे असर पैदा हो जाये और हमें शोहरत व मकबूलियत हासिल हो जाये तो उनकी नियत बेहतर नहीं है।..✍️

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 39 📚*

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 ❝ इबादत और नेक काम मर्तबे हासिल करने के लिए नहीं करना चाहिए!? ❞
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┇𖠁 ➧ और उनकी इबादत एक तरह की दुनियादारी बल्कि बाज़ की तो निरी दुकानदारी है भाईयो मर्तबे उन्हे नहीं मिल पाते जो मर्तबों के तलबगार होते हैं तुम तो अपनी निज़ात व मग़फिरत की फ़िक्र करो अल्लाह तआला की मुहब्बत में इबादत करते रहो मर्तबे देना अल्लाह तआला का काम है किसी को बग़ैर कुछ किये दे देता है और किसी को करने के बाद भी नहीं देता और इबादत व रियाज़त करने वाले करते रहते हैं और इन्हे मर्तबे भी मिल जाते हैं लेकिन इन्हे पता भी नहीं चलता कि वह कौन से मर्तबे पर फाईज़ हो गये वह खुद को गुनाहगार ख्याल करते रहते हैं औलिया व सूफ़िया मे से एक गिरोह का ख़्याल यह ही है कि वली को अपनी विलायत का इल्म होना ज़रूरी नहीं।..✍️

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 40 📚*

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  ❝ दीन दारी दूसरो पर तनक़ीद करने के लिए न हो!? ❞
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┇𖠁 ➧  तक़वे, तहारत, ख़ूब ज़्यादा इबादत व रियाज़त वालों को यह भी ख़ूब याद रखना चाहिये कि वह उन मुसलमानों को हक़ीर न समझें और गिरी नज़रों से न देखें जो उनकी बराबरी नही कर पाते बल्कि अल्लाह तआला के औरों से ज़्यादा शुक्रगुज़ार बनकर रहें कि अल्लाह तआला ने तुम्हे तौफीक़ दी उन्हे न दी नमाज़ की हर रकअत में जो दो सजदे रखे गये हैं उसकी वजह अहले इल्म ने यह बताई है कि अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहस्सलाम के लिये सजदे का हुक़्म फ़रिश्तों को दिया तो सब फ़रिश्तों ने सजदा कर लिया लेकिन अज़ाजील इनकार करने की वजह से मर्दूद मलउन करार दिया गया तो फ़रिश्तो ने पहले सजदे की तौफीक़ के शुक्राने के लिये एक सजदा और किया।..✍️

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 40 📚*

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  ❝ दीन दारी दूसरो पर तनक़ीद करने के लिए न हो!? ❞
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┇𖠁 ➧  मशहूर ज़माना सूफ़ी और बुजूर्ग हज़रत सय्यदना शेख़ सांदी रहमतुल्लाह तआला अलैह फरमाते हैं कि मैंने बचपन में एक मर्तबा अपने वालिद बुजुर्गवार के साथ शब्बेदारी की सारी रात इबादत व तिलावत में गुज़ारी कुछ लोग सो रहे थे तो मैंने कहा इन लोगों में से किसी ने यह भी नही लिया कि रात मे उठकर दो रकअत नफ़िल नमाज़ पढ़ लेता तो वालिद बुजूर्गवार ने फरमाया ऐ मेरे प्यारे बेटे अगर तू भी सोता रहता तो इस गीबत और दूसरों की ऐवजोई से अच्छा होता है!
     
*📕 गुलिस्तान बाब 2*

┇𖠁 ➧ हाँ जो लोग फराइज़ व वाजिबात की अदायगी में कोताही करते हों और हरामकारियों के आदी हों उन पर इस्लाह व सुधार की नियत से मलामत व तनक़ीद की जा सकती है अपने जात की बर्तरी और बड़ाई का इसमे भी दखल न हो।..✍️

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 41 📚*

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    ❝ रियाकारी (दिखावा) से बचने की तरकीब!? ❞
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┇𖠁 ➧  रियाकारी और दिखावे की कुरआन व हदीस में जगह जगह बहुत बुराई आयी है और इसकी वजह से इन्सान का सारा करा धरा बेकार हो जाता है इससे बचने की एक ख़ास तरकीब यह है कि आप कभी कभी ऐसे वक़्त और मौक़े से कोई इबादत या नेक काम करते रहें कि अल्लाह तआला के अलावा कोई न जान सके मसलन रात में ऐसे वक़्त उठिये कि सब लोग सोते हों और इबादत व तिलावत में मशगूल हो जाइये किसी पर कोई एहसान कीजिये कि दूसरों को पता न चल सके फिर भी अगर कोई जान जाये या उसे पता चल जाये तो सिर्फ़ इससे आप के अमल को रियाकारी नही कहा जा सकता रियाकारी तो वह है कि लोगों को बताने जताने और ज़ाहिर करने के लिये ही किया जाये ज़ाहिर होजाना और बात है और ज़ाहिर करना और लेकिन कभी कभी ऐसे नेक काम ज़रूर करते रहें कि आपकी कोशिश में जिनका इल्म ख़ुदा तआला के अलावा किसी को न हो।..✍️

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 42 📚*

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         ❝ शैतान  की  एक  और  चाल !? ❞
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┇𖠁 ➧  शैतान किसी को इबादत व रिजाज़त और नेकियों से बाज़ रखकर (रोक कर) खुदाये तआला से दूर करता है और किसी को ख़ूब इबादत कराकर उसे अपनी इबादत पर मगरूर व घमन्डी और मुताकब्बिर बनाकर गुमराह करता है और उसे खूब इबादत व परहेजगारी पर उभारता है यहां तक कि वह शख्स दूसरों को जहन्नमी और ख़ुद को जन्नत का ठेकेदार ख़्याल करने लगता है और उसके दिल से ख़ौफे खुदा और आख़रत की फ़िक्र निकाल देता है और उससे कहता है अब तुझे अल्लाह तआला से डरने की और आख़िरत की फ़िक्र करने की क्या ज़रूरत है तू तो इतना बड़ा दीनदार परहेज़गार है तेरा तो जन्नत में जाना ज़रूरी और यकीनी है और उसे ऐसे गार मे ले जाकर फेंकता है जहां से उसका निकलना न मुमकिन हो जाता है!..✍️

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 43 📚*

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         ❝ शैतान  की  एक  और  चाल !? ❞
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┇𖠁 ➧  हालाकि ख़ौफे ख़ुदा और आख़िरत की फ़िक्र ही अल्लाह वालो की सबसे बड़ी पूंजी है और बन्दे का अल्लाह तआला के डर से लरजना कापना गिरगिड़ाना अल्लाह तआला को इबादत से भी ज़्यादा पसन्द है कभी कभी अल्लाह तआला को बन्दे का गुनाह करके पछताना और शर्माना नेकियों से भी ज़्यादा पसन्द आ जाता है जबकि यह पछताना और शर्माना दिल से हो दिखावा और मक्कारी न हो और जो गुनाह करके दिल से पछताते और शर्माते हैं इनकी पहचान यह है कि वह फिर बार बार गुनाह नहीं करते और अल्लाह तआला पर कुछ वाजिब नही और उस पर किसी का कर्ज़ा और ऐसा एहसान नहीं कि जिसका सिला और बदला उसके ज़िम्मे लाज़िम हो जब किसी को कुछ देता है तो यह उसका करम है और कुछ न दे तो यह अदल व इंसाफ है उस पर किसी किस्म का एअतराज़ करने का कोई हक़ नही उसकी जात हर ऐब व नुक्स से पाक है चाहें तो गुनाहगारों को जन्नत मे भेजे और चाहे तो नेको कारों को दोज़ख में दाखिल कर दे।

┇𖠁 ➧ लिहाज़ा उससे हर शख़्स को हर आलिम को डरते रहना चाहिये और जो ज़्यादा डरने वाले हैं वही ज़्यादा इल्म वाले हैं!..✍️

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 44 📚*

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   ❝ ग़लती करके शर्माना ईमान वालों की शान !? ❞
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┇𖠁 ➧  हज़रत अबू उम़ामा से मरवी है कि एक साहब ने रसूले पाकﷺ से पूछा या रसूल अल्लाहﷺ ईमान की पहचान क्या है फरमाया जब तुम्हे नेकी करके ख़ुशी हो और गुनाह करके अफ़सोस हो तो तुम साहिबे ईमान हो!

*📕 मिशकात किताबुल ईमान सफ़ह 16*

┇𖠁 ➧  इस फरमाने रसूल ﷺ से ज़ाहिर है कि मोमिन वही नही जो कभी गुनाह व करे बल्कि मोमिन भी गुनाहगार हो सकता है और होता है!...✍️

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 44 📚*

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  ❝ ग़लती करके शर्माना ईमान वालों की शान !? ❞
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┇𖠁 ➧  लेकिन इस को गुनाह करने पर अफ़सोस सदमा और दिली तकलीफ़ होती है और गुनाह करके यह तकलीफ़ उसी को होती है जो गुनाहों पर जरी और उनका आदी न हो गया हो और जो गुनाहो पर गुनाह करते ही रहते हैं और हराम कारियां उनकी सरशत और फ़ितरत व आदत बन गयी, तो उन्हे गुनाह करके पछतावे एहसास और शर्मिन्दगी की नेअमत हासिल नही होती मसलन कोई शख़्स नमाज़ का पाबन्द है और किसी ख़ास मज़बूरी की वजह से सोता रह गया और नमाज़ का वक़्त निकल गया तो यक़ीनन उसको अफ़सोस होगा वह घुटन और कुड़हन महसूस करेगा लेकिन जो नमाज़ छोड़ने का आदी हो गया कभी पढ़ता ही नही तो उसे नमाज़ छूटने का अफ़सोस क्यो होने लगा इस हदीस से लोग यह न समझ लें कि अब हम ख़ूब गुनाह करेंगे और बाद में अफ़सोस कर लिया करेंगे क्योकि अफ़सोस पछतावे और शर्मिन्दगी का ताआल्लुक़ दिल से है और अल्लाह तआला जानता है कि किसके दिल मे क्या है और कौन गुनाह करके पछता रहा है और अफ़सोस कर रहा है और कौन अफ़सोस करने पछताने के लिये ही गुनाह कर रहा है और अल्लाह तआला को कोई धोका नही दे सकता वह धोका खाने से पाक है उसको धोका देने की कोशिश करने वाले खुद ही बड़े धोके मे हैं!...✍️

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 45 📚*

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         ❝ ख़ताऐं  बुजुर्गो  से  भी  हुई है!? ❞
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┇𖠁 ➧  ग़लतियां गुनाह और भूल चूक कुछ अकाबिर बुजुर्गाने दीन में यहाँ तक कि सहाबा-ए-कराम से भी हो गई हैं लेकिन ग़लती करके उनके पछताने, अफसोस, तौबा करने की मिसालें तारीख में अनोखी हैं एक सहाबी-ए-रसूलﷺ हज़रत सय्यदना अबू लुबाबा रज़िअल्लाहो अन्हू से एक भूल हो गई थी तो उन्होने ख़ुद को मस्जिदे नब्बी शरीफ़ के एक सुतून (थम) से बांध लिया था कि जब तक अल्लाह तआला मेरी तौबा क़बूल नहीं फरमायेगा यूं ही बंधा रहुँगा और हुज़ूर ﷺ खुद ही अपने मुबारक हाथों से मुझको खोलेंगे मुसलसल (लगातार) छ:दिन तक भूके प्यासे बंधे रहे नमाज़ की अदायगी और ज़रूरी हाज़त के लिये उनकी बीबी साहिवा या उनकी बच्ची उनको खोल देती थी और बाद में फिर बांध दिया जाता था यहां तक की सुन्ने की ताकत ख़त्म हो गई आंखें भी जवाब देने लगी थी आख़िर अल्लाह तआला को उनकी तौबा पसन्द आयी और कुरआने करीम की एक आयत नाज़िल फरमाकर अपने महबूबﷺ के ज़रिये उन्हें तौबा क़बूल होने की ख़ुशखबरी सुनाई गयी और हुज़ूरﷺ ने ख़ुद ही अपने मुबारक हाथों से उन्हे खोला।...✍️

*📕 मवाहिबुल लदुनिया जिल्द 1 सफ़ह 464*

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 45 📚*

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         ❝ ख़ताऐं  बुजुर्गो  से  भी  हुई है!? ❞
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┇𖠁 ➧  सुब्हान अल्लाह कैसी खुशक़िस्मती है जो ग़लती और फिर तौबा करने से हासिल हुई है परहेज़गारियां इस मर्तबे पर रश्क करें तो बजा है मस्जिद नबवी के उस सुतून का नाम सुतूने अबुलुबाबा या सुतूने तौबा पड़ गया वह अब भी है अहले इस्लाम उसके नज़दीक अपने गुनाहों से तौबा करते हैं।

┇𖠁 ➧  ऐसा ही एक वाक्या हज़रत माअज़ बिन मालिक असलमी रदिअल्लाहु तआला अन्हु का है इनसे ज़िना सरज़द हो गया था तो सरकारﷺ की ख़िदमत मे आये अर्ज़ किया या रसूलल्लाहﷺ मुझको पाक कर दीजिये इरशाद फरमाया जाओ!..✍️

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 45 📚*

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         ❝ ख़ताऐं  बुजुर्गो  से  भी  हुई है!? ❞
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┇𖠁 ➧  अल्लाह तआला से अपने गुनाह की मग़फिरत चाहो और तौबा कर लो वह वापिस लौटे और फिर वापस आ गये अर्ज़ किया या रसूलल्लाहﷺ मुझको पाक कर दीजिये हुज़ूरﷺ ने फ़िर यह ही फ़रमाया यहां तक कि चार मर्तबा ऐसा ही हुआ तो हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया मैं तुम्हे किस चीज़ से पाक करूँ अर्ज़ किया मैनें ज़िना किया है हुज़ूर ने दूसरी तरफ़ को चेहरा फेर लिया तो वह हुज़ूरﷺ के सामने आ गये और इक़रार किया कि मैनें ज़िना किया है फरमाया क्या तुम पागल तो नही हो अर्ज़ किया नही यहां तक कि चार मर्तबा उन्होने अपने ज़िना करने का इक़रार किया फिर हुज़ूरﷺ ने उन्हे संगसार करने का हुक्म दिया और उन्हे जंगल में ले जाकर गढ़हा खोद कर उसमे आधा गाढ़ दिया गया बाक़ी जिस्म को पत्थरों से मारा गया यहां तक कि वह जां बहक़ हो गये हुज़ूरﷺ ने उनके बारे में फरमाया कि मा अज़ ने ऐसी तौबा की है कि अगर सारी उम्मत मे बांटी जाये तो सबको काफ़ी हो जाये!..✍️

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 46 📚*

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         ❝ ख़ताऐं  बुजुर्गो  से  भी  हुई है!? ❞
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┇𖠁 ➧  ऐसा ही उस मुबारक ज़माने की एक औरत के बारे में मरवी है कि उनसे भी ग़लती हो गई थी तो वह भी सरकारﷺ की ख़िदमत में ख़ुद ही हाज़िर हुई और अपनी ग़लती का इक़रार फरमया सरकारﷺ ने तौबा व इस्तग़फार करने के लिये कहा कहने लगी क्या आप मुझको वापिस कर देंगे? मुझको खूब पाक फरमाईये मैं ज़िना से हामला हो चुकी हुँ इरशाद फरमाया जब तक बच्चे की विलादत ना हो जाये सजा नही दी जाती यह सुनकर वापस चली गई और जब बच्चा पैदा हुआ तो फिर हुज़ूरﷺ को इत्तिला करायी कि अब मुझको सज़ा दी जाये हुज़ूरﷺ ने फिर टाल दिया और फरमाया जब तक बच्चा माँ के दूध का मुहताज है माँ को सज़ा नही दी जा सकती फिर चली गई यहां तक कि बच्चा कुछ समझदार हो गया तो फिर हाज़िरे ख़िदमत हुई और बच्चे के हाथ में एक रोटी का टुकड़ा था यानि हुज़ूरﷺ को यह दिखाना चहाती थी कि अब बच्चे को मेरे दूध की ज़रूरत नहीं है वह रोटी खाने लगा है तब सरकारﷺ के हुक्त से उनके लिये सीने तक एक गढ़हा खोदा गया और बाक़ी जिस्म को पत्थरों से मारकर उन्हे ख़त्म कर दिया गया!..✍️

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 46 📚*

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         ❝ ख़ताऐं  बुजुर्गो  से  भी  हुई है!? ❞
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┇𖠁 ➧  हज़रत खालिद बिन वलीद ने एक पत्थर मारा जो सर में लगा खून के कुछ छींटे उनके जिस्म पर आ गये तो उन्होने कुछ बुरा भला कहा तो हुज़ूरﷺ ने फरमाया इस औरत के बारे में कुछ न कहो इसने ऐसी तौबा की है कि बड़े से बड़े गुनाह के लिये काफ़ी है और हुज़ूरﷺ ने इनकी तौबा की बहुत तारीफ़ फरमायी और ख़ुद उनके जनाज़े की नमाज़ अदा फरमायी यह दोनो वाक़्यात हदीस की मशहूर किताब *मिशकात शरीफ़ सफ़हा 310* में बुखारी और मुस्लिम के हवाले से देखे जा सकते हैं सुब्हान अल्लाह कितने प्यारे और मर्तबे वाले हैं यह ख़ताकार और गुनाहगार कि जिनकी तारीफ़ वह फरमायें कि जिनका कलाम ख़ुदा का कलाम है और खुद सरकारﷺ इनके जनाज़े की नमाज़ अदा फरमायें और क्यूँ न हो शाने ईमान देखिये कि जानते है कि हमारे इस गुनाह की सज़ा इस्लाम में संगसार करना है लेकिन छुपते बचते और भागते नहीं और दुनिया की इतनी सख़्त सज़ा को आख़रत की भलाई के लिये बर्दाशत कर लेते हैं कितने तक़बे और परहेज़गारियां कुर्बान हैं इन खतकारों पर।...✍️

     *चोर हाकिम से छुपा करते हैं यां इसके*

        *तेरे दामने में छुपे चोर अनोख़ा तेरा*

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 47 📚*

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         ❝ एक  ज़रूरी  बात!? ❞
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┇𖠁 ➧  ख़्याल रहे कि बुजर्गो से जो खताऐं सरजद हुई हैं बिला ख़ास ज़रूरत उनका ज़िक्र करना जाइज़ व मुनासिब नही है, और बड़ी महरूमी और बे अदबी है पढ़ने पढ़ाने या कुरान व हदीस या दीनी किताबों की तिलावत व मुतआले में ज़िक्र आ जाये तो कोई हर्ज़ नही ख्वामुख्यां ऐसी बातों का ज़िक्र करना मुनाफिक़ की पहचान है हमने इस मौक़े पर इन वाक़्यात का ज़िक्र इस लिये किया ताकि लोगों को ख़ता और गुनाह करके पछताने अफ़सोस करने और शर्मिन्दा होने के माआने मालूम हो जायें।...✍️

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 48 📚*

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         ❝ ऐ  लोगों  तुमने  दीन  क्यूँ  छोड़ा!? ❞
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┇𖠁 ➧   यह एक सवाल है जिसका जवाब आपसे बरोज़े क़यामत तल़ब किया जायेगा बजाये हमारे बताने के आप ख़ुद ही अकेले में बैठकर इस सवाल के जवाब पर गौर करें आखिर मज़हबे इस्लाम में वह कौन कौन सी बातें है जिन पर आप अमल नहीं कर सकते और क्यों नहीं कर सकते आपकी राह में क्या मुश्किलात और दुशवारियां हाईल हैं उनको दूर करने की क्या सूरत है इन सवालात के जवाब आपके पास क्या हैं आप खुद अपने से पूछिये और ख़ुद जवाब दीजिये कहीं ऐसा न हो कि मरने के बाद ही सोचना नसीब हो सही बात यह है कि इस्लाम ने आपको दुनिया के हर ऐश व आराम और तफ़रीह से रोका तो नहीं है बस एक दायरा और हद मुतअय्यन कर दी है इसके अन्दर रहकर आप दुनियवी ज़िन्दगी से भी लुत्फ़ अन्दोज़ हो सकते हैं इसके बावजूद आपने दीन छोड़ दिया हर चीज़ की एक हद ज़रूर होती है।...✍️

  *📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 48 📚*

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         ❝ ऐ  लोगों  तुमने  दीन  क्यूँ  छोड़ा!? ❞
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┇𖠁 ➧  खुशियों अरमानों और हसरतों की भी एक हद होनी चाहिये कि नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि आप हद से ज़्यादा अरमान पूरे करने हसरतो को मिटाने और ऐश व आराम उठाने में लग गये इस लिये आप इस्लाम से दूर भाग रहे हैं तो आपको मालूम होना चाहिये कि जो हर ख़ुशी हर ऐश और हर आराम के तलबगार होते है उन्हें कुछ भी नहीं मिलता बल्कि रंज व तकलीफ़ ग़म व परेशानियों का सामना करना पड़ता है और हद से ज़्यादा हंसने का नतीजा रोना होता है अब तुम जो कर सकते हो करों लेकिन याद रखो तुम दुनिया को जन्नत नही बना सकोगे देखते नहीं हो जब से दुनिया में बज़ाहिर आसानियां बढ़ी है तो परेशानियां भी बढ़ी है इलाज़ तरक़्क़ी कर गये हैं तो बीमारियां भी ज़्यादा हो गई हैं ज़राय व वसाइल अगर बढ़े हैं तो आराम तलबियां और ऐश परस्ती भी बढ़ गई हैं हद से ज़्यादा आराम परेशानी बन जाता है हर वक़्त बिस्तर पर लेटे रहना ग़म व रंज में बदल जाता है अल्लाह ने जिसको जितना बनाया है वह उतना ही है और उतना ही रहेगा इन्सान जो दुनिया को जन्नत बनाने की कोशिश में लगा है वह कभी बना नहीं सकेगा तो दुनिया मे जो कुछ थोड़ा बहुत आराम व सुकून अल्लाह अपने करम से अता फरमाये वह उठाओ और जन्नत की तैयारी में लग जाओ वह ही एक ऐसी जगह है जहां कोई न रंज होगा न ग़म न दुख न दर्द न बीमारी न परेशानी न फ़िक्र न कोई उलझन।...✍️

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 49-50 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪ 68


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         ❝    जो  हो  सकें  वो  करों !? ❞
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┇𖠁 ➧  मैं अपनी तहरीर के जरिये आपको यह दावत नहीं दे रहा हूँ कि आप मुकम्मल अल्लाह तआला वाले बहुत बड़े वली या कुतुब बन जायें मैं तो सिर्फ़ यह कह रहा हूँ कि आपसे जो हो सके वह तो करो आप ने दीन को एक दम छोड़ रखा है आप यह सोचते ही नहीं कि हमें भी दीन पर चलना है आपने एकदम यह पूछना ही छोड़ दिया कि इस्लाम में क्या अच्छा है क्या बुरा क्या जाइज़ है और क्या नाजाइज़ क्या हलाल है और क्या हराम भाईयो जो हो सके वह तो करो और बाकी के लिये अल्लाह तआला से रहमत व बख़्शिश मआफ़ी और मगफ़िरत की उम्मीद रखो बेशक वह परवरदिगार बहुत बख़्शने वाला निहायत मेहरबान है।...✍️

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 50 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪ 69


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         ❝ ख़ुद  को  संभालना  तो  आसान  है!? ❞
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┇𖠁 ➧  आज हम में क़ौम की दीन से दूरी और बदअम्ली का रोना रोने वालों की कमी नहीं है और यही दूसरों का रोना रोने वाले जब इनकी ज़िन्दगी के हालात का जाइज़ा लो तो इस्लाम से बहुत दूर नज़र आते है हालांकि वह चाहते हैं कि सब लोग दीनदार हो जायें और माहौल दीनी इस्लामी हो जाये तो भाईयो दूसरों को संभालना सुधारना तो एक मुश्किल काम है पता नहीं वह हमारी बात माने ना माने उसका दिल व दिमाग़ हमारे बस में नहीं उसके हाथ पांव हमारे काबू में नहीं बस कह सकते हैं समझा सकते हैं मनवा नहीं सकते लेकिन भाईयो अपने दिल व दिमाग पर तो अपना कन्ट्रोल है अपने हाथ पांव खुदा ने आपके बस में कर दिये है इन्हें सही राह पर चलाने के लिये इनसे सही काम कराने के लिये तो आपको किसी को समझाने या किसी की खुशामद करने की ज़रूरत नहीं है।...✍️

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 51 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪ 70


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         ❝ ख़ुद  को  संभालना  तो  आसान  है!? ❞
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┇𖠁 ➧  सिर्फ़ इरादा करने ही की तो देर है फिर यह आप क्यों नहीं कर रहे दूसरों से शराब और जूऐ छुड़ाने उन्हे फिल्मों और गानों तमाशों से बचाने उनसे नमाज़ पढ़वाने रोज़ा रखवाने उन्हे दाढ़ी और टोपीवाला बनाने का काम मुश्किल है हर एक के बस का नहीं है लेकिन खुद अपने लिये क्या मुश्किल है इसमें आप सुस्ती और काहिली क्यों कर रहे हैं? आप ख़ुद को भी नहीं संभाल सके तो आपसे ज़्यादा निकम्मा और नाकारह कोई नहीं दूसरों का ग़म छोड़ कर हर आदमी ख़ुद को दुरूस्त और सही कर ले तो ज़ाहिर है कि पूरी क़ौम सुधर जायेगी क्योंकि कौम अफराद ही के मजमूऐ (संगठन) का तो नाम है मुझको अफ़सोस के साथ लिखना पड़ रहा है कि आज हमारी क़ौम में दीन के ठेकेदार बहुत है लेकिन दीनदार कम हैं दीन के नाम पर रोटियाँ सेकने वाले उसका नाम लेकर मुसलमानों को ख़ुश करके नेतागीरी और सियासत चमकाने वाले बहुत हैं लेकिन जिन्हें देखकर अल्लाह व रसूलﷺ की याद आ जाये वह नज़र नहीं आते।..✍️

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 52 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  71

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     ❝ मुस्लिम  क़ौम  का  लीडर  कौन !? ❞
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┇𖠁 ➧  यह एक सवाल है कि क़ौमे मुस्लिम का सही मअना में लीडर और क़ाइद कौन हो सकता है और कौन होगा और मुसलमानों के लिये छोटी बड़ी घरेलु समाजी और सियासी जो मुश्किलात हैं उनका हल कौन लायेगा आज यह एक अहम सवाल है जिसका जवाब तलाश करना जरूरी है और हर एक की सोच एक जैसी नहीं होती मेरा अपना ख़्याल तो यह ही है मुसलमानों का मुकम्मल रहनुमा उनका सच्चा क़ाइद और उनके हर क़िस्म के मसाइल का हल उसी शख़्स के पास रहा है और रहेगा जो सही मअना में नाइबे रसूले अकरमﷺ हो उसकी ज़िन्दगी उनकी हयात का आईना हो उसे और उसके हालात देखकर उनकी याद आ जाती हो।..✍️

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 52 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  72

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     ❝ मुस्लिम  क़ौम  का  लीडर  कौन !? ❞
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┇𖠁 ➧  पैगम्बरे इस्लाम अलैह सलातोवस्सलाम की हैरानकुन खुदा साज अज़ीम शख्सियत और उनकी मुबारक ज़िन्दगी पर जब हम नज़र डालते है कि अल्लाह तआला ने उनमें वह सारी खूबियाँ और कमालात जमा फरमा दिये जो एक मख़लूक या इन्सान में हो सकते हैं आप मस्जिदे नबवी शरीफ़ में दीन व कुरान की तालीम भी देते ख़ुदा की बातें लोगों को सुनाते नमाज़ रोज़े हज व ज़कात इबादत व रियाज़त तसव्वुफ़ व तरीक़त के तौर तरीक़े लोगों को सिखाते ख़ुद ही मस्जिदे मुबारक में पांचों वक़्त की नमाज़ में इमामत फरमाते अख़लाक व आदाब की तालीम देते और जब मुसलमानों को मिटाने की साज़िश रचने वाले उन पर ज़ुल्म व ज़ियादती और हमला करने वालों से जंग लड़ना पड़ी तो ख़ुद ही मैदाने जंग में इस्लामी फ़ौज के सरदार व सरवराह बनकर तशरीफ़ लाते और जंग व जेहाद के तौर तरीक़े बताते इसी लिये आपकी उम्मत में बड़े बड़े मुजाहिदीन व फातेहीन भी हुये और दुनिया से दूर रहने वाले सूफ़ी और दुर्वेश भी इल्म व फ़ज़ल वाले आलिम मौलवी फ़ाक़ा मिस्त फ़क़ीर भी और रईस व अमीर भी इन सबका एक ही कलमा और एक ही नअरा था और सब आपकी ग़ुलामी का दम भरते थे।..✍️

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 53 📚*

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     ❝ मुस्लिम  क़ौम  का  लीडर  कौन !?❞
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┇𖠁 ➧  इनमें से बहुत से वह भी हैं जिन्होनें बड़े बड़े मरतबे पाये वह खुदाये तआला के मुर्करब बन्दे हुये लेकिन रसूले ख़ुदा का सच्चा पक्का और जामे जानशीन और क़ौमे मुस्लिम का मुकम्मल रहनुमा जिसके दम से हर क़िस्म की इस्लाम मुख़ालिफ तहरीक़े तन्ज़ीमें पालेसियाँ और साज़िशें नाक़ाम व मगलूब रहें वही हो सकता है जिसको इन सारे कमालात और खूबियों में से हिस्सा मिला हो वह इल्म व फॠज़ल वाला भी हो और इबादत व रियाज़त तक़वा तहारत वाला भी ईमानदार और दयान्तदार भी हो जरी बहादुर और हिम्मत वाला भी साहिबे तलवार भी और साहिबे किरदार भी रात का नमाज़ी भी हो और दिन का गाज़ी भी वही मुकम्मल तौर पर आँसू पोंछेगा और ग़म ग़लत करेगा और नय्या पार लगायेगा खुल्फ़ाये राशेदीन की शान यही थी हज़रत सय्यदना उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रदिअल्लाहु तआला अन्हु भी इसी मनसब पर फाइज़ थे।..✍️

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 53 📚*

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     ❝ मुस्लिम  क़ौम  का  लीडर  कौन !?❞
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┇𖠁 ➧  मैनें तारीख़ (इतिहास) की किताबों में पढ़ा है कि सारी सलेबी ईसाई दुनिया को धूल चटाने वाले सुल्तान सलाह उद्दीन अय्यूबी एक मरतबा मैदाने जंग में दुश्मनों में घिरे हुये थे दोनों तरफ़ से खुरेज़ घमासान की जंग हो रही थी नमाज़ का वक़्त जा रहा था तो सुल्तान उसी आलम में घोड़े से उतरे और दाए बांए आगे पीछे देखे बगैर वहीं नमाज़ शुरू कर दी और नमाज़ से फारिग होकर फिर घोड़े पर सवार होकर तलवार चलाने लगे और खुदा ने उनकी हिफाज़त फ़रमायी हिन्दुस्तान में सुल्तान मुहि उद्दीन औरंगजेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह के बारे में भी इस किस्म के वाक्यात ज़िक्र किये जाते हैं मैं देख रहा हूँ कि आज दुनियाँ में मुस्लिम मुल्क़ों के सरबराह हों या हिन्दुस्तान में क़ौम के सियासी मुस्लिम रहनुमा इनमें एक बड़ी तादाद तो उनकी है कि जिनके हालाते ज़िन्दगी और रात दिन के मअमूलात कपड़े लिबास और रहन सहन बिल्कुल गैर मुस्लिम ईसाईयों और हिन्दुओं की तरह हो गये हैं!..✍️

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 54 📚*

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     ❝ मुस्लिम  क़ौम  का  लीडर  कौन !? ❞
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┇𖠁 ➧ यह क्या जानें नमाज़ रोज़े को कभी पढ़ी भी तो खुदा के लिये नहीं बल्कि मुसलमानों को ख़ुश करने या उनके वोट लेने के लिये इनके घरेलू हालात औरतों और बच्चों का माहौल चौदह सौ साल पहले वाले मक्के और मदीने वाले माहौल से बिल्कुल मेल नहीं खाता इनकी रंगीन मिज़ाजियों एश व तरब की ज़िन्दगीयों ने काफिरों तक को। पीछे छोड़ दिया यह इस्लाम के नाम पर सियासत का ढंडोरा तो पीटते हैं लेकिन मज़हब को ऐसे भूल जाते हैं जैसे वह कोई अफ़साना मनगड़हंत किस्सा कहानी हो यह ईसाईयों यहूदियों और शिद्दत पसन्द हिन्दुओं की हुकूमत को मुसलमानों के लिये ख़तरा बताते हैं लेकिन उनकी तहज़ीब कल्चर को बड़े शौक से अपनाये हुये हैं यह अंग्रेजो को दुश्मन बताते हैं लेकिन अंग्रेजी फिल्में गानों और तमाशों को अपने मुल्कों और घरों में ख़ूब जगह दिये हुये हैं मैं पूछता हूँ तुमको उनकी हुकूमत वा बादशाहत ना गवार मालूम हो रही है लेकिन उनकी तहज़ीब तुमने क्यों ओढ़ी है? और सही बात यह है कि इन्हे इनकी हुकूमत ना गवार इसलिये हो रही है कि इन्हे ख़ुद हुकूमत करने की पड़ी है इन्हें मज़हब की नहीं बल्कि अपनी हुकूमत की फ़िक्र है!..✍️

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 55 📚*

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     ❝ मुस्लिम  क़ौम  का  लीडर  कौन !? ❞
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┇𖠁 ➧ याद रखो तुमने जिस क़ौम की तहज़ीब ओढ़ी है उनकी हुकूमत भी तुम्ही को झेलना पड़ेगी जब तहज़ीब आयी थी टोपी उतरी थी टाई लटकी थी और तुम इगिंलश शराबें पीकर मस्त हो गये थे अब उन्ही की हुकूमत आयी तो मुज़ाहिरे करते हो पुतले फूक रहे हो अफ़सोस जो क़ौम कभी इस्लाम के लिये तन मन धन जान माल की बाज़ी लगाती थी वह आज रेलियों- मुज़ाहिरों जलसों तक़रीरों और नआरों तक महदूद रह गयी जो कभी तलवारों के साये और जंग के मैदानों में मुसल्लेह बिछाकर नमाज़े अदा करते थे वह आज आम हालात पुरसुकून माहौल में घरों में रहकर भी इस खुदाई फ़रीज़े को छोड़ देते है मैं कहता हूँ ऐ मुस्लिम सरवराहो इस्लाम के नाम पर सियासत करने वालो दुनियाँ व आख़रत की ख़ैरियत चाहो तो नमाज़ रोज़े के पाबन्द बनों और इसकी तबलीग करो कुरआन सीखो पढ़ो और दूसरों को पढ़वाओ और लिबास व तहज़ीब के ज़रिये सिर से पैर तक ग़ुलाम रसूल ﷺ सच्चे पक्के मुसलमान नज़र आओ याद रखो दीन छोड़ने वालों की दुनिया भी जाती है।...✍️

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 56 📚*

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     ❝ मुस्लिम  क़ौम  का  लीडर  कौन !?❞
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 ┇𖠁 ➧ आज पूरी दुनिया के इस्लामी मुल्क़ों में किसी एक भी मुल्क़ का सरबराह और सदर ऐसा नहीं है जो दीनदार नमाज़ी सुन्नते रसूलﷺ की पैरवी करने वाला और अक़ाइद व ख़यालात इस्लामी रखता हो हमारे मुल्क़ हिन्दुस्तान में दो ओहदे सबसे बड़े होते हैं एक सदर जम्हूरिया और एक वज़ीरे आज़म इस वक़्त सदरे जम्हूरिया एक मुसलमान हैं मिस्टर एपीजी अब्दुल कलाम और वज़ीरे आज़म मिस्टर मनमोहन सिंह लेकिन मुसलमान सदर जम्हूरिया में इस्लामी नाम की कमी कोई बात न देखी न सुनी न अख़बार में पढ़ी लेकिन सिक्ख वज़ीरे आज़म अपने धर्म का पूरे तौर पर पालन कर रहे हैं यहाँ टोपी तक नहीं वह सिर पर पगड़ी बांधते हैं यहाँ चार उंगल दादी मुसीबत मालूम हो रही है वह दादी मूंछ ही नही बल्कि पूरे जिस्म के सारे बाल रखाऐ हुये हैं जबकि इस्लाम एक ऐसा मज़हब है कि आज भी बहुत से गैर मुस्लिम उसकी तारीफ़ करते हैं ऐ क़ौमे मुस्लिम के बड़े लोगो अमीरो दौलत मन्दो सरवराहो मंत्रियो कान खोलकर सुन लो मुझको कुछ ऐसा मअलूम हो रहा है कि तुम में से ज़्यादा तर लोग तो अब दिन ब दिन ग़ैर मुस्लिमों की तरह बल्कि बिल्कुल ग़ैर मुस्लिम ही होते जायेंगे और ख़ुदा ने चाहा तो उन ग़ैर मुस्लिमों में से एक बड़ी तादाद कलमा पढ़कर मुसलमान बनेगी और तुम जिस दीन को गिरी नज़रों से देखने लगे हो वह गिरा हुआ नहीं है अल्लाह तआला उसकी वक़त व इज़्ज़त शान शौक़त तुमको दिखा देगा मुझको हैरत है आज हमारी क़ौम में जिसके पास चार पैसे हो जाते है या कोई नौकरी या ओहदा मिल जाता है वह सबसे पहले दीन छोड़ बैठता है और ग़ैर मुस्लिमों की तरह हो जाता है।...✍️

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 57 📚*

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     ❝ मौलवी  और  सियासत!? ❞
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┇𖠁 ➧  सियासत व हुकूमत अच्छे भले लोगों ही का काम है क्योंकि अच्छे लोग जब इक़्तेदार व इख़्तियार वाले होते हैं तो दुनिया में अच्छाई फैलती है और मखलूक को राहत मिलती है लेकिन यह सियासत व हुकूमत दुनिया की तारीख़ में आम तौर से सही लोगों को रास नहीं आई है और दुनिया वालों ने उन्हे बर्दाशत नहीं किया है क्योंकि लोग जैसे होते हैं वैसा ही हाकिम चाहते हैं भले लोगों को साहिबे इक़्तेदार बनने में कुछ ज़्यादा ही दुश्वारियों और अड़चनों को सामना करना पड़ता है और यह भी देखा गया है कि आलिम व मौलवी अच्छे भले ईमानदार लोग जब इक़्तेदार व हुकूमत में आये तो वह न आलिम मौलवी रहे और न दीनदार न ईमानदार बल्कि बे ईमानी, दुनियादारी, नफ़स परस्ती, आराम तलबी व ऐश कोशी में बड़े बड़े दुनियादारों यहां तक कि काफ़िरों तक को पीछे छोड़ गये इसी लिये ख़ासाने ख़ुदा और अल्लाह वालों का एक बड़ा गिरोह इस चीज़ से बचता और कतराता रहा है!...✍️

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 57 📚*

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     ❝ मौलवी  और  सियासत!? ❞
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┇𖠁 ➧  कि दूसरों की इस्लाह और उनको फायदा पहुंचाने के चक्कर में ख़ुद को बिगाड़ लेना और अपना नुक़्सान कर लेना अक़लमन्दी नहीं है और अब तो ज़्यादातर ऐसा ही हो रहा है कि जो आलिम मौलवी दीनदार लोग सियासत व हुकूमत में आये वह आलिम व मौलवी भी न रहे और हुकूमत व इक़्तेदार भी क्योंकि आने जाने वाली चीज़ है इस लिये वह भी गया फिर वह जहन्नम के अलावा कहीं के न रहे लिहाज़ा मेरा मशवरह तो यह ही है कि भले लोग इस चीज़ से बचते रहें तो यही उनके हक़ में बेहतर है ख़ासकर मौजूदा हिन्दुस्तान के मौजूदा हालात कि जिनमे ग़ैरों की खुशामद करना और उनकी खुशनूदी हासिल करना और ज़िन्दगी भर उनके चरनों में पड़ा रहना ही सियासत है!..✍️

*वह शख़्स कि क़द जिसका उन सब में बड़ा था*

      *देखा तो वही ग़ैर के क़दमों में पड़ा था*

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 57 📚*

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     ❝ मौलवी  और  सियासत!? ❞
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┇𖠁 ➧  हाँ अगर कोई बन्दा-ए-ख़ुदा मर्दै मुजाहिद अल्लाह की तौफीक़ से अपने अन्दर इतनी हिम्मत व जुरअत सलाहियत व इस्तिक़ामत पाता है कि वह इन कुफ़ व इल्हाद बे दीनी, बदकारी, ग़लतकारी की कटीली झाड़ियों से गुज़र कर अपने दामन को बचा ले जायेगा और हुकूमत व इक़्तेदार हासिल करके दुनिया में अदलो इंसाफ क़ायम कर सकेगा और ख़ुद को भी संभाले रखेगा उसके लिये हदीसों में जन्नत का वअदा है जैसा कि पिछले बयान में गुज़र चुका है और खुदा रसूल ﷺ के वादे कभी गलत नहीं होते।

┇𖠁 ➧  एक हदीस में है  रसूल पाक ﷺ फरमाते है वह 'मुसलमान जो लोगों मे रहे और उनकी तरफ़ से जो तकलीफ़ उसे पहुंचे उस पर सब्र करे वह उससे ज़्यादा मर्तबे वाला है जो लोगों से दूर रहे और उसे उनकी ईज़ा रसानी (सताने दुख पहुंचाने) पर सब्र न करना पड़े!..✍️

*📔 मिशकात बाबुल रिफ़क व लहया फ़सल 2 सफ़ह 432*

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 58 📚*

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     ❝ नियत सही है यो ख़ता पर भी पकड़ नहीं !?❞
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┇𖠁 ➧ इस बयान का मतलब यह है कि अगर कोई शख़्स किसी मसले या माअमले में उलझा हुआ हो और हर मुमकिन कोशिश के बावजूद वह यह न जान सके कि इस बारे में हक़ क्या है और ख़ुदा व रसूलﷺ की मर्ज़ी क्या है तो नियत के साथ अपने ज़हन पर ज़ोर दे जिधर ज़हन का झुकाव हो खुदाऐ ताअला से ख़ैर का तालिब होते हुए इस फैसले पर अमल करे तो अगर ग़लती पर भी होगा अजर व सवाब पायेगा मिसाल के तौर पर कोई शख़्स जंगल सेहरा या समन्दर वगैरह मे किसी ऐसी जगह पर हो जहाँ इसे किसी ज़रिये से यह पता न चल सके कि नमाज़ पढ़ने के लिये क़िबले का रुख किधर है ज़हन पर जोर देकर जिधर मुहँ करके नमाज़ पढ़ेगा सही हो जायेगी और लौटाने की भी ज़रूरत नहीं।..✍️

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 58 📚*

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    ❝ नियत सही है यो ख़ता पर भी पकड़ नहीं !? ❞
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┇𖠁 ➧ हदीस पाक में है रसूले ख़ुदा ﷺ ने फरमाया :

┇𖠁 ➧ जब किसी फैसला करने वाले ने कोई फैसला किया और हद भर कोशिश की अगर सही फैसला कर दिया तो उसके लिये डबल सवाब है और अगर ग़लती कर गया तब भी सवाब है।..✍️

*📬 सही बुख़ारी ज़िल्द 2 सफ़ह 1092 📚*

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   ❝ नियत सही है यो ख़ता पर भी पकड़ नहीं !? ❞
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┇𖠁 ➧ *एक दूसरी हदीस में है।* रसूले पाकﷺ खंदक की लड़ाई से फ़ारिग होकर मदीने शरीफ़ वापस हुए और ख़ुदा तआला के हुक्म से यूहदियों के क़बीले (खानदान) बनू कुरैज़ा पर हमले का इरादा फरामया उन लोगों ने जंग में अहले इस्लाम के साथ गद्दारी और उनकी जासूसी की थी और उन्हें बिल्कुल मिटा देने में कोई कसर बाक़ी नही रखी थी सरकार ने हुक्म दिया असर की नमाज़ बनूकरैजा के मोहल्ले में जाकर पदना है सहाबा किराम चल दिये रास्ते में सूरज डूबने लगा तो मुसलमान दो गिरोहों में बंट गये कुछ ने यह समझा कि सूरज भले ही डूब जाये लेकिन नमाज़े असर बनू कुरैज़ा में ही पढ़ना चाहिये जैसा कि सरकारﷺ का हुक्म है और उन्होने बनु कुरैज़ा में जाकर ही सूरज डूबने के बाद नमाज़े असर अदा की और कुछ ने यह ख़्याल किया कि सरकारﷺ का मक़सद यह नहीं है कि चाहे नमाज़ कज़ा हो जाये मगर वहीं जाकर पढ़ो उन्होने रास्ते में ही पढ़ ली नियत दोनों की सही थी एक का मक़सद यह था कि सरकारﷺ ने जैसा फरमाया है बिल्कुल वैसा ही करना चाहिये उन्होंने ज़ाहिर पर अमल किया और दूसरों की नियत नमाज़ को कज़ा होने से बचाना था हुज़ूरﷺ के पास जब मुकदमा आया तो आप ने दोनों को सही और दुरूस्त फ़रमाया!...✍

*📔 सही बुखारी ज़िल्द बाब सलातुलतालिब वल मतलूब सफहा 429*


*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 60 📚*

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  ❝  नियत सही है यो ख़ता पर भी पकड़ नहीं !? ❞
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┇𖠁 ➧ ऐसा ही एक वाक़्या हदीस में मज़कूर है कि सहाबा-ए-किराम में से दो हज़रात सफ़र पर तशरीफ़ ले गये रास्ते में एक जगह पानी न मिलने की वजह से तयम्मुम करके नमाज़ पढ़ी आगे बढ़ेतो पानी मिल गया वक़्त बाकी था एक साहब ने वज़ू करके नमाज़ दोहरायी दूसरे सहाब ने नही वापसी में यह क़िस्सा हुज़ूरﷺ के सामने बयान किया तो आपने फरमाया जिसने नमाज़ नही दोहरायी उसने सही सुन्नत के मुताबिक काम किया और जिसने दोहरायी उसके लिये दूना सवाब है!...✍

📔 मिशकात बाबुल तयम्मुम सफह 55

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 61 📚*

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   ❝ नियत सही है यो ख़ता पर भी पकड़ नहीं !? ❞
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┇𖠁 ➧ इस बयान से मेरा मक़सद यह बताना है कि अल्लाह तआला ने इस्लाम को कितना आसान कर दिया है बेशक अल्लाह तआला किसी जान पर उसकी ताक़त से ज़्यादा बोझ नही डालता और वह परवर दिगार ज़ुल्म व ज़ियादती से पाक है और लोगों ने ख़्वामोख़्वा वे वजह दीन छोड़ दिया और दीने इस्लाम छोड़ने वाले यक़ीनन अज़ाब व सजा के मुस्तहक़ हैं हमारे इस बयान से कोई यह न समझ ले कि अब न उलमा से पूछेगे न किताबे देखेंगे हर मसले में ज़हन पर ज़ोर देकर ख़ुद ही फैसले कर लेंगे ख़्याल रहे यह उसी के लिये हैं कि जिसने सीखने सिखाने और पूछने में कोई कमी न की हो और हद भर कोशिश करने के बाद भी मसाईल व माअमलात में सही राह पाने की कोई सूरत न हो और उसकी नियत सही ख़ालिस अल्लाह तआला ही के लिये हो उनके लिये नही है जो दुनियवी काम धंधों के लिये रात दिन घूमते और चक्कर लगाते हों और किसी दीनी बात को मालूम करने के लिये न उनके पास फुरसत और ना दो क़दम चलने की ताक़त ख़ुदाए तआला ख़ूब जानता है कि किसके दिल में क्या है और कौन बहाने बाज़ है और कौन हक़ का तलाश करने वाला।..✍

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 61 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪ 86


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   ❝ नियत सही है यो ख़ता पर भी पकड़ नहीं !? ❞
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┇𖠁 ➧ इस बयान से हमारा जो मक़सद है वह हमारी पेश की हुई उस मिसाल से ज़ाहिर है जो क़िबले (काबे) का रूख जिसको न मालूम हो सके उसके बारे में हम लिख चुके हैं और यहां हमने जो अहादीस नक़ल की हैं इनसे ख़ुद को अहले हदीस कहने वाले वह लोग भी सबक हासिल करें जो कहते हैं चारो मुसल्ले और चारों इमाम हज़रते अबू हनीफा, इमाम मालिक, इमाम शाफी और इमाम अहमद बिन हंबल के मजाहिब इख़्तिलाफ के बावजूद कैसे दुरूस्त हो गये?...✍

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 62 📚*

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  ❝ दीनदार  लोग  अब  भी  चैन  व  सुकून  से!? ❞
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┇𖠁 ➧ अगरचे दीनदारी अपनाने का मक़सद दुनियवी मफ़ाद यहां की राहत चैन व आराम नही होना चाहिये बल्कि दुनिया को तो मोमिन के लिये क़ैदखाना और ग़ैर मुस्लिम के लिये जन्नत बताया गया है लेकिन इस सबके बावजूद मैं देख रहा हुँ कि जो लोग दीनदार हैं वह अब भी सुकून व आराम में हैं बशर्ते कि सही माना में दीनदार हों हज़ारों ख़र्चो उलझनों झंझटों से बचते हैं कम आमदनी के बावजूद सुकून की ज़िन्दगी जीते हैं हां जो लोग दीनदार होकर काहिल निकम्मे और आराम तलब हो जायें तो यह उनकी कमी है मज़हब उनसे यह नही कहता कि तुम काम धंधे न करो मुफ्त की रोटी खाने के आदी बन जाओ ख़ुलासा यह है कि आज भी दीनदार मज़हबी लोग जितने सुकून से ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं वह दुनियादारों हरामकारों को मय्यसर नही है एक शरीफ़ भले दीनदार आदमी को दिक़्क़तें और परेशानियां तो आती हैं लेकिन वह उनसे कम होती हैं कि जिनमें दुनियादार मुबतला हैं हां कुछ दीनदार लोगों को यह महसूस होता है हम बहुत दुखी और परेशान हैं लेकिन उन्हे मालूम नही कि दुनियादार लोग उनसे कही ज़्यादा परेशान हैं और दिली सुकून तो दीन ही से मिलता है और जब दिल को सुकून नही तो दौलतमंदी और मालदारी से क्या फायदा ?...✍

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 63 📚*

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❝  दीनदार  लोग  अब  भी  चैन  व  सुकून  से!? ❞
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┇𖠁 ➧  सकून ही के लिये ही तो सब कुछ किया जाता है और वह दीनदार आदमी जिससे उसका रब राज़ी है उस पर दुनिया में कोई मुसीबत भी आती भी है तो उसको यह सोचकर सुकून मिलता है कि यह दुनिया की परेशानी एक न एक दिन ख़त्म होगी कभी नही तो कम अज़ कम मौत तो इससे छुटकारा दिला ही देगी और मौत के बाद मोमिन के लिये सुकून ही सुकून है तो यह आख़िरत में सुकून की उम्मीद उसकी तसल्ली का बेहतरीन समान बन जाती है और उसके ग़मों का सहारा ज़ख्मों का मरहम हो जाती है मुसीबतों पर सब्र करने और उन्हें बर्दशा त करने का यह सबसे उम्दा तरीका है कि यहाँ नहीं तो इन्शा अल्लाह वहाँ तो सुकून मिलेगा और जिसने आख़िरत के लिये कुछ किया ही नहीं या आख़िरत पर उसको भरोसा ही नहीं वह अगर दुनिया में भी दुखी रहा तो उससे बड़ा कोई बदनसीब नहीं और अल्लाह तआला जो चाहता है करता है कुछ लोग दीनदार तो हो जाते हैं लेकिन वह काम धन्धों में मेहनती और जफाकश नहीं होते तो ऐसे लोग भी गमगीन दुखी और परेशान रहते हैं आदमी दीनदार भी हो और काम धन्धे में मेहनती और जफाकश और फुजूल ख़र्ची से बचे तो खदाये तआला ने चाहा तो वह यकीनन सुकून की ज़िन्दगी गुजारेगा।..✍

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 64 📚*

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         ❝  निकम्मे  पन  से  बचिए!? ❞
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┇𖠁 ➧  जिनका दिल काम धन्धों में नहीं लगता और जिस्म आराम तलब हो जाता है यह निकम्मे और नाकारे भी दीनदार बनकर नहीं रह सकते ऐसे लोगों में कई तरह की शरअई खामियाँ और मज़हबी कोताहियाँ कमियां पैदा हो जाती हैं उधार कर्ज़े लेकर न देने की आदत हर वक़्त पराये माल पर नज़र रखने की बीमारी काम में न होकर कमाई में ध्यान थोड़ा काम करके बहुत से पैसे लेने का मर्ज़ ग़लत सलत और नक़्ली सामान की सप्लाई थोड़ी देर के काम में बहुत सी रक़म ऐंठने की फिक़ खाली रहना और फ़ालतू ग़ैर शरअई बातें करने की आदत यह अपनी काहिली और निकम्मेपन का कोटा बेईमानी से पूरा करते हैं यह बातें मिलाने के लिये यारों को ढूंढते फिरते हैं उन्हे टाइम पास करने के लिये हँसी दिललगी लाविल अफ़साने तफ़रीह तमाशे सिनेमा पिक्चरों और खेलकूद की तरफ़ भागना हैं और कुछ न मिले तो फिर नशे भी करने लगते हैं। खुलासा यह है कि निकम्मापन बहुत सी बीमारियों की जड़ है और ईमानदारी व दीनदारी के लिये मेहनती होना भी काफी हद तक ज़रूरी है हदीस में है रसूले खुदा सल्लललाहो तआला अलैह विसल्लम ने फरमाया!

┇𖠁 ➧ सबसे अच्छी रोज़ी वह है जो आदमी हाथ से काम करके खाये हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम हाथ के काम से रोज़ी हासिल फ़रमाते!..✍

📔 मिश्क़ात किताबुल बयूअ सफ़ह 241

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 64 📚*

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         ❝ मोहताजी  से  बचों !? ❞
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┇𖠁 ➧  काम धन्धा करने वाला इन्सान मोहताजी और दूसरों के आगे हाथ फैलाने से बचता है और इज्ज़त से ज़िन्दगी काटता है। और अगर कोई आदमी शरअई और दुनयवी ज़रूरी ख़र्चे करने के बाद कुछ बचाकर रख ले और इसकी नियत यह हो कि इसके ज़रिये मैं बवक़्त ज़रूरत दूसरों के सामने हाथ फैलाने से बचूंगा तो उसमें भी कोई गुनाह नहीं है।

┇𖠁 ➧  हदीस पाक में है : मोहताजी कभी कभी कुफ़ भी हो जाती है!

*📔 एहय्याउलउलूम जिल्द नं0 3 सफा नं0 184 बाबुल हसद*

┇𖠁 ➧  और बार बार देखा भी गया है ज़रूरत और मज़बूरी आदमी से सब कुछ करा लेती है और कहलवा देती है। जिसकी उसे ज़रूरत है या जिसके सामने बवक़्त मज़बूरी वह हाथ फ़ैलाता है उसको उसकी हाँ में हाँ मिलाना पड़ जाती है और उसकी ग़लत को भी सही कहना पड़ जाता है।...✍

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         ❝  मोहताजी  से  बचों !?❞
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┇𖠁 ➧  हदीसे ग़ार जो मशहूर है उसमें आपने पढ़ा या सुना होगा कि एक ख़ूबसूरत जवान लड़की जिसको उसका चचाज़ाद भाई परेशान करता था और उसको बदकारी के लिये अमादा करना चाहता था लेकिन वह किसी सूरत उसके काबू में नहीं आती थी लेकिन क़हत और सूखे के दिनों में जब नौबत फ़ाक़ों तक आयी तो एक सौ दिरहम (चाँदी के पुराने सिक्के) के बदले ज़िना कराने पर तैयार हो गयी थी।

📙 सही मुस्लिम जिल्द नं02 सफ़हा 353 बारिवायत मोहम्मद बिन सहल तमीमी

⚠ *नॉट :* पूरी हदीस हदीसों की किताबों में देखी जाये। और इस क़िस्म के मजबूरी से फायदे उठाने के वाक्यात दुनिया में रोज़ाना जाने कितने होते रहे और होते हैं।

┇𖠁 ➧  ग़ैर मुस्लिमों और बदमज़हबों में हमेशा ग़रीब मुसलमानों की मज़बूरी से फायदा उठाने की कोशिश की है और करते हैं आज कितने ही लोग हैं जो ग़ैर मुस्लिमों की बोलियाँ बोल रहे हैं उनके रंग में रंग गये या बदमज़हब व गुमराह फ़िरक़ों में शामिल हो गये हैं सिर्फ अपनी मज़बूरियों और जरूरतों की वजह से। शैतान के जाल फैले हुये हैं और फन्दे लगे हुये हैं बस खुदाये तआला से हमेशा दुआ करते रहना चाहिये कि वह किसी गलत आदमी का मुहताज न बनाये और किसी गुमराह और बद्दीन के सामने जाने की ज़रूरत न आये और अल्लाह तआला से दुआ करने के साथ साथ मेहनत व मशक्कत काम धन्धे करते रहना चाहिये।...✍

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         ❝  मोहताजी  से  बचों !?❞
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┇𖠁 ➧  और जो मुश्किल और कड़े वक़्त पर साबित क़दम रहने की हिम्मत अपने अन्दर नहीं पाता वह अपनी कमाई में से कुछ बचाकर रखे ताकि मुश्किल वक़्त में दूसरों का मोहताज न बनना पड़े और अपने मज़हबी मिज़ाज पर क़ायम रह सके तो कुछ हर्ज़ नही हालांकि दौलत जमा करना इस्लाम में पसन्दीदा नहीं लेकिन नियत अच्छी हो तो कभी कभी ना पसन्दीदा काम भी पसन्दीदा हो जाते हैं हदीस पाक में है फरमाया या रसूले ख़ुदा ﷺ ने फरमाया! नेक माल नेक आदमी के लिये अच्छी चीज़ है!
   
📙 मिशक़ात सफ़हा - 326

┇𖠁 ➧ हां इसमें कोई शक नहीं कि मालदार होकर नेक रहना भी हिम्मत का काम है इसके लिये भी अल्लाह तआला से हर वक़्त दुआ करते रहना चाहिये क्योंकि सब कुछ उसकी तरफ से और उसी की तौफीक़ (मदद) से है।...✍

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         ❝  मोहताजी  से  बचों !?❞
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┇𖠁 ➧  बुखारी व मुस्लिम की हदीस में हज़रत सय्यदना उमर फारूक रज़िअल्लाह तआला अन्हो से मरवी है।

┇𖠁 ➧ एक मरतबा हुज़ूरﷺ ने मुझको कुछ माल देना चाहा मैनें अर्ज़ किया ऐ अल्लाह के रसूलﷺ मुझसे ज़्यादा ज़रूरतमन्द को दे दीजिये फरमाया ऐ उमर इसको लो और इसको अपने पास रखो और राहे ख़ुदा में ख़र्च करो जो माल साथ इज़्ज़त के बे माँगे मिले उसको ले लेना चाहिये और इस तरह न मिले तो उसके पीछे न फिरो।..✍🏻

*📔 बुखारी जिल्द नं 01 सफहा 199 मिशकात सफह 162*

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         ❝  मोहताजी  से  बचों !? ❞
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┇𖠁 ➧  *एक और हदीस में है हुज़ूर अक़दसﷺ फरमाते हैं!*

┇𖠁 ➧  कुछ गुनाह ऐसे हैं कि उनसे बचने के लिये काम धन्धे और रोज़गार की परेशानियाँ उठाना ज़रूरी है हदीस के अल्फ़ाज़ के लिए किताब देखें!

*📕 इहयाउलउलूम जिल्द नं02 सफहा 33*

┇𖠁 ➧  रिवायत है कि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने एक शख़्स को रोखा उससे पूछा तुम क्या करते हो उसने कहा इबादत में लगा रहता हूँ फ़रमाया फिर तुम्हारी परवरिश कौन करता है उसने कहा मेरा भाई। फ़रमाया तुम्हारा भाई तुमसे ज़्यादा इबादतगुजार है!..✍🏻

*📔 हयाउलउलूम जिल्द नं0 2 सफ़हा 64*

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         ❝ काम धंधे सब अच्छे !? ❞
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┇𖠁 ➧  आदमी हराम व नाजाइज़ कामों और धंधों से बचता रहे इसके अलावा जो भी काम धन्धे और पेशे है सब अच्छे हैं जो कर सके करे किसी जाइज़ काम धन्धे को हक़ीर व ज़लील समझना चाहिये और न किसी के समझने की परवाह करनी चाहिये बहुत से लोग कोई ऐसा वैसा काम मेहनत मज़दूरी करते हुये शर्माते है यह उनकी भूल है उनको यह ख़्याल करना चाहिये कि वह कोई ग़लत व नाजाइज़ काम तो नहीं कर रहे है, बस इतना ही काफ़ी है शर्माये वह जो ग़लत काम करें भीख़ मांगे तेरे मेरे सामने हाथ फैलाये चोरी डकैती बेईमानी करे या रिश्वत ले, रसूल ए खुदाﷺ फरमाते है!...✍

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     ❝काम धंधे सब अच्छे !? ❞
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┇𖠁 ➧  तुममे से कोई शख़्स एक रस्सी ले और लकड़ियों का एक गठ्ठर बाँधकर उसको अपनी पीठ पर लाद्कर लाये और बेचे और इसके ज़रिये अल्लाह तआला उसकी आबरू(इज्ज़त) की हिफाज़त फरमाये यह बेहतर है इससे कि वह लोगों के सामने हाथ फ़ैलाये और वह इसको दें या मना करें।
         
*📔 सही बुख़ारी ज़िल्द नं.1*

┇𖠁 ➧  और लोगों को चाहिये कि जो आदमी कोई ग़लत काम न करे भीख न मांगे मेहनत मज़दूरी करता हो भले से ग़रीब हो किसी भी क़िस्म का जाइज़ धन्धा करता हो उसको गिरी नज़रों से न देखें उसकी इज़्ज़त करें और जो हराम तरीके से कमाता है ख़्वाह मालदार हो हरगिज़ उसकी इज़्ज़त न करें!...✍

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     ❝ लोगों को नफ़ा नहीं तो नुक़सान भी न पहुँचाये!?❞
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┇𖠁 ➧  इस्लाम में हर क़िस्म के लोगों का ठिकाना है और रहमते आलम की रहमत सबके लिये आम है और दीनदार बनना कितना आसान है कि अगर आपसे लोगों को नफ़ा और फ़ायदा नहीं पहुँचता और आपमें इतनी सलाहियत और क़ाबलियत और ताक़त व हिम्मत व दौलत नहीं है कि आप लोगों के काम आ सकें उनका काम चला सकें उनकी मदद कर सकें उनकी मुसीबत व परेशानी दूर कर सकें तो इस्लाम में तब भी आपके लिये जगह है और दामने मुस्तफाﷺ में अब भी आपके लिये ठिकाना है और वह यह कि आप दूसरों को नुकसान पहुचाने परेशान करने दुख देने और उनको सताने से बचते रहें तो यह भी नेकी और दीनदारी है और अल्लाह व रसूलﷺ ऐसे लोगों से भी राज़ी हो जाते हैं क्योंकि वह परवरदिगार बहुत रहम फरमाने वाला है!...✍

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     ❝ लोगों को नफ़ा नहीं तो नुक़सान भी न पहुँचाये!?❞
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┇𖠁 ➧  *हदीस शरीफ में है।* हज़रत अबू ज़र गफ़ारी रदिअल्लाह अन्हु ने रसूले पाकﷺ से माअलूम किया ऐ अल्लाह के रसूलﷺ कौन सा अमल ज़्यादा फज़ीलत वाला है फरमाया अल्लाह तआला पर ईमान रखना और उसकी राह में जिहाद करना फ़िर पूछा कि कौन सा ग़ुलाम आज़ाद करना ज़्यादा सवाब है फरमाया जो क़ीमत में ज़्यादा हो और अपने मालिकों को ज़्यादा पसन्द हो उन्होने कहा अगर यह जेहाद और ग़ुलाम आज़ाद करना मेरे बस का न हो तब फरमाया किसी काम करने वाले की मदद करो या किसी फुहड़ आदमी का काम कर दो अर्ज़ किया यह भी मुझसे न हो सके तब फरमाया तुम लोगों को नुकसान व तक़लीफ़ पहुँचाने से बचो यह भी सदका है जो तुम अपने लिये कर रहे हो।

┇𖠁 ➧  *यानि तुम्हारी ज़बान हाथ पाँव वगैरह से दूसरों को तकलीफ़ न पहुँचे।..✍*

*📔 सही बुख़ारी जिल्द अव्वल सफ़हा 342*

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 ❝लोगों को नफ़ा नहीं तो नुक़सान भी न पहुँचाये!? ❞
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┇𖠁 ➧  ख़्याल रहे को दूसरों को तक़लीफ देने से वह ही बच सकता है जिसके अरमान थोड़े ख़्वाहिशात कम और हसरतें न होने के बराबर हों हद से ज़्यादा आराम तलब ऐश परस्त शौक़ीन और खर्चीले ख़्वाहिशात में जकड़े हुये बेजा हसरतें और अरमान रखने वाले दूसरों की नुकसान रसानी और उन पर ज़ुल्म व ज़्यादती करने से नहीं बच सकते जब दुनियावी शौक़ बढ़ जाते हैं तो उनकी तकमील (पूर्ति) के लियें दूसरों के गले घोंटे जाते हैं और जब ख़र्चे बढ जाते हैं उनकी पूर्ति के लिये जेबें काटी जाती हैं तेरे मेरे हक़ दबाये जाते हैं।..✍

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     ❝गुनाह  से  बचना  पहली  नेकी!? ❞
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┇𖠁 ➧  सबसे बड़ी और पहली नेकी ख़ुद को ग़लत कामों और हराम कमाईयों से बचाना हैं शर (बुराई) से बचना बड़ी ख़ैर (भलाई) है और हराम खोरी व बेईमानी से बचना बड़ी ख़ैरात है आज कितने लोग हैं जो डींगे मारते हैं अपनी तारीफें करते हैं अपने कारनामे सुनाते हैं हमने यह मस्जिद बनवाई हमने वह मदरसा खुलवाया हमने इतना चन्दा दिया हमने उसका वह काम चलाया वगैरह वगैरह ठीक है ख़ुदा मुबारक फरमाये और ज़्यादा तौफीक़ दे लेकिन मेरे अज़ीज़ ज़रा ख़ुद ही यह भी देख लें और नज़र डाल लें कि तूने यह सब किया कहाँ से और कहाँ से तू लाया और किस किस का हक़ मारा और किस किस की मज़दूरी रोकी और किस किस का कर्ज़ा लेकर न दिया और किसका गला घोंटा और किससे सूद लिया और किस किस की जायदाद हड़पी और किसकी पूँजी छीनी कान खोलकर सुन हदीस पाक में है अल्लाह तआला के महबूबﷺ फरमाते हैं अल्लाह तआला पाक है और पाक ही को क़ुबूल फरमाता है।..✍

*📒 मिशक़ात बाबुल कसब सफ़हा 241*

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     ❝गुनाह  से  बचना  पहली  नेकी!?  ❞
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┇𖠁 ➧  कुछ लोग दीन के कुछ काम करने के लिये खिलाफ़े शरअ और हराम कामों का इरतिकाब करते हैं और फिर कहते हैं कि अगर हम ऐसा नहीं करते तो इतना बड़ा काम कैसे होता तो ख़्याल रहे यह ख़ुद को बिगाड़ने वाले दूसरों को सुधार नहीं पायेंगे और हराम से हलाल और शर से ख़ैर बुराई से भलाई हासिल नहीं होती दूसरों की फ़िक्र बाद को पहले ख़ुद को संभालो ग़लत राहों पर चलने वाले मंज़िल तक नहीं पहुंच पाते जहन्नुम का रास्ता जन्नत को नहीं पहुंचाता ख़ुद गिरे हुये दूसरों को उठा नहीं पायेंगे हदीस में है रसूले ख़ुदाﷺ फरमाते हैं थोड़ा सा भी गुनाह से बचना इन्सानों और जिन्नों की हर इबादत से बढकर है।

 *📔 फताबा रज़विया जिल्द नं0 23 सफ़हा 618 बा हवाला अलशबाह वलनज़ाइर*

┇𖠁 ➧  *आला हजरत अलैहिर्ररहमा फरमाते हैं!* जिन कामों से मना किया गया है उनसे बाज रहना ज़्यादा ज़रूरी है उन पर अमल करने से जिनका हुक्म दिया गया है!

*📕 फ़तावा रज़विया जिल्द नं0 23 सहा 618 मतबूआ बरक़ाते रज़ा पोरबन्दर*

┇𖠁 ➧  यानी ज़कात व ख़ैरात व सदका देना जितना ज़रूरी है उससे ज़्यादा ज़रूरी हराम कमाई से बचना है।...✍🏻

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🅿🄾🅂🅃 ➪  102

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     ❝सिर्फ़ ऊपर नहीं नीचे भी देखें!? ❞
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┇𖠁 ➧   अगर आप दीनदार और खुदाये तआला का दीनदार बन्दा बनकर रहना चाहते हैं तो आपके लिये ज़रूरी है कि अगर आपकी नज़र अपने से ज़्यादा मालदार और ठांट बाट वाले लोगों पर पड़ रही है तो अपने से नीचे और कम मेअयार (स्तर) वालों को देखते रहें और कुदरत ने इन्सानी मुआशराह (समाज) कुछ इस क़िस्म का बनाया है कि कोई कितना भी परेशान हो लेकिन वह दुनिया में नज़र डालेगा तो उसे अपने से ज़्यादा परेशान मुसीबत ज़दा लोग मिल जायेंगे और यह इसीलिये है ताकि हर इन्सान ख़ुदा का शुक्र अदा करे और कहे कि या अल्लाह तआला तेरा शुक्र है तूने अपनी मख़लूक़ में मुझको बहुत सारे लोगों से बेहतर और अफ़ज़ल बनाया है।

┇𖠁 ➧   हदीसे पाक में है रसूले ख़ुदा ﷺ फरमाते है जब तुममे से कोई अपने से ज़्यादा मालदार और हुस्न व जमाल वाले को देखे तो उसको चाहिये कि वह उसको भी देखे कि जो उससे नीचे है कम माल और कम हुस्न व जमाल वाला है।...✍🏻

📙 सही बुख़ारी ज़िल्द नं02 कितार्बरक़ाक़ सफ़हा 960

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🅿🄾🅂🅃 ➪  103

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     ❝ सिर्फ़ ऊपर नहीं नीचे भी देखें!?❞
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┇𖠁 ➧   खुलासा यह कि आप किसी सादा से पक्के मकान में रहते हैं तो उन लोगों को देखा करें जो किसी झोपड़ी या कच्चे मकान में रहते हैं या जिनके पास अपने मकान ही नहीं हैं अगर आपके जिस्म में एक मर्ज़ है तो उन लोगों को देखें कि जिनके जिस्म में कई कई बीमारियां हैं अगर आप सौ रूपये रोज़ कमाने वाले हैं तो उनको ज़रूर देख लिया करें जो पचास साठ रूपये की ही रोज़ाना आमदनी कर पाते हैं या वह कमाने के बिल्कुल लायक़ ही नहीं और बाल बच्चों का साथ है ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो सख़्त मरीज़ किसी ख़तरनाक बीमारी में फंसे हुये हैं।

┇𖠁 ➧   और इलाज दवा के लिये पैसे भी नहीं भाईयो जब तुम रात को बिस्तर पर सोने के लिये लेटा करो तो आंखे बन्द करके ज़रा देर के लिये दुनिया के हालात पर नज़र डाला करो कि जिस वक़्त तुम आराम के बिस्तर पर हो ठीक उसी वक़्त दुनिया में कहां-कहां कितने लोग किस किस तरह मुसीबतों और परेशानियों में होंगे कितने सड़कों पर चोटें खाये होंगे कितने अस्पतालों जेलों और थानों में कैसी कैसी मुसीबतों में होंगे भाईयो हर हाल में ख़ुदा तआला का शुक्र करो और शुक्र करने का सबसे उम्दा और बेहतरीन तरीक़ा पांचों वक़्त की नमाज़ की पाबन्दी है और इसके अलावा भी जहां तक मुमकिन हो हर वक़्त ज़बान से अल्लाह तआला का शुक्र अदा करने की आदत बना लीजिये।...✍🏻

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🅿🄾🅂🅃 ➪  104

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     ❝जहां तक मुमकिन हो कर्ज़ न लें!? ❞
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┇𖠁 ➧   अगर आप दीनदार इज़्ज़तदार आदमी बनकर रहना चाहते हैं तो कर्ज़ लेने और उधार का खाने की आदत न बनाईये जहां तक मुमकिन हो परेशानी उठाईये नफ़्स को काबू में रखिये अपने ऊपर और अपने घर वालों पर कंट्रोल रखिये शौक हसरतें और अरमान एकदम ख़त्म या कम कर दीजिये किसी के कहने सुनने में मत जाईये और कर्ज़ हरगिज़ मत लीजिये और जो लोग दूसरों के कहने और सुनने में आकर शौक पूरे करने के लिये कर्ज़े लेते हैं वह दुनिया के सबसे बड़े बेवक़ूफ और अहमक़ लोग हैं और जो लोग मामूली परेशानियों पर या सिर्फ़ शौक पूरे करने और फालतू खर्चों के लिये कर्ज़े ले लेते हैं उधार खाने पीने और पहनने के आदि हो गये यह कभी इज़्ज़तदार और सच्चे पक्के मुसलमान बनकर नहीं रह सकते अगर कभी कर्ज़ लिया भी जाये तो लेते वक़्त ही यह इरादा करना चाहिये ख्वाह घर जमीन बेचकर अदा करूं इसका कर्ज़ ज़रूर हर हाल में अदा करूंगा और जो लोग ऐसी नियत करते हैं अल्लाह तआला अपने करम से उनकी मदद फरमाता है और उनके कर्ज़े अदा हो जाते हैं।...✍🏻

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🅿🄾🅂🅃 ➪  105

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     ❝ जहां तक मुमकिन हो कर्ज़ न लें!?❞
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┇𖠁 ➧   और जिनकी नियत लेते वक़्त ही ख़राब हो या बाद में ख़राब हो जाती है यह लोग कर्ज़ा ही में मरते हैं और ज़िन्दगी भर ज़लील व ख़्वार रहते हैं भाईयो जिन यार दोस्तों और बीवी बच्चों की बेजा खुशियां पूरी करने के लिये तेरे मेरे सामने हाथ फैलाते हो ख़यानत और बेईमानियां करते हों बेइज़्ज़त होते हो ज़िल्लत उठाते हो एक दिन आयेगा और तुम्हे दुनिया ही में उनकी बेमुरव्वती और बेवफ़ाई का एहसास करा दिया जायेगा और तुम्हे मालूम हो जायेगा कि जिसके लियें तुमने यह सब किया वह तुम्हारे नहीं हैं।

┇𖠁 ➧  हदीस पाक में है रसूले ख़ुदा ﷺ ने फ़रमाया जिसने किसी से कर्ज़ लिया और वह अदा करने का इरादा रखता है तो अल्लाह तआला उसकी तरफ़ से कर्ज़ अदा फ़रमा देता है और जिसने न देने का इरादा कर लिया तो खुदाये पाक उसकी मदद नहीं फरमाता एक मर्तबा एक साहब इस हाल में दुनिया से चले गये कि उन पर कर्ज़ था और अदायगी के लिये कुछ छोड़ा भी न था तो हुज़ूर ﷺ ने उनके जनाज़े की नमाज़ ख़ुद नहीं पढ़ाई बल्कि दूसरों से पढवा दी एक बार हुज़ूर ﷺ ने फरमाया अल्लाह तआला शहीद के सारे गुनाह माफ कर देता है सिवाये उस कर्ज़ के जो उसने अदा नहीं किया यह सारी हदीसें हमने मिशक़त शरीफ़ सफ़हा 252 से नकल की हैं।...✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 76 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  106

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     ❝क्या दीन मख़्सूस लोगों के लिए हैं!?↲ ❞
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┇𖠁 ➧  मुसलमानों में काफी लोग़ यह ख़्याल रखते हैं कि दीन सिर्फ़ मौलवियों पीरों फ़कीरों के लिये है हमारे लिये दीन पर चलना कोई ज़रूरी नहीं हमारे लिये तो बस इतना काफ़ी है कि मौलवियों और पीरों की ख़िदमत कर लें और बुजुर्गों की नज़र व न्याज़ करते रहें और उनका नाम लेते रहें ऐसे लोग सख़्त ग़लत फहमी का शिकार हैं और उन पर शैतान का दाव चल गया और उसने उन्हे गुमराह कर दिया भाईयो अल्लाह तआला ने इन्सानों की रहनुमाई के लिये इंसानो ही को रसूल व पैगम्बर इस लिये बनाकर भेजा कि लोग उनके तौर तरीके सूरत और सीरत चाल चलन को अपनायें वरना फ़रिशते भी रसूल बनाकर भेजे जा सकते थे और किसी के लिये यह कहने का मौक़ा नहीं रहा कि दीन पर चलना हमारे बस की बात कहां वह तो फ़रिशते थे वह तो नफ़स और उसकी ख़्वाहिशात से पाक थे उनके साथ खाने पीने सोने और जागने पहनने ओढ़ने की ज़रूरतें नहीं थीं।...✍🏻

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🅿🄾🅂🅃 ➪  107

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     ❝ क्या दीन मख़्सूस लोगों के लिए हैं!?↲❞
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┇𖠁 ➧  उन्हे दुःख दर्द गर्मी सर्दी मर्ज़ व बीमारी का एहसास और उन चीज़ो से ताल्लुक़ नहीं था ईसाईयों और कुछ दूसरे ग़ैर मुस्लिमों में यह बात रही है कि उन्होने कुछ मख़सूस लोगों के लिये मज़हब ज़रूरी ख़्याल करके उनकी पूजा पाठ ताज़ीम व इबादत में लग गये और ख़ुद को दीन धर्म की पाबन्दियों से बिल्कुल आज़ाद समझ बैठे मज़हबे इस्लाम ने इस जहनियत का ख़ात्मा फरमाया और मज़हब को हर शख़्स के लिये ज़रूरी करार दिया गया और बताया गया कि बुजुर्गों का नाम लेना उनका ज़िक्र करना उनकी यादगारें मनाना उनकी ताज़ीम व तकरीम करना काफ़ी नहीं बल्कि उनके जैसे काम करना और उनके चाल चलन को अपनाना भी निहायत ज़रूरी है और असली मुहब्बत और सच्ची अक़ीदत इताअत व फरमाबरदारी है उनका कहना मानना ही वफ़ादारी है कुरआन व हदीस में जहां जहां अक़ीदत व मुहब्बत की बात आई है उसकी तशरी मआना और तफ़सीर बयान फरमाने वाले इस्लामी बुजुर्गों ने उसका हक़ीक़ी मफ़हूम व मतलब फरमाबरदारी ही लिखा है यानि कहना मानना ही मुहब्बत है।...✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 77 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  108

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     ❝ दीन दारी के नाम पर एक धोका !?↲❞
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┇𖠁 ➧  आजकल मुसलमानों मे बुजुर्गों की यादगार और उनके नाम पर कुछ ऐसे खिलाफ़े शरअ काम रिवाज पा गये हैं कि अगर कोई थोड़ा सा भी इस्लामी ज़हन रखने वाला ज़िद और हटधर्मी छोड़कर और खाली ज़हन होकर उनके बारे में सोचे तो उसका दिल व दिमाग़ इस बात की गवाही देगा कि यह बातें इस्लाम जैसे अच्छे भले सीधे सच्चे मज़हब में जाईज़ हो ही नहीं सकती मिसाल के तौर पर आज की कव्वाली और ताज़ियेदारी यह पूरे तमाशे बल्कि बाज़ बाज़ जगह तो गुन्डागर्दी बन चुकी है ग़रीब मुसलमानों से ज़बरदस्ती चन्दे करके ढोल धमाकों,बाजों ताशों कूद फांद में लाखो रूपया उर्सों और बुजुर्गों के नाम का सहारा लेकर उड़ा देना एक आम बात हो गई है इन ताज़ियेदारों और कव्वाली और नाच रंग की महफ़िलों को सजाने वालों में कोई समझाये बुझाये से मान भी जाये तो फिर वह कहता है हम जलसा या मुशायरा करेंगे हमे फलां फलां मुकर्रिर या शायर बुलाकर दीजिये तो यह भी एक कम समझी है इसकी वजह यह है कि उन लोगों ने नमाज़ रोज़े ज़िक्र शुक्र और कुरआन की तिलावत में ध्यान नही लगाया उनका ज़हन भीड़ भाड़ पसन्द और तमाशाई रहा।...✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 78 📚*

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     ❝ दीन दारी के नाम पर एक धोका !?↲❞
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┇𖠁 ➧  सही बात यह है कि आजकल के अक़्सर जलसे और मुशायरे भी तमाशा होते जा रहे हैं और अक़्सर जलसे वह है कि जिनमें तफरी दिललगी और मजेदारी के अलावा कुछ भी नही है दीन की बात भी कही जाती है तो हंसी और दिल लगी में एक तरह से पब्लिक को धोका दिया जा रहा है और उन्हें दीन के नाम पर जमा करके दुनिया दी जा रही है और ज़्यादातर जलसों और मुशायरों की हैसियत अहले इल्म की नज़र में खेल तमाशों से ज़्यादा नहीं रह गई है और काफ़ी मुकर्ररों की तक़रीरें और शायरों की शायरी धीरे धीरे डिरामा और नक़्क़ाली का रंग इख़्तियार करती जा रही है जिन्हे देख कर और सुनकर ख़ुदा व रसूलﷺ और बुजुर्गो की नही बल्कि मसख़रों और नक़्क़ालों की याद आती है और ज़ाहिर है कि जिनकी ज़िन्दगी का मक़सद कौम से पैसा खींचना और लम्बी लम्बी रकमें समेटना हो वह नक़्क़ाली और डिरामा नही करेंगे तो और क्या करेंगे। भाईयो तनहाई पसन्द नमाज़ रोज़े तिलावत ज़िक्र व शुक्र फ़िक्र वाले बनो और महफ़िल ही करना है तो खुलूस के साथ दीन सीखने और सिखाने नमाज़ याद करने और कराने कुरआन पढने और पढ़ाने की मजलिसें करो और यह काम मुकामी उलमा मसाजिद के बा सलाहियत इमाम और मदारिस के उस्तादों से बखूबी लिया जा सकता है और जलसे कराना है तो मुखलिस और बा अमल मुकर्ररों से तक़रीरें कराओ ऐसे मुकर्रिर न मिलें तो जलसे कराना फर्ज़ भी नही है दीन बाक़ी रखना है तो मस्जिदों में नमाज़ पढाने वाले और दीन सिखाने वालों की खूब क़द्र करो मुकर्रिरों शायरों और पीरों से कहीं ज़्यादा।...✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 78 📚*

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     ❝दीन दारी के नाम पर एक धोका !?↲ ❞
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┇𖠁 ➧  ऐ लोगो तुम्हे क्या हुआ कि दस मिनट की नमाज़ तुम पर भारी पड़ती है कुरआन के एक पारे की तिलावत तुम्हे मुसीबत मअलूम होती है और जलसों और मुशायरों में तुम रात रात भर बैठे रहते हो शैतान इंसान को सही रास्ते पर न चलने देने की भरपूर कोशिश करता है अगर इंसान एक ख़राबी और बुराई से बचता है तो दूसरी में उसे लाने की कोशिश करता है एक जाल से निकलता तो दूसरी जानिब जाल लगा देता है सही बात यह है कि कव्वाली और ताज़ियेदारी से बचकर आजकल के पेशावर मुकर्रिरों और शायरों की तरफ़ भागना ऐसा ही है जैसे एक जाल में से निकलकर दूसरे में फंसना-हदीसे पाक में है।

┇𖠁 ➧ रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अलेह वसल्लम मेअराज की रात उन लोगों के पास से गुज़रे जिनके होंट आग की कैंचियों से काटे जा रहे थे पूछा यह कौन लोग हैं हज़रत जिबराईल अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ की ऐ अल्लाह के रसूलﷺ यह आपकी उम्मत के वह मुकर्रेरीन व वाअिज़ीन हैं जो अपने कहे हुए पर ख़ुद अमल नहीं करते थे।..✍

*📒 मिशकात बाबुल बयान वल शेर फसल 2*


*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 79 📚*

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     ❝ दीन दारी के नाम पर एक धोका !?↲❞
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┇𖠁 ➧  इस हदीस की शरह करते हुए हज़रत मौलाना मुफ़्ती अहमद यार खाँ नईमी अलैहिर्ररहमा फ़रमाते हैं फी ज़माना वाज़ेईन अमल का वाज़ ही नहीं करते शेर ख्वांनी खुश इल्हानी क़िस्से कहानी में सारा वक़्त पूरा करते हैं आम जलसे गोया हलाल सिनेमा है कि सुन्ने वाले भी तमाशाई ज़हनी अय्याश होते हैं!

*📒 मरातुलमनाजी जिल्द नं06 सफ़हा 439*

┇𖠁 ➧ मुफ़्ती अहमद यार खाँ सहाब नईमी रहमतुल्ला तआला अलैह को भी यह बात लिखे चालीस पचास साल तो हो ही गये होंगे उन्होने आज का ज़माना और आज के जलसे देखे होते पता नही वह क्या लिखते।...✍

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 80 📚*

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     ❝मौलवियों की मज़बूरी ❞
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┇𖠁 ➧  आज के दौर में बढ़ते हुए जलसे और मुशायरे अब मौलवियों आलिमों पढ़े लिखे संजीदा लोगों के लिये गले की हड्डी और वबाले जान बनते जा रहे हैं पहले जलसों से वाज़ व नसीहत समझाने बुझाने का काम ख़त्म हुआ फिर इन में शेअर व शायरी दाख़िल हुई और अब निरे मुशायरे हो गये और शेअर व शायरी में भी फ़नकारी और इस की क़दरदानी को दौर भी ख़त्म हुआ ख़ुश इल्हानी अच्छी आवाज़ और खींच तान ही सब कुछ होकर रह गई आगे आगे देखिये होता है क्या।

┇𖠁 ➧  आवाम को इबादत व रियाज़त नमाज़ रोज़े ज़िक्र व तिलावत के फज़ाइल कम बताये गये जलसों मुशायरों के फज़ाइल ज़्यादा बता दिये गये उनके ज़ौक़ को बिगाड़ दिया गया उनकी आदतें ख़राब कर दी गई और नौबत यहां तक पहुंची कि बाज़ जगह मौलवियों इमामों और दरस देने वालों के लिये पब्लिक को खुश करने के लिये जलसे करना ज़रूरी हो गया वरना इमामत व नौकरी हर वक़्त ख़तरे में है नतीजा यह है कि अच्छे खासे भले पढ़े लिखे लोगों को डिरामाई क़िस्म के पेशावर मुकर्रिरों और शायरों की ख़ुशामद करना पढ़ रही है दिन दहाड़े नमाज़ छोड़ने वाले फिसक़ व फ़जूर मे मुबतला लोगों के नख़रे उठाने पड़ रहे हैं।...✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 81 📚*

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     ❝मौलवियों की मज़बूरी ❞
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┇𖠁 ➧   मैंने एक जगह एक मदरसे के शेखुलहदीस साहिब क़िबला को एक खुशइल्हान फ़ासिक़ बे नमाज़ी शायर के इस्तिक़बाल के लिये बस स्टैण्ड पर घण्टों खड़े देखा है नोबत यहां तक पहुंची कि कुछ जगह का हाल यह है कि इमाम साहब ख़्वाह नमाज़ पढ़ायें या न पढायें मस्जिद अज़ान व नमाज़ से आबाद रहे या वीरान वह उम्दा क़िस्म के मुकर्ररों और शायरों को बुलायें जलसा करायें तो उनसे अच्छा कोई इमाम नहीं गांव के बच्चे कुरआन व नमाज़ सीखें या न सीखें उन सब बातों से किसी को कोई मतलब व सरोकार नहीं।

┇𖠁 ➧  इमामों और मौलवियों बेचारों की एक परेशानी यह है कि ख़िदमत व नज़राने में अगर कमी रह गई तो ख़तीब व शायर साहब नाराज़ और ज़्यादा दिलाने की कोशिश करते हैं गांव वाले और कमेटी नाराज़ कई जगह तो बुलाये गये मुकर्रिरों और शायरों ने धोका दिया तो दावत देने वाले इमाम साहब का भी हिसाब कर दिया गया।...✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 81 📚*

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     ❝ मौलवियों की मज़बूरी❞
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┇𖠁 ➧  जलसों और मुशायरों की ज़्यादती के नतीजे में आज हाल यह है कि दीनी मदारिस के तलबा का ध्यान तफ़सीर व हदीस फ़िक़ह व उसूल व फ़न की किताबों की तरफ़ से कम होता जा रहा है और उनकी सलाहियतें ख़त्म होती जा रही हैं बस वह उर्दू की किताबों से तक़रीरे रट रहे हैं शायरों के कलाम सुनकर उन्हे डायरी में नोट कर रहे हैं कोई साहब इलाउनसर बनने की ट्रेनिंग कर रहे हैं इल्म हासिल करके जिन हाथों में तसबीह व कुरआन आता था उनकी जगह प्रोग्रामों की डायरी लैटर पैड एडरस कार्ड और मोबाईल फोन ने ले ली है।

┇𖠁 ➧  यह इस लिये हुआ कि मुकर्रिरों और शायरों को ज़्यादा नावाज़ा गया उन पर खूब नोटों की बरसात हुई और मुदर्रिंसीन व इमामों बेचारों को माअमूली तनख़्वाह भी नहीं मिल पाती है रोज़ी रोटी की परेशानी है और आज कल के मौलवी भी पहले जैसे नहीं ज़माने की रफ्तार कुछ और है और नोटों का काम कागज़ से नहीं चलता।...✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 81 📚*

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     ❝ बे अदबी से बचों❞
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┇𖠁 ➧  दीनदार मुसलमान बनने के लिये बेअदबी से बचना बहुत ज़्यादा बल्कि सबसे ज़्यादा ज़रूरी है कुरआने करीम में है।

┇𖠁 ➧  जो अल्लाह की निशानियों की ताज़ीम करें तो यह दिलों की परहेज़गारी है (अल कुरआन) अल्लाह तआला की निशानियों से मुराद वह तमाम चीज़ें बातें और अशख़ास व अफ़राद हैं जो अल्लाह तआला से एक ख़ास क़िस्म की निसबत और तअल्लुक़ रखते हैं और उसको पसंद है अल्लाह तआला के नाम अल्लाह तआला के नबी व रसूल अल्लाह तआला की किताब अल्लाह तआला के वली अल्लाह तआला का घर यानि खाना-ए-काबा और मस्जिदें उलमाऐ दीन माँ बाप इन सबका अदब ताज़ीम लिहाज़ पास और ख़्याल जितना आप ज़्यादा रखेंगे आप उतने ही ज़्यादा दीन वाले हैं बल्कि अल्लाह तआला पर ईमान रखने वाले हर मोमिन मुसलमान भाई का ख़्याल रखना उसकी बे अदबी दिलअज़ारी (दिल दुखाना) से बचना ज़रूरी है किसी मुसलमान के लिये बे हूदागोई और बदतमीज़ी मुसलमान का काम नही है।...✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 83 📚*

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     ❝ बे अदबी से बचों❞
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┇𖠁 ➧  कुरआने करीम इस्लामी किताबें या किसी भी कागज़ वगैरह पर अल्लाह तआला या उसके महबूब व पसंदीदा चीज़े बाते या 'अफ़राद के नाम लिखे हों उन सब का अदब बेहद ज़रूरी है उसका इधर उधर पड़ा रहना बे अदबी की जगह डाले रखना सख़्त क़िस्म की महरूमी और बड़ी भूल है घरों मे पीपे कंटर मटके वगैरह कोई बरतन या बोरे इसके लिये महफूज़ कर दिये जायें और कुरआने करीम या दीगर दीनी किताबों के बोसीदा पुराने औराक़ (पेज) उनमे जमा करते रहें और फिर उन्हे इकट्ठा करके किसी ऐसी जगह पर दफ़न कर दें जहां बेअदबी न हो या किसी बड़े दरिया में बहा दें।

┇𖠁 ➧  मस्जिदों में ज़ोर ज़ोर से चीखना झगड़े फ़साद करना दौड़ना भगना धम धम करके चलना उन्हे रास्ता बनाना गन्दी चीज़े लेकर उनमें जाना नापाक हालत में उनमें दाखिल होना सब बे अदबी है खाना-ए-काबा की तरफ़ मुंह या पीठ करके पाखाना पेशाब करना और उसकी तरफ़ पैर फैला कर बैठना सोना बे अदबी में दाखिल है बल्कि खाना-ए-काबा की तरफ़ मुंह करके थूकने से भी बचिये यह भी अदब में कमी है माँ बाप और उल्माये दीन का मामला बहुत नाज़ुक है बड़ी एहतियात की ज़रूरत है उन्हे तकलीफ़ पहुंचाना डाटना डपटना उनकी मुखालफत व बुराई करना दुनिया व आख़रत की बर्बादी है और सबसे ज़्यादा नाज़ुक मामला अल्लाह तआला के महबूब बन्दों का है।...✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 84 📚*

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     ❝ बे अदबी से बचों ❞
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┇𖠁 ➧  हज़रात अम्बिया औलिया उनकी शान में ऐसे जुमले और कलमे भी नहीं बोलना चाहिये कि जिनमें बे अदबी व गुस्ताख़ी का शक व शुबाह भी हो ख़ासकर सय्यदुल अम्बिया हज़रत मुहम्मद मुस्तफा ﷺ की शान में तो छोटी से छोटी बे अदबी और हल्की से हल्की गुस्ताख़ी भी जहन्नुम का सीधा रास्ता है और अल्लाह तआला को इतनी ना गवार न पसंद है कि उनके पास बैठने वालों को उसने हुक्म दिया था कि बातचीत में ध्यान रखें उनकी आवाज़ से तुम्हारी आवाज़ कहीं बुलन्द न हो जाये वरना सब आमाल ख़त्म कर दिये जायेंगे और सारी नेकियां मिटा दी जायेंगी यानि उनके लिये जो ये अदब है उसकी कोई नेकी नेक शुरू की आयात में यह मजमून देखा जा सकता है।

┇𖠁 ➧  भाईयो बे अदबी सबसे बड़ी और पहली गुमराही है कायनात का पहला काफ़िर मुनकिर और बे दीन गुमराह शैतान इबलीस है जिसका कुफ्र बराहे रास्त अल्लाह तआला को न मानना नही था बल्कि एक अल्लाह तआला के नबी हज़रत आदम अला नबीयना व अलैहअस्सलात वस्सलाम की ताज़ीम से इन्कार करना था हम अपने लिये और तमाम मुसलमान भाईयों के लिये दुआ करते हैं कि खुदाए तआला सबको बा अदब बनाये बे अदबी से बचाये क्योंकि वे अदबी इस्लाम में बदतरीन क़िस्म का ख़तरनाक जुर्म है और अल्लाह तआला की जात तो गनी है सबसे बे परवाह सबको उसकी ज़रूरत है वह हर ज़रूरत से पाक है हर ऐब और कमी से पाक है सब उसके मोहताज हैं वह किसी का किसी बात में मोहताज नही है।...✍🏻

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     ❝ ख़ामोश रहने की आदत डालिये ❞
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┇𖠁 ➧  यह अगरचिह एक मुश्किल काम है जिसके लिये हिम्मत की ज़रूरत है लेकिन इसमें बड़े फ़ायदे हैं और ख़ामोश रहने और बगैर ख़ास ज़रूरत न बोलने की आदत जिसकी हो वह हज़ारों दीनी और दुनियावी आफतों से महफूज़ रहता है एक हदीस में तो हुज़ूर ﷺ ने ज़बान पर कंट्रोल करने को आधा ईमान फरमाया है मगर अफ़सोस लोग आज इसका ध्यान नहीं रखते।

*Note:* ⚠ हज़रत सैय्यदना सरकार अब्दुर्रज़्ज़ाक वास्ती रज़्ज़ाकी रहमतुल्लाह अपने मुरीद सरकार मसौली अलहिर्रहमा से फरमाते है, रोज़ रोज़ मिलने से मुहब्बत कम हुआ करती है, हमारे बुजुर्गों के अशलाफ भी कितने निराले और हक़ होते है जिनका अंदाज़ा लगाना मुश्किल होता है, फक़त कहने का मतलब इतना ज़रूरत से ज़्यादा बोलना और मिलना मुहब्बत को कम कर देता है अल्लाह तआला हमे अमल की तौफीक़ अता फरमाए।...✍🏻 आमीन

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     ❝ ख़ामोश रहने की तरकीब ❞
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┇𖠁 ➧  आम तौर से मैंने देखा है कि ज़्यादा बोलने वाले अपने पास बैठने वालों को ख़ुश करने ख़ुश रखने उन्हे हंसाने और तफ़रीह दिलाने और मजलिस गर्म रखने के लिये फालतू ग़ैर ज़रूरी इधर उधर की बातें करते हैं और समझते हैं कि इससे हम सबसे उंचे साहिबे मक़ाम व मर्तबा और इज़्ज़तदार हो जायेंगे हालांकि इज्ज़त जिसको अल्लाह तआला चहाता है अता फरमाता है ज़्यादा बोलने फालतू बाते करने लोगों को हंसाने और त़फरीह दिलाने वाला तो लोगों की नज़र में गिर जाता है बे वक़्अत बे वज़न हल्का और ग़ैर ज़िम्मेदार आदमी हो जाता है और उसकी हैसियत एक खिलौने से ज़्यादा नहीं रहती खेले और एक तरफ़ को डाल दिया तो जिनको ख़ुश करने के लिये आप ज़्यादा बोले किसी की ग़ीबत और बुराई की फ़ालतू बातें की जब वह ही आपको नज़रों में गिरा लेते हैं तो उस बोलने से तो न बोलना अच्छा है ख़ूब समझो ग़ौर करो याद रखो और अमल करो और इस सिलसिले में सबसे उम्दा और बढिया अफ़ज़ल बात वह है जो मख़लूक में सबसे बड़े अज़मत व बड़ाई वाले अशरफुल अम्बिया मोहम्मद मुस्तफा ﷺ ने फरमाई आप फरमाते हैं।

┇𖠁 ➧  जो अल्लाह व रसूल ﷺ पर ईमान रखता हो जब भी बोले अच्छी बात बोले या फिर ख़ामोश रहे।..✍🏻

📙 सही मुस्लिम जिल्द नं01 किताबुल ईमान

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     ❝ ख़ामोश रहने की तरकीब❞
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┇𖠁 ➧   कुछ लोग खामोशी तोड़ने के लिये बे ज़रूरत बात करते हैं क्योंकि चन्द लोग इकट्ठे बैठे हों और ख़ामोश हों तो अच्छा नहीं मालूम होता तो भाईयो ख़ामोशी तोड़ने के लिये कोई अच्छी सच्ची और मुफ़ीद माअना ख़ेज़ बात कही जाये तो वह ख़ामोशी से यक़ीनन बेहतर है लेकिन फ़ालतू ग़ैर ज़रूरी के माअना झूठी बात करने से ख़ामोशी ही बेहतर है ख़्वाह कितने ही लोगों को कितनी ही देर ख़ामोश बैठना पड़े अल्लाह व रसूल ﷺ को नाराज़ करके ख़ामोशी तोड़ने वाले अक़लमन्द नहीं हैं इससे क्या फायदा कि महफिल तो ग़र्म हो गई लेकिन साथ ही साथ झूठ या ग़ीबत आपके नामा-ए-आमाल में लिख दी गई रसूले ख़ुदा ﷺ फरमाते हैं!

┇𖠁 ➧  ख़राबी है उसके लिये जो लोगों को हंसाने तफरीह दिलाने के लिये झूठी बातें गढ़ गढ़ कर सुनाता हो उसके लिये ख़राबी है और फरमाते हैं।...✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 86 📚*

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     ❝ख़ामोश रहने की तरकीब ❞
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┇𖠁 ➧  जो कोई ऐसी बात कहे कि जिसका मक़सद लोगों को हंसाने के अलावा और कुछ न हो तो वह ज़मीन व आसमान के फासले से भी ज़्यादा जहन्नम की गहराई में गिरता और ज़बान की ग़लतियां क़दम की ग़लतियों से भी ज़्यादा सख़्त हैं।
    
📙 मिशक़ात सफ़हा 413

┇𖠁 ➧  इस हदीस की शरह में उलमा ने फऱमाया कि यह उसके लिये है कि हंसाने और तफ़री दिलाने की जिसकी आदत या पेशा हो वरना कभी कभार ख़ुश तबअई की बात करना हराम व नाजाइज़ नहीं ख़ुलासा यह कि जो दीनदार रहना चाहे उसके लिये ख़ामोश और चुप रहने की आदत डालना भी ज़रूरी है और ख़ामोश रहने की आदत इन्सान को हज़ारों गुनाहों और बुराईयों से बचाती है।...✍🏻

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     ❝ हसद (जलन) से बचने की तरकीब ❞
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┇𖠁 ➧  हसद का मअना है किसी की शान व शौक़त इज़्ज़त व अज़मत माल व दौलत इल्म व फ़ज़ल को देखकर जलना और ज़वाल चाहना यह एक निहायत ख़तरनाक बीमारी है हसद करने वाला कभी भी दीनदार बनकर नहीं रह सकता और ख़ुद ही अपना नुक़्सान करता है बे वजह अपना ख़ून जलाता है ग़मगीन और परेशान रहता है।

┇𖠁 ➧   रसूले ख़ुदा ﷺ ने फरमाया हसद नेकियों को ऐसे खाता है जैसे आग लकड़ी को

📙 इहयाउलउलूम जिल्द नं0 3 सफ़हा 183

┇𖠁 ➧   जिस के दिल में यह बीमारी हो उसका इलाज यह है कि उसको जिससे हसद है अगर वह कोई मोमिन व भला आदमी है तो अल्लाह तआला से दुआ करे कि अल्लाह तआला उसको और तरक्की दे और ज़्यादा शान व शौक़त इल्म व फ़ज़ल अता फरमाये ऐसी दुआ मांगने से शैतान का जाल और उसका दाँव कट जायेगा और दिल को सुकून होगा और उम्मीद है कि अल्लाह तआला खुद उसको भी यह नेअमतें अता फरमायेगा।...✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 88 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  123

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     ❝ हसद (जलन) से बचने की तरकीब ❞
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┇𖠁 ➧  और अगर वह कोई निरा दुनियादार बदकार फ़ासिक़ व फाज़िर ज़ालिम व जफ़ाक़ार है तो उससे भी हसद करना और जलना अपना ही नुक़सान है और यह ख़्याल करना चाहिये कि यह फ़क़त दुनिया की तरक्की कोई नेअमत व फ़ज़ल नहीं है कि जिससे हसद किया जाये और जिसको एक दिन जाना है ख़त्म होना है उसकी क्या वैल्यू? और क्या क़ीमत? कितनों ने ऐश किये और ना वह ऐश रहे और न वह ऐश करने वाले।

┇𖠁 ➧   भाईयो उससे क्या जलना कि जिससे ख़ुदा नाराज़ है जिसे क़ब्र में पिटना है या जहन्नम में जलना है वह तो ख़ुद ही बड़े घाटे में हैं भाईयो गौर करोगे तो पता चलेगा कि इन्सान की हैसियत कीड़े मकोड़ों से ज़्यादा नहीं है और किसी बड़े से बड़े सरमायेदार का सामाने ज़िन्दगी मकड़ी के जाल से बड़कर नहीं है और घरों में सबसे कमज़ोर मकड़ी का घर है।...✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 89 📚*

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     ❝ ग़ज़ब और गुस्से से बचने की तरकीब!? ❞
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┇𖠁 ➧ ज़ल्दी ज़ल्दी गुस्से में आना बार बार गज़बनाक होना भी इंसान की एक बहुत बड़ी कमज़ोरी और कमी है और दीनदारी की राह का बड़ा कांटा गुस्से में समझदार आदमी भी बड़े बड़े ख़राब काम और गुनाह कर बैठता है बल्कि दुनियां में आधे से ज़्यादा ग़लत काम ज़ुल्म व ज़्यादती क़त्ल व ग़ारतगरी इज़ारसानी और हक़तलफ़ी औरतों को तलाक़ वगैरह गुस्से में होती हैं गुस्से को शैतान की सवारी कहा गया है जब इंसान गुस्से में होता है तो वह शैतान के हाथ का खिलौना बन जाता है वह इसे जिधर चाहता है चलाता है और इससे जो चाहाता है कहलवाता है और करवाता है।..✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 89 📚*

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     ❝ ग़ज़ब और गुस्से से बचने की तरकीब!? ❞
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┇𖠁 ➧ गुस्से से बचने के लिये आदमी को चाहिये कि हर वक़्त मौत व क़ब्र को याद रखे और कभी गुस्सा आ भी जाये तो उसको दूर करने उसके शर और नुक़सान से बचने के लिये अहादीस और बुजुर्गों की किताबों में जो तरकीबें लिखी गई हैं वह यह हैं। 
  
┇𖠁 ➧ *(1)* जब गुस्सा आये तो वुज़ु करले।
  
┇𖠁 ➧ *(2)* हदीसे पाक में है रसूले ख़ुदाﷺ ने फरमाया।

┇𖠁 ➧ जब तुममे से अगर किसी को गुस्सा आये तो अगर खड़ा हो तो बैठ जाये अगर गुस्सा चला जाये तो ठीक वरना लेट जाये।..✍🏻

📕 मिशक़ात बाबुलगज़ब व अलकबर सफ़ह 434

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     ❝  ग़ज़ब और गुस्से से बचने की तरकीब!?❞
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┇𖠁 ➧ और इसी जगह दूसरी हदीस में है हुज़ूरﷺ ने फरमाया गुस्सा शैतान की तरफ़ से है और शैतान आग से पैदा किया गया आग को पानी से बुझाओ जब गुस्सा आये तो वुज़ु करो।

┇𖠁 ➧ एक हदीस में है एक मर्तबा हुज़ूरﷺ के सामने दो लोगों में सख्त कलामी (कहा सुनी) हो गई एक साहब का चेहरा गुस्से की वजह से सुर्ख हो गया नत्थने फूल गये तो हुज़ूरﷺ ने फरमाया !

┇𖠁 ➧ मैं एक ऐसा कलमा जानता हुँ कि अगर यह उसको पढ़ ले तो इसका गुस्सा ख़त्म हो जायेगा और वह कलमा यह है।..✍🏻

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     ❝  ग़ज़ब और गुस्से से बचने की तरकीब!?❞
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┇𖠁 ➧ *(3)* आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ बरेलवी अलैहिर्ररहमा फरमाते हैं। दफ़ऐ ग़ज़ब यानि गुस्सा दूर करने के लिये लाहौल शरीफ़ की कसरत करे और जिस वक़्त गुस्सा आये दिल की तरफ़ मुतावज्जह हो कर तीन बार लाहौल पढे तीन घूंट ठण्डा पानी पी ले खड़ा हो तो बैठ जाये बैठा हो तो लेट जाये लेटा हो तो उठे नही।

*📕 फ़तावा रज़विया जिल्द 26 सफ़हा नं0612 मतबुआ पोरबन्दर*

┇𖠁 ➧  *(4)* जब गुस्सा आये तो जहां है उस जगह को बदल दे मसलन घर मे हो तो बाहर चला जाये और बाहर हो तो घर में आ जाये और रू-ए-ज़मीन पर सबसे बेहतर जगह ख़ुदा के घर यानि मस्जिदें हैं मस्जिद में जाकर ज़िक्र व शुक्र व तिलावत व इबादत में मशगूल हो जाये मगर अब यह सब कहां लोग या तो मसाजिद में आते नही और आते भी है तो गप्पे लड़ाते हैं बातें चटखाते हैं।..✍🏻

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     ❝  ग़ज़ब और गुस्से से बचने की तरकीब!?❞
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┇𖠁 ➧ मौला-ए-कायनात हज़रत अली मुर्तज़ा रज़िअल्लाह तआला अन्हो के बारे में मरवी है कि एक मर्तबा उनके और हज़रत सय्यदा फाततमा ज़हरा रज़िअल्लाह तआला अन्हा के दरमियान किसी बात पर ख़फ़गी और नाराज़गी पैदा हुई तो हज़रत मौला-ए-कायनात घर से बाहर तशरीफ़ ले गये हुज़ूर सय्यदे आलमﷺ सय्यदा फ़ातमा रदिअल्लाहु तआला अन्हा के यहां तशरीफ़ लाये पूछा अली कहां हैं उन्होने अर्ज़ किया है ऐसा ऐसा हुआ और वह नाराज़ होकर चले गये हैं सरकारﷺ ने तलाश फरमाया मस्जिद शरीफ़ के एक कोने में कच्ची जमीन पर लेटे थे और नीन्द आ गई थी बदन पाक पर मिट्टी भी लग गई थी सरकारे दो आलमﷺ अपने मुबारक हाथ से उनके जिस्म पाक की मिट्टी झाड़ते जाते और फरमा रहे थे कि अबू तुराब यानि मिट्टी वाले उठो उस दिन से उनकी कुन्नीयत अबू तुराब हो गई और तमाम ज़िन्दगी जब उन्हे कोई इस नाम से पुकारता तो बड़े खुश होते इससे ज़ाहिर हुआ कि नारजगी ख़फ़गी और गुस्से में मस्जिद में चला जाना मौला-ए-कायनात अबूतुराब जनाब अली मुर्तज़ा रदिअल्लाहु तआला अन्हु की प्यारी प्यारी सुन्नत भी है।..✍🏻

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     ❝  ग़ज़ब और गुस्से से बचने की तरकीब!?❞
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┇𖠁 ➧ एक हदीस का ख़ुलासा है कि गुस्सा आने की चन्द सूरतें हैं एक यह है कि गुस्सा देर में आये और ज़ल्दी चला जाये यह मोमिन की शान बल्कि उसकी पहचान है और ज़ल्दी आये और ज़ल्दी चला जाये यह भी अच्छे भले लोगों को हो सकता है और देर में आये और देर ही में जाये तो यह ख़तरनाक है और सच्चे मोमिन की शान नही और ज़ल्दी आये और देर से जाये तो यह ज़्यादा ख़तरनाक है और मोमिन की शान नहीं और दीनदार आदमी का काम नहीं और ऐसे शख़्स से ऐसे ही बचना चाहिये जैसे शैतान से।

┇𖠁 ➧ जो अपनी ज़ात नफ़्स से मुताल्लिक़ मामलात में लोगों पर नारज़गी और गुस्से का इज़हार न करता हो और दीन व मज़हब का नुक़सान और उसके खिलाफ़ हरकात देखकर उसका खून खोलता हो वह मुकम्मल मुसलमान है।

┇𖠁 ➧ गुस्से में कोई भी बात कलाम या अमल और फेल करने से बचना चाहिये ख़्वाह कोई फैसला करना या सुनाना हो या सज़ा देना या बोलना हो जो कुछ भी करें या बोलें गुस्सा ख़त्म होने पर ही हो काश लोग इस बात को याद रखें।..✍🏻

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     ❝ ज़िनाकारी से बचने की तरकीब!?❞
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 ┇𖠁 ➧ अगर किसी इंसान पर नफ़सानी ख़्वाहिशात का मलबा है और उसको अपनी तरफ़ से ज़िनाकारी सरज़र्द हो जाने का ख़तरा हो तो उसको इस फ़ेले बद से बचने के लियें दर्ज ज़ैल बातों पर अमल करना चाहिये

┇𖠁 ➧ अल्लाह तआला से दुआ करता रहे कि या अल्लाह तआला तू मुझको मेरे नफ़स पर काबू दे और बुराई से महफूज़ रख रात में जब लोग सोते हों उस वक़्त दुआ करे यह कबूलियत का सबसे उम्दा वक़्त है दुआ से पहले और बाद में दुरूद शरीफ़ पढ़ने से भी दुआ क़बूल होती है अल्लाह तआला के नामों में या अररहमर राहेमीन या  जुलजलाल वलइकराम कहकर दुआ मांगी जाये तब भी दुआ क़बूल होती है हर नमाज़ फर्ज़ के बाद जो दुआ मांगी जाये यह भी क़बूल होती है अल्लाह तआला के मुक़र्रब और मख़सूस बन्दों की बारगाहों में हाज़िर होकर उनकी ज़िन्दगी में या बाद विसाल के उनके मज़ारों पर जो दुआ अल्लाह तआला से मांगी जाये ख़ुदा तआला उसको भी क़बूल फ़रमाता है।...✍🏻

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     ❝ज़िनाकारी से बचने की तरकीब!? ❞
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 ┇𖠁 ➧ अगर औरत के नान नफ़क़े (ख़र्चे पानी) और महर देने की ताक़त रखता हो तो निकाह करे यह ज़िनाकारी से बचने का निहायत उम्दा तरीक़ा है मगर अफ़सोस आजकल के माहौल में बीबी बच्चों और घर गिरहस्ती रहन सहन के इख़राजात इतने ज़्यादा हो गये हैं कि लोग निकाह से बचने लगे हैं और वह ज़िनाकारी की तरफ़ बढ़ रहे हैं और घर गिरस्ती तो बाद की बात है अब तो निकाह व शादी ब्याह के मौक़े पर इतने ख़र्चे होने का रिवाज़ और माहौल बनता जा रहा है कि लगता है कि आने वाले वक़्त में निकाह कम होंगे और ज़िनाकारी ज़्यादा ज़िनाकारी सस्ती हो गई है और निकाह महंगे लाखो की तादाद में लड़के और लड़कियां बे निकाह बूढ़े हुए चले जा रहे हैं और उनमें से बहुत से ज़िनाकारी पर मजबूर हो गये हैं लेकिन यह नही हो सकता कि इनके सादा निकाह करके एक दूसरे का हाथ पकड़वा दिया जाये और जो काम हराम तौर पर हो रहा है वह हलाल तरीक़े से होने लगें इस बारे में पूरी एक किताब लिख दी है जिसका नाम *(ब्याह शादी के बढ़ते इखराज़ात)* उर्दू और हिन्दी में अलग अलग छपकर दस्तियाब है। किताब लोगों ने पढ़ी तारीफें तो हुई लेकिन अमल कहां कौन मानता है घर मोहल्ले और अपनी बस्ती वाले तक नही सुन रहे हैं निकाह जिसको इस्लाम ने सादा सस्ता और आसान बनाने का हुक्म दिया था उसको लोगों ने जंग व जिहाद की तरह मुश्किल व मुसीबत बना दिया है और अब इंसान ने वह किया है जो शैतान ने कहा है बड़े बड़े समझदार पढ़े लिखे भी यहां आकर ज़ाहिल बन चुके हैं बड़े बड़े पारसा इबादत गुज़ार दीनदार भी इस माअमले में दामने मुस्तफाﷺ छोड़ चुके हैं और मुझको लगता है कि क़यामत के क़रीब की पेशगोईयों में जो यह मरवी है कि इंसानों में जानवरों की तरह बे हयाई और कुतिया कुत्तों की तरह बदकारी फैल जायेगी वह यूँ ही होगा कि लोग निकाह व शादी को इतना मुश्किल व महंगा बना देंगे कि एक बड़ी तादाद के लिये वह ना मुमकिन हो जायेगा और ज़ाहिर है कि जब निकाह न होंगे तो ज़िनाकारी फैलेगी क्योंकि इंसान अपनी नफ़सानी ख़्वाहिशात और फितरी तक़ाज़ों को पूरा ज़रूर करेगा जब जाइज़ तरीक़ों से करना ना मुमकिन हो जायेगा तो ना जाइज़ तौर पर करेगा क्योंकि फितरत तो फितरत ही है और इस सबका अज़ाब और वबाल उन जाइज़ और ना जाईज़ के ठेकेदारों पर भी होगा जो ख़ुद अपने और अपने बच्चों के निकाह भी सादगी के साथ नही कर रहे हैं दीनदारी के लिबादे ओढ़े हुए है और ब्याह शादी के मौक़े पर दुनिया दारों से भी बड़े दुनियादार बन जाते हैं।...✍🏻

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     ❝ ज़िनाकारी से बचने की तरकीब!?❞
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┇𖠁 ➧ ज़िनाकारी से बचने के लिये जो शख़्स निकाह न कर पाये उसके लिये हदीस शरीफ़ में आया है रसूले पाकﷺ ने फरमाया है वह कसरत से रोज़े रखे भूके रहना यानि रोज़े रखना नफ़्स की ख़्वाहिश को कम करता है और शहवत को तोड़ता है।

┇𖠁 ➧ फिल्मे देखना उनके गाने सुनना गंदी नाविलें और अफ़साने पढ़ना नंगी तस्वीरें और फोटो देखना हराम तो है ही लेकिन बे निकाह मर्दो और औरतों के लिये ख़तरे की घण्टी भी है और ज़िनाकारी पर उभारने वाली है सख़्ती के साथ उन सबसे दूर रहे।

┇𖠁 ➧ कभी भी अजनबी औरत के साथ ख़िलवत और तनहाई में थोड़ी देर भी न रहें हदीसे पाक में है हुज़ूर रहमते आलमﷺ ने फरमाया जहां दो अजनबी मर्द व औरत अकेले में होते हैं वहां तीसरा शैतान होता है हंसी मज़ाक और ग़ैर ज़रूरी फालतू बातें कभी भी किसी ग़ैर औरत से न करें।...✍🏻

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     ❝ ग़ीबत (पीछे बुराई) से बचने की तरकीब!?❞
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 ┇𖠁 ➧ किसी के पीठ पीछे उसकी कोई ऐसी बात कहना कि अगर सामने कही जाती तो उसको नागवार होती ग़ीबत कहलाता है जबकि उसमें वह ऐब हो और अगर न हो तो यह बोहतान है उसका गुनाह ग़ीबत से भी बढ़कर है और ग़ीबत नेकियों को खा जाती है और ग़ीबत करने वाले की नेकियां उसको दे दी जाती हैं जिसकी ग़ीबत की गई है हदीसे पाक में फरमाया गया है कि ग़ीबत करना मुर्दा भाई का गोश्त खाना है ग़ीबत से बचने की सबसे बेहतर तरकीब यह है कि आदमी ख़ामोश रहने की आदत डाल ले जिसका ज़िक्र हम पहले कर चुके हैं बिला ज़रूरत लोगों में बैठने उठने से बचे जहां तक मुमकिन हो तन्हाई इख़्तियार करे और पीठ पीछे लोगों के ऐब शुमार करने के बजाये उनकी तारीफ़ करे उनकी खूबियां अच्छाईयां गिनाने का मिज़ाज बनाये और ईमानी भाई में कोई ख़ामी कमी ऐब हो तो उसकी इस्लाह और सुधार के लिये दुआ करता रहे।...✍🏻

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     ❝ ग़ीबत (पीछे बुराई) से बचने की तरकीब!?❞
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┇𖠁 ➧ यहां यह जान लेना भी ज़रूरी है कि अगर किसी में कोई ऐसा ऐब हो कि वह अगर बताया या ज़ाहिर न किया जायेगा तो लोग इस के शिकार हो जायेंगे और उसके जाल में फंस जायेंगे उससे धोका खा जायेंगे तो इससे लोगों को आगह करना ग़ीबत और गुनाह नहीं है यूं ही किसी ऐसे शख़्स से शिकायत के तौर पर किसी का ऐब ब्यान करना जो उसकी उस बुराई को उससे से दूर कर सके या उसको समझा सके यह भी ग़ीबत नहीं है और जिसको हिसाब देना है वह ख़ूब जानता कि किसकी नियत में क्या है और आमाल का दारोमदार नियत और इरादे पर है।...✍🏻

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     ❝घमण्ड तकब्बुर से बचने की तरकीब!? ❞
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 ┇𖠁 ➧ घमण्डी और मग़रूर आदमी भी दीनदार बनकर नहीं रह सकता कब्रस्तानों में जाना बड़े बड़ों की कब्र को देखना और उनकी पिछली मौजूदा हालत पर ग़ौर करना इन्सान को तकब्बुर से बचाता है इसके अलावा हर बड़े और छोटे को ग़रीब और मालदार को सलाम करने में पहल करने की आदत भी इन्सान को घमण्ड और तकब्बुर से बचाती है कमज़ोरों ग़रीबों में घुल मिलकर रहना उनमें बैठना उठना कभी कभी उनके काम काज में उनके हाथ बँटाना उनके कुछ काम अपने हाथ से कर देना भी इस शैतानी खस्लत से महफूज़ रखता है जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने की आदत भी इन्सान को मुताकब्बिर होने से रोकती है क्योंकि वहाँ बड़े छोटे की तमीज़ नहीं होती कभी कभी किसी ग़रीब से ग़रीब कमज़ोर बीमार अनपढ़ देहाती ग़वार के बराबर में आपको खड़ा होना पड़ सकता है तो इस तरह मिज़ाज की तमकनत टूटती है और बड़प्पन का नशा कम होता है नमाज़ व जमाअत में और बेशुमार हिकमतें हैं और बेशक इस्लाम हिकमतों वाला मज़हब है और जिन्होनें तकब्बुर और घमण्ड का इलाज अभी न किया तो मौत तो इसका इलाज कर ही देगी घमण्ड के सब शीशे चकनाचूर हो जायेंगे रऊनत की सब खोपड़ियाँ फूट जायेंगी मगर उस वक़्त के उस इलाज से कोई नफ़ा और फ़ायदा न होगा।...✍🏻

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     ❝ घमण्ड तकब्बुर से बचने की तरकीब!?❞
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 ┇𖠁 ➧ अगर कहीं कोई मस्जिद या कोई दीनी इमारत तामीर होती हो तो उसमें चन्दा देने के साथ साथ अपने हाथ से भी कुछ काम कीजिये और ख़ुद को मजदूरों के साथ शामिल कर लीजिये इससे भी घमण्ड और तकब्बुर ख़त्म होगा इस्लाम आने के बाद मदीने शरीफ़ में पहली मस्जिद राज और मज़दूरों ने नहीं बनाई थी बल्कि अल्लाह के रसूलﷺ आपके सहाबा-ए-कराम ने ख़ुद अपने हाथों से समान ढो ढोकर तामीर फ़रमाई थी मैने ग़ैर मुस्लिमों में देखा कि बड़े बड़े लोग अपनी मज़हबी तामीरात में मज़दूरों वाला काम ख़ुद करते हैं उसे वह अपनी ज़बान में कार सेवा कहते हैं अफ़सोस जो काम हमारे नबीﷺ ने सिखाया वह दूसरों ने अपना लिया और हम छोड़ बैठे।...✍🏻

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     ❝ नमाज़ी बनने की तरक़ीब!?❞
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┇𖠁 ➧ पाँचों वक़्त की नमाज़ की पाबन्दी इस्लाम में कितनी ज़रूरी है उसका अन्दाज़ा नहीं लगाया जा सकता और न उसे पूरे तौर पर बताया जा सकता है बस यह समझ लीजिये कि बे नमाज़ी सिर्फ नाम का मुसलमान है जैसे बे रूह का जिस्म हदीसे पाक में है हज़रत अब्दुल्ला बिन मसऊद रज़िअल्ला तआला अन्हो ने अर्ज़ की या रसूलल्लाहﷺ अल्लाह तआला को अपने बन्दे का कौन सा अमल सबसे ज़्यादा प्यारा है सरकारﷺ ने फरमाया नमाज़ को उसके वक़्त पर अदा करना!...✍🏻

📗 सही बुखारी सफह - 76

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     ❝ नमाज़ी बनने की तरक़ीब!?❞
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 ┇𖠁 ➧ हज़रत सय्यदना उमर फ़ारूके आज़म रज़िअल्लाह तआला अन्हो ने अपने खिलाफ़त व हुकूमत के ज़माने में अपने गर्वनरों को लिखकर भेजा था।

┇𖠁 ➧ तुम्हारे सब कामों में मेरे नज़दीक सबसे ज़्यादा अहमियत नमाज़ की है (यानि मुझको तुम्हारी नमाज़ों की ज़्यादा फ़िक्र है) तो तुम में से जिसने नमाज़ों का ध्यान रखा और उनकी पाबन्दी की उसने पूरे दीन की हिफाज़त कर ली और जिसने नमाज़ों को जाइअ (बर्बाद) कर दिया और कामों को भी जाइअ करेगा।

📕 फ़तावा रज़विया जिल्द नं05 सफ़हा 278 मतबूआ पोरबन्दर

┇𖠁 ➧ आला हज़रत मौलाना शाह अहमद रज़ा खाँ रहमतुल्ला तआला अलैह फरमाते हैं ईमान के बाद पहली शरिअत नमाज़ है।

*📗 फ़तावा रज़विया जिल्द नं02 सफ़हा 214 मतबुआ संभल*

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     ❝ नमाज़ी बनने की तरक़ीब!?❞
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┇𖠁 ➧ नमाज़ की इस्लाम में कितनी अहमियत है यह बताने की ज़्यादा ज़रूरत नहीं क्योंकि यह हर मुसलमान जानता है बल्कि ग़ैर मुस्लिम तक जानते हैं कि मुसलमानो के मज़हब में सबसे ज़्यादा अहम काम नमाज़ है।

┇𖠁 ➧ मैंने कितने लोग देखे हैं जो नमाज़ी बनना चाहते है लेकिन बन नही पाते मैं उन्हे यहां चन्द मशवरे देता हुँ उम्मीद है कि उनके ज़रिये अल्लाह रब्बुल इज़्जत उनके लिये रास्ता आसान फ़रमायेगा सबसे अव्वल और अहम मशवरह तो यही है कि अल्लाह तआला से ज़्यादा से ज़्यादा दुआ करते रहें कि या अल्लाह मुझको नमाज़ का पाबन्द बना दे क्योंकि सब कुछ उसी की तरफ़ से और इसी की तौफीक़ से है और दीनदार बन जाना कमाल नहीं है मरते दम तक दीनदार बने रहना कमाल है इसी लिये कुरआन शरीफ़ में ज़्यादातर दुआएँ ईमान इस्लाम और दीन पर क़ायम और साबित रहने की सिखाई गयी हैं।...✍

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   ❝कभी कोई नमाज़ कज़ा हो जाये फौरन अदा कीजिए !? ❞
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 ┇𖠁 ➧ इससे मेरा मक़सद यह है कि अगर आप नमाज़ पढ़ते हैं या पढ़ने लगे हैं और किसी ख़ास मज़बूरी की वजह से कभी कोई नमाज़ पढ़ने से रह जाये और वक़्त निकल जाये तो ज़ल्दी से ज़ल्दी जब मौक़ा और वक़्त मिले उसको फौरन अदा कर लीजिये अगर आप इस बात पर अमल करेंगे तो आपके दिल में नमाज़ की अहमियत और इसकी वक़्तअत बाक़ी रहेगी और तमाम उम्र नमाज़ी रहेंगे और बहुत सी नमाज़े  आपके ऊपर इकट्ठी और जमा नहीं होंगी जिनकी अदायगी में वक़्त और उलझन मालूम हो हदीसे पाक में है रसूले ख़ुदाﷺ ने इरशाद फरमाया जो अपनी किसी वक़्त की नमाज़ को भूल जाये उसके वक़्त में सोता रह जाये और याद आने पर पढ़ ले तो यही उसका कफ्फारा (बदला) है।...✍

📕 बुखारी जिल्द सफ़हा 84 मिशक़ात सफ़ह - 61

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     ❝कभी कोई नमाज़ कज़ा हो जाये फौरन अदा कीजिए !? ❞
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 ┇𖠁 ➧ एक और हदीस में है हुज़ूरﷺ फरमाते हैं गुनाह उस पर है जो जागता हो और नमाज़ छोड़ दे और जो नमाज़ के वक़्त में सोता रह जाये उस पर गुनाह नहीं तो तुममे से जिसकी नमाज़ भूल या नींद की वजह से रह जाये वह याद आने पर पढ़ ले।..✍🏻

*📕 सही मुस्लिम जिल्द नं01 सफ़हा 239 बाब कज़ाए अस्सलात और मिशक़ात सफ़हा 61*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  142

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     ❝ कभी कोई नमाज़ कज़ा हो जाये फौरन अदा कीजिए !?❞
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┇𖠁 ➧ एक बार सरकारे दो आलमﷺ ने ख़ैबर से वापसी के मौके पर रात में सफ़र फ़रमाया यहाँ तक जब थकन और नींद ने जोर मारा तो सहाबा किराम ने अर्ज़ किया ऐ अल्लाह के रसूलﷺ काश आप क़याम फरमाते (ठहरते) इरशाद फरमाया मुझको इस बात का डर है कहीं तुम लोग सोते न रह जाओ और नमाज़ जाती रहे हज़रत बिलाल ने अर्ज़ की मैं जागता रहूंगा तो सब लोग आराम फरमाने लगे हज़रत बिलाल भी काफी रात तक तो जागे लेकिन आखीर में वह सवारी से टेक लगाकर बैठ गये तो उनको भी नींद आ गई सब लोग सोते रह गये सबसे पहले सरकारﷺ ही बेदार हुये और सूरज का किनारा जाहिर हो चुका था फरमाया ऐ बिलाल तुमने जो कहा था वह क्या हुआ उन्होने अर्ज़ की ऐ अल्लाह के रसूलﷺ आज तो मैं ऐसा सुला दिया गया कि आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ रसूले ख़ुदाﷺ ने फरमाया अल्लाह तआला जब चाहता है रूहों को कब्ज़ कर लेता है और जब चाहता है लौटाल देता है ऐ बिलाल खड़े हो जाओ अज़ान देकर लोगों को नमाज़ के लिये जमा करो फिर हुज़ूरﷺ ने वुज़ू फरमाया और जब सूरज खूब रौशन बुलन्द हो गया तो आपने नमाज़ अदा कराई।...✍

*📕 बुख़ारी जिल्द न.1 बाबुल अज़ान बाद ज़हाबुल वक़्त सफ़हा 83*

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     ❝ कभी कोई नमाज़ कज़ा हो जाये फौरन अदा कीजिए !?❞
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 ┇𖠁 ➧  एक और हदीस में है कि जंगे खन्दक में कुफ़्फ़ार से राहत और भयानक मुक़ाबले की वजह से हज़रत सय्यदना उमर फ़ारूक रदिअल्लाहु तआला अन्हु नमाज़े असर नहीं पढ़ सके और सूरज डूबने लगा उन्होने कुफ़्फ़ार को बुरा भला कहा और हुज़ूरﷺ से नमाज़ रह जाने की बात कही सरकारﷺ ने फरमाया मैंने भी नहीं पढ़ी फिर वुज़ू किया और सूरज डूबने के बाद नमाज़े पढ़ी और फिर बाद में मग़रिब पढ़ी।
    
*📒 बुख़ारी जिल्द नं01 सफ़हा 83*

┇𖠁 ➧  हज़रत सफ़वान एक सहाबी थे रात को देर तक खेतों की आपपाशी के लिये पानी भरने की वजह से कभी कमी नमाज़े फजर के वक़्त सोते रह जाते हुज़ूरﷺ ने उनसे फरमाया ऐ सफ़वान जब आँख खुले नमाज़ पढ़ो।...✍🏻
         
*📕 मिशकात सफहा 282*

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 ❝ कभी कोई नमाज़ कज़ा हो जाये फौरन अदा कीजिए !?❞
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┇𖠁 ➧  इन सब अहादीस की रौशनी में उलमा ने फरमाया यह उसी के लिये है जो कभी कभी सोता रह जाये या किसी ख़ास अहम मज़बूरी की वजह से कभी उसकी नमाज़ रह जाये लेकिन जो नमाज़ के वक़्त अक़्सर सोता रहे और नमाज़ छोड़ने की आदत डाल ले वह नमाज़ी नहीं है फ़ासिक़ व फ़ाजिर और बड़ा गुनाहगार हराम कार है और जिससे कभी ऐसा हो जाये और वह फौरन नमाज़ अदा कर ले तो वह नमाज़ी है और वह जान ले कि अल्लाह तआला निहायत बखशने वाला मेहरबान परवरदिगार है गफ्फार और सत्तार है और सरकारे दो आलमﷺ की पूरी दुनियावी मुबारक ज़िन्दगी में सिर्फ़ दो ही बार का ऐसा वाक्या मिलता है कि वक़्त गुज़रने के बाद नमाज़ अदा फरमाई गई और यह सब भी तालीमे उम्मत के लिये था हम आपको सिखाने के लिये था कि अगर किसी बन्दा-ए-ख़ुदा से चूक हो जाये और नींद या किसी और सख़्त मज़बूरी में नमाज़ का वक़्त निकल जाये तो कहीं घबरा न जाये और खुद को जहन्नमी ख़्याल न कर लें और यह करम है अल्लाह का अपने बन्दों पर और फिर उसके रसूलﷺ का अपनी उम्मत पर कि इस्लाम को ऐसा मज़हब नहीं बनने दिया कि उस पर चलना नामुमकिन हो जाये और ख़ुदाये तआला किसी जान पर उसकी ताक़त से ज़्यादा बोझ नहीं डालता।..✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 103 📚*

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     ❝ रात को ज़ल्दी सोने की आदत डालिये !?❞
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 ┇𖠁 ➧  अगर कोई दीनी या खास दुनियावी काम न हो तो रात को इशा की नमाज़ पढ़कर ज़ल्दी से ज़ल्दी आराम करने और सोने की आदत बनाईये आपकी यह आदत आपको नमाज़ी बनने में मददगार साबित होगी रात को ज़ल्दी सोना और सुबह को ज़ल्दी उठना यह ही इस्लामी मिज़ाज है और यह ही पैगम्बरे इस्लाम की आदते करीमा है रात को देर तक जागने वाले अक़्सर या तो फजर की नमाज़ कज़ा करते हैं या फिर पढ़ते हैं तो वह भारी पड़ती है और बोझ बन जाती है और जिस इत्मेनान एहतमाम और तसल्ली के साथ नमाज़ को अदा करना चाहिये वह नहीं कर पाते मेरा तर्जुबा है कि रात को शैतान इन्सान को देर तक जगाने की कोशिश करता है और बातों में उसका दिल लगाकर किस्से कहानियों की तरफ़ माइल करके या इधर उधर जाने घूमने फिरने का मशवरह देकर उसे बेदार (जागता हुआ) रखता है उससे कहता है यह बातें करो वह बातें करो यहाँ जाओ वहाँ जाओ इससे मिल लो उससे मिल लो इस तरह उसका वक़्त बर्बाद करके उसे बिस्तर पर ज़ल्द नहीं आने देता और फिर सुबह को अज़ान व नमाज़ के वक़्त थपकी देकर सुलाता है काश लोग शैतान के दाँव को समझते और उसके जाल को काटते हदीसे पाक में है।

┇𖠁 ➧  रसूले ख़ुदाﷺ  इशा की नमाज़ से पहले सोने (नीन्द) को पसन्द नहीं फरमाते और इशा के बाद बातचीत और गुफ्तगू पसन्द नहीं फरमाते।...✍🏻
      
*📕 बुखारी जिल्द नं01 सफहा 84*

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 103 📚*

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     ❝रात को ज़ल्दी सोने की आदत डालिये !? ❞
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 ┇𖠁 ➧  हकीम व डाक्टर भी यही कहते हैं कि रात को ज़ल्दी सोना और सुबह को ज़ल्दी उठना सेहत व तन्दरूस्ती के लिये मुफीद है और देर तक जागना फिर सुबह को देर तक सोते रहना बीमारियां पैदा करता और सेहत को बिगाड़ता है और बेशक सारी सच्चाईयों की जान और हक़ाइक़ का निशान और सदाक़त की पहचान है जो अल्लाह तआला का और उसके रसूलﷺ का फरमान है अलबत्ता रात को बाद नमाज़े इशा कोई दीनी काम इबादत व रियाज़त या क़ुरान की तिलावत ज़िक्र व फ़िक्र व शुक्र व दीनी किताबों का मुतआला मकरूह नहीं है हाँ उन कामों की वजह से भी अगर नमाज़ कज़ा हो जाती है तो ऐसा करने वाले खूब जान लें कि उनके यह काम दीन नहीं है ख़्वाह वह जलसे हों या जूलूस महफ़िलें हों या मजलिसें किताबों के मुताअले हों या दर्स व तदरीस पढ़ने पढ़ाने के सिलसिले तहरीकें हों या तन्ज़ीमें और वह नफ़िल क़ुबूल नहीं जिसकी वजह से फराइज़ व वाजिबात की अदायगी में कोताही हो।...✍🏻

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     ❝ ज़्यादा जिम्मेदायाँ क़ुबूल मत कीजिये!?❞
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 ┇𖠁 ➧  जो शख़्स नमाज़ी बनना चाहे और क़ायदे के साथ नमाज़ अदा करना चाहे उसके लिये ज़रूरी है कि ज़्यादा जिम्मेदारियाँ क़ुबूल न करे और दीन के हों या दुनिया के ज़्यादा काम अपने जिम्मे न ले और पुरसुकून इत्मेनान वाली ज़िन्दगी गुज़ारने की कोशिश करे मैंने ऐसे लोगों को देखा है कि वह अपने या अपने बाल बच्चों के फालतू ख़र्चे पूरे करने के लिये काम पर काम बढ़ाये चले जा रहे हैं कई कई धन्धे उन्होनें छेड़ रखे हैं वह चाहते और जानते हुये भी नमाज़ी नहीं बन सकते दिल दिमाग और जिस्म को ज़्यादा इधर उधर पर फंसा लेने वाले अच्छी तरह नमाज़ की अदायगी नहीं कर सकते ऐसे ही वह मदरसे चलाने वाले दीनी किताबें लिखने छापने या फ़रोख़त करने वाले कुछ लोगों को देखा कि वह अपने यह दीनी काम हद से ज़्यादा बड़ा लेते हैं फिर नमाज़ो को वक़्त निकालकर पढ़ते हैं या छोड़ते या फिर दीनी काम और उसकी जिम्मेदारियों को बहाना बनाते हैं दरअस्ल यह वह लोग हैं जो जानते ही नहीं कि दीन क्या है और उसका काम और ख़िदमत किसे कहते है!...✍🏻

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     ❝ज़्यादा जिम्मेदायाँ क़ुबूल मत कीजिये!? ❞
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 ┇𖠁 ➧  मेरे इस बयान का ख़ुलासा यह है जो शख़्स सच्चा पक्का नमाज़ी बनना चाहे वह दीन व दुनिया की इतनी जिम्मेदारियां क़ुबूल करे कि जिनको उसका दिल व दिमाग और जिस्म आसानी से बरदाश्त कर ले और वह नमाज़ों से गाफ़िल न हो सके ख़्याल रहे कि सबसे बड़ा दीनी इस्लामी काम पाँचों वक़्त की नमाज़ की पाबन्दी और उसका एहतमाम है!...✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 106 📚*

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     ❝गुमराह करने वाली तक़रीरे!? ❞
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┇𖠁 ➧  नमाज़ रोज़ा और आमाले स्वालेहा (अच्छे नेक काम) के तअल्लुक से कुछ पेशावर मुकर्रिर बदमज़हबों का रद्द करते हुए इश्क़े रसूलﷺ और बुजुर्गाने दीन से मुहब्बत व अक़ीदत के बयान में और उनकी करामातों का ज़िक्र करते हुए बे नमाज़ी पब्लिक को ख़ुश करने के लिये ऐसी बातें करते घूम रहे हैं जो बिल्कुल ग़ैर इस्लामी हैं वह इश्क़े रसूलﷺ व बुजुर्गों से मुहब्बत व अक़ीदत नही सिखा रहे हैं बल्कि उसकी आड़ में नमाज़ रोज़े को मिटाने का काम कर रहे हैं इनमें से कुछ वह है जो कहते हैं कि जन्नत ना नमाज़ से मिलेगी ना रोज़े न ज़कात से ना हज से बल्कि जन्नत तो इश्क़े रसूलﷺ से मिलेगी औलिया से अक़ीदत व मुहब्बत से मिलेगी उन जाहिलों को यह भी नहीं पता कि नमाज़ ख़ुद इश्क़े रसूलﷺ का एक अहम हिस्सा है जो नमाज़ी नही वह सही मायने में आशिक़े रसूलﷺ नहीं है और जो आशिक़े रसूलﷺ होगा उसको नमाज़ पढ़े बगैर चैन ही नहीं पड़ेगा और जो नमाज़ व रोज़े ज़कात वगैरह को इश्क़े रसूलﷺ से एक दम अलग करके दिखाये वह गुमराह है और दूसरों को गुमराह करने वाला हैं!...✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 106 📚*

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     ❝गुमराह करने वाली तक़रीरे!? ❞
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 ┇𖠁 ➧ ऐसे ही एक पेशेदर मुकर्रिर के बारे में सुना कि वह अपनी तक़रीर में कहता है कि नमाज़ रोज़े वगैरह आमाल के बारे में हमें पता नही कि वह क़बूल होते भी हैं या नहीं लेकिन अक़ीदत व मुहब्बत ज़रूर क़बूल होती है तो इस ना अहिल से कोई पूछे कि वह तेरी कौन सी अक़ीदत व मुहब्बत है जो नमाज़ व रोज़े को छोड़ कर क़बूल होती है और नमाज़ व रोज़े से बढ़कर अक़ीदत व मुहब्बत का कौन सा काम है अरे नादान अल्लाह तआला से कबूलियत की उम्मीद रखते हुए बन्दा नेक काम करता है और उम्मीद रखना और उसके अज़ाब से डरते रहना यही बन्दगी है जो बन्दे का काम है सही बात यह है इश्क़ व मुहब्बत अक़ीदत व इरादत का नाम लेकर आमाल की तरफ़ से लोगों को गाफ़िल व बे परवाह करने वाले शैतान का काम कर रहे हैं।..✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 106 📚*

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     ❝ गुमराह करने वाली तक़रीरे!?❞
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┇𖠁 ➧ ऐसे ही एक शख़्स ने एक बुजुर्ग शायर का यह शेअर पढ़ा।

 *ग़र वक़्ते अजल सर तेरी चौखट पे झुका हो*

    *जितनी हो कज़ा एक ही सजदे में अदा हो*

┇𖠁 ➧ और इसका मतलब यह समझाया कि नमाज़ पढ़ने की और उसकी पाबन्दी की क्या ज़रूरत है हुज़ूरﷺ की चौखट को चूमने से ज़िन्दगी भर की कज़ा नमाज़े अदा हो जाती हैं मैं कहता हुँ जरा यह तो बताईये कि यह शेअर जिस बुजुर्ग शायर का है वह आला हज़रत मौलाना अहमद रजा खाँ बरेलवी अलैहिर्ररहमा के छोटे भाई उस्तादे जमन मौलाना हसन रजा खाँ बरेलवी अलैहिर्ररहमा हैं क्या उन्होने ज़िन्दगी में कोई नमाज़ कज़ा की थी? सही बात यह है उनकी नमाज़ तो नमाज़ सारी उम्र में जानबूझकर कभी जमाअत भी नहीं छूटी थी तो तुम्हारा इश्क़े रसूलﷺ उस मंजिल को पहुंच जाये कि तुम्हारी नमाज़ तो नमाज़ जानबूझ कर कभी जमाअत तक कज़ा न होती हो तभी यह शेर पढ़ना और पढ़कर सुनाना और किसी भी नमाज़ व जमाअत छोड़ने वाले को यह शेर न पढ़ने का न हक़ है न सुनने का जो नमाज़ी हो वही पढ़े और जो नमाज़ी हो वही सुने और उसी को सुनाया जाये जो नमाज़ी हो और जो नमाज़ी और दीनदार रहना चाहे उसके लिये ज़रूरी है कि ऐसे मौलवियों और मुकर्रिरों की सोहबत और तक़रीरो से दूर रहे जिनके नज़दीक तक़रीर व ख़िताब की हैसियत एक पेशे और कमाई करने के धंधे से ज़्यादा न हो।..✍🏻

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     ❝मस्जिदों मे अच्छे बा सलाहिय्यत इमाम रखें!? ❞
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 ┇𖠁 ➧  इमाम का बा सलाहिय्यत दीनदार साहिबे इल्म व फ़ज़ल और ख़ुश अख़लाक होना भी लोगों के नमाज़ी होने में मददगार होता है वक़्त पर पाबन्दी से अज़ान व जमाअत हो तो इस से भी नमाज़ियों की ताअदाद में इज़ाफ़ा होता है आजकल अच्छे भले पढ़े लिखे दीनदार इमाम कम मिलते हैं लेकिन अगर कोई मिल जाये तो उसकी खूब क़दरो क़ीमत समझना चाहिये उसकी खिदमत व तवाज़ो और उसको खुशहाल रखने में कमी नहीं करनी चाहिये आजकल किसी मौलवी या इमाम में कोई कमी हो तो उस की मुखालफ़त बुराई ऐबजोई तौहीन व तनक़ीस करने वाले तो बहुत हैं लेकिन अगर कोई भला आदमी क़िसमत से हाथ लग जाये तो उसका ख़्याल रखने वाले न होने के बराबर है ज़रा बताईये बुरों पर तनक़ीद करने वाले तो आप हैं लेकिन अच्छों की तारीफ़ करने वाले कहां से आयेंगे और उनकी देखभाल रखने वाले क्या आसमान से उतरेंगे? जिनके दम से मस्जिदें आबाद हैं बच्चे कुरआन व नमाज़ सीख रहे हैं उनके ऊपर जो ख़र्चा किया जाये वह इस्लाम में सबसे उम्दा ख़र्चा है और वह बेहतरीन सदक़ा और सबसे उम्दा खैरात है जो इमामों मोअज़्ज़िनों और दीनी मदरसों के लिये हो और क़िस्मत वाले हैं जिन्हे ख़ुदा के घर आबाद करने की तौफीक़ मिलती है और मुबारक हैं वह रक़में और दौलतें जो ख़ुदा के घर आबाद रखने के लिये काम में आती हैं और उनके ज़रिये वह काम किये जाते हैं कि जिन से दीन बाकी रहे आला हज़रत इमाम अहमद रजा खाँ बरेलवी अलैहिर्ररहमा फरमाते हैं।

┇𖠁 ➧  तालिबे इल्म की मदद फ़ातहा में ख़र्च करने से अफ़ज़ल है।...✍🏻

*📕 फतावा रिज़विया जिल्द नं01 सफ़हा 305 मतबुआ लाहौर*

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 109 📚*

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     ❝ बीमारी और परेशानी और सफ़र मे नमाज़ पढ़िये!?❞
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 ┇𖠁 ➧  जैसे भी हो सके पूरी न पढ़ सकें तो सिर्फ़ फर्ज़ पढ़ लें खड़े होकर न पढ़ सकें तो किसी चीज़ से टिक कर या बैठ कर या लेट कर नमाज़ पढ़ें सफ़र में भी अगर रवारवी हो ज़ल्दी हो या ख़ौफ हो सुन्नतें न पढ़ सकता हो तो सिर्फ़ फ़र्ज़ पढ़े इत्मिनान से न पढ़ सकता हो तो ज़ल्दी ज़ल्दी पढ़ ले और अगर आप उलझन परेशानी, बीमारी, दुख दर्द और रवारवी में नमाज़ पढ़ लेंगे तो ज़ाहिर है कि आराम चैन सुख और तन्दरूस्ती में घर में कभी नमाज़ न छोड़ेंगे और फिर आप पक्के नमाज़ी बन जायेंगे चलती हुई सवारी ट्रेन बस या हवाई जहाज वगैरह मे सुन्नतों और नफ़िलों को सब उलमा जाईज़ फरमाते हैं फर्ज़ों के बारे में इख़्तिलाफ़ है कुछ ने कहा कि जाइज़ है सही है कुछ ने कहा कि जाइज़ नही मज़बूरी में पढ़ ले मगर बाद में दोहराये और ज़्यादा सही यह ही है,  लेकिन इस में भी कोई शक नहीं कि चलती ट्रेन या किसी सवारी में नमाज़ पढ़ने वाले बिल्कुल न पढ़ने वालों से लाखो दरजे बेहतर हैं ख़्वाह न दोहरायें और पहले वाले कौल पर अमल करें और जिस पर नमाज़ फर्ज़ है उसके लिये नमाज़ पढ़ना ख़्वाह कैसे ही पढ़े न पढ़ने से बहरहाल बेहतर है।..✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 110 📚*

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     ❝ शरअई आसानियों की जानकारी हासिल कीजिये!?❞
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┇𖠁 ➧  कुछ लोग मसाईले शरअ से ना वाक्फ़ियत और शरिअत में दी गई आसानियों, रियायातों को ना जानने की वजह से नमाज़ नहीं पढ़ते वह समझते हैं कि हम नमाज़ पढ़ ही नहीं सकते इसमें काफ़ी कमी कुछ उन मौलवियों की भी है जो सही मसअला बताते हुए झिझकते हैं डरते हैं और क़ौम का यह हाल है कि वह मामूली सी कमी और मज़बूरी हो तो नमाज़ छोड़ना गवारह कर लेते हैं लेकिन मज़हब में जो रियायतें आसानिया दी गई हैं उनसे फायदा नही उठाते अनपढों को देखा कि वह छोटी छोटी बातों पर लोगों को यह तो बताते है कि ऐसे नमाज़ नहीं होगी वैसे नमाज़ नही होगी इसमें नमाज़ नही होगी उसमें नमाज़ नहीं होगी लेकिन यह नहीं बताते कि न पढ़ने वालों से पढ़ने वाले बहरहाल बेहतर हैं नमाज़ छोड़ना इस्लाम में किसी सूरत रवा नही है अगर कोई किसी कमी कोताही माअमूली शरअई कमी के साथ नमाज़ पढ़ रहा है तो उसको प्यार मुहब्बत के साथ समझाना चाहिये मान जाये तो सुब्हान अल्लाह न माने तो उसको वैसे ही नमाज़ पढ़ने दें फ़िकही मसाइल की किताबों में जगह जगह यह लिखा है कि आम लोग जैसे भी अल्लाह तआला का ज़िक्र करें उन्हें करने दिया जाये।..✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 111 📚*

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     ❝शरअई आसानियों की जानकारी हासिल कीजिये!? ❞
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 ┇𖠁 ➧  उन बे जा सख्तियों और शरअई रियायातों की तरफ़ से चश्मपोशी ने क़ौम में बे नमाज़ियों की तादाद को बढ़ा दिया है आज हाल यह है कि मुस्लिम कौम में अन्दाज़ा लगाया जाये तो एक हज़ार में एक पक्का नमाज़ी मुश्किल से निकलेगा ख्वाहमुख्वाह ख़ुद को सिर्फ मसाइल न जानने की वजह से नापाक ख़्याल करना और नमाज़ छोड़ देना एक आम बात है हालांकि बहुत सी सूरतें ऐसी हैं कि इसमें जिस नापाकी की वजह से वह नमाज़ छोड़ रहा है वह मआफ है और जो मआफ नहीं है तब भी उसी हालत में नमाज़ पढ़ी जायेगी इस सबकी तफ्सील तो मसाईल की किताबों से मालूम हो सकती है मेरी किताब *"गलत फहमियां और उनकी इस्लाह"* में काफी बातें इस क़िस्म की लिख दी गई हैं यहां मैं सिर्फ़ चन्द बातें लिख रहा हूँ जो पढ़कर याद रखेगा उसको नमाज़ी बनने में मददगार साबित होगी।..✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 111 📚*

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     ❝ शरअई आसानियों की जानकारी हासिल कीजिये!?❞
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┇𖠁 ➧  अगर कोई चीज़ आपके कपड़े, बदन या जानमाज़ वगैरह पर लगी है तो जब तक यक़ीन से पता न हो कि वह कोई नापाकी है सिर्फ़ शक व शुबह की वजह से उस चीज़ को या कपड़े व बदन को नापाक नही कहा जा सकता चीज़ों में असल पाकी है नापाकी के लिये सबूत की ज़रूरत है पाकी के लिये किसी सबूत की ज़रूरत नहीं इस के लिये यह ही सबूत है कि वह नापाक नहीं है यानि जिस की नापाकी खूब अच्छी तरह मअलूम न हो वह पाक है।..✍🏻

*📕 फतावा रज़विया जिल्द नं0 4 सफ़हा 396,476 मतबुआ लाहौर*

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 112 📚*

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     ❝ शरअई आसानियों की जानकारी हासिल कीजिये!?❞
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 ┇𖠁 ➧ हदीस पाक में है कि हज़रत उमर फारूके आज़म और हजरत अमर बिन आस रदिअल्लाहु तआला अन्हुमा सफ़र में एक पानी के हौज़ (छोटे तालाब) के पास से गुज़रे नमाज़ पढ़ना थी वुज़ू के लिये पानी की ज़रूरत थी हज़रत अमर बिन आस हौज़ वाले से पूछने लगे कि तुम्हारे हौज़ से जंगल के शिकारी जानवर तो पानी नही पीते हज़रत उमर फारूके आज़म ने फरमाया कि ऐ हौज़ वाले हमें इस बारे में कुछ न बताओ।..✍🏻

*📕 मोता इमाम मोहम्मद सफ़हा 66 बाब अल वज़ू*

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 112 📚*

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     ❝ शरअई आसानियों की जानकारी हासिल कीजिये!?❞
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 ┇𖠁 ➧ इस हदीस की तशरीह फरमाते हुए आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ बरेलवी अलैहिर्ररहमा फरमाते हैं अगर कोई चीज़ हकीक़त में नापाक हो लेकिन हमें इसकी नापाकी का इल्म नहीं है तो वह हमारे लिये पाक है।

*📒 फतावा रज़विया जिल्द नं04 सफ़हा 516 मतबुआ लाहौर*

┇𖠁 ➧ *हदीस शरीफ में है।* रसूले ख़ुदाﷺ ने फरमाया जिन जानवरों का गोश्त खाया जाता है उनके पेशाब में कोई ख़ास हर्ज़ नही।..✍🏻

*📕 मिशकातुल मसाबीह सफ़हा 53 बाब ततहीरउन निजासात*

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 113 📚*

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     ❝ शरअई आसानियों की जानकारी हासिल कीजिये!?❞
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┇𖠁 ➧ हलाल जानवरों का पेशाब ऊँचाई पर उड़ने वाले परिन्दों का पाखाना ख़्वा। उनका गोश्त खाना नाजाईज़ हो यह सब निजासते खफ़ीफ़ा (हल्की नापाकी) है जब तक कपड़े के किसी हिस्से जैसे दामन आस्तीन वगैरह का चौथाई इसमें न सन जाये मअफ है और इसके साथ नमाज़ जाईज़ है।...✍🏻

*📕 फतावा आलमगीरी जिल्द नं01 सफ़हा 46 फ़सल 2*

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 113 📚*

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 ┇𖠁 ➧ *आला हज़रत इमाम अहमद रजा खाँ बरेलवी अलैहिर्ररहमा से पूछा गया क्या फरमाते हैंउलमाये दीन इस मसले में*

┇𖠁 ➧ बैलगाड़ी हांकने वाला जिसके पास एक कुर्ता और पाजामा है गाड़ी के किराये से पेट पालता है बैल हांकने में उनके पेशाब व गोबर की छींट बैल के दुम हिलाने से सब जगह बड़े बड़े दाग कपड़ों पर आये धोने की फुरसत नहीं मिलती इस सूरत में पंजगाना नमाज़ अदा करने की क्या सूरत है आला हज़रत अलैहिर्ररहमा जवाब में फरमाते हैं।बैलों का गौबर पेशाब निजासत खफ़ीफ़ा है जब तक चौथाई कपड़ा न सन जाये या मुताफर्रिक (अलग अलग) इतनी पड़ी हो कि जमा करने से चाहरम कपड़े की मिक़दार हो जाये कपड़े को नापाक नही कहा जा सकता और इससे नमाज़ जाइज़ होगी और बिलफर्ज़ इससे जाईद धब्बे भी हों और धोने से सच्ची मज़बूरी यानि हरजे शदीद हो तो नमाज़ जाईज़ है।

*📒 फतावा रज़विया जिल्द नं04 सफ़हा 570 मतबूआ लाहौर*

┇𖠁 ➧ यानी जो नपाकी मआफ है अगर इससे ज़्यादा भी हो और दूर करने धोने की कोई सूरत न हो यूँ ही नमाज़ पढ़ी जायेगी छोड़ी नही जायेगी।...✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 114 📚*

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     ❝शरअई आसानियों की जानकारी हासिल कीजिये!? ❞
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┇𖠁 ➧ इस्लामी फ़िक़ह की अरबी फ़ारसी उर्दू की सारी किताबों में यह लिखा है कि निजासत गलीज़ा जैसे इन्सान या हराम जानवरों का पाखाना पेशाब वगैरह अगर एक दिरहम की मिक़दार से कम कपड़े या बदन पर हो तो मअफ़ है और इसके साथ नमाज़ जाईज़ है।

┇𖠁 ➧ पेशाब करते वक़्त सूई की नोक के बराबर पेशाब की बारीक बारीक बुन्दकियां जो कपड़ों या बदन पर कूद कर आ जाती हैं वह मअफ़ हैं अगरचे तमाम कपड़े पर हों।...✍🏻

*📕 फ़तावा आलमगीरी सफ़हा 146 जिल्द नं01*

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     ❝ शरअई आसानियों की जानकारी हासिल कीजिये!?❞
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 ┇𖠁 ➧ इस क़िस्म की और बहुत से मसाइल और शरमी रियायतें फिक़ही किताबों में देखी जा सकती हैं पानी न मिलने या नुक़सान करने की सूरत में पाक मिट्टी से तयम्मुम करके नमाज़ पढ़ने के मसाइल भी इस शख़्स को मालूम होना या करना चाहिये जो नमाज़ी बनकर रहना और नमाज़ी बनकर मरना और क़यामत के दिन नमाज़ियों के साथ उठना चाहे कुछ जाहिल न ख़्वान्दे या नमाज़ की अहमियत से ना वाकिफ़ लोग इस क़िस्म की सहूलतों रिआयतों और आसानियों को सुनकर चौंकते बिदकते या एतराज़ करते हैं और अल्लाह व रसूलﷺ की तरफ़ से दी गई रिआयतों से फ़ायदा नहीं उठाते उनमे ज़्यादातर वह लोग हैं जो नमाज़ की अहमियत को नही जानते या नमाज़ें छोड़ने के बहाने तलाश करते हैं उनकी क़िस्मत में बे नमाज़ी रहना बे नमाज़ी मरना लिखा है और क़यामत के दिन कोई बहाना न चलेगा अल्लाह तआला ने नमाज़ छोड़ने के सारे हीले और रास्ते बन्द कर दिये हैं और जिस पर नमाज़ फर्ज़ है उसको हर हाल में पढ़ना ही है वरना क़ब्र व जहन्नम का आज़ाब वहां की पिटाई और ठुकाई झेल नहीं पायेंगे।..✍🏻

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     ❝ शरअई आसानियों की जानकारी हासिल कीजिये!?❞
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 ┇𖠁 ➧ भाईयो अक़्ल़े क्यों दौड़ाते हो आख़िर हराम वही है जिसमे अल्लाह व रसूलﷺ हराम कहें और हलाल वही है जिसको वह हलाल कहें शराब को हराम फरमाया गया है शहद और सिरके को हलाल अगर इसका उल्टा हुक्म दिया गया होता तो हम आप क्या करते ज़ाहिर है शराब को हलाल जानते शहद और सिरके को हराम तो ख़ुदा और रसूलﷺ की तरफ़ से जब कोई बात मालूम हो तो तुम क्यों चौंकते हो आख़िर इस्लाम व ईमान अल्लाह तआला का फरमान और उसके रसूलﷺ की ज़बान ही तो है।

┇𖠁 ➧  हमारे इस बयान से कोई यह न समझ ले कि हमने यह आम हालात में बग़ैर मज़बूरी के घर बैठे ख्वाहमोख्वाह नमाज़ के माअमले मे ला परवाही बरतने की इजाज़त दे दी है नमाज़ इस्लाम में सबसे ज़्यादा अहम ज़रूरी उम्दा काम है खूब अच्छी तरह मुकम्मल पाकी के साथ पूरी नमाज़ पढ़ना चाहिये। इस बयान से हमारा मक़सद सिर्फ़ यह है कि नमाज़ जिस पर फर्ज़ है उसको कभी किसी हाल में छोड़ा न जाये और ज़रूरत व मज़बूरी के वक़्त शरिअत की तरफ़ से जो इजाज़ते हैं उनसे फ़ायदा उठाना चाहिये और उनकी जानकारी और मालूमात रखना चाहिये।..✍🏻

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     ❝ सफ़र मे दो वक़्तों की नमाज़ों को इकठ्ठा करके पढ़ना!?❞
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 ┇𖠁 ➧ शरिअत में इसकी भी इजाज़त दी गई है और ज़रूरत के वक़्त नमाज़ी आदमी इस इजाज़त से फायदा उठा सकता है। और दो नमाज़ों को एक साथ इकट्ठा करके पढ़ सकता है।
  
┇𖠁 ➧ *बुख़ारी व मुस्लिम की हदीस है हज़रत अब्दुल्ला बिन अब्बास रदिअल्लाहु अन्हु फरमाते हैं।* रसूले ख़ुदाﷺ जब सफ़र में होते तो ज़ुहर व असर की नमाज़ एक साथ अदा फरमाते और मग़रिब व इशा को भी।

*📘 मिशकात बाबुस्सलात अल सफ़र सफहा 118*

┇𖠁 ➧ इसकी सूरत यह है कि पहली नमाज़ को इसके आख़िर वक़्त मे पढ़े और बाद वाली को बिल्कुल शुरू वक़्त में मसलन ज़ुहर में इतनी ताखीर करे कि बिल्कुल आखरी वक़्त हो जाये और इतना ही वक़्त बचे कि नमाज़ पढ़ी जा सके और फौरन बाद जैसे ही असर का वक़्त शुरू हो असर पढ़ ले ऐसे ही मग़रिब को आख़िर वक़्त में ईशा को शुरू वक़्त में पढ़ने से दोनो इकट्ठी हो जायेंगी लेकिन दोनों रहेंगी अपने अपने वक़्त में ऐसा करना किसी मज़बूरी की बिना पर बीमारी में या सफ़र में बारिश आंधी तुफान में बिला शुबाह जाईज़ है।..✍🏻

*📔 रदुलमुख्तार किताबुलसलात मतलब फ़ी तुलुउ अलशम्श जिल्द नं01 सफहा 271*
*📕फतावा रज़विया जिल्द नं0 5 सफ़हा 160 मतबुआ लाहौर*

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     ❝ सफ़र मे दो वक़्तों की नमाज़ों को इकठ्ठा करके पढ़ना!?❞
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 ┇𖠁 ➧ और इसी तरह दो वक़्त की नमाज़ों को जमा करना कि एक दूसरे के वक़्त में पढ़ी जाये इस को जमा हक़ीक़ी कहते हैं यह हज़रत अबू हनीफा रहमतुल्ला तआला अलैह के मज़हब में जाईज़ नहीं ख्वाह सफ़र में हों या घर पर लेकिन हज़रत इमाम शाफअई रहमतुल्ला तआला अलैह के मज़हब में सफर की हालत में यह भी जाईज़ है। हाँ वाकअई अगर सच्ची मज़बूरी और सख़्त ज़रूरत हो तो नमाज़ छोड़ने से दूसरे के मज़हब के मुताबिक नमाज़ पढ़ लेना बेहतर है क्योंकि चारों मज़हब हक पर हैं हाँ ख्वाहमुख्वाह बे ज़रूरत तन परवरी आसानी और आराम तलबी के लिये कभी किसी और कभी किसी मज़हब पर अमल करना ग़ैर मुक़लदियत और गुमराही है इसकी तफसील और तहक़ीक़ के लिये हमारी किताब *"तक़लीद शख़्सी ज़रूरी है"* का मुताअला करना चाहिये।

┇𖠁 ➧ आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां बरेलवी अलैहिर्ररहमा मक्का मोअज़्ज़मा से मदीना मुनव्वरा का अपना सफ़र बयान करते हुए फरमाते है।...✍

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     ❝ सफ़र मे दो वक़्तों की नमाज़ों को इकठ्ठा करके पढ़ना!?❞
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┇𖠁 ➧ क़ाफला ज़वाल (सूरज ढलने) के बाद ज़ोहर व असर पढ़कर रवाना होता और वक़्त मगरिब ख़फ़ीफ़ क़याम (बहुत थोड़ी देर ठहरता) करता ताकि लोग मग़रिव व इशा के फर्ज़ व वितर पढ़ लेते शाफई अपने मज़हब पर ऐसा करते और हनफिया बा ज़रूरत तक़लीद मज़हब ग़ैर पर आमिल होते कि वहाले ज़रूरत उन शराईत पर कि फ़िकह में मुफस्सल है ऐसा रवा (जाइज़) है।

*📗 फतावा रज़विया जिल्द नं.10 सफ़हा 674 मतबुआ लाहौर और जिल्द नं04 सफ़हा 672 मतबुआ मुबारकपुर*

┇𖠁 ➧ *और फरमाते हैं।* ज़रूरत अगर सही और वाक़ई हो तो फिर मरजूह क़ौल या दूसरे मज़हब पर मुब्तला शख़्स को चाहिये कि वह खुद अमल करे लेकिन मुफ़्ती हरगिज़ फतवा नही दे सकता।

*📗 फतावा रज़विया जिल्द नं.12 सफ़हा 482 मतबुआ लाहौर*

┇𖠁 ➧ दुर्रें मुख़्तार मे है और जो अदा बाज़ अहले इल्म के नज़दीक जाइज़ है वह बिल्कुल नमाज़ छोड़ देने से बेहतर है।...✍

*📕 दुरे मुख्तार किताबुस्सलात जिल्द नं.1 सफ़हा 61 मतबुआ मुजतबाई देहली और फ़तावा रज़विया जिल्द नं.23 सफ़हा 170*

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     ❝ सफ़र मे दो वक़्तों की नमाज़ों को इकठ्ठा करके पढ़ना!?❞
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 ┇𖠁 ➧ इसके अलावा वह सफ़र अगर शरअई हो तो मुसाफ़िर के लिये चार फ़र्ज़ो की जगह सिर्फ़ दो ही पढ़ना जाइज़ नही बल्कि वाज़िब है यह खास तोहफ़ा व ईनाम ख़ुदाये तआता ने मुसाफ़िरों को इनायत फरमाया है। सुन्नतें जो फ़र्ज़ो से पहले या बाद में पढ़ी जाती हैं वह सफ़र में भी पूरी पढ़ी जायेंगी उन में क़सर नही लेकिन अगर रवारवी ज़ल्दी और उलझन व परेशानी या ख़ौफ हो तो सुन्नतें पूरी माफ़ हैं यानि बिल्कुल ना पढ़े सिर्फ़ फर्ज़ पढ़ ले तो गुनाहगार नहीं।...✍

*📕 फतावा आलमगीरी जिल्द नं.1 वाब सलातुलमुसाफ़िर सफ़हा नं.139 और बहारे शरिअत हिस्सा 4 सफ़हा नं.78*

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     ❝ सफ़र मे दो वक़्तों की नमाज़ों को इकठ्ठा करके पढ़ना!?❞
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┇𖠁 ➧ नमाज़ की इस्लाम में कितनी अहमियत है और छोड़ने की किसी हालत में इजाज़त नही है इसका अन्दाज़ा आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी अलैहिर्रहमा के इस फ़तवे से लगाईये।किसी ने सवाल किया कि ज़ैद को ऐसी जगह नमाज़ का वक़्त आया कि दूर दूर तक ज़मीन तर और नापाक है और अगर सिजदा करता है तो कपड़े तर होकर नापाक होते हैं और कोई ऐसी चीज़ नही कि नीचे बिछाकर उस पर कपड़ा डाल कर नमाज़ पढ़े तो ऐसी सूरत में किस तरह नमाज़ अदा करे आला हज़रत अलैहिर्रहमा ने पहले तो साइल (पूछने वाला) को तंबीह फरमाई कि वे ज़रूरत सवालों को पूछने से रसूले ख़ुदाﷺ ने मना फरमाया है फिर अगर वाकी ज़रूरत है तो इस का जवाब कुरआन करीम में है।

┇𖠁 ➧ अल्लाह तआला किसी जान पर उसकी ताक़त से ज़्यादा बोझ नही डालता।...✍
    
*📕पारा नं. 2 आयत नं. 286* 

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     ❝सफ़र मे दो वक़्तों की नमाज़ों को इकठ्ठा करके पढ़ना!? ❞
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 ┇𖠁 ➧ *और फरमाया जाता है।* जहां तक हो सके अल्लाह से डरो पारा नं.16 आयत नं. 64 और फ़रमाता है।

┇𖠁 ➧ उसने तुम पर दीन में कोई तंगी नही की पारा नं. 22 आयत 78

┇𖠁 ➧ इसके बाद आला हज़रत अलैहिर्रहमा  जवाब देते हुए फरमाते हैं। कि वह शख़्स खड़े खड़े इशारे से नमाज़ पढ़े।

*📗 फतावा रज़विया जिल्द नं. 5 सफ़हा 344 मतबुआ लाहौर*

┇𖠁 ➧ अखीर बयान में अर्ज़ कर दूं कि इस सबका निचोड़ और खुलासा यह है कि नमाज़ के माअमले में बन्दे को चाहिये कि जहां तक मुमकिन हो एहतियात और तक़वे से काम ले और साथ ही साथ परेशानी व मज़बूरी के वक़्त यह भी न भूले कि क़बूलियत की कुंजी उसके दस्त ए क़ुदरत में है जो निहायत बख़्शने वाला मेहरबान है ग़फ़्फ़ार सत्तार और रहमान है।...✍

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     ❝ अच्छें लोगों की सुहबत इख़्तियार करों!?❞
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 ┇𖠁 ➧  दीनदार आदमी को दीनदार बनकर रहने के लिये ज़रूरी है कि वह किसी अच्छे आदमी और अगर मिल जाये तो बा अमल आलिम की सुहबत में कुछ न कुछ वक़्त ज़रूर गुज़ारा करे दुनिया के धंधों में लग कर इन्सान ख़ुदा से दूर होने लगता है और ध्यान व दिमाग दीन की तरफ़ से हटने लगता है।

┇𖠁 ➧  पांचों वक़्त की नमाज़ मी इसी लिये रखी गई है कि इन्सान दुनिया में लगकर बिल्कुल गाफ़िल न हो जाये बा अमल उलमा के चहरे भी ख़ुदा व रसूलﷺ और दीन की याद ताज़ा करते हैं लेकिन जब किसी अल्लाह वाले के पास जाओ तो चन्द बातों का ध्यान रखो।...✍

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 121 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  171

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     ❝अच्छें लोगों की सुहबत इख़्तियार करों!? ❞
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┇𖠁 ➧❶ उसके पास जितनी देर बैठो उसकी बाते सुनने की कोशिश करो ख़ुद कम से कम बोलो। 

┇𖠁 ➧❷ वह अगर ख़ामोश रहे तो तुम भी ख़ामोश बैठे रहो उसके पास ख़ाली और ख़ामोश बैठने में भी सवाब है और उसकी ख़ामोशी भी इबरत व नसीहत है। 

┇𖠁 ➧❸ अगर आपके बैठने से उसके काम में खलल महसूस हो वह उलझन महसूस करे तो हरगिज़ ना बैठो उसके मिज़ाज को समझने की कोशिश करो इल्म व फ़ज़ल वाले बे ज़रूरत और ज़्यादा मुलाकातों को पसन्द नही करते क्योंकि इससे उनका वह काम जिसकी वजह से वह इल्म व फ़ज़ल वाले है उसमे कमी आयेगी। 

┇𖠁 ➧❹ पांचों वक़्त की नमाज़ मुलाकात का बेहतरीन ज़रिया है दीदार भी हो गया अगर वह नमाज़ पढ़ाता है तो एक ख़ुदा वाले के पीछे नमाज़ पढ़ने का मौक़ा भी मिल गया और नमाज़ से पहले या बाद में सलाम व मुसाफा और कोई ज़रूरी मसले मसाइल की बात भी हो सकती है और जो ख़ुदा वाले होते हैं वह नमाज़ व जमाअत के पाबन्द ज़रूर होते हैं पांचों वक़्त की नमाज़ बा जमाअत मुसलमानों के लिये आपस में एक दूसरे से मुलाकात करने का भी बेहतरीन ज़रिया है।...✍

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 121 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  172

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     ❝ अच्छें लोगों की सुहबत इख़्तियार करों!?❞
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 ┇𖠁 ➧ अगर सुहबत के लिये कोई साहबे इल्म व फज़ल न मिल सके तो उलमा-ए-अहले हक़ व सदाक़त की लिखी हुई किताबों का मुतालअ करते रहना चाहिये चाहे थोड़े ही वक़्त के लिये सही क्योंकि किसी दीनी किताब का मुतालआ रोज़ाना करते रहना दीनदार आदमी के लिये बहुत ज़रूरी है किताबे साहिबे किताब की सुहबत का काम करती हैं और कोई दीनी किताब अगर एक बार पढ़ ली हो तो उसको दोबारा बल्कि यार बार बार पढ़ने से भी उकताना नहीं चाहिये क्योंकि क़ुरआन व हदीस और दीनी किताबों का पढ़ना सबसे अच्छा ज़िक्रे अमल और वज़ीफ़ा है।...✍

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     ❝ फ़ज़ूल  ख़र्ची  का  बयान!?❞
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┇𖠁 ➧  आजकल मेरी नज़र में दीन की राह का सबसे बड़ा रोड़ा आज के दौर के बढ़ते हुए फालतू खर्चे हैं जिन पर कन्ट्रोल किये बगैर इन्सान का दीनदार बनना तक़रीबन नामुमकिन है। इसी लिये मैंने चाहा इस बयान को मुस्तकिल एक उनवान के साथ ज़िक्र किया जाये भाईयो जब शैतान किसी को गुमराह और ख़ुदा से दूर करना चाहता है तो उस को फालतू इख़राजात का आदी बनाने में लग जाता है उसको नये इख़राजात की राहें सुजाता है उसके शौक बढ़ाता है उसको तरह तरह के अरमान पूरे करने और नये नये फैशन अपनाने मालदारों और अमीरों की शरीकी करने में लगा देता है यह खालूं वह पहन लूं यह करलूं वह करलूं यह बना लूं वह बना लूं में लगाकर उसको लालची नियत ख़राब बेईमान खाईन रिश्वत खोर,पराये माल पर नज़र रखने वाला हरामकार बना देता है और वह ख़्वाहिशात का गुलाम होकर ख़ुदा से दूर और शैतान से क़रीब हो जाता है।...✍

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 123 📚*

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     ❝ फ़ज़ूल  ख़र्ची  का  बयान!?❞
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 ┇𖠁 ➧  *हदीसे पाक में है अल्लाह के रसूलﷺ ने फरामाया।* दो भूखे भेड़िये अगर बकरियों के रेवड़ में छोड़ दिये जायें तो वह उन्हें इतना तबाह व बर्बाद नहीं करेंगे जितना कि माल दौलत और मर्तबे हासिल करने का लालच आदमी के दीन को तबाह कर देता है।

*📔 मिशकात किताबुरकाक सफहा 441*

┇𖠁 ➧  और लालच की बीमारी भी ज़्यादातर फ़ज़ूल ख़र्ची की वजह से पैदा होती है फ़ज़ूल ख़र्ची करने वाले दूसरों के काम में भी नहीं आ पाते क्योंकि उनके अपने शौक और ख़र्चे ही पूरे नही हो पाते हैं कि वह दूसरों के काम चलायें। माँ बाप रिश्तेदार और घर वालों से दूरी और नफ़रत बढ़ती रहती है और अक़्सर लड़ाई झगड़े रहते हैं देखते ही देखते अभी थोड़े दिनों में दुनिया से आपसी मुहब्बत और भाईचारगी ख़त्म होती जा रही है इसमें आज के दौर के फ़ालतू ख़र्चों को बहुत बड़ा दख़ल है और आने वाले वक़्त में कोई किसी का ना होगा सबको सिर्फ़ अपनी ही पड़ी होगी और जिसमें निकम्मापन और फ़ज़ूल ख़र्ची दोनो बीमारियां इकठ्ठी हो जायें वह हर ग़लत से ग़लत काम कर सकता है इस लिये उस से ऐसे बचना चाहिये जैसे शैतान से या काले नाग से और नई नस्ल के अक़्सर लोगों का हाल यह ही होगा और अल्लाह तआला से ख़ैर तलब करते रहना चाहिये।..✍

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     ❝ फ़ज़ूल  ख़र्ची  का  बयान!?❞
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 ┇𖠁 ➧  कभी इख़राजात की ज़्यादती की वजह से ज़्यादा कमाने की हवस इन्सान को इतना मसरूफ और बे फुरसत कर देती है कि उसे ख़ुदा की याद भी नही आती और मैं देख रहा हूँ कि बड़े बड़े पढ़े लिखे समझदार और दीनदार लोग भी आज शैतान के इस जाल में फंस चुके हैं और ख़ुद को नमाज़ी दीनदार बल्कि दीन का जिम्मेदार मौलवी आलिम पीर व फ़कीर व सूफ़ी और सज्जादा नशीन ख़्याल किये बैठे हैं हालांकि शैतान ने इन्हें उस कटीले जंगल और ख़ारदार झाड़ियों में ले जाकर पटख दिया है जहां से उनका लौटना अब बहुत मुश्किल है और ख़ुदा तआला की तौफीक़ सबसे बड़ी नेअमत है और जिसको ख़ुद अपनी जात में कमियां कोताहियां गलतियां और बुराईयां दिखाई देने लगें उस पर रब तआला का सबसे बड़ा एहसान है सबसे मुश्किल काम अपने ऐब दूर करना है और सब से आसान काम दूसरे के ऐब तलाशना है और फ़ज़ूल ख़र्च आदमी को कुरआने करीम में अल्लाह तआला ने शैतान का भाई इसी लिये फ़रमाया है कि फ़ज़ूल ख़र्ची और दीनदारी दोनों का जमा होना मुहाल की तरह है यानि यह बहुत मुश्किल है कि इन्सान फ़ज़ूल ख़र्च भी हो और दीनदार भी।..✍

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 124 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  176

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     ❝ इन्सान फ़ज़ूल ख़र्च कब होता है!?❞
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┇𖠁 ➧  फुज़ूल ख़र्च बनाने में ज़्यादातर हाथ तो इन्सान की अपनी ख़्वाहिशात की ज़्यादती का होता है कभी दूसरों की शरीकी और शान शेख़ी भी इन्सान से बे जा और ग़ैर ज़रूरी ख़र्चे कराती है माहौल व समाज को निभाने दुनिया के साथ साथ चलने के लिये वह न चहाते हुए भी फ़ालतू ख़र्च करता रहता है कि सब ऐसा करते हैं तो हम भी करें।

┇𖠁 ➧  भाईयो सबको मत देखो रब को देखो और अपनी पॉकेट और आमदनी पर नज़र रखो यह ही दुनिया जिसके साथ चलने और इससे निबाह करने के लिये आप ख़ुद को बर्बाद कर लेते हैं या ख़र्चे पूरे करने के लिये हराम तरीक़े से कमा कर खुदाए तआला को नाराज़ करते हैं यह ही दुनिया आपको धोका देगी और यह ही यार दोस्त आपकी बर्बादी के बाद आपकी हंसी उड़ायेंगे तबाही के दिनों में आपसे मुलाक़ात तक पसन्द नहीं करेंगे तो ऐसों को ख़ुश करने या उनके मुंह की तारीफ़ के चन्द जुमले सुनने के लिये ख़ुद को बर्बाद क्यों किये ले रहे हो भाईयो हरगिज़ किसी के कहने सुनने में न आओ एक दम सादा ज़िन्दगी गुज़ारिये वरना पछतायेंगे और अगर आप दीनदार बनना चाहते हैं तो फालतू ख़र्ची की आदत ज़ल्दी छोड़िये हाथ रोकिये इख़राज़ात की माअमले में सख़्त हो जाईये बख़ील और कंजूस नही बल्कि हाथ रोक कर ख़र्च करने वाला बनिये और जिस चीज़ और सामान के बग़ैर ज़िन्दगी गुज़र सकती हो या गुज़रती हो उसको हासिल करने की फ़िक्र मत रखिये आदतें ख़राब और ज़रूरयात को ज़्यादा मत होने दीजिये।..✍

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 125 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  177

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     ❝बहुत बड़े बेवकूफ़ !? ❞
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 ┇𖠁 ➧  मुझको बहुत बड़े बल्कि सबसे बड़े बेवकूफ़ वह लोग नज़र आते हैं कि अगर उन्हें खुशहाली हाथ आई कारोबार ठीक चल गया दिन अच्छे आ गये तो होश खो बैठते हैं और सारी दौलत और कमाई शान शेखी दिखाने या अहले मुहल्ला और रिश्तेदारों को चिड़ाने जलाने या वाहवाही हासिल करने के लिये फूंक देते हैं खाने पीने पहनने ओढ़ने रहने सहने में खूब पुर तकल्लुफ़ हो जाते हैं और फिर थोड़े ही दिनों में हाथ पर हाथ रखे बैठे पैसे पैसे को परेशान नज़र आते है और फिर सैलाब का पानी एक झटके में निकल जाता है और यह मछलियों की तरह खेतों जंगलों में सड़ते नज़र आते हैं मुझको ऐसे लोगों की बे मवकूफ़ी और पागलपन पर तरस आता है लेकिन जब यह आपे से बाहर होते हैं उस वक़्त उन्हे कोई समझा नहीं पाता है।..✍

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 126 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  178

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     ❝बहुत बड़े बेवकूफ़ !?  ❞
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┇𖠁 ➧ और जिसकी क़िसमत ख़राब हो जिसके मुक़द्दर में ज़िल्लत व रुसवाई और दर दर की ठोकरें लिखी हों उसकी अक्ल किसी की नसीहत क़बूल नही करती और बौराये हुए कुत्ते का कोई इलाज नहीं होता ऐसे लोगों के लिये शेख सादी ने फारसी में एक बहुत ही अच्छा शेर लिखा है जिसका मफ़हूम यह है।

┇𖠁 ➧ वह बेवकूफ आदमी जो दिन में वे ज़रूरत काफूरी चिराग रोशन करता है तुम ज़ल्द देखोगे कि कभी रात के वक़्त उसको चिराग के लिये तेल मैय्यसर नही होगा।

┇𖠁 ➧ यह ऐसे कम नसीब हैं कि फुज़ूल ख़र्ची करके खुदाऐ तआला को भी नाराज़ करते हैं और आख़िरत ख़राब करते हैं और बर्बाद होकर दुनिया में भी परेशानी उठाते हैं।...✍

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 126 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  179

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     ❝ठाट शाहाना और अंगूलियों का निशाना!? ❞
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 ┇𖠁 ➧ अभी जिन लोगों का हमने ज़िक्र किया उनसे भी बड़े बेवकूफ़ अहमक़ जाहिल और नादान वह लोग हैं कि जो घरों से अमीराना शाहाना ठाट बाट के साथ निकलते हैं शानदार और क़ीमती कपड़े पहने उम्दा उम्दा सवारियों पर बैठकर बाज़ारों में घूमते और सड़कों पर चलते फिरते तफरीह दिललगियां करते नज़र आते हैं और इधर उधर के लोग उनपर अंगूलियां उठाते हैं कोई कहता है मेरी दुकान पर इतने इतने पैसों की चाय पी गया है या पान खाये और बीड़ी सिगरेट पिये बैठा है इतने दिन हो गये लेकिन पैसे देने का नाम नही कोई कहता है कि मुझसे फलां काम कराया था इतने दिनों मैंने इसके यहां काम किया मजदूरी की लेकिन उजरत नही दे रहा है बे ईमान है डकैत है कोई कह रहा है कि लड़के या लड़की की बारात में खूब शान शेखी दिखाई लेकिन मेरी इतनी रक़म इतने दिनों से दबाये बैठा है देने का नाम नहीं कोई कहता है कि इसके घर की जवान लड़कियां आवारा घूमती है उनके यार दोस्त इसके यहां आते हैं यह उनकी कमाई खाता है और देखो कैसा नवाब बना घूम रहा है गर्ज़ कि तरह तरह से लोग उनकी तरफ़ अंगूली उठाते और उन्हे निशाना बनाते है मगर यह हैं कि अपने उम्दा कपड़ों में मगन है यारों दोस्तों के साथ मौज मस्ती करते घूम रहे हैं ख़ुद को इज़्ज़तदार बड़ा आदमी ख़्याल करते हैं हालांकि यह जानते ही नहीं कि इज्ज़त किसे कहते हैं मर्तबा और शान के मअना क्या हैं सही बात यह है कि इज़्जत तो अल्लाह तआला के दस्ते क़ुदरत में है जो जिसको चाहता है अता फरमाता है।...✍

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 127 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  180

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     ❝ ठाट शाहाना और अंगूलियों का निशाना!?ई❞
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 ┇𖠁 ➧ बात दरअसल यह है कि अब दुनिया में मुंह पर टोकने वाले न रहे हां में हां मिलाने वाले और चापलोस ज़्यादा हैं वरना ऐसे लोगों का तो घरों से निकलना मुश्किल हो जाता।

┇𖠁 ➧ भाईयो इज़्ज़तदार वह है कि ख़्वाब उसके कपड़े उम्दा न हों फटे पुराने और बोसीदा हों वह घटिया किसम की सवारी पर हो या पैदल चलता हो लेकिन उसकी तरफ़ कोई अंगूली नही उठे कोई यह कहने वाला न हो कि इस ने मेरे साथ ज़्यादती की है या मेरी बेईमानी की है बात को समझो और ख़ुद को सुधारो और सही मआना में इज़्ज़तदार बनो और इन सबका हल और बीमारियों का इलाज मज़हबे इस्लाम में है इस को पूरे तौर पर अपनाओ और सारी भलाई अल्लाह तआला के दस्ते क़ुदरत में है और वही तौफीक़ देने वाला है।...✍

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 128 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  181

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     ❝औरतें और बच्चे!? ❞
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 ┇𖠁 ➧ मैं देख रहा हूँ कि आजकल बहुत से वह लोग हैं जो सीधे भले और सादा मिज़ाज समझदार और दीनदार हैं लेकिन उनकी औरतों और बच्चों ने उन्हे फुज़ूल ख़र्च बना दिया और उनके आगे मजबूर या उनकी मुहब्बत में चूर हैं उनकी हैसियम घर में हल और कोल्हू के बैल से ज़्यादा नहीं यह बीवी बच्चों के इशारे पर नाचते हैं और बंगू बने घूमते हैं और बीवी बच्चे उमूमन नादान कम समझ होते हैं इनकी नज़र अंजाम पर नहीं होती वह यह नही देखते कि कल क्या होगा बे ज़रूरत घूमने फिरने और फालतू ख़र्चों और ज़्यादा शौकों अरमानों को पूरा करने का नतीजा क्या निकलेगा लिहाजा समझदार और दीनदार आदमी वही है जो बीवी बच्चों का ख़्याल रखे उनकी ज़रूरतों को पूरा करे ख़ुदा दे तो उन्हे परेशान और दुखी न होने दे लेकिन उनकी हर बात न माने उनका हर शौक़ पूरा न करे कभी सख़्त रहे और कभी नरम और दीनदार बनने के लिये अपने घरों पर कंट्रोल रखना ज़रूरी है वरना दीनदारी एक लिबादा और सिर्फ़ ओढ़ना बनकर रह जायेगी और मिम्बर पर ढोल बजेगा।...✍

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 128 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  182

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     ❝औरतों की एक ख़ास बीमारी!? ❞
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┇𖠁 ➧ काफ़ी औरतों में एक यह बीमारी पाई जाती है कि जब वह दुःखी और परेशान रहती हैं तो गिले शिकवे करती हैं और अपने आदमी की कम कमाई का रोना रोती फिरती हैं मुझको ऐसा मिल गया और मेरा पाला ऐसे से पड़ गया उसके साथ रहकर सब्र करने और उसको निभाने के बजाये उसकी बुराईयां करती हैं और अगर खाता पीता मिल जाये या ग़रीब शौहर पर कभी खुशहाली आजाये दिन बदल जायें तो फिर देखो यह कैसी आपे से बाहर हो जाती हैं हर वक़्त सुनारों और बाज़ारों की दुकानों के चक्कर किसी घर में कोई अनोखी चीज़ देख ली तो घर आकर शौहर से उसकी फरमाईश पचास तरह के कपड़े देख लिये मगर कोई रंग ही पसंद नही आ रहा है बेचारे सुनार ने छत्तीस नग दिखाये मगर उनकी समझ में कोई नही आ रहा है उसकी दुकान से उठीं तो उस पर जाकर बैठ गयी और बेचारे मियां भी घूम रहे हैं उनकी हैसियत उनके हाथ में हांडी की डोई और पतीली के चमचे से ज़्यादा नहीं रह गई काम धाम पट करके दिन भर बाज़ारों में घुमा रही हैं ख्वाहमाख्वाह बे मक़सद सबसे ताअल्लुक़ात बढ़ा लिये रिश्तेदारियां निकाल ली और कोल्हू के बैल को लिये इधर उधर फिर रही हैं इस बेचारे की दफ्तर में डांट पड़ रही है उन्हें इससे क्या मतलब? दुकान बन्द पड़ी है इन्हे इससे क्या मतलब ?...✍

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 128 📚*


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🅿🄾🅂🅃 ➪  183

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     ❝औरतों की एक ख़ास बीमारी!? ❞
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┇𖠁 ➧  मेरी इस्लामी बहनों मेरी दुआ है ख़ुदाये तअला तुम्हें आखिरत के साथ साथ दुनिया का भी ऐश व आराम और सुख नसीब फरमाये लेकिन यह तो बताओ यह तुमने अपना सारा ज़हन व दिमाग ज़ेवरों और कपड़ों के डिज़ाईनों और रंगो की छांट टटोल में क्यों लगा रखा है इस दिमाग का कुछ हिस्सा अल्लाह तआला का शुक्र अदा करने और उसकी याद के लिये भी रखो क्या तुम यही समझती हो कि कपड़ों और ज़ेवरों से तुम इज़्जत वाली बन जाओगी और जब शौहर बर्बाद होगा उसका धंधा ख़राब होगा तो क्या यह तुम्हारी बर्बादी न होगी और सबसे उम्दा कपड़ा और सबसे खूबसूरत ज़ेवर वह है कि जिसको पहन कर तुम अपने शौहर को अच्छी लगती हो और औरत का बनाओ सिंगार उसके शौहर कि लिये ही तो है तुम कितने ही छांट छांट कर कपड़े पहन लो जिस्म को ज़ेवरात से सजा लो लेकिन तुम अपने शौहर को मन से पसन्द नही तो तुम्हारी ज़िन्दगी वीरान है लिहाज़ा यह सब मअमलात शौहर पर ही छोड़ दो जो लाकर दे उसको ख़ुशी ख़ुशी इख़्तियार करो और कपड़ों ज़ेवरों और घरेलू गिरहस्ती की गैर ज़रूरी चीज़ों फ़ालतू बे जा अरमानों को निकालने में उसकी कमाई बर्बाद न करो।...✍

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 129 📚*
  
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🅿🄾🅂🅃 ➪  184

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     ❝ औरतों की एक ख़ास बीमारी!?❞
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 ┇𖠁 ➧ और ख़ुदा दे तो अच्छा खाओ अच्छा पहनो लेकिन छांट और टटोल में ज़्यादा वक़्त और ज़्यादा दिमाग न लगाओ वक़्त न ख़र्च करो वहम परस्त और बैरागी न बनो ज़्यादा वक़्त और ज़्यादा दिमाग अल्लाह तआला की याद में लगाओ और हर हाल में उसका शुक्र करो आजकल की नई नस्लों को नये नये फैशनों ने वहम परस्त बना दिया है और सारी खोपड़ी उन्होने रंग मैचों में और डिज़ाईनों में लगाकर खुद को फ़ैशन का गुलाम बना दिया है और नहीं जानते कि इज़्जत और शोहरत मर्तबे और नामवरी कपड़ों से हासिल नहीं की जा सकती बाज़ बाज़ बुढ़ियों के दिमाग इतने ख़राब हैं और ऐसी फ़ैशन में रंगी हुई हैं चेहरों पर झुर्रियां पड़ गई गाल लटक गये मगर बड़ी बी ने सारे दिन शापिंग कर ली कोई कपड़ा ही पसंद नहीं आया बच्चों से बाजी कहलवाने और बालों में डाई करवाने से ना इनकी उम्र घटेगी न बुढ़ापा टलेगा न मौत रूकेगी हर चीज़ की एक हद होती है दुनियादारी की भी एक हद है अरमानों और ख्वाहिशात का भी दायरा रखो वरना जिन्हे हम न समझा सके उन्हे मौत के फरिशते खूब समझायेंगे और दिन कितना ही लम्बा हो लेकिन सूरज ज़रूर डूबेगा और रात कितनी भी बड़ी हो लेकिन दिन ज़रूर निकलेगा।...✍

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 130 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  185

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     ❝बच्चों से कुछ न कहने का फ़ैशन!? ❞
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┇𖠁 ➧ औलाद से मुहब्बत भी ज़रूरी है लेकिन उस मुहब्बत की भी एक हद है ज़्यादा मुहब्बत औलाद से भी खतरनाक है आजकल कुछ घरों में औलाद से बे जा मुहब्बत करने वालों में और औलाद की मुहब्बत में ख़ुदा रसूलﷺ को भूल जाने वालों में एक फैशन निकला है कि "हम अपने बच्चों को कभी नही डांटते" वह कुछ भी कहें कुछ भी करें यह उनसे कभी नाराज़ तक नहीं होते।

┇𖠁 ➧ भाईयो औलाद से बेजा मुहब्बत करने वालों को अगर मैं समझाऊंगा तो उनकी समझ में बात शायद न आयेगी लेकिन तुम ज़ल्द ही देखोगे कि उनकी औलाद उनके लिये अज़ाब बना दी जायेगी और यह दुनिया ही में जहन्नम का नमूना देखेंगें यह तो न कभी डांटते थे न मारते थे न उनसे नाराज़ होते थे लेकिन नतीजे में यह औलाद पहले निकम्मी काहिल आराम तलब ऐश परस्त और फिर उन ख़राब आदतों की पूर्ति के लिये नशीली, शराबी, चोर डकैत या बदमाश बनेगी और उस पर ग़ैरों के लाठी डण्डे बरसेंगे या पुलिस की मार पड़ेगी तो इनकी आंखें फटी रह जायेंगी दिल कलेजे दहल जायेंगे और बुढ़ापे में जब यह ख़ुद औलाद से पिटेंगे तो उन्हें याद आयेगा कि अगर हमने इन्हें बचपन में नसीहत की होती तो दुनिया जहन्नम नही बनती।...✍

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 131 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  186

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     ❝ बच्चों से कुछ न कहने का फ़ैशन!?❞
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 ┇𖠁 ➧ औलाद से मुहब्बत तो लोग पहले भी करते थे लेकिन आज वह हद से ज़्यादा बढ़ रही है और देखने में यह आ रहा है कि औलाद से माँ बाप को मुहब्बत जितनी बढ़ती जा रही है औलाद को माँ बाप से मुहब्बत उतनी ही घटती जा रही है औलाद से मुहब्बत जाईज़ तो है लेकिन वह दुनिया है और माँ बाप से मुहब्बत ख़ालिस दीन है दुनिया बढ़ रही है दीन घट रहा है और जो औलाद से जितनी ज़्यादा और बेजा मुहब्बत करेगा तुम देखोगे उसकी औलाद उससे उतनी ही कम मुहब्बत करेगी।

┇𖠁 ➧ मैं ज़्यादा क्या कहुँ बस यह समझ लो कि बच्चों से बे जा मुहब्बत और उनसे कुछ न कहने डांटने और नसीहत न करने का फ़ैशन पागलपन से ज़्यादा नही है हदीसे पाक में भी अपने बाल बच्चों को सताने का तो नहीं लेकिन कड़ी नज़र रखने और ज़रूरत के वक़्त माअमूली सजा देने का हुक्म आया है और ख़ुदा रसूलﷺ का कोई फरमान हिकतम से खाली नहीं हां हर हिकमत हर एक पर हर वक़्त ज़ाहिर नही होती किसी की आंखें अभी खुली हुई हैं और किसी की तब खुलेंगी जब वह आग में खुद को डालेगा या कुएं मे गिर पड़ेगा।...✍

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 132 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  187

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     ❝बीबी बच्चों पर कंट्रोल करने की तरकीब और सीरते रसूलﷺ का एक नमूना!? ❞
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 ┇𖠁 ➧  बीवी बच्चों पर कंट्रोल करने और उन्हे क़ाबू में रखने के लिये मारपीट ही ज़रूरी नहीं बल्कि हिकमत और तदबीर से भी काम लिया जा सकता है। ख़ासकर औरतों के मामले में अगर वह ना फरमानी और सरकशी करें बे जा शौक पूरे करने के लिये जिद और इसरार करे ग़ैर ज़रूरी अख़राजात के लिये तंग और परेशान करें तो शौहर को चाहिये कि उस से कुछ दिन के लिये बोल चाल बन्द कर दे उससे अलग रहे और अलैहदगी इख़तियार करे यह तरक़ीब काफ़ी औरतों पर काफ़ी हद तक कारगर साबित होती है रसूले कौनैनﷺ की हयाते मुबारका और आपकी पाक साफ ज़िन्दगी में भी इसकी मिसाल मिलती है तफासीर व आहादीस और सीरत की तक़रीबन सारी किताबों में यह वाक्या मौजूद है।..✍

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 133 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  188

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     ❝बीबी बच्चों पर कंट्रोल करने की तरकीब और सीरते रसूलﷺ का एक नमूना!? ❞
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┇𖠁 ➧  आपकी पाक बीवियों ने आप से ज़्यादा ख़र्चे और ज़िन्दगी की आसाईश तलब की थी आप दुनिया से बे नियाज़ी रखते थे और ज़ाहिदाना ज़िन्दगी बसर फ़रमाते थे लिहाज़ा उनकी ख़्वाहिश को आपने क़बूल नहीं फरमाया और बीवियों से एक महीने के लिये अलैहदा रहे और उनसे तअल्लुकात कतआ कर दिये यहां तक कि कुरआन करीम की आयत मुबारका नाज़िल हुई जिस का तर्जुमा व मफहूम यह हैं।

┇𖠁 ➧ ऐ नबी अपनी बीवियों से फरमा दो अगर तुम दुनिया की ज़िन्दगी और उसकी आराईश (ऐश व आराम) चाहती हो तो आओ मैं तुम्हें माल दौलत दूं और फिर तुमको अच्छी तरह छोड़ दूं और अगर अल्लाह तआला और उसके रसूलﷺ और आख़िरत के घर चाहती हो तो बेशक अल्लाह तआला ने तुम में से नेकी वालियों के लिये बड़ा अज्र (सवाब) तैयार कर रखा है।...✍🏻
    
*📗 सूरह अहजाब रकुअ नंबर - 04*

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 134 📚*

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     ❝ बीबी बच्चों पर कंट्रोल करने की तरकीब और सीरते रसूलﷺ का एक नमूना!?❞
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 ┇𖠁 ➧  सुब्हान अल्लाह क्या ताअलीमात हैं और क्या इरशादात हैं वाक़ई इंसानियत का हर कमाल और खूबी जो किसी मख़लूक में हो सकती हैं वह तमाम की तमाम आपकी जात में मौजूद थीं काश अहले दुनियां ने आपकी प्यारी बातों और मुबारक सीरत को अपनाया होता ।

┇𖠁 ➧ लेकिन भाईयो औरतों से अलग रहना और उनसे कुछ दिन के लिये दूरी इख़तियार कर लेना भी मर्दो का काम है और यह भी बिना किसी मजबूरी के हर एक के बस की बात नहीं है सही माअना में मर्द वह है कि जो बीवियों में रहे तो उन्हे खुश रख सके और उनकी ख़्वाहिश पूरी कर दे और अल्हेदा और अलग रहने का नम्बर आये तो इसमें भी हिम्मत न हारे और नामर्द वह ही नही है जो औरतों की ख़्वाहिश पूरी न कर सके जो औरतों के बगैर थोड़ा वक़्त भी न गुज़ार सके उसकी मर्दानगी भी मुकम्मल नही और मर्द अगर हिम्मत से काम ले हमेशा उनकी ही न माने कभी अपनी भी उनसे मनवाये और अपनी बात मनवाने के लिये अड़ जाये और वह ज़िद करे तो कुछ दिनों के लिये अल्हेदगी इख़तियार करे तो देखा गया है कि औरतें मगलूब हो जाती हैं हार जाती हैं और मर्द के सामने झुक जाती हैं।..✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 136 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  190

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     ❝मकानात बनाने के फ़ालतू ख़र्चे !? ❞
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┇𖠁 ➧  मकान बनाने का मक़सद आंधी,बारिश, धूप, सख़्त क़िस्म की सर्दी और गर्मी से अपने जिस्म की और चोर डकैतों से अपने जान व माल की हिफाज़त करना है, औरतों को ग़ैर महरम मर्दो की नज़रों से बचाना भी मकानात बनाने के मक़ासिद में शामिल है और यह मक़ासिद सादा मकान से काफ़ी हद तक हासिल हो जाते हैं अगर आप मिट्टी या फप वगैरह के कच्चे मकानों के आदी नही हैं तो ईट या पत्थर के पक्के मकानात बनाने में भी कोई हर्ज़ नही है प्लास्टर रंगाई पुताई वगैरह जैसे काम भी अगर सफाई सुथराई के पेशे नज़र किये जायें तो कोई बुराई नही है मौसम के लिहाज़ से या रहने वालों की ज़्यादा तआदाद की वजह से बालाखाने यानि दूसरी तीसरी मंजिलें बनना भी कोई गुनाह नही है लेकिन यह नये नये नमूनों तरह तरह की सजावटों और डिजाईनों और रंग बिरंगे क़ीमती पत्थरों के लगाने के लिये रक़में ख़र्च करना और पैसे को बर्बाद करना अगरचे जाईज़ कमाई से हो लेकिन मैं समझता हूँ कि यह उन लोगो के काम नहीं है जो ख़ुदा व आख़रत पर मजबूत अक़ीदा रखते हैं क़ब्र व हश्र की फ़िक्र रखते हैं और जिनकी नज़र मरने के बाद की ज़िन्दगी पर लगी हुई है।..✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 137 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  191

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     ❝ मकानात बनाने के फ़ालतू ख़र्चे !?❞
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 ┇𖠁 ➧  और हराम या बे रहमी से कमा कर जो लोग मकानों को खूब सजाने और संवारने में लगे है उन्हे तो जहन्नम ही समझायेगी और क़ब्र ही उन्हे उन सजावटों का मज़ा चखायेगी और ज़्यादा खूबसूरत मकान बनाने से आदमी को इज्ज़त व जन्नत नही मिलती यह तो ईमानदारी से कमाने से मिलती है।

┇𖠁 ➧  भाईयो अगर दीनदार बनकर रहना चाहते हो और ख़ुदा ने तुम्हे दिया है तो ज़रूरत भर ऐसे मकान बना लो जिसके ज़रिये जाड़े, गर्मी, आंघी, तुफान, बारिश, धूप से हिफाज़त हो सके कीचड़ और गंदगी से बचा जा सके इतने ही को बहुत समझो और खुदा का शुक्र अदा करो और मेरी मानो तो सजावटों आराईशों और तरह तरह के डिज़ाईनों नमूनों में अपना दिमाग और पैसे को बर्बाद मत करो दुनिया में ज़रूरत के लायक मकान बनाकर क़ब्र की फ़िक्र करो।..✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 138 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  192

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     ❝मकानात बनाने के फ़ालतू ख़र्चे !? ❞
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 ┇𖠁 ➧  जिनके मकानों से काम करने वाले मेअमार व मिस्त्री सालो साल नहीं निकल रहे हैं यह लोग खुदाये ताआला को भूल गये हदीस पाक में है रसूले ख़ुदाﷺ ने फरमाया सब ख़र्चे राहे ख़ुदा में हैं सिवाये बिल्डिंगे बनवाने के

*📗मिशकात किताबुल रिक़ाक़ फसल दोईम सफ़हा 441*

┇𖠁 ➧  *इसी से मुत्तसिल आगे एक दूसरी हदीस. का तर्जुमा मुलाहिज़ा फ़रमाईये?* हज़रत अनस रदिअल्लाह अन्हु कहते हैं रसूलुल्लाहﷺ एक दिन तशरीफ़ ले गये हम हुज़ूरﷺ के साथ थे तो हुज़ूरﷺ ने एक बुलन्द (ऊंची) इमारत देखी तो फ़रमाया यह क्या है सहाबा ने अर्ज़ किया कि यह फलां अंसारी का मकान है तो हुज़ूरﷺ खामोश हो गये और यह बात दिल में रखी यहां तक कि जिसकी वह इमारत थी वह हाज़िर हुए और आप को भरे मजमे में सलाम किया तो हुज़ूरﷺ ने मुंह फेर लिया उन्होने यह कई बार किया यहां तक कि उन्होने समझ लिया कि हुज़ूरﷺ मुझसे ख़ुश नहीं हैं सहाबा से इस नाराज़गी का ज़िक्र किया उन्होन बताया कि हुज़ूरﷺ ने तुम्हारी कोठी को देखा था। फिर वह साहब वापस लौटे और अपनी इस बिल्डिंग को गिराकर जमीन के बराबर कर दिया एक बार फिर हुज़ूरﷺ उस जगह से गुज़रे तो वह इमारत न देखी सहाबा से पूछा वह कोठी क्या हुई अर्ज़ किया गया इसके मालिक ने आपकी नाराज़गी को जानकर उसको ख़त्म कर दिया इस पर फरमाया हर इमारत इनसान के लिये वबाल है मगर वह कि जिसके बगैर चारा न हो और जिसकी ज़रूरत हो इस क़िस्म की आहादीस के पेशे नज़र उलमा ने फ़रमाया इस्लाम में बे ज़रूरत शौकिया इमारतें (बिल्डिंगे) बनाने की इजाज़त नहीं और यह आदत ना पसंदीदा है।..✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 138 📚*

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     ❝ ज़रूरत से ज़्यादा कपड़े !?❞
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┇𖠁 ➧  कपड़े और लिबास पहनना इंसानी ज़रूरत और फ़ितरत का तक़ाज़ा है हलाल कमाई से अगर कोई शख़्स खुशहाल है तो वह अच्छे उम्दा और क़ीमती कपड़े भी पहन ले तो कोई गुनाह नही है लेकिन ज़रूरत से ज़्यादा फ़ालतू कपड़ों पर कपड़े बनाने की आदत फुज़ूल ख़र्ची है एक अच्छे सच्चे और दीनदार मुसलमान का काम नहीं है ज़्यादा से ज़्यादा तीन वरना दो जोड़ कपड़े इंसान की ज़रूरत के लिये काफ़ी हो जाते हैं जब तक उनमें का एक फट न जाये हरगिज़ दूसरा लिबास न बनवायें उसी में समझदारी है और यह ही दीनदारी है मगर आज कल मैं देख रहा हुँ हमारे बहुत से वह भाई जो बड़े समझदार बनते हैं और दीनदार कहलाते हैं लेकिन इन्हे भी कपड़ों पर कपड़े बनाने का मर्ज़ है सूटकेस अटैचियां और सन्दूक भरे हुए हैं लेकिन जनाब की समझ में इनमें से कोई लिबास नही आ रहा बाज़ार गये और नये नये चार जोड़े और ले आये तुम देखोगे यह फुज़ूल ख़र्च ईमानदार बनकर दुनिया से नहीं जा सकेंगे ओर उनके यह फ़ालतू शौक़ उन्हे बेईमान ख़ाईन और हरामखोर बनाकर छोड़ेंगे यह ख़ुद को बड़े हज़रत ही समझते रहेंगे हालांकि यह शैतान के घेरे में आ चुके हैं और जहन्नम से क़रीब हो चुके हैं और सब से बड़े घाटे में वह है जो ग़लत रास्ते पर चलता हो और खुद को सही समझे हुए है।...✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 138 📚*

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     ❝ ज़रूरत से ज़्यादा कपड़े !?❞
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 ┇𖠁 ➧  आजकल बयाह शादी बच्चा पैदा होने वग़ैरह के मौक़े पर एक दूसरे को हदिये तोहफ़े और न्योते में कपड़े जोड़े देने का रिवाज हद से आगे बड़ गया है ज़रूरत है तो नहीं है तो बेमक़सद बे ज़रूरत जोड़े दिये जा रहे हैं इसके बजाये उसको ऐसी कोई चीज़ दे दें जिसकी उसको ज़रूरत हो या रूपये पैसे देदें ताकि वह अपनी किसी भी ज़रूरत में उसको ख़र्च कर सके और ज़रूरत न हो तो न्योते तोहफ़े हदीये देना फर्ज़ और वाजिब भी नहीं दूसरों को हदिये तोहफ़े देने के चक्कर में पड़कर तेरी मेरी बेईमानी करने के बजाये हलाल कमाई से अपने बच्चों की परवरिश करना अपने घर को चलाना एक दीनदार आदमी के लिये बहुत काफ़ी है यह भी सबसे बड़ा और पहला अफ़ज़ल हदिया तोहफ़ा और खैरात है।..✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 139 📚*

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     ❝ज़रूरत से ज़्यादा कपड़े !? ❞
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┇𖠁 ➧ *हदीस पाक में है रसूले पाकﷺ ने फरमाया।* पहले उन पर ख़र्च करो जो तुम्हारी परवरिश में हैं और फरमाते है!

┇𖠁 ➧  सबसे बड़ा सवाब उसमे है जो तुमने अपने घर वालों पर ख़र्च किया और फ़रमाते हैं।

┇𖠁 ➧  मुसलमान सवाब की नियत से घर वालों के लिये जो ख़र्चा करे वह भी सदक़ा है।

*📗हदीसें मिशकात बाब अफज़ल ससद्क़ा फसल अव्वल सफ़हा 170*

┇𖠁 ➧ इस दौर में कपड़ों की ज़्यादती में आजकल के फैशन का भी बहुँत बड़ा दखल है मैं देख रहा हूँ कि फ़ैशन के चक्कर में बहुत लोग तबाह और बर्बाद या फिर पागल से हो गये हैं कोई नया फ़ैशन चला और फिर पहले से बने हुए हज़ारो लाखो रूपये के कपड़े सब बेकार और कूड़ा हो गये पता नहीं लोगों को क्या हो गया और खुदा व आखिरत को इतना क्यों भूल गये हैं भाईयो इस बात को मत भूलो कि शान व इज़्ज़त कपड़ों से नहीं मिलती बल्कि वह तो जिसको अल्लाह तआला चाहता है उसको अता फरमाता है।..✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 140 📚*

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     ❝ ज़रूरत से ज़्यादा कपड़े !?❞
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 ┇𖠁 ➧  आजकल के नये नये फ़ैशन शैतानियत का दूसरा नाम है बल्कि इंसान को फांसने बर्बाद करने के लिये शैतान का एक कामयाब जाल है और मुसलमान के लिये सब फ़ैशनों पर भारी उसका इस्लामी लिबास है जो हर दौर में एक सा ही रहता है और दीनदार मुसलमान उन पागलों की तरह नही है जो फ़िल्मी ज़नखों के चक्कर में आकर ख़ुद को बर्बाद करे इस पर तो जो रंग चढ़ गया वह चढ़ गया ऐ मेरे इस्लामी भाईयो बहनों ख़ासकर नौजवान बच्चे और बच्चियो यह फ़ैशन एक शैतानी धोका है ना इससे ख़ूबसूरती बढ़ती है न इज़्ज़त व शान बल्कि बर्बादी आती है ख़र्चे बढ़ते है दिमाग परेशान रहता है।

┇𖠁 ➧  औरतें और लड़कियां फ़ैशन के चक्कर में बिल्कुल नंगी होती जा रही हैं चेहरा तो बहुत दूर रहा अब तो जिस्म का हर हिस्सा दिखाया जा रहा है और इंसान एक दम शैतान होता चला जा रहा है आओ हमारे इस दर्द को बांटो इंसान बनो और दुनिया से इंसान बनकर जाओ कपड़े बदन और जिस्म की देखभाल के बारे में आखिरी मशंवरह यह है कि न तो इन्सान को मैला गन्दा और बे ढंगा रहना चाहिये और न ही इस माअमले में वहमी होना चाहिये कि सारा दिमाग इन्ही में लगा दे और हर वक़्त इन्ही की फ़िक्र में लगा रहे।..✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 140 📚*

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     ❝ भात और छोछक की रस्में!?❞
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 ┇𖠁 ➧  औरतें अपने बच्चों के शादी के मौक़े पर शादी से पहले अपने मायके वालों के यहां भात मांगने जाती हैं जिसका मतलब यह है कि उन्हे शादी में सब घर वालों या पूरे खानदान के लिये जोड़े लेकर आना है इस रस्म की वजह से काफ़ी लोगों को मैंने बर्बाद व परेशान होते देखा है एक बड़ी तअदाद उन लोगों की होती है कि जिनका मौक़ा नही लेकिन उधार कर्ज़े लेकर वह ऐसा करते हैं सूदी कर्ज़े भी लेना पड़ जाते हैं और जिसके लिये वह कपड़े लेकर आते हैं उनमें से कोई एक भी ऐसा नही होता जिसको कपड़ों की ज़रूरत हो और वह कपड़ों से नंगा हो और लाने वाला बर्बाद हो जाता है मगर हमारी मांऐ बहनें सलामत रहें वह उन रस्मों के कहां मिटने देगी इन्हें तो दुनिया में आग लगाना है कोई बर्बाद हुआ करे किसी का दिवाला निकला करे भगर कोई रस्म पूरी होने से न रह जाये हमारे इलाके की कुछ क़ौमों में इस भात की रस्म को झूटन भी कहा जाता है।..✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 141 📚*

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     ❝भात और छोछक की रस्में!? ❞
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┇𖠁 ➧  औरत के पहला बच्चा पैदा होने पर भी मायके वालों के ज़िम्मे उसके तमाम खानदान वालों को कपड़े और जोड़े देना ज़रूरी समझा जाता है उसको छोचक कहते हैं शरअई नुक़्ता-ए-नज़र से उन रस्मों में कई तरह की ख़राबियां हैं और यह सब रस्में ग़ैर मुस्लिमों से मुसलामनों में आयी हैं मुसलामानों के लिये ज़रूरी है वह उन्हे मिटाने कम अज़ कम अपने घर से ख़त्म करने की कोशिश ज़रूर करें ताकि इस्लामी माहौल दुनियां के सामने आये और ग़लत रस्म व रिवाज को मिटाने के लिये हिम्मत व हौसले की ज़रूरत होती है जो ग़लत काम पहले से होता चला आया हो उसके खिलाफ़ करना और चलना मर्दो, बहादरों और अल्लाह वालों का काम है।...✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 142 📚*

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     ❝ बीमारी मे न्योते देने का रिवाज़ डालिये!?❞
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┇𖠁 ➧  ख़तना, ब्याह शादी अक़ीक़ा वग़ैरह की तक़रीबात के मौक़े पर लोग एक दूसरे के यहां जाते हैं तो न्योते देते हैं जो लिखे भी जाते हैं मैं कहता हुँ यह कोई ज़रूरी तो नही है वह अपनी ख़ुशी से दावत करता है उससे कोई कहता तो नहीं कि तुम हमारी दावत करो फिर ख़ुद दावत करना फिर जिस घर में खाना खिलाया जा रहा है उसके दरवाज़े पर न्योते लिखने वालों को बैठाना मेरी समझ में नही आता जब आपके बस की बात न थी तो आपने लोगों को खाने के लिये क्यों बुलाया और जब बुलाया फिर यह कागज़ क़लम लेकर क्यों बैठाया मैं पूछता हुँ यह दावतें हैं या होटल ज़ाहिर है कि कोई इज़्ज़तदार शरीफ़ बा ग़ैरत आदमी उसके पास उस वक़्त कुछ देने और लिखाने को न हो तो वह आपकी दावत से महरूम रहेगा और लेने की नियत से न्योता देना इस्लामी एतबार से पसन्दीदा नहीं है कुरआने करीम में है *ज़्यादा लेने के लिये एहसान न करो!* ...✍🏻

*📕 सूरह मुदस्सिर पारा 29 रूकुउ नं.15* 

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 142 📚*

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     ❝ बीमारी मे न्योते देने का रिवाज़ डालिये!?❞
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┇𖠁 ➧  उसके बजाये लोग एक दूसरे के यहां बीमारों की अयादत को जायें तो मदद के तौर पर दस बीस सौ पचास रूपया देकर आने का रिवाज़ बन जाये तो निहायत अच्छा होगा ब्याह शादी वग़ैरह में कोई लाज़मी ख़र्चा नही बस जितना होता या मिलता है उतना ही ख़र्च के माअमले में उसका दिमाग ख़राब होता है बीमारों में ऐसे कितने होते हैं कि घर में एक ही कमाने वाला है वही चारपाई पर पड़ गया उधर कमाई का रास्ता बन्द उधर इधर इलाज़ व दवा के ख़र्चे और घरेलू ख़र्चों के साथ सर पर आ पड़े दूसरी तरफ़ आने जाने वालों की मेहमानी।...✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 143 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  201

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     ❝बीमारी मे न्योते देने का रिवाज़ डालिये!? ❞
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┇𖠁 ➧ यह अजीब माहौल है ब्याह शादी ख़तना अक़ीक़ा में तो एक दूसरे के यहां जाते हैं तो ख़ूब देकर आते हैं और बीमार व परेशान की मिज़ाज पुर्सी को जाते हैं तो उसके यहां खूब ढूंस ढूंस कर आते हैं और बीमारी व मौत में मेहमान नवाज़ी कभी कभी कोढ़ में खाज और घूंसे पर लात का काम करती है मेरा मशवरह तो यह ही है कि बीमारों की मिजाजपुर्सी में कुछ न कुछ मदद के तौर पर देने का रिवाज़ बनाया जाये खासकर गरीबों नादारों को और वह बीमार आदमी अगर साहिबे निसाब न हो तो ज़कात व उशर और सदक़ा-ए-फ़ितर भी दिया जा सकता है और उसको बताना भी ज़रूरी नही कि ज़कात है और लेने वाले को शर्म नही करनी चाहिये आख़िर ब्याह शादी के मौके पर भी तो न्योते लिखवाने के लिये किसी को बैठाया जाता है उस वक़्त शर्म नहीं आती।...✍🏻

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🅿🄾🅂🅃 ➪  202

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     ❝ आख़िरी बातें!? ❞
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┇𖠁 ➧  यह किताब मैनें यह सोचकर नहीं लिखी है कि इसको पढ़कर सब लोग सच्चे और पक्के मुसलमान बन जायेंगे लेकिन मैं ना उम्मीद भी नहीं हूँ सब न सही लेकिन कुछ न कुछ लोग ज़रूर अपने अन्दर सुधार लायेंगे अलबत्ता कम अज़ कम इतना तो ज़रूर है कि हम अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं सबको मरना है हमे भी मरना है और मौत का कुछ पता भी नहीं कि कब आ जाये और मरने से पहले अल्लाह तआला और उसके रसूलﷺ का पैगाम ज़बान व क़लम के ज़रिये बन्दगाने ख़ुदा तक पहुंचाना मैंने ज़रूरी समझा दिल में डालना तो अल्लाह तआला ही का काम है हमारा काम तो पहुंचाना था वह हमने पहुंचा दिया अब कोई माने ना माने उसको वह जाने लेकिन क़यामत के रोज़ यह मत कहना कि हमे किसी ने बताया न था, हमें जो मालूम था वह बता दिया और हमसे जैसे हो सका हमने वैसे समझा दिया अगर उससे और अच्छी तरह हमें समझाना आता तो हम वैसे समझाते हम तो सिर्फ़ ज़बान से बोलकर क़लम से लिखकर चले अब अल्लाह तआला से दुआ है ज़ल्द अज़ ज़ल्द अल्लाह तआला ऐसे बन्दे भी पैदा फरमा दे जो उसका दीन नाफ़िज करें और इस्लामी एहकाम पर लोगों को चला भी सकें मुआशरे और समाज से हर ग़ैर इस्लामी बात निकालकर फेक दें और इस्लामी राज हो और इस्लामी काज़ और मरने से पहले वह दौर हमें भी दिखा दे।

┇𖠁 ➧  और उन मुजाहेदीन के सद्के में हमारी भी मगफ़िरत बख़्शिश फरमा दे और कयामत के दिन की शर्मसारी से बचा ले और वह अल्लाह तआला ही है जो बहुत सुनने वाला और जानने वाला है और दुआओं को क़ुबूल फरमाने वाला है।..✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 175 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  203

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     ❝ मालदारो से दो बातें!?❞
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┇𖠁 ➧  ऐ मेरी क़ौम के अमीरो, मालदारो, सरवराहो, हुकूमत व इक़तिदार वालों ज़बान और बात में असर रखने वालों तुम अगर चाहों तो काफ़ी दीन फैल सकता है मगर अफ़सोस तुम मज़हबे इस्लाम और ख़ुदा व रसूलﷺ के लिये मुंह के दो बोल देने के लिये तैयार नहीं हो लोग तुमसे दबते हैं डरते हैं अपनी ज़रूरतों और मतलब के लिये तुम्हारे पास आते हैं तो ज़ाहिर है कि तुम्हारी बात उनपर असर करेगी तुम क्यों नहीं बोलते और हक़ समझाते और क्यों नहीं प्यार मुहब्बत के साथ दीन की तबलीग करते और ज़रूरत पड़ने पर अपनी खुदादाद ताक़त व कुव्वत और दौलत का इस्तेमाल करतें।

┇𖠁 ➧ मुबारक है वह ताक़त व कुव्वत इक़तेदार व हुकूमत दौलत व शौहरत जो दुनिया मे दीन क़ायम करने और बुराईयां हरामकारियां मिटाने के काम मे आ जाये।...✍🏻

*📬 आओ  दीन  पर  चलें  सफ़ह - 176 📚*

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*📮 पोस्ट मुकम्मल हुई अल्हम्दुलिल्लाह 🔃* ••──────────────────────••►









सीरते मुस्तफ़ा ﷺ 💚

 الصلوۃ والسلام علیک یاسیدی یارسول الله ﷺ  सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 01) * सीरत क्या है.!? * कुदमाए मुहद्दिषीन व फुकहा "मग़ाज़ी व सियर...