Monday, 30 September 2024

नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात


 
नजात दिलाने वाले आ'माल की तारीफ़ात (Part -01)

(1) निय्यत की तारीफ : "निय्यत लुगवी तौर पर दिल के पुख्ता (पक्के) इरादे को कहते हैं और शरअन इबादत के इरादे को निय्यत कहा जाता है!

(2) इख्लास की तारीफ : "किसी भी नेक अमल में महज़ अल्लाह عَزَوَجَلَّ की रिज़ा हासिल करने का इरादा करना इख्लास कहलाता है!

(3) शुक्र की तारीफ़ : तफ्सीरे सिरातुल जिनान में है : "शुक्र की तारीफ़ येह है कि किसी के एहसान व ने मत की वज्ह से जबान,दिल या आ'जा के साथ उस की ता'जीम करना!"

(4) सब्र की तारीफ : "सब्र" के लुगवी माना रुकने, ठहरने या बाज़ रहने के हैं और नफ्स को उस चीज़ पर रोकना (या'नी डट जाना) जिस पर रुकने (डटे रहने का) का अक्ल और शरीअत तकाज़ा कर रही हो या नफ्स को उस चीज़ से बाज़ रखना जिस से रुकने का अक्ल और शरीअत तकाज़ा कर रही हो सब्र कहलाता है!

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह 05

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नजात दिलाने वाले आ'माल की तारीफ़ात (Part -02)

बुन्यादी तौर पर सब्र की दो किस्में हैं :

(1) बदनी सब्र जैसे बदनी मशक्कतें बरदाश्त करना और इन पर साबित क़दम रहना।

(2) तबई ख्वाहिशात और ख्वाहिश के तकाज़ों से सब्र करना। पहली किस्म का सब्र जब शरीअत के मवाफिक हो तो काबिले तारीफ होता है लेकिन मुकम्मल तौर पर तारीफ़ के काबिल सब्र की दूसरी किस्म है!

(5) हुस्ने अख़्लाक़ की एक पहलू के ए'तिबार से तारीफ : "हुस्न" अच्छाई और खूब सूरती को कहते हैं, "अख़्लाक़" जम्अ है "खुल्क" की जिस का मा'ना है "रवय्या, बरताव, आदत "या'नी लोगों के साथ अच्छे रवय्ये या अच्छे बरताव या अच्छी आदात को हुस्ने अख़्लाक़ कहा जाता है।         

इमाम गज़ाली عَلَیْہِ رَحمَۃُ اللّٰهِ الْوَالِی फ़रमाते हैं: "अगर नफ्स में मौजूद कैफ़िय्यत ऐसी हो कि इस के बाइस अक्ली और शरई तौर पर पसन्दीदा अच्छे अफ्आल अदा हों तो उसे हुस्ने अख़्लाक़ कहते हैं और अगर अक्ली और शरई तौर पर ना पसन्दीदा बुरे अफ़आल अदा हों तो उसे बद अख़्लाकी से ता'बीर किया जाता है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह 12

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नजात दिलाने वाले आ'माल की तारीफ़ात (Part -03)

(6) मुहासबए नफ्स की तारीफ़ : मुहासबे का लुगवी मा'ना हिसाब लेना, हिसाब करना है और मुख्तलिफ़ आ'माल करने से पहले या करने के बाद इन में नेकी व बदी और कमी बेशी के बारे में अपनी ज़ात में गौरो फ़िक्र करना और फिर बेहतरी के लिये तदाबीर इख्तियार करना मुहासबए नफ़्स कहलाता है!

हुज्जतुल इस्लाम इमाम मुहम्मद गज़ाली عَلَیْہِ رَحمَۃُ الله الْوَالِی फ़रमाते हैं : आ'माल की कसरत और मिक्दार में ज़ियादती और नुक्सान की मा'रिफ़त के लिये जो गौर किया जाता है उसे मुहासबा कहते हैं, लिहाज़ा अगर बन्दा अपने दिन भर के आ'माल को सामने रखे ताकि उसे कमी बेशी का इल्म हो (कि आज मैं ने नेक आ'माल जियादा किये या कम किये) तो येह भी मुहासबा है।

(7) मुराक़बे की तारीफ़ : मुराक़बे के लुगवी माना निगरानी करना, नज़र रखना, देख भाल करना के हैं, इस का हक़ीकी मा'ना अल्लाह عَزَّوَجَلَّ का लिहाज़ करना और उस की तरफ़ पूरी तरह मुतवज्जेह होना है। और जब बन्दे को इस बात का इल्म (मा'रिफत) हो जाए कि अल्लाह عَزَّوَجَلَّ देख रहा है, अल्लाह عَزَّوَجَلَّ दिल की बातों पर मुत्तुलअ है, पोशीदा बातों को जानता है, बन्दों के आ'माल को देख रहा है और हर जान के अमल से वाकिफ़ है, उस पर दिल का राज़ इस तरह इयां है  जैसे मख्लूक के लिये जिस्म का ज़ाहिरी हिस्सा इयां होता है बल्कि इस से भी ज़ियादा इयां है, जब इस तरह की मा'रिफत हासिल हो जाए और शक यकीन में बदल जाए तो इस से पैदा होने वाली कैफ़िय्यत को मुराकबा कहते हैं!

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह 13

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नजात दिलाने वाले आ'माल की तारीफ़ात (Part -04)

 (8) मुजाहदे की तारीफ़ : मुजाहदे जहद से निकला है जिस का मा'ना है कोशिश करना ,मुजाहदे का लुगवी माना दुश्मन से लड़ना, पूरी ताकत लगा देना, पूरी कोशिश करना और जिहाद करना है। जब कि नफ्स को उन गलत कामों से छुड़ाना जिन का वोह आदी हो चुका है और आम तौर पर इसे ख्वाहिशात के खिलाफ़ कामों की तरगीब देना या जब मुहासबए नफ़्स से येह मालूम हो जाए इस ने गुनाह का इर्तिकाब किया है तो इसे उस गुनाह पर कोई सज़ा देना मुजाहदा कहलाता है।

(9) क़नाअत की तारीफ़ : क़नाअत का लुगवी माना क़िस्मत पर राज़ी रहना है और सूफ़िया की इस्तिलाह में रोज़ मर्रा इस्ति'माल होने वाली चीज़ों के न होने पर भी राज़ी रहना क़नाअत है।

हज़रते मुहम्मद बिन अली तिरमिजी رَحْمَۃُ الله تَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : क़नाअत येह है कि इन्सान की किस्मत में जो रिज़्क लिखा है इस पर उस का नफ्स राजी रहे। अगर तंगदस्ती होने और हाजत से कम होने के बा वुजूद सब्र किया,जाए तो इसे भी क़नाअत कहते हैं।

(10) आजिज़ी व इन्किसारी की तारीफ़ : लोगों की तबीअतों और उन के मक़ामो मर्तबे के ए'तिबार से उन के लिये नर्मी का पहलू इख़्तियार करना और अपने आप को हक़ीर व कमतर और छोटा ख़याल करना आजिज़ी व इन्किसारी कहलाता है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 13

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नजात दिलाने वाले आ'माल की तारीफ़ात (Part -05)

(11) तजकिरए मौत की तारीफ़ : ख़ौफ़े खुदा पैदा करने, सच्ची तौबा करने, रब عَزَّوَجَلَّ से मुलाकात करने, दुन्या से जान छूटने, कुर्बे इलाही के मरातिब पाने, अपने महबूब आका صَلَّی اللّٰهُ تَعَالٰی عَلَیْہِ की ज़ियारत हासिल करने के लिये मौत को याद करना तजकिरए मौत कहलाता है।

(12) हुस्ने जन की तारीफ़ :  किसी मुसलमान के बारे में अच्छा गुमान रखना "हुस्ने जन" कहलाता है।

(13) तौबा की तारीफ़ :  जब बन्दे को इस बात की मा'रिफ़त हासिल हो जाए कि गुनाह का नुक्सान बहुत बड़ा है, गुनाह बन्दे और उस के महबूब के दरमियान रुकावट है तो वोह इस गुनाह के इर्तिकाब पर नदामत इख्तियार करता है और इस बात का कस्द व इरादा करता है कि मैं गुनाह को छोड़ दूंगा, आयिन्दा न करूंगा और जो पहले किये इन की वज्ह से मेरे आ'माल में जो कमी वाकेअ हुई उसे पूरा करने की कोशिश करूंगा तो बन्दे की इस मजमूई कैफ़िय्यत को तौबा कहते हैं। इल्म, नदामत और इरादे इन तीनों के मजमूए का नाम तौबा है लेकिन बसा अवक़ात इन तीनों में से हर एक पर भी तौबा का इतलाक़ कर दिया जाता है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह 

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नजात दिलाने वाले आ'माल की तारीफ़ात (Part -06)

(14) सालिहीन से महब्बत की तारीफ :- अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की रिज़ा के लिये उस के नेक बन्दों से महब्बत रखना, उन की सोहबत इख्तियार करना, उन का ज़िक्र करना और उन का अदब करना “सालिहीन से महब्बत" कहलाता है क्यूंकि महब्बत का तकाज़ा येही है जिस से महब्बत की जाए उस की दोस्ती व सोहबत को महबूब रखा जाए, उस का ज़िक्र किया जाए, उस का अदबो एहतिराम किया जाए।

(15) अल्लाह व रसूल की इताअत की तारीफ़ : अल्लाह عَزَّوَجَلَّ और उस के रसूल صَلَّی اللّٰهُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَسَلَّم ने जिन बातों का करने का हुक्म दिया है उन पर अमल करना और जिन से मन्अ फ़रमाया उन को न करना "अल्लाह व रसूल की इताअत" कहलाता है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह 15

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नजात दिलाने वाले आ'माल की तारीफ़ात (Part -07)

(16) दिल की नर्मी की तारीफ़ : दिल का खौफे खुदा के सबब इस तरह नर्म होना कि बन्दा अपने आप को गुनाहों से बचाए और नेकियों में मश्गूल कर ले, नसीहत उस के दिल पर असर करे, गुनाहों से बे रगबती हो, गुनाह करने पर पशेमानी हो, बन्दा तौबा की तरफ़ मुतवज्जेह हो, शरीअत ने इस पर जो जो हुकूक लाज़िम किये हैं इन की अच्छे तरीके से अदाएगी पर आमादा हो, अपने आप, घरबार, रिश्तेदारों व खल्के खुदा पर शफ्कत व रम व नर्मी करे /,कुल्ली तौर पर इस कैफ़िय्यत को *_“दिल की नर्मी"_* से ता'बीर किया जाता है।

(17) खल्वत व गोशा नशीनी की तारीफ : खल्वत के लुगवी माना *_"तन्हाई"_* के हैं और बन्दे का अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की रिजा हासिल करने, तक्वा व परहेजगारी के दरजात में तरक्की करने और गुनाहों से बचने के लिये अपने घर या किसी मख्सूस मकाम पर लोगों की नज़रों से पोशीदा हो कर इस तरह मो'तदिल अन्दाज़ में नफ़्ली इबादत करना *_“खल्वत व गोशा नशीनी"_* कहलाता है कि हुककुल्लाह (या'नी फ़राइज़ो वाजिबात व सुनने मुअक्कदा) और शरीअत की तरफ़ से इस पर लाज़िम किये गए तमाम हुकूक की अदाएगी, वालिदैन, घरवालों, आल औलाद व दीगर हुकूकुल इबाद (बन्दों के हुकूक) की अदाएगी में कोई कोताही न हो।
              
सूफ़ियाए किराम رَحِمَھُمُ اللّٰهُ السَّلَام के नज़दीक लोगों में ज़ाहिरी तौर पर रहते हुए बातिनी तौर पर इन से जुदा रहना या'नी खुद को रब तआला की तरफ़ मुतवज्जेह रखना खल्वत व गोशा नशीनी है।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की तारीफ़ात (Part -08)

(18) तवक्कुल की तारीफ़ : तवक्कुल की इजमाली तारीफ़ यूं है कि अस्बाब व तदाबीर को इख्तियार करते हुए फ़कत अल्लाह तबारक व तआला पर ए'तिमाद व भरोसा किया जाए और तमाम कामों को उस के सिपुर्द कर दिया जाए।

(19) खुशूअ की तारीफ़ : बारगाहे इलाही में हाज़िरी के वक़्त दिल का लग जाना या बारगाहे इलाही में दिलों को झुका देना *"खुशूअ"* कहलाता है। 

(20) ज़िक्रुल्लाह की तारीफ : ज़िक्र के मा'ना याद करना, याद रखना, चर्चा करना, खैरख्वाही इज़्ज़तो शरफ़ के हैं। कुरआने करीम में ज़िक्र इन तमाम मानों में आया हुवा है। अल्लाह عَزَّوَجَلَّ को याद करना, उसे याद रखना, उस का चर्चा करना और उस का नाम लेना ज़िक्रुल्लाह कहलाता है!

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 15

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नजात दिलाने वाले आ'माल की तारीफ़ात (Part -09)

(21) राहे ख़ुदा में खर्च करने की तारीफ़ : अल्लाह عَزَّوَجَلَّ और उस के हबीब ﷺ की रिज़ा और अज्रो सवाब के लिये अपने घरवालों,रिश्तेदारों,शरई फ़क़ीरों,मिस्कीनों,यतीमों,मुसाफ़िरों, गरीबों व दीगर मुसलमानों पर और हर जाइज़ व नेक काम या नेक जगहों में हलाल व जाइज़ माल खर्च करना “राहे खुदा में खर्च करना" कहलाता है।

(22) अल्लाह عزوجل की रिज़ा पर राज़ी रहने की तारीफ़ : खुशी, गमी , राहत , तक्लीफ़ , ने'मत मिलने , न मिलने , अल गरज़ हर अच्छी बुरी हालत या तक़दीर पर इस तरह राज़ी रहना ,खुश होना या सब्र करना कि उस में किसी किस्म का कोई शिक्वा या वावेला वगैरा न हो "अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की रिज़ा पर राज़ी रहना" कहलाता है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 16

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नजात दिलाने वाले आ'माल की तारीफ़ात (Part -10)

(23) ख़ौफ़ ख़ुदा की तारीफ़ : ख़ौफ़ से मुराद वोह कल्बी कैफ़िय्यत है जो किसी ना पसन्दीदा अम्र के पेश आने की तवक्कोअ के सबब पैदा हो, मसलन फल काटते हुए छुरी से हाथ के ज़ख्मी हो जाने का डर। जब कि ख़ौफ़े ख़ुदा का मतलब येह है कि अल्लाह तआला की बे नियाज़ी, उस की नाराज़ी, उस की गिरिफ़्त और उस की तरफ से दी जाने वाली सज़ाओं का सोच कर इन्सान का दिल घबराहट में मुब्तला हो जाए।

(24) ज़ोह्द की तारीफ़ : दुन्या को तर्क कर के आखिरत की तरफ़ माइल होने या गैरुल्लाह को छोड़ कर अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की तरफ़ मुतवज्जेह होने का नाम जोह्द है और ऐसा करने वाले को ज़ाहिद कहते हैं। जोह्द की मुकम्मल और जामे तारीफ़ हज़रते सय्यिदुना अबू सुलैमान दारानी قُدِِّسَ سِرُّہُ النّوْرَانِی का कौल है आप फ़रमाते हैं “जोह्द येह है कि बन्दा हर उस चीज़ को तर्क कर दे जो उसे अल्लाह عَزَّوَجَلَّ से दूर करे।

(25) उम्मीदों की कमी की तारीफ़ : नफ़्स की पसन्दीदा चीज़ों या'नी लम्बी उम्र, सिहहत और माल में इज़ाफ़े वगैरा की उम्मीद न होना "उम्मीदों की कमी" कहलाता है। अगर लम्बी उम्र की ख़्वाहिश मुस्तक्बिल में नेकियों में इजाफे की निय्यत के साथ हो तो अब भी "उम्मीदों की कमी" ही कहलाएगी।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की तारीफ़ात (Part -11)

(26) सिद्क़ की तारीफ़ : हज़रते अल्लामा सय्यिद शरीफ़ जुरजानी قُدِِّسَ سِرُّہُ النّوْرَانِی सिद्क या'नी सच की तारीफ़ बयान करते हुए फ़रमाते हैं :-“सिद्क़ का लुगवी मा'ना वाकेअ के मुताबिक़ खबर देना है।

(27) हमदर्दिये मुस्लिम की तारीफ़ : किसी मुसलमान की गमख्वारी करना और उस के दुख दर्द में शरीक होना "हमददिये मुस्लिम" कहलाता है।

हमदर्दिये मुस्लिम की कई सूरतें हैं, बा'ज़ येह हैं:

(1) बीमार की इयादत करना

(2) इन्तिकाल पर लवाहिक़ीन से ताज़ियत करना

(3) कारोबार में नुक्सान पर या मुसीबत पहुंचने पर इज़हारे हमदर्दी करना

(4) किसी गरीब मुसलमान की मदद करना

(5) बक़दरे इस्तिताअत मुसलमानों से मुसीबतें दूर करना और उन की मदद करना

(6) इल्मे दीन फैलाना

(7) नेक आ'माल की तरगीब देना

(8) अपने लिये जो अच्छी चीज़ पसन्द हो वोही अपने मुसलमान भाई के लिये भी पसन्द करना।

(9) ज़ालिम को जुल्म से रोकना और मज़लूम की मदद करना

(10) मक़रूज़ को मोहलत देना या किसी मक़रूज़ की मदद करना

(11) दुख दर्द में किसी मुसलमान को तसल्ली और दिलासा देना। *वगैरा वगैरा*

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह -17

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नजात दिलाने वाले आ'माल की तारीफ़ात (Part -12)

(28)  रजा की तारीफ़ : आयिन्दा के लिये भलाई और बेहतरी की उम्मीद रखना "रजा" है। मसलन अगर कोई शख्स अच्छा बीज हासिल कर के नर्म जमीन में बो दे और उस ज़मीन को घास फूस वगैरा से साफ़ कर दे और वक़्त पर पानी और खाद देता रहे फिर इस बात का उम्मीदवार हो कि अल्लाह عَزَّوَجَلَّ इस खेती को आस्मानी आफ़ात से महफूज़ रखेगा तो मैं खूब गल्ला हासिल करूंगा तो ऐसी आस और उम्मीद को "रजा" कहते हैं।

(29) महब्बते इलाही की तारीफ़ : तबीअत का किसी लज़ीज़ शै की तरफ़ माइल हो जाना महब्बत कहलाता है और महब्बते इलाही से मुराद अल्लाह عَزَّوَجَلَّ का कुर्ब और उस की ता'ज़ीम है।

(30) रिजाए इलाही की तारीफ़ : अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की रिज़ा चाहना रिज़ाए इलाही है।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की तारीफ़ात (Part -13)

(31) शौके इबादत की तारीफ़ : इबादत में सुस्ती को तर्क कर के शौक़ और चुस्ती के साथ अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की इबादत करना शौके इबादत है !

(32) ग़ना की तारीफ : जो कुछ लोगों के पास है उस से नाउम्मीद होना ग़ना है।

(33) कबूले हक़ की तारीफ़ : बातिल पर न अड़ना और हक़ बात मान लेना कबूले हक़ है।

(34) माल से बे रगबती की तारीफ़ : माल से महब्बत न रखना और उस की तरफ़ रगबत न करना माल से बे रग़बती कहलाता है।

(35) गिब्ता (रश्क) की तारीफ़ : किसी शख्स में कोई खूबी या उस के पास कोई ने मत देख कर येह तमन्ना करना कि मुझे भी येह खूबी या नेमत मिल जाए और उस शख्स से उस खूबी या ने'मत के ज़वाल की ख्वाहिश न हो तो येह गिब्ता या'नी रश्क है।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की तारीफ़ात (Part -14)

(36) महब्बते मुस्लिम की तारीफ़ : किसी बन्दे से सिर्फ़ इस लिये महब्बत करे कि रब तआला उस से राजी हो जावे, इस में दुन्यावी गरज़ रिया न हो इस महब्बत में मां बाप, औलाद अले कराबत मुसलमानों से महब्बत सब ही दाखिल हैं जब कि रिज़ाए इलाही के लिये हों।

(37) अल्लाह की ख़ुफ़्या तदबीर से डरने की तारीफ़ :  अल्लाह के पोशीदा अफ़्आल से वाकेअ होने वाले बा'ज़ अफ़्आल को उस की ख़ुफ़्या तदबीर कहते हैं और इस से डरना अल्लाह की खुफ़्या तदबीर से डरना कहलाता है।

(38) एहतिरामे मुस्लिम की तारीफ़ : मुसलमान की इज़्ज़त व हुर्मत का पास रखना और उसे हर तरह के नुक्सान से बचाने की कोशिश करना एहतिरामे मुस्लिम कहलाता है।

(39) मुखालफ़ते शैतान की तारीफ़ : अल्लाह तआला की इबादत कर के शैतान से दुश्मनी करना ,अल्लाह तआला की नाफरमानी में शैतान की पैरवी न करना और सिद्के दिल से हमेशा अपने अकाइदो आ'माल की शैतान से हिफ़ाज़त करना मुखालफ़ते शैतान है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह 18

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -15)

*निय्यत :* 

निय्यत की तारीफ़ : निय्यत लुगवी तौर पर दिल के पुख्ता (पक्के) इरादे को कहते हैं और शरअन इबादत के इरादे को निय्यत कहा जाता है।

आयते मुबारका : अल्लाह عَزَّوَجَلَّ क़ुरआन में इरशाद फ़रमाता है सूरह बनी इसराईल आयत नम्बर 19 

وَ مَنْ اَرَادَ الْاٰخِرَةَ وَ سَعٰى لَهَا سَعْیَهَا وَ هُوَ مُؤْمِنٌ فَاُولٰٓىٕكَ كَانَ سَعْیُهُمْ مَّشْكُوْرًا

तर्जमए कन्जुल ईमान :- और जो आख़िरत चाहे और उस की सी कोशिश करे और हो ईमान वाला तो उन्हीं की कोशिश ठिकाने लगी। 

इस आयत के तहत सदरुल अफ़ाज़िल हज़रते मौलाना मुफ्ती नईमुद्दीन मुरादाबादी عَلَیْہِ رَحمَۃُ اللّٰهِ الْھَادِی फ़रमाते हैं : इस आयत से मालूम हुवा कि अमल की मक़बूलिय्यत के लिये तीन चीजें दरकार हैं : *एक* तो तालिबे आख़िरत होना या'नी निय्यत नेक, *दूसरे* सई या'नी अमल को ब एहतिमाम उस के हुकूक के साथ अदा करना, *तीसरी* ईमान जो सब से ज़ियादा ज़रूरी है।

अहादीसे मुबारका : 

(1) आ'माल का दारो मदार निय्यतों पर है और हर शख़्स के लिये वोही है जिसकी निय्यत करे! 

(2) मोमिन की निय्यत उस के अम़ल से बेहतर हैं!

(3) अच्छी निय्यत बंन्दे को जन्नत में दाखिल कर देती है! سبحان الله

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह 20

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -16)

*निय्यत :* 

निय्यत के मुतफ़र्रिक अहकाम :

निय्यत के बहुत से अहकाम हैं (1)  इबादाते मक्सूदा या'नी वोह इबादात जो खुद बिज़्ज़ात मक्सूद हों किसी दूसरी इबादत के लिये वसीला न हों।इन में निय्यत होना ज़रूरी है कि बिगैर निय्यत के वोह इबादत ही न पाई जाएगी जैसा कि नमाज़ कि अगर कोई शख्स नमाज़ जैसे अफ़्आल करे मगर मुतलक नमाज़ की निय्यत न हो तो उसे नमाज़ ही न कहा जाएगा। फिर फ़र्ज़ नमाज़ में फ़र्ज़ की निय्यत भी ज़रूरी है मसलन दिल में येह निय्यत हो कि आज की जोहर की फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ता हूं असहह (या'नी दुरुस्त तरीन) येह है कि नफ़्ल,सुन्नत और तरावीह में मुतलक नमाज़ की निय्यत काफ़ी है मगर एहतियात येह है कि तरावीह में तरावीह या सुन्नते वक़्त की निय्यत करे और बाकी सुन्नतों में सुन्नत या सरकार ﷺ की मुताबअत (या'नी पैरवी) की निय्यत करे,इस लिये कि बा'ज़ मशाइख رَحْمَۃُ اللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْھِم इन में मुतलक़ नमाज़ की निय्यत को नाकाफ़ी करार देते हैं।

(2) इबादाते गैर मक्सूदा यानी वोह इबादात जो खुद बिज़्ज़ात मक्सूद न हों बल्कि किसी दूसरी इबादत के लिये वसीला हों। इन में निय्यत करना ज़रूरी नहीं कि बिगैर निय्यत के भी वोह इबादत पाई जाएगी अलबत्ता इस का सवाब नहीं मिलेगा। मसलन वुज़ू कि इस में निय्यत करना सुन्नत है अगर कोई शख्स बिगैर निय्यत के आ'जाए वुज़ू को धो ले या धुल गए तो उस का वुज़ू तो हो जाएगा लेकिन निय्यत न होने की वज्ह से उसे सवाब नहीं मिलेगा।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह -21

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -18)

*निय्यत :* 

*अच्छी निय्यत की वज्ह से बख्शिश हो गई : हिकायत -* खलीफ़ा हारूनुर्रशीद की जोज़ा जुबैदा رحمتہ اللہ تعالیٰ علیہا को किसी ने ख्वाब में देख कर पूछा :- *"مَافَعَلَ اللّٰهُ بِکِ* या'नी अल्लाह عزوجل ने आप के साथ क्या मुआमला फ़रमाया ?" कहा : "अल्लाह عزوجل ने मुझे बख़्श दिया! पूछा क्या मग़फिरत का सबब वोह रास्ता बना जिसे आप ने बहुत ज़ियादा माल खर्च कर के मक्कए मुकर्रमा *زَادَھَا الله شَرَفًاوَّتَعْظِیْمًا* की तरफ़ बनवाया था? कहा नहीं उस रास्ते का सवाब तो काम करने वालों को मिला मुझे तो अल्लाह عزوجل ने अच्छी निय्यत की वज्ह से बख्श दिया।

 *आमिले निय्यत बनने के तरीके :* 
      
 (1) अच्छी निय्यतें करने की निय्यत कर लीजिये :- जिस काम की आदत न हो तो उस को मामूलाते ज़िन्दगी में शामिल करना अव्वलन दुश्वार ज़रूर होता है लेकिन ना मुमकिन नहीं, येही मुआमला जाइज़ कामों से पहले अच्छी अच्छी निय्यतें करने का भी है लेकिन बन्दा अगर किसी जाइज़ काम को पायए तक्मील तक पहुंचाने का पुख्ता अज्म कर ले तो फिर उस के इरादों को कमजोर करना बहुत मुश्किल है, लिहाज़ा अपने जाइज़ आ'माल को अच्छी अच्छी निय्यतों के जरीए इबादात बनाने और इस पर रहमते इलाही से अज्रो सवाब पाने की यूं निय्यत कर लीजिये कि आयिन्दा हर जाइज़ काम से पहले अच्छी अच्छी निय्यतें करूंगा। ان شاء الله عزوجل
                 
📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह -23

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -19)

*निय्यत :* 

*आमिले निय्यत बनने के तरीके :-*

 (2) निय्यत की अहम्मिय्यत हमेशा अपने पेशे नज़र रखिये कि किसी भी चीज़ की अहम्मिय्यत और फ़वाइद अगर पेशे नज़र हों तो उस पर अमल करना आसान हो जाता है, उलमाए किराम رَحِمَھُمُ اللّٰهُ السَّلَام अच्छी निय्यत की तरगीब करते थे!  हज़रते सय्यिदुना यहया बिन कसीर ِعَلَیْہِ رَحمَۃُ اللّٰه الْعَزِیز फ़रमाते हैं इल्मे निय्यत हासिल करो क्यूंकि निय्यत की अहम्मिय्यत अमल से कई गुना ज़ियादा है।

हज़रते सय्यिदुना फुजेल बिन इयाज़ رَحْمَۃُ اللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं अच्छी निय्यत के बिगैर गुफ़्त्गू भी न करो। हज़रते सय्यिदुना दावूद ताई رَحْمَۃُ اللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं मैं ने तमाम भलाइयों पर गौर किया, सिर्फ़ अच्छी निय्यत को इन का जामेअ पाया!

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह 23

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -20)

*इख़्लास :*

इख़्लास की तारीफ़ : किसी भी नेक अमल में महज़ रिज़ाए इलाही हासिल करने का इरादा करना इख़्लास कहलाता है। 

आयते मुबारका : अल्लाह عزوجل कुरआने पाक में इरशाद फ़रमाता है

तर्जमए कन्जुल ईमान : और उन लोगों को तो येही हुक्म हुवा कि अल्लाह की बन्दगी करें निरे उसी पर अक़ीदा लाते एक तरफ़ के हो कर और नमाज़ काइम करें और ज़कात दें।       

इस आयते मुबारका में इख़्लास के साथ शिर्क व निफ़ाक़ से दूर रह कर अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की बन्दगी करने और तमाम दीनों को छोड़ कर ख़ालिस इस्लाम के मुत्तबेअ (पैरवकार) हो कर नमाज़ काइम करने और ज़कात देने का हुक्म दिया गया है।

📕 ख़ज़ाइनुल इ़रफा़न,पारह 30,अल बय्यिनल,तह़तुल आयत:-5 माख़ूज़न

हदीसे मुबारका : *इख़्लास के साथ थोड़ा अमल भी काफ़ी -* हुज़ूर नबिय्ये करीम ﷺ ने हज़रते मुआज बिन जबल رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْہ से फ़रमाया इख़्लास के साथ अमल करो कि इख़्लास के साथ थोड़ा अमल भी तुम्हें काफ़ी है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 26

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -21)

*इख़्लास :* 

*इख्लास का हुक्म :* किसी अमल में फ़क़त इख्लास होने या इस के साथ किसी और गरज़ की आमेज़िश होने के ए'तिबार से आ'माल की तीन सूरतें हैं

(1) जिस अमल से मक्सूद सिर्फ रियाकारी हो उस का क़तई तौर पर गुनाह होगा और वोह अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की नाराजी और अज़ाब का सबब है।

(2) जो अमल ख़ालिसतन अल्लाह عَزَّوَجَلَّ के लिये होगा तो वोह रिज़ाए इलाही और अज्रो सवाब का सबब है।

(3) जो अमल ख़ालिसतन अल्लाह عَزَّوَجَلَّ के लिये न हो बल्कि इस में रियाकारी और नफ्सानी भी अगराज़ की आमेज़िश हो तो कुव्वत के ए'तिबार से इस की तीन किस्में हैं

अगर रिजाए इलाही और दूसरी गरज़ दोनों कुव्वत में बराबर हों तो दोनों एक दूसरे के मुक़ाबिल हो कर साकित हो जाएंगी और इस अमल का न तो सवाब होगा न ही अज़ाब और अगर रिया की कुव्वत ज़ियादा हो तो येह अमल कुछ नफ्अ न देगा बल्कि उल्टा नुक्सान और अज़ाब को लाज़िम करेगा अलबत्ता इस में रिज़ाए इलाही का जितना उन्सर होगा इतना अज़ाब में कमी हो जाएगी और इस अमल का अज़ाब उस अमल के अज़ाब से हल्का होगा जो खालिस रियाकारी के साथ हो और जिस में रिज़ाए इलाही बिल्कुल न हो और अगर रिज़ाए इलाही का उन्सर गालिब हो तो येह जिस क़दर कवी होगा उसी कदर सवाब ज़ियादा होगा और जितना रिया होगा इतना सवाब कम हो जाएगा।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह -27

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -22)

*इख़्लास :* 

इखलास के साथ इबादत करने वाला गुलाम - हिकायत : एक शख्स ने एक गुलाम ख़रीदा तो उस गुलाम ने उस से अर्ज़ किया ऐ मेरे आका ! मेरी तीन शराइत हैं 

(1) आप मुझे फ़र्ज़ नमाज़ से मन्अ नहीं करेंगे जब उस का वक़्त आ जाए।

(2) दिन को जो चाहें हुक्म दें, रात को कोई हुक्म नहीं देंगे।

(3) अपने घर में मेरे लिये एक कमरा जुदा कर दें जिस में मेरे सिवा कोई दूसरा दाखिल न हो।

आका ने कहा : मुझे येह शराइत कबूल हैं। फिर उस ने कहा कि तुम अपने लिये कोई भी कमरा पसन्द कर लो। चुनान्चे गुलाम ने एक ख़राब सा टूटा फूटा कमरा पसन्द कर लिया। इस पर आका ने कहा ऐ गुलाम! तू ने ख़राब कमरा क्यूं पसन्द किया ..? गुलाम ने जवाब दिया मेरे आका !  क्या आप नहीं जानते कि टूटा फूटा कमरा भी अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की याद और उस के ज़िक्र की बरकत से बाग बन जाता है।

चुनान्चे : वोह गुलाम दिन को अपने भी आका की ख़िदमत करता और रात को अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की इख्लास के साथ इबादत करता। कुछ अर्से के बाद एक रात आका घर में चलते चलते गुलाम के कमरे तक पहुंच गया तो क्या देखता है कि कमरा रोशन है, गुलाम अल्लाह तआला की बारगाह में सज्दा रेज़ है ,उस के सर पर आसमानो ज़मीन के दरमियान एक रोशन किन्दील लटकी हुई है और वोह अल्लाह रब्बुल आलमीन की बारगाह में आजिज़ी व इन्किसारी के साथ यूं मुनाजात कर रहा : ऐ अल्लाह عَزَّوَجَلَّ तू ने मुझ पर मेरे आका का हक़ और दिन को इस की ख़िदमत लाज़िम कर दी है अगर येह मसरूफ़िय्यत न होती तो मैं दिन रात सिर्फ तेरी ही इबादत में मसरूफ़ रहता, ऐ मेरे रब عَزَّوَجَلَّ ! मेरा उज्र क़बूल फ़रमा ले "आका उसे देखता रहा यहां तक कि सुब्ह हो गई वोह किन्दील वापस चली गई और मकान की छत मिल गई। येह मन्ज़र देखने के बाद आका वापस आ गया और सारा माजरा अपनी ज़ौजा को सुनाया। दूसरी रात वोह अपनी ज़ौजा को भी साथ ले कर गुलाम के दरवाजे पर आया तो देखा कि गुलाम सज्दे में पड़ा है और नूरानी किन्दील उस के सर पर है दोनों येह मन्ज़र देखते रहे और रोते रहे।

सुब्ह हुई तो उन्हों ने गुलाम को बुला कर कहा तुम अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की ख़ातिर आज़ाद हो ताकि तुम जो उज्र पेश कर रहे थे वोह दूर हो जाए और यक्सूई के साथ अल्लाह तआला की इबादत कर सको। गुलाम ने येह सुना तो अपना सर आस्मान की तरफ़ उठाया और अर्ज करने लगा ऐ साहिबे राज़ ! राज़ तो खुल गया, अब राज़ खुलने के बाद मैं ज़िन्दा नहीं रहना चाहता। पस उसी वक़्त वोह मुख़्लिस व इबादत गुज़ार गुलाम गिरा और उस की रूह कफ़से उन्सुरी से परवाज़ कर गई।

🤲🏻 मेरा हर अमल बस तेरे वासिते हो.... कर इख्लास ऐसा अता या इलाही

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह -28

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -23)

*इख़्लास :* 

 *इख़्लास पैदा करने के तरीके :* 

(1) अपनी निय्यत दुरुस्त कीजिये : कि आ'माल का दारो मदार निय्यतों पर है, जब तक निय्यत ख़ालिस न होगी अमल में इख्लास पैदा नहीं होगा क्यूंकि निय्यत के ख़ालिस होने का नाम ही तो इख़्लास है।

बा'ज़ औलियाए किराम رَحِمَھُمُ اللّٰهُ السَّلَام फ़रमाते हैं अपने आ'माल में निय्यत को ख़ालिस कर लो तुम्हें थोड़ा अमल भी किफ़ायत करेगा। लिहाज़ा खुद को अच्छी-अच्छी निय्यतों का आदी बनाइये।

(2) दुन्यवी अगराज़ को दूर कीजिये : ऐसी दुन्यवी अग़राज़ जिन से मक्सूद आख़िरत की तय्यारी व मुआवनत न हो अगर हर अमल से उन को दूर कर दिया जाए और सिर्फ रिजाए इलाही पेशे नज़र हो तो आ'माल में रियाकारी या'नी दिखावे के इमकानात काफ़ी कम हो जाते हैं।

अलबत्ता अल्लाह عَزَّوَجَلَّ के नेक बन्दों का उसरत व तंगी के अय्याम में कुरआनी सूरतें व वज़ाइफ़ वगैरा इस निय्यत से पढ़ना कि अल्लाह तआला उन्हें कनाअत अता करे और उतनी मिक्दार में रोज़ी अता करे जिस से इबादते इलाही बजा ला सकें और दर्से तदरीस वगैरा की कुव्वत बहाल रहे तो इस तरह का इरादा नेक इरादा है दुन्या का इरादा नहीं।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 30

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -24)

*इख़्लास :* 

*इख़्लास पैदा करने के तरीके :* 

(3) अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की खुफ़्या तदबीर से डरते रहिये : क्यूंकि आ'माल वोही कबूल होंगे जो रियाकारी से बचते हुए इख्लास के साथ किये होंगे और आ'माल को रियाकारी जैसी मूज़ी बीमारी से बचाने का एक बहुत मुफीद हल येह है कि बन्दा खुद को हर वक़्त अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की खुफ़्या तदबीर से डराता रहे कि जिस कदर खौफे खुदा नसीब होगा उतना ही अमल में रियाकारी से बचेगा और इख्लास की दौलत नसीब होगी।

(4) नफ़्सानी ख्वाहिशात को ख़त्म कीजिये : कि इख्लास में से बहुत बड़ी रुकावट नफ़्सानी ख्वाहिशात हैं क्यूंकि हर अमल पर चन्द ता'रीफ़ी कलिमात सुन कर नफ्स बेहद सुकून महसूस करता है और येही सुकून नफ़्स को रियाकारी पर उभारता है जो इख्लास की दुश्मन है और यूं उख़रवी फाएदे के लिये किया जाने वाला अमल नुक्सान का सबब बन जाता है। लिहाज़ा नफ़्सानी ख्वाहिशात पर काबू पाइये और आ'माल में इख्लास हासिल कीजिये।

(5) खल्वत व जल्वत में यक्सां अमल कीजिये : नफ़्स लोगों के सामने तो मशक्कत से भरपूर इबादत करने पर रिज़ामन्द हो जाता है क्यूंकि इस तरह इसे शोहरत, तारीफ़ और वाह वाह जैसे मीठे ज़हर मिलते हैं, लेकिन तन्हाई में रिज़ाए इलाही के लिये खुशूओ खुजूअ के साथ दो रक्अत पढ़ना उस के नफ़्स पर निहायत गिरां है। खल्वत व जल्वत का येह तज़ाद बन्दे के अमल से इख्लास को ख़त्म कर देता है। लिहाज़ा अपने आ'माल में इख्लास पैदा करने के लिये खल्वत व जल्वत दोनों में रिज़ाए इलाही की निय्यत से खुशूओ खुजूअ के साथ नेक आ'माल बजा लाइये।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 30

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -35)

*इख़्लास :* 

 *इख़्लास पैदा करने के तरीके :* 

(6) अपने गुनाहों को याद रखिये : उमूमन लोग अपनी नेकियों को याद रखते और गुनाहों को भूल जाते हैं जिस से वोह रियाकारी और खुद पसन्दी जैसी मूज़ी बीमारी में मुब्तला हो जाते हैं जो इख्लास की सख़्त दुश्मन हैं, लिहाज़ा अपने गुनाहों को याद रखिये,नफ़्स को उन पर मलामत करते रहिये कि तू फुलां फुलां गुनाहों का मजमूआ है फिर किसी नेक अमल पर इतराने का क्या मा'ना?  यूं काफ़ी हद तक इसे तकब्बुर व रियाकारी से दूर रखने में मुआवनत मिलेगी और आ'माल में इख्लास पैदा करने की राह हमवार होगी।

(7) अपनी नेकियों को छुपाइये : कि नेकियों का चर्चा ही नफ्स भी को रियाकारी, हुब्बे मद्ह और तलबे शोहरत जैसी बातिनी बीमारियों में मुब्तला कर देता है जो इख्लास को दीमक की तरह चाट लेती हैं, बुजुर्गाने दीन رَحِمَھُمُ اللّٰهُ الْمُبِیْن भी अपनी नेकियों को छुपाया करते थे!

चुनान्चे, हज़रते सय्यिदुना तमीम दारी رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْہ की बारगाह में अर्ज़ की गई रात में आप की नमाज़ की कैफ़िय्यत क्या होती है ? आप इस बात से सख़्त नाराज़ हुए और इरशाद फ़रमाया अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की कसम! रात का एक हिस्सा छुप कर नमाज़ पढ़ना मुझे बहुत महबूब है इस बात से कि मैं सारी रात नमाज़ अदा करूं, फिर लोगों में उसे बयान करता फिरूं।

इसी तरह हज़रते सय्यिदुना अबू बक्र मरूजी عَلَیْہِ رَحمَۃُ اللّٰهِ الْقَوِی फ़रमाते हैं मैं चार माह हज़रते सय्यिदुना इमाम अहमद बिन हम्बल رَحْمَۃُ اللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْہ की सोहबत में रहा, आप न तो रात का कियाम छोड़ते, न ही दिन की किराअत छोड़ते, इस के बा वुजूद उसे छुपा लिया करते।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -26)

*इख़्लास :* 

इख़्लास पैदा करने के तरीके :

(8) इख्लास के फ़ज़ाइल को पेशे नज़र रखिये : इख्लास के साथ अमल करना मोमिन की निशानी है। जो बन्दा चालीस दिन खालिस रिज़ाए इलाही के लिये अमल करता है तो उस के दिल से उस की ज़बान पर हिक्मत के चश्मे जारी हो जाते हैं। जो शख़्स खालिस रिज़ाए इलाही के लिये अमल करता है वोह शैतान के मक्रो फ़रेब से बच जाता है। इख्लास के साथ मांगी जाने वाली दुआएं मक़बूल होती हैं।

बा'ज़ बुजुर्गाने दीन के नज़दीक इख्लास के साथ किया जाने वाला अमल सत्तर हज से बढ़ कर है। एक बुजुर्ग फ़रमाते हैं : खल्वत में इख्लास के साथ दो रक्अत पढ़ना सत्तर या सात सो अहादीस आली सनद के साथ लिखने से बेहतर है। एक बुजुर्ग फ़रमाते हैं घड़ी भर के इख़्लास में अबदी नजात है इख़्लास नेकियों पर उभारता है !

मजीद तफ्सील के लिये इहयाउल उलूम जिल्द 5 सफ़ह 255 से इख्लास के बाब का मुतालआ बहुत मुफीद है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह 32

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -27)

*इख़्लास :* 

इख़्लास पैदा करने के तरीके :

(9) मुख़्लिस की तारीफ़ का इल्म हासिल कीजिये : क्यूंकि जब इस बात का इल्म ही नहीं होगा कि मुख़्लिस किसे कहते हैं तो खुद कैसे मुख़्लिस बनेंगे ? हज़रते सय्यिदुना या'कूब मक्फूफ़ رَحْمَۃُ اللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मुख्लिस वोह है जो अपनी नेकियों को ऐसे छुपाए जैसे अपने गुनाहों को छुपाता है।

हज़रते सय्यिदुना अबू सुलैमान दारानी قُدِِّسَ سِرُّہُ النّوْرَانیِ फ़रमाते हैं : सआदत मन्द है वोह शख्स जिस का एक क़दम भी सहीह हो जाए कि इस में अल्लाह عَزَّوَجَلَّ के सिवा किसी और की निय्यत न हो।

हज़रते सय्यिदुना अबू अली दक्क़ाक عَلَیْہِ رَحمَۃُ اللّٰهِ ارَّزَّاق फ़रमाते हैं : इख्लास मख्लूक की निगाहों से बचने का नाम है। हज़रते सय्यिदुना जुन्नून मिस्री عَلَیْہِ رَحمَۃُ اللّٰهِ الْقَوِی फ़रमाते हैं इख़्लास की अलामत येह है कि बन्दे के लिये लोगों की तरफ से की जाने वाली तारीफ और मजम्मत दोनों एक जैसी हों।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 32

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -28)

*शुक्र :* 

*शुक्र की तारीफ़ :* शुक्र की हकीकत, ने'मत का तसव्वुर और उस का इज़हार है जब कि नाशुक्री नेमत को भूल जाना और उस को छुपाना है।

📕 खज़ाइनुल इरफ़ान पारह 8 अल आ'राफ़ तहतुल आयत 10

तफ्सीरे सिरातुल जिनान में है शुक्र की तारीफ़ येह है कि किसी के एहसान व ने'मत की वज्ह से ज़बान, दिल या आ'ज़ा के साथ उस की ता'ज़ीम करना।

📙 तफ्सीरे सिरातुल जिनान पारह 1 अल फ़ातिहा तहतुल आयत 1,1/43

खुशहाली में शुक्र करने वाला शाकिर है जब कि मुसीबत में शुक्र करने वाला शकूर है। अता (या'नी देने) पर शुक्र करने वाला शाकिर है जब कि मन्अ (या'नी न देने) पर शुक्र करने वाला शकूर है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 34

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -29)

*शुक्र :* 

आयते मुबारका : अल्लाह عَزَّوَجَلَّ कुरआने पाक में इरशाद फ़रमाता है :

لَىٕنْ شَكَرْتُمْ لَاَزِیْدَنَّكُمْ وَ لَىٕنْ كَفَرْتُمْ اِنَّ عَذَابِیْ لَشَدِیْدٌ

तर्जमए क़न्जुल ईमान : अगर एहसान मानोगे तो मैं तुम्हें और दूंगा और अगर नाशुक्री करो तो मेरा अज़ाब सख्त है।
    
सदरुल अफ़ाज़िल हज़रते अल्लामा मौलाना सय्यिद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी عَلَیْہِ رَحَمَۃُ اللّٰهِ الْھَادِی ख़ज़ाइनुल इरफ़ान में इस आयते मुबारका के तहत फ़रमाते हैं इस आयत से मालूम हुवा कि शुक्र से नेमत ज़ियादा होती है। शुक्र की अस्ल येह है कि आदमी नेमत का तसव्वुर और उस का इज़हार करे और हक़ीक़ते शुक्र येह है कि मुनइम (या'नी नेमत देने वाले) की ने'मत का उस की ताजीम के साथ ए'तिराफ़ करे और नफ्स को इस का खूगर बनाए।

यहां एक बारीकी है वोह येह कि बन्दा जब अल्लाह तआला की ने'मतों और उस के तरह तरह के फ़ज़्लो करम व एहसान का मुतालआ करता है तो उस के शुक्र में मश्गूल होता है इस से नेमतें ज़ियादा होती हैं और बन्दे के दिल में अल्लाह तआला की महब्बत बढ़ती चली जाती है।

येह मकाम बहुत बरतर (ऊंचा) है और इस से आ'ला मकाम येह है कि मुनइम की महब्बत यहां तक गालिब हो कि कल्ब को ने'मतों की तरफ़ इल्तिफ़ात बाकी न रहे, येह मकाम सिद्दीकों का है।

🤲🏻 अल्लाह तआला अपने फ़ज़्ल से हमें शुक्र की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। आमीन

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 34

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -30)

*शुक्र :* 

हदीसे मुबारका : *दुन्या व आखिरत की भलाइयां -* हज़रते सय्यिदुना इब्ने अब्बास رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْہ से रिवायत है कि हुस्ने अख़्लाक़ के पैकर, नबियों के ताजवर صَلَّی اللّٰهُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَسَلَّم  ने इरशाद फ़रमाया जिसे चार चीजें मिल गई उसे दुन्या व आख़िरत की भलाई मिल गई :

(1)  शुक्र करने वाला दिल

(2)  ज़िक्र करने वाली ज़बान

(3)  आज़माइश पर सब्र करने वाला बदन और

(4)  अपने आप और शोहर के माल में खियानत न करने वाली बीवी।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 36

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -31)

*शुक्र :* 

*शुक्र के मख़्तलिफ़ अहकाम :* 

(1) अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की नेमतों पर शुक्र अदा करना वाजिब है। (या'नी दिल व ए'तिकाद में अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की तरफ़ ने'मत की निस्बत करे और ना फ़रमानी में खर्च न करे। इन्आमाते इलाहिय्या अल्लाह तआला की नेमतों पर शुक्र अदा करना मोमिनीन का तरीका और इन की नाशुक्री करना कुफ्फार व मनाफिकीन का तरीका है। शुक्र अदा करना रिजाए इलाही और जन्नत में ले जाने वाला काम है जब कि नाशुक्री करना रब तआला की नाराजी और जहन्नम में ले जाने वाला काम है।

(2) अम्बियाए किराम पर जो इन्आमे इलाही हो उस की यादगार भी काइम करना और शुक्र बजा लाना (मुतअद्दद सूरतों में) मस्नून (या'नी सुन्नत) है अगर कुफ्फ़ार भी काइम करते हों जब भी उस को छोड़ा न जाएगा जैसा कि मुहर्रमुल हराम की दसवीं तारीख को हज़रते सय्यिदुना मूसा عَلٰی نَبِیِِّنَاوَعَلَیْہِ الصَّلٰوۃُوَالسَّلَام और उन की कौम को अल्लाह عَزَّوَجَلَّ ने फ़िरऔन से नजात दिलाई, वोह इस के शुक्राने में आशूरे का रोज़ा रखते थे , सरकार صَلَّی اللّٰهُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَسَلَّم ने भी इस दिन का रोज़ा रखा और फ़रमाया : हज़रते मूसा عَلَیْہِ السَلَام की फ़त्ह की खुशी मनाने और इस की शुक्र गुज़ारी करने के हम यहूद से ज़ियादा हक़दार हैं।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह 36

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -32)

*शुक्र :* 

 *मा'ज़ूरी में भी शुक्र अदा करने वाला नेक शख़्स हिस्सा - 01* 

हिकायत : हज़रते सय्यिदुना इमाम औज़ाई رَحْمَۃُ اللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मुझे एक बुजुर्ग ने येह वाकिआ सुनाया कि मैं औलियाए किराम رَحِمَھُمُ اللّٰهُ تَعَالٰی की तलाश में हर वक़्त सरगर्दां रहता और उन की क़ियामगाहों को ढूंडने के लिये सहराओं, पहाड़ों और जंगलों में फिरता ताकि उन की सोहबत से फैज़याब हो सकूं। एक मरतबा इसी मक्सद के लिये मिस्र की तरफ रवाना हुवा, जब मैं मिस्र के करीब पहुंचा तो वीरान सी जगह में एक खैमा देखा, जिस में एक ऐसा शख्स मौजूद था जिस के हाथ, पाउं और आंखें (जुज़ाम की) बीमारी से जाएअ हो चुकी थीं

लेकिन इस हालत में भी वोह मर्दे अज़ीम इन अल्फ़ाज़ के साथ अपने रब की हम्दो सना व शुक्र अदा कर रहा था ऐ मेरे परवर दगार عَزَّوَجَلَّ ! मैं तेरी वोह हम्द करता हूं जो तेरी तमाम मख्लूक की हम्द के बराबर हो। ऐ मेरे परवर दगार عَزَّوَجَلَّ ! बेशक तू तमाम मख्लूक का खालिक है और तू सब पर फ़ज़ीलत रखता है, मैं इस इन्आम पर तेरी हम्द करता हूं कि तू ने मुझे अपनी मख्लूक में कई लोगों से अफ़ज़ल बनाया!

वोह बुजुर्ग رَحْمَۃُ اللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं कि जब मैं ने उस शख्स की येह हालत देखी तो मैं ने कहा : खुदा عَزَّوَجَلَّ की कसम ! मैं इस शख्स से येह ज़रूर पूछूंगा कि क्या हम्द के येह पाकीज़ा कलिमात तुम्हें सिखाए गए हैं या तुम्हें इल्हाम हुए हैं.?

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -33)

*शुक्र :* 

 *मा'ज़ूरी में भी शुक्र अदा करने वाला नेक शख़्स हिस्सा - 02* 

हिकायत : चुनान्चे इसी इरादे से मैं उस के पास गया और उसे सलाम किया, उस ने मेरे सलाम का जवाब दिया। मैं ने कहा ऐ मर्दे सालेह ! मैं तुम से एक चीज़ के मुतअल्लिक़ सुवाल करना चाहता हूं क्या तुम मुझे जवाब दोगे? वोह कहने लगा अगर मुझे मालूम हुवा तो ان شاء الله ज़रूर जवाब दूंगा। मैं ने कहा : वोह कौन सी ने'मत है जिस पर तुम अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की हम्द कर रहे हो और वोह कौन सी फ़ज़ीलत है जिस पर तुम शुक्र अदा कर रहे हो (हालांकि तुम्हारे हाथ, पाउं और आंखें वगैरा सब जाएअ हो चुके हैं फिर भी तुम किस ने'मत पर हम्द बजा ला रहे हो?

वोह शख्स कहने लगा : क्या तू देखता नहीं कि मेरे रब عَزَّوَجَلَّ ने मेरे साथ क्या मुआमला फ़रमाया ? मैं ने कहा : क्यूं नहीं, मैं सब देख चुका हूं। फिर वोह कहने लगा :- देखो! अगर अल्लाह عَزَّوَجَلَّ चाहता तो मुझ पर आस्मान से आग बरसा देता जो मुझे जला कर राख बना देती, अगर वोह परवर दगार عَزَّوَجَلَّ चाहता तो पहाड़ों को हुक्म देता और वोह मुझे तबाहो बरबाद कर डालते, अगर अल्लाह عَزَّوَجَلَّ चाहता तो समुन्दर को हुक्म फ़रमाता जो मुझे गर्क कर देता या फिर जमीन को हुक्म फ़रमाता तो वोह मुझे अपने अन्दर धंसा देती लेकिन देखो, अल्लाह عَزَّوَجَلَّ ने मुझे इन तमाम मुसीबतों से महफूज रखा फिर मैं अपने रब عَزَّوَجَلَّ का शुक्र क्यूं न अदा करूं, उस की हम्द क्यूं न करूं और उस पाक परवर दगार عَزَّوَجَلَّ से महब्बत क्यूं न करूं!

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -34)

*शुक्र :* 
 
*मा'जूरी में भी शुक्र अदा करने वाला नेक शख़्स हिस्सा - 03*

हिकायत : फिर मुझ से कहने लगा "मुझे तुम से एक काम है, अगर कर दोगे तो तुम्हारा एहसान होगा।" चुनान्चे, वोह कहने लगा “मेरा एक बेटा है जो नमाज़ के अवकात में आता है और मेरी ज़रूरिय्यात पूरी करता है और इसी तरह इफ़्तारी के वक़्त भी आता है लेकिन कल से वोह मेरे पास नहीं आया, अगर तुम उस के बारे में मा'लूमात फ़राहम कर दो तो तुम्हारा एहसान होगा। मैं ने कहा मैं तुम्हारे बेटे को ज़रूर तलाश करूंगा और फिर मैं येह सोचते हुए वहां से चल पड़ा कि अगर मैं ने इस मर्दे सालेह की ज़रूरत पूरी कर दी तो शायद इसी नेकी की वज्ह से मेरी मगफिरत हो जाए।

चुनान्चे, मैं उस के बेटे की तलाश में एक तरफ़ चल दिया, चलते चलते जब रेत के दो टीलों के दरमियान पहुंचा तो वहां का मन्ज़र देख कर मैं ठिठक कर रुक गया। मैं ने देखा कि एक दरिन्दा एक लड़के को चीर फाड़ कर उस का गोश्त खा रहा है, मैं समझ गया कि येह उसी शख्स का बेटा है, मुझे उस की मौत पर बहुत अफ़सोस हुवा और मैं ने اِنَّا لِلّٰهِ وَ اِنَّاۤ اِلَیْهِ رٰجِعُوْنَ कहा और वापस उसी शख्स के खेमे की तरफ़ चल दिया। मैं येह सोच रहा था कि अगर मैं ने उस परेशान हाल शख़्स को उस के बेटे की मौत की खबर फ़ौरन ही सुना दी तो वोह येह खबर सुन कर कहीं मर ही न जाए, आखिर किस तरह उसे येह ग़मनाक खबर सुनाऊं कि उसे सब्र नसीब हो जाए।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह 34

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -35)

*शुक्र :* 
 
*मा'जूरी में भी शुक्र अदा करने वाला नेक शख़्स हिस्सा - 04*

हिकायत : चुनान्चे मैं उस शख्स के पास पहुंचा, उसे सलाम किया, उस ने जवाब दिया, फिर मैं ने उस से पूछा “मैं तुम से एक सुवाल करना चाहता हूं क्या तुम जवाब दोगे ? येह सुन कर वोह कहने लगा कि अगर मुझे मालूम हुवा तो ان ساء الله عزوجل ज़रूर जवाब दूंगा। मैं ने कहा "तुम येह बताओ कि अल्लाह عَزَّوَجَلَّ के हां हज़रते सय्यिदुना अय्यूब عَلٰی نَبِیِّنَاوَعَلَیْہِ الصَّلٰوۃُوَالسَّلَام का मक़ामो मर्तबा ज़ियादा है या आप का ? येह सुन कर वोह कहने लगा "यकीनन हज़रते सय्यिदुना अय्यूब عَلٰی نَبِیِّنَاوَعَلَیْہِ الصَّلٰوۃُوَالسَّلَام का मर्तबा व मकाम ही ज़ियादा है। फिर मैं ने कहा जब आप عَلَیْہِ السَّلَام को मुसीबतें पहुंची तो आप عَلَیْہِ السَّلَام ने उन बड़ी बड़ी मुसीबतों पर सब्र किया या नहीं ? वोह कहने लगा हज़रते सय्यिदुना अय्यूब عَلٰی نَبِیِّنَاوَعَلَیْہِ الصَّلٰوۃُوَالسَّلَام ने कमा हक्कुहू, मुसीबतों पर सब्र किया।

फिर मैं ने कहा उन को तो इस क़दर बीमारी और मुसीबतें पहुंचीं कि जो लोग उन से बहुत ज़ियादा महब्बत किया करते थे उन्हों ने भी आप से दूरी इख़्तियार कर ली। क्या आप عَلَیْہِ السَّلَام ने ऐसी हालत में सब्र से काम लिया या नहीं ? वोह शख्स कहने लगा आप عَلَیْہِ السَّلَام ने ऐसी हालत में भी सब्रो शुक्र से काम लिया और सब्रो शुक्र का हक़ अदा किया। येह सुन कर मैं ने उस शख़्स से कहा फिर तुम भी सब्र से काम लो, सुनो ! अपने जिस बेटे का तुम ने तजकिरा किया था उस को दरिन्दा खा गया है। येह सुन कर उस शख्स ने कहा तमाम तारीफें अल्लाह عَزَّوَجَلَّ के लिये हैं जिस ने मेरे दिल में दुन्या की हसरत डाली। फिर वोह शख़्स रोने लगा और रोते रोते उस ने जान दे दी। मैं ने اِنَّا لِلّٰهِ وَ اِنَّاۤ اِلَیْهِ رٰجِعُوْنَ कहा! और

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -36)

*शुक्र :* 
 
*मा'जूरी में भी शुक्र अदा करने वाला नेक शख़्स हिस्सा - 05*

हिकायत : और सोचने लगा कि मैं इस जंगल बयाबान में अकेले इस की तजहीज़ो तक्फ़ीन कैसे करूंगा? यहां इस वीराने में मेरी मदद को कौन आएगा? अभी मैं येह सोच ही रहा था कि अचानक एक सम्त मुझे दस बारह सुवारों का क़ाफ़िला नज़र आया। मैं ने उन्हें इशारे से अपनी तरफ़ बुलाया तो वोह मेरे पास आए और मुझ से पूछा: "तुम कौन हो और येह मुर्दा शख़्स कौन है?" मैं ने उन्हें सारा वाकिआ सुनाया तो वोह वहीं रुक गए और उस शख्स को समुन्दर के पानी से गुस्ल दिया और उसे वोह कफ़न पहनाया जो उन के पास था। फिर मुझे उस की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाने को कहा तो मैं ने उस की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और उन्हों ने मेरी इक्तिदा में नमाज़े जनाज़ा अदा की।

फिर हम ने उस अज़ीम शख्स को उसी खैमे में दफ्न कर दिया। उन नूरानी चेहरों वाले बुजुर्गों का काफ़िला एक तरफ रवाना हो गया, मैं वहीं अकेला रह गया, रात हो चुकी थी लेकिन मेरा वहां से जाने को दिल नहीं चाह रहा था, मुझे उस साबिरो शाकिर इन्सान से महब्बत हो गई थी, मैं उस की क़ब्र के पास ही बैठ गया, कुछ देर बा'द मुझ पर नींद का ग़लबा हुवा तो मैं ने ख़्वाब में एक नूरानी मन्ज़र देखा कि मैं और वोह शख़्स एक सब्ज़ कुब्बे में मौजूद हैं और वोह सब्ज़ लिबास जैबे तन किये खड़े हो कर कुरआने हकीम की तिलावत कर रहा है। मैं ने उस से पूछा : “क्या तू मेरा वोही दोस्त नहीं जिस पर मुसीबतें टूट पड़ी थीं और वोह इन्तिकाल कर गया था ?" उस ने मुस्कुराते हुए कहा : "हां ! मैं वोही हूं।" फिर मैं ने पूछा : "तुम्हें येह अज़ीमुश्शान मर्तबा कैसे मिला और तुम्हारे साथ क्या मुआमला पेश आया ?" येह सुन कर वोह कहने लगा : "الحمد لله عزوجل" मुझे मेरे रब عزوجل ने उन लोगों के साथ जन्नत में मक़ाम अता फरमाया है जो मुसीबतों पर सब्र करते हैं और जब उन्हें कोई खुशी पहुंचती है तो शुक्र अदा करते हैं। (अल्लाह عزوجل की उन पर रहमत हो और उन के सदके हमारी मफिरत हो। आमीन)


📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह 40

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -37)

*शुक्र :* 

 *शुक्र की आदत अपनाने के तरीके हिस्सा - 01 :* 

(1) शुक्र के फ़ज़ाइल व वाकिआत का मुतालआ कीजिये : कि फ़ज़ाइल पढ़ने से शुक्र करने का मदनी जेहन बनेगा ,अल्लाह عزوجل और उस के हबीब ﷺ के मुबारक फ़रामीन सहारा देंगे और बन्दा शुक्र की तरफ़ माइल होगा और शुक्र से मुतअल्लिक वाक़िआत पढ़ने से येह ज़ेह्न बनेगा कि दुन्या में अल्लाह عزوجل के कई ऐसे नेक बन्दे भी हैं जिन पर मसाइबो आलाम के पहाड़ टूटे लेकिन इस के बा वुजूद उन की ज़बान पर नाशुक्री का एक कलिमा भी न आया, उन्हों ने हर हाल में रब तआला का शुक्र ही अदा किया। शुक्र के फ़जाइल पढ़ने के लिए रिसाला *शुक्र के फ़जाइल* का मुतालआ करें!

(2) अपने से कम तर व अदना पर नज़र कीजिये : *मसलन :-* यूं गौर कीजिये कि हमारे पास रहने के लिये अपना मकान है मगर कई लोग ऐसे हैं जिन के पास अपना मकान नहीं, बल्कि बा'जों के पास तो मकान ही नहीं, सड़कों और फुट पाथों पर उन के शबो रोज़ बसर हो रहे हैं, हमें सुबह दोपहर शाम तीन वक़्त का पुर तकल्लुफ़ खाना मुयस्सर है मगर कई लोग ऐसे भी हैं जिन्हें दो वक़्त की रोटी मुयस्सर नहीं, हमारे लिये मीठे मशरूबात मौजूद हैं मगर कई लोगों को तो पीने का साफ़ पानी तक मुयस्सर नहीं ,आलूदा पानी पीने पर मजबूर हैं।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह 44

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -38)

*शुक्र :* 

(3) मुसीबतों पर भी शुक्र कीजिये : कि बन्दा जब मुसीबतों पर शुक्र की आदत बना लेगा तो खुद ब खुद नेमतों पर भी शुक्र बजा लाएगा, मुसीबतों पर शुक्र के इमाम ग़ज़ाली عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْوَالِی ने पांच पहलू बयान फ़रमाए है हर मुसीबत और बीमारी के बारे में येह तसव्वुर करे कि इस से भी बढ़ कर बीमारी और मुसीबत मौजूद है अगर अल्लाह عزوجل इस में इज़ाफ़ा फ़रमा दे तो क्या मैं रोक सकता हूं, इसे दूर कर सकता हूं ? हरगिज़ नहीं ! पस अल्लाह عزوجل का शुक्र है कि उस ने बड़ी मुसीबत व बीमारी नहीं भेजी।

येह तसव्वुर कर के शुक्र अदा करें कि हो सकता है इस मुसीबत के बदले कोई दीनी मुसीबत दूर कर दी गई हो। एक शख़्स ने सय्यिदुना सहल बिन अब्दुल्लाह तुस्तरी عَلَیْهِ رَحَمَةُاللّٰهِ الْقَوِی से कहा चोर मेरे घर में दाखिल हुवा और सामान ले कर चला गया।फ़रमाया अल्लाह عزوجل का शुक्र अदा करो अगर शैतान तुम्हारे दिल में दाखिल हो कर ईमान-लूट लेता तो क्या करते ? येह तसव्वुर करे कि हो सकता है कोई न उख़रवी सज़ा दुन्या में ही दे दी गई हो और येह भी अल्लाह عزوجل की बहुत बड़ी ने'मत है क्यूंकि जिसे किसी अमल की दुन्या में सज़ा दे दी गई तो अब उसे उस अमल की आख़िरत में सज़ा नहीं मिलेगी

फ़रमाने मुस्तफा ﷺ है बन्दा अगर कोई गुनाह करे फिर उसे दुन्या में कोई तक्लीफ़ या मुसीबत पहुंच जाए तो अल्लाह عزوجل उसे दोबारा सज़ा नहीं देगा।

येह मुसीबत व तक्लीफ़ तो बन्दे के लिये लौहे महफूज़ में लिखी हुई थी जो लाज़िमन उस को पहुंचनी थी, जब दुन्या में पहुंच चुकी और उस के बा'ज़ या कुल से फ़रागत और राहत हासिल कर ली तो येह भी उस के हक में नेमत है लिहाज़ा इस पर शुक्र अदा करें के जिस तरह दवा मरीज़ के लिये ना पसन्दीदा होती है मगर उस के हक में मुफीद होती है इसी तरह मोमिन को पहुंचने वाली तक्लीफ़ भी ना पसन्दीदा होती है लेकिन उस के हक़ में बेहतर होती है लिहाज़ा इस पर शुक्र अदा करे, मोहलिक (हलाक करने वाले) गुनाहों की बुन्याद दुन्या की महब्बत है और दुन्या से दिल का उचाट हो जाना उख़रवी नजात का बाइस है, तक्लीफ़ों मुसीबतों की वज्ह से बन्दे का दिल दुन्या से उचाट हो जाता है तो येह बजाते खुद एक नेमत है लिहाज़ा इस पर शुक्र अदा करना चाहिये।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह 44

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -39)

*सब्र :* 

*सब्र की तारीफ :-* "सब्र" के लुगवी मा'ना रुकने, ठहरने या बाज़ रहने के हैं और नफ़्स को इस चीज़ पर रोकना (या'नी डट जाना) जिस पर रुकने (डटे रहने) का अक्ल और शरीअत तकाज़ा कर रही हो या नफ्स को उस चीज़ से बाज़ रखना जिस से रुकने का अक्ल और शरीअत तकाज़ा कर रही हो सब्र कहलाता है।

*बुन्यादी तौर पर सब्र की दो किस्में हैं :*

(1) बदनी सब्र जैसे बदनी मशक्कतें बरदाश्त करना और उन पर साबित क़दम रहना।

(2) तबई ख्वाहिशात और ख्वाहिश के तक़ाज़ों से सब्र करना।

पहली किस्म का सब्र जब शरीअत के मुवाफ़िक हो तो काबिले तारीफ़ होता है लेकिन मुकम्मल तौर पर तारीफ़ के काबिल सब्र की दूसरी किस्म है।

📓सिरातुल जिनान पारह 2 अल बक़रह तहतुल आयत 153,1/246

*आयते मुबारका :* अल्लाह عزوجل क़ुरआने मजीद फुरकाने हमीद में इरशाद फ़रमाता है तर्जमए कन्जुल ईमान : और सब्र करो बेशक अल्लाह सब्र वालों के साथ है।

*(हदीसे मुबारका) साबिर के लिये उखुरवी इन्आम :* हुज़ूर नबिये रहमत शफ़ीए उम्मत صلی الله تعالی علیه وسلم का फ़रमाने जन्नत निशान है कि अल्लाह عزوجل इरशाद फ़रमाता है जब मैं अपने किसी बन्दे को उस के जिस्म, माल या औलाद के जरीए आजमाइश में मुब्तला करूं, फिर वोह सब्रे जमील के साथ उस का इस्तिकबाल करे तो कियामत के दिन मुझे हया आएगी कि उस के लिये मीज़ान काइम करूं या उस का नामए आ'माल खोलूं।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 45

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -40)

*सब्र :* 

*सब्र करने के मुख्तलिफ़ अहकाम :*

शरीअत ने जिन कामों से मन्अ किया है उन से सब्र (या'नी रुकना) फ़र्ज़ है। ना पसन्दीदा काम (जो शरअन गुनाह न हो उस) से सब्र मुस्तहब है। तक्लीफ़ देह फे'ल जो शरअन ममनूअ है उस पर सब्र (या'नी ख़ामोशी) ममनूअ है।

मसलन किसी शख़्स या उस के बेटे का हाथ नाहक काटा जाए तो उस शख्स का ख़ामोश रहना और सब्र करना ममनूअ है, ऐसे ही जब कोई शख़्स शहवत के साथ बुरे इरादे से उस के घरवालों की तरफ़ बढ़े तो उस की गैरत भड़क उठे लेकिन गैरत का इज़हार न करे और घरवालों के साथ जो कुछ हो रहा है उस पर सब्र करे और कुदरत के बा वुजूद न रोके तो शरीअत ने इस सब्र को हराम करार दिया है।

📕 इहयाउल उलूम,4/206

सब्रे जमील या'नी सब्र से बेहतरीन सब्र येह है कि मुसीबत में मुब्तला शख़्स को कोई न पहचान सके उस की परेशानी किसी पर ज़ाहिर न हो।

📗 इहयाउल उलूम,4/206

सब्र का आ'ला तरीन दरजा येह है कि लोगों की तरफ से पहुंचने वाली तकालीफ़ पर सब्र किया जाए। फ़रमाने मुस्तफ़ा ﷺ है जो तुम से कत्ए तअल्लुक करे उस से सिलए रेहमी से पेश आओ, जो तुम्हें महरूम करे उसे अता करो और जो तुम पर जुल्म करे उसे मुआफ़ करो।

और हज़रते सय्यिदुना ईसा रूहुल्लाह علی نبیناوعليه الصلوةوالسلام ने इरशाद फ़रमाया मैं तुम से कहता हू कि बराई का बदला बुराई से न दो बल्कि जो तुम्हारे एक गाल पर मारे अपना दूसरा गाल उस के आगे कर दो,जो तुम्हारी चादर छीने तुम कमर बन्द भी उसे पेश कर दो और जो तुम्हें एक मील साथ चलने पर मजबूर करे तुम उस के साथ दो मील तक चलो। इन तमाम इरशादात में तकालीफ़ पर सब्र करने का फ़रमाया गया है और येही सब्र का आ'ला मर्तबा है।

📙 इहयाउल उलूम,4/215

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 46

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -41)

*सब्र :* 

*सब्र की आदत बनाने के सात 7 तरीके :* 

(1) सब्र के फ़ज़ाइल का मुतालआ कीजिये :  क्यूंकि किसी भी नेक काम या अच्छे अमल के फ़ज़ाइल पेशे नज़र हों तो इस पर अमल करने का जल्दी ज़ेह्न बन जाता है, सब्र तो वोह बातिनी खूबी है कि जिस के फजाइल करआनो हदीस में ब कसरत बयान फरमाए गए हैं। सब्र की मा'लूमात, अक्साम, आयात, फ़ज़ाइल व तफ्सीली रिवायात के लिये दा'वते इस्लामी के इशाअती इदारे मक्तबतुल मदीना की मतबूआ कुतुब इहयाउल उलूम, (जिल्द चहारुम), फैजाने रियाजुस्सालिहीन (जिल्द अव्वल), मुकाशफ़तुल कुलूब , मिन्हाजुल आबिदीन, जन्नत में ले जाने वाले आ'माल वगैरा का मुतालआ बहुत मुफीद है।

(2) बारगाहे इलाही में सब्र की दुआ कीजिये : दुआ मोमिन का हथियार है, जब मोमिन अपना हथियार ही इस्ति'माल नहीं करेगा तो यकीनन उस के ख़तरनाक दुश्मन नफ्सो शैतान उस पर हम्ला आवर होते रहेंगे और मुसीबतों पर सब्रो शुक्र की बजाए नाशुक्री व बे सब्री जैसे मज़मूम अपआल सादिर होते रहेंगे।

(3) अपनी ज़ात में आजिज़ी पैदा कीजिये : कि किसी की तरफ़ से मिलने वाली तक्लीफ़ पर बेसब्री और इन्तिकामी कारवाई का एक सबब तकब्बुर भी है, जब बन्दा अपनी ज़ात में आजिज़ी व इन्किसारी पैदा करेगा तो इन्तिकामी कारवाई का जेह्न ख़त्म हो जाएगा और लोगों से मिलने वाली तकालीफ़ पर सब्र नसीब होगा और रहमते इलाही से इस सब्र पर अज्र मिलेगा। ان شاء الله

(4) जल्द बाजी न कीजिये : हमारी जिन्दगी में कई काम ऐसे हैं जिन में जल्द बाज़ी की वज्ह से सब्र रुख्सत हो जाता है, बल्कि इस जल्द बाज़ी की वज्ह से बसा अवकात शदीद नुक्सान भी उठाना पड़ता है, लिहाजा जल्द बाजी की आदत को दूर कीजिये, सब्र से काम लीजिये।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 49

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -42)

*सब्र :* 

*सब्र की आदत बनाने के सात 7 तरीके :* 
 
(5) मुआफ़ करने की आदत अपनाइये : जब किसी की तरफ़ से कोई तकलीफ़ पहुंचती है तो नफ्स उस से बदला लेने पर उभारता है जिस की ज़िद अफ़्वो दरगुज़र या'नी मुआफ़ कर देना है, जब बन्दा मुआफ़ कर देने की आदत अपनाएगा तो तकालीफ़ पहुंचने पर उसे खुद ब खुद सब्र भी नसीब हो जाएगा।

(6) मुसीबत में नेमतों को तलाश कीजिये : येह बुजुर्गाने दीन का तरीका है और इस से सब्र करने में मुआवनत मिलती है, हर मुसीबत में कोई न कोई नेमत मख़्फी (छुपी) होती है, मसलन बसा अवकात एक छोटी मुसीबत किसी बड़ी मुसीबत को टालती है, कोई मुसीबत किसी गुनाह के लिये कफ्फ़ारा बन जाती है, मुसीबतें दरजात में बुलन्दी का बाइस भी होती है, दुन्यवी मुसीबतें उख़रवी मुसीबतों से नजात भी दिलाती हैं, यक़ीनन येह तमाम सूरतें रब तआला की बड़ी ने'मतें हैं जो मुसीबत में पोशीदा हैं।

अमीरुल मोमिनीन हज़रते सय्यिदुना उमर फारूके आ'जम رضى الله تعالیٰ عنه अन्हुं फ़रमाते हैं अल्लाह तआला ने मुझे जिस मुसीबत में भी मुब्तला किया उस में मुझ पर चार ने'मतें थीं

1⃣  वोह आज़माइश मेरे दीन में न थी।

2⃣  उस से बढ़ कर मुसीबत न आई।

3⃣  मैं उस पर राजी होने की दौलत से महरूम न हुवा।

4⃣ मुझे उस पर सवाब की उम्मीद रही।

(7) अपने से बड़ी मुसीबत वाले को देखिये : क्यूंकि जिसे कोई मुसीबत पहुंचती है तो वोह येही समझता है शायद मुझे सब से ज़ियादा बड़ी मुसीबत पहुंची है और येही बात बसा अवक़ात उसे बे सब्री में मुब्तला कर देती है, जब वोह अपने से बड़ी मुसीबत वाले को देखेगा तो शुक्र करेगा और उसे सब्र की ने'मत नसीब होगी!

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 49

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -43)

*हुस्ने अख़लाक़ :* 

हुस्ने अखलाक की एक पहलू के एतिबार से तारीफ "हुस्न"अच्छाई और खूब सूरती को कहते हैं "अख़्लाक़" जम्अ है "खुल्क" की जिस का मा'ना है “रवय्या, बरताव, आदत"। या'नी लोगों के साथ अच्छे रवय्ये या अच्छे बरताव या अच्छी आदात को हुस्ने अख़्लाक़ कहा जाता है।

इमाम गज़ाली رحمةالله تعالي عليه  फ़रमाते हैं : अगर नफ़्स में मौजूद कैफ़िय्यत ऐसी हो कि इस के बाइस अक्ली और शरई तौर पर पसन्दीदा अच्छे अफ़आल अदा हों तो उसे हुस्ने अख़्लाक कहते हैं और अगर अक्ली और शरई तौर पर ना पसन्दीदा बुरे अफ़आल अदा हों तो उसे बद अख़्लाकी से ता'बीर किया जाता है।

📕 इहयाउल उलूम,3/165

*हुस्ने अखलाक में शामिल नेक आ'माल :* हक़ीक़त में हुस्ने अख़्लाक़ का मफ्हूम बहुत वसीअ है, इस में कई नेक आ'माल शामिल हैं चन्द आ'माल येह हैं मुआफ़ी को इख़्तियार करना, भलाई का हुक्म देना, बुराई से मन्अ करना, जाहिलों से ए'राज़ करना, कत्ए तअल्लुक करने वाले से सिलए रेहमी करना, महरूम करने वाले को अता करना, जुल्म करने वाले को मुआफ़ कर देना, खन्दा पेशानी से मुलाकात करना, किसी को तक्लीफ़ न देना, नर्म मिज़ाजी, बुर्दबारी, गुस्से के वक़्त खुद पर काबू पा लेना, गुस्सा पी जाना, अफ्वो दरगुज़र से काम लेना, लोगों से खन्दा पेशानी से मिलना, मुसलमान भाई के लिये मुस्कुराना, मुसलमानों की खैर ख़्वाही करना, लोगों में सुल्ह करवाना, हुकूकुल इबाद की अदाएगी करना, मज़लूम की मदद करना, ज़ालिम को उस के जुल्म से रोकना, दुआए मगफिरत करना, किसी की परेशानी दूर करना, कमज़ोरों की कफ़ालत करना, ला वारिस बच्चों की तरबियत करना, छोटों पर शफ़्क़त करना, बड़ों का एहतिराम करना, उलमा का अदब करना, मुसलमानों को खाना खिलाना, मुसलमानों को लिबास पहनाना, पड़ोसियों के हुकूक अदा करना, मशक्कतों को बरदाश्त करना, हराम से बचना, हलाल हासिल करना, अलो इयाल पर खर्च में कुशादगी करना वगैरा वगैरा।..✍🏻

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 50

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -44)

*हुस्ने अख़लाक़ :* 

आयते मुबारका : अल्लाह عزوجل क़ुरआने मजीद फुरकाने हमीद में इरशाद फ़रमाता है

                 *وَاِنَّکَ لَعَلٰی خُلُقِِ عَظِیْمِِِ* 

तर्जमए कन्जुल ईमान : और बेशक तुम्हारी खू बू बड़ी शान की है।

इस आयते मुबारका के तहत तफ़्सीरे ख़ज़ाइनुल इरफ़ान में है : हज़रते उम्मुल मोमिनीन आइशा सिद्दीका رضی الله تعالی عنھا से दरयाफ्त किया गया तो आप ने फ़रमाया कि सय्यिदे आलम صلی الله تعالی علیه وسلم का खुल्क क़ुरआन है। हदीस शरीफ़ में है सय्यिदे आलम صلی الله تعالی علیه وسلم ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने मुझे मकारिमे अख़्लाक़ व महासिने अफ़आल की तक्मील व ततमीम (मुकम्मल व पूरा करने) के लिये मबऊस फ़रमाया।

      *तेरे खुल्क को हक ने अज़ीम कहा..!!*
          तेरी खिल्क को हक़ ने जमील किया..!!
     *कोई तुझ सा हुवा है न होगा शहा..!!*
          तेरे ख़ालिके हुस्नो अदा की क़सम..!!

हदीसे मुबारका : *मीजाने अमल में सब से वज़नी शै-* हज़रते सय्यिदुना अबू दरदा رضی الله تعالی عنه से रिवायत है कि ताजदारे मदीना, राहते कल्बो सीना صلی الله تعالی علیه وسلم  का फ़रमाने बा करीना है : कियामत के दिन मोमिन के मीज़ान में हुस्ने अख़्लाक़ से ज़ियादा वज़्नी कोई शै नहीं होगी।

हुस्ने अख़्लाक़ का हुक्म : हुस्ने अख़्लाक के मुख्तलिफ़ पहलू हैं इसी वज्ह से बा'ज़ सूरतों में हुस्ने अख़्लाक़ वाजिब, बा'ज़ में सुन्नत और बा'ज़ सूरतों में मुस्तहब है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 51

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -45)

*हुस्ने अख़लाक़ :* 

*हुस्ने अख़्लाक़ अपनाने के तरीके :*

(1) अच्छी सोहबत इख़्तियार कीजिये : कि सोहबत असर रखती है जो बन्दा जैसी सोहबत इख्तियार करता है वैसा ही बन जाता है, अच्छों की सोहबत अच्छा और बुरों की सोहबत बुरा बना देती है, बद-अख़्लाकों की सोहबत बद खुल्क और हुस्ने अख़्लाक़ वालों की सोहबत हुस्ने अख़्लाक़ वाला बना देती है!

(2) हुस्ने अख़्लाक़ के फ़ज़ाइल का मुतालआ कीजिये : जब किसी चीज़ के फ़ज़ाइल पेशे नज़र हों तो उसे अपनाना आसान हो जाता है हुस्ने अख़्लाक़ की मा'लूमात के लिये मक्तबतुल मदीना की मतबूआ कुतुब अल्लामा तबरानी عليه رحمةالله القوی की किताब मकारिमल अख़्लाक़ तर्जमा-बनाम हुस्ने अख़्लाक़,हुज्जतुल इस्लाम हज़रते सय्यिदुना इमाम मुहम्मद गज़ाली عليه رحمةالله الوالی की माया नाज़ तसानीफ़ इहयाउल उलूम, जिल्द सिवुम और मुक़ाशफ़तुल कुलूब का मुतालआ बहुत मुफीद हैै।

(3) नफ़्सानी ख्वाहिशात से परहेज़ कीजिये : बसा अवकात जाती रन्जिश, ना पसन्दीदगी और नाराज़ी की बिना पर नफ्स अपने गुस्से का इज़हार गीबत, गाली गलोच, चुगली वगैरा जैसी बद अख़्लाक़ी की बद तरीन किस्मों से करवाता है जो हुस्ने अख़्लाक़ की बद तरीन दुश्मन हैं, लिहाज़ा नफ्सानी ख्वाहिशात से परहेज़ कीजिये ताकि हुस्ने अख़्लाक़ की दौलत नसीब हो।

(4) हुस्ने अख़्लाक़ की बारगाहे इलाही में दुआ कीजिये : कि दुआ मोमिन का हथियार है, हुज़ूर नबिये रहमत शफ़ीए उम्मत صلی الله تعالی علیه وسلم की दो दुआएं पेशे ख़िदमत हैं
*اَللّٰھُمَّ حَسَّنْتَ خَلْقِیْ فَحَسِِّنْ خُلُقِیْ*

या'नी ऐ अल्लाह عزوجل ! तू ने मेरी सूरत अच्छी बनाई है पस मेरे अख़्लाक़ को भी अच्छा कर दे।

*اَللّٰھُمَّ اِنِِّیْ اَسْئَلُکَ الصِِّحَّةَوَالْعَافِيَةَوَحُسْنَ الْخُلُق*

या'नी ऐ अल्लाह عزوجل ! मैं तुझ से सिहहत,आफ़िय्यत और अच्छे अख़्लाक़ का सुवाल करता हूं।

(5) बुराई का जवाब अच्छाई से दीजिये : बुराई का जवाब भलाई से देने को अफ़्ज़ल अख़्लाक़ में शुमार किया गया है चुनान्चे, फ़रमाने मुस्तफ़ा صلی الله تعالی علیه وسلم है : दुन्या व आखिरत के अफ़्ज़ल अख़्लाक़ में से येह है कि तुम कत्ए तअल्लुक़ करने वाले से सिलए रेहमी करो, जो तुम्हें महरूम करे उसे अता करो और जो तुम पर जुल्म करे उसे मुआफ़ कर दो।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह 54-55

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -46)

*मुहासबए नफ़्स :* 

*मुहासबए नफ़्स की तारीफ :* मुहासबे का लुगवी मा'ना हिसाब लेना, हिसाब करना है और मुख़्तलिफ़ आ'माल करने से पहले या करने के बाद इन में नेकी व बदी और कमी बेशी के बारे में अपनी जात में गौरो फ़िक्र करना और फिर बेहतरी के लिये तदाबीर इख़्तियार करना मुहासबए नफ़्स कहलाता है।
         
हुज्जतुल इस्लाम इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْوَالِی फ़रमाते हैं आ'माल की कसरत और मिक्दार में ज़ियादती और नुक्सान की मा'रिफ़त के लिये जो गौर किया जाता है उसे मुहासबा कहते हैं, लिहाज़ा अगर बन्दा अपने दिन भर के आ'माल को सामने रखे ताकि उसे (नेक आ'माल की) कमी बेशी (कम या ज़ियादा होने) का इल्म हो तो येह भी मुहासबा है।

📕 इहयाउल उलूम,5/349

आ'माल से क़ब्ल और बाद मुहासबे की नफ़ीस वजाहत : हज़रते सय्यिदुना हसन बसरी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْغَنِی फ़रमाते हैं कि मोमिन के दिल में अचानक कोई पसन्दीदा खयाल पैदा होता है तो मोमिन कहता है खुदा की कसम! तू मुझे बहुत पसन्द है,तू मेरी जरूरत भी है, लेकिन अफ़सोस! तेरे और मेरे दरमियान एक रुकावट है,येह कह कर मोमिन उस पसन्दीदा ख़याल को तर्क कर देता है, इसी का नाम अमल से पहले मुहासबा है फिर फ़रमाया कि बा'ज़ अवकात मोमिन से कोई खता हो जाती है तो वोह नफ़्स को मुखातब कर के कहता है तू ने क्या सोच कर ऐसा किया ?" खुदा की क़सम! ऐसी ख़ता में मेरा कोई उज्र क़बूल नहीं किया जाएगा। खुदा की क़सम! आयिन्दा मैं ان شاء الله कभी ऐसी ख़ता नहीं करूंगा।

📔 इहयाउल उलूम, 5/319

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 57

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -47)

*मुहासबए नफ़्स :*  

*आयते मुबारका :* अलाह عزوجل इरशाद फ़रमाता है
                وَلَآاُقْسِمُ بِانَّفْسِ اللَّوَّامَةِ

*तर्जमए कन्जुल ईमान :* और उस जान की क़सम जो अपने ऊपर बहुत मलामत करे।

इस आयते मुबारका के तहत हज़रते सय्यिदुना हसन बसरी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْغَنِی फ़रमाते हैं मोमिन हमेशा नफ़्स को झिड़कता रहता है कि तू ने फुलां बात क्या सोच कर कही? फुलां खाना तू ने किस लिये खाया? फुलां मशरूब तू ने किस लिये नोश किया? जब कि काफ़िर ज़िन्दगी बसर करता रहता है लेकिन कभी अपने नफ़्स को नहीं झिड़कता (यानी उस का मुहासबा नहीं करता)।

*हदीसे मुबारका समझदार कौन :* सरवरे आलम, नूरे मुजस्सम صلی الله تعالی علیه وسلم ने इरशाद फ़रमाया समझदार वोह शख़्स है जो अपना मुहासबा करे और आख़िरत की बेहतरी के लिये नेकियां करे और आजिज़ वोह है जो अपने नफ़्स की ख्वाहिशात की पैरवी करे और अल्लाह तआला से आख़िरत के इन्आम की उम्मीद रखे।

*मुहासबए नफ़्स का हुक्म :* हुज्जतुल इस्लाम हज़रते सय्यिदुना इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْوَالِی नक्ल फ़रमाते हैं अल्लाह عزوجل और आख़िरत पर ईमान रखने वाले हर अक्ल मन्द शख़्स पर लाज़िम है कि वोह नफ़्स के मुहासबे से गाफ़िल न हो और नफ़्स की हरकातो सकनात और लज़्ज़ात व खयालात पर सख़्ती करे क्यूंकि ज़िन्दगी का हर सांस अनमोल हीरा है जिस से हमेशा बाकी रहने वाली ने'मत (या'नी जन्नत) खरीदी जा सकती है तो इन सांसों को जाएअ करना या हलाकत वाले कामों में सर्फ़ करना बहुत संगीन और बड़ा नुक्सान है जो समझदार शख़्स का शेवा नहीं।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 59

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part - 48)

*मुहासबाए नफ़्स :* 

*मुहासबा करने और इस का जेह्न बनाने के तरीके :* 

*(1) मुहासबए नफ़्स की मा-रिफ़त हासिल कीजिये :* कि जब तक किसी चीज़ की मा'लूमात न हों उस चीज़ तक पहुंचना मुश्किल होता है, जब मुहासबए नफ़्स की मा'रिफ़त व मालूमात हासिल होंगी तो मुहासबए नफ़्स करना बहुत आसान हो जाएगा इस के लिये हुज्जतुल इस्लाम हज़रते सय्यिदुना इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْوَالِی की माया नाज़ तस्नीफ़ "इहयाउल उलूम,"जिल्द 5, सफ़हा 311 से मुतालआ बहुत मुफीद है।

*(2) ख़ौफ़ ख़ुदा عزوجل वाक़िआत मुलाहज़ा कीजिये :* कि बन्दा जब अल्लाह عزوجل के नेक बन्दों के खौफे खुदा से भरपूर वाकिआत का मुतालआ क़नाअत है तो उस का येह मदनी ज़ेह्न बनता है कि वोह लोग नेक परहेज़गार होने के बा वुजूद अल्लाह عزوجل से इतना डरते थे, मैं तो बहुत ही गुनहगार हूं मुझे तो रब तआला से बहुत ज़ियादा डरना चाहिये यूं रहमते इलाही से उसे मुहासबए नफ़्स नसीब हो जाएगा।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 62

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -49)

*मुहासबए नफ़्स :* 

*मुहासबा करने और इस का जेह्न बनाने के तरीके :* 
 
(3) बुजुर्गाने दीन के मुहासबे के वाक़िआत का मुतालआ कीजिये : हज़रते सय्यिदुना अबू तलहा رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْه के बारे में मरवी है कि किसी परिन्दे ने उन की तवज्जोह नमाज़ से हटा कर बाग की जानिब मब्ज़ूल करवा दी तो आप رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْه ने गौरो फ़िक्र किया और अपने फेल पर नदामत का इज़हार करते हुए बतौरे कफ्फारा अपना बाग राहे खुदा में सदका कर दिया। हज़रते सय्यिदुना अब्दुल्लाह बिन सलाम رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْه ने लकड़ियों का एक गठ्ठा उठाया तो किसी ने कहा ऐ अबू यूसुफ़ ! आप के बेटे और गुलाम इस काम के लिये काफ़ी थे फ़रमाया मैं नफ़्स का इम्तिहान लेना चाहता था कि कहीं वोह इन्कार तो नहीं करता सय्यिदुना फ़ारूके आ'जमرَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْه रात के वक़्त पाउं पर दुर्रा मार कर नफ़्स से पूछते "आज तू ने क्या अमल किया ?

📕 इहयाउल उलूम,5/348 ,349

(4) अपने आप को बेबाक और जरी होने से बचाइये : कि येह चीज़ बन्दे को तकब्बुर व सरकशी पर मजबूर कर देती है और बन्दा कभी भी अपना मुहासबा नहीं कर पाता। उमूमन दीन का इल्म न होना बेबाक और जरी होने पर उभारता है लिहाज़ा बन्दे को चाहिये कि उलमाए अहले सुन्नत व मुफ्तियाने उज़्ज़ाम से राबिते में रहे, हर मुआमले में उन से शरई रहनुमाई हासिल करे, दीनी उलूम हासिल करने के लिये दीनी कुतुबो रसाइल का मुतालआ करे।

इस्लामी अकाइद, नमाज़,रोज़ा, हज, ज़कात व रोज़ मर्रा के कसीर मुआमलात के मुख़्तलिफ़ मसाइल जानने के लिये *"बहारे शरीअत"* का मुतालआ बहुत मुफीद है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 62

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part - 50)

*मुहासबए नफ़्स :* 

*मुहासबा करने और इस का जेह्न बनाने के तरीके :* 

(5) अच्छी बातों की सोच और बुरी बातों पर नदामत इख़्ज़ियार करें : कि इस तरह अच्छी बातों पर अमल की तरगीब और बुरी बातों को छोड़ने की तौफ़ीक़ मिलती है। हज़रते सय्यिदुना इब्ने अब्बास رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْه फ़रमाते हैं भलाई में गौरो फ़िक्र करना इस पर अमल करने की दावत देता है और बुराई पर नादिम होना बुराई छोड़ने पर उभारता है।

📗 इह़याउल उ़लूम,5/412

(6) मुशाहदात से इब्रत हासिल कीजिये : दिन भर हमारी नज़रों से कई मनाज़िर गुज़रते हैं, हम कई मुशाहदात करते हैं, अगर इन मुशाहदात से इब्रत हासिल करने का ज़ेह्न बन जाए तो मुहासबा करने में काफ़ी आसानी हो जाएगी। मसलन कोई हादिसा देख कर येह सोचें कि खुदा न ख्वास्ता अगर हादिसा मेरे साथ पेश आ जाता तो मेरा क्या बनता ? क्या मैं ने कब्र में जाने की तय्यारी कर ली थी ? क्या मैं ने अपने आप को हिसाबो किताब के लिये तय्यार कर लिया था ? 

हज़रते सय्यिदुना सुफ्यान बिन उयैना رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَلَیْه अपनी गुफ्तगू में अक्सर एक शे'र से मिसाल दिया करते थे जिस का तर्जमा यूं है कि : जब इन्सान गौरो फ़िक्र करता है तो उसे हर शै से इब्रत हासिल होती है।

📙 इह़याउल उ़लूम, 5/410

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 65

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -51)

*मुहासबए नफ़्स :* 

*मुहासबा करने और इस का जेह्न बनाने के तरीके* 
 
(7) मुहासबे की आदत बनाने के लिये मश्क कीजिये : मश्क का मतलब है एक काम को बार बार करना और जब किसी काम को बार बार किया जाता है तो वोह करार पकड़ जाता है, उस पर इस्तिकामत नसीब हो जाती है। कभी कभार अलाहदगी में आंखें बन्द कर के अपने रोज़ मर्रह के मा'मूलात के मुहासबे की यूं मश्क कीजिये भूले से या जान बूझ कर सादिर होने वाले गुनाहों को याद कीजिये कि कल सुबह से ले कर अब-तक जिस अन्दाज़ से मैं अपना वक़्त गुजार चुका हूं, क्या येह अन्दाज़ एक मुसलमान को जेब देता है ? 

*अफसोस !* नमाज़े फ़ज्र बा जमाअत अदा करने में सुस्ती की!

रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰهُ تَعَالٰی عَلَیْهِ وَسَلَّم की सुन्नत दाढ़ी भी मुन्डाई!

वालिदैन की बे अदबी की, उन के साथ बद तमीज़ी से पेश आया!

दिन भर बद निगाही की!

झूट,धोका देही और खियानत कर के माल कमाया!

माल कमाने में इतना मसरूफ़ रहा कि दीगर नमाज़ों का भी खयाल न रहा!

आवारा दोस्तों की मजलिस में बैठ  कर : गीबत, चुगली,  हसद, तकब्बुर, बद गुमानी जैसे बातिनी अमराज़ का शिकार हुवा!

फ़िल्में ड्रामे, गाने बाजे भी सुने!

अल गरज़ यूं सारा वक़्त अल्लाह عَزَّوَجَلَّ और उस के रसूल صَلَّی اللّٰهُ تَعَالٰی عَلَیْهِ وَسَلَّم की ना फ़रमानी में गुज़ार दिया।

*ऐ नादान !* तू कब तक इसी मन्हूस तर्जे ज़िन्दगी को अपनाए रखेगा ? क्या रोज़ाना यूंही तेरे नामए आ'माल में गुनाहों की तादाद बढ़ती रहेगी ? क्या तुझे नेकियों की बिल्कुल हाजत नहीं ? क्या तुझ में दोज़ख के शदीद तरीन अज़ाबात बरदाश्त करने की हिम्मत व ताकत है ?क्या तू जन्नत से महरूमी का दुख बरदाश्त कर पाएगा ?

*याद रख !* अगर अब भी तू ख्वाबे गफ़्लत से बेदार न हुवा तो अचानक मौत की सख़्तियां तुझे झन्झोड़ कर रख देंगी, लेकिन अफ़सोस !उस वक़्त बहुत देर हो चुकी होगी, पछताने के सिवा कुछ हासिल न होगा, लिहाज़ा अपनी इस कीमती ज़िन्दगी को गनीमत जानते हुए खुदाए अहकमुल हाकिमीन की इताअत और मोमिनीन पर रहमो करम फ़रमाने वाले रसूले करीम रऊफुर्रहीम صَلَّی اللّٰهُ تَعَالٰی عَلَیْهِ وَسَلَّم की सुन्नतों की इत्तिबाअ में लग जा, तुझे दुन्या व आखिरत की भलाइयां नसीब होंगी।

     *दिल में हो याद तेरी गोशए तन्हाई हो..!*

       फिर तो खल्वत में अजब अन्जुमन आराई हो..!!

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 65

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -52)

*मुराक़बा करना :* 

*मुराकबे की तारीफ :* मुराक़बे के लुगवी माना निगरानी करना, नज़र रखना, देख भाल करना के हैं इस का हक़ीक़ी मा'ना अल्लाह عزوجل का लिहाज़ करना और उस की तरफ़ पूरी तरह मुतवज्जेह होना है और जब बन्दे को इस बात का इल्म (मा'रिफ़त) हो जाए कि अल्लाह عزوجل देख रहा है अल्लाह عزوجل दिल की बातों पर मुत्तलअ है पोशीदा बातों को जानता है, बन्दों के आ'माल को देख रहा है और हर जान के अमल से वाकिफ है उस पर दिल का राज़ इस तरह इयां है जैसे मख्लूक के लिये जिस्म का जाहिरी हिस्सा इयां होता है बल्कि इस से भी ज़ियादा इयां है, जब इस तरह की मा'रिफ़त हासिल हो जाए और शक यक़ीन में बदल जाए तो इस से पैदा होने वाली कैफ़िय्यत को *मुराक़बे* कहते हैं।

वाजेह रहे कि उर्फे आम में खल्वत (अलाहदगी) में या जल्वत (भीड़) में, या किसी बुजुर्ग के मजार पर सर झुका कर दिल में खौफे़ खुदा का तसव्वुर जमाना, या फ़िक्रे आख़िरत करना, या ज़िक्रुल्लाह करना, या औरादो वज़ाइफ़ पढ़ना, या महब्बते इलाही में गुम हो जाना, या अपने शैख की बातिनी तवज्जोह के जरीए कल्ब को ज़िन्दा करना, या दिल की सफ़ाई करना या ब ज़रीअए इस्तिखारा रब तआला से किसी मुआमले में मुआवनत चाहना वगैरा। इन तमाम सूरतों को भी मुराक़बा से ही ता'बीर किया जाता है लेकिन यहां येह मुराक़बा मुराद नहीं है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 66

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -53)

*मुराक़बा  करना :* 

*आयते मुबारका :* अल्लाह عَزَّوَجَلَّ इरशाद फ़रमाता हैै

                *وَکَانَ اللّٰهُ عَلٰی کُلِِّ شَیْءِِرَّقِیْبًا*

*तर्जमए कन्जुल ईमान :* और अल्लाह हर चीज़ पर निगहबान है।

*हदीसे मुबारका : मुराकबे की मुबारक तालीम -* हज़रते सय्यिदुना अबू हुरैरा رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْه से एक तवील हदीसे पाक मरवी है कि हज़रते जिब्रीले अमीन عَلَیْهِ السَّلَام बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए और चन्द सुवालात किये ,उन में से एक सुवाल येह था कि या रसूलल्लाह ﷺ एहसान क्या है ? आप ﷺ ने इरशाद फ़रमाया तुम अल्लाह عزوجل की इस तरह इबादत करो कि गोया तुम उसे देख रहे हो और अगर तुम उसे नहीं देख रहे तो वोह तुम्हें ज़रूर देख रहा है।

अल्लामा अबुल कासिम अब्दुल करीम हवाज़िन कुशैरी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْقَوِی फ़रमाते हैं हुज़ूर नबी ए करीम ﷺ का येह फ़रमाना कि अगर तुम उसे नहीं देख रहे तो वोह तुम्हें ज़रूर देख रहा है। मुराकबे की तरफ़ इशारा है क्यूंकि मुराक़बा बन्दे के उस बात को जानने (और यकीन रखने) का नाम है कि रब तआला उसे देख रहा है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 67

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -54)

*मुराक़बा करना :* 

 *हिकायत - मुराकबा करने वाला शागिर्द :* एक बुजुर्ग رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه के बहुत से शागिर्द थे वोह उन तमाम शागिर्दो में से एक शागिर्द के साथ बहुत इम्तियाजी सुलूक करते और उस पर ज़ियादा तवज्जोह दिया करते थे। जब उन से एक ही शागिर्द के साथ इस इम्तियाजी सुलूक की वजह दरयाफ़्त की गई तो उन्हों ने फ़रमाया कि मैं अभी तुम लोगों पर ज़ाहिर करता हूं कि मैं इस शागिर्द पर ज़ियादा तवज्जोह और इस के साथ इम्तियाजी सुलूक क्यूं करता हूं। फिर इन्हों ने उस शागिर्द समेत दीगर तमाम शागिर्दो को बुलाया और सब को एक एक परिन्दा दे कर हुक्म दिया कि इस परिन्दे को ले जा कर ऐसी जगह ज़ब्ह कर के लाओ जहां तुम्हें कोई न देख रहा हो। तमाम शागिर्द चले गए और जब वापस आए तो उस एक शागिर्द के इलावा सब ने अपने परिन्दे जब्ह किये हुए थे।

उन बुजुर्ग رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه ने उस शागिर्द से पूछा कि "तुम ने अपना परिन्दा क्यूं ज़ब्ह न किया ?" तो उस ने अर्ज़ की "आली जाह ! आप ने फ़रमाया था कि येह परिन्दा ऐसी जगह ज़ब्ह करना जहां कोई न देख रहा हो मुझे कोई भी ऐसी जगह नहीं मिली जहां कोई न देख रहा हो! (क्यूंकि मैं जहां भी गया वहां मेरा रब मुझे देख रहा था)

इस मुराकबा करने वाले शागिर्द का येह आलीशान जवाब सुन कर उन बुजुर्ग رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه ने इम्तियाजी सुलूक और ज़ियादा तवज्जोह के बारे में पूछने वालों से इरशाद फ़रमाया येह वह है जिस के सबब मैं इस पर ज़ियादा तवज्जोह करता और इस के साथ इम्तियाजी सुलूक करता हूं।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 68

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -55)

*मुजाहदा करना :* 

*मुजाहदे की तारीफ़ :* मुजाहदा जहदुन से निकला है जिस का मा'ना है कोशिश करना ,मुजाहदे का लुगवी मा'ना दुश्मन से लड़ना ,पूरी ताकत लगा देना ,पूरी कोशिश करना और जिहाद करना है। जब कि नफ़्स को उन गलत कामों से छुड़ाना जिन का वोह आदी हो चुका है और आम तौर पर उसे ख्वाहिशात के ख़िलाफ़ कामों की तरगीब देना या जब मुहासबए नफ़्स से येह मा'लूम हो जाए उस ने गुनाह का इर्तिकाब किया है तो उसे उस गुनाह पर कोई सज़ा देना मुजाहदा कहलाता है।

*आयते मुबारका :* अल्लाह तआला कुरआने मजीद फुरकाने हमीद में इरशाद फ़रमाता है

*तर्जमए कन्जुल ईमान :-* और जिन्हों ने हमारी राह में कोशिश की ज़रूर हम उन्हें अपने रास्ते दिखा देंगे और बेशक अल्लाह नेकों के साथ है।

हज़रते सय्यिदुना उस्ताज़ अबू अली दक़्क़ाक़ عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْوَھَّاب इस आयते मुबारका के ज़िम्न में इरशाद फ़रमाते हैं जिस शख़्स ने अपने ज़ाहिर को मुजाहदे के साथ मुज़य्यन किया अल्लाह عَزَّوَجَلَّ उस के बातिन को मुशाहदे के साथ हसीन बना देता है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 71

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -56)

*मुजाहदा करना :* 

*हदीसे मुबारका - मुजाहदए नफ़्स करने वाले सहाबी :* हज़रते सय्यिदुना तलहा رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْه फ़रमाते हैं कि एक दिन एक शख़्स ज़ाइद कपड़े उतार कर बाहर निकला और गर्म रेत पर खूब लोट कर खुद को मुखातब कर के कहने लगा " ऐ रात के मुर्दार और दिन के बेकार ! येह जाएका चख ,क्यूंकि जहन्नम की आग इस से भी जियादा गर्म है।इस दौरान अचानक उस की निगाह हुज़ूरे अकरम, नूरे मुजस्सम ﷺ की जानिब गई कि आप ﷺ एक दरख्त के साए में तशरीफ़ फ़रमा हैं। वोह ख़िदमते अक्दस में हाज़िर हो कर अर्ज़ गुज़ार हुवा मेरा नफ़्स मुझ पर गालिब हो गया है।

रसूले अकरम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया सुनो! तुम्हारे लिये आस्मानी दरवाज़े खोल दिये गए हैं, अल्लाह عزوجل फ़िरिश्तों के सामने तुम पर फ़ख़्र फरमा रहा है। फिर आप ﷺ ने सहाबए किराम  عَلَیْھِمُ الرِِّضْوَان से इरशाद फ़रमाया अपने भाई से तोशए आखिरत लो। एक शख़्स ने कहा ऐ फुलां ! मेरे लिये दुआ करो। रसूले अकरम, शाहे बनी आदम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया इन सब के लिये दुआ करो। चुनान्चे, उस ने यूं दुआ मांगी :

"آللّٰھُمَّ اجْعَلِ التَّقْوٰی زَادَھُمْ وَاجْمَعْ عَلَی الْھُدٰی اَمْرَھُمْ

या'नी ऐ अल्लाह عزوجل इन सब का ज़ादे राह तक्वा बना दे और इन सब के मुआमले को हिदायत पर जम्अ फ़रमा।

फिर रहमते आलम ﷺ ने उस शख़्स के लिये दुआ फ़रमाई ऐ अल्लाह عزوجل इस को राहे रास्त पर  साबित रख। उस शख़्स ने कहा ऐ अल्लाह عزوجل हमारा ठिकाना जन्नत बना दे।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 72

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -57)

*मुजाहदा करना :* 

*मुजाहदे का हुक्म :* हर मुसलमान को चाहिये कि मुजाहदए नफ़्स करे कि येह अमल नजात का बाइस है ,अगर नफ़्स मुहासबे के बा वुजूद *हुकूकुल्लाह* में कोताही और गुनाह करने से बाज़ न आए तो उसे खुली छुट्टी नहीं देनी चाहिये क्यूंकि इस तरह उस के लिये गुनाह करना आसान हो जाता है और नफ़्स को गुनाहों की लत पड़ जाती है फिर गुनाहों से बचना मुश्किल हो जाता है और येह चीज़ हलाकत का सबब बन जाती है लिहाज़ा नफ़्स को खबरदार करते रहना चाहिये।

मसलन आदमी जब नफ़्सानी ख्वाहिश के सबब कोई मुश्तबा लुक्मा खा ले तो नफ़्स को भूका रख कर सज़ा दे और अगर किसी गैर महरम को देख ले तो आंख को येह सज़ा दे कि किसी चीज़ की तरफ़ न देखे। इसी तरह जिस्म के हर उज़्व को कोताही करने पर ख्वाहिशात की तक्मील से रोक कर सज़ा दे, राहे आखिरत के मुसाफ़िरों की येही आदत है।

*हिकायत - सुस्ती दिलाने पर नफ्स को अनोखी सजा :* सय्यिदुत्ताइफ़ा हज़रते सय्यिदुना जुनैदे बगदादी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْھَادِی बयान करते हैं कि एक बार शैख इब्ने कुरैबी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْقَوِی ने फ़रमाया कि रात का वक़्त था ,मुझे गुस्ल की ज़रूरत पेश आई तो मैं ने इरादा किया कि उसी वक़्त गुस्ल कर लूं मगर सख़्त सर्दी के सबब नफ्स ने सुस्ती दिलाई और मशवरा दिया कि सुब्ह तक गुस्ल मुअख्खर कर दो, बाद में पानी गर्म कर के गुस्ल कर लेना या हम्माम चले जाना, ख्वाह म ख़्वाह खुद को क्यूं मशक्कत में डाल रहे हो ?" मैं ने कहा बड़ी अजीब बात है जो हुकूक मुझ पर वाजिब थे उस की अदाएगी में पूरी ज़िन्दगी अल्लाह عزوجل की फ़रमां बरदारी करता रहा तो आज अमल करने में जल्दी की बजाए सुस्ती और-ताख़ीर कैसे कर सकता हूं? लिहाज़ा मैं ने नफ़्स को अनोखी सजा देने के लिये क़सम खाई कि मैं उसी लिबास में गुस्ल करूंगा नीज़ उसे उतार कर निचोडूंगा भी नहीं बल्कि बदन ही पर खुश्क करूंगा।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 73

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -58)

*मुजाहदा करना :* 

*मुजाहदा करने और इस का आदी बनने के तरीके :* 

(1) मुजाहदा करने के फ़वाइद पर गौर कीजिये : कि मुजाहदा या'नी गलती करने पर नफ़्स को सज़ा देना गुनाहों से बचने में मुआविन है कि एक बार नफ़्स को सज़ा मिलेगी तो दोबारा गुनाह में मुब्तला होने से पहले वोह ज़रूर सोचेगा, मुजाहदा करने से बन्दा अपने आप को छोटे बड़े तमाम गुनाहों से बचा सकता है, जुल्मो सितम से बच सकता है, दिल आजारी से बच सकता है, मुसलमानों की हक़ तलफ़ी से बच सकता है, मुजाहदा करने से नफ़्स बेबाक और जरी होने से बच जाता है, मुजाहदा करने से नफ्स कन्ट्रोल में रहता है, मुजाहदा करने से नेकियों में इज़ाफा होता है, कई ऐसे बड़े बड़े नेक काम जो पहले बन्दा नहीं कर सकता था मुजाहदा करने के बाद उन नेक कामों को बजा लाना बहुत आसान हो जाता है, मुजाहदा अल्लाह عزوجل की रिज़ा का सबब है, मुजाहदा आख़िरत की मन्ज़िलों को आसान करता है, मुजाहदा मग़फिरत का सबब और जन्नत में ले जाने वाला काम है। वगैरा वगैरा

(2) मुजाहदा करने वाले बुजुर्गों के वाकिआत का मुतालआ कीजिये : इस सिलसिले में हुज्जतुल इस्लाम हज़रते सय्यिदुना इमाम मुहम्मद गज़ाली عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْوَالِی की माया नाज़ तस्नीफ़ "इहयाउल उलूम," जिल्द 5, सफ़हा 354 ता 363 तक मुतालआ बहुत मुफीद है।

(3) ज़ाहिरी और बातिनी गुनाहों की मालूमात हासिल कीजिये : क्यूंकि गुनाहों की मालूमात न होने की सूरत में नफ़्स को किसी गुनाह पर सज़ा देना बहुत दुशवार है, इस सिलसिले में मक्तबतुल मदीना की मतबूआ इन कुतुब का मुतालआ बहुत मुफीद है : इहयाउल उलूम ,जिल्द 3 ,बातिनी बीमारियों की मा'लूमात ,जहन्नम में ले जाने वाले आ'माल। वगैरा वगैरा 

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 73

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -59)

*क़नाअत :* 

*क़नाअत की तारीफ :* क़नाअत का लुगवी मा'ना किस्मत पर राज़ी रहना है और सूफ़िया की इस्तिलाह में रोज़ मर्रह इस्ति'माल होने वाली चीज़ों के न होने पर भी राज़ी रहना क़नाअत है। हज़रते मुहम्मद बिन अली तिरमिज़ी رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه फ़रमाते हैं क़नाअत येह है कि इन्सान की किस्मत में जो रिज़्क लिखा है उस पर उस का नफ्स राज़ी रहे। अगर तंग दस्ती होने और हाजत से कम होने के बा वुजूद सब्र किया जाए तो उसे भी *क़नाअत* कहते हैं।

📓इह़याउल उ़लूम,4/20

कनाअत की तफ्सीली तारीफ़ यूं है हर वोह शख़्स जिस के पास माल न हो और उसे माल की ज़रूरत हो और उस की हालत येह हो कि माल में रग़बत की वजह से उस के नज़दीक माल का होना न होने की निस्बत ज़ियादा पसन्दीदा हो लेकिन येह रग़बत इस हद तक न पहुंची हो कि हसूले माल के लिये भाग दौड़ करे बल्कि अगर ब आसानी हासिल हो तो खुशी से ले ले और अगर हासिल करने के लिये मेहनत करनी पड़े तो छोड़ दे इस हालत को क़नाअत और ऐसे शख़्स को कानेअ या'नी क़नाअत करने वाले के नाम से मौसूम किया जाता है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 76

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -60)

*क़नाअत :* 

*आयते मुबारका :* अल्लाह عَزَّوَجَلَّ क़ुरआने मजीद में इरशाद फ़रमाता है

                *وَاَنَّهٗ ھُوَاَغْنٰی وَاَقْنٰی*

*तर्जमए कन्जुल ईमान :* और येह कि उसी ने ग़ना दी और क़नाअत दी।

मुफस्सिरे शहीर हकीमुल उम्मत मुफ्ती अहमद यार खान عَلَیْهِ رَحْمَةُالْحَنَّان इस आयत के तहत फ़रमाते हैं या'नी अमीरों को ग़ना, फ़क़ीरों को सब्रो क़नाअत बख़्शी या अपने महबूबों का दिल ग़नी बनाया और जाहिरी क़नाअत अता फ़रमाई, बा'ज़ अमीरों को ग़ना के साथ क़नाअत भी दी, हवस से बचाया।

*हदीसे मुबारका - क़नाअत पसन्द रब का महबूब है :* हज़रते सय्यिदुना सा'द बिन अबी वकास رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْه से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फ़रमाया अल्लाह عَزَّوَجَلَّ परहेज़गार, क़नाअत पसन्द और गुमनाम बन्दे को पसन्द फ़रमाता है!

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 76

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -61)

*क़नाअत :* 

*हिकायत - रोटी के टुकड़े के सबब कनाअत इख़्तियार कर ली* : मन्कूल है कि हज़रते सय्यदुना इब्राहीम बिन अदहम عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْاکْرَم खुरासान के मालदार लोगों में से थे एक दिन आप अपने महल से बाहर देख रहे थे कि एक शख़्स पर नज़र पड़ी जिस के हाथ में रोटी का एक टुकड़ा था जिसे वोह खा रहा था ,खाने के बाद वोह सो गया। आप ने एक गुलाम से फ़रमाया जब येह शख़्स बेदार हो तो इसे मेरे पास लाना। चुनान्चे, उस के बेदार होने पर गुलाम उसे आप के पास ले आया।

आप رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه ने उस से फ़रमाया ऐ शख़्स ! क्या रोटी खाते वक़्त तुम भूके थे? उस ने अर्ज़ की जी हां ! पूछा क्या उस रोटी से तुम सैर हो गए ?" अर्ज़ की “जी हां !" आप ने फिर सुवाल किया रोटी खाने के बाद तुम्हें अच्छी तरह नींद आई ?" अर्ज़ की जी हां !" उस की येह बातें सुन कर हज़रते सय्यिदुना इब्राहीम बिन अदहम عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْاکْرَم ने दिल में सोचा जब एक रोटी से भी गुज़ारा हो सकता है तो फिर मैं इतनी दुन्या ले कर क्या करूं.?? 

📓 इहयाउल उलूम , 4/591

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 77

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -62)

*क़नाअत :* 

 *क़नाअत का जेहन बनाने और इसे इख्तियार करने के तरीके :* 

(1) कनाअत के फ़ज़ाइल का मुतालआ कीजिये : क़नाअत के फ़ज़ाइल पर मुश्तमिल छ रिवायात मुलाहज़ा कीजिये : 

उस शख़्स के लिये खुश खबरी है जिसे इस्लाम की तरफ़ हिदायत हासिल हुई उस की रोजी ब क़दरे किफ़ायत है और वोह इस पर क़नाअत करता है। 

अल्लाह عَزَّوَجَلَّ के नज़दीक पसन्दीदा बन्दा वोह फ़क़ीर है जो अपनी रोजी पर क़नाअत इख्तियार करते हुए अल्लाह عَزَّوَجَلَّ से राजी रहे।

कियामत के दिन हर शख़्स चाहे अमीर हो या गरीब इस बात की तमन्ना करेगा कि उसे दुन्या में सिर्फ ब क़दरे किफ़ायत रोज़ी दी जाती। 
कल बरोजे कियामत अल्लाह عَزَّوَجَلَّ मुन्तख़ब और चुने हुए लोगों को तलब फ़रमाएगा और वोह अल्लाह عَزَّوَجَلَّ के अता कर्दा रिज़्क पर क़नाअत करने और उस की तक़दीर पर राज़ी रहने वाले होंगे।

रसूलुल्लाह ﷺ ने आले मुहम्मद के लिये ब कदरे किफ़ायत रिज़्क (या'नी कनाअत) की दुआ फ़रमाई। 

क़नाअत ऐसा खज़ाना है जो फ़ना नहीं होता।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 78

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -63)

*क़नाअत :* 

 *क़नाअत का जेहन बनाने और इसे इख्तियार करने के तरीके :* 

(2) क़नाअत से मुतअल्लिक अक्वाले बुज़ुर्गाने दीन का मुतालआ कीजिये : अल्लामा अबुल कासिम अब्दुल करीम बिन हवाज़िन कुशैरी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْقَوِی नक्ल फ़रमाते हैं कि मोहताज लोग मुर्दा हैं सिवाए उस शख़्स के जिसे अल्लाह عَزَّوَجَلَّ क़नाअत की इज़्ज़त से ज़िन्दा रखे।

हज़रते सय्यिदुना बिशर हाफ़ी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْکَافِی फ़रमाते हैं कि क़नाअत एक फ़िरिश्ता है जो सिर्फ़ मोमिन के दिल में रहता है।
        
हज़रते सय्यिदुना अबू बक्र मरागी رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه फ़रमाते हैं कि अक्ल मन्द वोह है जो दुन्यवी उमूर की तदबीर क़नाअत और लैतो ला'ल से करे और आख़िरत की तदबीर हिर्स और जल्दी से करे और दीनी मुआमलात की तदबीर इल्म और कोशिश से करे। 

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 79

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -64)

*क़नाअत :* 

*क़नाअत का जेहन बनाने और इसे इख्तियार करने के तरीके :* 

हज़रते सय्यिदुना अबू अब्दुल्लाह बिन ख़फ़ीफ़ رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه फ़रमाते हैं कि मफ्कूद चीज़ की उम्मीद को तर्क करना और मौजूद चीज़ के साथ मालदारी इख़्तियार करना क़नाअत है!

हज़रते सय्यिदुना वह्वव رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه फ़रमाते हैं कि इज़्ज़त और मालदारी दोनों दोस्त की तलाश में निकली तो दोनों की क़नाअत से मुलाकात हो गई तो वोह ठहर गई।

हज़रते सय्यिदुना जुन्नून मिसरी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْقَوِی ने फ़रमाया कि जो शख़्स क़नाअत इख्तियार करता है वोह अहले ज़माना से आराम पाता है और तमाम लोगों से सबक़त ले जाता है।

हज़रते सय्यिदुना कत्तानी رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه ने फ़रमाया कि जो शख़्स हिर्स को क़नाअत के बदले में फ़रोख्त कर दे वोह इज़्ज़त और मुरव्वत के  साथ कामयाबी हासिल करता है!

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -65)

*क़नाअत :* 

*क़नाअत का जेहन बनाने और इसे  इख्तियार करने के तरीके :* 

(3) रब तआला पर कामिल यक़ीन रखिये : दुन्या व आख़िरत में कामयाबी का बुन्यादी उसूल "अल्लाह عَزَّوَجَلَّ पर कामिल यक़ीन" है, क्यूं कि बे यक़ीनी का एक लम्हा कामयाबी के हुसूल के लिये सालहा साल की जाने वाली मेहनत पर पानी फेर देता है जब कि बसा अवक़ात सारी ज़िन्दगी नाकाम होने वाले शख़्स को लम्हा भर का यक़ीन कामयाबी से हम कनार करवा देता है लिहाज़ा अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की रहमत पर यक़ीन रखिये क्यूंकि आप के यक़ीन की कुव्वत कनाअत का जज्बा बेदार करने में बेहद मुआविन साबित होगी।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -66)

*क़नाअत :* 

*क़नाअत का जेहन बनाने और इसे इख्तियार करने के तरीके :* 

(4) हिसाबे कियामत से खुद को डराइये : अगर्चे ज़रूरत व हाजत से जाइद माल कमाना मुबाह है लेकिन याद रखिये जिस का माल जितना ज़ियादा होगा बरोजे कियामत उस का हिसाब किताब भी उतना ही ज़ियादा होगा, ज़ियादा मालो दौलत वाले को कल बरोजे क़ियामत दुशवारी का सामना होगा, जब कि क़लील माल वाले लोग जल्दी जल्दी हिसाब किताब से फ़ारिग हो जाएंगे, लिहाज़ा हिसाबो क़ियामत से खुद को डराइये, इस से भी क़नाअत इख़्तियार करने में भरपूर मदद मिलेगी।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -67)

*आजिज़ी व इन्किसारी :*

*आजिजी व इन्किसारी की तारीफ :* लोगों की तबीअतों और उन के मकामो मर्तबे के ए'तिबार से उन के लिये नर्मी का पहलू इख्तियार करना और अपने आप को हकीर व कमतर और छोटा ख़याल करना आजिज़ी व इन्किसारी कहलाता है।

*आयते मुबारका :* अल्लाह عَزَّوَجَلَّ कुरआने मजीद में इरशाद फ़रमाता है

*तर्जमए कन्जुल ईमान :* "बेशक मुसलमान मर्द और मुसलमान औरतें और ईमान वाले और ईमान वालियां और फ़रमां बरदार और फ़रमां बरदारें और सच्चे और सच्चियां और सब्र वाले और सब्र वालियां *और आजिज़ी करने वाले और आजिज़ी करने वालियां* और खैरात करने वाले और खैरात करने वालियां और रोजे वाले और रोज़े वालियां और अपनी पारसाई निगाह रखने वाले और निगाह रखने वालियां और अल्लाह को बहुत याद करने वाले और याद करने वालियां इन सब के लिये अल्लाह ने बख्शिश और बड़ा सवाब तय्यार कर रखा है।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -68)

*आजिज़ी व इन्किसारी :*

*आजिजी व इन्किसारी का हुक्म :*  अपने आप को तकब्बुर से बचाना और आजिज़ी व इन्किसारी इख्तियार करना हर मुसलमान पर लाज़िम है अलबत्ता दीगर अख़्लाक़ की तरह आजिज़ी के भी तीन दरजे हैं!

(1) अगर आजिज़ी ऐसी हो जिस में ज़ियादती की तरफ़ मैलान हो तो उसे तकब्बुर कहते हैं और येह नाजाइजो हराम व जहन्नम में ले जाने वाला मज़मूम काम है।

(2) अगर आजिज़ी ऐसी हो जिस में कमी की तरफ़ मैलान हो तो उसे कमीनगी व ज़िल्लत कहते हैं मसलन किसी आलिमे दीन के पास कोई मोची आए और वोह उस के लिये अपनी जगह छोड़ दे और उसे अपनी जगह बिठाए, फिर आगे बढ़ कर उस के जूते सीधे करे और पीछे पीछे दरवाज़े तक जाए तो उस आलिम ने ज़िल्लत व रुस्वाई को गले लगाया। येह ना पसन्दीदा बात है बल्कि अल्लाह عزوجل के हां ए'तिदाल पसन्दीदा है या'नी हर हक़दार को उस का हक़ दिया जाए।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 83

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -69)

*आजिज़ी व इन्किसारी :*

*आजिज़ी व इन्किसारी का हुक्म :* इस तरह की आजिज़ी अपने साथियों और हम पल्ला लोगों के साथ बेहतर है। आम आदमी के लिये आलिम की तरफ़ से तवाज़ोअ इसी क़दर है कि जब वोह आ जाए तो खड़े हो कर उस का इस्तिक्बाल करे, खन्दा पेशानी से गुफ्तगू करे, उस के सुवाल का जवाब देने में नर्मी बरते, उस की दा'वत क़बूल करे, उस की ज़रूरत पूरी करने की कोशिश करे और खुद को उस से बेहतर न समझे, बल्कि दूसरों की निस्बत अपने बारे में ज़ियादा ख़ौफ़ रखे नीज़ उसे हकारत की नज़र से देखे न ही छोटा समझे, क्यूंकि इसे अपने अन्जाम की खबर नहीं।

(3) अगर आजिज़ी ऐसी हो कि जिस में मियाना रवी हो या'नी अपने हम पल्ला और कम मर्तबा लोगों के साथ बराबर की आजिज़ी करे, न तो खुद को ज़िल्लत व कमीनगी वाली जगह पर पेश करे, न ही बुलन्दी की तरफ़ मैलान हो तो ऐसी आजिज़ी शरअन महमूद या'नी काबिले तारीफ़ ,बाइसे अज्रो सवाब और जन्नत में ले जाने वाला काम है।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -70)

*आजिज़ी व इन्किसारी :*

*हिकायत - सय्यिदुना उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ की आजिज़ी व इन्किसारी :* हज़रते सय्यिदुना उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه रात के वक़्त कुछ लिख रहे थे और आप के पास एक मेहमान भी मौजूद था। जब चराग बुझने लगा तो मेहमान ने कहा मैं उठ कर चराग दुरुस्त कर देता हूं तो आप رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه ने इरशाद फ़रमाया मेहमान से ख़िदमत लेना शराफ़त नहीं। उस ने अर्ज़ की तो फिर खादिम को बेदार कर दें इरशाद फ़रमाया नहीं क्यूंकि वोह अभी अभी तो सोया है फिर आप رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه ने खुद सुराही से तेल निकाल कर चराग में डाला मेहमान ने बड़े तअज्जुब से अर्ज़ की ऐ अमीरल मोमिनीन ! आप ब जाते खुद क्यूं उठे ? इरशाद फ़रमाया “मैं उठा तब भी उमर था और वापस आया हूं तब भी उमर ही हूं।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -71)

*आजिज़ी व इन्किसारी :*

*आजिज़ी का जेह्न बनाने और अपनाने के तरीके :* 

(1) आजिज़ी के फ़ज़ाइल का मुतालआ कीजिये : आजिज़ी करने वाले के लिये फ़िरिश्ते बुलन्दी की दुआ करते हैं। आजिज़ी करने वाले के लिये खुश खबरी है। आजिज़ी करने वाले बरोज़े कियामत मिम्बरों पर बैठे होंगे। अल्लाह तआला जिसे महबूब रखता है उसे आजिज़ी भी अता फरमाता है ! आजिज़ी करने वाले को सातवें आसमान तक बुलन्दी अता की जाती है। आजिज़ी करने वाले पर अल्लाह तआला रहम फ़रमाता है।

📕 इहयाउल उलूम जिल्द 3 सफ़ह 1001 माखूज़न

मजीद फ़ज़ाइल के लिये हुज्जतुल इस्लाम हज़रते सय्यिदुना इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْوَالِی की माया नाज़ तस्नीफ़ "इहयाउल उलूम," जिल्द सिवुम,स.999 से मुतालआ कीजिये।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 85

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -72)

*आजिज़ी व इन्किसारी :*

*आजिज़ी का जेह्न बनाने और अपनाने के तरीके :* 

(2) आजिज़ी से मुतअल्लिक़ बुज़ुर्गाने दीन के फ़रामीन का मुतालआ कीजिये : अमीरुल मोमिनीन सय्यिदुना फ़ारूके आ'ज़म رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْه फ़रमाते हैं बन्दा जब अल्लाह عَزَّوَجَلَّ के लिये आजिज़ी इख़्तियार करता है तो अल्लाह عَزَّوَجَلَّ उस की लगाम बुलन्द करता है और अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की तरफ़ से मुकर्रर फ़िरिश्ता कहता है उठ कि अल्लाह عَزَّوَجَلَّ तुझे बुलन्दी अता फ़रमाए। उम्मुल मोमिनीन सय्यिदतुना आइशा सिद्दीक़ा رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْھَا फ़रमाती हैं तुम लोग अफ़्ज़ल इबादत या'नी आजिज़ी से गाफिल हो।

सय्यिदुना यूसुफ़ बिन अस्बात رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه फ़रमाते हैं ज़ियादा कोशिश और मुजाहदे की ब निस्बत थोड़ी आजिज़ी काफ़ी है सय्यिदुना फुजेल बिन इयाज़ رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه ने फ़रमाया आजिज़ी येह है कि तुम हक के सामने झुक जाओ और उस की पैरवी करो और अगर बच्चे या किसी बड़े जाहिल से भी हक बात सुनो तो उसे कबूल करो।

सय्यिदुना अब्दुल्लाह बिन मुबारक رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه फ़रमाते हैं अस्ल आजिज़ी येह है कि तुम दुन्यवी ने'मतों में अपने से कमतर के सामने भी आजिज़ी का इजहार करो हत्ता कि तुम यकीन कर लो कि तुम्हें दुन्यवी ए'तिबार से उस पर कोई फजीलत हासिल नहीं। मजीद फ़ामीन के लिये *“इहयाउल उलूम,"* जिल्द सिवुम,स.1002 से मुतालआ कीजिये।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 85

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -73)

*आजिज़ी व इन्किसारी :*

*आजिज़ी का जेह्न बनाने और अपनाने के तरीके :* 

(3) आजिज़ी न करने के नुक्सानात पर गौर कीजिये : हज़रते सय्यिदुना कतादा رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه फ़रमाते हैं जिस शख़्स को माल, जमाल, लिबास या इल्म दिया गया फिर उस ने उस में आजिज़ी इख्तियार न की तो येह ने'मतें कियामत के दिन उस के लिये वबाल होंगी।
 
हज़रते सय्यिदुना का'बुल अहबार عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْغَفَّار फ़रमाते हैं जो बन्दा अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की ने'मत पर शुक्र अदा न करे और न ही आजिज़ी करे तो अल्लाह عَزَّوَجَلَّ उस बन्दे से उस का दुन्यवी नफ्अ भी रोक देता है और उस के लिये जहन्नम का एक तबका खोल देता है, अब अल्लाह عَزَّوَجَلَّ चाहे तो उसे अजाब दे और चाहे तो मुआफ़ कर दे।

हज़रते सय्यिदुना ज़ियाद नुमैरी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْوَلِی फ़रमाते हैं जोहदो तक्वा अपनाने वाला आजिज़ी के बिगैर बे फल दरख़्त की तरह है। 
हज़रते सय्यिदुना अबू अली जूज़जानी قُدِّسَ سِرُّهُ النّوْرَانِي फरमाते  हैं अल्लाह عزوجل जिस शख्स की हलाकत का इरादा फरमाता है उस से तवाज़ोआ, खैर ख़्वाही और क़नाअत को रोक देता है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 86

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -74)

*आजिज़ी व इन्किसारी :*

*आजिज़ी का जेह्न बनाने और अपनाने के तरीके :* 

(4) तकब्बुर की अलामात से खुद को बचाइये : कि इस तरह खुद ब खुद आजिज़ी पैदा हो जाएगी। तकब्बुर की चन्द अलामात येह हैं मुंह फुला लेना, तिरछी नज़रों से देखना, सर को एक तरफ झुकाना, जब तक उस के पीछे चलने वाला कोई न हो वोह न चले। मुतकब्बिर दूसरों की मुलाकात के लिये नहीं जाता। मुतकब्बिर अपने करीब बैठने वाले से नफ़रत करता है। के मुतकब्बिर मरीजों और बीमारों के पास बैठने से भागता है!

मुतकब्बिर घर में अपने हाथ से कोई काम नहीं करता मुतकब्बिर घर का सौदा खुद नहीं उठाता मुतकब्बिर अदना लिबास नहीं पहनता मुतकब्बिर अपने हुस्नो जमाल और ताकतो कुव्वत पर फ़ख्र करता है। मुतकब्बिर अपने इल्म पर भी तकब्बुर करता है वाज़ेह रहे कि येह तकब्बुर की अलामात हैं लेकिन जिस में येह अलामात पाई जाएं ज़रूरी नहीं कि वोह मुतकब्बिर भी हो, इस लिये किसी भी मुसलमान की ज़ात में इन अलामात के होते हुए उसे मुतकब्बिर समझना या उसे मुतकब्बिर कहना शरअन नाजाइज़ व हराम है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 86

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -75)

*आजिज़ी व इन्किसारी :*

*आजिज़ी का जेह्न बनाने और अपनाने के तरीके :* 

(5) अपनी सलाहिय्यतों के क़सीदे पढ़ने से बचिये : येह खुद पसन्दी है जो बातिनी बीमारी है, येह नाजाइज़ व ममनूअ व गुनाह है जब बन्दा खुद पसन्दी में मुब्तला हो जाता है तो फिर आजिज़ी व इन्किसारी उस से रुख्सत हो जाती है लिहाज़ा खुद पसन्दी से अपने आप को बचाइये ताकि आजिज़ी व इन्किसारी पैदा हो। खुद पसन्दी की मा'लूमात के लिये मक्तबतुल मदीना की मतबूआ 352 सफ़हात पर मुश्तमिल किताब *“बातिनी बीमारियों की मालूमात*" सफ़हा 42 का मुतालआ कीजिये।

(6) ज़बान का कुफ्ले मदीना लगाइये : दिल के जज़्बात का इज़हार ज़बान से होता है इसी लिये ज़बान को दिल का तर्जुमान कहते हैं येही वज्ह है कि जिन अफ़राद के दिल आजिज़ी से भरपूर होते हैं वोह ज़बान का कुफ़्ले मदीना लगाते हैं या'नी फुजूल गुफ्त्गू से बचते हुए फ़क़त काम की गुफ़्त्गू ही करते हैं, जब कि आजिज़ी से खाली दिल रखने वाला शख्स सुनने से ज़ियादा दूसरों को सुनाने की कोशिश करता है दर अस्ल येह रवय्या अपनी बरतरी जाहिर करने के लिये इख्तियार किया जाता है लिहाज़ा अगर आप अपने अन्दर आजिज़ी पैदा करना चाहते हैं तो ज़बान का कुफ़्ले मदीना लगाइये।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह 86-87

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -76)

*आजिज़ी व इन्किसारी :*

*आजिज़ी का जेह्न बनाने और अपनाने के तरीके :* 

(7) शुक्रिय्या के साथ गलती कबूल कीजिये : आजिज़ी व इन्किसारी पैदा करने में येह बात निहायत ही मददगार है, बन्दा जब अपनी गलती को शुक्रिय्या के साथ तस्लीम करता और उस की इस्लाह की कोशिश करता है तो उस का नफ्स खुद ब खुद आजिज़ी करने पर मजबूर हो जाता है ,अल्लाह तआला के नेक बन्दे कभी भी अपनी खामियों का दिफ़ाअ नहीं करते बल्कि अपनी गलती को क़बूल कर के उस की इस्लाह की कोशिश करते हैं! हमें भी चाहिये कि अल्लाह عَزَّوَجَلَّ के नेक बन्दों की सीरत पर अमल करते हुए गलती कबूल करने की आदत बनाएं इस की बरकत से  हमारे लिये आजिज़ी करना आसान हो जाएगा।

(8) दूसरों में अच्छाइयां ढूंड कर आजिज़ी कीजिये : तकब्बुर से बचने और आजिज़ी इख़्तियार करने का सब से आसान तरीका यह है कि दूसरों की जात में अच्छाइयां ढूंड कर दिल में आजिजी पैदा कीजिये, मसलन : किसी जाहिल को देखे तो दिल में कहे इस ने जहालत की वज्ह से अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की ना फ़रमानी की है और मैं ने इल्म होने के बा वुजूद अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की ना फ़रमानी की है लिहाजा मेरे मुकाबले में इस का उज्र ज़ियादा काबिले कबूल है। जब किसी आलिम को देखे तो यूं कहे येह उन बातों का इल्म रखता है जिन का मुझे इल्म नहीं लिहाज़ा मैं किस तरह इस की बराबरी कर सकता हूं !" जब आदमी अपने खातिमे को पेशे नजर रखेगा तो अपने आप से तकब्बुर दूर करने और आजिज़ी पैदा करने पर कादिर हो सकेगा।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 89

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -77)

*तजकिरए मौत की तारीफ :* 

खौफे खुदा पैदा करने, सच्ची तौबा करने, रब عَزَّوَجَلَّ से मुलाकात करने, दुन्या से जान छूटने, कुर्बे इलाही के मरातिब पाने, अपने महबूब आका ﷺ की ज़ियारत हासिल करने के लिये मौत को याद करना तजकिरए मौत कहलाता है।

*आयते मुबारका :* अल्लाह عَزَّوَجَلَّ क़ुरआने मजीद में इरशाद फ़रमाता है

                *کُلُّ نَفْسِِ ذَآیِٕقَةُالْمَوْتِ*

*तर्जमए कन्जुल ईमान :* हर जान को मौत का मज़ा चखना है।

*हदीसे मुबारका - लज़्ज़तों को ख़त्म करने वाली मौत की याद :* हज़रते सय्यिदुना अबू हुरैरा رضی الله تعالی عنه से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फ़रमाया लज्ज़तों को ख़त्म करने वाली (मौत) को ज़ियादा याद किया करो। या'नी मौत को याद कर के लज्ज़तों को बद मज़ा कर दो ताकि उन की तरफ़ तबीअत माइल न हो और तुम यक्सूई के साथ अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की तरफ़ मुतवज्जेह हो जाओ।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 90

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -78)

*तजकिरए मौत :* 

तजकिरए मौत का हुक्म - मौत को याद करने की चार सूरतें हैं :

(1) अगर कोई शख़्स दुन्यवी मालो दौलत में मगन हो कर इस के छूट जाने की वज्ह से मौत को याद करता है जिस की वज्ह से वोह मौत की मज़म्मत में मश्गूल हो जाता है और इस तरह मौत को याद करना उसे अल्लाह عَزَّوَجَلَّ से मजीद दूर कर देता है तो येह तजकिरए मौत नाजाइज़ और ममनूअ है। अलबत्ता अगर वोह इस लिये मौत को याद करता है ताकि दुन्यवी ने'मतों में उस की दिल चस्पी न रहे और लज्जतें बद मजा हो जाएं तो येह तजकिरए मौत शरअन मज़मूम नहीं बल्कि बाइसे अज्रो सवाब है।

(2) अगर कोई शख़्स मौत को इस लिये याद करता है ताकि दिल में खौफे खुदा पैदा हो और यूं उसे सच्ची तौबा नसीब हो जाए तो येह तजकिरए मौत शरअन जाइज़ और बाइसे अज्रो सवाब है और अगर येह शख़्स मौत को इस ख़ौफ़ की वज्ह से ना पसन्द करता है कि कहीं सच्ची तौबा से पहले या सामाने आखिरत की तय्यारी से पहले मौत न आ जाए तो ऐसा करना काबिले गिरिफ़्त नहीं।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 90

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -79)

*तजकिरए मौत :* 

*तजकिरए मौत का हुक्म - मौत को याद करने की चार सूरतें हैं :* 

(3) अगर कोई शख़्स मौत को इस लिये याद करता है क्यूंकि मौत अपने महबूब रब عَزَّوَجَلَّ से मुलाक़ात का वादा है और महब्बत करने वाला महबूब से मिलने का वादा कभी नहीं भूलता और आम तौर पर येही होता है कि मौत देर से आती है लिहाजा येह शख़्स मौत की आमद को पसन्द करता है ताकि ना फरमानी के इस घर से जान छूटे और कुर्बे इलाही के मर्तबे पर फ़ाइज़ हो सके तो येह तजकिरए मौत भी जाइज़, शरअन महमूद या'नी काबिले तारीफ़ और बाइसे अज्रो सवाब है।

📙 इहयाउल उलूम,5/475 मुलख्वसन

(4) अगर अहकामे शरइय्या के मुवाफ़िक ज़िन्दगी गुजारने वाला, फराइजो वाजिबात व सुनन का पाबन्द कोई शख़्स इस लिये मौत को याद करता और इस की तमन्ना करता है कि मौत के वक़्त या कब्र में मीठे मीठे आका, मक्की मदनी मुस्तफ़ा ﷺ की ज़ियारत नसीब होगी तो येह तजकिरए मौत भी शरअन महमूद यानी काबिले तारीफ़ और बाइसे अज्रो सवाब है।

  *नबी के आशिकों को मौत तो अनमोल तोहफा है*
  *कि उन को  कब्र में दीदारे शाहे अम्बिया होगा है*

(5) हुज्जतुल इस्लाम हज़रते सय्यिदुना इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली علیه رحمةالله الوالی फ़रमाते हैं हर हाल में मौत को याद करने में सवाब और फजीलत है और येह सवाब और फजीलत दुन्या में मगन शख़्स भी मौत को याद कर के पा सकता है इस तरह कि दुन्या से अलग थलग रहे ता कि दुन्यावी ने'मतों में दिल चस्पी न रहे और लज्जतें बद मज़ा हो जाएं क्यूंकि हर वोह लज़्ज़त व ख्वाहिश जो इन्सान के लिये बद मज़ा हो वोह अस्बाबे नजात में से है।

📕 इहयाउल उलूम ,5/4774

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 91

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -80)

*तजकिरए मौत :* 

हिकायत : हज़रते सय्यिदुना सालिम عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْحَاکِم फ़रमाते हैं एक मरतबा मुल्के रूम से कुछ कासिद हज़रते सय्यिदुना उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْحَسِیْب के पास आए तो आप رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه ने फ़रमाया जब तुम लोग किसी को अपना बादशाह बनाते हो तो उस का क्या हाल होता है ? कहा : जब हम किसी को अपना बादशाह बनाते हैं तो उस के पास एक गोरकुन (या'नी कब्र खोदने वाला) आ कर कहता है ऐ बादशाह ! अल्लाह عَزَّوَجَلَّ तेरी इस्लाह फ़रमाए ! जब तुझ से पहला बादशाह तख्त नशीन हुवा तो उस ने मुझे हुक्म दिया मेरी कब्र इस इस तरह बनाना और मुझे इस तरह दफ्न करना।

चुनान्चे, क़ब्र तय्यार कर ली गई। फिर उस के पास कफ़न फ़रोश आ कर कहता है ऐ बादशाह ! अल्लाह عَزَّوَجَلَّ तेरी इस्लाह फ़रमाए ! जब तुझ से पहला बादशाह तख्त नशीन हुवा तो उस ने मरने से कब्ल ही अपना कफ़न, खुश्बू और काफूर वगैरा खरीद लिया फिर कफ़न को ऐसी जगह लटका दिया गया जहां हर वक़्त नज़र पड़ती रहे और मौत की याद आती रहे। ऐ मुसलमानों के अमीर ! हमारे बादशाह तो इस तरह मौत को याद करते हैं।

रूमी कासिद की येह बात सुन कर हज़रते सय्यिदुना उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْقَدِیْر ने फ़रमाया देखो ! जो शख़्स अल्लाह عَزَّوَجَلَّ से मिलने की उम्मीद भी नहीं रखता वोह मौत को किस तरह याद करता है, उसे भी मौत की कितनी फ़िक्र है ? इस वाकिए के बाद आप رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه बहुत ज़ियादा बीमार हो गए और इसी बीमारी की हालत में आप رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه का इन्तिकाल हो गया।

📙 यूनुल हिकायात ,हिस्सए दुवुम सफ़ह 380

अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की उन पर रहमत हो और उन के सदके हमारी मगफिरत हो। आमीन

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 92

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -81)

*तजकिरए मौत :* 

*तजकिरए मौत का जेहन बनाने और करने के तरीके :* 

(1) जनाज़ों में शिर्कत कीजिये : येह भी मौत को याद करने और उस की याद को पुख्ता करने नीज़ आख़िरत की तय्यारी करने में बहुत मुआविन है, जब कोई जनाजों में शिर्कत करता है तो उसे अपनी मौत याद आ जाती है, उस का दिल नर्म हो जाता है, दिल की सख्ती दूर हो जाती है, उसे नेकियों से महब्बत और गुनाहों से नफ़रत होने लगती है, वोह येह तसव्वुर करता है कि आज इस शख़्स का जनाज़ा मैं पढ़ रहा हूं कल मेरा जनाज़ा मेरे दोस्त पढ़ रहे होंगे, यूं वोह तौफीके इलाही से अपनी आख़िरत की तय्यारी में लग जाता है।

   *जनाज़ा आगे बढ़ कर कह रहा है  ऐ जहां वालो*
    *मेरे  पीछे  चले  आओ  तुम्हारा  रहनुमा  मैं  हूं*

(2) कब्रिस्तान जाने की आदत बनाइये : येह अमल भी मौत की याद को पुख्ता करने में बहुत मुफीद है, खुद रसूलुल्लाह ﷺ भी जियारते कुबूर के लिये तशरीफ़ ले जाया करते थे, जियारते कुबूर से येह मदनी ज़ेह्न बनता है कि आज इन लोगों का येह ठिकाना है, कल मेरा भी येही ठिकाना होगा, इन कब्रों में से कई ऐसी क़ब्रें होंगी जो जन्नत के बागों में से एक बाग होंगी और कई जहन्नम के गढ़ों में से एक गढ़ा, न जाने मेरी क़ब्र जन्नत का बाग होगी या जहन्नम का गढ़ा? यूं वोह मौत की याद और आखिरत की तय्यारी की तरफ माइल हो जाता है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 95

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -82)

*हुस्ने ज़न :* 

*हुस्ने ज़न की तारीफ :* किसी मुसलमान के बारे में अच्छा गुमान रखना *“हुस्ने ज़न"* कहलाता है।

*आयते मुबारका* अल्लाह عَزَّوَجَلَّ इरशाद फ़रमाता है

لَوْ لَاۤ اِذْ سَمِعْتُمُوْهُ ظَنَّ الْمُؤْمِنُوْنَ وَ الْمُؤْمِنٰتُ بِاَنْفُسِهِمْ خَیْرًاۙ-وَّ قَالُوْا هٰذَاۤ اِفْكٌ مُّبِیْنٌ 

*तर्जमए कन्जुल ईमान :* क्यूं न हुवा जब तुम ने उसे सुना था कि मुसलमान मर्दो और मुसलमान औरतों ने अपनों पर नेक गुमान किया होता और कहते येह खुला बोहतान है।

इस आयत के तहत तफ्सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान में है मुसलमान को येही हुक्म है कि मुसलमान के साथ नेक गुमान करे और बद गुमानी ममनूअ है।

📙 खज़ाइनुल इरफ़ान, पारह 18,अन्नूर आयत 12

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 99

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -83)

*हुस्ने ज़न :* 

*हदीसे मुबारका : मुसलमान के  _साथ हुस्ने जन रखने की हुरमत -* हज़रते सय्यिदुना अब्दुल्लाह बिन उमर رضی الله تعالی عنه फ़रमाते हैं कि मैं ने हुज़ूर नबिये रहमत शफ़ीए उम्मत ﷺ को तवाफ़ करते हुए येह फ़रमाते सुना (ऐ का'बा) तू कितना पाकीज़ा है तेरी खुश्बू कितनी पाकीज़ा है तू कितना मुअज़्ज़म है तेरी हुरमत कितनी ज़ियादा है लेकिन उस ज़ात की कसम जिस के कब्जए कुदरत में मुहम्मद ﷺ की जान है। अल्लाह عَزَّوَجَلَّ के नजदीक एक मोमिन, उस के माल, उस के खून, उस के साथ हुस्ने जन रखने की हुरमत तेरी हुरमत से भी ज़ियादा है।

*हुस्ने जन का हुक्म :* मुफस्सिरे क़ुरआन सदरुल अफ़ाज़िल मौलाना मुफ्ती नईमुद्दीन मुरादाबादी علیه رحمةالله الھادی फ़रमाते हैं हुस्ने जन कभी तो वाजिब होता है जैसे अल्लाह عَزَّوَجَلَّ के साथ अच्छा गुमान रखना और कभी मुस्तहब जैसे किसी नेक मोमिन के साथ नेक गुमान करना।

📕 ख़ज़ाइनुल इरफ़ान,पारह 26,अल हुजुरात,तहतुल आयत 12
   
अल्लामा अब्दुल ग़नी नाबुलुसी علیه رحمة الله القوی फ़रमाते हैं जब किसी मुसलमान का हाल पोशीदा हो (या'नी उस के नेक व बद होने का इल्म न हो तो) तो उस से हुस्ने जन रखना मुस्तहब और उस के बारे में बद गुमानी करना हराम है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 100

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -84)

*हुस्ने ज़न :* 

*हिकायत* हुस्ने ज़न की बरकत से शिफ़ा मिल गई : मन्कूल है कि एक बार डाकूओं की एक जमाअत लूटमार के लिये निकली, इसी दौरान उन्हों ने रात एक मुसाफ़िर ख़ाने में कियाम किया और वहां येह ज़ाहिर किया कि हम लोग राहे खुदा के मुसाफ़िर हैं। मुसाफ़िर खाने का मालिक नेक आदमी था उस ने रिजाए इलाही पाने की निय्यत से उन की खूब ख़िदमत की, सुब्ह वोह डाकू किसी तरफ रवाना हो गए और लूटमार कर के शाम को वापस वहीं आ गए। गुज़श्ता शब मुसाफ़िर ख़ाने वाले के जिस लड़के को (उन्हों ने) चलने फिरने से मा'जूर देखा था वोह आज बिला तकल्लुफ़ या'नी बिगैर किसी तक्लीफ के चल फिर रहा था! उन्हों ने तअज्जुब के साथ मुसाफ़िर खाने वाले से पूछा "क्या येह वोही कल वाला मा'जूर लड़का नहीं? उस ने बड़े एहतिराम से जवाब दिया जी हां ! येह वोही है। पूछा येह कैसे सिह्हत याब हो गया ? जवाब दिया येह सब आप जैसे राहे खुदा के मुसाफिरों की बरकत है!

बात येह है कि आप लोगों ने जो खाया था उस में से कुछ बच गया था, हम ने आप हज़रात का जूठा खाना ब निय्यते शिफ़ा अपने मा'जूर बच्चे को खिलाया और जूठे पानी से उस के बदन पर मालिश की, अल्लाह तआला ने आप जैसे नेक बन्दों के जूठे खाने और पानी की बरकत से हमारे मा'जूर बच्चे को शिफ़ा अता फ़रमा दी। जब डाकूओं ने येह सुना तो उन की आंखों से आंसू जारी हो गए, रोते हुए कहने लगे येह सब आप के हुस्ने ज़न का नतीजा है वरना हम तो सख़्त गुनहगार लोग हैं सुनो हम राहे खुदा के मुसाफ़िर नहीं डाकू हैं अल्लाह तआला की इस करम नवाजी ने हमारे दिलों की दुन्या जेरो जबर कर दी हम आप को गवाह बना कर तौबा करते हैं। चुनान्चे, उन डाकूओं ने ताइब हो कर नेकी का रास्ता अपना लिया और मरते दम तक तौबा पर साबित कदम रहे।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 101

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -85)

*हुस्ने ज़न :* 

*हुस्ने जन का जेह्न बनाने और हुस्ने ज़न काइम करने के तरीके :* 

(1) हुस्ने ज़न के फवाइद पेशे नज़र रखिये : हुस्ने ज़न एक जाइज़ व हलाल, बाइसे अज्रो सवाब व जन्नत में ले जाने वाला काम है। हुस्ने ज़न से एहतिरामे मुस्लिम पैदा होता है। हुस्ने जन से बद गुमानी दूर हो जाती है। हुस्ने ज़न से दिली कीना दूर हो जाता है। हुस्ने ज़न से बुग़्ज और हसद दूर होता है। हुस्ने जन से दिल में मुसलमानों की महब्बत पैदा होती है। हुस्ने ज़न से नाजाइज़ दुश्मनी ख़त्म हो जाती है। हुस्ने ज़न से बदला लेने की चाहत ख़त्म होती है। हुस्ने ज़न से अफ्वो दर गुज़र की सआदत नसीब होती है। हुस्ने ज़न से सुकूने कल्ब नसीब होता है। हुस्ने ज़न करने से बन्दा गीबत से बच जाता है। हुस्ने ज़न करने से आपस में महब्बत बढ़ती और नफ़रत ख़त्म होती है। हुस्ने ज़न करने में मुसलमानों की इज़्ज़त का तहफ्फुज़ है। हुस्ने ज़न का सब से बड़ा फाएदा येह है कि इस में कोई नुक्सान नहीं।

📙 बद गुमानी सफ़ह 42

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 103

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -86)

*हुस्ने ज़न :* 

*हुस्ने जन का जेह्न बनाने और हुस्ने ज़न काइम करने के तरीके :*

(2) बद गुमानी की हलाकतों व नुक्सानात पर गौर कीजिये : बद गुमानी एक नाजाइज़ व हराम और जहन्नम में ले जाने वाला काम है। बद गुमानी से एहतिरामे मुस्लिम ख़त्म हो जाता है। बद गुमानी हुस्ने ज़न की दुश्मन है। बद गुमानी बद तरीन झूट है। बद गुमानी से दिली कीना पैदा हो जाता है। बद गुमानी से बुग्ज़ और हसद पैदा होता है। बद गुमानी से दिल में मुसलमानों की नफ़रत पैदा होती है। बद गुमानी से नाजाइज़ दुश्मनी पैदा हो जाती है। बद गुमानी से बदला लेने की ख्वाहिश पैदा होती है। बद गुमानी अफ्वो दर गुज़र की सआदत से महरूम कर देती है। जिस ने अपने मुसलमान भाई से बुरा गुमान रखा उस ने अपने रब से बुरा गुमान रखा। बद गुमानी से सुकूने कल्ब रफ्अ या'नी ख़त्म हो जाता है। बद गुमानी करने से बन्दा गीबत में भी मुब्तला हो जाता है। बद गुमानी करने से आपस में नफ़रत बढ़ती और महब्बत ख़त्म होती है। बद गुमानी करने में मुसलमानों की इज़्ज़त की पामाली भी है। बद गुमानी का सब से बड़ा नुक्सान येह है कि इस में कोई फाएदा नहीं।

📕 बद गुमानी सफह 42

(3) मुसलमान भाइयों की खूबियों पर नज़र रखिये : इस से हुस्ने ज़न की दौलत नसीब होगी क्यूंकि जो बन्दा अपने मुसलमान भाइयों की खामियों पर नज़र रखता है वोह उमूमन बद गुमानी में मुब्तला हो जाता है, वैसे भी एक हकीकी मुसलमान के लिये खुश नज़र होना सआदत मन्दी की बात है कि वोह हत्तल मक़दूर मुसलमान भाइयों की अच्छाइयों पर ही नज़र रखता है।

       *ऐबों  को  ढूंडती  है  ऐब  जू  की  नज़र* 

     *जो खुश नज़र हैं वोह हुनरो कमाल देखते हैं* 

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 103

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -87)

*हुस्ने ज़न :* 

*हुस्ने ज़न का जेह्न बनाने और हुस्ने ज़न काइम करने के तरीके :* 

(4) दिल को वस्वसों से पाक कीजिये : वस्वसे शैतान की तरफ़ से होते हैं और शैतान कभी भी येह नहीं चाहेगा कि कोई मुसलमान अपने दूसरे मुसलमान के बारे में हुस्ने ज़न करे बल्कि इस की येही कोशिश होती है कि मैं किसी तरह उस के दिल में उस के भाई के मुतअल्लिक गन्दे खयालात और वस्वसे पैदा कर के उसे बद गुमानी में मुब्तला कर दूं जिस के सबब येह दीगर बातिनी बीमारियों में मुब्तला हो कर अपनी दुन्या व आखिरत को तबाहो बरबाद कर दे, जब भी किसी मुसलमान की बद गुमानी का वस्वसा पैदा हो तो  *"لَاحَوْلَاقُوَّةَاِلَّابِاللّٰهِ الْعَلِیِِّ الْعَظِیْم"* पढ़िये।

(5) अपनी इस्लाह की कोशिश जारी रखिये : जो शख़्स अपनी इस्लाह की कोशिश जारी रखता है वोह दीगर मुसलमानों के बारे में बद गुमानी से काम नहीं लेता बल्कि अच्छा गुमान रखता है। अरबी मकूला है

             "اِذَاسَاءَفِعْلُ الْمَرْءِسَاءَتْ ظُنُوْنُهُ"

"या'नी जब किसी के काम बुरे हो जाएं तो उस के गुमान भी बुरे हो जाते हैं।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 103

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -88)

*हुस्ने ज़न :* 

*हुस्ने ज़न का जेह्न बनाने और हुस्ने ज़न काइम करने के तरीके :* 

(6) अपने आप को तजस्सुस से बचाइये : तजस्सुस या'नी मुसलमानों की टोह में लगे रहना भी बद गुमानी की तरफ़ ले जाने वाली एक सीढ़ी है, जब बन्दा हर वक़्त इस चक्कर में रहे कि कौन क्या कर रहा है तो फिर शैतान भी उस के दिल में तरह तरह के बुरे खयालात पैदा करता रहता है और वोह बद गुमानी का शिकार हो कर हुस्ने जन से हाथ धो बैठता है।

(7)  बद गुमानों की सोहबत से दूर रहिये : जब बन्दा ऐसे लोगों की सोहबत इख़्तियार करता है जो दीगर मुसलमानों के बारे में बद गुमानी से भरपूर कुछ न कुछ इज़हारे ख़्याल करते ही रहते हैं तो उन का असर इस पर भी हो जाता है और फिर येह भी बद गुमानी में मुब्तला हो जाता है, इस से बचने का तरीका येह है कि किसी से गुफ्तगू करते हुए तीसरे शख़्स के बारे में कलाम ही न किया जाए या किया भी जाए तो अच्छा कलाम किया जाए, इसी तरह बे फाएदा कलाम या काम को तर्क कर दिया जाए। फ़रमाने मुस्तफा ﷺ है “इन्सान के इस्लाम की खुबियों में से है कि जो नफ्अ न दे उसे छोड दे।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 104

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -89)

*हुस्ने ज़न :* 

*हुस्ने ज़न का जेह्न बनाने और हुस्ने ज़न काइम करने के तरीके :* 

(8) बद गुमानी से बचते हुए हुस्ने ज़न के मवाकेअ तलाश कीजिये : चन्द मवाकेअ येह हैं :- आप की दा'वत में न पहुंचने वाले इस्लामी भाई ने मुलाकात होने पर अपना कोई उज्र पेश किया तो हुस्ने ज़न से काम लेते हुए उस के उज्र को कबूल कर लीजिये। आप ने अपनी औलाद को कोई काम बोला वोह न कर सकी तो हुस्ने ज़न से काम लीजिये कि हो सकता है उन के ज़ेह्न से निकल गया हो। किसी को फोन किया और वोह न उठाए तो हुस्ने ज़न से काम लीजिये कि हो सकता है वोह कहीं मसरूफ़ हो। इसी तरह आप के मेसेज का जवाब न आए तो यूं हुस्ने ज़न कीजिये कि हो सकता है अभी तक उन्हों ने मेसेज ही न पढ़ा हो, या पढ़ने के बाद उन के जेह्न से निकल गया हो। 

आप निगरान हैं ,मा तहत न आया या लेट हो गया तो हुस्ने ज़न से काम लीजिये कि बस लेट हो गई होगी, या हो सकता है उस के साथ कोई मस्अला पेश आ गया हो, या हो सकता है उस की तबीअत नासाज़ हो।, आप ने किसी को बुलाया उस ने तवज्जोह न दी तो हुस्ने ज़न कर लीजिये कि हो सकता है उस तक आप की आवाज़ पहुंची ही न हो। 

आप ने किसी को खाने की दावत दी, उस ने क़बूल न की तो हुस्ने ज़न से काम लीजिये कि हो सकता है उस ने पहले ही खाना खा लिया हो, या हो सकता है उस का नफ़्ली रोज़ा हो। दो अफ़राद सरगोशी कर रहे हों तो हुस्ने ज़न से काम लीजिये कि हो सकता है कोई ज़रूरी गुफ़्त्गू कर रहे हों।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 105

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -90)

*हुस्ने ज़न :* 

*हुस्ने जन का जेह्न बनाने और हुस्ने ज़न काइम करने के तरीके :*

बद गुमानी से बचते हुए हुस्ने ज़न के मवाकेअ तलाश कीजिये : चन्द मवाकेअ येह हैं :-  किसी ने क़र्ज़ लिया और राबिते में नहीं आ रहा तो हुस्ने ज़न से काम लीजिये कि हो सकता है कहीं मसरूफ़ होगा। अल गरज़ वालिदैन व औलाद, भाई व बहन, ज़ौज व जौजा, सास व बहू, सुसर व दामाद, नन्द व भावज बल्कि तमाम अले खाना व ख़ानदान नीज़ उस्ताद व शागिर्द, सेठ व नौकर, ताजिर व गाहक, अफ्सर व मजदूर, हाकिम व महकूम येह तमाम लोग अपने अपने मुख्तलिफ़ मुआमलात में हुस्ने ज़न काइम करने की तरकीब बना सकते हैं वाज़ेह रहे कि बद गुमानी के मवाकेअ तो बहुत होते हैं क्यूंकि इन में शैतान की मुआवनत होती है लेकिन उमूमन हुस्ने ज़न के मवाकेअ बहुत कम नज़र आते हैं, हालांकि बन्दा थोड़ा सा गौर करे तो वोह तमाम मवाकेअ जहां शैतान हम से बद गुमानी करवाता है हुस्ने ज़न से काम लिया जा सकता है, बस कोशिश करना शर्त है।

(9) हुस्ने ज़न की दुआ कीजिये :* हुस्ने जन अल्लाह عزوجل की ने'मतों में से एक अजीम ने'मत है, हुस्ने ज़न के सबब रहमते इलाही बन्दे की तरफ़ मुतवज्जेह हो जाती है लिहाजा बारगाहे इलाही में हुस्ने ज़न की दुआ यूं कीजिये “या अल्लाह عزوجل मेरी सोच को पाकीज़ा फ़रमा कर मुझे हुस्ने ज़न की दौलत अता फरमा, बद गुमानी को मुझ से दूर फ़रमा दे। आमीन

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 105

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -91)

*तौबा :* 

*तौबा की तारीफ़ :* जब बन्दे को इस बात की मा'रिफ़त हासिल हो जाए कि गुनाह का नुक्सान बहुत बड़ा है, गुनाह बन्दे और उस के महबूब के दरमियान में रुकावट है तो वोह उस गुनाह के इर्तिकाब पर नदामत इख़्तियार करता है। और इस बात का कस्द व इरादा करता है कि मैं गुनाह को छोड़ दूंगा, आयिन्दा न करूंगा और जो पहले किये उन की वज्ह से मेरे आ'माल में जो कमी वाकेअ हुई उसे पूरा करने की कोशिश करूंगा तो बन्दे की इस मजमूई कैफ़िय्यत को तौबा कहते हैं। इल्म, नदामत और इरादे इन तीनों के मजमूए का नाम तौबा है लेकिन बसा अवकात इन तीनों में से हर एक पर भी तौबा का इतलाक़ कर दिया जाता है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 106

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -92)

*तौबा :* 

आयते मुबारका : अल्लाह عَزَّوَجَلَّ क़ुरआने पाक में इरशाद फ़रमाता है

"یٰٓاَیُّھَاالَّذِیْنَ اٰمَنُوْاتُوْبُوْٓااِلَی اللّٰهِ تَوْبَةًنَّصُوْحًا"

तर्जमए कन्जुल ईमान : “ऐ ईमान वालो अल्लाह की तरफ़ ऐसी तौबा करो जो आगे को नसीहत हो जाए।

सदरुल अफ़ाज़िल हज़रते अल्लामा मौलाना सय्यिद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْھَادِی इस आयत के तहत फ़रमाते हैं तौबए सादिका जिस का असर तौबा करने वाले के आ'माल में ज़ाहिर हो, उस की ज़िन्दगी ताअतों और इबादतों से मा'मूर हो जाए और वोह गुनाहों से मुजतनिब (या'नी बचता) रहे।
   
अमीरुल मोमिनीन हज़रते सय्यिदुना उमर फारूके आ'ज़म رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْه और दूसरे अस्हाब ने फ़रमाया कि तौबए नसूह वोह है कि तौबा के बा'द आदमी फिर गुनाह की तरफ़ न लौटे जैसा कि निकला हुवा दूध फिर थन में वापस नहीं होता।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 106 

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -93)

*तौबा :* 

तौबा करने वाला रब तआला को पसन्द है : सरदारे दो जहान, महबूबे रहमान ﷺ का फ़रमाने आलीशान है बेशक अल्लाह तआला तौबा करने वाले, आज़माइश में मुब्तला मोमिन बन्दे को पसन्द फरमाता है।

तौबा का हुक्म : हर मुसलमान पर हर हाल में हर गुनाह से फौरन तौबा करना वाजिब है या'नी गुनाह की मा'रिफ़त होने के बाद इस पर नदामत इख्तियार करना और आयिन्दा न करने का अहद करना और गुज़रे हुए गुनाहों पर नदामत व शर्मिन्दगी और अफ्सोस करना भी वाजिब है और वुजूबे तौबा पर इजमाए उम्मत है।

📓इह़याउल उ़लूम, 4/17 माखू़ज़न

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 109

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -94)

*तौबा :* 

गुनाहों से तौबा करने का तरीका :

आ'ला हज़रत, इमामे अहले सुन्नत मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खान عَلَیْهِ رَحمَةُالرَّحْمٰن फ़रमाते हैं सच्ची तौबा अल्लाह عَزَّوَجَلَّ ने वोह नफ़ीस शै बनाई है कि हर गुनाह के इज़ाले को काफ़ी व वाफ़ी है, कोई गुनाह ऐसा नहीं कि सच्ची तौबा के बाद बाक़ी रहे यहां तक कि शिर्क व कुफ्र।

सच्ची तौबा के येह मा'ना हैं कि गुनाह पर इस लिये कि वोह उस के रब عَزَّوَجَلَّ की ना फ़रमानी थी नादिम व परेशान हो कर फ़ौरन छोड़ दे और आयिन्दा कभी उस गुनाह के पास न जाने का सच्चे दिल से पूरा अज्म करे, जो चारएकार इस की तलाफ़ी का अपने हाथ में हो बजा लाए।
     
मसलन नमाज़ रोज़े के तर्क या गसब (नाजाइज़ कब्जा) ,सरका (चोरी) ,रिश्वत ,रिबा (सूद) से तौबा की तो सिर्फ आयिन्दा के लिये इन जराइम का छोड़ देना ही काफ़ी नहीं बल्कि इस के साथ येह भी ज़रूर है जो नमाज़ रोजे नागा किये उन की कज़ा करे, जो माल जिस जिस से छीना, चुराया, रिश्वत, सूद में लिया उन्हें और वोह न रहे हों तो उन के वारिसों को वापस कर दे या मुआफ़ कराए, पता न चले तो अपना माल तसद्दुक (या'नी सदक़ा) कर दे और दिल में येह निय्यत रखे कि वोह लोग जब मिले अगर तसद्दुक पर राजी न हुए अपने पास से उन्हें फेर देगा।

📓फ़्तावा रज़विय्या,21/121

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 110

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -95)

*तौबा :* 

तौबा व इस्तिगफार व मुजाहदे के   सबब रूह परवाज कर गई थी :

एक दिन हजरते सय्यिदुना मन्सूर बिन अम्मार عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْغَفَّار लोगों को वा'जो नसीहत करने के लिये मिम्बर पर तशरीफ लाए और उन्हें अज़ाबे इलाही से डराने और गुनाहों पर डांटने लगे। करीब था कि लोग शिद्दते इज़तिराब से तड़प तड़प कर मर जाते। उस महफ़िल में एक गुनहगार नौजवान भी मौजूद था जो अपने गुनाहों की वज्ह से कब्र में उतरने के मुतअल्लिक काफ़ी परेशान था।

जब वोह आप رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه के इजतिमाअ से वापस गया तो यूं लगता था जैसे बयान उस के दिल पर बहुत ज़ियादा असर अन्दाज़ हो चुका है। वोह अपने गुनाहों पर नादिम हो कर अपनी मां की खिदमत में हाजिर हुवा और अर्ज की ऐ मेरी मां ! आप चाहती थीं कि मैं शैतानी लह्वो ला'ब और खुदाए रहमान عَزَّوَجَلَّ की ना फ़रमानी छोड़ दूं लिहाजा आज से मैं इसे तर्क करता हूं।

और उस ने अपनी मां को येह भी बताया कि मैं हज़रते सय्यिदुना मन्सूर बिन अम्मार عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْغَفَّار के इजतिमाए पाक में हाज़िर हुवा और अपने गुनाहों पर बहुत नादिम हुवा। चुनान्चे, मां ने कहा : “ऐ मेरे बेटे ! तमाम खूबियां अल्लाह عَزَّوَجَلَّ के लिये हैं जिस ने तुझे बड़े अच्छे अन्दाज से अपनी बारगाह की तरफ लौटाया और गुनाहों की बीमारी से शिफ़ा अता फ़रमाई और मुझे कवी उम्मीद है कि अल्लाह عَزَّوَجَلَّ मेरे तुझ पर रोने के सबब तुझ पर ज़रूर रहम फ़रमाएगा और तुझे कबूल फ़रमा कर तुझ पर एहसान फ़रमाएगा।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -96)

*तौबा :* 

*तौबा व इस्तिग़फार व मुजाहदे के सबब रूह परवाज कर गई थी :* 

फिर उस ने पूछा : ऐ बेटे नसीहत भरा बयान सुनते वक़्त तेरा क्या हाल था? तो उस ने जवाब में चन्द अश्आर पढ़े जिन का मफ़्हूम येह है मैं ने तौबा के लिये अपना दामन फैला दिया है और अपने आप को मलामत करते हुए मुतीओ फ़रमां बरदार बन गया हूं। जब बयान करने वाले ने मेरे दिल को इताअते खुदावन्दी की तरफ़ बुलाया तो मेरे दिल के तमाम कुफ़्ल (या'नी ताले) खुल गए। ऐ मेरी मां क्या मेरा मालिको मौला عَزَّوَجَلَّ मेरी गुनाहों भरी ज़िन्दगी के बा वुजूद मुझे कबूल फ़रमा लेगा। हाए अफ्सोस अगर मेरा मालिक मुझे नाकाम व ना मुराद वापस लौटा दे या अपनी बारगाह में हाजिर होने से रोक दे तो मैं हलाक हो जाऊंगा। फिर वोह नौजवान दिन को रोज़े रखता और रातों को कियाम करता यहां तक कि उस का जिस्म लागर व कमजोर हो गया, गोश्त झड़ गया, हड्डियां खुश्क हो गई और रंग जर्द हो गया। एक दिन उस की मां उस के लिये प्याले में सत्तू ले कर आई और इसरार करते हुए कहने लगी मैं तुझे अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की कसम दे कर कहती हूं कि येह पी लो, तुम्हारा जिस्म बहुत मशक्कत उठा चुका है। चुनान्चे मां की बात मानते हुए जब उस ने प्याला हाथ में लिया तो बेचैनी व परेशानी से रोने लगा और अल्लाह عَزَّوَجَلَّ के इस फ़रमान को याद करने लगा

               *"یَّتَجَرَّعهٗ وَلَایَکَادُیُسِیْغُهٗ"*

*तर्जमए कन्जुल ईमान :-* "ब मुश्किल इस का थोड़ा थोड़ा घूंट लेगा और गले से नीचे उतारने की उम्मीद न होगी।" फिर उस ने जोर जोर से रोना शुरू कर दिया और ज़मीन पर गिर गया। देखते ही देखते उस की रूह कफ़से उन्सुरी से परवाज़ कर गई।

🤲🏻 अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की उन पर रहमत हो और उन के सदके हमारी मगफिरत हो। *आमीन*

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 109

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -97)

*तौबा :* 

*तौबा में ताखीर की सात वुजूहात और इन का हल :*

(1) गुनाहों के अन्जाम से गाफ़िल रहना : इस का हल येह है कि बन्दा अपना यूं जेह्न बनाए कि महज़ एक डॉक्टर की बात पर ए'तिबार कर के आयिन्दा नुक्सान से बचने के लिये कई अश्या को उन की तमाम तर लज़्ज़त के बा वुजूद छोड़ देता हूं तो क्या येह नादानी नहीं है कि मैं ने एक बन्दे के डराने पर अपनी लज्ज़तों को छोड़ दिया लेकिन तमाम काएनात के खालिक عَزَّوَجَلَّ के वा'दए अज़ाब को सच्चा जानते हुए अपने नफ्स की नाजाइज़ ख्वाहिशात को तर्क नहीं करता।

(2) दिल पर गुनाहों की लज़्ज़त का ग़लबा होना : इस का हल येह है कि बन्दा इस तरह सोच बिचार करे कि जब मैं ज़िन्दगी के मुख़्तसर अय्याम में उन लज़्ज़तों को नहीं छोड़ सकता तो मरने के बाद हमेशा हमेशा के लिये लज़्ज़तों (या'नी जन्नत की ने'मतों ) से महरूमी कैसे गवारा करूंगा? जब मैं सब्र की आज़माइश बरदाश्त नहीं कर सकता तो नारे जहन्नम की तक्लीफ़ किस तरह बरदाश्त करूंगा ?

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -98)

*तौबा :* 

*तौबा में ताखीर की सात वुजूहात और इन का हल :*

(3)  तवील अर्सा ज़िन्दा रहने की उम्मीद होना : इस का हल येह है कि बन्दा इस तरह गौर करे कि जब मौत का आना यकीनी है और मुझे अपनी मौत के आने का वक़्त भी मालूम नहीं तो तौबा जैसी सआदत को कल पर मौकूफ़ करना नादानी नहीं तो और क्या है ? जिस गुनाह को छोड़ने पर आज मेरा नफ्स तय्यार नहीं हो रहा कल इस की आदत पुख्ता हो जाने पर मैं इस से अपना दामन किस तरह बचाऊंगा ? और इस बात की भी क्या ज़मानत है कि मैं बुढ़ापे में पहुंच पाऊंगा या नौकरी से रीटायर होने तक मैं ज़िन्दा रहूंगाप?

(4) रहमते इलाही के बारे में धोके का शिकार होना : अल्लाह عَزَّوَجَلَّ बड़ा गफूरुर्रहीम है, हमें अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की रहमत पर भरोसा है वोह हमें अज़ाब नहीं देगा। इस का हल येह है कि बन्दा इस बात पर गौर करे कि अल्लाह तआला के रहीमो करीम होने में किसी मुसलमान को शको शुबा नहीं हो सकता लेकिन जिस तरह येह दोनों उस की सिफ़ात हैं उसी तरह कहहार और जब्बार होना भी रब عَزَّوَجَلَّ की सिफ़ात हैं और येह बात भी कुरआनो हदीस से साबित है कि कुछ न कुछ मुसलमान जहन्नम में भी जाएंगे तो इस बात की क्या ज़मानत है कि वोह मुसलमान तो गजबे इलाही عَزَّوَجَلَّ का शिकार हों और जहन्नम में जाएं लेकिन मुझ पर रहमते इलाही की छमाछम बरसात हो और मुझे दाखिले जन्नत किया जाए।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 111

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -99)

*तौबा :* 

तौबा में ताखीर की सात वुजूहात और इन का हल :

(5) बा'दे तौबा इस्तिकामत न मिलने का ख़ौफ़ होना : इस का हल येह है कि येह सरासर शैतानी वस्वसा है क्यूंकि आप को क्या मालूम कि तौबा करने के बाद आप जिन्दा रहेंगे या नहीं ? हो सकता है कि तौबा करते ही मौत आ जाए और गुनाह करने का मौकअ ही न मिले। वक्ते तौबा आयिन्दा के लिये गुनाहों से बचने का पुख्ता इरादा होना जरूरी है गुनाहों से बचने पर इस्तिकामत देने वाली ज़ात तो रब्बुल आलमीन की है। अगर इर्तिकाबे गुनाह से महफूज रहना न भी नसीब हुवा तो भी कम अज़ कम गुज़श्ता गुनाहों से तो जान छूट जाएगी और साबिका गुनाहों का मुआफ़ हो जाना मामूली बात नहीं। अगर बा'दे तौबा गुनाह हो भी जाए तो दोबारा पुर खुलूस तौबा कर लेनी चाहिये कि हो सकता है येही आखिरी तौबा हो और इसी पर दुन्या से जाना नसीब हो।

(6)  कसरते गुनाह की वज्ह से मायूसी का शिकार हो जाना : इस का हल येह है कि अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की रहमत से मायूस नहीं होना चाहिये, रहमते खुदावन्दी किस तरह अपने उम्मीदवार को आगोश में लेती है इस का अन्दाज़ा इस रिवायत से लगाया जा सकता है कि मक्की मदनी सरकार, जनाबे अहमदे मुख्तार ﷺ ने इरशाद फ़रमाया हक़ तआला अपने बन्दों पर इस से कहीं ज़ियादा मेहरबान है जितना कि एक मां अपने बच्चे पर शफ्कत करती है।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -100)

*तौबा :* 

तौबा में ताखीर की सात वुजूहात और इन का हल :

(7)  तौबा करने में शर्मो झिजक महसूस करना :  तौबा करने के बाद जब मेरा अन्दाजे ज़िन्दगी तब्दील होगा मसलन पहले मैं नमाजें क़ज़ा कर दिया करता था मगर बा'दे तौबा पांच वक़्त मस्जिद का रुख करते दिखाई दूंगा, पहले मैं शेव्ड था बा'दे तौबा मेरे चेहरे पर सुन्नते मुस्तफा ﷺ या'नी दाढ़ी शरीफ़ सजी हुई नज़र आएगी तो लोग मुझे अजीब निगाहों से देखेंगे और मुझे शर्म महसूस होगी।

*याद रखिये !* येह भी शैतानी वस्वसा है ज़रा सोचिये तो सही कि आज उन लोगों की परवाह करते हुए अगर आप नेकी के रास्ते पर चलने से कतराते रहे और सुन्नतों से मुंह मोड़ते रहे लेकिन कल जब क़ियामत के दिन सारी मख्लूक के सामने अपना नामए आमाल पढ़ कर सुनाना पड़ेगा और अगर उस में गुनाह ही गुनाह हुए तो किस क़दर शर्म आएगी। लिहाज़ा आख़िरत में शर्मिन्दा होने से बचने के लिये दुन्या की आरिज़ी शर्मो झिजक को बालाए ताक रखते हुए फ़ौरन तौबा की सआदत हासिल कर लेनी चाहिये।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 112

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -101)

*तौबा :* 

 *तौबा करने का जेह्न बनाने के छ: तरीके :* 

(1) तौबा न करने के नुक्सानात पर गौर कीजिये :  जो बन्दा टाल मटोल से काम लेते हुए तौबा की तरफ़ नहीं बढ़ता तो उसे पहला नुक्सान येह होता है कि उस के दिल पर गुनाहों की सियाही तह दर तह जमती रहती है हत्ता कि जंग सारे दिल को घेर लेता है और गुनाह आदत व तबीअत बन कर रह जाता है और फिर वोह सफ़ाई को कबूल नहीं करता। 

दूसरा नुक्सान येह है कि उसे बीमारी या मौत आ घेरती है और उसे गुनाह के इजाले की मोहलत नहीं मिल पाती। इसी लिये रिवायत में आया है : "दोज़खियों की ज़ियादा चीखो पुकार तौबा में टाल मटोल के सबब होगी।

📓 इहयाउल उलूम ज़िल्द 4 सफ़ह 38

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 112

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -102)

*तौबा :* 

*तौबा करने का जेह्न बनाने के छ: तरीके :*

(2)  अचानक आने वाली मौत को याद रखिये : कई हंसते बोलते इन्सान अचानक मौत का शिकार हो कर अन्धेरी कब्र में पहुंच जाते हैं उन्हें तौबा का मौक़अ ही नहीं मिलता, जब बन्दा अचानक आने वाली मौत को याद रखेगा तो उम्मीद है उसे तौबा का मदनी जेह्न नसीब होगा। इसीलिए हिक्मत व दानाई के पैकर हज़रते सय्यिदुना हकीम लुक्मान رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْه ने अपने बेटे को येह नसीहत फ़रमाई :- “बेटा ! तौबा में ताख़ीर न करना क्यूंकि मौत अचानक आती है।

📙 इहयाउल उलूम ज़िल्द 3 सफ़ह 38

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 113

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -103)

*तौबा :* 

*तौबा करने का जेह्न बनाने के छ: तरीके :* 

(3)  खुद को अज़ाबे जहन्नम से डराइये : खुदा न ख्वास्ता बिगैर तौबा के इन्तिकाल हो गया और रब तआला नाराज़ हो गया तो जहन्नम का सख्त अज़ाब मेरा मुक़द्दर होगा, जहन्नम का अज़ाब सेहने की किस में ताकत है जहन्नम का सब से हल्का अज़ाब येह होगा कि जहन्नमी को आग की जूतियां पहनाई जाएंगी और सब से हल्के अजाब में मुब्तला शख़्स येह तसव्वुर करेगा कि शायद जहन्नम में सब से ज़ियादा और शदीद अज़ाब मुझे ही हो रहा है।

उम्मीद है कि बन्दा जब खुद को जहन्नम के अज़ाब से डराएगा तो उस का गुनाहों से तौबा करने का मदनी जेह्न बनेगा!

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 113

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -104)

*तौबा :* 

*तौबा करने का जेह्न बनाने के छ: तरीके :* 

(4) तौबा करने वाले को रहमते इलाही से जो दुन्यवी व उखरवी फवाइद मिलने की उम्मीद है उन को पेशे नज़र रखिये।

गुनाह से तौबा करने वाले का ऐसा होना जैसे उस ने गुनाह किया ही नहीं.!

रब عَزَّوَجَلَّ का पसन्दीदा बन्दा होना..!

रहमते इलाही का मुतवज्जेह होना।

अल्लाह عَزَّوَجَلَّ और उस के रसूल ﷺ की रिज़ा व खुशनूदी हासिल होना, शैतान को नाराज़ करना ,रहमते इलाही से ईमान पर ख़ातिमा होना..!

कल बरोजे क़ियामत सरकार ﷺ की शफाअत नसीब होना, हौजे कौसर से जाम पीना..! बरोजे कियामत हिसाबो किताब में आसानी होना रहमते इलाही से जन्नत में दाखिला नसीब होना।

(5) बुजुर्गाने दीन के तौबा के वाकिआत का मुतालआ कीजिये :- इस के लिये कि मक्तबतुल मदीना की मतबूआ 124 सफ़हात पर मुश्तमिल किताब *"तौबा की रिवायात व हिकायात"* का मुतालआ कीजिये।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 114

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -105)

*तौबा :* 

*तौबा करने का जेह्न बनाने के छ: तरीके :* 

(6)  उख़रवी लज़्ज़ात को दुन्यवी लज़्ज़ात पर तरजीह दीजिये : येह भी तौबा पर माइल करने में बहुत मुआवनत करता है उमूमन शैतान बन्दे का येह जेह्न बनाता है कि तू ने तौबा कर ली तो फुलां फुलां दुन्यवी चीज़ों से महरूम हो जाएगा, फुलां मुआमले में तुझे दुन्यवी तरक्की नहीं मिल सकेगी, इस शैतानी वस्वसे की यूं काट कीजिये कि अगर अचानक मुझे मौत आ जाए तो भी येह सारी दुन्यवी ने'मतें छिन जाएंगी और तौबा न करने के सबब रब तआला की नाराज़ी के साथ दुन्या से रुख्सती होगी क्यूं न मैं गुनाहों से तौबा कर के रब तआला की रिज़ा के साथ दुन्या से रुख्सत हो जाऊं ताकि हमेशा की उख़रवी ने'मतें नसीब हों।

फ़रमाने मुस्तफ़ा ﷺ है “जो दुन्या से महब्बत करता है तो वोह अपनी आख़िरत को नुक्सान पहुंचाता है और जो आख़िरत से महब्बत करता है वोह अपनी दुन्या को नुक्सान पहुंचाता है तो (ऐ मुसलमानो !) फ़ना होने वाली चीज़ (या'नी दुन्या) को छोड़ कर बाकी रहने वाली चीज़ (या'नी आख़िरत) को इख्तियार कर लो।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 114

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -106)

*तौबा :* 

तौबा पर इस्तिकामत पाने के छ: तरीके :

(1)  रोज़ाना सोने से कब्ल सलातुत्तौबा अदा कीजिये :- तौबा पर इस्तिकामत पाने का एक बेहतरीन तरीका यह भी है कि बन्दा सोने से कब्ल अपने तमाम गुनाहों से तौबा कर के सोए और दो रक्अत नमाज़ सलातुत्तौबा भी अदा कर ले, उम्मीद है कि इस तरह तौबा पर इस्तिकामत पाने में आसानी होगी।

(2)  गुनाह से तौबा करने के फौरन बाद कोई नेकी कर लीजिये : तौबा पर इस्तिकामत पाने का एक बेहतरीन तरीका यह भी है कि किसी भी गुनाह से तौबा करने के बाद फौरन कोई नेकी कर लीजिये कि वोह नेकी उस गुनाह को मिटा देगी और आयिन्दा भी तौबा पर तौफ़ीक़ नसीब होगी।

फ़रमाने मुस्तफा ﷺ है : गुनाह के बा'द नेकी कर लो येह उसे मिटा देगी।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 115

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -107)

*तौबा :* 

तौबा पर इस्तिकामत पाने के छ: तरीके :

(3)  तौबा करने वालों की सोहबत इख्तियार कीजिये : जब बन्दा ऐसे लोगों की सोहबत इख्तियार करेगा जो गुनाहों से तौबा करते रहते हैं तो उम्मीद है कि उसे भी तौबा की तौफ़ीक़ और इस पर इस्तिकामत नसीब हो जाएगी!

अमीरुल मोमिनीन हज़रते सय्यिदुना उमर फारूके आ'ज़म رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْه इरशाद फरमाते हैं : तौबा करने वालों के पास बैठा करो क्यूंकि वोह बहुत ज़ियादा नर्म दिल होते हैं।

(4)  खुद को खुश फ़हमी का शिकार मत होने दीजिये : बन्दा जब इस खुश फ़हमी का शिकार हो जाता है कि मैं तो एक बार तौबा कर चुका हूं लिहाज़ा अब मुझे तौबा करने की हाजत नहीं तो उसे तौबा पर इस्तिकामत नसीब नहीं होती। इस खुश फ़हमी को दूर करने का तरीका यह है कि बन्दा अपनी तौबा पर गौर करे कि क्या मैं ने सच्ची तौबा कर ली है ? क्या मुझे साबिक़ा गुनाहों पर नदामत है ? क्या इन के इजाले की भी कोशिश कर ली है ? अगर बिल फ़र्ज़ तौबा में येह तमाम शराइत पाई भी जाएं तो क्या मुझे येह मालूम है कि मेरी तौबा बारगाहे रब्बुल इज़्ज़त में कबूल भी हुई है या नहीं ?

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 115

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -108)

*तौबा :* 

*गुनाहों से तौबा करने का तरीका :* कुल्ली तौर पर गुनाहों की छ अक्साम हैं गुनाहों के मुख़्तलिफ़ होने की वज्ह से तौबा भी मुख़्तलिफ़ तरीके से होगी, तफ़्सील कुछ यूं है :-

(1)  बा'ज़ गुनाहों का तअल्लुक हुकूकुल्लाह से होता है। जैसे नमाज़, रोज़ा, हज, कुरबानी और ज़कात वगैरा की अदाएगी में सुस्ती करना, बद निगाही करना, कुरआने पाक को बे वुज़ू हाथ लगाना, शराब नोशी करना, फ़ोहश गाने सुनना वगैरहा। हुकूकुल्लाह से तअल्लुक रखने वाले गुनाह अगर किसी इबादत में कोताही की वज्ह से सरज़द हों तो तौबा करने के साथ साथ उन इबादात की क़ज़ा भी वाजिब है। मसलन अगर नमाजें फौत हुई हों या रमज़ान के रोजे़ छूटे हों तो इन का हिसाब लगाए और इन की कज़ा करे, अगर ज़कात की अदाएगी में कोताही हुई हो तो हिसाब लगा कर-अदाएगी करे, अगर हज फ़र्ज़ हो जाने के बा वुजूद अदा नहीं किया था तो अब अदा करे और अगर गुनाहों का तअल्लुक इबादात में कोताही से न हो मसलन बद निगाही करना, शराब नोशी करना वगैरा, तो इन पर नदामत व हसरत का इज़हार करते हुए बारगाहे इलाही में तौबा करे और नेकियां करने में मश्गूल हो जाए।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 116

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -109)

*तौबा :* 

*गुनाहों से तौबा करने का तरीका :* 

(2)  बा'ज़ ऐसे गुनाह होते हैं जिन का तअल्लुक बन्दों के हुकूक से होता है। जैसे चोरी, गीबत, चुगली, अज़िय्यत देना, मां बाप को सताना, अमानत में खियानत करना, कर्ज़ ले कर दबा लेना वगैरहा।

बन्दों के हुकूक से मुतअल्लिक गुनाह अगर उन की इज़्ज़त व आबरू में दस्त अन्दाजी की वज्ह से सरज़द हुए हों।

मसलन किसी को गाली दी थी या तोहमत लगाई थी या डराया धमकाया था तो तौबा की तक्मील अल्लाह عَزَّوَجَلَّ और उस मज़लूम से मुआफ़ी तलब करने से होगी। और अगर माली मुआमले में शरीअत की ख़िलाफ़ वर्जी की वज्ह से गुनाह वाकेअ हुवा था। मसलन अमानत में खियानत की थी या कर्ज ले कर दबा लिया था तो अल्लाह عَزَّوَجَلَّ और उस मज़लूम से मुआफ़ी तलब करने के साथ साथ उसे उस का माल भी लौटाए और अगर वोह शख्स इन्तिकाल कर गया हो तो उस के वुरसा को दे दे या फिर उस शख्स से या उस के न होने की सूरत में उस के वुरसा से मुआफ़ करवा ले  अगर उस शख्स का इल्म नहीं न ही उस के वुरसा का तो उतना माल उस मज़लूम की तरफ़ से इस निय्यत के साथ सदका कर दे कि अगर वोह शख्स या उस के वुरसा बाद में मिल गए और उन्हों ने अपने हक़ का मुतालबा किया तो मैं उन्हें उन का हक़ लौटा दूंगा और उन के लिये दुआए मगफिरत करता रहे।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 116

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -110)

*तौबा :* 

*गुनाहों से तौबा करने का तरीका :* 

(3) बा'ज़ गुनाहों का तअल्लुक इन्सान के ज़ाहिर से होता है मसलन क़त्ल करना वगैरा और बा'ज़ वोह होंगे जिन का तअल्लुक इन्सान के बातिन से होता है मसलन बद गुमानी करना, किसी से हसद करना, तकब्बुर में मुब्तला होना वगैरा।

ज़ाहिरी गुनाहों से तौबा का तरीका तो ऊपर गुज़र चुका लेकिन बातिनी गुनाहों से भी तौबा करने से हरगिज़ गफलत न करे।

चुनान्चे अपने दिल पर गौर करे और अगर हसद, तकब्बुर, रियाकारी, बुग्ज ,कीना, गुरूर, शमातत और बद गुमानी जैसे गुनाह दिखाई दें तो नादिम व शर्मसार हो कर बारगाहे इलाही में मुआफ़ी तलब करे।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 117

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -111)

*तौबा :* 

*गुनाहों से तौबा करने का तरीका :* 

(4)  बा'ज़ गुनाह सिर्फ तौबा करने वाले की ज़ात तक महदूद होते हैं। मसलन खुद शराब पीना और बा'ज़ ऐसे होते हैं जिन की तरफ़ उस शख्स ने किसी दूसरे को रागिब किया होगा, उसे गुनाहे जारिया भी कहते हैं। मसलन किसी को शराब नोशी की तरगीब देना या फ़ोहश वेब साइट देखने की तरगीब देना वगैरा। जो गुनाह उस की ज़ात तक महदूद हों उन से मजकूरा तरीके के मुताबिक़ तौबा करे और अगर गुनाहे जारिया का इर्तिकाब किया हो तो जिस तरह उस गुनाह से खुद ताइब हुवा है उस की तरगीब देने से भी तौबा करे और दूसरे शख्स को जिस तरह गुनाह की रगबत दी थी अब तौबा की तरग़ीब दे, जहां तक मुमकिन हो नर्मी या सख्ती से समझाए, अगर वोह मान जाए तो ठीक वरना ये बरिय्युज्जिम्मा हो जाएगा।

📓 फ़तावा रज़विय्या ,क़दीम 10/97 माखूज़न

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -112)

*तौबा :* 

*गुनाहों से तौबा करने का तरीका :* 

(5)  बा'ज़ गुनाह ऐसे होते हैं जो पोशीदा तौर पर किये मसलन अपने कमरे में फ़ोहश फ़िल्में देखना जब कि कुछ गुनाह वोह होंगे जो ए'लानिया किये मसलन दाढ़ी मुन्डाना ,सरे आम शराब पीना वगैरा। जो गुनाह बन्दे और उस के रब के दरमियान हो या'नी किसी पर ज़ाहिर न हुवा हो तो उस की तौबा पोशीदा तौर पर करे या'नी अपना गुनाह किसी पर ज़ाहिर न करे और अगर गुनाह ए'लानिया किया हो तो उस की तौबा भी ए'लानिया करे।

📓 फ़तावा रज़विय्या,21/142

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 118

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -113)

*तौबा :* 

*गुनाहों से तौबा करने का तरीका :* 

(6)  कुछ गुनाह ऐसे होते हैं जिन के इर्तिकाब पर आदमी दाइरए इस्लाम से ख़ारिज हो कर काफ़िर हो जाता है।

मसलन अल्लाह عَزَّوَجَلَّ को ज़ालिम कहना ,सरकारे दो आलम ﷺ की शान में गुस्ताखी करना। अगर معاذ الله कलिमए कुफ्र या कोई ऐसा फे'ल सादिर हो जाए जिस से इन्सान काफ़िर हो जाता है तो फ़ौरन तौबा कर के तजदीदे ईमान कर लेनी चाहिये।

*तजदीदे ईमान का तरीका :* दिल की तस्दीक के बिगैर सिर्फ ज़बानी तौबा काफ़ी नहीं होती। मसलन किसी ने कुफ्र बक दिया, इस को दूसरे ने बहला फुस्ला कर इस तरह तौबा करवा दी कि कुफ्र बकने वाले को मालूम तक नहीं हुवा कि मैं ने फुलां कुफ्र किया था, यूं तौबा नहीं हो सकती, उस का कुफ्र ब दस्तूर बाक़ी है। लिहाज़ा जिस कुफ्र से तौबा मक्सूद हो वोह उसी वक्त मक्बूल होगी जब कि वोह उस कुफ्र को कुफ्र तस्लीम करता हो और दिल में उस कुफ्र से नफ़रत व बेज़ारी भी हो जो कुफ्र सरज़द हुवा तौबा में उस का तजकिरा भी हैं।

📔 कलिमाते कुफ्र सफ़ह 9

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 120

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -114)

*तौबा :* 

*तजदीदे ईमान का तरीका :* 

मसलन : जिस ने वीज़ा फ़ॉर्म पर अपने आप को ईसाई लिख दिया वोह इस तरह कहे : "या अल्लाह عَزَّوَجَلَّ मैं ने जो वीज़ा फ़ार्म में अपने आप को ईसाई जाहिर किया है उस कुफ्र से तौबा करता हूं।

          لَااِلٰهَ اِلَّااللّٰهُ مُحَمَّدٗرَّسُوْلُ اللّٰه

या'नी अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लाइक़ नहीं और मुहम्मद ﷺ अल्लाह के रसूल हैं।

इस तरह मख्सूस कुफ्र से तौबा भी हो गई और तजदीदे ईमान भी। अगर  معاذ الله कई कुफ्रिय्यात बके हों और याद न हो कि क्या क्या बका है तो यूं कहे : या अल्लाह عَزَّوَجَلَّ मुझ से जो जो कुफ्रिय्यात सादिर हुए हैं मैं उन से तौबा करता हूं। फिर कलिमा पढ़ ले,(अगर कलिमा शरीफ़ का तर्जमा मा'लूम है तो ज़बान से तर्जमा दोहराने की हाजत नहीं)

अगर येह मा'लूम ही नहीं कि कुफ्र बका भी है या नहीं तब भी अगर एहतियातन तौबा करना चाहें तो इस तरह करें : “या अल्लाह عَزَّوَجَلَّ अगर मुझ से कोई कुफ्र हो गया हो तो मैं उस से तौबा करता हूं। येह कहने के बा'द कलिमा पढ़ लें।

📔 कलिमाते कुफ्र सफ़ह 9

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 119

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -115)

*तौबा :* 

*तौबा करने का एक तरीका :*  तौबा करने का एक तरीका यह भी है कि तन्हाई में दो रक्अत सलातुत्तौबा पढ़े फिर अपनी ना फ़रमानियों और रब तआला के एहसानात, अपनी नातुवानी और जहन्नम के अज़ाबात को याद कर के आंसू बहाए, अगर रोना न आए तो रोने जैसी सूरत ही बना ले। इस के बा'द तौबा की शराइत को मद्दे नज़र रखते हुए रब तआला की बारगाह में मुआफ़ी तलब करे और कुछ इस तरह से दुआ करे ऐ मेरे मालिक عَزَّوَجَلَّ तेरा येह ना फ़रमान बन्दा जिस का रुवां रुवां गुनाहों के समुन्दर में डूबा हुवा है तेरी पाक बारगाह में हाज़िर है या अल्लाह عَزَّوَجَلَّ मैं इक़रार करता हूं कि मैं ने दिन के उजाले में रात के अन्धेरे में, पोशीदा और ए'लानिया, दानिस्ता और नादानिस्ता तौर पर तेरी ना फ़रमानियां की हैं, यकीनन मैं ने तुझे नाराज करने में कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन ऐ मौला عَزَّوَجَلَّ तू गफूर व रहीम है, तू बन्दे पर इस से ज़ियादा मेहरबान है जितना कि एक मां अपने बच्चे पर शफ्कत करती है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 121

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -116)

*तौबा :* 

*तौबा करने का एक तरीका :* ऐ अल्लाह عَزَّوَجَلَّ ! अगर तू ने मेरे गुनाहों पर पकड़ फ़रमाई तो मुझे नारे जहन्नम में जलना पड़ेगा जिस का अज़ाब लम्हा भर के लिये भी सहने की मुझ में ताकत नहीं, ऐ अल्लाह عَزَّوَجَلَّ मैं सिद्के दिल से तेरी बारगाह में अपने गुनाहों से तौबा करता हूं, या अल्लाह عَزَّوَجَلَّ  मेरी नातुवानी पर रहम फ़रमा, ऐ मेरे परवरदिगार عَزَّوَجَلَّ मेरे गुनाहों को मुआफ़ फरमा दे, ऐ मेरे परवरदिगार عَزَّوَجَلَّ  मेरे गुनाहों को मुआफ़ फ़रमा दे, ऐ मेरे परवरदिगार عَزَّوَجَلَّ मेरे गुनाहों को मुआफ़ फ़रमा दे, ऐ मेरे मौला عَزَّوَجَلَّ मुझे सच्ची तौबा की तौफ़ीक़ दे, जो इबादात अदा होने से रह गई उन्हें अदा करने की हिम्मत दे दे, जिन बन्दों के हुकूक मैं ने तलफ़ किये उन से भी मुआफ़ी मांगने का हौसला अता फ़रमा, ऐ अल्लाह عَزَّوَجَلَّ तू हर शै पर कादिर है, तू उन्हें मुझ से राजी फ़रमा दे या अल्लाह عَزَّوَجَلَّ मुझे आयिन्दा ज़िन्दगी में गुनाहों से बचने पर इस्तिकामत अता फरमा, ऐ अल्लाह عَزَّوَجَلَّ मुझे अपने ख़ौफ़ से मा'मूर दिल, रोने वाली आंख और लरज़ने वाला बदन अता फ़रमा! आमीन
   
इस के बाद उस जगह से इस यक़ीन से उठे कि रहीमो करीम परवरदिगार عَزَّوَجَلَّ ने उस की तौबा कबूल फ़रमा ली है। फिर एक नए अज्म के साथ नई और पाकीज़ा ज़िन्दगी का आगाज़ करे और साबिक़ा गुनाहों की तलाफ़ी में मसरूफ़ हो जाए। अल्लाह तआला हमारा हामी व नासिर हो। 
آمین ثم آمین یا رب العٰلمین

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -117)

*सालिहीन से महब्बत :*

सालिहीन से महब्बत की तारीफ : अल्लाह तआला की रिज़ा के लिये उस के नेक बन्दों से महब्बत रखना, उन की सोहबत इख्तियार करना, उन का ज़िक्र करना और उन का अदब करना सालिहीन से महब्बत कहलाता है क्यूंकि महब्बत का तकाज़ा येही है जिस से महब्बत की जाए उस की दोस्ती व सोहबत को महबूब रखा जाए, उस का ज़िक्र किया जाए ,उस का अदबो एहतिराम किया जाए।

आयाते मुबारका : अल्लाह عزوجل इरशाद फ़रमाता है
*तर्जमए कन्जुल ईमान :* बेशक वोह जो ईमान लाए और अच्छे काम किये अन करीब उन के लिये रहमान महब्बत कर देगा।

इस आयत के तहत तफ्सीरे ख़ज़ाइनुल इरफ़ान में है : या'नी अपना महबूब बनाएगा और अपने बन्दों के दिल में उन की महब्बत डाल देगा। बुखारी व मुस्लिम की हदीस में है कि जब अल्लाह तआला किसी बन्दे को महबूब करता है तो जिब्रील से फ़रमाता है कि फुलाना मेरा महबूब है जिब्रील उस से महब्बत करने लगते हैं फिर हज़रते जिब्रील आस्मानों में निदा करते हैं कि अल्लाह तआला फुलां को महबूब रखता है सब उस को महबूब रखें तो आसमान वाले उस को महबूब रखते हैं फिर ज़मीन में उस की मक़्बूलिय्यत आम कर दी जाती है।

मस्अला : इस से मा'लूम हुवा कि मोमिनीने सालिहीन व औलियाए कामिलीन की मक़्बूलिय्यते आम्मा उन की महबूबिय्यत की दलील है जैसे कि हुज़ूर गौसे आज़म رضی الله تعالی عنه और हजरते सुल्तान निजामुद्दीन देहलवी और हज़रते सुल्तान सय्यिद अशरफ जहांगीर समनानी رضی الله تعالی عنھم और दीगर हज़राते औलियाए कामिलीन की आम मक़्बूलिय्यतें उन की महबूबिय्यत की दलील हैं।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 122

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -118)

*सालिहीन से महब्बत :*

*आयाते मुबारका :* अल्लाह عَزَّوَجَلَّ इरशाद फ़रमाता है
*तर्जमए कन्जुल ईमान :* “और मुसलमान मर्द और मुसलमान औरतें एक दूसरे के रफ़ीक़ हैं" और बाहम दीनी महब्बत व मुवालात (दोस्ताना तअल्लुकात) रखते हैं और एक दूसरे के मुईनो मददगार हैं।

📓ख़ज़ाइनुल इरफ़ान,पारह 10,अत्तौबह,तहतुल आयत 71

अल्लाह عَزَّوَجَلَّ इरशाद फ़रमाता है
*तर्जमए कन्जुल ईमान :-* “बोले ऐ मूसा या तो तुम डालो या हम पहले डालें।" ख़ज़ाइनुल इरफ़ान में है इब्तिदा करना जादूगरों ने अदबन हज़रते मूसा عَلَیْهِ السَّلَام की राए मुबारक पर छोड़ा और इस की बरकत से आख़िर कार अल्लाह तआला ने उन्हें दौलते ईमान से मुशर्रफ़ फ़रमाया।

📓ख़ज़ाइनुल इरफ़ान,पारह 16,ताहा,तहतुल आयत 65

*अहादीसे मुबारका :-* चार फ़रामीने मुस्तफ़ा ﷺ :

(1) जब तक तुम नेक लोगों से महब्बत रखोगे भलाई पर रहोगे और तुम्हारे बारे में जब कोई हक़ बात बयान की जाए तो उसे मान लिया करो कि हक को पहचानने वाला उस पर अमल करने वाले की तरह होता है।

(2) आदमी उसी के साथ होगा जिस से वोह महब्बत करता है।

(3) नेक लोगों का ज़िक्र गुनाहों के लिये कफ्फ़ारा है।

(4) अल्लाह عَزَّوَجَلَّ इरशाद फ़रमाता है वोही लोग मेरी महब्बत के हकदार हैं जो मेरी वज्ह से एक दूसरे से मुलाकात करते हैं ,जो मेरी वज्ह से एक दूसरे से महब्बत करते हैं!

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -119)

*सालिहीन से महब्बत :*

*सालिहीन से महब्बत का हुक्म :* मुत़ल़क सालिहीन या'नी नेक लोगों से महब्बत करना, उन का ज़िक्र करना, सोहबत इख्तियार करना और अदबो एहतिराम करना शरअन जाइज़ व नेक, बाइसे अज्रो सवाब व जन्नत में ले जाने वाला काम है। हुज़ूर नबिये करीम रऊफुर्रहीम ﷺ की महब्बत फ़र्ज़, ऐने ईमान बल्कि ईमान की जान है इस के बिगैर कोई मोमिन मोमिन नहीं, कोई मुसलमान मुसलमान नहीं। तमाम सहाबए किराम, अहले बैते अतहार ,अजवाजे मुतह्हरात رِضْوَانُ اللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْھِمْ اَجْمَعِیْن की महब्बत भी ऐन सआदत व रहमते इलाही से खातिमा बिल खैर की जमानत है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 124

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -120)

*सालिहीन से महब्बत :*

*नेक लोगों की सोहबत के अह़वाल :* हज़रते सय्यिदुना हसन बसरी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْقَوِی फरमाते हैं कि मैं ऐसे ऐसे नेक लोगों की सोहबत में रहा जिन में से बा'ज़ हज़रात पर पचास पचास ऐसे साल गुज़र गए कि उन्हों ने न कभी अपने लिये बिस्तर बिछाए और न कभी आराम के लिये चादरें तह की और न ही कभी घर से खाना पकवाया उन में से कोई एक लुक्मा ही खाता मगर फिर भी उस की ख्वाहिश होती कि इस लुक्मे की जगह अपने मुंह में पत्थर डाल लेता, न तो वोह दुन्या मिलने पर खुश होते और न उस के चले जाने पर गमज़दा होते, तुम जिस मिट्टी को अपने पैरों तले रौंदते हो उन के नज़दीक दुन्या की हक़ीक़त और हैसिय्यत उस मिट्टी से भी कम थी।

उन के बिल्कुल करीब में हलाल माल होने के बा वुजूद जब उन में किसी से कहा जाता कि उस में से कदरे किफायत ही ले लें। तो जवाब मिलता खुदा عَزَّوَجَلَّ की कसम मैं ऐसा नहीं कर सकता क्यूंकि मुझे खौफ़ है कि अगर मैं ने उस में से कुछ ले लिया तो येह मेरे दिल व दीन के बिगाड़ का सबब बन जाएगा।

🤲🏻 अल्लाह की उन पर रहमत हो और उन के सदके हमारी मगफ़िरत हो। आमीन

📕 आंसूओं का दरिया,सफ़ह 105

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 125

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -121)

*सालिहीन से महब्बत :*

*साय्यिदुना उवैसे करनी से महब्बत और इन की सोहबत :* हज़रते सय्यिदुना हरिम बिन हय्यान  عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْحَنَّان फ़रमाते हैं कि जब मुझ तक येह हदीस पहुंची कि अल्लाह عَزَّوَجَلَّ एक शख्स (या'नी हज़रते उवैसे करनी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْغَنِی) की शफाअत से मेरी उम्मत के कबीलए रबीआ और क़बीलए मुज़र के बराबर लोगों को जन्नत में दाखिल फ़रमाएगा तो मैं फ़ौरन कूफ़ा की तरफ रवाना हुवा। मेरा वहां जाने का सिर्फ येही मक्सद था कि हज़रते सय्यिदुना उवैसे करनी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْغَنِی की ज़ियारत कर लूं और उन की सोहबत से फैज़याब हो सकू, कूफा पहुंच कर मैं उन्हें तलाश करता रहा। बिल आख़िर मैं ने उन्हें दोपहर के वक़्त नहरे फुरात के कनारे वुज़ू करते पाया। जो निशानियां मुझे उन के मुतअल्लिक़ बताई गई थीं उन की वज्ह से मैं ने उन्हें फौरन पहचान लिया। उन का रंग इन्तिहाई गन्दुमी, जिस्म दुब्ला पतला, सर गर्द आलूद और चेहरा इन्तिहाई बा रो'ब था। मैं ने करीब जा कर उन्हें सलाम किया। उन्हों ने सलाम का जवाब दिया और मेरी तरफ़ देखा। 

मैं ने कहा ऐ उवैस अल्लाह عَزَّوَجَلَّ आप पर रहम फ़रमाए, आप कैसे हैं ? उन को इस हालत में देख कर और उन से शदीद महब्बत की वज्ह से मेरी आंखें भर आई और मैं रोने लगा। मुझे रोता देख कर वोह भी रोने लगे और मुझ से फ़रमाया : “ऐ मेरे भाई हरिम बिन हय्यान ! अल्लाह عَزَّوَجَلَّ आप को सलामत रखे, आप कैसे हैं ? और मेरे बारे में आप को किस ने बताया कि मैं यहां हूं ?" मैं ने जवाब दिया : "अल्लाह عَزَّوَجَلَّ ने मुझे आप की तरफ़ राह दी है। येह सुन कर आप رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه ने *لَااِلٰهَ اِلَّااللّٰهُ* और *سُبْحٰنَ اللّٰه* की सदाएं बुलन्द की और फ़रमाया : "बेशक हमारे रब عَزَّوَجَلَّ का वा'दा ज़रूर पूरा होने वाला है। (फिर थोड़ी गुफ़्त्गू के बा'द) मैं ने उन से कहा ऐ मेरे भाई ! मुझे कुछ नसीहत फ़रमाइये ताकि मैं उसे याद रखू। बेशक मैं आप رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه से सिर्फ अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की रिज़ा की खातिर महब्बत करता हूं।" येह सुन कर हज़रते सय्यिदुना उवैसे करनी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْغَنِی ने मेरा हाथ पकड़ा और सूरए दुखान की दो आयतें तिलावत फ़रमाई, फिर एक जोरदार चीख़ मारी, मेरे गुमान के मुताबिक़ शायद आप बेहोश हो गए थे। बाकी अगली पोस्ट मे....

📓उ़यूनुल हिकायात,हिस्सए अव्वल,सफ़ह 55

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 127

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -122)

*सालिहीन से महब्बत :*

*साय्यिदुना उवैसे करनी से महब्बत और इन की सोहबत :* जब कुछ इफ़ाका हुवा तो वा'जो नसीहत के मदनी फूल अता फ़रमाए। फिर फ़रमाया ऐ मेरे भाई ! तू अपने लिये भी दुआ करना और मुझे भी दुआओं में याद रखना। इस के बाद आप رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की बारगाह में दुआ करने लगे ऐ परवर दगार عَزَّوَجَلَّ हरिम बिन हय्यान का गुमान है कि येह मुझ से तेरी ख़ातिर महब्बत करता है और तेरी रिज़ा ही की ख़ातिर मुझ से मुलाकात करने आया है। या अल्लाह عَزَّوَجَلَّ ! मुझे जन्नत में इस की पहचान करा देना और जन्नत में भी मेरी इस से मुलाकात करा देना या अल्लाह عَزَّوَجَلَّ जब तक येह दुन्या में बाकी रहे इस की हिफ़ाज़त फ़रमा और इसे थोड़ी ही दुन्या पर राज़ी रहने की तौफ़ीक़ अता फ़रमा, या अल्लाह عَزَّوَجَلَّ इसे जो ने'मतें तू ने अता की हैं उन पर शुक्र करने वाला बना दे, हमारी तरफ़ से इसे खूब भलाई अता फ़रमा। फिर मुझ से फ़रमाया ऐ इब्ने हय्यान तुझ पर अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की रहमत हो और खूब बरकत हो, आज के बाद मैं तुझ से मुलाकात न कर सकूँगा, बेशक मैं शोहरत को पसन्द नहीं करता। जब मैं लोगों के दरमियान होता हूं तो सख्त परेशान और गमगीन रहता हूं। बस मुझे तो तन्हाई बहुत पसन्द है। आज के बाद तू मेरे मुतअल्लिक किसी से न पूछना और न ही मुझे तलाश करना। मैं हमेशा तुझे याद रखूगा ,अगर्चे तुम मुझे न देखोगे और मैं तुझे न देख सकूँगा। मेरे भाई ! तुम मुझे याद रखना मैं तुम्हें याद रखूगा। मेरे लिये दुआ करते रहना। अल्लाह عَزَّوَجَلَّ ने चाहा तो मैं तुझे याद रखूगा और तेरे लिये दुआ करता रहूंगा। अब तू इस सम्त चला जा और मैं दूसरी तरफ़ चला जाता हूं। 

येह कह कर आप رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه एक तरफ़ चल दिये मैं ने ख्वाहिश ज़ाहिर की, कि कुछ दूर तक आप رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه के साथ चलूं, लेकिन आप رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه ने इन्कार फ़रमा दिया और हम दोनों रोते हुए एक दूसरे से जुदा हो गए मैं बार बार आप رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه को मुड़ मुड़ कर देखता यहां तक कि आप एक गली की तरफ़ मुड़ गए इस के बा'द मैं ने आप رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه को बहुत तलाश किया लेकिन आप मुझे न मिल सके, और न ही कोई ऐसा शख्स मिला जो मुझे आप رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه के मुतअल्लिक़ ख़बर देता हां अल्लाह عَزَّوَجَلَّ ने मुझ पर येह करम किया मुझे हफ्ते में एक दो मरतबा ख्वाब में आप رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه की ज़ियारत ज़रूर होती है।

🤲🏻 अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की उन पर रहमत हो और उन के सदके हमारी मगफिरत हो। आमीन

📓उ़यूनुल हिकायात,हिस्सए अव्वल,सफ़ह 55

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 127

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -123)

*सालिहीन से महब्बत :*

सालिहीन से महब्बत पैदा करने के तरीके : 

(1) अल्लाह वालों की बातों का मुतालआ कीजिये : सालिहीन से महब्बत पैदा करने का येह एक बेहतरीन तरीका है। इस सिलसिले में मक्तबतुल मदीना की मतबूआ इन कुतुब का मुतालआ बहुत मुफीद है अजाइबुल कुरआन मअ गराइबुल क़ुरआन, करामाते सहाबा, सहाबए किराम का इश्के रसूल, अख़्लाकुस्सालिहीन, शाहराहे औलिया, फैज़ाने सुन्नत, फैजाने रियाजुस्सालिहीन, अल्लाह वालों की बातें, हिकायतें और नसीहतें, खौफे खुदा, उयूनुल हिकायात, इहयाउल उलूम, वगैरा!

(2) नेक लोगों से महब्बत करने वालों की सोहबत इख़्तियार कीजिये : सोहबत असर रखती है, जब बन्दा नेक लोगों से महब्बत करने वालों की सोहबत में बैठेगा तो रहमते इलाही से उसे भी नेक लोगों की महब्बत नसीब हो जाएगी।

(3) बद मज़हबों की सोहबत से बचिये : वोह तमाम लोग जो अम्बियाए किराम عَلَیْھِمُ السَّلَام सहाबए किराम عَلَیْھِمُ الرِِّضْوَان ताबेईन, तबए ताबेईन, अइम्मए दीन, औलियाए किराम رَحِمَھُمُ اللّٰهُ تَعَالٰی عَلَیْھِمْ اَجْمَعِیْن के ख़िलाफ़ ज़बाने ता'न दराज़ करते हैं, उन की सोहबत से बचिये कि येह दीन को ऐसे तबाहो बरबाद कर के रख देते हैं जैसे आग लकड़ी को जला कर राख कर देती है, बद मज़हबों के साथ बैठने वाला ला'नत में गिरिफ़्तार हो जाता है।

हज़रते सय्यिदुना फुजेल बिन इयाज़ رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه ने एक शख्स को नसीहत करते हुए इरशाद फ़रमाया बद मज़हब के साथ मत बैठ क्यूंकि मुझे तुझ पर ला'नत उतरने का खौफ़ है।

हज़रते सय्यदुना यहया बिन अबी कसीर عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْعَزِیز फ़रमाते हैं अगर किसी रास्ते पर बद मज़हब से सामना हो जाए तो वोह रास्ता छोड़ कर दूसरा रास्ता इख्तियार करो।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 116

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -124)

*अल्लाह व रसूल की इताअत :*

*अल्लाह व रसूल की इताअत की तारीफ :* अल्लाह عَزَّوَجَلَّ और उस के रसूल ﷺ ने जिन बातों को करने का हुक्म दिया है उन पर अमल करना और जिन से मन्अ फ़रमाया उन को न करना अल्लाह व रसूल की इताअत कहलाता है।

*आयते मुबारका :* अल्लाह عَزَّوَجَلَّ क़ुरआने मजीद में इरशाद फ़रमाता है

"یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْۤا اَطِیْعُوا اللّٰهَ وَ اَطِیْعُوا الرَّسُوْلَ"

*तर्जमए कन्जुल ईमान :*“ऐ ईमान वालो हुक्म मानो अल्लाह का और हुक्म मानो रसूल का।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 129

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -125)

*अल्लाह व रसूल की इताअत :*

अहादीसे मुबारका - तीन फ़रामीने मुस्तफ़ा ﷺ :

(1) जिस ने अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की इताअत छोड़ दी वोह कियामत के दिन अल्लाह عَزَّوَجَلَّ से इस हाल में मिलेगा कि उस के पास (अज़ाब से बचने की) कोई हुज्जत न होगी, और जो इस हाल में मरा कि उस की गर्दन में बैअत का पट्टा न था तो वोह जाहिलिय्यत की मौत मरा।

(2)  जिस ने मेरी इताअत की उस ने अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की इताअत की, जिस ने मेरी ना फ़रमानी की उस ने अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की ना फ़रमानी की।

(3) जो मुझ पर ईमान लाया और मेरी इताअत की और फिर हिजरत की मैं उसे जन्नत के कनारे और वस्त में एक एक घर की जमानत देता हूं तो जो येह काम करे और न तो खैर का कोई मौकअ हाथ से जाने दे और न ही बुराई से भागने का कोई मौका गंवाए तो (येही उस के लिये काफ़ी है) वोह जहां चाहे मरे।

*अल्लाह व रसूल की इताअत का हुक्म :* हर मुसलमान पर अल्लाह عَزَّوَجَلَّ और उस के रसूल ﷺ की इताअत लाज़िम है या'नी अल्लाह عَزَّوَجَلَّ और उस के रसूल ﷺ ने जिन बातों को करने का हुक्म दिया है उन पर अमल करे और जिन से मन्अ फ़रमाया है उन से बचे।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 129

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -126)

*अल्लाह व रसूल की इताअत :*

*सारी उम्र इताअत में गुजार दी मगर :* हज़रते सय्यिदुना मसरूक बिन अज्दअ ताबेई عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْقَوِی इतनी लम्बी नमाज़ अदा फ़रमाते कि उन के पाउं सूज जाया करते थे और येह देख कर उन के घरवालों को उन पर तरस आता और वोह रोने लगते। एक दिन उन की वालिदा ने कहा मेरे बेटे ! तू अपने कमज़ोर जिस्म का ख़याल क्यूं नहीं करता इस पर इतनी मशक्कत क्यूं लादता है तुझे इस पर ज़रा रहम नहीं आता कुछ देर के लिये आराम कर लिया करो, क्या अल्लाह तआला ने जहन्नम की आग सिर्फ तेरे लिये पैदा की है कि तेरे इलावा कोई उस में फेंका नहीं जाएगा उन्हों ने जवाबन अर्ज़ की अम्मी जान ! इन्सान को हर हाल में मुजाहदा करना चाहिये क्यूंकि क़ियामत के दिन दो ही बातें होंगी, या तो मुझे बख़्श दिया जाएगा या फिर मेरी पकड़ हो जाएगी, अगर मेरी मगफिरत हो गई तो येह महज़ अल्लाह तआला का फ़ज़्ल और उस की रहमत होगी और अगर मैं पकड़ा गया तो येह उस का अद्ल होगा, लिहाजा अब मैं आराम नहीं करूंगा और अपने नफ्स को मारने की पूरी कोशिश करता रहूंगा।

जब उन की वफ़ात का वक़्त करीब आया तो उन्हों ने गिर्या व ज़ारी शुरूअ कर दी। लोगों ने पूछा आप ने तो सारी उम्र मुजाहदों और रियाज़तों में गुज़ारी है, अब क्यूं रो रहे हैं इरशाद फरमाया मुझ से ज़ियादा किस को रोना चाहिये कि मैं सत्तर साल तक जिस दरवाजे को खटखटाता रहा, आज उसे खोल दिया जाएगा लेकिन येह नहीं मालूम कि जन्नत का दरवाजा खुलता है या दोज़ख का ? काश ! मेरी मां ने मुझे जन्म न दिया होता और मुझे येह मशक्कत न देखना पड़ती।

   *कब्र महबूब के जल्वों से बसा दे मालिक*
        येह करम कर दे तो मैं शाद रहूंगा या रब

   *गर तू नाराज़ हुवा मेरी हलाकत होगी*
        हाए मैं नारे जहन्नम में जलूंगा या रब

   *अफ्व कर और सदा के लिये राज़ी हो जा*
        गर करम कर दे तो जन्नत में रहूंगा या रब

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 131

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -127)

*अल्लाह व रसूल की इताअत :*

इताअत का जज़्बा पैदा करने, इताअत करने के तरीके 

(1) नेकियों और नेक आ'माल की मालमात हासिल कीजिये : जब तक बन्दे को इस बात का इल्म न होगा कि नेक आ'माल कौन कौन से हैं उस वक़्त तक उन आ'माल को बजा लाना बहुत दुश्वार होगा और येही इताअत का सब से बड़ा रुक्न है कि बन्दा अल्लाह  عَزَّوَجَلَّ और उस के हबीब ﷺ के बताए हुए नेक आ'माल को बजा लाए। इस सिलसिले में मक्तबतुल मदीना की मतबूआ इन कुतुब का मुतालआ बहुत मुफीद है : इहयाउल उलूम, मुकाशफ़तुल कुलूब, मिन्हाजुल आबिदीन, बहारे शरीअत ,जन्नत में ले जाने वाले आ'माल, नेकियों की जज़ाएं और गुनाहों की सज़ाएं, नेकी की दा'वत। वगैरा

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 132

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -128)

*अल्लाह व रसूल की इताअत :*

इताअत का जज़्बा पैदा करने, इताअत करने के तरीके 

(2) बुराइयों और गुनाहों की मा'लूमात हासिल कीजिये : येह बात भी मुसल्लमा (तै शुदा) है कि बीमारी की तश्खीस के लिये इस की मा'लूमात होना बहुत ज़रूरी हैं , जब तक मा'लूमात न होंगी उस वक़्त तक तश्वीस नहीं हो सकती और जब तश्वीस न होगी तो इलाज भी न हो सकेगा। नीज़ इताअत का दूसरा बड़ा रुक्न भी येह है कि अल्लाह عَزَّوَجَلَّ और उस के रसूल ﷺ ने जिन चीजों से बचने का हुक्म दिया है बन्दा उन से बचे।  इस सिलसिले में मक्तबतुल मदीना की मतबूआ इन कुतुब का मुतालआ बहुत मुफीद है : इहयाउल उलूम, बहारे शरीअत, जहन्नम में ले जाने वाले आ'माल, बातिनी बीमारियों की मा'लूमात, नेकियों की जज़ाएं और गुनाहों की सज़ाएं, गुनाहों की नुहसत बुरे खातिमे के अस्बाब। वगैरा..

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 132

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -129 )

*अल्लाह व रसूल की इताअत :*

इताअत का जज़्बा पैदा करने , इताअत करने के तरीके :

(3) इताअत गुज़ार लोगों की सोहबत इख़्तियार कीजिये : इताअते इलाही का जज़्बा पैदा करने का एक बेहतरीन ज़रीआ इताअत गुज़ार लोगों की सोहबत भी है कि बन्दा जैसे लोगों की सोहबत इख्तियार करता है वोह वैसा ही बन जाता है , जब बन्दा अपने ही जैसे अफ़राद को नेकियां करते और गुनाहों से बचते हुए देखता है तो उस की जात में भी नेकियां करने और गुनाहों से बचने का जज्बा पैदा हो जाता है।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -130)

*अल्लाह व रसूल की इताअत :*

इताअत का जज़्बा पैदा करने, इताअत करने के तरीके :

(4) इताअत के दुन्यवी व उख़रवी फ़वाइद पर गौर कीजिये : चन्द फ़वाइद येह हैं

इताअत गुज़ार को थोड़े माल पर कनाअत अता कर दी जाती है। इताअत गुज़ार लोगों के माल से बे नियाज़ कर दिया जाता है। इताअत गुज़ार को सब्रो शुक्र की दौलत अता कर दी जाती है। इताअत गुज़ार की इज़्ज़त लोगों के दिलों में डाल दी जाती है। इताअत गुज़ार का ख़ातिमा रहमते इलाही से बिल खैर होगा। इताअत गुज़ार को कब्र के सुवालात में आसानी होगी। 

इताअत गुजार को कल बरोजे कियामत हिसाब में भी आसानी होगी। इताअत गुज़ार हश्र की तक्लीफ़ों से महफूज़ रहेगा।इताअत गुज़ार रब की रहमत से अज़ाब से भी महफूज़ रहेगा। इताअत गुज़ार को जन्नत में दाखिला नसीब होगा। अल ग़रज़ इताअत गुज़ार को दुन्या व आख़िरत की कसीर भलाइयां अता की जाती हैं।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -131)

*अल्लाह व रसूल की इताअत :*

इताअत का जज़्बा पैदा करने, इताअत करने के तरीके

(5) ना फ़रमानी की हलाकतों पर गौर कीजिये : चन्द हलाकतें येह हैं :- ना फ़रमान शख्स की दुन्या में जिल्लतो रुस्वाई होगी। ना फ़रमान शख्स को तरह तरह की तक्लीफ़ों का सामना करना पड़ता है। कभी माली तंगी से दो चार होता है। कभी घरेलू नाचाकियों से पाला पड़ता है। इसे तरह तरह की बीमारियां लग जाती हैं। ना फ़रमान शख्स के बुरे खातिमे का भी खौफ़ है। ना फ़रमान शख्स को क़ब्र के सुवालात में भी परेशानी का सामना हो सकता है। ना फ़रमान शख्स को हश्र में भी हिसाबो किताब में मुश्किल हो सकती है। ना फ़रमान शख्स से अल्लाह عَزَّوَجَلَّ और उस का रसूल ﷺ नाराज़ होते हैं और यक़ीनन येह तमाम नुक्सानात में सब से बड़ा नुक्सान और बद नसीबी है।

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*अल्लाह व रसूल की इताअत :*

इताअत का जज़्बा पैदा करने , इताअत करने के तरीके 

(6) हर हर मुआमले में शरीअत को मल्हूज़ रखिये : चाहे इस का तअल्लुक अल्लाह عَزَّوَجَلَّ उस के रसूल ﷺ के हुकूक से हो या अपनी जात, वालिदैन, आल औलाद व रिश्तेदारों, पड़ोसियों या दीगर हुकूकुल इबाद से हो। अपनी ज़िन्दगी के हर हर मुआमले में शरीअत के मुताबिक गुज़ारने के लिये सदरुश्शरीआ बदरुत्तरीका हज़रते अल्लामा मौलाना मुफ्ती मुहम्मद अमजद अली आ'ज़मी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْقَوِی की माया नाज़ तस्नीफ़ *"बहारे शरीअत"* का मुतालआ बहुत मुफ़ीद है , इस किताब में الحمد لله दुन्यवी व उख़रवी कई मुआमलात के बारे में तफ्सीली शरई रहनुमाई की गई है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 133

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -133)

*अल्लाह व रसूल की इताअत :*

इताअत का जज़्बा पैदा करने, इताअत करने के तरीके

(7) इताअत की राह में हाइल अस्बाब को दूर कीजिये : जब अस्बाब दूर हो जाएंगे तो अल्लाह के फ़ज़्लो करम से इताअत भी नसीब हो जाएगी , इताअत की राह में रुकावट डालने वाले चन्द अस्बाब येह हैं ; इल्मे दीन हासिल न करना, दीनदार लोगों की सोहबत इख़्तियार न करना, बुरे लोगों की सोहबत में बैठना, दुन्यवी महब्बत को दिल में बसा लेना, लम्बी लम्बी उम्मीदें लगा लेना, मौत को भूल जाना, फ़िक्रे आख़िरत से गाफ़िल हो जाना गुनाहों में मुब्तला हो जाना। वगैरा

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 134 

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -134)

*दिल की नर्मी :*

दिल की नर्मी की तारीफ : दिल का ख़ौफे खुदा के सबब इस तरह नर्म होना कि बन्दा अपने आप को गुनाहों से बचाए और नेकियों में मश्गूल कर ले, नसीहत उस के दिल पर असर करे, गुनाहों से बे रगबती हो, गुनाह करने पर पशेमानी हो, बन्दा तौबा की तरफ़ मुतवज्जेह हो, शरीअत ने उस पर जो जो हुकूक लाज़िम किये हैं उन की अच्छे तरीके से अदाएगी पर आमादा हो, अपने आप, घरबार, रिश्तेदारों व खल्के खुदा पर शफ़्क़त व रहम व नर्मी करे, कुल्ली तौर पर इस कैफ़िय्यत को *"दिल की नर्मी"* से ता'बीर किया जाता है।

*आयते मुबारका :* अल्लाह عَزَّوَجَلَّ क़ुरआने मजीद में इरशाद फ़रमाता है :

فَبِمَا  رَحْمَةٍ  مِّنَ  اللّٰهِ  لِنْتَ  لَهُمْۚ-وَ  لَوْ  كُنْتَ  فَظًّا  غَلِیْظَ  الْقَلْبِ  لَا  نْفَضُّوْا  مِنْ  حَوْلِكَ۪- 

*तर्जमए कन्जुल ईमान :* तो कैसी कुछ अल्लाह की मेहरबानी है कि ऐ महबूब तुम उन के लिये नर्म दिल हुए और अगर तुन्द मिज़ाज सख्त दिल होते तो वोह ज़रूर तुम्हारे गिर्द (आस पास) से परेशान हो जाते! 
(सूरह आले इमरान आयत - 159)
          
📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 135

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -135)

*दिल की नर्मी :*

नर्म दिल पाक दामन गनी की फ़ज़ीलत : हज़रते सय्यिदुना अबू हुरैरा رضى الله تعالیٰ عنه से रिवायत है कि सरवरे कौनैन ﷺ ने इरशाद फ़रमाया बेशक अल्लाह तबारक व तआला नर्म दिल पाक दामन गनी को पसन्द फ़रमाता है और संगदिल है बद किरदार साइल को ना पसन्द फ़रमाता है।

हज़रते सय्यिदुना अबू हुरैरा رضى الله تعالیٰ عنه से रिवायत है कि एक शख्स ने बारगाहे रिसालत में दिल की सख्ती की शिकायत की तो आप ﷺ ने इरशाद फरमाया यतीम के सर पर हाथ फेर और मसाकीन को खाना खिला।

दिल की नर्मी का हुक्म : वोह उमूर जो दिल की सख्ती दूर करने और दिल में नर्मी पैदा करने का सबब बनें उन्हें हासिल करने की कोशिश की जाए।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -136)

*दिल की नर्मी :*

दुआ की बरकत से दिल की सख्ती दूर हो गई :

*हिकायत :* हज़रते सय्यिदुना सरी सक़ती رحمتہ الله تعالیٰ علیہ फ़रमाते हैं कि मैं दिल की सख्ती के मरज़ में मुब्तला था और मुझे हज़रते सय्यिदुना मारूफ कर्खी رحمتہ الله تعالیٰ علیہ की दुआ की बरकत से छुटकारा मिल गया। हुवा यूं कि मैं नमाजे़ ईद पढ़ने के बाद वापस लौट रहा था कि हज़रते सय्यिदुना मारूफ़ कर्खी رحمتہ الله تعالیٰ علیہ को देखा। आप رحمتہ الله تعالیٰ علیہ के साथ एक बच्चा भी था जिस के बाल उलझे हुए थे। दिल टूटने के सबब रोए जा रहा था। मैं ने अर्ज़ की या सय्यिदी ! क्या हुवा ? आप के साथ येह बच्चा क्यूं रो रहा है ? तो आप رحمتہ الله تعالیٰ علیہ ने जवाब दिया मैं ने चन्द बच्चों को खेलते हुए देखा लेकिन येह बच्चा एक तरफ़ खड़ा हुवा था। उन बच्चों के साथ न खेलने की वज्ह से इस का दिल टूट गया है। मैं ने बच्चे से पूछा तो इस ने बताया मैं यतीम हूं , मेरा बाप इन्तिकाल कर गया है , मेरा कोई सहारा नहीं और मेरे पास कुछ रकम भी नहीं कि मैं अखरोट खरीद कर इन बच्चों के साथ खेल सकू। चुनान्चे, मैं इस को अपने साथ ले आया हूं ताकि इस के लिये गुठलियां इकठ्ठी करूं जिन से येह अखरोट खरीद कर दूसरे बच्चों के साथ खेल सके।

मैं ने अर्ज़ की आप येह बच्चा मुझे दे दें ताकि मैं इस की हालत बदल सकू। आप رحمتہ الله تعالیٰ علیہ ने फ़रमाया चलो इस को पकड़ लो अल्लाह عزوجل तुम्हारा दिल ईमान की बरकत से ग़नी करे और अपने रास्ते की ज़ाहिरी व बातिनी पहचान अता फ़रमा दे। हज़रते सय्यिदुना सरी सक़ती رحمتہ الله تعالیٰ علیہ फ़रमाते हैं कि मैं उस बच्चे को ले कर बाज़ार चला गया और अच्छे कपड़े पहनाए अखरोट खरीद कर दिये और वोह ईद के दिन दूसरे बच्चों के साथ खेलने चला गया। दूसरे बच्चों ने पूछा तुझ पर येह एहसान किस ने किया उस ने जवाब दिया हज़रते सय्यिदुना मारूफ़ कर्खी رحمتہ الله تعالیٰ علیہ और सरी सक़ती رحمتہ الله تعالیٰ علیہ ने! जब बच्चे खेल कूद के बाद चले गए तो वोह बच्चा खुशी खुशी मेरे पास आया। मैं ने उस से पूछा बताओ ! ईद का दिन कैसा गुज़रा उस ने कहा ऐ मेरे मोहतरम आप ने मुझे अच्छा कपड़ा पहनाया मुझे खुश कर के बच्चों के साथ खेलने के लिये भेजा मेरे टूटे हुए दिल को जोड़ा अल्लाह عزوجل आप को अपनी बारगाह में हाज़िरी की कमी पूरी करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए और आप के लिये अपना रास्ता खोल दे। हज़रते सय्यिदुना सरी सक़ती رحمتہ الله تعالیٰ علیہ फ़रमाते हैं मुझे बच्चे के इस कलाम से बेहद खुशी हुई जिस ने ईद की खुशियां दोबाला कर दीं।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -137)

*दिल की नर्मी :*

*दिल में नर्मी पैदा करने के दस तरीके :* 

(1) दिल की सख्ती के मुमकिना नुक्सानात पर गौर कीजिये : चन्द नुक्सानात येह हैं : दिल की सख्ती अमल को जाएअ कर देने का एक सबब है। के सख्त दिली से बे रहमी का अन्देशा है। सख्त दिल शख्स उमूमन रहम करने की तरफ़ बहुत कम माइल होता है। सख़्त दिल लोग अल्लाह और उस के हबीब ﷺ को ना पसन्द हैं। सख़्त दिल लोगों की सोहबत बुरी सोहबत कहलाती है। सख़्त दिल लोग कल बरोजे क़ियामत ग़ज़बे इलाही का शिकार हो सकते हैं। उन को हिसाब में दुश्वारी का भी अन्देशा है। रब तआला की नाराज़ी की सूरत में वोह जहन्नम के अज़ाब का भी शिकार हो सकते हैं। सख़्त दिली अल्लाह के कहरो गज़ब की अलामत है। सख़्त दिल लोग दुन्या व आखिरत की कसीर भलाइयों से महरूम कर दिये जाते हैं। वगैरा वगैरा

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -138)

*दिल की नर्मी :*

*दिल में नर्मी पैदा करने के दस तरीके  :* 

(2) नर्म दिली के फ़वाइद पर गौर कीजिये : चन्द फ़वाइद येह हैं : नर्म दिल शख्स रहम दिल होता है सब पर रहम करता है नर्म दिल लोग अल्लाह عزوجل और उस के हबीब ﷺ को पसन्द हैं नर्म दिली अल्लाह عزوجل की बहुत बड़ी नेमत है नर्म दिली खुश बख़्ती की अलामत है नर्म दिल शख्स की इज़्ज़त लोगों के दिलों में डाल दी जाती है। जिसे नर्म दिली अता की जाती है उसे दुन्या व आखिरत की कसीर भलाइयां अता कर दी जाती हैं।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -139)

*दिल की नर्मी :*

*दिल में नर्मी पैदा करने के दस तरीके :* 

(3) भूक से कम खाइये : इस से दिल नर्म होता है पेट भर कर खाने से दिल की सख्ती पैदा होती है। बाज़ सालिहीन رحمتہ الله علیہ का फ़रमान है भूक हमारा सरमाया है। इस कौल के माना येह हैं कि हमें जो फ़रागत, सलामती इबादत हलावत इल्म और अमले नाफेअ वगैरा नसीब होता है वोह सब भूक के सबब और सब्र की बरकत से होता है। हज़रते सय्यिदुना सुफ्यान सौरी رحمتہ الله علیہ फ़रमाते हैं दिल की सख्ती के दो अस्बाब हैं (1) पेट भर कर खाना (2) ज़ियादा बोलना।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -140)

*दिल की नर्मी :*

दिल में नर्मी पैदा करने के दस तरीके :

(4) फुज़ूल गुफ़्त्गू से परहेज़ कीजिये : फुज़ूल गोई से दिल में सख़्ती पैदा होती है यूं दिल न तो किसी पर रहम करने पर आमादा होता है और न ही किसी के लिये हमदर्दी के जज़्बात पैदा होते हैं किसी के बारे में जिस कदर मन्फी (गीबत, चुगली, तोहमत पर मुश्तमिल) गुफ़्तगू की जाती है उसी क़दर दिल में नफ़रत के जज़्बात पैदा हो जाते हैं और येह सब फुज़ूल गोई की बुरी आदत की वज्ह से होता है। लिहाजा दिल में नर्मी पैदा करना चाहते हैं तो ज़बान को फुज़ूल गुफ्तगू से बचाते हुए कुफ़्ले मदीना लगाइये।

फ़रमाने मुस्तफ़ा ﷺ है : ज़िक्रुल्लाह के बिगैर ज़ियादा कलाम न करो क्यूंकि ज़िक्रुल्लाह के बिगैर ज़ियादा कलाम दिल की सख्ती है और सख्त दिल लोग अल्लाह عزوجل (की रहमत व इनायत) से सब से ज़ियादा दूर हैं।

हज़रते सय्यिदुना मालिक बिन दीनार عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْغَفَّار फ़रमाते हैं अगर तू अपने दिल में सख्ती या अपने बदन में सुस्ती या अपने रिज़्क में महरूमी देखे तो यकीन कर ले कि तू ने कोई फुज़ूल गुफ्त्गू की है।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -141)

*दिल की नर्मी :*

*दिल में नर्मी पैदा करने के दस तरीके :* 

(5) गुनाहों के ख़िलाफ़ एलाने जंग कर दीजिये :  गुनाह ख्वाह ज़ाहिरी हो या बातिनी, दोनों ही दिल की सख्ती का सबब हैं और जिन के दिल नर्म होते हैं उस के पीछे येह राज़ पोशीदा होता है कि वोह गुनाहों से हर सूरत बचते हैं। लिहाज़ा दिल में नर्मी पैदा करने के लिये आप भी गुनाहों के ख़िलाफ़ ए'लाने जंग कर दीजिये, गुनाहों और उन के अस्बाब व इलाज की मा'लूमात हासिल कीजिये  खुद को गुनाहों से बचाइये। गुनाहों की मा'लूमात, इन के अस्बाब व इलाज के लिये मक्तबतुल मदीना की मतबूआ इन कुतुब का मुतालआ बहुत मुफीद है इहयाउल उलूम, जहन्नम में ले जाने वाले आ'माल बातिनी बीमारियों की मालूमात।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -142)

*दिल की नर्मी :*

दिल में नर्मी पैदा करने के दस तरीके :

(6) यतीम व मिस्कीन की खैर ख्वाही कीजिये : दिल में नर्मी पैदा करने का एक नुस्खा येह भी है कि यतीम व मिस्कीन के साथ खैर ख़्वाही की जाए कि एक शख्स ने हुज़ूर नबिय्ये करीम ,रऊफुर्रहीम ﷺ की बारगाह में सख़्त दिली की शिकायत की तो आप ﷺ ने इरशाद फरमाया अगर तू दिल की नर्मी चाहता है तो मिस्कीन को खाना खिला और यतीम के सर पर हाथ फेर।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -143)

*दिल की नर्मी :*

*दिल में नर्मी पैदा करने के दस तरीके :* 
   
(7) मौत को कसरत से याद कीजिये : मौत दिल की नर्मी का बेहतरीन नुस्खा है। चुनान्चे एक औरत ने उम्मुल मोमिनीन हज़रते सय्यिदतुना आइशा सिद्दीक़ा رضى الله تعالیٰ عنها से अपने दिल की सख्ती के बारे में शिकायत की तो उन्हों ने फ़रमाया मौत को ज़ियादा याद करो इस से तुम्हारा दिल नर्म हो जाएगा। उस औरत ने ऐसा ही किया तो दिल की सख़्ती जाती रही फिर उस ने उम्मुल मोमिनीन हज़रते सय्यिदतुना आइशा सिद्दीक़ा رضى الله تعالیٰ عنها का शुक्रिय्या अदा किया।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -144)

*दिल की नर्मी :*

*दिल में नर्मी पैदा करने के दस तरीके :* 

(8) ज़ियारते कुबूर कीजिये : ज़ियारते कुबूर दिल की सख्ती का एक बेहतरीन इलाज और दिल की नर्मी में बहुत मुआविन है। जैसा कि हज़रते सय्यिदुना अनस رضى الله تعالیٰ عنه से रिवायत है कि हुज़ूर नबिये रहमत, शफ़ीए उम्मत ﷺ ने इरशाद फ़रमाया मैं तुम्हें कब्रों की ज़ियारत से मन्अ किया करता था अब तुम कब्रों की ज़ियारत किया करो क्यूंकि ज़ियारते कुबूर दिल की नर्मी अश्कबारी (रोने का सबब) और आखिरत की याद दिलाने वाली है।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -145)

*दिल की नर्मी :*

*दिल में नर्मी पैदा करने के दस तरीके :* 

(9) अल्लाह वालों की सोहबत इख़्तियार कीजिये : मुफस्सिरे शहीर हकीमुल उम्मत मुफ़्ती अहमद यार खान नईमी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْقَوِی फ़रमाते हैं जैसे लोहा नर्म हो कर औज़ार और सोना नर्म हो कर जेवर और मिट्टी नर्म हो कर खेत या बाग, आटा नर्म हो कर रोटी वगैरा बनते हैं ऐसे ही इन्सान दिल का नर्म हो कर वली, सूफी, आरिफ वगैरा बनता है। दिल की नर्मी अल्लाह की बड़ी नेमत है येह नर्म दिल बुजुर्गों की सोहबत और उन के पाक कलिमात से नसीब होती है।

इसी तरह हज़रते सय्यिदुना अहमद बिन अबुल हवारी رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه फ़रमाते हैं जब तू अपने दिल में सख़्ती महसूस करे तो ज़िक्र करने वालों की मजलिस में बैठ जा, दुन्या से बे रग़बत लोगों की सोहबत इख़्तियार कर, अपना खाना कम कर ले, अपनी मुराद (ख्वाहिश) से इजतिनाब कर, बुरे कामों से खुद को रोक ले।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -146)

*दिल की नर्मी :*

*दिल में नर्मी पैदा करने के दस तरीके :* 

(10) दिल की नर्मी की बारगाहे इलाही में दुआ कीजिये : दुआ मोमिन का हथियार और इबादत का मग्ज़ है।एक शख्स ने हज़रते सय्यिदुना मा'रूफ़ कर्खी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْقَوِی की ख़िदमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ की दुआ फ़रमाएं कि अल्लाह عَزَّوَجَلَّ मेरे दिल को नर्म कर दे। तो आप رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه ने उसे इस दुआ की तल्कीन फ़रमाई :
يَامُلَيِّنَ الْقُلُوْبِ ! لَيِّنْ قَلْبِىْ قَبْلَ اَنْ تُلَيِّنَه عِنْدَ الْمَوْتِ

या'नी ऐ दिलों को नर्म फ़रमाने वाले मेरे दिल को भी नर्म कर दे इस से पहले कि तू मौत के वक़्त इसे नर्म करे। आमीन

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -147)

*खल्वत व गोशा नशीनी :*

*खल्वत व गोशा नशीनी की तारीफ :* खल्वत के लुगवी मा'ना तन्हाई के हैं और बन्दे का अल्लाह عزوجل की रिज़ा हासिल करने, तक्वा व परहेज़गारी के दरजात में तरक्की करने और गुनाहों से बचने के लिये अपने घर या किसी मख्सूस मकाम पर लोगों की नज़रों से पोशीदा हो कर इस तरह मो'तदिल अन्दाज़ में नफ्ली इबादत करना "खल्वत व गोशा नशीनी" कहलाता है कि हुकूकुल्लाह (या'नी फ़राइज़ व वाजिबात व सुनने मुअक्कदा) और शरीअत की तरफ़ से उस पर लाज़िम किये गए तमाम हुकूक की अदाएगी वालिदैन, घरवालों, आल औलाद व दीगर हुकूकुल इबाद (बन्दों के हुकूक) की अदाएगी में कोई कोताही न हो। 

सूफ़ियाए किराम رَحِمَھُمُ اللّٰهُ السَّلَام के नज़दीक लोगों में जाहिरी तौर पर रहते हुए बातिनी तौर पर उन से जुदा रहना या'नी खुद को रब तआला की तरफ़ मुतवज्जेह रखना खल्वत व गोशा नशीनी है।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -148)

*खल्वत व गोशा नशीनी :*

*आयते मुबारका :* अल्लाह عَزَّوَجَلَّ क़ुरआने मजीद में इरशाद फ़रमाता है :

"وَاذْکُرِاسْمَرَبِِّكَ وَتَبتَّلْ اِلَیْهِ تَبْتِیْلََا(۸)"

*तर्जमए कन्जुल ईमान :* और अपने रब का नाम याद करो और सब से टूट कर उसी के हो रहो। 

(सूरह मुज़्ज़म्मिल आयत नम्बर - 8)

इस आयत के तहत सदरुल अफ़ाज़िल मौलाना मुफ्ती मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी عَلَیْهِ رَحمَةُ اللّٰهِ الْھَادِی फ़रमाते हैं यानी इबादत में इन्किताअ की सिफ़त हो कि दिल अल्लाह तआला के सिवा और किसी तरफ़ मश्गूल न हो, सब अलाका (तअल्लुकात) क़त्अ (ख़त्म) हो जाएं, उसी की तरफ़ तवज्जोह रहे।

अल्लाह عَزَّوَجَلَّ इरशाद फ़रमाता है :

"وَاذْکُرْفِی الْکِتٰبِ مَرْیَمَ°اِذِانْتَبَذَتْ مِنْ اَھْلِھَامَکَانََاشَرْقِیََّا"


*तर्जमए कन्जुल ईमान :* और किताब में मरयम को याद करो जब अपने घरवालों से पूरब (मशरिक़) की तरफ़ एक जगह अलग गई। 
(सूरह मरयम आयत नम्बर -16 )

इस आयते मुबारका में हज़रते सय्यिदतुना मरयम رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْھَا की खल्वत का ज़िक्र है कि वोह अपने मकान में या बैतुल मुक़द्दस की शरकी जानिब में लोगों से जुदा हो कर इबादत के लिये खल्वत में बैठ गईं।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -149)

*खल्वत व गोशा नशीनी :*

*(हदीसे मुबारका) खल्वत व गोशा नशीनी जरीअए नजात है :* हज़रते सय्यिदुना उक्बा बिन आमिर رضى الله تعالیٰ عنه फ़रमाते हैं कि मैं ने रसूलुल्लाह ﷺ से अर्ज़ की नजात का ज़रीआ क्या है ? इरशाद फ़रमाया अपनी ज़बान को काबू में रखो और तुम को तुम्हारा घर काफ़ी रहे और अपनी ख़ताओं पर रोओ।

मुफस्सिरे शहीर हकीमुल उम्मत मुफ्ती अहमद यार ख़ान नईमी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْغَنِی फ़रमाते हैं यानी बिला ज़रूरत घर से बाहर न जाओ, लोगों के पास बिला वज्ह न जाओ, घर से न घबराओ, अपने घर की ख़ल्वत को गनीमत जानो कि इस में सदहा (सेंकड़ों) आफ़तों से अमान है। बुज़ुर्ग फ़रमाते हैं कि सुकूत, लुजूमे बुयूत और क़नाअत बिल कुव्वत इला अय्यमूत अमान की चाबी है यानी ख़ामोशी, घर में रहना, रब की अता पर क़नाअत, मौत तक इस पर काइम रहना।

📓मिरआतुल मनाजीह़ 6/464

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -150)

*खल्वत व गोशा नशीनी :*

*खल्वत व गोशा नशीनी के अहकाम :* (1) मुतलकन खल्वत रिज़ाए इलाही पाने, खुद को नेकियों में लगाने, गुनाहों से बचाने और जन्नत में ले जाने वाला काम है। हर मुसलमान को चाहिये कि रिज़ाए इलाही के हुसूल और इबादात में पुख्तगी हासिल करने के लिये कुछ न कुछ वक़्त खल्वत इख़्तियार करे, अलबत्ता मुख्तलिफ़ अफ़राद के मुख़्तलिफ़ अहवाल की वज्ह से इस के अहकाम भी मुख़्तलिफ़ हैं बा'ज़ के लिये खल्वत अफ़्ज़ल और बा'ज़ के लिये जल्वत (या'नी लोगों में रहना) अफ़ज़ल।

(2) ऐसा आलिमे दीन जिस से लोग इल्मे दीन हासिल करते हों और अगर येह खल्वत इख्तियार कर ले तो लोग शरई मसाइल से महरूम हो कर गुमराही में जा पड़ेंगे तो ऐसे आलिम के लिये कुलियतन खल्वत इख़्तियार करना नाजाइज़ व ममनूअ है अलबत्ता ऐसा साहिबे इल्म शख्स जिस के पास अपनी ज़रूरत का इल्म मौजूद है और इस के खल्वत इख्तियार करने से लोगों का भी कोई नुक्सान नहीं तो ऐसे शख्स के लिये खल्वत इख़्तियार करना जाइज़ है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 145

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -151)

*खल्वत व गोशा नशीनी :*

*खल्वत व गोशा नशीनी के अहकाम :* (3) ऐसा शख्स जो ज़रूरिय्याते दीन (फ़राइज़ो वाजिबात व सुनने मुअक्कदा) से नावाकिफ़ हो, अगर इल्म हासिल न करेगा तो नफ़्सो शैतान के बहकावे में आ कर गुमराही के गढ़े में गिर जाएगा ऐसे शख्स के लिये खल्वत इख़ितयार करना शरअन नाजाइज़ व हराम है बल्कि उस पर लाज़िम है कि फ़र्ज़ उलूम को हासिल करे।

(4) अगर किसी शख्स को अच्छी सोहबत मुयस्सर नहीं है और वोह खल्वत इख़्तियार नहीं करेगा तो गुनाहों में मुब्तला हो जाएगा तो ऐसे शख्स पर लाज़िम है कि हुकूकुल्लाह व हुकूकुल इबाद (अल्लाह तआला और बन्दों के हुकूक) की अदाएगी करते हुए ब क़दरे ज़रूरत खल्वत इख़्तियार करे और खुद को गुनाहों से बचा कर इबादत में मसरूफ़ हो जाए।

मिरआतुल मनाजीह में है सूफ़ियाए किराम رَحِمَھُمُ اللّٰهُ السَّلَام फ़रमाते हैं कि अब इस ज़माने में जल्वत (लोगों में रहने) से खल्वत अफ़ज़ल, बुरी सोहबत से तन्हाई अफ्ज़ल।

📓मिरआतुल मनाजीह,5/137

बुरे लोगों की सोहबत से खल्वत अफ्ज़ल और खल्वत से अच्छे लोगों की सोहबत अफ़्ज़ल।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -152)

*खल्वत व गोशा नशीनी :*

*खल्वत व गोशा नशीनी के अहकाम :* (5) अगर खल्वत इख़्तियार करने में किसी भी तरह हुकूकुल्लाह या हुकूकुल इबाद की तलफ़ी होती हो तो ऐसी ख़ल्वत इख़्तियार करना शरअन नाजाइज़ व हराम है। मसलन कोई शख्स घर के एक कोने में बैठ कर इस तरह ज़िक्रो अज़कार व इबादत वगैरा में मसरूफ़ हो जाए कि जमाअत भी तर्क कर दे ,जुमुआ व ईदैन में भी सुस्ती हो जाए, कस्बे हलाल तर्क कर दे और उसे या उस के घरवालों को इस खल्वत की वज्ह से दूसरों के सामने हाथ फैलाना पड़े तो ऐसी खल्वत नाजाइज़ व हराम है।

हकीमुल उम्मत मुफ्ती अहमद यार ख़ान नईमी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْقَوِی फ़रमाते हैं मुसलमान दो किस्म के हैं एक वोह जिन्हें खल्वत बेहतर है, बा'ज़ वोह जिन के लिये जल्वत अफ़्ज़ल, इन दोनों में जल्वत वाले अफ़ज़ल हैं क्यूंकि खल्वत वाले सिर्फ अपनी इस्लाह करते हैं और जल्वत वाले दूसरों को भी दुरुस्त करते हैं।

हज़रते अली رضى الله تعالیٰ عنه फ़रमाते हैं कि तुम दुन्या में अपने दोस्त ज़ियादा बनाओ कि कल कियामत में मोमिन दोस्त शफाअत करेंगे और आप ने अपनी ताईद में येह आयत पढ़ी :
"فَمَالَنَامِنْ شَافِعِیْنَ(۱۰۰) وَلَاصَدِِیْقِِ حَمِیْمِِ(۱۰۱) "

कुफ्फारे मक्का अपने लिये शफ़ीअ और दोस्त न मिलने पर अफ़सोस करेंगे मगर ख़याल रहे कि बा'ज़ लोगों के लिये बा'ज़ हालात में बा'ज़ मकामात पर खल्वत अफ़ज़ल होती है अगर जल्वत में खुद अपने आप के गुनाहों में मश्गूल हो जाने का अन्देशा हो तो खल्वत बेहतर।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -153)

*खल्वत व गोशा नशीनी :*

*खल्वत व गोशा नशीनी के अहकाम :* हज़रते वह्ब رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه फ़रमाते हैं कि हिक्मत दस हिस्से हैं नव ख़ामोशी में एक खल्वत में। बेहतर येह है कि कभी ख़ल्वत इख़्तियार करे कभी जल्वत *خَیْرُالْاُمُوْرِاَوْسَطُھَا*(सब से बेहतर काम मियाना रवी वाला होता है) अरबी में तन्हाई को عُزْلَةٌٌ कहते हैं, आरिफ़ीन फ़रमाते हैं कि उज़्लत में अगर इल्म का "ऐन" न हो तो ज़िल्लत है और अगर ज़ोहद की *"ز"* न हो तो निरी इल्लत है या'नी खल्वत वोह इख्तियार करे जिस के पास इल्म भी हो जोहद भी।

आ'ला हज़रत इमामे अहले सुन्नत मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा ख़ान عَلَیْهِ رَحْمَةُاللّٰهِ الْحَنَّان से जब ख़ल्वत नशीनी के मुतअल्लिक़ सुवाल हुवा तो आप رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه ने इरशाद फ़रमाया आदमी तीन किस्म के हैं (1) मुफ़ीद, (2) मुस्तफ़ीद, (3) मुन्फ़रिद!

मुफीद वोह कि दूसरों को फ़ाएदा पहुंचाए, मुस्तफ़ीद वोह कि खुद दूसरे से फाएदा हासिल करे, मुन्फ़रिद वोह कि दूसरे से फ़ाएदा लेने की उसे हाजत न हो और न दूसरे को फ़ाएदा पहुंचा सकता हो। मुफीद और मुस्तफ़ीद को उज्लत गुज़ीनी (या'नी खल्वत) हराम है और मुन्फरिद को जाइज़ बल्कि वाजिब।
   
इमाम इब्ने सीरीन رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه का वाक़िआ बयान फ़रमा कर इरशाद फ़रमाया वोह लोग जो पहाड़ पर गोशा नशीन हो कर बैठ गए थे वोह खुद फाएदा हासिल किये हुए थे और दूसरों को फाएदा पहुंचाने की उन में काबिलिय्यत न थी उन को गोशा नशीनी जाइज़ थी और इमाम इब्ने सीरीन رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه पर उज़्लत (या'नी खल्वत) हराम थी।

📓 मल्फूजाते आ'ला हजरत, सफ़ह 373

    *दिल में हो याद तेरी गोशए तन्हाई हो*
     फिर तो ख़ल्वत में अजब अन्जुम आराई हो
    *सारा आलम हो मगर दीदह दिल देखे तुम्हें*
       अन्जुमन गर्म हो और लज़्ज़ते तन्हाई हो

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 147

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -154)

*खल्वत व गोशा नशीनी :*

*हिकायत - ख़ल्वत के फवाइद खल्वत नशीन राहिब की ज़बानी :* हज़रते सय्यिदुना अब्दुल वाहिद बिन यज़ीद عَلَیْهِ رَحْمَةُاللّٰهِ الْمَحِیْد फ़रमाते हैं एक मरतबा मैं एक राहिब के पास से गुज़रा जो लोगों से अलग थलग अपने सौमआ (या'नी इबादत खाने) में रहता था। मैं ने उस से पूछा ऐ राहिब ! तू किस की इबादत करता है?" कहने लगा "मैं उस की इबादत करता हूं जिस ने मुझे और तुझे पैदा किया। मैं ने पूछा उस की अज़मत व बुजुर्गी का क्या आलम है ?" उस ने जवाब दिया वोह बड़ी अज़मत व मर्तबत का मालिक है उस की अज़मत हर चीज़ से बढ़ कर है। मैं ने पूछा इन्सान को दौलते इश्क कब नसीब होती है? तो वोह कहने लगा जब उस की महब्बत बे गरज़ हो और वोह अपने मुआमले में मुख्लिस हो। मैं ने पूछा महब्बत कब ख़ालिस व बे गरज़ होती है उस ने जवाब दिया जब ग़म की कैफ़िय्यत तारी हो और वोह महबूब की इताअत में लग जाए। मैं ने कहा महब्बत में इख्लास की पहचान क्या है कहने लगा जब गमे फुर्कत (जुदाई के ग़म) के इलावा कोई और ग़म न हो। मैं ने पूछा तुम ने ख़ल्वत नशीनी को क्यूं पसन्द किया कहने लगा अगर तू तन्हाई व ख़ल्वत की लज़्ज़त से आशना हो जाए तो तुझे अपने आप से भी वहशत महसूस होने लगे!

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*खल्वत व गोशा नशीनी :*

*हिकायत - ख़ल्वत के फवाइद खल्वत नशीन राहिब की ज़बानी :* मैं ने पूछा इन्सान को ख़ल्वत नशीनी से क्या फ़ाएदा हासिल होता है राहिब ने जवाब दिया लोगों के शर से अमान मिल जाती है और उन की आमदो रफ़्त की आफ़त से जान छुट जाती है मैं ने कहा मुझे कुछ और नसीहत कर, तो वोह कहने लगा हमेशा हलाल रिज़्क खाओ फिर जहां चाहो सो जाओ तुम्हें गम व परेशानी न होगी। मैं ने पूछा राहत व सुकून किस अमल में है उस ने कहा खिलाफे नफ़्स काम करने में। मैं ने पूछा इन्सान को राहत व सुकून कब मयस्सर आएगा तो वोह कहने लगा जब वोह जन्नत में पहुंच जाएगा !

मैं ने पूछा ऐ राहिब तू ने दुन्या से तअल्लुक तोड़ कर इस सौमआ (या'नी इबादत खाना) को क्यूं इख्तियार कर लिया कहने लगा जो शख्स ज़मीन पर चलता है वोह औंधे मुंह गिर जाता है और दुन्यादारों को हर वक़्त चोरों का खौफ़ रहता है, पस मैं ने दुन्यादारों से तअल्लुक ख़त्म कर लिया और दुन्या के फ़ितना व फ़साद से महफूज रहने के लिये अपने आप को उस ज़ात के सिपुर्द कर दिया जिस की बादशाही ज़मीनो आस्मान में है दुन्यादार लोग अक्ल के चोर हैं पस मुझे खौफ़ हुवा कि येह मेरी अक्ल चुरा लेंगे और हक़ीक़ी बात येह है कि जब इन्सान अपने दिल को तमाम ख्वाहिशाते नफ़्सानिय्या और बुराइयों से पाक कर लेता है तो उस के लिये ज़मीन तंग हो जाती है (या'नी उसे दुन्या कैद खाना मालूम होती हैं)।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -156)

*ख़ल्वत व गोशा नशीनी :*

*हिकायत - ख़ल्वत के फवाइद खल्वत नशीन राहिब की ज़बानी :*  फिर वोह आस्मानों की तरफ़ बुलन्दी चाहता है और कुर्बे इलाही  عَزَّوَجَلَّ का मुतमन्नी (ख्वाहिश करने वाला) हो जाता है और इस बात को पसन्द करता है कि अभी फ़ौरन अपने मालिके हकीकी से जा मिले। फिर मैं ने उस से पूछा ऐ राहिब! तू कहां से खाता है कहने लगा मैं ऐसी खेती से अपना रिज़्क हासिल करता हूं जिसे मैं ने काश्त नहीं किया बल्कि उसे तो उस जात ने पैदा फ़रमाया है जिस ने येह चक्की या'नी दाढ़ें मेरे मुंह में नस्ब की, मैं उसी का दिया हुवा रिज़्क खाता हूं। मैं ने पूछा तुम अपने आप को कैसा महसूस करते हो कहने लगा उस मुसाफ़िर का क्या हाल होगा जो बहुत दुश्वार गुज़ार सफ़र के लिये बिगैर ज़ादे राह के रवाना हुवा हो, और उस शख्स का क्या हाल होगा जो अन्धेरी और वहशतनाक कब्र में अकेला रहेगा, वहां कोई ग़म ख्वार व मूनिस न होगा फिर उस का सामना उस अज़ीम व कहहार ज़ात से होगा जो अहकमुल हाकिमीन है जिस की बादशाही तमाम जहानों में है। इतना कहने के बाद वोह राहिब ज़ारो कितार रोने लगा। मैं ने पूछा तुझे किस चीज़ ने रुलाया कहने लगा मुझे जवानी के गुज़रे हुए वोह अय्याम रुला रहे हैं जिन में, मैं कुछ नेकी न कर सका और सफ़रे आखिरत में जादे राह की कमी मुझे रुला रही है क्या मा'लूम मेरा ठिकाना जहन्नम है या जन्नत?!

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 149

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -157)

*खल्वत व गोशा नशीनी :*

*हिकायत - खल्वत के फवाइद खल्वत नशीन राहिब की ज़बानी :* मैं ने पूछा गरीब कौन है कहने लगा गरीब और काबिले रहम वोह शख्स नहीं जो रोज़ी के लिये शहर ब शहर फिरे बल्कि गरीब (और काबिले रहम) तो वोह शख्स है जो नेक हो और फ़ासिकों में फंस जाए। बार बार सिर्फ (ज़बान से) इस्तिग़फ़ार करना (और दिल से तौबा न करना) तो झूटों का तरीका है, अगर ज़बान को मालूम हो जाता कि किस अज़ीम जात से मगफिरत तलब की जा रही है तो वोह मुंह में खुश्क हो जाती। जब कोई दुन्या से तअल्लुक काइम करता है तो मौत उस का तअल्लुक खत्म कर देती है। फिर कहने लगा अगर इन्सान सच्चे दिल से तौबा करे तो अल्लाह عزوجل उस के बड़े बड़े गुनाहों को भी मुआफ़ फ़रमा देता है और जब बन्दा गुनाहों को छोड़ने का अज़्मे मुसम्मम (पुख्ता इरादा) कर ले तो उस के लिये आस्मानों से फुतूहात उतरती हैं और उस की दुआएं कबूल की जाती हैं और इन दुआओं की बरकत से उस के सारे गम काफूर (दूर) हो जाते हैं। राहिब की हिक्मत भरी बातें सुन कर मैं ने उस से कहा मैं तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं, क्या तुम इस बात को पसन्द करोगे तो वोह राहिब कहने लगा मैं तुम्हारे साथ रह कर क्या करूंगा, मुझे तो उस खुदा عَزَّوَجَلَّ का कुर्ब नसीब है जो रज़्ज़ाक है और रूहों को कब्ज़ करने वाला है, वोही मौत व हयात देने वाला है, वोही मुझे रिज़्क देता है, कोई और ऐसी सिफात का मालिक हो ही नहीं सकता। (या'नी मुझे वोह ज़ात काफ़ी है, मैं किसी गैर का मोहताज नहीं)!

📓उ़यूनुल हिकायात,हिस्सए,सफ़ह 105
 
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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -158)

*ख़ल्वत व गोशा नशीनी :*

ख़ल्वत इख्तियार करने के तरीके :

*(1) ख़ल्वत से मुतअल्लिक बुज़ुर्गाने दीन के अक्वाल का मुतालआ कीजिये :* चन्द अक्वाल येह हैं : हज़रते सय्यदुना सहल رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه फ़रमाते हैं : ख़ल्वत, हलाल खाने के साथ दुरुस्त होती है और हलाल खाना उस वक़्त दुरुस्त होता है जब अल्लाह عزوجل का हक़ अदा किया जाए।

हज़रते सय्यिदुना जरीरी رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه फ़रमाते हैं : "गोशा नशीनी येह है कि तुम लोगों के हुजूम में दाखिल हो जाओ और अपने बातिन को उन की मुजाहमत (सामने आने) से महफूज़ रखो, अपने नफ़्स को गुनाहों से अलग रखो और तुम्हारा बातिन हक़ के साथ मरबूत (वाबस्ता) हो। कहा गया है कि "जिस ने गोशा नशीनी को तरजीह दी उस ने हक़ को पा लिया।

हज़रते सय्यिदुना जुन्नून मिस्री عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْقَوِی फरमाते हैं मैं ने ख़ल्वत से बढ़ कर कोई चीज़ इख्लास की तरगीब देने वाली नहीं देखी। हज़रते सय्यिदुना जुनैदे बगदादी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْھَادِی फ़रमाते हैं : "गोशा नशीनी की मशक्कत बरदाश्त करना लोगों के मेल जोल और मुदारात (अच्छी तरह पेश आने) से जियादा आसान है। हज़रते सय्यिदुना मक्हूल رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه फ़रमाते हैं अगर मख्लूक से मेल जोल में भलाई है तो गोशा नशीनी में सलामती है।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -159)

*खल्वत व गोशा नशीनी :*

ख़ल्वत इख्तियार करने के तरीके :

*(2) आदाबे ख़ल्वत की मालूमात हासिल कीजिये :* ख़ल्वत या'नी गोशा नशीनी के भी कुछ आदाब हैं, जब तक बन्दा उन आदाब को न बजा लाए उस वक्त तक ख़ल्वत इख्तियार न करे कि इस से नुक्सान का अन्देशा है चन्द आदाब येह हैं :

1. खल्वत व गोशा नशीनी इख्तियार करने वाले को चाहिये कि अव्वलन दुरुस्त अकाइद का इल्म हासिल करे ताकि शैतान उसे वस्वसों के जरीए बहका न सके, फिर ज़रूरी अहकामे शरइय्या की तफ़्सीली मालूमात हासिल करे ताकि उस के जरीए फराइज़ो वाजिबात की अच्छे तरीके से अदाएगी कर सके और खल्वत का मक्सदे हकीकी (या'नी रिजाए इलाही व इबादत पर इस्तिकामत) हासिल हो।
   
इल्मे अकाइद व मसाइल के बिगैर ख़ल्वत इख़्तियार करने वाला ऐसा है जैसे टेढ़ी बुन्याद पर इमारत खड़ी करने वाला कि वोह चाहे जितनी भी खूब सूरत इमारत काइम कर ले वोह कभी सीधी न होगी और हमेशा उस के गिरने का खतरा ही रहेगा, इसी तरह बिगैर इल्म के खल्वत इख़्तियार करने वाला भी कभी न कभी नफ्सो शैतान के शिकन्जे में आ कर गुमराही के अमीक (गहरे) गढे में गिर सकता है।
   
हज़रते सय्यिदुना इब्राहीम नख्ई عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْقَوِی ने एक गोशा नशीन से फ़रमाया पहले इल्म हासिल करो फिर गोशा नशीनी इख़्तियार करो।

📓इहयाउल उलूम ,8/200

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -160)

*ख़ल्वत व गोशा नशीनी :*

*(2) आदाबे ख़ल्वत की मालूमात हासिल कीजिये :* ख़ल्वत या'नी गोशा नशीनी के भी कुछ आदाब हैं, जब तक बन्दा उन आदाब को न बजा लाए उस वक़्त तक खल्वत इख्तियार न करे कि इस से नुक्सान का अन्देशा है, चन्द आदाब येह हैं :

2. खल्वत और गोशा नशीनी दर हक़ीक़त बुरी खस्लतों से दूर रहने का नाम है पस इस की गरज़ अपने आमाल में तब्दीली लाना है न कि अपनी ज़ात से ही दूर हो जाना, इसी लिये जब पूछा गया कि आरिफ़ कौन है ? तो सूफ़ियाए किराम رَحِھُمُ اللّٰهُ السَّلَام ने जवाबन इरशाद फ़रमाया जो ज़ाहिर में मख़्लूक के साथ होता है और बातिनी ए'तिबार से उन से जुदा होता है।

3. हज़रते सय्यिदुना अबू उस्मान मगरिबी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْقَوِی फ़रमाते हैं जो शख्स सोहबत पर ख़ल्वत को तरजीह देता है उसे चाहिये कि अल्लाह عزوجل के ज़िक्र के इलावा तमाम अज़कार को छोड़ दे और अपने रब की रिज़ा के इलावा तमाम इरादों से खाली हो जाए और अगर नफ़्स तमाम अस्बाब का मुतालबा करे तो उस से भी अलग हो जाए, अगर येह सूरत पैदा नहीं होती तो उस की ख़ल्वत उसे फ़ितने या आज़माइश में डाल देगी।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -161)

*ख़ल्वत व गोशा नशीनी :*

*(2) आदाबे ख़ल्वत की मालूमात हासिल कीजिये :* ख़ल्वत या'नी गोशा नशीनी के भी कुछ आदाब हैं, जब तक बन्दा उन आदाब को न बजा लाए उस वक़्त तक खल्वत इख्तियार न करे कि इस से नुक्सान का अन्देशा है, चन्द आदाब येह हैं :

4. हज़रते सय्यिदुना यहया बिन मुआज رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه फ़रमाते हैं येह देखो कि तुम्हें ख़ल्वत के साथ उन्स (महब्बत) है या खल्वत में तुम्हारा उन्स अल्लाह عزوجل के साथ है ? अगर तुम्हारा उन्स खल्वत के साथ है तो जब तुम खल्वत से निकलोगे तो तुम्हारा उन्स ख़त्म हो जाएगा और अगर तुम्हें खल्वत में अपने रब عزوجل के साथ उन्स होगा तो तुम्हारे लिये सहरा और जंगल तमाम जगहें बराबर होंगी।

5. खल्वत इख्तियार करने वाले के लिये ज़रूरी है कि दिल से उन तमाम वस्वसों को निकाल दे जो अल्लाह عزوجل के ज़िक्र से दूरी का सबब बनते हैं।

6. थोड़े रिज़्क पर कनाअत करे।

7. नेक औरत से शादी करे या नेक शख्स की सोहबत इख्तियार करे ताकि दिन भर ज़िक्रो अज़कार में मश्गुलिय्यत के बाद कुछ वक़्त इन के जरीए नफ़्स को आराम पहुंचा सके।

8. लम्बी ज़िन्दगी की आस न लगाए, सुब्ह इस हाल में करे कि शाम की उम्मीद न हो और शाम इस हाल में करे कि सुब्ह की उम्मीद न हो।

9. तन्हाई व गोशा नशीनी से जब दिल घबराए तो मौत और क़ब्र की तन्हाई को कसरत से याद करे।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -162)

*खल्वत व गोशा नशीनी :*

खल्वत इख्तियार करने के तरीके :

(3) खल्वत से मुतअल्लिक बुजुर्गाने दीन के अक्वाल व वाक़िआत का मुतालआ कीजिये : खल्वत के बारे में मुतालआ करने से खल्वत व गोशा नशीनी इख़्तियार करने और इस का ज़ेह्न बनाने में मुआवनत मिलेगी। इस सिलसिले में मक्तबतुल मदीना की मतबूआ हुज्जतुल इस्लाम इमाम मुहम्मद गज़ाली عَلَیْهِ رَحْمَةُاللّٰهِ الْوَالِی की माया नाज़ तस्नीफ़ इहयाउल उलूम,जि.2,स.799 का मुतालआ बहुत मुफीद है।

(4) खल्वत इख़्तियार करने की अच्छी अच्छी निय्यतें कर लीजिये : चन्द निय्यतें येह हैं : लोगों को अपने शर से बचाऊंगा। खुद को शरीरों के शर से महफूज़ रखूगा। मुसलमानों के हुकूक पूरा न करने की आफ़त से छुटकारा हासिल करूंगा। तमाम वक़्त ख़ालिसतन अल्लाह عزوجل की इबादत में मसरूफ़ रहूंगा।

इमाम गज़ाली عَلَیْهِ رَحْمَةُاللّٰهِ الْوَالِی  फ़रमाते हैं : “इन निय्यतों के साथ गोशा नशीन होने के बाद इन्सान को चाहिये कि मुस्तकिल इल्मो अमल और अल्लाह तआला के ज़िक्रो फ़िक्र में मश्गूल रहे ताकि गोशा नशीनी के समरात हासिल कर सके।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 154

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -163)

*खल्वत व गोशा नशीनी :*

*खल्वत इख्तियार करने के तरीके :*

(5) बुरे लोगों की सोहबत के नुक्सानात पर गौर कीजिये : जब कोई बुरी सोहबत के नुक्सानात पर गौर करेगा तो उन से दूर रहने और खल्वत इख़्तियार करने का मदनी जेहन बनेगा। बुरे लोगों की सोहबत के चन्द नुक्सानात येह हैं बन्दा आहिस्ता आहिस्ता ज़ाहिरी व बातिनी गुनाहों में मुब्तला हो जाता है! झूट, गीबत, चुगली, हसद, तकब्बुर, वा'दा ख़िलाफ़ी, रियाकारी, बुग्जो कीना, महब्बते दुन्या, तलबे शोहरत, ता'ज़ीमे उमरा, तहक़ीरे मसाकीन, ईज़ाए मुस्लिम, इत्तिबाए शह्वात, हिर्स, बुख़्ल, खियानत और कसावते कल्बी (दिल की सख्ती) जैसे ख़तरनाक अमराज में मुब्तला हो जाता है।

बसा अवकात बन्दा फराइजो वाजिबात व सुनने मुअक्कदा की अदाएगी भी नहीं कर पाता। बुरे लोगों के साथ रहने वाले को मुआशरे में इज्जत की निगाह से नहीं देखा जाता बुरे लोगों की सोहबत इख्तियार करने वाले को जिल्लतो रुस्वाई का सामना करना पड़ता है।

बुरे लोगों की सोहबत इख़्तियार करने वाले को भी उन में शुमार किया जाता है। बुरे लोगों की सोहबत इख़्तियार करने वाले और गुनाहों में मुब्तला होने वाले पर बुरे ख़ातिमे का भी ख़ौफ़ है क्यूंकि गुनाहों में मुब्तला होना बुरे ख़ातिमे के अस्बाब में से है। बुरे लोगों की सोहबत अल्लाह की नाराज़ी का सबब है। बुरे लोगों की सोहबत क़ब्रो हर की तकालीफ और मुश्किलात को दावत देती है। बुरे लोगों की सोहबत ईमान को तबाहो बरबाद करने वाली है।

अल गरज़ बुरे लोगों की सोहबत दुन्या व आख़िरत की बेशुमार तबाहियों व बरबादियों का मजमूआ है। लिहाजा इन तमाम नुक्सानात से बचने के लिये खल्वत इख़्तियार करना बेहतर है कि अमीरुल मोमिनीन हज़रते सय्यिदुना उमर फ़ारूके आ'ज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु का फ़रमान है गोशा नशीनी में बुरे साथी से नजात है।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -164)

*खल्वत व गोशा नशीनी :*

खल्वत इख्तियार करने के तरीके :

*6) खल्वत के दीनी व दुन्यवी फ़वाइद पेशे नज़र रखिये :* चन्द दीनी फ़वाइद येह हैं : खल्वत में बन्दा जल्वत से बसा अवक़ात ज़ियादा इबादत कर लेता है। खल्वत से इबादत पर इस्तिकामत नसीब होती है! खल्वत में बन्दा जल्वत के गुनाहों से महफूज़ हो जाता है। खल्वत में गोया बन्दा अल्लाह عزوجل और उस के हबीब ﷺ की सोहबत इख्तियार कर लेता है। खल्वत में बन्दा फुजूल गुफ़्त्गू से बच जाता है। खल्वत में बन्दा कई ज़ाहिरी व बातिनी गुनाहों से बच जाता है। खल्वत में बन्दा हुकूकुल इबाद की तलफ़ी से भी बच जाता है। खल्वत में जौको शौक के साथ मुतालआ करने का जज्बा पैदा होता है।

हज़रते सय्यिदुना शुऐब बिन हर्ब رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه फ़रमाते हैं कि मैं कूफ़ा में हज़रते सय्यिदुना मालिक बिन मसऊद رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه की बारगाह में हाज़िर हुवा वोह अपने घर में तन्हा थे। मैं ने अर्ज की आप तन्हाई में वहशत महसूस नहीं फरमाते इरशाद फरमाया मेरी समझ में नहीं आता कि कोई शख्स अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की सोहबत में वहशत कैसे महसूस कर सकता है!

चन्द दुन्यवी फवाइद येह हैं : बन्दा दुन्या की खूब सूरती की तरफ़ देखने से बच जाता है। लोग उस की तरफ़ मुतवज्जेह नहीं होते। वोह लोगों के माल में ख्वाहिश नहीं रखता। लोग उस के माल में ख्वाहिश नहीं रखते। मेल जोल की वज्ह से ख़त्म होने वाली मुरव्वत (लिहाज़ व रिआयत) बाकी रहती है। हम नशीन की बद अख़्लाक़ी से बन्दा बच जाता है। बन्दा लड़ाई झगड़े और फ़ितना व फ़साद से बच जाता है।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -165)

*खल्वत व गोशा नशीनी :*

खल्वत इख्तियार करने के तरीके :

 (7) हुब्बे जाह, हुब्बे मद्ह और तलबे शोहरत से बचिये : मकामो मर्तबे, अपनी तारीफ़, वाह वाह और लोगों में मशहूर होने की ख्वाहिशात येह तीनों वोह बातिनी अमराज़ हैं जो बन्दे को खल्वत इख्तियार नहीं करने देते, बन्दा अपने गिर्द लोगों के हुजूम को पसन्द करता है, अपनी तारीफ़ पर फूला नहीं समाता, इन की वज्ह से बन्दा तकब्बुर में भी मुब्तला हो जाता है, अल गरज़ खल्वत इख़्तियार करने के लिये इन तीनों अमराज़ से बचना निहायत ज़रूरी है इन की तफ़्सीली मा'लूमात, अस्बाब व इलाज के लिये मक्तबतुल मदीना की मतबूआ किताब *"बातिनी बीमारियों की मालूमात"* का मुतालआ कीजिये।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -166)

*खल्वत व गोशा नशीनी :*

खल्वत इख्तियार करने के तरीके :

(8) ख़ामोश मुबल्लिग बनने का जेह्न बना लीजिये : बा अमल मुसलमान ख़ामोश मुबल्लिग होता है क्यूंकि उस का अमल ही दूसरों के लिये तरगीब का सबब है, उस के अख़्लाक़ और किरदार हर एक के लिये वोह आईना होते हैं जिस में अपनी ज़ाहिरी और बातिनी ख़ामियों को देख कर संवारा जा सकता है। खामोश मुबल्लिग बनने का एक फाएदा येह भी है कि बन्दा लोगों के उयूब में गौरो फ़िक्र कर के हलाकत में पड़ने से बच जाता है क्यूंकि उस की नज़र सिर्फ अपनी ख़ामियों पर होती है और उन्हें दूर करने के लिये वोह हर कोशिश करता है और ऐसा मुबल्लिग नेकी की दा'वत देता है तो लोगों के दिल उसे बहुत जल्द कबूल कर लेते हैं, उसे अपनी गुफ़्तगू में तकल्लुफ़ करने की ज़रूरत पेश नहीं आती ,उस के चन्द जुम्ले ही लोगों की ज़िन्दगी बदलने के लिये काफ़ी होते हैं लिहाज़ा अगर आप खल्वत इख्तियार करना चाहते हैं तो खामोश मुबल्लिग बन जाइये ان شاء الله इस की कसीर बरकतें हासिल होंगी।

(9) अपनी ज़ात को निज़ामुल अवकात का पाबन्द कीजिये : हर काम के लिये एक वक्त मुकर्रर कर लीजिये और फिर उसे उस वक्त पर अन्जाम देने की भरपूर कोशिश कीजिये ,जो बन्दा अपने आप को निज़ामुल अवकात का पाबन्द नहीं बनाता ,हर काम को उस के वक्त में करने का आदी नहीं बनता ,फिर उस के तमाम काम अधूरे रह जाते हैं और उस के लिये खल्वत इख्तियार करना बहुत दुश्वार हो जाता है।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -167 )

*तवक्कुल :*

*तवक्कुल की तारीफ :-* तवक्कुल की इजमाली तारीफ़ यूं है कि अस्बाब व तदाबीर को इख्तियार करते हुए फ़क़त अल्लाह तबारक व तआला पर ए'तिमाद व भरोसा किया जाए और तमाम कामों को उस के सिपुर्द कर दिया जाए।
 
हज़रते सय्यिदुना इमाम गज़ाली عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْوَالِی ने तवक्कुल की तफ़्सीली तारीफ़ भी बयान फ़रमाई है जिस का खुलासा कुछ यूं है तवक्कुल दरअस्ल इल्म, कैफ़िय्यत और अमल तीन चीज़ों के मजमूए का नाम है।

यानी जब बन्दा इस बात को जान ले कि फ़ाइले हकीकी सिर्फ अल्लाह عزوجل है, तमाम मख्लूक़, मौत व ज़िन्दगी, तंग दस्ती व मालदारी, हर शै को वोह अकेला ही पैदा फ़रमाने वाला है बन्दों के काम संवारने पर उसे मुकम्मल इल्मो कुदरत है, उस का लुत्फ़ो करम और रहम तमाम बन्दों पर इजतिमाई ए'तिबार से और हर बन्दे पर इनफ़िरादी ए'तिबार से है उस की कुदरत से बढ़ कर कोई कुदरत नहीं उस के इल्म से जियादा किसी का इल्म नहीं, उस का लुत्फो करम और मेहरबानी बे हिसाब है, इस इल्म के नतीजे में बन्दे पर यकीन की ऐसी कैफ़िय्यत तारी होगी कि वोह एक अल्लाह عزوجل ही पर भरोसा करेगा, किसी दूसरे की जानिब मुतवज्जेह न होगा, अपनी ताकत व कुव्वत और जात की जानिब तवज्जोह न करेगा क्यूंकि गुनाह से बचने की ताकत और नेकी करने की कुव्वत फ़कत अल्लाह عزوجل ही की तरफ़ से है, तो इस इल्मो यक़ीन, इस से पैदा होने वाली कैफ़िय्यत और इस नतीजे में हासिल होने वाले भरोसे की मजमूई कैफ़िय्यत का नाम *“तवक्कुल*" है।

📓इहयाउल उलूम,4/745,780 मुलख्वसन

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -168)

*तवक्कुल :*

*आयते मुबारका :* अल्लाह عَزَّوَجَلَّ कुरआने मजीद फ़ुरकाने हमीद में इरशाद फ़रमाता है :

 وَ مَنْ یَّتَوَكَّلْ عَلَى اللّٰهِ فَهُوَ حَسْبُهٗؕ-           

*तर्जमए कन्जुल ईमान :* और जो अल्लाह पर भरोसा करे तो वोह उसे काफ़ी है।

अल्लाह عَزَّوَجَلَّ कुरआने मजीद में इरशाद फ़रमाता है। 

وَ عَلَى اللّٰهِ فَتَوَكَّلُوْۤا اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِیْنَ(23)

*तर्जमए कन्जुल ईमान :* और अल्लाह ही पर भरोसा करो अगर तुम्हें ईमान है।

*(हदीसे मुबारका :) रब तआला पर कामिल तवक्कुल करने का इन्आम -* दो जहां के ताजवर, सुल्ताने बहरो बर ﷺ का फ़रमाने अज़मत निशान है अगर तुम अल्लाह عَزَّوَجَلَّ पर इस तरह भरोसा करो जैसे उस पर भरोसा करने का हक़ है तो वोह तुम्हें इस तरह रिज़्क अता फ़रमाएगा जैसे परिन्दों को अता फ़रमाता है कि वोह सुब्ह के वक़्त खाली पेट निकलते हैं और शाम को सैर हो कर लौटते हैं।

📓फ़जाइले दुआ,सफ़ह 287

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -169)

*तवक्कुल :*

*तवक्कुल के अहकाम :* आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा ख़ान عَلَیْهِ رَحْمَةُالرَّحْمٰن फ़रमाते हैं अल्लाह عزوجل पर (मुतलक़) तवक्कुल करना फ़र्जे ऐन है। वाजेह रहे कि अस्बाब और तदाबीर को तर्क कर के गोशा नशीनी इख़्तियार कर लेने और कस्ब (या'नी रिज़्के हलाल कमाना) तर्क कर देने की शरअन इजाज़त नहीं है।

आला हज़रत رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه फ़रमाते हैं तवक्कुल तर्के अस्बाब का नाम नहीं बल्कि ए'तिमाद अलल अस्बाब का तर्क (तवक्कुल) है। या'नी अस्बाब को छोड़ देना तवक्कुल नहीं बल्कि अस्बाब पर ए'तिमाद न करने (व रब तआला पर ए'तिमाद करने) का नाम तवक्कुल है।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -170)

*तवक्कुल :*
 
*तवक्कुल के अहकाम :*

फिर मुतवक्किल के आ'माल की मुख्तलिफ़ सूरतें और उन के मुख़्तलिफ़ अहकाम हैं : अगर कोई शख्स ऐसे यक़ीनी अस्बाब को तर्क करे जो अल्लाह عزوجل के हुक्म से चीज़ों के साथ काइम हो चुके हैं और उन से जुदा नहीं होंगे तो वोह मुतवक्किल नहीं, मसलन सामने खाना रखा हो, भूक भी हो और खाने की ज़रूरत भी हो लेकिन बन्दा अपना हाथ उस की तरफ़ न बढ़ाए और यूं कहे *"मैं तवक्कुल करता हूं।"* तो ऐसा करना बे वुकूफ़ी और पागल पन है।

ऐसे गैर यक़ीनी अस्बाब को तर्क कर देना जिन के बारे में गालिब गुमान है कि चीजें उन के बिगैर हासिल नहीं हो सकतीं, मसलन कोई शख्स शहरों और काफ़िलों से जुदा हो कर सुनसान रास्ते पर सफ़र करे जिन पर कभी कभार ही कोई आता है तो अगर उस का सफ़र बिगैर ज़ादे राह के हो तो येह (आम शख्स के लिये) तवक्कुल नहीं है क्यूंकि बुजुर्गाने दीन رَحِمَھُمُ اللّٰهُ الْمُبِیْن का तरीका येह रहा है कि ऐसे रास्तों पर ज़ादे राह ले कर सफर करते और तवक्कुल भी बाकी रहता क्यूंकि उन का ए'तिमाद जादे राह पर नहीं बल्कि अल्लाह عزوجل के फज़्ल पर होता, अगर्चे ज़ादे राह के बिगैर सफ़र करना भी जाइज़ है लेकिन येह तवक्कुल का बुलन्द तरीन दरजा है और इसी मर्तबे पर फाइज़ होने की वज्ह से हज़रते सय्यिदुना इब्राहीम ख़वास رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه का सफ़र बिगैर जादे राह के होता था।
   
अगर कोई शख्स कमाने की बिल्कुल तदबीर न करे तो येह तवक्कुल नहीं बल्कि येह चीज़ तवक्कुल को बिल्कुल ख़त्म कर देती है। अलबत्ता अगर वोह अपने घर या मस्जिद में ऐसी जगह बैठ जाए जहां लोग उस की ख़बरगीरी करते हैं तो येह तवक्कुल के ख़िलाफ़ नहीं।

सुन्नत के मुताबिक़ रिज़्के हलाल कमाना तवक्कुल के खिलाफ़ नहीं जब कि उस का ए'तिमाद सामान और माल वगैरा पर न हो और उस की अलामत येह है कि वोह माल के चोरी या जाएअ होने पर गमज़दा न हो।

इयालदार शख्स का अपने अहले खाना के हक़ में तवक्कुल करना दुरुस्त नहीं, उन के लिये ब क़दरे हाजत कमाना ज़रूरी है, इसी तरह साल भर के लिये खाना वगैरा जम्अ कर के रखना भी तवक्कुल के मनाफ़ी नहीं। अलबत्ता तवक्कुल का आ'ला दरजा येह है कि बन्दा उस वक्त के लिये ज़रूरत के मुताबिक़ रख ले और बकिय्या माल ज़ख़ीरा न करे बल्कि फुकरा में तक़सीम कर दे।

अपने आप को तक्लीफ़ देह चीज़ों से बचाना भी तवक्कुल के खिलाफ नहीं।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -171)

*तवक्कुल :*

*हिकायत - तवक्कुल बेहतरीन चीज़ है :* हज़रते सय्यिदुना अब्दुल्लाह बिन सलाम रदियल्लाहु तआला अन्हु बयान फ़रमाते हैं कि मुझ से हज़रते सय्यिदुना सलमान फ़ारसी रदियल्लाहु तआला अन्हु ने फ़रमाया कि आइये हम और आप येह अहद करें कि हम दोनों में से जिस का भी पहले इन्तिकाल होगा वोह ख्वाब में आ कर दूसरे को अपना हाल बताएगा। मैं ने कहा क्या ऐसा हो सकता है तो आप रदियल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया हां ! मोमिन की रूह आज़ाद रहती है रूए जमीन में जहां चाहे जा सकती है। बा'दे अजां हज़रते सय्यिदुना सलमान फ़ारसी रदियल्लाहु तआला अन्हु का विसाल हो गया। मैं एक दिन कैलूला कर रहा था तो अचानक (ख्वाब में) हज़रते सलमान रदियल्लाहु तआला अन्हु मेरे सामने आ गए और बुलन्द आवाज़ से सलाम किया, मैं ने सलाम का जवाब दिया और उन से दरयाफ्त किया कि विसाल के बाद आप पर क्या गुज़री और आप किस मर्तबे पर हैं उन्हों ने फ़रमाया मैं बहुत ही अच्छे हाल में हूं और मैं आप को येह नसीहत करता हूं कि आप हमेशा अल्लाह तआला पर तवक्कुल करते रहें क्यूंकि, *तवक्कुल* बेहतरीन चीज़ है *तवक्कुल* बेहतरीन चीज़ है, *तवक्कुल* बेहतरीन चीज़ है।

📓करामाते सहाबा,सफ़ह 220

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -172)

*तवक्कुल :*

तवक्कुल का जेह्न बनाने और तवक्कुल पैदा करने के तरीके :  

(1) तवक्कुल की मा'लूमात हासिल कीजिये : जब तक बन्दे को किसी चीज़ के बारे में तफ्सीली मा'लूमात न हों उस चीज़ को इख़्तियार करना या उस का जेह्न बनाना बहुत मुश्किल है, तवक्कुल का जेह्न बनाने और उसे इख़्तियार करने के लिये भी तवक्कुल की मा'लूमात होना ज़रूरी है।तवक्कुल की मा'लूमात के लिये इहयाउल उलूम, जिल्द 4, स. 732 (मतबूआ मक्तबतुल मदीना), मुकाशफ़तुल कुलूब सफ़ह 512 (मतबूआ मक्तबतुल मदीना) से मुतालआ बहुत मुफीद है।

(2) रब तआला की कुदरते कामिला पर यक़ीन रखिये : बन्दा रिज़्क और दीगर ज़रूरिय्यात के मुतअल्लिक अल्लाह عَزَّوَجَلَّ के ज़ामिन और कफ़ील होने का तसव्वुर रखे और अल्लाह عَزَّوَجَلَّ के कमाले इल्म, उस की कमाले कुदरत का तसव्वुर करे और इस बात पर यकीन रखे कि अल्लाह عَزَّوَجَلَّ ख़िलाफ़े वा'दा, भूल, इज्ज़ और हर नक्स से मुनज़्ज़ा और पाक है जब हमेशा ऐसा तसव्वुर जेह्न में रखेगा तो ज़रूर उसे रिज़्क के बारे में रब तआला पर तवक्कुल की सआदत नसीब हो जाएगी।

📓मिन्हाजुल आ़बिदीन सफ़ह 289

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -173)

*तवक्कुल :*

तवक्कुल का जेह्न बनाने और तवक्कुल पैदा करने के तरीके :

(3) तवक्कुल व मुतवक्किल से मुतअल्लिक बुजुर्गाने दीन के अक्वाल का मुतालआ कीजिये.! चन्द अक्वाल येह हैं :- हज़रते सय्यिदुना सहल رحمتہ اللہ تعالیٰ علیہ ने फ़रमाया मुतवक्किल की तीन अलामात हैं सुवाल नहीं करता जब कोई उसे चीज़ दे तो रद नहीं करता और जब चीज़ पास आ जाए तो उसे जम्अ नहीं करता। ख़लीफ़ए आ'ला हज़रत, मुर्शिदे अमीरे अहले सुन्नत, कुतबे मदीना हज़रते अल्लामा मौलाना ज़ियाउद्दीन अहमद मदनी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْقَوِی इसी को इन अल्फ़ाज़ में बयान फ़रमाया करते थे तमअ नहीं, मन्अ नहीं, जम्अ नहीं।

📓सय्यिदी कुतबे मदीना,सफ़ह 12

हज़रते सय्यिदुना हमदून رحمتہ اللہ تعالی علیہ फ़रमाते हैं तवक्कुल अल्लाह तआला के साथ मजबूत तअल्लुक का नाम है। हज़रते सय्यिदुना सल बिन अब्दुल्लाह رحمتہ اللہ تعالی علیہ फ़रमाते हैं तवक्कुल का पहला मकाम येह है कि बन्दा अल्लाह तआला के सामने इस तरह हो जिस तरह मुर्दा गुस्ल देने वाले के सामने होता है, वोह उसे जिस तरह चाहे उलट पलट करता है।

हज़रते सय्यिदुना अबू अब्दुल्लाह करशी رحمتہ اللہ تعالی علیہ ने फ़रमाया हर वक़्त अल्लाह तआला से तअल्लुक काइम रहना तवक्कुल है। हज़रते सय्यिदुना इब्ने मसरूक رحمتہ اللہ تعالی علیہ फ़रमाते हैं अल्लाह तआला के फैसले और अहकाम के सामने सर झुकाना तवक्कुल है। हज़रते सय्यिदुना अबू उस्मान हीरी عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْقَوِی फ़रमाते हैं अल्लाह عَزَّوَجَلَّ पर ए'तिमाद करते हुए उसी पर इक्तिफा करना तवक्कुल है।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -174)

*तवक्कुल :*

तवक्कुल का जेह्न बनाने और तवक्कुल पैदा करने के तरीके :

(4) मुतवक्किल के आदाब का मुतालआ कीजिये : हुज्जतुल इस्लाम हज़रते सय्यिदुना इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْوَالِی ने मुतवक्किल के लिये घरेलू सामान से मुतअल्लिक दर्जे जैल 6 आदाब बयान फ़रमाए हैं :

*1 पहला अदब :-*  दरवाज़ा बन्द कर दे अलबत्ता ज़ियादा हिफ़ाज़ती इन्तिज़ामात न करे जैसे ताला लगाने के बा वुजूद पड़ोसी को देख भाल का कहना या कई ताले लगा देना।

*2 दूसरा अदब :-* घर में ऐसा सामान न रखे जो चोरों को चोरी पर आमादा करे कि येह उन के गुनाह में पड़ने का सबब होगा या उनकी दिल चस्पी का बाइस होगा!

*3 तिसरा अदब :-* बहालते मजबूरी कोई चीज़ छोड़ कर जाना पड़े तो येह निय्यत करे कि चोर को मुसल्लत करने का जो फैसला अल्लाह ने फ़रमाया है इस पर राज़ी हूं और यूं कहे चोर जो माल लेगा वोह उस के लिये हलाल है या वोह अल्लाह की रिज़ा के लिये मुबाह है और अगर चोर फ़क़ीर हुवा तो उस पर सदक़ा है बेहतर येह है कि फ़कीर की शर्त न लगाए!

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 163

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -175)

*तवक्कुल :*

तवक्कुल का जेह्न बनाने और तवक्कुल पैदा करने के तरीके :

*4 चौथा अदब :-* जब लौट कर आए और माल चोरी पाए तो गम न करे बल्कि मुमकिन हो तो खुश हो कर येह कहे अगर चोरी होने में बेहतरी न होती तो अल्लाह माल वापस न लेता। अगर माल वक्फ़ न किया था तो उसे ज़ियादा तलाश न करे, न किसी मुसलमान पर बद गुमानी करे। अगर वक़्फ़ की निय्यत के बाद वोह माल मिल जाए तो बेहतर येह है कि उसे क़बूल न करे और अगर क़बूल कर भी लिया तो फ़तवा की रू से जाइज़ है क्यूंकि फ़क़त निय्यत करने से मिल्किय्यत ख़त्म नहीं होती, अलबत्ता मुतवक्किलीन के नज़दीक येह अमल ना पसन्दीदा है।

*5 पांचवां अदब :-* चोर के लिये बद दुआ न करे, अगर बद दुआ करेगा तो तवक्कुल ख़त्म हो जाएगा, इस की वज्ह येह है कि उस ने चोरी होने को ना पसन्द किया और अफ्सोस किया यूं उस का जोहद ख़त्म हो गया और अगर बद दुआ की तो वोह सवाब भी न मिलेगा जो उस मुसीबत पर मिलता, फ़रमाने मुस्तफ़ा ﷺ जिस ने अपने ऊपर जुल्म करने वाले को बद दुआ दी उस ने बदला ले लिया।

*6 छटा अदब :-* इस बात पर ग़मगीन हो कि चोर चोरी कर के गुनाहगार हो और अज़ाबे इलाही का मुस्तहिक ठहरा और इस बात पर अल्लाह का शुक्र अदा करे कि वोह ज़ालिम के बजाए मज़लूम बना और उसे दुन्या का नुक्सान पहुंचा दीन का नहीं।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -176)

*तवक्कुल :*

तवक्कुल का जेह्न बनाने और तवक्कुल पैदा करने के तरीके : 

(5) हर वक़्त अल्लाह से पनाह मांगिये :- कि येह अमल तवक्कुल और उस में पुख्तगी पैदा करने में बहुत मुआविन है। हज़रते सय्यिदुना इमाम गज़ाली عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْوَالِی फ़रमाते हैं शैतान ख़बीस है और तेरी अदावत पर हर वक़्त कमरबस्ता है, तू उस लईन कुत्ते से बचने के लिये हर वक़्त अल्लाह से पनाह मांगता रहे और किसी वक़्त भी उस की मक्कारियों और अय्यारियों से गाफिल न हो, बल्कि अल्लाह के ज़िक्र से उस कुत्ते को भगा दे, जब तू मर्दाने खुदा जैसा अज्म व यक़ीन अपने अन्दर पैदा कर लेगा तो ब फज्ले खुदा उस लईन के दाऊ तुझे कुछ ज़रर नहीं पहुंचा सकेंगे। जैसा कि पारह 14 सूरतुन्नहल आयत 99 में रब तआला ने खुद फ़रमाया है :

*तर्जमए कन्जुल ईमान :-* "बेशक उस का कोई काबू उन पर नहीं जो ईमान लाए और अपने रब ही पर भरोसा रखते हैं।" या'नी “वोह शैतानी वस्वसे क़बूल नहीं करते!

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -177)

*तवक्कुल :*

तवक्कुल का जेह्न बनाने और तवक्कुल पैदा करने के तरीके : 

(6) तवक्कुल के फ़वाइद और फ़ज़ाइल पर गौर कीजिये : चन्द येह हैं :
 
तवक्कुल करने वाला अल्लाह तआला और उस के हबीब ﷺ के फ़रमान पर अमल पैरा होता है।  

तवक्कुल करने वाला लोगों से बे नियाज़ हो जाता है।

तवक्कुल करने वाले को अल्लाह عزوجل गैब से रिज़्क अता फ़रमाता है।

तवक्कुल करने वाले अल्लाह عزوجل को पसन्द हैं।

तवक्कुल करने वाले को दुन्या व आख़िरत की बे शुमार भलाइयां नसीब होती हैं।

तवक्कुल का सब से बड़ा फ़ाएदा येह है कि उस से ईमान महफूज़ हो जाता है क्यूंकि शैतान जब किसी के ईमान पर हम्ला आवर होता है तो सब से पहले उस का अल्लाह पर यकीन और भरोसा कमज़ोर कर देता है।
लिहाज़ा अगर आप अपने ईमान की हिफ़ाज़त करना चाहते हैं तो अल्लाह तआला पर कामिल भरोसा रखिये।

चुनान्चे, एक बुजुर्ग رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه फ़रमाते हैं कि मेरे एक दोस्त ने मुझ से ज़िक्र किया कि मेरी एक नेक आदमी से मुलाकात हुई तो मैं ने पूछा क्या हाल है ? उस ने जवाब दिया हाल तो उन का है जिन का ईमान महफूज़ है और वोह सिर्फ मुतवक्किलीन ही हैं जिन का ईमान महफूज़ है।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -178)

*तवक्कुल :*

तवक्कुल का जेह्न बनाने और तवक्कुल पैदा करने के तरीके :

(7) मुतवक्किलीन के वाक़िआत का मुतालआ कीजिये : कि जब बन्दा मुतवक्किलीन के वाकिआत का मुतालआ करेगा तो उस का भी तवक्कुल करने का ज़ेह्न बनेगा, इस सिलसिले में हुज्जतुल इस्लाम हज़रते सय्यिदुना इमाम मुहम्मद गज़ाली عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْوَالِی की माया नाज़ तस्नीफ़ *"इहयाउल उलूम"* जिल्द 4 ,सफ़हा 807 (मतबूआ मक्तबतुल मदीना) से मुतालआ कीजिये।

(8) मुतवक्किलीन की सोहबत इख़्तियार कीजिये : कि सोहबत असर रखती है, जब बन्दा तवक्कुल करने वालों की सोहबत इख़्तियार करता है तो उस का भी तवक्कुल का जेह्न बन जाता है और जो नाशुक्रे लोगों की सोहबत इख़्तियार करता है वोह भी वैसा ही बन जाता है, लिहाज़ा तवक्कुल की दौलत हासिल करने के लिये मुतवक्किलीन की सोहबत इख़्तियार करना बहुत ज़रूरी है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 166

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -179)

*तवक्कुल :*

तवक्कुल का जेह्न बनाने और तवक्कुल पैदा करने के तरीके :

(9) मख्लूक की मोहताजी से बचने का अज़्म कर लीजिये : कि इस तरह बन्दा मख्लूक से बे नियाज़ हो कर फ़क़त खालिक-ही पर भरोसा करेगा क्यूंकि तवक्कुल की बेशुमार बरकतों में से एक येह भी है कि बन्दा मख्लूक की मोहताजी से बच जाता है। जैसा कि हज़रते सय्यदुना सुलैमान खव्वास رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه ने फ़रमाया अगर कोई शख्स सिद्क निय्यत से अल्लाह तआला पर तवक्कुल करे, तो उमरा और गैर उमरा सब उस के मोहताज हो जाएंगे और वोह किसी का मोहताज नहीं होगा क्यूंकि उस का मालिक गनी व हमीद है।

(10) पुर सुकून और खुश हाल ज़िन्दगी पर नज़र रखिये : हमारी कामयाबी में ज़ेह्नी और कल्बी सुकून का बहुत बड़ा किरदार है ,जेह्नी और कल्बी तौर पर मुतमइन शख्स उमूमन पुर सुकून और खुश हाल ज़िन्दगी गुज़ारता है और तवक्कुल से ज़ेह्नी व कल्बी सुकून और राहत हासिल होती है। एक बुजुर्ग رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه फ़रमाते हैं कि मेरे शैख़ رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه अक्सर मजलिस में फ़रमाया करते थे अपनी तदबीर उस ज़ात के सिपुर्द कर दे जिस ने तुझे पैदा फ़रमाया है (या'नी फ़क़त अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त पर तवक्कुल कर) तू राहत पाएगा।

(11) रब तआला की बारगाह में तवक्कुल की दुआ कीजिये : कि उस की रहमत बहुत बड़ी है उस से जो मांगो वोह अपने फ़ज्ल से अता फ़रमाता है तवक्कुल की यूं दुआ मांगिये ऐ अल्लाह عَزَّوَجَلَّ मुझे अपने हबीब, हम गुनाहगारों के तबीब ﷺ के वसीले से तवक्कुल की दौलत अता फ़रमा मुझे अपने सिवा किसी का मोहताज न करना मुझे हर हर मुआमले में बस तेरी ही जात पर भरोसा करने की तौफ़ीक़ अता फरमा। आमीन

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 166

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -180)

*खुशूअ :*

खुशूअ की तारीफ : बारगाहे इलाही में हाज़िरी के वक़्त दिल का लग जाना या बारगाहे इलाही में दिलों को झुका देना *"खुशूअ"* कहलाता है।

आयते मुबारका : अल्लाह कुरआने मजीद में इरशाद फ़रमाता है : *तर्जमए कन्जुल ईमान :* "क्या ईमान वालों को अभी वोह वक़्त न आया कि उन के दिल झुक जाएं अल्लाह की याद और उस हक़ के लिये जो उतरा।

एक और मकाम पर इरशाद फ़रमाता है तर्जमए कन्जुल ईमान : बेशक मुराद को पहुंचे ईमान वाले, जो अपनी नमाज़ में गिड़गिड़ाते हैं।

*तफ्सीरे ख़ज़ाइनुल इरफ़ान में है :* बा'ज़ मुफ़स्सिरीन ने फ़रमाया कि नमाज़ में खुशूअ येह है कि उस में दिल लगा हुवा और दुन्या से तवज्जोह हटी हुई हो और नज़र जाए नमाज़ से बाहर न जाए और गोशए चश्म से किसी तरफ़ न देखे और कोई अबस काम न करे और कोई कपड़ा शानों पर न लटकाए इस तरह कि इस के दोनों कनारे लटकते हों और आपस में मिले न हों और उंगलियां न चटखाए और इस किस्म के हरकात से बाज़ रहे। बा'ज़ ने फ़रमाया कि खुशूअ येह है कि आस्मान की तरफ़ नज़र न उठाए। 

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 168

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -181)

*खुशूअ :*

हदीसे मुबारका : *जिस दिल में खुशूअ न हो उस से पनाह :* हज़रते सय्यिदुना ज़ैद बिन अरकम رضى الله تعالیٰ عنه से रिवायत है कि हुज़ूर नबिये करीम रऊफुर्रहीम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया ऐ अल्लाह عزوجل ! मैं उस दिल से पनाह मांगता हूं कि जिस में खुशूअ न हो।

*खुशूअ का हुक्म :* खुशूअ या'नी दिल का हाज़िर होना अल्लाह عزوجل की बहुत बड़ी ने'मत है, खुशूअ रिज़ाए इलाही पाने, नजात दिलाने और जन्नत में ले जाने वाला अमल है, जिसे अपने आ'माल में खुशूअ हासिल हो जाए गोया उसे इख्लास नसीब हो गया।

हुज्जतुल इस्लाम हज़रते सय्यिदुना इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْوَالِی फ़रमाते हैं खुशूअ या'नी दिल की हाज़िरी नमाज़ की रूह है और कम अज़ कम मिक्दार जिस से रूह बाक़ी रहे वोह तक्बीरे तहरीमा के वक़्त दिल का हाज़िर होना है और इस क़दर से भी कम हो तो हलाकत है इस से ज़ियादा जिस क़दर हुज़ूरे क़ल्ब होगा उसी क़दर रूह नमाज़ के अज्जा में फैलेगी और कितने ही ज़िन्दा लोग हैं जो हरकत नहीं कर सकते, वोह मुर्दो के करीब हैं, पस तक्बीरे तहरीमा के इलावा गाफ़िल उस ज़िन्दा की मिस्ल है जिस में हरकत नहीं।

वाज़ेह रहे कि खुशूअ को उमूमन नमाज़ के साथ ज़िक्र किया जाता है लेकिन येह आम है। हुज्जतुल इस्लाम हज़रते सय्यिदुना इमाम मुहम्मद गज़ाली عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْوَالِی फ़रमाते हैं जान लीजिये कि खुशूअ ईमान का फल और अल्लाह عزوجل के जलाल से हासिल होने वाले यक़ीन का नतीजा है। जिसे येह हासिल हो जाए वोह नमाज़ से बाहर बल्कि तन्हाई में भी खुशूअ अपनाता है, क्यूंकि खुशूअ का मूजिब (सबब व इल्लत) इस बात की पहचान है कि अल्लाह तआला बन्दे पर मुत्तल है नीज़ बन्दा अल्लाह عزوجل के जलाल और अपनी कोताही की मा'रिफ़त रखता है इन्ही बातों की पहचान से खुशूअ हासिल होता है और येह नमाज़ के साथ खास नहीं इसी लिये बा'ज़ बुजुर्गों के मुतअल्लिक़ मन्कूल है कि उन्हों ने अल्लाह عزوجل से हया करते और उस से डरते हुए 40 साल तक आस्मान की तरफ़ सर नहीं उठाया।

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -182)

*खुशूअ :*

हिकायत - *हर वक़्त खुशूअ में डूबे रहते :* मन्कूल है कि हज़रते सय्यिदुना रबीअ बिन खैसम رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه हमेशा सर और आंखें झुकाए रखते थे हत्ता कि बा'ज़ लोग आप को नाबीना समझते, आप 20 साल हज़रते सय्यिदुना अब्दुल्लाह बिन मसऊद رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْهُ के घर हाज़िर होते रहे, जब हज़रते सय्यिदुना इब्ने मसऊद رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْهُ की कनीज़ इन्हें आते देखती तो कहती आप के नाबीना दोस्त तशरीफ़ लाए हैं।

हज़रते सय्यिदुना अब्दुल्लाह बिन मसऊद رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْهُ उस की बात सुन कर मुस्कुरा देते। आप رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه जब दरवाज़ा बजाते, कनीज़ बाहर निकलती तो उन्हें सर और आंखें झुकाए देखती, हज़रते सय्यिदुना अब्दुल्लाह बिन मसऊद رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَنْهُ जब उन्हें देखते तो येह आयते मुबारका तिलावत फ़रमाते

*तर्जमए कन्जुल ईमान :* और ऐ महबूब ! खुशी सुना दो उन तवाज़ोअ वालों को। 

और फ़रमाते खुदा عَزَّوَجَلَّ की क़सम ! अगर हुजूरे अन्वर शाफेए महशर ﷺ तुम्हें देखते तो तुम से खुश होते।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 169

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -183)

*खुशूअ :*

हिकायत - *नमाज़ में खुशूअ व खुजूअ :* हज़रते सय्यिदुना आमिर बिन अब्दुल्लाह رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه निहायत ही खुशूअ से नमाज़ पढ़ते थे, जब आप नमाज़ पढ़ रहे होते तो अक्सर आप की बेटी दफ़ बजाती और घर में आने वाली औरतों से बातें करती लेकिन आप न उन की बातें सुनते और न ही समझ पाते। एक दिन आप رَحْمَةُاللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْه से पूछा गया क्या आप नमाज़ में अपने नफ़्स से कोई बात करते हैं तो फ़रमाया हां येह बात कि मैं अल्लाह तआला के सामने खड़ा हूं और मैं ने दो घरों में से एक घर में लौटना है। अर्ज की गई क्या हमारी तरह आप भी नमाज़ में उमूरे दुन्या में से कुछ पाते हैं? फ़रमाया मुझे नमाज़ में दुन्या के ख़यालात पैदा होने से येह बात ज़ियादा पसन्द है कि मुझ पर तीरों से हम्ला किया जाए।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 170

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -184)

*खुशूअ :*

आ'माल में खुशूअ पैदा करने के तरीके :-  

(1) खुशूअ के फ़ज़ाइल का मुतालआ कीजिये : चन्द फ़ज़ाइल येह हैं ; 

खुशूअ वालों की फजीलत क़ुरआन में बयान की गई है!

खुशूअ से नमाज़ अदा करने वाले के पिछले गुनाह बख़्श दिये जाते हैं।

खुशूअ से नमाज़ पढ़ने वाले की नमाज़ कामिल है।

खुशूअ से नमाज़ अदा करने वाले की नमाज़ मक्बूल है।

नमाज़ में खुशूअ की खुद हुज़ूर नबिये करीम ﷺ ने तरगीब दिलाई।

खुशूअ के साथ नमाज़ अदा करने वाला रब तआला के करीब हो जाता है।

खुशूअ के साथ नमाज़ अदा करने वाले की नमाज़ की तरफ़ रब तआला नज़रे रहमत फ़रमाता है।

खुशूअ के साथ दो रक्अत अदा करना बिगैर खुशूअ के पूरी रात क़ियाम करने से अफ़ज़ल हैl

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 171

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -185)

*खुशूअ :*

आ'माल में खुशूअ पैदा करने के तरीके :

(2) आ'ज़ा में खुशूअ पैदा कीजिये : कि येह दिल के खुशूअ पर दलालत करता है सरकारे मदीनए मुनव्वरा सरदारे मक्कए मुकर्रमा ﷺ ने एक शख्स को नमाज़ में अपनी दाढ़ी से खेलते देखा तो इरशाद फ़रमाया अगर उस के दिल में खुशूअ होता तो उस के आ'ज़ा में भी खुशूअ होता।

(3) खुशूअ से मुतअल्लिक बुजुर्गाने दीन के वाक़िआत का मुतालआ कीजिये : ऐसे वाक़िआत पढ़ने से आमाल में खुशूअ पैदा करने का मदनी ज़ेह्न बनेगा ,ऐसे वाक़िआत जानने के लिये हुज्जतुल इस्लाम हज़रते सय्यिदुना इमाम मुहम्मद   ग़ज़ाली عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْوَالِی की माया नाज़ तस्नीफ़ *"इहयाउल उलूम"* जिल्द 1 ,सफ़हा 529 (मतबूआ मक्तबतुल मदीना) से मुतालआ कीजिये।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 172

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -186)

*खुशूअ :*

आ'माल में खुशूअ पैदा करने के तरीके :

(4) दिल में नर्मी पैदा कीजिये : मौत से गफलत और ज़ियादा खाने से पेट भरने के सबब कसावते कल्बी (दिल में सख्ती) पैदा हो जाती है और येही सख्ती आ'माल में खुशूअ को रोकती है लिहाज़ा खुशूअ पैदा करने के लिये ज़रूरी है कि बन्दा अपने दिल में नर्मी पैदा करे, दिल में नर्मी पैदा करने का एक तरीका येह भी है कि बन्दा दिल की सख्ती के अस्बाब व इलाज की मा'लूमात हासिल करे, इस सिलसिले में मक्तबतुल मदीना की मतबूआ 352 सफ़हात पर मुश्तमिल किताब *"बातिनी बीमारियों की मा'लूमात"* सफ़हा 186 का मुतालआ बहुत मुफीद है।

(5) नमाज़ में जन्नत व जहन्नम का तसव्वुर काइम कीजिये : जन्नत व जहन्नम का तसव्वुर भी खुशूअ पैदा करने का एक बेहतरीन तरीका है चुनान्चे, मन्कूल है कि हज़रते सय्यिदुना हातिमे असम عَلَیْهِ رَحمَةُاللّٰهِ الْاَکْرَم से किसी ने उन की नमाज़ की कैफ़िय्यत के बारे में पूछा तो फ़रमाया जब नमाज़ का वक़्त आता है तो मैं कामिल वुज़ू करता हूं, फिर जिस जगह नमाज़ पढ़ने का इरादा होता है वहां आ कर बैठ जाता हूं यहां तक कि मेरे तमाम आ'ज़ा जम्अ हो जाते हैं, फिर येह तसव्वुर बांध कर नमाज़ के लिये खड़ा होता हूं कि का'बतुल्लाहिल मुशर्रफ़ा मेरे सामने, पुल सिरात पाउं तले, जन्नत मेरे दाई जानिब, जहन्नम बाई तरफ़ और मलकुल मौत عَلَیْهِ السَّلَام मेरे पीछे हैं और गुमान करता हूं कि येह मेरी आख़िरी नमाज़ है। फिर उम्मीद व खौफ़ की दरमियानी हालत में होता हूं, फिर हक़ीक़तन तक्बीरे तहरीमा कहता, ठहर ठहर कर क़िराअत करता, आजिज़ी के साथ रुकूअ और खुशूअ के साथ सजदा करता हूं, फिर इख्लास से काम लेता हू, इस के बाद मैं नहीं जानता कि मेरी नमाज़ क़बूल होती है या नहीं।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 172

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -187)

*खुशूअ :*

आ'माल में खुशूअ पैदा करने के तरीके :

(6) आंखों का कुफ्ले मदीना लगाइये : अपनी आंखों को हर गैर शरई मन्ज़र देखने से बचाइये कि बन्दा जो जो मनाज़िर देखता है वोह उस के दिल में नक्श हो जाते हैं, दिल गफ्लत का शिकार हो जाता है, जब भी कोई नेक अमल करने लगता है तो वोह मनाज़िर सामने आ जाते हैं और उस अमल में खुशूअ पैदा नहीं हो पाता, लिहाज़ा आ'माल में खुशूअ पैदा करने के लिये ज़रूरी है कि अपनी आंखों की हिफ़ाज़त कीजिये।

(7) कल्बी ख़यालात को दूर करने की कोशिश कीजिये : बसा अवकात दिल में तरह तरह के ख़यालात आते हैं जो खुशूअ पैदा नहीं होने देते, लिहाज़ा बन्दे को चाहिये कि उन कल्बी ख़यालात के अस्बाब पर गौर करे और उन्हें दूर करने की कोशिश करे कि जब अस्बाब दूर हो जाएंगे तो कल्बी ख़यालात भी दूर हो जाएंगे। नमाज़ में आंखें बन्द करना मकरूह है मगर जब खुली रहने में खुशूअ न होता हो तो बन्द करने में हरज नहीं बल्कि आंखें बन्द करना बेहतर है। या तारीक कमरे में नमाज़ पढ़े या अपने सामने कोई ऐसी चीज़ न रहने दे जो उस के हवास को मश्गूल करे या दीवार के करीब नमाज़ पढ़े ताकि नज़र ज़ियादा दूर तक न जाए और रास्तों में नमाज़ पढ़ने से बचे, इसी तरह नक्शो निगार वाली जगहों और रंगदार फ़र्श पर भी नमाज़ न पढ़े, उम्मीद है इस तरह कल्बी ख़यालात से काफ़ी हद तक हिफ़ाज़त होगी।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 173

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -188)

*ज़िक्रुल्लाह :*

*ज़िक्रुल्लाह की तारीफ :* ज़िक्र के मा'ना याद करना, याद रखना, चर्चा करना, खैर ख़्वाही और इज़्ज़तो शरफ़ के हैं। क़ुरआने करीम में ज़िक्र इन तमाम मा'नों में आया हुवा है। अल्लाह तआला को याद करना, उसे याद रखना, उस का चर्चा करना और उस का नाम लेना ज़िक्रुल्लाह कहलाता है।

📓मिरआतुल मनाजीह जिल्द 3 सफ़ह 304 मुलख्वसन

ज़िक्रुल्लाह की मुख्तलिफ़ अक्साम : ज़िक्रुल्लाह की तीन किस्में हैं

(1) ज़िक्रे लिसानी : कि बन्दा ज़बान से अल्लाह का ज़िक्र करे, इस में तस्बीह, तक़दीस, सना, हम्द, मद्ह, खुत्बा, तौबा  इस्तिग़फ़ार, दुआ वगैरा दाखिल हैं।

(2) ज़िक्रे कल्बी : कि बन्दा दिल से अल्लाह عَزَّوَجَلَّ का ज़िक्र करे, इस में अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की ने'मतों को याद करना, उस की अज़मत व किब्रियाई और उस के दलाइले कुदरत में गौर करना, उलमाए किराम رَحِمَھُمُ اللّٰهُ السَّلَام का इस्तिम्बाते मसाइल (क़ुरआनो हदीस से मसाइल अख़्ज़ करने) में गौरो फ़िक्र करना दाखिल है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 174

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -189)

*ज़िक्रुल्लाह :*

(3) ज़िक्र बिल जवारेह : कि बन्दा मुख़्तलिफ़ आ'जाए जिस्म से अल्लाह عزوجل का ज़िक्र करे। जैसे हज के लिये सफ़र करना, आंख का खौफे खुदा में रोना, कान का रब तआला का नाम सुनना नमाज़ तीनों किस्म के ज़िक्र पर मुश्तमिल है तस्बीह व तक्बीर सना व किराअत तो ज़िक्रे लिसानी है और खुशूअ व खुजूअ इख्लास ज़िक्रे कल्बी और क़ियाम रुकूअ व सुजूद वगैरा ज़िक्र बिल जवारेह है।

ज़िक्रुल्लाह बिल वासिता भी होता है और बिला वासिता भी। अल्लाह तआला की ज़ात व सिफ़ात का तजकिरा बिला वासिता ज़िक्रुल्लाह है। अल्लाह के महबूबों का महब्बत से चर्चा करना, उस के दुश्मनों का बुराई से ज़िक्र करना सब बिल वासिता ज़िक्रुल्लाह हैं। सारा क़ुरआने पाक ज़िक्रुल्लाह है मगर इस में कहीं तो अल्लाह عزوجل की ज़ात व सिफ़ात मजकूर हैं, कहीं हुज़ूर नबिये रहमत शफ़ीए उम्मत ﷺ के औसाफ़ व महामिद (ता'रीफें) कहीं कुफ़्फ़ार के (बतौरे मज़म्मत) तजकिरे, ज़िक्रुल्लाह बेहतरीन इबादत है इसी लिये अल्लाह عزوجل और उस के हबीब ﷺ ने इस का ताकीदी हुक्म इरशाद फ़रमाया है।

फिर ज़िक्र की मजीद दो सूरतें भी हैं : ① ज़िक्रे ख़फ़ी कि बन्दा दिल में या आहिस्ता आवाज़ से ज़िक्रुल्लाह करे।
② ज़िक्रे जली या ज़िक्र बिल जह्र कि बन्दा बुलन्द आवाज़ से ज़िक्रुल्लाह करे। बा'ज़ उलमा के नज़दीक ज़िक्रे ख़फ़ी अफ़ज़ल तो बा'ज़ के नज़दीक ज़िक्रे जली अफ़्ज़ल।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 175

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -190)

*ज़िक्रुल्लाह :*

*आयते मुबारका :* अल्लाह عَزَّوَجَلَّ क़ुरआने मजीद में इरशाद फ़रमाता है

*तर्जमए कन्जुल ईमान :* ऐ ईमान वालो अल्लाह को बहुत याद करो।

हदीसे मुबारका - *सब से जियादा महबूब अमल :* हज़रते सय्यिदुना मुआज़ बिन जबल رضى الله تعالیٰ عنه से रिवायत है फ़रमाते हैं कि मैं ने हुज़ूर नबिये रहमत शफ़ीए उम्मत ﷺ से अर्ज़ की अल्लाह عَزَّوَجَلَّ को कौन सा अमल सब से ज़ियादा महबूब है इरशाद फ़रमाया मरते दम तक तुम्हारी ज़बान ज़िक्रुल्लाह से तर रहे।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 175

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -191)

*ज़िक्रुल्लाह :*

*एक “या अल्लाह" में सो 100 “लब्बैक :* एक शख्स रात को ज़िक्रुल्लाह में मश्गूल था और उस की ज़बान पर अल्लाह-अल्लाह का विर्द जारी था। शैतान ने उस को झिड़क कर कहा ऐ कम बख़्त ! कब तक अल्लाह-अल्लाह की रट लगाए जाएगा। उधर से तो कोई जवाब नहीं मिलता और तू है कि मुसलसल उसी को पुकारे जा रहा है। शैतान की बात सुन कर उस शख्स का दिल टूट गया। सर झुकाया तो नींद आ गई। आलमे ख्वाब में देखा कि हज़रते सय्यिदुना खिज्र عَلٰی نَبِیِِّنَاوَعَلَیْهِ الصَّلٰوةُوَالسَّلَام तशरीफ़ लाए हैं और फ़रमा रहे हैं कि ऐ नेक बख़्त! तू ने अल्लाह عزوجل का ज़िक्र क्यूं छोड़ दिया ? उस ने कहा कि बारगाहे इलाही से मुझे कोई जवाब नहीं मिलता। इस लिये फ़िक्र मन्द हूं कि कहीं मेरे ज़िक्रुल्लाह को रद ही न कर दिया गया हो।

हज़रते सय्यिदुना खिज्र عَلٰی نَبِیِِّنَاوَعَلَیْهِ الصَّلٰوةُوَالسَّلَام ने फ़रमाया कि बारगाहे इलाही عَزَّوَجَلَّ से मुझ को हुक्म हुवा कि तेरे पास जाऊं और तुझ को बताऊं कि तू जो अल्लाह عزوجل का ज़िक्र करता है वोही हमारा जवाब है। तेरे दिल में जो सोजो गुदाज़ पैदा होता है, वोह हमारा ही तो पैदा किया हुवा है। और येह हमारा ही काम है कि तुझ को ज़िक्रुल्लाह में मश्गूल कर दिया है, तेरे हर *"या अल्लाह"* कहने में हमारी सो (100) *"लब्बैक"* पोशीदा हैं। سبحان الله

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 176

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -192)

*ज़िक्रुल्लाह :*

ज़िक्रुल्लाह का जेहन बनाने और करने के तरीके :

(1) ज़िक्रुल्लाह के फ़ज़ाइल व फ़वाइद का मुतालआ कीजिये :* चन्द फ़ज़ाइल येह हैं : ज़िक्रुल्लाह करने वाला खुश्क जंगल में सर सब्ज़ दरख्त की तरह है, ज़िक्रुल्लाह करने वाला मुजाहिद की तरह है। रहमते इलाही बन्दे के साथ होती है जब तक वोह अल्लाह عزوجل का ज़िक्र करता रहता है और उस के होंट ज़िक्रुल्लाह से हिलते रहते हैं। ज़िक्रुल्लाह से बढ़ कर अज़ाबे इलाही से नजात दिलाने वाला अमल कोई नहीं। ज़िक्रुल्लाह की कसरत करने वाले के लिये बागे जन्नत में आसूदगी की खुश खबरी है। सब से अफ़ज़ल अमल ज़िक्रुल्लाह है। सुब्हो शाम ज़िक्रुल्लाह से अपनी ज़बान को तर रखने वाला गुनाहों से पाक हो जाता है। ज़िक्रुल्लाह करने वाले के तमाम उमूर को अल्लाह عزوجل संवार देता है, उसे अपनी रहमत अता फ़रमाता और अपना दोस्त बना लेता है।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 177

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -193)

*ज़िक्रुल्लाह :*

ज़िक्रुल्लाह का जेहन बनाने और करने के तरीके :

(2) इजतिमाई ज़िक्र के फ़ज़ाइल का मुतालआ कीजिये : चन्द फ़ज़ाइल येह हैं : जो लोग अल्लाह عزوجل का ज़िक्र करने के लिये जम्अ होते हैं फ़िरिश्ते उन्हें घेर लेते और रहमत उन्हें ढांप लेती है और अल्लाह عزوجل फ़िरिश्तों के सामने उन का चर्चा करता है, जो लोग महज़ रिजाए इलाही के लिये अल्लाह عزوجل का ज़िक्र करने बैठते हैं तो आसमान से एक मुनादी निदा करता है कि मगफ़िरत याफ्ता हो कर लौट जाओ तुम्हारे गुनाह नेकियों में बदल दिये गए हैं, जिन घरों में अल्लाह عزوجل का ज़िक्र होता है अहले आसमान उन घरों को ऐसे देखते हैं जैसे तुम सितारों को देखते हो।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 177

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नजात दिलाने वाले आ'माल की मालूमात (Part -194)

*ज़िक्रुल्लाह :*

ज़िक्रुल्लाह का जेहन बनाने और करने के तरीके :

(3) कलिमए तय्यिबा के जरीए ज़िक्रुल्लाह कीजिये :  अहादीसे मुबारका में इस के बहुत फ़ज़ाइल बयान हुए हैं, चन्द फ़ज़ाइल येह हैं "لَا اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ" पढ़ने वाले को क़ब्रो हश्र में कोई वहशत न होगी। जो शख़्स कामिल वुज़ू कर के आस्मान की तरफ़ निगाह उठा कर कहे :

 "اَشْھَدُ اَنْ لَّاَ اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ وَحْدَہٗ لَاشَریك‎َ لَهُ وَاَشْھَدُ اَنَّ مُحَمَّدًا عَبدُہٗ وَرَسُوْلُهُ"

तो उस के लिये जन्नत के आठों दरवाजे खोल दिये जाते हैं जिस से चाहे दाखिल हो जाए। 

जो शख़्स रोज़ाना 100 बार येह कलिमात पढ़ता है :

"لَا اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ وَحْدَہٗ لَا شَرِیْك‎َ لَهُ لَهُ الْمُلْك‎ُ وَلَهُ الْحَمْدُ وَھُوَ عَلیٰ کُلِّ شَیْءٍ قَدِیْرُٗ" 

तो उसे दस गुलाम आज़ाद करने का सवाब मिलता है, उस के नामए आ'माल में 100 नेकियां लिखी जाती और 100 गुनाह मिटा दिये जाते हैं, वोह उस दिन शाम तक शैतान से महफूज़ रहता है और उस से बढ़ कर किसी और का अमल नहीं होता मगर येह कि कोई शख्स उस से ज़ियादा कलिमात पढ़े। 

सच्चे दिल से "لَا اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ" पढ़ने वाला अगर ज़मीन भर गुनाह ले कर आए फिर भी अल्लाह عزوجل उस की मगफ़िरत फ़रमा देगा। जिस ने इख्लास के साथ "لَا اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ" कहा वोह दाखिले जन्नत हुवा।

📗 नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात, सफ़ह - 179 

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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ 💚

 الصلوۃ والسلام علیک یاسیدی یارسول الله ﷺ  सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 01) * सीरत क्या है.!? * कुदमाए मुहद्दिषीन व फुकहा "मग़ाज़ी व सियर...