៚ हर मर्द व औरत पर लाज़िम है कि बुरी खुस्लतों और ख़राब आदतों से अपने आप को और अपने अहलो इयाल को बचाए रखे और नेक ख़स्लतों और अच्छी आदतों को खुद भी इख़्तियार करे और अपने सब मुतअल्लिक़ीन को भी इस पर कारबन्द होने की इन्तिहाई ताकीद करे! यूं तो अच्छी आदतों और बुरी आदतों की तादाद बहुत ज़ियादा है मगर हम यहां उन चन्द बुरी ख़स्लतों और ख़राब आदतों का जिक्र करते हैं। जिन में अकसर मुसलमान खुसूसन औरतें गिरिफ्तार हैं। उन बुरी आदतों की वजह से लोग अपने दीनो दुन्या को तबाहो बरबाद कर के दोनों जहां की सआदतों से महरूम हो रहे हैं।
*⇩ (1)... गुस्सा ⇩*
៚ बे महल और बे मौक़अ् बात पर ब कसरत गुस्सा करना,येह बहुत ख़राब आदत है। अकसर ऐसा होता है कि इन्सान गुस्से में आ कर दुन्या के बहुत से बने बनाए कामों को बिगाड़ देता है और कभी कभी गुस्से की झल्लाहट में खुदावन्दे करीम की ना शुक्री और कुफ़्र का कलिमा बकने लगता है। और अपने ईमान की दौलत को गारत और बरबाद कर डालता है।
៚ इसी लिये रसूलुल्लाह ﷺ ने अपनी उम्मत को बे महल और बात बात पर गुस्सा करने से मन्आ फ़रमाया। चुनान्चे हदीस शरीफ़ में है कि एक शख़्स बारगाहे नुबुव्वत में हाज़िर हुवा और अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ मुझे किसी अमल का हुक्म दीजिये मगर बहुत ही थोड़ा हो तो आप ने इरशाद फ़रमाया कि *"गुस्सा मत कर"* उस ने कहा कि कुछ और इरशाद फ़रमाइये तो आप ने फिर येही फ़रमाया कि *“गुस्सा मत कर”* ग़रज़ कई बार उस शख़्स ने दरयाफ्त किया मगर हर मरतबा आप ﷺ ने येही फ़रमाया कि *"गुस्सा मत कर"* येह बुख़ारी शरीफ़ की हदीष है।
៚ एक हदीष में आया है कि रसूले खुदा ﷺ इरशाद फ़रमाया कि पहलवान वोह नहीं है जो लोगों को पछाड़ देता है बल्कि पहलवान वोह है जो गुस्से की हालत में अपने नफ्स पर काबू रखे।
*📬 जन्नती जे़वर - 107 📚*
៚ गुस्से के मुआमले में यहां येह बात अच्छी तरह समझ लो कि गुस्सा बजाते खुद न अच्छा है न बुरा। दर हक़ीक़त गुस्से की अच्छाई और बुराई का दारो मदार मौक़अ और महल की अच्छाई और बुराई पर है अगर बे महल गुस्सा किया और इस के अषरात बुरे ज़ाहिर हुए तो येह गुस्सा बुरा है और अगर बर महल गुस्सा किया और इस के अषरात अच्छे ज़ाहिर हुए तो येह गुस्सा अच्छा है।
៚ मषलन किसी भूके प्यासे दूध पीते बच्चे के रोने पर तुम को गुस्सा आ गया और तुम ने बच्चे का गला घोंट दिया तो चूंकि तुम्हारा येह गुस्सा बिल्कुल ही बे महुल है इस लिये येह गुस्सा बुरा है और अगर किसी डाकू को डाका डालते वक़्त देख कर तुम को गुस्सा आ गया और तुम ने बंदूक चला कर उस डाकू का ख़ातिमा कर दिया तो चूंकि तुम्हारा येह गुस्सा बिल्कुल बर महल है!लिहाजा येह गुस्सा बुरा नहीं बल्कि अच्छा है।
៚ हदीष शरीफ़ में जिस गुस्से की मज़म्मत और बुराई बयान की गई है। येह वोही गुस्सा है जो बे महल हो और जिस के अषरात बुरे हों। बिल्कुल ज़ाहिर बात है कि गुस्से में रहम की जगह बे रहमी और अद्ल की जगह जुल्म, शुक्र की जगह ना शुक्री, ईमान की जगह कुफ़्र हो तो भला कौन कह सकता है कि येह गुस्सा अच्छा है?यक़ीनन येह गुस्सा बुरा है और येह बहुत ही बुरी ख़स्लत और निहायत ही ख़राब आदत है इस से बचना हर मुसलमान मर्द व औरत के लिये लाज़िम है।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 107 📚*
៚ जब बे महल गुस्से की झल्लाहट आदमी पर सुवार हो जाए तो रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि उस को चाहिये कि वोह फ़ौरन ही वुज़ू करे, इस लिये कि बे-महल और मुज़िर गुस्सा दिलाने वाला शैतान है और शैतान आग से पैदा किया गया है और आग पानी से बुझ जाती है इस लिये वुज़ू गुस्से की आग को बुझा देता है।
៚ और एक हदीष में येह भी आया है कि अगर खड़े होने की हालत में गुस्सा आ जाए तो आदमी को चाहिये कि फ़ौरन बैठ जाए तो गुस्सा उतर जाएगा। और अगर बैठने से भी गुस्सा न उतरे तो लैट जाए ताकि गुस्सा ख़त्म हो जाए।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 108 📚*
៚ किसी को खाता पीता या फलता फूलता आसूदा हाल देख कर दिल जलाना और उस की नेमतों के ज़वाल की तमन्ना करना इस ख़राब जज़्बे का नाम *"हसद"* है।
៚ येह बहुत ही ख़बीश आदत और निहायत ही बुरी बला और गुनाहे अज़ीम है हसद करने वाले की सारी ज़िन्दगी जलन और घुटन की आग में जलती रहती है और इसे चैन और सुकून नसीब नहीं होता।
៚ अल्लाह तआला ने कुरआने मजीद में अपने प्यारे रसूल ﷺ को हुक्म दिया है कि : हसद करने वाले के हसद से आप खुदा की पनाह मांगते रहिये।
៚ और रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि : हसद नेकियों को इस तरह खा जाता है जिस तरह आग लकड़ी को खा लेती है।
៚ और हुजूर ﷺ ने येह भी फ़रमाया है कि तुम लोग एक दूसरे पर हसद न करो और एक दूसरे से क़तए तअल्लुक न करो और एक दूसरे से बुग्ज़ न रखो।
៚ हसद इस लिये भी बहुत बड़ा गुनाह है कि हसद करने वाला गोया अल्लाह तआला पर ए'तिराज़ कर रहा है कि फुलां आदमी इस ने'मत के क़ाबिल नहीं था, उस को येह ने'मत क्यूं दी है ? अब तुम खुद ही समझ लो कि अल्लाह तआला पर कोई ए'तिराज़ करना कितना बड़ा गुनाह होगा।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 109 📚*
*⇩ हसद का इलाज ⇩*
៚ हज़रते इमाम गज़ाली عليه رحمةاللّٰه الوالي ने फ़रमाया है कि हसद कल्ब की बीमारियों में से एक बहुत बड़ी बीमारी है और इस का इलाज येह है कि हसद करने वाला ठंडे दिल से येह सोच ले कि मेरे हसद करने से हरगिज़ हरगिज़ किसी की दौलत व ने'मत बरबाद नहीं हो सकती।
៚ और मैं जिस पर हसद कर रहा हूं मेरे हसद से उस का कुछ भी नहीं बिगड़ सकता बल्कि मेरे हसद का नुक्सान दीनो दुन्या में मुझ को ही पहुंच रहा है कि मैं ख़्वाह मे ख़्वाह दिल की जलन में मुब्तला हूं और हर वक़्त हसद की आग में जलता रहता हूं और मेरी नेकियां बरबाद हो रही हैं और मैं जिस पर हसद कर रहा हूं मेरी नेकियां क़ियामत में उस को मिल जाएंगी।
៚ फिर येह भी सोचे कि मैं जिस पर हसद कर रहा हूं उस को खुदावन्दे करीम ने येह ने'मतें दी हैं और इस पर नाराज़ हो कर हसद में जल रहा हूं तो मैं गोया खुदावन्दे तआला के फ़े’ल पर ए'तिराज़ कर के अपना दीनो ईमान ख़राब कर रहा हूं।
៚ येह सोच कर फिर अपने दिल में इस ख़याल को जमाए कि अल्लाह तआला अलीमो हकीम है जो शख़्स जिस चीज़ का अहल होता है अल्लाह तआला उस को वोही चीज़ अता फरमाता है मैं जिस पर हसद कर रहा हूं।
៚ अल्लाह के नज़दीक चूंकि वोह इन नेमतों का अहल था, इस लिये अल्लाह तआला ने उस को येह ने'मतें अता फ़रमाई हैं और मैं इन का अहल नहीं था इस लिये अल्लाह तआला ने मुझे नहीं दीं। इस तरह हसद का मरज़ दिल से निकल जाएगा और हासिद को हसद क जलन से नजात मिल जाएगी। सच हैं.. 👇🏻
*उस के अलताफ़ तो हैं आम शहीदी सब*
*पर तुझ से क्या ज़िद थी अगर तू किसी काबिल होता*
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 110 📚*
៚ येह बहुत ही बुरी ख़स्लत और निहायत ख़राब आदत है अल्लाह तआला की तरफ़ से बन्दे को जो रिज़क व ने'मत और मालो दौलत या जाहो मर्तबा मिला है इस पर राज़ी हो कर कनाअत कर लेना चाहिये।
៚ दूसरों की दौलतों और ने'मतों को देख देख कर खुद भी उस को हासिल करने के फैर में परेशान हाल रहना और ग़लत व सहीह हर किस्म की तदबीरों में दिन रात लगे रहना येही जज़्बए हिर्स व लालच कहलाता है और हिर्स व तम दर हक़ीक़त इन्सान की एक पैदाइशी खुस्लत है।
៚ चुनान्चे हदीष शरीफ़ में है कि अगर आदमी के पास दो मैदान भर कर सोना हो जाए तो फिर वोह एक तीसरे मैदान को तलब करेगा कि वोह भी सोने से भर जाए और इब्ने आदम के पेट को कब्र की मिट्टी के सिवा कोई चीज़ नहीं भर सकती और जो शख़्स इस से तौबा करे अल्लाह तआला उस की तौबा को क़बूल फ़रमा लेगा।
៚ और एक हदीष में है कि इब्ने आदम बूढ़ा हो जाता है मगर उस की दो चीजें जवान रहती हैं एक *उम्मीद* दूसरी माल की *महब्बत* लालच और हिर्स का जज़्बा खुराक, लिबास, मकान, सामान, दौलत, इज़्ज़त, शोहरत गरज़ हर ने'मत में हुवा करता है।
៚ अगर लालच का जज़्बा किसी इन्सान में बढ़ जाता है तो वोह इन्सान तरह तरह की बद अखलाकियो और बे मुरव्वती के कामों में पड़ जाता है और बड़े से बड़े गुनाहों से भी नहीं चूकता बल्कि सच पूछिये तो हिर्स व तमअ़ और लालच दर हक़ीक़त हज़ारों गुनाहों का सर चश्मा है इस से खुदा की पनाह मांगनी चाहिये।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 111 📚*
៚ इस कल्बी मरज़ का इलाज सब्रो क़नाअत है या'नी जो कुछ ख़ुदा की तरफ़ से बन्दे को मिल जाए इस पर राज़ी हो कर खुदा का शुक्र बजा लाए और इस अक़ीदे पर जम जाए कि इन्सान जब मां के पेट में रहता है उसी वक़्त फ़िरिश्ता खुदा के हुक्म से इन्सान की चार चीजें लिख देता है। इन्सान की उम्र, इन्सान की रोज़ी, इन्सान की नेक नसीबी, इन्सान की बद नसीबी, येही इन्सान का नविश्तए तक़दीर है।
៚ लाख सर मारो मगर वोही मिलेगा जो तक़दीर में लिख दिया गया है इस के बा'द येह समझ कर कि खुदा की रिज़ा और उस की अता पर राज़ी हो जाओ और येह कह कर लालच के किलए को ढा दो कि जो मेरी तक़दीर में था वोह मुझे मिला और जो मेरी तक़दीर में होगा वोह आयिन्दा मिलेगा और अगर कुछ कमी की वजह से क़ल्ब में तक्लीफ़ हो और नफ़्स इधर उधर लपके तो सब्र कर के नफ़्स की लगाम खींच लो। इसी तरह रफ़्ता रफ़्ता क़ल्ब में कनाअत का नूर चमक उठेगा और हिर्स व लालच का अन्धेरा बादल छट जाएगा। *याद रखो..!!* हिर्स जिल्लत भरी फकिरी हैं जो क़नाअत करे तवंगर हैं।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 112 📚*
៚ बखीली बहुत ही मन्हूस खस्लत है। बखील माल रखते हुए खाने पीने, पहनने ओढ़ने, वतन और सफ़र हर जगह हर हाल में हर चीज़ हर किस्म की तक्लीफें उठाता है और हर जगह ज़लील होता है और कोई भी इस को अच्छी नज़र से नहीं देखता है।रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया है कि सखी अल्लाह से क़रीब है जन्नत से क़रीब है इन्सानों से क़रीब है जहन्नम से दूर है और बखील अल्लाह से दूर है जन्नत से दूर है इन्सानों से दूर है जहन्नम से क़रीब है और यक़ीनन सखी जाहिल, इबादत गुज़ार बखील से जियादा अल्लाह को प्यारा है।
៚ और हुज़ूरे अकरम ﷺ ने यह भी फ़रमाया है कि धोकेबाज़ और बखील और एहसान जताने वाला जन्नत में नहीं दाख़िल होगा और येह भी हदीष में आया है कि दो ख़स्लतें ऐसी हैं जो दोनों एक साथ मोमिन में इकठ्ठा जम्अ नहीं होंगी। एक *कन्जूसी* दूसरी *बद अख़लाक़ी* हदीष का मतलब येह है कि येह दोनों ख़स्लतें बुरी हैं और येह दोनों बुरी खस्लतें मोमिन में एक साथ नहीं पाई जाएंगी मोमिन अगर बख़ील होगा तो बद अख़्लाक़ नहीं होगा और अगर बद अख़लाक़ होगा तो बख़ील नहीं होगा और अगर तुम किसी ऐसे मन्हूस आदमी को देखो कि वोह बख़ील भी है और बद अख़्लाक़ भी है तो समझ लो कि उस के ईमान में कुछ फुतूर ज़रूर है और येह कामिल दरजे का मुसलमान नहीं है।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 112 📚*
៚ हज़रते इमाम गज़ाली अलेही रहमतुल्लाहि ने फ़रमाया कि कन्जूसी एक ऐसा मरज़ है कि इस का इलाज बेहद दुश्वार है खुसूसन बुड्ढा आदमी बखील हो तो वोह तक़रीबन ला इलाज है और कन्जूसी का सबब माल की महब्बत है जब तक माल की महब्बत दिल से ज़ाइल नहीं होगी कन्जूसी की बीमारी रफ़्अ नहीं हो सकती फिर भी इस के दो इलाज बहुत ही कामयाब और कार आमद हैं और वोह येह हैं अव्वल येह कि आदमी सोचे कि माल के मक़ासिद क्या हैं ?
៚ और मैं किस लिये पैदा किया गया हूं? और मुझे दुन्या में माल जम्अ करने के साथ साथ कुछ आलमे आखि़रत के लिये भी ज़खीरा जम्अ करना चाहिये जब येह ख़याल दिल में जम जाएगा तो फिर दिल में दुन्या की बे षबाती और आलमे आखि़रत का ध्यान पैदा होगा और ना गहां दिल में एक ऐसा नूर पैदा हो जाएगा कि दुन्या से और दुन्या के मालो अस्बाब से बे रगबती और नफ़रत पैदा होने लगेगी फिर बखीली और कन्जूसी की बीमारी खुद ब खुद दफ़्अ हो जाएगी और जज़्बए सखावत इस तरह पैदा हो जाएगा कि खुदा की राह में माल खर्च करते हुए उस को लज़्ज़त महसूस होने लगेगी।
៚ और दूसरा इलाज येह है कि बखीलों और सखी लोगों की हिकायात पढ़े और आलिमों से ब कषरत इस क़िस्म के वाक़िआत सुनता रहे कि बखीलों का अन्जाम कितना बुरा हुवा है और सखी लोगों का अन्जाम कितना अच्छा हुवा है इस क़िस्म के वाकिआत व हिकायात पढ़ते पढ़ते,सुनते सुनते बख़ीली से नफ़रत और सखावत की रगबत दिल में पैदा हो जाती है और रफ़्ता रफ़्ता कन्जूसी का मरज़ ज़ाइल हो जाता है।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 113 📚*
*⇩ (5) तकब्बुर ⇩*
៚ येह शैतानी ख़स्लत इतनी बुरी और इस क़दर तबाह कुन आदत है कि येह भूत बन कर जिस इन्सान के सर पर सुवार हो जाए समझ लो कि उस की दुन्या व आखि़रत की तबाही यक़ीनी है शैतान अपनी इस मन्हूस ख़स्लत की वजह से मरदूदे बारगाहे इलाही अज्जवजल हुवा। और खुदावन्दे क़ह्हार व जब्बार ने ला'नत का तौक़ उस के गले में पहना कर उस को जन्नत से निकाल दिया।
៚ तकब्बुर के मा'नी येह हैं कि आदमी दूसरों को अपने से हक़ीर समझे येही जज़्बा शैताने मलऊन के दिल में पैदा हो गया था कि जब अल्लाह तआला ने हज़रते आदम अलैहिस्सलाम के सामने फ़िरिश्तों को सजदा करने का हुक्म फ़रमाया तो फ़िरिश्ते चूंकि तकब्बुर की नुहूसत से पाक थे सब फ़िरिश्तों ने सजदा कर लिया लेकिन शैतान के सर में तकब्बुर का सौदा समाया हुवा था उस ने अकड़ कर कह दिया कि। "मैं हज़रते आदम से अच्छा हू। ए अल्लाह! तूने मुझ को आग से पैदा किया है और आदम को मिट्टी से पैदा फ़रमाया"!
៚ उस मलऊन ने हज़रते आदम अलैहिस्सलाम को अपने से हक़ीर समझा और सजदा नहीं किया।
៚ *याद रखो..!* कि जिस आदमी में तकब्बुर की शैतानी खुस्लत पैदा हो जाएगी उस का वोही अन्जाम होगा जो शैतान का हुवा कि वोह दोनों जहान में खुदावन्दे क़ह्हारो जब्बार की फिटकार से मरदूद और ज़लीलो ख़्वार हो गया।
៚ *यह भी याद रखो ..!* कि तकब्बुर खुदा को बेहद ना पसन्द है और येह बहुत ही बड़ा गुनाह है हदीष शरीफ़ में है कि जिस शख़्स के दिल में राई बराबर ईमान होगा वोह जहन्नम में नहीं दाख़िल होगा और जिस शख़्स के दिल में राई बराबर तकब्बुर होगा वोह जन्नत में नहीं दाखिल होगा।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 115 📚*
៚ एक दूसरी हदीष में आया है कि मैदाने महशर में तकब्बुर करने वालों को इस तरह लाया जाएगा कि उन की सूरतें इन्सानों की होंगी मगर उन के क़द च्यूंटियों के बराबर होंगे और जिल्लत व रुसवाई में येह घिरे हुए होंगे और यह लोग घसीटते हुए जहन्नम का तरफ़ लाए जाएंगे और जहन्नम के उस जेलखाने में कैद कर दिये जाएंगे जिस का नाम *"बूलस"* ( ना उम्मीदी ) है और वोह ऐसी आग में जलाए जाएंगे जो तमाम आगों को जला देगी जिस का नाम *“नारुल अन्यार"* है और उन लोगों को जहन्नमियों का पीप पिलाया जाएगा।
៚ *प्यारी बहनो और अज़ीज़ भाइयो!* कान खोल कर सुन लो कि तुम लोग जो खाने, कपड़े , चाल चलन, मकान व सामान, तहज़ीब व तमद्दुन, मालो दौलत हर चीज़ में अपने को दूसरों से अच्छा और दूसरों को हक़ीर समझते रहते हो।
៚ इसी तरह बा'ज़ उ-लमा और बा'ज़ इबादत गुज़ार इल्मो इबादत में अपने को दूसरों से बेहतर और दूसरों को अपने से हक़ीर समझ कर अकड़ते हैं येही तकब्बुर है।
៚ खुदा के लिये इस शैतानी आदत को छोड़ दो और तवाजोअ़ व इन्किसारी की आदत डालो या'नी दूसरों को अपने से बेहतर और अपने को दूसरों से कमतर समझो।
៚ ह़दीष शरीफ़ में है कि जो शख़्स अल्लाह के लिए तवाज़ोअ व इन्किसारी करेगा अल्लाह तआला उस को बुलन्द फ़रमा देगा वोह खुद को छोटा समझेगा मगर अल्लाह तआला तमाम इन्सानों की निगाहों में उस को अज़मत वाला बना देगा और जो शख़्स घमन्ड और तकब्बुर करेगा अल्लाह तआला उस को पस्त कर देगा ,वोह खुद को बड़ा समझेगा मगर अल्लाह तआला उस को तमाम इन्सानों की नज़र में कुत्ते और खिन्ज़ीर से जियादा ज़लील बना देगा।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 115 📚*
៚ या'नी किसी की बात सुन कर किसी दूसरे से इस तौर पर कह देना कि दोनों में इख़्तिलाफ़ और झगड़ा हो जाए, येह बहुत बड़ा गुनाह और बहुत ख़राब आदत है तजरिबा है कि मर्दों से ज़ियादा औरतें इस गुनाह में मुब्तला हैं।
៚ हदीष शरीफ़ में चुगुल खोरी को रसूलुल्लाह ﷺ ने गुनाहे कबीरा बताया है, यहां तक कि एक हदीष में येह आया है कि चुगुल खोर जन्नत में नहीं दाखिल होगा, और एक हदीष में येह भी है कि तुम लोगों में सब से ज़ियादा खुदा के नज़दीक ना पसन्दीदा वोह है जो इधर उधर की बातों में लगाई बुझाई कर के मुसलमान भाइयों में इख़्तिलाफ़ और फूट डालता है, और एक हदीष में येह भी फ़रमाने रसूल ﷺ है कि चुगुल खोर को आख़िरत से पहले उस की कब्र में अज़ाब दिया जाएगा।
៚ इस के इलावा चुग़ली की बुराई के बारे में बहुत सी हदीषें आई हैं। *मुसलमान भाइयो और बहनो!* किसी की कोई बात सुनो तो ख़ूब समझ लो कि तुम इस बात के अमीन हो गए अगर दूसरों तक इस बात के पहुंचाने में कोई दीनो दुन्या का फाइदा जब तो तुम ज़रूर इस बात का चर्चा करो लेकिन अगर इस बात को दूसरों तक पहुंचाने में दो मुसलमानों के दरमियान इख़्तिलाफ़ और झगड़े का अन्देशा हो तो ख़बरदार ख़बरदार हरगिज़ कभी भी इस बात का न चर्चा करो न किसी दूसरे से कहो वरना तुम पर अमानत में खियानत करने और चुगुल ख़ोरी का गुनाह होगा और इस गुनाह का दुन्या में भी तुम पर येह वबाल पड़ेगा कि तुम सब की निगाहों में बे वक़ार और ज़लीलो ख़्वार हो जाओगे और आख़िरत में भी अज़ाबे जहन्नम के हक़दार ठहरोगे।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 117 📚*
៚ किसी को गाइबाना बुरा कहना या पीठ पीछे उस का कोई ऐब बयान करना येही गीबत है चुनान्चे एक हदीष में है कि हुज़ूर عَلَیْهِ الصَّلٰوةُوَالسَّلَام ने सहाबए किराम عَلَیْھِمُ الرِِّضْوَان से फ़रमाया कि क्या तुम लोग जानते हो कि ग़ीबत क्या चीज़ है, सहाबा عَلَیْھِمُ الرِِّضْوَان ने कहा कि अल्लाह عَزَّوَجَلَّ और उस के रसूल ﷺ जियादा जानने वाले हैं हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि तुम्हारा अपने भाई की उन बातों को बयान करना जिन को वोह ना पसन्द समझता है येही ग़ीबत है,
៚ तो सहाबा عَلَیْھِمُ الرِِّضْوَان ने अर्ज किया कि या रसूलल्लाह ﷺ येह बताइये कि अगर मेरे उस दीनी भाई में वाक़ेई वोह बातें मौजूद हों तो क्या इन बातों का ज़िक्र करना भी ग़ीबत कहलाएगा? हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि अगर उस के अन्दर वोह बातें वाकेई होंगी तभी तो तुम उस की ग़ीबत करने वाले कहलाओगे और अगर उस में वोह बातें न हों और तुम अपनी तरफ से घड़ कर कहोगे जब तो तुम उस पर बोहतान लगाने वाले हो जाओगे जो एक दूसरा गुनाहे कबीरा है जिस का करने वाला जहन्नम का ईंधन बनेगा!
៚ *याद रखो..!!* ग़ीबत इतना बड़ा गुनाह है कि हुजूर ﷺ ने यहां तक फ़रमाया कि :- *ग़ीबत ज़िना से बड़ा गुनाह है।*
៚ हुज़ूर عَلَیْهِ الصَّلٰوةُوَالسَّلَام का येह भी इरशाद है कि मैं ने मे'राज की रात में कुछ लोगों को इस हाल में देखा कि वोह जहन्नम में अपने नाखुनों से अपने चेहरों को खुरच खुरच कर नोच रहे हैं मैं ने हज़रते जिब्राईल عَلَیْهِ السَّلَام से पूछा कि येह कौन लोग हैं? तो उन्हों ने बताया कि येह वोह लोग हैं जो दुन्या में लोगों की ग़ीबत और आबरू रेज़ी किया करते थे।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 118 📚*
៚ *याद रखो..!!* कि पीठ पीछे किसी आदमी की उन बातों को बयान करना जिन को वोह पसन्द नहीं करता येह ग़ीबत है ख़्वाह उस का कोई ज़ाहिरी ऐब हो या बातिनी ,उस का पैदाइशी ऐब हो या उस का अपना पैदा किया हुवा ऐब हो उस के बदन ,उस के कपड़ों, उस के खानदान व नसब, उस के अक़वाल व अफ़आल चाल-ढाल, उस की बोल-चाल ग़रज़ किसी ऐब को भी बयान करना या ता'ना मारना येह सब ग़ीबत ही में दाख़िल है लिहाज़ा इस ग़ीबत के गुनाह से हर मुसलमान मर्द व औरत को बचना लाज़िम और ज़रूरी है।
៚ कुरआने मजीद में अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया कि : *“ओर एक दूसरे की ग़ीबत न करो। क्या तुम में कोई येह पसन्द करेगा कि अपने मरे हुए भाई का गोश्त खाए ? तो येह तुम्हें गवारा न होगा।*
៚ मतलब येह है कि ग़ीबत इस क़दर घिनावना गुनाह है जैसे अपने मुर्दा भाई का गोश्त खाना तो जिस तरह तुम हरगिज़ हरगिज़ कभी येह गवारा नहीं कर सकते कि अपने मरे हुए भाई की लाश का गोश्त काट काट कर खाओ इसी तरह हरगिज़ हरगिज़ कभी किसी की ग़ीबत मत किया करो।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 118 📚*
*⇩ किन किन लोगों की ग़ीबत जाइज़ है? ⇩*
៚ हज़रते अल्लामा अबू जकरिय्या मुह्युद्दीन बिन शरफ नववी ( मुतवफ्फ़ा 676 हि. ) ने मुस्लिम शरीफ़ की शर्ह में लिखा है कि शरई अगराज व मक़ासिद के लिये किसी की ग़ीबत करनी जाइज़ और मुबाह है और इस की छे सूरतें हैं।
៚ *(अव्वल)* मज़्लूम का हाकिम के सामने किसी ज़ालिम के ज़ालिमाना उयूब को बयान करना ताकि उस की दाद रसी हो सके।
៚ *(दुवुम)* किसी शख्स की बुराइयों को रोकने के लिये किसी साहिबे इक्तिदार के सामने उस की बुराइयों को बयान करना ताकि वोह अपने रो'ब दाब से उस शख़्स को बुराइयों से रोक दे।
៚ *(सिवुम)* मुफ़्ती के सामने फ़तवा तलब करने के लिये किसी के उयूब को पेश करना।
៚ *(चहारुम)* मुसलमानों को शर व फ़साद और नुक्सान से बचाने के लिये किसी के उयूब को बयान कर देना मषलन झूटे रवियों, झूटे गवाहों, बद मज़हबों की गुमराहियों, झूटे मुसन्निफ़ों और वाइज़ों के झूट और इन लोगों के मक्रो फ़रैब को लोगों से बयान कर देना। ताकि लोग गुमराही के नुक्सान से बच जाएं इसी तरह शादी बियाह के बारे में मश्वरा करने वाले से फ़रीक़े षानी के वाक़ेई ऐबों को बता देना या खरीदारों को नुक्सान से बचाने के लिये सामान या सौदा बेचने वाले के उयूब से लोगों को आगाह कर देना।
៚ *(पन्जुम)* जो शख़्स अलल एलान फिस्को फुजूर और क़िस्म क़िस्म के गुनाहों का मुर्तकिब हो मषलन चोर, डाकू, जिनाकार, खियानत करने वाला, ऐसे अश्ख़ास के उयूब को लोगों से बयान कर देना ताकि लोग नुक्सान से महफूज़ रहें और इन लोगों के फन्दों में न फंसें।
៚ *(शशुम)* किसी शख्स की पहचान कराने के लिये उस के किसी मशहूर ऐब को उस के नाम के साथ ज़िक्र कर देना जैसे हज़राते मुहद्दिषीन का तरीका है कि एक ही नाम के चन्द रावियों में इम्तियाज़ और उन की पहचान के लिये आ'मश (चुंधा) आ'रज (लंगड़ा) आमा (अन्धा) अहुवल (भेगा) वगैरा ऐबों को उन के नामों के साथ ज़िक्र कर देते हैं। जिस का मक्सद हरगिज़ हरगिज़ न तौहीन व तन्कीस है न ईज़ा रसानी बल्कि इस का मक्सद सिर्फ़ रावियों की शनाख़्त और इन की पहचान का निशान बताना है।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 120 📚*
៚ झूट-मूट अपनी तरफ से गढ़ कर किसी पर कोई इल्ज़ाम या ऐब लगाना इस को इफ़्तिरा, तोहमत और बोहतान कहते हैं। येह बहुत ख़बीष और ज़लील आदत है और बहुत बड़ा गुनाह है खास कर किसी पाक दामन मर्द या औरत पर जिनाकारी की तोहमत लगाना येह तो इतना बड़ा गुनाह है कि शरीअत के कानून में इस शख़्स को अस्सी (80) कोड़े मारे जाएंगे और उम्र भर किसी मुआमले में इस की गवाही क़बूल नहीं कि जाएगी और क़ियामत के दिन येह शख़्स दोज़ख़ के अज़ाब में गिरिफ़्तार होगा।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 121 📚*
*⇩ (9) झूट ⇩*
៚ येह वोह गन्दी घिनावनी और जलील आदत है कि दीनो दुन्या में झूटे का कहीं कोई ठिकाना नहीं झूटा आदमी हर जगह ज़लीलो ख़्वार होता है और हर मजलिस और हर इन्सान के सामने बे वक़ार और बे ए’तिबार हो जाता है और येह बड़ा गुनाह है कि अल्लाह तआला ने कुरआने मजीद में ए’लान फ़रमा दिया है कि :-
*"لَعْنَتَ اللّٰهِ عَلَی الْکٰذِبِیْنَ"*
या'नी कान खोल कर सुन लो कि झूटों पर खुदा की लानत है और वोह खुदा की रहमतों से महरूम कर दिये जाते हैं।
៚ कुरआने मजीद की बहुत सी आयतों और बहुत सी हदीषों में झूट की बुराइयों का बयान है इस लिये याद रखो कि हर मुसलमान मर्द व औरत पर फ़र्ज़ है कि इस ला'नती आदत से ज़िन्दगी भर बचता रहे।
៚ बहुत से मां-बाप बच्चों को चुप कराने के लिये डराने के तौर पर कह दिया करते हैं कि चुप रहो घर में *"माऊं"* बैठा है या चुप रहो सन्दूक में लड्डू रखे हुए हैं तुम रोओगे तो सब लड्डू धूल मिट्टी हो जाएंगे। हालांकि न घर में *"माऊं"* होता है न सन्दूक़ में लड्डू होते हैं न रोने से लड्डू धूल मिट्टी हो जाते हैं तो ख़ूब समझ लो येह सब भी झूट ही है। *इस किस्म की बोलियां बोल कर वालिदैन गुनाहे कबीरा करते रहते हैं और इस क़िस्म की बातों को लोग झूट नहीं समझते।*
៚ हालांकि यक़ीनन हर वोह बात जो वाकिए के ख़िलाफ़ हो झूट है और हर झूट हराम है ख़्वाह बच्चे से झूटी बात कहो या बड़े से आदमी से झूटी बात कहो या जानवर से झूट बहर हाल झूट है और झूट हराम है।
*⇩ कब और कौन सा झूट जाइज़ है ⇩*
៚ काफ़िर या ज़ालिम से अपनी जान बचाने के लिये या दो मुसलमानों को जंग से बचाने और सुल्ह कराने के लिये, अगर कोई झूटी बात बोल दे तो शरीअत ने इस की रुख़सत ने दी है मगर जहां तक हो सके इस मौक़ पर भी ऐसी बात बोले और ऐसे अल्फ़ाज़ मुंह से निकाले कि खुला हुवा झूट न हो बल्कि किसी मा'ना के लिहाज़ से वोह सहीह भी हो इस को अरबी ज़बान में *“तोरिया”* कहते हैं।
៚ मषलन डाकू ने तुम से पूछा कि तुम्हारे पास माल है कि नहीं ? और तुम को यक़ीन है कि अगर मैं इक़रार कर लूंगा तो डाकू मुझे क़त्ल कर के मेरा माल लूट लेगा तो उस वक़्त येह कह दो *"मेरे पास कोई माल नहीं है "* और निय्यत येह कर लो कि मेरी जेब या मेरे हाथ में कोई माल नहीं है, बॉक्स या झोले में है तो इस मा'नी के लिहाज़ से तुम्हारा येह कहना कि मेरे पास कोई माल नहीं है येह सच है और इस मा'नी के लिहाज़ से मेरी मिल्किय्यत में कोई माल नहीं है येह झूट है।
៚ इसी क़िस्म के अल्फ़ाज़ को अरबी में *“तोरिया"* कहा जाता है। और जहां जहां येह लिखा हुवा है कि फुलां फुलां मौकओं पर मुसलमान झूट बोल सकता है इस का येही मतलब है कि *“तोरिया"* के अल्फ़ाज़ बोले और अगर खुला हुवा झूट बोलने पर कोई मुसलमान मजबूर कर दिया जाए तो उस को लाज़िम है कि वोह दिल से इस झूट को बुरा जानते हुए जानो माल को बचाने के लिये सिर्फ़ ज़बान से झूट बोल दे और इस से तौबा कर ले!
៚ इधर-उधर कान लगा कर लोगों की बातों को छुप-छुप कर सुनना या ताक झांक कर लोगों के ऐबों को तलाश करना येह बड़ी ही छिछोरी हरकत और ख़राब आदत है, दुन्या में इस का अन्जाम बदनामी और ज़िल्लत व रुसवाई है और आख़िरत में इस की सज़ा जहन्नम का अज़ाब है ऐसा करने वालों के कानों और आंखों में कियामत के दिन सीसा पिघला कर डाला जाएगा।
៚ कुरआने मजीद में और ह़दीषों में खुदावन्दे कुद्दूस और हमारे रसूले अकरम ﷺ ने फ़रमाया कि:-
*"وَلَاتَجَسَّسُوْا"*
या'नी किसी के ऐबों को तलाश करना हराम और गुनाह है मर्दों की ब निस्बत औरतों में येह ऐब ज़ियादा पाया जाता है!
៚ *लिहाज़ा प्यारी बहनो!* तुम इस गुनाह से खुद भी बचो और दूसरी औरतों को भी बचाओ।
*⇩ (11) गाली गलोच ⇩*
៚ इस गन्दी आदत की बुराई हर छोटा बड़ा जानता है यक़ीनन फूहड़ और फोह्श अल्फ़ाज़ और गन्दे कलामों को बोलना येह कमीनों और रज़ील व जलील लोगों का तरीका है और शरीअत में हराम व गुनाह है हदीष शरीफ़ में है कि
*"سَبَابُ الْمُسْلِمِ فُسُوْقُ"*
या'नी किसी मुसलमान से गाली गलोच करना येह फ़ासिक का काम है.!
៚ आज-कल औरत व मर्द सभी इस बला में मुब्तला हैं जिस का नतीजा येह है कि बड़ों की फ़ोह्श कलामियों और गालियों को सुन-सुन कर बच्चे भी गन्दी और फूहड़ गालियां बकने लगते हैं और फिर बचपन से बुढ़ापे तक इस गन्दी आदत में गिरिफ़्तार रहते हैं लिहाज़ा हर मर्द व औरत पर लाज़िम है कि कभी हरगिज़ हरगिज़ गालियां और गन्दे अल्फ़ाज़ मुंह से न निकालें कौन नहीं जानता कि कभी कभी गाली गलोच की वजह से ख़ूरेज़ लड़ाइयां हो जाया करती हैं और मुसलमानों की जान व माल का अज़ीम नुक्सान हो जाया करता है इस लिये मुस्लिम मुआशरे को तबाह करने में बद ज़बानियों और गालियों का बहुत बड़ा दख़ल है।
៚ लिहाज़ा इस आदत को तर्क कर देना बेहद ज़रूरी है ख़ास कर औरतों को अपनी सुसराल में इस का हर वक़्त ख्याल रखना चाहिये क्यूंकि में सेंकड़ों औरतों को तलाक़ उन की बद ज़बानियों और गालियों की वजह से हो जाया करती है और फिर मैके और सुसराल वालों में मुस्तकिल झगड़ों की बुन्याद पड़ जाती है और दोनों ख़ानदान तबाही व बरबादी के गार में गिर कर हलाक हो जाते हैं।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 124 📚*
*⇩ (12) फुज़ूल बकवास ⇩*
៚ मर्दों और औरतों की बुरी आदतों में से एक बहुत बुरी आदत बहुत ज़ियादा बोलना और फुज़ूल बकवास है कम बोलना और ज़रूरत के मुताबिक बात चीत येह बहुत ही पसन्दीदा आदत है।
៚ ज़रूरत से ज़ियादा बात और फुज़ूल की बकवास का अन्जाम येह होता है कि कभी कभी ऐसी बातें भी ज़बान से निकल जाती हैं जिस से बहुत बड़े बड़े फ़ितने पैदा हो जाते हैं और शर व फ़साद के तूफ़ान उठ खड़े होते हैं। इस लिये रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया है कि अल्लाह तआला को येह ना पसन्द है कि बिला ज़रूरत कील और काल और फुज़ूल अक़वाल आदमी की ज़बान से निकलें।
៚ इसी तरह कषरत से लोगों के सामने किसी चीज़ का सुवाल करते रहना और फुज़ूल कामों में अपने मालों को बरबाद करना येह भी अल्लाह तआला को ना पसन्द है येह भी सरकारे दो आलम ﷺ का फ़रमान है कि अपनी ज़बानों को फुज़ूल बातों से हमेशा बचाए रखो।
៚ क्यूंकि बहुत सी फुज़ूल बातें ऐसी भी ज़बानों से निकल जाती हैं जो बोलने वालों को जहन्नम में पहुंचा देती हैं! इसी लिये तमाम बुजुर्गों ने येह फ़रमाया है कि तीन आदतों को लाज़िम पकड़ो। कम बोलना, कम सोना, कम खाना क्यूंकि ज़ियादा बोलना, जियादा सोना, ज़ियादा खाना, येह आदतें बहुत ही ख़राब हैं और इन आदतों की वजह से इन्सान दीनो दुन्या में ज़रूर नुक्सान उठाता है।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 125 📚*
៚ खुदावन्दे करीम के इन्आमों और इन्सानों के एहसानों की नाशुक्री, इस मन्हूस और बुरी आदत में 90% मर्द व औरत गिरिफ़्तार हैं बल्कि औरतें तो 99% इस बला में मुब्तला हैं ज़रा किसी घराने को या किसी औरत के कपड़ों या ज़ेवरात को अपने से खुशहाल और अच्छा देख लिया तो खुदा की नाशुक्री करने लगती हैं और कहने लगती हैं कि खुदा ने हमें ना मालूम किस जुर्म की सज़ा में मुफ़्लिस और ग़रीब बना दिया खुदा का हम पर कोई फ़ज़्ल ही नहीं होता मैं निगोड़ी ऐसे फूटे करम ले कर आई हूं कि न मैके में सुख नसीब हुवा न सुसराल में ही कुछ देखा, फुलानी फुलानी घी दूध में नहा रही है और मैं फ़ाक़ों से मर रही हूं।
៚ इसी तरह औरतों की आदत है कि उस का शोहर अपनी ताकत भर कपड़े, जेवरात, साजो सामान देता रहता है लेकिन अगर कभी किसी मजबूरी से औरत की कोई फ़रमाइश पूरी नहीं कर सका तो औरतें कहने लगती हैं कि तुम्हारे घर में हाए हाए कभी सुख नसीब नहीं हुवा इस उजड़े घर में हमेशा नंगी भूकी ही रह गई कभी भी तुम्हारी तरफ़ से मैं ने कोई भलाई देखी ही नहीं मेरी क़िस्मत फूट गई तुम्हारे जैसे फ़तो फ़क़ीर से बियाही गई मेरे मां -बाप ने मुझे भाड़ में झोंक दिया। इस क़िस्म की नाशुक्री करती और जली कटी बातें सुनाती रहती हैं।
चुनान्चे हुज़ूरे अकदस ﷺ ने फ़रमाया कि मैं :-
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 125 📚*
*⇩ (13) नाशुक्री ⇩*
៚ हुज़ूरे अकदस ﷺ ने फ़रमाया कि मैं ने जहन्नम में ज़ियादा ता'दाद औरतों की देखी तो सहाबा किराम عَلَیْھِمُ الرِِّضْوَان कहा या रसूलल्लाह ﷺ इस की क्या वजह है कि औरतें ज़ियादा जहन्नमी हो गई तो हुज़ूर ﷺ ने फरमाया कि इस का सबब येह है कि औरतें एक दूसरे पर बहुत ज़ियादा ला'नत मलामत करती रहती हैं और नाशुक्री करती रहती हैं तो सहाबा عَلَیْھِمُ الرِِّضْوَان ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह ﷺ क्या औरतें ख़ुदा की
नाशुक्री किया करती हैं ?
៚ आप ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि औरतें एहसान की नाशुक्री करती हैं और अपने शोहरों की नाशुक्री करती हैं। इन औरतों की येह आदत है कि तुम ज़िन्दगी भर में इन के साथ एहसान करते रहो लेकिन अगर कभी कुछ भी कमी देखेंगी तो येही कह देंगी कि मैं ने कभी भी तुम्हारी तरफ से कोई भलाई देखी ही नहीं।
៚ *अज़ीज़ बहनो!* सुन लो ख़ुदा के इन्आमों और शोहर या दूसरों के एहसानों की नाशुक्री बहुत ही खराब आदत और बहुत बड़ा गुनाह है हर मुसलमान मर्द व औरत के लिये लाज़िम है कि वोह हमेशा अपने से कमज़ोर और गिरी हुई हालत वालों को देखा करे कि अगर मेरे पास घटिया कपड़े और ज़ेवर हैं तो खुदा का शुक्र है कि फुलां और फुलानी से तो हम बहुत ही अच्छी हालत में हैं कि इन लोगों को बदन ढांपने के लिये फटे पुराने कपड़े भी नसीब नहीं होते।
៚ इसी तरह अगर मेरे शोहर ने मेरे लिये मा'मूली ग़िज़ा का इन्तिज़ाम किया है तो इस पर भी शुक्र है क्यूंकि फुलानी फुलानी औरतें तो फ़ाक़ा किया करती हैं बहरहाल अगर तुम अपने से कमज़ोर और ग़रीबों पर नज़र रखोगी तो शुक्र अदा करोगी और अगर तुम अपने से मालदारों पर नज़र करोगी तो तुम नाशुक्री की बला में फंस कर अपने दीनो दुन्या को तबाहो बरबाद कर डालोगी!
៚ इस लिये लाज़िम है कि नाशुक्री की आदत छोड़ कर हमेशा खुदा के इन्आमों और शोहर वग़ैरा के एहसानों का शुक्रिया अदा करते रहना चाहिये।अल्लाह तआला कुरआने मजीद में फ़रमाता है : "या'नी अगर तुम शुक्र अदा करते रहोगे तो मैं ज़ियादा से ज़ियादा ने’मतें देता रहूंगा और अगर तुम ने नाशुक्री की तो मेरा अज़ाब बहुत ही सख़्त है।
इस 👆🏻 आयत ने ए'लान कर दिया कि शुक्र अदा करने से खुदा की ने'मतें बढ़ती हैं और नाशुक्री करने से खुदा का अज़ाब उतर पड़ता है।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 125 📚*
៚ बात-बात पर सास सुसर और बहू या शोहर या आम मुसलमान मर्दों और औरतों से झगड़ा तकरार कर लेना येह भी बहुत बुरी आदत है और गुनाह का काम है हदीष शरीफ़ में है कि झगड़ालू आदमी खुदा को बेहद ना पसन्द है।
៚ इस लिये अगर किसी से कोई इख़्तिलाफ़ हो जाए या मिज़ाज के ख़िलाफ़ कोई बात हो जाए तो सहूलत और मा'कूल गुफ़्तगू से मुआमलात को तै कर लेना निहायत ही उम्दा और बेहतरीन आदत है झगड़े तकरार की आदत कमीनों और बद तहज़ीब लोगों का तरीका है और येह आदत इन्सान के लिये एक बहुत ही बड़ी मुसीबत है क्यूंकि झगड़ालू आदमी का कोई भी दोस्त नहीं होता बल्कि वोह हर शख़्स की निगाहों में काबिले नफ़रत हो जाता है और लोग इस के झगड़े के डर से इस को मुंह नहीं लगाते इस से बात नहीं करते।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 127 📚*
*⇩ (16) ज़िद ⇩*
៚ अपनी किसी बात पर इस तरह अड़ जाना कि कोई लाख समझाए मगर किसी की बात और सिफारिश क़बूल न करे। इस बुरी खुस्लत का नाम *“ज़िद”* है येह इस क़दर ख़राब और मन्हूस आदत है कि आदमी की दुन्या व आख़िरत को तबाहो बरबाद कर डालती है ऐसे आदमी को दुन्या में सब लोग *“ज़िद्दी"* और *"हट धर्म"* कहने लगते हैं और कोई भी इस को मुंह लगाने और इस से बात करने के लिये तय्यार नहीं होता।
៚ येही वोह ख़बीष आदत थी जिस ने अबू जहल को जहन्नम में धकेल दिया कि हमारे पैग़म्बर ﷺ और मोमिनों ने इस को लाखों मरतबा समझाया और इस ने शक्कुल क़मर और कंकरियों के कलिमा पढ़ने का मो'जिज़ा भी देख लिया मगर फिर भी अपनी ज़िद पर अड़ा रहा और ईमान न लाया।
៚ कुरआनो हदीष में ये हुक्म है कि हर मुसलमान मर्द व औरत पर लाज़िम है कि अपने बुजुर्गों और मुख़िलस दोस्तों का मश्वरा ज़रूर मान ले और मुसलमानों की जाइज़ सिफ़ारिश को क़बूल कर के अपनी राए और अपनी बात को छोड़ दे और हक़ ज़ाहिर हो जाने के बा’द हरगिज़ हरगिज़ अपनी राए और अपनी बात पर ज़िद कर के अड़ा न रहे।
៚ बहुत से आदमी ख़ास तौर से औरतें इस बुरी आदत में मुब्तला हैं खुदा के लिये इन सब को चाहिये कि इस बुरी आदत को छोड़ कर दोनों जहान की सआदतों से सरफ़राज़ हों।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 129 📚*
៚ बहुत से मर्दों और औरतों की येह आदत होती है कि जहां इन्हों ने दो आदमियों को अलग हो कर चुपके चुपके बातें करते हुए देखा तो फ़ौरन इन को येह बद गुमानी हो जाती है कि येह मेरे ही मुतअल्लिक कुछ बातें हो रही हैं और मेरे ही ख़िलाफ़ कोई साज़िश हो रही है इसी तरह औरतें अगर अपने शोहरों को अच्छा लिबास पहन कर कहीं जाते हुए देखती हैं या शोहरों को किसी औरत के बारे में कुछ कहते हुए सुन लेती हैं तो इन को फ़ौरन अपने शोहरों के बारे में येह बद गुमानी हो जाती है कि ज़रूर मेरे शोहर की फुलानी औरत से कुछ साज़ बाज़ है इसी तरह शोहरों का हाल है कि अगर इन की बीवियां मैके में ज़ियादा ठहर गईं या मैके के रिश्तेदारों से बात या इन की ख़ातिर व मदारात करने लगें तो शोहरों को येह बद गुमानी हो जाती है कि मेरी बीवी फुलां फुलां मर्दों से महब्बत करती है कहीं कोई बात तो नहीं है!
៚ बस इस बद गुमानी में तरह तरह की जुस्त्जू और टोह लगाने की फ़िक्र में मुब्तला हो कर दिन रात दिमाग में अल्लम गुल्लम क़िस्म के ख़यालात की खिचड़ी पकाने लगते हैं और कभी कभी राई का पहाड़ और फांस का बांस बना डालते हैं।
៚ *प्यारी बहनो और भाइयो!* याद रखो कि बद गुमानियों की येह आदत बहुत बुरी बला और बहुत बड़ा गुनाह है।
៚ कुरआने मजीद में अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया कि :
*"اِنَّ بَعْضَ الظَّنِِّ اِشْمٌ"*
*या'नी बा'ज़ गुमान गुनाह हैं..l*
लिहाज़ा जब तक खुली हुई दलील से तुम को किसी बात का यक़ीन न हो जाए हरगिज़ हरगिज़ महज़ बे बुन्याद गुमानों से कोई राए काइम न कर लिया करो।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 130 📚*
*⇩ (18) कान का कच्चा ⇩*
៚ बहुत से मर्दों और औरतों में येह ख़राब आदत हुवा करती है कि अच्छा बुरा या सच्चा झूटा जो आदमी भी कोई बात कह दे इस पर यक़ीन कर लेते हैं और बिला छान बीन और तहक़ीक़ात के इस बात को मान कर इस पर तरह तरह के ख़यालात व नज़रिय्यात का महल ता'मीर करने लगते हैं येह वोह आदते बद है जो आदमी को शुकूक व शुबुहात के दल दल में फंसा देती है और ख़्वाह म ख़्वाह आदमी अपने मुख़्लिस दोस्तों को दुश्मन बना लेता है और खुद गरज व फ़ितना परवर लोग अपनी चालों में कामयाब हो जाते हैं।
៚ इस लिये खुदावन्दे कुद्दूस ने कुरआने मजीद में इरशाद फ़रमाया कि
*"اِنْ جَآءَکُمْ فَاسِقٌ بِنَبَاِِفَتَبَیَّنُوْا"*
៚ "या’नी जब कोई फ़ासिक आदमी तुम्हारे पास कोई ख़बर लाए तो तुम खूब अच्छी तरह जांच पड़ताल कर लो।"
៚ मतलब यह है कि हर शख़्स की खबर पर भरोसा कर के तुम यक़ीन मत कर लिया करो बल्कि खूब अच्छी तरह तहक़ीक़ात और छान बीन कर के ख़बरों पर ए'तिमाद करो। वरना तुम से बड़ी बड़ी गलतियां होती रहेंगी।
៚ *लिहाज़ा ख़बरदार! ख़बरदार!* कान के कच्चे मत बनो और हर आदमी की बात सुन कर बिला तहकीकात किये न मान लिया करो।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 131 📚*
៚ कुछ मर्दों और औरतों की येह ख़राब आदत होती है कि वोह दीन या दुन्या का जो काम भी करते हैं वोह शोहरत व नामवरी और दिखावे के लिये करते हैं। इस ख़राब आदत का नाम *“रियाकारी"* है और येह सख़्त गुनाह है हदीष शरीफ़ में है कि रियाकारी करने वालों को क़ियामत के दिन ख़ुदा का मुनादी इस तरह मैदाने महशर में पुकारेगा कि ऐ बदकार! ऐ बद अहद। ऐ रियाकार! तेरा अमल गारत हो गया और तेरा षवाब बरबाद हो गया। तू खुदा के दरबार से निकल जा और उस शख़्स से अपना षवाब तलब कर जिस के लिये तूने अमल किया था।
៚ इसी तरह एक दूसरी हदीष में है कि जिस अमल में ज़र्रा भर भी रियाकारी का शाइबा हो उस अमल को अल्लाह तआला क़बूल नहीं फ़रमाता है। और येह भी हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि जहन्नम में एक ऐसी वादी है जिस को अल्लाह तआला ने रियाकारी करने वाले क़ारियों के लिये तय्यार फ़रमाया है।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 131 📚*
៚ कुछ मर्द और औरतें इस ख़राब आदत में मुब्तला हैं कि जो शख़्स उन के मुंह पर उन की तारीफ़ कर दे वोह इस से खुश हो जाते हैं और जो शख़्स उन के ऐबों की निशान देही कर दे इस पर मारे गुस्से के आग बगूला हो जाते हैं। आदमी की येह खुस्लत भी निहायत नाक़िस और बहुत बुरी आदत है।
៚ अपनी तारीफ़ को पसन्द करना और अपनी तन्क़ीद पर नाराज़ हो जाना येह बड़ी बड़ी गुमराहियों और गुनाहों का सर चश्मा है इस लिये अगर कोई शख़्स तुम्हारी तारीफ़ करे तो तुम अपने दिल में सोचो अगर वाक़ेई वोह खूबी तुम्हारे अन्दर मौजूद हो तो तुम इस पर खुदा का शुक्र अदा करो कि उस ने तुम को इस की तौफ़ीक़ अता फ़रमाई और हरगिज़ अपनी इस खूबी पर अकड़ कर इतरा कर खुश न हो जाओ। और अगर कोई शख़्स तुम्हारे सामने तुम्हारी ख़ामियों को बयान करे तो हरगिज़ हरगिज़ इस पर नाराज़ी का इज़हार न करो।
៚ बल्कि उस को अपना मुख़्लिस दोस्त समझ कर उस की कद्र करो और अपनी ख़ामियों की इस्लाह कर लो और इस बात को अच्छी तरह ज़ेह्न नशीन कर लो कि हर तारीफ़ करने वाला दोस्त नहीं हुवा करता और हर तन्कीद करने वाला दुश्मन नहीं हुवा करता।
៚ कुरआनो हदीष की मुक़द्दस तालीम से पता चलता है कि अपनी तारीफ़ पर खुश हो कर फूल जाने वाला आदमी अल्लाह तआला और उस के रसूल ﷺ को बेहद ना पसन्द है और इस क़िस्म के मर्दों और औरतों के इर्द गिर्द अकषर चापलूसी करने वालों का मजमअ इकठ्ठा हो जाया करता है और येह खुद गरज लोग तारीफ़ों का पुल बांध कर आदमी को बे वुकूफ़ बनाया करते हैं।
៚ और झूटी तारीफ़ों से आदमी को उल्लू बना कर अपना मतलब निकाल लिया करते हैं। और फिर लोगों से अपनी मतलब बरआरी और बे वुकूफ़ बनाने की दास्तान बयान कर के लोगों को खुश तबई और हंसने हंसाने का सामान फ़राहम करते रहते हैं।
៚ लिहाज़ा हर मर्द व औरत को चापलूसी करने वालों और मुंह पर तारीफ़ करने वालों की अय्याराना चालों से होशियार रहना चाहिये और हरगिज़ हरगिज़ अपनी तारीफ़ सुन कर खुश न होना चाहिये।
*📬 किताब : जन्नती जे़वर सफ़ह 132 📚*