Friday, 18 June 2021

💫🕋 मोमिनों का महीना 🕋💫

 




🅿🄾🅂🅃 ➪ 01

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         ❝     *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘  ❞
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     *❝  इस्तक़बाले आमद ए माहे रमज़ान  ❞*
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❁ ••• ➲  शाबाने मुकद्दस जलवा गर हो चुका है और माहे रमज़ान का इस्तकबाल करने के लिए उम्मते मुस्लिमा तैयार है। उम्मीद है कि इस्तकबाले माहे रमज़ान से पहले ही एहले इल्म व दानिश के हाथों तक हम ' माहे रमज़ान कैसे गुज़ारें " का तोहफा पहुचाने की कोशिश करेंगे। माहे रमजान हर साल जल्वा फगन होता है और उम्मते मुस्लिमा इस माह की सआदतों और बरकतों से बकद्ररें तौफीक फैज़याब भी होती है मगर बहुत कम लोग हैं जो इस माह को ईमान व एहतिसाब के तकाज़ों के साथ गुजारते हैं। यही वजह है कि सालहा - साल रोजा रखने के बावजूद भी हमारी ज़िन्दगी में वह तब्दीली पैदा नहीं होती जिसका तकाज़ा यह माहे मुबारक करता है। जिसकी वजह या तो हमारी गफलत है या इस माहे मुबारक के आमाल से नावाकिफियत , जबकि सैयदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अगर तुम्हारा रोजा तुम्हें झूट और दूसरी बुराइयों से बाज नहीं रखता तो अल्लाह अज़्ज़वज़ल को तुम्हारे भूके और प्यासे रहने की कोई ज़रूरत नहीं। माहे रमज़ान दरअसल एक रूहानी तरबियत का महीना है जिसमें इंसान इन तमाम खसाइले हमीदा से आरास्ता हो जाता है जो शजरे तकवा के बर्ग व बार की हैसियत रखते हैं जब कि रोज़ा की फर्जियत का बुन्यादी मकसद ही शजरे तकवा की आबयारी है। कुरआने अजीम का इरशाद है : रोज़ा उम्मते मुहम्मदिया सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से पहले भी तमाम अंबियाए किराम की उम्मतों पर फर्ज था इसलिए कि रूहानी और अख्लाकी तरबियत के लिए रोज़ा बहुत ज़रूरी है!..✍️

*📬 माहे रमज़ान कैसे गुज़ारे सफ़ह - 13 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪ 02

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         ❝      *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘ ❞
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    *❝  इस्तक़बाले आमद ए माहे रमज़ान  ❞*
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❁ ••• ➲  वह मज़ाहिब जो रुहबानियत यानी तर्के दुनिया और तर्के लज़्ज़ात तालीम देते हैं वह रूहानी इरतिका के लिए पूरी जिंदगी मुजर्रद रहने और दुन्यवी अलाइक से बेनियाज़ हो जाने का हुक्म देते हैं लेकिन रुहबानियत एक तरह से है जब कि इस्लाम जिंदगी का मज़हब है और पूरे आलमे इंसानी का मज़हब है। अगर तमाम इंसान रुहबानियत इज़ियार कर लें तो काफिला - ए - हयात आगे न बढ़ सकेगा इसलिए इस्लाम में रुहबानियत की गुंजाइश नहीं। अलबत्ता इरतिकाए रूहानी के लिए माहे रमजान अता फरमाया गया ताकि उम्मते मुस्लिमा इस माहे मुबारक में रोज़ा रख कर जिंदगी भर रहबानियत के ज़रीआ रूहानी मनाज़िल तय करने वालों से ज़्यादा बुलंद रूहानी मुकाम हासिल कर ले। यही वजह है कि कुरआने अज़ीम ने लैलतुल कद्र को हजार महीने की रातों से बेहतर करार दिया है। सरकारे दो आलम का फरमाने गिरामी है कि इस माह का अव्वल रहमत , वस्त मगफिरत और आखिरी हिस्सा जहन्नम से आजादी है। रहमत , मगफिरत और जहन्नम से आजादी की तीब में एक फित्री रत पाया जाता है। 

❁ ••• ➲  अल्लाह तबारक व तआला रहमान व रहीम है वह सारी कायनात की परवरिश इसलिए करता है कि यह उसकी सिफत रहमान व रहीम का तकाज़ा है। वह अपने बंदों के गुनाह अपनी रहमते बेपायाँ से माफ फरमाएगा। सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह तबारक व तआला इर्शाद फरमाता है कि मेरी रहमत के 100 हिस्से हैं , मैंने उसका एक हिस्सा अपनी मखलूक को अता फरमाया है। जब से वह दूसरों के साथ रहम व करम का मामला करती है हत्ता के जानवर अपने बच्चों की परवरिश करते हैं। और निन्नयानवें ( 99 ) हिस्से मैंने कयामत के दिन अपने बंदों के लिए मख्सूस फरमा रखा है। *( मफहूमन )*

❁ ••• ➲  इससे मालूम हुआ कि मगफिरत बगैर रहमत के मुम्किन नहीं। 

❁ ••• ➲  चुनान्चे रमज़ान के पहले अशरे में बंदे को चाहिए कि रहमत तलब करे ताकि दूसरे अशरे में मगफिरत का हकदार बन जाए और दूसरे अशरे में तलबे मगफिरत के बाद गुनाहों से पाक व साफ हो जाए और तीसरे अशरे में जहन्नम से आजाद होकर जन्नत में जाने का मुस्तहिक हो जाए। अस्ल में जन्नत में इंसान गुनाहों की गंदगी की वजह से दाखिल नहीं हो सकेगा इसलिए दाख़िले जन्नत के लिए मगफिरत ज़रूरी है। हर साल माहे रमज़ान में लाखों अफराद के गुनाह माफ़ होते हैं और उन्हें मस्तहिके जन्नत करार दिया जाता है।...✍️

*📬 माहे रमज़ान कैसे गुज़ारे सफ़ह - 14 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪ 03

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         ❝       *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘❞
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*❝  माहे रमज़ान और तिलावते कुरआन  ❞*
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❁ ••• ➲  माहे रमजान का तिलावते कुरआने अजीम से बड़ा गहरा रब्ल है। कुरआने अज़ीम माहे रमज़ान में नाज़िल हुआ जैसा कि अल्लाह तआला का फरमाने ज़ीशान है : “ इस तरह रमजान गोया नुजूले कुरआन की सालगिरह का महीना है। इस माहे मुबारक में खुद सैय्यदे आलम और महीनों के मुकाबले में कुरआने पाक की तिलावत ज़्यादा फरमाते थे और हज़रत जिब्राईल हुजूर " को कुरआन सुनाते भी थे और कुरआन सुनते भी थे। अंबियाए किराम पर नुजूले वही के आगाज़ से पहले रोजे का हुक्म दिया जाता था। 

❁ ••• ➲  चुनान्चे हज़रत मूसा को तौरेत अता फरमाने से पहले कोहे तूर पर चालीस रोज़ तक रोज़ा और इबादत नीज़ दीगर अलाइके दुन्यवी से अलाहिदा रहने का हुक्म दिया गया और चालीस रोज़ की तकमील के बाद उन्हें तौरेत अता की गई। आकाए दो जहाँ को हुक्म तो नहीं दिया गया मगर उन्होंने अपनी पैगम्बराना फितरत की दावत पर गारे हिरा में तंहाई इज़ियार की जहाँ अक्सर वह रोजे की हालत में होते थे और इसी हालत में नुजूले कुरआन का आगाज़ हुआ। 

❁ ••• ➲ अब नजूले वही तो मुम्किन नहीं मगर रमजान में तिलावते करआन की सआदत हासिल करने वालों के दिल पर करआन पाक के अन्वार व बरकात ज़रूर उतरते हैं इसलिए कि इस माह में कुरआने अज़ीम की तिलावत के साथ - साथ किसी हद तक अलाइके दुन्यवी और ख्वाहिशाते माद्दी से बे तअल्लुकी होती है। दुनिया में कोई ऐसा निज़ामे जिंदगी और कानूने हयात नहीं है जिसके मानने वालों को हर साल पूरा दस्तूरे हयात सुनाया जाता हो और उसकी याद देहानी कराई जाती हो मगर तरावीह के ज़रिया हर साल उम्मते मुस्लिमा पूरा कुरआने अज़ीम सुनती भी है और पढ़ती भी है। काश ! मुसलमान समझ कर पढ़ते और अमल करते तो आज आलमे इस्लाम का नक्शा ही कुछ और होता।...✍️

*📬 माहे रमज़ान कैसे गुज़ारे सफ़ह - 14 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 04

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         ❝      *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘ ❞
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*❝  माहे रमज़ान और तिलावते कुरआन  ❞*
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❁ ••• ➲  रमज़ान पाक में शैतान पाबंद सलासिल कर दिया जाता है ताकि वह एहले ईमान को बहका न सके और मुसलमान अपनी रूहानी तबियत और अमली ट्रेनिंग का ज़माना शैतान की मुदाखलत के बगैर कामिल कर सके। 

❁ ••• ➲ आपने देखा होगा कि तबियत लेने वाले को तबियत देने वाला बहुत से हिफाज़ती इंतिज़ामात के साथ तर्बियत देता है और जब तबियत कामिल हो जाती है तो हिफाजती इंतिजामात उठाए जाते हैं और वही वक्त इसकी तबियत की आज़माइश का होता है। 

❁ ••• ➲ रमज़ान के बाद शैतान को आजाद कर दिया जाता है अगर मर्दै मोमिन ने ईमान व एहतिसाब के साथ रोजा रखा और हाथ , पाँव , आँख , ज़बान वगैरा को भी रोज़ादार रखा तो माहे मुबारक गुज़र जाने के बाद भी रमज़ान की हालत पर किसी हद तक कायम रहता है और अगर तबियत नाकिस रह गई तो वह फिर माहे रमजान से कब्ल की जिंदगी की तरफ लोट जाता है जो इस बात की अलामत है कि इस का रोज़ा मकबूल नहीं हुआ। ऐसे इंसान के लिए दुआ करनी चाहिए कि मौत से पहले अल्लाह उसको एक ऐसा माहे रमज़ान ज़रूर अता करे जब उसके रोजे मकबूल हो गए हों और उसके सारे गुनाह माफ फरमा कर उसको मुस्तहिके जन्नत करार दिया गया हो।...✍️

*📬 माहे रमज़ान कैसे गुज़ारे सफ़ह - 16 📚*

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         ❝      *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘ ❞
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*❝  माहे रमज़ान रोज़ादार के अंदर बहुत सी रूहानी और अख़्लाक़ी खूबियों को परवान चढ़ाता है।  ❞*
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❁ ••• ➲  अल्लाह का खौफ हर हालत में रोज़ादार के दिल पर तारी रहता है यही वजह है कि वह खिल्वत में कोई ऐसा काम नहीं करता जो हुक्मे रब्बानी के खिलाफ हो। 

❁ ••• ➲  रोज़ादार के अंदर सब्र और बर्दाश्त नीज़ जब्त नफ्स की सलाहियत पैदा हो जाती है। वह गाली या दावते मबारजत के जवाब मे सिर्फ यह कहता है कि मैं रोज़दार हूँ और गुज़र जाता है। 

❁ ••• ➲  अपने अवकाते कार को मुजबित करता है शब बेदारी की आदत पैदा होती है तहज्जुद और नवाफिल का पाबंद हो जाता है जमाअत का एहतिमाम करता है। 

❁ ••• ➲  उसके अंदर अपने एहतिसाब की सलाहियत पैदा हो जाती है और " की सिफ़त से मुत्तसिफ हो जाता है। 

❁ ••• ➲  फरमाने आलीशान के मुताबिक वह शैतान के मुकाबले के लिए ख़ुद को तैयार कर लेता है और उसको कुदरत की तरफ से एक ढाल मिल जाती है जो शैतान के हमलों से महफूज रखती है। 

❁ ••• ➲  उसके लिए जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं , जहन्नम के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और शयातीन को पाबंदे सलासिल कर दिया जाता है।

❁ ••• ➲  रमज़ान की बरकत से उसे दो खुशियाँ मैयस्सर आती हैं , एक वक्ते इफतार और एक ज़ियारते परवरदिगार के वक्त। 

❁ ••• ➲  इस माहे मुबारक में रोज़ादार के नवाफिल फ़र्ज़ का , फ़र्ज़ सत्तर फर्जी का हामिल रहते हैं। 

❁ ••• ➲  इस माहे मुबारक में रोज़ादार का दिल नर्म और अख़लाक़ी खूबियों से मामूर होता है।

❁ ••• ➲  उसके अंदर जज़ब - ए - सखावत पैदा होता है और दूसरे दिनों के मुकाबले में ज़्यादा उमूरे खैर में हिस्सा लेता है।

❁ ••• ➲  इफतारी और सेहरी की बरकतें हासिल करता है।

❁ ••• ➲  रोजा और कुरआन की शफाअत का मुस्तहिक होता है। 

❁ ••• ➲  लैलतुल कद्र की बरकतों से फैजयाब होता है। 

❁ ••• ➲  रोज़दार ख़ुद को रमजान के बाद भी नफली रोजों के लिए आमादा कर लेता है। 

❁ ••• ➲  रोज़ादार जिस्मानी सेहत से बेहरामंद हो जाता है।...✍️

*📬 माहे रमज़ान कैसे गुज़ारे सफ़ह - 17 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪ 06

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         ❝      *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘ ❞
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    *❝  इस्तक़बाले आमद ए माह रमज़ान  ❞*
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❁ ••• ➲  अल्लाह عزوجل का बेपनाह एहसान और उसका शुक्र है कि उसने अपने प्यारे महबूब साहबे लोलाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सदके व तुफैल हमें बेशुमार नेअमतें अता फरमाई, अगर हम उसकी नेअमतों को शुमार करना चाहें तो नहीं कर सकेंगे। 

❁ ••• ➲  जैसा कि ख़ुद उसी का फरमान है तुम अल्लाह عزوجل की नेअमतों का शुमार करना चाहो तो तुम नहीं कर सकते। 

❁ ••• ➲  इससे पता चला है रब्बे कदीर عزوجل ने हमें बेहिसाब नेअमतें अता फरमाईं , बिन मांगे और बिन मेंहनत के , यह अल्लाह عزوجل ही की जात है कि नेअमते कषीरा से हमें नवाज़ता है। हमारी जिम्मदारी है कि हम उसकी नेअमतों का शुक्रिया नेअमतों की कद्र के ज़रिया अदा करें। 

❁ ••• ➲  *मेरे प्यारे आका के प्यारे दीवानो !* माहे रमजानुल मुबारक जो अल्लाह عزوجل की तरफ से बहुत बड़ी नेअमत है उसके इस्तकबाल और गुजारने के तअल्लुक से कुछ बातें लिखने की सआदत हासिल कर रहा हूँ ताकि हम अल्लाह عزوجل की अज़ीम नेअमत माहे रमजानुल मुबारक की बरकतों से मालामाल हो सकें और जब इस नेअमत के हवाले से कयामत में सवाल किया जाए तो हम माहे रमजानुल मुबारक के रोजों की शफाअत के हकदार बन जाएं!

❁ ••• ➲  आइये सबसे पहले माहे रमज़ानुल मुबारक के नाम और उसके मआने को समझने की कोशिश करें ताकि मकसदे रमज़ानुल मुबारक हमारी फहम में आ सके!...✍️

*📬 माहे रमज़ान कैसे गुज़ारे सफ़ह - 19 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪ 07

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         ❝      *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘ ❞
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    *❝  माहे  रमज़ान  की  वजह  तस्मिया  ❞*
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❁ ••• ➲  " रमज़ान ' " रम्जुन ' ' का मसदर है , रम्ज़ का माना है “ जलना " मफस्सरीने किराम ने रमजान की चंद वजहे तस्मिया बताई हैं। 

❶ ••• ➲  रोज़ा गुनाहों को जला देता है। 

❷ ••• ➲  जब इस माह के नाम रखने की बारी आई तो सख्त गर्मी थी इस वजह से उसका नाम रमज़ान रखा गया जैसा कि रबीउल अव्वल , रबीउष्पानी के जिस वक्त नाम रखे गए उस वक्त मौसमे बहार था। 

❸ ••• ➲  " रमजान " अल्लाह तआला का एक नाम है लिहाजा इस लिहाज़ से उसे रमज़ान नहीं बल्कि " शहर ” की उसकी जानिब इज़ाफत करके " शहरे रमज़ान " यानी अल्लाह का महीना कहना चाहिए जैसा कि मरवी है " " यह न कहो कि रमज़ान आया , रमजान गया बल्कि यह कहो कि माहे रमज़ान आया , माहे रमजान गया!...✍️

*📔 रुहुल बयान ज़िल्द 2 सफ़ह 104-105  मुलख्वसन*

*📬 माहे रमज़ान कैसे गुज़ारे सफ़ह - 19 📚*

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         ❝      *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘ ❞
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        *❝  रमज़ान  के  पाँच  हुरूफ  ❞*
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❁ ••• ➲   बुजुर्गाने दीन अलैही रहमतों रिज़वान ने फरमाया कि रमज़ान में पाँच हुरूफ हैं। 

( र ) से रज़ाए इलाही

( म ) से मगफिरत इलाही
 
( ज ) से ज़माने इलाही

( अ ) से उलफते इलाही 

( न ) से नवाल व अताए इलाही मुराद है। 

❁ ••• ➲   गोया जिसने रमजानुल मुबारक में इबादत किया वह इन सारी चीजों का हकदार है!...✍️

*📔 नुजहतुल मजालिस ज़िल्द 1 सफ़ह 581*

*📬 माहे रमज़ान कैसे गुज़ारे सफ़ह - 20 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪ 09

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         ❝       *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘❞
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        *❝  माहे रमज़ान की ख़ुसूसियात  ❞*
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❁ ••• ➲  दूसरे महीनों पर माहे रमजानुल मुबारक की फजीलत चंद एतिबार से है। 

❁ ••• ➲  कुरआने मुकद्दस में यह तो मजकूर है कि महीने बारह हैं और यह भी मजकूर है कि उनमें से चार हुर्मत वाले हैं वह हुर्मत व इज्जत वाले महीने कौन हैं यह मजकूर नहीं लेकिन माहे रमज़ानुल मुबारक का नाम कुरआने मुकद्दस में सराहत के साथ मजकूर है बाकी किसी भी महीने का नाम सराहत के साथ मजकूर नहीं। 

❁ ••• ➲   जैसा कि अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया " माहे रमज़ान का महीना जिसमें कुरआन नाज़िल हुआ माहे रमज़ान में कुरआने मुकद्दस नुजूल हुआ जैसा कि मजकूरा वाला आयत में है।

❁ ••• ➲  इसी माह में शबे कद्र है , जिसका कयाम ( इबादत व शब बेदारी ) हज़ार महीनों के कयाम से बेहतर है।
 
❁ ••• ➲  हर माह में इबादत के लिए वक्त मुकर्रर है मगर इस माह में रोज़ादार का लम्हा - लम्हा इबादत में शुमार होता है। 

❁ ••• ➲  इस माह में नेकियों का सवाब दस गुना से सात सौ गुना तक बढ़ा दिया जाता है। 

❁ ••• ➲  नफल का सवाब फ़र्ज़ के बराबर और फ़र्ज़ का सवाब सत्तर फ़र्ज़ के बराबर हो जाता है। 

❁ ••• ➲  अल्लाह तआला इस माह में अपने बंदों पर खसूसी तवज्जह फरमाता है। 

❁ ••• ➲  जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं। 

❁ ••• ➲  जहन्नम के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। 

❁ ••• ➲  आसमान के दरवाजे खोल दिए जाते हैं और बंदों की जाइज़ आएं बाबे इजाबत तक बिल्कुल आसानी के साथ पहुंच जाती है। 

❁ ••• ➲  हज़रत इब्राहीम के सहीफे इसी माह की एक तारीख को नाज़िल हुए। 

❁ ••• ➲  तौरेत शरीफ इसी माह की 6 तारीख को नाज़िल हुई। 

❁ ••• ➲  इंजील शरीफ इसी माह की 13 तारीख को नाज़िल हुई। 

❁ ••• ➲  कुरआन मकद्दस इसी माह की चौबीस तारीख को नाज़िल हुआ। 

❁ ••• ➲  खातूने जन्नत हज़रत फातिमा ज़हरा का विसाल इसी माह की 3 तारीख को हुआ। 

❁ ••• ➲  उम्मुल मोमिनीन हज़रत आइशा सिद्दीका का विसाल इसी माह की 17 तारीख को हुआ। 

❁ ••• ➲  जंगे बदर इसी माह की 17 तारीख को हुई। 

❁ ••• ➲  फतहे मक्का इसी माह की 20 तारीख को हुई। 

❁ ••• ➲  हज़रत अली मुश्किल कुशा शेरे खूदा की शहादत इसी माह की 21 तारीख को हुई।...✍️

*📬 माहे रमज़ान कैसे गुज़ारे सफ़ह - 20 📚*

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              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘❞
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           *❝  फ़ज़ाइले  माहे  रमज़ान  ❞*
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❁ ••• ➲   हज़रत अबू हुरैरा रादिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि नबी करीम ने इरशाद फरमाया : " यानी जब रमज़ान का महीना आता है तो जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं। 

*📔 बुखारी शरीफ़ ज़िल्द 1 , सफ़ह 255*

❁ ••• ➲  *माहे रमज़ान और रहमते रहमान* नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया : अल्लाह तआला रमज़ान की हर शब को बवक्ते इफतार एक लाख दोज़खियों को दोज़ख से आज़ाद फरमाता है और वह दोजखी ऐसे होते हैं कि उन पर अजाब वाजिब हो चुका होता है , जब रमज़ान की आखरी शब होती है तो उसमें इतनी तादाद में आज़ाद फरमाता है जितनी तादाद में रमज़ान की पहली शब से लेकर आखरी तक आज़ाद कर चुका होता है!..✍️

*📬 माहे रमज़ान कैसे गुज़ारे सफ़ह - 22 📚*

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         ❝     *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘  ❞
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 *❝  मक्का  मुअज्जमा  में  माहे  रमज़ान  ❞*
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❁ ••• ➲   हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रादिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इशाद फरमाया : जिसने मक्का में रमजान पाया और रोज़ा रखा और रात में जितना हो सका कियाम किया (नवाफिल पढ़े) तो अल्लाह अज़्ज़वज़ल उसके लिए दूसरी जगह की बनिस्बत एक लाख रमजान का सवाब देंगा और हर दिन एक गुलाम आज़ाद करने का सवाब और हर रोज जिहाद में घोड़े पर सवार कर देने का सवाब और हर दिन में हसना और हर रात में हसना लिखेगा। (बहारे शरीअत)

❁ ••• ➲   मेरे प्यारे आका के प्यारे दीवानो : अगर अल्लाह तआला ने आपको इस्तिताअत बख़्शी है तो मक्का मुअज्जमा और मदीना मुनव्वरा में माहे रमजानुल मुबारक गुजारने की कोशिश करो। 

❁ ••• ➲   अल्लाह तआला की बारगाह में दुआ है कि हमें इसकी तौफीक अता फरमाए।..✍️ *आमीन*

*📬 माहे रमज़ान कैसे गुज़ारे सफ़ह - 22 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪ 12

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         ❝      *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘ ❞
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               *❝  शैतान  कैद  में  ❞*
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❁ ••• ➲  हज़रत अबू हुरैरा रादिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि नबी करीम रऊफ रहीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इशाद फरमाया जब माहे रमजान आता है तो आसमान के दरवाजे खोल दिए जाते हैं, जहन्नम के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और शैतानों को कैद कर दिया जाता है। *बुखारीः 2551*

❁ ••• ➲  मेरे प्यारे आका के प्यारे दीवानो! इस हदीस में इस बात का भी बयान है कि शैतानों को रमजान के महीना में कैद कर दिया जाना है, इस पर सवाल पैदा होता है कि जब शैतानों को कैद कर दिया जाना है तो फिर क्यों लोग रमजान के महीने में गुनाह करते हैं? इस सवाल के मतअदिद जवाबात दिये गए हैं। 

❁ ••• ➲  *अव्वल* वह कि बड़े-बड़े शयातीन को कंद कर दिया जाता है और छोटे छोटे शैतान खुले फिरते हैं, जिनकी वजह से लोग गुनाह करते हैं। जैसा कि दूसरी हदीस में इरशाद हुआ " यानी सरकश
और बड़े बड़े शयातीन कैद कर दिए जाते हैं। 

❁ ••• ➲  *दौम* वह कि गुमराह करने वाला एक खारजी शैतान और एक दाखली शैतान है जिसको " उर्दू में हमजाद कहते हैं, खारजी शवातीन को कैद कर दिया जाता है, दाखली शैतान को कैद नहीं किया जाता है जिसकी वजह से लोग गुनाह में मुवतिला रहते हैं। 

❁ ••• ➲  *सौम* यह कि शैतान के ग्यारह माह बहकाने और बसाविस का असर इस कद्र रासिख हो जाता है कि उसकी एक माह को गैर हाजरी से कोई फर्क नहीं पड़ता और लोग बदस्तूर बुराई और गुनाह में मुवतिना रहते हैं।  

❁ ••• ➲  *चहारुम* बुराई में मशगूल लोगों को कम अज कम इस माह में तो यह तस्लीम कर लेना चाहिए कि उनकी गलनकारियों और वे राह रवियों में शैतान के वसवसे से ज़्यादा खुद उनकी जान और बुरे इरादों का दखल है क्योंकि इस माह में जब शवानीन मुकव्यद कर दिए जाते हैं और वह लोग फिर भी बुराइयों और बुरे कामों से बाज नहीं आते, हद तो यह है कि बाज़ जगहों पर रात भर जुआ और लहवो-लइव का बाजार गर्म होता है (जैसे कि रमज़ान इसी लिए आया हो) और सहरी के फौरन बाद लोग ख्वावे गफलत का शिकार होकर नमाजे फजर को भी तर्क कर देते हैं लिहाजा उनकी बुराई और बुरे कामों के वह खूद जिम्मेदार हैं।...✍️

*📬 माहे रमज़ान कैसे गुज़ारे सफ़ह - 22 📚*

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         ❝      *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘ ❞
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*❝  रहमत, मग़फ़िरत और आग से आज़ादी ❞*
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❁ ••• ➲  हदीस शरीफ में है कि हुजूर ताजदारे मदीना राहते क़ल्ब व सीना सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया : रमजान ऐसा महीना है जिसका अव्वल रहमत है, उसके दरमियान में बख़्शिश है और उसके आखिर में आग से आजादी है।

❁ ••• ➲  मेरे प्यारे आका के प्यारे दीवानो! मजकूरा हदीस शरीफ में रमज़ानुल मुबारक की बरक़त और बुजुर्गी का जिक्र किया गया है, जिससे रमजानुल मुबारक की एहमियत और फजीलत जाहिर होती है, माहे रमज़ान में रोजा रखना, इफ्तारी करना और करवाना, कयामुल्लैल करना और दिन के वक्त भूक और प्यास से सब्र व ज़ब्ज़ और हर बुरी चीज़ से परहेज करना, यह तमाम अफआल वह हैं जो हम गुनाहगार मुसलमानों की बख़्शिश और नजात का वसीला हैं।...✍️

*📬 माहे रमज़ान कैसे गुज़ारे सफ़ह - 23 📚*


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         ❝      *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘ ❞
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*❝  हयाते इंसानी के तीन अदवार और रमज़ानुल मुबारक के तीन अशरे ❞*
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❁ ••• ➲  मेरे प्यारे आक़ा के प्यारे दीवानो! अगर्चे इंसान की हयात बेशुमार मराहिल से गुजर कर इतिकाए मराहिल तय करती हुई अपनी इंतिहा को पहुंचती है लेकिन हयात के तीन दौर काबिले जिक्र हैं।

❁ ••• ➲  पहला दौर दुनिया की जिंदगी है जिसका तअल्लुक रूह और जिस्म से वावस्ता है और जिंदगी का यह दौर पैदाइश से लेकर मौत तक है, इस दौर में हर इंसान अपनी रूह और जिस्म दोनों को पुरसकून तरीके से माद्दी आसाइश पहुंचाना चाहता है और मसाइव व आनाम से नजात चाहता है।

❁ ••• ➲  हयान का दूसरा मरहला मौत से लेकर कयामत तक का है जिसे आलमे बर्जख कहा जाता है, जिंदगी के इस मरहले की हकीकत अल्लाह तआला ही को मालूम है, सिवाए उसके कि जितना इल्म अल्लाह तआला ने इंसान को दिया है, सिर्फ इसी हद तक इंसान इस मरहले के बारे में जानता है।

❁ ••• ➲  तीसरा मरहला कयामत के बाद न खत्म होने वाली जिंदगी है, यह जिंदगी हिसाब व किताब के बाद जज़ा के तौर पर जन्नत की सूरत में या सज़ा के तौर पर दोजख की सूरत में होगी।

❁ ••• ➲  रोजा ऐसी इबादत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इर्शाद के मुताबिक जिंदगी के उन तमाम मराहित में कारआमद साबित होता है। 

❁ ••• ➲  रमज़ान का पहला अशरा रहमत का है जो जिंदगी के खुमूसन् पहले मरहले में अशद ज़रूरी है।

❁ ••• ➲  दूसरा अशरा मगफिरत का है जो जिंदगी के दूसरे मरहले के लिए कार आमद है कि उसकी वजह से कुछ में राहत मिलेगी और 

❁ ••• ➲  तीसरा अशरा जहन्नम से आजादी का है जो जिंदगी के तीसरे मरहले में कारआमद है। 

❁ ••• ➲  तो गोया जिसने रमज़ान के पूरे माह के रोजे रखे उसे जिंदगी के तमाम मराहिल में राहत व सुकून मयस्सर आएगा। *रब्बे कदीर हमें तौफीक अता फरमाए*।...✍️

*📬 माहे रमज़ान कैसे गुज़ारे सफ़ह - 23 📚*

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         ❝     *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘  ❞
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      *❝   माहे  रमज़ान  के  फ़ज़ीलत  ❞*
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❁ ••• ➲  *नूर का शहर* नबी अकरम नूरे मुजस्सम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया : जो शख्स माहे रमजानुल मुबारक में इबादत पर इस्तिकामत इख़्तियार करता है अल्लाह तआला उसे हर रकअत पर नूर का एक शहर इनाम देगा।

❁ ••• ➲  *बख़्शिश का जिम्मा* नबीए कौनेन साहिब काब कोसैन सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इशाद फरमाया : जो शख़्स माहे रमजानुल मुबारक में अपने वालिदैन की खिदमत अपनी इस्तिताअत के मुताबिक सर अंजाम देता है अल्लाह तआला उस पर खुसूसी नज़रे रहमत फरमाता है और उसकी बख़्शिश का मैं जिम्मा लेता हूँ। और जो औरत माहे रमजानुल मुबारक में अपने खाविंद की रजा जोई में मसरूफ रहती हैं अल्लाह तआला उसे जन्नत में हजरत मरयम व हज़रत आसिया रादिअल्लाहु तआला अन्हा की मईयत (साथ) अता फरमाएगा।

❁ ••• ➲  *साल का दिल* हुज़ूर नबी अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इशाद फरमाया : माहे रमज़ानुल मुबारक साल का दिल है, जब यह दुरुस्त रहा तो पूरा सात दुरुस्त रहेगा।

❁ ••• ➲  *अज़ाब से छुटकारा का जरिया* शेरे खुदा मुश्किल कुशा हज़रत अली मुर्तुज़ा करम अल्लाहु तआला वजाहाहुल करीम फरमाते हैं कि अगर अल्लाह तआला को उम्मते मुहम्मदिया को अज़ाब से दोचार करना होता तो उसे माहे रमजान और सूरए इख्लास कभी अता न फरमाता।

❁ ••• ➲  *बाज़ बुजुर्गाने दींन* से मंकूल है कि हजरत जिब्राईल अलैहिस्सलाम आसमान वालों के लिए अमान हैं और सैय्यदे आलम जमीन वालों के लिए और माहे रमजानुल मुबारक नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की उम्मत के लिये अमान है।...✍️

*📬 माहे रमज़ान कैसे गुज़ारे सफ़ह - 26 📚*

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         ❝     *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘  ❞
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   *❝ माहे रमज़ान के एहतिराम का इनाम ❞*
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❁ ••• ➲  बुखारा के शहर में एक मजूसी (आग की पूजा करने वाले) का लड़का मुसलमानों के बाजार में रमजान के महीने में खाना खा रहा था, यह देख कर उसके बाप ने अपने लड़के के मुंह पर तमांचा मारा और शख़्त नाराज हुआ, लड़के ने कहा : अब्बा जान! तुम भी तो रमज़ान में हर रोज़ दिन के वक्त खाते रहते हो! बाप ने कहा, वाकई में रोजा नहीं रखता और खाना भी खाता हूँ मगर खुफिया तौर पर घर बैठ कर खाता हूँ, मुसलमानों के सामने नहीं खाता हूँ! इस माहे मुबारक का एहतराम करता हूँ।

❁ ••• ➲  कुछ अरसे के बाद उस मजूसी का इन्तिक़ाल हो गया तो बुखारा के किसी नेक आदमी ने उसे ख्वाब में देखा कि वह जन्नत में टहल रहा है, उन्होंने मजूसी से पूछा तू जन्नत में कैसे दाखिल हो गया? तू तो मजूसी था! उसने कहा, वाकई में मजूसी था मगर मौत का वक्त करीब आया तो माहे रमजान के एहतेराम की बरकत से अल्लाह तआला ने मुझे इस्लाम लाने की तौफीक दी और मैं मुसलमान होकर मरा और यह जन्नत रमजान के एहतराम में इस्लाम मिलने पर अल्लाह तआला ने अता फरमाई।

❁ ••• ➲  मेरे प्यारे आका के प्यारे दीवानो! गौर करो कि एक आतिश परस्त ने माहे रमजान का एहतराम किया तो अल्लाह रब्बुल इज्जत ने उसके एवज़ उसे ईमान की दौलते बेबहा से नवाज़ कर जन्नत अता फरमा दी तो हम तो मुसलमान अगर हम अव्वामे रमजान की कद्र करेंगा, उसकी हुर्मत को पामाल न करेंगे तो ज़रूर रब्बे कदीर के फ़ज़्ल व करम के मुस्तहिक करार पाएंगे। 

❁ ••• ➲  रब्बे कदीर की बारगाह में दुआ है कि हम सब को माहे रमज़ान की कद्र करने की तौफीक अता फरमाए।...✍️

*📬 माहे रमज़ान कैसे गुज़ारे सफ़ह - 26 📚*

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         ❝      *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘ ❞
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   *❝ माहे  रमज़ान  की  बेहुर्मती  की  सज़ा ❞*
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❁ ••• ➲  कयामत के दिन एक शख्स को ऐसी हालत में लाया जाएगा कि फ़रिश्ते उसको खूब मार पीट रहे होंगे, रहमते आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से वह सहारा तलाश करेगा आप उनसे दयाफ्त फरमाएंगे, उसका क्या गनाह है कि इतना मार रहे हो? वह कहेंगे उसने माहे रमजानुल मुबारक को पाया मगर फिर भी अल्लाह तआला की नाफरमानी पर डटा रहा। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम सिफारिश करना चाहेंगे तो हुक्म होगा, मेरे हबीब! इसका दावा तो माहे रमज़ान ने किया है, आप फरमाएंगे जिसका दावेदार माहे रमज़ान है मैं उससे बेज़ार हूँ। 

🌹🤲🏻 ऐ खालिके जर्ज व समा! अपने महबूब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सदके हमें माहे रमज़ान का एहतराम करने की तौफीक अता फरमा और हर उस फेअल से बचा जो माहे रमज़ान की बेहुर्मती का सबब बने। *आमीन...✍️*

*📬 माहे रमज़ान कैसे गुज़ारे सफ़ह - 26 📚*

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         ❝      *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘ ❞
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*❝ हुजूर ﷺ माहे रमज़ान कैसे गुज़ारा करते थे ❞*
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❁ ••• ➲  सबसे पहला मामूल आपका यह है कि आप रमज़ानुल मुबारक की आमद से कई अय्याम पहले से ही उसको पाने की दुआ करते रहते। 

❁ ••• ➲  चुनान्चे इमामे तिबरानी की अवसत में और मुस्नदे बज़्ज़ार में है कि जैसे ही रजब का चाँद तुलूब होता तो आप अल्लाह तआला के हुजूर यह दुआ करते "तर्जुमा - ऐ अल्लाह! हमारे लिए रजब व शाबान बा बरक़त बना दे और हमें रमजान नसीब फरमा।

❁ ••• ➲ *मख़्सूस दुआ का विर्द* जब रमज़ानुल मुबारक शुरू होता तो रहमते आलम ﷺ अल्लाह तआला की बारगाहे अकदस में मख़्सूस दुआ किया करते और यूँ अर्ज करते " तर्जुमा " ऐ अल्लाह! अज़्ज़वज़ल! मुझे रमजान के लिए सलामती (सेहत व तंदुरस्ती) अता फरमा और मेरे लिए रमज़ान (के अव्वल व आखिर को बादल वगैरा से) महफूज फरमा और मुझे इसमें अपनी नाफरमानी से महफूज़ फरमा।..✍️

*📬 माहे रमज़ान कैसे गुज़ारे सफ़ह - 28 📚*

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         ❝      *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘ ❞
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      *❝  सोने  के  दरवाज़े  वाला  महल  ❞* 
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❁ ••• ➲ अबू सईद खुदरी رضي الله عنه से रिवायत है, हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का फरमान है : जब माहे रमज़ान की पहली रात आती है तो आसमानों और जन्नत के दरवाज़े खोल दिये जाते है और आखिर रात तक बन्द नही होते। जो कोई बन्दा इस माहे मुबारक की किसी भी रत में नमाज़ पढ़ता है तो अल्लाह उस के हर सजदे के इवज़ उस के लिये 1500 नेकियां लिखता है और उसके लिये जन्नत में *सुर्ख याकूत का घर* बनाता है। जिस में 60,000 दरवाज़े होंगे। और हर दरवाज़े के पट सोने के बने होंगे जिन में याकुते सुर्ख जड़े होंगे। 
     
❁ ••• ➲  पस जो कोई माहे रमज़ान का पहला रोज़ा रखता है तो अल्लाह महीने के आखिर दिन तक के गुनाह मुआफ़ फरमा देता है, और उस के लिये सुबह से शाम तक 70,000 फ़रिश्ते दुआए मगफिरत करते रहते है। रात और दिन में जब भी वो सजदा करता है उस के हर सजदे के इवज़ उसे जन्नत में एक एक दरख्त अता किया जाता है कि उस के साए में घोड़े सुवार 500 बरस तक चलता रहे।..✍️

*📔 शुएबुल ईमान ज़िल्द 3 सफ़ह 314, हदीस 3635*

  *📬  फैजाने रमज़ान शरीफ सफ़ह - 6 📚*


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         ❝      *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘ ❞
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          *❝  रोज़े  के  तीन  दरजे  ❞* 
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❁ ••• ➲  रोज़े की अगर्चे ज़ाहिरी शर्त ये है की रोज़ादार क़सदन खाने पिने और जीमाअ से बाज़ रहे। ता हम रोज़े के कुछ बातिनी आदाब भी है जिन का जानना जरूरी है ताकि हक़ीक़ी मानो में हम रोज़े की बरकतें हासिल कर सके।

❁ ••• ➲  *अवाम का रोज़ा* रोज़ा के लुग्वी माना है "रुकना" लिहाज़ा शरीअत की इस्तिलाह में सुब्हे सादिक़ से ले कर गुरुबे आफताब तक क़सदन खाने पिने और जिमाअ से "रुके रहने" को रोज़ा कहते है और येही अवाम यानी आम लोगो का रोज़ा है।

❁ ••• ➲  *खवास का रोज़ा* खाने पीने और जिमाअ से रुके रहने के साथ साथ जिस्म के तमाम आज़ा को बुराइयो से "रोकना" खवास यानी ख़ास लोगो का रोज़ा है।

❁ ••• ➲  *अखस्सुल खवास का रोज़ा* अपने आप को तर उमूर से "रोक" कर सिर्फ और सिर्फ अल्लाह की तरफ मुतवज्जेह होना, ये अखस्सुल खवास यानी खासुल ख़ास लोगो का रोज़ा है!

❁ ••• ➲ ज़रूरत इस अम्र की है की खाने पीने वगैरा से "रुके रहने" के साथ साथ अपने तमाम तर आज़ाए बदन को भी रोज़े का पाबन्द बनाया जाए।...✍️

  *📬  फैजाने रमज़ान शरीफ सफ़ह - 121 📚*

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     ❝      *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘❞
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 *❝  रोज़ा रख कर भी गुनाह तौबा ! तौबा ! ❞* 
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❁ ••• ➲  मीठे और प्यारे इस्लामी भाइयो ! खुदारा ! अपने हाले ज़ार पर तरस खाइये और गौर फरमाइये ! की रोज़ादार माहे रमज़ान में दिन के वक़्त खाना पीना छोड़ देता है हलाकि ये खाना पीना इस से पहले दिन में भी बिलकुल जाइज़ था। फिर खुद ही सोच लीजिये की जो चीज़े रमज़ान से पहले हलाल थी वो भी जब इस मुबारक महीने के मुक़द्दस दिनों में मना कर दी गई। तो जो चीज़े रमज़ान से पहले भी हराम थी, मसलन झूट, गीबत, चुगली, बाद गुमानी, गालम गलोच, फिल्में ड्रामे, गाने बाजे, बद निगाही, दाढ़ी मुंडाना या एक मुठ से घटाना, वालिदैन को सताना, बिला इजाज़ते शरई लोगो का दिल दुखाना वगैरा, वो रमज़ान में क्यू न और भी ज़्यादा हराम हो जाएगी ?
     
❁ ••• ➲  रोज़ादार जब रमज़ान में हलाल व तय्यिब खाना पीना छोड़ देता है, हराम काम क्यू न छोड़ दे ? अब फरमाइये ! जो शख्स पाक और हलाल खाना पीना तो छोड़ दे लेकिन हराम और जहन्नम में ले जाने वाले काम ब दस्तूर जारी रखे वो किस किस्म का रोज़ादार है ?

❁ ••• ➲  *अल्लाह को कुछ हाजत नही* फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जो बुरी बात कहना और उस पर अमल करना न छोड़े तो उस के भूका प्यासा रहने की अल्लाह को कुछ हाजत नही।

*📕 सहीह बुखारी, ज़िल्द 1 सफ़ह 628, हदीस : 1903*
    
❁ ••• ➲  एक और मक़ाम पर फ़रमाया : सिर्फ खाने और पीने से बाज़ रहने का नाम रोज़ा नही बल्कि रोज़ा तो ये है की लग्व और बे हुदा बातो से बचा जाए।...✍️

*📔 मुस्तदरक लील हाकिम, ज़िल्द 2 सफ़ह 67, हदीस : 1611*

  *📬  फैजाने रमज़ान शरीफ सफ़ह - 123 📚*

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     ❝      *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘❞
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      *❝  आज़ा  के  रोज़ो  की  तारीफ़  ❞* 
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❁ ••• ➲  आज़ा का रोज़ा यानी जिस्म के तमाम हिस्सों को गुनाहो से बचाना, ये सिर्फ रोज़ा ही के लिये मख़्सूस नही बल्कि पूरी ज़िन्दगी इन आज़ा को गुनाहो से बचाना ज़रूरी है और ये जभी मुमकिन है की हमारे दिलो में ख़ौफ़ेखुदा रासिख हो जाए। 
     
❁ ••• ➲  आह ! क़यामत के उस होशरुबा मन्ज़र को याद कीजिये जब हर तरफ "नफ्सी नफ्सी" का आलम होगा। सूरज आग बरसा रहा होगा। ज़बाने शिद्दते प्यास के सबब मुह से बाहर निकल पड़ी होगी। बीवी शौहर से, माँ अपने लख्ते जिगर से और बाप अपने नुरे नज़र से नज़र बचा रहा होगा। मुजरिमो को पकड़ पकड़ कर लाया जा रहा होगा। उन के मुह पर मोहर मार दी जाएगी और उन के आज़ा उन के गुनाहो की दास्तान सुना रहा होंगे जिस का क़ुरआन की सूरए यासीन की आयत 65 में यु तज़किरा किया गया है :
    
❁ ••• ➲  "आज हम इन के मुहो पर मोहर कर देंगे और उन के हाथ हम से बात करेंगे और उन के पाँव उन के किये की गवाही देंगे।"
     
❁ ••• ➲  आह ! क़यामत के उस कड़े वक़्त से अपने दिल को दराइये और हर वक़्त अपने तमाम आज़ाए बदन को मासिय्यत की मुसीबत से बाज़ रखने की कोशिश फरमाइये।..✍️

  *📬  फैजाने रमज़ान शरीफ सफ़ह - 125 📚*

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     ❝     *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘ ❞
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        *❝  आज़ा  के  रोज़ो  की  तारीफ़  ❞* 
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❁ ••• ➲  *आँख का रोज़ा* आँख का रोज़ा इस तरह रखना चाहिये की आँख जब भी उठे तो सिर्फ और सिर्फ जाइज़ उमूर ही की तरत उठे। आँख से मस्जिद देखिये, क़ुरआन देखिये, मज़ाराते औलिया की ज़ियारत कीजिये।

❁ ••• ➲  अल गरज़ कोई भी नाजाइज़ व हराम चीज़ देखने से बचे। और आँख का रोज़ तो 24 गंटे 30सो दिन और बारह महीने होना चाहिए।

❁ ••• ➲  *कान का रोज़ा* कान का रोज़ा ये है की सिर्फ और सिर्फ जाइज़ बाते सुने। मसलन कानो से तिलावत व नात सुनिये, सुन्नतो भरे बयानात सुनिये।

❁ ••• ➲  *ज़बान का रोज़ा* ज़बान का रोज़ा ये है की ज़बान सिर्फ और सिर्फ नेक व जाइज़ बातो के लिये ही हरकत में आए। मसलन ज़बान से तिलावते क़ुरआन कीजिये, ज़िक्रो दुरिद का विर्द कीजिये। दर्स दीजिये सुन्नतो भरा बयान कीजिये, नेकी की दावत दीजिये। फ़ुज़ूल बकबक से बचते रहिये।

❁ ••• ➲  *हाथ का रोज़ा* हाथो का रोज़ा ये है की जब भी उठे सिर्फ नेक कम के लिये उठे। मसलन क़ुरआन को हाथ लगाइये, नेक लोगो से मुसाफहा कीजिये, हो सके तो किसी यतीम के सर पर शफ़क़त से हाथ फेरिये की हाथ के निचे जितने बाल आएगे हर बाल के इवज़ एक नेकी मिलेगी।

❁ ••• ➲  *पाँव का रोज़ा* पाँव का रोज़ा ये है की पाँव उठे तो सिर्फ नेक कामो के लिये उठे। मसलन पाँव चले तो मसाजिद की तरफ, मज़ारते औरलिया की तरफ, सुन्नतो भरे इज्तेमअ की तरफ, नेकी की दावत के लिये, किसी की मदद के लिये चले।

❁ ••• ➲  वाक़ई हक़ीक़ी मानो में रोज़े की बरकत तो उसी वक़्त नसीब होगी जब हम तमाम आज़ा का भी रोज़ा रखेंगे। वरना भूक और प्यास के सिवा कुछ भी हासिल न होगा।..✍️

  *📬  फैजाने रमज़ान शरीफ सफ़ह - 125 📚*

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              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘ ❞
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                 *❝  अहकामें रोज़ा  ❞* 
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❁ ••• ➲  *सोने के बाद सहरी की इजाज़त न थी* रात को उठ कर सहरी करने की इजाज़त नही थी. रोज़ा रखने वाले को गुरुबे आफ़ताब के बाद सिर्फ उस वक़्त तक खाने पिने की इजाज़त थी जब तक वो सो न जाए. अगर सो गया तो अब बेदार हो कर खाना पीना ममनुअ था। मगर अल्लाह ने अपने प्यारे बन्दों पर एहसान अज़ीम फ़रमाते हुए सहरी की इजाज़त दी और इस का सबब यु हुवा....

❁ ••• ➲  *सहरी की इजाज़त की हिकायत* हज़रते सरमा बिन क़ैस رضي الله عنه मेहनती शख्स थे। एक दिन बी हालते रोज़ा अपनी ज़मीन में दिन भर काम कर के शाम को घर आए। अपनी ज़ौजा से खाना तलब किया, वो पकाने में मसरूफ़ हुई। आप थके हुए थे, आँख लग गई। खाना तैयार कर के जब आप को जगाया गया तो आप ने खाने से इनकार कर दिया। क्यू की उन दिनों (गुरुबे आफ़ताब के बाद) सो जाने वाले के लिये खाना पीना ममनुअ हो जाता था। चुनान्चे खाए पाई बगैर आप ने दूसरे दिन भी रोज़ा रख लिया। आप कमज़ोरी के सबब बेहोश हो गए।

*📔 तफ्सिरल ख़ाज़िन, ज़िल्द 1 सफ़ह 126*
     
❁ ••• ➲  तो इन के हक़ में ये आयते मुक़द्दसा नाज़िल हुई : और खाओ और पियो यहा तक की तुम्हारे लिये ज़ाहिर हो जाए सपेदी का डोरा सियाही के डोरे से पो फट कर। फिर रात आने तक रोज़े पुरे करो। *पारह, 2 अल बक़रह, 187*
 
❁ ••• ➲  इससे ये मालुम हुवा की रोज़े का अज़ान फज्र से कोई तअल्लुक़ नही यानी फज्र की अज़ान के दौरान खाने पिने का कोई जवाज़ ही नही। अज़ान हो या न हो आप तक आवाज़ पहुचे या न पहुचे सुब्हे सादिक़ होते ही आप को खाना पीना बिल्कुल ही बन्द करना होगा।...✍️

  *📬  फैजाने रमज़ान शरीफ सफ़ह - 155 📚*

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         *❝  रोज़े तोड़ने वाली बातें ❞* 
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❁ ••• ➲  खाने, पीने या हम बिस्तरी करने से रोज़ा जाता रहता है जब की रोज़ादार होना याद हो।

*📓 रद्दुल मुहतार, 3/365*

❁ ••• ➲  शकर वगैरा ऐसी चीज़े जो मुह में रखने से घुल जाती है मुह में रखी और थूक निगल गए रोज़ा जाता रहा।

*📔 बहारे शरीअत, 5/117*

❁ ••• ➲  दातो के दरमियान कोई चीज़ चने के बराबर या ज़्यादा थी उसे खा गए या कम ही थी मगर मुह से निकाल कर फिर खा ली तो रोज़ा टूट गया।

*📘 दुर्रे मुख्तार, 3/394*

❁ ••• ➲  दातो से खून निकल कर हल्क़ से निचे उतरा और खून थूक से ज़्यादा या बराबर या कम था मगर इस का मज़ा (टेस्ट) हल्क़ में महसूस हुवा तो रोज़ा जाता रहा और अगर कम था और मज़ा हल्क़ में महसूस न हुवा तो रोज़ा न गया।

*📔 दुर्रे मुख्तार, रद्दुल मुहतार, 3/368*

❁ ••• ➲  रोज़ा याद रहने के बा वुजूद हुक़्ना (यानि किसी दवा की बत्ती या पिचकारी पीछे के मक़ाम में चढ़ाना जिस से इजाबत हो जाए) लिया। या नाक के नथनों से दवाई चढ़ाई रोज़ा टूट गया।

*📕आलमगिरी, 1/204*

❁ ••• ➲   कुल्ली कर रहे थे बिला क़स्द पानी हल्क़ से उतर गया या नाक में पानी चढ़ाया और दिमाग को चढ़ गया रोज़ा जाता रहा। यु ही रोज़ादार की तरफ किसी ने कोई चीज़ फेकी वो उस के हल्क़ में चली गई तो रोज़ा टूट गया।...✍️

  *📬  फैजाने रमज़ान शरीफ सफ़ह - 201 📚*

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           *❝  रोज़े  तोड़ने  वाली  बातें ❞* 
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❁ ••• ➲  सोते में (या नींद की हालत में) पानी पी लिया या कुछ खा लिया, या मुह खुला था, पानी का क़तरा या बारिश का ओला हल्क़ में चला गया तो रोज़ा टूट गया।

❁ ••• ➲  दूसरे का थूक निगल लिया या अपना ही थूक हाथ में ले कर निगल लिया तो रोज़ा टूट गया।

❁ ••• ➲  जब तक थूक बलगम मुह के अंदर मौजूद हो उसे निगल जाने से रोज़ा नही टूटता, बार बार थूकते रहना ज़रूरी नही।

❁ ••• ➲  मुह में रंगीन डोरा वगैरा रखा जिस से थूक रंगीन हो गया फिर वो रंगीन थूक निगल गए तो रोज़ा टूट गया।

❁ ••• ➲  आसु मुह में चला गया और आप उसे निगल गए। अगर क़तरा दो क़तरा है तो रोज़ा न गया और ज़्यादा था की उस की नमकिनी पुरे मुह में महसूस हुई तो रोज़ा टूट गया। पसीने का भी यही हुक्म है।

❁ ••• ➲  फुज़ले का मक़ाम बाहर निकल आया तो हुक्म ये है की खूब अच्छी तरह किसी कपड़े वगैरा से पूछ कर उठे ताकि तरी बाक़ी न रहे। अगर कुछ पानी उस पर बाक़ी था और खड़े हो गए जिस की वजह से पानी अन्दर चला गया तो रोज़ा फासिद हो गया। इसी वजह से फुकहाऐ किराम फ़रमाते है की रोज़ादार इस्तिन्ज़ा करने में सास न ले।..✍️

  *📬  फैजाने रमज़ान शरीफ सफ़ह - 203 📚*

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          *❝  रोज़े  तोड़ने  वाली  बातें ❞* 
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❁ ••• ➲  *रोज़े में क़ै होना* बाज़ अवक़ात जब रोज़े में क़ै हो जाती है तो लोग परेशान हो जाते है बल्कि बाज़ तो समझते है की रोज़े में खुद ब खुद क़ै हो जाने से भी रोज़ा टूट जाता है। हालांकि ऐसा नही।

❁ ••• ➲  फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जिस को माहे रमज़ान में खुद बखुद क़ै आई उसका रोज़ा न टुटा और जिस ने जान बुझ कर क़ै की उस का रोज़ा टूट गया। 

*📔 कन्जुल उम्माल, 8/230, हदिष:23814*

❁ ••• ➲  एक और मक़ाम पर इर्शाद फ़रमाया : जिस को खुद बखुद क़ै आई उस पर क़ज़ा नही और जिस ने जानबूझ कर क़ै की वो रोज़े की क़ज़ा करे।

*📕 तिर्मिज़ी, 2/173, हदिष:720*

❁ ••• ➲  अगर रोज़ा याद होने के बा वुजूद क़सदन (यानि जानबूझ कर) क़ै की और अगर वो मुह भर है तो अब रोज़ा टूट गया।
  
❁ ••• ➲  क़सदन मुह भर होने वाली क़ै से भी इस सूरत में रोज़ा टूटेगा जब की क़ै में खाना या (पानी) या कड़वा पानी या खून आए।

❁ ••• ➲  अगर क़ै में सिर्फ बलगम निकला तो रोज़ा नही टूटेगा।

❁ ••• ➲  मुह भर क़ै बिला इख़्तियार हो गई तो रोज़ा न टूटा अलबत्ता अगर इस में से एक चने के बराबर भी वापस लौटा दी तो रोज़ा टूट जाएगा। और एक चने से कम हो तो रोज़ा न टुटा।

❁ ••• ➲  *मुह भर क़ै की तारीफ़* मुह भर क़ै के माना ये है, "इसे बिला तकल्लुफ न रोका जा सके।

❁ ••• ➲  *ज़रूरी हिदायत* मुह भर क़ै (बलगम के इलावा) नापाक है। इस का कोई छीटा कपड़े या जिस्म पर न गिरने पाए इस की एहतियात फरमाइये। आजकल लोग इस में बड़ी बे एहतियाती करते है, कपड़ो पर छीटे पड़ने की कोई परवाह नही करते और मुह वगैरा पर जो नापाक क़ै लग जाती है उस को भी बिला झिजक अपने कपड़ो से पूछ लेते है। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमे नफासत से बचने का ज़हन इनायत फरमाए।..✍️

  *📬  फैजाने रमज़ान शरीफ सफ़ह - 205 📚*

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                *❝  मकरुहाते  रोज़ा  ❞* 
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❁ ••• ➲  जिनके करने से रोज़ा हो तो जाता है मगर उस की नुरानिय्यत चली जाती है।
     
❁ ••• ➲  फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जो बुरी बात कहना और उस पर अमल करना न छोड़े तो अल्लाह को इस की कुछ हाजत नही की उस ने खाना, पीना छोड़ दिया है।

*📔 सहीह बुखारी, 1/628, हदिष:1903*
     
❁ ••• ➲  रोज़ा ढाल है जब तक उसे फाड़ा न हो। अर्ज़ की गई, किस चीज़ से फाड़ेगा ? इर्शाद फ़रमाया, झूट या गीबत से।

*📕 अत्तरगिब् वत्तरहिब, 2/94, हदिष:3*
     
❁ ••• ➲  झूट, चुगली, गीबत, बद निगाही, गली देना, बिला इजाज़ते शरई किसी का दिल दुखाना, दाढ़ी मुंडाना वगैरा चीज़े वेसे भी ना जाइज़ व हराम है रोज़े में और ज़्यादा हराम और उन की वजह से रोज़े में कराहिय्यत आती और रोज़े की नुरानिय्यत चली जाती है।
     
❁ ••• ➲  रोज़ादार का बिला उज़्र किसी चीज़ को चखना या चबाना मकरूह है। चखने के लिये उज़्र ये है की मसलन औरत का शौहर बद मिज़ाज है की नमक कम या ज़्यादा होगा तो उस की नाराज़गी का बाइस होगा। इस वजह से चखने में हरज नही।
     
❁ ••• ➲  चबाने के लिये उज़्र ये है की इतना छोटा बच्चा है की रोटी नही चबा सकता और कोई नर्म ग़िज़ा नही जो उसे खिलाई जा सके, न हैज़ो निफ़ास वाली औरत या कोई और ऐसा है की उसे चबा कर दे। तो बच्चे के खिलाने के लिये रोटी वगैरा चबाना मकरूह नही। मगर पूरी एहतियात रखिये अगर हल्क़ से निचे कुछ् उतर गया तो रोज़ा टूट गया।..✍️

  *📬  फैजाने रमज़ान शरीफ सफ़ह - 213 📚*

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     ❝ *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘ ❞
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                    *❝  मकरुहाते  रोज़ा  ❞* 
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❁ ••• ➲  बीवी का बोसा लेना और गले लगाना और बदन को छूना मकरूह नही। हा अगर ये अन्देशा हो की इन्ज़ाल हो जाएगा या जिमाअ में मुब्तला होगा और हॉट और ज़बान चूसना रोज़े में मुतलक़न मकरूह है।
     
❁ ••• ➲  रोज़े में मिस्वाक करना मकरूह नही बल्कि और दिनों की तरह सुन्नत है।
     
❁ ••• ➲  अक्सर लोगो में मशहूर है की दोपहर बाद रोज़ादार के लिये मिस्वाक करना मकरूह है ये हमारे मज़्हबे हनफिया के खिलाफ है।
     
❁ ••• ➲  अगर मिस्वाक चबाने से रेशे छूटे या मज़ा महसूस हो तो ऐसी मिस्वाक रोज़े में नही करना चाहिए। अगर रोज़ा याद होते हुए मिस्वाक का रेशा या कोई जुज हल्क़ से निचे उतर गया तो रोज़ा फासिद् हो जाएगा।
     
❁ ••• ➲  बाज़ लोगो का रोज़े में बार बार थूकते रहते है शायद वो समझते है की रोज़े में थूक नही निगलना चाहिये, ऐसा नही। अलबत्ता मुह में थूक इकठ्ठा कर के निगल जाना, ये तो बगैर रोज़े के भी ना पसंदीदा है और रोज़े में मकरूह!..✍️

  *📬  फैजाने रमज़ान शरीफ सफ़ह - 215 📚*

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     ❝*💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
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                   *❝  फ़ैज़ाने  एतिकाफ  ❞* 
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❁ ••• ➲  मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! रमज़ानुल मुबारक की बरकतों के क्या कहने ! यूं तो इस की हर हर घड़ी रहमत भरी और हर हर साअत अपने जिलौ में बे पायां बरकतें लिये हुए है। मगर इस माहे मोहतरम में शबे क़द्र सब से ज़ियादा अहम्मिय्यत  की हामिल है। इसे पाने के लिये हमारे प्यारे आका ﷺ ने माहे रमज़ाने पाक का पूरा महीना भी एतिकाफ़ फ़रमाया है और आखिरी दस दिन का बहुत ज़ियादा एहतिमाम था। यहां तक कि एक बार किसी खास उज़र के तहत “आप ﷺ रमज़ानुल मुबारक में एतिकाफ़ न कर सके तो शव्वालुल मुकर्रम के आख़िरी अशरह में एतिकाफ़ फ़रमाया।

*📕 सहीह बुखारी* जिल्दः1, सफहा : 671, हृदीस : 2031 
     
❁ ••• ➲  *एतिकाफ़ पुरानी इबादत है* पिछली उम्मतों में भी एतिकाफ की इबादत मौजूद थी। चुनान्चे पारह पहला सूरतुल बकरह की आयत नम्बर 125 में अल्लाह का फ़रमाने आलीशान है : और हम ने ताकीद फ़रमाई इब्राहीम व इस्माइल عليه السلام को की मेरे घर खूब सुथरा करो तवाफ़ वालों और एतिकाफ वालों और रुकू व सुजूद वालों के लिए।..✍️

  *📬  फैजाने रमज़ान सफ़ह - 334 📚*

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     ❝*💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
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               *❝  10 दिन का एतिकाफ  ❞* 
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❁ ••• ➲  अल्लाह के प्यारे हबीब صلى الله عليه وسلم का ये मामूल हो गया की हर रमज़ान शरीफ के आखरी 10 दिन का एतिकाफ फ़रमाया करते और इसी सुन्नत को ज़िन्दा रखते हुए उम्महातुल मुअमिनिन رضي الله عنها भी एतिकाफ फरमाती रही। चुनान्चे उम्मुल मुअमिनिन हज़रते आइशा सिद्दिक़ा رضي الله عنها रिवायत फरमाती है की मेरे सरताज صلى الله عليه وسلم रमज़ान के आखरी 10 दिन का एतिकाफ फ़रमाया करते। यहाँ तक की अल्लाह ने आप को वफ़ाते ज़ाहिरी अता फ़रमाई। फिर आप के बाद आप की अज़्वाजे मुतह्हरात एतिकाफ करती रही।

*📕 सहीह बुखारी ज़िल्द 1 सफ़ह 664, हदीस 2026*

❁ ••• ➲  *एक दिन के एतिकाफ की फ़ज़ीलत* जो रमज़ान के इलावा भी सिर्फ एक दिन मस्जिद के अंदर इखलास के साथ एतिकाफ कर ले उस के लिये भी ज़बरदस्त षवाब की बिशारत है।
     
❁ ••• ➲  फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जो शख्स अल्लाह की रिज़ा व ख़ुशनूदी के लिये एक दिन का एतिकाफ करेगा अल्लाह उस के और जहन्नम के दरमियान 3 खन्दके हाइल कर देगा जिन की मसाफत मशरिक़ व मगरिब के फासिल से भी ज़्यादा होगी।

*📔 अद्दुररुल मन्सूर ज़िल्द 1 सफ़ह 486*

❁ ••• ➲  *साबिक़ा गुनाहो की बख्शीश* फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जिस शख्स ने ईमान के साथ षवाब हासिल करने की निय्यत से एतिकाफ किया उस के तमाम पिछले गुनाह बख्श दिये जाएंगे।..✍️

*📓 जामेइस्सगिर 516, हदीस 8480*

  *📬  फैजाने रमज़ान सफ़ह - 335 📚*

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         *❝  दो हज और दो उम्रों का षवाब  ❞* 
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❁ ••• ➲  फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जिसने रमज़ान में 10 दिन का एतिकाफ कर लिया वो ऐसा है जेसे दो हज और दो उम्रे किये।

*📕 शुएबुल ईमान, 3/425, हदिष:2966*

❁ ••• ➲  *गुनाहो से तहफ़्फ़ुज़* फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : एतिकाफ करने वाला गुनाहो से बचा रहता है और उस के लिये तमाम नेकियां लिखी जाती है जेसे उन के करने वाले के लिये होती है।

*📔 इब्ने माजह, 2/365, हदिष:1781*

❁ ••• ➲  *बगैर किये नेकियों का षवाब* एतिकाफ का एक बहुत बड़ा फायदा ये भी है की जितने दिन मुसलमान एतिकाफ में रहेगा गुनाहो से बचा रहेगा। लेकिन ये अल्लाह की खास रहमत है की बाहर रह कर जो नेकियां वो किया करता था, एतिकाफ की हालत में अगर्चे वो इन को अन्जाम न दे सकेगा मगर फिर भी वो इस के नामए आमाल में बदस्तूर लिखी जाती रहेगी और उसे इन का षवाब भी मिलता रहेगा। मसलन कोई इस्लामी भाई मरीज़ों की इयादत करता था, और एतिकाफ की वजह से ये काम नही कर सका तो वो इस के षवाब से महरूम नही होगा बल्कि इस को ऐसा ही षवाब मिलता रहेगा जेसे वो खुद इस को अन्जाम देता रहा हो।...✍️

  *📬  फैजाने रमज़ान सफ़ह - 335 📚*


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               *❝  एतिकाफ  की  तारीफ़ ❞* 
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❁ ••• ➲  मस्जिद में अल्लाह की रिज़ा के लिये ब निय्यते एतिकाफ ठहरना एतिकाफ है। इस के लिये मुसलमान का अक़ील और जनाबत और हैज़ो नफास से पाक होना शर्त है। बुलुग शर्त नही ना बालिग़ भी जो तमीज़ रखता है अगर ब निय्यते एतिकाफ मस्जिद में ठहरे तो उस का एतिकाफ सहीह है।

*📔 आलमगिरी, 1/211*

❁ ••• ➲  *एतिकाफ के ल्फ़ज़ी माना* एतिकाफ के लुग्वी माना है "धरना मारना" मतलब ये की मोतकिफ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में उस की इबादत पर कमर बस्ता हो कर धरना मार कर पड़ा रहता है। उस की ये धुन होती है की किसी तरह उस का परवर्दगार उस से राज़ी हो जाए।

❁ ••• ➲  *अब तो गनी के दर पर बिस्तर जमा दिये है* हज़रते अता खुरासानी फ़रमाते है : मोतकिफ की मिसाल उस शख्स की सी है जो अल्लाह के दर पर पड़ा हो और ये कह रहा हो, या अल्लाह जब तक तू मेरी मगफिरत नही फरमा देगा में यहाँ से नही टलूंगा।...✍️

*📕 शोएबुल ईमान, 3/426, हदिष:3970*

  *📬  फैजाने रमज़ान सफ़ह - 335 📚*

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                *❝  एतिकाफ की किस्मे  ❞* 
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❁ ••• ➲  एतिकाफ की तीन किस्मे है (1) ऐतिकाफे वाजिब, (2) ऐतिकाफे सुन्नत, (3) ऐतिकाफे नफ्ल।

❁ ••• ➲  *ऐतिकाफे वाजिब* एतिकाफ की नज़र (यानी मन्नत) मानी यानी ज़बान से कहा "में अल्लाह के लिये फुला दिन या इतने दिन एतिकाफ करूँगा"। तो अब जितने भी दिन का कहा है उतने दिन का एतिकाफ करना वाजिब हो गया। 

❁ ••• ➲  ये बात खास कर याद रखिये की जब कभी किसी भी किस्म की मन्नत मानी जाए जस में ये शर्त है की मन्नत के अल्फ़ाज़ ज़बान से अदा किये जाए सिर्फ दिल ही दिल में मन्नत की निय्यत कर लेने से मन्नत सहीह नही होती।

*📔 रद्दुल मुहतार, 3/430*
     
❁ ••• ➲  मन्नत का एतिकाफ मर्द मस्जिद में करे और औरत मस्जिदे बैत में। इन में रोज़ा भी शर्त है। (औरत घर में जो जगह नमाज़ के लिये मखसुस कर ले उसे _मस्जिदे बैत_ कहते है)

❁ ••• ➲  *ऐतिकाफे सुन्नत* रमज़ान के आखरी 10 दिन का एतिकाफ "सुन्नते मुअक्कदा अलल किफाया" है।

*📕 दुर्रे मुख्तार मअ रद्दुल मुहतार, 3/430*

❁ ••• ➲  यानी पुरे शहर में किसी एक ने कर लिया तो सब की तरफ से अदा हो गया और अगर किसी एक ने भी न किया तो सभी मुजरिम हुए।

*📓 बहारे शरीअत, 5/152*

❁ ••• ➲  इस एतिकाफ में ये ज़रूरी है की रमज़ान की बीसवी तारीख को गुरुबे आफताब से पहले पहले मस्जिद के अंदर ब निय्यते एतिकाफ मौजूद हो और उनतीस के चाँद के बाद या तिस के गुरुबे आफताब के बाद मस्जिद से बहार निकले।

*📔 बहारे शरीअत, 5/151*
     
❁ ••• ➲ अगर 20 रमज़ान को गुरुबे आफताब के बाद मस्जिद में दाखिल हुए तो एतिकाफ की सुन्नते मुअककदा अदा न हुई बल्कि सूरज डूबने से पहले पहले मस्जिद में तो दाखिल हो चूके थे मगर निय्यत करना भूल गए थे यानी दिल में निय्यत ही नही थी (निय्यत दिल के इरादे को कहते है) तो इस सुरतमे भी एतिकाफ की सुन्नते मुअककदा अदा न हुई। अगर गुरुबे आफताब के बाद निय्यत की तो नफ्लि एतिकाफ हो गया। 

❁ ••• ➲ दिल में निय्यत कर लेना ही काफी है ज़बान से कहना शर्त नही। अलबत्ता दिल में निय्यत हाज़िर होना ज़रूरी है साथ ही ज़बान से भी कह लेना ज़्यादा बेहतर है।

❁ ••• ➲ *एतिकाफ की निय्यत इस तरह कीजिये* में अल्लाह की रिज़ा के लिये रमज़ान के आखरी 10 दिन का सुन्नते एतिकाफ की निय्यत करता हु।...✍️

  *📬  फैजाने रमज़ान सफ़ह - 335 📚*


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              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘  ❞
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  *❝ रोजा़ के तालुक से कुछ जरूरी मसाइल ❞* 
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❁ ••• ➲  *मसअला* - भूल कर खाने पीने या जिमआ करने से रोज़ा नहीं टूटेगा।

*📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 112*

❁ ••• ➲  *मसअला* - बिला कस्द हलक में मक्खी धुआं गर्दो गुबार कुछ भी गया रोज़ा नहीं टूटेगा।

*📙 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 112*

❁ ••• ➲  *मसअला* - बाल या दाढ़ी में तेल लगाने से या सुरमा लगाने से या खुशबू सूंघने से रोज़ा नहीं टूटता अगर चे सुरमे का रंग थूक में दिखाई भी दे तब भी नहीं।

*📗 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 113*

❁ ••• ➲  *मसअला* - कान में पानी जाने से तो रोज़ा नहीं टूटा मगर तेल चला गया या जानबूझकर डाला तो टूट जायेगा।

*📘 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 117*

❁ ••• ➲  *मसअला* - एहतेलाम यानि नाइट फाल हुआ तो रोज़ा नहीं टूटा मगर बीवी को चूमा और इंजाल हो गया तो रोज़ा टूट गया युंहि हाथ से मनी निकालने से भी रोज़ा टूट जायेगा।

*📔 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 117*

❁ ••• ➲  *मसअला* - तिल या तिल के बराबर कोई भी चीज़ चबाकर निगल गया और मज़ा हलक में महसूस ना हुआ तो रोज़ा नहीं टूटा और अगर मज़ा महसूस हुआ या बगैर चबाये निगल गया तो टूट गया और अब क़ज़ा के साथ कफ्फारह भी वाजिब है।

*📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 114,122*

❁ ••• ➲  *मसअला* - आंसू मुंह में गया और हलक़ से उतर गया तो अगर 1-2 क़तरे हैं तो रोज़ा ना गया लेकिन पूरे मुंह में नमकीनी महसूस हुई तो टूट गया।..✍️

*📓 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 117*


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  *❝ रोजा़ के तालुक से कुछ जरूरी मसाइल ❞* 
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❁ ••• ➲  *मसअला* - बिला इख्तियार उलटी हो गयी तो चाहे मुंह भरकर ही क्यों ना हो रोज़ा नहीं टूटेगा।

*📓 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 121*

❁ ••• ➲  *मसअला* - कुल्ली करने में पानी हलक़ से नीचे उतरा या नाक से पानी चढ़ाने में दिमाग तक पहुंच गया अगर रोज़ा होना याद था तो टूट गया वरना नहीं।

*📔 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 117*

❁ ••• ➲  *मसअला* - पान,तम्बाकू,सिगरेट,बीड़ी,हुक्का खाने पीने से रोज़ा टूट जायेगा।

*📗 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 116*

❁ ••• ➲  *मसअला* - जानबूझकर अगरबत्ती का धुआं खींचा या नाक से दवा चढ़ाई या कसदन कुछ भी निगल गया तो रोज़ा टूट गया।

*📘 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 113,114,117*

❁ ••• ➲  *मसअला* - इंजेक्शन चाहे गोश्त में लगे या नस में रोज़ा नहीं टूटेगा मगर उसमें अलकोहल होता है इसलिए जितना हो सके बचा जाये।...✍️
 
*📓 फतावा अफज़लुल मदारिस,सफह 88*

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*❝ रोजा़ के तालुक से कुछ जरूरी मसाइल ❞* 
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❁ ••• ➲  *मसअला* - पूरा दिन नापाक रहने से रोज़ा नहीं जाता मगर जानबूझकर 1 वक़्त की नमाज़ खो देना हराम है।

*📘 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 113*

❁ ••• ➲  *मसअला*  झूट,चुगली,ग़ीबत,गाली गलौच,बद नज़री व दीगर गुनाह के कामों से रोज़ा मकरूह होता है लेकिन टूटेगा नहीं।

*📙 जन्नती ज़ेवर,सफह 264*

❁ ••• ➲  *मसअला* - रोज़ा तोड़ने का कफ्फारह उस वक़्त है जबकि नियत रात से की हो अगर सूरज निकलने के बाद नियत की तो सिर्फ क़ज़ा है कफ्फारह नहीं।

*📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 120*

❁ ••• ➲  *मसअला* - कफ्फारये रोज़ा ये है कि लगातार 60 रोज़े रखे बीच में अगर 1 भी छूटा तो फिर 60 रखना पड़ेगा या 60 मिस्कीन को दोनों वक़्त पेट भर खाना खिलाये या 1 ही फकीर को दोनों वक़्त 60 दिन तक खाना खिलाये या इसके बराबर रक़म सदक़ा करे।...✍️

*📓 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 123*

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 *❝ रोजा़ के तालुक से कुछ जरूरी मसाइल ❞* 
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❁ ••• ➲  *मसअला* - मुबालग़े के साथ इस्तिंजा किया और हकना रखने की जगह तक पानी पहुंच गया रोज़ा टूट गया।

*📓 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 116*

❁ ••• ➲  पाखाने के सुर्ख मक़ाम तक पानी पहुंचा तो रोज़ा टूट जायेगा लिहाज़ा बड़ा इस्तिंजा करने में इस बात का ख्याल रखें कि फ़ारिग होने के बाद जब मक़ाम धुलना हो तो चंद सिकंड के लिये सांस को रोक लिया जाये ताकि मक़ाम बंद हो जाये अब जल्दी जल्दी धोकर पानी पूरी तरह से पोंछ लिया जाये क्योंकि अगर पानी के क़तरे वहां रह गये और खड़े होने में वो क़तरे अंदर चले गये तो रोज़ा टूट जायेगा,इसीलिए आलाहज़रत अज़ीमुल बरकत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि रमज़ान भर बैतुल खला एक कपड़ा साथ लेकर जायें जिससे कि आज़ा के पानी को खड़े होने से पहले सुखा सकें।

❁ ••• ➲  *मसअला* - औरत का बोसा लिया मगर इंज़ाल ना हुआ तो रोज़ा नहीं टूटा युंही अगर औरत सामने हैं और जिमअ के ख्याल से ही इंज़ाल हो गया तब भी रोज़ा नहीं टूटा।

*📘 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 113*

❁ ••• ➲  *मसअला* - औरत ने मर्द को छुआ और मर्द को इंज़ाल हो गया रोज़ा ना टूटा और मर्द ने औरत को कपड़े के ऊपर से छुआ और उसके बदन की गर्मी महसूस ना हुई तो अगर इंज़ाल हो भी गया तब भी रोज़ा ना टूटा।

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 117*

❁ ••• ➲  *मसअला* - औरत ने मर्द को सोहबत करने पर मजबूर किया तो औरत पर क़ज़ा के साथ कफ्फारह भी वाजिब है मर्द पर सिर्फ क़ज़ा।..✍️

*📓 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 122*

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❁ ••• ➲  *मसअला* - औरत को मुयय्यन तारीख पर हैज़ आता था आज हैज़ आने का दिन था उसने कस्दन रोज़ा तोड़ दिया मगर हैज़ ना आया तो कफ्फारह नहीं सिर्फ क़ज़ा करेगी युंही सुबह होने के बाद पाक हुई और नियत कर ली तो आज का रोज़ा नहीं होगा।

*📙 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 123/119*

❁ ••• ➲  *मसअला* - कोई चीज़ खरीदी और चखना ज़रूरी है कि अगर ना चखेगा तो नुकसान होगा तो इजाज़त है कि चख ले युंही शौहर बद मिज़ाज है कि नमक वगैरह की कमी बेशी पर चीखता चिल्लाता है तो औरत को हुक्म है कि नमक चख ले मगर चखने से मुराद ये है कि ज़बान पर रखकर मज़ा महसूस करके फौरन थूक दे वरना अगर निगल लिया तो रोज़ा जाता रहा बल्कि अगर शरायत पाये गये तो कफ्फारह भी लाज़िम होगा

*📔 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 125*

❁ ••• ➲  *मसअला* - रमज़ान के दिनों में ऐसा काम करना जायज़ नहीं जिससे रोज़ा ना रख सके बल्कि हुक्म ये है कि अगर रोज़ा रखेगा और कमज़ोरी महसूस होगी और खड़े होकर नमाज़ ना पढ़ सकेगा तो भी रोज़ा रखे और बैठ कर नमाज़ पढ़े लेकिन ये तब ही है जब कि बिल्कुल ही खड़ा ना हो सके वरना बैठकर नमाज़ ना होगी।

*📗 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 126*

❁ ••• ➲  *मसअला* - दांतों में कोई चीज़ फंसी रह गयी तो अगर वो बगैर थूक की मदद से हलक़ से नीचे उतर सकती है और निगल गया तो रोज़ा टूट गया और इतनी खफ़ीफ़ है कि थूक के साथ ही उतर सकती है और निगला तो नहीं टूटा युंही मुंह से खून निकला और हलक़ से उतरा तो अगर मज़ा महसूस हुआ तो रोज़ा टूट गया और अगर खून कम था या मज़ा महसूस ना हुआ तो नहीं टूटा।

*📓 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 116*

❁ ••• ➲  *मसअला* - डोरा बट रहा था बार बार तर करने के लिए मुंह से गुज़ारा तो अगर उसकी रंगत या मज़ा महसूस ना हुआ तो रोज़ा नहीं गया लेकिन डोरे की रतूबत अगर थूक के ज़रिये निगला तो रोज़ा टूट गया।...✍️

*📕 बहारे शरीयत, हिस्सा 5,सफह 117*


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  *❝ रोजा़ के तालुक से कुछ जरूरी मसाइल ❞* 
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❁ ••• ➲ *मसअला* - ये गुमान था कि अभी सुबह नहीं हुई और खाया पिया या जिमअ किया और बाद को मालूम हुआ कि सुबह हो चुकी थी या किसी ने जबरन खिलाया तो इन सूरतों में सिर्फ क़ज़ा है कफ़्फ़ारह नहीं।

*📓 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 118*

❁ ••• ➲ *मसअला* - नाइटफॉल हुआ और उसे मालूम था कि रोज़ा नहीं टूटा फिर उसके बाद खाया पिया तो अब कफ्फारह लाज़िम है।

*📙 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 121*

❁ ••• ➲ *मसअला* - अगर किसी का रोज़ा गलती से टूट जाए तो फिर भी उसे मग़रिब तक कुछ भी खाना पीना जायज़ नहीं है पूरा दिन मिस्ल रोज़े के ही गुज़ारना वाजिब है युंही जो शख्स रमज़ान में खुले आम खाये पिये हुक्म है कि उसे क़त्ल किया जाये।

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 118/119*

❁ ••• ➲ *मसअला* - रोज़ेदार वुज़ू में कुल्ली करने और नाक में पानी चढ़ाने में मुबालग़ा ना करे।

*📔 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 126*

❁ ••• ➲ मतलब ये कि इतना पानी मुंह में ना भर ले कि हलक़ तक पहुंच जाये या नाक में इतना ना चढ़ाये कि दिमाग़ तक पहुंच जाये वरना रोज़ा टूट जायेगा,एक मसअला ये भी ज़हन में रखें कि अगर कोई रात को जुनुब हुआ यानि ग़ुस्ल फर्ज़ हुआ तो बेहतर है कि सहरी के वक़्त ही ग़ुस्ल करले और अगर नहीं किया यानि वक़्ते सहर खत्म हो गया तो अब ग़ुस्ल के 3 फरायज़ में से 2 उस पर से साकित हो गया यानि कुल्ली इस तरह करना कि हलक़ तक पानी पहुंच जाये और नाक की नर्म हड्डी तक पानी चढ़ाना ये दोनों माफ है अब बस सर से लेकर पैर तक एक बाल बराबर भी सूखा ना रहने पाये इस तरह पानी बहाले पाक हो जायेगा।

❁ ••• ➲ *मसअला* - सहरी खाने में देर करना मुस्तहब है मगर इतनी देर ना करें कि वक़्ते सहर ही खत्म हो जाये युंही अफ्तार में जल्दी करना भी मुस्तहब है मगर इतनी जल्दी भी ना हो कि सूरज ही ग़ुरूब ना हुआ हो।

*📗 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 126*

❁ ••• ➲बाज़ लोग अज़ान को ही खत्मे सहर समझते हैं ये उनकी गलत फहमी है मसलन आज खत्मे सहर 4:26 पर था तो कम से कम एहतियातन 3 मिनट पहले यानि 4:24 पर ही खाना पीना छोड़ दें युंही अगर फज्र पढ़नी हो तो कम से कम एहतियातन 3 मिनट और जोड़ दें यानि 4:29 पर फज्र पढ़ सकते हैं,अगर खत्मे सहर के बाद अगर एक बूंद पानी या एक दाना भी मुंह में डाला तो रोज़ा शुरू ही नहीं होगा अगर चे अभी अज़ान हुई हो या न हुई हो अगर चे वो नियत भी करले और दिन भर मिस्ल रोज़ा भूखा प्यासा भी रहे,लिहाज़ा वक़्त का लिहाज़ करें।...✍️

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            *❝  शबे  कद्र  की  फज़ीलत  ❞* 
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❁ ••• ➲  शबे कद्र जो सत्ताईसवीं रमज़ान शरीफ़ की रात है। इसको बाकी रातों पर चंद वजहों से बुजुर्गी हासिल है। इस रात में शाम से बहुत तक तजल्ली इलाही बंगदाने खुदा की तरफ़ मुतवज्जोह होती रहती है। इस रात में मलायका और अरवाह आसमान से इबादत करने वालों को मुलाकात के लिये जमीन पर उतरते हैं और उनके आने और हाज़िर होने की वजह से इबादत में लज्जत और कैफियत पैदा होती हैं जो दूसरी रातों की इबादत में पैदा नहीं हाती। 

❁ ••• ➲  कुरआन मजीद इसी रात में नाजिल हुआ है और यह एक ऐसी शराफत है कि जिसकी निहायत नहीं। इसी रात बहिश्त में बागात लगाये गये। 

❁ ••• ➲  इसी रात में सैयदना हजरत आदम अलैहिस्सलाम का मादा जमा किया गया था।  

❁ ••• ➲  शबे कद्र अफ़जल है गैर शबे कद्र की तीस हजार दिन और तीस हजार रातो से क्योंकि हजार माह के इतने ही शब व रोज होते हैं।
   
❁ ••• ➲  हुजूर अनवर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया जिसने शबे कदर को ईमान व यकीन और निसबते खालिस के साथ कयाम किया यानी ज़िक्र व नमाज़ व इबादत में शब बेदारी की इसके तमाम गुजरे हुए गुनाह बख्श दिये जाते हैं।...✍️

      *📬 तीन नूरानी रातें सफ़ह - 36 📚*


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             *❝  शबे क़द्र कौन सी रात है।  ❞* 
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❁ ••• ➲  शबे कद्र के मुताल्लिक बड़ा इख्तेलाफ़ है कि वह कौन सी रात है। मगर मशहूर यह है कि रमजान शरीफ की सत्ताईसवीं रात है इमाम शारानी रहमतुल्लाह तआला अलैहि ने शबे क़द्र की कुछ अलामतें ब्यान फरमाई हैं कि यह रात चमकदार और शफ़ाक़ होगी। न ज्यादा गर्म और न ज्यादा ठंडी मुअतदल होगी। इस रात में न बादल होंगे न ही बारिश होगी। और न सितारे टूटेंगे जो शैतानों को मारे जाते हैं। और इस रात की सुबह को सूरज बगैर शुआअ के निकलेगा। और इस रात में कुत्ते नहीं भोंकते।

❁ ••• ➲  बाज़ हजरात फ़रमाते हैं कि शबे कद्र में समुंद्रों और दरियाओं का पानी मीठा हो जाता है और इंसानों और जिन्नों के सिवा तमाम चीजें सज्दा में गिर जाती हैं मगर इन बातों का इल्म साहब कश्फ को होता है हर एक शख्स को पता नहीं चलता।

❁ ••• ➲  फ़रमाने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम :- नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया शबे क़द्र को रमज़ान के आखिरी दहे की ताक रातों में तलाश करो। तमाम उलेमा अहले सुन्नत वल जमाअत का इस पर इत्तेफाक है कि शबे कद्र माहे रमज़ानुल मुबारक की सत्ताईसवीं रात है इस एक रात में इबादत करने का सवाब हजार माह की इबादत से ज्यादा है।

❁ ••• ➲  *शबे कद्र में दुआ कुबूल होती है :-* शबे कद्र में एक ऐसी साअत है कि जिसमें जो दुआ मांगी जाये वह कुबूल होती है। लिहाज़ा मुसलमानों को चाहिये कि शबे कद में ऐसी जामेअ दुआ मांगे जो दोनों जहानों में फायदा बख़्शे। 

❁ ••• ➲  मसलन अपने गुनाहों की बख्शिश ,और रज़ाए इलाही के हुसूल की दुआ मांगी जाये। 

❁ ••• ➲  उम्मुल मोमिनीन सैयदा हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं।

❁ ••• ➲  *तर्जमा :-* मैनें अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आप बतायें कि अगर मुझे लैलतुल क़द्र *(शबे कद्र*) का पता चल जाये तो मैं कौन सी दुआ मांगू। 

❁ ••• ➲  आपने इरशाद फरमाया कि तू यह दुआ मांग । ऐ अल्लाह ! बेशक तू माफ़ करने वाला है और माफ़ी को दोस्त रखता है ,मुझे भी माफ़ कर दे। मतलब यह है कि इस रात अपने परवरदिगार से माफ़ी की दरख्वास्त करता रहे और यह कहता रहे कि:- *"اَللّٰھُمَّ اِنَّك عَفْوٗتُحِبُّ الْعَفْوَ عَاعْفُ عَنِِّیْ"*।...✍️

      *📬 तीन नूरानी रातें सफ़ह - 37 📚*


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     ❝*💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
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    *❝  शबे कद्र की इबादत और नवाफ़िल ❞* 
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❁ ••• ➲   शबे कद्र में सैयदना हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम बमअ दीगर फरिश्तों के जमीन पर उतरते हैं और वह चार झंडे गाड़ते हैं एक रौज़ए अतहर पर ,एक काबा मोअज़्ज़मा की छत पर ,और एक बैतुल मुकद्दस पर ,और एक आसमान और ज़मीन के दर्मियान पर। फिर वह फ़रिश्ते तमाम तरफों में फैल जाते हैं और कोई ऐसा घर बाकी नहीं रहता। जहां वह दाखिल न हों। जो शख़्स इबादत में मशगूल होता है फ़रिश्ते उसको सलाम देते हैं और यह नक्शा तुलूअ फज्र तक बाकी रहता है।
इस रात की इबादत हजार महीनों की इबादत से अफजल है

❁ ••• ➲   *अल्लाह करीम का इरशाद है :-*"لَیْلَةُالْقَدْرِخَیْرٗمِنْ اَلْفِ شَھْرِِ" इस रात में नवाफिल पढ़ना ,कुरआन मजीद की तिलावत करना ,और तसबीह व तहलील और इस्तिगफार पढ़ना चाहिये। शबे कद्र में जितने नफल पढ़े जा सकें बड़ी सआदत है मगर जो किताबों में लिखे गये हैं वह यह हैं 

❁ ••• ➲   1 .चार रकअत नफल पढे। हर रकअत में अलहम्द शरीफ बाद सूरः यानी अलहाको मुत्तकासुरो एक मर्तबा और कुलहू वल्लाहु अहद तीन दफा पढ़े तो मौत की सख़्तियों से आसानी होगी। और अज़ाब क़ब्र से महफूज़ रहेगा । 

❁ ••• ➲   2 .दो रकअत नफल पढ़े कि हर रकअत में अलहम्द शरीफ के बाद कुलहु वल्लाहु अहद सात बार पढ़े। सलाम के बाद सत्तर 
*"اَسْتَغْفِرُاللّٰهِ الْعَظِیْمَ الَّذِیْ لآاِلٰهَ اِلاَّھُوَالْحَیُّ الْقَیُّمُ وَاَتُوبُ اِلَیْهِ"*
दफ़ा पढ़े इंशाअल्लाह तआला इस नमाज़ को पढ़ने वाले अपने मुसल्ले से न उठेंगे कि अल्लाह पाक उसको और उसके वालिदैन के गुनाह माफ़ फरमाकर बख्श देगा और अल्लाह तआला फ़रिश्तों को हुक्म देगा कि इसके लिये जन्नत आरास्ता करो और फ़रमाकर कि वह जब तक तमाम बहिश्ती नेमतें अपनी आँखो से न देख लेगा उस वक़त तक मौत न आयेगी मग्फिरत के लिये यह नमाज़ बहुत ही अफ़जल है। 

❁ ••• ➲   3 .चार रकअत नफ़ल इस तरह पढ़े कि हर रकअत मे अलहम्द शरीफ़ के बाद इन्ना अनज़लना एक बार और कुल वल्लाहु अहद सत्ताईस बार पढ़े। तो यह शख्स गुनाहों से ऐसा पाक हो जाता है कि गोया आज ही अपनी मां के पेट से पैदा हुआ है और इसको अल्लाह करीम जन्नत में हजार महल इनायत फरमायेगा"

❁ ••• ➲   4. दो रकअत नफल पढे कि हर रकअत अलहम्द शरीफ के बाद इन्ना अनज़लना एक बार कुलहु वल्लाहु अहद तीन बार पढे। तो अल्लाह तआला उसको शबे कद्र का सवाब अता फरमायेगा। और उसके नफल कुबूल फ़रमायेगा और उसको सैयदना हजरत इदरीस और सैयदना हजरत शोएब और हजरत अय्यब और सैयदना दाऊद सैयदना हजरत नूह अलैहिस्सलातु वस्सलाम का सवाब अता फ़रमायेगा और उसको जन्नत में मश्रिक से मगरिब तक एक शहर इनायत फ़रमायेगा। 

❁ ••• ➲   5 .चार रकअत नफल इस तरह पढ़े कि हर रकअत में अलहम्द शरीफ के बाद तीन मर्तबा और पचास मर्तबा पढ़े। फिर उस नमाज़ के बाद सजदा में जाकर एक दफा *"سُبْحَانَ اللّٰهِ وَالْحَمْدُلِلّٰهِ وَلَاَاِلٰهَ اِلاَّ اللّٰهُ وَاللّٰهُ اَکْبَرُ"* पढ़े। फिर उसके बाद जो दुआ मांगे कुबूल होगी। और उसे अल्लाह तआला बेशुमार नेमतें अता फरमायेगा और उसके सब गुनाह बख़्श देगा।...✍️

      *📬 तीन नूरानी रातें सफ़ह - 38 📚*


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     ❝ *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘ ❞
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            *❝  शबे  कद्र  की  फ़ज़ीलत  ❞* 
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❁ ••• ➲  *पहली शबे कद्र :-* हुजूर अनवर सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं कि मेरी उम्मत में से जो मर्द या औरत यह ख्वाहिश करे कि मेरी कब्र अनवर की रौशनी से मुनव्वर हो तो उसे चाहिये कि माहे रमज़ान की शबे कद्र में कसरत के साथ इबादत इलाही बजा लाये ताकि इन मुबारक रातों की खादत से अल्लाह पाक इसके नामए आमाल से बुराईयां मिटाकर कयो का सवाब अता फरमाये। 
शबे कद्र की इबादत सत्तर हज़ार शब की इबादतों से अफजल है।

❁ ••• ➲  *1:-* इक्कीसवीं शब को चार रकअत नमाज़ दो सलाम से पढ़े हर रकअत में बाद सूरः फातेहा के सूरः कद्र एक एक बार सूरः इख्लास एक मर्तबा पढ़े । बाद सलाम के सत्तर मर्तबा दुरूद पाक पढ़े। इंशाअल्लाह तआला इस नमाज़ के पढ़ने वाले के हक मे फ़रिश्ते दुआए मगिफरत करेंगे।

❁ ••• ➲  *2 :-* इक्कीसवीं शब को दो रकअत नमाज़ पढ़े हर रकत मे  बाद सुरः फातेहा सूरः कद्र एक एक बार सूरः इखलास तीन तीन मर्तबा पढ़े। बाद सलाम के नमाज़ ख़त्म करके सत्तर मर्तबा इस्तिगफार पढ़े। इंशाअल्लाह तआला इस नमाज़ और शबे कद्र की बरकत से अल्लाह पाक उसकी बख्शिश फ़रमायेगा। 

❁ ••• ➲  *वज़ीफ़ा :-* माहे रमज़ानुल मुबारक की इक्कीसवीं शब को इक्कीस मर्तबा सूरः कद्र पढ़ना भी बहुत अफ़जल है।...✍️

      *📬 तीन नूरानी रातें सफ़ह - 40 📚*


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           *❝  शबे  कद्र  की  फ़ज़ीलत  ❞* 
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❁ ••• ➲  *दूसरी शबे कद्र* 
1.माहे रमज़ान की तेईसवीं शब को चार रकअत नमाज़ व सलाम से पढ़े और हर रकअत में बाद सूरः फातेहा के सूरः कद्र एक एक बार सूरः इखलास तीन तीन मर्तबा पढ़े फिर बाद सलाम के सत्तर मर्तबा दुरूद शरीफ़ पढ़े इंशाअल्लाह तआला मग्फिरत गुनाह के लिये यह नमाज़ बहुत अफज़ल है। 

❁ ••• ➲  2. तेईसवीं शब को आठ रकअत नमाज़ चार सलाम से पढ़े हर रकअत में बाद सूरः फातेहा के के सूरः क़द्र एक एक दफा सूरः इखलास एक एक बार पढ़े। और बाद सलाम के सत्तर मर्तबा कलिमा तमजीद पढ़े और अल्लाह तआला से अपने गुनाहों की बख्रिशश तलब करे अल्लाह तआला उसके गुनाह माफ फरमाकर इंशाअल्लाह तआला मगिफ़रत फरमायेगा। 

❁ ••• ➲  *वज़ीफ़ा :-* तेईसवीं शब को सूरः यासीन एक मर्तबा सूर रहमान एक दफ़ा पढ़नी बहुत अफ़ज़ल है।...✍️

      *📬 तीन नूरानी रातें सफ़ह - 40 📚*


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               *❝  ज़कात का बयान  ❞* 
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❁ ••• ➲  जकात फ़र्ज़ है। इस का इन्कार करने वाला काफ़िर और न देने वाला फ़ासिक व जहन्नमी और अदा करने में देर करने वाला गुनहगार व मर्दूदुश्शहादह है। 
       
❁ ••• ➲  नमाज़ की तरह इस के बारे में भी बहुत सी आयतें व हदी आई हैं जिन में ज़कात अदा करने की सख्त ताकीद है और न अदा करने वाले पर तरह तरह के दुन्या और आख़िरत के अज़ाबों की वईदें आई हैं। 

❁ ••• ➲  *मस्अला :-* अल्लाह के लिये माल का एक हिस्सा जो शरीअत ने मुकर्रर किया है किसी फ़क़ीर को मालिक बना देना शरीअत में इस को ज़कात कहते हैं।

*📓 जन्नती जेवर सफ़ह - 334*

❁ ••• ➲  *हदीस:–* हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि जो लोग अपने माल की ज़कात नहीं अदा करेंगे तो क़यामत के दिन उनका माल गंजे सांप की शक्ल में उनके गले में पड़ा होगा और वो अपने जबड़ों से उसके मुंह को पकड़े होगा और कहेगा कि मैं तेरा माल हूं।...✍️

      *📬 बुखारी,जिल्द 1,सफह 188 📚*


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     ❝ *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘ ❞
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 *❝  ज़कात फर्ज होने के लिये चन्द शर्ते हैं। ❞* 
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❁ ••• ➲  *(1)* मुसलमान होना या'नी काफ़िर पर ज़कात फ़र्ज़ नहीं।

❁ ••• ➲  *(2)* बालिग होना या'नी नाबालिग पर ज़कात फ़र्ज़ नहीं।

❁ ••• ➲  *(3)* आकिल होना या'नी दीवाने पर ज़कात फ़र्ज़ नहीं।

❁ ••• ➲  *(4)* आज़ाद होना या'नी लौंडी गुलाम पर जकात फर्ज नहीं।

❁ ••• ➲  *(5)* मालिके निसाब होना या'नी जिस के पास निसाब से कम माल हो उस पर ज़कात फ़र्ज़ नहीं।

❁ ••• ➲  *(6)* पूरे तौर पर मालिक हो या'नी इस पर कब्जा भी हो तब ज़कात फ़र्ज़ है वरना नहीं मषलन किसी ने अपना माल जमीन में दफ्न कर दिया और जगह भूल गया फिर बरसों के बा'द जगह याद आई और माल मिल गया तो जब तक माल न मिला था उस ज़माने की जकात वाजिब नहीं क्यूंकि निसाब का मालिक तो था मगर इस पर कब्जा नहीं था।

❁ ••• ➲ *(7)* निसाब का क़र्ज़ से फ़ारिग होना। अगर किसी के पास एक हज़ार रूपिये है मगर वोह एक हज़ार का कर्जदार भी है तो उस का माल क़र्ज़ से फ़ारिग नहीं लिहाजा उस पर ज़कात नहीं। 

❁ ••• ➲  *(8)* निसाब का हाजते अस्लिय्या से फ़ारिग होना। हाजते अस्लिय्या या'नी आदमी को जिन्दगी बसर करने में जिन चीजों की जरूरत है मषलन अपने रहने का मकान ,जाड़े गर्मियों के कपड़े ,घरेलू सामान या'नी खाने पीने के बरतन ,चारपाइयां ,कुरसियां ,मेजें ,चूल्हे ,पंखे वगैरा इन मालों में जकात नहीं क्यूंकि येह सब मालो सामान हाजते अस्लिय्या से फ़ारिग नहीं है।

❁ ••• ➲  *(9)* माले नामी होना या'नी बढ़ने वाला माल होना ख्वाह हक़ीक़तन बढ़ने वाला माल जैसे माले तिजारत और चराई पर छोड़े हुए जानवर या हुक्मन बढ़ने वाला माल हो जैसे सोना चांदी कि येह इसी लिये पैदा किये गये हैं कि इन से चीजें खरीदी जाएं और बेची जाएं ताकि नफ्अ होने से येह बढ़ते रहें लिहाज़ा सोना चांदी जिस हाल में भी हो जेवर की शक्ल में हों या दफ्न हों हर हाल में येह माले नामी हैं और इन की ज़कात निकालनी ज़रूरी है।

❁ ••• ➲  *(10)* माले निसाब पर एक साल गुज़र जाना या'नी निसाब पूरा होते ही ज़कात फ़र्ज़ नहीं होगी बल्कि एक साल तक वोह निसाब मिल्क में बाक़ी रहे तो साल पूरा होने के बाद इस की ज़कात निकाली जाए।..✍️

  *📬 जन्नती जेवर सफ़ह - 335 📚*


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               *❝  ज़कात का बयान  ❞* 
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❁ ••• ➲  *मस्अला :-* सोने का निसाब साढ़े सात तोला है और चांदी का निसाब साढ़े बावन तोला है। सोने चांदी में चालीसवां हिस्सा ज़कात निकाल कर अदा करना फ़र्ज़ है। येह ज़रूरी नहीं कि सोने की ज़कात में सोना ही और चांदी की ज़कात में चांदी ही दी जाए बल्कि येह भी जाइज़ है कि बाज़ारी भाव से सोने चांदी की कीमत लगा कर रूपिये ज़कात में दें।

❁ ••• ➲  *जेवरात की ज़कात :-* हदीष शरीफ़ में है कि दो औरतें हुजूरे अक्दस ﷺ की ख़िदमते मुबारका में हाज़िर हुई। उन के हाथों में सोने के कंगन थे आप ने इरशाद फ़रमाया कि क्या तुम इन ज़ेवरों की ज़कात अदा करती हो ? औरतों ने अर्ज किया किजी नहीं ! तो आप ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि क्या तुम इसे पसन्द करती हो कि अल्लाह तआला तुम्हें आग के कंगन पहनाए ? औरतों ने कहा : नहीं । तो इरशाद फ़रमाया कि तुम इन जेवरों की ज़कात अदा करो।

❁ ••• ➲  *मस्अला :-* सोना चांदी जब कि ब क़दरे निसाब हों तो इन की ज़कात चालीसवां हिस्सा निकालनी फर्ज है ख्वाह सोने चांदी के टुकड़े हों या सिक्के या जेवरात या सोने चांदी की बनी हुई चीजें मषलन बरतन ,घड़ी ,सुर्मादानी ,सलाई वगैरा गरज़ जो कुछ हो सब की ज़कात निकालनी फ़र्ज़ है।

❁ ••• ➲  *मस्अला :-* जिन जेवरात की मालिक औरत हो ख्वाह वोह मैके से लाई हो या उस के शोहर ने उस को ज़ेवरात दे कर इन का मालिक बना दिया मालिक मर्द हो या'नी औरत को सिर्फ पहनने के लिये दिया है मालिक नहीं बनाया है तो इन जेवरात की ज़कात मर्द के जिम्मे है औरत पर नहीं।...✍️

*📓 फ़तावा रज़विय्या ,( अल जदीदा ) ज़िल्द 10 सफह 132*

  *📬 जन्नती जेवर सफ़ह - 336 📚*


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                *❝  ज़कात का बयान  ❞* 
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❁ ••• ➲  *मस्अला :-* अगर किसी के पास सोना चांदी या इन दोनों के जेवरात हों और सोना चांदी में से कोई भी ब क़दरे निसाब नहीं तो चाहिये कि सोने की कीमत के चांदी या चांदी की कीमत का सोना फर्ज कर के दोनों को मिलाएं फिर अगर मिलाने पर भी ब कदरे निसाब न हो तो जकात नहीं और अगर सोने की कीमत की चांदी-चांदी में मिलाएं तो ब कदरे निसाब हो जाता है और चांदी की कीमत का सोना ,सोने में मिलाएं तो ब कदरे निसाब नहीं तो वाजिब है कि जिस सूरत में निसाब पूरा हो जाता है वोह करें। 

❁ ••• ➲  *मस्अला :-* तिजारती माल की कीमत लगाई जाए फिर उस से अगर सोने या चांदी का निसाब पूरा हो तो उस के हिसाब से ज़कात निकाली जाए। 

❁ ••• ➲  *मस्अला :-* अगर सोना चांदी न हो न माले तिजारत हो बल्कि सिर्फ नोट और रूपे पैसे हों कि कम से कम इतने रूपे पैसे या नोट हों कि बाज़ार में इन से साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोला चांदी खरीदी जा सकती है तो वोह शख्स साहिबे निसाब है उस को नोट और रूपे पैसों की ज़कात ( चालीसवां हिस्सा ) निकालना फ़र्ज़ है । 

❁ ••• ➲  *मस्अला :-* अगर शुरूअ साल में पूरा निसाब था और आख़िर साल में भी निसाब पूरा रहा दरमियान में कुछ दिनों माल घट कर निसाब से कम रह गया तो येह कमी कुछ अषर न करेगी बल्कि इस को पूरे माल की ज़कात देनी पड़ेगी।...✍️

    *📬 जन्नती जेवर सफ़ह - 337 📚*

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     ❝*💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘  ❞
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 *❝  जकात का माल किन किन लोगों को दिया जाए  ❞* 
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❁ ••• ➲   जिन जिन लोगों को उश्र व ज़कात का माल देना जाइज़ है वोह येह लोग हैं :

*(1)* फ़कीर या'नी वोह शख्स कि उस के पास कुछ माल है मगर निसाब की मिक्दार से कम है 

*(2)* मिस्कीन या'नी वोह शख्स जिस के पास खाने के लिये गल्ला और पहनने के लिये कपड़ा भी न हो 

*(3)* कर्जदार या'नी वोह शख्स कि जिस के ज़िम्मे क़र्ज़ हो और उस के पास कर्ज से फ़ाज़िल कोई माल ब क़दरे निसाब न हो 

*(4)* मुसाफ़िर जिस के पास सफ़र की हालत में माल न रहा हो उस को ब क़दरे ज़रूरत ज़कात का माल देना जाइज़ है

*(5)* आमिल या'नी जिस को बादशाहे इस्लाम ने ज़कात व उश्र वुसूल करने के लिये मुकर्रर किया हो 

*(6)* मुकातब गुलाम ताकि वोह माल दे कर आज़ाद हो जाए 

*(7)* गरीब मुजाहिद ताकि वोह जिहाद का सामान करे।..✍️

    *📬 जन्नती जेवर सफ़ह - 338 📚*


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     ❝ *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
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           *❝  शबे  क़द्र  के  वज़ाइफ़  ❞* 
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❶ ⚘  अल्लाहुम्मा इन्नका अफुव्वुन तुहिब्बुल अफ़वा फ़अफु अन्नी, बार बार पढ़ें। 

❷ ⚘  ला इलाहा इलल्लाह, खूब कसरत से पढ़ें कि यह अफ़ज़ल ज़िक्र है। 

❸ ⚘  कम अज़ कम दस आयतों की तिलावत शबे क़द्र की निय्यत से करें। 

❹ ⚘  कुरआने मजीद की तिलावत में मसरूफ़ रहें कि तिलावते कुरआन बहुत ही अहम वज़ीफ़ा और अफ़ज़ल व बा बरकत ज़िक्र।

❺ ⚘  हुज़ूर अलैहिस्सलाम पर अदब व एहतिराम के साथ दुरूद पढ़ें कि यह सआदत और खुशनसीबी की पहचान है।  

❻ ⚘  सुब्हानल्लाहि वबि हम्दिहि सुब्हानल्लाहिल अज़ीम, इसके पढ़ने वाले के लिये जन्नत में पोदा लगा दिया जाता है।  

❼ ⚘  सुब्हानल्लाहि वलहम्दु लिल्लाहि वला इलाहा इलल्लाहु वल्लाहु अकबर वला हौला वला कुव्वता इल्ला बिल्ला हिल अलियिल अज़ीम 

❽ ⚘  अल्लाहुम्मग़ फ़िर लीवरहम्नी वहदिनिवर जुक़नीवआफ़िनी 

❾ ⚘ अस्तग़फ़िरुल्लाहा रब्बियल अज़ीम ला इलाहा इल्ला हुवल हय्युल क़य्यूम मिन कुल्लिज़म्बिंववअतूबुइलैहि लाहौला वला कुव्वताइल्ला बिल्ला हिल अलिरियल अज़ीम, तीन बार। 

❶⓿ ⚘  ला इलाहा इलल्लाहु वह दहुला शरी का लहू , लहुल मुल्कुवलहुल हम्दु वहुवाअला कुल्लिशैइन क़दीर, दस बार।

╭┈► फिर हाथों को उठाकर पूरी तवज्जोह के साथ दुआ मांगे अपने लिये वालिदैन के लिये दोस्त व अहबाब भाई बहन अहलो अयाल और तमाम उम्मते मुस्लिमा के लिये अपनी मुरादें मांगें इन्शाअल्लाह आपकी दुआ कुबूल होगी। इसलिये कि जिन वक़्तों में अल्लाह तआला अपने बन्दों की दुआ कुबूल फ़रमाता है उनमें शबे क़दर भी है। और अल्लाह तआला ने वादा फ़रमाया है जो बन्दा उससे दुआ करेगा उसकी दुआ ज़रूर कुबूल फ़रमाएगा बशर्ते कि बन्दा अपने रब की फ़रमाी बरदारी करे उसका हुक्म माने और उस पर ईमान रखे जैसा कि सूरए बक़रह, आयत नं. 186 में इरशाद हुआ।

*⚠ नोट :* अगर आपके ज़िम्मे फ़र्ज़ नमाजें हैं तो पहले उन्हें अदा करें इनका अदा करना ज़रूरी है।...✍🏻 

*📬 माहे रमज़ान आया सफह 37-38 📚*

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     ❝*💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘  ❞
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       *❝ शबे  कद्र  से  महरूमी  का  नुकसान ❞* 
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❁ ••• ➲  मेरे प्यारे आकार के प्यारे दीवानो ! जहां शबे कद्र में शब बेदारी और इबादत करने के बेशुमार फवाइद हैं वहीं उसमें सुस्ती बरतने और गफलत का मुज़ाहिरा करने में बेशुमार नुकसानात भी हैं। अगर हम ने लैलतुल कद्र में यानी रमजानुल मुबारक की ताक रातों में कयाम व तिलावत का एहतमाम न किया तो उसका नुकसान भी मुलाहिजा फ़रमाएं कि हदीष शरीफ़ में फ़रमाया गया जो शख्स शबे कद्र से महरूम हो गोया पूरी भलाई से महरूम हो गया और शबे कद्र की खैर से वही महरूम होता है जो कामिल महरूम हो।  

❁ ••• ➲  हदीष शरीफ से यह वाजेह हो गया कि शबे कुद्र में गफलत नहीं बरतनी चाहिए बल्कि अपने आपको इबादत के लिए खूब तैयार करना चाहिए क्योंकि अल्लाह करीम चंद घंटों की इबादत के एवज़ अपने महबूब के सदक़ा व तुफैल हज़ार महीनों की इबादत से ज़्यादा षवाब अता फरमाता है। कम नसीब है वह शख्स जो चंद घंटे भी अपने रख के हुजूर इबादत के लिए कुरबान करने को तैयार न हो अगली उम्मतों की उमरें ज्यादा होती थीं और वह इबादत व रियाज़त की कसरत करते थे। अल्लाह अज़्ज़वजल ने इस उम्मत पर करम फरमाया कि उनको शबे कद्र अता फरमा दी और एक शबे कद्र की इबादत का दरजा हज़ार महीनों की इबादत से ज्यादा कर दिया। कम वक्त और मेहनत भी कम लेकिन षवाब में लंबी उम्र वालों से भी ज्यादा ! यह इनाम व इकराम सिर्फ रहमते आलम के सदका व तुफैल ही है अगर बंदा इसके बावजूद भी गफलत बरते तो उस पर अफसोस है।

❁ ••• ➲  लैलतुल कद्र में खूब इबादत व रियाज़त के साथ साथ अपने एहल व अयाल और दोस्त व एहबाब को भी इस पर आमादा करो। इंशाअल्लाह ! लैलतुल कद्र में जागना अपनी किस्मत को जगाने का जरिया बन जाएगा और जो दुआ नबी करीम ﷺ ने तालीम फ़रमाई उस दुआ की कषरत करो यानी सुबहानहू व तआला की बारगाहे बेकस पनाह में अपने गुनाहों से माफी मांगो इसलिए कि आखिरत का मामला बहुत ही कठिन है, इंशाअल्लाह ! शबे कद्र की बरकत से अल्लाह तबारक व तआला आखिरत की सारी परेशानियों को आसान फरमा देगा।...✍🏻

*📬 माहे रमज़ान कैसे गुजारें सफ़ह - 114 📚*

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     ❝ *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘ ❞
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       *❝ फ़रिश्ते  क्यों  नाज़िल  होते  हैं ! ❞* 
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❁ ••• ➲  मेरे प्यारे आका के प्यारे दीवानो ! आप यह सोचते होंगे कि आखिर शबे कद्र में फ़रिश्ते क्यों नाजिल होते हैं जब कि फरिश्ते खूद तस्वीह व तकदीस और तहलील के तवंगर हैं कयाम रुकूअ और सुजूद सारी इबादात से सरशार हैं फिर इंसानों की वह कौन सी इबादत है जिसे देखने के शोक में वह इंसानों से मुलाकात की तमन्ना करते हैं और अल्लाह तआला से इजाजत तलब करके ज़मीन पर नाज़िल होते हैं आइए इस सिलसिले में चंद बातें मुलाहिजा करते हैं ताकि उस रात इबादत करने का जज्बा पैदा हो। 

❁ ••• ➲  मोहद्दिसीने किराम ने उसकी वजह बयान की है कि कोई शख्स खूद भूका रह कर अपना खाना किसी और जरूरतमंद को खिला दे यह वह नादिर इबादत है जो फरिश्तों में नहीं होती गुनाहों पर तौबा और नदामत के आंसू बहाना और गिड़गिड़ाना, अल्लाह से माफी चाहना, अपनी तबई नींद छोड़ कर अल्लाह की याद के लिए रात के पिछले पहर उठना और खौफे ख़ुदा से हिचकियाँ ले ले कर रोना यह वह इबादतें हैं जिनका फ़रिश्तों के यहां कोई तसव्वुर नहीं क्यों कि न वह खाते हैं न पीते हैं न गुनाह करते हैं, न सोते हैं। 

❁ ••• ➲  हदीषे कुदसी में है कि अल्लाह तआला इर्शाद फरमाता है गुनाहगारों की सिसकियों और हिचकियों की आवाज़ मुझे तस्वीह व तहलील की आवाजों से ज़्यादा पसंद है इसलिए फ़रिश्ते यादे खुदा में आंसू बहाने वाली आंखों को देखने और खौफे खुदा से निकलने वाली आहों को सुनने के लिये ज़मीन पर उतरते हैं।इमाम राजी ने उसकी वजह यह बयान फरमाई कि इंसान से इबादत की आदत है कि वह उलमा और सालेहीन के सामने ज़्यादा अच्छी और ज़्यादा खुशूअ व खजूअ से इबादत करता है, अल्लाह तआला उस रात फरिश्तों को भेजता है कि ए इंसानों! तुम इबादत गुजारों की मजलिस में ज़्यादा इबादत करते हो, आओ ! अब मलाईका की मजलिसों में खुजूअ और खुशू करो 

❁ ••• ➲  फ़रिश्तों के नजूल की एक वजह यह भी हो सकती है कि इंसान की पैदाइश के वक्त फरिश्तों ने इस्तिफसार किया था कि उस पैदा करने में क्या हिकमत है जो जमीन में फिस्क व फुजूर और खूरज़ी करेगा ? लिहाजा इस रात अल्लाह तआला ने अपने बंदों से उनकी उम्मीदों से बढ़ कर अज व षवाब का वादा किया उस रात के इबादत गुज़ारों को ज़बाने रिसालत से मगफिरत की नवेद सुनाई, फ़रिश्तों की आमद और उनकी जियारत और सलाम करने की बशारत दी ताकि उसके लिए यह रात जाग कर गुजारे, थकावट और नींद के बावजूद अपने आप को बिस्तर और आराम से दूर रखें ताकि जब फ़रिश्ते आसमान से उतरें तो उनसे कहा जा सके , यही वह इब्ने आदम हैं जिनकी खूरेज़ियों की तुम ने खबर दी थी यही वह शरर खाकी है जिसके फिस्क व फुजूर का तुमने जिक्र किया था, उसकी तबीअत और खिल्कत में हम ने रात की नींद रखी है, यह अपने तबई और खल्की तकाज़ों को छोड़ कर हमारी रजा जोई के लिए रात सज्दों और कयाम में गुज़ार रहा है।...✍🏻

*📬 माहे रमज़ान कैसे बुज़ारें सफ़ह 110-111 📚*

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❁ ••• ➲  *1)* तक्मीले ईमान का ज़रीआ ज़कात देना तक्मीले ईमान का ज़रीआ है जैसा कि रसुलल्लाह  ﷺ ने इर्शाद फरमाया तुम्हारे इस्लाम का पूरा होना येह है कि तुम अपने मालों की ज़कात अदा करो 

❁ ••• ➲  एक मकाम पर इर्शाद फरमाया जो अल्लाह और उस के रसूल पर ईमान रखता हो उसे लाज़िम है कि अपने माल की ज़कात अदा 

❁ ••• ➲ *2)* *रहमते इलाही की बरसात :* जकात देने वाले पर रहमते इलाही की छमाछम बरसात होती है सूरतुल आ'राफ़ में है :

*तरजमए कन्जुल ईमान :* और मेरी रहमत हर चीज़ को घेरे है तो अन्करीब मैं नेमतों को उन के लिये लिख दूंगा जो डरते और जकात देते हैं

❁ ••• ➲  *3) तक्वा व परहेज़ गारी का हुसूल :* जकात देने से तक्वा हासिल होता है कुरआने पाक में मुत्तकीन की अलामात में से एक अलामत येह भी बयान की गई है लेकिन इर्शाद होता है :

*तरजमए कन्जुल ईमान :* और हमारी दी हुई रोज़ी में से हमारी राह में उठाएं 

❁ ••• ➲  *4) काम्याबी का रास्ता :* ज़कात देने वाला काम्याब लोगों की फेहरिस्त में शामिल हो जाता है। जैसा कि कुरआने पाक में फलाह को पहुंचने वालों का एक काम जकात भी गिनवाया गया है चुनान्चे इर्शाद होता है

*तरजमए कन्जुल ईमान :* बेशक मुराद को पहुंचे ईमान वाले जो अपनी नमाज़ में गिड़गिड़ाते हैं और वोह जो किसी बेहूदा बात की तरफ़ इल्तिफ़ात नहीं। करते और वोह कि ज़कात देने का काम करते हैं!...✍🏻

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❁ ••• ➲  *5) नुसते इलाही का मुस्तहिक :* अल्लाह तआला ज़कात अदा करने वाले की मदद फ़रमाता है  चुनान्चे इर्शाद होता है 

*तरजमए कन्जुल ईमान :* और बेशक अल्लाह ज़रूर मदद फ़रमाएगा उस की है  जो उस के दीन की मदद करेगा बेशक जरूर अल्लाह कुदरत वाला गालिब है ,वोह लोग कि अगर हम उन्हें जमीन में काबू दें तो नमाज़ बरपा रखें और ज़कात दें और भलाई का हुक्म करें और बुराई से रोकें और अल्लाह ही के लिये सब कामों का अन्जाम 

❁ ••• ➲ *6) अच्छे लोगों में शुमार होने वाला :* ज़कात अदा करना अल्लाह के घरों यानी मसाजिद को आबाद करने वालों की सिफ़ात में से है चुनान्चे इर्शाद होता है :

*तरजमए कन्जुल ईमान :* अल्लाह की मस्जिदें वोही आबाद करते हैं जो अल्लाह और कियामत पर ईमान लाते और नमाज काइम करते हैं और ज़कात देते हैं और काम कर अल्लाह के सिवा किसी से नहीं डरते तो करीब है कि येह लोग हिदायत वालों में हों

❁ ••• ➲ *7) मुसलमान भाइयों के दिल में खुशी दाखिल करने का सवाब :* ज़कात की अदाएगी से गरीब मुसलमान भाइयों की ज़रूरत पूरी हो जाती है और उन के दिल में खुशी दाखिल होती है!..✍🏻

     *📬 फ़ैज़ाने  ज़कात  सफ़ह 7 - 8  📚*

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❁ ••• ➲  *8) मुसलमान भाईचारे का बेहतरीन इज़्हार :* जकात देने का अमल उखुव्वते मुसलमान की बेहतरीन ताबीर है कि एक गनी मुसल्मान अपने गरीब मुसलमान भाई को ज़कात दे कर मुआशरे में सर उठा कर जीने का हौसला मुहय्या करता है। नीज़ गरीब मुसलमान भाई का दिल कीना व हसद की शिकार गाह बनने से महफूज़ रहता है क्यूं कि वोह जानता है कि उस के गनी मुसलमान भाई के माल में उस का भी हक है लेकिन वोह अपने भाई के जान माल और औलाद में बरकत के लिये दुआ गो रहता है रसूलल्लाह ﷺ ने फरमाया बेशक मोमिन के लिये मोमिन मिस्ल इमारत के है बाज़ बाज़ को तक्वियत पहुंचाता है। 

❁ ••• ➲  *9) रसूलल्लाह ﷺ का मिस्दाक :* ज़कात मुसल्मानों के दरमियान भाईचारा मजबूत बनाने में बहुत अहम किरदार अदा करती है जिस से मुसलमान मुआशरे में इज्तिमाइय्यत को फरोग मिलता है और इम्दादे बाहमी की बुन्याद पर मुसल्मान रसूलल्लाह ﷺ के इस फ़रमाने अज़ीम का मिस्दाक बन जाते हैं मुसल्मानों की आपस में दोस्ती और रहमत और शफ़्क़त की मिसाल जिस्म की तरह है , जब जिस्म का कोई उज्व बीमार होता है तो बुख़ार और बे ख़्वाबी में सारा जिस्म उस का शरीक होता है!..✍🏻

     *📬 फ़ैज़ाने  ज़कात  सफ़ह  8 - 9  📚*


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❁ ••• ➲  *10) माल पाक हो जाता है :* ज़कात देने से माल पाक हो जाता है जैसा कि हज़रते सय्यिदुना अनस बिन मालिक  رضی اللہ تعالی عنہ से मरवी है रसूलल्लाह ﷺ ने फ़रमाया अपने माल की ज़कात निकाल कि वोह पाक करने वाली है तुझे पाक कर देगी 

❁ ••• ➲  *11) बुरी सिफ़ात से छुटकारा :* ज़कात देने से लालच व बुख़्ल जैसी बुरी सिफ़ात से अगर दिल में हों तो  छुटकारा पाने में मदद मिलती है और सखावत व बख्शिश का महबूब वस्फ मिल जाता है 

❁ ••• ➲  *12) माल में बरकत :* ज़कात देने वाले का माल कम नहीं होता बल्कि दुन्या व आख़िरत में बढ़ता है अल्लाह तआला इर्शाद फरमाता है *तरजमए कन्जुल ईमान :* और जो चीज़ तुम अल्लाह की राह में खर्च करो वोह उस के बदले और देगा और वोह सब से बेहतर रिज्क देने वाला 

📔 पारा 22 सबा आयत 39

❁ ••• ➲  एक मकाम पर इर्शाद होता है *तरजमए कन्जुल ईमान :* उन की कहावत जो अपने माल अल्लाह की राह में खर्च करते हैं उस दाने की तरह जिस ने उगाई 7 सात बालें हर बाल में 100 सो दाने और अल्लाह इस से भी ज़ियादा बढ़ाए  जिस के लिये चाहे और अल्लाह वुस्त वाला इल्म वाला है वोह जो अपने माल अल्लाह की राह में खर्च करते हैं फिर दिये पीछे न एहसान रखें न तक्लीफ़ दें उन का नेग (इन्आम) उन के रब के पास है और उन्हें न कुछ अन्देशा हो न कुछ गम!...✍🏻

📔 पारा 3 सूरह अल बक़रह आयत 261-261

    *📬 फ़ैज़ाने  ज़कात  सफ़ह  9 - 10 📚*

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❁ ••• ➲  12) पस ज़कात देने वाले को येह यकीन रखते हुए खुशदिली से जकात देनी चाहिये कि अल्लाह तआला उस को बेहतर बदला अता फ़रमाएगा अल्लाह के महबूब ,ﷺ का फ़रमाने अज़मत निशान है सदके से माल कम नहीं होता अगर्चे ज़ाहिरी तौर पर माल कम होता लेकिन हकीकत में बढ़ रहा होता है जैसे दरख्त से ख़राब होने वाली शाखों को उतारने में बज़ाहिर दरख्त में कमी नज़र आ रही है लेकिन येह उतारना उस की नश्वो नुमा का सबब है

❁ ••• ➲  मुफस्सिरे शहीर हकीमुल उम्मत हज़रते मुफ्ती अहमद यार खान अलैरहमा फ़रमाते हैं ज़कात देने वाले की ज़कात हर साल बढ़ती ही रहती है। येह तजरिबा है जो किसान खेत में बीज फेंक आता है वोह ब जाहिर बोरियां ख़ाली कर लेता है लेकिन हकीकत में मअइज़ाफे के भर लेता है घर की बोरियां चूहे , सुरसुरी वगैरा की आफ़त से हलाक हो जाती हैं या येह मतलब है कि जिस माल में से सदका निकलता रहे उस में से खर्च करते रहो, इन्शा अल्लाह बढ़ता ही रहेगा कूएं का पानी भरे जाओ, तो बढ़े ही जाएगा

📙 मिरआतुल मनाजीह शर्ते मिश्कातुल मसाबीह जिल्द 3 सफ़ह 93

❁ ••• ➲  *13) शर से हिफाज़त :* ज़कात देने वाला शर से महफूज़ हो जाता है जैसा कि अल्लाह पाक के महबूब , ﷺ का फरमाने अजमत निशान है जिस ने अपने माल की ज़कात अदा कर दी बेशक अल्लाह तआला ने उस से शर को दूर कर दिया!...✍🏻

   *📬 फ़ैज़ाने  ज़कात  सफ़ह  11 - 12  📚*

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❁ ••• ➲  *14) हिफाज़ते माल का सबब :* ज़कात देना हिफाजते माल का सबब है जैसा कि रसुलल्लाह, ﷺ ने फ़रमाया अपने मालों को ज़कात दे कर मज्बूत कल्ओं में कर लो और अपने बीमारों का इलाज खैरात से करो 

❁ ••• ➲  *15) हाजत रवाई :* अल्लाह तआला ज़कात देने वालों की हाजत रवाई फ़रमाएगा  जैसा कि रसुलल्लाह ﷺ ने फ़रमाया जो किसी बन्दे की हाजत रवाई करे अल्लाह तआला दीन व दुन्या में उस की हाजत रवाई करेगा एक और मकाम पर इर्शाद फरमाया जो किसी मुसल्मान को दुन्यावी तक्लीफ़ से रिहाई दे तो अल्लाह तआला उस से कियामत के दिन की मुसीबत दूर फ़रमाएगा 

❁ ••• ➲  *16) दुआएं मिलती हैं* गरीबों की दुआएं मिलती हैं जिस से रहमते खुदावन्दी और मददे इलाही हासिल होती है जैसा कि रसुलल्लाह ﷺ ने इर्शाद फरमाया तुम को अल्लाह तआला की मदद और रिज्क ज़ईफों की बरकत और उन की दुआओं के सबब पहुंचता है!..✍🏻

     *📬 फ़ैज़ाने  ज़कात  सफ़ह  - 13  📚*


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❁ ••• ➲  *माले हराम पर ज़कात :* जिस का कुल माल हराम हो उस पर ज़कात फ़र्ज़ नहीं होगी क्यूं कि वह उस माल का मालिक ही नहीं है दुर्रे मुख़्तार में है अगर कुल माल हराम हो तो उस पर ज़कात नहीं है 

❁ ••• ➲  आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खान अलैरहमा फ़रमाते हैं चालीस्वां हिस्सा देने से वोह माल क्या पाक हो सकता है जिस के बाकी उन्तालीस हिस्से भी नापाक हैं
 
📕 फ़तावा रज़विय्या जिल्द 19 सफ़ह 656

❁ ••• ➲  ऐसे शख्स पर लाज़िम है कि तौबा करे और माले हराम से नजात हासिल करे 

❁ ••• ➲  *माले नामी का मतलब :* माले नामी के माना हैं बढ़ने वाला माल ख्वाह हकीकतन बढ़े या हुक्मन इस की 3 सूरतें हैं : 

❁ ••• ➲  ❶  येह बढ़ना तिजारत से होगा , या 

 ❁ ••• ➲  ❷  अफ्जाइशे नस्ल के लिये जानवरों को जंगल में छोड देने से होगा, या 

❁ ••• ➲  ❸  वोह माल खल्की यानी पैदाइशी तौर पर नामी होगा, जैसे सोना चांदी वगैरा।...✍🏻

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❁ ••• ➲  *साल कब मुकम्मल होगा ? :* जिस तारीख और वक़्त पर आदमी साहिबे निसाब हुवा जब तक निसाब रहे वोही तारीख़ और वक़्त जब आएगा उसी मिनट साल मुकम्मल होगा

📙 माखूज़ अज़ फ़तावा रज़विय्या मुखर्रजा जिल्द 10 सफ़ह 202

❁ ••• ➲  *मसलन :* जैद के पास माहे रबीउन्नूर शरीफ की 12 तारीख यानी ईदे मीलादुन्नबी को दिन के बारह बजे साढ़े सात तोला सोना या साड़े बावन तोले चांदी या उस की कीमत के बराबर रकम हासिल हुई या माले तिजारत हासिल हुवा तो साल गुजरने के बाद ईदे मीलादुन्नबी (12 रबीउल अव्वल) को दिन के 12 बजे अगर वोह निसाब का ब दस्तूर मालिक हुवा तो उस माल की ज़कात की अदाएगी उस पर फर्ज होगी अगर अब बिला उजे शरई अदाएगी में ताख़ीर करेगा तो गुनाहगार होगा क़मरी महीनों का एतिबार होगा या शम्सी का साल गुज़रने में कमरी यानी चांद के महीनों का एतिबार होगा शम्सी महीनों का एतिबार हराम है!...✍🏻

*📬 माखूज़ अज़ फ़तावा रज़विय्या मुखीजा जिल्द 10 सफ़ह 157 📚*

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❁ ••• ➲  *एक ही जिन्स के मुख्तलिफ़ अम्वाल और ज़कात का हिसाब :* अगर मुख़्तलिफ़ माल हों और कोई भी निसाब को न पहुंचता हो तो तमाम माल मसलन सोना चांदी या माले तिजारत या करन्सी को मिला कर उस की कुल मालिय्यत निकाली जाएगी और उस की ज़कात का हिसाब उस निसाब से लगाया जाएगा जिस में फुकरा का ज़ियादा फाएदा हो मसलन अगर तमाम माल को चांदी शुमार कर के ज़कात निकालने में ज़कात ज़ियादा बनती है तो येही किया जाए और अगर सोना शुमार करने में ज़कात ज़ियादा बनती है तो इसी तरह किया जाएगा और अगर दोनों सूरतों में यक्सां बनती है तो उस से हिसाब लगाएंगे जिस से जकात की अदाएगी का रवाज जियादा हो , फिर अगर रवाज यक्सां हो तो जकात देने वाले को इख़्तियार है कि चाहे तो सोने के हिसाब से ज़कात दे या चांदी के हिसाब से

 ❁ ••• ➲ *फ़्तावा शामी में है :* निसाब को पहुंचाने वाली कीमत ज़म के लिये मुतअय्यन होगी दूसरे की नहीं और अगर दोनों से निसाब पूरा होता हो जब कि एक का ज़ियादा रवाज हो तो जो ज़ियादा राइज हो उसी के हिसाब से कीमत लगाई जाएगी!...✍🏻


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❁ ••• ➲ *ज़कात में सोने चांदी की कीमत देना :* ज़कात में सोने या चांदी की जगह उन की कीमत दे देना जाइज़ है दुर्रे मुख्तार में है ज़कात में कीमत दे देना भी जाइज़ है।

❁ ••• ➲  *कीमत की तारीफ :* शरअन कीमत उस को कहते हैं जो उस चीज़ का बाजार में भाव हो इत्तिफ़ाकी तौर पर या भाव ताव करने के बाद कमी या ज़ियादती के साथ कोई चीज़ ख़रीद ली जाए तो उस को कीमत नहीं कहेंगे बल्कि समन कहेंगे।  

📙 फतावा अम्जदिय्या जिल्द 1 सफ़ह 382 

❁ ••• ➲  *किस भाव का एतिबार होगा :* जिस मकाम पर अश्या वाकेई हुकूमती रेट के मुताबिक़ फ़रोख्त होती हों वहां उसी रेट का एतिबार होगा और अगर हुकूमती रेट और ही बाज़ार के भाव में फर्क हो तो बाज़ार के भाव का एतिबार होगा।

📗 फ़तावा अम्जदिय्या जिल्द 1सफ़ह 386, मुलख्वसन 

❁ ••• ➲  *पहनने वाले जेवरात की ज़कात :* पहनने के जेवरात पर भी ज़कात फ़र्ज़ होगी। सोने चांदी के जेवरात और बरतनों की ज़कात अगर सोने चांदी के जेवरात या बरतनों वगैरा की ज़कात रूपौं में दें तो अस्ल सोने या चांदी की कीमत लेंगे।...✍🏻

*📬 फतावा अम्जदिय्या जिल्द 1सफ़ह 378 📚*

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  *⇩  माले  तिजारत  और  उस  की  ज़कात  ⇩* 

❁ ••• ➲  *माले तिजारत किसे कहते हैं ? :* माले तिजारत उस माल को कहते हैं जिसे बेचने की निय्यत से खरीदा गया है और अगर खरीदने या मीरास में मिलने के बाद तिजारत की निय्यत की तो अब वोह माले तिजारत नहीं कहलाएगा। *मसलन* जैद ने मोटर साइकल इस निय्यत से खरीदी कि उसे बेच दूंगा और नफ्अ कमाऊंगा तो येह माले तिजारत है और अगर अपने इस्तिमाल के लिये ख़रीदी थी , उस वक्त बेचने की निय्यत नहीं थी सिर्फ इस्तिमाल की थी मगर ख़रीदने के बाद निय्यत कर ली कि अच्छे दाम मिलेंगे तो बेच दूंगा या पुख्ता निय्यत ही कर ली कि अब इस को बेच डालना है तब भी ज़कात फ़र्ज़ नहीं होगी क्यूं कि ख़रीदते वक्त की निय्यत पर ज़कात के अहकाम मुरत्तब होंगे
 
❁ ••• ➲  *विरासत में छोड़ा हुवा माले तिजारत :* अगर किसी ने विरासत में माले तिजारत छोड़ा तो अगर उस के मरने के बाद वारिसों ने तिजारत की निय्यत कर ली तो ज़कात वाजिब है

📙 बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 5 यस्अला 36 सफ़ह 883

❁ ••• ➲  *माले तिजारत का निसाब :* माले तिजारत की कोई भी चीज़ हो जिस की कीमत सोने या चांदी के निसाब (यानी साढ़े सात तोले सोने या साढ़े बावन तोले चांदी की कीमत) को पहुंचे तो उस पर भी ज़कात वाजिब है!...✍🏻

*📬 बहारे शरीअत जिल्द 1, मस्अला 4 हिस्सा 5 सफ़ह 903 📚*

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❁ ••• ➲  *माले तिजारत की ज़कात :* कीमत का चालीसवां हिस्सा (यानी 2.5 %) ज़कात के तौर पर देना होगा 

❁ ••• ➲  *माले तिजारत के नफ़्अ पर ज़कात :* ज़कात माले तिजारत पर फ़र्ज़ होगी न सिर्फ नफ्अ पर बल्कि साल मुकम्मल होने पर नफ्अ की मौजूदा मिक्दार और माले तिजारत दोनों पर ज़कात है

📙 फ़तावा रज़विय्या मुखर्रजा किताबुज्जकात जिल्द 10 सफ़ह 158

❁ ••• ➲  *माले तिजारत की ज़कात का हिसाब :* माले तिजारत की ज़कात देने के लिये उस की कीमत लगवा ली जाए फिर उस का चालीसवां हिस्सा ज़कात दे दी जाए

📗 माखूजन अज़ फतावा अम्जदिय्या जिल्द 1 सफ़ह 378

❁ ••• ➲  *कीमत वक्ते ख़रीदारी की या साल तमाम होने की :* माले तिजारत में साल गुज़रने पर जो कीमत होगी उस का एतिबार है

📕 बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 5 ,मस्अला 16 सफ़ह 907 

❁ ••• ➲  *होलसेल कारोबार करने वाले के लिये ज़कात अदा करने का तरीका :* होलसेल का कारोबार करने वाला शख्स जिस दिन जिस वक्त मालिके निसाब हुवा था दीगर शराइत पाए जाने और साल गुज़रने पर जब वोह दिन वोह वक़्त आए तो जितना माल मौजूद है हिसाब लगा कर उस की फौरन ज़कात अदा करे और जो उधार में गया हुवा है उस का हिसाब अपने पास महफूज़ कर ले और जब उस में से मिक्दारे निसाब का पांचवां हिस्सा वुसूल हो तो उस वुसूल शुदा हिस्से की ज़कात की अदाएगी करे उसी हिसाब से जितना माल मिलता जाए उतने हिस्से की ज़कात अदा करता जाए। लेकिन आसानी इसी में है कि उधार में गए हुए माल की ज़कात भी अभी अदा कर दे ताकि बार बार हिसाब से नजात मिले!..✍🏻

*📬 फतावा रज़विय्या मुखर्रजा जिल्द 10 सफ़ह 133 📚*

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           *❝  ज़कात  के  मसाइल  ❞* 
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❁ ••• ➲ *किस को ज़कात देना अफ़ज़ल है :* अगर बहन भाई गरीब हों तो पहले उन का हक है फिर उन की औलाद का फिर चचा और फूफियों का, फिर उन की औलाद का, फिर मामूओं और ख़ालाओं का, फिर उन की औलाद का, फिर ज़विल अरहाम (वोह रिश्तेदार जो मां, बहन, बीवी या लड़कियों की तरफ से मन्सूब हों) का फिर पड़ोसियों का फिर अपने अहले पेशा का फिर अहले शहर का (यानी जहां उस का माल हो)

❁ ••• ➲ *ज़कात की अदाएगी :* ज़कात की अदाएगी की शराइत जकात की अदाएगी दुरुस्त होने की 2 शराइत हैं

❁ ••• ➲ 1) निय्यत और

❁ ••• ➲ 2) मुस्तहिके ज़कात को उस का मालिक बना देना अल अश्बाह वन्नज़ाइर में है 

❁ ••• ➲ ज़कात की अदाएगी निय्यत के बिगैर दुरुस्त नहीं है निय्यत के येह माना हैं कि अगर पूछा जाए तो बिला तअम्मुल बता सके कि जकात है

❁ ••• ➲ *जकात देते वक्त निय्यत करना भूल गया तो :* अगर ज़कात में वोह माल दिया जो पहले ही से ज़कात की निय्यत से अलग कर रखा था तो ज़कात अदा हो गई अगर्चे देते वक्त ज़कात का खयाल न आया हो और अगर ऐसा नहीं है तो जब तक मोहताज के पास मौजूद है देने वाला निय्यते ज़कात कर सकता है और अगर उस के पास भी नहीं है तो अब निय्यत नहीं कर सकता दिया गया माल सदकए नफ़्ल होगा!...✍🏻

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              *❝   स-द-कए   फ़ित्र   ❞* 
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❁ ••• ➲ *स-द-कए फ़ित्र :* बादे रमज़ान नमाजे ईद की अदाएगी से कब्ल दिया जाने वाला स-द-कए वाजिबा स-द-कए फ़ित्र कहलाता है खलीले मिल्लत हज़रत अल्लामा मुफ्ती मुहम्मद खलील खान बरकाती अलैरहमा फ़रमाते हैं स-द-कए फ़ित्र दर अस्ल रमजानुल मुबारक के रोज़ों का स-दका है ताकि लग्व और बेहूदा कामों से रोजे की तहारत हो जाए और साथ ही गरीबों नादारों की ईद का सामान भी और रोज़ों से हासिल होने वाली ने'मतों का शुक्रिया भी 

📙 हमारा इस्लाम हिस्सा 7 सफ़ह 87 

*⇩ सदकए फ़ित्र की फ़ज़ीलत की 4 रिवायात ⇩*

❁ ••• ➲ 1️⃣ रसूलल्लाह ﷺ से इस आयते करीमा के बारे में सुवाल किया गया 
*तरजम ए कन्जुल ईमान :* बेशक मुराद को पहुंचा जो सुथरा हुवा और अपने रब का नाम ले कर नमाज़ पढ़ी

रसूलल्लाह  ﷺ ने फ़रमाया येह आयत स-द-कए फ़ित्र के बारे में नाज़िल हुई
 
❁ ••• ➲ 2️⃣ रसूलल्लाह ﷺ का फ़रमाने बरकत निशान है जो तुम्हारे मालदार हैं अल्लाह तआला (सद कए फ़ित्र देने की वजह से) उन्हें पाक फ़रमा देगा और जो तुम्हारे गरीब हैं तो अल्लाह उन्हें इस से भी ज़ियादा देगा

❁ ••• ➲ 3️⃣ हज़रते इब्ने उमर  رضی اللہ تعالی عنہ फ़रमाते हैं कि सदकए फ़ित्र अदा करने में 3 तीन फ़ज़ीलतें हैं, 1. पहली रोजे का क़बूल होना, 2. दूसरी सक्राते मौत में आसानी और, 3. तीसरी अज़ाबे कब्र से नजात 

❁ ••• ➲ 4️⃣ हज़रते सय्यिदुना अबू खलदह رضی اللہ تعالی عنہ कहते हैं कि मैं हज़रते सय्यिदुना अबुल आलिया رضی اللہ تعالی عنہ की ख़िदमत में हाज़िर हुवा  उन्हों ने फ़रमाया कि कल जब तुम ईदगाह जाओ तो से मिलते जाना जब मैं गया तो मुझ से फ़रमाया क्या तुम ने कुछ खाया मैं ने कहा हां फ़रमाया क्या तुम नहा चुके हो मैं ने कहा हां फ़रमाया स-द-कए फ़ित्र अदा कर चुके हो मैं ने कहा हां स-द-कए फ़ित्र अदा कर दिया है फ़रमाने लगे : मैं ने तुम्हें इसी लिये बुलाया था फिर आप ने येह आयते करीमा *قَدْاَفْلَحَ مَنْتَزَکّٰی()وَذَکَرَاسْمَ رَبِِّهٖ فَصَلّٰی()* तिलावत की " अहले मदीना स-द-कए फ़ित्र और पानी पिलाने से अफ़्ज़ल कोई सदक़ा नहीं जानते थे 

❁ ••• ➲ *स-द-कए फ़ित्र कब मश्रूअ हुवा ?* 2 सि.हि. में रमज़ान के रोजे फ़र्ज़ हुए और उसी साल ईद से दो दिन पहले स-द-कए फ़ित्र का हुक्म दिया गया!...✍🏻

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             *❝   स-दकए  फ़ित्र   ❞* 
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❁ ••• ➲  *स-दकए फ़ित्र की अदाएगी की हिक्मत :* हज़रते सय्यिदुना इब्ने अब्बास رضی اللہ تعالی عنہ से मरवी है रसूलल्लाह ﷺ ने रोज़ों को लग्व और बे हयाई की बात से पाक करने के लिये और मिस्कीनों को खिलाने के लिये सदकए फ़ित्र मुकर्रर फ़रमाया

❁ ••• ➲  हकीमुल उम्मत मुफ्ती अहमद यार खान नईमी अलैरहमा इस हदीस के तहत फ़रमाते हैं या'नी फ़ित्रा वाजिब करने में 2 हिक्मतें हैं, 1. एक तो रोज़ादार के रोज़ों की कोताहियों की मुआफ़ी अक्सर रोजे में गुस्सा बढ़ जाता है तो बिला वजह लड़ पड़ता है, कभी झूट गीबत वगैरा भी हो जाते हैं, रब तआला इस फित्रे की बरकत से वोह कोताहियां मुआफ़ कर देगा कि नेकियों से गुनाह मुआफ़ होते हैं दूसरे मसाकीन की रोज़ी का इन्तिज़ाम

📙 मिरआतुल मनाजीह जिल्द 3 सफ़ह 43 

❁ ••• ➲  *स-दकए फ़ित्र का शरई हुक्म :* सदकए फ़ित्र देना वाजिब सहीह बुखारी में अब्दुल्लाह बिन उमर رضی اللہ تعالی عنہ रिवायत करते हैं रसूलुल्लाह ﷺ ने मुसल्मानों पर स-दकए फ़ित्र मुकर्रर किया

❁ ••• ➲ *स-दकए फ़ित्र किस पर वाजिब है ?* स-दकए फ़ित्र हर उस आज़ाद मुसल्मान पर वाजिब है जो मालिके निसाब हो और उस का निसाब हाजते अस्लिया से फ़ारिग हो!...✍🏻

     *📬 फ़ैज़ाने  ज़कात  सफ़ह  - 113 📚*

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               *❝   स-दकए  फ़ित्र   ❞* 
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❁ ••• ➲  मालिके निसाब मर्द अपनी तरफ़ से अपने छोटे बच्चों की तरफ़ से और अगर कोई मजनून (या'नी पागल औलाद है चाहे फिर वोह पागल औलाद बालिग ही क्यूं न हो तो उस की तरफ़ से भी स-द-कए फ़ित्र अदा करे हां अगर वोह बच्चा या मजनून खुद साहिबे निसाब है तो फिर उस के माल में से फ़ित्रा अदा कर दे

❁ ••• ➲  *वुजूब का वक़्त :* ईद के दिन सुब्हे सादिक़ तुलूअ होते ही स-द-कए फ़ित्र वाजिब होता है लिहाज़ा जो शख्स सुब्ह होने से पहले मर गया या गनी था फ़कीर हो गया या सुब्ह तुलूअ होने के बाद काफ़िर मुसल्मान हुवा या बच्चा पैदा हुवा या फ़क़ीर था गनी हो गया तो वाजिब न हुवा और अगर सुब्ह तुलूअ होने के बाद मरा या सुब्ह तुलूअ होने से पहले काफ़िर मुसल्मान हुवा या बच्चा पैदा हुवा या फ़कीर था गनी हो गया तो वाजिब है

❁ ••• ➲  *ज़कात और स-द-कए फ़ित्र में फर्क :* ज़कात में साल का गुज़रना आक़िल बालिग और निसाबे नामी (या'नी उस में बढ़ने की सलाहिय्यत) होना शर्त है जब कि स-द-कए फ़ित्र में येह शराइत नहीं हैं। चुनान्चे अगर घर में जाइद सामान हो तो माले नामी न होने के बा वुजूद अगर उस की कीमत निसाब को पहुंचती है तो उस के मालिक पर स-द-कए फ़ित्र वाजिब हो जाएगा ज़कात और स-द-कए फ़ित्र के निसाब में फ़र्क कैफ़िय्यत के ए'तिबार से है

❁ ••• ➲  *फित्रे की अदाएगी की शराइत :* स-द-कए फ़ित्र में भी निय्यत करना और मुसल्मान फ़क़ीर को माल का मालिक कर देना शर्त है

❁ ••• ➲  *ना बालिग पर स-द-कए फ़ित्र :* ना बालिग अगर साहिबे निसाब हो तो उस पर भी स-द-कए फ़ित्र वाजिब है। उस का वली उस के माल से फ़ित्रा अदा करे 

❁ ••• ➲  *मां के पेट में मौजूद बच्चे का फ़ित्रा :* जो बच्चा मां के पेट में हो उस की तरफ़ स-द-कए फ़ित्र अदा करना वाजिब नहीं

❁ ••• ➲  *छोटे भाई का फ़ित्रा :* अगर बड़ा भाई अपने छोटे गरीब भाई की परवरिश करता हो तो उस का स-द-कए फ़ित्र मालदार बाप पर वाजिब है न कि बड़े भाई पर फ़तावा आलमगीरी में है छोटे भाई की तरफ़ से सदका वाजिब नहीं अगर्चे वोह उस की इयाल में शामिल हो!..✍🏻

 *📬 फ़ैज़ाने  ज़कात  सफ़ह 114-115 📚*


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            *❝   स-दकए  फ़ित्र    ❞* 
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❁ ••• ➲  *अगर किसी का फ़ित्रा न दिया गया हो तो ?* ना बालिगी की हालत में बाप ने बच्चे का स-द-कए फ़ित्र अदा न किया तो अगर वोह बच्चा मालिके निसाब था और बाप ने अदा न किया तो बालिग होने पर खुद अदा करे और अगर वोह बच्चा मालिके निसाब न था तो बालिग होने पर उस के ज़िम्मे अदा करना वाजिब नहीं

❁ ••• ➲  *बाप ने अगर रोज़े न रखे हों :* बाप जब मालिके निसाब हो अगर्चे उस ने रमज़ान के रोजे न रखे हों तो स-द-कए फ़ित्र ना बालिग बच्चों का उसी पर वाजिब है न कि उन की मां पर 

❁ ••• ➲  *मां पर बच्चों का फ़ित्रा वाजिब नहीं :* अगर बाप न हो तो मां पर अपने छोटे बच्चों की तरफ़ से स-द-कए फ़ित्र देना वाजिब नहीं

❁ ••• ➲  *यतीम बच्चों का फ़ित्रा :* बाप न हो तो उस की जगह दादा पर अपने गरीब यतीम पोते, पोती की तरफ़ से स-द-कए फ़ित्र देना वाजिब है जब कि येह बच्चे मालदार न हों 

❁ ••• ➲  *गरीब बाप के बच्चों का फित्रा :* बाप गरीब हो तो उस की जगह मालिके निसाब दादा पर अपने गरीब पोते पोती की तरफ़ स-द-कए फ़ित्र देना वाजिब है जब कि बच्चे मालदार न हों!..✍🏻

     *📬 फ़ैज़ाने  ज़कात  सफ़ह - 116 📚*

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           *❝  ज़कात  के  मसाइल  ❞* 
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❁ ••• ➲  *शबे ईद बच्चा पैदा हुवा तो :* शबे ईद बच्चा पैदा हुवा तो उस का भी फ़ित्रा देना होगा क्यूं कि ईद के दिन सुब्हे सादिक़ तुलूअ होते ही स-द-कए फ़ित्र वाजिब हो जाता है और अगर बाद में पैदा हुवा तो वाजिब नहीं

❁ ••• ➲  *शबे ईद मुसल्मान होने वाले का फित्रा :* ईद के दिन सुब्हे सादिक़ तुलूअ होते ही स-द-कए फ़ित्र वाजिब हो जाता है, लिहाज़ा अगर इस वक्त से पहले कोई मुसल्मान हुवा तो उस पर फ़ित्रा देना वाजिब है और अगर बाद में मुसल्मान हुवा तो वाजिब नहीं

❁ ••• ➲  *माल जाएअ हो जाए तो :* अगर स-द-कए फ़ित्र वाजिब होने के बाद माल हलाक हो जाए तो फिर भी देना होगा क्यूं कि ज़कात व उश्र के बर ख़िलाफ़ स-द-कए फ़ित्र अदा करने के लिये माल का बाकी रहना शर्त नहीं

❁ ••• ➲  *फ़ौत शुदा शख्स का फ़ित्रा :* अगर किसी शख्स ने वसिय्यत न की और माल छोड़ कर मर गया तो वुरसा पर उस मय्यित के माल से फ़ित्रा अदा करना वाजिब नहीं क्यूं कि स-द-कए फ़ित्र शख्स पर वाजिब है माल पर नहीं, हां अगर वुरसा बतौरे एहसान अपनी तरफ से अदा करें तो हो सकता है कुछ उन पर जब्र नहीं!...✍🏻 

     *📬 फ़ैज़ाने  ज़कात  सफ़ह - 118  📚*


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             *❝   स-दकए  फ़ित्र   ❞* 
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❁ ••• ➲  *मेहमानों का फित्रा :* ईद पर आने वाले मेहमानों का स-द-कए फ़ित्र मेज़बान अदा नहीं करेगा अगर मेहमान साहिबे निसाब हैं तो अपना फ़ित्रा खुद अदा करें

📙 फ़तावा रज़विय्या मुखर्रजा जिल्द 10 सफ़ह 296 

❁ ••• ➲  *शादी शुदा बेटी का फ़ित्रा :* अगर शादी शुदा बेटी बाप के घर ईद करे तो उस के छोटे बच्चों का फ़ित्रा उन के बाप पर है जब कि औरत का न बाप पर न शोहर पर अगर साहिबे निसाब है तो खुद अदा करे

📗 फ़तावा रज़विय्या मुखर्रजा जिल्द 10 सफ़ह 296 

❁ ••• ➲  *बिला इजाज़त फ़ित्रा अदा करना :* अगर बीवी ने शोहर की इजाज़त के बिगैर उस का फ़ित्रा अदा किया तो स-द-कए फ़ित्र अदा नहीं होगा जब कि सरा हतन या दला लतन इजाज़त न हो अगर शोहर ने बीवी या बालिग औलाद की इजाजत के बिगैर उन का फ़ित्रा अदा किया तो स-द-कए फ़ित्र अदा हो जाएगा बशर्ते कि वोह उस के इयाल में हो

❁ ••• ➲  आ'ला हज़रत रहमतुल्लाह तआला अलैह फ़तावा रज़विय्या में फ़रमाते हैं कि स-द-कए फ़ित्र इबादत है और इबादत में निय्यत शर्त है तो बिला इजाज़त ना मुम्किन है हां इजाज़त के लिये सराहत होना ज़रूर नहीं दलालत काफ़ी है मसलन जैद उस के इयाल में है, उस का खाना पहनना सब उस के पास से होता है , इस सूरत में अदा हो जाएगा!..✍🏻

📕 माखूज़ अज़ फ़तावा रज़विय्या जिल्द 20 सफ़ह 453 

     *📬 फ़ैज़ाने  ज़कात  सफ़ह - 119  📚*


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              *❝   ईदुल  फ़ित्र   ❞* 
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❁ ••• ➲  *मुआफ़ी का ए'लाने आम :* अल्लाह का करम बालाए करम है कि उसने माहे रमज़ानुल मुबारक के फौरन ही बा'द हमें ईदुल फित्र की ने मते उज्मा से सरफ़राज़ फ़रमाया इस ईदे सईद की बेहद फजीलत है 

❁ ••• ➲  लेकिन हज़रते सय्यिदुना अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास رضی اللہ تعالی عنہ की एक रिवायत में येह भी है जब ईदुल फित्र की मुबारक रात तशरीफ़ लाती है तो इसे लैलतुल जाइज़ा या'नी इन्आम की रात के नाम से पुकारा जाता है

❁ ••• ➲  जब ईद की सुब्ह होती है तो अल्लाह अपने मासूम फिरिश्तों को तमाम शहरों में भेजता है लेकिन वोह फ़िरिश्ते ज़मीन पर तशरीफ ला कर सब गलियों और राहों के सिरों पर खड़े हो जाते हैं और इस तरह निदा देते हैं ऐ उम्मते मुहम्मद ﷺ उस रब्बे करीम की बारगाह की तरफ चलो जो बहुत ही ज़ियादा अता करने वाला और बड़े से बड़ा गुनाह मुआफ फरमाने वाला है

❁ ••• ➲  फिर अल्लाह अपने बन्दों से यूं मुखातिब होता है ऐ मेरे बन्दो मांगो क्या मांगते हो मेरी इज्जतो जलाल की कसम आज के रोज़ इस (नमाजे ईद के) इज्तिमाअ में अपनी आखिरत के बारे में जो कुछ सुवाल करोगे वोह पूरा करूंगा और जो कुछ दुन्या के बारे में मांगोगे उस में तुम्हारी भलाई की तरफ़ नज़र फ़रमाऊंगा
(या'नी इस मुआमले में वोह करूंगा जिस में तुम्हारी बेहतरी हो)

❁ ••• ➲  मेरी इज्जत की कसम ! जब तक तुम मेरा लिहाज़ रखोगे मैं भी तुम्हारी खताओं पर पर्दा पोशी फ़रमाता रहूंगा मेरी इज्जतो जलाल की कसम मैं तुम्हें हद से बढ़ने वालों (या'नी मुजरिमों) के साथ रुस्वा न करूंगा बस अपने घरों की तरफ मरिफ़रत याफ्ता लौट जाओ तुम ने मुझे राज़ी कर दिया और मैं भी तुम से राजी हो गया!...✍🏻

*📬 अत्तरगीब वत्तरहीब जिल्द 2 सफ़ह 60 हदीस 23 📚*

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              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘ ❞
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               *❝   ईदुल  फ़ित्र   ❞* 
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❁ ••• ➲  *ईदी मिलने की रात :* खुदाए रहमान त'अला हम गुनहगारों पर किस कदर मेहरबान है एक तो रमजानुल मुबारक में सारा महीना वोह हम पर अपनी रहमतें नाज़िल फ़रमाता ही रहता है फिर जूं ही येह मुबारक महीना हम से जुदा होता है फौरन हमें ईदे सईद की खुशियां अता फरमाता है

❁ ••• ➲  गुज़श्ता हदीसे मुबारक में शव्वालुल मुकर्रम की चांद रात या'नी शबे ईदुल फित्र को "
लैलतुल जाइज़ा "या'नी इन्आम की रात करार दिया गया है। येह रात नेक लोगों को इन्आम मिलने की गोया ईदी दिये जाने की रात है। इस मुबारक रात की बेहद फजीलत है  

❁ ••• ➲  *दिल जिन्दा रहेगा :* रसूलल्लाह ﷺ का फरमाने बरकत निशान है जिस ने ईदैन की रात (या'नी शबे ईदुल फित्र और शबे ईदुल अज़्हा) तलबे सवाब के लिये कियाम किया उस दिन उस का दिल नहीं मरेगा जिस दिन (लोगों के) दिल मर जाएंगे

📙 सुनने इब्ने माजह जिल्द 2 सफ़ह 365 हदीस 1782 

❁ ••• ➲  *जन्नत वाजिब हो जाती है :* एक और मकाम पर हज़रते सय्यिदुना मुआज बिन जबल رضی اللہ تعالی عنہ से मरवी है , फ़रमाते हैं, जो पांच रातों में शब बेदारी करे उस के लिये जन्नत वाजिब हो जाती है 1 जुल हिज्जा शरीफ़ की आठवीं नवीं और दस्वीं रात ( इस तरह तीन रातें तो येह हुई ) और चौथी ईदुल फित्र की रात पांचवीं शा'बानुल मुअज्जम की पन्दरहवीं रात ( या'नी शबे बराअत )!...✍🏻

*📬 अत्तरगीब वत्तरहीब , जिल्द 2 सफह 98 हदीस 2 📚*

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            *❝   ईदुल  फ़ित्र   ❞* 
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❁ ••• ➲  सय्यिदुना अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास رضی اللہ تعالی عنہ की रिवायत कर्दा तवील हदीसे पाक (जो आगे गुज़री) में येह मज़मून भी है ईद के रोज़ मासूम फ़िरिश्ते अल्लाह की अताओं और बख्शिशों का एलान करते हैं। और अल्लाह खुद भी बेहद करम फ़रमाता है और अपनी इनायत व रहमत से नमाजे ईद के लिये जम्अ होने वाले मुसल्मानों की मग्फिरत फरमा देता है

❁ ••• ➲  मजीद बर आं अल्लाह की तरफ़ से येह भी फ़रमाया जाता है कि जिसे जो कुछ दुन्या व आख़िरत की खैर मांगनी है वोह सुवाल करे उस पर ज़रूर करम किया जाएगा। काश ! ऐसे मांगने के मवाकेअ पर हमें मांगना आ जाए क्यूं कि उमूमन लोग इन मौकओं पर सिर्फ दुन्या की खैर रोज़ी में बरकत और न जाने क्या क्या दुन्या के मुआ-मलात पर सुवाल करते हैं दुन्या की खैर के साथ साथ आखिरत की खैर ज़ियादा मांगनी चाहिये दीन पर इस्तिकामत और ख़ातिमए बिल खैर वोह भी मदीने में वोह भी रसूलल्लाह ﷺ कदमों में वोह भी ब सूरते शहादत और मद्फ़न जुन्नतुल बक़ी में और बिला हिसाबो किताब मरिफ़रत और जन्नतुल फ़िरदौस में रसुलल्लाह  ﷺ का पड़ौस भी मांग लेना चाहिये!..✍🏻


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         ❝  *💫 🕋  मोमिनों का महीना  🕋 💫*
              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘ ❞
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              *❝   ईदुल  फ़ित्र   ❞* 
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❁ ••• ➲  *औलियाए किराम रहमतुल्लाह तआला अलैह भी तो ईद मनाते रहे हैं :* आजकल गोया लोग सिर्फ नए नए कपड़े पहनने और उम्दा खाने तनावुल करने को ही ईद समझ बैठे हैं ज़रा गौर तो कीजिये हमारे बुजुर्गाने दीन भी तो आख़िर ईद मनाते रहे हैं मगर इन के ईद मनाने का अन्दाज़ ही निराला रहा है। वोह दुन्या की लज्जतों से कोसों दूर भागते रहे हैं और हर हाल में अपने नफ्स की मुखालफत करते रहे हैं

❁ ••• ➲  *रूह को भी सजाइये :* इस में कोई शक नहीं कि ईद के दिन गुस्ल करना नए या धुले हुए कपड़े पहनना और इत्र लगाना सुन्नत है। येह सुन्नतें हमारे ज़ाहिरी बदन की सफाई के लिये हैं। लेकिन हमारे इन साफ उजले और नए कपड़ों और नहाए हुए और खुश्बू मले हुए जिस्म के साथ साथ हमारी रूह भी हम पर हमारे मां बाप से भी ज़ियादा मेहरबान खुदाए रहमान की महब्बत व इताअत और रसूलल्लाह ﷺ की उल्फ़त व सुन्नत से खूब खूब सजी हुई होनी चाहिये!..✍🏻

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              ⚘ फैज़ान  ए  रमज़ान ⚘  ❞
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               *❝   ईदुल  फ़ित्र   ❞* 
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❁ ••• ➲  *ईद किस के लिये है ?* रसूलल्लाह ﷺ की महब्बत से सरशार दीवानो सच्ची बात तो येही है कि ईद उन खुशबख्त मुसल्मानों का हिस्सा है जिन्हों ने माहे मोहतरम, रमज़ानुल मुअज़्ज़म को रोजों , नमाज़ों और दीगर इबादतों में गुज़ारा तो येह ईद उन के लिये अल्लाह की तरफ़ से मज्दूरी मिलने का दिन है। हमें तो अल्लाह से डरते रहना चाहिये कि आह ! मोहतरम माह का हम हक अदा ही न कर सके

❁ ••• ➲  *सय्यिदुना उमर फारूक- رضی اللہ تعالی عنہ की ईद :* ईद के दिन चन्द हज़रात मकाने आलीशान पर हाज़िर हुए तो क्या देखा कि आप رضی اللہ تعالی عنہ दरवाज़ा बन्द कर के ज़ारो कितार रो रहे हैं  लोगों ने हैरान हो कर अर्ज की या अमीरल मुअमिनीन رضی اللہ تعالی عنہ आज तो ईद है जो कि खुशी मनाने का दिन है , खुशी की जगह येह रोना कैसा ? आप رضی اللہ تعالی عنہ ने आंसू पूंछते हुए फ़रमाया या'नी ऐ लोगो येह ईद का दिन भी है और वईद का दिन भी आज जिस के नमाज़ रोजे मक़बूल हो गए बिलाशुबा उस के लिये आज ईद का दिन है। लेकिन आज जिस के नमाज़ व रोजे को रद्द कर के उस के मुंह पर मार दिया गया हो उस के लिये तो आज वईद ही का दिन है। और मैं तो इस ख़ौफ से रो रहा हूं कि आह या'नी मुझे येह मालूम नहीं कि मैं मक्बूल हुवा हूं या रद्द कर दिया गया हूं ईद के दिन उमर येह रो रो कर बोले नेकों की ईद होती हैं

❁ ••• ➲  *शहज़ादे की ईद :* अमीस्ल मुअमिनीन हज़रते सय्यिदुना उमर फारूके आ'जम رضی اللہ تعالی عنہ ने एक मरतबा ईद के दिन अपने शहज़ादे को पुरानी कमीस पहने देखा तो रो पड़े बेटे ने अर्ज की, प्यारे अब्बा जान ! क्यूं रो रहे हैं फ़रमाया मेरे लाल मुझे अन्देशा है कि आज ईद के दिन जब लड़के तुझे इस पुरानी कमीस में देखेंगे तो तेरा दिल टूट जाएगा बेटे ने जवाबन अर्ज की दिल तो उस का टूटे जो रिजाए इलाही त'आला के काम में नाकाम रहा हो या जिस ने मां या बाप की ना फरमानी की हो मुझे उम्मीद है कि आप رضی اللہ تعالی عنہ की रिज़ामन्दी के तुफैल अल्लाह पाक भी मुझ से राजी हो जाएगा येह सुन कर हज़रते उमर फारूक़ رضی اللہ تعالی عنہ  ने शहज़ादे को गले लगाया और उस के लिये दुआ फ़रमाई

📙 मुलख्वसन मुकाश-फतुल कुलूब सफह 308

🤲🏻 ◈ अल्लाह की उन पर रहमत हो और उन के सदके हमारी मग़्फ़िरत हो!..✍🏻 आमीन


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❁ ••• ➲  *इन बातों से परहेज़ करें :* अब हम चंद ऐसी चीज़ों का ज़िक्र करने जा रहे हैं जो हमारे मुआशरे में राइज हैं मगर शरीअत की रू से इसको करना किसी तोर पर दुरुस्त नहीं बल्कि दुनिया व आखिरत में तबाही का सबब है ईद का दिन आने पर आम तौर पर मुसलमान सिनेमा ड्रामा सर्कस वगैरा देखने जाते हैं। बाज़ मुसलमान ईद के दिन शराब नोशी जुआ वगैरा खेलते हैं। बाज़ जगहों पर गाने वगैरा लगा कर लड़कों के साथ साथ लड़कियाँ भी नाचती हैं। बाज़ जगहों पर पटाखे वगैरा फोड़े जाते हैं। बाज़ लोग गैर मुस्लिमों की बाकायदा एहतेमाम के साथ दावत करते हैं और उन्हें भी अपने इस मुकद्दस तहवार में शरीक करना चाहते हैं। बाज़ जगहों पर बाकायदा टी.वी. लगा कर लोगों को जमा करके लोग फिल्में देखते हैं (मआज़ल्लाह) 

❁ ••• ➲  मेरे प्यारे आका ﷺ के प्यारे दीवानो ! मजकूरा उमूर का इरतिकाब सरासर अल्लाह व रसूल की नाराजगी का सबब बनते हैं मजकूरा अफ़आले मज़मूमा व कबीहा के इरतिकाब से हम हरगिज़ फलाहे दारैन की अबदी सआदतों को हासिल नहीं कर सकेंगे। फलाह व कामयाबी तो अल्लाह अज़्ज़वजल और रसूलुल्लाह ﷺ की इताअत व फरमांबरदारी में है। 

🤲🏻 ⚘ रब्बे कदीर की बारगाह में दुआ है कि हम सब को अपने हबीब ﷺ की प्यारी सुन्नतों पर अमल करने की तौफीक अता फरमाए।...✍🏻 आमीन

*📬 माहे रमज़ान कैसे गुज़ारें सफ़ह - 127 📚*

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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ 💚

 الصلوۃ والسلام علیک یاسیدی یارسول الله ﷺ  सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 01) * सीरत क्या है.!? * कुदमाए मुहद्दिषीन व फुकहा "मग़ाज़ी व सियर...