Friday, 12 March 2021

• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •


 

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     ❝• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब • ❞
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 ❐ सवाल ❐  ➻  मेरे दोस्त की 4 औलादें हैं मगर चारों लडकियां ही हैं अगर लड़का के लिए कोई वज़ीफा हो तो बरा ए महरबानी ज़रुर बताऐं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  लड़कियां होना बाइसे रह़मत व बरकत है अल्लाह उनके सदक़े में बहुत सी मुसीबत,बलायें परेशानी माँ बाप के उपर से टाल देता है बल्के उनका रिज़्क़ भी बहुत कुशादा कर देता है, खैर आपका जवाब हाज़िर है, इमामुल अइम्मा सैय्यदिना इमामे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं के जो ये चाहता है के उसके यहाँ लड़का हो तो औरत के पेट पर  उंगली रख कर ये कहे के अगर लड़का है तो मैंने उसका नाम मुहम्मद रखा इंशाअल्लाह लड़का ही होगा फिर अगर लड़का ही हो तो उसका वही नाम रखें! (जो आपने बोला था यानी मुहम्मद)

*📓 अहकामें शरीअत हिस्सा 1 सफह 83*

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 ❐ सवाल ❐  ➻  अगर मरते वक़्त किसी के मुंह से कलमा ए कुफ्र निकल गया तो क्या हुक्म लगेगा!

 ❐ जवाब ❐  ➻  उल्मा बिलकुल नज़ां की ह़ालात में कलम ए कुफ्र को कुफ्र नहीं मानते कियोंकि हो सकता है के उसकी ह़ालत बेहोशी की हो या अक़्ल काम ना कर रही हो इस लिए नज़ां के वक़्त मरने वाले को कलमा पढ़ने को कहने से भी माना किया गया है के माज़ अल्लाह अगर ह़ालते नज़ां में इन्कार कर दिया तो वल्लाहु आलम के उसका हश़्र किया होगा बस यूँ करे के कुछ लोग खुद बा आवाज़े बुलन्द कलिमा पढ़ते रहें के सुनकर वह खुद भी पढ़ ले!..✍🏻

*📓 बहारे शरीअत हिस्सा,4 सफह 131*

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 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या नमाज़ में हर सूरह से पहले بسم اللہ पढ़ना चाहिए!

 ❐ जवाब ❐  ➻  हर रकाअत में सूरह फातिहा से पहले بسم اللہ शरीफ पढ़ना सुन्नत है और उसके बाद सूरह पढ़ने के लिए मुस्तहब यानि पढ़े तो अच्छा और ना पढ़े तो कोई हरज नहीं!..✍🏻

*📓 फतावा रज़वियह जिल्द 3 सफह 67*

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 ❐ सवाल ❐  ➻  अगर कोई काफिर कलिमा पढ़े तो क्या उसको उसका मतलब बताना ज़रूरी है या सिर्फ कलिमा पढ़ते ही मुसलमान हो जायेगा!

 ❐ जवाब ❐  ➻  हमारे आला हज़रत फरमाते हैं के किसी काफिर का इतना कह लेना ही मुसलमान होने के लिए काफी है के में मुसलमान होता हुं या अपना मज़हब छोड़ कर दीने मोहम्मदी क़ुबूल करता हूँ अगरचे कलिमा भी ना पढ़े फिर भी मुसलमान होगा!..✍🏻

*📓 फतावा अफरीक़ा सफह 143*

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 ❐ सवाल ❐  ➻  ये जो आस्तानों पर क़व्वाली होती है किया ये जाइज़ है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर मज़ामीर यानि,Music,का इस्तेमाल होता है तो यक़ीनन ह़राम,है और ऐसा करने वाला सुनने वाला और हाज़रीन सब फासिक़ हैं अगर किसी पीर की इजाज़त,से ऐसा होता है तो वह भी फासिक़ है,ना वो पीर कहलाने के लायक़ है और ना उससे बैयत होना जाइज़ है, हाँ यूंही अगर लोग बग़ैर मज़ामीर Music के कोई ऐसा शेर पढ़े जिस में कराहत ना हो तो बिलकुल जाइज़ है!..✍🏻

*📓 अलमलफूज़, हिस्सा 2 सफह 106*

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 ❐ सवाल ❐  ➻  शौहर नें ये कहा के अगर तूने ये काम क्या तो तू मुझ पर ह़राम है तो क्या हुक्म है और अगर ये कहा के तूने ये काम क्या तो तुझे तलाक़ है तब क्या हुक्म होगा!

 ❐ जवाब ❐  ➻  ह़राम होने को कहा तो अगर तलाक़ की नियत से कहा तो एक तलाक़े बाइन हो गई उसकी बीवी फौरन उसके निकाह से निकल गयी चाहे वह काम करे या ना करे अब दुबारा निकाह करना होगा और अगर ये कहा के अगर तू ये काम करेगी तो तुझे तलाक़ है तब इस सूरत में औरत का वह काम करने पर एक तलाक़े रजई होगी इद्दत के अन्दर निकाह के इयादे की ज़रुरत नहीं उस से मिल लें उसकी बीवी हो जायगी हां इद्दत गुज़र गयी तो अब दुबारा निकाह की जरूरत पडेगी।..✍🏻 

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 ❐ सवाल ❐  ➻  अगर क़ाज़ी के सामने काफिर नें कलिमां पढा मगर अपने मुसलमान होने का नहीं तो क्या वह मुसलमान होगा!

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर दो मुसलमानों के सामने कलिमा पढा तो वह मुसलमान है अगरचे किसी पर ज़ाहिर ना करे हां मगर अपने कुफ्रिया अक़ाइदो आमाल से बेज़ार रहे वरना इस्लाम से फिरा तो माज़ अल्लाह मुरतद के हुक्म में होगा।..✍🏻 

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 ❐ सवाल ❐  ➻  शादी की पहली रात को बीवी हैज़ से थी तो शोहबत नहीं हो पायी मगर दावत वलीमा तो पहले से ही फिक्स होता है वह करना ही पड़ेगा तो क्या ऐसे में शोहबत के बाद फिर से वलीमा करना होगा और क्या लोगों को भी बताना पडेगा की ये वलीमा है या यूंही बगैर बताये दोस्तों की दावत की जाये!

 ❐ जवाब ❐  ➻  शबे ज़ुफाफ में औरत से मुलाक़ात कर लेना ही वलीमा की सुन्नत के लिए काफी है अगरचे सोहबत करे या न करे।..✍🏻 

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 ❐ सवाल ❐  ➻  मुस्तफा जाने रह़मत पे लाखों सलाम के टोटल कितने शेर हैं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  एख्तिलाफ है लेकिन 168 कहीं 171 और मेरे पास जो हदाइक़े बख्शिश है उसमें 172 शेर हैं!...✍🏻

*📗हदाइक़े बख्शिश हिस्सा 2 सफह 36*

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 ❐ सवाल ❐  ➻  बहुत सारे लोग बालों में डाई लगाते हैं बालों को काला करने के लिए तो डाई लगाना कैसा है और अगर वह इमाम है तो क्या हुक्म है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  काला खिज़ाब (डाई) लगाना ह़राम है और मेंहदी लगाना सुन्नत है और बाकी रंगों में अगर कोई नाजाइज़ चीज़ की मिलावट नहीं है तो जाइज़ है तो इमाम अगर काली डाई स्तेमाल करता है तो उसके पीछे नमाज़ मकरुहे तहरीमी वाजिबुल इयादा होगी (यानी दोबारा अदा करना पड़ेगी) बाकी में हरज नहीं!..✍🏻

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 ❐ सवाल ❐  ➻  अगर रास्ते में तावीज़ पडी़ मिले तो क्या करें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर यक़ीन है के ये तावीज़ ही है तो उठा कर ऐसी जगह रख दें जहाँ बे अदबी का खतरा ना हो!..✍🏻

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 ❐ सवाल ❐  ➻  जब चारों इमाम में इख्तिलाफ है तो चारों हक़ पर कैसे हैं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  पहले आप समझ लें कि  मसायल के 4 इमाम हैं,हज़रते इमामे आज़म हज़रते इमाम शाफयी,हज़रते इमाम मालिक और हज़रते इमाम अहमद बिन ह़म्बल,ये चारों ही अक़ायद पर मुत्तफिक़ हैं इख्तिलाफ है तो फुरु में,इस ज़माने में हक़ इन्हीं चारों में से किसी एक की पैरवी में है और जो इन से अलग हुआ वो गुमराह बे दीन है!

आपके सवाल का जवाब ये है कि चारों ही इख्तिलाफ के बावजूद हक़ पर कैसे हैं,इसके लिए ये ह़दीसे पाक पढ़ीये बनी क़ुरैज़ा पर जल्द पहुंचने की गर्ज़ से हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबियों में ये ऐलान करवाया कि हम असर की नमाज़ बनी क़ुरैज़ा पहुँच कर पढ़ेंगे,सभी ह़ज़रात जुहर पढ़कर निकले और सफर करते रहे यहाँ तक कि असर का वक्त बहुत थोड़ा रह गया,तो कुछ सहाबा ऐ इकराम ने नमाज़ पढ़नी चाही तो कुछ नें मना किया कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का कहना है कि नमाज़ वहीं पहुँच कर पढ़ेंगे इसपर वो सहाबा कहने लगे कि हुज़ूर का कहना बिलकुल हक़ है मगर उनहोंने ये नहीं कहा कि अगर नमाज़ का वक्त निकल जाये तब भी मत पढ़ना तो वो सहाबा नमाज़ पढ़े और कुछ नहीं पढ़े जब हुज़ूर बनी क़ुरैज़ा पहुँच गए तो नमाज़े क़ज़ा पढ़ी गयी फिर हुज़ूर के सामने उन सहाबियों का तज़किरा हुआ तो आपने फरमाया की जिनहोंने पहले पढ़ ली उनको सवाब और जिनहोंने अब मेरे साथ पढ़ी उनको दो गुना सवाब,देखिये यहाँ नमाज़ अदा करने पर भी सवाब मिल रहा है और क़ज़ा करने पर भी सवाब मिल रहा है तो बस इसी तरह चारों इमाम मुजतहिद थे जिसने सही मस्अला अपने हिसाब से निकाला तो उसे दो गुना सवाब और जिसने मस्अला समझने में गलती की तो उस गलती पर भी एक गुना सवाब,कियोंकि मुजतहिद की खता माफ है!

और ये इख्तिलाफ उम्मत के लिए रह़मत इस तरह है कि किसी को दीन की किसी बात पर अमल करने का मौक़ा मिल रहा है किसी को किसी दूसरी बात पर कियोंकि शरीयत एक चमन है और चमन हर तरह के फूलों से बनता है कहीं गुलाब तो कहीं चमेली कहीं कहीं जूही तो कहीं नरगिस,और अवाम को इख्तिलाफ में पडने को इसलिए मना किया जाता है कि वो इल्म तो रखते नहीं हैं तो वो किसी बात का इंकार कर बैठेंगे जो उनकी आखिरत खराब कर देगा,लिहाज़ा यही कहा जाता है कि अपने इमाम की पैरवी करो और इख्तिलाफ में ना पड़ो..✍🏻

*📗 बुखारी शरीफ जिल्द 1 किताबुल जिहाद*
*📕 मुस्लिम शरीफ जिल्द 2 सफह 95*

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 ❐ सवाल ❐  ➻  शौहर ने अपनी बीवी को मां या बहन या बेटी कहा तो क्या हुक्म है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  उससे पूछा जाऐ के ऐसा कहने में उसकी नियत क्या थी अगर अज़मत के लिए कहा तो हरज नहीं अगर तलाक़ की नियत से कहा तो एक तलाक़ बाइन हुई और अगर ज़ेहार की नियत से कहा तो ज़ेहार हुआ और कोई नियत नहीं तो कुछ नहीं मगर ऐसा कहना मकरूह है, लेकिन अगर औरत को महरम के उन वुज़ूह, से तशबीह दी जिनका देखना जाइज़ नहीं तो ज़ेहार है इसमें नियत का कोई दखल नहीं ज़ेहार का कफ्फारा ये है के, 3 रोज़ा रखें या दस मिस्कीन को दोनों वक़्त खिलाऐं या उनको कपड़ा पहनावे, बगैर कफ्फारा अदा करे बीवी से सोहबत जाइज़ नहीं,ना ही उसको शोहवत के साथ चूमना!..✍🏻

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 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या मस्जिद में मोबाईल चार्ज कर सकते हैं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  जाइज़ नहीं!..✍🏻

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 ❐ सवाल ❐  ➻  एक बद अक़ीदा 73 फिरक़ों वाली ह़दीस को ज़ईफ कहता है किया ये सही है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  जिसने कहा वह जाहिल है ये हदीस हरगिज़ हरगिज़ ज़ईफ नहीं!..✍🏻

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  ❐ सवाल ❐  ➻  अगर  सूखा कुत्ता जिस्म या कपड़ा से छू जाये तो क्या कपड़ा नापाक हो जायेगा!

 ❐ जवाब ❐  ➻  सूखे कुत्ते की किया बात बल्कि अगर भीगा भी होगा तब भी ना तो कपड़ा नापाक होगा और ना ही आदमी हां उस पर नजासत लगी हो या नजिस पानी से निकलता हुआ दिखाई दे तो अलग बात है इस सूरत में जहाँ लग जाऐ उतना हिस्सा धो दें या कपड़ा बदल दें पाक हो जायेगा गुस्ल की ह़ाजत नहीं!..✍🏻

*📚 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफह 101*

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  ❐ सवाल ❐  ➻  चोरी की बिजली से हीटर पर खाना पकाना और उसका खाना कैसा है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  चोरी करना ह़राम है अल्लाह तआला कुरआन के सूरह माइदा आयत 38 में इरशाद फरमाता है के : चोरी करने वाले मर्द व औरतों के हाथ काट दो-,जवाब इस मसले से समझें हमारे आला हज़रत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं के धोबी को कपड़ा दिया मगर वह बदल कर दूसरे का कपड़ा ले आया तो उस कपड़े का पहनना मर्द व औरत दोनों को ह़राम है और उस पर नमाज़ भी मकरूह तह़रीमी यानि वाजिबुल इयादा होगी, सोचिये के जिस कपड़े को हमने चुराया नहीं बल्कि गल्ती से हमारे पास आ गया और मुम्किन है के जिस का कपड़ा बदलकर हमारे पास आया है तो हमारा कपड़ा भी शायद उसी के पास हो मगर फिर भी उस कपड़े का पहनना ह़राम है और यहाँ तो ज़ाहिरन बिजली की चोरी की जा रही है, ये ह़राम ह़राम ह़राम है उस पर पका हुआ खाना भी ह़राम है!..✍🏻

*📚 फतावा रज़वियह जिल्द 3 सफह 417*

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 ❐ सवाल ❐  ➻  जिस का पेशा पैन्टिंग का हो और वह नमाज़ी भी हो तो कोशिश करने के बावजूद भी रंगों का असर हाथ पर बाकी रह जाता है तो क्या इस सूरत में गुस्ल या वुज़ू होगा और नमाज़ हो जायेगी!

 ❐ जवाब ❐  ➻  साहिबे बहारे शरीअत फरमाते हैं के जिन चीजों की आदमी को उमूमन या खुसूसन ज़रुरत पड़ती रहती हो जैसे नानबाई के लिए आटा, रंग रेज़ के लिए रंग, औरतों के लिए मेंहदी, लिखने वालों के लिए सियाही, मज़दूर के लिए मिट्टी गारा या पलक में सुरमा या गरदो गुबार तो ये सब माफ है, अगर चे सख्त हो गया हो अगर चे उसके नीचे पानी भी ना पहूंचे, फिर भी पानी एहतियात भर खूब क़ायदे से हाथ वगैरह धो लिया जाए, बाकी कुछ रह गया तो गुस्ल और वुज़ू दोनों हो जायेगा और नमाज़ भी!..✍🏻

*📚 बहारे शरीअत हिस्सा 2,सफह 16*

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  ❐ सवाल ❐  ➻  बाज़ लोग इशा में फर्ज़ की 4 रकअत, 2 सुन्नतें मुअक्क़िदा ,और, 3 वित्र, ही पढ़ते हैं ,ऐसा क्यों?

 ❐ जवाब ❐  ➻  नमाज़ पूरी पढ़नी चाहिए मगर सुन्नते गैर मुअक्किदा मिस्ल नफ्ल है, और नफ्ल की पकड़ नहीं यानि करे तो सवाब और ना करे तो कोई गुनाह नहीं!..✍🏻

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 ❐ सवाल ❐  ➻  औरत अगर ह़ालते हैज़ में हो तो उसके साथ कैसा बरताओ रखा जाये, और क्या शौहर अपनी बीवी से कुछ महीने या कुछ साल दूर रहे तो निकाह टूट जाता है, दोनों का जवाब दें बड़ी महरबानी होगी!

 ❐ जवाब ❐  ➻  ह़ालते हैज़ में औरत से सिर्फ सोहबत ह़राम है बाकी सारे मुआमलात वैसे ही रखें यहाँ तक की अगर शहवत का अन्देशा ना हो तो हैज़ की ह़ालत में बीवी के साथ सोने में भी हरज नहीं हां शोहवत भड़कने का खतरा हो तो अलग सोऐं मगर वह अछूत भी नहीं हो जाती, यहाँ तक के अगर फातिहा वगैरह का खाना बनाना चाहे तो बिलकुल बना सकती है कोई हरज नहीं, और रही बात दूर रहने से निकाह टूटने की तो साल महीने 6 महीने क्या अगर दोनों एक दूसरे को मियां बीवी मानते हैं तो निकाह के बाद दुबारा सारी ज़िन्दगी ना मिले फिर भी वह उसी के निकाह में रहेगी!..✍🏻

📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफह 79
📗 फतावा मुस्तफवीया जिल्द 3 सफह


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  ❐ सवाल ❐  ➻  हमारे यहाँ एक इमाम साहब हैं, उनका घर मस्जिद के बगल में ही है, इमाम साहब सिर्फ जुमें की नमाज़ पढ़ाते हैं, जुमां के अलावा दूसरी नमाज़ें इमाम साहब का साहबज़ादा जो हाफिज है वह पढ़ाता है, इमाम साहब जुमां के अलावा दीगर नमाज़ें बा जमाअत पढ़ने का एहतिमाम नहीं करते कई दफा देखा गया है के मस्जिद में आज़ान हो रही होती है और इमाम साहब घर में मौजूद होते हुए भी मस्जिद में नहीं आते, कभी कभी घर के बाहर बैठे सीगरेट पी रहे होते और मस्जिद नहीं जाते और वह काला खिज़ाब डाई भी लगवाते है अब इमाम साहब के पीछे जुमां की नमाज़ या दीगर नमाज़ें पढ़ना कैसा!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ना वाजिब है और बिला उज़्रे शरई जमाअत का छोड़ना फिस्क़ है इसी तरह काला खिज़ाब लागाना भी मकरूहे तह़रीमी और गुनाह है और इस गुनाह को तकरार से करना फिस्क़ है, और फिक़्ह की हर किताब में है के फासिक़ की इमामत मकरूहे तह़रीमी है, अगर लोगों ने अपने इख़्तियार से फासिक़ को इमाम बनाया तो वह भी गुनहगार होंगे, लिहाज़ा ऐसे आदमी को इमाम बनाना और इसके पीछे जुमां या दीगर नमाज़ें पढ़ना जायज़ नहीं, हाँ अगर ऐलानियां तौबा कर ले और दूबारा वह गुनाह ना करे तो इमाम बना सकते हैं और उसके पीछे नामाज़ भी पढ़ सकते हैं कोई हरज नहीं!...✍🏻

*📕 फतावा भक्खी शरीफ जिल्द 1 सफह 170*

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  ❐ सवाल ❐  ➻  खुत्बे की आज़ान मस्जिद से बाहर होनी चाहिए या अन्दर!?

 ❐ जवाब ❐  ➻   हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और तमाम खुलफाऐ राशिदीन के ज़माने में आज़ाने सानि मस्जिद के दरवाज़े पर थी हां ईमाम का सामना होना चाहिए लेकिन अगर सामना नहीं होता हो यानि खम्भा वगैरह लगा हो तो ईमाम के सामने होना ज़रुरी नहीं,मगर मस्जिद के बाहर होना ज़यादा बेहतर है!..✍🏻

*📗 अहकामें शरीअत हिस्सा 2, सफह 207*

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 ❐ सवाल ❐  ➻  खिलाफते राशिदा किसकी खिलाफत को कहते हैं!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु, ह़ज़रते उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु, ह़ज़रते उसमाने गनी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु, ह़ज़रते मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु, व इमामे हसन मुजतबा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु, की खिलाफत को खिलाफते राशिदा कहा जाता है और उसके बाद बादशाहत शुरू हुई, मगर ह़ज़रते अमीरे मुआविया रज़ियल्लाहु तआला अन्हु, और पहली सदी हिज्री के मुजद्दिद ह़ज़रते उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु, व आखिर ज़माने में ह़ज़रते इमाम मेंहदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की खिलाफत खिलाफते राशिदा में शामिल है।..✍🏻

*📗 अलमलफूज़ हिस्सा 3 सफह 65*

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  ❐ सवाल ❐  ➻  वह कौन सी सूरत है कि औरत मैहर माफ़ कर दे लेकिन उसके बावुजूद मैहर माफ़ ना होगा!

 ❐ जवाब ❐  ➻  शौहर ने औरत को धमकी दी के मेहर माफ़ कर दे वरना तुझे मारूंगा और शौहर मारने पर क़ादिर है तो इस सूरत में औरत के मेहर माफ़ करने से माफ़ ना होगा!..✍🏻

*📕 बहारे शरिअत हिस्सा 15, सफ़ह 11*
*📘 दुर्रे मुख़्तार मअ् रद्दुल मोहतार जिल्द 5, सफ़ह 88*

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 ❐ सवाल ❐  ➻  हमारे गाँव में एक इमाम साहब हैं जब तक यहाँ रहते हैं पांचो टाइम नमाज़ पढ़ते पढ़ाते हैं पर जब अपने घर जाते एक वक़्त भी नमाज़ नहीं पढ़ते, ना घर पर और ना ही मस्जिद जाते हैं, अब ऐसे इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ना कैसा है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  जैद अगर वाक़ई में एसा है जैसा सवाल में ज़िक्र किया गया है, ज़ैद अगर बे अमल है तो हक़ीक़त में वह आलिम नहीं जाहिल के मिस्ल है, बल्के जाहिल है और जब वह मस्जिद में नमाज़ पढ़ने नहीं जाता है तो तर्के जमाअत का आदी है, तो फासिक़ है और अपने घर में भी नमाज़ नहीं पढ़ता तो शदीद तरीन फासिक़ है उसके पीछे नमाज़ पढ़ना भी जाइज़ नहीं है, बहरहाल ऐसा शख्स नाइबे रसूल और वारिसे अम्बिया हरगिज़ नहीं हो सकता जो नाइबे रसूल और वारिसे अम्बिया होगा वह बे अमल नही होगा!..✍🏻

*📕 फतावा फक़ीहे मिल्लत,जिल्द 1 सफह 132-133*

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 ❐ सवाल ❐  ➻  एक साहब की बीवी सउदी अरब में, है और उनका शौहर गाँव में अब अगर फोन पर तलाक़ दें तो हो जायेगी।

 ❐ जवाब ❐  ➻  मोबाइल फोन, खत, e-mail, के ज़रिए तलाक़ देने से भी तलाक़ पड़ जाती है,जबके शौहर खुद कहे के मैंने तलाक़ दी!..✍🏻

*📗 फतावा रज़ा दारुल यतामा, सफह 245/251*
*📕 मोबाईल फोन के ज़रुरी मसाइल सफह,130* 

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 ❐ सवाल ❐  ➻  औरत ह़मल से है और उसके शौहर ने उसको तलाक़ दे दिया अब हमारे यहाँ कुछ लोग कहते हैं के हमल में तलाक़ नहीं माना जाता है और कुछ लोग कहते हैं हो जायेगा, अब आप बतायें तलाक़ होगा या नहींं, और अगर हवाला मिल जाए तो ज्यादा बेहतर होगा!

 ❐ जवाब ❐  ➻  ह़ालते ह़मल में तलाक ना दी जाए पर अगर किसी ने दे दिया तो तलाक़ हो जायेगी!..✍🏻

*📗 अहकामे शरीअत हिस्सा,2 सफह 166*

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  ❐ सवाल ❐  ➻  औरत को अपने शौहर का नाम या बेटा अपने बाप का नाम लेकर पुकारे तो कैसा है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  बेटा अपने बाप का नाम लेकर या बीवी अपने शौहर को नाम लेकर पुकारे मकरूह है!..✍🏻

*📗 बहारे शरीअत, हिस्सा - 16*

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  ❐ सवाल ❐  ➻  औरतों को कौन कौन सी चूडियाँ पहनना जाइज़ है और कौन कौन सी चूडियाँ पहनना नाजाइज़ है, हज़रत हवाले के साथ बताना मुझे किसी को बताना है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  फतावा फक़ीहे मिल्लत में है के कांच यानि शीशा और प्लास्टिक की चूडियाँ पहनना और पहन कर नमाज़ पढ़ना सह़ी व दुरुस्त है,,, फतावा रज़वियह में है, आला हज़रत से सवाल किया गया, के औरतों को कांच की चूडियाँ पहनना जाइज़ है या नहीं, आपने जवाब फरमाया, जाइज़ है बल्के शौहर के लिए सिंगार की नियत से मुस्तहब है, और शौहर या माँ बाप का हुक्म हो तो वाजिब,, सोना चांदी और कांच यानि शीशा और पिलास्टिक की जाइज़ है, और लोहा तांबा पीतल रांगा वगैरह औरतों के लिए नाजाइज़ व हराम है, रद्दुल मोहतार में है!..✍🏻

📕 फतावा फक़ीहे मिल्लत जिल्द 1 सफह 177
📗 फतावा रजविया जिल्द 9 सफह 235
📘 रद्दुल मुख्तार जिल्द 5 सफह 253


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 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या फरमाते है उलमा-ए-किराम के जैद मन्दिर में जाकर भजन गाता और गवाता है सूद ब्याज़ खुलेआम लेता है शराब खुलेआम पीता है जुआ खुलेआम खेलता है, इसके बारे में क़ुरआन हदीस की रौशनी में जवाब इनायत करें महरबानी होगी!

 ❐ जवाब ❐  ➻  ज़ैद अगर वाक़ई ऐसा करता है जैसा सवाल में ज़िक्र किया गया तो जैद इस्लाम से खारिज़ हो गया, यानि काफिर हो गया, तौबा व तजदीदे ईमान व तजदीदे निकाह लाज़िम है, मुफ्ती शरीफुल हक़ अमजदी फतावा शारेह बुखारी में इसी तरह के एक सवाल के जवाब में फरमाते हैं, जो शख्स हिन्दुओं के पूजा के गीत और भजन में शरीक़ होता है वह मुसलमान नहीं वह इस्लाम से निकल गया उसकी बीवी उसके निकाह से निकल गयी!..✍🏻

📕 फतावा शारेह बुखारी,जिल्द,2 सफह 617

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 ❐ सवाल ❐  ➻  कुछ लोग सिर्फ हाथ के इशारे से सलाम करते हैं और ज़बान से कुछ नहीं कहते इस तरह़ सलाम करना कैसा है जवाब इनायत करें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  बाज़ लोग उंगली के इशारे से या गरदन  के इशारे से सलाम करते हैं या जवाब देते हैं यह सुन्नत के ख़िलाफ़ है, हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रह़मा तह़रीर फरमाते हैं के उंगली या हथेली से सलाम करना मम्नू है, ह़दीस में फ़रमाया के उंगलियों से सलाम करना यहूदियों का तरीक़ा है और हथेली से इशारा करना नसारा का, फिर आगे इरशाद फरमाते हैं के बाज़ लोग सलाम के जवाब में हाथ या सर से इशारा कर देते हैं, बल्कि बाज़ सिर्फ आंखों के इशारे से जवाब देते हैं यूँ जवाब नहीं हुआ, उनको मुंह से जवाब देना वाजिब है!

📕 बहारे शरीयत जिल्द 3 हिस्सा 16, सफह 107, सलाम का ब्यान
📗 सु'नने तिर्मिज़ी शरीफ़, जिल्द 4 सफह 319 ह़दीस नं. 2704

हां अगर कोई दूर हो और ज़बान से भी सलाम किया या जवाब दिया और साथ ही इशारा भी कर दिया तो कोई हरज नहीं! 

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 ❐ सवाल ❐  ➻  अगर पहली रकअत का रुकू मिल जाए तो क्या तकबीरे तह़रीमा की फ़जीलत मिल जायेगी या नहीं इसका जवाब हवाले के साथ इनायत फरमायें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  ह़ज़रत अल्लामा अब्दुस्सत्तार ह़म्दानी मद्दज़िल्लुहुल आली साहब क़िब्ला अपनी किताब मोमिन की नमाज़ में तह़रीर फरमाते हैं के पहली रकअत का रूकू मिल गया तो तकबीरे ऊला यानि तकबीरे तह़रीमा की फ़जीलत मिल गई!

📕 मोमिन की नमाज़ सफह 51
📗 आलमगीरी

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  ❐ सवाल ❐  ➻  ह़ज़रत उलटा कपड़ा पहन कर नमाज़ पढ़ना कैसा है जवाब इनायत करें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  उलटा कपड़ा- ( विपरीत- Reverse,) कपड़ा पहन कर या ओढ़ कर नमाज़ पढ़ना मकरुहे तह़रीमी है, उलटा कपड़ा पहनना या ओढ़ना खिलाफे मो'ताद, (असभ्यता- Discourteous,) में दाखिल है ख़िलाफ़े मो'ताद यानि इस तरह़ कपड़ा पहनना या ओढ़ना कि उस तरह़ कपड़ा पहन कर या ओढ़कर कोई शख़्स बाज़ार में या अक़ाबिर (सम्मानीय व्यक्ति) के पास न जा सके तो अल्लाह तआ़ला के दरबार का अदब और ताज़ीम ज़ियादा लाज़िम और ज़रुरी है, लिहाज़ा उलटा कपड़ा पहन कर या ओढ़कर नमाज़ पढ़ने से नमाज़ मकरुहे तह़रीमी होगी!

📓 मोमिन की नमाज़ 266
📗 बहारे शरीअ़त जिल्द 3 सफह 170
📕 फ़तावा रज़वियह शरीफ़ जिल्द 3 सफह 438

लिहाज़ा ऐसी नमाज़ को लौटाने का हुक्म होगा


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   ❐ सवाल ❐  ➻  कुछ बुजुर्ग हज़रात मस्जिद में कुर्सी पर बैठकर नमाज़ पढ़ते हैं जबके वो चल सकते हैं मगर ज्यादा देर खड़े नहीं रह सकते तो क्या वो बैठकर नमाज पढ़ सकते हैं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  हुज़ूर ताजुश्शरिअह अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं चलकर अगर खड़े होने पर कादिर है तो उस पर फ़र्ज़ है के खड़े होकर वो तकबीरे तहरीमा कहे और जब तक खड़ा रह सकता है वो खड़ा रहे फिर उसको बैठने की इजाज़त है जिस तौर पर आसानी से वो ज़मीन पर बैठ सकता है बैठकर वो नमाज़ पढ़े कुर्सी पर बैठना ये सख्त महले नज़र है कुर्सी का इस्तेमाल इस ग़रज़ के लिए नाजाइज़ है और ये चंद वजूह से, एक तो ये जमाअत की जगह घेरना है और जमाअत की जगह इस तौर पर घेरना उससे तक़रीज़े जमाअत है ये नाजाइज़ है और फिर इसमें क़तअ सफ़ भी है यानी एक तो कुर्सी है जो सफ़ को मुनक़ते करती है फिर उस पर साहिब नमाज़ पढ़ रहे हैं वो अगरचे बज़ाहिर नमाज़ी हैं लेकिन दरअसल वो हक़ीक़तन नमाज़ी नहीं हैं उनकी नमाज़, नमाज़ नहीं है इसलिए के जब वो चल सकते हैं अब कुर्सी पर बैठकर नमाज़ पढ़ रहे हैं तो एक तो क़याम छोड़ा यूं नमाज़ गई और अगर क़याम कर भी लिया और कुर्सी पर बैठकर अब सजदा किया इशारे से तो जो ज़मीन पर पेशानी रखकर सजदा कर सकता है उसका इशारे से सजदा करना सही नहीं इन दोनों सूरतों मैं कुर्सी पर बैठने वालों की नमाज़ सही नहीं होती कुर्सी का इस्तेमाल सख्त महले नज़र है अल्लाह तबारक व तआला लोगों को तौफ़ीक़ दे के वो अपनी इबादतों को रायग़ां न करें और इबादतों के अहकाम जानें और सही तौर पर अल्लाह तबारक व तआला की इबादत करें!

📗 फ़िक़्ही मजालिस हिस्सा 1 सफ़ह 109

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   ❐ सवाल ❐  ➻  अगर नमाज़ के दौरान मोबाइल बज उठता है तो पाकेट में या जहां मोबाइल रखा हो उसे बंद कर सकते हैं, जैसा के आजकल रिंग टोन उमूमन मोसिक़ी ( Music) की शक्ल में होते हैं तो नमाज़ के दौरान बजने पर नमाज़ का क्या हुक्म है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  इस मसअले में हुज़ूर ताजुश्शरिअह अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं नमाज़ पर इसका कोई असर नहीं होगा अलबत्ता खुशूअ् व खुज़ूअ् में ये ख़लल अंदाज है लिहाज़ा नमाज़ के दौरान पॉकेट में या जहां नमाज पढ़ रहे हैं मोबाइल को ऑन करके ना रखें बल्के मोबाइल को साइलेंट करदें या उसको ऑफ करदें और अगर इत्तेफ़ाक़िया तौर पर जेब में मोबाइल बज गया तो इशारा ए ख़फ़ीफ़ा से इशारे के ज़रिए से अमले ख़फ़ीफ़ के ज़रिए से अगर उसको ऑफ कर सकता है तो उसको ऑफ कर ले वरना रहने दे अगर अमले कसीर का ये मुतक़ाज़ी  है तो रहने दे और अगर उसको बंद करने के पीछे चलेगा तो इस सूरत में अमले कसीर की वजह से उसकी नमाज़ भी फ़ासिद होगी!

📗 फ़िक़्ही मजालिस, हिस्सा 1 सफ़ह 116-117

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   ❐ सवाल ❐  ➻  हमारे शहर में सिर्फ़ एक ही हाफ़िज़े क़ुरान है और वो दाढ़ी नहीं रखता क्या हम ऐसे इमाम के पीछे नमाज़े तरावीह अदा कर सकते हैं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  हुज़ूर ताजुश्शरिअह अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं : इसकी इजाज़त नहीं!

📗 फ़िक़्ही मजालिस हिस्सा 1 सफ़ह 120

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   ❐ सवाल ❐  ➻  एक सवाल ये है के क्या कोई अपनी बीवी से खड़े हो कर सोहबत कर सकता है या नहीं और अगर नहीं तो फिर क्यों इस से क्या क्या नुकसान है जवाब इनायत करें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  हुक्मा (हकीमों)  के मुताबिक़ खड़े खड़े मुबाशिरत करने से अगर औरत को ह़मल क़रार पा जाए तो औलाद बद दिमाग़ और बेवकूफ़ या पैदाइशी तौर पर नीम पागल होगी, और खड़े खड़े मुबाशिरत करने से हुक्मा (हकीमों) के क़ौल के मुताबिक़ कपकपी की बीमारी हो जाती है और बाज़ मरतबा कमर के सख़्त दर्द में मुब्तिला हो जाता है!

📕 इरफ़ानुल ह़िकमत सफह 235
📗 क़रीना ए ज़िन्दगी, सफ़ह 113

ख़ुलासा ये है कि जानवरों का तरीक़ा एख़्तियार करने के बजाए शरई तरीक़ा एख़्तियार करें, और दर्द व मर्ज़ और बद दिमाग़ी औलाद से निजात पायें, पल दो पल की लज़्ज़त के लिए बीमारियों में मुब्तिला होने और बद दिमाग़ी और नीम पाग़ल औलाद का हुसूल अक़्ल मंदी नहीं बल्के अपने जिस्म व जान और औलाद को दाइमी (हमेशा) मुसीबत में मुब्तिला करना है और उसकी मुसीबत कोई और नहीं बल्के खुद भुगतना पड़ेगा लिहाज़ा इस्लामी तरीके से सोहबत करें जानवरों की तरह़ खड़े खड़े न करें!

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  ❐ सवाल ❐  ➻  औरत को लिपस्टिक लगाना कैसा है जायज़ है या नहीं और इसको लगा कर गुस्ल व वुज़ू हो जायेगा या नहीं ख़ुलासा फ़रमायें?

 ❐ जवाब ❐  ➻  लिपिस्टिक लगाने के तअल्लुक़ से हज़रत मुफ्ती साहब फ़रमाते हैं के जाइज़ है आगे तह़रीर फरमाते हैं के सुना है के इस में अलकोहल की मिलावट होती है इसलिए बचना बेहतर है और तहक़ीक़ से ये मिलावट साबित हो जाए तो इसका इस्तेमाल ह़राम व गुनाह है, होंटों पर लिपिस्टिक लगने की सूरत में ये फर्ज़ है कि वुज़ू गुस्ल के वक़्त उसे अच्छी तरह छुड़ा कर होंठ साफ़ कर ले वरना वुज़ू गुस्ल न होगा कियोंके लिपिस्टिक होंठ पर जम जाती है जिसके वजह से वहाँ पानी नहीं पहुंचेगा तो वो पाक भी न होगा!

📕 सिराजुल फुक़्हा की दीनी मजालिस सफह 144

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   ❐ सवाल ❐  ➻  एक सवाल है के क्या शबे बराअत में  मरने वालों की रुह़े घरों में आती हैं हवाले के साथ जवाब इनायत करें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  बेशक मोमिनीन की रुह़ें हर शबे जुमां, यानी जुमेरात के दिन, ईद के दिन, आशूरा के दिन, और शबे बराअत को अपने घर आकर बाहर खड़ी रहती हैं और हर रुह़ बलंद आवाज़ से निदा करती है के ऐ मेरे घर वालों ऐ मेरी औलाद ऐ मेरे क़ुरबत दारो सदक़ा कर के हम पर महरबानी करो!

📗 सुन्नी बहिश्ती ज़ेवर
📕 फतावा रज़वियह शरीफ़ जिल्द 9 सफह 651

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   ❐ सवाल ❐  ➻  ह़ज़रत एक सवाल है के नमाज़ की ह़ालत में पैंट या पाजामा की मोरी मोड़ना कैसा है, कुछ लोग कहते हैं के टख़ना बंद होना चाहिए, इसके बारे में कुछ तफ़सील से बतायें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  कुछ लोग टख़नों से नीचा लटका हुआ पाजामा और पैंट पहनते हैं अगर उन्होंने इसकी आदत डाल रखी है और तकब्बुर व घमंड के तौर पर वो ऐसा करते हैं तो ये नाजाइज़ व गुनाह है, और इस तरह़ नमाज़ मकरुह है, लेकिन अगर इत्तिफ़ाक़ से हो या बे ख़्याली और बे तवज्जोही से हो तो हर्ज नहीं, और जो लोग इस से बचने के लिए और टख़नें खोलने के लिए मोरी पायेंचे को चढ़ाते हैं वो गुनाह को घटाते नहीं बल्के बढ़ाते हैं और नमाज़ में ख़राबी को कम नहीं करते बल्के ज़्यादा करते हैं, ये पैंट और पाजामे की मोरी पायेंचे को लपेट कर चढ़ाना नमाज़ में मकरुहे तह़रीमी है!

ह़दीस में है के रसूलल्लाह ﷺ सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया के मुझे हुक्म दिया गया के मैं सात हड्डियों पर सजदा करूँ, पेशानी दोनों हाथ, दोनों घुटने, और दोनों पंजे और ये हुक्म दिया गया के मैं नमाज़ में कपड़े और बाल न समेंटूं!

📕 मिशकात शरीफ़ सफ़ह 83
📒 बुख़ारी शरीफ़
📗 मुस्लिम शरीफ़

इस ह़दीस की रू से कपड़ा समेटना और चढ़ाना नमाज़ में मना है, लिहाज़ा पैंट और पाजामे की मोरी लपेटने और चढ़ाने वालों को इस ह़दीस से इबरत हासिल करना चाहिए!

लेकिन इस्लाह करने वालों से भी गुज़ारिश है के नमाज़ में इस किस्म की कोताहियां बरतने वालों को नरमी और प्यार व मुहब्बत से समझायें, मान जायें तो ठीक है वरना उन्हें उनके हाल पर रहने दें और मुनासिब तरीक़े से इस्लाह करें, उनको डांटना झिड़कना और उनसे लड़ाई झगड़ा करना बहुत बुरा है, जिसका नतीजा ये भी हो सकता है के वो मस्जिद में आना और नमाज़ पढ़ना छोड़ दें जिसका वबाल उन झिड़कने डांटने वालों पर है, क्यूंके इस में भी कोई शक नहीं के बाज़ इस किस्म की खामियों के साथ नमाज़ पढ़ने वाले बेनमाज़ियों से हज़ारों दर्जा बेहतर हैं, और नमाज़ में कोताहियां करने वालों को भी चाहिए अगर कोई उनकी इस्लाह करे तो बुरा मानने के बजाए उसकी बात पर अमल करें, उस पर गुस्सा न करें, कियोंके वो जो कुछ कह रहा है आप की भलाई के लिए कह रहा है अगर वो तुर्शी और सख़्ती से भी कह रहा है तो उसका फ़ेएल है आपका काम तो हक़ को सुनकर अमल करना है झगड़ा करना नहीं!

📒 ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह़ सफह 46-48

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 ❐ सवाल ❐  ➻  बहुत सारे लोग क़ुरआने पाक पढ़ते हैं तो दिल में पढ़ते हैं उनके होंट देखें जायें तो होंट भी नहीं हिलते इस तरह़ नमाज़ में क़ुरआन पढ़ना कैसा, नमाज़ हो जायेगी या नहीं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  कुछ लोग क़ुरआन पाक की तिलावत और नमाज़ में या नमाज़ के बाहर कुछ पढ़ते हैं तो सिर्फ होंट हिलाते हैं और आवाज़ बिलकुल नहीं निकालते, उनका ये पढ़ना, पढ़ना नहीं है और इस तरह़ पढ़ने से नमाज़ नहीं होगी और इस तरह़ क़ुरआने पाक की तिलावत की तो तिलावत का सवाब भी नहीं पायेंगे, आहिस्ता पढ़ने का मतलब ये है के कम अज़ कम इतनी आवाज़ ज़रूर निकले के अगर कोई रुकावट यानि (बेहरा या शोर वगैरह) न हो तो खुद सुन ले, सिर्फ होंट हिलना और आवाज़ का बिलकुल न निकलना पढ़ना नहीं है और इस मस्अले का ख़ास ध्यान रखना चाहिए, वरना नमाज़ नहीं होगी!

📕 फतावा आलमगीरी मिस्री जिल्द 1 सफह 65
📒 बहारे शरीअत जिल्द 3 सफह 69
📘 ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह़ सफह 48


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  ❐ सवाल ❐  ➻  ह़ज़रत मैं नमाज़ पढ़ रहा था ग़लती से दो के बजाए तीन सजदे कर लिए बाद में याद आया अब मैं क्या करूँ, मेरी नमाज़ होगी या नहीं और मुझे क्या करना चाहिए हवाले के साथ जवाब इनायत करें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर किसी ने दो के बजाए तीन सजदे कर लिए तो अगर सलाम फेरने से पहले याद आजाये तो सजदा सहू करे कियोंके वाजिब तर्क हुआ, सजदा सहू लाज़िम है, और अगर सलाम फ़ेरने के बाद याद आया तो फ़िर से दोबारा नमाज़ पढ़ ले!

📕 फ़तावा रज़वियह शरीफ़ जिल्द 3 सफह 646
📒 मोमिन की नमाज़ सफह 73

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  ❐ सवाल ❐  ➻  एक सवाल है के सजदे में जाते वक़्त किस जानिब ज़्यादा ज़ोर देना चाहिए, और देना चाहिए या नहीं, इसका ख़ुलासा करें, आपकी महरबानी होगी!

 ❐ जवाब ❐  ➻  सजदे में जाते वक़्त दाहिनी जानिब, ज़ोर देना और सजदा से उठते वक़्त बायें बाज़ू पर ज़ोर देना मुस्तहब है!

📕 बहारे शरीअत जिल्द 3 सफह 173
📒 मोमिन की नमाज़ सफह 73

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 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या जमाअत से नमाज़ पढ़ने वाले को इमाम के साथ दुआ मांगना ज़रुरी है, अगर कोई इमाम के सलाम फेरने के बाद दुआ न मांगे तो उसकी नमाज़ होगी या नहीं जवाब इनायत करें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  हर नमाज़ सलाम फेरने पर मुकम्मल हो जाती है उसके बाद जो दुआ मांगी जाती है ये नमाज़ में दाख़िल नहीं, अगर कोई शख्स नमाज़ पढ़ने के बाद बिलकुल दुआ न मांगे तब भी उसकी नमाज़ अदा हो जाएगी, अलबत्ता एक फ़ज़ीलत से महरूमी और सुन्नत की ख़िलाफ़ वर्ज़ी है, कुछ जगह देखा गया के इमाम लोग बहुत लम्बी लम्बी दुआयें पढ़ते हैं और मुक़तदी कुछ ख़ुशी के साथ और कुछ बे रग़बती से मजबूरन उनका साथ निभाते हैं, और कोई बग़ैर दुआ मांगे या थोड़ी दुआ मांग कर इमाम साहब का पूरा साथ दिये बग़ैर चला जाए तो उस पर एतराज़ करते हैं और बुरा जानते हैं, ये सब उनकी ग़लतफ़हमियाँ हैं, इमाम के साथ दुआ मांगना मुक़तदी पर हरगिज़ लाज़िम व ज़रुरी नहीं वो नमाज़ पूरी होने के बाद फ़ौरन मुख़्तसर दुआ मांग कर भी जा सकता है, और कभी किसी मजबूरी की बिना पर बग़ैर दुआ मांगे चला जाए तब भी नमाज़ सही और पूरी हो जाती है!

📕 फ़तावा रज़वियह शरीफ़ जिल्द 3 सफह 278
📗 ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह 48
 

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  ❐ सवाल ❐  ➻  बहुत सारे लोग बालों को काला करने के लिए काला ख़िज़ाब लगाते हैं- तो क्या बालों को काला करना सही है और अगर काला खिज़ाब लगाने वाला कोई इमाम हो तो उसके लिए क्या हुक्म है जवाब इनायत करें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  काला खिज़ाब या ऐसी मेंहदी जिस से बाल काले हों लगाना नाजाइज़ व ह़राम है इस लिए के जो चीज़ बालों को काला करे ख़्वाह नील हो या मेंहदी का मैल या कोई तेल सब नाजाइज़ व हराम है, ऐसी दवा पीना जिससे बाल काले निकलें जाइज़ है, मेंहदी या कतम लगाया जाए के ये जाइज़ है और हदीस शरीफ़ से साबित है, और अगर इमाम काली (डाई) मेंहदी इस्तेमाल करता है तो उसके पीछे नमाज़ मकरुहे तह़रीमी वाजिबुल इयादा यानि दोहरानी होगी!

📕 फ़तावा बरेली शरीफ़ सफह 68
📒 अलमलफ़ूज़ शरीफ़, हिस्सा 2 सफ़ह 103
📗 अनवारुल हदीस, सफ़ह 327

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  ❐ सवाल ❐  ➻  हज़रत ये बतायें के खड़े हो कर पेशाब करना कैसा,और अगर किसी को कोई तकलीफ हो पैर वगैरह में जो बैठ न सके तो क्या वो खड़े हो कर पेशाब कर सकता है या नहीं जवाब इनायत करे!

 ❐ जवाब ❐  ➻  खड़े हो कर पेशाब करना बद तहज़ीबी व बेअदबी व नसरानियों का तरीक़ा है, खड़े हो कर पेशाब करना मकरुह व मना है, हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मना फ़रमाया है, थोड़ी सी मजबूरीयों की बिना पर खड़े हो कर पेशाब नहीं करना चाहिए हां अगर बहुत ज़्यादा तकलीफ हो और हर मुम्किन कोशिश करने के बाद भी अगर वो बैठ नहीं सकता तो खड़े हो कर पेशाब कर सकता हैं!

📗 फ़तावा रज़वियह शरीफ़ जिल्द 24 सफह 548


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 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या जमाअत से नमाज़ पढ़ने वाले को इमाम के साथ दुआ मांगना ज़रुरी है, अगर कोई इमाम के सलाम फेरने के बाद दुआ न मांगे तो उसकी नमाज़ होगी या नहीं जवाब इनायत करें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  हर नमाज़ सलाम फेरने पर मुकम्मल हो जाती है उसके बाद जो दुआ मांगी जाती है ये नमाज़ में दाख़िल नहीं, अगर कोई शख्स नमाज़ पढ़ने के बाद बिलकुल दुआ न मांगे तब भी उसकी नमाज़ अदा हो जाएगी, अलबत्ता एक फ़ज़ीलत से महरूमी और सुन्नत की ख़िलाफ़ वर्ज़ी है, कुछ जगह देखा गया के इमाम लोग बहुत लम्बी लम्बी दुआयें पढ़ते हैं और मुक़तदी कुछ ख़ुशी के साथ और कुछ बे रग़बती से मजबूरन उनका साथ निभाते हैं, और कोई बग़ैर दुआ मांगे या थोड़ी दुआ मांग कर इमाम साहब का पूरा साथ दिये बग़ैर चला जाए तो उस पर एतराज़ करते हैं और बुरा जानते हैं, ये सब उनकी ग़लतफ़हमियाँ हैं, इमाम के साथ दुआ मांगना मुक़तदी पर हरगिज़ लाज़िम व ज़रुरी नहीं वो नमाज़ पूरी होने के बाद फ़ौरन मुख़्तसर दुआ मांग कर भी जा सकता है, और कभी किसी मजबूरी की बिना पर बग़ैर दुआ मांगे चला जाए तब भी नमाज़ सही और पूरी हो जाती है!

📗 फ़तावा रज़वियह शरीफ़ जिल्द 3 सफह 278
📓 ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह 48

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 ❐ सवाल ❐  ➻  ह़ज़रत मैं नमाज़ पढ़ रहा था ग़लती से दो के बजाए तीन सजदे कर लिए बाद में याद आया अब मैं क्या करूँ, मेरी नमाज़ होगी या नहीं और मुझे क्या करना चाहिए हवाले के साथ जवाब इनायत करें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर किसी ने दो के बजाए तीन सजदे कर लिए तो अगर सलाम फेरने से पहले याद आजाये तो सजदा सहू करे कियोंके वाजिब तर्क हुआ, सजदा सहू लाज़िम है, और अगर सलाम फ़ेरने के बाद याद आया तो फ़िर से दोबारा नमाज़ पढ़ ले!

📗 फ़तावा रज़वियह शरीफ़ जिल्द 3 सफह 646
📓 मोमिन की नमाज़ सफह 73

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  ❐ सवाल ❐  ➻  एक सवाल है के क्या रात में नाखून काट सकते हैं या नहीं कुछ लोग कहते हैं के रात में नाखून नहीं काटना चाहिए क्या ये बात सही है जवाब इनायत करें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  हां बिलकुल काट सकते हैं इस में तो कोई ह़रज नहीं- ह़ज़रत अल्लामा मुफ्ती मुनीबुर्रह़मान साहब क़िब्ला तह़रीर फरमाते है के रात के वक़्त नाखून काटने की शरअन कोई मुमानियत नहीं है!

📗 तफ़हीमुल मसाइल सफह 399

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  ❐ सवाल ❐  ➻  कुछ लोग कहते हैं के जरसी गाय खिन्ज़ीर की नसल से है इसको नहीं पालना चाहिए और इसका गोश्त व दूध वगैरह भी नहीं खाना चाहिए क्या ये बात सही है जवाब इनायत करें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  जरसी गाय का पालना उसका दूध इस्तेमाल करना उसका गोश्त खाना जायज़ व दुरुस्त है ह़ज़रत मौलाना तत़हीर अह़मद साहब क़िब्ला अपनी किताब ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह में तह़रीर फरमाते है के : अमेरीकन गाय के बारे में काफी लोग शुकूक व शुबहात में मुबतिला हैं जबके इस में कोई शक नहीं के अमरीकन गाय भी बिला शुबा गाय है उसका गोश्त खाना ह़लाल और उसका दूध और घी भी खाना पीना जाइज़ है!

📔 फतावा बह़रुल उलूम जिल्द 4 सफह 524
📗 ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 134

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  ❐ सवाल ❐  ➻  एक सवाल है के शौहर अपनी बीवी की मय्यत को गुसल दे सकता है या नहीं और मरने के बाद शौहर अपनी बीवी के जनाज़ा को हाथ लगा सकता है या नहीं जवाब इनायत करें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  मर्द अपनी बीवी के जनाज़ा को हाथ लगा सकता है कब्र में उतार भी सकता है, हां उसके बदन को हाथ नहीं लगा सकता इसी वास्ते गुस्ल नहीं दे सकता!

📗 इरफ़ाने शरीयत सफह 1

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  ❐ सवाल ❐  ➻  क्या नापाकी की ह़ालत में भी तावीज़ पहन सकते हैं के नहीं और तावीज़ पहन कर अपनी बीवी से सोहबत करना कैसा है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  आजकल उमूमन तावीज़ मोम जामा क्या हुआ और कपड़े में सिला होता है इसलिए तावीज़ के हुरुफ़ नहीं दिखते हैं लिहाज़ा नापाकी की ह़ालत में भी तावीज़ पहन सकते हैं और बीवी से सोहबत करने में भी कोई ह़रज नहीं- हां अगर तावीज़ पर अल्लाह और उसके रसूल का नाम लिखा हो या कोई क़ुरआन शरीफ की आयत लिखी हो और उसके हुरुफ़ दिख रहें हों तो इन मौकों पर ज़रुर तावीज़ उतार दें इसी में अदब है!

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 ❐ सवाल ❐  ➻  किसी के मरने के बाद जो 3 दिन के बाद या जुमां वगैरह में जो चना पढ़े जाते हैं वो कितना वज़न होना चाहिए!

 ❐ जवाब ❐  ➻  कोई वज़न शरअन मुक़र्रर नहीं, इतने हों के जिस में सत्तर हज़ार अदद पूरा हो जाये!

📗 इरफाने शरीयत सफह 1

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 ❐ सवाल ❐  ➻  जो लोग दीन की बातों की जानकारी ना होने की वजह से अमल नहीं करते क्या क़ियामत के दिन उनकी पकड़ ना होगी!

 ❐ जवाब ❐  ➻  आज-कल काफ़ी लोग ऐसे हैं दीनी बातों, इस्लामी अक़ीदों पाकी ना पाकी, नमाज़ व रोज़ा और ज़कात वग़ैरहा मसाइल नहीं जानते और सीखने की कोशिश भी नहीं करते, और ख़ुदा व रसूल ने किस बात को हराम फ़रमाया और किसे हलाल, किसे जाइज़ और किसे नाजाइज़ उन्हें इसका इल्म नहीं और ना इल्म सीखने की परवाह, और ख़िलाफ़े शराअ हरकात करते हैं गलत सलत नमाज़ अदा करते हैं, लैन दैन ख़रीद फ़रोख़्त और रहन सहन में मज़हबे इस्लाम के ख़िलाफ़ चलते हैं, और उनसे कोई कुछ कहे या उन्हें गलत बात से रोके, ख़िलाफ़े शराअ पर टोके तो वो कहते हैं हम जानते ही नहीं हैं लिहाज़ा हमसे कोई मुआख़िज़ा और सुवाल ना होगा और हम बरोज़े क़ियामत छोड़ दिए जाएंगे!

ये उन लोगों की सख़्त ग़लत फ़हमी है, सही बात ये है के अंजान ग़लत कारों की डबल सज़ा होगी!

एक इल्म हासिल ना करने की और उल्मा से ना पूछने की और दूसरे ग़लत काम करने की, और जो जानते हैं लेकिन अमल नहीं करते उन्हें एक ही अज़ाब होगा यानी अमल ना करने का, इल्म ना सीखने का गुनाह उनपर ना होगा,  (क्योंके उन्होंने इल्म ए दीन सीख लिया था)

आजकल आदमी अगर कोई सामान गाड़ियां, कपड़े, ज़ेवरात खाने पीने की चीज़ ख़रीदे और उसको इस चीज़ के ग़लत व ख़राब या उसमें धोके बाज़ी का शक व शुबा हो जाए तो जांच परख कराएगा लोगों से मशवरा करेगा जानकारों को लाके दिखाएगा, खूब छान फटक करेगा, लेकिन इस्लाम के मआमले में मनमानी करता रहेगा उल्टी सीधी नमाज़ पढ़ता रहेगा, वुज़ू व ग़ुसल नहाने धोने में इस्लामी तरीक़े का ख़याल नहीं रखेगा, लेकिन लैन दैन और मुआमलात में हराम को हलाल और हलाल को हराम समझता रहेगा लेकिन आलिमों मौलवियों से मालूम नहीं करेगा के में जो करता हूं ये ग़लत है या सही!

ये इसलिए हुआ के अब इंसान को दुनियां के नुक़सान की तो फ़िक्र है लेकिन आख़िरत के घाटे की कोई फ़िक्र नहीं हालांके वो मौत से किसी सूरत बच ना सकेगा और क़ब्र व हश्र व जहन्नम के अज़ाब से भाग निकलना उसके बस की बात ना होगी!

दुनियावी हुकूमतों और सल्तनतों की ही मिसाल ले लीजिए अगर कोई शख़्स किसी हुकूमत के  किसी क़ानून की ख़िलाफ़ वर्ज़ी करे और फिर कहदे के में जानता ही नहीं हूं तो हुकाम(औफ़िसर) और पुलिस उसकी बात नहीं सुनेंगे और उसे सज़ा दी जाएगी मिसाल के तौर पर कोई शख़्स बग़ैर लाइसेंस के ड्राइवरी करे या बग़ैर रोड टैक्स जमा किए गाड़ियां और मोटरसाइकिल चलाए और जब पकड़ा जाए तो कहे मुझको पता नहीं था के गाड़ी चलाने के लिए ये काम करना पड़ते हैं तो हरगिज़ उसकी बात नहीं सुनी जाएगी!

ऐसे ही कोई शख़्स बग़ैर टिकट के रेल में सफ़र करने लगे या पैसेंजर का टिकट ले और एक्सप्रेस में सफ़र करने लगे सैकेंड क्लास का  टिकट ले और फ़स्ट क्लास में बैठ जाए और जब पकड़ा जाए तो कहदे के में जानता ही नहीं रेल में सफ़र के लिए टिकट लेना पड़ता है या ये एक्सप्रेस है मैं नहीं पहचान सका और ये फ़स्ट क्लास है मुझको नहीं मालूम तो क्या चैक करने वाले औफ़िसर उसको छोड़ दैंगे!

हरगिज़ नहीं, ऐसे ही दीन के मुआमले में जो लोग ग़लत सलत करते हैं वो भी ये कहने से नहीं छूटैंगे के हम जानते ही ना थे और क़ियामत के दिन उन्हें दोहरी सज़ा होगी!

एक इल्म ए दीन ना जानने की और दूसरी अच्छे अमल ना करने और गुनाह करने की : इस सब की तफ़्सील व तहक़ीक़ के लिए देखिए मुजद्दिद ए आज़म सरकार आलाहज़रत के फ़रमूदात👇

📕 अलमलफ़ूज़ हिस्सा 1 सफ़ह 27 पर
📗 आवामी ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह, सफ़ह 159-160

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  ❐ सवाल ❐  ➻  एक सवाल है के अगर इमाम के सर पर साफ़ा न हो और मुक़तदी के सर पर साफ़ा है तो क्या मुक़तदी की नमाज़ दुरुस्त होगी या नहीं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर मुक़तदी सर पर इमामा जिसे साफ़ा और पगड़ी भी कहते हैं, बांध कर नमाज़ पढ़े और इमाम के सर पर पगड़ी न हो तो इसको कुछ लोग बुरा जानते हैं बल्के कुछ यह समझते हैं के इस सूरत में मुक़तदी की नमाज़ दुरुस्त नहीं हुई, यह ग़लत बात है, अगर इमाम के सर पर पगड़ी न हो और मुक़तदी के सर पर हो तो मुक़तदी की नमाज़ दुरुस्त और सही हो जायेगी आला ह़ज़रत से ये मस्अला मालूम किया गया तो फरमाया बिला तकल्लुफ़ दुरुस्त है!

📔 फतावा रज़वियह जिल्द 3 सफह 273
📕 इरफ़ाने शरीयत सफह 4
📗 ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 41

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  ❐ सवाल ❐  ➻  क्या किसी मरहूम जो इंतिक़ाल कर गए हों उनके नाम से अक़ीक़ा हो सकता है के नहीं जवाब इनायत करें?

 ❐ जवाब ❐  ➻  मुर्दे की त़रफ़ से अक़ीक़ा नहीं हो सकता, कियोंके अक़ीक़ा बच्चे की पैदाइश की खुशी में शुकराने के तौर पर किया जाता है मुजद्दिदे आज़म सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी अलैहिर्रहमतू वर्रिज़वान तह़रीर फरमाते हैं के मुर्दे का अक़ीक़ा नहीं, के वो शुक्रे विलादत है अगर सात दिन से पहले मर गया तो अभी अक़ीक़ा का वक़्त ही न आया था और अगर बाद को मरा तो अक़ीक़ा गया, उसी में दूसरे सफह पर है के जो मर जाये किसी उम्र का हो उसका अक़ीक़ा नहीं हो सकता!

📓 फतावा रज़वियह शरीफ़ जिल्द 8 सफह 547/546
📕 फतावा अम्जदिया जिल्द 3 सफह 336

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   ❐ सवाल ❐  ➻  अगर किसी औरत को तलाक़ दी जाए तो वो औरत तलाक़ देने के कितने दिन के बाद दूसरा निकाह़ कर सकती है रहनुमाई फरमायें?

 ❐ जवाब ❐  ➻  तलाक़ के बाद तीन हैज़ M.c,(माहवारी-) शुरू हो कर ख़तम हो जाये और अगर हैज़ m.c वाली न हो तो तीन महीने और अगर ह़ामिला हो तो जब बच्चा पैदा हो जाये, चाहे बच्चा साल भर बाद पैदा हो या तलाक़ से एक ही मिनट बाद, इद्दत पूरी हो जायेगी!

📗 इरफ़ाने शरीअत सफह 01

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  ❐ सवाल ❐  ➻  कुछ लोग को मार कर फेंक देते हैं तो उनसे कैसे सवाल जवाब कैसे होगा, और उन लोगों से सवाल जवाब होगा या नहीं जवाब इनायत करें?

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर किसी को क़ब्र में दफ़न न किया गया तो जहाँ पड़ा रह गया वहीं उससे सवाल जवाब होगा, और वहीं सवाब या अज़ाब पहूंचेगा हुज़ूर सदरुश्शरिअह बहारे शरीयत में तह़रीर फरमाते हैं के मुर्दा अगर क़ब्र में दफ़न न किया जाये तो जहाँ पड़ा रह गया या फेंक दिया गया गर्ज़ कहीं हो उस से वहीं सवालात होंगे और वहीं सवाब या अज़ाब पहूंचेगा यहाँ तक के जिसे शेर खा गया तो शेर के पेट में सवाल व सवाब व अज़ाब जो कुछ हो पहूंचेगा!

📒 बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 1 सफह 113--- ,عالم برزخ کا بیان


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   ❐ सवाल ❐  ➻  एक सवाल है के अगर लुंगी (तहबंद) के नीचे लंगोट बंधा हो तो नमाज़ हो जायेगी या नहीं जवाब इनायत करें?

 ❐ जवाब ❐  ➻  नमाज़ हो जायेगी- आला ह़ज़रत से जब ये मस्अला मालूम किया गया तो आप ने इरशाद फरमाया के नमाज़ दुरुस्त होगी!

📗 इरफ़ाने शरीयत सफह 1

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 ❐ सवाल ❐  ➻  मेरा एक सवाल है के फिरिश्तों को जासूस कहना कैसा है, और अगर कोई आलिम ऐसा कहे तो उसके लिए क्या हुक्म है?

 ❐ जवाब ❐  ➻  फिरिश्तों को जासूस कहना तौहीन है, फतावा शारेह़ बुख़ारी में है के अम्बिया ए किराम को जासूस कहना कुफ्र है इसी तरह फिरिश्तों को गार्ड या टीटी कहना भी तौहीन है लिहाज़ा आलिम हो या गैरे आलिम फिरिश्तों की शान में ऐसा कहने की वजह से तौबा व अस्तग़फ़ार करे,और अगर कोई मुक़द्दस फरिश्तों की तौहीन की नियत से जासूस कहे तो कुफ्र है तजदीदे इमान व तजदीदे निकाह़ लाज़िम है!

📕 फ़तावा शारेह़ बुखारी जिल्द 1 सफह 575

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 ❐ सवाल ❐  ➻  आजकल जलसों दीनी मेह़फिलों में नात ख़्वां शायरों पर पैसा लुटाने का रिवाज है ये पैसा लुटाना कैसा है?

 ❐ जवाब ❐  ➻  जलसों दीनी मह़फिलों वगैरह में नात ख्वानों और शायरों पर पैसा या नोटों को लुटाना या फेंकना जाइज़ नहीं बल्के उनके हाथ या गोद में रख़ दें जैसा के इमामे अहले सुन्नत सय्यदी सरकार आलाह़ज़रत इमाम अह़मद रज़ा खान बरेलवी अलैहिर्रहमा तह़रीर फरमाते है के पैसे फेंकना या हवा में उड़ाना मना है क्योंके पैसा रिज़्क़ है और रिज़्क़ की बे ह़ुरमती जाइज़ नहीं है, इससे साबित हुआ के नात ख्वानों या शायरों या आलिमे दीन के सर या गोद में पैसे डालना जिसमें बे अदबी का पहलू न हो तो जाइज़ है!

📒 फतावा रज़वियह शरीफ़ जिल्द 24 सफह 520 

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   ❐ सवाल ❐  ➻  हमारे यहाँ एक बच्ची का इंतिक़ाल हो गया बगैर नमाज़े जनाज़ा पढ़े उसको दफ़न कर दिए तो क्या दफन के बाद नमाज़े जनाज़ा पढ़ सकते हैं जवाब इनायत करें?

 ❐ जवाब ❐  ➻  जबतक लाश फट जाने का गुमान गालिब न हो उस वक़्त तक उसकी क़ब्र पर नमाज़ अदा करने का हुक्म है जैसा के हुज़ूर सदरुश्शरिअह तह़रीर फरमाते हैं के उमूमन अमवात की लाशें तीन दिन या दस दिन या कमो बेश में फट जाती हैं इसी वजह से अगर मय्यत बगैर नमाज़े जनाज़ा पढ़े दफन कर दी गई हो तो जबतक उसके फट जाने का गालिब गुमान न हो कब्र पर नमाज़ पढ़ने का फुक़्हा हुक्म देते हैं!

📕 फतावा अम्जदिया जिल्द 1 सफह 326

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  ❐ सवाल ❐  ➻  हज़रत ये बतायें के शरअन लड़का लड़की कितनी उम्र में बालिग़ हो जाते हैं?

 ❐ जवाब ❐  ➻  लड़का कम से कम 12 बरस में और लड़की 9 बरस और ज़्यादा से ज़्यादा दोनों 15 बरस में बालिग़ हो जाते हैं!

📓 इरफ़ाने शरीयत सफह 10

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   ❐ सवाल ❐  ➻  एक सवाल है के जैसे कोई औरत  नापाकी की ह़ालत में मर गई तो क्या उसको डबल गुस्ल दिया जायेगा, एक नापाकी का फिर दूसरा मरने के बाद वाला?

 ❐ जवाब ❐  ➻  एक ही गुस्ल काफी है, चाहे जितनी नापाकी जमां हो जाए, मसलन औरत को हैज़ आया अभी न नहाई थी के सोहबत किया, अभी गुस्ल करने न पाई थी के मर गई एक ही गुस्ल दिया हो तो गुसल हो जायेगा- खुलासा ये के हर नापाकी का गुस्ल अलग अलग देने की कोई ज़रुरत नहीं, बस एक ही गुस्ल काफी है!

📕 इरफ़ाने शरीयत सफह 10

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         ❝ • सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब • ❞
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 ❐ सवाल ❐  ➻  एक सवाल ये है के एक शख्स ने अपनी बीवी को ह़मल में तलाक़ दे दी और वो कहता है के ह़मल में तलाक़ नहीं होती है क्या ये सही है,और तलाक़ पड़ गई या नहीं जवाब इनायत करें महरबानी होगी!

 ❐ जवाब ❐  ➻  ह़मल के दौरान में अगर किसी ने तलाक़ दी तो भी तलाक़ हो जायेगी, जैसा के हुज़ूर आला हज़रत इमाम अह़मद रज़ा ख़ान फाज़िले बरेलवी अलैहिर्रह़मतु वर्रिज़वान तह़रीर फरमाते हैं के ह़मल में तलाक़ न दी जाए अगर देगा हो जायेगी इद्दत बच्चा पैदा होना होगा!

📕 अह़कामे शरीयत जिल्द 2 सफह 185

ख़ुलासा ये है के उस शख्स का कहना के ह़मल में तलाक़ नहीं होती सरासर जिहालत है उसको मस्अला मालूम नहीं तलाक़ देने वाले को चाहिए के फौरन बीवी से अलग हो जाए!

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  ❐ सवाल ❐  ➻  क्या तहज्जुद की नमाज़ बगैर सोये पढ़ सकते हैं जवाब इनायत करें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  तहज्जुद के लिए रात में सोना शर्त़ है सो कर उठने के बाद इंसान जो नमाज़ पढ़ता है उसे ही तहज्जुद कहते हैं, इसी तरह फ़क़ीहे आज़म हुज़ूर सदरुश्शरिअह मुफ्ती अमजद अली साहब आज़मी अलैहिर्रह़मा तह़रीर फरमाते हैं के
सलातुल लैल की एक क़िस्म तहज्जुद है इशा के बाद रात में सो कर उठें और नवाफ़िल पढ़ें सोने से पहले जो कुछ पढ़ें वह तहज्जुद नहीं!

📔 बहारे शरीयत जिल्द 1 सफह 677

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   ❐ सवाल ❐  ➻  तहज्जुद की नमाज़ में कितनी रकअत है और उसका वक़्त कब से कब तक है जवाब इनायत करें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  तहज्जुद की नमाज़ का वक़्त इशा की नमाज़ के बाद सो कर उठें उस वक़्त से तुलू ए सुबह सादिक़ तक है- यानि ख़त्मे सहरी के वक़्त तक तहज्जुद का वक़्त है, तहज्जुद की नमाज़ कम से कम 2 रकअत है और हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से 8 तक साबित है- (यानि आप 2 रकअत से 8 रकात तक पढ़ सकते हैं जो सही हदीस से साबित है) हदीस शरीफ में इस नमाज़ की बड़ी फज़ीलत आई है निसाई और इब्ने माजा ने अपने सुनन में रिवायत की के रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो शख्स रात में बेदार हो और अपने अहल को जगाये और फिर दोनों दो दो रकात पढ़ें तो कसरत से याद करने वालों में लिखे जायेंगे!

📕 अनवारे शरीयत सफह 70

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  ❐ सवाल ❐  ➻  एक सवाल अर्ज़ है के औरत को जिसे माहवारी M.c, का खून आता है कपड़े धोने के बाद भी दाग़ कपड़ों पर रह जाए तो क्या हुक्म है जवाब इनायत करें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  क़दीम फ़तावा रज़विया शरीफ़ में है नजास़त तीन बार ख़ूब धो ली और कपड़ा हर बार पूरा निचोड़ लिया मगर नजास़त का धब्बा या बू या नजिस शुदा तेल की चिकनाई नहीं जाती तो ये माफ़ है कपड़ा पाक हो गया लिहाज़ा आपका कपड़ा पाक है!

📒 फ़तावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 1 सफह 632

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 ❐ सवाल ❐  ➻  मोज़ा पहनने में जो टख़ना बंद हो जाता है उस से नमाज़ में कोई कमी तो नहीं होती!

 ❐ जवाब ❐  ➻  नमाज़ में इस से असलन कोई ह़रज या कराहत नहीं!

📒 इरफ़ाने शरीयत सफह 10  

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 ❐ सवाल ❐  ➻  एक सवाल है के अगर ह़ज़रते फातिमा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा के नाम से फातिहा नज़रो नियाज़ की जाये, तो क्या उस खाने को मर्द हज़रात नहीं खा सकते हैं क्योंकि हमारे यहाँ मर्द को नहीं दी जाती ये बात कहाँ तक दुरुस्त है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  हज़रते फातिमा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा के नाम से की हुई फातिहा नज़रो नियाज़ मर्द व औरत सब खा सकते हैं इस में कोई हरज नहीं जो कहता है नहीं खाना चाहिए या जहाँ पर नहीं खाते ये उनकी जिहालत है, आला हज़रत इमाम अह़मद रज़ा ख़ान क़ादरी बरकाती बरेलवी अलैहिर्रह़मा इरफ़ाने शरीयत में इसी तरह के एक सवाल के जवाब में आप इरशाद फरमाते हैं के मर्द  को भी खाना चाहिए कोई मुमानियत नहीं!

📗इरफ़ाने शरीयत सफह 10

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  ❐ सवाल ❐  ➻  अगर कोई फांसी लगा कर मर जाए तो क्या उसकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ी जायेगी या नहीं, कुछ लोग कहते हैं के जो फांसी लगाकर या ज़हर खा कर या अपने हाथों से अपना गला काट कर मर जाए तो उसकी नमाज़े जनाज़ा नहीं पढ़ी जायेगी क्या ये सही है जवाब इनायत करें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  जो फांसी लगाकर या ज़हर खा कर या अपना गला काट कर मर गया उसकी भी नमाज़े जनाज़ा पढ़ी जायेगी, और मुसलमान के ही क़ब्रिस्तान में दफ़न किया जायेगा, जो कहता है के इनकी नमाज़े जनाज़ा नहीं पढ़ी जायेगी उसको मस्अला मालूम नहीं है, उसको चाहिए के बगैर इल्म के कोई मस्अला न बताये, और आइंदा ख़याल रखे तौबा करे!

📕 फतावा अफ़्रीका सफह 40

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   ❐ सवाल ❐  ➻  फ़ातिहा में खाने के साथ साथ पानी भी रख सकते हैं फ़ातिहा के लिए या नहीं?

 ❐ जवाब ❐  ➻  बिलकुल रख़ सकते हैं इसी तरह के एक सवाल के जवाब में आला हज़रत इमाम अह़मद रज़ा ख़ान क़ादरी बरकाती बरेलवी अलैहिर्रह़मा इरफ़ाने शरीयत  में इरशाद फरमाते हैं के ख़ाने के साथ पानी फ़ातिहा के लिए रख़ना दुरुस्त है!

📗 इरफ़ाने शरीयत सफह 10

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  ❐ सवाल ❐  ➻  इमाम का मेहराब में या दो सुतूनों के दरमियान खड़ा होना कैसा है?

 ❐ जवाब ❐  ➻  कहीं कहीं देखने में आता है के इमाम साहब मेहराब में अन्दर हैं और मुक़तदी बाहर ये ख़िलाफ़े सुन्नत है- हुज़ूर सदरुश्शरीआ फ़क़ीहे आज़म ह़ज़रत अल्लामा मौलाना अमजद अली साहब तह़रीर फरमाते हैं के : इमाम का तन्हा मेहराब में खड़ा होना मकरुह है और अगर बाहर खड़ा हो सिर्फ सज्दा मेहराब में किया या वो तन्हा न हो बल्के उसके साथ कुछ मुक़तदी भी मेहराब में हों तो कुछ ह़रज नहीं,यूँ ही अगर मुक़तदियों पर मस्जिद तंग हो तो भी मेहराब में खड़ा होना मकरुह नहीं है इमाम को दरों में खड़ा होना भी मकरुह है!

📒 बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 635--मकरुहात का बया
📕 दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 499
📓 फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 108
📘 फ़तावा आलमगीरी

इसका तरीक़ा यह है के इमाम का मुसल्ला थोड़ा पीछे हटा दिया जाये और वो थोड़ा पीछे हट कर इस तरह खड़ा हो के देखने में मह़सूस हो के वो मेहराब या दरों में अन्दर नहीं है बल्के बाहर खड़ा है फिर चाहे सज्दा अन्दर हो नमाज़ दुरुस्त हो जायेगी!

📗 ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 39

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   ❐ सवाल ❐  ➻  एक सवाल ये है के अगर कोई इमाम नसबंदी करा ले और फिर बाद में ऐलानिया तौबा कर ले तो उसके पीछे नमाज़ पढ़ना कैसा है जवाब इनायत करें महरबानी होगी?

 ❐ जवाब ❐  ➻  नसबंदी कराना इस्लाम में ह़राम है- लेकिन कुछ लोग ख़्याल करते हैं के जिसने नसबंदी करा ली अब वो ज़िन्दगी भर नमाज़ नहीं पढ़ा सकता, हालांके ऐसा नहीं है बल्के इस्लाम में जिस तरह और गुनाहों की तौबा है उसी तरह इस गुनाह की भी तौबा है- यानि जिस की नसबंदी हो चुकी है अगर वो सच्चे दिल से एलानिया तौबा करे और ह़राम कारियों से रुके तो उसके पीछे नमाज़ पढ़ी जा सकती है!

📕 फतावा फैज़ुर्रसूल जिल्द 1 सफह 277
📗 ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 40

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 ❐ सवाल ❐  ➻  नमाज़ में आसतीन अगर उलटी हो तो नमाज़ हुई या नहीं अगर हुई तो कैसी जवाब इनायत करें?

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर आसतीन को आधी कलाई से ज़्यादा मोड़ा था तो ऐसे में नमाज़ मकरुहे तह़रीमी हुई इस का दुबारा अदा करना वाजिब है- जैसा के हुज़ूर सदरुश्शरीह ह़ज़रत मौलाना अमजद अली आज़मी साहब रहमतुल्लाहि तआला अलैह फरमाते हैं के कोई आसतीन आधी कलाई से ज़्यादा चढ़ी हुई या दामन समेटे नमाज़ पढ़ना मकरुहे तह़रीमी है ख़्वाह पेशतर से चढ़ी हो या नमाज़ में चढ़ाई इन सूरतों में नमाज़ मकरुहे तह़रीमी होगी!

📕 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 मकरुहात का बयान सफह 624
📓 फतावा रज़वियह शरीफ किताबुस्सलात जिल्द 7 सफह 380

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  ❐ सवाल ❐  ➻  हज़रत क्या क़ब्रिस्तान में जूता-चप्पल पहनकर जा सकते हैं? या नहीं इस पर क्या हुक्म है?

 ❐ जवाब ❐  ➻  क़ब्रिस्तान में जूता-चप्पल पहनकर जाना मना है क़ब्रिस्तान में दाख़िल होने से पहले जूता-चप्पल उतार दें, एक आदमी को हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने जूते पहने देखा तो फ़रमाया जूते उतार दे ना क़ब्र वाले को तू तकलीफ़ दे ना वो तुझे!

📕 बहारे शरिअत
📗 क़ानूने शरिअत हिस्सा 1 सफ़ह 130

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   ❐ सवाल ❐  ➻  क़ब्रिस्तान में जंगल यानी घास वग़ैरह ज़्यादा हैं, क्या उसको छील काट कर जला सकते हैं इस पर क्या हुक्म है?

 ❐ जवाब ❐  ➻  क़ब्र पर से तर (हरी) घास नोचना, छीलना, काटना या जलाना ना चाहिए इसलिये के घास तर होती है और तर चीज़ अल्लाह तआला की तस्बीह करती है और तस्बीह से रहमत उतरती है और मय्यत को उन्स होता है, और घास को नोचने में मय्यत का हक़ ज़ाया करना है!

📒 रद्दुल मोहतार
📗 क़ानूने शरिअत
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफ़ह 167-168

*नोट:* अगर क़ब्र पर सूखी घास या झाँकड़ वग़ैरह हों तो उनको क़ब्र पर से  साफ़ कर देना मुस्तहब है, और साफ़ की गयी घास वग़ैरह क़ब्रिस्तान से बाहर ले जाकर फैंकें या अपने काम में लाएं!

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  ❐ सवाल ❐  ➻  हज़रत घर से फ़ातिहा पढ़़कर ईसाल करने में ज़्यादा सवाब है या क़ब्रिस्तान जाकर ?

 ❐ जवाब ❐  ➻  क़ब्रिस्तान में जाकर पढ़ने में ज़्यादा सवाब है, के ज़्यारते क़ुबूर भी सुन्नत है और वहाँ पढ़ने में मुर्दों का दिल भी बहलता है और जहाँ क़ुरआन मजीद पढ़ा जाये वहाँ रहमते इलाही उतरती है!

📗 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9 सफ़ह 609

लेकिन अगर किसी ज़ालिम का डर हो या आंधी तूफान या पानी या ओले या सख़्त सर्दी है और उनसे नुकसान पहुंचने का अंदेशा है तो आप जहां भी हैं वहीं से इसाले सवाब करें!

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   ❐ सवाल ❐  ➻  ह़ज़रत एक सवाल है के नमाज़ की ह़ालत में पैंट या पाजामा की मोरी मोड़ना कैसा है कुछ लोग कहते हैं के टख़ना बंद होना चाहिए इसके बारे में कुछ तफ़सील से बतायें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  कुछ लोग टख़नों से नीचा लटका हुआ पाजामा और पैंट पहनते हैं अगर उन्होंने इसकी आदत डाल रखी है और तकब्बुर व घमंड के तौर पर वो ऐसा करते हैं तो ये नाजाइज़ व गुनाह है, और इस तरह़ नमाज़ मकरुह है, लेकिन अगर इत्तिफ़ाक़ से हो या बे ख़्याली और बे तवज्जोही से हो तो हर्ज नहीं, और जो लोग इस से बचने के लिए और टख़नें खोलने के लिए मोरी पायेंचे को चढ़ाते हैं वो गुनाह को घटाते नहीं बल्के बढ़ाते हैं और नमाज़ में ख़राबी को कम नहीं करते बल्के ज़्यादा करते हैं, ये पैंट और पाजामे की मोरी पायेंचे को लपेट कर चढ़ाना नमाज़ में मकरुहे तह़रीमी है!

ह़दीस में है के : रसूलल्लाह ﷺ सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया के मुझे हुक्म दिया गया के मैं सात हड्डियों पर सजदा करूँ, पेशानी दोनों हाथ, दोनों घुटने, और दोनों पंजे और ये हुक्म दिया गया के मैं नमाज़ में कपड़े और बाल न समेंटूं!

📕 मिशकात शरीफ़ सफ़ह 83
📗 बुख़ारी शरीफ़
📘 मुस्लिम शरीफ़

इस ह़दीस की रू से कपड़ा समेटना और चढ़ाना नमाज़ में मना है, लिहाज़ा पैंट और पाजामे की मोरी लपेटने और चढ़ाने वालों को इस ह़दीस से इबरत हासिल करना चाहिए!

लेकिन इस्लाह करने वालों से भी गुज़ारिश है के नमाज़ में इस किस्म की कोताहियां बरतने वालों को नरमी और प्यार व मुहब्बत से समझायें, मान जायें तो ठीक है वरना उन्हें उनके हाल पर रहने दें और मुनासिब तरीक़े से इस्लाह करें, उनको डांटना झिड़कना और उनसे लड़ाई झगड़ा करना बहुत बुरा है, जिसका नतीजा ये भी हो सकता है के वो मस्जिद में आना और नमाज़ पढ़ना छोड़ दें जिसका वबाल उन झिड़कने डांटने वालों पर है, क्यूंके इस में भी कोई शक नहीं के बाज़ इस किस्म की खामियों के साथ नमाज़ पढ़ने वाले बेनमाज़ियों से हज़ारों दर्जा बेहतर हैं, और नमाज़ में कोताहियां करने वालों को भी चाहिए अगर कोई उनकी इस्लाह करे तो बुरा मानने के बजाए उसकी बात पर अमल करें, उस पर गुस्सा न करें, कियोंके वो जो कुछ कह रहा है आप की भलाई के लिए कह रहा है अगर वो तुर्शी और सख़्ती से भी कह रहा है तो उसका फ़ेएल है आपका काम तो हक़ को सुनकर अमल करना है झगड़ा करना नहीं!

📔 ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह़ सफह 46-48

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 ❐ सवाल ❐  ➻  एक शख्स मस्जिद में नमाज़ पढ़ रहा था और उनके बराबर में एक बद मज़हब,( वहाबी,शिया,अहले हदीस वग़ैरह) आ गया, तो ऐसी नमाज़ का किया हुक्म है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  सफ क़ता करना यानि काटना, तोड़ना, हराम है हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला  अलैहि वसल्लम फरमाते हैं के जो सफ क़ता करे अल्लाह उसे क़ता कर देगा तो बद मज़हब अगर सफ के बीच खड़े हो जायें तो यक़ीनन सफ क़ता होगी, ऐसा ना चाहिए, उनको मस्जिद में आने ही ना दिया जाए, लेकिन बगल में खड़े हो ही गये तो नमाज़ हो जायेगी!

📓 फतावा रज़वियह जिल्द 3,सफह,374-26

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  ❐ सवाल ❐  ➻  आज कल बद मज़हबों के पीछे नमाज़ पढ़ने को बहुत ज़ोर दिया जाता है के ये मक्का के ईमाम साहब हैं ये मदीना के हैं, और कहते हैं के मस्जिदे नब्वी में एक नमाज़ पर 50000 नमाज़ का सवाब है, इसके बारे में क्या हुक्म है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  तमाम बद मज़हब के पीछे नमाज़ पढ़ना ह़राम उन्हें इमाम बनाना ह़राम और अगर माज़अल्लाह उन्हें मुसलमान समझा जब तो खुद ही काफिर है, और मस्जिदे नब्वी में एक नमाज़ के बदले,50000 नमाज़ का सवाब, ये इनाम सुन्नियों के पीछे पढ़ने पर है, वरना बद मज़हब के पीछे नमाज़ पढ़ना तो दूर की बात बल्के जो सुन्नी बद मज़हबों से मेल जोल रखता हो उसके पीछे भी नमाज़ मकरुहे तहरीमी यानि नाजायज़ है, वाजिबुल इयादा है!

📔 फतावा रज़वियह जिल्द,3 सफह 269

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   ❐ सवाल ❐  ➻  अरब में जुमां नमाज़ पढ़ना कैसा!

 ❐ जवाब ❐  ➻  अरब में सुन्नी मुसलमानों पर जुमां नहीं क्योंके जुमा नमाज़ क़ायम होने की कुछ शर्तें हैं जिनमें से एक ये भी है के सुल्ताने इस्लाम हो या उसका नायब हो, या फिर उनके ना होने पर मुसलमान अपने लिए जिसे इमाम बना लें, अब अगर वह इमाम बद अक़ीदा बद मज़हब है तो वह शराएते जुमां को पूरा नहीं करता, लिहाज़ा सुन्नियों पर वहाँ जुमां फर्ज़ ही नहीं ज़ुहर ही पढेंगे, हाँ अलल ऐलान कोई सुन्नी जुमां क़ायम कर ले तो उसके पीछे पढ़ लें, मगर ये याद रहे के उसकी शर्तों में एक शर्त आम इजाज़त भी है, यानि हर किसी को आने की इजाज़त है तो अगर किसी ने घर में जुमां क़ायम किया और घर का दरवाज़ा बन्द कर लिया तो किसी की नमाज़ नहीं होगी, इसी तरह अगर किसी सुन्नी मस्जिद में आदमी फुल हो गये हों तो भी उसका दरवाज़ा नहीं बन्द कर सकते, अगर एक ही दरवाज़ा था और वह बन्द कर लिया तो किसी की नमाज़ ना हुई इसी लिए जेल में भी जुमां पढ़ने का हुक्म नहीं है कियोंके वहाँ भी इज़ने आम मुमकिन नहीं और यही हुक्म हर जगह का है, मस्लन हिन्दुस्तान में भी अगर आप किसी सुन्नी मस्जिद तक आ जा नहीं सकते तो घर पर ज़ुहर ही पढेंगे!

📔 फतावा रज़वियह जिल्द,3 सफह 682/724

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  ❐ सवाल ❐  ➻  क़ारी साहब आपसे एक सवाल है के बद मज़हबों की अज़ान का जवाब देना कैसा है बराऐ करम क़ुरआन व हदीस की रौशनी में जवाब इनायत फरमायें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  ना उनकी अज़ान, अज़ान है ना उनकी नमाज़, नमाज़ है,और ना ही उनकी मस्जिद मस्जिद है, बल्कि वह मिस्ले घर के है और उनका कोई दीन भी नहीं है, मगर अल्लाह तआला के नाम के साथ जल्ला जलालहु और हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के नाम के साथ, सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पढ़ा जाऐ कोई भी उनका नाम पुकारे!

📕 अलमलफूज़ हिस्सा,1 सफह 95


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         ❝ • सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब • ❞
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   ❐ सवाल ❐  ➻  माँ बाप अगर  बद मज़हब हो गये हों तो औलाद क्या करे!

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर खुद कमां खा सकता है तो फौरन अलग हो जाए कियोंके मुरतद से किसी क़िस्म का कोई तअल्लुक़ रखना खुदा व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से दुश्मनी है, और औलाद पर उनका कोई नफ्क़ा वाजिब ना रहा के मुरतद का कोई नफ्क़ा नहीं है उसका हुक्म काफिर हरबी वालिदैन से भी बदतर है के काफिर के लिए नफ्क़ा का हुक्म हैं!

📗 फतावा मुस्तफवियह सफह 115

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 ❐ सवाल ❐  ➻  अगर कोई बद मज़हब बद अक़ीदा 5 टाइम का नमाज़ी हो रोज़ेदार हो हज भी किया हो ज़कात देता हो बा शरह दाढ़ी रखा हो और एक जाहिल सुन्नी जो के दाढ़ी मुन्डा बे नमाज़ी बे रोज़ेदार हो तो दोनों में कौन बेहतर है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  सुन्नी बेहतर है, कियोंके फिस्क़ अक़ीदा फिस्क़ अमल से हज़ार गुना ज़्यादा बदतर है के सुन्नी कितना भी बड़ा बदकार हो मगर खुदा व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में हरगिज़ हरगिज़ गुस्ताखी नहीं कर सकता, मगर बद मज़हबों, के यहाँ खुदा व रसूल की गुस्ताखी करना ही दीन है, ये काफिरो मुरतद हैं अगरचे कितनी भी नमाजें पढ़ लें आखिर कार जहन्नमी है और वहीं हमेशा रहेगा और सुन्नी कितना भी जुर्म की सज़ा पाने के लिए जहन्नम में जाऐ मगर बिल आखिर अपने ईमान की बदौलत जन्नत में पहुंचेगा और हमेशा वहीं रहेगा!

📓 अलमलफूज़ हिस्सा,1 सफह 45

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  ❐ सवाल ❐  ➻  बद मज़हबों से सलाम कलाम मेल जोल उनके घर आना जाना दावत लेना देना कैसा है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  बद- अक़ीदा,बद मज़हबों से सलाम कलाम मेल जोल उनके घर आना जाना उनसे दोस्ती करना उनको दावत देना उनके यहाँ दावत में जाना गरज़ के उनसे किसी तरह का क़लबी (दिली) रिश्ता रखना ह़राम ह़राम ह़राम, और वह भी तब जबके उन्हें काफिर जानता हो वरना अगर उनहें मुसलमान जाना जब तो खुद ही काफिर हुआ!

📗 मिशक़ात बाबुल ईमान सफह,22

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   ❐ सवाल ❐  ➻  बच्चों को बद मज़हबों के पास पढ़ने के लिए भेज सकते हैं या नहीं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  बद अक़ीदा वहाबी देवबंदी तबलीगी वगैरा से अपने बच्चों को पढ़वाना हराम है!

📕 फतावा रज़वियह जिल्द 23 सफा  682
📗अहकामे शरीअत हिस्सा,3 सफह 237

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  ❐ सवाल ❐  ➻  हुज़ूर के चारों खलीफाओं में से किन किन के बाप ईमान लाये!

 ❐ जवाब ❐  ➻  सिर्फ हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के वालिद अबू क़हाफा ही ईमान लाए, बाकी तीनों खलीफा यानि हज़रते उमर फारूक़े आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के वालिद खत्ताब व हज़रते उसमाने ग़नी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के वालिद अफ्फान और मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के वालिद अबू तालिब ऐ तीनों ही ईमान नहीं लाए।

📒 फतावा अफरीक़ा सफह 54

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   ❐ सवाल ❐  ➻  अगर माँ या बाप का इंतिक़ाल हो जाये तो उनकी लाश की क़दम बोसी कर सकते हैं या नहीं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  बिलकुल कर सकते हैं खुद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रते उसमान बिन मातून रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की लाश मुबारक को बोसा दिया इस लिहाज़ से अगर औलाद अपने वालिदैन की क़बर की भी क़दम बोसी करेगा तो जाइज़ होगा!

📘 जाअल हक़ जिल्द,1 सफह 351

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 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या मस्जिदों में ज़ोर ज़ोर से नारा लगाना या आवाज़ बुलंद करना जाइज़ है!

 ❐ जवाब ❐  ➻ हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम खुद मस्जिदे नबवी शरीफ में मिम्बर लगवाते थे और उस पर खड़े होकर हज़रते ह़स्सान इब्ने साबित रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में नात पढ़ा करते थे, अब जब सहाबी नात पढ़ रहे हैं तो आवाज़ तो बुलंद हो ही रही है फिर सुनने वाले सहाबा भी खामोश तो बैठे नहीं रहते होंगे वह भी दादो तहसीन पेश करते होंगे और ये सब हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सामने उनकी मरज़ी से हो रहा है तो मस्जिदों में ज़िक्रो अज़कार सलातो सलाम तक़रीर वगैरह में आवाज़ बुलंद करना बिला शुबह जाइज़ है, हाँ मनां है तो ज़ाती तौर पर जैसे किसी को आवाज़ देकर बुलाना या दीगर दुनियावी कामों के लिए मस्जिद में शोर शराबा करना ये हराम है और दोनों बातों में बहुत फर्क है!

📕 मिशकात शरीफ जिल्द 2 सफह 422

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  ❐ सवाल ❐  ➻  निकाह के वक़्त सेहरा पढ़ना कैसा!

 ❐ जवाब ❐  ➻  ऐसा अशआर पढ़ना जिनमें कोई खिलाफे शरह बात ना हो तो वो मुबाह यानि जाइज़ होता है यूंही हर वो काम जो शरह में मना नही है वो भी जाइज़ है सेहरा पढ़ने की दलील के लिए इतना ही काफी है मगर फिर भी सुन लीजिये के हुज़ूर मुफ्तिये आज़म हिन्द के निकाह के वक़्त सरकारे आला ह़ज़रत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के सामने हज़रत अल्लामा शाह मुफ्ती  मुहम्मद हिदायत रसूल साहब रज़वी अलैहिर्रहमा ने अपना लिखा हुआ वो सेहरा पढ़ा था जिसको सुनकर सरकारे आला ह़ज़रत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु इस क़दर खुश हुए थे के उनहोंने अपना अमामा मुबारक उतारकर उनके सर पर सजा दिया था!

📗 तजल्लियाते शैखे मुस्तफा रज़ा सफह 102

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   ❐ सवाल ❐  ➻  हज़रत आप से पूछना है के मेरे घर में चीटियाँ बहुत आती है कुछ बतायें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  *الحمداللہ با ھیا شراھا ساریکم باھیا شراھا* 
एक साफ सुथरा बरतन लेकर उसमें ये दुआ लिखिऐ और पानी से धोकर उसे घर में छिड़क दीजिये या फिर जहाँ पर चीटियाँ ज़्यादा रहती हों वहाँ पर हींग रख दीजिये चीटियाँ भाग जायेंगी! इन्शा अल्लाह

📘 अजाइबुल हैवानात सफह 58
📗 जन्नती ज़ेवर सफह 440

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  ❐ सवाल ❐  ➻  अगर कोई ह़राम काम करता हो और वो कुछ खाने पीने को दे तो किया खा सकते हैं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  ह़राम पैसा कहीं भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता ना दीनी काम में और ना दुनियावी काम में उसका सिर्फ एक ही तरीक़ा है के उसको बगैर सवाब की नियत से फ़क़ीरों को देदें, अगर उसपर सवाब की नियत रखेगा तो ह़राम बल्के बाज़ उल्मा ने कुफ्र तक लिखा है हां अगर यूं किया के सामान वगैरह उधार लिया उस से फातिहा वगैरह करायीं तो ये फातिहा का खाना सब जाइज़ है अगरचे बाद में उसी ह़राम रुपये से अदा करे मगर मुत्तक़ियों को फिर भी ना चाहिए के ऐसों के वहाँ जायें!

📗अहकामे शरीयत हिस्सा 1 सफह 109

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   ❐ सवाल ❐  ➻  औरत अगर बगैर किसी उज्र के बैठकर नमाज़ पढ़े तो क्या नमाज़ हो जायेगी!

 ❐ जवाब ❐  ➻  फर्ज़ वाजिब और सुन्नते मुअक़्क़िदा में क़याम यानि खड़े होना फर्ज़ है और ये फर्ज़ दोनों पर यानि मर्द व औरत दोनों पर है तो अगर बगैर उज्र के औरत बैठकर नमाज़ पढ़ेगी तो फर्ज़ का तर्क हुआ नमाज़ हरगिज़ नहीं होगी जितनी नमाज़ें पढ़ी वो सब फिर से पढ़े और आइंदा के लिए तौबा करे और खड़े होकर नमाज़ पढ़ें हां नफ्ल बगैर उज्र के भी बैठकर हो जाती है!

📘 मोमिन की नमाज़ सफह 450

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 ❐ सवाल ❐  ➻  अगर मदर्से से फारिग तलबा ने मुफ्ती का कोर्स किया सनद लेली मगर उनको इल्म इतना नहीं है तो क्या उन्हें मुफ्ती समझा जाये!

 ❐ जवाब ❐  ➻  आलिम होने के लिए सनद यानि डिग्री की ज़रूरत नहीं होती बल्के इल्म की ज़रूरत होती है डिग्री तो फर्ज़ी भी मिल जाती है लिहाज़ा ऐसे शख्स को चाहिए के जिस मसअले पर उनकी पकड़ मज़बूत हो उसी को अपनी तकरीर व बयान का उनवान बनाए और जिस में कमज़ोर हो उसे हाथ भी ना लगाए के मेरे आला ह़ज़रत ऐसे मुफ्ती को फतवा देना और ऐसे आलिम को वअज़ कहना हराम फरमाते है।

📗 अहकामे शरीयत हिस्सा 2 सफह 231

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 ❐ सवाल ❐  ➻  नमाज़ के लिए सोते हुए आदमी को जगा सकते हैं या नहीं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  बिलकुल जगा सकते हैं बल्के जगाना ज़रुरी है!

📗 अहकामे शरीयत हिस्सा 2 सफह 169

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 ❐ सवाल ❐  ➻  तुलू ए आफताब से कितनी देर बाद नमाज़ कज़ा पढ़ने का हुक्म है जवाब इनायत करें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  तुलू ए आफ़ताब के बाद कम से कम 20 मिनिट का इंतिज़ार वाजिब है यानि के 20 मिनट बाद पढ़ें!

📗 अहकामे शरीयत हिस्सा 2 सफह 170

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  ❐ सवाल ❐  ➻  हज़रत आप से एक बात मालूम करनी है के क्या परियां भी होती हैं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  बिलकुल होती हैं बल्के उसमें भी काफिर और मुसलमान दोनों हैं!

📗 अलमलफूज़ हिस्सा 1 सफह 10

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  ❐ सवाल ❐  ➻  क्या शौहर अपनी बीवी के मरने के बाद उसको कन्धा दे सकता है या नहीं, हवाले के साथ जवाब इनायत करें महरबानी होगी!

 ❐ जवाब ❐  ➻  ये आवाम में फैली हुई जहालत के सिवा और कुछ नहीं है शौहर कन्धा भी दे सकता है और उसे देख भी सकता है क़बर में उतार भी सकता है हां मना है तो बस इतना के बगैर कपडों के हायल हुए उस के जिसम को छू नहीं सकता।

📕 फतावा रज़वियह जिल्द 4 सफह 61

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  ❐ सवाल ❐  ➻  खेल की कितनी किस्में जाइज़ है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  शरीयत ने सिर्फ 3 किस्म के खेल को जाइज़ रखा है पहला घुड़सवारी जिसमें बाइक और फोर विलर वगैरह शामिल है, दूसरा तीर अन्दाज़ी इसमें बन्दूक चलाना तलवार चलाना शामिल है और तीसरा शौहर का अपनी बीवी से हर तरह का हंसी मज़ाक करना जाइज़ है बस शरीयत के दायरे में हो, इसके अलावा जितने भी खेल हैं सब बेकार है वक़्त की बरबादी है हरगिज़ जाइज़ नहीं।

📕 बहारे शरीअत हिस्सा 16 सफह 131

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  ❐ सवाल ❐  ➻  मेरे शौहर खुद भी किसी से मुरीद नहीं हैं और मुझे भी मुरीद होने की इजाज़त नहीं देते, मैं क्या करुं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  समझाइये अगर समझ में आजाए तो ठीक वरना शरीयत का हुक्म मानने के लिए किसी की इजाज़त की ज़रूरत नहीं होती, आप बगैर इजाज़त के भी मुरीद हो सकती हैं बस पीर बा शरअ होना चाहिए!

📗 अहकामे शरीयत हिस्सा 2 सफह 164

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  ❐ सवाल ❐  ➻  दुआ तावीज़ के ज़रिए औरत का अपने शौहर को अपने काबू में रखना कैसा है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  नाजाइज़ो हराम है, मर्द अफसर है ना के औरत, ऐसी औरत लानती है जहन्नम की हक़दार है, फौरन तौबा करे और अपने शौहर की इताअत करे!

📒 सूरह निसा

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 ❐ सवाल ❐  ➻  अगर नमाज़ में सजदे का ख्याल नहीं रहा के एक किया है या दो तो क्या करें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर एक याद है तो फिर से दूसरा कर लें अब अगर 2 कर चुका था और ये तीसरा था तो आखिर में सजदा सहव कर लें, 3 सजदा करने की वजह से वाजिब तर्क हुआ सजदा सहव से नमाज़ हो जायेगी, लेकिन अगर 1 ही सजदा किया था और 2 खयाल करके सजदा नहीं किया तो चूंकि हर रकअत में 2 सजदे फर्ज़ हैं लिहाज़ा नमाज़ ही नहीं हुई, दोबारा पढ़नी होगी यूंही अगर 3 सजदे किए मगर सजदा सहव नहीं किया तब भी नमाज़ को दोहराना होगा!

📘 फतावा रज़वियह जिल्द 3 सफह 646 

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 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या जानवरों में भी फा़सिक होते हैं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  बिलकुल होते हैं, कव्वा, चील, चूहा, बिच्छू, कटखना कुत्ता, छिपकली, और भी कुछ जानवर हैं जिनको फा़सिक़ कहा गया है!

📓 मुस्लिम शरीफ जिल्द 1 सफह 318

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  ❐ सवाल ❐  ➻  अगर किसी के यहाँ ह़राम काम होता हो और कोई ज़रिया रोज़ी का हलाल का ना हो तो क्या उनके यहाँ ग्यारहवीं या फातिहा या किसी दावत में जा सकते हैं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  ऐसों के यहाँ जाना ही जाइज़ नहीं है खाना तो दूर की बात है!

📗 अहकामे शरीयत हिस्सा 2, सफह 145

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  ❐ सवाल ❐  ➻  मैं जब भी अपने मुरशिद की बारगाह में जाता हुं तो कोई भी बैयत होता रहता है तो मैं फिर से बैयत कर लेता हूँ, मेरे कुछ दोस्त इसे गलत बता रहे हैं क्या ऐसा नहीं करना चाहिए!

 ❐ जवाब ❐  ➻  वो गलत बता रहे हैं बेशक तजदीदे बैयत करना जाइज़ है खुद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने एक ही जल्से में हज़रते सल्मा बिन उकू से 3 बार बैयत ली!

📒 अलमलफूज़ हिस्सा 2,सफह 42

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  ❐ सवाल ❐  ➻  मेरे एक पहचान वाले हैं जिनहोंनें अपनी सगी खाला से निकाह कर लिया है और उनका कहना है के उन्होंने उलमा से फतवा लिया है के खाला से निकाह हो सकता है क्या ये सही है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरआन में इरशाद फरमाता है के, हराम हुई तुम पर तुम्हारी मांऐं तुम्हारी बेटियां तुम्हारी बहनें और फूफियां और खालायें और भतीजियां और भांजियां और तुम्हारी वो माँऐं जिनहोंनें तुम्हें दूध पिलाया और दूध के रिशतों की बहनें और तुम्हारी औरतों की माँऐं, इन सबका हासिल ये है के सगी खाला से निकाह करना माज़अल्लाह ऐसा ही है जैसे अपनी माँ से निकाह करना, ज़िना खालिस हराम हराम हराम है जिसने किया जिसने कराया जो गवाह बनें वो सब अगर जानते थे के लड़के का अपनी सगी खाला से निकाह हो रहा है तो सब काफिर हुए जिसने फतवा दिया वो हराम खोर भी काफिर हुआ, सब पर तौबा फर्ज़ है सबकी बीवियां उनके निकाह से बाहर हो गई सारी नमाज़ें बरबाद हो गई रोज़े हज ज़कात सब खत्म, फिर से पूरी ज़िन्दगी भर के अमल करने होंगे।

📒 सूरह निसा आयत,23,
📘 बहारे शरीअत हिस्सा 7 सफह 19

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 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या बगैर खतना कराये बच्चे का अक़ीक़ा नहीं कर सकते और उसके गोश्त का क्या हुक्म हैं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  अक़ीक़ा और खतना दोनों अलग अलग चीज़ें हैं और उनका एक दूसरे से कोई तअल्लुक़ नहीं, खतना करने की मुद्दत उलमा नें 7 साल से 12 साल तक लिखा है मगर इस से पहले ही किसी ने करा लिया तो अच्छा किया मगर 12 साल से देर ना किया जाऐ, और अक़ीक़ा के लिए 7वें  दिन को ही मुस्तहब लिखा गया मगर इसमें भी अगर ताखीर ( देरी )हुई तो कभी भी करा सकते हैं अक़ीक़ा हो जायेगा, यूंही बगैर खतना के भी अक़ीक़ा हो जायेगा और अवाम में जो ये मशहूर है के उसका गोश्त उसके माँ बाप दादा दादी नाना नानी नहीं खा सकते ये महज़ गलत है इसकी कोई अस्ल नहीं, यानि अक़ीक़ा का गोश्त माँ बाप दादा दादी नाना नानी सब खा सकते हैं।

📘 बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफह 151

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  ❐ सवाल ❐  ➻  क़ब्र में क्या सवाल होंगे और क़ब्र और जहन्नम के अज़ाब में क्या फर्क़ है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  क़ब्र में तीन सवाल होंगे!

1 मन रब्बुका _ तेरा रब कौन है,
2 मा दीनुका- तेरा दीन किया है,
3 मा तक़ुलू फि हाजर्रजुल - इस मर्दे मोमिन के बारे में तेरा क्या अक़ीदा है,
इनका जवाब होगा,
1 रब्बियल्लाह- मेरा रब अल्लाह है,
2 दीनियल इस्लाम- दीन मेरा इस्लाम है,
3 हाज़ा नबिय्यू सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम- ये हमारे नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हैं,
क़ब्र का अज़ाब एक मुसलमान पर सिर्फ जुमां आने तक ही रहता है अगर चे वो कितना भी गुनहगार रहा हो उसके बाद अज़ाब उठा लिया जाता है बाकी अज़ाब के लिए जहन्नम में हाज़री होगी, मगर इतना समझ लीजिये के एक मुसलमान कितना भी गुनहगार हो अगर ईमान पर खातिमा हुआ तो हमेशा जहन्नम में नहीं रहेगा बल्के अपनी सज़ा पूरी होने से पहले ही हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शफाअत से और खुदा की रहमत से वो जन्नतुल फिरदौस में दाखिल होगा, इन्शा अल्लाहुर्रहमान!

📕 अनवारुल हदीस सफह 123
📗 शरहुस्सुदूर सफह 164

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 ❐ सवाल ❐  ➻  अक़ीक़ा किस उम्र में करना चाहिए और उसके गोश्त से ग्यारहवीं शरीफ वगैरह कर सकते हैं और क्या वो गोश्त माँ बाप नहीं खा सकते है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  अक़ीक़ा सातवें दिन करना सुन्नत है बाद में भी हो सकता है, और उसका गोश्त माँ बाप दादा दादी नाना नानी सब खा सकते हैं और ग्यारहवीं भी हो सकती है!

📙 बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफह 154

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  ❐ सवाल ❐  ➻  मज़ार को गुस्ल देना कहाँ से साबित है जब्के आला ह़ज़रत ने मज़ार को छूने से भी मना फरमाया है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  सरकार आलाहज़रत ने फरमाया के बेहतर है के ना छूऐं लेकिन अगर कोई छू लेता है या मज़ार को चूम भी लेता है तो इसे हराम नहीं फरमां दिया, और गुस्ले मज़ार बुज़ूर्गाने दीन के मामूल से रहा है और चूंके इस पानी को एक वली से निस्बत हो गई तो वो तबर्रूक की हैसियत रखता है, अब जिसको नाजाइज़ लगता है वो नाजाइज़ होने की दलील पेश करे!

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  ❐ सवाल ❐  ➻  क्या बर्थ डे में केक काटना सही है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  जिस तरीक़े से ईसाई अपने बर्थ डे मनाते हैं उस तरीक़े से मनाना यक़ीनन नाजाइज़ो हराम है, हाँ यूंही महमानों को खिलाने के वास्ते केक आया हो तो दुरूद फातिहा ज़िक्रो अज़कार करके केक काट कर मेहमानों को दिया जाए ये जाइज़ है!

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 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या माँ बाप से पहले औलाद हज या उमराम नहीं कर सकता!

❐ जवाब ❐  ➻  ये अवाम की गलत फहमी है जो बालिग हुआ और साहिबे हैसियत को पहुँच गया उसपर हज फर्ज़ हो गया अगरचे उसके बाप ने हज किया हो या न किया हो!


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 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या जुमुआ की मुबारक बाद दे सकते हैं!

❐ जवाब ❐  ➻  जुमुआ सय्यदुल अय्याम (दिनों का सरदार) है मोमिन के लिए हफ्ते की ईद है उसकी मुबारक बाद देना जाइज़ है!


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 ❐ सवाल ❐  ➻  इमाम खुले आम कोई गुनाह करता है तो क्या उसके पीछे उसका तज़किरा करना गीबत होगी!

 ❐ जवाब ❐  ➻  जो गुनाह छिपकर किये जाते हैं उनका किसी के सामने ज़ाहिर करना यक़ीनन गीबत है मगर जिसको खुद ही अपनी इज़्ज़त वो वक़ार की परवाह ना हो तो ऐसे की बुराई बयान करना हरगिज़ गीबत नहीं, ऐसी हालत में पहले इमाम को तम्बीह की जाऐ अगर वो मान जाऐ तो ठीक वरना बिला शुबा मुक़तदियों को उसके पीछे नमाज़ पढ़ने से रोका जाए!

 📕 बहारे शरीअत हिस्सा 16 सफह 151

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  ❐ सवाल ❐  ➻  किसी मुसलमान की लाश को अगर हिन्दुओं नें लावारिस समझ कर शमशान घाट में दफना दिया बाद को पता चला तो क्या किया जाऐ!

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर 3 दिन नहीं गुज़रे हैं तो नमाज़े जनाज़ा जाकर पढ़ दिया जाए, लाश निकालने की इजाज़त नहीं हां अगर खुद हिन्दू अब वहां ना रखना चाहें तो निकालकर मुसलमानों के क़ब्रिस्तान में दफ्न करें!

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  ❐ सवाल ❐  ➻  दरगाह पर हाज़िरी देने का सबसे बेहतरीन तरीक़ा क्या है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  आला हज़रत अज़ीमुल बरकत फरमाते हैं के किसी भी वली के आस्ताने पर पांव (पैर ) की जानिब से दाखिल हों और 4 हाथ पीछे खड़े हों ना तो मज़ार को छूऐं और ना ही चूमें के इसी में ज़्यादा अदब है, फिर हाथ बांधकर जो कुछ सही से पढ़ सकता हो पढ़ें और उनकी बारगाह में नज़र करें और वहाँ दुआ मांगने के 3 तरीके हैं पहले तो ये के रब की बारगाह में अर्ज़ किया जाऐ के इस वली के सदक़े में मेरी दुआ क़ुबूल फरमां, दूसरा ये के वली से इस्तिमदाद किया जाऐ के ऐ वली अल्लाह रब की बारगाह में मेरी सिफारिश फरमायें, और तीसरा ये है के उन्हीं की बारगाह में  इस्तिगासा किया जाऐ के मेरी वो आरज़ू पूरी फरमाई जाऐ और यही ज़्यादा बेहतर है के बेशक अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने अपने वलियों को वो इख्तियार दे रखा है के जिसको जो चाहें अता करें!

📗 अनवारुल हदीस

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 ❐ सवाल ❐  ➻  अगर नमाज़ में सूरह फतिहा (अल्हम्दुलिल्लाह) के बाद सूरह मिलाना भूल गया रुकू में याद आया तो क्या करें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  रुकू से वापस क़याम में लौटे सूरह पढ़ कर फिर से रुकू करे और आखिर में सजदा सहू कर ले!

📕 फतावा रज़वियह जिल्द 3 सफह 639

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  ❐ सवाल ❐  ➻  क्या घर के दरवाज़े के ऊपर तोगरा में क़ुरआन की आयत लिखी हो तो लगा सकते हैं, हमारे इमाम साहब मना करते हैं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  बिलकुल लगा सकते हैं ये लगाना महज़ तबर्रुक के लिए होता है, मना करने की वजह अगर ये है के क़ुरआन की आयत से पानी होकर नाली में बहेगा तो ये फिज़ूल है क्योंके घर के अन्दर लगाते हैं दूसरी बात  हदीसे पाक से साबित है के फिरऔन ने अपने महल के सबसे ऊपरी हिस्से पर बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम लिखवाया हुआ था जिसकी बरकत से उसका महल हलाक़त से बचता रहा, क्या बिस्मिल्लाह शरीफ क़ुरआन की आयत नहीं है, और अगर इस वजह से मना करते हैं के क़ुरआन पर किसी गैर मुस्लिम की नज़र ना पड़े तो ये भी कोई  माएने नहीं रखता के अकसरो बेशतर हमारे घरों में कभी ना कभी कोई गैर मुस्लिम आ ही जाता है अगरचे किसी भी काम से आया हो, तो अगर घर के अन्दर आया तो मुसलमानों के घरों में अक्सर तोगरे टंगे होते हैं जिनमें क़ुरआन की आयात लिखी होती हैं तो इसपर नज़र तो पड़ेगी ही और घर के अन्दर तोगरा लगाना जिस पर क़ुरआन की आयत लिखी हो आला हज़रत नें जाइज़ व मुस्तहसन फरमाया है!

📔 तफसीरे कबीर जिल्द 1 सफह 152
📕 फतावा रज़वियह जिल्द 9 सफह 522


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 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या नमाज़ में आंखें बंद कर सकते हैं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  मकरूह है लेकिन अगर आंखें बंद करने से नमाज़ में ज़्यादा दिल लगता है तो बेहतर है के बंद कर के पढ़े!

📕 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफह 145

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  ❐ सवाल ❐  ➻  औरत का जमाअत से नमाज़ पढ़ना कैसा है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  औरत का जमाअत से नमाज़ पढ़ना जाइज़ नहीं है एक सूरत है के अगर मस्जिद पसछिम की जानिब है और इसका मकान मस्जिद के ऐन पीछे है और इमाम की आवाज़ घर में आती है तो वहाँ से इक़तिदा कर सकती है!

📕 दुर्रे मुख्तार जिल्द 1 सफह 380

 ❐ सवाल ❐  ➻  किसी के इंतिक़ाल के बाद उसके कपड़ों का क्या किया जाऐ!

 ❐ जवाब ❐  ➻  घर वाले अगर पहनना चाहें पहन सकते हैं वरना किसी गरीब को दे दें मय्यत की तरफ से सदक़ऐ जारिया होगा सवाब पहुंचता रहेगा!

📓 अबू दाऊद जिल्द 1 सफह 166

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  ❐ सवाल ❐  ➻  मुसाफा करने के बाद कुछ लोग हाथ को सीने से लगाते हैं इसका क्या हुक्म है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  दोनों हाथों से मुसाफा करना सुन्नत है हाथों को सीने से लगाने का तो ज़िक्र नहीं है लेकिन कोई ऐसा करता है तो ये कोई नजाइज़ो हराम भी नहीं!

📔 बुखारी शरीफ जिल्द 2 सफह 926

 ❐ सवाल ❐  ➻  इमाम अगर मुक़तदियों से आगे कुछ ऊपर खड़ा हो तो क्या हुक्म है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  इमाम अगर मुक़तदियों से 6 इंच ऊंची जगह पर खड़ा होता है तो ऐसा करना मकरूहे तह़रीमी है नमाज़ वाजिबुल इयादा होगी!

📘 फतावा रज़वियह जिल्द 3 सफह 415

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 ❐ सवाल ❐  ➻  अगर किसी को दुरुदे इब्राहीम या उसके बाद की दुआ याद ना हो तो क्या करें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  याद करें सुन्नत है जबतक याद नहीं होता कोई सा दुरुद पढ़ लें नमाज़ हो जायेगी!

📕 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफह 76

 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या काला कपड़ा पहनना जाइज़ है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  बिला शुबा जाइज़ है मगर सिर्फ कमीज़ यानी कुर्ता वगैरह लेकिन पाजामा नहीं पहनना चाहिए, और 1 मुहर्रम से 10 रोज़ तक कोई काला कपड़ा ना पहना जाये!

📗 अलमलफूज़ हिस्सा 4 सफह 40

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  ❐ सवाल ❐  ➻  मुस्तफा जाने रह़मत पे लाखों सलाम,जब एक बार पढ़ा तो लाखों सलाम कैसे पहुंचेगा!

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर ये एतराज़ है तो दर अस्ल ये एतराज़ खुदा पर है, इसको यूं समझये के मैंने आप से सलाम किया अस्सलामु अलैकुम यानि के सलामती हो तुम पर, अब ये बतायें मैंने कह तो दिया मगर ये सलामती आप पर नाज़िल कैसे होगी और कौन नाज़िल फरमायेगा,ज़ाहिर सी बात है अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ही सलामती फरमाने वाला है उसी के फज़्ल से आप सलामत रहेंगे, तो हमारा नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में लाखों सलाम भेजना या करोड़ों दुरुद भेजना दर अस्ल रब की बारगाह में दुआ है के मौला मेरे नबी की बारगाह में मेरा लाखों सलाम पहुंचा, तो अब बताइये रब पहुंचा सकता है या नहीं, अगर हाँ तो एतराज़ दफा यानि के एतराज़ खत्म हो गया और अगर नहीं तो फिर आपको अल्लाह की क़ुदरत पर भरोसा ही नहीं है आपका ईमान खतरे में है जनाब, क्योंके एक नहीं हज़ारों ऐसी रिवायतें पाई जाती है के एक बार पढ़ो तो हज़ारों लाखों का सवाब मिलता है! ....आगे पढ़ें!

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 ❐ सवाल ❐  ➻  मुस्तफा जाने रह़मत पे लाखों सलाम,जब एक बार पढ़ा तो लाखों सलाम कैसे पहुंचेगा!

❐ जवाब ❐  ➻  मसलन *पहली मिसाल* अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त फरमाता है के  शबे क़द्र 1000 महीनों से बेहतर है!

📔 पारा 30 सूरह क़द्र

रात तो एक ही है लेकिन हज़ार महीनों से बेहतर कैसे हो गई, है कोई जवाब!

*दूसरी मिसाल* हदीस शरीफ़ में है रजब के एक रोज़े पर एक साल के रोज़े का सवाब

📗 मा सबत मिन सुन्नाह सफह 126

एक रोज़े पर एक साल के रोजों का सवाब ये है रब का फ़ज़ल अपने बंदों पर तो फिर एक सलाम पर लाखों सलाम का सवाब क्यों नहीं हो सकता! ....आगे पढ़ें!


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 ❐ सवाल ❐  ➻  मुस्तफा जाने रह़मत पे लाखों सलाम,जब एक बार पढ़ा तो लाखों सलाम कैसे पहुंचेगा!

❐ जवाब ❐  ➻  मसलन *तीसरी मिसाल* हदीस शरीफ़ में है शबे बरात में 2 रकअत नफ्ल पढ़ने में 400 साल की इबादत का सवाब!

📗 नुज़हतुल मजालिस जिल्द 1 सफह 132

*चौथी मिसाल* हदीस शरीफ़ में है जो मक्का शरीफ में 1 रमज़ान पाये तो 1 लाख रमज़ान का सवाब!

📓 बहारे शरीअत हिस्सा 5 सफह 96

कुछ दुरुदे पाक हैं किसी को 1 बार पढ़ने पर 1 लाख दुरुद पढ़ने का सवाब तो किसी पर 6 लाख दुरुद का सवाब अब इन सबको क्या कहेंगे के नहीं ऐसा नहीं हो सकता एक बार पढ़ने पर इतना इतना सवाब नहीं मिल सकता, अब किसी को अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की क़ुदरत पर भरोसा हो या ना हो मगर हमें पूरा यक़ीन है कि जब हम 1 मरतबा मुस्तफा जाने रहमत पे लाखों सलाम पढ़ते हैं तो बेशक हमारा परवर दिगार हमारा लाखों सलाम हमारे नबी की बारगाह में पहुंचा देता है!


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   ❐ सवाल ❐  ➻  बुज़ुर्गाने दीन के नाम से फातिहा कर के खुद ही खा लेना कैसा है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  सदक़ऐ नाफिला खुद खा सकते हैं जाइज़ है और वैसे भी बुज़ुर्गाने दीन की बारगाह में किया गया नज़र तबर्रुक है उसका खाना फैज़ है, अमीर हो या ग़रीब सब लोग खा सकते हैं!

📗 सुन्नी बहिश्ती ज़ेवर,
📕 फतावा रज़वियह जिल्द 1 सफह 78

 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या दाढ़ी मुंडा अज़ान दे सकता है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  कोई मौजूद नहीं है तो दे सकता है मगर दाढ़ी वाला आगया तो बेहतर है के इयादा किया जाऐ, यानी दोबारा पढ़ी जाए!

📓 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफह 33


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  ❐ सवाल ❐  ➻  क्या घर के दरवाज़े के ऊपर तोगरा में क़ुरआन की आयत लिखी हो तो लगा सकते हैं, हमारे इमाम साहब मना करते हैं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  बिलकुल लगा सकते हैं ये लगाना महज़ तबर्रुक के लिए होता है, मना करने की वजह अगर ये है के क़ुरआन की आयत से पानी होकर नाली में बहेगा तो ये फिज़ूल है क्योंके घर के अन्दर लगाते हैं दूसरी बात  हदीसे पाक से साबित है के फिरऔन ने अपने महल के सबसे ऊपरी हिस्से पर बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम लिखवाया हुआ था जिसकी बरकत से उसका महल हलाक़त से बचता रहा, क्या बिस्मिल्लाह शरीफ क़ुरआन की आयत नहीं है, और अगर इस वजह से मना करते हैं के क़ुरआन पर किसी गैर मुस्लिम की नज़र ना पड़े तो ये भी कोई  माएने नहीं रखता के अकसरो बेशतर हमारे घरों में कभी ना कभी कोई गैर मुस्लिम आ ही जाता है अगरचे किसी भी काम से आया हो, तो अगर घर के अन्दर आया तो मुसलमानों के घरों में अक्सर तोगरे टंगे होते हैं जिनमें क़ुरआन की आयात लिखी होती हैं तो इसपर नज़र तो पड़ेगी ही और घर के अन्दर तोगरा लगाना जिस पर क़ुरआन की आयत लिखी हो आला हज़रत नें जाइज़ व मुस्तहसन फरमाया है!

📕 तफसीरे कबीर जिल्द 1 सफह 152
📔 फतावा रज़वियह जिल्द 9 सफह 522


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   ❐ सवाल ❐  ➻  लड़का और लड़की के बीच अगर नाजाइज़ तअल्लूक़ात हो जाए तो उसको खत्म करने के लिए कोई वज़ीफा बतायें!

 ❐ जवाब ❐  ➻  हर नमाज़ के बाद 125 बार *या सलामु* *या हादी* पढ़कर दुआ करें अव्वल आखिर 9/9 बार दुरुद शरीफ ज़रुर पढ़ें किसी भी नाजाइज़ तअल्लुक़ात को खत्म करने के लिए पढ़ा जा सकता है!

📗 रुहानी ईलाज सफह 204

 ❐ सवाल ❐  ➻  इमाम के सूरह फातिहा खत्म करने पर कुछ लोग बड़ी ज़ोर से आमीन कहते हैं इसका क्या हुक्म है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  खिलाफे सुन्नत है 26 हदीसे पाक इस मस्अले पर मौजूद हैं के इमाम हो या मुक़तदी अकेले पढ़ता हो या जमाअत से ज़हरी नमाज़ हो या सिर्री मगर आमीन आहिस्ता ही कही जायेगी!

📗 अनवारुल हदीस!
📕 जाअल हक़ जिल्द 2 सफह 42

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 ❐ सवाल ❐  ➻  आयते सजदा अगर मोबाईल में किसी ने भेज दी और उसे देखा मगर पढ़ा नहीं तो क्या तब भी सजदा करना पड़ेगा,

 ❐ जवाब ❐  ➻  सिर्फ देखने से अगर चे क़ुरआन में ही हो सजदा वाजिब नहीं!

📒 बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफह 67

 ❐ सवाल ❐  ➻  अगर मुक़तदी की कुछ रकअत नमाज़ छूट चुकी हो और भूले से वो इमाम के साथ सलाम फेर दे तो क्या फौरन वहीं से नमाज़ शुरू कर सकता है या दोबारा पढ़नी पड़ेगी!

 ❐ जवाब ❐  ➻   ऐसी सूरत में 3 बातें होती है पहली ये के अगर ये सोचकर सलाम फेरा के मुझे भी फेरना चाहिए जब तो फौरन ही नमाज़ फासिद हो गई सिरे से पढ़े और अगर भूल से सलाम फेर दिया तो अगर इमाम के साथ फौरन ही फेरा और याद आते ही वापस लौट आया तो कोई हरज नहीं और अगर इमाम के सलाम फेरने के कुछ सिकेन्ड बाद सलाम फेरा और याद आया तो वापस लौट आये मगर अब आखिर में सजदा सहू करें!

📕 बहारे शरीअत हिस्सा 1 सफह 138

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  ❐ सवाल ❐  ➻  मैं एक स्टूडेंट हूं और मैंने अभी हाल ही में दाढ़ी रखी है मगर कुछ लोग हैं जो मेरा मज़ाक उड़ाते हैं और वो मुसलमान हैं तो मैं क्या करुं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  माशाअल्लाह आपने तारीफ के लायक़ काम किया है इस दौर में सुन्नत पर अमल करना किसी जिहाद से कम नहीं है, हदीसे पाक में आता है के हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं के जिसने मेरी सुन्नत को ज़िन्दा किया तो उसको 100 शहीदों का सवाब मिलेगा और एक शहीद को कितना सवाब मिलता है ये अल्लाह और उसका रसूल ही जाने, आप इस पर क़ायम रहें और लोगों की फिक्र ना करें वैसे भी उल्मा ए किराम फरमाते हैं के जिसने सन्नतों की फ़ज़ीलत जानते हुए भी अगर किसी सुन्नत का मज़ाक उड़ाया तो वो काफिर है, तो एक काफिर कब चाहेगा की आप इस्लाम पर अमल करें लिहाज़ा वसवसों को अपने दिल में आने ही ना दें!

📒 इब्ने माजा शरीफ जिल्द 3 सफह 360
📕 किताबुल कबाइर सफह 260

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   ❐ सवाल ❐  ➻  क्या क़ब्र पर पानी भी छिड़का जाता है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  बिलकुल छिड़का जाता है और रिवायत में आता है के हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के साहबज़ादे हज़रते इब्राहिम की क़ब्र पर पानी छिड़का गया!

📒 मदारिजुन नुबूवत जिल्द 2 सफह 775

 ❐ सवाल ❐  ➻   औरतों का किसी भी मज़ार पर जाना नाजाइज़ कहा जाता है तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की क़ब्रे अनवर पर जाना कैसा है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  रौज़ा ए अनवर की ह़ाज़िरी के बारे में उल्मा ए किराम सिर्फ सुन्नत ही नहीं बल्के वाजिब तक फरमाते हैं कियोंके क़ुरआन का हुक्म है के : ऐ ईमान वालो जब तुम अपनी जानों पर ज़ुल्म कर लो तो नबी अलैहिस्सलाम की बारगाह में हाज़िर हो जाओ!

ये हुक्म ईमान वालों को हुआ ज़ाहिर सी बात है ईमान वाले मर्द हों या औरत दोनों का हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के रौज़े की ज़्यारत करना उस मनाई में शामिल नहीं, इसलिए हुज़ूर अलैहिस्सलाम के रोज़ा ए अनवर की ज़्यारत औरतों के लिए जाइज़ है उनके अलावा बाकी किसी का भी मज़ार हो उसपर औरतों को इजाज़त नहीं!

📕 अलमलफूज़ हिस्सा 2, सफह 107

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  ❐ सवाल ❐  ➻  क़ुरआने पाक सबक़ के दौरान अगर तालिबे इल्म भूल जाये तो क़लम से निशान या तारीख डाल सकते हैं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  क़ुरआने पाक में कुछ भी लिखना चाहे तारीख हो या निशान हो क़ुरआने पाक के अदब के खिलाफ है बेहतर है के क़लम से कुछ भी ना लिखें हां एक कागज़ आता है उसे छोटा करके ज़ुबान पर रखकर के इससे चिपक जायेगा निशान लगा दें और बाद में उसे छुड़ा दे इसमें कोई हरज नहीं और ऐसा कर सकते हैं!

 ❐ सवाल ❐  ➻  कुछ मर्द व औरतें नाखून पालिश लगाती हैं इसका क्या हुक्म है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  अक्सर औरतें अपने हाथ या पैरों में नाखून पर पालिश लगाती हैं नाखून पालिश में अलकोहल होता है जो के शरीयत में हराम है मर्दों के लिए तो बहुत ही ज़्यादा सख्त हराम व गुनाह है के औरतों से मुशाबहत पैदा करना है नाखून पालिश की वजह से गुस्ल व वज़ू करते वक़्त पानी नाखून पर नहीं लगता पालिश पर लगकर फिसल जाता है जिसकी वजह से गुस्ल या वज़ू नहीं होता जब गुस्ल ही नहीं हुआ तो नापाक ही रहा और नापाकी की ह़ालत में नमाज़ पढ़ी तो नमाज़ ना होगी और जानबूझकर नापाक रहना सख्त गुनाह है अल्लाह ना करे अगर इस ह़ालत में मौत आगायी तो इसका वबाल अलग और नापाकी में अक्सर शरीर जिन्नात का भी असर हो जाता है इसलिए औरतों को चाहिए के नाखून पालिश ना लगायें!

📗 क़रीना ए ज़िन्दगी सफह 137

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   ❐ सवाल ❐  ➻  आजकल ज़्यादा तर लोगों की दुआ क़ुबूल नहीं होती इसकी वजह क्या!

 ❐ जवाब ❐  ➻  ह़दीसे पाक में आता है के जिसके पेट में ह़राम का एक लुक़मा चला गया उसकी 40 दिन की दुआ की मक़बूलियत खत्म हो गई, ये है पहली वजह फिर दूसरी वजह ये के मुसलमान अमल से तो कोसो दूर रहता है रमज़ान में रोज़ा रखना भारी नमाज़ पढ़ना भारी सुन्नतों की पाबंदी बहुत भारी, मगर चाहता है के जैसे ही हाथ उठाऊं फौरन सब मिल जाए, सच्चे पक्के मुसलमान बन जायें इंशाअल्लाह जो ज़रुरत होगी बिन मांगे मिलता रहेगा, ये तो हुई क़ुबूलियत की बात फिर क़ुबूलियत भी 3 तरह की होती है, पहला ये के जो मांगा वही मिल जाए ये क़ुबूलियत का सबसे अदना दरजा है और जो मांगे वो ना मिला मगर उसके बदले कोई और नेमत मिल गई, या किसी मुसीबत से छुटकारा मिल गया, ये क़ुबूलियत का बीच का दरजा है और सबसे आला दरजा ये है के जो मांगे वो मिले ही नहीं बल्के क़यामत के लिए महफूज़ हो जाये, ह़दीसे पाक में है के एक बन्दे के नामा ए आमाल में कुछ ऐसी नेकियाँ लिखी होगी जो उसने की ही नहीं थी तो अर्ज़ करेगा के मौला मैंने ये नेकियाँ तो की ही नहीं फिर ये आई कहाँ से तो मौला फरमाएगा के ये तेरी उन दुआओं का बदला है जो तूने दुनिया में की थी तो बन्दा अर्ज़ करेगा काश के दुनिया में मेरी एक भी दुआ क़ुबूल ना होती।

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 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या काफिर भी हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के उम्मती हैं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  उम्मत की 2 क़िस्में हैं एक है उम्मते दावत जिसमें तमाम काफिरो मुरतद सब ही दाखिल हैं और दूसरी है उम्मते इजाबत जिसमें सिर्फ मुसलमान दाखिल हैं कियोंके सिर्फ इसी नें हुज़ूर की यानी इस्लाम की दावत को क़ुबूल किया!

📗 73 में 1 सफह 12

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  ❐ सवाल ❐  ➻  सब मोमिन ही क्यों नहीं हैं आखिर काफिर क्यों पैदा होते हैं जबके सबको अल्लाह ही पैदा करता है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  सबसे पहली बात के जो भी बच्चा पैदा होता है अगरचे किसी हिन्दू किसी ईसाई या किसी भी काफिर के घर हो तो जबतक वो अपना मज़हब नहीं पहचानता वो फितरत पर है यानि मोमिन है उसी ह़ालत में अगर मर जाये तो जन्नती है, और उसे काफिर वगैरह उसके घर वाले बना देते हैं, दूसरी बात बेशक सबको खुदा नें ही पैदा किया है लेकिन सोचने समझने के लिए अक़्ल दे दी है, इंसान ना तो फरिशतों की तरह मासूम है और ना पेड़ पत्थरों की तरह बेबस व मजबूर, यानि हर सही गलत को समझने की अल्लाह ने सलाहियत दे रखी है और ये दुनिया एक इम्तिहान गाह है जिसमें सबको अपनी अक़्ल के हिसाब से अमल करना है, जो जैसा अमल करेगा वैसा उसको अज्र मिलेगा, अब ये कहना के हम तो मुसलमान के घर में पैदा हो गये हैं तो हम मुसलमान हुए, और वो काफिर के घर पैदा हुए तो वो काफिर रह गए तो इसकी कोई अस्ल नहीं, और ये तमाम बद मज़हब बद अक़ीदा जितने भी बद मज़हब वहाबी देवबंदी अहले हदीस शिआ वग़ैरह फिरके मुसलमान के घर में पैदा होने के बावजूद किसी ना किसी ज़रूरियाते दीन का इनकार करके काफिर हुऐ इसी तरह ना जाने कितने ही काफिरो के घर में पैदा होने के बावजूद इस्लाम क़ुबूल कर लेते हैं, कम अलफ़ाज़ में बहुत कुछ समझा दिया है बस इतना जान लिजीए के अपने अच्छे बन्दों का इम्तिहान लेने के लिए अल्लाह ने ये सब चीज़ें दुनिया में रखी ताके सबकी आज़माईश हो सके!

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   ❐ सवाल ❐  ➻   क्या क़ुरआन मजीद में ऐसा लिखा है के दूसरे मजहब के बातिल ख़ुदाओं को बुरा ना कहो, मेरे एक दोस्त हैं वो कहते हैं, आप जवाब दें के अगर लिखा है तो ऐसा क्यों!?

 ❐ जवाब ❐  ➻   जी हां बिल्कुल लिखा! 👇

*तर्जमा : -* और उन्हें गाली ना दो जिनको वो अल्लाह के सिवा पूजते हैं के वो अल्लाह की शान में बेअदबी करेंगे ज़्यादती और जहालत से,

📒 पारा 8, सूरह अनआम, आयत 109

इस आयत की तफ़्सीर में है के क़तादा का क़ौल है : मुसलमान कुफ़्फ़ार के बुतों की बुराई किया करते थे ताके कुफ़्फ़ार को नसीहत हो और वो बुत परस्ती के ऐब से बाखबर हों मगर उन नाखुदा शनास जाहिलों ने बजाए पंद पज़ीर होने के शान ए इलाही में बे अदबी के साथ ज़बान खोलनी शुरू की इसपर ये आयत नाज़िल हुई अगरचे बुतों को बुरा कहना और उनकी हक़ीक़त का इज़हार ताअत व सवाब है लेकिन अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की शान में कुफ़्फार की बद गोईयों को रोकने के लिए इसको मना फ़रमाया गया, इब्ने अम्बारी का कौल है के : ये हुक्म अव्वल ज़माना में था जब अल्लाह ताला ने इस्लाम को क़ुव्वत अता फरमाई तो मनसूख हो गया!

📚 तफ़्सीरे ख़ज़ाइनुल इरफ़ान, सफ़ह 205


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  ❐ सवाल ❐  ➻  हमारे गाँव में एक क़ब्रिस्तान है जिसमें गाँव के एक जानिब से नालियां या गन्दा पानी गिराया जाता है और क़ब्रिस्तान में ही पक्की सड़क बनाई गई है जिसका इस्तेमाल अवाम के लिए किया जाता है जिसमें कुफ्फार भी शामिल हैं  इसका जवाब अता करें के क़ब्रिस्तान में गन्दगी फैलाना और रास्ता बनाना कैसा है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  सरकार आला ह़ज़रत से किसी नें पूछा के कब्रिस्तान में गन्दगी वगैरह फेंकना क़ब्रिस्तान को गन्दगी का मखज़न बनाना कैसा है और उसकी निस्बत क्या हुक्म है, तो आला हज़रत ने फरमाया हराम हराम सख्त हराम है कूड़ा व गन्दगी करने वाला अज़ाबे जहन्नम का मुस्तहिक़ है, रही बात रास्ते की तो उसके मुतअल्लिक़ फरमाते हैं मुसलमानों की कब्र पर चलना जाइज़ नहीं, बैठना जाइज़ नहीं, उनपर पांव (पैर) रखना जाइज़ नहीं अइम्मा ए किराम यहां तक फरमाते हैं के कब्रिस्तान में जो नया रास्ता पैदा हो उसमें चलना हराम है, और जिनके अक़रबा ऐसी जगह दफन हों के उनके इर्द गिर्द और भी क़ब्रें हो गई हैं और उसे उन क़ुबूर तक जाने के लिए और क़ब्रों पर पैर रखे बगैर जाना मुमकिन ना हो तो दूर ही से फातिहा पढ़ें और पास ना जायें!

📚 फतावा रज़वियह जिल्द 9 सफह 481

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   ❐ सवाल ❐  ➻  क्या औरत लाउडस्पीकर पर तक़रीर कर सकती है!

 ❐ जवाब ❐  ➻ पहले कुछ ह़दीसे पाक सुन लें फिर बताया जाएगा के लाउडस्पीकर पर तक़रीर करना कैसा, ह़दीसे पाक में आता है के जो औरत खुश्बू लगाकर निकले और वो खुश्बू किसी मर्द को पहूंचे तो वो ऐसी है के जैसे उसने ज़िना कराया!

*माअज़ अल्लाह*  दूसरी ह़दीसे पाक है के जो औरत घर में ऐसे ज़ेवर पहनती है जो बजते हों तो उस क़ौम की दुआ हरगिज़ क़ुबूल ना होगी, तीसरी ह़दीसे पाक है के एक मुसलमान औरत का काफिरा औरत के सामने भी अपना बदन खोलना जाइज़ नहीं, अब सोचिए के जब मुसलमान औरत का काफिर औरत से पर्दा है, वो बजने वाला ज़ेवर नहीं पहन सकती, और दूसरे मर्दों पर ज़ाहिर करने के लिए खुशबू नहीं लगा सकती तो उसकी आवाज़ तो ऐन उसकी आवाज़ है उसका किस कद्र पर्दा चाहिए, ऐसी नाम निहाद आलिमा जो लाउडस्पीकर पर तक़रीर करती हैं उनको चाहिए के पहले वो अपनी इस्लाह करे बाद में मुआशरे की!

📚 खज़ाइनुल इरफान सफह 421

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 ❐ सवाल ❐  ➻  जब चारों इमामों में इख्तिलाफ है तो चारों हक़ पर कैसे हैं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  पहले आप समझ लें के  मसाइल के 4 इमाम हैं, हज़रते इमामे आज़म,
हज़रते इमामे शाफई,
हज़रते इमामे मालिक, और हज़रते इमामे अहमद बिन ह़म्बल,
ये चारों ही अक़ाइद पर मुत्तफिक़ हैं इख्तिलाफ है तो फुरु में, इस ज़माने में हक़ इन्हीं चारों में से किसी एक की पैरवी में है और जो इन से अलग हुआ वो गुमराह व बे दीन है!

आपके सवाल का जवाब ये है के चारों ही इख्तिलाफ के बावजूद हक़ पर कैसे हैं, इसके लिए ये ह़दीसे पाक पढ़ीये बनी क़ुरैज़ा पर जल्द पहुंचने की गर्ज़ से हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबियों में ये ऐलान करवाया के हम असर की नमाज़ बनी क़ुरैज़ा पहुँच कर पढ़ेंगे, सभी ह़ज़रात जुहर पढ़कर निकले और सफर करते रहे यहाँ तक के असर का वक़्त बहुत थोड़ा रह गया, तो कुछ सहाबा ए किराम ने नमाज़ पढ़नी चाही तो कुछ नें मना किया के हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का कहना है के नमाज़ वहीं पहुँच कर पढ़ेंगे इसपर वो सहाबा कहने लगे के हुज़ूर का कहना बिलकुल हक़ है मगर उनहोंने ये नहीं फ़रमाया के अगर नमाज़ का वक़्त निकल जाये तब भी मत पढ़ना तो कुछ सहाबा ने नमाज़ पढ़ली और कुछ नहीं पढ़ी जब हुज़ूर बनी क़ुरैज़ा पहुँच गए तो नमाज़े क़ज़ा पढ़ी गई फिर हुज़ूर के सामने उन सहाबियों का तज़किरा हुआ तो आपने फरमाया के जिनहोंने पहले पढ़ ली उनको सवाब और जिनहोंने अब मेरे साथ पढ़ी उनको दोगुना सवाब, देखिये यहाँ नमाज़ अदा करने पर भी सवाब मिल रहा है और क़ज़ा करने पर भी सवाब मिल रहा है तो बस इसी तरह चारों इमाम मुजतहिद थे जिसने सही मस्अला अपने हिसाब से निकाला तो उसे दो गुना सवाब और जिससे मस्अला समझने में भूल हुई तो उस भूल पर भी एक गुना सवाब, कियोंके मुजतहिद की खता माफ है, और ये इख्तिलाफ उम्मत के लिए रह़मत इस तरह है के किसी को दीन की किसी बात पर अमल करने का मौक़ा मिल रहा है किसी को किसी दूसरी बात पर कियोंके शरीयत एक चमन है और चमन हर तरह के फूलों से बनता है कहीं गुलाब तो कहीं चमेली कहीं कहीं जूही तो कहीं नरगिस,और अवाम को इसलिए इख्तिलाफ में पडने को इसलिए मना किया जाता है के वो इल्म तो रखते नहीं हैं इसलिए वो किसी बात का इंकार कर बैठेंगे जो उनकी आखिरत खराब कर देगा, लिहाज़ा यही कहा जाता है के अपने इमाम की पैरवी करो और इख्तिलाफ में ना पड़ो!

📕 बुखारी शरीफ जिल्द 1 किताबुल जिहाद,
📚 मुस्लिम शरीफ जिल्द 2 सफह 95,

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  ❐ सवाल ❐  ➻  गैर सहाबी के लिए रज़ियल्लाहु तआला अन्हु, और सहाबी के लिए रहमतुल्लाहि तआला अलैहि का इस्तेमाल करना कैसा है, और औलिया ए किराम को रज़ियल्लाहु तआला अन्हु कह सकते हैं तो सहाबा को क्या कहा जायेगा!

 ❐ जवाब ❐  ➻  अल्लाह तआला के तमाम नेक बन्दों के नाम के साथ रहमतुल्लाहि तआला अलैहि और रज़ियल्लाहु तआला अन्हु लिखना बोलना जाइज़ है, मुस्तहब है के सहाबा के लिए रज़ियल्लाहु तआला अन्हु, और ताबेईन और उनके बाद के उल्मा व आबिदीन और सालिहीन के लिए रहमतुल्लाह तआला अलैहि कहें और इसका उलटा भी जाइज़ है के सहाबा को रहमतुल्लाहि तआला अलैहि और बाद वालों को रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से याद करें, मालूम हुआ के रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के लिए शरअन मुमानियत नहीं के गैरे सहाबा को नहीं कहा जाये गैरे सहाबा को जिस तरह रहमतुल्लाहि तआला अलैहि कहना जाइज़ है, इसी तरह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु कहना भी जायज़ है!

📔 दुर्रे मुख्तार जिल्द जिल्द 5 सफह 480,
📗 बुज़ुर्ग़ों के अक़ीदे,

रज़ियल्लाहु तआला अन्हु  दुआइया जुम्ला है सहाबा ए किराम के साथ खास नहीं गैरे सहाबा के नाम के साथ भी इसका इस्तेमाल जाइज़ है इसीलिए बुज़ुर्गों ने बड़े बड़े उल्मा व मशाइख के लिए भी इसको इस्तेमाल फरमाया है और बहुत सारी किताबों में रज़ियल्लाहु तआला अन्हु और रहमतुल्लाहि तआला अलैहि लिखा भी है!

📓 फतावा बह़रुल उलूम जिल्द 5 सफह 333/257


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   ❐ सवाल ❐  ➻  फासिक़ किसे कहते हैं और फासिक़े मोअल्लिन किसे कहते हैं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  शरीयत की खिलाफ वरज़ी करने वाला फासिक है, नमाज़ ना पढ़ने वाला रोज़ा ना रखने वाला, सूद खाने वाला, नाच गाना देखने वाला, तसवीर खींचने खिचवाने वाला, गोया के हर फर्ज़ हर वाजिब यहाँ तक के सुन्नते मुअक़्क़िदा का तर्क़ करने वाला भी बाज़ मौंक़ो पर फासिक़ है, इसी तरह ह़राम व नाजाइज़ कामों से ना बचने वाला,भी फासिक़ है अब इन्हीं सब गुनाहों को अलल ऐलान किया तो फासिक़े मोअल्लिन है यानि के ऐसे के पीछे नमाज़ पढ़ना मकरूहे तह़रीमी यानि नाजायज़ है, वजिबुल ईयादा है, यानी दोबारा पढ़ना पड़ेगी!

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 ❐ सवाल ❐  ➻  अगर किसी गैर मुस्लिम लड़की ने ये कहा के मैं बाद में मुसलमान हो जाउंगी ,मगर पहले अभी तुम मेरे मज़हब पर आ जाओ और वो मुस्लिम लड़का ऐसा करने को तय्यार हो गया हालांके उसने इस्लाम नहीं छोड़ा तो इस ह़ालत में क्या हुक्म है!

 ❐ जवाब ❐  ➻   माअज़ अल्लाह, सुम्मा माअज़ अल्लाह, एक होता है दिल में खत्रा पैदा होना यानी के वसवसा आना और एक होता है उस वसवसे पर अज़्म करना यानि उसको पुख़्ता करना, तो लड़की का ये कहना के तुम मेरे बातिल मज़हब पर अभी आ जाओ बाद में मुसलमान बन जाउंगी, अगर इसको उसी वक़्त रद्द कर दिया जाता यानी उसकी बात को सख्त बुरा मानकर मना कर दिया तो ये वसवसा कहलाता मगर उसका इस बात को मान लेना के ठीक है अभी मैं काफिर हो जाता हूँ माअज़ अल्लाह, तुरंत काफिर हो गया अगरचे बाद में फिरा या नहीं कोई माअने नहीं रखता, कुछ लोगों ने दीन को मज़ाक बना लिया है के जैसा चाहे करें और ये समझते हैं के इमान तो मेरे बाप की जागीर है के कहीं जायेगी ही नहीं, याद रखें मज़ाक में भी अगर किसी ने ये कह दिया के मैं वहाबी हूँ या काफिर हूँ तो वो फौरन इस्लाम से खारिज हो गया, उसकी कोई तावील नहीं सुनी जायेगी के मैंने मज़ाक में कहा या होश में, और जिसने कुफ्र किया और बाद को फिर से इस्लाम क़ुबूल करना चाहता है तो कर ले मगर उसकी ज़िन्दगी भर का किया गया सारा अमल बरबाद हो गया, जितनी नमाज़ें पढ़ चुका था सब बरबाद हो गयीं, फिर से सबकी क़ज़ा करे यूंही सारी ज़िन्दगी के रोज़े गए फिर से रोज़े की क़ज़ा करे, अगर हज किया था तो हज गया, फिर से हज करे, बीवी रखता था तो निकाह टूट गया नये सिरे से नये महर के साथ निकाह करे और वो भी तब जबके बीवी अगर चाहे, और अगर बीवी अब  उसके निकाह में नहीं आना चाहती तो ये क्या इसका बाप भी उसे तैय्यार नहीं कर सकता वो आज़ाद हो गयी जिस से चाहे निकाह करे यूंही  मुरीद था तो बैयत भी टूट गई फिर से बैयत करे ऐसे ही लोगों के बारे में क़ुरआन में आता है के जाहिल चौपायों यानि जानवरों से बदतर है के जानवर भी जिसका खाते हैं उसे अच्छी तरह पहचानते हैं मगर ये जाहिल मुसलमान खाता तो अपने रब का है मगर अपने रब को ही नहीं पहचानता!

*📬 फतावा मुस्तफविया सफह 16 📚*
 

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   ❐ सवाल ❐  ➻   क्या किसी का नाम खुदा के नाम पर हो तो अब्द लगाना ज़रूरी है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  अब्द का मअना बन्दा के होता है तो अब्दुर्रहीम, अब्दुल करीम, अब्दुल मालिक, अब्दुल खालिक़, ही रखा जाए, और इसी तरह पुकारा जाऐ, और जिन नामों का इतलाक गैरूल्लाह पर जाइज़ है मसलन अली, रशीद, बदी, तो ये नाम बगैर अब्द के भी रखा जा सकता है, यूंही अल अली, अल रशीद भी रखा जा सकता है, मगर बेहतर नहीं, बाज़ लोग अपने बच्चों का नाम सिर्फ रह़मान रख देते हैं *मआज़ अल्लाह* रह़मान नाम रखना ऐसा ही है जैसे किसी का नाम अल्लाह रख दिया जाए, मआज़ अल्लाह, ऐसा नाम फ़ौरन बदले और तौबा करे!

*📬 बहारे शरिअत, हिस्सा 16, सफ़ह 211 📚*

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 ❐ सवाल ❐  ➻   पान खाना कैसा है कुछ लोग कहते हैं के पान खाना सुन्नत है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  पान खाना सिर्फ जायज़ है सुन्नत नहीं, आला ह़ज़रत फरमाते हैं के पान खाना ना सुन्नत है ना मुस्तहब है सिर्फ मुबाह है, यानि पान खाने से ना आपको सवाब मिलेगा और ना ही कोई गुनाह मिलेगा, हाँ बाज़ सूरत में मुस्तहब हो सकता है, जैसे आप किसी के घर गये और पान खाने के लिए कहा गया अब आपको मालूम है के अगर नहीं खायेंगे तो मेज़बान को तकलीफ होगी, यानि के दिल शिकनी होगी!

*📬 फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 9 सफह, 256, 111 📓*
*📬 फतावा फिक़हे मिल्लत जिल्द 2 सफह 313 📔*

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  ❐ सवाल ❐  ➻   अगर कोई नहीं जानता और गुनाह करता है तो क्या जाहिल होने की बिना पर माफ हो सकता है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  जहाँ तक माफ होने की बात है तो मौला तआला कुफ्र और शिर्क के सिवा सब कुछ माफ कर देगा और रही बात जाहिल की जहल की तो जाहिल होना खुद गुनाह है के हदीसे पाक में आता है के, इल्मे दीन सीखना हर मुसलमान आक़िल बालिग़ मर्द व औरत पर फर्ज़ है, तो इसने फर्ज़ को छोड़ा तो इल्म ना सीखने का गुनाह, और उलमा ए किराम ने मशरिक से लेकर मगरिब तक  कोई ऐसा खित्ता नहीं छोड़ा जहाँ इल्मे दीन ना पहंचा दिया हो, जाहिल होना इस बात की दलील नहीं बन सकती की जिस से इंसान गुनाह करे और बच जाये यानि के उसे कोई सज़ा ना मिले ऐसा नहीं हो सकता, जैसा गुनाह होगा वैसा हुक्म लगेगा और कुफ्र करेगा तो काफिर होगा, और काफ़िर हमेशा का जहन्नमी है, और अगर ह़राम काम करेगा तो फासिक़ होगा, और फ़ासिक़ को फ़िस्क़ की सज़ा मिलेगी! *वल अयाज़ू बिल्लाही तआला*

*📬 इबने माजा शरीफ जिल्द,1 सफह 224 📓*
*📬 अलमलफूज़ हिस्सा 1,सफह 20 📔*

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   ❐ सवाल ❐  ➻   कुछ लोग थोड़े ही दिन नमाज़ पढ़ते हैं और उनके माथे पर काला निशान बन जाता है, कुछ इसे अच्छा कहते हैं तो कुछ लोग गलत बताते हैं, सही मस्अला क्या है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  आला ह़ज़रत फरमाते हैं के अगर दिखावे के तौर पर पेशानी यानी माथे पर काला निशान खुद रगड़ रगड़ कर पैदा किया जब तो ये ह़रामे क़तई गुनाहे कबीरा है उसके लिए जहन्नम का सबब है जब तक के तौबा ना करे, और अगर ये निशान कसरते सजदा से बने मगर वो सजदे रिया यानि दिखावे के तौर पर था तब भी फ़ाइले जहन्नमी है और अगर बने तो सजदे से ही मगर बाद को रिया का दखल हो गया के लोग मुझे साजिद समझेंगे तब उसके लिए ये निशान मज़मूम यानि बेकार हो गया और अगर निशान बना मगर इसकी तरफ कोई तवज्जोह नहीं रखता यानि रिया का कोई दखल नहीं तब ये निशान उसके क़ब्र में उसके ईमान और नमाज़ की गवाही होगी और क़यामत के दिन सूरज से ज़्यादा रोशनी होगी, बशर्त ये के ईमान वाला हो, अगर किसी सुन्नी सहीउल अक़ीदा के चेहरे पर ऐसा दाग नज़र आये तो उसके लिए ये गुमान रखना के ये रियाकार है ह़राम है!

📔 फतावा अफ़रीक़ा सफह 61

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         ❝• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •  ❞
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  ❐ सवाल ❐  ➻  क्या हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का कोई निकाह आसमान पर भी हुआ है!

 ❐ जवाब ❐  ➻  हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का निकाह ज़ैनब बिन्ते हजश के साथ अर्शे मुअल्ला पर रब तआला ने किया और ह़ज़रत जिब्राइल अलैहिस्सलाम उसके गवाह हुऐ, ये आपकी फूफी उम्मैमा बिन्ते अब्दुल मुत्तलिब की बेटी थी पहले इनका निकाह हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के गुलाम ह़ज़रते ज़ैद बिन ह़ारिस रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से हुआ था मगर चूंकि आप गुलाम थे और खूबसूरत भी नहीं थे जबके वो बहुत ज़यादा खूबसूरत थीं तो ये निकाह साल भर से ज़्यादा ना चला और आपने उन्हें तलाक़ दे दी, बाद इद्दत के हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उन्हें पैगाम दिया जिसे आपने ये कहकर रोक दिया के मैं अपने रब से मशवरा कर लूं तब
जवाब दूंगी फिर आपने 2 रकात नमाज़ पढ़ी और सजदे में ये दुआ की के ऐ मौला तेरे महबूब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मुझ से निकाह के खवाहिश मंद हैं अगर मैं उनके लायक़ हूँ तो तू मेरा निकाह उन से करा दे तो सूरह अहज़ाब की ये आयत उतरी और मौला फरमाता है के :

*आयते करीमा तर्जमा :-* फिर जब ज़ैद की गर्ज़ उस से निकल गयी तो हमने वो तुम्हारे निकाह में देदी!

इस तरह हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का ये निकाह खुद खुदा ने करा दिया!

📓 सूरह अहज़ाब आयत 37
📗 सीरतुल मुसतफा सफह 536

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         ❝• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •  ❞
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   ❐ सवाल ❐  ➻  कुछ लोग कहते हैं के आला ह़ज़रत ने यज़ीद को काफिर नहीं कहा लिहाज़ा उनका और उनके मानने वालों का इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से इश्क़ कैसे सही माना जा सकता है, इसका जवाब चाहिए!

 ❐ जवाब ❐  ➻  ये अजीब ज़ुल्म है के करे कोई और भरे कोई, आला ह़ज़रत ने यज़ीद पलीद को अगर काफ़िर नहीं कहा तो कोई नाम निहाद आशिक़े हुसैन ये दिखा दे के आला ह़ज़रत ने उस पलीद को अपनी किसी किताब में मुसलमान कहा या लिखा हो, बात बात में आला ह़ज़रत पर इल्ज़ाम लगाने वाले भूल जाते हैं के हमारे आलाह़ज़रत अपनी तरफ़ बात करने के बजाए अपने इमामों का ह़वाला देकर बात करते हैं, आप फरमाते हैं के इमाम अहमद बिन हम्बल वगैरह उसे काफ़िर जानते हैं लिहाज़ा उनके नज़दीक उसकी बख्शिश हरगिज़ ना होगी, वहीं दूसरी तरफ इमाम गज़ाली रज़िअल्लाहु तआला अन्ह उसे मुसलमान जानते हैं उनके नज़दीक अगरचे वो कितना भी अज़ाब पाये बिल आखिर बख्शा जायेगा मगर हमारे इमाम इमामे आज़म इस मस्अले पर सुकूत फरमाते हैं के ना तो उसे मुसलमान ही कहते हैं और ना काफिर बल्के खामोश रहने का हुक्म देते हैं, अब  बताईये आला ह़़ज़रत पर लअन तअन करने वाले क्या इमाम गज़ाली को भी अब गालियाँ देंगे, मआज़ अल्लाही रब्बिल आलमीन!

*📔 अहकामे शरीयत हिस्सा 2, सफह 152*


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         ❝ • सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब • ❞
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 ❐ सवाल ❐  ➻  कुछ जगह देखा जा रहा है के औरतें मर्दों की नमाज़ की इमामत कर रहीं हैं क्या ऐसा करना जाइज़ है और क्या उन मर्दों की नमाज़ हो जायेगी!

 ❐ जवाब ❐  ➻  औरतों को मर्दों की इमामत करना सख्त नाजाइज़ो ह़राम है, औरतों का औरतों की जमाअत बनाकर नमाज़ पढ़ना जाइज़ नहीं है तो उनको मर्दों का इमाम बनना कैसे से जाइज़ हो जायेगा, और जो बे पर्दगी का वबाल है वो अलग लिहाज़ा ऐसे मर्द व औरत सब लानत में गिरफ्तार हैं इसके अलावा एक मस्अला ये भी समझ लीजिये के अगर किसी सफ़ में 1 औरत शामिल हो गई तो 3 मर्दों की नमाज़ फासिद होगी, 2 उसके दाऐं बाऐं की और 1 ऐन पीछे की,अगर 2 औरतें शामिल हुईं तो 4 मर्दों की नमाज़ फासिद होगी, 2 उसके दाऐं बाऐं की और 2 उसके ऐन पीछे वालों की, अगर 3 औरतें शामिल हुईं तो 2 दाऐं बाऐं वालों की और पीछे की हर सफ से 3,3 आदमी जो उनके महज़ात में हों और अगर 4 औरतें शामिल हुईं तो 2 दाऐं बाऐं वालों की नमाज़ फासिद होगी और उनके पीछे अगर 1 लाख सफ लग गयी हो सबकी नमाज़ फासिद होगी, अगरचे बीच में दीवार भी हायल हो जाये के उनका कुछ भी हिस्सा पीछे से दिखाई ना देता हो फिर भी सबकी नमाज़ बरबाद है, अब आप खुद समझ लीजिये के औरत मर्द की इमामत कर सकती है या नहीं!

📗 अलमलफूज़ हिस्सा 3 सफह 25

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 ❐ सवाल ❐  ➻  मेरे एक दोस्त का निकाह एक वहाबी ने पढ़ा दिया क्या उसका निकाह हुआ या नहीं.?

 ❐ जवाब ❐  ➻  आला ह़ज़रत फरमाते हैं के निकाह नाम है ऐजाबो क़ुबूल का यानि 2 मुसलमान के सामने एक ने कह दिया के मैंने तुम्को निकाह में लिया और दूसरे ने क़ुबूल कर लिया निकाह हो गया, तो ये इजाबो क़ुबूल की रसम अगर बरहमन भी करा दे तब भी निकाह हो जायेगा मगर चूंके वहाबी से निकाह पढ़ाने में उसकी ताज़ीम करनी पड़ेगी ये ह़राम है, बहरहाल निकाह हो गया इयादे की ज़रूरत नहीं है!

📚अलमलफूज़ हिस्सा 3 सफह 15,

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       *• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के अलावा और भी नबियों का साया नहीं था या ये सिर्फ हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के लिए ही खास है,.?

 ❐ जवाब ❐  ➻   ह़ज़रत उसमाने ग़नी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से अर्ज़ करते हैं के खुदा ए तआला ने आपका साया ज़मीन पर नहीं डाला ताके कोई इंसान उसपर अपना पैर ना रख दे इस रिवायत से तो यही साबित होता है के ये खुसूसियत सिर्फ हमारे नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को ही हासिल है!

📚तफसीरे मदारिक जिल्द 2 सफह 103,

 ❐ सवाल ❐  ➻  आदमी जब मुसाफिर होता है तो हर 4 रकात वाली नमाज़ का क़सर के साथ पढ़ता है यानि 2 रकअत, तो अगर क़सर की जगह पूरी नमाज़ पढ़े के ज़्यादा सवाब होगा तो क्या ऐसा कर सकते हैं,?

 ❐ जवाब ❐  ➻  क़सर वाजिब है तो अगर जिहालत में ऐसा किर लिया तब भी उस नमाज़ को दोहराना वाजिब होगा, यानि उसकी क़स्र क़ज़ा करे और अगर जानबूझकर ऐसा करता है तब तो गुनहगार अज़ाब का मुस्तहिक़ है तौबा करे और नमाज़ दोहराऐ!

📚फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 3 सफह 669

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      *• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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 ❐ सवाल ❐  ➻  किसी के हाथ से अगर गलती से क़ुरआन शरीफ छूटकर गिर जाये तो क्या करें,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  एक मुसलमान के हाथ से गलती से ही क़ुरआन गिर सकता है जानबूझकर नहीं, इस-पर कोई मुवाखज़ा नहीं है सदक़ा करना चाहें कर सकते हैं मगर ये जो मशहूर है के उसे तौल कर अनाज यानि गल्ला सदक़ा किया जाये ये सब जिहालत है ऐसा कोई हुक्म नहीं!

📗 गलत फहमिया और उनकी इस्लाह सफह 166,

 ❐ सवाल ❐  ➻   हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जो सफरे मेराज में अम्बिया ए किराम को नमाज़ पढ़ाई थी क्या उसके लिए अज़ान हुई थी,.?

 ❐ जवाब ❐  ➻   रिवायत में तो यही आता है के हज़रत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने अज़ान और इकामत दोनों कही!

📚 तफसीरे नईमी जिल्द 2 सफह 5,

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 ❐ सवाल ❐  ➻  नियाज़ और फातिहा में क्या फ़र्क़ है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  दोनों एक ही है जो इसाले सवाब आम मुसलमानों को किया जाये उसे उर्फे आम में फातिहा कहते हैं और जो इसाले सवाब किसी अम्बिया व औलिया की बारगाह में किया जाये तो उसे नज़रों नियाज़ कहते हैं लेकिन कोई इसका उलटा भी कह देगा तो ये कोई नाजाइज़ो हराम भी नहीं है!

📗 अहकामे शरीयत हिस्सा 1 सफह 121,
والله تعالیٰ اعلم 


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       *• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या गैरे सहाबा को रज़िअल्लाहु तआला अन्हू कह सकते हैं,?

 ❐ जवाब ❐  ➻  बिलकुल कह सकते हैं और ये क़ुरआन से साबित है के गैरे सहाबा के साथ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु लगा सकते हैं, और ये उन किताबों की फेहरिस्त है जिसमें हमारे उल्मा ए किराम ने गैरे सहाबा को भी रज़िअल्लाहु तआला अन्हु लिखा हैं,👇

📚दुर्रे मुख्तार जिल्द 5 सफह 480,
📚नसीमुर रियाज़ जिल्द 3 सफह 509,
📚अशअतुल लमआत जिल्द 4 सफह 743,
📚शामी जिल्द 1 सफह 35/36/37/42/,
📚तफसीरे कबीर जिल्द 6 सफह 382,
📚मिरक़ात शरह मिश्कात जिल्द 1 सफह 3/27,
📚तहतावी सफह 11, 
📚अहयाउल उलूम जिल्द 2 सफह 7,
📚फतहुल बारी सफह 18,
📚अखबारुल अख्यार सफह 15/16/18/21/,
📚तफसीरे सावी जिल्द 1 सफह 3,

❐  ➻  ये तो बस चंद किताबें हैं वरना पूरा आलमे इस्लाम इसपर मुत्तफिक़ है के गैरे सहाबा के साथ रज़िअल्लाहु तआला अन्हु का सेगा लगाया जा सकता है, बल्के जो ऐतराज़ करते हैं खुद उन बद अक़ीदों ने भी मोलवी क़ासिम नानौतवी और रशीद अहमद गंगोही को अपनी किताब में रज़ियल्लाहु तआला अन्हु लिखा है,

📚तज़किरतुर्रशीद जिल्द 1 सफह 28,

⚠️ हाँ चूंकि ये लफ्ज़ काफी मुअज़्ज़ज़ है लिहाज़ा हर किसी के साथ ना इस्तेमाल किया जाये सिर्फ बड़े बड़े उल्मा फुक़हा और वलियों के साथ ही इस्तेमाल करें!

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❐ सवाल ❐  ➻  गैर की क़सम खाना मसलन जान की क़सम औलाद की क़सम खाना और उस क़सम के टूट जाने पर ये गुमान करना के कुछ नुकसान होगा या मौत वगैरह आजायेगी, इसकी क्या हक़ीक़त है!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  खुदा के नाम और उसकी ज़ात व सिफात के अलावा किसी की क़सम खाना हरगिज़ जाइज़ नहीं और खाई तो वो क़सम नहीं और ना उसके टूटने पर कफ्फारा लाज़िम होगा!

📚बहारे शरीअत हिस्सा 9 सफह 20,

❐ सवाल ❐  ➻  अगर नमाज़ में इमाम के पैर की 3 उंगलियाँ ज़मीन पर नहीं लगती हों तो क्या हुक्म है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  नमाज़ की हर रकात के हर सजदे में मर्द को पैर की 1 उंगली का मोड़कर उंगली का पेट यानि के नीचे का हिस्सा ज़मीन पर रखना फर्ज़ है और दोनों पैर की 3-3 उंगलियाँ का लगाना वाजिब और पूरी 10 को मोड़कर रखना सुन्नत, इसमें इमाम और मुक़तदी या जमाअत और तन्हा का कोई इख्तिलाफ नहीं ये हुक्म सबके लिए एक बराबर है तो अगर इमाम की 3 उंगलियाँ ज़मीन से नहीं लगती तो उसकी नमाज़ मकरूह़े तह़रीमी वाजिबुल इयादा है अब अगर यही गल्ती जमाअत से नमाज़ पढ़ाने में करता है तो सबकी नमाज़ वाजिबुल इयादा, ऐसे को इमाम बनाना ह़राम और पीछे नमाज़ पढ़ना हरगिज़ जाइज़ नहीं!

📚फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 1 सफह 556,

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 ❐ सवाल ❐  ➻  जो शख्स ये कहे के वहाबी देवबंदी को बुरा नहीं कहना चाहिए उसके बारे में क्या हुक्म है? और क्या वाक़ई में किसी को बुरा नहीं कहना चाहिए,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻ फ़तावा ह़ुसामुल ह़रामैन, में 33 उल्मा ए अरब और आला ह़ज़रत फरमाते हैं के वहाबी देवबंदी अपने कुफ्री अक़ाइद की बुनियाद पर काफिर हैं, और उन को मक्का मुअज़्ज़मा व मदीना मुनव्वरा के बड़े बड़े उल्मा ने भी काफिर कहा है, तो अगर कोई वहाबी देवबंदी के कुफ्री अक़ाइद को जानता है फिर भी उनको ठीक कहता है और बद अक़ीदा काफिर व मुरतद को बुरा नहीं कहता बल्के बराबर जानता है तो वो दर हक़ीक़त मोमिन व काफिर को बराबर समझता है और ये कुफ्र है, लिहाज़ा वो शख्स काफिर हो गया फिर से कलिमा पढ़े शादी शुदा था तो बीवी निकाह से निकल गयी, फिर से निकाह करे अगर किसी से मुरीद था तो फिर से बैयत हों!

📗 फ़तावा ह़ुसामुल हरामेंन,
📚फतावा आलमगीरी जिल्द 2 सफह 257,

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 ❐ सवाल ❐  ➻  हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को या मुहम्मद, या अह़मद, कहकर पुकारना मदद के लिए या वैसे भी पुकारना जाइज़ है या नहीं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻   "या" ह़रफ निदा है, यानि के अरबी में किसी को पुकारने के लिए बोला जाता है, जैसे उर्दू में "ऐ" बोला जाता है, इसलिए या मुहम्मद के मअना हुए, ऐ मुहम्मद " यानि के कहने वाला हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को उनका नाम लेकर पुकार रहा है!

❐  ➻  इसमें हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की बे अदबी है, क्योंके ये नामे पाक हुज़ूर अलैहिस्सलाम के ज़ाती नामे पाक हैं, ज़रा सोचो कोई लड़का अपने बाप को उनका नाम लेकर पुकारे तो वो बदतमीज़ या गुस्ताख समझा जाता है, बाप को पुकारा जाता है तो नाम लेकर नहीं बल्के अदब के साथ अब्बा या बाबा वगैरह कहा जाता है जो के उनका मंसब है!

❐  ➻  ऐसे ही हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को उनका ज़ाती नामे पाक लेकर पुकारना और" या मुहम्मद " या " या अह़मद " कहना हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की बे अदबी है, अगर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को पुकारना है तो उनका मंसब यानि के सिफ़ती नामे पाक ज़िक्र करके पुकारे, यानि इस तरह़ कहे "या नबी अल्लाह" "या ह़बीब अल्लाह" "या रसूलल्लाह"!

📚फतावा शारेह बुखारी जिल्द 1 सफह 284,

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 ❐ सवाल ❐  ➻  जो जानवर हमको तकलीफ दे सकते हैं मसलन सांप बिच्छू वगैरह वगैरह उनको मार सकते हैं या नहीं, कोई गुनाह तो नहीं!

 ❐ जवाब ❐  ➻  वो हैवानात जो तकलीफ देते हैं उनको मारना जाइज है मसलन काट खाने वाला कुत्ता, गिरगिट, छिपकली, सांप, बिच्छु, चूंहा, खटमल, मच्छर, वगैरह का मारना जाइज है!

📚दुर्रेमुख़्तार, जिल्द 1 सफ़ह 517,
📚 बहारे शरीअत, जिल्द 1 सफ़ह 1082,

❐ सवाल ❐  ➻  कुछ लोग कहते हैं के नागिन या सांप को मारने के बाद उसको जला देना चाहिए या आंखें फोड़ दें अगर ऐसा नहीं क्या तो वो मारने वाले की फोटो अपनी आँखों में खींच लेता है जिस से नाग या नागिन बदला लेता है तो क्या ये सही बात है या नहीं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  लोगों में ये जो मशहूर है के "मारे हुए सांप की आंखो मे मारने वाले का फोटो आ जाता है, उस फोटो से नागिन कातिल को पहचान लेती है इस लिए सांप को मार कर उसका सर जला दिया जाए ताकि आंख मे फोटो न रहे "ये भी गलत है, उस का सर जलाना उसे मार डालने के लिए है, वोह लाठी खा कर बेहोश हो जाता है, लोग मुर्दा समझ कर छोड देते हैं, वोह कुछ अर्से बाद फिर होश मे आ कर चला जाता है, आग मे जलाना इस लिए है ताकि वाक़इ मर जाए । ख्याल रहे जब तक सांप उल्टा न पड़ जाए के पेट उपर आ जाए तब तक वोह जिन्दा है, लिहाज़ा फोटो वाली बात सही नहीं है!

📗 आवामी ग़लत फ़हमिया और उनकी इस्लाह,
📚 मिरातुल मनाजीह, जिल्द 5, सफ़ह 678,


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❐ सवाल ❐  ➻  ह़ज़रत आप से एक सवाल है के पोस्टमार्टम कराना चाहिए या नहीं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  पोस्टमार्टम कराना नाजाइज़ है के इस में तकरीमे इंसानी के खिलाफ अमल है जबके इंसान मखलूक़ात में सबसे अफज़ल व अकरम है लिहाज़ा पोस्टमार्टम में मय्यत के जिस्म को तकलीफ देना और उसे ईज़ा पहूंचाना है और अगर मय्यत मुस्लिम हो तो ये ईज़ा ए मुस्लिम की वजह से ह़राम व गुनाह है!

❐ सवाल ❐  ➻  घर में खरगोश रखना कैसा है और उसका गोश्त खाना चाहिए या नहीं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  अव्वल तो ये जान लें के खरगोश जानवर का गोश्त खाना ह़लाल है के हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उसका भुना हुआ गोश्त तनाउल फरमाया है और सहाबा ए कराम को भी उसे खाने की इजाज़त दी है, तो जब खरगोश खाना ह़लाल है तो घर में रखना पालना खरगोश की खरीद व फरोख्त करना भी जाइज़ हुआ!

📚 बहारे शरिअत, हिस्सा 15, सफ़ह 124,
📚फतावा फैज़ुर रसूल जिल्द 2 सफह 429,
📚हिदाया जिल्द 4 सफह 425, 

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 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या पुरानी क़ब्र बैठ जाने की वजह से उसपर दुबारा मिट्टी डाल सकते हैं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर किसी मुसलमान की क़ब्र बैठ जाये तो उसे मिट्टी डाल कर दुरुस्त करने में कोई हरज नहीं है!

📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 166,
📚फतावा अकरमी सफह 396,

❐ सवाल ❐  ➻   जिस की बीवी का इंतिक़ाल हो जाये तो क्या वह अपनी बीवी का चेहरा देख सकता है या नहीं और जनाज़ा उठा सकता है और क़ब्र में रख सकता है या नहीं!?

❐ जवाब ❐  ➻ शौहर को बीवी के इंतिक़ाल के बाद उसको देखना जाइज़ है, क़ब्र में उतारना जाइज़ है, और जनाज़े को कंधा देना जाइज़ है, सिर्फ़ उसके बदन को बिला हाइल हाथ लगाने की मुमानअत है!

📚फतावा रज़वियह शरीफ जदीद जिल्द 9 सफह 139,
📚गलत फहमियां और उनकी इस्लाह 56,
📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 4, सफ़ह 135)
📗 अनवारुल हदीस, सफ़ह 188

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❐ सवाल ❐  ➻  वुज़ू में कितनी चीज़ें फर्ज़ हैं,!?

❐ जवाब ❐  ➻  वुज़ू में 4 फर्ज़ हैं, 
(1) मुंह यानि चेहरा धोना,  (2) कोहनियों समेत दोनों हाथों का धोना,
(3) चौथाई सर का मसह़ करना,
(4) टखनों समेत दोनों पांव (पैरों) का धोना!

📚बहारे शरीयत हिस्सा 2 सफह 13,
📚मखज़ने मालूमात सफह 110,

❐ सवाल ❐  ➻  खतना करना कैसा है, यानि फर्ज़ है या क्या है!?

❐ जवाब ❐  ➻  खतना करना सुन्नत है!

📚दुर्रे मुख्तार मा रद्दुल मुख्तार जिल्द 5 सफह 495,
📚मख़ज़ने मालूमात सफह 79,

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 ❐ सवाल ❐  ➻  औरत अगर अपने शौहर को गुस्से में लात घूसा मुक्का लाठी से मारे तो उसका क्या हुक्म है क्या निकाह टूट जाता है या कमज़ोर हो जाता है,!? 

 ❐ जवाब ❐  ➻  औरत का अपने शौहर को लात घूसा मारने से उस के निकाह पर कुछ असर नहीं पड़ेगा, यानि निकाह नहीं टूटेगा, अलबत्ता इस तरह़ करने से बीवी ना फरमान मानी जाएगी और बीवी को शौहर का हक़ अदा करना ज़रुरी है, रसूल्ल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया औरत ईमान का मज़ा ना पायेगी जबतक शौहर का हक़ ना अदा करे!

📚बहारे शरीअत

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        *• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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 ❐ सवाल ❐  ➻  मैंने सुना है के हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के गुस्ल का पानी फरिश्ते आसमान पर उठा ले गए थे, तो फिर उस पानी का क्या हुआ जो फरिश्ते आसमान पर उठा ले गए थे,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के गुस्ल मुबारक का पानी चार शीशों में भरकर एक शीशा हज़रते जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने लिया, एक हज़रते मीकाईल अलैहिस्सलाम ने, एक हज़रते इस्राफील अलैहिस्सलाम ने एक हज़रते इज़राईल अलैहिस्सलाम ने लिया, ह़ज़रते इज़राईल अलैहिस्सलाम नज़ा (मौत) के वक़्त मोमिनों के मुंह में उस में से एक क़तरा डाल देते हैं इस से मौत की सख्ती में आसानी हो जाती है और ह़ज़रते मीकाईल अलैहिस्सलाम मुनकर नकीर के सवाल के वक़्त एक क़तरा डाल देते हैं इस से जवाब में सहूलत होती है, ह़ज़रते इस्राफील अलैहिस्सलाम क़यामत के दिन एक क़तरा मौमिन के चेहरे पर छिड़क देंगे इस से क़यामत की दहशत से अमन मिलेगा और ह़ज़रते जिब्राईल अलैहिस्सलाम दीदार इलाही होते वक़्त एक क़तरा मौमिन की आंखों पर मल देंगे जिस से दीदारे खुदा वन्दी के मुशाहिदे की ताक़त हासिल हो जायेगी!

📚क्या आप जानते हैं बाब 1 सफह 14,
📚तोह़फतुल वाइज़ीन

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 ❐ सवाल ❐  ➻  वो कौन से सह़ाबी हैं जिनके पीछे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने नमाजें पढ़ीं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻   ह़ज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ रज़िअल्लाहु तआला अन्हु हैं के मर्ज़े वफ़ात में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उनके पीछे तीन वक़्त की नमाज़ें पढ़ीं और ह़ालते सफर में ह़ज़रते अबदुर्रह़मान बिन औफ के पीछे फजर की नमाज़ पढ़ी!

📚मवाहिबुल्लदुनिया जिल्द,1 सफह 73

 ❐ सवाल ❐  ➻  तमाम ज़बानों में कौन सी ज़बान अफज़ल है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  तमाम ज़बानों में अरबी ज़बान अफज़ल है!

📚आलमगीरी जिल्द,4 सफह 123

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 ❐ सवाल ❐  ➻  बुज़ुर्गाने दीन के मज़ार का तवाफ करना कैसा है, बहुत से मज़ारों पर देखा गया है के मज़ार का तवाफ करते हैं यानि मज़ार के चारों तरफ घूमते हैं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  आला ह़ज़रत फरमाते हैं के मज़ार का तवाफ के मह़ज़ बा नियत ताज़ीम किया जाये नाजाइज़ है के ताज़ीम के साथ तवाफ करना मखसूस खाना ए काबा शरीफ है, और आला ह़ज़रत फरमाते हैं के रौज़ा ए अनवर का तवाफ ना करो, ना सजदा करो, ना इतना झुकना के रूकू के बराबर हो, हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ताज़ीम उनकी इताअत में है,,,लिहाज़ा मालूम हुआ के मज़ार का तवाफ नहीं करना चाहिए!

📚फतावा रज़विया शरीफ जदीद जिल्द 10 सफह 769

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 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या औरतें अपने घरों में नमाज़ अदा करने के लिए आज़ान और जमाअत का इंतिज़ार करेंगी या नहीं, रहनुमाई फरमायें,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  औरतों के लिए बेहतर है के मर्दों की जमाअत हो जाने के बाद नमाज़ अदा करें, लेकिन अगर मर्दों की जमाअत हो जाने से पहले भी अदा कर लिया तो कोई क़बाह़त नहीं व मुमानियत नहीं, हाँ फजर की नमाज़ में औरतों के लिए अव्वल वक़्त में नमाज़ पढ़ना मुस्तहब है, बाकी नमाज़ों में बेहतर है के मर्दों की जमाअत का इंतज़ार करें!

📚बहारे शरीयत हिस्सा 3 सफह 19,
📚फतावा रज़विया शरीफ जिल्द 2 सफह 366,
📚मोमिन की नमाज़ सफह 102,

❐ सवाल ❐  ➻  जैसे ह़ज़रते उसमाने ग़नी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के निकाह में एक के बाद दीगरे यानि 2 बेटी निकाह में आयीं इसी तरह और भी किसी नबी की 2 बेटी या हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ही की 2 साहबज़ादियां किसी के निकाह में आयीं है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  ये शर्फ सिर्फ़ ह़ज़रते उसमाने ग़नी रज़िअल्लाहु तआला अन्हु को ही हासिल है के किसी भी नबी की 2 बेटियां अक़्द में आयीं हो, ह़ज़रते इमाम जलालुद्दीन सिऊत़ी अलैहिर्रह़मा तहरीर फरमाते हैं के सिवाए ह़ज़रते उसमाने ग़नी रज़िअल्लाहु तआला अन्हु के और किसी शख्स को ये फख्र ह़ासिल नहीं है के यके बाद दीगरे किसी नबी की 2 बेटियां अक़्द में आई हों इसी मुनासिबत से आपका लक़ब ज़ुन्नूरैन था,, इसी तरह अल्लामा सय्यद मुहम्मद अह़मद क़ादरी अलैहिर्रह़मा तहरीर फरमाते हैं के उल्मा ए तारीख का फैसला है के दुनिया में सिवाए ह़ज़रते उसमाने ग़नी रज़िअल्लाहु तआला अन्हु के कोई ऐसा शख्स नहीं जिसके अक़्द में किसी नबी की 2 बेटियां आयी हों इसी वजह से आपको ज़ुन्नूरैन कहा जाता है!

📚तारीखुल खुलफा सफह 231
📚औराक़े गम सफह 197,

❐  ➻  सरकारे आला ह़ज़रत इमाम अह़मद रज़ा खान क़ादरी रज़िअल्लाहू तआला अन्ह ने क्या खूब फरमाया,

*नूर की सरकार से पाया दो शाला नूर का, हो मुबारक तुमको ज़ुन्नूरैन जोड़ा नूर का*

❐  ➻  लिहाज़ा मालूम हुआ के आपके सिवा किसी और के अक़्द में किसी नबी की दो साहबज़ादियां नहीं आईं!

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 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या ह़ज़रते बिलाल रज़िअल्लाहु तआला अन्हु की ज़बान में तुतला पन था या नहीं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  कुछ लोग ह़ज़रते बिलाल रज़िअल्लाहु तआला अन्हु को तुतला पन बताते हैं ये गलत है, बल्के उनकी आवाज़ इंतिहाई शीरीं यानि मीठी, दिलकश थी!

📚फतावा शारह़ बुखारी जिल्द 2 सफह 41,

❐ सवाल ❐  ➻  अगर किसी का पीर ह़यात ना हो तो तजदीदे बयत कैसे करें, और कर सकते हैं के नहीं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  पीर जिस सिलसिला के थे उन से बगैर इन्ह़िराफ के उसी सिलसिला के किसी सुन्नी सह़ीहुल अक़ीदा मुत्तक़ी परहेज़गार से बैयत करे तो ये बयत तबदील नहीं बल्के तजदीदे बैयत है!

📚अलमलफूज़ कामिल हिस्सा 1 सफह 12,

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 ❐ सवाल ❐  ➻  सैय्यद ह़ज़रात को दसवाँ बीसवां चालीसवाँ का खाना खाना कैसा, और शादी ब्याह की तरह दावत देना कैसा,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  पहली बात तो ये है के मय्यत के तीजा दसवां बीसवां चालीसवाँ वगैरह में शादी ब्याह की तरह़ दावत करना जैसा के अक्सर जगहों पर राइज है ये बिदअत क़बीह़ा और नाजाइज़ है, दावत तो खुशी में है ना के गम में!

📚 फतहुल क़दीर, आलमगीरी,
शामी, वगैरह,

 ❐  ➻  लिहाज़ा इन मौक़ों पर जो शादी ब्याह की तरह दावत करते हैं वो नाजाइज़ है, और सैय्यद ह़ज़रात को ऐसी दावत खाना मना है, अलबत्ता मय्यत के इसाले सवाब के लिए इन मौक़ों पर गुरबा मसाकीन को खाना खिलाना बेहतर है और उनका खाना भी जाइज़ है!

📚फतावा फैज़ुर रसूल जिल्द 1 सफह 459

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 ❐ सवाल ❐  ➻  बगैर वुज़ू के आज़ान देना कैसा है और आज़ान हो जायेगी या नहीं!?

 ❐ जवाब ❐  ➻   बगैर वुज़ू के अगर किसी ने आज़ान दी तो आज़ान हो जायेगी, मगर बेहतर है के वुज़ू करने के बाद आज़ान दे, के ह़दीस शरीफ़ में बिना वुज़ू के अज़ान देने की मुमानियत आयी है!

📚फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 5 सफह 370،

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 ❐ सवाल ❐  ➻  अगर कोई मुसलमान हिन्दुओं के मेले में हिन्दुओं के देवी देवताओं की तस्वीर यानि के बुतों को बेचना कैसा है, यानि बुतों को खरीदना बेचना कैसा है इसमें शरीयत का क्या हुक्म है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻   ह़राम है, ह़ज़रते जाबिर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है के आपने हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला तआला अलैहि वसल्लम से फरमाते हुए सुना के शराब, मुरदार, व खिनज़ीर, और बुतों की बैय (खरीदना बेचना बिकवाना) को ह़राम क़रार दिया है, लिहाज़ा इस ह़दीसे पाक से मालूम हुआ के बुतों तस्वीर हो या बुत (यानि मूर्ति) की खरीद फरोख्त ह़राम है!

📚 बहारे शरीयत हिस्सा 10 सफह 138,

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 ❐ सवाल ❐  ➻  अंग्रेजी नये साल की मुबारक बाद देना कैसा है और नया साल मनाना कैसा है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  इस-पर हुज़ूर ताजुश्शरिया का फतवा आ चुका है आप फरमाते हैं कि नये साल की मुबारक बाद देने में हरज नहीं!

❐  ➻  और रही बात नया साल मनाने की तो यूंही अगर दोस्तों को दावत दी या घर बुलाया तो इस में भी हरज नहीं और नाजाइज़ काम करना मसलन नाचना गाना बेह़ायाई करना या ह़राम चीज़ों का इस्तेमाल करना ये सब तो कभी भी जाइज़ नहीं इसके लिए क्या नया साल और क्या पुराना एक बात और मैंने देखा के शोसल मीडिया पर लोग इस पर इतने सख्त हैं के मआज़ अल्लाह इसे शियारे कुफ्फार और कुफ्र तक लिख रहे हैं तो कोई मुशाबेहत कहकर इसका रद कर रहे हैं, तो जान लीजिए के ये सरासर जहालत है और कुछ नहीं कियोंकि शियारे कुफ्फार से मुराद वो काम होता है जिसे उनके मज़हब में इबादत का दरजा हासिल हो और मुशाबेहत में भी इसका खयाल रखा जाता है के मुशाबेहत किस में हो रही है, तो नया साल जिसे कहते हैं वो हमारे यहाँ शमसी साल कहलाता है और ये 365 दिन का होता है और जिसे इस्लामी नया साल कहते हैं वो क़मरी साल कहलाता है और ये 355 दिन का होता है,

❐  ➻  तो ये सूरज और चांद का चलना और साल का बदलना ये तो क़ुदरत का निज़ाम है इस में उनकी मज़हबी दखल कहाँ अगरचे वो कहते हों तो भी क्या इस तरह मुशाबेहत अगर देखने लगे तब तो हो चुका कियोंके वो भी खाना खाते हैं तो क्या करें हम खाना ना खायें वो भी रात को सोते हैं तो क्या करें हम दिन को सोयें ताकि मुशाबेहत ना हो वो भी पैर से चलते हैं तो क्या हम हाथ से चलने लगें  हां कोई नये साल की मुबारक बाद नहीं देता तो अच्छा करता है मगर कोई देता है तो ये कोई नाजाइज़ो ह़राम नहीं है के जिस पर पोस्ट बना बना कर सेंट की जा रही है मुसलमानों को जो काम करना चाहिए वो तो करते नहीं हैं फुज़ूल की अपनी तरफ से मनघड़ंत बातें बनाते रहते हैं और उसे दीन का काम करना कहते हैं! "मआज़ अल्लाह" 

https://youtu.be/xCmI2yBO-PE


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 ❐ सवाल ❐  ➻  अबू तालिब को, ह़ज़रत अबू तालिब और रज़िअल्लाहु तआला अन्हु कहना कैसा है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  ह़ुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के चचा अबू तालिब ने अगरचे ह़ुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की बड़ी मदद की मगर वो ईमान नहीं लाये थे ये बात सैकड़ों आहादीस और बुज़ुर्ग़ों के अक़वाल से साबित है, तफसील के लिए आला ह़ज़रत का रिसाला
''📗 شرح المطالب فی مبحث ابی طالب "
पढ़े, लिहाज़ा अबू तालिब के नाम के साथ रज़िअल्लाहु तआला अन्हु लिखना जाइज़ नहीं, ह़ुज़ूर फक़ीहे मिल्लत अलैहिर्रह़मा ने फतावा बरकातिया में बिलकुल सराह़त के साथ लिखा है के, अबू तालिब को ह़ज़रत अबू तालिब कहने की इजाज़त नहीं, इसलिए कि उनकी मौत कुफ्र पर हुई!

📚 फतावा बरकातिया सफह 358,
📚 फतावा फक़ीहे मिल्लत जिल्द 2 सफह 421/22,

❐  ➻  हाँ ह़ुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के वालिद को ह़ज़रत अब्दुल्ला और दादा को ह़ज़रत अब्दुल मत्तलिब लिखना दुरुस्त बल्कि बेहतर है, और यही हुक्म उनके ऊपर वालों के बारे में भी है, कियोंकि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया में हमेशा पाक पुश्तों और तहारत वाली शिकमों से अल्लाह तआला मुन्तक़िल फरमाता रहा यहाँ तक की मुझे मेरे माँ बाप से पैदा किया!

 📚 शिफा शरीफ, क़ाज़ी अयाज़ जिल्द 1 सफह 100,

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 ❐ सवाल ❐  ➻  जुमां की या किसी भी खुशी के मौके पर मुबारक बाद देना कैसा, कुछ लोग मना करते हैं और कहते हैं के नाजाइज़ है,

 ❐ जवाब ❐  ➻ जाइज़ है, जो लोग नाजाइज़ कहते हैं उनसे दलील मांगिए!

 ❐ सवाल ❐  ➻  ह़ज़रत शिर्क किसे कहते हैं!?

 ❐ जवाब ❐  ➻ अल्लाह तआला के सिवा किसी दूसरे को वाजिबुल वुजूद मानना, या किसी गैरे खुदा को इबादत के लायक़ समझना शिर्क है!

📚 शरह़ अक़ाइद सफह 61,

 ❐ सवाल ❐  ➻  ह़ज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के भाईयों ने यूसुफ अलैहिस्सलाम को कुवें में डाला था तो कुवें में कितने दिन रहे!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  तीन दिन!

📚 मख़ज़ने मालूमात सफह 30,  

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 ❐ सवाल ❐  ➻  मिट्टी डालने के बाद क़ब्र पर अज़ान पढ़ना कैसा है, जबके हमारे यहाँ तो कुछ लोग मना करते हैं!?

 ❐ जवाब ❐  ➻   क़ब्र पर अज़ान पढ़ना जाइज़ व मुस्तहसन है, क़ब्र की तंगी को दूर करता है, एक रिवायत पेश करता हूँ पढ़ लीजिए, जब ह़ज़रते सअद बिन मआज़ रज़िअल्लाहु तआला अन्हु दफन हो चुके और क़ब्र दुरुस्त कर दी गई, हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और सहाबा ए इकराम देर तक सुब्हान अल्लाह, सुब्हान अल्लाह, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, फरमाते रहे, और इरशाद फरमाया के इस नेक मुर्दे पर उसकी क़ब्र तंग कर दी गई थी, यहाँ तक के अल्लाह तआला ने वो तकलीफ दूर फरमाई!

📚 मिशकात जिल्द 1 सफह 26,

❐  ➻  इस ह़दीस शरीफ़ से साबित हुआ के खुद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मय्यत पर आसानी के लिए बाद दफन उनकी क़ब्र पर बार बार अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, फरमाया, और यही हुक्मे मुबारक के अज़ान में छः बार है, तो अज़ान कहना सुन्नत के मुताबिक है, फिर अज़ान ज़िक्र इलाही है और ज़िक्र इलाही से डर दूर होता है और उस से सूकून मिलता है और बेशक ऐसा काम करना जिसकी वजह से मुसलमान भाई से अज़ाब टल जाये, और सुकून मिले तो ये खुदा व रसूल को भी बहुत प्यारा है, अज़ान के जाइज़ होने में कोई शक व शुबा नहीं, अज़ाने क़ब्र पर मेरे पास पोस्ट मौजूद है, और ग्रुप में शेर भी कर चुका हूँ अगर किसी को ज़रूरत हो तो पर्सनल पर मांग ले!

📚 फतावा खलीलिया जिल्द 1 सफह 422/423,
📚 फतावा रज़विया शरीफ जिल्द 5 सफह 653, पर मौजूदा रिसाला, 
(📘ایذان الاجر فی اذان القبر)
📚 अलमलफूज़ हिस्सा 4 सफह 526,

📗 हमारी नमाज़ सफह 243/347,

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❐ सवाल ❐  ➻  तस्वीर बने हुए कपड़े को पहन कर नमाज़ पढ़ना कैसा है जवाब इनायत करें,!?

❐ जवाब ❐  ➻  किसी जानदार की तस्वीर जिस में उसका चेहरा मौजूद हो और इतनी बड़ी हो के ज़मीन पर रख कर खड़े होकर देखें तो आज़ा की तफ्सील ज़ाहिर हो तो इस तरह की तस्वीर जिस कपड़े पर हो उसका पहनना, पहनाना या बेचना, खैरात करना सब नाजाइज़ है, और उसे पहन कर नमाज़ मकरूहे तह़रीमी है जिसका दोबारा पढ़ना वाजिब है!

📚 फतावा रज़वियह शरीफ,/24/556

❐ सवाल ❐  ➻  अज़ान के बाद जो दुआ पढ़ी जाती है तो दुआ से पहले या बाद में भी कुछ पढ़ा जाता है,!? 

❐ जवाब ❐  ➻  जब अज़ान खत्म हो जाये तो मुअज़्ज़िन और सामाईन दुरूद शरीफ पढ़े उसके बाद दुआ पढ़ें!

📚 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफह 28,

📗 निज़ामे शरीयत सफह 80,

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 ❐ सवाल ❐  ➻  वित्र की नमाज़ में दुआ ए क़ुनूत पढ़ना वाजिब है और मुझे याद नहीं है तो क्या किया जाए,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  सबसे पहले आप दुआ ए क़ुनूत याद करें, कियोंके वित्र की नमाज़ में दुआ ए क़ुनूत का पढ़ना वाजिब है, और जब तक याद ना हो जाये दुआये क़ुनूत की जगह एक बार,
*ربنا آتنا في الدنيا حسنة وفي الآخرة حسنة وقنا عذاب النار،*
रब्बना आतिना फ़िद्दुनिया हस्नातंव व फ़िल आख़िरती हस्नातंव वक़िना अज़ाबन्नार,

 ❐  ➻  पढ़ लिया करें, या तीन मरतबा,👇
اللھم اغفرلنا,

अल्लाहुम्मग़ फ़िर लना, कहें नमाज़ हो जायेगी,

📗 मोमिन की नमाज़ सफह 129  

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 ❐ सवाल ❐  ➻  अगर कोई शख्स नशे की ह़ालत में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में गुस्ताखी करे, तो उसके लिए शरीयत का क्या हुक्म है, और अगर वो कहे के हम नशे में थे तो क्या हुक्म है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  किसी शख्स का नशे की ह़ालत में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी करना ये कुफ्र है, वो काफिर हो जायेगा, उसका ये उज्र करना क़ाबिले क़ुबूल नहीं, शिफा शरीफ में इमाम क़ाज़ी अयाज़ रज़िअल्लाहु तआला अन्ह फरमाते है के इमाम अबुल ह़सन ने उस शख्स के क़त्ल का फतवा जारी फरमाया जिस ने नशे की ह़ालत में रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी की, फतावा रज़वियह शरीफ में एक सवाल के जवाब में आला ह़ज़रत तह़रीर फरमाते हैं के अइम्मा ए दीन किसी कुफ्र में ज़बान का फिसल जाना क़ुबूल नहीं करते, वरना ये होता के जो खबीसुल क़ल्ब हो वो ऐलानिया अल्लाह और उसके रसूल की शान में गुस्ताखी कर के कह दे मेरी ज़बान फिसल गई!

📚 शिफा शरीफ जिल्द 2 सफह 223,
📚 फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 15 सफह 80,

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 ❐ सवाल ❐  ➻  हुज़ूर गौसे आज़म को गौसे आज़म कहना चाहिए के नहीं एक शख़्स कह रहे हैं के नहीं कहना चाहिए,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  बेशक हुज़ूर सरकारे बग़दाद गौसे पाक रज़िअल्लाहु तआला अन्हु सिर्फ गौसे आज़म ही नहीं बल्के गौसे आज़म और गौसुस सक़लैन जिन्नों इंसानों के गौस है, कियोंके गौस''' का मअना है फरयाद रस!

📗गयासुल्लुगात फारसी सफह 544,

❐  ➻  ह़ज़रत पीरे पीरां मीरे मीरां शाहे जीलां महबूबे दो जहाँ, फरयाद रस इंसो जां, सैय्यदना शैख अब्दुल क़ादिर जीलानी रज़िअल्लाहु तआला अन्ह को तमाम किताबों में गौसे आज़म'' और गौसुस सक़लैन, के अलक़ाबात से याद किया गया हैं, अहले सुन्नत व जमाअत के अलावा वहाबियों और देवबंदियों के अकाबिरीन ने भी अपनी किताबों में हज़रत को, गौसे आज़म, और, गौसुस सक़लैन, के अलक़ाबात लिखकर आपको बहुत बड़ा, फरयाद रस, और जिन्नों इंसानों का भी फरयाद रस का इक़रार किया है, मैं वहाबियों के अकाबिरीन की  कुछ किताबों का नाम लिख रहा हूँ इन्हीं किताबों में हुज़ूर सैय्यदना गौसे आज़म को फ़रयाद रस ग़ौसे आज़म लिखा गया है 👇

📕सिराते मुस्तक़ीम फारसी सफह 56/123/ मुसन्निफ वहाबी इस्माईल दहलवी,
📕फतावा नज़ीरिया मुसन्निफ मोलवी नज़ीर अहमद हुसैन देहलवी,
📕फतावा अशरफिया जिल्द 3 सफह 9,
📕अत्तज़कीर जिल्द 3 सफह 104,
📕दावते अबदियत जिल्द 5 सफह 17, मोलवी अशरफ अली थानवी, वहाबी

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 ❐ सवाल ❐  ➻   एक सवाल है के ह़ज़रत सरकारे गौसे आज़म की एक करामत इस तरह ब्यान की जाती है, के ह़ज़रत सैय्यदना शैख अब्दुल क़ादिर जीलानी रज़िअल्लाहु तआला अन्ह का एक धोबी था जब उसका इंतिक़ाल हो गया और सवाल जवाब के लिए मुन्कर नकीर फरिश्ते क़ब्र में तशरीफ लाये तो हर सवाल के जवाब में धोबी ने यही जवाब दिया के मैं गौसे आज़म का धोबी हूँ,,, इसको ब्यान करना कहाँ तक दुरुस्त है, और अगर किसी मुअतबर किताब से साबित है तो हवाला ज़रुर दें जवाब आज ही चाहिए बहुत ज़रूरी है,

 ❐ जवाब ❐  ➻   ये रिवायत बे अस्ल है- इसका ब्यान करना दुरुस्त नहीं लिहाज़ा जिसने इसे ब्यान क्या वो इस से रूजू करे और आइंदा इस रिवायत के ना ब्यान करने का अहद करे!

📗इमामुल औलिया सफह 70,

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❐ सवाल ❐  ➻  हमारे गाँव में एक मस्जिद है फजर की नमाज़ के बाद इमाम और चंद मुक़तदी मस्जिद में ही बैठते हैं और अपना दुख सुख सुनते सुनाते हैं और भी दुनियावी बातें करते हैं और दीनी मस्अला वगैरह भी पूछ लेते हैं और उन्हीं मुक़तदी लोगों में एक आदमी खैनी बनाता है दो चार मिन्ट गुफ्तगू के बाद सब लोग खैनी खा कर अपने अपने घर चले जाते हैं क्या इस तरह करना सही है, जवाब इनायत करें,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  मस्जिद में दीनी मसाइल की तालीम की तो इजाज़त है जबके उस पर मुअल्लिम उजरत ना लेता हो और अगर तालीम पर उजरत लेता हो तो उसको भी मस्जिद में उसकी इजाज़त नहीं, इसी तरह मस्जिद में दुख सुख सुनने सुनाने की भी बिलकुल इजाज़त नहीं, उल्मा ए किराम फरमाते हैं के मुबाह़ बातें भी मस्जिद में करने की इजाज़त नहीं, और खैनी में एक क़िस्म की बदबू होती है लिहाज़ा उसकी भी इजाज़त नहीं, खैनी तो खैनी उल्मा फरमाते हैं के, मस्जिद में कच्चा लहसुन या प्याज़ खाना या खा कर जाना जाइज़ नहीं जब तक उसकी बू बाकी हो, क्योंके फरिशतों को उस से तकलीफ होती है!

❐  ➻  आला ह़ज़रत फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 6 सफह 403 में फरमाते हैं के मस्जिद में दुनिया की बातें नेकियों को इस तरह खाती है जैसे चौपाये घास को, हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं के आखिर ज़माने में कुछ लोग होंगे जो मस्जिद में दुनिया की बातें करेंगे अल्लाह को उन लोगों से कुछ काम नहीं, और जो लोग मस्जिद में दुनिया की बातें करते हैं उनके मुँह से वो गंदगी बदबू निकलती है जिस से फरिश्ते अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल के हुज़ूर उनकी शिकायत करते हैं, लिहाज़ा मस्जिद में दुख दर्द सुनना सुनाना खैनी खाना, दुनिया की बातें करना हरगिज़ जाइज़ नहीं, सबको इस से बाज़ आना चाहिए,!

📚बहारे शरीयत हिस्सा 3 सफह 154,
📚फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 6 क़दीम सफह 403,

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❐ सवाल ❐  ➻  मेरा सवाल ये है के क़ुरआन शरीफ मोबाइल में है अब अगर मोबाईल से ही पढ़ना है तो वज़ू करें या वज़ू के बगैर भी पढ़ सकते हैं, हम ओफिस में काम करते हैं जब भी टाइम मिलता है क़ुरआन पढ़ना चाहता हूँ, वज़ू के लिए इंतिज़ाम नहीं है बाहर जाना पड़ेगा!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  बगैर वुज़ू के भी जायज़ है, लेकिन बेहतर है के वुज़ू कर लें, मोबाईल स्क्रीन पर बलास्टिक या शीशे का गिलाफ होता है इसलिए उसे बे वज़ू भी छूना जाइज़ है!

📗मोबाईल फोन के ज़रुरी मसाइल,सफह 154,

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❐ सवाल ❐  ➻  एक शख्स ने अपनी बीवी के लिए तलाक़ नामा लिखा और उस में अपनी बीवी के बजाए उसकी बहन का नाम लिखा और ज़बान से कहता है के मैंने अपनी बीवी को तलाक दी है तो उसकी बीवी पर तलाक पड़ी की नहीं!?

❐ जवाब ❐  ➻   वो अपनी ज़बान से कहता है के मैंने अपनी बीवी को तलाक दी तो उसकी बीवी पर तलाक पड़ गयी अगरचे वो तलाक नामा में अपनी बीवी की बहन का नाम लिखा, इद्दत गुज़ारने के बाद दूसरा निकाह कर सकती है!

📚फतावा फक़ीहे मिल्लत जिल्द 2 सफह 1,

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❐ सवाल ❐  ➻   क्या ये बात सही है के कअबा शरीफ के ऊपर से अगर कोई बीमार परिंदा गुज़र जाये तो उसे शिफा मिल जाती है, अगर सही है तो किसी किताब का हवाला भी मिल जाए तो ज़्यादा बेहतर होगा!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  हां ये बात बिलकुल सही है, वहाँ की ह़वा से उसकी बीमारी दूर हो जाती है!

📚सावी जिल्द 1 सफह 150,
📗मख़ज़ने मालूमात सफह 124, क़िबलतैन का बयान

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❐ सवाल ❐  ➻   अल्लाह तआला को अल्लाह मियां कहना चाहिए के नहीं, बहुत लोग मियां कहते हैं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻ अल्लाह तआला को अल्लाह मियां नहीं कहना चाहिए, बल्के अल्लाह तआला ही कहें, मियां के तीन मअना हैं 1. मअना तो है मौला, 2. शौहर, 3. ज़िना का दलाल,
तो दो माना सही नहीं है रब की शान में ऐसे अलफ़ाज़ ना बोले जायें जिसका मअना गलत हो!

📚अलमलफूज़ हिस्सा 1 सफह 116,
📗मख़ज़ने मालूमात सफह 21,
📗 आवामी ग़लत फ़हमिया और उनकी इस्लाह,

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❐ सवाल ❐  ➻  अगर सोहबत के दौरान बीवी के पिस्तान (छाती) चूसा और दूध अंदर चला गया तो क्या निकाह टूट जायेगा या नहीं, कुछ लोग कहते हैं के निकाह टूट जाता है क्या ये बात सही है,!?

❐ जवाब ❐  ➻  निकाह नहीं टूटता है जो ये कहता है के निकाह टूट जायेगा वो गलत कहता है,, मुबाशिरत के वक़्त औरत के पिस्तान चूमने या चूसने में कोई हरज नहीं लेकिन ख़याल रहे के दूध ह़लक़ में ना जाए- अगर ह़लक़ में दूध चला गया तो फौरन थूक दे, जान बूझकर दूध पीना नाजाइज़ व ह़राम है, फिक़ह की मशहूर किताब दुर्रे मुख्तार में है के मर्द ने अपनी औरत की छाती चूसी तो निकाह में कोई खराबी ना आयी चाहे दूध मुंह में आगया हो, बल्के ह़लक़ से उतर गया हो तब भी निकाह नहीं टूटेगा, लेकिन ह़लक़ में जान बूझकर लेना जाइज़ नहीं!

📚दुर्रे मुख्तार बह़वाला
📗क़ानूने शरीयत जिल्द 2 सफह 52,
📗क़रीना ए ज़िन्दगी सफह 107

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 ❐ सवाल ❐  ➻  एक सवाल है वो ये के इमाम मिम्बर की किस सीढ़ी से खुत्बा पढ़ सकते हैं जवाब इनायत करें,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  ह़ज़रत अल्लामा मुफ्ती मुहम्मद वक़ारूद्दीन क़ादरी अलैहिर्रह़मा तह़रीर फरमाते हैं के मिम्बर की किसी भी सीढ़ी पर बैठना जाइज़ है, मगर ह़ज़रत उसमाने ग़नी रज़िअल्लाहु तआला अन्हु के दौरे खिलाफत से मुसलमानों का ये मामूल है के मिम्बर की पहली सीढ़ी पर खड़े हो कर खुत्बा दिया जाता है, अगर मजमा ज़्यादा हो आवाज़ दूर तक पहूंचानी मक़सूद हो तो सबसे ऊपर वाली सीढ़ी पर भी खड़े होने में हरज नहीं!

📚वक़ारुल फतावा जिल्द 2 सफह 165,

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 ❐ सवाल ❐  ➻  नमाज़ किस उम्र में फर्ज़ होती है,!?

❐ जवाब ❐  ➻  शरीयत का मस्अला ये है के बच्चा या बच्ची जब 7 साल का हो जाये तो उसको नमाज़ सिखा कर नमाज़ पढ़ने का हुक्म दें और जब बच्चे की उम्र,10 साल की हो जाये, तो मार मार कर उस से नमाज़ पढ़वायें!

📚तिरमिज़ी शरीफ जिल्द 1 सफह 54,
📚अबू दाऊद जिल्द 1 सफह 77

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 ❐ सवाल ❐  ➻  नापाकी की ह़ालत में दुरूद शरीफ पढ़ सकते हैं या नहीं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  बिलकुल पढ़ सकते हैं, बेहतर है के कुल्ली कर के पढ़ें, और ऐसे ही पढ़ लिया तो भी कोई हरज नहीं, फ़तावा आलमगीरी में है के क़ुरआन मजीद के अलावा और दूसरे वज़ीफ़े कलिमा शरीफ, दुरूद शरीफ, वगैरह को पढ़ना जुनुब (यानी जिसने अपनी बीवी से हमबिस्तरी की हो और उसे ग़ुस्ल की जरूरत हो) के लिए बिला कराहत जाइज़ है, जैसे के हैज़, M,C, व निफास वाली (बच्चा जनने के बाद जो ख़ून आता है उस) औरत के लिए क़ुरआन शरीफ के अलावा दूसरे तमाम अज़कार व वज़ाइफ को पढ़ना जाइज़ व दुरुस्त है!

📚आलमगीरी जिल्द 1 सफह 36,
📗ख्वातीन की नमाज़ सफह 37,
📗क़ानूने शरीयत जिल्द 1 सफह 28

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 ❐ सवाल ❐  ➻   नापाकी की ह़ालत में ज़ेरे नाफ के बाल, नाखून, सर के बाल बगल के बाल वगैरह साफ कर सकते हैं या नहीं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  गुस्ल करने से पहले नापाकी की ह़ालत में ज़ेरे नाफ के बाल, बगल के बाल, सर के बाल, नाक के बाल, और नाखून वगैरह ना काटें के ये मकरुह है और उस से सख्त ला इलाज बीमारियों के हो जाने का भी अंदेशा है, अहयाउल उलूम में है के नापाकी की ह़ालत में ज़ेरे नाफ के बाल, नाखून, सर के बाल, वगैरह काटना मना है कियोंके आखिरत में तमाम अजज़ा उसके पास वापस आयेंगे तो नापाक अजज़ा का मिलना अच्छा नहीं, ये भी मज़कूर है के हर बाल इंसान से अपनी नापाकी का मुतालबा करेगा!

📗कीमिया ए सआदत सफह 267,
📚बहारे शरीअत जिल्द 2 सफह 16/123,
📚अहयाउल उलूम जिल्द 2 सफह 96,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   बच्चियों के कान नाक छेदना कैसा है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  लड़कियों के कान नाक छेदवाने में कोई हरज नहीं इसलिए के हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के ज़माना ए ज़ाहिरी में भी औरतें कान छिदवाती थीं, हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उस से मुमानियत ना फरमाई!

📚फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 9 निस्फ आखिर सफह 57,
📚बहारे शरीयत जिल्द 2 हिस्सा 16, सफह 126,
📗क़रीना ए ज़िन्दगी सफह 226,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   कुछ लोग सबके सामने  घुटना खोल कर नहाते हैं, क्या ये दुरुस्त है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  मर्द को मर्द से भी घुटने से नाफ तक का हिस्सा छुपाना फर्ज़ है, लिहाज़ा जो लोग घुटना खोल कर यानि चड्ढी अन्डरवियर पहन कर रास्ते पर या सबके सामने नहाते हैं वो ना जाइज़ और हराम काम करते हैं, उनको तौबा करना चाहिए!

📗क़ानून शरीयत जिल्द 1 सफह 37,
📗क़रीना ए ज़िन्दगी सफह 137,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   अगर औरत हैज़ m.c से है तो उसका जूठा खा सकते हैं या नहीं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  बिलकुल खा सकते हैं- उम्मुल मुमिनीन हज़रत आइशा सिद्दिक़ा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा इरशाद फरमाती हैं कि, ज़माना ए हैज़ में, मैं पानी पीती फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को दे देती, तो जिस जगह मेरे लब लगे होते हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम वहीं दहन मुबारक रखकर पीते और ह़ालते हैज़ में,,मैं हड्डी से गोश्त मुंह से तोड़ कर खाती फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को दे देती तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम अपना दहन शरीफ उस जगह पर रखते जहाँ मेरा मुंह लगा था!

📚सही मुस्लिम शरीफ जिल्द 1 किताबुल हैज़ बाब 3 सफह 143

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 ❐ सवाल ❐  ➻   किसी मुसलमान को काफिर कहना कैसा है, और जो कहे उसके लिए क्या हुक्म है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर कोई ऐसेे शख्स को काफिर कहे जो हक़ीक़त में मुसलमान है, तो कुफ्र उसी पर पलट आता है और उसे काफिर कहने वाला खुद काफिर हो जाता है, ह़दीस शरीफ में है के जिसने अपने भाई को काफिर कहा तो वो कुफ्र खुद उस पर पलट आया, हाँ जो नाम का मुसलमान हो मगर हकीकत में मुरतद मुनाफिक़ हो, यानि के कलिमा ला इलाहा इल्लल्लाह पढ़ता हो मगर खुदा व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में या किसी भी नबी की तौह़ीन करता हो या ज़रुरियाते दीन में से किसी बात का इंकार करता हो तो वो काफिर है और उसे काफिर कहने में कोई हरज नहीं, क्योके क़ुरआन मजीद की सूरह काफ़िरून, में काफ़िरों को काफ़िर कहा गया है!

📚फतावा फ़क़ीहे मिल्लत जिल्द 1 सफह 7,
📚फतावा अम्जदिया जिल्द 4 सफह 408, 

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 ❐ सवाल ❐  ➻   घर में किसी बच्चे की तस्वीर या बाप दादा की तस्वीर लगा सकते हैं या नहीं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  जब तस्वीर खींचना खिंचवाना ही जाइज़ नहीं है तो फिर घर में लगाना कैसे जाइज़ होगा, ह़दीस शरीफ में है के, रह़मत के फरिश्ते उस घर में नहीं जाते जिस घर में कुत्ता या जानदार की तस्वीर हो!

📚 बुखारी शरीफ जिल्द 3 बाब 547 हदीस 900 सफह 332

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      *• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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 ❐ सवाल ❐  ➻   पाखाने पर से मख्खी उड़ कर हमारे कपड़ों पर बैठती है तो क्या कपड़ा नापाक हो जायेगा,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  पाखाने पर से या इसी क़िस्म की दूसरी नजासत पर से मख्खी बैठ कर उड़ी और पहने हुए कपड़ों पर बैठी तो कपड़े नापाक ना होंगे!

📚 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 52,
📚आलमगीरी

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      *• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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 ❐ सवाल ❐  ➻   एक सवाल है आप से, के मैं रास्ते में जा रही थी के कीचड़ की छीटें उड़ कर कपड़ों पर आगई तो क्या इस से कपड़े नापाक हो जायेंगे!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  रास्ते का कीचड़ पाक है जब-तक के उसका नजिस होना मालूम ना हो, अगर पांव पर या कपड़े वगैरह पर कीचड़ लग जाये और बग़ैर धोए नमाज़ पढ़ली तो हो जाएगी मगर धो लेना बेहतर है!

📚 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 101, मतबूआ क़ादरी किताब घर, बरेली शरीफ़,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   मैं पाक साफ थी के अचानक एक कुत्ता से मेरा कपड़ा लग गया तो क्या मुझे दोबारा नहाना पड़ेगा, मैंने सुना है के अगर कुत्ता छू जाये तो नापाक हो जाता है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  कुत्ते के छू जाने से कपड़ा या बदन नापाक नहीं होगा, ये गलत मशहूर है के कुत्ते का बदन इंसान के कपड़ा या बदन से लग जाये तो नापाक हो जाता है, कुत्ता चाहे भीगा हो या सूखा नापाक नहीं होगा- हाँ अगर कुत्ते के जिस्म पर नजासत लगी थी और वो नजासत आपके कपड़े पर लग जाये तो जिस जगह लगेगा वो नापाक हो जायेगा- या कुत्ते का लूआब या पसीना या उसके मुंह की राल कपड़ा या बदन पर लग गया हो तो नापाक हो जायेगा!

📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 52,
📗 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़ह 26

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 ❐ सवाल ❐  ➻   अगर गोश्त सड़ गया और उस में बदबू भी आने लगी तो क्या गोश्त नापाक हो गया?,

 ❐ जवाब ❐  ➻   अगर गोश्त सड़ जाये और उस में बदबू आने लगे तो उसको खाना ह़राम है, लेकिन वो नापाक नहीं होगा!

📗औरतों के मसाइल हिस्सा 2 सफह 10,
📗 सुन्नी बहेश्ती ज़ेवर बाब नजासतों का ब्यान सफ़ह 62

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 ❐ सवाल ❐  ➻   बच्चों को पेशाब करवाते वक़्त कपड़ों पर निहायत बारीक बारीक छींटे आजाती हैं तो क्या हमारे कपड़े नापाक हो जायेंगे,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर बच्चों को पेशाब वगैरह करवाते वक़्त या वैसे भी अगर पेशाब के निहायत बारीक छींटे सूई की नोक के बराबर बदन या कपड़े पर लग जायें तो कपड़ा और बदन पाक ही रहेगा, और अगर ऐसा कपड़ा पानी में भी पड़ जायेगा तो पानी भी नापाक ना होगा!

📚 बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 51,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   बरतन रखा हुआ था कुत्ते ने उसे चाट लिया कुत्ते का लुआब नापाक होता है तो मैं उस बरतन को किस तरह पाक करुं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  बरतन पाक करने का तरीक़ा ये है के अगर नजासत किसी ऐसी चीज़ पर लगी हो कि जिस में जज़्ब करने की सलाहियत ना हो जैसे चीनी का बरतन या मिट्टी का पुराना इस्तेमाली चिकना बरतन या लोहे, तांबा,पीतल, स्टील, पलास्टिक, कांच का बरतन, इसे तीन बार 
(((بسم الله الرحمن الرحيم)))
 पढ़ कर धो लेने से पाक हो जायेगा,
नापाक बरतन मिट्टी से मांझ लेना बेहतर है!

📚 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 105,
मतबूआ क़ादरी किताब घर बरेली शरीफ़,
📗 क़ानूने शरिअत,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   हमारे घर में मुर्गी ज़िबह हुई और छुरी पर खून लग गया मैं उस छुरी को किस तरह पाक करुं!?

 ❐ जवाब ❐  ➻   लोहे की चीज़ जैसे छुरी चाकू तलवार वग़ैरह जिसमें नक्शो निगार नहीं है, और जंग भी नहीं है अगर नजिस हो जाए तो उसको अच्छी तरह पौछ डालने से पाक हो जायेगी, इस सूरत में नजासत के दलदार या पतली होने में कुछ फ़र्क़ नहीं यूंही चांदी सोने पीतल गिलट और हर क़िस्म की धात की चीजें पौछने से पाक हो जाती हैं बशर्त ये के नक़्शी ना हो और अगर नक़्शी हों या लोहे में ज़ंग हो तो धोना ज़रूरी है पौछने से पाक न होंगी!

📚 बहारे शरीयत जिल्द,1, हिस्सा 2, सफह 105----106

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 ❐ सवाल ❐  ➻   मेरे घर में बकरी है और उसका दूध इस्तेमाल करते हैं- एक दफा दूध निकालते वक़्त दूध में बकरी की मेंगनी गिर गई तो क्या दूध नापाक हो गया!?

 ❐ जवाब ❐  ➻   दूध नापाक हो जायेगा- कियोंकि बकरी की मेंगनी नजिस होती है- अगर वो किसी चीज़ में गिर जाये तो वो चीज़ भी नापाक हो जाती है!

📚 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 2,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   पकाने के लिए आटा गूंध कर रखा पीछे से बिल्ली ने आकर उस में से थोड़ा सा नोच कर खा लिया तो इस आटे का क्या हुक्म है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  बिल्ली का जूठा मकरुह होता है इसलिए जितनी जगह से बिल्ली ने आटा खाया था उतना आटा उस जगह से निकाल दें और बाक़ी आटा इस्तेमाल कर सकती हैं!

📚 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 2,
📗औरतों के मसाइल हिस्सा 2 सफह 12,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   अगर गोश्त धोते वक़्त खून के छींटे कपड़ों पर आयें तो इस तरह उन कपड़ों में नमाज़ पढ़ सकते हैं के नहीं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  गोश्त धोते वक़्त जो खून के छींटे उड़ते हैं उन से कपड़े नापाक नहीं होते उन से नमाज़ पढ़ सकते हैं- कियोंकि ये बहता खून नहीं है,l!

📗 औरतों के मसाइल हिस्सा 2 सफह 12,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   क्या दूध पीते बच्चों का पेशाब पाक होता है- अगर कोई छोटा बच्चा कपड़े पर पेशाब कर दे तो उसी कपड़े पर नमाज़ पढ़ सकते हैं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  जिस तरह बड़ों का पेशाब नापाक होता है इसी तरह दूध पीते बच्चे का भी पेशाब नापाक है अगर बच्चे ने कपड़ों पर पेशाब कर दिया तो उन्हीं कपड़ों में नमाज़ अदा नहीं की जा सकती, कपड़ों को पाक करना ज़रुरी है नापाक कपड़ा पाक करने का तरीक़ा ये है के उसे तीन मरतबा धोया जाये,और हर मरतबा धोते वक़्त इतनी ताक़त से निचोड़ा जाये के उस में से पानी का एक क़तरा भी बाक़ी ना रहे!

📗 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   जिस वुज़ू से नमाज़ जनाज़ा पढ़ी हो क्या उसी वुज़ू से फर्ज़ नमाज़ पढ़ सकते हैं के नहीं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  बिलकुल पढ़ सकते हैं कुछ जगहों पर लोग समझते हैं के जिस वुज़ू से नमाज़ जनाज़ा पढ़ी हो उस से दूसरी नमाज़ नहीं पढ़ी जा सकती हालांके ये बात गलत और बे अस्ल है! सही बात ये है के इसी वुज़ू से फर्ज़ हों या सुन्नत व नफ़्ल हर नमाज़ पढ़ना दुरुस्त है!

📗 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 19 

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 ❐ सवाल ❐  ➻   क्या मय्यत को गुस्ल देने के बाद गुस्ल करना ज़रुरी है, इसकी वज़ाह़त कर दें,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  मय्यत को गुस्ल देने के बाद गुस्ल करना अच्छा है लेकिन ज़रुरी नहीं के जिस ने मय्यत को गुस्ल दिया हो वो बाद में खुद गुस्ल करे इसको ज़रुरी ख्याल करना गलत है!

📗 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह,19

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 ❐ सवाल ❐  ➻   क्या अपना या किसी दुसरे का घुटना या सतर खुल जाने से या देखने से वुज़ू टूट जाता है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  अवाम में जो मशहूर है के घुटना और सतर अपना या किसी दूसरे का देखने से वुज़ू टूट जाता है ये गलत है और एक बे-अस्ल बात है, घुटना या रान वगैरह सतर खुलने से वुज़ू नहीं टूटता हां बगैर ज़रुरत खुला रहना मना है और दूसरों के सामने सतर खोलना ह़राम है!

📚 बहारे शरीअत हिस्सा 2

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 ❐ सवाल ❐  ➻   क्या ससुर बहू से पूरा बदन दबवा कर खिदमत करवा सकता है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  नहीं दबवा सकता है- ससुर अगरचे मह़रम है पर खौफे फित्ना वा अन्देशा शहवत की वजह से ससुर बहू से पूरा बदन दबवा नहीं सकता यानि कि खिदमत नहीं ले सकता है!

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 ❐ सवाल ❐  ➻   किसी गैर मुस्लिम के मरने के बाद उसके घर वाले दसवां या तेरहवां करते हैं तो मुसलमानों को उसका खाना कैसा है? और जो खाये उस-पर क्या हुक्मे शरअ है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻   इसी तरह के एक सवाल के जवाब में हुज़ूर मुफ्ती अख्तर हुसैन क़ादरी साहब क़िब्ला तह़रीर फरमाते हैं के, अगर हिन्दू की मरनी खाने जाने वालों की नियत ये हो कि उसे सवाब पहुंचेगा तो ये कुफ्र है- सरकारे आला ह़ज़रत तह़रीर फरमाते हैं के काफिर की क़ब्र की ज़्यारत ह़राम और उसे इसाले सवाल का क़स्द कुफ्र है- ऐसी सूरत में जितने मुसलमान खाना खाने गए और नियत इसाले सवाब की तो इन सब पर तोबा व इस्तिग़फार तजदीदे ईमान व तजदीदे निकाह़ लाज़िम है, और अगर नियत इसाले सवाब नहीं की बल्के किसी दुन्यावी गर्ज़ से चले गए तो तोबा व इस्तिग़फार लाज़िम और आइंदा ऐसी हरकत से परहेज़ ज़रुरी है!

📚 फतावा इल्मिया जिल्द 1 सफह 347

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 ❐ सवाल ❐  ➻   एक सवाल का जवाब इनायत फरमायें आपकी महरबानी होगी, सवाल ये है के रमज़ानुल मबारक में गुल मंजन इस्तेमाल करना कैसा है गुल इस्तेमाल कर सकते हैं या नहीं, नहीं कर सकते हैं तो क्या मकरुहे तह़रीमी है या मकरूहे तन्ज़ीही है जवाब इनायत करें,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  हज़रत मुफ्ती वक़ार अली अह़सानी साहब तह़रीर फरमाते हैं के रोज़े की ह़ालत में गुल के इस्तेमाल की चन्द सूरतें हैं,

1- ➻  ज़ैद अगर इस तरह गुल करता है के दांतों तले दबा कर रखे रहता है तो उसके ज़र्रात लुआब के साथ ह़लक़ के नीचे उतर जायेंगे जैसे तम्बाकू को खाने में होता है इस सूरत में उसका रोज़ा टूट जायेगा और क़ज़ा व कफ्फारह दोनों लाज़िम होगा!

2- ➻ अगर वो इस तरह इस्तेमाल करता है के गुल दांतों पर लगा कर दस पांच मिनट छोड़ देता है बाद में कुल्ली कर लेता है तो इस दस पांच मिनट के वक़्फा में ज़न गालिब यही है के गुल के अज्ज़ा लुआब के साथ हलक़ के नीचे उतर जायेंगे और रोज़ा टूट जायेगा इस सूरत में ज़ैद पर सिर्फ उस रोज़े की क़ज़ा वाजिब होगी, इस में कफ्फारह इसलिए नहीं के ये ज़न गालिब है यक़ीनी नहीं इसीलिए हज़रत ने सिर्फ क़ज़ा का हुक्म फरमाया!

3- ➻ अगर उसका तरीक़ा इस्तेमाल का ये है के पहले दांतों पर गुल मल लेता है फिर फौरन कुल्ली कर लेता है तो रोज़े की ह़ालत में इस तरह इस्तेमाल की सख्त मुमानअत है कियोंके इस सूरत में ऐसा भी होता है के अज्ज़ा हलक़ तक पहुँच जाते हैं और ज़ेरे हलक़ उतरने और रोज़ा टूटने का अह़तिमाल होता है!

📗फैसला फिक़्ही सैमीनार बोर्ड दहली बह़वाला फतावा मरकज़ तरबियत इफता जिल्द 1 सफह 470

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 ❐ सवाल ❐  ➻   अगर किसी को बाज़ार या रास्ते में रुपये या कोई दूसरी चीज़ पड़ी मिले या मस्जिद में कोई शख्स अपना सामान भूल से छोड़ कर चला जाये तो उसे क्या किया जाये!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  जो माल कहीं पड़ा हुआ मिले और उसका मालिक मालूम ना हो तो उठाने वाले पर लाज़िम है के लोगों से कह दे के जो कोई गुमी हुई चीज़ ढूंडता हुआ मिले उसे मेरे पास भेज देना और जहाँ वो चीज़ पाई हो वहाँ और बाज़ारों और शरे आम और मस्जिदों में ऐलान करे अगर मालिक मिल जाए तो उसे देदें वरना इतना ज़माना गुज़रने पर के ज़न गालिब हो जाये के अब उसका मालिक तलाश ना करेगा, तो उसे इख़्तियार है के उसकी हिफाज़त करे या अगर खुद मिस्कीन है तो अपने ऊपर खर्च करे वरना सदक़ा कर दे!

📚 फतावा फ़क़ीहे मिल्लत जिल्द 2 सफह 120,
📚 बहारे शरीअत हिस्सा 10 सफह 10,
📚 फतावा अम्जदिया जिल्द 2 सफह 314,
📚 फतावा आलमगीरी जिल्द 2 सफह 289,
📚 दुर्रे मुख्तार व रद्दुल मुख्तार जिल्द 4 सफह 278)

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 ❐ सवाल ❐  ➻   क्या मर्द का जूता औरत इस्तेमाल कर सकती है या नहीं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  मर्द का जूता या कोई भी लिबास औरत को इस्तेमाल करना नाजाइज़ व गुनाह है, किसी ने ह़ज़रत आइशा सिद्दीक़ा ताहिरा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा से कहा के एक औरत मर्दाना जूता पहनती है उन्होंने फरमाया के हुज़ूर ﷺ ने मर्दानी औरतों पर लानत फरमाई है!

📗 अनवारुल ह़दीस सफह 378

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 ❐ सवाल ❐  ➻   अगर दूध पीता बच्चा बदन या कपड़ों पर पेशाब कर दे तो क्या नहाना ज़रुरी है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  बच्चे ने अगर बदन पर पेशाब कर दिया तो उस हिस्से को जिस-पर पेशाब लग गया धोना ज़रुरी है, नहाना ज़रुरी नहीं!

📗 आवामी गलत फहमियां और उनकी इस्लाह,

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 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या दूध पीते बच्चे का क़ै ( उल्टी ) नापाक है!? 

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर बच्चे ने दूध पीने के फौरन बाद ही क़ै कर दी तो ये नापाक नहीं अगर थोड़ी देर के बाद क़ै की के दूध मेदे तक पहुँच गया तो ये नापाक है!

📚 बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 50,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   लोटे या गिलास को पांच उंगलियों से अगर कोई पकड़ ले तो वो पानी पीना कैसा है, एक शख़्स बोल रहे हैं के जाइज़ नहीं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  बिलकुल वो पानी आप पी सकते हैं कोई हरज नहीं-पानी से भरे लोटे या बरतन को पांच उंगलियों से पकड़ने को बुरा जाना जाता है और मकरुह ख्याल किया जाता है हालांकि यह एक जाहिलाना ख्याल है पांच उंगलियों से अगर लोटे को पकड़ लिया जाए तो उससे पानी में कोई ख़राबी नहीं आती!

📗 आवामी गलत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 20

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 ❐ सवाल ❐  ➻   हमारे यहाँ एक मस्जिद है जो अब क़र्ज़दार हो गई है, तो अब उस मस्जिद में नमाज़ पढ़ना कैसा,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  शहज़ाद ए आला ह़ज़रत हुज़ूर मुफ़्ती ए आज़म हिन्द मोलाना अश्शाह मुहम्मद मुस्तफा रज़ा खान क़ादरी रज़िअल्लाहु तआला अन्हुमा, बरेलवी तह़रीर फरमाते हैं के जो मस्जिद हो चुकी ता क़यामत वो मस्जिद ही रहेगी!

📗 फतावा मुस्तफ्वियह सफह 268,

➻ लिहाज़ा जो मस्जिद किसी वजह से क़र्ज़दार हो जाये उस में नमाज़ पढ़ना जाइज़ ही नहीं बल्के ज़रुरी है ताके वीरान ना हो- आला ह़ज़रत मुजद्दिदे आज़म इमाम अहमद रज़ा खान क़ादरी बरेलवी क़ुद्दिसा सिर्रहू तह़रीर फरमाते हैं के' नमाज़ हर पाक जगह हो सकती है जहाँ कोई मुमानियत शरई ना हो अगरचे किसी का मकान में हो या बेकार ज़मीन!

📚 फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 6 सफह 459,
📚 फतावा फ़क़ीहे मिल्लत जिल्द 1 सफह  196,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   अगर औरत हैज़, m.c, से हो तो क्या उसका जूठा हम खा सकते हैं, और जब बच्चा पैदा होता है तो 40 दिन तक औरत का बरतन अलग कर देतें हैं और उसका कोई जूठा नहीं खाता क्या ये सही है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  बच्चे की पैदाइश के बाद, इसी तरह हैज़ माहवारी, m.c, में औरतों के साथ खाने पीने और उनका जूठा खाने में कोई हरज नहीं, बिलकुल आप खा पी सकते हैं- हिन्दुस्तान में जो कुछ जगह उनके बरतन अलग कर दिए जाते हैं उनके साथ खाने पीने को बुरा जाना जाता है या उनके बरतनों को नापाक ख्याल किया जाता है ये हिन्दूओं की रस्में हैं ऐसी बेहूदा रस्मों से अह़तियात लाज़िम है- हां इस ह़ालत में मर्द अपनी औरत से हमबिस्तरी नहीं कर सकता क्योंके उन दिनों में हमबिस्तरी करना ह़राम है!

📗 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह, 25,

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 ❐ सवाल ❐  ➻  एक बर्तन में तेल का अचार था और तेल बरतन के मुंह तक भरा हुआ था- उस में एक चूहिया  गिर कर मर गयी तो वह अचार पाक है या नापाक- अगर तेल को उपर से हटा कर फेंक दें तो अचार खा सकते हैं के नहीं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻ अगर चुहिया तेल में गिरकर मर जाए तो वो तेल और अचार सब नापाक हो जायेगा उसे इस्तेमाल न करें- तेल अगर जलाने के काम में ला सकते हैं तो जला लिया जाये!

📚 बहारे शरिअत

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 ❐ सवाल ❐  ➻   मिट्टी या अलमुनियम के बरतन नापाक हो जायें तो किस तरह पाक करुं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  मिट्टी के पुराने चिकने या अलमुनियम के बरतन धोने और मांजने से पाक हो जायेंगे- और मिट्टी का नया बर्तन जो पानी को जज़्ब कर लेता हैं यानी पी लेता हैं उस बर्तनों को एक मरतबा 
بسم الله الرحمن الرحيم
पढ़ कर धोयें फिर सुखाएं,
फिर 
بسم الله الرحمن الرحيم
पढ़ कर धोयें फिर सुखाएं
इस तरह तीन मर्तबा
धोने सुखाने से बर्तन पाक हो जायेंगा!

📗 क़ानून ए शरिअत

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 ❐ सवाल ❐  ➻   पाखाना पेशाब के बाद इस्तिन्जा करते हैं यानि के पाकी हासिल करते हैं उसका शरई क्या हुक्म है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  पानी से इस्तिंजा करना सुन्नते मुअक्किदह है- चूंके हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इस पर हमेशगी फरमाई!

📚फ़तावा शामी जिल्द 1 सफह 335

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 ❐ सवाल ❐  ➻   एक सवाल है के औरत वुज़ू से है और अगर वो बच्चे को दूध पिला दे तो उसका वुज़ू बाकी रहेगा या टूट जायेगा!?

 ❐ जवाब ❐  ➻ बच्चे को दूध पीलाने से वुज़ू नहीं टूटता है- कुछ जगह जाहिलों में ये मशहूर हो गया है के औरत अगर बच्चे को दूध पिलाये और वो बा वुज़ू हो तो उसका वुज़ू टूट जाता है ये एक गलत बात है, सही बात ये है के बच्चे को दूध पिलाने से हरगिज़ वुज़ू नहीं टूटता और उसके बाद वुज़ू फिर से किये बगैर नमाज़ पढ़ सकती है दोबारा वुज़ू करने की ह़ाजत नहीं!

📗गलत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 26,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   बीवी से सोहबत करने में बदन के सारे कपड़े नापाक हो जातें हैं क्या,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  बदन के पूरे कपड़े नापाक नहीं होते- काफी लोग ये समझते हैं के शौहर बीवी के हमबिस्तर होने से उनके सारे कपड़े नापाक हो जाते हैं ये गलत है- बल्के जिस कपड़े के जिस हिस्से पर नापाकी लगी हो सिर्फ वही नापाक है बाकी पाक है कपड़े के नापाक हिस्से को तीन बार धो दिया जाए और हर बार धो कर खूब निचोड़ लिया जाए तो फिर उसी कपड़े से नमाज़ पढ़ सकते हैं और जिस कपड़े पर नापाकी मसलन मर्द या औरत की मनी न लगी हो वह बगैर धोये पाक है!

📗गलत फहमियां और उनकी इस्लाह 28,

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 ❐ सवाल ❐  ➻  हज़रत एक सवाल बता सकते हैं आप- रमज़ान शरीफ का रोज़ा किस सन में फर्ज़ हुआ!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  दस शव्वाल 2 हिज्री में फर्ज़ हुआ!

📗 मख्ज़ने मालूमात सफह 125,
ब हवाला
📚 ख़ज़ाइन, सफ़ह 42)

 ❐ सवाल ❐  ➻   सबसे पहले रूये ज़मीन पर किस मस्जिद की तामीर हुई,

 ❐ जवाब ❐  ➻  मस्जिदे ह़राम की!

📗मख्ज़ने मालूमात सफह 121,
📚बुखारी शरीफ जिल्द 1 सफह 477,

 ❐ सवाल ❐  ➻  इस्लाम में सबसे पहले आज़ान किस ने पढ़ी!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  ह़ज़रत बिलाल ह़ब्शी रज़िअल्लाहू तआला अन्ह ने!

📗मख्ज़ने मालूमात सफह 112,

 ❐ सवाल ❐  ➻  अगर कोई काफिर लड़की से ज़िना कर ले तो क्या वो भी ज़िना है,

 ❐ जवाब ❐  ➻  काफिर लड़की से भी ज़िना ह़राम है चाहे वह राज़ी ही क्यों न हो- अगर कोई कहे के काफिर लड़की से ज़िना जाइज़ है तो ये कुफ्र है!

📚फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 5 सफह 980,
ब- ह़वाला 
📗क़रीना ए ज़िन्दगी सफह 158,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   हैज़ या निफ़ास के दिनों में औरत बच्चों को क़ुरआन पढ़ा सकती है या नहीं,!? 

 ❐ जवाब ❐  ➻  हैज़ या निफ़ास के दिनों में औरत को क़ुरआन मजीद पढ़ना देखकर या ज़बानी और उसका छूना अगरचे उसकी जिल्द या चोली या हाशिया को हाथ या उंगली की नोंक या बदन का कोई हिस्सा लगे ये हराम है,,, काग़ज़ के परचे पर कोई सूरह या आयत लिखी हो उसका भी छूना हराम है,,, जुज़दान में क़ुरआन हो तो उस जुज़दान के छूने में हरज नहीं,!

➻ मुअल्लिमा के लिए एक तरीक़ा है वो ये के  हैज़ या निफास की ह़ालत में एक एक कलिमा सांस तोड़ तोड़ कर पढ़ायें और हिज्जे कराने में कोई हरज नहीं है!

📚 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 117,
📚 औरतों के मसाइल हिस्सा 2 सफह 16,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   घर के काम काज के साथ साथ मैं कोशिश करती हूँ कि हर वक़्त दुरुद पाक पढ़ती रहूँ, पर हैज़ के दिनों में सोचती हूँ के ये जाइज़ होगा या नहीं आप कुछ रहनुमाई फरमां दें,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  नापाकी की ह़ालत में आप बिलकुल दुरुद पाक कलिमा शरीफ- वगैरह पढ़ सकती हैं कोई हरज नहीं बहारे शरीयत में है के ह़ालते हैज़ व निफास में क़ुरआन शरीफ के अलावा तमाम अज़कार कलिमा शरीफ- दुरुद शरीफ- वगैरह पढ़ना जाइज़ बल्के मुस्तहब है और इन चीज़ों को वुज़ू या कुल्ली कर के पढ़ना बेहतर है वैसे ही पढ़ लिया जब भी हरज नहीं, और उनके छूने में भी हरज नही!

📚 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 117,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   हैज़ की ह़ालत में क्या किसी कपड़े के ज़रिए क़ुरआन शरीफ को हाथ लगाया जा सकता है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  ज़रुरत पड़ने पर अगर क़ुरआन शरीफ जुज़दान में हो तो उसे हाथ लगाने में कोई हरज नहीं मगर अपनी कमीज के दामन या डुबट्टा वगैरह से छूना जाइज़ नहीं!

📚 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 117,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   मगरिब का बिलकुल आखिरी वक़्त था और अभी नमाज़ अदा नहीं की थी के हैज़ आगया तो क्या मगरिब की नमाज़ माफ हो गई या पाक होने के बाद क़ज़ा करनी पड़ेगी!?

 ❐ जवाब ❐  ➻ अगर नमाज़ का आखिरी वक़्त हो गया और अभी तक नमाज़ नहीं पढ़ी थी के हैज़ आया या बच्चा पैदा हो गया तो उस वक़्त की नमाज़ माफ हो गई अगरचे इतना तंग वक़्त हो गया हो के उस नमाज़ की गुंजाइश ना हो!

📚 बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 117,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   एक सवाल है के जैसे किसी को इस मरतबा दो दिन हैज़ का खून आया और फिर दरमियान में 15 दिन कुछ नहीं आया तो क्या ये तमाम दिन हैज़ ही में शुमार किये जायेंगे!?

 ❐ जवाब ❐  ➻ हैज़ की कम से कम मुद्दत तीन दिन और तीन रातें हैं और दो हैज़ो के दरमियान कम से कम पन्द्रह दिन का फासला होना ज़रूरी है लिहाज़ा औरत को जो दो दिन खून आया वो इस्तिहाज़ा यानि के बीमारी का खून है हैज़ का नहीं, और जो पन्द्रह दिन दरमियान में पाकी के गुज़रे वो भी पाक दिनों में ही शुमार होंगे!

📚 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 112

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 ❐ सवाल ❐  ➻   एक सवाल ये है के कई सालों से किसी औरत का ये मामूल रहा है के उसे हर महीने 6 दिन हैज़ m.c,आता था मगर दरमियान में एक दिन या कभी आधे दिन का वक़्फा भी आ जाता था के जिसमें खून बिलकुल नहीं आता तो क्या उस वक़्त को भी हैज़ में ही शुमार करेंगे!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  जी हाँ, ये ज़रुरी नहीं के मुद्दत में हर वक़्त खून जारी रहे जभी हैज़ हो- बल्के अगर बाज़ बाज़ वक़्त भी आये और बाज़ वक़्त रुक जाये जब भी हैज़ है!

📚 बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 113,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   जिस लड़की की उम्र 8 साल है उसको दो दिन खून आया तो ये खून हैज़ m.c का होगा या किसी बीमारी के सबब होगा!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  हैज़ का खून कम से कम 9 बरस के बाद शुरू होता है- लिहाज़ा 8, साल की बच्ची को जो खून आया है वो इस्तिहाज़ा यानि बीमारी का खून है- हैज़ का नहीं!

📚 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 113,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   कोई औरत ह़मल से हो और उसे चार दिन खून आ गया तो क्या ये हैज़ का खून है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  ह़ामिला औरत को जो खून आया वो हैज़ का नहीं बल्के इस्तिहाज़ा है- यानी वो बीमारी का खून है हैज़ का नहीं!

📚 बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 113,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   किसी औरत के बच्चा पैदा हुआ हो और उसको सिर्फ बीस दिन खून आया हो तो क्या वो चालीस दिन पूरे करे या गुस्ल कर के पाकी हासिल कर ले,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  अक्सर औरतों में यह रिवाज है के बच्चा पैदा होने के बाद जब तक चिल्ला यानी 40, दिन पूरे न हो चाहे खून आना बंद हो गया हो न नमाज़ पढ़़ती हैं न रोज़ा रखती हैं और न अपने को नमाज़ के लायक़ जानती हैं ये महज़ जहालत है---सही बात ये है के जब निफास यानि खून आना बंद हो जाए उसी वक़्त ग़ुसल करले और नमाज़ शुरू कर दें और अगर नहाना नुकसान करे तो तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ें- यानि निफास की मुद्दत चालीस दिन ज़रुरी ख्याल करना गलत फहमी है, जब-तक खून आए तभी तक औरत निफास में मानी जायेगी, ख्वाह चन्द दिन ही हुए हों, हाँ अगर चालीस दिन गुज़रने के बाद भी खून आना बंद न हो तो चालीस दिन के बाद नहा कर नमाज़ पढ़ेगी, और जिन दिनों में उस पर नमाज़ रोज़ा फर्ज़ है उन दोनों में शौहर और बीवी का हमबिस्तर होना भी जाइज़ है, लिहाज़ा जिस औरत को 40, दिन से भी कम दिन तक ख़ून आया हो वो उसी वक़्त गुस्ल कर के नमाज़ शुरू कर दे!

📗 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह,22/23,
📚 बहारे शरीयत हिस्सा 2 सफह 116-📗ब- ह़वाला औरतों के मसाइल हिस्सा 2 सफह 18,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   आजकल बहुत लोग फ़िल्मी गाने और फ़िल्में देखते हैं और रात दिन उसी में लगे रहते हैं तो क्या ये सब करना सही है या ग़लत है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  आजकल हिन्दुस्तान में फ़िल्मी मनाज़िर और उनके गानों के ज़रिए भी मुसलमानों को काफ़िर बनाने और ईमान व अक़ीदे को तबाह व बर्बाद करने की मुनज़्ज़म साज़िश चल रही है फ़िल्म की मज़ेदारियों और उसकी लज़्ज़त गानों की लुत्फ़ अंदोज़ी के सहारे ऐसे ऐसे कड़वे घूंट मुस्लिम नस्लों की घांटी से उतारे जा रहे हैं जिनसे कभी वो बहुत दूर भागते थे लेकिन अब मुसलमान उन्हें बड़ी आसानी से हज़म करते चले जा रहे हैं बल्के सही बात ये है के ये आजकल फ़िल्मों, टेलीविज़नो के ज़रिए काफ़िर अपने धर्मों का प्रचार कर रहे हैं, ज़्यादातर गानों में कुफ़्रियात होते हैं अगर कोई मुसलमान उन कुफ़्रियात को सुनकर सही मानले तो उसका ईमान चला जायेगा!

📗 आवामी ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह, सफ़ह 18--19)

 ➻  और हदीस शरीफ़ में आया के म्यूज़िक सुनने से दिल मुर्दा हो जाता है, और जिस घर में कुत्ता या तस्वीरें हों उस घर में रहमत के फ़िरिश्ते नहीं आते!

📗 अनवारुल हदीस, सफ़ह 373) ब हवाला बुख़ारी शरीफ़ जिल्द 2, सफ़ह 880)
📚 मिश़्कात सफ़ह 385

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 ❐ सवाल ❐  ➻   मुझे एक ऐसी बीमारी है के हर वक़्त खून जारी रहता है तो इस बीमारी के दौरान नमाज़ रोज़े माफ हैं या नहीं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  जिस औरत को पहली मर्तबा ख़ून आया और उसका सिलसिला महीनों या बरसों जारी रहा के बीच में 15. दिन के लिए भी ना रुका तो जिस दिन से ख़ून आना शुरू हुआ उस रोज़ से 10.दिन तक हैज़ और बाक़ी 20.दिन इस्तेहाज़ा के समझे और जब तक ख़ून जारी रहे यही क़ायदा बरते और अगर उससे पेशतर हैज़ आ चुका है तो उससे पहले जितने दिन हैज़ के थे हर 30.दिन में उतने दिन हैज़ के समझे, बाक़ी जो दिन बचें वो इस्तेहाज़ा!

📗 जन्नती ज़ेवर, सफ़ह 49--50)

➻  आदत के दिनों से ख़ून ज्यादा आ गया (दिन चढ़ गये) तो हैज़ में 10.दिन और निफ़ास में 40.दिन तक इन्तिज़ार करे, अगर उस मुद्दत के अंदर बंद हो गया तो अब से नहा धो कर नमाज़ पढ़े और जो उस मुद्दत के बाद भी जारी रहा तो नहाऐ और आदत के बाद बाक़ी दिनों की कज़ा करे नमाज़ की भी और रोज़ों की भी!

📗 जन्नती ज़ेवर सफ़ह, 54--55)

 ➻  जो खून इस्तिहाज़ा यानि बीमारी से आती है उस में ना तो नमाज़ माफ है न रोज़ा और न ही इस ह़ालत में सोहबत ह़राम है!

📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 120,

 ➻  इस्तिहाज़ा अगर इस हद तक पहुंच गया के उसको इतनी मोहलत नहीं मिलती के वुज़ू करके नमाज अदा कर सके तो नमाज़ का पूरा एक वक़्त शुरू से आखिर तक, उसी हालत में गुज़र जाने पर उसको माज़ूर (यानी उज़्र वाली) कहां जाएगा, एक वुज़ू से उस वक़्त में जितनी नमाज़ें चाहे पढ़े खून आने से उसका वुज़ू ना जाएगा!

📗जन्नती ज़ेवर सफ़ह 58,
ब हवाला
📚 दुर्रे मुख़्तार,
📚 रद्दुल मोहतार,

 ➻  अगर कपड़े वगैरह रखकर इतनी देर तक ख़ून को रोक सकती है के वुज़ू करके नमाज़ पढ़ ले तो उज़्र साबित ना होगा!

➻  इस्तिहाज़ा वाली अगर ग़ुसल करके ज़ोहर की नमाज़ आख़िर वक़्त में और असर की नमाज़ वुज़ू करके अव्वल वक़्त में और मगरिब की नमाज़ ग़ुसल करके आख़िर वक़्त में पढ़े और इशा की वुज़ू करके अवल वक़्त में पढ़े और फ़जर भी ग़ुसल करके पढ़े तो बेहतर है और अजब नहीं के ये अदब जो हदीस में इरशाद हुआ है उसकी रियायत की बरकत से उसके मर्ज़ को भी फायदा पहुंचे!

📗 जन्नती ज़ेवर सफ़ह 58,
📚 अबू दाऊद,
📚 तिरमिज़ी,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   अगर कोई हैज़ यानि,m.c से उस वक़्त पाक हुई यानि खून आना बंद हुआ कि नमाज़ का एक दम आखिरी वक़्त था अगर वह गुस्ल करेगी तो वक़्त खत्म हो जायेगा तो क्या करे!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  वक़्त इतना कम है के गुस्ल करेगी तो नमाज़ क़ज़ा हो जायेगी तो चाहिए के तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ ले फिर गुस्ल कर के नमाज़ दोहराये यानि दुबारा पढ़ ले!

📗औरतों के मसाइल हिस्सा 2 सफह 20,

 ➻  हैज़ पूरे 10.दिन पर और निफ़ास पूरे 40.दिन पर ख़त्म हुआ, और नमाज़ के वक़्त में अगर इतना भी बाक़ी हो के "अल्लाहु अकबर" का लफ़्ज़ कहे तो उस वक़्त की नमाज़ उस पर फर्ज़ हो गई, नहा कर उसकी क़ज़ा करे और अगर उससे कम में बंद हुआ और इतना वक़्त है के जल्दी से नहा कर और कपड़े पहन कर एक बार "अल्लाहु अकबर" कह सकती है तो फर्ज़ हो गई क़ज़ा करे और इतना वक़्त ना हो तो नहीं!

📗 जन्नती ज़ेवर सफ़ह 55,
ब हवाला
📚 दुर्रे मुख़्तार

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 ❐ सवाल ❐  ➻   इसाले सवाब के लिए जो नियाज़ यानी शीरिनी वग़ैरह पर फ़ातिहा की जाती है वो तक़्सीम करते (बांटते) वक़्त ज़मीन पर गिर जाती है तो इसके बारे में क्या हुक्म है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  इसाले सवाब के नाम पर आजकल लोग इस क़िस्म की खैरात करते हैं के छतों और कोठों पर से रोटियां और रोटियों के टुकड़े बिस्किट बगैरा फेंकते हैं और सदहा (सैकड़ों) आदमी उसको लूटते हैं, एक के ऊपर एक गिरता है बाज के चोट लग जाती है और वो रोटियां या बिस्कुटों के टुकड़े नीचे ज़मीन पर गिरकर पांव से रोंद जाती हैं, बल्के बअज़ औक़ात (वक़्त) गलत नालियों में भी गिर जाती हैं और रिज्क़ की सख्त बे अदबी व बेहुरमती होती है और बहुत कुछ बर्बाद भी जाती हैं, यही हाल शरबत का है के ऊपर से आबखोरों मैं वो लूट मचाई जाती है के आधा आबखोरा भी शरबत का नहीं रहता, और तमाम शरबत गिरकर ज़मीन पर बहता और ज़ाएआ जाता है, ये ना ख़ैर ख़ैरात है ना सवाब व इसाले सवाब, ना इससे ख़ुदा व रसूल राज़ी ना इस पर कोई सवाब की उम्मीद, सिर्फ़ नामोरी और दिखावे की सूरतें हैं, जो हराम और रिज़्क़ की बेअदबी और बर्बादी का गुनाह अलग काश के ये चीजें इंसानियत के तरीक़े पर तक्सीम की (बांटी) जाएं तो बे हुरमती भी ना हो और लोग उससे फायदा भी उठाएं और करने वाले सवाब कमाएं!

📗 जन्नती ज़ेवर सफ़ह 152,
📚 फतावा रजियह, वगैरह

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 ❐ सवाल ❐  ➻   नहाने के लिए टप में पानी भरा फिर उस में कुछ गरम पानी मिलाया तो ह़रारत देखने के लिए मैंने उंगली डाल कर पानी चेक किया- मेरी बहन देख रही थी उसने कहा के अब इस पानी से गुस्ल नहीं कर सकती तो क्या ये बात सही है!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर बगैर धोये हाथ या उंगली या नाखून या बदन का कोई हिस्सा जो वुज़ू में धोया जाता है पानी में बगैर धुला हुआ पड़ जाए तो वो पानी वुज़ू और गुस्ल के लायक़ न रहा- इसी तरह जिस पर नहाना फर्ज़ है उसके जिस्म का कोई बे धुला हुआ हिस्सा पानी से छू जाये तो वो पानी वुज़ू और गुस्ल के काम का न रहा और अगर धुला हुआ हाथ या बदन का कोई हिस्सा पड़ जाए तो हरज नहीं- अब अगर आप ने पहले हाथ धो कर पानी में उंगली डाल कर चेक किया था तब तो उसी पानी से गुस्ल कर सकती हैं और अगर बगैर हाथ धोए पानी में उंगली डाल दी थी तो अब उस पानी से गुस्ल नहीं कर सकतीं कियोंके वो पानी मुस्तअमल हो गया!

📚 बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 333,
📚 फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 2 सफह 43,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   मैं अक्सर बा वुज़ू रहती हूँ फिर उसी ह़ालत में जब खाने का वक़्त आया तो मैंने भरे हुए टप में हाथ डाल कर हाथ धो लिए अब उस टप वाले पानी का क्या हुक्म है अब अगर उसी पानी से कोई वुज़ू करना चाहे तो कर सकता है के नहीं!?

 ❐ जवाब ❐  ➻ अगर हाथ धुला हुआ हो या आप ब वुज़ू हों या वैसे ही हाथ धुले हुए हैं मगर फिर धोने की नियत से और ये धोना सवाब का काम हो तो ये पानी मुस्तामल हो गया यानि वुज़ू के काम का न रहा- लिहाज़ा खाने के लिए हाथ धोने के लिए उसी बरतन में हाथ डालने से वो पानी मुस्तअमल हो गया अब उस से वुज़ू नहीं कर सकते!

📚 बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 333

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 ❐ सवाल ❐  ➻   नहाने में बदन से पानी लग कर अगर बाल्टी में गिरे तो इस से पानी में कोई खराबी तो नहीं आती और गुस्ल हो जायेगा या नहीं!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर बदन पर कोई ज़ाहिरी नापाकी नहीं लगी है तो सिर्फ छीटों से पानी में कोई खराबी नहीं आयेगी- बहारे शरीयत में है के मुस्तअमल पानी अगर अच्छे पानी में मिल जाए यानि वुज़ू या गुस्ल करते वक़्त क़तरे लोटे या टप में टपके तो अगर अच्छा पानी ज़्यादा है तो ये वुज़ू और गुस्ल के काम का है वरना सब बेकार हो गया!

📚 बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 334,
📚 फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 2 सफह 220,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   मेरा एक छोटा नाबालिग बेटा है- जब मैं नमाज़ के लिए वुज़ू करती हूँ तो वो भी मेरे साथ वुज़ू करता है और अपना इस्तेमाल क्या हुआ पानी मेरे बरतन में डाल देता है तो क्या अब उस बरतन का पानी मुस्तअमल हो गया या नहीं क्या मैं उस से वुज़ू कर सकती हूँ!?

 ❐ जवाब ❐  ➻   न समझ बच्चे ने वुज़ू किया जिस तरह़ दो तीन साल के बच्चे माँ बाप को देखकर बतौरे नक़्ल व हिकायत नमाज़ व वुज़ू करने लगते हैं ये पानी मुस्तामल न होगा- लिहाज़ा आप उस से वुज़ू कर सकती हैं!

📚 फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 2 सफह 46,

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 ❐ सवाल ❐  ➻ बदमज़हब यानी वहाबी देवबंदी अहले हदीस शिआ वग़ैरह फ़िर्क़ाहाए बातिला के इज्तिमा जलसा जुलूस वग़ैरह में शामिल होना कैसा है,!? 

 ❐ जवाब ❐  ➻  फ़िर्क़ाहाए बातिला की तक़रीबात व मुहाफ़िल इज्तिमाआत व मजालिस में शरीक होना उनकी तक़ारीर व मवाइज़ सुनना और उनकी खुशियों में शरीक होना उन्हें मुबारक बाद देना अपने यहां जलसे जुलूस और प्रोग्रामों में बुलाना हराम है!

➻  ग़ुनियतुत्तालिबीन में है उनके साथ ना बैठा जाए और उनसे क़ुर्ब ना रखा जाए ईद और ख़ुशी के मौक़ा पर उन्हें मुबारक बाद ना दिया जाए!

📗 बदमज़हबों से मेलजोल, सफ़ह 74---75)

➻  हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जो जिस क़ौम का मजमा बढ़ाऐ वो उन्हीं में से है (यानी जो शख़्स जैसे लोगों की महफ़िल जलसे जुलूस इज्तिमा में गया वो वैसा ही है)

📗 कुतुबे आहादीस,,

➻ हज़रत अल्लामा अबू बकर इब्ने सीरीन रज़िअल्लाहू तआला अन्ह बदमज़हबों से कलामे ख़ुदा और रसूल भी सुनना गवारा नहीं फरमाते थे चुनाचे हजरत अस्मा बिन उबेद रज़िअल्लाहू तआला अन्ह‌‌‌ फरमाते हैं के दो बदमज़हब हज़रत इब्ने सीरीन रज़िअल्लाहू तआला अन्ह‌‌‌ के पास आए और कहा ऐ अबूबक्र हम आपको एक हदीस सुनाना चाहते हैं आप सुनेंगे हज़रत इब्ने सीरीन ने फरमाया "नहीं" उन्होंने कहा तो क़ुरआने करीम की आयत ही सुन लें फरमाया हरगिज़ नहीं फिर पुर जलाल आवाज़ में फरमाया तुम लोग यहां से चले जाओ वरना मैं जाता हूं ये जवाब सुनकर वो चले गए हाज़िरीन में से एक साहब ने अर्ज़ किया हुज़ूर आयते कुरान सुनने से आपने क्यों इन्कार कर दिया, इरशाद फरमाया के मुझे ख़देशा हुआ के कहीं आयत में कुछ तब्दीली और तहरीफ़ करके पढ़ दें और मेरे दिल में जम जाए!

📗 बदमज़हबों से मेलजोल, सफ़ह-75)

➻ जब इतने बड़े आलिमे रब्बानी वली ए कामिल, बदमज़हबों का क़ुरआन व हदीस सुनना पसंद ना फ़रमाते बल्के उन्हें भगा देते तो हम जैसे कम इल्म वालों को वहाबी देवबंदी अहले हदीस शिआ वग़ैरह फ़िर्क़ाहाए बातिला की कोई तक़ारीर या बात सुनना या उसके जलसे जुलूस इज्तिमा वग़ैरह में जाना कैसे सही हो सकता है, हर ग़िज़ सही नहीं हो सकता इसलिए उनकी कोई भी तक़रीर वअज़ वग़ैरह सुनने के लिए वहाबी देवबंदी अहले हदीस शिआ वग़ैरह फ़िरक़ाहाऐ बातिला के जलसे जुलूस इज्तिमा वग़ैरह में हर गिज़ शरीक ना हों और अगर वो आपके पास आएं तो उनकी कोई भी बात ना सुनें वरना ईमान जाने का अंदेशा है!

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 ❐ सवाल ❐  ➻   माँ बाप अगर  बद मज़हब हो गये हों तो औलाद किया करे!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर खुद कमां खा सकता है तो फौरन अलग हो जाए कियोंकि मुरतद से किसी क़िस्म का कोई तअल्लुक़ रखना खुदा अज़्ज़ा व जल्ल व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से दुश्मनी है, और औलाद पर उनका कोई नफ्क़ा वाजिब ना रहा के मुरतद का कोई नफ्क़ा नहीं है उसका हुक्म काफिर हरबी वालदैन से भी बदतर है के काफिर के लिए नफ्क़ा का हुक्म है।

📗 फतावा मुस्तफविया सफह 115

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 ❐ सवाल ❐  ➻   अगर कोई बद मज़हब बद अक़ीदा 5 टाइम का नमाज़ी हो रोज़ेदार हो हज भी किया हो ज़कात देता हो हद्दे शरअ दाढ़ी रखा हो और एक जाहिल सुन्नी जो के दाढ़ी मुन्डा बे नमाज़ी बे रोज़ेदार हो तो दोनों में कौन बेहतर है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  सुन्नी बेहतर है, कियोंके फिस्क़ अक़ीदा फिस्क़ अमल से हज़ार गुना ज़्यादा बदतर है के सुन्नी कितना भी बड़ा बदकार हो मगर खुदा अज़्ज़ा व जल्ल व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में हरगिज़ हरगिज़ गुस्ताखी नहीं करता, मगर बद मज़हबों, के यहाँ खुदा व रसूल की गुस्ताखी करना ही दीन है, ये काफिरो मुरतद हैं अगरचे कितनी भी नमाजें पढ़ लें आखिर कार जहन्नमी है और वहीं हमेशा रहेगा और सुन्नी कितना भी जुर्म की सज़ा पाने के लिए जहन्नम में जाऐ मगर बिल आखिर अपने ईमान व इश्क़े रसूल की बदौलत जन्नत में पहुंचेगा और हमेशा वहीं रहेगा।

📚 अलमलफूज़ हिस्सा,1 सफह 45,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   बद मज़हबों से सलाम कलाम मेल जोल उनके घर आना जाना दावत लेना देना कैसा है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  बद अक़ीदा, बद मज़हबों से सलाम कलाम मेल जोल उनके घर आना जाना उनसे दोस्ती करना उनको दावत देना उनके यहाँ दावत में जाना गरज़ के उनसे किसी तरह का क़ल्बी (दिली) रिश्ता रखना ह़राम ह़राम ह़राम, और वो भी तब जबके उन्हें काफिर जानता हो वरना अगर उनहें मुसलमान जाना जब तो खुद ही काफिर हुआ।

📚 मिशक़ात बाबुल ईमान सफह,22

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 ❐ सवाल ❐  ➻   बच्चों को बद मज़हबों के पास उर्दू हिन्दी इंग्लिश वगैरह पढ़ने के लिए भेज सकते हैं या नहीं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  बद मज़हबों की ताज़ीम करना ह़राम है तो जो बच्चा उनसे पढेगा ज़ाहिर है कि उनकी ताज़ीम करेगा लिहाज़ा आला हज़रत नें इसे ह़राम फरमाया है।

📚 अहकामे शरीअत हिस्सा,3 सफह 237

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 ❐ सवाल ❐  ➻   बाज़ मदारिस में लेट फीस के नाम से जो रक़म ली जाती है उसका क्या हुक्म है जो बच्चे खत्म छुट्टी के बाद देर से आते हैं उनसे लेट फीस के नाम पर ली जाने वाली रक़म एक क़िस्म का माली जुर्माना है इसका लेना दुरुस्त है या नहीं क़ुरआन व ह़दीस की रौशनी में जवाब इनायत करें,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻   किसी जुर्म की सज़ा में मुजरिम से माल वसूल करना नाजाइज़ व गुनाह है फिक्ह की बे शुमार किताबों में सराह़त है के माली जुर्माना नाजाइज़ है- रद्दुल मुख्तार में है-
,,فی شرح الآثار التعزیر بالمال کان فی ابتداءالاسلام ثم نسخ اہ والحاصل ان المذہب عدم التعزیر باخذ المال,,

📚 रद्दुल मुख्तार जिल्द 6 सफह 77,

 ❐  ➻ फतावा रज़वियह शरीफ में है के जुर्माना के साथ ताज़ीर के मुजरिम से कुछ माल खता के एवज़ ले लिया जाए मंसूख है और मंसूख पर अमल जाइज़ नहीं!

📚 फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 5 सफह 535,

 ❐  ➻ लिहाज़ा किसी मुजरिम से माली जुर्माना लेना जाइज़ नहीं है हां उसकी इस्लाह़ के लिए अगर कुछ रक़म ले ली जाए और फिर बाद इस्लाह़ उसे लौटा दी जाए तो उसकी इजाज़त है- बाज़ मदारिस में लेट फीस के नाम से जो रक़म वसूल की जाती है ये भी एक क़िस्म का माली जुर्माना है लिहाज़ा ये भी नाजाइज़ व गुनाह है और लेने वाले मुजरिम व गुनहगार हैं इस सिलसिले में शरई कौन्सल आफ इंडिया बरेली शरीफ का फैसला ये है के जो तलबा खत्म छुट्टी के बाद देर से आते हैं उन से लेट फीस के नाम पर ली जाने वाली रक़म एक क़िस्म का माली जुर्माना है इसका लेना जाइज़ नहीं- अलबत्ता चंद रोज़ उनका खाना बंद कर दें फिर अगर वो मदरसे में खाना चाहें तो खाने के एवज़ लिया जा सकता है और अगर तालिबे इल्म पहले से ही खुराकी दे कर खाता था तो उसके खुराकी में इज़ाफा भी कर सकते हैं, और खुराकी भी लेने में इस बात का ख्याल रखें के खुराकी वही लिया जाए जो वाकई में खुराकी होता है उस से ज़्यादा न हो!

📗 फ़ैसला नवां फिक्ही सैमीनार शरई कौन्सल आफ इंडिया बरेली शरीफ सफह 2,
📚 फतावा अलीमिया जिल्द 2 सफह 238/237

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 ❐ सवाल ❐  ➻   ह़ामिला (ह़मल वाली ) औरत से  शादी करना कैसा है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  ह़ामिला औरत अगर तलाक़ शुदा है तो उसकी शादी नहीं हो सकती जब तक बच्चा न पैदा हो जाए कियोंके उसकी इद्दत बच्चा पैदा होने के बाद पूरी होगी, और अगर ह़ामिला ज़ानिया है तो उसकी शादी हो सकती है!

 ❐  ➻ किताब फहमियां और उनकी इस्लाह में है के ज़िना इस्लाम में बहुत बड़ा गुनाह है इसका गुनाह बहुत सख्त है लेकिन अगर किसी औरत से ज़िना कारी सरज़द हुई और वो दूसरे से निकाह़ करे तो वो निकाह सही हो जायेगा ख्वाह वो ज़िना से ह़ामिला हो गई हो जबकि वो औरत शौहर वाली न हो और अगर निकाह उसी शख्स से हो जिस का वो ह़मल है तो बाद निकाह दोनों साथ साथ रह सकते हैं सोहबत व हम्बिस्तरी भी कर सकते हैं और अगर किसी दूसरे से निकाह हो तो जब तक बच्चा पैदा न हो जाए दोनों अलग रहें उनके लिए हम्बिस्तरी जाइज़ नहीं!

📗गलत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 79,

 ❐  ➻  इमामे अहले सुन्नत सय्यदी सरकारे आला हज़रत इरशाद फरमाते हैं के जो औरत माज़ अल्लाह ज़िना से ह़ामिला हुई हो उस से निकाह़ सही है चाहे उस ज़ानी से हो या गैर से फर्क़ इतना है के अगर ज़ानी से निकाह़ हो तो बाद निकाह़ उस से क़ुरबत भी कर सकता है और अगर गैर ज़ानी से हो तो जब तक बच्चा पैदा न हो जाए क़ुरबत न करे!

📚 फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 5 सफह 199,
📗 फतावा अफ्रीका सफह 15,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   गाने के तर्ज़ पर नात शरीफ पढ़ना कैसा है और ऐसी नात जिस में म्यूज़िक music की आवाज हो जैसा के बाज़ पाकिस्तानी शोरा पढ़ते हैं ऐसी नात का सुनना कैसा है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  नाते पाक को गानों के तर्ज़ पर पढ़ना और सुनना दोनों नाजाइज़ है- कियोंके जब वो गाने की तर्ज़ पर नाते पाक पढ़ेगा जो ज़िक्रे रसूल है तो ला मुह़ाला उसका ज़ैहन गाने की तरफ जायेगा तो यक़ीनन ये गलत काम है बल्के ये नाते पाक की तौहीन है और फासिक़ों का तरीक़ा है- आला हज़रत तहरीर फरमाते हैं के नात सादा खुश अलह़ानी के साथ हो गानों की तर्ज़ पर न पढ़ी जाए!

📚 फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 23 सफह 343

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 ❐ सवाल ❐  ➻   एक सवाल है दीनी पोस्ट Message जिस में क़ुरआन की आयत या ह़दीस हो उसको डिलीट करना कैसा एक मैसेज वाट्सएप पर इस तरह बहुत आता है के मुझे कुरान की आयत हदीस न भेजना ये डिलीट हो जाती हैं और ये क़यामत की निशानी है वगैरह वगैरह,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻   हुजूर ताजुश्शरिअह इरशाद फरमाते हैं के मोबाईल में लोड किए हुए क़ुरआनी आयात से फैज़ हासिल करने के बाद उसे डिलीट कर सकते हैं इस में कोई हरज नहीं- मोबाईल में क़ुरआने करीम की आयत मिली तो उनको पढ़ने के बाद या उन से नसीहत हासिल करने के बाद अगर उनको मिटाने डिलीट Delete करने की ज़रूरत हो तो उसको मिटाने में शरअन कोई हरज नहीं- इसलिए के फुक़्हा ए किराम ने ज़रूरत की सूरत में कागज़ वगैरह से क़ुरआनी आयात और ह़दीस को मिटाने की इजाज़त दी है लिहाज़ा मोबाईल से क़ुरआन शरीफ की आयत मिटाने की गुंजाइश है,फतावा आलमगीरी में है,

ولو محا لوحا کتب فیہ القران واستعملہ فی أمر الدنيا یجوز,

📚 फतावा आलमगीरी जिल्द 5 सफह 322,
📗मोबाईल फोन के ज़रुरी मसाइल सफह 154,

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 ❐ सवाल ❐  ➻  अक्सर जगहों पर रिवाज है के अगर किसी के यहाँ इंतिक़ाल हो जाए तो मय्यत को दफ़नाते के बाद उसके घर रात में मेहमानों को नहीं रुकना चाहिए क्या ये बात सही है,!? 

 ❐ जवाब ❐  ➻  जिस के यहाँ किसी का इंतिक़ाल हो जाए तो तमाम दोस्त अहबाब और रिश्तेदार को इंतिक़ाल की खबर मिलने पर आना चाहिए और नमाज़े जनाज़ा वगैरह में शामिल और घर वालों को सब्र की तलक़ीन और मरह़ूम के लिए दुआये मगफिरत करना चाहिए- और मिट्टी के बाद इसलिए नहीं रुकना चाहिए के घर वालों को महमानों को  रहने के लिए और खाना पीना इंतिज़ाम के लिए परेशान न होना पड़े- घर में मय्यत हो जाने से घर वाले वैसे ही गम व सदमां से चूर होते हैं तो महमानों की ज़ियाफत और उनके आराम करने का इन्तिज़ाम की तकलीफ़ कहाँ से बरदाश्त कर पायेंगे!

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      *• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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 ❐ सवाल ❐  ➻  अगर नमाज़ की ह़ालत में जमाही आजाये तो हाथ लगा सकते हैं या नहीं और नमाज़ की ह़ालत में छींक आजाये तो الحمدللہ कह सकते हैं के नहीं!? 

 ❐ जवाब ❐  ➻  नमाज़ में जानबूझकर जमाही लेना मकरुहे तह़रीमी है और अगर खुद ब खुद जमाही आये तो कोई हरज नहीं मगर जहाँ तक हो सके जमाही रोके जमाही रोकना मुस्तहब है- जमाही रोकने के लिए मुंह बंद कर लेना चाहिए अगर मुंह बंद करने से भी जमाही न रुके तो होंट को दांत के नीचे दबाना चाहिए और अगर इस तरीक़े से भी न रुके तो अगर क़याम की ह़ालत में है तो दाहिने हाथ की पुश्त (उल्टे हाथ) से मुंह ढांक ले और क़याम की ह़ालत के अलावा में बाऐं हाथ की पुश्त से मुंह ढांक ले- मोमिन की नमाज़ में है के छींक आये तो सुकूत करें- यानि ह़ालते नमाज़ में  الحمدللہ न कहे बल्के नमाज़ से फारिग होने के बाद कहे!

📚बहारे शरीअत जिल्द 3 सफह 167,
📗मोमिन की नमाज़ सफह 161

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 ❐ सवाल ❐  ➻   अगर कोई अपनी सम्धिन यानि अपने बेटे की सास के साथ शादी करना चाहता है तो क्या ये शादी हो सकती है के नहीं? 

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर इनके शौहर मर चुके हों या शौहरों ने तलाक़ दे दी हो तो अपने लड़के की बीवी की मां समधिन के साथ निकाह़ करना शरअन जाइज़ है इमाम अहले सुन्नत सैय्यदी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी तहरीर फरमाते हैं के समधिन यानि अपने बेटे की सास या बेटी की सास के साथ निकाह़ कर सकता है, इसी तरह गलत फहमियां और उनकी इस्लाह में भी है के कुछ लोग सम्धिन,चची और मुमानी से निकाह़ को बुरा जानते हैं हालांकि सम्धिन से निकाह़ बिला शक जायज़ है यूंही चची और मुमानी से भी निकाह़ में कोई हरज नहीं जबकि शौहरों ने उन्हें तलाक़ दे दी हो या वो मर चुके हों तो इद्दत के बाद सम्धिन,चची और मुमानी से निकाह़ जाइज़ है जो लोग इन निकाहों को बुरा जानते हैं वो जाहिल हैं!

📚अलमलफूज़ हिस्सा 3 सफह 337,
📗गलत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 78,
📚फतावा अफ्रीका सफह 100

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 ❐ सवाल ❐  ➻   मुसाफिर पर जुमां फर्ज़ है के नहीं है,!?

 ❐ सवाल ❐  ➻  मुसाफिर पर जुमां फर्ज़ नहीं है!

📚बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफह 99,
📚ब-ह़वाला फतावा फक़ीहे मिल्लत जिल्द 1 सफह 225,

 ❐ सवाल ❐  ➻  हज़रत एक सवाल है के अगर कोई मुसाफिर है तो वो जुमें की नमाज़ पढ़ा सकता है के नहीं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  बिलकुल जुमें की नमाज़ पढ़ा सकता है हुज़ूर सदरुश्शरिय्या तह़रीर फरमाते हैं के जुमां की इमामत हर मर्द कर सकता है जो और नमाज़ों में इमाम हो सकता हो अगरचे उस पर फर्ज़ न हो जैसे मुसाफिर- मरीज़ - गुलाम!

📚बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफह 100,
📚दुर्रे मुख्तार मअ शामी जिल्द 2 सफह 155,
📚ब-ह़वाला फतावा फक़ीहे मिल्लत जिल्द 1 सफह 225

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 ❐ सवाल ❐  ➻   एक सवाल है के मैं काफी दिन से मस्जिद में साफ सफाई करता हूँ और मैं ही अज़ान पढ़ता हूँ मेरी दाढ़ी बहुत छोटी है कैंची से काटता हूँ उस्तरा नहीं लगवाया कुछ लोग एतराज़ करते हैं के तुम्हारे दाढ़ी नहीं है तुम अज़ान नहीं पढ़ सकते क्या ये बात सही है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  हद्दे शरअ यानि एक मुश्त से कम दाढ़ी रखना चाहे मुंडाता हो या कतरवाता हो नाजाइज़ व ह़राम है ऐसा करने वाला फासिक़ है और फासिक़ की अज़ान मकरूह है अगर फासिक़ अज़ान देदे तो बेहतर है के कोई ब शरअ आदमी अज़ान दोबारा पढ़ें!

📚दुर्रे मुख्तार मअ शामी जिल्द 1 सफह 289,
📚बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफह 31,
📚منحق الحقائق علی البحر الرائق जिल्द 1 सफह 264,

 ❐  ➻  लिहाज़ा आप जो दाढ़ी कटाते हैं इस से तौबा करें और अहद करें के अब ऐसा गुनाह नहीं करुंगा!

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 ❐ सवाल ❐  ➻   एक सवाल है के जब चांद ग्रहण लगता है तो क्या उस से ह़ामिला औरत पर कुछ असर पड़ता है कियोंके जब भी रात में चांद ग्रहण होता है तो जो औरत ह़मल से होती है उसको कहा जाता है के सोना नहीं और वो जागती रहती है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  पहले ये जान लेना ज़रुरी है के सूरज और चांद ग्रहण होने पर किसी भी बिमारी या नुक्सान और खतरात या ह़मल वाली औरत पर असर नहीं पड़ता- शरई एतबार से ऐसा अक़ीदा रखना के ह़मल वाली औरत पर असर पड़ता है ये दुरुस्त नहीं, सही मसअला ये है के ह़मल वाली औरत पर चांद सूरज ग्रहण से कुछ असर नहीं पड़ता है-अलबत्ता उस वक़्त तोबा इस्तिगफार और ज़िक्र व अज़कार का हुक्म है!

📚ब-ह़वाला अनवारुल फतावा जिल्द 1 सफह 185,

*والله تعالیٰ اعلم بالصواب*

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 ❐ सवाल ❐  ➻  एक सवाल है के क्या झींगा मछली खाना चाहिए के नहीं!?

❐ जवाब ❐  ➻  हमारे मज़हब में मछली के सिवा तमाम दरयाई जानवर मुतलक़न ह़राम हैं- तो जिनके नज़दीक झींगा मछली है उनके नज़दीक खाना जाइज़ है और जिनके नज़दीक मछली नहीं उसको खाना भी जाइज़ नहीं झींगा मछली  के तअल्लुक़ से इख्तिलाफ है के वो मछली है या नहीं- इसलिए इस से बचना ही बेहतर है यानि झींगा मछली न खाना ही बेहतर है!

📚 फतावा रज़वियह शरीफ जिल्द 9 निस्फ आखिर सफह 128,
📚 फतावा फ़क़ीहे मिल्लत जिल्द 2 सफह 307,
📚 अहकामे शरीयत हिस्सा 1 सफह 30,
📚 बहारे शरिअत,

❐ सवाल ❐  ➻  मकरुह वक़्त में यानि सूरज निकलते वक़्त डूबते वक़्त और ज़वाल के वक़्त क़ुरआन शरीफ की तिलावत करना कैसा है जवाब इनायत करें,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  मकरुह वक़्त में क़ुरआन शरीफ की तिलावत बेहतर नहीं, बेहतर ये है के ज़िक्र व दुरूद शरीफमें मशगूल रहें!

📚 बहारे शरिअत हिस्सा, 3, सफ़ह 21)
📚 दुर्रे मुख्तार शरह़ तनवीरुल अबसार जिल्द 2 सफह 35

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 ❐ सवाल ❐  ➻  अगर घर में पानी की टंकी में चूहा गिर जाये और मर कर फट फूल जाये तो पानी का क्या हुक्म है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर चूहा, बिल्ली, मुर्गी वगैरह टंकी में गिर कर मर जाए और वो फूल फट जाए तो टंकी का कुल (सारा) पानी नजिस व नापाक हो गया उस से वुज़ू व गुस्ल जाइज़ नहीं अब उसके लिए ज़रूरी है के टंकी का कुल पानी निकाला जाए फिर और पानी डाला जाए तो पाक होगा अगर टंकी का कुल पानी न निकाला तो अब अगरचे रोज़ कितनी ही मरतबा कितना ही पानी डालें पानी पाक न होगा और उस पानी से वुज़ू और गुस्ल वगैरह भी न होगा और उस पानी से ग़ुसल व वुज़ू करके जो नमाज़ें पढ़ीं हैं वो भी अदा न हुईं लिहाज़ा दुबारा पढ़नी होंगी!

📗 औरतों के मसाइल सफह-25,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   अगर पानी में मच्छर व मख्खी गिर कर मर गए तो उस पानी से वुज़ू व गुस्ल का क्या हुक्म है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर पानी में मच्छर मख्खी वगैरहऔर इसी तरह वो जानवर जिन में बहता हुआ खून नहीं होता वो पानी में गिर कर मर जाए तो पानी नजिस नहीं होता और उस पानी से वुज़ू व गुस्ल दुरुस्त है और उस पानी को पी भी सकते हैं मख्खी गिरी है तो उसका तरीक़ा ये है के पूरी को डिबो कर बाहर फेंक दें और अब पानी को पी सकते हैं!

📗 औरतों के मसाइल सफह, 25

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 ❐ सवाल ❐  ➻   एक सवाल है के अगर किसी के दांत टेढ़े मेढ़े हों या आगे को निकले हो तो क्या वो तार लगवा कर सीधे करवा सकता है के नहीं, रहनुमाई फरमायें!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  टेढ़े दांतों को तार से बंधवा कर सीधा भी करा सकते हैैं और अपने गिरे हुए उसी दांत को तार से बंधवा भी सकते हैं- बहारे शरीयत में आलमगीरी के हवाले से है के हिलते हुए दांतों को सोने के तार से बंधवाना जाइज़ है दांत गिर गया उसी दांत को सोने या चांदी के तार से बंधवा सकते हैं हां दूसरे शख्स का दांत अपने मुंह में नहीं लगवा सकते है!

📙 बहारे शरीयत जिल्द 4 हिस्सा 16 सफह 64---65

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 ❐ सवाल ❐  ➻   ह़ज़रत काला कपड़ा पहनना कैसा है जाइज़ है के नाजाइज़!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  *काला कपड़ा पहनना जाइज़ है मगर अय्यामे मुह़र्रम में पहनना मना है* आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत इमाम अह़मद रज़ा खान मुह़द्दिसे  बरेलवी अलेहिर्रहमतू वर्रिज़ान फरमाते हैं के मुह़र्रम में खुसूसन 1 तारीख से 10 मुह़र्रम तक तीन रंग के कपड़े न पहने जाऐं- सब्ज़ रंग का लिबास न पहना जाऐ के ये ताज़िया दारों का तरीक़ा है- लाल रंग का लिबास न पहना जाए के ये अहले बैत से अदावत रखने वालों का तरीक़ा है और काले कपड़े न पहने जाऐं के ये शिआ राफज़ियों का तरीक़ा है लिहाज़ा मुसलमानों को इस से बचना चाहिए!

📚अह़कामे शरीयत

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 ❐ सवाल ❐  ➻   काला जूता पहनना कैसा है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  काला जूता पहनना न पसंदीदा है जलीलुल क़द्र सहाबी अब्दुल्ला बिन ज़ुबैर रज़िअल्लाहु तआला अन्हु और इमाम जलील मुहम्मद बिन कसीर रज़िअल्लाहु तआला अन्हु काला जूता पहनने से मना फरमाते थे इसलिए कि इस से फिक्र पैदा होती है!

📚निज़ामे शरीयत सफह 35,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   अगर घर के पानी टंकी में चूहा गिर कर मर गया जब देखा तो फूल फट गया था और ये भी नहीं मालूम है के कब गिरा कब मरा तो अब क्या करें,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर चूहा या और कोई जानवर इस ह़ालत में है के वो फूला और फटा हुआ था और ये मालूम नहीं के वो कब गिरा था तो अब उस पानी को तीन दिन और तीन रात से नाजिस मानेंगे और अब उन तीन दिन और तीन रातों में जो वुजू व गुस्ल किया था वो न हुआ और जो नमाज़ें अदा की थीं वो लौटानी होंगी, यानी दोबारा पढ़नी होंगी!

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 ❐ सवाल ❐  ➻   वुज़ू में कितनी चीज़ें फर्ज़ हैं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  वुज़ू में 4 चीज़ें फर्ज़ हैं :

नं.1,  ➻  मुंह धोना बाल निकलने की जगह से थोड़ी के नीचे तक और एक कान की लव से दूसरे कान की लव तक

नं.2, ➻  कोहनियों समेत दोनों हाथों को धोना,

नं.3, ➻  तीसरे चौथाई सर का मसह़ करना यानि भीगा हुआ हाथ फेरना,

नं.4, ➻  दोनों पांव टखनों समेत धोना!

📚अनवारे शरीयत सफह 22

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 ❐ सवाल ❐  ➻   जो नमाज़ से पहले वुज़ू करते हैं उसका हुक्म क़ुरआन की किस आयत से है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  हम जो नमाज़ के लिए वुज़ू करते हैं उसका हुक्म सूरह माइदा पारा 6 आयत नं 6 से है अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरआन पाक में इरशाद फरमाता है के,👇

कंज़ुल ईमान- अए ईमान वालों जब नमाज़ को खड़े होना चाहो तो अपना मुंह धोवो और कोहनियों तक हाथ और सर का मसह़ करो और गट्टों तक पांव धोवो!

📚पारा 6 सूरह माइदा आयत 6,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   मैंने अक्सर देखा है के शादी वगैरह में दुल्हन तय्यार होने के बाद तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ती हैं  इसके बारे में कुछ बतायें,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  जिसका बुजु ना हो या उसे नहाने की जरूरत हो और पानी पर कुदरत ना हो यानी इस्तेमाल ना कर सकता हो तो वुज़ू व ग़ुसल की जगह तयम्मुम करे और पानी पर कुदरत ना होने की चंद सूरतें हैं नंबर 1 ऐसी बीमारी के वुज़ू व ग़ुसल से उसके ज्यादा होने या देर में अच्छा होने का सही अंदेशा हो, ख्वाह यूं के उसने खुद आजमाया हो के जब वुज़ू या ग़ुसल करता है तो बीमारी बढ़ती है या यूं के किसी अच्छे लायक़ हकीम ने जो जाहिरन फ़ासिक़ ना हो कह दिया हो के पानी नुकसान पहुंचाएगा लिहाजा महज़ ख्याल ही ख्याल बीमारी बढ़ने का हो या किसी काफिर या फासिक़ या मामूली हकीम ने कह दिया हो के पानी नुकसान पहुंचाएगा तो उसका ऐतबार नहीं लिहाजा तयम्मुम करना जाइज ना होगा, इस तरह नमाज़ नहीं होगी बल्के पानी से वुज़ू करना होगा, तयम्मुम के मसाइल ज़्यादा जानने के लिए!

📚 बहारे शरिअत, देखें
📗 सुन्नी बहिश्ती ज़ेवर सफ़ह 43

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 ❐ सवाल ❐  ➻   क्या शीसा आइना देखने से वुज़ू टूट जाता है कयोकि बहुत लोग कहते हैं के आइना देखने से वुज़ू टूट जाता है ये बात कहाँ तक दुरुस्त है रहनुमाई फरमायें!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  आइना देखने से वुज़ू नहीं टूटता है!


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 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या शरमगाह को हाथ लगाने से वुज़ू टूट जाता है!?

 ❐ जवाब ❐  ➻ शरमगाह को हाथ लगाने से वुज़ू नहीं टूटता!

📗 सुन्नी बहिश्ती ज़ेवर, सफ़ह 27)

 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या क़ुरआन शरीफ छूने के लिए वुज़ू करना ज़रुरी है!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  जी हाँ- क़ुरआन शरीफ को छूने के लिए वुज़ू करना फर्ज़ है अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरआने पाक में इरशाद फरमाता है के👇,

कंज़ुल ईमान- इसे न छुयें मगर बा-वुज़ू!

📚पारा 27 सूरह वाक़िया आयत नं 79,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   बे वुज़ू को अगर क़ुरआने पाक उठा कर रखना हो तो वो क्या करे,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  ऐसा कपड़ा जो उसके ताबे न हो यानि दूसरे कपड़े से पकड़ कर रख सकते हैं,!

📚 बहारे शरिअत,

  ❐ सवाल ❐  ➻  अगर किसी ने वुज़ू करने के बाद झूठ बोला, किसी की गीबत की या किसी को गाली दी तो क्या उससे वुज़ू टूट जाता है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  पहली बात तो गाली देना, झूठ बोलना, गीबत करना, हराम यानी बहुत बड़ा गुनाह है गाली देने वाला फौरन तौबा करे - रहा सवाल वुज़ू टूटेगा के नहीं तो उसका वुज़ू बाकी रहता है और अगर उस वुज़ू से नमाज़ पढ़ ले तो नमाज़ हो जायेगी लेकिन उस नमाज़ की मुकम्मल रुहानियत और कामिल अज्रो सवाब और बरकत न होगी लिहाज़ा अफ्ज़ल और मुस्तहब ये है के दुबारा ताज़ा वुजू कर के नमाज़ पढ़े और अगर चाहते हैं के उन गुनाहों का असर और नहूस्त पूरी तरह खत्म हो जाए तो सिद्क़ दिल से अल्लाह तआला के हुज़ूर तौबा करे!

📗 मख़्ज़ने मालूमात, सफ़ह  109,  

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 ❐ सवाल ❐  ➻   एक सवाल है के बैतुल ख़ला से आने के बाद अगर साबुन से हाथ नहीं धोया और वैसे ही वुज़ू कर लिया तो हमारा वुज़ू माना जायेगा या साबुन से हाथ धोना ज़रुरी है इसकी वज़ाहत फरमां दें,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻   साबुन से हाथ धोना ज़रुरी नहीं अगर साबुन से बग़ैर हाथ धुले ही वुज़ू कर लिया तो वुज़ू हो जायेगा उस वुज़ू से नमाज़ भी पढ़ सकते हैं लेकिन बैतूल ख़ला से फ़ारिग़ होने के बाद साबुन से हाथ धो लेना चाहिए ताके नजासत की बू हाथ से खत्म हो जाए और उसका असर बाक़ी न रहे!

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 ❐ सवाल ❐  ➻   मैं बा वुज़ू थी और फिर अपनी बहन से बात करने लगी जिस में हम तेज़ हंस दिए और फिर उसी वुज़ू से नमाज़ भी पढ़ ली मेरी बहन कहने लगी की तेज़ हंसने से वुज़ू टूट जाता है तो क्या ये बात सही है,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻ वुज़ू नहीं टूटा कियोंके नमाज़ के बाहर क़हक़हे लगाने से वुज़ू नहीं टूटता लिहाज़ा आपकी नमाज़ हो गई!  

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        *• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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 ❐ सवाल ❐  ➻   मैंने असर की नमाज़ पढ़ी और फिर मगरिब की नमाज़ पढ़ते वक़्त शक हुआ के मेरा वुज़ू बाकी है या नहीं तो अब मैं नमाज़े मगरिब के लिए वुज़ू करुं या उसी वुज़ू से नमाज़ पढ़ूं तो क्या नमाज़ हो जायेगी और मुझे अक्सर वुज़ू के बाद शक होता रहता है के मेरा वुज़ू है या नहीं इसके बारे में कुछ बतायें मैं क्या करुं,!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  सिर्फ शक से वुज़ू नहीं टूटता- यक़ीनन आप उस वक़्त तक बा वुज़ू हैं जब तक वुज़ू टूटने का ऐसा यक़ीन न हो जाए के क़सम खा सकें- बहारे शरीयत में है के अगर दौराने वुज़ू किसी अज़ू के धोने में शक वाके हो और ये ज़िंदगी का पहला वाकिया है तो इसको धो लें और अगर अक्सर शक पड़ा करता है तो उसकी तरफ तवज्जो न दें इसी तरह वुज़ू के बाद भी शक पड़े तो इस का कुछ ख्याल न लें इसी तरह आप बा वुज़ू थे अब शक आने लगा के पता नहीं वुज़ू है या नहीं ऐसी सूरत में आप बा वुज़ू हैं कियोंके सिर्फ शक से वुज़ू नहीं टूटता!

📚 बहारे शरीयत जिल्द 1 सफह 310,
📚 दुर्रे मुख्तार जिल्द 1 सफह 310

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 ❐ सवाल ❐  ➻   अगर किसी ने कअबा शरीफ की तरफ मुंह नहीं क्या दूसरी तरफ मुंह कर के अज़ान दे दी तो क्या हुक्म है,!?

❐ जवाब ❐  ➻   अगर किसी ने क़िब्ला से दूसरी तरफ रुख कर के अज़ान दे दी तो बेहतर है के दुबारा दे दी जाए- हां अगर मुसाफिर ने सवारी पर अज़ान कही और उसका मुंह किब्ले की तरफ न हो तो कोई हरज नहीं!

📚 फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 54-
 کتاب الصلوۃ،الباب الثانی فی الاذان،الفصل الاول,
📚 रद्दुल मुह़तार जिल्द 2 सफह 69-- 
کتاب الصلوۃ،باب الاذان،مطلب فی اول من بنی من المنائر للاذان,
📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 478-- अज़ान का बयान

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 ❐ सवाल ❐  ➻   हज़रत एक मस्अला बता दें के हमारे पैर में ज़ख्म है तो ज़ख्म पर पट्टी बंधी थी तो खून की तरावट पट्टी पर ज़ाहिर हो गई तो क्या इस से वुज़ू बाकी रहेगा या दुबारा कर लूं!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  वुज़ू के बाद ज़ाहिर होने वाले खून से वुज़ू टूट जायेगा कियोंके तरावट बहने के हैं अगर ये पट्टी न होती तो खून बह जाता!

📚 दुर्रे मुख्तार सफह 94,
📚बा ह़वाला औरतों के मसाइल सफह 33,

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        *• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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 ❐ सवाल ❐  ➻  नमाज़ से पहले हम जो वुज़ू कर के नमाज़ पढ़ते हैं तो क्या वुज़ू करने का भी सवाब मिलता है या सिर्फ नमाज़ का ही सवाब मिलता है!?

 ❐ जवाब ❐  ➻   अगर किसी ने वुज़ू किया और नमाज़ पढ़ी तो अल्लाह तआला वुज़ू का सवाब अलग अता फरमायेगा और नमाज़ का अलग हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया,👇

❐  ➻  मुसलमान बन्दा जब वुज़ू करता है तो कुल्ली करने से मुंह के गुनाह गिर जाते हैं और जब नाक में पानी डाल कर नाक साफ किया तो नाक के गुनाह निकल गए और जब मुंह धोया तो उसके चेहरे के गुनाह निकले यहाँ तक के पल्कों के निकले और जब हाथ धोए तो हाथों के गुनाह निकले यहाँ तक के हाथों के नाखूनों से निकले और जब सर का मसह़ किया तो सर के गुनाह निकले यहाँ तक के कानों से निकले और जब पांव धोए तो पांव की खतायें निकलीं यहाँ तक के नाखूनों से फिर उसका मस्जिद को जाना और नमाज़ पढ़ना उसके अलावा है!

📚 बहारे शरिअत, हिस्सा 2,
📚सुनने निसाई सफह,29---- 
کتاب الطہارۃ باب مسح الاذنین,

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 ❐ सवाल ❐  ➻   एक सवाल है के क्या रोज़े की ह़ालत में इंजक्शन लगवा सकते हैं, इंजक्शन लगवाने से रोज़े पर कुछ असर पड़ेगा के नहीं!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  इंजक्शन ख्वाह गोश्त में लगवाया जाए या रग़ में इस से रोज़ा नहीं टूटता अलबत्ता उलमा ए किराम ने रोज़े में इंजक्शन लगवाने को मकरुह फ़रमाया है, लिहाज़ा जब-तक ख़ास ज़रुरत न हो न लगवायें!

📚ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह सफह 71,
📚फ़तावा फ़ैज़ुर रसूल जिल्द 1 सफह 517,
📚फ़तावा मरकज़ी दारुल इफ़्ता सफह 359,  

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 ❐ सवाल ❐  ➻  औरत को ग़ैर महरम अजनबी मर्द का झूटा खाना पीना कैसा है!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर मालूम हो के ये फलां मर्द का झूटा है तो बतौरे तलज़्ज़ुज़़ (लज़्ज़त के तौर पर) औरत के लिए उसका खाना-पीना मकरूह व नाजाइज है इसी तरह अगर मर्द को मालूम है के ये फलां औरत का झूठा है तो उसे भी लज़्ज़त के तौर पर खाना-पीना दुरुस्त नहीं, जैसा के रद्दुल मोहतार में है और अगर मालूम न हो के झूटा किस मर्द का है या किस औरत का है या लज़्ज़त के तौर पर इस्तेमाल ना करें तो कोई हर्ज नहीं, और बहारे शरिअत में है के मर्द को अजनबिया औरत का झूटा और औरत को अजनबी मर्द का झूटा मकरूह है ज़ौजा (बीवी) व मुहारिम के झूठे में हर्ज नहीं!

📚 बहारे शरिअत हिस्सा 16, सफ़ह 255,

 ❐  ➻   *तम्बीह :-*  कराहत उस सूरत में है के जब्के तलज़्ज़ुज़़ (लज़्ज़त) के तौर पर हो और अगर तलज़्ज़ुज़़ मकसूद ना हो बल्के तबर्रुक के तौर पर हो जैसा के आलिमे बाअमल और बा शरह पीर का झूटा के उसे तबर्रुक समझ कर लोग खाते पीते हैं इसमें हर्ज नहीं!

📗 औरतों के जदीद और अहम मसाइल, सफ़ह 159--160

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 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या मर्द हज़रात घर में रमज़ान के आखिरी अशरे का एतेक़ाफ़ कर सकता है जवाब इनायत करें महरबानी होगी!? 

 ❐ जवाब ❐  ➻  मर्द के लिए एतेक़ाफ़ घर में करना जायज़ नहीं कियोंकि एतेक़ाफ़ के लिए मस्जिद शर्त है अल्लाह तआला के लिए मस्जिद में नियत के साथ ठहरने को एतेक़ाफ़ कहते हैं, एतेक़ाफ़ की दो शर्तें हैं ;

1-   ➻  पहली शर्त मस्जिद होना!

2-   ➻  दूसरी शर्त एतेक़ाफ़ करने वाले का मुसलमान, आक़िल और जनाबत से पाक होना और औरत है तो उस का हैज़ वो निफास से पाक होना भी शर्त है अलबत्ता बालिग़ होना शर्त नहीं बल्कि नाबालिग बच्चा जो तमीज़ और समझ रखता हो तो एतेक़ाफ़ कर सकता है, एतेक़ाफ़ हर मस्जिद में जायज़ है अलबत्ता मस्जिद जमाअत यानि एसी मस्जिद जिस में इमाम मुअज़्ज़िन मुक़र्रर हों अगर चेह पांचों वक़्त की जमाअत न होती हो उस में एतेक़ाफ़ ज़्यादा मुनासिब है!

*📙 दुर्रे मुख़्तार व रद्दुल मुह़तार जिल्द 3 सफह 429 / रोज़े के ज़रुरी मसाइल सफह 101 / बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 1020*

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 ❐ सवाल ❐  ➻  सवाल रात में आंखें नहीं खुली जिस की वजह से सेहरी नहीं खा पाये तो क्या बगैर सेहरी के रोज़ा रख सकते हैं?

 ❐ जवाब ❐  ➻   सेहरी खाना सुन्नत है और रोज़ा रखना फर्ज़ है अब आप ही बतायें अगर सुन्नत छूट जाये तो क्या फर्ज़ भी छोड़ देंगे?- अगर सेहरी में आंख न खुले तो भी बगैर सेहरी के रोज़ा रखना जायज़ है!

*📕📚फतावा फैज़ुर रसूल जिल्द 1 सफह 513*

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 ❐ सवाल ❐  ➻  रोज़े की ह़ालत में इतर खुश्बू लगा सकते हैं कि नहीं?

 ❐ सवाल ❐  ➻  रोज़े की ह़ालत में इतर लगाना, तेल लगाना बाल तरशवाना, बाम लगाना, वैसलीन या क्रीम लगाना, तेल की मालिश करना, यह सब जायज़ हैं, इन सब चीजों से रोज़ा नहीं टूटता है!

*📕📚फतावा मरकज़ी दारुल इफ़्ता बरेली शरीफ़ सफह 357*

 ❐ सवाल ❐  ➻  रमज़ान की रातों में हम अपनी बीवी से सोहबत हमबिस्तरी कर सकते हैं कि नहीं, जवाब इनायत करें-?

 ❐ जवाब ❐  ➻  रमज़ानुल मुबारक की रातों में बीवी से हमबिस्तरी करना जायज़ है!

*📕📚पारा 2 सूरह बक़रा आयत नं 187*

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 ❐ सवाल ❐  ➻   साल में कौन कौन से दिन रोज़ा नहीं रख सकते-?

 ❐ जवाब ❐  ➻ ईद के दिन,और बक़रा ईद के दिन और बक़रा ईद की  11-12-13- जिलहिज्ज को रोज़ा रखना मकरुहे तह़रीमी है, यानि इन दिनों का रोज़ा रखना जायज़ नहीं!

*📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 967*
*📚फतावा हिन्दिया जिल्द जिल्द 1 सफह 193*

*📚दुर्रे मुख़्तार व, रद्दुल मुह़तार किताबुस्सोम जिल्द 3 सफह 388-392-*  

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 ❐ सवाल ❐  ➻  अगर कोई शख़्स रमज़ान का रोज़ा नहीं रखा तो क्या उस को भी सदक़ये फ़ित्र अदा करना पड़ेगा या नहीं,?

 ❐ जवाब ❐  ➻  जो शख़्श रोज़ा न रखे उस पर भी सदक़ये फ़ित्र वाजिब है कियोंकि सदक़ये फ़ित्र के वुजूब के लिए रोज़ा रखना शर्त नहीं!

*📚शामी जिल्द 2 सफह 76*

 ❐ सवाल ❐  ➻ अगर कोई शख्स़ नापाकी की ह़ालत में रोज़ा रख ले और पूरा दिन गुज़र जाए तो क्या उस का रोज़ा माना जायेगा कि नहीं?

 ❐ जवाब ❐  ➻  नापाकी की ह़ालत में भी रोज़ा दुरुस्त हो जायेगा,पर इतनी देर नापाक रहना जिस से नमाज़ क़ज़ा हो जाये येह ह़राम है वोह शख्स नमाज़ें छोड़ने के सबब सख्त गुनहगार होगा!

*📚फ़तावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 4 सफह 615* 

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 ❐ सवाल ❐  ➻   एक सवाल अर्ज़ है कि खाने पीने के लिए एतेक़ाफ़ करना कैसा है, हमारे यहाँ जो एतेक़ाफ़ बैठता है उस को खाने के लिए बहुत मिलता है कुछ लोग इसी लालच में बैठते हैं इसके बारे में बतायें कुछ?

 ❐ जवाब ❐  ➻  खाने पीने के लिए एतेक़ाफ़ न किया जाए बल्कि एतेक़ाफ़ सिर्फ ज़िक्रे इलाही के लिए किया जाए!

*📚मलफ़ूज़ाते आला ह़ज़रत हिस्सा 1 सफह 86/87*

 ❐ सवाल ❐  ➻  एक सवाल है कि मस्जिद में सोना कैसा है कुछ लोग मस्जिद में नमाज़ पढ़ कर सो जाते हैं ऐसा करना चाहिए कि नहीं?

 ❐ जवाब ❐  ➻  मस्जिद में सोना जायज़ नहीं है मगर जो एतेक़ाफ़ की नियत कर ले फिर कुछ देर के लिए ज़िक्रे इलाही में मशगूल हो जाए फिर उसके बाद सोना चाहे तो सो सकता है!

*📚फतावा आलमगीरी जिल्द 5 सफह 321-- کتاب الکراھیتہ، باب اداب المسجد، والقبلتہ-- الخ*
*📚रद्दुल मुह़तार अला दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 525--- کتاب الصلوۃ، باب ما یفسد الصلوۃ، وما یکرہ فیھا*

 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या एतेक़ाफ़ में बैठने वाला शख़्स मस्जिद में ही दीनी मसाइल ब्यान कर सकता है?

 ❐ जवाब ❐  ➻  बिलकुल मोतकिफ़ एतेक़ाफ़ के दौरान दीनी मसाइल ब्यान कर सकता है इस में कोई ह़रज नहीं!

*📚फ़तावा नूरिया जिल्द 2 सफह 283/286*
*📚एतेक़ाफ़ के मसाइल सफह 24* 

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       *• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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 ❐ सवाल ❐  ➻  शबे क़द्र या रमज़ानुल मुबारक के आखिरी जुम्अ को 4 रकात नमाज़ पढ़ने से क्या, 700 साल की क़ज़ा नमाज़ अदा हो जाती हैं?

 ❐ जवाब ❐  ➻  सबसे पहले उस MSG, की वज़ाहत कर दूं कि आजकल सोशल मीडिया पर एक meg, आ रहा है कि रमज़ानुल मुबारक के आखिरी जुम्अ को या शबे क़द्र को 4 रकाअत नमाज़ पढ़ लें और आपकी 700 साल की क़ज़ा नमाज़ अदा हो जायेगी,ये सिवाये जिहालत के कुछ नहीं है,ऐसा हरगिज़ नहीं है कि आप 4 रकाअत नमाज़ पढ़ लें और आपकी 700 साल की क़ज़ा नमाज़ अदा हो जाये,बल्कि हक़ीक़त ये है कि 4 रकाअत नमाज़ पढ़ने से आपकी 4 रकाअत नमाज़ ही होगी,वो भी तब जब कि आप किसी क़ज़ा नमाज़ को अदा करने की नियत से पढें,वरना ये भी नफ्ल होगी!

*📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 708*

❐  ➻  कुछ लोग इस गलत फहमी में मुब्तला हैं के रमज़ान के आखिरी जुमे को चंद रकअतें पढ़ने से पूरी उम्र की क़ज़ा नमाज़ें मुआफ़ हो जाती हैं। बाज़ जगहों पर तो इस का खास एहतेमाम भी किया जाता है कि मानो कोई बम्पर ऑफर आया हो।

❐  ➻  एक मर्तबा मैंने अपने मुहल्ले की मस्जिद में देखा के एक इश्तेहार लगा हुआ है जिसमें पूरी उम्र की क़ज़ा नमाज़ों को चुटकी में मुआफ़ करवाने का तरीका लिखा हुआ था और ताईद में चंद बे असल रिवायात भी लिखी हुई थी। मेंने फौरन उस इश्तेहार को वहाँ से हटा दिया और उसके लगाने वाले के मुतल्लिक़ दरियाफ्त किया लेकिन कुछ मालूम न हो सका।

❐  ➻  ऐसा ऑफर देखने के बाद वो लोग जिन की बीस तीस साल की नमाज़ें क़ज़ा हैं,अपने जज़्बात पर क़ाबू नहीं कर पाते,और असलियत जाने बग़ैर इस पर यकी़न कर लेते हैं। इस तरह की बातें बिल्कुल गलत हैं और इन की कोई असल नहीं है, उलमा -ए- अहले सुन्नत ने इस का रद्द किया है और इसे नाजाइज़ क़रार दिया है।

❐  ➻  मुजद्दिद ए दीन व मिल्लत इमाम-ए-अहले सुन्नत, सैय्यिदी सरकारे आला हज़रत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु इस के मुतअल्लिक़ लिखते हैं कि ये जाहिलों की ईजाद और महज़ नाजाइज़ व बातिल है।


*📕फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द,7 सफह 53*

❐  ➻  इमाम-ए-अहले सुन्नत एक दूसरे मकाम पर लिखते हैं के आखिरी जुम्अ में इस का पढ़ना इख़्तिरा किया गया है और इस में ये समझा जाता है कि इस नमाज़ से उम्र भर की अपनी और अपने माँ बाप की भी क़ज़ाएं उतर जाती हैं महज़ बातिल व बिदअत -ए- शईआ है, किसी मुअतबर किताब में इस का असलन निशान नहींं।


*📕फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द,सफह 419/418*

❐  ➻  ख़लीफ़ा ए हुज़ूर आलाहज़रत, सदरुश्शरीया, हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अमजद अली आज़मी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु लिखते हैं कि शबे क़द्र या रमज़ान के आखिरी जुमें को जो लोग ये क़ज़ा-ए-उमरी जमा'अत से पढ़ते हैं और ये समझते हैं कि उम्र भर की क़ज़ाएं इसी एक नमाज़ से अदा हो गयीं, ये बातिल महज़ है।

*📕बहारे शरीअत जिल्द,1 सफह हिस्सा,4 सफह 708,कज़ा नमाज़ का बयान*

❐  ➻  हज़रत अल्लामा शरीफुल हक़ अमजदी अलैहिर्रहमह ने भी इस का रद्द किया है और इस कि ताईद में पेश की जाने वाली रिवायात को अल्लामा मुल्ला अली क़ारी हनफ़ी अलैहिर्रहमह के हवाले से मौज़ू क़रार दिया है।

*📕फतावा अमजदिया जिल्द 1,सफह 272/273*

❐  ➻  अल्लामा क़ाज़ी शमशुद्दीन अहमद अलैहिर्रहमह लिखते हैं कि बाज़ लोग शबे क़द्र या आखिरी रमज़ान में जो नमाज़े क़ज़ा-ए-उमरी के नाम से पढ़ते हैं और ये समझते हैं कि उम्र भर की क़ज़ाओ के लिए ये काफी है,ये बिल्कुल ग़लत और बातिले महज़ है।

*📕क़ानूने शरीअत सफह 241*

❐  ➻  हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद वक़ारूद्दीन क़ादरी रज़वी अलैहिर्रहमह लिखते हैं कि बाज़ इलाक़ो में जो ये मशहूर है कि रमज़ान के आखिरी जुमें को चंद रकाअत नमाज़ क़ज़ा-ए-उमरी की निय्यत से पढ़ते हैं और ख़याल ये किया जाता है कि ये पूरी उम्र की क़ज़ा नमाज़ों के क़ाइम मुकाम है,ये गलत है,जितनी भी नमाज़े क़ज़ा हुई हैं उन को अलग अलग पढ़ना ज़रूरी है।

*📕वक़ारुल फतावा जिल्द 2, सफह 134*

❐  ➻  हज़रत अल्लामा गुलाम रसूल सईदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु लिखते हैं कि बाज़ अनपढ़ लोगों में मशहूर है कि रमज़ान के आखिरी जुम्अ को एक दिन की पांच नमाज़ें  वित्र समेत पढ़ ली जाए तो सारी उम्र की क़ज़ा नमाज़ें अदा हो जाती हैं और इस को क़ज़ा -ए- उमरी कहते है, ये क़तअन बातिल है। रमज़ान की खुसूसियत,फ़ज़ीलत और अज्र व सवाब की ज़्यादती एक अलग बात है लेकिन एक दिन की क़ज़ा नमाज़े पढ़ने से एक दिन की ही अदा होगी,सारी उम्र की अदा नही होगी।

*📕शरह़ सही मुस्लिम शरीफ,जिल्द 2 सफह 352*

⚠️ इन तमाम रिवायातों से साबित हुआ के ऐसी कोई नमाज़ नहीं है जिसे पढ़ने से पूरी उम्र की क़ज़ा नमाज़ अदा हो जाये। ये जो चंद रकअत नमाज़ पढ़ी जाती है और ये समझाता है कि पूरी उम्र की क़ज़ा नमाज़ें अदा हो गईं, इसकी कोई असल नहीं है, ये नाजाइज़ ओ बातिल है।

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 ❐ सवाल ❐  ➻    क्या ज़कात अपने माँ बाप को या बेटी को दे सकते हैं?

 ❐ जवाब ❐  ➻   ज़कात माँ-बाप- दादा दादी- नाना नानी- वगैरह इनको ज़कात नहीं दे सकते  हम जिनकी औलाद में हैं, और अपनी औलाद बेटा बेटी- पोता पोती- नवासा नवासी- को भी ज़कात नहीं दे सकते!

*📚रद्दुल मुह़तार किताबुज़्ज़कात जिल्द 3 सफह 344*
*📚ब ह़वाला बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 927*

 ❐ सवाल ❐  ➻  ज़कात देना फर्ज़ है या वाजिब और अगर कोई ज़कात न देता हो उसके लिए क्या हुक्म है जवाब इनायत करें?

 ❐ जवाब ❐  ➻  ज़कात देना फर्ज़ है, उसका मुन्किर काफिर है और न देने वाला फासिक़ और क़त्ल का मुस्तहिक़ और अदा में ताखीर ( देरी ) करने वाला गुनहगार व मरदूद है!

*📚फतावा हिन्दिया किताबुज़्ज़कात बाब 1 जिल्द 1 सफह 170*

*📚ब ह़वाला बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 874* 

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       *• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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 ❐ सवाल ❐  ➻  एक सवाल है कि अगर ज़कात के रुपये से हम गरीब को खाना खिला दें तो ज़कात अदा हो जायेगी कि नहीं,?

 ❐ जवाब ❐  ➻  अगर किसी गरीब को खाना खिला दिया तो इस तरह ज़कात अदा न होगी कियोंकि एक शर्त ये भी है कि मालिक बना देना, तो इस में मालिक बना देना नहीं पाया गया, हाँ अगर खाना दे दिया कि चाहे खाऐ या ले जाए  यानि खाना देकर उसको मालिक बना दें कि आपकी मर्ज़ी यहाँ खायें या ले जाऐं तो ज़कात अदा हो जायेगी, इसी तरह ज़कात की नियत से फ़कीर को कपड़ा दे दिया या पहना दिया तो ज़कात अदा हो जायेगी!

*📚दुर्रे मुख़्तार मा रद्दुल मुह़तार किताबुज़्ज़कात जिल्द 3 सफह 204*
*📚ब ह़वाला बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 874*

❐ सवाल ❐  ➻  अगर किसी पागल को ज़कात दे दें तो ज़कात अदा होगी कि नहीं?

 ❐ जवाब ❐  ➻  ज़कात देने में यह भी ज़रूरी है कि ऐसे को दे जो क़ब्ज़ा करना जानता हो, यानि ऐसा न हो कि फ़ेंक दे या धोका खाए वरना ज़कात अदा न होगी, मसलन निहायत छोटे बच्चे या पागल को देना, लिहाज़ा अगर किसी पागल को ज़कात की रक़म या कुछ भी दी तो अदा नहीं होगी, कियोंकि पागल क़ब्ज़ा नहीं कर पायेगा!

*📚दुर्रे मुख़्तार व रद्दुल मुह़तार किताबुज़्ज़कात जिल्द 3 सफह 204*
*📚ब ह़वाला बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 875* 

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        *• सवाल • ⚡ मसाइल ⚡ • जवाब •*
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 ❐ सवाल ❐  ➻   अगर कोई साल भर खैरात करता रहे और अब नियत कर ले कि जो भी साल भर खैरात में दिया वह ज़कात है तो क्या इस तरह ज़कात अदा हो जायेगी,?

 ❐ जवाब ❐  ➻  इस तरह ज़कात अदा न होगी, कियोंकि ज़कात देते वक्त नियत ज़रुरी है, मसलन साल भर तक खैरात करता रहा, अब नियत की कि जो कुछ दिया है ज़कात है तो इस तरह अदा न होगी!

*📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 886*

 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या ज़कात देते वक्त उसको यह बताना ज़रुरी है कि यह रक़म ज़कात की है जैसे बहुत लोग ज़कात के हक़दार होते हैं पर अगर उनको बता दिया जाऐ तो नहीं लेंगे ऐसे शख्स को बगैर बताये ज़कात दे दें तो क्या अदा हो जायेगी?

 ❐ जवाब ❐  ➻  ज़कात देने में इसकी ज़रुरत नहीं कि फ़क़ीर गरीब को ज़कात कह कर दे बल्कि सिर्फ नियत ज़कात की काफी है, आप नज़राना, या हदिया या पान खाने के लिए या बच्चों के मिठाई खाने या ईदी के नाम से दे दी तो भी ज़कात अदा हो जायेगी, बाज़ मोहताज हाजतमंद ज़कात का रुपये नहीं लेना चाहते, उन्हें ज़कात कहकर दिया जायेगा तो नहीं लेंगे उनको ज़कात का लफ्ज़ न कहें, यहाँ तक कि अगर क़र्ज़ कहकर दें और नियत ज़कात की हो तो अदा हो जायेगी!

*📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 890* 

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 ❐ सवाल ❐  ➻   एक सवाल है कि क्या भीख मांगने वालों को ज़कात फित्रा देने से ज़कात फित्रा अदा हो जायेगी कि नहीं और इनको देना चाहिए कि नहीं जवाब इनायत करें महरबानी होगी?

 ❐ जवाब ❐  ➻  भीख मांगने वाले 3 तरह के होते हैं :

❐  ➻  *( 1. )*   एक मालदार! जैसे बहुत से क़ौम के फ़क़ीर जिनका पेशा ही भीख मांगना होता है जोगी और साधू उन्हें भीख मांगना ह़राम और उन्हें देना भी ह़राम ऐसे लोगों को देने से ज़कात फित्रा अदा नहीं हो सकती!

❐  ➻  *( 2. )* दूसरे वह जो हक़ीक़त में फ़क़ीर हैं यानि निसाब के मालिक नहीं मगर मज़बूत व तंदरुस्त हैं कमाने की ताक़त भी रखते हैं, हाथ पैर सब सलामत है मोटे ताज़े होने के बावजूद कोई काम नहीं करना चाहते हैं मुफ्त खाना खाने की आदत पड़ी है जिसके सबब भीख मांगते फिरते हैं ऐसे लोगों को भीख मांगना ह़राम है और जो उन्हें मांगने से मिले वह उनके लिए ख़बीस है ह़दीस शरीफ़ में है कि لا تحل الصدقةلغنى ولالذى مرةسوى،، यानि न किसी मालदार के लिए सदक़ा ह़लाल है और न किसी तवाना तंदरुस्त के लिए!

❐  ➻   ऐसे लोगों को भीख देना मना है कि गुनाह पर मदद करना है अगर लोग उन्हें नहीं देंगे तो मेहनत मजदूरी करने पर मजबूर होंगे अल्लाह ताआला क़ुरआन मजीद में इरशाद फरमाता है कि ; गुनाह व ज़्यादती पर मदद न करो!

*📚 पारा 6 सूरह माइदा आयत 02* 
 
❐  ➻  मगर ऐसे लोगों को ज़कात देने से ज़कात फित्रा अदा हो जायेगी जबकि और कोई शरई रुकावट न हो इसलिए कि वह मालिके निसाब नहीं है!

❐  ➻  *( 3. )* और भीख मांगने वालों की तीसरी क़िस्म वह है कि जो न माल रखते हैं और न कमाने की ताक़त रखते हैं या अपनी ज़रुरत भर कमाने की ताक़त नहीं रखते ऐसे लोगों को अपनी हाजत पूरी करने भर की भीख मांगना जायज़ है और मांगने से जो कुछ मिले वह उसके लिए हलाल व तय्यब (पाक) है और यही लोग ज़कात के मुस्तहिक़ हैं उन्हें देना बहुत बड़ा सवाब है और यही वह लोग हैं जिन्हें झिड़कना हराम है!

*📚 फतावा बरकातिया सफह 131*

*📚 माख़ूज़ अज़ फतावा इस्माइलिया सफह 386* 

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 ❐ सवाल ❐  ➻   पहनने वाले ज़ेवर पर ज़कात है या नही?

 ❐ जवाब ❐  ➻ पहनने के ज़ेवरात पर भी ज़कात फर्ज़ है!

*📚 दुर्रे मुख्तार व रद्दुल मुहतार जिल्द 1 सफह 270,*

 ❐  ➻  हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में एक औरत आई उसके साथ उसकी बेटी भी थी, जिसके हाथ में सोने के मोटे मोटे कंगन थे,आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उस औरत से पूछा, क्या तुम इसकी ज़कात अदा करती हो? उस औरत ने अर्ज़ की जी नहीं- आपने इरशाद फरमाया क्या तुम इस बात से खुश हो कि क़यामत के दिन अल्लाह तआला तुम्हें इन कंगनों के बदले आग के कंगन पहना दे, ये सुनते ही उसने वह कंगन रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के आगे डाल दिए और कहा ये अल्लाह तआला और उसके रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के लिए हैं!

*📚 सुनन अबी दाऊद जिल्द 2 सफह 137 हदीस 1563*

 ❐ सवाल ❐  ➻   सगे भाई को ज़कात देना कैसा है?

 ❐ जवाब ❐  ➻  सगे भाई बहन, भतीजा, भतीजी, भांजा, भांजी, चचा, फूफी, खाला, मामू, सास, ससुर, दामाद, बहू, वगैरह में से जो हाजतमन्द और ज़कात के मुस्तहिक़ हों तो उनको देने से ज़कात अदा हो जायेगी और इन सबको देने में डबल सवाब मिलता है एक सवाब ज़कात देने का और दूसरा सिलह रह़मी का!

*📚 फतावा इस्माइलिया सफह 395*  

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 ❐ सवाल ❐  ➻   ज़कात वहाबी देवबंदी या गैर मुस्लिम को दे सकते हैं कि नहीं?

 ❐ जवाब ❐  ➻  वहाबी देवबंदी और तमाम बद मज़हब फिर्क़ों को ज़कात देना ह़राम है और उसको देने से ज़कात अदा नहीं होगी, आला ह़ज़रात इमाम अह़मद रज़ा खान काफिर मुशरिक वहाबी राफ़ज़ी क़ादियानी वगैरह को ज़कात देने के मुतअल्लिक़ तह़रीर फरमाते हैं कि इनको ज़कात देना ह़राम है और इनको देने से ज़कात अदा न होगी!

*📚फतावा रज़वीया शरीफ़ जिल्द 4 सफह 491*

*📚फतावा फक़ीहे मिल्लत  जिल्द 1 सफह 315*

*📚फतावा इस्माइलिया सफह 393*

❐ सवाल ❐  ➻   एक सवाल है कि वह कौन लोग हैं जिन को ज़कात नहीं दी जा सकती और उनको देने से अदा नहीं होगी जवाब इनायत करें?

 ❐ जवाब ❐  ➻  बनू हाशिम यानि सादाते कराम को ज़कात नहीं दे सकते, अगर कोई सय्यद साहब परेशान हों तो उनकी पाक पैसे से मदद करें, और अपनी अस्ल यानि जिनकी औलाद में से हैं जैसे माँ, बाप, दादा, दादी, नाना नानी, वगैरह इनको भी ज़कात नहीं दे सकते अगर दिया तो अदा नहीं होगी, इसी तरह बेटा, बेटी, पोता, पोती, नवासा, नवासी, वगैरह को भी ज़कात नहीं दे सकते अगर दिया तो अदा नहीं होगी, इसी तरह बीवी शौहर को या शौहर बीवी को ज़कात नहीं दे सकती, गनी के नाबालिग बच्चे को भी ज़कात नहीं दे सकते क्योंकि वह अपने बाप की वजह से गनी शुमार होते हैं!

*📚दुर्रे मुख्तार व रद्दुल मुहतार जिल्द 3 सफह 344/349/350/*
*📚फतावा रज़वीया शरीफ़ जिल्द 10 सफह 109*
*📚फैज़ाने ज़कात सफह 61*

 *📚फतावा इस्माइलिया सफह 396* 

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 ❐ सवाल ❐  ➻   एक सवाल ये है कि पीछले साल एक लाख रुपये का सोना खरीदा लेकिन इस्तेमाल नहीं किया है क्या उस पर ज़कात होगी?

❐ जवाब ❐  ➻  ज़कात अदा करने के लिए इस्तेमाल करना ज़रुरी नहीं, सोना या रुपये जो भी रखा हुआ हो ज़कात अदा करनी होगी इस्तेमाल होता हो या न होता हो, ज़कात नहीं देगा तो सख्त गुनहगार होगा, बहारे शरीयत में हुज़ूर सदरुश्शरिय्या तहरीर फरमाते हैं कि, जिसने चांदी सोने की ज़कात न दी होगी उस माल को ख़ूब गरम करके उस की करवट और पेशानी और पीठ दागी जायेगी!

*📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 1 सफह 136*

 ❐ सवाल ❐  ➻  बद मज़हब काफिर को ज़कात देना कैसा है रहनुमाई फरमाये?

❐ जवाब ❐  ➻ तमाम बद मज़हब मसलन वहाबी देवबंदी ब नाम अहले हदीस वगैरह वगैरह इन सबको ज़कात नहीं दे सकते अगर देंगे तो अदा नहीं होगी!

*📚दुर्रे मुख़्तार किताबुज़्ज़कात जिल्द 3 सफह 356*

*📚ब ह़वाला बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 5 सफह 933/934*  

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 ❐ सवाल ❐  ➻  क्या नाबालिग बच्चों पर और पागल पर भी सदक़ ए फित्र वाजिब होता है?

❐ जवाब ❐  ➻  सदक़ ए फित्र वाजिब होने के लिए आक़िल और बालिग होना शर्त नहीं है, अगर छोटे बच्चे और पागल,(पागल चाहे बालिग हो या नाबालिग)साहिबे निसाब हों तो उनका सरपरस्त उनके माल में से अदा करेगा और अगर वह साहिबे निसाब न हों तो फिर उनके सरपरस्त पर वाजिब है कि उनकी तरफ़ से सदक़ ए फित्र अपने माल में से अदा करे!

*📚फतावा आलमगीरी किताबुज़्ज़कात जिल्द 1 सफह 191*
*📚रद्दुल मुह़तार अला दुर्रे मुख़्तार किताबुज़्ज़कात बाब सदक़ ए फित्र जिल्द 3 सफह 365*

 ❐ सवाल ❐  ➻  रोज़े की ह़ालत में सर के बालों में मेंहदी लगा सकते हैं कि नहीं?

 ❐ जवाब ❐  ➻   रोज़े की ह़ालत में बालों में मेंहदी लगा सकते हैं जैसा कि तफ़हीमुल मसाइल में है कि रोज़े की ह़ालत में बालों में मेंहदी लगा सकते हैं इस से रोज़े पर कोई असर नहीं पड़ेगा!

*📚  तफ़हीमुल मसाइल जिल्द 2 सफह 188 किताबुस्सोम का ब्यान*

मर्दों को हाथ पैर में मेंहदी लगाना  नाजायज़ है!

*📚  फतावा मुस्तफविया जिल्द 3 सफह 175* 

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❐ सवाल ❐  ➻   मेरे दांत निकल गये थे तो मैंने उनकी जगह डाक्टर से दूसरे दांत लगवाये जो निकल सकते हैं अब ये मालूम करना है के उन मसनूई (नक़ली) दांतों के साथ वुज़ू या गुस्ल हो सकता है या नहीं!?

❐ जवाब ❐  ➻  ज़रुरतन मसनूई (नक़ली) दांत लगवाने में कोई शरई रुकावट या हरज नहीं- इन दांतों के लगवाने की सूरत में भी वुज़ू व गुस्ल हो जायेगा अगर उतार सकते हैं तो ज़रूर उतार कर वुज़ू और ग़ुसल करें ताकि मसूढ़ो पर पानी बह जाए, वरना ग़ुसल न होगा, अगर जमे हुए हैं निकल नहीं सकते तो हो जाएगा!

📚 वक़ारुल फतावा जिल्द 2 सफह 3 तहारत का ब्यान  


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❐ सवाल ❐  ➻   वुज़ू से पहले अगर किसी ने बिस्मिल्लाह नहीं पढ़ी तो क्या उसका वुज़ू हो जायेगा!?

❐ जवाब ❐  ➻ अगर किसी ने वुज़ू से पहले बिस्मिल्लाहिर्रह़मानिर्रह़ीम न पढ़ी तो वुज़ू हो जायेगा और वुज़ू से पहले बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़ना सुन्नत है और सुन्नत के तर्क से फज़ीलत और कमाल की नफी होती है लिहाज़ा वुज़ू से पहले बिस्मिल्लाहिर्रह़मानिर्रह़ीम पढ़ लिया करें!

📚 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह सफह 293


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❐ सवाल ❐  ➻  क्या वुज़ू से पहले वुज़ू की नियत करना ज़रुरी है अगर किसी ने नियत नहीं की और वैसे ही वुज़ू बना लिया तो वुज़ू हो जायेगा या नहीं!?

❐ जवाब ❐  ➻ वुज़ू से पहले नियत करना हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सुन्नत है लिहाज़ा अगर कोई वुज़ू से पहले नियत करेगा तो सुन्नत का भी सवाब पायेगा अगर वुज़ू से पहले नियत करना भूल गया और बगैर नियत के ही वुज़ू कर लिया तो वुज़ू हो जायेगा, मगर सवाब ना पायेगा!

📚 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह ,293 

 

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❐ सवाल ❐  ➻   अगर किसी के नाखून थोड़ा बड़े हों और उस में मैल जमा हों तो क्या वुज़ू हो जायेगा या नहीं,!?

❐ जवाब ❐  ➻  मैल चूंके इंसानी जिस्म से पैदा होता है इसलिए वो माफ है इसी वजह से नाखूनों के अंदर का मैल भी माफ है यानि अगर मैल दूर किऐ बगैर वुज़ू कर लिया तो वुज़ू हो जायेगा!

📚 बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह -293


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❐ सवाल ❐  ➻   अगर किसी का हाथ जल चुका है मगर उसकी खाल जुदा नहीं हुई कियोंकि छाला बन गया था जो के अब खुश्क हो चुका है तो अब उसकी खाल जो जुदा नहीं हुई है उसकी खाल उतार कर वुज़ू करना ज़रुरी है या ऐसे ही कर लें इसकी वज़ाहत कर दें!?

❐ जवाब ❐  ➻ खाल उतारना कुछ ज़रुरी नहीं- अगर उसके ऊपर से पानी बहा कर वुज़ू किया तो हो जायेगा किसी जगह छाला था और वो सूख गया मगर उसकी खाल जुदा नहीं हुई तो खाल जुदा करके पानी बहाना ज़रुरी नहीं बल्के उसी छाले की खाल पर पानी बहा लेना काफी है!

📚बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह  293,
📚अल फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 5,  


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 ❐ सवाल ❐  ➻  एक सवाल है कि बहुत सारे लोग माँ क़सम, तुम्हारी क़सम, सर की क़सम, बाप की क़सम, या इसी तरह़ हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की क़सम खाते हैं तो ऐसा क़सम खाना कैसा है और अगर कोई हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की क़सम खा ले और फिर टूट जाए तो कफ्फारा लाज़िम आयेगा या नहीं इसका जवाब इनायत करें!?

 ❐ जवाब ❐  ➻  इस तरह़ क़सम उठाना (खाना) मकरुह है और ये शरअन क़सम भी नहीं लिहाज़ा इसे तोड़ने से कफ्फारा लाज़िम न होगा- बहारे शरीयत में है के गैरे खुदा यानि (खुदा के अलावा) की क़सम मकरुह है और ये शरअन क़सम भी नहीं यानि इसको तोड़ने से कफ्फारा लाज़िम नहीं गैरे खुदा की क़सम, क़सम नहीं मसलन तुम्हारी क़सम, अपनी क़सम,
तुम्हारी जान की क़सम,
अपनी जान की क़सम,
तुम्हारे सर की क़सम,
अपने सर की क़सम,
आंखों की क़सम,
जवानी की क़सम,
माँ बाप की क़सम,
औलाद की क़सम,
मज़हब की क़सम,
दीन की क़सम,
इल्म की क़सम,
काबा की क़सम,
अरशे इलाही की क़सम,
रसूलल्लाह की क़सम,
वगैरह न खाना चाहिए और इसके टूटने से कफ्फारा भी लाज़िम नहीं आता!

*📚बहारे शरीअत जिल्द,2 हिस्सा 9 सफह 302, क़सम का ब्यान*  

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सीरते मुस्तफ़ा ﷺ 💚

 الصلوۃ والسلام علیک یاسیدی یارسول الله ﷺ  सीरते मुस्तफ़ा ﷺ (Part- 01) * सीरत क्या है.!? * कुदमाए मुहद्दिषीन व फुकहा "मग़ाज़ी व सियर...