🅿🄾🅂🅃 ➪ 01
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ हम आख़िर कार दींन क्यूँ हासिल करें !? ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ किसी भी हुनर वाले को हुनर बिला सीखे नहीं आता है ,बढ़ाई को बढ़ाई गीरी , दर्जी को दर्जी गीरी और तबीब को हिकमत व डाक्टरी बिला सीखे और किसी को उस्ताद बनाये बगैर नहीं आती तो फिर दीन का अजीम इल्म बिला सीखे पढ़े और बिला उस्ताद बनाये कैसे हासिल हो सकता है?
••• ➲ क्या आपने कभी गौर किया कि दीन सीखने में आपने अपना उस्ताद किसको बनाया ?
••• ➲ या दीन सीखने और पढ़ने के लिए आप कितना वक्त निकालते हैं ?
••• ➲ वीडियो , टेलीवीजन , रोजनामे और अखबारात , को देखने और पढ़ने में आप कितना वक्त बर्बाद करते हैं जबकि आज कल के प्रिन्ट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में नफ्स में हैजानी कैफियत पैदा करने वाली फहश व उरियां तस्वीरें और जज्बातो ख्वाहिशात को भड़काने वाले मोहलिक मजागीन होते हैं।
••• ➲ हमारे बाज इस्लामी भाई बहन तो ऐसे है कि जब तक वह सुबह को पूरा अखबार नजर से चाट न लें तो शाम का खाना हजम नहीं होता।
••• ➲ अखबार और टेलीवीजन ही का नतीजा है कि हमारे बजुर्ग , नौजवान और बच्चों से क्रिकेट प्लेयर्स , फिल्मी अदाकारों , और दुनिया के हुक्मरानों और सरबराहों के नाम और उनकी पूरी जिन्दगी के हालात पूछो तो फौरन बता देंगे।
••• ➲ लेकिन अगर अम्बिया अलैहिमुस्सलाम , सहाबा किराम , अहले बैते इजाम , अइम्मये अरबआ , और औलियाये किराम रजिअल्लाहु अन्हुम अजमयीन के अस्माये गिरामी और उनकी सीरतों के बारे में पूछो तो जवाब मिलेगा कि यह सब हम नहीं जानते ( मआजअल्लाह ) इल्ला माशाअल्लाह , जबकि उनकी जिन्दगियां और उनकी सीरतें हमारे लिए मियारे जिन्दगी हैं।
••• ➲ लिहाजा ऐ मेरे प्यारे भाइयो बहनो दीनी किताबें ( इस्लामी लिटरेचर ) पढ़ने पढ़ाने के लिए सुबह व शाम में से थोड़ा सा वक्त निकालो और मोअतबर उल्मायेदीन की किताबें पढ़ो।
••• ➲ इसलिए हम आपके लिए उस अज़ीम हस्ती की हयात ए ज़िन्दगी बताने वाले हैं जिन्हें आला हज़रत, इमामे अहले सुन्नत, वली नीमत, अज़ीमुल बरकत, अज़ीमुल मरतबात, परवाना ए शम्मे रिसालत, मुजद्दिदे दींन व मिल्लत, हामी ए सुन्नत, माही ए बिद्दत, आलिम ए शरीअत, पीर ए तरीक़त, बाइसे खैर व बरकत, हज़रत अल्लामा मौलाना अल्हाज अल हाफिज अल कारी शाह इमाम अहमद रजा खान رحمۃ اللہ علیہ के नाम से न सिर्फ़ आप औऱ हम बल्कि पुरी दुनियां वाकिफ़ हैं!...✍️
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 02
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ आला हज़रत और फैजाने आला हज़रत ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ शैखुल - इस्लाम वल - मुस्लेमीन इमाम अहले सुन्नत मुजदिदे दीन व मिल्लत अजीमुल - बरकत आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी कुदसा सिरहू की ज़ाते मुकद्दसा आज मोहताजे तआढूफ नहीं अरब व अजम , एशिया व अफ्रीका , बरे आज़म व बरे सगीर बल्कि आलमे इस्लाम में वह अहले सुन्नत व जमाअत के एक इमाम व मुक्तदा की हैसियत से जाने पहचाने जाते हैं।
••• ➲ वह मुसलमानाने आलम के दिलों की धड़कन और वज्हे इफ्तिखार हैं , दुनिया की मुस्लिम अक्सरीयत उन्हें मज़हब व मिल्लत का मुहाफिज व पासवान जानती है उन्होंने जो अपकार व नज़ियात पेश किए उन्हें गले लगाया जा रहा है उनकी बसीरत व दानाई पर ज़माना हैरान है उन्होंने दीन व सुन्नत की तरवीज व तशहीर में नुमायाँ हिस्सा लिया।
••• ➲ मज़हबे हक और मसलके सही पर लोगों को गामज़न रहने की ताकीद व तल्कीन फरमाई फरज़न्दाने इस्लाम के दिलों में इश्के रिसालत की शम रौशन व फरोजाँ की , उन्हें ईमान व इस्लाम के पाकीज़ा रास्ते पर चलने की दावते फिक्र दी , इंसानों को नजात व सलामती के उसूल व जाब्ते बताए , वह आशिके रसूल और दीने हक के सच्चे अलम बरदार थे , उन्होंने खुश अकीदा मुसलमानों की इस्लाही व अमली मैदान में क्यादत व रहनुमाई की एक अच्छे और मुख्लिस काइद व रहनुमा का फरीज़ा अंजाम दिया।
••• ➲ आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी कुदेसा सिर्रहू हमारे असलाफ व अकाबिर की सच्चे यादगार और अमली तस्वीर थे उनके नुकूशे कदम से मटके हुए इंसानों को हिदायत व इरफान की मंज़िल मिली वह इल्म व ईकान के चिरागे राह और मीनार - ए - नूर थे जिनकी पुर नूर शुआओं से दिल व दिमाग के जुल्मत कदे रौशन व ताबनाक हो गए और कुलूब व अज़्हान में सुबहे उम्मीद का उजाला फैला!...✍️
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 47 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 03
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आला हज़रत और फैजाने आला हज़रत ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरेलवी ने कौमे मुस्लिम को इंतिहाई नाजुक और कर्ब अंगेज़ हालात में संभाला दिया। जलालत व गुमराही के अमीक गार में उन्हें गिरने से बचाया मुसलमानों के इश्क व अकीदे की हिफाज़त फरमाई बद मजहबी व बद अकीदगी की तूफानी हवाओं की जद से उन्हें महफूज व मामून रखा , शिर्क व गुम्राही और बिदआत व खुराफात के बादे सुमूम से खुश अक़ीदा मुसलमानों के दीन व ईमान को झुलसने न दिया उनके वजूदे मसऊद के फैज़ व बरकत से कुफ्र व तुग़यान के तारीक व सियाह बादल छट गए अय्याराने जमाना के चेहरों का नकाब उलट दिया , मक्र व रेब के दबीज़ पर्दे तार तार हो गए , अपने खूने जिगर से उन्होंने मज़हब व मिल्लत की आबयारी की , दीन व सुन्नत के रहजनों का मुकाबला किया , शरीअते इस्लामिया की आहनी दीवार को गिरने न दिया , वह इस्लाम के मर्दै मुजाहिद और दीने हक के बतले जलील थे उन्हों ने आदा - ए - दीन की सरकूबी फरमाई , जुल्म व तअद्दी के खिलाफ आवाज बुलन्द की , वक्त के जालिम व जाबिर का पंजा मोड़ दिया हक के खिलाफ हर उठने वाली आवाज का गला चूंट दिया वह दीने हक के पैरू और सच्चे अलमबरदार थे , दीने इस्लाम का अलम बुलन्द किया उन्होंने फरजन्दाने तौहीद को हक व सदाकत का दर्से मुहब्बत और पैगामे अमन व अमान दिया!...✍️
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 47 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 04
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ आला हज़रत और फैजाने आला हज़रत ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरेलवी कुद्देसा सिर्रहू ने तज्दीदी जिम्मेदारियों की बुनियाद पर इंसानों को ख़्वाबे गफलत से जगाया उन्हें मुत्तहिद व मुत्तफ़िक होने की दावत व आवाज़ दी उनकी आवाज में दर्द व खुलूस था।
••• ➲ यही वजह है कि उनकी आवाज़ सदा बसहरा व बाज गश्त साबित न हुई बल्कि वह अन्फास व आफाक में सुनाई दी इस से जेहन व दिमाग के दरीचे खुल गए चारों तरफ से लब्बैक व सञ्दैक की सदाएं बुलन्द हुईं , उनके कदमों में सालेह और नेक रूहों का जमघटा हो गया उन्होंने आपस में इत्तिहाद व इत्तिफाक का जो दर्शे मुहब्बत दिया वो रंग लाया मुसलमानों में इस्लामी उखवत गसावात का जज़्बा बेदार हुआ। दीन व सुन्नत के तअल्लुक से अमली बेदारी आई , फराइज व वाजिबात , सुनन व मुस्तहिब्बात और अवामिर व नवाही पर अमल का जज्ब - ए - शौक जागा , जुमूद व तगाफुल की बदनुमा चादर उतार दी गई उनके कदमों की बरकत से मिल्लत की कराहती हुई रूह मुस्कुरा उठी , उसका पज़्मुरदा चेहरा खिल उठा अहले सुन्नत व जमाअत के चमने जार में यकीन व अमल के गुलाब लहलहाने लगे , मुआशरती ज़िन्दगी में सुधार व तब्दीली आई तहज़ीब व सकाफ़त की फिजा शादाब व खुशगवार हो गई। इन कारनामों से उन्होंने नयाबते रसूल का हक व फरीजा अदा किया उनके वजूदे मुकद्दस से मिल्लते इस्लामिया की रूहानियत जिन्दा हो गई मुर्दा दिलों को अबदी ज़िन्दगी का हसीन व दिलनवाज़ पैगाम मिला , वह इहयाए दीन व सुन्नत और तजदीदी कारनामों की बिना पर हमारी जमाअत में मुम्ताज व मुंफरिद हुए अरब व अजम में उनकी अज़मत व बुजुर्गी का खुतबा पढ़ा जाने लगा!...✍️
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह 47-48 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 05
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ आला हज़रत और फैजाने आला हज़रत ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी रज़िअल्लाहु तआला अन्हु ने मसलके हक की तरवीज व इशाअत की , दीने हक की दावत व इरशाद का खुशगवार फरीज़ा अंजाम दिया मज़हबे अहले सुन्नत व जमाअत पर होने वाले हमलों का दन्दान शिकन और मुदल्लल जवाब दिया , बातिल ताक़तों के परखचे उड़ा दिए तागूती कुव्वतों के सरनिगू कर दिए उनकी मसाई जमीला से हक व सदाक़त का बोल बाला हुआ ईमान व ईकान की मंज़िल में सच्चाईयों का सूरज तुलू हुआ उसकी जिया बार किरनों से इल्म व अमल के मैदान में सुबहे यकीन का सवेरा हुआ राहे हक से भटके हुए मुसाफिर को अपनी मंज़िल का सुराग व निशान मिला उन्होंने मरासिमे अहले सुन्नत व जमाअत की हिफाज़त व सियानत की और घर घर में इत्तिबाए सुन्नत का माहौल बरपा कर दिया , उनकी इल्मी व दीनी खिदमात के तज़्किरों से तारीख के सफ्हात रौशन व फरोजां हैं ऐसी ही शख्सियात के जिक्र से तारीख़ की जुल्फें संवारी जाती हैं!...✍️
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह 47-48 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 06
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आला हज़रत और फैजाने आला हज़रत ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी ने जिस दौर में बरैली शरीफ की सर जमीन पर होश व खिरद की आँखें खोली वह इंतिहाई भयानक व पुर आशोब दौर था , आसमाने हिन्द पर कुफ्र व शिर्क और विदआत व खुराफात के बादल मंडला रहे थे खुश अकीदा मुसलमानों को सिराते मुस्तकीम व राहे हिदायत से हटाने की नापाक कोशिश की जा रही थी फरज़न्दाने तौहीद के इश्क व अकीदे पर शब खून और डाका डाला जा रहा था सईद व नेक रूहें मुसलमानों के अंजाम से घबरा रही थीं इंसानियत खौफजदा थी जब व इस्तिब्दाद के हाथों खुश अकीदगी का गला घूटा जा रहा था , दीनी पामर्दी व इस्तिकामत मुतजलजल हो रही थी।
••• ➲ ऐसे भयानक दौर में कुदरत ने मुजद्दिदे इस्लाम आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरैलवी कुद्देसा सिर्रहू को तज्दीदे दीन व सुन्नत के लिए मुकर्रर फरमाया उन्होंने ताईदे गैबी से अपना फर्जे मंसबी को पूरा किया और बेमिसाल तज्दीदी कारनामे अंजाम दिए , बद अकीदों व बद मज़हबों का खुले आम रद्द व इब्ताल फरमाया रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की शाने अक्दस में नाजैबा कलिमात कहने वालों को उनके कैफरे किरदार तक पहुँचा दिया , बातिल ताकतों की सरकूबी व बीख कुनी की , बनामे इस्लाम बाद के जमाने में जितने फिरके वजूद में आए हर एक का रद्दे बलीग फरमाया उनके अन्दरूनी राज और मक्कारियों को तश्त अज़बाम व आशकारा किया गोया कि फिरका बातिला के रद्द व इताल को उन्होंने अपनी ज़िन्दगी का अहम उन्सुर और जुज्वला यन्फक करार दिया उन्हीं की बदौलत दीन के भेड़ियों की पहचान व शिनाख्त हुई।
••• ➲ इस खौफनाक दौर में अगर आला हजरत इमाम अहमद रजा बरेलवी कुद्देसा सिर्रहू की मसाई जमीला और उनके तज्दीदी कारनामे न होते तो दीन के डाकू मुसलमानों को भी अंग्रेजी इस्तेमार के हाथों अरजी कीमत पर फरोख्त कर देते जिस तरह मुल्क हिन्दुस्तान पर अंग्रेज़ का नाजाइज कला व इक्तिदार हो गया था उसी तरह यह मुसलमानों को भी असीर व कैद कर लेते , आला हज़रत की जाते सतूदा सिफात ने मुसलमानों को विकने और असीरे किस्मत होने से बचा लिया।
••• ➲ यह वह तारीखी हकाइक हैं जिन्हें ठुकराया नहीं जा सकता तारीख के औराक इन सच्चाईयों के शाहिद व गवाह हैं!...✍️
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह 48-49 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 07
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ आला हज़रत और फैजाने आला हज़रत ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ इमामे इश्क व मुहब्बत आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरेलवी रजि अल्लाहु तआला अन्हु एक सच्चे आशिके रसूल थे उनका इश्क व अकीदत मशहूरे ज़माना और ख्वास व अवाम के नजदीक मुसल्लम है इश्क रिसालत ही उनकी जिन्दगी का अजीम सरमाया और असल मेश्यार था , जिसके अन्दर इश्क रिसालत की जल्वा फरमाई जितनी ज़्यादा होगी उसका ईमान उतना ही कामिल व कवी होगा उन्होंने इश्के रिसालत की बुलन्दी को तक्मीले ईमान की अलामत व पहचान करार दिया , दुनिया को उन्होंने अपने इश्क भरे पैगाम व दर्से मुहब्बत से सरशार व सरमस्त कर दिया , उनकी रफ्तार व गुफ्तार में इश्के बिलाल व उवैस की झलक मौजूद थी , उनके किरदार व अमल में सिद्दीके अक्बर का इश्क व इख्लास जल्वा फरमा था , उनकी फिक्र व नज़र में उमर फारूक का जोश व जज़्बा मोजज़न था , उनके आदात व अतवार में सलमान व बूज़र का सोज था , उनके अक्वाल व अपआल में इश्के रिसालत की रंग आमेजियाँ थीं , उन्होंने जो लिखा इश्के रिसालत के आईने में लिखा , उन्होंने जो कहा इश्के रसूल के सांचे में ढाल कर कहा उनकी तसानीफ का एक एक वर्क उनके आशिक सादिक होने का शाहिद व गवाह है उनकी सतर सतर से इश्के रसूल फूटा पड़ता है उनका सीना इश्के रसूल का मदीना और वह बज़ाते खुद इश्क व वफा के पैकर मुजस्सम थे , आज के दौर में बरे सगीर के अन्दर जब आशिके रसूल बोला जाता है तो आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा के सिवा कोई और मुराद नहीं होता वह आशिके अलल - इतलाक हैं , यह उनके आशिके पाकबाज होने की रौशन व वाजेह दलील है!...✍️
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 49 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 08
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ मसलके आला हज़रत की सदाकत व हैसियत ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ आला हजरत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी ने जब आँखें खोली उस वक़्त आलमे इस्लाम खास तौर से हिन्दुस्तान के अन्दर हर तरफ फ़ितनों का दौर दौरा था , बदअकीदगी व बद मज़हबी और विदआत व खुराफ़ात की बीखकुनी की बजाए उन्हें फरोग व रिवाज दिया जा रहा था , खुश अकीदा मुसलमानों को राहे रास्त पर लाने के नाम पर शिर्क व बिदअत की सनद दी जा रही थी सहीहुल - अकीदा लोगों को ईमान व अकीदे की हिफाज़त के नाम पर दीन व सुन्नत से दूर किया जा रहा था , दीन व शरीअत में रखना अंदाज़ी करने वाले कोई गैर नहीं बल्कि वह ईमान फरोश मौलवी थे , मौलवियत के लिबादे में वह मज़हब व मिल्लत के दुश्मन व बदख़्वाह थे वह दुश्मन के लिबास में नहीं बल्कि दोस्त बन कर साथी व हमनवा के लिबास में सामने आए , दोस्तों की शक्ल में अदावत व दुश्मनी का जाल बिछाया , अँग्रेज़ की गुलामी और उन्हें खुश करने के लिए मुसलमानों में तफरका पैदा किया , रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की शाने अक्दस में गुस्ताखियाँ की और नाज़ेबा कलिमात कहे जिसके नतीजे में मुसलमान दो फिरकों में बट गए और मिल्लते इस्लामिया का शीराज़ा मुंतशिर हो गया मगर वह बजुझुम ख्वेश अहले सुन्नत के खैर ख्वाह व हमनवा ही बने रहे और अपने को अहले सुन्नत का काइद व पेशवा ही कहा किरदार व गुफ़्तार और कौल व अमल के इस तजाद व तखालुफ से मिल्लते इस्लामिया को वह नुक्सान व जरर पहुँचा जिसकी तलाफ़ी मुम्किन नहीं!...✍️
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 49 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 09
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ मसलके आला हज़रत की सदाकत व हैसियत ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ हासिल यह कि जो लोग गुस्ताखे रसूल थे , जिन्होंने फितने पैदा किए , गरोह बन्दियाँ की जिनकी रेशा दवानियों से मिल्लते इस्लामिया बेचैन च मुज्तरिब हो गई यह अज़राहे फरेब यही दार करते रहे कि हम ही अहले सुन्नत के ठेकेदार व काइद हैं हमारा मजहबे अहले सुन्नत से जो रिश्ता हैं वह अटूट व पाइदार है , उन्होंने अपने आपको सुन्नी भी कहलाया और हन्फी भी , चूंकि वर सगीर की मुस्लिम अक्सरीयत सुन्नी हनफी की थी और आज भी दुनिया की मुस्लिम आबादी का बेशतर हिस्सा सुन्नी हन्की हैं इसी सुन्नी व हन्फी की आवाज़ व लेबल से उन्होंने सहीहुल - अकीदा मुसलमानों को अपने दामे तज्वीर में फंसाया इसी नाम से मुसलमानों को धोखा और फरेब में डाला , ऐसी सूरत में अहले सुन्नत के तशख्खुस व बका के लिए किसी ऐसे इम्तियाजी नाम व शिनाख्त की ज़रूरत थी जिस से फिरकाहाए बातिला और हकीकी सुन्नी व हन्फी में फर्के इम्तियाज़ पैदा हो जाता!...✍️
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 50 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 10
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ मसलके आला हज़रत की सदाकत व हैसियत ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी कुद्देसा सिर्रहू ने इन अय्याराने जमाना का दागदार व बदनुमा चेहरा बेनकाब किया उनकी नापाक कोशिशों को तश्त अज़ बाम व वाशिगाफ किया , उनके मक्र व फरेब से दुनिया को आगाह व आशना कराया और बताया कि यह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की शाने रफी में गुस्ताखियों के सबब से काफिर व मुरतद और इस्लाम से खारिज हैं , मक्का मुअज्जमा और मदीना तैय्यबा के उलमा - ए - किराम व मुफ्तियाने इजाम ने उन पर कुफ्र व इर्तिदाद का हुक्म सादिर फरमाया है इसलिए यह हकीकी सुन्नी या हन्फ़ी नहीं हैं यह अपने दावे में सरासर झूठे और काज़िब हैं उन्होंने बद अकीदगी व बद मज़हबी को फरोग दिया बिदआत व खुराफात की आब्यारी की यह कुफ्र व शिर्क के अलमबरदार हैं , इन्होंने काफिरों की हमनवाई की और उनकी खुशी को अपनी खुशी जाना , शैतान की शागिर्दी की और अल्लाह व रसूल को नाराज व नाखुश किया , हाँ हकीकी सुन्नी व हन्फी वह है जो आशिके रसूल हो , बारगाहे रिसालत का गुस्ताख व मुज्मि न हो सहाबा व ताबईन और असलाफ व अकाबिर का अदब दाँ हो , औलिया - ए - उम्मत के तसर्राफात व इख़्तियारात का काइल व मोअतकिद हो।..✍️
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 50 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 11
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ मसलके आला हज़रत की सदाकत व हैसियत ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ इस नुक्त - ए - नज़र से जब आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरेलवी की तालीमात व तज्दीदी कारनामों का जाइजा लिया जाता है तो अंदाज़ा होता है कि उन्होंने जाते रसूले अकरम सल्लल्लाह तआला अलैहि वसल्लम से इश्क व एहतराम और उन से वालिहाना वारफ़्तगी व शैफ्तगी का दर्स मुहब्बत दिया है , सहाबा व ताबईन की बारगाहों का अदब बताया , औलिया - ए - उम्मत और असलाफ व अकाबिरे मिल्लत के मकाम व मंसब से आगाह व आशना कराया और बताया कि हकीकी सुन हन्फी वही है जो इन औसाफे मजकूरा का हामिल व अमीन हो वरना फिक्र व ऐतकाद की दुरुस्तर्ग के बगैर आदमी सच्चा पक्का मुसलमान नहीं हो सकता बल्कि उसके बगैर वह कुफ्र व शिर्क है दलदल से ही निकल नहीं सकता।
••• ➲ चूंकि आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरेलवी की मसाई जमीला और कोशिशों से दीन व सुव्रत को फरोग मिला आईने सुन्नत को रिवाज दिया गया , खास तौर से अहले . सुत्रत व जमाअत , बद अकीदों और बद मज़हबों मुम्ताज व नुमायाँ हो गए इसलिए वक्त के मशहूर व मुक्तदिर उलमा ने तशख्खुस व तफरीक के लिए “ मसलके आला हज़रत " कहना शुरू किया , मसलके आला हज़रत कहने से सहीहुल - अकीदा व बदअकीदा सुन्नी हन्फी के दरम्यान तपीक व तमीज पैदा हो गई।
••• ➲ दूध का दूध और पानी का पानी हो गया।..✍️
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 50 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 12
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ मसलके आला हज़रत की सदाकत व हैसियत ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ लिहाजा मानना पड़ेगा कि आला हज़रत वही है जो असलाफ व अकाबिर और औलियाए उम्मत व भशाइखे मिल्लत का मसलक है।
••• ➲ मसलके आला हजरत कोई नया व जदीद मसलक नहीं बल्कि अहले सुन्नत व जमाअत ही में इस्लाम के तमाम मबादियात व मोअतकेदात दाखिल हैं उसी तरह मसलके आला हज़रत भी इस्लाम के तमाम ऐतकदियात व मुबादियात से सरे गू मुनह या जुदा नहीं है।
••• ➲ बाज लोग यह कहते हैं कि इमाम आजम अबू हनीफा और हुजूर गौसे आजम रजि अल्लाहु तआला अन्हुमा का मकाम व मरतबा आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरेलवी से बढ़ कर है अगर कहना ही था तो ' मसलके इमाम आज़म " या " मसलक गौसे आजम ' कहा जाता ? इसका जवाब यही दिया जाता है कि अगर ऐसी सूरत में “ मसलके इमाम आज़म " कहा जाता तो गुमराह व बद दीन फिर्के और खुश अकीदा मुसलमानों के दरम्यान फर्क व इम्तियाज दुश्वार हो जाता।...✍️
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह 50-51 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 13
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ मसलके आला हज़रत की सदाकत व हैसियत ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ यही वजह है कि मसलके इमाम आज़म नहीं कहा जाता क्योंकि बद अकीदा और देवबन्दी लोग भी अपने को हन्फी और मसलके इमाम आज़म के पैरू कहलाते हैं। इसी तरह मसलके गौसे आजम भी नहीं कहा जाता क्यों कि बाज गुमराह मुल्हिद और खुराफाती लोग भी मशरबी ऐतबार से अपने को कादरी वगैरह कहलाते हैं। अगर मसलके इमाम आजम , या मसलके गौसे आजम वगैरह कहा जाता तो बैनन्नास हमारा मज़हबी व ऐतकादी तशख्खुस जाहिर न होता और न हम इन इनुल - वक्तों से मुम्ताज होते।
••• ➲ लिहाजा यह बावर व तस्लीम करना पड़ेगा कि मसलके आला हज़रत कहने से फिरकाहाए बातिला और हकीकी अहले सुन्नत के दरम्यान फर्क व इम्तियाज पैदा हो गया। आज के दौर में नजात व सलामती का जामिन यही है कि मसलके आला हज़रत कहा जाए वरना अपने आपकी शिनाख्त व पहचान मुश्किल होगी , अहले हक और अहले बातिल के दरम्यान फर्क और इम्तियाजी निशान का होना लाज़िम व जरूरी है।
••• ➲ इन हकाइक व सच्चाईयों के बावजूद अगर कोई मसलके आला हजरत के जवाज़ पर क़दगन व रोक लगाए वह अपने मसलक की शाने इम्तियाज़ बताए।
••• ➲ मसलके आला हज़रत की सदाकत व हकीकत और उसकी शरई हैसियत यही है इस पर बेजा कलाम की कोई गुंजाइश नहीं है , इस पर ऐतराज व अंगुश्त नुमाई करना मसलके हक से बगावत करना है।...✍️
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह 50-51 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 14
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ फैज़ाने आला हज़रत ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ इमाम अहले सुन्नत आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी कृदेसा सिरहू ने पचास से जाइद बल्कि जदीद तहकीक के मुताबिक सौ से जाइद उलूम व फुनून पर तकरीबन एक हजार किताबें तस्नीफ फरमाई अक्सर फुनून पर आपकी तसानीफ व यादगार मौजूद हैं उलूमे अक्लीया व नक्लीया का शायद ही कोई फन ऐसा है जिस पर आपकी तहरीर व तस्नीफ न हो।
••• ➲ आला हजरत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी के अन्दर हमागीरियत व हमादानी थी तस्नीफ ख्वाह किसी इल्म व फन की हो उसमें मुतअद्दद मौजूआत पर बहस व तम्हीस की जाती है और मसला दाइरा को दलाइल व बराहीन से वाजेह व मबरहन करके पेश किया जाता है पेश आमदा मस्ले पर इस शान से कलाम व गुफ्तगू करते हैं कि उसका कोई गोशा तिशन - ए - तक्मील नहीं रहता , हर जाविया निगाह से उसे मुकम्मल व आरास्ता करते हैं यह आपकी शाने तज्दीद और उलूम व फुनून पर महारत व दस्तरस की अदना मिसाल है।...✍️
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 51 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 15
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ फैज़ाने आला हज़रत ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ अह्या - ए - दीन व सुन्नत में तहरीर व तस्नीफ का एक अहम मकाम है तहरीरी व तस्नीफी सलाहियत व इस्तेअदाद के बगैर कमा हक्कुहू दीने मतीन की खिदमत और उलूमे इस्लामिया की इशाअत व तश्हीर मुम्किन नहीं। खालिके काइनात ने आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरेलवी कुदेसा सिर्रहू को दीनी जज्बा व शौक का खास हिस्सा अता फरमाया था जिसकी बदौलत वह उलूम व फुनून के बहरे बेकराँ हो गए उन्होंने जिरा गौज़ पर लग उठाया इल्म व फन का दरिया बहा दिया उनकी तहरीर सिक्क - ए - राइजुल - वगत हो गई उनके नाम से किसी तहरीर व इक्तिबास का हवाला उसके मुस्तनद व गोतबर होने की ज़मानत हो गई। उन्होंने जो लिखा कुरआन व हदीस इरशादाते सहाबा व ताबईन , कुतुबे शरीआ की इबारात व नुसूस और अक्वाले अइम्मा व असलाफ के हवाले से लिखा कोई भी बात बेसनद व गैर मोतबर न लिखी वह हर बात में हज़म व एहतियात का दामन थामे रहे , सिराते मुस्तकीम व राहे ऐतदाल से सरे मू इंहिराफ न किया गोया कि तक्सी अज़ल ने उन्हें साबित कदमी का वाफिर हिस्सा अता फरमाया था जिसकी बुनियाद पर वह किसी भी लरिज़श व बेराह रवी से हमेशा महफूज व मागून रहे कुदरत ने उनके कलम को अपने ज़िम्म - ए - करम पर ले लिया इसलिए वह गलतियों से पाक रहे!..✍️
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 51 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 16
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ फैज़ाने आला हज़रत ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ जेरे नज़र किताब " फैजाने आला हज़रत " के मजामीन व मवाद तसानीफे आला हजरत इमाम अहमद रजा बरेलवी कुदेसा सिर्रहू से माखूज़ व मुस्तखरज हैं। उनकी जुमला तसानीफ़ अगरचे इल्म व फनी होती हैं ज़्यादा तर उन्हें उलमा व दानिशवर ही समझ सकते हैं मगर इस किताब में जो मज़ामीन माखूज हैं उन्हें आसान व सहल अंदाज में पेश करने की कोशिश की गयी है और यह ख्याल रखा गया है कि अवाम व खवास दोनों के लिये यकसां मुफीद व कार आमद हो लेकिन तस्हील की हज़ार कोशिशों के बावजूद आला हज़रत की इल्मीयत की झलक इसमें ज़रूर जाहिर व हुवैदा हैं। ऐसा होना भी चाहिये था क्योंकि जो सरापा इल्म व फन हो उसके किसी भी हाल में इल्म की बस्ती से दूर नहीं किया जा सकता न उसकी इल्मीयत उससे खारिज हो सकती है। हां मैंने इस किताब के मज़ामीन व मवाद को इल्मीयत से ख़ारिज व जुदा नहीं किया है बल्कि उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा आसान व सहल अंदाज़ में सामने लाने की कोशिश की है मगर इस तरह कि उसकी असल रूह मुत्तअस्सिर नहीं हुई न उस से अंदाजे ब्यान व मआनी में कोई तब्दीली पैदा हुई न मफाहीम की अदाइगी में कोई फर्क पड़ा और न उसकी बरजस्तगी व सलामत व रवानी में कोई झोल वाकेअ हुआ!..✍️
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 51 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 17
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ फैज़ाने आला हज़रत ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ पेशे नज़र किताब में जो कुछ लिखा गया है वह तसानीफे आला हज़रत के हवाले से लिखा गया है हर मज्मून के आखिर में उस किताब का नाम और सफः नम्बर वगैरह दर्ज कर दिया गया है जिससे वह मज़मून माखूज है गोया कि हमने तसानीफे आला हज़रत को माखज़ व मरजा करार दिया है और इसी हैसियत से उनका हवाला भी दिया है अगरचे तसानीफे आला हज़रत का माखज भी दीगर कुतुबे शरीआ हैं। ख्याल यह है कि आज हमें तसानीफे आला हज़रत को इसी तरह माखज़ व मराजे करार देने का हक है जिस तरह दूसरे अइम्मा व उलमा की तसानीफ को माखज़ समझा जाता है जबकि सबका मंबझू व सर चश्मा आयात व अहादीस ही हैं फिर क्या वजह है कि हम तसानीफे आला हज़रत को माखज़ की हैसियत से पेश न करें। ज़माना माजी में यह हवाला दिया जाता था कि " इमाम गजाली फरमाते हैं या इमाम राजी व इमाम जलालुद्दीन सुयूती फरमाते हैं : इसके बाद फिर किसी हवाले की ज़रूरत नहीं रहती थी न इसके सुबूत में किसी किताब का नाम लिखा जाता था जबकि उन अइम्मा किराम की जुमला बातें भी खुद उनकी जे हनी काविश या दिमागी पैदावार की न होती थीं बल्कि वह भी शरई दलाइल के हवाले से कहते थे इसी तरह आज ज़माना हाल में अगर यह कहा जाए कि " आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी फरमाते हैं तो इसके बाद फिर दीगर हवालों की ज़रूरत क्यों है ?...✍️
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 51 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 18
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ फैज़ाने आला हज़रत ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ जबकि यह भी हवाले और शरई दलाइल के बगैर कोई बात नहीं कहते।
••• ➲ आलम यह है कि आला हजरत इमाम अहमद रज़ा बरैलवी कुऐसा सिर्रहू जब किसी भसअले के सुबूत में दलाइल व शवाहिद पेश करने पर आते हैं तो वक्त के राजी व गजाली से कम दिखाई नहीं देते , अहादीस व आसार पेश करने पर आते हैं तो इमाम बुखारी व इमाम मुस्लिम के हम्सर व हमपाया मालूम होते हैं।
••• ➲ इस सबके बावजूद दौरे हाज़िर के तकाज़ों का लिहाज़ा करते हुए मैंने आयाते कुरआनिया में सूरत व आयत नम्बर और अहादीस में उनकी असल किताबों के हवाले भी दर्ज कर दिए हैं जिनसे आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी कुदेसा सिरहू ने हदीसों का इस्तिखराज फरमाया है और कहीं कहीं दीगर कुतुब के हवालों का इन्दराज भी अमल में आया है।...✍️
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 51 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 19
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ फैज़ाने आला हज़रत ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ किताब " फैजाने आला हज़रत अहादीसे नब्बीया , आसारे सहाबा व ताबईन , इरशादात असलाफ व अकाबिर , अक्वाले अइम्मा व उलमा . इस्लाह अकाइद व आमाल , रद्द व इताल , पन्द्र व नसाइह . इबरत व मौएजत , औलिया - ए - किराम के सबक आमोज़ हिकायात व वाकेआत , फराइज़ व वाजिबात , सुनन व मुस्तहिब्बात . दीनी अहकाम व मसाइल वगैरह मरासिमे अहले सुन्नत पर एक अज़ीम व मालूमात अफ्ज़ा मुफीद किताब है इसे मसाजिद व मजालिस वगैरह में सुनाया जा सकता है इसी गरज़ से इसकी तरतीब व तश्कील भी अमल में आई है। इस किताब की तदवीन व तरतीब से किसी नई जमाअत व गरोह की तशकील व बिना या किसी की मुखालिफत व मुकाबला मक्सूद नहीं बल्कि इससे सिर्फ और सिर्फ मसलके आला हज़रत का फरोग व इस्तेहकाम और इस्लाह फिक्र व अमल मक्सूद व मद्दे नज़र है।...✍️
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 53 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 20
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ सबबे तालीफ़ ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ नबीर - ए - आला हजरत शहजाद - ए - रेहाने मिल्लत हजरत अल्हाज कारी मुहम्मद तस्लीम रजा खाँ साहब नूरी मद्दा जिल्लहुल - आली से एक मुलाकात के मौका पर मेरी बाज़ तालीफात मसलन “ इमाम अहमद रज़ा और इल्मे हदीस ( पाँच जिल्द ) सीरते मुस्तफा जाने रहमत , ( चार जिल्द ) फरमूदाते आला हजरत और उलूमुल - कुरआन वगैरह का जिक्र हुआ तो उ न्होंने उन्हें खूब सराहा और दुआयें दीं। नीज़ फरमाया कि “ फैजाने आला हज़रत " के नाम से एक किताब की ज़रूरत महसूस की जा रही है अगर आप उसे मुरत्तब करें तो बहुत बेहतर होगा आप उसकी तबाअत व इशाअत की फिक्र न करें मैं इसे " इमाम अहमद रजा लाइब्रेरी " की तरफ से छपवा दूंगा। उनके हुक्म पर मैंने अस्बात में जवाब तो दे दिया मगर कम माइगी और बेबज़ाअती का एहसास बशिद्दत दामनगीर हुआ और मैं सोचता रहा कि निशाने मंजिल के बगैर अज्मे सफर कैसे करूँ। बात तो समझ में आ गई थी कि " फैजाने आला हज़रत के नाम से किताब की वाकई ज़रूरत है जो मसाजिद व मजालिस वगैरह में अवामुन्नास को पढ़ कर सुनाया जा सके और जिसमें मसलके आला हज़रत के मुताबिक अकाइद व ईमानियात और मरासिम अहले सुन्नत वगैरह का जामेअ ब्यान हो।..✍🏻
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 53 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 21
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ सबबे तालीफ़ ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ मैं इसी गौर व फिक्र में मुस्तगरक व महव था कि शहज़ाद - ए - रेहाने मिल्लत कारी मुहम्मद तस्लीम रज़ा खाँ साहब नूरी से फिर दोबारा फोन पर बात हुई तो आपने मजीद ताकीद के साथ फरमाया कि आप जरूर फैजाने आला हज़रत ' की तरतीब शुरू कर दें और यह कि इस बात का भर पूर ख्याल रखा [ जाए कि इसके तमाम मज़ामीन व मवाद तसानीफ आला हज़रत ही से माखूज व मुस्तखरज हों क्योंकि मेरे रज़ा ने अपनी तसानीफे आलिया में कुछ भी नहीं छोड़ा सब कुछ ब्यान फरमा दिया है , उनकी तसानीफ में दुनिया - ए - इल्म य तहकीक के कीमती व अनमोल खजाने मौजूद हैं बस उन है। गौहर हाए आबदार निकालने की जरूरत है अगर ऐसा हो गया तो उन से दुनिया की आँखें चौंध और खीरा हो जाएँगी और दुनिया पुकार उठेगी कि वाकई इमाम अहमद रज़ा बरेलवी अपना जात व सिफात में एक जहाने हैरत और इल्म व फन की आमाजगाह हैं!..✍🏻
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह 53-54 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 22
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ सबबे तालीफ़ ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ फिर कुछ दिनों के बाद शहजाद - ए - रेहाने मिल्लत के हुक्म व ईमा के मुताबिक जाते वाजिबुल - वजूद पर वसूक व तवक्कल करते हुए इस अजीम काम का आगजा कर दिया कि इस अंजाम व इस्तिताम तक पहुँचाने वाला सिर्फ और सिर्फ वही खालिक व मालिक है मैं इब्तिदा इंतिहा में उसी रहमत व बरकात का उम्मीदवार व मुतलाशी हूँ। मैं कदम आगे बढ़ाता रहा मंजिल खुद बखुद सिमटती चली गई और यके बाद दीगर निशाने राह की तलाश जारी रही मेरी जुस्तान और मेरा कारवाने शौक बढ़ता चला गया इधर शहजाद - ए - रेहाने मिल्लत मद्दा जिल्लहुल - आलो के पैहम इसरार व तकाजे होते रहे जिसके नतीजे में आज अहले सुन्नत की मेज़ पर इस अजीम सौगात व अरमुगाने खुलूस को पेश करते हुए मैं जेहनी फख्न व इंबिसात और दिली फरहत व शादमानी महसूस कर रहा हूँ।..✍🏻
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 54 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 23
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ सबबे तालीफ़ ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ अगर यह काविश बारगाहे रब्बुल - इज़्जत व बारगाहे रिसालत में मक्बूल हो जाए तो मेरी उम्मीदों और आरजुओं की इंतिहा हो जाएगी और इस किताब के जरिए अगर एक शख्स भी राहे हिदायत व सिराते मुस्तकीम पर गामज़न व आमिल हो गया तो यह मेरे लिए सुर्ख ऊँट से बेहतर और दारैन की सआदत व फीरोज़ बख़्ती होगी और उसे सरमाय - ए - आखिरत समझने में हक बजानिब हूँगा।..✍🏻
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 54 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 24
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ तशक्कुर व इम्तिनान ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ नबीर - ए - आला हज़रत शहजाद - ए - रेहाने मिल्लत हजरत अल्हाज कारी मुहम्मद तस्लीम रज़ा खाँ साहब नूरी मद्दा जिल्लहुल - आली की बारगाह में हम तशक्कुर व इम्तिनान का खिराजे तहसीन पेश करते हैं कि उन्हीं के ईमा व इशारे पर “ फैजाने आला हजरत तरतीब दी गई और उनके मुसलसल इसरार व तकाजे की बुनियाद पर सिर्फ पाँच महीने की कलील मुद्दत में इसकी तकमील अमल में आई फिर उन्होंने अपना काइम करदा इदारा " इमाम अहमद रजा लाइब्रेरी रज़ा नगर सौदाग्रान बरैली शरीफ की जानिब से इसकी तबाअत व इशाअत का बारेगिराँ उठाया इसके लिए हम मजीद उनकी बारगाहे रफ़ी में हदिय - ए - तशक्कुर पेश करते हैं।..✍🏻
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 54 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 25
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ तशक्कुर व इम्तिनान ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ बरैली शरीफ अहले सुन्नत व जमाअत का अज़ीम मरकज़ है जहाँ पर हमा औकात तिशनगाने उलूमे नब्बीया का हुजूम व मेला लगा रहता है और कुछ लोग तो सिर्फ तसानीफे रजा की ज़्यारत व दीदार ही करना चाहते हैं , इस लाइब्रेरी का एक फाइदा यही होगा कि मुतमन्नी और शाइक लोग तसानीफे रज़ा की नज़र भर ज़्यारत कर सकेंगे और इल्मी इस्तिफादा करने वाले उन से बआसानी इस्तिफादा करके अपनी इल्मी प्यास बुझायेंगे। और यह कि आल हज़रत के शहर में अगर आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरेलवी कुदेसा सिरहू की तसानीफ से तिशनगी जाइल व दूर न होगी तो कहाँ दूर होगी। मुझे यकीन है कि ' इमाम अहमद रज़ा लाइब्रेरी अहले जौक को सामाने तस्कीन व तसल्ली फराहम करेगी और उसकी हरकत व बरकत से अहले शौक की तलाश व जुस्तजू को मंज़िले मक्सूद मिलेगी।..✍🏻
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 54 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 26
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ तशक्कुर व इम्तिनान ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ आज अगरचे यह इब्तिदाई मरहले में है मगर ,इसके उरूज व तरक्की से अंदाजा होता है कि एक दिन वह आएगा कि यह एक तनावर दरख्त की तरह पूरे मुल्क बल्कि पूरी दुनियाए सुनियत में छा जाएगी। काग अगरचे देर से शुरू हुआ मगर दुरुस्त और मुनासिब हुआ। ऐ रजा हर काम का इक वक्त है दिल को भी आराम हो ही जाएगा अखीर में हम अपने शफीक उस्ताजे मुकर्रम हजरत मौलाना मुहम्मद सालेह साहब कादरी बरेलवी शैखुल - हदीस मंजरे इस्लाम बरैली शरीफ की बारगाहे मुकद्दसा में बसद इज्ज व नियाज और ब - हजार अदब व खुलूस खिराजे तशक्कुर पेश करने की सआदतें हासिल कर रहे हैं कि उन्होंने इस किताब पर नज़रे सानी की और अपना कीमती वक्त सर्फ करके इसकी इस्लाह फरमाई।..✍🏻
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 54 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 27
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ तशक्कुर व इम्तिनान ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ हम फरामोश नहीं कर सकते उस्ताजियुल - करीम हजरत अल्लामा मुफ्ती सैय्यद मुहम्मद • आरिफ़ साहब रज़वी साबिक शैखुल - हदीस मंज़रे इस्लाम बरैली शरीफ व बानी जामिया हुसैनिया रज्वीया नानपारा को कि उन्होंने मुझे मुश्किल मोड़ पर महमीज़ की , अपने मुफीद मशवरों से नवाज़ा और किताब पर नज़रे सानी फरमाई।
••• ➲ रब्बे काइनात से दुआ है कि मेरे जुमला असातिजा किराम का साय - ए - आतिफ़त मेरे सर पर काइम व दाइम रहे उनके फुयूज़ व हसनात अगर मेरे सर पर साया फगन रहें तो यही मेरी कामयाबी की दलील व जमानत होगी। अपनी कम माइगी और बेबज़ाअती का ऐतराफ व इकरार करने में मुझे ज़रा भी झिझक नहीं इसलिए मैं तस्लीम करता हूँ कि इस राह में लग्जिशे पा जरूर हुई होगी मैं ठोकरों से महफूज नहीं हूँगा कारेईन किराम को इसमें अगर कोई कमी या खामी नज़र आए तो उसकी निशानदेही करने पर मैं दिल की गहराईयों से मम्नून व मशकूर हूँगा क्योंकि मैं इस राह में इस नए मुसाफ़िर की मानिन्द हूँ जो किसी नए शहर की गलियों में खो गया हो।..✍🏻
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 54 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 28
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ अल्लाह तआला की ज़ात व सिफात से मुतअल्लिक अकीदा ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
*बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
••• ➲ अल्लाह तआला तमाम कमालात व हसनात का जामेअ और जुमला उयूब व नकाइस से पाक मुबर्रा है। हर मख़्लूक उसके हुक्म की ताबेअ है उसके हुक्म से सरताबी नहीं कर सकता उसकी जात वाजियुल - वजूद अजली और अबदी है सब उसके मुहताज हैं उसे किसी की एहतियाज नहीं वह कादिरे मुतलक और फाइले मुख्तार है वह यक्ता व बेमिस्ल है उसकी जात और जुमला सिफात पर ईमान व ऐतकाद रखना लाज़िम व फर्ज है उस पर किसी तरह का कोई ऐब लगाना या उसे ऐब से पाक न समझना कुफ्र है।
••• ➲ *फ़ाइले मुख्तार व मुअस्सिरे हकीकी :* ईमान है कि अल्लाह तआला फाइले मुख़्तार है जो कुछ होता है उसी के इरादा से होता है और उसके इरादा के सिवा आलम में कोई शय मुअस्सिरे हक़ीकी नहीं, न आग जलाती है न पानी बुझाता है बल्कि उसी के इरादा से जलना बुझना पैदा होता है। उसने अपनी हिक्मते बालेगा के मुताबिक असबाब व मुसब्बबात में रब्त फरमा दिया है कि वह भी उसी के इरादा का हर वक़्त मुहताज है वह चाहे तो चीज़ पानी से जल जाए, आग से बुझ जाए आंखें सुनें, कान देखें, वगैरह जालिक , चाहे तो असबाब को मुअत्तल कर दे लाख सबब मौजूद हों और मुसब्बब न हो सके चाहे तो असबाब को मअजूल फरमा दे कोई सबब न हो और मुसब्बब मौजूद हो जाए। याद रखो कि अल्लाह तआला हर चीज़ पर कादिर है।..✍🏻
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 56 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 29
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ अल्लाह तआला की ज़ात व सिफात से मुतअल्लिक अकीदा ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
*बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
••• ➲ *हर कुफ्र मुस्तल्जिम है जेहल बिल्लाह को :* अल्लाह अज़्जा व जल्ल को जानना बेहम्देही तआला मुसलमानों के साथ खास है कोई काफिर किसी किस्म का हो हरगिज़ उसे नहीं जानता, कुफ्र कहते ही जेहल बिल्लाह को हैं, यानी मुसलमानों के सिवा अल्लाह तआला को कोई नहीं जानता कलिमा गो मुरतद अगरचे नमाजें पढ़ें, कालल्लाह, कालरसूल कहें अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल को हरगिज़ नहीं जानते।
📙 फतावा रज्वीया जिल्द अव्वल सफ़ह 735
••• ➲ *वह हर ऐब व नुक्स से पाक है :* जमीअ सिफाते कमाल, अल्लाह अज़्जा व जल्ल के लिए लाजिम जात हैं और जुम्ला उयूब व नंकाइसे किज़्ब, जेहल वगैरह वगैरह सब उस पर मुहाल बिज़्ज़ात हैं कि असलन किसी तरह इम्कान नहीं रखते।...✍🏻
📕 फतावा रज्वीया जिल्द अव्वल, सफ़ह 736
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 56 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 30
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ अल्लाह तआला की ज़ात व सिफात से मुतअल्लिक अकीदा ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
*••• ➲ रब तआला से सच्चा हुस्ने ज़न रखना* हज़रत हक अज़्ज़वज़ल अपने बन्दों के साथ उसके गुमान पर मुआमला फरमाता है।
••• ➲ हुजूर सैय्यदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम अपने रब जल्ला व उला से रिवायत फरमाते हैं कि मौला सुब्हानुहू व तआला फरमाता है , मैं अपने बन्दों के साथ वह करता हूँ जो , बन्दा मुझ से गुमान रखता है।
*📔 बुखारी , मुस्लिम , तिर्मिज़ी , निसाई , इब्ने माजा*
••• ➲ दूसरी हदीस में यह इरशाद जाइद है , अब जैसा चाहे मुझ पर गुमान करे।
*📓 तबरानी , हाकिम*
••• ➲ तीसरी हदीस में यूं ज़्यादत है अगर भला गुमान करेगा तो उसके लिए भलाई है और बुरा गुमान करेगा तो उसके लिए।..✍🏻
📕 मुसनद अहमद , तबरानी , हुलिया
*📔 फतावा रज्वीया जिल्द 2 , सफह 457 , 458*
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 56 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 31
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ अल्लाह तआला की ज़ात व सिफात से मुतअल्लिक अकीदा ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
*••• ➲ आखिरत में दीदारे इलाही :* अहले सुन्नत का ईमान है कि क्यामत व जन्नत में मुसलमानों को दीदारे इलाही बेकैफ व बेजेहत , व बेमुहाजात होगा।
*••• ➲ अल्लाह तआला फरमाता है :* कुछ मुँह तर व ताज़ा होंगे अपने रब को देखते हुए।
📕 अल - क्यामते , सफ़ह - 23
••• ➲ कुफ्फार के हक में फरमाता है बेशक वह उस दिन अपने रब से हिजाब में रहेंगे , यह काफिरों पर अज़ाबे ब्यान फरमाया गया है , तो ज़रूर मुसलमान उस से महफूज हैं।..✍🏻
📔 अल - मल्फूज़ अव्वल , सफह - 57
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 56 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 32
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ अल्लाह तआला की ज़ात व सिफात से मुतअल्लिक अकीदा ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
*••• ➲ अल्लाह के लिए लफ़्ज़ मुअन्नस का इस्तेमाल :* रब्बुल -- इज़्जत जल्ला जलालुहू की तरफ मुअन्नस का सेगा या मुअन्नस की ज़मीर इस्तेमाल करना जाइज़ नहीं , यहाँ तक कि अगर यह नमाज़ में जुबान से निकल जाए तो नमाज़ बातिल हो जाएगी।
••• ➲ हज़रत अबू सईद खुदरी रज़ि अल्लाहु तआला अन्हु अचानक सोते सोते उठ बैठे और बहुत रोए लोगों ने सबब दरयाफ्त किया , फरमाया मैंने देखा रब्बुल - इज्जत को कि फरमाता है तू अश्आर लैला व सलमा को मुझ पर महमूल करता है , अगर मैं न जानता कि तू मुझ से मुहब्बत रखता है तो वह अज़ाब करता जो किसी पर न किया हो।...✍
📒 अल - मल्फूज अव्वल , सफह - 98
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 56 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 33
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ अल्लाह तआला की ज़ात व सिफात से मुतअल्लिक अकीदा ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
*••• ➲ अल्लाह तआला पर अल्लाह मियां का इतलाक :* जुबान उर्दू में लफ्ज़ मियां के तीन मानी हैं, उनमें से दो ऐसे हैं जिन से शाने उलूहियत पाक व मुनज्जह है और एक का सिदक हो सकता है तो जब लफ्ज़ दो खंबीस मानों और एक अच्छे मानी में मुश्तरक ठहरा और शरअ में वारिद नहीं तो जाते बारी पर उसका इतलाक मम्नअ होगा इसके एक मानी मौला, अल्लाह तआला बेशक मौला है, दूसरे मानी शौहर, तीसरे मानी ज़िना का दलाल कि जानी और जानिया में मुतवस्सित हो।...✍🏻
📔 अल - मल्फूज अव्वल सफ़ह 116
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 57 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 34
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ अल्लाह तआला की ज़ात व सिफात से मुतअल्लिक अकीदा ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
*••• ➲ अल्लाह तआला की ज़ात व सिफात में गौर व खोज़ :* हम न उसकी जात से बहस कर सकते हैं न उसकी किसी सिफत से हदीस में इरशाद फरमाया अल्लाह की नेअमतों में फिक्र करो और उसकी ज़ात में फिक्र न करो हलाक हो जाओगे उसकी सिफात में फिक्र जात ही में फिक्र है, और इदराक कुनह सिफात, बेइदराकं कुनह जात मुम्किन नहीं कि उसकी सिफात को किसी मोतिन में जात से जुदाई मुहाल इसी लिए उन्हें ला ऐन व ला गैर कहा जाता है और कुनह ज़ात का इदराक मख्लूक को मुहाल कि वह हर शय को मुहीत है कोई उसे मुहीत नहीं कर सकता ला जरम कुनह सिफात का भी इदराक मुहाल।...✍🏻
*••• ➲ अल्लाह तआला को साहब कहना कैसा है :* जाइज़ है हदीस में है, और सरकारे रिसालत सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के लिए तो कुरआने अजीम साहर फरमाया गया लेकिन अल्लाह साहब कहना इस्माईल देहलवी का मुहावरा है और हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम यकीनन हमारे साहब हैं मगर नाम पाक के साथ साहब कहना आरिया पादरियों का मुहावरा है इसलिए न चाहिए आरिया पादरी वहाविया सब एक से हैं।...✍🏻
📔 अल - मलफूज सोम सफह 40
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 57 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 35
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ अल्लाह तआला की ज़ात व सिफात से मुतअल्लिक अकीदा ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
*••• ➲ हुजूर ने रब को देखा :* इमाम अहमद बिन हंबल रजि अल्लाहु तआला अन्हु एक मरतबा खलवत में लेटे हुए थे साहब ने पूछा क्या हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने अपने रब को देखा, यह सुनते ही उठ कर बैठ गए और फरमाने लगे हुजूर ने अपने रब को देखा देखा, फरमाते रहे यहां तक कि सांस खत्म हो गई।
📕 अल मल्फूज़ सोम सफह 37
*••• ➲ अल्लाह तआला का ज़माना से पाक होना :* रब्बुल - इज्जत ज़माने से पाक है मगर बोलते हैं वह अज़ल में भी ऐसा ही था जैसा अब है और अबद तक वैसा ही रहेगा, था और है और रहेगा यह सब ज़माने पर दलालत करते हैं और वह जमाने से पाक और हवादिस जो हैं फिल हकीकह वह भी ज़माना से जुदा हैं मगर उनका ज़माने से जुदा होना अक्ल बताएगी और किसी ज़रिया से न मालूम होगा।..✍🏻
📔 अल - मल्फूज़ चहारुम सफह 65
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 58 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 36
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ अल्लाह तआला की ज़ात व सिफात से मुतअल्लिक अकीदा ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
*••• ➲ वह बेहद ज़ाहिर भी है और बेहद बातिन भी :* वह तो आरफुल - मआरिफ़ है हर शय को तअय्युन तो वहीं से अता होती है। वह तो इस कदर ज़ाहिर है कि उसका बेगायत जुहूर, वही सबब हो गया बेगायत बुतून का काइदा है कि शय जब तक एक हद मोअताद तक ज़ाहिर रहती है मरई होती है और जब उस हद से गुजरती है नज़र नहीं आती आफताब, तुलू के बाद कुछ बुखारात, सहाबात वगैरह में होता है पूरी तरह नज़र आता है, खूब अच्छी तरह उस पर निगाह जम सकती है, और जितना बुलन्द होता जाता है निगाह में खैरगी आती जाती है यहां तक कि जब बिल्कुल निस्फुन्नहार पर आ जाता है, निगाह की मजाल नहीं कि उस पर जम सके मगर फिर भी उसका जुहूर एक हद ही तक है इसलिए अगरचे हम उसको देख नहीं सकते फिर भी उसकी रौशनी से मुस्तफीद हो सकते हैं।
••• ➲ चौदहवीं शब को जब आफताब हम से बिल्कुल पोशीदा हो जाता है किसी की ताकत नहीं कि आफताब से रौशनी ले सके, उस वक्त माहताब, आफताब और अहले जमीन के दरम्यान मुतवस्सित हो कर आफताब से नूर लेता है और अहले ज़मीन को नूर पहुँचाता है जो चाहे कि उस माहताब से नूर न लूंगा बल्कि आफताब ही से लूंगा हरगिज़ नहीं ले सकता।...✍🏻
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 58 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 37
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ अल्लाह तआला की ज़ात व सिफात से मुतअल्लिक अकीदा ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
*••• ➲ माहताबे नबुव्वत का तवस्सुत व वसीला* बिला तश्वीह जाते बारी तआला , बेहद ज़ाहिर थी और इसी सबब से बेहद बातिन थी तमाम मौजूदात में इससे मुस्तफीद होने की इस्तेदाद भी न थी , इसलिए अल्लाह तआला ने एक माहताबे नबुव्वत बनाया कि आफताबे उलूहियत से मुनव्वर हो कर तमाम मख्लूकात को मुनव्वर कर दें।
अर्श तक फैली है ताबे आरिज
यूं चमकते हैं चमकने वाले
••• ➲ जो चाहे कि बगैर वसीले उस माहताबे रिसालत सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के , कुछ हासिल कर लूँ वह खुदा के घर में नकब लगाना चाहता है , बगैर उस तवस्सुल के कोई नेअमत , कोई दौलत किसी को कभी नहीं मिल सकती कौन है जिसरो तमाम आलम मुनव्वर व मौजूद है वह न हो तो तमाम आलम पर तारीकी अदम छा जाए , वह कमरे बुरुजे रिसालत सैय्यदना मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम हैं।..✍🏻
📕 अल - मल्फूज चहारुम , सफह - 70
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 58 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 38
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ अल्लाह तआला की ज़ात व सिफात से मुतअल्लिक अकीदा ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
*••• ➲ अल्लाह को आशिक कहने की मुमानेअत क्यों ?* अल्लाह तआला को आशिक और हुजूर पुर नूर सरवरे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को उसका मअशूक कहना जाइज़ नहीं कि इश्क के मानी अल्लाह अज्जवजल के हक में मुहाल कतई हैं और ऐसा लफ़्ज़ हज़रते इज्जत की शान में बोलना मम्नूअ कतई है जिसके लिए कोई दलीले शरई वारिद नहीं।
••• ➲ फुकहाए किराम फरमाते हैं कि सिर्फ मआनी मुहाल का ईहाम ही माना के लिए काफी है।
••• ➲ हमारे उलमा - ए - हन्फीया रज़ि अल्लाहु तआला अन्हुम से मन्कूल है कि अगर कोई कहे कि मैं अल्लाह से इश्क करता हूँ या वह मुझ से इश्क करता है तो वह बिदअती है , हाँ यह कहा जा सकता है कि वह मुझ से मुहब्बत फरमाता है मैं उस से मुहब्बत करता हूँ।..✍🏻
📕 फतावा रज्वीया , जिल्द 9 , सफ़ह 1061
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 59 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 39
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ अल्लाह तआला की ज़ात व सिफात से मुतअल्लिक अकीदा ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
*••• ➲ अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल की तंज़ीह में अहले सुन्नत के अक़ीदे* जो बात अल्लाह तआला की शान के लाइक है उसका इतलाक उस पर दुरुस्त है और जो बात उसकी शान व सिफ़त के लाइक नहीं उसके लिए उसका इस्तेमाल जाइज नहीं , इस सिलसिले में अहले सुन्नत व जमाअत के अकीदे यह हैं। ( मुरत्तिब )
••• ➲ 1. अल्लाह तआला हर ऐब व नुक्सान से पाक है।
••• ➲ 2. सब उसके मुहताज हैं वह किसी चीज की तरफ किसी बात में बिल्कुल एहतियाज नहीं!
••• ➲ 3. मलूक की मुशाबेहत से मुनज़्जह है।
••• ➲ 4. इसमें तगैय्युर नहीं आ सकता , अज़ल में जैसा था वैसा ही अब है और वैसा ही हमेशा हमेशा रहेगा यह कभी नहीं हो सकता कि पहले एक तौर पर हो फिर बदल कर और हालत पर हो जाए।
••• ➲ 5. वह जिस्म नहीं , जिस्म वाली किसी चीज़ को उस से लगाव नहीं!...✍🏻
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 59 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 40
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ अल्लाह तआला की ज़ात व सिफात से मुतअल्लिक अकीदा ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ 6. उसे मिक्दारे आरिज नहीं कि इतना या उतना कह सकें , लम्बा या चौड़ा या दिल्दार मोटा , या पतला , या बहुत थोड़ा या नाप या गिनती या तौल में बड़ा या छोटा या भारी या हल्का नहीं।
••• ➲ 7. वह शक्ल से मुनजह है फैला या सिम्टा गोल या लम्बा तिकोना या चौखटा , सीधा या तिरछा या और किसी सूरत का नहीं।
••• ➲ 8. हद व तरफ व निहायत से पाक है , और इस मानी पर लामहदूद भी नहीं कि बेनिहायत फैला हुआ हो बल्कि यह मानी कि वह मिक्दार वगैरह तमाम ऐराज से मुनज्जह है , गरज नामहदूद कहना नफी हद के लिए है न अस्वाते मिक्दार बेनिहायत के लिए।
••• ➲ 9. वह किसी चीज़ से बना नहीं।
••• ➲ 10. उसमें अज्जा या हिस्से फर्ज नहीं कर सकते!...✍🏻
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 59 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 41
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ अल्लाह तआला की ज़ात व सिफात से मुतअल्लिक अकीदा ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ 11. जेहत और तरफ से पाक है जिस तरह उसे दहने बायें या नीचे नहीं कह सकते यूं हैं जेहत के मानी पर आगे पीछे या ऊपर भी हरगिज़ नहीं।
••• ➲ 12. वह किसी मख्लूक से मिल नहीं सकता कि उस से लगा हुआ हो।
••• ➲ 13. किसी मख्लूक से जुदा नहीं कि उसमें और मलूक में मुसाफत का फासला हो।
••• ➲ 14. उसके लिए मकान और जगह नहीं।
••• ➲ 15. उठने . बैठने , उतरने , चढ़ने , चलने , ठहरने वगैरह तमाम अवारिणे जिस्म जिस्मानियात में मुनज़्ज़ा है।
📒 फतावा रज्वीया जिल्द 11. सफह 220
••• ➲ और बाज़ अकाइदे मजकूरा बाला एक और मकाम पर दूसरे अंदाज में इमाम अहले सरकारे आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरैलची अलैहिर्रहमा वरिज़वान यूं व्यान फरमाते हैं : वह मकान व तमक्कुन से पाक है , न अर्श उसका मकान है , न दूसरी जगह , अर्श व फर्श : हादिस हैं और वह कदीम अज़ली अबदी सरमदी जब तक यह कुछ न थे कहाँ था जैसा जब था वैसा ही अब है . और जैसा अब है वैसा ही अबदल - आबाद तक रहेगा। अर्श व फर्श सब मुतगैय्यर हैं। हादिस हैं , फानी हैं , वह और उसकी सिफात तगैय्युर व हुदूस व फना सब से पाक है।...✍🏻
📕 फतावा रज्वीया जिल्द 11 , सफह 49
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 59 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 42
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ अल्लाह तआला की ज़ात व सिफात से मुतअल्लिक अकीदा ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ *अल्लाह तआला को हाज़िर व नाज़िर कहना कैसा है ?* अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल को हाज़िर व नाज़िर कहना नहीं चाहिए क्योंकि हाज़िर व नाज़िर होना जिस्म व जिस्मानियात को मुस्तल्ज़िम है और वह उस से पाक है चुनांचे आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी अल्लाह अज़्जा व जल्ल को हाज़िर व नाजिर कहने से - मुतअल्लिक एक सवाल के जवाब में फरमाते हैं : अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल शहीद व बसीर है , उसे हाज़िर व नाज़िर न कहना चाहिए
••• ➲ यहाँ तक कि बाज उलमा ने इस पर तक्फीर का ख्याल फरमाया , मगर हमारे अकाबिर यह फरमाते हैं कि जो ऐसा कहता है खता करता है , बचना चाहिए।...✍🏻
📕 फतावा रज्वीया जिल्द 6. सफह 157
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 60 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 43
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ अल्लाह तआला की ज़ात व सिफात से मुतअल्लिक अकीदा ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ *अल्लाह के नज़दीक किस बन्दे का मरतबा कितना ? :* अल्लाह तबारक व तआला कुरआने मुकद्दस में फरमाता है कि तुम मुझे याद करो मैं तुम्हारा चर्चा करूँगा और मेरा शुक्र करो नाशुक्री न करो।
📔 अल - बक़रह , 152
••• ➲ बन्दा जब अल्लाह तआला को किसी मज्लिस में याद करता है तो अल्लाह तआला उसे उस से बेहतर मज्लिस में याद फरमाता है गोया कि अगर बन्दा अल्लाह तआला को याद करेगा तो अल्लाह तआला उसकी तरफ नज़रे रहमत फरमाएगा।
••• ➲ हदीस में है नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम फरमाते हैं जो यह जानना पसन्द करे कि अल्लाह के नजदीक उसका मरतबा कितना है, वह यह देखे कि उसके दिल में अल्लाह की कद्र कैसी है कि बन्दे के दिल में जितनी अज़मत अल्लाह की होती है, अल्लाह उसी के लाइक अपने यहां उसे मरतबा देता है।...✍🏻
📕 फतावा रज्वीया जिल्द 8, सफ़ह 457
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 60 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 44
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ नबुव्वत व रिसालत से मुतअल्लिक ईमानी बातें ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ हुजूर सरवरे कौनैन सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम रसूले बरहक और सैय्यदुल अंबिया हैं, उन पर और जो वह खुदा की तरफ से लेकर आए सब पर ईमान रखना फर्ज है, उन पर ऐव लगाना, उनकी तंकीस व तौहीन करना या उनकी शाने अक्दस में नाजेबा कलिमात कहना कुफ्र है, इसी तरह जितने अंबियाए किराम अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम दुनिया में तशरीफ लाए सवको वरहक मानना फर्ज है, एक नबी की तौहीन व तक्ज़ीब जुमला अंबिया व मुरसलीन सलवातुल्लाहे तआला अलैहिम अज्मईन की तक्ज़ीब व तौहीन को मुस्तल्जिम है। यह ईमान रखना भी लाजिम है वाज अंबिया को अल्लाह तआला ने बाज़ पर फजीलत दी है उनमें सैय्यदुल मुरसलीन जनाब मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को सबसे अफ़ज़ल व आला बनाया है।...✍🏻
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 61 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 45
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ नबुव्वत व रिसालत से मुतअल्लिक ईमानी बातें ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ *मसला हयाते अंबिया :* अंबिया अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम हाले हयात व हाले वफात में हमेशा हर वक्त तैय्यिब व ताहिर हैं। अंबिया किराम अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम की मौत यानी उनके अज्सामे तैय्यबा से अरवाहे ताहिरा का जुदा होना सिर्फ एक आन के लिए होता है फिर वैसे ही ज़िन्दा हो जाते हैं जैसे हाले हयाते ज़ाहिरी में थे जिस्म व रूह से मअन व लिहाजा उनका तरका नहीं बटता न उनके बाद उनकी अज़्वाज से निकाह जाइज।
••• ➲ अंबिया किराम अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम को मुर्दा कहना हराम, बल्कि मआजल्लाह बतौर तौहीन हो तो सरीह कुफ्र है, अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल ने शोहदा को मुर्दा कहने से मना फरमाया अंबिया अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम की हयात उन से बदरजहा ज़ाइद है शहीद की हयात अहकामे दुनिया में नहीं उसका तरका बटेगा, उसकी बीबी इद्दत के बाद निकाह कर सकेगी, बखिलाफ अंबिया किराम अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम।...✍🏻
📙 हाशिया फतावा रज्वीया जिल्द अव्वल, सफ़ह 611
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 61 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 46
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ नबुव्वत व रिसालत से मुतअल्लिक ईमानी बातें ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ *हुजूर जान व माल के मालिक हैं :* रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम मुसलमानों के जान व माल के मालिक हैं, अगर वह किसी मुसलमान से कुछ तलब फरमायें यह मआज़ल्लाह सवाल नहीं बल्कि यकीनन ऐसा है जैसे मौला अपने गुलाम से उसकी कमाई का कुछ ले कि गुलाम और उसकी कमाई सब मौला की मिल्क है इसी लिए सिद्दीके अकबर रज़िअल्लाहु तआला अन्हु ने अर्ज की मैं और मेरा माल किसके हैं हुजूर ही के हैं या रसूलुल्लाह।
📙 हाशिया फतावा रज्वीया जिल्द अव्वल , सफ़ह 755
••• ➲ अल्लाह की अता से हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को अपनी उम्मत पर उनके जान व माल में तसर्रुफ का पूरा इख़्तियार हासिल है कि जिस तरह चाहें सर्फ में लायें किसी उम्मती को चूं चरा की गुंजाइश नहीं चुनांचे कुरआने करीम की रौशनी में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी रहमतुल्लाह तआला अलैह तहरीर फरमाते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम मुसलमानों पर उनकी जानों से ज़्यादा इख्तियार रखते हैं।...✍🏻
📙 हाशिया फतावा रज्वीया जिल्द अव्वल सफ़ह 755
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 61 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 47
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ नबुव्वत व रिसालत से मुतअल्लिक ईमानी बातें ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ *मुंइम हकीकी अल्लाह , कासिम हुजूरे वाला :* हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम तमाम जहान के लिए नेअमते इलाहिया हैं, हर खैर, हर नेअमत, हर मुराद, हर दौलत, दीन में, दुनिया में, आखिरत में, रोजे अव्वल से आज तक, आज से अबदुल - आबाद तक जिसे मिली या मिलनी है हुजूरे अक्दस सैय्यदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के दस्ते अक्दरा से मिली और मिलनी है मोअती हकीकी अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल है और उसकी नेअमतों के बांटने पाले सिर्फ मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम, दूसरे से कोई नेअमत, कोई मुराद किसी को कभी न मिले।...✍🏻
📕 फतावा रज्वीया जिल्द अव्वल सफ़ह 535
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 61 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 48
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ नबुव्वत व रिसालत से मुतअल्लिक ईमानी बातें ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ *कल्बे रसूल की बेदारी :* हुजूर सैय्यदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम फरमाते हैं कि मेरी आंखें सोती हैं मेरा दिल नहीं सोता। इसी तरह अंबिया किराम अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम की आँखें सोती हैं दिल कभी नहीं सोता, यही वजह है कि अंबिया किराम अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम का वजू सोने से नहीं जाता हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम का कल्बे मुबारक अफ्कारे सालेहा मुतवातिर वहय व इल्हाम और मआरिफे इलाहिया में मुस्तगरक रहने के सबब से नहीं सोता है।...✍🏻
📕 फतावा रज्वीया जिल्द अव्वल सफ़ह 91
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 61 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 49
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ नबुव्वत व रिसालत से मुतअल्लिक ईमानी बातें ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ *हालते जनाबत में हुजूर का मस्जिद में आना :* जनाबत की हालत में किसी शख्स को मस्जिद में आने की इजाजत नहीं मगर हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को मस्जिद में तशरीफ लाना और मस्जिद में क्याम फरमाना जाइज व मुबाह था। एक मरतबा इकामत होने के बाद सफों को दुरुस्त किया गया फिर हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम तशरीफ लाए जब हुजूर मुसल्ला पर खड़े हुए तो हुजूर को ख्याल आया कि हुजूर जुनुब हैं यानी गुस्ल की हाजत है, हुजूर ने सहाबा किराम से फरमाया कि तुम लोग अपनी जगह पर खड़े रहो हुजूर वापस गए गुस्ल फरमाया फिर जब तशरीफ लाए तो हुजूर के सरे मुबारक से पानी के कतरे टपक रहे थे।
📙 फतावा रज्वीया जिल्द अव्वल सफ़ह 638
••• ➲ *किसी नबी की तरफ निस्बते मअसियत हमें हलाल नहीं :* गैर तिलावत में अपनी तरफ से सैय्यदना आदम अलैहिस्सलातु वस्सलाम की तरफ नाफरमानी व गुनाह की निस्बत हराम है, अइम्म - ए - दीन ने इसकी तसरीह फरमाई बल्कि एक जमाअत उलमा ए किराम ने इसे कुफ्र बताया। मौला को शायां है कि अपने महबूब बन्दों को जिस इबारत से ताबीर फरमाए दूसरा कहे तो उसकी ज़बान गुदी के पीछे से खींची जाए। यानी तिलावते कुरआन या किरात हदीस के सिवा अपनी तरफ से आदम अलैहिस्सलातु वस्सलाम ख्वाह किसी नबी को मअसियत की तरफ मंसूब करना सख़्त हराम है।...✍🏻
📕 फतावा रज्वीया जिल्द अव्वल सफ़ह 233
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 61 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 50
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ नबुव्वत व रिसालत से मुतअल्लिक ईमानी बातें ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ *हुजूर का गुसाला :* हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के वुजू बल्कि गुस्ले जनाबत का भी पानी हमारे हक में ताहिर मुतहिहर है इसी तरह तमाम अंबिया किराम अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम यानी जिनके वजू व गुस्ल का गुसाला हमारे हक में पाक व साफ है तो उनकी तरफ किसी मअसियत व गुनाह की निसबत क्यों कर जाइज़ हो सकती है उनके नाम पाक से दिलों का मैल धुल जाता है।
📙 हाशिया फतावा रज्वीया जिल्द अव्वल सफ़ह 254
••• ➲ जिस तरह हुजूर सैय्यदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के जिस्मे अक्दस का गुसाला शरीफ पाक है उसी तरह हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के आसारे शरीफा मिस्ल जुब्ब ए अक्दस व नअल मुबारक का गुसाला शिफा व बरकत और काविले वुजू व मोअती तहारत है मगर पाँव पर न डाला जाए।
📗 फतावा रज्वीया जिल्द अव्वल सफ़ह 456
••• ➲ *हुजूर का फज्ल व शरफ :* रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने किसी चीज़ से शरफ न पाया बल्कि जो चीज़ हुजूर की तरफ मंसूब हो गई उसे शरफ मिल गया। अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल गैर अफ्ज़ल अशिया को भी अपने हबीब सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के मुतअल्लिक फरमाता है ताकि उन अशिया को फज़्ल हासिल हो, लिहाजा विलादते अक्दस माह रबीउल - अव्वल शरीफ में हुई न माह मुबारक रमजान में, और रोज़ जाँ अफरोज दोशंबा हुई, न रोजे मुबारक जुमा, और मकान मूलिदे अक्दस में हुई न काबा मुअज्जमा में।...✍🏻
📕 हाशिया फतावा रज्वीया जिल्द अव्वल सफ़ह 552
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 62 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 51
••──────────────────────••►
❝ 👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ❞
••──────────────────────••►
*❝ नबुव्वत व रिसालत से मुतअल्लिक ईमानी बातें ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ *नवाकिजे वुज़ू :* बाज़ नवाकिजे वजू अंबिया किराम अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम के लिए यूं नाकिज नहीं कि उनका वकूअ ही उन से मुहाल है, जैसे जुनून या नमाज़ में कहकहा नींद के सिवा बाकी और नवाकिज़ से भी अंबिया अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम का वुजू जाता या नहीं, इसमें इख़्तिलाफ है।
••• ➲ अल्लामा कहिस्तानी वगैरह ने फरमाया अंबिया अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम का वुजू नहीं जाता।
••• ➲ आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरेलवी कुद्देसा सिर्रहू की तहकीक यह है कि नवाकि जे हुक्मीया मिस्ल ख्वाब व गशी से नहीं जाता, और नवाकिजे हकीकीया मिस्ल बोल वगैरह से उनकी अज़मते शान के सबब से जाता रहता है।
••• ➲ नींद के मिस्ल गशी भी अंबिया अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम के जिस्मे जाहिर पर तारी हो सकती दिल मुबारक इस हालत में भी बेदार व ख़बरदार रहता।...✍🏻
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 63 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 52
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ नबुव्वत व रिसालत से मुतअल्लिक ईमानी बातें ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ *फुलाते शरीफ़ा :* हुजूर सैय्यदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के फुलाते शरीफ़ा मिस्ल पेशाब वगैरह सब तैय्यिब ताहिर थे जिनका खाना पीना हमें हलाल व बाइसे शिफा व सआदत मगर उतर की अज़मते शान के सबब हुजूर के हक में हुक्मे नजासत रखते।
📙 हाशिया फतावा रज्वीया जिल्द अव्वल सफ़ह 92-93
••• ➲ इंसान का नुत्फा जिस से आदमी की पैदाइश होती है उसके पाक व नापाक होने से मुतअल्लिक एक सवाल के जवाब में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी कुद्देसा सिर्रहू तहरीर फरमाते हैं मनी मुतलक नापाक है सिवा उन पाक नुत्फ़ों के जिन से तख़्लीक हज़रत अंबिया अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम हुई, और खुद अंबिया किराम अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम के नुत्फे, कि उनका पेशाब भी पाक है यूंही तमाम फुज्लात।
📕 फतावा रज्वीया जिल्द दोम , सफ़ह 138
••• ➲ एक और मकाम पर आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरेलवी कुद्देसा सिरहू इरशाद फरमाते हैं अंबिया अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम के फुलाते शरीफ़ा पाक हैं और उनके वालिदैन करीमैन के वह नुत्फे भी पाक हैं जिन से यह हज़रात पैदा हुए।...✍🏻
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 63 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 53
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ नबुव्वत व रिसालत से मुतअल्लिक ईमानी बातें ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ *हज़रत जाबिर की ख्वाहिश :* हज़रत जाबिर रजि अल्लाहु तआला अन् फरगाते हैं हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के हमराह था हुजूर को कजाए हाजत की जरूरत हुई दो मुतफर्रिक पेड़ अलग अलग खड़े थे और कुछ पत्थर इधर उधर पड़े थे हुजूर ने इरशाद फरमाया ऐ जागिर इन पेड़ों और पत्थर से जाकर कह दो कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम) का हुक्म है कि तुम आपस में मिल जाओ, हज़रत जाबिर रजि अल्लाहु तआला अन्हु ने जाकर फरमाया दोनों पेड़ों ने जुविश की और अपने तमाम रग व रेशा जमीन से निकाले, एक इधर से चला और दूसरा उधर से, और दोनों मिल गए और पत्थरों ने एक दीवार की मिस्ल हो कर उड़ना शुरू किया और दरख्तों के पास आकर खाड़े हो गए। फिर हुजूर वहाँ तशरीफ ले गए और कजाए हाजत फरमाई, जब फारिग हो कर तशरीफ लाए मैं गया इस कस्द से कि जो कुछ खारिज हुआ हो उसको खाऊं वहाँ कुछ न था अल्बत्ता उस जगह मुश्क की खुशबू आ रही थी फरमाया इन पेड़ों और पत्थरों से कहो अपनी अपनी जगह चले जाओ वह अपनी अपनी जगह चले गए। मैंने अर्ज किया कि हुजूर मैं इस नीयत से गया था कि जो कुछ मिले उसको तबर्सकन खाऊं , वहाँ सिवाए मुश्क की खुश्बू के और कुछ न पाया, फरमाया तुमको मालूम नहीं कि जमीन निगल लेती है जो अंबिया से खारिज होता है (फिर आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरेलवी ने मुस्कुरा कर फरमाया) जो अच्छी चीज़ होती है उसको ज़मीन ही नहीं छोड़ती।...✍🏻
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 64 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 54
••──────────────────────••►
❝👑 फैज़ान ए आला हज़रत رحمۃ اللہ تعالی علیہ ❞
••──────────────────────••►
*❝ नबुव्वत व रिसालत से मुतअल्लिक ईमानी बातें ❞*
••──────•◦❈◦•──────••
••• ➲ (फिर फरमाया) सब अंबिया अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम ताहिर महज़ हैं और जो शय उन से इलाका रखने वाली है सब ताहिर, हाँ उनके फुज़्लात खुद उनके हक में ऐसे ही नजिस हैं जैसे हमारे नज़्दीक हमारे फुलात नजिस हैं और अगर उन से कोई फुज्ला खारिज हो जो हमारे लिए नाकिजे वुजू है तो बेशक उनका वुजू भी टूट जाएगा। फिर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी इश्क भरे अंदाज़ में फरमाते हैं कि मेरी नज़र में इमाम इब्ने हजर अस्कलानी शारेह सहीह बुखारी की वक्अत इब्तिदाअन इमाम बदरुद्दीन महमूद ऐनी शारेह सहीह बुखारी से ज़्यादा थी, फुज्लाते शरीफा की तहारत की बहस इन दोनों साहिबों ने की है इमाम इब्ने हजर ने इब्हासे मुहदेसाना लिखी हैं कि यूं कहा जाता है, और इस पर यह ऐतराज है, यूं कहा जाता है और उस पर यह ऐतराज है, अखीर में लिखा है कि फुलाते शरीफ़ा की तहारत उनके नजदीक साबित नहीं। इमाम ऐनी ने भी शरह बुखारी में इस बहस को बहुत बस्त से लिखा है आखिर में लिखते हैं कि यह सब कुछ इब्हास हैं, जो शख़्स तहारत का काइल हो उसको मैं जानता हूँ और जो उसके खिलाफ कहे उसके लिए मेरे कान बहरे हैं, मैं सुनता नहीं, यह लफ्ज़ उनकी कमाले मुहब्बत को साबित करता है और मेरे दिल में ऐसा असर कर गया कि उनकी वकअत बहुत हो गई।
••• ➲ *आज़ा ए शरीफ़ा :* अंबिया अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम के आजाए शरीफ मसलन मूए मुबारक और दन्दाने शरीफ और नाखुन शरीफ का खाना नाजाइज़ व हराम है, इन्तिजाल व तौहीन है, जो चीज़ हराम की गई उसकी हिल्लत की कोई वजह नहीं वह मुबाह नहीं हो सकती अगर तबलंक चाहता है पानी में धो कर पिए।...✍🏻
📙 अज - मल्फूज हिस्सा चहारुम, सफ़ह 23-24
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 फैज़ाने आला हजरत सफ़ह - 64 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►